अगली सुबह रेडियो पर प्रसारित हुई खबरों में पिछली रात को नगर की चार प्रमुख क्लबों पर फेंके गए बमों का भी जिक्र था । खबर में पुलिस लेबोरेट्री की इस रिपोर्ट का भी जिक्र था कि चारों क्लबों पर फेंके गए बम एक ही प्रकार के थे जिससे पुलिस ने यह नतीजा निकाला था कि इस बमबारी के पीछे किसी एक ही आदमी का हाथ था । पुलिस के एक प्रवक्ता ने उन घटनाओं को बेहद रहस्यपूर्ण बताया था लेकिन वे उनके पीछे किसी उद्देश्य को समझ पाने में सर्वदा असमर्थ रहे थे ।
शाम को एल्बुर्क्क इतना ऊंचा बोल रहा था कि आवाज सारे कमरे में गूंज रही थी ।
“अल्फांसो” - वह असहाय भाव में दहाड़ा - “क्या सचमुच ही तुम्हारी अक्ल मारी गई है ?”
“अब क्या हो गया है !” - अल्फांसो बड़ी मासूमियत से बोला ।
“तुम्हें नहीं मालूम क्या हो गया है ! जो हरकत कल रात तुमने करवाई है, उसका अंजाम जानते हो ?”
“तुम जानते हो ?”
“मैं तो जानता हूं । तभी तो फोन कर रहा हूं ।”
“जानते हो तो तुमने ऐसी बेहूदी शुरुआत क्यों की ?”
एल्बुर्क्क कुछ क्षण चुप रहा और फिर परेशान स्वर में बोला - “अल्फांसो, क्यों उस मामूली छोकरे की वजह से खुद भीतर बाहर हो रहे हो और मुझे भी तबाह कर रहे हो ? तुम समझते क्यों नहीं ? नारंग उस छोकरे को किसी हालत में नहीं छोड़ेगा । वह उसकी जान का खतरा है ।”
“क्यों एक ही बात को बार-बार दोहरा रहे हो ?”
“इसलिए कि वह तुम्हारी मोटी अक्ल में घुस सके अल्फांसो मेरे बाप, नारंग ने मुझे अल्टीमेटम दिया हुआ है कि अगर मैंने उस छोकरे को पकड़कर उसके हवाले नहीं किया तो वह गोवा से मेरा पत्ता काट देगा । एक बार गोवा पर उसने हाथ डाल दिया तो फिर तुम्हारा पत्ता अपने आप कट जाएगा । अपनी इस वाहियात-सी जिद के चक्कर में खुद तो डूब रहे हो, साथ में मुझे क्यों डुबो रहे हो ।”
“तुम डूबो या तैरो, मेरी बला से । लेकिन जो तुम चाहते हो, वह नहीं हो सकता । वह छोकरा तुम्हारे हवाले नहीं हो सकता । चाहे इसके लिए तुम कोशिश करो, चाहे नारंग कोशिश करे, और चाहे सारे हिंदोस्तान के दादा इकट्ठे मिलकर कोशिश करें ।”
“मैं तुम्हारा खाना खराब कर दूंगा ।” - एल्बुर्क्क टेलीफोन पर गला फाड़कर चिल्लाया ।
“तुम्हें ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा ।” - अल्फांसो शान्ति से बोला - “मैं कैसा करारा जवाब देने की क्षमता रखता हूं, इसका नमूना तुम कल देख चुके हो । भविष्य में भी तुम्हें ऐसे ही जवाब पेश किए जायेंगे । समझे एन्थोनी एल्बुर्क्क !”
दूसरी ओर से भड़ाक से रिसीवर को क्रेडिल पर पटके जाने की आवाज आई । सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
अल्फांसो ने भी रिसीवर रख दिया ।
“अब ?” - विमल ने पूछा ।
“फिलहाल इन्तजार ।” - अल्फांसो बोला ।
“किस बात का ?” - अल्बर्टो बोला - “इस बार उसके सारी इमारत को ही बुनियाद से उखाड़ देने का ?”
“देखते हैं क्या होता है ?” - अल्फांसो दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला ।
तभी टेलीफोन की घंटी बजी ।
विमल ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठा लिया ।
“हल्लो !” - वह बोला ।
“मैं सुन्दरी तारापोरवाला बोल रही हूं ।” - दूसरी ओर से एक स्त्री का मधुर स्वर सुनाई दिया - “मिस्टर अल्फांसो हैं ?”
एकाएक विमल के नेत्र फैल गए । उसने कसकर रिसीवर पकड़ लिया । अल्फांसो बड़ी गौर से उसका मुंह देख रहा था ।
“जी हां, हैं ।” - विमल कठिन स्वर में बोला - “जरा होल्ड कीजिए ।” - उसने माउथपीस को हाथ से ढक लिया और अल्फांसो से बोला - “सुन्दरी तारापोरवाला । वही औरत जो उस रात क्लब में चालीस हजार रुपये जीती थी और जिसे आप डोना पाला बीच छोड़ने गये थे ।”
“जिसके यहां से लौटते समय ही आप पर यह घातक आक्रमण हुआ था ।” - अल्बर्टो ने याद दिलाया ।
“आई सी ।” - अल्फांसो बोला - “क्या चाहती है ?”
“मैंने पूछा नहीं । लेकिन अल्फांसो साहब...”
“हां, हां ।”
“अब मैं इस औरत को पहचान गया हूं । मैंने शुरु में ही कहा था कि इसमें कोई ऐसी बात है जो मेरी जानी-पहचानी है । इसमें जानी-पहचानी बात इसकी आवाज ही थी जो मैं पहले भी सुन चुका हूं । पहले भी यह आवाज मैंने टेलीफोन पर सुनी थी इसलिए प्रत्यक्ष में आवाज सुन चुकने के बाद मेरे कानों में खतरे की घंटियां तो बजने लगी थीं लेकिन मुझे कोई निर्णयात्मक बात नहीं सूझी थी । आज इसकी फोन पर आवाज सुनते ही मैंने इसे झट पहचान लिया है !”
“कौन है ये ?” - अल्फांसो ने उत्सुक स्वर में पूछा ।
“यह वही औरत है जिसने त्रिलोकीनाथ की हत्या की अगली सुबह त्रिलोकीनाथ के दफ्तर में फोन करके मुझसे पूछा था कि क्या मैंने त्रिलोकीनाथ के किसी लिखित बयान पर हस्ताक्षर किए थे और क्या मैंने हस्ताक्षर करने से पहले उस बयान को अच्छी तरह पढ़ा था । अल्फांसो साहब, मैं इस आवाज को जिंदगी भर नहीं भूल सकता । इसी की वजह से तो मुझे बम्बई से पलायन करना पड़ा था ।”
“ओह ! तो नारंग ने इसे भी तुम्हारे ही पीछे लगाने को यहां भेजा है । तभी उस रात यह इतनी कोशिश कर रही थी कि तुम इसके साथ क्लब से बाहर चलो और यह तुम्हें ऊपर भिजवाने का सामान करे ।”
“मैं साली का गला काट दूंगा ।” - अल्बर्टो आवेशपूर्ण स्वर में बोला ।
“नहीं” - विमल बोला - “अल्फांसो साहब, मुझे यह औरत नारंग की कोई खास चहेती मालूम होती है । मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है कि इसके माध्यम से हम नारंग पर हाथ डाल सकते हैं । क्यों न हम यह टटोलने की कोशिश करें कि यह वास्तव में चाहती क्या है ?”
“तुम्हें ही चाहती होगी, और क्या ? खामखाह लेने के देने पड़ जाएंगे दोस्त ।”
“अगर सावधानी बरती जाए तो शायद ऐसा न हो ।”
अल्फांसो चुप रहा ।
“अगर इस बात का अनुमान हो जाए कि नारंग के लिए इस औरत का कितना महत्व है तो शायद इसके माध्यम से नारंग पर दबाव डालने की ही कोई सूरत निकल आये और फिर यह झंझट ही खत्म हो जाए ।”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो ।”
“उससे बात तो करो” - अल्बर्टो बोला - “वह बेताब हो रही होगी ।”
विमल ने माउथपीस पर से हाथ हटा लिया और रिसीवर कान से लगाकर बोला - “हल्लो ।”
“यस” - दूसरी ओर से आवाज आई - “मिस्टर अल्फांसो ?”
“मैं माफी चाहता हूं, मैडम” - विमल मीठे स्वर में बोला - “मिस्टर अल्फांसो इस वक्त आपसे बात करने की स्थिति में नहीं हैं । डॉक्टर ने अभी उन्हें सिडेटिव दिया है और वे सोए हुए हैं । मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइए ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“कैलाश ।”
“कैलाश मल्होत्रा ? अल्फांसो साहब का कैशियर ?”
“जी हां । वही ।”
“ओह कैलाश, कैसी तबीयत है अब अल्फांसो साहब की ?”
“वो अब ठीक हैं । खतरे से बाहर हैं ।”
“मुझे तो उस रोज की बात की बहुत देर बाद खबर लगी । मैं जरा वास्को डिगामा चली गई थी । लौटी तो मालूम हुआ कि किसी ने उन पर गोली चला दी थी । फिर पता लगा कि कैसीनो बन्द हो गया है और आज सुना कि कल रात किसी ने क्लब पर बम फेंका था ।”
“आपने ठीक सुना है, मैडम ।”
“बहुत ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ ?”
“काफी नुकसान हुआ है ।”
“तुम मुझे अल्फांसो साहब से मिलवा सकते हो ?”
“क्यों नहीं !” - विमल सावधानी से बोला - “लेकिन उसके लिये आपको यहां आना होगा ।”
“मुझे कोई एतराज नहीं लेकिन एक मेहरबानी तुम्हें मुझ पर करनी होगी ।”
“हुक्म कीजिए, मैं हर सेवा के लिए हाजिर हूं ।”
“मुझे यहां आकर ले जाओगे ?”
विमल ने हिचकिचाने का अभिनय किया ।
“अब कोई बहाना मत देना ।” - वह बोली - “क्लब बन्द होने की वजह से आजकल तो तुम एकदम खाली होओगे ।”
“ओके” - विमल निर्णयात्मक स्वर में बोला - “मैं हाजिर हो जाऊंगा । फरमाइए कब आऊं ?”
“दस-साढ़े दस बजे आ सकते हो ?”
“मैं साढ़े दस बजे आ जाऊंगा । कहां आना होगा ?”
“डोना पाला बीच पर । केबिन नम्बर चौदह ।”
“ओके ।”
“मैं तुम्हारा इन्तजार करूंगी ।”
“मैं वक्त पर पहुंच जाऊंगा ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
“मुझे यह बात जंच नहीं रही ।” - अल्फांसो बोला - “साढ़े दस बजे वह तुम्हारे लिए जाल फैलाकर बैठी होगी कि तुम जाओ और उसमें फंसो ।”
“मैं नहीं फंसूगा” - विमल विश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “क्योंकि जाल की मुझे एडवांस में खबर है ।”
“तुम नारंग की सामर्थ्य का गलत अन्दाजा लगा रहे हो । वह बहुत खतरनाक साबित हो सकता है ।”
“कबूल । इसी वजह से मैं बहुत ज्यादा सावधानी बरतूंगा ।”
“लेकिन...”
