जयदीप की गिरफ्तारी
सुबह दस बजे के करीब विराट राणा ऑफिस पहुंचकर अपने कमरे में बैठा ही था कि जोशी यूं वहां हाजिर हो गया जैसे उसके आने का ही इंतजार कर रहा हो।
“गुड मॉर्निंग सर।”
“गुड मॉर्निंग, हमारे कैदी का क्या हाल है?”
“मजे में है सर, बीती रात हमने उसे बढ़िया डिनर कराया ही था, और सुबह नाश्ता भी कर चुका है। ऐसे में हाल उसका क्यों बुरा होने लगा?”
“कैद में जो है।”
“हां उस बात पर तो बार-बार छटपटा रहा है, दो बार अपने कानूनी अधिकारों का हवाला भी दे चुका है। साथ ही एक तरह से धमकी दी है कि अगर फौरन उसके पेरेंट्स से बात नहीं कराई गयी, तो अंजाम बुरा होगा।”
“हमारे लिए?”
“जाहिर है।”
“ठीक है, चलो चलकर उसकी खबर लेते हैं।”
तत्पश्चात दोनों उठकर इंटेरोगेशन रूम की तरफ बढ़े और रास्ते में एक सिपाही को बोल दिया कि दो मिनट बाद जयदीप को वहां पहुंचा दे।
बीती रात जयदीप को उठाने में जोशी को जरा भी मशक्कत नहीं करनी पड़ी। जैसा कि विराट को उम्मीद थी, नैना का मैसेज मिलते ही उसने तुरंत उसके नंबर पर कॉल लगाने की कोशिश की, और नाकामयाबी की सूरत में फौरन घर से निकल गया।
उसके घर से सेंट्रल मार्केट महज पांच मिनट के वॉकिंग डिस्टेंस पर था, इसलिए कार निकालने की भी कोशिश नहीं की, और तेजी से चलता महज चार मिनट में वहां पहुंच गया।
आगे जयदीप मार्केट के बाहर की सड़क पर इधर-उधर निगाहें मार ही रहा था कि सुलभ जोशी और उसकी टीम ने मिलकर उसे जबरन अपनी जीप में खींच लिया। बाद में तो वह बस कलपता और चिल्लाता ही रहा, हासिल कुछ नहीं हुआ।
हैडक्वार्टर ले जाकर उसे एक ऐसे लॉकअप में डाल दिया गया जहां दूसरा कोई कैदी नहीं था। उसके कई घंटों बाद तक विराट और जोशी ऑफिस में ही बने रहे मगर जयदीप से पूछताछ करने की कोई कोशिश नहीं की।
तत्पश्चात रात आठ बजे दोनों अपने घर लौट गये थे।
इंटेरोगेशन रूम में पहुंचकर जोशी ने विराट के पैकेट से दो सिगरेट सुलगाये फिर एक उसे थमाता हुआ बगल की कुर्सी पर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद सिपाही जयदीप को वहां छोड़ गया।
“बैठो।” विराट बड़े ही गंभीर लहजे में बोला।
“ये आप ठीक नहीं कर रहे इंस्पेक्टर, जबकि मधु के कत्ल से मेरा कोई लेना देना भी नहीं है। यकीन जानिये जवाबदेही बहुत भारी पड़ने वाली है आपको।”
“बैठ जा भई - जोशी बोला - क्यों फुंका जा रहा है?”
“कल से यहां बंद कर के रखा है - वह झुंझलाता हुआ बोला - इस बात पर क्या खुश होकर दिखाना चाहिए मुझे?”
“भई साथ में बढ़िया डिनर और ब्रेक फॉस्ट भी तो कराया है, उसे भूल गया?”
“नहीं चाहिए मुझे आपका एहसान।”
“तो भी बैठ जा, वरना पांव दुखने लगेंगे।”
इस बार वह सच में बैठ गया।
“गुड, थैंक यू।”
“आप दोनों बहुत बड़ी मुश्किल में पड़ने वाले हैं।”
“तेरे किये?”
“मेरे भी, लेकिन ज्यादा मुसीबत तब खड़ी होगी जब मेरे दोस्तों को पता लगेगा कि आप लोगों ने मुझे बेवजह यहां बंद कर रखा है। उनमें से हर कोई मेरे फेवर में यहां आ खड़ा होगा, खासतौर से नैना। फिर देखियेगा क्या हाल होता है आप दोनों का।”
“वैसा तो खैर होते होते होगा, हो सकता है कि न भी हो - विराट बोला - रही बात तुम्हारी गिरफ्तारी की, तो वह तब तक चलेगी जब तक कि तुम मधु के कत्ल की बात कबूल नहीं कर लेते। और उसके बाद हल्की पड़े या भारी किसे फर्क पड़ता है?”
“आपको पड़ेगा, बल्कि आप दोनों को पड़ेगा - जयदीप लहजा आवेश से भर उठा - इसलिए क्योंकि आपने मुझे गिरफ्तार नहीं किया है, बल्कि अगवा किया है। पुलिस वाले हैं, इतना तो जानते ही होंगे कि हमारे कानून में किडनैपिंग बहुत सीरियस ऑफेंस माना जाता है।”
“इसे कहते हैं उल्टा चोर कोतवाल को डांटे - जोशी हंसता हुआ बोला - कातिल तुम और सजा का भय हम महसूस करें, ऐसा क्योंकर होने लगा बेटा?”
“होगा, क्योंकि मैं हत्यारा नहीं हूं।”
“बोल चुके? - विराट उसे घूरता हुआ बोला - तो अब वो सुनो जो हम कहने जा रहे हैं। जिसमें तुम्हारा ही भला छिपा हुआ है। किसी के भी यार दोस्त चाहे कितने भी सगेवाले बनकर क्यों न दिखाते हों, उसके बदले जेल जाने को कोई तैयार नहीं होता। फिर तुम तो पूरी पापी मंडली में सबसे नये हो।”
“जरूरत ही नहीं पड़ेगी किसी के जेल जाने की।”
“बराबर पड़ेगी, अभी तुम इतना बढ़ चढ़कर इसलिए बोल रहे हो क्योंकि तुम्हें इस बात का जरा भी एहसास नहीं है कि मधु के कातिल को फौरन गिरफ्तार कर दिखाने के लिए हम लोगों पर कितना जोर पड़ रहा है।”
“इसलिए एक बेगुनाह को हत्यारा साबित कर देंगे?”
