सबकी औखें हैरत से फटी रह गई। ऐसा दृश्य न कभी किसी ने आज से पूर्व देखा था और न ही किसी ने कल्पना की थी। दृश्य को देखकर सबके रोंगटे खड़े हो गए। उनकी समझ में नहीं आया कि ये हो क्या रहा है ।
ठाकुर साहब अथवा रघुनाथ में से भी अभी तक किसी ने यह नहीं जाना कि हेलीकॉप्टर की सीढ़ी में भयानक छलावा अपराधी टुम्बकटू बंधा हुआ है। हेलीकॉप्टर अभी काफी ऊंचा था। उन्होंने महसूस किया कि कोई बड़े इत्मीनान के साथ हेलीकॉप्टर को समूचे राजनगर पर पुमा रहा है।
राजनगर का प्रत्येक निवासी इस आश्चर्यजनक परंतु खौफनाक दृश्य को देख रहा था।
अपनी कोठी में खड़ा हुआ विजय भी इसी दृश्य को देख रहा था, उसकी आखें हैरत से फैली हुई थीं। अभी तक वह भी न पहचान सका था कि सीढ़ी के नीचे लटका यह व्यक्ति टुम्बकटू है।
हेलीकॉप्टर ने तेजी के साथ समूचे राजनगर के दो चक्कर लगाए। इस बीच सीढ़ी हेलीकॉप्टर से विपरीत दिशा में उड़ रही थी। परंतु दो चक्कर लगाने के पश्चात अचानक हेलीकॉप्टर नीचे होता चला गया।
ज्यों ही हेलीकॉप्टर नीचा होकर कोतवाली की ओर बढ़ा, ठाकुर साहब इस प्रकार उछल पड़े, मानो उनके समीप ही कहीं भयानक विस्फोट हुआ हो।
उसी पल रघुनाथ और रैना की आंखों में उपस्थित हैरत के
भावों में वृद्धि हो गई। साथ ही उनके नेत्रों में भय की परछाइयां भी नृत्य करने लगीं। ठाकुर साहब एकदम चौंककर बोले ।
" अरे... यह तो टुम्बकटू है!"
और यही कारण था कि रघुनाथ और रैना की आंखों में भी भय नृत्य करने लगा। वे दोनों भी सीढ़ी से नीचे लटके टुम्बकटू को पहचान गए थे।
चौंकने की बात ये थी कि टुम्बकटू को वे इतनी शीघ्र इस अजीब स्थिति में देखेंगे, ऐसी किसी ने कल्पना भी न की थी, किंतु!
."लेकिन सर !" हड़बड़ाया-सा सुपर रघुनाथ बोला-----"मेरे विचार से विकास भी इसी के साथ होना चाहिए था।"
विकास का नाम आते ही रैना को ऐसा महसूस हुआ, जैसे किसी ने उसके सीने पर जोर से एक घूंसा मारा हो! वह तड़प उठी। इस अजीब दृश्य को देखकर तो वह अपने विकास को ही भूल गई थी। वैसे अभी तक उसकी दृष्टि हेलीकॉप्टर पर ही जमी हुई थी, जो निरंतर नीचा होता जा रहा था और उसका रुख कोतवाली की ओर ही था।
तब, जबकि हेलीकॉप्टर अत्यधिक नीचे आ गया, अचानक हेलीकॉप्टर के चालक विकास ने नीचे ठाकुर साहब, रघुनाथ और रैना की ओर देखा तथा चीखा।
"आपका अपराधी ले आया हूं दादाजी!"
उफ्!
कैसी भावनाएं उठी रैना के हृदय में !
अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में अश्क उभर आए। परंतु ये आंसू किसी एक भावना को प्रदर्शित नहीं करते थे बल्कि इनमें अनेकों भावनाओं का समावेश था । जिनमें जहां अपने बेटे को अनायास देखकर उसके नेत्रों में नीर उभर आया, वहां उन अश्कों में विकास के कार्य पर आश्चर्य भी था, गर्व भी था, परंतु भय भी था।
हजारों भावनाओं से रैना का हृदय तड़प उठा। उसकी स्थिति अजीब-सी हो गई ----वह अपने उस लाडले को देखती ही रह गई, जिसे देखने के लिए वह लालायित थी। परंतु उसे इस अजीब स्थिति में देखकर हजारों-लाखों भावनाएं उसके हृदय में मचली और परिणामस्वरूप उसके नेत्रों में अश्रु उभर आए । चाहते हुए भी वह एक शब्द भी न बोल सकी। उसके शब्द कंठ में ही दबकर रह गए।
स्वयं ठाकुर साहब और रघुनाथ की आंखें विकास को देखकर हैरत से फैल गई। उन्होंने आश्चर्य के साथ एक-दूसरे को देखा, मानो पूछ रहे हो, कि क्या वास्तव में हेलीकॉप्टर की चालक सीट से विकास ही बोला है? परंतु दोनों ही जानते थे कि वह विकास ही है। उनके नेत्रों में महान आश्चर्य था!
एकाएक ठाकुर साहब बुदबुदाए ।
----- "ये लड़का है या शैतान !"
-----"सर!" रघुनाथ भी आश्चर्य के साथ बोला-----"ये शैतान इस छलावे को कैसे पकड़ लाया?'' कहते हुए रघुनाथ के हृदय में भी अजीब-सी भावनाएं उठ रही थीं। एक ओर जहां उसे इस बात पर गर्व महसूस हो रहा था कि उसका पुत्र एक महान अपराधी को गिरफ्तार करके ला रहा है, वहां दूसरी ओर इस बात का भय था कि ये लड़का आखिर इतने भयानक कार्यों में हाथ ही क्यों डालता है? कहीं विकास किसी दिन...?
