सवा घण्टे बाद शंकर और राहुल आर्य पाँच लाख लेकर लौटे । शंकर ने थैला पकड़ रखा था, जिसमें पाँच लाख की नोटों की गड्डियाँ थीं । दोनों कुर्सियों पर आ बैठे ।
जगदीश तो पहले से ही व्याकुल-परेशान बैठा था । उन्हें आया पाकर और शंकर के हाथ में थैला देखकर अपने पर काबू पाना कठिन होने लगा । मस्तिष्क में पाँच लाख-पाँच लाख बजने लगा था ।
शंकर ने इशारे से श्याम बाबू को बताया कि थैले में नोट हैं । श्याम बाबू ने इशारे से जगदीश को देने को कहा ।
“ये लो ।” शंकर ने थैला जगदीश की तरफ बढ़ाया, “इसमें पूरे पाँच लाख हैं ।”
जगदीश ने झपट्टा मारने वाले अंदाज में थैला थामा । उसे टाँगों पर रखकर, खोलकर भीतर देखा । नोटों की गड्डियाँ थैले में भरी पाकर उसने फौरन थैले का मुँह बंद कर दिया ।
“क्या हुआ ?” मोती ने कड़वे स्वर में कहा ।
“न... नोट हैं ।” जगदीश हड़बड़ाया-सा कह उठा ।
“तूने तो थैले का मुँह ऐसे बन्द किया जैसे भीतर साँप हो ।” जगदीश ने कुछ कहा नहीं । वह गहरी-गहरी साँस ले रहा था ।
“चाहो तो गिनती कर लो । पाँच लाख पूरा है ।” राहुल आर्य ने कहा ।
“ठ... ठीक है ।” जगदीश पक्के ढंग से थैला थामे कह उठा ।
कुर्सी पर बैठे-बैठे श्याम बाबू आगे हुआ और कह उठा ।
“तुम्हें पाँच लाख मिल गए । अब बताओ, वो जीव कहाँ पर है ?”
जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए सब पर निगाह मारी, फिर कम्पन भरे स्वर में बोला ।
“मेरे घर पर ।”
“क्या ?”
“बकवास करता है ये ।”
जगदीश की बात सुनकर सब हक्के-बक्के रह गए थे ।
“मैं सच कहता... ।”
“वो किसी के घर में नहीं रह सकता और उसे कोई नहीं रख सकता ।” मोती दाँत भींचकर कह उठा, “बहुत भयानक है वो । वो... ।”
“वो मेरे घर पर है ।” जगदीश ने गुस्से से मोती की आँखों में देखा, “ढाई-तीन दिन से वो मेरे घर पर है । मेरी बीवी के हाथ का बना खाना खाता है । हमसे हैलो करता है । फर्श पर नींद लेता है ।”
किसी के होंठों से बोल न फूटा ।
सबकी निगाहें जगदीश के दृढ़ता भरे चेहरे पर थी ।
“हे भगवान ! कहीं ये सच तो नहीं कह रहा कि वो इसके घर... ।” सोनी ने कहना चाहा ।
“गलत कहता है ये ।” मोती दाँत भींचकर बोला, “वो किसी के साथ नहीं रह सकता । वो कितना बड़ा जल्लाद है, हम सब इस बात से वाकिफ हैं । जो भी पास होगा, वो उसे मार देगा ।”
“मैं कहता हूँ कि वो मेरे घर है ।” जगदीश के चेहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा ।
“ये सच कह रहा है ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, फिर जगदीश को देखा, “कहाँ है तुम्हारा घर ?”
“पास ही है । ज्यादा दूर नहीं है । मैं तुम सब को वहाँ ले चलता हूँ ।”
“सोनी, राहुल ! कारें ले आओ ।”
दस मिनट में ही वे सब कॉलोनी में पहुँच गए, जहाँ जगदीश का मकान था । जगदीश के कहने पर कुछ पहले ही उन्होंने कार रोक ली थी । पीछे सोनी की कार में थी । वो भी रुक गई । इस वक्त वे कच्ची-पक्की सड़क पर थे । दूर तक खाली जमीन ही थी । पंद्रह-बीस मकान बने हुए थे । वह भी इस तरह कि कोई यहाँ तो कोई वहाँ । कभी-कभार ही कोई आता-जाता नजर आता था । खुली जगह में तीव्र हवा महसूस हो रही थी ।
“बोलो ।” मोती ने जगदीश को देखा, “कहाँ है तुम्हारा घर ?”
“वो देखो, वो ।” जगदीश ने इशारा किया, “नीले और पीले मकान के बीच में से सफेद मकान दिखाई दे रहा ।”
“अपना बोलो ।” मोती ने कहा, “नीला-पीला या सफेद, कौन-सा मकान है तुम्हारा ?”
“सफेद ।”
“उसमें है वो जीव ?”
“हाँ !”
“बाहर निकलो ।” राहुल आर्य ने सोच भरे स्वर में कहा ।
वे बाहर निकलने लगे ।
पीछे वाली कार से सोनी और शंकर निकलकर वहाँ आ पहुँचे थे ।
श्याम बाबू की निगाह दूर, छोटे से नजर आते सफेद मकान पर थी ।
रास्ते में जगदीश बता चुका था कि कैसे वह जीव उनके घर आया ? क्या हुआ ? सब कुछ जानने के बाद भी उनके मन में ये शंका थी कि जगदीश कहीं झूठ न बोल रहा हो ।
“जाल तुम्हारी गाड़ी में है ।” मोती ने सोनी को देखा ।
“हाँ ! लाऊँ क्या ?”
“अभी नहीं !” शंकर ने टोका, “हमें इसकी बात पर आँखें बन्द करके विश्वास नहीं करना चाहिये ।”
“क्या मतलब ?” सोनी ने शंकर को देखा ।
“मैंने सच कहा है ।” जगदीश नोटों वाले थैले को सख्ती से पकड़े कह उठा ।
शंकर ने श्याम बाबू को देखा ।
“पहले एक उधर जाये और तसल्ली करके आये कि वो जीव उसी मकान के भीतर है ।”
“कौन जायेगा ?” श्याम बाबू ने सब पर निगाह मारी ।
“मैं जाता हूँ ।” मोती बोला, “जगदीश मेरे साथ जायेगा ।”
राहुल आर्य ने नोटों का थैला उसके हाथ से खींच लिया ।
“क्या... क्या कर रहे हो ?” जगदीश के होंठों से निकला ।
“तुम मोती के साथ उस सफेद घर तक जा रहे हो । इसे दिखाओ कि वो जीव कहाँ है । वापस आने पर नोटों का थैला तुम्हें मिल जायेगा । नोटों के साथ तुम्हें नहीं भेज सकते । पहले हमारी तसल्ली करा दो ।”
जगदीश ने हसरत भरी निगाहों से थैले को देखा ।
“बाद में तुम थैला मुझे न दो तो ?”
“ऐसा नहीं होगा । वो जीव मोती को दिखाकर वापस लौटो और थैला ले लो ।”
“घर से मैंने अपनी पत्नी कमला को भी निकालना है ।” जगदीश बेचैन हो उठा, “तुम लोगों ने उसके खिलाफ कुछ किया तो गुस्से में वो मेरी बीवी को मार देगा ।”
“कैसे निकलोगे उसे ?” श्याम बाबू ने पूछा ।
“घर के भीतर जाकर देखूँगा कि ये काम कैसे कर पाता हूँ ।” जगदीश ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“मैं भी तुम्हारे साथ घर में जाऊँगा ।” मोती के होंठों से निकला ।
“तुम्हें उसके सामने नहीं ले जा सकता, क्योंकि घर में उसने हम दोनों को देखा है । वहाँ चलकर देखते हैं कि काम कैसे करना है ? कैसे मैं तुम्हें दिखाऊँ कि वो भीतर ही है ?” जगदीश आगे बढ़ा, “आओ ।”
मोती उसके साथ चल पड़ा ।
तभी कच्चे रास्ते से स्कूटर पर एक व्यक्ति आता दिखाई दिया ।
उस पर निगाह पड़ते ही जगदीश ठिठका ।
“कौन है ये ?” मोती ने उलझन भरी नजरों से जगदीश को देखा ।
“जिसकी जमीने हैं ये, ये उसी का बेटा है । यही लोग यहाँ के प्लाट काट-काटकर बेच रहे हैं ।”
वह व्यक्ति पास आते-आते ऊँचे स्वर में कह उठा ।
“राम-राम जगदीश भैया ! यो का मेहमान आयो हो ?”
“दूर के रिश्तेदार हैं ताऊ । जमीन देखने आये हैं ।” जगदीश ऊँचे स्वर में बोला ।
“जगह पसंद आये तो ले आवो मेरे दफ्तर में । कार्नर के प्लाट दे दूँगा इन्हें ।”
“ठीक है ।”
उसने स्कूटर रोका नहीं । आगे लेता चला गया ।
“जल्दी चलो ।” मोती बोला । नजरें दूर नजर आ रहे सफेद मकान पर टिक गई ।
छः-सात मिनट में ही वह सफेद मकान के पास जा पहुँचे । जगदीश बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था । आँखों में भय दिखाई देने लगा था ।
मोती का चेहरा भी अब तनाव से भरा दिखने लगा था ।
“इसी मकान में है वो जीव ?” मोती ने पूछा ।
“हाँ !”
“हो सकता है, तुम्हारे आने के बाद वो भी कहीं चला गया हो ।”
“कह नहीं सकता । मैं तो उसे भीतर छोड़कर गया था ।” जगदीश व्याकुल-सा कह उठा, “तुम उधर दीवार के पास ही ठहरो । मैं भीतर जाता हूँ । वो जीव ज्यादातर उस कमरे में रहता है । कमरे की खिड़की वो रही । भीतर जाने के बाद मैं खिड़की खोल दूँगा । तुम सावधानी से, छिपकर भीतर देखना ।”
मोती को समझाकर जगदीश मकान में प्रवेश कर गया ।
☐☐☐
जगदीश को देखते ही रहस्यमय जीव का चेहरा मुस्कान से भर उठा । उसने अपनी बाँह उठाई और उसकी तरफ हाथ बढ़ाया । जगदीश ने जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कान लाया और उससे हाथ मिलाया ।
कमला प्रश्न भरी नजरों से जगदीश को देख रही थी ।
“सब ठीक है ?” जगदीश ने गंभीर निगाहों से कमला को देखा ।
“हाँ !” कमला ने एक निगाह रहस्यमय जीव पर मारी, “तुम जो काम करने गए थे, उसका क्या हुआ ?”
जगदीश आगे बढ़कर खिड़की के पास पहुँचा और पल्ले खोल दिए । फिर पलटकर कमला को देखा ।
खिड़की की साइड में ही मोती खड़ा नजर आया । उसने मोती को इशारा किया कि भीतर देख ले ।
“पुलिस के पास गया था मैं ।” जगदीश ने अपनी बात जारी रखी, “लेकिन रास्ते में ऐसे लोग मिल गए जो इस काम के बदले पाँच लाख दे रहे थे । मैंने उनसे बात कर ली है ।”
“पाँच लाख ?” कमला की आँखों में हैरानी और अविश्वास नजर आने लगा, “वो लोग देंगे पाँच लाख । या यूँ ही... ।”
“पाँच लाख वो दे चुके हैं ।” जगदीश ने कहते हुए रहस्यमय जीव पर निगाह मारी, “वो लोग मेरे साथ ही आये हैं । पाँच लाख मैं बाहर छोड़ आया हूँ । वो इसे पकड़ना चाहते हैं, कैसे पकड़ें इसे... ।”
कमला अविश्वास भरी नजरों से जगदीश को देखने लगी ।
“विश्वास नहीं आ रहा ?” जगदीश ने गंभीर स्वर में कहा ।
“कैसे विश्वास आएगा । पचास हजार रुपये के लिए गए थे और पाँच लाख ले आने की बात कर रहे हो ।”
“मैंने सच कहा है ।” जगदीश कहकर पलटा और सामान्य ढंग से खिड़की से बाहर देखने लगा । तभी उनकी निगाह मोती पर पड़ी जो कि खिड़की से जरा-सा हटकर खड़ा था ।
मोती की फैली आँखें और चेहरे पर घबराहट जैसे भाव देखकर समझ गया कि उसने जीव को देख लिया है ।
“मोती !” सामान्य लहजे में जगदीश बोला, “तुम जाओ । मैं अभी आता हूँ ।” फिर पलटते हुए कमला से कह उठा, “क्या ख्याल है तुम्हारा, वो लोग कब भीतर आएँ ?”
“तुमने मोती किसको कहा ?” कमला ने अजीब-सी निगाहों से जगदीश को देखा ।
“खिड़की से बाहर कोई था उससे कहा । वो इसे देखने आया था ।” जगदीश ने फर्श पर बैठे रहस्यमय जीव पर निगाह मारकर कहा, “हम अमीर बन चुके हैं । इस जीव की वजह से पाँच लाख हमें मिल गए ।”
कमला गम्भीर निगाहों से जगदीश को देखती रही ।
“क्या कहूँ बाहर वालों से ? कब वो भीतर आये ? सोचकर बताओ ।” जगदीश बोला ।
“इसे इस तरह छोड़कर बाहर निकल जाऊँगी तो ये भी बाहर आ जायेगा ।” कमला की आवाज में हल्का-सा कम्पन था ।
“तो ?”
“लंच का वक्त हो चुका है ।” कमला अपने पर काबू पाते कह उठी, “खाने के बाद नींद लेना इसकी आदत है । जब ये नींद में डूब जायेगा तो मैं बाहर आ जाऊँगी । तुम कहाँ मिलोगे ?”
