साधू को टैंट के भीतर नीचे बिछा रखे फोम के गद्दे पर लिटा दिया । दिन के बारह बज रहे थे । सूर्य सिर पर चढ़ता आ रहा था, परन्तु जंगल होने की वजह से सूर्य का एहसास कम ही हो रहा था ।
"सामने में से ब्रेड निकालो ।" मोना चौधरी ने कहा--- "सुबह से कुछ खाया भी नहीं ।"
संजीव ने कुछ नहीं कहा । मोना चौधरी को देखता रहा ।
टैंट में जगह कम होने के कारण मोना चौधरी बाहर आ गई ।
संजीव सिंह भी बाहर आया । चेहरे पर सोच के भाव थे ।
"क्या हुआ ?" मोना चौधरी ने उसे देखा ।
"सुधा--- तुम सामान्य युवती नहीं हो ।" संजीव सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"सामान्य नहीं हूं।" मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी-फिर मुस्कुरा पड़ी--- "तो असामान्य हूं मैं । कमाल है । तुम मुझे प्यार भी कर चुके हो । अगर मैं सामान्य युवती नहीं तो असामान्य से तुमने प्यार कैसे कर लिया ?"
"मेरा मतलब वो नहीं था ।" संजीव सिंह ने सिर हिलाया । मोना चौधरी हौले से हंसी।
"जिस तरह तुमने उसे हाथ के वार से बेहोश किया । जैसे कंधे पर लादा । इतने भारी शरीर को उठाकर यहां तक ले आई और माथे पर शिकन नहीं । मेरे लिए तो दो मिनट में ही इसे उठाना भारी पड़ जाता और...।"
"तो इन बातों से मैं असामान्य हो गई ।" मोना चौधरी ने मुस्कुराकर मुंह बनाया ।
"क्या गलत कह दिया मैंने ?"
"बेकार की बातें मत करो संजीव।" मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा--- "कॉलेज के दिनों में आत्मरक्षा की ट्रेनिंग में मैंने ये सब कुछ सीखा था । आज काम आ गया । किसी को उठाने का ढंग होता है कि बोझ महसूस नहीं होता ।"
संजीव सिंह उसे देखता रहा ।"
"अब क्या देख रहे हो ?"
"देख रहा हूं कि मेरी होने वाली पत्नी कितनी गुणी है ।" संजीव सिंह मुस्कुरा पड़ा ।
"सच में ।" मोना चौधरी हंसी--- "तुम्हारे इस हिसाब से तो मैं बहुत गुणी हूं।"
संजीव सिंह ने टैंट की तरफ देखा फिर मोना चौधरी से कहा ।
"तुम इस साधू को बेहोश करके क्यों ले आई यहां ?"
"ऐसा करना जरूरी था । ये साधू कम और खतरनाक बदमाश ज्यादा है । ये उसी स्वामी ताराचंद के आश्रम का है । इससे स्वामी ताराचंद और आश्रम के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है । अगर नदी किनारे इससे सवाल पूछते तो ये किसी भी कीमत पर नहीं बताता ।" मोना चौधरी का स्वर सख्त हो गया।
"क्या मालूम, ये अब भी कुछ न बताए ।"
"बताएगा ।" कहते हुए मोना चौधरी ने के जबड़े भिंच गए--- "रोकर बताएगा या हंसकर बताए-बताएगा ।"
संजीव सिंह एकटक मोना चौधरी के चेहरे को देखने लगा ।
"इस तरह क्या देखने लगते हो ?" मोना चौधरी बोली ।
"तुम्हारे गुणों को पहचानने की कोशिश करने लगता हूं, अभी तक जिन्हें मैं देख नहीं पाया ।"
"अपने पापा की फिक्र करो ।"
"उनकी फिक्र है, तभी तो तुम्हारे साथ यहां तक आया हूं ।" संजीव सिंह गम्भीर हो उठा ।
तभी टैंट के भीतर आहट-सी हुई।
"वो शायद होश में आ गया ।" कहने के साथ संजीव सिंह टैंट की तरफ बढ़ा।
टैंट के करीब पहुंचा ही था कि जोरदार घूंसा उसके पेट में पड़ा । संजीव सिंह के होंठों से कराह निकली और दोनों हाथों से पेट थामता हुआ नीचे जा गिरा । उस पर ही साधू टैंट से बाहर निकला । कपड़ों में बिछा रखा ब्लेड थामकर नीचे गिरे, संजीव सिंह सिर पर झपट पड़ा । उसके होंठों से गुर्राहट निकल रही थी ।
संजीव सिंह ने उसे दोनों हाथों से रोक लिया । उसका ब्लेड वाला हाथ कलाई से उसने सख्ती से पकड़ लिया था । तभी मोना चौधरी ने आगे बढ़कर फुर्ती से उसके गले में बांह डाली और पीछे को झटका दिया।
वो जोरों से लड़खड़ाया और पीछे जा गिरा । ब्लेड उसके हाथ से छूट गया । उसने फुर्ती से उठना चाहा कि मोना चौधरी ने अपना पांव उसकी छाती पर रख दिया । साधू के होंठों से तीव्र गुर्राहट निकली । दोनों हाथों से उसने मोना चौधरी की पिंडली थामी और छाती पर से उसका पांव हटाने की चेष्टा करने लगा।
संजीव सिंह भी उठकर पास आ पहुंचा था । उसका चेहरा गुस्से से भरा हुआ था ।
"तो तू मुझे ब्लेड से मारेगा ।" संजीव सिंह ने दांत भींचकर कहा।
साधू के होंठों से गुर्राहट निकली ।
गुस्से से भरे संजीव सिंह में जोरदार ठोकर उसके सिर पर मारी ।
साधू के होंठों से तेज चीख निकली और जोरों से छटपटाने के बाद, बेहोशी में डूबता चला गया । दांत भींचे उसने मोना चौधरी को देखा तो मोना चौधरी मुस्कुरा पड़ी।
"मुस्कुरा क्यों रही हो ?" संजीव सिंह ने गहरी सांस ली ।
"तुम्हारे गुणों को पहचान रही हूं ।"
"मेरे गुण-मैं तो साधारण इंसान हूं ।"
"मैं भी तो साधारण हूं और तुम मुझमें गुणों की तलाश कर रहे हो ।"
"तुम तो सच में गुणी हो । नर्स हो । बेहोश करने का तरीका जानती हो । रिवॉल्वर भी चला सकती हो । साधू के गले में बांह डालकर, किसी लड़ाके की तरह से पीछे उछाल देना, तुम्हारे लिए मामूली बात है । तुम जैसी गुणी पत्नी हर किसी को नहीं मिलती । होटल में कोई तुम्हें बता गया कि मेरे पापा की जान खतरे में है । तो तुम मेरे साथ इस खतरनाक जंगल में आ गई । ताकि पापा की जान बचा सको । औरतों में इतनी हिम्मत नहीं होती ।"
"तो मुझमें कैसे आ गई ?"
"ये तुम जानो। मैं तो इतना जानता हूं कि मेरी पत्नी गुणी है।"
मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखते हुए लापरवाही से संजीव सिंह ने कहा--- "दूसरों की पत्नियां क्या है, कैसी हैं, इस बात से मुझे क्या मतलब ।"
मोना चौधरी ने बेहोश सुधा को देखा ।
"इसे वापस टैंट में डाल दो और इसके सिर पर बैठकर पहरेदारी दो कि दोबारा होश आने पर कोई शरारत न करे ।
संजीव सिंह आगे बढ़ा और बेहोश सुधा की टांग पकड़कर घसीटते हुए उसे टैंट के भीतर ले गया।
■■■
स्वामी ताराचंद का आश्रम ।
घने जंगल में स्वामी ताराचंद ने अपनी माया फैला रखी थी । हजार गज से ज्यादा की जगह में आश्रम की रूपरेखा नजर आ रही थी । सूखी घास-फूस की झोपड़ी और झोपड़ियां सौ से ज्यादा की संख्या में तरकीब से बने हुए थे। अधिकतर झोपड़े- झोपड़ियों पर दो-तीन रंग किए हुए थे । दूर से देखने में वे खूबसूरत भले प्रतीत हो रहे थे । कुछ बड़े झोपड़े तो सच में इतने खूबसूरत थे कि उन्हें बार-बार देखने को मन करता था।
आश्रम के प्रवेश द्वार पर लकड़ी का काफी ऊंचा और बारह फीट चौड़ा गेट था। उसके बाहर फैले हुए घने वृक्ष नजर आ रहे थे । छाया और ठंडी हवा बहुत भली लग रही थी । पास ही नीचे कपड़ा बिछाए दो साधू बैठे थे । जो कि देखने में भगवान का नाम लेते लग रहे थे, परन्तु वो आने-जाने वालों लोगों पर नजर रखते थे । वो चले जाते तो उनकी जगह दूसरे आ जाते । दिन हो या रात, प्रवेश द्वार पर दो साधू अवश्य रहते थे ।
प्रवेशद्वार से कुछ हटकर चार कारें और एक वैगन खड़ी थी। दूसरी तरफ तीन बसें नजर आ रही थी । जिनके दोनों तरफ स्वामी 'ताराचंद आश्रम' मोटा-मोटा लिखा हुआ था । आश्रम में आने वाले श्रद्धालुओं के पास पर्याप्त साधन न हो तो यहां से बीस किलोमीटर दूर बस स्टैंड से बस उन्हें लाने और छोड़ने का काम करती थी। कुल चार बसें थी आश्रम की और उनका आना- जाना लगा रहता था । आधे से ज्यादा सेवक सुबह आते और स्वामी जी के दर्शन करके शाम को वापस लौट जाते । जिनकी इच्छा होती वो सेवा के लिए रात भर के लिए रुक जाते ।
बांस के बड़े गेट से भीतर प्रवेश होते ही पन्द्रह फीट चौड़ा रास्ता सीधा दूर तक जा रहा था । दाएं-बाएं झोपड़ियां या झोपड़े बने हुए थे । उनके बाहर बंधी तारों पर कपड़े सूख रहे थे । दूर तक यही सिलसिला था । बीच-बीच में कुछ खाली हिस्सा आ जाता था, जहां एक या दो कारें खड़ी होती । लोग आ-जा रहे थे। अधिकतर पीले कपड़े पहने साधू थे । श्रद्धालु भी उनके साथ आ-जा रहे थे । दोपहर का वक्त होने पर भी वहां चहल-पहल थी । बीच के करीब ही एक तरफ हटकर दो मंजिला खूबसूरत मकान था । जो कि स्वामी ताराचंद की आरामगाह थी । ऊपर के हिस्से में स्वामी ताराचंद का विश्राम गृह था और नीचे श्रद्धालुओं को स्वामीजी दर्शन देते और प्रवचन सुनाते थे।
स्वामी जी के विश्रामगृह की दीवारें बोल नहीं सकती थी । वरना वो हर आने-जाने वाले को बताती कि वहां सिर्फ काले और काले ही कारनामे होते थे ।
स्वामी ताराचंद के सबसे खास शिष्य मुनीराम के पास, स्वामी के काले-सफेद कारनामों की इतनी लम्बी लिस्ट थी कि वो सुनाने लगे तो थक जाएगा, परन्तु लिस्ट खत्म नहीं होगी ।
इस वक्त स्वामी ताराचंद दोपहर के भोजन के पश्चात अपने विश्राम गृह में चहल-कदमी कर रहे थे । चेहरे पर सोच के भाव थे कि तभी मुनीराम ने भीतर प्रवेश किया।
"स्वामी जी ।" मुनीराम ने कहा--- "आपने मुझे याद किया ?"
