वो वैन उसी फाटक पर जा रुकी, जिसके पास दो गनमैन खड़े थे। वैन के पीछे दो कारें थीं। कारों के दरवाजे धड़ाधड़ खुले और हथियारबंद आदमी बाहर निकलकर गेट पर खड़े गनमैनों के सिर पर जा पहुंचे।
तभी वैन के दरवाजे खुले और मोना चौधरी, जयन्त, सुल्तान और चार आदमी बाहर निकलें। सबके हाथों में हथियार थे। गेट पर खड़े दोनों गनमैन इतने हथियारबंद लोगों को अचानक आया पाकर घबरा गए थे। दो ने उनसे गनें लीं और वहीं दीवार के साथ बिठा दिया।
बाकी हथियार थामें आनन-फानन भीतर प्रवेश करते चले गए।
इस हमले के लिए कोई तैयार नहीं था।
भीतर पंद्रह-बीस आदमी थे। सबको कब्जे में कर लिया गया।
वे फौरन तारिक तक पहुंच गए, जो कि ड्रग्स के बैगों वाली जगह पर था। फर्श से लेकर छत तक माल के बैग लगे हुए थे। मोना चौधरी आगे बढ़ी और तारिक की छाती पर गन रख दी।
तारिक सिर से पांव तक कांप उठा।
“तुम तारिक हो?"
"ह... हां... ।" उसके होठों से कंपकपाता स्वर निकला--- "ये क्या कर...।"
"मुझे जानता है?" मोना चौधरी गुर्राई।
"न...हीं...।"
"मोना चौधरी नाम है मेरा। तूने मुझसे मिलने से मना कर दिया या कि मुझे ड्रग्स नहीं बेचेगा? ड्रग्स खत्म हो गई?"
तारिक ने सूखे होठों पर जीभ फेरी।
"ड्रग्स बेचेगा या गोली खाएगा?"
तारिक कांपकर बोला--- "मैं... मैं ड्रग्स बेच दूंगा ।"
मोना चौधरी ने उसकी छाती से गन हटाई और जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा।
तारिक चीखकर लड़खड़ा उठा।
"सुल्तान !" मोना चौधरी गुर्राकर बोली--- "इसके पास पड़ी ड्रग्स का हिसाब लगा और कीमत चुका के ड्रग्स ले चल...।"
“चल...।” सुल्तान तारिक के पास पहुंचा--- "ड्रग्स की कीमत तय कर लेते हैं।"
तारिक में इतनी हिम्मत कहां बची थी कि इनकार कर पाता।
उसके पूरे ठिकाने को, आदमियों ने कब्जे में ले रखा था।
■■■
उस वर्कशॉप में वो वैन और आदमियों से भरी दोनों कारें प्रवेश करती चली गईं।
धड़ाधड़ दरवाजे खुले और हथियारबंद आदमी निकलकर हर तरफ फैलते चले गए। वर्कशॉप पर काम कर रहे सारे लोगों को गिरफ्त में ले लिया गया। पूरी जगह को आनन-फानन कब्जे में ले लिया गया।
शीशे के केबिन में बैठा अफजल हक्का-बक्का सा ये सब देख रहा था। उसे कुछ भी करने का मौका नहीं मिला और मोना चौधरी, जयन्त, सुल्तान गन थामें केबिन के भीतर आ गए।
अफजल खां का चेहरा बदरंग हो उठा। वो मोना चौधरी को देखे जा रहा था।
मोना चौधरी ने आगे बढ़कर गन उसके सिर पर रख दी।
“जब तुम पहले मेरे पास आईं तो मुझे खतरनाक नहीं दिखीं तुम।" अफजल गंभीर स्वर में बोला।
"तू कैसे देख लेता। मैं दिखाऊंगी तो तू देखेगा।" मोना चौधरी गुर्राई--- "तो तू मुझे ड्रग्स बेचने को मना करता है?"
"अब नहीं...।"
"यानि कि अब बेचेगा?" मोना चौधरी के दांत भिंचे हुए थे।
"हां।"
"कहां है ड्रग्स?"
"चलो, मैं दिखाता हूं...।"
"यहीं है या कहीं और?"
"यहां भी है, कहीं और भी... ।"
"सारी ड्रग्स हम खरीद रहे हैं। तेरे को पूरी कीमत मिलेगी। उसके बाद चार महीने तक तेरे पास से ड्रग्स निकली तो तू मरेगा।"
"ऐसा नहीं होगा। मैं सारी ड्रग्स बेच दूंगा।" अफजल ने कहा।
"सुल्तान!” मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा--- "इससे ड्रग्स लो और हाथों-हाथ हिसाब कर इसका।"
सुल्तान आगे बढ़कर अफजल के कंधे पर हाथ रखकर बोला---
“चल। अब हम बात कर लें।"
■■■
धड़... धड़... धड़ ! वे सब एक ही सांस में सीढ़ियां चढ़ते दूसरी मंजिल पर पहुंचे। सबके हाथों में हथियार थे। दिन वाले ही, वो ही दोनों आदमी सामने बैठे थे। इतने सारे हथियारबंद लोगों को आया पाकर वो घबरा उठे। दो ने उन्हें वहीं दबाकर बिठा दिया और उनके हथियार ले लिए।
बाकी सब भीतर प्रवेश करते चले गए।
सबसे आगे मोना चौधरी ने गन थाम रखी थी।
वो एक हाल में पहुंचे। वहां ड्रग्स की पैकिंग हो रही थी। दीवार के साथ ड्रग्स के बैग लगे पड़े थे। जिनकी संख्या सौ से ज्यादा थी।
वो सब आदमी वहां फैलते चले गए।
मोना चौधरी गन वाला हाथ ऊपर करते दहाड़ उठी--
"कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा ! बैठे रहो!”
तब तक पूरे हाल में गनमैन फैल चुके थे।
सन्नाटा सा छा गया था वहां ।
"महमूद कहां है?"
एक ने हाथ से हाल में लगे दरवाजे की तरफ इशारा किया।
मोना चौधरी, जयन्त और सुल्तान उसी तरफ बढ़ गए।
ठोकर मारकर मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और गन थामें भीतर प्रवेश करती चली गई।
सामने ही टेबल पर, कमीज-सलवार पहने दाढ़ी वाला एक आदमी बैठा था। वो फोन पर बात कर रहा था। वहां तीन आदमी और भी थे। उन्होंने ये सब देखकर जेबों से रिवाल्वरें निकालनी चाहीं ।
"जो मरना चाहता हो, वो ही हथियार निकाले ।" मोना चौधरी खूंखार स्वर में कह उठी।
रिवाल्वरें निकालते वे ठिठके ।
जयन्त और सुल्तान के हाथों में थमी गनें भी तन चुकी थीं।
खुले दरवाजे से उन्होंने बाहर के हालात भी देख लिए थे।
उस आदमी ने फोन कान से हटा लिया। चेहरे पर परेशानी झलकने लगी थी।
मोना चौधरी ने आगे बढ़कर उसकी छाती पर गन रख दी।
"महमूद है तू?" मोना चौधरी गुर्राई ।
"ह... हां...।" वो संभला--- "ये सब क्या हो रहा...।"
"मैं तेरी ड्रग्स खरीदने आई हूं...।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
“मोना चौधरी ?” उसके होठों से निकला।
"हां, मैं ही हूं मोना चौधरी!"
“तो लाली खान ने तुझे ड्रग्स लूटने भेज दिया, जब मैंने बेचने से मना...।"
“जुबान बंद कर। मैंने कहा है कि मैं ड्रग्स खरीदने आई हूं तेरी ।"
"छाती पर गन रखकर ।"
"क्योंकि सीधी तरह तू बेच नहीं रहा। हमें हर हाल में ड्रग्स चाहिए।"
"मैं न बेचना चाहूं तो?"
“तो मरेगा। बोल हां के ना ?" मोना चौधरी के चेहरे पर दरिन्दगी नाच रही थी। ।
“हां... ।" न चाहते हुए भी उसके मुंह से हां ही निकला था ।
“इससे ड्रग्स ले और हिसाब कर इसका सुल्तान ।" मोना चौधरी ने गन उसकी छाती से हटा ली ।
सुल्तान पास पहुंचा और महमूद से बोला---
"तेरे को किसने बताया कि मोना चौधरी, लाली खान के लिए ड्रग्स खरीद रही है?"
"मुझे फोन आया था।”
“किसका?"
“उसने अपना नाम नहीं बताया। मैं उसकी आवाज पहचानता भी नहीं...।" महमूद ने गंभीर व्याकुल स्वर में कहा।
"सब यही कह रहे हैं... और फोन करने वाले को कोई जानता नहीं।" सुल्तान ने सिर हिलाया--- "चल, मुझे अपनी सारी ड्रग्स दिखा और उसकी कीमत बता, फिर अपने नोट गिन....।"
■■■
मोना चौधरी फिर रुकी नहीं।
उसका छोटा सा काफिला रात-दिन ड्रग्स इकट्ठी करने में लगा रहा। अफगानिस्तान के हर ड्रग डीलर के कानों में ये बात पहुंच गई थी। कोई भी झगड़ा नहीं करना चाहता था। कई तो मोना चौधरी को ड्रग्स बेचने के लिए तैयार बैठे, उसका इंतजार कर रहे थे। कई ऐसे भी थे जिन्होंने मोना चौधरी की दादागिरी का मुकाबला करना चाहा। परन्तु वे मारे गए। उनकी ड्रग्स ले ली गई।
मोना चौधरी जानती थी कि इस काम को उसने सफलतापूर्वक पूरा करना है। तभी उसे आगे बढ़ने की जगह मिलेगी। यही वजह थी कि इस सारे काम में मोना चौधरी ने कठोरता का भरपूर इस्तेमाल किया।
हालात ये हो गए थे कि अफगानिस्तान में लाली खान का कम और मोना चौधरी का ज्यादा नाम गूंज उठा। अफगानिस्तान की ऐसी कौन सी जगह थी जहां पर मोना चौधरी न पहुंची हो। पाकत्या, गजनी, गार्बेज, लोहगार, मायदान, कोटे अमू, बम्यान, धारिकर परवान, कापीसा, महामुडे राकी, सघलान, तरवार, बडाखशान, नूरिस्तान, कोनार, लाघभान वगैरह सब जगह मोना चौधरी ने अपना तूफानी दौरा किया। हर जगह अपनी छाप छोड़कर आई वो। जयन्त सुल्तान के अलावा गुलजीरा खान के लड़ाके साथ रहे थे। वो सब काबिल लोग थे।
इन सब कामों में वक्त लगा बारह दिन का।
फिर वो काबुल लौटी और लिस्ट में बचे सैयद के आखिरी नाम को देखा और उसी धमाकेदार अन्दाज में वो सैयद के ठिकाने पर जा पहुंची और सैयद पहले ही तय कर चुका था कि उसे क्या करना है।
उसने शराफत से अपनी सारी ड्रग्स दे दी और उसकी कीमत ले ली।
लैला कह चुकी थी कि मोना चौधरी आए तो बिना झगड़े उसके हवाले ड्रग्स कर देना। क्योंकि वो देख रही थी अफगानिस्तान में मोना चौधरी ने क्या खलबली मचा दी है। मन-ही-मन परेशान और उलझन में थी कि आखिर मोना चौधरी कर क्या रही है। करना क्या चाहती है। जबकि मोना चौधरी का मकसद लाली खान को कमजोर करके तोड़ देना है... और वो लाली खान को ड्रग्स के दम पर और भी ताकतवर बनाने पर लगी है।
लैला हवा के रुख को पहचान कर खामोश रही। उसने इस बारे में महाजन से बात की तो महाजन ने इतना ही कहा कि मोना चौधरी जो कर रही है, उसी में लाली खान की बरबादी छिपी है। मोना चौधरी बेहतर जानती होगी कि वो क्या चाल चल रही है। लैला मन-ही-मन व्याकुल रही। चुप रही।
इन बारह दिनों में मोना चौधरी वैनों और कारों में जगह-जगह से ड्रग्स के बैग्स भिजवाती रही गुलजीरा खान को। पूरे बारह दिन तक मोना चौधरी ने छोटा सा तूफान उठा दिया था अफगानिस्तान में।
■■■
गुलजीरा खान खुश थी।
हैदर खान खुश था।
उनका एक गोदाम जला था। जबकि अब वैसे तीन गोदाम भर गए थे। सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये थी कि अफगानिस्तान में इतनी ड्रग्स कहीं पर मौजूद नहीं थी कि पार्टी बड़ा सौदा कर सके। अब हर पार्टी ने उनके पास ही आना था। मोना चौधरी के नाम पर लाली खान की जो धाक जमी अफगानिस्तान में, वो अलग थी।
रात ग्यारह बजे मोना चौधरी, जयन्त और सुल्तान के अलावा उनके वो सब हथियारबंद लोग वापस लौटे थे। सिर्फ दो आदमी कम हुए थे उनके, जो कि एक जगह लड़ाई में मारे गए थे। बाकी सब ठीक था। सब थके हुए थे क्योंकि भागदौड़ के अलावा, इन बारह दिनों में सोने को कुल दस-पंद्रह घंटे ही मिले थे।
तब ठिकाने पर गुलजीरा खान नहीं थी।
सुल्तान ने मोना चौधरी और जयन्त को वहीं का एक कमरा दे दिया।
"मैं जानता हूं तुम लोग नींद लेना चाहोगे। हर कोई अब नींद लेकर अपनी थकान उतारना चाहता है।" सुल्तान ने मुस्कराकर कहा--- "सोने से पहले खाना खा लो, दो मिनट में खाना आ रहा है।"
"हम दोनों को कपड़े दो पहनने को।" जयन्त बोला।
सुल्तान ने एक आदमी को कपड़े लेने भेजा।
"हमारे यहां औरतों की तारीफ नहीं की जाती।” सुल्तान बोला--- "हम सिर्फ लाली खान और गुलजीरा खान की ही तारीफ करते हैं, परन्तु बारह दिनों में तुमने जिस तरह से काम किया, उसकी वजह से मैं तुम पर कुर्बान हो गया मोना चौधरी ।"
"बस करो।" मोना चौधरी ने कहा--- "मुझे आराम कर लेने दो।"
"खाना आ रहा है। सो मत जाना।" कहकर सुल्तान बाहर निकल गया।
जयन्त ने मुस्कराकर मोना चौधरी को देखा।
“तुम सच में कमाल की हो। अब मुझे पता चला कि लोग तुम्हारे नाम से डरते क्यों हैं। तुम सच में बहुत खतरनाक हो।"
■■■
अगले दिन दोपहर एक बजे मोना चौधरी की आंख खुली।
जयन्त अभी भी सोया पड़ा था।
लम्बी नींद लेने के बाद मोना चौधरी आराम महसूस कर रही थी। उसने जयन्त की टांग पर हाथ मारा।
"क्या है?" जयन्त ने करवट बदल ली।
“उठ जाओ, दोपहर हो रही है।" मोना चौधरी ने कहा और उठकर बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
हाथ-मुंह धोकर मोना चौधरी बाथरूम से बाहर निकली और दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
जयन्त उठ चुका था।
मोना चौधरी ने दरवाजा खोला तो बाहर स्टूल पर एक आदमी बैठा था। वो फौरन खड़ा होते, मुस्कराकर बोला---
"शुभ प्रभात मोना चौधरी ।"
मोना चौधरी मुस्कराई। वो जानती थी कि सब कुछ बदल गया है। उसने इन लोगों में जगह बना ली है।
"चाय-कॉफी जो भी हो, ले आओ।"
"अभी हाजिर करता हूं।" कहकर वो तेज-तेज कदमों से चला गया।
मोना चौधरी पलटकर कमरे में आई।
जयन्त आंखें मल रहा था।
"हम कामयाब रहे।" मोना चौधरी बोली।
"सब तुम्हारी वजह से हुआ।” जयन्त ने मुस्कराकर गहरी सांस ली--- "तुम तो...।"
"तुम भी तो मेरे साथ थे। मैं अकेले कैसे सब कुछ निपटा सकती थी।" मोना चौधरी कुर्सी पर आ बैठी।
"लेकिन किया तुमने... ।" जयन्त ने गहरी सांस ली--- "मैं...।"
तभी कमरे में तेजी से गुलजीरा खान ने भीतर प्रवेश किया।
दोनों बैठे गुलजीरा खान को देखने लगे।
"मैं तुम्हें बधाई देने आई हूं।" गुलजीरा खान मुस्कराकर कह उठी--- "इतना बढ़िया काम तो हम भी नहीं कर पाते मोना चौधरी।"
मोना चौधरी मुस्कराती रही। उसे देखती रही।
जयन्त आंखें मलने लगा था।
"तुमने हमारा काम बहुत आसान कर दिया। हमारा जितना माल बरबाद हुआ था, उससे तीन गुणा हमारे पास आ गया। हमारे तीन गोदाम भर चुके हैं। अब हमें ड्रग्स की कमी नहीं होगी। मैंने नहीं सोचा था कि तुम इतने कमाल की हो...।"
"ये सब करना जरूरी था।” मोना चौधरी बोली--- “क्योंकि तुम्हें ड्रग्स चाहिए थी। वो गद्दार मिला?"
