अगले दिन परेरा, देवराज चौहान के साथ रहा और उन दोनों आदमियों को अलग-अलग मिलकर दोनों ने रकमें दी और देवराज चौहान ने उन्हें कहा कि फोन पर एक-दो दिन में बता दिया जायेगा कि कैसे काम करना है।
इस काम से फारिग होकर परेरा ने देवराज चौहान से पूछा- “दसवीं मंजिल पर किसका ऑफिस है?”
“सी०बी०आई० का।”
“फिर तो आग लगने से सी० बी०आई० का रिकार्ड नष्ट हो जायेगा।”
“तुम क्यों चिन्ता करते हो?”
“मैं तो यूं ही…”
तभी परेरा का मोबाईल बजने लगा।
दोनों इस वक्त फुटपाथ पर जा रहे थे।
“हेलो!” परेरा ने बात की।
“परेरा!” पिंटो की आवाज आई- “यार, पैसे की सख्त जरूरत है।”
“तो?” परेरा के चेहरे पर झल्लाहट के भाव उभरे- “क्यों दूं मैं तुम्हें पैसा?”
“मैं तेरा चचेरा भाई हूं।”
“मैं तुझे पहले कौन-सा पैसा देता रहा हूं जो अब दूं? अब भला ऐसा क्या हो गया जो…”
“यार, तूने बहुत मोटा हाथ मारा।”
“मैं तेरे को पैसा नहीं दूंगा।” परेरा ने उखड़े स्वर में कहा ।
“सोच ले-सिर्फ छः लाख की जरूरत…”
“इतना मैं नहीं दे सकता।”
“जरा देवराज चौहान से अलग होकर बात कर।”
“क्या?” परेरा अचकचाया और उसी पल ठिठक गया
देवराज चौहान कई कदम आगे पहुंचकर ठिठका।
परेरा की निगाह हर तरह घूमी परन्तु पिंटो कहीं नहीं दिखा।
“अब ठीक है।” पिंटो की आवाज फोन द्वारा पुनः कानों में पड़ी- “बेटे, मैं तुझ पर उसी दिन से नजर रख रहा हूं जब तुम लोगों ने ज्वैलरी शॉप लूटी थी। मैं जानता हूं तुम लोगों ने कहां डेरा जमा रखा है। लूट का सारा माल भी यहीं है। सुबह से अब तक तुम लोगों ने दो लोगों को दो बड़े ब्रीफकेस दिए हैं। जाहिर है कि उसमें नोट ही होंगे और तुम लोग अब भी कोई काम करने में लगे हो। मैं चाहूं तो पुलिस को खबर करके तुम लोगों को जेल पहुंचा सकता हूं। बच नहीं सकोगे। छः लाख तो क्या तू साठ लाख भी देगा। बोल, खबर दूं तुम्हारे बारे में पुलिस को?”
“पागल हो गया क्या?” परेरा हड़बड़ाकर बोला।
“समझदारी वाली बात की तो तू मुझे पागल कहने लगा। मुझे लगता है कि तेरे से बात करके कोई फायदा नहीं होगा। मुझे देवराज चौहान से बात करनी चाहिये। नम्बर बता देवराज चौहान का।”
परेरा की निगाह हर तरफ घूम रही थी।
“मुझे ढूंढ रहा है।” पिंटो की आवाज पुनः कानों में पड़ी।
“तू जिस तरह पंगा खड़ा कर रहा है वो अगर देवराज चौहान को पता चला तो तुझे मार देगा वो।”
“उससे पहले ही तुम लोग जेल में पहुंच जाओगे। देवराज चौहान का नम्बर बता नहीं तो पुलिस को तुम लोगों के बारे में बताकर कुछ इनाम पा लेता हूँ। कोशिश करूंगा कि पांच लाख इनाम मिल जाये।”
“खुद को मुसीबत वाले काम में फंसा रहा है।”
“देवराज चौहान का फोन नम्बर नहीं दिया तो मैं पुलिस को खबर कर दूंगा।” पिंटो ने उधर से सख्खा स्वर में कहा।
“साले तेरे से तो बाद में निपटूंगा।” परेरा ने अपने पर काबू पाते हुए कह - “छः लाख चाहिये तुझे?”
“अभी तो इतने से ही काम चला लूंगा।”
“शाम तक तेरे को पैसा दे दूंगा। पर उसके बाद तू हम पर नजर नहीं रखेगा।”
“नहीं रखूँगा।” उधर से पिंटो ने हंसी भरे स्वर में कहा- “दस लाख पूरा कर देना।”
परेरा ने फोन बंद कर दिया। पिंटो उसे इस वक्त भारी मुसीबत लग रहा था। फ़ोन जेब में रखते हुए परेरा आगे खड़े देवराज चौहान के पास पहुंचा।
“किसका फोन था?”
“पिंटो का! उसे दस लाख देना है। जरूरी है। उस पैसे से मैं दस लाख ले सकता हूं ना?”
“जरूरी हो तो ले सकते हो।” देवराज चौहान ने कहा।
“जरुरी है।” परेरा ने गुस्सा अपने भीतर दबाते हुए कहा।
☐☐☐
लखानी, वाडेकर और जगमोहन सुबह से ही फायर ब्रिगेड की वर्दियों और टोप वगैरा का इन्तजाम करने के लिये निकले हुए थे देवराज चौहान ने से बता दिया था कि क्या-क्या चाहिये। सबसे पहले उन्होंने अच्छी कंडीशन वाली पुरानी मारुति वैन खरीदी थी। इसी में ही दोपहर हो गई थी। उसके बाद वे बाकी सामानों के इन्तजाम में लग गये। उनका पूरा दिन व्यस्तता से भरा रहा, परन्तु काम तब भी पूरे नहीं हो सके थे। शाम सात बजे देवराज चौहान और परेरा उसी मकान पर पहुंचे।
वे भी दिन भर तैयारी के सिलसिले में भागदौड़ करते रहे थे सबके लिए हथियारों का इन्तजाम करना था देवराज चौहान ने।
परेरा उसके साथ रहा था और शाम तक हथियारों का इन्तजाम उन्होंने कर लिया था।
“मैंने पिंटो को दस लाख देना है।” परेरा ने देवराज चौहान से कहा।
“ले लो!” देवराज चौहान उसे देखकर बोला- “दे दो।”
परेरा ने देवराज चौहान के चेहरे पर नजर मारी।
“क्या कहता है वो?” देवराज चौहान ने कहा।
“रहने दो! ये मेरी और उसकी बात है।” परेरा ने बात टाल दी।
परेरा ने पिंटो को फोन किया।
“कब आ रहा है?” पिंटो की आवाज कानों में पड़ी।
“कहां मिलेगा?” परेरा ने उखड़े स्वर में पूछा।
“तू निकल! मैं खुद ही तेरे से मिल लूंगा। दस लाख पूरा लाना।”
परेरा ने फोन बंद किया। एक लिफाफा उठाकर उसमें दस लाख डाला और देवराज चौहान से कहकर मकान से बाहर निकल आया। शाम ढल रही थी। अंधेरा होने वाला था। परेरा आस-पास नजरें दौड़ाते गली से बाहर निकला और आगे बढ़ गया। पिंटो की तलाश में उसने नजरें घुमाईं तो पीछे पिंटो को आते देखा, उसके चेहरे पर सख्ती आ गई
पीछे से पिंटो पास आ पहुंचा। साथ चलने लगा।
“कैसा है?” पिंटो ने मुस्कराकर पूछा।
“तू ऐसे ही चलता रहा तो मरेगा।” परेरा कड़वे स्वर में कह उठा।
“मैं जानता हूं तुझे मेरी बहुत फिक्र है। आखिर चाचा-ताये के भाई हैं।”
“भाई गया कुएं में। तू मुझे ब्लैकमेल कर रहा है। ये बात मैंने देवराज चौहान को नहीं बताई। पहली बार है तो माफ कर रहा हूं। दोबारा ऐसी हरकत की तो जान से जायेगा।”
“तेरे हाथ में पकड़े लिफाफे में दस लाख है ना?”
परेरा ने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा और लिफाफा थमा दिया।
“पूरा दस है?” पिंटो ने दांत दिखाये।
“हां। अब मुझे आस-पास तो क्या दूर भी नजर नहीं आना चाहिये।” परेरा ने कड़वे स्वर में कहा- “दोबारा ने कोई पंगा खड़ा किया तो मैं देवराज चौहान को सब कुछ बता दूंगा। तब तेरी मौत निश्चित है।”
“मुझे दस लाख मिल गया।” पिंटो मुस्कराया- “मेरा पेट पर गया।”
“तू सच में कमीना है।”
“नोटों की जब जरूरत पड़ती है तो हर कोई कमीना बन जाता है।” पिंटो ने कहा।
“दफा हो जा यहां से।”
“तू मुझसे अच्छी तरह पेश नहीं आ है।” पिंटो ने शिकायती स्वर में कहा।
परेरा ने उसे घूरा।
“अब तू देवराज चौहान के साथ क्या करने जा रहा है?” पिंटो ने पूछा।
“तेरे को किसने कह दिया कि इम कुछ कर रहे हैं।” परेरा गुर्राया।
“काम के बाद अभी तक देवराज चौहान के साथ हो तुम। आज किन्हीं दो लोगों को दो ब्रीफकेस भी दिए। ये सब नये काम की तैयारी नहीं तो और क्या है? वरना अब तक तो हिस्सा लेकर अपनी राह पर चले जाना था।”
“ऐसा कुछ नहीं है। मैं आज-कल में देवराज चौहान से अलग हो जाने वाला हूं।”
“ये तो अच्छी बात है।”
“पुलिस मेरी तलाश कर रही है?” परेरा ने व्याकुलता भरे स्वर में पूछा।
“हां! मेरे पास भी पूछताछ के लिए आई थी। अब तू क्या करेगा? वापस वो ही जिन्दगी तो शुरू नहीं कर सकता।”
“बीती जिन्दगी छोड़नी होगी मुझे। नये सिरे से जिन्दगी की शुरूआत करनी होगी।”
“कैसे?”
“पता नहीं।”
“तू चाहे तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं। तेरे को मेरा सहारा रहेगा।”
“अभी कुछ पता नहीं। ऐसा कुछ मैंने सोचा तो तेरे को फोन कर दूंगा।” परेरा बोला- “अब तूने हम पर नजर नहीं रखनी है।”
“नहीं रखूगा। कल मैं गोवा जा रहा हूं। दस लाख से वहां मौज करूंगा।”
“जा अब...”
परेरा ने ठिठककर पिंटो को घूरा और भिंचे स्वर में कह उठा-
“फोन पर अपनी खैरियत देते रहना। मेरी जरूरत पड़े तो बता देना। गोवा से आ जाऊंगा।” कहकर पिंटो दस लाख का लिफाफा थामे वहां से आगे बढ़ता चला गया।
वहीं खड़ा परेरा उसे जाता देखता रहा, फिर पलटकर वापस चल पड़ा।
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दो दिन बाद!
सुबह सात बजे।
ग्रीन हाऊस इमारत के सामने सड़क पर मारुति वैन में देवराज चौहान, जगमोहन, परेरा, वाडेकर और लखानी मौजूद थे। वो दो कारों में यहां पहुंचे थे। दूसरी कार में परेरा और जगमोहन थे। जो कि अब वैन के पीछे ही खड़ी थी। वो दोनों तीनों के पास वैन में आ बैठे थे और नजरें ग्रीन हाऊस पर थीं।
सुबह का वक्त होने के कारण सड़क पर अभी वाहनों की भीड़ नहीं थी।
देवराज चौहान शांत था इस वक्त।
परन्तु जगमोहन के चेहरे पर व्याकुलता उछाले मार रही थी।
परेरा, लखानी और वाडेकर कुछ बेचैन दिख रहे थे।
“तुम तीनों तैयार हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हां!” लखानी बोला।
“घबराहट तो नहीं हो रही?”
“कैसी बातें करते हो।” वाडेकर ने कहा- “हम 1000 करोड़ से ज्यादा का हाथ मारने जा रहे हैं। घबराहट होती भी है तो होती रहे। हमें हर हाल में अपना काम पूरा करना है। ये मौका हाथ से निकल गया तो जिन्दगी भर पछतायेंगे।”
“समझदारी वाली बात कही तुमने।” देवराज चौहान की निगाह भी बार-बार ग्रीन हाऊस की तरफ उठ रही थी।
परेरा कलाई में बंधी घड़ी देखकर बोला- “सात, दस हो गये हैं। तुमने तो कहा था कि वो सात बजे दसवीं मंजिल पर आग लगा देगा।”
“कभी भी हमें आग लगी दिखाई दे सकती है।
“और अगर उसने काम नहीं किया तो?” वाडेकर बोला।
“काम करेगा वो। इसी बात का उसने पैसा लिया है।” देवराज चौहान ने कहा।
“वो तो ठीक है। पर उसने काम नहीं किया तो?”
“कह नहीं सकता कि फिर क्या होगा। परन्तु वक्ती तौर पर खेल तो खत्म हो जायेगा।”
“उसे काम ना करने की सजा दोगे?” वाडेकर ने पूछा।
“काम हो के रहेगा।” देवराज चौहान ने वाडेकर को देखा- “वो भी जानता है कि मेरा काम न करने का मतलब क्या हो सकता है।”
“तुम्हारे बारे में जानता है वो?”
“अपने बारे में मैंने उसे बता दिया था।”
“मतलब कि वो जानता है कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो।” वाडेकर ने सिर हिलाया।
तभी लखानी, जगमोहन से कह उठा- “तुम ढीले दिख रहे हो।”
“नहीं, ठीक है।” जगमोहन ने लखानी को देखा- “मेरा पेट कुछ खराब है।”
“ओह! फिर तुम काम कैसे कर सकोगे?”
“ये काम कर लेगा।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा- “हर काम से पहले इसका पेट अवश्य खराब होता है।”
“कमाल है।” लखानी ने गहरी सांस ली- “ये तो…”
“वो देखो- “ उसी पल परेरा के होंठों से निकला- “वो धुंआ।”
सबकी निगाह दसवीं मंजिल की एक खिड़की से निकलते धुएं पर जा टिकी।
“काम शुरू हो गया।” देवराज चौहान सतर्क होता कह उठा।
सबके चेहरों पर चौकन्ने होने के भाव दिखे।
“हमें जल्दी से फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों की ड्रेस पहन लेनी चाहिये।” परेरा ने कहा।
“वो कपड़े-सामान कहां है?” लखानी ने पूछा।
“पीछे वाली कार में रखा है।”
“जल्दी मत करो।” वाडेकर बोला- “पहले आग लग लेने दो। फायर ब्रिगेड आने में भी वक्त लगेगा और…”
“कोई वक्त नहीं लगेगा।” देवराज चौहान की निगाह खिड़की से निकलते धुएं पर थी- “फायर ब्रिगेड को किसी ने फोन किया तो दस-पन्द्रह मिनटों में यहां फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आ जायेंगी। हमें हर वक्त तैयार रहना है।”
“तो हम आग बुझाने वाले कर्मचारियों के कपड़े पहनें?” परेरा बोला।
“हां! पीछे कार में जाओ और एक-एक करके कपड़े पहनने शुरू कर दो। ऐसा करते हुए लोगों की नजर में मत आना। एक जाये और कपड़े पहनकर इस वैन में आ बैठे। फिर दूसरा जाये।”
देवराज चौहान ने कहा।
“पहले मैं जाता हूं।” परेरा ने कहा और दरवाजा खोलकर वैन से निकला और पीछे खड़ी कार की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने शांत स्वर में देवराज चौहान से कहा- “इस तरह तो हमारा काम नहीं होने वाला।”
“क्या मतलब?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
“दो-तीन मिनट से खिड़की से सिर्फ धुआं ही निकल रहा है, जबकि हमें ऐसी जबर्दस्त आग चाहिये जो कि दसवीं मंजिल से निकलकर ग्यारहवीं मंजिल तक पहुंच जाये। अगर इसी प्रकार खिड़की से धुआं ही निकलता रहा तो फायर ब्रिगेड की गाड़ी आयेगी और पांच मिनट में सब ठीक कर लेगी।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। दूर ग्रीन हाउस की दसवीं मंजिल की खिड़की से निकलते धुएं को देखने लगा। परन्तु जगमोहन की बात में दम था जिसे समझकर वाडेकर कह उठा- “जगमोहन ठीक कह रहा है। वो बेवकूफ आग बढ़ा क्यों नहीं रहा वहां?”
“वो जरूर कुछ कर रहा होगा।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।
तभी वे चौंके।
“हो गया काम।” वाडेकर के होंठों से तेज़ स्वर निकला। उनके देखते ही देखते खिड़की से, जहां से धुआं निकल रहा था, वहां से आग का बहुत बड़ा गोला बाहर निकला और अगले ही पल खिड़की पर आग की बड़ी-बड़ी लपटें दिखाई देने लगीं। इसी के साथ ही दिखाई देने वाली अन्य खिड़कियों से धुआं, फिर आग दिखाई देने लगी। जो कि पल-प्रतिपल बढ़ने लगी थी। हर तरफ धुआं ही धुआं और आग दिखाई देने लगी थी। ये सब कुछ देखते ही देखते चंद मिनटों में हो गया था।
उनके चेहरे मुस्कान से खिल उठे थे।
“अब हुआ हमारी पसन्द का काम...” लखानी कह उठा।
देवराज चौहान की आंखों में तीव्र चमक लहरा रही थी। आग की लपटें दसवीं मंजिल की खिड़कियों से निकलकर ऊपर की तरफ जा रही थीं।
तभी वैन का दरवाजा खुला और परेरा ने फायरमैन की वर्दी में भीतर बैठते हुए कहा- “वहां बहुत बढ़िया ढंग से आग लगी दिखाई दे रही है
“हमारे पास वक्त कम है।” देवराज चौहान ने कहा- “जल्दी ही फायर ब्रिगेड की गाड़ियां यहां होंगी। जल्दी से सब फायरमैन के कपड़े पहनो।”
वाडेकर और जगमोहन उसी पल बाहर निकले और पीछे की कार की तरफ बढ़ गये।
उधर आग विकराल रूप लेने लगी थी।
“अब ठीक है।” देवराज.चौहान भिंचे होंठों से कह उठा- “हमें ऐसी ही आग चाहिये थी।”
दसवीं मंजिल की खिड़कियों से आग के साथ गहरा काला धुआं निकलने लगा था।
☐☐☐
पिंटो वहां से कुछ ही दूरी पर फुटपाथ पर एक पेड़ की.ओट में था और उन पर नजर रखे था। वो समझ नहीं पा रहा था कि ये लोग सुबह-सुबह दो कारों में यहां आकर क्यों खड़े हो गये हैं। परन्तु पिंटो इन पर नजर रखने में चूका नहीं। तब वो जरूर चौंका जब उसने सामने की चौदह मंजिला इमारत की एक मंजिल में आग लगते देखी। मन में यही सोचा कि आग लगने का मतलब इन लोगों से तो नहीं है? तब परेरा को उसने पीछे खड़ी कार में देखा था। चौंका तो तब जब परेरा को फायरमैन की वर्दी पहने, कार से निकलकर वापस उस वैन में जाते देखा।
पिंटो सतर्क हो गया।
वो समझ गया कि सामने वाली इमारत में जो आग लगी है, उससे इनका मतलब है। तभी तो ये फायरमैन की वर्दियां पहन रहे हैं। उस इमारत में आग बुझाने वाले कर्मचारी बनकर, कुछ करने वाले हैं ये।
“हरामजादा परेरा!” पिंटो कड़वे स्वर में बड़बड़ा उठा- “मुझे भी इस काम में साथ ले लेता तो क्या चला जाता तेरा?”
