8.10 बजे वोमाल जगवामा का फोन बज उठा।
सिटवी तुरंत उठा। फोन उठाकर नम्बर देखा।
“वो ही नम्बर है सर, गाठम के आदमियों का।”
जगवामा ने फोन लिया और बात की।
“हैलो।”
“जगवामा।” इस बार आवाज आदिन की थी –“बीस मिलियन डॉलर का तुमने इंतजाम कर लिया होगा।”
“इतनी बड़ी रकम किसी को नहीं दी जाती।” जगवामा ने शांत स्वर में कहा।
“तुम्हारे बेटे बेवू की जिंदगी का सवाल है और रकम तुम दोगे। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है।”
“रकम कम करनी होगी।”
“ठीक है एक मिलियन कम कर लो। उन्नीस मिलियन का फौरन इंतजाम करो।”
“मैं दो मिलियन से ज्यादा नहीं दे सकता।”
“इसका मतलब तुम्हें बेवू की लाश चाहिए। दो मिलियन में तो हम लाश भी नहीं देने वाले।” आदिन खतरनाक स्वर में कह उठा।
“मैं चिकी से बात करना चाहता हूं।”
“क्यों?”
“मैं चिकी से फिरौती की रकम तय करूंगा।”
“चिकी अभी-अभी यहां पहुंचा है। देखता हूं वो तुमसे बात करना चाहता है या नहीं।”
इसके बाद फोन पर खामोशी छा गई।
दो मिनट तक कोई आवाज नहीं आई, फिर होपिन की आवाज कानों में पड़ी।
“नमस्कार जगवामा साहब।” होपिन के स्वर में दोस्ताना भाव थे –“आपकी तबीयत जरूर बेहतर हो रही होगी।”
“चिकी हो तुम?”
“पूरी तरह। आपका बेटा हमारे पास खुश है। हम उसका ध्यान रख रहे हैं।”
“ये तुम लोगों ने अच्छा नहीं किया।”
“हमारा तो धंधा है अपहरण करना, फिरौती लेना। गाठम ने कहा तो बेवू को उठा लिया।”
“मैं बेवू से मिलना चाहता हूं।”
“ये नहीं हो सकता।”
“कुछ देर के लिए। सिर्फ पांच मिनट उससे बात करना चाहता...।”
“असम्भव।” दूसरी तरफ से होपिन ने दृढ़ स्वर में कहा –“ऐसा सोचें भी मत जगवामा साहब।”
“मैं अपनी तसल्ली करना चाहता हूं कि बेवू सही-सलामत है।” जगवामा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“आपके बेटे को हम तकलीफ दे ही नहीं सकते।”
“मुझे अपनी तसल्ली चाहिए चिकी।”
“इसके लिए तो आप फोन पर भी बेवू से बात कर सकते हैं।” उधर से होपिन ने कहा।
जगवामा कुछ पल चुप रहा फिर सिटवी से बोला।
“चिकी फोन पर बेवू से मेरी बात कराना चाहता है।”
“वो बात आप फोन पर भी पूछ सकते हैं। मौका अच्छा है।” सिटवी कह उठा।
“उन बातों को, उसके पास के लोग भी सुन सकते हैं। इससे बात खुल जाएगी।” जगवामा बोला।
“आप बेवू सर से बात कीजिए, शायद हमारा काम बन जाए।”
वोमाल जगवामा ने फोन पर कहा।
“ठीक है चिकी। बेवू से मेरी बात कराओ।”
आधा मिनट बीता कि बेवू की आवाज कानों में पड़ी।
“पापा। आप कैसे हैं?” आवाज पूरी तरह बेवू की ही थी।
जगवामा की आँखें सिकुड़ी और वो सामान्य स्वर में कह उठा।
“मेरी बात सुनो। मैंने तुम्हें उस दिन ही पहचान लिया था कि तुम बेवू नहीं हो –तुम...।”
“क्या?” उधर से जगमोहन को अपना सिर हिलता-सा लगा।
“तुम बेवू नहीं हो। ये बात मैं जानता हूं तुम जानते हो परंतु गाठम नहीं जानता। गाठम को पता चल गया तो वो तुम्हें खत्म कर देगा किसी को इस बात का पता न लगने दो कि तुम बेवू नहीं हो, समझ रहे हो न मेरी बात।”
“हां।” जगमोहन के गहरी सांस लेने की आवाज आई।
“मैं जानता हूं कि बेवू तुम्हें अपनी जगह पर बिठाकर, खुद कहीं खिसक गया है। वो ऐसा ही करता है उसे मेरे पास रहना अच्छा नहीं लगता वो अपनी मर्जी से जीना चाहता है। गाठम ने बेवू के धोखे से तुम्हारा अपहरण कर लिया, लेकिन तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें वहां से निकाल लूंगा।”
“कैसे?”
“ये बाद में बताऊंगा। तुम ये बताओ कि बेवू कहां पर है?”
“मुझे क्या पता।”
“वो तुम्हें बताकर गया होगा कि वो कहां जा रहा...।”
“मुझे कुछ नहीं बताया।”
“उसके मुंह से कुछ निकला होगा कि वो कहां जाना चाहता...।”
“इस बारे में मेरा मुंह खोलना ठीक नहीं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैंने आपके सवाल का जवाब दे दिया तो आप मुझे गाठम के भरोसे छोड़ देंगे क्योंकि मैं वो नहीं, जो आप चाहते हैं।”
“ऐसा नहीं होगा। मैं तुम्हें वहां से निकाल लूंगा, बेशक मुझे फिरौती देनी पड़े।”
“फिरौती दो। मुझे बचाओ। तब मैं आपके सवाल का जवाब दूंगा।”
जगवामा के होंठ भिंच गए।
“तुम इस वक्त कहां पर हो?” जगवामा ने पूछा।
“मैं नहीं जानता। जब होश आया तो खुद को यहीं पर...।”
जगमोहन अपनी बात पूरी नहीं कर सका।
तभी बीच में होपिन का स्वर कानों में पड़ा।
“तसल्ली हो गई। जगवामा साहब कि बेवू सही-सलामत है।”
“हां।”
“परंतु आपकी बातें मेरी समझ से बाहर रहीं। बेवू ने जवाब दिए, उसके आधार पर कह रहा हूं।”
“रकम कम करो चिकी।” जगवामा ने कहा।
“अट्ठारह मिलियन दे देना।” उधर से होपिन ने कहा।
“मेरे ख्याल में गाठम ने मेरे बेटे का अपहरण करके ठीक नहीं किया।” जगवामा ने सख्त स्वर में कहा –“मेरे से दुश्मनी महंगी पड़ सकती है गाठम को।”
“आप धमकी दे रहे हैं जगवामा साहब।” होपिन की आवाज में भी सख्ती आ गई।
“बता रहा हूं कि गाठम ने ये ठीक नहीं किया।” स्वर सख्त ही रहा जगवामा का।
“बेवू को वापस पाना चाहते हैं या नहीं?”
“रकम कम करो। मैं चार मिलियन से ज्यादा नहीं दे सकता। सोचो और कल मुझे फोन करना।” इतना कहने के साथ ही जगवामा ने फोन बंद किया और सिटवी से बोला –“सबको बुलाओ। कल बारह बजे तक सब यहां हो। हम इस शहर में मौजूद गाठम के ठिकाने की तलाश करेंगे।”
सिटवी ने फोन उठाया और तेजी से नम्बर मिलाने लगा।
☐☐☐
जगमोहन को ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो। इस बात से उसका सिर घूम गया था कि वोमाल जगवामा जानता है कि वो बेवू नहीं है, कोई और है उसने यह बात पहले ही जान ली थी, परंतु उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया था। लेकिन जगवामा ये बात सोच रहा था कि बेवू ने, ये सब प्लान किया है। अपने चेहरे जैसा एक आदमी तैयार किया और उसे अपनी जगह छोड़कर, खुद कहीं खिसक गया। जगवामा ऐसा सोच रहा था और उससे जानना चाहता था कि बेवू कहां है?
जगमोहन को एकाएक बड़े खतरे का एहसास होने लगा।
स्पष्ट था कि वोमाल जगवामा उसे छुड़ाने के लिए फिरौती नहीं देने वाला। क्योंकि वो बेवू नहीं है। उसे, उसके हालात पर छोड़ देगा वो। वो नहीं चाहता कि गाठम के लोगों को पता चले कि वो नकली बेवू है। ताकि जगवामा को पर्याप्त वक्त मिल जाए और वो बेवू को तलाश करके, उसे सुरक्षित रख ले। अगर गाठम को पता चल गया कि वो नकली है तो सबसे पहले उसे खत्म करेगा फिर असली बेवू की तलाश शुरू कर देगा। जगमोहन के मस्तिष्क में सोचें दौड़ रही थीं। वो अपने को फंसा हुआ महसूस करने लगा। अब गाठम के लोगों से बचना आसान नहीं था।
जगवामा फिरौती नहीं देगा तो गाठम की गाज उसके सिर पर गिरेगी।
होपिन ने उससे फोन लिया और पूछा।
“तुम जगवामा से कैसी बातें कर रहे थे?”
पास में आदिन, मोक्षी, रत्ना ढली भी मौजूद थे।
“बातें–कैसी बातें?” जगमोहन थोड़ा-सा अपनी सोचों से बाहर निकला।
“तुमने क्या बातें की जगवामा से। जगवामा ने तुमसे क्या कहा?” मोक्षी बोला।
“कुछ नहीं, मेरा हाल-चाल पूछा।”
“तुम दोनों कोडवर्ड के अंदाज में बातें कर रहे थे। तुम्हारे जवाब सुनकर मुझे ये ही लगा।”
“ऐसा कुछ नहीं है।” जगमोहन ने कहा –“मैं और पापा इसी तरह बात करते हैं।”
“तुम।” आदिन बोला –“अचानक ही परेशान लगने लगे हो। जगवामा से बात करते-करते ही तुम परेशान हो गए थे। मैंने तभी ये बात महसूस कर ली थी। क्या कहा तुम्हें जगवामा ने?”
जगमोहन कुछ नहीं बोला। आदिन को देखते रहा। चेहरे पर सोचें उभरी हुई थी।
“बताओ।”
“बेकार की बातें मत करो। मैं और पापा इसी तरह बात करते हैं।” जगमोहन ने कहा –“इस वक्त मुझे तंग मत करो। मैं कुछ सोच रहा हूं। तुम लोग मेरा दिमाग मत खाओ। पापा फिरौती देने वाले हैं न?”
