डीसीपी पाटिल और नीलेश मौकायवारदात पर पहुंचे ।

डीसीपी वर्दी में नहीं था इसलिये उसे उम्‍मीद थी कि उसे वहां कोई पहचानने वाला नहीं था । पूछे जाने पर वा खुद को पत्रकार बता सकता था जो कि इत्‍तफाक से पहले से आइलैंड पर मौजद था ।

नीलेश यूं डीसीपी के वहां आने के हक में नहीं था ।

उस वक्‍त मौकायवारदात पर कई पुलिसिये मौजूद थे और पुलिस जीप के करीब एक एम्‍बूलेंस भी खड़ी दिखाई दे रही थी । उसके पिछले दोनों पट खुले थे जिनकी वजह से फासले से भी भीतर झांका जा सकता था ।

एम्‍बूलेंस फिलहाल खाली थी ।

परे रेलिंग के पास दयाराम भाटे खड़ा था जो कि एक सब-इंस्‍पेक्‍टर के रूबरू था । दोनों में कोई वार्तालाप जारी था जिसमें सब-इंस्‍पेक्‍टर वक्‍ता था और भाटे श्रोता था जो कि रह रहकर संजीदगी से सहमति में सिर हिला रहा था ।

उधर से तवज्‍जो हटा कर नीलेश डीसीपी की तरफ घूमा 

डीसीपी उसके पहलू में मौजूद नहीं था । उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई तो पाया वो रेलिंग के पार की ढ़लान उतरा जा रहा था 

नीलेश व्‍यग्र भाव से सोचने लगा ।

उसे वहीं ठहरना चाहिये था या डीसीपी के पीछे लपकना चाहिये था !

उसकी अक्‍ल ने यही फैसला किया कि उसे वहीं बने रहना चाहिये था । डीसीपी अपने साथ उसकी हाजिरी चाहता होता तो उसे साथ ले कर जाता ।

पांच मिनट में डीसीपी वापिस लौटा ।

“एक निगाह में एक्‍सीडेंट ही जान पड़ता है” - वो संजीदगी से बोला - “एक सैंडल रेलिंग के पास जरा ही दूर पड़ी मिली । शायद उसी की वजह से लड़खड़ाई और गिर पड़ी । गिरी तो लुढ़कती चली गयी । स्‍लोप बहुत स्‍टीप है इसलिये ढ़लान पर लुढ़कते पत्‍थर की तरह रफ्तार पकड़ती गयी जिसको तभी ब्रेक लगी जबकि सिर जाकर चट्‌टान से टकराया । खोपड़ी तरबूज की तरह खुली पड़ी थी ।”

“सर, किसी न आपको टोका नहीं ?”

“कौन टोकता ! कमीने ड्‌यूटी की तरह ड्‌यूटी करें तो टोकने लायक कुछ दिखाई दे न ! लाश से परे खडे़ दो जने यूं हंस हंस के गप्‍पे हांक रहे थे जैसे बारात में आये हों और एम्‍बूलेंस वालों के स्‍ट्रेचर के साथ नीचे पहुंचने का इंतजार कर रहे थे ।”

“सर, लेकिन जब पुलिस इसे कत्‍ल का केस तसलीम कर भी चुकी है तो....”

“राइट ! राइट ! मैंने वो नतीजा बयान किया जो फर्स्‍ट इंस्‍टेंस में सूझता था, जो रेलिंग के पास पड़ी सैंडल सुझाती थी ।”

“ओह ! सर, अधिकारी साहब ने ये भी तो कहा था कि कातिल गिरफ्तार हो भी चुका है !”

“हां, कहा तो था !”

“कौन होगा बद्‌नसीब ?”

“बद्‌नसीब !”

“सर, लड़की अगर किसी फाउलप्‍ले का शिकार होकर मरी हो तो बद्‌नसीब ही तो !”

“तुम्‍हारा मतलब है कत्‍ल किसी और ने किया और थोपा किसी और के सिर जा रहा है ?”

“गुस्‍ताखी माफ, सर, क्‍या बड़ी बात है ! इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के निजाम में यहां जो न हो जाये, थोड़ा है ।”

“ठीक ! वो रेलिंग के पास खड़ा सब-इंस्‍पेक्‍टर केस का इनवैस्टिगेटिंग आफिसर जान पड़ता है । आओ, उससे बात करते है ।”

“सर, मैं भी !”

“क्‍यों नहीं ? ऐनी प्राब्‍लम ?”

“सर, उसके साथ जो सिपाही खड़ा है, वो प्राब्‍लम क्रियेट कर सकता है ।”

“तुम्‍हारे लिये ?”

“जी हां ।”

“देखेंगे ।”

नीलेश हिचकिचाया ।

“अरे, भई, मैं डिप्‍टी कमिश्‍नर आफ पुलिस हूं....”

“लेकिन अभी तो पत्रकार....”

“जरूरत पड़ने पर मै अपनी असलियत उजागर करूंगा तो क्‍या करेगा वो सिपाही या वो सब-इंस्‍पेक्‍टर ! मुझे बहुरूपिया करार देंगे ! मजाल होगी उनकी !”

नीलेश ने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया ।

“जायंट कमिश्‍नर साथ हैं-जो कि होम मिनिस्‍टर के खास हैं-सारा थाना लाइन हाजिर हो जायेगा । चलो ।”

नीलेश डीसीपी के साथ हो लिया।

वो करीब पहुंचे तो दोनों पुलिसियों ने उनकी तरफ देखा 

भाटे की नीलेश पर निगाह पड़ी तो उसके नेत्र फैले 

“साब जी” - एकाएक वो उत्‍तेजित भाव से बोला - “यही है वो आदमी ।”

“कौन आदमी ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी सकपकाया ।

“जो रात को मरने वाली की तलाश में सुनसान सड़कों पर मारा मारा फिरता था । मरने वाली के बोर्डिंग हाउस पर भी पहुंचा था जहां कि मेरी वाच की ड्‌यूटी थी । मेरे को उल्‍लू बनाकर उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में भी ले गया ताकि इसकी तसल्‍ली हो जाती कि वो भीतर सोई नहीं पड़ी थी ।”

“क्‍यों तलाश थी इसे रोमिला की ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर नेत्र सिकोडे़ नीलेश की तरफ देखता बोला ।

“बोलता था, उसके साथ डेट थी । डेट पर पहुंची नहीं थी इसलिये फिक्र करता था । मैं बोला भूल गयी होगी या डेट क्रॉस कर गयी होगी, ये फिर भी फिक्र करता था । साब जी, मेरे को रात को नहीं खटका था लेकिन अब खटक रहा है, इसकी तलाश में कोई भेद । हमे पूछताछ के लिये इसको थामना चाहिये ।”

“है कौन ये ?”

“आपको नहीं मालूम !”

“क्‍यों, भई ! मेरे पास सारे आइलैंड के बाशिंदो का रेडी रैकनर है !”

“ये कोंसिका क्‍लब का बाउंसर नीलेश गोखले है ।”

“अब नहीं हूं ।” - नीलेश सहज भाव से बोला 

“क्‍या बोला ?” - सब-इंस्‍पेक्‍टर बोला ।

“कल नौकरी से जवाब मिल गया । खडे़ पैर डिसमिस कर दिया गया ।”

“क्‍यों ?”

“पुजारा बोलेगा न ! पूछना ।”

“मै तुमसे पूछ रहा हूं ।”

“मुझे वजह नहीं मालूम । न उसने मुझे बताई ।”

“पूछी होती !”

“पूछी थी । उसने कोई जवाब नहीं दिया था ।”

“हूं । यहां क्‍यों आये ?”

“रोमिला के साथ जो बीती, वही लाई ।”

“खबर कैसे लगी ?”

“मेरे खयाल से तो सबको खबर है !”

“सवाल सबसे नहीं हो रहा, तुम्‍हारे से हो रहा है, तुम बोलो, खबर कैसे लगी ?”

“मेरे से लगी ।” - डीसीपी वार्तालाप में दखलअंदाज हुआ तो स्‍वभावगत दबंग लहजे से बोला ।

सब-इंस्‍पेक्‍टर सकपकाया, उसने गौर से डीसीपी की ओर देखा ।

“आपकी तारीफ ?” - फिर शुष्‍क स्‍वर में बोला ।

“मैं प्रैस रिपोर्टर हूं ।”

“लोकल !”

“मुम्‍बई से । लेकिन इत्तफाक से कल से आइलैंड पर हूं ।”

सब-इंस्‍पेक्‍टर ने संदिग्‍ध भाव से उसकी तरफ देखा, फिर उसकी निगाह उस पर से फिसली और गोखले पर पड़ी ।

“गोखले मेरा पुराना वाकिफ है ।” - ‍डीसीपी बोला - “इत्तफाक से इधर मिला । अभी ये मेरा लोकल गाइड है ।”

“जो कि मरने वाली से वाकिफ था, उसका फ्रेंड था । खास ।”

“खास !” - नीलेश की भवें उठीं।

“जब मरने वाली से डेट थी तो खास ही तो हुए !”

“मरने वाली मरी कैसे ?” - डीसीपी उतावलापन दिखाता बीच में बोल पडा - “एक्‍सीडेंट हुआ ?”

“एक्‍सीडेंट ! कौन बोला ?”

“कोई नहीं बोला । मेरे को ही ऐसा लगा ।”

“कब ?”

“अभी जब मैंने लाश देखी ।”

“लाश देखी ! सड़क पर से कहां दिखाई देती है लाश !”

“नीचे गया न !”

“नी-नीचे गये ! आप ढ़लान उतर कर लाश के पास तक गये ?”

“और मैं क्‍या बोला ?”

“किसी ने रेका नहीं ?”

“नहीं । दो भीङू थे तो सही वहां लेकिन उनको टाइम नहीं था मेरी तरफ तवज्‍जो देने का-क्‍योंकि ज्‍यादा जरूरी काम में मशगूल थे ।”

“ज्‍यादा जरूरी काम !”

“गप्‍पे मार रहे थे । लेकिन वो किस्‍सा फिर कभी । तो हादसा हुआ ?”

“खुदकुशी भी हो सकती है ।”

“खबर कैसे लगी ?”

“कोई इधर से गुजर रहा था, उसने लाश देखी, थाने फोन किया एक जिम्‍मेदार नागरिक की तरह ।”

“बहुत अच्‍छा किया । शाबाशी का काम किया । लेकिन कैसे देखी लाश ?”

“बोले तो ?”

“अभी तो आप कह के हटे हैं कि सड़क पर से लाश दिखाई नहीं देती !”

सब-इंस्‍पेक्‍टर के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।

“अरे, आम आदमी को नहीं दिखाई देती ।” - फिर बोला - “पांव पांव चलते को नहीं दिखाई देती । जिसने थाने फोन लगाया था, वो ट्रक ड्राइवर था, ट्रक चला रहा था । ट्रक की ड्राइविंग सीट कितनी ऊंची होती है ! नहीं मालूम ?”

“मालूम । सारी । तो ये खुदकुशी भी हो सकती है ?”

“हां ।”

“खुदकुशी की कोई वजह होती है ।”

“अभी कोई वजह सामने नहीं आयी । लेकिन होगी तो मालूम पड़ जायेगी । अभी तो तफ्तीश शुरू हुई है ।”

“ठीक ।”

“फिर मैंने कहा है ये खुदकुशी हो सकती है, गारंटी नहीं की कि है ।”

“आधी रात के कहीं बाद” - नीलेश बोले बिना न रह सका - “वो इस उजाड़ बियाबान जगह पर पहुंची, रेलिंग पर चढ़ गयी और वहां से यूं नीचे ढ़लान पर कूदी जैसे कोई डाइविंग बोर्ड पर से स्विमिंग पूल में कूदता है । और छलांग भी इतनी नपी तुली, इतनी एक्‍यूरेट कि खोपड़ी ऐन निशाने पर, स्‍लैम बैंग चट्‌टान से जा कर टकराई ! क्‍या !”

सब-इंस्‍पेक्‍टर मुंह बाये नीलेश को देखने लगा ।

“साहब रात को खुद ड्‌यूटी पर थे” - फिर झुंझलाये स्‍वर में बोला - “ट्रक वाले की काल भी उन्‍होंने खुद रिसीव की थी । जो सवाल करना हो, जाओ जाके उनसे करो ।”

“कौन साहब ?” - डीसीपी बोला ।

“एसएचओ साहब ! इंस्‍पेक्‍टर अनिल महाबोले साहब !”

तभी वातावरण में पुलिस के सायरन की आवाज गूंजी ।

सबकी निगाह स्‍वयंमेव ही सड़क की वैस्‍टएण्‍ड के ओर वाले रूख की ओर उठ गयी 

ब्रेकों की चरचराहट के साथ एक पुलिस जीप वहां आकर रूकी ।

“एसएचओ साहब !” - चैन की सांस लेता नया रंगरूट सब-इंस्‍पेक्‍टर बोला ।

सब-इंस्‍पेक्‍टर लपक कर जीप के करीब पहुंचा, उसने जीप से उतरते महाबोले को सैल्‍यूट मारा और जल्‍दी जल्‍दी कुछ कहने लगा ।

श्रोता बने महाबोले ने बीच में एक बार सिर उठा कर सामने निगाह दौड़ाई और फिर अपने मातहत की बात सुनने लगा ।

फिर सब-इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के साथ अपने पुराने मुकाम पर लौटा 

“सर, गोखले को तो आप जानते ही है; ये मुम्‍बई से प्रैस रिपोर्टर है, गोखले के बारे में कहता है कि....”

महाबोले ने सैल्‍यूट मारा ।

सब-इंस्‍पेक्‍टर-सिपाही भाटे भी-हकबकाया या उसका मुंह देखने लगा ।

“पहचानते हो ?” - डीसीपी संजीदगी से बोला ।

“यस, सर ।” - महाबोले अदब से बोला - “इन्‍हें भी पहचानना चाहिये था, मै अपने आदमियों की नालायकी से शर्मिंदा हूं ।”

“नैवर माइंड ।”

“गुस्‍ताखी माफ, सर आप से भी शिकायत है ।”

“शिकायत !”

“आप आइलैंड पर आये तो आप को पहले थाने में आना चाहिये था !”

“बाकायदा खबर भिजवाकर ! अपने टूर प्रोग्राम की कापी अरसाल करके !”

“अब मैं क्‍या बोलूं, सर ! हमें जरा भी हिंट होता तो... थाने के फील्‍ड स्‍टाफ से बेअदबी न हुई होती, आपकी शान में गुस्‍ताखी न हुई होती ।”

“नैवर माइंड ।”

“लेकिन, सर, रिपोर्टर....”

“हम जानना चाहते थे कि कैसे आपका स्‍टाफ एक कत्‍ल के केस जैसी तफ्तीश को अंजाम देता है !”

“क-क्‍या जाना, सर ?”

“लाश के सिरहाने खडे़ हो के गप्‍पे मारते हैं । कोई भी लाश के सिर पर जा खड़ा हो, इनको खबर नहीं लगती । जो सवाल पूछने चाहिये, उनको पूछने का इन्‍हें खयाल नहीं आता, गैरजरूरी सवालों पर जोर देते हैं । मैंने खुद को रिपोर्टर कहा, तुम्‍हारे एसआई ने मेरे पेपर का नाम तक न पूछा, मुझे आई कार्ड दिखाने तक को न बोला । मुझे खबर लगी है कि थाने में कत्‍ल का सम्‍भावित अपराधी गिरफ्तार बैठा है, तुम्‍हारे एसआई साहब अभी भी खुदकुशी का राग अलाप रहे हैं । दिस प्रूव्‍स लैक आफ कोआर्डीनेशन । नो ?”

“सर, बेहतर होता कि ये रिमार्क्‍स मुझे डीसीपी जठार से सुनने को मिलते जिनके अंडर कि मेरा थाना आता है ।”

“तुम ये कहना चाहते तो कि तुम से बात करने का हमें कोई अख्तियार नहीं ?”

“मैंने ये कब कहा ?”