“सड़क की तरफ हूँ । तुम ऐसी कोई हरकत मत करना कि इसे किसी तरह का शक हो ।”
“मैं ध्यान रखूँगी ।”
“उसे इतना करीब पाकर मैं सिर से पाँव तक काँप उठा था ।” अपने साथियों के पास पहुँचते ही मोती असंयत से स्वर में कह उठा । वह भागता हुआ, बिना रुके वापस पहुँचा था ।
“तुमने देखा उसे ?” सोनी के होंठों से निकला । आँखों में हैरानी उभरी ।
“वो जीव वहाँ है ?” शंकर की आँखें सिकुड़ गईं ।
“ह... हाँ !” मोती अपने पर काबू पा चुका था ।
“धोखा तो नहीं हुआ तुम्हें उसे पहचानने में ?” श्याम बाबू का स्वर गंभीर था । आँखों में चमक थी ।
“मुझे ऐसी बातों में धोखा नहीं होता ।” मोती ने हाथ हिलाकर कहा ।
वे सब एक-दूसरे को देखने लगे ।
राबर्ट से मिलने वाले पचास करोड़ उन्हें अपनी जेबों में दिखाई देने लगे ।
“अब ?” राहुल आर्य के होंठों से निकला, “क्या किया जाये ?”
“क्या करना है ।” शंकर बोला, “उसे चालाकी से जाल में फँसा लेना ।”
“चालाकी नहीं, समझदारी से । वो जीव बेवकूफ नहीं है ।” राहुल आर्य ने कहा, “कोटेश्वर बीच से उसके बारे में मैं बहुत कुछ सुनकर आया हूँ । बहुत सतर्क रहना होगा उसे पकड़ते हुए, वरना वो सब को मार देगा ।”
“राहुल ठीक कहता है ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, “उसे बहुत सोच-समझकर पकड़ना है । उसे जाल में फँसाकर कैसे ले जाना है ? ये भी सोचना है । कोई हमारी हरकत को न देख पाये, इस बात का भी ध्यान रखना है ।”
“जगदीश कहाँ है ?” सोनी ने पूछा ।
“आ रहा है ।” मोती ने गंभीर निगाहों से मकान की तरफ देखा, “वो आकर बताएगा कि कब हम भीतर जाएँ ।”
कुछ पलों के लिए चुप्पी छा गई ।
“कोटेश्वर बीच पर उसे जाल में फँसाते ही नशे की तेज दवाओं के इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया गया था ।” राहुल आर्य बोला, “ऐसा करना ठीक रहेगा । कैद में फँसा वो बेहोश रहेगा । हमें किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी ।”
“राहुल ठीक कहता है ।” सोनी ने सिर हिलाया, “वो बेहोश रहेगा तो हम निश्चिन्त रहेंगे । वरना वो कितना ताकतवर और खतरनाक है, हम देख ही चुके हैं । वो कैद में रहकर हम पर भारी भी पड़ सकता है ।”
“सोनी का कहना ठीक है ।” मोती बोला, “जाल में फँसाते ही उसे बेहोश कर दें और वक्त-वक्त पर उसे इंजेक्शन देते रहें कि वो बेहोश ही रहे और बेहोशी की हालत में ही उसे राबर्ट को डिलीवर कर दिया जाये ।”
“आइडिया बुरा नहीं है ।” श्याम बाबू ने कहा, “ऐसा ही करेंगे ।”
“जाल में फँसाने के बाद उसे यहाँ से कैसे ले जायेंगे ? कोई देख सकता है ।”
“ये कोई समस्या नहीं !” शंकर बोला, “बन्द वैन का इंतजाम कर लेते हैं ।”
श्याम बाबू ने शंकर और मोती से कहा ।
“तुम दोनों बन्द वैन और तीव्र नशे के इंजेक्शनों का इंतजाम करो । ये काम करके जल्दी वापस लौटना । कुछ मालूम नहीं कि कब हमें हरकत में आना पड़े । पुलिस इस तरफ आ गई तो परेशानी खड़ी हो जायेगी ।”
“आओ शंकर !” मोती बोला, “हमें जल्दी वापस लौटना है ।” दोनों सोनी वाली कार लेकर चले गए ।
“रहस्यमय जीव का पता चल जाना बहुत बड़ी बात है । पाँच लाख में सौदा बुरा नहीं रहा ।” श्याम बाबू ने कहा ।
“मुझे तो हैरानी है कि उस जल्लाद ने जगदीश और उसकी पत्नी को क्यों नहीं मारा ?” सोनी बोली ।
किसी ने कुछ नहीं कहा ।
“जगदीश वापस नहीं लौटा ?” शंकर की नजरें दूर सफेद मकान की तरफ उठीं ।
“तुम क्या करके लौटे हो ?” जगदीश के वहाँ पहुँचते ही शंकर ने कहा ।
“पाँच लाख कहाँ हैं ?” जगदीश ने बेसब्री से पूछा, “वो कहाँ है जिसने मेरे से नोटों का थैला लिया था ?”
“इसे पहले थैला दे दो ।” श्याम बाबू ने सोनी से कहा, “वरना ये बात नहीं कर पायेगा ।”
सोनी ने कार के भीतर से थैला निकालकर, जगदीश के हवाले किया । जगदीश ने थैला खोलकर भीतर झाँका । नोटों की गड्डियाँ देखते ही उसके चेहरे पर राहत के भाव उभरे ।
“होश आ गया लगता है ।” सोनी ने व्यंग्य से कहा, “अब इससे बात की जा सकती है ।”
जगदीश ने थैले को कसकर पकड़ते हुए उन्हें देखा ।
“तुम्हारे घर की भीतर की और उस जीव की क्या पोजिशन है ?” श्याम बाबू ने जगदीश से पूछा ।
“वो घर में ही है । तुम्हारा साथी उसे देखकर आया है ।” जगदीश ने कहा, “और... ।”
“मेरा मतलब है कि हम उसे कब पकड़ सकते हैं ।”
“अभी तो उधर जाना भी खतरनाक है । वो जाग रहा है । मेरी बीवी वहाँ है ।” जगदीश ने गंभीर स्वर में कहा, “जब तक मेरी बीवी वहाँ है, उसे छेड़ना ठीक नहीं होगा । वो मेरी पत्नी की जान ले लेगा ।”
“तुम्हारी पत्नी तो हर वक्त ही वहाँ रहेगी । वो... ।” सोनी ने कहना चाहा ।
“ऐसी बात नहीं है । वो जब नींद में होगा तो मेरी पत्नी यहाँ आ जायेगी ।”
“क्या मालूम वो कब नींद लेगा ?”
“खाना खाने के बाद वो अक्सर नींद लेता है । मेरी बीवी खाना बना रही है । एक-डेढ़ घण्टे बाद वो खाना खायेगा । उसके बाद वो नींद लेगा । तब मेरी पत्नी बाहर निकल आएगी । फिर तुम लोग जाकर उसे पकड़ लेना ।”
श्याम बाबू ने होंठ सिकोड़कर शंकर को देखा ।
“ये तो ऐसे कह रहा है उसे पकड़ लेना, जैसे खेल हो उसे पकड़ना ।” शंकर ने गहरी साँस ली ।
सोनी के चेहरे पर चिंता नजर आ रही थी ।
“तुम लोग उसे पकड़ोगे कैसे ?” जगदीश ने एकाएक तीनों पर नजर मारी ।
तीनों की निगाह जगदीश के चेहरे पर जा टिकी ।
“वो बहुत ताकतवर है । मैंने अखबार में पढ़ा है । टीवी में सुना है । उसे पकड़ पाना असम्भव-सा है ।” जगदीश बोला ।
“वो ।” सोनी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, “वो बहुत खतरनाक है । लोगों को मारते फिर रहा है । अखबारों में उसे जल्लाद का नाम दिया गया है । ऐसे में उसने तुम्हारी या तुम्हारी पत्नी की जान क्यों नहीं ली ?”
“मुझे क्या पता ?” जगदीश के होंठों से निकला ।
“ये बात वास्तव में अजीब है कि उस दरिंदे ने तुम्हें या तुम्हारी बीवी को कुछ नहीं कहा ।” शंकर अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा, “और तो और तुम्हारी बीवी अकेली उसके पास है और खाना बनाकर उसे खिला रही है । उसे इस बात का जरा भी डर नहीं कि वो उसकी जान भी ले सकता है ।”
“अब मैं क्या कहूँ । नहीं जान ली तो नहीं ली ।” जगदीश उलझन भरे ढंग से बोला, “उसे क्या कहूँ जाकर कि वो मेरी बीवी को मार दे ।”
सोनी गहरी साँस लेकर रह गई ।
“तुम लोगों के दो साथी कहाँ गए ?” जगदीश ने बारी-बारी तीनों को देखा ।
“कुछ काम से गए हैं ।” शंकर बोला, “अब तुम क्या करोगे ?”
जगदीश ने थैले पर निगाह मारी । आँखों में चमक आ गई थी ।
“जब ये सारा मामला खत्म हो जायेगा । उस जीव से ऐसा मेरा घर खाली हो जायेगा तो मैं अपनी बीवी के साथ घर में रहकर ऐश करूँगा । हर वो चीज़ खरीदूँगा, जो पैसों की कमी की वजह से नहीं खरीद पाया ।” जगदीश कह उठा, “जब भी मेरी पत्नी घर से बाहर आएगी तो उसे लेकर यहाँ से कुछ दूर चला जाऊँगा ताकि तुम लोग जीव को पकड़ सको । तब मैं पास नहीं रहना चाहूँगा ।”
“इस डर से कि कहीं वो जीव तुम्हें और तुम्हारी बीवी को न मार दे ।” शंकर बोला ।
“हाँ ! वैसे भी मेरा क्या मतलब तुम्हारी बातों से । पाँच लाख के बदले मैंने तुम्हें उस जीव तक पहुँचाना था । पहुँचा दिया । मैं तुम लोगों के साथ यहाँ तब तक ही हूँ जब तक कि मेरी पत्नी घर से बाहर निकलकर यहाँ नहीं आ जाती ।”
सोनी ने श्याम बाबू से पूछा ।
“राहुल और मोती कब तक आएँगे ?”
“जो काम करने गए हैं, वो पूरा करके ही लौटेंगे ।” श्याम बाबू ने कहा, “दो-तीन घण्टे में आ जायेंगे ।”
सोनी ने घड़ी में वक्त देखा । दोपहर का एक बज रहा था ।
“मैं तुम लोगों की कार में बैठ जाता हूँ ।” जगदीश बोला, “खड़े-खड़े थक जाऊँगा ।” थैला थामे जगदीश कार की तरफ बढ़ गया ।
तीन बजे परेशान-सा जगदीश कार से बाहर निकला । थैला हाथ में दबा रखा था ।
“क्या बात है ?” उसे व्याकुल देखकर श्याम बाबू ने पूछा ।
“अब तक मेरी पत्नी को आ जाना चाहिए था ।” जगदीश परेशान दिखाई दिया ।
“क्यों ?”
“उसने मुझे कहा था कि वो खाना बनाकर उस जीव को खिलायेगी । खाने के बाद अक्सर वो नींद लेता है । जब नींद लेता है तब मेरी पत्नी ने चुपके से बाहर निकलकर यहाँ आ जाना चाहिए था ।”
“क्या मालूम उसने नींद न ली हो ।”
“वो पेट भरने के पश्चात सो जाता है ।”
किसी ने कुछ नहीं कहा ।
“कमला के साथ कुछ बुरा न हो गया हो । मैं अभी घर होकर आता हूँ ।” कहने के साथ ही जगदीश ने आगे बढ़ना चाहा ।
“ये थैला मुझे दे जाओ ।” सोनी कह उठी ।
“क्यों ? ये तो मेरा है । पाँच लाख मेरे हैं । तुम्हें क्या ?” जगदीश ने उसे देखा ।
“मैंने तो इसलिए कहा कि कहीं रास्ते में गिर न जाएँ ।” सोनी लापरवाही से बोली ।
जगदीश दूर नजर आ रहे अपने घर की तरफ बढ़ गया ।
दरवाजा खुला ही था । जगदीश सावधानी से भीतर प्रवेश कर गया । नोटों का थैला सख्ती से पकड़ रखा था । मन-ही-मन भगवान से यही प्रार्थना कर रहा था कि कमला सही सलामत हो ।
कमला ठीक ही थी । वह कुर्सी पर बैठी थी । रहस्यमय जीव फर्श पर आलथी-पालथी मारे बैठा था । सामने ही टीवी चल रहा था । दोनों टीवी देख रहे थे । कमला कुछ बेचैनी-सी थी । एक बार बीच में उठकर कमला ने टीवी बन्द किया था । लेकिन जीव ने इशारे से कमला को कई बार कहा कि वह टीवी चला दे । कमला समझ गई कि छोटी-सी स्क्रीन पर लोगों को चलते-फिरते देखना इस जीव के लिए नई बात है । तभी बहुत दिलचस्पी के साथ टीवी देख रहा है । साथ ही कमला को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसने टीवी चला दिया, वरना अब तक तो जीव नींद में डूब चुका होता । खाना तो वह कब का खा चुका था । कमला को अब उसके नींद लेने का इंतजार था ।
कमला को सलामत देखकर जगदीश ने राहत की साँस ली ।
जगदीश का इस वक्त आना कमला को भी अच्छा लगा ।
“क्या हुआ ?” जगदीश कह उठा, “मैं तुम्हारे आने का इंतजार कर रहा हूँ । ये सोया नहीं अभी तक ।”
तभी रहस्यमय जीव की निगाह उस पर पड़ी तो उसके मोटे-भद्दे होंठ मुस्कुराहट भरे ढंग में फैल गए । उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया । जगदीश उसका इशारा समझकर पास पहुँचा और जबरदस्ती मुस्कराकर उससे हाथ मिलाया ।
उसके बाद वह जीव पुनः टीवी देखने में व्यस्त हो गया ।
जगदीश, कमला के पास आकर कुर्सी पर बैठ गया ।
“खाना खिला दिया इसे ?”
