एक बार फिर ठहाका लगाकर राजदान ने देवांश के शब्दों का गला घोंट दिया। हंसता ही चला गया वह । दिल खोलकर हंसने के बाद बोला --- “कहां हैं? कहां हैं वे लेटर ?”


“य - ये रहे ।” देवांश ने अपनी जेब से लेटर निकालकर उसे दिखाये ।


हंसते हुए राजदान ने कहा --- “इन्हें खोलकर तो देख छोटे ! मेरे मुन्ना, कहीं ऐसा तो नहीं कि तू किसी भ्रम में जी

रहा हो ।” 


“क- क्या मतलब ?” देवांश हड़बड़ा गया ।


“खोल ... खोल तो सही!


बौखलाये हुए देवांश नेएकलेटर की तहें खोलीं और देखता रह गया उसे ।


आंखें विस्फारित अंदाज में फैली की फैली रह गईं ।


दिव्या ने भी कागज को देखा ।


वह बिल्कुल कोरा था |


राजदान के लेटर पैड का एक कोरा कागज


"हे भगवान!” दिव्या के हलक से चीख सी निकल गई --- “अक्षर कहां गये ?”


“ गायब हो गये।” राजदान ने उसकी अवस्था का पूरा मजा लिया--- "बंगाल के काले जादू से।"


बौखलाये हुए देवांश ने दूसरे लेटर की तहें खोलीं ।


वह भी खाली था ।


“कोई फायदा नहीं छोटे । कोई फायदा नहीं । जिस लेटर को ठकरियाल संभाले घूम रहा है उसका भी यह हाल हो चुका होगा। लेटर्स का ही क्यों --- ऑडियो केसिट्स भी साफ हो चुकी होंगी। और ... यह सब कोई जादू नहीं है। बाजार में खुलेआम ऐसी इंक भी मिलती है और कैसिट्स भी जो एक टाइम के बाद 'साफ' हो जाती हैं। वह टाइम गुजर चुका है।"


दिव्या और देवांश को काटा तो खून नहीं ।


“अब तुम्हारे या ठकरियाल के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं है जिससे मेरे अंत को आत्महत्या साबित कर सको। खुद तुम्हीं ने तो रंग दिया था आत्महत्या को हत्या का । अब भुगतो । तुम्हें ऐसे जुर्म की सजा मिलेगी जो तुमने किया ही नहीं, जो असल में हुआ ही नहीं।"


“रामोतार सारी दुनिया को बतायेगा तुम जिन्दा हो ।”


“वह साला ठकरियाल का चमचा ! कौन विश्वास करेगा उसकी बकवास पर ? कानून तो बहुत दूर की चीज है, आम आदमी ? तक यही सोचेगा --- टकरियाल को बचाने के लिए, उसके कहने पर बकवास कर रहा है वह ।”


देवांश और दिव्या हतप्रभ रह गये ।


जाहिर था - - - राजदान पहले ही सब कुछ सोच चुका था।


बचाव का जब कोई रास्ता नजर नहीं आया देवांश को तो कह उठा --- “भ- भैया! म मुझे माफ कर दो। म - मैं भटक गया था और भटकाने वाली थी विचित्रा । जिस उम्र में उसने मुझे अपने जिस्म का स्वाद चखाया, आप समझ सकते हैं-- --- उस उम्र में कोई भी भटक सकता था। उसके बाद दिव्या. दिव्या ने खुद को मेरी गोद में गिरा दिया। मैं क्या करता भैया? मैं क्या करता? जवानी के जोश में एक बार भटका तो फिर भटकता ही चला गया। यहां तक कि आपके मर्डर तक का प्लान बना बैठा। मगर, आपने हमेशा मुझे माफ किया है। एक बार... सिर्फ एक बार और माफ कर दो । आखिरी बार । मैंने चाहे जितना नीच काम किया हो मगर आप.. आप तो देवता हैं । "


राजदान के होंठ फड़फड़ाये | जैसे भावुक हो रहा हो ।


मगर अगले ही पल, उन्हें सख्ती से भींच लिया उसने । गुर्राया--- " बहुत खूब छोटे ! बहुत खूब ! बच निकलने के जब सारे रास्ते बंद हो गये तो अच्छा पैंतरा बदल रहा है तू।”