“देखिए, अल्फांसो साहब । यह सिलसिला कभी तो खत्म होना ही है । वर्ना एल्बुर्क्क से चल रही यह जंग पता नहीं कहां तक पहुंचे । आप पीछे नहीं हटना चाहते क्योंकि यह आपके लिए मान-सम्मान का प्रश्न बन गया है । आप कहते हैं कि अगर आप एक इंच पीछे हटे तो ये लोग आपको एक मील पीछे धकेल देंगे । फिर आप यह क्यों नहीं सोचते कि अगर आप एक इंच आगे बढ़े तो शायद ये लोग एक मील पीछे सरकने को मजबूर हो जाएं ।”
अल्फांसो सोचने लगा ।
“और यह मत भूलिए कि एल्बुर्क्क की आपसे कोई जाति दुश्मनी नहीं है । जो कुछ वह कर रहा है, वह उस पर दबाव डालकर करवाया जा रहा है । अगर हम नारंग पर हाथ डालने की जुर्रत कर सकें और उससे कोई नतीजा हासिल करके दिखा सकें तो सम्भव है कि एल्बुर्क्क भी नारंग के दबाव में आने से इन्कार कर दे ।”
“आल राइट !” - अल्फांसो बोला - “जो मुनासिब समझो, करो लेकिन एक शर्त मेरी भी है ।”
“क्या ?”
“तुम्हें अल्बर्टो को अपने साथ रखना होगा ।”
“नहीं” - विमल दृढ़ स्वर में बोला - “इससे कोई फायदा नहीं होगा, उलटे जो कुछ हाथ आने की उम्मीद है, वह हाथ नहीं आएगा । अल्फांसो साहब, अगर मैं खुद अपनी सलामती के लिए कोई सावधानी नहीं बरत सकता तो एक अल्बर्टो तो क्या, दस अल्बर्टो साथ ले जाने से भी मुझे कोई फायदा नहीं होगा ।”
“कम-से-कम यह तो बताओ कि तुम क्या सावधानी बरतने जा रहे हो ?”
“जरूर ।” - विमल बोला ।
उसने बताया ।
“ओके” - अल्फांसो बोला - “अल्बर्टो यहां एक ऐसे दुकानदार को जानता है जो तुम्हारी ये दोनों जरूरतें पूरी कर देगा । तुम इसके साथ उसके पास चले जाओ ।”
“वह भरोसे का आदमी है ? जरूरत पड़ने पर आपकी खातिर झूठ बोलने का खतरा उठाने को तैयार हो जाएगा ?”
“जरूरत पड़ने पर वह मेरी खातिर सर कटाने को तैयार हो जाएगा ।” - अल्फांसो विश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
“फिर ठीक है ।” - विमल बोला । वह अल्बर्टो की तरफ घूमा - “चलें ?”
अल्बर्टो ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया और उठ खड़ा हुआ ।
***
दुकानदार का नाम अब्राहम था । प्रत्यक्षत: वह पॉन शॉप (Pawn Shop : चीजों को गिरवी रखने की दुकान) चलाता था, लेकिन उसका मुख्य धन्धा चोरी-चकारी के माल की खरीद-फरोख्त था । अलबर्टो को देखते ही उसने अल्फांसो के बारे में भारी चिंता व्यक्त की और जब तक उसे तसल्ली नहीं हो गई कि अब अल्फांसो खतरे से बाहर था, उसने अल्फांसो के बारे में सवाल पूछने बन्द नहीं किए । उसके बाद कहीं जाकर उसने विमल की ओर ध्यान दिया । अल्बर्टो ने उसे विमल का परिचय अल्फांसो साहब के दोस्त के रूप में दिया ।
विमल ने उसे अपनी जरूरत बताई ।
अब्राहम उन्हें दुकान के पिछवाड़े के एक कमरे में ले गया । वहां एक अलमारी का ताला खोलकर उसने दो जूते रखने वाले गत्ते के डिब्बे निकाले । पहले उसने एक डिब्बा खोला और उसमें से एक 45 कैलिबर की रिवॉल्वर बरामद की । उसने रिवॉल्वर विमल के हाथ में थमा दी । विमल ने रिवॉल्वर को परखा और फिर सहमति में सिर हिला दिया ।
“गोलियां ?” - अब्राहम ने पूछा ।
“हां ।” - विमल बोला - “लेकिन असली नहीं । नकली । खाली । ब्लैंक हैं ?”
“हैं नहीं” - अब्राहम बोला - “लेकिन अभी बनाये देता हूं ।”
“कैसे ?”
“45 कैलिबर की असली गोलियों को पीछे से खोलकर बारूद निकाल दूंगा और उसकी जगह रेत भर दूंगा ।”
“ओके । लेकिन काम बड़ी नफासत से होना चाहिए । ऐसा न हो कि किसी को शक हो जाए और सारा खेल बिगड़ जाये ।”
“आप चिन्ता मत कीजिए ।”
आधे घंटे में अब्राहम ने वैसी छ: गोलियां तैयार की और उन्हें रिवॉल्वर में भर दिया ।
विमल ने रिवॉल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली ।
“अब दूसरी चीज ?” - वह बोला ।
अब्राहम ने गत्ते का दूसरा डिब्बा खोला । उसमें से उसने एक बच्चों के खिलौने से भी छोटे आकार की रिवॉल्वर निकाली । रिवॉल्वर विमल की हथेली से भी छोटी थी और निहायत हल्की थी ।
“ओके ?” - अब्राहम ने आशापूर्ण निगाहों से उसे देखते हुए पूछा ।
“ओके !” - विमल बोला - “गोलियां ?”
“भीतर मौजूद हैं ।” - अब्राहम बोला ।
“असली ?”
“हां ।”
“कितनी ?”
“चार । यह रिवॉल्वर चार ही फायर करती है ।”
“वैरी गुड । और अब दूसरा काम काम ?”
“अपना कोट उतारिए ।”
विमल ने कोट उतारा ।
“कमीज की दाईं आस्तीन ऊपर चढ़ा लीजिए ।”
विमल ने ऐसा ही किया ।
अब्राहम ने एक फीता निकाला और उसकी नंगी बांह को कलाई और कोहनी के बीच में दो-तीन स्थानों पर नापने लगा ।
“मैं अभी आया ।” - अन्त में बोला ।
वह बगल के कमरे में चला गया ।
पन्द्रह मिनट बाद वह वापस लौटा तो वह अपने साथ एक रबड़ का लम्बा, पतला लेकिन मजबूत टुकड़ा, एक जूते बांधने वाला मजबूत तस्मा और एक उसकी बांह के अग्रभाग के नाप के अनुसार तैयार किया चमड़े का दो इंच चौड़ा, पट्टीनुमा स्ट्रैप लेकर लौटा । उसने स्ट्रैप को विमल की कलाई से कोई छ: इंच ऊपर कस दिया । उसने नन्हीं रिवॉल्वर के दस्ते के साथ तस्मे को और रबड़ के टुकड़े को एक विशेष ढंग से बांधा, उन्हें कलाई पर बंधे स्ट्रैप के साथ बांधा और रिवॉल्वर को स्ट्रैप पर लगे एक क्लिप के साथ फंसा दिया ।
“ट्राई करो ।” - अब्राहम बोला ।
विमल ने अपनी बांह को सामने फैलाकर एक झटका दिया । रिवॉल्वर क्लिप से निकली, उसके साथ बंधा रबड़ फैला और वह सीधी विमल की हथेली में आ पहुंची ।
अब्राहम ने बड़ी बारीकी से सारा एक्शन देखा । फिर उसने फीते को खोलकर थोड़ा ऊंचा करके बांधा और विमल को कमीज की आस्तीन नीची कर लेने को कहा ।
विमल ने ऐसा ही किया । कमीज में से रिवॉल्वर का अब आभास भी नहीं मिल रहा था ।
“फिर ट्राई करो ।” - अब्राहम बेाला ।
विमल ने बांह को झटका दिया । रिवॉल्वर जैसे जादू के जोर से उसकी आस्तीन में से निकलकर उसके हाथ में आ गई । अब्राहम ने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया ।
विमल ने आस्तीन चढाकर रिवॉल्वर वापस क्लिप में फंसा ली, आस्तीन नीची की और कोट पहन लिया ।
“यह रिवॉल्वर” - विमल बोला - “तुमने एक औरत से खरीदी थी जिसने अपना नाम नहीं बताया था, लेकिन तुमने उसकी सूरत बड़ी गौर से देखी थी और तुम दोबारा देखने पर उसे बड़ी सहूलियत से पहचान लोगे ।”
“उसकी कोई तस्वीर वगैरह ?” - अब्राहम गम्भीर स्वर में बोला ।
“तस्वीर नहीं है लेकिन मैं उसका हुलिया बयान कर सकता हूं । गौर से सुनो और अच्छी तरह याद कर लो ।”
विमल ने बड़ी बारीकी से सुन्दरी तारापोरवाला का कद-काठी और हुलिया अब्राहम के आगे बयान कर दिया ।
“ठीक है ।” - अब्राहम बोला ।
“जब वह औरत रिवॉल्वर अपने हैण्डबैग में रख रही थी” - विमल बोला - “तो बैग में से एक कागज निकलकर नीचे गिर पड़ा था । तुमने वह कागज फर्श से उठाकर उसे थमाया था । कागज उसे लौटाने से पहले तुमने देखा था कि वह किसी सुन्दरी तारापोरवाला के नाम कटी किराये की एक रसीद थी और किराये पर दी गई जगह के स्थान पर केबिन नम्बर चौदह डोना पाला बीच, पंजिम लिखा था ।”
“सरासर लिखा था” - अब्राहम गम्भीर स्वर में बोला - “मैंने खुद अपनी आंखों से पढ़ा था । सुन्दरी तारापोरवाला, केबिन नम्बर चौदह, डोना पाला बीच, पंजिम ।”
“वैरी गुड ।”
अब्राहम चुप रहा ।
“वैसे जरूरी नहीं है कि इस बारे में तुमसे कोई पूछताछ हो ।”
“कोई फर्क नहीं पड़ता ।” - वह सहज स्वर में बोला - “हो या न हो ।”
“इन दोनों रिवाल्वरों की कीमत ?” - अल्बर्टो बोला ।
“मैं अल्फांसो साहब से खुद आकर ले लूंगा ।” - अब्राहम उसकी बात काटकर बोला ।
अल्बर्टो ने विमल को संकेत किया । दोनों दुकान से बाहर निकल आए ।
वे कार में सवार हुए । विमल ड्राइविंग सीट पर बैठा । उसने कार को सोल्मर नाइट क्लब की तरफ बढ़ा दिया ।
क्लब के पिछवाड़े की सड़क पर दाखिल होने पर विमल ने अनुभव किया कि सड़क की बत्ती नहीं जल रही थी जबकि सूरज डूबे एक घंटे से ज्यादा हो गया था । लेकिन जब आगे बढ़ने पर उसने पिछवाड़े के दरवाजे के ऊपर की बत्ती भी न जलती पाई तो उसका माथा ठनका । उस बत्ती का स्विच भीतर किचन में था और उसे सूरज डूबते ही ऑन कर दिया जाता था । उसके कानों में खतरे की घंटियां बजने लगीं ।
“गड़बड़ !” - उसके मुंह से निकला । उसने फौरन पूरी शक्ति से एक्सीलेटर का पैडल दबाया । कार जो इमारत के पास पहुंचकर धीमी हो गई थी, एकदम तोप से छूटे गोले की तरह सामने भागी । तभी पार्किंग की तरफ से मशीनगन चलने की रेट-रेट की आवाज आने लगी । विमल ने सिर नीचे झुका लिया और अन्धाधुन्ध कार चलाता रहा ।
अल्बर्टो ने भी सिर नीचे कर लिया था और रिवाल्वर‍ निकालकर हाथ में ले ली थी । कार के शीशे चटाख-चटाख टूटने लगे लेकिन सौभाग्यवश न तो कोई गोली उनसे टकराई और न ही कार को कोई ऐसा नुकसान पहुंचा जिसकी वजह से वह चल न पाती ।
चौराहे पर पहुंचकर विमल ने इतनी तेजी से बिना रफ्तार घटाये कार को मोड़ा कि एक ओर के दोनों पहिए सड़क से कोई दो फुट ऊंचे उठ गए । उसने वैसी ही तूफानी रफ्तार से अगला मोड़ भी काटा और फिर पूरी शक्ति से ब्रेक का पैडल दबाया । कार के सड़क पर घिसटने से पैदा हुई चरचराहट की आवाज से वातावरण गूंज उठा । उसने कार को एक तरफ रोका । दोनों बाहर निकले और इमारतों के बीच की पतली गली में से होते हुए दबे पांव वापस भागे । मशीनगन चलनी शुरु होने से अब तक केवल तीस सैकेंड का समय गुजरा था । गली के दहाने पर पहुंचकर वे ठिठके । क्लब के पिछवाड़े की पार्किंग में उस वक्त केवल एक ही कार खड़ी दिखाई दे रही थी ।
“तुम यहीं ठहरो ।” - अल्बर्टो फुसफुसाया ।
विमल ने विरोध नहीं किया । नाम को उस वक्त उसके पास दो रिवॉल्वर थीं लेकिन वास्तव में दोनों बेकार थीं । एक में खाली गोलियां थीं और दूसरी की गोलियां फासले से चलाई जाने पर दुश्मन का कोई विशेष नुकसान करने की क्षमता नहीं रखती थीं ।
अल्बर्टो सावधानी से कार की तरफ बढ़ा ।
“क्या हुआ ?” - कार में बैठे दो आदमियों में से एक बोला ।
“पता नहीं” - दूसरा बोला - “कुछ समझ में नहीं आया ।”
“कुछ हो गया हो तो अच्छा है । नहीं हुआ है तो अब दोबारा कुछ नहीं होने वाला है । अब निकल चलो यहां से ।”
अल्बर्टो कार के पीछे पहुंचकर ठिठका ।
तभी कार का इंजन स्टार्ट हुआ । अल्बर्टो ने बड़ी सावधानी से निशाना लगाकर फायर किया ।
कार का पिछला शीशा टूटा और गोली ड्राइवर की बगल में बैठे आदमी की खोपड़ी में घुस गई । उसके मुंह से एक घुटी-सी चीख निकली और उसका सिर सामने डैशबोर्ड में जाकर टकराया । ड्राइविंग सीट पर बैठा आदमी हड़बड़ाकर घूमा । उसने गोद में रखी मशीनगन उठा ली, लेकिन अभी वह उसकी नाल को सीधा भी नहीं कर पाया था कि अल्बर्टो ने दूसरा फायर किया । निशाना इतना अच्छा था कि उसके माथे के एकदम बीचों-बीच सुराख दिखाई देने लगा । रायफल उसके हाथ से निकल गई और वह स्टेयरिंग पर उलट गया ।
विमल ओट से बाहर निकला और कार की तरफ भागा ।
अलबर्टो ने आगे बढ़कर कार का दरवाजा खोला और दोनों का मुआयना किया । दोनों मर चुके थे । खोपड़ी में गोली लगने के बाद उसके बचे रहने की सम्भावना थी भी नहीं ।
“शायद इनके कोई जोड़ीदार सामने दरवाजे पर मौजूद हों ?” - विमल बोला ।
“हो सकता है ।” - अल्बर्टो बोला ।
“हम इन्हीं की कार पर सामने चलते हैं । कार देखकर शायद वे खुद प्रकट हो जायें । गोलियां चलने की आवाज तो उनके कानों में भी पड़ी होगी । उन्होंने यही समझा होगा कि काम हो गया है ।”
“लेकिन लाशें !”
