मोना चौधरी ने कॉफी का खाली प्याला एक तरफ रखा और नाइट ड्रेस पहनने की सोचकर चेयर से उठी ही थी कि तभी कॉलबेल बज उठी। वो ठिठकी। आंखें सिकोड़कर दरवाजे की तरफ देखा ।
इस वक्त कौन आ गया?
कहीं देवराज चौहान तो नहीं?
मोना चौधरी सतर्क हो उठी। हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर पर गया फिर दरवाजे के पास जा पहुंची और आई मैजिक पर आंख लगाकर देखा। बाहर नन्दराम का चेहरा दिखा। वो कुछ परेशान लगा उसे ।
मोना चौधरी ने दरवाज़ा खोला और कह उठी---
“इतनी रात को बेल क्यों... ।” मोना चौधरी के शब्द अधूरे ही रह गये।
जगमोहन, नन्दराम को तेजी से भीतर धक्का देता खुद भी भीतर आता चला गया। मोना चौधरी से टकराया। मोना चौधरी लड़खड़ाकर पीछे को जा गिरी। सम्भलने सोचने का उसे जरा भी मौका नहीं मिला। जगमोहन के हाथ में रिवाल्वर दबी थी। उसी पल देवराज चौहान को भीतर आते और दरवाजा बन्द करते देखा।
खतरा !
नन्दराम सहमकर दीवार के साथ सटकर खड़ा हो गया था।
दोनों की लाल सुर्ख आंखें देखकर मोना चौधरी के शरीर में सिरहन दौड़ गई।
“साली, कुतिया । अब तेरा खेल खत्म।” जगमोहन गुर्रा उठा--- "तुझे बुरी मौत मारने आये...।"
“ये क्या हो रहा है देवराज चौहान ?” मोना चौधरी के दांत भिंचते चले गये।
“तेरी मौत का खेल शुरू होने लगा है मोना चौधरी !” देवराज चौहान ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- “इस वक्त तेरी जिन्दगी के आखिरी पल बीत रहे हैं। तू अब बुरी मौत मरने वाली है। हम शाम से ही तेरे को ढूंढ... ।”
"लेकिन क्यों ?" मोना चौधरी सतर्क थी--- “मैंने तुम लोगों का क्या बिगाड़ा...।”
“ये तो याद नहीं कि मैं तुझे क्यों मारना चाहता हूं। भूल गया ये बात। इस वक्त याद नहीं।” देवराज चौहान के होठों से गुर्राहट निकली, आंखें दहक रही थीं--- “परन्तु ये नहीं भूला कि तुझे बहुत बुरी मौत मारना है।”
“तुमने पूरबनाथ साठी से भी ये ही कहा था कि उसे क्यों मार रहे हो, ये भूल गये...।” मोना चौधरी अभी तक नीचे पड़ी थी।
"उसे मार दिया।” देवराज चौहान ने दांत भींचे।
"क्यों मारा?"
"याद नहीं क्यों मारा। बस मार दिया। अब तेरी बारी है। तुम दोनों को मैंने खत्म... ।”
तभी नीचे पड़ी मोना चौधरी की टांग घूमी और सामने खड़े जगमोहन की पिण्डली से जा टकराई।
जगमोहन बुरी तरह लड़खड़ाया। रिवाल्वर उसके हाथ से छूट गई और वो पीछे को जा गिरा।
तभी मोना चौधरी उछलकर खड़ी हुई और रिवाल्वर निकालने की कोशिश करते देवराज चौहान पर छलांग लगा दी। दोनों टकराये और पीछे दरवाज़े से टकराते नीचे जा गिरे।
नन्दराम घबराया-सा दीवार से सटा खड़ा ये सब देख रहा था।
तब तक जगमोहन सम्भलकर खड़ा हो चुका था। गुर्राहट के साथ वो भी मोना चौधरी पर झपटा। पास पहुंचा ही था कि देवराज चौहान से उलझी मोना चौधरी ने अपने जूते की ठोकर जगमोहन के घुटने पर दे मारी।
जगमोहन चीखा और लड़खड़ाता हुआ नीचे बैठता चला गया।
उसी पल देवराज चौहान ने दांत पीसे और जोरों का घूंसा मोना चौधरी के चेहरे पर मारा।
मोना चौधरी का सिर झनझना उठा। वो देवराज चौहान के साथ लिपटी हुई थी कि वो रिवाल्वर ना निकाल ले। इन खतरनाक हालातों को वो बाखूबी समझ रही थी कि दोनों के सिर पर खून सवार है। इनकी लाल हो रही आंखों में खतरनाकपन झलक रहा था। महसूस कर चुकी थी कि इस वक्त इन दोनों से निपट पाना आसान नहीं है। यहां पर एक भी गोली चली तो मुसीबत खड़ी हो जायेगी। फिर यहां रह नहीं पायेगी और देर-सवेर में पुलिस भी जान जायेगी कि यहां पर मोना चौधरी रहती थी, जो भी हो ये वक्त चुपचाप निपटाना था ।
उधर जगमोहन पागल हुआ अपनी रिवाल्वर ढूंढने में लगा था, जो पहले हाथ से छूट गई थी।
"होश में आ देवराज चौहान!" मोना चौधरी गुर्राई--- “मैंने तेरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया कि...।"
"तू मेरे हाथ से नहीं बचेगी।" देवराज चौहान दांत किटकिटाकर बोला और अपने से लिपटी मोना चौधरी को अलग करना चाहा।
तभी मोना चौधरी का हाथ देवराज चौहान के गले पर जा पड़ा।
देवराज चौहान छटपटाया।
मोना चौधरी ने दबाव बढ़ा दिया। खतरनाक भाव आ गये थे मोना चौधरी के चेहरे पर।
उसी पल उसके सिर पर रिवाल्वर की नाल आ लगी। साथ ही जगमोहन का वहशी स्वर उभरा।
“बस, खड़ी हो जा हरामजादी ।"
ठिठक गई मोना चौधरी । देवराज चौहान की गर्दन पर पड़ा हाथ ढीला हुआ।
देवराज चौहान ने उसके नीचे से फिसलना चाहा।
उसी पल मोना चौधरी ने देवराज चौहान की गर्दन पर से हाथ हटाया और पलक झपकते ही पीछे, सिर पर रिवाल्वर लगाये खड़े जगमोहन की कलाई पकड़ी और तीव्रता से आगे को झटका दिया।
सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि जगमोहन सम्भल ना सका और लड़खड़ाकर आगे को गिरता चला गया। उसकी टांगें देवराज चौहान और मोना चौधरी पर आ गिरीं। रिवाल्वर फिर से हाथ से निकल गई।
मोना चौधरी फुर्ती से उठी और पीछे के बैडरूम की तरफ दौड़ी। देखते-ही-देखते उसने बैडरूम में प्रवेश किया और जल्दी सें दरवाजा बन्द कर लिया और सिटकनी चढ़ा दी ।
जगमोहन और देवराज चौहान तब तक उठकर उस बैडरूम की तरफ दौड़े परन्तु तब तक दरवाजा बन्द हो चुका था। देवराज चौहान जोरों से दरवाजा भिड़भिड़ाता गुर्राया।
“दरवाज़ा खोल, आज तू नहीं बचेगी।"
"देवराज चौहान !” भीतर से मोना चौधरी की खतरनाक आवाज आई--- “इस बार खेल तूने शुरू किया है। बहुत बड़ी गलती कर दी ये सब करके। अब तू मुझे नहीं, मैं तुझे खत्म करूंगी।"
देवराज चौहान ने दांत पीसते हुए दरवाज़े को तोड़ने के अन्दाज में धक्का मारा।
परन्तु दरवाजा नहीं खुला।
"मैं बाहर जा रहा हूं।" जगमोहन पलटते हुए बोला--- “पीछे खिड़की हुई तो वो बाहर निकल सकती है।"
जगमोहन बाहर की तरफ दौड़ा।
सही सोचा था जगमोहन ने।
उस बैडरूम के पीछे खिड़की थी जो कि खुले में खुलती थी। पहली मंजिल की ऊंचाई ज्यादा नहीं थी। खिड़की खोलकर मोना चौधरी बाहर की तरफ लटकी फिर हाथ छोड़ दिए।
दोनों पैर जमीन पर जा लगे।
मोना चौधरी उस तरफ दौड़ी जहां उसकी कार खड़ी थी। चाबी अभी भी जेब में थी। पास पहुंचते ही रिमोट से कार को खोला और भीतर बैठते ही चाबी लगाकर उसे स्टार्ट किया और गेट की तरफ दौड़ दिया। अभी गेट खुला था और वहां पर गार्ड खड़ा नजर आ रहा था। गेट के बाहर खुदे चहलकदमी करता दिखा। उसने तेजी से कार को आते देखा तो जल्दी से एक तरफ हो गया। कार पास से निकलकर सड़क पर दौड़ती चली गई।
खुदे की निगाह पल भर के लिए मोना चौधरी पर पड़ी।
“दमदार चीज है साली। पर इतनी रात को तेजी से कहां जा रही है। किसी अपने को हार्ट-अटैक हो गया होगा।"
पांच-छः धक्कों में ही देवराज चौहान ने दरवाजा तोड़ दिया और रिवाल्वर थामे भीतर प्रवेश किया। कमरा खाली था। सामने खिड़की खुली दिखी तो वहां पहुंचा। बाहर झांका।
बाहर नीचे जगमोहन दिखा।
“कहां है वो ?" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
जगमोहन ने ऊपर देखा और कठोर स्वर में बोला---
“शायद भाग गई हरामजादी। मैंने एक कार को तेजी से बाहर जाते देखा था।"
“तुमने मौका खो दिया। जब तुमने उसके सिर से रिवॉल्वर लगाई, तभी गोली भी चला देते।" देवराज चौहान ने गुस्से से कहा।
“अब निकलो यहां से।"
कुछ पलों में देवराज चौहान खिड़की से नीचे कूद चुका था। रिवाल्वर जेब में रख ली थी।
"उसका हाथ से निकल जाना गलत हुआ।" जगमोहन झल्लाकर बोला--- “अब वो और भी सतर्क हो जायेगी।"
दोनों बाहर की तरफ बढ़ गये। चेहरे क्रोध से सुलग रहे थे। रात का एक बज चुका था हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। बाहर आकर वे कार में बैठे। खुदे पीछे जा बैठा।
जगमोहन ने कार आगे बढ़ाई ।
खुदे को जब सारी बात पता चली तो उसके होंठों से निकला।
"ओह, वो मोना चौधरी थी, जो कार पर तेजी से गेट से बाहर निकली थी। यकीन नहीं आ रहा, वो तो दमदार चीज थी।"
आगे बैठे देवराज चौहान का हाथ पीछे घूमा और खुदे के गाल पर पड़ा।
खुदे हड़बड़ाकर पीछे हटा।
"क्यों मारा?"
“वो हरामजादी है और हमारा शिकार है। उसकी खूबसूरती पर मत जा ।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"वो तो मैंने यूं ही बात की है।” खुदे ने नाराजगी से कहा--- "मैं तो तुम लोगों के साथ हूं... ।”
जगमोहन की कार तेजी से दौड़ रही थी।
“अब कहां ढूंढे उसे?” जगमोहन गुर्रा उठा ।
“महाजन के यहां चलो।” देवराज चौहान ने गुस्से से कहा।
"वो नहीं बतायेगा कि...।”
"हमने उससे कुछ भी पूछना नहीं है।"
"तो?"
"जैसे साठी के परिवार पर काबू पाया था वैसे ही महाजन और उसकी पत्नी पर काबू पाना है। फिर देखता हूं मोना चौधरी कैसे हमारे सामने नहीं आती। अब हम नहीं ढूंढेंगे उसे, वो ही हमारे सामने...।"
“तुम्हारा मतलब कि महाजन और राधा के लिए मोना चौधरी अपनी जान दांव पर लगायेगी।"
“हां...।"
"वो ऐसा नहीं करेगी।" जगमोहन के होंठों से निकला--- "वो कभी भी...।"
“महाजन के यहां चलो। इस तरह मोना चौधरी जरूर फंसेगी।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
जगमोहन ने कार की रफ्तार और बढ़ा दी।
■■■
फोन बजते ही महाजन की आंख खुली। अभी-अभी वो सोया था।
"रात को फोन बन्द कर दिया करो।" पास में सोई राधा कह उठी।
महाजन ने फोन उठाकर बात की।
"हैलो...।"
"महाजन !" मोना चौधरी का कठोर स्वर महाजन के कानों में पड़ा--- "देवराज चौहान मुझ तक पहुंच गया था।”
"ओह....!” महाजन चौंककर सीधा बैठा--- "पूरी बात बता बेबी...!"
मोना चौधरी ने सब कुछ बताया।
सुनकर महाजन के चेहरे पर कठोरता आ गई।
“तो देवराज चौहान ने शुरुआत कर दी।" महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा--- "मैंने तो सोचा था वो पीछे हट जायेगा।”
"वो पीछे हटने वाला नहीं। तुम ठीक कहते थे कि वो गुण्डों जैसा व्यवहार कर रहा है। मैं अभी तक हैरान हूं कि देवराज चौहान और जगमोहन मुझे गालियां दे रहे थे। पहले वो ऐसे ना थे।”
"तो अब हमें खुलकर मैदान में आना पड़ेगा ?" महाजन ने कहा।
"वो सच में पागलों जैसा व्यवहार कर रहा है। वो दोनों ही। पूछने पर कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम कि वो मुझे क्यों मारना चाहते हैं। मैं कठिनता से बच सकी। उस वक्त मेरा निकल जाना ही ठीक था। कल सुबह से देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश शुरू कर दो। पारसनाथ से भी कह देना जहां दिखे, उन्हें शूट कर दो। मैं भी इसी काम पर लगूंगी।"
“तुम इस वक्त कहां हो, मेरे पास आ जाओ।"
"मैं अपनी पहचान वाले के घर पर हूं और यहां सुरक्षित हूं।" इसके साथ ही फोन बन्द हो गया।
महाजन, पारसनाथ का नम्बर मिलाने लगा।
“क्या हुआ?" पास लेटी राधा ने पूछा।
“देवराज चौहान, मोना चौधरी के घर पहुंच गया, उसे मारने।” महाजन ने कहा।
"वो पागल जो शाम को हमारे यहां आ धमका था?"