." विकास नें इस छलावे को गिरफ्तार कैसे कर लिया होगा?" ठाकुर साहब ऊपर हेलीकॉप्टर पर ही दृष्टि जमाए बुदबुदा रहे थे ।
रघुनाथ को एक अजीब-सा भय और गर्व - भरी खुशी अनुभव हो रही थी ।
रैना के नयनों में आश्चर्य, खुशी, गर्व तथा भय इत्यादि अनेक भावनाओं को संयुक्त रूप से लेकर नीर उभर आया था।
हेलीकॉप्टर और अधिक नीचे आ गया तो विकास ने हाथ हिलाकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास दिलाने का प्रयास किया। उत्तर में रैना ने जब रघुनाथ और ठाकुर साहब को हाथ हिलाते देखा तो बरबस ही उसका भी हाथ उठ गया और वह भी अपनी उपस्थिति का आभास देने लगी।
उसके हृदय की अजीब-सी स्थिति थी ।
देखते-ही-देखते हेलीकॉप्टर कोतवाली के लंबे-चौड़े प्रांगण में लैंड कर गया।
लोगों की भीड़ कोतवाली की ओर उमड़ आई थी।
सबसे पहले धीमे से टुम्बकटू फर्श पर आया और उसके बाद विकास ने हेलीकॉप्टर अधिक नीचा करके थोड़ा आगे बढ़ाया और उतार दिया।
लोगों की भीड़ पर पुलिस नियंत्रण कर रही थी।
हेलीकॉप्टर के लैंड करते ही रैना पागलों की भांति उस ओर लपकी।
उधर इंजन बंद करते ही विकास किसी बंदर की भांति उछलकर बाहर आया और रैना की ओर लपका।
मां अपने पुत्र की ओर लपकी, पुत्र लपका मां की ओर !
ममता और प्रेम का ये कैसा मिलन था?
मार्ग में ही वे मिले और रैना ने अपने पुत्र को गोद में लेकर अपने जोर-जोर से धड़कते सीने में छुपा लिया। रैना की आंखों में जैसे बाढ़ आ गई।
कुछ ही पलों पूर्व का शैतान मासूम बालक बनकर मां के वक्ष से जा लिपटा ।
रैना प्यार से विकास के समूचे जिस्म पर हाथ फेरने लगी, मानो देख रही हो कि इस खतरनाक कार्य में कहीं उसके लालको कोई खरोंच तो नहीं आ गई है!
मां और पुत्र के विचित्र परिस्थितियों में इस मार्मिक दृश्य को देखकर कुछ भावुक व्यक्तियों के नेत्रों से तो दो नन्हीं-नन्हीं सरिताएं बह चली। स्वयं ठाकुर साहब और रघुनाथ को ऐसा लगा, जैसे उनके नेत्रों में अश्क आना चाहते हों, परंतु शीघ्र ही उन्होंने स्वयं को संभाल लिया।
और वह खौफनाक छलावा तो बेचारा इस समय कुछ करने की स्थिति में था ही नहीं। अन्य लोगों को उसकी स्थिति पर कुछ क्षोभ था, जबकि वह आराम से अपने स्थान पर खड़ा मुस्करा रहा था।
और उस समय तो वह भी गद्गद होकर रह गया, जब उसने मां और पुत्र का वह मार्मिक मिलन देखा। उस समय टुम्बकटू के मस्तिष्क में एक अन्य यह बात भी आई कि कुछ पलों पूर्व भयानक शैतान लगने वाला ये विकास मां के वक्ष से लिपटा कैसा मासूम बालक-सा लग रहा है। टुम्बकटू सिर्फ मुस्कराकर रह गया।
"टुम्बकटू को संभालो।" ठाकुर साहब ने रघुनाथ को आदेश दिया और स्वयं रैना और विकास की ओर बढ़े। रैना अभी तक पागल-सी विकास के चेहरे के अनेकों चुंबन लिए जा रही थी।
ठाकुर साहब उनके करीब जाकर बोले ।
"रैना बेटी!"
-"जी!" ठाकुर साहब की आवाज ने जैसे रैना को भावनाओं के सागर से खींच लिया। वह एकदम खड़ी हो गई । विकास समीप ही खड़ा मुस्करा रहा था। रैना के नेत्रों में अभी भी आंसू देखकर ठाकुर साहब मुस्कराए और बोले।
"अरे पगली, अब भला ये आंसू क्यों? अब तो ये शैतान आ गया है और ये भी तुम देख रही हो कि कितने खतरनाक अपराधी को गिरफ्तार करके लाया है ? हमारी आज की बात याद रखना रैना बेटी, एक दिन विकास भारत का गौरव बनेगा।"
---"पिताजी!" भावावेश में डूबी रैना केवल यही एक शब्द कह सकी और ठाकुर साहब के सीने से जा चिपकी।
ठाकुर साहब प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगे।
. 'नहीं डैडी!" एकाएक विकास की आवाज ने सबको चौंका दिया----- ''इस तरह तो लंबू अंकल फिर भाग जाएंगे।"
सभी की निगाहें उस ओर उठ गई।
रघुनाथ टुम्बकटू को सीढ़ी से खोलना ही चाहता था कि विकास की आवाज पर उसके हाथ ठिठक गए। चौंककर उसने विकास की ओर देखा।
रैना और ठाकुर साहब का ध्यान भी उस ओर गया।
उन्होंने देखा कि दौड़ता हुआ विकास रघुनाथ के निकट पहुंचा और बोला-----"डैडी, लंबू अंकल को इस तरह नहीं खोलना चाहिए।"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"पहले लंबू अंकल से एक दिलजली सुनते हैं। क्यों अंकल?'' ये शब्द विकास ने टुम्बकटू की ओर देखकर आंख मारते हुए कहे थे।
उसकी यह हरकत सभी ने देखी और उसकी हरकत पर तो रैना भी बिना मुस्कराए न रह सकी, जबकि टुम्बकटू मुस्कराता हुआ कह रहा था।
''रैना भाभी-----धरती पर कोई बहादुर है तो सिर्फ आपका ये लड़का!"
