वहां से सिर्फ बीस मिनट लगे प्रेम कुमार के घर पहुंचने में। उसके घर के सामने भीड़ लगी देखकर मोना चौधरी समझ गई कि गड़बड़ हो चुकी है।
“अंशुल तुम कार में बैठो। मैं अभी आई...।”
“ठीक है आंटी। मैं कार से बाहर भी नहीं निकलूंगा...।”
मोना चौधरी जल्दी से भीड़ के पास पहुंची।
“क्या हुआ...?” मोना चौधरी ने एक व्यक्ति से पूछा।
“अजी होना क्या है मैडम जी!” वो आदमी मुंह बनाकर कह उठा- “जाने कैसा जमाना आ गया है! आज तो लोग अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं।”
“ऐसा क्या हो गया?”
“प्रेम साहब को तीन लोग जबर्दस्ती अपनी गाड़ी में बिठाकर ले गये। दो ने रिवॉल्वरें पकड़ी हुई थीं। सरेआम उनका अपहरण हो गया। अब फिरौती के लिये फोन आयेगा। मोटी रकम मांगी जायेगी। लेकिन मैं जानता हूं कि प्रेम साहब इतने अमीर नहीं हैं कि मोटी रकम दे सकें। मेरे यहां लाख की कमेटी डाली थी। आखिरी दो कमेटियों में उनका हाथ तंग हो गया, तो उनकी इज्जत बचाने के लिये मैंने कमेटी भरी। जो बाद में थोड़ा-थोड़ा करके प्रेम साहब ने रकम चुकाई। ऐसा आदमी भला फिरौती क्या देगा! भगवान ही मालिक है अब प्रेम साहब का।”
मोना चौधरी जानकारी पाना चाहती थी कि ये सब क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? इन पांचों ने ऐसा किया है कि इनके अपहरण होने लगे और कौन ऐसा कर रहा है? परन्तु उनसे बात होने से पहले ही उनके अपहरण होते जा रहे थे। एक ही दिन में चारों का अपहरण कर लिया गया। रंजना?
रंजना अभी बची हुई थी। उसे वो बता सकती है। सारी बात जानकर, चारों को बचाने की कोई कोशिश कर सकती है। रंजना ने पहले ही शक जाहिर किया था कि उसका अपहरण भी हो जायेगा।
मोना चौधरी जल्दी से कार में जा पहुंची।
दूसरे ही पल कार आगे बढ़ गई। अंधेरा हो चुका था।
“मम्मी नहीं मिली आंटी?” आदत के मुताबिक अंशुल ने पूछा।
“नहीं...।”
“कब मिलेंगी?”
“जल्दी मिल जायेंगी।”
“अंधेरा हो गया है। स्कूल का बैग तैयार करना है। अभी तो मेरी यूनिफॉर्म भी प्रेस करनी है। खाना बनाना है मम्मी ने।” अंशुल ने अपनी चिन्ता जाहिर की- “होम वर्क भी नहीं किया मैंने...।”
मोना चौधरी अब जल्दी से जल्दी रंजना के पास पहुंच जाना चाहती थी। मन में दृढ़ता थी कि रंजना से असल बात पूछ कर ही रहेगी कि मामला क्या है?
“अब हम कहां जा रहे हैं आंटी...?”
“रंजना आंटी के पास।”
“मम्मी आंटी के घर तो हैं नहीं। शाम को हम वहां गये थे।” अंशुल ने मोना चौधरी को देखा।
“शायद अब आ गई हों।” अंशुल की बातों का जवाब देना कठिन हो रहा था मोना चौधरी को। बच्चे की बातें बच्चों वाली थीं, और ऐसे मौके पर अंशुल के सवाल अजीब-सी स्थिति पैदा कर रहे थे।
☐☐☐
मोना चौधरी, अंशुल को लेकर रंजना के घर पहुंची। कॉलबेल बजाने पर रंजना की सासू मां ने दरवाजा खोला। उसके चेहरे को देखकर ही मोना चौधरी समझ गई कि कुछ हुआ पड़ा है। मोना चौधरी को देखते ही वो पीछे हट गई। अंशुल को लिए मोना चौधरी भीतर आ गई।
तभी मोना चौधरी की निगाह एक व्यक्ति पर पड़ी, जो गमगीन मुद्रा में कुर्सी पर बैठा था। वो तुरन्त समझ गई कि वो रंजना का ही पति होगा। बच्चे टी.वी. देख रहे थे। अंशुल उनके पास चला गया था।
“रंजना कहां है?” मोना चौधरी ने दोनों के चेहरों पर निगाह मारी।
आदमी से कुछ कहते न बना।
सासू मां ने ही दुःखी और चिन्तित स्वर में कहा।
“बेटी तुम्हारे जाने के आधे घंटे बाद तीन आदमियों ने बहाना बनाकर दरवाजा खुलवा लिया। फिर उन्होंने रिवॉल्वरें निकाल ली और वो जबर्दस्ती बहू को ले गये।”
“ओह...!” मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“हमें तो समझ नहीं आ रहा कि ये सब क्या हो रहा है। हम शरीफ लोग हैं। हमारी बहू में भी कोई खोट नहीं। फिर उसे कोई क्यों जबर्दस्ती उठाकर ले गया। हमें तो पुलिस को भी खबर करने से डर लग रहा है। लोगों को मालूम हो गया तो, हम किसी को क्या मुंह दिखायेंगे।”
“उन तीनों को आपने पहले कभी देखा था?” मोना चौधरी ने पूछा।
“नहीं।”
मोना चौधरी ने उस व्यक्ति पर नजर मारी।
“आपने देखा हो?”