“क्या करें भई मजबूरी है, और पुलिस क्या पहली बार ऐसा करेगी - विराट समझाने वाले अंदाज में बोला - बावजूद इसके हम दोनों ऐसा नहीं चाहते, मगर सिर्फ हमारे चाहने से क्या हो जायेगा? दबाव इस बात का भी तो पड़ रहा है कि बाकी जो रईसजादे हैं उनकी तरफ हम लोग आंख उठाकर भी देखने की कोशिश न करें। साफ साफ भले ही किसी ने कुछ नहीं कहा, मगर इशारों इशारों में सबके बाप कह चुके हैं कि मधु की हत्या के इल्जाम में अगर उसके दोस्तों में से ही किसी को गिरफ्तार करना जरूरी है, तो बाकियों को भुलाकर तुम्हें अंदर कर दिया जाये, और पुलिस मामले को यूं सामने लाये जिससे उनकी औलादों पर कोई आंच न आने पाये।”
“बकवास।”
“नहीं ये बकवास नहीं है। होती तो नैना ने हमारे कहने पर तुम्हें मैसेज नहीं किया होता, ना ही बाकी के दोस्त अपना नंबर बंद कर के बैठ जाते। साफ जाहिर हो रहा है कि उनमें से कोई भी तुम्हें बचाने के लिए आगे नहीं आना चाहता।”
तब पहली बार जयदीप के चेहरे पर चिंता के लक्षण दिखाई दिये।
“हमारी अंतर्रात्मा हमें झकझोरे दे रही है। सात लोगों के बीच से सिर्फ एक को जेल भिजवाने का इंतजाम करना, झूठे सबूत प्लांट करना और उसे सजा दिलवा कर दिखाना, ये सब काम कम से कम हमने तो अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं किया। मगर इस बार करना पड़ेगा क्योंकि हमारे ऊपर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ कोठारी गोपालन साहब के जरिये हमारी नाक में दम किये हुए है, तो दूसरी तरफ बाकी बच्चों के पिता जाने कहां कहां से फोन करवा रहे हैं। अब उन्हें तो गिरफ्तार हम कर नहीं सकते, करेंगे तो नौकरी चली जायेगी। इसलिए सात गुनहगारों में से एक को चुना गया, उसे जो हैसियत में सबसे कम है, जिसे बचाने के लिए बड़े और नामी गिरामी वकीलों की फौज न खड़ी की जा सके।”
जयदीप के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“बावजूद इसके अभी तक हमने अपने जमीर का सौदा नहीं किया है। अगर तुम हत्यारे के बारे में हमें बता दो तो शायद हम उसे गिरफ्तार करने का हौसला कर दिखायें, क्योंकि सच यही है कि अभी तक हम उसके बारे में कुछ नहीं जानते। जब जान जायेंगे तो कोई न कोई रास्ता भी जरूर निकाल लेंगे।”
“आपका ऑफर बहुत अच्छा है इंस्पेक्टर साहब, मैं मान भी लेता, बशर्ते कि अनपढ़ गंवार होता, कायदा कानून की कोई समझ मुझमें नहीं होती। अभी तो मुझे यकीन है कि आप कितने भी बड़े फन्ने खां क्यों न हों, इस तरह स्याह को सफेद कर दिखाने में कामयाब नहीं हो सकते। जरा देखिये कितनी बातें मेरे हक में हैं। नंबर एक राहुल और मधु दोनों का कातिल कोई एक जना ही दिखाई देता है क्योंकि दोनों कि मौत एक जैसी परिस्थतियों में हुई थी। नंबर दो राहुल के साथ मेरी कोई दुश्मनी आपको ढूंढे से भी नहीं मिलेगी क्योंकि थी ही नहीं। नंबर तीन जिस वक्त मधु को हवेली से कोई उठा ले गया उस वक्त वहां सात जने मौजूद थे, यानि कातिल या तो सातों हैं या फिर कोई नहीं है। नंबर चार आप अपनी पूरी काबलियत भी उड़ेल देंगे तो भी मेरे खिलाफ मधु के कत्ल का मोटिव नहीं खोज पायेंगे। नतीजा ये होगा कि कोर्ट में केस लगते ही मेरा वकील आपकी इंवेस्टिगेशन की धज्जियां उड़ाकर रख देगा और मैं साफ बरी हो जाऊंगा। और जब आपने मुझे आजाद कर ही देना है तो अभी गिरफ्तार कर के क्या हासिल कर लेंगे, सिवाय अपनी छीछालेदर कराने के?”
दोनों पुलिस ऑफिसर हकबकाये से उसका मुंह तकते रह गये।
“इसलिए मेरी बात मानिये और जाने दीजिए मुझे।”
“इस केस में तो एक से बढ़कर एक आलम फाजिल बैठे हैं सर - जोशी बोला - ऐसे में हमारी गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी?”
“बढ़ेगी, बस उंगली टेढ़ी करने की जरूरत है, जो कि हमने अभी तक एक बार भी नहीं की है - कहकर उसने जयदीप की तरफ देखा - आखिरी बार पूछ रहा हूं बच्चे, तुम अपना मुंह खोलोगे या नहीं?”
“अरे जब मैं कुछ जानता ही नहीं हूं तो आपको बता कैसे सकता हूं?”
“बता सकते हो, क्योंकि जानते बराबर हो। सवाल तो ये है कि प्यार से पूछने पर बताते हो, या पुलिस की ज्यादती झेलने के बाद। जवाब सोच समझकर देना, क्योंकि तुम्हारे बार-बार इंकार करने के बाद मुझे इस बात का जरा भी मलाल नहीं होगा कि मैंने एक बच्चे पर जुर्म ढाया। क्योंकि आखिरकार तो तुम सब बकोगे, सब बकते हैं।”
“आप लोग मुझे थर्ड डिग्री टॉर्चर देंगे?”
“उसकी नौबत नहीं आयेगी बेटा - जोशी बोला - क्योंकि मेरा दावा है तू फर्स्ट डिग्री ही नहीं झेल पायेगा। पुलिस की मार खाकर भी अपनी जुबान बंद रखना क्या तुझ जैसे बच्चों का काम है?”
जयदीप से जवाब देते नहीं बना।
“अब बोलो क्या फैसला है तुम्हारा?”
“आप टॉर्चर शुरू कीजिए, जब बर्दाश्त के बाहर हो जायेगा तो मैं सबकुछ सच-सच आपको बता दूंगा। मगर उससे पहले नहीं, क्योंकि वह मेरा अपने दोस्तों के साथ विश्वासघात करने जैसा कदम होगा।”
सुनकर दोनों एक बार फिर हैरान रह गये।
“शुरू कीजिए इंस्पेक्टर क्योंकि उसके अलावा आपको पास कोई रास्ता नहीं है, मेरे पास भी नहीं है। अपनी मर्जी से दोस्तों के खिलाफ जहर उगल दिया तो दूसरे लोगों में और हम पापियों में फर्क ही क्या रह जायेगा?”
‘क्या वह जांचने की कोशिश कर रहा था कि पुलिस सच में उसे टॉर्चर करती है या नहीं? - विराट ने सोचा - या सच में अपने दोस्तों के प्रति उतना ही समर्पित था जितना कि वह कहकर हटा था।’
जवाब आसान नहीं था।
“जोशी जी।”
“यस सर?”
“ट्रीटमेंट शुरू करो भई, ईश्वर हमें क्षमा करें।”
“वो तो कर ही देंगे सर, और अफसोस भी नहीं होगा क्योंकि हमने इसे पूरा पूरा मौका दिया है।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गया। और थोड़ी देर बाद जब वापिस लौटा तो उसके साथ दो हट्टे कट्टे सिपाही थे जो उस वक्त वर्दी में नहीं थे।
“मैं जाता हूं - विराट उठता हुआ बोला - क्योंकि मुझसे तो इसकी दुर्गति देखी नहीं जायेगी - फिर दोनों सिपाहियों की तरफ देखकर बोला - जब ये जुबान खोलने को तैयार हो जाये तो मुझे खबर कर देना।”
“दो मिनट बाद चाहें तो बिना खबर किये भी लौट सकते हैं सर - एक सिपाही बोला - उससे ज्यादा वक्त तो क्या लगेगा हमें।”
“मैं भी चलता हूं सर, क्योंकि दिल तो मेरा भी बहुत कमजोर है।” कहकर जोशी विराट के साथ बाहर निकल गया।
जयदीप का चेहरा एकदम से पीला पड़ गया। असल में वह दोनों ऑफिसर्स की बातों से भांप गया था कि उसपर कोई बड़ा जुल्म नहीं ढाने वाले थे। मगर जो लोग अब उसके सामने खड़े थे, वह शक्ल से ही दानव लगते थे, जिनसे रहम की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
दोनों सिपाहियों में से एक का नाम मनेसर था और दूसरे का मनोज। विराट और जोशी के बाहर जाते ही मनेसर ने एक मोटा सा डंडा उठाया और जयदीप की तरफ बढ़ा।
“खड़ा हो जा बेटा।”
“क्यों?”