स्वामी ताराचंद ।
पचास वर्ष का स्वस्थ व्यक्ति । सफेद धोती कमर के गिर्द लपेटे रहता था । गले में कई तरह की मालाएं पड़ी रहती । पांवों में कभी भी कुछ नहीं पहनता था वो। कुछ लोगों ने स्वामी ताराचंद को कार पर बाहर जाते देखा तो हमेशा नंगे पांव ही देखा । सिर के बाल खुले हुए पीछे को चुटियादार रहते, जहां पतले से कपड़े से बालों को बांधे रहता । दाढ़ी के बाल भी खुले रहते, जो कि छाती तक रहते थे ।
चेहरे पर सादा-मीठी मुस्कान रहती, जब वो श्रद्धालुओं के सामने जाता । हाथों की उंगलियों में रंग-बिरंगे नगों वाली अंगूठियां चमक रही थी। उसके चेहरे पर तेज था । चेहरे पर जाने क्या लगता था कि चेहरा शीशे की भांति चमकता महसूस होता । स्वामी ताराचंद ने मुनीराम को देखा फिर आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
"चिलम सुलगा दे । नया माल डालना जो पार्वती घाटी से सुबह ही आया है । उस माल की गुणवत्ता चैक करनी है ।"
"अवश्य स्वामी जी ।" मुनीराम ने कहा और एक तरफ रखी चिलम उठाकर पुरानी सी केबल की ड्रॉअर में रखे एक पैकिट में से चरस निकालकर, चिलम तैयार करने लगा।
"श्रद्धानंद नहीं आया ?" स्वामी ताराचंद ने पूछा ।
"नहीं । वो नदी पर उसे ठिकाने लगाने गया था । वो पुलिस में रिपोर्ट करने की धमकी दे रहा था ।" मुनीराम ने मुस्कुराकर कहा।
"अब तक तो वो मगरमच्छों का भोजन बन गया होगा । श्रद्धानंद को आ जाना चाहिए।"
"आ जाएगा । पापों से मुक्ति पाने के लिए नदी में नहाने लग गया होगा ।" मुनीराम हंसा।
"फिर भी श्रद्धानंद को आ जाना चाहिए अब तक...।"
चिलम तैयार करके मुनीराम ने स्वामी ताराचंद को थमाई ।
स्वामी ताराचंद ने तगड़ा कश लिया ।
"प्यारेलाल से आज क्या बात हुई ?" मुनीराम बोला--- "वो घंटों आपसे बात करता रहा ।"
"प्यारेलाल का दिया माल कहां रखवाया है ?" एकाएक स्वामी ताराचंद ने पूछा ।
"अपने झोपड़े के बेसमेंट में।"
चिलम में स्वामी ताराचंद ने तगड़ा कश लिया फिर बोला ।
"प्यारेलाल के पास उम्दा चरस का जखीरा है ।"
"आपने देखा ?"
"सैंपल लाया था । ऐसा माल कभी-कभी ही हाथ लगता है ।" स्वामी ताराचंद मुस्कुरा पड़ा ।
"भाव क्या है ?"
"भाव हम तय करेंगे ।"
"पिछली बार भी भाव आपने तय किया था ।" मुनीराम वहां पर एक तख्त पर बैठ गया--- "प्यारेलाल को भाव कम लगा तो वो फैल गया था । इस बार भी भाव उसे कम लगा तो...।"
"तो भी वो माल हमें ही देगा--- "स्वामी ताराचंद हौले से हंसा और चिलम से एक साथ कश लिए--- "हमें नहीं देगा तो अपना माल वो किसी को नहीं दे पाएगा । इस बात का एहसास है उसे ।"
"समझा ।" मुनीराम के चेहरे पर जहरीली मुस्काना ठहरी--- "गर्दन पर छुरी लगा रखी होगी ।"
"कुछ भी समझो। जो एक बार हमारे साथ बिजनेस कर लेता है, फिर वो दूसरे के पाले में नहीं जा सकता । याद है, सुरेश, संत कबीरदास के आश्रम में पहुंच गया था, सौदा करने । पहले वो हमें माल देता था । मैंने सुदेश को संत कबीर दास के आश्रम से से बाहर नहीं निकलने दिया । वहीं पर मेरे आदमी ने मौका देखकर, गर्दन काट दी थी उसकी। ये बात प्यारेलाल को पता चली वो तो समझ गया कि किसी भी तरह हमसे पल्ला नहीं झाड़ सकता । बिलबिलाता ही रहेगा कि उसके माल की कीमत कम लगा रहे हैं हम । भागना उसके बस का नहीं है ।"
मुनीराम सिर हिलाने लगा ।
स्वामी ताराचंद ने चिलम से कश लिया । कुछ कहने लगा कि दरवाजे पर थपथपाहट हुई ।
मुनीराम ने तुरन्त उठकर दरवाजा खोला।
बाहर बस का ड्राइवर खड़ा था । हाथ में अखबार दबा रखी थी ।
"कहो बच्चा ?" मुनीराम ने मीठे स्वर में कहा ।
"स्वामी जी के दर्शन करने आया हूं ।" उसने दोनों हाथ जोड़कर कहा ।
"नि:संकोच आओ ।" मुनीराम कहते हुए पीछे हट गया ।
ड्राइवर हाथ जोड़े भीतर आया और स्वामी ताराचंद के चरणों में लेट गया।
"स्वामी जी की जय हो । जय हो ।"
"सदा प्रसन्न रहो । संसार की मोह माया से दूर होकर, भगवान के चरणों में तुम्हारी जगह बनी रहे ।" स्वामी ताराचंद ने आशीर्वाद दिया ।
वो सीधा हुआ । घुटनों के बल बैठता । हाथ में पकड़ा अखबार खोलकर बोला ।
"देखिए स्वामी जी । अखबार के पूरे तेज पर आपकी तस्वीर छपी है ।"
"हमारी तस्वीर ?" स्वामी ताराचंद ने फौरन अखबार लिया ।
पूरे पेज पर तस्वीर और आश्रम का ब्यौरा था। आश्रम में होने वाले सत्संग और प्रवचन का समय छपा हुआ था ।
"तुम्हें कहां से मिला ये अखबार ?"
"शहर गया था । वहां छपी तस्वीर देखी तो अखबार ले लिया ।" बस ड्राइवर ने कहा--- "स्वामी जी, एफ.एम. रेडियो पर भी आपका नाम बज रहा है । आज नौ बजे मैंने रेडियो खोला तो बीस सेकेण्ड के स्टाप में आपका नाम लेकर कहा जा रहा था कि अगर आप संसारी कार्यक्रमों से परेशान हो गए हैं तो मन की शांति और जीवन को अच्छा बनाने के लिए स्वामी ताराचंद के आश्रम में आइए । वहां आपको अपार सुख मिलेगा।"
"ये अनर्थ कौन कर रहा है । हमारी तस्वीर अखबारों में छप रही है । हमारा नाम रेडियो में बज रहा है । हम तो पाप के भागीदार बन रहे है मुनीराम । ये सब हम नहीं चाहते । कौन हमारे नाम को खराब कर रहा है ?"
"मैं मालूम करूंगा स्वामी जी ।" मुनीराम जल्दी से बोला।
"ये अनर्थ हमारे किसी शिष्य से ही हो रहा होगा । उसे रोक दो ।"
"अवश्य स्वामी जी ।" मुनीराम ने कहा फिर ड्राइवर से बोला--- "तुम जाओ ! स्वामी जी का मन खराब हो गया है । आराम करेंगे । तुम्हें जो बात करनी है वो बाद में कर लेना ।"
ड्राइवर में सिर हिलाया और स्वामी ताराचंद के चरणों को छूकर बाहर निकल गया ।
मुनीराम ने दरवाजा बंद किया और पास आके धीमे स्वर में कह उठा ।
"ये सब हमारे शिष्य उत्तमचंद ने मेरे कहने पर किया है।"
"मालूम है । हमें सब ज्ञान है ।" स्वामी ताराचंद मुस्कुरा पड़े--- "दूसरों के सामने तो कहना ही पड़ता है कि ये पब्लिसिटी हमारी अनिच्छा से हो रही है । उत्तमचंद से कहो कि वो कुछ और शिष्यों से कहकर पब्लिसिटी करवाए । आश्रम में ज्यादा लोग आएंगे । खूबसूरत महिलाएं भी होंगी । आश्रम में खूबसूरत महिलाओं की कमी हो रही है ।"
"उत्तमचंद को मैं खबर भिजवा दूंगा। आज आपका एक श्रद्धालु, आश्रम की सेवा के लिए अपनी पत्नी को यहां छोड़ने को...।"
"हां । अवश्य...अवश्य । वो आज शाम या कल सुबह अपनी पत्नी को अवश्य छोड़ जाएगा यहां।"
"वो बोल भी नहीं सकता है ।"
"कतई नहीं । जिस शिष्य के साथ श्रद्धानंद नदी पर गया है, उस शिष्य की बहन के साथ, उसने रात बिताई थी । इस बात की स्पष्ट तस्वीरें हमारे पास मौजूद हैं । वो हमारी किसी बात से इंकार नहीं कर सकता ।"
"ओह ! आप तो दूर की सोच लेते हैं स्वामी जी ।"
स्वामी ताराचंद कुछ कहने लगे कि तभी कमरे में मध्यम-सी आरती की धुन गूंज उठी।
"कितनी मधुर धुन है स्वामी जी ?" मुनीराम कह उठा ।
स्वामी ताराचंद जल्दी से उठा तो मुनीराम ने फौरन उसके हाथों से चिलम ले ली । आरती की धुन बराबर बज रही थी । स्वामी ताराचंद दीवार के पास रखे लकड़ी के बक्से के पास पहुंचा आवाज उसमें से आ रही थी । बक्से के ऊपर छोटा-सा गद्दा बिछाकर बैठने की जगह बना रखी थी । गद्दे को उसने सरकाकर नीचे गिराया और कपड़ों में फंसा रखी चाबी निकालकर झुकते हुए बक्से पर लटक रहा ताला खोलने लगा।
स्वामी ताराचंद की अपनी तरफ पीठ पाकर, मुनीराम ने हाथ में पकड़ी चिलम से तीन-चार कश इकठ्ठे लिए । तब तक स्वामी ताराचंद बक्से का ढक्कन खोल चुका था । भीतर वायरलैस सैट नजर आया । आरती की धुन उसमें से ही निकल रही थी । उसने जल्दी से हैडफोन उठाकर सिर पर रखा और वायरलैस सैट को छोड़ा।
"हैलो । हैलो ।" स्वामी ताराचंद के होंठों से मध्यम-सी से आवाज निकली ।"
"ताराचंद ।"
"ओह मैडम ।" स्वामी ताराचंद एकाएक सतर्क नजर आने लगा ।
"आश्रम में क्या हो रहा है ?" कमलेश का दबंग स्वर कानों में पड़ा।
"सब ठीक ढंग से हो रहा है ।" ताराचंद ने कहा--- "मैं आपसे बात करने ही वाला था ।"
"क्यों ?"
"हिमाचल में घई से सोलह करोड़ लेना है । परसों ये पेमेंट उससे ली जा सकती है ।"
"अच्छी बात है । हम आदमी भेज देंगे।"
"प्यारे लाल से चरस का सौदा किया जा रहा है । उम्दा चरस है । ऐसे में चरस खरीदने वाली कोई पार्टी मिल जाए तो माल ज्यादा दे रखने की सिरदर्दी खत्म हो जाएगी मैडम ।" स्वामी ताराचंद ने कहा ।
"राबर्ट से बात करो । वो कल ही चरस खरीदने हिन्दुस्तान आया है । वो हीरोइन चाहता है । किसी से उसकी हीरोइन बनवा लेगा । माल उसे पसन्द आया तो रोबर्ट कीमत अच्छी दे देगा ।"
"माल उसे पसन्द आएगा । रोबोट से किस नम्बर पर बात करूं मैडम ?"
"पुराना वाला ही नम्बर है उसका ।"
"आज रात ही उससे बात कर लूंगा ।"
"आश्रम में कोई गड़बड़ है ?"
"नहीं मैडम । यहां सब कुछ ठीक ढंग से चल रहा है ।"
कुछ पलों की चुप्पी के बाद कमलेश की आवाज स्वामी ताराचंद के कानों में पड़ी ।
"कल और आज में, आश्रम में कौन-कौन नए लोग आए हैं ?"
"मैडम ! इस बात का ज्ञान तो मुझे भी नहीं हो सकता । आश्रम में तो नए और पुराने चेहरे आते रहते हैं । आने वाले मेरे चेलों से मिलते हैं और प्रवचन के दौरान दूर से मेरे दर्शन करके चले जाते हैं । मैं तो उसी से मिलता हूं, जिससे जरूरी लगे मिलना।"
"मतलब की नए आने वालों की कोई खबर नहीं ?"
"नहीं मैडम । जरूरी हो तो पता लगवाऊं ?"
"कोई जरूरत नहीं । तुम सतर्क रहो । फिर बात करूंगी।"
बातचीत खत्म होने पर वायरलैस सैट बंद किया और फिर पेटी को पहले की तरह करके वापस आ बैठा । मुनीराम ने चिलम थमाते हुए कहा ।
"मैडम से बात हुई, स्वामी जी ?"
