फोन डायरेक्टरी में मोना चौधरी ने पटना स्थित झा का नंबर तलाश किया और नंबर मिलाया। लाइन मिली और इत्तेफाक से झा ही मिला।
“पहचाना मिस्टर झा?”
“हां।” झा का उलझन भरा स्वर कानों में पड़ा –“पहचानने के लिए तुम्हारी आवाज ही काफी है।”
“अपने आदमी के फोन का इंतजार कर रहे हो कि वह मेरे बारे में कोई खबर दें।”
झा की तरफ से आवाज नहीं आई।
“तुम्हारे आदमी तो तुम्हें खबर देने की हालत में नहीं हैं। सोचा मैं ही खबर कर दूं।”
“क्या मतलब?”
“राजपाल ने तुम्हारे आदमी, मुझ पर, तुम्हारी इजाजत से इस्तेमाल किए?”
“आगे बोलो।”
“तुमने गलत किया झा। शायद तुम जानते हो कि मैं राजपाल की जान नहीं लेना चाहती। उससे कुछ बात करनी है।” मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठी –“इस पर भी तुमने अपने आदमी राजपाल को दिए कि वह मेरी जान ले सके। जबकि खुद उनकी जान जा चुकी है।”
“ओह।” झा का अजीब-सा स्वर कानों में पड़ा –“सुनकर अजीब लगा। यह बात मैंने राजपाल से कही थी कि तुम उसकी दुश्मन नहीं हो लेकिन वह नहीं माना। वह–।”
“वह क्या मानता है। क्या नहीं। मुझे इससे वास्ता नहीं । तुम्हारे आदमियों के बारे में तुम्हें खबर दे दी है और तुम राजपाल को भी यह बता देना। कहना कि मैं नेपाल पहुंच रही हूं।”
“सुनो तुम –।”
मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया। चेहरे पर सख्ती नजर आ रही थी।
☐☐☐
अब रक्सौल में रुकना ठीक नहीं था। जबकि दोनों को चाय की और खाने की जरूरत महसूस हो रही थी। मोना चौधरी ने कार आगे बढ़ा दी।
पंद्रह मिनट बाद ही कार रक्सौल-नेपाल के बॉर्डर रेखा से पार हुई और नेपाल में प्रवेश करके, तेजी से आगे बढ़ गई। वहां दोनों देशों की चुंगियां थी। वीरगंज भी आया। परंतु किसी ने भी उन्हें रोककर पूछताछ करने की जरूरत महसूस नहीं की।
“कुछ खाने की जरूरत महसूस हो रही है।” महाजन बोला।
“हिटौडा में।”
“हिटौडा?”
“हां। रास्ते में जगह पड़ती है। छोटी सी जगह है, लेकिन जरूरत की हर चीज मिल जाती है।”
महाजन सिर हिलाकर रह गया और सड़क से कुछ हटकर जाती नदी को देखने लगा।
“इस नदी को देखकर तो नहाने का मन कर रहा है।” महाजन गहरी सांस लेकर बोला।
“यह त्रिशूल नदी है।” मोना चौधरी ने बताया।
“त्रिशूल नदी?”
“हां और यह लगभग नेपाल तक जाती है।”
“फिर ठीक है। रास्ते में कहीं तो नहाने का मौका मिलेगा। शाम हो जाएगी, हमें नेपाल पहुंचने में?”
“आठ घंटे?”
“मतलब कि दो-ढाई बजे हम नेपाल में होंगे।” महाजन बड़बड़ा उठा।
“रास्ते में सावधान रहने की जरूरत है। हो सकता है, राजपाल ने रास्ते में भी कोई इंतजाम कर रखा हो।”
“साला, हाथ लगे तो गर्दन तोड़ दूं।”
“गर्दन नहीं तोड़नी है।” मोना चौधरी बोली –“उससे हमें बख्तावर सिंह के बारे में जानकारी पानी है। वह हर हाल में जानता होगा कि बख्तावर सिंह नेपाल में कहां मौजूद है।”
☐☐☐
पटना में झा के सामने, एक नेपाली मौजूद था। उम्र तीस बरस। कद नेपालियों की तरह सामान्य। उसके हाव-भाव में चुस्ती मौजूद थी। आंखों में सतर्कता से भरा पैनापन था। उसका नाम सूर्या था। नेपाल में सूर्या झा के काम का आदमी था। नेपाल स्थित झा के सारे कामों को वह ही निपटाता था। नेपाल पुलिस की उस पर नजर थी। परंतु अपने काम वह इतनी सावधानी से करता था कि पुलिस के हाथों चढ़ ही नहीं पाता था।
एक दिन पहले ही सूर्या, खास काम की खातिर झा से मिलने आया था। आज वह वापस जाने की तैयारी में था कि सुबह-सुबह झा का बुलावा आ गया।
“कहिये झा साहब। आज तो मैं नेपाल जा रहा हूं।”
“हां। मालूम है।” झा ने सोच भरे स्वर में कहा –“नेपाल में ही बहुत खास काम है, जो कि सारे काम छोड़कर तुम्हें निपटाना है।”
“क्या?”
झा ने अपने दोस्त राजपाल और मोना चौधरी के बारे में बताया।
“राजपाल तो नेपाल में मेरे आदमियों से मिल लेगा। आज तो नहीं कल वह रंजना सिनेमा पर मिलेगा। लेकिन उसके पीछे वह युवती लगी हुई है, जिसके बारे में तुम्हें बताया।”
“उसका नाम क्या है?” सूर्या ने पूछा।
“नहीं जानता। वह कौन है? क्या चाहती है? नहीं मालूम। इतना जानता हूं कि वह दिल्ली से आई है।”
सूर्या ने सिर हिलाया।
“रक्सौल में उसने मेरे आदमियों को मार दिया। इसी से सोचा जा सकता है कि वह खतरनाक है।”
“चिंता की क्या बात है झा साहब। नेपाल में उसे खत्म कर देता हूँ।”
“नहीं। मारना नहीं है उसे। सिर्फ मेरी सुनो। दरअसल वह राजपाल की दुश्मन नहीं है। परंतु राजपाल समझता है कि, वह बख्तावर सिंह की भेजी हुई है और उसे मारने के वास्ते पीछे है। हकीकत में बात कुछ और ही है।” झा ने गंभीर स्वर में कहा।
“बताइये। इस मामले में मैं क्या करूं?”
“तुम प्लेन से फौरन नेपाल पहुंचो।”
“घंटे भर बाद नेपाल के लिए फ्लाइट है।”
“ठीक। उसी प्लेन से तुम नेपाल पहुंचो और वहां ऐसी घेराबंदी कर लो कि वह युवती जब काठमांडू पहुंचे तो उसे अपने कब्जे में कर लो और अगले दिन राजपाल जब रंजना सिनेमा पर मिले तो दोनों को आमने-सामने कर दो। ताकि मालूम हो सके, वह युवती क्या चाहती है और राजपाल के मन से भी इस बात का वहम निकल सके कि वह उसकी जान लेना चाहती है।”
“यानी कि आपके दोस्त राजपाल की गलतफहमी दूर करनी है।”
“हां। नहीं तो नेपाल में उसकी हालत और भी बुरी हो जाएगी। वह बख्तावर सिंह जैसे इंसान को खत्म करने का इरादा रखता है, जो कि अपने आप में भारी काम है। साथ ही वह पीछे पड़ी युवती से बच रहा है कि वह उसकी जान लेना चाहती है। ऐसे में राजपाल ठीक ढंग से अपना काम नहीं कर पाएगा और अपनी जान के लिए भी खतरा पैदा कर लेगा।”
“समझ गया।”
“मुझे खबर करते रहना कि नेपाल में क्या हो रहा है।” झा ने कहा।
“जी। मैं सब संभाल लूंगा।” कहने के साथ ही सूर्या उठ खड़ा हुआ।
☐☐☐
शाम के चार बजे कार ने काठमांडू में प्रवेश किया।
महाजन कार ड्राइव कर रहा था। उनकी कार के काठमांडू को छूते ही, नीले रंग की कार उनके पीछे लग गई और वह लोग सोच नहीं सकते थे कि काठमांडू में प्रवेश करते ही कोई इस तरह उनके पीछे लग सकता था।
उनकी कार धूल में इस तरह अट चुकी थी कि कार का असली रंग भी छिपता सा महसूस हो रहा था। महाजन ने सीट पर रखी बोतल उठाई और ढक्कन खोलकर उसमें मौजूद बची-खुची व्हिस्की गले में उतारकर बोतल को सीट पर ही रख दिया। काठमांडू में पहुंचते ही सर्दी का एहसास कुछ तीव्र सा हो गया था। हर तरफ बर्फीली पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से काठमांडू की रात तीखी सर्द हो जाती थी।
“अब कहां?” महाजन ने सड़कों पर निगाहें दौड़ाते पूछा।
“न्यू रोड के पीछे वाली सड़क पर पहुंचो। वहां नेपाल होटल है। वहीं ठहरेंगे।”
“हां।” महाजन ने सिर हिलाया –“मेरा देखा हुआ है। बढ़िया होटल है।”
मोना चौधरी ने सिगरेट सुलगा ली।
“लेकिन काठमांडू में बख्तावर सिंह और राजपाल को तलाश करने में बोरियत होगी।” महाजन मुंह बनाकर बोला –“ढूंढ तो लिया जाएगा। लेकिन यह काम सुस्ती भर देने वाला है।”
“महाजन।” मोना चौधरी खिड़की से बाहर देखती हुई बोली –“यह काम हमने फौरन करना है। हमारे पास वक्त कम है। बख्तावर सिंह काठमांडू से कभी भी पाकिस्तान के लिए रवाना हो सकता है। हमें नहीं मालूम कि बख्तावर सिंह को यहां कितनी देर का काम है।”
महाजन सिर हिलाकर रह गया।
“राजपाल भी हमारे लिए दिक्कत खड़ी कर सकता है।” मोना चौधरी ने पुनः कहा –“वह बख्तावर सिंह से टकराना चाहता है और हम अच्छी तरह जानते हैं कि वह बख्तावर सिंह से पार नहीं पा सकता। उनमें झगड़ा हुआ तो बख्तावर सिंह हमारे हाथों से भी निकल जाएगा।”
“तुम्हारी बात तो ठीक है बेबी।”
“आज रात भी, इन दोनों में से किसी की तलाश करनी होगी।”
“आज रात –कहां?”