“हाँ !”
“तो इसे नींद क्यों नहीं आई ?”
“टीवी चला दिया । गलती कर दी मैंने ।” कमला ने उखड़े स्वर में कहा, “मुझे नहीं मालूम था कि टीवी स्क्रीन पर चलती-फिरती तस्वीरें इसकी नींद उड़ा देगी ।”
“टीवी बन्द कर दे तब ।” जगदीश ने कहना चाहा ।
“किया था ।” कमला की निगाह जीव की तरफ गई, “इसने मुझे मजबूर कर दिया, दोबारा टीवी चलाने को ।”
“ओह !” जगदीश के होंठ भिंच गए, “अब ये जाने कब नींद लेगा !”
कमला ने कुछ नहीं कहा ।
“वो लोग बाहर इंतजार कर रहे हैं कि कब ये सोये और वो भीतर आकर इसे काबू में करें ।”
कमला ने जगदीश को देखा फिर हाथ में पकड़े थैले को ।
“थैला किसका है ?” कमला बोली, “इसमें क्या है ?”
“ओह ! मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गया । इसमें पाँच लाख रुपया है । ये देखो ।” कहने के साथ ही जगदीश ने थैले का मुँह खोला ।
कमला ने सिर आगे करके झाँका । दूसरे ही पल उसकी आँखें फैल गई ।
“हे भगवान ! इतना ज्यादा रुपया !”
“पूरे पाँच लाख हैं ।” जगदीश के चेहरे पर खुशी की चमक उभरी, “तुम तो पचास हजार की बात कर रही थीं ।”
“कितनी अजीब बात है कि रहस्यमय जीव की खबर देने पर वो लोग पाँच लाख दे रहे हैं !” कमला ने जगदीश को देखा ।
“फालतू होगा उनके पास रुपया ।”
“रुपया किसी के पास भी फालतू नहीं होता । कोई खास बात होगी । तुमने पूछा कि वो इसे क्यों पकड़ना चाहते हैं ?”
“नहीं पूछा ।”
“इसे पकड़ने के पीछे अवश्य कोई खास बात होगी । यूँ ही कोई पाँच लाख नहीं देता ।” कमला बोली ।
“कोई बात तो होगी ही ।” जगदीश ने नोटों वाले थैले का मुँह बन्द किया, “मैं जाऊँ, जब ये नींद ले तो तुम खिसक आना ।”
“ठीक है । मैं ऐसा ही करूँगी ।”
“तुम्हें डर तो नहीं लगता कि... ।”
“कोई डर नहीं लगता । मैं आ जाऊँगी ।”
थैला थामे जगदीश वापस पहुँचा । राहुल और मोती आ चुके थे । एक बन्द वैन भी साथ लाये थे । ओमनी वैन थी । उसके पास पहुँचते ही सोनी कह उठी ।
“क्या हो रहा है तुम्हारे घर में ?”
“सब ठीक है ।” जगदीश ने सिर हिलाया, “कमला को उस जीव ने कुछ नहीं कहा ।”
“मैंने पूछा है, तुम्हारी बीवी बाहर कब आ रही है ?” सोनी ने तीखे स्वर में पूछा ।
“जब वो नींद लेगा । इस वक्त टीवी देख रहा है । इसी कारण सोया नहीं !”
“टीवी ?”
“हाँ ! मेरी पत्नी ने यूँ ही टीवी चलाया तो छोटी-सी स्क्रीन पर हिलती-बोलती चीजें उसे बहुत अच्छी लगीं । कमला ने टीवी बन्द किया तो उसने इशारों से समझाकर टीवी फिर चलवा लिया ।”
“ओह !” मोती की आँखें सिकुड़ी, “यही वजह रही कि वो सोया नहीं !”
“हाँ !”
“तो टीवी चलाने की जरूरत ही क्या थी ?” मोती का स्वर तेज हो गया ।
“कमला को क्या मालूम था कि वो इस तरह टीवी के आगे बैठ जायेगा । उसने तो अपना वक्त बिताने के लिए टीवी चलाया था कि वो सो जायेगा तो वो चुपचाप खिसक आएगी ।”
तभी दूर से स्कूटर पर वही आता दिखाई दिया, जो यहाँ प्लाट काट रहा था । जो कुछ समय पहले यहीं से गया था । देखते-ही-देखते वह पास आ गया ।
“हाँ भाई, जगदीश ! इन लोगों को कोई जगह पसंद आई ?” उसने पूछा, “या मैं दिखाऊँ प्लाट इन्हें ?”
“सब दिखा दिया है मैंने इन्हें ।” जगदीश जल्दी से बोला, “अब ये आपस में विचार-विमर्श कर रहे हैं ।”
“भाव बता दिया ?”
“सब बता दिया । तुम्हारी बातें सुन-सुनकर आधा डीलर बन गया हूँ ।”
उसने चंद कदम आगे जाकर स्कूटर रोक दिया ।
“इधर आ ।”
जगदीश उसके पास आ पहुँचा ।
पाँचों की नजरें इन पर ही थीं ।
“तेरे कौन लगते हैं ये लोग ?” वह व्यक्ति धीमे से जगदीश से बोला ।
“खास नहीं लगते । यूँ ही पहचान है ।” जगदीश धीमे स्वर में कह उठा ।
“हूँ । इसका मतलब कि इन्हें चूना लगे तो तेरे को एतराज नहीं !”
“मेरे को क्या ?”
“बढ़िया । सब जगह दिखाई ?”
“हाँ !”
“तो इरादे क्या है इनके ?”
“ये लोग एक साथ कई प्लाट इकट्ठे लेना चाहते हैं ? जब भाव बढ़ जायेगा तो प्लाटों को बेचेंगे ।”
“तो ये बात है । ऐसा कर जगदीश, इन्हें वो जगह दिखा दे, जिस पर सरकार ने स्कूल बनाना तय कर रखा है और अभी वो मेरी ही जमीन है । वो इन्हें पचास हजार रुपये कम के भाव पर दिखा दे । तीन हजार गज जमीन है वो ।”
“लेकिन उसे तो आने वाले वक्त में सरकार ने कब्जे में कर लेना है ।”
“हमें क्या । खुद ही झगड़ा करेंगे सरकार से । हमें तो नोट मिल जायेंगे ।” वह बेहद धीमे स्वर में कह उठा, “फिक्र क्यों करता है । दस-बीस हजार तेरे को भी दे दूँगा ।”
“दस-बीस ?” जगदीश के होंठों से निकला ।
“तीस ले लेना । ठीक है चालीस दूँगा ।”
जगदीश ने सिर हिलाया ।
“जल्दी फँसाकर इन्हें मेरे पास ले आना ।”
“चिंता मत कर, फँसते ही तेरे पास ले आऊँगा ।”
“मैं वहीं जा रहा हूँ । कमरे में । वहाँ ऑफिस बना रखा है । तू इन्हें फँसाकर ले आ । मैं वहाँ की झाड़-पोंछ कर लेता हूँ ।”
“अच्छी बात है ।”
वह स्कूटर आगे बढ़ाता ले गया ।
“क्या बात हो रही थी ?” राहुल ने पूछा ।
“वो कह रहा था, स्कूल की जमीन तुम लोगों को दिला दूँ । कुछ नोट मुझे भी दे देगा ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“अब क्या किया जाये ?” मोती ने श्याम बाबू को देखा ।
“मेरे ख्याल में तो चलते हैं ।” सोनी बोली, “उसे पकड़ने की कोशिश... ।”
“अभी कोई भी उधर नहीं जायेगा ।” जगदीश कह उठा, “मेरी पत्नी कमला है वहाँ । गड़बड़ पाकर वो उसे मार देगा ।”
“तुम्हें पाँच लाख दिए हैं उसे पकड़ने के लिए ।” मोती ने सख्त निगाहों से उसे देखा ।
“इसका ये मतलब तो नहीं कि अपनी पत्नी की जान गँवा दूँ ।” जगदीश की आवाज में गुस्सा आ गया ।
तभी श्याम बाबू गंभीर स्वर में बोला ।
“निश्चिन्त रहो । हम अभी कुछ नहीं करेंगे ।”
जगदीश ने सिर हिलाया ।
“लेकिन श्याम बाबू ! यहाँ पर खड़े-खड़े आखिर कब तक अपना वक्त खराब करेंगे ?” मोती ने पूछा ।
“जब तक इसकी पत्नी वहाँ से बाहर नहीं आती ।” श्याम बाबू ने कहा, “इसकी पत्नी तभी बाहर आएगी, जब वो नींद में होगा । वही वक्त हमारे लिए बढ़िया होगा । हम उस पर तभी हाथ डालेंगे, जब वो नींद में होगा । अगर वो जाग रहा होगा तो हमारे लिए खतरा बन सकता है । वो इतना ताकतवर है कि हम सीधे-सीधे उस पर काबू नहीं पा सकते ।”
“श्याम बाबू का कहना सही है ।” राहुल आर्य ने गंभीर स्वर में कहा, “कोटेश्वर बीच पर जो कुछ भी हुआ, वो मैं सुनकर आया हूँ । उसके मुताबिक तो उस पर घात लगाकर ही हमला करना चाहिए । धोखे से उस पर हाथ डालना चाहिए ।”
“तब हमें बहुत ही फुर्ती के साथ काम करना होगा ।” श्याम बाबू ने कहा, “उसके नींद में होने का मतलब ये नहीं कि हम उसे अपने पर हमला करने का मौका दे दें । जब जाल उस पर डाला जायेगा तभी उसकी आँख खुल जायेगी ।”
“ओह !” सोनी के होंठों से निकला, “तब ये वक्त तो बहुत खतरनाक होगा ।”
“समझदारी से काम लें तो खतरनाक वक्त को भी मुट्ठी में बन्द किया जा सकता है ।” श्याम बाबू ने सब पर निगाह मारी, “अब मैं तुम सब को ये समझाता हूँ कि उस वक्त हमें कैसे हरकत में आना है । तीव्र नशे की दवा वाले इंजेक्शन ले आये ?”
“हाँ !” मोती ने कहा ।
श्याम बाबू उन्हें समझाने लगा कि रहस्यमय जीव को पकड़ते समय कैसे-कैसे फुर्ती दिखानी है ।
जगदीश नोटों वाले थैले को सख्ती से थामे बार-बार दूर, अपने घर की तरफ देख रहा था ।
☐☐☐
रात के दस बज रहे थे ।
श्याम बाबू, शंकर, सोनी, मोती और राहुल आर्य अँधेरे में कारों के पास ही खड़े थे । उनसे कुछ कदमों की दूरी पर छोटे से पत्थर पर पाँच लाख का थैला थामे जगदीश बैठा था ।
उन सबको इंतजार था कमला के आने का ।
“बहुत हो गया ।” मोती कह उठा, “आखिर कब तक यहाँ खड़े रहेंगे ।”
“मोती ठीक कहता है ?” सोनी थकी-थकी-सी लग रही थी, “हो सकता है वो रात भर न आये ।”
श्याम बाबू ने सिगरेट सुलगाई ।
“श्याम बाबू !” शंकर बोला, “मोती और सोनी ठीक कहते हैं । मेरे ख्याल में हमें वहाँ जाकर देखना चाहिए कि... ।”
“उधर जाने की गलती मत करना ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, “उस जीव ने देख लिया तो गड़बड़ हो जायेगी ।”
तभी नोटों का थैला थामे जगदीश खड़ा होते हुए कह उठा ।
“मैं घर पर होकर आता हूँ । भूख भी लग रही है । कमला ने कुछ बनाया होगा तो खा भी आऊँगा ।”
“उसे जल्दी बाहर आने को कह ।” राहुल आर्य ने अँधेरे में उसे देखा ।
“वो तो कब की आ गई होती । लेकिन मैंने ही कहा है कि जब वो नींद में हो तब आना ।” जगदीश बोला, “अगर वो वैसे ही बाहर आ गई तो उसके पीछे-पीछे वो जीव भी बाहर आ जायेगा । तब क्या करोगे ?”
राहुल आर्य ने होंठ भींच लिए ।
“बात तो ठीक कहता है ।” सोनी बोली, “उसे नींद में डूबा छोड़कर वो आये तभी ठीक रहेगा ।”
“तुम जाकर देखो, वहाँ क्या हो रहा है ।” श्याम बाबू ने कहा ।
“मेरे ख्याल में वो खाना खा चुका होगा । या खाने वाला होगा ।” जगदीश ने गहरी साँस लेकर कहा, “उसके बाद वो नींद लेगा । फिर भी एक बार वहाँ हो आता हूँ । मैं तो चाहता हूँ, वो जल्द-से-जल्द मेरे घर से बाहर निकले और मैं आराम से घर में बैठकर गड्डियों के नोटों को गिनूँ ।”
श्याम बाबू ने सोनी को देखा ।
“जाल कहाँ है ?”