“साफ लफ्जों में न कहा । जाहिर बराबर किया ।”

महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।

“तुम्‍हारी - खास तुम्‍हारी, थाने की नहीं - एक नाजायज, गैरकानूनी, पुलिस के लिये शर्मनाक हरकत की भुक्‍तभोगी महिला मीनाक्षी कदम मुम्‍बई की है जिसने बाजरिया होम मिनिस्‍टर अपनी शिकायत मुम्‍बई के पुलिस कमिश्‍नर तक पहुंचाई है, मुरूड के डिप्‍टी कमिश्‍नर तक नहीं, जिस के अंडर कि तुम्‍हारा थाना आता है । अब बोलो मुझे - डीसीपी, मुम्‍बई पुलिस को - तुम्‍हारे से कोई सवाल करने का अख्तियार पहुंचता है या नहीं ?”

“वो औरत” - भीतर से हिल गया हुआ महाबोले आवेश से बोला - “मेरे खिलाफ कुछ साबित नहीं कर सकती ।”

“कर सकती है ।”

“कर सकती है तो प्रोसीजर से करे । ऊंची कुर्सियों पर बैठे साहबान को अपना हमदर्द बनाकर पहले ही उनकी ओपीनियन को मेरे खिलाफ बना देना, बिना किसी पुख्‍ता सबूत के मुझे विलेन करार देने लगना, बिना सुनवाई के एकतरफा फैसला कर लेना इंसाफ नहीं, तरफदारी है, जुल्‍म है, गरीबमार है ।”

“वैरी वैल सैड ! लेकिन तुम मिनिस्‍टर पर इलजाम लगा रहे हो या कमिश्‍नर पर ?”

“मैं किसी पर इलजाम नहीं लगा रहा । न इतने बडे़ बडे़ लोगों पर इलजाम लगाने की मेरी औकात है लेकिन मैं समझता हूं कि फरियाद का मुझे अख्तियार है ।”

“जो कि तुम बाखूबी कर रहे हो । लेकिन जब उस और का अपना बयान है कि तुमने.....”

“इट इज हर वर्ड अगेंस्‍ट माइन । वो कहती है कि काम मैंने किया, मैं कहता हूं, मैंने नहीं किया, कैसे फैसला करेंगे, वो सच बोल रही है या मैं ? टॉस करके ? सिक्का उछाल के ?”

“इंस्‍पेक्‍टर ! माईंड युअर लेंग्‍वेज !”

“आई बैग युअर पार्डन, सर ।”

“वो क्‍यों गलतबयानी करेगी ? उसकी तुम्‍हारे से कोई अदावत है ?”

“मैं क्‍यों गलतबयानी करूंगा ? मेरी उससे कोई अदावत है ?”

“अदावत न सही लेकिन तुमने जो किया, नशे में किया, इस लिहाज से....”

“आई एम सारी, सर मुझे नहीं मालूम था कि उस रोज की मेरी हालत के आप चश्‍मदीद गवाह हैं ।”

“वाट नानसेंस !”

“जब इतने कंफीडेंस से आपने कहा कि उस रोज मैं नशे में था तो जाहिर है कि आपको कोई अंदरूनी जानकारी है । और ऐसी जानकारी तो किसी चश्‍मदीद गवाह को ही हो सकती है ।”

“बहुत बोलते हो !”

“सर, जब खुल्‍ला जुल्‍म हो रहा हो तो चुप भी तो नहीं रहा जा सकता !”

“खुल्‍ला जुर्म !”

“बराबर । बहुत हिम्‍मत करके बोल रहा हूं, सर, अगर मेरे खिलाफ कोई शिकायत है तो उसका फालोअप प्रोसीजर से होना चाहिये । मसलन, मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिये । उस औरत को मुझे लाइन अप में से पिक करके मेरी शिनाख्‍त करनी चाहिये, उसे साबित करके दिखाना चाहिये कि उसके पोजेशन में दो सौ डालर थे । इस बात का भी कोई माकूल जवाब उसे देना चाहिये कि फारेन करंसी-दो सौ डालर-उसके पास क्‍यों थे, कहां से आये ? उससे ये सवाल भी होना चाहिये कि वारदात के बाद शिकायत ले कर वो यहीं थाने क्‍यों न पहुंची ? मुम्‍बई जा कर क्‍यों शिकायत की ? क्‍यों किया उसने ऐसा ? क्‍योंकि वहां उसके हमदर्द थे, खैरख्‍वाह थे, उसकी कही बात को पत्‍थर की लकीर मानने वाले लोग थे । और गुस्‍ताखी माफ, सर, आप भी उनमें से एक हैं ।”

डीसीपी हड़बड़ाया ।

“वो जुदा मसला है ।” - फिर बोला ।

“मैंने नहीं उठाया, सर ।”

“बात यहां हुई वारदात की हो रही थी ।”

“वो बात तो अब खत्‍म है, सर ।”

“क्‍या !”

“दि केस इज सोल्व्ड ।”

“क्‍या !”

“कातिल गिरफ्तार है ।”

“कौन कातिल ?”

“रोमिला सावंत का कातिल । जिसने उसको लूटने की नीयत से उसका कत्‍ल किया । लूट का सारा माल-मकतूला के जेवरात वगैरह-उसके पास से बरामद हुआ है । और सौ बातों की एक बात, वो अपने जुर्म का इकबाल कर भी चुका है ।”

“दैट्स फास्‍ट वर्क ।”

“जिसके लिये महाबोले की तारीफ करने वाला कोई नहीं । क्‍योंकि वो तो खुद मुजरिम है । आज नहीं तो कल एक डिफेंसलैस औरत से दो सौ डालर की झपटमारी करने के इलजाम में गिरफ्तार होगा । कोई पेशी नहीं, कोई गवाह नहीं, कोई सबूत नहीं, कोई सुनवाई नहीं, सजा-सिर्फ सजा । न जज, न ज्‍यूरी, न दाद, न फरियाद, सिर्फ सजा !”

“तुम बात को जरा ज्‍यादा ही ड्रामेटाइज करने की कोशिश कर रहे हो !”

“सर, अगर आप थाने पधारने वाले हों तो मैं वहां जा के बैठूं ! या आपको साथ ले के चलूं !”

“अभी हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं, जब होगा तो तुम्‍हारे पास एडवांस में खबर पहुंच जायेगी ।”

“मैं उस शुभ घड़ी का इंतजार करूंगा । अब अगर आप इजाजत दें तो मैं केस समेटूं ?”

“यस, प्‍लीज । कम्‍पलीट युअर जॉब ।”

“थैंक्‍यू, सर ।” - उसने ठोक के सैल्‍यूट मारा, जाने के लिये मुड़ा, ठिठका, फिर उसने यूं नीलेश की ओर देखा जैसे पहली बार उसे उसकी वहां मौजूदगी का अहसास हुआ हो ।

“तुम यहां कैसे ?” - फिर माथे पर बल डालता बोला ।

“हमारे साथ है ।” - नीलेश के जवाब देने से पहले ही डीसीपी बोल पड़ा 

“आपके साथ है ! आप जानते हैं इसे ?”

“हां ।”

“आपको मालूम था ये यहां आइलैंड पर था ?”

“हां । इसीलिये तलब किया ताकि यहां ये हमारा गाइड बन पाता ।”

“कमाल है !” - एक क्षण की खामोशी के बाद महाबोले नीलेश से सम्‍बोधित हुआ - “तुम रात को मकतूला को ढूंढ़ते फिर रहे थे ?”

“हां ।” - नीलेश सहज भाव से बोला ।

“उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में भी गये थे ?”

“हां ।”

“क्‍यों ?”

“क्‍या क्‍यों ?”

महाबोले फट पड़ने को हुआ, डीसीपी की मौजूदगी की वजह से बड़ी मुश्किल से वो खुद पर जब्‍त कर पाया 

“क्‍यों ढूंढ़ते फिर रहे थे, भई ?”

“वजह वही है, जनाब, जो अब तक बहुत पापुलर हो चुकी है ।”

“मिलने आने वाली थी, आई नहीं, इसलिये उसकी तलाश में आइलैंड खंगालने निकल पडे़ ?”

“ऐसा ही था कुछ कुछ ।”

“बहुत बढ़ बढ़ के बोल रहे हो !”

“ऐसी कोई बात नहीं ।”

“क्‍योंकि डीसीपी साहब की शह है !”

“इंस्‍पेक्‍टर !” - डीसीपी डपट कर बोला ।

“सारी, सर । दैट काईंड आफ स्लिप्‍ड । आई एम सारी अगेन ।” - वो वापिस नीलेश की तरफ घूमा - “मैं मिलूंगा तुमसे ।”

फिर लम्‍बे डग भरता अपने मातहतों के साथ वो वहां से रूखसत हो गया ।

“धमकी सी लगी मुझे उसकी आवाज में ।” - पीछे डीसीपी बोला ।

“मुझे भी, सर ।” - नीलेश बोला ।

“तुम्‍हें हार्म कर सकता है ।”

“पहले से कोशिश में है ।”

“वजह ?”

“श्‍यामला मोकाशी से मेरी मेल मुलाकात से कुढ़ता है-मैंने पहले बोला था कि वो यहां की म्‍यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी की बेटी है-मेरा लड़की से मेल मुलाकात के पीछे मकसद क्‍या है, ये मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं ।”

“ठीक ! लेकिन क्‍यों कुढ़ता है ? उसका क्‍या वास्‍ता है ?”

“है न वास्‍ता, सर !”

“क्‍या ?”

“श्‍यामला पर दिल रखता है । शादी बनाना चाहता है । उसको अपनी प्रापर्टी समझता है । कोई उसकी तरफ आंख भी उठाये तो आंख निकालने पर आमादा हो जाता है ।”

“आई सी । इसलिये तुम्‍हारे खिलाफ है !”

“ये भी एक वजह है ।”

“और भी है ?”

“मेरे खयाल में तो हां ।”

“मसलन, क्‍या ? तुम्‍हारी अंडरकवर असाइनमेंट की तो कोई भनक नहीं उसे ?”

“कह नहीं सकता ।”

“अपनी कुढ़न में, अदावत में, तुम्‍हारे खिलाफ कोई कदम न उठाया ?”

“उठाया । अपने आदमियों से मुझे ठुकवा दिया ।”

“उसके आदमी कौन ? कहीं थाने के ही तो नहीं ?”

“एक तो बराबर था थाने का हवलदार । मैंने कनफर्म किया था ।”

“कमाल है ! ऐसी दीदादिलेरी !”

“खुद को आइलैंड का मालिक समझता है, सर, थाना भी तो आइलैंड पर ही है । थानेदार की सरपरस्‍ती का ही तो जहूरा है कि मातहत मटका कलैक्‍टर है, सट्‌टा एजेंट है । वो भी शरेआम !”

“अब और नहीं चलेगा । समझो पाप का घड़ा भर चुका ।”

नीलेश खामोश रहा ।

“मोकाशी के जिक्र पर याद आया । मैं उससे मिलना चाहता हूं ।”

“कहां मिलेंगे, सर ? मुझे उसका घर मालूम है....”

“अरे, भई, हम क्‍यों जायेंगे उसके घर ! तलब करेंगे उसे ।”

“कहां ?”

“थाने ।”

“जी !”

“थानेदार यहां है और साफ लग रहा है कि बहुत देर तक फारिग नहीं होने वाला । हम जाकर थाने पर कब्‍जा करते हैं और मोकाशी को वहां तलब करते हैं ।”

नीलेश के चेहरे पर संशय के भाव आये ।

“अब ये बात खुल चुकी है कि एक डीसीपी यहां पहुंचा हुआ है । खुद महाबोले ने मुझे पहचाना-पता नहीं कैसे पहचानता था लेकिन पहचाना बराबर-देख लेना, खबर हम से पहले थाने में पहुंची होगी ।”

“फिर तो ठीक है, सर ।”

कोस्‍ट गार्ड्‌स की शोफर ड्रिवन जीप पर वो वहां पहुंचे थे और उसी पर वो वहां से रवाना हुए ।

डीसीपी नितिन पाटिल थाने में एसएचओ के कमरे में उसकी कुर्सी पर बैठा था और उसके सामने एक विजिटर्स चेयर पर बाबूराव मोकाशी मौजूद था 

नीलेश टेबल से परे, एक दीवार से पीठ लगाये खड़ा था ।

मोकाशी की सूरत से लगता था कि बुलावे ने उसको सोते से उठाया था और वो जैसे तैसे आनन फानन तैयार होकर वहां पहुंचा था 

डीसीपी ने उसे अपना परिचय दिया ।

मोकाशी के नेत्र फैले । वो अपनी हैरानी से उबरा तो सबसे पहले उसने नीलेश पर निगाह डाली ।

“ये यहां क्‍यों मौजूद है ?” - उसके मुंह से निकला ।

“है कोई वजह” - डीसीपी लापरवाही से बोला - “जो इस वक्‍त आपकी समझ में नहीं आने वाली ।”

“इतना तो नासमझ मैं नहीं हूं ! जबसे इस शख्‍स ने आइलैंड पर कदम रखा था, ये मुझे खटकता था । इसकी सूरत से लगता था कि इसने खूब अच्‍छे दिन देखे थे इसलिये मैं इसकी कल्‍पना बारमैन या बाउंसर के तौर पर नहीं कर पाता था ।”

“हम आपकी दूरअंदेशी की दाद देते हैं ।”

“दूसरे, ये आदमी मेरे घर में ही घात लगा रहा था....”

“क्‍या फरमाया ?”

“मेरी बेटी से ताल्‍लुकात बना रहा था । किसी बारमैन या बार बाउंसर की ऐसी मजाल नहीं हो सकती । आपके साथ ये यहां मौजूद है, ये बात इसके बारे में मुझे नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर रही है ।”

“क्‍या ?”

“कहीं मेरे सामने मास्‍टर और सबार्डीनेट की जोड़ी तो मौजूद नहीं !”

डीसीपी हंसा ।

“आपकी बेटी ने मेरी शिकायत की ?” - नीलेश बोला 

“ये जरूरी नहीं” - मोकाशी बोला - “कि कोई बात किसी की शिकायत से ही मेरी जानकारी में आये ।”

“क्‍या मतलब हुआ इसका ?”

“तुम कल रात लेट नाइट तक श्‍यामला के साथ थे ।”

“उसकी-एक बालिग, खुदमुख्‍तार लड़की की-रजामंदगी से ।”

“लेकिन उस वजह से नहीं जो ऐसी मेल मुलाकात के पीछे होती है । किसी और ही वजह से ।”

“और कौन सी वजह ?”

“अभी बोला न मैंने ! तुम मेरी बेटी को जरिया बना कर मेरे पर घात लगा रहे हो ।”

“क्‍यों भला ?”

“वजह खुद बोलो । वजह इस बात पर मुनहसर है कि तुम डीसीपी साहब से किस हैसियत से जुड़े हुऐ हो ।”

“सब आपकी खामखयाली है । आप एक आम, मामूली आइटम में नाहक भेद निकाल रहे हैं । मैंने श्‍यामला को डेट के लिये प्रोपोज किया, उसने मेरी प्रोपोजल को कबूल किया, बस इतनी सी तो बात है ! आप एक सीधी सी बात में पेंच डालने की कोशिश करें तो मैं क्‍या कर सकता हूं !”

“तुम मेरे को नादान समझने की कोशिश से बाज आ सकते हो । तुम....”

तभी महाबोले ने भीतर कदम रखा ।

डीसीपी हड़बड़ाया ।

महाबोले उसकी उम्‍मीद से बहुत पहले लौट आया था ।

“मुझे” - डीसीपी शुष्‍क स्‍वर में बोला - “तुम्‍हारी कुर्सी से उठना पड़ेगा या तुम्‍हें थोड़ी देर के लिये विजिटर्स चेयर पर बैठना कुबूल होगा ?”

“क्‍यों शर्मिंदा कर रहे हैं, सर !” - महाबोले अदब से बोला - “सब आपका ही तो है !”

“थैंक्‍यू ! प्‍लीज टेक ए सीट ।”

महाबोले मोकाशी के बाजू में बैठ गया ।

उसने परे खड़े नीलेश पर निगाह दौड़ाई ।

डीसीपी ने उसकी निगाह का अनुसरण किया ।

“मिस्‍टर !” - वो बोला - “डोंट स्‍टैण्‍ड देयर लाइक ए टेलीग्राफ पोल । देयर इज ए चेयर बाई युअर साइड । टेक इट ।”

“यस, सर !” - नीलेश बौखलाया सा बोला - “थैंक्‍यू, सर !”