“पड़ी रहने दो ।” - विमल बोला । उसने स्टेयरिंग पर ढेर हुए आदमी को परे धकेला और स्वयं स्टेयरिंग के पीछे बैठ गया । अल्बर्टो पिछली सीट पर सवार हो गया ।
वे घेरा काट कर क्लब के सामने की सड़क पर पहुंचे । वहां भी अंधेरा था । विमल ने कार को एक स्थान पर खड़ा किया और धीरे से हॉर्न बजाया ।
तुरन्त सड़क के पार झाड़ियों के झुंड में से दो आदमी बाहर निकले और कार की तरफ बढ़े । दोनों की बगल में मशीनगन रखी हुई थी ।
आधे रास्ते में उन दोनों में से एक को पता नहीं कैसे संदेह हो गया । उसने तुरन्त अपनी मशीनगन संभाली लेकिन वह उसे फायरिंग की पोजीशन में ही ला पाया, फायर कर न सका । अल्बर्टो की रिवॉल्वर से निकली गोली ने उसे धराशायी कर दिया । उसका साथी एकदम घूमा और‍ हिरण की तरह कुलांचे भरता हुआ वापिस भागा । अल्बर्टो ने फिर फायर किया और फिर वह भी ढेर हो गया ।
तभी क्लब का मुख्य द्वार खुला और दरवाजे पर बारटेण्डर सैम दिखाई दिया । उसके हाथ में एक रायफल थी ।
“खेल खत्म हो चुका है, सैम ।” - अल्बर्टो ने आवाज दी ।
“ओह !” - सैम बोला । उसने रायफल वहीं दरवाजे की चौखट के साथ टिका दी और कार की तरफ भागा ।
अल्बर्टो कार से बाहर निकला । सैम की सहायता से उसने उन दोनों व्यक्तियों की लाशों को कार की पिछली सीट पर लाद दिया ।
“एक कार लेकर आओ ।” - अल्बर्टो ने आदेश दिया ।
सैम वापिस भागा ।
थोड़ी देर बाद वह अल्फांसो की एक अन्य कार पर सवार होकर वापस लौटा । उसने कार को बदमाशों की कार की बगल में ला खड़ा किया और बाहर निकला ।
“पिछवाड़े की एक गली में मेरी कार खड़ी है ।” - अल्बर्टो बोला - “कार मशीनगन की गोलियों से छलनी हुई पड़ी है । तुम कार को चुपचाप क्लब से कहीं दूर छोड़ आओ और फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दो कि मेरी कार क्लब के कम्पाउंड में से चोरी चली गई है । समझ गये ?”
सैम ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“जाओ ।”
सैम चला गया ।
“अब क्या इरादा है ?” - विमल ने पूछा ।
“एल्बुर्क्क का माल उसे लौटाकर आने का इरादा है ।” - अल्बर्टो बोला ।
“ओके ।”
“तुम्हें यह कार चलाने में कोई परेशानी तो नहीं होगी ?”
“कैसी परेशानी ?”
“मेरा मतलब है, चार लाशों की मौजूदगी में...”
“मुझे कोई परेशानी नहीं होगी ।”
“ओके ! मैं दूसरी कार में बैठता हूं । तुम मेरे पीछे-पीछे कार चलाते आना ।”
“ठीक है ।”
अल्बर्टो सैम द्वारा छोड़ी कार में सवार हो गया । उसने कार आगे बढाई । विमल ने बदमाशों वाली कार उसके पीछे लगा दी । वे मांडवी होटल के पास पहुंचे ।
अल्बर्टो ने कार को होटल के पिछवाड़े की सड़क पर ले जाकर खड़ा किया । विमल ने भी कार उसके पीछे ले जाकर खड़ी की । दोनों कारों से बाहर निकले ।
उसके बाद उन्होंने चारों लाशों को कार में बड़े व्यवस्थित ढंग से बैठी हुई मुद्राओं में पंहुचा दिया । उनकी मशीनगनें उन्होंने उनकी टांगों के बीच में खड़ी कर दीं ।
फिर अल्बर्टो ने अपनी जेब से अपना पैन निकला । उसने पैन की सारी स्याही अपनी बाईं हथेली पर उड़ेल ली और फिर उसमें दाएं हाथ की पहली उंगली डुबोकर उसने चारों आदमियों की छातियों पर स्याही से लिख दिया - ‘सधन्यवाद वापस’ । फिर वे दोनों अल्फांसो वाली कार में सवार हुए और होटल के सामने वाले भाग में पहुंचे ।
“होटल में मुझे हर कोई पहचानता है ।” - अल्बर्टो बोला - “तुम्हें कोई नहीं पहचानता होगा । लॉबी में जाकर ऊपर एल्बुर्क्क​ को फोन कर आओ ।”
“ठीक है ।” - विमल बोला और कार से बाहर निकल आया । वह रिसैप्शन पर पहुंचा ।
“मुझे मिस्टर एन्थोनी एल्बुर्क्क​ से बात करनी है ।” - वह बोला ।
रिसैप्शनिस्ट ने एक फोन उठाया । वह कुछ क्षण कहीं बात करता रहा, फिर उसने फोन विमल को थमा दिया ।
“हल्लो !” - विमल बोला ।
“कौन है ?” - दूसरी ओर से पूछा गया ।
“तुम कौन हो ?”
“मारियो ।”
“साहब को बुलाओ ।”
“लेकिन...”
“साहब को बुलाओ, ईडियट ।”
“अच्छा, अच्छा ।”
थोड़ी देर बाद उसके कानों में एल्बुर्क्क की आवाज पड़ी - “हल्लो । कौन है ?”
“मैं तुम्हारा बाप बोल रहा हूं, हरामजादे ।” - विमल बड़े नाटकीय स्वर में बोला । रिसैप्शनिस्ट ने गाली सुनी तो वह सख्त एतराज भरे अन्दाज से आगे बढा लेकिन विमल ने अपना खुला हाथ उसके चेहरे पर टिकाया और उसे पीछे को धकेल दिया - “तुम्हारे चार चिड़ीमार पिछवाड़े की सड़क पर खड़ी कार में मौजूद हैं । उनकी वसूली की रसीद अल्फांसो साहब को भिजवा देना ।”
उसने रिसीवर को क्रेडिल पर पटका और लॉबी से बाहर निकल गया । वह कार में आ सवार हुआ । अल्बर्टो ने कार फौरन आगे बढा दी ।
“एल्बुर्क्क ने ऐसा क्यों किया ?” - एकाएक विमल बोला ।
“कैसा क्यों किया ?” - अल्बर्टो बोला - “ये जो चार मशीनगन वाले सोल्मर क्लब भेजे !”
“हां ।”
“वह बौखला गया मालूम होता है । वह अल्फांसो को किसी भी प्रकार की चोट पहुंचाना चाहता है । मैं अल्फांसो का दायां हाथ हूं । अल्फांसो बिस्तर पर पड़ा है । शायद उसने सोचा हो कि अगर मेरा काम तमाम हो जाये तो अल्फांसो पूरी तरह अपाहिज हो जायेगा और उसके विरोध की कमर टूट जायेगी ।”
“लेकिन जब सुन्दरी तारोपोरवाला की मदद से नारंग पहले ही कुछ कर गुजरने को तैयार बैठा दिखाई दे रहा है तो ऐन मौके पर एल्बुर्क्क ने भी ऐसी हरकत क्यों की ?”