☐☐☐
पन्द्रह मिनट में ही आग बहुत ज्यादा बढ़ चुकी थी। धुआं इतना निकल रहा था कि उससे ऊपर की मंजिलें छिपने लगी थीं।
आग की लपटें बड़ी-बड़ी खिड़कियों से निकलकर ग्यारहवीं मंजिल तक पहुंचने लगी थीं। इमारत में आग से हड़कम्प पैदा हो गया था।
जो भी कर्मचारी भीतर थे, वो बौखलाये से इमारत से बाहर आने लगे थे। चीखो-पुकार मची थी।
इधर ये पांचों वैन में बैठे फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों की वर्दियों में बैठे मौके के इन्तजार में थे।
देवराज चौहान ने एक बड़ा-सा थैला उठाकर उसमें रखी दो-दो रिवॉल्वरें सबको दी।
“ये 18 राऊण्ड वाली रिवॉल्वर है। यानि कि तुम सबके पास 36-36 गोलियां लोडिड हैं। फालतू राउण्ड भी दे रहा हूं।” देवराज चौहान सख्त स्वर में कह रहा था- “जब हम ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंचेंगे तो वहां मौजूद किसी भी सिक्योरिटी वाले को जिन्दा नहीं छोड़ना है। गोलियां चलाकर सबसे पहले उन्हें खत्म करना है। जो दिखे, उसे मारते जाओ।”
“मारना जरूरी है?” परेरा ने पूछा।
“बहुत जरूरी है।” देवराज चौहान का स्वर और भी कठोर हो गया- “मैं नहीं चाहता कि कोई हमारा प्लॉन खराब करे। ऐसे मौके पर कोई भी मुसीबत खड़ी कर देता है। जो भी दिखे मारते जाओ। कुछ पूछने या सवाल करने की तो जरूरत ही नहीं है। मैं और परेरा उस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हासिल करेंगे। तुम लोग सिक्योरिटी वालों को मारने और पहरेदारी पर लग जाना। ऐसा होते ही सबको अपनी जान बचाने और मुकाबला करने की पड़ जायेगी और मैं परेरा के साथ आसानी से चार नम्बर कोठरी से डिवाइस और बाकी सामान निकाल लूंगा। हमारे पास काम करने को काफी वक्त होगा। परन्तु हमने जल्दी से जल्दी काम करके निकल जाना है। बाहर लगी आग के कारण, गोलियों की आवाजें भी कोई नहीं सुन पायेगा। सुनेगा तो यही समझेगा कि आग में कहीं पटाखे बज रहे हैं।”
“इस तरह तो वहां काफी लोग मरेंगे।” वाडेकर बोला।
“वो हमारे लिए फायदेमंद होगा। पुलिम जितनी परेशान होगी लाशें देखकर, उतनी ही हमसे दूर होगी। हमने सिर्फ अपना काम पूरा करना है। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के मालिक बनना है, ताकि 1000 करोड़ से ज्यादा में उसका सौदा कर सकें।” देवराज चौहान अपने शब्दों पर जोर देकर कह रहा था- “हमारे काम के रास्ते में जो भी आये, उसे मार दो। फायर ब्रिगेड वालों के ये कपड़े हमें हर तरह की मुसीबत से बचायेंगे। हम आसानी से इमारत के भीतर प्रवेश हो सकेंगे। ग्यारहवीं मंजिल में प्रवेश पा सकेंगे। वहां की सिक्योरिटी सोच भी नहीं सकेगी कि फायर ब्रिगेड के लोग उन पर गोलियां चला सकते हैं। जब तक वो समझेंगे, तब तक मर चुके होंगे।”
सबकी नजरें मिलीं।
सामने इमारत में जबरदस्त आग लगी दिख रही थी। भीतर के लोग सड़क पर आते जा रहे थे। जमघट लग गया था वहां!
“तुमने अभी कहा कि हम डिवाइस और बाकी सामान निकाल लेंगे। परेस बोला- “बाकी सामान क्या है?”
“एक छोटी सी मशीन है जिसमें डिवाइस लगाई जाती है। उस मशीन का कनेक्शन कम्प्यूटर में दिया जाता है और फिर हम कम्प्यूटर स्क्रीन पर डिवाइस जिस न्यूक्लियर हथियार की मौजूदगी दिखायेगी, मशीन द्वारा उत्त न्यूक्लियर हथियार को कंट्रोल हम अपने हाथ में ले सकते हैं और सिर्फ एक क्लिक पर ही न्यूक्लियर हथियार में विस्फोट कर सकते हैं।”
“मतलब कि डिवाइस के साथ वो मशीन भी जरूरी है?”
“बहुत जरूरी है। वरना वो डिवाइस बेकार है।”
“परन्तु इतनी बड़ी मशीन को हम कैसे...”
“वो छोटी सी है। जैसे कि डीवी०डीपोयर होता है।”
देवराज चौहान ने कहा।
“ओह, फिर तो उसे ले जाना आसान होगा।” परेरा ने सिर हिलाया।
देवराज चौहान ने सबको देखा। बोला- “क्या तुम में से किसी को ये लगता है कि हम सफल नहीं हो सकेंगे?”
“हम सफल रहेंगे।” वाडेकर बोला।
“हममें से कोई अलग भी हो सकता है। ऐसा हुआ तो उसे वहीं ठिकाने पर पहुंचना है। हम वहीं मिलेंगे।”
“अभी तक फायर ब्रिगेड की गाड़ियां नहीं...” जगमोहन ने कहना चाहा।
ठीक इसी पल फायर ब्रिगेड की गाड़ियों की टन-टन सुनाई देने लगी।
“तैयार हो जाओ।” देवराज चौहान बोला- “ फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आ गई हैं। हमें फायर ब्रिगेड के कर्मचारी बनकर उन्हीं में शामिल हो जाना है। मन में ये बात तय रखो कि हमें हर हाल में अपना काम पूरा करके बाहर आना है।”
☐☐☐
ग्रीन हाउस की ग्यारहवीं मंजिल पर हड़कम्प मचा हुआ था। वहां धीरे-धीरे धुआं ही धुआं भर रहा था। सिक्योरिटी पर सोलह गनमैन थे। जिनमें से चार उस वक्त कंट्रोल रूम में मौजूद थे।
सिक्योरिटी चीफ श्याम पारेख बौखलाया-सा इधर-उधर घूम रहा था।
“सर!” तभी एक गनमैन ने उसे टोका- “कुछ ही देर में तो यहां दम घुटने लगेगा...। हम क्या करें?”
“अपने पर काबू रखो। श्याम पारेख ने उखड़े स्वर में कहा- “बाहर फायर ब्रिगेड की गाड़ियां पहुंचने की आवाज सुनाई दे रही है। वो कुछ ही देर में स्थिति पर नियंत्रण पा लेंगे।”
“लेकिन सर, सब कुछ तो यहां बंद है। धुआं कहां से आ रहा है?”.
“शाफ्ट से। वहां पर हमने ऊंचाई के रोशनदान खोल रखे हैं। अपनी जगह पर सतर्क रहो।”
“क्या हमें कोई खतरा है?”
“ऐसा कुछ नहीं है। हमारी नीचे वाली मंजिल पर आग लगी है शायद शार्ट-सर्किट की वजह से घबराने की जरूरत नहीं है, कुछ ही देर में फायर ब्रिगेड के कर्मचारी आग पर काबू पा लेंगे।” कहने के साथ ही श्याम पारेख वहां से हटा और आगे बढ़ते हुए मोबाईल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
मिनट भर में ही वो अपने ऑफिसर से बात कर रहा था।
हमारे नीचे वाली मंजिल में आग लग गई है। लपटें हमारी मंजिल तक पहुंच रही हैं। धुआं भी हमारी मंजिल में भर रहा है। नीचे फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आ पहुंची हैं।”
“इन हालातों में तुम वहां के पूरी तरह इंचार्ज हो। जो ठीक समझो, वो ही करो।”
“क्या हम लोग वक्त आने पर यहां से बाहर भी निकल सकते हैं?” श्याम पारेख ने पूछा।
“जरूरत समझो तो ऐसा भी कर सकते हो। परन्तु बेहतर ये ही होगा कि उस जगह को अकेला ना छोड़ा जाये। मैं जल्द से जल्द वहां पहुंचने की कोशिश करता हूं।” इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
तभी सामने से एक गार्ड भागता सा आया।
“अब हम क्या करें सर?”
“अभी अपनी जगह पर डटे रहो। हालात इतने बुरे नहीं हुए कि हम ये जगह छोड़ें।” कहने के साथ ही श्याम पारेख तेजी से आगे बढ़ता चला गया। इस आग ने उसे परेशान कर दिया था।
वो आगे मोड़ से मुड़ा कि सामने से एक गनमैन आता दिखा। वो कह उठा- “मैं आप ही के पास आ रहा था सर। कंट्रोल रूम से इन्टरकॉम पर पता चला कि आप वहां नहीं हैं। लिफ्ट में फायर ब्रिगेड के कर्मचारी आये हैं। वो इस मंजिल में प्रवेश पाना चाहते हैं।”
“क्यों?” श्याम पारेख आगे बढ़ता कह उठा।
वो गनमैन भी पलटकर पारेख के साथ आगे बढ़ता कह उठा- “वो कहते हैं कि आग बुझाने के लिए उनका इस मंजिल पर आना जरूरी है।
“ये बात है तो लिफ्ट खोल दो।”
“सर, क्या इस तरह किसी को भीतर आने देना ठीक होगा?”
“वो फायर ब्रिगेड के कर्मचारी हैं। नीचे वाली मंजिल पर आग लगी है। आग बुझाने के लिए अगर वो इस मंजिल पर आना चाहते हैं तो हम उन्हें रोक भी कैसे सकते हैं। देर हो गई तो ऊपरी मंजिल तक आग पहुंच जायेगी।”
श्याम पारेख उस गनमैन के साथ लिफ्ट वाले हिस्से में पहुंचा।
वहां दो और गनमैन मौजूद थे।
लिफ्ट के पास ही एक टी० वी० रखा था, जिस पर लिफ्ट के भीतर का दृश्य नजर आ रहा था। लिफ्ट में पांच फायर ब्रिगेड के कर्मचारी खड़े दिखाई दे रहे थे। तभी उनमें से एक बोलता दिखा- “लिफ्ट जल्दी खोलो, वरना हम सब खतरे में पड़ जायेंगे। हमें नीचे की मंजिल की आग बुझानी है।”
लिफ्ट के बाहर लगे स्पीकर से उसकी आवाज स्पष्ट सुनाई दी।
“खोल दो लिफ्ट।” कहने के साथ ही श्याम पारेख आगे बढ़ा और एक तरफ लगा बटन दबा दिया।
अगले ही पल लिफ्ट के दरवाजे खुलते चले गये।
लिफ्ट में से देवराज चौहान, जगमोहन, लखानी, वाडेकर, और परेरा बाहर निकले। सबने फायरमैन की वर्दियां और टोप पहन रखे थे। दो के कंधों पर मोटे रस्से लटक रहे थे।
“जल्दी से आग बुझाओ।” श्याम पारेख बोला- “धुआं इस मंजिल पर भी इकट्ठा होता जा रहा है।'
वहां श्याम पारेख के साथ तीन अन्य गनमैन थे।
पलक झपकते ही लखानी, जगमोहन, परेरा और वाडेकर के हाथ रिवॉल्वरें चमकी और किसी के कुछ समझने से पहले ही गोलियां चलने लगीं। श्याम पारेख और तीनों गनमैन उसी पल ढेर होते चले गये।
“परेरा! तुम मेरे साथ आओ।” देवराज चौहान जल्दी से बोला- “और तुम तीनों, यहां जो भी दिखे, उसे खत्म करते जाओ।”
☐☐☐
देवराज चौहान और परेरा तेजी से एक तरफ बढ़ते चले गये।
“तुम्हें मालूम है किधर जाना है।” उसके पीछे भागने वाले अन्दाज में परेरा ने पूछा।
“हां! तुमने भी तो नक्शा देखा था।”
“वो मुझे अब ठीक से याद नहीं।”
गोलियां चलने की आवाजें रह-रहकर सुनाई दे रही थीं।
परेरा के हाथ में अभी तक रिवॉल्वर दबी थी।
आगे आने वाला शीशे का बड़ा-सा दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।
परेरा उसके पीछे था।
शीशे का दरवाजा बंद होते ही बाहर चलती गोलियों की आवाजें सुनाई देनी बंद हो गई थीं। बाहर के मुकाबले यहां का वातावरण ठीक था। यहां ना तो शोर था ना धुआं।
वे अभी कुछ कदम ही आगे बढ़े होंगे कि सामने से एक गनमैन उनके सामने आ गया।
दोनों ठिठके।
गनमैन ने तरन्त कंधे से गन निकालकर उन पर तान दी और कठोर स्वर में बोला- “कौन हो तुम लोग? भीतर कैसे आ गये?”
हड़बड़ाये से परेरा ने हाथ में दबी रिवॉल्वर सीधी की और दो बार ट्रेगर दबा दिया।
देवराज चौहान ने फुर्ती से खुद को नीचे गिरा लिया। ऐसा न करता तो गन से निकलने वाली गोलियां उसके शरीर में भी समा जातीं। परेरा को कई गोलियां लगीं। वो उछलकर नीचे जा गिरा परन्तु उसकी चलाईं गोलियों में से एक गोली गनमैन को भी लगी थी और वो भी छाती थामें नीचे बैठता चला गया।
तब तक देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर गनमैन पर फॉयर कर दिया था। गोली उसके सिर में लगी थी और वो शांत पड़ गया था। होंठ भींचे देवराज चौहान उठा और परेरा के पास पहुंचा।
परेरा को तीन गोलियां लगी थीं, परन्तु कोई भी घातक जगह नहीं लगी थी। वो कराह रहा था।
“देवराज चौहान।” परेरा तड़पकर बोला- “मुझे बचा लो। मैं...”
“चिन्ता मत करो।” नीचे पड़ी रिवॉल्वर उठाकर परेरा को थमाता कह उठा- “तुम यहीं रुको। जो भी दिखे उसे गोली मार देना। मैं वापसी पर तुम्हें लेता जाऊंगा। समझ गये।”
“हां...हां...! जल्दी आना।”
“अभी आता हूं।” कहकर देवराज चौहान आगे बढ़ गया।
आगे छोटे-छोटे कमरे शुरू हो चुके थे। हर कमरे के बंद दरवाजे पर कम्बीनेशन चक्री लगी थी और नीचे की तरफ चाबी लगाने का ‘की-होल’ दिखाई दे रहा था। दरवाजों पर पीतल के अक्षरों से नम्बर चिपके थे।
जल्दी ही देवराज चौहान को 4 नम्बर लिखा दरवाजा मिल गया।
देवराज चौहान ने फुर्ती से कम्बीनेशन चक्री को 145 पर सैट किया और जेब से चाबी निकालकर ‘की-होल’ में डाली और उसे घुमाया। चाबी घूमती चली गई। दो पलों में ही दरवाजा धकेलकर वो भीतर था।
सामने ही एक छोटे से टेबल पर छः इंच चौड़ा-लम्बा और दो इंच मोटा, डी० वी० डी० प्लेयर जैसा बक्सा पड़ा था और पास ही प्लास्टिक की एयरटाईट शीशी में डिवाइस रखी नजर आ रही थी।
देवराज चौहान की आंखों में तीव्र चमक उभरी। आंखों में खतरनाक भाव नाच उठे।
“वाह देवराज चौहान! तूने तो मैदान मार लिया।” देवराज चौहान ने हंसकर कहा और दोनों चीजें टेबल से उटाई और बाहर निकलता चला गया।
वापसी पर देवराज चौहान के कदम तेज थे।
रास्ते में घायल पड़े परेरा के पास पहुंचा।
“मिल गई डिवाइस और मशीन!” देवराज चौहान ने खुशी भरे स्वर में कहा।
“मुझे साथ ले चल।” पीड़ा से कराहता परेरा कह उठा।
“चिन्ता मत कर । कुछ ही देर में यहां पुलिस होगी। वो तुझे एम्बुलैंस में डालकर हॉस्पिटल ले जायेगी।” देवराज चौहान ने हंसकर कहा- “इस बात की मेरी गारण्टी कि वो तेरा बढ़िया इलाज करायेंगी। तुझे मरने नहीं देगी।”
“ये...ये क्या कह रहा है देवराज चौहान।” परेरा तड़पकर बोला- “मैं तेरा साथी हूं। मुझे यहां से।”
देवराज चौहान आगे बढ़ता चला गया।
मशीन और न्यूक्लियर खोजी डिवाइंस उसके हाथ में थी।
शीशे का दरवाजा खोलकर वो बाहर निकला तो सामने ही गैलरी में कई लाशें पड़ी दिखीं।
तभी गोलियां चलने की आवाजें आईं।
देवराज चौहान तेजी से लिफ्ट की तरफ बढ़ गया।
लिफ्ट के पास पहुंचा तो चेहरे पर मुस्कान नाच उठी। वहां पर योजना के मुताबिक पहले से ही जगमोहन मौजूद था।
“सब ठीक है?” जगमोहन उसके हाथ में दबी मशीन और डिवाइस की छोटी सी बोतल पर नजर मारता कह उठा- “काम हो गया। निकल चल यहां से।”
तब-तक जगमोहन बटन दबाकर लिफ्ट का दरवाजा खोल चुका था।
दोनों भीतर गये और जगमोहन ने ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया।
दरवाजे बंद हुए
और लिफ्ट नीचे जाने लगी।
“ये पकड़।” देवराज चौहान ने डिवाइस की शीशी उसे थमाई- “अपने कपड़ों में छिपा ले। मैं इसे अपने कपड़ों में छिपा देता हूं। हम फायरमैन की वर्दी में हैं। ऐसा सामान हमारे हाथ में नहीं नजर आना चाहिये।
दो पलों में ही वे दोनों चीजें अपने कपड़ों में छिपा चुके थे।
“अब कहां जाना है?”
