बहुत बड़ा हॉल था।
इतना बड़ा कि उसका पूरा चक्कर लेने पर इन्सान थकान-सी महसूस करने लगे। अच्छी तरह सजा था वो। सजावट का सामान अजीब-सा ही था।
दीवारों पर हड्डियों की कई तरह की आकृतियां बनी लटक रही थीं। कहीं खोपड़ियां लटक रही थीं। तलवारें-भाले-कटारें सजा रखी थीं। दो जगह इन्सानी शरीर दीवार पर ऐसे लगे थे कि देखने पर लगें जैसे वो चिपकाये गये हों। उनके होंठों से खून की एक-एक बूंद, रह-रहकर टपक रही थी और नीचे मौजूद बहुत बड़े बर्तनों में खून की वो बूंदें पड़ रही थीं। इस पर भी उन दोनों इन्सानों की आंखें हिल रही थीं। चेहरे सामान्य थे।
फर्श पर सुर्ख रंग का कालीन था। ऐसा सुर्ख कि अगर उस पर खून गिरे तो खून भी कालीन की सुर्खी का ही हिस्सा लगे। नक्काशीदार फर्नीचर वहां पड़ा था, जिस पर चमकीले-भड़काऊ रंग हुए पड़े थे। उसी हॉल की दीवार पर बहुत बड़ी रंगों से भरी आकृति बनी थी, जैसे किसी पेंटर ने उसे बनाया हो। उस आकृति के सिर के बाल कमर तक फैले नजर आ रहे थे इसके अलावा गले पर, छाती पर, पेट तक घने बाल ही बाल नजर आ रहे थे। इसी तरह बाँहें भी बालों से भरी हुई थी। आंखों में जाने कैसी भयानकता थी कि देखने वाला फौरन मुंह घुमा ले। आंखों के ऊपर से भौंहें गायब थीं। कान बड़े थे। ऊपर उठते हुए वो सिर को छूते-महसूस कर रहे थे। एक कान में चमकीला कुण्डल लटकता दिखाई दे रहा था। होंठ मोटे-मोटे, गद्देदार से लग रहे थे। कुल मिलाकर दीवार पर बनी वो आकृति भयानकता से भरा डरावना रूप थी।
शैतान की आकृति थी वो, जो चार आसमान पार रहकर अपनी शैतानी सृष्टि को अंजाम दे रहा था।
वहां पर शैतान के अवतार के अलावा और कोई मौजूद नहीं
था। उसके वहां अकेले होने की वजह से वहां का वातावरण
रहस्यमय, भययुक्त लग रहा था।
पांच फीट से कुछ ज्यादा ऊंचा था वो। सांवला चेहरा। शरीर के गिर्द काले रंग का कपड़ा इस तरह लपेटा था कि, कमर और
टांगों को ढांपते हुए, साड़ी के पल्लू की तरह उसका किनारा कंधे पर डाल रखा था। गले में लोहे की मोटी सी चैन झूल रही थी और दोनों कानों में लोहे के कुण्डल थे। कलाई में लोहे का मोटा कड़ा था। नंगे पांवों से इस वक्त वो गद्देदार कालीन पर टहल रहा था। कुछ कदम एक दिशा में जाता तो फिर रुककर दूसरी दिशा में चल पड़ता। फिर ठिठकता तो तीसरी दिशा में चल पड़ता।
कुछ देर से ये सिलसिला चालू था।
उसके चेहरे पर थकान के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। एकाएक
वो ठिठका। हथेली खोलकर उसे आंखों के सामने किया तो हथेली में चील का अक्स उभरा। जो उड़ रही थी और पंजे में नगीना दबी थी। होंठ भींचे शैतान के अवतार ने मुट्ठी बंद की और पुनः टहलने लगा।
शैतान के अवतार के चेहरे पर गम्भीरता और उलझन स्पष्ट
नजर आ रही थी। कभी-कभार तो साफ तौर पर परेशान दिखाई देने लगता, परन्तु परेशानी वाले भावों पर वो शीघ्र ही काबू पा लेता।
आहट पाकर शैतान का अवतार ठिठका और दरवाजे की तरफ निगाह उठी।
वहां छः फीट का लम्बा-चौड़ा व्यक्ति खड़ा नजर आया।
“शैतान की जय हो। मालिक की जय हो।” उस व्यक्ति ने कहा-“मैं भीतर आ सकता हूं-?”
शैतान के अवतार के सहमति से सिर हिलाने पर वो भीतर आ गया।
“आप कुछ उलझन में लग रहे हैं मालिक-।” उसने भीतर आ जाने पर कहा।
“अवश्य।” शैतान के अवतार ने उसे देखते हुए सिर हिलाया-“उलझन तो है ही-।”
“मुझे बताईये मालिक।” वो बोला-“मैं आपकी सारी उलझन दूर कर दूंगा। सेवक को सेवा के लिये हुक्म दीजिये-।”
शैतान के अवतार ने पुनः अपनी हथेली खोलकर देखा। चील
उसी मुद्रा में उड़ती नजर आई। पंजे में फंसी नगीना देखने को मिली। कुछ पल वो नजरें हथेली पर टिकाये रहा, फिर मुट्ठी बंद कर ली।
“मूरत सिंह-।” शैतान का अवतार गम्भीर स्वर में बोला-“जो
मनुष्य हमारी दुनिया में-।”
तभी मोगा की आवाज वहां सुनाई दी।
“बीच में दखल देने के लिये माफी चाहता हूं मालिक-।”
शैतान के अवतार और मूरत सिंह ने आवाज की दिशा की तरफ देखा।
मोगा खड़ा नजर आया।
शैतान के अवतार का चेहरा सख्त हो उठा।
“तुम-?”
“आपकी सेवा में हाजिर हूं-।”
“तुम उन मनुष्यों को छोड़कर यहां क्यों आये मोगा?” शैतान के अवतार की आवाज में सख्ती थी।
“मालिक, ये बताने कि धरती से आने वाले मनुष्यों ने एक मायावी ताला तोड़ दिया है। जो कि बहुत ही हैरत की बात है।” मोगा ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये सतर्क होने वाली बात है मालिक-।”
“अपनी शक्तियों के दम पर मैंने मायावी ताला टूटने की बात जान ली है।” शैतान का अवतार मोगा को घूरकर कह उठा-“लेकिन विश्वास नहीं आता कि साधारण मनुष्य ऐसा करने में कामयाब हो सकते हैं!”
“वो कामयाब हो चुके हैं।”
“सम्भव होने पर भी ये बात स्वीकार करने में परेशानी हो रही है।”
“अगर मुद्रानाथ की तलवार उनके हाथ न लगती तो, ऐसा हो पाना सम्भव नहीं था।”
“मुद्रानाथ की तलवार-?”
