आपका खादिम हवालात में ।
कहां कमला जैसी कड़क सुंदरी का रंगीन, रोमांटिक, गुलाबी बैडरूम और कहां वह नीम अंधेरी, पथरीली, तारीक हवालात की कोठरी ।
एक तो मैं गिरफ्तार, ऊपर से यह सस्पैंस कि चौधरी मेरे फ्लैट में कैसे पहुंच गया और उसे चाकू मार के उसका खून किसने किया ?
क्या एलैग्जैण्डर ने उसे वहां प्लांट किया हो सकता था ?
किसलिए ?
मुझे कत्ल के इल्जाम में फंसाकर, मुझे मेरे खतरनाक अंजाम से डराकर मुझसे लैजर हासिल करने के लिए ?
मुझे वह बात न जंची ।
चौधरी एलैग्जैण्डर का आदमी था । मुझे फंसाने के लिए उसे अपने आदमी का कत्ल करवाने की क्या जरूरत थी ?
मैं हवालात में जरूर था लेकिन अपने किसी बुरे अंजाम से त्रस्त मैं नहीं था । मैं चौधरी के कत्ल के केस में नहीं फंस सकता था । मेरे पास बड़ी मजबूत एलिबाई थी । उसके कत्ल के वक्त तो मैं ग्रेटर कैलाश से बहुत दूर कमला नाम की हूर के पहलू में था ।
और वह मेरे पहलू में थी ।
यानि कि अगर वह मेरी बेगुनाही की गवाह थी तो मैं उसकी बेगुनाही का गवाह था । कत्ल अगर मैंने नहीं किया था तो उसने भी नहीं किया था ।
एक बजे के करीब मुझे सब-इंस्पेक्टर यादव के सामने पेश किया गया ।
“क्या कहते हो ?” - वह बोला ।
“यही” - मैं बोला - “कि मैं बेगुनाह हूं ।”
“वो तो तुम हो । और क्या कहते हो?”
“वो तो मैं हूं ?” - मैं हैरानी से बोला ।
“हां ।”
“यानी कि मानते हो कि चौधरी का कत्ल मैंने नहीं किया ?”
“मानता हूं और जानता हूं ।”
“फिर मैं गिरफ्तार क्यों हूं ?”
“तुम गिरफ्तार नहीं, हिरासत में हो ।”
“हिरासत में भी क्यों हूं ?”
“क्योंकि पहले हमें असली कातिल की खबर नहीं थी ।”
“अब है ?”
“हां ।”
“कौन है असली कातिल ?”
“तुम्हारी क्लायंट ।”
“कमला ओबराय ?”
“हां ।”
मैं हंसा ।
“क्या हुआ ?” हंसते क्यों हो ?”
“अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो, यादव साहब ।”
“वो कैसे ?”
“कमला कम-से-कम चौधरी की कातिल नहीं हो सकती ।”
“क्यों नहीं हो सकती ?”
“क्योंकि कल सारी रात वो मेरे साथ थी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“अब मुझे बेहूदा बात कहनी पड़ेगी ।”
“कह डालो ।”
“एक शर्त पर कहूंगा ।”
“कौन सी शर्त ?”
“यह कि तुम इसे राज रखोगे ।”
“अच्छा ।”
“वो मेरे पहलू में थी ।”
“सारी रात ?”
“हां ।”
“यानी कि तुम्हारे उसकी कोठी से रुखसत होने से लेकर आज दिन का सूरज चढ़ने तक ?”
“हां ।”
“क्या गारंटी है कि वह सारी रात तुम्हारे पहलू में थी ?”
“मतलब ?”
“तुम दावे के साथ कह सकते हो कि आधी रात से सुबह होने तक एक क्षण के लिए भी तुम्हारी पलक नहीं झपकी थी ?”
मैं खामोश हो गया ।
“यानी कि नहीं कह सकते ?”
“तुम यह कहना चाहते हो कि रात को किसी वक्त कमला मेरे पहलू से उठी और मेरे फ्लैट में जाकर चौधरी का कत्ल कर आई ?”
“हां ।”
“ऐसा सोचने की कोई वजह ?”
“बहुत मजबूत वजह है । तुम्हारी जानकारी के लिए कल तुम्हारी निगरानी के लिए एक आदमी मैंने तुम्हारे पीछे लगाया हुआ था ।”
“क्या ?”
“इसी वजह से मुझे मालूम है कि जब मैंने तुम्हें टैक्सी स्टैंड पट छोड़ा था तो वहां से टैक्सी करके तुम अपने घर नहीं गए थे । तुम पैदल वापिस ओबराय की कोठी पर लौट गए थे । मेरा आदमी रात भर ओबराय की कोठी के बाहर तुम्हारी फिराक में धूनी रमाए बैठा रहा था । वह चश्मदीद गवाह है इस बात का कि रात के दो बजे कमला ओबराय कोठी से बाहर निकली थी और अपनी कार पर सवार होकर कहीं गई थी । साढ़े तीन बजे वह कोठी में वापिस लौटी थी । यानी कि तुम्हारा वह दावा सौ फीसदी गलत है कि कल रात वह हर क्षण तुम्हारे पहलू में थी । वह डेढ़ घंटा तुम्हारे पहलू से गायब रही थी और तुम्हें इस बात की भनक भी नहीं लगी थी ।”
मैं सन्नाटे में आ गया ।
कई क्षण मेरे मुंह से बोल न फूटा ।
“तुम्हारे आदमी ने कमला का पीछा किया था ?”- अंत में मैंने दबे स्वर में पूछा ।
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उसे तुम्हारी निगरानी के लिए तैनात किया गया था, न कि कमला की ।”
मैं फिर खामोश हो गया ।
अब मुझे पूरी गारंटी हो गई कि पिछली रात मुझे विस्की में बेहोशी की दवा मिलकर पिलाई गई थी ।
और वह बेहोशी की दवा मुझे किसी मिशन की खातिर पिलाई गई थी ।
चौधरी का कत्ल करने के मिशन की खातिर ।
“और” - यादव आगे बढ़ा - “पुलिस का डॉक्टर इस बात की तसदीक कर भी चुका है कि हत्या ढाई और तीन के बीच किसी वक्त हुई है ।”
“लाश कब बरामद हुई ?”
“साढ़े तीन बजे ।”
“इतनी जल्दी कैसे ?”
“तुम्हारे मकान मालिक ने तुम्हारे फ्लैट से आती कुछ उठापटक की आवाजें सुनी थीं । उसने समझा कि वहां कोई चोर घुस आया था । उसने पुलिस को फोन कर दिया था ।”
“उसे मेरी इतनी फिक्र थी ?”
“उसे अपनी फिक्र थी । चोर उसके घर में भी घुस सकता था ।”
“तुम्हारे पास मिसेज ओबराय के खिलाफ सिर्फ यह है कि हत्या के समय वह अपनी कोठी पर नहीं  थी ?”
“इतने भोले मत बनो । उसके खिलाफ ढेरों सरकमस्टांशल एविडेंसेज हैं । मसलन अपने पति की कथित आत्महत्या के समय भी वह बड़े संदेहजनक हालात में अकेली उसके पास मौजूद थी - अपना एतराज तुम अपने पास रखो, तुम सिर्फ इसीलिए उसे एलीबाई देने की कोशिश कर रहे हो क्योंकि वह तुम्हारी क्लायंट है और उसके लिए ऐसा कुछ भी करना तुम्हारा फर्ज बनता है - फिर जूही चावला की कथित अत्महत्या के समय भी वह - सिर्फ वह - उसके बंगले में मौजूद थी । और अंत में चौधरी की तुम्हारे फ्लैट में हुई हत्या के वक्त भी वह अपनी कोठी में नहीं थी । इसमें से किसी एक बात को मैं इत्तफाक का दर्जा दे सकता था लेकिन तीन-तीन इत्तफाक मुझे हजम नहीं होने वाले ।”
“उसको चौधरी की हत्या करने की क्या जरूरत थी ?”
“वह परसों रात ओबराय की स्टडी में घुसा हुआ था । वहां से वह ऐसा कुछ जान गया होगा जो कि कमला ओबराय के लिए खतरनाक साबित हो सकता था और उसे सीधे फांसी के फंदे तक ले जा सकता था । उसका मुंह बंद रखने के लिए उसने उसका कत्ल कर दिया होगा ।”
“ऐसा उसने पहले क्यों नहीं किया ?”
“क्योंकि पहले उसने कोई और कत्ल करना था । जूही चावला का । हर काम अपनी बारी से ही होता है, जासूस साहब !”
मैं खामोश रहा ।
“तुम सयाने बड़े बनते हो लेकिन कम-से-कम इस बार तो तुम उस औरत के हाथों जी भर के बेवकूफ बन रहे हो । अभी तक जो तीन कत्ल हुये हैं, उन तीनों में ही किसी न किसी तरीके से उसने तुम्हें अपनी एलीबाई बनाया है । कल रात अगर मेरा आदमी तुम्हारी निगरानी न कर रहा होता तो बाद में तुम गंगाजली उठाकर यह कहने को तैयार हो जाते कि वह रात के हर क्षण तुम्हारे पास थी ।”
“चौधरी का कत्ल मेरे फ्लैट में क्यों ?”
“होगी कोई वजह । शायद वह तुम्हें उस कत्ल के इंजाम में फंसाना चाहती हो !”
“लेकिन मैं तो उसके साथ था ।”
“क्या सबूत है ?”
“वो खुद सबूत है ।”
“अगर वो मुकर जाये तो क्या सबूत है ? इस बात का जवाब कोठी की निगरानी करते मेरे आदमी को नजरअंदाज करके देना ।”
“फिर तो कोई सबूत नहीं ।”
“एगजैक्टली । कोहली साहब, तुम्हारे ऐसा कहने पर वह ऐसी हालदुहाई मचा सकती है कि तौबा भली । वह कह सकती है कि तुम एक गंदे, जलील आदमी एक लाचार, बेसहारा विधवा को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो । कौन मान लेता इस बात को कि उसके पति का अंतिम संस्कार होने से भी पहले वह किसी गैरमर्द की बांहों में थी ?”
“ओबराय की लाश अभी भी पुलिस के पास है ?”
“नहीं । आज सुबह-सवेरे मिसेज लाश ले गई थी और उसका अंतिम संस्कार हो चुका है ।”
“और जूही चावला की लाश ?”
“वह अभी पुलिस के ही पास है । उसे शाम तक रिलीज किया जाएगा ।”
“उसका कोई रिश्तेदार सामने आया है ?”
“सामने कोई नहीं आया लेकिन खबर लगी है उसके रिश्तेदारों की । उसका परिवार शिमला में रहता है । उन्हें खबर भिजवाई जा चुकी है ।”
मैं फिर खामोश हो गया ।
मेरी आंखों के सामने फिर कमला ओबराय का चेहरा उभरा ।
कितना छल कपट छुपा हुआ था उस खूबसूरत चेहरे की ओट में !
कैसे इतना खूब सफेद हो सकता था किसी औरत का !
अब मुझे यह भी महसूस होने लगा कि मेरी दो लाख की फीस उसने कुछ ज्यादा ही जल्दी कबूल कर ली थी और बीस हजार रूपये मुझे कुछ ज्यादा ही सहूलियत से हासिल हो गए थे ।
उस औरत ने बीस हजार रूपये में अपना कोई मुहाफिज या खैरख्वाह नहीं खरीदा था, एक बली का बकरा खरीदा था जिसका नाम सुधीर कोहली था ।
“कोहली !” - यादव बोला - “तुम इतने अहमक नहीं हो कि मौजूदा हालात का जुगराफिया न समझ सको । मैं अभी तुम्हें कातिल का मददगार होने कि बिना पर गिरफ्तार कर सकता हूं । और उस औरत से तुम्हें कितनी भी बड़ी फीस क्यों न हासिल हुई हो, वह जेल में पांच-छह साल गुजारने का बदला नहीं हो सकती । चौधरी का कत्ल तुमने न किया होने की इत्तफाक से मुझे जाती गारंटी न होती तो मैंने तुम्हारा रत्ती-भर लिहाज न किया होता । तुम इसे अपनी खुशकिस्मती समझो कि इस केस का इंवेस्टिगेटिंग ऑफिसर ही तुम्हारे हक में है । अब बोलो कि तुम समझदार आदमी हो कि अक्ल के अंधे हो ?”
“मैं समझदार हूं ।”
“गुड । अब साबित करके दिखाओ कि तुम समझदार आदमी हो ।”
“कैसे साबित करके दिखाऊं ?”
“सबसे पहले यही बताओ कि ओबराय की स्टडी में तुम्हारे हाथ क्या लगा था ?”
मैंने बड़ी शराफत से उसे लैजर के बार में बता दिया ।
“और ?”
मैंने उसे कस्तूरचंद और उसकी लीज के बारे में बताया ।
वह बात यादव को पसंद आई ।
“यानि कि” - यादव बोला - “ओबराय की जिंदगी में कस्तूरचंद को उसकी जगह वापिस हासिल नहीं हो सकती थी ?”
“नहीं हो सकती थी ।” - मैं बोला - “वैसे भी ओबराय ने उसके साथ बहुत मार मारी की थी जिसका कभी मौका मिलने पर बदला उतारने का कस्तूरचंद बहुत ख्वाहिशमंद था ।”
“ओबराय की हत्या के केस में तुम एक और मर्डर सस्पैक्ट पेश कर रहे हो ?”
“प्लेट में सजाकर ।”
“मैं मिलुंगा इस कस्तूरचंद से ।”
“दिल से मिलना ।”
“मतलब ?”
“अगर पहले से यह ठानकर मिलोगे कि हत्यारी कमला ही है तो कुछ बात नहीं बनेगी ।”
“तुम वो किस्सा छोड़ो । तुम लैजर की बात करो ।”
“क्या बात करूं ?”
“अब कबूल करते हो कि एलैग्जैण्डर के आदमियों के हाथों जो तुम्हारी धुनाई हुई है, वह उस लैजर बुक कि वजह से हुई है ?”
“हां ।”
“मुझे दो ।”
“क्या ?”
“लैजर बुक और क्या ?”
“दे दूंगा ।”
“अभी दो ।”
“अभी कैसे दूं ? अभी वो मेरे पास नहीं है ।”
“जहां वो है, वहां से लेकर आओ ।”
“यह फौरन मुमकिन नहीं ।”
“तो कब मुमकिन होगा ?”
“कल । कल लैजर बुक तुम्हें मिल जाएगी । उससे पहले नहीं ।”
“मैं पहले चाहता हूं ।”
“तो पड़े चाहते रहो ।”
उसने घूरकर मुझे देखा ।
“और वह यूं ही फोकट में नहीं मिल जाएगी तुम्हें ।”
“क्या मतलब ?”
“उसे हासिल करने के लिए बदले में तुम्हें भी कुछ करना होगा ।”
“मुझे क्या करना होगा ?”
“यहां आने से पहले ओबराय बम्बई में बिजनेस करता था । वहां धन्धे में उसके साथ ऐसा कुछ हादसा हुआ था कि वह दिवालिया होते-होते बचा था । हो सकता है इस सिलसिले से वहां की पुलिस का भी कोई वास्ता पड़ा हो । तुम बम्बई पुलिस को ट्रंककॉल करके या या वहां टेलेक्स भेजकर मालूम करो कि बम्बई में ओबराय के साथ क्या बीती थी !”
“तब तुम मुझे लैजर दोगे ?”
“हां । वादा ।”
“लैजर से मुझे क्या हासिल होगा ?”
“उससे तुम्हें मालूम होगा कि एलैग्जैण्डर के दो नंबर के पैसे का हिसाब क्या है । यह सबूत मिलेगा कि वह शैली भटनागर को और ओबराय उसे ब्लैकमेल कर रहा था ।”
“यह शैली भटनागर कौन हुआ ?”
मैं बताया, सविस्तार बताया ।
“इस लिहाज से तो वह भी गुनहगार हो सकता है ।”
“कमला ओबराय का पीछा छोड़ो तो कोई भी गुनहगार हो सकता है ।”
“हो सकता होगा । लेकिन फिलहाल तो मेरा पसंदीदा कैंडीडेट वही है ।”
“यह बात तुम्हें अजीब नहीं लगती कि कमला ओबराय जैसी नाजुक औरत चौधरी जैसे गोरिल्ले पर चाकू का घातक वार कर पाई ?”
“अजीब लगती है लेकिन नामुमकिन नहीं लगती । वह चाकू बड़ा अनोखा है । चाकू की जगह उसे खंजर कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा । ये लंबा तो फल था उसका और धार ऐसी पैनी कि कागज से पतली ।”
“आहे से थोड़ा मुड़ा हुआ ?” - मैं बौखलाकर बोला - “दस्ते के पास सितारा बना हुआ ?”
“हां ।”
“दस्ता ऐसा जैसे उस पर किसी जानवर की खाल मढ़ी हुई हो ?”
“हां । तुमने कब देख लिया वो चाकू ?”
“वो चाकू है कहां ?”
“मेरे पास है ।”
“दिखाओ !”
उसने मेज की दराज से चाकू निकालकर मेरे सामने रख दिया ।
मेरा रहा-सहा शक भी दूर हो गया ।
वह चाकू आपके खादिम का था ।
“इस पर किसी की उंगलियों के निशान मिले ?” - कई क्षण की खामोशी के बाद मैंने सवाल किया ।
“नहीं ।”
“यह चाकू मेरा है ।”
“वो तो चाकू का जिक्र सुनकर तुम्हारे बौखलाने से ही मुझे महसूस हो रहा था ।”
“और इसमें एक ऐसी क्वालिफिकेशन है जिसकी वजह से हत्यारे का पकड़ा जाना लाजिमी है ।”
“ऐसी क्या खास बात है इसमें ?” - यादव एकदम चौकन्ना हो उठा ।
“यह चाकू बस्तर के एक आदिवासी कबीले में इस्तेमाल होता है । खास बात इसके हत्थे में है । इस चाकू पर एक ऐसे जानवर की खाल मढ़ी हुई है जिस पर कि कील जैसे सख्त और सुई जैसे बारीक कांटे उगते हैं । वे कांटे इतने सूक्ष्म होते है कि न तो आंखों को दिखाई देते हैं और न स्पर्श से महसूस होते हैं यानि कि आमतौर पर सहज भाव से अगर चाकू को हैंडल से पकड़ा जाए तो वे कांटे हथेली को नहीं चुभते लेकिन किसी पर वार करने की नीयत से चाकू का हैंडल हथेली में जकड़कर थामना होता है और उसे जोर लगाकर शत्रु के जिस्म में धकेलना होता है । इसलिए ऐसा करने पर वे कांटे खड़े हो जाते हैं और वार करने वाले की हथेली में धंस जाते हैं । कहने का मतलब यह है कि जिस किसी ने भी इस चाकू का घातक वार चौधरी पर किया था, उसका हाथ जरूर लहूलुहान हो गया होगा और अब इस कस के संदिग्ध व्यक्तियों के हाथों का मुआयना करके ही यह जाना जा सकता है कि हत्यारा कौन है !”