“हां...।”
"मुझे हैरानी है कि तुम उसे माना हुआ डकैती मास्टर कहते हो। वो तो बहुत घटिया इन्सान लगा मुझे।"
महाजन कान से फोन लगाते बोला---
"वो ऐसा नहीं है, पर अब कुछ समझ नहीं आ रहा कि, ये सब क्यों कर रहा है वो। बताता भी तो नहीं।”
दूसरी तरफ बेल गई फिर पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो ।"
महाजन ने पारसनाथ को मोना चौधरी की कही सारी बात बताई।
"ये तो बहुत गलत हुआ।” सब कुछ जानने के बाद पारसनाथ का चिन्ता भरा स्वर कानों में पड़ा।
“बेबी का कहना है कि देवराज चौहान और जगमोहन को ढूंढो और खत्म कर दो।"
“ये आसान काम नहीं होगा। झगड़ा काफी बढ़ सकता है।" उधर से पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हम कुछ कर भी नहीं सकते। बेबी की गलती होती तो उसे समझाने की चेष्टा करते, परन्तु गलती सरासर देवराज चौहान और जगमोहन की है। वो ही बेबी की जान लेने पर लगे हैं और कारण भी नहीं बता रहे ।"
“कल से मैं और डिसूजा देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश पर लग जाते हैं।"
"मैं भी अब ये ही करूंगा। बेबी अपने तौर पर ये कर रही है। तुम्हें वो दोनों मिल जायें और वक्त की गुंजाइश हो तो मुझे बुला लेना, मुझे वो मिले तो मैं तुम्हें बुला लूंगा...।"
तभी कॉलबेल बज उठी।
महाजन पुनः फोन पर बोला---
"शायद बेबी आई है। बेल बजी है बन्द करता हूं।” महाजन ने फोन बन्द किया।
तब तक राधा उठ खड़ी हुई थी। उसने लाइट जलाई और दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
महाजन भी बैड से उठ गया था।
राधा ने दरवाजा खोला तो अगले ही पल चिहुंक उठी।
"तुम ?” सामने देवराज चौहान खड़ा था। पीछे जगमोहन और हरीश खुदे मौजूद थे।
"कौन है राधा ?"
“वो ही, शाम वाला पागल देवराज...।" राधा ने कहना चाहा।
तभी देवराज चौहान ने राधा को पीछे धकेला और भीतर प्रवेश कर आया।
महाजन ने देवराज चौहान को देखा तो ठगा सा खड़ा रह गया।
जगमोहन और खुदे भी भीतर आ गये थे। खुदे ने दरवाजा बन्द कर दिया।
"तुम...तुम दोनों।" महाजन का चेहरा कठोर होने लगा।
“मोना चौधरी कहां है?" देवराज चौहान ने महाजन की तरफ बढ़ते गुर्राकर कहा।
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है देवराज चौहान! जो मेरे पास बेबी के बारे में पूछने आ... ।”
तब तक पास पहुंच चुके देवराज चौहान का हाथ घूमा और महाजन के गाल से जा टकराया।
अचानक हुआ ये, महाजन को बचने का वक्त ही नहीं मिला।
“ऐ खबरदार जो नीलू पर हाथ...।" राधा ने कहकर आगे बढ़ना चाहा।
तब तक महाजन देवराज चौहान पर झपटा और दो घूंसे उसके पेट में लगा दिए।
देवराज चौहान के होंठों से दरिन्दगी भरी गुर्राहट निकली और तेजी के साथ महाजन को उठाकर बैड पर पटक दिया साथ ही रिवाल्वर निकालकर, नाल उसकी छाती से लगा दी।
धधक रहा था देवराज चौहान का चेहरा।
महाजन दांत भींचकर रह गया।
“अब मैं तेरे से मोना चौधरी के बारे में नहीं पूछूंगा।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
महाजन, देवराज चौहान को घूरता रहा।
राधा की कलाई सख्ती से, जगमोहन ने पकड़ रखी थी।
"इनके हाथ-पांव बांधने के लिए कुछ देखो।" देवराज चौहान गुर्राया ।
जगमोहन ने खुदे को देखकर इशारा किया।
खुदे कुछ ढूंढने में लग गया। फिर पीछे वाले कमरे में चला गया।
"तुमने कुछ देर पहले बेबी को मारना चाहा देवराज चौहान!" महाजन गुर्रा उठा ।
देवराज चौहान ने अभी भी रिवाल्वर की नाल उसकी छाती पर लगा रखी थी।
"वो बच गई हरामजादी, पर बार-बार नहीं बचेगी, अब फंसकर रहेगी।"
"अब... अब कैसे ?"
"तुम और तुम्हारी पत्नी यहीं पर मेरे कैदी बनकर रहोगे।" देवराज चौहान ने वहशी स्वर में कहा--- “अगर कल शाम छः बजे तक मोना चौधरी यहां मेरे सामने नहीं आई तो मैं तुम दोनों को शूट कर दूंगा। ये बात तुम उसे बताओगे।"
"मैं नहीं बताऊंगा।" महाजन ने दृढ़ स्वर में कहा।
"तुम ही बताओगे। अभी बताओगे, वरना मैं तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को अभी शूट कर दूंगा।” देवराज चौहान की आवाज में ऐसे भाव भर गये थे कि महाजन देवराज चौहान का चेहरा देखता रह गया।
कई पलों तक वहां चुप्पी रही।
"बोल, कहेगा ये बात मोना चौधरी से या अभी, इसी वक्त तेरे को शूट करूं।” देवराज चौहान की लाल आंखों में पागलपन उभरा।
"नहीं, मैं कभी नहीं... ।”
"बता क्यों नहीं देते मोना चौधरी को...।" राधा कह उठी--- "इस पागल का क्या भरोसा कहीं गोली ही ना मार दे।" राधा की आंखों में आंसू उभर आये--- “तुम्हें कुछ हो गया तो मेरी जिन्दगी नर्क बन जायेगी।”
महाजन ने दांत भींचकर राधा को देखा।
“बोल हां के नहीं?" देवराज चौहान की उंगली ट्रेगर पर कस गई।
“ये करेगा फोन मोना चौधरी को।” राधा कह उठी--- "कर देगा ये ।”
महाजन ने हौले से सिर हिला दिया।
तभी खुदे वहां पहुंचा। हाथों में नाड़ा थमा था जो कि वो राधा की दो सलवारों से निकाल लाया था।
"कर फोन उसे। वो रहा तेरा फोन। उठा और मोना चौधरी से वो ही कह, जो मैंने कहा है।" देवराज चौहान मौत भरे स्वर में बोला।
महाजन देवराज चौहान को कठोर निगाहों से देखता रहा।
“कर दे नीलू ! फोन कर मोना चौधरी को...।" राधा कह उठी--- "ये घटिया लोग हैं जो...।”
"चुप... ।" जगमोहन दांत किटकिटाकर गुर्रा उठा ।
"तुम कमीने हो जो ये सब हमारे साथ कर रहे हो।" राधा कह उठी--- “मोना चौधरी से तुम्हारा कोई झगड़ा है तो उससे निपटो। हमें इस तरह बंदी बना लेने का क्या मतलब... ?”
"चुप कर, तेरी तो...।" जगमोहन गुर्राकर राधा पर झपटा।
“नहीं..... ।” महाजन चीखा--- “उसे कुछ मत कहो...।”
तभी खुदे बीच में आया तो जगमोहन ठिठककर रह गया।
"एक औरत पर हाथ उठाने जा रहे हो। कुछ तो ख्याल करो...।"
उसी पल जगमोहन का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर पड़ा।
खुदे का सिर झनझना उठा।
“मुझे क्यों मारने लग जाते हो।” खुदे गुस्से से कह उठा।
"दोबारा बीच में मत आना।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा।
"मैं तो तुम्हें अच्छी राह दिखा रहा था और तुम....।"
"फोन कर मोना चौधरी को।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर महाजन से कहा।
महाजन ने फोन उठाया और मोना चौधरी के नम्बर मिलाने लगा।
“तब तक तुम दोनों इसके हाथ-पांव बांधो।” देवराज चौहान ने राधा की तरफ इशारा किया।
जगमोहन और खुदे राधा की तरफ बढ़ गये।
“मुझे हाथ मत लगाना।" राधा गुस्से से कह उठी।
“तो आराम से हाथ-पांव बंधवा लो...।” खुदे बोला।
दूसरी तरफ बेल गई फिर मोना चौधरी का नींद से भरा स्वर महाजन के कानों में पड़ा---
"हैलो...।"
“नींद में हो बेबी!" महाजन गम्भीर स्वर में बोला।
“उठ गई।" इस बार मोना चौधरी का चुस्त स्वर कानों में पड़ा--- "तुम कहो।"
"देवराज चौहान और जगमोहन, साथ में एक और आदमी भी है।" महाजन ने देवराज चौहान पर नजर मारकर कहा--- "इस वक्त मेरे घर पर हैं। मुझे और राधा को बंधक बना लिया है। देवराज चौहान का कहना है कि कल शाम छः बजे तक अगर तुम इनके सामने नहीं आई तो ये हमें मार देंगे। ये फोन भी जबर्दस्ती करवाया गया है मेरे से।"
मोना चौधरी की आवाज नहीं आई।
"सुन रही हो बेबी ?" महाजन पुनः गम्भीर स्वर में बोला।
“हां।”
"लेकिन तुम हमारी परवाह नहीं करना। देवराज चौहान और जगमोहन गिरी हुई हरकतें कर रहे हैं। जगमोहन को राधा पर हाथ उठाने में जरा भी परहेज नहीं है। ये लोग... ।”
"शान्त रहो।" मोना चौधरी की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था--- "मैं देखूंगी कि क्या करना है। देवराज चौहान से मेरी बात कराओ। मुझे समझ में नहीं आता कि ये पागल क्यों हुआ पड़ा है।"
“बात करके कोई फायदा नहीं होगा।"
“तुम उसे फोन दो।"
महाजन ने देवराज चौहान की तरफ फोन बढ़ाकर कहा---
"बेबी तुमसे बात करना चाहती है।"
दांत भींचकर देवराज चौहान ने फोन थामा और खतरनाक स्वर में कह उठा---
“तुम जिन्दा नहीं बचोगी मोना चौधरी ! मैं तुम्हें बुरी मौत... ।
"देवराज चौहान!” मोना चौधरी का कठोर स्वर कानों में पड़ा--- "ये मामला तब तक नहीं सुलझ सकता जब तक तुम नहीं बता देते कि क्यों मेरी जान लेना चाहते हो। मुझे बताओ ये कि क्यों तुम ऐसा कर रहे हो। ये सुनने के बाद मैं खुद तुम्हारे सामने आ जाऊंगी, या तुम्हारी गलतफहमी दूर कर दूंगी।"
"मुझे याद नहीं आ रहा कि क्यों तुम्हें मारना है, पर मारना है तुम्हें, ये पता है...।”
"तुम पागलों की तरह बात कर रहे...।"
"अब तुम्हें मेरे पास आना ही होगा। महाजन और राधा...।"
"उन दोनों को तुम कुछ नहीं कहोगे देवराज चौहान...!" मोना चौधरी की गुर्राहटें देवराज चौहान के कानों में पड़ीं।
"कल शाम छः बजे तक तुझे मेरे सामने आना होगा, नहीं तो इन दोनों की लाशें देख...।”
"होश में आओ देवराज चौहान! मुझे बताओ कि तुम ये सब क्यों कर रहे हो... ?"
"तुम्हें खत्म करने के लिए...।"
"लेकिन मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम मेरे पीछे पड़ गये... ?"
"शाम छः बजे तक का वक्त है तुम्हारे पास।” देवराज चौहान गुर्राया--- “उसके बाद इन दोनों की लाशें देख लेना।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया। चेहरा तप रहा था।
रात के ढाई बज रहे थे इस वक्त ।
जगमोहन और हरीश खुदे ने नाड़े से राधा को कसकर बांध दिया था।
"मुझे इस तरह बांधकर तुम लोगों को नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी।" राधा गुस्से से कह रही थी--- "मैं तुम लोगों को... ।"
"चुप हो जा, वरना... ।” जगमोहन दांत किटकिटा उठा।
खुदे राधा के पास पहुंचकर बोला---
"मेरी बहन, चुप हो जा। तुम्हारे लिए अभी मैंने थप्पड़ खाया है। ये लोग बहुत गुस्से में...।”
"तुमने मुझे बहन कहा...।"
“हां... क्यों?"
"बहन को इस तरह बांधते हैं क्या?"
“ये मेरे बस में नहीं है। अपने लालच को ही मैं इनके साथ लगा हुआ हूं।” खुदे बोला।
"कैसा लालच ?"