“काठमांडू के हर उस कैसिनो को चेक करना होगा। जहां वह जा सकते हैं।” मोना चौधरी ने कहा –“यह जुदा बात है कि इन दोनों में से शायद ही कोई कैसिनो की तरफ रुख करे।”
इस वक्त उनकी कार, न्यू रोड की तरफ बढ़ते हुए काली भाटी रोड पर पहुंची ही थी कि पीछे आ रही नीली कार ने एकाएक उनकी कार को ओवरटेक किया और आगे पहुंचकर उनका रास्ता रोकते हुए तिरछी हो गई।
महाजन ने फौरन ब्रेक लगाए। वरना टक्कर हो जाती।
“उल्लू का पट्ठा।” महाजन के होंठों से निकला।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी।
तभी उनके देखते ही देखते नीली कार के तीन दरवाजे खुले। तीन व्यक्ति बाहर निकले। कार के दरवाजे बंद हुए और तेजी से उनकी कार की तरफ बढ़े। उनमें सबसे आगे सूर्या था। सबकी चाल इस तरह सामान्य थी, जैसे वो कोई खास काम न करके, मामूली काम कर रहे हो।
“बेबी। खतरा। हमारे पास रिवॉल्वर-हथियार भी नहीं है।” महाजन के होंठों से निकला।
मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता सिमट आई। हालात ऐसे थे कि वह कुछ नहीं कर सकते थे। सूर्या ने पीछे वाला दरवाजा खोला और भीतर आ बैठा। बाकी दो आगे वाली सीट पर बैठ गए थे। उनके कार के भीतर प्रवेश करते ही रिवॉल्वरें निकल आई थी। जो कि मोना चौधरी और महाजन के शरीरों से सट गई। वह दोनों चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे।
“कार आगे बढ़ाओ। रास्ता हम बताते हैं।” महाजन की बगल में बैठे व्यक्ति ने कठोर स्वर में कहा।
आगे वाली नीली कार, वहां से हटकर आगे बढ़ गई थी।
“मुझे नहीं मालूम था कि काठमांडू में विदेशियों का इस तरह स्वागत होता है। मुफ्त में गाइड सेवा दी जाती है। न मानो तो रिवॉल्वर दिखाकर दी जाती है।” महाजन कड़वे स्वर में बोला।
“रहना और खाना भी हम मुफ्त देते हैं।” दूसरे ने दांत भींचकर कहा।
“वास्तव में। नेपाल वाले कितने दयालु हैं।”
“कार आगे बढ़ाओ। जल्दी।” वह गुर्राया।
“चिल्लाता क्यों है।” कहते हुए महाजन ने कार आगे बढ़ा दी –“चल तेरे को काठमांडू की सैर कराता हूं।”
मोना चौधरी ने पास में मौजूद सूर्या पर निगाह मारी।
“कौन हो तुम लोग?”
“नेपाल वाले हैं।” सूर्या ने लापरवाही से कहा।
“नेपाल वाले तुम जैसे घटिया लोग नहीं होते।”
“होते हैं। हम जैसे घटिया लोग, हर देश, हर शहर में मिलते हैं।” सूर्या ने कड़वे स्वर में कहा।
“चाहते क्या हो?”
“मालूम हो जाएगा। अभी खामोश रहो।”
“राजपाल ने भेजा है तुम लोगों को।”
सूर्या ने उसे देखा। लेकिन कहा कुछ नहीं।
“झा के आदमी हो।” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े –“क्योंकि राजपाल के पास काठमांडू में शायद आदमी नहीं है।”
सूर्या मुस्कराया और उससे सटा रखी रिवॉल्वर का दबाव बढ़ दिया। जोकि मोना चौधरी के लिए इशारा था कि वह चुप रहे।
सूर्या, मोना चौधरी और नीलू महाजन को मारवाड़ी सेवा समिति के बगलवाली इमारत में ले गया, जो पचास बरस पुरानी, चार मंजिला इमारत थी।
“चुपचाप नीचे उतरो और सामने सीढ़ियां नजर आ रही हैं। हमारे साथ ऐसे जाना, जैसे खुशी से हमारे साथ हो। इस भरी मार्किट में अगर किसी को यह महसूस हुआ कि हम तुम्हें जबरदस्ती साथ ले जा रहे हैं, तो उसी वक्त मैं और मेरे साथी तुम दोनों को यहीं गोलियों से भून देंगे।”
“सरेआम?” महाजन के होंठों से निकला।
“चिंता मत करो। सरेआम ऐसे काम करने से हम परहेज नहीं करते।” सूर्या का लहजा खतरनाक हो गया –“काम तो काम ही होता है और हम यही काम करते हैं। फिर परहेज कैसा। जितना समझाना था, उससे ज्यादा समझा दिया है।” कहकर वह कार से बाहर निकला।
“निकलो।” सूर्या के साथी नै रिवॉल्वर की नाल का दबाव बढ़ाया।
महाजन ने गहरी सांस ली और दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।
मोना चौधरी भी निकली।
दोनों आदमी भी बाहर निकले। रिवॉल्वरें उनकी जेब में पहुंच चुकी थी।
“वो सामने सीढ़ियां हैं।” सूर्या ने दबे स्वर में कहा –“चलो।”
मोना चौधरी आगे बढ़ी। महाजन उसके पीछे। फिर सूर्या और बाकी वह दोनों।
सीढ़ियों की चौड़ाई दो फीट से ज्यादा नहीं थी। संभलकर चढ़ना पड़ रहा था। वरना जरा-सा पांव इधर-उधर पड़ते ही कंधे दीवारों से टकराने लगे।
“सीढ़ियां चढ़ते जाओ। किसी मंजिल पर नहीं रुकना। जब सीढ़ियां खत्म हो तब रुकना।” सूर्या का भिंचा स्वर उनके कानों में पड़ा।
चार मंजिलें पार करके, वह छत पर पहुंचे। पसीने से भरे शरीरों से ठंडी हवा टकराई।
“सीढ़ियों की ऊंचाई सवा-सवा फीट से कम नहीं।” बड़बड़ाने के पश्चात महाजन ने सूर्या को देखा –“चार मंजिलें चढ़ने की सजा देने की क्या जरूरत थी। अब नीचे उतरना पड़ेगा।”
“तलाशी लो।”
सूर्या के दोनों आदमी मोना चौधरी और महाजन की तलाशी लेने लगे।
“कुछ नहीं है।” महाजन मुंह बनाकर बोला –“क्यों वक्त खराब कर रहे हो?”
