दिल्ली।
दोपहर के 12.30 बजे थे। मौसम बढ़िया था। ठंडी हवा चल रही थी। धूप थी परंतु चुभ नहीं रही थी। अर्जुन भारद्वाज ईस्ट पटेल नगर स्थित अपने घर जगदम्बा अपार्टमेंट से कार पर निकला और दस मिनट में करोल बाग में अपने ऑफिस जा पहुंचा था। काली पैंट और सफेद कमीज डाल रखी थी उसने। हमेशा की तरह अपने अंदाज में वो चमक रहा था। ऑफिस में प्रवेश करते ही उसका सामना नीना से हुआ जो रिसेप्शन के पीछे बैठी आज की डाक छांट रही थी।
“गुड नून सर।” नीना बोली।
“ये मेरी सुबह है। गुड मॉर्निंग।” अर्जुन भारद्वाज ने रिसेप्शन डेस्क के सामने से निकलते हुए कहा।
“आज तो आप बहुत जंच रहे हैं।”
अर्जुन भारद्वाज ठिठका और पलटकर गहरी निगाहों से नीना को देखा।
“मैं जंच रहा हूं?” अर्जुन बोला
“हां सर, किसी भी लड़की से पूछ लीजिए।” नीना मुस्कराकर बोली।
“मैं रोज ही जंचता हूं। तुम अपनी नजरें मेरे सामने नीची रखा करो। नहीं तो मुझे नजर लग जाएगी।”
“आज तो सच में जंच रहे हैं।” नीना ने अर्जुन पर मोहक मुस्कान फेंकी।
अर्जुन ने कुछ नहीं कहा और सामने नजर आ रहे केबिन में प्रवेश करता चला गया। कुर्सी पर बैठा और ड्रा’ज खोलकर कुछ कागज बाहर निकाले कि नीना ने भीतर प्रवेश किया। हाथ में एक लेटर था।
“बंसल कहां है?”
“बंसल, पंडित, किशोर, सब अपने-अपने केसों में उलझे हुए हैं। सुबह से कोई भी ऑफिस नहीं आया। किशोर और बंसल का फोन आया था परंतु पंडित का तो फोन भी नहीं आया।” नीना ने कहा।
“बंसल और किशोर ने कोई खास बात कही?”
“नहीं।” नीना हाथ में पकड़े लैटर को सामने रखती कह उठी –“रायसीना रोड से मेहरा साहब का लैटर है। वो लिखते हैं कि मैं अमेरिका जा रहा हूं। मेरा दिया केस बंद कर दें। लौटने पर बाकी की फीस दे दूंगा।”
“मेहरा का दिया केस बंद कर दो।” अर्जुन ने लेटर देखे बिना कहा।
“ये बात तो मेहरा साहब फोन पर भी कह सकते थे पत्र लिखने की क्या जरूरत थी?”
“फोन पर कहता तो मैंने बकाया पेमेंट फौरन ले लेनी थी। पर वो अभी पैसे नहीं देना चाहता होगा। तभी...”
अर्जुन का मोबाइल फोन बज उठा।
“हैलो।” अर्जुन ने फौरन बात की।
“मिस्टर अर्जुन भारद्वाज?” उधर से नगीना की आवाज आई।
“जी हां।”
“आप प्राइवेट जासूस हैं?”
“जी हां।”
“करोल बाग में सुपर डिटेक्टिव एजेंसी आप ही की है?”
“बिल्कुल मेरी ही है।” अर्जुन ने शांत स्वर में कहा –“आपकी कोई सेवा कर सका तो मुझे खुशी होगी।”
“आपका फोन नम्बर मुझे रात्रिका ने दिया है। आठ साल पहले उसका अपहरण हुआ था तो आपने सब ठीक कर दिया था। मेरा नाम नगीना है और मैं मुम्बई से बोल रही हूं। मुझे प्राइवेट जासूस की फौरन जरूरत है।”
“काम दिल्ली में करवाना है या मुम्बई में?” अर्जुन ने पूछा।
“मुम्बई में।”
“तो नगीना जी, बेहतर होगा कि आप मुम्बई स्थित प्राइवेट जासूस से सम्पर्क करें। मुम्बई में भी बढ़िया से बढ़िया प्राइवेट जासूस हूं।”
“मुझे भरोसे का व्यक्ति चाहिए।”
“मुम्बई में भरोसे के लोग मिल जाएंगे।”
“रात्रिका ने कहा है कि मैं आपका पूरा भरोसा कर सकती हूं।”
“मुझे मुम्बई बुलाने पर, मेरी फीस बहुत ज्यादा हो जाएगी। मुझे होटल में रुकना होगा और वो खर्चा भी आपका...”
“मैं दूंगी।”
“प्लेन से आने-जाने का टिकट।”
“वो भी मैं दूंगी।”
“मेरे साथ।” अर्जुन ने नीना पर निगाह मारी –“मेरी असिस्टेंट भी आ सकती है।”
“कोई दिक्कत नहीं। आप जो फीस कहेंगे, आपको मिल जायेगी।”
अर्जुन भारद्वाज ने गहरी सांस ली फिर बोला।
“मेरी फीस काम सुनकर तय होगी। अभी ये भी पता नहीं कि आप जो काम कहेंगी, वो करना मुझे पसंद आता है कि नहीं। अगर मैं काम नहीं करूंगा तो भी मुम्बई आने-जाने की फीस एक लाख लूंगा।”
“मुझे मंजूर है। मैं दो लोगों की प्लेन से टिकट ई-मेल करा देती हूं। जल्दी से जल्दी की जिस फ्लाइट में सीट मिलेगी, उसी प्लेन में...”
“क्या अभी आना होगा?” अर्जुन के होंठ सिकुड़े।
“बिल्कुल अभी। काम अर्जेंट है और जरूरी है। ज्यादा वक्त नहीं है। आप मेरे मुताबिक काम कीजिए मिस्टर अर्जुन और फीस अपनी मर्जी की लीजिए।” उधर से नगीना का गम्भीर स्वर अर्जुन भारद्वाज के कानों में पड़ रहा था –“मैं होटल ताज में आपके नाम का कमरा अभी बुक करा देती हूं। आप एयरपोर्ट से सीधा ताज पहुंचें, मुझे फोन करें तो मैं आ जाऊंगी वहां।”
“होटल ताज?” अर्जुन भारद्वाज के होंठों से निकला।
“अगर पसंद नहीं तो किसी दूसरे होटल में...” उधर से नगीना ने कहना चाहा।
“मेरा मतलब है ताज के कमरे की कीमत बहुत ज्यादा...”
“उसकी आप फिक्र न करें। अपने असिस्टेंट का नाम बताइए, टिकट बनाने के लिए नाम की जरूरत पड़ेगी।”
अर्जुन भारद्वाज ने फोन कान से हटाकर नीना से पूछा।
“मुम्बई चलोगी केस के सिलसिले में?”
“आपके साथ तो मैं कुएं में भी छलांग लगा दूंगी।” नीना ने लम्बी सांस खींची।
“नीना।” अर्जुन ने फोन पर नगीना से कहा।
“आधे घंटे बाद अपनी ई-मेल चेक कीजिएगा। टिकटें पहुंच जाएंगी। ई-मेल आई-डी बताइए।”
अर्जुन भारद्वाज ने ई-मेल आई-डी बता दी।
उसके बाद उधर से फोन बंद कर दिया गया।
अर्जुन ने मोबाइल टेबल पर रखा और नीना को देखा।
“क्या हुआ?”
“फोन करने वाली अपना नाम नगीना बता रही थी। पैसे की इसे परवाह नहीं है। हमारे लिए ताज होटल में कमरा बुक कराने जा रही है। इससे फीस में मोटी रकम ली जा सकती है अगर इसका बताया काम मुझे पसंद आया तो।”
“काम की भी पसंद होती है क्या?” नीना ने पूछा।
“होती है। ज्यादा गलत काम करने को कहेगी तो मैं नहीं करूंगा। प्राइवेट जासूस अपनी हद से बाहर जा सकता है, परंतु बाहर जाने की भी हद होती है अगर वो पैसा दिखाकर गलत काम मुझसे लेना चाहती है तो ऐसा नहीं होगा।”
“मुम्बई में क्या प्राइवेट जासूसों की कमी है जो आपको दिल्ली से बुला रही है।”
“रात्रिका से उसने मेरा नम्बर लिया।”
“रात्रिका कौन?”
“कई साल पहले उसके अपहरण का केस सॉल्व किया था। फिर उसकी शादी मुम्बई में हो गई थी। मैं उसकी शादी में भी गया था।”
“मुझे नहीं लेकर गए?”
“बच्चों को शादी-ब्याह से दूर रहना चाहिए।” अर्जुन भारद्वाज ने नीना को देखा –“मुम्बई चलने की तैयारी करो। रिसेप्शन पर भी कोई होना चाहिए। देखो तो हमारा कौन-सा एजेंट खाली है, जो भी खाली हो उसे बुला लो।”
“सर, अगर आपने काम को इंकार किया तो भी लाख रुपया मिलेगा।”
“फिर?”
“मुझे मुम्बई जरूर घुमा देना। समुद्र का किनारा, उछलती लहरें और चौपाटी पर तो...”
“अगले महीने तनख्वाह तो नहीं लोगी?”
“क्यों नहीं लूंगी। वो तो मेरा हक बनता है लेना।”
“तो मुम्बई घूमने का हक नहीं बनता। निकलो यहां से और रिसेप्शन के लिए किसी को बुलाओ। नगीना मुम्बई से हमारी टिकटें भेजने वाली है। हमें फौरन ही निकल चलना होगा। वो जल्दी की फ्लाइट में सीट रिजर्व कराएगी।” अर्जुन ने सोच भरे स्वर में कहा।
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अर्जुन भारद्वाज शाम 5.45 बजे मुम्बई के सांताक्रूज एयरपोर्ट पर पहुंच चुका था। दो दिन पहले ही अर्जुन ने एक बड़े केस से फुर्सत पाई थी और अभी दूसरा काम हाथ में नहीं लिया था, ये ही वजह थी कि वो फुर्सत में था और नगीना की मुम्बई आने की बात, फौरन मान ली थी। एयरपोर्ट से ताज होटल के लिए टैक्सी ली और नगीना को फोन करके अपने आ पहुंचने की खबर दी तो नगीना ने कहा, ताज होटल में उसका रूम नम्बर दो सौ एक है और वो एक घंटे बाद दूसरी मंजिल की लॉबी में मिलेगी तब उसने नीली जींस और काला टॉप पहन रखा होगा। पहचान लेना।
अर्जुन और नीना पचास मिनट में ताज होटल पहुंच गए।
नगीना के आने का वक्त करीब था।
रिसेप्शन से रूम नम्बर 201 की चाबी मांगी तो पोर्टर उनका सामान उठाकर उनकी अगुवाई में चल पड़ा। वे रूम पर पहुंचे, सामान रखा। अर्जुन ने हाथ-मुंह धोया, नीना ने भी मुंह धोकर मेकअप किया। सात बजने जा रहे थे।
“अब हमें लॉबी में पहुंच जाना चाहिए। वो वहां हमारा इंतजार कर रही होगी।” अर्जुन ने कहा।
“कौन नगीना?”
“हां, उसी से तो मिलने आए हैं।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा –“उसकी भी सुननी है कि वो क्या कहती है।”
“मैं कैसी लग रही हूं?” नीना एकाएक मुस्कराकर बोली।
“बकवास।”
“क्या?”
“मुझे तो तुम ऐसी ही लगती हो। तारीफी शब्द सुनने हैं तो किसी और से राय ले लो।”
“इसका मतलब मैं बढ़िया लग रही हूं।” नीना मुस्कराई –“रात को चौपाटी चलेंगे। समुद्र के किनारे।”
“हम काम के लिए मुम्बई आए हैं।”
“तो घूमने पर पाबंदी थोड़े न है।”
दोनों बाहर निकले। दरवाजा बंद करके लॉबी की तरफ बढ़ गए। अर्जुन भारद्वाज इस होटल में कई बार ठहर चुका था और जानता था कि लॉबी किस तरफ है। साथ चलती नीना कह उठी।
“एयरपोर्ट जाते समय जब रास्ते में घर से कपड़े लेने गई तो पता है मां ने क्या कहा?”
“क्या?”
