जिस समय इंस्पेक्टर देशमुख ललित की कोठी पर पहुंचा—उस समय नौ बज रहे थे।

उसे अंदर आता देखकर ललित चौंका।
वह तुरंत अपनी रिस्टवॉच पर नजर डालता हुआ बोला—“इंस्पेक्टर, अभी तो केवल नौ बजे हैं—आपने ठीक दस बजे ही तो पुलिस स्टेशन पहुंचने के लिए कहा था न?”             
"क्या उससे पहले हम आपके पास नहीं आ सकते मिस्टर ललित?” कटाक्ष-सा करते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा।
“न...नहीं-नहीं—मेरा मतलब यह नहीं था...।”
“इस समय आपका चाहे जो मतलब रहा हो—लेकिन मैं यह जानना चाहता हूं कि आप रात पूनम के पास किस मतलब से गए थे?”
ललित के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“म....मैं तो नहीं गया...।”
“झूठ मत बोलो।” इंस्पेक्टर देशमुख दहाड़ा।
“म...मैं सच कह रहा हूं, इंस्पेक्टर!" ललित मिमिया उठा—“अ...आपसे किसने कहा?”
“पूनम ने।”
“न....नहीं!” वह अविश्वसनीय स्वर में बोला—“य...यह नहीं हो सकता, इंस्पेक्टर...।”
"यह हुआ है, मिस्टर ललित!”
“क...क्या कहा उसने?”
“उसने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि आपके खिलाफ पुलिस स्टेशन में  रपट भी लिखवाई है।”
"क...क्या?" ललित इस तरह चौंका, जैसे उसके आसपास कोई बम फटा हो। बोला—“उसने मेरे खिलाफ ‘रपट’ लिखवाई है?”
“जी हां—रपट।" इंस्पेक्टर देशमुख मुसकराता हुआ बोला।
“किस बात की?”
“कल रात आप कोठी के पिछले हिस्से में लगे रेन वाटर पाइप पर चढ़कर चोरों की तरह उसके बेडरूम में दाखिल हुए और उसे जान से मारने की धमकी देकर अपने पक्ष में बयान देने के लिए दबाव डाला।” उसके चेहरे पर आए भावों को पढ़ने की कोशिश करते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा।
उसके चेहरे पर असीम आश्चर्य के भाव थे।
"य...यह कैसे हो सकता है?” वह परेशान-सा होकर बुदबुदाया।
"क्यों नहीं हो सकता?”
“इसलिए कि रात उसने अपने गुनाह के लिए मुझसे माफी मांगी थी।” झोंक में कहने के बाद एक क्षण के लिए ललित रुका, फिर सामान्य-सा होकर बोला—“यह ठीक है, इंस्पेक्टर कि मैं रात वहां गया था—और सचमुच मेरा इरादा यह था कि मैं अपने साथ बेवफाई करने वाली पूनम को जान से मार दूंगा—मैंने वहां जाकर जिस समय उसे वह सब बताया, जो उसके जाने के बाद मुझ पर गुजरी थी—किस तरह पागलों की तरह मैंने उसे जगह-जगह ढूंढा था—जब मैंने भावुक होकर अपने प्यार की तमाम दीवानगी उसे बताई तो वह मेरे बहाव में बह गई—उसकी सोई हुई आत्मा जाग उठी—उसकी आंखों पर पड़ा खुदगर्जी का परदा हट गया—उसे अपनी गलती का एहसास हुआ—वह रोती हुई मेरे पैरों में गिर गई और मुझसे माफी मांगने लगी—इंस्पेक्टर, मैंने उसे अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यार किया था—टूट-टूटकर चाहा था उसको—उसको फूट-फूटकर रोते और साथ ही अपने गुनाह की माफी मांगते देखकर मैं एक बार फिर टूट गया—मैंने उसे माफ कर दिया—एक बार फिर उसे अपनाने और वापस घर आने की स्वीकृति दे दी—उसी समय वह मुझसे कह रही थी कि सब लोगों के सामने वह अपना गुनाह स्वीकार कर लेगी।” कहने के साथ वह इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखने लगा।
इंस्पेक्टर देशमुख के होंठों पर धूर्त मुस्कराहट थी।
“आप मुस्करा क्यों रहे हैं, इंस्पेक्टर?” ललित ने आश्चर्य के साथ पूछा—“मुझे इस बात पर यकीन नहीं आ रहा है कि रात की घटना के बाद पूनम मेरे खिलाफ इस तरह का कोई बयान दे सकती है।"
“आपका यकीन सही है मिस्टर ललित—मिसेज पूनम ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है—बल्कि वही सब बताया है, जो कि आप बता रहे हैं।"
“इंस्पेक्टर—फ....फिर आपने...।”
“हम यह मालूम करना चाहते थे कि मिसेज पूनम जो बता रही हैं—उससे अलग तो कोई बात नहीं है—और हां, ग्यारह बजे तक पुलिस स्टेशन अवश्य आ जाना।” कहकर इंस्पेक्टर देशमुख घूमा और तेज-तेज कदम रखता हुआ हुआ कोठी के लोहे वाले गेट के पास खड़ी अपनी जीप की तरफ बढ़ गया।
¶¶
सिद्धार्थ भवन!
यह नाम था देश के महान, वयोवृद्ध वैज्ञानिक डाक्टर रामन्ना बाली की आलीशान भव्य कोठी का।
डॉक्टर रामन्ना बाली की उम्र साठ वर्ष के आसपास थी लेकिन स्वास्थ्य अच्छा होने की वजह से अपनी उम्र से कुछ कम ही नजर आते थे।
गोरा-चिट्टा रंग—उम्र के साथ कुछ झुर्रियां आने के बावजूद भरा हुआ चेहरा, नीली आंखें, चौड़ा मस्तक—मस्तक चौड़ा और भी अधिक इसलिए नजर आता था, क्योंकि सिर का अगला हिस्सा बालरहित था—सिर पर कहीं-कहीं बाल थे तो वे भी एकदम सफेद—कानों पर भी छोटे-छोटे सफेद बालों का झुण्ड नजर आ रहा था।
इस समय उनके शरीर पर नाइट गाउन था। सामने हाथी के आकार में बनी एक विशेष तरह की मेज पर सुबह की पहली चाय का प्याला जो रखा हुआ ऐसा नजर आ रहा था, जैसे हाथी ने अपनी सूंड से पकड़ रखा हो।
अचानक उन्होंने अखबार को ‘हाथी की पीठ  पर’ फेंककर जोर से चीखते हुए कहा—“सुमित्रा!”
“सुन रही हूं।” अंदर से  कोई नारी स्वर उभरा—“क्या बात हो गई? सुबह-ही-सुबह कैसे गरम हो रहे हो?”
“जरा यहां आकर अपने लाड़ले का एक और महान कारनामा पढ़ लो—तबीयत खुश हो जाएगी तुम्हारी।”
कोठी के अंदर से अधेड़-सी नजर आने वाली एक महिला निकलकर आई—जो कदाचित सुमित्रादेवी ही थीं—डॉक्टर रामन्ना बाली की धर्मपत्नी।
“क्या सिद्धार्थ का आज फिर अखबार में किसी सफल प्रयोग के लिए नाम छपा है?” सुमित्रादेवी ने लॉन में उनके पास आते हुए संभावना व्यक्त की।
“हां, आज का सारा अखबार ही साहबजादे के नाम से भरा पड़ा है।” दांत पीसते हुए डॉक्टर बाली खीज-भरे स्वर में बोले—“तुम भी देख लो।”
“अरे, मैं तो आपके चीखने की वजह से चश्मा लाना ही भूल गई।” अखबार लेने के बाद सुमित्रादेवी को ध्यान आया। वापस उन्हीं की तरफ बढ़ाते हुए वह फिर बोलीं—“लीजिए आप ही पढ़कर सुना दीजिए न—बिना चश्मे के मेरी आंखों पर जोर पड़ता है।”
"इसमें क्या खाक पढ़कर सुना दूं?” डॉक्टर बाली अखबार को हाथी की पीठ पर पटकते हुए गुस्से में बोले।
सुमित्रादेवी एकदम सहम गईं—उन्हें यह समझते देर न लगी कि आज ज़रूर सिद्धार्थ की तरफ से कोई बात हुई है।
उन्होंने बहुत आहिस्ता से डरते-डरते पूछा—“क्यों क्या हुआ?”