"नहीं। लेकिन शमशेर पता लगा रहा है कि किसने सारे ड्रग्स डीलरों को बताया कि तुम्हारे पीछे हम हैं।" गुलजीरा खान के चेहरे पर सख्ती आ गई--- "वो जो भी है, बचेगा नहीं।"
“मैंने सुना था, जब शमशेर ने तुम्हें बताया कि सैयद की पार्टनर कोई औरत भी है...।" मोना चौधरी ने कहा।
"तो?"
"परन्तु मैंने सैयद के पास किसी औरत को नहीं देखा ?"
“शमशेर की खबर कभी भी गलत नहीं होती।” गुलजीरा खान ने दृढ़ स्वर में कहा--- "वो जो बात हमें कहता है, उसमें सच्चाई होती है।"
“मैंने ये नहीं कहा कि शमशेर ने गलत कहा।"
"अफगानिस्तान के ड्रग डीलरों में तुम्हारे नाम की चर्चा हो रही है।” गुलजीरा खान ने शांत स्वर में कहा--- "ये अच्छी बात है कि वो जान गए हैं कि तुम खतरनाक हो। बस, ऐसी ही बनी रहना।"
मोना चौधरी ने गुलजीरा खान को देखा।
“अब से तुम दोनों, हमारे साथ ही काम करोगे। ये बात लाली खान ने कही है।" गुलजीरा खान बोली।
"अब भी तो लाली खान का ही काम कर रहे थे।" जयन्त ने कहा।
“वो ट्रायल था। तुम दोनों इम्तिहान में पास हो गए। वैसे हमारा उसूल है कि नए लोगों को धंधे के बीच मत लो। परन्तु तुम दोनों ने अपनी काबलियत दिखाकर, लाली खान को मजबूर कर दिया कि तुम दोनों को अपने साथ मिला लें।"
"मतलब कि हमारी नौकरी पक्की ?"
"नौकरी नहीं, काम।" गुलजीरा खान ने कहा--- "जितना काम करोगे, उतना कमीशन मिलेगा। अब हमारे पास माल की कमी नहीं है और पार्टियों की भी कमी नहीं है। एक-दो दिन आराम कर लो। उसके बाद काम पर लग जाना। तुम दोनों इसी ठिकाने पर रहोगे। जहां भी आना-जाना चाहो, जा सकते हो। अब तुम दोनों पर नजर, नहीं रखी जाएगी।"
"शुक्रिया।" जयन्त मुस्करा पड़ा।
वो आदमी कॉफी के दो गिलास ले आया। एक मोना चौधरी ने थामा, दूसरा जयन्त ने।
"हमारा काफी पैसा बन गया होगा।" मोना चौधरी कॉफी का घूंट भरकर कह उठी।
“आज शमशेर माल का हिसाब लगा लेगा। शाम को तुम्हें पैसा मिल जाएगा।" गुलजीरा खान ने कहा-- "हम धंधा ईमानदारी से...।"
तभी हैदर खान ने भीतर प्रवेश किया।
गुलजीरा खान, मोना चौधरी और जयन्त की निगाह उस पर गई।
हैदर खान मोना चौधरी को देखते मुस्करा रहा था।
मोना चौधरी भी उसे देखकर मुस्कराई।
"तुम्हारा काम देखकर मुझे बहुत खुशी हुई मोना चौधरी। मैं तो तुम्हारा दीवाना हो गया...।" हैदर खान आगे बढ़ा और पास पहुंचकर मोना चौधरी की तरफ हाथ बढ़ाया। मोना चौधरी ने फौरन उसका हाथ थाम लिया। हैदर खान ने मोना चौधरी की आंखों में देखते हल्के से हाथ दबाया।
जवाब में मोना चौधरी ने भी उसका हाथ हल्के से दबा दिया।
हैदर खान के चेहरे पर बिछी मुस्कान गहरी हो गई।
जबकि गुलजीरा खान की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
जयन्त होंठ सिकोड़े दोनों को देख रहा था।
"ये पहली बार है कि मैं किसी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा हूं।" हैदर खान ने मीठी मुस्कान के साथ कहा।
“मैंने दोस्ती तो बहुतों से की, पर रास नहीं आई।" मोना चौधरी बोली!
"एक मौका मुझे भी दो। शायद हम अच्छे दोस्त बन जाएं। मैं खूबसूरती के साथ काम भी देखता हूँ। तुम खूबसूरत भी हो और काम तुम्हारा खतरनाक है। तुम मुझे इतनी जंची कि मैं खुद तुम्हारे पास आया हूँ।" मुस्करा रहा था हैदर खान ।
"मुझे इतनी इज्जत देने का शुक्रिया।" मोना चौधरी बोली।
दोनों ने अभी तक एक-दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ था।
"मुझसे हाथ नहीं मिलाओगे?" जयन्त कह उठा।
हैदर खान ने मोना चौधरी का हाथ छोड़ा और जयन्त से हाथ मिलाया।
तभी गुलजीरा खान बिना कुछ कहे पलटी और बाहर निकल गई।
मोना चौधरी उसे जाते देखती रही।
"गुल की परवाह मत करो। उसे कभी भी ये बात पसन्द नहीं आती कि मैं किसी लड़की से दोस्ती करूं। मैं 25 का हूं, लेकिन वो अभी भी मुझे बच्चा समझती है। हमारी दोस्ती पर लाली खान को भी एतराज नहीं होगा। ये हमारा अपना मामला है। इस बात का धंधे से कोई मतलब नहीं। क्या तुम आज मेरे साथ रहना पसन्द करोगी। बोर नहीं होने दूंगा।"
“क्यों नहीं? लेकिन तैयार होने में मुझे वक्त लगेगा।" मोना चौधरी बोली ।
"मैं इंतजार कर रहा हूं।" हैदर खान ने प्यार से कहा और पलटकर बाहर निकल गया।
मोना चौधरी के होठों पर मुस्कान थी। उसने कॉफी का घूंट भरा।
"तुम्हें !" जयन्त धीमे स्वर में कह उठा--- “उसके साथ नहीं जाना चाहिए।"
"क्यों?" मोना चौधरी, जयन्त को देखकर आहिस्ता से कह उठी--- "यही तो हम चाहते थे। इन लोगों के बीच घूमना और इनकी कमजोरी तलाश करके इन्हें तोड़कर खत्म कर देना। यही काम करना है ना हमने...।"
जयन्त ने सहमति से सिर हिलाया।
"तो हमें अच्छा मौका मिल रहा है। हैदर खान मुझसे प्रभावित हो चुका है। मैं उसके साथ रहकर बहुत कुछ जान सकती हूं, जो कि हम जान लेना चाहते हैं। वार करने से पहले मैं लाली खान के सब रास्ते देख, समझ लेना चाहती हूं।"
"तुम्हें सावधान रहना होगा। कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके सामने बक दो।" जयन्त ने उसे सतर्क किया।
"मैं तुम्हें दूध पीती बच्ची दिखती हूं क्या?" मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।
जयन्त के चेहरे पर सोच के गहरे भाव नजर आ रहे थे।
"मुझे तैयार होना चाहिए...।" मोना चौधरी कॉफी समाप्त करती बोली--- “उसे ज्यादा इंतजार कराना ठीक नहीं। उसे भी ये बात लगनी चाहिए कि मैं भी उसे पसन्द करती हूं। तभी मैं उसके मुंह से कुछ जान पाऊंगी... ।”
■■■
गुलजीरा खान कमरे में टहल रही थी। उसके माथे पर बल दिख रहे थे। होंठ कसे हुए थे। तभी हैदर खान के भीतर प्रवेश करने पर वो ठिठकी और कुर्सी पर बैठकर उसे देखा ।
हैदर खान के चेहरे पर मुस्कान थी। वो भी बैठ गया, बोला।
“मोना चौधरी का काम मुझे बहुत पसन्द आया गुल...।"
"लेकिन मैं ये नहीं भूलती कि वो पक्की कुतिया है...।" गुलजीरा खान ने कड़वे स्वर में कहा।
“मोना चौधरी के प्रति तुम्हें अपने मन से मैल निकाल देनी चाहिए।" हैदर खान ने कहा--- "वो हमारे काम की है।"
गुलजीरा खान गर्दन को थोड़ा आगे करके बोली---
“मेरे भाई! तुम जानते हो कि मैं उसे पसन्द नहीं करती। फिर भी धंधे की खातिर उसे साथ रखा है। लेकिन ये बात तो मैं कभी भी पसन्द नहीं करूंगी कि तुम्हारी और उसकी नजदीकी बने। वो इस काबिल नहीं है।"
हैदर खान ने गुल की आंखों में झांका, फिर बोला---
"क्यों पसन्द नहीं?"
“क्योंकि वो पक्की कुतिया है।" कहते हुए गुलजीरा खान के दांत भिंच गए।
हैदर खान के चेहरे पर लापरवाही से भरी मुस्कान आ ठहरी ।
“मोना चौधरी को तुम अपने से दूर रखो मेरे भाई...।"
"मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं?”
"क्योंकि मैं कह रही हूं। तुम्हें मेरी बात मान...।"
“मैंने तुम्हें कहा था कि आरिफ को छोड़ दो---क्योंकि वो मुझे ठीक नहीं लगा, परन्तु तुमने हर बार क्या जवाब दिया?"
गुलजीरा खान के दांत भिच गए।
"मेरे मामले में दखल मत दो।" हैदर खान ने कहा और उठकर बाहर निकलता चला गया।
"पक्की कुतिया है हरामजादी!" गुलजीरा खान कड़वे स्वर में बड़बड़ाई--- "हैदर को फंसा लिया...।"
■■■
40 मिनट में मोना चौधरी हैदर खान के सामने थी।
"खूब!” हैदर खान मुस्कराया--- “आज पहली बार तुम्हें दिल से देखा है। तुम इन्तहाई खूबसूरत हो।"
"मुझे तो हैरानी है कि तुम्हारी नजर मुझ पर पहले क्यों न पड़ी...।" मोना चौधरी छोटी सी हंसी, हंसी।
"नजर पड़ी।" हैदर खान सिर हिलाता कह उठा--- “तुम्हारी खूबसूरती को भी देखा, परन्तु मैं सिर्फ उसी औरत की तरफ आकर्षित होता हूँ जिसमें खूबसूरती के साथ कोई काबलियत भी हो। वर्ना खूबसूरत औरतों की कोई कमी नहीं। एक ढूंढो हजार मिलेंगी। पूरा अफगानिस्तान भरा पड़ा है खूबसूरत औरतों से । सब एक सी होती हैं। खूबसूरती ज्यादा देर नहीं चलती, पर काबलियत कभी साथ नहीं छोड़ती। इसलिए मुझे काबिल औरतें अच्छी लगती हैं।"
“और तुम्हारी नजरों में मैं काबिल हूं...।" मोना चौधरी मीठे स्वर में कह उठी।
“सरासर क्यों नहीं! तुमने जिस तरह अफगानिस्तान के खतरनाक से खतरनाक ड्रग्स डीलरों से ड्रग्स वसूली, वो औरत तो क्या कोई मर्द भी शायद न कर सके। कम से कम मैं तो नहीं कर सकता। तुमने मेरा दिल जीत लिया। जो कभी किसी पर फिदा नहीं हुआ, वो तुम पर फिदा हो गया। मुझे कोई तो औरत पसन्द आई।”
“ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैं तुम्हें बढ़िया लगी। लेकिन जो मैंने किया, वो मेरे लिए खेल जैसा है...।"
"मुझे लगता है कि तुम में अभी भी कई गुण ऐसे हैं, जिनकी झलक देखनी बाकी है।"
“सच में। अभी मेरे पास बहुत कुछ है, जो तुम धीरे-धीरे जानोगे। अब क्या इसी तरह बातें करते रहोगे?"
"चलो... बाहर चलते हैं।"
“मैंने कुछ खाया नहीं। मुझे कुछ खिलाओगे नहीं?"
"क्यों नहीं। अफगानिस्तान के सबसे शानदार रेस्टोरेंट में हम खाने चल रहे हैं। तुम्हें अच्छा लगेगा।”
दोनों कुछ पल एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे।
"मुझे यकीन नहीं आ रहा कि तुम इतने अच्छे हो।"
"मेरे बारे में भी तुम कई नई बातें जानोगी... ।”
तभी गुलजीरा खान ने भीतर प्रवेश किया।
दोनों की निगाह उसकी तरफ उठी।
गुलजीरा खान के माथे पर बल नजर आ रहे थे।
"गुल।" हैदर खान मीठे स्वर में बोला--- "हम रेस्टोरेंट में खाने चल रहे हैं। क्या तुम हमारे साथ चलोगी?"
"नहीं... ।” गुलजीरा खान ने होंठ भींचकर कहा और मुंह फेर लिया।
"आरिफ को लेकर मुझे भी इतनी ही तकलीफ हुई थी, जब तुमने मेरी बात की परवाह नहीं की थी।" हैदर खान ने गुलजीरा खान से कहा। फिर मोना चौधरी से बोला--- "चलो, तुम्हें भूख लग रही है। मैं तुम्हें बढ़िया खाना खिलाना चाहता हूं।"
मोना चौधरी और हैदर खान बाहर निकल गए, वहां से।
“आरिफ की क्या बात कह रहे थे तुम?" मोना चौधरी ने पूछा।
"ये भाई-बहन का मामला है। तुम नहीं समझोगी।”
"गुलजीरा खान को शायद हमारी दोस्ती पसन्द नहीं आ रही...।" मोना चौधरी ने कहा।
“गुल की किसी बात का बुरा मत मानो । वो दिल की बुरी नहीं है। वो खुश है। तुम मस्त रहो।"
उस ठिकाने पर जो भी मोना चौधरी को देखता, उसकी निगाहों में आदर के भाव आ जाते। अब वे मोना चौधरी की खतरनाक हस्ती के बारे में जान-समझ चुके थे।
■■■
गुलजीरा खान उस कमरे में पहुंची जहां जयन्त था।
जयन्त नहा-धोकर नाश्ता कर चुका था। आराम से बैड पर अधलेटा सा था। गुलजीरा खान को आया पाकर, कुछ सीधा होकर बैठ गया। गुलजीरा खान के चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं थे।
“मुझे पसन्द नहीं कि मोना चौधरी और हैदर में कोई रिश्ता बने...।" गुलजीरा खान ने सपाट स्वर में कहा।
“तो हैदर से कह दो। हैदर ही मोना चौधरी के पास आया... ।"
"हैदर मेरी बात नहीं सुन रहा।"
"तो मैं क्या कर सकता हूं?" जयन्त ने सामान्य स्वर में कहा--- "वैसे भी दोनों के मिलने में बुरा क्या है? घूम-फिर लेंगे।”
गुलजीरा खान के होंठ भिंचते देखे जयन्त ने।
जयन्त शांत सा उसे देख रहा था।
"मुझे पसन्द नहीं कि मोना चौधरी मेरे भाई से मिले।" गुलजीरा खान पुनः बोली।
"तो इसमें मैं क्या कर सकता...।"
"तुम मोना चौधरी को समझा सकते... ।”
"मैं ये काम नहीं कर सकता।" जयन्त ने इनकार में सिर हिलाकर कहा--- "मोना चौधरी के साथ रहकर मेरी दाल-रोटी चलती है। उसे मैं नाराज नहीं कर सकता। ये उसकी मर्जी है कि वो किसी के साथ भी घूमे। तुम क्यों नहीं कहतीं मोना चौधरी से?"