उसने परे पड़ी कुर्सी को अपने करीब खींचा और अदब से उस पर बैठ गया 

डीसीपी ने सहमति में सिर हिलाया और फिर वापिस महाबोले की तरफ मुंह फेरा ।

“जल्‍दी फारिग हो गये !” - फिर बोला ।

“जी हां ।” - महाबोले ने संक्षिप्‍त उत्‍तर दिया ।

“मालूम होता तो इकट्‌ठे लौटते !”

“उम्‍मीद नहीं थी, सर, इत्तफाक से जल्‍दी फारिग हो गया ।”

“तभी ।” - डीसीपी ने मोकाशी की तरफ देखा - “आप कुछ कह रहे थे !”

 “हां ।” - मोकाशी बोला - “मुझे यकीन है कि श्‍यामला से मेल मुलाकात में - जैसा कि ये जाहिर कर रहा है-पर्सनल, सोशल या बायालॉजिकल कुछ नहीं है । हकीकतन ये शख्‍स मेरी बाबत कोई जानकारी निकलवाने के लिये श्‍यामला को कल्‍टीवेट करना चाहता है ।”

“कैसी जानकारी ? आपका कोई खुफिया राज है जिसे आप फाश नहीं होने देना चाहते ? जो आप दिखाई देते हैं, उसके अलावा भी आप कुछ हैं जिसकी खबर आप किसी को लगने नहीं देना चाहते ?”

“ऐसी कोई बात नहीं है ।”

“तो फिर क्‍यों फिक्रमंद है ?”

“ये तो” - उसने खंजर की तरह एक उंगली नीलेश की तरफ भौंकी - “समझता है न कि ऐसी बात है !”

“जब कुछ बात ही नहीं है तो इसकी समझ-बल्कि नासमझी-आपका क्‍या बिगाड़ सकती है ?”

मोकाशी को जवाब न सूझा 

“बेहतर ये न होगा कि इस पर भाव खाने की जगह आप अपनी बेटी को सम्‍भालें ! ताकि बखेडे़ की जड़ ही खत्‍म हो जाये ! ताकि न रहे बांस न बजे बांसुरी !”

मोकाशी कुछ क्षण खामोश रहा, फिर फट पड़ा - “ये है कौन ?”

“बताओ, भई ।”

“नीलेश गोखले ।” - नीलेश बोला - “कोंसिका क्‍लब का भूतपूर्व मुलाजिम । अब नई नौकरी की तलाश में ।”

“फट्‌टा है ।” - मोकाशी बोला ।

“अब मैं क्‍या कहूं ?” - नीलेश ने बड़े नुमायशी अंदाज से, असहाय भाव से कंधे उचकाये ।

“आप” - डीसीपी ने वार्तालाप का सूत्र अपने हाथ में लिया - “लोकल म्‍यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट हैं । ये एक आनरेरी पोस्‍ट है जिसका कोई छोटा मोटा आनरेरियम, मैं समझता हूं, आपका मिलता होगा नो ?”

“यस ।”

“वैसे आप क्‍या करते है ?”

“क्‍या मतलब ?”

“वाट्स योर लाइन आफ बिजनेस ? वाट्स योर सोर्स आफ इनकम ?”

“अच्‍छा, वो !”

“जी हां ।”

“कुछ इंवेस्‍टमेंट्स हैं जिनका डिवीडेंड आता है ।”

“काफी ?”

“हां । काफी ही । हम बाप बेटी दो ही तो हैं ! फिर यहां आइलैंड पर लाइफ इतनी एक्‍सपेंसिव भी नहीं ! इस लिहाज से काफी ही ।”

“कोई सॉलिड इनवेस्‍टमेंट नहीं ? जैसे गोल्‍ड में ! रीयल एस्‍टेट में !”

“न ।”

“किसी बिजनेस में ?”

“किस बिजनेस में ?”

“सवाल मैंने किया था । मेरे से पूछते हैं तो केटरिंग बिजनेस बहुत प्राफिटेबल है । आता सब कुछ क्रेडिट पर है, लेकिन जाता कैश पर है । आई मीन सेल नकद होती है, उसमें उधार का कोई मतलब नहीं ।”

“ऐसे बिजनेस में न मेरा कोई दखल है, न इस बाबत मुझे कभी कोई खयाल आया ।”

“मैंने सुना है कोंसिका क्‍लब के असली मालिक आप हैं !”

उसके चेहरे ने रंग बदला, तत्‍काल वो नार्मल हुआ ।

“गलत सुना है ।” - फिर इतमीनान से बोला ।

“मुमकिन है । टैक्‍स भरते हैं ? भरते हैं तो सालाना ऐवरेज क्‍या है ?

“पाटिल साहब, जब आपने अपना परिचय दिया था, उस वक्‍त शायद मेरे कान बज रहे थे । मुझे सुनाई दिया था कि आप पुलिस के महकमे से हैं । लगता है गलत सुनाई दिया था । आप शायद इनकम टैक्‍स से हैं ।”

पाटिल ठठा कर हंसा ।

“जो आपको सुनाई दिया था” - फिर बोला - “वही ठीक था, जनाब । लैकिन....खैर, जाने दीजिये ।”

“दिया ।”

“क्‍या ?”

“जाने ।”

पाटिल के नेत्र सिकुडे़, उसके चेहरे पर अप्रसन्‍नता के भाव आये ।

“आप मजाक कर रहे हैं ?” - वो शुष्‍क स्‍वर में बोला ।

“जनाब, अभी जब आप इतनी बेबाकी से हंसे तो मुझे लगा कि कोई छोटा मोटा मजाक आपको पंसद आयेगा । लगता है मुझे गलत लगा । माफी चाहता हूं ।”

“नैवर माइंड ।” - पाटिल महाबोले की तरफ घूमा - “एसएचओ साहब, आप जानते हैं कि पुलिस को ऐसी बयानबाजी की आदत होती है कि वो चौबीस घंटे में केस हल कर दिखायेंगे, अड़तालीस घंटे में केस हल कर दिखायेंगे, बहत्‍तर घंटे में केस हल कर दिखायेंगे । खुशफहमी का ये आलम होता है कि किसी भी केस में बहत्तर घंटे में केस हल कर दिखायेंगे । खुशफहमी का ये आलम होता है कि किस भी केस में बहत्तर घंटे से ज्‍यादा बड़ी टाइम लिमिट वो कमी मुकर्रर नहीं करते, भले ही केस बहत्तर दिन में हल न हो, कभी भी न हो । इस लिहाज से आपने यकीनन काबिलेतारीफ काम किया है कि कत्‍ल के केस को चौबीस घंटे से भी कम वक्‍त में हल कर दिखाया । न सिर्फ केस हल कर दिखाया, कातिल को भी सींखचों के पीछे खड़ा कर दिया । मर्डर इनवैस्टिगेशन में आपने जो सूझ बूझ और काबिलियत दिखाई, वो काबिलेरश्‍क है । बधाई ।”

“सब कुछ मेरे किये ही न हुआ, सर, जो हुआ उसमें काफी सारा इत्तफाक का भी हाथ था ।”

“फिर भी आपने बड़ा काम किया । और जो आपने इत्तफाक की बात कही, उस पर मैं यही कहूंगा कि एण्‍ड जस्‍टीफाइज दि मींस । नो ?”

“यस, सर ।”

“आपने कहा आपने मुजरिम से उसका इकबालिया बयान भी हासिल कर लिया है !”

“यस, सर । आई हैव इट ड्‌यूली एंडोर्स्‍ड एण्‍ड विटनेस्‍ड ।”

“और मकतूला का जो माल उसने लूटा था, वो भी पूरा पूरा बरामद कर लिया !”

“जी हां । सिवाय कुछ नकद रूपयों के जो कि वो खुद कुबूल करता है कि उसने बोतल खरीदने में खर्च कर दिये थे ।”

“कामयाबी का जश्‍न मनाने के लिये बोतल खरीदी !”

“और पूरी की पूरी पी गया । इसी से साबित होता है कि अपनी कामयाबी से वो कितना खुश था !”

“वो दोनों चीजें मैं देख सकता हूं ?”

“जी !”

“भई, इकबालिया बयान और लूट का माल ।”

“अच्‍छा, वो ! बयान तो यहीं मेज की दराज में है, लूट का माल मालखाने में है, मैं मंगवाता हूं ।”

उसने दोनों चीजें डीसीपी के सामने पेश कीं ।

डीसीपी ने पहले इकबालिया बयान पर तवज्‍जो दी जिसे कि उसने बहुत गौर से, दो बार पढ़ा ।

उस दौरान वहां खामोशी रही 

“गुड !” - आखिर डीसीपी बोला - “रादर पर्फेक्‍ट !”

“ओपन एण्‍ड शट केस है, सर ।” - महाबोले संतुष्‍ट स्‍वर में बोला - “कहीं झोल की गुंजायश ही नहीं ।”

“ऐसा ही जान पड़ता है ।”

“बेवड़ा था । बोले तो अल्‍कोहलिक । नशे की खातिर कुछ भी करने को तैयार । रोमिला से सूरत से वाकिफ था । उसे अकेली पा कर अपनी तलब के लिये उसके पीछे लग लिया । रूट फिफ्टीन पर जहां वारदात हुई वो जगह रात के वक्‍त सुनसान होती है । इसी बात से जोश खा कर उसने लड़की का हैण्‍डबैग झपटने की कोशिश की, उसने विरोध किया तो उसको खल्‍लास कर दिया । पहले साला हैण्‍डबैग की ही फिराक में था जिसे कि झपट कर भाग खड़ा हुआ होता, मर गयी तो जेवर भी उतार लिये, घड़ी भी उतार ली ।”

“मौके का पूरा फायदा उठाया !”

“बिल्‍कुल !”

“नाम क्या है मुजरिम का ?”

“हेमराज पाण्‍डेय ।”

डीसीपी ने गौर से मालखाने से लायी गयी एक एक चीज का मुआयना किया ।

“हैण्‍डबैग !” - एकाएक वो बोला ।

“जी !” - महाबोले सतर्क हुआ ।

“हैण्‍डबैग नहीं है इस सामान में !”

“वो तो.....बरामद नहीं हुआ ।”

“अच्‍छा !”

“जरूर उसने कैश निकाल कर उसे कहीं फेंक दिया ।”

“मुमकिन है । लेकिन क्या ये अजीब बात नहीं कि कायन पर्स-जो कि हैण्‍डबैग में ही रखा जाता है, और जिसमें कुछ सिक्‍कों के सिवाय कुछ नहीं-वो अपने पास रखे रहा ?”

“अजीब तो है !”

“क्‍यों किया उसने ऐसा ! क्‍या करता जनाना कायन पर्स का ?”

महाबोले के चेहरे पर गहन सोच के भाव उभरे ।

“रोकड़ा ?” - फिर एकाएक चमक कर बोला ।

“क्या ?” - डीसीपी सकपकाया 

“रोकड़ा ? - नकद रूपया - कायन पर्स में होगा !”

“मुझे तो लगता नहीं कि इसमें नोट रखने की जगह है ! आपको लगता है ?”

“किसी की जिद हो तो ठूंस कर...”

“क्‍यों जिद हो ? क्‍यों ठूंस कर ?”

महाबोले से जवाब देते न बना ।

“जब नाम ही इसका कायन पर्स है तो इसमें नोटों का क्‍या काम ?”

“सर, बेवड़ा था, भेजा हिला हुआ था, खुद नहीं जानता था कि क्‍या कर रहा था !”

“हो सकता है । इस घड़ी वो कहां है ?”

“यहीं है, सर । लॉकअप में ।”

“मैं उससे मिल सकता हूं ?”

“अभी ।”

महाबोले ने उठ कर कमिश्‍नर की कोहनी के करीब मेज की पैनल में लगा कालबैल का बटन दबाया ।

कमरे में हवलदार जगन खत्री दाखिल हुआ ।

नीलेश ने देखा आंख के नीचे उसका गाल अभी भी सूजा हुआ था और अब उस पर एक बैण्‍ड एड भी लगी दिखाई दे रही थी ।

“बेवड़े मुजरिम को ले के आ ।” - महाबोले ने आदेश दिया ।

खत्री सह‍मति में सिर हिलाता वहां से चला गया ।

उलटे पांव वो उसके साथ वहां लौटा ।

डीसीपी ने गौर से उसका मुआयना किया ।

वो एक पिद्‌दी सा, फटेहाल, खौफजदा, काबिलेरहम शख्‍स था जिसकी शक्‍ल पर फटकार बरस रही थी और वो अपने पैरों पर खड़ा आंधी में हिलते पेड़ का तरह यूं आगे पीछे झूल रहा था जैसे अभी गश खाकर गिर पड़ेगा । उसका मुंह सूजा हुआ था, नाक असाधारण रूप से लाल थी और होंठों की बायीं कोर पर खून की पपड़ी जमी जान पड़ती थी । उसकी आंखे यूं उसकी पुतलियों में फिर रही थीं जैसे बकरा जिबह होने वाला हो ।

डीसीपी ने प्रश्‍नसूचक नेत्रों से महाबोले की तरफ देखा ।

“जब पकड़ कर थाने लाया गया था” - महाबोले लापरवाही से बोला - “तो भाव खा रहा था । हूल दे रहा था सीनियर आफिसर्ज से गुहार लगायेगा, मीडिया को अप्रोच करेगा । मिजाज दुरूस्‍त करने के लिये थोड़ा सेकना पड़ा ।”

“आई सी । इसे कुर्सी दो ।”

“जी !”

“ऐनी प्राब्‍लम ?”

“नो ! नो, सर !”

“दैन डू ऐज डायरेक्टिड ।”

“यस, सर ।”

अपने तरीके से अंपनी धौंस पट्‌टी की हाजिरी महाबोले ने फिर भी लगाई । उसके इशारे पर खत्री ने टेबल के करीब एक स्टूल रखा, डीसीपी के इशारे पर जिस पर मुजरिम बैठ गया । फिर डीसीपी ने ही खत्री को वहां से डिममिस कर दिया ।

“इधर मेरी तरफ देखो ।” - डीसीपी ने आदेश दिया 

बड़े यत्‍न से मुजरिम ने छाती पर लटका अपना सिर उठाया और डीसीपी की तरफ देखा ।

“नाम बोलो ।”

“पाण्‍डेय ।”

“पूरा नाम ।”

“हेमराज पाण्‍डेय ।”

“मैं नितिन पाटिल । डीसीपी होता हूं पुलिस के महकमे में । क्‍या समझे ?”

उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये ।

“पुलिस के सीनियर आफिसर्ज से मिलना चाहते थे न ! समझ लो मिल रहे हो ।”

“वो तो, साहब” - वो कांपता सा बोला - “मैंने ऐसे ही बोल दिया था ।”

“कोई बात नहीं । बोल दिया तो बोल दिया । कहां से हो ?”

“वैसे तो यूपी से हूं लेकिन पिछले तीन साल से इधर ही हूं ।”

“क्‍या करते हो ?”

“इलैक्‍ट्रीशियन हूं ।”

“अपना ठीया है ?”

“जी नहीं । ज्‍योति फुले मार्केट में एक बिजली के सामान वाले की दुकान पर बैठता हूं ।”

“काम रैगुलर मिलता है ?”

“रैगुलर तो नहीं मिलता लेकिन...गुजारा चल जाता है ।”

“ये वाला भी ?” - डीसीपी ने अंगूठा मुंह को लगाया ।

“नहीं, साहब । कभी कभी ।”

“कभी कभी, जैसे कल रात !”

उसका सिर झुक गया ।

“बाटली लगाते नहीं हो, उसमें डूब जाते हो !”

उसका सिर और झुक गया 

“मुंह को क्‍या हुआ ?”

उसने जवाब न दिया ।

“बेखौफ जवाब दो । तुम्‍हारे कैसे भी जवाब की वजह से तुम्‍हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा । मैं जामिन हूं इस बात का ।”

उसने व्‍याकुल भाव से महाबोले की तरफ देखा ।

“मेरी तरफ देख के जवाब दो । इधर उधर मत झांको ।”

“वही हुआ, साहेब, जो मेरे जैसे बेहैसियत शख्‍स के साथ थाने में होता है । थानेदार साहब कहते हैं मैंने इनके साथ जुबानदराजी की, इन पर झपटने की कोशिश की ।”

“जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा !”

उसने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।

“तुमने की थी जुबानदराजी ? की थी झपटने की कोशिश ?”