“यहां से सीधा उसी ठिकाने पर। वहां रखी सारी दौलत समेटकर हम उस नये ठिकाने पर चलेंगे, जो कि हमने इस वक्त के लिए तैयार कर रखा है। वाडेकर, परेरा और लखानी से पीछा छूटा। उनसे अब हमें कोई मतलब नहीं रहा। C.C.T.V. कैमरे ने देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे कैद किए होंगे। पुलिस उन्हें उस डकैती का जिम्मेवार मानेगी। उन्हें ढूंढेगी।और हम अपने चेहरों
पर पड़ा फेसमास्क उतारकर फिर से वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत बन जायेंगे।”
जगमोहन मुस्कराया, फिर बोला- “परन्तु जिन लोगों से सौदा करना है, वो तो ये ही जानते हैं कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान से सौदा कर रहे-।”
“चिन्ता क्यों करता है जगजीत। जब देवराज चौहान बनना होगा तो फिर से मॉस्क पहनकर देवराज चौहान और जगमोहन बन जायेंगे। सौदे के वक्त ही तो हमें देवराज चौहान और जगमोहन बनना होगा।”
“हां!” जगमोहन ने सिर हिला दिया।
“मैं इस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस पर कब्जा पाकर, देवराज चौहान को इस मामले में फंसाना चाहता था और वो फंस गया। साला त्यागी से पंगा लेता है। मेरे को जान से खत्म करना चाहता था। अब देखूंगा कैसे बचता है। हिन्दुस्तान की सरकार हिन्दुस्तान के जर्रे-जर्रे पर देवराज चौहान को ढूंढेगी। क्योंकि मशीन के साथ देवराज चौहान द्वारा डिवाइस ले जाना, सरकार की निगाहों में ये संगीन मामला है। इस न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की वजह से पूरी दुनियां खतरे में पड़ सकती है। हिन्दुस्तान कभी नहीं चाहेगा कि ऐसा हो। देवराज चौहान अब तो तेरी खैर नहीं। तू तो गया!”
☐☐☐
दो घंटे बाद देवराज चौहान ने सुनसान सड़क पर कार रोकी। जगमोहन बगल में बैठा था। कार की पीछे वाली सीट पर हीरे-जवाहरातों से भरी गठरी पड़ी थी और कार की डिग्गी में डकैती में हासिल किया कैश रखा था और साथ में मशीन और डिवाइस रखी थी। ये कार उन्होंने पहले ही खरीदकर एक पार्किंग में खड़ी कर रखी थी और पार्किंग का लड़का उस पर रोज कपड़ा मार देता था। ग्रीन हाऊस से निकलने के बाद उन्होंने सड़क पार खड़ी कार में घुसकर फायरमैन के कपड़े उतारे और दूसरे पहन लिये। फिर वैन से उस पार्किंग में पहुंचे जहां कार खड़ी कर रखी थी। वैन छोड़कर वहां से कार उठाई और ठिकाने पर पहुंचकर डकैती का सारा माल पैक कर-करके कार में रखा और वहां से चल पड़े थे। दोनों खुश थे। जगमोहन का चेहरा जो कि शुरू से ही उतरा-उखड़ा लग रहा था, वो अब सामान्य हो चुका था।
देवराज चौहान ने जब कार रोकी तो जगमोहन ने पूछा- “कार क्यों रोक दी?”
“अपने असली रूप में आने के लिये। अब देवराज चौहान का चेहरा रखना खतरनाक है। हमें वापस अपने रूप में आना होगा।”
कहने के साथ ही आधे मिनट की चेष्टा के बाद उसने अपने चेहरे पर लगा रखा फेसमास्क निकालकर अलग कर दिया।
नीचे वीरन्द्र त्यागी का चेहरा चमक उठा।
“आह, कितनी देर बाद तुम्हारा चेहरा देखा है।” जगमोहन हंसकर बोला- “मास्क को संभाल के रख लो। अभी जरूरत पड़ेगी। मैं नहीं चाहता कि देवराज चौहान के चेहरे का मॉस्क बनाने में मुझे दोबारा मेहनत करनी पड़े। लाओ मुझे दो।”
वीरेन्द्र त्यागी ने मॉस्क जगमोहन को थमा दिया।
“तुम भी अपने चेहरे से जगमोहन के चेहरे का मॉस्क उतार लो।”
जगमोहन ने भी मॉस्क उतार लिया। नीचे जगजीत का चेहरा चमक उठा।
जगजीत अपने गालों पर हाथ फेरता कह उठा- “किसी के चेहरे का मॉस्क लगा के रखना भी मुसीबत भरा काम है। मैं तो सिर्फ फेसमॉस्क बनाने में एक्सपर्ट हूं, पर तूने इस काम में मुझे में मुझे खींच लिया। मैंने तीन गनमैनों को वहां गोली मारी थी। ये मेरा पहला काम था जब मैंने किसी की जान ली।”
“डर लग रहा है?” त्यागी हंसा।
“डर तो नहीं, परन्तु काम के दौरान बेचैनी जरूर रही।”
जगजीत मुस्कराया।
“तू मेरा यार है। मैंने तुझे इसलिये काम में लिया कि तू भी मोटी रकम कमा ले। ये काम करके तूने इतना कमा लिया है कि पूरी जिन्दगी ऐश से बिताये। अब तुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं। टिककर एक जगह रहना।”
जगजीत ने वीरेन्द्र त्यागी को देखा और गहरी सांस लेकर कह उठा- “मैं देवराज चौहान के बारे में सोच रहा हूं।”
“क्या?”
“वो जान चुके होंगे कि उनका फेसमॉस्क मैंने ही बनाया है। एक बार पहले भी बनाया था, जब तूने देवराज चौहान बनकर देवराज चौहान को तगड़ी चोट दी थी। तब देवराज चौहान और जगमोहन ने मुझे तलाश कर लिया था। उस वक्त मैंने उनसे यही कहा था कि मुझे नहीं पता वो देवराज चौहान है। मेरे पास कोई तुम्हारी तस्वीर लेकर आया और मैंने मॉस्क बना दिया। बहुत कठिनता से हाथ-पैर जोड़कर अपनी जान बचाई थी। परन्तु अब ये सब होता देखकर वो समझ गये होंगे कि इतना शानदार मॉस्क सिर्फ जगजीत ही बना सकता है। वो जरूर मेरी तलाश कर रहे होंगे।”
“और तेरे को देवराज चौहान से डर लग रहा है।” त्यागी हंसा।
“मैं तो ये सोच रहा हूं कि इस बार मुझे उन्होंने पकड़ लिया तो मेरी खैर नहीं।”
“तू देवराज चौहान और जगमोहन के हाथों से बहुत दूर है।”
त्यागी ने पुनः कार आगे बढ़ाते हुए कहा- “तू मेरे साथ है जगजीत।
तेरे और देवराज चौहान के रास्ते अलग हैं। देवराज चौहान और जगमोहन तेरी हवा भी नहीं पा सकते।” (जगजीत और वीरेन्द्र त्यागी के बारे में जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित उपन्यास (1) गिरोह (2) आर० डी० एक्स० (3) डॉन का मंत्री (4) गुरू का गुरू)
“ऐसा ही हो तो अच्छा है।”
“लखानी और वाडेकर में से कोई बचा था वहां?” त्यागी ने पूछा।
“वाडेकर को तो मैंने गोली लगते देखी थी। लखानी का पता नहीं।”
“वो भी मर गया होगा साला।” त्यागी ने कड़वे स्वर में कहा- “नहीं तो पुलिस के हाथ में पहुंचा होगा।”
“वो फायरमैन के कपड़ों में था।” जगजीत बोला- “वहां से बचकर निकल भी सकता है।”
“ये तो और भी अच्छी बात है।” त्यागी हंसा- “बचकर निकलेगा तो देवराज चौहान और जगमोहन को ढूंढेगा। हमारा उसके साथ क्या मतलब । हम तो किसी को जानते ही नहीं।” त्यागी का स्वर कड़वा हो गया।
“परेरा तुम्हारे साथ था?”
“उसे तीन गोलियां लगी थीं। परन्तु वो मरा नहीं था। मैं उसे जिन्दा छोड़ आया ये सोचकर कि अगर वो जिन्दा पुलिस के हाथ लगता है तो पुलिस को देवराज चौहान और जगमोहन के बारे में ही बतायेगा।” त्यागी के दांत भिंच गये- “साला देवराज चौहान! मैंने अब उसका जीना हराम कर दिया। मैं तो चाहता हूं कि उसे कहीं भागने की जगह भी नो मिले। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती कोई मामूली बात नहीं है। सरकार डिवाइस और देवराज चौहान को पाने के लिए जमीन आसमान एक कर देगी। देवराज चौहान तो गया। मैं अपने इरादों में सफल रहा। उसे इतना वक्त ही नहीं मिलेगा कि तुम्हें या मुझे तलाश कर सके। वो तो खुद को पुलिस से बचाता भागता फिरेगा। देखना वो देश छोड़कर भाग जायेगा।”
“और तब हम डिवाइस का सौदा कर रहे होंगे।” जगजीत खुशी से बोला।
“हां! तब हम डिवाइस का सौदा कर रहे होंगे।”
“अमेरिका से?”
“मैं डिवाइस की नीलामी करूंगा। पार्टियों को बीच में बिठाकर अमेरिका-पाकिस्तान और दूसरे लोग-जो भी ज्यादा कीमत देगा, वो मशीन और डिवाइस ले जायेगा। दौलत के अलावा कोई भी हमारा रिश्तेदार नहीं है।”
“अब हम उस फ्लैट पर जा रहे हैं जो हमने महीना पहले किराये पर लेकर रखा...”
“आज के वक्त के लिये ही। अब कुछ दिन हम आराम करेंगे। फिर डिवाइस को बेचने का इन्तजाम करेंगे और आराम के दौरान टी०वी० में देखेंगे बाहर क्या हो-हल्ला मचा है। देवराज चौहान कब पकड़ा जाता है।” त्यागी ठहाका लगाकर हंस पड़ा।
☐☐☐
सुबह के नौ बज चुके थे।
ग्रीन हाऊस इमारत।
फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने दसवीं मंजिल पर लगी आग पर काबू पा लिया था। हर तरफ धुएं की स्मैल फैली हुई थी। दसवीं मंजिल के नीचे और ऊपर तक दीवारें काली हो रही थीं। दसवीं मंजिल पर तो हर तरफ आग लगने के निशान नजर आ रहे थे खिड़कियां जल चुकी थीं। कांच चटक चुके थे और उन पर कालिमा बिछ चुकी थी।
अफरा-तफरी का माहौल था।
बिल्डिंग के सामने सड़क पर दूर-दूर तक फायर ब्रिगेड की गाड़ियां और उनके कर्मचारी दिखाई दे रहे थे। लाल-लाल कपड़े पहने फायर ब्रिगेड के कर्मचारी और पुलिस कारों की कतार लगी थी हर तरफ। पुलिस वाले मक्खियों की भांति इधर-उधर बिखरे हुए थे। परन्तु अभी वो अन्दर नहीं जा पाये थे, क्योंकि आग बुझाने वाले कर्मचारियों का काम चल रहा था। उन्होंने सात ऐसे लोगों को बचाया जो कि दसवीं मंजिल पर फंसे थे। एक की हालत गम्भीर थी। उसे फौरन एम्बूलेंस पर हस्पताल भेज दिया गया था।
फायर ब्रिगेड का मुख्य काम लगभग खत्म हो चुका था।
ग्यारहवीं मंजिल का सिक्योरिटी सुपरवाईजर रिजवान मलिक अपने दो सहयोगियों के साथ घंटेभर से बाहर मौजदू था और भारी तौर पर बेचैन था। वो भीतर जाना चाहता था परन्तु फायर ब्रिगेड और पुलिस वालों ने उसे रोक रखा था। वो ग्यारहवीं मंजिल पर मौजूद सिक्योरिटी वालों को बार-बार फोन कर रहा था परन्तु उनमें से कोई भी उसकी कॉल रिसीव नहीं कर रहा था। ये बात उसे परेशान कर रही थी और उसका मन कर रहा था कि वो उड़कर ग्यारहवीं मंजिल पर जा पहुंचे। मन में आशंका नाच रही थी कि कहीं दसवीं मंजिल पर लगी आग ने उन लोगों को कोई नुकसान ना पहुंचा दिया हो।
फिर फायर ब्रिगेड वालों की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिला कि सब कुछ काबू में है और अब पुलिस अपना काम कर सकती है। ऐसे में रिजवान मलिक को मौका मिला और वो अपने दोनों सहयोगियों के साथ फौरन ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंचा।
परन्तु वहां जो उसने हाल देखा वो उसे कंपा देने के लिए काफी था।
ग्यारहवीं मंजिल आग से सुरक्षित थी, परन्तु थोड़ा-बहुत धुआं अवश्य था वहां। लेकिन जगह-जगह पर पड़ी लाशें तो जैसे कुछ और ही कहानी कह रही थीं। लिफ्ट के पास ही चार सिक्योरिटी गनमैनों की लाशें बिखरी पड़ी थीं। एक कुछ दूर पड़ी थी। कोई भी जिन्दा ना दिखा उसे।
☐☐☐
ग्यारहवीं मंजिल पर पुलिस ही पुलिस थी रिजवान मलिक घबराया-सा भागता फिर रहा था और पुलिस को बता चुका था कि चार नम्बर कमरे से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस गायब है। दरवाजा खुला हुआ है। परन्तु इस वक्त तो पुलिस का ध्यान परेरा और एक अन्य घायल गनमैन पर था। जिन्हें कि तगड़ी सुरक्षा के पहरे में फौरन हस्पताल भेजा गया था।
इसके अलावा वहां कोई जिन्दा नहीं बचा था।
अभी पुलिस नहीं जानती थी कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस क्या है।
रिजवान मलिक अपने ऑफिसरों को न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के गायब होने के बारे में बता चुका था और इसी के साथ ही सरकारी मशीनरी में हड़कम्प मच गया। फोन पर फोन बजने लगे। उस डिवाइस से वास्ता रखते ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों के चेहरे फक्क पड़ गये। वो जानते थे कि डिवाइस के गलत हाथों में पड़ जाने का क्या मतलब है।
तुरन्त सरकारी भागा-दौड़ी शुरू हो गई।
उस वक्त ए० सी० पी० खेमकर पुलिस वालों के साथ ग्यारहवीं मंजिल पर था कि गृहमंत्रालय से उसे फोन आया। जिसमें कहा गया कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हर हाल में वापस पाना है और इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत संगीन डकैती माना जाये और जल्द से जल्दी न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को वापस पाया जाये। तुरन्त मुजरिम को तलाश किया जाये। कहीं ऐसा ना हो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस देश से बाहर चली जाये।
ए०सी० पी० खेमकर ने न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का महत्व पूछा।
तो उसे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की हकीकत बताई गई।
उसके बाद तो पुलिस को जैसे पंख लग गये।
पूरे मुम्बई की पुलिस की नींद हराम हो गई थी।
☐☐☐
पुलिस को शाम के चार बज गये ग्रीन हाऊस की ग्यारहवीं मंजिल पर छानबीन करते-करते। अब पूरी ग्यारहवीं मंजिल पुलिस के सुरक्षा घेरे में थी और पुलिस को ये भी महसूस हो चुका था कि दसवीं मंजिल पर आग लगाना डकैतों की चाल थी कि आग के बहाने वो ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंच सकें। परन्तु ये छानबीन का मुद्दा था कि डकैत ग्यारहवीं मंजिल के भीतर कैसे प्रवेश पा गये। क्योंकि रिजवान मलिक का कहना था कि ग्यारहवीं मंजिल के गनमैन किसी को, भीतर नहीं आने दे सकते थे।
बहरहाल तफ्तीश उड़ान पर थी क्योंकि गृहमंत्रालय ने उसे संगीन डकैती का तमगा दे दिया था। पुलिस स्टॉफ का काफी बड़ा हिस्सा अलग-अलग अंदाज से इसी संगीन डकैती की छानबीन कर रहा था। जाहिर तौर पर ये केस ए० सी० पी० खेमकर के हवाले था, जबकि दूसरी जांच एजेन्सियों ने भी इस मामले में भागदौड़ शुरू कर दी थी। परन्तु सब एजेन्सियां मिल-जुलकर एक दूसरे के सहयोग से इस संगीन डकैती वाले केस पर काम कर रही थीं। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का महत्व सबको पता चल चुका था और सबसे ज्यादा शोर तो न्यूज टी० वी० चैनलों ने डाल रखा था। शाम पांच बजे ग्यारहवीं मंजिल पर लगे c.c.T.V कैमरों की फुटेज पुलिस हैडक्वार्टर के एक कमरे में देखी गई। वहां पर करीब बीस से ज्यादा छोटे-बड़े पुलिस अधिकारी थे फुटेज देखते ही रहस्य की पर्ते खुलनी शुरू हुईं।
एक ने डकैती मास्टर देवराज चौहान का चेहरा पहचाना तो दूसरे ने जगमोहन को पहचाना। फिर बाकी तीनों को भी पहचाना गया कि ये वो ही मुजरिम हैं जिन्होंने कुछ दिन पहले बैंक डकैती की थी और ज्वैलरी शॉप लूटी थी। इसके साथ ही ये भी स्पष्ट हो गया कि डकैत ग्यारहवीं मंजिल पर आग बुझाने वाले कर्मचारी बनकर प्रवेश पा गये थे।
ए०सी० पी० खेमकर को पता चला कि देवराज चौहान का मामला ए० सी० पी० कामेश्वर देख रहा है।
☐☐☐
खेमकर ने फौरन ही ए० सी० पी० कामेश्वर से मुलाकात की।
“कामेश्वर!” खेमकर बोला- “देवराज चौहान के बारे में तुमने कितनी सफलता पाई?”
