जब तक याट-टो शीशे के दो मगों में बीयर लेकर नहीं आया सुषमा एकदम चुप रही । उसके चेहरे पर चिन्ता के लक्षण प्रकट होने लगे थे ।
सुषमा ने बीयर का एक घूंट पिया और मग को अपनी अगल में सोफे पर ही रख दिया ।
प्रमोद ने उसे टोकना उचित नहीं समझा।
"मैं कहां से शुरू करू ?" - सुषमा बोली ।
" शुरू से ही।" - प्रमोद ने उत्तर दिया ।
"ठीक है सुनो। जगन्नाथ राबर्ट स्ट्रीट की एक शानदार इमारत के एक कमरे वाले फ्लैट में रहता था । फ्लैट में उसके साथ एक रसोइया और भीम सिंह नाम का एक पहलवान टाइप का आदमी रहता था । जो वास्तव में जगन्नाथ का अंग रक्षक था । फ्लैट में जगन्नाथ के तीन निजी कमरे थे । जिन्हें वह अपने आफिस बैडरूम और सिटिंगरूम की तरह इस्तेमाल करता था । वे तीनों कमरे बाकी फ्लैट से एक इकलौते द्वार से अलग किये गये थे और उस द्वार पर भीम सिंह पहरा देता रहता था । भीम सिंह वहां से तब तक नहीं हिलता था जब तक जगन्नाथ उसे जाने के लिये न कहे । भीम सिंह की नजर में आये बिना जगन्नाथ तक पहुंचना असम्भव था । जगन्नाथ के तीन कमरों का एक रास्ता इमारत के पिछवाड़े की सीढियों की ओर भी खुलता था । उस रास्ते के द्वार पर एक बेहद मजबूत ताला लगा रहता था । जिसकी इकलौती चाबी केवल जगन्नाथ के पास थी । इस बात की गारन्टी है कि वह ताला किसी अन्य चाबी से नहीं खोला जा सकता । वह कभी किसी आदमी को उस रास्ते से भीतर नहीं बुलाता था लेकिन वह खुद जब चाहे उस रास्ते से आ जा सकता था ।"
"तुम मुझे फ्लैट का नक्शा समझाने में इतनी मेहनत क्यों रही हो ?"
“क्योंकि यह जानकारी मेरी बात समझने के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध होगी ।"
"और ये बातें तुम्हें कैसे मालूम हैं ?"
"मैंने अखबार में से पढी हैं । "
"अखबार में से ! अखबार में तो अभी इस विषय में कुछ भी नहीं छपा है ।"
"सुबह के अखबार में नहीं छपा था लेकिन अभी आधा घन्टा पहले ‘ब्लास्ट’ ने दो पृष्ट का एक स्पेशल एडीशन निकाला है । उसमें इस केस का पूरा वृतान्त निकाला है । ब्लास्ट का सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम का कोई विशेष प्रतिनिधि है जो फर्स्ट हैण्ड मैटर लाने में मास्टर है । और वैसे भी उसकी रिपोर्ट एबल्यूट समझी जाती है । "
“अच्छा फिर ?”
“पिछली रात जगन्नाथ ग्यारह बजे अपने प्राइवेट कमरों में चला गया था । 'ब्लास्ट' का कथन है कि लगभग साढे ग्यारह बजे एक नौजवान लड़की जगन्नाथ से मिलने आई थी । भीम सिंह ने जगन्नाथ से पूछ कर उसे भीतर जाने की इजाजत दे दी थी । भीम सिंह कहता है उसने उस लड़की को फ्लैट से बाहर जाते नहीं देखा । "
"फिर ?"
"फिर ?"
