रात का तीसरा पहर अभी शुरू ही हुआ था, घनघोर आधी रात में उस चाल में हलचल थी, कहीं चूड़ियाँ खनक रही थी तो कही गजरे मोगरे की महक में घुली शराब की तीक्ष्ण महक चारोंओर फैली थी| प्रभास अपने हिस्से का काम कर चुकने के बाद दड़बे जैसी चाल से चलता पीछे अपने रूम में आ गया| नशा उसपर तारी था जिससे वह हलके हलके गुनगुना रहा था...
रूम में आते वह सीधा अपनी खाट में आता सो गया| अभी नींद की गहराई में वह उतरा ही था कि उसके कानों में कोई आवाज गूंजने लगती है....
“प्रभास.....तोमादेर कोमला....दराजा खोला |”
निवेदन करती दर्दीली आवाज बेहद उसके कान के समीप सी उठती उसे झंझोड़ रही थी, जिससे वह नाचाहते हुए भी खुद को खाट से खींचकर उठकर उस आवाज को फिर सुनने की चेष्टा करता है|
“प्रभास.....तोमादेर कोमला....दराजा खोला |”
वह आवाज दुबारा आती है तो प्रभास झींकता हुआ उठकर दरवाजे के पास आता उसकी चिटकनी खोलकर सामने देखता हुआ कहता – “कि हालो ?” वह अपनी मिचमिचाती आँखों से देखता है सामने लाल सुनहरे किनारी वाली तांत की साड़ी में कलमा खड़ी थी, उसके माथे पर सिंदूर की गहरी लाली और माथे पर लाल टिकुली के दोनों किनारों पर गहरी कजरारी आँखों में लाल डोरे उभर आए थे...
कुछ माह पूर्व कमला प्रभास का हाथ थामे बंगाल की सीमा पार कर मुंबई की छोटी सी गली से गुजरती एक माचिसनुमा कमरे में आती बिदक गई थी, वहां पहले से ही दो तीन जोड़े मौजूद थे, वो उसको देख शरमा कर प्रभास के पीछे छुप गई तब प्रभास ने उसकी कलाई पकड़कर उसे सामने लाता बता रहा था कि ये भी उनकी तरह अपने घर से भागे प्रेमी है, तो हुए न रिश्तेदार तो इनसे क्या शरमाना फिर वाकई वह मुस्करा कर उनके बीच बैठ गई...पर कोई लड़की किसी की भाषा ही नही समझ पा रही थी, कोमला को भी बस बंगला ही आती इसलिए डरी सहमी वह बस प्रभास का मुंह देखती रहती तब प्रभास ही था जो उसे बताता कि सामने वाला क्या कह रहा है|
उसकी तो सारी दुनिया ही प्रभास था, आखिर पिता के देहांत के बाद उसके लिए सौतेली माँ के अत्याचारों को और सहन करना जब दुश्वार हो गया तब गाँव में शहर की लहक लाता एक प्रभास ही था जो उसे समझ रहा था, तब क्या करती सब कुछ छोड़ छाड़ कर सदा के लिए प्रभास का हाथ थामे चली आई......बहुत अच्छा है प्रभास खुद कम खाकर भी उसकी प्लेट में सारा खाना उलट देता और बिना खाए उसे उठने भी नही देता| नई दो धोती भी दिलाई, उसके सो जाने तक खुद जागता रहता और क्या चाहिए था, बस प्रेम का भूखा मन उसकी निश्चल आँखों को देख देखकर तृप्त हुआ जा रहा था|
अब प्रभास जब नौकरी कर लेगा तब घर होगा, शादी करके बच्चे...उई माँ...वह खुद में ही सोचती सोचती शरमा गई थी, प्रभास ने तो अब तक उसे छुआ भी नही, कितना सच्चा है उसका मन लेकिन ये शहर उसे बिलकुल नही भा रहा था, कितनी भीड़ है हर तरफ, पानी के लिए भी कोई खड़ा होता है देर तक, अपने गाँव में तो ताल था, कब सखियों संग बतियाते ताल तक पहुँच जाती पता ही नहीं चलता, छी...पानी भी कितना तीता जैसे मिर्च का सालन, यहाँ की माछी में तो स्वाद भी नही.....कोमला तो कांटा भी गटक जाती पर इस शहर ही मच्छी का काँटा तो निकालते निकालते परेशान हो जाती है फिर तो खाने का मन ही मर जाता है|
प्रभास पूरा दिन भर जाने कहाँ कहाँ की ख़ाक छानता फिरता है फिर भी कोई नौकरी हाथ नही आती, कितना थका मांदा आता है तब एकांत होने पर वह अपनी गोद में उसका सर रखे उसके घुंघराले बालों पर उंगलियाँ फेरती फेरती वह कुछ गुनगुनाने लगती....तब प्रभास कितना खुश हो जाता और थोडा और तेज स्वर में उसे गाने को कहता तब शरमा कर वह उसकी बांह में समा जाती...