उसने तुरंत जवाब न दिया, एक बार उसकी निगाह महाबोले की तरफ उठी तो महाबोले ने उसकी तरफ यूं देखा जैसे कसाई बकरे को देखता है ।

“कहते हैं मैं टुन्‍न था” - वो सिर झुकाये दबे स्‍वर में बोला - “फुल टुन्‍न था । इतना कि मुझे दीन दुनिया की खबर नहीं थी, ये भी खबर नहीं थी कि अपनी नशे की हालत में मैंने क्‍या किया, क्‍या न किया । ये लोग मेरा नशा उतारने लगे ।”

“क्‍या किया ? नशे का कोई एण्‍टीडोट दिया ?”

“वही दिया, साहेब, पर अपने तरीके का, अपनी पसंद का दिया ।”

“क्‍या मतलब ?”

“हड़काया, खड़काया, ठोका, वाटर ट्रीटमेंट दिया ।”

“वाटर ट्रीटमेंट ! वो क्‍या होता है ?”

“मुंडी पकड़ के जबरन पानी में डुबोई, दम घुटने लगा तो निकाली, डुबोई, निकाली, डुवोई...करिश्‍मा ही हुआ कि डूब न गया ।”

“बढ़ा चढ़ा के कह रहा है ।” - महाबोले गुस्‍से से बोला - “इसका नशा उतारने के लिये पानी में डुबकी दी थी खाली एक बार ।”

“मालिक हो, साहेब” - पाण्‍डेय गिड़गिड़ाया - “कुछ भी कह सकते हो ।”

“साले, बदले में तू भी कुछ भी कह सकता है ? बड़े अफसर की शह मिल गयी तो झूठ पर झूठ बोलेगा ?”

“मैं तो चुप हूं, साहेब । मैंने तो कोई शिकायत नहीं की, कोई फरियाद नहीं की ।”

“स्‍साला समझता है....”

“दैट्स एनफ !” - डीसीपी अधिकारपूर्ण स्‍वर में बोला ।

चेहरे पर अनिच्‍छा के भाव लिये महाबोले ने होंठ भींचे 

“इधर देखो ।” - डीसीपी बोला - “ये तुम्‍हारा बयान है ? इस पर तुम्‍हारे साइन हैं ?”

“हां, साहेब ।” - पाण्डेय कातर भाव से बोला ।

“रोमिला सावंत से वाकिफ थे ?”

“हां, साहेब ।”

“कैसे वाकिफ थे ?”

“जब कभी चार पैसे अच्‍छे कमा लेता था तो औकात बना कर कोंसिका क्‍लब जाता था ।”

“उधर वाकफियत हुई ?”

“हां, साहेब । लेकिन मामूली । जैसी किसी हाई क्‍लास बारबाला की किसी मामूली कस्टमर से हो सकती है ।”

“बहरहाल उसे बाखूबी जानते पहचानते थे ?”

“हां, साहेब ।”

“कैसे पेश आती थी ?”

“डीसेंटली । वैसे ही जैस किसी डीसेंट गर्ल का स्‍वभाव होता है । मेरी मामूली औकात से वाकिफ थी, उसको ले कर छोटा मोटा मजाक भी करती थी । लेकिन लिमिट में । इस बात का खयाल रखते हुए कि मेरी इज्‍जत बनी रहे । जैसे मैं बार का बिल चुकता करता था तो पूछती थी, ‘पीछे कुछ छोड़ा या नहीं ! अभी मैं इधर से आफ करके साथ चलूं तो डिनर करा सकोगे कि नहीं’ ।”

“हूं । उम्र कितनी है ?”

“बयालीस ।”

“शादी बनाई ।”

“नहीं, साहेब ।”

“क्‍यों ?”

“बीवी अफोर्ड नहीं कर सकता ।”

“पहले कभी जेल गये ?”

“नहीं, साहेब ।”

“बिल्‍कुल नहीं ?”

वो हिचकिचाया ।

“बेखौफ जवाब दो ।”

“दो तीन बार पहले भी टुन्‍न पकड़ा गया था । रात को हवालात में बंद रहा था, गुलदस्‍ता दिया तो सुबह छोड़ दिया गया था ।”

“गुलदस्‍ता !”

“समझो, साहेब ।”

“तुम समझाओ ।”

“नजराना । शुकराना । बिना कोई चार्ज लगाये छोड़ दिये जाने की फीस ।”

“ठहर जा, साले !” - महाबोले भड़का और उस पर झपटने को हुआ ।

“इंस्‍पेक्‍टर !” - डीसीपी बोला तो उसके स्‍वर में कोड़े जैसी फटकार ली - “कंट्रोल युअरसैल्‍फ !”

दांत पीसते महाबोले ने अपना स्प्रिंग की तरह तना हुआ शरीर कुर्सी पर ढ़ीला छोड़ा 

“पहले कभी” - डीसीपी फिर पाण्डेय से सम्‍बोधित हुआ - “किसी सैक्‍स ऑफेंस में पकड़े गये ?”

“क‍भी नहीं, साहेब ।”

“अब अपनी हालिया पोजीशन के बारे में क्‍या कहते हो ?”

“क्‍या कहूं, साहेब ?”

“सोचो !”

“थानेदार साहब कहते हैं कि मैं बेतहाशा नशे में था इसलिये मुझे याद ही नहीं कि मेरे हाथों रोमिला सावंत का खून हुआ था । मैं झूठ नहीं बोलूंगा, साहेब, कल रात ऐसे नशे में तो मैं बराबर था । और नशे के दौर की किसी बात याद न रह पाना भी कोई बड़ी बात नहीं । अगर मेरे हाथों खून हुआ है तो मुझे इसका सख्‍त अफसोस है । मैंने आज तक कभी मक्‍खी नहीं मारी लेकिन लानत है मेरी नशे की लत पर कि...खून कर बैठा ।”

 “लेकिन तुमने क्‍या किया, कैसे किया, कहां किया, ये सब तुम्‍हें याद नहीं ?”

“हां, साहेब ।”

“नशे में तुम रूट फिफ्टीन पर भटक गये, सेलर्स बार के करीब तक पहुंच गये, ये सब तुम्‍हें याद नहीं ?”

“हां, साहेब ।”

“ये भी नहीं कि तुमने मकतूला पर हमला किया और फिर उसे रेलिंग के पार नीचे फेंक दिया ?”

“मुझे याद नहीं लेकिन थानेदार साहब कहते हैं मैंने ऐसा किया तो ठीक ही कहते होंगे !”

“थानेदार साहब नहीं कहते” - महाबोले बोले बिना न रह सका - “तुमने खुद कुबूल किया । कुबूल किया कि तुमने रोकड़े की खातिर, अपनी नशे की लत को फाइनांस करने की खातिर, लड़की का कत्‍ल किया । और ये बात तुम्‍हें भूली भी नहीं थी, बावजूद अपनी बेतहाशा नशे की हालत में नहीं भूली थी ।”

“मैंने ऐसा कहा था, साहेब, लेकिन मजबूरन कहा था ।”

“क्‍यों ?”

“क्‍योंकि आप भूत भगा रहे थे ।”

“क्‍या !”

“आपने कहा था मार के आगे भूत भी भागते हैं ।”

“साले, जो बात मैंने मुहावरे के तौर पर कही, उसे अब मेरे मुंह पर मार रहा है !”

“मुझे एक सवाल पूछने की इजाजत मिल सकती है, साहेब ?”

“क्‍या कहना चाहता है ?”

“आप कहते हैं मैं बेतहाशा टुन्‍न था, अपनी उसी हालत में मैंने खून किया, इसलिये मुझे अपनी करतूत याद न रही !”

“हां ।”

“जब मैं बेतहाशा टुन्‍न था-इतना कि अपनी याददाश्‍त से, अपने विवेक से, अपने बैटर जजमेंट से मेरा नाता टूट चुका था - तो ऐसे हाल में वारदात कर चुकने के बाद मेरे फिर बोतल चढ़ाने का क्‍या मतलब था ? जिस मुकाम पर पहुंचने के लिये नशा किया जाता है, बकौल आपके उस पर तो मैं पहले ही पहुंचा हुआ था, तब मेरी नयी खरीद, नयी बाटली - जो कि आप कहते है मैंने लूट की रकम से खरीदी - मेरे किस काम आने वाली थी ! और अभी आपका ये भी दावा है कि नयी बोतल भी मैं पूरी चढ़ा गया !”

महाबोले मुंह बाये उसे देखने लगा ।

“बहुत श्‍याना हो गया है !” - फिर बोला - “साले, नशा उतरते ही दिमाग की सारी बत्तियां जल उठीं !”

“सवाल दिलचस्‍पी से खाली नहीं” - डीसीपी बोला - “जवाब है तुम्‍हारे पास, इंस्‍पेक्‍टर साहब ?”

“सर, मेरा जवाब इसके इकबालेजुर्म की सूरत में आपके सामने पड़ा है ।”

“आर यू ए ड्रिंकिंग मैन ?”

महाबोले हड़बड़ाया, उसने महसूस किया कि उस घड़ी इस बाबत झूठ बोलना मुनासिब नहीं था 

“आई एम ए माडरेट ड्रिंकर, सर ।” - वो बोला - “वन ऑर टू पैग्‍स ओकेजनली । हैवी ड्रिंकिंग का मुझे कोई तजुर्बा नहीं ।”

“आई सी ।”

“इसलिये मैं नहीं जानता ड्रींकर किस हद तक जा सकता है ! वो बोतल पी सकता है या नहीं; एक बोतल पी चुकने के बाद दूसरी बोतल पी सकता है या नहीं, इस बाबत मेरी कोई जानकारी नहीं ।”

“हूं । पाण्‍डेय !”

“जी, साहेब ।”

“मकतूला के जेवरात, उसकी कलाई घड़ी, उसका कायन पर्स, ये सब सामान तुम्‍हारी जेबों से बरामद हुआ । इस बाबत तुम क्‍या कहते हो ?”

“बरामद तो बराबर हुआ, साहेब । लेकिन मुझे नहीं मालूम वो सामान मेरी जेबों में कैसे पहुंचा !”

“उड़ कर पहुंचा और कैसे पहुंचा !” - महाबोले व्‍यंगपूर्ण स्‍वर में बोला - “या जादू के जोर से पहुंचा । तुमने तो नहीं रखा न !”

“मैंने ऐसा कब कहा ?”

“तो और क्‍या कहा ?”

“मैंने कहा उस सामान का मेरी जेबों में होने का कोई मतलब नहीं था ।”

“तुमने न रखा ?” - डीसीपी ने पूछा।

“मुझे याद नहीं कि मैंने ऐसा कुछ किया था ।”

“कहीं पड़ा मिला हो ?”

“नहीं, साहेब ।”

“रोमिला तुम्‍हें कहीं मिली, उसने अपनी राजी से अपना सामान तुम्‍हें सौंप दिया ?”

“ऐसा भला क्‍यों करेगी वो ?”

“नहीं करेगी ?”

पाण्‍डेय ने जोर से इंकार में सिर हिलाया ।

“फिर तो एक ही सम्‍भावना बचती है । सामान तुमने छीना ! झपटा ! लूटा !”

“मैं ऐसा नहीं कर सकता ।”

“लेकिन किया ।”

“किया तो मुझे कुछ याद नहीं ।”

“ये भी नहीं कि तुमने उस पर हमला किया ? या रेलिंग से पार ढ़लान से नीचे धक्‍का दिया?”

“साहेब, ये भी नहीं । मै ताजिंदगी कभी किसी से ऐसे पेश नहीं आया । मेरे में एक ही खामी है कि मै घूंट का रसिया हूं....”

“साले !” - महाबोले बोला - “ये एक ही खामी दस खामियों पर भारी है । नशे में टुन्‍न आदमी जो न कर गुजरे, थोड़ा है । अल्‍कोहल की तलब उससे कुछ भी करा सकती है । तू रोमिला से वाकिफ था, तेरी तलब ने तुझे मजबूर किया कि तू उससे अपना मतलब हल होने की कोई जुगत करता....”

“आपकी बात ठीक है, साहेब, लेकिन...”

“…जो कि तूने की । जान ले ली बेचारी की । उसको अकेली पाया तो उस पर झपट पड़ा, उसका हैण्‍डबैग झटक लेने की कोशिश की । उसने विरोध किया तो...अब आगे खुद बक क्‍या किया ! जो पहले मेरे सामने बक चुका है, उसे अब डीसीपी साहब के सामने भी बक ।”

“साहेब, थानेदार साहेब अगर कहते हैं कि ये सब मैंने किया तो मैं भी कहता हूं कि मैंने किया । लेकिन साथ में पुरजोर ये भी कहता हूं कि उस बाबत मुझे कुछ याद नहीं । जो कहा जा रहा है मैंने किया, वो किया होने का मेरे कोई इमकान नहीं ।”

“पाण्‍डेय” - डीसीपी बोला - “ये मेरे सामने तुम्‍हारा इकबालिया बयान है और तुम तसलीम करते हो कि इस पर तुम्‍हारे दस्‍तखत हैं । तुम्‍हारा ये बयान कहता है कि मकतूला रोमिला सावंत तुम्‍हें रूट फिफ्टीन पर राह चलती मिली, अपने नशे की तलब में तुमने उससे कोई रकम खड़ी करने की कोशिश की जिसको देने से उसने इंकार कर दिया । तब तुमने उसका हैण्‍डबैग झपटने की कोशिश की तो उसने तुम्‍हारा पुरजोर मुकाबला किया और तुम्‍हारी कोशिश को नाकाम किया । उसी छीनाझपटी में तुमने उसको धक्‍का दिया और वो वेग से रेलिंग पर से उलट गयी और ढ़लान पर कलाबाजियां खाती गिरती चली गयीं । अब सोच समझ कर जवाब दो, मोटे तौर पर ये सब सच है या नहीं ?”

“मुझे नहीं मालूम । यकीनी तौर पर मुझे कुछ नहीं मालूम । हो सकता है सब ऐसे ही हुआ हो ।”

“हो सकता है नहीं । दो टूक बोलो । एक जवाब दो । ऐसा हुआ या नहीं हुआ ?”

“शायद हुआ ।”

“फिर ?”

“मुझे कुछ याद नहीं । मैं थका हुआ हूं । मेरी सोच, मेरी समझ, मेरा मगज मेरा साथ नहीं दे रहा । मुझे रैस्‍ट की जरूरत है । करने दीजिये । अहसान होगा ।”

“ठीक है । इंस्‍पेक्‍टर !”

“सर !” - महाबोले तत्‍पर स्‍वर में बोला ।

“सी दैट ही गैट्स सम रैस्‍ट ।”

“यस, सर ।”

महाबोले ने हवलदार खत्री को बुलाया और आवश्‍यक निर्देश के साथ मुजरिम को उसके हवाले किया ।

“अब मैं तुम्‍हें कुछ कहना चाहता हूं ।” - डीसीपी बोला - “गौर से सुनो ।”

“यस, सर ।” - महाबोले बोला ।

“मैं नहीं जानता ये आदमी-हेमराज पाण्‍डेय-गुनहगार है या बेगुनाह....”

“मै जानता हूं । गुनहगार है । सजा पायेगा । उसका इकबालिया बयान...”

“इंस्‍पेक्‍टर !”

“सर !”

“डोंट इंटररप्‍ट । पे अटेंशन टु वाट आई एम सेईंग । स्‍पीक ओनली वैन आई एम फिनिश्‍ड ऑर वैन आई आस्‍क यू टु स्‍पीक । अंडरस्‍टैण्‍ड !”

“यस, सर ।” - मन ही मन अंगारों पर लोटता महाबोले बड़े जब्‍त से बोला 

“अब तक क्‍या सुना ?”

“सर, आप कह रहे थे आप नहीं जानते मुजरिम पाण्‍डेय गुनहगार है या बेगुनाह ।”

“यस । आई एम रिलीव्ड दैट यू वर पेईंग अटेंशन टु वाट आई वाज सेईंग । सो ऐज आई वाज सेईंग, मैं नहीं जानता ये आदमी गुनहगार है या बेगुनाह-गुनहगार है तो अपने किये की सजा पायेगा । बेगुनाह है तो बरी हो जायेगा-लेकिन जब तक ये तुम्‍हारे कब्‍जे में तुम्‍हारे लॉक अप में है, इसे अपना कोई स्‍पैशल ट्रीटमेंट नहीं देना है । इसे ठोकना नहीं हैं, मूंडी पकड़ के जबरदस्‍ती पानी में नहीं डुबोना है । नो थर्ड डिग्री, आई वार्न यू ।”

“सर, आर यू फिनिश्‍ड ?”