"ढाई बजे रात को वहां एक और लड़की पहुंची। उसने एक ऊंचे कालर का कोट पहना हुआ था जिसके कारण उसके चेहरे का काफी भाग छिप गया था और इसलिए भीम सिंह उसे पहचान नहीं पाया था। उस लड़की ने भीम सिंह से कहा था कि वह जगन्नाथ को बता दे कि उर्मिला की एक सहेली एक बड़े महत्वपूर्ण विषय पर जगन्नाथ से बात करना चाहती है । भीम सिंह ने उस लड़की की केवल आंखें देखीं थीं और आवाज सुनी थी । इस आधार पर वह दावे से कहता है कि लड़की चीनी थी । भीम सिंह ने टेलीफोन पर जगन्नाथ को उस लड़की के विषय में बताया था । जगन्नाथ ने उसे भीतर बुला लिया था । वह चीनी लड़की पौने तीन बजे तक भीतर रही थी ।"
"भीम सिंह ने उसे बाहर जाते देखा था ?”
"हां ।”
"ढाई और पौने तीन बजे के बीच वह लड़की कहां थी
जो साढे ग्यारह बजे आई थी ?"
"पता नहीं । यही एक ऐसी बात है जिसका जवाब 'ब्लास्ट' का वह विशेष प्रतिनिधि भी नहीं खोज पाया है।"
"क्या ऐसा हो सकता है कि जगन्नाथ ने उस लड़की को पिछले दरवाजे से बाहर निकाल दिया हो ?"
"ऐसा हो तो सकता है लेकिन 'ब्लास्ट' ने यह बात जोर देकर कही है कि जगन्नाथ का रिकार्ड है कि उसने कभी किसी आगन्तुक को उस रास्ते न तो बाहर निकाला है और न भीतर आने दिया है । "
"उस चीनी लड़की ने भीम सिंह को अपना नाम बताया था ?" - प्रमोद ने सतर्क स्वर में पूछा।
"नहीं।"
प्रमोद ने शान्ति की सांस ली ।
"लेकिन उसने कहा था कि वह उर्मिला की सहेली है । " सुषमा ने याद दिलाया ।
" और उर्मिला कौन है ?"
"कोई नहीं जानता । किसी ने कभी उर्मिला का नाम नहीं सुना ।"
"भीम सिंह ने भी नहीं ।”
"नहीं ।"
“खैर, तुम आगे बढो ।"
"तीन बजने में दस मिनट पर उस इमारत के एक अन्य फ्लैट में रहने वाला श्रीकान्त नाम का एक युवक काफी पीने के लिए बाहर निकला था । "
"इतनी रात गये ! काफी पीने ।" - प्रमोद हैरानी से बोला ।
"हां । वह कोई इम्तहान देने वाला था। सुबह उसका पेपर था और वह सारी रात पढता रहा था । राबर्ट स्ट्रीट में ही छोटा सा रेस्टोरेंट है जो सारी रात चलता है । जिस समय वह जगन्नाथ के पिछले द्वार के पास से गुजरा था उस समय द्वार बन्द था । लेकिन तीन बज कर पांच मिनट पर जब वह वापिस लौट कर आया था तो द्वार खुला था । श्रीकान्त को द्वार खुला देखकर बड़ी हैरानी हुई थी। क्योंकि वह द्वार कभी भी खुला नहीं देखा गया था । उत्सुकतावश उसने भीतर झांक लिया था और उसे मेज पर औंधे मुंह पड़ा एक मानव शरीर दिखाई दिया था । उसने उस आदमी को मृत समझ कर पुलिस को फोन कर दिया था। पुलिस के आने पर मालूम हुआ था कि यह मानव शरीर जगन्नाथ का था और वह मर चुका था । भीम सिंह उस समय भी फ्लैट की दूसरी ओर के द्वार के सामने बैठा पहरा दे रहा था ।"
"वह चीनी लड़की पौने तीन बजे वहां से गई थी ?" - प्रमोद विचारपूर्ण स्वर में बोला ।