“साले सवाल पूछता है?” कहकर उसने एक जोर की लात जयदीप के कंधे पर जमा दी। वार इतना तगड़ा था कि वह कुर्सी समेत फर्श पर जा गिरा।
साथ ही बुरी तरह कांपने लगा।
“खड़ा हो बहन चो...” मनेसर ने घुड़का।
तभी मनोज ने उसकी बांह थामी और थोड़ा परे ले जाकर फुसफुसाता हुआ बोला, “लड़का बहुत कमउम्र जान पड़ता है।”
“तो क्या करें छोड़ दें?” वह रूखे स्वर में बोला।
“चिकना भी है, देखकर ही इसपर प्यार आ रहा है मुझे।”
“साले होश में आ जा, वरना तेरे नबाबी शौक किसी दिन तुझे जेल भिजवा देंगे।”
“बाद की बाद में देखेंगे, अभी तो मेरा दिल आ गया है इसपर।”
“पागल हो गया, लॉस्ट टाईम तेरे कारण हम दोनों की नौकरी जाते जाते बची थी जबकि वह इसके जैसा पढ़ा-लिखा और अच्छे घर का लड़का भी नहीं था।”
“मान जा न मेरे यार, जीवन भर तुझे दुआयें दूंगा।”
“दिमाग खराब है, ये क्या कोई आम मुजरिम है, जिसके साथ तू जो चाहे कर लेगा - मनेसर फुसफुसाता हुआ बोला, मगर आवाज इतनी लाउड फिर भी थी कि जयदीप को सुनाई दे जाती - कहीं बाद में इसने विराट साहब को बता दिया तो इस बार पक्का नौकरी जाकर रहेगी।”
“पागल हुआ है, ऐसी बातों का भी कोई जिक्र करता है किसी से?”
“क्या पता ये कर दे?”
“नहीं करेगा, देखना बाद में सबकुछ भूल जायेगा। फिर तेरे शौक क्या मुझसे जुदा हैं? इसलिए बात मान, ऐसा मौका बार बार नहीं आता, ऊपर से तू खुद कहकर हटा है कि अच्छे घर का लौंडा है, इसलिए एकदम फ्रैश माल होगा।”
उनकी फुसफुसाहट सुन रहे जयदीप के होश उड़ गये।
“भूल गया साहब को सिर्फ दो मिनट में इसकी जुबान खुलवाने की कह चुका हूं मैं।”
“नहीं भूला हूं मेरे भाई, लेकिन दो मिनट बाद कोई यहां हमारे सिर पर आकर खड़ा नहीं हो जायेगा, और पांच मिनट से ज्यादा मैं लगाऊंगा नहीं।”
“यानि अभी से मुझे भूल गया?”
“ऐसा कहीं हो सकता है, आखिर भाई है तू मेरा, मिल बांटकर नाश्ता करते हैं, साथ में इसका भी कुछ भला कर देंगे।”
“कैसा भला?”
“बोल देंगे कि खूब टॉर्चर कर लिया मगर ये कुछ नहीं जानता, जानता होता तो जरूर बता देता, देख लेना तब साहब लोग फौरन इसे जाने को बोल देंगे।”
“मुझे तो डर लग रहा है यार, रात का वक्त होता तो कोई बात नहीं थी, मगर यूं दिन दहाड़े, मेरा मन नहीं मानता।”
“मान जायेगा, जरा एक बार प्यार से इसकी सूरत तो देख, देखकर ही दिल में कुछ कुछ होने लगता है, फिर बॉडी भी बहुत शानदार है, कमर तो लड़कियों जैसी मालूम पड़ती है।”
“यार...।”
“कहा न कुछ नहीं होगा।”
“ठीक है कर जो करना है, मगर जल्दी।”
“बस देखता जा।”
कहकर मनोज जयदीप के पास पहुंचा और उसे पुचकारता हुआ बोला, “चल अब कपड़े उतार दे अपने।”
“देखो तुम लोग गलत कर रहे हो।”
“नौकरी है भई, करनी ही पड़ेगी।”
“ऐसा मत करो प्लीज।”
जवाब में मनेसर ने इतनी जोर का थप्पड़ उसके गाल पर रसीद किया कि वह अर्धवृत की सूरत में घूमकर रह गया।
“अरे मार क्यों रहा है? - मनेसर बोला - प्यार से बात कर।”
“कपड़े उतार।” मनोज ने फिर से जयदीप को घुड़क दिया।
जवाब में उसने कांपते हाथों से अपनी टीशर्ट उतार कर मेज पर रख दी।
“पैंट।”
“पैंट किसलिए?” वह डरता डरता बोला।
“ताकि जब हम तेरे हसीन बदन पर डंडे बरसायें तो कपड़े फट न जायें, अब या तो तू खुद उतार दे, या फिर हम जबरदस्ती उतारे देते हैं।”
जयदीप ने वैसा कुछ करने की कोशिश नहीं की, तब मनेसर ने उसे पीछे से पकड़ा और मनोज ने जबरन उसकी पैंट खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दी।
फिर दोनों ने उसे छोड़ दिया।
“अब अंडरगारमेंट भी उतार।” मनोज बोला।
“वॉट, तुम लोग होश में तो हो?”
“आज नहीं हैं, समझ ले तुझपर तरस आ गया है हमें, इसलिए तुझे पुलिस के चंगुल से बचाने की कोशिश कर रहे हैं, चल अब फटाफट अपनी चड्ढी उतार दे।” कहकर मनोज ने उसके गाल पर यूं हाथ फिराया जैसे कोई प्रेमिका अपने प्रेमी को दुलार रही हो।
जयदीप सकपका कर दो कदम पीछे हट गया।
“दरवाजा अंदर से बंद कर दे - मनोज बोला - कहीं कोई एकदम से भीतर न आ जाये।”
मनेसर फौरन दरवाजा बंद कर आया।
तभी मनोज जयदीप की तरफ बढ़ा, वह पीछे हटने लगा, मनोज और आगे बढ़ा, जयदीप की पीठ दीवार के साथ जा लगी। फिर बड़े ही कुत्सित ढंग से हंसते हुए उसने एक बार फिर उसके गाल सहला दिये।
“दूर हटो मुझसे।” जयदीप ने उसे दोनों हाथों की पूरी ताकत लगाकर परे धकेल दिया।
“अरे बिदक क्यों रहा है यार? तू बस हम दोनों को खुश कर दे फिर हम साहब को बोल देंगे कि हमने तुझे बहुत टॉर्चर किया मगर तू हर वक्त यही कहता रहा कि बेगुनाह है। साथ में यकीन दिलाने की कोशिश भी करेंगे कि तूने कुछ नहीं किया हो सकता, क्योंकि किया होता तो हमारे टॉर्चर के आगे जरूर टूट गया होता।” कहते हुए उसने झपटकर जयदीप को अपनी बाहों में भरा और उसे फर्श पर गिराकर पेट के बल पलट दिया।
“छोड़ो मुझे।” जयदीप गला फाड़कर चिल्लाया।
“अरे क्यों जोर जबरदस्ती करवाना चाहता है, जबकि हम तो तेरा ही भला करने जा रहे हैं। बदले में बस थोड़ा कोऑपरेट करने को ही तो कह रहे हैं।”
“विराट साहब को बुलाओ।”
“बाद में बुलायेंगे।”
“मैं... मैं सब बताने को तैयार हूं।”
“तो भी बाद में बुलायेंगे, पहले हमारे मन वाली तो हो जाने दे।”
“जेल जाओगे तुम दोनों।”
“अगर तू अपनी आपबीती दुनिया के सामने लाने की हिम्मत जुटा पाये तो बेशक हमें जेल भिजवा देना - कहकर उसने मनेसर की तरफ देखा - खड़े खड़े मुंह क्या देख रहा है, पकड़ इसे।”
सुनकर उसने तुरंत जयदीप के दोनों पैर पकड़ लिये।
इस बार लड़का यूं चिल्लाया कि उसकी आवाज पूरे हैडक्वार्टर में सुन ली गयी हो तो कोई बड़ी बात नहीं थी।
तत्काल दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई।
“कौन?”