“ये सच नहीं बोलेगा।” आदिन कह उठा।
“मर्जी तुम्हारी बेवू।” रत्ना ढली कह उठा –“हमें तो फिरौती की रकम से मतलब है।”
“गाठम आएगा यहाँ?” जगमोहन ने पूछा।
“गाठम इस तरह मैदान में नहीं आता। उसके पास सैकड़ों आदमी हैं काम करने को।” होपिन ने कहा।
जगमोहन चारों को सोच भरे ढंग से देखने लगा।
“तुम लोग ठीक कह रहे हो कि मैं अचानक ही परेशान हो गया हूं।” एकाएक जगमोहन ने कहा।
“क्यों?”
“पापा ने कुछ ऐसा कहा कि मेरा परेशान होना जरूरी है। शायद वो फिरौती न दें।”
“ये क्या कह रहे हो।” मोक्षी की आंखें सिकुड़ी।
“बस जो मुझे लगा मैंने कह...।”
“गाठम तुम्हें मार देगा अगर जगवामा ने फिरौती ना दी। गाठम रियायत नहीं करता, इन बातों में।”
“जो भी कहो, पापा मेरे लिए गाठम को फिरौती नहीं देंगे।”
“क्या उन्हें अपने बेटे की चिंता नहीं?”
“बहुत चिंता है।”
“तुम्हारी बातें हमें उलझन में डाल रही हैं बेवू।” आदिन ने कहा।
जगमोहन ने चारों को देखा, फिर बोला।
“मुझे एक फोन करने दोगे?”
“बिल्कुल नहीं।”
“किसे फोन करना चाहते हो?”
“मुझे फोन करने दो। शायद इसी में हम सबका फायदा हो।”
“तुम किसी को भी फोन नहीं कर सकते। गाठम की तरफ से इस बात की इजाजत नहीं है हमें।”
“मुझे समझ नहीं आ रहा कि इन हालातों में तुम किससे बात करना चाहते हो?”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा। वो गम्भीर और चिंता में था।
“अब तुम लोग इस बात को भूल जाओ कि वोमाल जगवामा फिरौती देगा –वो...।”
“तुम अपने पापा का नाम ले रहे हो।”
“क्योंकि वो मेरा बाप नहीं है।”
“क्या?” इस बात पर सब चौंके –“तुम उसके बेटे नहीं हो?”
“मैं बेवू नहीं हूं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
चारों हक्के-बक्के से रह गए।
“बकवास मत करो। तुम बेवू ही हो। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो ऐसा कह...।”
“मैं बेवू नहीं, जगमोहन हूं। हिन्दुस्तानी...।”
“हिन्दुस्तानी?” मोक्षी झुंझला उठा –“ये हरामी ऐसा कहकर हमारा दिमाग खराब करना...।”
“जगवामा जानता है कि मैं बेवू नहीं हूं, इसलिए वो फिरौती नहीं देने वाला। पहले तो मैं ये समझ रहा था कि जगवामा मुझे बेवू समझ रहा है। लेकिन मैं भूल में था। वो ज्यादा चालाक निकला। एक नजर में ही वो पहचान गया था कि मैं उसका बेटा नहीं हूं, तभी तुम लोगों ने मेरा अपहरण कर लिया। मेरी बात पर विश्वास नहीं तो मेरे चेहरे पर हुई पड़ी प्लास्टिक सर्जरी उतरवाकर देख लो। एक्सपर्ट को बुलाओ जो मेरा चेहरा साफ कर सके।”
आदिन, होपिन, मोक्षी, रत्ना ढली की नजरें मिलीं।
“कुछ समझे ये क्या कह रहा है?” मोक्षी दांत भींचकर बोला।
“तुम जानते हो कि जब गाठम को ये पता चलेगा कि तुम बेवू नहीं हो तो वो तुम्हें मारने के ऑर्डर दे देगा।”
“वो मुझे नहीं मार सकता।” जगमोहन गम्भीर अंदाज में मुस्कराया –“क्योंकि बेवू मेरे पास कैद में है।”
चारों हैरान-से उछल पड़े।
“बेवू तुम्हारे पास है और तुम बेवू नहीं हो।” होपिन अजीब-से स्वर में कह उठा।
“सही समझे।”
“बकवास करता है ये। ये ही बेवू है। पता नहीं ऐसा क्यों कह रहा है।” रत्ना ढली गुर्रा उठा।
“सुनने दो।” आदिन अपने को संभालते हुए कह उठा –“शायद ये सच कह रहा है। इसकी आवाज, इसका अंदाज बताता है कि कुछ बात तो जरूर है। तो तुम बेवू नहीं हो।”
“नहीं।”
“प्लास्टिक सर्जरी करके तुमने अपना चेहरा बेवू जैसा बना रखा है।”
“हां।”
“बेवू कहां है?”
“मेरे पास।”
“कहाँ।”
“ये नहीं बताऊंगा। ये बताने का मतलब है मेरी जान चले जाना।”
“तुम बेवू की जगह पर कैसे पहुंच गए?”
“बेवू को अपहरण किया और मैंने उसकी जगह ले ली।”
“कब किया अपहरण?”
“जिस दिन वो शादी में गया था।”
“तब हमारी नजर उस पर थी और तब उसका अपहरण नहीं किया गया था।”
“क्या तुम गोल्डन होटल के भीतर शादी में भी मौजूद थे?”
“नहीं।”
“वहीं, शादी में ही मेरी और बेवू की अदला-बदली हो गई थी।”
“बेवू के साथ जगवामा के गनमैन रहते हैं।”
“मैंने अपने साथियों के साथ, सब कुछ संभाल लिया था। गनमैनों को हवा भी नहीं लगी।”
“मतलब कि वापसी में, बेवू नहीं, तुम थे वैन में?”
“हां।”
“तुमने ऐसा क्यों किया?”
“जरूरी तो नहीं कि तुम्हारी हर बात का जवाब दूं?”
“तुम जगवामा के दुश्मन हो?”
“न दुश्मन, न दोस्त।”
“तुमने अपना नाम जगमोहन बताया?”
“हां।”
“ये हिन्दुस्तानी नाम है।”
“मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं हिन्दुस्तानी हूं।”
“तुम्हारे कितने साथी हैं यहां?”
“नहीं बताऊंगा।”
“बेवू इस वक्त तुम्हारे साथियों के पास है?”
“हां।”
“बेवू को, तुम लोगों ने क्यों उठा लिया? ये तुम्हें बताना पड़ेगा।” आदिन का स्वर कठोर हो गया।
“कोई जानकारी लेनी थी। उस जानकारी के लिए, मुझे ये सब करना पड़ा।”
“तुम हिन्दुस्तानी हो। ऐसे में जगवामा से तुम्हारा क्या वास्ता?”
“जितना बता दिया, वो ही बहुत है।”
“हिंदुस्तान से बर्मा पासपोर्ट पर आए हो या वैसे ही?”
“वैसे ही।”
आदिन ने सबको देखा और गम्भीर स्वर में बोला।
“ये हरामी सच कह रहा है।”
“इसके चेहरे पर हुई प्लास्टिक सर्जरी साफ करवानी होगी।” रत्ना ढली, जगमोहन को घूर रहा था।
“तुमने ये बातें हमें क्यों बताईं?”
“अपने को बचाने के लिए। क्योंकि जगवामा फिरौती की रकम नहीं देगा मुझे छुड़ाने के लिए। वो जानता है कि मैं बेवू नहीं हूं। इसलिए बताना पड़ा कि मैं बेवू नहीं हूं। अब गाठम जो भी फैसला ले, सोच-समझकर ले।”
“गाठम असली बेवू को तुमसे मांगेगा।”
“अब असली बेवू ही, मेरे जिंदा रहने की गारंटी है। तुम क्या समझते हो कि मैं बेवू को गाठम के हवाले कर दूंगा। मैंने ऐसा किया तो बेवू के हाथ में आते ही गाठम मुझे खत्म कर देगा।”
कुछ पलों तक वहां चुप्पी रही।
वे सब एक-दूसरे को देखते रहे।
जगमोहन शांत बैठा, गम्भीर निगाहों से बारी-बारी सबको देख रहा था।
“साहब जी से बात करनी होगी।” आदिन गम्भीर स्वर में कह उठा।
“मैं करता हूं।” रत्ना ढली ने कहा और दूसरे कमरे में चला गया।
“तुमने तो हमें चकराकर रख दिया है।” होपिन ने कहा।
“मैं खुद चक्कर खा रहा हूं कि ये क्या होता जा रहा है। करने कुछ आया था और हो कुछ और ही गया।”
“हिन्दुस्तान में तुम क्या करते हो?”
“मैं किसी बात का जवाब नहीं देने वाला। तुम लोगों से जो बात करनी होगी, मेरे साथी करेंगे।”
“वो कहां हैं?”
“इसी शहर में।”
“वो तुम्हें ढूंढ़ रहे होंगे, है न?”
“नहीं। वो सोच रहे होंगे कि जगवामा फिरौती देकर मुझे छुड़ा लेगा। वो नहीं जानते कि जगवामा पहचान चुका है कि मैं असल बेवू नहीं हूं। अगर ये बात उन्हें पता चल गई होती तो...।”
“तुम्हारे साथी हिन्दुस्तानी हैं या स्थानीय लोग?”
“हिन्दुस्तानी।”
“जगवामा तुमसे फोन पर क्या पूछ रहा था?”