***
रैना को टुम्बकटू का अपने से बोलना कुछ अजीब-सा लगा।
"विकास!" अचानक ठाकुर साहब उसे डांटते हुए कड़े स्वर में बोले ----- "तुम इन बातों से क्या लेते हो, चलो इधर आओ, ये हमारा काम है, हम खुद संभाल लेंगे।" 1
--"दादाजी!'' विकास शरारत के साथ बोला ----- "आप लंबू अंकल को दिलजली नहीं सुना सकते।" कहकर विकास वहां से हटकर रैना के पास आ गया था।
"जाओ रैना बेटी!" ठाकुर साहब बोले ---- "इस शैतान को घर ले जाओ-----जाओ विकास, बिना किसी शरारत के मम्मी के साथ घर जाओ।"
"वो तो मैं जा रहा हूं दादाजी! परंतु ये हेलीकॉप्टर मैं एयरपोर्ट से ले गया था, इसे भिजवा देना।"
"हमें रिपोर्ट मिल चुकी थी, तुम जाओ।"
-----"अच्छा लंबू अंकल, फिर मिलेंगे।" विकास रैना के साथ चलता हुआ टुम्बकटू से संबोधित होकर बोला ।
'अगली मुलाकात पर टक्कर भयानक होगी प्यारे शैतान!" टुम्बकटू मुस्कराकर बोला।
-----"शैतान छलावे से डरता नहीं है अंकल ! " वह चलता-चलता बोला।
- "इसीलिए तो छलावे को शैतान पसंद है। "
"ओके अंकल!" विकास रैना के साथ बाहर निकलता हुआ बोला-----"फिलहाल विदा।" और वह कोतवाली के बाहर निकल गया।
अभी वह और रैना एक टैक्सी में बैठने ही जा रहे थे कि अनेक पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया तथा विकास से बोले ।
----- "हम आपका इंटरव्यू लेना चाहते हैं । "
-''घर पर मिलना।'' कहता हुआ विकास रैना के साथ टैक्सी में बैठ गया।
टैक्सी एक झटके के साथ आगे बढ़ गई।
पत्रकारों के चेहरों पर बारह बजे हुए थे।
ठाकुर साहब टुम्बकटू को रघुनाथ की सुरक्षा में छोड़कर किसी आवश्यक कार्य पर चले गए।
रघुनाथ ने टुम्बकटू को कोतवाली के ही एक कमरे में डलवा दिया और अपनी ओर से उसकी पूर्ण सुरक्षा कर दी।
इस समय रघुनाथ फूला नहीं समा रहा था। इतने छोटे पुत्र द्वारा ऐसा महान कार्य किए जाने पर भला कौन बाप खुश न होगा? किंतु एक तरफ उसके हृदय में धीमा-धीमा-सा यह भय था कि ये जरा-सा लड़का बिना किसी लोभ के इतने खतरनाक कार्यों में हाथ डाल देता है, कहीं वह किसी खतरे में फंसकर !
खैर इससे आगे वह नहीं सोच सका, क्योंकि तभी नारा लगाते हुए विजय ने प्रवेश किया- ."हैलो प्यारे तुलाराशि यानी कलयुगी सत्यानाशी!"
विजय की हरकत और वाक्य सुनकर रघुनाथ की भृकुटी तन गई। वह विजय को बुरी तरह घूरता हुआ बोला ----- "ये क्या बदतमीजी है?"
."किसी पंडत से पूछकर बताएंगे।" कहता हुआ विजय मेज के दूसरी ओर सामने की कुर्सी पर बैठ गया।
"यहां क्यों आए हो?" रघुनाथ रूखे स्वर में बोला।
-- "अमा यार तुलाराशि, तुम्हें क्या हो गया है ? " विजय बोला- "तुम तो मेरे पीछे ऐसे पड़ गए, जैसे झगड़ालू लुगाई अपने पति का बंटाधार कर देती है। "
"ये कोतवाली है, बकवास मत करो।" रघुनाथ ने डांटा।
"तो फिर झकझकी चलेगी?'
"बको मत।" रघुनाथ का पारा उसी तरह हाई हुआ, जैसे थर्मामीटर को चाय में रखने से।
"सुना है, तुमने उस साले नमूने को गिरफ्तार कर लिया है।" विजय विषय परिवर्तन करके बोला।
." पुलिस के पंजे से कहां जाता?" विजय का वाक्य सुनकर रघुनाथ का सीना चौड़ाकर दूना हो गया। उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे स्वयं उसी ने टुम्बकटू को गिरफ्तार किया हो ।
दूसरी ओर विजय उसी प्रकार मस्का लगाता हुआ बोला।
"क्यों नहीं रघु डार्लिंग, आखिर तुम्हें भी काम करते
वर्षों हो गए।
पहले तो रघुनाथ विजय को घूरता रह गया, मानो वह जान गया हो कि विजय उसको खींच रहा है। अत: फिर अकड़कर बोला। -----"लेकिन तुम्हें इन बातों से क्या मतलब?"
----- " मैं उस साले नमूने के दर्शन करना चाहता हूं।"
पहले तो रपुनाथ उसे घूरता रहा, फिर न जाने क्या सोचकर बोला-----"चलो।"
कहने के साथ ही रघुनाथ उठ खड़ा हुआ। साथ ही विजय भी।
अभी वे ऑफिस के दरवाजे तक ही पहुंचे थे कि !
"आप लोग क्यों कष्ट कर रहे हो? मैं स्वयं यहां आ गया हूं।"
इस वाक्य पर वे दोनों इस बुरी तरह चौंके, मानो अचानक उन्हें कोतवाली में ताजमहल चमक गया हो!
इस आवाज को लाखों में पहचाना जा सकता था। आवाज शत-प्रतिशत टुम्बकटू की थी।
रघुनाथ और विजय, दोनों ही एक झटके के साथ पीछे घूम गए।
पीछे घूमते ही विजय को जहां थोड़ा आश्चर्य हुआ, वहां
रघुनाथ की आंखें तो आश्चर्य से फैल गई। विजय मूर्खों की भांति पलकें झपका रहा था।
उनके पीछे उसी कुर्सी पर जहां कुछ ही क्षणों पूर्व स्वयं रघुनाथ बैठा था, वहां इस समय वह पतला-दुबला, हड्डियों का ढांचा टुम्बकटू अपना सात फुटा गन्ने जैसा पतला जिस्म लिए न सिर्फ बैठा था, बल्कि उसने अपनी लंबी-लंबी सिगरेट जैसी टांगें सामने मेज पर फैला रखी थीं और वह बड़े आराम से अपनी विचित्र चौखुंटी सिगरेट सुलगा रहा था।
उसे देखकर वे दोनों ही आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगे, परंतु जहां रघुनाथ उस सागर में डूबता जा रहा था, वहां विजय ने स्वयं को निकाला और बोला-----"तो मियां ठुम्मकठू! तुम यहां भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आए।" कहता हुआ विजय उसके सामने उसी कुर्सी पर बैठ गया जहां वह पहले बैठा था।
रघुनाथ तो अभी तक अवाक-सा उस नमूने को देख रहा था ।
"मैंने कोई हरकत नहीं की है मिस्टर विजय!'