“हां मालिक। अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके मुद्रानाथ को तो आपने पत्थर के बुत में बदल दिया; लेकिन उसकी शक्तियों से भरी तलवार पर तो जादू-टोने का असर नहीं हुआ था। वो तो बुत बने मुद्रानाथ के हाथों में वैसे ही थमी थी। इसी तलवार के दम पर उन मनुष्यों ने पहला मायावी ताला तोड़ा है।”
शैतान का अवतार दांत पीस कर रह गया।
“मुझे पूरा विश्वास है मालिक कि कोई शक्ति अदृश्य होकर, उन लोगों की सहायता कर रही है। उस शक्ति ने मनुष्यों को बताया
कि तलवार से मायावी चील पर विजय पाई जा सकती है।”
“ऐसी कौन सी शक्ति हो सकती है जो हमारी धरती पर रहकर,
हमारे खिलाफ काम करे?” मूरत सिंह के होंठों से निकला।
“ये तो मैं भी नहीं जानता।” मोगा ने गम्भीर स्वर में कहा-“चील उस लड़की को ला रही है जिसने तलवार से मायावी
ताला तोड़ा है। वो ही बता सकेगी कि कौन-सी अदृश्य शक्ति उनकी सहायता कर रही है।”
“बहुत बुरा हुआ-।” शैतान का अवतार खतरनाक लहजे में
कह उठा।
“उन मनुष्यों को खत्म करने का मुझे हुक्म दीजिये।” मूरत सिंह
बोला।
“उन मनुष्यों की मौत तो कदम-कदम पर बिछी है मूरत सिंह।” शैतान का अवतार भयानक स्वर में कह उठा-“मैं चाहता हूं वो
सब अपनी हरकतों से ही मरें। किस-किस मौत के जाल से वो बचते रहेंगे।”
“माफी चाहता हूं मालिक।” मोगा कह उठा-“सिर्फ दो ताले ही बचे हैं। अगर वो भी उन्होंने तोड़ लिये तो आप तक पहुंच जायेंगे। मुद्रानाथ की बात सच हो जायेगी कि-।”
“मोगा-।” शैतान का अवतार गुर्रा उठा-“तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि वो ताले तोड़ना असम्भव है।” इसके साथ ही शैतान के अवतार के चेहरे पर शैतानी मुस्कान आ गई-“प्रेतनी चंदा की ताकत से तुम वाकिफ नहीं हो जो तिलस्म में दूसरे ताले पर मौजूद रहकर उन सब मनुष्यों के आने का इन्तजार कर रही है। अगर वो मुझ तक पहुंच भी गये तो क्या अंजाम होगा उनका। तुम क्या समझते हो कि वो मुझे जीत लेंगे?”
“ऐसा तो सम्भव ही नहीं मालिक-।”
“फिर बेकार की बात सोचने का फायदा?” शैतान के अवतार के होंठों से शैतानी हंसी निकली-“बाकी के दोनों मायावी ताले वो नहीं तोड़ सकते। अभी तो उन सबने मेरे बनाये तिलस्म से गुजरना है। जहां से कोई भी जिन्दा बचकर बाहर नहीं आ सकते। वो वहीं भटक कर मर जायेंगे।”
“ये बात तो मैंने सोची ही नहीं थी, मालिक-।” मोगा मुस्करा पड़ा-“मैं तो यूं ही चिन्तित-।”
तभी उस बड़े हॉल के कमरे की छत वाला हिस्सा दरवाजे की तरह खुलता चला गया। तीनों की नजरें ऊपर गईं। आकाश में तारे चमकते नजर आने लगे। चील भी नजर आई जो, नगीना को पंजे में दबाये, उस रास्ते से भीतर आ गई और वो छत पुनः बंद होकर पहले जैसी नजर आने लगी।
चील ने पंजे से नगीना को मुक्त किया तो वह कालीन पर आ
गिरी। गिरने की वजह से उसके होंठों से चीख निकली। वैसे भी जहां से चील ने पंजे से पकड़ा था। शरीर का वो हिस्सा घायल हो चुका था। फिर देखते ही देखते चील भी नीचे उतर कर कालीन के एक हिस्से पर आ गई। एक पंजा कटा होने की वजह से वो सीधी खड़ी नहीं हो सकी और अधलेटी-सी होकर गहरी-गहरी सांसें लेने लगी।
शैतान के अवतार की गुस्से से भरी सुर्ख आंखें चील पर जा टिकीं।
शैतान का अवतार मौत भरे अन्दाज में आगे बढ़ा और जोरदार
ठोकर चील के चेहरे पर मारी। चील के गले से दर्द भरी चीख निकली और कालीन पर जा लुढ़की।
शैतान के अवतार ने कलाई पर पहन लोहे के कड़े को छू कर होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया तो उसी पल चील का रंग-रूप, आकार बदलने लगा। देखते ही देखते ही वो स्त्री के रूप में आ गई। गोरा सफेद रंग था उस स्त्री का। खूबसूरत थी। गहनों से वो सजी हुई थी, परन्तु चेहरे पर पीड़ा ही पीड़ा थी। घुटने के ऊपर से एक कटी हुई थी। खून रिसना बंद हो चुका था।
“प्रेतनी तवाली।” शैतान का अवतार गर्ज भरे शब्दों में कह उठा-“तू अपने मालिक का हुक्म तामील करने में नाकाम रही। तेरे को चील का रूप देकर, जो काम करने को कहा, असफल रही तू उसमें। मामूली से मनुष्यों का मुकाबला नहीं कर पाई तू। मायावी दरवाजे की रक्षा नहीं कर पाई। तू मेरी सेवा के लायक नहीं-।”
“रहम मालिक! रहम।” प्रेतनी तवाली गिड़गिड़ा उठी-“इसमें मेरा कोई कसूर नहीं। मनुष्यों को खा जाना मेरे लिये मामूली बात थी। लेकिन मुद्रानाथ की अद्भुत शक्तियों वाली तलवार ने मेरा रास्ता रोका-।”
“मैं कुछ नहीं जानता।” शैतान का अवतार गुस्से से थर-थर कांप उठा-“जानता हूं तो सिर्फ इतना कि तू नाकाम रही। तूने मेरा विश्वास तोड़ डाला। मैंने तुझे आजाद करके घड़े से इसलिये बाहर निकाला था कि हर काम को तू सफलता से पूरा करेगी और खुश रखेगी मुझे-।”
“रहम मालिक। मुद्रानाथ की तलवार कसूरवार है। मैं नहीं। मैंने दिल से आपकी सेवा की है। आज तक जो भी बुत के पास पहुंचा है, मैंने उसे जिन्दा नहीं छोड़ा। एक मौका मुझे दीजिये-।”
“तू अब किसी काम की नहीं रही।” शैतान ने खतरनाक स्वर में कहा और बांह उठाकर हवा में लहराया तो उसी पल शीशे का घड़ा हवा में लहराता नजर आने लगा। शीशे के घड़े का मुंह खुला था। उसके भीतर मक्खियां ही मक्खियां नजर आ रही थीं। चींटे भी थे, परन्तु उनकी संख्या कम थी। गहरे रंगों के बहुत कम संख्या में उड़ते कीड़े नजर आ रहे थे। परन्तु कोई भी चींटा, मक्खी, कीड़ा घड़े के खुले मुंह से बाहर नहीं निकल रहा था। सब घड़े के भीतर ही अपनी हरकतें जारी रखे हुए थे।
कांच के घड़े पर निगाह पड़ते ही प्रेतनी तवाली का चेहरा दहशत से भर उठा।
“रहम मालिक! रहम।” प्रेतनी तवाली चीखकर गिड़गिड़ा उठी-“मुझे वापस घड़े में मत भेजिये। मैं हर तरह से आपकी सेवा करूंगी। आपकी सेवा में किसी तरह की कमी नहीं-।”