“यस ।”

“कैन आई स्‍पीक नाओ ?”

“यू कैन ।”

“सर, ये मेरा स्‍टेशन हाउस है, ये मेरा केस है, कोई एसएचओ इतनी पाबंदियों के बीच फंकशन नहीं कर सकता । मैं इंस्‍पेक्‍टर हूं, कल भरती हुआ कांसटेबल नहीं जिसे ए से ऐपल, बी से बोट पढ़ाना जरूरी हो । मैं अपने ढ़ण्‍ग से काम करूंगा और उस बाबत कोई हिदायत दी जानी होगी तो वो मेरा डीसपी देगा, मेरे काम करने के ढ़ण्‍ग में कोई नुक्‍स निकालना होगा तो वो मेरा डीसीपी निकालेगा ।”

“और ?”

“बस ।”

“सोच लो । विचार कर लो । सोचने विचारने से और कुछ न कुछ सूझ जाता है ।”

“इस मुद्‌दे पर मुझे और कुछ नहीं कहना ।”

“तो मुझे कहना है । सुनो । इंस्‍पेक्‍टर महाबोले, दो घंटे में ये दूसरा मौका है ज‍बकि तुमने मुझे ये जताने की कोशिश की कि तुम्‍हारे लिये मेरा हुक्‍म मानना जरूरी नहीं ।”

“सर, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।”

“बराबर किया । लेकिन जो किया, उससे मुझे कोई एतराज नहीं क्‍योंकि तुम्‍हारी ये ख्‍वाहिश भी आज दोपहर तक ही पूरी हो जायेगी कि तुम्‍हारा अपना डीसीपी तुम्‍हें उंगली पकड़ कर चलाये, तुम्‍हें ए से ऐपल, बी से बोट का रिफ्रेशर कोर्स कराये । दोपहर से पहले डीसीपी जठार यहां होगें.....”

“जी !”

“और तुम्‍हारे केस की तफ्तीश उनके हाथ में होगी । तुम्‍हारा मुजरिम उनकी कस्‍टडी में होगा । लिहाजा तुम्‍हें वार्निंग है कि डीसीपी जठार के आइलैंड पर कदम पड़ने के वक्‍त तक अगर इस मुजरिम का बाल भी बांका हुआ तो...नाओ, डू आई हैव टु ड्रा यू ए डायग्राम, इंस्‍पेक्‍टर महाबोले ?”

“नो, सर ।”

“अगर तुम समझते हो कि तुम मेरा हुक्‍म मानने को बाध्‍य नहीं हो तो अब बोलो । और अपनी चायस भी बोलो कि इस बाबत तुम फोन पर डीसीपी जठार से निर्देश प्राप्‍त करना चाहोगे या होम मिनिस्‍टर से ?”

“जरूरत नहीं, सर । मेरे से कोई नाफरमानी हुई तो उसे माफ कर दीजिये । आप के हर हुक्‍म की तामील होगी ।”

“गुड ! आई एम ग्‍लैड । जा सकते हो ।”

बडे़ यत्‍न से महाबोले कुर्सी पर से उठकर खड़ा हुआ । उसके थाने से, उसी के आफिस से उसको चले जाने का हुक्‍म हो रहा था ।

“मोकाशी साहब बहुत देर से बैठे करवटें बदल रहे हैं, इन्‍हें भी साथ ले जाओ ।”

दोनों भारी कदमों से वहां से रूखसत हुए ।

“इधर सामने आ के बैठो ।” - डीसीपी ने नीलेश को हुक्‍म दिया ।

नीलेश अपने स्‍थान से उठा और डीसीपी के सामनेएक विजिटर्स चेयर पर आ कर बैठा 

“क्‍या खयाल है ?” - डीसीपी बोला ।

“केस के बारे में, सर ?”

“हां ।”

“मेरी तुच्छ राय में तो शक उपजाऊ विसं‍गतियां कई हैं । एक तो ये बात ही स्‍पष्‍ट नहीं हो पाई है कि मुजरिम वारदात के पहले से नशे में था या वारदात के बाद, हाथ आये लूट के माल के सदके, टुन्‍न हुआ था । पहले ही बेतहाशा टुन्‍न था तो उसकी बात सही है, वारदात के बाद पहले से ही नशे के घोड़े पर सवार शख्‍स के पूरी बोतल और पी जाने की कोई तुक नहीं बनती । बोतल उसने बाद में चढ़ाई, पहले वो नार्मल था तो ये नहीं हो सकता कि तब उसने क्‍या किया, या उसके हाथों क्‍या हो गया, ये उसे याद न हो ।”

“और ?”

“रूट फिफ्टीन आधी रात को भटकने लायक जगह नहीं है । फुल टुन्‍न वो शख्‍स उधर कैसे भटक गया !”

“उधर ही कहीं बोतल चढ़ाई होगी, तरंग में पैदल लौट रहा होगा तो वो लड़की-मकतूला रोमिला सावंत-मिल गयी होगी !”

“सर, इन माई हम्‍बल ओपीनियन, इट इज वैरी फारफैच्‍ड ।”

“सो वाट ! इमपासिबल तो नहीं !”

“सर, एसएचओ की थ्‍योरी कहती है कि सारा गलाटा लड़की का हैण्‍डबैग छीनने की कोशिश से हुआ । उसी कोशिश से बढ़कर बाकी सब कुछ हुआ । पाण्‍डेय हैण्‍डबैग छीनने की कोशिश में था, लड़की हैण्‍डबैग छोड़ती नहीं थी, नौबत खून तक पहुंची, पाण्‍डेय ने हैण्‍डबैग से नकद रकम निकाल कर हैण्‍डबैग कहीं ठिकाने लगा दिया । हर जगह हैण्‍डबैग की इतनी मकबूल हाजिरी है लेकिन हैण्‍डबैग तो रोमिला के पास था ही नहीं ।”

“क्‍या !”

“रात को जब उसने मुझे एसओएस फोन किया था तो उसकी खास दुहाई ये थी कि उसके पास कोई रोकड़ा नहीं था, मुहावरे की जुबान में कहा था उसकी जेब खाली थी । हैण्‍डबैग हर जवान, कामकाजी लड़की की पर्सनैलिटी का अभिन्‍न अंग होता है । ऐसी किसी लड़की की हैण्‍डबैग के बिना कल्‍पना नहीं की जा सकती ।”

“यू आर राइट । आई वैल एनडोर्स इट ।”

“बाकी जनाना साजोसामान के अलावा रोकड़ा रखने के काम में भी हैण्‍डबैग ही आता है । माली इमदाद की खातिर रोमिला रात के एक बजे मुझे एसओएस काल कर ही थी, इसका क्‍या मतलब हुआ ?”

“उसका हैण्‍डबैग उसके पास नहीं था ।”

“ऐग्‍जैक्‍टली, सर । खाली कायन पर्स था जिसे ईजी हैंडलिंग के लिये औरतें गिरहबान में रखती हैं ।”

“आई सी ।”

“रोमिला के पास हैण्‍डबैग नहीं था, रोकड़ा नहीं था, इस बात की तसदीक सेलर्स बार के मालिक रामदास मनवार ने भी की है....”

***

हैण्‍डबैग !

महाबोले अपने आफिस के बाहर खड़ा बंद दरवाजे से कान लगाये भीतर से आती आवाजें सुनने की कोशिश कर रहा था । जो औना पौना वो सुन चुका था, समझ चुका था, वो उसके होश उड़ाये दे रहा था ।

क्‍यों हैण्‍डबैग इतना अहम हो उठा था, होता जा रहा था !

क्‍यों खुद उसने हैण्‍डबैग की तरफ वो तवज्‍जो नहीं दी थी जो कि उसे देनी चाहिये थी ! उस बाबत क्‍यों उसके भेजे काम नहीं किया था कि जब उसकी कहानी में - कहानी की तसदीक करते पाण्‍डेय के इकबालिया बयान में - हैण्‍डबैग की अहमियत थी तो ये भी उसे पहले सुनिश्‍चित करके रखना चाहिये था कि हैण्‍डबैग बरामद न हो !

वो सीधा हुआ और दरवाजे पर से परे हटा ।

भीतर का आइंदा डायलॉग सुनते रहने का सब्र अब उसमें बाकी नहीं था ।

जो उसने सुना था, उसकी रू में हैण्‍डबैग ही नहीं, गोखले का किरदार भी उसे हैरान कर रहा था, हलकान कर रहा था ।

कैसे डीसीपी पाटिल उससे मंत्रणा कर रहा था, जैसे रूतबे में गोखले उसका सहकर्मी हो, ईक्‍वल हो !

जो औना पौना डायलॉग उसने अभी सुना था, उसने और कुछ नहीं तो गोखले की असलियत का पर्दाफाश तो कर ही दिया था, ये तो स्‍थापित कर ही दिया था कि उसकी बाबत उसकी ‘आम आदमी, आम आदमी’ की रट गलत थी, हिमाकतभरी थी ।

देखूंगा साले को ! डीसीपी दफा हो जाये,उसके साथ ही गोखले भी न चला गया तो अब नहीं बचेगा साला हरामी ।

लेकिन हैण्‍डबैग ।

हैण्‍डबैग को याद करने में उसको अपने जेहन पर केाई ज्‍यादा जोर न देना पड़ा । उसे वो बखूबी याद आया, ये भी याद आया कि उसने उसे खोल कर भीतर के सामान का भी जायजा लिया था ।

फिर !

फिर क्‍या किया था !

हां, उसे बंद करके परे फेंका था तो वो टीवी कैबिनेट पर जा कर गिरा था और फिर वहां से लुढ़क कर टीवी के पीछे कहीं गुम हो गया था 

वहीं पड़ा होगा ।

और कहां जायेगा !

भाटे को उल्‍लू बना कर गोखले पिछली रात रोमिला के कमरे में गया था बराबर लेकिन हैण्‍डबैग उसकी निगाह में आया नहीं हो सकता था, आया होता तो अभी भीतर भी उस बात का जिक्र उठा होता ।

नहीं, हैण्‍डबैग वहीं था ।

लेकिन क्‍यों वो उसे भूल गया था, क्‍यों उसने उसकी बाबत वक्‍त रहते नहीं सोचा था !

नहीं सोचा था तो भी क्‍या था ! - उसने खुद से जिरह की - किसी नौजवान, माडर्न फैशनेबल़ लड़की के पास एक ही हैण्‍डबैग हो, ये तो जरूरी नहीं ! वो कई हो सकते हैं । रोमिला के पास दो तो बराबर थे; एक वो जो उससे पाण्‍डेय ने छीना, दूसरा वो जो अभी भी उसके बोर्डिंग हाउस के कमरे में मौजद था ।

ठीक !

नहीं ठीक । - तत्‍काल उसने खुद ही अपनी बात काटी ।

साला मेरे मगज में लोचा 

किसी के पास कई हैण्‍डबैग हो सकते थे लेकिन उसका जाती सामान-जनाना आइटम्‍स, हेयर ब्रश, कंघी, कास्‍मैटिक्‍स, रूमाल वगैरह तो एक ही हैण्‍डबैग में होते ! कैश-नकद रोकड़ा-तो एक ही बैग में होता ! किसी लड़की के पास फर्ज किया छः हैण्‍डबैग थे तो छः के छः में अलग अलग वो तामझाम हो, ये कैसे मुमकिन था !

नहीं मुमकिन था । कोई लड़की जब हैण्‍डबैग बदलती होगी तो जाहिर है कि उसकी तमाम आइटम नये बैग में ट्रांसफर करती होगी । फिर बोर्डिंग हाउस के उसके कमरे में पड़े रोमिला कै बैग में उन तमाम चीजों की मौजूदगी का क्‍या मतलब ! वो बैग वहां से बरामद हो जाता - जो कि केस की तफ्तीश सच में डीसीपी जठार के हाथ पहुंच जाती तो बरामद हो के रहता - तो उसकी तो कत्‍ल की ये थ्‍योरी ही पिट जाती कि रोकड़े के लिये लड़की का हैण्‍डबैग छीनने की कोशिश में कत्‍ल की नौबत आयी थी ।

नहीं- उसने घबरा कर सोचा - ऐसा नहीं होना चाहिये था । वो हैण्‍डबैग बरामद नहीं होना चाहिये था ।

कैसे होगा !

क्‍या करे वो !

किसी को मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस भेजे या खुद वहां जाये !

जब तक डीसीपी बैठा था, उसका थाना छोड़ कर जाना गलत था ।

दूसरे, डीसीपी को भी हैण्‍डबैग की तलाश का खयाला आ सकता था । वो अभी मकतूला के कमरे में ही होता और डीसीपी-उस हरामी पिल्‍ले गोखले के साथ-ऊपर से पहुंच जाता तो....तो....बुरा होता ।

यही बात उसके किसी मातहत पर भी लागू थी जिसे कि वो अपनी जगह वहां भेजता ।

तो !

मिसेज वालसन !

बरोबर ।

लम्‍बे डग भरता, गलियारे में चलता वो कोने के कमरे में पहुंचा जो कि उस घड़ी खाली था । उसने उसका दरवाजा भीतर से बंद किया और मोबाइल पर बोर्डिंग हाउस का फोन नम्‍बर पंच किया ।

घंटी बजने लगी ।

बेसब्रेपन से वो रिसीवर उठाये जाने का इंतजार करता रहा 

आखिर ऐसा हुआ ।

“कौन है उधर ? - उसे मिसेज वालसन की आदतन झुंझलाई हुई आवाज सुनाई दी - “क्‍या मांगता है ?”

“थानेदार महाबोले है इधर ।” - अंगारे उगलती आवाज में महाबोले बोला - “और जो मांगता है, उसे गौर से सुन, बुढ़िया ।”

“क्‍या ! क्‍या बोला ?”

“जो तूने सुना । अभ बोल, तेरे मगज में आया मैं कौन बोलता है ?”

“हं - हां ।”

“बढ़िया । अभी जो बोलता है उसको गौर से सुनने का, समझजे का, फिर जैसा मैं बोले, वैसा एक्‍ट करने का । क्‍या !”

“जै-जैसा तुम बोले, वै-वैसा एक्‍ट करने का ।”

“ठीक ! बुढिया, जरा भी कोताही हुई तो न तू बचेगी, न तेरा बोर्डिंग हाउस बचेगा । बोर्डिंग हाउस फूंक दूंगा तेरे को उसके साथ फूंक दूंगा । आयी बात समझ में ?”

“आई । फार गॉड सेक, ऐसा न करना ।”

“फार युअर सेक, ऐसा नहीं करूंगा । लेकिन कब ?”

“आई अंडरस्‍टैण्‍ड ! आई वैल अंडरस्‍टैण्‍ड ! तुम बोलो, मेरे को क्‍या करने का ! मैं करता है न बुलेट का माफिक !”

“ऐग्‍जैक्‍टली । बुलेट का माफिक ही एक्‍ट करने का । अभी सुन क्‍या करने का !”

“सुनता है ।”

“रोमिला सावंत के कमरे में जा अभी का अभी । कमरा अनलॉक्‍ड होगा, अनलॉक्‍ड न हो तो अपनी मास्‍टर की से खोलना । रखता है न मास्‍टर की ?”

“रखता है । वो जरूरी....”

“ठीक । ठीक । टेम खोटी न कर । अभी न सुन कमरे में जा कर क्‍या करने का । उधर कमरे में टीवी के पीछे कहीं रोमिला का हैण्‍डबैग गिरा हुआ है....”

“तुम्‍हेरे को मालूम उधर हैण्‍डबैग किधर....”

“शट अप !”

“स-सारी ! सारी, बॉस !”

“उस हैण्‍डबैग को काबू में करने का और उधर से निकल लेने का । हैण्‍डबैग को छुपा के, बोले तो कंसील करके, तब तक अपने पास रखने का जब तक मैं या थाने का कोई आदमी उसको क्‍लैक्‍ट करने उधर न पहुंचे । फालोड ?”

“यस ।”

“सैकण्‍ड इम्‍पार्टेंट बात ! कोई तेरे को रेामिला के रूम में जाता न देखे, लौटता न देखे । ठीक ?”