देवांश ने उसके फड़फड़ाते होठों को देख लिया था ।


उम्मीद की बहुत ही जबरदस्त किरन नजर आई थी उसे ।


लगा था----वह अब भी उस शख्स को अपने प्रति भावुक कर सकता है जिसने सचमुच उसे सारे जीवन बेइंतिहा प्यार किया था। जिसके जीवन का मकसद ही सिर्फ और सिर्फ उसे प्यार करना था। 


एक झटके से दोनों घुटने टेककर फर्श पर बैठ गया देवांश। हाथ जोड़कर दीन-हीन स्वर में बोला --- “नहीं भैया । कोई पैंतरा नहीं है ये। बहुत पैंतरे चल चुका । अब थक गया हूं मैं । अगर माफ नहीं कर सकते तो.... तो आपके हाथ में रिवाल्वर है। यहीं इसी वक्त शूट कर दीजिए मुझे। मगर, वह जिल्लत भरी मौत मत दीजिए जो आपने मेरे लिए सोची है। लोग यह जानें कि अपनी भाभी से मेरे नाजायज ताल्लुकात थे। पांच करोड़ के लालच में आपका मर्डर किया । नहीं-नहीं... | यह सब सहन नहीं होगा मुझसे । इससे बेहतर है, यहीं खत्म कर दीजिए मुझे।”


राजदान उसकी तरफ देखता रह गया ।


कुछ इस तरह, जैसे जानने की कोशिश कर रहा हो वह एक्टिंग कर रहा है या सचमुच पश्चाताप की आग में जल रहा है।


खुद दिव्या भी नहीं समझ पा रही थी देवांश के इस पैंतरे को। 


यह पैंतरा था या वाकई देवांश पूरी तरह टूट चुका था ?


उधर, एकाएक राजदान के जबड़ कस गये। गुर्राया--- "ठीक है। अगर सचमुच तुझे अपने किये पर पछतावा है तो मैं तुझे माफ कर सकता हूं मगर वह माफी केवल इतनी ही होगी कि तुझे जिल्लत से बचा लूंगा । मरना तो होगा ही तुझे, उस तरह नहीं तो मेरे हाथों । ”


रूह कांप गई देवांश की ।


मगर अगले ही पल दिमाग में ख्याल कौंधा --- अगर ये राजदान है तो किसी कीमत पर मुझ पर गोली नहीं चला सकता । अगर 'क्लोन' है तब... बचने का रास्ता ही कहां है?


वह कहे या न कहे।


जब चाहे उसे गोली मार सकता है ।


सो, नाटक जारी रखना ही मुनासिब लगा । आंखों में आंसू भरे कह उठा --- “खुशी से भैया । खुशी से टुकड़े-टुकड़े कर डालो मेरे! जीने के काबिल रहा भी कहां हं मैं? ठीक ही कहा आपने | आप मुझे जिल्लत से बचायेंगे, यह भी माफी ही होगी आपकी तरफ से।”


“ओ. के. ।” राजदान के जबड़े कस गये --- “तो तैयार हो जा मरने के लिए । ”


“मैं तैयार हूं भैया | तैयार हूं मैं।" कहने के साथ देवांश के आंसू गालों पर ढलक आये ।


राजदान की अंगुली का दबाव ट्रेगर पर बढ़ गया |


देवांश ने आंखें बंद कर लीं।


सचमुच मरने के लिए तैयार नजर आ रहा था वह ।


उस दृश्य को देखती दिव्या थर-थर कांप रही थी ।


ट्रेगर पर दबाव बढ़ाता राजदान एकाएक भावुक सा नजर

आने लगा। उसे पूरी तरह दबाने से पूर्व ही वह दिव्या की तरफ पलटकर चीख पड़ा --- “देखा !... देखा कमीनी ! भाई आखिर भाई होता है! खून का रिश्ता आखिर खून का रिश्ता होता है। किसी भी स्टेज पर पहुंचकर सही, माफी तो मांग ली इसने । मेरे हाथ से मरने को भी तैयार है । "