"मेरा कहना, बनता ही नहीं...।"
"तुम मोना चौधरी से कह सकती हो कि वो हैदर से दूर नहीं हुई तो, तुम उसे काम नहीं दोगी।" जयन्त सरल स्वर में बोला ।
“ये कहना मेरे बस में नहीं है।" गुलजीरा खान के दांत भिंच गए।
"क्यों... तुम तो... ।”
"लाली की मर्जी के बिना, मैं कुछ नहीं कर सकती।”
"लाली खान?"
"हां, मेरी बड़ी बहन। वो मोना चौधरी को पसन्द करती है।"
"तो फिर तुम भी परवाह मत करो। हर्ज ही क्या है मोना चौधरी और हैदर के मिलने में।"
दांत भींचे गुलजीरा खान पलटी और बाहर निकलकर आफिसनुमा कमरे में जा पहुंची।
गुलजीरा खान ने फोन निकालकर, शमशेर का नम्बर मिलाया। बात हो गई।
“शमशेर... जो काम मैं तुम्हें करने को कहने जा रही हूं, वो तुम्हारे और मेरे बीच ही रहे।” गुलजीरा खान गंभीर-सख्त स्वर में बोली।
"ऐसा ही करूंगा मैं।"
“मोना चौधरी और हैदर के बीच दोस्ती हो गई है। दोनों रेस्टोरेंट में खाना खाने गए हैं। परन्तु जाने क्यों मुझे मोना चौधरी ठीक नहीं लगती। वैसे काम वो ठीक कर रही है। तुम किसी आदमी को उस पर नजर रखने को लगा दो और उनकी हरकतों की रिपोर्ट मुझे देते रहना। इसकी भनक हैदर तक न पहुंचे... ।” गुलजीरा खान ने कहा
"अपनों पर नजर रखना ठीक होगा?" शमशेर की आवाज कानों में पड़ी। ।
"मैं कह रही हूं तुम्हें।" गुलजीरा खान का स्वर सख्त हो उठा ।
"ठीक है। मैं ये काम अभी कर देता हूँ।"
गुलजीरा खान ने फोन बंद किया और बड़बड़ा उठी---
"पक्की कुतिया है...।"
■■■
शाम चार बजे जयन्त का मोबाइल बजा।
"हैलो...।" जयन्त ने बात की।
"मैं हूं...।” कानों में लैला की आवाज पड़ी।
“रुको।” कहने के साथ ही जयन्त उठा और दरवाजे के पास पहुंचकर बाहर देखा ।
बाहर कई आदमी अपने कामों में व्यस्त दिखे।
परन्तु कमरे के दरवाजे पर कोई नहीं था।
“कहो...।” जयन्त ने कहा और वापस बैड पर आ बैठा। स्वर बेहद धीमा था।
"ये सब क्या हो रहा है?” लैला ने उधर से पूछा।
"बहुत जल्दी पूछ लिया?" जयन्त व्यंग्य से बोला--- “ये बात तुम्हें बारह दिन पहले पूछनी चाहिए थी।"
"मेरे पास खबर थी कि तुम्हारे और मोना चौधरी के पास हर वक्त लाली खान के आदमी रहते हैं।"
"ये तो ठीक कहा।"
“तभी मैंने फोन नहीं किया। मुझे बताओ कि ये सब क्या हो रहा है? लाली खान को कमजोर बनाकर खत्म करना मोना चौधरी का मिशन है और मोना चौधरी, लाली खान को ताकतवर बना रही है। अफगानिस्तान की सारी ड्रग्स उसके कदमों में डाल दी... ।"
“ये मोना चौधरी का प्लान था। इस तरह वो लाली खान के धंधे में घुस जाना चाहती है।"
"लेकिन वो ताकतवर बन गई है।"
"इस बारे में तो तुम्हें मोना चौधरी ही बता...।"
“मोना चौधरी से बात कराओ।"
"वो हैदर खान के साथ बाहर घूमने गई है।"
"हैदर खान के साथ घूमने?" उधर से लैला का अजीब सा स्वर कानों में पड़ा ।
"हां। हैदर खान मोना चौधरी के काम से प्रभावित हुआ। उसने आकर मोना चौधरी को दोस्ती की ऑफर दी...।"
लैला के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
"क्या हुआ?"
"मुझे यकीन नहीं होता कि हैदर खान ने मोना चौधरी से दोस्ती की है।"
"क्यों यकीन नहीं होता ?"
"क्योंकि मैं हैदर खान को जानती हूँ। वो औरतों को पास बिठाकर रखने में यकीन नहीं रखता।"
"मेरे सामने उसने मोना चौधरी को दोस्ती की ऑफर दी।"
“मोना चौधरी की प्लानिंग क्या है?"
“अभी उसने मुझसे इतनी ही बात की है कि वो इन लोगों में घुस जाना चाहती है।"
दो पलों की खामोशी के बाद लैला की आवाज आई---
“मोना चौधरी से बात करके मुझे बताना कि उसका प्लान क्या है?"
"बताऊंगा।" जयन्त ने कहा और फोन बंद कर दिया।
■■■
शाम 6 बजे ।
मोना चौधरी खिलखिलाकर हंस पड़ी। कुछ पल हंसती ही रही।
"इसमें हंसने की क्या बात है?" हैदर खान मुस्कराकर बोला।
हैदर खान कार चला रहा था। मोना चौधरी उसकी बगल में बैठी थी।
"तुम... तुम ही हो !" मोना चौधरी हंसी रोकते हुए बोली।
"क्या मतलब?"
“मुझे यकीन नहीं होता कि लाली खान और गुलजीरा खान का भाई, इतना दिलचस्प हो सकता है।"
"लोग मुझे खतरनाक भी मानते हैं।"
"वो तो धंधे में बनना पड़ता है। ये काम ही ऐसा है। लेकिन तुम मुझे पसन्द आए हैदर...।"
कार ड्राइव करते हैदर खान ने प्यार भरी नजरों से मोना चौधरी को देखा।
"तुम भी मुझे अच्छी लगीं। मैं तो समझता था कि तुम सिर्फ खून-खराबा ही करना जानती हो। परन्तु अब जाना कि तुममें औरत भी है। शोख, चंचल मन है तुम्हारा। मुझे तुम बहुत ज्यादा जंचीं ।" हैदर खान ने कहा।
"हम दोनों ही एक-दूसरे को पसन्द कर रहे हैं।"
"हां ये हो ही गया।"
"लेकिन अब हम कहां जा रहे हैं?"
"मेरे फ्लैट पर।"
"मैं न जाना चाहूं तो?"
"चिन्ता मत करो। मेरे साथ तुम पूरी तरह सुरक्षित रहोगी। मैं तुम्हें उस फ्लैट पर ले जा रहा हूँ, जिसके बारे में शायद ही कोई जानता हो।"
"मतलब कि तुमने मेरा विश्वास किया?"
"तुम सच में बहुत अच्छी हो।" हैदर खान ने मुस्कराकर कहा। उसकी आवाज से जाहिर था कि वो सच्चे मन से बात कह रहा है।
मोना चौधरी मुस्कराती रही, बाहर देखती रही।
“क्या सोच रही हो?"
“यही कि ऐसा पहली बार हुआ है कि मैं किसी के करीब, इतनी जल्दी आ जाऊं...।"
"मेरे साथ भी पहली बार ही...।"
इसी पल कार को जबरदस्त टक्कर लगी।
हैदर खान कार को संभाल न पाया और कार मुड़कर फुटपाथ से जा लगी।
तेज आवाज के साथ कार रुक गई।
"क्या हुआ?" मोना चौधरी के होठों से निकला।
हैदर खान ने बीस फीट आगे टक्कर मारने वाली कार को रुकते देखा।
"हमें घेरा जा रहा है...।" हैदर खान एकाएक गुर्रा उठा।
तब तक मोना चौधरी भी आगे रुकती कार को देख चुकी थी। माजरा समझ चुकी थी।
हैदर खान ने फुर्ती से रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
आगे वाली कार के चारों दरवाजे खुले और धड़ाधड़ चार आदमी बाहर निकले। दो के पास गनें थीं।
इसी समय मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और कार से निकलकर पीछे की तरफ भाग खड़ी हुई।
हैदर खान ने कार स्टार्ट करके भागना चाहा, परन्तु कार स्टार्ट नहीं हुई। दांत भींचकर हैदर खान ने दरवाजा खोला और रिवाल्वर थामें बाहर निकला। वो चारों अब इधर आना शुरू हो गए थे। हैदर ने मोना चौधरी की तलाश में नजरें घुमाई।
परन्तु वो कहीं नहीं दिखी।
दांत भींचे रिवाल्वर थामे हैदर खान उन चारों को करीब आते देखने लगा। वो पास आ गए थे। उनके पास गनें थीं। हैदर खान ने महसूस कर लिया था कि उसकी रिवाल्वर इस वक्त बेकार है। दो को मार भी दे तो भी गन वाले उसे खत्म कर देंगे।
पास आकर उन्होंने हैदर खान को घेर लिया।
दांत भीचे हैदर खान ने चारों को देखा। आज से पहले उन्हें कभी नहीं देखा था।
"छोकरी कहां है?" एक ने कार में नजरें दौड़ाते कहा।
"भाग गई शायद...।" दूसरा बोला।
"हमें इसी की जरूरत थी। हैदर खान है ना तू, लाली खान का भाई... ?” तीसरा कड़वे स्वर में बोला। उसके हाथ में गन थी।
"मुझे जानते हो और फिर भी मेरे रास्ते में आ रहे हो?" हैदर खान गुर्रा उठा ।
"चुप कर साले!" चौथा खा जाने वाले स्वर में बोला।
"क्या चाहते हो?"
"चाहता वो है, हम नहीं...।" एक ने आगे खड़ी कार की तरफ इशारा किया।
हैदर खान की आंखें सिकुड़ीं।
कार से किसी को बाहर निकलते देखा।
राह चलने वाले ये सब देख रहे थे और अब दूर-दूर होते जा रहे थे।
कार से बाहर निकलने वाले को पहचानते ही हैदर खान चौंका।
"जीजा...।" उसके होठों से निकला।
वो आदमी अब पास आ गया था। उसके चेहरे पर खतरनाक मुस्कान थी।
"जीजा, तू...?" हैदर खान होठों से हैरानी भरा स्वर निकला।
"वकील अली!" वो कड़वे स्वर में बोला ।
"क्या?" हैदर खान उछल पड़ा--- "तू वकील अली? नहीं, तेरा नाम तो फिरोज शाह...।"
"लेकिन तेरे लिए हत्यारे मैं वकील अली के नाम से खरीद रहा था।" उसने विषैले स्वर में कहा--- "पांच बार तेरे पर हमला करवाया... लेकिन हर बार तू बच गया। अब सोचा मैं ही मैदान में आ जाऊं। आ गया न तू कब्जे में...।"
"जीजा!" हैदर खान हक्का-बक्का था--- "मुझे विश्वास नहीं आ रहा कि तू मुझे मारना चाहता है।"
"मुझे जीजा मत कह। वो रिश्ता खत्म हो गया ।"
"लेकिन तेरे को जीजा कहता...।"
"जीजा मत बोल!" वो गुर्रा उठा--- "कुत्ता बोल मुझे। तेरी बहन लाली खान ने मुझे कुत्ता बना के रख दिया। मेरे से शादी की। मैंने प्यार किया लाली से साल भर बाद जब उसे बेटी हुई तो मुझे हथियारों के दम पर तलाक दे दिया। बेटी भी खुद रख ली। उसे धंधा चलाने के लिए बेटी चाहिए थी। पति की जरूरत नहीं थी उसे । आदमी तो हजारों मिलते हैं। बरबाद कर दिया मुझे लाली ने, कहीं का नहीं छोड़ा। बेटी से मिलने का दिल करता है, परन्तु कहां ढूंढूं उसे? बेटी को किसी दूसरे देश में रख छोड़ा है। बहुत बुरा किया लाली ने मेरे साथ।” गुस्से में वो कहता जा रहा था--- “लेकिन मैंने भी सोच लिया कि लाली को बरबाद करके रहूंगा। पहले तुझे मारूंगा, फिर गुल को। उसके बाद कहीं ना कहीं लाली भी मेरे हाथ चढ़ जाएगी। छोडूंगा नहीं किसी को भी...।"
"जीजा... तू... ।” हैदर खान ने कहना चाहा।
“अब तू मरेगा हैदर...।"
"मैं तेरी इज्जत करता हूं जीजा... मैं...।"
"बचना चाहता है? ठीक है, छोड़ दूंगा तुझे। बता, मेरी बेटी कहां पर है?" वो सिर हिलाकर बोला।
"मैं नहीं जानता, लाली के कामों की मुझे खास खबर नहीं रहती। मेरा सारा वक्त तो ड्रग्स के धंधे में बीत जाता है। लाली से मिलना बहुत कम होता है। फोन पर ही बात होती है। पर तू फिक्र नहीं कर, मैं लाली से बात... ।”
“वो हरामजादी मुझे कुत्ता समझती है। तू क्या समझता है कि तेरे बात करने से वो मेरी बेटी को मेरे हवाले कर देगी?" उसने दांत किटकिटाए ।
हैदर खान के चेहरे पर गंभीरता थी।
"लेकिन तेरे मरने से उसे तकलीफ होगी कि एक विश्वासी बंदा कम हो गया। गुल के मरने से वो और भी तड़प उठेगी और अपनी बिल से बाहर निकलेगी। तब मैं उसका भी शिकार कर लूंगा। इसे मार दो।" फिरोज शाह चीखा।
"ये गलत बात है जीजा... मेरा क्या कसूर...।"
तभी दो तेज धमाक हुए और दो गोलियां उन दोनों को लगीं, जिनके हाथों में गनें थीं
दोनों उछलकर वहीं लुढ़क गए। नीचे जा गिरे।
फिरोज शाह चौंका और पलटकर तेजी से कार की तरफ दौड़ा। बाकी बचे दोनों आदमी भी कार की तरफ दौड़े।
अपनी जगह पर खड़ा हैदर खान उन्हें कार तक पहुंचते और भीतर बैठते देख रहा था। रिवाल्वर हाथ में थी, परन्तु गोली नहीं चलाई। चेहरे पर गुस्सा भी था और उलझन भी।
देखते-ही-देखते वो कार स्टार्ट हुई और भागती चली गई।
हैदर खान ने रिवाल्वर जेब में रखी और नजरें घुमाईं।
मोना चौधरी कार के पास आ पहुंची थी।
“तुमने बढ़िया वक्त पर गोलियां चलाईं।” हैदर खान गंभीर स्वर में बोला।
“वो भाग गए। तुम्हारे पास रिवाल्वर थी, तुम उन्हें मार सकते थे।"
हैदर खान नीचे पड़ीं लाशों को देखकर कह उठा---
“यहां से चलो। परन्तु ये कार स्टार्ट नहीं हो रही।” कहने के साथ ही हैदर खान ने हाथ भीतर डालकर चाबी को घुमाया।
इस बार कार स्टार्ट हो गई। दोनों भीतर बैठे। कार आगे बढ़ गई।
"कौन थे ये लोग?" मोना चौधरी ने हैदर खान के चेहरे पर नजर मारी।
"जीजा ।"
"जीजा ?"