“सुलभ जोशी, तुम लोग उसकी जुबान खुलवाने में लगे हो या जान लेने में?”
“जुबान ही खुलवा रहे हैं सर, बस एक मिनट और दीजिए।”
“इंस्पेक्टर साहब - जयदीप फिर से चिल्लाया - मैं सबकुछ बताने को तैयार हूं, फिर भी ये लोग मुझे नहीं छोड़ रहे।”
“हो गया पटरा - मनोज गुस्से से मनेसर की तरफ देखता हुआ बोला - साले मुंह दबाकर नहीं रख सकता था?”
“कैसे रखता, मेरे क्या चार हाथ हैं जो इसका पैर भी थाम लेता और मुंह भी दबा लेता?”
“जल्दी से चड्ढी उतार इसकी।”
“पागल हुआ है?”
“हां पागल ही हो गया हूं, अब जल्दी कर, वक्त नहीं है।”
“दरवाजा खोलो।” जोशी की आवाज फिर से उनके कानों में पड़ी।
“बस एक मिनट साहब जी।”
“नहीं अभी खोलो, इट्स ऐन ऑर्डर।”
मनोज अफसोस की गहरी सांस लेता हुआ जयदीप के ऊपर से हट गया। मनेसर ने जाकर दरवाजा खोला और जोशी से बोला, “अभी तो हमने बस एक थप्पड़ ही मारा है साहब जी, उतने में ही जुबान खोलने को राजी हो गया।”
“कपड़े क्यों उतारे?”
“गंदे हो जाते, फट भी सकते थे, इसलिए उतरवा दिये।”
“तुम ठीक तो हो?” इस बार जोशी ने जयदीप से सवाल किया।
उसने फौरन ऊपर नीचे मुंडी हिला दी।
“और सच कबूलने को भी राजी हो गये हो?”
सुनकर वह क्षण भर को हिचकिचाया फिर दोनों सिपाहियों की तरफ देखते हुए जल्दी से हां में गर्दन हिला दी।
“अच्छा फैसला किया, कपड़े पहन लो।”
उसने गोली की तरह उस काम को अंजाम दिया, तभी जोशी ने दोनों सिपाहियों को ये कहकर वहां से जाने को बोल दिया कि विराट साहब को खबर कर दें कि मुल्जिम सच बोलने को तैयार हो गया है।
सुनकर दोनों बाहर निकल गये।
थोड़ी देर बाद विराट राणा वहां पहुंचकर बैठ गया।
“प्यार से ही मान जाते तो मार क्यों खानी पड़ती?” उसने पूछा।
जयदीप ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“चलो शुरू हो जाओ, बताओ शनिवार की रात चंद्रशेखर महाराज की हवेली में क्या हुआ था?”
“हुआ तो वही सब था इंस्पेक्टर साहब जो हम सातों पहले ही आपको बता चुके हैं। हनी को सच में कोई हमारे बीच से उठा ले गया था। वह कोई प्रेतात्मा थी या नहीं कहना मुश्किल है, मगर लगा तो हमें वही था।”
“लगता है डोज में कुछ कमी रह गयी, है न?”
“मैं सच कह रहा हूं इंस्पेक्टर साहब।”
“ठीक है तुम अगर लातों के ही भूत हो तो थोड़ी मार और खा लो।”
“पहले मेरी पूरी बात तो सुन लीजिए।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“मधु के गायब होने के बाद जब लाईट आई और अरसद दरवाजा चेक करने गया तो वहां बस खून ही नहीं दिखाई दिया था उसे, बल्कि हनी कि नुची चुथी लाश भी पड़ी थी, जिसे देखकर वह जोर से चीख पड़ा था। उसके बाद बाकी लोगों ने मिलकर तय किया कि उसकी लाश को जला देने में ही सबकी भलाई थी, वरना सब के सब फंस जाते।”
“फिर क्या किया?” विराट ने हैरानी से पूछा।
“मैंने कुछ नहीं किया, क्योंकि मंडली में नया होने के कारण मैं अपनी जुबान कम ही खोलता था। सबसे ज्यादा सैंडी की चलती है, जिसने रोहताश के साथ मिलकर हनी की लाश उठाई और अरसद से डीजल ले चलने को कह दिया।”
“उसके बाद?”
“दो दिन पहले जब मैंने और नैना ने सैंडी के साथ मिलकर वहां की साफ-सफाई की थी तो साथ में एक फावड़ा भी लेकर गया था वह, जोकि उस वक्त भी वहीं पड़ा हुआ था। उसी फावड़े से हम चारों ने मिलकर बारी बारी से एक गड्ढा खोदा फिर हनी की लाश उसमें डालकर आग लगा दी। जब वह बुरी तरह से जल गयी तो गड्ढे को भर दिया गया और बाकी बची मिट्टी को सब लोग उठा उठाकर दूर फेंक आये। इसके अलावा हममें से किसी ने भी कुछ नहीं किया था।”
“तुम सोचते हो आधी अधूरी सच्चाई कबूल कर के बच जाओगे?”
“पूरा का पूरा सच यही है इंस्पेक्टर साहब। फिर हनी की लाश का जितना बुरा हाल हुआ था, उसे करने के बारे में कोई इंसान तो सोच भी नहीं सकता। ना ही वह काम हम दोस्तों में से किसी का हो सकता है क्योंकि सब हर वक्त एक दूसरे की निगाहों के सामने थे।”
“अरे ये कोई मानने वाली बात है कि मधु को कोई तुम सातों के बीच से उठाकर ले गया और किसी को ये तक पता नहीं लगा कि ले जाने वाला कौन था, या कहां लेकर गया था।”
“सच यही है इंस्पेक्टर साहब। आप चाहे जितनी भी इंवेस्टिगेशन कर लें, लेकिन ईमानदारी से करेंगे तो जवाब यही मिलेगा कि दोस्तों ने हनी को नहीं मारा था।”
“अच्छा ये बताओ कि हवेली में रात गुजारने का ख्याल सबसे पहले किसके दिमाग में आया था?”