“इस काम को निपटाकर ये डकैती करने वाले हैं। मैं भी इनके साथ काम करूंगा और मुझे बहुत-सा पैसा मिलेगा। मुझे पैसे की सख्त जरूरत है। यही वजह है कि इनके काम में भागीदार बना हुआ हूं।"
“तुम तो बहुत अच्छे हो। तुम्हें इन लोगों के साथ नहीं होना चाहिये था।”
“बोला तो, मजबूरी में ही... ।”
"जरा मेरे हाथ खोलना...।" राधा ने प्यार से कहा।
"मैंने ऐसा किया तो वो मुझे गोली मार देंगे। मैं तो...।"
तभी देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी---
“महाजन को बांध दो।"
खुदे वहां से हटा और महाजन के पास आ गया। सहायता को जगमोहन पास में आ गया। महाजन को बैड पर लिटाया और कसकर हाथ और पांव बांध दिए उसके। फिर राधा को दोनों ने फर्श से उठाकर महाजन के पास बैड पर ही डाल दिया। महाजन का चेहरा गुस्से से भरा हुआ था, परन्तु बेबस था इस वक्त।
तभी हरीश खुदे देवराज चौहान और जगमोहन को देखकर कह उठा---
“अब मेरे में हिम्मत नहीं है भाग-दौड़ करने की। जब से तुम लोगों के साथ हुआ हूं तब से ना तो कुछ खाया और ना ही आराम किया। क्या तुम लोगों को भूख नहीं लगी। नींद नहीं आई?"
"हमें मोना चौधरी के अलावा किसी चीज की जरूरत नहीं है।" देवराज चौहान गुर्राया।
“मैं कुछ खाने को ढूंढता हूं अपने लिए।” खुदे ने कहा और उस कमरे से बाहर निकल गया।
महाजन दोनों को देखता दांत भींचकर कह उठा---
"ये सब तुम ठीक नहीं कर रहे देवराज चौहान!"
देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से महाजन को देखा।
"बेबी, तुम दोनों को जिन्दा नहीं...।"
तभी जगमोहन महाजन पर झपटा और दो-तीन चांटे उसे लगा दिए।
महाजन तड़प उठा ।
“मैं छोडूंगा नहीं तुम दोनों को।” महाजन चीख उठा।
“रहने भी दो ।" बंधनों में फंसी राधा कसमसाकर बोली--- "क्यों घटिया लोगों के मुंह लगते हो।”
महाजन गुस्से से भरा, सुलगता रहा।
देवराज चौहान ने कुर्सी खींची और बैठ गया। रिवाल्वर जेब में रख ली।
जगमोहन भी कुर्सी पर जा बैठा ।
“तुम लोग क्या समझते हो कि इस तरह बेबी को अपने पास बुला लोगे।" महाजन ने कड़वे स्वर में कहा--- “वो बेवकूफ नहीं है जो तुम लोगों के सामने आयेगी। तुम्हें सच बात बता देनी चाहिये कि आखिर मामला क्या है।"
"जरूर बताता, अगर मुझे याद होता।” देवराज चौहान भिंचे स्वर में बोला।
"मतलब कि तुम भूल गये कि क्यों बेबी के पीछे हो।" महाजन कड़वे स्वर में कह उठा।
"हां। भूल गया...।”
"और ये ना भूले कि बेबी को खत्म करना है।”
"सही कहा, ये बात याद रही।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
"तुम्हारी इस बकवास पर कौन यकीन... ।”
“जुबान बन्द रखो।” देवराज चौहान गुर्राया--- “वरना तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगा।"
महाजन होंठ भींचकर रह गया।
“छोड़ो भी, क्यों घटिया लोगों के मुंह लगते हो।"
उसी पल हरीश खुदे ने कमरे में प्रवेश किया। वो परांठे को गोल करके, खा रहा था ।
"तुम क्या खा रहे हो ?” राधा उसे देखते ही कह उठी।
"बहन तुम आलू के परांठे बहुत अच्छे बनाती... ।”
“दो परांठे रखे थे, वो तुमने खा लिए...।" राधा के होंठों से निकला।
“बहुत भूख लगी थी। पर परांठे बहुत मजेदार... ।”
"वो मैंने अपने लिए रखे थे।" राधा ने उखड़े स्वर में कहा।
“अब तुम्हें परांठों की क्या जरूरत है। तुम तो बंधी पड़ी हो बहन ! ये आलू के परांठे इस वक्त अमृत की तरह लग रहे हैं। बहुत भूख लगी है। खाकर बहुत आराम मिल रहा...।"
"मैंने इनमें जहर डाला था।” राधा कुढ़कर बोली ।
"कोई बात नहीं। अब तो खा लिए।” खुदे ने मुस्कराकर कहा।
"नीलू!" राधा ने नाराज़गी से कहा--- “ये मेरे दोनों परांठे खा गया। मैंने बहुत प्यार से, ज्यादा आलू भरकर बनाये थे।”
महाजन, बंधनों में जकड़ा, होंठ भींचे बैड पर पड़ा रहा।
उसी पल खुदे का फोन बजने लगा।
"हैलो।" परांठा खाते उसने बात की।
“सो रहे हो ?” टुन्नी का मीठा स्वर कानों में पड़ा।
"तुम... इस वक्त ? सोई नहीं अभी तक ?" खुदे बोला।
"नींद नहीं आ रही।"
"बिल्ला तो नहीं है तुम्हारे पास?"
"बिल्ला ? वो भला मेरे पास क्यों होगा। तुम अपना दिमाग ठीक रखो। मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है।"
"याद आ रही है। रोज तो मैं घर पर होता हूं, तब तो तुमने, इतने प्यार से बात नहीं की और... ।”
"अब तो कर रही हूं ना... ।” टुन्नी की नखरे से भरी आवाज आई--- "आ जाओ ना।"
“अभी?” खुदे हड़बड़ाया।
“हां...।"
“नहीं आ सकता। मैं इस वक्त जरूरी काम कर रहा हूं।" खुदे ने कहा ।
"देवराज चौहान के साथ हो ?"
"हां...।"
"क्या कर रहे हो?"
“आलू का परांठा खा रहा हूं।"
“अकेले-अकेले ?” टुन्नी का शरारत से भरा स्वर कानों में पड़ा।
"तुमने मटर पनीर अकेले-अकेले खाया। है ना, मैंने तेरे को कुछ कहा। आराम से खाने दे। जब से घर से निकला हूं, अब जाकर कुछ खाने को नसीब हुआ है।” खुदे परांठा खाता कह उठा।
“मैंने तुम्हारे लिए भी तो मटर-पनीर रखा है।”
“सम्भाले रख। आ के खाऊंगा।”
"अभी आ जाओ ना।"
“पागल हुई है क्या। अभी कैसे आ सकता हूं। अभी तो बहुत काम करना है मैंने।”
“मुझे नींद नहीं आ रही। "
“जब मैं घर पर होता हूं तो दस बजे ही सो जाती है अब बाहर हूं तो नींद नहीं आ रही। तू कैसी औरत है।” खुदे ने मुंह बनाकर कहा--- “चुपचाप सो जा और बिल्ले को घर में मत घुसने देना। जब मैं घर में होता हूं तो नहीं आता, जब घर पर नहीं होता तो बहाने-बहाने से तुम्हें लाइन मारने आ जाता है। साले को सीधा करूंगा।"
"छोड़ो बिल्ले को ।" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी--- "जानते हो मुझे नींद क्यों नहीं आई?"
"क्यों?"
"मैं लठ के बारे में सोच रही थी।"
"लठ के बारे में?" खुदे की आंखें सिकुड़ीं।
"यही कि वो कहां चढ़ता है, तुमने कहा था कि...।"
“सोचती रह... ।" खुदे ने कहा और फोन बन्द कर दिया।
दोनों परांठे खुदे खा चुका था। फ्रिज से पानी निकालकर पिया और दूसरे कमरे में लगे बैड पर सोने के लिए चला गया। देवराज चौहान और जगमोहन कुर्सियों पर ही बैठे थे।
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“बहुत खतरनाक हरकत कर दी देवराज चौहान ने ।" मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी--- "महाजन और राधा को बंधक बना लिया और मुझे अल्टिमेटम दे दिया कि कल शाम छः बजे तक सामने नहीं आई तो वो दोनों को मार देगा।"
मोना चौधरी, पारसनाथ के रेस्टोरेंट की पहली मंजिल पर, पारसनाथ के घर पहुंची थी अभी। फोन पर पारसनाथ को पहले ही बता दिया कि मामला क्या है। पारसनाथ को अपना इन्तज़ार करते पाया मोना चौधरी ने। सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे। रात का सन्नाटा हर तरफ पसरा हुआ था। रेस्टोरेंट तो कब का बन्द हो चुका था।
“मोना चौधरी !" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मेरे ख्याल में देवराज चौहान राधा और महाजन को कोई नुकसान नहीं पहुंचायेगा। वो कोरी धमकी दे रहा...।"
“नहीं पारसनाथ !” मोना चौधरी कह उठी--- “वो धमकी नहीं दे रहा। मैंने देवराज चौहान और जगमोहन को तब देखा था जब वो मुझे मारने मेरे फ्लैट पर आये थे। वो पागल हुए पड़े थे। दोनों की आंखें गुस्से से लाल थीं और वे मुझे मार देना चाहते थे। बहुत चालाकी से मेरे पड़ौसी नन्दराम से मेरा दरवाजा खुलवाया। वो गालियां दे रहे थे। कम-से-कम ऐसा रूप मैंने उनका पहले नहीं देखा। मैं कठिनता से ही वहां से निकल गई। वो कुछ भी कर सकते हैं।"
“इस तरह महाजन और राधा को बंधक बना लेना बहुत गलत बात है।"
"सच में, बहुत ही गलत बात। अगर उसे मेरे से कोई नाराजगी है तो मेरे से बात करे। अब मुझे सामने लाने के लिए उसने महाजन और राधा को पकड़ लिया। समझ में नहीं आता कि वो चाहता क्या है।"
"वो तुम्हारी जान के पीछे है मोना चौधरी!" पारसनाथ कठोर स्वर में बोला ।
"लेकिन क्यों?" मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा--- "पूछने पर वो जवाब भी तो नहीं देता।”
"कहता है भूल गया कि क्यों तुम्हें मारना चाहता है।”
"ऐसे कैसे वो भूल सकता है।”
“मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि वो दोनों एक साथ कैसे भूल सकते हैं। स्पष्ट हैं कि वो कुछ छिपा रहे हैं। जानबूझकर वो बताना नहीं चाहते कि क्यों तुम्हें मारना चाहते हैं।”
मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
कुछ क्षणों तक उनके बीच चुप्पी रही।
"हालात खतरनाक हो गए हैं मोना चौधरी।" पारसनाथ ने कहा।
"जल्दबाजी मत करो। महाजन और राधा की जान खतरे में है।"
“जब तक वो उन दोनों के पास है, तब तक ये खतरा लगा रहेगा। तुमने खुद को उनके हवाले कर भी दिया तो तब भी वो उन्हें जिन्दा नहीं छोड़ने वाले। ये आर-पार की लड़ाई है। या तो वो मरेंगे, या हमें नुकसान होगा। इस बात का तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि तुम खुद को उनके हवाले कर दो।"
"मैं ऐसा भी कर सकती हूं पारसनाथ...!"
“नहीं। वो तुम्हें मार देंगे।”
“अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो वो महाजन और राधा को मार देगा।"
“ये देवराज चौहान ने क्या कर दिया। हमें कुछ सोचना पड़ेगा।"
“क्या?"
“ये ही कि कैसे हम महाजन और राधा को बचायें...।"
“मैं ऐसा कुछ नहीं चाहती कि उनकी जान को खतरा आये।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“कुछ रिस्क तो हमें लेना ही होगा।"
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
"हमारे पास काफी वक्त है। कल शाम छः बजे तक का वक्त। हम बहुत कुछ सोच सकते हैं मोना चौधरी !"
"उनके साथ तीसरा आदमी कौन है?"
"हरीश खुदे नाम है उसका। महाजन ने बताया था उसके बारे में।"
"वो क्यों उनके साथ है?"
“महाजन का कहना है कि खुदे डकैती में पैसा बनाना चाहता है। इसलिये उन दोनों के साथ है।"
“ये क्या बात हुई?"