"हां । सतर्क रहने को कहा है । लगता है यहां गड़बड़ हो सकती है । मैडम ने स्पष्ट नहीं बताया ।" स्वामी ताराचंद ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मैडम, आश्रम में आने वाले नए चेहरों के बारे में पूछ रही थी ।"
दोनों की नजरें मिली ।
"मैं अभी आश्रम में नए चेहरों के प्रति सबको सतर्क कर देता हूं।"
"यहां से जाते ही पहला काम यही करना ।" उसके साथ ही स्वामी ताराचंद ने कश लिया ।
"बस अभी जा रहा हूं स्वामी जी ।" मुनीराम बोला--- "इस चरस का स्वाद कैसा है ?"
"चैक कर रहा हूं ।"
"मेरे ख्याल में तो बहुत उम्दा चरस है ये ।"
स्वामी ताराचंद ने घूरा, मुनीराम को ।
"तुमने अभी इस चिलम का इस्तेमाल किया ?"
"कैसी बातें करते हैं स्वामी जी ?"
"मुनीराम, इस वक्त मैं स्वामी हूं और तुम मेरे चेले । मेरी चीजों का इस्तेमाल मत किया करो । कोई देख लेगा तो यूं ही शक करेगा । हमें आपस में फर्क रखना है ।" स्वामी ताराचंद ने धीमे स्वर में कहा ।
"सो तो है, स्वामी जी।"
"रात को फोन पर राबर्ट से बात करना ।"
"राबर्ट ।" मुनीराम के होंठों से निकला--- "हिन्दुस्तान में ?"
"हां । कल ही वो हिन्दुस्तान आया है । बढ़िया माल चाहता है । प्यारेलाल का माल उसे टिका देंगे ।"
"माल तो बढ़िया है प्यारे लाल का । एक काश में ही मजा आ गया ।"
"स्वामी जी ताराचंद ने मुनीराम को घूरा । मुनीराम गहरी सांस लेकर रह गया । फिर कह उठा ।
"स्वामी जी ! आप आराम कर लीजिए । चार बजे प्रवचन और संदेश के लिए आपने श्रद्धालुओं के सामने जाना है।"
"तुम आश्रम में सबको सतर्क रहने के लिए कह दो । नए चेहरों पर नजर रखी जाए ।"
मुनीराम ने सिर हिलाया ।
"मुझे बताना, राबर्ट क्या कहता है ।"
"जी ।" मुनीराम बोला--- "मैं चलूं ?"
"हां, लेकिन अभी तक श्रद्धानंद नहीं आया वो उस व्यक्ति के साथ नदी पर गया था । उसे...।"
"आ जाएगा स्वामी जी । शायद आ गया हो । आश्रम में हो।"
"लेकिन उसे सीधा मेरे पास आना चाहिए था ।"
"वो आया होगा तो उसे भी अभी आपके पास भेज देता हूं ।"
मुनीराम चला गया।
स्वामी ताराचंद ने दरवाजा खुला ही रहने दिया और चिलम से एक के बाद एक कश लगाने लगा । नशे के कारण उसकी आंखें लाल होने लगी थी ।
तभी दरवाजे पर आहट हुई ।
स्वामी ताराचंद ने सिर घुमाकर पीछे देखा तो एक चेले को भीतर प्रवेश करते पाया ।
"आ ।" स्वामी ताराचंद मस्ती भरे आवाज में कह उठा--- "ये ले चिलम। ट्रे में रख दे ।"
चेले ने चिलम लेकर ट्रे में रखी फिर करीब आकर धीमे स्वर में बोला ।
"स्वामी जी ! मुनीराम ने बुलावा भेजा है कि श्रद्धानंद अभी तक नहीं आया ।"
"नहीं आया ।" स्वामी ताराचंद ने नशे से लाल हो रही आंखें बंद की--- "हूं । इंतजार करो । जब आए तो खबर करना ।"
"जी ! मुनीराम कह रहा था कि श्रद्धानंद को नदी किनारे देख आऊं ।"
"क्या जरूरत है । वो बच्चा नहीं कि उसे ढूंढने जाना पड़े- आ जाएगा । तुम जाओ । चार बजने में पन्द्रह मिनट में हमें जगा देना । श्रद्धालुओं को हमने ज्ञान की शिक्षा देनी है ।" कहने के साथ ही वो बैड पर लेट गया ।
चेला बाहर निकल गया।
■■■
फोन की बेल हुई ।
पारसनाथ बाथरूम में था । महाजन ने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया ।
"हैलो ।"
"साहब जी नमस्कार ।" आवाज आई--- "मैं आपका सेवक कॉन्स्टेबल सुखराम ।"
"कहो ।"
"मैंने तो ये जानने के लिए फोन किया था कि आप होटल में हैं कि नहीं- जो खबर देनी है, वो तो आपके पास आकर ही दूंगा । नगद नारायण भी लूंगा ।"
"कब तक आ रहे हो ?" महाजन ने पूछा ।
"कब तक क्या । नगद नारायण का मामला है । बस, पहुंचा ही पहुंचा ।"
महाजन ने रिसीवर रख दिया ।
पारसनाथ बाथरूम से निकला । वो नहाकर आया था ।
"किसका फोन था ?" पारसनाथ ने पूछा ।
"कॉन्स्टेबल सुखराम का । इंस्पेक्टर सुनील नेगी के बारे में कोई खबर देगा ।" महाजन ने कहा ।
"तीन दिन पहले भी हमें बेवकूफ बनाकर, पैसे वसूलने के लिए यूं ही खबर ले आया था ।"
महाजन ने टेबल पर रखी बोतल उठाकर घूंट भरा ।
"मेरे ख्याल में अब वो ऐसी बेवकूफी नहीं करेगा । आ रहा है, देख लेते हैं।"
पन्द्रह मिनट में ही कॉन्स्टेबल सुखराम वहां था ।
"दो दिन बीच में आपको ना देखूं तो दिल बेचैन होने लगता है ।" कॉन्स्टेबल सुखराम बैठता हुआ, कुछ ज्यादा ही मुंह खोल कर मुस्कुराया--- "अब मन को चैन मिल रहा है ।"
"पहले की तरह अब फिर कोई झूठी खबर लेकर आए हो।" पारसनाथ ने अपने खुरदरे गालों पर हाथ फेरा ।
"क्या बात करते हो साहब जी ?" कॉन्स्टेबल सुखराम कह उठा--- "खबर तो वो भी सही थी, ये जुदा बात है कि आपके गले से नीचे नहीं उतरी । लेकिन इस बार की खबर पर तो सरकारी मोहर लगी है ।"
"बोलो ।" महाजन की नजरें उस पर जा टिकी ।
"ऐसे नहीं साहब जी । पैले हिसाब हो जाना चाहिए ।"
"कैसा हिसाब ?"
"मैं आपको इंस्पेक्टर नेगी के बारे में खबरें दे रहा हूं और हर बार आप लोग कहते हैं कि ये खबर हमारे काम की नहीं । आपके काम की खबर कोई भी नहीं होगी तो क्या मैं जिंदगी भर मुफ्त सेवा करता रहूंगा । आप मुझे नोट दीजिए । आपने कहा था कि रोज का सौ रुपया और खास खबर के नोट अलग से । सौ रुपए के हिसाब से अब तक हुए पांच सौ रुपये और जो खबर लाया हूं उसके हजार अलग से ।"
"खबर क्या है ?"
"ऐसे नहीं बताऊंगा । वरना हर बार की तरह कहोगे कि खबर आपके काम की नहीं । आज के बाद हर खबर के हजार रुपये लूंगा। बेशक वो छोटी खबर हो या बड़ी । सौ रुपये रोज के अलग से।"
महाजन और पारसनाथ की नजरें मिली । फिर गहरी सांस लेकर महाजन ने जेब से नोट निकाले और पन्द्रह सौ रुपये कॉन्स्टेबल सुखराम को दिए ।
नोट सुखराम की जेब में पहुंच गए ।
"माल जेब में पहुंचे तो बातचीत का मजा आता है ।" कॉन्स्टेबल सुखराम दांत फाड़कर बोला--- "कुछ खाना-पीना हो जाए तो बात का मजा और भी बढ़...।"
"तुम नगद पैसे ले चुके हो । खाने-पीने का हक गंवा दिया है । बाहर जाकर खा लेना । होटल में तुम्हारे पर खर्चा करना ठीक नहीं।
"जैसी आपकी मर्जी ।" कांस्टेबल सुखराम बोला--- "मालिकों के माल को म्हारे का तो खाना ही है । तो अब खबर ये है कि चार घंटों के बाद इंस्पेक्टर सुनील नेगी साहब, मध्य प्रदेश के घने जंगल में जा रहे हैं ।"
"मध्य प्रदेश के जंगल में ?" पारसनाथ के माथे पर बल दिखाई दिए ।
"हां । खबर है कि हिमाचल प्रदेश में हो रही तस्करी और मादक पदार्थों के धंधे से जुड़े लोग इस वक्त मध्यप्रदेश में हैं ।"
महाजन के चेहरे पर सोच के भाव आ ठहरे थे ।
"मध्य प्रदेश में कहां ?"
कॉन्स्टेबल सुखराम ने बताया कि मध्य प्रदेश में कहां, फिर बोला ।
"उधर कोई आश्रम है । किसी स्वामी ताराचंद का । खबर है कि आश्रम के लोग ही हिमाचल में मादक पदार्थों की होने वाली तस्करी से जुड़े हैं । वैसे नेगी साहब उसी खबर पर काम करते हैं जो पक्की हो ।"
"नेगी, मध्य प्रदेश के इसी आश्रम पर जा रहा है ?"
"हां ।"
"दिल्ली से आया इंस्पेक्टर कहां है ?"
"मोदी साहब ?"
"बिलासपुर में ही रुके हुए हैं । सरकारी आवास में मजे से रह रहे हैं ।"
"वो भी नेगी के साथ जा रहे हैं ?"
"मालूम नहीं।"
"मोदी का फोन नम्बर है ?"
"फोन नम्बर बताने के सौ रुपये अलग से लगेंगे ।"
सौ रुपये लेकर उसने मोदी का नम्बर बताया ।
"चलते बनो यहां से। कोई खबर हो तो फिर आना ।"
"नगद-एडवांस में रोकड़ा लूंगा ।"
"मिलेगा ।"
कॉन्स्टेबल सुखराम चला गया ।
"इंस्पेक्टर नेगी, मादक पदार्थों के तस्करों के पीछे मध्य प्रदेश जा रहा है । इसका मतलब बेबी के मामले से पीछे हट गया है ।"
"हो सकता है, ऐसा ही हो ।" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
"हम तो सोच रहे थे कि नेगी के माध्यम से हमें बेबी की खबर मिलेगी ।" महाजन के चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे--- "इंस्पेक्टर नेगी का इस तरह मोना चौधरी के मामले से हट जाना, समझ नहीं आ रहा ।" कहने के साथ ही महाजन फोन के पास पहुंचा और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगा ।
जल्द ही मोदी से बात हुई ।
"मोदी ।"
"तुम ?" इंस्पेक्टर मोदी की आवाज आई--- "मेरा ख्याल ठीक था कि तुम वापस दिल्ली नहीं गए होगे ।"
"बेबी की राजी-खुशी की जानकारी मिले बिना हम वापस नहीं लौट सकते ।" मोदी ने कहा ।
"पारसनाथ भी साथ ही है ।"
"हां ।"
"कहो ?"
"इंस्पेक्टर नेगी मध्य प्रदेश के जंगलों में, किसी स्वामी ताराचंद के आश्रम जा रहा है ?"
"तुम्हें कैसे मालूम ?"
"मालूम हो गया । नेगी की हरकतों पर नजर रख रहा हूं ।"
"ओह ! ठीक कहा तुमने । सुनील नेगी मध्य प्रदेश जा रहा है । मैं भी साथ हूं ।"
"तुम भी ?" महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे--- "कल तक तो तुम लोग बेबी की तलाश में थे ।"
"वो तो अब भी हैं । सुनील नेगी मोना चौधरी की जिंदगी-मौत की तस्वीर जाने बिना आराम से नहीं बैठेगा ।" मोदी की आवाज कानों में पड़ी--- "नेगी हाथ पर हाथ रखकर बैठने वालों में से नहीं है।"
"ऐसा है तो फिर सुनील नेगी मध्यप्रदेश क्यों जा रहा है ?"
"जरूरी है । बल्कि उसके कहने पर मैं भी उसके साथ चल रहा हूं । इधर उसके आदमी पूरे हिमाचल में फैले मोना चौधरी को तलाश कर रहे हैं । हिमाचल के हर पुलिस बैरियर पर मोना चौधरी के चेहरे का स्कैच पहुंच चुका है । वो आसानी से पहचान लेंगे । मध्य प्रदेश से हम जल्दी ही वापस आ जाएंगे । शायद तीन-चार दिन में ।"
"बेबी की कोई खबर नहीं मिली कि वो...।"
"मोना चौधरी जिंदा है । उसे कुछ हुआ होता तो तस्वीर का रुख सामने आ जाता ।"
"लेकिन वो है कहां ?"