“शादी कब कर रही है तू।”
“तो मुझे क्यों बता रही हो। मैंने तो कभी भी तुमसे शादी करने को नहीं कहा।” अर्जुन बोला।
“मैं तो मां की बात बता रही हूं।” नीना ने मुंह फुलाकर कहा।
“घर की बातों को ऑफिस के कामों में मत घसीटा करो।”
“मैं तो शादी की बात कर रही थी।”
“किसके साथ?”
“प-पता नहीं।” नीना सकपका उठी।
अर्जुन के होंठों पर दबी-सी मुस्कान नाच उठी।
“अपनी मां से कह दो कि तुम्हारे लिए कोई लड़का देख ले।”
“कह दूं?”
“शादी करनी है तो कहना ही पड़ेगा।”
“मेरी शादी हो गई तो फिर ऑफिस कौन संभालेगा?”
“कोई दूसरी आ जाएगी।”
“मैंने कई बार आपकी जान बचाई है। कितने केस मैंने आपके साथ सॉल्व किए हैं।” नीना याद दिलाने वाले अंदाज में कह उठी।
गैलरी बाईं तरफ मुड़ी तो वे भी मुड़ गए।
“तो मैंने तुम्हें तनख्वाह भी दी है।”
“वो सब मैंने जमा कर रखा है। जब कहेंगे वापस दे दूंगी।”
“वापस क्यों दोगी?”
“पता नहीं।” नीना ने उखड़ी निगाहों से अर्जुन को देखा –“आपका दिमाग जासूसी के अलावा, बाकी कामों में काम नहीं करता।”
“ये तुम कैसे कह सकती हो?”
“क्योंकि आपको पता ही नहीं कि मैं क्या कह रही हूं। मेरा मतलब क्या है।”
“तुम अपनी शादी की बात कर रही थी।” अर्जुन ने भोलेपन से कहा।
“मैं कोई बात नहीं कर रही थी।” नीना ने झल्लाकर कहा –“मुझे रात सपना आया था कि एक जंगली गधे के साथ मेरी शादी हो गई है और मैं उसकी सूरत देखते ही मर गई।”
अर्जुन के होंठों के बीच मुस्कान आ दबी। तभी लॉबी का बड़ा-सा शीशे का दरवाजा आ गया। वहां खड़े दरबान ने आदर से दरवाजा खोला तो वो भीतर प्रवेश कर गए।
लॉबी के रूप में ये काफी खुला हॉल था। जगह-जगह लाल रंग के मखमली सोफे कतार में लगे हुए थे। ए.सी. की ठंडी हवा वातावरण में व्याप्त थी। कुछ लोग वहां बैठे हुए थे। बातें कर रहे थे। कुछ अकेले भी थे और उन अकेले बैठे लोगों में वीरेंद्र त्यागी भी था। जो कि किसी के आने का इंतजार कर रहा था। वो इसी होटल की दूसरी मंजिल के 212 नम्बर कमरे में ठहरा था और इसी लॉबी में किसी को मिलने का वक्त दिया था। त्यागी ने उड़ती निगाह अर्जुन भारद्वाज और नीना पर मारी फिर नजरें हटा लीं।
अर्जुन की निगाह पूरी लॉबी में गई।
“क्या देख रहे हो?” नीना बोली।
“नीली जींस की पैंट और काले टॉप वाली लड़की को...”
“वो आ गई।”
नीना के शब्द सुनते ही अर्जुन भारद्वाज की निगाह घूमी दरवाजे की तरफ। तो नगीना को नीली जींस की पैंट और काले टॉप में भीतर प्रवेश करते देखा।
“लड़की जोरदार है।” नीना धीमे स्वर में बोली –“पर मेरे से ज्यादा जोरदार नहीं है।”
“न तो मैंने आज तक तुम्हारा जोर देखा है, न ही उसका।” अर्जुन धीमे स्वर में बोला –“इस वक्त हम क्लाइंट से मिलने जा रहे हैं, सिर्फ ये बात ध्यान रखो। क्लाइंट सिर्फ क्लाइंट होता है।”
नगीना ने अर्जुन और नीना को अपनी तरफ देखते पाया, उसके कदम धीमे हो गए। नजरें उन दोनों पर ही रहीं। वो धीमे-धीमे आगे बढ़ी और
जब उनके करीब से निकलने लगी तो अर्जुन ने टोका।
“मैडम नगीना?”
“ओह यस।” नगीना कहते हुए ठिठक गई।
“मैं प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज और ये मेरी असिस्टेंट नीना है।” अर्जुन भारद्वाज ने मुस्कराकर कहा।
नगीना ने अर्जुन और नीना से मुस्कराकर हाथ मिलाया। अर्जुन बोला।
“आइए, वहां बैठते हैं।
वे तीनों लॉबी के सोफों पर जा बैठे। ये इत्तेफाक ही था कि वे वीरेंद्र त्यागी के पास ही जा बैठे थे। सोफों की पीठे जुड़ी हुई थी। इस तरफ ये तीनों बैठे थे तो उस तरफ वीरेंद्र त्यागी मौजूद था।
“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि मेरे एक बार कहने पर ही आप मुम्बई आ गए।” नगीना बोली।
“मैं आपको क्या कहकर बुला सकता हूं।”
“नगीना कहिए।” नगीना बोली-”रात्रिका का कहना है कि आप पर विश्वास किया जा सकता है।”
अर्जुन भारद्वाज खामोशी से नगीना को देखता रहा।
“आपने जवाब नहीं दिया मिस्टर अर्जुन।”
“आप पूरी तरह मुझ पर भरोसा कर सकती हैं। परंतु मैं आपके कहने पर भी कोई गैर कानूनी काम नहीं करूंगा। इसलिए मुझे जानना है कि आप मुझसे क्या काम लेना चाहती हैं। प्राइवेट जासूस की हद तो आप जानती ही होंगी।”
तीन फुट दूर पीठ किए बैठे वीरेंद्र त्यागी के कानों में स्पष्ट शब्द पड़ रहे थे। वो सब कुछ सुन रहा था।
“आपको ये वादा करना होगा कि मैं जो कहूं उसे आप हर स्थिति में गुप्त रखेंगे, बेशक आप मेरा काम करें या न करें।”
“ये वादा है।” अर्जुन बोला।
“नगीना जी।” नीना तुरंत कह उठी –“अगर हम काम को इंकार करते हैं तो तब भी आपने एक लाख रुपया देना है।”
“अपने साथ लाई हूं वो लाख रुपया। ऐसा हुआ तो अभी आपको मिल जाएगा।” नगीना कह उठी। वो गम्भीर थी –“सबसे पहले तो मैं आपको बता देना चाहती हूं मैं देवराज चौहान की पत्नी हूं।”
“देवराज चौहान कौन-क्या बिजनेस है देवराज चौहान का?” अर्जुन
भारद्वाज ने पूछा।
“मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान की बात कर रही हूं मिस्टर अर्जुन।”
वीरेंद्र त्यागी के कान खड़े हो गए।
अर्जुन भारद्वाज बुरी तरह चौंका। नीना ने अर्जुन की बांह पर हाथ रखकर दबा दिया।
“डकैती मास्टर देवराज चौहान। वो तो खतरनाक डकैती मास्टर है। वो-वो...”
“वो साधारण-सा इंसान है आपकी तरह। आप प्राइवेट जासूस हैं और
वो डकैतियां करता है। मैं उसी की पत्नी हूं। मेरे कहने पर आपको देवराज
चौहान के लिए काम करना है। काम जरा भी गैरकानूनी नहीं है। अगर आप डकैती मास्टर देवराज चौहान का काम नहीं कर सकते तो बता दीजिए। बात यहीं पर खत्म हो जाएगी।” नगीना ने शांत स्वर में कहा।
“हैरानी है कि आप देवराज चौहान जैसे इंसान की पत्नी हैं।” अर्जुन
ने गहरी सांस लेकर कहा।
“देवराज चौहान में क्या बुरा है?”
“पता नहीं।” अर्जुन अपने को सामान्य करने की कोशिश में था।
“कभी मिले हैं उससे?”
“नहीं। सिर्फ सुना है।
“तो एक बार उससे मिल लीजिए। मैं मिलवाऊंगी, फिर उसके बारे में अपनी राय कायम करें।”
“देवराज चौहान के लिए मुझे जो काम करना है, वो गैर कानूनी नहीं
होगा?” अर्जुन ने पूछा।
“जरा भी नहीं। जहां भी आपको गैरकानूनी होने का एहसास हो, आप वहीं पर काम छोड़ दीजिए। मैं पैसे वापस भी नहीं मागूंगी। अब आपको सोचना ये है कि डकैती मास्टर देवराज चौहान के लिए काम करने में आपको एतराज तो नहीं?”
“कोई एतराज नहीं पर ये बात पुलिस के कानों तक न पहुंचे कि मैंने देवराज चौहान के लिए कोई काम किया है।”
“बात हमारी तरफ से बाहर नहीं जाएगी।”
अर्जुन भारद्वाज ने सिर हिला दिया। तब नीना बोली।
“सर, इतने बड़े डकैती मास्टर के लिए आप काम करेंगे तो पुलिस आपको छोड़ने वाली नहीं। वो बहुत खतरनाक इंसान है। पुलिस के कानों में पड़ ही जाएगा कि आपमें और देवराज चौहान में सम्बंध है।”
अर्जुन ने नीना को देखा फिर कह उठा।
“तुम ठीक कहती हो नीना, पर मोटी फीस के लिए इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।”
“बात खुली तो पुलिस आपको गिरफ्तार भी कर लेगी। जासूसी का लाइसेंस कैंसिल कर देगी।”
“मुझे सुन लेने दो कि काम क्या है।” अर्जुन की निगाह नगीना पर गई।
“सुनने के बाद आप बात बाहर नहीं करेंगे मिस्टर अर्जुन।” नगीना ने कहा।
“इस बारे में मुझ पर पूरा भरोसा रखें।”
अर्जुन भारद्वाज की गम्भीर निगाह नगीना पर जा टिकी।
नीना ने अभी भी अर्जुन की बांह थाम रखी थी
“मेरी बांह छोड़ दो मैं भागा नहीं जा रहा।” अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा।
“छोड़ दी।” नीना ने अपना हाथ पीछे करते हुए कहा –“मां शादी के बारे में पूछ रही थी।”
“तुम्हारी मां से शादी करने का मेरा कोई इरादा नहीं है।” धीमा स्वर था अर्जुन का।
“मां मेरी शादी की बात कर रही...।”
“तुम अभी तक अपने लिए एक लड़का नहीं तलाश कर सकीं, जबकि मैंने तुम्हें रिसेप्शनिस्ट से जासूस बना दिया है।”
“वो तो मैंने ढूंढ़ लिया है।”
“फिर दिक्कत क्या है?”
“वो गधा मेरी बात समझता ही नहीं।”
“गधा?” अर्जुन ने गर्दन घुमाकर नीना को देखा।
“वो गधा ही हुआ।” नीना सब्र के साथ बोली –“जो समझकर भी मेरी बात नहीं समझ रहा।”
“इस बारे में फिर बात करना।” अर्जुन बोला -“मुझे क्लाइंट से बात
कर लेने दो।”
“सोच लो, डकैती मास्टर देवराज चौहान खतरनाक इंसान है। कहीं वो तुम्हें ले न डूबे।” नीना ने कहा।
अर्जुन नगीना को देखता कह उठा।
“बताइए नगीना जी, पूरा मामला क्या है?”
“एक ताशा नाम की लड़की है जो कि अपने को किसी दूसरे ग्रह से आई बताती है। उसका कहना है कि तीन जन्म से पहले के जन्म में देवराज चौहान उसका पति था और वहां के ग्रह का मालिक था। परंतु किसी वजह से देवराज चौहान उस ग्रह से बाहर निकलकर, पृथ्वी पर पहुंच गया और यहां जन्म लेने लगा। अब वो कहती है कि वो उस सदूर ग्रह से पृथ्वी पर आई है ताकि देवराज चौहान को वापस उस ग्रह पर ले जा सके।”
अर्जुन भारद्वाज ने आंखें सिकोड़कर नगीना को देखा
“मैडम। नगीना जी।” अर्जुन तीखे स्वर में बोला –“उसने ये बातें कही और आपने मान ली।”
“मानी होती तो आपको दिल्ली से नहीं बुलाती।”
“वो ताशा, या तो बहुत बड़ी पागल है या बहुत ही चालाक, जो ऐसी
बातें कर रही है।” अर्जुन ने कहा -“ऐसा न तो होता है और न ही हो सकता है। दूसरा कोई ग्रह ऐसा नहीं है जहां दुनिया बसती हो। वो देवराज चौहान को पागल बनाने की कोशिश कर रही है।” अर्जुन भारद्वाज इंकार
में सिर हिलाता कह उठा।
“देवराज चौहान का उस लड़की के साथ कोई चक्कर तो नहीं था पहले?” नीना बोली
“नहीं।”
“देवराज चौहान के पास पैसा है?”