“लाली का पति। फिरोज शाह । जो कि पांच बार वकील अली के नाम से मुझ पर जानलेवा हमला करा चुका है।"
"लाली का पति?" मोना चौधरी के होठों से निकला।
“हां। मेरी बहन लाली का पति। ड्रग्स का धंधा चलाने के लिए उसे वारिस चाहिए था---कानूनी वारिस। इसी कारण लाली ने दस साल पहले शादी की। जब साल भर बाद बच्ची पैदा हुई तो उसने जीजे की छाती पर रिवाल्वर रखकर तलाक देने को मजबूर कर दिया और बच्ची भी ले ली। यानि कि लाली को वारिस मिल गया।" हैदर खान गंभीर था।
“ओह...तो अब तुम्हारा जीजा क्या चाहता है?”
"वो मुझे, गुल और फिर लाली को मारकर बदला लेना चाहता है। वो अपनी बेटी वापिस चाहता है।"
"मोना चौधरी की निगाह, हैदर खान के गंभीर चेहरे पर थी।
"फिरोज शाह तुम पर फिर हमला करेगा, तुम्हें मारने के लिए?" मोना चौधरी ने कहा।
"हां, जरूर करेगा।"
"तो उसे तुमने मारा क्यों नहीं? तुम आसानी से उसे मार सकते थे।"
"इसमें मुझे जीजे की कोई गलती नजर नहीं आती। लाली ने उसके साथ जो किया, उसकी वजह से उसने ऐसा रास्ता अपना लिया तो स्पष्ट है कि वो गैरतमंद है...।" हैदर खान ने गहरी सांस ली।
“ये काम उसने नौ साल पहले क्यों नहीं किया? इतने साल चुप क्यों रहा?"
"इतनी बात नहीं हो पाई जीजा से कि वो नौ साल तक क्या करता रहा।" हैदर खान कह रहा था--- "लाली को शुरू से ही बंदिश की आदत नहीं है। तभी उसने अपने पति से तलाक ले लिया। गलत किया था लाली ने। मुझे भी तब अच्छा नहीं लगा था। मैं पास ही था जब उसकी छाती पर रिवाल्वर रखकर लाली ने उसे तलाक देने को कहा था।"
"जीजा के लिए तुम्हारे दिल में इज्जत है अभी भी...।"
“हां। वो अच्छा बंदा है। मुझे वो अच्छा लगता था।" हैदर खान ने मोना चौधरी को देखकर कहा।
"तुम्हें ये बात अपनी बहन को बतानी चाहिए।"
“अभी फैसला नहीं किया। शायद न बताऊं। ये सब सुनते ही लाली जीजे को खत्म करने का आर्डर दे देगी।”
"तुम ये क्यों भूलते हो हैदर कि वो तुम्हें फिर मारने की कोशिश करेगा। इस बार शायद वो सफल हो जाए।"
"जीजा, जो भी कर रहा है, उसमें मैं उसकी गलती नहीं मानता। वो फिर मिला तो उसे समझाऊंगा।" हैदर खान गंभीर था।
“वो बदले का मारा है। तुम्हारी बात नहीं सुनेगा।”
"जब देखूंगा कि कुछ नहीं हो सकता, तब उसे गोली मार दूंगा।" हैदर खान ने बेमन से कहा।
“तुम बहुत नर्मदिल हो।" मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।
“उसके लिए, जिसे मैं पसन्द करने लगूं। जैसे कि तुम।" हैदर खान ने मुस्कराकर मोना चौधरी को देखा।
"बहुत अजीब हो तुम तुम्हें समझ पाना आसान नहीं...।"
“मैं खुली किताब की तरह हूं। खुद को रहस्य में नहीं रखता। जल्दी ही मुझे समझ जाओगी।"
हैदर खान, मोना चौधरी को लेकर एक फ्लैट पर आ पहुंचा।
"मैं इस फ्लैट पर अकेला आता हूं और अकेला जाता हूँ। इस तरह मैं खुद को सुरक्षित समझता हूँ।" हैदर खान बोला।
"अगर कोई पीछा करके फ्लैट के बारे में जान ले तो?"
"मैं यहां आते वक्त हमेशा ध्यान रखता हूं कि कोई मेरे पीछे न लगा हो।"
"आज भी ऐसा किया ?"
"हां...।"
“मुझे तो नहीं लगा कि तुम इस बात के प्रति सतर्क हो। वैसे तुम्हारा फ्लैट अच्छा है।"
"मुझे खुशी है कि तुम्हें पसन्द आया।" हैदर खान मुस्कराकर बोला--- "मुझे बताओ कि तुम्हारी सेवा में मैं क्या पेश करूं?"
"कुछ भी नहीं...।"
"कुछ भी नहीं?" हैदर खान ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।
“तुम तो अपने को मेरी सेवा में पेश करने का इशारा कर रहे हो...।" मुस्करा पड़ी मोना चौधरी ।
"अगर तुम्हारी इजाजत हो तो...।"
"हम करीब आने में जल्दी नहीं कर रहे क्या?" मोना चौधरी बोली।
“जरा भी नहीं। हम दोनों ही एक-दूसरे को पसन्द कर रहे हैं, तो फिर सोचना क्या ?" हैदर खान ने मुस्कराकर कहा
"तो फिर थाम लो मुझे...।" मोना चौधरी शोख स्वर में कह उठी।
हैदर खान आगे बढ़ा, पास आया। मोना चौधरी को बांहों के घेरे में लिया और उसके तपते होठों पर अपने होंठ रख दिए।
■■■
गुलजीरा खान ने फाइल टेबल पर रखी और गहरी सांस ली। रात के 8:30 बज रहे थे। उसके चेहरे पर थकान नजर आ रही थी। अब वो आराम करना चाहती थी। खाना खाकर सो जाना चाहती थी। मन ही मन अपने फ्लैट पर जाने का फैसला किया कि तभी आहट गूंजी कदमों की और सुल्तान ने भीतर प्रवेश किया। गुलजीरा खान ने प्रश्न भरी नजरों से उसे देखा।
सुल्तान एक कागज निकालकर उसके सामने रखता कह उठा---
"मैंने सारे माल का हिसाब लगा लिया है। एक किलो के पीछे दो हजार के हिसाब से ये रकम बनती है।"
गुलजीरा खान ने कागज पर लिखी रकम को देखा।
तभी शमशेर ने भीतर प्रवेश किया।
"ठीक है सुल्तान। अब तुम आराम करो।"
सुल्तान चला गया।
"बैठो।" उसने शमशेर से कहा।
शमशेर बैठा और कह उठा---
"हैदर साहब और मोना चौधरी इस वक्त एक फ्लैट पर हैं। हैदर साहब गुप्त तौर पर उस फ्लैट पर रहते हैं।"
"तो पक्की कुतिया ने हैदर को पूरी तरह कब्जे में कर लिया...।" गुलजीरा खान बड़बड़ा उठी।
"क्या कहा?" शमशेर बोला।
"तुम्हारा कोई आदमी उस फ्लैट पर नजर रख रहा है?"
“हाँ। निगरानी का मैंने पूरा इंतजाम कर दिया है। लेकिन आप ये सब क्यों करा रही हैं?" शमशेर ने पूछा।
“मुझे मोना चौधरी पसन्द नहीं आ रही... ।"
"लेकिन ड्रग्स इकट्ठी करने का काम तो उसने बढ़िया किया है।"
"वो मुझे पसन्द नहीं आ रही शमशेर... ।” गुलजीरा खान के होंठ भिंच गए।
शमशेर चुप रहा।
“तुमने बताया था कि कोई औरत सैयद की पार्टनर है। उसके बारे में कुछ पता किया?"
"पता किया जा रहा है, परन्तु वो औरत मोना चौधरी नहीं । मेरा जो आदमी उस औरत को जानता है, उसने मोना चौधरी को देखा था।" शमशेर के चेहरे पर गंभीर भाव आ गए--- “मेरे पास आपके जीजा के बारे में खबर है।"
“फिरोज शाह?" गुलजीरा खान की आंखें सिकुड़ीं ।
शमशेर ने सहमति में सिर हिलाया।
“क्या?" गुलजीरा खान भारी उलझन में थी--- “उसका हमारे से क्या वास्ता ?"
"ये तो पता नहीं, परन्तु शाम को आपके जीजा ने चार आदमियों के साथ, हैदर साहब पर हमला किया। वे गनें लिए हुए थे। परन्तु मोना चौधरी ने दो को मार दिया। वो सब भाग निकले। तब हैदर साहब के पास रिवाल्वर थी हाथ में। वो तीनों को मार सकते थे, लेकिन मारा नहीं।"
गुलजीरा खान की आंखें सिकुड़ीं ।
"हैरत है कि जीजा ने, हैदर पर हमला किया! तुमने देखा ये सब?"
"नहीं। मेरा पुराना आदमी तब हैदर का पीछा कर रहा था। वो जीजा को पहचानता है। उसने मुझे खबर दी।"
"लेकिन जीजा ने हैदर पर हमला क्यों किया?"
शमशेर खामोश रहा।
“विश्वास नहीं आता... ।” गुलजीरा खान बड़बड़ा उठी।
शमशेर ने कुछ नहीं कहा।
"तुम्हारा आदमी जीजा के पीछे नहीं गया ?"
"नहीं, मैंने उसे हैदर साहब पर नजर रखने को कहा था।"
"ऐसे मौके पर उसे जीजा के पीछे जाना चाहिए था। कम से कम उसका ठिकाना तो पता चलता।" गुलजीरा खान सोच भरे स्वर में कह रही थी--- "तुम जीजा के ठिकाने की खबर पाने की कोशिश करो।"
"इस काम में अभी आदमी लगा देता हूं।"
"ये सब हुआ तो, हैदर ने मुझे फोन करके बताया क्यों नहीं?”
शमशेर चुप रहा।
"तुम जाओ और जीजा के ठिकाने का पता करो। पता नहीं उसे क्या हो गया है। वो तो ऐसा नहीं था।"
शमशेर चला गया।
गुलजीरा खान होंठ सिकोड़े देर तक सोचों में रही---फिर मोबाइल उठाकर हैदर खान को फोन किया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी।
बजती रही बेल । फोन नहीं उठाया गया। बेल बंद हो गई।
"पक्की कुतिया के साथ चिपका पड़ा होगा।" गुलजीरा खान बड़बड़ा उठी---फिर लाली खान का नम्बर मिलाया।
तुरन्त ही बात हो गई।
“कहो गुल... ।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी।
“शमशेर ने बताया कि आज जीजा ने चार आदमियों के साथ हैदर पर जानलेवा हमला किया।" गुलजीरा खान ने कहा।
"फिरोज शाह ने...।" लाली खान का शांत स्वर कानों में पड़ा।
"हां। लेकिन मोना चौधरी उसके साथ थी। उसने दो को मार दिया। जीजा बाकी दो के साथ भाग गया।"
"हूं...।"
"तुम्हें सुनकर हैरानी नहीं हुई लाली ?"
"नहीं।" लाली खान का स्वर कानों में पड़ा-- "वो अपनी बेटी मासो को ढूंढ रहा था सालों से। मुझे उसकी खबर मिलती रहती थी। साथ में काम चलाने के लिए थोड़ा-बहुत ड्रग्स का धंधा कर लेता है। इतने सालों के बाद जब उसे लगा कि वो मासो को नहीं देख पाएगा तो उसने बदला लेने का मन बना लिया होगा। वो हम सबको खत्म करना चाहेगा।"
"तो जीजा का क्या करना है?"
"वो मानने वाला नहीं। जिद्दी है।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी--- “उसे खत्म कर देना ही ठीक है।"
"कहां पर मिलेगा वो?"
"नहीं जानती। शमशेर से कह, वो पता कर लेगा।"
"कह दिया है उसे।" गुलजीरा खान ने कहा--- "हैदर की शिकायत है मेरे पास।”
"बोल... ।"
"उसने जीजा के बारे में खबर नहीं दी कि उसने हमला किया। वो मोना चौधरी के साथ एक फ्लैट में बंद है।"
"फुर्सत मिलने पर बता देगा ।"
"मुझे मोना चौधरी कुछ ठीक नहीं लगती।” गुलजीरा खान कह उठी।
“मोना चौधरी ने ड्रग्स इकट्ठी करके बहुत बढ़िया काम किया है। तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए गुल।”
"वो मुझे अच्छी नहीं लगती।”
"धंधे के लिहाज से वो ठीक काम कर रही है ना?"
"हां...।"
"तो खामख्वाह उसे कुछ कहने की चेष्टा मत करना। वो हमारे काम की है। उससे हमने बहुत काम लेने हैं।"
"वो और हैदर दोस्त बन गए हैं।"
"ये तो और भी अच्छी बात है। कम-से-कम हैदर की नजर रहेगी मोना चौधरी पर।"
गुलजीरा खान के होंठ भिंच गए।
"फिरोज के बारे में पता लगते ही उसे खत्म करवा देना ।" उधर से लाली खान ने कहकर फोन बंद कर दिया।
"इस पक्की कुतिया ने तो मुझे परेशान कर डाला है... कोई मेरी बात सुनता ही नहीं।" दांत भींचे गुलजीरा खान बड़बड़ा उठी ।
तभी हाथ में दबा मोबाइल बज उठा। स्क्रीन पर आया नम्बर देखा, दूसरी तरफ आरिफ था।
"बोल आरिफ...।" गुलजीरा खान ने गहरी सांस ली।
"आज मिलें ?" उधर से आरिफ ने पूछा।
"मैं व्यस्त हूं आज रात।" गुलजीरा आज रात आराम करना चाहती थी। मूड भी कुछ ठीक नहीं था।
"मैं जब भी कहता हूं तो तू टाल देती...।"
"प्लीज आरिफ ।” गुलजीरा खान मीठे स्वर में कह उठी--- "तेरी बात टाल सकती हूं कभी क्या? मेरा तो खुद का मन है, परन्तु आज रात मिनट भर की भी फुर्सत नहीं है। कल का पक्का रहा।"
"तुम्हारी मर्जी मेरी जान।" इसके साथ ही उधर से आरिफ ने फोन बंद कर दिया था।
गुलजीरा खान फोन हाथ में दबाए बाहर निकली कि ठिठक गई। सामने से जयन्त आ रहा था। वो जयन्त को घूरती रही, जब तक कि वो पास न आ गया।
“मोना चौधरी कहां है?" जयन्त ने पूछा।
“हैदर के साथ पड़ी होगी कहीं!" गुलजीरा खान ने तीखे स्वर में कहा।
"तुम ठीक से जवाब नहीं दे रहीं।” जयन्त का स्वर सख्त हुआ।
"वो मुझे बताकर नहीं गई, जो मैं तुम्हें उसके बारे में खबर दे दूं...।"
"वो तुम्हारे भाई के साथ है। तुम भाई को फोन कर सकती हो कि...।"
“किया था। लेकिन उसके पास फुर्सत नहीं है मेरी कॉल रिसीव करने की।” गुलजीरा खान कहकर आगे बढ़ गई।
बरबस ही जयन्त के होठों पर मुस्कान आ ठहरी। वो पलटा और वापस अपने कमरे में चला गया। दरवाजे पर कोई नहीं था। उसने दरवाजा बंद किया और बैड पर बैठकर लैला का नम्बर मिलाया।
"कहो जयन्त।"
"लगता नहीं आज रात मोना चौधरी लौटे। वो हैदर के साथ ही है। कल जब वो आएगी तो तभी उससे पूछकर बता सकूंगा कि तुम्हारे लिए उसके पास कोई काम है या नहीं।" जयन्त ने बेहद धीमे स्वर में कहा।
"हूं... ठीक है। तुम इस वक्त कहां हो ?"
"लाली खान के ही एक ठिकाने पर। महाजन कैसा है?"
"वो ठीक है और मुझे परेशान करता रहता है कि खाली नहीं बैठा जाता। वो मुझसे काम चाहता है, परन्तु इस वक्त उससे लेने को कोई काम नहीं है। मोना चौधरी को बता देना कि महाजन से खाली नहीं बैठा जाता।"
"कहूंगा।" जयन्त ने कहा और फोन बंद कर दिया। वो दिन भर भीतर ही रहा था। बाहर नहीं निकला था। इसके पीछे वजह थी कि वो यहां की ज्यादा से ज्यादा जानकारी लेना चाहता था, जो कि भीतर रहकर ही ले सकता था।
कुछ देर बाद एक आदमी ने दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश किया तो उसकी सोचें टूटीं।
"कुछ चाहिए आपको? चाय... कॉफी... ?"