“तू अब मेरे काम की नहीं रही तवाली।” शैतान का अवतार भयानक स्वर में कह उठा-“सौ बरस घड़े में रहने के बाद तेरे को नई टांग मिल जायेगी। तब तू अपाहिज नहीं होगी। तब ही तू मेरे किसी काम आयेगी।”
“नहीं मालिक! मैं अभी भी-।”
तभी शैतान का अवतार होंठों ही होंठों में कुछ बड़बड़ाया तो देखते ही देखते प्रेतनी तवाली का आकार छोटा होता चला गया। फिर वो मक्खी बनकर, हवा में उड़ते हुए भिनभिनाने लगी।
कांच का घड़ा हवा में अपनी जगह पर ठहरा हुआ था।
मक्खी बनी प्रेतनी तवाली उस घड़े के आसपास मंडराने लगी, परन्तु भीतर प्रवेश नहीं किया।
“तेरी ये हिम्मत कि तू मेरे हुक्म की ऊदीली करे।” शैतान के अवतार का चेहरा गुस्से से धधक उठा-“आख़िरी बार पूछ रहा हूं कि घड़े में जाती है या नहीं। वरना अभी तुझे जलाकर खाक करता हूं-।”
देखते ही देखते मक्खी बनी प्रेतनी तवाली घड़े में प्रवेश कर गई।
शैतान के अवतार का चेहरा अभी भी क्रोध से दहक रहा था। उसने कान में पड़े कुण्डल को छूकर होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया तो उसी पल लाल रंग का चींटा उड़ता हुआ घड़े से बाहर आ गया। शैतान के अवतार ने घड़े की तरफ हाथ किया तो कांच का घड़ा जैसे हवा में घुल कर गायब होता चला गया।
“तुझे मेरा हुक्म है जिन्न बाधात।” शैतान का अवतार गर्ज उठा-“अपने रूप में वापस आ-।”
इन शब्दों के साथ ही वो चींटा उड़ना छोड़कर कालीन पर आ बैठा।
मोगा और मूरत सिंह शांत अवस्था में एक तरफ खड़े थे।
एकाएक उस चींटे का आकार बड़ा होने लगा। रंग, रूप, आकार बदलने लगा। पलों में ही वो बीस फीट लम्बा और दस फीट चौड़ा भयानक-सा व्यक्ति नजर आने लगा। साधारण इन्सान देखता उसे, तो दहशत से खड़ा न रह पाता।
वो गहरे नीले, चमकदार ऐसे कपड़े में था। जो कि मर्दाने गाऊन
जैसा था। कपड़े पर जगह-जगह चमकीले सितारों से डिजाईन बने थे। पांवों में जाने कैसी खाल के स्लीपर थे। गले में बेशकीमती मोतियों की मालाएं पहन रखी थीं। कलाईयों पर बहुत सुन्दर कड़े थे। बाल बहुत ही अच्छे ढंग से कटे, कानों को आधा ढांप रहे थे। कानों में हीरे जड़ित सोने की बालियां थीं। मोटी-मोटी आंखें। चेहरा एक अच्छे इन्सान का लग रहा था। आंखों पर से भौंहें गायब थीं।
उसने दोनों हाथ बांधे और सिर झुकाकर कह उठा।
“जिन्न बाधात आपकी सेवा में हाजिर है मालिक। बहुत ही बड़ी मेहरबानी की मुझ पर, जो सवा सौ बरस के बाद मुझे घड़े से बाहर निकाला।”
“मैंने तुझे यूं ही कैद से बाहर नहीं निकाला जिन्न बाधात।” शैतान के अवतार का स्वर सख्त था-“मुझे अपना काम पूरा देखना है। बोल, करेगा काम?”
“क्यों नहीं करूंगा। ये जिन्न तो आपका गुलाम है। आप हुक्म दीजिये। कहां बाधा डालनी है?”
“मेरी धरती पर, कुछ मनुष्य आ पहुंचे हैं। उन्हें-।”
“खत्म कर देता हूं मालिक-। मेरी डाली बाधा से वो मनुष्य-।”
“बीच में मत बोल मूर्ख। पूरी बात सुन-।” शैतान का अवतार गुर्रा उठा।
“क्षमा मालिक-।”
“अपनी धरती पर मैंने इतने खतरे खड़े कर रखे हैं कि कम से कम मनुष्य ज्यादा देर तक उन खतरों से बचकर जिन्दा नहीं कर सकता। वो सब तड़प-तड़प कर मर जायेंगे। मैं चाहता हूं वो खुद ही अपनी मौत तलाश करके, उस में कूदें। और ऐसा बहुत जल्द हो जायेगा जिन बाधात।”
“तो फिर परेशानी किस बात की मालिक?”
“वो मनुष्य मुझ तक पहुंचना चाहते हैं। उन्होंने प्रेतनी तवाली पर विजय पाकर, एक मायावी दरवाजा तोड़ दिया है। मुझ तक पहुंचने के लिये बाकी दो दरवाजे शेष हैं जिन्हें तोड़ने के लिये उन्हें तिलस्म में जाना होगा।” शैतान का अवतार दांत भींचे गम्भीर स्वर में कह रहा था-“परेशानी तो इस बात की आ खड़ी हुई है कि उनके हाथ एक ऐसी तलवार लग गई है, जो वक्त आने पर सैकड़ों दरवाजों की चाबी बन सकती है। उस तलवार की शक्तियों का मुकाबला शायद तुम भी नहीं कर सकते।”
“ये तो वास्तव में गम्भीर बात है मालिक-।” जिन्ना बाधात ने कहा।
“मुझे उनसे खतरा महसूस होने लगा है कि कहीं वो तलवार सहित मुझ तक न पहुंच जायें। वैसे मैं अपनी तरफ से, शैतानी ताकतों के साथ, उस तलवार का मुकाबला करने को तैयार हूं-।” शैतान का अवतार मुट्ठियां भींचकर कह उठा-“लेकिन ये मेरे लिये क्या गर्व की बात होगी कि साधारण मनुष्यों को खत्म करने के लिये मुझे शैतानी ताकतों का इस्तेमाल करना पड़े। ऐसे में मैं शैतान को क्या मुंह दिखाऊंगा।”
“आप सही कह रहे हैं मालिक-।” जिन्न बाधात ने कहा-“मुझे बताईये, मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं?”
“इससे पहले कि वो मनुष्य करामाती तलवार का इस्तेमाल करके, दूसरा मायावी ताला तोड़ने की चेष्टा करें, उन्हें किसी तरह तिलस्म में फंसा दो।” शैतान के अवतार की आवाज में वहशी भाव थे-“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मेरे तिलस्म में फंस कर, आज तक कोई जिन्दा नहीं बच सका।”
“जो हुक्म मालिक।” जिन्न बाधात ने मुस्कराकर कहा-“मैं उन सब मनुष्यों को आपके तिलस्म में पहुंचाकर फंसा दूंगा। उसके
बाद मेरे लिये क्या हुक्म है?”
“उसके बाद हवा का रुख देखकर, तुम्हें हुक्म दूंगा। उन पर नजर रखते रहना।”
“जो आज्ञा-।” कहते हुए जिन्न बाधात ने सिर झुकाया फिर दूसरे ही पल एकाएक वो नजरों से ओझल हो गया। आंखों में दरिन्दगी समेटे शैतान के अवतार की निगाह नगीना पर जा टिकी। नगीना अपनी जगह पर खड़ी व्याकुल नजरों ये सब देख सुन रही थी।
“क्या नाम है तेरा?” शैतान का अवतार गुर्रा उठा।
“नगीना-।”
“देख मुझे। पहचान ले। मैं हूं शैतान का अवतार, जिस तक तेरे साथी पहुंचना चाहते हैं। लेकिन वो कभी भी नहीं पहुंच सकेंगे।
मेरे बनाये तिलस्म में फंसकर, अटक कर मर जायेंगे।” शैतान का अवतार जोरों से हंसा।
नगीना के चेहरे पर घबराहट स्पष्ट नजर आ रही थी। उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“बता-।” हंसी रोकते हुये शैतान का अवतार कह उठा-“अदृश्य रहकर कौन तुम मनुष्यों की सहायता कर रहा है?”