अर्जुन ने व्यंग्य भरी निगाहों से नीना को देखा
“हां। बहुत पैसा है।”
“वो मशहूर डकैती मास्टर है।” अर्जुन ने नीना से कहा –“उसके पास काफी पैसा होना चाहिए।”
“फिर वो ताशा जरूर उसके पैसे पर हाथ डालने के चक्कर में होगी।” नीना कह उठी।
“तुम चुप रहो।” अर्जुन बोला।
“मां शादी के लिए...।” नीना ने जल्दी से कहना चाहा।
अर्जुन नगीना से कह उठा।
“तो ये मामला है।”
“हां।”
“ताशा कहां रहती है?”
“वो मुम्बई में कहीं पर है, परंतु उसे ढूंढ़ना पड़ेगा। ये काम आप करेंगे।”
“आपकी दी जानकारी पूरी तरह अधूरी है।”
“मैंने अभी कुछ बताया ही नहीं है।”
“तो बता दीजिये। एक ही बार में सिलसिलेवार सब कुछ बता दीजिए ताकि मैं आसानी से मामले की कड़ियां जोड़ सकूं।”
“जो मुझे मालूम है, वो मैं आपको बता देती हूं अर्जुन साहब।” इसके साथ ही नगीना, जगमोहन की बताई सब बातें बताने लगी। डोबू जाति के बारे में बताया। बबूसा के बारे में बताया। रानी ताशा के फोन आने के बारे में बताया और हर वो बात बताई जो इस मामले से वास्ता रखती थी।
नगीना बताती रही।
अर्जुन भारद्वाज और नीना सुनते रहे।
साथ जुड़े सोफे के दूसरी तरफ बैठा वीरेंद्र त्यागी भी सुनता जा रहा था।
पंद्रह मिनट बाद नगीना ने अपनी बात खत्म की।
अर्जुन के होंठ सिकुड़े हुए थे।
नीना भारी उलझन में दिखाई दे रही थी।
“ये है सारी बात।” नगीना बोली।
“सर।” नीना कह उठी –“ये मामला बहुत बुरी तरह उलझा हुआ है। इसमें ताशा नाम की वो लड़की ही नहीं, बबूसा नाम का वो व्यक्ति भी संदिग्ध है जो देवराज चौहान के साथ चिपका हुआ है। हैरानी है कि देवराज चौहान उसे अपने पास क्यों रख रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि वो रानी ताशा-सॉरी ताशा से मिला हुआ है। वो खुद को राजा देव का सेवक बता रहा है, दूसरे ग्रह की बातें कर रहा है, वो जरूर रानी ताशा का ही भेजा हुआ है कि देवराज चौहान का दिमाग वॉश कर सके। उस सदूर ग्रह के होने और उसके वहां का राजा होने के बारे में यकीन दिला सके। ये एक जबर्दस्त साजिश है, देवराज चौहान के गिर्द जाल बिछाया गया है और जाल बिछाने वाले बहुत ही शातिर और समझदार लोग हैं। इसके पीछे उन्होंने महीनों की मेहनत की है।”
“मेरा भी ये ही ख्याल है।” नगीना कह उठी।
अर्जुन भारद्वाज गम्भीर दिख रहा था। वो बोला।
“मुझे देवराज चौहान से, बबूसा से मिलना होगा।”
“आप जब भी कहेंगे, देवराज चौहान का पता बता दूंगी।” नगीना ने कहा।
“आप देवराज चौहान के पास ही हैं?”
“अभी तक तो उसके पास नहीं थी, परंतु अब यहां से सीधा उसके पास ही जाऊंगी।”
“अभी नहीं।” अर्जुन सोच भरे स्वर में कह उठा –“मैंने सब कुछ सुना है, परंतु इन बातों को समझना भी है। आज का वक्त मुझे समझने में लगेगा। कल मैं आपको फोन करके देवराज चौहान का पता लूंगा। परंतु ये बात तो पूरी तरह सच है कि ताशा बहुत गहरा खेल खेल रही है। बबूसा मुझे उसी का भेजा साथी लगता है क्योंकि वो भी किसी सदूर ग्रह की बात कर रहा है और खुद को राजा देव का महत्वपूर्ण सेवक बताता है। ताशा और बबूसा मिलकर देवराज चौहान को पागल बनाने पर लगे हैं। वे देवराज चौहान को गहरी साजिश में लपेटे हुए हैं।”
“लेकिन देवराज चौहान बेवकूफ नहीं है सर। वो भला उनकी बातों में कैसे फंस गया?” नीना ने कहा।
“आप इस सारे मामले को किस नजर से देखती हैं?” अर्जुन ने नगीन से पूछा।
“ये सब कुछ फ्रॉड है। धोखेबाजी है।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा –“यूं तो रानी ताशा जो भी हो, उसे मैं ढूंढ़ सकती थी, मैं उसे संभाल सकती थी परंतु इस वक्त मुझे लगा कि मुझे देवराज चौहान के पास रहना चाहिए। यही वजह है कि मैंने आपको बुला लिया कि इस मामले को आप देखें।”
“जरूर। मैं ही देखूंगा। कुछ अंदाजा है कि ताशा कहां पर हो सकती है?”
“मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती।”
“देवराज चौहान को पता होगा?”
“यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकती।”
“तो कल मैं इस बारे में देवराज चौहान से बात करूंगा। तगड़ी साजिश रची जा रही है देवराज चौहान के खिलाफ। इस मामले में और भी शातिर लोग शामिल हो सकते हैं। मामला खतरनाक रुख भी ले सकता है।” अर्जुन गम्भीर स्वर में बोला।
“मैं आपको मुंह मांगी फीस दूंगी। आप ये काम ठीक से पूरा कर दीजिए।” नगीना ने कहा।
“पांच लाख तो आप आज ही दे दीजिए।”
“बाहर मेरी कार खड़ी है, उसमें पैसा रखा है।”
“मैं आपके साथ कार तक चलती हूं।” नीना ने तुरंत कहा।
“ये पांच लाख मैं फीस की पहली किश्त ले रहा हूं। कल देवराज चौहान से मिलूंगा। बबूसा से बात करूंगा। ताशा की तलाश करके उससे बात करूंगा। आगे जाकर इस मामले में कुछ भी हो सकता है। हर सप्ताह मैं पांच लाख लेता रहूंगा और मामला खत्म होने पर एकमुश्त दस लाख लूंगा।”
“मुझे मंजूर है।” नगीना बोली।
“आप देवराज चौहान से ताशा के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानकारी लेने की कोशिश करें। मुझे लगता है कि देवराज चौहान ताशा को पहले से भी जानता हो सकता है।” अर्जुन ने कहा।
“ऐसा नहीं है। वो ताशा को पहले से नहीं जानता।”
“आपको उस पर पूरा भरोसा है?”
“पूरी तरह।”
“हैरानी है कि आप डकैती मास्टर जैसे इंसान पर पूरा भरोसा करके बैठी हैं।” अर्जुन मुस्करा पड़ा।
“मैंने पहले भी कहा है कि पहले देवराज चौहान से मिलिए उसके बाद उसके बारे में राय कायम करें।”
“नीना, इनका फोन नम्बर ले लेना।”
“हां सर। मुझे याद है कि पांच लाख भी लेने हैं। परंतु हम इस होटल में रहेंगे। बिल, का क्या होगा।”
“होटल वाले आपसे कोई पैसा नहीं मांगेंगे। मैं अभी पैसा एडवांस में जमा करा देती हूं। इस बारे में आप निश्चिंत रहे।” कहने के साथ ही नगीना उठते हुए बोली –“मुझे विश्वास है मिस्टर अर्जुन भारद्वाज कि आप ये मामला ठीक से पूरा कर देंगे।”
“जरूर। आप मुझ पर भरोसा कर सकती हैं।” नीना भी उठ खड़ी हुई।
“देवराज चौहान को पता है कि आप इस काम के लिए मुझसे बात कर रही हैं।”
“उसे नहीं पता।”
“तो क्या उसे एतराज नहीं होगा कि मैं इस मामले में दखल दे...”
“अर्जुन साहब मैं उसकी पत्नी हूं और उसने मुझे सारे हक दे रखे हैं। देवराज चौहान मेरे द्वारा किए गए किसी भी काम को गलत नहीं कहता। मेरी खुशी में ही उसकी खुशी है। आप पर उसे कोई एतराज नहीं होगा।”
अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीरता से सिर हिला दिया।
तभी नीना कह उठी।
“सर मैं पांच लाख और नगीना जी का फोन नम्बर लेकर आती हूं।”
नगीना और नीना वहां से बाहर की तरफ बढ़ गईं।
वीरेंद्र त्यागी फौरन उठा और उनके पीछे चल पड़ा।
अर्जुन भारद्वाज वहीं बैठा सोचों में डूबा रहा।
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नीना आई। हाथ में पांच लाख के नोटों का लिफाफा था। अर्जुन भारद्वाज के साथ वो रूम में पहुंची और नोटों को अपने सूटकेस में रख दिया। अर्जुन गहरी सोचों में डूबा दिखा।
“तुमने पैसा अपने सूटकेस में क्यों रखा?” अर्जुन कह उठा।
“आदत डाल रही हूं सर।”
“किस बात की?”
“आपका पैसा-गहना संभाल कर रखने की। इस मामले में आप पूरे लापरवाह हैं।”
“तुम्हारी शादी होने वाली है। बेहतर है कि तुम अपने बारे में सोचो।”
“मेरी शादी? किससे सर?” नीना की आंखें चमक उठीं।
“ये अपनी मां से पूछना।”
“सर।” नीना ने गहरी सांस ली वो गधा पता नहीं कब समझेगा कि मैं उसे चाहती हूं।”
“उस गधे को साफ-साफ कहो कि तुम उससे शादी करना चाहती हो।”
“कभी नहीं।”
“क्यों?”
“मैं तो इस बात का इंतजार कर रही हूं कि वो मुझसे शादी को कहे। मेरा उससे कुछ कहना ठीक नहीं।” नीना ने शांत स्वर में कहा –“मैंने शादी करनी है तो उसने भी तो करनी है। लड्डू तो दोनों ही खाएंगे। फिर मैं क्यों कहूं?”
अर्जुन भारद्वाज मुस्करा पड़ा।
“मैं देवराज चौहान वाले मामले पर सोच रही हूं। ये बहुत अजीब मामला है।”
“कोई अजीब नहीं है। मुझे तो लगता है कि ताशा और बबूसा आपस में मिले हुए हैं। बबूसा प्लान के मुताबिक अपनी चाल चलकर देवराज चौहान के पास आ पहुंचा और उसके दिमाग में सदूर ग्रह की कहानी डालने लगा कि वो तब उसका सेवक हुआ करता था जब वो उस ग्रह का राजा देव था। इस मामले में ज्यादा उलझन नहीं है। वैसे तो मैं बबूसा से ही बात करके ये मामला निबटा लूंगा, उसी से रानी ताशा के बारे में जानकारी मिल जाएगी, बबूसा काबू में नहीं आया तो ताशा को ढूंढ़ना पड़ेगा। देखते हैं कि आगे क्या हो पाता है।”
“तो आप क्या करेंगे सर?”
“कल देवराज चौहान से मिलूंगा।”
“कैसा लगता होगा देवराज चौहान। बहुत बड़ा डकैती मास्टर है। उसकी तो बड़ी-बड़ी मूंछे होंगी। लम्बा-चौड़ा होगा। बड़े-बड़े बाल होंगे। कानों में सोने की बाली पहन रखी होगी और बात-बात पर रिवॉल्वर निकाल लेता होगा।”
“तुम फिल्में बहुत देखती हो।”
“मैंने गलत कहा सर।”
“हां। वो ऐसा नहीं होगा। उसकी पत्नी को देखा है तुमने अभी?”