“उसका ख्याल है कि बेवू ने अपना हमशक्ल तैयार किया और उसे अपनी जगह पर छोड़कर खुद चुपचाप खिसक गया। उसे लगता है कि मुझे पता होगा कि बेवू कहां पर मिलेगा।” जगमोहन ने कहा।
होपिन ने मोक्षी और आदिन को देखा।
“ये तो गड़बड़ हो गई।” मोक्षी बोला।
“सब ठीक है।” आदिन ने कहा –“बेवू इसकी कैद में है और ये बात और कोई नहीं जानता।”
तभी रत्ना ढली ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा।
“साहब जी को, सब बातों की खबर दे दी गई है। वो प्लास्टिक सर्जन भेज रहे हैं जो इसकी सर्जरी को हटाएगा।”
“और क्या कहा साहब जी ने?” मोक्षी ने पूछा।
“इतना ही कहा कि पहले उसकी सर्जरी उतारकर देखो कि क्या वो सच में मेकअप में है। साहब जी का कहना है कि इससे हमारी योजना पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि बेवू इसकी कैद में है तो, वो हमें मिल जाएगा।”
“बेवू तुम लोगों को नहीं मिल सकता।” जगमोहन कह उठा –“उसके लिए मुझे आजाद करना होगा।”
“बच्चे।” होपिन कड़वे स्वर में कह उठा –“अभी तुम हमें जानते ही कहां हो। होगा वही जो हम चाहेंगे। जब इस बात का वक्त आएगा, देख लेना। अभी प्लास्टिक सर्जरी हटवाकर तुम्हारा असली चेहरा तो देख लें।”
दो घंटों में ही एक बड़ी-सी वैन में प्लास्टिक सर्जन और उसके दो सहायक आ पहुंचे। वे एक बड़े सूटकेस में अपना सामान भरकर लाए थे और छोटी-सी मशीन को एक सहायक ने हाथ में उठा रखा था। चारों उस प्लास्टिक सर्जन को पहले से ही जानते थे। उन्होंने हाथ मिलाया, हाल-चाल पूछा, उसके बाद प्लास्टिक सर्जन जगमोहन के चेहरे का चेकअप करने लगा। साथ में अपने काम के सवाल भी पूछे जा रहे थे।
जगमोहन हर सवाल का जवाब देता जा रहा था।
प्लास्टिक सर्जन अपने दोनों सहायकों के साथ जगमोहन के चेहरे पर काम करता रहा।
वो चारों दूसरे कमरे में आ चुके थे।
“तुम्हारा क्या खयाल है कि वो सच बोलता है कि उसके चेहरे पर प्लास्टिक सर्जरी है। वो बेवू नहीं है।” होपिन बोला।
“मुझे वो सच ही लगता है। वो चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी हटाने को उत्सुक है।” रत्ना ढली ने कहा।
“सच-झूठ जल्दी ही सामने आ जाएगा।” मोक्षी ने सोच भरे स्वर में कहा।
“कितनी परेशान करने वाली बात है कि हमने बेवू का अपहरण किया और वो कहता है कि वो बेवू नहीं है।”
“वो अपने को हिन्दुस्तानी कहता है नाम जगमोहन बताता है। कहता है उसके और भी साथी हैं और वो सब हिन्दुस्तानी हैं और बेवू उनके पास कैद है। अभी तो हमें ये जानना है कि ये हिन्दुस्तानी लोग बर्मा में क्या कर रहे हैं।”
“वो कुछ खास कर रहे होंगे।”
“क्या वो हिन्दुस्तान के जासूस हैं?”
“हो भी सकते हैं और नहीं भी।”
“ये भी तो सोचो कि उन लोगों की प्लानिंग रही होगी कि बेवू को गायब करके उसकी जगह पर बेवू की शक्ल में अपना आदमी बिठा देना। उन्होंने ऐसा किया और अगले ही दिन हमने उसे बेवू समझकर उसका अपहरण कर लिया। यानी कि वो जो करना चाहते थे, बेवू के हमशक्ल की आड़ में –नहीं कर सके।”
“हिन्दुस्तानियों का वोमाल जगवामा से क्या वास्ता?”
“कुछ तो होगा।”
“सम्भव है कि ये हिन्दुस्तानी, हिन्दुस्तान के किसी संगठन के लोग हों।”
“पहले तो वो बेवू की शक्ल में हमारे सामने बेवू बनकर रहा। वो सोच रहा था कि वोमाल जगवामा उसकी फिरौती देकर उसे छुड़ा लेगा, परंतु जब उसे लगा कि जगवामा उसकी फिरौती नहीं देने वाला तो अपना रहस्य खोल दिया कि वो बेवू नहीं जगमोहन है और बेवू उसके पास ही कैद में है।”
“क्या सच में बेवू उसके पास कैद में होगा। ऐसा तो नहीं कि अपनी जान बचाने के लिए ऐसा बोला उसने।”
“झूठ बोलकर वो ज्यादा देर बचा नहीं रह सकता।”
“कहता है बेवू के बारे में नहीं बताएगा कि वो कहां है।”
“उसका बाप भी बताएगा। अभी हम लोगों को वो जानता ही कहां है।” आदिन खतरनाक स्वर में कह उठा।
☐☐☐
प्लास्टिक सर्जन और दोनों सहायक आठ घंटों तक बिना रुके काम करते रहे। बाहर अंधेरा हो गया था। प्लास्टिक सर्जरी से चेहरे पर चिपका रखे छोटे-छोटे पांच पीस उन्होंने अलग कर दिए थे। अब नीचे से जगमोहन का असली चेहरा निकल आया था जो कि काफी हद तक बेवू से मिल रहा था परंतु स्पष्ट लग रहा था कि वो बेवू नहीं है।
जगमोहन ने शीशे में अपना चेहरा देखा और कह उठा।
“अब ठीक है।”
“परंतु तुम्हारा चेहरा बेवू से काफी मिलता है।” मोक्षी ने कहा।
“हां। बेवू से मिलता है मेरा चेहरा।” जगमोहन ने सिर हिलाया।
“ये अभी भी बदले चेहरे में न हो।” रत्ना ढली बोला –“डॉक्टर, इसके चेहरे को चेक करो कि अभी भी ये दूसरे चेहरे में तो नहीं।”
डॉक्टर पुनः चेक करने लगा।
“ये ही मेरा असली चेहरा है।” जगमोहन ने कहा।
आधे घंटे तक चेहरे की जांच-पड़ताल के बाद डॉक्टर ने कहा।
“अब इसके चेहरे पर कोई मेकअप नहीं है।”
उसके बाद डॉक्टर अपने दोनों सहायकों के साथ, सामान लेकर चला गया। जगमोहन कुर्सी पर बैठा चारों को बारी-बारी देख रहा था । गम्भीर था।
“साहब जी से बात करनी होगी। ये तो बेवू है ही नहीं।” कहकर मोक्षी जेब से फोन निकालता दूसरे कमरे में चला गया।
“शक्ल से तुम हिन्दुस्तानी दिखते हो।” आदिन ने कहा।
“मैं हूं ही हिन्दुस्तानी।”
“तुम लोगों ने बेवू का अपहरण क्यों किया?” रत्ना ढली बोला।
जगमोहन चुप रहा।
“हमें बताने में हर्ज क्या है?”
“ये तुम्हें बताने वाली बात नहीं है।”
“गाठम को इन बातों से क्या लेना-देना।”
“बेवू तुम्हारे पास है?”
“पूरी तरह।”
“क्या पता ये बात तुम खुद को बचाने के लिए झूठ बोल रहे हो।”
“बेवू मेरे पास है। अगर तुम लोगों को बेवू के कहीं पर होने की खबर मिलती है तो समझ लो कि मैं झूठा हूं।”
“तो तुमने बेवू की जगह ले ली। वोमाल जगवामा ने पहचान लिया कि तुम उसके बेटे नहीं हो।”
“ऐसा ही हुआ। परंतु जगवामा ने मुझे एहसास नहीं होने दिया कि ये बात वो जान गया है। क्योंकि उसका खयाल था कि बेवू ने ही ये सारा इंतजाम किया है और खुद कहीं चला गया। अब थोड़ा-थोड़ा मुझे समझ आता है कि जगवामा ने इन चार-पांच दिनों में क्या किया होगा। क्यों वो चुप रहा।”
“क्यों चुप रहा?”
“वोमाल जगवामा ने सोचा कि हर बार की तरह बेवू इस बार भी जंगल की उस बस्ती में लड़की के पास ही गया होगा। जगवामा ने जरूर अपने आदमी उधर भेजे। परंतु वहां बेवू नहीं मिला तो उसने फिर मेरे से बात की। उसने सोचा कि मुझे पता होगा बेवू कहां गया।” जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।
तभी मोक्षी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।
“साहब जी को अजीब-सा लग रहा है कि ये बेवू नहीं कोई और है। वो कल सुबह आएंगे। उनका कहना है कि इसका मुंह खुलवाओ कि असली बेवू कहां है और ये हिन्दुस्तानी लोग जगवामा के साथ किस चक्कर में हैं।”
“साहब जी, गाठम को कहते हो।” जगमोहन ने पूछा –“गाठम आएगा सुबह?”
“वो तो तेरे को सुबह पता चलेगा।” आदिन गुर्रा उठा –“साहब जी ने हरी झंडी दे दी है कि तुम्हारा मुंह खुलवाएं तो अब तुम हमें बताओ कि बेवू कहां है और तुम लोग किस चक्कर में हो।”
“मेरा मुंह मेरी मर्जी के बिना नहीं खुलेगा।” जगमोहन मुस्करा पड़ा।
“बच्चे।” रत्ना ढली ने कड़वे स्वर में कहा –“तू अभी हमें जानता नहीं। हम कहते हैं बोल तो तू बोलेगा, अब नहीं तो दस-बीस मिनट या आधे घंटे में बोलेगा। पर बोलेगा जरूर।”
उसी पल मोक्षी आगे बढ़ा और जगमोहन के सिर के बाल मुट्ठी में पकड़कर, जोरदार घूंसा मारा।
जगमोहन के होंठों से कराह निकली। वो कुर्सी सहित नीचे गिरने लगा कि मोक्षी ने कुर्सी को थाम लिया। जगमोहन के होंठों के कोने से खून की लकीर बह आई थी।
“मजा आया?" मोक्षी दांत भींचे गुर्रा उठा।
जवाब में जगमोहन मुस्कराकर रह गया।
“मजा नहीं आया।” होपिन जगमोहन की तरफ खतरनाक अंदाज में बढ़ा –“मजा आता तो ये मुस्कराता नहीं।” पास पहुंचते ही होपिन ने कुर्सी पर पांव रखकर उसे धक्का दिया। जगमोहन कुर्सी सहित फर्श पर जा लुढ़का तो होपिन पागलों की तरह जगमोहन को ठोकरें मारने लगा। मोक्षी भी शुरू हो गया। जगमोहन की चीखें निकलने लगी।
☐☐☐
सोहन गुप्ता, बेवू के सामने कुर्सी पर बैठा था। भसीन पास में था और अभी-अभी बेवू की जबर्दस्त ठुकाई करके हटा था कि वो मुंह खोल दे, बता दे कि अपने बाप का संगठन उसकी मौत के बाद पाकिस्तान के किन लोगों को बचाने की तैयारी में था। लेकिन बेवू जिद पर अड़ा था कि मुंह नहीं खोलेगा। दिन में ही उसकी ठुकाई की जाती थी। तब वो पीड़ा से चीखता-चिल्लाता, लेकिन बताता कुछ नहीं।
हाथ-पांव बंधे, बेवू फर्श पर लुढ़का गहरी सांसें ले रहा था।
“ये नहीं बताने वाला। इस पर हम अपना वक्त खराब कर रहे हैं।” भसीन बोला।
“ये ऐसी बात नहीं है बेवू कि तुम ठुकाई सहते रहो। मुंह बंद रखो।” सोहन गुप्ता ने कहा।
“उन लोगों ने मुझे पहले ही कह दिया था कि सौदा हो जाने तक उनका नाम गुप्त रहे।” बेवू ने कराह के साथ कहा –“मैं उन लोगों के साथ ‘डील’ कर रहा हूं। ऐसे में वक्त से पहले उसका नाम नहीं बताऊंगा।”
“ये फालतू की जिद है।”
“तुम लोग कौन हो। ये सब क्यों कर रहे हो, क्यों उन लोगों के बारे में जानना चाहते हो?”