“भागदौड़ जारी है।” कामेश्वर ने कहा- “बैंक-डकैती और ज्वैलर्स शॉप में डकैती के बाद उन्होंने कुछ किया नहीं है कि…”
“कर दिया है। ग्रीन हाऊस की ग्यारहवीं मंजिल पर देवराज चौहान, जगमोहन, वाडेकर, परेरा और लखानी ने डकैती की है, न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की। हमारे पास C.C.T.V फुटेज है। फायरकर्मी की वर्दियों में उन्होंने वहां प्रवेश किया। उनमें से दो की लाशें मिली हैं और तीसरा घायल मिला है। अभी उनकी पहचान होनी बाकी है कि कौन क्या है। पुलिस तेजी से अपना काम कर रही है।”
ए०सी० पी० कामेश्वर चौंका।
ये उसके लिये नई खबर थी।
“ओह, मैंने तो सोचा भी नहीं था कि ये काम उन लोगों का हो सकता है।”
“गृहमंत्रालय की तरफ से पुलिस को आदेश मिल चुका है कि इसे संगीन डकैती माना जाये। जो हुआ वो राष्ट्र के लिये ही नहीं, दुनिया के लिये भी खतरा है। क्या तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की असलियत जानते हो?”
“नहीं”
खेमकर ने न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में बताया।
“ये तो बहुत बुरा हुआ। क्या ये मामला तुम्हारे पास है?”
“मेरे पास भी है और बाकी सरकारी जांच एजेन्सियों के पास है। सब अपने-अपने तौर पर स्वतंत्र जांच कर रहे हैं और एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं। सबका असली मकसद तो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस हासिल करना है। डकैतों को तलाशना है।”
“मैं इस मामले में तुम्हारे साथ रहूं तो...”
“मुझे खुशी होगी।” खेमकर ने कहा।
“ग्यारहवीं मंजिल पर एक घायल मिला है और बाकी दो मृत मिले?”
“हां। वो…”
“घायल वाले को कौन से हस्पताल में…।”
“उसे सुरक्षित जगह रखा गया है। डॉक्टर वहां उसकी देखरेख
“मैं वहां जाना चाहूंगा।” ए०सी० पी० कामेश्वर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं वहीं जा रहा हूं। तुम मेरे साथ चल सकते हो।”
ए०सी० पी० कामेश्वर सोच भरे गम्भीर स्वर में कह उठा- “देवराज चौहान और जगमोहन बहुत ही शातिर मुजरिम हैं खेमकर। बैंक डकैती करने और ज्वैलर्स शॉप को लूटने के बाद जगमोहन मुझसे मिला और कहने लगा कि…”
“जगमोहन तुमसे मिला?” खेमकर चौंका।”
“हां, वो मिला।” कामेश्वर ने गम्भीरता और गुस्से से होंठ भींचकर कहा- “उस दिन मेरी बेटी नेहा का जन्मदिन था और केक लेकर घर जाने वाला था तो उसने मुझसे केक को दुकान पर बात की। मैंने उसे गिरफ्तार करना चाहा कि वो बच निकला।”
कमिश्नर खेमकर के माथे पर बल दिख रहे थे।
“जगमोहन तुमसे क्यों मिला?” खेमकर ने पूछा।
“वो मुझे कह रहा था कि उसने और देवराज चौहान ने बैंक डकैती नहीं की। उनके चेहरे ओढ़कर ये काम कोई और कर रहा है। परन्तु मैं जानता था कि वो पुलिस को बेवकूफ बनाना चाहता था ऐसा कह कर। क्योंकि मेरे पास C.C.T.V कैमरे की बैंक और ज्वैलर्स शॉप की फुटेज थी, जिसमें वो और देवराज चौहान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। मैं उसकी बात के जाल में जरा भी नहीं फंसा। उसने कहा कि उसे डर है कि वो लोग उनके चेहरों की आड़ में कोई संगीन जुर्म ना कर दें। परन्तु अब मेरी समझ में आया कि उसने ये बात क्यों कही। क्योंकि वो और देवराज चौहान संगीन डकैती यानि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती करने की योजना बना रहे थे और खुद को पाक-साफ भी रखना चाहते थे। सच में उन्होंने वास्तव में संगीन डकैती की है। अगर न्यूक्लियर डिवाइस गलत हाथों में पहुंच गई तो वो पूरी दुनिया को ब्लैकमेल कर सकता है। तबाही के कगार पर खड़ा कर सकता है दुनिया को। देवराज चौहान ने ये काम बहुत ही गलत किया।”
“नहीं...!” कामेश्वर ने दृढ़ता से इन्कार किया- “इस संगीन डकैती से देवराज चौहान के रिकार्ड में बहुत फर्क आ गया है। ये बात आम है कि देवराज चौहान अपनी डकैतियों में किसी की जान नहीं लेता। परन्तु न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती में उसने 16 लोगों की, गनमैनों की हत्याएं की हैं। कानून की नजर में इसकी सजा सिर्फ मौत है।”
ए० सी० पी० खेमकर ने अपना गम्भीरता भरा चेहरा हिलाया। बोला-
“मैं अभी भी इस बात को गम्भीरता से ले रहा हूं कि जगमोहन ने तुमसे मिलकर ये कहा कि बैंक डकैती और ज्वैलर्स के यहां पर डकैती उसने नहीं की, उनके चेहरों की आड़ में किसी और ने की है और तब तक इस बात को गम्भीरता से लेता रहूंगा जब तक कि मैं ये ना जान लूं कि उसने किस मकसद के तहत ऐसा किया।”
“बताया तो कि...”
“वो तुम्हारी अपनी सोच है। सिर्फ सोच । जबकि मैं हकीकत की बात कर रहा हूं।”
कामेश्वर ने खेमकर की आंखों में झांककर कहा- “तुम कहना क्या चाहते हो? मैं तुम्हें बैंक डकैती और ज्वैलर्स शॉप पर हुई डकैती की फुटेज दिखा सकता...”
“उसकी जरूरत नहीं है।”
कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते कि जगमोहन ने जो कहा वो सच है?”
“मेरा ये मतलब भी नहीं है। परन्तु मैं सोच रहा हूं कि क्या ये सम्भव नहीं कि कोई देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों का इस्तेमाल करे, सौ में से एक प्रतिशत इस बात का चांस भी रखना चाहिये कि उसने सच कहा हो।”
“बकवास!” कामेश्वर ने बुरा-सा मुंह बनाया।
“मैं तुमसे सहमत हूं।” खेमकर मुस्करा पड़ा- “परन्तु मैं जगमोहन की बात को तुम्हारी तरह हवा में नहीं उड़ा दूंगा। जब तक मुझे जगमोहन की हरकत का जवाब नहीं मिल जाता, तब तक मैं इस बात पर जरूर सोचता रहूंगा। लेकिन एक बात मुझे समझ नहीं आती कि डकैती मास्टर देवराज चौहान अब तक आजाद क्यों हैं?”
“इस बात का जवाब तो वानखेड़े ही दे सकता है और वो इस वक्त सरकारी काम से नेपाल गया है।”
“चलो हमें वहां पहुंचना चाहिये, जहां घायल फॉयरमैन का इलाज हो रहा है।” खेमकर गम्भीर स्वर में कह उठा- “हमारे पास काम बहुत है और वक्त कम है। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को जल्दी से वापस पाना है।”
“इसके लिए देवराज चौहान को ढूंढ निकालना होगा।” कामेश्वर बोला।
“देवराज चौहान को हम उसकी बिल से निकालकर रहेंगे।”
☐☐☐
घायल फायरमैन और कोई नहीं, जॉन अंताओ परेरा ही था।
तीन गोलियां उसे लगी थीं। जो कि निकाल दी गई थीं। उसे अभी होश नहीं आया था। परन्तु वो खतरे से बाहर था।
उसके होश आने के इन्तजार में C.BI और क्राईम ब्रांच वाले भी वहां मौजूद थे।
बाकी दो फायरमैन जो कि वाडेकर और लखानी थे, जिन्दा नहीं रहे थे
इसके अलावा जिस घायल गनमैन को भी यहां लाया गया था, वो भी नहीं बचा था।
सबको परेरा के होश आने का इन्तजार था कि उससे जानकारी ली जा सके।
ए०सी०पी० खेमकर और कामेश्वर ने डॉक्टर से मुलाकात की।
डॉक्टर ने कहा कि अपनी तरफ से उसने इलाज की हर सहायता घायल को दी है। वो ठीक हाल में है, परन्तु बेहोश है। अगले दो-तीन घंटों में उसे होश आ जायेगा और पूछताछ के लिये वो बेहतर हाल में होगा।
लेकिन सब्र किसे था।
ये संगीन मामला था और परेरा के होश आने की खबर पाकर, C.B.I, क्राईम ब्रांच वाले और खेमकर और कामेश्वर लगभग सब एक साथ ही उस कमरे में परेरा के पास जा पहुंचे।
“पहले इन लोगों को पूछताछ कर लेने दो खेमकर।” कामेश्वर ने दबे स्वर में कहा- “हम बाद में बातचीत करेंगे इस आदमी से। दूसरों की पूछताछ का हमें फायदा मिलेगा।”
खेमकर सिर हिलाकर रह गया।
एक घंटा क्राईम ब्रांच और C.B.! वालों ने पूछताछ की।
खेमकर और कामेश्वर सवाल-जवाब सुनते रहे।
परेरा पूरी तरह होश में था परन्तु कमजोरी महसूस कर रहा था। वो जानता था कि इन्कार करने की स्थिति में नहीं है। इन लोगों को सहयोग देना ही बेहतर होगा। सच-सच जवाब दिए उसने।
उसके बाद क्राईम ब्रांच और C.B.I. वाले चले गये। अब उनकी मंजिल वो जगह थी, जहां सबने मौजूद रहकर इस काम को अंजाम दिया था। यानि कि जहां डकैती के बाद दौलत रखी गई
उसके जाने के बाद ए०सी०पी० कामेश्वर और खेमकर ने परेरा से पूछताछ की।
परन्तु तभी डॉक्टर ने आकर कहा- “बस बहुत हो गया। अब पेशेंट को आराम करने दीजिये।”
“दस मिनट डॉक्टर।” कामेश्वर बोला- “हमें ज्यादा सवाल नहीं करने हैं।”
“सिर्फ दस मिनट ऑफिसर। मैं अभी वापस आ रहा हूं।” कहकर डॉक्टर बाहर निकल गया।
परेरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर दोनों को फीकी निगाहों से देखा।
“हम वो सब नहीं पूछेगे जो अभी तुमसे क्राईम ब्रांच और C.B.I. वालों ने पूछा।” कामेश्वर ने शांत-गंभीर स्वर में कहा।
“मैं नहीं जानता वो कौन लोग थे, जो पूछताछ कर रहे थे।”
परेरा फीके स्वर में कह उठा।
“हम तुमसे देवराज चौहान और जगमोहन के बारे में जानना चाहते हैं।” खेमकर ने कहा- “तुमने उन दोनों के साथ तीन काम किए। बैंक डकैती और ज्वैलर्स की शॉप लूटी, फिर तीसरा काम ग्रीन हाउस की ग्यारहवीं मंजिल पर डकैती की।”
परेरा का चेहरा फक्क था।
“तुम ये तो स्वीकार कर ही चुके हो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की हकीकत जानते हो।”
“देवराज चौहान ने बताया था।” परेरा बोला।
“सरकार न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती को संगीन डकैती मानकर चल रही है। क्योंकि इससे पूरी दुनिया में तबाही मच सकती है। तुम इसी संगीन डकैती के हिस्सेदार हो और बुरी तरह फंस चुके हो। वहां पर सोलह लोगों की हत्या की गई। परेरा के होंठ भिंच गये। वो पीठ के बल बैड पर लेटा था। पूरा जिस्म पट्टियों से ढका हुआ था। एक गोली कंधे में, दूसरी कमर मैं और तीसरी कमर से थोड़ा नीचे टांग के ऊपरी हिस्से में लगी थी।
“परन्तु!” कामेश्वर बोला- “हम तुमसे देवराज चौहान के बारे में पूछताछ करना चाहते हैं क्योंकि बाकी जो भी पूछना था, वो क्राईम बांच और C.BI पूछ चुकी है और तुम्हारे जवाब हमने सुन लिए हैं। ये अच्छी बात है कि तुम कानून को सहयोग दे रहे हो।”
परेरा ने कामेश्वर को देखा।
“वो देवराज चौहान और जगमोहन, सच में देवराज चौहान और जगमोहन ही थे?”
“क्या मतलब?” परेरा के होंठ हिले।
“क्या तुम्हें किसी मौके पर शक हुआ कि वो देवराज चौहान या जगमोहन नहीं हैं।
“शक कैसे हो सकता है? मैं तो पहली बार मिला था और पहली बार उनके साथ काम किया। परन्तु तुम्हारे इस सवाल का मतलब क्या है? तुम क्या जानना चाहते हो मुझसे?”
“यही कि क्या वो असली देवराज चौहान और जगमोहन थे?”
“असली ही थे। नकली क्यों होंगे?” परेरा ने कड़वे स्वर में कहा।
तभी कामेश्वर का मोबाईल बजा।
“हैलो!” कामेश्वर ने बात की
“सर!” दूसरी तरफ विजय दामोलकर था- “वहां पर जो दो फायरमैनों की लाशें मिली हैं, उनकी पहचान हो गई है। वो देवराज चौहान के साथी वाडेकर और कन्हैया लखानी की लाशें हैं। देवराज चौहान और जगमोहन न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के साथ वहां से सुरक्षित निकल गये हैं। मैंने खुद उन दोनों की लाशों को देखा और पहचाना है सर।”
“ठीक है! मैं तुम्हें कुछ देर बाद फोन करूंगा।” कामेश्वर ने कहकर फोन जेब में रखा और परेरा से गम्भीर स्वर में बोला- “वहां पर वाडेकर और कन्हैया लखानी की लाशें मिली हैं और तुम घायल मिले।”
“देवराज चौहान कुत्ता है।” परेरा ने गुस्से से कहा।
“क्यों?”
“उसने हमें धोखा दिया। उसके मन में शुरू से ही बेईमानी थी। वो ही सब कुछ हुआ जैसा वो चाहता था।”
“खुलकर कहो, क्या कहना चाहते हो?” खेमकर बोला।
“देवराज चौहान ने हमारा इस्तेमाल किया इस काम में काम के बाद हमें छोड़कर जगमोहन के साथ वहां से निकल गया। गोलियां लगी तो मैं घायल होकर नीचे गिर गया। तब मैंने देवराज चौहान को कहा कि वो मुझे यहां से ले जाये। परन्तु वो मुझे छोड़कर चला गया। क्योंकि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वो हासिल कर चुका था और तब मैं उसे बेकार का बोझ लगा। हरामजादा है वो!” परेरा की आवाज में जहान भर का गुस्सा चमक उठा था- “वो इस काम में सिर्फ हमारा इस्तेमाल करना चाहता था, जो कि उसने किया।”
“वो देवराज चौहान ही था?”
“हां! देवराज चौहान ही था वो।” परेरा कड़वे स्वर में बोला।
“हमें ‘टिप’ मिली है कि वो नकली देवराज चौहान था। किसी ने उसका चेहरा ओढ़ रखा था।” खेमकर ने कहा।
“बकवास!” परेरा गुर्रा उठा- “वो देवराज चौहान ही था। ग्यारहवीं मंजिल पर C.C.T.V. कैमरे नहीं लगे थे?”
“लगे थे।
“तो कैमरे ने जरूर उसका चेहरा कैद किया होगा।”
खेमकर ने कामेश्वर को देखा।
“वो देवराज चौहान ही था खेमकर।” कामेश्वर कह उठा।
“मैंने इस बात से इन्कार नहीं किया। ये तो सिर्फ पूछताछ है।” खेमकर ने कहा।
“परेरा।” कामेश्वर बोला- “तुम चाहो तो तुम्हारी सजा बहुत कम हो सकती है। तुम सरकारी गवाह बनाए जा सकते हो।”
परेरा ने कामेश्वर को देखा।
“कानून स रियायत चाहते हो तो हमें बताओ कि हम कैसे फौरन देवराज चौहान तक पहुंच सकते हैं।”
“मैंने वो ठिकाना बता दिया है जहां पर हम लोग रह रहे थे।” परेरा ने कहा।
“हां! C.B.1 और क्राईम ब्रांच वाले वहां पहुंचने वाले होंगे परन्तु हम जानते हैं कि वहां देवराज चौहान-जगमोहन नहीं होंगे। उस जगह को वो दोनों छोड़ चुके होंगे। हो सकता है न्यूक्लियर डिवाइस पा लेने के बाद वो वहां गये ही ना हों।”
“जरूर गये होंगे।” परेरा ने कहा।
“क्यों?”
“वहां पर पच्चीस करोड़ जितनी बड़ी रकम रखी थी। उसे लेने तो वो वहां जरूर गये होंगे।”
“ये रकम वही थी जो पहले की गई दो डकैतियों से इकट्ठी की थी।”
“हां!”
“तुम लोग तब अपना हिस्सा लेकर देवराज चौहान से अलग क्यों नहीं हुए?”
“अलग होते कैसे? देवराज चौहान ने तो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का लालच हमारे सामने रख दिया था। उसने कहा कि 1000 करोड़ से ज्यादा का सौदा वो अमेरिका, पाकिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों से करेगा। बातचीत चल रही है। वो हम सबको बराबर का हिस्सा देने को कह रहा था और काम आसानी से हो जाने को कह रहा था। हम उसकी बातों में आ गये। जबकि उसे यकीन है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के हाथ आते ही उसने किसी तरह हम तीनों से पीछा छुड़ाने की सोच रखी थी। या फिर वो जानता था कि सिक्योरिटी पर मौजूद गनमैनों की गोलियों का शिकार होकर हम मर जायेंगे। देवराज चौहान सिरे से ही बेईमान था।”
“अमेरिका, पाकिस्तान या पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों में से किसी व्यक्ति का नाम लिया था उसने?”
“नहीं”
“तुम सोचो, कुछ तो तुम्हें अन्दाजा होगा कि देवराज चौहान और जगमोहन कहां जा सकते हैं। कभी उन्होंने अन्जाने में तुम लोगों के सामने किसी जगह का, किसी शहर का जिक्र किया हो।”
“वो कमीना देवराज चौहान इतना बेवकूफ नहीं था कि ऐसी गलती करता।” परेरा ने दांत भींचकर कहा।
“मतलब कि इस बारे में तुम्हें कुछ नहीं पता?”