"देवराज चौहान जगमोहन ने उसे कह रखा होगा कि वो डकैती में उसे साथ लेंगे।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
"क्या सोच रही हो?" पारसनाथ ने पूछा।
“अभी मत पूछो और तुम भी सोचो कि हम महाजन और राधा को कैसे देवराज चौहान के हाथों से बचा सकते हैं। जबकि ये काम मुझे कठिन लगता है। क्योंकि देवराज चौहान इस वक्त बहुत खतरनाक हुआ पड़ा है।"
"हमें किसी तरह महाजन के घर घुसना होगा।" पारसनाथ गम्भीर स्वर में बोला ।
"ऐसा करना खतरे से भरा होगा। महाजन राधा की जान जा सकती...।"
"बचेंगे तो देवराज चौहान और जगमोहन भी नहीं।" पारसनाथ दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा।
“कुछ और सोचो, जल्दबाजी में हमने गलत कदम उठाकर उन्हें खतरे में नहीं डालना है।"
■■■
हैरत की बात ये थी कि देवराज चौहान और जगमोहन ने एक मिनट के लिए भी आंखें बन्द नहीं की थीं। वो जगे रहे थे और बिल्कुल स्वस्थ उसी कमरे में मौजूद रहे। जबकि महाजन और राधा बंधनों में ही नींद में डूबे हुए थे। दूसरे कमरे में हरीश खुदे बैड पर गहरी नींद में था। सुबह के आठ बज चुके थे। दोनों की गुस्से से भरी आंखें लाल थीं। चेहरों पर कठोरता नाच रही थी। आपस में उनकी कोई बात नहीं हुई थी।
पहले महजन की आंख खुली फिर राधा की।
"दिन निकल आया है नीलू!" राधा बोली--- "नहा-धोकर मैंने मंदिर में पूजा करनी है।"
"खामोश रहो।" महाजन ने तीखे स्वर में कहा--- “हमारी हालत देख रही हो।"
"पूजा के लिए तो ये मुझे खोल देंगे। मैं पूजा कर लूंगी। परांठे आलू के बनाऊंगी। जब खा लूंगी तो ये हमें बांध....।"
"चुप रहो। ये तुम्हें खोलने वाले नहीं...।"
राधा सामने बैठे देवराज चौहान से कह उठी---
“मुझे नहाकर पूजा करनी है। ये मेरा रोज का काम है। कम-से-कम पूजा के लिए तो मुझे खोल...।”
“जुबान बन्द ।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "वरना अभी गर्दन दबा दूंगा।"
"ये क्या बात हुई। पूजा तो करने दो।" राधा बंधनों में जकड़ी मचल उठी।
जगमोहन भड़ककर कुर्सी से उठा और राधा की तरफ झपटा।
“रुक जाओ। राधा को कुछ मत कहो।" महाजन जल्दी से कह उठा।
परन्तु तब तक पास पहुंच चुके जगमोहन का चांटा, राधा के गाल पर जा पड़ा।
राधा का सिर घूम गया। आंखों में आंसू चमक उठे।
"दोबारा जुबान मत खोलना।" जगमोहन दांत भींचे गुर्रा उठा और वापस अपनी कुर्सी पर जा बैठा।
महाजन क्रोध में सुलगकर रह गया।
राधा के आंसू गालों पर लुढ़क आये।
“नीलू।” राधा सुबक उठी--- "ये तो बहुत ही घटिया लोग हैं।"
“कमीने हैं।" महाजन ने दांत पीसते हुए कहा।
“मोना चौधरी से कहो कि इन्हें सबक सिखा दे। तुम तो कुछ कर नहीं सकते। बंधे पड़े हो।”
"आज फैसले का दिन है राधा !" महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा--- “शाम छः बजे तक शायद कुछ हो जाये।"
“क्या कुछ?"
"पता नहीं।” महाजन एकाएक बेचैन हुआ--- "बेबी चैन से नहीं बैठने वाली। पारसनाथ जरूर कुछ करेगा। वो दोनों इन्हें नहीं छोड़ने वाले। ज्यादा-से-ज्यादा शाम छः बजे तक... ।”
तभी देवराज चौहान गुर्राहट भरे स्वर में बोला---
“आज हरामजादी मोना चौधरी मेरे हाथों से मरेगी।”
“ये तुम्हारी गलतफहमी है।” महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा।
“तुम दोनों को बचाने के लिये वो खुद को हमारे हवाले करेगी। ऐसा करना ही होगा उसे।”
“वो ऐसा कभी नहीं करेगी।”
"तो क्या करेगी?” जगमोहन गुस्से से कह उठा।
"खुद को तुम लोगों के हवाले करने से अच्छा है, वो यहां हमला कर दे। ये ही करेगी वो।"
"ऐसा हुआ तो फिर जो भी हो, कम-से-कम तुम दोनों नहीं बचने वाले ।” देवराज चौहान ने मौत भरे स्वर में कहा।
"वो किसी भी वक्त यहां हमला कर सकती है।"
“कुतिया को आने तो दो।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा--- "फिर उसे बतायेंगे कि मौत कैसी होती है।"
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
“नीलू !” राधा धीमे से बोली--- “तुम्हारा क्या ख्याल है मोना चौधरी क्या करेगी?”
“वो जरूर आयगी। पूरी ताकत के साथ वो हमला करेगी। इसके अलावा उसके पास दूसरा रास्ता नहीं।" महाजन कह उठा।
देवराज चौहान कुर्सी से उठा और टहलने लगा।
"नीलू!” देवराज चौहान को देखती राधा बोली--- “तेरे को पहले नहीं पता था कि ये इतने घटिया लोग हैं।"
“नहीं पता था।" महाजन ने गहरी सांस ली--- “मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।"
“सब कुछ तो सामने है फिर समझ क्यों नहीं आ रहा?"
“देवराज चौहान ऐसा क्यों कर रहा है, ये नहीं पता। ये बता भी नहीं रहा कि...।"
इसी पल महाजन का फोन बज उठा।
देवराज चौहान ठिठका और पलटकर बैड के पास पहुंचा। महाजन के नीचे दबा पड़ा मोबाइल बज रहा था। देवराज चौहान ने नीचे से फोन निकाला और बात की।
"हैलो।" होंठों से खतरनाक स्वर निकला था।
“देवराज चौहान!" मोना चौधरी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा--- "तुमसे बात करनी है, तुम...।"
"तुम आ रही हो या नहीं?" देवराज चौहान गुर्राया ।
"तुमने मुझे शाम के छः बजे का वक्त दिया है। जल्दी मत करो।" मोना चौधरी की आवाज आई।
"तुम अभी भी आ सकती हो।"
"ताकि तुम मुझे मार सको।”
"तुम बचने वाली नहीं, मैं तुम्हें ऐसी मौत दूंगा कि तुम...।
“मेरी बात सुनो। मैं ये मामला खत्म करना चाहती हूँ।"
“ये मामला तो तुम्हारी मौत के साथ ही खत्म होगा।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
"मैं तुम्हें मुंहमांगी दौलत दे सकती हूं अगर तुम सब कुछ यहीं पर रोक दो तो... ।"
"तुम आ रही हो या नहीं ?" देवराज चौहान खतरनाक स्वर में कह उठा।
“जितनी भी दौलत कहोगे, तुम्हें मिल... ।”
“आज तुम्हारी मौत का दिन है मोना चौधरी ।” देवराज चौहान ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा--- “छः बजे तक तुम यहां पर मेरे सामने नहीं आई तो महाजन, राधा को मार दूंगा, परन्तु बचोगी तुम तब भी नहीं... ।"
"तुम पागल हो गये हो...।" इस बार मोना चौधरी की आवाज में तीखापन आ गया था।
"जब तुम सामने आओगी, तब इस बात का जवाब दूंगा।"
"मैं तुम्हें मुंह-मांगी दौलत देने को कह रही... ।”
देवराज चौहान ने फोन बन्द करके बैड पर उछाल दिया। चेहरे पर खतरनाक भाव थे।
"जगमोहन !" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- “भीतर से बाहर भी नजर रखो, वो कमीनी यहां हमला भी कर सकती है।"
जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली और खड़ा होकर खिड़की की तरफ बढ़ा।
तभी हरीश खुदे ने कमरे में प्रवेश किया। उसकी आंखें अभी भी नींद से भारी थीं।
“सब ठीक है?" खुदे ने जगमोहन को खिड़की से बाहर झांकते देखा तो कह उठा।
"ठीक है।"
खुदे बैड के पास पहुंचा जहां महाजन और राधा बंधे थे।
"तुम लोगों के बैड के गद्दे बहुत बढ़िया हैं। मजेदार नींद आई...।” खुदे ने मुस्कराकर कहा।
"बिच्छू ने नहीं काटा।" राधा उखड़े स्वर में बोली।
"वो कहां है?"
“नहीं काटा होगा। तभी पूछ रहा है।" राधा ने कहा--- "तुम मेरे प्यारे भाई हो ना?"
"हां... हूं...।" खुदे ने सिर हिलाया।
“तो मेरा एक काम कर दो। मेरे बंधन खोल दो। सुबह मैं पूजा करती हूं, वो कर लूं तो...।"
“इतना भी प्यारा भाई नहीं हूं कि ये काम करके अपनी जान गंवा दूं...।” हरीश खुदे ने मुंह बनाकर कहा, फिर देवराज चौहान से कह उठा--- “मोना चौधरी से कोई बात हुई, वो आ रही है या नहीं?"
"सतर्क रहो। वो यहां हमला भी कर सकती है।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
"वो हमला तभी करेगी अगर इन दोनों की जान उसे प्यारी ना हो।" खुदे ने उन दोनों को बंधे देखा।
“तुम सतर्क रहो।"
"मेरे पास रिवाल्वर नहीं है।" खुदे बोला।
"इस घर में रिवाल्वर जरूर होगी। तलाश करो, मिल जायेगी।" देवराज चौहान ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा।
■■■
"वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। उसका दिमाग खराब हुआ पड़ा है।” फोन बन्द करते मोना चौधरी, पारसनाथ से कह उठी--- “मैं उसे मुंह मांगी रकम देने को कह रही हूं और वो, मेरी मौत की बात कर रहा है।"
“तो हम इस तरह हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठ सकते।” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा--- “हमें कुछ करना होगा।"
मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“सुबह के नौ बज रहे हैं और शाम के छः बजते ज्यादा देर नहीं लगेगी।"
"तुम ठीक कहते हो पारसनाथ!” मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी ।
"तो क्या किया जाये ?"
"अपने को, देवराज चौहान के हवाले करने का कोई इरादा नहीं है। वो मुझे गोली मार देगा।"
"और महाजन, राधा को भी शायद जिन्दा ना छोड़े।"
"एक ही रास्ता है कि देवराज चौहान को घेरना होगा। मौका देखकर हमला करना होगा।" मोना चौधरी खतरनाक स्वर में कह उठी--- "हालांकि ये खतरनाक है, इससे महाजन और राधा के लिए खतरा बढ़ जायेगा, पर दूसरा रास्ता भी तो नहीं। मुझे पूरा विश्वास है कि छः बजते ही देवराज चौहान दोनों को शूट कर देगा।"
"हमें अभी से काम पर लग...।"
“मैं एक बार महाजन के घर के आस-पास की स्थिति देखना चाहूंगी।"
"वहीं चलते हैं।” पारसनाथ ने मोबाइल निकाला--- “डिसूजा को भी साथ ले चलते... ।”
"सिर्फ डिसूजा से काम नहीं चलेगा। दो-तीन और को भी साथ ले लो, जो ऐसी स्थिति में बढ़िया काम कर सकें।" मोना चौधरी ने कहा ।
■■■
दस बजे हरीश खुदे ने जगमोहन से कहा।
“खाने को कुछ नहीं है, मैं ब्रेड लेकर आता हूं बाजार से।”
“तुम बाहर नहीं जाओगे। कोई बाहर नहीं जायेगा।” देवराज चौहान कह उठा।
"क्यों?"
“बाहर मोना चौधरी या उसका कोई साथी नज़र रखता हो सकता है। बाहर जाना ठीक नहीं होगा।"
“लेकिन मुझे भूख...।”
“घर पर ही कुछ बना लो। परांठा बना लो।"
“आटा तैयार नहीं है।” खुदे बोला--- “और मुझे ऐसे काम आते नहीं हैं।"
“जो भी करो, परन्तु बाहर नहीं जाओगे ।"
तभी राधा कह उठी---
“मैं आटा गूंथ देती हूं।
उसकी बात पर ध्यान न देकर खुदे, देवराज चौहान और जगमोहन से बोला--
"हैरानी की बात है कि तुम लोगों को भूख नहीं है। जबकि कल से तुम लोगों न कुछ भी नहीं खाया।"
"हमें मोना चौधरी की मौत की भूख है।" जगमोहन गुर्रा उठा।
"तुम लोग सोये भी नहीं, ऐसे कैसे रह लेते...।"
"हमें सिर्फ मोना चौधरी की जरूरत है।” देवराज चौहान ने दांत भींचे।
खुदे गहरी सांस लेकर रह गया।
"मैं आटा गूंथ देती हूं...।" राधा पुनः कह उठी--- “मुझे खोलो, गर्म परांठे भी उतार दूंगी। पूजा भी कर लूंगी।"
खुदे ने राधा को देखा, पर कहा कुछ नहीं ।
“सोच क्या रहे हो। गर्म परांठे नहीं खाने क्या? मेरे आलू के परांठे, तुम्हें कैसे लगे थे?"
