देवराज चौहान और जगमोहन ने कार पर उन सब रास्तों को देखा। जहां से वैन गुजरनी थी। श्याम सुन्दर, सोहनलाल के पास उसके क्वार्टर पर ही रहा था।

अंधेरा घिर आने पर देवराज चौहान और जगमोहन वापस लौटे।

“बात बनी?” श्याम सुन्दर ने उन्हें देखते ही पूछा।

“हां।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

“कहां पर, वैन पर हाथ डाला जाये?”

“जब वैन एयरपोर्ट के टर्मिनल के तीन नम्बर गेट से बाहर निकलेगी। और दो मिनट में ही मुख्य सड़क पर पहुंचकर अन्य वाहनों में शामिल होगी। ठीक उसी वक्त।” देवराज चौहान ने कहा।

श्याम सुन्दर चौंका।

“एयरपोर्ट के पास ही।”

“हाँ।”

“वहां पर तो हमारे लिए ज्यादा खतरा रहेगा।” श्याम सुन्दर के होंठों से निकला।

“खतरा तो हर जगह ही होगा। लेकिन वहां पर खतरा कम होगा। सफर के शुरुआती दौर में वह लोग लापरवाह होंगे कि अभी कुछ नहीं होगा। वह सोच भी नहीं सकेंगे कि एयरपोर्ट से निकलते ही उस पर हाथ डाला जा सकता है। इसी गलतफहमी में वह, उस वक्त कुछ लापरवाह होंगे। जिसका हमें फायदा उठाना है। और एयरपोर्ट के आसपास की सड़कें अधिकतर खाली रहती हैं। बहुत कम ट्रैफिक रहता है। यह बात हमारे हक में रहेगी। ऐसे में हम ज्यादा से ज्यादा एक मिनट में वैन पर कब्जा कर लेंगे।”

“एक मिनट में?” श्याम सुन्दर के होंठों से निकला। चेहरे पर वास्तव में हैरानी उभरी।

देवराज चौहान ने कोई जवाब नहीं दिया।

“मतलब कि तुमने योजना बना ली है।”

“हां।”

“क्या-क्या योजना बनाई है तुमने?” श्याम सुन्दर बेचैन सा नजर आया।

“अभी बताने की मैं जरूरत नहीं समझता।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा –“कल सुबह योजना बताऊंगा और तब तक तुम सोहनलाल के साथ यहीं रहोगे। कहीं नहीं जाओगे। मैं, जगमोहन के साथ कल सुबह आठ बजे यहां आ जाऊंगा। बाकी बातें तब होंगी।”

“लेकिन मैं कहीं, क्यों नहीं जा सकता।” श्याम सुन्दर की आंखें सिकुड़ी।

“काम शुरू होने से पहले, ज्यादा इधर-उधर जाना ठीक नहीं होता।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“काम होने के बाद तुम कहीं भी जा सकते हो।”

श्याम सुन्दर ने कहीं कोई एतराज नहीं उठाया। उसे तो सिर्फ एक ही काम था। ट्रांसमीटर पर यह खबर देना कि, कल वैन पर हाथ डाला जायेगा और यह काम मिनट भर का वक्त पाकर कर सकता है। पूरी रात पड़ी है। बहुत वक्त है। श्याम सुन्दर ने सहमति भरे स्वर में कहा।

“ठीक है। मैं यहीं रहूंगा। लेकिन तुम्हें विश्वास है कि वैन पर हम कब्जा कर लेंगे।”

“हां।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला –“वैन हमारे कब्जे में होगी।”

“अगर योजना बता देते तो, उस पर मैं भी गौर कर लेता।" श्याम सुन्दर ने कहा।

“यह डकैती की योजना नहीं है कि उसे सबके सामने रखा जाये और उसमें कोई कमी हो तो उसे दूर किया जाये।” देवराज चौहान ने श्याम सुन्दर को देखा –“यह मामूली सा काम है। एक वैन को अपने कब्जे में करना है। जिसकी खास सिक्योरिटी भी नहीं है।”

श्याम सुन्दर सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।

“लेकिन वैन को कब्जे में करने के बाद, उसे हम ज्यादा देर खुले में नहीं रख सकते। क्योंकि खबर आम होते ही पुलिस वैन की तलाश में शहर भर में दौड़ने लगेगी। इसलिए हमें ऐसी किसी जगह का इन्तजाम करना है। जहां पर वैन को रखा जा सके और उसे खोलकर, हीरों को निकाला जा सके।”

दो पल के लिए वहां खामोशी छा गई।

श्याम सुन्दर ही बोला।

“सिर्फ इतना बता दो कि वैन में जो तीन आदमी होंगे। उन तीनों को शूट करना है?”

“नहीं। इस काम में किसी की जान नहीं जायेगी।”

“यह कैसे हो सकता है।” श्याम सुन्दर का स्वर तेज हो गया –“वह गोलियां चलायेंगे तो।”

“वह कुछ नहीं कर पाएंगे।” देवराज चौहान बोला –“उन्हें कुछ भी करने का मौका नहीं मिलेगा।”

“ओह।” श्याम सुन्दर ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।

“लेकिन वैन रखने के लिए, इतनी जल्दी जगह कैसे तलाश करें?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“एक जगह है मेरे पास।” श्याम सुन्दर कह उठा –“वह देख लो, अगर पसन्द आ जाये तो?”

सबकी निगाहें श्याम सुन्दर पर गई।

“कैसी जगह?”

“एक बंद पड़ी फैक्ट्री है। वहां सिर्फ चौकीदार है। जोकि अपना ही है।” श्याम सुन्दर मुस्कराया।

“वहां पर तुम्हारी पहचान कैसे?” देवराज चौहान ने पूछा।

“वह चौकीदार की आड़ में दादागिरी भी करता है। दो-तीन बार अपने काम में, मैं उसे इस्तेमाल कर चुका हूं। उस बंद पड़ी फैक्ट्री को हम इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन उसे कुछ रकम देनी होगी।”

“कितनी?” जगमोहन ने पूछा।

“चलकर बात कर लेते हैं। पहले वह फैक्ट्री तो देख लो।”

☐☐☐

उस वक्त रात के दस बज रहे थे।

श्याम सुन्दर, देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल को लेकर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित एक फैक्ट्री में पहुंचा। रात के वक्त इंडस्ट्रियल एरिया में हर तरफ खामोशी छाई हुई थी।

फैक्ट्री का फाटक बंद था।

श्याम सुन्दर ने फाटक के पास ही लगी बेल दबाई। भीतर घंटी बजने की आवाज आई। उसके बाद दो-तीन बार घंटी बजाई गई तो भीतर से कड़कती आवाज आई।

“कौन है?”

“रामचरण।” श्याम सुन्दर बोला –“मैं हूँ।”

कुछ पलों बाद ही भीतर से फाटक खोला गया। पचास वर्षीय रामचरण का चेहरा अंधेरे में थोड़ा बहुत नजर आ रहा था। वह बनियान-लुंगी में था। होंठों पर मूंछे थी। उसने श्याम सुन्दर को फिर तीनों को देखा। उसके बाद उसकी नजरें पुनः श्याम सुन्दर पर आ टिकी।

“लम्बा लफड़ा है क्या?” रामचरण की आवाज धीमी हो गई थी।

“ऐसा कुछ नहीं है। यह मेरे यार-दोस्त हैं। जरा फैक्ट्री पर नजर मारनी है।”

“ओह! समझा। कुछ माल-पानी का भी चांस है या नहीं?” रामचरण जल्दी से बोला।

“सब कुछ है।” श्याम सुन्दर मुंह बनाकर बोला –“पीछे हट।”

उसके बाद वह सब भीतर आ गये।

पूरी फैक्ट्री को उन्होंने देखा।

कई बंद मशीनें वहां मौजूद थीं। देखने पर स्पष्ट लग रहा था कि काफी वक्त से फैक्ट्री बंद पड़ी है। रामचरण ने वहां की लाइटें ऑन कर दी थी ! एक ऑफिस भी वहां था, कुर्सियां और टेबल पर धूल जमी पड़ी थी। एक अन्य कमरा भी था। जिसमें बेड था। वह कमरा साफ-सुथरा था।

“यहां मैं सोता हूं रात बिताता हूं।” रामचरण हंस कर कह उठा –“लेकिन मामला क्या है?”

देवराज चौहान ने रामचरण को देखा।

“कब से बंद पड़ी है फैक्ट्री?” देवराज चौहान ने पूछा।

“तीन-चार साल हो गये । क्यों?”

“फैक्ट्री का मालिक कौन है?”

“गुप्ता साहब हैं। अब तो विदेश में रहते हैं।” रामचरण ने कहा –“फैक्ट्री में मुझे देखभाल के लिए रख गये। तनख्वाह ठीक वक्त पर उनका भाई दे जाता है। जो इसी शहर में रहता है। वैसे गुप्ता साहब जल्दी ही फैक्ट्री बेचने वाले हैं।”

देवराज चौहान ने सोच भरे अंदाज में सिर हिलाया।

“लेकिन मामला क्या है?” रामचरण ने श्याम सुन्दर को देखा।

श्याम सुन्दर ने देवराज चौहान को देखा।

“यह जगह चलेगी?”

“हां।” देवराज चौहान ने कहा –“कुछ घंटों के लिए ही वैन को यहां रखना है। तब तक उसे खोलकर, सामान निकालकर, रात के वक्त वैन को यहां से निकाल कर कहीं और छोड़ देनी है।”

श्याम सुन्दर ने रामचरण को देखा।

“कल दोपहर को हम एक वैन यहां लायेंगे। रात तक इस जगह का इस्तेमाल करेंगे।”

“खास मामला है क्या?”

“खास ही समझो।”

“मेरे को क्या दोगे?”

“दस हजार।” श्याम सुन्दर ने उसे देखा।

रामचरण ने सब पर नजर मारी फिर हंस कर बोला।

“लगता है मामला बड़ा है। दस हजार कम नहीं है क्या?”

“ठीक है। बीस हजार ले लेना। अब मुंह मत फाड़ना।” श्याम सुन्दर तीखे स्वर में कह उठा।

पुनः हंसा।

“बीस बहुत है।” रामचरण ने सिर हिलाया –“अभी दे रहे हो?”

“कल –जब हम आयेंगे। मिल जायेगा। मौके पर कहीं गायब न हो जाना। बारह बजे के बाद हम किसी भी वक्त यहां आ सकते हैं। तुम्हें हर पल हमारा इन्तजार करना होगा।”

“तुम लोगों का इन्तजार नहीं, बीस हजार का इन्तजार।” रामचरण पुन: हँसा।

उसके बाद चारों वहां से चले गये।

रामचरण ने फैक्ट्री का फाटक भीतर से बंद किया और फैक्ट्री के ऑफिस के साथ लगे बेडरूम में आकर उसने कलाई पर बंधी घड़ी को ट्रांसमीटर का रूप देकर, बात की।

“रामचरण बोल रहा हूं।”

“कहो।” घड़ी में से बारीक सी आवाज उभरी।

“श्याम सुन्दर, देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल को फैक्ट्री दिखाने लाया था। मेरे ख्याल में वह लोग कल काम करने जा रहे हैं। कह गये हैं कि, बारह के बाद, किसी भी वक्त वह वैन को लेकर आयेंगे।”

“वैरी गुड।”

☐☐☐

दिन के सवा ग्यारह बज रहे थे।

एयरपोर्ट के टर्मिनल नम्बर तीन के गेट पर एक गार्ड खड़ा था। यहां से वह सामान बाहर जाता था, जो प्लेन पर बुक करा कर लाया जाता था या फिर बुक कराने के लिए लाया जाने वाला हो। कभी-कभार कोई वाहन बाहर जाता तो कभी कोई भीतर। गार्ड का गेट खोलना-बंद करना इस दौरान जारी था।

रोज की भांति सब कुछ सामान्य था।

गेट के भीतरी तरफ सिक्योरिटी का केबिन था। बाहर जाने वाले वाहन को वहां रुकना पड़ता और जरूरी खानापूर्ति के बाद ही उसके बाहर निकलने के लिए गेट खोला जाता।

तभी सामान्य सी नजर आने वाली सफेद वैन भीतर से आकर गेट के पास के केबिन के पास आकर रुकी। उसमें ड्राइवर के अलावा दो अन्य व्यक्ति बैठे नजर आ रहे थे। वैन के रुकते ही केबिन से एक व्यक्ति निकल कर उनके पास पहुंचा। वह अपनी पूरी वर्दी में था। उसने वैन के ड्राइवर से कुछ बात की। फिर ड्राइवर ने उसे कागज थमाया जो कि शायद वैन के बाहर जाने का ‘पास’ रहा होगा। उसे देखने के बाद कर्मचारी ने गेट पर खड़े गार्ड को गेट खोलने का इशारा किया और खुद वापस केबिन में चला गया।

गार्ड ने गेट खोल दिया।

वैन आगे बढ़ी और गेट से बाहर निकलती चली गई।

कुछ ही पलों में वह मुख्य सड़क पर पहुंच कर, अन्य वाहनों में शामिल हो गई।

अभी वैन आधा किलोमीटर भी आगे नहीं पहुंची होगी कि एक तरफ से कार आई और सीधी वैन से जा टकराईं। वैन के ड्राइवर ने टक्कर से बचने की लाख कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सका। अभी वह लोग इस टक्कर के हालातों के पश्चात सामान्य नहीं हो सके कि पीछे से आती कार, वैन से आ टकराई। वैन को एक और तीव्र झटका लगा। आगे अटकी पड़ी कार से वह पुनः टकरा गई।

आगे वाली कार पर लाल रंग से ‘एल’ का निशान लगा हुआ था। जिसमें जगमोहन मौजूद था। टक्कर लगते ही, जगमोहन जल्दी से कार से निकल कर वैन ड्राइवर की तरफ बढ़ा।