“ऐसा अजीब चाकू है यह !” - यादव मंत्रमुग्ध स्वर में बोला ।
“हां । किस कबीले की यह ईजाद है, वे किसी के कत्ल की बड़ा गंभीर और जिम्मेदारी का मामला समझते हैं । वे कहते हैं कि मारने वाले को भी अपने कुकृत्य का एहसास होना चाहिए और इसीलिए यह चाकू बनाया गया है कि जब हत्प्राण का खून बहे तो हत्यारे का भी खून बहे ।”
“कमाल है ! देखने में तो हैंडल में कोई खासियत दिखाई नहीं देती ।”
“लेकिन है ।”
“तुम मुझे कोई कहानी तो नहीं सुना रहे हो ?”
“यह कहानी नहीं, हकीकत है और तुम्हारे केस का हल है । जिस किसी ने भी चौधरी के सीने में खंजर उतारा है, उसकी हथेली तुम्हें घायल मिलेगी ।”
यादव का ध्यान मेरी बात की तरफ नहीं था । वह बड़ी बारीकी से चाकू के हैंडल का मुआयना कर रहा था और मेरी बात से कतई आश्वस्त नहीं लग रहा था ।
एकाएक उसने चाकू को हैंडल से थमा और उसका एक भीषण प्रहार लकड़ी की मेज पर किया । चाकू का फल लकड़ी में धंस गया । उसने तुरंत दस्ते पर से अपना हाथ हटा लिया । चाकू झनझनाता हुआ कुछ क्षण आगे-पीछे झूलता रहा और फिर स्थिर हो गया ।
यादव हक्का-बक्का सा अपनी हथेली को देख रहा था, जिस पर से उस वक्त खून के बड़े सूक्ष्म फव्वारे छूट रहे थे।
“मुझे दर्द तो नहीं हो रहा ।” – वह बोला ।
“इसलिए क्योंकि पंक्चर वूंड (जख्म) सुई से भी बारीक है । लेकिन बाद में होगा ।
“ऐसा अनोखा चाकू तुम्हारे पास कहां से आया ?”
“उस कबीले की एक लड़की ने मुझे यह भेंटस्वरूप दिया था ।”
“मैं अभी कमला ओबराय को यहां तलब करता हूं । अगर उसकी हथेली घायल हुई तो खेल आज ही खत्म हो जाएगा ।”
“उसे ही क्यों तलब करते हो ? कस से संबन्धित सारे व्यक्तियों को एक जगह इकट्ठा क्यों नहीं करते हो ? इस तरह तुम अलग-अलग एक-एक के पीछे भागने से बच जाओगे ।”
“मुझे मिसेज ओबराय से आगे नहीं भागना पड़ेगा ।”
“शायद तुम्हारी यह मुराद पूरी न हो ।”
“लेकिन मिसेज ओबराय का हाथ तो मैं अभी देखूंगा ।”
“बहुत बड़ी गलती करोगे । अगर हत्यारी वह न हुई लेकिन हत्यारे से उसका गंठजोड़ हुआ तो वह हत्यारे को चेतावनी नहीं दे देगी कि तुम किस फिराक में हो !”
“हत्यारा क्या करेगा ? वह अपना हाथ काटकर फेंक देगा या उसे किसी स्वस्थ हाथ से बदल लेगा ?”
“वह गायब हो जाएगा और तब प्रकट होगा जब उसका हाथ एकदम ठीक हो चुका होगा ।”
वह बात यादव को जंची ।
“ठीक है ।” - वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - “आज शाम आठ बजे मैं केस से संबन्धित सारे लोगों को मिसेज ओबराय की कोठी पर जमा करूंगा । तुम भी आना ।”
“मैं जरूर आऊंगा । और तुम बंबई पुलिस से संपर्क जरूर करना ।”
“करूंगा । कल मुझे लैजर बुक मिल जाये ।”
“जरूर मिल जाएगी ।”
“न मिली तो तुम्हारी खैर नहीं ।”
“न का कोई मतलब ही नहीं ।”
“फूटो ।”
“यानि कि मैं आजाद हूं ?”
“अब क्या लिखकर देना होगा ?”
“नहीं । ऐसे ही चलेगा ।”
मैं वहां से विदा हो गया ।
मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा ।
वहां अपने फ्लैट के आगे मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी न दिखाई दी ।
यानी कि एलैग्जैण्डर या उसके चमचे का एक फेरा और वहां लग चुका था ।
अपने फ्लैट में मुझे वो अव्यवस्था न दिखाई दी जो कि पुलिस और एलैग्जैण्डर के आदमियों के वहां आगमन के बाद अपेक्षित थी । मैं यह तक अंदाजा न लगा सका कि चौधरी की लाश मेरे बैडरूम में पाई गई थी या ड्राइंगरूम में ।
अच्छी और संतोषजनक खबर यह थी कि लैजर बुक टॉयलेट में अपनी जगह मौजूद थी ।
मैंने ऑफिस में फोन किया ।
“दिस इज यूअर एम्प्लायर स्पीकिंग ।” - रजनी लाइन पर आई तो मैं बोला ।
“नहीं हो सकता ।” - मेरी मेहरबान सैक्रेट्री बोली - “मेरा एम्प्लायर तो जेल में है ।”
“अरे, मैं ही बोल रहा हूं ।”  मैं झल्लाया - “सुधीर कोहली ।”
“कमाल है ! यानी कि अब जेल की कोठरियों में भी टेलीफोन लग गए हैं !”
“मैं अपने फ्लैट से बोल रहा हूं ।”
“अच्छा ! बड़ी जल्दी छूट गए आप !”
“अफसोस हो रहा होगा तुम्हें इस बात का !”
“नहीं, मैं तो आपके लिए बहुत फिक्रमंद थी ।”
“फिक्रमंद थी तो कुछ किया नहीं ?”
“क्या करती ?”
“किसी वकील के पास जाती । मुझे जमानत पर छुड़ाने की कोशिश करती ।”
“सॉरी । भूल गयी । अगली बार ऐसा ही करूंगी ।”
“यानि कि तुम्हें भूल-सुधार का मौका देने के लिए मुझे फिर गिरफ्तार होना पड़ेगा ?”
“कितने समझदार हैं आप !”
“और कितनी कमबख्त हो तुम !”
वह हंसी ।
“हंस रही हो ? यानी कि बेवकूफ भी हो ? यह भी नहीं जानती हो कि कब हंसना होता है, कब रोना होता है ?”
“जानती हूं । हंस रही हूं लेकिन फूट-फूटकर । चाहें तो आकर देख लीजिये ।”
“मेरा कोई फोन आया था ?”
“सिर्फ मिसेज ओबराय का । मैं उसे समझाया कि आप जेल में थे और वहां से आपके छूटते-छूटते सन बदल सकता है लेकिन वो है फिर भी बार-बार फोन किए जा रही है । दिलोजान से फिदा मालूम होती है वो आप पर ।”
जवाब मैंने फोन बंद करके दिया ।
मैंने कमला ओबराय को फोन किया ।
वह लाइन पर आई तो मैं बोला - “कोहली बोल रहा हूं ।”
“जेल से छूट गए !” - वह बोली ।
“हां ।”
“कैसे छूटे ?”
“वैसे ही जैसे कोई बेगुनाह आदमी छूटता है ।”
“लेकिन पेपर में तो...”
“पेपर को छोड़ो । तुम्हारी जानकारी के लिए खुद पुलिस मेरी गवाह है कि चौधरी का खून मैंने नहीं किया ।”
“अच्छा ! वो कैसे ?”
“कल रात पुलिस का एक आदमी तुम्हारी कोठी की निगरानी कर रहा था । वही इस बात का गवाह है कि कल सारी रात मैं कोठी से बाहर नहीं निकला था ।”
उसके छक्के छूट गए ।
“क..कोई पुलिस का आदमी….क..कोठी की निगरानी कर रहा था ?”
“हां ।”
“ऐसा नहीं हो सकता !”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“अगर ऐसा कोई आदमी होता तो…”
“तो वह तुम्हें दिखाई दिया होता । यही कहने जा रही थीं न तुम ?”
“सुधीर, मैं तुमसे मिलना चाहती हूं ।”
“जरूर । मैं शाम को हाजिर होऊंगा ।”
“अभी आओ ।”
“अभी मुमकिन नहीं । अभी मुझे बहुत काम है ।”
“लेकिन मेरे काम की अहमियत तुम्हारी निगाह में ज्यादा होनी चाहिए । आखिर मैं...”
“सी यू स्वीटहार्ट !”
मैंने लाइन काट दी ।
अब शाम तक तो वह यह सोच-सोचकर तड़पती कि पिछली रात का उसका कोठी से डेढ़ घंटे के लिए गायब होना कोई राज नहीं रहा था ।
मैंने नहा-धोकर नए कपड़े पहने ।
फिर टॉयलेट की टंकी में से मैंने लैजर बुक निकाली और उसे लेकन एन ब्लाक मार्केट पहुंचा । वहां से मैंने लैजर बुक के हर पेज की जेरोक्स कॉपी बनवाई ।
मैं करोल बाग पहुंचा । हरीश पाण्डे अपने घर पर मौजूद था जो कि अच्छा था । वह वहां न मिलता तो मुझे उसकी तलाश में कई जगह भटकना पड़ता ।
हम बैठ गए तो मैंने सवाल किया - “अब जरा ठीक से बताओ । कल क्या हुआ था ?”
“कल मैंने बताया तो था ।”
“वो पुलिस को बताया था ।”
“एक ही बात न हुई ?”
“नहीं हुई । और मेरे साथ ज्यादा पसरने की कोशिश मत करो । कल तुम्हारे माथे पर लिखा था कि तुम पुलिस को मुकम्मल बात नहीं बता रहे थे ।”
“लेकिन...”
“अब बक भी चुको ।”
“अच्छा, सुनो । साढ़े सात बजे के करीब मैं वहां पहुंचा था । अभी मैं बंगले का जुगराफिया ही समझने की कोशिश कर रहा था कि वहां एक टैक्सी पहुंची थी और हाथ में एक एयरबैग लिए एक सूट-बूटधारी व्यक्ति उसमें से बाहर निकला था । वह सीधा जूही चावला के बंगले में दाखिल हो गया था ।”
“तुम कहां थे ?”
“सड़क के पार । एक लैम्पपोस्ट के पीछे ।”
“फिर ?”
“बंगले के मुख्यद्वार पर जाकर उसने कॉलबैल बजाई । दरवाजा खुला । वह भीतर दाखिल हो गया और मेरी निगाहों से ओझल हो गया । मैं बदस्तूर बाहर जमा रहा । फिर कोई पौने घंटे के बाद दरवाजा खुला और एयरबैग वाला जो आदमी भीतर गया था, वह एक खूबसूरत औरत के साथ बाहर निकला । वे दोनों कम्पाउंड में खड़ी एक सफेद मारुति में सवार हो गए । ड्राइविंग सीट पर औरत बैठी थी और वह आदमी उसकी बगल में । फिर कार वहां से चली गई । दस-पंद्रह मिनट मैंने बंगले से बाहर ही बिताये । जब वह कार वापिस न लौटी तो मैंने बंगले के कम्पाउंड में कदम रखा । कई बार मेंने कॉलबैल बजाई । दरवाजा भी ट्राई किया लेकिन वो बंद था । मैंने यही समझा कि मेरे वहां पहुंचने से पहले ही जूही कहीं चली गई थी । मैं उसके इंतजार में बंगले के बरामदे में बैठ गया ।”
“यानि कि जो औरत मारूती पर वहां से गई थी, वो जूही नहीं थी ?”
“नहीं ।”
“फिर ?”
“फिर कोई एक घंटा मैं वहां बैठा रहा । जब कोई मुझे पहुंचता न दिखाई दिया तो मैं पिछवाड़े में पहुंचा । पिछवाड़े के भी तमाम दरवाजे बंद थे लेकिन वहां किचन के दरवाजे और रोशनदान की झिर्रियों में से निकलती गैस की गंध मेरे नथुनों से टकराई । मैंने रोशनदान पर चढ़कर भीतर किचन में झांका तो मैंने जूही को किचन के फर्श पर पड़ा पाया । तब मैंने पुलिस को फोन कर दिया ।”
“जो आदमी टैक्सी पर वहां आया था, उसका हुलिया बयान करो ।”
“नाम ही न बता दूं उसका ?”
मैंने घूरकर पाण्डेय को देखा ।
“तुम्हें उस शख्स का नाम मालूम है ?”
“हां ।”
“क्या नाम है उसका?”
“सोनी साहब ।”
“तुम्हें कैसे मालूम? तुम उस आदमी को पहचानते हो ?”
“नहीं ।”
“तो?”
“कॉलबैल के जवाब में जब जूही ने बंगले का दरवाजा खोला था तो उसने उस शख्स की शक्ल देखते ही बड़ी घबराहट में कहा था - “सोनी साहब, आप फिर आ गए ?”
“तुमने उसे सोनी साहब कहते साफ सुना था ?”
“हां ।”
“उसका हुलिया फिर भी बयान करो ।”
उसने किया ।
वह सरासर वकील बलराज सोनी का हुलिया बयान कर रहा था ।
मैं गोल्फ लिंक पहुंचा ।
वहां ओबराय की कोठी के कम्पाउंड में जहां कई वाहन खड़े थे, वहां उनमें एक पुलिस जीप भी थी ।
विशाल ड्राइंगरूम में मुझे सब लोग मौजूद मिले । वकील बलराज सोनी और कमला ओबराय एक तरफ एक सोफे पर बैठे थे और सिर जोड़े किसी बड़ी संजीदा बात पर बहस मुबाहसा कर रहे थे । एलैग्जैण्डर और शैली भटनागर एक अन्य सोफे पर इकट्ठे बैठे दिखाई दिए । उनमें भी गुफ्तगू का माहौल गर्म था । कस्तूरचन्द और सब-इंस्पेक्टर यादव एक -एक सोफाचेयर पर अकेले बैठे थे ।
मैंने देखा, कस्तूरचन्द अपने हाथों में सफेद सूती दस्ताने पहने था ।
सबकी निगाह मुझ पर पड़ी लेकिन मेरी क्लायंट समेत किसी के भी चेहरे पर ऐसा भाव न आया जैसे किसी को मेरे आगमन से खुशी हुई हो । अलबत्ता यादव अपने स्थान से उठा और मेरे करीब आकर मुझे बांह पकड़कर ड्राइंगरूम से बाहर स्विमिंग पूल वाली साइड के लॉन में ले आया ।
“मैंने बम्बई पुलिस से बात की थी ।” - वह बोला ।
“अच्छा ! क्या मालूम हुआ ?”
“यह कि शैली भटनागर कभी बम्बई में अमरजीत ओबराय का मैनेजर हुआ करता था । उसी ने कम्पनी के माल का कुछ ऐसा घोटाला किया था कि पुलिस केस बन गया था । तब वे एक फाइनांस कम्पनी चलाते थे और घोटाला पब्लिक के पैसे से ताल्लुक रखता था । इस वजह से जेल दोनों ही जा सकते थे लेकिन ओबराय किसी तरह बच गया था और शैली भटनागर को दो साल कैद की सजा हुई थी । जेल से छूटकर भटनागर बम्बई छोड़कर दिल्ली आ गया था । तब से अब तक उसने फिर ऐसा कोई काम नहीं किया है जो इखलाकी या कानूनी तौर पर गलत समझा जाये ।”
“बशर्ते कि उसने ओबराय का कत्ल न किया हो जो कि इखलाकी और कानूनी दोनों ही तरीकों से गलत काम है ।”
“वह कातिल हो सकता है ?”
“उद्देश्य तो है उसके पास । आखिर ओबराय ने अपने आपको सेफ करके उसे जेल भिजवाया था ।”
“यह तो कई साल पुरानी बात है !”
“कई लोगों की बासी कढ़ी में उबाल कुछ ज्यादा ही देर से आता है ।”
“उसके पास ओबराय के कत्ल के वक्त की एलीबाई है ।”
“तुमने चैक की है उसकी एलीबाई ?”
“हां ।”
“कस्तूरचन्द दस्ताने पहने हुए है ।”
“मैंने देखा है । अभी मालूम करते हैं कि वह क्यों दस्ताने पहने है ।”
हम वापिस ड्राइंगरूम में दाखिल हुए ।
यादव फौरन ही कस्तूरचन्द से मुखातिब हुआ - “आप बरायमेहरबानी अपने दस्ताने उतारिये ।”
“काहे ?” - कस्तूरचन्द हड़बड़ाया ।
“जो कहा जाये वो कीजिये ।”
“पिरन्तु काहे को ? म्हारे दस्तानों से आप नें के तकलीफ हुई गई ?”
“आपको एतराज है दस्ताने उतारने से ?”
“एतराज तो नां है, पिरन्तु फिर भी थुम म्हारे नें दस्ताने पहने ही रहण दो ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि म्हारे दोनों हाथां पर लाल – लाल छाले पड़े हुए सूं और कई जगहों सूं खाल फटी पड़ी सूं । नजारा घना खराब सूं । देक्खा न जावेगा थारे सूं ।”
“ऐसा कैसे हो गया?”
“म्हारे बागवानी के शौक से हो गया । कोई जहरीला कांटा चुभ गया दोनों हाथां मां ।”
“फिर भी आप दस्ताने उतारिये । हम नजारा बर्दाश्त कर लेंगे ।”
“अजीब बात सूं या तो । आप म्हारे दस्तानों के पीछू के पड़े हुए सूं ?”