दोनों ने पलटकर सूर्या को देखा।
“कोई हथियार नहीं है।”
“मैं तो पहले ही बोल रहा था।” महाजन ने मुंह बनाकर कहा।
“इन्हें कमरे में ले जाओ।” कहने के साथ ही सूर्या आगे बढ़ा।
वह दोनों मोना चौधरी और महाजन को लिए आगे बढ़े।
“अरे भाई तुम लोग चाहते क्या हो। कम से कम कान में ही बता दो।”
मोना चौधरी की पैनी निगाह हर तरफ घूम रही थी। उस लंबी चौड़ी छत पर एक तरफ कमरा बना हुआ था। उसके देखते ही देखते। सूर्या ने उस पर लटकता ताला खोला और भीतर प्रवेश कर गया।
उसके बाद वह सब भी कमरे में पहुंचे।
कमरे में तीन-चार कुर्सियों के अलावा कुछ नहीं था।
“इन दोनों को यहीं बंद कर दो और बाहर पहरा दो।” सूर्या ने सख्त स्वर में कहा। “तुम चाहते क्या हो?” मोना चौधरी का स्वर सख्त हो गया।
“मालूम हो जाएगा।” सूर्या ने उसे घूरा –“कुछ देर बाद तुमसे बात करूंगा। अभी जरूरी काम निपटाना है।” कहने के साथ ही वह बाहर निकला।
उसके दोनों साथी भी निकले। दरवाजा बंद करके ताला लगा दिया गया।
“जब तक मैं वापस नहीं लौटता। तुम दोनों यहीं पर पहरा दोगे। कैदी भागे नहीं।”
“ठीक है। लेकिन छोकरी बहुत दमदार है।” एक ने हंसकर कहा।
सूर्या ने दांत भींचकर उसे देखा –“कभी अपनी मां को देखा था, जवानी में।” सूर्या जहर भरे स्वर में बोला।
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“जवानी में तो तेरी मां भी दमदार रही होगी।”
उसका सिर झुक गया।
“दोबारा ऐसी बात की तो न्यू रोड के टॉवर पर लटका दूंगा।” खा जाने वाले स्वर में कहने के साथ ही सूर्या पलटा और तेज-तेज कदमों से सीढ़ियों की तरफ बढ़ता चला गया।
“सूर्या ने सारा मूड खराब कर दिया।” वह उखड़े स्वर में बोला।
“तेरे को तो पता ही है कि धंधा वह जो भी करता हो। लेकिन औरतों को इज्जत देता है।”
☐☐☐
राजपाल दो बजे के करीब काठमांडू पहुंचा। वह दिमागी तौर पर इस कदर उलझा हुआ था कि हसीन मौसम की उसने जरा भी कद्र नहीं की। काठमांडू को घेरे पहाड़ कभी बादलों के पीछे छिपकर ओझल हो जाते और जब हवा बादलों को आगे ले जाती, मीठा-सा सूर्य नर्म धूप को फैला देता।
झा के आदमियों से उसने कल दिन में रंजना सिनेमा पर मिलना था। उसमें अभी बहुत वक्त था। तब तक किसी होटल में ठहरना ठीक नहीं था। बख्तावर सिंह के किसी आदमी की निगाहों में आना ठीक नहीं था। वह, चंद्र थापा नाम के ऐसे व्यक्ति के घर पर पहुंचा, जिससे उसकी पुरानी पहचान थी और किराये पर वह बख्तावर सिंह के काम भी करता था।
चंद्र थापा की उम्र पचास के करीब थी और अपने घर के एक कमरे में रहता था। बाकी का सारा घर किराये पर दे रखा था। ताकि जब काम न हो तो खर्चा-पानी चलता रहे।
राजपाल को एकाएक आया पाकर वह हैरान हुआ।
“जनाब। आप इस तरह अचानक। कोई खबर भी नहीं दी आने की?”
“हां। अचानक ही आना पड़ा।” राजपाल थके अंदाज़ में कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
“सब ठीक तो है?”
“नहीं।” राजपाल का चेहरा कठोर हो गया –“बख्तावर सिंह मेरी बेटी की हत्या कर आया है।”
“क्या?”
“हां। क्योंकि अब मैंने ब्लैकमेल होकर उसके लिए काम करने को मना कर दिया था। वह –।”
“यह तो बख्तावर सिंह ने बहुत गलत हरकत की।” चंद्र थापा कह उठा।
“हिन्दुस्तान से बख्तावर काठमांडू आया है।”
“और आप उसके लिए, यहां आ गए।” चंद्र थापा के होंठों से निकला।
राजपाल ने उसकी आंखों में झांका।
“हां। मेरी बेटी की जान इतनी सस्ती नहीं कि बख्तावर सिंह निकल जाए। उसे मैं कुत्ते की मौत मारूंगा। वह मेरे हाथों से नहीं बच सकता।” राजपाल गुर्रा उठा।
“बख्तावर बहुत ताकतवर है।” चंद्र थापा ने गंभीर स्वर में कहा –“उसके –।”
“मैं तुमसे ज्यादा बख्तावर को जानता हूं।” राजपाल का चेहरा सुलग रहा था –उसने जेब से नोटों की गड्डी निकाली और टेबल पर रख दी –“मेरा खुले में जाना ठीक नहीं। मैं आसानी से फौरन पहचाना जा सकता हूं।”
चंद्र थापा आगे बढ़ा और गड्डी उठाकर नोटों को फुरेरी दी।
“बख्तावर सिंह के बारे में मालूम करना है?”
“हां। तुम कई बार बख्तावर या उसके आदमियों के लिए काम कर चुके हो। ऐसे में तुम मालूम कर सकते हो कि, वह कहां मिलेगा।”
“ठीक है मालूम कर दूंगा।” चंद्र थापा ने गड्डी जेब में डाली –“लेकिन यह मामला खतरनाक है। इस बार आपका मेरे यहां रुकना ठीक नहीं।”
“समझता हूं। तुम बख्तावर सिंह के बारे में मालूम करो। सुबह नाश्ते के बाद चला जाऊंगा।”
“बढ़िया। अब क्या पेश करूं?”
“चाय और उसके बाद बख्तावर के बारे में मालूम करो, वह कहां है।” राजपाल गुर्रा उठा।
☐☐☐
“चाय-व्हिस्की नहीं पिलानी तो मत पिला, कम से कम पानी तो पिला दे।” दरवाजा थपथपाने के साथ ही भीतर से महाजन का उखड़ा स्वर उन दोनों के कानों में पड़ा।
दोनों की नजर दरवाजे की तरफ गई।
“क्या बोलता है।” एक ने पूछा –“पानी पिला दें?”
“पिला दे।” दूसरा मुस्कराया –“इसी बहाने उस हूरपरी की झलक तो देख लूंगा।”
“तू कभी सीधा नहीं होगा। लेकिन इस ताले की चाबी तो सूर्या के पास है।”
“डुप्लीकेट, मेरे पास है।” उसने जेब में हाथ डालते हुए कहा –“वह सामने मटका पड़ा है। दोनों को बारी-बारी निकाल और पानी पीने के लिए बोल दे।” कहकर उसने चाबी अपने साथी को दी और जेब से रिवॉल्वर निकालकर पकड़ ली –“तू भी रिवॉल्वर निकाल ले।”
“पानी पिला दो भइया?” भीतर से महाजन की आवाज पुन: आई।
“इस ससुर को ज्यादा ही तलब लगी है।”
दरवाजा खोलते ही उन्हें महाजन नजर आया।
महाजन ने दरवाजे के बाहर खड़े, दोनों के हाथ में रिवॉल्वरें देखी।
“पी ले पानी। वह मटका पड़ा है। बाहर निकल।”
महाजन बाहर निकला और शराफत से छत पर कुछ दूरी पर पड़े मटके की तरफ बढ़ गया। रिवॉल्वर थाने उस व्यक्ति की निगाह महाजन पर थी।
दूसरे वहीं बड़े-बड़े कमरे के भीतर देखा।
मोना चौधरी सामने खड़ी थी। उसे देखते पाकर जानलेवा अंदाज में मुस्कराई। यह देखकर उसने भी दांत फाड़ दिए।
हाय-हाय करने वाले अंदाज में चलती हुई दरवाजे तक पहुंची –“बाहर क्यों खड़े हो?” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली –“भीतर आ जाओ।”
“मैं तो कब का आ गया होता। तुम्हारे कहने की जरूरत ही नहीं थी।” उसने मुंह बनाया –“लेकिन सूर्या आ गया तो मेरी सारी हड्डियां तोड़ देगा। वह तो चाहता है, हम औरतों की पूजा करें।”
“कौन सूर्या?”
“वही जो, तुम्हें कमरे में बंद करके गया है।”
“डरते हो उससे?”
“हां। मेरी मानो तो तुम भी डरो। बहुत खतरनाक है सूर्या। काठमांडू का नामी आदमी है। उसकी उंगली हिली और बंदा साफ। उसके तो सामने पड़ना भी फेफड़ों के लिए ठीक नहीं। एक बार तो सूर्या की लाल आंखें देखकर, सामने वाले की किडनी खराब हो गई थी।”
“किडनी?” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
“हां। तब मैं ही उसे अस्पताल लेकर गया था।
मोना चौधरी मुस्कराते हुए उसे देखती रही। वह सिर्फ दो कदम दूर खड़ा था। करीब बारह-पंद्रह कदम दूर महाजन घड़े के पास मौजूद था और वह दूसरा महाजन से कुछ फासले पर खड़ा था।
“तुम बहुत खूबसूरत हो।” वह पुनः मोना चौधरी से कह उठा।
“सूर्या ने ऐसा कहा?” मोना चौधरी ने आंखें फैलाई।
“उसे क्या मालूम खूबसूरती क्या होती है। वह तो खून-खराबे की ही भाषा जानता है।” कहते हुए उसने मुंह बनाया –“खूबसूरती का कद्रदान तो मैं हूं।”
“लगते तो नहीं।”
“क्यों?”