"क्या मालूम ?" मोदी के गहरी सांस लेने का स्वर सुनाई दिया--- "इंस्पेक्टर सुनील नेगी ने अभी बात तो नहीं हुई, वो व्यस्त है जैसी ही किसी युवती ने बताया कि मोना चौधरी या मोना चौधरी जैसी ही किसी युवती को भून्तर के होटल में देखा गया है । जिसका मालिक अजब सिंह है ।"
"अजबसिंह ?"
"हां। भून्तर में दो और मनाली में एक होटल है । शरीफ होकर भी शरीफ नहीं है । हिमाचल पुलिस की निगाहों में, वो गलत काम करता है परन्तु उसके गलत कामों की आज तक पुष्टि नहीं हो सकी । उसके होटल में मोना चौधरी देखी गई है। सुनने में आया, कि अजब सिंह का बेटा संजीव सिंह जिस लड़की को लेकर होटल में आया, जिसके साथ वो शादी करना चाहता था, वो मोना चौधरी ही है । परन्तु ये बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी । पुलिस वाले मोना चौधरी का स्कैच लेकर चोरी-छिपे भून्तर जाकर, पूछताछ करने वाले हैं। उसके बाद की ये खबर है कि अजब सिंह का बेटा संजीव सिंह वो और लड़की यानी मोना चौधरी, मध्य प्रदेश गए है ।"
"मध्य प्रदेश ?" महाजन के होंठों से निकला ।
"हां ।"
"मध्य प्रदेश क्या वहीं, जहां सुनील नेगी जा रहा है ?"
"ये बात स्पष्ट नहीं है ।" मोदी की आवाज आई--- "अभी तक तो ये स्पष्ट नहीं है कि वो वास्तव में मोना चौधरी ही है ।"
महाजन गहरी सोच में नजर आने लगा।
पारसनाथ की निगाह, महाजन पर ही थी ।
"क्या हुआ ?"
"पारसनाथ ।" महाजन के होंठ खुले--- "कॉन्स्टेबल सुखराम, वानखेड़े और अन्य पुलिस वालों से भी हमें यही पता चला कि इंस्पेक्टर सुनील नेगी अपने इरादों का पक्का है । एक काम पूरा किए बिना, दूसरा काम नहीं पकड़ता और इस वक्त उसके सामने मुख्य काम बेबी के बारे में पता लगाना था कि वो जिंदा है तो कहां है । मर गई तो लाश किधर है । परन्तु वो सारा काम छोड़कर मध्य प्रदेश के जंगलों में जा रहा है । यानी कि उसके पास पक्की खबर होगी कि अजब सिंह के बेटे संजीव सिंह के साथ, बेबी ही स्वामी ताराचंद के आश्रम पर, मध्य प्रदेश गई है।"
"वहां क्या हो सकता है ?" पारसनाथ के होंठ हिले ।
"कोई तो बात होगी ही, जो बेबी वहां गई ?"
पारसनाथ के सपाट-खुरदरे चेहरे पर सोच के भाव ठहरे ।
महाजन ने बोतल उठाकर घूंट भरा फिर बोतल वापस रखकर बोला ।
"कॉन्स्टेबल सुखराम, मध्य प्रदेश के जंगल का उस जगह का नक्शा दे गया है, जहां स्वामी ताराचंद का आश्रम है । वहां चलते हैं । अगर वहां कुछ न हुआ तो वापस लौट आएंगे या सुनील नेगी और मोदी को तलाश करके उन पर नजर रख सकते हैं कि, वो क्या कर रहे हैं । जो भी हो, एक बार वहां जरूर जाना चाहिए ।"
"हममें से एक यहां रहे तो क्या हर्ज है ।" पारसनाथ ने कहा ।
"कोई हर्ज नहीं । लेकिन यहां क्या किया जाएगा । इधर एक के रहने का फायदा क्या है ?"
पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा ।
"दोनों ही वहां चलते हैं ।" महाजन बोला ।
"कोई एतराज नहीं । कब चलें ?"
"अभी।"
"चलो । अजबसिंह के बारे में हमें जानकारी मालूम करनी चाहिए ।" पारसनाथ ने कहा ।
"क्यों ?"
"उसके बेटे के साथ है मोना चौधरी । अजब सिंह के बारे में सुनने में आया है कि वो गैरकानूनी काम करता है । ऐसा तो नहीं कि संजीव सिंह अपने बाप के साथ मिलकर गैरकानूनी काम करता हो।"
"अभी कुछ नहीं कहा जा सकता । बेबी उसके साथ हैं तो यकीनन कोई खास बात होगी ही ।"
पारसनाथ उठ खड़ा हुआ ।
"चलो । स्वामी ताराचंद के आश्रम में चलते हैं ।"
"पुलिस के मुताबिक आश्रम की आड़ में मादक पदार्थों का काम-धंधा होता है ।"
"जरूर होता होगा । पुलिस तभी अपने मुंह से बाहर निकालती है, जब बात पक्की होती है ।
"फिर तो कहा जा सकता है कि मोना चौधरी पहुंची हो सकती है । उधर कुछ खास ही होगा।"
■■■
शाम के पांच बज रहे थे ।
स्वामी ताराचंद के आश्रम में, उस मकान के बाहर, स्वामी जी के दर्शन करने आए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कतारों में बैठे वहां मौजूद थे । मकान के भीतर एक कमरे में श्रद्धालुओं की कतारें निकल रही थी और दूर तक जा रही थी । कहीं पेड़ थे, छाया थी तो कहीं खुला मैदान । धूप में तप रहे थे लोग । चार बजे स्वामी जी ने आना था, परन्तु आज देर हो गई थी । एक घंटे से लोग धूप-छांव में बैठे थे।
आश्रम के सेवक श्रद्धालुओं को ठंडा पानी पिलाने में व्यस्त थे ।
सैकड़ों लोग होने पर भी वहां चुप्पी सी थी ।
शांत और पवित्र सा माहौल महसूस हो रहा था ।
जिस कमरे में लोग बैठे थे । उसी कमरे में स्वामी जी ने आकर प्रवचन देना था। ऐसे में उस कमरे में बैठे श्रद्धालु वो ही थे, जिन्होंने आश्रम में मोटी-मोटी रकमें दान की थी या अपने परिवार वालों को आश्रम की सेवा में दिन-रात के लिए छोड़ रखा था । वहां माइक था और बाहर जगह-जगह स्पीकर लगे थे कि सब श्रद्धालु प्रवचन सुन सकें।
पांच के ऊपर ही पांच मिनट हुए थे कि स्वामी जी ने वहां प्रवेश किया।
वहां बैठे लोग स्वामी जी के चरण छूने लगे ।
स्वामी ताराचंद उनकी परवाह न करके माईक के पास पहुंचा । उसकी आंखें बता रही थी कि वो कुछ देर पहले ही गहरी नींद लेकर उठा था । पांवों को छूने वाले लोगों की तरफ उसका ध्यान नहीं था । साथ ही चार शिष्य भी आए थे । जो कि वहीं पास ही, बिखरकर खड़े हो गए थे।
स्वामी ताराचंद ने माईक संभाला और वहां बैठे श्रद्धालुओं को देखा फिर दरवाजे से बाहर जाती, नजर आती लम्बी-लम्बी कतारों पर नजर मारी।
"आप सबको मेरा नमस्कार । मुझे खुशी है कि सांसारिक कामों से वक्त निकालकर आप लोग यहां आए । अगला जन्म अच्छा करने के लिए, इस जन्म में भगवान का नाम लेना शुद्ध कार्य है । मैं उन श्रद्धालुओं को ये बात अवश्य कहूंगा, जो मुझे भगवान कहते हैं । कृपया वो ऐसा न करें । भगवान का नाम खराब न करें । हम तो भगवान के भेजे बन्दे हैं । आप सब सांसारिक कार्य में व्यस्त हो गए और भगवान ने मुझे काम पर लगा दिया कि सांसारिक कार्यों को करने वालों को मोक्ष का रास्ता दिखाता रहूं। मेरे बच्चों-जीवन बहती नदी के समान है । कुछ भी तेरा नहीं। कुछ भी मेरा नहीं । अपने शरीर से इतना प्यार मत करो कि दूसरे इसे छू भी न सकें । अपने शरीर को दूसरों की सेवा में लगाओ । स्त्री हो या पुरुष, अपने शरीर का दान दूसरों को देकर, अगले जन्म को सफल बनाओ । भगवान ने तुम्हें शरीर दिया है कि इससे दूसरों की जी भरकर सेवा करो । लेकिन आज इंसान ने अपने ही नियम बना लिए हैं । शारीरिक संबंध के लिए शादी करने लगे हैं । जबकि स्त्री पुरुष बनाते समय भगवान ने सबको यही कहा था कि इस शरीर का ज्यादा से ज्यादा उपभोग करो। शरीर से श्रम करो । मेरे पास तक पहुंचना चाहते हो तो शरीर का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करो । लेकिन अब भगवान देख रहा है कि इंसान उसके बनाए शरीर का उपयोग नहीं कर रहा है। स्त्री और पुरुष ब्याह करके, एक-दूसरे के होकर रह जाते हैं । ऐसे में वे शरीरों का उपभोग ठीक से नहीं कर पाते । यही वजह है कि कलयुग का आरंभ हो चुका है । भगवान चाहता है कि अपना शरीर एक-दूसरे को देकर उपकार करो । इससे प्रेम भाव बढ़ता है । शरीर में अगर थकान हो तो भगवान ने धरती पर ऐसी चीजें पैदा कर रखी है कि उसका सेवन करके आप, भगवान को अपने करीब महसूस कर सकते हैं । हर चीज आपके शरीर के गिर्द ही चक्कर काटती है। शरीर के कर्मो को रुकने मत दीजिए । अपने शरीर से आप भला करेंगे तो पुनः आपको शरीर मिल सकता है । दूसरा जन्म मिल सकता है । परन्तु अज्ञानी लोग ये बात नहीं समझ सकते ।"
"स्वामी जी की जय ।" सामने बैठा व्यक्ति एकाएक ऊंचे स्वर में कह उठा । जो कि स्वामी का ही गुर्गा था ।
"जय ।" दूसरी आवाज उभरी ।
"स्वामी जी की जय ।" तीसरी आवाज बाहर से उभरी।
उसके बाद तो स्वामी जी की जय-जय के स्वर जैसे आकाश को छूने लगे ।
मिनट भर यही आवाज आती रहीं ।
तभी स्वामी ताराचंद के इशारे पर एक चेला माईक पर पहुंचा और बार-बार कहकर उसने लोगों को शांत कराया।
स्वामी ताराचंद ने पुनः माईक संभाल लिया ।
"आप सबने अपने साथ-साथ मेरा ही नहीं, अपना समय भी नष्ट किया । अगर यही वक्त आप लोग भगवान को याद करने में लगाते तो भगवान से यकीनन कुछ हासिल कर लेते । मैं तो आपकी ही तरह मनुष्य हूं । तो मैं आप सबसे कह रहा था कि अपने शरीर का ज्यादा इस्तेमाल कीजिए और दूसरे को भी करने दीजिए। थकान महसूस हो तो धरती पर पैदा हुई चीजों का सेवन करके, खुद को मुक्ति के करीब महसूस करें । मैं एक बार फिर कहूंगा कि एक-दूसरे के शरीर के इस्तेमाल से आप जो आनंद महसूस करेंगे, वो आनंद आपको भगवान के करीब ले जाएगा । दुनिया की चिंताओं से आप मुक्ति पा सकोगे । नई और सुखद दुनिया में खुद को पाएंगे आप । अपने शरीर का आप इस्तेमाल करके भगवान के करीब पहुंच जाइए । इस बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो आश्रम के सेवक संघ से आप लोग जानकारी ले सकते हैं । आपकी हर समस्या को दूर किया जाएगा । हम चाहते हैं कि आप स्वयं को भगवान के करीब महसूस करें । ऐसा हुआ तो हमें खुशी महसूस होगी कि, मैंने जो मेहनत की, वो सफल रही।"
"स्वामी जी की जय ।"
"जय हो ।"
"हमें अच्छा रास्ता दिखाने वाले की जय हो ।"
"मैं नहीं चाहता कि आप लोग मेरी जय करो ।" स्वामी ताराचंद ने कहा--- "भगवान के गुण गाओ और मेरे संग जिंदगी के क्षणों को खूबसूरत बनाओ । मीठे बोल बोलो । भगवान के गुण गाओ और अपने शरीरों को ज्यादा घिसो कि भगवान भी देखे और सोचे कि इस इंसान को मैंने फिर से शरीर देना है, क्योंकि मेरे दिए शरीर का इसने, उचित उपयोग किया है । किन्तु...।"
तभी मुनीराम ने भीतर प्रवेश किया और करीब पहुंचकर स्वामी ताराचंद के कान में कुछ कहा । स्वामी ताराचंद के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे । जल्दी ही उसने खुद को सामान्य बना लिया । परन्तु व्याकुलता उसके चेहरे पर रही । वहां बैठे लोगों और बाहर लोगों की कतार को देखते हुए स्वामी ताराचंद ने कहा।
"श्रद्धालुओं ! अभी-अभी मेरे शिष्य ने मुझे समाचार दिया है कि, मेरे एक शिष्य का शरीर और अस्वस्थ हो गया है । उसके पास जाना जरूरी है । ताकि उसके शरीर को जल्दी से ठीक कर सकूं कि वो अपने शरीर से अन्य काम ले सके । आरती का समय भी होने वाला है । शेष सभी कार्य मेरे शिष्य पूरा करेंगे।"
तभी दो शिष्य समीप आए और माईक के पास खड़े हो गए ।
पीछे के दरवाजे से स्वामी ताराचंद मुनीराम बाहर निकल गए ।
"क्या हुआ श्रद्धानंद को ?" स्वामी ताराचंद ने दबे स्वर में कहा ।
"अभी-अभी आया है । बहुत बुरे हाल में है ।"
■■■
उसे होश आया तो उसने देखा वो युवक और युवती पास ही बैठे हैं । उसने जल्दी से उठना चाहा तो दांत भींचकर संजीव सिंह ने उसे नीचे दबा दिया । वो साधू छटपटा उठा।
"इस बार तो तुझे माफ कर दिया, जो तूने ब्लेड से मुझे मारना चाहा ।" संजीव सिंह के होंठों से खतरनाक स्वर निकला--- "अगर अब कुछ भी गलत हरकत करने की कोशिश की तो तेरे टुकड़े करके नदी में फेंक दूंगा ।"
साधू अचकचाकर रह गया।
"क्या नाम है तेरा ?" संजीव सिंह गुर्राया । उसने होंठ भींच लिए।
तभी मोना चौधरी का हाथ घूमा और जोरदार चांटा उसके गाल पर पड़ा ।
साधू का सिर झनझना उठा ।
मोना चौधरी ने अपने कपड़ों में से साइलेंसर लगी रिवॉल्वर निकाली और नीचे लेटे साधू के पेट से लगा दी ये देखकर साधु के चेहरे का रंग फक्क पड़ गया । उसने एक साथ कई बार सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"नाम बोल ।" नाल का दबाव पेट पर बढ़ाकर मोना चौधरी गुर्रा उठी।
"श्रद्धानंद ।" वो जल्दी से बोला ।
"यहां क्या कर रहा है ?"