“बरोबर ।”

“जो कुछ करने का हरिडली करने का । सच में ही बुलेट का माफिक करने का, क्‍योंकि उधर कोई पहुंच सकता है ।”

“क-कोई कौन ?”

“कोई भी । इस वास्‍ते रूम में क्‍विक इन एण्‍ड आउट जरूरी । भीतर जाने का, हैण्‍डबैग काबू में करने का और निकल लेने का । टेग वेस्‍ट नहीं करने का ।”

“क-कोई सच में ऊपर से पहुंच गया तो ? मेरे को हैण्‍डबैग पिक करते रैड हैंडिड पकड़ लिया तो ?”

“तो जो जी में आये करना ।”

“बोल दे, एसएचओ का आर्डर फालो करता था ?”

“हां, बोल देना । अभी आखिरी बात सुन ।”

“सुनता है ।”

“नैक्स्ट वन आवर आये गये पर वाच रखने का । कोई रोमिला के रूम में पहुंचे तो मेरे को फौरन खबर करने का । क्‍या !”

“ख-खबर करने का ।”

“शाबाश ! अभी जो बोला, कर । बुलेट का माफिक । कट करता है ।”

***

“…..बकौल मनवार” - नीलेश कह रहा था - “उसके पास बार का बिल चुकाने तक के लिये पैसा नहीं था । फरियाद करके कहती थी कि उसका फ्रेंड-यानी कि मैं-आयेगा और बिल अदा करेगा । बार के मालिक ने बिल माफ कर दिया था, उसे जबरन बार से बाहर निकाला था और बार बंद करके पीछे उसे अकेली खड़ी छोड़ कर वहां से चला गया था । सर, मनवार की ये बात गौरतलब है कि वो रोमिला को बंद बार पर अकेली छोड़ कर गया था । उसने उस घड़ी आसपास मंडराते किसी शख्‍स का कोई जिक्र नहीं किया था । टुन्‍न पाण्‍डेय वहां होता तो वो मनवार के नोटिस में जरूर आया होता । तब उसने जरूर इस बात पर जोर दिया होता कि रोमिला का वहां अकेले ठहरना ठीक नहीं था ।”

“तो वो वहां नहीं होगा ! तो हुआ ये होगा कि इंतजार से आजिज आ कर लड़की वहां से चल दी होगी और पाण्‍डेय उसे रास्‍ते में मिला होगा !”

नीलेश के चेहरे पर अनिश्‍चय के भाव आये ।

“नहीं हो सकता ?”

“होने को क्‍या नहीं हो सकता, सर !” - नीलेश बोला ।

“तो ?”

“आगे बढ़ने से पहले मैं एक अहम बात का जिक्र और करना चाहता हूं जिसकी कोई अहमियत शायद आपके मिजाज में आये ।”

“करो ।”

“कल रात रोमिला सावंत बहुत डरी हुई थी, मेरे से फोन पर बात करते वक्‍त साफ साफ खौफजदा जान पड़ती थी ।”

“किससे ? हेमराज पाण्‍डेय से ?”

“सवाल ही नहीं पैदा होता, सर । पाण्‍डेय जैसों को तो वो भून के खा सकती थी ।”

“तो किससे ?”

“पुलिस से । इस मद में मेरा ऐतबार इंस्‍पेक्‍टर महाबोले पर है ।”

“वजह ?”

“वो उसके पीछे पड़ा था ।”

“क्‍यों ?”

“वो जुदा मसला है । लेकिन पीछे बराबर पड़ा था । कल रात के ढ़ाई बजे मैंने उसके बोर्डिंग हाउस का चक्‍कर लगाया था तो मैंने पुलिस के एक सिपाही को-नाम दयाराम भाटे-वहां की निगरानी पर तैनात पाया था । सर, ऐसी निगरानी वो अपनी जाती हैसियत में तो करता हो नहीं सकता था !”

“नो ! दैट्स आउट आफ क्‍वेश्‍चन ।”

“तो सेफली अज्‍यूम किया जा सकता है, सर, कि वो वहां अपने बॉस का हुक्‍म बजा रहा था ।”

“बॉस ! यानी कि एसएचओ महाबोले !”

“और कौन ?”

“आगे !”

“रोमिला अपने बोर्डिंग हाउस में कदम रखती तो फौरन, गोली की तरह, खबर महाबोले के पास पहुंचती और वो आननफानन रोमिला के सिर पर सवार होता । सर, वाच का वो इंतजाम ही जाहिर करता था कि महाबोले के हाथों रोमिला का कोई बुरा, बहुत बुरा होने वाला था और रोमिला को एस बात की खबर थी ।”

“कैसे मालूम ?”

“वो बेहद खौफजदा थी, फोन पर उसने साफ कहा था कि उसका इधर से फौरन निकल लेना जरूरी था । ये भी साफ कहा था कि अंदेशा था कि उसके बोर्डिंग हाउस की निगरानी हो रही होगी-जो कि खुद मैंने अपनी आंखों से देखा था कि हो रही थी - इसलिये वो वहा वापिस नहीं जा सकती थी । ज‍बकि उसका तमाम साजोसामान वहीं था । इसीलीये वो पैसे से मोहताज थी और उस सिलसिले में मेरी मदद की तलबगार थी ।”

“उसने महाबोले का नाम लिया था ? बोला था कि जो खतरा वो महसूस कर रही थी, वो उसे महाबोले से था ?”

“कोई नाम नहीं लिया था । खाली बोला था कि वो लोग उसके पीछे पड़े थे ।”

“वो लोग कौन ?”

“जो यहां के जाबर हैं । ताकत की त्रिमूर्ति हैं ।”

“कौन ?”

“यहां के फेमस तीन ‘एम’ । महाबोले । मोकाशी । मैग्‍नारो ।”

“तीनों ?”

“उनकी ‘वन फार आल, आल फार वन’ जैसी जुगलबंदी है । रोमिला का पंगा महाबोले से होगा लेकिन वो खतरा तीनों से महसूस करती होगी !”

“मुमकिन है । एक बात बताओ, उसके साथ जानलेवा हादसा न गुजरा होता, वो मुकर्रर जगह पर तुम्‍हें मिल गयी होती तो तुम क्‍या करते ? चुपचाप आइलैंड से निकल जाने में उसकी मदद करते ?”

नीलेश ने संजीदगी से इंकार में सिर हिलाया ।

“तो ?”

“मेरा इरादा उसको कोस्‍ट गार्ड्‌स की छावनी की प्रोटेक्‍शन में पहुंचाने का था । उसको यकीन हो जाता - जो कि हो ही जाता - कि उसके सिर से जान का खतरा टल गया था तो वो बहुत कुछ कहती, त्रिमूर्ति के बारे में - खासतौर पर महाबोले के बारे में - खुल्‍ला जहर उगलती और यूं हमारा खास मतलब हल होता ।”

“ठीक !”

“लेकिन मैं उस तक पहुंच ही न पाया । उसको पहले ही परलोक की राह का राही बना दिया गया । आप फैसला कीजिये, सर, ये मानने की बात है कि ऐसा एक पिलपिलाये हुए बेवड़े ने किया ?”

“नहीं ।”

“लेकिन लड़की तो जान से गयी ! ये काम पाण्डेय ने नहीं किया तो जाहिर है किसी और ने किया ।”

“महाबोले ने ?”

“या उसके इशारे पर उसके किसी जमूरे ने ।”

“गोखले, ऐसा कोई केस खड़ा करने की सलाहियात अभी हमारे सामने नहीं है । इस बाबत हम फिर भी जिद पकड़ेंगे तो हमारे केस में झोल ही झोल होंगे ।”

“हर केस में होते हैं ।”

“हमारे में बेतहाशा होंगे । बहरहाल उस बाबत हम बाद में सोचेंगे, अभी तुम असल बात पर लौटो ।”

“असल बात !”

“रोमिला का हैण्‍डबैग ! जिसे तुम फोकस में लाने की कोशिश कर रहे थे !”

“यस, सर । मैं इस बात को हाईलाइट करने की कोशिश कर रहा था कि रोमिला के पास हैण्‍डबैग नहीं था । अब सवाल ये है, सर, जब हैण्‍डबैग का वजूद ही नहीं दिखाई देता तो रोकड़े की खातिर मुलजिम पाण्‍डेय ने कौन सा हैण्‍डबैग झपटने की कोशिश की थी ? कौन सा रोकड़ा उसके हाथ में आया था जिसकी-जैसा कि एसएचओ साहब कहते हैं-जश्‍न मनाने के लिये बाद में उसने बाटली खरीदी थी ?”

“हूं ।” - डीसीपी ने लम्‍बी हुंकार भरी ।

“अभी मैं ये नहीं कह रहा, सर, कि रात के एक बजे कैसे वो बोतल खरीदने में कामयाब हुआ ज‍बकि तमाम लिकर शाप ग्‍यारह बजे बंद हो जाती हैं ।”

“क्‍यों नहीं कह रहे ? ये एक अहम नुक्‍ता है ।”

“सर, टूरिस्‍टों की खातिर आइलैंड पर कोई कोई बार क्‍लोजिंग टाइम-जो कि एक बजे है-के बाद भी खुला रहता है । ऐसे बार पर पैग रेट पर जरूरतमंद ग्राहक को बोतल मुहैया करा देते हैं ।”

“पर पैग रेट का क्‍या मतलब ?”

“सर, आपके सामने विस्‍की की बात करते मुझे संकोच होता है ।”

“क्‍योंकि पीते नहीं हो !”

“पीता हूं, सर, इसीलिये संकोच होता है । मैं अपना ज्ञान बघारूंगा तो आप समझ जायेंगे कि मैं पक्‍का घूंट वाला हूं ।”

“नैवर माइंड दैट । मेरे जैसों को छोड़कर-जो कि इसी वजह से अनसोशल कहलाते हैं-आज कल कौन नहीं पीता !”

“यू आर राइट, सर ।”

“अब कहो, जो कहने जा रहे थे ।”

“सर, नार्मल बोतल में साढ़े बारह पैग होते हैं । फर्ज कीजिये ऐवरेज विस्‍की का एक पैग बार में सत्तर रूपये का मिलता है तो साढे़ बारह पैग पौने नौ सौ रूपये के बनते हैं जबकि लिकर शाप पर उसी बोतल की कीमत तकरीबन चार सौ रूपये है । कोई डबल से ज्‍यादा कीमत अदा करना मंजूर करे तो लेट लेट आवर्स में भी बार से बंद बोतल हासिल कर सकता है ।”

“कोई, जैसे कि हेमराज पाण्‍डेय !”

“हाइपॉथेटिकल बात है, सर, वर्ना हालात का इशारा तो इसी तरफ है कि लड़की के पास हैण्‍डबैग था ही नहीं, इसलिये पाण्‍डेय के हाथ नकद पैसा लगा होने का कोई मतलब ही नहीं ।”

“ठीक । ये एक बजें के बाद भी खुले रहने वाले बार कोई दर्जनों में तो नहीं होगें !”

“नहीं, सर । मेरे खयाल से तो मुश्किल से पांच छः होंगे ।”

“उनको चैक किया जा सकता है । मालूम किया जा सकता है कि उनमें से किसी में से किसी ने-किसी हेमराज पाण्‍डेय जैसे हुलिये वाले शख्‍स ने-बार रेट्स अदा करके विस्‍की की बोतल खरीदी थी या नहीं ! पुलिस इंक्‍वायरी है, मैं नहीं समझता कि झूठ बोलने की किसी की मजाल होगी ।”

“वो तो नहीं होगी लेकिन गुस्‍ताखी माफ, सर, इंक्‍वायरी करने वाले के पीठ फेरते ही खबर यहां थाने में पहुंच जायेगी ।”

“एैसा ?”

“इंस्‍पेक्‍टर महाबोले का ऐसा ही जहूरा है, सर, ऐसा ही दबदबा है आइलैंड पर ।”

“देखेंगे । देखेंगे इंस्‍पेक्‍टर साहब का जहूरा । दबदबा । और भी जो कुछ देखने को मिलेगा । तो तुम्‍हें लगता है कि पाण्‍डेय बेगुनाह है ! उसे सैट किया गया है !”

“लगता तो है, सर !”

“किसने किया ?”

“कहना मुहाल है ।”

“क्‍यों किया ?”

“अपने या अपने किसी करीबी के जाती फायदे के लिये उसे बलि का बकरा बनाया ।”

“फिर तो जेवर वगैरह भी उसकी जेबों में प्‍लांट किये गये होंगे !”

“लगता तो ऐसा ही है !”

“गरीबमार हुई ?”

“यू सैड इट, सर ।”

“महाबोले ने की ?”

“कहना मुहाल है ।”

“ये हो सकता है बकरा उसने सैट किया न हो, उसे सैट मिला हो ! सैट बकरा उसको पास आन किया गया हो ?”

“हो तो सकता है, सर ।”

“थाने में ऐसी खबरें-गुमनाम तरीके से-पहुंचती ही रहती है कि फलां जगह ये हो रहा था, फलां जगह वो हो गया था । किसी ने बेवडे़ की बाबत थाने गुमनाम काल लगाई । पुलिस मछली पकड़ने गयी, मगरमच्‍छ हाथ आ गया !”

“गुस्‍ताखी माफ, सर, अब आप इंस्‍पेक्‍टर महाबोले की हिमायत में बोल रहे हैं ।”

डीसीपी हंसा ।

“सर, हमी अभी थाने में ही हैं, दरयाफ्त कर सकते हैं कि थाने में ऐसी कोई गुमनाम काल आयी थी या नहीं ! काल नहीं आयी थी तो क्‍योंकर उन्‍हें पाण्‍डेय की खबर लगी थी !”

“कोई फायदा नहीं । मेरे को गारंटी है यही जवाब मिलेगा कि काल आयी थी । तब सचझूठ की शिनाख्‍त करने का कौन सा जरिया होगा हमारे पास ?”

“यू आर राइट, सर । जबकि आपकी यहां मौजूदगी इस काम के लिये है भी नहीं ।”

“वाट्स दैट ?”

“गुस्‍ताखी माफ, सर, आप यहां कत्‍ल की तफ्तीश को मानीटर करने तो नहीं आये !”

“ठीक । लेकिन अगर ऐसा समझा जाता है तो हमें कोई ऐतराज नहीं । तो ये बात हमारे हित में होगी !”

 नीलेश की भवें उठीं ।

“हम-जायंट कमिश्‍नर साहब और मैं-क्‍यों यहां हैं, इसकी तरफ उनकी तवज्‍जो ही नहीं जायेगी । अगर उनकी दाल में कोई काला है तो वो अपनी सारी एनर्जी कवर अप में ही जाया करते रहेंगे । टाइम नहीं होगा उनके पास ये सोचने का कि आल दि वे फ्राम मुम्‍बई मैं एकाएक यहां क्‍यों आया था !”

“ओह !”

“हैण्‍डबैग के जिक्र पर अभी एक बार फिर लौटो । तो तुम्‍हारा दावा है कि हैण्‍डबैग लड़की के पास नहीं था ।”

“जी हां । सर, इट स्‍टैण्‍ड्स टु रीजन दि वे आई एक्‍सप्‍लेंड....”

“यस, यस, यू डिड । एण्‍ड वैरी इंटेलीजेंटली ऐट दैट । मेरा सवाल ये है कि लड़की का-मकतूला रोमिला सावंत का-हैण्‍डबैग उसके पास नहीं था तो कहां था ?”

“सर, बोर्डिंग हाउस के उसके कमरे में ही होने की सम्‍भावना दिखाई देती है जहां से कि उसे एकाएक कूच कर जाना पड़ा था, जहां वो लौट कर नहीं जा सकती थी क्‍योंकि उसे अंदेशा था, उसने साफ ऐसा कहा था, कि वहां की निगरानी हो रही होगी-और उसका अंदेशा ऐन दुरुस्‍त भी निकला था ।”

“आई सी । कहां है ये बोर्डिंग हाउस ? अगर छावनी के रास्‍ते में है....”

“रास्‍ते में ही है, सर ।”

“…तो हम वहां एक ब्रीफ हाल्‍ट करेंगे ।”

“ब्रीफ क्‍यों, सर ?”

“डिप्‍टी कमांडेंट साहब ने कहा था कि छावनी के मैस में ब्रेकफास्‍ट बहुत बढ़िया बनता था, इसलिये ।”

“ओह !”