“तो?”
“उसी से तुम समझ सकती हो कि वो कैसा होगा। वो पैसे वाला दौलतमंद इंसान है। उसकी खूबसूरत पत्नी है। ऐसे में देवराज चौहान पूरी तरह हम जैसा सामान्य इंसान दिखता होगा। फिल्मी डाकू जैसा वो नहीं होगा।” अर्जुन ने कहा।
“कल पता चल जाएगा सर। अब तो हम फ्री हैं चौपाटी चलें?”
“वहां तुम जो खाओगी, वो पैसा मैं तुम्हारी तनख्वाह से काटूंगा।”
“मैं तो आपको पहले ही बता चुकी हूं कि मैंने आज तक की ली सारी तनख्वाहें संभाल रखी हैं। ये ही सोचती हूं कि उस गधे से शादी की बात बन गई तो सारी तनख्वाहें उसे दे दूंगी। छोड़िए सर, चौपाटी चलते हैं। वहां का समुद्र मुझे बहुत अच्छा लगता है और रात के इस वक्त तो वहां भीड़ भी बहुत होगी। मजा आएगा।”
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वीरेंद्र त्यागी ने नगीना का पीछा किया। त्यागी के दिमाग में नगीना की कही बातें घूम रही थीं कि कोई ताशा नाम की लड़की देवराज चौहान को पहले जन्मों का अपना पति कह रही थी और कहती थी कि वो दूसरे ग्रह से आई है देवराज चौहान को ले जाने के लिए। त्यागी को ये सब बकवास लगा कि ऐसा भी कभी हो सकता है। परंतु सब कुछ सुनकर इस मामले में उसकी दिलचस्पी जाग उठी थी कि आखिर मामला क्या है। ये तो वो समझ गया था कि देवराज चौहान की पत्नी नगीना ने दिल्ली से किसी प्राइवेट जासूस को बुलाकर उसकी सेवाएं ली हैं और उसका नाम अर्जुन भारद्वाज है। त्यागी ने पहली बार जाना था कि देवराज चौहान ने शादी कर रखी है और नगीना को भी उसने पहली बार देखा था। जो भी हो इस मामले को टटोलने की उसने सोच ली थी।
नगीना का पीछा करके, वीरेंद्र त्यागी ने देवराज चौहान का बंगला देख लिया। परंतु ये जानने के लिए कि ये बंगला सच में देवराज चौहान का ही है। इसके लिए वो गेट के पास ही अंधेरे में जम गया। थोड़ी देर के बाद उसने जगमोहन को कार पर बाहर निकलते देखा तो समझ गया कि देवराज चौहान यहीं रहता है। वो तब अपनी कार के पास पहुंचा और वहां से चल पड़ा। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं और उसका शातिर दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।
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देवराज चौहान का पूरा दिन सामान्य ढंग से बीता था। रानी ताशा का आज फोन नहीं आया था। वैसे भी बबूसा ने देवराज चौहान का फोन धरा को दे रखा था और उसे कह दिया था कि फोन किसी भी हालत में देवराज चौहान को नहीं देना है। देवराज चौहान ने फोन मांगा भी नहीं। जगमोहन दोपहर एक बजे तक लंच पैक कराकर लेता आया था और देवराज चौहान को बताया कि वो नगीना भाभी को सारा मामला बता आया है।
देवराज चौहान जानता था कि नगीना उसके पास आ जाएगी।
बबूसा दिन भर बेचैनी से टहलता रहा। तो कभी धरा के पास जा बैठता तो कभी देवराज चौहान के पास चक्कर लगा आता। इसी प्रकार दिन बीता था। शाम छः बजे धरा ने कॉफी बनाकर देवराज चौहान को दी, जबकि बबूसा कॉफी के नाम पर बुरा-सा मुंह बना लेता था कि वो कड़वी लगती है। धरा जब कॉफी देने देवराज चौहान के पास गई तो देवराज चौहान ने उससे अपना फोन ले लिया था।
“आज रानी ताशा का फोन नहीं आया।” जगमोहन देवराज चौहान से बोला।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“नगीना भाभी को अब तक आ जाना चाहिए था।” जगमोहन पुनः बोला –“भाभी को फोन करता...”
“रहने दो। नगीना रुकने वाली नहीं।” देवराज चौहान कॉफी के प्याले के साथ उठता हुआ बोला –“किसी काम में व्यस्त होगी और वो पहुंचेगी जरूर। न आना होता तो फोन कर देती।” देवराज चौहान बेडरूम से बाहर निकल आया।
जगमोहन उसके साथ था
दोनों हॉल ड्राइंगरूम में पहुंचे जहां बबूसा और धरा मौजूद थे।
“तुम किस चिंता में हो?” देवराज चौहान, बबूसा का परेशान चेहरा देखकर कह उठा।
“रानी ताशा के बारे में सोच रहा हूं कि आज उसने फोन क्यों नहीं किया।” बबूसा बोला।
“हो सकता है वो किसी और काम में व्यस्त हो।”
“उसे और कोई काम नहीं है सिवाय राजा देव के।” बबूसा कह उठा –“उसका फोन न करना मुझे इस शंका में डाल रहा है कि वो कोई और हरकत करने की न सोच रही हो।”
“कैसी हरकत?”
“कहीं उसने यहां का पता जान लिया हो और वो यहां आने की तैयारी में लगी हो।”
बबूसा के शब्द सुनते ही देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“मुझे रानी ताशा का कोई डर नहीं है, बेशक वो यहां आ पहुंचे।” देवराज चौहान ने कहा।
“ऐसा मत कहिए राजा देव। वो बहुत चालाक है। महापंडित की शक्तियां उसका साथ दे रही हैं। वो आप पर भारी पड़ेगी। हमने देखा है वो वक्त जब रानी ताशा से आपने फोन पर बात की थी और उसी में खो गए थे।”
“बबूसा सही कहता है।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।
“बबूसा।” धरा बोली –“हम देवराज चौहान को कहीं छिपा देते हैं ताकि...”
“मैं ऐसा नहीं करूंगा।” देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा –“मैं छिपने वाला नहीं।”
“छिपने से कोई फायदा भी नहीं होगा।” बबूसा ने गर्दन हिलाकर कहा –“महापंडित की शक्तियां रानी ताशा को वहां तक पहुंचा देंगी जहां पर भी राजा देव मौजूद होंगे। तुम रानी ताशा की ताकत नहीं समझ रही हो।”
“ये बताओ कि देवराज चौहान रानी ताशा से कैसे निबट सकता है।”
“किसी तरह से भी नहीं।” बबूसा ने धरा को देखा –“राजा देव, रानी ताशा के सामने बेहद कमजोर पड़ जाएंगे। बात सिर्फ रानी ताशा की नहीं है। महापंडित की शक्तियों की है। दगाबाज महापंडित रानी ताशा का साथ देने में लगा है। मैं राजा देव से उसे सजा जरूर दिलवाऊंगा।” बबूसा का चेहरा गुस्से से भर गया –“वो सोचता है कि राजा देव को उस जन्म का कुछ याद नहीं, ऐसे में वो जो कुछ भी कर ले। परंतु वक्त जरूर बदलेगा। राजा देव को सब कुछ याद आएगा, रानी ताशा ने जो धोखा दिया है, उसके बारे में राजा देव को याद आ जाएगा, तब राजा देव किसी को छोड़ेंगे नहीं, तब...”
“मुझे कुछ भी याद नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।
“याद आ जाएगा राजा देव। रानी ताशा को देखने के बाद आपको याद आने लगेगा।”
“तो रानी ताशा को कैसे देखा जाए?” जगमोहन बोला।
“वो आएगी। जल्द ही आएगी। रानी ताशा तो खुद बे-करार होगी आपको देखने के लिए राजा देव।”
“तुम कहते हो कि महापंडित की शक्तियां रानी ताशा को रास्ता दिखा रही हैं तो रानी ताशा फोन पर क्यों पता पूछती है कि देवराज चौहान कहां रहता है। महापंडित उसे क्यों नहीं बता देता कि...”
“महापंडित क्या खेल खेलता है इसका आभास नहीं हो पाता। वो अपनी बनाई मशीनों पर बहुत भरोसा करता है। मशीनें ही उसे आने वाले वक्त के बारे में बताती हैं। उसके बाद ही वो अपने कामों की दिशा तय करता है परंतु उसे इस बात की परेशानी अवश्य हो रही होगी कि रानी ताशा बहुत दूर पृथ्वी ग्रह पर मौजूद है। दोनों ग्रहों की दूरी उसके कामों में अड़चन पैदा कर रही होगी। लेकिन वो इतना बड़ा ज्ञानी है कि इस दूरी पर भी काबू पा लेगा।” बबूसा गम्भीर था –“महापंडित ने मुझे कभी भी पसंद नहीं किया। परंतु राजा देव की वजह से वो सीधे-सीधे मुझ पर उंगली भी तो नहीं उठा पाया। उसे सबसे बड़ी दिक्कत ये होती है कि हर जन्म में मैं उसकी बहन से ही क्यों ब्याह कर लेता हूं।”
“महापंडित की बहन?” धरा बोली ।
“हां, सोमारा नाम है उसका। हर जन्म में वो ही मेरी पत्नी बनती है, परंतु ये बात महापंडित को कभी पसंद नहीं आई। इस बार वो अवश्य इसी ग्रह पर मुझे खत्म कर देना चाहेगा कि मैं हमेशा के लिए उसकी बहन से दूर हो जाऊं। महापंडित की चालों में बहुत बातें भरी होती हैं।” बबूसा को जैसे सोमारा की याद आ गई –“सोमारा अच्छी है। वो मुझे समझती है कि मेरे मन में क्या है। उसकी ये ही बात मुझे अच्छी लगती है। वो कभी भी मुझे दुखी नहीं रहने देती। वो मेरे से झगड़ा करती है परंतु प्यार भी बहुत करती है। लेकिन इस जन्म में सोमारा से मुलाकात नहीं हो पाई क्योंकि वो सदूर पर है और मेरा जन्म होते ही पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया था। पर वो मुझे जरूर याद करती होगी। एक वो ही है, जो मुझे समझ सकती है। वो जानती है कि राजा देव के लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूं।”
“बात अब की है कि अब हम क्या करें?” जगमोहन ने कहा।
“हमें रानी ताशा के आने का इंतजार करना है।” बबूसा बोला –“वो कभी भी यहां, राजा देव के पास पहुंच सकती है। जिस ताकतवर सोमाथ को वो अपने साथ लाएगी मुझे सिर्फ उसकी चिंता है। महापंडित ने कहा है कि उसकी मौत नहीं हो सकती। उसका कोई अंग कटेगा या घायल होगा तो शरीर फौरन भरपाई कर देगा और कटा अंग फिर विकसित हो जाएगा। घाव तुरंत भर जाएगा। मैं इसी सोच में रहता हूं कि सोमाथ की मौत क्यों नहीं होगी। महापंडित ने आखिर उसे किस तरह बनाया है। ये कैसे सम्भव है कि कोई मरे ही नहीं...।”
“तुमने जोबिना हथियार के बारे में बताया था जो सामने वाले को राख कर देता है। सोमाथ उससे तो मर सकता है।”
“जोबिना से कोई नहीं बच सकता परंतु वो मेरे पास नहीं है। जोबिना रानी ताशा के साथ आए लोगों के पास होगा। उसे वो मुझे नहीं लेने देंगे। मैंने ऐसी कोई कोशिश की तो वो जोबिना मुझ पर चला देंगे।”
“तुम तो ताकतवर हो। उन्हें...” धरा ने कहना चाहा।
“जोबिना के सामने कोई ताकत नहीं चलती। जोबिना मुझ पर इस्तेमाल करेंगे तो मैं राख बन जाऊंगा।” बबूसा का चेहरा कठोर होता चला गया –“रानी ताशा से राजा देव को बचाने के लिए मुझे बहुत कुछ करना पड़ेगा।”
“मेरी वजह से तुम परेशान हुए पड़े हो।” देवराज चौहान बोला।
“ये आप क्या कह रहे हैं राजा देव। मेरा तो काम ही आपकी सेवा करना है। कितने जन्मों के बाद मुझे फिर आपकी सेवा करने का मौका मिला है मुझसे ज्यादा खुशनसीब और कौन होगा। आपको उस जन्म की याद आ जाए तो मेरे कंधों पर लदा बोझ हट जाएगा। फिर तो सब कुछ आपने पलक झपकते ही संभाल लेना है। उसी दिन का तो इंतजार है मुझे।”
इन्हीं बातों में वक्त बीतता चला गया।
पता ही नहीं चला कब रात के नौ बज गए।
जब नगीना वहां पहुंची तो वक्त का एहसास हुआ उन्हें।
“भाभी।” नगीना को देखते ही जगमोहन कह उठा।
नगीना प्रवेश द्वार पर ठिठकी-सी सबको देख रही थी, फिर वो पास आ पहुंची। रह-रहकर उसकी निगाह बबूसा पर जा रही थी। बबूसा की निगाह भी नगीना पर ही थी
धरा ने जगमोहन से पूछा।
“ये कौन है?”