“मैं नहीं जानती।” नगीना घबराहट में अवश्य थी, परन्तु शब्दों
में दृढ़ता थी।
“झूठ मत बोल-।” शैतान का अवतार गुर्राया-“सच बता-।”
“मैं कुछ नहीं बताऊंगी।” नगीना ने पहले वाले स्वर में कहा।
शैतान के अवतार ने अपने गले में पड़ी लोहे की भारी चेन को पकड़ा और होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाया। उसी पल मुस्करा कर उसने नगीना को देखा।
नगीना के होंठों पर भी मुस्कान नजर आने लगी। उसके चेहरे के हाव-भाव एकदम बदल गये। आंखें नशे में भरी नजर आने लगी थीं।
“नगीना!” शैतान के अवतार का स्वर शांत था।
“हां-।”
“वो कौन है जो अदृश्य रहकर मेरे खिलाफ तुम लोगों की सहायता कर रहा है?” शैतान के अवतार ने पूछा।
“भामा परी-।”
“ये वो ही परी है, जो अस्सी बरस पहले कारी राक्षस के हाथों
बच निकली थी। लेकिन अपने असली रूप में न आ पाने की वजह से इसी धरती पर कहीं छिपी हुई थी।” शैतान का अवतार जैसे अपने आप से ही कह उठा।
“हां, ये वो ही भामा परी है।”
“तुम लोगों को कहां मिली?”
नगीना ने भामा परी के मिलने का सारा किस्सा बताया।
“बहुत बुरी खबर सुनाई तुमने।” शैतान के अवतार के चेहरे पर गुस्सा उभरा-“कारी राक्षस मारा गया...।”
“हम तक ये खबर अभी तक क्यों नहीं पहुंची?” मूरत सिंह कह उठा।
“ये हमारी दुनिया के कवच के ऊपर की घटना है। हो सकता
है कारी राक्षस की मृत्यु के बारे में अभी तक कोई नहीं जान पाया हो। जानकारी होते ही मालिक तक ये खबर पहुंच जायेगी।” मोगा कह उठा।
“कोई फर्क नहीं पड़ता।” शैतान का अवतार दांत भींच कर कह उठा-“कारी राक्षस की आत्मा शैतान के पास पहुंच गई होगी। कारी फिर जन्म लेगा और शैतान का नाम रोशन करेगा।”
कुछ पलों के लिये वहां चुप्पी रही।
शैतान के अवतार ने नगीना से पूछा।
“भामा परी अब कहां है?”
“मैं नहीं जानती। लेकिन वो रूप बदल कर हम लोगों के साथ ही है।”
“हूं।” शैतान के अवतार ने मोगा को देखा-“परी किस हद तक उनकी सहायता कर सकती है?”
“मालिक-।” मोगा कह उठा-“जब वे आपके तिलस्म में फंस जायेंगे तो, वहां वो मामूली-सी परी उन मनुष्यों की क्या सहायता कर सकेगी। मेरे ख्याल से हमें व्यर्थ में परी की चिन्ता नहीं करनी चाहिये।”
“तुम ठीक कहते हो।”
“फिर भी मैं सतर्क रहूंगा और बदले रूप में उस परी को पहचानने की चेष्टा करूंगा। अगर वो मेरी निगाहों में आ गई तो, पलों में ही उसे जलाकर राख कर दूंगा।” मोगा ने कठोर स्वर में कहा।
“ठीक है। तुम उन मनुष्यों के पास जाओ और उनकी हरकतों
पर नजर रखो। जिन्न बाधात जल्दी ही उन्हें मेरे तिलस्म में फंसा देगा। वो सब तड़प-तड़प कर मरेंगे। तीन जन्म पहले उन्होंने मुझे तड़पा-तड़पा कर मारा था। लेकिन तब मैं साधारण इन्सान था। आज तो शैतान का अवतार हूं मैं।” कहकर वो हंसा-“जाओ तुम-।”
“जी मालिक-।” कहने के साथ मोगा पलटा और बाहर निकल
गया।
शैतान के अवतार ने गले में पहनी, पकड़ रखी चेन को छोड़ा तो उसी पल नगीना के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी स्वप्न से निकली हो।
“इसका क्या करना है मालिक?” मूरत सिंह कह उठा-“मनुष्य नारी ही सही, लेकिन खूबसूरत है।”
“हां।” शैतान का अवतार मुस्कान के साथ, नगीना को सिर से पांव तक देखता हुआ कह उठा-“वास्तव में दिल बहलाने का अच्छा सामान है इसमें। लेकिन इस वक्त मैं अहम कार्य में व्यस्त हूँ। गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को हर हाल में तलाश करना है। कहीं गुरुवर का यज्ञ पहले ही सम्पूर्ण न हो जाये। ऐसे में मैं इस मनुष्य जात से दिल बहलाने में व्यस्त हो गया तो शैतान अवश्य बुरा मान जायेगा।”
“ये बात तो आप ठीक कह रहे हैं।”
“इसे हमारे खास शयनकक्ष में कैद कर दो। खाना-पीना देते रहो।”
“कौन से शयनकक्ष में मालिक? आपके तो अधिकतर शयनकक्ष खास ही हैं।” मूरत सिंह कह उठा।
“सबसे खास शयनकक्ष में-।”
“ओह! काले महल वाले शयनकक्ष में-।” समझ गया मालिक-।
“ले जाओ इसे। कुछ आराम के पश्चात, मुझे फिर उस बाल की तलाश में जाना है।”
मूरत सिंह ने आगे बढ़कर नगीना की कलाई पकड़ी और बाहर लेता चला गया। नगीना ने कोई एतराज नहीं उठाया। एतराज उठाने के काबिल भी नहीं थी इस वक्त। वो जानती थी कि ये ऐसी जगह है जहां वो किसी भी तरह की मनचाही हरकत नहीं कर सकती।
उनके जाने के बाद शैतान के अवतार का चेहरा परेशानी में घिर गया।
“समझ में नहीं आता कि गुरुवर ने अपनी सारी शक्तियां बाल में रखकर बाल को कहीं छिपा दिया है। गुरुवर की आधी दुनिया की खाक तो छान चुका हूं, परन्तु वो बाल अभी भी नहीं मिल रही-। उस बाल को तलाश न कर पाया तो शैतान नाराज हो जायेगा। चार आसमान पार, मुझे वापस बुला लेगा। सारे ऐशो-आराम छीन कर अपनी मामूली सी सेवा में लगा लेगा और यहां किसी दूसरे को अपना आशीर्वाद देकर भेज देगा। शक्तियों से भरी उस बाल को तलाश करना बहुत जरूरी
है।” शैतान का अवतार बड़बड़ाने के साथ ही होंठ भींचे टहलने लगा।
तभी शैतान का अवतार ठिठका।
उसने अपने सामने धुएं जैसी लकीर को लहराते देखा।
“दागड़ा-।” शैतान के अवतार के होंठों से निकला।
देखते ही देखते वो धुएं की लकीर किसी डण्डे की तरह स्थिर हो गई। फिर उसका रूप-रंग, आकार बदलने लगा। फिर वहां सामान्य कद-काठी का व्यक्ति खड़ा नजर आने लगा।
“तुम यहां कैसे आये दागड़ा?” शैतान का अवतार कह उठा-“तुम तो पेशीराम पर नजर रख रहे थे।”
“हाँ मालिक। लेकिन पेशीराम पहचान गया कि मैं आपका सेवक हूं। इससे पहले कि वो अपनी शक्ति से मेरा बुरा कर पाता, मैं भाग निकला-।”
“ओह-!”