“कार की डिग्गी में ।”
“तुम जाओ ।” शंकर ने जगदीश से कहा, “और... ।”
तभी किसी वाहन के आने की आवाज गूँजी ।
सब सतर्क हो गए ।
“कोई आ रहा है ।” सोनी ने कहा ।
“दिन भर से यहाँ खड़े हैं ।” श्याम बाबू ने कहा, “कोई भी हम पर शक कर सकता है ।”
“आओ मोती ।” शंकर ने कहा, “हम उधर अँधेरे में चलते हैं ।”
दोनों एक तरफ हो गए ।
दूर उन्हें लाइट दिखाई दी, जो इसी तरह पास आती जा रही थी ।
“तुम दोनों सावधान रहना ।” श्याम बाबू ने सतर्क स्वर में कहा, “गड़बड़ हो तो रिवॉल्वर की अपेक्षा खामोशी से आने वाले को खत्म करना ।”
“ओह ! खून करोगे ।” जगदीश के चेहरे पर घबराहट आई ।
“चुप कर ।” राहुल आर्य ने दाँत भींचकर कहा ।
इंजन की आवाज और लाइट बेहद करीब आ गई थी ।
“ये तो कमल सिंह के स्कूटर की आवाज है जो यहाँ प्लाट काटकर बेचता है । जो दिन में भी आया था ।”
तब तक वह पास आ पहुँचा था ।
“ओह जगदीश !” पास से निकलकर कुछ आगे स्कूटर रोकते हुए उसने पुकारा ।
“हाँ !”
“इधर तो आ । तू मेहमानों को लेकर सड़क पर खड़ा रहता है । बुरी बात है । घर ले जाकर कुछ खिला-पिला ।”
जगदीश पास पहुँचा तो वह धीमे से कह उठा ।
“पूरा दिन लग गया । तू इन लोगों को फँसा नहीं सका । अब रात भी सड़क पर इन्हें लेकर क्यों खड़ा है ?”
“समझा कर । मैंने इन्हें स्कूल वाली जमीन के लिए पटा लिया है ।”
“बढ़िया । कितने में सौदा तय किया ?”
“फुल रेट पर । एक पैसा भी कम नहीं किया ।”
“तो फिर देर किस बात की । मेरे ऑफिस में आ । झाड़-पोंछ के चमका दी है सारी जगह ।”
“बात हो गई है मेरी । नोट लेकर कल आएँगे । मेरी कमीशन कल ही मुझे दे देना ।”
“फिक्र मत कर । पहले कभी लेट की है । लेकिन अब ये यहाँ खड़े क्या कर रहे हैं ?”
“कार खराब हो गई है इनकी । दो बन्दे मकैनिक को लेने गए हैं ।”
“इन्हें कह कार यहीं रहने दें । इसी बहाने सुबह पक्का आएँगे । कार मैं ठीक करा दूँगा । वो है न, मेरा यार सतनाम । उसने दो साल मकैनिकी की है । अब रिक्शा चलाता है । ये दूसरी बात है ।”
“हमें अपने काम से मतलब रखना चाहिए । इन्हें ज्यादा सलाह देना ठीक नहीं ।”
“जैसी तेरी मर्जी । इन्हें कल आने के लिए पक्का कर देना ।”
“कर दिया है । मेरे ख्याल में तो कल पैसा लेकर ही आएँगे ।”
“ठीक है, चलता हूँ । घर से चाय बनवाकर पिला दे इन्हें ।”
“पिला चुका हूँ ।”
“खाना वगैरह भिजवा दूँ । उधर के होटल से मँगवा देता हूँ ।”
“पार्टी के ज्यादा आगे-पीछे घूमेंगे तो बिदक जायेंगे । जब ये कहेंगे तो होटल से खाना ला दूँगा ।”
“बढ़िया माल खिलाना । पैसे मैं दूँगा । परवाह नहीं । कल तो इनसे वसूली हो ही जायेगी ।”
“ठीक है । अब तू जा ।”
उसने स्कूटर आगे बढ़ाया और दूर होता चला गया ।
जगदीश पास आ पहुँचा ।
“क्या कह रहा था ?”
जगदीश ने बताया फिर कह उठा ।
“मैं घर पर होकर आता हूँ । कमला अभी तक नहीं आई ।”
“मुझे तो लगता है कि यहाँ खड़े होकर हम वक्त बर्बाद कर रहे हैं ।” सोनी कह उठी, “हम... ।”
“जल्दबाजी मत करो ।” जगदीश बोला, “वो बहुत खतरनाक है । उसके सामने पहुँच गए तो बहुत बुरा हो जायेगा । सब को मार देगा वो । रात होने पर वो दो ही काम करता है ।”
“कैसे दो काम ?”
जगदीश ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और कह उठा ।
“या तो वो नींद लेता है या बाहर निकलकर भीड़भाड़ वाले इलाके में पहुँचकर लोगों की जानें लेता है ।”
“अगर वो बाहर आ गया तो ?” शंकर के होंठों से निकला ।
“वो इसी तरफ से निकला तो हमें नहीं छोड़ेगा ।” राहुल आर्य का स्वर बेचैन हो उठा ।
“वो... वो कौन आ रहा है ?” एकाएक सोनी का कम्पन भरा स्वर सब के कानों में पड़ा ।
“किधर ?”
“उधर ।”
सबकी नजरें अँधेरे में उधर उठीं ।
अँधेरे में दूर से कोई इसी तरफ बढ़ता आ रहा था ।
मोती ने फुर्ती के साथ रिवॉल्वर निकाली और दाँत भींचकर बोला ।
“रिवॉल्वर निकाल लो । मेरे ख्याल में इसकी आँख में गोली मारी जाये तो... ।”
“वो तो कमला है । मैं अँधेरे में उसकी चाल पहचान चुका हूँ ।” जगदीश की आवाज सबके कानों में पड़ी ।
जगदीश के शब्दों ने जैसे सबको राहत पहुँचाई ।
सबकी नजरें उधर ही थीं ।
आने वाली कमला ही थी । वह पास आ गई ।
“सब ठीक है कमला ?” जगदीश ने बेचैनी से पूछा, “वो क्या कर रहा है ?”
“खाना खाकर सोया है । उसके नींद में डूबते ही मैं चुपचाप निकलकर इधर आ गई ।”
जगदीश तुरन्त सबको देखते हुए कह उठा ।
“मौका अच्छा है । वो नींद में है । सावधानी से वहाँ जाओ और उसे पकड़ लो ।”
“सोनी !” श्याम बाबू ने सख्त स्वर में कहा, “जाल लो और मोती तुम नींद के तगड़े इंजेक्शन भरकर तैयार करो और राहुल को भी दे दो । हमें तुरन्त वहाँ पहुँचना है ।”
दस मिनट में ही पाँचों पूरी तैयारी के साथ उनके मकान की तरफ बढ़ गए ।
अँधेरे में जगदीश और कमला की नजरें मिलीं ।
“पाँच लाख पास में हैं न ?” कमला ने गहरी साँस लेकर पूछा ।
“हाँ-हाँ ! वो तो मैंने बहुत संभालकर... ।”
“तो निकल चलो यहाँ से । रात कहीं बिताकर सुबह आएँगे ।” कमला ने जगदीश की बाँह थामी ।
“चिंता मत कर । नोट तो अपने ही पास हैं ।” जगदीश बोला, “और नोटों को लेकर रात भर इधर-उधर भटकना ठीक नहीं ! उधर अँधेरे में छिप जाते हैं । अगर उन्होंने उसे पकड़ लिया तो यहीं लाएँगे उसे । वैन यहीं खड़ी है । तब हम अपने घर जाकर चैन से बैठ-सो सकेंगे ।”
“अगर उस जीव ने सबको मार दिया तो पुलिस हमसे पूछेगी कि ये क्या हुआ ?” कमला ने कहा ।
“हमें क्या मालूम कि क्या हुआ ?” जगदीश बोला, “हम तो खाना खाकर घूमने गए थे । वापस आये तो ये सब हुआ देखा । जल्लाद जीव का मामला है । पुलिस हमें तंग नहीं करेगी ।”
“अब क्या करें ?”
“उधर अँधेरे में छिप जाते हैं । जो भी होगा, जल्दी ही हमें मालूम हो जायेगा । अगर उस जल्लाद ने पाँचों को मार भी दिया तो भी वो फिर हमारे घर पर नहीं रुकेगा । यानी कि तब भी उससे जान छूटी । अपना घर अपने पास और पाँच लाख हमारी मुट्ठी में । हमारे तो हर तरफ से मजे-ही-मजे हैं ।”
जगदीश और कमला कुछ दूरी पर अँधेरे में दुबककर बैठ गए ।
☐☐☐
कमरे में तीव्र रौशनी फैली थी ।
खाने के बर्तन फर्श पर ही पड़े थे । प्लेट में अभी चपातियाँ पड़ी थीं । पास ही फर्श पर गहरी नींद में डूबा हुआ था वह रहस्यमय जीव । माथे की वह पट्टी जहाँ उसकी आँख दायें से बायें घूमती थी, वह नजर नहीं आ रही थी । उस पर पलक रूपी चमड़ी आ बिछी थी । नींद में उसका पेट बेहद मध्यम-सी गति से हिलता महसूस हो रहा था । उसका शरीर गठा हुआ, पाँच फीट का था ।
तभी खुले दरवाजे पर मोती और राहुल आर्य नजर आये । दोनों बेहद सतर्क लग रहे थे । इस तरह वे यहाँ तक पहुँचे थे कि कदमों की आहट जरा भी न हो । दबे पाँव ही उन्होंने भीतर प्रवेश किया और एक तरफ हो गए । उनके पीछे-पीछे श्याम बाबू, शंकर और सोनी ने भीतर प्रवेश किया ।
तीनों ने उस काफी बड़े जाल को पकड़ रखा था ।
वह जाल दस-बारह फीट लम्बा-चौड़ा था । नाइलोन की डोरियों से इस तरह बुना गया था कि उसे ताकत के दम पर तोड़ पाना किसी भी तरफ से सम्भव नहीं था ।
कमरे में प्रवेश करते ही जाल थामे वे तीनों विपरीत दिशाओं में फैलते चले गए । इस तरह कि जाल पूरा खुल जाये । इस बात का वे पूरा ध्यान रख रहे थे कि कोई आहट न हो । रहस्यमय जीव को इतने करीब पाकर उनके दिल तीव्रता के साथ धड़क रहे थे । उनके दिलो-दिमाग में कुछ डर भी था । काम पूरा करने की तीव्र इच्छा थी ।
वे तीनों इस तरह फैले कि अब वह जाल नींद में डूबे रहस्यमय जीव के ऊपर आ रहा था ।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा । आँखों-ही-आँखों में इशारे हुए । अलग-अलग दिशाओं में खड़े मोती और राहुल आर्य के हाथों में दो-दो इंजेक्शन थे । सिरिंज बहुत बड़ी थी । उसमें सफेद रंग का पदार्थ भरा हुआ था, जो कि बेहोशी की तेज दवा थी ।
अजीब-सा सनसनी फैला देने वाला सन्नाटा वहाँ छाया हुआ था । उस सन्नाटे को भंग करने के लिए वे साँसें अपर्याप्त थीं जो उल्टे-सीधे ढंग से वे ले रहे थे ।
श्याम बाबू, शंकर और सोनी ने पुनः एक-दूसरे को देखा ।
आँखों-ही-आँखों में इशारे हुए ।
अगले ही पल जाल को नींद में डूबे रहस्यमय जीव के ऊपर डाला गया । तीनों ने सख्ती के साथ जाल को थाम रखा था । जाल ऊपर पड़ते ही जीव की आँख खुली । कमरे में अजनबी लोगों पर नजर पड़ते ही वह जल्दी से खड़ा होते हुए उछला । जाल से निकलने की चेष्टा की ।
जैसा कि उनमें पहले ही तय था । रहस्यमय जीव के उछलते ही एक तरफ का जाल फुर्ती के साथ उसके नीचे से निकाला इससे ये हुआ कि अब फर्श पर भी जाल आ गया और वह हर तरफ से जाल में घिर गया । एक तरफ से जाल खुला था परन्तु तीनों के जाल के कोनों को मिलाकर, कोनों को इकट्ठा करते हुए आपस में बाँधने लगे । जाल में लगे हुक्स को फौरन ही फँसाकर उन्हें दबा दिया । अब जाल मजबूत थैला बनकर रह गया ।
रहस्यमय जीव खुद को बचाने के लिए जाल सहित उछल-कूद कर रहा था । जाल इस कदर तंग हो गया था कि वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था । एकाएक उसके गले से अजीब-सी तीखी आवाज निकली जो कि वहाँ मौजूद पाँचों को सिर से पाँव तक कँपा गई ।
जाल में जकड़े गुस्से में वह पास खड़े शंकर पर झपटा ।
शंकर घबराकर पीछे हुआ ।
जाल में जकड़े होने के कारण वह पूरी तरह से शंकर पर झपट नहीं सका और जल्दी नीचे जा गिरा ।
“तुम दोनों क्यों खड़े हो ।” श्याम बाबू दाँत भींचकर घबराहट भरे स्वर में चीखा, “बेहोशी के इंजेक्शन लगाओ । जल्दी करो । ये इस तरह काबू में नहीं आएगा । हम जाल को पकड़े इसे ज्यादा देर तक संभाल नहीं सकते ।”
सकते में खड़े राहुल आर्य और मोती को होश आया ।
दोनों सावधानी से जाल में फँसे रहस्यमय जीव को इंजेक्शन लगाने के लिए आगे बढ़े ।
बहुत खतरनाक वक्त था । रहस्यमय जीव जाल से निकल सकता था, अगर उन तीनों में से किसी की भी पकड़ ढीली पड़ जाती । फिर भी इस बात की राहत थी कि जाल को हुक से बाँधकर, उसे थैले का रूप दे दिया गया था । ऐसे में इतना आसान नहीं था जीव का जाल से निकल पाना ।
तभी राहुल आर्य मौका देखकर जीव पर झपटा और दायें हाथ का इंजेक्शन पलक झपकते ही उसकी पीठ पर लगा दिया । दूसरे ही पल वह तुरन्त पीछे हटता चला गया ।
“वैरी गुड, राहुल !” सोनी चीखी, “दूसरा इंजेक्शन भी लगाओ । मोती तुम भी जल्दी करो ।”
तब तक मोती ने भी मौका देखकर एक इंजेक्शन रहस्यमय जीव के कन्धे में लगा दिया ।
“मेरे ख्याल में अब ये आजाद नहीं हो सकता ।” शंकर ने तेज स्वर में कहा ।
उसी पल रहस्यमय जीव ने जाल में फँसे उछलना-तड़पना छोड़ा; और हाथ की उंगलियाँ जाल के छोटे-छोटे खानों में डालकर जाल की डोरियों को तोड़ने की चेष्टा करने लगा ।
“ये... ये तो जाल को तोड़ रहा है ।” सोनी दहशत से चीखी ।
“रेशम की डोरियों को तोड़ पाना आसान नहीं !” श्याम बाबू ने दाँत भींचकर कहा ।
“ये बहुत शक्तिशाली है ।” सोनी का चेहरा पीला पड़ने लगा ।
रहस्यमय जीव जाल की डोरियाँ तोड़ने की पूरी चेष्टा कर रहा था । इस दौरान उसके मुँह से खतरनाक गुर्राहटें निकल रही थीं ।
उसकी साँसों की तेज आवाज कानों में पड़ रही थी, जिसे सुनकर उनके दिल तेजी से धड़क रहे थे ।
“मोती !” राहुल आर्य ने भिंचे स्वर में कहा, “इंजेक्शन लगाओ । ये जाल तोड़ने में व्यस्त है ।”
रहस्यमय जीव की उस वक्त दोनों की तरफ पीठ थी ।
मौका अच्छा था ।
दोनों दबे पाँव उसके पीछे पहुँचे और फुर्ती से दोनों ने उसकी कमर में इंजेक्शन लगा दिया ।
रहस्यमय जीव के होंठों से वहशी गुर्राहट निकली । वह पलटा ।
तब तक राहुल आर्य, मोती पीछे हो चुके थे ।
रहस्यमय जीव की आँखें गुस्से से लाल होने लगी थीं । वह पुनः पूरी शक्ति से जाल की, रेशम की डोरी तोड़ने लगा । ऐसा करते वक्त उसके होंठों से गुस्से से भरी आवाजें निकल रही थीं ।
“इसकी आँख में गोली मारी जाये तो ये नकारा हो जायेगा ।”
“बेवकूफी वाली बातें मत करो ।” श्याम बाबू ने दाँत भींचकर कहा, “राबर्ट को ये सही-सलामत चाहिए । तभी वो पचास करोड़ देगा । वरना वो फूटी-कौड़ी भी नहीं देने वाला ।”
“कितनी आसानी से पचास करोड़ हाथ में आ गया ।” सोनी कह उठी ।
“पागलों वाली बात मत करो ।” शंकर की भिंची निगाह जाल में फँसे रहस्यमय जीव पर और आजाद होने के लिए वह जो हरकतें कर रहा था, उस पर थी, “इस वक्त हम बहुत बड़े खतरे में हैं ।”
“ये आजाद हो गया तो हम सबको मार देगा ।” श्याम बाबू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । आँखों में बेचैनी भरी थी ।
“इसे बेहोशी के इंजेक्शन लगा दिए हैं ।” शंकर ने सतर्क स्वर में कहा, “अभी ये बेहोश हो जायेगा ।”
“क्या मालूम, इस पर बेहोशी की दवा का असर न करे ।” श्याम बाबू के होंठों से निकला ।
“बेहोशी की दवा असर करेगी ।” राहुल आर्य जल्दी से कह उठा, “कोटेश्वर बीच पर भी इसे पहले जाल में कैद किया गया था फिर बेहोशी की दवा के इंजेक्शन लगाये गए थे । ये तब भी बेहोश हुआ था ।”
“राहुल !” मोती गंभीर स्वर में कह उठा, “क्या मालूम तब इसे कौन-सी बेहोशी की दवा के इंजेक्शन लगाये गए थे !”