“उस बेवकूफ ने ‘लंदन वैज्ञानिक कॉन्फ्रेंस’ मिस कर दी।”
“क्या?” सुमित्रादेवी बुरी तरह चौंकीं— ल...लेकिन क्यों?”
“इस ‘क्यों’ का जवाब तो तुम्हारा वह लाडला ही दे सकता है—इसमें तो केवल इतना ही लिखा है कि भारत के प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक मिस्टर सिद्धार्थ बाली को भी विश्व के शीर्ष वैज्ञानिकों की इस कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया था—उन्होंने अपने आने की स्वीकृति भी आयोजकों को भेज दी थी—परंतु अज्ञात कारणों से वह इसमें हिस्सा लेने नहीं पहुंच पाए।”
“यह तो सिद्धार्थ ने अपने कैरियर के लिए अच्छा नहीं किया।” सुमित्रादेवी ने चिंतित स्वर में कहा।
“अच्छे की बात छोड़ो, बहुत बुरा किया है सिद्धार्थ ने।” कहते हुए बेहद गंभीर नजर आने लगे डॉक्टर बाली। बोले—“सुमित्रा, अब तो हमें ऐसा लगने लगा है, जैसे सिद्धार्थ के लिए देखे गए हमारे सारे ख्वाब—सिर्फ और सिर्फ ख्वाब ही रह जाएंगे।”
“न...नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।” सुमित्रादेवी ने कमजोर-सा प्रतिरोध किया— आपके ख्वाब जरूर पूरे होंगे।”
“पूरे तो तब होंगे न, जब वह लड़की होने देगी?”
“समझ में नहीं आता कि उस लड़की ने सिद्धार्थ पर ऐसा क्या जादू कर दिया है—जो उस लड़की के अलावा दुनिया में कुछ और नज़र ही नहीं आता, वरना पहले तो उसे प्रयोगशाला और विज्ञान की मोटी-मोटी किताबों की दुनिया के अलावा यह भी मालूम नहीं था कि जिस दुनिया में वह रह रहा है—उसमें कब सुबह होती है और कब रात-दिन, तारीख और साल कुछ भी तो याद नहीं रहता था उसे।”
“सुमित्रा, हम तुम्हें क्या बताएं कि अब तो उसे विज्ञान संस्थान की प्रयोगशाला का दरवाजा देखे भी कई-कई दिन हो जाते हैं।”
 आप उसे एक बार फिर समझाने को कोशिश क्यों नहीं करते?” सुमित्रादेवी अपनी कुर्सी को उनके पास खिसकाती हुई बोलीं—“हो सकता है, जो बात उस समय उसकी समझ में न आई थी—वह अब आ जाए।"
डॉक्टर बाली ने एकदम भड़ककर कहा—“जब तक उस बेवकूफ पर उस लड़की का भूत सवार है, तब तक उसकी कुछ समझ में नहीं आएगा।”
सुमित्रादेवी कुछ नहीं बोलीं।
जाने क्या सोचती रहीं।
डॉक्टर बाली ने गाऊन की जेब से सिगार का पैकेट और लाइटर निकाला—एक सिगार सुलगाने के बाद उसमें गहरा कश लगाते हुए बोले—“हमें तो ऐसा भी लग रहा है सुमित्रा.......भगवान न करे हमारी यह आशंका सच हो कि सिद्धार्थ भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनने का सुनहरा अवसर भी उस लड़की के चक्कर में पड़कर गंवा देगा—बाजी शायद आलोक मार ले जाए—उसमें हम कुछ कर गुजरने की लगन देख रहे हैं।”
“सिद्धार्थ को ‘अमेरिकी शटल’ का अंतरिक्ष यात्री अवश्य बनना है—आप इस बारे में सिद्धार्थ से बात क्यों नहीं करते?” सुमित्रादेवी ने कहा—“हमने उससे सिर्फ इतना ही तो चाहा है कि यह भारत का ही नहीं, विश्व का नंबर एक वैज्ञानिक बने—विज्ञान के क्षेत्र में इतना नाम कमाए, जितना आज तक किसी ने न कमाया हो—उसे ‘विज्ञान आकाश’ का ‘ध्रुव तारा’ बना देखने की इच्छा थी हमारी।”
“हमने कहा है न सुमित्रा, जब तक सिद्धार्थ पर उस लड़की का भूत सवार रहेगा—तब तक तुम उसे एक 'दीवाना पति’ बना देखने के अलावा और कुछ नहीं देख सकतीं।”
अभी सुमित्रादेवी कुछ कहना ही चाहती थीं कि उनके पीछे से आवाज आई—“ अंकल, मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि आप एक बार आज्ञा तो दीजिए, मैं सिद्धार्थ पर से न केवल उस लड़की का भूत उतार दूंगा—बल्कि उस लड़की को सचमुच वाले भूतों की दुनिया का निवासी बना दूंगा।”
दोनों ने एकसाथ पलटकर पीछे देखा—लगभग एकसाथ ही दोनों के मुंह से निकला—“अरे आलोक—तुम...?”
“गुड मॉर्निंग अंकल एण्ड आंटी!” आलोक धवन उनके नजदीक आता हुआ बोला।
“मॉर्निंग बेटे!” अपने को सामान्य-सा करते हुए डॉक्टर बाली ने कहा—“आओ आलोक बेटे, बैठो।”
आलोक उन दोनों के सामने वाली कुर्सी पर बैठने के तुरंत बाद बोला—“अंकल आप एक बार मुझे आज्ञा क्यों नहीं देते—म...मैं उस लड़की को खत्म कर डालूंगा, जो लगातार विज्ञान की दुनिया और अपने इस गरीब देश से उसका विज्ञान में धनी वैज्ञानिक छीनती जा रही है।”
“तुम ऐसी उल्टी-सीधी बात भी दिमाग में मत लाया करो बेटे।” डॉक्टर बाली उसे समझाने वाले अंदाज में बोले—“तुम्हारे भी तो कैरियर का सवाल है—तुम्हें भी तो एक दिन बहुत बड़ा वैज्ञानिक बनना है।”
आलोक ने तुरंत कहा—“मुझे अपने कैरियर की कोई चिंता नहीं अंकल—भाड़ में जाए वह—लेकिन मैं अपने दोस्त सिद्धार्थ का कैरियर बिगड़ते नहीं देखना चाहता।”
“नहीं बेटे, ऐसा नहीं कहते।” सुमित्रादेवी ने प्रतिरोध किया—“तुम्हारे स्वर्गवासी डैडी-मम्मी की बड़ी हसरत थी कि तुम बहुत बड़े आदमी बनो—पूरी दुनिया में उनका नाम रोशन करो।”
“अ..आंटी।”
“पगले, उस एक्सीडेंट से दो दिन पहले ही तो तुम्हारी मम्मी ने मुझसे कहा था कि मैं वैष्णो देवी से सिर्फ यह ‘मन्नत’ मांगने जा रही हूं कि मेरे आलोक को बहुत बड़ा आदमी बना दे—हम तो गरीबी और गुमनामी की जिन्दगी भी मर-मरकर जिए हैं—लेकिन मेरे बेटे को बहुत बड़ा और नाम वाला आदमी बना दे—ताकि जब जब उसे दुनिया याद करें तो उसे जन्म देने वाले मां-बाप का नाम भी गुमनामी के अंधेरों से निकलकर दुनिया के इतिहास में नज़र आया करे।” कहते हुए सुमित्रादेवी का स्वर भर्रा गया।
आलोक उदास-सा हो गया।
“सुमित्रा, तुम भी इस वक्त यह क्या बात छेड़ बैठीं?” डॉक्टर बाली आलोक के उदास चेहरे की तरफ देखते हुए बोले—“अब देखो, तुमने हमारे बेटे को उदास कर दिया।”
“न...नहीं अंकल, ऐसी कोई बात नहीं—मम्मी-डैडी की यह इच्छा तो हमेशा मुझे याद रहती है।” होंठों पर जबरदस्ती मुस्कराहट लाते हुए आलोक ने विषय बदला—“अंकल, आजकल सिद्धार्थ तो लंदन कॉन्फ्रेंस में गया हुआ होगा?”