"नहीं, खाना खा लिया है... और कुछ नहीं चाहिए। जाते वक्त लाइट बंद कर देना। अब मैं नींद लूंगा।"
■■■
अगले दिन दस बजे मोना चौधरी और हैदर खान नींद से उठे। उनके जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था। दोनों ने चादर ऊपर ले रखी थी। मोना चौधरी का चेहरा खिला हुआ था और हैदर खान के चेहरे पर मीठी मुस्कान नाच रही थी।
“मोना डियर... ।" हैदर खान ने मस्ती भरे स्वर में कहा।
“हां।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर उसे देखा ।
"तुम शानदार हो। हर तरफ से शानदार। मुझे शायद तुम से प्यार हो गया है।"
मोना चौधरी मुस्कराती हुई हैदर खान को देखती रही।
"क्या देख रही हो?" हैदर खान ने प्यार से कहा।
“सोच रही हूं कि तुम ड्रग्स के धंधे में रहकर भी कितने साफ दिल के हो।" मोना चौधरी ने कहा।
"धंधा अपनी जगह है और जिन्दगी अपनी जगह पर है।" हैदर खान ने मोना चौधरी का हाथ थाम लिया।
मोना चौधरी ने उसका हाथ चूमा और बोली---
"तुम भी मुझे अच्छे लगने लगे हो।"
"एक ही रात में हम दोनों एक-दूसरे को पसन्द करने लगे हैं। ये बहुत जल्दी नहीं हो गया क्या?"
"शायद। पर कभी-कभी ऐसा हो जाता है। मेरे साथ पहली बार हुआ है ऐसा।"
"मेरे साथ भी...।" हैदर खान ने हंसकर कहा और मोना चौधरी के गाल पर 'किस' की।
"मन नहीं भरा क्या ?" मोना चौधरी ने शरारत भरे स्वर में कहा।
"तुम्हारे पास रहने पर, मन नहीं भरने वाला... तुम में कुछ खास है।"
"दस बज रहे हैं।” मोना चौधरी हाथ छुड़ाते हुए बोली--- “दिन भर यहीं रहने का इरादा है क्या?"
"हां। हम दोनों यहीं रहेंगे। एक साथ...।"
“लेकिन मेरा मन घूमने का है, लम्बा घूमने का।”
"तुम्हारे लिए तो मैं हाजिर हूँ। ठीक है, घूमने चलते हैं। लोहगार चलते हैं।"
"लोहगार?"
"ढाई घंटे का रास्ता है काबुल से, तेज रफ्तार से। वहां हमारे मीलों फैले अफीम के खेत हैं। पास में पहाड़ियां हैं। बहुत ही सुन्दर नजारा दिखता है। तुम्हें वहां अच्छा लगेगा।" हैदर खान प्यार से बोला ।
"तो हम जल्दी तैयार हो जाते हैं।" मोना चौधरी ने लिहाफ हटाया और बैड से उतरी।
मोना चौधरी का अंग-अंग चमक रहा था।
हैदर खान की निगाहें उसके शरीर पर फिरने लगीं।
"अब बस करो... ।" मोना चौधरी मुस्कराई।
"नजर नहीं हटती।"
"तो देखते रहो... ।" मोना चौधरी ने हंसकर कहा और बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
■■■
हाईवे पर कार तूफानी रफ्तार से लोहगार की तरफ बढ़ रही थी।
ड्राइविंग सीट हैदर खान ने संभाल ली थी। बगल में मोना चौधरी। ए.सी. ने कार को ठण्डा कर रखा था, वरना बाहर तो काफी गर्मी थी। कुछ देर पहले ही एक जगह रुककर उन्होंने नाश्ता किया था।
"लोहगार तुम्हें पसन्द आएगा मोना चौधरी।" हैदर खान ने खुशी भरे स्वर में कहा।
"मैं देख रही हूं कि तुम कल से कोई काम नहीं कर रहे।" मोना चौधरी बोली--- "कोई काम नहीं है क्या?"
"काम बहुत हैं। परन्तु ये वक्त मैं गंवाना नहीं चाहता। तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं...।"
"धंधा बहुत फैला रखा है तुम लोगों ने?"
"बहुत। लाली हर तरफ नजर रखती है कि सब कुछ ठीक चले। हमें पता भी नहीं चलता है और वो नजर रख रही होती है। उसके खास आदमी इस काम को करते हैं।" हैदर खान का पूरा ध्यान रफ्तार से दौड़ती कार पर था।
"क्या वो पसन्द करेगी कि हम इस तरह घूमें?"
“इन बातों पर वो एतराज नहीं करती। वो सिर्फ धंधे को देखती है। धंधा ठीक चलना चाहिए।"
"ये धंधा स्थाई नहीं है। कभी भी सब कुछ बदल सकता है। खतरे बहुत हैं।" मोना चौधरी बोली ।
“लाली धंधे को जमाकर रखेगी। पहले हमारी मां ये धंधा बखूबी संभाल रही थी। फिर लाली ने संभाला। हमारा परिवार हमेशा से ही इसी धंधे में रहा है। हम हमेशा कामयाब रहे हैं।" हैदर खान ने कहा--- "सब कुछ ऐसे ही चलेगा। कभी कुछ नहीं बदलेगा। हमारा परिवार आगे भी इसी धंधे में रहेगा।"
"लाली के बाद कौन धंधा संभालेगा?"
"अगर लाली बूढ़ी होकर मरती है तो उसकी बेटी बड़ी होकर धंधा संभालेगी। बेटी मासो...।"
"पहले मर गई तो?"
“तो गुलजीरा खान इस धंधे की बड़ी बन जाएगी।"
“मतलब कि तुम्हारे परिवार की परम्परा है कि औरतें ही धंधे की बड़ी बनती हैं।"
"हां...।"
"अगर औरतें ही न रहें तो?"
"फिर परिवार का कोई भी मर्द धंधा संभाल सकता है... लेकिन आगे चलकर, परिवार में जो औरत आएगी, वो पूरे ड्रग्स के धंधे की कमान अपने हाथों में ले लेगी...।" हैदर खान ने कहा।
"ऐसा क्यों?"
"पीछे से ही हमारे परिवार में यही चलता आ रहा है कि औरतें ही इस के धंधे की बड़ी बनेंगी।"
कार तूफानी रफ्तार से लोहगार की तरफ दौड़ी जा रही थी।
"तुमने पैसा इकट्ठा किया?" मोना चौधरी ने पूछा।
"किस वास्ते?"
"कभी भी ड्रग्स के इस काम में बुरा वक्त आ सकता है। कोई मुसीबत तुम सब पर टूट सकती है। ऐसे में जिन्दगी बिताने के लिए पैसा तो पास में होना चाहिए। तुम्हारे पास पैसा है?"
"ये अजीब सा सवाल तुम क्यों कर रही हो?"
“क्योंकि मैं तुम्हें पसन्द करने लगी हूं। मुझे तुम्हारी चिन्ता है।"
"मैंने कोई पैसा इकट्ठा नहीं कर रखा। सब कुछ लाली के पास रहता है और धंधे में पैसा इधर-उधर दौड़ता रहता है और मुझे जरूरत भी नहीं है पैसे की। सब कुछ इसी प्रकार ठीक चलेगा।”
मोना चौधरी ने इस बारे में फिर कुछ नहीं कहा।
हैदर खान फिर कह उठा---
"मैं तुम्हें भीतर की बात बताता । हमने ड्रग्स के धंधे से बहुत पैसा बनाया । इतना कि तुम सोच भी नहीं सकतीं। यही वजह है कि 1000 करोड़ के मूल्य की ड्रग्स जल जाने पर भी हमारे माथे पर शिकन नहीं आई। इस ड्रग्स के धंधे में बहुत पैसा है। 1000 करोड़ के नुकसान को हम छोटा समझते हैं।"
“कहां रखा है इतना पैसा ?"
"लाली के पास...।"
"अगर उसे कुछ हो जाए तो तुम लोगों को कैसे पता चलेगा कि वो पैसा कहां है।"
"हमें पता चल जाएगा। लाली ने इंतजाम कर रखा है।"
मोना चौधरी होंठ सिकोड़े कार से बाहर देखने लगी। उसके मस्तिष्क में चल रहा था कि लाली को, गुलजीरा खान को, या धंधे को भी खत्म करके इन्हें कमजोर नहीं किया जा सकता। इसके लिए कुछ खास करना होगा।
"लाली ने अपनी बेटी मासो को कहां रखा है?" मोना चौधरी पूछा।
"तुम क्यों पूछ रही हो?"
"यूं ही । नहीं बताना चाहते तो ना सही!" मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा।
चंद क्षण चुप रहकर हैदर खान कह उठा---
"मासो हिन्दुस्तान के दिल्ली शहर में पढ़ रही है।"
मोना चौधरी मन-ही-मन चौंकी। चेहरा सामान्य रहा।
"दिल्ली सुरक्षित शहर है। लाली ने अपनी बेटी को वहां भेजकर अच्छा किया।" मोना चौधरी बोली।
"हिन्दुस्तान तुम्हारे लिए तो सुरक्षित नहीं है। वहां की पुलिस तुम्हारे पीछे है।"
"हां, तभी तो मैं अफगानिस्तान आ गई।" मोना चौधरी मुस्कराई।
"अच्छा ही हुआ जो तुम्हें हिन्दुस्तान से भागना पड़ा।" हैदर खान मुस्कराया--- "वरना हम ना मिल पाते...।"
मोना चौधरी ने मुस्कराती नजरों से उसे देखा ।
हैदर खान ने उसे देखा। पल भर के लिए।
"सामने देखो, एक्सीडेंट हो जाएगा।"
हैदर खान ने तुरन्त नजरें सामने कर लीं।
"तुम्हारे साथ सब कुछ मुझे बहुत बढ़िया लग रहा है।" हैदर खान ने कहा।
“मुझे भी अच्छा लग रहा है। लेकिन गुलजीरा को मैं पसन्द नहीं...।"
"वो दिल की बुरी नहीं है।"
"तुम बता चुके हो।"
"मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता मोना चौधरी। तुम हमेशा मेरे पास ही क्यों नहीं रहतीं ?"
"इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिर बात करेंगे।"
"तुम्हारी मर्जी...।"
"यहां कहीं पीने को पानी मिलेगा ?"
"क्यों नहीं। कुछ आगे ही एक कस्बा आने वाला है। वहां दुकानें हैं। पानी की बोतलें मिल जाएंगी।"
मोना चौधरी कार के बाहर देखने लगी ।
"तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है?"
"कोई नहीं...।” मोना चौधरी शांत से स्वर में कह उठी।
"मां... बाप?"
"जब मैं पंद्रह साल की थी, वे एक्सीडेंट में चल बसे...।" मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
"सुनकर दुख हुआ... भाई-बहन भी नहीं हैं?"
"नहीं...।"
"मां-बाप के मरने के बाद तो तुम्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा।"
"बहुत। मेरी राह बदल दी हालातों ने। कब मैं अपराध की राह पर चल पड़ी, पता ही नहीं चला।"
सामने कस्बा नजर आने लगा।
हैदर खान ने रफ्तार कम की और कार को सड़क के किनारे की तरफ ले आया।
"मिनट भर बाद ही उसने सड़क से उतारकर, कार रोक दी। इंजन बंद किया। सौ कदम दूर ही कुछ दुकानें दिख रही थीं। उसके बाद पीछे मकान और खेत नजर आ रहे थे।
"मैं पानी लेकर आता हूं...।"
"मुझे अपना फोन दे दो। जयन्त से बात करनी है। वो परेशान हो रहा होगा कि रात मैं लौटी नहीं...।"
हैदर खान ने अपना फोन निकालकर उसे दिया।
"वो तुम्हारा साथी है या कुछ और भी?" हैदर खान ने मोना चौधरी को देखा।
"वो सिर्फ मेरा साथी है। चिन्ता मत करो, मुझे पाना आसान नहीं।" मुस्करा पड़ी मोना चौधरी ।
हैदर खान भी मुस्कराया और कार से निकलकर, दुकानों की तरफ बढ़ गया।
मोना चौधरी ने हैदर खान के फोन से जयन्त का नम्बर मिलाया।
बात हो गई।
"तुम्हारे पास है कोई?" मोना चौधरी ने पूछा।
उसकी निगाह हैदर खान पर थी, जो दुकानों की तरफ जा रहा था।
"नहीं। तुम कहां हो कल से?" उधर से जयन्त ने पूछा।
"हैदर के साथ....।"
"तुम्हें उसके साथ रहना चाहिए क्या...?"
"तभी तो बीच की बातें मालूम होंगी। वैसे वो एक अच्छा इन्सान है।"
जयन्त के गहरी सांस लेने की आवाज आई, फिर वो बोला---
“गुलजीरा खान इस बात को लेकर गुस्से में लगती है कि तुम उसके भाई के साथ हो।"
“वो कुछ नहीं कर सकती। इस बारे में तुम उसकी परवाह मत करो। अब मेरी बात सुनो।"
"बोलो।"
"लैला को फोन करो और उसे कहो कि लाली को तलाश करो ।"
"लाली खान?"
"वो ही। मैं जानना चाहती हूं कि लाली खान का ठिकाना कहाँ है?"
"ऐसा क्यों?"
"ये लोग बहुत पैसे वाले हैं। इनके पास इतना पैसा है कि हम इन्हें तबाह करके वापस हिन्दुस्तान चले जाएं तो छः आठ महीनों में ये फिर ड्रग्स का धंधा खड़ा कर लेंगे। हमने जितना सोचा है, उससे ज्यादा ही करना होगा।"
"हूं...।"
"दूसरी बात, जो माल हमने पूरे अफगानिस्तान से इकट्ठा किया। है, वो कहां रखा है, ये पता करना है। गुलजीरा खान ने बताया था उस सारी ड्रग्स को तीन गोदामों में रखा है।"
“तो तुम्हारे पास कोई प्लान है?"
"मेरे पास वक्त बहुत कम है। मैं हैदर के फोन से बात कर रही हूं। वो आने वाला है।" मोना चौधरी की नजरें बाहर दौड़ रही थीं--- "मेरी बात सुनो और सवाल मत करो। तीसरा काम है लाली के तलाकशुदा पति फिरोज शाह को तलाश करो और उसे अपने कब्जे में लो। ये काम तुम अपने स्थानीय एजेन्टों से करा सकते हो।"
"हमारे काम में लाली के तलाकशुदा पति का क्या काम ?"
“मेरे दिमाग में कुछ है। तुम सब कुछ मेरे हिसाब से चलने दो...।"
"ठीक है। और कुछ भी है या तीन काम ... ।"
"चौथा काम भी है। अपने चीफ को दिल्ली फोन करो और उसे बताओ कि लाली खान की बेटी मासो नौ-दस साल की है और दिल्ली के किसी स्कूल में पढ़ रही है। जाहिर है कि वो स्कूल के हॉस्टल में ही रहती होगी। उसे ढूंढना थोड़ा कठिन होगा, परन्तु उस तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। उसका पता लगाकर, उसे उठा लो ।”
जयन्त के लम्बी सांस लेने की आवाज आई---
"तुम पता नहीं क्या करना चाहती हो?"
"मैंने तुम्हें चार काम कहे हैं। अच्छी तरह सुन लिये तुमने?"
“हाँ...।"
"तो जैसा कहा है, इन कामों पर वैसा ही काम शुरू करवा दो।" मोना चौधरी गम्भीर थी।
"तुम कब आओगी?"