“मैं तो खबर मिलने पर, ऑफिस से घर आया था।” उस आदमी ने दुःखी स्वर में कहा।
“रंजना ने कभी आप लोगों को कुछ बताया हो कि उसका अपहरण हो सकता है या ऐसी कोई बात?”
“नहीं। ऐसी कोई बात उसने मेरे से नहीं की...।” उस व्यक्ति ने कहा।
“दिन में जब तुम आई तो तब वो बहुत घबराई हुई थी।” सासू मां ने कहा- “मैंने कई बार पूछा कि क्या बात है, लेकिन उसने कुछ ठीक से जवाब नहीं दिया, तो मैं चुप कर गई कि जब मन ठीक होगा, तब बता देगी।”
रंजना के इस तरह अपहरण हो जाने से सारा घर परेशान हो उठा था।
“मैंने, आपको पहले कभी नहीं देखा।” उस आदमी ने मोना चौधरी से कहा।
“मैं रंजना की सहेली दीपा की फ्रेंड हूं...। रंजना से आज पहली बार ही मिली थी।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “मैं आपको बता देना चाहती हूं कि आज रंजना का ही नहीं, बल्कि पांच पुराने दोस्तों का अलग-अलग जगह से अपहरण हुआ है। वे सब कॉलेज के जमाने के दोस्त थे।”
“क्या मतलब?” उस आदमी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“आप लोग दीपा, सीमा, अजय सिंह और प्रेम कुमार को जानते हैं?” मोना चौधरी ने पूछा।
“हां। ये चारों कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे। रंजना ने बताया था।” उसने कहा।
“इन चारों का अपहरण भी आज ही हुआ है।”
“ये कैसे हो सकता है?” उसके होंठों से निकला।
“ये हो चुका है।”
“लेकिन...लेकिन मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा।”
“जानकारी तो मुझे भी खास नहीं है। लेकिन इतना जान चुकी हूं कि कॉलेज के वक्त इन सबने ऐसा कोई काम किया था कि जिसका अंजाम उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है। कोई इन पांचों के पीछे पड़ा है।”
मां-बेटे ने एक-दूसरे को देखा।
“मां, तुम्हें कभी रंजना ने ऐसी कोई बात बताई हो?” उस आदमी ने पूछा।
“मुझसे तो कभी कुछ नहीं कहा।”
“मेरे से भी ऐसी कोई बात नहीं की...।” कहते हुए उसने मोना चौधरी को देखा।
“छिपा रखी होगी ये बात। या फिर इस बारे में बात करने की रंजना ने जरूरत महसूस नहीं की होगी।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “लेकिन पांचों को एक ही वजह के तहत उठाया गया है।”
किसी से कुछ कहते न बना।
“मैं चलती हूं। जरूरत पड़ी तो फिर मिलूंगी।”
“लेकिन अब हम क्या करें? हमें तो समझ में नहीं आ रहा...।” वो आदमी परेशान स्वर में कह उठा- “रंजना को कहां तलाश करें?”