“नहीं।”
“सोच लो, तुम्हारी सजा कम हो सकती है अगर तुम देवराज चौहान और जगमोहन को पकड़वा।”
“मैं जानता होता तो तुम लोगों को जरूर बता देता। परन्तु मैं जानता नहीं।” परेरा के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था- “मैं खुद चाहता हूं कि देवराज चौहान पकड़ा जाये और।”
तभी डॉक्टर ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा- “बस, इससे ज्यादा वक्त मैं तुम लोगों को नहीं दे सकता।
अभी ये मेरा पेशेंट है और अब इसे आराम करना चाहिये।
ए०सी०पी० कामेश्वर और खेमकर कमरे से बाहर निकल आये।
बाहर चार पुलिस वाले पहरे पर मौजूद थे।
एक क्राईम ब्रांच का आदमी मौजूद था।
दो C.B.I. के लोग वहां थे।
वो दोनों वहां से आगे बढ़ते चले गये।
“वो देवराज चौहान और जगमोहन ही हैं।” कामेश्वर बोला- “C.C.T.V. की फुटेज हमारे सामने है। जगमोहन बार-बार मेरे को ये कहकर कि उनके चेहरों में कोई और लोग जुर्म कर रहे हैं, मुझे जांच दिशा से भटकाना चाहता था। ये सब ड्रामा उन्होंने इसलिये किया कि वो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को पाने जा रहे थे और खुद को पाक-साफ रख सकें इस मामले से।”
“मैंने पहले भी कहा है और अब फिर कह रहा हूं कि वो भी जानते हैं कि इस तरह खुद को पाक-साफ नहीं रख सकते।”
“तुम ये सोचते हो कि C.C.T.V. से आई फुटेज देवराज चौहान और जगमोहन की नहीं है?”
“मैं ऐसा नहीं सोचता।” खेमकार ने कहा।
“तो?”
“मैं ये सोच रहा हूं कि ये सब करने के पीछे देवराज चौहान और जगमोहन का मकसद क्या था। दूसरी बार जगमोहन ने तुमसे बात की या देवराज चौहान ने।”
“जगमोहन ने ही।”
“मतलब कि पहली बार की तरह वो फिर सामने आया तुम्हारे?”
दोनों चलते हुए बातें कर रहे थे। वो बाहर खड़ी पुलिस कार में आ बैठे थे और ड्राईवर को उस जगह के बारे में समझाया कि जहां न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती से पहते उनका ठिकाना था, वहां चलने को कहा।
पुलिस कार चल पड़ी।
“टूसरी बार फोन पर बात की और ड्रामा ये किया कि उसने मेरी बेटी नेहा का अपहरण कर लिया है।”
“क्या मतलब?” खेमकर ने बगल में बैठे कामेश्वर पर नजर मारी।
कामेश्वर ने सारी बात बताई।
ए०सी०पी० खेमकर, कामेश्वर की बात को गंभीरता से सुनता रहा।
सुनने के बाद खेमकर ने सोचभरे स्वर में कहा- हैरानी है कि देवराज चौहान और जगमोहन ही सब कर रहे थे और जगमोहन तुम्हें आकर कहता रहा कि ये काम वो नहीं कर रहे। इस बात को समझना जरूरी है कि जगमोहन ऐसा क्यों कर रहा था।”
“वो पुलिस को पागल बनाना चाहते थे।” कामेश्वर ने तीखे स्वर में कहा। खेमकर कुछ नहीं बोला।
☐☐☐
“रात के नौ बजे खेमकर और कामेश्वर उस जगह पर पहुंचे जो देवराज चौहान, जगमोहन, लखानी, वाडेकर और परेरा का ठिकाना था। वहां पर C.B.I. और क्राईम ब्रांच के अलावा पुलिस भी मौजूद थी। जमघट लगा हुआ था। पुलिस ने उस मकान के आस-पास का सारा इलाका सख्ती से घेर रखा था। लोगों की भीड़ भी थी वहां और न्यूज चैनल और अखबार वाले भी अपना काम कर रहे थे। गहमा-गहमी का माहौल था। लोग ये जानकर हैरान थे कि यहां डकैती मास्टर देवराज चौहान जैसे खतरनाक लोग टिके हुए थे और उन्होंने किसी संगीन डकैती को अन्जाम दे दिया है।
खेमकर और कामेश्वर को पता चला कि यहां कोई नहीं मिला और ना ही डकैती का पैसा मौजूद पाया गया। पूछताछ में आस-पास के लोगों से ये जानकारी मिल गई थी कि दो लोग करीब दस बजे कार पर आये थे और गठरी जैसा सामान कार पर लादकर ले गये थे।
इसके अलावा पूछताछ में और कोई भी जानकारी नहीं मिली, जो कि फायदेमंद होती। परन्तु देवराज चौहान और जगमोहन की तस्वीरें दिखाने पर ये बात स्पष्ट हो गई कि सुबह दस बजे ये ही दो व्यक्ति यहां आकर कुछ सामान लेकर गये थे। देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश हर तरफ जारी थी।
C.B.I, क्राईम ब्रांच और पुलिस देवराज चौहान तक पहुंचने का रास्ता ढूंढ लेना चाहती थी। मुम्बई के चप्पे-चप्पे पर हाई अलर्ट हुआ पड़ा था। हर जगह चैकिंग चल रही थी। परेरा के बयान से, सब सरकारी एजेन्सियां जान चुकी थीं कि देवराज चौहान न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का सौदा किसी अन्य देश से करेगा और इस बारे में उसकी बातचीत जारी है। सरकारी मशीनरी में हड़कम्प मचा हुआ था। हर किसी की नींद हराम हो चुकी थी।
☐☐☐
उस वक्त रात के ग्यारह बज रहे थे जब ए.सी.पी. खेमकर और कामेश्वर वहां से निकलकर गली के बाहर एक तरफ खड़ी कार की तरफ आ गये थे। क्राइम ब्रांच और CBI के ऑफिसर जा चुके थे, परन्तु दूसरे कर्मचारी अभी भी अपने काम में व्यस्त थे। फिंगर प्रिंट वहां से उठाये जा चुके थे। और भी सब जरूरी खानापूर्ति पूरी हो चुकी थी।
कार के पास पहुंचकर दोनों ठिठके। वहां कई पुलिस कारें और सरकारी गाड़ियां खड़ी नजर आ रही थीं और पुलिस भी हर तरफ फैली दिख रही थी। कामेश्वर बोला– “अभी तक किसी को कोई रास्ता नहीं मिला, देवराज चौहान तक पहुंचने का। वो मुम्बई से बाहर निकल गया हो सकता है और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का सौदा भी कर लिया हो सकता है।”
“ये इतना आसान नहीं है।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा –“ऐसे सौदे मिनटों में नहीं होते।”
“देवराज चौहान ने सब कुछ पहले से ही तय कर रखा...।”
“परेरा का कहना है कि देवराज चौहान अमेरिका, पाकिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को बेचने की बातचीत कर रहा था। जब इतने लोगों से बात चल रही हो तो सौदा आसानी से अंत पर नहीं पहुंचता। अभी देवराज चौहान तीनों पार्टियों से बातचीत करेगा ।जो ज्यादा रकम देगा, उसी को वो डिवाइस बेचेगा। परन्तु उससे पहले ही हमने हर हाल में देवराज चौहान तक पहुंचना है और उससे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस हासिल करनी।”
“हम कोशिश कर रहे हैं कि ऐसा कर सकें।”
तभी कामेश्वर का फोन बजा।
“हैलो!”
“सर!” इन्सपेक्टर विजय दामोलकर की आवाज कानों में पड़ी –“एक मुखबिर ने बताया कि उसने देवराज चौहान को, शाम को पुलिस हेडक्वार्टर के पास मंडराते देखा था। तब वो देवराज चौहान को ठीक से पहचान नहीं पाया, परन्तु दो घंटे बाद उसे याद आया कि वो देवराज चौहान ही था।”
“मतलब कि मुखबिर ने देवराज चौहान पर नजर नहीं रखी।”
ए.सी.पी. कामेश्वर बोला।
“नहीं सर। तब वो समझ नहीं पाया कि –।”
“फिर ये बात बताने का कोई फायदा नहीं। लेकिन मुझे हैरानी है कि देवराज चौहान पुलिस हेडक्वार्टर के पास क्या कर रहा था।” कामेश्वर सोच भरे स्वर में बोला –“फिर भी तुम कुछ पुलिस वालों को सादे कपड़ों में पुलिस हेडक्वार्टर के आस-पास लगा दो। हो सकता है कि देवराज चौहान वहां फिर आ जाये।”
“यस सर।”
ए.सी.पी. कामेश्वर ने फोन बंद करके जेब में रखा तो खेमकर ने पूछा–
“कोई नई बात?”
कामेश्वर ने देवराज चौहान के बारे में बताया।
“कोई जरूरी नहीं कि वो देवराज चौहान ही हो। देवराज चौहान इन हालातों में पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर क्यों दिखेगा? मुखबिर को कोई गलतफहमी भी हुई हो सकती है।” ए.सी.पी. खेमकर के होंठों से निकला।
“हमारे अस्सी प्रतिशत काम मुखबिर ही करते हैं।” कामेश्वर बोला –“हमें मुखबिरों की बातों पर भरोसा करना पड़ता है। ऐसे मौकों पर मुखबिर ही हमें अपनी मंजिल पर पहुंचाते हैं। परन्तु ये बात सही है कि देवराज चौहान पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर क्यों दिखेगा?”
“मेरे ख्याल में हमें परेरा से बात करनी होगी।” खेमकर ने कहा –“अगर वो हमसे कुछ छिपा रहा है तो वो बात हमें उसके मुंह से निकलवानी होगी। मैंने भी मुखबिर छोड़ रखे हैं, कभी भी हमें देवराज चौहान के बारे में खबर मिल सकती है।”
दोनों पुलिस कार की पीछे वाली सीट पर जा बैठे।
ड्राईवर तो उन्हें आया पाकर पहले ही स्टेयरिंग सीट पर बैठ चुका था।
“वहीं चलो।” खेमकर बोला –“जहां से आये हैं।”
उसी पल कार आगे बढ़ी और उस जगह के घेरे से बाहर आ गई।
सड़क पर दौड़ने लगी कार।
दो पल बीते कि खेमकर कह उठा– “ये तुम किस दिशा में ले जा रहे हो कार को?”
“मैं तुम्हारा ड्राईवर नहीं हूं।” स्टेयरिंग सीट पर बैठे जगमोहन की आवाज उनके कानों में पड़ी –“मैं जगमोहन हूं।”
दो पल तो खेमकर और कामेश्वर इक्के-बक्के रह गये।
“तुम?” कामेश्वर ने जल्दी से रिवॉल्वर निकाली और कार चलाते जगमोहन के सिर पर लगा दी –“अब तुम नहीं बचोगे। कार को रोको और –।”
“ए.सी.पी. कामेश्वर।” जगमोहन के स्वर में गम्भीरता थी –“ये जरूरी तो नहीं कि एक बार तुम्हारी बेटी का अपहरण ना किया हो तो दूसरी बार भी ऐसा ही होगा?”
“क...क्या कहना चाहते हो तुम?” अब कामेश्वर की सांस गले में अटकी।
खेमकर गम्भीरता से हालातों का जायजा ले रहा था।
“तुम्हारी बेटी नेहा इस बार सच में मेरे कब्जे में है। अगर तुमने कोई पुलसिया हरकत की, कानून-कानून कहना ना छोड़ा तो नेहा को नुकसान हो सकता है। मेरे आदमी हम पर नजर रखे हुए हैं।”
कामेश्वर के दांत भिंच गये। वो समझ नहीं पाया कि क्या कहे, क्या करे?
“तुम...तुमने मेरी बेटी को कहां रखा है?” कामेश्वर गुर्रा उठा।
“जब तक तुम्हारे सामने मैं सुरक्षित हूं, तब तक नेहा भी सुरक्षित है।” जगमोहन बोला।
“क्या चाहते हो?”
“मेरे सिर से रिवॉल्वर हटाओ।”
कामेश्वर ने रिवॉल्वर हटा ली।
“पीछे होकर बैठो।”
कामेश्वर पीछे होकर बैठ गया। वो खुद को बहुत बेबस महसूस कर रहा था।
“तुम देवराज चौहान के साथी हो?” खेमकर ने पूछा।
“ये कौन है?” जगमोहन ने कामेश्वर से पूछा।
“ए.सी.पी. खेमकर।” कामेश्वर बोला।
“इस वक्त तुम दोनों साथ क्यों हो?”
“हम दोनों मिलकर तुम्हें-देवराज चौहान को और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को तलाश कर रहे हैं।”
जगमोहन कुछ नहीं बोला।
“तुम चाहते क्या हो? कामेश्वर ने पूछा।
“तुमसे बात करना–।”
“तुम दो बार मुझसे बात कर चुके।”
“परन्तु दोनों ही बार हमारी तसल्ली से भरी मुलाकात नहीं हो पाई। अब हमारी बात आराम से होगी।”
“और तुम वो ही कझेगे कि...।”
“चुप रहो। इस बारे में तभी बात करना जब मैं बात शुरू करूं।” जगमोहन ने कहा।
कामेश्वर दांत भींचकर रह गया। फिर बोला–
“मेरी बेटी सुरक्षित रहेगी तुम लोगों की कैद में?”
“तब तक, जब तक मैं तुम लोगों के पास सुरक्षित रहूंगा।”
“इस वक्त हम कहां जा रहे हैं?”
“पांच मिनट में पता चल जायेगा।”
“तुम जगमोहन हो –डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथी?” खेमकर ने पूछा।
“हाँ।”
“तुम दो बार पहले भी कामेश्वर से बात कर चुके हो। परन्तु देवराज चौहान तुम्हारे साथ नहीं दिखा।”
“इस बार वो भी साथ है।
“कहां?” खेमकर के होंठों से निकला।
“पीछे, हमारे पीछे कार में आ रहा है।”
खेमकर की निगाह फौरन पीछे गई। शीशे में से पीछे आता ट्रैफिक दिखा।
कामेश्वर ने पुश्त से सिर टिकाकर आंखें बंद कर ली।
“तुम लोग अजीब हो।” खेमकर सीधा होकर बैठता कह उठा –“पहले डकैती करते हो, फिर पुलिस वालों को रोककर कहते हो कि डकैती तुम लोगों ने नहीं की। वैसे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का तुम लोगों ने सौदा कर लिया है या वो तुम्हारे पास ही है?”
जगमोहन ने कोई जवाब नहीं दिया।
“तुम सच कह रहे हो कि डकैती मास्टर देवराज चौहान पीछे कार में आ रहा है?” खेमकर ने पुनः कहा।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“कम से कम ये तो बता दो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस तुम्हारे पास है या बेच दिया उसे?” खेमकर का चुप होने का मूड नहीं था।
“कुछ देर के लिये अपनी जुबान बंद रखो।” जगमोहन का स्वर शांत था।
कामेश्वर ने आंखें खोली और खेमकर से कहा– “वैसे ये हिम्मत वाले लोग हैं जो इस तरह खुले में घूम रहे हैं। पुलिस चप्पे-चप्पे पर इनकी तलाश कर रही है। जरा भी डर नहीं लगता इन्हें। मेरे मुखबिर की खबर सही थी कि शाम को देवराज चौहान पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर दिखा था। ये लोग मुझसे करने के लिए मौका ढूंढ रहे होंगे। लेकिन इनकी बातों में कोई दम नहीं है।”
कुछ देर बाद ही जगमोहन ने सड़क के किनारे कार रोक दी।
सड़क से वाहन बराबर निकल रहे थे। रात के इस वक्त भी मुम्बई में भागदौड़ जारी थी।
तभी कार के पीछे एक और कार आ रुकी।
जगमोहन ने कार का इंजन बंद किया और दरवाजा खोलता बोला– “बाहर निकलो, हम बात करेंगे।”
कामेश्वर और खेमकर की नजरें मिली।
“मैं जानता हूं ये जो कहने वाले हैं...।” कामेश्वर बोला –“खोखली बातें होंगी इनकी।”
खेमकर ने कुछ नहीं कहा और कार का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया।
कामेश्वर-जगमोहन भी बाहर निकले।
पीछे वाली कारी की बॉडी से टेक लगाए देवराज चौहान खड़ा था।
“वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है?” कामेश्वर ने देवराज चौहान को देखते, जगमोहन से पूछा।
“उसके पास चलो। पहचान लेना। हर तरफ उसकी और मेरी तस्वीरें दिखाई जा रही हैं।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा –“ऐसे में उसे पहचानने में तुम्हें कोई परेशानी नहीं आयेगी।”
वो तीनों उसके पास पहुंचे।
देवराज चौहान ने दोनों को देखा और शांत स्वर में कह उठा–
“तुम ए.सी.पी. कामेश्वर हो। लेकिन तुम कौन हो?” देवराज चौहान ने खेमकर से पूछा।
“ए.सी.पी. खेमकर। तुम लोगों द्वारा की गई संगीन डकैती का केस मेरे ही हाथ में है।” खेमकर बोला।
“मैंने तो सुना है दूसरी सरकारी एजेन्सियां जैसे कि C.B.I. क्राइम ब्रांच भी ये मामला देख रही हैं।”
“सही सुना है।” खेमकर ने उसे गम्भीर निगाहों से देखते हुए कहा- “इस वक्त मुम्बई की सरकारी मशीनरी को तुम्हारी तलाश है, इसकी तलाश है।” उसने जगमोहन की तरफ इशारा किया –“पूरे हिन्दुस्तान की पुलिस को तुम्हारे और जगमोहन के बारे में एलर्ट भेज दिया गया है। इस वक्त ऐसा कोई शहर नहीं होगा, जहां की पुलिस तुम्हें ना ढूंढ रही हो।”
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
जगमोहन जो उसे ही देख रहा था, उसी पल कड़वे स्वर में कह उठा–
“सुन लिया। हमारे उन कारनामों की वाहवाही हो रही है जिनसे हमारा दूर तक का रिश्ता नहीं है।”
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लिया।
“देवराज चौहान।” कामेश्वर बोला –“ये मेरे लिए शर्म की बात है कि मैं इस वक्त तुम्हें गिरफ्तार नहीं कर पा रहा हूं। खेमकर भी इस वक्त ये ही सोच रहा होगा कि मेरी बेटी तुम लोगों के कब्जे में ना होती तो तुम लोगों को अब तक गिरफ्तार कर लिया होता। तुम्हें कम से कम इस बात का भरोसा दिलाना होगा कि इस बातचीत के बाद नेहा को सुरक्षित हाल में छोड़ दिया जायेगा।”
“ये बात मुझसे करो।” जगमोहन कह उठा –“तुम कोई शरारत नहीं करोगे और हमारी बात समझने की कोशिश करोगे तो नेहा को ठीक-ठाक हाल में उसके घर के बाहर छोड़ दिया जायेगा। हमने अपनी बात कहने के लिए ये दबाव तुम पर बनाया है।”
कामेश्वर के होंठ भिंचे रहे।
“ये अपनी बात पर खरे उतरेंगे कामेश्वर।” खेमकर बोला –“तुम्हें इनका भरोसा करना चाहिये।” फिर खेमकर ने देवराज चौहान से कहा –“अब तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की बात करो। वो तुमने आगे किसी को बेच दी है या तुम्हारे पास ही है। एक बात गम्भीरता से सुनो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कोई हंसी-मजाक नहीं है। वो अपने आप में खतरनाक हथियार है। सब जानते हो तुम। भगवान तुम्हें अच्छी बुद्धि दे और तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस, मशीन के साथ हमें वापस कर दो तो बहुत बड़ी मुसीबत से बच जाओगे। वरना ये तो तय है कि अब तुम लोग बचने वाले नहीं। शांत दिमाग से सोचो और फैसला करो।”
देवराज चौहान ने कश लिया और कामेश्वर, खेमकर से कह उठा– “जगमोहन ने पहले भी तुम्हें समझाने की चेष्टा की कि ये काम हम नहीं कर रहे, बल्कि हमारे चेहरों की आड़ में कोई और लोग ये काम कर रहे हैं। बैंक डकैती, ज्वैलर्स शॉप में डकैती और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती, ये तीनों डकैतियां मैंने या जगमोहन ने नहीं की हैं। मैं जानता हूं कि पुलिस वालों के लिए इस बात को स्वीकार करना आसान नहीं है, क्योंकि डकैतियों के दौरान C.C.T.V के कैमरों ने मेरे और जगमोहन के चेहरे कैद किए हैं। परन्तु वो हम नहीं थे।”
“बकवास।” कामेश्वर सख्त स्वर में कह उठा –“मैं पहले से ही जानता था कि तुम ये ही कहने वाले हो। क्योंकि दो बार पहले भी इसी तरह की बात की जगमोहन ने। तुमने कानून को मूर्ख समझ रखा है या...।”
“पहले मैं जगमोहन के साथ ही आता, लेकिन मैं उन लोगों को ढूंढने में व्यस्त था, जिन्होंने हमारे चेहरों की आड़ में इस काम को पूरा किया। परन्तु अभी तक मैं उन लोगों को ढूंढने में सफल नहीं हो सका।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैंने कहा कि तुम क्या पुलिस को मूर्ख समझते हो जो –।”
“मैंने कभी भी पुलिस को कम नहीं समझा और मूर्ख समझने जैसा गुनाह मैं नहीं कर सकता परन्तु...।”
“ये सब बातें कहकर तुम हमें मूर्ख बनाने की चेष्टा ही तो कर रहे...।”
“मैं सच कह रहा हूं कि ये काम हमने नहीं किया।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम ही सोचो कि ये सब डकैतियां हमने की होती तो हम तुम्हारे पास आकर क्यों कहते कि –।”
“खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए।”
“क्या तुम दोनों के मान लेने से मैं बेगुनाह साबित हो जाऊंगा?”