“तुम्हें बताना ठीक नहीं होगा।”
“क्यों?”
“क्योंकि हम उस सौदे के विरुद्ध हैं।”
“विरुद्ध हो। क्यों-तुम लोगों को इससे क्या मतलब कि पापा की मौत के बाद मैं संगठन का क्या करता हूं।”
“हमें इस बात से कोई मतलब नहीं कि तुम क्या करते हो।”
“तो?”
सोहन गुप्ता कुछ पल बेवू को देखता रहा। इससे पहले कुछ कहता कि उसका फोन बज उठा। रात का एक बज रहा था। सोहन गुप्ता ने कॉल रिसीव की।
“हैलो।”
“हिन्दुस्तान से सामान (देवराज चौहान) आ गया है।” उधर से आवाज आई।
“गुड। डिलिवरी ले ली?”
“हां। मैं सामान को तुम्हारे पास ला रहा हूं।”
“आ जाओ।” सोहन गुप्ता गम्भीर स्वर में बोला –“कल दोपहर तक ही मेरे पास पहुंच सकोगे।”
“लंच तुम्हारे साथ ही करूंगा।” इसके साथ ही उधर से फोन बंद हो गया।
सोहन गुप्ता ने फोन जेब में रखते भसीन से कहा।
“कल देवराज चौहान आ रहा है।”
“यहां से चलें।” भसीन ने बेवू पर निगाह मारी।
सोहन गुप्ता खड़े होते बेवू से कह उठा।
“कल से तुम्हारे मामले को संभालने कोई और आ रहा है। पता नहीं वो तुम्हारे साथ कैसे पेश आता है। अगर तुम हमें हमारे सवाल का जवाब दे देते हो तो आने वाले बुरे वक्त से बचे रह सकते हो बेवू।”
बेवू ने कुछ नहीं कहा और उसी प्रकार फर्श पर लेटा रहा।
सोहन गुप्ता और भसीन वहां से बाहर निकल गए।
वापस ड्राइंग रूम में पहुंचे। रोशन दो घंटे पहले ही सो चुका था।
“जगमोहन के बारे में अभी तक सुनने को कुछ नहीं मिला कि जगवामा, उसे फिरौती देकर छुड़ा रहा है।”
“इस बारे में हमारे पास कोई खबर नहीं आ रही।” सोहन गुप्ता गम्भीर था।
“जगवामा, बेवू को छुड़ाने में इतनी देर क्यों लगा रहा है, ये समझ में नहीं आता। आज पांचवां दिन है। जगवामा की तरफ से होती कोई हरकत सुनने को नहीं मिली। मोहम्मद रजा मिर्जा कहता है कि वोमाल जगवामा को कोई जल्दी नहीं है कि वो बेवू को छुड़ाए। मिर्जा के हिसाब से वोमाल जगवामा कुछ नहीं कर रहा। सिटवी इन दिनों उसके पास दिन-रात रहता है। मुमरी माहू एक बार उसके पास आया था, एक बार केली आया था, परंतु हलचल कोई नहीं दिख रही। जबकि जगवामा को चाहिए था कि बेवू को छुड़ाने के लिए अपनी ताकत लगा देता। गाठम को फिरौती देता और...।”
“इसकी एक ही वजह मुझे समझ में आती है कि शायद ऐसा ही हो गया हो।“ भसीन बेहद गम्भीर था।
“क्या?” सोहन गुप्ता ने भसीन को देखा।
“जगवामा को पता चल गया हो कि वो बेवू नहीं है, कोई और है।”
“ये बात जगवामा को कौन बता सकता है।”
“जगवामा ने खुद ही ये बात भांप ली हो जगमोहन से बात करने के बाद, लेकिन किसी वजह से वो खामोश रहा हो। उस वक्त जगमोहन से कुछ नहीं कहा और उसी शाम जगमोहन का अपहरण, गाठम ने कर लिया।”
“तुम्हारा खयाल है कि ऐसा हुआ होगा।”
“मैं सिर्फ अपनी सोच बता रहा हूं कि ऐसा हुआ भी हो सकता है। हमें इस तरफ भी सोचना चाहिए।”
“लेकिन मिर्जा कहता है कि गाठम की तरफ से जगवामा को फोन आ रहे हैं। उनमें सौदेबाजी चल रही है। गाठम ज्यादा पैसे मांगता है। उस रकम को जगवामा मान नहीं रहा।” सोहन गुप्ता ने कहा।
“ये भी सम्भव है कि अगले दो-तीन दिन में जगवामा और गाठम की बात बन जाए।” भसीन ने कहा –“परंतु जगवामा के मन में क्या चल रहा है, ये बात मिर्जा तो हमें नहीं बता सकता। वो सुनी और महसूस की बातें ही हमें बता सकता है। एक चक्कर जगवामा के पास केली का लगा, तो एक चक्कर मुमरी माहू का लगा। ये सामान्य-सी बात है। कह नहीं सकता कि क्या होने वाला है, क्योंकि जगवामा अपने बेटे को वापस पाने के लिए पांच दिन का इंतजार नहीं करता।”
“गाठम से सौदेबाजी नहीं करता, पर ये हो रहा है, जो कि अजीब बात है।”
“तुम्हारा मतलब कि जगवामा जानबूझकर देरी कर रहा है।”
“सम्भव है।”
“क्यों करेगा वो ऐसा? वो अपने बेटे को चाहता है।”
“फिर वो ही बात आती है जो मैंने कही कि कहीं वो पहचान न गया हो कि जिसका अपहरण हुआ, वो उसका बेटा नहीं है।”
“अगर तुम्हारा खयाल सच हो जाता है तो ये बात जगमोहन के लिए खतरनाक हो सकती है। पहले तो मैं सोचता था कि गाठम फिरौती लेने के बाद जगमोहन की जान ले लेगा। शायद उसमें बचाव हो जाता, लेकिन तुम्हारी बात सही निकली कि जगवामा जान चुका है कि वो बेवू नहीं तो जगमोहन मरा ही मरा। गाठम उसे मार देगा। क्योंकि जगवामा की तरफ से उसे छुड़ाने में उत्साह नजर नहीं आ रहा।” सोहन गुप्ता बेचैन हो उठा।
“जगमोहन के लिए खतरा बढ़ चुका है।”
“कल देवराज चौहान यहां पहुंच जाएगा।”
“क्या पता वो कितना काबिल है।”
“मार्शल कहता है कि वो काबिल है। हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर है और जगमोहन को बचाने के लिए वो कुछ भी कर सकता है। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि इन हालातों में वो क्या कर पाएगा। हमारे एजेंटों को ये खबर नहीं मिल रही कि गाठम ने जगमोहन को कहां रखा हुआ है। इसी शहर में है या पूर्व के जंगलों में ले गया है उसे? गाठम के कब्जे से जगमोहन को निकाल पाना आसान नहीं। देवराज चौहान भी एक हद तक ही कुछ कर पाएगा। जगवामा का समझ नहीं आ रहा कि वो क्या करना चाहता है। पहले तो हमने सोचा था कि जगवामा दो दिन में बेवू (जगमोहन) को छुड़ा लेगा। लेकिन पांच दिन बीत जाने पर भी जगवामा की तरफ से कुछ नहीं हुआ।”
“क्या पता जगवामा के आदमी खामोशी से जगमोहन को ढूंढ रहे हो। गाठम के ठिकाने को...।”
“जगवामा इतना बड़ा रिस्क नहीं लेगा। क्योंकि ऐसे में गाठम गुस्से में उसके बेटे को (जगमोहन) मार भी सकता है। जगवामा हर हाल में चाहेगा कि बेवू सही-सलामत घर लौट आए।” सोहन गुप्ता ने कहा।
“मुझे तो लगता है कि हम हालातों को समझ नहीं पा रहे । जगवामा जरूर कुछ कर रहा होगा। वो चुप नहीं बैठेगा। हो सकता है किसी भी समय हमें ये खबर मिल जाए कि जगमोहन वापस इस्टेट पहुंच गया है।”
“तुम कभी कुछ कहते हो तो कभी कुछ। तुम्हारे विचार स्थिर नहीं है।” सोहन गुप्ता बोला।
“क्योंकि हमें हालातों की ठीक से खबर नहीं मिल रही।” भसीन गहरी सांस लेकर कह उठा –“हमारे पास आगे बढ़ने को रास्ता नहीं है। न जगमोहन का पता है न ये पता है कि जगवामा और गाठम के बीच क्या बात चल रही है। मुझे नहीं लगता कि देवराज चौहान कुछ कर पाएगा इस मामले में।
☐☐☐
आधी रात हो चुकी थी। जगवामा इस्टेट में सन्नाटा उभरा हुआ था। गनमैन हमेशा की तरह अपनी चौकसी पर थे। रात की ड्यूटी के नौकर जाग रहे थे। रोज की तरह सब काम चल रहा था।
अपने कमरे में वोमाल जगवामा बेड पर लेटा, आंखें खोले, सोचों में डूबा हुआ था। उसकी आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। सोचों के दौरान गर्दन घुमाकर कमरे में नजरें दौड़ाने लगा। सिटवी सामने ही लम्बे सोफे पर लेटा हुआ था, नींद में था। वोमाल जगवामा कुछ पल सिटवी को देखता रहा फिर बड़बड़ा उठा।
“कितनी गहरी नींद में है और मुझे नींद नहीं आ रही।”
जगवामा ने बेड की पुश्त पर लगी बेल को हाथ से टटोला और बटन दबा दिया। उसके लिए, रात की ड्यूटी पर तीन आदमी बगल के कमरे में मौजूद रहते थे। बेल वहीं बजती थी।
चंद पल बीते कि दो आदमियों ने तेजी से भीतर प्रवेश किया। जगवामा के पास पहुंचे।
“हुक्म सर।” एक कह उठा।
“मुझे बिठाओ।” जगवामा बोला।
“जी।” कहने के साथ ही उसने जगवामा को संभालकर दोनों बांहों के सहारे उठाया।
दूसरे ने तकिये पुश्त पर इस तरह लगाए कि जगवामा की पीठ को सहारा मिल सके। जब वो पीछे हटा तो पहले वाले नौकर ने जगवामा को बैठने की मुद्रा में रख दिया।
“ठीक है सर?” उसने बिठाने के बाद पूछा।
“बाईं तरफ एक तकिया कुल्हे के नीचे फंसा दो।”
उसने ऐसा ही किया।
“लोएस से कहो कि मेरे लिए कॉफी बना दे। आज नींद नहीं आ रही।”
“जी सर।” उसने सिर हिलाया और कमरे से बाहर निकल गया।
“मुझे पानी दो।” जगवामा ने दूसरे नौकर से कहा।
जगवामा ने पानी पीया और नौकर को चले जाने के कहा तो वो चला गया।
जगवामा के चेहरे पर गम्भीर भाव, इस बात को स्पष्ट कर रहे थे कि वो उलझनों में घिरा हुआ है। रह-रहकर अपने हाथ को चेहरे पर फिराने लगता उसकी नींद उड़ी हुई थी।
कुछ देर में लोएस कॉफी ले आया। पहले वाला नौकर उसके साथ ही था।
“कैसे हो लोएस?” कॉफी का प्याला थामते, जगवामा ने पूछा।
“ज्यादा अच्छा नहीं हूं सर।” लोएस बोला।
“क्यों?”