“ये आपने देखना है कि आपने क्या करना है।” मोना चौधरी ने उसे देखा- “रही बात रंजना को तलाश करने की, तो इस काम में हाथ डालना आप लोगों के लिये ठीक नहीं होगा। अपहरण करने वाले खतरनाक लोग हैं। अगर आपको रंजना के बारे में कोई खबर मिले तो आप बेशक मुझे फोन कर दीजिये। मैं संभाल लूंगी।” मोना चौधरी ने उन्हें अपना फोन नम्बर बता दिया।
मां-बेटे, परेशानी भरी नजरों से मोना चौधरी को देखते रहे।
“अभी सोच लीजिये कि शायद रंजना ने कॉलेज के जमाने की किसी बात का जिक्र किया हो।” मोना चौधरी बोली।
परन्तु जवाब में दोनों ने इंकार किया।
मोना चौधरी ने उनसे विदा ली और अंशुल को लिये बाहर आ गई।
“मम्मी का पता नहीं चला?” अंशुल ने पूछा।
“नहीं।” मोना चौधरी सोचों में थी- “अभी वक्त लगेगा।”
“तो मैं मम्मी के बिना कैसे रहूंगा? मुझे खाना कौन देगा? मैं स्कूल कैसे...?” अंशुल ने कहना चाहा।
“बेटे, कुछ दिन तो तुम्हें स्कूल से छुट्टी करनी होगी। अपने घर में तुम अकेले नहीं रह सकते। अपने अंकल के पास रह लेना। मैं तुम्हें वहीं ले चलती हूं।” मोना चौधरी ने कहा।
“और मम्मी?”
“तुम्हारी मम्मी को मैं ढूंढती रहूंगी। जल्दी मिल जायेंगी तुम्हारी मम्मी...।”
☐☐☐
मोना चौधरी, अंशुल को साथ लिए पारसनाथ के रेस्टोरेंट में पहुंची। रात के साढ़े आठ बज रहे थे। रेस्टोरेंट में चहल-पहल थी।
मोना चौधरी ने कैश काउंटर पर बैठे आदमी से पूछा।
“पारसनाथ कहां है?”
“मैडम, वो कहीं गये हैं। आठ बजे तक आने को कह गये थे। अब आने ही वाले होंगे।”
“मैं ऊपर हूं। पारसनाथ आये तो बता देना।”
“ओ.के. मैडम...।”
मोना चौधरी, अंशुल को लिए रेस्टोरेंट के ऊपर बने पारसनाथ के घर में पहुंच गई।
“आराम कर लो।” मोना चौधरी सोफा चेयर पर बैठती हुई बोली।
“मेरे पास रात को पहनने के कपड़े तो हैं नहीं...।”
“मिल जायेंगे।”
“ब्रश भी नहीं है दांत साफ करने के लिये।”
अंशुल की भोली बात पर मुस्करा पड़ी मोना चौधरी।
“तुम्हें जरूरत की हर चीज मिल जायेगी। अभी अंकल आयेंगे। जो भी चाहिये हो, उनसे कह देना।” मोना चौधरी ने प्यार से कहा- “जब तक तुम्हारी मम्मी नहीं मिलतीं, तुम यहीं रहोगे।”
“अगर अंकल ने बाहर निकाल दिया तो?”
“नहीं निकालेंगे।” मोना चौधरी मुस्करा रही थी।
“ये आपका घर है?”
“नहीं।”
“मैं आपके साथ रहना चाहता हूं आंटी...।”
“मैं अपने घर में अकेली रहती हूं। तुम्हें साथ लेकर तुम्हारी मम्मी को नहीं ढूंढ सकती और घर में अकेला रहना भी तुम्हारे लिये ठीक नहीं होगा। यहां तुम्हारी पूरी देखभाल होगी।”
“ठीक है आंटी। यहां मुझे कभी-कभी चॉकलेट मिलेगी?”
“हां। सब कुछ मिलेगा।” मोना चौधरी पुनः मुस्करा पड़ी।
अंशुल के चेहरे पर तसल्ली के भाव उभरे।
तभी पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया। वो सूट पहने हुए था। अंशुल को देखने के बाद उसने मोना चौधरी को देखा। तभी अंशुल, मोना चौधरी से कह उठा।
“यही अंकल हैं आंटी?”