"बढ़िया।” खुदे ने शान्त स्वर में कहा।
“अब उससे भी बढ़िया बनाकर खिलाऊंगी। अमूल का मक्खन ऊपर रखकर, एकदम मजा आ जायेगा। साथ में दही भी दूंगी।”
खुदे मुस्कराकर रह गया।
“खोल देना, मेरे प्यारे भाई... ।”
“इधर बात कर। देवराज चौहान और जगमोहन से, मैं तो नौकर बन्दा हूं।"
“इन घटिया लोगों से कौन बात करे।" राधा ने मुंह बनाकर कहा।
देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे इस बात से पूरी तरह अन्जान थे कि सुबह से ही राधा, महाजन के हाथों के बंधन खोलने में लगी थी। दोनों के हाथ पीठ पीछे बंधे थे और दोनों एक-दूसरे की तरफ पीठ करके लेट जाते और राधा हाथों की उंगलियों से महाजन की कलाइयों के बंधन खोलने की चेष्टा में लग जाती। परन्तु तभी बैड पर पड़ा महाजन का फोन राधा के हाथों में लग गया तो उसने किसी तरह मोबाइल का पीछे का कवर अलग किया और उसी को हाथ में थामे, चाकू की तरह इस्तेमाल करती, महाजन की कलाइयों पर बंधे नाड़े पर चलाने लगी। परन्तु ये काम वो बहुत सावधानी से कर रही थी कि उसे ज्यादा हिलते पाकर, वे उस पर शक ना कर बैठें। वे समझ ना जायें। ऐसे में रुक-रुककर अपनी कोशिश जारी रखे हुए थी।
खुदे पन्द्रह मिनट बाद भीतर के कमरे से निकलकर उस कमरे में पहुंचा। उसके हाथ में ब्राउन कलर का छोटा-सा ब्रीफकेस दबा था। देवराज चौहान और जगमोहन को देखता खुद कह उठा---
मैं रिवाल्वर ढूंढ रहा था कि बैड के नीचे से ये ब्रीफकेस मिला। भीतर रिवाल्वर भी है और नोट भी भरे पड़े हैं।"
"नीलू!" राधा फौरन हड़बड़ाकर कह उठी--- "हमारे पैसे...।"
महाजन ने होंठ भींचकर खुदे को देखा।
खुदे ने ब्रीफकेस को खोलकर देवराज चौहान और जगमोहन को दिखाया।
ब्रीफकेस हजार-हजार के नोटों की गड्डियों से भरा पड़ा था।
करीब पैंतीस-चालीस गड्डियां थीं और उन्हीं के बीच रिवाल्वर भी रखा था।
खुदे ने रिवाल्वर उठाकर जेब में रख ली।
“इन्हें सम्भाल के रख।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला--- “जाते वक्त इसे साथ ले चलना। पांच लाख तुम्हें दूंगा।"
खुदे की आंखों में चमक आ गई। उसने फौरन ब्रीफकेस को बन्द किया और एक तरफ रख दिया।
"चोर।" राधा गुस्से से बोली--- "हमारे पैसे क्यों लेते हो?"
खुदे ने राधा की तरफ देखा भी नहीं ।
"नीलू, ये हमारे पैसे ले रहे हैं।" राधा ने जैसे महाजन से शिकायत की।
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
"तुम लोगों ने पैसे लेकर करना भी क्या है। शाम छः बजे तो तुम दोनों ने मर जाना है।” खुदे बोला।
राधा और महाजन में से किसी ने भी जवाब नहीं दिया।
तभी हरीश खुदे का फोन बज उठा ।
“हैलो ।” खुदे ने बात की।
“ये देवेन साठी कौन है?" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
“देवेन ?” खुदे चौंका--- “तेरे को देवेन साठी से क्या मतलब?"
“अभी-अभी गया है। आया था दो आदमी कारों में भरकर। तुम्हें पूछ रहा था। मैंने तो कह दिया कि तुम कल से देवराज चौहान के साथ गये हो। देवराज चौहान तुम्हें जबर्दस्ती ले गया था। मारा भी था।"
खुदे के चेहरे के रंग बदल रहे थे।
"फि... फिर ?"
"तुम्हारा फोन नम्बर ले गया है। कह गया है कि जब तेरा फोन आये तो उसके बारे में बता दूं... ।”
"ये क्या हो गया।"
"क्या हुआ ?" उधर से टुन्नी ने कहा।
"तू फोन बन्द कर, फिर बात करूंगा।” खुदे ने बेचैनी से कहा।
“वो मटर-पनीर... ।” उधर से टुन्नी ने कहना चाहा।
"बिल्ला तो नहीं आया ना?"
"नहीं। वो नहीं...।"
“उसे आने भी मत देना। दरवाजा मत खोलना।" कहने के साथ ही खुदे फोन बन्द करके देवराज चौहान और जगमोहन से बोला--- “साठी का भाई देवेन साठी, अपने भाई की मौत की खबर सुनकर अफगानिस्तान से मुम्बई आ पहुंचा है। वो मुझे ढूंढ रहा है। उसे पता होगा कि जब उसके भाई को मारा गया तो मैं भी वहां मौजूद था। वो शिखा, वो राहुल, उन्होंने सब कुछ बता...।"
"तो घबरा क्यों रहे हो?" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
“ना घबराऊं?” खुदे ने देवराज चौहान को घूरा।
“बिल्कुल भी नहीं। तुम मेरे साथ हो और...।”
“देवेन साठी, अपने भाई से भी खतरनाक है। वो मुझे नहीं छोड़ेगा। मैं तुम दोनों के साथ रहा...।"
“हम देवेन साठी को भी खत्म कर देंगे।” जगमोहन गुर्रा उठा।
“किस-किसको खत्म करते रहोगे। देवेन साठी बहुत बड़ी ताकत रखता...।"
“पूरबनाथ साठी भी बहुत बड़ी ताकत रखता था । हमसे बच सका वो....? मर गया ना?"
खुदे, जगमोहन को देखता रहा, फिर बोला---
“मेरे लिए मुसीबत खड़ी हो...।"
हरीश खुदे का फोन बज उठा ।
“ह... हैलो।” खुदे ने जल्दी से बात की।
"खुदे।" मर्दाना स्वर उसके कानों में पड़ा--- "पहचाना मुझे।"
“द...देवेन साहब...!" खुदे के होंठों से निकला।
"तेरा नम्बर तेरी बीवी से लिया। घर गया था तेरे। मेरे भाई को मार दिया तूने।"
"म... मैंने मारा देवेन साहब! मैंने नहीं... ।”
“जब मेरे भाई को मारा गया तो तू भी उस वक्त वहां था।" देवेन साठी के स्वर में कठोरता थी।
खुदे, देवराज चौहान और जगमोहन पर नजर मारकर घबराये स्वर में कह उठा ।
“म...मेरी मजबूरी थी तब वहां रहना। देवराज चौहान और जगमोहन ने जबर्दस्ती मुझे वहां रखा हुआ था। म... मैं तो साठी साहब का बुरा करने की सोच भी नहीं सकता। आठ साल आपका नमक खाया है। मैं तो आपका गुलाम, आपका सेवक... ।"
"किसने मारा मेरे भाई को ?”
“द... देवराज चौहान और जगमोहन ने। कसम से देवेन साहब... !”
“तू मेरे पास आ, अभ्भी...।"
"मैं? न...नहीं आ सकता। अभी भी देवराज चौहान ने मुझे पकड़ रखा है।" खुदे जल्दी से बोला ।
“कहां पर है, बता मुझे, मैं अभी आता हूं।"
"जगह नहीं मालूम। जाने कहां पर मुझे बन्द कर रखा है। मुझे बचा लीजिये देवेन साहब! नहीं तो ये आपके भाई की तरह मुझे भी मार देंगे।” खुदे के होश वास्तव में गुम थे।
"तेरे को बन्द कर रखा है और फोन तेरे पास ही छोड़ दिया। ये कैसे हो सकता...।"
“गलती से रह गया फोन मेरे पास। उन्हें ध्यान नहीं आया...।"
“सुन।” देवेन साठी का कठोर स्वर कानों में पड़ा--- "मैं अफगानिस्तान से वापस आ गया हूं। अब इधर ही धन्धा सम्भालूंगा। अपने भाई की मौत का बदला लेना है मेरे को, समझा क्या?"
“स...समझ गया।” फोन पर ही खुदे ने सिर हिलाया।
"ये बता देवराज चौहान ने मेरे भाई को क्यों मारा?”
"मेरे को नेई मालूम देवेन साब!”
"तू उनके साथ था और तेरे को नेई मालूम?”
“कसम से, मां कसम देवेन साब! पूछने पर देवराज चौहान ये ही कहता है कि उसे याद नहीं कि क्यों मार रहा है साठी साहब को। जगमोहन भी ऐसा ही बोलता...।"
"ये ही पता चला है मेरे को। पर तू भी बराबर का दोषी है। जब मेरे भाई को मारा गया तो तू उनके साथ... ।”
"मेरा कोई दोष नहीं, वो मुझे अपने साथ... ।"
“शिखा के घर तक देवराज चौहान और जगमोहन को कौन लेकर गया...?"
"मैं... मैं देवेन साहब! मैं उन्हें ना ले जाता तो वो मुझे गोली मार...।"
“तो मर जाता तू। तेरी जिन्दगी ज्यादा जरूरी थी या मेरे भाई की। तू भी मेरे भाई की मौत का जिम्मेवार है। मैं तेरे को भी नहीं छोड़ूंगा। अपने भाई की मौत का बदला तुम तीनों को मारकर लूंगा। मेरे भाई को...।”
खुदे ने घबराकर फोन बन्द किया। चेहरा फक्क था।
"वो मुझे नहीं छोड़ेगा।” खुदे सूखे होठों पर जीभ फेरकर बोला--- "मैं तुम लोगों के साथ था, साठी की हत्या के वक्त और...।"
"घबराता क्यों है, हम देवेन साठी को भी खत्म कर देंगे।" देवराज चौहान गुर्रा उठा।
खुदे मरा-सा खड़ा रहा।
"क्या हाल है भैया जी!" राधा कह उठी व्यंग से।
“मैं कैसी मुसीबत में फंस गया।” खुदे ने गहरी सांस ली--- “तुम लोग डकैती कब करोगे?"
"क्यों?" जगमोहन ने कठोर निगाहों से उसे देखा ।
"मैं डकैती में से अपना हिस्सा लेकर मुम्बई से खिसक जाना चाहता हूं।"
“मोना चौधरी को खत्म कर लें। उसके बाद डकैती करेंगे।" जगमोहन गुर्राया।
“वो कब खत्म होगी ?"
"वो यहां आ गई तो आज ही मर जायेगी। नहीं आई तो ज्यादा-से-ज्यादा कल तक वो मारी जायेगी।"
खुदे आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा। वो चिन्तित दिख रहा था।
■■■
मोना चौधरी, पारसनाथ, डिसूजा और पारसनाथ के तीन अन्य आदमी महाजन के घर की स्थिति को अच्छी तरह देख चुके थे। महाजन का मकान, मकानों की कतार में बीच का था और छतें ऊपर से जुड़ी हुई थीं। कहीं पर डबल मकान बने थे परन्तु महाजन के आस-पास के घर सिंगल ही थे। ऐसे में काफी-सोच-विचार के बाद ये फैसला हुआ कि छतों से जाकर वो महाजन के घर की सीढ़ियां उतरेंगे और भीतर पहुंचकर देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे को खत्म करेंगे। इस वक्त उनके पास मात्र एक ये ही रास्ता था।
मोना चौधरी ने कहा कि ये काम शाम को सवा पांच के बाद किया जायेगा, तब तक देवराज चौहान और जगमोहन परेशान हो चुके होंगे कि उनकी तरफ से अभी तक कुछ नहीं, क्यों नहीं हुआ?
जब ये योजना बनाई गई तो दोपहर का डेढ़ बज रहा था।
मोना चौधरी का फोन बजा तो उसने बात की।
कुछ मिनट बात करने के बाद, फोन बन्द करके उसने पारसनाथ से गम्भीर स्वर में कहा--- “पूरबनाथ साठी के भाई, देवेन साठी की खबर है। वो अफगानिस्तान से मुम्बई आ पहुंचा है अपने भाई की मौत की खबर सुनकर अब वो और उसके आदमी देवराज चौहान और जगमोहन को तलाश कर रहे हैं।"
“ये तो अच्छी बात है, हम देवराज चौहान के खिलाफ, देवेन साठी को साथ ले सकते हैं। उसे बता दें कि देवराज चौहान यहां पर है तो हमारी समस्या हल्की हो जायेगी। देवेन साठी सब कुछ सम्भाल लेगा और...।"
“पारसनाथ !” मोना चौधरी कह उठी--- “जल्दी मत करो। आराम से सोचो।"
"क्या मतलब?"