“हां।" - सुषमा बोली- "लेकिन वह ठीक रास्ते से ही बाहर गई थी । भीम सिंह ने उसे गुड नाइट मिस्टर जगन्नाथ कहते सुना था । फिर उसने द्वार बन्द कर दिया था और भीम सिंह के सामने होती हुई बाहर निकल गई।"
"इसका मतलब तो यह हुआ कि पौने तीन बजे तक जगन्नाथ जिन्दा था । और उसके बाद ही उसने स्वयं पीछे का द्वार खोला होगा क्योंकि श्रीकान्त के कथनानुसार तीन बजने में दस मिन्ट पर द्वार बन्द था । "
"सम्भव है । लेकिन द्वार का पल्ला बाद में हवा के झोंके से खुल गया हो और चीनी लड़की के प्रस्थान के समय जगन्नाथ जिन्दा हो । यह बात कतई जरूरी नहीं है । सम्भव है उसने केवल भीम सिंह को सुनाने के लिए द्वार पर खड़े होकर जगन्नाथ को गुड नाइट कह दिया हो जबकि वास्तव में वह उस समय भी मरा पड़ा हो ।”
"सम्भव है।" - प्रमोद ने स्वीकार किया ।
सुषमा क्षण भर कुछ नहीं बोली ।
"लेकिन वह लड़की कहां गायब हो गई जो साढे ग्यारह बजे आई थी ?"
"दो बजे के करीब उस इमारत में रहने वाला खोसला नाम का एक और आदमी फिल्म का आखिरी शो देखकर लौटा था । सीढियों में उसे एक नौजवान लड़की नीचे उतरती मिली थी । उस लड़की के हाथ में एक बहुत बड़ा केनवास पर बना हुआ था और उसका पेन्ट किया हुआ भाग अपने से विपरीत दिशा की ओर किया हुआ था । शायद केनवास पर लगे हुए रंग अभी गीले थे । खोसला ने केनवास को अच्छी तरह देखा था । उसने केनवास पर पेन्ट की हुई जगन्नाथ की पोर्ट्रेट फौरन पहचान ली थी । उसके कथनानुसार वह जगन्नाथ की मास्टर पोर्टेट थी । ऐसा लगता था, जैसे चित्रकार ने जगन्नाथ के आंखों के भावों को केनवास पर उतारने में बेहद मेहनत की थी । आंखें सारी पोर्ट्रेट पर छाई हुई थी ।
जगन्नाथ की आंखों में हर समय छाये रहने वाले क्रूरता और मक्कारी के भाव हूबहू केनवास पर अंकित हो गए थे।"
“सम्भव है यह वही लड़की हो, जो साढे ग्यारह बजे जगन्नाथ के फ्लैट में घुसी थी ।" - प्रमोद धीरे से बोला ।
"सम्भव है।" - सुषमा बोली ।
"फिर तो जगन्नाथ ने अपना नियम तोड़कर उसे पिछले द्वार से जाने की आज्ञा दे दी होगी। क्योंकि भीम सिंह तो दावा करता है उसने साढे ग्यारह बजे वाली लड़की को सामने के दरवाजे से बाहर निकलते नहीं देखा । "
"सम्भव है भीम सिंह को झपकी आ गई हो और उसे मालूम ही न हुआ हो कि कब वह लड़की उसके सामने से गुजर गई ।”
" और कुछ ?"
"ब्लास्ट की रिपोर्ट तो इतनी ही है ।"
“अब तुम अपनी बात कहो। तुम जगन्नाथ को जानती थीं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"हां।" - सुषमा ने उत्तर दिया ।
"कविता ?"
"नहीं।"
प्रमोद ने अविश्वासपूर्ण ढंग से उसे देखा ।
"मैं सच कह रही हूं।" - सुषमा स्थिर स्वर में बोली ।
"जगन्नाथ की पोर्ट्रेट कविता ने बनाई थी ?"
"नहीं । मैंने बनाई थी।"
"तुमने ?"