“माफ करना जनाब। मैंने नई-नई कार सीखी है। संभाल नहीं सका और –।”

तभी पीछे से कार टकराने की वजह से वैन को पुनः धक्का लगा।

गुस्से से वैन ड्राइवर और दोनों गार्ड बाहर निकले।

तभी पीछे से श्याम सुन्दर वहां आ पहुंचा।

“क्या हो रहा है।” श्याम सुन्दर चीखा –“वैन को एकदम सड़क के बीच क्यों रोका।”

“नजर नहीं आता। कार, वैन के आगे आ गई। एक्सीडेंट हो गया।” गार्ड गुस्से से बोला।

“गर्दन तोड़ो साले की।” कहने के साथ ही श्याम सुन्दर दांत भींचता जगमोहन की तरफ बढ़ा और अगले ही पल जगमोहन पर झपट पड़ा।

और देखते ही देखते दोनों में हाथापाई होने लगी।

यह देखकर, एक ड्राइवर और गार्ड उनको छुड़ाने के लिए दौड़े। परन्तु उन दोनों की लड़ाई कम होने की अपेक्षा बढ़ती ही जा रही थी। आसपास से गुजरने वाले वाहनों में से एक-दो वाहन रुके और उनमें हो रही लड़ाई को खत्म करने का प्रयास करने लगे।

एक तरफ खड़ा सोहनलाल आगे आया और वैन के पीछे सटी कार को स्टार्ट करके, उसे बैक करने लगा। तब तक फुटपाथ पर खड़ा देवराज चौहान, वैन के पास खड़े गार्ड के पास पहुंचा और शांत स्वर में कह उठा।

“तुम यहां क्यों खड़े हो। तुम्हारे दोनों साथी उनकी लड़ाई छुड़ा रहे हैं। तुम भी कोशिश करो। बचाओ उन्हें। किसी को चोट लग गई तो पुलिस तुम लोगों को भी तंग करेगी क्योंकि एक्सीडेंट तुम्हारी वैन से हुआ है।”

देवराज चौहान की बात सुनते ही गार्ड तुरन्त आगे बढ़ा और वहां इकट्ठी हो चुकी दस-बारह बंदों की भीड़ में शामिल हो गया।

तब तक जगमोहन वैन के पीछे मौजूद श्याम सुन्दर वाली कार को बैक कर चुका था।

देवराज चौहान ने हो-हल्ला पैदा कर रही भीड़ पर नजर मारी फिर वैन की ड्राइविंग सीट पर बैठकर खुले दरवाजे को बंद किया और वैन स्टार्ट की।

वैन स्टार्ट होने की आवाज पर, एक गार्ड की नजर वैन पर पड़ी तो वह हड़बड़ा कर भीड़ से निकला और भागा-भागा वैन के पास पहुंचा और दरवाजा खोलने की कोशिश करता हुआ चीखा।

“ऐ। ये क्या कर रहे हो। उतरो वैन से। यह वैन हमारी–।”

बाकी के शब्द उसके मुंह में ही रह गये। देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवॉल्वर की झलक उसे मिली। दो पल के लिए वह ठगा सा रह गया। फिर उसने जेब से अपनी रिवॉल्वर निकालनी चाही कि देवराज चौहान का खतरनाक स्वर सुनकर ठिठक गया।

“जब तक तुम रिवॉल्वर निकालोगे। तब तक मेरे रिवॉल्वर की सारी गोलियां तुम्हारे जिस्म में पहुंच जायेंगी। समझदार बनो। अपने हाथ जेबों से पीछे रखो। और खुद भी पीछे हट जाओ। जरा भी हरकत करने की कोशिश की तो मारे जाओगे। कल अखबार में यहीं आयेगा कि बहादुरी दिखाते हुए तुम मारे गये।”

बात उसकी समझ में आई। वह दोनों हाथ जेबों से दूर रखे, दो कदम पीछे हट गया।

उस पर नजर रखे देवराज चौहान ने वैन को बैक किया और जगमोहन वाली कार को बगल से वैन को निकालते हुए, तेजी से आगे बढ़ाता चला गया।

कुछ पीछे मौजूद श्याम सुन्दर वाली कार को सोहनलाल ने आगे बढ़ाया और वैन के पीछे लगा दी। तब तक श्याम सुन्दर और जगमोहन को झगड़े से अलग किया जा चुका था। तभी श्याम सुन्दर की नजर, जाती अपनी कार पर पड़ी तो वह गला फाड़ कर चिल्लाता, कार के पीछे भागा।

“मेरी कार–चोर-चोर पकड़ो, मेरी कार–रोको-रोको–।” इस तरह श्याम सुन्दर उस जगह से दूर होता चला गया और तयशुदा बात के मुताबिक एक जगह पर सोहनलाल उसे कार सहित मिला। उसके कार में बैठते ही, सोहनलाल ने कार आगे बढ़ा दी।

“देवराज चौहान ले गया वैन को?” श्याम सुन्दर ने व्याकुल आवाज में पूछा।

“हां।”

“बिना किसी दिक्कत के इतना बड़ा काम हो गया। देवराज चौहान वाकई कमाल का बंदा है।” श्याम सुन्दर ने गहरी सांस लेकर कहा।

सोहनलाल ने श्याम सुन्दर पर नजर मारी।

“वैन के गार्डों ने, देवराज चौहान को रोकने की कोशिश नहीं की।” सोहनलाल बोला।

“वह सब हमारे झगड़े में उलझे हुए थे।” श्याम सुन्दर जल्दी से बोला।

“हैरानी है। सौ करोड़ के हीरों को यूं ही लापरवाही से, सड़क पर छोड़ दिया।” सोहनलाल का स्वर अजीब था।

श्याम सुन्दर कुछ नहीं बोला।

“एक बात तो बता।” सोहनलाल ने पुनः कहा।

“क्या?”

“गड़बड़ कहां है?”

“कोई गड़बड़ नहीं है।” श्याम सुन्दर तीखे स्वर में बोला –“तुम्हारा दिमाग खराब हो चुका है।”

“कुछ तो हो ही चुका है।” सोहनलाल होंठ सिकोड़कर बड़बड़ा उठा।

वैन के ले जाने पर, वहां हो-हल्ला पैदा हो गया। वैन का ड्राइवर और दोनों गार्ड चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे कि वैन में करोड़ों के हीरे थे। वहां मौजूद सबका ध्यान अब वैन की तरफ हो गया। मौजूदा लोगों ने करोड़ों के हीरों की बात सुनकर वैन ड्राइवर और दोनों गार्डों को घेर लिया। उनसे हीरों के बारे में, उत्सुकता से भरे ढेरों सवाल करने लगे।

जगमोहन को वहां से निकलने में कोई दिक्कत नहीं आई। किसी का भी ध्यान उसकी तरफ नहीं था। जिस कार से उसने टक्कर मारी थी, उसे सुबह ही पार्किंग से उठाया था। कार को वहीं छोड़कर वह चुपचाप वहां से चलता बना।

☐☐☐

सबसे पहले उस फैक्ट्री में देवराज चौहान पहुंचा वैन के साथ। रामचरण तो जैसे उनके आने की इन्तजार में था। वैन और देवराज चौहान को देखते ही फैक्ट्री का फाटक फौरन खोला। वैन के भीतर आ जाने पर उसने फाटक बंद किया। और देवराज चौहान के पास पहुंचा, जिसने वैन को फैक्ट्री के पीछे ले जाकर खड़ी कर दी थी। जिसे अब बाहर से देख पाना संभव नहीं था।

“यही है वह वैन?” रामचरण ने पूछा –“जिसे लाना था।”

“हां।” देवराज चौहान ने वैन से बाहर निकलते हुए कहा।

“मेरा बीस हजार।”

“मिल जायेगा।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“अभी हम अंधेरा होने तक यहीं हैं।”

“म...मेरा मतलब कि भूल मत जाना।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। वैन के पीछे जाकर देखा। वहां मजबूत ताला लटक रहा था।

“इसके भीतर कीमती माल है क्या?” रामचरण ने उत्सुकता दिखाते हुए पूछा।

“तुम –।” देवराज चौहान ने उसे घूरा –“अपने बीस हजार से मतलब रखो।”

“मैंने तो यूं ही पूछ लिया था। चाय बनाऊँ क्या?”

“नहीं।”

करीब एक बजे सोहनलाल और श्याम सुन्दर वहां पहुंचे।

“मेरे लिए इस वैन को उड़ा ले जाना, बहुत कठिन काम था।” श्याम सुन्दर शाबाशी वाले अन्दाज में बोला –“और तुमने तो मामूली सी योजना पर अमल पाकर, कामयाबी पा ली।”

“कोई भी योजना मामूली नहीं होती।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई –“योजना की कीमत इस बात पर तय होती है कि उसे ठीक वक्त पर, सही मौके पर, लागू किया जाये।”

“हां।” श्याम सुन्दर ने सिर हिलाया –“ठीक कहते हो। लेकिन वैन का ताला कैसे खुलेगा?”

“जल्दबाजी मत दिखा। खुल जायेगा।” सोहनलाल बोला –“जगमोहन को आ लेने दे।”

“मुझे ऐसी कोई जल्दी नहीं। रामचरण।”

“हाँ। मेरा बीस हजार...?”

“मिल जायेगा।” श्याम सुन्दर ने मुंह बनाकर कहा –“अन्दर से साफ करके कुर्सियां ले आ। यहीं बैठते हैं। वैन के दरवाजे के पास।”

“भीतर क्या है?”

“ज्यादा ताका-झांकी मत किया कर। जो कहा है वह कर।”

दो बजने से कुछ पहले ही जगमोहन वहां आ पहुंचा।

“सब ठीक रहा?” सोहनलाल उसे देखते ही बोला।

“हां। वैन को खोला क्यों नहीं?”

“अब खुल जायेगी।” सोहनलाल ने कहने के पश्चात अपनी कमीज उतारी तो पेट पर बंधी बेल्ट में औजार फंसे स्पष्ट नजर आने लगे।

“बिस्तरा-बोरिया साथ ही रखता है तू।” श्याम सुन्दर मुस्कराया।

सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा और आगे बढ़कर ताला खोलने के लिए अपने औजारों का इस्तेमाल करने लगा। ताला बेशक मजबूत था, लेकिन सोहनलाल के लिए खोलना, मामूली काम था।

रामचरण ने कुर्सियां लाकर रख दी थी।

श्याम सुन्दर, जगमोहन वैन के दरवाजे की तरफ कुर्सियां रखे बैठे थे। और देवराज चौहान कुर्सी के पास खड़ा था। तीनों की निगाहें, ताले और सोहनलाल के हाथों की हरकतों पर थी।

करीब दो मिनट की कोशिश के बाद, सोहनलाल ने ताला खोल दिया।

“रुक।” जगमोहन जल्दी से उठा –“वैन का दरवाजा मैं खोलूंगा।”

सोहनलाल ने मुंह बनाकर उसे देखा।

“क्यों?”

“कुछ तो मुझे भी करने दिया कर।” जगमोहन मुस्करा कर बोला और कंधे से पकड़कर उसे पीछे किया –“तू थक गया होगा। मुझे भी हाथ-पांव हिला लेने दे।”

सोहनलाल को पीछे करके, जगमोहन ने लटक रहा ताला निकालकर, एक तरफ फेंका फिर मोटी, मजबूत कुंडी को खींचकर खोला और हैंडल पकड़ कर वैन के दोनों पल्ले जल्दी से खोल डाले।

उसके बाद उनमें से कोई भी, कुछ नहीं कर सका।

वह सब खड़े रहे।

ठगे से देखते रहे उन लोगों को जो वैन में बैठे नजर आ रहे थे।

☐☐☐

उन सबके हाथों में रिवॉल्वरें थीं, जिनका रुख इन लोगों की तरफ था।

वह चार थे।

पहला नम्बरदार –जिसने देवराज चौहान को धमकी दी थी कि वह श्याम सुन्दर की बात न माने।

दूसरा हवलदार दीप सिंह –जो देवराज चौहान को एयरपोर्ट पर मिला था और जिसने श्याम सुन्दर की इस बात पर मुहर लगाई थी कि एयरपोर्ट पर हीरे हैं और एक-दो दिन में वहां से रवाना होने वाले हैं।

तीसरा मदनलाल –जो जगमोहन और सोहनलाल को, अथॉरिटी में टकराया था और जिसने श्याम सुन्दर की कार के नम्बर की एवज में, उसके घर का पता दिया था, जहां एक आदमी और एक युवती मिले थे।

चौथा था कर्मवीर यादव –माहिम थाने में जो सोहनलाल से मिला था। जिसने सोहनलाल से दो लाख वसूले थे और लॉकअप में बंद नम्बरदार के दर्शन भी करवाये थे।

चारों की रिवॉल्वरें बिल्कुल तैयार इनकी तरफ तनी हुई थीं।

देवराज चौहान के माथे पर बल उभर आये थे। चेहरे पर कठोरता की परत चढ़ चुकी थी। इतना तो वह समझ चुका था कि यह मामला हीरों की लूट का नहीं, बल्कि उन्हें फंसाने का जाल था और वह फंस चुके हैं। अब तो इतना भी मौका नहीं था कि बचाव में, रिवॉल्वर निकाला जा सके।

यही हाल जगमोहन और सोहनलाल का था।

तभी देवराज चौहान की कमर में रिवॉल्वर आ लगी।

देवराज चौहान के दांत भिंच गये।

“कोई शरारत मत करना।” रामचरण का भींचा स्वर कानों में पड़ा –“खामोशी से कुर्सी पर बैठ जाओ।”