“हां...।”
“ये बच्चा कौन है?” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
“ये बहुत प्यारा बच्चा है। इसकी मां खो गई है। जब तक वो नहीं मिलती ये यहीं रहेगा।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर अंशुल को देखा फिर पारसनाथ से कहा- “इसे नाईट सूट, ब्रश और जो भी कहे, मंगवा दो। किसी के साथ इसे दूसरे कमरे में भिजवा दो कि हम बातें कर सकें।”
पारसनाथ ने बेल बजाई तो तुरन्त एक व्यक्ति वहां आ पहुंचा। उसे बच्चे की जरूरत की चीजों का इन्तजाम करने और कुछ देर के लिये बच्चे को उसके साथ ही भेज दिया।
“क्या बात है मोना चौधरी...?” पारसनाथ ने बैठते हुए पूछा।
मोना चौधरी ने सारी बात उसे बताई।
पूरी बात सुनने के पश्चात पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
“जिस ढंग से उन पांचों को उठाया गया है, इससे जाहिर है कि कोई दमखम वाला इंसान ये सब कर रहा है।”
“हां।” मोना चौधरी ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया- “उन पांचों को उठाने की योजना बहुत आराम से तैयार की गई है। जाहिर है कि पांचों पर पहले से ही नजर रखी जा रही होगी। उनकी एक-एक हरकत नोट की जा रही होगी। ऐसा न हुआ होता तो, पांचों पर एक ही दिन में हाथ नहीं डाला जा सकता था।”
“लेकिन पांचों पर एक ही दिन हाथ डालने की क्या जरूरत थी...?” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
“इसलिये कि अगर आज दो को उठाया जाता तो बाकी के तीन सतर्क होकर कहीं गायब भी हो सकते थे और जो भी इस काम के पीछे है, वो हर हाल में पांचों को अपने पास ही देखना चाहता था। इसलिये उसने एक ही दिन में पांचों पर हाथ डालने की सोची और कामयाब भी रहा।” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
कुछ पलों तक उनके बीच खामोशी रही।
“तुम क्या करना चाहती हो इस मामले में?”
“वैसे तो इन बातों से मेरा कोई मतलब नहीं। लेकिन उस बच्चे से मैंने वायदा कर लिया है कि मैं, उसकी मां को तलाश कर दूंगी। ऐसे में मेरा फर्ज बनता है कि उसे, उसकी मां से मिलवा दूं...।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ऐसा करना बुरा नहीं है मोना चौधरी...।” पारसनाथ ने स्पष्ट स्वर में कहा- “लेकिन ये काम होगा कैसे? उन पांचों के बारे में तुम कुछ नहीं जानती। ये भी नहीं मालूम कि उनका अपहरण करने के पीछे वजह क्या है और कौन है, जिसने अपहरण करवाया है? कुछ भी तो नहीं मालूम...।”
“हां। कुछ भी नहीं मालूम।” मोना चौधरी बोली- “लेकिन मालूम करना पड़ेगा।”
“कैसे?”
“कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही है।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “रंजना के घरवालों से पूछताछ कर चुकी हूं। दीपा के घर में अंशुल के अलावा कोई है नहीं। बाकी तीनों के घरवालों से मालूम करूंगी। शायद उनमें से किसी ने इस बारे में, अपने घरवालों से बात की हो...।”
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली।
“एक काम तुम भी करो...।”
“क्या?”
“मैं तुम्हें दो बदमाशों के हुलिये बताती हूं। किसी तरह उन्हें ढूंढने की कोशिश करो। उनसे मालूम हो सकता है कि किसके कहने पर उन्होंने अपहरण किया है।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा।
“उनके हुलिये बताओ।”
मोना चौधरी ने दोनों बदमाशों के हुलिये बारीकी से बताये।
“मैं कोशिश करूंगा कि इन दोनों को तलाश करवा सकूँ...।” पारसनाथ ने कहते हुए कश लिया।
“बच्चे का पूरा ख्याल रखना...।” मोना चौधरी उठ खड़ी हुई।
“जरूर। डिनर ले लो। वक्त हो रहा है।”
“अभी नहीं। पहले मैं अपने फ्लैट पर पहुंचकर नहाना चाहती हूं। उन बदमाशों को देखना, वो कहां हैं।” मोना चौधरी ने अंशुल से मिलना ठीक नहीं समझा कि उसे जाते देखकर बच्चे को दुःख होगा।
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रात भर तगड़ी नींद ली मोना चौधरी ने। अगले दिन सुबह आठ बजे उठी। हाथ-मुंह धोकर चाय बनाई और चाय के घूंट लेते बीते दिन की बातों को लेकर सोचों में डूब गई।