अभी एक सप्ताह बीता ही था कि प्रभास ने खबर दी कि उसने उसके लिए एक नौकरी का प्रबंध कर लिया है बस बच्चों को गाना सिखाना है...वहां रहने को घर भी मिलेगा तब कुछ दिन उनका काम चल निकले तब तक वह भी काम ढूंढ लेगा तब उसे कोई भी काम नही करने देगा बस महारानी की तरह अपने राज महल में रखेगा, ये सुनकर वह देर तक खिलखिला उठती|
“ये है कमला - बहुत अच्छा गाती है – बस आप इतना समझ लीजिए रविन्द्र संगीत की प्रतिछाया है |” प्रभास अति मुस्कान के साथ अपने पीछे खड़ी मध्यम कद काठी वाली एक लड़की की ओर इशारा करता है|
सामने मंझोले कद का लेकिन दिखने में समर्द्ध व्यक्ति उसे गाने को कहता है तब प्रभास अवाक् कोमला को कहता है – “गाई कोमला |”
कोमला शरमा कर नज़रे नीचे किए रहती है|
“क्या रे – पाहिले इसको हिंदी सिखाओ तुम -|” कहकर वह तुरंत ही अपनी गाड़ी में बैठकर चला गया|
उसके जाते सर उठाकर घबराकर वह प्रभास के चेहरे की ओर देखती है जो अभी भी उसकी ओर प्यार से देखता हुआ उसे भरोसा दिलाता है कि अभी भी अवसर है हमारे पास, उसके पहचान की एक आनंदी ताई है जो उसे कुछ दिन में ही काम भर की हिंदी सिखा देगी फिर उसे यहाँ काम मिलना आसान हो जाएगा|
प्रभास उसे उसी वक़्त एक चाल में ले गया जहाँ बैठी एक अधेढ़ महिला से बात करने के बाद कोमला को उनके सामने लाता हुआ मिलवाता है|
“आईगा – सुन्दर मोलगी |” वह कुछ पल हैरान उसका रूप रंग देखती रह गई, फिर बड़े प्यार से उसे अपने पास बैठाकर उससे इशारे में बात करने लगी, अगले ही पल कोमला मुस्करा उठी साथ ही प्रभास भी लेकिन प्रभास का ये फैसला उसे कतई नामंजूर था कि उसे हिंदी सीखने के लिए कुछ दिन उनके पास रहना होगा क्योंकि उसके पास इतना किराया नही कि रोज रोज बस से यहाँ आ सके|
कोमला ने डरकर उसकी कमीज पकड़ ली तब प्यार से उसे वह बहुत देर समझाता रहा आखिर में उसे भरे नयन से विदा करती हुई उसने यही कहा कि एक महीने बाद नही आया तो वह खुद आ जाएगी उसके पास| वह प्यार से उसका गला छूता निकल गया, कोमला ने भी बड़े भरे मन से उसे यूँ विदा दी मानों ये अंतिम विदाई हो...
सपने कांच से भी नाजुक होते है और जब दरकते है तब उनकी किरचे अंतर्मन तक को भी गहरे से भेद देती है....आँखों के आगे सब कुछ धुंधला हो उठा जब कोमला को पूरी तरह से बदलने की साजिश रची गई...पहले उसकी भाषा फिर उसके कपडे अब उसका मन भी !!!