"पता नहीं। लेकिन जल्दी आऊँगी।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद कर दिया।
हैदर खान पानी की दो बोतलों के साथ वापस आता दिखा।
मोना चौधरी शांत भाव से उसे पास आते देखती रही।
हैदर खान ने उसे देखकर, पानी की बोतल वाला हाथ उठाकर दिखाया।
मोना चौधरी मुस्करा पड़ी। उसने भी हाथ हिलाया।
हैदर खान कार में आ बैठा। पानी की बोतल मोना चौधरी को दी और उसका गाल चूमा।
मोना चौधरी ने भी उसके होंठों पर 'किस' की और पानी की बोतल खोलते कह उठी---
"तुम बहुत प्यारे हो...।"
"तुम भी कम नहीं। मुझे पागल बना दिया है।" हैदर खान ने कार स्टार्ट की।
मोना चौधरी ने पानी के घूंट गले से नीचे उतारे।
हैदर खान ने कार आगे बढ़ा दी।
■■■
लैला ने महाजन से कहा---
"तुम्हारे लिये काम आ गया महाजन...।"
“क्या?"
“जयन्त का फोन आया है। मोना चौधरी ने उसे दो काम हमारे हवाले करने को कहा है।"
"वो खुद कहाँ है?"
"लाली खान के भाई हैदर के साथ... ।"
“हूँ... कौन से काम ?”
"मोना चौधरी ने अफगानिस्तान से जो ड्रग्स इकट्ठी करके गुलजीरा खान के हवाले की है, उस सारी ड्रग्स को उसने तीन गोदामों में रखा है। पता करना है कि वो गोदाम कहाँ-कहाँ पर हैं।" लैला बोली।
महाजन के होंठ सिकुड़े।
"शायद तुम समझ गये कि मोना चौधरी का क्या प्लान है।" लैला ने कहा--- "मुझे भी बताओ।"
"मैं नहीं समझा।" महाजन मुसकराया।
"या मुझे बताना नहीं चाहते?"
"दूसरा काम कौन सा है?"
"लाली खान का ठिकाना जानना कि कहाँ पर छिप कर रहती है ?" लैला ने कहा।
महाजन ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।
"इसमें से एक काम तुम करोगे और एक में...।"
"मैं लाली खान के ठिकाने के बारे में जानूंगा ।"
"ये कठिन काम है, मेरे लिए रहने दो..।"
"कठिन कैसे?"
"तुम अफगानिस्तान में नये हो ज्यादा कुछ नहीं जानते इसलिए...।"
"कोई विश्वासी आदमी साथ कर दो।" महाजन बोला--- "काम मुझे ही करना चाहिये। तुम्हारी यहाँ पर जरूरत पड़ सकती है। जयन्त या बेबी को तुमसे कोई भी काम पड़ सकता है।"
दो क्षण की सोचों के बाद लैला ने सिर हिलाया।
"ठीक है। लेकिन याद रखना कि लाली खान के आदमी तुम्हें ढूंढ रहे हैं। तुम्हारी हुलिया उनके पास है।"
"मैं हुलिया बदल लेता हूँ। तुम मेरे लिए मेकअप का इन्तजाम कर दो।"
"वो तो हो जायेगा।" लैला सोच भरे स्वर में कह उठी-- "लेकिन तुम लाली खान का ठिकाना कैसे तलाश करोगे। ये काम तो अब तक मैं भी नहीं कर पाई। लाली खान अचानक कहीं नजर आती है और फिर गायब हो जाती है।"
"तुम्हारे पास लाली खान के बारे में जो जानकारी है, वो मुझे दे दो।" महाजन ने लैला को देखा।
"मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं है। परन्तु इस बारे में शमशेर को अवश्य कुछ पता हो सकता है।"
"शमशेर कौन?"
"लाली खान के ड्रग्स के धंधे के खुफिया दल का सरदार है। इसके पास बहुत जानकारियां होती हैं।"
"तो शमशेर को पकड़ना होगा।" महाजन बोला--- "ये कहाँ मिलता है ?"
लैला कुछ पल सोच भरी नज़रों से महाजन को देखती रही, फिर बोली---
"पहले मैं तुम्हारा मेकअप करके तुम्हारा हुलिया बदलती हूँ कि तुम पहचाने न जाओ। उसके बाद ऐसा विश्वास वाला आदमी तुम्हारे साथ कर दूंगी कि जो तुम्हें हर जानकारी दे सके और हर मौके पर तुम्हारी सत्ययता करे।"
"ये बढ़िया रहेगा। तुम उन तीन गोदामों का कैसे पता लगाओगी जिनमें...।"
"मेरे लिये मामूली काम है। कुछ घंटों में ही मैं ये पता कर लूंगी।"
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शमशेर ने कठोर नज़रों से सामने खड़े चारों आदमियों को देखकर कहा---
"तुम चारों का काम तसल्लीबख्श नहीं है। काबुल में एक हिन्दुस्तानी को तुम लोग नहीं ढूंढ पा रहे तो और क्या करोगे? मोटी तनख्वाह तुम लोगों को इसलिए नहीं मिल रही कि काम के जवाब में कहो कि वो नहीं मिल रहा। मुझे सिर्फ ये सुनना है कि तुम लोगों को वो हिन्दुस्तानी आदमी मिल गया और उसे लेकर आ रहे हो। याद रखो! जब तक ये काम पूरा नहीं होगा, तब तक तुम लोगों को तनख्वाह नहीं मिलेगी। रात-दिन एक करो और उस हिन्दुस्तानी को सामने लाओ।"
"मेरे ख्याल में वो कहीं छिपा हुआ है।" एक ने कहा--- "हमें नुकसान पहुँचाने को बाहर आता है और फिर वहीं छिप जाता है। कोई स्थानीय आदमी उसका साथ दे रहे हैं।"
"ये हो सकता है।" शमशेर ने सिर हिलाया--- "उन स्थानीय का पता करो। अपने मुखबिरों को टटोलो। उसकी खबर मिलेगी। मुझे वो हर हाल में चाहिये। मुझे भी आगे अपने कामों का हिसाब-किताब देना होता है। वैसे भी मैं जो काम अपने हाथ में लेता हूँ, वो पूरा करके ही रहता हूँ। आज तक तो ये ही हुआ है और आगे भी ये ही होगा। मुझे वो हिन्दुस्तानी ढूंढ कर दिखाओ।"
चारों ने सिर हिलाया और बाहर निकल गये।
शमशेर के चेहरे पर कठोरता के भाव थे। वो कुर्सी पर बैठा, सोचों में डूबा रहा।
तभी एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया।
"मिली वो?" उसे देखते ही शमशेर ने पूछा।
"नहीं। मैं उसे हर जगह ढूंढने की कोशिश कर रहा...।"
"कोशिश ?” शमशेर के दाँत भिंच गये--- “बेवकूफ! अब तक तो तुम्हें काम करके दिखा देना था। और तनख्वाह के अलावा तगड़ा ईनाम भी मिल गया होता। वैसे तुम्हें पूरा यकीन है कि सैयद के धंधे में कोई औरत उसकी पार्टनर है?"
"पक्का जनाब। मेरी खबर कभी भी गलत नहीं हो सकती। मैंने खुद सैयद को उससे बात करते सुना है। उस औरत का कहना मानते महसूस किया है। वो धंधे की बात कर रहे थे। तब वे एक रेस्टोरेंट में बैठे थे।" वो आदमी दृढ़ स्वर में बोला।
"तो फिर उसे अभी तक ढूंढ क्यों नहीं सके?"
"वो दोबारा दिखी नहीं। सैयद तो कई बार दिखा। वो दिखती तो उसका पीछा करता ।"
"दिक्कत तो ये है कि उस औरत को सिर्फ तुमने ही देखा है। दो-चार और ने भी देखा होता तो उसे ढूंढ लिया होता।”
"मैं उसे जल्दी ही तलाश कर लूंगा जनाब....।"
"जाओ, इसी काम पर लगे रहो...।"
वो बाहर निकल गया।
शमशेर उठा और उस कमरे से बाहर निकला। बाहर तीन आदमी मौजूद थे।
“चलो। कहीं पहुंचना है।" शमशेर ने उनसे कहा।
वो तीनों सामने खड़ी कार की तरफ बढ़ गये। शमशेर भी कार की तरफ चल पड़ा।
वे चारों कार में बैठे। कार चल पड़ी। उस जगह से बाहर निकलकर सड़क आ गई। शमशेर पीछे की सीट पर एक आदमी के साथ बैठा था। बाकी दो आगे थे।
इसी पल शमशेर का फोन बजा।
"हैलो.....।"
"हैदर कहाँ है? गुलजीरा खान की आवाज कानों में पड़ी।
"वो मोना चौधरी के साथ है और कार पर लोहगार जा रहे हैं। अब तक तो वे पहुँच गये होंगे। "
"उन दोनों की कोई और बात ?"
"दोनों बहुत प्यार-मोहब्बत के साथ हैं। इस तरह कि जैसे अभी उनकी शादी हुई हो।"
“पक्की कुत्तिया ने मेरे भाई को फंसा लिया।” गुलजीरा खान की गुर्राहट कानों में पड़ी।
“मेरे दो आदमी उनके पीछे हैं और पूरी तरह नज़र रख रहे हैं।" शमशेर ने कहा--- “उनका कहना है कि हैदर साहब भी कम फिदा नहीं मोना चौधरी पर। वो मोना चौधरी का बहुत ध्यान रख रहे हैं।"
“वो पक्की कुतिया मेरे भाई को पूरी तरह बरबाद कर देगी।" गुलजीरा खान की चीखने जैसी आवाज आई।
"मुझे बताईये, मैं क्या करू?" शमशेर ने शांत स्वर में कहा।
"दोनों पर नज़र रखो और मुझे खबर देते रहो।" कहकर गुलजीरा खान ने उधर से फोन बंद कर दिया था।
शमशेर ने कान से फोन हटा लिया। चेहरे पर शांत से भाव थे। कार सड़क पर दौड़ रही थी।
"कहाँ जाना है?" कार चलाने वाले ने पूछा।
"सीधा ही चलो।" शमशेर ने सामने देखते कहा।
दो पल बीते कि एकाएक शमशेर कह उठा---
"गनें कहाँ हैं तुम लोगों की?"
"हमारे पैरों के पास पड़ी हैं।" एक ने कहा।
"कमीनों!” गुस्से में कह उठा शमशेर--- "कोई हम पर गोलियां चलायेगा तो तुम लोग गनों को ही ढूंढते रह जाना? गनों को हाथों में थामने में तुम लोगों को परेशानी होती है क्या?"
आगे और पीछे बैठे आदमियों ने तुरन्त झुककर गनें उठा लीं।
"दोबारा ऐसी गलती मत करना। हर वक्त इस तरह तैयार रहो कि हम पर गोलियाँ चलने वाली हैं। बहुत दुश्मन हैं इस धंधे में। पता नहीं चलता है कि कौन कब किधर से आये और गोलियाँ चलाने लगे। दो महीने पहले जब हमला हुआ तो मैं ही जानता हूँ कि मैं कैसे बचा... हर वक्त तैयार रहो।"
"जी...।"
"कार आगे से बांई तरफ मोड़ लेना।" शमशेर ने कहा।
आगे मोड़ आया और कार को बाईं तरफ मोड़ लिया गया।
तभी पीछे से एक कार आई और ओवरटेक करके धीमी हुई।
शमशेर की कार वाले ने हार्न बजाया तो आगे वाली कार के ड्राईवर ने हाथ बाहर निकालकर उन्हें साइड में रुकने का इशारा किया। ये देखकर ड्राईवर बोला---
"ये कार हमें रुकने को कह रही है....।"
"दुश्मन होने से रहे।” शमशेर बोला--- “दुश्मन होते तो इस तरह रुकने को न कहते। रोको कार को...।"
फौरन ही कार को सड़क किनारे करके रोका गया।
आगे वाली कार भी रुक गई थी।
शमशेर की कार में आगे बैठा गनमैन बाहर निकला और सतर्कता से गन थामे कार के पास ही खड़ा हो गया। पीछे वाली सीट पर बैठे गनमैन ने सख्ती से गन पकड़ ली।
तभी आगे वाली कार का ड्राईविंग डोर खुला और पैंतीस-चालीस बरस का एक आदमी बाहर निकला। उसने पठानी सूट पहन रखा तथा। आधी बाँह की जैकिट पहनी थी। चेहरे पर छोटी दाढ़ी थी। वो लम्बा-चौड़ा था।
वो शमशेर वाली कार के पास आ पहुंचा तो वहां खड़े गनमैन ने उसकी कमर से गन लगा दी।
शमशेर की निगाहें उस पर टिक चुकी थीं।
गन कमर से लगते ही वो तीखे लहजे में गनमैन से बोला।
“हथियार मत लगा मुझे। तोड़ दूंगा तेरे को....।'
परन्तु उसने गन लगाए रखी।
कार के पास ठिठक कर, झुककर पीछे वाली सीट पर बैठे शमशेर को उसने देखा ।
शमशेर ने कार का शीशा नीचे किया।
दोनों की नजरें मिलीं तो वो आदमी मुस्कराकर बोला---
"जनाब शमशेर को मेरा सलाम...।"
"क्या चाहते हो?” शमशेर की आँखें सिकुड़ीं।
"कुछ खबर है मेरे पास। आपके काम की है। दो लाख लेकर मैं वो खबर आपको दे सकता हूँ।"
"किस बारे में है खबर ?"
"उस हिन्दुस्तानी के बारे में, जिसे आप ढूंढ रहे हैं। जिसने नांगारहार में ड्रग्स का गोदाम जलाया था।"
शमशेर चौंका।
"तुम जानते हो वो कहां है?” शमशेर के होंठों से निकला।
"पक्का जानता हूं जनाब। तभी तो आपके पास आया। आप अपने ठिकाने से निकले, तब मैं वहां पहुंच रहा था। आपको जाते देखा तो आपके पीछे चल पड़ा। दो लाख मिलें तो उसके बारे में बताऊं।"
"मिलेंगे... बताओ।"
"अपने गनमैनों को पीछे कीजिए और मेरे साथ मेरी कार में चलिए... ।”
"वहाँ क्यों?"
"वहाँ कोई है, जो आपकी बात का जवाब देगा। वो इसलिए बाहर नहीं आ रहा कि अपनी शक्ल किसी को दिखाना नहीं चाहता।"
"पक्का ये ही बात है?"
“शक क्यों करते हैं, आप खुद ही चलकर देख लीजिये।"
शमशेर ने अपने साथ बैठे गनमैन से कहा---
"उस कार का भीतरी हाल देखकर आओ।"
गनमैन बाहर निकला और उस कार की तरफ बढ़ गया।
"दो लाख देंगे ना आप?" वो बोला--- "बाद में इन्कार तो नहीं करेंगे?"
"जरूर मिलेंगे। अगर तुम लोगों की खबर से वो हिन्दुस्तानी मेरे हाथ लग गया तो... ।" शमशेर कह उठा।
"अभी हाथ लगवा देते हैं जनाब... ।"
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"जौहर ।"
"रहते कहां हो ?"