“लेकिन मालिक!” दागड़ा कह उठा-“पेशीराम भी नहीं जानता कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल कहां पर है।”
“ये बात तुम कैसे कह सकते हो?”
“पेशीराम अपनी बेटी लाडो से बात कर रहा था तो मैंने उन बातों को सुना।” दागड़ा ने बताया-“उन बातों से ये बात स्पष्ट हुई कि पेशीराम खुद उलझन में है कि गुरुवर ने वो बाल कहां छिपा दी है। उसे ये भय सता रहा है कि कहीं वो बाल आपके हाथ न लग जाये। पेशीराम बाल को तलाश करना चाहता है परन्तु गुरुवर का आदेश न होने के कारण, वो कुछ कर पाने में असमर्थ है।”
“हूं-।” शैतान का अवतार सोच भरे स्वर में कह उठा-“मैंने तो सोचा था कि पेशीराम, गुरुवर का सबसे खास शिष्य है। शायद वो शक्तियों से भरी बाल की मौजूदगी की जानकारी रखता हो। लेकिन यहां भी निराशा हाथ लगी। कोई बात नहीं। तुम पेशीराम पर नजर रखना छोड़ दो और वेश बदलकर गुरुवर की नगरी में हर उस जगह को देखो, जहां बाल को छिपाकर रखने की संभावना हो सकती है।”
“जो आज्ञा मालिक-।”
शैतान के अवतार ने उसकी तरफ हाथ उठाया तो देखते ही देखते दागड़ा धुएं की लकीर में बदला, फिर वो लकीर भी गायब हो गई।
☐☐☐
सब उनींदे से पड़े थे।
आंखों में नींद थी, परन्तु मन की बेचैनी सोने नहीं दे रही थी। भोर का उजाला फैलने पर वो सब सुस्ती और थकान से भरे उठकर खड़े होने लगे।
एक तरफ चील की कटी टांग पड़ी थी।
उस पर निगाह पड़ते ही देवराज चौहान की आंखों के सामने नगीना का खूबसूरत चेहरा नाच उठा। मायावी चील उसे पंजे में दबाकर जाने कहां ले गई थी। मोगा तो कहता है, चील शैतान के अवतार के पास गई है। ऐसा है तो शैतान के अवतार ने नगीना के साथ जाने कैसा सलूक किया होगा?
देवराज चौहान का खून खौल उठा, इन सोचों के साथ ही परन्तु हालातों ने उसे जकड़ा हुआ था। शैतान के अवतार तक पहुंचे बिना, वो नगीना की कोई सहायता नहीं कर सकता था। मालूम नहीं, अब कभी वो नगीना को देख भी पायेगा या नहीं?
“क्या हुआ?”
जगमोहन की आवाज सुनकर देवराज चौहान सोचों से निकला। चेहरे के भावों पर काबू पाने लगा।
“नगीना भाभी के बारे में सोच रहे हो-।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“शैतान के अवतार पर क्रोध आ रहा होगा कि वो
भाभी के साथ बुरा सलूक न कर दे।”
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा। कहा कुछ नहीं।
तभी मौना चौधरी पास आते हुए गम्भीर स्वर में बोली।
“देवराज चौहान! नगीना के मामले में मैं दिल से तुम्हारे साथ हूं। नगीना को बचा लाने का कहीं मौका मिला तो जान पर खेल कर भी उसे बचा लाऊंगी। मेरे शब्दों का विश्वास करो देवराज चौहान-।”
देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा।
“बहना तो तम्भी बच्चो हो, जबो शैतानो के अवतारो तक अंम पौंच जायो।” बांकेलाल राठौर व्याकुल स्वर में कह उठा-“बातो कम और कामो ज्यादा करो। यो बुत म्हारे कामो आ सको। परो यो अपणो असली रूपो में कैसो आयो। खोपड़ी को इसो की तरफ भिड़ाओ।”
दो पलों के लिये वहां चुप्पी छा गई।
“नीलू!” राधा बोली-“तेरा दिमाग तो बहुत तेज है। तू सोच
ये बुत वापस कैसे इन्सान बनेगा।”
“तेरे को किसने कहा कि मेरा दिमाग तेज है?” महाजन ने गहरी सांस ली।
“मैं जानती नहीं क्या अपने नीलू को-। बहुत समझदार है तू-।”
“बाकी सबो के खोपड़ो में तो भैंसो का भुस भरो हो-।”
“गुस्सा नेई करेला बाप। वो बच्ची होएला-।”
बांकेलाल राठौर ने खा जाने वाली निगाहों से रुस्तम राव को देखा।
“ऐसे मत देखेला बाप। बच्ची की जान लेगा क्या?”
“थारे को वो बच्ची दिखो हो। महाजन से पूछ कि वो का बच्ची हौवे-।”
“तेरे वास्ते वो बच्ची होएला। महाजन के वास्ते नहीं। उसकी बात का बुरा नेई मानेला-।”
“छोरे थारे को तो अंम-।”
“मेरे ख्याल में बुत में ही शायद ऐसा कुछ होना चाहिये कि जिसे छेड़छाड़ करने से, ये इन्सान, जो भी है अपने असली रूप में आ जाये-।” पारसनाथ अपने सपाट-खुरदरे स्वर में कह उठा।
“ऐसा हो सकता है।” सोहनलाल ने सिर हिलाया-“और नहीं
भी हो सकता।”
“कोशिश करके देख लेने में क्या हर्ज है?” जगमोहन ने कहा।
फिर देखते ही देखते सब बुत के पास पहुंचे और अपने-अपने ढंग से, सावधानी से बुत को हर कोण से देखने, चेक करने लगे।
देवराज चौहान हाथ में थमी बुत वाली तलवार को देखने लगा। तलवार के एक हिस्से में अभी भी खून लगा नजर आ रहा था। जो सूख चुका था। वो मायावी चील का खून था। देवराज चौहान को नगीना के शब्द अच्छी तरह याद थे कि ये करामाती शक्तियों से भरी तलवार है। देवराज चौहान को पूरा विश्वास था कि ये बात भामा परी ने ही, नगीना को बताई होगी। तभी उसने विश्वास के साथ तलवार का इस्तेमाल मायावी चील पर किया था।
सब बुत के साथ व्यस्त थे कि किसी तरह उसे असली रूप में लाया जा सके।
मोना चौधरी ने उन पर निगाह मारी फिर कमर पर हाथ बांधे चहल-कदमी करने लगी। उसी पल वो ठिठकी। चंद कदमों के फासले पर पेड़ के तने का सहारा लेकर बैठा मोगा, इधर ही देख रहा था।
“तुम-?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
जवाब में मोगा हंसा।
“तुम कहां चले गये थे?”
“मनुष्यों को ही घण्टों बाद आराम करने, नींद लेने की आदत होती है। आलस्य से भरे होते हैं मनुष्य। जब मैंने सुना कि तुम सब दिन निकलने तक यहीं रहोगे तो मैं अपने दो काम निपटाने
चला गया।”
मोना चौधरी ने कठोर निगाहों से मोगा को देखा।
“तुम मनुष्यों को बात-बात पर गुस्सा आ जाता है।” मोगा हंसकर कह उठा-“खैर, इस वक्त तो आना भी चाहिये। बुरे फंसे पड़े हो। हंस कर करोगे भी क्या।”
“मेरे ख्याल से तुम हमारा मजाक उड़ाने के लिए हमारे साथ-साथ हो।” मोना चौधरी ने खुद को संभाला।
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है मिन्नो। वहम से भरी बातें मत
करो।”
“नगीना कहां है?”