"मैं स्वामी ताराचंद के आश्रम में रहता हूं । उधर है आश्रम ।" उसने हाथ से एक तरफ इशारा किया ।
"उस आदमी को तुमने क्यों मारा ?"
"वो मूर्ख था ।"
"उसकी मूर्खता बता ।"
"उस-उसकी बहन को स्वामी जी ने आश्रम की सेवा में ले लिया था।" श्रद्धानंद ने जल्दी से कहा--- "इस पर वो ऐतराज उठा रहा था कि पुलिस को खबर कर देगा । बहुत समझाया उसे । नहीं माना तो उसे मार दिया ।"
"आश्रम की सेवा में रहकर उसकी बहन क्या करती है ?" मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया।
श्रद्धानंद चुप रहा ।
"बोल ।" मोना चौधरी गुर्राई ।
"उसका काम स्वामी जी के साथ सोना था । बाद में स्वामी जी ने उसे आश्रम के शिष्यों को सौंप...।"
उसी पल मोना चौधरी का जोरदार चांटा उसके गालों पर लगा ।
"मां-बहनों की ये इज्जत करते हो तुम लोग । आश्रम की आड़ में गंदा खेल खेलते हो ।"
"वो चुप रहा । सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"कौन है तुम्हारा स्वामी ?"
"स्वामी ताराचंद।"
"और क्या-क्या होता है आश्रम में ?"
"क-कुछ नहीं ।"
"ऐसे आश्रम में एक काम गलत होता है तो चार और भी गलत काम होते होंगे ।" संजीव सिंह ने कड़वे स्वर में कहा ।
श्रद्धानंद कुछ नहीं बोला ।
"मुझे पूरा विश्वास है कि आश्रम की आड़ में कई गंदे काम होते होंगे ।" मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी--- "आश्रम में जाकर ही इन बातों को चैक कर सकेंगे । ये हमें दो बातें बताएगा तो चार छिपा लेगा ।"
"सच कह रही हो सुधा । ये बातें तो हमें आश्रम में पहुंचकर ही मालूम होंगी।" संजीव सिंह ने कहा--- "लेकिन असल में हम तो यहां दूसरे काम के लिए ही आए हैं ।"
"कौन हो तुम लोग ?" स्वामी श्रद्धानंद ने हिम्मत करके पूछा ।
"तेरे को जानने की जरूरत नहीं कि हम कौन हैं । ये बता ताराचंद कौन है ?" मोना चौधरी सख्त स्वर में बोली ।
"ताराचंद ?"
"स्वामी ताराचंद ?"
"मैं...मैं नहीं जानता ।" श्रद्धानंद में जल्दी से कहा--- "मैं तो पांच हजार तनख्वाह, खाना-पीना और रहने पर काम करता हूं ।"
"तो तुम नौकरी पर हो ।"
"हां ।"
एकाएक संजीव सिंह गुर्राया ।
"सच बता और क्या-क्या होता है आश्रम में ?"
"मैं नहीं जानता । मेरा काम तो स्वामी ताराचंद का हुक्म मानना है । आश्रम में आने वाली खूबसूरत औरतों को स्वामी जी अपनी सेवा में लेने की कोशिश करते हैं। या जो आश्रम में आते हैं, उनकी पत्नियों-बहनों को आश्रम की सेवा में लेने की कोशिश की जाती है । उसके साथ पहले स्वामी जी रातें बिताते हैं और जब मन भर जाता है तो उन्हें शिष्यों के हवाले कर देते हैं। जिस औरत के बच्चा न हो रहा हो तो उसके परिवार वालों की रजामंदी पर उस औरत को दो महीने के लिए आश्रम की सेवा के लिए रख लेते हैं और जब वो गर्भवती हो जाती है तो, दो महीने बाद औरत को उसके परिवार वालों के हवाले कर दिया जाता है।"
"गंदगी का ढेर है आश्रम । जो स्वच्छ लोग भूल से आ जाते हैं, उन्हें भी तुम लोग गंदा करने की कोशिश...।"
"स्वामी जी का हुकुम ही सबके लिए, सब कुछ है । आप दोनों पुलिस में हैं ?" श्रद्धानंद ने पूछा।
"हम तेरे को क्या पुलिस वाले लगते हैं ।" संजीव सिंह गुर्राया ।
"मैंने समझा पुलिस वाले हो आप दोनों...।"
"अजब सिंह को जानते हो ?" एकाएक मोना चौधरी ने पूछा ।
"अजब सिंह ?" श्रद्धानंद के होंठों से चौंका-सा स्वर निकला।
"भून्तर में रहता है अजब सिंह । हमें पता चला है कि वो यहां आता है । हम सिर्फ उसके लिए यहां आए हैं । अगर उसे जानते हो तो, उसे हमारे हवाले कर दो । हम चले जाएंगे । वरना तुम्हारे आश्रम की सब पोल खोल देंगे।"
"अजबसिंह । शायद नाम तो सुन रखा है ।" श्रद्धानंद ने अपने को सामान्य कर दिया था--- "लेकिन कुछ याद नहीं आ...।"
"ये सब जानता है ।" दांत पीसते हुए संजीव सिंह उस पर झपटा और उस पर लात-घूंसे बरसाने लगा।
श्रद्धानंद को संभलने-बचने का मौका ही नहीं मिला ।
मोना चौधरी ने भी नहीं टोका ।
एक डेढ़ मिनट में ही संजीव सिंह ने उसका बुरा हाल कर दिया । वो चीखता-चिल्लाता रहा । परन्तु बचाने कौन आता । जब संजीव सिंह रुका तो श्रद्धानंद हांफ रहा था।
"इसे घसीट कर बाहर ले जाओ ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी उठी और बाहर निकल गई।
संजीव तो ऐसी किसी बात के लिए जैसे तैयार था । वो फौरन झुका और श्रद्धानंद की टांग पकड़कर खींचता हुआ टैंट से बाहर की तरफ बढ़ा । चेहरे पर कठोरता उभरी हुई थी ।
"ऐसे मत खींचो । दर्द होती है । मुझे छोड़ दो । मैं तुम्हारे साथ चलता...।"
"साले ।" दांत किटकिटा उठा संजीव सिंह--- "तुझे घसीट कर बाहर ले जाना है ।" इतने में उसे घसीटता हुआ बाहर तक आ गया था । श्रद्धानंद की धोती अस्त-व्यस्त हो रही थी । वो थका-टूटा सा लगने लगा था। संजीव सिंह की ठुकाई ने उसके चेहरे पर नीले निशान डाल दिए थे । एक आंख में सूजन आ गई थी । होंठ फटकर, खून से लाल हो रहा था । उसकी नजर मोना चौधरी पर पड़ी तो मन ही मन सहम उठा।
मोना चौधरी का चेहरा खतरनाक भावों से भरा हुआ था । वो उसे घूर रही थी । हाथ में दबी रिवॉल्वर को वो रह-रहकर देख लेता था। तभी संजीव सिंह बोला ।
"सुधा । ये नम्बरी हरामी है । मार दे गोली।"
"नहीं ।" श्रद्धानंद हड़बड़ाकर चीखा--- "मुझे मत मारना । मैं मरना नहीं चाहता ।"
"मरना तो वो भी नहीं चाहता था, जिसे तूने मगरमच्छों के सामने फेंक दिया । कौन कहेगा, मैं मरना चाहता हूं । मुझे मार दो ।" मोना चौधरी की आवाज में ऐसे भाव थे कि वो और भी सहम गया ।
"अब नहीं मारूंगा किसी को मैं...मैं...।"
"मैंने तेरे से अजब सिंह के बारे में पूछा था ।" मोना चौधरी को शब्दों को चबाकर कह उठी--- "तूने अजबसिंह का नाम सुना तो चौंका था । मतलब कि तू जानता है अजब सिंह को ?"
"न...हीं । मैं नहीं जानता ।" वो जल्दी से कह उठा ।
"तो फिर क्या जानता है ?" खतरनाक स्वर में कहते हुए मोना चौधरी ने रिवॉल्वर उसकी तरफ कर दी।
"अजबसिंह का नाम सुन रखा है ।"
"किस सिलसिले में सुना नाम ?"
"भून्तर वाला अजबसिंह हमारा पुराना दुश्मन है । वो हमें हर कदम पर नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है । मध्यप्रदेश में ही नहीं । हिमाचल में भी हमारे आदमियों की राह में कांटे बिछाता रहता है । हमारी मादक पदार्थों को वो लूट लेता है । एक पैसे का बंदा नहीं था अजबसिंह । हमारा माल लूट-लूटकर होटल खड़े कर लिए । तुम्हारे मुंह से उसका नाम सुनकर थोड़ी-सी हैरानी अवश्य हुई थी, अब दूर हो गई ।" श्रद्धानंद जल्दी से कह उठा।
"मादक पदार्थों का भी धंधा करते हो ।" मोना चौधरी ने खा जाने वाले निगाहों से उसे घूरा ।
श्रद्धानंद सूखे होंठों पर जीभ फेरने लगा ।
"और क्या-क्या धंधे करते हो ?"
"ब-ब-स ।"
"मेरे सवाल की इतनी जल्दी बस नहीं हो सकती । खैर-तुम तनख्वाह पर, स्वामी ताराचंद के लिए काम करते हो । हर महीने पांच हजार रुपया मिलता है । खाना-पीना रहना मिलता है । तुमने ही कहा ये ?"