“छोटे सर का इंतजार रहता है।”
“फिक्र मत करो, मैं बेवू को वापस ले आने का ही इंतजाम कर रहा हूं।” जगवामा ने सिर हिलाया।
“कब तक आ जाएंगे छोटे सर।” लोएस ने पूछा।
“जल्दी ही।”
“वो ठीक तो हैं न?”
“बेवू ठीक है। तुम इतनी ज्यादा चिंता मत करो।” जगवामा ने कहकर कॉफी का घूंट भरा –“कॉफी अच्छी बनी । तुम जाओ।”
लोएस चला गया।
“तुम भी जाओ। दस मिनट बाद आकर कॉफी का प्याला ले जाना।” जगवामा ने दूसरे नौकर से कहा।
वो भी चला गया। जगवामा ने छोटे-छोटे घूंट लेते तसल्ली भरे अंदाज में कॉफी समाप्त की कि तभी नौकर आ गया कॉफी का प्याला लेने। जगवामा ने उसे कप-प्लेट दिया और बोला।
“वो सामने, उधर ड्राअर में सिगरेट का पैकेट और लाइटर है। वो लेकर आओ।”
“जी। लेकिन आपको सिगरेट मना है।”
“ले आओ।” जगवामा शांत स्वर में बोला।
नौकर पैकेट, लाइटर लाया।
जगवामा ने सिगरेट सुलगाई और दोनों चीजें उसे वापस दे दीं। नौकर ने उन्हें वापस ड्राअर में रखा और कप-प्लेट लेकर चला गया। जगवामा सोच में डूबे छोटे-छोटे कश लेने लगा।
सिगरेट का धुआं नींद में डूबे सिटवी की सांसों में गया तो उसका मस्तिष्क जाग्रत हुआ, अगले ही पल उसकी आंखें खुली और उठ बैठा। नींद में आंखें भरी थी। उसने जगवामा को कश लेते देखा तो वो उठा और जगवामा के बेड के पास आ गया। जगवामा की नजर भी उस पर टिक गई थी।
“सिगरेट पीना आपके लिए ठीक नहीं।” सिटवी आंखें मलता कह उठा।
जगवामा ने कुछ नहीं कहा।
“मैं शायद गहरी नींद में था। तभी मुझे पता नहीं चल पाया कि आप कब बैठे।”
“मुझे नींद नहीं आ रही।”
“मैं समझता हूं सर । बेवू सर की गुमशुदगी ने आपको चिंता में डाल रखा है।” सिटवी बोला –“समझ में नहीं आता कि बेवू सर कहां पर हैं। वो पूर्व के जंगलों में उस लड़की के पास भी नहीं पहुंचे।”
“वो बेवू की जानकारी जरूर रखता होगा, जो उसका चेहरा अपनाकर यहां आया। बेवू ने ही उसे अपनी जगह पर बिठाया कि उसके चले जाने पर, मैं उसकी तलाश न करूं। पर वो बेवू के बारे में नहीं बता रहा कि वो किधर है।”
“आप उसे फिरौती देकर हासिल करें और तब पूछे कि...।”
“चिकी को चार मिलियन डॉलर की ऑफर दी है।”
“और वो अठारह कहता है।” सिटवी ने सोच भरे स्वर में कहा –“अगर बात बेवू सर की होती तो हम बीस मिलियन डॉलर भी गाठम को दे देते। अब ये बात चिकी से कह नहीं सकते। ये जानकर कि उसके पास बेवू नहीं, कोई और है, वो उसकी जान भी ले सकते हैं। हमें बहुत सोच-समझकर चलना होगा।”
“मुझे न तो गाठम की परवाह है, न उस नकली बेवू की।”
“वो हमें बता सकता है सर कि बेवू सर कहां पर...।”
“बेवू की तलाश अब हमारे आदमी करेंगे। गाठम को मेरे रास्ते में नहीं आना चाहिए था। उसने बेवू का अपहरण करके गलत किया। कल सब आ रहे हैं। कल की मीटिंग, गाठम पर भारी पड़ेगी।”
सिटवी कुछ परेशान दिखा।
“अब गाठम की वजह से खामख्वाह का झगड़ा शुरू होने वाला है।” सिटवी ने गहरी सांस ली।
“शुरुआत गाठम ने की है।” वोमाल जगवामा सर्द स्वर में बोला –“अब जो होगा, उसका जिम्मेवार गाठम ही है।”
“गाठम से झगड़ा शुरू हो गया तो हमें अपने बाकी के काम रोकने पड़ेंगे। गाठम चुप रहने वाला बंदा नहीं है वो भी खुलकर सामने आ जाएगा। मेरे खयाल में झगड़ा बढ़ सकता है।”
“अब गाठम से झगड़ा करना जरूरी हो गया है सिटवी। तुम भी सारे हालात देख ही रहे हो। मैं चुप नहीं रह सकता। गाठम ने मेरे बेटे पर हाथ डालने की कोशिश की है। सब देख रहे हैं और इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि वोमाल जगवामा अब क्या करता है। अगर मैं गाठम के मामले में कुछ नहीं करूंगा तो, सब यही समझेंगे कि वोमाल जगवामा बूढ़ा हो गया है। बीमार है। उसके बस का कुछ नहीं रहा और मेरे से डरना बंद कर देंगे। हमारा धंधा तब चलता है जब हम दूसरों के दिलों में खौफ पैदा करें। लोग डरते रहें और हमारा काम चलता...।”
जगवामा के शब्द अधूरे रह गए।
तभी जगवामा का फोन बजने लगा था।
“ये गाठम के आदमियों का ही काम है। वो अक्सर रात को इसी वक्त फोन करते हैं।” जगवामा के दांत भिंच गए।
सिटवी ने तुरंत आगे बढ़कर फोन उठाया। स्क्रीन पर आया नम्बर देखा।
“हां सर। ये उसी नम्बर से आया फोन है।”
“मुझे दो।”
जगवामा ने फोन लिया और खत्म हो चुकी सिगरेट का टुकड़ा सिटवी को थमा दिया।
“हैलो।” जगवामा ने बेहद शांत स्वर में बात की।
“मैं चिकी...।” उधर से होपिन का स्वर आया –“हम इस मामले को निबटा देना चाहते हैं।”
“मैं भी निबटाना चाहता हूं। तीन मिलियन डॉलर में...।”
“कल तो तुम चार कह रहे थे जगवामा।”
“अच्छा। मुझे ध्यान नहीं रहा। चार मिलियन डॉलर ही सही। लेन-देन का वक्त बताओ।”
“अठारह मिलियन डॉलर में सौदा होगा जगवामा।” उधर से होपिन ने कठोर स्वर में कहा –“तुम बहुत वक्त गवां रहे हो। अब तक तुम्हें फिरौती देकर बेवू को ले लेना चाहिए था। गाठम नाराज हो रहा है कि तुम देर कर रहे हो।”
“अठारह मिलियन मैं नहीं दे सकता।”
“अपने बेटे के लिए तुम ऐसा कह रहे...।”
“आजकल धंधा ढीला चल रहा है। पहले वाली कमाई नहीं रही। चार मिलियन कल ले लो।”
“तो तुम्हें अपने बेटे की चिंता नहीं।”
“इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है देने को। गाठम को चाहिए कि चार मिलियन डॉलर पर मान...।”
“तुम्हारे पास बहुत पैसा है जगवामा। इतना कि तुम्हें खुद भी पता नहीं कितना...।”
“बोला तो, धंधा पहले जैसा नहीं रहा।”
“तो बेवू को मार दें?” इस बार होपिन के स्वर में दरिंदगी भर आई थी।
“चार मिलियन में सौदा नहीं करना चाहते तो बेशक बेवू को मार दो।” जगवामा ने बेहद शांत स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया। चेहरे पर कठोरता नजर आ रही थी।
सिटवी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। खामोशी से खड़ा रहा।
“वो उसे मार देंगे।” आखिरकार सिटवी ही बोला –“तब हमें पता नहीं चलेगा कि बेवू सर कहां हैं।”
“चार मिलियन डॉलर कम नहीं होते सिटवी। वो उसे नहीं मारेंगे। देर-सबेर में सौदा तय करने के लिए उनका फोन आएगा।”
“दूसरी तरफ गाठम है सर। अपहरण के धंधे का बेताज बादशाह। क्या पता अब वो क्या कर दे।”
“गाठम चार मिलियन को कभी भी नहीं गंवाना चाहेगा।”
“पर वो ये तो सोचेगा कि आपने अपने बेटे को ही मारने के लिए क्यों कह...।”
“अंत में इसी नतीजे पर पहुंचेगा कि जगवामा पागल हो गया है। पैसा नहीं देना चाहता। मैं नहीं परवाह करता कि गाठम इस बारे में क्या सोचता है। उसके पास मेरा बेटा नहीं है। फिर भी मैं चार मिलियन डॉलर देने को तैयार हूं। इससे ज्यादा मैं कर भी क्या सकता हूं। अब गाठम इस सच्चाई को नहीं जानता तो मैं क्या करूं।” जगवामा ने गहरी सांस लेकर कहा और मोबाइल सिटवी की तरफ बढ़ाया।
सिटवी ने फोन लेकर वापस रखा।
“अब बहुत कुछ होने वाला है सर।” सिटवी ने सोच भरे स्वर में कहा।
“मैं गाठम से नहीं डरता। मेरे पास ताकत है, हथियार है, पैसा है, आदमी है। गाठम हार जाएगा।”
“गाठम के पास हमारे जितनी ताकत नहीं है। फिर वो यहां आकर हमारा मुकाबला करेगा तो उसकी ताकत और कम हो जाएगी।” सिटवी ने सिर हिलाया –“आप ठीक कहते हैं कि गाठम हार जाएगा।”
इसी पल सिटवी का फोन बजने लगा।
सिटवी ने फोन निकालकर देखा फिर जगवामा से कह उठा।
“घर से फोन है सर। इतनी रात को।” फिर सिटवी ने फोन पर बात की –“हैलो मुशी।”
“आप कहां हैं?” सिटवी की पत्नी मुशी का परेशान स्वर कानों में पड़ा।
“सर के पास –बात क्या है?”