“सैंडी के, उसका एक नौकर तिमारपुर का ही रहने वाला है। उसी ने एक बार सैंडी को हवेली के बारे में बताया था। जिसपर उसे यकीन नहीं हुआ तो खुद तिमारपुर जाकर लोगों से पूछताछ कर आया, हवेली भी देख ली। जब उसे पता लगा कि वह जगह सालों से खाली पड़ी थी और कोई उधर आता-जाता भी नहीं था, तो एडवेंचर का भूखा वह हवेली में पार्टी करने की प्लॉनिंग करने लगा।”
“जो कि शनिवार की रात को परवान चढ़ी थी?”
“जी हां।”
“उसने जब अपने बाकी दोस्तों को हवेली की भनक नहीं लगने दी थी तो तुम्हें क्यों बता दिया, तुमसे तो कोई पुराना दोस्ताना भी नहीं था उसका?”
“इसलिए बता दिया क्योंकि वहां के हॉल की सफाई वह अकेले नहीं करना चाहता था। नौकरों को भी साथ ले जाने का उसका मन नहीं हुआ क्योंकि तब सहज ही बात उसके पेरेंट््स तक पहुंच जाती। जबकि वह हवेली का आगे भी इस्तेमाल करने की सोचे बैठा था। तभी उसने नैना से बात की और नैना ने मुझसे, जिसके बाद हम तीनों बृहस्तपति वार को वहां जाकर थोड़ी साफ-सफाई कर आये। मेन गेट के पास जंगल सा उग आया था उसे भी हम तीनों ने ही मिलकर काटा था। फिर एक इलैक्ट्रिक वॉयर बिछाकर भीतर कुछ बल्ब लगा दिये, मगर जनरेटर वहां शनिवार की रात को ही पहुंचाया गया था।”
“यानि तुम लोगों के वहां पहुंचने की खबर किसी और को नहीं थी?”
“नहीं थी?”
“फिर कोई बाहरी शख्स उतना भयानक षड़यंत्र रचने में क्योंकर कामयाब हो गया, जितना रचा गया जान पड़ता है?”
“मालूम नहीं, तभी तो हमें लगता है कि उस हवेली में सच में कोई प्रेतात्मा भटक रही है।”
विराट के मुंह से गहरी आह निकल गयी, क्योंकि लड़का उसे सच बोलता जान पड़ रहा था। कुछ कुछ वैसा ही जोशी भी सोच रहा था, इसीलिए जयदीप की जुबान पकड़ने की कोशिश एक बार भी नहीं की।
“कुछ और जिससे हमारी राह आसान हो जाये?”
“नहीं मैं बस इतना ही जानता हूं।”
विराट ने जोशी की तरफ देखा।
“विकट स्थिति है सर - उसका मंतव्य समझकर वह बोला - सच और झूठ इस तरह से आपस में गुंथे पड़े हैं कि कुछ भी सुझाई नहीं दे रहा। इन लोगों ने लाश को जलाकर गलत किया, उल्टा फौरन पुलिस को इंफॉर्म कर देना चाहिए था, तब कुछ ना कुछ सबूत जरूर हमारे हाथ लग गये होते।”
“राहुल के साथ कैसी निभती थी तुम्हारी?”
“बहुत अच्छी, दूर की रिश्तेदारी भी थी, मगर उसके दोस्तों जितनी तो नहीं ही निभती थी, वरना मैं पहले ही पापी मंडली जॉयन कर चुका होता, जिसका ऑफर राहुल ने मुझे कभी नहीं दिया - फिर क्षण भर की चुप्पी के बाद बोला - आप यकीन कीजिए उसके जाने का जितना दुःख मुझे है और किसी को शायद ही होगा।”
“हां वो तो बराबर दिखता है - जोशी बोला - राहुल का इतना ख्याल था तुम्हें कि उसके जाते ही उसकी गर्लफ्रैंड पर अपना क्लेम लगा दिया। आखिर उसकी अमानत का ख्याल रखने वाला तो कोई होना ही चाहिए था, है न?”
जयदीप ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“या पहले से ही नैना पर निगाह थी तुम्हारी, इसीलिए राहुल को रास्ते से हटा दिया?”
“ये मुझपर गलत इल्जाम है।”
“कौन सा इल्जाम गलत है, नैना पर निगाह रखने वाला या राहुल के कत्ल वाला?”
“दोनों ही, राहुल के जाने के बाद ही नैना के साथ मेरी नजदीकियां बढ़ी थीं, उससे पहले तो बस हॉय हैलो भर थी। ऐसे में उसे पाने के लिए मैं भला राहुल का कत्ल कैसे कर सकता था? और दुनिया में क्या लड़कियों का अकाल पड़ गया है जो मैं अपने कजन की गर्लफ्रैंड को अपनी गर्लफ्रैंड बनाने के चक्कर में पड़ जाता?”
“क्या पता राहुल के जीते जी ही तुम्हारे और नैना के बीच रिलेशंस बन गये हों? मगर राहुल क्योंकि नैना को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहा था इसलिए तुम दोनों ने मिलकर प्लानिंग की और उसे रास्ते से हटा दिया।”
“हद करते हैं इंस्पेक्टर साहब, नैना क्या उसकी बीवी थी जिसपर वह जबरन कब्जा बनाये रख सकता था? बल्कि बीवी पर भी कहां बना पाता है कोई, इसलिए खामख्वाह के इल्जाम मत लगाईये मुझपर।”
“चलो यही बता दो कि राहुल की गुमशुदगी के बारे में क्या जानते हो? ये मत कह देना कि तब तक तुमने पापी मंडली जॉयन नहीं की थी इसलिए तुम्हें नहीं पता। क्योंकि पता लगने के और भी जरिये होते हैं, जैसे कि नैना तुम्हें उसकी जानकारी दे सकती थी।”
“नहीं कहूंगा, वैसे भी हम पापी एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते इसलिए मुझे मालूम है कि राहुल के साथ भी सबकुछ हनी जैसा ही घटित हुआ था, जिसके बारे में हम पहले ही आपको बता चुके हैं।”
“यानि राहुल की मौत हो चुकी है?”
“जी हां।”
“तो फिर लाश कहां है उसकी?”
“सोचिये।”
“मैं सोचूं?”
“जी हां, फिर फौरन समझ जायेंगे कि राहुल की लाश का क्या हुआ था?”
“तुम्हारा मतलब है - विराट हैरानी से बोला - उसकी डैडबॉडी भी मधु की तरह बाद में जला दी गयी थी?”
“कम से कम नैना ने तो मुझे यही बताया था सर।”
“कहां ले जाकर जलाई थी?”
“मेरठ के पास हाईवे से नीचे एक खेत में ढेर सारा पुआल रखा हुआ था, राहुल की बॉडी को उसी के बीच डालकर आग लगा दी गयी थी। फिर सैंडी सबको साथ लेकर वहीं से हरिद्वार निकल गया था।”
“तुम लोगों ने तो बताया था कि कोई चुड़ैल उसे अपने साथ लेकर आसमान में चली गयी थी, फिर लाश कैसे हासिल हो गयी?”
“चली बराबर गयी थी, मगर ऊपर जाकर उसने राहुल को छोड़ दिया था जो कि सीधा होटल के पीछे वाले पार्क में जाकर गिरा था, उसकी खबर सबको बहुत देर से लगी, तब जबकि राहुल की तलाश में उन्हें होटल के पीछे जाना सूझा था।”
“उस बार भी सिर्फ इसीलिए जला दिया क्योंकि डर था कि पुलिस पापी मंडली को हत्यारा मान लेगी?”