कामेश्वर और खेमकर उसे देखते रहे।
“तुम लोगों को मेरी बात के सच पर यकीन आ जाता है तो भी मैं कानून की नजरों में बेगुनाह साबित नहीं होऊंगा।”
“ये बात तुमने ठीक कही।” खेमकर बोला –“फिर तुम क्या चाहते हो?”
“मैं चाहता हूं कि वक्ती तौर पर तुम लोग मेरी बात का भरोसा कर लो और इस मामले में ये सोचकर चलो कि कुछ लोगों ने देवराज चौहान और जगमोहन का रूप बनाकर डकैतियां की। अपनी तफ्तीश इस एंगल से करो। जो काम तुम लोग कर सकते हो उस तरह मैं काम नहीं कर सकता। पहले खुद को इस बात का यकीन दिलाओ कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती करने वाला देवराज चौहान नहीं बल्कि मेरे चेहरे में वो कोई और था।”
“ये यकीन कैसे होगा?” खेमकर ने पूछा।
“जहां उन लोगों का ठिकाना था, जहां से तुम लोग अभी-अभी आये हो, वहां से उंगलियों के निशान उठाओ। उन निशानों से मेरी उंगलियों के निशान मिलाओ कि क्या मिलते हैं निशान?”
“तुम्हारा मतलब कि किसी ने तुम्हारे और जगमोहन के चेहरे के फेसमास्क बनाकर ये काम किया?”
“हां!”
“तो वो उंगलियों पर तुम जैसी उंगलियों के निशानों का मास्क भी तो चढ़ा सकता है?”
“मेरे ख्याल से ऐसा नहीं हुआ होगा। क्योंकि मेरी उंगलियों के निशान किसी को मिलना आसान नहीं है। पुलिस रिकॉर्ड से हासिल करने भी कठिन हैं उंगलियों के निशान कि उन निशानों जैसा मास्क तैयार किया जा सके।” देवराज चौहान ने कहा –“बल्कि शक के आधार पर मैं बता सकता हूं कि वहां से उंगलियों के मिलने वाले निशान किन लोगों के हो सकते हैं।”
“किसके हो सकते हैं?”
“वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत नाम के अपराधियों के। जगजीत फेस मास्क बनाने में एक्सपर्ट है और वीरेन्द्र त्यागी का आपराधिक रिकॉर्ड पुलिस के पास है। वहां मिले उंगलियों के निशानों से, वीरेन्द्र त्यागी की उंगलियों के निशानों का मिलान कर सकते हो।”
“तुम्हें कैसे पता कि वहां पर से हमें वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत की उंगलियों के निशान मिलेंगे?” खेमकर ने पूछा।
पलभर की खामोशी के बाद देवराज चौहान ने कहा–
“क्योंकि मेरा चेहरा ओढ़कर वीरेन्द्र त्यागी मेरे नाम पर पहले भी अपराध कर चुका है।”
“वो ऐसा क्यों करता है?” खेमकर के माथे पर बल दिख रहे थे।
“मेरी उसकी दुश्मनी है। उसने मेरे साथ ऐसा कुछ कर रखा है कि वो जानता है मैं उसे छोडूंगा नहीं। ऐसे में वो मुझे बड़ी मुसीबत में फंसाकर पुलिस के हाथों मुझे मरवा देना चाहता है। इस बार उसने मेरे नाम पर खतरनाक काम कर दिखाया है। इसमें कोई शक नहीं कि मैं और जगमोहन इस वक्त खुद को बड़ी मुसीबत में फंसा महसूस कर रहे हैं। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का महत्व मैं जान चुका हूं और ये बात भी अपनी जगह अटल है कि मैं इस तरह की डकैतियां नहीं करता। ये बात वानखेड़े से पूछ सकते हो।”
“कौन वानखेड़े?” खेमकर बोला।
“इन्सपेक्टर पवन कुमार वानखेड़े। पुलिस हेडक्वार्टर में तैनात है वो। मेरे केस की फाईल उसी के पास है। मुझे हैरानी है कि ये मामला वो नहीं देख रहा।”
“बहुत कुछ जानते हो वानखेड़े के बारे में।” कामेश्वर ने व्यंग्य से कहा।
“क्यों न जानूंगा, वो मुझे गिरफ्तार करने की जो सोचता है।”
“और आज तक किया नहीं उसने गिरफ्तार। दोस्ती होगी उससे। मोटा पैसा उसे दिया होगा कि –।”
“वो ईमानदार पुलिस वाला है। उसके बारे में ऐसा कुछ मत कहो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
चंद पलों के लिए उनके बीच खामोशी आ ठहरी।
सड़क पर से रोशनियां फेंकता ट्रैफिक दौड़ा जा रहा था।
“देवराज चौहान।” खेमकर ने सख्त गम्भीर स्वर में कहा –“अभी भी वक्त है, अगर तुम्हारे पास न्यूक्लियर खोजी डिवाइस है तो उसे हमारे हवाले कर दो। हम इस तरह से मामले को सरकार के सामने लायेंगे कि तुम निर्दोष माने जाओगे। अभी भी अपना बचाव कर सकते हो मेरी बात मानकर। मेरी राय है कि कानून से इतना बड़ा खेल मत खेलो कि उसका बोझ तुम ही सहन ना कर सको।”
“मैं जानता हूं कि तुम लोगों को मेरी बात पर यकीन नहीं आयेगा। परन्तु मैंने जो कहा है सच कहा है। मैंने आज तक पुलिस वालों के सामने सफाई नहीं दी। पहली बार मुझे इस तरह पुलिस के सामने आना पड़ा है। मेरी बात पर विश्वास करते हुए सबसे पहले उंगलियों के निशानों से शुरूआत करो। उसके बाद वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत को तलाश करो। धीरे-धीरे तुम लोगों को मेरी बात पर यकीन आने लगेगा। याद रखो, देवराज चौहान कभी भी झूठ नहीं बोलता। मेरी डकैतियां सिर्फ दौलत के लिए होती हैं। ऐसे नाजुक मसलों पर मैं कभी डकैतियां नहीं करता। और सरकार की चीजों पर तो कभी भी हाथ नहीं डालता।”
खेमकर और कामेश्वर की निगाह देवराज चौहान पर थी।
जबकि जगमोहन सतर्क निगाहों से हर तरफ देख रहा था।
“ये ही बात कहना चाहते थे तुम?” कामेश्वर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं चाहता हूं कि तुम लोग मेरी बात को गम्भीरता से लो। बेहतर होगा कि इन्सपेक्टर वानखेड़े को इस मामले में लाओ। वो मेरे बारे में बेहतर ढंग से जानता है कि कौन-सा काम मैंने किया हो सकता है और कौन-सा नहीं।”
“तुम्हारी बातों पर हम जरूर ध्यान देंगे।” खेमकर ने सिर हिलाकर कहा।
“वानखेड़े कहां है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“नेपाल में है।”
“उसे बुलाओ और बताओ कि मैंने क्या बात की है। वो समझ जाएगा कि मामला क्या है।” देवराज चौहान ने कहा –“बेशक वो अभी तक मुझे गिरफ्तार नहीं कर सका। अगर एक बार किया भी तो मैं मौका पाकर फरार हो गया। परन्तु वो मेरी नस-नस पहचानता है। इस बात को तो वो अच्छी तरह समझता है कि क्या काम मैंने किया है और क्या नहीं।”
“यकीन मानो।” खेमकर बोला –“हम तुम्हारी बात को गम्भीरता से ले रहे हैं।”
“धन्यवाद।”
“लेकिन मैं इसकी बकवास पर यकीन नहीं करता।” कामेश्वर ने गुस्से से कठोर स्वर में कहा –“सब कुछ इसी का किया-धरा है और अब ये बातें करके अच्छा बनने की कोशिश कर रहा –।”
“उससे मुझसे क्या फायदा होगा?” देवराज चौहान ने कहा –“मैं पहले भी कह चुका हूं कि मात्र तुम लोगों के बेगुनाह मान लेने से मैं निर्दोष साबित नहीं होऊंगा। मैं तुम लोगों को जांच का सही रास्ता बता रहा हूं। C.B.I. क्राइम बांच वाले मुझे ढूंढ रहे हैं। उन्हें अपना काम करने दो। परन्तु तुम लोग एक बार मेरी कही बात को सच मानकर चलो और देखो कि –।”
“मेरी बात का भरोसा करो।” खेमकर ने कहा –“हम यकीनन तुम्हारी बात को गम्भीरता से लेंगे। परन्तु हमें सोचने का वक्त भी चाहिये।”
“जगमोहन।” देवराज चौहान ने कहा –“इन दोनों का मोबाईल नम्बर ले लो।”
“वो क्यों?” खेमकर बोला।
“मैं नहीं चाहता कि हमें बात करने के लिये फिर ये ही रास्ता अपनाना पड़े। फोन नम्बर होगा तो हम आसानी से बात कर सकेंगे। अगर वीरेन्द्र त्यागी की, जगजीत की खबर मुझे मिलती तो तुम लोगों को बता दूंगा।”
“हमें क्यों बताओगे?”
“ताकि कानून सच को जान सके कि ये काम मैंने नहीं किया।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली –“अगर उसे मैंने मार दिया तो कानून को कैसे पता चलेगा कि उस मामले में देवराज चौहान बेगुनाह है?”
खेमकर ने गहरी सांस ली।
जगमोहन ने दोनों के मोबाईल नम्बर ले लिये।
“अपना नम्बर भी दे दो।” खेमकर ने कहा।
“नहीं!” जगमोहन बोला –“हमारे मोबाईल से तुम लोग ये पता चला लोगे कि हम कहां मौजूद हैं और हमें गिरफ्तार करने की बेवकूफी कर बैठोगे।”
“हम ऐसा नहीं करेंगे।”
“मुझे तुम लोगों की बात पर भरोसा नहीं।” जगमोहन ने कहा।
“सब बातें हो गईं।” कामेश्वर कह उठा –“हमने तुम्हारी बातें गम्भीरता से सुनी, अब मेरी बेटी नेहा –।”
“वो अपने घर पर है। हमने उसका अपहरण नहीं किया है।” जगमोहन कह उठा।
“क्या?” कामेश्वर चौंका।
“परन्तु ये मत सोच लेना कि दो बार नहीं किया तो तीसरी बार भी ऐसा ही होगा। हम कुछ भी कर सकते हैं, परन्तु न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के मामले में हमारा कोई हाथ नहीं। वो साला वीरेन्द्र त्यागी है।”
खेमकर और कामेश्वर के देखते ही देखते देवराज चौहान और जगमोहन कार में बैठे और वहां से चले गये।
☐☐☐
अगले दिन सुबह नौ बजे डॉक्टर, कमरे में पड़े परेरा के पास पहुंचा। बाहर पुलिस, C.B.I. क्राइम ब्रांच के लोगों की तगड़ी पहरेदारी थी। ये जगह गुमनाम अस्पताल था, जहाँ की एमरजेंसी में बेहद खास लोगों का इलाज होता था। ऐसे लोगों का इलाज जिनके बारे में कोई भी खबर बाहर ना जानी हो।
इमारत पर हर वक्त, चौबीसों घंटे जबर्दस्त पहरेदारी रहती थी।
“कैसे हो?” डॉक्टर ने परेरा से पूछा।
“ठीक हूँ।”
“दो दिन में तुम चलना-फिरना शुरू कर दोगे।” डॉक्टर ने मुस्कराकर कहा – “पुलिस वाले तुमसे मिलना चाहे तो उन्हें तुम्हारे पास आने दूं?”
“हाँ!” परेरा व्याकुल-सा दिखा –“एक बात बताओगे डॉक्टर।”
“क्या?”
“बाहर क्या हो रहा है।”
“कहां बाहर?”
“मेरे मामले में पुलिस क्या कर रही है ? क्या देवराज चौहान पकड़ा...।”
“मैं डॉक्टर हूँ और मेरा काम है अपने काम से मतलब रखना। तुम्हें ठीक करना। तुमने क्या किया है या बाहर क्या हो रहा है। कौन पकड़ा गया और कौन नहीं, ये बातें मेरे काम के बाहर की हैं।”
परेरा डॉक्टर को देखता रहा, फिर धीमे स्वर में बोल – “मैंने जो किया, उसका मुझे दुख है। देवराज चौहान ने मुझे धोखा दिया।”
डॉक्टर ने कुछ नहीं कहा और पलटकर बाहर निकल गया।
ठीक ग्यारह बजे इसी गुमनाम अस्पताल में लांड्री की वैन आई। वो वैन रोज आती थी। धोए, प्रेस किए कपड़े दे जाती थी और धोने वाले कपड़े ले जाती थी। आज वैन एक घंटा देरी से पहुंची थी यहाँ। वो ही ड्राईवर विपनलाल आज भी वैन की ड्राईविंग सीट पर था, जो कि हमेशा होता था, परन्तु साथ में आगे देवराज चौहान और जगमोहन बैठे थे। चेहरों पर हल्की दाढ़ी थी।
एंट्री गेट पर वैन रुकी।
सिक्योरिटी वाले पास पहुंचे।
“कैसा है विपन भाई ?” एक ने उससे पूछा।
“एकदम बढ़िया।
“आज लेट हो गया।” फिर वो देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारकर बोला –“ये तो नये लगते हैं।”
“काम सिखा रहा हूं इन्हें। सोचा साथ ले चलूं।”
“ठीक है। जा।” कहकर उसने गेट खोलने का इशारा किया।
गेट खुल गया और वैन भीतर प्रवेश कर गई।
इमारत के साथ-साथ घूमते, वैन साईड की तरफ के बंद दरवाजे पर जा खड़ी हुई।
विपनलाल ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखकर कहा– “यहां मुझे वैन खाली करानी होती है और धोने वाले कपड़े वापस वैन में रखे जाते हैं। एक घंटा लग जाता है।”
“एक घंटा हमारे लिए बहुत है।” जगमोहन बोला –“तब तक हम अपना काम पूरा करके आ जायेंगे।”
“देखो।” विपनलाल गम्भीर स्वर में कह उठा –“सब कुछ ठीक रखना। कहीं मुझे फंसा मत देना। तुम दोनों को लाया हूं, मैं सिक्योरिटी वाले ये बात जानते हैं।
“पर वो ये नहीं जानते कि इस काम के तूने पचास लाख लिए हैं।” जगमोहन बोला।
“वो पचास लाख तो तभी खा पाऊंगा जब खाने लायक रहूंगा।”
“खाने लायक रहोगे। यहां छोटा-सा काम है। ज्यादा कुछ नहीं।”
देवराज चौहान और जगमोहन दरवाजा खोलकर वैन से बाहर निकले।
उधर से विजयलाल निकला।
“हमें ये बताओ कि डॉक्टरों वाला कोट और बाकी सामान कहां से मिलेगा। डॉक्टर बनकर हमें किसी से मिलना है भीतर।”
“चलो, वहां मैं तुम्हें छोड़ आता हूं जहां डॉक्टरों के प्रेस किए कपड़े रखे होते हैं। स्टेथोस्कोप भी बता देता हूं कि कहां पर है।”
☐☐☐
जिस कमरे में परेरा था, उसके बाहर पर्याप्त पहरा था और आने-जाने वालों पर निगाह रखी जा रही थी।
डॉक्टर बने देवराज चौहान और जगमोहन परेरा वाले कमरे के बाहर पहुंच चुके थे। दोनों के गले में स्टेथोस्कोप लटक रहे थे। शरीरों पर आधी बांह का सफेद डॉक्टरों वाला कोट था।
जब वो परेरा के कमरे के दरवाजे के पास पहुंचे तो एक आदमी ने उन्हें रोका।
“रुकिये। कहां जा रहे हैं आप?”
दोनों ने ठिठककर उसे देखा।
वो आदमी पास आ गया।
“मैं C.B.I. से हूं और –।” उसने कहना चाहा।
“मैं डॉक्टर चन्द्रकांत हूं और ये मेरा सहयोगी।” देवराज चौहान मुस्कराकर बोला –“हम भीतर जॉन अंताओ परेरा का चेकअप करने ।”
“लेकिन मैंने आपको पहले नहीं देखा?”