श्रद्धानंद ने फौरन सहमति से सिर हिलाया ।
"और अभी तुमने कहा कि भून्तर वाला अजबसिंह हमारा पुराना दुश्मन है । मध्यप्रदेश में ही नहीं, हिमाचल में भी तुम लोगों को नुकसान पहुंचाता है । तुम लोगों से ड्रग्स लूट-लूटकर उसने अपना होटल खड़ा कर लिया । यानी कि तुम उसे आज के नहीं, बरसों से जानते हो। बरसों पुराने आदमी पांच हजार तनख्वाह पर काम नहीं करते ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी आगे बढ़ी और पास पहुंचकर रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ कर दिया--- "अब सही बताना । झूठ बोला तो गोली अन्दर, दम बाहर । असल में तुम लोग कौन हो ? आश्रम की आड़ में क्या करते हो ? अब तक तो ये बात सामने आई है कि आश्रम में आने वाली औरतों को गलत रास्ते पर डालकर बर्बाद करते हो । ड्रग्स का धंधा करते हो । जाहिर है कि इसके अलावा भी कई गलत काम करते होंगे । मैं उन कामों के बारे में जानना चाहती हूं।"
संजीव सिंह अजीब-सी स्थिति में खड़ा श्रद्धानंद को देखे जा रहा था ।
"ब...बस । इसके अलावा हम लोग और कोई काम नहीं करते ।" श्रद्धानंद दोनों हाथ आगे करके कह उठा ।
"पक्का ।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर रिवॉल्वर वाला हाथ आगे किया ।
उसने भय भरी निगाहों से करीब आ पहुंची रिवॉल्वर की नाल को देखा ।
"कुछ छिपाया तो गोली अन्दर दम बाहर...।"
"मैं...मैं सच कह रहा हूं ।" उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"एक गोली पर तुम्हारा नाम लिखकर रख रही हूं, तुम्हारी झूठी तसल्ली होने पर, तुम्हें मारूंगी ।" मोना चौधरी ने दरिंदगी से कहा--- "अपने बारे में बताओ । स्वामी ताराचंद के बारे में बताओ । उन लोगों के बारे में बताओ, जो तुम लोगों के पीछे हैं ।"
"पीछे ?"
"हां । बरसों से तुम लोग ये काम कर रहे हो । अजब सिंह का होटल पुराना है । बीस साल तो उसे बने हो ही गए होंगे । तुम लोग सिर्फ यही नहीं हो सकते । और लोग भी तुम्हारे साथ होंगे ।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा।
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । नजरें मोना चौधरी पर थी ।
संजीव सिंह ने भी अजीब-सी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी ने रिवॉल्वर की नाल, उसके चेहरे से लगा दी ।
"मुझे अपने सवाल का जवाब चाहिए ।" मोना चौधरी का लहजा सर्द हो गया ।
"ह-हां । बहुत सारे लोग हैं । हिमाचल में हर जगह पर है । लेकिन मैं उनके बारे में नहीं जानता । स्वामी ताराचंद के साथ रहता हूं । शुरू से ही उनके साथ रहा हूं ।" श्रद्धानंद ने जल्दी से कहा।
"तुम्हारे इस झूठ को कुछ देर के लिए सच मान लेती हूं ।" मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "अब ये बताओ कि इतने सारे लोग, जो कि बरसों से जमे गैर कानूनी काम कर रहे हैं, वो सिर्फ ड्रग्स का धंधा तो करेंगे नहीं । इसके साथ दूसरे काम भी अवश्य करते होंगे । वो कौन से काम हैं ?"
उसने होंठ भींच लिए ।
उसी पल मोना चौधरी की उंगली हिली । नाल से गर्म शोला श्रद्धानंद के कान को जोरों से लगता हुआ, जंगल में कहीं जाकर गुम हो गया । गर्म नाल पुनः उसके गाल से आ सटी।
श्रद्धानंद मन ही मन सिहर उठा ।
बारूद की स्मेल, उसकी सांसों को महसूस हो रही थी । गर्म नाल से जैसे अपने गाल को जलता हुआ महसूस कर रहा था । चेहरा पीला-सा दिखाई देने लगा था ।
"गोली तुम्हारी जान भी ले सकती थी, जो कि अब ले लेगी अगर तुमने जवाब नहीं दिया तो।"
"हमारे संगठन का वास्ता अमेरिकन खुफिया विभाग सी.आई.ए. से हैं ।"
"सी.आई.ए. ।" मोना चौधरी के होंठों से निकला । चेहरे पर हैरानी ठहरी--- "अमेरिका की जासूसी संस्था ?"
सूखे होंठों पर जीभ फेरकर, उसने सहमति में सिर हिलाया ।
"सच बोलो कि...।"
"मैं सच कह रहा हूं । अमेरिका की जासूसी संस्था हमें खूब पैसा देती है और हम उनके मनचाहे काम करते हैं।"
"ओह । तुम लोगों से अमेरिकन क्या काम कराते हैं ?"
श्रद्धानंद कुछ पल खामोश रहा फिर कह उठा ।
"हकीकत ये है कि अमेरिका पूरी दुनिया का चौधरी बना रहना चाहता है, जबकि दुनियाभर में अमेरिका की चमक अब फीकी पड़ती जा रही है । ऐसे में अमेरिका की पहली जरूरत है, झगड़ा पैदा हो ताकि सुलहनामा कराने के लिए आगे आए और बड़ा बन बैठे।"
"क्या कहना चाहते हो ?" मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी ।
"अमेरिका एशिया के, खासतौर से इस हिस्से में शांति नहीं चाहता । वो चाहता है झगड़ा होता रहे । हिन्दुस्तान और उसके पड़ोसी देश, मदद के लिए उसे देखते रहें । जिस देश को जब जब चोट पड़ेगी । वो अमेरिका को देखेगा । इससे अमेरिका की चौधराहट बढ़ेगी। इन सब कामों के लिए अहम जरूरत है देशों के झगड़े की । जो कि हम कराते हैं ।"
"तुम लोग कराते हो ?"
"हां । अंधा पैसा देता है अमेरिका । बदले में हमारा संगठन अमेरिका की चाहत के हिसाब से दंगा या हिंसा से भरी कार्यवाही करा देते हैं । कभी सामूहिक हत्याएं करा देते हैं । मरने वाले किस धर्म से वास्ता रखते हैं । इससे हमें कोई वास्ता नहीं ।" श्रद्धानंद गम्भीर स्वर में कह रहा था--- "हमारे आदमी छोटे-छोटे संगठन बनाकर हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और कश्मीर में मौजूद हैं और युवाओं को पैसे का लालच देकर अपने साथ मिला लेते हैं । फिर वारदातें करते हैं । हमें जैसी वारदात की जरूरत होती है, वैसे ही करने को हम कह देते हैं और चौबीस घंटों में वैसी ही वारदात हो जाती है।"
संजीव सिंह ने गम्भीरता में डूबे सिगरेट सुलगाई । नीचे बैठ गया ।
"फिर ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"हमारा काम इतना ही है । मैं तो इतना जानता हूं कि वारदात के बाद अमेरिका, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान पर रौब झाड़ता है। अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाता है । कभी हिन्दुस्तान को शाबाश कह देता है तो कभी पाकिस्तान को । कभी अपने मंत्री दौरे के लिए हिन्दुस्तान-पाकिस्तान भेज देता है । जिससे कि उसकी चौधराहट बनी रहे ।"
मोना चौधरी होंठ भींचे श्रद्धानंद को देखती रही ।
संजीव सिंह नीचे बैठा कश ले रहा था।
"पाकिस्तान में भी, अमेरिका की सी.आई.ए. ने गरीब मासूम लोगों को खरीद रखा है । उन लोगों को कहा जाता है कि सीमा पार करके कश्मीर पहुंचो । झगड़ा पैदा करो । वो नहीं जानते कि किसके इशारे पर ये किया जा रहा है । वो ऐसा ही करते हैं और मारे जाते हैं । पाकिस्तान सरकार परेशान है कि, उनके देश के लोग हथियारों के साथ कश्मीर क्यों जा रहे हैं ? लाख कोशिश करके भी रोक नहीं पाती । जो भी होता है नाम पाकिस्तान का लगता है।"
"तुम्हारा मतलब कि कश्मीर में जो हो रहा है, उसमें सी.आई.ए. का हाथ है ?"
"अस्सी प्रतिशत सी.आई.ए. का हाथ है । कश्मीर में अगर शांति हो जाए तो अमेरिका को न तो हिन्दुस्तान पूछेगा, और ना ही पाकिस्तान । इसलिए अमेरिका झगड़ा खड़ा कराता रहता है। शान्ति नहीं होने देता ।"
मोना चौधरी ने संजीव सिंह पर नजर मारी फिर श्रद्धानंद से पूछा।
"तुम्हारे संगठन का बड़ा कौन है ?"
"मैं नहीं जानता ।" श्रद्धानंद ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा--- "इतना मालूम है कि उसे मैडम कहते हैं ।"
"ओह ! औरत है वो ?"
"हां । स्वामी ताराचंद के पास वायरलैस सैट है । उस पर वो मैडम से बात कर लेता है ।"
मोना चौधरी ने रिवॉल्वर वाला हाथ पीछे किया और रिवॉल्वर कपड़ों में छिपा ली ।
"अजब सिंह के बारे में बताओ ।"
"क्या ?"
"जो भी उसके बारे में जानते हो ?"
संजीव सिंह सिर उठाकर श्रद्धानंद को देखने लगा ।
"अजब सिंह तुम लोगों के पीछे क्यों पड़ा रहता है ?"
"मैं नहीं जानता । पुरानी दुश्मनी चली आ रही है । वो हर कदम पर हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश में लगा रहता है । पक्का तो नहीं, लेकिन एक-आध बार सुनने को मिला है कि अजबसिंह का अपना संगठन है । उसके पास बहुत लोग हैं । परन्तु ऐसी कोई पुख्ता जानकारी हमें नहीं मिली और हम चाहकर भी अजबसिंह पर काबू नहीं पा सके । उसकी हरकतों को रोक नहीं सके । वो खतरनाक बंदा है, हम लोगों की नजरों में ।"
मोना चौधरी और संजीव सिंह की नजरें मिली ।
श्रद्धानंद के होंठों से कराह निकली । वो अपने घायल चेहरे को टटोलने लगा था ।
"मेरी तबीयत ठीक नहीं है ।" श्रद्धानंद ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मुझे आराम कर लेने दो ।"
मोना चौधरी ने उसे देखा ।
"तुमने कभी मैडम से बात की ?"
"नहीं । मैं मैडम से भला कैसे बात कर सकता हूं । मेरे सामने ताराचंद ने अवश्य कई बार बात की है।"
"ताराचंद ने कभी मैडम के बारे में बताया हो ?"
"ताराचंद मेरे सामने मैडम का जिक्र भी होंठों पर नहीं लाता ।"
"मतलब कि ताराचंद मैडम के लिए काम करता है और ड्रग्स सप्लायर है ?"
"ताराचंद सस्ते में ड्रग्स लेता है और विदेशी पार्टियों को ऊंचे दामों में बेचता है । इसके अलावा वो हथियारों का काम भी करता है । अगर किसी को ढेर सारे हथियार चाहिए तो वो उन्हें महंगे दामों में बेचता है।"
"ताराचंद कहां से हथियार लाता है ?"
"मैडम को खबर करते ही उसके पास हथियार पहुंच जाते हैं । मेरे ख्याल में मैडम तक हिन्दुस्तान में फैले सी.आई.ए. के एजेंट ही हथियार पहुंचाते हैं । वो ही तो चाहते हैं कि देशों में झगड़ा होता रहे । एशिया में लड़ाई की आग लगी रहे।"
"तुम किसी सी.आई.ए. के एजेंट को जानते हो ?"
"नहीं ।" उसने इंकार में सिर हिलाया ।
मोना चौधरी ने गहरी सांस ली फिर सोच भरे स्वर में कहा ।
"कुछ देर टैंट में आराम कर लो । किसी तरह की चालाकी या शरारत मत करना । वरना...।"
श्रद्धानंद उठा और अपने घायल चेहरे को टटोलता टैंट के भीतर चला गया ।
संजीव सिंह ने कश लेकर सिगरेट एक तरफ उछाल दी । मोना चौधरी को देखा । कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो मोना चौधरी शांत स्वर में कह उठी ।
"टैंट में वो हमारी बातें सुन लेगा । कुछ कदम दूर आ जाओ।"
दोनों टैंट से करीब पचास कदम दूर पहुंचकर रुक गए । उनकी निगाह टैंट की तरफ थी कि कहीं श्रद्धानंद फिर कोई गड़बड़ करने की कोशिश न करे।
संजीव सिंह की अजीब सी निनाह, मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी थी ।
"ऐसे क्या देख रही हो ?"