“कस्तूरचन्द जी । प्लीज ! कहना मानिए । यह एक पुलिस इनक्वायरी है, जिसके लिए आपको दस्ताने उतारना जरूरी है ।”
“अच्छा !”
उसने दोनों दस्ताने उतारे और अपने हाथ सामने फैला दिए ।
नजारा वाकई हौलनाक था । उसकी हथेलियां सूजकर लाल सुर्ख हो गई थीं और उन पर कुछ फूटे हुए और कुछ अभी भी सलामत छाले दिखाई दे रहे थे । ऊपर से दोनों हथेलियों पर कोई सफेद मलहम सी मली दिखाई दे रही थी ।
उतना बुरा हाल मेरे अनोखे चाकू से, और वह भी दोनों हथेलियों का, नहीं हो सकता था ।
“शुक्रिया ।” - यादव तनिक आंदोलित स्वर में बोला - “आप दस्ताने पहन लीजिये ।”
वह दस्ताने पहन चुका तो तभी मौजूद लोगों ने दोबारा उसकी तरफ निगाह डाली ।
“साहबान” - यादव गंभीरता से बोला - “तीन दिन में तीन कत्ल हो चुके हैं और हालात बताते हैं कि तीनों कत्ल किसी एक आदमी का काम है । यहां आप लोगों को इसलिए तलब नहीं किया गया क्योंकि हमें आप में से किसी के कातिल होने का शक है बल्कि आपको इसलिए तलब किया गया है कि आप सब लोग किसी-न-किसी रूप में किसी-न-किसी हत्प्राण से सम्बंधित थे और आप हमें ऐसा कुछ बता सकते हैं जो कि इन हत्याओं के केस को सुलझाने में मददगार साबित हो सकता है । मसलन मिसेज ओबराय पहले हत्प्राण की बेवा हैं और कस्तूरचन्द जी एक तरह से पहले हत्प्राण के लैंडलार्ड थे । मिस्टर एलैग्जेंडर का हत्प्राण नम्बर तीन, चौधरी, कर्मचारी था । सोनी साहब हत्प्राण नम्बर एक के वकील थे और मिस्टर भटनागर हत्प्राण नंबर दो, जूही चावला, के एम्प्लायर थे । सुधीर कोहली एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो कि मौजूदा केस में मिसेज ओबराय की मुलाजमत में है ।”
एक-एक नाम लेते समय यादव उनके हाथों का भी मुआयना कर रहा था । मेरी भी निगाह हर किसी की दायीं हथेली पर थी ।
किसी भी हथेली पर चाकू के दस्ते से बने पंक्चर मार्क नहीं थे ।
“मैं आपसे उम्मीद करता हूं” - यादव आगे बढ़ा - “कि एक जिम्मेदार शहरी होने के नाते आप पुलिस को सहयोग देंगे ताकि अपराधी गिरफ्तार हो सके और अपने किये की सजा पा सके । मुझे उम्मीद है कि आप लोग मेरे इस सवाल का सीधा, सच्चा और ईमानदाराना जवाब देंगे । कोई-न-कोई सवाल आपको नागवार भी गुजर सकता है लेकिन उसका भी जवाब आप पुलिस पर यह भरोसा दिखाते हुए दीजियेगा कि उसका पूछा जाना जरूरी था ।”
सबने बड़ी संजीदगी से सहमति में सर हिलाया ।
“तो मैं आप लोगों से सहयोग की उम्मीद रखूं ?”
सबने हामी भरी ।
“मिस्टर एलैग्जैण्डर, आपका आदमी चौधरी कोहली के फ्लैट में मरा पाया गया । हमें पहले से गारंटी न होती कि कोहली उसके कत्ल के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता था तो जरूर कोहली इस वक्त हवालात में होता । मैं आपसे यह पूछना चाहता हूं कि चौधरी कोहली के फ्लैट में कैसे पहुंच गया ?”
“जरूर कोहली से बदला उतारने की नीयत से ही पहुंचा होगा ।” - एलैग्जैण्डर सहज भाव से बोला - “परसों रात कोहली उसकी इतनी धुनाई जो करेला था । चौधरी यूं किसी से चुपचाप पिट जाने वाला आदमी नहीं था ।”
“यानी कि आपने उसे कोहली के यहां नहीं भेजा था ?”
“अपुन ने ? काहे कू ? कोहली की धुलाई के वास्ते ?”
“नहीं । किसी ऐसी चीज की तलाश के वास्ते जिसके आप तलबगार थे और जो कोहली के फ्लैट में हो सकती थी ।”
“अपुन ऐसा नहीं कियेला है । कोहली !”
“हां ।” - मैं हड़बड़ाकर बोला ।
“तेरे को मालूम, अपुन खुद तेरे फ्लैट की तलाशी लियेला था ?”
“मालूम !”
“फिर ? जो एक काम अपुन खुद कियेला था, उसी को दोबारा चौधरी से कराने का मतलब ? क्या अपुन चौधरी जितना काबिल और होशियार आदमी भी नहीं ?”
मुझे कबूल करना पड़ा कि उसकी दलील में दम था ।
“आपको” - यादव बोला - “तलाश किस चीज की थी ?”
“थी कोई चीज ।” - एलैग्जैण्डर बोला - “उस चीज का कत्ल से कोई वास्ता नहीं । अपुन के पास इस बात के आधा दर्जन गवाह हैं कि जिस वक्त ओबराय का कत्ल हुआ था, उस वक्त अपुन छतरपुर से दो दर्जन मील दूर राजेन्द्रा प्लेस में, अपने ऑफिस में बैठेला था । जिस वक्त जूही चावला का खून हुआ था, उस वक्त अपुन पंजाबी बाग में उन्हीं छः गवाहों के साथ अपने घर पर बैठेला था । चौधरी के कत्ल के वक्त भी अपुन अपने घर पर बैठेला था । अपुन को नहीं मालूम कि चौधरी कोहली के फ्लैट में किस वास्ते गया । वह गया तो अपनी मर्जी से गया । बस अपुन को और कुछ नहीं कहने का है ।”
“कोहली कहता है कि कल रात आपके आदमियों ने इसको अगुवा किया, इसे आपकी कोठी पर जबरन बन्दी बनाकर रखा और इसे मारा पीटा ।”
“यह बण्डल मारेला है । उलटे इसी ने अपुन की कोठी पर आकर अपुन के दो आदमियों को मारा पीटा । बहुत गर्म मिजाज है इसका ।”
“यह आपकी कोठी पर आया क्यों था ?”
“मेरे से कोई बात करने का था । वहां बात तो कुछ किया नहीं, उलटे बद्तमीजी करने लगा और मेरे आदमियों से उलझने लगा ।”
“इसने आपके आदमियों को मारा पीटा ?”
“बरोबर ।”
“आपने इसके खिलाफ रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई ?”
“अपुन की कोठी में जब चूहा घुसेला है तो उसे अपुन खुद खलास करेला है । उसके लिये अपुन कमेटी के दफ्तर नहीं जाना मांगता ।”
“आप कोहली को मौत की धमकी दे रहे हैं ? मेरे सामने धमकी दे रहे हैं ?”
“अपुन तो एक चूहे की बात करेला है ।” - एलैग्जैण्डर लापरवाही से बोला - “अगर यह चूहा है तो यह इसे अपने लिये धमकी समझ सकता है ।”
यादव एलैग्जैण्डर को घूरने लगा । उस पर अपने घूरने का कोई असर न होता पाकर वह कस्तूरचन्द की तरफ घूमा ।
“आपने मुझे बताया था कि ओबराय के कत्ल के वक्त आप सिनेमा देख रहे थे । अब बरायमेहरबानी यह बताइये कि जूही चावला और चौधरी के कत्ल के वक्त आप कहां थे ?”
“मैं अपने घर पर था, जी ।” - कस्तूरचंद बोला ।
“घर पर और कौन था ?”
“कोई नहीं ।”
“हमेशा ही घर पर कोई नहीं होता या कल नहीं था ?”
“कल नहीं था ।”
“यानी कि आपकी बात के सच होने की गवाही देने वाला कोई नहीं ?”
“कोई नहीं ।” - कस्तूरचन्द बड़ी सादगी से बोला ।
“मिस्टर भटनागर, आप आखिरी बार जूही चावला से कब मिले थे ?”
“पांच-छः दिन हो गए ।” - भटनागर बोला - “तब वह मेरे ऑफिस में आई थी और हमने एक सिल्क मिल की साड़ियों के विज्ञापन की एक नई सीरीज के बारे में विचार-विमर्श किया था ।”
“तब वह आपको किसी बात से डरी या सहमी हुई लगी थी ?”
“नहीं ।”
“उसके हाव-भाव, व्यवहार में कोई असाधारण बात नोट नहीं की थी आपने ?”
“न ।”
“आपका उससे क्या रिश्ता था ?”
“वही जो एक फैशन मॉडल का एक ऐड एजेंसी के हैड से हो सकता है ।”
“यानी कि बिजनेस के अलावा आपका उससे कोई रिश्ता नहीं था ?”
“नहीं था ।”
“कोई रोमांटिक, कोई इमोशनल अटैचमेंट ?”
“न न ।”
“तीनों कत्लों के वक्त आप कहां थे?”
“मैं अपने ऑफिस में था ।”
“चौधरी का कत्ल तो आधी रात के बहुत बाद हुआ था । तब भी आप अपने ऑफिस में थे ?”
“जी हां । कल रात मैं वहीं सोया था । मेरे ऑफिस में एक छोटा सा बैडरूम भी है । कई बार जब वहां बहुत देर हो जाती है और मेरा घर जाने का मूड नहीं होता तो वहीं सो रहता हूं ।”
“इस बात का कोई गवाह कि कल रात आप अपने ऑफिस में ही सोये थे ?”
“वहां के चौकीदार के अलावा कोई नहीं ।”
“आप मिस्टर एलैग्जैण्डर से वाकिफ हैं?”
“हां, हूं ।”
“खूब अच्छी तरह से ?”
“हां ।”
“आपने कभी कोई एकमुश्त मोटी रकम इन्हें दी है ?”
वह हिचकिचाया । उसने व्यग्र भाव से एलैग्जैण्डर की तरफ देखा । एलैग्जैण्डर ने अपना पाइप सुलगा लिया था और उसके कश लगाता हुआ अपलक भटनागर को देख रहा था ।
“जवाब दीजिये ।” - यादव जिदभरे स्वर में बोला ।
“हां” - भटनागर एलैग्जैण्डर की तरफ से निगाह फिराकर बोला - “दी है ।”
“कितनी बड़ी रकम?”
“बीस हजार रुपये ।”
“किसलिए ?”
भटनागर फिर खामोश हो गया । एकाएक वह बहुत व्याकुल दिखाई देने लगा था ।
उसी क्षण वहां एक हवलदार के साथ एक युवक ने कदम रखा । उसकी जेब के ऊपर एक तिकोना बिल्ला लटका हुआ था जो कि उसके टैक्सी ड्राईवर होने की चुगली कर रहा था । दोनों यादव के समीप पहुंचे । हवलदार ने यादव के कान के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा । यादव ने सहमती में सिर हिलाया और फिर युवक को आंख के इशारे से आदेश दिया ।
युवक बारी-बारी वहां मौजूद हर आदमी की सूरत देखने लगा ।
उसकी निगाह वकील बलराज सोनी पर अटक गई ।
“ये वो साहब हैं” - फिर वह उसकी उंगली उठाता हुआ बोला - “जिन्हें मैं कल रात आठ बजे के करीब नारायण विहार के सत्तर नम्बर बंगले पर छोड़कर आया था ।”
यादव कुछ क्षण टैक्सी वाले से कुछ सवाल पूछता रहा । फिर उसने उसे रुखसत कर दिया और वह बलराज सोनी की तरफ आकर्षित हुआ । वह उसे ड्राइंगरूम के एक कोने में ले गया और ऐसे दबे स्वर में उससे मुखातिब हुआ कि उनके करीब जाये बिना वार्तालाप सुन पाना मुमकिन न था ।
कमला मेरे करीब पहुंची ।
“जरा इधर आओ ।” - वह बोली ।
“इधर” उस रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल ड्राइंगरूम का दूसरा कोना था ।
“क्या बात है ?” - मैं बोला ।
“सुधीर” - वह व्याकुल भाव से बोली - “मेरी मदद करो ।”
“क्या मदद करूं ?”
“यह इंस्पेक्टर जानता है कि चौधरी के कत्ल के वक्त में यहां कोठी में नहीं थी ।”
“यह तो मैं भी जानता हूं लेकिन मदद क्या चाहती हो तुम ? मैं यह साबित कर के दिखाऊं कि यह बात गलत है कि कल रात तुम पूरा डेढ़ घंटा यहां से गायब रही थीं ? मैं स्याह को सफेद कर के दिखाऊं ?”
“तुम भी समझते हो, चौधरी का खून मैंने किया है ?”
“मेरी समझ से कुछ नहीं होता । सवाल इस बात का है कि पुलिस क्या समझती है ! तुम्हारी हर हरकत शक पैदा करने वाली है और तुम्हारी कोई हरकत पुलिस से छुपी नहीं । यादव तुम्हें किसी भी क्षण गिरफ्तार कर सकता है ।”
वह खामोश रही ।
“मैं तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं, शुरू से ही तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं । तुम्हारी खातिर अपने आपको खतरे तक में डाला है । अगर तुम फंस गई तो तुम्हारे मददगार के तौर पर मेरा भी फंस जाना लाजमी है । फिर भी तुमने मेरे साथ धोखा किया ।”
“मैंने क्या धोखा किया तुम्हारे साथ ?”
“तुमने कल रात मुझे विस्की में बेहोशी की दवा मिलाकर नहीं पिलाई ?”
“हरगिज नहीं ।”
“तुम्हारे बैडरूम में मैं होश में था ?”
“नहीं । लेकिन होश तुमने नशे की वजह से खोया था ।”
“पागल हुई हो ! मैंने आज तक बोतल पी के होश नहीं खोया ।”
“सुधीर, मेरा विश्वास करो, मैंने तुम्हें बेहोशी की दवा नहीं पिलाई । मैंने किसी का कत्ल नहीं किया ।”
“तो फिर रात के दो बजे तुम कहां गई थीं ? क्या करने गई थीं ?”
“मुझे किसी का फोन आया था । ऐसा फोन आया था जिसे सुनकर मेरा यहां से जाना जरूरी हो गया था ।”
“ऐसा क्या जरूरी फोन था?”
“ऐसा ही जरूरी फोन था ।”
“किसका?”
“बलराज सोनी का ।”
“उसने तुम्हें रात के दो बजे फोन किया था?”
“हां ।”
“और उस फोन कॉल के जवाब में तुम्हें आनन-फानन यहां से जाना पड़ा था ?”
“हां ।”
“ऐसी क्या आफत आ गई थी ?”
“आफत ही आ गई थी ।”
“क्या ?”
“वह आत्महत्या करने पर आमादा था ।”
तभी यादव और बलराज सोनी हमारे करीब पहुंचे । हमारे वार्तालाप का आखिरी हिस्सा शायद उन्होंने भी सुना ।
यादव के चेहरे पर उलझन के भाव थे ।
“मिसेज ओबराय” - वह सख्ती से बोला - “मैं आपसे एक बड़ा सीधा सवाल पूछ रहा हूं । बरायमेहरबानी मुझे उसका सीधा और सच्चा जवाब मिल जाये । कल रात दो बजे से लेकर साढ़े तीन बजे तक आप कहां थीं ?”
“मैं” - वह बोली - “सोनी साहब के साथ इनके फ्लैट में थी ।”
“इतनी रात गये आप वहां क्या करने गई थीं ?”
“यह मेरा जाती मामला है ।”
तब तक बाकी लोग भी उठकर हमारे करीब आ गए थे ।
“आप सोनी साहब से मुहब्बत करती हैं ?”
बलराज सोनी ने यूं कमला की तरफ देखा जैसे उस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए वह यादव से ज्यादा व्यग्र हो ।
“नहीं ।” - कमला कठिन स्वर में बोली ।
“लेकिन सोनी साहब आपसे मुहब्बत करते हैं और आपसे शादी करना चाहते हैं ?”
“हां । ये जबरदस्ती मेरे पीछे पड़े हुए हैं । कल रात दो बजे भी इसी बाबत इन्होने मुझे फोन किया था और मेरे इनकार की सूरत में फौरन आत्महत्या कर लेने की धमकी दी थी ।”
“आप इन्हें ऐसी किसी हरकत से रोकने के लिए इतनी रात गए वहां गई थीं ?”
“हां ।”
मुझे लगा यादव वह बात बलराज सोनी से पहले ही कुबुलवा चूका था ।
“आप सुन्दर नगर में स्थित इनके फ्लैट पर तीन बजे के करीब पहुंची थीं । यहां से सुन्दर नगर का फासला तो कार द्वारा मुश्किल से दस मिनट का है । फिर आपको वहां पहुंचने में इतनी देर क्यों लगी ?”
“क्योंकि मैं दुविधा में पड़ गई थी । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं जाऊं या न जाऊं । दो-तीन बार मैं रास्ते से वापिस लौटी थी । लेकिन अंत में मेरी अंतरात्मा मुझे बुरी तरह कचोटने लगी थी और मैं वहां चली गई थी । मेरी वजह से किसी की जान जाये, यह मुझे मंजूर नहीं हुआ था ।”
“हूं । कल शाम ये साहब जूही चावला के बंगले पर नारायण विहार भी पहुंचे थे । वहां ये साहब आपके साथ आपकी कार में वापिसी के लिए रवाना हुए थे लेकिन ये फरमाते हैं कि अपने थोड़ी ही दूर पहुंचने पर इन्हें रस्ते में ही उतार दिया था । ऐसा क्यों किया था आपने ?”
“क्योंकि ये कार में ही तमाशा खड़ा करने लगे थे । ऐसी हरकतें और बातें करने लगे थे जो इन्हें अपने दोस्त की बेवा से नहीं करनी चाहिए थीं ।”
“इन्हें रास्ते में उतारकर आप कहां गई थीं ?”
“सीधी यहां आई थी मैं ।”
“आप वापिस जूही चावला के बंगले पर नहीं गई थीं ?”