“देवेन साठी को देवराज चौहान से मतलब है, महाजन और राधा से नहीं। देवेन साठी यहां आ पहुंचा तो उसकी प्रतिशोध की भावना में महाजन और राधा भी पिस जायेंगे।" मोना चौधरी ने कहा।
पारसनाथ होंठ सिकोड़कर रह गया।
“महाजन और राधा की खैरियत इसी में है कि देवेन साठी को देवराज चौहान के यहां होने का पता ना चले।"
"तुम ठीक कहती हो।"
"शाम पांच बजे के बाद, छत के रास्ते हम महाजन के घर में घुसेंगे। तब तक यहां नज़र रखेंगे। देवराज चौहान को ये पता नहीं चलना चाहिये कि हम बाहर हैं, इसलिये महाजन के घर से थोड़ा दूर रहेंगे। मुझे नहीं लगता कि देवराज चौहान अब सलामत रह पायेगा। हमारे हाथों से बच गया तो देवेन साठी के हाथों से नहीं बचेगा। उसका तो काम हो ही गया समझो।"
■■■
तब शाम के चार बजे थे जब राधा की मेहनत से महाजन की कलाइयों के बंधन कट गये। परन्तु महाजन वैसे ही पड़ा रहा और कमरे में नजरें दौड़ाने लगा। उसके पीछे राधा उसकी तरफ पीठ किए लेटी थी। तभी तो वो फोन के पीछे वाले कवर से कलाइयों पर बंधे नाड़े को रगड़-रगड़कर काटे जाने में सफल हो पाई थी।
देवराज चौहान और जगमोहन कुर्सियों पर बैठे थे। उनके बीच सात-आठ कदम का फासला था। खुदे एक तरफ दीवार से सटकर नीचे फर्श पर बैठा था। काफी देर से वहां खामोशी छाई हुई थी। देवराज चौहान महाजन से चार कदम दूर कुर्सी पर मौजूद था।
“मैंने सुबह से कुछ खाया नहीं।" खुदे कह उठा--- “भूख लग रही है।"
"झूठ बोलता है।" राधा उसी पल कह उठी--- "फ्रिज में रखा सारा फ्रूट खा लिया तूने ।”
“चार सेब ही तो खाये हैं।” खुदे ने मुंह बनाकर कहा।
“और वो केले जो फ्रिज के ऊपर रखे थे। पूरे दर्जन थे, कल ही तो लाई थी और तुमने सारे खत्म कर दिए। ऊपर से कहते हो कि सुबह से कुछ खाया नहीं। फ्रिज में रखा दूध भी पिया है । मैं सब देख रही थी।"
"मैं रोटी-सब्जी की बात कर रहा हूं।"
“वो तो मैं तेरे को अभी बना देती हूं। हाथ खोल मेरे। आलू-मैथी काट रखी है। दस मिनट में बना देती हूं तब तक रोटियां भी उतर जायेंगी। कहेगा तो देशी घी के परांठे या अमूल मक्खन में परांठे बना दूंगी।"
“मैं तेरे हाथ नहीं खोलने वाला ।”
"भाई नहीं है तू मेरा...।"
"नहीं। मुझे इस तरह का भाई नहीं बनना कि तेरी खातिर जान गंवानी पड़े।"
"लोग तो बहनों के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटते और एक तुम हो कि...।"
खुदे जगमोहन से कह उठा।
"तुम्हें भूख नहीं लगी? कल से तुम दोनों ने कुछ खाया नहीं।"
"हमें भूख नहीं है।"
"तुम दोनों तो सोये भी नहीं। फिर भी पूरी तरह चुस्त दिख रहे हो। हैरानी है।” खुदे ने गहरी सांस ली--- “मोना चौधरी के बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा, वो आयेगी कि नहीं? सवा चार तो बज गये हैं।"
"नहीं आयेगी।" महाजन कह उठा।
"नहीं आई तो तुम और तुम्हारी पत्नी को जान गंवानी पड़ेगी।" देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"कितने कमजोर हो गये हो तुम देवराज चौहान!” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा--- "बेबी को पाने के लिए तुमने हमें बंधक बना लिया। आज पहली बार पता चला कि तुम कितने घटिया इन्सान हो।”
“मैंने तो पहले ही कहा था कि ये घटिया...।" राधा ने कहना चाहा।
तभी देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और कुर्सी से उठकर वो महाजन पर झपटा।
इस वक्त का ही तो इन्तज़ार था महाजन को। वो सोच चुका था कि उसे कैसे काम करना है अब ।
घूंसे की शक्ल में हाथ उठाते देवराज चौहान पास पहुंचा कि तभी महाजन बिजली की भांति तेजी से उछला और फर्श पर खड़ा हो गया। ऐसे होते पाकर, पास पहुंच चुके देवराज चौहान को कुछ समझ नहीं आया। महाजन तो बंधनों में बंधा था। उसके इस तरह उठ जाने की आशा तो किसी को भी नहीं थी, जबकि महाजन भारी खतरे में था, क्योंकि उसकी पिण्डलियां नाड़े से बंधी हुई थीं और वो जानता था कि उसे एक बार ही मौका मिलना था हरकत में आने का ।
देवराज चौहान के पास आते ही बाईं बांह देवराज चौहान की कमर के गिर्द लपेटकर उसे अपने साथ भींच लिया और फुर्ती से दायें हाथ से देवराज चौहान की जेब से रिवाल्वर निकालकर, उसकी कनपटी पर लगा दी।
ये सब कुछ मात्र चार पलों में ही हो गया।
सब स्तब्ध रह गये थे।
महाजन की बांह में जकड़ा देवराज चौहान छटपटा उठा।
"हिलना मत देवराज चौहान!" महाजन मौत से भरे स्वर में कह उठा ।
जगमोहन कुर्सी से उठ चुका था और रिवाल्वर हाथ में दिखने लगी थी।
खुदे भी हैरान-सा अपनी जगह खड़ा हो चुका था।
राधा ने करवट ले रखी थी और घबराई-सी ये सब देख रही थी। वो कह उठी---
“तुमने तो कमाल कर दिया नीलू...!"
"रिवाल्वर गिराकर पीछे हट जा कुत्ते।" जगमोहन दहाड़ उठा--- " वरना मैं तेरी बीवी को गोली मार दूंगा।”
"मैं देवराज चौहान को शूट कर दूंगा।" महाजन ने दांत भींचे कहा।
"मैं तेरी पत्नी को गोली मारने जा रहा हूं।" जगमोहन ने रिवाल्वर वाला हाथ सीधा किया।
“तू कभी भी देवराज चौहान की मौत नहीं चाहेगा जगमोहन ! ये मैं जानता हूं। इसलिये तू राधा को गोली नहीं मार सकता। अब अगर तू देवराज चौहान के जीवन की सलामती चाहता है तो रिवाल्वर फेंक दे।"
"मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा।" जगमोहन ने दांत पीसे ।
"वैसे भी तू मुझे कहां छोड़ने वाला... ।”
"तू मरेगा।” देवराज चौहान गुर्रा उठा।
"इस वक्त तो अपनी जान की परवाह कर देवराज चौहान!" महाजन का स्वर खतरनाक था--- "मेरी उंगली ट्रेगर पर है। अगर तूने जरा भी शरारत की तो वो अपने आप ही दब जायेगी और गोली तेरी कनपटी में। समझ गया ना...।"
देवराज चौहान के दांत भिंचे थे।
“रिवाल्वर फेंक ।" महाजन ने कठोर स्वर में कहा--- “वरना मैं देवराज चौहान को गोली मार दूंगा। उसके बाद जब तक तू मुझ पर गोली चलायेगा, तब तक मैं तेरे पे दो गोलियां चला चुका...।"
जगमोहन ने दांत पीसते हुए रिवाल्वर गिरा दी।
"मेरे पांवों के बंधन खोलो।" महाजन ने उसी लहजे में कहा।
जगमोहन सुर्ख आंखों से महाजन को घूर रहा था।
"जल्दी, वरना...।"
“खुदे!” जगमोहन गुर्राया--- “ये जो कहता है, वो कर।"
खुदे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और महाजन, देवराज चौहान की तरफ बढ़ा।
“वहीं रुक।” महाजन तेज स्वर में कह उठा।
खुदे थम गया।
"किचन से चाकू ला। हाथों से खोलेगा तो कोई गड़बड़ भी कर देगा तू।"
खुदे तुरन्त मकान के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया।
खुदे के लौटने तक वहां मौत का सन्नाटा छाया रहा।
महाजन हद से ज्यादा सतर्क था। वो जानता था कि अगर चूक गया तो उसकी और राधा की जिन्दगी खत्म। इसलिए वो देवराज चौहान को किसी भी तरह का मौका नहीं देना चाहता था।
खुदे सब्जी काटने वाला चाकू ले आया था। उसने महाजन को देखा।
“चल, पास आ ।” महाजन गुर्राया--- “बंधन काट। अगर पांवों को खींचने की चेष्टा की तो देवराज चौहान के सिर में गोली चल जायेगी।"
खुदे सूख रहे होंठों पर जीभ फेरता आगे बढ़ा और पास आकर झुका फिर चाकू से बंधन काट दिए। इसके साथ ही खुदे दो कदम पीछे हटकर खड़ा हुआ तो महाजन टांगें सीधा करता हुआ गुर्राया---
"राधा के बंधन काट ।”
खुदे राधा के पास पहुंचा और चाकू से उसके बंधन काटने लगा।
“आखिर तूने ही मेरे बंधन खोले।" राधा कह उठी--- “भगवान तेरे जैसा भाई, किसी बहन को ना दे।"
आजाद होते ही राधा फौरन बैड से नीचे खड़ी हो गई।
“दरवाजा खोल राधा!" महाजन ने कठोर स्वर में कहा--- “बाहर निकल जा ।"
"और तू...?"
“मैं भी आ रहा हूं।" महाजन की सतर्क निगाह जगमोहन पर थी।
"मैं तो तेरे साथ ही रहूंगी।" राधा ने कहा और आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया । दरवाजे पर ही खड़ी हो गई।
"दरवाज़े की तरफ चल देवराज चौहान! जैसे अब तक शराफत से रहा है, वैसे ही रहना, वरना ।”
"मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा हरामजादे!" जगमोहन दहाड़ उठा।
देवराज चौहान ने धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया था।
“शाबाश नीलू, शाबाश...।" राधा खुशी से भरे स्वर में कह उठी।
"ऐसे ही चलता रह देवराज चौहान!" महाजन दांत पीसकर कह उठा--- "तेरी जिन्दगी बच जायेगी, वरना मरेगा।"
देवराज चौहान और महाजन धीमे-धीमे दरवाज़े की तरफ बढ़ते रहे।
वो पल भी आया, जब दोनों खुले दरवाज़े पर जा पहुंचे। राधा एक कदम बाहर हो गई थी।
"देवराज चौहान! हमसे पंगा तेरे को बहुत भारी पड़ेगा। तू किसी भी हाल में बचने वाला नहीं। साठी का भाई देवेन साठी तुझे ढूंढ रहा है, दूसरी तरफ बेबी है। नहीं बचेगा तू । मैं चाहूं तो तुझे अभी शूट कर सकता हूं परन्तु इस वक्त मुझे इसी बात की खुशी है कि मैंने अपने को और राधा को बचा लिया। पर तू अब खुद को नहीं...।"
“मैं तुम सबको मार दूंगा।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
"क्यों नहीं। जैसे तू सबसे बड़ा गुण्डा है जो सबको मार देगा और तेरे से कोई जवाब नहीं मांगेगा। राधा बाहर का गेट खोल ।”
राधा फौरन गेट की तरफ लपकी और गेट खोल दिया।
महाजन ने देवराज चौहान को भीतर धकेलते हुए धक्का दिया और फुर्ती से बाहर निकलते हुए दरवाजे के पल्ले बन्द किए और कुण्डी लगाकर गेट की तरफ दौड़ा। रिवाल्वर जेब में डाल ली।
“भाग नीलू, भाग....।"
राधा और महाजन गेट से निकलकर भागे।
पीछे दरवाजा भिड़भिड़ाने की आवाज आई।
परन्तु चन्द कदम दौड़ने के पश्चात दोनों को ठिठक जाना पड़ा।
सामने पारसनाथ, मोना चौधरी डिसूजा और तीनों आदमी आते दिखे। उन्होंने दूर से महाजन के घर का दरवाजा खुलते, राधा को बाहर निकलते, फिर महाजन को तेजी से बाहर आते देख लिया था।
“मोना चौधरी, परसू भैया...!" राधा के होठों से निकला।
"मेरा भी ये ही ख्याल था बेबी कि तुम बाहर ही होगी।" महाजन जल्दी से कह उठा--- "मैं बाहर का दरवाजा बन्द कर आया हूं वो लोग कभी भी दरवाजा तोड़कर बाहर आ सकते हैं। हमें यहां से निकल... ।”
“महाजन! ये तो हमें बढ़िया मौका मिल गया। हम अब खुलकर देवराज चौहान का मुकाबला...।"
"इस वक्त यहां से निकल चलो बेबी, ये मेरा घर है, गोलियां चलीं तो मेरे लिए मुसीबत खड़ी हो जायेगी।”
“लेकिन...।” मोना चौधरी ने कहना चाहा।
"महाजन ठीक कहता है।" पारसनाथ गम्भीर स्वर में बोला--- “यहां गोलियां चली तो पुलिस महाजन के पीछे पड़ जायेगी।"
मोना चौधरी दांत भींचकर रह गई।
"उस तरफ चलो। वहां कारें खड़ी हैं।" पारसनाथ ने कहा।
वे सब कारों की तरफ दौड़ते चले गये। जबकि मोना चौधरी गुस्से में आ गई थी कि इतना बढ़िया मौका देवराज चौहान को खत्म करने का, हाथ से निकल रहा है।
■■■
दरवाजा तोड़कर देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे बाहर निकले। खुदे के हाथ में महाजन का नोटों वाला ब्रीफकेस दबा था। देवराज चौहान और जगमोहन के हाथों में रिवाल्वरें थीं। चेहरे सुलग रहे थे। वो रिवाल्वरें थामे घर से गली में निकल आये। ज्यादा लाल हो चुकी आंखें आग बरसा रही थीं जैसे ।
बाहर उन्हें कोई नहीं दिखा।
“भाग गये दोनों।" जगमोहन दांत पीसे गुर्रा उठा--- "अब वो हरामजादी हाथ नहीं आने वाली। हमने बढ़िया मौका खो दिया।"
वहां से निकलते लोगों ने उनके हाथों में रिवाल्वरें देखीं तो तेजी से खिसक गये।
"महाजन ने अपने बंधन कैसे खोल लिए?” देवराज चौहान दांत किटकिटा उठा।
"मैंने तो बढिया ढंग से बांधा था।" खुदे कह उठा ।
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर पड़ा।
“मुझे क्यों मार रहे...।”
"तुमने बंधन ठीक से नहीं बांधे, तभी तो वो...।"
“मैंने ठीक से बांधे थे।” खुदे ने तड़पकर कहा--- “मुझे मत मारा करो।"
तभी सामने से आता एक बूढ़ा व्यक्ति उनके पास रुकता कह उठा---
"क्या हुआ? क्या बात है?"