“उसी बात का तो रोना रो रहे थे हम।”
"क्या मतलब?”
“उस बेवकूफ ने वह कॉन्फ्रेंस मिस कर दी।”
"क...क्या?” आलोक चौंका।
"समझ में नहीं आता कि वह लन्दन क्यों नहीं गया?” डॉक्टर बाली परेशान-से होकर बोले—“वहां उसे दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के बीच बैठने और कुछ समझने का मौका मिलता—और फिर इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के बाद वह अंत्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक बन जाता।”
“आज मैं इस सिद्धार्थ के बच्चे से मालूम करके ही आता हूं, अंकल कि आखिर वह चाहता क्या है?” गुस्से में कहता हूआ आलोक एकदम खड़ा हो गया।
“आलोक!”
“आज मुझे मत रोकिए आंटी—मैं आज सिद्धार्थ से और साथ ही उस जहरीली नागिन से भी बात करके आऊंगा कि वह सिद्धार्थ का कैरियर खत्म करने पर क्यों आमादा है?”
“जोश की इन बातों से कोई फायदा नहीं होगा बेटे!” डॉक्टर बाली ने गंभीर स्वर में कहा— इस समय उसे अपने फायदे की बात भी बुरी लगेगी—उसे हर वह बात बुरी लगेगी, जो उस लड़की के तनिक भी खिलाफ होगी—हम उससे बात करके देख चुके हैं बेटे—उस लड़की के खिलाफ बात करके तो हम उसका रहा-सहा कैरियर भी खत्म कर देंगे।”
“फिर आखिर उस लड़की का इलाज क्या है अंकल?” आलोक ने भड़ककर पूछा—“मुझे तो उसकी मौत के अलावा और कोई इलाज नज़र नहीं आ रहा—कहावत है कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।”
डॉक्टर रामन्ना बाली के होंठों पर एक फीकी-सी मुस्कराहट आई बोले—“आलोक बेटे, मैं तुम्हारी भावनाओं को अच्छी तरह समझता हूं—यह भी जानता हूं कि तुम सिद्धार्थ से कितना प्यार करते हो—उसके लिए अपनी जान दे भी सकते हो और किसी की जान ले भी सकते हो—मैं तुम्हारी दोस्ती को अजीबो-गरीब मिसाल कहूंगा बेटे—जो एक ही क्षेत्र में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होकर भी आपस में इतना प्यार करते हो वरना हमपेशा से तो खुद-ब-खुद दुश्मनी हो जाती है—अमेरिकी अंतरिक्ष शटल में भारत की तरफ से जाने वाले एक वैज्ञानिक  का नाम तुम दोनों में से ही किसी एक का आना है—लेकिन उसके बाद भी कोई दुश्मनी नहीं—कोई ईर्ष्या नहीं—दोनों एक-दूसरे को भेजने के इच्छुक—और हमारी तरफ से भी सिद्धार्थ ‘अंतरिक्ष यात्री’ बने या तुम—दोनों में खुशी बराबर ही होगी—परंतु हां, इस रिसेप्शनिस्ट के सिद्धार्थ की जिंदगी में आने के बाद, सिद्धार्थ अपने उद्देश्य से जो भटका है, उसका अफसोस जरूर है।”
“अंकल, मैं उस भटकाव को दूर करने का ही तो रास्ता बता रहा था।”
“ओह, शायद हम विषय से भटक गए थे बेटे।” डॉक्टर बाली आलोक की तरफ देखते हुए बोले—“हम कह रहे थे कि सिद्धार्थ का भटकाव दूर करने का रास्ता उस लड़की की मौत नहीं है।”
“फिर कौन-सा रास्ता है?” आलोक उत्तेजित था।
“उस लड़की को अपनाना होगा” डॉक्टर बाली ने कहा—“अपना तमाम स्वाभिमान ताक पर रखकर हमें पूनम को अपने घर की बहू स्वीकार करना होगा—तभी हम सिद्धार्थ को पा सकेंगे—और उसे पाने के बाद ही हम सिद्धार्थ को उसके मुख्य उद्देश्य की तरफ आकर्षित कर सकेंगे और इस दिशा में हमने प्रयास भी शुरू कर दिए हैं।”
आलोक एकदम चौंककर बोला—“क...कैसे प्रयास अंकल?”
“पिछले हफ्ते हमने दिशा को खुद सिद्धार्थ के पास कुछ दिन के लिए रहने को भेजा था—फिलहाल तो हमने उससे यह कहा था कि सिद्धार्थ को यह बताए कि वह हमारी चोरी से ही वहां गई है—अब हम दिशा को दो-चार बार और वहां भेजेंगे—फिर सुमित्रा को—इस तरह ऐसा माहौल बना देंगे, जिससे यह नजर आए कि सबको सिद्धार्थ की पसंद मंजूर है...और उसके बाद हम घर की बगावत को देखते हुए पूनम को घर की बहू के रूप में स्वीकार करने की मजबूरी जताते हुए उसे घर ले आएंगे।” डॉक्टर बाली बताते जा रहे थे— तब हम पूनम को ही इस बात के लिए तैयार करेंगे कि वह सिद्धार्थ को उसका उद्देश्य याद दिलाए—उसकी प्रेरणा बने—कहते हैं न कि लोहा ही लोहे को काटता है—उसी तरह पूनम की वजह से ही वह अपने उद्देश्य से विमुख हुआ है—और फिर पूनम के लिए अपने उद्देश्य को पाएगा।”
“अंकल, यह बहुत ही अच्छी योजना है आपकी।” आलोक ने प्रशंसनीय स्वर में कहा।
खुश होते हुए डॉक्टर बाली ने कहा—“इसीलिए तो बेटे हम तुमसे यह कह रहे थे कि जोश में ऐसा कोई कदम मत उठा बैठना—जिससे हमारी योजना को कोई नुकसान पहुंचे।”
“आप बेफिक्र रहें अंकल!" आलोक ने कहा—“मैं आपकी बात अच्छी तरह समझ गया हूं।”
¶¶
“क्या सोच रहे हैं सर?”
“आओ मिस मंजु—अच्छा हुआ, तुम आ गईं।”
“क...क्यों?” मिस मंजु के स्वर में हल्का आश्चर्य था।
“अकेला व्यक्ति जब किसी बात पर सोचता है तो वह लौट-लौटकर पुन: वहीं आ जाता है, जहां से शुरू होता है—उसे आगे सोचने के लिए किसी के साथ डिस्कस करने की जरूरत पड़ती है।”
मिस मंजु को अपने लिए यह बड़े सौभाग्य की बात लगी कि इंस्पेक्टर देशमुख जैसा उसका सीनियर और योग्य अफसर उसके साथ डिस्कम करना चाहता है।
वह उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई।
“क्या पूनम द्वारा सुनाई गई नई कहानी दिमाग में फिट हो रही है मिस मंजु?”
"बहुत अजीब-सी लग रही है सर!"
“क्या पूनम की इस बात पर यकीन करने को तुम्हारा दिमाग तैयार है कि सिद्धार्थ बाली की तरफ से उसके लिए राई जैसा भी आमंत्रण नहीं और वह अपनी जिन्दगी का इतना बड़ा निर्णय सिर्फ फिल्मी स्टाइल और संयोगों के आधार पर ले लेती है—अपने खुशहाल घर को छोड़कर, किसी संभावित बड़ी महत्वाकांक्षा के लिए कुछ भी न सोचे?” इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“सबने पहले तो उसकी यह अजीब महत्वाकांक्षा ही मुझे सबसे बड़ा मजाक लग रही है।”
“सर, आपको क्या लग रहा है?” लेडी सब-इंस्पेक्टर मिस मंजु ने पूछा।
इंस्पेक्टर देशमुख कुछ देर चुप रहा। ऐसी मुद्रा बना ली थी उसने जैसे बिखरे हुए पॉइंट्स को पिरोकर जंजीर बनाने का प्रयत्न कर रहा हो। एकाएक उसने बोलना शुरू किया—“इस सारे झमेले की शुरुआत ही बड़ी अजीब है—ललित का सिद्धार्थ की ,कोठी पर पहुंचना, वहां पूनम को देखते ही उसे अपनी पत्नी कहना और फिर…।” एकाएक वह रुक गया।
कुछ देर तक मिस मंजु उसके बोलने का इंतजार करती रही। जब काफी इंतजार के खाद भी वह कुछ न बोला तो मिस मंजु ने स्वयं ही पूछा—“ क्या हुआ सर, आपने अपनी बात अधूरी क्यों छोड़ दी?”