टुम्बकटू उसी प्रकार आराम से कुर्सी पर पसरता हुआ बोला-----"आप लोग मुझसे मिलने जा रहे थे, सोचा कि क्यों बेकार आप लोगों को कष्ट दूं! अर्थात स्वयं ही चला आया।"
-----"तो इसका मतलब ये हुआ मियां ठुम्मकठूं कि तुम हमारा बहुत ख्याल रखते हो। "
.'' मैं भला किस लायक हूं।" टुम्बकटू ने उसकी बात का जवाब दिया तथा फिर रघुनाथ से संबोधित होकर ----
बोला-----''अरे मिस्टर रघुनाथ, आप अभी तक खड़े क्यों हैं? आराम से बैठिए । "
टुम्बकटू के वाक्य पर रघुनाथ एकदम जैसे नींद से जागा। वह एकदम चौंककर बोला।
."तु... तुम यहां कैसे आ गए?"
'आराम से बैठकर बात करो।" टुम्बकटू मुस्कराकर बोला।
रघुनाथ इस विचित्र व्यक्ति की हरकतों और साहस पर आश्चर्यचकित रह गया। उसे तो सूझ भी नहीं रहा था कि वह क्या करे? उसने अपने पिछले जीवन में कभी ऐसा विचित्र व्यक्ति नहीं देखा था। वह अभी कुछ सोच ही रहा था कि विजय अपने समीप ही की कुर्सी की ओर संकेत करके बोला ।
." बैठ जाओ प्यारे तुलाराशि!"
आश्चर्य के सागर में डूबा रघुनाथ चुपचाप बैठ गया।
-"अब सुनाओ प्यारे ठुम्मकरूं, क्या हाल हैं?''
"हाल ही क्या है प्यारे झकझकिए !' टुम्बकटू आराम से पैर पसारकर बोला-----"ये मानना पड़ेगा कि विकास कल के हिंदुस्तान का ही नहीं, बल्कि विश्व का गौरव होगा। वास्तविकता तो ये है कि वह लड़का मुझे गिरफ्तार करने में इसलिए कामयाब हो गया, क्योंकि मैंने स्वयं उसे अवसर दिया। "
"बेटा ठुम्मकठू!" विजय बोला-----"ये तो कहने की बात है, जब हमारे भतीजे ने तुम्हारी सारी दादागिरी झाड़ दी तो अब ये कह रहे हो कि तुम जानकर ही गिरफ्तार हुए।"
."ये तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा प्यारे झकझकिए!" टुम्बकटू सिगरेट का हरा धुआं लापरवाही के साथ उड़ाता हुआ बोला ----- "ये मैं वास्तव "ये मैं वास्तव में मान गया कि विकास इस - छोटी आयु में ही खौफनाक शैतान है, लेकिन तुम्हें यह भी मानना पड़ेगा कि अगर मैं उसे वास्तव में ढील न देता तो वह कुछ भी नहीं कर सकता था।"
'अब इस खोखली दादागिरी से कुछ नहीं होता, प्यारे ठुम्मकठू!"
."ये मैं तुम्हें इसी वक्त बता सकता हूं कि यह बात कहां तक सही है और कहां तक गलत?"
***
-----"वह कैसे ?"
- ''इन जूतों को देख रहे हो।" टुम्बकटू अपने विचित्र जूतों की ओर संकेत करता हुआ बोला----- "ये वो जूते हैं, जो हर समय मेरे पैरों में रहते हैं और मेरे एक संकेत पर ये किसी भी व्यक्ति को मौत की गहरी नींद सुला सकते हैं। "
-----"वो कैसे प्यारे?"
---- "यह तो खैर वक्त बताएगा, परंतु फिलहाल इतना समझ लो कि टुम्बकटू पर उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी हाथ नहीं डाल सकता। ये सच है कि विकास काफी चतुर, समझदार और करामाती लड़का है और उसने मुझे गिरफ्तार करते समय इतनी बुद्धिमानी अवश्य दिखाई है कि मैं कुछ हरक्त न कर सकूं किंतु वह बेचारा नहीं जानता था कि जूतों की करामात दिखाने में मुझे कोई विशेष हरकत नहीं करनी पड़ती। अत: मैं अगर चाहता तो इन जूतों की करामात से विकास को क्षणमात्र में उसके कार्य में विफल कर सकता था, परंतु मैंने उसे इस बात का अवसर दिया कि वह कुछ कर सके और वास्तव में वह लड़का बहुत ही चतुर है । "
"अब अगर ."ये तो सब बहानेबाजी है ठुम्मकटूं!' तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आएगा तो तुम्हारे पास ये शब्द कहने के अतिरिक्त कुछ नहीं, लेकिन इतना मैं भी मानता हूं कि विकास से प्रारंभिक टक्करों में मैंने अपनी ओर से उसे ढील दी, परंतु उस वक्त वास्तव में उसने मुझे नर्वस कर दिया, जब पेड़ की लकड़ियों और डोरी में उसने मुझे कस लिया। मैं, उस स्थिति में बिल्कुल ही असफल हो गया था। उस स्थिति के पश्चात मैं कुछ करना चाहकर भी कुछ न कर सका और वह विचित्र ढंग से मुझे यहां ले आया, किंतु अब मैं फिर यहां हूं।"
"मेरी समझ में यह नहीं आता प्यारेलाल कि आखिर तुम चाहते क्या हो ?"
."सिर्फ मनोरंजन कर रहा हूं।" टुम्बकटू उसी प्रकार लापरवाही से बोला ।
इससे पूर्व कि विजय कुछ कहता, एक इंस्पेक्टर हड़बड़ाया-सा कमरे में प्रविष्ट हुआ, किंतु अंदर प्रविष्ट होते ही रघुनाथ वाली कुर्सी पर टुम्बकटू को देखते ही वह बुरी तरह बौखलाकर ठिठक गया और बोला---- "स... साब.. य... ये । "
"हां प्यारे !" विजय इंस्पेक्टर की ओर घूमकर बोला-----"ये तुम्हारे चिड़ियाघर से निकलकर यहां आ गया और तुम हमें यह रिपोर्ट अब देने आए हो।"
इंस्पेक्टर की आंखों में हैरत के भाव थे।
---"मिस्टर झकझकिए!" टुम्बकटू बोला---- "अब देखो इस जूते का कमाल।"
अभी कोई कुछ समझ भी न पाया कि वहां बेहद फुर्ती के साथ दो ध्वनियां हुई।
टुम्बकटू के शब्दों के साथ ही!