“भाभी।”
“भाई साहब कहां हैं?” धरा कुछ समझी नहीं तो पूछ बैठी।
जगमोहन ने देवराज चौहान की तरफ इशारा कर दिया।
धरा समझी तो गहरी सांस लेकर रह गई।
“तुम बबूसा हो?” नगीना ने आंखें सिकोड़कर बबूसा से पूछा।
“हां।” बबूसा बोला –“लेकिन तुम कौन हो?”
“नगीना। देवराज चौहान की पत्नी।”
“ओह, तो इस जन्म में तुम राजा देव की पत्नी...”
“बकवास बंद करो।” नगीना ने तीखे स्वर में कहा –“यहां कोई राजा देव नहीं है। तुम फ्रॉड हो। देवराज चौहान का दिमाग खराब करने पर लगे हो। तुम्हारा सम्बंध ताशा से है, उसी ने तुम्हें भेजा है।”
“ये तुम क्या कह रही हो।” बबूसा उलझन भरे स्वर में कह उठा।
“नगीना।” देवराज चौहान ने कहा –“ये सही है, इसे गलत मत समझो।”
“तो आप इसकी बातों को सच मानते हैं।”
“भाभी, ये सही कहता है। पहले हम भी इस पर ऐसा ही शक करते...” जगमोहन ने कहना चाहा।
“मुझे इसकी बातों पर जरा भी भरोसा नहीं है।” नगीना कह उठी –“ये धोखेबाज है और...”
“मैं धोखेबाज नहीं हूं।”
“बबूसा सच्चा इंसान है।” धरा कह उठी।
“कोई दूसरे ग्रह से नहीं आया। बबूसा और ताशा मिलकर कोई चाल खेल रहे हैं कि देवराज चौहान का पैसा हड़प सकें।” नगीना ने बबूसा को तेज नजरों से घूरते हुए कहा –“मैंने इस सारे मामले की छानबीन के लिए प्राइवेट जासूस को हायर किया है। वो कल आएगा। वो ही अब इस सारे मामले को देखेगा।”
“प्राइवेट जासूस?” जगमोहन के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“तुम किस प्राइवेट जासूस की बात कर रही हो?” देवराज चौहान कह उठा।
“अर्जुन भारद्वाज।” नगीना बोली –“दिल्ली में सुपर डिटेक्टिव के नाम से, करोलबाग में एजेंसी है। मैंने उसे मुम्बई बुला लिया है। सब कुछ जानने के बाद वो ये मानने को तैयार नहीं कि ये कोई दूसरे ग्रह का मामला है।”
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
“तुमने उसे सब बता दिया?” देवराज चौहान ने पूछा।
“सब कुछ। मैं उससे काम ले रही हूं। सब कुछ बताऊंगी नहीं तो वो ठीक से काम कैसे करेगा?”
“तुमने जल्दबाजी की। एक बार मेरे से तो बात कर लेती।” देवराज चौहान ने कहा।
“जगमोहन ने मुझे सब बता दिया था। उसके बाद पूछने की जरूरत नहीं थी। जगमोहन की बातों से मुझे स्पष्ट हो गया था कि तुम सब लोग बबूसा की बातों का यकीन किए बैठे हो और मेरे गले से बातें नीचे नहीं उतर रहीं। ये सब झूठा खेल चल रहा है।”
“तुमने उस जासूस को यहां का पता बता दिया है।” देवराज चौहान बोला।
“आप फिक्र मत कीजिए। उससे ये बात बाहर नहीं जाएगी कि आप कहां रहते हैं। ये मेरी जिम्मेवारी है।”
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए।
“भाभी ने ऐसा करके गलत कदम तो नहीं उठा लिया?” जगमोहन कह उठा।
“नगीना ने जो किया है सोच-समझकर ही किया होगा।” देवराज चौहान बोला –“परंतु नगीना अभी हालातों को समझ नहीं पा रही है। वो इन बातों की गम्भीरता नहीं समझ पा रही। बबूसा की बातें सही हैं। हमें भी ये बात महसूस होते-होते ही हुई।”
बबूसा ने गम्भीर स्वर में नगीना से कहा।
“तुम मुझे झूठा नहीं कह सकतीं। तुमने मेरी बातों को सुना ही कहां है जो ऐसा कह रही...।”
“जगमोहन मुझे सब बता चुका है।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा।
“भाभी।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला –“मैंने तो तुम्हें कल के फोन के बारे में भी बताया था कि ताशा का फोन आने पर, उसकी आवाज सुनने पर देवराज चौहान की क्या हालत हो गई थी।”
“मैं इन बातों को नहीं मानती।” नगीना ने कहा –“बबूसा फ्रॉड है। ये ऐसी बातें करके कोई धोखेबाजी कर रहा है। ये देवराज चौहान के तीन जन्मों से भी पहले के जन्म की बात कर रहा...”
“भाभी। इसे कैसे पता चला उन तीन जन्मों के बारे में। उसे तो हम लोग ही जानते हैं।”
“ये बात तुमने इससे पूछी नहीं?”
“पूछी। ये कहता है कि महापंडित ने सब कुछ बताया...।”
“और वो महापंडित सदूर ग्रह यानी कि दूसरे किसी ग्रह पर बैठा है। मैं इसकी बातों में फंसने वाली नहीं।” नगीना ने बबूसा से कहा –“अच्छा ये ही होगा कि तुम यहां से चले जाओ और दोबारा इधर आना भी नहीं।”
“तुम कौन होती हो मुझे हुक्म देने वाली। मैं राजा देव का सेवक हूं। उनके अलावा मैं किसी की बात नहीं मानूंगा।”
“आप इसे यहां से जाने को कहते क्यों नहीं?” नगीना ने देवराज चौहान से कहा।
“मुझे इसकी बातों पर भरोसा है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मर्जी आपकी। मैं प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज से इस सिलसिले में काम ले रही हूं। मुझे अपना काम करने दीजिए।”
देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देखा।
जगमोहन ने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारकर बोला।
“डिनर का वक्त हो चुका है। मैं खाना पैक कराकर लाता हूं।” कहने के साथ ही जगमोहन बाहर चला गया।
“राजा देव।” बबूसा बोला –“आप अपनी पत्नी को बताइए कि मैं झूठ नहीं बोलता-मैं...”
“नगीना तुम्हें किसी काम से नहीं रोक रही। ये जो करना चाहती है इसे कर लेने दो।”
नगीना की संदेह भरी निगाह बबूसा पर थी फिर धरा से बोली।
“इस षड्यंत्र में तुम भी इनके साथ हो?”
“षड्यंत्र?” धरा के होंठों से निकला।
“ये दूसरे ग्रह की बातें, पोपा की बातें, रानी ताशा की बातें और महापंडित की बातें...”
“ये सब सच है।” धरा कह उठी।
“मतलब कि तुम भी इसके साथ शामिल हो।”
“मैं शामिल? कैसी बातें कर रही हैं आप। इस मामले में पड़कर मैंने अपनी मां को खो दिया। चक्रवर्ती साहब और प्रकाश को खो दिया। मेरी सरकारी नौकरी का अब कोई अता-पता नहीं। घर से बे-घर हो गई हूं मैं और तुम कहती हो कि ये षड्यंत्र हो रहा है। बहुत गलत सोच रही हो तुम।”
“तुमने सदूर ग्रह देखा है?” नगीना ने तीखे स्वर में पूछा।
“नहीं।” धरा बोली।
“पोपा देखा है?”
“नहीं।”
“रानी ताशा को देखा है?”
“नहीं।”
“महापंडित को देखा है?”
“नहीं।”
“कुछ भी नहीं देखा और कहती हो कि ये सब बातें सही हैं। तुम अपना मजाक बना रही हो।”
“मैंने बबूसा को देखा है। इसे समझा है। ये जाना है कि ये कभी झूठ नहीं बोलता।”
“मतलब कि इसने कहा और तुमने मान लिया?”
“देवराज चौहान ने भी तो मानी है ये बात। जगमोहन ने भी मानी है सब कुछ सामने तो है।”
“ये सब झूठी बातें हैं।” नगीना ने दृढ़ स्वर में कहा।
“अब मैं तुम्हारे घर पर बैठकर तुमसे ज्यादा बहस भी नहीं कर सकती। तुम मुझे घर से निकाल सकती हो और मेरे पास रहने का कोई ठिकाना भी नहीं है। यहां तक कि डोबू जाति के योद्धा मेरी जान के पीछे हैं। परंतु तुम मेरी बात को सच मानो कि बबूसा सच्चा इंसान है। ये कोई भी बात झूठ नहीं बोलता।”
नगीना ने देवराज चौहान से कहा।
“आप भी इनकी बातों में आ गए।”
“बबूसा सही है नगीना। मुझे इस पर विश्वास करने में काफी वक्त लगा। तुम...”
“आप ताशा को पहले से जानते थे?”
“मैंने तो नाम ही पहली बार सुना है।”
“ये गहरा षड्यंत्र है आपके खिलाफ। अब अर्जुन भारद्वाज ही इस मामले को संभालेगा।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि तभी उसका फोन बजने लगा।
“फोन।” धरा तेज स्वर में बोली –“बबूसा, देवराज चौहान का फोन बजा है।”
देवराज चौहान ने फोन उठा लिया।
बबूसा, देवराज चौहान की तरफ बढ़ा।
“वहीं रुक जाओ।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
बबूसा के कदम वहीं जम गए।
“अगर ये फोन रानी ताशा का है तो चिंता मत करो। जो पहले हुआ था, वो अब नहीं होगा।” देवराज चौहान ने कहा।
बबूसा वहीं खड़ा रहा। चेहरे पर व्याकुलता आ गई थी।
नगीना के माथे पर बल आ ठहरे।
“तुम फोन पर आया नम्बर देखो।” धरा बोली –“शायद किसी पहचान वाले का नम्बर हो।”
“कोई नया नम्बर है।” देवराज चौहान ने कहकर फोन कान से लगाया
और कॉलिंग स्विच दबाकर बोला –“हैलो।”
“राजा देव।” रानी ताशा की सरसराती-सी आवाज कानों में पड़ी।
“ता-शा...।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
बबूसा ने तुरंत आगे बढ़ना चाहा।
परंतु देवराज चौहान द्वारा सख्त नजरों से देखने पर, बबूसा वहीं खड़ा
रह गया।
“मेरे राजा, मेरे देव।” रानी ताशा की लरजती आवाज पुनः कानों में
पड़ी –“आप कहां हैं। मैं आपके बिना तड़प रही हूं।”
“कौन हो तुम?”
“मैं-मैं ताशा हूं मेरे प्यारे देव, तुम्हारी ताशा। याद करो वो दिन जब
तुम्हें हर तरफ मैं ही नजर आया करती थी। तुम ताशा-ताशा कहते दौड़ते
फिरते थे। कितने हसीन दिन थे वे देव। तुम मुझे सज-संवरकर रहने को
कहा करते थे। मेरी एक मुस्कान पर तुम फिदा हो जाते थे। कितना प्यार
करते थे तुम मुझे देव । तुम हमेशा मेरे पांवों में पायल डाला करते थे। तुम्हें
पायल डालना बहुत पसंद था। याद आया देव।” रानी ताशा की आने वाली आवाज में खुशी भर आई थी –“मुझे वो दिन कभी भी नहीं भूलते, जब किले के पीछे जोकता (आमों) के बाग से तुम कच्चे जोकता (आम) तोड़कर दूर से फेंककर मुझ पर मारा करते थे। एक बार तो तुम्हारा फेंका जोकता (आम) मेरी आंख पर लग गया था। आंख सूज गई। तुम रोने लगे कि तुमने मुझे मार दिया। जब तक आंख ठीक नहीं हुई, उतने दिन तुम मेरे पास ही बैठे रहे। तुम मुझे कितना प्यार करते थे। अपनी ताशा को कैसे भूल सकते हो। मैं वो ही ताशा हूं जिस पर तुम जान दिया करते थे, याद करो देव, मैं वो ही ताशा हूं जिसके बिना तुम कभी चैन की नींद नहीं ले पाते थे। मुझे पिता के पास भी नहीं जाने देते थे। देव, मेरे प्यारे देव, मैंने तुमसे मिलने की चाह में तीन जन्म काट लिए। महापंडित ने पहले ही बता दिया था कि मैं इस जन्म में तुमसे मिल पाऊंगी। इसी आस के सहारे मैं जन्म काटती रही। तुम तो मुझसे ऐसे दूर हुए कि तरस गई हूं तुम्हें देखने को। मेरे देव, अपनी ताशा को पहचानो मेरी आवाज को पहचानो मैं वो ही...”