“शैतान के अवतार के पास-।” मोगा के होंठों पर मुस्कान थी।
देवराज चौहान आगे बढ़ गया।
मोगा ने उसके हाथ में दबी तलवार पर निगाह मारी। मन ही मन सतर्क हो गया था वो।
“शैतान के अवतार ने नगीना के साथ क्या किया?” देवराज चौहान गुर्राया।
“मैं नहीं जानता देवा।”
“झूठ बोल रहे हो। तुम जानते हो कि-।”
“नहीं देवा। सच में मैं नहीं जानता। मैं पहले ही वहां से आ गया था।” मोगा ने सिर हिलाकर कहा।
“वो कैसा व्यवहार करेगा नगीना के साथ-?”
“मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं। वो मेरा मालिक। मैं उसका सेवक। मुझे क्या मालूम वो नगीना के साथ कैसा व्यवहार करता है। वैसे शैतान के अवतार से अच्छे व्यवहार की उम्मीद मत रखना देवा।” मोगा हंसते हुए कह उठा-“तुम लोगों ने तीन जन्म पहले उसे तड़पा-तड़पा कर मारा था। ऐसे में उसका पूरा हक बनता है कि वो तुम सब से बुरे से भी बुरे ढंग से बदला ले। वो बहुत गिड़गिड़ाया था तब। लेकिन तुम लोगों ने रहम नहीं किया उस पर तो, आज वो तुम पर क्यों रहम करे-।”
“तब शैतान के अवतार ने, यानि कि द्रोणा ने भी कुछ किया होगा कि उसकी जान लेनी पड़ी।”
मोगा खामोश रहा।
देवराज चौहान पुनः बोला।
“बता मोगा! तब द्रोणा ने क्या किया था जो-?”
“इस बारे में मैं नहीं बता सकूँगा।” मोगा का स्वर शांत था-“तब मालिक के साथ, तुम सबने मुझे भी मारा था। मेरी भी जान ली थी। लेकिन मैं तब भी मालिक का सेवक था और आज भी सेवक हूं। सेवक को अपने मालिक के बारे में एक हद तक ही बात करनी चाहिये।
देवराज चौहान दांत भींच कर रह गया।
मोना चौधरी की निगाह बुत की तरफ उठी। वो सब बुत को असली हालत में लाने का प्रयत्न कर रहे थे।
“तुम तो जानते हो कि बुत को उसकी असली अवस्था में कैसे
लाया जा सकता है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“मैं नहीं जानता।” मोगा हंसकर बोला-“जानता होता तो तब
भी, बताता नहीं।”
बहुत कदमों की दूरी पर जिन्दा बाधात, बड़े से पत्थर की ओट
में मौजूद रहकर इन सबको देख रहा था। उसने अपना आकार छोटा करके को मात्र दो फीट का बना रखा था।
“मेरे ख्याल से इस तरह हम बुत को इसका असली रूप नहीं
लौटा सकते।” कहते हुए महाजन बुत से दूर हट गया और पैंट में फंसा रखी बोतल निकाल कर घूंट भरा-“जादुई-मायावी ताकत से इस इन्सान को बुत में बदला गया है। इसे वापस लाने के लिये भी जादुई-मायावी हरकत की ही आवश्यकता है।”
महाजन की बात सुनते ही सब रुक गये।
“छोरे, बात तो यो चोखी बोलो हो। पत्थर को इन्सान बनानो
ईजी न हौवो।”
“लेकिन हमें तो मालूम नहीं कि क्या करके इसे असली रूप
में ला सकते हैं।” जगमोहन कह उठा।
“सारा रगड़ा तो इसी पर फंसेला बाप-।”
“वास्तव में-।” पारसनाथ कह उठा-“बुत को असली रूप में लाने के लिये हमें किसी खास क्रिया से गुजरना होगा।”
“जिसकी हमें जानकारी नहीं है।” महाजन ने कहा।
“सोचने की बात तो ये है नीलू कि हम बुत को, असली रूप क्यों दिलाना चाहते हैं।” राधा कह उठी-“चील का खतरा खत्म हो गया। ये पत्थर रहे या इन्सान, हमें क्या। हमें आगे चलना चाहिये।”
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया।
“छोरे! यो बच्ची बोलो तो ठीको ही-।”
“मैं भी यही सोच रहा था-।” सोहनलाल ने कहा।
“इस बुत का इन्सान के रूप में वापस आना जरूरी है।” मोना चौधरी कह उठी।
“क्यों?” राधा ने मोना चौधरी को देखा।
पेड़ के तने के साथ आराम से बैठा मोगा हंस पड़ा।
“हम शैतान के अवतार की जमीन पर हैं।” मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर बोली-“यहां पर कोई हमारा नहीं। रास्ता दिखाने वाला नहीं। अगर इस बुत को हम वापस इन्सान के रूप में ले आते हैं तो शायद ये हमारी सहायता कर सके। शैतान के अवतार ने इसे बुत बनाया है। यकीनन कोई खास ही वजह रही होगी, वरना कौन अपने शरीर को पत्थर बनाना चाहेगा।”
“मोना चौधरी की बात से सहमत हूं।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा-“हम सब शैतान के अवतार की खतरनाक जमीन पर हैं। ये जगह जादुई, मायावी, जिन्न-प्रेतों और जादू-टोनों जैसी चीजों से भरी पड़ी है। हम कहीं भी फंस सकते हैं। जैसे कि नगीना हमारे हाथ से निकल गई और देखने के अलावा हम कुछ नहीं कर सके। मैं नहीं चाहता कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसा हो। ऐसे में हमें मार्गदर्शक मिल जाये तो शायद हम अपने भटकाव को ठीक रास्ते पर ला सकें। शैतान के अवतार तक पहुंच सकें।”
चुप्पी सी छा गई थी वहां।
“लेकिन हम नहीं जानते कि क्या करके इस बुत को, इसकी हालत में लाया जा सकेगा।” पारसनाथ ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा-“भामावी-जादुई हरकत से ही ये वापस अपनी हालत में आ सकता है।”
मोना चौधरी ने मोगा को देखा।
मोगा हंसा।
उसी पल मोना चौधरी ने नीचे पड़ी चील की कटी टांग उठाई और बुत की तरफ बढ़ी।
“ये क्या कर रही हो-।” महाजन के होंठों से निकला।
“कोशिश करके देख रही हूं।” मोना चौधरी दृढ़ता भरे स्वर में कह उठी-“ऐसी ही किसी हरकत से ये बुत अपनी हरकत में आ सकता है। जिस शक्ति ने इसे पत्थर बना रखा है, वो जाने किस चीज से पीछे हटे।”
कोई कुछ न बोला।
बुत के पास पहुंचकर मोना चौधरी ने चील की कटी टांग को बुत के हर हिस्से पर लगाया, परन्तु बुत की मुद्रा में कोई फर्क नहीं आया।
मिनट भर मोना चौधरी कोशिश करती रही।
देवराज चौहान भी पास आ गया।
“कोई फायदा नहीं।” मोना चौधरी ने चील की टांग को एक तरफ फेंकते हुए कहा।
लेकिन देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
“बुत की आंखें देखो। आंखें जिन्दा है।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
मोना चौधरी के साथ-साथ सबकी निगाह, बुत की आंखों पर गई तो उनके मुंह हैरत से खुल गये। चेहरों पर विस्मय नजर आने लगा था।
बुत की आंखों की पुतलियां सामान्य ढंग से हिल रही थीं। वो