“खूबसूरती को छूकर देखा नहीं और बनते हो कद्रदान।”
“क्या करूं। सूर्या का डर न होता तो अब तक पता नहीं, क्या से क्या हो गया होता।”
मोना चौधरी अपनी जगह से हिली और उसकी तरफ बढ़ी।
“तुम बहुत अच्छे हो। क्यों न हम यहां से भाग चलें।” मोना चौधरी ने मीठे स्वर में कहा।
“भागकर क्या करेंगे?”
“शादी।” मोना चौधरी उसके करीब पहुंचकर ठिठकी
“शादी की क्या जरूरत है। वैसे मेरी तो हुई पड़ी है।” वह मुस्कराया –“छः बच्चे हैं। शादी के बिना ही हम तोड़-फोड़ कर लेंगे। पका आम खाकर तुम्हें बहुत मजा आएगा।।”
तभी बिजली की सी फुर्ती के साथ मोना चौधरी का हाथ उठा और उसकी कनपटी पर पड़ा। वह कुछ समझ ही न पाया। होंठों से कराह निकली। आंखों के आगे लाल-पीले तारे नाचे और घुटने मुझे फिर नीचे गिरता चला गया।
आहट पाकर दूसरा तुरंत घूमा।
इससे पहले कि कुछ समझ पाता। महाजन ने उसी पल पानी का घड़ा उठाकर उसके सिर पर दे मारा। तेज चीख के साथ वह भी गिरकर बेहोश होता चला गया।
“रिवॉल्वर उठा लो।” कहते हुए मोना चौधरी ने नीचे से रिवॉल्वर उठा ली।
महाजन ने भी रिवॉल्वर उठाई।
तभी उनके कानों में किसी के सीढ़ियां चढ़ने की आवाज पड़ी। दोनों की सतर्क निगाह सीढ़ियों की तरफ गई। चेहरों पर कठोरता आ गई थी।
दूसरे ही पल सूर्या छत पर पहुंचता नजर आया। परंतु हालातों को बदला पाकर वह ठिठका। फौरन ही पलटने को हुआ कि मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी।
“हिलना नहीं।”
सूर्या ठिठककर रह गया। उसके चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
महाजन उसकी तरफ बढ़ा और व्यंग्य भरे स्वर में कह उठा।
“गुस्सा आ रहा है।”
सूर्या उसे घूरता रहा।
महाजन पास पहुंचा और रिवॉल्वर की नाल का वार उसकी कनपटी पर किया। उसे मौका दिए बिना दूसरा और फिर तीसरा वार किया। सूर्या के होंठों से कई कराहें निकली और दोनों हाथों से सिर थामे नीचे लुढ़ककर बेहोश हो गया।
“उसे बेहोश नहीं करना था।”
मोना चौधरी की आवाज पर महाजन का कठोर चेहरा घूमा।
“क्यों?”
“यह मालूम करना बहुत जरूरी था कि इसने हमें क्यों पकड़ा और यह चाहता क्या है?”
“अब मालूम कर लेते –।”
“हमारे पास इतना वक्त नहीं कि इसके होश में आने का इंतजार करें।” मोना चौधरी सूर्या के बेहोश शरीर को देखते हुए बोली –“निकलो यहां से।”
उसके बाद दोनों तेजी से सीढ़ियां उतरते चले गए।
☐☐☐
बख्तावर सिंह नेपाल होटल से निकला। उसके इशारे पर दरबान ने फौरन टैक्सी मंगवा दी। उसने सिगरेट सुलगाई और टैक्सी में बैठता हुआ बोला –“न्यू बस स्टैण्ड।”
टैक्सी आगे बढ़ गई।
सोच में डूबे बख्तावर सिंह की निगाहें इधर-उधर घूमती रही। कश लेता रहा। करीब बीस मिनट बाद, ड्राइवर के कंधे पर उंगली लगाकर बोला –“यहीं रोक दो।”
टैक्सी रुकी। बख्तावर सिंह ने उसे बड़ा नोट थमाया और टैक्सी से उतरकर आगे बढ़ गया। सड़क से हटकर वह एक गली में पहुंचा और छोटी-छोटी गलियों में से गुजरता हुआ एक बंद दरवाजे के सामने रुका और बेल दबाई।
कुछ ही पलों में दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाले ने उसे देखा तो फौरन पीछे हट गया। बख्तावर सिंह भीतर प्रवेश कर गया। वह मकान काफी बड़ी जगह पर बना हुआ था। मकान के कई रास्तों से गुजरने के पश्चात उसने एक कमरे में प्रवेश किया। वहां एक पाकिस्तानी और चार नेपाली बैठे बातों में व्यस्त थे।
बख्तावर सिंह को देखते ही, सब उठ खड़े हुए।
सर बख्तावर सिंह कहकर उसका स्वागत किया।
बख्तावर सिंह कुर्सी पर बैठा और सब पर निगाह मारकर बोला
“काम की रफ्तार क्या है?”
“बढ़िया सर। हर काम ठीक तरह से चल रहा है।” एक नेपाली ने कहा।
“पाकिस्तान से भेजा आर.डी.एक्स. एक सप्ताह पहले यहां पहुंच गया था। उस आर-डी-एक्स के साथ कुछ आदेश भी थे।” बख्तावर सिंह ने उन सब पर निगाह मारी।
“यस सर। उस आर.डी.एक्स. को हिन्दुस्तान के उन शहरों में पहुंचाया जा रहा है। जहां के लिए ऑर्डर थे। उन शहरों में हमारे आदमी आर.डी.एक्स. पाने के इंतजार में बैठे हैं।”
“आर.डी.एक्स. यहां से निकल चुका है?”
“जी। कल पटना पहुंचा था।”
“तो फिर आगे भेजने में देरी किस बात की?” बख्तावर सिंह ने उसे घूरा।
“कोई दिक्कत नहीं। आर.डी.एक्स. के दो-चार और छ:-छ: किलो के छोटे-छोटे पैकेट बनाए जा रहे हैं। फिर उन्हें आदमियों के हाथ आगे भेजा जाएगा। उसके साथ ही इस बात का खुलासा होगा कि उन्हें कहां-कहां विस्फोट करने हैं। सप्ताह तक सबके पास माल पहुंच जाएगा।”
बख्तावर सिंह ने हौले सिर हिलाया।
“सर।” दूसरे ने कहा –“अब नेपाल पुलिस हमारी टोह लेने लग गई है।”
“क्यों?” बख्तावर सिंह के माथे पर बल पड़े।
“कई साल हो गए नेपाल में ठिकाना बनाकर हिन्दुस्तान में आतंक फैलाते। नेपाल सरकार को भनक तो लग ही जाती है। यह बातें ज्यादा देर तो छिपती नहीं।”
बख्तावर सिंह ने सिगरेट सुलगाई।
“इस मामले में जो पुलिस वाला है, उसे सिर से पांव तक नोट में तोल दो। उसकी हर जरूरत पूरी कर दो। लेकिन हमारे काम में किसी तरह की भी अड़चन नहीं आनी चाहिए।” बख्तावर सिंह का स्वर कठोर था।
“जी।” तभी वहां मौजूद पाकिस्तानी की जेब में पड़े फोन की बेल बजी। उसने फोन निकालकर ऑन किया। बात की। उसके बाद होल्ड करने को कहकर बख्तावर सिंह को देखा।
“सर। आपका फोन।”
“लाओ।”
“खास फोन है।”
बख्तावर सिंह ने बात समझी और मौजूद नेपाली लोगों को वहां से बाहर भेजकर फोन पर बात की। फोन पर दूसरी तरफ चीनी एजेंट चांग ली था।
“हैलो।”
“बख्तावर।” चांग ली की आवाज कानों में पड़ी –“कैसी तबीयत है?”
बख्तावर सिंह के होंठों पर मुस्कान उभर आई।
“चांग ली?”