"हां, मैंने । जगन्नाथ के फ्लैट पर साढे ग्यारह बजे आने वाली लड़की मैं थी । मैं कई दिनों से उस पोर्टेट पर काम कर रही थी । पोर्ट्रेट मैंने तैयार कर ली थी। उस रात साढे ग्यारह बजे मैं उसमें कुछ फिनिशिंग टच देने के लिए जगन्नाथ के फ्लैट पर गई थी ।” ।
"मैं दो बजे तस्वीर के साथ वहां से चली गई । अर्थात् पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार जगन्नाथ की हत्या होने से एक घन्टा पहले मैं उसके फ्लैट से जा चुकी थी ।”
"तुम्हारे बारे में पुलिस जानती है ?"
"बिल्कुल जानती है । वे लोग तभी से मेरी तलाश कर रहे हैं । जगन्नाथ की हत्या का समाचार सुनकर मैं बेहद डर गई थी इसलिए कहीं जा छुपी थी । मैं पुलिस की नजरों से स्वयं को छुपा नहीं सकती प्रमोद । भीम सिंह मुझे पहचानता है और वह यह भी जानता था कि मैं जगन्नाथ की पोर्ट्रेट तैयार कर रही थी और फिर मेरा रूमाल भी उसके फ्लैट से बरामद हुआ है । "
"तुम मानती हो वह रूमाल तुम्हारा है ?"
"मानती क्या ? मुझे मालूम ही है, वह मेरा रूमाल है।"
"तुम जगन्नाथ की पेन्टिंग क्यों बना रही थी ?" - प्रमोद ने क्षण भर रुककर पूछा ।
"फ्रांस में एक पोर्ट्रेट पेन्टिंग का कम्पीटीशन हो रहा है । मैं अपने सब्जेक्ट के रूप में जगन्नाथ को चुना था । "
“क्यों ?"
"उसकी आंखों के कारण । जगन्नाथ की आंखें उसके सारे व्यक्तित्व पर हावी थीं । मुझे विश्वास था कि अगर मैं उसकी आंखों में स्थायी रूप से दिखाई देने वाले मक्कारी और क्रूरता के भाव ज्यूं के त्यूं कैनवस पर उतारने में सफल हो गई तो मैं कम्पीटीशन जीत सकती थी।"
"कविता को मालूम था कि तुम जगन्नाथ की पोर्ट्रेट तैयार कर रही थीं ।"
"हां । और उसकी भी यही राय थी कि मैंने बड़ा अच्छा सब्जैक्ट चुना है।"
"अब वह पोर्टेट कहां है ?"
"मैं दीदी से पोर्ट्रेट की बैक ग्राउन्ड टच कराना चाहती थी।"
“दो बजे जगन्नाथ के घर से निकलने के बाद तुम दुबारा फिर तो वहां नहीं गई थीं ?"
"सवाल ही नहीं पैदा होता । "
"तुम्हारे आने का समय अर्थात दो बजे जगन्नाथ जिन्दा था ?”
"शत-प्रतिशत ।"
“जगन्नाथ को अन्तिम बार जीवित किसने देखा था ?"
"भगवान जाने ?"
"अखबार में इस विषय में कुछ नहीं लिखा है ?"
"नहीं।"
"जिस समय चीनी लड़की जगन्नाथ के फ्लैट में आई थी उस समय तुम कहां थीं ?" - प्रमोद ने सहज स्वर में पूछा
“उस समय मैं.. उस समय तो मैं अपने फ्लैट पर पहुंच चुकी होऊंगी ।"
"तुम चित्र बनाने के लिये इतनी रात गये जगन्नाथ के फ्लैट पर क्यों जाती थीं ?"
" और कोई समय वह देता ही नहीं था । दिन में वह बहुत बिजी होता था इसलिए रात को जाना पड़ता था । प्रमोद, तुम यह क्यों भूलते हो उसका चित्र बनाने में स्वार्थ मेरा था उसका नहीं । वह तो मुझ पर ये ही बहुत एहसान कर रहा था कि वह मुझे सिटिंग दे रहा था ।”
“जगन्नाथ से कभी तुमने कोई गलत हरकत तो नहीं की?"