“यहीं काबुल में, आपकी नाक के नीचे ही साहब। यहीं जीना, यहीं मरना।" जौहर मुस्कराकर बोला।
वो गनमैन वापस लौटा।
“उस कार में पीछे वाली सीट पर एक ही आदमी है।" गनमैन ने बताया।
शमशेर बाहर निकला तो जौहर बोला---
"इन्हें यहीं खड़े रखिए। वो नहीं चाहता कि आस-पास और लोग हों।"
“तुम लोग यहीं रहो।" शमशेर ने कहा और जौहर के साथ उस कार की तरफ आगे बढ़ा।
जौहर ने तेजी से आगे बढ़ा और अपनी कार का दरवाजा खोलकर शमशेर से बोला---
“भीतर बैठकर आराम से बातें हो जायेंगी जनाब...।"
शमशेर भीतर बैठा तो जौहर ने दरवाजा बंद कर दिया। वहीं खड़ा हो गया। सामने शमशेर की कार थी और उसके बाहर खड़े दोनों गनमैन। सब कुछ ठीक सा लग रहा था।
परन्तु कार के भीतर कुछ भी ठीक नहीं था।
शमशेर के भीतर बैठते ही उसकी कमर में रिवाल्वर आ लगी।
शमशेर चिहुँक पड़ा।
भीतर बैठा और कोई नहीं---महाजन था।
शरीर पर पठानी । चेहरे पर दाढ़ी-मूंछें और आँखों पर प्लेन शीशे का चश्मा । इतने में ही महाजन पूरी तरह बदल गया था। उसे पहचान पाना आसान नहीं था। लैला ने अपने हाथों से मेकअप किया था।
"कौन हो तुम?" शमशेर के होठों से निकला।
"वो ही हिन्दुस्तानी, जिसे तुम ढूंढ रहे हो। ढूंढ रहे हो ना?" महाजन शब्दों को चबाकर कह उठा।
शमशेर ने आंख सिकोड़ कर उसे देखा।
"मेकअप में हूं। ध्यान से देख ले मुझे...।" महाजन ने पूर्ववत स्वर में कहा।
"मुझसे क्या चाहते हो?" शमशेर ने अपने पर काबू पाने की चेष्टा की।
"तेरे को इस बात का तो विश्वास होगा कि जरूरत पड़ी तो मैं तुझे मार दूंगा। तेरे को सजा के रखने का मुझे कोई शौक नहीं है।"
शमशेर ने बेचैन नजरों से महाजन को देखा।
“तू मुझे जब भी मौका देगा, मैं तुझे मार दूंगा। अपनी जिन्दगी बचाने के लिये तेरे वास्ते ये जरूरी है कि तू मेरी बात मानता रहे।" महाजन गुर्राया।
"बोलो...।" शमशेर ने होंठों पर जीभ फेरी।
"बाहर खड़े अपने आदमियों को बोल कि वे जायें। तू बाद में आ जायेगा। तेरे को ये बात इस तरह करनी है कि उन्हें जरा भी शक न हो। याद रखना, मेरी रिवाल्वर तेरे से सटी है और उंगली ट्रेगर पर है। तेरी मौत उस उंगली में समा चुकी है। उंगली हिली तो तेरी जिन्दगी खत्म।"
शमशेर, महाजन को देखने लगा।
"क्या देखता है?"
“बहुत हिम्मत वाला काम कर रहा है तू। वरना शमशेर को टेढ़ी निगाह से देखने की हिम्मत भी किसी में नहीं।"
"मेरे में इतनी हिम्मत है कि इसी चौराहे पर तेरे को नंगा करके दौड़ाऊ, फिर गोली मार दूं। दिखाऊं अपनी हिम्मत?"
"ठीक है। मैं तुम्हारी बात मान रहा हूं।
महाजन ने रिवाल्वर की नाल को उसकी कमर में और चुभाया, फिर बोला---
"अपनी तरफ का शीशा नीचे कर। अपने आदमियों से पीछा छुड़ा। कोई चालाकी की तो तू मर जायेगा।"
महाजन ने रिवाल्वर इस तरह अड़ा रखी थी कि बाहर से उसकी हरकत कोई न देख सके।
शमशेर ने शीशा नीचे किया तो बाहर खड़ा जौहर भीतर देखकर मुस्कराया, फिर कह उठा-
"हुक्म दीजिए...।"
"मेरे आदमी को बुलाओ।" शमशेर ने खा जाने वाली निगाहों से जौहर को देखा।
जौहर पीछे खड़ी कार की तरफ देखकर बोला---
"सुनो... तुम्हारे जनाब, तुम्हें बुला रहे हैं।"
""तुम।" महाजन ने चेतावनी भरे स्वर में कहा--- “अपने चेहरे के भाव ठीक करो। तुम्हारे आदमी को कोई शक न हो। वरना मरोगे।"
शमशेर ने तुरन्त अपने चेहरे को सामान्य किया।
एक गनमैन पास आ पहुंचा। कार के भीतर झांकता वो कह उठा।
"कहिये जनाब...।"
"तुम लोग वापस जाओ। मैं कुछ देर में आ जाऊंगा।" शमशेर शांत स्वर में बोला।
“लेकिन आप अकेले जायेंगे तो कोई खतरा....।"
"सब ठीक है। मैं अपनों में हूं...।"
“जी... ।" कहकर वो पलटा और वापस चला गया।
"शीशा ऊपर करो।" महाजन ने कहा।
शमशेर ने शीशा ऊपर उठा दिया।
जौहर ड्राईविंग सीट पर आ बैठा। शीशे से वो पीछे का नजारा देखने लगा। उसके देखते ही देखते शमशेर के साथी गनमैन कार में बैठे और कार घूम कर वापस चल पड़ी।
जौहर ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ाता कह उठा---
"वो चले गये। देखा आपने जौहर का कमाल! कितनी आसानी से ये लकड़बग्गा हाथ आ गया...।"
"लेकिन तुमने खुद को खतरे में डाल लिया।" महाजन की रिवाल्वर शमशेर से सटी थी। वो सावधान था।
"कैसे?"
"तुम्हें शमशेर ने भी पहचान लिया और इसके साथियों ने भी...।"
“जौहर नहीं परवाह करता इन बातों की! क्या कर लेंगे ये मेरा ? मैडम (लैला) के लिए तो मैं बड़े से बड़ा खतरा भी उठा सकता हूं। कभी वो वक्त आया था मुझ पर कि खाने को एक रोटी नहीं थी मेरे पास। मेरे बच्चे भूख से तड़प रहे थे। कोई काम नहीं था मेरे पास । तब मैडम ने मेरे को पैसे दिए। काम दिया। मेरे को संभाला। मैडम के बहुत एहसान हैं मुझ पर। ये तो ऊपर वाले ने मुझे मौका दिया है कि मैडम के किसी काम आ सकूं...।" जौहर ने मुस्कराकर कहा।
"बहुत हिम्मत वाले हो ।"
"फिर कभी बड़ा खतरा आ गया तो चिन्ता किस बात की! बगल में पाकिस्तान है। वहां चला जाऊंगा। वहां भी तो सब अपने हैं। जब तक मैडम का हाथ मेरी पीठ पर है, तब तक तो चिन्ता की कोई बात नहीं।"
महाजन ने शमशेर की कमर से रिवाल्वर लगाए रखी ।
कार भागती रही। ।
"इसके पास हथियार जरूर होगा।" जौहर कह उठा।
"क्यों?" महाजन ने रिवाल्वर का दबाव बढ़ाया--- "है क्या?"
"रिवाल्वर है।" शमशेर ने कहते हुए जेब की तरफ हाथ बढ़ाया।
“हाथ पीछे रख... ।” महाजन एकाएक गुर्रा उठा ।
शमशेर का हाथ ठिठक गया।
"ज्यादा चालाक मत बनो। मैंने तुम्हें निकालने को नहीं कहा।" महाजन गुस्से से बोला--- "इस बात को ध्यान में रख लो कि अब से तुम उतना ही काम करोगे, जितना कि तुम्हें करने को कहा जाए।"
शमशेर के होंठ भिंच गए।
महाजन ने सावधानी से शमशेर की रिवाल्वर निकाली और जौहर की तरफ बढ़ाकर बोला-
"पकड़ो...।"
कार ड्राईव करते जौहर ने हाथ पीछे किया और रिवाल्वर ले ली।
"काबुल में सब जानते हैं कि ये शैतान है।" जौहर कार चलाता कह उठा।
"देखूंगा ये कि ये कितना बड़ा शैतान है....।"
"क्या चाहते हो मुझसे?”
"बातचीत करनी है।" महाजन कड़वे स्वर में कह उठा।
"तो करो।"
"तसल्ली से करेंगे। बैठ के करेंगे। आराम से करेंगे। जल्दी क्या है?"
शमशेर के होंठ भिंचे रहे।
"ये इतना खतरनाक लगता तो नहीं जौहर....।" महाजन व्यंग से कह उठा।
"अब शेर को पिंजरे में डाल कर, ललकारा जाये तो वो भला क्या जवाब देगा?" जौहर ने हंसकर कहा।
"लाली खान की ताकत की आड़ में ये अपना रौब चला रहा लगता है।"
"लाली खान की वजह से, ये कुछ ज्यादा ही फूं-फां में रहता है।" जौहर ने तुरन्त सिर हिलाकर कहा।
शमशेर ने गर्दन घुमाई और बाहर देखने लगा। महाजन ने बेहद सतर्क अंदाज में उसकी कमर में रिवाल्वर की नाल लगा रखी थी। अपने बचाव में वो कुछ नहीं कर सकता था।
कुछ देर बाद ही कार को जौहर ऐसी जगह पर ले आया, जहां इक्का-दुक्का मकान बने दिखाई दे रहे थे। एक मकान के सामने कार रोक कर जौहर बाहर निकला और हर तरफ नजर घुमाई। फिर जेब से रिवाल्वर निकाल कर पीछे का दरवाजा खोला।
शमशेर ने गुस्से से, जौहर को देखा।
"सब बल निकल जायेंगे तेरे।" जौहर रिवाल्वर वाला हाथ हिलाकर कह उठा--- “बाहर निकल... ।"
“चल निकल... ।” महाजन ने उसकी कमर पर रिवाल्वर का दबाव बढ़ाया।
शमशेर बाहर निकला।
जौहर ने फौरन उसके पेट में रिवाल्वर सटा दी।
“कोई चालाकी मत करना।" जौहर बोला--- "वरना तू मेरे को जानता नहीं, मैं तेरे से भी बढ़िया शेर हूं...।"
महाजन भी बाहर आ गया।
दोनों शमशेर को लेकर मकान के भीतर पहुंचे।
खाली मकान था। इन्सान कोई नहीं था वहाँ। परन्तु जरूरत का सारा सामान वहां मौजूद था। एक कमरे में शमशेर को ले जाकर, जौहर ने उसके हाथ पीठ पीछे करके डोरी से बांध दिए और नीचे बिठा दिया।
"बहुत गलत कर रहे हो तुम लोग।” शमशेर गुस्से से भरा कह उठा।
"हम हैं ही बहुत गलत लोग।" जौहर हंसा--फिर महाजन से बोला--- “कर लो पूछताछ । मैं कार ठिकाने लगा के आता हूं। इसके आदमियों ने हमारी कार देख ली है। दो-चार घंटे बाद वे इसकी तलाश शुरू कर देंगे... ।"
तभी शमशेर की जेब में पड़ा फोन बजने लगा।
शमशेर बेचैन हुआ।
"बजने दे।" कहकर जौहर ने उसकी जेब से फोन निकाला और पास ही रखी पुरानी सी टेबल पर रख दिया। वो अभी भी बज रहा था।
"तुम कार ठिकाने लगाओगे।" महाजन ने कहा--- "मुझे पूछताछ की कोई जल्दी नहीं है। वापस आकर तुम ही इससे बात करना।"
"तुम क्यों नहीं...।"
"मुझे गुस्सा जल्दी आ जाता है।" महाजन कह उठा-- "मेरी बात का जबाव न दिया तो ये मेरे हाथों से मरेगा।"
"ठीक है। मैं कार को कहीं दूर छोड़कर आता हूँ...।" कहकर जौहर बाहर निकल गया।
पीठ की तरफ बंधे हाथों से, शमशेर नीचे पड़ा कसमसाया, फिर कह उठा---
"आखिर तुम चाहते क्या हो?"
महाजन चुप रहा।
"कम से कम ये तो बता दो कि तुम लाली खान की ड्रग्स के पीछे क्यों पड़े हुए हो ?"
"तेरे को इस वक्त एक ही बात सोचनी चाहिये। वो ये कि यहां पर तेरे आदमी नहीं पहुंच सकते। लाली खान नहीं पहुंच सकती। तू यहां पर कैद है और हमारे रहमो करम पर है। तेरे को अपनी चिन्ता करनी चाहिये...।"
शमशेर ने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा।
महाजन एक कुर्सी पर जा बैठा ।
तभी टेबल पर पड़ा शमशेर का फोन फिर बजने लगा। बजता ही रहा।
डेढ़ घंटे बाद जौहर लौटा। बाहर अंधेरा छाना शुरू हो गया था।
"बहुत देर लगा दी...?" महाजन ने उसे देखते ही कहा।
"कार को मैं इसके ठिकाने के बाहर ही छोड़कर आया हूं।" जौहर हाथ झाड़ते कह उठा।
"इसके ठिकाने के बाहर?" महाजन मुस्कराया।
“हां। ताकि इसके आदमियों को कार ढूंढने में ज्यादा तकलीफ न करनी पड़े और जल्दी ही समझा जाये कि इसकी खैर नहीं। कुछ बातचीत हुई या अभी तक नये जोड़े की तरह चुप-चुप ही रहे...।"
“तुम ही बात करोगे इससे...।"
"मैं कर लेता हूं। अफगानी-अफगानी दोनों भाई। चाय-पानी पिलाया इसे---सेवा-सत्कार की या नहीं?"
"सब कुछ तुम ही करो...।" महाजन ने शांत स्वर में कहा।
"तो तुम क्या करोगे?"
"इसकी बातें मुझे पसन्द न आई तो मैं इसे गोली मारने का काम करूंगा।"
"बढ़िया है। आसान काम खुद ले लिया।" जौहर, शमशेर की तरफ बढ़ गया।
तभी टेबल पर पड़ा शमशेर का फोन बजने लगा।
जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
"हां भाई शमशेर ।" जौहर एक कुर्सी खींच कर उसके पास ले जाकर रखता, उस पर बैठता कह उठा-- "पहले ये बता कि तूने कभी सोचा था कि काबुल में, तेरे आदमियों के बीच में से, कभी कोई तेरे को उठा लेगा?"
शमशेर होंठ भींचे जौहर को देखने लगा।
"ऐसे मत देख। देखा-देखी बहुत हो गई। अब जवाब दे मेरी बात का--कभी सोचा था तूने कि ऐसा होगा?"
शमशेर के होंठ भिंचे रहे।
जौहर का घूंसा शमशेर के चेहरे पर जा पड़ा।
शमशेर चीखकर फर्श पर पूरी तरह लुढ़क गया।
"मैं तेरे से सवाल पूछ रहा हूं और तू आंखें दिखा रहा है। अब बातों का वक्त आया है तो बातें कर । बता मुझे कि क्या कभी तूने सोचा था कि आज का दिन आयेगा और तेरी बुरी हालत होगी?"
शमशेर किसी तरह बैठा और गुर्राया---
"नहीं....।"
“तू बोला तो, कैसे भी बोला ! बहुत जल्दी तू प्यार से भी बोलने लगेगा।" जौहर मीठे स्वर में कह उठा--- "और अब आगे के लिये तूने कभी सोचा है कि हमारे हाथों तू कुत्ते वाली ऐसी मौत मरेगा, यहीं पर, खाली मकान में तेरी लाश पड़ी सड़ती रहेगी? तेरे शरीर के माँस को कीड़े-मकोड़े खा जायेंगे? किसी को पता भी नहीं चलेगा तेरी हड्डियों का ढांचा देखकर कि तू कभी शमशेर हुआ करता था।"
शमशेर ने कहर भरी निगाहों से जौहर को देखा।
जौहर का घूंसा पुनः उसके चेहरे पर पड़ा।
शमशेर चीखकर लुढ़क गया।
"मैं तेरे से सवाल पूछ रहा हूं और तू फिर आंखें दिखा रहा है... सिर्फ बातें कर मुझसे... !"
शमशेर सीधा हुआ। उसके होंठों के खून छलक आया था।
"नहीं सोचा...।" शमशेर के होंठों से निकला।
“क्या तू चाहता है कि कभी ऐसा हो ?"