देवराज चौहान भिंचे दांतों से वैसे ही खड़ा रहा।

“देर मत करो।” इस बार आवाज में गुर्राहट आ गई थी। नाल का दबाव भी बढ़ा।

श्याम सुन्दर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। उसके हाथ में भी रिवॉल्वर दबी नजर आने लगी थी। यह देखकर जगमोहन ने जल्दी से उठना चाहा कि श्याम सुन्दर सख्त स्वर में बोला।

“तुम दोनों में से कोई भी कुर्सी से नहीं उठेगा।”

सोहनलाल ने उखड़ी निगाहों से जगमोहन को देखा।

“देखा। सुन लिया। मैं तो पहले ही कहता कि यह ठीक बंदा नहीं है। लेकिन मेरी किसी ने न सुनी।”

“कौन हो तुम?” जगमोहन का चेहरा दहकने लगा।

“खामोशी से बैठे रहो। हर बात का जवाब मिल जायेगा।” श्याम सुन्दर की आवाज कठोर थी –फिर उसने देवराज चौहान को देखा –“बैठ जाओ देवराज चौहान। इस घिराव से तुम बाहर नहीं निकल सकते। छ: रिवॉल्वरें तुम लोगों की तरफ हैं। किसी भी तरह की कोशिश, सिर्फ खून-खराबे को अंजाम देगी। फायदा कोई नहीं होगा।”

देवराज चौहान हालातों को बखूबी समझ रहा था। बिना कुछ करे वह कुर्सी पर बैठ गया।

वैन के भीतर से, नम्बरदार ने एक लिफाफा बाहर फेंका, जिसे श्याम सुन्दर ने पकड़ा। उसमें रेशम की डोरियां थी। पहले से ही तैयार तीन डोरियां। तीनों में से कोई भी एतराज उठाने की स्थिति में नहीं था। तीनों को मजबूती के साथ, कुर्सियों से इस तरह बांधा गया कि गर्दन के अलावा शरीर का कोई भी हिस्सा वह, हिला न सकें।

उसके बाद वैन के भीतर बैठे वह चारों एक-एक करके बाहर निकले। रिवॉल्वरें उन्होंने जेब में डाल ली। श्याम सुन्दर ने भी रिवॉल्वर जेब में डाली और घड़ी को ट्रांसमीटर का रूप देकर, सम्बन्ध बनाने लगा।

रामचरण रिवॉल्वर थामे सतर्कता से खड़ा रहा।

“हैलो-हैलो। मैं श्याम सुन्दर...।”

“क्या रहा श्याम सुन्दर?” घड़ी में से बारीक सी आवाज निकल कर, श्याम सुन्दर के कानों में पड़ी।

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल की कठोर निगाह, उस पर टिक चुकी थी।

“काम हो गया है। इस वक्त हम फैक्ट्री में हैं।” श्याम सुन्दर की आवाज में गम्भीरता थी।

दो पलों की चुप्पी के बाद घड़ी में से पुनः आवाज आई।

“मतलब कि देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल तुम लोगों के कब्जे में हैं?”

“हां।”

“गुड–कोई परेशानी तो नहीं आई?”

“नहीं। सब काम वैसे ही हुआ, जैसा कि हमने सोचा था।”

“मैं आ रहा हूं।” इसके साथ ही आवाज आनी बंद हो गई।

श्याम सुन्दर घड़ी को ठीक करने लगा।

तभी नम्बरदार की आवाज सबके कानों में पड़ी।

“इन्हें कुर्सियों के साथ ही उठाओ और ऑफिस वाले कमरे में ले चलो। वहां की धूल साफ कर दी?”

“हां।” रामचरण ने जवाब दिया था।

“कौन हो तुम लोग?” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर पूछा।

सबकी निगाहें देवराज चौहान की तरफ उठीं।

“कुछ ही देर की बात है।” श्याम सुन्दर बोला –“वह आ रहा है। वहीं तुमसे बात करेगा। उसका कहना है कि वह, तुम्हें और तुम, उसे अच्छी तरह जानते हो।”

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी। बोला कुछ नहीं।

फिर उन्हें कुर्सियों सहित उठाकर, सामने ही नजर आ रहे, ऑफिस में ले जाया गया।

☐☐☐

वह आया।

जिसे देखकर देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

जगमोहन और सोहनलाल जोरों से चौंके।

कम से कम, इस सारे मामले में वह होगा, यह तो वह सोच भी नहीं सकते थे।

वह और कोई नहीं, इं. पवन कुमार वानखेड़े था।

“तुम।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“यह सब तुम्हारा किया धरा है?” सोहनलाल का मुंह खुला ही रह गया।

वानखेड़े ने तीनों पर गम्भीरता भरी निगाह मारी और आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा। वहां मौजूद अन्य, कुछ बैठे थे तो कुछ खड़े थे।

गहरा सन्नाटा था वहां।

“देवराज चौहान।” वानखेड़े ने ठोस लहजे में खामोशी तोड़ी –“कानून के लम्बे हाथों से कोई भी नहीं बच सकता। कानून के लम्बे हाथ जब पंजा सिकोड़ते हैं तो, उसमें कानून तोड़ने वाले की गर्दन आ फंसती है। जैसे कि अब तुम कानून के पंजे में जकड़े पड़े हो।”

देवराज चौहान की निगाह एकटक वानखेड़े पर थी।

“मैं जानता हूं, इस वक्त तुम भारी तौर पर उलझन में हो कि यह सब क्या है। समझने के बावजूद भी तुम्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा होगा लेकिन मैं सब बताऊंगा। परन्तु तुम्हें इस बात का एहसास तो हो गया होगा कि कभी भी तुम कानून से ऊंचे, कानून से बड़े नहीं रहे।”

एकाएक देवराज चौहान के चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी।

“वानखेड़े, मैंने कभी भी अपने को कानून से बड़ा नहीं समझा। मैं ही क्या, कानून तोड़ने वाला हर इंसान, हर पल कानून के पास में होने के एहसास को महसूस करता रहता है।” देवराज चौहान का स्वर सामान्य था –“और इसमें भी शक नहीं कि तुमने बहुत जबरदस्त योजना बनाकर, मुझे गिरफ्त में लिया है।”

“हां।” वानखेड़े ने सिर हिलाया –“तुम्हें फंसाने की प्लानिंग वास्तव में बहुत मजबूत थी। तुमने कहीं भी, कोई भी गलती नहीं की। अपनी तरफ से हर कदम पर तुमने सतर्कता बरती। लेकिन फंसे तो यहां फंसे कि, तुम जहाँ भी पहुंचे, मेरी प्लानिंग का हिस्सा, वहां पहले से ही तुम्हारा, जगमोहन का या फिर सोहनलाल का इन्तजार कर रहा था। ऐसे में तुम शक करते तो, किस पर, कहां पर करते।”

देवराज चौहान, वानखेड़े को देखता रहा।

सोहनलाल ने कांस्टेबल कर्मवीर यादव को देखा।

“तूने मेरा दो लाख लिया था। छोडूंगा नहीं, तेरे को।”

कर्मवीर यादव खामोश रहा।

“यह छः लोग।” वानखेड़े ने सबकी तरफ इशारा किया –“जिन्होंने मेरे प्लान को कामयाब बनाने में, मेरा साथ दिया, सी. बी. आई. के एजेंट हैं। पुलिस वाले नहीं हैं।”

देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान उभरी।

“तुम इं. हो और यह सी. बी. आई. के एजेंट, तुम्हारे इशारे पर काम करते रहे। खूब– और अब भी यह तुम्हारे इशारे के इन्तजार में खड़े लग रहे हैं। वानखेड़े, पुलिस इं. में इतनी पावर नहीं होती कि वह सी. बी. आई. के एजेंटों को अपने इशारे पर नचा सके।”

वानखेड़े ने कुछ नहीं कहा।

“इस बात से मैं पहले से ही वाकिफ हूं कि तुम इं. का मुखौटा पहने हुए हो। हकीकत में पुलिस इं. न होकर, कुछ और हो। जिसके पास बहुत ज्यादा पावर है। क्योंकि इं. की वर्दी में रहकर, तुम पहले भी कई ऐसे काम कर चुके हो, जो तुम्हारी हद में नहीं आते।”

इन शब्दों का जवाब न देकर, वानखेड़े बात को बदलते हुए बोला।

“तुम यह अवश्य जानना चाहोगे कि तुम्हें किस तरह घेरा गया। बीते कुछ महीनों से, काम की खातिर मैं मुम्बई में हूँ। महीना-डेढ़ महीना पहले भी तुम्हारी मेरी मुलाकात हुई थी, जब गंगाराम मुल्तानी ने तुम पर अपनी बेटी के अपहरण का इल्जाम लगाया था तो तुम्हें असली अपहरणकर्ता धनराज की तलाश करनी पड़ी। फिर जो भी हुआ, उससे तुम भी वाकिफ हो और मैं भी। अगर कानून की निगाह से देखा जाये तो गंगाराम मुल्तानी की बेटी के कातिल तुम हो।”

“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने उसकी हत्या नहीं की।”

देवराज चौहान का स्वर सख्त हो गया।

“लेकिन उसे आत्महत्या करने के लिए रिवॉल्वर तुमने दी थी।”

“जिन्दा रहकर वह खुद को सजा देती। अपने बाप को बे-मौत मारती। आत्महत्या करके उसने अपने बाप को तो बचा लिया। उसके जीते जी उसके कर्मों का पिटारा खुल जाता तो गंगाराम मुल्तानी आत्महत्या करता। उसकी बेटी भी करती।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा। इन सब बातों के बारे में जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “हथियार”।

“तुम समाज सेवा कब से करने लगे।” वानखेड़े का स्वर कड़वा हो गया।

“यह समाज सेवा नहीं थी। ऐसे कामों में ऐसा ही होता है। याद करो मैंने तुम्हें कहा था कि कानून की आंख वहां तक नहीं देख पाती, जहां तक मुजरिम की आंख पहुंच जाती है। वैसे भी मैं तो यह साबित कर चुका हूं कि, इस मामले में मेरा कोई हाथ नहीं तुमसे अलग हो रहा था लेकिन तुमने ही कुछ देर और साथ रहने को कहा था।”

“खैर छोड़ो।” वानखेड़े ने सिर को झटका दिया –“अब इन बातों में कुछ नहीं रखा। तो मैं तुम्हें बता रहा था कि तुम इस वक्त यहां कैसे मौजूद हो। कहो तो न बताऊं।”

“बता दो।” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

“पांच दिन पहले पुलिस के एक मुखबिर ने खबर दी कि तुम रामसिंह से मिलने वाले हो।”

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।

“रामसिंह –वह रेस्टोरेंट का मालिक। जिसका तुमने कोई काम किया था। और पेमेंट लेने उसके पास जाना था। उस के मुंह से किसी के सामने तुम्हारे बारे में निकला और खबर हम तक पहुंच गई। खबर पहुंचने की देर थी मैंने सी. बी. आई. के खास एजेंटों को चुना। फौरन योजना बनाकर इन्हें बताई और घड़ीनुमा ट्रांसमीटर इनके हवाले करके, इन्हें काम पर लगा दिया। काम था तुम तीनों को एक साथ फांसना।”

“एक साथ क्यों?” जगमोहन के चेहरे पर गुस्सा था।

“इसलिए कि एक-एक करके तुम लोगों को नहीं पकड़ा जा सकता था। हमारे द्वारा की गई ऐसी कोशिश में तुम लोग आसानी से पकड़ में नहीं आते। खून-खराबा होता जो कि मैं नहीं चाहता था। यही वजह थी कि तुम लोगों को पकड़ने की ऐसी योजना बनाई कि मौके पर कोई हरकत ही न कर सको।”

“कहो तो, तुम्हारी ही योजना के हिस्से अब मैं बता दूं।” देवराज चौहान बोला।

“अब तो तुम काफी हद तक हालातों को समझ चुके हो। खैर बताओ।”

देवराज चौहान दो पल वानखेड़े को देखता रहा फिर बोला।

“जब तुम्हें मालूम हुआ कि मैंने रामसिंह के पास आना है तो, अपनी योजना के तहत तुमने श्याम सुन्दर को इस तरह मेरी तलाश पर लगा दिया कि, यह खबर मुझ तक पहुंच जाये कि कोई मुझे तलाश कर रहा है और उधर, नम्बरदार ने रामसिंह से यह मालूम करके कि मैं कब उसके पास आऊंगा, रामसिंह के रेस्टोरेंट के बाहर मेरी इन्तजार में मौजूद रहा। जब मैं वहां पहुंचा तो नम्बरदार ने मुझे रिवॉल्वर दिखाकर, पहले ही धमकी दे दी कि मैं श्याम सुन्दर की बात न मानूं । ऐसा इसलिए किया गया कि श्याम सुन्दर जब मुझे मिले तो मैं उसकी बात पर शक न करके, उसे सच्चा मानूं।”

वानखेड़े ने सहमति से सिर हिलाया।

“और श्याम सुन्दर की कही बात की सच्चाई जानने के लिए जब एयरपोर्ट पहुंचा तो, तुम जानते थे कि ऐसा हो सकता है, इसलिए वहां पहले ही तैयार तुम्हारा एजेंट हवलदार दीपसिंह बनकर मुझे इस तरह मिला कि मुझे उस पर शक न हो सके। और दस हजार के बदले श्याम सुन्दर की कही बात पर मुहर लगा दी कि एयरपोर्ट पर वास्तव में सौ करोड़ के हीरे हैं और एक-दो दिन में वहां से ले जाने वाले हैं।”

“सही कहा।”