"गलत हरकत से क्या मतलब है तुम्हारा ?" - सुषमा ने तीव्र स्वर में पूछा ।
"मतलब यह कि तुम इतनी रात गये तक उसके फ्लैट पर ठहरा करती थीं । सम्भव है उसने तुम्हारी स्थिति का नाजायज फायदा उठाने का प्रयत्न किया हो और तुमने उसका खून कर डाला हो ।”
" ऐसी कोई बात नहीं हुई है।" - सुषमा दृढ स्वर में बोली।
"राजेन्द्र नाथ तुमसे मुहब्बत करता है । "
"हां, कहता तो है ।" सुषमा लापरवाही में बोली ।
“एक बार उसने जोश में कहा था कि अगर कोई सुषमा की ओर आंख भी टेढ़ी करके देखेगा तो उसका खून कर दूंगा |"
"इस बात से कोई गहरा मतलब निकालने की कोशिश मत करो । वह बहुत छोटा आदमी है। उसे फिल्मी हीरो बनने का शौक है । वह समझता है कि इस प्रकार की फिल्मी बातें करने से वह मुझ पर अपना प्रभाव जमा सकता है । वह हर उस आदमी से जलता है जिससे मेरा सम्बन्ध हो । तुमसे भी ?"
- "मुझे मालूम है ।" - प्रमोद बोला- "वह मेरे और तुम्हारे में स्थापित निष्काम मित्रता को अच्छी नजर से नहीं देखता है। "
“निष्काम मित्रता ।" - सुषमा एकदम भड़ककर बोली।
" ऐसी की तैसी तुम्हारी । मुझे निष्काम मित्रता का पाठ पढाने की कोशिश मत करो। मैं ऐसी अध्यात्मिक बातों में विश्वास नहीं रखती हूं । निष्काम मित्रता दिखाने के लिए तुम्हारी उम्र मुझसे कम से कम पचास साल अधिक होनी चाहिए थी । तुम इंसान हो और इंसान ही बनकर रहो । देवता बनने की कोशिश मत करो। तुम चीन से वह कन्सन्ट्रेशन नाम की कोई वाहियात सी बीमारी साथ ले आये जिसके कारण तुम स्वयं को दूसरी दुनिया का प्राणी समझने लगे हो |"
“अगर राजेन्द्र नाथ तुम्हारी ये बातें सुन ले तो वह शायद मेरा खून ही कर दे ।"
"एक बात बताओ ?"
"पूछो।”
"तुम इसीलिये मुझसे इस तरह पेश आते हो न - क्योंकि तुम समझते हो कि अगर हमने मित्रता की बाउण्ड्री लाइन को पार करने की कोशिश की तो दीदी को बुरा लगेगा ।"
"पागल हो क्या ? कविता बहुत ऊंचे ख्यालों की औरत है।"
"मुझे और बियर पिलाओ।"
वार्तालाप के दौरान में न जाने कब बीयर समाप्त कर चुके थे ।
"नहीं।" - प्रमोद कठोर स्वर में बोला ।
"तो फिर एक सिगरेट पिला दो ।”
"सुषमा ।" - प्रमोद डांटकर बोला ।
"तो फिर मैं जाती हूं। मैं यहां बोर होने नहीं आई हूं।"
"मर्जी तुम्हारी ।"
"मुझे रोकोगे नहीं ।”
"मैं क्यों रोकूं भला ।"
“अगर मेरी जगह दीदी होती तो उसे रोकते या नहीं ।"
"सुषमा बच्ची हो तुम...
“अच्छा, अच्छा | जाती हूं मैं ।"
और वह उठ खड़ी हुई।
प्रमोद भी उसके साथ फ्लैट से बाहर आ गया ।
सुषमा ने लिफ्ट का बटन दबा दिया और प्रमोद की ओर घूमकर बोली- "कभी सिगमंड फ्रायड का नाम सुना है ।”
"सुना है ।"
"मैंने भी केवल नाम ही सुना है । मुझे यह नहीं मालूम वह कौन है । जानते हो उसने क्या कहा है ?"