“अहम वजह तो यही रही होगी सर लेकिन हनी की लाश जलाये जाने से पहले सैंडी ने एक और बात कही थी।”
“क्या?”
“उसने हमसे वादा लिया था कि हम पापियों में से जब भी किसी की मौत होगी, उसे हम अपने हाथों से अग्नि देंगे। ताकि जीवन भर उसे अपने करीब महसूस कर सकें।”
“बेशक लिया होगा लेकिन बाकियों ने भी तो कुछ कहना चाहिए था। आखिर मामला एक लाश को जलाने का था, जो कि कानूनन और अखलाकन दोनों तरह से जुर्म की ही श्रेणी में आता है।”
“सैंडी किसी की नहीं सुनता सर, वह ग्रुप का लीडर है इसलिए हर कोई सहज ही उसकी बात मान लेता है। उस दिन भी मान ली गयी थी। वरना सबसे ज्यादा खिलाफ तो उस बात के मैं ही था। ऐतराज भी जताया था, तब उसने साफ कह दिया कि मैं या तो पापी मंडली के कायदे कानून का स्वागत करूं या मंडली छोड़कर चला जाऊं।”
“तुमने स्वागत किया, क्यों? ऐसा क्या है उस मंडली में जो उसे छोड़ नहीं सकते थे?”
“नैना, जिससे जुदा होना मैं अफोर्ड नहीं कर सकता। और वह क्योंकि मरते दम तक मंडली से अलग नहीं होने वाली इसलिए मैं भी नहीं हो सकता। बल्कि उसमें शामिल भी तो उसी के कहने पर किया गया था मैं। वरना बाकी दोस्तों के मुकाबले मेरी हैसियत ही क्या है जो मैं उनकी बराबरी कर पाता?”
“तुमने कहा नैना को छोड़ना अफोर्ड नहीं कर सकते, जबकि अमूमन कोई लड़का ऐसे वक्त पर ये कहता है कि फलां को भूल पाना उसके वश का नहीं है। या उससे जुदा होने की कल्पना तक नहीं कर सकता वह - विराट ने पूछा - इसका क्या मतलब निकालूं मैं?”
“वही जो आप पहले ही निकाल चुके मालूम पड़ते हैं।”
“यानि तुम दोनों की नजदीकियों में किसी प्यार मोहब्बत जैसी भावना का दखल नहीं है?”
“जरा भी नहीं।”
“फिर भी चिपके हुए हो उसके साथ?”
“जी हां, क्योंकि उसके साथ चिपककर मुझे यूं महसूस होता है जैसे सौभाग्य मेरे घर का दरवाजा खटखटा रहा है।”
“क्योंकि वह एक बहुत बड़े बाप की बेटी है?”
“सच यही है सर, और उम्मीद करता हूं कि ये बात आप नैना से नहीं कह देंगे।”
“नहीं कहेंगे पट्ठे तू बेशक अपनी गिद्ध दृष्टि सबरवाल साहब की पूरी जायदाद पर टिका दे, क्योंकि इस वक्त मुद्दा तेरी नीयत नहीं बल्कि राहुल और मधु का कत्ल है जिसके राज से हमें हर हाल में हमें पर्दा उठाकर रहना है।”
“देखिये कातिल कौन है मैं नहीं जानता, बावजूद इसके अगर आपको हम पापियों में से किसी के हत्यारा होने का शक है तो मेरी मानिये और सैंडी तथा रोहताश पर ध्यान दीजिए।”
“वजह?”
“पक्का नहीं मालूम, लेकिन कोई ना कोई खिचड़ी उनके बीच हमेशा पकती रहती है। मंडली में बस वो दोनों ही हैं जो बाकी लोगों से अलग होकर कई बार खुसर-फुसर करने लग जाते हैं। इसलिए हो सकता है कि दोनों बार असल में क्या हुआ था, इसकी उन्हें खबर हो। हां मधु को उनमें से किसी ने भी खुद नहीं उठाया था, इसकी मैं अभी गारंटी किये देता हूं।”
“और कोई जिसपर शक किया जा सके?”
“मनीराज गोपालन।”
“वह भला अपनी होने वाली बीवी को क्यों मारेगा?”
“उस बारे में भी मुझे पक्का नहीं मालूम, लेकिन ग्रुप की लड़कियां कई बार हनी से कह चुकी थीं कि शादी से पहले वह मनीराज को ठोक बजाकर देख ले, क्योंकि उन्हें तो यही लगा था जैसे मनी को उसके साथ शादी करने में कोई इंट्रेस्ट नहीं था।”
लड़का वही बात दोहरा रहा था जो विराट खुद मनी के मुंह से सुन चुका था।
“अगर ऐसा होता तो वह शादी से इंकार कर देता, कत्ल करने की क्या जरूरत थी?”
“नहीं कर सकता था।”
“क्यों?”
“कोठारी साहब और गोपालन फॉस्ट फ्रैंड हैं, और अपने अपने बच्चों का रिश्ता भी उन लोगों ने बिना औलादों से पूछे ही तय कर दिया था। जबकि मनी की अपने बाप से बहुत फटती है। उस बारे में नैना ने मुझे तब बताया जब मनी के इसरार पर ऐना, वाणी और हनी के साथ मुम्बई में सर्कस देखने गयी थी।”
“ऐसा क्या बता दिया, जिससे तुम्हें लगने लगा कि मनी अपने बाप का खौफ खाता है?”
“नैना ने बताया था कि वह लोग सर्कस देखकर निकले ही थे कि गोपालन साहब का मनी के मोबाईल पर फोन आ गया, जिसे अटैंड करने के बाद उसने ये नहीं कहा कि अपनी फियान्से और उसकी सहेलियों के साथ मुंबई सर्कस देखना गया था, बल्कि ये कहा कि वह अपने एक दोस्त के यहां है जिसके बाप को दिल का दौरा पड़ गया था।”
“जैसे सच्चाई बता देता तो गोपालन साहब उसे गोली मार देते?”
“ना मारते, कोई भी नहीं मार सकता। मगर उसका उतनी सी बात पर झूठ बोलना ही साबित करता था कि वह अपने बाप से बहुत डरता था। ऐसा लड़का भला उस रिश्ते से इंकार कैसे कर सकता था जिसे उसके बाप ने उसके लिए चुना था?”
“तो तुम्हें लगता है कि जिस बात के लिए वह गोपालन साहब को मना नहीं कर सकता, उसी के लिए अपनी होने वाली बीवी का कत्ल कर दिया, ताकि मुसीबत की जड़ ही खत्म हो जाती, है न?”
“संभावना तो है ही....” कहता कहता वह एकदम से चुप हो गया।
“क्या हुआ?”
“अभी अभी एक बात दिमाग में आई है सर।”
“क्या?”
“हैरानी है पहले नहीं सूझी।”
“अब कुछ बताओगे भी?”
“हनी जिस वक्त हमारी आंखों के सामने छत की तरफ जा रही थी, उसने हमसे कहा था कि, ‘जाती हूं पापियों, तुम इंजॉय करो, देखना होश उड़ा कर रख दूंगी’ या इससे मिलता जुलता ही कोई डायलॉग बोला था उसने।”
“उसमें क्या खास बात है, वह तो तुम लोग पहले ही बता चुके हो?”