"हमें दूसरे ढंग से डिस्कशन करनी चाहिए।”
“वह कैसे?”
“मान लो कि तुम पूनम हो—ललित को तुम जानतीं तक नहीं…।”
"सबसे पहले तो हम यहीं धोखा खा रहे हैं सर कि पूनम ने झूठ बोला था कि यह ललित को जानती तक नहीं—पूनम सिद्धार्थ की पत्नी बनने से पहले विज्ञान संस्थान की रिसेप्शनिस्ट थी और विज्ञान पत्रिका का रिपोर्टर होने के नाते ललित का वहां आना-जाना था। फिर भला यह कैसे हो सकता है कि वह ललित को जानती ही न हो—हां, यह संभव है कि उनके बीच ऐसा कोई रिश्ता न हो, जैसा कि वह अब कहती है।”
“वैरी गुडा! अच्छा पॉइंट है—डायरी में नोट कर लो।”
इधर मिस मंजु ने पॉइंट डायरी में नोट किया, उधर इंस्पेक्टर देशमुख आगे बोला—“अब हम पुन: वहीं आ जाते हैं कि तुम पूनम हो और ललित को जानतीं तक नहीं। इस हालत में यह तुम्हें अपनी पत्नी कहता है। उसकी तुम पर क्या प्रतिक्रिया होगी?”
"वही जो पूनम के कल के व्यवहार में थी।”
“अब हम ललित की मानसिकता के बारे में सोचते हैं—क्या कोई व्यक्ति किसी अजनबी लड़की या औरत को देखते ही झूठमूठ यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि वह उसकी पत्नी है?”
"ललित ने केवल कहने की ही हिम्मत नहीं की, बल्कि पुलिस से डरा भी नहीं। अनेक सबूत पेश करके उसने साबित भी कर दिया कि पूनम उसकी ही पत्नी है—और मेरे ख्याल से एक झूठा व्यक्ति इतना साहस नहीं दिखा सकता।”
“नतीजा यह कि पूनम सिद्धार्थ की पत्नी बनने से पहले सचमुच उसकी ही पत्नी थी?”
“इन सब बातों पर गौर करके तो ऐसा ही लगता है सर!”
"यहां मैं तुमसे सहमत नहीं हूं।”
“क्यों?”
"एक बहुत चालाक आदमी, जो पहले ही अपने कथन को प्रमाणित कर देने लायक सबूत बिछा चुका हो, ऐसा दुस्साहस कर सकता है।”
“यानी आप यह मान रहे हैं कि पूनम ललित की पत्नी नहीं है?”
“करेक्ट।”
“फिर पूनम उसे स्वीकार क्यों कर रही है? ”
“कल स्वीकार नहीं कर रही थी, मगर आज स्वीकार कर रही है। कल और आज के बीच एक रात है मिस मंजु—ऐसी रात, जिसमें ललित का उसके बेडरूम में आना प्रमाणित होता है—निश्चय ही उनके बीच कुछ बातें हुई होंगी और उन्हीं बातों के परिणामस्वरूप पूनम ने अपने कल के बयान को पूरी तरह उलट दिया—अब सवाल यह उठता है कि रात के वक्त उनके बीच ऐसी क्या बातें हुई थीं?"
“पूनम ने बताई तो हैं—क्या आपको वे झूठ लगती हैं?”
“क्या तुम्हें सच लगती हैं?”
“हालांकि मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकती मगर जो चीजें सामने हैं, उनसे लगता यही है कि पूनम कल झूठ बोल रही थी। आज जो कुछ वह कह रही है, पैसे और नाम की हवस ने उसे भटका दिया था, मगर जब उसे लगा कि झूठ चल नहीं पाएगा तो सच को स्वीकार लेना ही उसे श्रेयस्कर लगा।”
"मैं ठीक इसके विपरीत सोच रहा हूं।”
"वह क्या?”
“पूनम द्वारा ललित के घर से भागकर सिद्धार्थ की पत्नी बनने तक की सुनाई गई कहानी पूरी तरह अस्वाभाविक है! मेरे ख्याल से कोई भी शादीशुदा स्त्री तब तक अपने पहले पति के घर से नहीं भाग सकती, जब तक कि वहां से उसे ‘हरी झंडी’ न मिले, जहां उसे भागकर जाना है—वह स्वयं स्वीकार करती है कि सिद्धार्थ बाली उस पर ध्यान तक नहीं देता था। इसी अस्वाभाविकता के कारण मुझे लगता है कि रात के वक्त ललित ने उसे डरा-धमकाकर ऐसा बयान देने पर विवश किया है।”
“ललित को ऐसा करने से फायदा?”
"यह तुमने हमारे अब तक के डिस्कशन का सबसे अहम और रचनात्मक सवाल पूछा है—और इसका जवाब यह है मिस मंजु कि इस सारे झमेले के पीछे मुझे किसी बहुत बड़े और गहरे षड्यंत्र की बू आ रही है।”
"कैसा षड्यंत्र?”
“यह मामला, जो एक नजर में देखने पर सिर्फ पति-पत्नी के बीच मतभेद का मामला नजर आ रहा है, वास्तव में उतना हल्का है नहीं—बहुत तेज दिमाग वाले किसी व्यक्ति ने ये सारा ड्रामा रचा है।”
"मगर उसका उद्देश्य क्या हो सकता है?”
“फिलहाल विश्वासपूर्वक तो मैं भी कुछ नहीं कह सकता, परंतु सिद्धार्थ बाली के पेशे को देखते हुए मुझे लगता है कि कोई ताकत है, जो सिद्धार्थ बाली के कैरियर को तबाह करना चाहती है।”
“मैं समझी नहीं?”
“सिद्धार्थ बाली युवा वैज्ञानिक के रूप में देश की एक बहुत बड़ी संपत्ति है न?”
“जी।”
“अमेरिकी अंतरिक्ष शटल में जाने के लिए भी उसका नाम प्रस्तावित है।”
“करैक्ट।”
“मुमकिन है कि कोई ताकत यह न चाहती हो कि सिद्धार्थ बाली विज्ञान के क्षेत्र का ध्रुव तारा बने या अंतरिक्ष शटल में जा पाए।”
“इन दोनों मामलों का ललित वाले मामले से क्या संबंध है सर?”
“सिद्धार्थ पूनम से बहुत प्यार करता है न?”
"जाहिर है।”
"जब सिद्धार्थ बाली को यह पता लगेगा कि पूनम चरित्रहीन ही नहीं, बल्कि उससे पहले ललित जाखड़ की पत्नी है तो सिद्धार्थ पर क्या बीतेगी?”
“ओह!” मिस मंजु के मुंह से अनायास निकला। उसके मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा था। बोली—“ऐसी हालत में सिद्धार्थ बाली के दिमाग के बहुत तगड़ा शॉक लगेगा—वह पागल तक हो सकता है।”
"शायद अज्ञात शक्ति यही चाहती है।”
मिस मंजु की बुद्धि चकराकर रह गई। इतनी दूर तक तो वह स्वप्न में भी नहीं सोच पाई थी। इंस्पेक्टर देशमुख को प्रशंसात्मक नजरों से देखते हुए उसने पूछा—“क्या इस षड्यंत्र में स्वयं पूनम भी शामिल हो सकती है, सर?”
"हो भी सकती है और नहीं भी।”
“क्या मतलब?”