“मैं पैनल पर हूं और सप्ताह में दो बार आता हूं। सुपरिटेंडेंट ने कहा कि परेरा का चेकअप करके मैं अपनी रिपोर्ट दूं कि अब वो किस हाल में है और कब तक वो पूरा ठीक हो जायेगा। आप सुपरिटेंडेंट से पूछ।”
“ये बात नहीं।” वो मुस्कराकर बोला –“हमें भी अपनी ड्यूटी पूरी करनी पड़ती है। आपको कल से अब पहली बार देख रहा हूं तो इसलिये पूछना पड़ गया। बेशक आप भीतर जा सकते हैं।”
देवराज चौहान ने मुस्कराकर सिर हिलाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन उसके पीछे था।
दरवाजा धकेलकर देवराज चौहान और जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया तो दरवाजा खुद ही बंद होता चला गया।
एक तरफ बेड पर परेरा लेटा था। शरीर पर पट्टियां थीं। छाती तक चादर ले रखी थी।
दोनों उसके पास पहुंचे।
“कैसे हो परेरा?” देवराज चौहान ने पूछा।
परेरा ने देवराज चौहान को देखा। जगमोहन को देखा। चेहरे पर हल्की दाढ़ी होने की वजह से वो फौरन दोनों को पहचान नहीं पाया। तब तक देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर उसकी छाती से नाल सटा दी।
परेरा ये देखकर बुरी तरह चौंका। सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा “ये क्या डॉक्टर?” उसके होंठों से निकला।
“मैं डॉक्टर नहीं हूं।” देवराज चौहान ने कहा और चेहरे की दाढ़ी-मूंछे उतार दीं।
सामने देवराज चौहान को देखकर परेरा को काटो तो खून नहीं।
आंखें फटकर जैसे फैल गई थीं।
तब तक जगमोहन ने भी दाढ़ी-मूंछे उतार दीं।
परेरा का तो बुरा हाल हो उठा दोनों को सामने पाकर। लगा जैसे अभी चीख उठेगा।
“आवाज ना निकले तुम्हारे मुंह से।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
दोनों को देखते हुए परेरा ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी। इस वक्त वो बुरे हाल में दिख रहा था।
“तु...तुम दोनों मुझे यहां से ले जाने आये हो ना?”
देवराज चौहान और जगमोहन ने दाढ़ी-मूंछें वापस चेहरे पर लगा लीं।
“मुझे ले जाने आये हो। मैं जानता था कि तुम लोग मुझे यूं नहीं छोड़ सकते।” एकाएक परेरा तेज-तेज सांसें लेने लगा।
“मुंह से आवाज निकाली तो सारी गोलियां सिर में उतार दूंगा।” देवराज चौहान पूर्ववत स्वर में बोला।
“म...मैं क्यों आवाज निकालूंगा। मैं...मैं...तो...।”
“हम तुमसे बात करने आये हैं।”
“क्या मुझे यहां से ले जाने नहीं आये?” तड़प-सा उठा परेरा।
“मेरी आवाज नहीं सुन रहा?” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।
“सुन रहा हूं।”
“क्या मेरी आवाज वैसी ही है जैसी पहले थी?” देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर थी।
परेरा की आंखें सिकुड़ीं। दो पल सोचा, फिर संभलकर देवराज चौहान को देखते हुए कह उठा– “और तुमने तो अपनी आवाज भी बदल रखी।”
“भूतनी के!” जगमोहन ने दबे स्वर में कहा –“हम देवराज चौहान और जगमोहन हैं। जो पहले तुम्हारे साथ थे, वो नकली थे।”
चिहुंका परेरा। फिर बोला– “नहीं। ये नहीं हो सकता। तुम ही तो थे तब। आवाज बदलकर मुझे बेवकूफ बनाना चाहते –।”
“वो हम नहीं थे।” देवराज चौहान ने कहा –“वो नकली थे। वो वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत नाम के लोग थे।”
परेरा मुंह खोले बारी-बारी दोनों को देखने लगा।
“नहीं! ये नहीं हो सकता। मैं तुम लोगों के झांसे में नहीं आऊंगा। तुम वो ही देवराज चौहान और जगमोहन हो जो पहले मेरे साथ थे। कहो कि तुम दोनों मजाक कर रहे हो और मुझे यहां से निकालने आये हो।”
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर की नाल उसकी छाती पर रख दी।
परेरा बेचैन परेशान दिख रहा था। व्याकुलता उसकी आंखों में नाच रही थी।
“अपने दिमाग में ये बात बिठा ले कि पहले वाले देवराज चौहान और जगमोहन नहीं थे। परन्तु अब जो तुम्हारे सामने खड़े हैं, वो ही असली हैं। मतलब कि हम असली हैं।” देवराज चौहान ने कहा –“ये बात तेरे को दिमाग में रखनी पड़ेगी क्योंकि हम ऐसी ही बातें पूछने वाले हैं।”
परेरा का सिर घूम रहा था ये बातें सुनकर।
वो कैसे मान लेता कि उसके सामने खड़े देवराज चौहान, जगमोहन ही असली हैं। पहले वाले असली नहीं थे। बल्कि वो तो अभी भी ये ही सोच रहा था कि ये दोनों कोई मजाक कर रहे हैं।
“समझ गया?” देवराज चौहान ने उसकी छाती पर रिवॉल्वर रख कठोर स्वर में कहा।
“पहले रिवॉल्वर तो हटाओ...।”
“मेरे बात का जवाब दे कि समझ गया?”
“समझूंगा क्यों नहीं। छाती पर रिवॉल्वर रखकर कह रहे हो तो इन्कार कैसे कर सकता हूं।” परेरा ने कहा –“लेकिन ऐसे नाजुक मौके पर फालतू की बातें करके क्यों वक्त खराब कर रहे हो। यहां से निकल चलते हैं। दरवाजे के बाहर शायद कोई नहीं है क्यों?” कहकर परेरा दोनों को देखने लगा। परेशानी में घिरा था वो।
“ये हमारी बात नहीं समझा।” जगमोहन ने दांत भींचकर कहा –“गोली मार दो इसे और निकल चलो।”
देवराज चौहान ने खूंखार निगाहों से परेरा को देखा।
उसके चेहरे के भाव देखकर परेरा कांप उठा।
“मारूं?” गुर्राया देवराज चौहान।
नहीं!” परैरा के चेहरे पर मौत के भय के भाव उभरे।
“तू समझता है कि वो हम ही थे जिसके साथ तूने तीन डकैतियां की। बैंक डकैती! ज्वैलर्स शॉप में डकैती। और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती।” देवराज चौहान के दांत भिंच गये –“यही सोचता है ना तू?”
“ह...हां...!”
“तो कान खोलकर सुन ले कि वो हम नहीं थे।”
परेरा का सिर घूम उठा।
वो पागलों की भांति देवराज चौहान को देखता रहा।
“वो हमारे चेहरे में थे, परन्तु वो हम नहीं थे।”
परेरा ने यूं ही सिर हिला दिया उन्हें देखते हुए। मन ही मन वो ये समझने की कोशिश कर रहा था कि आखिर देवराज चौहान और जगमोहन को क्या हो गया है जो इस तरह उल्ट-पुल्ट बातें कर रहे हैं।
“उन दोनों के नाम वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत हो सकते हैं।”
“अच्छी बात है।” परेरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी –“ये रिवॉल्वर हटाओ। मुझे मारोगे क्या?”
देवराज चौहान ने उसकी छाती से रिवॉल्वर हटाते हुए कहा–
“ये बता कि वो दोनों कहां मिल सकते हैं?”
“देव-तुम्हारा मतलब कि नकली देवराज चौहान और जगमोहन।” परेरा के होंठों से निकला।
“हां-वो ही...हमें वो दोनों चाहिये।”
परेरा देवराज चौहान को देखते हुए सोच रहा था कि ये पागल क्यों हो गया है।
“चुप मत रह।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा –“बता इस वक्त वो कहां होंगे?”
“मैं नहीं जानता।”
“ये इस तरह नहीं बतायेगा।” जगमोहन गुर्राया –“छोड़ो इसे, गोली मारो और निकल चलो। उन्हें तो हम ढूंढ ही लेंगे।”
“मैं सच में नहीं जानता।” परेरा घबराकर कह उठा –“पहले हम एक होटल के कमरे में मिलते थे, फिर वाडेकर की एक जगह, जो कि घटिया-सा मकान था, उस जगह को ठिकाना बना लिया। मैंने पुलिस को भी ये ही बताया और ये ही सच है। मैं उनका कोई ठिकाना-पता नहीं जानता। सच बात तो ये है कि तुम दोनों ने मुझे पागल कर दिया है। भला ये कैसे हो सकता है वो देवराज चौहान और जगमोहन नकली हैं और तुम लोग असली हो। मुझे तो दोनों एक जैसे लग रहे हो। भला ऐसे भी कभी होता है कि –।”
“हमारे साथ ये ही हुआ है।” जगमोहन ने गुस्से से कहा।
“नाराज क्यों होते हो, मेरी हालत पर भी तो सोचो कि मैं कैसे ये बात मान सकता हूं।”
“तुम्हें कुछ तो अन्दाजा होगा कि वो कहां जा सकते हैं?” देवराज चौहान ने पूछा।
“नहीं! मैं उनके किसी ठिकाने के बारे में नहीं जानता। पुलिस ने भी ये सवाल मुझसे पूछा था।”
“मुझे शुरू से बताओ कि जब तुम नकली देवराज चौहान और जगमोहन के साथ रहे तो क्या-क्या हुआ?”
ये बात सच थी कि परेरा इस बात पर जरा भी यकीन नहीं कर रहा था कि वो देवराज चौहान और जगमोहन कोई और हैं और ये कोई और। परन्तु वो रिवॉल्वर पकड़े खराब मूड में बात कर रहे थे, इसलिये इनकी हां में हां मिलानी पड़ रही थी। बहरहाल परेरा ने बताया उन्हें कि पहले देवराज चौहान और जगमोहन के साथ रहकर, क्या-क्या बातें हुई थीं। कैसे किया सब?
देवराज चौहान और जगमोहन ने सब सुना।
“तुम दोनों में और उन दोनों में यही फर्क है कि आवाजें अलग-अलग हैं।” परेरा ने पुनः कहा –“क्या तुम लोग आवाज बदलना भी जानते हो?”
“चुप साले!” जगमोहन गुर्रा उठा।
परेरा कुछ सहम-सा गया।
“तो तुम्हें नहीं मालूम कि वो दोनों कहां जा सकते हैं?” देवराज चौहान ने सोच भरे कठोर स्वर में पूछा।
“नहीं! मैं कुछ नहीं जानता।”
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का सौदा किसी अमरीकी, पाकिस्तान या पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों से करना चाहता था। उनके नाम...।”
“ऐसा कोई जिक्र नहीं किया उसने। किसी का नाम नहीं लिया। पुलिस ने भी ये ही सवाल किया था।”
“उस देवराज चौहान का फोन नम्बर तो तुम्हें पता होगा?”
“क्यों नहीं।” परेरा ने फोन नम्बर बता दिया।
“ये बात पुलिस को भी बताना कि हम तुमसे मिलने आये थे और पहले वाले देवराज चौहान-जगमोहन की आवाजें कुछ और थीं और हमारी कुछ और।” देवराज चौहान ने कहा।
परेरा ने सिर हिला दिया।
“चलो।” देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में रखते जगमोहन से कहा।
दोनों जाने के लिये पलटे कि परेरा ने टोका– “देवराज चौहान...!”
उन्होंने पलटकर परेरा को देखा कि शायद वो कोई बात बताने जा रहा है।
“तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?”
“धोखा?”
“अगर तुम तब मुझे अपने साथ ले जाते तो मैंने पुलिस के हाथ पड़ना ही नहीं था।”
देवराज चौहान के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।
“जो हुआ सो हुआ। अब तो मुझे यहां से निकाल लो।” परेरा याचना भरे स्वर में कह उठा।
“ये उल्लू का पट्ठा अभी भी ये ही समझ रहा है कि इसके साथ डकैतियां डालने वाले हम ही थे।” जगमोहन गुस्से से कह उठा।
“आपस में क्या पर्दा, यहां कोई तीसरा तो है नहीं। वो तुम दोनों ही तो थे जो–।”
“साले-कुत्ते! सब कुछ जानने के बाद भी ये बात कह रहा है।” जगमोहन परेरा पर झपटा।
देवराज चौहान ने जगमोहन को उसी पल रोक लिया।
परेरा ने घबराये अंदाज में सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
“चुपचाप यहां से निकल चलो।” देवराज चौहान ने कहा।
“लेकिन ये –।”
“ये गलत भी नहीं है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम जानते हो कि जगजीत कितने शानदार मास्क बनाता है दूसरों के चेहरे के। उसे चेहरे की तस्वीर दे दो और चेहरे का माप दे दो तो वो मास्क तैयार कर देता है। हमारे चेहरे के मास्क भी उसने ही तैयार किए होंगे और उन्हें पहनकर वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत ने देवराज चौहान और जगमोहन बनकर इन लोगों को इकट्ठा किया और डकैतियां डालनी शुरू कर दीं। ऐसे में कौन ये सोच सकता है कि वो देवराज चौहान और जगमोहन नकली होंगे।”
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
“आओ!” कहते हुए पलटकर देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
“मेरा क्या होगा?” पीछे से परेरा ने कहा –“मुझे भी साथ ले चलो।”
परन्तु वो दोनों दरवाजा खोलकर बाहर निकल गये।
बाहर वो ही पहरा था। दोनों आराम से चलते हुए आगे निकल गये।
“हमारे हाथ एक ही काम की चीज लगी है।” देवराज चौहान बोला –“वीरेन्द्र त्यागी का फोन नम्बर।”
“वो हमारी आवाज पहचानता है। हम उससे बात करेंगे तो वो सतर्क हो जायेगा।” साथ चलते जगमोहन ने कहा।
जवाब में देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
☐☐☐
ए.सी.पी. खेमकर ने कामेश्वर के ऑफिस में प्रवेश किया। दिन के बारह बजे थे।
“वहां से उठाये गये फिंगरप्रिंट पांच लोगों के हैं और देवराज चौहान, जगमोहन के प्रिंट से किसी के फिंगरप्रिंट मैच नहीं खाते।”
“मतलब कि रात जो देवराज चौहान ने कहा, वो सच था।” कामेश्वर के माथे पर बल पड़े और सोच भरे स्वर में कह उठा –“ये भी तो हो सकता है कि परेरा ने हमसे झूठ कहा हो? वहां देवराज चौहान या जगमोहन रहे ही ना हों...।”
“ये सम्भव नहीं।” खेमकर ने इन्कार में सिर हिलाया –“परेरा हमसे सहयोग कर रहा है। ये बात मैंने महसूस की है। वो कहता है कि देवराज चौहान उनके साथ उस मकान में था। जगमोहन भी था। और हम वहां पूछताछ से इस बात की तसल्ली कर चुके हैं कि वहां पर देवराज चौहान और जगमोहन रुके थे। उनकी तस्वीरें देखकर दो लोगों ने उन्हें पहचाना है और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती के बाद भी देवराज चौहान और जगमोहन वहां पर गये और दो गठरियों में सामान बांधकर कार में रखकर ले गये।”
“ये बात है तो फिर हमारे रिकॉर्ड में मौजूद देवराज चौहान और जगमोहन की उंगलियों के निशान, वहां पर मिले पांच लोगों की उंगलियों के निशानों से मेल क्यों नहीं खा रहे।” कामेश्वर ने खेमकर को देखा।
“ये सोचने वाली बात है।”
“देवराज चौहान ने रात वीरेन्द्र त्यागी का नाम लिया था।”
“तो?” कामेश्वर माथे पर बल डाले खेमकर को देखने लगा।
“मैं अभी ऑर्डर देकर आया हूं कि वहां मिले उंगलियों के निशान, पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद हर वीरेन्द्र त्यागी नाम के अपराधी की उंगलियों से मिलाये जायें।” खेमकर बोला।
“तो तुम देवराज चौहान की कही बातों पर यकीन करके चल रहे हो?”
“हर्ज ही क्या है।”
“वो हमें झूठी कहानी सुना रहा है। हमारा दिमाग खराब करना चाहता –।”
“तब भी उंगलियों के निशान मिला लेने में मैं हर्ज नहीं समझता।” खेमकर ने गंभीर स्वर में कहा।
कामेश्वर के होंठ सोच भरे अन्दाज में भिंच गये।
“कामेश्वर!” खेमकर बोला –“तुमने ये सोचा है कभी कि देवराज चौहान अपने बेगुनाह होने की दुहाई बार-बार क्यों दे रहा है?”
“क्योंकि वो अब कानून का तगड़ा गुनाहगार बन चुका है।”
“देवराज चौहान जैसे लोग अपनी बे-गुनाही का ढोल पीटने बार-बार पुलिस वाले के पास नहीं आते। इस बार देवराज चौहान बार-बार ये बात कह रहा है तो हमें अपने तौर पर इस बात की छानबीन जरूर करनी चाहिये।”
“देवराज चौहान बेगुनाह है ही नहीं उस मामले में –।”
कामेश्वर ने गुस्से से कहा –“बैंक के C.C.T.V कैमरों ने, ज्वैलर्स के C.C.T.V. कैमरों ने और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती के दौरान C.C.T.V. कैमरों ने देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे कैद किए। उनकी हरकतें कैद कीं। क्या वो सब टी.वी. कैमरे झूठे हो गये?”
“मैंने ऐसा नहीं कहा। मेरा तो कहना है कि हमें इस तरफ से भी थोड़ी सी तफ्तीश कर लेनी चाहिये।”
“हमारा वक्त खराब करने के लिए नहीं है। हमें जल्दी से –।”
“कामेश्वर! मेरे यार, हमारा मकसद देवराज चौहान को गिरफ्तार करना नहीं है। हमारा मकसद न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को तलाश करना है और उसको ले जाने वालों को पकड़ना है। हमें इस दिशा में भी जांच कर लेनी चाहिये। हो सकता है मेरा ख्याल गलत ही हो। C.C.T.V. कैमरे झूठ नहीं कह सकते। परन्तु एक बार इधर भी देख लेने में क्या जाता है।”
“तुम पागल हो गये हो खेमकर।”
“मैं तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानूंगा। परन्तु तुम ये मत समझो कि मैं देवराज चौहान की बातों में आ गया हूं या उसे बेगुनाह बता रहा हूं। मुझे अपनी ड्यूटी का पूरा पता है कि मैंने कैसे काम करना है।” खेमकर ने कहा –“वीरेन्द्र त्यागी की उंगलियों के निशानों से, वहां मिले निशान मिला लेने से हमारा क्या जाता है। हम तो...।”
“जो तुम्हारे मन में आये करो। लेकिन ये जान लो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती देवराज चौहान ने ही की है।”
“मैंने तुम्हारी बात से कभी इन्कार नहीं किया।” खेमकर ने कहा –“कुछ देर पहले नेपाल से इंस्पेक्टर वानखेड़े का फोन आया था। उसने नेपाल के अखबारों से इस मामले को जाना और वो दोपहर की फ्लाईट से मुम्बई पहुंच रहा है।”
“आने दो उसे।” कामेश्वर सख्त स्वर में बोला –“सालों से देवराज चौहान को गिरफ्तार करने का काम उसके हवाले है और उसने ये काम पूरा नहीं किया। मैं भी देखूंगा कि वो अपनी सफाई में क्या कहता है।”
“फोन आया था कि परेरा हमसे बात करना चाहता है।” खेमकर ने कहा।
“क्यों?”