“ता-शा।” देवराज चौहान के होंठों से निकला –“मैं तुम्हें पहचान गया हूं-नहीं-ओह मुझे याद क्यों नहीं आता कि तुम कौन हो। तुम्हारी आवाज, तुम्हारी आवाज मुझे याद आ रही है, मैंने पहले कहीं सुन रखी है, तुम...”
“मैं ताशा हूं देव।” उधर से ताशा का स्वर भर्रा उठा –“तुम मुझे पहचानते क्यों नहीं?”
“प-पहचान रहा हूं तुम-तुम ताशा हो। ता-शा, ये मैंने कहां ये सुना है नाम।” देवराज चौहान अब बातों में खोने लगा था। उसके चेहरे के भाव भी नरम पड़ने लगे थे –“तुम-तुम ताशा हो?”
“तुम्हारी ताशा, देव।”
“ताशा...”
“तुम्हें सदूर ग्रह भी याद नहीं आ रहा, जहां के तुम राजा हो। महापंडित ने मुझे बताया कि पृथ्वी ग्रह पर तुम साधारण-से चोर हो। ये तुम कैसी जिंदगी जी रहे हो देव। मैं तुम्हें वापस ले जाने आई हूं। क्या तुम मेरे साथ सदूर ग्रह पर चलोगे देव। वो तो तुम्हारा पसंदीदा ग्रह है। वहां मैं हूं। राज-पाट है। ऐशो-आराम है। तुमने ग्रहों पर घूमने के लिए पोपा (अंतरिक्ष यान) बनाया था। मैं उसी पर बैठकर पृथ्वी तक पहुंची हूं। हम पोपा में अंतरिक्ष की सैर किया करेंगे देव। तुम्हें एक खबर बताऊं कि जम्बरा ने एक और पोपा बना लिया है तुम्हारे पोपा को देखकर। वो भी चाहता है कि तुम्हारी सेवा करे...”
“जम्बरा...” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
तभी बबूसा तेजी से आगे बढ़ा।
परंतु नगीना ने फौरन हाथ उठाकर उसे रोक दिया।
बबूसा ने सख्त निगाहों से नगीना को देखा तो नगीना उसके पास पहुंचकर बोली।
“मुझे देखने दो कि क्या होता है।”
“राजा देव, रानी ताशा के बस में जाते जा रहे हैं।” बबूसा ने बेचैनी से कहा।
“वो ही तो मुझे देखना है।” नगीना ने तीखे स्वर में बबूसा से कहा।
“मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं, मैं तो राजा देव का सेवक...”
“खबरदार जो आगे बढ़े।” नगीना गुस्से से कह उठी –“ये राजा देव
नहीं, मेरा पति देवराज चौहान है। ये मेरा घर है। मैं तुम्हें इजाजत नहीं देती कि तुम इस मामले में दखल दो।”
तभी धरा उठकर बबूसा के पास आ गई।
बबूसा ने धरा को देखा तो धरा ने उसे खामोश रहने का इशारा किया।
बबूसा, धरा को एक तरफ ले जाकर बोला।
“राजा देव, रानी ताशा की आवाज के प्रभाव में आते जा रहे हैं। वो
जम्बरा की बातें करने लगी है।”
“जम्बरा कौन?”
“पोपा का निर्माण करने में सदर ग्रह पर राजा देव का सहयोगी था
जम्बरा सदूर का महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है वो।”
“तुम अभी खामोश रहो। देवराज चौहान की पत्नी को भी देख लेने दो कि क्या होता है।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।
बबूसा बेचैनी से देवराज चौहान को देखने लगा।
“वो ही जम्बरा।” रानी ताशा की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ रही थी –“जिसे तुम बताते रहते थे कि पोपा कैसे बनाना है किन-किन चीजों का निर्माण करना है। तुम्हारे कहने पर वो काम किया करता था। तुम्हें याद है राजा देव एक बार मैं घोड़े से गिर गई थी तो तुम मुझे बांहों में उठाकर किले पर ले आए थे। तुमने ही मेरे घावों पर दवा लगाई थी। तब तुम्हारी आंखों में आंसू थे कि तुम्हारी ताशा को तकलीफ हो गई, जबकि मैं तुम्हारा हाल देखकर हंस रही थी। मेरे देव, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती। महापंडित ने अपनी बातों से मुझे सहारा दे रखा, वरना मैं तो महापंडित से कह भी देती कि मेरा जन्म अब दोबारा न कराए। परंतु महापंडित मुझे कहता रहा कि उसकी मशीनें बता रही हैं, मेरी मुलाकात होगी आपसे। आप जिंदा हैं। मैंने जो गलती की, उसके लिए तीन जन्मों तक तड़पी हूं और इस चौथे जन्म में भी तड़प रही हूं पर अब आपके करीब आ पहुंची हूं। देव तुम्हारी ताशा आ गई है। तुम्हें तो खुश हो जाना चाहिए मेरी तरह। मेरे साथ वापस सदूर ग्रह पर चलोगे न देव?”
“ह-हां, जरूर चलूंगा ताशा। मैं तुम्हारे साथ कहीं भी चलूंगा।” देवराज चौहान का स्वर अब बदलने लगा था।
नगीना के होंठ भिंच गए।
“मेरे देव।
“ताशा। मेरी ताशा-मैं-मैं...” देवराज चौहान आगे कुछ न कह सका।
“कहो देव।”
“तुम्हारी आवाज। तुम्हारी आवाज मैंने सुन रखी है, मुझे तुम याद आ रही हो, आह क्या नाम बताया था तुमने अपना...”
“ताशा।”
“ताशा। तुम-तुम ओह मुझे याद क्यों नहीं आ रहा।” देवराज चौहान दीवानों की तरह कह उठा –“तुम मेरी हो। सिर्फ मेरी हो ताशा। मैं-मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं। तुम्हारे करीब, तुम्हें बांहों में लेना चाहता हूं।”
“ताशा की याद आ गई देव। क्या तुम्हें याद आ गया कि मैं वो ही ताशा...”
“तुम मेरी हो। मेरी हो ताशा।” देवराज चौहान कम्पन भरे स्वर में कह उठा –“हां, हम जुदा हो गए थे। तुम कहां हो ताशा, मेरे पास क्यों नहीं आ जाती। तुम्हारे बिना अब मेरा दिल भी नहीं लग रहा। आ जाओ ताशा, मेरे पास आ जाओ।”
“मेरे प्यारे देव।” उधर से ताशा का स्वर भर्रा उठा –“ये सुनने के लिए तो मैं कब से तड़प रही थी। तुम्हारे बिना एक-एक पल मुझ पर भारी पड़ता है। वक्त कटता ही नहीं। कितना तड़पी हूं मैं...”
“मेरी बांहों में आ जाओ ताशा।”
“जब तक बबूसा तुम्हारे पास है नहीं आ सकती। वो हमें मिलने नहीं देगा।”
“बबूसा।” एकाएक देवराज चौहान गुर्रा उठा और निगाह बबूसा की तरफ उठी –“मैं बबूसा को मार दूंगा।”
“सच देव।”
“तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं। देखो, मैं अभी बबूसा को खत्म कर देता है।”
बबूसा ने गम्भीर निगाहों से नगीना को देखा।
नगीना उलझन से भरी खड़ी थी।
“देव। मेरे प्यारे देव। तुम मेरे पास आ जाओ। अपनी ताशा को बांहों में ले लो। मुझे जी भर कर प्यार करो। जैसे पहले किया करते थे। तुम्हारे प्यार में मैं सब कुछ भूल जाती थी। आह, अब हमारे वो सुनहरी दिन लौट आएंगे।”
“तुम-तुम कहां हो ताशा, मैं-मैं आता हूं।” देवराज चौहान का स्वर आवेश में थरथरा रहा था।
“मैं सी-व्यू पर्ल होटल में ठहरी हूं और तुम्हारा इंतजार कर रही...” तभी नगीना देवराज चौहान के पास आ पहुंची।
देवराज चौहान ने अजनबी जैसी निगाहों से नगीना को देखा।
“आप फोन बंद कर दो।” नगीना कह उठी।
“ये किसकी आवाज है?” उधर से रानी ताशा ने एकाएक पूछा।
“ये मेरी पत्नी है नगीना।” देवराज चौहान ने फोन पर कहा –“पर मैं तुम्हारा हूं ताशा, तुम मेरी हो, मैं तुम्हारे पास सी-व्यू पर्ल होटल में आ रहा हूं। मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता-मैं-मैं ता-शा-आ रहा हूं।”
“जल्दी-से आ जाओ मेरे प्यारे देव। पर बबूसा तुम्हें नहीं आने देगा। वो तुम्हें रोकेगा।”
“मैं बबूसा को मार दूंगा।” देवराज चौहान ने दांत पीसकर कहा –“मैं अभी उसे...”
तभी नगीना ने झपट्टा मारा और फोन छीन लिया देवराज चौहान से।
“तुम-तुमने मेरा फोन छीन लिया।” देवराज चौहान एक झटके से उठा और नगीना पर झपट पड़ा।
नगीना को शायद ऐसी आशा नहीं थी।
देवराज चौहान ने क्रोध से दांत पीसते नगीना का गला दोनों हाथों में दबा लिया।
“मैं ताशा से बात कर रहा था। वो मेरा इंतजार कर रही है और तुमने मेरा फोन ले लिया। मैं तुम्हें मार दूंगा-मैं...”
नगीना का गला दबने से, उसका चेहरा लाल होने लगा।
पलक झपकते ही बबूसा पास पहुंचा और घूसे के रूप में मध्यम वेग से देवराज चौहान की कनपटी पर हाथ दे मारा। देवराज चौहान के हाथ नगीना के गले से हट गए। वो लहराकर नीचे गिरने को हुआ कि बबूसा ने फौरन उसे संभाला और उठाकर पास ही के लम्बे सोफे पर लिटा दिया।
बेहोश हो चुका था देवराज चौहान।
नगीना सन्न-सी खड़ी थी। हाथ से अपने गले को रगड़ रही थी। नजरें देवराज चौहान पर थीं।
“तुम ठीक हो?” पास पहुंचकर धरा कह उठी।
नगीना ने गहरी सांस ली। पास के सोफे पर जा बैठी।
“ये-ये देवराज चौहान को क्या हो गया था।” नगीना के होंठों से निकला –“मुझे विश्वास नहीं आता कि इसने मेरा गला दबा देना चाहा। नहीं, ये तो कभी भी नहीं हो सकता। देवराज चौहान मेरे साथ ऐसा नहीं करेगा। पर ये हुआ...”
“अब तो तुम्हें भरोसा हो गया कि बबूसा सही है।” धरा बोली।
“नहीं। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। ये अच्छे-भले तो थे फिर इन्हें क्या हो...”
“रानी ताशा की आवाज देवराज चौहान पर जादू कर देती है और ये अपने होश गंवा बैठता है। पहले भी ऐसा ही हुआ, परंतु इस बार ज्यादा हुआ। तुम्हारा गला पकड़ लिया इसने।” धरा गम्भीर थी –“परंतु तब ये अपने होश में नहीं था। इसे नहीं पता था कि ये क्या कर रहा है। क्या कह रहा है।”
नगीना का हाथ अपने गले पर गया फिर उठकर देवराज चौहान के पास पहुंची। उसे चेक किया।
“बेहोश हैं ये।” बबूसा बोला –“मुझे बहुत अफसोस है कि मैंने राजा देव पर हाथ उठाया, परंतु...”