“अगर वह वास्तव में ललित जाखड़ की बीवी नहीं है तो आज की रात किसी आधार पर उसे इतना डराया-धमकाया गया है कि सुबह होते ही वह ललित जाखड़ को अपना पति कहने लगी।”
“सच्चाई दोनों में से चाहे जो हो सर, परंतु अंजाम एक ही होगा—सिद्धार्थ बाली के मस्तिष्क को शॉक। और यह स्थिति बड़ी विकट होगी। इतनी गहराई तक तो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी, सर कि इस झमेले के पीछे मुजरिम की देश का इतना बड़ा नुकसान करने की साजिश हो सकती है।”
“अगर यह साजिश है।” एकाएक इंस्पेक्टर देशमुख दांतों पर दांत जमाकर बोला, चेहरा सुर्ख को गया था, मुट्ठियां भिंच गईं और पूरी दृढ़ता के साथ कहता चला गया वह—“तो इसे मैं किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने दूंगा। साजिश रचने वाले की धज्जियां उड़ाकर रख दूंगा मैं—मेरे रहते इस देश से सिद्धार्थ बाली जैसा महान वैज्ञानिक कोई नहीं छीन सकता।”
इंस्पेक्टर देशमुख की मुद्रा देखकर मिस मंजु सकपका-सी गई। उसने इंस्पेक्टर देशमुख को इतना भावुक होते किसी भी केस के दरम्यान नहीं देखा था।
¶¶
‘राजधानी एक्सप्रेस' निर्धारित समय पर नई दिल्ली स्टेशन पहुंची। गाड़ी से उतरकर सिद्धार्थ की निगाहें भीड़ में किसी को खोजने का बड़ी बेताबी से प्रयास कर रही थीं।
उसे पूरा यकीन था कि पूनम  ‘रिसीव’ करने स्टेशन जरूर आएगी—इसलिए प्लेटफॉर्म पर वह बेचैनी भरे अंदाज में चारों तरफ देख रहा था।
करीब पांच मिनट बाद उसकी स्थिति यह हो गई कि हर सामने नजर आने वाली महिला उसे पूनम नजर आने लगी।
परंतु नजदीक पहुंचकर वह ठिठक जाता—आंखों में निराशा के बादल उमड़ने लगते।
सुर्खी लिए हुए गोरा रंग—पिता की ही तरह नीली आंखें, लंबा भरा-भरा चेहरा—घुंघराले बाल—आंखों पर से हटाकर सिर पर किया हुआ सुनहरे फ्रेम का धूप वाला चश्मा—गले में गोल्डन चेन—हाथों को उंगलियों में डायमंड, गोल्ड और सिल्वर की कई अंगूठियां—कलाई पर बेहद कीमती विदेशी घड़ी—लंबे छरहरे शरीर पर शानदार सफारी सूट—कुल मिलाकर सिद्धार्थ का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक था।
और सबसे आकर्षक थीं उसकी गहरी नीली आंखें, जो सहज ही किसी को उनमें डूब जाने के लिए आमंत्रित करती थीं।
लेकिन इस समय उन खूबसूरत नीली आंखों में जमाने भर का दर्द सिमटा हुआ था—बेहद खोई-खोई और उदास।
गाड़ी के आने के बाद प्लेटफॉर्म पर नजर आने वाली भीड़ काफी हद तक छंट चुकी थी।
उसके आने की सूचना पूनम के अतिरिक्त और किसी को नहीं थी—इसलिए किसी और के रिसीव करने आने का कोई मतलब ही नहीं था।
सामान के नाम पर उसके पास केवल एक सूटकेस था—वह बेहद निराशा भरे अंदाज में उसे उठाकर स्टेशन के बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ  बढ़ गया।
वह बाहर आया और एक ऑटोरिक्शा की सीट पर बेहद लापरवाही के साथ सूटकेस फेंककर बैठ गया और पुश्त पर कमर टिकाकर उसने अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं।
“बाबूजी, कहां जाना है?” ऑटोरिक्शा वाले ने ऑटोरिक्शा स्टार्ट करते हुए पूछा!
“ऐ ह...हां, हां।” वह एकदम हड़बड़ाकर बोला, जैसे उसे किसी ने नींद से जगा दिया हो—“बसंत विहार—एम्बेसी रोड।”
¶¶
अपनी कोठी के बाहर पुलिस जीप, जिस पर प्लेट लगी थी—‘इंचार्ज, बसंत विहार पुलिस स्टेशन और झुंडों की शक्ल में खड़े लोगों को देखकर सिद्धार्थ का दिल किसी अज्ञात आशंका से धड़कने लगा। सबको आश्चर्य से देखता हुआ वह अपनी कोठी में जाने लगा। सब लोग उसे अजीब-सी नजरों से देख रहे थे।
वह ड्राइंग हॉल में पहुंच गया, जहां इंस्पेक्टर देशमुख, मिस मंजु मेहता, ललित जाखड़, पूनम, वर्मा, मल्होत्रा और अन्य कुछ पड़ोसी थे।
वह सबको बारी-बारी से आश्चर्य के साथ देख रहा था—आंखों में सवालिया भाव लिए, जैसे पूछ रहा हो कि यह सब क्या है—क्यों खड़े
हैं सब लोग इस तरह?
लेकिन कोई कुछ नहीं बोला—अजीब-सी खामोशी छाई रही वातावरण में। जब कोई कुछ न बोला तो स्वयं उसी ने पूछा—“पूनम, इतने सारे लोग यहां क्यों खड़े हैं?”
प्रत्युत्तर में पूनम अपना चेहरा झुकाए खामोश खड़ी रही—जब से सिद्धार्थ आया था, अभी तक उसने एक बार भी नजरें ऊपर नहीं उठाई थीं।
चाहकर भी वह बताने का साहस नहीं कर सकी।
“त...तुम बोलती क्यों नहीं पूनम?” सिद्धार्थ ने उसे झंझोड़ते हुए पूछा— “क्या हो गया है तुम्हें?”
परंतु वही खामोशी—वही नीची नजरें।
“मैं तुमसे पूछ रहा हूं—तुम जवाब क्यों नहीं देतीं पूनम?” एकाएक बुरी तरह झुंझला उठा सिद्धार्थ।
लगता था, जैसे पूनम की जुबान तालू से चिपक गई हो—किसी कील के सहारे खड़ी लाश की तरह उसकी गर्दन नीचे लटकी हुई थी।
"प...पूनम क्या हो गया है तुम्हें?” सिद्धार्थ विचलित-सा होकर बोला—“प....प्लीज पूनम, बताओ न, कुछ तो बोलो।”
"मिसेज पूनम, आपको कुछ नहीं बता पाएंगी मिस्टर सिद्धार्थ!” अचानक इंस्पेक्टर देशमुख उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला।
सिद्धार्थ एकदम इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ पलटा—चौंककर पूछा—“क्या मतलब?”
"मतलब बहुत गहरा है मिस्टर सिद्धार्थ!”
“पहेलियां मत बुझाइए इंस्पेक्टर!” सिद्धार्थ ने बेचैनी-भरे स्वर में पूछा—“प्लीज, फौरन बताइए, क्या बात है?”
"मिस्टर बाली, ज़रा आप मेरे साथ आइए।”
“किसलिए?”
“मुझे आपसे अकेले में कुछ बातें करनी हैं।”
“इंस्पेक्टर साहब, मैं आपसे अकेले में बात बाद में करूंगा, पहले आपके यहां आने और इस भीड़ का कारण जानना चाहता हूं—क्या हो गया है यहां? मेरी मिसेज कुछ बात क्यों नहीं कर रही?” सिद्धार्थ ने एक ही सांस में कई सवाल कर दिए।
इंस्पेक्टर देशमुख मुस्कराया। ललित की तरफ इशारा करते हुए सिद्धार्थ से पूछा—“आप मिस्टर ललित को जानते हैं?”
सिद्धार्थ ने हौले से चौंककर ललित की तरफ देखा। कहा— हां, यह विशेष विज्ञान समाचार पत्रिका के रिपोर्टर हैं।
"इनसे आपका अपनी व्यक्तिगत जिन्दगी में कोई संबंध है?”