“नहीं ।”
उस उत्तर के बाद बड़े ही अप्रत्याशित ढंग से यादव ने कॉन्फ्रेंस वहीं समाप्त कर दी ।
वह औरत पतंगबाज थी तो वह पुलिसिया भी कम पतंगबाज नहीं था । ढील दे-देकर खींच रहा था । खींच-खींच कर ढील दे रहा था ।
लोग विदा लेने लगे ।
कमला ने मुझे रुकने के लिए इशारा किया ।
जाने से पहले एलैग्जैण्डर मेरे पास पहुंचा ।
“मेरे ऑफिस में आने का है ।” - वह बोला ।
“तौबा ! एक बार आया था” - मैं हातिमताई के अंदाज में बोला - “दोबारा आने की कतई हवस नहीं है ।”
“तो तू जगह बोल ?”
“मेरे फ्लैट में ।”
“कब ?”
“कल सुबह ।”
“कितना मांगता है ?”
“फिफ्टी ।”
“ठीक है । आयेंगा ।”
“अकेले आना ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया और वहां से विदा हो गया । बाकी लोग भी विदा हो गये । कमला पीछे स्टडी में चली गई । वहां केवल मैं और यादव रह गये ।
“लैजर बुक निकालो” - यादव बोला ।
“तुम कमला ओबराय को गिरफ्तार कर रहे हो ?”
“वो एक जुदा मसला है । उसका लैजर बुक से कोई वास्ता नहीं है ।”
“मेरी राय में सारे कत्ल एलैग्जैण्डर ने किये हैं या करवाए हैं ।”
“अपनी राय अपने पास रखो और लैजर बुक निकालो ।”
“अगर एलैग्जैण्डर को गिरफ्तार करने का इरादा हो तो बरायमेहरबानी उसे कल दोपहर बाद गिरफ्तार करना ।”
“लैजर बुक !”
मैंने जेब से लैजर बुक की जेरोक्स कापियां निकलकर उसे सौंप दी ।
“असल कहां है ?”
“असल कल मिलेगी ।”
“क्यों ? आज क्यों नहीं ? अभी क्यों नहीं ?”
“अभी वो मेरे पास नहीं है । मैं कल खुद लैजर बुक तुम्हारे पास पहुंचा दूंगा ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“कोई घोटाला करने की कोशिश न करना ।”
“नहीं करूंगा ।”
“बड़ी गारंटी कर रहे थे तुम” - अब उसके स्वर में व्यंग्य का पुट आ गया - “कि सबकी हथेलियां देखने पर यह पता लग जाएगा कि कत्ल किसने किये हैं । जिसकी हथेलियों पर पंक्चर मार्क होंगे वही हत्यारा होगा ।”
मैं खिसियानी-सी हंसी हंसा ।
“जानते हो !” - यादव बोला ।
“क्या ?”
“यहां मौजूद तमाम लोगों में से सिर्फ एक ही शख्स की हथेली में पंक्चर मार्क थे ।”
“किसकी ?” - मैं उत्तेजित स्वर में बोला ।
“मेरी ।” - उसने अपना दायां हाथ मेरे सामने फैला दिया ।
मुझे जवाब न सूझा ।
कमला मुझे स्टडी में मिली । वह बार के सामने खड़ी थी । उसके हाथ में ड्रिंक का गिलास था और उसका चेहरा फिक्रमंद और पीला लग रहा था ।
मेरे से बिना पूछे ही उसने मेरे लिए ड्रिंक तैयार कर दिया ।
मैं उसके करीब पहुंचा तो उसने खामोशी से गिलास मुझे थमा दिया ।
मैंने एक घूंट पिया और गिलास काउण्टर पर रख दिया ।
वह मेरे करीब आई । उसने मेरी आंखों में आंखें डाली । उसकी आंखों में ऐसा भाव था जैसे बकरी जिबह करने के लिए ले जाई जा रही हो । मैं कुछ ऐसा प्रभावित हुआ कि अपने आप ही मेरी बाहें खुल गईं । वह मेरे आगोश में आ गई और हौले-हौले सुबकने लगी । अपने होठों से उसके खूबसूरत कपोलों पर से आंसुओं की बूंदे चुनता हुआ मैं उसे दिलासा देता रहा । अंत में वह खामोश हुई और मुझसे अलग हुई ।
“तुम कुछ दिन यहीं ठहर जाओ ।” - वह बोली ।
“सॉरी, स्वीट हार्ट” - मैंने फिर अपना गिलास उठा लिया - “यह मुमकिन नहीं ।”
“या सिर्फ आज रात ।”
“क्यों ? क्या फिर मुझे बेहोश करके कहीं जाने का इरादा है ?”
“सुधीर, मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैंने तुम्हें बेहोशी की दवा नहीं पिलाई थी ।”
“छोड़ो । कोई और मतलब की बात करो ।”
“मतलब की बात क्या?”
“बीस हजार की डाउन पेमंट के बाद मुझे कुछ और रकम भी मिलने वाली थी ।”
“मिलेगी । जरूर मिलेगी ।”
“वह रकम मैं अभी चाहता हूं ।”
“क्यों ? क्योंकि तुम समझते हो मैं गिरफ्तार हो जाने वाली हूं और गिरफ्तार होकर फांसी चढ़ जाने वाली हूं ?”
मैं खामोश रहा । मेरे मन में ऐसा ही कुछ था ।
“तुम शायद भूल रहे हो कि मुझे इस झमेले से निकालने के बाद ही तुम उस रकम के हकदार बन सकते हो ।”
“तुम पर जो बीतनी है, वह आने वाले दो-तीन दिनों में सामने आ जायेगी । तुम मुझे एक हफ्ते बाद की तारीख डाल के चैक दे दो ।”
“बड़े बेमुरब्बत आदमी हो ।”
“सिर्फ पैसे के मामले में”
“अच्छी बात है । देती हूं चैक ।”
उसने मुझे एक लाख अस्सी हजार रुपये का चैक काट दिया । चैक हाथ में आने पर मैंने महसूस किया कि उस रकम का मालिक बनने के लिए अब मेरे लिए जरूरी था कि मैं या तो कमला को बेगुनाह साबित करके दिखाऊं और या किसी अत्यंत विश्वसनीय तरीके से उसका अपराध किसी और के सिर थोपकर दिखाऊं ।
और इस काम के लिए एक कैंडिडेट था मेरी निगाह में - जान पी एलैग्जैण्डर ।
अगली सुबह जान पी एलैग्जैण्डर मेरे फ्लैट पर पहुंच गया ।
“वैलकम ।” - मैं बोला ।
उसने खमोशी से मेरे फ्लैट में कदम रखा ।
“तुम जरा बैठो ।” - मैं बोला - “मैं अभी आया ।”
“किधर जाने का है?” - वह बोला ।
“ज्यादा दूर नहीं । जरा नीचे तक । यह तस्दीक करने के लिए कि तुम अकेले आये हो ।”
“अबे छोकरे, किसी का विश्वास करना सीख ।”
“सीखूंगा । सीखने के लिए अभी सारी उम्र पड़ी है ।”
मैंने नीचे का चक्कर लगाया । नीचे ड्राईवर तक नहीं था । वह अपनी इम्पाला खुद चला कर आया था ।
मैं वापिस लौटा ।
“एक बात बताओ ।” - मैं बोला ।
“क्या ?” - एलैग्जैण्डर बेसब्रेपन से बोला ।
“तुम्हारी लैजर ओबराय के हाथ कैसे पड़ गई ?”
“अपुन का एक बहुत भरोसे का आदमी अपुन को धोखा दियेला था । वह लैजर की बाबत खबर रखेला था । उसने लैजर चोरी करके ओबराय को बेच दी ।”
“वह आदमी अब कहां है?”
“वहीं जहां ऐसे धोखेबाज आदमी को होना चाहिए ।”
“कहां ?”
“जहन्नुम में ।”
“ओबराय के कत्ल की खबर तुम्हें इतनी जल्दी कैसे लग गई कि तुमने आनन-फानन चौधरी को उसकी स्टडी की तलाशी लेने भेज दिया ।”
“वजह वो नहीं जो तू सोचेला है । अपुन का ओबराय के कत्ल से कोई वास्ता नहीं ।”
“तो फिर ?”
“पुलिस में अपुन का एक सोर्स है । उसी ने फोन पर बताया था ।”
“लेकिन....”
“कोहली, अपुन इधर तेरी इन्क्वायरी के लिए नहीं आयेला है । लैजर के लिए आयेला है । लैजर निकाल ।”
“पहले माल निकालो ।”
उसने सौ - सौ के नोटों की पांच गड्डी मेरे सामने फेंकी ।
मैंने जेब से लैजर बुक निकालकर उसकी तरफ उछाल दी और नोटों की तरफ हाथ बढ़ाया ।
उसके बाद वही हुआ जिसके होने की मुझे उम्मीद थी ।
एलैग्जैण्डर के हाथ में एक रिवॉल्वर प्रकट हुई ।
“खबरदार !” - वह बोला ।
मैं ठिठक गया ।
“छोकरे, तूने वाकई सोच लिया था कि तू एलैग्जैण्डर को ब्लैकमेल कर सकता था ।”
मैं ब्लैकमेल नहीं कर रहा हूं ।” - मैं धैर्यपूर्ण स्वर में बोला - “मैं माल की कीमत हासिल कर रहा हूं ।”
“जो माल तेरा नहीं तू उसकी कीमत कैसे हासिल करेला है ।”
उसने नोट उठा लिए ।
“तुम मुझे डबल क्रॉस कर रहे हो?”
“ऐसा समझना चाहता है तो ऐसा समझ ले ।”
“मैंने तो समझ लिया । अब तुम भी समझ लो ।”
“क्या ?”
“कि डबल क्रॉस करने वाले को भी डबल क्रॉस किया जा सकता है ।
“मतलब ?”
“इस लैजर बुक के हर वर्के की फोटोकॉपी सब-इंस्पेक्टर यादव के पास पहुंच चुकी है ।”
उसके नेत्र फैल गये । फिर उनमें शोले धधकने लगे । उसने कहर भरी निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
“हरामजादे !” - वह दांत पीसता हुआ बोला - “हरामजादे !”
गोली चलाने की जगह उसने रिवॉल्वर को मेरी कनपटी पर दे मरने की कोशिश की । मैंने झुकाई देकर वार बचाया और अपने दायें हाथ का प्रचंड घूंसा उसके जबड़े पर रसीद किया । मेरे दूसरे हाथ का घूंसा उसके पेट में पड़ा । वह पीछे को लड़खड़ाया । उसे संभलने का मौका दिए बिना मैंने उस पर कई वार कर दिये । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई और वह मेरे सोफे पर जाकर ऐसा गिरा कि फिर न उठा ।
मैंने फर्श पर से उसकी रिवॉल्वर उठाई । मैंने उसमें से गोलियां निकाल लीं और रिवॉल्वर उसके सामने मेज पर रख दी । फिर मैंने उसकी जेब में से लैजर और पचास हजार के नोट निकाले । नोटों में से पहले मेरा इरादा सिर्फ अपने बाईस हजार रुपये वापिस हासिल करने का था लेकिन फिर मैंने वे सभी नोट अपने अधिकार में कर लिए ।
मैं उसके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
कोई और दो मिनट बाद वह होश में आया । अपने आपको सोफे पर गिरा पड़ा पाकर वह हड़बड़ाकर सीधा हुआ । फिर सामने पड़ी रिवॉल्वर पर झपटा ।
“खाली है ।” - मैं उसे गोलियां दिखाता हुआ बोला ।
रिवॉल्वर उसने फिर भी उठाकर पतलून की बैल्ट में खोंस ली ।
फिर उसने अपनी जेबें टटोलनी आरम्भ कीं ।
“पचास हजार रुपये मैंने तुम्हारी जेब से निकाल लिए हैं । इनमें से बाईस हजार रुपये तो मेरे ही हैं । बाकी के अट्ठाईस हजार रुपये मेरी रकम का ब्याज और उस मार का खामियाजा समझकर मैंने अपने पास रख लिए हैं जो कि मैंने तुम्हारे आदमियों से खाई है ।”
“हरामजादे ।” - वह सांप की तरह फुंफकारा ।
“वो तो मैं हूं ही ।  इसमें नई बात क्या बता रहे हो तुम मुझे ?”
वह उठकर खड़ा हुआ ।
“अब जाते-जाते यह तो कबूल कर जाओ कि तीनों कत्ल तुमने किये हैं ।”
“अपुन कोई कत्ल नहीं करेला है ।” - इस बार वह अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोला ।
“तो करवाये होंगे ?”
“नहीं । अपुन का किसी कत्ल से कोई वास्ता नहीं ।”
“जो मर्जी कहो । तुमसे सच कुबुलवाना मेरा काम नहीं ।”
“यही सच है ।”
उसके स्वर में संजीदगी का पुट था ।
मुझे अब कमला ओबराय की और ज्यादा फिक्र होने लगी । फिर वही मुझे हत्यारी लगने लगी ।
“अब फूटो यहां से ।”
“लैजर किधर है ?”
“वो अब तुम्हारे किसी काम की नहीं । इसलिए लैजर लैजर भजना छोड़ दो अब, सिकन्दर दादा ।”
“लैजर की कॉपी तू पुलिस को दियेला है ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुझे पता था कि तुम मुझे डबलक्रॉस करोगे । इसलिए मैंने तुम्हें डबलक्रॉस किया ।”
“तेरी खैर नहीं ।”
“अब तो अपनी खैर मना ले, सिकन्दर महान !”
वह फिर न बोला ।  नफरत से धधकती उसकी आंखें वैसे ही बहुत कुछ कह रही थीं ।
ग्यारह बजे मेरी यादव से मुलाकात हुई ।
मैंने उसे लैजर बुक सौंप दी ।
“अब एलैग्जैण्डर को गिरफ्तार समझूं ?” - मैं बोला ।
“वो किसलिए ?” - यादव बोला ।
“वो किसलिए !” - मैं हैरानी से बोला - “भाई, यह लैजर बुक उसके खिलाफ सबूत है ।”
“किस बात का ?”
“कत्ल का और किस बात का ? ओबराय इस लैजर बुक की बिना पर एलैग्जैण्डर को ब्लैकमेल कर रहा था ।”
“नहीं कर रहा था ।”
“कौन कहता है ।”
“एलैग्जैण्डर कहता है ।”
“और तुम्हें उसकी बात का विश्वास है ?”
“हां । इसलिये विश्वास है क्योंकि यह बात निर्विवाद रूप से साबित हो चुकी है कि तीनों में से कोई भी कत्ल उसने नहीं किया है ।”
“कैसे साबित हो चुकी है ?”
“तफ्तीश से साबित हो चुकी है, और कैसे साबित हो चुकी है । मैं इस बात की पक्की तस्दीक कर चुका हूं कि तीनों ही हत्याओं के वक्त एलैग्जैण्डर घटनास्थल से बहुत दूर कहीं था । यानी कि यह लैजर बुक किसी कत्ल का उद्देश्य नहीं है । तुम्हारी जानकारी के लिए ब्लैकमेल का खतरा एलैग्जैण्डर को नहीं ओबराय को था । इसीलिए उसने किसी प्रकार एलैग्जैण्डर की यह लैजर बुक चुरा ली थी ताकि इसकी धमकी से वह एलैग्जैण्डर को उसे ब्लैकमेल करने से रोक सकता ।”
“ओबराय को किस बिना पर ब्लैकमेल किया जा सकता था ?”
“चरस और अफीम की स्मगलिंग की बिना पर । वह अपनी कारों में ये चीजें छुपाकर बम्बई पहुंचाया करता था । ओबराय जो इतना रईस बना हुआ था, वह सैकेण्डहैण्ड कारें बेच बेचकर नहीं बना हुआ था । स्मगलिंग से वह रईस बना था और यह बात एलैग्जैण्डर को मालूम हो गई थी । वह अपनी जुबान बंद रखने की कीमत चाहता था । ओबराय को ऐसी मुसलसल ब्लैकमेल में फंसना गंवारा नहीं था । फिर किसी प्रकार उसे एलैग्जैण्डर की डायरी की खबर लग गई और वह उसे हासिल करने में कामयाब हो गया । उस डायरी की वजह से ही वह एलैग्जैण्डर की ब्लैकमेलिंग का शिकार होने से बचा ।”
“यह स्मगलिंग वाली बात तुम्हें कैसे मालूम हुई ?”
“एलैग्जैण्डर ने बताई ।”
“बात की सच्चाई को परख लिया तुमने?”
“न सिर्फ परख लिया, बल्कि परखकर उस पर अमल भी कर लिया ।”
“मतलब ?”
“मतलब यह कि अफीम और चरस की स्मगलिंग के रैकेट में शरीक ओबराय के चार साथी गिरफ्तार भी हो चुके हैं और अफीम और चरस का एक तगड़ा स्टॉक ओबराय मोटर्स के ऑफिस से बरामद भी हो चुका है ।”
“कमाल है ।”
यादव बड़े संतुष्टिपूर्ण ढंग से मुस्कराया ।
“एलैग्जैण्डर ने यह बात तुम्हें क्यों बताई ?” - मैंने पूछा ।
“पुलिस को सहयोग की भावना से बताई और क्यों बताई ?”
“नॉनसैंस ।”
“किसी भी वजह से बताई बहरहाल बताई ।”
“उसे गिरफ्तार तो तुम्हें फिर भी करना चाहिए ।”
“फिर भी क्यों?”
“इस लैजर बुक में निहित जानकारी की बिना पर । काला धन छुपाने का, इनकमटैक्स इनवेजन का केस तो उस पर फिर भी बनता है ।”
“वह कत्ल जितना बड़ा अपराध नहीं ।”
“लेकिन केस तो बनता है ।”
“गिरफ्तारी के काबिल नहीं । गिरफ्तारी हो भी तो ऐसे केस में तीस मिनट में जमानत हो जाती है । एंटीसिपेटरी बेल तक हासिल हो जाती है ।”
अब मुझे अपनी फिक्र सताने लगी । मैंने एलैग्जैण्डर जैसे दादा पर हाथ उठाया था । मैं उसकी फौरन गिरफ्तारी की उम्मीद कर रहा था । अब उसका आजाद रहना मेरे लिए खतरनाक साबित हो सकता था ।
“यादव साहब” - मैं चिंतित स्वर में बोला - “तुम्हारी बातों से मुझे लगता है कि तुम एलैग्जैण्डर को गिरफ्तार करने के ख्वाहिशमन्द नहीं ।”
“मैं कत्ल की तफ्तीश करने वाला सब-इंस्पेक्टर हूं” - वह लापरवाही से बोला - “कत्ल की बिना पर मैं उसे गिरफ्तार कर सकता था । लेकिन कत्ल उसने नहीं किये । अगर कोई और अपराध उसने किया है तो उसकी तफ्तीश पुलिस का दूसरा महकमा करेगा ।”
“लेकिन.....”