"क्या कहा है ?"
"उसने कहा है कि मर्द और औरत में केवल एक ही सम्बंध की स्थापना की संभावना होती है और वह है सैक्स का सम्बंध । "
प्रमोद चुप रहा ।
"खरगोश ।" - सुषमा बोली- "मैं तो उस मुबारक दिन का इन्तजार कर रही हूं। जब तुम परिवार का मित्र होने का नाटक रचना बन्द कर दोगे और एक साधारण आदमी की तरह मुझे छेड़ बैठोगे।"
उसी क्षण लिफ्ट उस फ्लोर पर आकर रुक गई और उसका स्वचलित द्वार खुल गया ।
"देखो" - सुषमा लिफ्ट में घुसती हुई बोली- "मेरी एक ही बात ने छक्के छुड़ा दिए तुम्हारे । तुम्हारे मुंह से बोल नहीं फूट रहा है और वैसे तुम बड़े सूरमा बने फिरते हो ।"
उसी क्षण लिफ्ट का द्वार स्वयं ही बन्द हो गया और लिफ्ट नीचे सरकने लगी ।
"मैं फिर आऊंगी । तब तक फ्रायड पढ लेना ।" - उस जाती हुई लिफ्ट में से सुषमा की आवाज आई । से
प्रमोद फ्लैट में वापस लौट आया ।
वह फिर उस खिड़की के समीप पहुंच गया, जहां से नीचे सड़क पर खड़ा आटो सप्लाई कम्पनी का ट्रक दिखाई देता था ।
सुषमा के अपनी टू सीटर कार में बैठते ही वह एक
आदमी ट्रक से निकलकर उसके समीप पहुंचा । पहले ही की तरह उसने सुषमा को आइडेन्टिटी कार्ड दिखाया और फिर सुषमा की बगल वाली सीट पर बैठ गया। उसने सुषमा की गाड़ी स्टार्ट करके एक ओर ले जाने का संकेत किया ।
टू सीटर चल पड़ी और पहले ही मोड़ से बाई ओर घूम गई।
***
पहले की तरह इस बार भी इन्स्पेक्टर आत्माराम विनयशीलता और शराफत का पुतला बना हुआ था । उसके होठों पर पहले जैसी ही मित्रता और सदभावनापूर्ण मुस्कराहट थी लेकिन आंखों में लोमड़ी जैसी सतर्कता भरी हुई थी ।
"कष्ट के लिए क्षमा प्राथी हूं, प्रमोद साहब ।" - वह चिकने चुपड़े स्वर में बोला- "लेकिन क्या करू पुलिस की नौकरी ही ऐसी है । सोचा, आप व्यस्त आदमी हैं, शायद बार-बार पुलिस हैडक्वार्टर बुलाया जाना आपको नागवार गुजरे । इसलिये मैं ही हाजिर हो गया हूं।"
"बड़ी कृपा की आपने।" - प्रमोद बोला- " तशरीफ रखिए। "
“धन्यवाद ।” - आत्माराम बैठता हुआ बोला ।
"मेरे योग्य सेवा बताइए ?"
"सेवक तो हम हैं साहब ।" - आत्माराम बोला - "आप लोगों के । जनता के । हम तो प्रार्थना कर सकते हैं । "
“अच्छा, प्रार्थना ही कीजिए।" - प्रमोद उपहासपूर्ण स्वर में बोला ।
“आपने कहा था आपके पास एक स्लीवगन है ?"
“जी हां, कहा था ।"
"जरा दिखा दीजिए ।"
आपको पूरा विश्वास है, इन्स्पेक्टर साहब, कि हत्या स्लीवगन से ही हुई है ?"