“मेरा इनसे सिर्फ इतना परिचय है कि यह अपनी पत्रिका के मैटर के लिए अक्सर विज्ञान संस्थान आते रहते हैं—इनकी पत्रिका में समय-समय पर मेरे वक्तव्य, लेख और इंटरव्यू वगैरह छपते रहते हैं—इसके अलावा मेरा मिस्टर ललित से कोई संबंध नहीं है।”
“ओह!” इंस्पेक्टर देशमुख ने सोचपूर्ण मुद्रा में कहा।
“क्या बात हो गई इनसे?”
“यह जनाब आपसे मिलने कल यहां आए थे।” इंस्पेक्टर देशमुख चहलकदमी करता हुआ बोला— और यहां मिसेज पूनम को देखकर उन्हें अपनी पत्नी होने का दावा करने लगे...।"
उसकी बात पूरी होने से पहले ही सिद्धार्थ बाली ललित जाखड़ को खा जाने वाली निगाहों से घूरता हुआ बोला—“इस कमीने की यह मजाल—मैं इसे जान से मार डालूंगा।” कहते हुए सिद्धार्थ बाली की खूबसूरत नीली आंखों में खून तैरने लगा—चेहरा कनपटियों तक भभककर सुर्ख हो गया—मुट्ठियां कसकर भिंच गईं।
उत्तेजित अवस्था में वह उसकी तरफ बढ़ा।
“रुक जाइए बाली साहब!" इंस्पेक्टर देशमुख उसके सामने आता हुआ बोला— पहले पूरी बात तो सुन लीजिए।”
“अब आपकी पूरी बात मैं बाद में सुनूंगा, इंस्पेक्टर—पहले जरा इसे बदतमीजी का सबक सिखा दूं।” सिद्धार्थ बाली इंस्पेक्टर देशमुख को सामने से हटाता हुआ बोला।
"इसीलिए को मैंने पहले आपसे अकेले में बात करने के लिए कहा था, सिद्धार्थ साहब।” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“मिस्टर ललित से कुछ कहने से पहले आपको मिसेज पूनम से भी बात करनी होगी।”
"हम समझे नहीं इंस्पेक्टर?”
"तभी तो मैं कह रहा हूं कि पहले पूरी बात सुन लीजिए।” इंस्पेक्टर देशमुख आग्रह करता हुआ बोला—“उसके बाद सब कुछ आपकी समझ में आ जाएगा।”
एक क्षण के लिए सिद्धार्थ ने कुछ सोचा—फिर जाने क्या सोचकर बोला—“ठीक है इंस्पेक्टर—आप पूरी बात बताइए।”
“अच्छा यही होगा सिद्धार्थ साहब कि हम लोग अकेले कमरे में बैठकर बातें करें—क्योंकि मुझे इस केस के लिए ही आपसे कुछ व्यक्तिगत सवाल भी करने हैं।               
सिद्धार्थ के चेहरे पर उलझन भरे भाव आ गए। वह खूंखार अंदाज में ललित की तरफ देखता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख से बोता—“आइए इंस्पेक्टर।”
ललित को लगातार घूरता हुआ वह हॉल से निकलकर अपने स्टडीरूम की तरफ बढ़ गया।
इंस्पेक्टर देशमुख उसके पीछे चल रहा था।
¶¶
इंस्पेक्टर देशमुख के अंदर आते ही सिद्धार्थ ने तुरंत स्टडीरूम का दरवाजा बंद किया और तेजी से पलटकर बोला—“कहिए इंस्पेक्टर, आपको क्या बात करनी है?”
उसकी इस फुर्ती को देखकर इंस्पेक्टर देशमुख एक क्षण को तो ठगा-सा रह गया—लेकिन फिर स्टडीरूम में रखी एक कुर्सी पर बैठ
गया।
सिद्धार्थ उसे अत्यधिक बेचैन नज़र आ रहा था—इसलिए बिना किसी भूमिका के कहना शुरू किया—“सिद्धार्थ साहब, मिसेज पूनम से आपकी शादी किस तरह हुई?”
“मेरी शादी से इस बात का क्या ताल्लुक?”
"आपको ही मालूम है।”
"आपने ही तो अभी बताया है कि ललित यहां आकर पूनम को अपनी मिसेज होने का दावा करने लगा?”
"सिद्धार्थ साहब यह तो इस अजीबोगरीब केस की स्टार्टिंग थी—पूरा केस तो अभी आपको मालूम ही नहीं है।
कहता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख रहस्यमय अंदाज में मुस्कराया।
“तो फिर आप बताते क्यों नहीं?” सिद्धार्थ का बेचैन स्वर।
"आप बताने का मौका ही कहां दे रहे हैं?” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा— बीच में ही अपने सवाल करने लगते हैं।”
"अच्छा, बताइए आप।”
“सिद्धार्थ साहब, पहले आप मुझे मेरे सवालों का जवाब दें—उसके बाद ही मैं आपको पूरा केस बताऊंगा—क्योंकि इस केस के लिए आपका बयान बहुत महत्त्वपूर्ण है—और केस को पहले सुनने के बाद आपका बयान उससे प्रभावित हो सकता है।
"पूछिए, आपको क्या पूछना है?”
“आपकी और मिसेज पूनम की शादी किस तरह और किन हालातों में हुई—यह पूरी घटना मैं डिटेल में जानना चाहता हूं।" उसकी तरफ देखता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“और उसमें आप कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं करेंगे।”
सिद्धार्थ ने बताना शुरू किया।
इंस्पेक्टर देशमुख के सामने लगभग वही कहानी दोहराई जाने लगी, जो कल ललित के सबूत पेश करने से पहले पूनम ने उसे यहां पहुंचने के तुरंत बाद अकेले कमरे में सुनाई थी।
“क्या सोचने लगे इंस्पेक्टर?” अपनी बात खत्म होने के बाद इंस्पेक्टर देशमुख को सोचपूर्ण मुद्रा में देखकर सिद्धार्थ ने पूछा।
“सोच रहा हूं कि आपकी इस कहानी और कल सुनी उस कहानी में कोई फर्क नहीं है।”
"पूनम से सुनी होगी?”
“जी।”
“इंस्पेक्टर,  फिर अलग होने का क्या सवाल हो सकता है?” सिद्धार्थ ने उसे इस प्रकार देखा, जैसे उसने कोई मूर्खतापूर्ण बात कर दी हो। बोला—“किसी पति-पत्नी की एक ही शादी की घटनाएं अलग-अलग कैसे हो सकती हैं?”
"सिद्धार्थ साहब, क्या ऐसा भी हो सकता है कि आपके साथ शादी होने से पहले मिसेज पूनम की एक और शादी हो चुकी हो?”
“यह तुम क्या बकवास कर रहे हो इंस्पेक्टर?” सिद्धार्थ गुर्राया।
“यह बकवास मैं नहीं, आपकी मिसेज पूनम कर रही हैं कि आपके साथ शादी करने से पहले उनकी मिस्टर ललित जाखड़ से शादी हो चुकी थी।
“न...नहीं।” अविश्वसनीय स्वर में सिद्धार्थ चीखा—“य...यह नहीं हो सकता—पूनम ऐसा नहीं कर सकती, इंस्पेक्टर!”
“ऐसा नहीं हो सकता—आपकी इस बात से तो मैं एक बार को इत्तफाक रख सकता हूं—लेकिन यह बिल्कुल सच है कि मिसेज पूनम ने ऐसा ही कहा है—और उनकी सुनाई गईं इन दोनों कहानियों के बीच में सिर्फ एक संदिग्ध रात है।”
"स...संदिग्ध रात?”