वह चीख चीख कर प्रभास को बुलाना चाहती थी, उसे बताना चाहती थी कि वह कितना भोला है जो किसी पर भी विश्वास कर लेता है ये ताई तो कोठे वाली है...उसे नही बिकना...उसकी देह तो पूरी तरह से प्रभास की अमानत है फिर ये कौन है जो उसका सरेआम सौदा कर रहे है.....वह उस रात चिल्लाती रही पर उसे निर्ममता से कुचल दिया गया....उसकी देह से फूटा खून उसकी आत्मा से सीधा बह रहा था...ऑंखें दर्द की स्याही होती अंतरस दर्द की इबारत लिख गई....
अगला वो दिन का उजास किसी के लिए उजाला होगा उसके लिए तो अपनी लाश का मरघट खुद में समेटने में बीता, किसी तरह से खुद को समेटती वह प्रभास को तलाशती उस चाल में घूमती रही, उसे पुकारती रही...पर वो वहां होता तो मिलता....दर्द से उसका पूरा जिस्म थरथरा गया...उसका इंतजार करते प्रभास को नही पता कि उसकी कोमला पर क्या बीता है...प्रभास चित्कारती वह कब चाल की रेलिंग से गिरती कब पथरीली जमीदोज़ हो गई...वह बस आखिरी हिचकी तक सुनती रह गई.....
उसके पास खड़ी बेशर्म हँसी के साथ खड़े वे इन्सान नहीं थे, वे तो चलते फिरते चंडाल थे जो उसे बार बार बता रहे थे कि उसका आशिक ही उसे बेच गया यहाँ और ऐसा तो यहाँ होता ही रहता है, आखिर जो अपने माँ बाप की न हुई उनका क्या होगा जमाना, अरे ऐसी टूट फूट गई तो उसे शमशान छोड़ आएँगे, आँखें खोल और मजा ले जिंदगी का, एक देह के बदले ज़माने की दौलत मिलेगी...|
वह चिल्ला पड़ी कि सब झूठ है, वे सब चाहते है कि उसे नफरत हो जाए प्रभास से पर ऐसा कभी नही होगा...वह ढूंढ ही लेगी अपने प्रभास को...|
कोमला को सामने देख एक पल में उसका नशा काफूर हो गया, प्रभास देखता रह गया कि कोमला ने उसे कैसे ढूंढ लिया, वह उसे अपने साथ चलने का आँखों से निवेदन करती आगे आगे चल रही थी वह उसके पीछे पीछे चला जा रह था, वे चाल के पीछे छूटी हुई जमी पर आकर रुक गए, वहां कचरे का ढेर लगा था, वह कोमला को पुकारता है वह पलटकर उसकी ओर देखती है..
सुबह जब अपनी खोली में न कोमला मिली न प्रभास तो सबको लगा कि ये दोनों जरुर भाग गए साथ में...
“आस्ति चालो...|” नव यौवना अपने प्रेमी के साथ भागकर उसी चाल में ताई के सामने खड़ी थी, अब उसका प्रेमी उसे कुछ दिन वहां रुकने को कहकर उससे प्रेमभरी आखिरी विदा ले रहा था|
रात अपनी खोली में नशे में चूर वह प्रेमी सोया ही था कि रात के तीसरे पहर उसे पुकारती आवाज आई, वह उस आवाज पर बाहर आकर देखता है, उसे नहीं पता चला कि कब वह उसके पीछे पीछे चाल के पिछले हिस्से पर आ गया...उस अँधेरे में उसके सामने खड़ी छाया अब धीरे धीरे भयावह हो चली....उसके स्याह चेहरे पर की ऑंखें अंगारों की भांति दहक उठी थी...जब तक वह डरकर भागता निशि डाकनी की चीत्कार से उसके कान के परदे फट गए....वह उसका ह्रदयविहीन सीना चीर कर अपने सूखे होठों को खून से तर करने लगी......
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