उत्तर में आत्माराम ने अपनी जेब में शीशे की सील की हुई टेस्ट ट्यूब निकाल कर प्रमोद को दिखाई । टेस्ट ट्यूब में एक स्लीवगन में रखकर चलाया जाने वाला छोटा सा तीर रखा था ।
"यह मृत के दिल में से निकाला गया है। तीर सीधा दिल में घुस गया था और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी । "
"मैं आपको स्लीवगन दिखाता हूं।" - प्रमोद उठता हुआ बोला ।
"जरूर ।"
प्रमोद ड्राईगरूम के कोने में बनी एक शो केस जैसी शीशे की अलमारी के समीप पहुंचा। उसने अलमारी के द्वार की नाब घुमाकर उसे खोलने का प्रयत्न किया लेकिन द्वार नहीं खुला।
"क्या हुआ ?" - आत्माराम ने पूछा ।
- “साधारणतया यह अलमारी खुली ही रहती है लेकिन शायद अनजाने में मैंने या याट-टो ने ताला लगा दिया है। मैं खोलता हूं।"
प्रमोद ने जेब से एक चाबी निकाली और ताला खोल दिया । उसने अलमारी खोलकर भीतर झांका और फिर एकदम सकते की सी हालत में वहीं का वहीं रह गया ।
"क्या हुआ ?" - आत्माराम ने फिर पूछा ।
"अलमारी में से स्लीवगन गायब है।" - प्रमोद ने बताया ।
आत्माराम एकदम उछलकर खड़ा हो गया और प्रमोद के समीप आकर बोला - "च-च- यह तो बहुत बुरी बात हुई । कुछ और भी गायब है क्या ?"
"स्लीवगन के साथ तीन तीर थे, लेकिन इस समय यहां केवल दो बाकी हैं ।" - प्रमोद बोला ।
"यह तो और भी बुरा हुआ ।" - इन्स्पेक्टर बोला और उसने आगे बढकर बचे हुए दो तीर उठा लिए ।
"आपके खयाल से स्लीवगन कौन ले गया होगा ?" - इन्स्पेक्टर ने तीरों को परखते हुए पूछा ।
“भगवान जाने कौन ले गया है। और अगर आप इन दोनों तीरों को टैस्ट ट्यूब में रखे तीसरे तीर से मिलाने का प्रयत्न कर रहे हैं तो मैं ही आपको बताए देता हूं कि तीनों तीर एक जैसे हैं । "
"अच्छा । कमाल है !" - आत्माराम यूं हैरानी का प्रदर्शन करता हुआ बोला, जैसे प्रमोद के बताने पर ही उसे यह बात सूझी हो - "एक बात बताइए प्रमोद साहब ।”
"पूछिए।"
"अगर कोई आदमी स्लीवगन को अपनी कलाई से बांधे हुए हो, वह निशान लगाए और निशाना चूक जाए तो स्लीवगन में दुबारा तीर लगाने में तो बड़ी देर लगती होगी।"
"बहुत देर लगती है और बहुत दिक्कत भी होती है । स्लीवनगन कलाई पर से उतारनी पड़ती है उसका वैच हटाना पड़ता है।"
"मैं समझ गया । इसका मतलब यह हुआ कि स्लीवगन एक समय में एक ही बार चलने वाला हथियार है । अगर पहला निशाना चूक गया तो फिर चाहे आपके पास बीस तीर हों, वे किसी काम नहीं आयेंगे ? मतलब यह कि रिवाल्वर की तरह इसमें फौरन दुबारा कारतूस नहीं भरे जा सकते ?"