“जब हम।” जगमोहन कह उठा –“श्याम सुन्दर की कार के नम्बर के दम पर, उसके बारे में जानने के लिए अथॉरिटी पहुंचे तो, वहां मदनलाल नाम का तुम्हारा यह एजेंट टकराया। हमारी तस्वीरें दिखाकर तुमने इसे, हमारे चेहरों की अच्छी तरह पहचान करवा दी होगी। यह हमें दलाल बनकर मिला और कार के नम्बर की एवज में, ऐसा पता हमें थमा दिया जहां पहले से ही तुम्हारे स्थापित किए, दो लोग मौजूद थे। एक व्यक्ति, जो श्याम सुन्दर का बाप बन गया और एक लड़की, जो उसकी बहन बन गई। उन दोनों ने हमें विश्वास दिला दिया कि श्याम सुन्दर बिगड़ा हुआ इन्सान है और उसे घर से निकाल रखा है। यह सब तुमने इसलिए किया कि हम श्याम सुन्दर की हर बात का यकीन करें।”

“यह भी ठीक कहा।”

“जब मैं –।” सोहनलाल ने कड़वी निगाहों से कर्मवीर यादव को देखा –“नम्बरदार के बारे में मालूम करने माहिम थाने पहुंचा तो, कांस्टेबल बने कर्मवीर यादव ने मुझे पकड़ लिया। साला पेश ही इस तरह आया कि मुझे जरा भी शक न होने दिया। दो लाख भी झाड़ लिए और लॉकअप में बंद कर रखे नम्बरदार के दर्शन भी करा दिए।”

“हां।” वानखेड़े बोला –“क्योंकि मैं जानता था कि अचानक नम्बरदार के पकड़े जाने पर विश्वास नहीं करोगे। हो सकता है उसके बारे में माहिम थाने मालूम करने जाओ। इसलिए वहां पर इस बात का इंतजाम पहले से ही रखा था कि जो भी नम्बरदार के बारे में मालूम करने आये तो वह लॉकअप में बंद नम्बरदार को देख ले।”

“तो मेरे से दो लाख लेना जरूरी था।”

“वह वैन–जिसे लूटने की प्लानिंग की गई। उसमें ड्राइवर और तीनों गार्ड हमारे थे। जिन्हें सब पता था कि उनके हाथों से वैन छीनी जायेगी। इसलिए उन्हें समझा दिया गया था कि वह अड़ने की कोशिश न करें और इस तरह भी वैन को न जाने दें कि तुम लोगों को शक हो। उन्होंने भी अपना काम अच्छे ढंग से किया।”

दो पलों के लिए वहां खामोशी छा गई।

“मेरी योजना ही ऐसी थी कि तुम लोगों के पास फंसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। तुम लोगों ने कहीं भी लापरवाही नहीं बरती और इस मामले में जो सावधानी बरती, वही सावधानी तुम लोगों को फंसा गई।”

“अगर हमें पकड़ना ही था तो हमारी पोजिशन तुम्हारे सामने थी। तुम कभी भी हमें पकड़...।”

“नहीं। तब इतनी आसानी से तुम लोग पकड़ में नहीं आते।” वानखेड़े ने सिर हिलाया –“मुकाबले पर आ जाते। और मेरा इरादा तुम लोगों को आराम से घेर कर पकड़ने का था। जोकि पूरा हो गया। गोलियां नहीं चली। खून-खराबा नहीं हुआ।”

देवराज चौहान ने वानखेड़े की आंखों में देखा।

“माना कि तुम्हारी योजना कामयाब रही। लेकिन वानखेड़े तुमने, हमें ऑफिशियली तौर पर नहीं पकड़ा। हमें पुलिस हैडक्वार्टर क्यों नहीं ले गये। हमारी गिरफ्तारी दर्ज क्यों नहीं की?”

वानखेड़े की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

“यह कह कर तुम भूल कर रहे हो कि मैंने तुम्हें ऑफिशियली तौर पर नहीं पकड़ा।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम इस वक्त ऑफिशियली तौर पर गिरफ्तार हो देवराज चौहान। इस वक्त यहां कोई मजाक नहीं हो रहा। मैं सरकारी ऑफिसर हूं और तुम तीनों को सी. बी. आई. के छ: एजेंट घेरे खड़े हैं। फिर तुम कैसे कह सकते हो कि मैंने तुम्हें ऑफिशियली तौर पर गिरफ्तार नहीं किया?”

“तुम्हारी बातें अपनी जगह ठीक हैं।” देवराज चौहान की आवाज में पक्कापन था –“लेकिन मेरी बात भी अपनी जगह सही है कि अभी हमें गिरफ्तार नहीं किया गया। सिर्फ घेरा गया है।”

वानखेड़े कई पलों तक देवराज चौहान को देखता रहा।

“हूं।” वानखेड़े ने आहिस्ता से सिर हिलाया –“कुछ हद तक तुम्हारा ख्याल ठीक हो सकता है कि अभी तुम्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। लेकिन असल में तुम गिरफ्तार ही हो।”

“सुबह क्या खाया था?” एकाएक जगमोहन बोला।

“क्यों?” वानखेड़े ने उसे देखा।

“इसलिए कि दोतरफा बात कर रहे हो। हाँ भी, न भी। खाने में तो कोई गड़बड़ नहीं थी।”

“बहुत बोलता है यह।” नम्बरदार कठोर स्वर में कह उठा।

वानखेड़े ने सख्त निगाहों से नम्बरदार को देखा तो वह दूसरी तरफ देखने लगा।

वानखेड़े ने तीनों पर नजर मारी, फिर देवराज चौहान पर नजरें टिका कर बोला।

“अगर तुम तीनों चाहो तो इस गिरफ्तारी से बच सकते हो।”

देवराज चौहान समझ गया कि अब वानखेड़े असल बात पर आ रहा है।

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

“कैसे?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

वानखेड़े की निगाह देवराज चौहान पर ही थी।

“कानून की गिरफ्तारी से बचने के लिए एक डकैती करनी होगी।”

“डकैती?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

“हां।” वानखेड़े ने गम्भीरता से सिर हिलाया।

“किसके लिए?” देवराज चौहान के चेहरे पर उलझन थी –“तुम्हारे लिए?”

“मेरे लिए कह लो। सी. बी. आई. के लिए कह लो। या फिर देश के लिए कह लो। कुछ भी सोच सकते हो। लेकिन कानून की पकड़ से दूर होने का एक मौका तुम्हें मिल सकता है अगर तुम डकैती के लिए तैयार हो जाओ। कोई जबरदस्ती भी नहीं है। तुम्हारे इंकार पर, कानूनी तौर पर तुम्हें गिरफ्तार करके, तुम्हें अदालत में पेश कर दिया जायेगा।”

देवराज चौहान वानखेड़े को देखे जा रहा था। इतना तो समझ ही चुका था कि बात कुछ गहरी है। वरना वानखेड़े उसे पकड़ कर, उसके सामने ऐसी पेशकश कभी नहीं रखता।

“कई बार कानून की रक्षा के लिए ही, हमें कानून तोड़ना पड़ता है।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“जब कभी ऐसा काम अटकता है तो, हम ऐसा भी कर लेते हैं। लेकिन इस बार जो काम अटका है। उसके लिए कानून के दायरे से बहुत ज्यादा बाहर जाना पड़ेगा। और कानून वाले इस हद तक कानून से बाहर नहीं जा सकते। लेकिन तुम जा सकते हो देवराज चौहान । बात तो अजीब ही है कि कानून वाले, कानून तोड़ने वालों से मदद ले। लेकिन कभी-कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि, हर बात को जायज करार देना पड़ता है। अब यह कानून की मजबूरी ही है कि कानून कब से तुम्हें तलाश कर रहा है। और जब तुम कानून की पकड़ में आये तो कानून को ही तुमसे सौदा करना पड़ रहा है कि तुम यह काम करो तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा।”

देवराज चौहान, वानखेड़े के गम्भीर चेहरे को देखता रहा, फिर दूसरों पर नजर गई। उनके चेहरों पर भी गम्भीरता और दृढ़ता थी।

“कांटा कुछ ज्यादा ही मोटा फंसा है।” जगमोहन बड़बड़ा उठा।

“बोलो।” देवराज चौहान को खामोश पाकर वानखेड़े बोला –“हमारे लिए डकैती डालने को तैयार हो?”

“पूरी बात सुने बिना में, हां या ना, नहीं कह सकता।”

“ठीक है। पूरी बात भी तुम्हें बता देता हूं।” वानखेड़े ने कहा –“लेकिन इस बात को हरदम दिमाग में रखना कि तुम्हारा इंकार तुम्हें ऐसा गिरफ्तार करा देगा कि फिर कभी आजाद नहीं हो सकोगे।”

देवराज चौहान के चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी।

“कानून का डर मुझे मत दिखाओ वानखेड़े। अगर तुम्हारा बताया काम मुझे पसन्द नहीं आया तो मुझे अपनी गिरफ्तारी में कोई एतराज नहीं होगा। मैं कोई काम दबाव में रहकर नहीं करता। बेशक दबाव डालने वाले पुलिस वाले ही क्यों न हों।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

वानखेड़े, देवराज चौहान को घूरता रहा।

“डकैती के बारे में कुछ कहूं?” वानखेड़े ने चुप्पी तोड़ी।

“कहो। जो भी कहना हो, एक ही बार में कह दो। कोशिश करना कि ऐसा कोई सवाल बाकी रहे ही ना, जो मुझे पूछना पड़े। एक से लेकर सौ तक, सब बता दो।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

दो पलों की चुप्पी के बाद, वानखेड़े कह उठा।

“पड़ोसी देश की महिला जासूस है। जिसका नाम लियू है। वह –।”

“मतलब कि चीन की।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“हां। वैसे तो लियू बहुत देर से हमारी नजरों में थी। क्योंकि चीन स्थित हमारे एजेंट ने खबर दी थी कि चीनी दूतावास में, कम्प्यूटर पर काम करने के लिए चीन से जिस युवती को भेजा गया है। हकीकत में वह चीन की बेहद खतरनाक एजेंट लियू है। जोकि शंघाई से आई है। वह तब से ही हमारी नजरों में थी। हमारे तीन बेहतरीन एजेंट बारी-बारी उसकी निगरानी करते थे और उसकी हरकतों पर नजर रखते थे कि वह किस से मिलती है या मिलने वालों से क्या बातें करती है। उसका आना-जाना कहां है। सख्त निगरानी के बाद भी, वह कभी-कभार हमारे एजेंटों की निगाहों से गायब हो जाती। मतलब कि वह इस बात को भांप चुकी थी कि सी. बी. आई. के एजेंट उस पर नजर रखे हुए है। कुछ महीनों से यह आंख-मिचौली चलती रही।

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल उसकी बात को ध्यान से सुन रहे थे।

“और एक बार हमारे एजेंटों की निगाहों से लियू ने बचने की कोशिश की। लेकिन वह बच न सकी। एक एजेंट की निगाहों में ही रही। परन्तु वह यही समझती रही कि अपनी कोशिश में कामयाब हो रही है। एजेंट लियू के पीछे लगा रहा। लियू एक होटल में पहुंची। होटल में पहले ही कमरा बुक था। वह वहां पहुंचा। जब दो घंटे बाद लियू होटल से निकल कर चली गई तो उस कमरे से जो व्यक्ति पांच मिनट बाद निकला। एजेंट ने उसके बारे में छानबीन की तो मालूम हुआ कि वह परमाणु अनुसंधान केन्द्र में महत्वपूर्ण ओहदे पर है। ऐसे में उसके लियू के साथ सम्बन्ध होना बहुत खतरनाक बात की तरफ संकेत दे रहे थे। यह खबर मिलते ही हम लोगों में खलबली मच गई। लेकिन जल्दबाजी करने का कोई फायदा नहीं था। कुछ सब करके यह जान लेना चाहते थे कि मामला क्या है। ऐसे में हमारे एजेंटों ने लियू और सुरेश जोगलेकर नाम के उस वैज्ञानिक पर कड़ी निगाह रखनी शुरू कर दी।”

वानखेड़े क्षण भर के लिए ठिठका।

वहां गहरा–पैना सन्नाटा छाया हुआ था।

“अब सुरेश जोगलेकर की हर हरकत हम लोगों की निगाहों में थी और इसी तरह लियू की हरकतें भी। तब सप्ताह बाद लियू और सुरेश जोगलेकर पुनः होटल के कमरे में मिले। उनका बार-बार इस तरह मिलना डिपार्टमेंट को बुरी तरह खटक रहा था। आखिरकार फौरन फैसला करके, सुरेश जोगलेकर जब होटल से निकला तो अपहरण करने वाले अंदाज में उसे गिरफ्तार कर लिया और खास जगह रखकर उससे कड़ी पूछताछ की गई। दो घंटों में ही वह टूट गया और जो उसने बताया वह हमें हिला देने के लिए बहुत था।” वानखेड़े ने देवराज चौहान को देखा फिर सिर हिलाकर बोला –“हमारे वैज्ञानिक खास तरह का परमाणु बम डिजाइन कर रहे हैं। जोकि कर भी चुके हैं। सफलता लगभग पा ही ली है। उस परमाणु बम के डिजाइन में खासियत यह है कि वह छोटा होने पर भी बड़े बम जितनी तबाही कर सकता है। यानी कि काम उतना ही, लेकिन लागत आधी सेभी कम । इस काम में बेहद गोपनीयता बरती जा रही थी। परन्तु लियू की खूबसूरती और चालाकी ने सुरेश जोगलेकर के सारे होशो-हवास छीन लिए। पहले लियू ने उससे दोस्ती की। अपना खूबसूरत शरीर आगे किया और हमारे वैज्ञानिक परमाणु संबंधी किस विषय पर काम कर रहे हैं। जान लिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई, लियू ने अपनी खूबसूरती का जाल इस तरह सुरेश जोगलेकर पर फेंका कि बम डिजाइन के कागजों की नकल तो दूर, सारे असल कागजात, प्रयोगशाला से चोरी करके, लियू को सौंप दिए। इत्तफाक से उसी दिन ही सौंपे, जिस दिन हमने सुरेश जोगलेकर को गिरफ्तार किया था और जानते हो इसके बदले उसने लियू से क्या कीमत ली?”