“मेरे ख्याल से उस औरत के चक्कर की कोई खबर एल्बुर्क्क को नहीं है । अगर उसे मालूम होता कि तुम पर हाथ डालने का कोई जरिया सीधे नारंग के हाथ में आ गया है तो वह आज वाली हरकत नहीं करता ।”
“आई सी ।”
विमल ने घड़ी देखी । सवा दस बज चुके थे ।
“सवा दस बज गये हैं ।” - वह धीरे से बोला ।
अल्बर्टो ने कार एक ओर रोक दी ।
“मैं आगे टैक्सी पकड़ लूंगा ।” - वह धीरे से बोला ।
“ओके ।”
“वैसे मैं अब भी चाहता हूं कि मैं तुम्हारे साथ चलूं ।”
“कोई फायदा नहीं होगा । उलटे नुकसान होने की सम्भावना है ।”
“जैसा तुम मुनासिब समझो ।”
अल्बर्टो कार से बाहर निकल गया ।
विमल स्टेयरिंग व्हील के पीछे सरक गया ।
फुटपाथ पर खड़े अल्बर्टो ने सौभाग्य के चिन्ह के तौर पर अपनी दांई मुट्ठी बन्द करके अंगूठा ऊपर उठाया । विमल ने भी उसी प्रकार अंगूठा ऊपर उठाया और कार आगे बढा दी ।
***
विमल कार पर डोना पाला बीच पहुंचा ।
बीच का वह भाग जहां सुन्दरी का केबिन था, एकदम सुनसान पड़ा था । उसने केबिन से परे-परे रह कर ही उस इलाके का एक चक्कर लगाया । कहीं कोई नहीं था ।
सुन्दरी के केबिन से कोई चार केबिन परे उसे दो केबिनों के बीच एक कार खड़ी दिखाई दी । उसने देखा कि कार खाली थी, वे दोनों केबिन अंधेरे में थे और उनके मुख्य द्वारों पर ताले लगे हुए थे । उसने अपनी कार से उतर कर उस कार का निरीक्षण किया । वह एक मर्सिडीज कार थी और उस पर लगी नम्बर प्लेट बता रही थी कि वह महाराष्ट्र स्टेट में रजिस्टर्ड गाडी थी । विमल वापिस अपनी कार में आ बैठा । वहां गोवा के बाहर से आई उस इकलौती कार की मौजूदगी उसे बता रही थी कि उसके स्वागत के लिये आये लोग उतने से अधिक नहीं थे जितने एक कार में समा सकते थे ।
कार पर वह वापिस सुन्दरी के केबिन के समीप पहुंचा । केबिन के भीतर प्रकाश का आभास परदे पर पड़ी खिड़कियों में से मिल रहा था । उसने कार को केबिन के सामने रोका और बाहर निकला ।
उसने मुख्य द्वार पर पहुंच कर कॉलबैल बजाई ।
कुछ क्षण बाद दरवाजा खुला और चौखट पर सुन्दरी प्रकट हुई । उसने एक बहुत ही झीने कपड़े की नाइटी पहनी हुई थी । प्रकाश का साधन उसके पीछे था इसलिए उस नाइटी में से उसके नग्न शरीर की एक-एक लकीर नुमायां हो रही थी । उसके शरीर में से सैंट के भभूके छूट रहे थे । लगता था उसने सारी की सारी शीशी एक ही बार अपने ऊपर उंडेल ली थी । विमल पर निगाह पड़ते ही उसके होंठों पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट उभरी । उसने विमल की ओर अपना हाथ बढा दिया ।
विमल ने उसका हाथ थाम लिया और अपने होंठों पर जबररन मुस्कराहट लाता हुआ बोला - “हल्लो ।”
“हल्लो !” - सुन्दरी बोली । उसका हाथ विमल के हाथ पर कस गया । उसने उसे भीतर खींच लिया और दरवाजा भीतर से बंद कर लिया । वह उसे ड्राइंगरूम में ले आई ।
“आप तैयार नहीं हुई ?” - विमल सहज स्वर में बोला ।
“तैयार ?” - वह सकपकाई ।
“अल्फांसो साहब के पास जाने के लिये ?”
“ओह ! वह ! चलते हैं । जल्दी क्या है ?”
“जल्दी तो कोई नहीं है लेकिन...”
“बैठो” - सुन्दरी उसकी छाती पर दोनों हाथ रखकर उसे एक सोफे पर धकेलती हुई बोली - “मैं तुम्हारे लिये ड्रिंक तैयार करके लाती हूं ।”
“आप बैठिये ।” - सोफे पर बैठते ही विमल चाबी लगे खिलौने की तरह फिर उठ खड़ा हुआ - “ड्रिंक्स मैं तैयार करता हूं ।”
“मर्जी तुम्हारी ।” - वह बोली - “फ्रिज किचन में है ।”
विमल को उससे विरोध की आशा थी लेकिन उसके विरोध न करने ने यह सिद्ध कर दिया था कि कम से कम किचन में कोई नहीं था । वह किचन में पहुंचा । उसने रैफ्रीजरेटर खोला । भीतर एक जॉनी वॉकर की पूरी बोतल पड़ी थी । उसने एक बोतल और वह सोडा निकाला, रैक से दो गिलास उठाये और दो जाम तैयार किए । फिर दोनों जाम हाथ में उठाये वह वापिस ड्राइंग रूम में पहुंचा । उसने दोनों गिलास उस मेज पर रख दिए जिनके सामने के सोफे पर सुन्दरी बैठी थी और फिर बगल में पड़े एक अन्य सोफे की ओर बढा ।
“इधर आ कर बैठो ।” - सुन्दरी ने आदेश दिया ।
विमल ने आज्ञा का पालन किया । वह उसकी बगल में आकर बैठ गया । दोनों ने अपने-अपने गिलास उठाये !
“चियर्स !” - वह बोली ।
“चियर्स !” - विमल बोला ।
दोनों ने गिलास होंठों से लगाए ।
सुन्दरी उससे एकदम सट कर बैठी हुई थी । उसकी जांघ के साथ सुन्दरी की जांघ एकदम चिपकी हुई थी ।
सुन्दरी ने अपना गिलास खाली करके मेज पर रख दिया । फिर उसने अपने दोनों हाथ अपने सिर से ऊपर उठाकर एक जोर की अंगड़ाई ली और मादक स्वर में बोली - “कैसी लग रही हूं !”
“बहुत खूबसूरत” - विमल मंत्रमुध स्वर में बोला - “बहुत दिलकश ।”
“सच !”
“कसम उठवा लीजिए ।”
“ओह कैलाश, यू आर सो स्वीट ।”
और उसने अपनी बांहें विमल के गले में डाल दीं । उसकी यह हरकत इतनी अप्रत्याशित थी कि विमल के सम्भलते-सम्भलते भी गिलास से विस्की छलक गई ।
“सॉरी ।” - वह बोला ।
“नैवर माइंड, लेकिन क्या विस्की तुम ऐसे ही बच्चों की तरह चुसक-चुसक कर पीते हो ?”
विमल के होंठों पर एक खिसियाई सी हंसी प्रकट हुई । उसने जल्दी से सारी विस्की हलक में उड़ेली और खाली गिलास मेज पर रख दिया ।
फिर उसकी बांहें भी उसके शरीर के गिर्द लिपट गई । वह पूरी सावधानी बरत रहा था कि उसकी दाईं बांह के साथ बंधी नन्हीं रिवॉल्वर सुन्दरी को चुभने न पाये । साथ ही उसकी एक आंख किचन की बगल के एक बंद दरवाजे पर भी लगी हुई थी । वह दरवाजा बैडरूम का था ।
सुन्दरी एकदम उसके साथ चिपक गई थी । उसकी नाइटी के ऊपरले दो बटन खुल गए थे और उसके उन्नत गुलाबी उरोज बाहर निकल आए थे । उसने विमल का एक हाथ पकड़ कर अपने दायें वक्ष पर रख दिया और चुम्बन पाने को आतुर अपने होंठ ऊपर उठा दिए ।
विमल ने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये । उसने उसके होंठों में वह गर्मी नहीं पाई जो एक कामातुर स्त्री के होंठों में अपेक्षित होती थी । प्रत्यक्ष था कि वह उसको अपने मन में उलझाए रखने के लिये ही उसके सामने चारे की तरह अपना शरीर पेश कर रही थी ।
“कुछ चुभ रहा है ।” - एकाएक वह बोली - “तुम्हारी पतलून की बैल्ट में क्या है ?”
“रिवॉल्वर ।” - विमल खिसियाये स्वर में बोला ।
“हे भगवान ?” - वह दहशतभरे स्वर में बोली - “तुम हर जगह रिवॉल्वर साथ लेकर जाते हो ?”
“न.. नहीं ।”
“यहां तुम्हें रिवॉल्वर की जरूरत महसूस हो रही है ?”
“नहीं तो ।”
“हमारे बीच जो जंग होने वाली है, उसका पिस्तौलों, तमंचों से रिश्ता नहीं है । निकालो इसे ।”
विमल ने चुपचाप बैल्ट में ठुंसी 45 कैलिबर की रिवॉल्वर निकाली और मेज पर रख दिया ।
“कोट भी उतारो ।” - आदेश मिला ।
विमल ने कोट उतार कर सोफे की पीठ पर डाल दिया ।
सुन्दरी अपने स्थान से उठी । उसने उसका कोट उठाया । मेज पर से रिवॉल्वर उठाई, रिवॉल्वर को कोट की एक जेब में डाला और बोली - “मैं इसे बैडरूम में हैंगर पर टांग कर आती हूं । खराब नहीं होगा ।”
विमल ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
वह लम्बे डग भरती हुई बंद दरवाजे की तरफ बढ गई । उसने दरवाजा खोला और भीतर दाखिल हो गई । विमल का ख्याल सही था, वह बैडरूम ही था । दरवाजा उसके पीछे बंद हो गया । विमल सम्भल कर बैठ गया । उसने अपनी कमीज की दाईं आस्तीन का बटन खोल दिया ।
उसका ख्याल था कि अब जब बैडरूम का दरवाजा खुलेगा तो सुन्दरी के स्थान पर कोई सुन्दरा हाथ में रिवॉल्वर लिए प्रकट होगा । लेकिन उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि जब दरवाजा खुला तो उसमें से सुन्दरी ही बाहर निकली । इस बार वह बिना किसी झिझक के सीधे उसके गोद में आकर बैठ गई ।
विमल ने उसे अपने आलिंगन में कस लिया । दोनों के होंठ मिले । सुन्दरी के हाथ उसके सारे शरीर पर रेंगते हुए फिरने लगे । विमल जानता था कि वह कोई मौज लेने वाली हरकत नहीं थी । निश्चय ही इस बहाने वह उसके शरीर के विभिन्न भागों को टटोल कर इस बात की पुष्टि कर रही थी कि उसके पास कोई हथियार नहीं था ।
विमल की कलाई के भीतर की ओर बंधी नन्हीं सी रिवॉल्वर से सुन्दरी का हाथ इस बार भी नहीं टकराया ।
जब उसे पूरी तसल्ली हो गई कि विमल के पास कोई और घातक हथियार नहीं था तो उसके हाथ भटकने बंद हो गए । उसने अपनी बांहें उसकी गरदन के गिर्द लपेट दीं और अपने शरीर को विमल के आलिंगन में ढीला छोड़ दिया ।
विमल को कतई कोई आनन्द नहीं आ रहा था । उसका सारा ध्यान तो इस ओर लगा हुआ था कि कोई कब और कहां से प्रकट होगा । इसी हाल में प्रकट होगा या पहले सुन्दरी कोई बहाना कर वहां से खिसक जाएगी । उसका दूसरा ख्याल ही सही निकला । एकाएक सुन्दरी ने अपनी बांहें उसकी गदरन से निकाली और उसे परे धकेलती हुई उसकी गोद से उतर गई ।
“मैं अभी आई ।” - वह बोली ।
“कहां जा रही हो ?” - विमल प्रत्यक्षत: आतुर भाव से बोला ।
“बाथरूम ।”
और वह लम्बे डग भरती हुई बैडरूम के दरवाजे पर पहुंची और उसे खोलकर भीतर दाखिल हो गई । दरवाजा पूर्ववत् उसके पीछे बंद हो गया ।
विमल फिर सम्भल कर बैठ गया । उसका दिल जोर से धड़कने लगा था । उसे लग रहा था कि बहुत जल्दी कुछ होने वाला था । अभी मुश्किल से तीस सैकेन्ड गुजरे थे कि एकाएक भड़ाक से बैडरूम का दरवाजा खुला और चौखट पर एक विशालकाय आदमी प्रकट हुआ । वह नारंग था ।
उसके पीछे दो आदमी और थे जो नारंग के चौखट लांघकर ड्राइंगरूम में पहुंच जाने के बाद उसके दायें-बायें आ खड़े हुए । विमल ने देखा कि एक रणजीत था । दूसरा एक निचले कद का मोटा सा आदमी था जिसे विमल नहीं पहचानता था ।
तीनों के हाथों में रिवॉल्वरें थीं । विमल ने देखा नारंग के हाथ में उसकी रिवॉल्वर थी - वह रिवॉल्वर जो सुन्दरी उसके कोट की जेब में रखकर ले गई थी और जिसमें खाली गोलियां भरी हुई थीं ।
“क्यों बेटा ?” - नारंग क्रूर स्वर में बोला - “पहचाना अपने बाप को ?”