देवांश ने चौंककर आंखें खोलीं ।


दिव्या के होश उड़े हुए थे।


दांतों पर दांत कहता चला गया--- "ठीक ही कहा छोटे ने। तुझ जैसी हुस्न ने की परी अगर इस जैसे जवान लड़के की गोद में जा गिरे तो कैसे नियंत्रित रख सकता है लड़का खुद को ? मुझे एड्स क्या हुआ, कुछ दिन तेरी जिस्मानी भूख क्या शांत नहीं कर पाया कि तू इस कदर सुलग उठी --- इस कदर कि मेरे ही छोटे भाई को अवैध सम्बन्धों की कीचड़ में खींच ले गई । इस कदर दीवाना बना लिया इसे तूने कि मेरे मर्डर तक की बात सोचने लगा ।”


बहुत कुछ कहने की इच्छा के बावजूद दिव्या मुंह से एक लफ्ज न निकाल सकी।


“याद कर! यार कर विचित्रा को!" राजदान कहता चला गया - -- “उसका नशा भी एक बार मुझ पर खुद मुझ पर

इस कदर चढ़ा था कि मैं छोटे को बेदखल करने के लिए तैयार हो गया था । वह घटना बताती है --- औरत का नशा कम्बख्त होता ही इतना घातक है कि आदमी नीच से नीच हरकत कर बैठता है। अपने यौवन की मदिरा पिला - पिलाकर तूने इसे मेरे मर्डर के लिए उकसा लिया और मेरी मौत के बाद यह तभी से लगातार सबकुछ कुबूल करने के लिए फड़फड़ा रहा है जब तुम्हारी नजरों में ठकरियाल बाथरूम में था । मेरे यहां आने से पहले भी यह तुझे यही समझाने की कोशिश कर रहा था मगर तू क्यों मानने लगी? असली घुटी हुई तो तू है। तूने बहकाया मेरे छोटे को।”


अब दिव्या भी खुद को नियंत्रित न रख सकी । चीख पड़ी वह --- “वाह! वाह ! राजदान! अपने भाई में कभी कोई दोष नजर नहीं आता तुझे । या तो विचित्रा में नजर आया था या मुझमें नजर आ रहा है। ड्रेसिंग में छुपकर अपने नंगे बदन को देखने के लिए भी मैंने ही निमंत्रण दिया था इसे। मैंने इससे कहा था --- मैं रात को इतने बजे झरने पर नहाऊंगी, मुझे देखने वहां आ जाना ! तुमने ठीक कहा राजदान--- खून आखिर खून होता है। इतने सब के बावजूद तुम इसे माफ करने को तैयार हो । सारा दोष मुझ पर मंढ़ रहे हो क्योंकि मैं...


“हां.. हां ! दोष तेरा ही है !” राजदान चीख पड़ा --- “अरे ये अगर बहक भी गया तो तुझे संभालना चाहिए था इसे तू बड़ी थी । समझाना चाहिए था। मगर तू कहां करती यह सब ? कैसे करती? तू तो खुद दहकती हुई भट्टी बनी हुई थी । और अब... तुझे तो अब भी इतनी गैरत नहीं आई कि अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप भी करे।”


“भाभी !” एकाएक देवांश दिव्या से कह उठा --- “माफी मांग लो भैया से । भैया का दिल इतना बड़ा है कि...


“नहीं... नहीं छोटे ।” दांत भींचकर राजदान कहता चला गया --- “इतना बड़ा भी नहीं है मेरा दिल कि इस... इस कलंकनी को माफ कर सके। किसी भी मामले में विचित्रा से छोटी वेश्या नहीं है ये।" 


“भैया ।”


“लो!” राजदान ने रिवॉल्वर देवांश की तरफ बढ़ाया--- "खत्म कर दे इसे । ”


“म - मैं ?” देवांश की जान मानो हलक में आकर अटक गई।


“अगर माफी चाहता है तो इसका खात्मा जरूरी है क्योंकि ये जिन्दा रही तो दुनिया से तेरे और अपने सम्बन्धों का बखान जरूर करेगी। वैसा हुआ तो तू भी जेल की चारदीवारी में होगा या इसके साथ फांसी के फंदे पर झूल जायेगा ।”


“ल लेकिन मैं... भ भैया में?"


“क्यों?” एक बार फिर राजदान के होठों पर जहरीली मुस्कान रेंग गई --- "इस पर गोली चलाते वक्त अथ कांप जायेंगे तेरे ?”