“अबे निकल ले।” खुदे जल्दी से कह उठा--- "क्यों मरना चाहता है।"
बूढ़ा तेजी से आगे बढ़ गया।
“चलो यहां से।" देवराज चौहान रिवाल्वर जेब में रखता कह उठा।
जगमोहन ने भी रिवाल्वर जेब में रखी।
तीनों आगे बढ़ गये।
“कार उस तरफ खड़ी की थी हमने।" खुदे बोला। ब्रीफकेस उसके हाथ में था।
जल्दी ही वे कार तक पहुंचे। जगमोहन ने ड्राइविंग सीट सम्भाली, देवराज चौहान बगल में और खुदे पीछे वाली सीट पर बैठा तो कार आगे बढ़ा दी गई। देवराज चौहान और जगमोहन बहुत गुस्से में थे।
“कल रात से उन दोनों को दबाए बैठे थे और जब वक्त पास आया तो वे हाथों से निकल गये।” देवराज चौहान क्रोध से कह उठा।
“गलत हुआ। अगर मोना चौधरी वहां ना आती तो उन दोनों को मारकर हम मोना चौधरी को तगड़ी चोट दे सकते थे।"
“वो बचेगी नहीं।” देवराज चौहान गुर्रा उठा।
“कुतिया को बहुत बुरी मौत मारेंगे।"
“जो भी हुआ अच्छा हुआ।" खुदे प्रसन्न स्वर में बोला--- “ये नोटों वाला ब्रीफकेस तो हाथ लग गया।"
तभी देवराज चौहान ने पीछे होते हुए गुस्स से हाथ घुमाया।
हाथ खुदे के गाल से टकराता बाल-बाल बचा।
"अब क्या हो गया?" खुदे ने गुस्से से कहा।
"तूने कहा, मोना चौधरी का हाथ ना आना अच्छा रहा...।"
"मैंने कब कहा?"
"अभी कहा कमीने... तू...।”
"मैंने ये नहीं कहा। ये कहा कि ब्रीफकेस के नोट हाथ लग गये। कुछ तो मिल ही गया।" खुदे ने झल्लाकर कहा।
“हमें नोटों की नहीं, उस हरामजादी मोना चौधरी की जरूरत...।"
"वो तो ठीक है, पर नोटों की वजह से मैं थोड़ा-सा खुश हो गया, तो तुम्हें क्यों तकलीफ हो गई। आखिर इसमें से पांच लाख मेरे हैं। मैं तुम दोनों को इसलिए सहन कर रहा हूं कि तुम्हारे साथ मिलकर डकैती करनी...।"
“चुप कर साले ।” कार ड्राइव करता जगमोहन गुर्रा उठा--- “वरना कार रोककर मारूंगा।"
खुदे नाराजगी भरे अन्दाज में खामोश हो गया।
कार तेजी से दौड़ी जा रही थी।
“अब मोना चौधरी को कहां तलाश करें?" जगमोहन बोला।
“वो अब आसानी से नहीं मिलेगी। मुझे पूरा विश्वास है कि महाजन, पारसनाथ के साथ वो किसी सुरक्षित जगह पहुंच चुकी होगी, जहां हम आसानी से ना पहुंच सकें।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा ।
"मैं कुछ कहूं?" खुदे कह उठा।
चुप रहे दोनों।
“देवेन साठी अफगानिस्तान से मुम्बई आ पहुंचा है अपने भाई की मौत की खबर सुनकर। वो अपने आदमियों के साथ हम लोगों को ढूंढ रहा है। तुम लोगों ने मुझे भी मुसीबत में डाल दिया है। देवेन साठी कहीं हमसे ना टकरा जाये, उधर मोना चौधरी चूहे की तरह छिपने वाली नहीं। तुम लोग उसके पीछे पड़े हो तो वो भी तुम लोगों को ढूंढेगी। मतलब कि मुसीबत तो अब शुरू हुई है। देवेन साठी और मोना चौधरी से कब तक बचोगे, जबकि तुम लोग सड़कों पर भागते फिर रहे...।"
"हमें किसी का डर नहीं ।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
"मुझे तो है। मैं...।"
"चुप कर...।"
"बात तो सुन लो। तुम लोगों का इस तरह खुले में घूमना खतरे से खाली नहीं। अच्छा ये ही होगा कि चुपचाप कहीं पर टिक जाओ और मैं खामोशी से मोना चौधरी के ठिकाने का पता लगाने की कोशिश करता हूं। जहां वो होगी, पता लगते ही वह पहुंच जाना और उसे मार देना।" खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- “अग तुम दोनों इस तरह खुले में घूमते रहे और मैं भी तुम लोगों के साथ हूं तो हम तीनों की खैर नहीं, वो हमसे कहीं भी टकरा जायेंगे। मोना चौधरी के बारे में तो कुछ नहीं कह सकता, परन्तु देवेन साठी मिल गया तो हम बचने वाले नहीं।"
“हम किसी से नहीं डरते। जो भी हमारे सामने आयेगा, वो कुत्ते की मौत मरेगा।” देवराज चौहान गुर्राया।
"ऐसा मत कहो, तुम भगवान से लिखवाकर नहीं लाये कि तुम्हें कोई नहीं मार सकता। जो मैंने कहा है, उस बारे में सोचो। तुम लोग कहीं छिप जाओ। आराम करो। तब तक मैं मोना चौधरी के बारे में खबर पाने की चेष्टा करता हूं।”
“रिवाल्वर दे।” देवराज चौहान बोला।
"रिवाल्वर ?” खुदे ने देवराज चौहान को देखा।
"जो तूने नोटों वाले ब्रीफकेस से निकाली... ।”
"मेरे पास रहने दो। कभी खतरा आ सकता... ।”
"मेरे पास रिवाल्वर नहीं है।” देवराज चौहान ने दांत पीसे--- “महाजन ले गया। रिवाल्वर दे।"
खुदे ने जेब से रिवाल्वर निकालकर दे दी।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर जेब में रखी और सीधा होकर बैठ गया।
कुछ पल खामोशी रही।
“मेरी कही बात के बारे में सोचो। वो सुरक्षित रास्ता है।" खुदे बोला।
“तू क्या चाहता है?" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा--- “खुदे की बात सुनी?"
"सुनी, पर फैसला तुमने ही करना है।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
"हम कहां ढूंढे मोना चौधरी को ?"
"पारसनाथ या मोना चौधरी के ठिकाने पर...।"
"वो वहां नहीं होंगे।" देवराज चौहान कह उठा।
"मतलब कि उन लोगों ने सुरक्षित जगह पनाह ले ली होगी।" जगमोहन खतरनाक स्वर में बोला।
"हां। वो अब छिपने वाले नहीं। मोना चौधरी हर हाल में हमें ढूंढकर हमें मारना चाहेगी।” देवराज चौहान गुर्राया--- "जबकि हम भी उसे ही ढूंढ रहे हैं, परन्तु वो नहीं मालूम कहां मिलेगी। उसे ढूंढने में लम्बा वक्त लग सकता है।"
“तो इसकी बात मान लेते हैं। ये मोना चौधरी को ढूंढकर हमें बतायेगा।” जगमोहन ने कहा।
देवराज चौहान ने गर्दन घुमाई और लाल आंखों से पीछे बैठे खुदे को देखा।
खुदे ने चेहरा पीछे कर लिया कि देवराज चौहान का हाथ ना घूम जाये।
“तू मोना चौधरी को ढूंढ लेगा ?"
“पक्का ।” खुदे ने जल्दी से कहा--- “हमारा ये तरीका ठीक रहेगा।"
“शाम हो गई है। रात होने वाली है। सुबह तक तू हमें बतायेगा कि मोना चौधरी कहां है।"
“ये वक्त कम रहेगा। अकेला बन्दा हूं और पूरे मुम्बई में उसे ढूंढने में वक्त लगेगा।”
“रात-रात में ढूंढ उसे और हमें बता।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
खुदे चुप रहा।
“जाना कहां है? कहां पर ठहरें हम ?" देवराज चौहान बोला।
“बिल्ले के यहां, मेरा दोस्त है। इस मामले में तो पूरी तरह भरोसे का है। मैं अभी उसे फोन करता हूं।”
■■■
बिल्ला, हरीश खुदे का ही हमउम्र था। दोनों पन्द्रह साल के थे, जब से वो दोस्त थे। हर वक्त बिल्ला हीरो की तरह सज-धजकर रहता था। सफेद पैंट और काली कमीज उसका पसन्दीदा लिबास था। रोज सुबह शेव बनाता था, जबकि उसका चेहरा चूहे की तरह लगता था। बालों को बढ़िया तरीके से संवारकर रखता था, परन्तु उसके बाल चिड़िया के घोंसले की तरह लगते थे। काम के नाम पर जाने क्या करता था, परन्तु अपना खर्चा-पानी चला रहा था।
बिल्ला घर पर ही था। खुदे ने फोन पर बात कर ली थी।
वो खुदे की तरह ही एक कमरे के घर में रहता था। जो कि कभी उसके बाप ने खरीदा था अब वो इस दुनिया में नहीं था। खुदे, देवराज चौहान और जगमोहन के साथ जब बिल्ले के घर पहुंचा तो अन्धेरा होने जा रहा था।
बिल्ले को अपने इन्तजार में मौजूद पाया।
“दो दिन से तू कहां है खुदे, बेचारी टुन्नी को तेरी चिन्ता... ।" उसे देखते ही बिल्ले ने कहना चाहा।
"टुन्नी की तो चिन्ता मत कर।" मन-ही-मन कुड़कर खुदे ने कहा।
बिल्ले ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा। उनकी लाल हो रही आंखों और चेहरे पर उभरे गुस्से को देखा तो सम्भल-सा गया। खुदे बिल्ले के कन्धे पर हाथ रखकर बोला--- "रात ये यहीं रहेंगे।"
"ठ... ठीक है। तू कहता है तो ठीक है।"
कमरे में पुराना-सा डबलबेड, दो कुर्सियां और लंगड़ा जैसा सैंटर टेबल था ।
देवराज चौहान और जगमोहन कुर्सियों पर बैठ गये।
"कुछ खाने-पीने का इन्तजाम...।”
"मेरे पास तो पैसे नहीं हैं।"
"मेरे पास हैं, तू बाजार से सामान ले आना...।" खुदे बोला।
"एक मिनट जरा सुन तो।” बिल्ला, खुदे को साथ में बाहर चलने का इशारा करते बोला।
दोनों कमरे के दरवाजे के बाहर जा खड़े हुए।
"तू किस चक्कर में है?" बिल्ला धीमे स्वर में बोला--- "अण्डरवर्ल्ड किंग साठी की हत्या कर दी किसी ने और उसका भाई देवेन साठी तुझे ढूंढता तेरे घर आया था। क्या कर दिया तूने?"
“खामखाह ही रगड़े में आ गया।" खुदे ने गहरी सांस ली।
"टुन्नी बहुत परेशान...।"
“यार, तू टुन्नी की बात मत किया कर।" खुदे झल्लाया--- “मेरी बात कर, देवेन साठी की बात कर, पर टुन्नी की नहीं।"
"क्या किया है तूने?"
"कुछ भी नहीं किया। खामखाह ही बदनाम हो गया।"
"टुन्नी भी यही कह रही...।"
"फिर टुन्नी ? मेरी पत्नी का नाम तू बार-बार क्यों लेता है।" खुदे ने सड़े स्वर में कहा।
"ठीक है, ठीक, है, पर हुआ क्या जो देवेन साठी तुझे तलाश करता तेरे घर तक आया।"
"जब साठी को मारा तो मैं इन दोनों के साथ था। बस, इसी वजह से फंस गया और...।"
"ओह, पूरबनाथ साठी को इन्होंने मारा?" बिल्ला सम्भला।
"हां। जानता है कि ये कौन हैं?"
"कौन हैं?"
“डकैती मास्टर देवराज चौहान है।" खुदे धीमे स्वर में बोला।
“डकैती मास्टर ओह... ।” बिल्ला फौरन कह उठा--- "टुन्नी ने देवराज चौहान का नाम तो बताया था मुझे परन्तु मैं समझ...।"
“तू टुन्नी को बीच में लाये बिना बात नहीं कर सकता।" खुदे ने शिकायती स्वर में कहा।
"टुन्नी का नाम ले लिया तो क्या आफत आ...।"
" तूने टुन्नी को फाइव स्टार में डिनर कराने को कहा...।"
“तो तुझे बता दिया टुन्नी ने। पर मैंने तो मजाक में कहा था। मेरे पास इतने पैसे कहां कि... ।”
“तूने कहा तो, अगर वो चल पड़ती तो?"
“वो बेशक चल पड़ती, पर मैं तो ना चलता। खाली जेब हूं। वो तो यूं ही टुन्नी को टटोल रहा था।"
“क्या टटोल रहा था?” खुदे ने आंखें निकालीं।
“उसका मन ।” बिल्ला मुस्कराया--- “देखना चाहता था कि वो तुझे कितना चाहती...।”
“देख लिया...।”
“ देखना क्या है, वो तो मुझे पहले ही पता था ।"
"सीधा हो जा। नहीं तो तेरा घर आना बंद करा दूंगा।"
“ये बातें छोड़। ये बता कि देवराज चौहान को देवेन साठी ढूंढता फिर रहा है, फिर तू इनके साथ क्यों रहने का खतरा ले...!“
"अक्ल नहीं है तेरे में। डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथ रहूंगा तो दौलत मिलेगी। तू भी कमायेगा दौलत?"
“क... कैसे ?"
"मोना चौधरी का नाम सुना है, वो इश्तिहारी मुजरिम है और...।"
"सुना है।"
"उसका पता कर कि वो कहां है, ये पता कर लिया तो एक लाख मिलेगा।"
"एक लाख ?" बिल्ले की आंखें चमक उठीं।
"बहुत आसान काम है। लग जा इस काम पर। रात को सोने की जरूरत नहीं। मैं भी ये ही काम करने जा रहा हूं।"
"लेकिन पता लगाकर करना क्या है? देवराज चौहान को बताना है?"