“और कत्ल का केस क्लोज हो चुका है ।”
“क्लोज हो चूका है ! कैसे क्लोज हो चुका है?”
“वैसे ही जैसे होता है । जब अपराधी गिरफ्तार हो जाता है तो पुलिस तफ्तीश के लिहाज से केस क्लोज मान लिया जाता है ।”
“अपराधी गिरफ्तार हो चुका है ?”
“हां । कब का !”
“कौन है अपराधी ?”
“जैसे तुम जानते नहीं !”
“पहेलियां मत बुझाओ । किसे गिरफ्तार किया है तुमने ?”
“मिसेज कमला ओबराय को ।”
“वह गिरफ्तार है ?”
“हां । आज सुबह सवेरे मैंने उसे उसकी कोठी पर गिरफ्तार किया था । उस पर चार्ज लगाकर उसे कोर्ट में पेश भी किया जा चुका है और उससे पूछताछ के लिए छः दिन का रिमांड भी हासिल किया जा चुका है ।”
“बड़े फुर्तीले निकले यादव साहब !”
वह मुस्कराया ।
“तो आपकी तफ्तीश यह कहती है की तीनो कत्ल कमला ने किये हैं ?”
“हां ।”
“इस बात का आपके पास क्या जवाब है कि वह चौधरी के कत्ल के वक्त वकील बलराज सोनी के फ्लैट पर थी ?”
“वह वहां तीन बजे पहुंची थी । चौधरी का कत्ल इस वक्त से पहले हो चुका था । अपनी कोठी से वह दो बजे निकली थी । चौधरी का कत्ल करके तीन बजे तक बड़े आराम से बलराज सोनी के यहां पहुंच सकती थी । अब तुम कहोगे कि तुम्हारे उस अनोखे हैंडल वाले चाकू से उसके हाथ में पंक्चर के निशान क्यों नहीं बने थे तो इसका बड़ा सीधा और सिंपल जवाब यह है कि वह दस्ताने पहने थी । ड्राइविंग के वक्त दस्ताने तो वह पहनती ही है । उन्ही दस्तानों को पहने पहने उसने चाकू चलाया होगा ।”
“जूही चावला की कोठी से वह वकील बलराज सोनी के साथ रवाना हुई थी” - मैंने नया एतराज किया - “अब तुम क्या यह कहना चाहते हो कि उसके कत्ल में वे दोनों शामिल थे ?”
“नहीं ।” - वह बड़े इत्मीनान से बोला ।
“तो ?”
“कत्ल के लिए वह वापिस लौटी थी । उसने जानबूझकर बलराज सोनी को रस्ते में अपनी कार में से उतार दिया था ताकि वह वापिस आकर जूही चावला का कत्ल कर सके ।”
“वह यूं वापिस लौटी होती तो जूही चावला के बंगले की निगरानी करते मेरे आदमी को वह दिखाई दी होती !”
“शायद दिखाई दी हो ।”
“मतलब ?”
“पाण्डे तुम्हारा आदमी है । कमला ओबराय तुम्हारी क्लायंट है । अगर तुम्हें पाण्डे की कोई बात कमला के खिलाफ जाती दिखाई देगी तो तुम क्या करोगे ?”
“ओह, तो तुम समझ रहे हो कि पाण्डे को मैंने पट्टी पढ़ाई है कि वह कमला से ताल्लुक रखती ऐसी किसी बात को छुपाकर रखे ?”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता ?” - वह बड़ी मासूमियत से बोला ।
“कमला ने अपना अपराध कबूल कर लिया है ?”
“अभी नहीं किया है, लेकिन करेगी । जरूर करेगी । क्यों नहीं करेगी ? किये बिना कैसे बात बनेगी ? इसीलिए तो हमने छः दिन का रिमांड हासिल किया है ।”
“यानी कि तुम उस पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल करके जबरन उससे उसका अपराध कबूल करवाओगे ?”
“वह जो करेगी, अपनी मर्जी से करेगी ।”
“वह बेगुनाह है ।”
“हर अपराधी यही कहता है ।”
“और तुम्हारा एलैग्जैण्डर की तरफ से एकदम उदासीन हो जाना मुझे एक बहुत खतरनाक बात सोचने पर मजबूर कर रहा है ।”
“क्या ?” - वह आंखें निकालकर बोला ।
मुझे जवाब देने का अवसर न मिला । तभी एक हवालदार यादव के समीप पहुंचा और उसने झुककर यादव के कान में कुछ कहा । यादव फौरन उठकर खड़ा हो गया ।
“साहब को बाहर का रास्ता दिखाओ ।” - वह हवालदार से बोला ।
“साहब को बाहर का रास्ता मालूम है ।” - मैं उठता हुआ बोला ।
मैं हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर निकला ।
पार्किंग की इमारत में मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी दिखाई दी ।
मैं सोचने लगा । एलैग्जैण्डर वहां क्या करने आया था?
मैंने अपने ताबूत की एक कील सुलगाई और खम्बे की ओट लेकर खड़ा हो गया ।
दस मिनट बाद एलैग्जैण्डर हैडक्वार्टर की ईमारत से बहार निकला । उसके चेहरे पर मुझे बड़े संतोष और इत्मीनान के भाव दिखाई दिये ।
वह कार में आकर बैठा तो मैं खम्बे की ओट से निकलकर उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“हल्लो !” - मैं बोला ।
मुझे देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए । फिर वह मुस्कुराया ।
“कहीं जाने का है” - वह बोला - “तो इधर गाड़ी में आ जा । ड्राप कर देगा ।”
“कहां ड्राप कर दोगे ? यमुना में ?”
वह हंसा ।
“सौदा हो गया यादव से ?” - मैंने अंधेरे में तीर छोड़ा - “लैजर बुक खरीद ली ?”
“हां, खरीद ली ।” - वह बड़े इत्मीनान से बोला - “और उसकी वो जेरोक्स कापियां भी जो तू कल यादव को दियेला था । देख ।”
उसने जेब से निकलकर मुझे लाल जिल्द वाली लैजर बुक और जेरोक्स कापियां दिखाईं ।
मेरा खून खौल गया ।  मेरा जी चाहने लगा कि, मैं अभी भीतर हैडक्वार्टर में वापिस जाऊं और जाकर यादव का गला घोंट दूं ।
“कितना रोकड़ा दिया ?” - मैंने पूछा ।
“जितना तेरे को देने का था, उससे पचास हजार रूपया कम ।”
“यानी कि यादव को भी रिवॉल्वर दिखाकर डायरी उससे जबरन झटककर लाये हो?”
“नहीं । अपुन उससे डायरी का जो सौदा कियेला है, वो रोकड़े से ज्यादा कीमती है । अपुन की वजह से यादव स्मगलरों के उस गैंग का पर्दाफाश कियेला है जिसका सरगना ओबराय था । यादव चार आदमी गिरफ्तार कियेला है और कई किलो अफीम और चरस बरामद कियेला है । यह उसका ज्यादा बड़ा इनाम है । यह डायरी की ज्यादा बड़ी कीमत है । यह एक इतना बड़ा केस पकड़ने से उसकी परमोशन पक्की हो गई है  है । वो इसी महीने इंस्पेक्टर बन जाने का है । क्या ?”
मैं चुप रहा ।
“और छोकरे” - एकाएक उसका स्वर बेहद हिंसक हो उठा - “खुशकिस्मत समझ अपने-आपको कि एलैग्जैण्डर पर हाथ उठाने के बाद भी, उसका माल पीटने के बाद भी, तू जिन्दा बचेला है ।”
“क्यों जिन्दा बचा हूं ?”
“क्योंकि मौजूदा हालात में यादव नहीं चाहता कि तेरे कू कुछ हो जाए । चार दिन में चार कत्ल हो जाने पर केस की तफ्तीश उससे सीनियर किसी अफसर के हाथ जा सकती है । तब अपुन पर तमाम कत्ल का शुबा फिर से हो सकने का है जो कि इस वक्त अपुन को मंजूर नहीं । इसलिए घर जा और सैलीब्रेट कर कि तेरी जान बच गई । न बचने के काबिल तेरी जान बन गई । खामखाह बच गई ।”
फिर उसने गाडी स्टार्ट की, अविश्वसनीय रफ्तार से उसे बैक किया और फिर वह वहां से यह जा, वह जा ।
मैं वापिस हैडक्वार्टर की इमारत में दाखिल हुआ ।
यादव अपने कमरे में नहीं था ।
वह इमारत में भी नहीं था ।
मैंने उसके मातहतों से और कई अन्य लोगों से भी पूछताछ की लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि वह कहां चला गया था ।
मैं जनपथ पहुंचा ।
शैली भटनागर अपने ऑफिस में नहीं था ।
मालूम हुआ कि वह किसी जरूरी काम से निजामुद्दीन में कहीं गया था और शाम से पहले लौटने वाला नहीं था ।
शाम तक वहां इंतजार करने की मेरी कोई मर्जी नहीं थी ।
मैं वापिस यादव के द्वार पर लौटा ।
वह तब भी वहां नहीं था ।
अगर मैंने इंतजार ही करना था तो वहां इंतजार करना ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता था ।
यादव के कमरे के बाहर पड़े एक बैंच पर मैं जमकर बैठ गया ।
यादव शाम के चार बजे लौटा ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” - मुझे देखते ही वह बोला ।
“तुम्हारा इंतजार ।” - मैं बोला ।
“क्यों ? दोबारा यहां आने की क्या जरूरत पड़ गई ?”
“दोबारा क्या मतलब ? मैं सुबह का आया यहां से गया ही कहां हूं !”
“तुम सुबह से ही यहां बैठे हो ?”
“हां । बस सिर्फ थोड़ी देर के लिए नीचे पार्किंग में गया था जहां कि मेरी एलैग्जैण्डर से बात हुई थी और जहां उसने मुझे लैजर बुक दिखाई थी । बड़ी क्विक सर्विस है तुम्हारी । लैजर बुक मेरे हाथ से निकली नहीं कि एलैग्जैण्डर के हाथ पहुंच भी गई ।”
“क्या चाहते हो ?”
“यहीं बताऊं ?”
“हां ।”
“बेहतर । मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि उस लैजर बुक के हर वर्के की एक-एक फोटोकॉपी अभी और है मेरे पास ।”
वह सकपकाया । उसने घूरकर मुझे देखा ।
मैंने उसके घूरने की परवाह न की ।
“मैं आगे बढूं” - मैं बोला - “या बाकी बात भीतर तुम्हारे कमरे में चलकर करें ?”
“आओ ।” - वह कठिन स्वर में बोला ।
“थैंक्यू !”
मैं उसके साथ कमरे में दाखिल हुआ । उसने खुद मेरे पीछे दरवाजा बन्द किया । हम दोनों बैठ गए तो वह बोला - “क्या चाहते हो ?”
“मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं” - मैंने तोते की तरह रट दिया - “कि उस लैजर बुक के हर वर्के की एक-एक फोटो कॉपी अभी और है मेरे पास ।”
“वह तो हुआ । और क्या कहना चाहते हो ?”
“और यह कहना चाहता हूं कि वे फोटोकॉपीज और कुछ साबित करें या न करें, लैजर बुक के अस्तित्व को जरूर साबित कर देगी क्योंकि ओरिजिनल के बिना तो कॉपी बनती नहीं । फिर कोई तुम्हारा बड़ा साहब, वो नहीं तो कोई अखबार वाला, शायद मेरी इस बात पर विश्वास कर ले कि असल लैजर बुक मैंने तुम्हें सौंपी थी जो कि तुमने आगे” - मैंने स्वर जानबूझकर धीमा कर दिया - “एलैग्जैण्डर को बेच दी ।”
“मैंने” - वह भी दबे स्वर में बोला - “उससे कोई रकम हासिल नहीं की...”
“मुझे मालूम है । मेहरबानी कैश या काइण्ड दोनों तरीकों से होती है । उस डायरी के बदले में उसने तुम्हें एक ऐसा केस पकड़वाया है जो कि तुम्हारी प्रोमोशन करवा सकता है, तुम्हें प्रशस्ति-पत्र दिला सकता है ।”
“और तुम मेरी प्रोमोशन में और मेरे प्रशस्ति-पत्र में हिस्सेदारी चाहते हो ?”
“नहीं । ऐसी कोई हिस्सेदारी मुमकिन नहीं ।”
“तो ?”
“जैसी मेहरबानी तुम्हें हासिल हुई है, वैसी ही मेहरबानी मैं तुमसे हासिल करना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“मैं चाहता हूं कि कमला ओबराय को बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो ।”
“मेरा काम गुनहगार का गुनाह साबित करना है न कि...”
“वो” - मैंने बीच में बात काटी - “गुनहगार नहीं है । वो बेगुनाह है ।”
“जो कि तुम जादू के जोर से साबित कर सकते हो ?”
“नहीं, जादू के जोर से तो नहीं कर सकता । जादू तो मुझे आता नहीं ।”
“देखो, अगर तुम यह समझते हो कि तुम मुझ पर दबाव डालकर मुझे उसे रिहा करने पर मजबूर कर सकते हो तो यह ख्याल अपने मन से निकाल दो । वह हिरासत में नहीं है बल्कि बाकायदा चार्ज के साथ गिरफ्तार है । मैं उसे रिहा करूंगा तो यह होगा कि मेरी नौकरी चली जायेगी और वह फिर गिरफ्तार हो जायेगी ।”
“मैं उसे रिहा करने के लिए नहीं कह रहा ।”
“तो और क्या कह रहे हो ?”
“मैं यह कह रहा हूं कि उसे बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो ।”
“वो मैं सुन चुका हूं लेकिन कैसे मदद करूं ?”
“शुरूआत मेरी कमला से एक मुलाकात करवाकर करो ।”
“यह नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“वह गिरफ्तार है ।”
“तो क्या हुआ ? जहां वो गिरफ्तार है, वो जगह चांद पर तो नहीं ।”
“लेकिन...”
“मेरी उससे एक मुलाकात करवाओ, यादव साहब ।”
“धमकी दे रहे हो ?” - वह आंखें निकालकर बोला ।
“हां ।”
वह मुंह से तो कुछ न बोला लेकिन कितनी ही देर मुझे घूरता रहा । मैंने उसके घूरने की परवाह न की ।
“लैजर बुक की दूसरी कॉपी निकालो ।” - कुछ क्षण बाद वह बोला ।
“मिल जायेगी ।” - मैं लापरवाही से बोला - “जल्दी क्या हैं ?”
“अगर तुम मुझसे कोई मेहरबानी चाहते हो तो-”
“मेरी कमला से मुलाकात का इंतजाम करो, वह कॉपी मैं पूरी हिफाजत के साथ तुम्हारे घर छोड़ के जाऊंगा ।”
चेहरे पर उलझन और सन्देह के भाव लिए वह फिर मुझे घूरने लगा ।
मैंने उसके घूरने की परवाह नहीं की ।
अन्त में उसने एक कागज-कलम अपनी तरफ घसीटा और कागज पर तेजी से कुछ लिखा ।
“वह निजामुद्दीन के थाने में है ।” - वह कागज दोहरा करता हुआ बोला ।
“तो ?”
“यह रुक्का” - वह कागज मेरी तरफ उछालता हुआ बोला - “वहां दिखा देना मुलाकात हो जायेगी ।”
“शुक्रिया ।”
मैं फौरन वहां से विदा हो गया ।
निजामुद्दीन थाने में मेरे यादव की चिट्ठी पेश करते ही मुझे एक हवलदार के हवाले कर दिया गया । एक लम्बे कॉरीडोर में चलाता हुआ वह मुझे एक बन्द दरवाजे के करीब लाया जिसके सामने एक लेडी हवलदार खड़ी थी ।
“लो ।” - वह लेडी हवलदार से बोला - “एक और आ गया ।”
“उसी से मिलने ?” - स्त्री बोली ।
“हां । देखना, अभी तो और आयेंगे । तांता लगेगा यहां इसके हिमायतियों का । किसी रईस की बीवी को गिरफ्तार करना क्या कोई हंसी-खेल हैं !”
हवलदार मुझे वहां छोड़कर विदा हो गया ।
स्त्री ने दरवाजा खोला और मुझे भीतर दाखिल होने का इशारा किया ।
मैंने कमरे में कदम रखा ।
स्त्री ने मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया ।
मैं दरवाजे पर ही ठिठका खड़ा रहा ।
भीतर कमला के सामने वकील बलराज सोनी बैठा था ।
कमला एक सादी साड़ी पहने थी । उस वक्त उसके जिस्म पर कोई जेवर नहीं था और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था लेकिन वह फिर भी खूबसूरत लग रही थी ।
“देख लिया ?” - कमला व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“क्या ?” - मैं तनिक हड़बड़ाकर बोला ।
“कि मैं कहां हूं ?”
मैं खामोश रहा ।
“अच्छे मददगार निकले तुम मेरे ! अच्छे डिटेक्टिव हो तुम !”
“डिटेक्टिव तो मैं अच्छा ही हूं । इसीलिए तो जानता हूं कि तुम बेगुनाह हो ।”
“तुम्हारे जानने से क्या होता है ? साबित करके दिखाते तो मुझे हवालात का मुंह देखना पड़ता ?”
“कमला ।” - बलराज सोनी बोला - “मैंने तो पहले ही कहा था कि यह आदमी किसी काम का नही ।”
“ओह !” - मैंने बोला - “तो यह बात तुम पहले भी कह चुके हो ?”
उसने एक तिरस्कारपूर्ण निगाह मेरी तरफ डाली और फिर परे देखने लगा ।
“आओ, बैठो ।” - कमला बोली ।
मैं उनके करीब पड़े एक स्टूल पर बैठ गया ।
“आप तशरीफ ले जा रहे है ?” - मैं बलराज सोनी से सम्बोधित हुआ ।
“तुम कौन होते हो मुझे यहां से भेजने वाले ?” - वह भड़ककर बोला ।
“मैं कहां भेज रहा हूं आपको ! मैंने सोचा था कि शायद आपकी कॉन्फ्रेंस खत्म हो गई हो और आप जा रहे हों !”