“हां। मैं आज ही नेपाल पहुंचा हूं। सुना है तुम परसों से नेपाल घूम रहे हो।”
“मौसम अच्छा है नेपाल का?” बख्तावर सिंह की आवाज तीखी हो गई।
“वो आर.डी.एक्स. कहां रखा है, जो हाल ही में पाकिस्तान से यहां पहुंचा है।”
“तुम्हें कैसे मालूम?” बख्तावर सिंह के माथे पर बल पड़े।
“नजरें हैं, इधर-उधर घूम ही जाती हैं।” चांग ली की हंसी से भरी आवाज आई।
“अपनी नजरों पर काबू रखो। इनका ज्यादा घूमना भी ठीक नहीं रहता।”
“नाइट कैसिनो पहुंचो, शाम के आठ बजे। वहीं मिलूंगा। दांव लगाते हैं।”
“तुम्हारे साथ बैठने-उठने का मेरा कोई इरादा नहीं है।” बख्तावर सिंह ने कठोर स्वर में कहा।
“ऐसी भी क्या नाराजगी।” चांग ली की मुस्कराट भरी आवाज आई।
“तुम्हारी वजह से पिछली बार मोना चौधरी मेरे हाथ से –।”
“बीती बातें छोड़ो। ताजी बात करो।”
“तुम्हारे साथ जो भी बातें होगी। गोली बीच में रखकर होगी। बेहतर भी होगा कि–।”
“नाराजगी भरी बातों को हवा देने से बाज नहीं आओगे बख्तावर सिंह?” चांग ली के हंसने की आवाज आई –“अगर मैं, नेपाल में ही मोना चौधरी को तुम्हारे गले मिलवा दूं तो?”
“क्या?” बख्तावर सिंह की आंखें सिकुड़ी –“मोना चौधरी नेपाल में है।”
“नाइट कैसिनो में मिलना आठ बजे। गले मिलकर बात करेंगे।”
“लेकिन मोना चौधरी।”
चांग ली ने दूसरी तरफ से लाइन काट दी थी।
बख्तावर सिंह ने फोन बंद किया और पास बैठे पाकिस्तानी एजेंट की तरफ बढ़ाया। उसने फोन लेकर अपनी जेब में डाला।
“क्या बात है सर?”
“कैप्टन सिद्दीकी।” बख्तावर सिंह गंभीर स्वर में बोला –“मोना चौधरी नेपाल में है।”
“लेकिन आपने तो बताया था कि मोना चौधरी दिल्ली में –।”
“हां। लेकिन वह मेरे पीछे-पीछे नेपाल आ पहुंची है।”
“ओह! वह तो बहुत खतरनाक है। पाक अधिकृत कश्मीर में उसने बहुत गुंडागर्दी मचा दी थी।”
बख्तावर सिंह ने कुछ नहीं कहा। लेकिन उसके चेहरे पर कठोरता सिमट आई थी। उसने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा। शाम के साढ़े छः बजे थे। चांग ली से मिलने में अभी वक्त था।
“सिद्दीकी।”
“सर।”
“हिन्दुस्तान में फैले एजेंटों की फाइल दो। लगता है हमारे एजेंट कुछ कम हो गए हैं।”
“जी। अभी देता हूं। हिन्दुस्तान में आपके इशारे पर राजपाल की बेटी के साथ–।”
“मैंने सिर्फ उसकी बेटी की हत्या के ऑर्डर दिए थे। जिसे कि किराये के लोगों ने अंजाम दिया। मैं नहीं जानता था कि उसकी हत्या करने से पहले उसके साथ बलात्कार जैसा घटिया काम भी करेंगे। मेरा वहां से निकलना जरूरी हो गया था। वरना मैं उन लोगों को मौत की सजा अवश्य देता।”
“ओह।”
“राजपाल ने हमारे लिए काम करने को इंकार कर दिया था। यहां तक तो ठीक था। वह सालों से हमारे काम आ रहा था। लेकिन साथ में उसने धमकी भी दी थी कि हिन्दुस्तान में मौजूद जिन हमारे आदमियों को जानता है, उनके बारे में पुलिस को खबर कर देगा।” बख्तावर सिंह की आंखों में क्रूरता चमकी –“ऐसे में उसे सबक सिखाना जरूरी हो गया था कि हमारे काम में सबसे जरूरी काम, जुबान बंद रखना होता है।”
“और अगर राजपाल ने हमारे आदमियों के बारे में पुलिस को खबर कर दी तो।”
“कोई फायदा नहीं होगा।” बख्तावर सिंह कठोर अंदाज में मुस्कराया –“चलने से पहले, हर उस एजेंट को जिसका राजपाल से वास्ता रहा था। पता-ठिकाना बदल लेने को कहा है। अब तक वह सब अपनी जगह छोड़ चुके होंगे।”
“ओह!”
“तुम अपने एजेंटों की फाइल।”
तभी दरवाजे पर आहट हुई।
दोनों की निगाहें फौरन उस तरफ घूमी।
दरवाजे की चौखट पर चंद्र थापा खड़ा था। मुस्कराता हुआ।
“गुड इवनिंग सर।” कहते हुए भीतर आ गया।
बख्तावर सिंह ने हौले से सिर हिलाकर सिद्दीकी से पूछा –“इसे कोई काम दिया था करने को?”
“नहीं।”
“तो फिर तुम यहां क्यों आए हो?” बख्तावर सिंह ने चन्द्र थापा से कहा –“तुमसे कितनी बार कहा है कि जब हम न बुलाये यहां मत आया करो।”
“लेकिन सर बख्तावर सिंह, मैं आज से पहले बिना बुलावे पर नहीं आया। आज पहली बार आया हूं।” चन्द्र थापा ने मुस्कराकर कहा और टेबल के करीब आ पहुंचा।
“आज भी क्यों?”
“काम पड़ गया।”
“पैसे चाहिए होंगे।” सिद्दीकी ने मुंह बनाया।
चन्द्र थापा मुस्कराकर रह गया।
“कहो।” बख्तावर सिंह की निगाह उस पर थी।
चन्द्र थापा ने जेब से राजपाल की दी नोटों की गड्डी निकाली और फुरेरी मारकर उसे टेबल पर रख दिया। फिर मुस्कराकर बख्तावर सिंह को देखने लगा।
“यह क्या तमाशा है?” बख्तावर सिंह ने शब्दों को चबाकर कहा।
“यह नोटों की गड्डी है।” चन्द्र थापा ने टेबल पर पड़ी नोटों की गड्डी को थपथपाया।
“थापा।” सिद्दीकी ने कठोर स्वर में कहा –“सर से बात करने की तमीज सीखो।”
बख्तावर सिंह ने हाथ उठाकर उसे खामोश रहने को कहा फिर चन्द्र थापा को देखा।
“मैं भी देख रहा हूं कि यह नोटों की गड्डी है।” बख्तावर सिंह ने सिर हिलाया। थापा के हाव-भाव से वह इतना तो समझ चुका था कि बात कुछ खास ही है।
“यह गड्डी राजपाल ने एक-दो घंटे पहले मुझे दी है।” चन्द्र थापा ने होंठ सिकोड़े।
बख्तावर सिंह चौंका।
“राजपाल यहां –काठमांडू में?”
“जी हां। दोपहर को वह काठमांडू में पहुंचा था।”
बख्तावर सिंह की निगाह नोटों की गड्डी पर गई। राजपाल काठमांडू आया है। मतलब कि उसके पीछे आया है। स्पष्ट है कि अपनी बेटी की मौत का बदला लेने की खातिर आया है।
“आगे कहो।” बख्तावर सिंह की आंखों में कठोरता आ गई थी।
“उसे इस बात का बहुत गुस्सा है कि आपके कारण उसकी बेटी से बलात्कार और फिर हत्या।”
“हत्या। बलात्कार मेरे इशारे पर नहीं हुआ।”
“जो भी हो। वह आपको दोषी मानता है। वह मुझसे मिला। गड्डी दी और बोला कि मैं आपके बारे में मालूम करूं कि काठमांडू में आप किस ठिकाने पर है।” चन्द्र थापा खुलकर मुस्कराया –“अब आप ही बताइए कि तालाब में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी लूंगा तो, मगरमच्छ मुझे छोड़ेगा नहीं।”
बख्तावर सिंह उसे देखता रहा।
“अब बात यहां आती कि आप मुझे कितनी गड्डियां देते हैं।”
“किस वास्ते?”
“ताकि मैं आपको बता सकूँ कि राजपाल को कहां पर पकड़ा जा सकता है।”
“तो तुम मुझे ब्लैकमेल करने आए हो।” बख्तावर सिंह ने खतरनाक स्वर में कहा।
“नहीं। ऐसा घटिया काम मैं नहीं करता। मैं आपको आपके काम की जानकारी दे रहा हूं। बदले में कीमत चाहता हूं। यही काम तो, मेरा धंधा है। दूसरे के काम आओ और अपना काम निकालो।”
“राजपाल का पता-ठिकाना तो तुम्हारे मुंह में हाथ डालकर भी निकाल सकता हूं।”
चन्द्र थापा के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।
“आपसे ऐसी बेवकूफी की आशा तो नहीं है। वैसे चाहें तो आजमा लें इसे भी।”
बख्तावर सिंह चन्द्र थापा को घूरता रहा।
“आपको तो इसी में तसल्ली होनी चाहिए कि मैंने राजपाल को आपका ठिकाना नहीं बताया और वफादारी निभाने चला आया। जो खबर मैं दे रहा हूं, उसकी कीमत पाने का हकदार मैं हूं ही।”
“कितना चाहते हो?”