"हां। देवराज चौहान और मोना चौधरी का कुछ लोचा हो गया है। तेरे को जानने की जरूरत नहीं। तू सिर्फ मोना चौधरी का पता लगा और मुंह बन्द रखना कि देवराज चौहान यहां है, वरना तू भी जायेगा दुनिया से।”
"मैं किसी को क्यों बताने लगा। इन दोनों में देवराज चौहान कौन है?"
"जो इधर की कुर्सी पर बैठा है।"
"और दूसरा...।"
"वो जगमोहन है, देवराज चौहान का साथी... ।"
“उस ब्रीफकेस में नोट हैं, जो तूने भीतर रखा...।"
"उसकी तरफ देख भी नहीं। ब्रीफकेस में बम लगा रखा हैं। ब्रीफकेस खोलते ही बम फटेगा और खेल खत्म। ये ही बम वाला ब्रीफकेस तो मोना चौधरी को देना है देवराज चौहान ने ।”
"ओह। अगर वो बम अभी फट गया तो?" बिल्ला परेशान हो गया।
"ऐसे नहीं फटेगा। ब्रीफकेस के साथ छेड़छाड़ की गई या उसे खोला गया तो फटेगा। तू उससे दूर रहना।”
"मैं... मैं क्यों उसे हाथ लगाने लगा।"
तभी भीतर से जगमोहन आया और कठोर स्वर में बोला--
"तू यहां वक्त बरबाद कर रहा है।"
"मैं इसे भी मोना चौधरी की तलाश में लगा रहा हूं।” खुदे जल्दी से बोला ।
"जाकर मोना चौधरी को ढूंढ...।” जगमोहन ने कहा और वापस कमरे में चला गया।
“इसकी आंखें लाल क्यों हैं? ये इतना गुस्से में क्यों है?”
"बोला तो मोना चौधरी के साथ लोचा हो गया है। मोना चौधरी पर गुस्सा आया हुआ है।"
"अच्छा-अच्छा...।"
"अब यहीं खड़ा रहेगा या मोना चौधरी को ढूंढेगा। ये पता करना है कि वो कहां पर है और आकर देवराज चौहान को बता देना।"
"हम दोनों एक साथ ये काम करते हैं।” बिल्ले ने कहा।
“यहां से इकट्ठे चलते हैं। बाकी बातें रास्ते में करेंगे कि काम कैसे करना है।"
"मैं टुन्नी को भी बता दूंगा कि तू रात घर पर नहीं आयेगा। वो तेरी चिन्ता करेगी।” बिल्ला एकाएक कह उठा।
"फिर तूने टुन्नी का नाम लिया।" खुदे उखड़ा--- “तू टुन्नी को भूल क्यों नहीं जाता...।”
बिल्ले ने गहरी सांस ली।
"गहरी सांस क्यों ली ?"
“छाती में कुछ अटक गया था, वो साफ किया है।" बिल्ले ने अनमने मन से कहा।
"टुन्नी तो नहीं अटकी छाती में...।” खुदे ने जल-भुनकर कहा।
“वो अटकी होती तो मैं कब का खुशी से मर गया होता।"
"क्या कहा, तू... ।"
"मेरा मतलब है मैं कब का मर गया होता। अब तो मुझे सांस ही नहीं आता।" बिल्ले ने जल्दी से कहा।
तभी खुदे का मोबाइल बज उठा ।
"हैलो...।” खुदे ने बात की।
“अब आ जाओ। रात हो गई है।" उधर से टुन्नी की आवाज आई--- "मटर-पनीर की एक ही कटोरी पड़ी है, तुम्हारे इन्तज़ार में मैं मटर-पनीर ही खाती जा रही हूं और कुछ भी नहीं बनाया। कब तक आओगे ?”
"टुन्नी है?" पास खड़े बिल्ले ने मुस्कराकर कहा।
खुदे ने बिल्ले को घूरा फिर उसकी तरफ पीठ करके बात की।
“आज रात तो नहीं आ पाऊंगा।”
“क्यों, तुम तो ऐसे गायब हुए कि... ।”
"देवराज चौहान के साथ हूं।"
"उससे रात भर की छुट्टी लेकर आ जाओ।"
"छुट्टी लेने वाली बात नहीं है। काम अर्जेन्ट है। देवेन साठी दोबारा आया था क्या?"
"वो तो नहीं आया, पर अपने दो आदमी छोड़ गया है। वो घर पर नजर रखे रहते हैं। शाम को जब मैं गोल गप्पे खाने बाजार गई तो एक मेरे पीछे लग गया। नजर रखी उसने मुझ पर।"
"वो देख रहा होगा कि कहीं तुम मुझसे मिलने तो नहीं जा रही।" खुदे ने चिन्तित स्वर में कहा।
"उन्हें हटाओ अपने घर के पास से... ।” टुन्नी की आवाज आई।
“ये मेरे बस का काम नहीं है, मैं तो...।"
तभी पास खड़ा बिल्ला कह उठा---
"जो काम तुम्हारे बस का नहीं, वो मुझे कह दो। मैं कर दूंगा।”
खुदे ने गुस्से से उसे देखा ।
“क्या कह रही है टुन्नी ?” बिल्ला पुनः बोला।
"ये तो बिल्ले की आवाज है।" उधर से टुन्नी ने कहा--- "तुम तो कह रहे थे कि देवराज चौहान के साथ...।"
"देवराज चौहान के साथ ही हूं पर अभी हम बिल्ले के घर पहुंचे हैं। थोड़ी देर के लिए सुरक्षित जगह चाहिये थी...।”
"टुन्नी को भी यहीं बुला लो।” बिल्ला कह उठा।
“साले चुप कर जा तू...।” खुदे बिल्ले पर गुर्रा उठा ।
"क्या कह रहा है?" उधर से टुन्नी ने पूछा।
“पागल है, तुम्हारा जिक्र आते ही फूलों की तरह खिल जाता है। हर बात पर टुन्नी-टुन्नी कहता...।"
“इससे जरा दूर ही रहो।" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी--- "शाम को जब मैं गोल-गप्पे खा रही थी तो ऊपर से ये आ गया। वहीं-कहीं होगा। कहने लगा मैं घर पर ही ला देता। तुमने बाजार आने की तकलीफ क्यों की। मैंने कहा तुम यहां क्या कर रहे हो तो कहने लगा यहां से निकल रहा था कि तुम पर नजर पड़ गई। पर मुझे पता है ये घर के पास ही मंडरा रहा होगा।"
“इसके लठ चढ़ाऊंगा।” फोन पर कहते हुए खुदे ने कठोर निगाहों से बिल्ले को देखा।
"ओह याद आया, तुम्हारे लठ का क्या हुआ जो चढ़ा हुआ था। उतरा कि नहीं ?"
"वो आसानी से उतरने वाला नहीं। तू मेरी बात सुन देवेन साठी मुझे तलाश कर रहा है। उसके आदमी भी तलाश कर रहे होंगे मुझे। मैं खतरे में हूं और घर नहीं आ पाऊंगा। हो सकता है हमें मुम्बई ही छोड़ना पड़े। तू सामान बांधे तैयार रह। जैसा वक्त होगा वैसा कर लेंगे। एक-दो दिन में हालात पता चल जायेंगे।"
"मैं भी साथ चलूं?" पास खड़ा बिल्ला कह उठा--- "इधर मुम्बई में तो कुछ भी नहीं रखा।”
"रात को नहीं आओगे ?” उधर से टुन्नी ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मुझे नींद कैसे आयेगी।”
खुदे ने फोन बन्द करके जेब में रखा और कठोर नज़रों से बिल्ले को देखने लगा।
"मैं भी सामान बांध लूं, टुन्नी यहां से जायेगी तो, मैं इधर क्या... I"
“यहां से चल ।” खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- “तेरे से बात करता... ।"
तभी देवराज चौहान दरवाजे से बाहर निकलता कह उठा---
"तुम अभी तक यहीं हो?"
“जा रहे हैं।" कहने के साथ ही खुदे, बिल्ले को लिए वहां से आगे बढ़ गया।
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मोना चौधरी, पारसनाथ, राधा और महाजन वहां से पारसनाथ के एक फ्लैट में पहुंचे थे जो कि खाली पड़ा था, परन्तु जरूरत का सारा सामान वहां मौजूद था। डिसूजा और तीनों आदमियों को रेस्टोरेंट भेज दिया था।
राधा ने कॉफी बनाकर सब को दी।
उनकी बातों का केन्द्र देवराज चौहान ही बना हुआ था। मोना चौधरी बेहद गुस्से में थी।
“मोना चौधरी !” पारसनाथ ने कठोर स्वर में कहा--- “देवराज चौहान ने तो हद ही कर दी। तुम्हें मारने के लिए वो किसी के साथ भी रियायत करने के हक में नहीं है। वो गुण्डों की तरह पेश आ रहा है...।"
"वो मरेगा पारसनाथ...!" मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी--- "वो अब...।"
"ये भी नहीं बता रहा कि वो हमारे पीछे क्यों है मोना चौधरी !" राधा कह उठी।
"अब मुझे जानना भी नहीं है कि वो मुझे क्यों मारना चाहता है।" मोना चौधरी गुर्रा उठी--- "अब मैंने मारना है देवराज चौहान को।"
महाजन और पारसनाथ की नज़रें मिलीं।
"उसे खत्म करना पड़ेगा।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं उसके पागलपन का रूप देख चुका हूं। वो मुझे और राधा को छोड़ने के हक में नहीं था और छः बजते ही अवश्य मार देता हमें। कल रात बेबी के फ्लैट पर जा पहुंचा। बेबी कठिनता से बचकर निकल सकी वहां से। कल शाम वो तुम्हारे रेस्टोरेंट में मेरे साथ आया और... ।"
"हम सबकी राय एक ही है कि देवराज चौहान को खत्म कर दिया जाये।" पारसनाथ कह उठा।
तीनों देवराज चौहान को खत्म करने की बात से सहमत थे ।
"हमें ये पता लगाना है कि देवराज चौहान कहां मिलेगा।” मोना चौधरी ने कठोर स्वर में कहा।
"उसका ठिकाना हम नहीं जानते।" पारसनाथ ने कहा।
“इतना सब कुछ होने के बाद वो अपने ठिकाने पर जाने वाला नहीं।" महाजन ने कहा--- "फिर भी उसका ठिकाना हम सोहनलाल से जान सकते हैं। जो व्यवहार देवराज चौहान ने हमारे साथ किया है, वैसा ही हम सोहनलाल से कर... ।”
"वो नहीं बतायेगा देवराज चौहान का ठिकाना।"
“साले को उठा लायेंगे।” महाजन कड़वे स्वर में बोला--- “देखते हैं कब तक नहीं बताता।"
पारसनाथ के चेहरे पर कठोरता मचल उठी।
"लेकिन हमें देवेन साठी से बात कर लेनी चाहिये।" महाजन ने पुनः कहा--- "वो भी देवराज चौहान का शिकारी है और हम भी उसे मारना चाहते हैं। उससे बात कर लेने का उसे भी, हमें भी फायदा ही मिलेगा।"
"देवेन साठी से बात करने की क्या जरूरत... ।"
“जरूरत है बेबी! जो वो कर रहा है, वो ही हम करने वाले हैं। वो भी देवराज चौहान को मारना चाहता है और हम भी उसे खत्म करना चाहते हैं। ऐसा ना हो कि किसी मोड़ पर देवेन साठी के साथ कोई गलतफहमी पैदा हो जाये। वो भी वहां पहुंच सकता है, जहां देवराज चौहान मिले और हम भी वहां पहुंच सकते हैं। कोई गलतफहमी हो गई तो उनसे ही हमारा टकराव हो जायेगा। इसका फायदा देवराज चौहान को मिल जायेगा। एक बार उससे बात कर लेना जरूरी है। हो सकता है उसे ये अच्छा ना लगे कि हम देवराज चौहान को मारें। वो अपने भाई की मौत का बदला खुद लेना चाहता हो। देवेन साठी मुम्बई अण्डरवर्ल्ड किंग है। देवराज चौहान के चक्कर में कहीं हम उसे ही अपना दुश्मन ना बना लें। ऐसा हुआ तो उसे निपटने में हमारा बहुत वक्त खराब होगा। हमें भी नुकसान हो सकता है।”
“बात तो तू ठीक कहता है नीलू! मुझे नहीं पता था कि तू इतना समझदार है।” राधा बोली।
"हमें महाजन की बात पर गौर करना चाहिये।" पारसनाथ बोला।
“मेरे पास देवेन साठी का फोन नम्बर नहीं है।” मोना चौधरी होंठ भींचे कह उठी।
“उसका इन्तजाम तो मैं कर देता हूं।” महाजन ने कहा और मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगा।
वहां खामोशी छाई रही।
नम्बर लगा बात हो गई।
“गिरी... ।” महाजन ने कहा--- “देवेन साठी के मोबाइल नम्बर का पता लगा। उससे बात करनी है।"
“लफड़ा है क्या ?" उधर से गिरी ने पूछा।
“नहीं। सब ठीक है। तू जल्दी से...।”
"वो देवराज चौहान को मारने के वास्ते दौड़ा फिर रहा है, देवराज चौहान ने उसके भाई को... ।"
"मालूम है, सब मालूम है। तू देवेन साठी के फोन नम्बर का पता करके बता मुझे...।” महाजन ने कहा और फोन बन्द कर दिया।
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