"जी हां । "
"मतलब यह हुआ कि अगर किसी ने एक कत्ल करने के लिए आप की स्लीवगन चुराई है तो एक ही तीर चुराना काफी था ।”
“जी हां । और अब शायद आप यह कहेंगे कि मैंने ही जगन्नाथ की हत्या की है। और बाद में स्लीवगन कहीं गायब कर दी है और अब बहाना कर रहा हूं कि वह चोरी हो गई है ।" - प्रमोद व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“राम, राम, राम, प्रमोद साहब ।" - आत्माराम मीठे स्वर से बोला- "कैसी बातें करतें हैं आप ? और आपको तो ऐसा सोचना भी नहीं चाहिए । प्रमोद साहब । यह कोई जासूसी फिल्म या उपन्यास नहीं है । वास्तविक जीवन में हम और आप लोग कत्ल नहीं करते फिरते । एक आदमी का कत्ल कराने के लिए गज भर का कलेजा चाहिए | अगर आप औरत होते तो शायद मैं मान लेता कि आपने कत्ल किया है । औरतें भावनावश बहुत कुछ कर डालती हैं - आपने अपनी स्लीवगन किसी को उधार तो नहीं दी थी ?"
"नहीं।"
"फिर तो यह चुराई ही गई है । "
"जी हां । " - प्रमोद व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला- "ऐसा ही लगता है।"
“साधारणतया आपके फ्लैट में कौन-कौन लोग आते हैं ?"
"बहुत अधिक लोग तो नहीं आते हैं। आप जानते हैं मैं सात साल बाद चीन से लौटा हूं । राजनगर में मुझे बहुत लोग नहीं जानते हैं ।"
"यहां ओबेराय बहनें आती होंगी ?"
“जी हां । दोनों ही आती हैं । "
" और कोई चीनी लड़की ।"
"कभी कभी कोई चीनी लड़की भी आ जाती है । "
“याट-टो के बारे में क्या खयाल है । वह स्लीवगन किसी को दे सकता है ?"
"मुझे बताए बिना नहीं ।" - प्रमोद दृढ स्वर से बोला ।
"आप चीनियों का इतना भरोसा करते हैं ?"
"जी हां । "
"आपको विश्वास है याट-टो आपाके धोखा नहीं दे सकता ?"
“जी हां । मुझे विश्वास है । "
"आल राइट।" - आत्माराम बोला- "मैं चलता हूं । आपके ये दो तीर मैं तफ्तीश के लिए अपने साथ लिए जा रहा हूं।"
"शौक से ले जाइए।" - प्रमोद बोला ।
आत्माराम द्वार की ओर बढ़ गया ।
प्रमोद फिर खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया ।
आत्माराम इमारत से बाहर निकलकर अपनी मोटर साइकिल की ओर बढ़ गया। इस बार ट्रक में से निकलकर कोई आदमी आत्माराम के समीप नहीं पहुंचा।
प्रमोद खिड़की से हट गया ।
उसने याट-टो को बुलाया ।
"यह सावी ।" - याट-टो आकर बोला ।
“याट-टो।" - प्रमोद चीनी बोला- "तुम राजेन्द्र नाथ से कहना कि वह रात का खाना तेरे साथ खाए ।"
"मास्टर, स्पीक लिसन वायर (टेलीफोन) पर बात नहीं करना चाहते ?" - याट-टो ने पूछा ।
"नहीं ।”
"राइट सावी ।"
याट-टो फ्लैट से बाहर निकल गया ।
प्रमेाद फिर खिड़की के पास आ गया ।
उसे याट-टो फ्लैट से बाहर निकल गया ।
प्रमोद फिर खिड़की के पास आ गया ।
उसे याट-टो फुटपाथ पर दिखाई दिया। उसके संकेत पर एक टैक्सी उसके समीप पहुंच गई । वह टैक्सी की पिछली सीट पर जा बैठा। उसी क्षण आटो सप्लाई कम्पनी के ट्रक में से एक आदमी कूद पड़ा और टैक्सी का द्वार खोलकर याट-टो की बगल में आ बैठा ।
टैक्सी चल पड़ी और पहले ही मोड़ से बाई ओर घूम गई ।
प्रमोद ने चिन्तापूर्ण ढंग से सिर हिलाया और खिड़की से हट गया ।
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