“जी हां, मैं उसे संदिग्ध रात ही कहूंगा।” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“कल मिसेज पूनम ने आपके साथ शादी की मुझे बिल्कुल यही कहानी सुनाई थी, जो आपने इस वक्त सुनाई है, ललित जाखड़ द्वारा पेश किए गए दावे का उन्होंने चीख-चीखकर विरोध किया था—उसके सबूतों को नितांत झूठे और बेबुनियाद बताया था—लेकिन आज सुबह उठकर वह उसके सबूतों को सही बताने लगीं—अब वह ललित को ही अपना पति कह रही हैं—और इसके साथ ही ललित के घर से भागकर एक योजनाबद्ध तरीके से आपके साथ शादी करने की नई कहानी सुना रही हैं—बिल्कुल अजीबोगरीब फिल्मी कहानी—इन दोनों घटनाओं में सिर्फ एक कल की रात बीच में है—और इसी रात ललित आपकी कोठी के पिछवाड़े से मिसेज पूनम के पास आया था—क्योंकि मेन गेट पर एक कांस्टेबल पहरा दे रहा था—बस, सिद्धार्थ साहब, यही वह रात है, जो मेरी नजरों में खटक रही है—इस रात ललित और मिसेज पूनम के  बीच क्या हुआ—उनके बीच क्या बात हुई—इसकी असलियत अभी अज्ञात है।”
"मैं बताता हूं, इंस्पेक्टर, इसकी असलियत क्या है?” सिद्धार्थ उत्तेजित होकर जोश में बोला—“उस कमीने ने बेचारी पूनम को कोई खतरनाक धमकी दी होगी— जिससे डरकर वह उसके इशारों पर चलने के लिए मजबूर हो गई।”
“जब तक कोई सबूत न हो, तब तक इस संबंध में किया ही क्या जा सकता है?”
“इंस्पेक्टर साहब, मैं कल से आज तक की तमाम घटनाएं सुनना चाहता हूं—प्लीज, अब आप मुझसे बिना कोई सवाल किए फौरन से घटनाएं सुनाइए।” सिद्धार्थ परेशान-सा होकर बोला—“जाने मेरे पीछे इन दो दिनों में क्या-क्या हो गया है यहां?”
और अब!
इंस्पेक्टर देशमुख कल ललित के आने से लेकर आज सिद्धार्थ के आने से पहले तक की तमाम घटनाएं अक्षरश: बताता चला गया।
सुनकर सिद्धार्थ के चेहरे पर तड़प और पीड़ा के मिले-जुले भाव उभर आए। उसके बाद वह एकदम पागल-सा होकर बोला—“न...नहीं—यह नहीं हो सकता—य...यह कभी नहीं हो सकता—मेरी पूनम ऐसी नहीं हो सकती—यह सब गलत है, झूठ है—मेरे खिलाफ कोई भयानक षड्यंत्र रचा गया है। कोई मुझसे मेरी पूनम को छीनने की साजिश कर रहा है, इंस्पेक्टर!” कहने के बाद देश का महान युवा वैज्ञानिक किसी अबोध बच्चे की तरह फूट-कूटकर रो पड़ा।
¶¶
"इन सब लोगों से कह दो पूनम कि तुमने आज सुबह जो कहा, वह झूठ है, गलत है—तुमने इस कमीने की धमकी की वजह से ही ऐसा कहा है।” पूनम को बुरी तरह झंझोड़ता हुआ सिद्धार्थ कह रहा था— डरो मत पूनम, अब मैं आ गया हूं—सब ठीक हो जाएगा—ल...लेकिन तुम सिर्फ एक बार इन सब लोगों के सामने कह दो कि यह झूठ है—मैं इस हरामजादे को जिंदा नहीं छोड़ूंगा।”
“य...यह बिल्कुल सच है, मिस्टर सिद्धार्थ!” उसके आने के बाद पूनम ने पहली बार सिद्धार्थ से नजरें मिलाते हुए कहा— मैंने आपके साथ धोखा किया है।”
"मेरे साथ इतना गंदा मजाक मत करो—त...तुम मुझे धोखा नहीं दे सकतीं पूनम।"
"अब मैं इसे झूठ कहकर आपको और अधिक धोखे में नहीं रखना चाहती—मैंने पहले ही आपके साथ बहुत धोखा किया है।” पूनम सिद्धार्थ की आंखों में आंखें डालती हुई बोली—“वैसे तो आपको इंस्पेक्टर साहब ने सबकुछ बता दिया होगा—लेकिन फिर भी बता दूं कि मैं आपके लिए उसी दिन से पागल थी—जिस दिन मैंने विज्ञान संस्थान में आपको पहला बार देखा—तब ही आपको पाने का, आपकी पत्नी बनने का ख्वाब देखने लगी थी—परंतु आपकी तरफ से मुझे कोई लिफ्ट नहीं मिली—इसीलिए बीच में मेरी जिंदगी में मिस्टर ललित जाखड़ आ गए और मैंने इनसे शादी कर ली—लेकिन मैं आपके रव्वाब देखना न छोड़ सकी और आपको पाने का मेरा पुराना सोया हुआ ख्वाब उस समय एक बार फिर जागृत हुआ—जब मैंने टी.वी. पर यह समाचार सुना कि आपको अमेरिकी अंतरिक्ष शटल के अंतरिक्ष यात्री के रूप में चुना जा सकता है—बस, मैं अंतरिक्ष यात्री की पत्नी बनने के लिए पागल हो उठी—इतनी अधिक पागल कि अपने देवता जैसे पति और स्वर्ग जैसे सुंदर घर को छोड़कर आपकी पत्नी बनने के लिए निकल पड़ी—उसी रात परेशान और घबराई-सी आपके पास विज्ञान संस्थान पहुंची—वहां पर मैंने आपको अपने भाई मोहन और उसके साथ आए शराब के ठेकेदार की एक काल्पनिक कहानी सुनाई—और उसके बाद जो कुछ हुआ, वह आपको मालूम ही है—लेकिन कल मिस्टर ललित के आने पर एक बार फिर मेरी जिंदगी में तूफान-सा आ गया— पहले तो मैं इन्हें अपनी खुदगर्जी की वजह से पहचानने से भी इन्कार करती रही—सब लोगों के सामने इन्हें गालियां तक देती रही—इनके सारे सबूतों को झुठलाती रही—लेकिन रात इनकी बातों ने मेरी खुदगर्जी की नींद में बंद आंखें खोल दीं।” पूनम उसकी तरफ हाथ जोड़ती हुई बोली—“हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए और इस गंदी, धोखेबाज और पापिन को भूल जाइए।"
“पूनम, यह तुम नहीं—इस कमीने गंदे आदमी की कोई साजिश बोल रही है।” सिद्धार्थ चीखा।
“देखिए मिस्टर सिद्धार्थ, आपकी गुनहगार मैं हूं—आप मुझे चाहे जो कह लीजिए—मैं आपकी मुजरिम हूं—आप मुझे जो भी सजा देंगे, खुशी से स्वीकार कर लूंगी—लेकिन आप इनके लिए कोई भी अपशब्द न कहें।” ललित की तरफ इशारा करते हुए पूनम ने विनती-भरे स्वर में कहा।
“य...यह तुम्हें क्या हो गया है?” सिद्धार्थ एकदम लगभग रो देने वाले अंदाज में बोला—“त...तुम मेरे सामने इस व्यक्ति की....।”
“यह मेरे पति हैं मिस्टर सिद्धार्थ!”
“और मैं?”
“एक शादीशुदा नायिका की किसी फिल्म की कहानी में उसके नायक से शादी हो जाए तो वास्तविक जिन्दगी में वह उसका पति नहीं हो जाता।” पूनम बोली—“बस, आप भी यही समझ लीजिए कि आप मेरी उसी कहानी के पति थे।”
“त....तुम नहीं जानतीं पूनम कि तुम्हारी इन बातों से मुझ पर क्या गुजर रही है—तुम सबको बता क्यों नहीं देतीं कि तुम मुझसे ऐसी बात करने के लिए क्यों मज़बूर हो?”