“जिस दवा के भी लगाये गए हों ।” राहुल आर्य ने कहा, “मैं तो इतना जानता हूँ कि इसके लिए बेहोशी की जो दवा मैंने खरीदी है, वो सबसे उम्दा और तेज असरदार है । हाथी को भी बेहोश करने की हिम्मत रखती है ।”
सबकी निगाह रहस्यमय जीव पर थी ।
वह जाल में फँसा, आजाद होने के लिए तड़प रहा था । जाल की डोरियाँ तोड़ने में वह असफल रहा था । रह-रहकर वह अजीब-सी आवाज में चीखने लगता । श्याम बाबू, शंकर और सोनी ने जाल को और टाइट कर दिया था, जिसकी वजह से वह जीव जाल में और भी टाइट होकर रह गया था । वह इन सब पर हमला करना चाहता था परन्तु जाल में फँसा होने और जाल टाइट होने की वजह से हमला नहीं कर पा रहा था ।
धीरे-धीरे वक्त बीतने लगा ।
आधे घण्टे से ज्यादा हो गया । अब उसका जाल में छटपटाना कम हो गया था ।
“बेहोशी की दवा इस पर असर कर रही है ।” राहुल आर्य कह उठा ।
“मुझे भी ऐसा ही लगता है ।” श्याम बाबू ने कहा ।
जाल में फँसा, फर्श पर अधलेटा-सा वह सबको बारी-बारी सुर्ख आँखों से देख रहा था ।
सन्नाटा-सा छाया रहा वहाँ ।
वक्त बीतने लगा ।
तब रात के बारह-साढ़े बारह का वक्त था, जब वह पूरी तरह बेहोश होकर जाल में जकड़ा फर्श पर लुढ़क गया था । ये देखकर पाँचों के शरीर में अजीब-सा तनाव आ ठहरा था ।
“बेहोश हो गया ये ।”
“बेहोशी की दवा बहुत तेज थी ।” राहुल आर्य ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन बहुत देर बाद असर किया ।”
“इसे उठाकर वैन तक ले चलते हैं ।” मोती कह उठा ।
“अभी इसके पास मत जाना ।” श्याम बाबू ने कहा, “हमें कदम-कदम पर सावधानी बरतनी है । इसकी बेहोशी को पक्का कर लेने दो ।”
वहाँ छाई खामोशी में अजीब-सा तनाव भरा था ।
“इसे यहाँ से कहाँ पर ले जाना है ?” सोनी ने श्याम बाबू को देखा ।
“इस तरफ तो हमने सोचा ही नहीं !” शंकर के होंठों से निकला ।
“ये सोचने वाली बात नहीं है ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, “इसे राहुल की एडवराइजिंग एजेंसी के ऑफिस में ले जाकर रखेंगे । उसके बाद राबर्ट से हाँगकांग बात करूँगा कि इसकी डिलिवरी हिन्दुस्तान की किस सीमा पर चाहिए ।”
“राबर्ट ने कहा है कि हिन्दुस्तान से बाहर कहीं भी इस जीव की डिलिवरी दे दी जाये तो हम अपनी आसानी देखेंगे कि कहाँ पर हम कम खतरे में इसकी डिलिवरी दे सकते हैं ।” मोती ने कहा ।
“मोती का कहना ठीक है ।” सोनी ने कहा ।
“फिर भी राबर्ट से बात करना जरूरी है । क्योंकि हमारे लिए ये जीव बेकार की चीज़ है ।” श्याम बाबू ने बारी-बारी सब के चेहरों पर निगाह मारकर सोच भरे स्वर में कहा, “हमारे काम के पचास करोड़ हैं, जो कि राबर्ट ने अभी हमें देने हैं ।”
मोती ने होंठ भींच लिए ।
“श्याम बाबू का कहना सही है ।”
“राहुल !” श्याम बाबू ने कहा, “रहस्यमय जीव को राबर्ट के हवाले करने तक तुम्हारे ऑफिस में रखेंगे ।”
“बेशक रखो । ऑफिस कुछ दिनों के लिए बन्द है, कह दूँगा ।” राहुल आर्य ने कहा, “लेकिन ये वहाँ पर चीखेगा, शोर पैदा करेगा तो दूसरे ऑफिस वालों के कानों में इसकी आवाज जायेगी ।”
“चिंता मत करो ।” श्याम बाबू ने कहा और सावधानी से जाल में पड़े बेहोश जीव के पास पहुँचकर उसे देखने लगा । चैक करने लगा ।
रहस्यमय जीव वास्तव में गहरी बेहोशी में था ।
“इसे जाल सहित ही उठाकर वैन तक ले चलते हैं । अभी तो रात है । सब काम गुपचुप हो जायेंगे ।” श्याम बाबू ने कहा ।
सब पास पहुँचे । उत्तेजना की वजह से सब के दिल धड़क रहे थे ।
“इतना आसान नहीं था इसे पकड़ पाना ।” राहुल आर्य ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा, “कोटेश्वर बीच जाकर ही पता चला कि वहाँ इसे जाल में कैद करके पकड़ा था । इसी तरह तब बेहोशी के इंजेक्शन दिए थे । इस पर भी मुझे विश्वास नहीं था, हम इसे इस तरह कैद में कर लेंगे । कहीं चूकते तो ये हम सबको बुरी मौत देता ।”
“कितना अजीब-सा है ये ।” शंकर पास खड़ा, रहस्यमय जीव को घूरते हुए कह उठा ।
“मैंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा ।” सोनी बोली ।
“ये हमारी दुनिया का नहीं है ।” श्याम बाबू ने होंठ भींचकर सोनी को देखा ।
“कोटेश्वर बीच पर भी कोई नहीं बता सका था कि ये जीव क्या है ?” राहुल आर्य बोला, “कहाँ से आया है ?”
“इसका मतलब ये हमारी दुनिया का नहीं है ।” मोती ने श्याम बाबू और फिर बारी-बारी दूसरों को देखा ।
“कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि ये क्या चीज़ है ।” शंकर बोला, “अजूबा है ये । यूँ ही राबर्ट इसके बदले हमें पचास करोड़ रुपये नहीं दे रहा । वो खुद जॉन से इससे भी भारी रकम ले रहा होगा और जॉन अमेरिकन सरकार से बहुत बड़ी रकम लेगा ।”
“सही कह रहे हो ।” श्याम बाबू ने कहा, “अमेरिकन सरकार उसी चीज़ में दिलचस्पी लेती है, जो खास हो ।”
“उठाओ इसे ।” सोनी ने कहा, “यहाँ पर रुकना वक्त खराब करना है ।”
उसके बाद रहस्यमय जीव को चारों ने जाल सहित उठाया । वह बहुत भारी था ।
“ये भारी है ।” मोती के होंठों से निकला, “वहाँ तक कैसे ले जायेंगे ?”
“इसे वहाँ तक ले जाना है ।” श्याम बाबू ने दाँत भींचकर कहा, “यूँ समझो वो पचास करोड़ रुपया तुमने बन्द वैन तक ले जाने हैं । भारी हैं तो क्या इसे यहाँ छोड़ जाओगे ?”
“भारी अवश्य है ।” शंकर ने कहा, “लेकिन वैन तक ले जायेंगे इसे ।”
सोनी ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला ।
जाल सहित रहस्यमय जीव को चारों ने उठाया और उसे दरवाजे से बाहर ले आये ।
“वैन यहाँ ले आएँ ?” मोती कह उठा ।
“वैन को यहाँ लाना ठीक नहीं होगा ।” श्याम बाबू ने कहा, “इंजन की आवाज गूँजेगी । यह ठीक है कि यहाँ दूरी पर मकान बने हुए हैं, लेकिन किसी की भी निगाह हमारी हरकतों पर पड़ सकती है ।”
“पड़ती रहे ।” मोती ने कड़वे स्वर में कहा, “हम तो यहाँ से निकल ही जायेंगे । फिर तो... ।”
“जगदीश और उसकी पत्नी तो यही पर रहेंगे । हम पर शक का मामला बढ़ गया और जगदीश को पुलिस ने घेर लिया तो वो हमारे बारे में बता देगा । फिर पुलिस हमारी तलाश में लग जायेगी ।”
“पुलिस हम तक नहीं पहुँच पायेगी ।” मोती बोला ।
“वहम में मत रहो । पुलिस जब किसी के पीछे दौड़ती है तो उसे पकड़कर ही रहती है ।” श्याम बाबू की आवाज में सख्ती भर आई थी, “इसे उठाओ और वैन तक ले चलो ।”
चारों जाल में फँसे रहस्यमय जीव को उठाये अँधेरे से भरा खराब रास्ता तय करते उस तरफ बढ़ने लगे जिधर वैन थी । आगे चलती सोनी उन्हें रास्ता बताती जा रही थी ।
दस मिनट लगे उन्हें वैन तक पहुँचने में ।
रहस्यमय जीव वास्तव में भारी था । वहाँ तक पहुँचने में चारों थकान से हाँफने लगे थे । सोनी ने वैन का साइड का दरवाजा खोला तो जाल सहित उस जीव को वैन में डाल दिया गया ।
“पकड़ा गया ।”
आवाज सुनकर सब पलटे ।
जगदीश और कमला वैन के पास जा पहुँचे थे । उन्होंने दोनों को आसानी से पहचाना ।
“तुम अभी तक यहीं हो ।” राहुल आर्य के होंठों से निकला ।
“हाँ ! वहाँ छिपे थे ।” जगदीश ने जल्दी से कहा, “ये देखना चाहते थे कि तुम लोग इसे पकड़ पाते हो या ये तुम्हें सब को मार देता है ।”
“देख लिया ?” सोनी ने तीखे स्वर में कहा ।
“हाँ !” जगदीश के स्वर में मुस्कान थी, “देख लिया, ये पकड़ा गया और तुम लोग बच गए । बहुत बढ़िया रहा । मैं और कमला घर जाकर आराम से नींद लेंगे । कल देखेंगे कि पाँच लाख का क्या करना है, लेकिन एक बात हमें समझ नहीं आई ।”
“क्या ?”