'सन्न... न.....न...न'
एक तीव्र ध्वनि के साथ पलक झपकते ही टुम्बकटू के दाएं जूते के अग्रिम भाग से निकलकर एक सिक्का इंस्पेक्टर के मस्तिष्क से जा चिपका। यह सिक्का अत्यधिक चमकीला और आकार में पचास पैसे के सिक्के के बराबर था ।
ज्यों ही वह चमकीला सिक्का इंस्पेक्टर के माथे पर चिपका, उसी पल इंस्पेक्टर के कंठ से एक हृदयविदारक खौफनाक चीख निकली।
विचित्र दृश्य को देखकर विजय स्वयं चकरा गया।
वह चमकीला सिक्का इंस्पेक्टर से ठीक बिल्कुल उस प्रकार चिपका था कि जैसे किसी ने चिपका दिया हो, बल्कि उस सिक्के के नीचे के मस्तिष्क का मांस जलने लगा और धुआं निकलने लगा। धुएं का रंग दूध की भांति सफेद था।
इंस्पेक्टर इस तरह तड़पा कि कड़े-से-कड़े दिल वाले को भी घृणा हो जाए। वह इस प्रकार दयनीय स्थिति में तड़पा था, मानो उसका जिस्म भयानक आग में जल रहा हो। वह तड़पता हुआ इधर-उधर घूम रहा था। साथ ही बुरी तरह चीख रहा था।
उसकी चीखें सुनकर वहां उपस्थित अन्य लोग भी हड़बड़ाए-से वहीं दौड़कर आए, परंतु इंस्पेक्टर को इस प्रकार तड़पता देखकर सब उसे भयभीत दृष्टि से देखने लगे।
चीखते हुए इंस्पेक्टर ने अपने हाथ से माथे पर चिपका वह चमकीला सिक्का छुड़ाने का प्रयास किया, परंतु सिक्के से हाथ स्पर्श होते ही उसके हाथ से भी वैसा ही सफेद सुआ निकलने लगा और उसी पल वह बुरी तरह तड़पता हुआ फर्श पर गिरा।
फर्श पर पड़ा हुआ इंस्पेक्टर इस तरह बिलबिला रहा था मानो छिपकली की कटी पूंछ ।
कुछ ही पलों में वह शांत हो गया। वहां मौत का सन्नाटा था।
सब लोग हैरत के साथ इंस्पेक्टर के शव को देख रहे थे । वह चमकीला सिक्का उसके माथे पर उसी प्रकार चिपका था। हुआ
." इसे दुनिया के झंझटों से आजादी मिल गई है।" वहां छाया सन्नाटा टुम्बकटू ने भंग किया। सबकी गरदनें एक ने झटके के साथ टुम्बकटू की ओर घूम गई ।
और वह खतरनाक नमूना टुम्बकटू उसी प्रकार आराम से बैठा इस प्रकार मुस्करा रहा था मानो कुछ हुआ ही न हो। वह फिर बोला-----"टुम्बकटू एक बार पलक झपकने में दस खून कर सकता है मिस्टर झकझकिए ! "
'तुम्हारा खून भी उतने ही समय में हो सकता है लंबू अंकल!"
अचानक विकास की आवाज ने सभी को बुरी तरह से चौंका दिया। यहां तक कि स्वयं टुम्बकटू भी उछल पड़ा, परंतु कुछ
हरकत न कर सका, क्योंकि उसकी दोनों पसलियों में दो रिवॉल्वरों की सख्त नालें चिपकी हुई थीं।
विकास उसकी कुर्सी के पीछे से प्रकट हुआ था। उसके हाथ में दो रिवॉल्वर थे। सब आश्चर्य के साथ उस सुंदर और खतरनाक लड़के को देखते रह गए।
जबकि विकास दोनों रिवॉल्वरों का दबाव बढ़ाकर बोला ।
." अगर तुम छलावे हो अंकल, तो मुझे भी लोग शैतान कहते हैं।"
." मानते हैं भतीजे, कि तुम वास्तव में शैतान हो । " टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्कराता हुआ बोला ।
'अंकल, छलावे से कम आप भी नहीं।" विकास अभी कह ही रहा था कि सभी एक बार फिर बुरी तरह चौके। लाख सतर्क रहने के पश्चात भी विकास कुछ न कर सका।
एक ही झटके के साथ विकास के रिवॉल्वर उसके हाथ से
निकलकर टुम्बकटू के नाखूनों में आ चिपके।
और उसी समय!
जांबाजों के गुरु विजय ने एक भयानक हरकत की।
वह फुर्ती और भयानक तरीके से लहराकर टुम्बकटू पर लपका।
-----"ओफ्फो!'' टुम्बकटू पास ही खड़ा कह रहा था ----- "यार, तुम तो बैठने भी नहीं देते। "
और एक विजय था कि वह खाली कुर्सी पर जाकर गिरा। साथ ही झटके के साथ कुर्सी को लिए लिए वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा।. -
तभी विकास फुर्ती के साथ टुम्बकटू पर झपटा।
- "तुम भी बेवकूफी दिखाने के भतीजे।" अचानक टुम्बकटू बोला और साथ ही एक झन्नाटेदार चपत विकास के गोरे, गाल पर रसीद कर दिया।
विकास के नेत्रों के आगे क्षणमात्र के लिए लाल-पीले तारे नाचे और फिर गाढ़ा अंधकार छाता चला गया। अंत में वह अचेत होकर गिर गया।
उसके बाद !
उस छोटे-से ऑफिस में भयानक उत्पात जारी हो गया।
लगभग सभी इंसान टुम्बकटू को दबोचना चाहते थे, परंतु एक टुम्बकटू था कि वास्तव में किसी छलावे से भी अधिक भयानक तेजी के साथ उछल-उछलकर सबको छका रहा था।
सब उस पर झपटते, किंतु आपस ही में भिड़कर रह जाते। जबकि वह भयानक सात फुटा लंबा-पतला छलावा किसी अन्य स्थान पर खड़ा कोई ऐसा वाक्य कहता पाया जाता-----जो उन लोगों के क्रोध की जलती अग्नि में घी जैसा कार्य करता।
परंतु आग प्रचंड होकर भी कुछ कर नहीं पाती।
टुम्बकटू को छूना मानो हवा को छूना था। प्रत्येक वाक्य के साथ किसी-ना- किसी को उसका झन्नाटेदार चपत पड़ता, परिणामस्वरूप उसकी आंखों के सामने गाढ़ा, काला अंधकार छा जाता।
रघुनाथ टुम्बकटू के चपत का शिकार हो चुका था।
परिणाम लिखने की आवश्यक्ता नहीं !