“सोनी साहब कहीं नहीं जा रहे ।” - जवाब कमला ने दिया - “ये मेरे वकील हैं । अदालत में भी इन्होंने ही मेरी पैरवी करनी है । और कहना न होगा कि तुम्हारे मुकाबले में अब मुझे इनसे कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं ।”
उस वक्त पता नहीं क्यों मुझे वकील के बच्चे से बहुत झुंझलाहट हो रही थी । साला हर जगह मुझे पहले से ही मौजूद मिलता था ।
“कुछ किया है तुमने ?” - कमला ने पूछा ।
“किया तो बहुत कुछ है लेकिन हुआ कुछ नहीं है ।” - मैं बोला - “और अगर कुछ हुआ है तो तुम्हारे हक में गलत हुआ है ।”
“मसलन ?”
“मसलन एलैग्जैण्डर से पुलिस पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी है कि वह बेगुनाह है । मसलन पुलिस को मालूम हुआ है कि तुम्हारा पति अफीम और चरस का स्मगलर भी था और इस धन्धे में उसके चार जोड़ीदार भी पुलिस ने गिरफ्तार किए हैं । एलैग्जैण्डर की तुम्हारे पति की स्टडी से बरामद हुई लैजर बुक, जो मैंने इस उम्मीद मे पुलिस को सौंपी थी कि अब एलैग्जैण्डर तुरन्त गिरफ्तार हो जायेगा, वापिस एलैग्जैण्डर के पास पहुंच गई है ।”
“वो कैसे ?”
“उस पुलिसिये की मेहरबानी से जो इस केस की तफ्तीश कर रहा है ।”
“तुम्हे इस बारे में कुछ करना चाहिए । तुम्हें उस रिश्वतखोर पुलिसिये को एक्सपोज करना चाहिए ।”
“कैसे करूं ?” अब तो मैं उस लैजर बुक के अस्तित्व को भी साबित नहीं कर सकता ।”
“अच्छे डिटेक्टिव हो तुम !”
“कमला” - बलराज सोनी बोला - “मैंने तो पहले ही कहा था कि....”
“तुम अपना थोबड़ा बन्द रखो ।” - मैं भड़ककर बोला - “मुझे मालूम है तुमने पहले क्या कहा था !”
“यानी कि” - कमला बोली - “अब तुम्हारे पास काम करने के लिए कोई ऐंगल नहीं ?”
“एक ऐंगल हैं” - मैं बोला - “मुझे मालूम है कि जब तुम्हारा पति बम्बई में रहता था तो वहां शैली भटनागर उसका मैनेजर था और वहां उसके बिजनेस में ऐसा घोटाला हुआ था कि तुम्हारे पति की मेहरबानी से उसे दो साल की सजा काटनी पड़ी थी । हो सकता है उस बात का बदला उसने आज उतारा हो ।”
“ओबराय साहब का खून करके ?”
“हां ।”
“और बाकी खून ?”
“वो उस एक खून को छुपाने के लिए किए गए हो सकते हैं ।”
“डिटेक्टिव साहब, तुम्हारी जानकारी के लिए अभी एक घंटा पहले शैली भटनागर भी यहां आया था और उसके पास हर कत्ल के बारे में निहायत सिक्केबंद एलीबाई है ।”
“वो यहां आया क्या करने था ? निश्चय ही अपनी एलीबाई के बारे में बताने तो आया नहीं होगा ।”
“नहीं ।”
“तो ।”
“वो मेरे से ओबराय साहब की बम्बई की लाइफ के बारे में ही सवाल कर रहा था । तब मुझे यह बात  तो मालूम नहीं थी कि वह ओबराय साहब की वजह से बम्बई में जेल की सजा काट चुका था । अब मुझे लगता है कि वह यही भांपने आया था कि मैं ओबराय साहब की बम्बई की जिन्दगी के बारे में कुछ जानती थी या नहीं और इस बात के जाहिर होने का अन्देशा था या नहीं कि वह एक सजायाफ्ता मुजरिम था । वो यहां से आश्वस्त होकर गया था कि यह बात खुलने वाली नहीं थी लेकिन उसे यह नहीं सूझा होगा कि यह बात तुम्हें भी मालूम हो सकती है ।”
“मुझे क्या, पुलिस को भी मालूम है ।”
“वह आदमी” - बलराज सोनी बोला - “ओबराय साहब का हत्यारा हो सकता है ।”
“लेकिन उसकी एलीबाई....” - कमला ने कहना चाहा ।
“गढी हुई हो सकती है । एलीबाई उसे अपने स्टाफ से हासिल है और उसका स्टाफ तो उसकी खातिर कुछ भी कहने को तैयार हो जायेगा । कोशिश की जाये तो” - उसने आग्नेय नेत्रों से मेरी तरफ देखा - “उसकी एलीबाई को तोड़ा जा सकता है, झूठी करार दिया जा सकता है ।”
“सुधीर” - कमला बोली - “तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए । तुम्हें शैली भटनागर के पीछे पड़ना चाहिए ।”
मैंने बड़े अनमने ढंग से सहमति में सिर हिलाया ।
“इसकी ऐसा कुछ करने की नीयत नहीं लगती” - बलराज सोनी बोला - “यह एक मौकापरस्त आदमी है और दौलत का दीवाना है । अपनी माली हालत सुधारने के लिए ऐसे लोग अपने क्लायंट को भी धोखा दे सकते हैं । ये रईस लोगों में उठने-बैठने का मौका पाते हैं तो रईसी के सपने देखने लगते हैं । अपनी औकात से ऊपर उठने की इनकी ख्वाहिश इनसे कुछ भी करवा सकती है । इसी आदमी को देखो । रहता तो है ये ऐसे कबूतर के दड़बे जैसे फ्लैट में जिसकी बैठक की दीवार का उधड़ा हुआ पलस्तर तक यह ठीक नहीं करवा सकता लेकिन सपने देखता है यह ओबराय साहब जैसे लोगों की विशाल कोठियों के ।”
मेरे कान खड़े हो गए । मैंने अपलक बलराज सोनी की तरफ देखा । बड़ी कठिनाई से अपने मन के भाव मैं अपने चेहरे पर प्रकट होने से रोक पाया ।
“जिस उधड़े पलस्तर का तुमने जिक्र किया है” - मैं बोला - “वो दीवार पर बोतल मारकर मैंने खुद उधेड़ा था और वो मेरे लिए मेरी जिन्दगी की एक बड़ी अहम घटना की यादगार है इसलिए वो उधड़ा पलस्तर हमेशा उधड़ा ही रहेगा । और जहां तक अपनी माली हालत सुधारने की बात है, कोई साधू-महात्मा या कोई अक्ल का अंधा ही ऐसी कोशिश से दूर रह सकता है । हैरानी है कि किसी का महत्वाकांक्षी होना तुम्हें एक गलत और काबिलेएतराज बात लगती है । वह आदमी क्या जो महत्वाकांक्षी ना हो ! तुम एक सिड़ी दिमाग के आदमी हो और बूढ़े हो । तुम एक नौजवान आदमी के दिल को और उसके दिमाग के अन्दाज को नहीं समझ सकते । तुम तो मेरी कमला से शादी करने की ख्वाहिश को भी मौकापरस्ती का दर्जा दोगे ।”
कमला चौंकी ।
“अभी क्या सुना मैंने ?”
“वही जो मैंने कहा” - मैं बड़ी संजीदगी से बोला - “मुझे अफसोस है कि यह बात मुझे ऐसे माहौल में कहनी पड़ी लेकिन इस आदमी ने मेरी गैरत को ललकारकर मुझे मजबूर किया है ।”
“लेकिन तुम...”
“हां, कमला । मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं ।”
मैंने बलराज सोनी की तरफ देखा । वह अपलक परे कहीं देख रहा था ।
कमला के चेहरे पर अजीब-सी उलझन, हैरानी और अविश्वास के भाव आ जा रहे थे ।
“तुम वाकई मुझ से शादी करना चाहते हो ?” - वह धीरे से बोली ।
“हां ।” - मैं दृढ़ स्वर में बोला - “जबसे मैंने तुम्हें देखा है, तभी से मैं तुम्हारा दीवाना बन गया हूं । अपने मन की बात मैं तुम पर बड़े सलीके ओर इत्मीनान से जाहिर करना चाहता था लेकिन अब ऐसी नफासत की गुंजायश नहीं । इस आदमी ने मुझे मजबूर किया कि है मैं तुम्हारे प्रति अपने प्यार और निष्ठा को साबित करके दिखाऊं । मैं तुमसे फौरन शादी करना चाहता हूं, कमला ।”
“लेकिन मैं गिरफ्तार हूं ।”
“कोई बात नहीं । शादी गिरफ्तारी में भी हो सकती है । मैं कल सुबह ही तुमसे शादी कर लेना चाहता हूं ।”
“यहां ? हवालात में ?”
“हां । कल सुबह मैं कुछ गवाहों और पंडित के साथ यहां आऊंगा । वह यहीं हमारी शादी करा देगा ।”
“ये थाने वाले ऐसा होने देंगे ?”
“मैं पुलिस कमिश्नर की इजाजत लेकर आऊंगा ।”
“और अगर मैं कत्ल के इल्जाम में फांसी चढ़ गई तो ?”
“नहीं चढोगी । कोई पति अपनी पत्नी को यूं फांसी पर नहीं चढने दे सकता । तुम्हें बेगुनाह साबित करने के लिए मैं जमीन-आसमान एक कर दूंगा । तभी तो तुम्हें मेरी निष्ठा और ईमानदारी का सबूत मिलेगा ।”
“यह जमीन-आसमान एक” - बलराज सोनी बोला - “तुम्हे फांसी से बचाने के लिए नहीं, तुम्हें फांसी पर चढ़ाने के लिये करेगा । यह तुम्हारी दौलत हथियाने के लिए तुमसे शादी करना चाहता है ।”
“तुम गन्दे दिमाग के आदमी हो” - मैं नफरतभरे स्वर में बोला - “इसलिए कोई गन्दी बात ही सोच सकते हो । तुम बीते युग के आदमी हो । तुम आज की तेजरफ्तार दुनिया को नहीं समझते । तुम सच्चे प्यार को नहीं समझते ।” - मैं कमला की तरफ घूमा - “कमला, तुम हां बोलो । देखना, सारी दुनिया के अखबारों में हमारा नाम होगा । ऐसी अनोखी शादी कभी किसी ने नहीं की होगी । बोलो हां ।”
“हां ।”
“मैं भी पंजाबी पुत्तर हूं ।” - मैं खुद अपनी छाती ठोकता हुआ बोला - “और एक नम्बर का हरामजादा हूं । एक बार मैं किसी बात के पीछे पड़ जाऊं सही । फिर या तो वो बात नहीं या मैं नहीं । अगर मैंने भी तुम्हें बेगुनाह साबित करके न दिखाया तो समझ लेना मैं अपने बाप की औलाद नहीं । अगर मेरी बीवी फांसी पर चढ़ गई तो न मैं उसके साथ उसकी चिता में कूद गया तो कहना ।”
मैं एक क्षण ठिठका और बोला - “मैं यहां से सीधा शैली भटनागर के पास जा रहा हूं । मुझे लगता है कि सारा किया धरा उसी का है । देख लेना, मैं उसे गुनहगार साबित करके रहूंगा ।” - मैं उठ खड़ा हुआ - “कल सुबह मैं पुलिस कमिश्नर की इजाजत, पंडित और शादी के लिये दरकार गवाहों के साथ यहां आऊंगा । कल सुबह यहां एक ऐतिहासिक शादी होगी । कल सुबह इस वकील के घोड़े जैसे सिड़ी और खुन्दकी लोगों को मालूम होगा कि सच्चा प्यार क्या होता है ! अब मैं जाता हूं ।”
मैं उठा तो कमला भी सहमति में सिर हिलाती हुई उठ खड़ी हुई । मैंने अपनी होने वाली बीवी को यूं अपने आगोश में लिया जैसे वह जरा-सी ठेस से टूट जाने वाली कोई निहायत नाजुक चीज हो । मैंने हौले से उसके होंठों पर एक चुम्बन अंकित किया और उससे अलग हट गया ।
बलराज सोनी जल-भुनकर कबाब हुआ जा रहा था ।
मैंने एक हवाई चुम्बन कमला की तरफ उछाला और बोला - “सी यू टुमारो मोर्निंग, मिसेज सुधीर कोहली ।”
फिर मैंने बड़ी शान से, किसी ड्रामे के सबसे अहम किरदार की तरह, वहां से बाहर कदम रखा ।
***
निजामुद्दीन से जनपथ मैं सीधा न गया । पहले मैं नेहरू प्लेस पहुंचा । सारे रास्ते मेरी निगाह कार के रियरव्यू मिरर पर टिकी रही । सारे रास्ते एक कार मुझे अपने पीछे लगी दिखाई दी ।
मैं अपने ऑफिस पहुंचा । रजनी ऑफिस बन्द करके जा चुकी थी । मैंने अपनी चाबी से ताला खोला और भीतर दाखिल हुआ । जब से वह केस शुरू हुआ था, तब से पहली बार मेरे अपने ऑफिस में कदम पड़े थे ।
मैंने अपने ऑफिस में जाकर खिड़की का पर्दा तनिक सरकाकर बाहर झांका ।
जो कार मेरे पीछे लगी हुई थी, वो मुझे नीचे पार्किंग में खड़ी दिखाई दी ।
मैंने यादव को फोन किया । गनीमत थी कि तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया ।
मैंने उसे वस्तुस्थिति समझाई और बताया कि मैं क्या चाहता था ।
बड़ी मुश्किल से उसने अपने दल-बल के साथ शैली भटनागर की एडवरटाइजिंग एजेन्सी में पहुंचने की हामी भरी ।
मैं फिर ऑफिस से निकला और कार में सवार हुआ ।
तब भी मैं सीधा जनपथ न गया ।
मैं पटियाला हाउस में स्थित रजिस्ट्रार के दफ्तर में पहुंचा ।
वहां बतौर रिश्वत एक मोटी रकम खर्च करके मैंने अमरजीत ओबराय की रजिस्टर्ड वसीयत की कॉपी निकलवाई ।
मैंने बहुत गौर से वह वसीयत पढ़ी और फिर उसे तह करके अपनी जेब में रख लिया ।
हत्यारे की दुक्की पीटने के लिये जो उद्देश्य की कमी थी, वह वसीयत की उस कॉपी ने पूरी कर दी थी ।
मैं जनपथ पहुंचा ।
मेरे पीछे लगी कार ने तब भी मेरा पीछा छोड़ नहीं दिया था ।
शैली भटनागर के ऑफिस में मेरी उससे मुलाकात हुई ।
“कैसे आये ?” - वह बोला ।
“आपने कहा था” - मैं मधुर स्वर में बोला - “कि अगर मैं फिर कभी हाजिर होऊं तो आपको असुविधा नहीं होगी ।”
“यू आर मोस्ट वैलकम ।” - वह भी मुस्कुराया - “लेकिन सिर्फ इस वजह से तो तुम यहां नहीं आये होवोगे ।”
“हां” - मैंने कबूल किया - “सिर्फ इस वजह से तो नहीं आया ।”
“कोई खास ही वजह होगी ?”
“खास भी है ।”
“क्या ?”
“मैं दिन में भी यहां आया था । तब आप यहां नहीं थे । तब आप शायद मिसेज कमला ओबराय से मिलने गये हुए थे ।”
“कैसे जाना ?” – वह तनिक हड़बड़ाकर बोला ।
“खुद मैडम ने बताया ।”
“ओह !”
“लेकिन आप वहां क्यों गये थे, यह मैडम को भी नहीं मालूम था ।”
“लेकिन तुम्हें मालूम है ?”
“हां ।”
“क्यों गया था मैं वहां ?”
“आप यह भांपने गये थे कि क्या मैडम की वजह से आपकी यह पोल खुल सकती थी कि आप एक सजायाफ्ता मुजरिम हैं !”
एकाएक वह बेहद खामोश हो गया ।
“आपने यह भांपा कि मैडम की वजह से ऐसा कोई अन्देशा आपकी यहां दिल्ली शहर में बनी नेकनामी को नहीं था ।”
“लेकिन वजह तो अब और पैदा हो गई” – वह चिन्तित भाव से बोला – “तुम जानते हो इस बात को ।”
“पुलिस भी जानती है ।”
“फिर तो हो गया काम ।”
“नहीं हुआ । मेरा या पुलिस का आपको एक्सपोज करने का कोई इरादा नहीं है ।”
“अपने बारे में तो तुम ऐसा कह सकते हो लेकिन पुलिस की क्या गारंटी कर सकते हो ?”
“पुलिस को आपकी पिछली जिन्दगी से कोई मतलब तभी हो सकता हैं जबकि आप ओबराय साहब के या और दो जनों के कत्ल के अपराधी हो, जैसा कि आप नहीं हैं ।”
“तुम मानते हो यह बात ?”
“अब मानता हूं । इसलिए मानता हूं क्योंकि अब मैं असली अपराधी को जानता हूं ।”
“यानी कि कमला ओबराय अपराधी नहीं ?”
“हरगिज भी नहीं । मैडम भी उतनी ही बेगुनाह हैं जितने कि आप ।”
“तो फिर असली अपराधी कौन है ?”
“असली अपराधी एक मदारी है ।”
“मतलब ?”