श्याम बाबू ने वैन का दरवाजा बन्द किया ।
“तुम लोग इस बेकार के जीव का क्या करोगे ? इसे पाने के लिए पाँच लाख भी मुझे दिए ।” जगदीश ने पूछा ।
“तेरे को पाँच लाख मिल गए ।” राहुल वैन की ड्राइविंग सीट पर बैठता हुआ बोला ।
“गिने नहीं हैं, पूरे पाँच ही होंगे ।”
“तो मजे ले । हमने इस जीव का क्या करना है, ये सोचकर अपना सिर दर्द मत करा ।” शंकर और श्याम बाबू, रहस्यमय जीव के पास ही बैठ गए ।
“तुम दोनों वो कारें लेकर आओ । राहुल के ऑफिस की इमारत के बाहर मिलना । वहीं पहुँचो ।”
मोती और सोनी ने सिर हिलाया ।
“ये कब तक बेहोश रहेगा ?” शंकर ने पूछा ।
“कह नहीं सकता ।” राहुल वैन स्टार्ट करता हुआ बोला, “सात-आठ घण्टे तो इसे बेहोश रहना चाहिए ।”
“चलो ।”
अगले ही पल वैन आगे बढ़ गई ।
“तुम दोनों ।” सोनी ने जगदीश और कमला को देखा, “यहाँ क्यों खड़े हो ! अपने घर जाओ । वो खुला पड़ा है ।”
“घर ही तो जा रहे हैं ।” जगदीश अँधेरे में मुस्कुराया ।
“पाँच लाख तूने बहुत सस्ते में कमा लिए ।” मोती ने तीखे स्वर में कहा ।
“इतनी बड़ी रकम पहले कभी मेरे पास नहीं आई ।” जगदीश बोला, “चल कमला !”
जगदीश और कमला वहाँ से अपने मकान की तरफ बढ़ गए ।
रात का अँधेरा हर तरफ फैला था । रात बीतने के साथ सन्नाटे का माहौल गहराता जा रहा था ।
बहुत दूर रहस्यमय जीव वाली वैन की टेल लाइट नजर आ रही थी और फिर वह लाइट नजर आनी बन्द हो गई । यानी कि वैन मुख्य सड़क पर पहुँचकर मुड़ गई थी ।
मोती ने सोनी को देखा ।
“अब हम सबको दस-दस करोड़ मिलेगा ।” मोती बोला ।
“हाँ !” सोनी की निगाह भी मोती पर गई, “मामूली से काम के दस-दस करोड़ हाथ में लग गए ।”
“मामूली काम नहीं था ये ।” मोती ने गंभीर स्वर में कहा, “यूँ समझो कि काम आसानी से हो गया ।”
सोनी ने अँधेरे में हर तरफ निगाह मारी ।
मोती ने कश लेकर अँधेरे में गहरी निगाहों से सोनी को देखा ।
“जिंदगी बिताने के लिए ।” मोती बोला, “काम-धंधा करने के लिए मेरे पास काफी पैसा इकट्ठा हो गया है ।”
सोनी आगे बढ़ी और अपनी कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठी ।
“जल्दी चलो ।” सोनी बोली, “वो पहले वहाँ पहुँचकर हमारा इंतजार करेंगे ।”
सोनी उसके दरवाजे के पास आकर ठिठकी ।
“क्या सोचा तुमने ?”
“किस बारे में ?” सब कुछ समझते हुए सोनी ने लापरवाही से कहा ।
“हम दोनों शादी करके, बाकी की जिंदगी साथ... ।”
“मोती !” सोनी तीखे स्वर में कह उठी, “इसका जवाब मैं पहले ही दे चुकी हूँ । समझदार लोग एक ही बात को दोहराते नहीं ।”
अँधेरे में भी मोती के चेहरे पर सख्ती के भाव महसूस हुए ।
“उस बूढ़े श्याम बाबू के साथ रहकर तुम्हें क्या मिलेगा ?” मोती के दाँत भिंच गए ।
“वो बूढ़ा नहीं है ।” सोनी के चेहरे पर चंद्रमा की रौशनी में मुस्कुराहट दिखाई दी, “बहुत दम-खम रखता है ।”
“मेरे से ज्यादा दमदार नहीं हो सकता ।”
“मुझे जितने दम की जरूरत है, उतना दम श्याम बाबू के पास है ।”
मोती का चेहरा सख्त हो उठा ।
“श्याम बाबू के पास पैसा बहुत है ।” मोती ने शब्दों पर जोर देकर कहा ।
“ये बात तो सब जानते हैं ।” लापरवाही से भर गया सोनी का स्वर ।
“मेरी बात समझ रही हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ ?”
सोनी ने मोती को देखा फिर मुस्कराकर कह उठी ।
“मैं अच्छी तरह समझ रही हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो । लेकिन कान खोलकर सुन लो कि सोनी दौलत के लालच में बूढ़े से शादी नहीं करेगी । वैसे भी मेरे पास दौलत की क्या कमी है । सच बात तो ये है कि श्याम बाबू हमेशा ही मुझे अच्छा लगा है । यही वजह है कि मैं उससे शादी करने जा रही हूँ ।”
“समझने की कोशिश करो सोनी !” मोती आहत भाव में कह उठा, “तुम हमेशा मुझे अच्छी लगी हो । मैंने तो कब से मन में तय कर रखा था कि तुमसे शादी करूँगा और... ।”
“मेरे बारे में अपने मन में कुछ तय करने से पहले मुझसे पूछ लेना चाहिए था ।” सोनी की आवाज में जहरीले भाव आ गए थे, “मैंने कभी तुम्हें इस नजर से नहीं देखा । तुम्हें देखकर कभी भी ऐसा ख्याल मेरे मन में नहीं आया । आया होता तो मैंने अवश्य कभी तुम्हें लंच-डिनर पर बुलाया होता ।”
“ऐसा मत कहो सोनी !” विवश भाव से कह उठा मोती, “आखिर मुझमें क्या कमी है । देखने में ठीक हूँ । दौलत है मेरे पास । मेरी ऐसी कोई आदत नहीं, जो तुम्हें बुरी लगे । है तो बता दो । मैं तुम्हें बहुत अच्छी तरह रखूँगा । तुम्हें... ।”
“सॉरी मोती !” सोनी कार आगे बढ़ाती हुई मुस्कराकर बोली, “फिर कभी मेरा रास्ता रोकने की चेष्टा मत करना । ये मेरा आखिरी काम है । इसके पूरा होते ही मैं और श्याम बाबू ब्याह कर लेंगे ।” कार आगे बढ़ गई ।
मोती का चेहरा सुलग उठा । कठोर निगाह कार की टेल लाइट पर टिकी रही ।
“ये तेरा आखिरी काम है । इसके पूरा होते ही तू श्याम बाबू से शादी करेगी । मेरे से नहीं । ठीक है ।” मोती की आवाज वहशी हो गई, “तेरा ये आखिरी काम, आखिरी ही बनकर रह जायेगा । तू कभी भी श्याम बाबू से शादी नहीं कर पायेगी ।”
☐☐☐
बिजनेस सेंटर की उस इमारत की आठवीं मंजिल पर राहुल आर्य की एडवरटाइजिंग एजेंसी थी । रात को वॉचमैन थे वहाँ ।
एक सामने की तरफ और दूसरा पीछे की तरफ ।
रहस्यमय जीव को उनकी निगाहों से बचाकर भीतर आठवीं मंजिल पर ले जाना था । वह अभी भी गहरी बेहोशी में जाल में फँसा हुआ था । वैन को गेट के पास ही तब तक रोके रखा, जब तक कि मोती और सोनी की कारें वहाँ न आ पहुँची । फिर दोनों कारें और वैन भीतर गयीं ।
वॉचमैन जानता था राहुल आर्य को । रोका नहीं उसने ।
वे प्रवेश द्वार के करीब पहुँचे । तब उधर कोई नहीं था । रात का सन्नाटा हर तरफ था । चंद ऑफिस अभी भी खुले थे, परन्तु किसी तरह का शोर-शराबा और आहट महसूस नहीं हो रही थी । वैन से बाहर आकर उन्होंने सतर्क निगाह हर तरफ मारी । कहीं भी कोई न दिखा ।
“जल्दी करो ।” श्याम बाबू ने कहा, “उसे उठाओ और लिफ्ट से आठवीं मंजिल पर ले चलो ।”
“रास्ते में कोई मिल गया तो ?”
“इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा । जल्दी करो ।”
चारों ने उसे बाहर निकाला । वह अभी तक जाल में फँसा बेहोश था ।
सोनी हर तरफ देख रही थी ।
चारों उसे उठाये, इमारत के प्रवेश द्वार से भीतर प्रवेश कर गए । सीधा वे लिफ्ट के पास पहुँचे । सोनी भी वहाँ आ पहुँची । लिफ्ट नीचे ही थी । जाल में फँसे रहस्यमय जीव को उन्होंने लिफ्ट में रखा । खुद भी सारे भीतर प्रवेश कर गए । आठ नम्बर दबाते ही हल्के से झटके के साथ लिफ्ट ऊपर को सरकने लगी ।
पाँचों के चेहरे आवेश से भरे हुए थे ।
जल्दी ही लिफ्ट आठवीं मंजिल पर पहुँची और दरवाजे के पल्ले सरककर एक तरफ हो गए ।
“राहुल !” श्याम बाबू ने कहा, “जल्दी से ऑफिस खोलो । हम इसे लेकर आ रहे हैं ।”
राहुल आर्य बाहर निकल गया ।
“आगे का क्या प्रोग्राम है ?” शंकर ने होंठ भींचकर पूछा ।
चारों लिफ्ट में खड़े थे ।
श्याम बाबू ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।
“अब खास काम नहीं बचा ।” श्याम बाबू ने गंभीर स्वर में कहा, “रहस्यमय जीव को राहुल आर्य के ऑफिस में रखकर राबर्ट से बात करूँगा । वो जहाँ कहेगा, रहस्यमय जीव की डिलिवरी दे देंगे ।”
“राबर्ट को हाँगकांग से आने में वक्त लगेगा ।” मोती ने कहा ।
“बेवकूफों वाली बात मत करो । वो खुद डिलीवरी लेगा क्या ।” शंकर बोला, “उसके आदमी हर जगह फैले हैं । उसके आदमी ही हमसे डिलीवरी लेंगे ।”
“ओह ! मैं तो भूल ही गया था कि... ।”
“हम में से एक हर समय इसके पहरे पर रहेगा और वक्त-वक्त पर इसे बेहोशी के इंजेक्शन देते रहना है । ताकि ये होश में न आ सके । बेहोशी में हमें इसे राबर्ट के आदमियों के हवाले कर देना है ।” श्याम बाबू ने कहा ।
“राबर्ट से पेमेंट कब लेनी है ?” शंकर बोला ।
“जब उसे डिलीवरी देंगे । धंधे में उधार चलता है । ये काम धंधे से जुदा है । इसकी पेमेंट नकदी होगी ।”
“ये ठीक रहेगा ।”
“आओ । उठाओ इसे । राहुल ने ऑफिस खोल लिया होगा ।”
इस बार सोनी ने भी हाथ लगाया । जाल में फँसे रहस्यमय जीव को जाल के दम पर उठाते हुए लिफ्ट से निकले और बायीं तरफ बढ़ गए । ये गैलरी थी । दोनों तरफ ऑफिस बन्द थे । आगे जाकर एक ऑफिस खुला मिला । वह उसके सामने से गुजर गए और राहुल के ऑफिस में पहुँचे । राहुल ने दरवाजा खोल रखा था । वह सीधे भीतर प्रवेश करते चले गए । रहस्यमय जीव को जाल सहित कारपेट पर रख दिया ।
राहुल ने दरवाजा भीतर से बन्द कर दिया ।
वे चारों गहरी-गहरी साँसें लेने लगे । ये रिसेप्शन था । वहाँ पड़े सोफों पर वे बैठ गए ।
“सुबह ऑफिस में काम करने वाला कोई न आये ।” शंकर ने राहुल से कहा, “इस बात का तुम्हें ध्यान रखना है ।”
“दिन निकलते ही सबको खबर कर दूँगा कि दो-तीन दिन ऑफिस बन्द रहेगा ।”
“ये बेहोश है ।” श्याम बाबू की गंभीर निगाह रहस्यमय जीव पर गई, “इसके पास कौन पहरे पर रहेगा ? जो कि वक्त पर बेहोशी का इंजेक्शन भी इसे लगाता रहे ।”
“मैं इसके पास रुक जाता हूँ ।” मोती कह उठा ।
“ठीक है । बेहोशी के इंजेक्शन वक्त पर लगा देना । सुबह कौन आएगा पहरे पर ?”
“मैं आ जाऊँगी ।” सोनी बोली, “मेरा घर यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है । कुछ घण्टों की नींद लेकर सुबह सात-आठ बजे पहुँच जाऊँगी । मुझे छुट्टी देने के लिए दोपहर में को कौन आएगा ?”