छोटा-सा ऑफिस पल भर में अस्त-व्यस्त हो गया। -
विजय अभी कुछ करना ही चाहता था कि एकदम ठिठकं गया।
लगभग सभी के हाथ जहां-के-तहां थम गए। स्वयं टुम्बकटू के भी! सबका ध्यान एक ओर ही केंद्रित था।
ये तो उनमें से कोई नहीं जानता था कि संगीत की ये मदहोश कर देने वाली शहद से भी अधिक मघुर लहरें समूची कोतवाली में गूंज रही हैं अथवा नहीं ----- लेकिन इतना सब जानते थे कि इस ऑफिस में निस्सन्देह गूंज रही हैं।
संगीत की ये लहरें इतनी मीठी, इतनी अधिक मदहोश कर देने वाली थीं कि वहां उपस्थित प्रत्येक इंसान ने ऐसा महसूस किया मानो वे इन मधुर लहरों की तरंगों के सागर में डूबते जा रहे हों! धीमा-धीमा मधुर संगीत जैसे सबके दिल में उतरता जा रहा था! सभी अवाक् से होकर संगीत की लहरों में खो गए!
***
स्वयं टुम्बकटू और विजय को सिर्फ संगीत के सिवाय कुछ याद नहीं रहा ।
अचानक संगीत की लहरों में धीमे-धीमे झमाके होने लगे। और फिर वहां-----उस ऑफिस में एक ऐसा मीठा स्वर गूंजा, जिसमें संसार का समूचा मधु घुला था।
मानो कोई शहद लोगों के कानों के माध्यम से उनके कंठ में उतरता चला जा रहा हो !
." उपस्थित सज्जनों को जैक्सन का प्रणाम।'
विजय के साथ ही टुम्बकटू भी चौक पड़ा।
."हाय मम्मी!" विजय उछलकर बोला---- "लेकिन तुम हो कहां?" .
. "इस समय तुम सिर्फ मेरी आवाज सुन सकते हो।" प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड का अत्यधिक मधुर स्वर गूंजा-----"क्योंकि मैं मर्डरलैंड से बोल रही हूं।"
----- "मम्मी... ये साला मर्डरलैंड तुम बार-बार नई-नई जगह बनाती हो।"
-"मिस्टर विजय!" जैक्सन का फिर वही मधुर स्वर गूंजा ----- "फिलहाल अधिक समय नहीं है। मैं मर्डरलैंड के वफादार जांबाजों को टुम्बकटू को लेने के लिए भेज रही हूं।"
"मुझे तुम्हारी प्रतीक्षा थी जैक्सन!" अचानक टुम्बकटू बोला-----''मुझे तुम्हारी और सिंगही दोनों ही की प्रतीक्षा थी ----- परंतु कोई बात नहीं, पहले तुम आ गई हो तो टुम्बकटू दिल से तुम्हारा स्वागत करता है। "
. - "मिस्टर चांद के अपराधी!" जैक्सन की मधुर आवाज फिर गूंजी-----"मानते हैं कि तुम काफी अच्छी-अच्छी प्रतिभाओं के मालिक हो और वास्तव में तुमने इन प्रतिभाओं से चांद की सरकार को हिला दिया होगा-----परंतु ध्यान रखो कि धरती के एक छोटे-से मर्डरलैंड के लिए तुम, एक चिराग के इर्द-गिर्द मंडराते अनेक कीड़ों में से किसी एक कीड़े जैसी हैसियत भी नहीं रखते।"
." देख रहा हूं कि धरती के लोगों में प्रतिभा कम है और गर्व अधिक।" इस अजीब नमूने ने अपनी विचित्र सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
."मैं पहले ही कह चुकी हूं मिस्टर चांद के अपराधी, कि इस समय जैक्सन के पास समय बहुत कम है। अत: शेष बातें मर्डरलैंड में होंगी।"
." लेकिन मैं मर्डरलैंड पहुंचूंगा कैसे?"
"इस ऑफिस के बाहर मेरे ऐजेंट तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। "
'ओके जैक्सन!'' एकाएक टुम्बकटू ने कहा और विजय को चपत मारता हुआ वह अन्य लोगों के सिर के ऊपर से लहराता हुआ कमरे से बाहर निकल गया।
विजय की आंखों के आगे लाल-पीले तारे नाच गए, परंतु वह स्वयं के अचेत होने से भी शीघ्रता से बाहर की ओर लपका, किंतु इसका क्या किया जाए कि उससे पूर्व ही वह खौफनाक छलावा दरवाजा बाहर से बंद कर चुका था।
विजय सिर्फ दरवाजे से टकराकर रह गया।
खौफनाक छलावा भयानक जंप के साथ बाहर तो आ गया, परंतु बाहर आते ही वह बुरी तरह चौंक पड़ा।
यह पहला अवसर था, जब टुम्बकटू चौंका था।
और वास्तव में उसके सामने का दृश्य ही ऐसा था कि उसका चौंकना स्वाभाविक हो गया। यह तो वह जानता था कि बाहर जैक्सन ने उसे गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछा रखा है, परंतु यह उसने स्वप्न में भी कल्पना न की थी कि जाल इतना विचित्र और खौफनाक होगा।
उसका विचार था कि खौफनाक जांबाज उसे घेरेंगे, परंतु बाहर का दृश्य एकदम आश्चर्यजनक था।
स्वयं टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म ऐसे कांपकर रह गया, जैसे खेत में खड़ा इकलौता गन्ना हवा के एक तीव्र झोंके के साथ थरथरा गया हो।
उसने ध्यान से सामने के दृश्य को देखा।
चारों ओर सूं... सूं... की तीव्र धनियां गूंज रही थी। उसके चारों ओर कुछ विचित्र भयानक और विशाल आकृतियां खौफनाक ढंग से उसे घूर रही थी। चारों ओर एक विचित्र - सी दुर्गध फैली हुई थी। ऐसी दुर्गध, जिससे ऐसा महसूस होता मानो मस्तिष्क फट पड़ेगा! तीव्र मवाद-भरी दुर्गध टुम्बकटू के नथुनों में से होती हुई उसके मस्तिष्क में चली गई। न चाहते हुए भी उसका मुंह बन गया।
परंतु इस दुर्गध को भुलाता हुआ टुम्बकटू सतर्क हो गया। उसे नहीं मालूम था कि इन खौफनाक आकृतियों से टकराया कैसे जाएगा।
वे भयानक और घिनौनी आकृतियां अत्यधिक विशाल थी । उनका समूचा जिस्म मेढक की भांति हरा और चिकना था।
चारों पंजे भी ठीक मेढक ही की भांति थे ! उंगलियां किसी बत्तख की उंगलियों की भांति एक झिल्ली से जुड़ी हुई थीं ! सब कुछ अजीब!