“जी हां, पिताजी” - विमल शान्त स्वर में बोला - “पहचाना । लेकिन ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि आपने भी अपने लड़के को पहचान लिया ।”
“हरामजादा” - नारंग मुंह बिगाड़कर बोला - “मसखरी मार रहा है । जानता नहीं सिर पर मौत खड़ी है ।”
“मैं निकालता हूं इसकी मसखरी ।” - रणजीत गुर्राया ।
“नहीं ।” - नारांग ने अपने खाली हाथ से उसे आगे बढने से रोका - “अपने निजी दुश्मनों की मैं खुद खबर लेता हूं । इसका कल्याण मेरे हाथों होने दो ।”
रणजीत एकदम पीछे हट गया ।
“बेटा” - नारंग बोला - “मैं तुम्हारी अपनी रिवॉल्वर से ही तुझे परलोक भेजूंगा ।”
विमल चुप रहा ।
नारंग ने रिवॉल्वर उसकी ओर तानी और बोला - “खुदा को मानता हो तो उसे याद कर ले ।”
“बादशाहो” - विमल शान्ति से बोला - “खुदा को तो तुम याद कर लो ।”
“उल्लू का पट्ठा !” - नारंग ने एक क्रूर अट्टाहास किया - “फिर मसखरी मार रहा है ।”
उसने रिवॉल्वर का घोड़ा दबाया । एक हल्की सी खट की आवाज के अलावा कुछ भी न हुआ ।
विमल ने अपने हाथ को सामने करके उसे जोर का झटका दिया । कलाई के साथ बंधी नन्हीं रिवॉल्वर जैसे जादू के जोर उसके हाथ में आ गई ।
नारंग ने दो बार घोड़ा दबाया । भीतर से गोली न निकलती पाकर उसकी आंखें आतंक से फैल पड़ीं ।
इससे पहले रणजीत और मोटू को समझ भी आ पाता कि क्या हुआ था, विमल ने फायर किया । नारंग उससे मुश्किल से पांच फुट दूर खड़ा था । गोली सीधी उसकी आंखों के बीच माथे में घुस गई ।
विमल ने दूसरा फायर किया ।
दूसरी गोली रणजीत के गले में धंस गई ।
मोटू ने अपने आकार के लिहाज से बड़ी फुर्ती दिखाई । उसने एकदम दाईं ओर छलांग लगा दी और वह विमल की रिवॉल्वर से निकली तीसरी गोली का शिकार बनने से बच गया । नारंग और रणजीत के हाथ से रिवॉल्वर निकल गई और वे आगे-पीछे कटे वृक्ष की तरह फर्श पर गिरे ।
विमल ने भी सोफे की ओट लेने के लिए छलांग लगाई ।
तभी मोटू ने फायर किया ।
विमल बाल-बाल बचा । अगर उसने छलांग लगाने में पलक झपकने जितनी भी देर की होती तो उसका भेजा उड़ गया होता ।
विमल नीचे गिरा । मोटू के फिर गोली चला पाने से पहले विमल ने अपनी रिवॉल्वर की आखिरी गोली अंधाधुन्ध उस पर झोंक दी । गोली जमीन पर उकडू से लेटे मोटू को छाती में घुस गई । उसके मुंह से एक घुटी हुई कराह निकली और वह औंधे मुंह वहीं ढेर हो गया ।
विमल थोड़ी देर सशंक सा उससे दूर पड़ा उसे देखता रहा । लेकिन जब उसने उसके शरीर में कोई हरकत न होती पाई तो वह उठकर खड़ा हो गया । उसने सावधानी से इधर-उधर लुढके पड़े तीनों निश्चेष्ट शरीरों का निरीक्षण किया ।
तीनों की ईह लीला समाप्त हो चुकी थी ।
विमल ने रिवॉल्वर के साथ बंधा रबड़ का टुकड़ा और जूते का फीता खोल दिया । उसने रिवॉल्वर को रुमाल से अच्छी तरह पोंछ कर उस पर से उंगलियों के तमाम निशान मिटा दिये । फिर रिवॉल्वर को रुमाल में लपेटे-लपेटे ही वह बैडरूम में दाखिल हुआ । उसने रिवॉल्वर को पलंग पर उछाल दिया । बाथरूम का दरवाजा बंद था और भीतर से कोई आवाज नहीं आ रही थी ।
एक तरफ हैंगर पर उसका कोट लटका हुआ था । उसने कोट हैंगर से उतारा और पहन लिया ।
वह कुछ क्षण वहीं ठिठका खड़ा सोचता रहा । फिर वह ड्राइंगरूम में वापिस आया । उसने खाली कारतूसों वाली रिवॉल्वर उठाकर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली और ऊपर से कोट के बटन बंद कर लिये । वह वापिस बैडरूम में लौटा । उसने बाथरूम का दरवाजा खटखटाया ।
“खत्म ?” - भीतर से सुन्दरी ने पूछा ।
“हां ।” - विमल घरघराती आवाज में बोला ।
दरवाजा खुला और सुन्दरी ने बाहर कदम रखा । विमल पर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे का सारा खून निचुड़ गया । फिर उसकी निगाह खुले दरवाजे से होती हुई ड्राइंग रूम में पड़ी । वहां का नजारा देखते ही उसके नेत्र फैल गये और मुंह से एक घुटी हुई चीख निकल गई ।
“रणजीत शायद जहां खड़ी हो वहां से न दिख रहा हो” - विमल शान्ति से बोला - “उसकी लाश दरवाजे की ओट में दाईं तरफ पड़ी है । दो कदम आगे बढोगी तो दिखाई दे जाएगी ।”
“मेरी कोई गलती नहीं ।” - वह फुसफुसाई - “मुझसे यह काम जबरदस्ती करवाया गया था ।”
“कौन सा काम ?” - विमल ने पूछा ।
“यही कि मैं तुम्हें फोन करके यहां बुलाऊं ।”
“लेकिन तुमने तो अल्फांसो को फोन किया था । मैं तो इत्तफाक से यहां आ गया था ।”
“तुम आते या अल्फांसो आता, एक ही बात थी । नारंग कहता था कि अगर अल्फांसो को समाप्त कर दिया जाये तो भी तुम पर बड़ी सहूलियत से हाथ डाला जा सकता था ।”
“अल्फांसो की हत्या का जो पहले उपक्रम हो चुका है, उसके पीछे भी नारंग का हाथ था ?”
“नहीं ।”
“झूठ बोलोगी तो गला काट दूंगा ।”
“कसम गणपति की, मैं सच बोल रही हूं ।”
“तुम यहां पहले कैसे आ गई ?”
“नारंग ने भेजा था । जुआघर में तुम्हें टटोलने के लिए ।”
विमल चुप रहा । वह कुछ क्षण गौर से उसे देखता रहा और फिर एक गहरी सांस लेकर बोला - “पलंग पर पड़ी वह नन्हीं सी रिवॉल्वर देख रही हो ?”
सुन्दरी ने उस ओर निगाह उठाई और फिर जल्दी से सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“ये तीनों आदमी इसी रिवॉल्वर की गोलियों के शिकार होकर मरे हैं । यह रिवॉल्वर चोरी की है जो तुमने अब्राहम नाम के एक चोरी का माल बेचने का धंधा करने वाले आदमी से खरीदी है ।”
“मैंने ?” - वह हैरानी से बोली ।
“हां तुमने । अब्राहम ने तुम्हें देखा नहीं लेकिन उसे तुम्हारा हुलिया इतनी बारीकी से समझा दिया गया है कि नौबत आने पर वह तुम्हें बेहिचक पहचान लेगा । और उसे अपने अंजाम की कतई परवाह नहीं है । चोरी का माल बेचने के जुर्म में चाहे उसे भी सजा हो जाए । कुछ आया समझ में ?”
“तु.. तुम... सारी योजना पहले से ही जानते थे ?”
“हां । योजना को भी और तुम्हें भी ।”
“मुझे भी ।”
“तुम वही औरत हो जिसने बम्बई में त्रिलोकीनाथ के ऑफिस में फोन करके मुझसे पूछा था कि क्या मैंने त्रिलोकीनाथ के बयान को पूरी तरह पढा था । तुम्हारी आवाज मैं कभी नहीं भूल सकता ।”
सुन्दरी के छक्के छूट गए ।
“अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि अपने किसी भरोसे के यार-वार को बुला लो और अपने भूतपूर्व आका और उसके दोनों चमचों की लाशों को चुपचाप कहीं गायब कर दो । यह रिवॉल्वर भी कहीं ठिकाने लगा दो । इस काम को करने में खूब फुर्ती दिखाओगी तभी कुछ बात बनेगी । यहां पुलिस पहले पहुंच गई तो तुम्हारा काम हो जाएगा ।”
“मैं पुलिस को सब कुछ सच-सच बता दूंगी ।”
“खामखाह झमेले में फंस जाओगी । कोई तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं करेगा । तुम यह सिद्ध नहीं कर पाओगी कि मैं यहां आया था तुम मेरा अस्तित्व तक सिद्ध नहीं कर पाओगी । पुलिस के लिए मैं चलते-फिरते प्रेत की हैसियत रखता हूं । और अब्राहम अपने इस बयान से टस से मस नहीं होगा कि जिस रिवॉल्वर से ये हत्याएं हुई हैं, वह उसने तुम्हें बेची थी ।”
सुन्दरी कुछ क्षण सोचती रही और फिर मरे स्वर में बोली - “यहां मेरा कोई यार दोस्त नहीं है जो इस भयंकर काम में मेरी मदद कर सके ।”
“तो बम्बई से बुला लो” - विमल बोला - “तुम नारंग की चमची नम्बर वन हो । उसके आदमी तो तुम्हें खूब जानते होंगें ।”
“वो लोग मुझे जाने से मार डालेंगे ।” - वह आतंकित स्वर में बोली - “नारंग की मौत के लिए वे मुझे जिम्मेदार ठहराएंगे ।”
“च-च-च” - विमल ने खेद प्रकट किया - “यह तो बड़ी मुश्किल हो गई तुम्हारे लिए ।”
सुन्दरी परेशानहाल उसके सामने खड़ी रही ।
“तुम ऐसा क्यों नहीं करती ?” - विमल बोला - “खुद ही फावड़ा सम्भाल लो और बाहर रेत में कहीं इनकी कब्रें खोद डालो । हट्टी-कट्टी नौजवान औरत हो । तुम्हारे लिए यह काम खास मुश्क‍िल नहीं होगा । और फिर अभी तो बहुत रात बाकी है ।”
“तुम मेरी कोई मदद करो न ?” - सुन्दरी रुआंसे स्वर में बोली ।
“मैं ! तुम्हारी मदद करूं ! क्यों ?”