देवराज चौहान, वानखेड़े को देखता रहा।

“पन्द्रह-बीस बार लियू के शरीर से खेलना।” वानखेड़े के दांत भिंच गये –“सिर्फ कुछ बार, सुरेश जोगलेकर के साथ, बेड पर लेटने के बदले लियू ने इतना बड़ा फार्मूला हासिल कर लिया। हमारे वैज्ञानिकों की बरसों की मेहनत खराब हो गई। वह असल कागजात, सारी थ्योरी ही वहां से गायब हो गई। जोकि सुरेश जोगलेकर के दम पर लियू ले उड़ी थी। लेकिन हमारे पास इस बात का सीधा- सीधा कोई सबूत नहीं था कि हम लियू की तरफ उंगली उठा सकें। फिर भी हम जो कोशिश कर सकते थे, वह की। लियू को कम्प्यूटर ऑपरेटर के बदले हमने जासूस ठहराने की कोशिश की। इसकी एवज में सुरेश जोगलेकर की गवाही और उस होटल वालों की गवाही भी दिलवाई। परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ। हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके। लियू को जासूस साबित नहीं कर सके। बल्कि लियू और भी सतर्क हो गई और बहुत कम दूतावास से बाहर निकलती। जब बाहर आती तो सुरक्षा व्यवस्था के बीच। जबकि हमारा अगला कदम था लियू का अपहरण। ताकि उससे जाना जा सके कि वह फार्मूला कहां है। उसे हम वापस हासिल कर सकें। लेकिन लियू पर हाथ डालना अब हमारे लिए और भी कठिन हो चुका था। अगर हम शोर-शराबा न करते और पहले ही लियू पर हाथ डाल देते शायद कुछ सफलता पा जाते। परन्तु बीता वक्त हाथ से निकल चुका था।”

वानखेड़े का चेहरा गुस्से से भर चुका था।

“कोई और रास्ता न पाकर हमारे एजेंटों ने दूतावास के कर्मचारियों को टटोलना शुरू कर दिया। आखिरकार ज्ञानचंद नाम का एक क्लर्क हमारे हाथ लगा। उसने बताया कि उसके पास फार्मूले से वास्ता रखती जानकारी है लेकिन बताने के बदले वह पचास लाख लेगा। पहले लेगा। उसे किसी तरह पांच लाख में राजी किया। उसे पांच लाख दिए। देने पड़े। क्योंकि उस कामयाब फार्मूले को तैयार करने में हमारे कई वैज्ञानिकों की आधी जिन्दगी लग गई थी। ऐसे में उसका फायदा हिन्दुस्तान को मिले या न मिले लेकिन चीन को मिलना, बेहद खतरनाक बात थी। उस फार्मूले की वजह से चीन परमाणु असले में, और भी ताकतवर बन सकता है। और एशिया में वह सबसे बड़ी शक्ति बनकर दूसरे देशों पर धौंस जमा सकता है। बहरहाल ज्ञान चंद ने बताया कि, उसने एक दिन केबिन में दो चीनियों की बातें सुनीं। उनकी बातों का मुद्दा था कि हम लोग उनके दूतावास के हर कर्मचारी पर नजर रखे हुए हैं। इस सख्ती की वजह से उस फार्मूले को हिन्दुस्तान से बाहर चीन में नहीं ले जाया जा सका। ऐसे में उसे दूतावास के भीतर रखना भी खतरनाक था। इसलिए उस फार्मूले के पेपर्स की माइक्रोफिल्म बनाकर, उन पेपर्स को नष्ट कर दिया गया और सावधानी के तौर पर उस माइक्रोफिल्म को कुछ देर के लिए प्राइवेट वॉल्ट के लॉकर में रख दिया गया। ताकि जब भी मौका मिले तो वहां से माइक्रोफिल्म निकालकर चीन रवाना की जा सके।”

“कौन से वॉल्ट में?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“वोल्गा वॉल्ट।”

“तो फिर दिक्कत क्या है।” देवराज चौहान कह उठा –“लॉकर का नम्बर तुम लोगों को मालूम ही होगा। सरकारी तौर पर तगड़ा दबाव डालकर, उस लॉकर को खुलवा सकते हो।”

वानखेड़े के दांत भिंच गये। वह कुर्सी से उठकर टहलने लगा।

“ऐसा कर पाना अब सम्भव नहीं।” वानखेड़े एक-एक शब्द चबाकर बोला –“दरअसल लियू की तरफ उंगली उठाने और अपनी कार्यवाही करके, कुछ न हासिल कर पाने के कारण, हमारा सिर नीचा हुआ है। अब हालात यह हैं कि अगर चीनी दूतावास या लियू के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई और हाथ कुछ न लगा तो किसी को हमारे लिए, मुंह दिखाना कठिन हो जायेगा। इस समय हमारा निशाना दूतावास या लियू न होकर माइक्रोफिल्म है, जिसमें हमारे वैज्ञानिकों की बरसों की मेहनत है। सबसे पहले हमने वह फिल्म हासिल करनी है। हमारा मकसद झगड़ा करना नहीं, बल्कि फार्मूले को वापस पाना है। इसलिए यही फैसला किया गया है कि उस माइक्रोफिल्म को खामोशी के साथ हासिल किया जाये।”

“और यह काम मुझसे करवाना चाहते हो?” देवराज चौहान सोच भरे स्वर में कह उठा।

“हाँ।” वानखेड़े ने जल्दी से सिर हिलाया –“तुम सफल डकैतीबाज हो। तुम्हारे लिए यह काम मामूली है। तुम वोल्गा वॉल्ट में सफल डकैती करके, वह माइक्रोफिल्म हमारे हवाले कर सकते हो।”

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।

“इस काम में तुम तीनों की ही जरूरत है। तुम्हारे बिना डकैती हो पाना सम्भव नहीं। तुम्हें अपने साथ जगमोहन भी चाहिये और सोहनलाल तब लॉकर खोलेगा, जब तुम लोग वोल्गा वॉल्ट में प्रवेश कर जाओगे।”

देवराज चौहान वानखेड़े को देखता रहा।

उसे खामोश पाकर, वानखेड़े की आंखों में बेचैनी उभरी।

“हमारे लिए, देश के महत्वपूर्ण पेपर्स के लिए वोल्गा वॉल्ट में डकैती डालने को तैयार हो?”

“अगर असल मामला यही है तो, मैं इंकार नहीं करता।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मैं तुमसे झूठ नहीं कह रहा। असल मामला यही है।” वानखेड़े ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

“वानखेड़े की बात मेरे गले से नीचे उतर रही है।” सोहनलाल बोला –“यह सच ही कह रहा है।” कहने के साथ ही उसकी निगाह श्याम सुन्दर की तरफ गई।

“लेकिन मैं तैयार नहीं हूं।” एकाएक जगमोहन कह उठा।

सबकी निगाह उसकी तरफ उठी।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गये।

“क्यों?” वानखेड़े बोला –“तुम्हें लगता है कि मैं झूठ कह रहा कि –।”

“मैं मानता हूं कि तुम सच कह रहे हो।”

“तो फिर तुम्हें एतराज क्यों?”

“सवाल यह उठता है कि हम तुम्हारा यह काम क्यों करें?” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

“इसलिए कि अगर मेरी बात मान कर यह काम न किया तो तुम लोगों की गिरफ्तारी दिखाकर जेल में डाल दूंगा। फिर –।”

“डाल दो।”

“क्या?”

“मैंने कहा है डाल दो जेल में।” जगमोहन ने पहले जैसे स्वर में कहा –“हम तुम्हारा काम नहीं करेंगे।”

वानखेड़े के दांत भिंच गये।

“जगमोहन! तुम इस बात को नहीं समझ रहे हो कि जेल पहुंच कर –।”

“मैं सब समझ रहा हूं। तुम हमारी गिरफ्तारी दर्ज करो और आगे की कार्यवाही शुरू करो।”

दो पल के लिए वानखेड़े आहत भाव से जगमोहन को देखने लगा।

देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

“मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम चाहते क्या हो?” आखिरकार वानखेड़े ने कहा।

“अगर पहले ही यह बात पूछते तो, मैंने अब तक समझा दिया होता।” जगमोहन ने कहा।

“अब समझा दो।”

“तुमने चीनी दूतावास में काम करने वाले क्लर्क को पांच लाख दिए।”

“हां। क्योंकि इतने बड़े मामले में, देश के लिए पांच लाख मामूली रकम है। हम –।”

“यही तो मैं कह रहा हूं कि ज्ञानचंद ने सिर्फ मुंह खोला तो उसे पांच लाख मिल गये। और हम तुम्हारे लिए इतना बड़ा काम करें। और हमें क्या मिलेगा? कुछ भी नहीं। ऊपर से तुम हमें जेल भेजने की धमकी दे रहे हो। इस वक्त हमसे-ज्यादा तुम फंसे हुए हो। क्योंकि वोल्गा वॉल्ट में बंद माइक्रोफिल्म की तुम्हें बहुत जरूरत है।”

“मुझे नहीं, देश को।”

“मेरी नजरों में, इस वक्त यह मामला तुम्हारा है।”

वानखेड़े, जगमोहन को देखता रहा।

“बोलो।” जगमोहन ने मुंह बिगाड़कर कहा।

“क्या?”

“वही जो ज्ञानचंद को दिया है।”

“तुम्हारा मतलब कि–पैसा?” वानखेड़े के होंठों से निकला।

“हां। उसके बिना तो हम काम करेंगे नहीं। ज्यादा न सही, कम से कम जितनी मामूली रकम, तुमने ज्ञानचंद को दी है। उतनी ही मुझे दे दो। अभी भी सस्ता सौदा है।” जगमोहन ढीठता से बोला।

“यह तो कमीनापन हुआ।” वानखेड़े गुस्से से कह उठा –“मैं तुम लोगों को जेल नहीं भेज रहा क्योंकि –।”

“भेज दो। गिरफ्तार करो। मैं कब मना कर रहा हूं।” जगमोहन हंसा।

वानखेड़े उसे घूरता रहा।

देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर, दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया था।

“पांच लाख चाहते हो?” आखिरकार वानखेड़े ने कहा।

“तुम्हारे लिए पांच लाख है। दूसरे के लिए पांच करोड़ से भी ज्यादा होता।” जगमोहन मुरकराया।

“ठीक है। मिल जायेगा पांच लाख। लेकिन यह पैसा माइक्रोफिल्म के लेन-देन के वक्त होगा।” वानखेड़े बोला।

“कोई एतराज नहीं। काम करने के बाद, मैं मेहनताना ले लूंगा।”

“फिर तो मुझे भी मिलना चाहिये।” सोहनलाल फौरन कह उठा –“जब तक मैं रास्ते में आने वाले ताले नहीं खोलूंगा। वह लॉकर नहीं खोलूंगा। यह डकैती कैसे परवान चढ़ेगी। मुझे –।”

“चुप कर।” जगमोहन धीमे स्वर में सोहनलाल से कह उठा।

“क्यों?” सोहनलाल के माथे पर बल पड़े –“क्यों चुप करूं। मुझे नोट बुरे लगते हैं क्या?”

“उसको और मत निचोड़। गुस्सा आ गया तो हमें बंद कर देगा तेरे को मैं दे दूंगा।”

“नोट।”

“हां।”

“कितने?”

“एक लाख।”

“पांच लाख में से एक। कभी नहीं। मैं यह काम नहीं।”

“दो ले लेना।”

“नहीं। पांच में से ढाई लाख लूंगा।”

“ढाई लाख?” जगमोहन के चेहरे पर सकपकाहट के भाव उभरे –“पागल तो नहीं हो गया तू। दो ताले खोलने के ढाई लाख। उठाकर बाहर फेंक दूंगा। कान खोलकर सुन ले। लाख मिलेगा। एक पैसा भी ऊपर नहीं । जो तेरे से मैंने लेना था। वह भी माफ किया। खबरदार जो अब मुंह से कोई शब्द निकाला।”

सोहनलाल खा जाने वाली निगाहों से, जगमोहन को देखता रहा।

जगमोहन ने जानबूझकर, दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया।

वानखेड़े ने नम्बरदार से कहा।

“खोलो इन्हें।”

“लेकिन इनके पास हथियार हैं। खोला गया तो।” नम्बरदार ने कहना चाहा।

“कुछ नहीं होगा।” वानखेड़े का स्वर सख्त हो गया –“जो मैं कह रहा हूँ, वही करो।”

नम्बरदार, दीपसिंह और मदन लाल ने आगे बढ़कर, उनके बंधन खोले।

तीनों कुर्सियों से उठे। सोहनलाल ने अपने हाथ-पांव हिलाकर, गोली वाली सिगरेट सुलगाई। जगमोहन ने हाथ-पांव सीधे करते हुए रामचरण को देखा, क्योंकि सख्ती से बंधन उसने बांधे थे।

देवराज चौहान ने सोच भरे अन्दाज में सिगरेट सुलगाई।

तभी कर्मवीर यादव, वानखेड़े से कह उठा।

“मैं अभी भी इस हक में नहीं हूं कि यह काम, इन लोगों से लिया जाये।”

वानखेड़े की कठोर निगाह कर्मवीर यादव पर जा टिकी।

“तो फिर तुम कर लो। करोगे यह काम। वोल्गा वॉल्ट में डकैती करके, माइक्रोफिल्म हासिल कर लोगे?”