“लेकिन तब हममें से किसी को भी याद नहीं आया था सर कि वही सेम डॉयलाग उसने तब भी बोला था, जब गेम में हार चुकने के बाद अपनी सजा भुगतने के लिए डांसिंग फ्लोर की तरफ बढ़ रही थी। एक ही बात वह दो बार रिपीट क्यों करेगी?”
“तुम बताओ?”
“मेरे ख्याल से तो किसी ने उसकी कही पहली बात को रिकॉर्ड कर लिया था - अपनी बात पर वह खुद ही सकपकाता हुआ बोला - और बाद में जब हनी ऊपर की तरफ जा रही थी तो प्ले कर के सुना दिया, ताकि सबको इस बात पर हैरानी हो कि अगर वह जबरदस्ती ले जाई जा रही थी तो ऐसे क्यों बोली जिससे लगता था कि अपनी मर्जी से जा रही थी।”
सुनकर विराट और जोशी दोनों सन्नाटे में आ गये।
“आपकी समझ में कोई और मतलब आता है सर?” जयदीप ने पूछा।
“नहीं।”
“खैर अब मुझे अच्छी तरह से याद आ गया है कि दोनों बार के डॉयलाग का एक एक शब्द सेम था। और दूसरी बार भी उसी उल्लास के साथ बोला गया था, जैसा कि हनी ने पहली बार बोला था।”
“और कुछ?”
“नहीं सर, जितना जानता था आपको बता दिया, आगे आपकी मर्जी मेरी बात पर यकीन करें या न करें। क्योंकि उसपर मेरा कोई जोर नहीं चलने वाला।”
“समझ लो कर लिया।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है, थैंक यू।”
“इसलिए तुम जा सकते हो।”
“थैंक्स अ टन सर।” उसका चेहरा जगमगा उठा।
“एक चेतावनी याद रखना।”
“क्या सर?”
“बाकी दोस्तों में से किसी को भी ये पता नहीं लगना चाहिए कि पुलिस के साथ तुम्हारी क्या बातचीत हुई थी। लगा तो नुकसान तुम्हारा ही होगा। क्योंकि असल कातिल सावधान हो जायेगा, और हमें मजबूरन केस जल्दी सॉल्व करने के चक्कर में तुम्हें मुजरिम साबित करना पड़ जायेगा। रही बात उस फ्रंट पर कही गयीं तुम्हारी फैंसी बातों की, तो यही कहूं कि अभी तुम बच्चे हो, इसलिए नहीं जानते कि पुलिस क्या कर सकती है और क्या नहीं?”
“मैं किसी से अपनी गिरफ्तारी का जिक्र नहीं करूंगा सर प्रॉमिस।”
“ठीक है जाओ।”
सुनकर जयदीप उन दोनों को बार-बार थैंक यू बोलता वहां से निकल गया।
विराट के बगल में खड़ा जोशी जयदीप के जाने से खाली हुई कुर्सी पर आ बैठा और बैठते के साथ ही दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया।
“हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है भई, पुलिस की नौकरी में ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं।” विराट मुस्कराता हुआ बोला।
“अरे कोई एक बात हो सर तो समझ में आता है। यहां तो जिसपर शक होता है वही इनोसेंट निकल आता है।”
“इनोसेंट कहां था वह, भूल गये कि मधु की लाश जलाने की बात कबूल कर के गया है।”
“फिर भी आपने उसे जाने दिया, तो इसका मतलब यही बनता है न कि किसी की लाश जला देना आपकी निगाहों में गुनाह का दर्जा नहीं रखता।”
“ऐसा नहीं है, जाने इसलिए दिया क्योंकि जानता हूं वह भागकर कहीं नहीं जाने वाला। फिर जिस गुनाह को सात लोगों ने मिलकर अंजाम दिया था उसके लिए मैं किसी एक को हवालात में नहीं डाल सकता। हां बाद में जब कातिल हमारे हाथ लग जायेगा तो मैं पक्का इस बात पर विचार करूंगा। तब सारी सच्चाई क्योंकि हमारे सामने होगी, इसलिए उस वक्त की उन लोगों की मानसिकता का सही आकलन करने में भी कामयाब हो जाऊंगा। फिर सोचूंगा कि उन्हें अभियुक्त बनाना है या नहीं। मगर अभी हमारे सामने वही सवाल सिर उठाये खड़ा है, जो पहले भी खड़ा था।”
“ये कि मधु और राहुल की हत्या किसने की?”
“जाहिर है, वैसे डॉयलाग रिपीट होने वाली बात का कोई मतलब समझ में आता है तुम्हारे?”
“आता क्यों नहीं है सर लेकिन सवाल ये है कि उसे हम साबित कैसे करेंगे? हां लाश जलाये जाने के इल्जाम में अगर सातों को हिरासत में लेकर कड़ाई से पूछताछ करें तो उम्मीद है कुछ ना कुछ सामने आकर रहेगा।”
“और समझ में क्या आया?”
“यही कि जिस वक्त नैना पर हमला हुआ मधु को भी उसी वक्त कत्ल कर दिया गया था। आगे किसी नामालूम जरिये से कातिल ने उसे ऊपर पहुंचाना शुरू किया और वह डॉयलाग प्ले कर के ये भ्रांति कायम की कि तब तक मधु जिंदा थी।”
“ये भी तो सोचो कि कातिल एक ही वक्त में छत पर और नीचे हॉल में, दोनों जगहों पर मौजूद नहीं रह सकता था। इसलिए जाहिर है नैना पर हमला करने वाला और मधु का कत्ल करने वाला कोई एक शख्स था, जबकि दूसरा वह था जो कि छत से कोई रस्सी वगैरह नीचे लटकाये बैठा था। आगे हुआ ये कि हॉल में मौजूद कातिल ने हत्या के बाद मधु की लाश को उस रस्सी से बांध दिया, जिसे ऊपर मौजूद शख्स खींचता चला गया।”
“रस्सी किसी को दिखाई क्यों नहीं दी सर?”
“पहली बात तो ये कि वहां रोशनी का इकलौता साधन मोबाईल के टार्च थे, जिनका प्रकाश ज्यादा ऊपर तक नहीं जा सकता था। और दूसरी बात ये कि रस्सी काली और पतली रही होगी, जो कि ऊपर पहुंच चुकी होने के कारण बाकी के लोग नहीं देख पाये होंगे। वैसे भी सबका बयान यही है कि मधु को छत की तरफ जाते उन लोगों ने दरवाजे पर खड़े खड़े देखा था, फिर दौड़कर उसके पास पहुंचे तब तक वह और ज्यादा ऊपर उठ चुकी थी। ऐसे में रस्सी का न दिखाई देना कोई बड़ी बात नहीं मानी जा सकती। फिर ये भी तो सोचो कि उस वक्त सब के सब डरे हुए होंगे, ऐसी बारीक बातों को नोट करने की स्थिति ही कहां थी उनकी?”
“अगर कातिल सातों में से कोई एक है तो वह जयदीप तो नहीं हो सकता न सर?”
“अब तो न के बराबर ही उम्मीद दिखाई दे रही है भई।”
“नैना ने बताया था कि उसका सिर फर्श पर पटकने वाले हाथ जनाना थे, मगर इस वक्त मुझे वह बात हल्की जान पड़ती है। इसलिए क्योंकि उस पूरे कारनामे को किसी लड़की का किया धरा मानने को मेरा मन तैयार नहीं हो रहा। बावजूद इसके अगर कातिल कोई लड़की ही है तो कौन थी? वाणी और ऐना तो उस वक्त चारों लड़कों के साथ गेट पर खड़ी थीं।”
“तो फिर वह कारनामा नैना का ही क्यों नहीं रहा हो सकता?”