सुन्दरी चुप रही । वह अपने सूखे होंठों पर जुबान फेरने लगी । विमल ने रुमाल अने हाथ पर लपेट लिया । उसने सावधानी से उस हैंगर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछे जिस पर से उसने कोट उतारा था । ऐसा ही उसने दरवाजे के हैंडल और उन तमाम स्थानों के साथ किया जहां उसके हाथ लगे थे ।
फिर उसने वे दो गिलास भी पोंछे जिसमें उन्होंने विस्की पी थी । किचन में जाकर उसने रैफ्रीजरेटर के हैंडल और विस्की और सोडे की बोतलों पर से भी अपनी उंगलियों के निशान पोंछे । सुन्दरी मंत्रमुग्ध सी उसे देख रही थी ।
विमल ने आगे बढकर कॉटेज का मुख्य द्वार खोला । उसने द्वार के हैंडल और कॉलबैल के बटन पर से भी अपने उंगलियों के निशान पोंछे । दरवाजे से एक कदम बाहर रखकर वह ठिठका, घूमा, सुन्दरी को देखकर मुस्कराया और बोला - “शायद तुम्हारे जिस्म पर कहीं मेरी एकाध उंगली का निशान रह गया हो लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि तुम अपना जिस्म फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट के मुआयने के लिए पेश नहीं करना चाहोगी ।”
सुन्दरी के मुंह से बोल न फूटा ।
“गुड नाइट, डार्लिग ।” - विमल अपने होंठों के साथ दो उंगलियां छुआ कर उसकी ओर एक चुम्बन उछालता हुआ बोला - “एण्ड गुड लक ।”
वह घूमा और लम्बे डग भरता हुआ अपनी कार की तरफ बढ गया ।
***
अगली सुबह डोना पाला बीच के एक कॉटेज में हुई तीन हत्याओं की खबर अखबार में छपे बिना भी सारे गोवा में फैल गई । पुलिस ने वहां से वे तीनों लाशें बरामद कर ली थीं, जल्दी ही उनकी शिनाख्त भी हो गई थी और उन्हें बेहद रहस्यपूर्ण हत्याओं की संज्ञा भी दे दी गई थी ।
प्रत्यक्ष था कि लाशों को ठिकाने लगाने से ज्यादा सहूलियत का काम सुन्दरी ने यह समझा था कि वह चुपचाप वहां से खिसक जाये । उसके साथ-साथ वह नन्हीं रिवॉल्वर भी गायब हो गई थी जिससे उन तीनों की हत्या हुई थी ।
पुलिस की तफ्तीश से यह जाहिर हुआ था कि वह कॉटेज खुद नारंग का था और यह बात किसी भी तरीके से जाहिर नहीं हुई थी कि हाल ही में वहां कोई युवती रह रही थी । सुन्दरी ने इस बारे में पूरी होशियारी दिखाई थी कि उसकी वहां रिहायश की चुगली करने वाला कोई सूत्र उस कॉटेज में न रह जाये ।
पुलिस को उसके अस्त‍ित्व का भी ज्ञान नहीं हुआ था ।
उसी रोज दोपहर से पहले एल्बुर्क्क का फोन आ गया ।
फोन विमल ने रिसीव किया ।
“मेरी आल्फांसों से बात करवाओ ।” - वह हमेशा की तरह गरजती-बरसती आवाज में बोला ।
“तुम कौन बोल रहे हो ?” - विमल जान-बूझकर बदतमीजी भरे स्वर में बोला ।
“अरे, मैं एल्बुर्क्क बोल रहा हूं । अल्फांसो को टेलीफोन दो ।” - वह दहाड़ा ।
“अल्फांसो साहब बिजी हैं” - विमल एक विनोदपूर्ण निगाह पलंग पर लेटे अल्फांसो पर डालता हुआ बोला - “वे फोन पर नहीं आ सकते ।”
“अरे, कौन हो तुम ? जानते नहीं हो किससे बात कर रहे हो ?”
“जानता हूं ।”
“तुम हो कौन ?”
“मैं वही आदमी हूं जिसको अपने बाप नारंग के हवाले करने के लिए तुम इतने दिनों से इतनी कलाबाजियां खा रहे हो ।”
“कैलाश । वह छोकरा जो.. तुम मेरी अल्फांसो से बात करवाओ ।”
“अल्फांसो साहब से बात नहीं हो सकती । जो बात करनी हो मुझसे करो ।”
“अबे लड़के... तेरी ये मजाल...”
विमल ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
अल्फांसो ने प्रश्नसूचक नेत्रों से विमल की ओर देखा ।
“घबराइए नहीं । अभी दस सैकेंड में फिर टेलीफोन आता होगा ।”
तभी फोन की घंटी दोबारा बजी ।
“हल्लो ?” - विमल रिसीवर उठाकर बोला ।
“कौन ?” - एल्बुर्क्क ने सावधानी से पूछा ।
“वही ।” - विमल बोला ।
“सुनो” - एल्बुर्क्क इस बार अपेक्षाकृत शांत स्वर में बोला - “मुझे अभी पता लगा है कि नारंग मर गया है । वह कैसे मारा गया है इससे कोई मतलब नहीं लेकिन उसकी मौत से सारी स्थिति एकदम बदल गई है । तुम केवल नारंग की जान को खतरा थे । उसकी मौत हो जाने के बाद अब मेरी न तो तुम्हारे में कोई दिलचस्पी है और न तुमसे कोई दुश्मनी है । पिछले दिनों से मार-धाड़ का जो आलम चल रहा था, नारंग की वजह से चल रहा था । मैं जो कुछ कर रहा था, तुम लोग जानते ही हो, नारंग के दबाव में आकर कर रहा था । अब वह दबाव खत्म हो गया है इसलिए इस गैंगवार की जरूरत भी नहीं रही है । मैं...”
“भूमिका बहुत लम्बी हो गई है” - विमल ने उसे टोका - “मतलब की बात पर आओ ।”
“मतलब की बात यही है कि मैं अल्फांसो की तरफ सुलह का हाथ बढाना चाहता हूं ।”
“सुलह नहीं हो सकती ।” - विमल कठोर स्वर में बोला ।
“मतलब ?”
“सुलह तब तक नहीं हो सकती जब तक अल्फांसो साहब पर गोली चलाने वाला आदमी हमारे हवाले न कर दिया जाए । हमारी सुलह की पहली और आखिरी शर्त यही है कि उस मिरांडा नाम के आादमी को हमारे हवाले किया जाए जिसने अल्फांसो साहब पर गोली चलाने की हिम्मत की थी ।”
“लेकिन वह आदमी...”
“हम जानते हैं तुम क्या कहोगे । तुम यही कहोगे कि वह आदमी तुम्हारा नहीं । उसने तुम्हारे इशारे पर अल्फांसो साहब पर गोली नहीं चलाई । हालांकि इस बात पर हमें विश्वास नहीं लेकिन अगर यह बात सच है तो भी सुलह की यह शर्त बरकरार रहेगी कि पहले वह आदमी हमारे हवाले किया जाए ।”
“यह काम मैं कैसे कर सकता हूं ?”
“तुम हमसे राय मांग रहे हो ?”
“मेरा मतलब है जिस काम से मेरा वास्ता नहीं वह मैं क्यों करूं ?”
“वास्ता पैदा कर लो । वैसे ही जैसे नारंग की खातिर तुमने मुझसे वास्ता पैदा किया था ।”
“यह तो आसमान से गिरा खजूर में अटका जैसी बात हो गई । तुम मेरी अल्फांसो से बात करवाओ ।”
“बात नहीं हो सकती । वे व्यस्त हैं ।”
“अरे छोकरे...”
“और एक बात और सुन लो । हम तुम्हें केवल कल शाम तक का वक्त दे रहे हैं । कल शाम तक अगर मिरांडा को हमारे हवाले करने के मामले में तुमने कुछ न किया तो मैं तबाही का वो आलम पेश करूंगा कि तुम्हारे देवता भी पनाह मांग जाएंगे ।”
कुछ क्षण चुप्पी रही । फिर एल्बुर्क्क की मरी सी आवाज आई - “अच्छा मैं देखूंगा क्या किया जा सकता है । मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा ।”
“ओके ।” - विमल बोला और उसने रिसीवर वापिस क्रेडिल पर रख दिया ।
“डर गया मालूम होता है ।” - अल्बर्टो बोला ।
“डरने वाली बात ही है ।” - अल्फांसो बोला - “नारंग और उसके दो बॉडी गार्डों की हत्या तुम कोई मामूली बात मानते हो । इस घटना में गोवा के सारे जरायमपेशा वर्ग में तहलका मचाया हुआ होगा । पुलिस उस हत्याओं को रहस्पूर्ण हत्याओं की संज्ञा दे सकती है लेकिन एल्बुर्क्क को खुदा भी यह विश्वास नहीं दिला सकता कि उन हत्याओं के पीछे हमारा हाथ नहीं था । अब खुद सोचो भला क्यों न डरे वह ?”
“आप ठीक कह रहे हैं ।” - विमल बोला - “वैसे आपका क्या ख्याल है, मिरांडा ने जो किया, एल्बुर्क्क के इशारे पर नहीं किया ?”
“मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा । मेरा दिल तो यही कहता है कि एल्बुर्क्क मुझ पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकता जिस प्रकार का दबाव उस पर था उसको ध्यान में रखते हुए हो भी सकता है कि मिरांडा उसी के इशारे पर काम कर रहा हो ।”
“जल्दी ही यह राज भी खुल जायेगा । देखते हैं इस बारे में एल्बुर्क्क क्या कदम उठाता है ।”
“हां देखते हैं ।”
वार्तालाप समाप्त हो गया ।
***
शाम तक एल्बुर्क्क का फिर फोन आया । इस बार वह गर्जा-बरसा नहीं । न ही उसने विमल की आवाज सुनकर यह जिद की कि वह अल्फांसो से ही बात करना चाहता था ।
“मिरांडा तुम लोगों से सुलह की बातचीत करना चाहता है ।” - एल्बुर्क्क बोला ।
“सुलह नहीं हो सकती ।” - विमल कठोर स्वर में बोला ।
“अरे, पूरी बात तो सुन ले, मेरे बाप ।” - एल्बुर्क्क परेशानहाल स्वर में बोला ।
“तुम मिरांडा से मिले हो ?”
“नहीं । मेरा उससे सीधा सम्पर्क नहीं है लेकिन किसी बिचोलिए के माध्यम से मेरी उससे बात हुई है ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो । वह तुम्हारा आदमी है और...”
“अच्छा मैं झूठ बोल रहा हूं । वह मेरा आदमी ही सही, लेकिन पहले मेरी बात तो सुनो ।”
“सुनाओ ।”
“मिरांडा अल्फांसो से हर कीमत पर सुलह करना चाहता है । वह कहता है कि अल्फांसो की जान लेने की कोशिश का जो गुनाह वह कर चुका है, अगर उसे बख्श दिया जाए तो वह अल्फांसो के सामने एक ऐसी योजना की रूपरेखा रख सकता है जिससे अल्फांसो को बेपनाह लाभ होगा । इतना लाभ होगा कि अल्फांसो बखुशी उसके गुनाहों को बख्श देगा ।”
“ठीक है । उसे कह दो कि वह यहां आए और आकर अल्फांसो साहब से बात कर ले ।”
“यह कैसे हो सकता है ? वह इस प्रकार वहां कैसे आ सकता है । तुम लोग पहले उसका गला काटोगे और फिर पूछोगे कि वह क्या चाहता है ।”
“यह खतरा तो उसे उठाना ही पड़ेगा ।”
“वह यह खतरा उठाने को तैयार नहीं होगा ।”
“तो फिर वार्तालाप कैसे होगा ?”
“वह अल्फांसो से अकेले में, अपनी चुनी हुई, बड़ी अच्छी तरह से ठोकी-बजाई जगह पर बात करना चाहता है ।”
“क्या कहने !”
“वह इस बात की गारन्टी करता है कि अल्फांसो को उसका प्रस्ताव पसन्द आएगा और वह जो हो चुका उसे बड़ी खुशी से भूल जाएगा ।”
“लेकिन इस बात की गारन्टी कौन करेगा कि वह अल्फांसो साहब के साथ विश्वासघात नहीं करेगा ?”