“मैं आ जाऊँगा ।” शंकर ने कहा ।
श्याम बाबू उठ खड़ा हुआ ।
“चलो । मुझे राबर्ट से बात करनी है । मैं इस मामले को जल्दी निपटा देना चाहता हूँ ।”
बाकी भी उठ खड़े हुए ।
“बेहोशी के इंजेक्शन और सिरिंज हैं ?” राहुल आर्य ने मोती से पूछा ।
“ये रहे ।” मोती ने जेब से निकालकर उसे दिखाया ।
“ठीक है । दिन में मैं ऐसे इंजेक्शन और ले आऊँगा ।” राहुल आर्य ने गंभीर स्वर में कहा ।
वे सब जाने लगे तो मोती ने सोनी से कहा ।
“सुबह आना मत भूल जाना ।”
“चिंता मत करो । मैं वक्त पर आऊँगी और तुम्हारे लिए नाश्ते के लिए भी कुछ ले आऊँगी ।”
सब एक-एक करके बाहर निकल गए ।
मोती के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे ।
“आना । जरूर आना ।” मोती दाँत भींचें बड़बड़ा उठा, “नाश्ता भी लेती आना । मैं बेसब्री से तुम्हारे आने का इंतजार करूँगा ।”
☐☐☐
सुबह के छः बजते ही मोती की बेचैनी बढ़ गई थी । रात भी उसने पल के लिए भी पलक नहीं झपकाई थी । दिन निकलने पर मोती के दिल की धड़कन तीव्र होने लगी । उसने जाल में फँसे पड़े बेहोश रहस्यमय जीव पर निगाह मारी । वह वैसे का वैसा ही पड़ा था, जैसा उसे लाकर डाला गया था । अभी तक बेहोश था ।
मोती गड़बड़ कर चुका था ।
रहस्यमय जीव को नींद का इंजेक्शन लगाना था, लेकिन मोती ने इंजेक्शन नहीं लगाया था । जानबूझकर इंजेक्शन नहीं लगाया था उसने ।
राहुल आर्य के ऑफिस के रिसेप्शन के कारपेट पर जाल में फँसा वह रहस्यमय जीव बेहोश पड़ा था । लगभग छः घण्टे हो चुके थे बेहोशी के चार इंजेक्शन लगाये । मोती जानता था कि उस दवा में बेहोशी का तेज असर था, जिसके इंजेक्शन जीव को लगाये गए हैं परन्तु जीव के शरीर की भीतरी बनावट कैसी है, उसके शरीर के भीतर कितनी शक्ति है, बेहोशी की दवा को सहने की, ये बात मोती नहीं जानता था ।
ऐसे में कुछ मालूम था नहीं कि कब रहस्यमय जीव को होश आ जाये ।
मोती को सोनी के आने का इंतजार था । दिल जोरों से धड़क रहा था कि कहीं जीव की बेहोशी वक्त से पहले न टूट जाये । वह सोच रहा था कि ऐसा हुआ तो भाग लेगा यहाँ से ।
समय आगे बढ़ता रहा । अब सुबह के सात बजने जा रहे थे ।
सोनी कभी भी आ सकती थी ।
मोती ने दाँत भिंचें जेब से चाकू निकाला और आगे बढ़कर बेहोश रहस्यमय जीव के पास जा बैठा और जाल की रेशम की डोरी चाकू से एक साथ काटने लगा । पलों में ही जाल को लाइन में काट दिया । फिर कटे जाल को ऐसे कर दिया कि देखने पर ये लगे कि जाल कटा हुआ नहीं है । इस काम से फारिग होकर मोती ने चाकू बन्द करके जेब में डाला और चंद कदमों के फासले पर मौजूद कुर्सी पर जा बैठा ।
अब रहस्यमय जीव होश में आने पर आसानी से खुद को जाल से मुक्त करा सकेगा । जाल को उसने इस ढंग से काटा था कि होश आने पर रहस्यमय जीव पलक झपकते ही जाल से मुक्ति पा ले ।
तभी बन्द दरवाजे के बाहर हल्की-सी थपथपाहट हुई ।
मोती का दिल जोरों से उछला ।
तो क्या सोनी आ गई ?
खुद को सामान्य रखते हुए मोती दरवाजे के पास पहुँचा और धीमे स्वर में बोला ।
“कौन ?”
“सोनी ।” उसके कानों में धीमा-सा स्वर पड़ा ।
मोती ने दरवाजा खोला । सोनी के भीतर आने पर मोती ने पुनः दरवाजा बन्द कर लिया ।
“लो, नाश्ता कर लो ।” सोनी छोटा-सा पैकिट उसकी तरफ बढ़ाते हुए कह उठी ।
मोती पैकिट थामते हुए कह उठा ।
“नींद आ रही है । खाने का मन नहीं है । घर जाकर नींद लूँगा । उसके बाद खाने की सोचूँगा ।”
सोनी ने बेहोश रहस्यमय जीव पर निगाह मारी ।
“बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया था इसे ?” सोनी ने पूछा ।
“घण्टा भर पहले ही लगाया है ।” मोती ने कठिनता से खुद को सामान्य रखा, “चिंता मत करो । होश नहीं आने वाला इसे । उधर इंजेक्शन और दवा रखी है । तीन घण्टे बाद फिर इंजेक्शन लगा देना । दोपहर तक तो शंकर आ ही जायेगा ।”
“हाँ !” सोनी ने सिर हिलाया ।
“नींद ली तुमने ?” मोती ने सोनी को देखा ।
“तीन घण्टे सोई ।”
“मैं जाता हूँ ।”
सोनी ने मोती को देखते हुए सहमति से सिर हिलाया ।
“क्या फैसला किया ?” एकाएक मोती ने पूछा ।
“कैसा फैसला ?” सोनी की आँखें सिकुड़ीं ।
“मेरे साथ शादी करने का ।” मोती गंभीर था ।
“मोती !” सोनी ने गहरी साँस लेकर तीखे स्वर में कहा, “इसका जवाब मैं तुम्हें दे चुकी हूँ ।”
“मतलब कि तुम श्याम बाबू से शादी करोगी । मेरे से नहीं !” मोती ने शांत स्वर में कहा ।
“हाँ !”
“मैंने सोचा शायद विचार बदल गया हो ।” मोती के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभरी ।
“मेरा इरादा कभी नहीं बदलेगा ।” सोनी ने मोती को घूरा, “बहुत हो गया । अब इस बारे में मुझसे बात मत करना, वरना श्याम बाबू को बताना पड़ेगा कि तुम मेरे पीछे पड़े हो ।”
“श्याम बाबू से बात करने की क्या जरूरत है ।” मोती ने पहले वाले स्वर में कहा, “मैं तो कोशिश कर रहा था कि शायद तुम मान जाओ । नहीं मानी तो मेरी किस्मत । चलता हूँ । दरवाजा बन्द कर लो ।” कहकर मोती पलटा और बाहर निकल गया ।
बाहर निकलते ही मोती के चेहरे पर खतरनाक भाव आ ठहरे ।
“तू मेरी नहीं तो किसी की भी नहीं बन सकेगी । मेरे से शादी नहीं, तो श्याम बाबू से भी नहीं ! तेरी किस्मत में मरना ही लिखा है । रहस्यमय जीव को कभी भी होश आ सकता है । वो तेरे को खत्म कर देगा ।”
मोती के बाहर निकलने पर, सोनी ने दरवाजा भीतर से बन्द किया और थके अंदाज में कुर्सी पर आ बैठी । तीन घण्टे नींद अवश्य ली थी, परन्तु थकान और नींद अभी भी हावी थी । उसने रहस्यमय जीव पर नजर मारी । वह उसी तरह पड़ा था । सोनी ने कुर्सी की पुश्त से सिर टकराया और आँखें बन्द करके भविष्य के बारे में सोचने लगी । वह जानती थी कि श्याम बाबू के साथ शादी का फैसला करके उसने ठीक काम किया है ।
श्याम बाबू के पास बहुत तगड़ी दौलत है । वह मजे से रहेगी । मोती के पास भी दौलत थी, परन्तु श्याम बाबू के मुकाबले बहुत कम थी । वैसे भी मोती उसे खास अच्छा नहीं लगता था । मन-ही-मन सोनी यही सोचती रही कि शादी के बाद कैसी जिंदगी बितायेगी ? कैसा घर होगा ? इन्हीं ख्यालों में देर तक खोयी रही ।
मध्यम-सी आहट पाकर वह सोचों से बाहर निकली । आँखें खुलीं । दो कदम के फासले पर रहस्यमय जीव खड़ा उसे देख रहा था । एक क्षण तो सोनी कुछ भी नहीं समझी । दूसरे ही पल दहशत से उसकी आँखें फटती चली गयीं ।
☐☐☐
सुबह के आठ बज रहे थे ।
पुलिस सायरनों की आवाजें गूँज रही थीं । हर तरफ पुलिस की वर्दियाँ ही नजर आ रही थी । पुलिस वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी । वह इमारत को घेरते जा रहे थे । पुलिस जीपों की कतारें नजर आ रही थीं । पुलिस के बड़े-बड़े ऑफिसरों के अलावा मंत्री भी वहाँ पहुँच चुके थे ।
ये इमारत राहुल आर्य के ऑफिस वाली ही थी ।
सवा सात बजे नीचे से गुजरते चंद लोगों ने इमारत के ऊपर से गिरते सोनी के शरीर को देखा, जो कि विक्षिप्त ढंग से कटा-फटा हुआ था । इतनी ऊपर से गिरने पर शरीर की हालत और भी बुरी हो गई । फौरन बाद ही पुलिस पेट्रोल कार वहाँ से गुजर रही थी । उसमें मौजूद तीनों पुलिस वालों सोनी की लाश को देख चुके थे । सोनी की लाश देखते ही उनके होंठों से निकला कि इस तरह लाश की हालत तो रहस्यमय जीव ही करता है ।
तुरन्त पुलिस हेडक्वार्टर खबर दी गई ।
उसके बाद तो पुलिस गोली की तरह हरकत में आ गई, क्योंकि रहस्यमय जीव का मामला था, जो कि पुलिस वालों को भी मार चुका था । फिर तो यहाँ पुलिस-ही-पुलिस पहुँचने लगी ।
मोदी को खबर मिली तो वह दुलानी को साथ लिए इस तरफ भागा । रास्ते में दो पल के लिए वह मोना चौधरी के पास रुका । उसे खबर दी, फिर आगे बढ़ता चला गया । मोना चौधरी के लिये ये खबर कीमती थी कि रहस्यमय जीव इस इमारत में है । उसने उसी वक्त महाजन और पारसनाथ को फोन करके उधर पहुँचने को कहा ।
इस तरह मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ वहाँ पहुँचे ।
तभी नीचे से कइयों ने देखा कि इमारत की आठवीं मंजिल की खिड़की से वह रहस्यमय जीव नीचे की तरफ झाँक रहा था । उस पर निगाह पड़ते ही देखने वाले स्तब्ध रह गए ।
ये बात पक्की से भी पक्की हो गई कि वह रहस्यमय जीव इमारत की आठवीं मंजिल पर है ।
मोना चौधरी वहाँ हल्का-सा मेकअप करके आई थी कि कोई पुलिस वाला उसे आसानी से पहचान न सके ।
श्याम बाबू, शंकर, राहुल आर्य और मोती भी एक तरफ खड़े सब कुछ देख रहे थे । मोती को छोड़कर सब के चेहरे पर परेशानी और उलझन भरी पड़ी थी । वह लुटे-पुटे से नजर आ रहे थे । वह तो पचास करोड़ आने के सपने देख रहे थे । लेकिन अब सब कुछ डूब गया था । सोनी की मौत का उन्हें वास्तव में बहुत दुःख हो रहा था ।
राहुल आर्य मोती के पास खिसक आया और हर तरफ फैले पुलिस वालों पर नजर मारता कह उठा ।
“तुमने बेहोशी का इंजेक्शन लगाया था जीव को ?”
“हाँ !” मोती अपनी आवाज में दुःख भर लाया, “मैंने दो इंजेक्शन लगाये थे ।”
“तो फिर उसे होश कैसे आया ? सोनी को कैसे मार दिया उसने ?” राहुल आर्य होंठ भींचकर बोला ।
“मैं तो खुद हैरान हूँ ।” मोती ने राहुल आर्य पर नजर मारी, “शायद बेहोशी की दवा ने उस पर असर नहीं किया होगा ।”
“पहले हमने उसे चार इंजेक्शन दिए थे । बाद में मैंने दो दिए ।” मोती ने कहा, “मेरे ख्याल में उसके शरीर में दवा कम गई है । तभी तो वह होश में आ गया और सोनी को मारकर खिड़की से नीचे फेंक दिया ।”
“माना कि होश आ गया, लेकिन वो जाल से बाहर कैसे निकल आया ? वो... ।”
“बेकार की बातों को छोड़ो !” शंकर ने गंभीर स्वर में कहा, “इस वक्त काम की बात तो ये है कि पचास करोड़ हमारे हाथ से निकल गया । सोनी मर गई । हमारा सारा खेल खत्म हो गया ।”
“बहुत बुरा हुआ । पाँच लाख भी बेकार गया जो जगदीश को दिया था ।” मोती ने कहा ।
“इन बातों को छोड़ो ।” राहुल आर्य तीखे स्वर में बोला, ''ये सोचो की रहस्यमय जीव इस वक्त मेरे एडवरटाईजिंग के ऑफिस में हैं । मेरे ऑफिस की खिड़की में खड़ा सब उसे देख चुके हैं । बाद में पुलिस को क्या जवाब दूँगा कि वो जीव मेरे ऑफिस में कैसे पहुँचा ?”
श्याम बाबू ने राहुल आर्य को देखकर गंभीर स्वर में कहा ।
“ये चिंता का विषय नहीं है । तुम्हारा ऑफिस बंद था । तुम नहीं जानते की तुम्हारा ऑफिस कैसे खुला । वो जीव भीतर कैसे गया ?”