“आप ही कह दीजिए।”
“तुम बोलो।”
“ऐसी पांच गड्डियां।”
“मंजूर है। राजपाल का पता बताओ।”
“पता बताना तो राजपाल से गद्दारी होगी। आप मुझे राजनिवास मार्ग पर स्थित, रत्ना पार्क के मुख्य प्रवेश द्वार पर मिलें। राजपाल को लेकर मैं वहीं पहुंचता हूं।”
“ऐसा क्यों?”
“राजपाल आपके बारे में पता चाहता है। मैं उसे आपके सामने खड़ा कर दूंगा। यानी कि उसका काम भी पूरा हो जाएगा। आपका भी और मेरा भी। बाकी भगवान जाने।”
“ठीक है।” बख्तावर सिंह ने सिर हिलाया –“आधे घंटे बाद मैं तुम्हें रत्ना पार्क के बाहर मिलूंगा।”
चन्द्र थापा ने टेबल पर रखी गड्डी उठाकर जेब में डाली।
“ऐसी पांच गड्डियां?”
“कल, किसी भी वक्त आकर सिद्दीकी से ले जाना।”
चन्द्र थापा बाहर निकल गया।
“सर।” कैप्टन सिद्दीकी बोला –“राजपाल हमारे लिए खतरा बन सकता है। वह काठमांडू के कई ठिकानों के बारे में जानकारी रखता है। ऐसे इंसान का जिंदा रहना हमारे हक में ठीक नहीं।”
“मैं भी यही सोच रहा हूं।” बख्तावर सिंह का स्वर मौत की सर्दी में लिपटा पड़ा था।
☐☐☐
राजपाल खुली खिड़की की चौखट पर दोनों हाथ टिकाये बाहर देख रहा था। शाम घिरने के साथ-साथ ही, बर्फ से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ अंधेरे में छिपकर काले दैत्य की तरह होते जा रहे थे। वातावरण में ठण्डक भी बढ़ गई थी। राजपाल ने नहा-धोकर वही कपड़े पहन लिए थे।
परंतु लंबे सफर की थकान उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी। वह जानता था कि उसे नींद की जरूरत है। लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरत बख्तावर सिंह की थी।
काठमांडू में बख्तावर सिंह कहां है? इन हालातों में उसके लिए मालूम करना आसान नहीं था। लेकिन वह जानता था कि चन्द्र थापा मालूम कर लेगा। पैसे का लालची, थापा को नोट दिखाकर उससे हर काम लिया जा सकता था। राजपाल खिड़की से हटने की सोच ही रहा था कि ठिठक गया।
सामने सड़क पर पैदल ही चन्द्र थापा आता नजर आया। राजपाल की आंखें सिकुड़ गई। इतनी जल्दी थापा की वापसी होगी। उसने नहीं सोचा था। थापा की निगाह उस पर पड़ी तो उसने हाथ उठाकर हिलाया। लेकिन राजपाल खामोशी से उसे देखता रहा।
चन्द्र थापा भीतर कमरे में पहुंचा।
“आपका काम हो गया।” थापा ने मुस्कराकर कहा।
“बहुत जल्दी हो गया।” राजपाल ने उसकी आंखों में झांका।
“हां। खास मेहनत नहीं करनी पड़ी। आपको अभी मेरे साथ चलना पड़ेगा।” चन्द्र थापा ने लापरवाही से कहा –“मुझे खबर मिली है कि बख्तावर सिंह कहीं पहुंच रहा है। आप उसे वहां पकड़ सकते हैं।”
राजपाल ने थापा की आंखों में झांका और सिगरेट सुलगाई।
“कहां पहुंच रहा है बख्तावर सिंह?”
“मैं साथ चलता हूं। आप –।”
“काठमांडू की किसी जगह से मैं अनजान नहीं हूं।” राजपाल ने सपाट स्वर में कहा।
“ठीक है।” थापा ने सिर हिलाकर कहा –“सुना है बख्तावर सिंह किसी से मिलने रत्ना पार्क पहुंच रहा है। वह रत्ना पार्क के दरवाजे के बाहर ही खड़ा होगा। वहां पहुंचने ही वाला होगा।”
राजपाल उसे देखता रहा।
“रत्ना पार्क यहां से पास ही है। हमें फौरन ही पहुंचना चाहिए।” थापा ने जल्दी से कहा।
“थापा।”
“हां।”
“तुम यह सब मुझे ऐसे बता रहे हो, जैसे बख्तावर ने तुम्हें कहा हो कि मैं वहां खड़ा हूं। तुम राजपाल को वहां ले आओ।” राजपाल की आवाज में कड़वापन आ गया।
“क्या?” चन्द्र थापा दो पल के लिए सकपका उठा।
“पैसे के लिए तुम सब कुछ कर देते हो।”
“हां।” थापा ने खुद को संभालकर जल्दी से कहा –“तभी तो मैंने बख्तावर सिंह का पता लगाया है।”
“वही तो मैं कह रहा हूं।”
“चलें। बख्तावर सिंह आ पहुंचा होगा।” राजपाल की आंखों में तीखापन था।
“हां। मैं तो पहले ही कह रहा था कि जल्दी चलते हैं।”
राजपाल और थापा बाहर निकले । कार तक पहुंचे। राजपाल स्टेयरिंग सीट पर बैठा तो थापा उसकी बगल में बैठता हुआ बोला।
“मैं कुछ पहले ही उतर जाऊंगा। कहीं ऐसा न हो कि बख्तावर मुझे पहचान ले। ऐसा हो गया तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा। तुम तो जानते ही हो कि वह कितना खतरनाक है।”
राजपाल ने बिना कुछ कहे जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसे चेक किया। रिवॉल्वर भरा हुआ था। उसे वापस जेब में डालकर कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
“तुम्हें कहां से खबर मिली कि बख्तावर रत्ना पार्क के बाहर मिलेगा।”
“बीच की बात है। खबरें पाना ही तो मेरा काम है।”
“लेकिन थापा, क्या तेरे को नहीं लगता कि बख्तावर के बारे में खबर कुछ जल्दी ही मिल गई है।”
“होता है। ऐसा भी होता है। कभी-कभी खबर जल्दी मिल जाती है।” चन्द्र थापा ने जबरदस्ती दांत फाड़े।
कार ड्राइव करते राजपाल ने चन्द्र थापा पर निगाह मारी।
“मुझे बख्तावर तक पहुंचाने की उससे कितनी रकम ली?” राजपाल का स्वर शांत था।
थापा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला फिर फौरन गर्दन घुमाकर उसे देखा।
“क्या?”
जवाब में राजपाल हंसकर रह गया।
उनमें फिर कोई बात नहीं हुई। लेकिन थापा कुछ परेशान सा हो उठा था।
कार के शीशे बंद होने के बावजूद भी उन्हें सर्दी का एहसास हो रहा था। रात की रोशनियां सर्दी की अधिकता के कारण धुंधली-सी हो रही थी।
“बस।” थापा कह उठा –“मुझे यहीं उतार दो।”
“थापा। तुम मेरे साथ ही चलो। कार में बैठना। बख्तावर को मैं देख लूंगा।”
“न...नहीं।” चन्द्र थापा हड़बड़ाकर बोला –“मेरा साथ जाना ठीक नहीं। तुम बख्तावर को मारना चाहते हो और वह खुशी-खुशी तो तुमसे गोली खाएगा नहीं। मैं तुम लोगों के झगड़े में अपनी जान नहीं गंवाना चाहता।”
राजपाल ने बिना कुछ कहे कार रोकी और खामोशी से जेब से रिवॉल्वर निकाल ली।
“मैं चलता हूं।” चन्द्र थापा ने उसे देखा –“बख्तावर को निपटाकर मेरे पास मत आना। सब ठीक होने पर ही मुझसे मिलना। समझ गए ना आप।”
“हां। मैं भी तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूं।”
“क्या?”