“इस बात की क्या गारंटी कि देवराज चौहान यह काम कर लेगा।” कर्मवीर यादव बोला:

“जितनी गारंटी तुम अपने काम करने की दोगे, उससे ज्यादा गारंटी तो, देवराज चौहान के हां कर देने में ही है। इसके कारनामों की फाइल मेरे पास है और इसे मैं तुमसे ज्यादा जानता हूं।”

“हां करने के बाद, यह फरार भी हो सकता है।”

“नहीं होगा। यह जिम्मेवारी मेरी होगी।” वानखेड़े ने स्वर में कहा।

“कानून तोड़ने वाले की जिम्मेवारी ले रहे हो तुम।”

“इस वक्त मैं किसी मुजरिम की नहीं, जातीतौर पर देवराज चौहान की गारंटी ले रहा हूं कि वह भागेगा नहीं। और ईमानदारी से डकैती करेगा। यह जुदा बात है कि डकैती में कैसी स्थिति पैदा होती है।”

कर्मवीर यादव असहमति भरी नजरों से वानखेड़े को देखता रहा।

“लेकिन एक बात मुझे खटक रही है।” नम्बरदार कह उठा।

“क्या?”

“माना कि देवराज चौहान भागता नहीं। डकैती कर लेता है। वोल्गा वॉल्ट के लॉकर में रखी माइक्रोफिल्म पा लेता है। लेकिन इस बात की क्या गारंटी कि यह माइक्रोफिल्म हमारे हवाले कर देगा।”

वानखेड़े ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी जो शांत निगाहों से सब को देखता हुआ, उनकी बातें सुन रहा था। वानखेड़े की निगाह नम्बरदार पर जा टिकी।

“स्पष्ट कहो, जो कहना चाहते हो।”

“इस बात की पूरी संभावना है कि देवराज चौहान माइक्रोफिल्म हमारे हवाले न करे और बड़ी कीमत लेकर पाकिस्तान–चीन या फिर अमेरिका–फ्रांस जैसे किसी देश को बेच दे। उस माइक्रोफिल्म में ऐसा फार्मूला है, जिसके लिए बड़े-बड़े देश मुंहमांगी कीमत दे सकते हैं।” नम्बरदार ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

वानखेड़े के चेहरे पर गम्भीरता उभरी।

“तुम्हारी सोच गलत नहीं है नम्बरदार ।” वानखेड़े ने सिर हिलाकर कहा –“अगर –देवराज चौहान के बदले, कोई और यह काम कर रहा होता तो, ऐसा हो जाने की पूरी सम्भावना थी। लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है।”

“क्यों?”

“क्योंकि देवराज चौहान गद्दारी करने जैसे काम से दूर रहता है।”

“कानून वाले होकर, कानून तोड़ने वाले पर इतना विश्वास?” नम्बरदार अजीब से स्वर में कह उठा।

“मैं कानून तोड़ने वाले पर नहीं, देवराज चौहान पर विश्वास कर रहा हूं। तुम देवराज चौहान के बारे में अभी ठीक से नहीं जानते, इसलिए मेरी बात का फर्क नहीं समझ सकोगे।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस वक्त मैं जो भी कह रहा हूं, तुम्हें मान लेना चाहिये।”

“ऐसी बात है तो इस बात की जिम्मेवारी तुम लो कि जो कुछ भी हो रहा है। तुम्हारी जिम्मेवारी पर हो रहा है। अगर देवराज चौहान ने देश के दुश्मनों से माइक्रोफिल्म का सौदा किया तो सजा के हकदार तुम होंगे।”

“मुझे मंजूर है।” वानखेड़े ने फौरन सहमति दी।

“लिखकर देनी होगी यह बात और हम सब इस बात के गवाह होंगे।” नम्बरदार ने शांत स्वर में कहा –“क्योंकि यह आइडिया तुम्हारा था और है भी कि, देवराज चौहान से वॉल्ट में डकैती डलवाकर फार्मूले वाली फिल्म को पाया जाये।”

“लिख कर दे दूंगा। मुझे कोई एतराज नहीं।” वानखेड़े के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।

☐☐☐

आधे घंटे बाद, सबके हाथों में चाय के प्याले थे। सब उसी फैक्ट्री के ऑफिस में थे। चाय श्याम सुन्दर ने फैक्ट्री में ही बनाई थी। सामान पहले से ही वहां था। सारी तैयार कर रखी थी। अधिकतर कुर्सियों पर बैठे थे। वानखेड़े टेबल पर टांगे लटकाए बैठा था।

मदनलाल और नम्बरदार बैठने की जगह न पाकर, दीवार से टेक लगाये खड़े चाय पी रहे थे।

“देवराज चौहान?” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“हमारे पास वक्त कम है। चीनी दूतावास वाले या फिर वह चीनी एजेंट लियू वॉल्ट के लॉकर से माइक्रोफिल्म निकाल कर किसी तरह उसे देश से बाहर न पहुंचा दें। ऐसा हो गया तो शायद मामला हमारी पहुंच से दूर हो जाये। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम कुछ ही घंटों में इस काम को अंजाम दे दो। वैसे हमारे तीन एजेंट वोल्गा वॉल्ट की निगरानी कर रहे हैं। वॉल्ट के एक क्लर्क को गुप्त रूप से हमने, इस बात के लिए, तैयार कर रखा है कि खासतौर से वह लॉकर जिसमें माइक्रोफिल्म होने की खबर हमारे पास है। उसे कोई खोलने आये तो, बाहर मौजूद हमारे एजेंटों को फौरन खबर करे। परन्तु यह सुरक्षा के उपाय वक्ती हैं। हमने जो इंतजाम कर रखा है। हो सकता है उसमें कहीं भी मात खा जाये। क्योंकि वह चीनी एजेंट लियू बहुत खतरनाक है। शंघाई स्थित हमारे आदमी ने लियू के बारे में यही सूचना हमें भेजी है। देखने में वह मासूम और काम के वक्त वह शेर से भी ज्यादा खतरनाक है।”

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग में चाय का घूंट भरा।

“एक बार अनजाने में मैं, तुम लोगों के जाल में फंस चुका हूं।” देवराज चौहान ने शांत निगाहों से वानखेड़े को देखा –“और मैं नहीं चाहता कि ऐसा ही कुछ, फिर हो।”

“क्या मतलब?”

देवराज चौहान ने वहां मौजूद सब पर नजर मारी।

“तुमने कहा था कि यह सब सी.बी.आई. के एजेंट हैं।”

“हाँ।”

“मैं इनके कार्ड देखना चाहता हूं।”

“मतलब कि तुम्हें मेरी कही बात पर विश्वास नहीं।” एकाएक वानखेड़े के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“पूरा विश्वास है। लेकिन काम की शुरुआत करने से पहले मैं पूरी तरह अपनी तसल्ली कर लेना चाहता हूं।”

वानखेड़े के इशारे पर सबने अपने आई-कार्ड देवराज चौहान को दिखाये।

देवराज चौहान ने तसल्ली से अच्छी तरह उन आई कार्डों को जांचा। सब पर उनकी तस्वीरें थी। और पक्के तौर वह असली थे वह लोग वास्तव में सी.बी.आई. के एजेंट थे।

देवराज चौहान ने उनके कार्ड वापस किए।

“कितनी अजीब बात है।” नम्बरदार आई कार्ड जेब में डालते हुए तीखे स्वर में कह उठा –“इश्तिहारी मुजरिम से अपना काम निकलवाने के लिए हमें अपने ओहदे की सफाई पेश करनी पड़ रही है।”

देवराज चौहान की निगाह नम्बरदार की तरफ उठी।

“तुम लोगों ने मुझसे अपना काम निकलवाना है?” देवराज चौहान का स्वर भावहीन था।

नम्बरदार ने होंठ भींच लिए।

“मेरे साथ सिर्फ काम की बात की जाये।” देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा –“अगर एक बार मेरे मुंह से इंकार निकल गया तो फिर, मैं यह काम किसी कीमत पर नहीं करूंगा।”

नम्बरदार के होंठ बंद ही रहे।

वानखेड़े की निगाह सब पर फिरी।

“कोई भी फालतू बात नहीं बोलेगा। यह मेरा आर्डर है।” इस बार वानखेड़े का स्वर सख्त था।

किसी ने कुछ नहीं कहा।

वानखेड़े ने देवराज चौहान को देखा।

“कैसे करोगे वोल्गा वॉल्ट में फौरन डकैती?” वानखेड़े की आवाज में बेचैनी थी।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा फिर गम्भीर स्वर कह उठा।

“वोल्गा वॉल्ट में डकैती करना, आसान काम नहीं।”

“क्या मतलब?” वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।

“दो महीने पहले ही वोल्गा वॉल्ट में कुछ करने का हमारा प्रोग्राम था। लेकिन व्यक्तिगत कारणों की वजह से यह काम हमें स्थगित करना पड़ा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस कारण वोल्गा वॉल्ट के बारे में पूरी जानकारी। भीतर का पूरा नक्शा और सिक्योरिटी के पूरे बन्दोबस्त, इस वक्त भी मेरे सामने ही है।”

“तो कठिनाई कहां आ रही है?”

“वोल्गा वॉल्ट।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“पांच सौ गज की इमारत की पहली मंजिल पर स्थित है। उसके नीचे भूतल पर हीरा भाई-करीम भाई का डायमंड ज्वैलरी शोरूम है और वॉल्ट के ऊपर बैंक की बहुत बड़ी ब्रांच है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने वानखेड़े को देखा।

वानखेड़े, देवराज चौहान को देखे जा रहा था।

सी.बी.आई. के सब एजेंटों की नजरें देवराज चौहान पर थी।

“वॉल्ट डकैती करने के लिए मुझे वॉल्ट के सुरक्षा इंतजामों का सामना ही नहीं, बल्कि हीरा भाई-करीम भाई ने अपने डायमंड ज्वैलरी शोरूम के सुरक्षा इंतजाम जो कर रखे हैं, उनका सामना भी करना पड़ेगा। और बैंक वालों ने जो सुरक्षा के इंतजाम कर रखे हैं। उनका भी सामना करना होगा और एक ही वक्त में इन ढेर सारे सुरक्षा इंतजामों का सामना नहीं किया जा सकता।”

वानखेड़े के होंठों में कसाव आ गया।

“मतलब कि तुम वोल्गा वॉल्ट में डकैती नहीं कर सकते।” वानखेड़े के होंठों से निकला।

“शायद नहीं।”

“मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं आ रहा कि देवराज चौहान जैसा इन्सान कह रहा है कि –।”

“मैं इन्सान ही हूं वानखेड़े। हदा नहीं कि जहां चाहूं, वहीं प्रवेश कर जाऊं।” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“लेकिन तुमने यह डकैती हर हाल में करनी है देवराज चौहान।” वानखेड़े अपने गुस्से पर काबू पाता कह उठा –“हर हाल में करनी है। फार्मूले की वह माइक्रोफिल्म किसी भी कीमत पर दुश्मनों के हाथों में नहीं पहुंचनी चाहिये।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

दो पल के लिए वहां खामोशी छाई रही।

“मुझे बताओ वहां के सुरक्षा इन्तजामों के बारे में।” वानखेड़े दांत भींचकर कह उठा।

“उससे क्या होगा?”

“तुम बताओ तो, कोई न कोई रास्ता तो हमें निकालना ही होगा।”

वानखेड़े हद से ज्यादा व्याकुल था।

वानखेड़े के चेहरे के भावों को देखते, देवराज चौहान ने हौले से सिर हिलाया।

“वानखेड़े।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था –“सबसे खतरनाक बात तो यह है कि हीरा भाई-करीम भाई के डायमंड- ज्वैलरी शोरूम या वोल्गा वॉल्ट या फिर उस मुख्य बैंक में, कहीं भी किसी एक जगह पर भी कोई हाथ डालने की कोशिश करेगा तो एक साथ तीनों जगहों पर खतरे के अलार्म बज उठेंगे। यानी कि सुरक्षा व्यवस्था का यह हिस्सा, वॉल्ट, डायमंड ज्वैलरी शोरूम और बैंक वालों ने मिलकर एक साथ ही कर रखा है कि कोई तीनों में से एक जगह को भी न लूट सके। इसके अलावा सबके अपने-अपने सुरक्षा के इंतजाम हैं। जिन्हें तोड़ने का मतलब है, वहां मौजूद गनमैनों से टक्कर लेना। खून-खराबा होना और आखिरकार असफल होना। मरना–पकड़े जाना या भाग जाना। यह बात किस्मत पर है।”

वानखेड़े देखता रहा, देवराज चौहान को।

जगमोहन और सोहनलाल इन बातों से पहले ही वाकिफ थे। एक बार फिर इन इन्तजामों के कान में पड़ते ही उनका उत्साह बिल्कुल ही खत्म होता नजर आने लगा था।

“कोई तो रास्ता होगा?” वानखेड़े पस्त सा नजर आने लगा।

“रास्ते तो बहुत हैं।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई –“लेकिन लोगों की लाशों पर से गुजर कर कुछ पाना मेरे उसूल के खिलाफ है। दौलत पाने के लिए, डकैती सफल बनाने के लिए, मैं दूसरों की जान नहीं लेता।”

“तुम –।” वानखेड़े ने होंठ भींचकर कहा –“वहां के सारे सुरक्षा इंतजामों के बारे में बताओ। सब कुछ मालूम होने पर ही, सोचा जा सकता है कि कोई रास्ता है या नहीं।”