"इसलिए कि आज मेरी आंखें खुल गई हैं—खुदगर्जी की जमीन पर अपनी ही बसाई स्वार्थ और पाप की दुनिया से मैं ऊब गई हूं—आज उस दुनिया से बाहर आने के लिए मुझमें सच बोलने और कोई भी सजा सहने का साहस पैदा हो गया है।”
सिद्धार्थ की आंखों में जमाने भर का दर्द सिमट आया—आंसुओं के कारण उसकी आंखें नीली झील-सी नजर आने लगीं।
दांतों से भींच-भींचकर अपने होंठों को लहूलुहान कर डाला उसने।
“म...मैं तुमसे अकेले कमरे में बात करना चाहता हूं।” वह पूनम का हाथ पकड़कर बोला—“मेरे साथ आओ।”
पूनम ने झटके के साथ अपना हाथ छुड़ा लिया, साथ ही रूखे स्वर में बोली—“आपको जो बात करनी है, यहीं कर लीजिए—अकेले में भी उससे अलग कोई बात नहीं होगी, जो मैं यहां कह रही हूं।”
“म...पूनम!” सिद्धार्थ हिस्टीरियाई अंदाज में चीखा—“मेरे प्यार का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश मत करो—यह मत भूलो कि इस वक्त तुम मेरी पत्नी हो—और मेरे पास रखा आर्यसमाज मंदिर का विवाह-प्रमाणपत्र इस बात का गवाह है कि मैं तुम्हें जबरदस्ती या रखैल बनाकर नहीं लाया—मेरी इजाजत के बिना किसी और के साथ जाना तो बहुत दूर की बात है—तुम जहां  खड़ी हो, वहां से हिल भी नहीं सकतीं—और मेरे इस अधिकार को दुनिया का कोई कानून, किसी समाज का कोई नियम चुनौती नहीं दे सकता—समझीं तुम?”
उसका यह रूप देखकर पूनम सिहर-सी गई।
परंतु एकाएक ललित जाखड़ आगे बढ़ता हुआ बोला—“बहुत हो चुका मिस्टर सिद्धार्थ, अगर आप कानून की भाषा में बात करेंगे तो शिकस्त आपकी ही होगी, क्योंकि औरत उसकी ही पत्नी होती है, जिससे उसकी पहले शादी हुई हो—शादीशुदा स्त्री अगर किसी अन्य मर्द से शादी कर ले तो कानून उसे मान्यता नहीं देता।”
“त...तू हरामजादे!” आपे से बाहर होकर सिद्धार्थ बाली ललित जाखड़ पर झपट पड़ा—उधर ललित भी उसके आक्रमण का समुचित जवाब देने के लिए तैयार नजर आ रहा था, परंतु इंस्पेक्टर देशमुख ने ऐसी नौबत नहीं आने दी—सिद्धार्थ को बीच में ही रोकता हुआ वह बीला—“होश में आइए मिस्टर सिद्धार्थ—मार-पिटाई किसी समस्या का हल नहीं है।”
“मैं इस कमीने के…।”
“धीरज रखिए।” सिद्धार्थ का वाक्य पूरा होने से पहले ही इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“आप पूनम से अकेले में बात करना चाहते हैं, वह मौका मैं आपको दूंगा।”
सिद्धार्थ बाली का जिस्म कुछ ढीला पड़ा।
अब, ललित जाखड़ की तरफ पलटकर इंस्पेक्टर देशमुख ने अजीब-से स्वर में पूछा—“अब आप कहिए मिस्टर ललित, अगर सिद्धार्थ बाली और मिसेज पूनम कुछ देर अकेले में बात करें तो क्या आपको कोई आपत्ति होगी?”
“अगर खुद पूनम को कोई आपत्ति नहीं है तो मुझे भी क्या आपत्ति होगी !”
¶¶
 देखो पूनम, इस समय यहां हम दोनों के अलावा और कोई नहीं है—तुम मुझे सबकुछ साफ-साफ बता दो।” सिद्धार्थ ने बेहद प्यार-भरे स्वर में कहा—“हो सकता है, कभी तुमसे अनजाने में कोई गुनाह हो गया हो—भूल से कोई पाप कर बैठी हो तुम या तुम्हारी कोई कमजोरी रही हो, जिसकी वजह से ललित या कोई और तुम्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा हो—ऐसी कोई बात है तो डरो नहीं पूनम, मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं—तुम्हारा कोई भी गुनाह, कोई भी पाप मैं अपने दिल में जज्ब कर लूंगा—कभी तुमसे उसका जिक्र तक नहीं करूंगा—तुम्हें पहले की ही तरह प्यार करता रहूँगा।”
“एक शादीशुदा औरत होकर किसी गैर मर्द के लिए अपने घर की चौखट लांघने का जो गुनाह मुझसे हुआ है—और फिर भगवान के मंदिर में दूसरी शादी रचाने का जो पाप मैं कर बैठी हूं—वह मैं सब लोगों को और आपको भी बता चुकी हूं।” पूनम ने कहा—“अब अपना कोई भी गुनाह या पाप मैं छुपाना नहीं चाहती— उनका प्रायश्चित करना चाहती हूं।”
“नहीं पूनम, यह झूठ है—मेरा दिल मुझसे चीख-चीखकर कह रहा है कि तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो।” सिद्धार्थ बाली तड़प-सा उठा—“प्लीज पूनम, बता दो न—म...मैं तुम्हें नहीं खो सकता—और खोकर जी नहीं सकता—मुझ पर तरस खाओ—द...देखो, म...मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं—प्लीज मेरी जिंदगी से मत जाओ।”
पूनम ने देखा—सिद्धार्थ ने उसके सामने सचमुच हाथ जोड़ दिए थे—दो नीली आंखों में आंसुओं का तूफान-सा आया हुआ था।
सिद्धार्थ की हालत देखकर पूनम को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उसका दिल कसकर मुट्ठी में भींच लिया हो।
आंसुओं को रोकने की कोशिश में उसका चेहरा बिगड़ने लगा।
बोली— मैं भी अच्छी तरह जानती हूं कि आप मुझसे कितना प्यार करते हैं—आपकी तड़प और असीम दर्द से मुझे पूरी सहानुभूति है—आपके दुख को देखकर मन पर अपने जुर्म के एहसास का बोझ और बढ़ गया है—लेकिन इन सब बातों से कोई सच, झूठ तो नहीं बन सकता न?”
वह तेजी से उठकर पूनम के ठीक सामने पहुंच गया—घुटनों के बल बैठकर—सोफे पर बैठी पूनम का चेहरा अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया और उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला—“मुझे सिर्फ इतना बता दो पूनम कि मेरे प्यार में कौन-सी कमी रह गई—मुझसे कौन-सा गुनाह हो गया—जिसकी तुम मुझे यह सजा दे रही हो?”
“आपसे कोई गुनाह नहीं हुआ—आपके प्यार में कहीं कोई कमी नहीं रही।” पूनम ने अपने चेहरे से उसके हाथ हटाने का प्रयत्न करते हुए कहा—“लेकिन कभी-कभी एक व्यक्ति के किए गए गुनाह की सजा बहुत-से लोगों को  भुगतनी पड़ती है…मेरी दौलत की भूख और बहुत बड़े व्यक्ति की पत्नी बनने की महत्वाकांक्षा ने मुझसे जो गुनाह करवाया है—उसकी सजा का एक हिस्सेदार मैंने आपको भी बना दिया है—आज उस घड़ी को कोस  रही हूं, जिस घड़ी मैंने आपको पाने की मनहूस योजना बनाई थी—मेरी वजह से ही दो घर बरबादी के कगार पर पहुंच गए—कितना दुख पहुंचा है आपको मेरी वजह से—आपकी मुजरिम हूं मैं—आप मुझे कोई ऐसी सजा दीजिए मिस्टर सिद्धार्थ, जो मुझे जिंदगी-भर यह एहसास दिलाती रहे कि मैं गुनहगार हूं।”
अचानक सिद्धार्थ का चेहरा एकदम खूंखार हो उठा—आंखों में आंसुओं के स्थान पर खून तैरने लगा।
एक क्षण पहले तक भावुक-सा नज़र आने वाला सिद्धार्थ इस समय वहशी दरिंदा नजर आने लगा—इसके साथ ही उसके मुंह से भेड़िये जैसी गुर्राहट निकली—“जिंदगी-भर एहसास तो तब रहेगा न—जब तुम जिंदा रहोगी।”
सिद्धार्थ का यह खूंखार रूप देखकर पूनम कांप गई—उसके सारे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ती चली गई।
तभी वहशियाना अंदाज में सिद्धार्थ के हाथ उसके चेहरे से खिसककर उसकी गर्दन पर जाकर कस गए।
पूनम के होंठों से आवाज भी न निकल सकी।
¶¶