“चुप हो जाओ।” नगीना एकाएक सख्त स्वर में कह उठी –“इसे राजा देव न कहो। देवराज चौहान है ये। मैं तुम्हारी चाल कामयाब नहीं होने दूंगी। तुम किस चक्कर में हो, मैं पता करके रहूंगी।”
“मैं किसी चक्कर में नहीं हूं। ये सब सच है। सच ही सामने आ रहा है।”
“मैं नहीं मान सकती।” नगीना ने दृढ़ स्वर में कहा।
“तुमने अभी देवराज चौहान की हालत देखी।” धरा बोली –“अपनी आंखों से देखी?”
“वो सब चालबाजी है। ताशा जो भी है सम्मोहन क्रिया बहुत अच्छी तरह जानती है। वो बातें करके देवराज चौहान के दिमाग पर अपना काबू पा लेती है। होश छीन लेती है। तभी तो...”
“ये सम्मोहन क्रिया नहीं है।” बबूसा ने कहा –“ये महापंडित की शक्तियां हैं जो...”
“बकवास मत करो। महापंडित कोई है ही नहीं।” नगीना ने कठोर निगाहों से बबूसा को देखा –“ये सब तुम्हारी और ताशा की चाल है कोई। इस तरह तुम लोग देवराज चौहान पर काबू करके इसकी दौलत हासिल कर लेना चाहते हो। परंतु मेरे होते तुम्हारी कोई चाल कामयाब नहीं होगी। तुम ताशा से मिले हुए हो।”
“मुझ पर शक करके आप गलती कर रही हैं।” बबूसा शांत स्वर में बोला।
“तुम पहले ही देवराज चौहान तक आ पहुंचे और रानी ताशा के बारे में प्लान के मुताबिक देवराज चौहान को बताने लगे। उसके दिमाग में ये बात बैठाई कि रानी ताशा कोई है। फिर रानी ताशा के फोन आने लगे कि वो दूसरे ग्रह से आई है और तीन जन्म पहले वो उसकी पत्नी थी। उसने वो ही बातें कही, जो तुम पहले ही देवराज चौहान के दिमाग में ठूँस चुके थे। इस तरह तुम लोगों ने देवराज चौहान का दिमाग खराब करना शुरू किया फिर...”
बबूसा, धरा को देखकर कह उठा।
“मुझे नहीं पता था कि पृथ्वी ग्रह की औरतें इतनी शक्की हैं।”
“फालतू बातें कहना छोड़ दो।” नगीना ने दांत पीसकर कहा –“तुम्हारे इस तरह से बातें करने से मैं मानने वाली नहीं कि तुम दूसरे ग्रह से आए हो और वो ताशा भी। कल अर्जुन भारद्वाज इस मामले पर काम करेगा और असलियत को सामने ला देगा। मुझे हैरानी है कि तुम लोगों ने देवराज चौहान को बेवकूफ बना दिया।"
“मैं राजा देव का सबसे खास सेवक...।”
“चुप हो जाओ। निकल जाओ यहां से। चले जाओ।” नगीना बहुत ज्यादा गुस्से में आ गई।
“मैं राजा देव को छोड़कर नहीं जाऊंगा।” बबूसा ने कहा।
“तुम मेरे घर से निकल जाओ।"
“नहीं निकल सकता। मैं यहां से गया तो रानी ताशा अपनी कोशिश में कामयाब हो जाएगी। राजा देव को कुछ याद आने से पहले ही, पोपा में बैठाकर उन्हें सदूर ग्रह पर ले जाएगी और वहां महापंडित राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा ही हटा देगा, जहां रानी ताशा के धोखेबाज होने की यादें दर्ज हैं। फिर राजा देव को कभी भी याद नहीं आ सकेगा कि रानी ताशा कितनी बड़ी धोखेबाज है और रानी ताशा को सजा कभी नहीं मिल सकेगी।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“मेरा राजा देव के पास रहना बहुत जरूरी है। मैं रानी ताशा को कभी भी सफल नहीं होने दूंगा।”
“तुम-तुम पागल हो।” नगीना के चेहरे पर झल्लाहट आ गई।
“बबूसा सच कहता है। ये झूठ नहीं बोलता।” धरा कह उठी।
“तुम अपनी जुबान बंद रखो।”
“तुम्हें जगमोहन ने बताया नहीं कि डोबू जाति के योद्धा किस तरह मेरी जान के पीछे थे।” धरा बोली।
“बताया।”
“तो तुम्हें जगमोहन की बात पर यकीन आ जाना चाहिए कि वो सही कहता हैं।”
“डोबू जाति की बात से मैं इंकार नहीं करती। तुम तो वहां होकर आ चुकी हो।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का राजा पॉकेट बुक्स से पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’)
“जगमोहन ने मुझे तुम्हारे बारे में खुलासा हाल बताया था। तब जगमोहन के साथ तुम कार में थी, जब चौकोर पत्ती जैसे हथियार को फेंककर तुम्हारी और जगमोहन की गर्दन काट देनी चाही उन्होंने। ये तो जगमोहन की आंखों देखी बात है, इस पर अविश्वास का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।”
“फिर तुम क्या कहना चाहती हो?”
नगीना ने बबूसा को देखकर कहा।
“मैं बबूसा की बात कर रही हूं।” स्वर में सख्ती आ गई।
“क्या?”
“ये डोबू जाति का है न?”
“नहीं। इसका जन्म सदूर ग्रह पर हुआ था और अंतरिक्ष यान (पोपा) इसे...”
“तुम सदूर ग्रह पर गई हो। वहां तुमने बबूसा को जन्म लेते देखा था फिर तुमने ये भी देखा होगा कि बबूसा को अंतरिक्ष यान में बैठाकर, पृथ्वी ग्रह पर, डोबू जाति में छोड़ दिया गया।”
धरा, नगीना को देखने लगी।
“जवाब दो। तुमने ये सब देखा था?”
“नहीं।”
“तो फिर ये मत कहो कि बबूसा सदूर ग्रह पर पैदा हुआ। सच बात तो ये है कि सदूर ग्रह है ही नहीं।”
धरा ने बबूसा को देखा।
बबूसा आराम से बैठा था।
“सच बात तो ये है कि बबूसा डोबू जाति में ही पैदा हुआ। ये बात भी इस कारण मान रही हूं कि तुम किसी तरह डोबू जाति के ठिकाने तक जा पहुंची थीं और वहां से जिंदा बचकर लौट आई किसी तरह और बबूसा की खबरें भी लाई।” (विस्तार से जानने के लिए पढ़ें ‘बबूसा’।)
“इस वजह से ये बात जम जाती है कि बबूसा डोबू जाति से है।”
“तुम्हारा कहना गलत नहीं है। मैं डोबू जाति से हूं।” बबूसा बोला –“वहां मैं पला-बड़ा हुआ, मेरी यादें वहां की हैं। मेरे इस जीवन का पूरा हिस्सा डोबू जाति से जुड़ा हुआ है। आज सदूर ग्रह से ज्यादा मुझे डोबू जाति से प्यार है। परंतु ये बात भी पूरी तरह सच है कि मेरा जन्म सदूर ग्रह पर हुआ था और पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया था।”
“दूसरे ग्रह वाली झूठी बात को मैं कभी नहीं मानूंगी।” नगीना ने दृढ़ स्वर में कहा –“तुम्हारी चाल को मैं बेनकाब कर दूंगी। तुम, ताशा नाम की लड़की के साथ मिलकर खेल रच रहे हो, परंतु मैं तुम लोगों को कामयाब नहीं होने दूंगी।” नगीना ने धरा को देखा –“मुझे पूरा विश्वास है कि तुम भी इसके साथ शामिल हो।”
“मैं तो पहले ही मुसीबत की मारी हूं।” धरा ने गहरी सांस ली –“परंतु
तुम बबूसा की तरफ उंगली उठाकर बहुत गलत कर रही हो। मैंने और बबूसा ने देवराज चौहान को ढूंढने में बहुत मेहनत की है। कहां-कहां धक्के नहीं खाए। ये बात तो तुम सोहनलाल से पूछ सकती हो, जो बबूसा के डर से भागकर देवराज चौहान के पास आ गया था। वो पुलिस वाला, क्या नाम है, हां इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े, उससे पूछो कि देवराज चौहान की खबर पाने के लिए हम उससे मिले। उसी ने हमें सोहनलाल के बारे में बताया था, तो हम सोहनलाल के पास...।”
“तुम क्या सोचती हो कि मैं तुम्हारी ये बातें मान लूंगी कि तुम सच कह...”
“मत मानो।” धरा ने मुंह बनाकर कहा –“परंतु मैं तुम्हें स्पष्ट कह देना चाहती हूं कि मैं गलत नहीं हूं, बबूसा को मैंने बहुत हद तक जाना है, बबूसा जो कहता है पूरी तरह सच कहता है, रही बात रानी ताशा की तो मैंने रानी ताशा को कभी देखा नहीं है सिर्फ बबूसा के मुंह से ही उसके बारे में सुना है, परंतु रानी ताशा है और यकीनन है। ये दूसरे ग्रह का मामला है। डोबू जाति वाले, सदूर ग्रह से, रानी ताशा से और अन्य लोगों से बात करते हैं। मैंने डोबू जाति में जाकर उनका वो बिजली वाला कमरा देखा है, जो सदूर ग्रह से आए लोगों ने तैयार करके, उन्हें दिया था। वहां तरह-तरह के ढेरों यंत्र लगे हैं, जो कि मेरी समझ से बाहर हैं, उन्हीं यंत्रों से वो सदूर ग्रह पर बात करते हैं। डोबू जाति वाले इसी कारण मुझे मार देना चाहते हैं कि मैंने उनका वो बिजली वाला कमरा देख लिया है और इस बारे में मैं कहीं लोगों को न बता दूं। डोबू जाति के अनपढ़, गंवार लोग कभी भी बिजली के यंत्र और तारों की सेटिंग नहीं कर सकते। सदूर ग्रह से पोपा में बैठकर लोग डोबू जाति में आते रहे हैं और अपने यंत्र उन्होंने वहां फिट किए हैं।”
“खूब। तो तुम कहती हो कि मैं देवराज चौहान के बारे में मान लूं कि वो दूसरे ग्रह पर कभी राजा देव थे और तब उनकी पत्नी रानी ताशा थी।” नगीना ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा।
“मत मानो। आने वाला वक्त तुम्हें इस बात का एहसास जरूर कराएगा।” धरा ने दृढ़ स्वर में कहा।
“रानी ताशा अंतरिक्ष यान में बैठकर आई। अंतरिक्ष यान अक्सर धरती पर आता रहा और किसी को पता भी न चला।”
“तुमने डोबू जाति नहीं देखी कि वो कहां रहते हैं।” धरा बोली –“हिमाचल के लाहौल स्पीति के उस आखिरी छोर पर बर्फीले खोखले पहाड़ों के भीतर डोबू जाति बसी है, जहां अक्सर इंसान पहुंच ही नहीं सकता। मीलों-मीलों तक बर्फ का रेगिस्तान है। कोई इंसान नहीं बसता उधर, जहां ये रहते हैं। उनके सबसे करीबी बस्ती टाकलिंग ला है जहां से घोड़ों का और पैदल का सफर करके मैं जोगाराम के साथ उधर पहुंची थी। चार दिन लगे थे मुझे और मैं दुनिया से कट गई थी उस वक्त। टाकलिंग ला जाकर डोबू जाति के बारे में पता करो, सच बात तो ये है कि टाकलिंग ला में कोई डोबू जाति के बारे में बात करना ही नहीं चाहता। फिर भी कोशिश करते रहने पर तुम्हें किसी-न-किसी से पता चलेगा कि जिधर डोबू जाति रहती है, उधर से आकाश से, कभी-कभी तेज नीली और सफेद रोशनी चमकती है। मेरे ख्याल में ऐसा तभी होता होगा जब दूसरे ग्रह का पोपा आता होगा।”
“तुम सही कह रही हो।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला –“जब पोपा जमीन पर उतरने वाला होता है तो नीली रोशनी छोड़ने लगता है। मैंने तीन बार पोपा को आकर, वहां उतरते देखा है।”
धरा ने आगे कहा।
“ये बातें झूठी नहीं हैं। रानी ताशा का वजूद सच में है, दूसरा ग्रह भी है और...।”
“तुम इतने तर्क क्यों दे रही हो कि मैं तुम्हारी बात मान लूं।” नगीना कह उठी –“शायद इसलिए कि तुम इनके साथ मिलकर काम कर रही हो और...”