“यहां तो ब्रेकफास्‍ट की बाबत कोई पेशकश हुई नहीं, ऐसा न हो न, कि हम उधर से भी जायें ।”

“हम ! हम बोला, सर ?”

“हां, भई ।” - डीसीपी उठ खड़ा हुआ - “आओ चलें ।”

झिझकता सकुंचाता नीलेश डीसीपी के साथ हो लिया ।

हैण्‍डबैग रोमिला सावंत के बोर्डिंग हाउस के कमरे से न बरामद हुआ ।

“अब क्‍या कहते हो ?” - डीसीपी बोला ।

“सर, जो मेरे जेहन में है” - नीलेश झिझकता सा बोला - “पता नहीं उसको जुबान पर लाना मुनासिब होगा या नहीं ।”

“क्‍या है तुम्‍हारे जेहन में ?”

“यही है, सर, कि महाबोले की माया अपरम्‍पार है । जाबर का जोर कहीं भी चलता है इसलिये उसकी सलाहियात का कोई ओर छोर नहीं ।”

“हैण्‍डबैग यहां था, उसने गायब कर दिया ?”

“या करवा दिया ।”

“हूं । कौन चलाता है ये बोर्डिंग हाउस ?”

“मिसेज वालसन नाम की एक महिला है यहां की मालिक और संचालक ।”

“पता करो उसका ।”

पता करने पर मालूम हुआ कि मिसेज वालसन का आफिस-कम-रेजीडेंस पहली मंजिल पर था जो कि उस घडी लाक्‍ड पाया गया ।

कहां चली गयी थी !

एक रेजीडेंट ने ही बताया कि नजदीकी सुपर मार्ट में शापिंग के लिये गयी थी, जल्‍दी लौट आने वाली थी 

“जल्‍दी कम्‍पैरेटिव टर्म है ।” - डीसीपी उतावले स्‍वर में बोला - “जरूरी नहीं ‘जल्‍दी’ का हमारा और उसका पैमाना एक हो । ब्रेकफास्‍ट कहता है हम यहां और नहीं रूक सकते । तुम कभी अकेले लौट के आना यहां ।”

“राइट, सर ।”

“चलो ।”

***

महाबोले ने कोस्‍ट गार्ड्‌स की जीप को बोर्डिंग हाउस से रूखसत होते देखा तो वो अपनी वो ओट छोड़ कर बाहर निकला जहां से कि वो बोर्डिंग हाउस का नजारा कर रहा था और जहां से उसने डीसीपी पाटिल और गोखले को इमारत के फ्रंट से दाखिल होते और रूखसत होते देखा था । उसको किसी से जानने की जरूरत नहीं थी वहां उनका निशाना रोमिला का दूसरी मंजिल का कमरा था और ये भी निश्‍चित था कि वहां से उनके हाथ कुछ नहीं लगा था वर्ना हैण्‍डबैग उन दोनों में से किसी हाथ में लटकता दिखाई देता ।

उस सिलसिले में वक्‍त रहते उसे मिसेज वालसन की हैल्‍प लेना सूझा था वर्ना रोमिला के हैण्‍डबैग की बरामदी ही उसकी थ्‍योरी के बखिये उधेड़ देती ।

उसने मिसेज वालसन को फोन किया ।

कोई जवाब न मिला ।

कहा मर गयी थी साली !

उसने एक सिग्रेट सुलगा लिया और जीप में बैठा प्रतीक्षा करने लगा ।

सिग्रेट खत्‍म हुआ तो उसे सड़क पर मिसेज वालसन दिखाई दी जो हाथ में एक शापिंग बैग थामे अपने बोर्डिंग हाउस की तरफ बढ़ रही थी ।

महाबोले खामोश नजारा करता रहा 

उसके बोर्डिंग हाउस में दाखिल हो जाने के दो मिनट बाद वो जीप से उतरा और लापरवाही से टहलता आगे बढ़ा । फ्रंट डोर से वो बोर्डिंग हाउस के भीतर दाखिल हुआ और पहली मंजिल पर जा कर उसने मिसेज वालसन के दरवाजे पर हौले से दस्‍तक दी ।

दरवाजा खुला ।

चौखट पर मिसेज वालसन प्रकट हुई । महाबोले पर निगाह पड़ते ही उसके शरीर में सिर से पांव तक झुरझुरी दौड़ी । महाबोले का किसी भी क्षण वहां आगमन अपेक्षित था फिर भी उसका वो हाल हुआ था ।

“बाजू हट ।” - महाबोले कर्कश स्‍वर में बोला ।

वो दरवाजे पर से हटी तो महाबोले भीतर दाखिल हुआ, उसने अपने पीछे दरवाजा बंद किया ।

“जो बोला, वो किया ?” - उसने पूछा ।

मिसेज वालसन ने जल्‍दी जल्‍दी कई बार सह‍मति में सिर हिलाया ।

“बढ़िया । ला ।”

वाल कैबिनेट के एक दराज से निकाल कर उसने हैण्‍डबैग महाबोले को सौंपा ।

“कोई प्राब्‍लम ?”

मिसेज वालसन ने इंकार में सिर हिलाया ।

“ये वहीं था जहां मै बोला ? टीवी के पीछे ?”

उसने गर्दन हिला कर हामी भरी ।

“अरे, क्‍या मुंडी हिलाती है बार बार ! मुंह से बोल !”

“हं-हां ।”

“खोल के देखा ?”

“नहीं ।”

“जैसा बोला, वैसीच इधर ला के रखा और अभी निकाल कर मेरे को दिया ?”

“हां ।”

“दूसरे माले पर कोई मिला ? किसी ने कमरे में जाते या निकलते देखा ?”

“नहीं ।”

“किसी आये गये की खबर तो होगी नहीं ! क्‍योंकि अभी तुम खुद ही इधर नहीं थी ।”

“शापिंग का वास्‍ते गया । ओनली टैन मिनट्स आउट था ।”

“क्‍यों था ? मैं बोला कि नहीं बोला कि साला वन आवर आये गये को वाच करने का था ! शापिंग साला वन आवर के बाद नहीं हो सकता था ?”

“स-सारी !”

“अभी फाइनल बात सुनने का । जो किया, उस बाबत थोबड़ा बंद रखने का । बल्कि सब अभी का अभी भूल जाने का । तुम साला कुछ नहीं किया । क्‍या !”

“कु-कुछ नहीं किया ।”

“रोमिला के रूम में नहीं गया । उधर से हैण्‍डबैग नहीं निकाला । मेरे को नहीं दिया । मैं साला इधर आया हैइच नहीं । ओके ?”

उसने जल्‍दी से सहमति में सिर हिलाया ।

“मुंह से बोल !”

“ओ-ओके ।”

“हैण्‍डबैग का जिक्र जुबान पर आया, इसका खयाल भी किया, तो” - महाबोले ने कहरभरी निगाह उस पर डाली - “प्राण खींच लूंगा अ आया मगज में ?”

“हं-हां ।”

“वो शापिंग बैग । खाली करके मेरे को दे ।”

उसने आदेश का पालन किया 

महाबोले ने हैण्‍डबैग को शापिंग बैग में डाला, शापिंग बैग को दोहरा किया और उसे बगल में दबा कर, अपनी खूंखार निगाह से आखिरी बार मिसेज वालसन के प्राण कंपा कर, वो वहां से रूखसत हुआ ।

महाबोले मौकायवारदात पर पहुंचा ।

सिपाही दयाराम भाटे उसे रेलिंग के साथ लगा खड़ा मिला । उसने हौले से हार्न बजाया । भाटे की तवज्‍जो उसकी तरफ गयी तो वो लपक कर करीब पहुंचा और रसमी सैल्‍यूट मारा ।

“बाकी लोग कहां हैं ?” - महाबोले ने पूछा ।

“जोशी और महाले नीचे ढ़लान पर हैं । कुछ छापे वाले पहुंच गये हैं, फोटू निकालना चाहते हैं, दोनों उनको कंट्रोल कर रहे हैं ।”

“हवलदार खत्री !”

“घर चला गया ।”

“क्‍या ?”

“एसआई साहब से पूछ कर गया । बोला, तबीयत खराब । थोबड़ा सूजा था न ! बोला दुखता था !”

“स्‍साला हलकट !”

“साब जी, मैं तीस घंटे से ड्‌यूटी पर हूं, मेरे पर भी तो कुछ रहम कीजिये ।”

“अभी । अभी । पहले एक काम कर ।”

“और काम ?”

“अरे, कहीं जाना नहीं है । जो करना है, यहीं करना है ।”

“ओह !”

“टॉप सीक्रेट काम है । बोले तो महाबोले का काम है पर एक तरह से सारे थाने का भी है ।”

“ऐसा ?”

“हां । भाटे, अभी टेम खराब । महाबोले पर कोई गाज गिरेगी तो सारे थाने पर बराबर गिरेगी । ऊपर से कोई एक्‍शन हुआ तो अकेले महाबोले पर नहीं होगा, सारा थाना लाइन हाजिर होगा । अभी आई बात समझ में ?”

“हां, साब जी । आप काम बोलो ।”

“बहुत होशियारी से, बहुत खुफिया तरीके के काम करना है । किसी को भनक न लगने पाये कि क्‍या किया ! कर लेगा ?”

“साब जी, काम तो बोलो ।”

“भाटे, काम का एक ईनाम तो अभी है, बाकी बड़ा ईनाम बाद में ।”

“ईनाम न भी हो तो वांदा नहीं साब जी । आपका काम किया, आपने काम के लिये मुझे चुना, यही कोई कम ईनाम नहीं ।”

“शाबाश । ये बैग पकड़ ।”

“क्‍या है इस में ?”

“मकतूला का हैण्‍डबैग है जो बरामद नहीं हुआ । अब होगा ।”

भाटे के नेत्र फैले ।

“हैण्‍डबैग में चौदह सौ रूपये हैं, निकाल लेना काम का अभी का ईनाम समझ के और हैण्‍डबैग को ठिकाने लगाना ।”

“कहां ?” - भाटे पूर्ववत् नेत्र फैलाये बोला ।

“नाले में । लेकिन मौकायवारदात से परे, आगे कहीं । ताकि ऐसा लगे कि कत्‍ल के बाद कातिल ने हैण्‍डबैग से रोकड़ा निकाल कर उसे नाले में फेंका तो वो आगे बह गया । समझ गया ?”

“हां, साब जी ।”

“इस बात की खास एहतियात बरतनी है कि तुझे नाले में हैण्‍डबैग फेंकता कोई देखने न पाये । काम होने में देर भले ही लग जाये लेकिन जो किया, उसका गवाह नहीं होना चाहिये । कर लेगा ?”

“हां, साब जी ।”

“होशियारी से ! मुस्‍तैदी से ! जैसे समझाया, वैसे !”

“हां, साब जी ।”

“भाटे, तू मेरे भरोसे का आदमी है, इसी वास्‍ते तेरे को बोला ।”

“आपका भरोसा कायम रहेगा, साब जी, कोई शिकायत नहीं होगी ।”

“शाबाश !”

“बाद में बरामदी भी दिखानी होगी !”

“क्‍या बोला ?”

“हैण्‍डबैग की, साब जी ! मुजरिम के खिलाफ केस मजबूत करने के लिये !”

“बरामदी तूने नहीं दिखानी, भाटे । तू हैण्‍डबैग की बाबत कुछ नहीं जानता । ताकीद रहे । कोई दूसरा-पुलिस वाला, छापे वाला, पब्लिक-बरामद करता है तो करे, तूने हैण्‍डबैग का नाम नहीं लेना, जो कहा है, उसे कर चुकने के बाद खयाल भी नहीं करना हैण्‍डबैग का । क्‍या !”

“बरोबर, साब जी ।”

“मैं जाता हूं । किसी को बोलना जरूरी नहीं कि मैं इधर आया था ।”

“ठीक । पण, साब जी, मेरे को छुट्‌टी....”

“दो घंटे और सब्र कर । थाने से भेजता हूं किसी को तेरे को रिलीव करने के लिये ।”

“शुक्रिया, साब जी ।”

***

शाम को आइलैंड के सर्कट हाउस में डीसीपी नितिन पाटिल की मुरूड के डीसीपी जठार से मुलाकात पूर्वनिर्धारित थी जिसके लिये पाटिल सर्कट हाउस में पहले पहुंच गया था ।

नीलेश तब भी उसके साथ था ।

“हमें पहले से हिंट हैं, अंदेशा है” - वहां डीसीपी संजीदगी से बोला - “कि इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के सिर पर उसके डीसीपी जठार का हाथ है और वो उसी की शह पर उछलता है । बेअदबी से कहूं तो कमिश्‍नर जुआरी साहब को कोई हैरानी नहीं होगी अगरचे कि यहां चलते रैकट्स में-प्रत्‍यक्ष या परोक्ष में-डीसीपी जठार भी शामिल पाया गया ।”

“ओह, नो, सर ।”

“दो बार उसने मुझे अपने डीसीपी की हूल दी । ऐसी मजाल बिना शह के नहीं हो सकती । कहने का मतलब ये है कि हमें सावधान रहना है, अपना कोई भेद डीसीपी जठार को नहीं देना है ।”

“सर, वो मेरे बारे में सवाल करेंगे ।”

“तो हम कहेंगे तुम महकमे में एसीपी हो....”

“एसीपी !”

“…..वैकेशन पर यहां हो, बाई चांस हमें मिल गये तो सोचा तुम्‍हारा कोई फायदा उठाया जाये, बावजूद वैकेशन तुमसे कोई काम निकलवाया जाये ।”

“सर, जठार साहब डीसीपी हैं, मुम्‍बई से चुटकियों में मालूम कर लेंगे कि मेरे नाम वाला कोई एसीपी महकमे में है या नहीं !”

“जब ऐसा करेंगे तो महकमे से तुम्‍हारे नाम की तसदीक होगी ।”

“जी !”

“जो कि उन्‍हें मंगलेश मोडक बताया जायेगा ।”

“ओह !”

“तुम्‍हारी जानकारी के लिये इस नाम का एक एसीपी मुम्‍बई पुलिस हैड क्‍वार्टर में सच में है और आज कल वैकेशन पर भी सच में है । अलबत्ता कोनाकोना आइलैंड पर नहीं, सिंगापुर में है ।”

“लेकिन, सर, यहां मेरी आइडेंटिटी चैक की जा चुकी है । मेरा वोटर आई कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस तक चैक किया जा चुका है । मेरे को ये तक बोलना पड़ा था कि मैं पहले मुम्‍बई में बांद्रा के पिकाडिली बार में बाउंसर था और वहीं से बैटर प्रास्‍पैक्‍ट्स की तलाश में यहां पर आया था ।”

“किसने चैक किया तुम्‍हें ?”

“कोंसिका क्‍लब के बारमैन गोपाल पुजारा ने, जिसने कि मुझे नौकरी दी । कल मेरे पर हुए हमले की रपट लिखाने थाने गया था तो बाबूराव मोकाशी ने, फिर वहीं इंस्‍पेक्‍टर महाबोले ने भी ।”

“मोकाशी से डीसीपी का क्‍या मतलब ! मर्डर की तफ्तीश पर आया वो कमेटी के सदर को भला क्‍यों मुंह लगायेगा ! बारमैन पुजारा वैसे ही उसके लैवल का आदमी नहीं इसलिये जाहिर है कि उसके पास भी नहीं फटक पायेगा । बाकी रहा महाबोले तो डीसीपी बहुत शार्ट विजिट पर यहां होगा-मुमकिन है आज ही लौट जाये-इसलिये जरूरी नहीं कि उसकी महाबोले से मुलाकात में तुम्‍हारा जिक्र आये ।”

“वो सब तो ठीक है लेकिन, गुस्‍ताखी माफ, सर, इस बिल्‍ड अप की जरूरत क्‍यों है ?”

“क्‍योंकि अभी होने वाली मीटिंग के दौरान तुम्‍हारी मौजूदगी की मुझे जरूरत महसूस होती है । यहां की कमान एक तरह से तुम्‍हारे हाथ में है इसलिये बेहतर है कि जो हो, तुम्‍हारी फर्स्‍ट हैण्‍ड नॉलेज में हो । मैं डीसीपी जठार को बोलूंगा तुम इंस्‍पेक्‍टर हो तो उसे यहां तुम्‍हारी मौजूदगी नागवार गुजरेगी । डीसीपी मैं खुद हूं यानी फैलो डीसीपी की मेरे साथ मौजूदगी बेमानी है ।”

“इसलिये एसीपी !”