राजपाल का रिवॉल्वर वाला हाथ हिला और नाल थापा की कनपटी पर पड़ी। उसके होंठों से चीख निकली और वह बेहोश होकर वहीं लुढ़क गया। “हरामजादा।” राजपाल ने रिवॉल्वर सीट पर ही रखी और कार आगे बढ़ा दी।
☐☐☐
राजपाल ने कछ पहले ही अंधेरे में कार रोकी और कार से बाहर निकलकर दरवाजा बंद किया। भीतर थापा बेहोश पड़ा था।
सर्दी की तीव्र लहर बदन को चीरती चली गई। रिवॉल्वर सीट से उठाकर जेब में रख चुका था। राज निवास मार्ग का इलाका शाम के इस वक्त अधिकतर सूना सा हो जाता था। यही वजह थी कि शाम के अंधेरे के वक्त, रत्ना पार्क का इलाका सूना था।
राजपाल जेबों में हाथ डाले आगे बढ़ने लगा। रत्ना पार्क पास आने पर वह फुटपाथ पर सरक गया और वहां लगे पेड़ों के बीच में से गुजरता हुआ, ऐसी जगह पर जा पहुंचा, जहां से रत्ना पार्क का मुख्य दरवाजा स्पष्ट नजर आ रहा था।
राजपाल की निगाह पार्क के दरवाजे पर जा टिकी। वहां कोई खड़ा नजर आ रहा था। उसका हाथ जेब में गया और रिवॉल्वर पर जा टिका। पार्क के प्रवेश द्वार पर कम रोशनी थी। काफी चेष्टा के पश्चात उसने पहचाना कि वह बख्तावर सिंह ही है।
राजपाल के होंठ भिंच गए। थापा ने वास्तव में उसके साथ खेल ही खेला था। काठमांडू में बख्तावर सिंह के कई ठिकाने थे। अगर किसी से मिलना होता तो वहां मिल सकता था या फिर कैसिनो में या किसी होटल-रेस्टोरेंट में मिल सकता था।
यहां पर किसी से मिलने का कोई मतलब ही पैदा नहीं होता था।
लेकिन यहां पर उससे मिलने का मतलब पैदा होता था। किसी की हत्या करने के लिए ठंडी अंधेरे से भरी यह सुनसान जगह बहुत अच्छी थी। स्पष्ट था कि बख्तावर सिंह से थापा ने सौदा किया। उसे इस वक्त वहां लाने के लिए।
राजपाल वहीं खड़ा, बख्तावर सिंह को देखता रहा। बख्तावर सिंह उसके निशाने पर था। परंतु उसने गोली चलाने की कोशिश नहीं की। राजपाल की निगाहें अंधेरे में आसपास घूमने लगी। बख्तावर सिंह ने थापा के साथ मिलकर उसके लिए जाल बिछाया है तो, बख्तावर अकेला नहीं आया होगा।
साथ में उसके साथी भी होंगे?
परंतु उसे कोई नजर नहीं आया।
लेकिन वह जानता था कि वहां और लोग भी मौजूद हैं। वह इंतजार करता रहा। आधा घंटा और फिर और भी ज्यादा वक्त बीत गया।
अब बख्तावर सिंह में उकताहट स्पष्ट नजर आने लगी थी।
राजपाल एकटक उसे देखता रहा।
दो मिनट भी और न बीते होंगे कि बख्तावर सिंह ने हाथ उठाकर खास ढंग से इशारा किया तो अंधेरे में तीन आदमी जाने कहां से निकलकर उसके पास पहुंच गए। राजपाल ने एक को स्पष्ट तौर पर पहचाना। वह सिद्दीकी था। उससे वह कई बार मिल चुका था। बाकी दो नेपाली थे।
“क्या हुआ सर?” सिद्दीकी की आवाज उसके कानों में पड़ी।
“मेरे ख्याल में काफी देर हो गई है। अब वह नहीं आएगा।” बख्तावर सिंह की आवाज कानों में पड़ी।
“थापा को हमसे अच्छे नोट मिल रहे हैं। वह राजपाल को लेकर आएगा।”
“थापा की नहीं, मैं राजपाल की बात कर रहा हूं।” बख्तावर ने शब्दों को चबाकर कहा –“वह शायद इतना बेवकूफ नहीं है कि आसानी से थापा की बातों में आ जाए।”
“सर। थापा भी बेवकूफ नहीं है।”
“तुम लोग थापा के घर जाकर देखो। मिले तो पूछना। मैं वापस जाता हूं।”
राजपाल के देखते-देखते, अंधेरे में छिपा रखी कारों में बैठे और वहां से चले गए। जब उसे पूरा विश्वास हो गया कि वह लोग चले गए वह अपनी जगह से निकला और कुछ दूरी पर मौजूद कार की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था। उसी क्रोध की वजह से उसके चेहरे पर पसीना झलक उठा था। भिंचे दांतों के साथ वह कार तक पहुंचा।
तीव्र झटके के साथ उसने कार का दरवाजा खोला।
चन्द्र थापा अभी तक कार में बेहोश पड़ा था।
“हरामजादे। बख्तावर सिंह से मेरी जान का सौदा करता है। डबल क्रॉस करता है। मेरे से पैसे लेकर मुझे धोखा देता है।” कहने के साथ ही उसने बेहोश थापा की बांह पकड़कर घसीटकर उसे बाहर खींचा तो वह बाहर गिरकर दो-तीन करवटें लेता चला गया। लेकिन उसे होश नहीं आया।
राजपाल की निगाह, अंधेरे में हर तरफ घूमी।
जब उसे विश्वास हो गया कि उस सुनसान जगह पर कोई नहीं है। उस पर किसी की नजर नहीं है तो उसने जेब से रिवॉल्वर निकाली और नीचे बेहोश पड़े थापा की तरफ नाल का रुख करके एक के बाद एक-दो गोलियां चली। चन्द्र थापा का बेहोश शरीर तड़पा और फिर शांत पड़ता चला गया।
“कुत्ता।” राजपाल ने दांत भींचकर थापा के मृत शरीर को ठोकर मारी और आगे बढ़कर कार में बैठा और कार आगे बढ़ा दी। अब उसने रात बिताने के लिए कोई सुरक्षित जगह तलाश करनी थी। बख्तावर सिंह जान चुका था कि वह इस वक्त काठमांडू में है। ऐसे में बख्तावर सिंह कभी भी उसके लिए खतरा बन सकता था। अब उसे सावधान रहने की जरूरत थी।
☐☐☐
सूर्या ने मोना चौधरी और महाजन को जिस इमारत में कैद किया था। वह काठमांडू के मुख्य बाजार में थी। दोनों सीढ़ियों से नीचे उतरे तो खुद को बाजार में पाया। दोनों एक तरफ बढ़ गए। शाम अब अंधेरे में बदलने लगी थी।
“बेबी।” महाजन बोला –“सबसे पहले हमें कोई ठिकाना तलाश करना पड़ेगा।”
“कोई ऐसी जगह जो सुरक्षित हो और हमें अलग-अलग ठहरना होगा।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“सूर्या जानता है कि हम दो हैं। वह और उसके आदमी हम दो की ही, हर जगह पूछताछ करेंगे।”
“लेकिन अभी तक समझ में नहीं आया कि सूर्या हमसे चाहता क्या है। उसने हमें क्यों –।”
“मेरे ख्याल में वह झा या राजपाल का आदमी है।”
महाजन ने गहरी सांस ली।
“यह राजपाल तो खामख्वाह की मुसीबत बना हुआ है, जबकि हम बख्तावर सिंह के लिए आए हैं।”
“राजपाल हमसे डरा हुआ है।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा –“वह समझ रहा है कि मैं उसके पीछे हूं। उसे नुकसान पहुंचाना चाहती हूं। यही वजह है कि वह झा के आदमियों की मदद से हमें हर जगह रोकने की चेष्य कर रहा है। जब तक वह मिलेगा नहीं, तब तक राजपाल यही सब करता रहेगा।”
महाजन ठिठका और एक तरफ बढ़ते हुए बोला।
“अभी आया बेबी।” मोना चौधरी ने देखा सामने व्हिस्की की दुकान थी। उसने सिगरेट सुलगा ली। महाजन बोतल ले आया और उसे खोलकर तगड़ा घूंट भरा फिर बोतल कपड़ों में छिपा ली।
उसके बाद दोनों मुख्य बाजार से हटकर एक ऐसे छोटे से होटल में अलग-अलग पहुंचे जिसमें सिर्फ छः कमरे थे। जहां सुविधा भी पूरी नहीं थी। वहां किसी को शक न हुआ कि वह दोनों इकट्ठे हैं।
उन्हें सेकंड फ्लोर पर ही दो कमरे मिले।
मोना चौधरी ने कमरे की खिड़की खोली तो सर्द हवा का झोंका बदन को झंझोड़ गया। सर्दी और कोहरे में डूबी, रात की लाइटें बहुत अच्छी लग रही थी। सामने ही सड़क पार ‘नाइट कैसिनो’ का रोशनी में चमकता बोर्ड नजर आ रहा था। मोना चौधरी कई पलों तक कैसिनो के बोर्ड की लाइटों को देखती रही। फिर उसने नहाने का मन बनाया।
मोना चौधरी रात को काठमांडू के अधिकतर कैसिनो (जुआघर) पर नजर मारना चाहती थी। इस सोच के साथ कि कहीं राजपाल या बख्तावर सिंह टकरा जाये।
☐☐☐
मोना चौधरी तैयार होकर उस होटल से निकली और सड़क पार नजर आ रहे नाइट कैसिनो की तरफ बढ़ गई। महाजन अपने कमरे में ही था। उस वक्त शाम के सवा आठ बज रहे थे। बाहर खड़े दरबान ने सलाम मारा और दरवाजा खोला। मोना चौधरी भीतर प्रवेश कर गई।
सामने ही छोटा रिसेप्शन था और बैठने के लिए सोफे बिछे थे। कैसिनो के कर्मचारी के चले जाने के बाद मोना चौधरी उसी रिसेप्शन से जानकारी पाने का मोना चौधरी का कोई इरादा नहीं था। वह आगे बढ़ी और उस दरवाजे को धकेलकर अंदर चली गई, जिस पर कैसिनो लिखा था।
भीतर तीव्र रोशनियां चमक रही थी। पचास से ऊपर लोग थे वहां, जो जुआ खेलने में व्यस्त थे। कैसिनो के तीस के करीब कर्मचारी नजर आ रहे थे। जो मशीनों पर लोगों को जुआ खिला रहे थे। खूबसूरत होस्टेज ट्रे में व्हिस्की के गिलास भरे, सर्व करने में व्यस्त थी।
खुशनुमा माहौल था वहां। एक तरफ बार काउंटर। टोकन लेने का काउंटर और टोकनों को कैश कराने का अन्य काउंटर था। सब व्यस्त थे। किसी का ध्यान किसी की तरफ नहीं था।
मोना चौधरी आगे बढ़ी और टहलने के अंदाज में एक मशीन के पास जा ठहरी । वहां नंबर लगने जा रहा था। पास खड़े लोग उत्साह से भरे हुए थे।
तभी क्लब का एक कर्मचारी मोना चौधरी के पास पहुंचा और मुस्कराकर बोला –“ऐनी सर्विस मैडम?”