कश लेकर देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

“अच्छी बात है। मैं तुम्हें तीनों जगहों के सुरक्षा इंतजामों के बारे में बताता हूं।” देवराज चौहान बोला और पल भर ठिठककर पुनः कह उठा –“सबसे पहले, मैं नीचे मौजूद हीरा भाई-करीम भाई के डायमंड –ज्वैलरी शोरूम के सुरक्षा इंतजामों के बारे में बताता हूं। मुख्य चारदीवारी से लगा, बेहद मजबूत गेट है, जो दिन में खुला रहता है। वहां पर दो गनमैन आठ-आठ घंटों की शिफ्टों में हर वक्त मौजूद रहते हैं। किसी भी वक्त लापरवाह नजर नहीं आते। और उसके भीतर तीन-चार जगह ऐसे स्विच लगे हैं कि जिन्हें दबाते ही बाहरी दीवार पर खतरे का भोंपू बज उठता है जिसकी आवाज करीब आधा किलोमीटर तक जाती है। सात बजे मैनेजर और मालिकों की देख-रेख में वह शोरूम बंद किया जाता है। तब वीडियो कैमरों का स्विच ऑन कर दिया जाता है कि अगर रात में कोई शोरूम लूटने की कोशिश करे तो, वीडियो कैमरे उसकी हरकतों को कैद कर लें। शोरूम का मेन दरवाजा और शटर बंद करते समय बाईं तरफ लगा स्विच ऑन कर दिया जाता है। यह खतरे के सायरन का स्विच है जो वॉल्ट और बैंक से वास्ता रखता है। जब बैंक और वॉल्ट बंद किया जाता है तो वह भी दरवाजे के भीतरी तरफ मौजूद अपना-अपना स्विच ऑन कर देते हैं। इससे यह सिस्टम चालू हो जाता है कि तीनों जगहों में से किसी भी जगह कोई इंसान तोड़-फोड़ करके भीतर प्रवेश करने की कोशिश करे तो खतरे का सायरन बजना शुरू हो जाता है। अगर तीनों में से किसी एक जगह का स्विच कोई ऑन करना भूल जाये तो फिर यह कार्य प्रणाली लागू नहीं होती। मतलब कि फिर किसी के गलत ढंग से भीतर प्रवेश करने पर खतरे का सायरन नहीं बजेगा।”

देवराज चौहान पल भर के लिए ठिठका।

हर कोई उसके मुंह से निकलने वाले एक-एक शब्द को ध्यान से सुन रहा था।

वानखेड़े के होंठ भिंचे हुए थे। नजरें देवराज चौहान पर थीं।

“शाम को सात बजे शोरूम बंद होते ही अन्य गनमैन ड्यूटी पर नजर आने लगते हैं। जैसे कि दो गनमैन मुख्य गेट पर पहुंच जायेंगे और पहले वालों को, छुट्टी मिल जायेगी। दो गनमैन शोरूम के सामने मुख्य आहते में ड्यूटी देंगे। दो गनमैन, बाईं तरफ आठ फीट का रास्ता जो इमारत के पीछे की तरफ जा रहा है। वहां पर जम जायेंगे और बाकी के दो पीछे की तरफ। सारे गनमैन रिटायर्ड मिलिट्रीमैन हैं और मोटी तनख्वाह पर हैं। उनसे किसी भी तरह की लापरवाही करने की उम्मीद करना बेकार है। और जो रास्ता बाईं तरफ से होता हुआ पीछे की तरफ जाता है। जहां रात भर दो गनमैन रहते हैं, वहीं से सीढ़ियां ऊपर की तरफ जाती हैं। वोल्गा वॉल्ट की तरफ जाती हैं। वहां से वोल्गा वॉल्ट की सिक्योरिटी शुरू होती है।”

देवराज चौहान ने ठिठक कर नई सिगरेट सुलगाई।

वानखेड़े के होंठ और भी भिंच गये।

“यूं तो वोल्गा वॉल्ट आठ बजे बंद हो जाता है। लेकिन उसके भीतर दो आदमी बंद होने के बाद भी रहते हैं। क्योंकि उस वॉल्ट में बड़ी-बड़ी हस्तियों के लॉकर हैं और किसी को आधी रात को भी लॉकर खोलने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे वक्त के लिए दो आदमी, किसी भी हस्ती की सेवा के लिए हर पल वहां मौजूद रहते हैं।” देवराज चौहान ने कश लेने के पश्चात कहना शुरू किया—“नीचे जहां से वोल्गा वॉल्ट, पहली मंजिल तक जाने के लिए सीढ़ियां हैं, उस हिस्से में, रात में, डायमंड –ज्वैलरी शोरूम के गनमैन तो घूमते ही हैं। सीढ़ियों की शुरुआत पर, एक गनमैन रात भर स्टूल पर बैठा रहता है। सीढ़ियों पर ऊपर चढ़ने के पश्चात, जब सीढ़ियां समाप्त होती हैं तो, वहां एक गनमैन होता है। नीचे से कौन आ रहा है, उसे देखता रहता है। ऊपर आते ही सामने गैलरी है, जिसके कोने में मैनेजर का केबिन है। उस केबिन के भीतर से ही दरवाजा पीछे से खुलता है, जहां स्टाफ के बैठने का इंतजाम है और उसी केबिन से दाईं तरफ दरवाजा खुलता है, जहां वॉल्ट में प्रवेश करने का, आर्म्सप्रूफ, स्टील और कई धातुओं से बना, बड़ा सा, ऐसा मजबूत दरवाजा है कि जिसे बिना चाबी के खोलना लगभग असम्भव है।”

“मैं खोल ही लूंगा।” सोहनलाल ने मुंह बनाकर कहा –“लेकिन वहां पहुंचा ही नहीं जा सकता।”

देवराज चौहान उसकी बात पर ध्यान न देकर बोला।

“उस दरवाजे को गलत ढंग से खोलने की कोशिश करने का मतलब है, अलार्म का बज उठना। यानी कि कुछ भी कर पाना सम्भव नहीं। हो सकता है अलार्म बजने के बाद, वहां से निकलने का भी मौका न मिले।”

“तुमने बताया था।” वानखेड़े सोच भरे स्वर में कह उठा –“कि अगर दरवाजा बंद करने से पहले भीतर का अलार्म स्विच ऑन न किया जाये तो अलार्म नहीं बजता।”

“हां। फिर तीनों में से किसी भी जगह का अलार्म नहीं बजेगा। लेकिन यह सोचकर दरवाजे पर हाथ नहीं डाला जा सकता कि शायद भीतर से स्विच ऑन न किया गया हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“दिन में वॉल्ट के करीब पच्चीस कर्मचारी वहां मौजूद होते हैं। कई हथियार बंद होते हैं दिन में तो वॉल्ट में हाथ डाला नहीं जा सकता और रात को वहां क्या पोजिशन होती है, वह मैं बता ही चुका हूं। वॉल्ट के दरवाजे के ठीक ऊपर दो वीडियो कैमरे लगे हैं और वॉल्ट के भीतर छ: कैमरे हैं। जो दिन-रात चौबीसों घंटे चालू रहते हैं और आने-जाने वाले की हरकतों को नोट करते हैं जब कोई ग्राहक वॉल्ट में अपना लॉकर खोलने जाता है तो उस वक्त भीतर के वीडियो कैमरों को तब तक के लिए बंद कर दिया जाता है जब तक कि ग्राहक बाहर नहीं निकलता। ग्राहकों के अलावा वॉल्ट के भीतर, वॉल्ट के मालिक और मैनेजर ही जा सकते हैं। लेकिन उनके पास भी भीतर जाने के लिए खास वजह होनी चाहिये। यह उनके कायदे-कानून हैं। दिन में वॉल्ट के दरवाजे के बाहर दो गनमैन अवश्य रहते हैं। लेकिन रात को उनकी संख्या चार कर दी जाती है। दो दरवाजे के बाहर ही रहते हैं और दो वॉल्ट के दरवाजे से लेकर सीढ़ियों के ऊपर खड़े गनमैन तक राउण्ड लेते रहते हैं।”

देवराज चौहान के खामोश होते ही वानखेड़े ने हौले से सिर हिलाया।

“दो-चार इंतजाम और भी हो सकते हैं।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने प्रश्न भरी निगाहों से जगमोहन को देखा।

“इतने इन्तजाम सुनकर ही ठण्डक पड़ जाती है। और की क्या जरूरत है।” जगमोहन ने लम्बी सांस लेकर कहा।

वानखेड़े ने देवराज चौहान को देखा।

“और ऊपर बैंक?”

“सीढ़ियों से ऊपर आते ही घूमती हुई सीढ़ियां, ऊपर जा रही हैं। दिन भर वहां खड़ा गनमैन किसी को भी वॉल्ट वाले हिस्से में नहीं आने देता। इस बात का वह पूरा ध्यान रखता है। बैंक में अक्सर कैश रहता है, इसलिए वहां भी मुख्य दरवाजा बंद करते समय, अलार्म का भीतर लगा स्विच ऑन कर दिया जाता है। ताकि कोई बैंक को खोलने की कोशिश करे तो, अलार्म बज जाये और कामयाब न हो सके। वैसे बैंक बंद दरवाजे के सामने दो सरकारी गार्ड बन्दूकों के साथ रात भर मौजूद रहते हैं।”

देवराज चौहान के खामोश होते ही सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।

“मोटे तौर पर वहां यह इन्तजाम है। अगर पूरी तरह गौर किया जाये तो दो-चार और इंतजाम भी होंगे।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा और कश लिया।

“ऐसे इंतजामों के बाद तो, वॉल्ट पर हाथ डालने को सोचा भी नहीं जा सकता।” नम्बरदार बोला।

“ठीक कहते हो।” कर्मवीर यादव ने कहा –“यह असम्भव है।”

“देवराज चौहान और इन दोनों को गिरफ्तार करके, अन्दर बंद करो।” मदनलाल कह उठा –“उसके बाद फार्मूले वाली माइक्रोफिल्म को पाने का कोई और रास्ता सोचेंगे।”

देवराज चौहान मुस्कराया।

जगमोहन का हाथ जेब में रखी रिवॉल्वर पर जा पहुंचा।

सोहनलाल सतर्क हो गया।

“वो।” एकाएक मदनलाल हड़बड़ाया सा बोला –“रिवॉल्वर निकालने जा रहा है।”

सब सतर्क हुए।

वानखेड़े ने जगमोहन को देखा फिर मदनलाल पर नजरें टिक गई।

“मैंने तुम लोगों से पहले ही कहा था कि कोई फालतू बात मत करना।” वानखेड़े बोला।

“मैंने क्या फालतू बात कही है।” मदनलाल का हाथ भी जेब की तरफ बढ़ा –“मैंने ठीक ही तो कहा है कि जिस काम के लिए इन्हें घेरा था, वह यह नहीं कर सकते तो कम से कम इन्हें गिरफ्तार –।”

तभी देवराज चौहान कुर्सी से उठा। सपाट चेहरा लिए मदनलाल की तरफ बढ़ा।

मदनलाल के चेहरे पर हड़बड़ाहट के भाव उभरे।

“क्या बात है। तुम –।” मदनलाल ने कहना चाहा।

परन्तु देवराज चौहान के पास पहुंच जाने के कारण कह न सका।

“तुम रिवॉल्वर निकलने जा रहे थे।” देवराज चौहान का स्वर भावहीन था।

मदनलाल के होंठ हिले। परन्तु कोई शब्द न निकला।

“रिवॉल्वर निकालो।” देवराज चौहान की आवाज में ठण्डक आ गई।

“मैं –।”

“रिवॉल्वर निकालो।” देवराज चौहान की आंखों की सुलगन स्पष्ट नजर आ रही थी।

अजीब सी स्थिति में फंसे मदनलाल ने रिवॉल्वर निकाली।

देवराज चौहान ने उसके हाथ से रिवॉल्वर ली और जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा। मदनलाल लड़खड़ाया और कुर्सी से टकरा कर नीचे जा गिरा फिर फौरन ही उठा।

एकाएक वहां तनाव भरा सन्नाटा छा गया। हर कोई सतर्क था। किसी को नहीं मालूम कि कब क्या हो जाये। अपनी-अपनी जगह सब तैयारी में थे।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर को कमरे के कोने में उछाला और सब पर निगाह मार कर कठोर स्वर में बोला –“मुझे पकड़कर मेरे सामने शर्त रखी गई कि अगर मैं वोल्गा वॉल्ट में डकैती के लिए तैयार हो जाता हूं तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। मैं तैयार हो गया। ऐसे में अब गिरफ्तारी वाली बात तो सिरे से ही खत्म हो गई। फिर तुमने कैसे कह दिया कि हमें गिरफ्तार कर लेना चाहिए।”

मदनलाल कुछ न कह सका।

“अगर किसी के दिमाग में ऐसी कोई बात है तो उसे बाहर कर दो। वरना तुम लोगों के लिए ऐसी सोच अब नुकसानदेह बन जायेगी।” देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाता कह रहा था –“वहां पर क्या- क्या इंतजाम हैं। मैंने बता दिया है। अब तुम लोग ही बता दो कि कैसे वोल्गा वॉल्ट में प्रवेश किया जा सकता है। यह डकैती करने को मैंने न तो पहले इंकार किया था और न ही अब करता हूं।”

सबकी निगाहें देवराज चौहान पर टिक चुकी थीं।

“जो जानकारी मैंने वॉल्ट के बारे में तुम लोगों को दी है। उसे पाने में तुम लोगों के पांच दिन खराब हो जाते। सबसे पहले तो मैंने लोगों के पांच दिन बचाये हैं, जोकि काफी कीमती हैं। अब मैं तुम में से किसी की भी फालतू बात बर्दाश्त नहीं करूंगा।”

कोई कुछ न बोला।

जब देवराज चौहान वापस आकर कुर्सी पर बैठा तो वानखेड़े ने श्याम सुन्दर को देखा।

“तुम्हारा क्या ख्याल है। वॉल्ट में डकैती की जा सकती है?” वानखेड़े ने पूछा।

“नहीं।” श्याम सुन्दर ने गम्भीर स्वर में कहा –“वॉल्ट में पहुंचने के लिए सबसे पहले, उन गार्डों से निपटना होगा जो रात के वक्त पहरे पर होते हैं। और हम सरकारी आदमी हैं। खून-खराबा कैसे कर सकते हैं। दिन में तो वॉल्ट में प्रवेश करने की कोशिश और भी खतरनाक है। हमें यह बात हर पल ध्यान में रखनी चाहिये कि वह सब गनमैन मिलिट्री के रिटायर्ड हैं। अचूक निशानेबाज हैं। गड़बड़ के वक्त में, मिलिट्री वाले हमारी तरह ज्यादा नहीं सोचते। किसी एक ने भी उस वक्त गन का मुंह खोल दिया तो, सब कुछ खत्म हो जायेगा।”

“हां।” वानखेड़े ने सहमति से सिर हिलाया –“मैं भी ऐसा ही कुछ सोच रहा था।”

“लेकिन इस काम को हम दूसरे ढंग से कर सकते हैं।” श्याम सुन्दर सोच भरे स्वर में बोला।

“कैसे?”