“रोही की दो दिन से तबीयत खराब है। कॉलेज भी नहीं जा रही। आज उसका बुखार बहुत ज्यादा बढ़...।”
“तुम फिक्र मत करो मुशी। तुम्हें पहले ही फोन कर देना चाहिए था।” सिटवी ने कहा।
“डॉक्टर को दिखाया मैंने पर रोही की हालत ठीक नहीं हो रही आप घर आ जाइए और...।”
“क्या बात है।” वोमाल जगवामा कह उठा।
“बेटी को बुखार आया हुआ है। तबीयत ठीक नहीं...।”
“तुम घर चले जाओ। पर कल साढ़े ग्यारह बजे तक मेरे पास पहुंच जाना। डॉक्टर को फोन कर दो, ताकि जब तुम घर पहुंची तो डॉक्टर भी पहुंचा हो। ठीक समझो तो बेटी को नर्सिंग होम ले जाना।” जगवामा ने कहा।
“ठीक है सर।” फिर सिटवी फोन पर बोला –“मैं आ रहा हूं मुशी। डॉक्टर भी आ जाएगा। तुम चिंता मत करो।”
☐☐☐
“जगमोहन का कहना ठीक है कि जगवामा को पता है कि वो बेवू नहीं है।” होपिन फोन बंद करते ही कह उठा –“कहता है चार मिलियन डॉलर देगा। सौदा करना है तो ठीक, नहीं तो बेवू की जान ले लो।”
“तो उसे पता है कि गाठम ने नकली बेवू का अपहरण किया है। तभी वो चुपचाप बैठा है।” मोक्षी ने गहरी सांस ली।
“परंतु वो नहीं जानता कि असली बेवू कहां है। ये बात वो जगमोहन से पूछ रहा था। जबकि जगमोहन का कहना है कि बेवू उसके साथियों की कैद में है और कहां है, ये बताने को तैयार नहीं।” आदिन बोला।
“हमने।” रत्ना ढली ने कहा –“जगवामा पर कंट्रोल करना था और वो अब हमारी पकड़ से बाहर जाने लगा है।”
“वो हमारी पकड़ से बाहर नहीं हो सकता।” मोक्षी कह उठा –“कल रात समंदर किनारे जगवामा के हथियार पहुंच रहे हैं। हमने उन हथियारों को गाठम के नाम पर लूट लेना है और उसके बाद जगवामा की प्रतिक्रिया ये होगी कि वो गाठम के ठिकाने पर हमला बोलेगा और उसके आदमियों को मार देगा। जबकि ये काम भी हम करेंगे। उधर गाठम अपने आदमियों की मौत देखकर खुले में आएगा और जगवामा से उसका आमने-सामने पंगा हो जाएगा। तब हमने खामोशी से एक तरफ खड़े हो जाना है और जगवामा-गाठम के झगड़े पर नजर रखनी है।”
“कुछ कह नहीं सकते कि क्या होगा। क्या पता गाठम इस मामले को कैसे देखता है।” रत्ना ढली ने कहा।
“गाठम इस मामले को वैसे ही देखेगा, जैसे हम दिखाना चाहते हैं और उधर जगवामा बेशक ये जानता है कि गाठम ने असली बेवू नहीं, नकली बेवू का अपहरण किया है, परंतु वो ये जरूर सोच रहा होगा कि गाठम ने उस पर हाथ डाला है। ऐसे में जगवामा गाठम को लेकर भीतर ही भीतर सुलग रहा होगा। अब तक तो गाठम इस बात की परवाह नहीं कर रहा कि उसके नाम पर किसी ने बेवू का अपहरण किया है, लेकिन जब उसके ठिकाने पर हमला होगा। उसके आदमी मारे जाएंगे तो वो परवाह करेगा। वो जरूर इस वक्त भी इस मामले पर निगाह रखे हुए है।” आदिन ने कहा।
“हम अपने मकसद में सफल रहेंगे।”
रत्ना ढली ने नीचे पड़े जगमोहन को देखा जो कि बेहोश था और बुरे हाल में दिख रहा था। उसके चेहरे पर खून के निशान नजर आ रहे थे। कपड़े फट चुके थे। स्पष्ट था कि जमकर उसकी धुनाई की गई है।
“ये जगमोहन।” रत्ना ढली ने कहा –“बहुत सख्त जान है। मुंह नहीं खोलने वाला। जितनी ठुकाई इसकी की है, उसकी एक तिहाई भी अगर किसी और की, की होती तो वो अपनी जिंदगी की हर बात बता देता।”
“कल साहब जी आ रहे हैं यहां। आगे जो भी करना है, साहब जी ही फैसला करेंगे।”
“ये भी सोचने वाली बात है कि ये हिन्दुस्तानी लोग यहां किस चक्कर में हैं?”
“पता नहीं ये वहां के किसी संगठन से वास्ता रखते हैं या वहां की सरकार किसी चक्कर में है।”
“जो भी हो इस जगमोहन को अपना मुंह खोलना ही होगा। ये हमारे सामने चुप नहीं रह सकता।”
☐☐☐
जगमोहन के होंठों से कराह निकली। शरीर हिला अगले ही पल उसके मस्तिष्क को इस बात के संकेत मिले कि उसके हाथ-पांव बंधे हुए हैं। एकाएक शरीर से उठने वाली पीड़ा का एहसास हुआ। होंठों से पुनः कराह निकली। पलकें कांपने लगी। पीड़ा का एहसास बढ़ने लगा। कुछ पलों बाद इस स्थिति से बाहर आया और आंखें खोल दीं। चंद पलों तक उसे कुछ स्पष्ट नहीं दिखा फिर दिखने लगा। जगमोहन ने सामने कुर्सी पर बैठे रत्ना ढली को देखा।
जगमोहन के होंठों पर सूखी पपड़ी जमी महसूस हो रही थी। चेहरे पर जमे खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे। एक आंख थोड़ी सी सूजी लग रही थी। फटी कमीज से झलकती पीठ पर भी सूख चुके खून का निशान दिखाई दे रहा था। वहां जमकर ठोकरें मारी गई थीं। उसके शरीर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं था जहां से दर्द की लहरें न उठ रही हों। उसकी हालत खस्ता नजर आ रही थी। कमरे की खिड़की के बाहर धूप निकली हुई थी।
“पानी।” जगमोहन के होंठों से निकला।
रत्ना ढली उठा और पानी की बोतल उठाकर उसके मुंह में पानी डाला। गला गीला होते पाकर जगमोहन की जान में जान आई। उसने कुछ गहरी सांसें लीं। रत्ना ढली वापस कुर्सी पर बैठता बोला।
“ये तो अभी शुरुआत है। हम तुम्हारी ऐसी हालत कर देंगे कि पानी मांगने के भी काबिल न रहो। मुंह बंद रखकर तुम बच नहीं सकते। ये बात तुम्हें समझ में आ जानी चाहिए कि हमसे सहयोग करने में ही तुम्हारा फायदा है। वरना अगले दो दिन में तुम ऐसी हालत में पहुंच जाओंगे कि बोल भी नहीं सकोगे।”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“मेरी बात समझ में आई कि नहीं?” रत्ना ढली ने कड़वे स्वर में पुनः कहा।
“तुम्हें मेरी बात समझ लेनी चाहिए।” जगमोहन धीमे स्वर में बोला।
“क्या?”
“मुझे एक कॉल करने दो। मैं अपने लोगों से डिस्कस करूंगा और उसके बाद ही तुम लोगों से शायद कुछ कह सकूं।”
“नहीं। तुम्हें कॉल करने का मौका नहीं दिया जाएगा।”
“तब तो तुम लोग मेरे से कुछ नहीं जान सकते।” जगमोहन ने पीड़ा भरी सांस ली।
“तुम बोलोगे। अभी बोलोगे और...।”
तभी होपिन ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।
“होश आ गया इसे।”
“आ तो गया।” रत्ना ढली गुर्राया –“पर अब फिर बेहोश होने की तैयारी में है।”
“मतलब कि मुंह खोलने को तैयार नहीं।”
“कहता है पहले इसे कॉल करने दो। अपने साथियों से बात करेगा। इस हरामी को तो...।”
“अभी इसे कुछ मत कहो। साहब जी का फोन आया है। वो कुछ ही देर में आ रहे हैं। साहब जी इससे बात करेंगे।”
“साहब जी कहेंगे कि हम इसका मुंह नहीं खुलवा सके।” रत्ना ढली उखड़ा।
“हम अपना काम बढ़िया ढंग से कर रहे हैं। साहब जी को कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए।”
“जगवामा की कोई खबर?”
“अभी तो कुछ नहीं।”
“साला आराम से बैठा है कि उसके बेटे का अपहरण नहीं हुआ, वो कहीं चला गया है।” रत्ना ढली ने दांत भींचकर कहा –“पर आज उसका आराम खत्म हो जाएगा। रात को गाठम के नाम पर हम उसके हथियार लूटने वाले हैं तब...।”
“चुप रहो।” होपिन फौरन कह उठा।
जगमोहन की आंखें सिकुड़ चुकी थी रत्ना ढली की बात सुनकर।
“क्या कहा, तुम लोग गाठम के नाम पर, जगवामा के हथियार लूटने वाले हो। गाठम के नाम पर, इसका क्या मतलब हुआ। क्या तुम लोग गाठम के लोग नहीं हो।” जगमोहन कह उठा।
रत्ना ढली और होपिन की नजरें मिली।
“कौन हो तुम लोग?” जगमोहन ने पुनः कहा।
“हम गाठम के ही लोग हैं।” होपिन ने जगमोहन को घूरा –“जगवामा के हथियार हम गाठम के नाम पर ही तो लूटेंगे क्योंकि हम गाठम के आदमी हैं। गाठम खुद थोड़े न ये काम करेगा।”
“तुम बात को घुमा रहे हो। इसके कहने का मतलब ये नहीं था।” जगमोहन ने तेज स्वर में कहा।
“हमारे कहने का क्या मतलब था, तेरे को सफाई देने की जरूरत नहीं है। समझा न, तू अपनी खैर मना।”
जगमोहन कई क्षणों तक दोनों को देखता रहा।
“मुझे भूख लगी है।” जगमोहन ने कहा।
“इसे खाने को कुछ ला दे।” रत्ना ढली ने होपिन से कहा।
होपिन बाहर निकल गया।
“मेरे हाथ खोलो।”
रत्ना ढली की कठोर निगाह जगमोहन पर टिकी रही।
“तुम क्या कह रहे थे जगवामा के हथियारों को लेकर...क्या मतलब था तुम्हारा?”