“करेक्‍ट !”

“लेकिन, सर, बाई ए लांग चांस, जठार साहब की महाबोले के साथ मुलाकात में मेरा जिक्र आ ही गया तो ?”

“तो कोई कहानी गढ़ लेंगे । बोल देंगे तुम किसी स्‍पैशल, सीक्रेट मिशन पर यहां थे इसलिये फाल्‍स आईडेंटिटी अज्‍यूम किये थे । हमें तो पहले से ही अंदेशा है कि यहां तुम्‍हारा राजफाश हो चुका है । समझेंगे जो पहले न हुआ, वो अब हो गया ।”

“ओह !”

“सो रैस्‍ट अश्‍योर्ड । ले युअर ट्रस्‍ट आन लॉ आफ ऐवरेज, जो कहता है कि जरूरी नहीं कि तकदीर का पासा हर बार ही उलटा पडे़ ।”

“मे बी यू आर राइट, सर ।”

“नो मे बी । आलवेज लुक ऐट दि ब्राइटर साइड । बी आप्‍टीमिस्‍टीक आलवेज । नो ?”

“यस, सर ।”

तभी डीसीपी जठार ने वहां कदम रखा ।

वो डीसीपी पाटिल की ही उम्र का था लेकिन साइज में वन टु वन प्‍वायंट फाइव था, चेहरा रोबदार था, मूंछ और लम्‍बी कलमें रखता था और उस घड़ी वो सिल्‍क का क्रीम कलर का सूट पहने था ।

डीसीपी पाटिल ने उठ कर उससे हाथ मिला ।

नीलेश ने जमकर सैल्‍यूट मारा 

डीसीपी जठार ने एक प्रश्‍नसूचक निगाह नीलेश पर डाली और फिर वैसे ही डीसीपी पाटिल की तरफ देखा ।

“मंगलेश मोडक ।” - डीसीपी पाटिल बोला - “एसीपी, मुम्‍बई पुलिस ।”

“हूं ।”

“प्‍लीज टेक ए सीट ।”

दोनों डीसीपी टेबल के आरपार आमने सामने बैठे ।

जठार ने फिर अटेंशन खड़े नीलेश पर निगाह डाली ।

“इफ यू हैव प्राब्‍लम विद एसीपी मोडक्‍स प्रेजेंस” - पाटिल संजीदगी से बोला - “आई कैन सैंड हिम अवे ।”

“नो !” - तत्‍काल जठार के चेहरे पर मुस्‍कराहट आई - “नो प्राब्‍लम ! वुई आर नाट हेयर टु डिसकस एनीथिंग कंफीडेंशल । एट ईज, एसीपी मोडक ।”

“सर !” - नीलेश आदेश का पालन करता तत्‍पर स्‍वर में बोला ।

“एण्‍ड टेक ए सीट ।”

“थैंक्‍यू, सर ।”

नीलेश टेबल से पर एक कुर्सी पर बैठ गया ।

“जैसा कि आप चाहते थे” - जठार बोला - “केस को मैंने अपने कंट्रोल में ले लिया और अपने साथ आये एक सीनियर इंस्‍पेक्‍टर को तफ्तीश का जिम्‍मा सौंप दिया है ।”

“गुड !”

“मुलजिम हेमराज पाण्‍डेय का बयान फिर से रिकार्ड किया गया है । सेलर्स बार के मालिक रामदास मनवार - जिसकी लोकल पुलिस को कोई खबर ही नहीं थी - का बयान लिया गया है । मौकायवारदात का मैंने भी फेरा लगाया है । यहां मै इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के नतीजे से इत्तफाक जाहिर करना चाहता हूं जो ये कहता है कि इंतजार से आजिज आ कर मकतूला सेलर्स बार से चल दी थी, रूट फिफ्टीन पर थोड़ी ही दूर चलने पर उसका आमना सामना मुलजिम से हो गया था । आगे जो हुआ था वो मु‍लजिम अपने इकबालिया बयान में मोहरबंद कर चुका है । दोबारा बयान लिये जाने पर भी उसने वही कुछ दोहराया था जो कि उसके इकबालिया बयान में दर्ज है । यानी वो रूट फिफ्टीन पर मकतूला से टकराया था और उसने उसका हैण्‍डबैग छीनने की कोशिश की थी, मकतूला ने विरोध किया था तो हाथापायी होने लगी थी जिसमें मुलजिम ने उसको गले से पकड़ लिया था और पुरजोर इतना झिंझोड़ा था कि बेहोश हो गयी थी और जमीन पर ढे़र हो गयी थी । तब मुलजिम ने उसे उसके तमाम कीमती सामान से महरूम कर दिया था और उसको ढ़लान पर धकेल कर भाग खड़ा हुआ था ।”

“आई सी ।”

“भाग खड़ा होने के बाद की अपनी मूवमेंट्स के बारे में वो कनफ्यूज्‍ड है । कहता है नशे में चलता, भटकता वो जमशेद जी पार्क पहुंच गया था, वहां एक बैंच पर ढे़र हुआ था और पता नहीं कब नींद के हवाले हो गया था ।”

“शराब की एक खाली बोतल उसके करीब पड़ी पायी गयी थी जिसे थाने वालों ने बतौर सबूत महफूज कर लिया था । उसकी क्‍या स्‍टोरी है ?”

“क्‍या स्‍टोरी है ! कोई स्‍टोरी नहीं । महज एक बोतल है ।”

“हमारी जानकारी में आया है कि शराब की वो बोतल उसने वारदात से बहुत पहले खरीदी थी । इस लिहाज से ये सेफली कहा जा सकता है कि मकतूला के हैण्‍डबैग से बरामद किया रोकड़ा उसने बोतल की खरीद पर सर्फ नहीं किया था ।”

“आई सी ।”

“इस बारे में आपका क्‍या खयाल है ?”

“प्राब्‍लम ये है, मिस्‍टर पाटिल, कि मुलजिम का बयान इनकोहरेंट है, बेमेल है, उसमें कई छेद हैं ।”

“आई एग्री विद यू । लेकिन उन छेदों को यूं ही तो नहीं छोड़ा जा सकता । अपनी फरदर, इंटेंसिव इनवैस्‍टीगेशन से उन्‍हें भरना तो पुलिस ने ही होगा न !”

“जब मेन स्‍टोरी किसी का जुर्म साबित करने में सक्षम हो तो छोटी मोटी कमियों को, छोटी मोटी विसंगतियों को नजरअंदाज किया जा सकता है ।”

“ये छोटी मोटी विसंगति है कि मु‍लजिम पिद्‌दी सा आदमी था, फिर भी वो अपने से लम्‍बी ऊंची, मजबूत मुलजिमा को काबू में कर सका ! उसका यू गला दबोच सका कि मुलजिमा छुड़ा न पायी !”

“अब जो है, सो है । पोस्‍टमार्टम की रिपोर्ट में ये साफ दर्ज है कि उसके गले पर ऐसे खरोंचों के निशान थे जो कहते थे कि गला जोर से दबाया गया था ।”

“आई सी ! यानी मौत दम घुटने से हुई !”

“नहीं, वो तो खोपड़ी खुलने से ही हुई ।”

“ऐसा कैसे हुआ ?”

“मुलजिम के धक्‍का देने से हुआ ।”

“जब वो गला ही अच्‍छा अच्‍छा दबा रहा था तो उसी काम को जारी क्‍यों न रखा ? धक्‍का देने की क्‍या जरूरत थी ?”

“तो धक्‍का नहीं दिया होगा ! मुलजिमा ने खुद को आजाद करने की कोशिश की होगी, उसकी कोशिश कामयाब हुई होगी लेकिन रिफ्लैक्‍श एक्‍शन में बैलेंस खो बैठी, ढ़लान पर लुढ़की तो चट्‌टान से टकरा कर अपना सिर फोड़ बैठी और मर गयी ।”

“जठार साहब, इस लिहाज से तो ये एक्‍सीडेंट का केस हुआ !”

“आई बैग टु डिसएग्री, मिस्‍टर पाटिल । एक्‍सीडेंट की वजह जब मुलजिम बना तो क्‍यों कर एक्‍सीडेंटल डैथ का केस हुआ ! मुलजिम मकतूला का गला न दबोचे होता तो मकतूला का पांव फिसलने की नौबत आती ! मुलजिमा खुद को आजाद न कर पायी होती, उसका पांव न फिसला होता, तो क्‍या इस बात में दो राय मुमकिन हैं कि मुलजिम उसका गला दबा कर ही माना होता ! दूसरे, हम सीक्‍वेंस आफ ईवेंट्स को सिर्फ रीजनेबली रीकंसट्रक्‍ट कर सकते हैं, हम नहीं जानते कि असल में क्‍या हुआ ! हो सकता है धींगामुश्‍ती में मुलजिम ने उसे धक्‍का देकर जबरन ढ़लान पर फेंका हो !”

“फिर रात के अंधेरे में ये कनफर्म करने के लिये नीचे उतरा हो कि उसके धक्‍के से वो मरी या बची !”

“लाश के पास-या बेहोश जिस्‍म के पास-पहुंचा होने की वजह तो प्रत्‍यक्ष है । ऐसा किये बगैर कैसे वो लड़की के जिस्‍म पर मौजूद कीमती सामान-जेवरात वगैरह-कब्‍जा सकता था !”

“आई बैग युअर पार्डन, मिस्‍टर जठार, पहले कहा कि उसने लड़की के जेवर वगैरह काबू में किये और फिर उसे ढ़लान पर धक्‍का दिया । अब कह रहे हैं कि पहले धक्‍का दिया-या वो पांव फिसलने से खुद गिरी-और फिर ढ़लान पर उतरा और जा कर जेवर उतारे ।”

“पाटिल साहब, चश्‍मदीद गवाह तो कोई है नहीं ! असल में क्‍या हुआ था, ये या मकतूला जानती थी या कातिल जानता है । और मैंने पहले ही कहा कि कातिल का बयान इनकोहरेंट है, बेमेल है । वो कभी कुछ करता है, कभी कुछ कहता है लेकिन शुक्र है कि इस बात से इंकार नहीं करता कि लड़की की मौत की वजह‍-वो कत्‍ल था या हादसा था-वो था । वो इस बात को नहीं झुठला सकता कि लड़की का निजी कीमती सामान-उसके जेवरात वगैरह-उसके पास से बरामद किये गये थे ।”

“सो दि केस इज साल्‍वड !”

“रीजनेबली साल्‍वड ।”

“मौकायवारदात पर कोई स्‍ट्रगल के टैलटेल साइन, अपनी कहानी आप कहते निशानात, पाये गये थे ?”

“बराबर पाये गये थे । एण्‍ड दे वर ड्‌यूली फोटोग्राफ्ड एण्‍ड क्‍लासीफाइड ।”

“आई सी ।”

“सर” - नीलेश व्‍यग्र भाव से बोला - “मे आई स्‍पीक ?”

दोनों उच्‍चाधिकारियों ने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा ।

“यस” - पाटिल बोला - “यू मे ।”

“क्‍या कहना चाहते हो ?” - जठार रूक्ष स्‍वर में बोला ।

“सर, हाथापायी, धींगामुश्‍ती, धक्‍कामुक्‍की, जोरजबरदस्‍ती दोतरफा एक्‍ट होते हैं । ऐसा तो नहीं हो सकता कि जब मुलजिम मकतूला का गला दबा रहा था, तब मकतूला शांत, खामोश, निर्विरोध गला दबवाती रही हो ! मकतूला ने भी तो कोई हाथ पांव मारे होंगे ! उसकी भी तो उस वक्‍त की उसके लिये फैटल स्‍ट्रगल में कोई कंट्रीब्‍यूशन होगी !”

“तो ?”

“रोमिला सावंत मार्डन, फैशनेबल लड़की थी, वैल-मैनीक्‍योर्ड, वैलपालिश्‍ड लम्‍बे नाखून रखती थी । क्‍या ये मुमकिन है कि उस जानलेवा हाथापायी के दौरान उसके नाखूनों की कोई खरोंच हमलावर को न लगी हो !”

“लगी होगी ।”

“तो उसके नाखूनों के नीचे से हमलावर की खुरची गयी चमड़ी के कोई अवशेष बरामद हुए होने चाहियें ।”

जठार गड़बड़ाया, उसने अप्रसन्‍न भाव से नीलेश की तरफ देखा 

“मुझे इस बाबत कोई जानकारी नहीं” - फिर कठिन स्‍वर में बोला - “क्‍योंकि पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट पर मैंने सरसरी तौर पर ही नजर डाली थी ।”

“ये एक अहम बात है ।” - पाटिल बोला ।

“तो इसका जिक्र पोर्स्‍टमार्टम रिपोर्ट में जरूर होगा । आई विल लुक ऐट इट अगेन ।”

“यस” - पाटिल बोला - “यू बैटर डू ।”

“और...” - नीलेश बोला ।

“अभी और भी ?” - जठार बोला, उसके चेहरे पर अप्रसन्‍नता के भाव दोबाला हो गये ।

“सर, अगर मकतूला के नाखूनों के नीचे से चमड़ी के अवशेष बरामद होने की बात से आप मुतमईन हैं तो, गुस्‍ताखी की माफी के साथ अर्ज है, सर, हमलावर के मुंह माथे पर भी कहीं खरोंचों के निशान बने होने चाहियें !”

“आई एम सारी, मुझे इस बाबत कोई जानकारी नहीं थी । क्‍योंकि पहले ये मुद्‌दा ही नहीं था इसलिये मुझे इनवैस्टिगेटिंग आफिसर से या अटॉप्‍सी सर्जन से इस बाबत सवाल करना नहीं सूझा था ।”

“सूझता भी तो कुछ हाथ न आता ।” - पाटिल बोला ।

“वाट्स दैट !”

“आपके थाने वालों ने मुलजिम पाण्‍डेय का मार मार के थोबड़ा सुजा दिया, उस पर खरोंचों के कोई वैसे निशान होंगे तो मार के ज्‍यादा प्रामीनेंट, ज्‍यादा मुखर निशानों के नीचे दब गये होंगे ।”

“तो क्‍या हुआ !” - जठार झुंझलाया - “असलियत की तसदीक दूसरे सिरे से भी हो सकती है ।”

“दूसरा सिरा !”

“पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट वाला-जिसे, मुझे खेद है कि, मैंने गौर से न पढ़ा, वर्बेटिम न पढ़ा ।”

“उसमें इस प्‍वायंट का कोई जिक्र न हुआ तो ?”

“तो लाश अभी भी पुलिस कस्‍टडी में है । मैं खुद जा कर उसके नाखूनों का मुआयना करूंगा ।”

“यस, दैट वुड बी बैटर ।”

“ऐनीथिंग ऐल्‍स ?”

“आप कब तक आइलैंड पर हैं ?”

“फौरन रवाना हो रहा हूं ।”

“अच्‍छा !”

“आपने इतना बड़ा काम जो बना दिया मेरे लिये !”

“आई एम सारी ।”

“यू नीड नाट बी । इट्स माई जॉब । एण्‍ड हू नोज इट बैटर दैन यू !”

“यस । यू आर राइट ।”

एकाएक जठार उठ खड़ा हुआ । उसने पाटिल की तरफ हाथ बढ़ाया ।

“नाइस मीटिंग यू, मिस्‍टर पाटिल ।” - और बोला ।

“दि प्‍लेजर इज म्‍यूचुअल ।” - पाटिल उठ कर हाथ मिलाता बोला, फिर हाथ छोड़ने से पहले उसने सवाल किया - “लाश का क्‍या होगा ?”

“लोकल थाने वालों ने मकतूला के बोर्डिंग हाउस के कमरे में जा कर उसके निजी सामान को टटोला है जिससे लड़की का पोंडा का पता बरामद हुआ है जहां कि उसका एक भाई रहता है । भाई से फोन पर कांटैक्‍ट किया जा चुका है, वो लाश क्‍लेम करने आ रहा है । कल किसी वक्‍त पहुंचेगा ।”

“ये तो अच्‍छा हुआ ! वर्ना बेचारी की लाश को लावारिस का दर्जा मिलता । ऐनी वे, सो लांग, मिस्‍टर जठार ।”

जठार मुस्‍कराया और बिना नीलेश पर निगाह डाले वहां से रूखसत हो गया ।