“मदारी जब अपना खेल दिखाता हैं तो क्या करता है ? वह अपने हाथ की सफाई दिखाता है । अगर उसने कोई करतब अपने दायें हाथ से दिखलाना होता है तो आपकी तवज्जो वह अपने बायें हाथ की तरफ रखता है । अपने पर से तवज्जो हटाये रखने के लिये ऐसा ही कुछ असली अपराधी ने किया है । अगर वह खुद करतब करने वाला दायां हाथ है तो पब्लिक की तवज्जो के लिए निर्दोष बायां हाथ उसने किसी को तो बनाना ही था । वह बायां हाथ उसने मिसेज कमला ओबराय को बनाया ।”
भटनागर चेहरे पर उलझन और असमंजस के भाव लिए मुझे देखता रहा ।
“अब दायां हाथ बायें हाथ से अलग तो किया नहीं जा सकता । इसलिए अगर हत्यारे को हम दायां हाथ मानें और मैडम को बायां हाथ माने तो यह मेरे बिना कहे भी आप समझ सकते है कि हर कत्ल के वक्त जहां मैडम रही होंगी, वहां हत्यारा भी रहा होगा । अब मदारी का करतब पकड़ने के लिये जरूरी बात यह है कि जो वह चाहता है, वो न हो । वह आपकी तवज्जो अपने बायें हाथ की तरफ रखना चाहता है ताकि वह अपने दायें हाथ से ऐसा कुछ कर सके जो कि बाद में जादू लगे । अब अगर आपकी जिद यह हो कि आप उसके दायें हाथ से निगाह नहीं हटायेंगे तो फिर सोचिये, भला कैसे कामयाब हो पायेगा वो ?”
“बहुत रहस्यभरी बातें कर रहे हो बरखुरदार !”
“भटनागर साहब, आज हर रहस्य का पर्दाफाश यही आपके ऑफिस में होने वाला है ।”
“अच्छा ! वो कैसे ?”
“आज जब यहां मदारी अपना करतब दिखायेगा तो हम उसके बायें हाथ को नहीं देंखेंगे । हम अपनी मुकम्मल तवज्जो उसके दायें हाथ पर रखेंगे ।”
“असली अपराधी यहां ?” - भटनागर हैरानी से बोला ।
“जी हां ।”
“मुझे तो यहां कोई नहीं दिखाई दे रहा !”
“मुझे दिखाई दे रहा है ।”
“बरखुरदार, कहीं तुम्हारा इशारा मेरी ही तरफ तो नहीं ?”
मैंने मुस्कराते हुए इनकार में सिर हिलाया ।
“देखो ।” - वह बड़ी संजीदगी से बोला - “जहां यह बात सच है कि जेल की सजा मैंने ओबराय साहब की वजह से काटी, वहां यह भी हकीकत है कि आज जिस शानदार जगह पर तुम इस वक्त बैठे हुए हो, वह भी ओबराय साहब का ही जहूरा है । आज मैं इतनी बड़ी और प्रतिष्ठित एडवरटाइजिंग एजेंसी का और उसके इतने मुफीद धन्धे का मालिक हूं तो वह ओबराय साहब की वजह से । बम्बई में जिस रोज मैं जेल से छूटा था उस रोज ओबराय साहब मुझे पहले से जेल के दरवाजे पर खड़े मिले थे । वही मुझे दिल्ली लाये थे और उन्होंने ही मेरे इस पसन्दीदा धन्धे को फाइनांस करके मुझे किसी काबिल बनने का मौका दिया था । फाइनांस कम्पनी के रुपए पैसे के घोटाले की सारी मुसीबत अपने सिर लेकर मैंने उन्हें जेल जाने से बचाया था । ऐसा करके जो एहसान मैंने उन पर किया था, उसका कई गुणा बदला मुझे हासिल हो चुका है । ओबराय साहब कोई अहसानफरामोश और यारमार आदमी साबित हुए होते तो मुमकिन था कि मैंने उनका कत्ल कर दिया होता । लेकिन वो ऐसे नहीं थे । उन्होंने तो जिन्दगी में हमेशा मेरी हर मुमकिन मदद की है । बरखुरदार, अपनी तरफ रोटी का निवाला बढ़ाने वाले हाथ पर थूक देने जैसी फितरत शैली भटनागर की नहीं है । कहने का मतलब यह है कि ओबराय साहव का कत्ल करने की बाबत मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था ।”
“मुझे आपकी बात पर विश्वास है ।”
“आई एम ग्लैड ।”
मैंने खिडकी से बाहर झांका ।
“पिछ्ली बार उस पिछली इमारत के बारे में आपने क्या बताया था मुझे, क्या है वो ?”
“वो हमारा साउण्ड स्टूडियो हैं ।”
“हां । साउण्ड स्टूडियो । वहां क्या होता है ?”
“वहां पब्लिसिटी फिल्म की शूटिंग होती है ।”
“आजकल कुछ नहीं हो रहा वहां ?”
“हो रहा है । वहां एक सिल्क मिल के उत्पादनों की शूटिंग हो रही है । मिल के उत्पादनों को वक्त से कहीं आगे की चीज साबित करने के लिए वहां मैंने चांद-सितारों का सैट लगाया है जिनमें से होकर एक स्पेसशिप गुजरता है और फिर चांद-सितारों के बीच उस सिल्क मिल की साड़ियां पहने सुंदरियां उतरती हैं । उन सुंदरियों में प्रमुख जूही चावला थी । वो बेचारी मर गई, इसलिए मुझे शूटिंग स्थगित कर देनी पड़ी ।”
“मैंने कभी साउण्ड स्टूडियो नहीं देखा । मैंने कभी शूटिंग का सैट नहीं देखा । अलबत्ता ख्वाहिश बहुत है । अगर आपको तकलीफ न हो तो दिखाइये कि यह सब सिलसिला कैसा होता है ?”
“इस वक्त तो सेट उजाड़ पड़ा है । जब शूटिंग हो रही हो, तब देखना ।”
“तब भी देख लेंगे, अब भी दिखा दीजिये ।”
“ठीक है । चलो ।”
“आपको कोई असुविधा तो नहीं होगी ?”
“नहीं, मुझे क्या असुविधा होनी हैं ! अलबत्ता तुम्हारी इस ख्वाहिश पर हैरानी जरुर हो रही है मुझे ।”
मैं केवल मुस्कुराया ।
“आओ ।”
मैं उसके साथ हो लिया ।
पिछवाड़े से निकलकर हमने पिछले कम्पाउण्ड में कदम रखा ।
कम्पाउण्ड पार करते समय मैंने एक गुप्त निगाह चारों तरफ दौड़ाई ।
सब-इंस्पेक्टर यादव या उसके किसी आदमी के मुझे कहीं दर्शन न हुए ।
मैं चिन्तित हो उठा ।
पता नहीं यादव आया भी था या नहीं ।
कम्पाउण्ड पार करके हम साउण्ड स्टूडियो की इमारत के करीब पहुंचे ।
मैंने देखा, स्टूडियो का लकड़ी का फाटकनुमा दरवाजा खुला था ।
भीतर दाखिल होते समय भटनागर ने मेरी बांह थाम ली लेकिन मैंने उसका हाथ झटक दिया ।
“आप मुझसे अलग होकर चलिये ।” - मैं बोला ।
“क्यों ?” - वह हैरानी से बोला - “ऐसी क्या बात है जो....?”
“है कोई बात । कहना मानिये ।”
“बेहतर ।”
हमने भीतर कदम रखा ।
भीतर अन्धेरा था ।
भटनागर ने दो-तीन बत्तियां जलाई ।
भीतर चांद-सितारों का सैट लगा हुआ था । न दिखाई देने वाली तारों के साथ सैट के ऐन बीच में एक स्टारट्रैक स्टाइल स्पेसशिप लटका हुआ था ।
हम स्पेसशिप के करीब पहुंचे ।
भटनागर अब उत्कण्ठा और रहस्य से बहुत ज्यादा अभिभूत लग रहा था ।
“मैं जरा इस स्पेसशिप का मुआयना करता हूं” - मैं धीरे से बोला - “आप उधर अन्धेरे में चले जाइये और वहां से दरवाजे पर निगाह रखिये । ओके ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया और बोला - “यहां क्या होने वाला है ?”
“यहां हत्यारा आने वाला है ।” - मैं फुसफुसाया ।
“क्यों ?”
“मेरी हत्या करने के लिए ।”
“क..क्या ?”
“जाइये ।”
“ल...लेकिन..”
“कहना मानिये । जाइए ।”
वह स्पेसशिप से परे अन्धेरे में सरक गया ।
मैं स्पेसशिप का मुआयना करने लगा, या यूं कहिये कि मुआयना करता होने का अभिनय करने लगा ।
उस विशाल स्टूडियो का प्रवेश-द्वार वहां से काफी दूर था । तब मुझे सूझा की मुझे भटनागर से पूछना चाहिए था कि क्या वहां और भी कोई दरवाजा था लेकिन अब उसे वापिस बुलाना या पुकारना मुझे मुनासिब न लगा ।
ठण्डी हवा का एक झोंका मेरे जिस्म से टकराया ।
वह झोंका किधर से आया हो सकता था ?
जरूर दरवाजे की ही तरफ से ।
मैंने आंखें फाड़कर दरवाजे की तरफ देखा । वहां के नीमअंधेरे में मैं यह भी न देख सका कि दरवाजा पहले जितना ही भिड़का हुआ था या तनिक खुल गया था ।
“सावधान !” - एकाएक भटनागर गला फाड़कर चिल्लाया ।
मैंने तुरन्त अपने-आपको फर्श पर गिरा दिया ।
एक गोली सनसनाती हुई मेरे ऊपर से गुजरी और स्पेसशिप में कहीं टकराई ।
फिर एकाएक वहां कोहराम मच गया ।
लोगों के शोर और गोलियों की आवाज से सारा स्टूडियो गूंज उठा । शूटिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली ऊंची छत के साथ लटकी हजार-हजार वाट की रोशनियां आनन-फानन एक-एक करके जलने लगीं और स्टूडियो यूं जगमगा गया जैसे वहां भरीं दोपहर का सूरज चमक गया हो ।
फिर मुझे यादव की आवाज सुनाई दी - “अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो रिवॉल्वर फेंक दो और हाथ सिर से ऊपर उठाये बाहर निकल आओ ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
एकाएक वहां मुकम्मल सन्नाटा छा गया ।
मैं फर्श पर लेटा-लेटा ही उस दिशा में सरकने लगा जिधर यादव का रुख था ।
“यह तुम्हारे लिए आखिरी वार्निंग है ।” - वह दहाड़ा - “बाहर निकल आओ वर्ना कुत्ते की मौत मारे जाओगे ।”
फिर सन्नाटा ।
मैं स्पेसशिप की ओर सरक आया तो उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया ।
तभी पीछे से किसी ने मुझ पर छलांग लगा दी ।
मैं अपने आक्रमणकारी को लिए लिए भरभराकर फिर फर्श पर ढेर हो गया ।
“हरामजादे !” - मेरा आक्रमणकारी गुर्राया - “तूने जाल फैलाया था यहां मेरे लिए । तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा मैं ।”
उस घड़ी अपनी जान पर आ बनी पाकर मेरे मे विलक्षण शक्ति पैदा हो गई । मैंने अपने दोंनों हाथ और घुटने फर्श के साथ जोड़कर अपने शरीर को जोर से पीछे को हूला । मेरा आक्रमणकारी मेरी पीठ पर से छिटका और परे जाकर गिरा ।
दोबारा वह मुझ पर आक्रमण न कर सका ।
ऐसा कर पाने से पहले ही वह कई हाथों की गिरफ्त में छटपटा रहा था । रिवॉल्वर अभी भी उसके हाथ में थी जिसे कि एक पुलिसिये ने जबरन उससे छीन लिया ।
मैं उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ । सब-इंस्पेक्टर यादव और शैली भटनागर करीब पहुंचे ।
मेरे आक्रमणकारी को दबोचे चार पुलिसियों मे से एक ने उसके बाल पकड़े और उसका उसकी छाती पर झुका हुआ चेहरा जबरन ऊंचा उठा दिया ।
“बलराज सोनी !” - भटनागर के मुंह से हैरानीभरी सिसकारी के साथ निकला ।
***
जय-जयकार यादव की हुई  । उसने एक ट्रिपल मर्डर के अपराधी को एक निहायत शानदार जाल फैलाकर तब रंगे हाथों पकड़ा था जबकि वह चौथा मर्डर करने जा रहा था । यादव उस रोल का हीरो था और क्या प्रेस और क्या पुलिस, हर किसी की निगाहों का मरकज था । कितना होनहार पुलिसिया था वो ! अफीम और चरस की स्मगलिंग करने वाले एक विशाल गिरोह का पर्दाफाश करके वह हटा नही था कि उसने इस ट्रिपल मर्डर केस को हल कर दिखाया था । वाह ! वाह !
आपके खादिम की वहां कोई पूछ नहीं थी ।
बाद में वाहवाही बटोरने से उसे फुरसत मिली तो वह मेरे पास आया ।
उस वक्त आधी रात हो चुकी थी और मैं भटनागर के निजी ऑफिस में बैठा उसके साथ विस्की पी रहा था ।
भटनागर ने उसके लिए भी पैग बनाया ।
जिन्दगी में पहली बार शायद यादव मेरे से ऐसी मुहब्बत से पेश आया जैसे मैं कई बरसों पहले मेले में बिछुडा उसका भाई था जो कि एकाएक उसे मिल गया था ।
उसने मेरे साथ जाम टकराकर चियर्स बोला ।
“तुम्हे सूझा कैसे ?” - वह बोला - “कि सारे फसाद की जड़ वह बलराज सोनी का बच्चा था ?”
“कई छोटी-छोटी बातों को जमा करने से सूझा ।” - मैं बोला - “मसलन मुझे इस बात की गारंटी थी कि चौधरी के कत्ल वाली रात को ओबराय की कोठी पर मुझे विस्की में बेहोशी की दवा मिलाकर पिलाई गई थी । वहां मेरे अलावा विस्की पीने वाला या वकील बलराज सोनी था और या कमला थी । कमला कहती थी कि उसने मुझे बेहोशी की दवा नहीं दी । अगर वह सच बोल रही थी तो जाहिर था कि वह काम बलराज सोनी का और सिर्फ बलराज सोनी का हो सकता था ।”
“उसने तुम्हें बेहोशी की दवा क्यों दी ?”
“क्योंकि वह मेरे फ्लैट की तलाशी लेना चाहता था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि कमला को फंसाने के लिए छतरपुर के फार्म हाउस में जो सबूत उसने कमला के खिलाफ प्लांट किये थे, वे मैंने वहां से गायब कर दिये थे ।”
“तुमने ऐसा किया था ?”
“हां ।” - मैं लापरवाही से बोला - “कोई एतराज ?”
उस घड़ी वो भला कैसे एतराज कर सकता था !
“आगे बढ़ो ।”
“वह निश्चित रूप से यह नहीं जानता था कि वह हरकत मेरी थी लेकिन उसे मुझ पर शक था और उसे उम्मीद थी कि मेरे फ्लैट की तलाशी लेने से वह मेरी नीयत के बारे में बहुत कुछ जान सकता था । जो सबूत मैंने फार्म हाउस से गायब किये थे, वे अगर उसे मेरे फ्लैट में मिल जाते तो वह उन्हें यथास्थान रहने देता और पुलिस को उनकी बाबत कोई गुमनाम टिप दे देता । फिर मैं भी अपराधी का मददगार होने के इल्जाम में शर्तिया गिरफ्तार होता ।”
“तुम्हारे फ्लैट पर ऐसा कुछ था ?”
“कुछ नहीं था । वे सबूत तो मैं पहले ही, ओबराय के कत्ल वाली रात को ही, नष्ट कर चुका था ।”
“थे क्या वो सबूत ?”
“वो सबूत थे कमला की लिपिस्टिक लगे सिगरेट के दो टुकड़े, एक फूलों का गुलदस्ता, कमला का एक रूमाल जिससे लगता था कि उसने रिवॉल्वर पर से उंगलियों के निशान पोंछे थे और टॉयलेट में तैरता एक पेपर नैपकिन जिस पर कमला की लिपस्टिक के निशान लगे थे । उन सबूतों से वह यह साबित करना चाहता था कि कमला और उसका पति काफी अरसे से वहां थे, आरम्भ में उनमें सदभावना का माहौल था लेकिन बाद में उनमें ऐसी तकरार हुई थी कि कमला ने अपने पति को शूट कर दिया था ।”
“फिर ?”
“फिर यह कि उसकी बदकिस्मती कि जब वह मेरे फ्लैट की तलाशी ले रहा था तो मेरी दुक्की पीटने की नीयत से ऊपर से चौधरी वहां पहुंच गया । उसे जरूर बलराज सोनी पर मेरा धोखा हुआ होगा । मुझे समझकर उसने बलराज सोनी पर आक्रमण किया ।  तब बलराज सोनी के हाथ मेरा चाकू पड़ गया होगा जिससे कि उसने चौधरी पर वार किया होगा । तलाशी वह जरूर दस्ताने पहनकर ले रहा होगा जिसकी वजह से उस चाकू के अनोखे हैंडल से उसकी हथेली पर पंक्चर मार्क बनने से रह गये होंगे ।”
“यानी कि चौधरी से उसकी कोई अदावत नहीं थी ?”
“न । चौधरी की अदावत मेरे से थी । वह मेरा कत्ल करने मेरे फ्लैट पर पहुंचा था । यह उसकी बदकिस्मती थी कि ऐन उस वक्त फ्लैट पर मैं नहीं, बलराज सोनी मौजूद था जो वहां चोर की हैसियत से रंगे हाथों पकडे जाने का कतई खाहिशमन्द नहीं था ।”
“हूं ।”
“बलराज सोनी की एक यह बात भी मुझे बहुत खटकी थी कि मैं जहां भी जाता था, वह मुझे वहां पहले ही मौजूद मिलता था । हर कत्ल के वक्त के आसपास वह या तो घटनास्थल पर था या उसके आसपास था । ऐसा इत्तफाक हो सकता था लेकिन हर बार ऐसा इत्तफाक नहीं हो सकता था । आज जब मैं निजामुद्दीन थाने में कमला से मिलने गया था तो वह वहां भी उसके सिरहाने बैठा हुआ था । वहां उसके मुंह से एक ऐसी बात निकली थी जिसे सुनकर मुझे गारण्टी हो गई थी कि वही हत्यारा था ।”
“क्या ?”
“उसने मुझे कमला की निगाहों में एक हकीर इंसान साबित करने के लिए कहां था कि रहता तो मैं ऐसे कबूतर के दड़बे जैसे फ्लैट में था जिसकी बैठक की दीवार का उधड़ा हुआ पलस्तर तक मैं ठीक नहीं रख सकता था लेकिन सपने देखता था मैं ओबराय साहब जैसे लोगों की विशाल कोठियों के । अब तुम सोचो, यादव साहब, मेरी जानकारी में जिस शख्स ने कभी मेरे घर में कदम नहीं रखा था, उसे कैसे मालूम हो सकता था कि मेरे फ्लैट की किसी दीवार का पलस्तर उधड़ा हुआ था ? ऐसा उसे एक ही तरीके से मालूम हो सकता था । और वह तरीका यही था कि अगर वो मेरी जानकारी में नहीं तो मेरी गैरहाजिरी में मेरे फ्लैट में घुसा था ।”
“ओह !”