“वह लियू, जिसे शंघाई स्थित हमारे आदमी ने चीनी सुन्दरी का नाम दिया है। उस लियू का किसी तरह अपहरण कर सकते हैं। देवराज चौहान हमारे साथ है। शायद हम इस काम को कर जायें। लियू के अपहरण के बाद हम गुप्त तौर पर चीनी दूतावास से सौदा कर सकते।”

“नहीं। ऐसा सोचना भी बकवास है।” वानखेड़े ने हाथ उठाकर कहा –“पहली बात तो यह कि लियू इस वक्त सतर्क हो चुकी है। उस पर हाथ डालना बहुत कठिन है। दूसरी अहम बात है कि चीन अपने एजेंट के बदले उस फार्मूले वाली माइक्रोफिल्म को कभी नहीं देगा। स्पाई भाषा में यह कहा जा सकता है कि एजेंट तो होते ही जान देने के लिए हैं। इतने बड़े फार्मूले को गवां कर वह लोग कभी भी लियू की जान नहीं बचाना चाहेंगे। अगर फार्मूला लियू के कब्जे में होता तो, उसके अपहरण के बारे में सोचा जा सकता था।”

श्याम सुन्दर सोच भरे अंदाज में होंठ भींचकर, सिर हिलाकर रह गया।

वानखेड़े की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

“अगर तुम इस स्थिति में होते तो क्या करते देवराज चौहान?” वानखेड़े ने पूछा।

“तो वोल्गा वॉल्ट में डकैती करता।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“क्या?”

देवराज चौहान के शब्दों पर सब चौंके।

जगमोहन और सोहनलाल के चेहरों पर भी अजीब से भाव उभरे।

“लेकिन तुम तो कह रहे थे कि वोल्गा वॉल्ट में डकैती नहीं की जा सकती।” वानखेड़े के होंठों से निकला।

“यह शब्द मैंने नहीं कहे। तुम लोगों की सोच है। मैंने तो कहा था कि वोल्गा वॉल्ट में डकैती करना, खून-खराबा होना है। और वहां के इंतजाम बताकर तुम लोगों से पूछा था कि क्या किया जाये। मैंने अपनी कोई राय जाहिर नहीं की।”

वानखेड़े के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

“मतलब कि वोल्गा वॉल्ट में जाया जा सकता है। डकैती की जा सकती है।”

देवराज चौहान ने कश लिया और सिर हिलाकर बोला।

“दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं, जो न किया जा सके। इंसान अगर हिम्मत का दामन थाम ले तो हर वह काम भी किया जा सकता है जो देखने में लगता है कि नहीं हो सकता।”

सब देवराज चौहान को देखते रह गये।

“कैसे-कैसे हो सकती है वोल्गा वॉल्ट में डकैती?” नम्बरदार के होंठों से निकला।

“अगर यह काम मैं अपने तौर पर करूं तो, कुछ दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। लेकिन उन्हें भी दूर किया जा सकता है।” देवराज चौहान की निगाह वानखेड़े पर जा टिकी –“लेकिन जब घर के भेदी ही मेरे साथ हैं तो फिर कोई खास परेशानी, इस डकैती में मेरे सामने नहीं आ सकती।”

“घर का भेदी?”

“तुम लोग। सरकारी आदमी । सी.बी.आई. वाले और खासतौर से तुम।" देवराज चौहान की निगाह वानखेड़े पर जा टिकी –“जिसके बारे में मैं नहीं जान पाया कि तुम्हारा ओहदा क्या है लेकिन तुम्हारी पहुंच कांस्टेबल से लेकर, ऊपर कहां तक है, इस बात की भी मुझे पूरी जानकारी नहीं।”

“डकैती के बारे में बात करो।” वानखेड़े जल्दी से बात बदलते हुए बोला –“यह काम कैसे हो सकता है?”

देवराज चौहान ने कर लिया और सिगरेट टेबल पर मौजूद ऐश-ट्रे में मसल दी।

जगमोहन और सोहनलाल की नजरें भी देवराज चौहान पर थी।

“सी.बी.आई.।” देवराज चौहान ने वानखेड़े को देखा –“हीरा भाई-करीम भाई के डायमंड–ज्वैलरी शोरूम पर ‘रेड’ कर सकती है या नहीं।”

“हीरा भाई-करीम भाई के यहां छापा?” श्याम सुन्दर के होंठों से निकला –“यह कैसे हो सकता है। वह बहुत बड़े लोग हैं। ऊपर तक उनकी पहुंच है।”

वानखेड़े ने होंठ भींचकर, श्याम सुन्दर को देखा।

“सी.बी.आई., हर जगह, पहुंच सकती है। हीरा भाई-करीम भाई तो कुछ भी नहीं हैं।” वानखेड़े ने तीखे स्वर में कहा फिर देवराज चौहान को देखा –“तुम आगे बोलो।”

“सी.बी.आई. हीरा भाई-करीम भाई के डायमंड–ज्वैलरी शोरूम पर तब छापा मारेगी, जब शोरूम बंद होने वाला होगा। क्या कहकर छापा मारना है, यह तुम लोगों की सिरदर्दी है। और उस छापे के दौरान, तुम लोगों ने भीतर लगे अलार्म के स्विच को ऑन नहीं होने देना। उस पर खास नजर रखनी होगी। वॉल्ट-शोरूम या बैंक में, किसी एक जगह से भी वह स्विच ऑफ रहे तो फिर अलार्म का सिस्टम फेल हो जाता है। खतरे का अलार्म नहीं बजता। मेरी बात समझ रहे हो?”

वानखेड़े ने हौले से सिर हिलाया।

“क्या इस छापे में, इन लोगों के अलावा तुम पुलिस का इस्तेमाल कर सकते हो?”

“बिल्कुल हो सकता है।” वानखेड़े गम्भीरता से बोला।

“तो अपने साथ छापे के दौरान कुछ पुलिस वाले भी रखोगे। और हम भी इस छापे में तुम्हारे साथ होंगे।”

“क्यों?” वानखेड़े के माथे पर बल पड़े।

“ऐसे में हम लोगों का भीतर प्रवेश करना आसान हो जायेगा।” देवराज चौहान ने कहा –“जगमोहन कांस्टेबल या हवलदार की वर्दी में होगा। मैं और सोहनलाल सादे कपड़ों में होंगे। छापे के दौरान वहां हड़बड़ी पैदा हो जायेगी। और हम अपने काम को आसानी से अंजाम दे सकेंगे।”

“इस तरह अगर वॉल्ट को छेड़ा गया तो बाद में बात हम पर आ सकती है कि।”

“कुछ नहीं होगा।” वानखेड़े बोला –“मैं सब संभाल लूंगा। पूरी बात सुने बिना बीच में मत बोलो।” कहने के साथ ही उसने देवराज चौहान को देखा –“मान लिया जाये कि सब काम तुम्हारी सोच के मुताबिक हो जाते हैं तो सवाल यह पैदा होता है कि तुम लोग वॉल्ट मैं कैसे प्रवेश करोगे? वहां पर तो गनमैन होते हैं।”

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।

“एक रास्ता है। छापे के दौरान निगरानी रखने के बहाने हम लोग इमारत की छत पर आसानी से पहुंच सकते हैं। हमारे साथ पुलिस की वर्दी में, जगमोहन होगा। तुममें से भी एक-आध होगा। साथ में होगा मजबूत रस्सा, जिसे कि हम लोगों ने अपने शरीरों के गिर्द लपेट कर ऊपर कपड़े पहन रखे होंगे।” देवराज चौहान बोला –“मैं तुम्हें समझाता हूं। जहां वॉल्ट का स्ट्रांग रूम हैं जिसके भीतर करीब हजार लॉकर हैं। उस हॉल की छत के साथ, लगती दीवार पर बेहद छोटे-छोटे तीन रोशनदान हैं। उनमें से हम तो नहीं, लेकिन यह दुबला-पतला सोहनलाल भीतर प्रवेश कर सकता है। छत से रस्से लटका कर, बैंक के हिस्से को पार करता हुआ, वॉल्ट की छत के रोशनदान तक पहुंचेगा और रस्से सहित जैसे-तैसे यह भीतर प्रवेश करेगा और उस लॉकर को खोलेगा। जिसमें फार्मूले वाली माइक्रोफिल्म मौजूद है। उस लॉकर का नम्बर क्या है?”

“चार सौ दो।” वानखेड़े ने बेचैन स्वर में कहा –“सोहनलाल यह काम कर लेगा।”

“हां।” देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा।

“कर लूंगा।” सोहनलाल ने कहा।

“लेकिन सोहनलाल को रस्से से लटकते देखा किसी ने तो।”

“उस वक्त रात का अंधेरा होगा। इस बात की आशा कम ही है कि कोई देख सके। सबका ध्यान तो उस छापे पर होगा। ऐसे में भी अगर कोई देख लेता है तो, तब बिगड़ रहे मामले को संभालना तुम्हारा काम होगा। तब हम लोग कुछ कर पाये तो, हम भी कोशिश कर लेंगे। लेकिन उस छापे में उस स्विच का ध्यान रखना है जिसे ऑन करने से अलार्म सिस्टम चालू हो जाता है। यह है मोटे तौर पर वॉल्ट में जाकर, लॉकर से उस माइक्रोफिल्म को निकालने की योजना। इसके अलावा वॉल्ट में चुप्पी से प्रवेश करने का कोई रास्ता नहीं।”

कई पलों तक वहां खामोशी रही।

“हूं।” आखिरकार वानखेड़े ने सिर हिलाया –“तुम्हारी बात पर सोचा जा सकता है।”

“सोच लो।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई –“मुझे काम करने की कोई जल्दी नहीं है।”

“लेकिन मुझे है।” वानखेड़े अपने शब्दों पर जोर देकर बोला।

“मुझे जब कहोगे, मैं यह काम कर दूंगा।” देवराज चौहान ने कहा।

“लेकिन यह काम ठीक नहीं रहेगा।” कर्मवीर यादव बोला।

“क्यों?” वानखेड़े ने उसे देखा।

“जब भी यह बात खुलेगी कि हम लोगों ने यह किया है तो हमारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।”

“यह ठीक कहता है।” मदनलाल कह उठा।

“कुछ नहीं होगा। इस मिशन का इंजार्च मैं हूं। मैं लिखकर दूंगा कि सब कुछ मेरी जिम्मेवारी पर हो रहा है ताकि बाद में अगर ऐसी कोई बात हो तो सब कुछ मेरे सिर पर आये।”

“मिस्टर वानखेड़े।” नम्बरदार ने कहा –“तब भी हमसे पूछा जायेगा कि, हम लोगों ने कानून तोड़ते हुए, यह काम क्यों किया। हम बच्चे तो नहीं हैं। हमने गलत बात क्यों मानी?”

“कौन पूछेगा?” वानखेड़े के दांत भिंच गये।

“हमारे चीफ।”

“मतलब कि तुम लोग अपने चीफ के मुंह से सुनना चाहते हो कि इस काम को ऐसे ही करो।” वानखेड़े का स्वर सख्त था।

“ऐसा हो जाये तो फिर हमें क्या एतराज हो सकता है।” नम्बरदार कह उठा।

“नम्बरदार की बात तो ठीक है।” दीपसिंह कह उठा।

“अच्छी बात है।” वानखेड़े ने सब पर नजर मारी –“यहां से चलते हैं और तुम्हारे चीफ से तुम्हारी बात करा देता हूं।”

कोई कुछ न बोला।

वानखेड़े ने देवराज चौहान को देखा।

“देवराज चौहान। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। हम आज ही इस काम को अंजाम देंगे। तुम अपनी योजना पर एक बार फिर गौर कर लो। क्योंकि काम तुमने ही करना है। जरूरत की जो चीज तुम इकट्ठा कर सकते हो। कर लो। बाकी हमें बता दो। मैं चाहता हूं इस काम को हम हर हाल में पूरा कर सकें। फार्मूले की माइक्रोफिल्म हमें हासिल करनी ही है।”

“कोशिश पूरी होगी।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

“जो काम मैंने करने हैं। मैं उनकी तैयारियां करता हूं। हम सब यहां से जा रहे हैं। इनके चीफ से भी इनकी बात करानी है और हीरा भाई-करीम भाई के यहां छापा मारने से पहले पेपर्स भी तैयार करने हैं।” वानखेड़े गम्भीर था –“मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि शाम को साढ़े पांच बजे जब मैं यहां आऊंगा तो तुम लोग यहीं पर मिलोगे।”

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।

उसके बाद, उन लोगों के बीच योजना के मुद्दे पर एक बार फिर गौर किया गया। बारीकी से हर पहलू देखा गया। योजना के जिस मोड़ पर कमी थी। उसे ठीक किया गया।

☐☐☐