"नहीं... ।" शमशेर, जौहर को घूरता कह उठा।
"ठीक कहता है तू। मर गये तो क्या हुआ, शरीर की बुरी हालत नहीं होनी चाहिये। बढ़िया ढंग से ठिकाने लग जाना चाहिये।" जौहर के चेहरे पर मुस्कान आ गई--- "वैसे तू मरना तो नहीं चाहता होगा ।"
"नहीं...।" शमशेर के होंठ भिंचे हुये थे।
"कोई भी मरना नहीं चाहता। ठीक है, तू साबित करके दिखा कि तू मरना नहीं चाहता।"
शमशेर, जौहर को देखे जा रहा था ।
महाजन शांत सा कुर्सी पर बैठा उन्हें देख-सुन रहा था।
"तेरी मम्मी लाली खान कहां मिलेगी?" जौहर ने पूछा।
शमशेर बुरी तरह चौंका। आंखें सिकुड़ गईं।
"साबित कर कि तू मरना नहीं चाहता।" जौहर ने कहा--- "बता लाली खान कहाँ पर छिपकर रहती है?"
शमशेर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा---
"मामला क्या है?"
"सीधा सा मामला है कि हमें लाली खान का पता-ठिकाना मालूम करना है। तेरे को अपनी जान बचानी है तो तू बतायेगा ।"
शमशेर गहरी सांस लेकर बोला---
“आखिर तुम लोग हो कौन और चाहते क्या हो?"
"अपनी जान की चिन्ता कर। बाकी फिक्र हम पर छोड़ दे।” जौहर का स्वर कड़वा हो गया--- "बता, लाली खान किधर मिलेगी?"
"मैं नहीं जानता...।”
जौहर का जोरदार घूंसा शमशेर के चेहरे पर पड़ा।
शमशेर तीव्र कराह के साथ नीचे जा लुढ़का।
"नहीं जानता... ये नहीं चलेगा।" जौहर कुर्सी से उठा और उसके बाल पकड़कर सीधा किया उसे-- "हमें अपनी बात का जवाब चाहिये। तेरे को बताना पड़ेगा कि लाली खान किधर मिलेगी?”
"या तो बात कर लो या घूंसे मार लो... बाल खींच लो।" शमशेर तड़पकर कह उठा।
जौहर ने शमशेर को घूरा।
"आराम से बात करो।" शमशेर बोला--- “पहले मैं नहीं जानता था कि तुम लोग किस फेर में हो। अब जाना। आराम से बात करो। मुझे तकलीफ देते रहोगे तो बात नहीं हो पायेगी।"
"ठीक है। आराम से बता। लाली खान किधर है?"
"मैं नहीं जानता।"
"आराम से पूछने पर भी तू ये ही बोला। घूंसा खाकर भी तू यही बोला तो...।"
"मैं नहीं जानता कि लाली खान किधर होती है।"
"जानता है तू...।"
"नहीं जानता।"
"तू लक्कड़बग्गा है। टेढ़ी हड्डी है। जिस बात को लाली खान, गुलजीरा खान और हैदर खान भी नहीं जानते, उसे तू जानता है। तेरी नज़र हर तरफ रहती है। तू लाली खान के खुफिया दल को सम्भालता है। ये हो ही नहीं सकता कि तेरे मन में कभी ये बात ना आई हो कि लाली खान किधर रहती है और तूने पता करने की कोशिश न की हो। तू खूनी है। बदमाश है। तेरा कच्चा चिट्ठा मेरे पास है। मेरे सामने तेरा झूठ नहीं चलने वाला। तेरे को मेरे सवाल का जवाब हर हाल में देना होगा। जवाब दे या ना दे, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हमारा इरादा अब तेरे को आजाद करने का नहीं है। लेकिन जवाब दे देगा तो तेरा हाथ पकड़ कर साथ रखेंगे। नहीं देगा तो गले में रस्सी डालकर, तेरे को साथ-साथ घसीटते फिरेंगे। सब कुछ तेरे ऊपर है। इस वक्त अपना मालिक तू आप ही है। अपना अच्छा-बुरा रास्ता तू ही चुनेगा ।"
"मैं सच में नहीं जानता कि लाली खान का ठिकाना किधर है। मैं नहीं...।"
"अफगानी-अफगानी भाई। अफगानी का खून गर्म होता है। ये तू भी जानता है और मैं भी। लेकिन मैं साफ दिल का हूँ। मन में जो आता है, वो ही करता हूँ। अब मन में आया कि तेरी जूते से पिटाई करूँ...।” कहकर जौहर ने अपने पैर से जूता निकालकर हाथ में पकड़ लिया--- "तुझे जूते से मारकर मुझे खुशी मिलेगी। क्योंकि तू लाली खान के खुफिया दल का सरदार है। छोटी हस्ती तो है नहीं। दस को कह सकूंगा कि मैंने शमशेर की जूते से पिटाई की थी। बेशक सुनने वाले मेरी बात का यकीन न करें पर... ।”
"मैं सच कह रहा कि मैं...।"
तभी जौहर का जूते वाला हाथ घूमा और जूता शमशेर के चेहरे पर जा पड़ा।
शमशेर अपमान और पीड़ा से तिलमिला उठा ।
"ये तो शुरूआत है। मैं ऐसे मौके पर ऐसे ही हथियार इस्तेमाल करता हूँ। जूते से तू नहीं माना तो तेरे को नंगा करके भीड़ भरे बाजार में छोड़ दूंगा। वहां भागते रहना। आगे-पीछे हाथ रखकर खुद का छिपाने रहना। तब तू भाग-भाग कर थक जायेगा तो मैं तेरे को गोली मार...।"
"तुम मेरी बात का यकीन क्यों नहीं करते कि...।"
जौहर का हाथ घूमा और जूता पुनः उसके चेहरे पर पड़ा।
शमशेर तिममिला उठा।
“बता... लाली खान किधर है।"
"मैं नहीं...।"
"पीछे हट... ।" तभी महाजन उठता कह उठा--- "इस हरामी को मैं देखता हूँ।"
"तुम क्यों तकलीफ करते हो। मैं इसे संभाल लूंगा। ये तो शुरूआत है। अभी ये बोलेगा।" जौहर कहर से कह उठा।
शमशेर ने दोनों को देखा। चेहरे पर परेशानी और गुस्सा नाच रहा था।
"तुम दोनों समझते क्यों नहीं, मैं नहीं जानता कि लाली खान किधर रहती है। वो अपने को छिपाकर रखती है। गुलजीरा या हैदर खान भी नहीं जानते हैं कि वो कहाँ रहती....।"
"लेकिन तू जानता है। तेरा काम ही ऐसा है कि तू सबकी खबर रखता है। लाली खान की भी खबर जरूर रखी होगी तूने ।”
"नहीं मैं नहीं...।"
जौहर ने पूरी ताकत के साथ जूता उसके चेहरे पर मारा।
छटपटा उठा शमशेर ।
"मैंने पहले ही कहा है कि तेरे को किसी भी हाल में छोड़ने का इरादा नहीं है। मैंने तेरे को ये भी बताया था कि तेरी लाश की क्या हालत हो सकती है। हम तेरा वो हाल करेंगे कि तूने सोचा भी नहीं होगा।"
शमशेर गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। हाथ पीठ पीछे बंधे थे। वो तकलीफ से भरी गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। होंठों के कोने में से खून की पतली लकीर बहकर ठोढ़ी तक जा रही थी। उसे नहीं लग रहा था कि इनसे बच पायेगा।
तभी महाजन आगे आया और रिवाल्वर निकालकर शमशेर के सिर से लगा दी।
"मारना मत।” जौहर कह उठा--- "ये बताने जा रहा है।"
"नहीं बता रहा।" महाजन गुर्राया ।
"बता रहा है। रुको तो।" जौहर जूते वाला हाथ हिलाकर बोला--- "सब्र रखो और सुन लो।"
शमशेर को अपनी हालत पर क्रोध आ रहा था, परन्तु बचाव का कोई रास्ता नहीं था।
"बोल...।" जौहर ने उसे घूरा--- "वरना तू तो गया...।"
"लाली खान के बारे में, कोई खास खबर नहीं है मेरे पास...।"
"जो है, वो ही बता।"
"उसकी दो-तीन जगहें हैं, जहां शायद वो रहती है। कभी किधर तो कभी किधर। उसके अलावा भी उसकी जगह होगी। परन्तु उनके बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम...।" शमशेर ने गम्भीर स्वर में कहा।
"जो तेरे को पता है, वो बता...।" जौहर की निगाह एकदम उस पर थी।
"जलालकोट, महामुडे राकी और नांगारहार के शहरों के साथ लगे गांवों में लाली खान ने ठिकाना बना रखा है।"
"इसमें कितना झूठ है?"
"मुझे जो जानकारी है... वो ही बता रहा हूं।" शमशेर बोला--- "लेकिन ये मैं नहीं कहता कि मेरी जानकारी पक्की है। थोड़ा बहुत ही पता है। ज्यादा मैं इसलिए नहीं पता कर पाया कि लाली खान को ये बात पता चल जाती तो वो मुझे नहीं छोड़ती।”
"जलालकोट, महामुडे राकी और नांगारहार के, लाली खान के ठिकानों को तूने देखा है?"
शमशेर ने सहमति से सिर हिलाकर कहा---
"देखा है। दूर से देखा है। पास जाने की हिम्मत नहीं कर सका मैं... इन तीन जगहों के बारे में तो मुझे जानकारी है। और भी जगहें होंगी, जिनके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। क्या पता इन दिनों लाली खान कौन-सा ठिकाना इस्तेमाल कर रही है...।"
जौहर ने हाथ में थाम रखा जूता नीचे रखा और पांव में पहनकर महाजन से कहा---
"पता नहीं ये सच कह रहा है या झूठ...।"
महाजन शमशेर सिर से रिवाल्वर हटा चुका था।
"ये सच कहे या झूठ... इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" महाजन ने रिवाल्वर जेब में रखी।
"क्यों...?"
"ये तब तक हमारे साथ रहेगा जब तक हमें लाली खान नहीं मिल जाती ।"
“जैसा तुम चाहो... ।”
"लाली खान से तुम लोग चाहते क्या हो ?” शमशेर ने पूछा ।
"बताओ इसे.. ।" जौहर ने महाजन से कहा।
"शायद मारना पड़े उसे।" महाजन ने कहा।
"लाली खान से तुम्हारी दुश्मनी क्या है ?"
"नहीं जानता।" महाजन ने शांत स्वर में कहा।
"नहीं जानते? ये कैसे हो सकता है। क्या किसी और के लिए काम करते हो?"
"मैं सिर्फ अपने लिए काम करता हूँ। अब तुम अपनी जुबान बंद रखो। तुम कैद में हो और तुम्हारे सिर पर मौत की तलवार लटकी हुई है। ये बात याद रखोगे तो ज्यादा देर तक जी सकोगे।"
महाजन और जौहर दूसरे कमरे में चले गये।
पाँच मिनट बाद जौहर कमरे में आया तो शमशेर कह उठा---
"खाने को दो... भूख लगी है। हाथ खोलो, सू-सू करना है। इस तरह कब तक मुझे बांधे रखोगे।"
"बंधे रहना तो अब तेरी किस्मत बन गई है। खाने को अभी मिल जाएगा। सू-सू भी कर लेना। रात भर आराम कर। सुबह हम तेरे बताये, लाली खान के ठिकानों पर चलेंगे। तू साथ रहेगा हमारे...।"
■■■
रात के नौ बज रहे थे जब मोना चौधरी और हैदर खान लोहगार से लौटे।
मोना चौधरी को लोहगार अच्छी जगह लगी थी। लोहगार की सीमा पर लाली खान के अफीम के खेत थे जो कि मील भर दूर तक जा रहे थे। आस-पास पहाड़ियां थीं और खेतों पर काम करने वाले करीब सौ लोगों ने एक तरफ झोपड़ियां डाल रखी थीं, कुछ पक्के मकान भी बने थे। जिसमें से एक पक्का मकान मालिकों के लिए था। खुला माहौल, खुला आसमान, खुली हवा और साथ में हैदर खान का साथ। हैदर खान उसे बहुत अच्छा लगा था। शानदार युवक था वो। इसके अलावा और कोई खराबी नहीं थी उसमें कि वो लाली खान का भाई है और ड्रग्स के धंधे से वास्ता रखता है। मासूमों जैसा दिल था उसका। वो प्यारा सा, प्यार करने वाला युवक था। उसके प्यार में सच्चाई झलकती थी। मोना चौधरी ने यहाँ तक सोचा था कि अगर इसके साथ जीवन बिताया जाए तो बुरा नहीं रहेगा।
काबुल पहुंचते ही मोना चौधरी ने कहा---
“अब मैं जयन्त के पास जाऊंगी।"
"नहीं, तुम मेरे साथ मेरे फ्लैट पर रहोगी....।" उसने मीठी जिद्द की।
"मेरा जाना जरूरी है। मैं इतनी देर गायब नहीं रह सकती। वो परेशान होगा।"
"जयन्त सुरक्षित जगह पर है। तुम उसकी फिक्र...।"
तभी फोन बजने लगा हैदर खान का।
"हैलो...।"
“मेरे भाई, तू उस पक्की कुतिया के साथ लोहगार में घूम रहा है और यहां पचासों काम पड़े हैं। धंधे की परवाह है या नहीं तुझे ? उस में तेरे को ऐसा क्या दिखा जो दो दिन से उससे चिपका हुआ है ?" गुलजीरा खान का तीखा स्वर कानों में पड़ा।
“तू नाराज क्यों होती है? इस वक्त मैं काबुल में हूं। बता क्या काम है?"
"उस पक्की कुतिया से पीछा छुड़ा। फिर...।"
"हुआ क्या गुल... ?" हैदर खान गम्भीर हुआ।
“शमशेर दोपहर से लापता है।"
"वो किसी काम पर होगा...।"
"वो लापता है। फोन पर बात नहीं हो पा रही। तू मेरे पास आ। उस पक्की कुतिया को भी लेता आ । माल पहुंचाना है हिन्दुस्तान में। मुम्बई में। अर्जेन्ट है। पार्टी ने वहां से माल को योरोप भेजना है ।"
“मैं आ रहा हूँ...।" इसके साथ ही हैदर खान फोन बंद करता कह उठा--- "हम गुल के पास चल रहे हैं।"
“यही तो मैं चाहती थी। वहां जयन्त है।" मोना चौधरी मुस्कराई।
"एक गड़बड़ हो गई है शायद...।"
“क्या?"
"गुल कह रही है कि शमशेर दोपहर से लापता है।" हैदर खान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“शमशेर ! वो जो, तुम्हारे खुफिया दल का चीफ है।"
"वो ही...।" हैदर खान ने सिर हिलाया--- “शमशेर को गायब नहीं होना चाहिए। उसके पास हमारे राज हैं। मुझे विश्वास नहीं होता कि शमशेर लापता है। परन्तु गुल की बात पर मैं अविश्वास भी नहीं कर सकता।"
"वो कहीं व्यस्त होगा और.... ।"
"नहीं। वो लापता ही है। गुल ने अपनी तसल्ली के बाद ही ये बात की मुझसे...।"
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
"तुम्हें मुम्बई में माल पहुंचाना है मोना चौधरी ।" हैदर खान बोला।
"कब ?"
"अर्जेन्ट है। गुल ने कहा मुझसे। बाकी बात गुल से सुनना।"
"अर्जेन्ट भी हो जायेगा।" मोना चौधरी मुस्कराकर कह उठी--- "तुम्हारे साथ आज का दिन बहुत बढ़िया बीता...।"
"मुझे भी बहुत अच्छा लगा।" हैदर खान ने मोना चौधरी को प्यार से देखा।
दोनों मीठे अन्दाज में मुस्करा पड़े।
"ये कामों का झंझट न हो और हम दोनों एक-दूसरे की गोद में सिर रखे रहें...तो कितना अच्छा रहे!"
"फिर तो प्यार का भूत उतर जायेगा।" मोना चौधरी ने हंस कर कहा— “थोड़ा-थोड़ा सब कुछ अच्छा लगता है। लेकिन जब कोई काम बहुत ज्यादा हो जाये तो मन उकताने लगता है।"
"तुम मुझसे बोर तो नहीं हो गई?"
"नहीं!" मोना चौधरी ने हैदर खान के गालों को थपथपाया--- "तुम्हारे साथ शायद कभी भी बोर न होऊँ। फिर ये तो अभी शुरूआत है...।"
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