“उसकी वह बात सुनकर ही मैंने उसको फांसने के लिए आनन-फानन जाल फैलाया था । मैंने कमला को कहा कि मैं उस पर दिलोजान से फिदा था और फौरन उससें शादी करना चाहता था ।”
“ऐसा क्यों कहा तुमने ?”
“बताता हूं । देखो । एक बार जब मैंने मान लिया कि कातिल बलराज सोनी था तो मेरे सामने कोई उद्देश्य भी होना चाहिए था उसकी इस हरकत का । मुझे एक ही उद्देश्य सूझा ।”
“क्या ?”
“ओबराय की दौलत । बलराज सोनी ओबराय का वकील था । उसने उसकी वसीयत तैयार की थी । वसीयत में जो कुछ लिखा था, वह तो उसने मुझे बताया था लेकिन मेरे अनुरोध पर भी वह मुझे वसीयत दिखाने को तैयार नहीं हुआ था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि, जैसा कि अब मुझे मालूम हो भी चुका है, वसीयत में खुद बलराज सोनी का भी जिक्र था । ओबराय की कोई आस-औलाद नहीं थी और बीवी के अलावा उसका कोई नजदीकी रिश्तेदार भी नहीं था । रिश्तेदार के अलावा अगर वह किसी को अपना वारिस बनाने का ख्वाहिशमंद था तो वह जूही चावला थी । लेकिन जैसा कि आज मैंने कोर्ट में दाखिल ओबराय की वसीयत की कॉपी में देखा, उन दोनों के मर जाने की सूरत में, यानी कि ओबराय का कोई वारिस न बचने की सूरत में जायदाद का वारिस बलराज सोनी करार किया गया था ।”
“ऐसा ओबराय ने अपनी मर्जी से किया होगा ?”
“मर्जी से ही किया होगा । बलराज सोनी ने उसे यह पट्टी पढाई होगी कि यूं वसीयत में उसका नाम लिखने से उसको कुछ मिल तो जाने वाला नहीं था, तो एक मजाक के तौर पर ही वसीयत में उसका जिक्र सही । वैसे यह भी हो सकता है कि ऐसी किसी वसीयत पर उसने ओबराय के धोखे से साइन करवा लिए हों । बहरहाल यह हकीकत अपनी जगह अटल है कि जूही चावला की मौत के बाद अगर अब कमला ओबराय भी मर जाती तो ओबराय की सारी जायदाद का मालिक बलराज सोनी बन जाता । उसने कमला को ऐसी चालाकी से फंसाया था कि कम-से-कम उसकी निगाह में तो उसका फांसी पर चढ़ जाना लाजमी था । यह थी आज शाम तक बलराज सोनी की पसन्दीदा खीर की थाली जिसमे मैंने मक्खी डाल दी ।”
“कैसे ?”
“थाने में उसके सामने यह घोषणा करके कि मैं कमला पर दिलोजान से फिदा था और उससे फौरन शादी करना चाहता था । मै शादी की कमला से हामी भी भरवा आया था और कल सुबह की तारीख भी पक्की कर आया था । वह बात सुनकर बलराज सोनी के छक्के छूट गए । अगर मैं कमला से शादी कर लेता और फिर कमला फांसी चढ़ जाती तो उसका पति होने के नाते उसे मिली ओबराय की सारी जायदाद का मालिक मैं होता । दौलत के लिए तीन कत्ल कर चुकने के बाद अब बलराज सोनी को ऐसी कोई स्थिति भला कैसे गंवारा होती ? यादव साहब, अपनी इस घोषणा के बाद मैंने तो वहां थाने में ही उसकी आंखो में अपनी मौत की छाया तैरती देख ली थी । उसने तो उसी क्षण मेरा कत्ल करने का फैसला कर लिया हुआ था । थाने से ही वह मेरे पीछे लग गया था । वैसे भी मैं उसे जानबूझकर सुना आया था के मेरा अगला पड़ाव यह जगह थी ताकि अगर पीछा करते वक्त वह मुझे कहीं खो बैठता तो उसे मुझे दोबारा तलाश करने में कोई दिक्कत न होती ।”
“तुम्हें मालूम था कि वह यहां तुम्हारे कत्ल की कोशिश करेगा ?”
“मुझे यह मालूम था कि पहला सुरक्षित मौका हाथ में आते ही वह मुझ पर वार करेगा । वह मौका मैंने उसे यहां खुद तैयार करके दिया । फर्क सिर्फ इतना हुआ कि मैंने तुम्हें भी यहां बुला छोड़ा । वह मुझे स्टूडियो में अकेला समझ रहा था । मेरे साथ भटनागर साहब थे लेकिन अगर उसे लगता कि वह इन पर एक्सपोज हो सकता था तो वह मेरे साथ-साथ इनका भी कत्ल कर देता । मैंने पहले से तुम्हे यहां न बुलाया हुआ होता तो फिर मेरी दुक्की पीट गई थी ।”
“तुमने बहुत रिस्क लिया अपनी जान का ।”
“बलराज सोनी को एक्सपोज करने के लिए यह जरुरी था । यादव साहब, यह न भूलो कि यही एक अकाट्य सबूत है तुम्हारे पास उसके खिलाफ कि तुमने उसे मेरे कत्ल की कोशिश में रंगे हाथों गिरफ्तार किया था । उसकी इस हरकत की गैरहाजिरी में उस पर शक ही किया जा सकता था, उसके खिलाफ कुछ साबित नही किया जा सकता था ।”
“तुम ठीक कह रहे हो ।” - यादव एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “ओबराय का कत्ल तो बलराज सोनी ने उसकी दौलत की खातिर किया और चौधरी का कत्ल उसने इसलिए किया क्योंकि वह तुम्हारे फ्लैट की तलाशी ले रहा था तो इत्तफाक से ऊपर से वह आ गया था लेकिन जूही चावला का कत्ल क्यों किया उसने ?”
“वह तो उसने करना ही था । उसके मरे बिना दौलत बलराज सोनी के हाथ थोड़े ही आ सकती थी !”
“ऐसे तो उसने अभी कमला के भी फांसी चढने का इन्तजार करना था । फिर भी जूही का कत्ल उसने यूं आनन-फानन क्यों किया ?”
मैं कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “इसकी एक ही वजह हो सकती है ।”
“क्या ?”
“यह कि जूही को मालूम था कि उस रात अपने फार्म हाउस पर ओबराय बलराज सोनी से मिलने जा रहा था । ओबराय जूही के बंगले से ही फार्म पर गया था । वहां जब बलराज सोनी उसके कत्ल को आमादा हो गया होगा तो उसने उसे हतोत्साहित करने के लिए बताया होगा कि जूही को उस मुलाकात की खबर थी और ओबराय की मौत के बाद जूही का बयान उसे फंसा सकता था ।”
“तुम्हारा अन्दाजा सही है ।” - यादव के स्वर में एकाएक प्रशंसा का पुट आ गया - “यही बात थी । तुम्हारी जानकारी के लिए गिरफ्तारी के बाद बलराज सोनी अपना बयान दे चुका है और कबूल कर चुका है कि तीनों कत्ल उसने किए थे । बकौल उसके ओबराय की हत्या वाली रात को ही वह जूही चावला से उसके बंगले पर मिला था । उसने उसे धमकाया था कि अगर उसने किसी को बताया कि ओबराय फार्म पर उससे मिलने गया था तो वह उसे जान से मार डालेगा । अगले रोज इसी वजह से जूही चावला ने तुम्हारी सेवाएं प्राप्त की थी । अपनी जान का खतरा उसे बलराज सोनी से था इसीलिए उसने अपने लिए बॉडीगार्ड का इन्तजाम किया था ।”
“आई सी !”
“बलराज सोनी कहता है कि उसने बाद में महसूस किया था कि बावजूद उसकी धमकी के जूही चावला अपनी जुबान खोल सकती थी । देर-सबेर तो उसने उसका कत्ल करना ही था सो उसने वह काम तभी करने का फैसला कर लिया । वह जूही के बंगले पर उसका कत्ल करने की ही नीयत से पहुंचा था कि उसे वहां कमला मिल गयी थी । वह वहां से कमला की कार पर उसके साथ रवाना हुआ था । रास्ते में उसने जानबूझकर कमला के साथ ऐसी बेहूदगी की थी कि उसने उसे कार में से उतार दिया था । वह वापिस लौटा था और बंगले के पिछवाड़े की गली में से बंगले में दाखिल हुआ था । तुम्हारा आदमी सामने की तरफ था इसलिए उसे उसके दोबारा आने का पता नहीं लगा था । वह कहता है कि वह जूही को दबोचकर किचन में ले आया था और उसने गैस को खोलकर जबरन उसका सिर गैस के सामने कर दिया था । खुद वह अपने साथ बैग में एक गैसमास्क लेकर गया था इसलिए गैस का असर उस पर नहीं हुआ था । उसने पहले से ही उसका कत्ल यूं करने का इरादा किया हुआ था इसलिए वह गैसमास्क और वहां की किचन के ताले की प्रकार की कई चाबियां साथ लेकर गया था । उनमें से कोई तो चाबी किचन के ताले को लगनी ही थी । लगी भी । बाकी काम आसान था । वह मर गई तो उसने उसे गैस के सिलेण्डर के करीब डाल दिया और गैस खुली रहने दी । फिर उसने किचन की चाबी उसके एक दरवाजे के भीतर छोड़ी और अपनी किसी एक चाबी से दरवाजा बाहर से बन्द करके वहां से विदा हो गया ।”
“ओह !”
“चौधरी का तुम्हारे फ्लैट में कत्ल कर चुकने के बाद उसने तुम्हारे ही फ्लैट से कमला को फोन किया था और कहा था कि क्योंकि कमला ने उसका प्रणय-निवेदन ठुकरा दिया था इसलिए वह आत्महत्या करने जा रहा था । इस प्रकार उसने इतनी रात गए कमला को घर से निकाला और खुद फौरन अपने घर पहुंच गया । इस हरकत से उसे दो फायदे हुए । एक तो खुद कमला उसकी गवाह बन गई कि चौधरी की हत्या के समय के आसपास वह अपने घर पर था, दूसरे हम लोग कमला पर यह शक कर बैठे कि वह चौधरी की हत्या कर चुकने के बाद बलराज सोनी के पास पहुंची थी ।”
“कत्ल की रात को ओबराय को वह छतरपुर बुलाने में कैसे कामयाब हुआ ?”
“वह कहता है कि ओबराय वह फार्म बेचना चाहता था । उसने ओबराय को कहा था कि उसने फार्म का एक ग्राहक तलाश कर लिया था जिससे वह फार्म पर ही ओबराय की फाइनल बात करवा सकता था । ओबराय नारायणा से झंडेवालान तक टैक्सी पर आया था, वहां से आगे बलराज सोनी उसे अपनी कार में बिठाकर ले गया था ।”
“ओबराय की रिवॉल्वर उसके हाथ कैसे लगी ?”
“वह कोई बड़ी बात नहीं थी । ओबराय के घर-बार में बलराज सोनी की हैसियत परिवार के ही एक सदस्य जैसी थी । ओबराय की कोठी में आने-जाने पर उसे कोई रोक-टोक नहीं थी । बहुत सगेवाला बनता था वह ओबराय का..”
“ऐसा सफेद खून वाला कहीं किसी का सगेवाला बन सकता है ?”
“हकीकतन नहीं बन सकता । लेकिन भरम तो पैदा कर ही सकता है । बहरहाल उसे यह मालूम होना, कि ओबराय अपनी रिवॉल्वर कहां रखता था, कोई बड़ी बात नहीं थी और उसे वहां से चुपचाप निकाल लेना भी कोई बड़ी बात नहीं थी ।”
“आई सी !”
“तुम्हारी जानकारी के लिए कमला को ओबराय के जूही से ताल्लुकात की भनक भी बलराज सोनी से  ही लगी थी और उसीने उसे यह कानूनी नुक्ता सुझाया था कि अगर वह अपने पति के किसी और स्त्री से नाजायज ताल्लुकात को साबित करके पति से तलाक हासिल करे तो प्रापर्टी सैटलमेण्ट के तौर पर उसे ओबराय की सम्पत्ति का एक मोटा भाग मिल सकता था । इस काम के लिए किसी प्राइवेट डिटेक्टिव की सेवाएं हासिल करने की राय भी कमला को उसी ने दी थी । उसी ने उसे यह भी समझाया था कि कि इस बात को गोपनीय रखने के लिए उसे किसी एकान्त जगह प्राइवेट डिटेक्टिव से मिलना चाहिए था । यानी कि कमला ने तुमसे छतरपुर के फार्म में आठ बजे मिलना उसी की शह पर तय किया था ।”
“यानी कि ओबराय की हत्या का अपराध थोपने के लिए कैण्डीडेट के तौर पर कमला को उसने पहले से ही चुना हुआ था ?”
“जाहिर है ।”
“बहरहाल अन्त बुरे का बुरा ।”
“दुरुस्त ।”
“अब अपनी प्रोमोशन तो तुम पक्की समझो ।”
“कैसे पक्की समझूं ? वह तो तुम होने दोगे तो होगी ।”
“मतलब ।”
उसने एक सशंक निगाह शैली भटनागर पर डाली और फिर दबे स्वर में बोला - “जब तक मैं लैजर की उस दूसरी कॉपी की बाबत निश्चिन्त न हो जाऊं जो कि...”
“खातिर जमा रखो यादव साहब ।” - मैं बीच में बोल पड़ा - “ऐसी किसी कॉपी का अस्तित्व नहीं है ।”
“सच कह रहे हो ?” - वह संदिग्ध भाव से बोला ।”
“हां ।”
“तुमने दूसरी कॉपी नष्ट कर दी है ?”
“दूसरी कॉपी थी ही नहीं । कमला ओबराय से मुलाकात का मौका हासिल करने के लिए उस बाबत मैंने तुमसे झूठ बोला था ।”
“ओह !” - उसने शान्ति की एक मील लम्बी सांस ली - “ओह !”
“अब तो बन गए इंस्पेक्टर ?”
“हां । शायद ।”
“अब इंस्पेक्टर बनने की खुशी में एक मेहरबानी मुझ पर भी करो ।”
“क्या ?”
“मेरा एलैग्जैण्डर से पीछा छुडाओ ।”
“वह तो मैंने उसे कहा है कि...”
“तुमने उसे कहा है कि मौजूदा हालात में मुझे कुछ नहीं होना चाहिए । उसने मुझे बताया था ऐसा । लेकिन हो सकता है, वह सिर्फ मौजूदा हालात में खामोश रहे । यादव साहब, मैंने दो बार उस पर आक्रमण किया है और उसका पचास हजार रुपया भी मारा है, इसलिए हो सकता है कि वह बाद में मेरी खबर ले । अब यह केस खत्म हो ही गया है । आने वाले दिनों में उसकी फिर से मुझ पर नजरेइनायत हो सकती है ।”
“ऐसा नहीं होगा । मैं उससे बात करूंगा ।”
“तुम गारण्टी करते हो, ऐसा नही होगा ?”
“हां ।”
“तो मैं चैन की नींद सोउं ?”
“हां ।”
“शुक्रिया । कमला अभी भी निजामुद्दीन थाने में है ?”
“नहीं । वो तो कब की रिहा की जा चुकी है । बलराज सोनी के गिरफ्तार होते ही मैंने उसको रिहा कर देने के लिए थाने फोन कर दिया था ।”
“गुड ।”
उसके बाद महफिल बर्खास्त हो गई ।
***
कमला ओबराय से शादी से पीछा छुड़ाने के लिए आपके खादिम को जो दांतों पसीने आये, उसको आपका खादिम ही जानता है । वो तो पंजे झाड़कर मेरे पीछे पड़ गई । वो तो अपने दिवंगत पति की तेरहवीं तक इंतजार करने को भी तैयार नहीं थी । आखिर मैं भी तो उसके रिहा होने का इन्तजार नहीं करना चाहता था, मैं भी तो हवालात में ही उससे शादी कर लेना चाहता था । बड़ी मुश्किल से मैं उसे समझा पाया कि उस जैसी खूबसूरत औरत का दर्जा तो ताजमहल जैसा होता था । ताजमहल भला किसी एक शख्स की मिल्कियत बन सकता था ! उसकी अजीमोश्शान हस्ती से मुसर्रत हासिल करने का हक तो हर किसी को होना चाहिए था ।
हकीकत में मैं उसे कैसे समझाता कि मुफ्त में हासिल चीज की कहीं कीमत अदा की जाती थी ! और वह भी शादी जितनी बड़ी कीमत !
बलराज सोनी की गिरफ्तारी के अगले दिन ही कमला का पोस्टडेटिड चैक उसे वापिस कर के मैने उससे एक लाख अस्सी हजार रुपये का बेयरर चैक हासिल कर लिया जो कि फौरन कैश हो गया । आखिर अब वह पांच करोड़ की विपुल धनराशि की मालकिन का चैक था ।
एलैग्जैण्डर से मैं कई दिन सशंक रहा लेकिन मुझे उसकी या उसके किसी आदमी की कभी सूरत भी न देखनी पड़ी । यादव अपने वादे पर खरा उतरा था । उसने वाकई एलैग्जैण्डर से मेरा पीछा छुड़ा दिया था ।
जूही चावला के रिश्तेदार शिमले से आये और उसकी लाश क्लेम करके उसका दिल्ली में ही अन्तिम संस्कार करके वापिस चले गये । उसकी मौत का मुझे सख्त अफसोस था । वह बेचारी खामखाह मारी गई थी, खामखाह गेहूं के साथ घुन की तरह पिस गई थी ।
उस केस से मैंने कुल जमा दो लाख तीस हजार रुपये कमाये ।
और मेरी वह कम्बख्त सैक्रेट्री समझती थी कि मैं उसकी तनखाह भी कमाने के काबिल नहीं था ।
समाप्त