“चलते हैं। उससे बात करके देखते हैं। शायद वो कुछ बताना चाहता हो। कुछ याद आ गया हो उसे।”
☐☐☐
“क्या कह रहा है तू।” कामेश्वर हक्का-बक्का कह उठा –“देवराज चौहान आया था यहां।”
“हां! वो-मुझे लगता है उसका दिमाग फिर गया है। कह रहा था वो देवराज चौहान और जगमोहन हम नहीं थे। उनके बारे पूछ रहा था वो कहां मिल सकते हैं। किसी वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत का नाम ले रहा...।”
“खेमकर!” कामेश्वर बोला- “देखी उसकी हिम्मत। इतने तगड़े पहरे में से निकलकर वो यहां तक आ पहुंचा। जरा भी नहीं डरा। वो दोनों ही आ गये और बाहर खड़े लोगों ने उन्हें पहचाना तक नहीं।”
“वो दाढ़ी-मूंछ लगाकर आये थे।” परेरा बोला।
“ये तो हद हो गई।” कामेश्वर खीझा-सा दिखने लगा था –“हद हो गई!”
“परेरा!” खेमकर गम्भीर स्वर में बोला –“तुम्हारी सारी बात सुन ली। कोई खास बात हो तो कहो।”
“खास बात ये ही है कि इस देवराज चौहान और जगमोहन की आवाज उनसे अलग थी जिनके साथ मैंने डकैतियां कीं।”
“आवाज अलग थी?” खेमकर के होंठ सिकुड़े।
“हां! जगमोहन ने मुझे ये भी कहा कि आवाज अलग होने की बात आप लोगों से कह दूं।”
“ये कौन-सी बड़ी बात है।” कामेश्वर गुस्से से बोला –“आवाज बदलकर भी तो बोली जा सकती है।”
खेमकर ने कुछ नहीं कहा।
“तुम चुप क्यों हो?” कामेश्वर ने खेमकर को देखा।
“मैं सोच रहा हूं कि इस मामले में तुम भड़क क्यों रहे हो?”
“क्योंकि C.C.T.V. कैमरों ने उनके चेहरे कैद।”
“एक ही बात बार-बार मत कहो। जो नये हालात सामने आ रहे हैं, उनके बारे में भी सोचो। उस मकान में देवराज चौहान, जगमोहन, लखानी, वाडेकर और परेरा मौजूद थे। परन्तु वहां से उठाये गये उंगलियों के निशान, पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद देवराज चौहान और जगमोहन की उंगलियों से नहीं मिल रहे। साथ ही देवराज चौहान और जगमोहन हमें ये कहते फिर रहे हैं कि ये काम उन्होंने नहीं किया और अब परेरा बताता है कि उनकी आवाजें अब आये देवराज चौहान और जगमोहन से मेल नहीं खा रहीं। तुम इन नई बातों को इस तरह हवा में क्यों उड़ा रहे हो –।”
“क्योंकि मुझे यकीन नहीं आता कि हू-ब-हू किसी के चेहरे बनाए जा सकते हैं।”
“कुछ देर के लिए यकीन कर लो।”
कामेश्वर होंठ भींचकर रह गया।
खेमकर ने परेरा से पूछा–
“तुमने आज वाले देवराज चौहान, जगमोहन और पहले वालों में कोई फर्क महसूस किया?”
“बताया तो...उनकी आवाज बदली थी।”
“कोई और फर्क?”
“और? नहीं और तो कुछ नहीं। दोनों वैसे ही थे जैसों के साथ मैंने काम किया था।”
“उनकी कद-काठी में कोई फर्क महसूस किया हो?”
परेरा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे, फिर कह उठा– “शायद जगमोहन आज कुछ सेहतमंद लग रहा था।”
“सेहतमंद?”
“हां! काम के दौरान वो मुझे कुछ कमजोर लगा था, शायद...शायद उसकी लम्बाई कम थी कुछ।”
“लम्बाई?”
“हां!” परेरा एकाएक दृढ़ता से कह उठा –“जगमोहन की लम्बाई आज कुछ ज्यादा लगी मुझे।”
“और देवराज चौहान?”
“वो ठीक था। उसमें कुछ फर्क नजर नहीं आया। सिर के बालों के स्टाईल में कुछ फर्क था।”
खेमकर परेरा को देखे जा रहा था।
“कुछ और बताओ।” खेमकर ने कहा।
“और तो कुछ नहीं। लेकिन आप क्या सोच रहे हैं...कि आज वाले और पहले वाले देवराज चौहान-जगमोहन अलग-अलग थे?”
“तुम इस बारे में क्या सोचते हो?” खेमकर गम्भीर लग रहा था।
परेरा के चेहरे पर सोच के भाव दौड़ रहे थे।
“ये बात देवराज चौहान ने मुझे कई बार कही, परन्तु मैंने तब उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया कि ऐसी कोई बात नोट कर पाता।” परेरा बोला –“परन्तु ये तो पक्का है कि आज जगमोहन की लम्बाई और उसकी सेहत भी ठीक-ठाक थी। इसके अलावा मैं और कुछ नहीं बता सकता, क्योंकि मैंने ये सब बातें नोट करने की सोची ही नहीं।”
“ये बात तुम दावे के साथ कह सकते हो कि जगमोहन की कठ-काठी, उस जगमोहन से नहीं मिलती जिसके साथ तुमने डकैतियां की थीं। दोनों जगमोहन की कद-काठी में फर्क था।” खेमकर ने पूछा।
“हां।”
पन्द्रह मिनट खेमकर और कामेश्वर परेरा के पास रहे, फिर वे कमरे से बाहर निकले।
कमरे के बाहर पहरा दे रहे पुलिस वालों पर कामेश्वर बरस पड़ा।
“तुम लोग क्या चौकसी बरत रहे हो? बुत बनकर खड़े होने को तो नहीं कहा था। थोड़ी देर पहले डकैती मास्टर देवराज चौहान और जगमोहन डाक्टर बनकर आये और तुम लोग बुत बने खड़े रहे। पहचान नहीं सके उनको। डॉक्टरों के चेहरों पर क्या दाढ़ी-मूंछें होती हैं। जो डॉक्टर परेरा को देख रहा है, उसे पहचानते नहीं जो नये डॉक्टरों को बिना जांच-पड़ताल के भीतर जाने दिया? तुम सबने सस्पेंड होने वाला काम किया है। अब खड़े-खड़े मेरा मुंह क्या देख रहे हो। एक आदमी भीतर हर वक्त मुजरिम के साथ रहेगा। बाकी सब बाहर पहरा देंगे। अबकी बार कोई गलती की तो वर्दी उतरता लूंगा।”
ए.सी.पी. खेमकर और कामेश्वर वहां से बाहर अपनी कार तक पहुंचे।
कामेश्वर का मूड उखड़ा हुआ था।
“देवराज चौहान हमें कदम-कदम पर मात दे रहा है।” कामेश्वर ने भुनभुनाते हुए कहा।
“क्या मेरी बात ध्यान से सुनोगे।” खेमकर बोला।
“क्या?”
“जो देवराज चौहान हमें कल रात मिला, जो परेरा से मिलने आया, वो जो कहता है, उसमें दम हो सकता है।”
“क्या मतलब?”
“अगर न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती उसी ने की होती तो किसी भी कीमत पर परेरा से मिलने ना आता। इतना खतरा ना उठाता।”
कामेश्वर के होंठ भिंच गये।
“तुम ही कहो-क्या मैंने कुछ गलत कहा है?”
“पता नहीं!”
“बात को टालो मत-जवाब दो कि –।”
“मैं C.C.T.V. कैमरे की फुटेज नहीं भूल पा रहा हूं जिनमें –।”
“सोचो कि जो हमें देवराज चौहान मिला, जो परेरा के पास आया, वो ही असली देवराज चौहान है। उसने न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती नहीं की।”
“तो अब तुम ऐसा सोचने लगे हो।”
“अगर उसी ने डकैती की होती तो कम से कम वो इतना खतरा उठाकर परेरा के पास न आता। यहां हर तरफ पहरे पर पुलिस लगी है। वो पकड़ा भी जा सकता था। और फिर परेरा का ये कहना कि आज जिस जगमोहन को मिला, वो पहले वाले जगमोहन से कुछ लम्बा और सेहतमंद था। अब परेरा भी मानने लगा है कि दोनों जगमोहनों में फर्क था।”
कामेश्वर उलझे भाव से खेमकर को देखे जा रहा था।
“जगमोहन और देवराज चौहान ने डकैती की होती तो वो क्यों इस तरह भागे फिर रहे होते? कभी हमारे पास आते तो कभी पुलिस पहरे में मौजूद परेरा से मिलने पहुंच जाते। बल्कि वो तो इस वक्त न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को किसी देश को बेचकर नोट गिन रहे होते। देवराज चौहान तो पहले से इश्तिहारी मुजरिम है। उसे कानून का क्या डर? वो तो पुराना पापी है।”
“तुम्हारा मतलब कि वो अब इसलिये भागा फिर रहा है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती उसने नहीं की और इस संगीन डकैती के साथ उसका नाम ही नहीं, चेहरा भी जुड़ रहा है जो C.C.T.V. कैमरों ने कैद किया है।”
“शायद...!”
“क्या ये बात विश्वास करने लायक है कि कोई किसी का चेहरा, फेसमास्क पहनकर उस जैसा बनकर अपराध कर दे? ऐसा तो फिल्मों में ही होता है। ये बात मेरे गले से नीचे नहीं उतरती खेमकर।”
“अपने गले से नीचे उतारने की कोशिश करो, क्योंकि मुझे आभास होने लगा है कि ऐसा हुआ हो सकता है।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा –“बार-बार अपने निर्दोष होने की दुहाई देना। बार-बार हमसे बात करके ये ही बात कहना। परेरा का ये मानना कि पहले वाले और आज के जगमोहन की कद-काठी में फर्क है। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती के बाद देवराज चौहान का इस तरह भागे फिरना। ये सब बातें इसी तरफ इशारा करती हैं कि वो इस बात से परेशान है कि संगीन डकैती पर उसके नाम का ठप्पा लगा दिया गया, जबकि ये काम उसने नहीं किया। वो इस लेबल को हटा देने पर आमादा है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती उसने नहीं की।
“मतलब कि तुम पक्के हो अपनी कही इस बात पर?” कामेश्वर ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“पक्का नहीं हूं। परन्तु मेरा अंदेशा पक्का कह सकते हो। इस बात की संभावना है कि ऐसा हुआ हो सकता है। जबकि ऐसी बात मुझे पहले महसूस नहीं हुई । परन्तु अब होने लगी है। हमें मामले को इस एंगल से भी सोचना होगा।”
कामेश्वर ने कुछ नहीं कहा।
चंद पल दोनों के बीच खामोशी रही।
“अब कहो भी, क्या कहते हो?”
“खेमकर, जब तुम और मैं इंस्पेक्टर के ओहदे पर थे तो दो केसों में एक साथ काम किया था। मुझे याद है कि तब भी तुमने अपने अंदेशे सामने रखे थे परन्तु दोनों ही बार तुम गलत साबित हुए थे!” कामेश्वर गम्भीर था।
“याद है मुझे। अब एक बार और मेरे अंदेशों को चेक कर लो।” खेमकर गम्भीर स्वर में उसे देखते कह उठा।
तभी खेमकर का मोबाईल बजने लगा।
कामेश्वर ने सोचों में डूबे गहरी सांस ली।
“हैलो।” खेमकर ने बात की।
“ए.सी.पी. खेमकर।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
“द...देवराज चौहान?” खेमकर के होंठों से निकला।
कामेश्वर की निगाह खेमकर पर जा टिकी।
“हां, मैं तुमसे...।”
“हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे। कामेश्वर साहब साथ थे मेरे। तुम-तुम और जगमोहन परेरा से मिलने आये थे?”
“तो परेरा ने बता दिया तुम्हें –।”
“किस्मत वाले हो जो सही-सलामत वापस चले गये।”
“परेरा ने ये बताया होगा कि मेरी और जगमोहन की आवाजें, उनसे अलग हैं, जिनके साथ परेरा ने डकैतियां की।”
खेमकर के होंठ भिंचे।
“परेरा ने बताया या नहीं?”
“बताया।” खेमकर के होंठ खुले।
“कुछ विश्वास हुआ मेरी बात पर?”
“कह नहीं सकता। मैं उलझन में हूं।”
“उलझन में मत रहो। मेरी बात पर विश्वास करके चलो। मैं सच कह रहा हूं कि वो देवराज चौहान और जगमोहन हम नहीं थे। मेरी बात का भरोसा करोगे तो ये मामला जल्दी निपट जायेगा।”
वहां मिले उंगलियों के निशानों को वीरेन्द्र त्यागी की उंगलियों के निशानों से चेक कराया?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
“काम चल रहा है।”
“मैं तुम्हें अपनी तरफ से इस बात का विश्वास दिलाने की चेष्टा कर रहा हूं कि हम दोनों निर्दोष हैं। रास्ता मैं बता रहा हूं और उस पर चलना या ना चलना तुम्हारा काम है।”
“आसान नहीं है तुम्हारी बातों पर भरोसा करना।”
“तुम लोगों ने परेरा से उस देवराज चौहान का मोबाईल नम्बर लिया, जिसके साथ परेरा ने डकैती की थी?”
“लिया।”
“तो क्या उस फोन की कम्पनी से उस नम्बर के बारे में बात की। उन्हें नम्बर देकर कहा कि अगर ये फोन चालू है तो फोन की लोकेशन ट्रेस करके तुम लोगों को बतायें और तुम उस देवराज चौहान तक पहुंच सको।”
“बाई गॉड!” खेमकर का मुंह खुल गया –“ये तो मैं भूल ही गया।”
“इतनी बड़ी बात तुम भूल –।” उधर से देवराज चौहान ने कहना चाहा।
खेमकर ने फोन बंद किया, हड़बड़ाकर कामेश्वर से बोला-
“परेरा से मिले देवराज चौहान के नम्बर के सहारे कम्पनी से लोकेशन ट्रेस कराकर हम उस तक पहुंच सकते हैं। पागल थे हम जो इतनी बड़ी बात भूल गये। ये बात तो हमें सबसे पहले दिमाग में लानी चाहिये थी।”
“उसी देवराज चौहान ने याद दिलाई ये बात?” कामेश्वर तीखे स्वर में बोला।
“हां!”
“साला, वो जरूर कोई तगड़ा खेल खेल रहा है-जो उसने ये बात याद दिलाई।
“कामेश्वर तुम –।” खेमकर ने कहना चाहा।
तभी कामेश्वर का मोबाईल बजा।
“हैलो!” कामेश्वर ने फोन निकालकर बात की।
“सर!” इंस्पेक्टर विजय दामोलकर की आवाज कानों में पड़ी –“उंगलियों के निशानों के मिलान की रिपोर्ट आई है।”
“क्या?”
“उस मकान से पांच लोगों की उंगलियों के निशान मिले थे –और कोई भी फिंगरप्रिंट देवराज चौहान से नहीं मिलते। लेकिन आपके कहने पर पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद वीरेंद्र त्यागी नामों के लोगों की उंगलियों के निशानों के साथ मिलाये गये। इन नाम के तीन अपराधी हैं –और उनमें से एक की उंगलियों से वो निशान मेल खा रहे हैं।”
“ओह!”
“मैंने उस वीरेन्द्र त्यागी नाम के अपराधी की तस्वीर रिकॉर्ड से हासिल कर ली है।”
“तुम कहां हो?”
“फिंगर प्रिंट सेक्शन में सर। “
“कुछ ही देर में मैं अपने ऑफिस पहुंच रहा हूँ। तुम वहीं मिलो।”
“यस सर!
कामेश्वर ने फोन बंद करके खेमकर को सारी बात बताई।
“तो इसका मतलब देवराज चौहान की कही बातें सच हैं कि किसी ने उसका चेहरा अपना कर ये सब काम किया।”
“ये सब देवराज चौहान की चाल भी हो सकती है। कामेश्वर सख्त स्वर में बोला।
“चाल!”
“देवराज चौहान ने ही ये सब इन्तजाम किए हों कि वो इस संगीन डकैती के जुर्म से पल्ला झाड़ सके।”
“बेवकूफों वाली बातें मत करो। देवराज चौहान फिंगरप्रिंट सेक्शन में नहीं घुस सकता! देवराज चौहान पुलिस रिकॉर्ड में घुसकर वीरेन्द्र त्यागी नाम के अपराधी के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ नहीं कर सकता!” खेमकर गम्भीर स्वर में कह उठा –“तुम्हें अब मानना शुरू कर देना चाहिये कि परेरा ने जिस देवराज चौहान और जगमोहन के साथ डकैतियां कीं, दो दोनों नकली देवराज चौहान और जगमोहन थे। ये एक जबर्दस्त मामला है। हमें समझदारी से तफ्तीश करनी है।”
“मैं कहता हूं कि इन सब बातों के पीछे जरूर देदराज चौहान की ही कोई चाल है कि –।”
“एक बार मेरी बात पर भरोसा करके तो देखो।”
कामेश्वर ने होंठ बंद रखे।
“क्यों ना हम इस मामले को अपने किसी सीनियर के सामने रखें?” खेमकर बोला।
“ये ठीक रहेगा।” कामेश्वर ने कहा –“किसके सामने रखें ये मामला?”
“ए.सी.पी. चंपानेरकर के सामने रखते हैं सब कुछ। वो हमारा सीनियर है। हम पहले भी उससे कई बार सलाह ले चुके हैं।”
“लेकिन हमें वो फोन नम्बर भी फोन की कम्पनी को देना है, ताकि फोन की लोकेशन पता चल...।” कामेश्वर ने कहा फिर खुद ही कह उठा –“ठीक है, ये काम हेडक्वार्टर जाकर इंस्पेक्टर विजय दामोलकर को करने को कह दूंगा।”
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