"होने वाली पत्नी के गुण देख-समझ रहा हूं ।" संजीव सिंह ने होंठ सिकोड़कर कहा ।
"अब कौन-सा नया गुण नजर आ गया ?"
"पुलिस वालों की तरह तुम्हारी पूछताछ ।"
मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान आ ठहरी।
"साधू से तुम इस तरह पूछताछ कर रही थी कि, मुझे लगा जैसे तुम साधू नहीं, पुलिस वाली हो।"
"फिक्र मत करो । मैं सिर्फ नर्स हूं ।"
"इस सिर्फ नर्स को । मैं समझने की कोशिश कर रहा हूं।"
मुस्कुराया संजीव सिंह भी ।
"अभी नहीं समझ सकोगे ।"
"तो कब समझ लूंगा ।"
"शादी के बाद । जब दो-चार बच्चे हो जाएंगे ।"
"चार ।"
"क्या मालूम-चार ही हो ।"
संजीव सिंह, मोना चौधरी को देखता रहा । आंखों में प्यार उमड़ा ।
तभी मोना चौधरी बोली ।
"अब तुम अपने पापा के बारे में सोचो ।"
संजीव सिंह एकाएक गम्भीर नजर आने लगा । निगाह टैंट की तरफ उठी।
"स्वामी ताराचंद और उसके साथी क्या काम करते हैं ये तो तुम जान ही चुके हो । ये लोग पूरे हिमाचल में फैले हैं । श्रद्धानंद ने कहा। हिमाचल में इसलिए फैले हैं कि, वहां डोडो की खेती होती है । जिससे मादक पदार्थ तैयार होते हैं । स्पष्ट है कि मादक पदार्थ तैयार करने का साजो-सामान भी होगा । एक किलो हेरोइन या स्मेक । जो यहां मिट्टी के भाव, बहुत सस्ते में मिल जाती है उसकी यूरोप और अमेरिका में करोड़ों रुपया कीमत होती है । रातों-रात करोड़पति बनने का लालच लोगों को इस धंधे में ले आता है।"
संजीव सिंह बेहद गम्भीर नजर आ रहा था ।
"वे लोग नहीं देखते कि जो एक करोड़ों उन्होंने कमाया है । उसके कारण कितने लाखों परिवार तबाह हो गए । कितनी बर्बादी फैल गई । उन्हें तो सिर्फ दौलत से मतलब होता है ।" मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया था--- "तुम्हारे पापा, अजब सिंह भी, इन लोगों से जुदा नहीं है । श्रद्धानंद का कहना है कि अजबसिंह बरसों से उनका माल लूटता आ रहा है और उसी माल के दम पर वो अमीर बना । भून्तर में दोनों होटल और मनाली में होटल खरीदा।"
संजीव सिंह ने मोना चौधरी को देखा फिर धीमे स्वर में कह उठा ।
"मुझे अफसोस है सुधा । मैं नहीं जानता था कि मेरे पापा इतना गलत काम करते हैं । मैंने जबसे होश संभाला । पापा के होटलों को बने देखा । मां को देखा, जो होटलों के कामों को संभालती है और पापा महीने में पन्द्रह दिन बाहर रहते हैं । पूछने पर मां यही कहती है कि पापा बिजनेस में व्यस्त रहते हैं । मैं नहीं जानता कि बिजनेस क्या है । शायद मां भी नहीं जानती । मैं मालूम कर लेता । अगर होटल के कामों में, पापा के कामों में दिलचस्पी ली होती। उनके बीच रहता ।"
"इस वक्त अजब सिंह यहां आया है तो जाहिर है, ताराचंद के पास ड्रग्स होगी । उन पर हाथ डालने के लिए अजब सिंह यहां पर मौजूद है और वो अकेला नहीं । उसके साथी भी अवश्य आसपास ही मौजूद होंगे ।"
संजीव सिंह के चेहरे पर परेशानी नजर आने लगी थी।
"मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि ये सब क्या हो रहा है ।"
"सच को समझोगे तो परेशान नहीं होगी ।"
"सुधा ! कहीं ऐसा तो नहीं कि पापा की हरकतों के कारण तुम शादी करने से इंकार कर दो ।"
"प्लीज संजीव । तुम हर बात को शादी के साथ क्यों जोड़ देते हो । शादी-ब्याह अलग बात है । ये सब बातें अलग । इस वक्त मैं शादी की तो सोच ही नहीं रही । मैं तो सोच रही हूं कि इन लोगों को कैसे रोका जाए कि मासूम लोगों तक ड्रग्स आसानी से न पहुंच सके । देश-विदेशों में ये बर्बादी फैला रहे हैं।"
"सी.आई.ए. की बात सुनकर हैरानी हुई ।" संजीव सिंह बोला ।
"हैरानी की बात नहीं ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अमेरिका खुद को सबसे ऊंचा रखना चाहता है । दुनिया में जहां भी झगड़ा पैदा होता है । बीच में दखल देने पहुंच जाता है । ताकि हर कोई उसे सलाम करे। जहां झगड़ा नहीं होता । वहां झगड़ा कराता है फिर उसी बहाने से वहां पहुंच जाता है । ऐसे में, अगर अमेरिका, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में खाईयां बढ़ा रहा है तो हैरानी की बात कहां से आ गई।"
संजीव सिंह कुछ नहीं बोला ।
"अब तुम क्या करना चाहते हो संजीव ?"
"जो तुम कहो ।"
"मैं चाहती हूं तुम अपने पापा को सही रास्ते पर लाओ । ऐसे कामों में रहकर जान के खतरे बने रहते हैं । वैसे भी अजब सिंह के पास क्या कमी है जो उसे गलत काम करने पड़ रहे हैं।"
"हां । मैं पापा को तलाश करके, उन्हें सही रास्ते पर ले आऊंगा ।" संजीव सिंह ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
"मैं स्वामी ताराचंद को देखती हूं । ये भी मालूम करूंगी कि वो किन लोगों के लिए काम करता है ।"
"जरूरी है कि वो किसी के नीचे काम करता है ।"
"हां । ऐसा स्वामी, अकेला सब कुछ नहीं संभाल सकता । उसके पीछे कोई शक्ति है ।"
संजीव सिंह, मोना चौधरी को देखता रहा ।
"सुधा ।"
"हां ।" मोना चौधरी ने उसे देखा ।
"स्वामी ताराचंद क्या है, क्या नहीं । उसके पीछे कौन है । हमें इन बातों से क्या वास्ता । तुम क्यों इन कामों में दखल देकर अपने जीवन को खतरे में डाल रही हो । मैं नहीं चाहता मेरी पत्नी को कुछ हो।"
"फिक्र मत करो संजीव । मुझे कुछ नहीं होगा ।"
"कैसे नहीं होगा । वो लोग खतरनाक...।"
"इस बात की फिक्र मत करो । मेरे पास इस बात की ट्रेनिंग है कि खतरों से कैसे निपटा जाता है ?"
"ये ट्रेनिंग किससे मिली ?" अजीब से स्वर में पूछा, संजीव सिंह ने।
"जब मैं नर्स की ट्रेनिंग ले रही थी, तभी हमारे बैच को मिलिट्री के कुछ ऑफिसर ऐसी ट्रेनिंग देने आ गए, तब हमें पता चला कि मिलिट्री वाले इमरजेंसी के लिए, हम नर्सों को ऐसी ट्रेनिंग दे रहे हैं कि युद्ध छिड़ने पर, हम सीमा पर जाकर घायलों का इलाज भी कर सकें और कोई खतरा आए तो उससे भी निपट सकें ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"खूब ।" संजीव सिंह ने गहरी सांस ली ।
"क्या बात है । बहुत लम्बी सांस ली ?" मोना चौधरी मुस्कुराई।
"तुम्हारे गुणों की पहचान करते हुए लम्बी-लम्बी सांसो की जरूरत पड़ती है ।" संजीव सिंह कह उठा--- "अभी जाने कितनी बार मुझे इन सांसों का सामना करना पड़ेगा । तुम्हारे कई गुणों से मुझे वाकिफ होना है ।" संजीव सिंह ने सुधा को देखा--- "मैं नहीं चाहता कि तुम स्वामी ताराचंद के मामले में दखल दो ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि उन लोगों का संबंध अमेरिका की जासूसी संस्था सी.आई.ए. से है । सी.आई.ए. वाले कभी भी ये पसन्द नहीं करेंगे कि कोई उनके कामों में अड़चन डाले । ऐसे इंसान को वो जिंदा नहीं छोड़ेंगे । मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कुछ हो । पापा को मैं समझाकर रास्ते पर ले आऊंगा । तुम ये सब छोड़ दो । आखिर तुम्हें जरूरत भी क्या है। ये अब करने की। तुम मेरी पत्नी बनने जा रही हो । वापस जाकर शादी करते हैं और...।"
"ये काम करने की बहुत जरूरत है ।" मोना चौधरी शब्दों को चबाकर दृढ़ता से कह उठी ।
संजीव सिंह की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।
"किस जरूरत की बात कर रही हो तुम ?"
मोना चौधरी अपने चेहरे पर दुख की छाया ले आई ।
"मैंने तुम्हें बताया नहीं कि मेरे पापा फौज में थे ।"
"फौज में ?"
"हां ।" मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया--- "देश के लिए सीमा पर लड़ते-लड़ते उन्होंने जान दे दी । तब अंतिम समय में उन्होंने मेरे लिए मैसेज भेजा था कि जब भी देश की सेवा का मौका मिले । पीछे न हटूं । अब मुझे देश की सेवा का करने का मौका मिल रहा है, देश के दुश्मनों से टकराकर । इसलिए मैं पीछे नहीं हटूंगी।"
"लेकिन सुधा अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगा । मैं...।"
"तुम भी मेरे साथ देश के भले के लिए लग जाओ । जिंदा रहे तो दोनों । मरेंगे तो दोनों।"
संजीव सिंह, मोना चौधरी को देखने लगा ।
"क्या देख रहे हो ?"
"सोच रहा हूं अगर सभी तुम्हारी तरह हो जाए तो हमारे देश की तरफ कोई टेढ़ी, आंख करके भी नहीं देख सकता ।"
"ऐसा मत कहो । अगर मेरी तरह हो गए तो फिर देश बेकार हो जाएगा ।" मोना चौधरी मुस्कुराई ।
"क्या मतलब ?"
"मेरा मतलब कि देश में हर तरह के इंसान की जरूरत होती है । तभी तो देश चलता है । एक ही तरह के लोग, देश में भरे हो तो फिर देश कैसे चलेगा ?" मोना चौधरी बोली--- "इस तरह के रंग मौजूद होने चाहिए।"
"हां । ये बात तो है ।"
"तो तुम मेरे साथ हो ?"
"हां सुधा । मैं हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं ।"
"ठीक है । हम दोनों आश्रम में चलेंगे । जानने की कोशिश करेंगे कि क्या हो रहा है । उसके बाद तय करेंगे कि उन लोगों को सबक सिखाने के लिए क्या करना है ।" मोना चौधरी ने कहा ।
"ठीक कह रही हो । मैं पापा को भी तलाश करने की चेष्टा करूंगा ।"
"क्यों ?"
"पापा को समझाकर, मैं सही रास्ते पर ले आया तो स्वामी ताराचंद के मामले में वे हमारा साथ देंगे । इन लोगों को पापा पुराना जानते हैं । वो बढ़िया रास्ता बता सकेंगे कि कैसा कदम उठाने से, लोगों को यहां से भगाया जा सकता है।"
"यहां से भाग गए तो ये लोग अपना तंबू कहीं और लगा लेंगे ।"
"क्या मतलब ?" संजीव सिंह ने उसे देखा--- "तो फिर इनका क्या करना है ?"
"ये सोचने का वक्त नहीं आया । अभी तो काम करने की सोचो ।"
संजीव सिंह की निगाह टैंट की तरफ उठी ।
"श्रद्धानंद का क्या करना है ?"
"उस साधू का भी कोई इंतजाम करना पड़ेगा । मौका मिलते ही वो आश्रम में हमारे बारे में खबर कर देगा । क्रूर लोग हैं ये कितनी आसानी से उसने उस व्यक्ति को नदी में मगरमच्छों के बीच धकेल दिया था । उंगली को ब्लेड से काट कर, खून की बूंदे नदी में गिराकर, जिस तरह से उसने मगरमच्छों को बुलाया था उससे ये तो स्पष्ट हो गया कि, इस तरह अब तक वो जाने कितने लोगों को मगरमच्छों के हवाले कर चुका है ।"
"क्या करेंगे उसका ?"