चाय समाप्ति पर इस फैसले तक पहुंची कि अजय सिंह और प्रेम कुमार के घर से पूछताछ करनी चाहिये। शायद कोई बात मालूम हो सके। सीमा अपने फ्लैट में अकेली रहती थी, वहां तो उसके सवालों का जवाब देने वाला कोई भी नहीं होगा। इस मामले में मोना चौधरी के पास आगे बढ़ने के लिये कोई रास्ता नहीं था।
नहा-धोकर मोना चौधरी तैयार हुई और अपनी कार पर अजय सिंह के घर की तरफ रवाना हो गई।
अजय सिंह की पत्नी का चेहरा उतरा हुआ था। उसकी आंखें बता रही थीं कि वो रो भी चुकी है। घर में तीन-चार और लोग थे। जोकि अजय सिंह के बारे में सुनकर आ पहुंचे थे।
मोना चौधरी, उसे लेकर अलग कमरे में जा पहुंची।
“शायद आपको मालूम नहीं है कि अजय सिंह के साथ-साथ, उसकी पहचान वाले चार और लोगों का अपहरण भी कल हुआ है। सीमा का अपहरण तो मेरे सामने ही हुआ है।”
“क्या...?” उसने अजीब-सी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।
“हां। मैं सही कह रही...।”
“और किस-किस का अपहरण हुआ है?” अजय सिंह की पत्नी के चेहरे पर अभी तक अजीब-से भाव टिके पड़े थे।
“दीपा का, रंजना का और प्रेम कुमार का...।”
“ओह...!” उसका मुंह खुला-का-खुला रह गया।
“ये पांचों कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे।” मोना चौधरी उसे देखती कह उठी- “एक ही दिन में इन सबके अपहरण यूं ही नहीं हुए। यकीनन कोई खास वजह है पीछे। इन सबने मिलकर कुछ किया है।”
वो एकाएक कुछ नहीं कह सकी।
“तुम्हारे पति ने कभी तो उस बात का जिक्र किया होगा, जो उन्होंने किया था। ये बात मालूम होने पर, उसका पता चल सकता है, जिसने इन सबका अपहरण किया है।” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर बोली।
वो अब कुछ बेचैन हो उठी थी।
“बताओ क्या किया था इन पांचों ने? तुम्हारे पति ने ये बात अवश्य तुम्हें बताई होगी।”
“मुझे नहीं बताया कि इन सबने क्या किया था।” वो अब और भी परेशान हो उठी थी।
“तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि तुम्हें पता है। मेरी बात सुनते ही तुम सोचने...।”
“हाँ। तुम ठीक कह रही हो।” वो धीमे बेचैन स्वर में कह उठी- “ये बात तो मुझे भी मालूम है कि इन पांचों ने कॉलेज वक्त में कोई गलत काम किया था, लेकिन ये नहीं मालूम कि क्या किया था?”
“क्या मतलब?”
“मेरे पति ने कई बार गम्भीर होकर कहा था कि कॉलेज के आखिरी साल में वे, प्रेम कुमार, दीपा, रंजना और सीमा पिकनिक के लिये कुछ दिनों के लिये बाहर गये थे और वहां पर उनसे कुछ गलत हो गया। तब तो जवानी के जोश में उन्होंने परवाह नहीं की। लेकिन आज वे उस बात को सोचते हैं तो अपनी गलती महसूस करते हैं। मेरे सैकड़ों बार पूछने पर भी उन्होंने नहीं बताया कि ऐसा क्या किया। पूछूं तो चुप्पी साध जाते हैं।”
“तुम्हारे पति ने कभी ये कहा कि उस गलती की वजह से उनकी जान को खतरा हो सकता है या कुछ और हो सकता है?”
“हां।” एक बारगी वो भय से कांपी- “कहा था कि अब वो वक्त आने वाला है कि जिससे ये मालूम हो जायेगा कि उसने सही बात कही थी या गलत कि इतने साल और जी लो। उसके बाद अपनी जिन्दगी के मालिक तुम नहीं रहोगे। मैं अपने पति की इस बात को यूँ ही लेती थी। मैं नहीं जानती थी कि उनकी बातों में सच्चाई है।” कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गये।
“एक बार फिर सोचो कि शायद तुम्हारे पति ने कुछ और बताया हो कि...।”
“नहीं। मुझे अच्छी तरह याद है। इसके अलावा, आगे की बात वो कभी भी नहीं बताते थे।” उसने गीली आंखों से मोना चौधरी को देखा- “तुम ये सब पूछताछ क्यों कर रही हो?”
“दीपा मेरी सहेली है।” मोना चौधरी ने उठते हुए कहा- “मैं उसे ढूंढना चाहती हूं।”
“मेरे पति को भी ढूंढ लाना...।” वो रो पड़ी।
“मेरे ख्याल में वो पांचों एक साथ ही होंगे।” मोना चौधरी ने उसे तसल्ली दी- “अगर वो एक साथ हैं तो फिर मैं एक को नहीं पांचों को ही, उससे छुड़ा लूंगी।”
जवाब में उसके होंठ कांप कर रह गये।
उसे वहीं छोड़कर मोना चौधरी बाहर आ गई।
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