“नो थैंक्स।” मोना चौधरी मुस्कराई –“अभी नहीं। कुछ देर बाद –?”
“ओ.के. मैडम।” वह उसी मुस्कान के साथ बोला –“जब मन आए तो मुझे याद कर लीजिएगा वैसे खेलने के लिए टोकन वहां से मिलते हैं और –।”
“मैं जानती हूं। नेपाल पहली बार नहीं आई –।”
कैसिनो के कर्मचारी के चले जाने के बाद मोना चौधरी उसी मशीन के पास मौजूद भीड़ में खड़ी, हर तरफ नजरें दौड़ाने लगी। राजपाल या बख्तावर सिंह की तलाश में। उनके किसी कैसिनो में मिलने की आशा तो नहीं थी। लेकिन इस वक्त मोना चौधरी के पास, उन्हें ढूंढने के लिए और कोई जगह भी नहीं थी।
उस वक्त मोना चौधरी एक अन्य मशीन की भीड़ में मौजूद थी और यहां से निकल कर किसी अन्य कैसिनो में जाने की सोच रही थी कि, एकाएक वह चौंकी और फौरन ही संभल गई। उसकी आंखें सिकुड़कर छोटी हो गईं। होंठों में कसाव-सा आ गया।
उसकी आंखें धोखा नहीं खा सकती थी।
वह चांग ली था। चीनी सीक्रेट सर्विस का खतरनाक एजेंट।
चांग ली नेपाल में होगा?
मोना चौधरी के ख्वाब में भी यह सोच नहीं आई थी।
मोना चौधरी का मस्तिष्क तेजी से दौड़ने लगा। बख्तावर सिंह नेपाल में। चांग ली नेपाल में। नेपाल में इन दोनों का मौजूद होना, किसी बड़े मामले की तरफ संकेत कर रहा था। इस बात का बहुत ही कम चांस था कि दोनों इत्तेफाक से, अपने-अपने कामों के लिए नेपाल में मौजूद हो?
तो क्या बख्तावर सिंह और चांग ली की मुलाकात होगी? या हो चुकी है?
जो भी हो, चांग ली पर नजर रखनी होगी? अगर यह बख्तावर सिंह से मिलता है तो वह भी सामने आ जाएगा। नहीं तो कम से कम यह तो मालूम होगा कि चांग ली नेपाल में क्या कर रहा है। मोना चौधरी की सतर्क निगाह एक बार फिर कैसिनो के हॉल में घूमी।
सब ठीक था। वहां ऐसा कोई नजर नहीं आया, जो चांग ली का साथी लगे।
मोना चौधरी की नजरें चांग ली पर टिक चुकी थी। जोकि कैसिनो की मशीनों पर जुआ खेलने में व्यस्त था । उसका अंदाज बता रहा था कि वह लापरवाह है। खेल में मस्त है।
“मैडम।”
आवाज सुनकर मोना चौधरी ने फौरन गर्दन घुमाई।
पास में कैसिनो का वही कर्मचारी मौजूद था। जो कुछ देर पहले उससे बात करके गया था।
“मैं आपको बताना भूल गया था कि पहली मंजिल पर कैसिनो का डिनर हॉल है। अगर खेल के दौरान आपको डिनर की जरूरत महसूस हो तो अन्य कैसिनो की तरह, मन मार कर रहने, या फिर बाहर जाकर डिनर लेने की जरूरत नहीं। आप हमारे यहां का बढ़िया डिनर पी ले सकती है। वह उधर ग्रीन कलर के दरवाजे पर ‘डिनर’ लिखा है। उसे धकेलिए। तो सामने सीढ़ियां नजर आएंगी। सीढ़ियों से जब आप ऊपर पहुंचेगी तो आपको खूबसूरत डिनर हॉल मिलेगा। डिनर के लिए वहां केबिन भी है और टेबल भी। जो आप पसंद करें।”
“शुकिया।” मोना चौधरी मुस्कराई।
“वैलकम मैडम –।” कहने के साथ ही वह कर्मचारी वहां से हट गया।
मोना चौधरी की गर्दन घूमी और चांग ली पर जा टिकी। जो कि अभी तक उसी मशीन पर, खेलने में व्यस्त था। मोना चौधरी ने फिर यह जानने की चेष्टा की कि वह अकेला है या उसके साथ कोई और भी है। लेकिन वह अकेला ही लगा।
तभी किसी ने कंधा थपथपाया। मोना चौधरी पीछे घूमी। वह सतर्क थी।
पीछे महाजन को खड़े पाया।
“तुम?” मोना चौधरी के होंगे से गहरी सांस निकली।
“बेबी। अकेले-अकेले ही यहां आ गई।” महाजन मुस्कराया –“मैंने तुम्हें कमरे में चेक किया। तुम वहां नहीं थी। बोर हो रहा था। होटल के सामने ही यह कैसिनो नजर आया तो, आ गया। खेल रही हो?”
“नहीं।” मोना चौधरी मुस्कराई –“देख रही हूं अभी तो –।”
“देखने में क्या मजा है। मैं –।”
“महाजन। तुम भी देख लो। उधर, उस हरी मशीन पर।” मोना चौधरी का स्वर धीमा हो गया –“काली पैंट और ब्राउन जैकेट पहने हुए है वह –।”
महाजन की निगाह तुरंत उस तरफ गई। अगले ही पल चौंका।
“चांग ली –वह तो चांग ली है।” महाजन के होंठों से निकला।
मोना चौधरी के होंठों पर जहरीली मुस्कान उभरी।
“यह यहां क्या कर रहा है चांग ली जैसा इंसान सिर्फ जुआ खेलने के लिए तो यहां आने से रहा।”
“यही तो देख रही हूं कि कैसिनो में यह कर क्या रहा है।”
“पिछली बार तो हांग-कांग, सिंगापुर में साले की बुरी हालत कर दी थी।” महाजन ने कड़वे स्वर में कहा –“बेबी, बख्तावर भी नेपाल में है। कहीं दोनों गले मिलने तो नहीं जा रहे?”
“देखते हैं।” कहते हुए पुनः मोना चौधरी के होंठ भिंच गए।
महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकाली और घूंट भरकर उसे वापस फंसा ली।
“इस बोतल को दोबारा मत निकालना।” मोना चौधरी ने टोका –“यहां बाहर से व्हिस्की लाकर पीना मना है। पीने के लिए कैसिनो के बार से ही व्हिस्की मिलेगी।”
“देखा जाएगा।” महाजन ने लापरवाही से कहा। दो पल भी न बीते होंगे कि महाजन, मोना चौधरी के कान में फुसफुसाया –“बेबी। बकरा –।”
मोना चौधरी की गर्दन फौरन घूमी।
बख्तावर सिंह ने अभी-अभी कैसिनो में प्रवेश किया था।
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