“क्या मतलब ?”
“अगर उसने बात करने के बहाने से अल्फांसो साहब को अकेले में बुलाकर उनका काम तमाम कर दिया तो ?”
“ऐसा नहीं होगा ।” - एल्बुर्क्क खोखले स्वर में बोला ।
“तुम्हें कैसे मालूम है ऐसा नहीं होगा ?”
“मिरांडा ने कसम खाकर कहा है कि उसका दगाबाजी का कोई इरादा नहीं है ।”
“हमें उस सांप पर या उसकी कसमों पर विश्वास नहीं ।”
“यार, तुम बहुत अड़ंगे अड़ा रहे हो । तुम मेरी अल्फांसो से बात क्यों नहीं कराते हो ।”
“अल्फांसो साहब से बात नहीं हो सकती ।”
“तो फिर यह समस्या कैसे सुलझेगी ?”
“एक तरीका है ।”
“क्या ?”
“तुम मिरांडा की जमानत के तौर पर अपने आप को हमारे हवाले करो ।”
“क्या मतलब ?” - वह अचकचाकर बोला ।
“अगर तुम चाहते हो कि अल्फांसो साहब मिरांडा से तनहाई में बात करने के लिए जायें तो तुम्हें हमारे पास बंधक के रूप में रहना होगा । मुलाकात के बाद एक निश्चित समय के अंदर-अंदर अगर अल्फांसो साहब वापस नहीं लौटे तो कहने की जरूरत नहीं कि तुम्हारा क्या अंजाम होगा ?”
“यह... यह कैसे हो सकता है ।”
“जल्दबाजी में कोई फैसला मत करो । अच्छी तरह सोच-विचार कर लो फिर जवाब देना ।”
“लेकिन...”
“और यह बात याद रखना कि हमने तुम्हें कोई फैसला करने के लिये कल शाम तक का वक्त दिया है ।”
विमल ने उसे और बोलने का अवसर न दिया । उसने टैलीफोन बंद कर दिया । उसने अल्फांसो और अल्बर्टो को संक्षेप में समझाया कि एल्बुर्क्क क्या कह रहा था ।
“लेकिन मिरांडा से सुलह...” - अल्फांसो ने कहना चाहा ।
“हम हरगिज नहीं करेंगे ।” - विमल बोला - “और उससे बात करने आप नहीं, मैं जाऊंगा ।”
“क्यों ?” - अल्फांसो के माथे पर बल पड़ गए ।
“ताकि मैं मौका हाथ लगते ही उसका कत्ल कर सकूं ।”
“तुम !”
“जी हां । मिरांडा जैसे आदमी को मरना ही चाहिए ।”
“लेकिन तुम...”
“मुझ पर पहले ही कत्ल का इलजाम है, अल्फांसो साहब । मैं जब भी पकड़ा जाऊंगा सीधा फांसी पर ही लटकूंगा । मेरा कोई दूसरा अंजाम मुमकिन नहीं । और किसी को एक से ज्यादा बार फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता । चाहे उसने एक कत्ल किया हो या फिर एक हजार कत्ल किए हों ।”
“लेकिन फिर भी...”
“फिर भी कुछ नहीं । आपने मुझे यहां पनाह दे कर मेरी जान बचाई है । बदले में आपके उस दुश्मन का सफाया जो भविष्य में फिर आप के लिए खतरा बन सकता है मैं करना चाहता हूं ।”
अल्फांसो सोच में पड़ गया । उसके चेहरे पर गहन चिन्ता के भाव प्रकट हुए ।
“इसमें सोच विचार की कोई बात नहीं है, अल्फांसो साहब !” - विमल बोला - “किसी ने तो यह काम करना ही है ।”
“मैं आश्वस्त नहीं हूं ।” - अल्फांसो बोला ।
“मैं भी ।” - अल्बर्टो बोला ।
“आप मेरी तरफ से निश्चिन्त रहिए । अगर एल्बुर्क्क ने अपने आप को हमारे हवाले कर दिया तो मुझे कोई खतरा नहीं होगा । फिर शायद किसी को पता भी न लगे कि मिरांडा का कत्ल किसने किया था ।”
“एल्बुर्क्क कभी अपने आपको हमारे हवाले नहीं करेगा ।” - अल्बर्टो बोला ।
“नहीं करेगा तो कोई और तरकीब सोचेंगे ।”
“और फिर मिरांडा का कत्ल करना ही कौन-सा इतना आसान काम होगा !” - अल्फांसो बोला ।
“यह बाद की बात है, बाद में देखी जाएगी । पहले यह तो देखिए कि ऊंट बैठता किस करवट है ।”
“मिरांडा मेरी जगह तुमसे मिलने के लिए तैयार हो जाएगा ?”
“अगर एल्बुर्क्क बन्धक के तौर पर हमारे काबू में आ जाएगा तो उसे इस बात के लिए तैयार करना उसका काम होगा जो कि वह अपनी भलाई के लिए हर हाल में करेगा । और फिर आप की मौजूदा हालत में हम कभी भी यह बहाना लगा सकते हैं कि आपकी तबीयत एकाएक खराब हो गई है ।”
“हूं ।”
“और फिर वह सच ही सुलह को उत्सुक है । वह आपके भारी फयदे की कोई बात रिश्वत के तौर पर आपके सामने पेश करना चहता है ताकि आप उसके गुनाह बख्श दें । अगर एल्बुर्क्क हमारे पास आ गया तो समझ लीजिएगा कि यही बात है । उस सूरत में मिरांडा आपके स्थान पर आपके प्रतिनिधि से भी बात करने के लिए तैयार हो जाएगा लेकिन अगर वह फिर आप पर वार करने के लिए ही षड्यंत्र रच रहा है तो न तो वह आपके अलावा किसी और से मिलना कबूल करेगा और न ही एल्बुर्क्क अपने आप को बन्धक की तरह हमारे पास रखने के लिए तैयार होगा ।”
अल्फांसो फिर न बोला लेकिन उसके चेहरे पर चिन्ता के भाव गहन हो गए ।
***
रात को एल्बुर्क्क का फिर फोन आया ।
“क्या हर बार मुझे तुम्हीं से बात करनी होगी ?” - इस बार भी लाइन पर विमल को पाकर वह विवशतापूर्वक स्वर में बोला ।
“हां” - विमल सहज भाव से बोला - “बोलो क्या फैसला हुआ ?”
“मैं अपने आपको अल्फांसो के पास बन्धक रखने को तैयार हूं लेकिन मैं यह गारन्टी अल्फांसो के मुंह से सुनना चाहता हूं कि मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा ।”
“अगर तुम दगाबाजी नहीं करोगे तो...”
“मैं दगाबाजी नहीं करूंगा ।”
“तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ।”
“यह आश्वासन मैं अल्फांसो के मुंह से सुनना चाहता हूं ।”
“सुन लेना । पहले बाकी बात करो । बाद में अल्फांसो साहब से तुम्हारी बात करा दी जाएगी ।”
“ओके । सुनो ! मिरांडा वाकई अल्फांसो से सुलह करना चहता है । लेकिन क्योंकि उसे अपनी जान का खतरा है, वह भयभीत है इसलिए वह अपनी सुरक्षा को निगाह में रखते हुए मुलाकात की कुछ शर्तें रखना चाहता है ।”
“कैसी शर्तें ?”
“जैसे यह नहीं बताया जाएगा कि मुलाकात कहां होगी मुलाकात का स्थान मिरांडा चुनेगा और वह ऐन मौके पर अल्फांसो को वहां ले जाएगा ।”
“तो फिर अल्फांसो साहब को कहां आना होगा ?”
“वह कहीं भी अकेला आ जाए । मिरांडा वहां पहुंच जाएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा । मुलाकात के बाद अल्फांसो कहीं भी जाने को स्वतन्त्र होगा लेकिन इस बात को राज रखा जाएगा कि वास्तव में मुलाकात होगी कहां ।”
“और ?”
“और अपनी सलामती की गारन्टी के तौर पर मिरांडा पुलिस इंस्पेक्टर सोनवलकर को साथ लाएगा ।”
“क्या ? यानी मीटिंग के वक्त इंस्पेक्टर भी मौजूद होगा ।”
“हां । हर क्षण । मुलाकात के वक्त इंस्पेक्टर सोनवलकर मिरांडा की बगल में बैठा होगा । उसके बॉडी गार्ड के तौर पर ।”
“लेकिन इस प्रकार जो बातें मिरांडा और अल्फांसो साहब से होंगी उनकी इंस्पेक्टर को खबर नहीं लग जाएगी !”
“लग जाएगी लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । इंस्पेक्टर सोनवलकर किस किस्म का आदमी है, अल्फांसो खूब जानता है ।”
“लेकिन इंस्पेक्टर की मौजूदगी की जरूरत क्या है । मीटिंग का सारा इन्तजाम तो मिरांडा अपनी पसन्द से कर रहा है, फिर हम उसका क्या बिगाड़ सकते हैं ?”
“वह शत-प्रतिशत गारन्टी चाहता है । वह अल्फांसो से भयभीत है । वह नहीं चाहता कि अल्फांसो उसकी योजना सुनने के बहाने उससे मिलना कबूल कर ले और फिर उसके सामने आते ही उसका काम तमाम कर देगा । इंस्पेक्टर सोनवलकर की मीटिंग में मौजूदगी इस बात की गारन्टी होगी कि मिरांडा के कत्ल की कोशिश नहीं की जाएगी । अल्फांसो इतना बेवकूफ नहीं हो सकता कि एक पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में कत्ल की कोशिश करे । अगर वह ऐसा करेगा तो इन्स्पेक्टर सोनवलकर की इकलौती शहादत उसे फांसी के फन्दे पर पहुंचाने के लिए काफी होगी ।”
विमल सोच में पड़ गया । मामला उतना सीधा नहीं था जितना कि वह लग रहा था । मिरांडा निश्चय ही बहुत कांइयां आदमी था ।
“हैल्लो !” - उसे एल्बुर्क्क का स्वर सुनाई दिया - “लाइन पर हो ?”
“हां” - विमल बोला - “ठीक है । हमें यह शर्त भी मंजूर है ।”
“तो फिर मेरी अल्फांसो से बात करवाओ ।”
विमल ने फोन अल्फांसो के हाथ दे दिया ।
अल्फांसो कुछ देर एल्बुर्क्क से बात करता रहा फिर उसने फोन रख दिया । उसने विमल की ओर देखा और सिर हिलाता हुआ बोला - “जो कुछ तुम चाहते हो, उसके आसार तो अब दिखाई नहीं देते । यह मिरांडा बड़ा उस्ताद आदमी निकला । उसने तो अपनी सुरक्षा का बड़ा मजबूत इन्तजाम सोच रखा है ।”
“हमें उस मजबूत इन्तजाम को भेदना होगा । कहीं तो कोई पोल जरूर होगी ।” - विमल दृढ स्वर में बोला ।
“फिलहाल तो कुछ हो पाना मुमकिन नहीं लगता । बाद में शायद कुछ किया जा सके ।”
“अल्फांसो साहब, अभी कुछ करना होगा । यही मौका है इस वक्त मिरांडा भयभीत है । बौखलाया हुआ है । इसलिए वह हमसे सुलह करने का इच्छुक है और एल्बुर्क्क की बात भी सुन रहा मालूम होता है । बाद में वह सम्भल जाएगा । फिर उस पर हाथ डालना असम्भव हो जाएगा और कोई मौका हाथ लगने पर फिर आप पर वार करने की कोशिश करेगा । डरता तो वह आपसे है । अगर वह आपको खत्म करने में कामयाब हो जाए तो फिर उसे किस बात का खतरा है । नहीं अल्फांसो साहब, हमें जैसे भी हो अभी उसका काम तमाम करना होगा ।”
“लेकिन इंस्पेक्टर सोनवलकर...”