"उसे बेहोश करके । उसके हाथ-पांव बांधकर, मुंह में कपड़ा ठूंसकर, टैंट में छोड़ जाएंगे । होश में आने पर भी वो बंधा ही रहेगा । मुंह में कपड़ा होने के कारण वो चीख-चिल्ला भी नहीं सकेगा ।" मोना चौधरी टैंट की तरह बढ़ी--- "आओ ।"
संजीव सिंह भी उसके पीछे हो गया ।
टैंट में प्रवेश करते ही दोनों ठिठके । चौंके ।
कोई भी नहीं था टैंट में।
टैंट का पीछे वाला हिस्सा फटा हुआ था । स्पष्ट था कि वो पीछे की तरफ से टैंट को फाड़कर चुपचाप खिसक गया था। उन्हें आभास भी नहीं हो पाया था कि वो निकल गया है ।
"वो साला शक्ल से ही हरामी था ।" संजीव सिंह गुस्से से भर उठा--- "हमें उसके प्रति और भी सतर्क रहना चाहिए था ।"
मोना चौधरी के चेहरे पर गम्भीरता नजर आने लगी थी ।
"क्या हुआ सुधा । तुम इतनी सीरियस क्यों हो गई ?"
"वो सीधा स्वामी ताराचंद के पास पहुंचेगा और हमारे बारे में सब कुछ बता देगा ।" मोना चौधरी के होंठ भिंच गए ।
"हां । ये तो होगा ही ।"
"फिर हम अपना काम कैसे पूरा करेंगे । आश्रम में गए तो उनकी नजरों में आ सकते हैं । श्रद्धानंद का भाग जाना बुरा हुआ ।"
"हमें कोई और रास्ता सोचना चाहिए । कि...।"
"छोटा वाला लाल बैग कहां है ?" एकाएक मोना चौधरी ने कहा ।
"लाल बैग ?"
"छोटा सा । जो तुम कह रहे थे, बहुत खूबसूरत है ।"
"वो तो कार में है ।"
"लाओ उसे ।"
"क्या है उसमें ?"
"वो मेकअप बॉक्स है । हम दोनों अपने चेहरे और हुलिए बदल लेंगे । श्रद्धानंद या आश्रम का कोई भी शख्स हमें नहीं पहचान सकेगा । हम वहां इकट्ठे न जाकर अकेले-अकेले जाएंगे । ताकि किसी को जरा भी शक न हो।"
संजीव सिंह होंठ सिकोड़े मोना चौधरी को देखने लगा था ।
"कार में से मेकअप बॉक्स निकालकर लाओ । यहां अब ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं । हमें किसी दूसरी जगह ठिकाना बनाकर, फिर आश्रम की तरफ जाना होगा ।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"मेकअप करके चेहरे बदलने का गुण तुमने कहां से सीखा ?"
"वो यूं ही, मजाक-मजाक में सीख लिया । नर्सिंग होस्टल में सप्ताह में एक बार हम लड़कियां ड्रामा करती थी । मुझे मेकअप करने का काम सौंपा गया । धीरे-धीरे इस तरह के मेकअप में मैं एक्सपर्ट हो गई।"
■■■
मुनीराम के साथ स्वामी ताराचंद ने पहली मंजिल पर अपने कमरे में प्रवेश किया तो तख्त पर श्रद्धानंद को बैठे पाया । स्पीकरों पर से उपदेशों की आवाजें सुनाई दे रही थी ।
स्वामी ताराचंद, श्रद्धानंद के चेहरे पर पिटाई के निशानों को देखकर चौंका।
मुनीराम ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया ।
"क्या हुआ श्रद्धानंद ?" स्वामी ताराचंद उसके सामने बैठता हुआ बोला--- "वो श्रद्धालु भाग गया क्या ?"
"नहीं स्वामी जी ।" श्रद्धानंद अपना चेहरा टटोलता हुआ कह उठा--- "वो तो मगरमच्छों के पास पहुंच गया ।"
"तुम्हारे चेहरे को देखकर लग रहा है, जैसे किसी ने पीटा हो ।"
"आपने सही सोचा । जंगल में एक युवक-युवती ने मुझे पकड़ लिया था ।"
"जंगल में ?" स्वामी ताराचंद की आंखें सिकुड़ी--- "जंगल में कोई कहां से आ गया ?"
"मैं नहीं जानता स्वामी जी । उन्होंने देख लिया था कि मैंने श्रद्धालु को नदी में मगरमच्छों के बीच में फेंक दिया था । इससे पहले कि वापस आता, वो मेरे सामने आ खड़े हुए । दोनों बहुत खतरनाक हैं स्वामी जी ।"
"खतरनाक ?"
"या तो वो पुलिस वाले हैं ।"
"पुलिस वाले ?"
"या वे अजब सिंह के दुश्मन है । उसे तलाश करने आए हैं । वो पूछ रहे थे कि अजब सिंह यहां है।"
"अजब सिंह ।" स्वामी ताराचंद की आंखें सिकुड़ी--- "किस अजबसिंह की बात कर रहे हो ?"
"भून्तर वाले की ।"
"ओह ! वो अजब सिंह यहां है ?"
"हां । वो ही कह रहे थे और पूछ रहे थे कि अजबसिंह कहां है ।"
स्वामी ताराचंद ने मुनीराम को देखा ।
मुनीराम के चेहरे पर उलझन के भाव थे ।
"ये सब मैं क्या सुन रहा हूं मुनीराम ?" ताराचंद कह उठा ।
"मैं स्वयं मामले को समझने की चेष्टा में व्यस्त हूं । अजबसिंह यहां है । ये तो सतर्क हो जाने वाली खबर है ।" मुनीराम ने कहा फिर श्रद्धानंद को देखा--- "पूरी बात मालूम होने पर ही सोचा जा सकता है ।"
स्वामी ताराचंद की नजर श्रद्धानंद की तरफ उठी।
"श्रद्धानंद । तुमने ये तो बताया नहीं कि उन्होंने तुम्हारी पिटाई की ?"
"मैं तो बताने ही वाला था स्वामी जी । वो दोनों तो आपके और आश्रम के बारे में भी पूछताछ....।"
"तूने कुछ बताया तो नहीं ।" मुनीराम दबे-तीखे स्वर में कह उठा ।
"मैंने उतना ही बताया, जितना कि जरूरी था कि उस समय बता सकूं । दूसरा होता तो सब कुछ बता देता ।"
मुनीराम एकाएक तीखे स्वर में कह उठा ।
"स्वामी जी । ये मुंह फाड़ आया है।"
"हमें भी ऐसा ही महसूस हो रहा है । मुनीराम इसे पानी पिलाओ ।"
मुनीराम ने उसे गिलास भरकर पानी दिया । श्रद्धानंद ने एक ही सांस में गिलास खाली किया ।
"श्रद्धानंद ।"
"कहिए स्वामी जी।" श्रद्धानंद के चेहरे पर घबराहट थी ।
"हमें सब कुछ बताओ, उन दोनों ने तुमसे क्या-क्या बात की ?"
श्रद्धानंद बताने लगा परन्तु वो बातें छिपा ली, जो मोना चौधरी और संजीव सिंह को बताई थी । जिसे सुनकर स्वामी जी और मुनीराम उस पर क्रोध उतार सकते थे।
सब कुछ सुनने के बाद स्वामी ताराचंद ने मुनीराम से कहा ।
"इसकी बातों से तो लगता है कि वे दोनों आश्रम की तरफ अवश्य आएंगे ।"
"पक्का आएंगे स्वामी जी ।" मुनीराम ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मैं सबको सतर्क कर देता हूं । हम उन्हें पहचान लेंगे ।"
"मैंने तो उन दोनों को देखा है ।" श्रद्धानंद जल्दी से कह उठा--- "मैं हर तरफ नजर रखूंगा और देखते ही उन्हें पहचान लूंगा ।"
"ऐसा ही करना।" स्वामी ताराचंद गम्भीर था--- "लेकिन ज्यादा खतरे वाली बात तो ये है कि अजब सिंह भी यहीं है ।"
"क्या मालूम, अजब सिंह यहां न हो । वो दोनों यहां पर गलत पूछताछ कर रहे हो ?"
कुछ सोच के पश्चात स्वामी ताराचंद उठा और पेटी में पड़े वायरलैस से संबंध बनाने लगा । बात हुई।
"हैलो । हैलो ।" दूसरी तरफ से कमलेश का मध्यम-सा स्वर हैंडसैट के जरिए कानों में पड़ा ।
"मैडम । मैं स्वामी ताराचंद बोल रहा हूं ।"
"कहो ताराचंद ।"
"मैडम ! सुनने में आ रहा है कि अजब सिंह आश्रम के आसपास ही है ।"
"किससे सुना ?"
स्वामी ताराचंद ने श्रद्धानंद की बात बताई ।
कुछ चुप्पी के बाद आवाज आई ।
"ताराचंद ! हमें भी खबर मिल चुकी है कि अजब सिंह तुम्हारे आस-पास ही है । वो वहां क्यों है, नहीं मालूम । अगर वो नजर आ जाए तो उस पर हाथ डालने की अपेक्षा, ये जानने की चेष्टा करना कि वो तुम्हारे पास क्यों आया है ?"
"यस मैडम।"
"और उस युवक-युवती पर भी हाथ डालने की चेष्टा मत करना । पहले ये जान लो कि वो वहां क्यों हैं । चाहते क्या हैं। हर बात के लिए सीधे-सीधे खून-खराबा नहीं करते ।" कमलेश की आवाज कानों में पड़ी ।
"यस मैडम ।"
"जब भी कुछ पता चले । मुझे खबर करना ।"
"यस मैडम ।"
दूसरी तरफ से लाइन कट गई तो स्वामी ताराचंद ने वायरलैस सैट ऑफ कर दिया।
"तुम दोनों जाओ । सबको सतर्क कर दो । अजब सिंह या वो युवक-युवती आश्रम में कोई गड़बड़ न कर सकें । तीनों में से कहीं भी, कोई भी दिखे, उसे वहीं दबा लो । श्रद्धालुओं को खबर न हो कि कोई गड़बड़ हो रही है।"
दोनों ने सिर हिलाया ।
"श्रद्धानंद !" स्वामी ताराचंद कह उठा--- "कुछ रह गया हो तो वो भी बता दो ।"
"मैंने सब कुछ बता दिया है ।" श्रद्धानंद तुरन्त बोला ।
"अच्छी बात है । जाओ । उन लोगों के प्रति सतर्क रहो ।"
श्रद्धानंद ने सिर हिलाया और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।
"मुनीराम !"
"जी स्वामी जी।"
"श्रद्धानंद कुछ छिपा रहा है ।" स्वामी ताराचंद ने कहा--- "अपनी जान बचाने की खातिर युवक-युवती के सामने हमारे बारे में बक दिया है कि यहां पर क्या काम होते हैं । श्रद्धानंद की आंखों में डर देखकर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है ।"
"आप ठीक कह रहे हैं । श्रद्धानंद का चेहरा बता रहा है कि इसके मुंह से कई बातें निकलवाई गई हैं ।"
"तुम फौरन सबको सतर्क कर दो । नजर रखो ।"
"जी । स्वामी जी ।" मुनीराम तुरन्त बाहर निकल गया । पलट कर बाहर से पल्लों को भिड़ा दिया। पहली मंजिल से नीचे उतरा और पीछे वाले दरवाजे से बाहर निकल गया । सामने की तरफ आरती चल रही थी ।
तभी एक साधू हाथ जोड़े मुनीराम के सामने आया ।
"नमस्कार ।" उसने हाथ जोड़कर मुनीराम से कहा ।
"यहां के कामों को सीख-समझ रहे हो दीनापाल ।"
"जी, मुनीराम जी ।"
"कहो, कुछ कहना है क्या ?"
"श्रद्धानंद के बारे में पूछना चाहता था । अभी-अभी उसके चेहरे पर चोटें देखी हैं ।"
"हां । वो जंगल में गए थे कि वहां शरारती लोगों ने उनके साथ मारपीट की फिर वो भाग गए ।" मुनीराम आगे बढ़ गया ।
दीनापाल, मुनीराम को जाते देखता रहा । कोई भी पहचान वाला आसानी से उसे पहचान सकता था कि वो कैप्टन कालिया है । मिलिट्री सीक्रेट सर्विस का खतरनाक एजेन्ट कैप्टन कालिया।
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