परंतु मेढक जैसे जिस्म पर चेहरा इंसान का था!
परंतु आम, इंसानों के चेहरे से दुगना बड़ा।
उनके साँस लेने के कारणं सूं... सूं... की ध्वनि हो रही थी---- जो वहां गूंजती हुई अत्यधिक भयानक लग रही थी ! उनके जिस्मों से ऐसा गाढ़ा और चिपचिपा तरल पदार्थ बह रहा था, जिसे देखते ही घृणा होने लगती। यह तरल पदार्थ उनके जिस्मों में इस प्रकार बह रहा था, मानो कोढ़ी के जिस्म से कोढ़ बहता हो !
कदाचित यह दुर्गध उस तरल चिपचिपे पदार्थ ही से उठ रही थी।
लगभग दस खौफनाक मेढक इंसान, अपनी गोल-गोल आंखों से उसे घूर रहे थे। टुम्बकटू प्रत्यक्ष में भले ही सिगरेट के कश लगा रहा था, परंतु वास्तव में वह अपनी समूची इंद्रियों के साथ पूर्णतया सतर्क था।
वह अभी समझ भी नहीं पाया था कि ये 'मेढक इंसान' उसे पर किस प्रकर हमला करेंगे और उसे उनसे किस ढंग से निबटना है। अत: वह हर प्रकार के खतरे का सामना करने हेतु सतर्क खड़ा हो गया। चारों ओर फैली दुर्गध से उसका मस्तिष्क फटा जा रहा था। सूं... सूं... की ध्वनि बड़ी खौफनाक प्रतीत होती थी।
अचानक! बिल्कुल अचानक!
-"खै... ब... ड़ा।" एक मेढक इंसान ने कंठ से एक अत्यधिक भयानक दिल को हिला देने वाली डकार निकाली और साथ ही वह घिनौना जीव किसी जबरदस्त बाज की भांति टुम्बकटू पर झपटा।
परंतु टुम्बकटू, यानी खौफनाक छलावा!
ये चांद का भयानक अपराधी भला इतना शरीफ कहां था कि इस सरलता से मेढक इंसान के रूप में छिपी उस भयानक मौत के पंजे में फंस जाता! उसे न जाने क्यों ऐसा लगा था कि अगर वह एक बार भी इन भयानक, घिनौने और दुर्गधयुक्त जीवों के पंजे में फंस गया तो मौत ही उसे मुक्त करा सकेगी।
अत: अगले ही पल वह खौफनाक छलावा एक अन्य स्थान पर खड़ा बड़े इत्मीनान के साथ अपनी अजीब सिगरेट में क्या लगा रहा था। जबकि वह भयानक शक्तिशाली जीव धड़ाम से किसी विशाल पहाड़ की भांति उस रिक्त फर्श से टकराया। जहां कुछ ही पल पूर्व टुम्बकटू आराम फरमा रहा था।
***
“खैबड़ा!" फिर एक भयानक डकार ।
फिर एक मेढक इंसान टुम्बकटू पर झपटा।
परंतु खौफनाक छलावा बेहद खौफनाक था।
ऐसा लगता था कि मानो. मौत भी उसके पास आने से कांपती है।
यानी परिणाम फिर वही ।
टुम्बकटू किसी अन्य स्थान पर खड़ा सिगरेट के कश लगा रहा था, जबकि मौत उस खाली फर्श पर चिपकी हुई थी, जहां टुम्बकटू को होना चाहिए था।
उसके बाद !
मानो वह स्थान कोतवाली का प्रांगण न होकर फ्री-स्टाइल कुश्ती का अखाड़ा रहा था ।
मौत और छलावे की दिल को कपकपा देने वाली जंग जारी थी।
मौत छलावे पर झपटती, परंतु छलावा उस समय कहीं और होता। छलावा एक यानी सिर्फ टुम्बकटू था ---- जबकि' मौत अनेक 1
प्रत्येक मौत उस पर झपटती----परंतु खौफनाक छलावा
मानो उनसे आंख-मिचौली खेल रहा था। हर बार टुम्बकटू प्रत्येक मेढक इंसान को मात देता रहा था।
अगले ही कुछ क्षणों में ।
वहां मौत को भी कपकंपा देने वाला भयानक युद्ध हो रहा था!
मेढक इंसान टुम्बकटू पर झपटते, जबकि उनका प्रत्येक वार खाली जाता।
परंतु शीघ ही टुम्बकटू जान गया कि वह इस प्रकार अधिक देर तक मेढक इंसानों के रूप में आई इन साक्षात मौतों को अधिक देर धोखा नहीं दे सका। किसी भी बार अगर वह किसी भी मेढक इंसान के पंजे में फंस गया तो केवल उसका शव ही उस पंजे से मुक्त हो सकेगा।
क्योंकि अब वह देख रहा था कि मेढक इंसान भी उस पर यूं ही शक्ति के घमंड में न झपटकर बुद्धि का उपयोग कर रहे थे अत: अब वे उसके चारों ओर एक व्यूह का निर्माण कर रहे थे और बड़ी सतर्कता के साथ उस पर जंप लगा रहे थे।
यह बात टुम्बकटू ने भी अनुभव कर ली। अत: वह निश्चय कर चुका था कि अब आंख-मिचौली खेलने के स्थान पर मौत का खेल खेलेगा।
उसके बाद!
जैसे ही एक मेढक इंसान भयानक तरीके से उस पर झपटा। मेढक इंसान की भयानक डकार के साथ एक अन्य आवाज ।
----"सन्न...न...न" की तीव्र ध्वनि के साथ टुम्बकटू के जूते से चमकदार सुनहरा सिक्का निकला... क्षणमात्र के लिए तेजी से घूमता हुआ वायु में लहराया और अगले ही पल वह अत्यधिक चमकदार सुनहरा सिक्का झपटने वाले मेढक इंसान के माथे पर किसी जोंक की भांति चिपका हुआ था।
अगले ही पल उस स्थान से सफेद बुझा निकलने लगा और फिर वह मेढक इंसान बड़े ही दयनीय ढंग से तड़पने लगा। उसके कंठ से अजीब-अजीब और भयानक आवाजें निकल रही थी---- परंतु टुम्बकटू ने उस पर कोई विशेष ध्यान न दिया तभी!