“आप भी हद करते हैं सर। ये कोई मानने वाली बात है कि मधु का कत्ल करने के बाद खुद को शक से परे रखने के लिए उसने अपना सिर इतनी जोर से फर्श पर दे मारा कि बुरी तरह लहूलुहान हो गयी?”
“हमें क्या पता कि उसे कितनी चोट लगी थी जोशी साहब?”
“नहीं पता, लेकिन बाकियों ने उसकी हालत बयान की थी, जिससे यही लगता है कि चोट बहुत गंभीर लगी थी उसे। और ना भी लगी हो तो बाकी के चारों लड़के और दोनों लड़कियां तो उस वक्त गेट पर थे, फिर मधु की लाश को ऊपर किसने खींचा होगा?”
“यानि सब किया धरा किसी बाहरी शख्स का है, जो वहां छिपकर घात लगाये बैठा था, है न?”
“मुझे तो यही लगता है सर, मगर आपकी इस बात पर मुझे पूरा पूरा यकीन है कि कातिल कोई एक जना नहीं है। वहां जो कुछ भी घटित हुआ था उसमें कम से कम दो लोगों का एक्टिव रोल जरूर था, होने को ज्यादा भी रहे हो सकते हैं।”
“कुल मिलाकर हम एक बार फिर वहीं पहुंच गये हैं जहां से चलकर इतनी दूर आये थे। क्योंकि कल भी हम असल मिस्ट्री से अंजान थे और आज भी हैं।”
“फिलहाल तो यही लग रहा है सर। ले देकर एक नकुल ही है जिसपर हम हत्यारा होने का शक कर सकते हैं। क्योंकि इकलौता वही ऐसा आदमी था जो सातों दोस्तों के अलावा उस रात हवेली पहुंचा था।”
“मुखिया भी तो गया था अपने दोस्तों के साथ?”
“बेशक गया था सर, लेकिन उससे पूछताछ के बाद मुझे यकीन हो चला है कि मधु कोठारी के कत्ल से कम से कम उसका कोई लेना देना नहीं हो सकता। भले ही हवेली को शापित साबित करने के लिए कुछ भी किये बैठा हो।”
“ठीक है, अब थोड़ी देर के लिए मधु को भूलकर राहुल की बात करो। ये कैसे संभव हुआ कि कोई उसे लेकर आसमान में उड़ता चला गया? बल्कि किसी की बांह भी लगातार लंबी होती चली गयी।”
“उसमें भी कोई करतब ही हुआ होगा सर, जैसे कि मधु वाले मामले में हुआ, जिसका कुछ कुछ अंदाजा हम लगा ही चुके हैं। इसी तरह बाकी के दोस्तों से पूछताछ करेंगे तो देख लीजिए कोई ना कोई ऐसी बात जरूर निकल आयेगी जिससे वैसा हो पाना सहज जान पड़ने लगेगा। आखिर नकुल का चमत्कार भी तो करतब ही साबित हुआ है। हां एक बात तय है सर कि हत्यारा कोई नौजवान शख्स ही है, क्योंकि दोनों ही मामले में सबसे बड़ा हाथ उसकी चुस्ती-फुर्ती का दिखाई देता है, जो कि किसी उम्रदराज शख्स के अंदर नहीं हो सकती।”
“नौजवान, फुर्तीला, जैसे कि मनीराज गोपालन जो सर्कस के खिलाड़ियों की तरह रस्सी पर चल सकता है, जो मूविंग सब्जेक्ट के कंधे पर खड़ा हो सकता है। जिसकी तरफ जयदीप हमारा खास ध्यान खींचकर गया है। और सौ बातों की एक बात ये कि उसके पास कमजोर ही सही मधु के कत्ल की वजह मौजूद है।”
“बेशक मौजूद है सर, मगर सवाल तो फिर भी उठ खड़ा होता है कि अगर मधु का कत्ल उसने किया था तो उससे कहीं पहले राहुल को क्यों खत्म कर दिया? या अब आप इस बात पर विचार करने लगे हैं कि दोनों के कातिल दो जुदा शख्स हैं?”
“नहीं इस बात को तो तुम पत्थर की लकीर समझो जोशी साहब कि हत्यारा एक ही है। ये जुदा बात है कि वह अभी तक हमारी निगाहों से दूर है।”
“फिर तो मनीराज के कातिल निकल आने की संभावना कम ही दिखाई देती है।”
“एक काम करते हैं।”
“क्या सर?”
“पूरे मामले को रीकंस्ट्रेस्ट करते हैं। तुम डायरी और पेन लेकर बैठ जाओ, और जिस किसी खास बात का जिक्र उठे उसे हाथ के हाथ नोट कर लेना।”
“यस सर।”
“छह अक्टूबर से शुरू करते हैं। उस रोज पापी मंडली दस बजे के करीब अपने ताम झाम के साथ होटल ‘रॉयल ब्यूटी’ पहुंची......
एक बार वह डिस्कशन शुरू हुआ तो घंटों तक चलता रहा। बीच बीच में कई प्वाइंट ऐसे आये जिनपर दोनों ने लंबा तर्क वितर्क किया फिर किसी एक बात पर सहमत हुए जिसे जोशी ने डायरी में नोट कर लिया, जैसे कि मधु को हवेली के हॉल से कैसे गायब किया गया हो सकता है। कई प्वाइंट ऐसे भी रहे जिनपर तर्क वितर्क तो आधा-आधा घंटा चलता रहा, बीच में गूगल की भी मदद ली गयी, मगर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके, जैसे कि राहुल को लेकर कोई आसमान में कैसे जा सकता था?
आखिराकर शाम छह बजे के करीब दोनों ने थक हारकर हथियार डाल दिये। उनकी जानकारी में कोई इजाफा तो नहीं हुआ मगर तमाम घटनायें जेहन में ताजा हो आईं, जिसका कुछ ना कुछ फायदा तो पहुंचना ही था।
“ऐसे कैसे बात बनेगी सर?”
“बनेगी यार क्योंकि हमेशा बनती है।”
“आज से पहले ये ‘हमेशा’ किसी टाईम लाइन के साथ बंधा हुआ नहीं था, जबकि इस बार आपके पास गिने चुने घंटे ही बचे हैं।”
“मतलब?”
“भूल गये कि आपने एसीपी साहब के सामने कोठारी से क्या कहा था?”
“नहीं भई याद है।”
“तो क्या सच में टाईम लिमिट खत्म होते ही इस्तीफा दे देंगे?”
“तुम्हें क्या लगता है?”
“दे ही देंगे, क्योंकि अपनी बात से मुकरने वालों में से तो आप हैं नहीं।”
“अपनी नौकरी मुझे बहुत प्यारी है भई।”
“यानि दावे से मुकर जायेंगे?” जोशी ने हैरानी से पूछा।
“कातिल को दबोच लूंगा - कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ - चलो अब घर चलते हैं।”
“अभी तो बस सवा छह ही हुए हैं सर।”
“रोज लेट जाते हैं जोशी साहब तो एक दिन जल्दी जाना भी बनता है, चलो।
तत्पश्चात दोनों उठकर बाहर निकल गये।
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