पुतलियां एक-एक करके सबको देख रही थीं, परन्तु बाकी सब कुछ अभी तक पत्थर का था।
“पहले बुत की आंखें खुली हुई थीं, परन्तु इनमें जिन्दगी नहीं थी। वो पत्थर थीं। बेजान थीं।” जगमोहन कह उठा-“मुझे याद है। ये मैंने अच्छी तरह देखा था और अब इन आंखों में जीवन आ गया है।”
“ओह! ये करिश्मा कैसे हुआ?” महाजन के होंठों से निकला।
तभी देवराज चौहान के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।
“ये-ये आंखें पहचानी-सी लग रही हैं।”
“मुझे भी ऐसा लग रहा है।” कहने के साथ ही मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं।
सबकी निगाह आंखों पर ठहर चुकी थी।
“ये दोनों झूठ बोल रहे हैं नीलू। ये कैसे हो सकता है कि यहां
पर किसी की आंखें पहचानी लगें।” राधा बोली।
“चुप रह-।”
“ठीक है।”
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर गम्भीर स्वर में कह उठा-“एको बंदो बोलो तो अंम सोचो लयो कि गलती हो जावे। पण यो तो दोनों
ही बोलो कि अखियां पहचानी-सी लगो हों।”
“बाप ये बात पक्का सच होएला।” रुस्तम राव सोच भरे स्वर में बोला-“एक बात आपुन को भेजे में नेई आएला।”
“म्हारे से पूछो लो पुत्तरो-।”
“इधर कूं, शैतान की धरती पर किधर से कोई आपुन की पहचान का मिलेएला।”
“बात तो थारी सत्रह आनो ठीको होवो। पण कोई बातो तो
बीच में हौवो ही-।”
“कुछ ध्यान में आ रहा है कि ये आंखें किसकी हैं?” मोना चौधरी ने उलझन भरे स्वर में कहा।
“नहीं। लेकिन ये मुझे बहुत करीबी आंखें लग रही हैं। ऐसी आंखें जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं।” देवराज चौहान के स्वर में विश्वास भरा था लेकिन समझ नहीं पा रहा हूं कि-।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि ये बुत-इन्सान हमारे तीन जन्म पहले
के जीवन से वास्ता रखता हो।” जगमोहन कह उठा।
“तीन जन्म पहले के जीवन से वास्ता?” सोहनलाल ने उसे देखा।
“मत भूलो कि शैतान के अवतार को हमने तीन जन्म पहले
मारा था। ये जो सामने मोगा बैठा है। इसे भी तीन जन्म पहले हमने मारा था और अब इस शैतान की अंजानी धरती पर, बुत की हरकत करती आंखें देवराज चौहान और मोना चौधरी को पहचानी लग रही हैं। तो ये आंखें तीन जन्म पहले किसी की क्यों नहीं हो सकतीं। जिसे बुत बनाया है शैतान के अवतार ने, वो तीन जन्म पहले वाला इन्सान भी तो हो सकता है।”
“शायद।” सोहनलाल के होंठ सिकुड़े-“वास्तव में ऐसा भी
हो सकता है।”
“नीलू!” राधा कह उठी-”ये मूंछों वाला अपनी बात बीच में
जरूर-।”
“छोरी-।” बांकेलाल राठौर ने उसे देखकर कुछ कहना चाहा।
“बाप चुप।” रुस्तम राव ने टोका-“बच्ची होएला-।”
तभी मोना चौधरी की आवाज सबके कानों में पड़ी।
“इसकी आंखें देखो देवराज चौहान-। इसकी जिन्दा आंखें-।”
“वो ही देख रहा-।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“इसकी आंखों का इशारा-।” मोना चौधरी ने अजीब-से स्वर में कहा-“आंखें बार-बार तुम्हारे हाथ में थामी तलवार को देखकर इशारा कर रही है।”
देवराज चौहान की निगाह बुत की हिलती, जिन्दा पुतलियों पर
जा ठहरी। देखते ही देखते उन पुतलियों ने पुनः देवराज चौहान के हाथ में दबी तलवार की तरफ इशारा किया।
देवराज चौहान ने हाल में पकड़ी तलवार को देखा। चेहरे पर
उलझन थी।
मोना चौधरी कभी बुत को देखती तो कभी देवराज चौहान के
हाथ में पकड़ी तलवार को।
“यकीनन कोई खास बात है तलवार में-।” मोना चौधरी बोली-“वरना बुत की आंखें इस तरह इशारा-।”
तभी मोगा की हंसी वहां गूंजी।
सबकी नजरें उसकी तरफ उठीं।
मोगा वैसे ही अभी तक पेड़ के तने से टेक लगाये बैठा था।
“बुत तो अपनी तलवार वापस मांग रहा है।” मोगा अपने अंदाज में बोला-“दे दो वापस इसकी तलवार। बेचारा हाथ-पांव नहीं हिला सकता तो तुम लोगों ने इसकी तलवार छीन ली-।”
“ठिगने-।” राधा हाथ हिलाकर कह उठी-“तू हमें चोर समझता है।”
जवाब में मोगा पुनः हंसा।
“मोना चौधरी-!” देवराज चौहान की गम्भीर निगाह पुनः बुत पर जा टिकी-“ध्यान से, गौर से इसका चेहरा देखो। क्या तुम्हें नहीं लगता कि इसका चेहरा भी कुछ-कुछ पहचाना सा है?”
मोना चौधरी भी बुत को देखने लगी। फिर उसके होंठ भिंचते
चले गये।
“शायद। चेहरे के कट कुछ पहचाने से हैं। पत्थर का होने की
वजह से पूरी तरह पहचान में नहीं आ रहे।”
देवराज चौहान आगे बढ़ा और हाथ में थामी तलवार को पहले
की ही तरह, बुत के हाथ की मुट्ठी में फंसा दिया। ये सोचकर कि शायद बुत असली अवस्था में आ जाये।
मोगा की हंसी वहां गूंज उठी।
सबकी निगाह बुत पर ही थी।
इन्तजार था, बुत की अवस्था में शायद कोई परिवर्तन आये।
लेकिन कोई फर्क नहीं आया। कोई हरकत नहीं हुई।
“समझ में नहीं आता कि बुत की आंखें कहना क्या चाहती हैं!” जगमोहन बेचैनी से कह उठा।
देवराज चौहान की नजरें बुत की आंखों की पुतलियों पर थीं।
देवराज चौहान ने देखा कि बुत की पुतलियों ने पहले तलवार
की तरफ इशारा किया फिर वो पुतलियां घूम कर ऊपर की तरफ हुईं और सिर-माथे की तरफ इशारा किया।
देवराज चौहान कुछ समझा और कुछ नहीं।
“बुत की पुतलियां आसमान की तरफ इशारा कर रही हैं।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
देवराज चौहान ने उसी पल बुत के हाथ से तलवार निकाली। चेहरे पर दृढ़ता और सख्ती थी। उसने तलवार को ऊपर उठाया और हौले से, बुत के सिर पर वार किया।
कुछ नहीं हुआ।
देवराज चौहान ने बुत की पुतलियों को देखा। पुतलियां अभी
भी सिर-माथे की तरफ इशारा कर रही थीं। होंठ भींचे देवराज चौहान कई पलों तक सिर और माथे को सोच भरी निगाहों से देखता रहा। फिर बुत की आंखों में देखा। तभी महसूस किया कि किया कि बुत की पुतलियां एकटक उसके माथे को देख रही हैं।
देवराज चौहान शांत-सा सीधा खड़ा रहा।
करीब मिनट भर बुत की पुतलियां उसके माथे को देखने के बाद, देवराज चौहान की आंखों में देखा। उसके बाद फिर वो पुतलियां देवराज चौहान के माथे को देखने लगीं।
माथा?