“ऐसा मत कहो।” धरा कह उठी –“वरना गुस्से में मैं भी कुछ कह दूंगी।”
“कल का इंतजार करो।”
“कल क्या होगा?”
“अर्जुन भारद्वाज तुम लोगों की चालों को समझेगा। वो...”
“प्राइवेट जासूस तो चोर होते हैं।”
“अच्छा।” नगीना ने उसे घूरा –“प्राइवेट जासूसों ने कितनी बार तुम्हारी चोरी कर ली?”
“एक बार भी नहीं। मैं ऐसे लोगों को मुंह नहीं लगाती।” धरा ने तीखे स्वर में कहा।
नगीना कुछ कहने लगी कि बाहर कार रुकने की आवाज आई।
“जगमोहन खाना ले आया होगा।” धरा ने कहा।
बबूसा ने बेचैनी से पहलू बदला।
कुछ पलों बाद जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया और वहां का नजारा देखते ही थम गया। हाथ में चार बड़े-बड़े लिफाफे उठा रखे थे। परंतु उसकी निगाह सोफे पर लेटे-पड़े देवराज चौहान पर थी। वो पास पहुंचा। धरा-नगीना और बबूसा की निगाह उस पर ही थी। जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा।
“रानी ताशा का फोन फिर आया था?” उसकी नजरें तीनों पर गईं।
“हां।” धरा ने जवाब दिया –“इस बार तो देवराज चौहान ने अपनी पत्नी का गला दबा दिया था।”
जगमोहन के चेहरे पर सख्ती नाच उठी। उसने बबूसा से कहा।
“तब तुम कहां थे?”
“यहीं था। राजा देव की अब की पत्नी, यानी इसने मुझे पीछे रुके रहने को कह दिया था, वरना राजा देव ऐसा न कर पाते। मैं उन्हें पहले ही रोक लेता।” बबूसा ने गम्भीर और धीमे स्वर में कहा।
“आखिर ये सब कब तक चलेगा?” जगमोहन कह उठा।
“अभी तो कुछ हुआ ही नहीं है और तुम परेशान हो उठे।” बबूसा ने जगमोहन को देखा –“तूफान तो तब उठेगा जब रानी ताशा, राजा देव के सामने आएगी और ये कभी भी हो सकता है। उस वक्त जो होगा उसे रोक पाना आसान नहीं होगा। तब महापंडित की शक्तियां काम कर रही होंगी रानी ताशा के साथ। सोमाथ भी रानी ताशा के साथ होगा और मैं अकेला उनके सामने खड़ा होऊंगा। कम-से-कम मेरे लिए वो बुरा वक्त होगा। महापंडित पहले ही कह चुका है कि मैं सोमाथ का मुकाबला नहीं कर सकता।”
“तो क्या तब तुम उनसे हार जाओगे?” जगमोहन चिंतित होता दिखा।
“बबूसा हारता नहीं है।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा –“मेरे होते रानी ताशा, राजा देव को सदूर ग्रह तक नहीं ले जा सकती। अगर राजा देव को सदूर ग्रह का जन्म वक्त रहते याद आ गया तो फिर राजा देव की मर्जी...”
तभी नगीना कह उठी।
“जगमोहन भैया तुम तो इनकी बातों के जाल में पूरी तरह फंस चुके हो।”
जगमोहन ने गम्भीर निगाहों से नगीना को देखा।
नगीना की शिकायत भरी निगाह जगमोहन पर थी।
“भाभी।” जगमोहन कह उठा –“मैंने तुम्हें सुबह भी कहा था कि ये जो हो रहा है सच है।”
“सच नहीं है।”
“कैसे कह सकती हो?”
“दूसरा ग्रह। ताशा का बार-बार फोन आना। बबूसा का पहले ही आकर ये सब बातें करना किसी बड़ी चाल का हिस्सा है।”
“ये कोई चाल नहीं है। क्योंकि धरा डोबू जाति में होकर आ चुकी है। धरा के पीछे डोबू जाति के लोग हैं। उस दिन मैं धरा के साथ ही था जब चौकोर पत्ती जैसे हथियार से हम पर हमला किया गया। हम मरते-मरते बचे थे।”
“मैं बबूसा और रानी ताशा की बात कर रही हूं। ये दोनों फ्रॉड हैं। इनकी बातें विश्वास के काबिल नहीं।”
“भाभी, तुमने अभी देवराज चौहान का हाल देखा था, जब उसने ताशा से फोन पर बात की।” जगमोहन ने कहा।
“ताशा ने आवाज के सम्मोहन से फंसा लिया था देवराज चौहान को वो सम्मोहन की विद्या जानती...”
“ये नहीं समझेगी।” बबूसा बोला –“ये समझना ही नहीं चाहती।” बबूसा की बात पर ध्यान न देकर जगमोहन बोला।
“सम्मोहन से किसी पर काबू पाया जा सकता है, परंतु उससे किसी पर हमला नहीं कराया जा सकता है।”
“हमला?”
“देवराज चौहान ने तुम्हारी गर्दन दबा देनी चाही। तुम क्या सोचती हो कि क्या देवराज चौहान कभी ऐसा कर सकता है?”
“न-हीं।”
“फिर देवराज चौहान ने ऐसा क्यों किया?”
नगीना के होंठ भिंच गए।
“मैं बताता हूं।” जगमोहन बोला –“सच बात तो ये है कि ताशा की आवाज सुनकर देवराज चौहान अपने होश गंवा बैठता है। उसे ताशा ने तो नहीं कहा होगा कि वो तुम्हारा गला दबा दे। परंतु पागल-सा हुआ देवराज चौहान तुम्हारा गला दबाने लगा।”
“तुम तो यहां नहीं थे। फिर तुम्हें क्या पता कि कैसे हुआ होगा ये सब?” नगीना बोली।
“अंदाजा लगा सकता हूं। क्योंकि देवराज चौहान की ऐसी हालत पहले देख चुका हूं, जब उसने बबूसा को घूंसा मारा था।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा –“यहां जो भी हो रहा है वो सच है। देवराज चौहान का ये हाल हो जाना मामूली बात नहीं, तुम्हें मेरी बात का भरोसा करके इन हालातों पर विश्वास करना चाहिए और आने वाले वक्त के बारे में सोचना चाहिए।”
“पर तुम ऐसा क्यों नहीं सोचते कि बबूसा और ताशा आपस में मिले हुए हैं, बबूसा इधर पहुंचकर देवराज चौहान के दिमाग में अपने प्लान के हिसाब से बातें ठूंस रहा है उधर से ताशा फोन करके, देवराज चौहान का दिमाग खराब कर रही...”
“अगर ऐसा है तो देवराज चौहान की हालत क्यों बिगड़ जाती है, ताशा का फोन आने पर।”
“बताया तो, उसकी आवाज में सम्मोहन है, वो...”
“सम्मोहित हो जाने पर, कोई किसी पर हमला नहीं कर देता...”
“जो भी सच है, बहुत जल्दी सामने आ जाएगा। नगीना बोली –“कल अर्जुन भारद्वाज इस मामले की छानबीन करेगा।”
जगमोहन, सोफे पर पड़े देवराज चौहान के पास पहुंचा। उसे चेक किया।
“देवराज चौहान ने ताशा से बात करते समय होटल सी व्यू पर्ल का नाम लिया था।” नगीना गम्भीर स्वर में कह उठी –“मेरे ख्याल में ताशा होटल सी व्यू पर्ल में ठहरी हुई है और देवराज चौहान को वहीं बुला रही थी।”
“सी व्यू, पर्ल?' जगमोहन सोच भरे स्वर में बड़बड़ा उठा।
“सुना है इस होटल का नाम?”
“हां, ये जुहू बीच पर है। पांच सितारा होटल है।” जगमोहन ने कहा –“तो ताशा इस होटल में ठहरी है। हम इसे पकड़ सकते...”
“इस मामले में जो करना होगा, अर्जुन भारद्वाज ही करेगा।” नगीना
बोली।
“भाभी तुम उस प्राइवेट जासूस पर इतना भरोसा क्यों कर रही हो?” जगमोहन झल्ला उठा।
“मैंने सुना है, वो काबिल इंसान है। वो सब ठीक कर देगा।” नगीना ने यकीनी स्वर में कहा।
तभी बबूसा, जगमोहन से गम्भीर स्वर में कह उठा।
“तुम अभी कह रहे थे कि रानी ताशा को पकड़ सकते हो। ऐसा दोबारा सोचना भी मत। अगर तुम गलत इरादे के साथ रानी ताशा के पास भी पहुंचे तो मार दिए जाओगे। सोमाथ रानी ताशा के करीब ही रहता होता और अन्य लोग भी रानी ताशा के आसपास ही मौजूद होंगे। मेरे ख्याल में तुम अभी तक रानी ताशा को ठीक से समझ नहीं सके।”
“तुम्हारा मतलब कि वो खतरनाक है?”
“बहुत।”
“तो ऐसी औरत किसी को (देवराज चौहान) प्यार क्या करेगी?”
“वहम में मत रहना, वो राजा देव को बहुत चाहती है। तभी तो इन्हें लेने सदूर से पृथ्वी तक आ पहुंची है।”
“तुम।” नगीना गुस्से से कह उठी –“अपनी चालें खेलना बंद नहीं करोगे?”
“ये सच्चाई है।” बबूसा गम्भीर था।
“मक्कार, तुमने किस बुरी तरह सबको अपने चक्कर में ले लिया है। तुम भी शायद सम्मोहन जानते हो।”
बबूसा गम्भीर भाव में मुस्कराया।
“फिर तो मैं तुम पर भी सम्मोहन का इस्तेमाल कर सकता हूं।”
“तुम मुझे पागल नहीं बना सकते।” नगीना उठ खड़ी हुई –“मैं ताशा से बात करने होटल सी व्यू पर्ल जा रही हूं।”
“नहीं।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“गलती मत करना।” धरा कह उठी –“वो बहुत खतरनाक लोग हैं। उसके साथ डोबू जाति के योद्धा भी हो सकते हैं।”
“ये ही तो मैंने देखना है कि वो कितने खतरनाक...”
“तुम वहां नहीं जाओगी भाभी।” जगमोहन कह उठा –“मैं नहीं चाहता कि तुम उन लोगों के सामने पड़ो।”
“मैं जाऊंगी।” नगीना दृढ़ स्वर में कह उठी –“मैं जा...”
तभी बबूसा सामने आ गया नगीना के।
नगीना ने गुस्से से बबूसा को देखा।
“तुम्हारा वहां जाना जरा भी ठीक नहीं होगा।”
“मेरे ख्याल में तुम्हें चिंता हो रही है कि मेरे ताशा के सामने पड़ने से, तुम्हारी योजना खुल जाएगी।”
“मेरी कोई योजना नहीं है। परंतु तुम रानी ताशा को नहीं जानतीं। राजा देव को रानी ताशा हर हाल में पाना चाहती हैं। ऐसे में जो भी उसके रास्ते में आएगा, वो उसको खत्म कर देगी। रानी ताशा को मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि वो कैसी है। जब वो जानेगी कि तुम राजा देव की पत्नी हो इस जन्म में तो वो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकती है।”
“मैं तुम्हारी बातों का भरोसा नहीं करती। तुम...।”
“भाभी।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा –“कल वो प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज आएगा न?”
“हां।”
“तो वो रानी ताशा से बात कर लेगा। वो देख लेगा इस मामले को। तुम रानी ताशा के पास मत जाओ।”
नगीना ने कुछ नहीं कहा खामोश-सी वापस सोफे पर जा बैठी।
बबूसा, नगीना के सामने से हट गया।
जगमोहन खाने के लिफाफे आगे बढ़ाकर धरा को देता कह उठा।
“ये किचन में रख दो। जिसे भूख हो खा ले। मैं देवराज चौहान के साथ ही खाऊंगा। भाभी तुम खाओगी।”
नगीना ने चुप-सी, इंकार में सिर हिला दिया। चेहरे पर सोचें नाच रही थीं। नजरें सोफे पर बेहोश पड़े देवराज चौहान पर जा टिकी थीं।
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