“तुमसे हमें सिर्फ दो सवालों का जवाब चाहिए।” रत्ना ढली ने सख्त स्वर में कहा –“पहला सवाल तो ये कि असल में तुम कौन हो और जगवामा से क्या चाहते हो। दूसरा सवाल है कि बेवू कहां पर है।”
“मैंने तुम्हारी बातों का जवाब दे दिया तो फिर तुम लोगों को मेरी जरूरत ही नहीं रहेगी। तब तुम मेरे साथ कुछ भी कर सकते हो। मेरी हत्या कर सकते हो कि मेरा मुंह बंद रहे।”
“गलत मत सोचो। तुम जिंदा रहोगे।”
“तुम भी गलत मत सोचो, मैं कुछ भी नहीं बताने वाला।”
रत्ना ढली के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी।
“तुम लोग साहब जी किसे कहते हो?”
“साहब जी को।” रत्ना ढली कह उठा।
“गाठम को साहब जी कहते हो?”
रत्ना ढली पुनः मुस्कराया।
“या तुम लोग किसी और के लिए काम करते हो। गाठम से तुम लोगों का कोई लेना-देना नहीं?”
“तेरा दिमाग बहुत दौड़ता है।”
“मेरी बात का जवाब क्यों नहीं देते?”
“साहब जी आने वाले हैं जो पूछना है उन्हीं से पूछना।” रत्ना ढली ने कहा और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
“मेरे हाथ खोलो।”
रत्ना ढली ने जगमोहन के हाथ खोल दिए।
जगमोहन के शरीर का एक-एक हिस्सा दर्द कर रहा था।
“मेरे जख्मों पर दवा तो लगा दो, बहुत दर्द...।”
“क्या करोगे दवा लगाकर। मेरा ख्याल है कि साहब जी तुम्हें खत्म करने को कहेंगे।"
तभी होपिन ने खाने का सामान और पानी के साथ भीतर प्रवेश किया।
“इसे समझाओ कि मुंह खोल दे, नहीं तो इसके साथ आज कुछ भी हो सकता है।” रत्ना ढली ने होपिन से कहा।
होपिन जगमोहन को अच्छा-बुरा समझाने लगा।
जगमोहन खाना खाता रहा।
☐☐☐
उस वक्त दोपहर के 12.30 बज रहे थे जब कॉलबेल बजी।
मोक्षी, आदिन रत्ना ढली और होपिन की नजरें मिलीं।
“साहब जी आए होंगे।” आदिन उठते हुए बोला और दरवाजे की तरफ बढ़ा। इस दौरान उसने जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर हाथ रख लिया कि जरूरत पड़ने पर फौरन निकल सके। दरवाजा खोला।
सामने शहर का पुलिस चीफ जामास खड़ा था सादे कपड़ों में। उसके प्रभावशाली चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। वो भीतर आया तो मोक्षी ने फौरन दरवाजा बंद कर लिया।
“नमस्कार साहब जी।"
जामास ने सिर हिलाया।
तब तक बाकी सब भी पास आ गए।
“अच्छा हुआ साहब जी, जो आप आ गए।” होपिन ने कहा।
“आना पड़ा। क्योंकि मामला कुछ टेढ़ा हो गया है कि जिसका अपहरण किया वो बेवू नहीं, कोई और निकला।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहा –“तो उसने अपने बारे में मुंह नहीं खोला।”
“नहीं। कहता है कुछ नहीं बताएगा। किसी को फोन करने को कह रहा है।” होपिन ने बताया।
“टूटेगा वो?”
“लगता नहीं। मेरे खयाल में वो मुंह खोलने में काफी वक्त लेगा।” रत्ना ढली बोला।
“हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। आज रात जगवामा के हथियार समंदर किनारे पहुंचने वाले हैं। हथियार काफी मात्रा में हैं। तीन सौ ए.के. 47 हैं। इतनी ही ए.के. 56 और लाइट मशीनगनें हैं। ये हथियार एशिया सहित कई देशों से खरीदकर इकट्ठे किए गए हैं। ये काम डिसूजा नाम के आदमी ने किया है। डिसूजा से जगवामा हथियार खरीदता है और ऊंचे दामों पर पाकिस्तान और अरब देशों में बेच देता है। आज रात के लिए तुम लोग तैयार रहना। मैंने वो जवान चुन रखे हैं जो इस ऑपरेशन पर काम करेंगे। वो सब पुलिस वाले मेरे वफादार हैं। बीस के करीब हैं वो। रात समंदर किनारे भी काफी लोग होंगे। डिसूजा के साथ भी कुछ लोग होंगे और जगवामा की तरफ से केली ने डिसूजा से तट पर डिलीवरी लेने जाना है। तब केली के साथ भी काफी लोग होंगे। उन सबको मार देना है। केली को तो बिल्कुल नहीं छोड़ना। केली की मौत से जगवामा को बहुत तकलीफ होगी। वो जगवामा का पुराना आदमी है। दो-तीन लोगों को छोड़ देना, ताकि जगवामा तक ये बात पहुंच सके कि ये काम करने वाले गाठम के लोग थे। काम के दौरान चिकी का नाम लिया जाएगा। ताकि उन लोगों को पता चल जाए कि हथियार लूटने का काम गाठम ने किया है।”
“हम बढ़िया ढंग से काम करेंगे साहब जी।” मोक्षी ने कहा।
“उसके बाद आधी रात को गाठम के ठिकाने पर हमला बोलोगे। वो इस शहर में एकमात्र ऐसा ठिकाना है गाठम का, जिसके बारे में पुलिस को पता है। वहां इस तरह काम करना है कि उन लोगों को लगे कि जगवामा उनसे हथियार लूटने का बदला ले रहा है। वहां भी एक-दो लोगों को जिंदा छोड़ देना कि वो गाठम को बता सकें कि हमला जगवामा ने किया है।”
“गाठम के ठिकाने पर कितने लोग होंगे?”
“मेरे दो पुलिस वाले वहां नजर रख रहे हैं। वो कहते हैं कि रात को वहां पंद्रह के आस-पास लोग मौजूद रहते हैं।” जामास कह रहा था –“ये दोनों काम करके तुम चारों ने यहां लौट आना है।”
“जगवामा आराम से बैठा है। वो जानता है कि गाठम ने जिसका अपहरण किया, वो बेवू नहीं है।” होपिन ने कहा।
“आज रात के बाद जगवामा का आराम खत्म हो जाएगा। न चाहते हुए भी उसे हरकत में आना पड़ेगा। क्योंकि रात में उसके हथियार लूटे जाएंगे और उसके आदमी उसे बताएंगे कि ये काम गाठम ने किया है उधर उसे ये खबर भी जरूर मिल जाएगी कि गाठम के ठिकाने पर जिन लोगों ने हमला किया, गाठम के लोगों को मारा, वो उसके आदमी थे, जबकि वो जानता होगा कि वो उसके आदमी नहीं थे। ऐसे में गाठम की तरफ से कभी भी बड़ी हरकत हो सकती है। जगवामा परेशान हो जाएगा।”
“गाठम मैदान में आएगा साहब जी?” रत्ना ढली ने पूछा।
“जरूर आएगा। क्योंकि उसके आदमियों पर बिना वजह जगवामा के लोगों ने हमला किया। उन्हें मार डाला। गाठम को सामने आना ही पड़ेगा कि जगवामा से हिसाब बराबर करके अपने आदमियों को दिखा सके कि वो उन्हें चाहता है। बड़े संगठन अधिकतर काम दूसरे को या अपने लोगों को दिखाने के लिए करते हैं। अपना रुतबा कायम रखने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार होते हैं। आज रात के बाद जगवामा और गाठम में जंग छिड़ जाएगी। ये ही तो हम चाहते हैं। ये ही हमारी प्लानिंग रही कि दोनों को किसी तरह आमने-सामने लाया जा सके।”
चारों एक-दूसरे को देखने लगे।
“तुम चारों बेहतरीन पुलिस ऑफिसर हो। अच्छा काम कर रहे हो। ये काम पूरा होने पर तुम चारों को तरक्की मिलेगी।”
“थैंक्यू साहब जी।”
“साहब जी।” आदिन सोच-भरे स्वर में कह उठा –दोनों की लड़ाई में एक तो बच ही जाएगा। उसका क्या करोगे?”
“उसका भी कोई इंतजाम मैं सोच रहा हूं।” पुलिस चीफ जामास ने गम्भीर स्वर में कहा –“आओ उस हिन्दुस्तानी के पास चलते हैं। उससे भी बात करना जरूरी है, क्योंकि हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं रहा। बेवू की जरूरत है हमें। जब तक वो हमारे हाथ नहीं आएगा। बात नहीं बनेगी। जगवामा और गाठम के झगड़े में बेवू का मर जाना भी जरूरी है। ऐसे में हर कोई ये ही सोचेगा कि बेवू गैंगवार में पिसकर मारा गया।”
“आइए साहब जी। जगमोहन दूसरे कमरे में है।”
☐☐☐
जगमोहन की निगाह जामास के चेहरे पर जा टिकी।
जामास ने भी गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा।
रत्ना ढली, आदिन, होपिन, मोक्षी भी वहां मौजूद थे।
“इसका चेहरा काफी हद तक बेवू से मिलता है।” जामास कह उठा।
“तभी तो बेवू बनने में इसे आसानी हुई।” मोक्षी ने कहा।
जामास ने वहां पड़ी कुर्सी खींची और उस पर बैठता कह उठा।
“इसके बंधन खोलने ठीक होंगे?”
“नहीं सर। इसे बंधा ही रहने दें।” होपिन ने कहा।
“इसे ठीक से बिठा दो कि मैं इससे बातें कर सकूं।”
रत्ना ढली और आदिन आगे बढ़े। उन्होंने दीवार के पीछे तकिया लगाकर, जगमोहन को बैठा दिया।
“तुम-तुम साहब जी हो?” जगमोहन बोला –“इन लोगों ने साहब जी?”
“हां।” जामास ने सिर हिलाया –“तुमने सही कहा।”
“गाठम कहां है?”
जामास गम्भीर अंदाज में मुस्करा पड़ा।
जगमोहन जामास को देखता रहा।
“तुम्हारा अपहरण गाठम ने नहीं, हमने किया है।” जामास बोला।
जगमोहन चौंका।
“तुम लोग कौन हो?”
“पुलिस।”
“पुलिस?” जगमोहन के चेहरे पर हैरानी के भाव आ गए –“पुलिस इस तरह काम तो नहीं करती।”
“जरूरत पड़े तो ये सब करना पड़ता है। पुलिस हर तरह से काम कर सकती है। पुलिस अपना काम करना जानती है।”
“नहीं। तुम जो भी कर रहे हो, ये पुलिस का काम नहीं है। ये तो बदमाशों का काम है, जगवामा जैसे लोगों का काम है।”
“पुलिस जब अपनी करनी पर आती है तो जगवामा जैसे लोगों को भी पीछे छोड़ जाती है।” जामास ने सख्त स्वर में कहा।
“तो मैंने क्या किया था जो मेरा अपहरण...।”
“हमने बेवू का अपहरण किया था। हमें नहीं पता था कि कोई और बेवू बना बैठा है।” जामास बोला –“तुम्हारी वजह से हमारा काम खराब होने लगा है। हमें बेवू की जरूरत थी।”
“तुम्हारी वजह से मेरा काम खराब हो गया, वरना अब तक मैं हिन्दुस्तान में बैठा होता। उस दिन छोटा-सा शूटआउट हुआ और मेरा अपहरण हो गया। मेरा काम अधूरा रह गया। मैं तो...।”
“तुम हिन्दुस्तानी हो?”