देवांश ने झपटकर उसके हाथ से रिवाल्वर ले लिया।


राजदान की मुस्कान में ज्वाला नजर आने लगी।


आंखें फाड़े दिव्या कभी देवांश को देख रही थी कभी गजदान को ।


देवांश के हाथ में दबा रिवाल्वर इस वक्त उसी की तरफ तना हुआ था ।


चेहरे पर दृढ़ता के भाव ।


जबड़े कसे हुए ।


अंगुली ट्रेगर पर थी ।


“देव!” दिव्या चिल्लाई --- “क्या तुम मुझे सचमुच मार डालोगे?”


राजदान की गोल आंखों में 'अजब' चमक नजर आने लगी ।


“देव ! कोशिश करो समझने की। कुछ माफ-वाफ नहीं करने वाला है ये तुम्हें | गेम खेल रहा है । तुम्हें मेरे हाथों से मरवाने का गेम। जरा उसकी आंखों में मौजूद चमक को देखो | यह साबित करना चाहता है कि हमारा रिश्ता कितना कच्चा था | मेरी हत्या के इल्जाम में यह तुम्हें..


उसी क्षण, माहौल गोली चलने की जोरदार आवाज से कांप उठा।


दिव्या के हलक से चीख निकली।


उसे लगा, वह मर रही है ।


मगर नहीं ।


गोली देवांश के हाथ में दबे रिवाल्वर से नहीं चली थी ।


वह रिवाल्वर तो गोली चलने के साथ ही उसके हाथ से निकलकर फर्श पर गिरा और फिसलता हुआ डायनिंग टेबल के नीचे जाकर रुका।


गोली दरवाजे से चली थी ।


चलाने वाला था ठकरियाल । निशाना था --- देवांश के हाथ में दबा रिवाल्वर |


तीनों ने चौंककर दरवाजे की तरफ देखा।


और।


इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ।


धांय ।


ठकरियाल के रिवॉल्वर से एक और गोली चली ।


राजदान की छाती पर लगी वह ।


परन्तु ।


बाल तक बांका नहीं हुआ उसका ।


उल्टा बिजली की गति से वह इस तरह हवा में उड़ता नजर आया जैसे उड़ने वाले सांप ने जम्प लगाई हो । उसकी फ्लाइंग किक सीधी ठकरियाल के चेहरे पर पड़ी थी ।


ठकरियाल कहीं, उसका रिवाल्वर कहीं।


राजदान ने दरवाजे से बाहर की तरफ जम्प लगा दी थी ।


ठकरियाल फुर्ती से उठकर उस पर झपटा ।


दरवाजे के नजदीक दोनों गुत्थम गुत्था हो गये।


उससे भिड़ा ठकरियाल चिल्लाया--- "मेरी हैल्प करो देवांश ! ये राजदान नहीं है।"


देवांश मानो सोते से जागा ।


दरवाजे की तरफ झपटा।


मगर तभी-


राजदान ने ठकरियाल को उसकी तरफ उछाल दिया था ।


ठकरियाल का जिस्म देवांश से आकर टकराया ।


एक-दूसरे से उलझे दोनों फर्श पर गिरे ।


राजदान दरवाजे के पार | ।


दिव्या किंकर्त्तव्यविमूढ़ अवस्था में अपने स्थान पर खड़ी कांप रही थी । उसे विश्वास ही नहीं आ रहा था गोली चलने के बावजूद वह जीवित है। ।


ठकरियाल और देवांश ने संभलने के बाद एक साथ बाहर जम्प लगाई ।


वहां दूर-दूर अंधकार के अलावा और कुछ नजर नहीं आया।


तभी ।


भागते कदमों की आवाज सुनाई दी ।


“कौन है ऊपर ?” आवाज आफताब की थी ।


“हम हैं आफताब ।” देवांश ने कहा --- “हमलावर भागने की कोशिश कर रहा है ।” 


ठकरियाल चिल्लाया--- "लॉन की सभी लाइटें ऑन कर दो... जल्दी!”


आफताब ने ऐसा ही किया भी।


लेकिन ---


काफी भागदौड़ के बावजूद राजदान किसी को नजर नहीं आया।