एक अन्य मेढक इंसान झपटा ।
'सन्न....न.... न्!'
फिर उसी ध्वनि के साथ एक अन्य चमकदार सुनहरा सिक्का निकलकर मेढक इंसान के माथे से जा चिपका।
उसका परिणाम भी लिखने की आवश्यकता नहीं ।
तभी...उसी पल !
मानो टुम्बकटू की मौत का पल।
उसके पीछे-से एक मेढक इंसान झपटा।' इतना समय नहीं था कि वह पीछे घूमकर सिक्के का वार उस पर करता। अत: खौफनाक छलावा अगले ही पल वायु में नजर आया और फिर लहराता हुआ वह कोतवाली की छत पर पहुंच गया।
परंतु उफ!
यहां खौफनाक छलावा मात खा गया।
अगले ही पल वह मौत के पंजे में था।
इस बात खी तो उसने कल्पना भी न की थी।
वह तो नीचे की मौत को धोखा देकर ऊपर गया था, परंतु इस बात का उसको स्वप्न में भी ख्याल नहीं था कि ऊपर एक अन्य मौत उसकी प्रतीक्षा कर रही है।
हुआ यूं कि खौफनाक छलावा अपनी भयानक फुर्ती के साथ लहराता हुआ कोतवाली की छत पर पहुंचा, परंतु इसका क्या किया जाए कि वहां पहले ही एक मेढक इंसान मौत बनकर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
इससे पूर्व कि टुम्बकटू समझ सके, उस भयानक मेढक
इंसान का जबड़ा खुला और अगले ही पल वह गन्ने जैसा लंबा-पतला खौफनाक छलावा मेढक इंसान के जबड़ों के बीच फंसा हुआ था।
स्वयं टुम्बकटू चकराकर रह गया।
अब वह बिल्कुल नर्वस स्थिति में था। अत: कुछ कर नहीं सका।
यह भी उसने महसूस किया कि कोई मेढक इंसान उसके जूते के निशाने पर नहीं है, वह जान गया कि इस समय वह मौत के जबड़े में फंस चुका है। अब वह कोई हरकत करने की स्थिति में भी नहीं था और प्रयास न करने में ही उसने अपनी भलाई समझी।
उसे लिए लिए ही मेढक इंसान कोतवाली की छत से नीचे कूद गया।
विशाल शरीर के कूदने पर धड़क की ध्वनि हुई।
अन्य सभी मेढक इंसानों ने उसे चारों ओर से घेर लिया।
टुम्बकटू उसी जबड़े में नर्वस-सा फंसा हुआ था। यह भी उसने महसूस किया कोई भी मेढक इंसान उसके जूतों की रेंज में नहीं है।
उसके बाद !
मेढक इंसानों का वह ग्रुप टुम्बकटू को उसी प्रकार अपनी कैद में लिए कोतवाली से बाहर की ओर बढ़ा। उन दोनों मेढक इंसानों की लाश वहीं पड़ी रह गई, जो टुम्बकटू के सिक्के के शिकार थे, सिक्का उसी प्रकार उनके माथे पर चिपका हुआ था।
वे कोतवाली से बाहर आए, परंतु !
कोतवाली के बाहर का दृश्य इतना अधिक आश्चर्यजनक था कि मेढक इंसानों के साथ-साथ जबड़े में कैद टुम्बकटू भी बिना बौखलाए न रह सका। निश्चित रूप से यह दृश्य संसार का नौवां आश्चर्य था।
मेढक इंसानों के चारों ओर... उफ् !
ऐसा भयानक दृश्य जिसे देखते ही रोंगटे खड़े हो जाएं! आश्चर्य से आंखें उबल पड़े, ऐसा तो शायद कभी किसी ने स्वप्न में भी न देखा हो!
मेढक इंसानों के चारों ओर छिपकलियां थीं !
खौफनाक सुनहरी छिपकलियां !
उन छिपकलियों का आकार ही आश्चर्यजनक था। प्रत्येक छिपकली लंबाई की दृष्टि से किसी भी प्रकार पंद्रह फीट से कम न थी। छिपकलियों का' यह रंग-रूप और आकार न कभी किसी ने देखा ही था और न ही इसकी कल्पना की थी। छिपकलियों के पंजे बड़े खौफनाक लग रहे थे।
पंद्रह-पंद्रह फीट लंबी ये सुनहरी छिपकलियां संख्या में ठीक दस थी, और दसों ने मेढक इंसानों के ग्रुप को इस प्रकार घेर लिया था, मानो युद्ध में एक दुश्मन टुकड़ी किसी अन्य को। उनके चारों ओर फैली पंद्रह-पंद्रह फीट लंबी छिपकलियां अपनी गोल-गोल, भयानक चमकीली पुतलियों को झपका रही थीं।
बीच में मेढक इंसान, चारों और फैली छिपकलियां।
सभी कुछ आश्चर्यजनक था। बेहद खौफनाक!
आसपास कोई इंसान दृष्टिगोचर नहीं होता था; जबकि चारों ओर दूर-दूर से बदहवास-से लोग आश्चर्यजनक और खतरनाक दृश्य को देख रहे थे। ये मेढक इंसान तो थे ही सबके लिए अजूबा, किंतु ये पंद्रह-पंद्रह फीट लंबी सुनहरी छिपकलियां उनसे भी कहीं अधिक आश्चर्यजनक थीं। छिपकलियों का यह रंग-रूप और आकार एकदम अजूबा ही था! सुनहरी छिपकलियां धीरे-धीरे अपने पंजों के माध्यम से अपने भारी जिस्म को सड़क पर लगभग रेंगते हुए मेढक इंसानों की ओर बढ़ रही थीं।
मेढक इंसानों के चारों ओर बना वृत्त क्षण प्रतिक्षण कम होता हो रहा था।
मेढक इंसानों ने भी अपनी पोजीशन ले ली थी। ऐसा लगता था कि अब उन दोनों के मध्य खौफनाक युद्ध होगा।
एकाएक वहां पुलिस सायरन गूंजा !
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