“हां।”
“जगमोहन नाम है तुम्हारा?”
“हां।”
“बर्मा (म्यांमार) में तुम्हारे और भी साथी मौजूद हैं?”
“हां।”
“तुम सब जगवामा पर काम कर रहे हो?”
“सही कहा।” जगमोहन बोला –“पर तुम कौन हो?”
“इस शहर का पुलिस चीफ जामास।”
“जामास?” जगमोहन चौंका –“त-तुम जामास हो।”
“ओह, तो मेरा नाम सुन रखा है तुमने। अपने बारे में बताओ कि तुम कौन हो और बेवू की जगह लेकर क्या...।”
तभी फोन की बेल बज उठी। मोक्षी ने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और बात की। हां-हां-फिर करता रहा। मिनट भर की बातचीत में सबकी नजरें मोक्षी के चेहरे पर ही रहीं। मोक्षी के चेहरे के बदलते भाव सबने नोट किए। फिर मोक्षी ने फोन बंद किया और जामास से कह उठा।
“साहब जी, इधर, दूसरे कमरे में आइए। सब लोग आओ। एक बड़ी खबर आई है।”
वे सब दूसरे कमरे में पहुंचे तो मोक्षी जल्दी-से कह उठा।
“लोएस का फोन था। उसने बताया कि जगवामा के यहां मीटिंग चल रही है। मीटिंग में सिटवी, केली, मैगवी, पैथिन, हकाकाब और लूचर मौजूद हैं। ये सब जगवामा के खतरनाक लोग है जो संगठन को संभाले हुए हैं। लोएस कहता है कि ये लोग गाठम के ठिकानों को ढूंढने की बात कर रहे हैं, ज्यादा बातें नहीं सुन सका लोएस।”
जामास की आंखों में तीव्र चमक लहरा उठी।
“बहुत बढ़िया जा रहे हैं हम।” जामास के होंठों से निकला –“हमें इसी वक्त का इंतजार था। जगवामा का इन सबको बुलाना, मीटिंग करना, गाठम के ठिकानों की बात करना, जाहिर करता है कि जगवामा, गाठम के खिलाफ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है। हम जीत गए। हमने वो कर दिया, जो बेहद कठिन काम था।”
सबके चेहरे खुशी से भर उठे।
“जगवामा के पास ये ही खबर है कि गाठम ने बेवू का अपहरण किया है। वो नहीं जानता कि ये काम हमने गाठम के नाम पर किया है। गाठम का इस मामले से कोई वास्ता नहीं। जगवामा ये भी जानता है कि अपहरण होने वाला बेवू नहीं था पर वो इसे अपने पर किया गया गाठम का हमला मान रहा है। अब जगवामा गाठम को अपनी ताकत दिखाएगा। वो गाठम के ठिकाने की तलाश करेगा फिर वहां पर हमला करेगा। हमने मैदान जीत लिया।” जामास की आंखों में चमक था और होंठ भिंचे हुए थे –“आज रात जगवामा और तड़पेगा जब गाठम के नाम पर उसके हथियार लूटे जाएंगे। जब उसके नाम पर गाठम के ठिकाने पर हमला होगा –एक मिनट –रुको-रुको।” जामास ने ठिठककर चारों को देखा। चारों की निगाह जामास पर थी –“हमें क्या जरूरत है गाठम के ठिकाने पर हमला करने की, जगवामा स्वयं ही ये काम करने जा रहा है। हमारे मुखबिर गाठम के उस ठिकाने की खबर, जगवामा के लोगों तक पहुंचा देंगे कि वो कहां पर है, बाकी काम वो कर देंगे।”
“आपने ठीक सोचा साहब जी।” होपिन बोला।
“जब हम गाठम के नाम पर, जगवामा के हथियार लूटेंगे तो उसके बाद जगवामा की रफ्तार और बढ़ जाएगी।”
“जगवामा की रफ्तार बढ़ाने के लिए जरूरी है केली लूट के समय मारा जाए।” जामास बोला।
“केली पक्का वहां होगा?”
“हां। केली ने ही हथियारों की डिलीवरी लेनी है। डिसूजा से।”
“मैं रात के काम में केली को निशाना बनाऊंगा। सिर्फ ये ही काम मैं करूंगा।” आदिन बोला –“बाकी सारा काम तुम लोग ही करना। समंदर तट पर रात के समय केली अपने लोगों में घिरा होगा। ऐसे में उसे शूट करना आसान काम नहीं होगा।”
“पर तुमने ये काम करके रहना है आदिन। जरूरी है।”
“जरूर साहब जी।” आदिन ने दृढ़ स्वर में कहा –“ये काम हो जाएगा।”
“हम रात के तीन बजे तक इस बात का इंतजार करेंगे कि जगवामा के आदमी गाठम के ठिकाने पर हमला कर देंगे। अगर वो नहीं करते तो तीन बजे के बाद ये काम हम करेंगे। हमें अपनी तैयारी पूरी रखनी है।”
“मेरे ख्याल में कल सुबह तक शहर के हालात बदल चुके होंगे।” रत्ना ढली ने कहा।
“ऐसा ही होने वाला है।” जामास खतरनाक स्वर में बोला।
“आपको पूरा भरोसा है साहब जी, गाठम यहां आ पहुंचेगा अपने आदमियों को मरते देखकर?”
“गाठम खिंचा चला आएगा, जब उसे ये पता चलेगा कि जगवामा ने उसके ठिकाने पर हमला किया है। मेरे एक मुखबिर का कहना है कि गाठम के आने पर, उसे पता चल जाएगा कि वो आ गया है और कहां पर ठहरा है।”
“मतलब कि आपको गाठम की पूरी खबर होगी?”
“आशा तो है।” जामास ने गम्भीर स्वर कहा –“अब हमें सतर्क रहना होगा। हमारे बारे में जगवामा या गाठम को हवा भी न लगे कि ये सब हम कर रहे हैं। हवा लगी तो हममें से कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।”
“हम सतर्क हैं साहब जी।”
“अब मुझे उस हिन्दुस्तानी से बात करनी है।”
जामास और वे चारों वापस दूसरे कमरे में जगमोहन के पास पहुंचे।
जगमोहन उसी मुद्रा में दीवार के साथ टेक लगाए बैठा था।
जामास कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
“तो मैं तुमसे पूछ रहा था कि तुम कौन हो और बेवू क्या चाहते हो?”
“इस सवाल का जवाब नहीं मिलेगा।” जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।
“क्यों?”
“पहले तुम बताओ, तुम लोग ये सब क्यों कर रहे हो?”
“तुम्हें हमसे क्या?”
“बहुत कुछ है। मैं यहां की पुलिस का काम देखकर हैरान हो रहा हूं कि...।”
“अपनी जान की परवाह करो।” जामास ने बेहद कठोर स्वर में कहा।
जगमोहन जामास को घूरता रहा फिर बोला।
“मुझे एक फोन करने दो।”
“अपने साथियों को?”
“यही समझ लो।”
“मैं तुम्हें फोन करने दूं ताकि तुम उन्हें बता सको कि इस मामले में जामास है। ये बात हवा बनकर जगवामा या गाठम के कानों तक पहुंचे और वो हमें मार दे।” जामास ने कड़वे स्वर में कहा।
“ऐसा नहीं होगा। मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगा।"
“ले लिया तो फिर मैं कर ही क्या सकूँगा।” जामास की कठोर निगाह जगमोहन पर थी।
“मेरा यकीन करो। तुम नहीं चाहते तो मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगा। पुलिस का भी जिक्र नहीं करूंगा।”
“क्या बात करना चाहते हो अपने साथियों से?”
“सुन लेना।”
“इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि तुम हमारे बारे में, अपने साथियों को कोई इशारा दे दो।”
“मुझ पर यकीन नहीं तो रिवॉल्वर लेकर मेरे सिर पर खड़े हो जाओ। जब भी मेरे मुंह से ऐसी कोई बात निकले या तुम्हें लगे कि मैं ऐसा कुछ कहने वाला हूं तो मुझे शूट कर देना।” जगमोहन कह उठा।
जामास, जगमोहन को देखता रहा कई पल।
“तुम हिन्दुस्तान में क्या करते हो?”
“इस तरह तुम मुझसे कुछ नहीं जान पाओगे। एक बार मैं अपने साथियों से बात कर लूं उसके बाद शायद सब बता दूं।”
जामास उठा और पीठ पर हाथ बांधे चहलकदमी करने लगा।
“एक बात बताओगे।” जगमोहन कह उठा।
“क्या?”
“तुम जगवामा या बेवू के विरुद्ध क्यों हो गए?”
जामास ठिठककर जगमोहन को देखने लगा फिर बोला।
“तुमने विरुद्ध शब्द का इस्तेमाल किया। इसका क्या मतलब हुआ?”
“तुम तो बेवू के लिए, पाकिस्तानी लोगों से, जगवामा के संगठन की खरीद-फरोख्त करवाने के लिए, बीच की भूमिका अदा कर रहे थे। ऐसे में बेवू के अपहरण तक की नौबत कैसे आ गई? क्या कर दिया बेवू ने?”
जामास की आंखें सिकुड़ी। वो जगमोहन को देखता रह गया।
जगमोहन की नजरें जामास के चेहरे पर टिकी थी।
“तो तुम ये बात भी जानते हो?”
जगमोहन ने सिर हिलाया।
“ये बात इतनी जगजाहिर नहीं है कि कोई आम बंदा जान सके। कौन हो तुम?” जामास कह उठा।
“पहले मुझे अपने साथियों से बात करने दो।”
“तुम्हारे साथी जगवामा या गाठम के सम्पर्क में हैं?”
“नहीं। वो इन दोनों से दूर हैं।”
जामास ने होंठ सिकोड़े और पुनः चहलकदमी करता होपिन को देखकर बोला।
“तुम लोग अपना काम करो। मेरे लिए कॉफी बनाओ। मैं सारा दिन यहीं हूं आज। मुझे कोई काम नहीं है।"
चारों में हरकत पैदा हुई। वे कमरे से बाहर जाने लगे।
“तो तुम मुझे फोन कॉल नहीं करने दोगे?” जगमोहन बोला।
जामास ने कुछ नहीं कहा। टहलता रहा।
☐☐☐
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