“श्याम बाबू !” राहुल आर्य ने शब्दों पर जोर दिया, '' बात रहस्यमय जीव की होती तो मैं परेशान न होता । बात सोनी की भी है । कोई-न-कोई तो पहचान ही जाएगा कि सोनी मेरे ऑफिस में आती रहती थी । ऐसे में पुलिस ये अवश्य जानना चाहेगी कि सुबह-सुबह सोनी मेरे ऑफिस में क्या कर रही थी । फिर उस वॉचमैन को भूल रहे हो जो रात को बाहर ड्यूटी पर था । उसने मुझे अच्छी तरह देखा था । मेरे साथ सोनी और तुम लोगों को भी देखा था ।”
“मामूली बात है ।” श्याम बाबू ने गंभीरता से सिर हिलाया, '' पुलिस को कह सकते हो कि रात को तुम अपने ऑफिस आये थे । तुम और सोनी वहीं रहे गये । तुम्हारे दोस्त चले गये । सुबह तुम नाश्ता लाने बाहर निकले । उसके बाद क्या हुआ तुम नहीं जानते । जब वापस आये तो हर तरफ पुलिस देखी । सोनी की लाश बाहर पड़ी थी । बाकी का पुलिस सोच लेगी कि तुम्हारे जाने के बाद रहस्यमय जीव वहाँ पहुँचा होगा । उसने सोनी को मारकर नीचे फेंक दिया ।”
“कहना आसान हैं । जब पुलिस के सवालों का जवाब देना पड़ता हैं तो पता चलता हैं ।” राहुल आर्य ने उखड़े स्वर में कहा ।
“मैं जनता हूँ, तुम अच्छी तरह संभाल लोग पुलिस को ।” शंकर बोला, “देखने वाली बात तो ये है कि पुलिस अब क्या करती है ? रहस्यमय जीव आठवीं मंजिल में तुम्हारे ऑफिस में है । क्या होगा अब ?”
कोई कुछ न बोला ।
मोती को मन-ही-मन चैन था । सोनी ने उसकी बात नहीं मानी थी तो उसे किसी की भी नहीं होने दिया । अपने हिस्से के दस करोड़ जाने का दुःख अवश्य था । लेकिन ख़ुशी भी थी कि सोनी उसे छोड़कर अपनी मनमानी नहीं कर सकी । मर गई वह ।
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“मोदी कहाँ है ?” मोना चौधरी ने पूछा, “नजर आ रहा है कहीं ?”
“हर तरफ पुलिस वाले हैं ।” पारसनाथ सपाट स्वर में बोला, “ऐसे में मोदी को पहचानना आसान नहीं ।”
“काम है मोदी से ?” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी ।
“उससे बात करनी है ।” मोना चौधरी ने इमारत की ऊपरी मंजिल पर नजरें दौड़ाते हुए कहा, “मेरे ख्याल में पुलिस वाले सीधे-सीधे रहस्यमय जीव पर अटैक करेंगे और इस तरह उस पर काबू नहीं पाया जा सकता । गोलियाँ लगते ही दर्द के एहसास के बढ़ने से वो और भी वहशी हो जायेगा ।”
“दुलानी उसके साथ ही होगा ।” पारसनाथ बोला, “वो समझा देगा उसे ।”
“अगर वो न समझा सका तो ?” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा ।
“तुम ठीक कहती हो बेबी !” महाजन ने सिर हिलाया, “मैं देखता हूँ मोदी को । लेकिन यहाँ पर बड़े ओहदेदार पुलिस वाले हैं । उनके सामने मोदी अपनी नहीं चला सकता । जो भी होगा, पुलिस के बड़े ओहदेदारों की मर्जी से होगा ।”
“फिर भी मोदी को समझा देना । बताना जरूरी है ।” मोना चौधरी गंभीर थी ।
“मैं ढूँढ़ता हूँ इंस्पेक्टर मोदी को ।” महाजन ने कहा और वहाँ से हटकर धीरे-धीरे भीड़ में एक तरफ बढ़ने लगा ।
तभी पारसनाथ बोला ।
“वो देखो मोना चौधरी ! इमारत की तरफ । उधर वो जीव खिड़की पर खड़ा है ।”
मोना चौधरी ने सामने दिखाई दे रही इमारत के ऊपर देखा । दूसरे ही पल उसके होंठ भिंच गए । रहस्यमय जीव इमारत की आठवीं मंजिल पर राहुल आर्य के ऑफिस की खिड़की पर खड़ा नजर आ रहा था ।
करीब दो मिनट बाद पारसनाथ ने वहाँ से नजर हटाकर मोना चौधरी को देखा ।
लेकिन मोना चौधरी वहाँ नहीं दिखी ।
पारसनाथ ने हर तरफ देखा, परन्तु मोना चौधरी कहीं भी नजर नहीं आई ।
पंद्रह मिनट बाद महाजन लौटा ।
“इंस्पेक्टर मोदी इस वक्त बहुत व्यस्त है ।” महाजन ने पारसनाथ से कहा, “फिर भी उसे समझा आया हूँ कि रहस्यमय जीव को शूट करने की सोचना गलत होगा । इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता... ।” कहते-कहते महाजन रुका । पारसनाथ की आँखों में उभरी बेचैनी को उसने पहचान लिया था ।
तभी महाजन को मोना चौधरी का ध्यान आया ।
“बेबी कहाँ है ?” महाजन के होंठों से निकला ।
पारसनाथ ने पुनः आठवीं मंजिल की खिड़की की तरफ देखा । अब खिड़की पर वह जीव नहीं दिखा ।
“बेबी कहाँ गई पारसनाथ ?” महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
“अभी तो यहीं थी ।” पारसनाथ के होंठों से निकला ।
“क्या मतलब ?”
“आठवीं मंजिल की खिड़की पर वो जीव नजर आ रहा था । मैं उसे देख रहा था । वहाँ से नजर हटी तो मोना चौधरी को यहाँ नहीं पाया ।” पारसनाथ ने खुरदुरे-गंभीर स्वर में कहा, “मेरे ख्याल में वो सामने वाली इमारत में गई है ।”
“इमारत में !” महाजन के होंठ भिंच गए । उसने उधर देखा, “बेबी इमारत में गई है ।”
“शायद ।”
“तुमने उसे रोका नहीं ?” महाजन के दाँत भिंच गए ।
“मुझे मालूम नहीं हो पाया कि वो कब गई ।” पारसनाथ की आँखों में कठोरता भर आई थी ।
“वो जल्लाद बेबी को मार देगा ।” महाजन दाँत पीसकर कह उठा ।
“मालूम होता अगर कि मोना चौधरी कहाँ-क्या करने जा रही है तो उसे रोक लेता ।”
महाजन के चेहरे पर क्रोध और व्याकुलता दिखाई दे रही थी ।
“मोना चौधरी को ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था ।” पारसनाथ बोला, “जाने से पहले एक बार मेरे से बात तो करती ।”
महाजन ने कुछ नहीं कहा और मुट्ठियाँ भींचते भीड़ को काटते हुए, इमारत की तरफ बढ़ा ।
“महाजन !” पारसनाथ ने दबे स्वर में पुकारा ।
महाजन नहीं रुका ।
पारसनाथ लोगों की भीड़ में रास्ता बनाता, जल्दी से महाजन के पास पहुँचा ।
“कहाँ जा रहा है तू ?” पारसनाथ ने महाजन की कलाई पकड़ी ।
“इमारत में, जिधर बेबी गई है ।” महाजन के होंठों से गुर्राहट निकली ।
“क्यों ?”
जवाब में महाजन के दाँत भिंच गए ।
“तुम क्या मोना चौधरी को बचा लोगे ?”
“मालूम नहीं !” महाजन ने शब्दों को चबाकर कहा, “मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि बेबी की जान खतरे में है ।”
“वही मैं पूछ रहा हूँ कि अगर मोना चौधरी की जान खतरे में है तो क्या तुम उसे बचा लोगे ?”
“मालूम नहीं ।” महाजन ने झटका देकर अपनी बाँह छुड़ाई और भीड़ में आगे बढ़ता चला गया ।
पीछे से पारसनाथ के पुकारे जाने की आवाजें सुनी ।
परन्तु महाजन रुका नहीं ।
भीड़ में से निकलकर सड़क पार की और तेजी से इमारत के मुख्यद्वार से भीतर प्रवेश कर गया ।
इमारत में हर तरफ सूनसानी छाई हुई थी । रहस्यमय जीव के खौफ की वजह से लोग इमारत से बाहर आ चुके थे । अधिकतर ऑफिस खुले हुए थे, परन्तु कोई नजर नहीं आया ।
सामने ही लिफ्ट थी । महाजन तेजी से लिफ्ट में प्रवेश करता चला गया ।
महाजन को गए चालीस मिनट हो चुके थे ।
पारसनाथ परेशान था । वह जानता था, महाजन ने रहस्यमय जीव के पास जाकर बहुत बड़ी गलती कर दी है । वह महाजन को किसी भी हाल में जिन्दा नहीं छोड़ेगा । यहाँ बहुत भीड़ थी । महाजन को जबरदस्ती रोक भी नहीं सकता था ।
तभी पारसनाथ के खुरदुरे चेहरे पर अजीब से भाव उभरे । वह चौंका । आँखें सिकुड़ गईं ।
बाईं तरफ से भीड़ में से मोना चौधरी उसे आती दिखाई दी ।
अजीब-सी हालत में खड़ा पारसनाथ उसे देखता रहा ।
“क्या हुआ ?” पास आने पर मोना चौधरी ने उसका चेहरा देखा तो पूछा ।
“तुम कहाँ गई थीं ?” पारसनाथ के होंठों से निकला ।
“कमिश्नर रामकुमार से मिलने । वो मुझे एक तरफ अकेला जाता दिखा था ।” मोना चौधरी ने कहा, “उसे देखते ही मैं जल्दी से उसकी तरफ भागी कि कहीं वो बाकी पुलिस वालों के बीच पहुँचकर व्यस्त न हो जाये ।”
पारसनाथ ने गहरी साँस ली ।
“क्या हुआ ?”
“जब वो जीव खिड़की पर दिखा था, तुम तभी गायब हो गई बिना कुछ बताये ।” पारसनाथ ने धीमे स्वर में कहा, “मैंने यही समझा कि तुम जीव को देखते ही, इमारत की तरफ चली गई हो ।”
“तो ?” मोना चौधरी की नजरें पारसनाथ पर ही थीं ।
“महाजन आया तो मैंने उसे यही बताया कि तुम शायद इमारत में रहस्यमय जीव के पास गई हो । वो... ।”
“कहीं वो सामने, उसी इमारत में तो नहीं चला गया ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
“हाँ ! ये समझकर कि तुम भीतर गई हो, वो इमारत में चला गया ।” पारसनाथ ने बेचैनी भरे स्वर में कहा ।
मोना चौधरी हक्की-बक्की-सी पारसनाथ को देखती रह गई ।
“मैंने उसे रोकने की चेष्टा की, परन्तु वो रुका नहीं !”
“अगर मैं उस इमारत में रहस्यमय जीव के पास भी गई होती तो वो मेरे पास आकर क्या कर लेता ?” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी, “क्या उस जीव के हाथों से मुझे बचा लेता ?”
“मैंने कहा था उसे ये सब । लेकिन वो माना नहीं मेरी बात ।”
मोना चौधरी के दाँत भिंच गए ।
“कहीं तुम भीतर चले मत जाना, उस जीव के पास ।” पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा ।
“क्यों ?”
“महाजन को इमारत में गए एक घण्टा होने वाला है ।” पारसनाथ परेशान-सा कह उठा, “उसे कोई नहीं बचा सकता । अब तक तो महाजन के साथ जो होना था, वो हो चुका होगा ।”
मोना चौधरी ने इमारत की आठवीं मंजिल की खिड़की पर नजर मारी । वहाँ कभी-कभार वह जीव नजर आ जाता था, परन्तु इस वक्त खिड़की पर वह नहीं दिखा ।
“बहुत गलत किया महाजन ने ?” मोना चौधरी अनमने मन से बेचैन-सी कह उठी ।
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।
“कमिश्नर रामकुमार क्या कहता है, पुलिस उस जीव के खिलाफ क्या करने जा रही है ?” पारसनाथ ने पूछा ।
“पुलिस ने अभी फैसला नहीं लिया ।” मोना चौधरी की निगाह पुनः आठवीं मंजिल की खिड़की की तरफ उठी, “लेकिन फैसला लेने की कोशिश की जा रही है । मैंने रामकुमार को बता दिया है कि गोलियाँ चलाकर उस जीव पर काबू नहीं पाया जा सकता ।”
पारसनाथ ने कुछ नहीं कहा । उसके खुरदुरे चेहरे पर खिन्नता और आँखों में व्याकुलता झलक रही थी ।
“महाजन के साथ जाने क्या हुआ होगा ।” पारसनाथ एकाएक होंठ भींचकर कह उठा ।
“उसे गए एक घण्टा हो चुका है ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा, “अगर सब कुछ ठीक रहा होता तो उसे वापस आ जाना चाहिए था ।”
“ठीक कहती हो । अब तक महाजन के न लौटने का मतलब है कि उसके साथ कुछ बुरा हो चुका है ।”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
“अब कहीं तुम महाजन के पीछे मत चली जाना ।” पारसनाथ ने परेशान-गंभीर स्वर में कहा ।
“अवश्य चली जाती ।” मोना चौधरी के होंठों से सपाट स्वर निकला, “अगर इस बारे में थोड़ा-सा भी यकीन होता कि उस जीव के हाथों महाजन को बचा लूँगी । वक्त निकल चुका है । एक घण्टा बीत चुका है । महाजन के साथ जो होना था, हो चुका होगा । महाजन के लिए अब कुछ नहीं किया जा सकता । उस जीव के सामने जाऊँगी तो वो मुझे मार देगा । मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकती ।”
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा ।
दोनों की गंभीर, परेशान, व्याकुल निगाहें मिलीं । होंठ बन्द ही रहे ।
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