बिजली की भांति देवराज चौहान के मस्तिक में ये एहसास कौंधा।
देवराज चौहान ने बुत के माथे को देखा फिर बुत के बाईं तरफ होकर तलवार कर बेहद मध्य-सा वार बुत के माथे पर किया। कुछ नहीं हुआ।
मोगा के हंसने के साथ, उसके शब्द कानों में पड़े।
“शैतान के अवतार की माया का मुकाबला मनुष्य नहीं कर सकते।”
देवराज चौहान का पूरा ध्यान बुत पर था। वो साईड से, सामने की तरफ आ गया।
“कोई खास क्रिया करने को कह रही हैं बुत की पुतलियां-।” मोना चौधरी ने गम्भीर-व्याकुल स्वर में कहा।
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भावों के साथ उलझन की छाया भी स्पष्ट नजर आ रही थी। वो इतना तो महसूस कर चुका था कि चाबी उसके हाथ में है। ताला सामने है। कमी है तो ताले के छेद की, जिसे वो ढूंढ़ नहीं पा रहा। पुतलियों की आंखों के इशारे को समझ नहीं पा रहा वो।
एकाएक देवराज चौहान ने तलवार को उठाया और बांह को सीधा कर दिया। तलवार की नोक बुत से आधा फीट पीछे रह गई। देवराज चौहान ने छोटा-सा कदम उठाया तो तलवार की नोक बुत की छाती से जा सटी।
“तंम का करो हो।” बांकेलाल राठौर अजीब-से स्वर में कह उठा-“बुत को ‘वडने’ का इरादो हो तो, ऐसो कम्भा नेई करना देवराज। ये पत्थरो का न हौवो। इसो की अंखियां हिल्लो हो। इसी की जान कई पे अटको हो-।”
देवराज चौहान तलवार की नोक को धीरे-धीरे ऊपर ले जाने लगा।
छाती से तलवार की नोक हटाकर, ठोड़ी पर लगाई। उसके बाट बुत की नाक पर। फिर बारी-बारी दोनों गालों पर। फिर दोनों आंखों के बीच, नाक के ऊपर।
कुछ न बदला।
बुत की पुतलियां, देवराज चौहान की आंखों में झांक रही थीं एकाएक देवराज चौहान की निगाह, पुतलियों से मिली तो उसी पल, पुतलियों ने ऊपर की तरफ इशारा किया।
हर कोई खामोशी के साथ, न समझ में आने वाली इन हरकतों
को देख रहा था।
देवराज चौहान ने तलवार की नोक को थोड़ा-सा और ऊपर
किया और उसकी नोक ठीक माथे के बीचो-बीच लगा दी। कुछ पल तो गहरी खामोशी के बीच, चुप्पी के साथ गुजर गये।
अगले पल जैसे कयामत से भी भयावह महसूस हुए।
ऐसी गड़गड़ाहट हुई जैसे दो पहाड़ आपस में टकरा गये हो। जमीन का कम्पन इतना तीव्र था कि वे गिरने से तीव्र था कि वे गिरने से खुद को नहीं बचा पाये। मोना चौधरी ने गिरने से बचने के लिये देवराज चौहान की बांह थामी, परन्तु संभल न पाई। दोनों ही लड़खड़ाकर नीचे जा गिरे।
इधर-उधर बिखरी पड़ी बड़ी-बड़ी चट्टानें भी जोरों से हिलकर
थम गई।
ये सब कुछ मात्र आधा मिनट रहा।
फिर हर चीज इस तरह थम गई जैसे तूफान गुजर गया हो।
देवराज चौहान के हाथ में थमी तलवार तो उसी वक्त ही बुत के कदमों में नीचे आ गिरी थी।
“नीलू-!” राधा बोली-“किसी ने जादू-टोना करके, जमीन पर करंट मारा है।”
“छोरे-।”
“हां बाप!”
“यो पेशीराम हरामपनो दिखा गयो अंमको यां फंसो के।” बांकेलाल राठौर गहरी सांस लेकर कह उठा-“उसो ने अंम सबो को लुटियो में ठूसो और लुटियो समन्दरो में फेंक दयो।”
“तुम उसी की बात कर रहे हो, जिसने मुझे कोने वाली दुकान
के समोसे खिलाये थे-।” राधा जल्दी से बोली।
“अंम बच्चियों के मूं न लागो हो।”
“नीलू-!”
“हूँ।”
“मुझे भूख लगी है। तुम उस बूढ़े से कहकर कोने वाली दुकान के हलवाई के समोसे खिला-।”
राधा अपने शब्द पूरे न कर सकी।
इसी पल वातावरण में ऐसी आवाज गरजी, जैसे पत्थर की मजबूत परत को किसी ताकतवर हाथों ने पकड़कर चटका दिया हो। इसके साथ ही बुत के गिर्द चढ़े पत्थर की परत का आवरण टूटता सा नजर आया। छाती पर पत्थर की परत क्रेक देखने को मिली।
किसी के होंठों से बोल नहीं निकल रहा था। सब की हैरानी से भरी नजरें बुत परी थीं। इसके साथ ही उन्होंने खड़ा होना शुरू कर दिया था। पुनः चटकने की आवाज के साथ ही बुत की टांगों पर पत्थर की परत का क्रेक नजर आया। इसके चटकने की कई आवाजें आईं।
बुत पर मौजूद पत्थर की परत चटकती रही।
“ये-ये अपने असली रूप में आ रहा है।” जगमोहन के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।
मोगा पेड़ के साथ परेशान अवस्था में खड़ा था। उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। वो यकीन नहीं कर पा रहा था कि इन साधारण मनुष्यों ने शैतान के अवतार के मंत्र को तोड़ दिया है।
“इधर भी नजर रख शैतान-।” मोगा बड़बड़ा उठा-“ये साधारण मनुष्य बहुत हिम्मत वाले हैं। इनकी हिम्मत तोड़ दे। मालिक को समझा कि इन्हें सीधे-सीधे खत्म कर दे। कहीं ये मनुष्य हमारी धरती पर कोई मुसीबत न खड़ी कर दें।”
फिर बुत पर चढ़ी पत्थर की परत के टुकड़े एक-एक करके नीचे गिरने लगे। जहां से पत्थर का टुकड़ा नीचे गिरता, वहां से इन्सानी जिस्म झलक उठता।
और आखिरी पत्थर, चेहरे पर टिका, मुखौटा बनी परत छिटक कर नीचे गिरी।
जो चेहरा नजर आया, उसे देखते ही वो सब चिहुंक पड़े। सांसें
जहां की जहां ही रह गईं। फटी-फटी आँखों से वो सब उस चेहरे को देखे जा रहे थे।
हैरानी से भरी सबसे बुरी हालत तो देवराज चौहान और मोना
चौधरी की थी।
बुत के भीतर से निकलने वाला चेहरा मुद्रानाथ का था।
मुद्रानाथ? जो कि तीन जन्म पूर्व मोना चौधरी का पिता था। मुद्रानाथ के बारे में जानने के लिये पढ़ें, अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास “जीत का ताज”, “ताज के दावेदार” और “कौन लेगा ताज”।
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