“मुझे उसका मुकद्दर खराब मालूम होता है ।” - विमल बर्फ से सर्द स्वर में बोला - “शायद उस बईमान और करप्ट पुलिस अधिकारी को अपने कुकर्मों की सजा मेरे ही हाथों मिलने वाली है ।”
“तुम... तुम...”
अल्बर्टो भी विस्फारित नेत्रों से उसकी तरफ देखने लगा ।
“वक्त आने दीजिए और देखिए क्या होता है । अभी कुछ हुआ थोड़े ही है । अभी तो कई अड़ंगे हैं । अभी तो पता नहीं एल्बुर्क्क हमारे पास बन्धक के तौर पर रहने के लिए आएगा या नहीं...”
“वह तो आएगा । वह कल सुबह यहां होगा । और मीटिंग परसों शाम के लिए तय की गई है ।”
“फिर भी पता नहीं मिरांडा आपके स्थान पर मुझसे बात करने को तैयार होगा या नहीं । वह मुझे अपने साथ लेकर जाएगा इसलिए मेरी खूब अच्छी तरह तलाशी भी लेगा कि मैं कोई हथियार लेकर नहीं आया । निहत्थे मैं उसका कैसे काम तमाम कर सकूंगा ?”
“कैसे करोगे ?” - अल्बर्टो ने पूछा ।
“हमें किसी भी तरह मीटिंग की जगह का पता लगाना होगा । आप अपने आदमियों को निर्देश दीजिए कि परसों शाम से पहले वे किसी प्रकार यह मालूम करने की कोशिश करें कि मिरांडा ने मीटिंग का कौन-सा स्थान निर्धारित किया है ।”
“यह तो बड़ा कठिन काम है ।” - अल्फांसो बोला ।
“मुझे तो असम्भव लगता है ।” - अल्बर्टो बोला - “इतने बड़े गोवा में क्या पता मिरांडा कहां मीटिंग करना चाहता है ।”
“हम उसके जगह के चुनाव से एतराज नहीं करेंगे लेकिन जगह की किस्म से एतराज जरूर करेंगे ।”
“क्या मतलब ?”
“हम यह जिद करेंगे कि मीटिंग का स्थान कोई बार या रेस्टोरेन्ट जैसा सार्वजनिक स्थान हो न कि कोई प्राइवेट घर या किसी होटल का कमरा ।”
“फायदा ? सार्वजनिक स्थान पर तो कत्ल के बाद कई और गवाह निकल आयेंगे जबकि प्राइवेट जगह पर...”
“मुझे इस बात की परवाह नहीं । मैं इश्तिहारी मुजरिम हूं । मेरे खिलाफ गवाहों की पहले भी कमी नहीं है । सार्वजनिक स्थान पर मीटिंग होने का यह फायदा है कि वहां आप मुझे कत्ल के लिए हथियार मुहैया करा सकते हैं जोकि किसी प्राइवेट जगह में मुमकिन न होगा ।”
“लेकिन हथियार तो हम तब मुहैया करायेंगे जब हमें जगह की खबर होगी । जगह मिरांडा ने निर्धारित करनी है । उसके बारे में उसके सिवाय कोई भी नहीं जानता होगा । खुद एल्बुर्क्क भी नहीं ।”
“जगह की खबर तो हमें लगनी ही चाहिए । यह समस्या तो हर हाल में सुलझनी चाहिये वर्ना मिरांडा का काम तमाम करना असम्भव हो जाएगा ।”
“लेकिन कैसे, कैसे ?”
“सोचिए । विचार कीजिए । कोई न कोई हल जरूर होगा इस समस्या का ।”
अल्फांसो और अल्बर्टो दोनों ही गहरे ख्यालों में खो गए ।
***
अगली सुबह एल्बुर्क्क सोल्मर नाइट क्लब पहुंच गया । वह अमन के लिए कितना उत्सुक था, इसका यही बहुत बड़ा सबूत था कि वह अकेला आया था, अपना बॉडीगार्ड तक साथ नहीं लाया था । उसने बताया कि अगली शाम को चार बजे अल्फांसो को त्रेवासद मैगरिको में स्थित गिरजे के सामने मौजूद होना था । उसको वहां पर निहत्थे जाना था । वहां से मिरांडा उसे अपने साथ ले जाएगा । उसने चेतावनी दी कि मिरांडा की गाड़ी का पीछा करने की कोशिश न की जाए । अगर ऐसा किया गया तो मीटिंग कैन्सिल कर दी जाएगी ।
अल्फांसो ने उसे आश्वासन दिया कि जैसा वह कहेगा वैसा ही होगा । वह अकेला जाएगा, निहत्था जाएगा और कोई उसका पीछा नहीं करेगा ।
फिर अल्फांसो ने उसे अपनी यह शर्त सुना दी कि मीटिंग की जगह कोई सार्वजनिक स्थल होनी जरूरी थी ताकि मिरांडा भी कोई शरारत न कर सके ।
एल्बुर्क्क ने फोन पर इस बात की सूचना किसी को दी । आधे घण्टे बाद वापिस फोन आया कि मिरांडा को वह शर्त मंजूर थी ।
अल्बर्टो ने अपने आदमी सारे गोवा में फैलाए हुए थे लेकिन सारा दिन गुजर गया, सारी रात गुजर गयी, अगला दिन आ गया । यह मालूम न हो सका, किसी को भनक भी न मिल सकी कि मिरांडा ने मुलाकात का कौन-सा स्थान निर्धारित किया था । मुलाकात वाले रोज की दोपहर को एल्बुर्क्क का अल्फांसो का यह निर्णय सुनाया गया कि यकायक उसकी तबीयत खराब हो गई है इसलिए वह मिरांडा से मिलने के लिए जाने में असमर्थ था । उसने कहा कि उसके स्थान पर उसके प्रतिनिधि के रूप में विमल मिरांडा से मिलने जाएगा ।
एल्बुर्क्क बहुत लाल-पीला हुआ । उसने इसे बेईमानी और धोखाधड़ी की संज्ञा दी लेकिन जब वह गरज-बरस चुका तो उसने फिर कहीं फोन किया और किसी के माध्यम से उस नई बात की सूचना मिरांडा को भिजवाई ।
मिरांडा पता नहीं राजी से माना या एल्बुर्क्क के दबाव में आकर माना लेकिन आधे घण्टे के बाद उसका फोन आया कि अगर अल्फांसो वाकई बीमार था तो वह उसके किसी जिम्मेदार प्रतिनिधि से बात करने को तैयार था । खुद मिरांडा के हाथों जो अल्फांसो की हालत होकर हटी थी, उसकी निगाह में रखते हुए उसकी बीमारी की बात विश्वसनीय भी लगती थी । अल्बर्टो निराश होकर लौट आया लेकिन उसे इस बात की भनक भी नहीं मिली कि मिरांडा ने मुलाकात की कौन-सी जगह निर्धारित की थी, कोई जगह निर्धारित की भी थी या नहीं । सम्भव था कि वह कार में ही सब बातचीत कर लेता या शायद वह विमल के उसके पास पहुंच जाने के बाद बातचीत के लिए कोई भी पहले दिखाई दे जाने वाला स्थान चुन लेने का इरादा रखता हो ।
अल्बर्टो ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“मुझे एक बात सूझी है ।” - विमल बोला - “मालूम करो कि इन्स्पेक्टर सोनवलकर आज छुट्टी पर है या ड्यूटी पर है ।”
“उससे क्या होगा ?” - अल्बर्टो ने पूछा ।
“तुम मालूम करो ।”
अल्बर्टो ने कहीं फोन किया और किसी को वह बात मालूम करने का आदेश दिया ।
दस मिनट बाद फोन की घंटी बजी तो रिसीवर अल्बर्टो ने उठाया । उसने एक क्षण बात सुनी और रिसीवर रख दिया ।
“वह ड्यूटी पर है ।” - उसने विमल को बताया ।
“फिर बन गया काम ।” - विमल उत्साहपूर्ण स्वर में बोला - “सुनो । इन्स्पेक्टर सोनवलकर ने मीटिंग में मिरांडा का अंगरक्षक बनकर बैठना है । पुलिस अधिकारियों को थाना छोड़ने पर बताकर जाना होता है कि एमरजेन्सी में उनसे कहां सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है । इन्स्पेक्टर सोनवलकर को जरूर मालूम होगा कि मीटिंग में उसे कहां मौजूद होना है । और उस स्थान का पता वह अपने किसी मातहत को जरूर बताकर जाएगा । अल्बर्टो, अगर तुम या मालूम कर पाओ कि आज चार बजे के बाद इन्स्पेक्टर सोनवलकर कहां उपस्थित है तो समझ लो हमें मुलाकात की जगह की खबर लग गई है ।”
“मैं अभी मालूम करता हूं ।”
अल्बर्टो फिर टेलीफोन में उलझ गया ।
आधे घण्टे बाद एक विजेता के से अन्दाज में उसने घोषणा की कि इंस्पेक्टर सोनवलकर ने थाने में कहा था कि चार और छः बजे के बीच वह ऐस्मराल्डो बार में होगा ।
“यह कहां है ?” - विमल ने पूछा ।
“यह एवेन्यू गास्पर दियास पर स्थित एक साधारण-सा बार है । साधारणतया वहां काफी भीड़भाड़ रहती है ।”
“ठीक है । अब आपको वहां मेरे पास एक रिवॉल्वर पहुंचानी है । कैसे करेंगे आप ?”
“अल्फांसो ने अल्बर्टो की तरफ देखा ।”
“रिवॉल्वर क्लॉकरूम में छिपाई जा सकती है ।” - अल्बर्टो बोला - “मैं रिवॉल्वर को क्लॉकरूम में बनी पानी की टंकी के ढक्कन के नीचे टेप के साथ फिट कर आऊंगा । वार्तालाप के दौरान पेशाब करने के बहाने उठकर तुम वहां जाना और चुपचाप रिवॉल्वर निकाल लेना । वहां से लौटने पर वक्त बर्बाद मत करना क्योंकि हो सकता है कि मिरांडा या इंस्पेक्टर को या दोनों को शक हो जाए और बना-बनाया काम बिगड़ जाए । तुम क्लॉकरूम से आते ही फौरन शूटिंग शुरु कर देना और रिवॉल्वर को वहीं फेंक देना । रिवॉल्वर के दस्ते और ट्रीगर पर मैंने एक खास तरह का मसाला लगा दिया है जिसकी वजह से उस पर तुम्हारी उंगलियों के निशान नहीं रहेंगे । और गोली चलाने के बाद हड़बड़ी मत मचाना बल्कि बड़े इत्मीनान से चलते हुए बाहर निकलना । बार में मौजूद लोग उस वक्त आतंक से जड़ चुके होंगे । कोई तुम्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर पाएगा लेकिन अगर तुम हड़बड़ी मचाओगे और वहां से भाग निकलने की कोशिश करोगे तो वहां भगदड़ मच जाएगी और फिर हो सकता है कि कोई ज्यादा सूरमा आदमी तुम्हें पकड़ने की कोशिश करे । फायरिंग के बाद सबकी आतंकित निगाहें तुम्हारे चेहरे पर होंगी । किसी को यह पता भी नहीं लगेगा कि रिवॉल्वर तुमने फेंक दी है । वह तुम्हें तब भी सशस्त्र ही समझेंगे इसलिए, कोई तुम्हें रोकने की कोशिश नहीं करेगा । ओ के ?”
“विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।”
“मैं बार के बाहर कार में मौजूद होऊंगा । बार से निकलते ही तुम झपटकर कार में सवार हो जाना और फिर हम वहां से भाग खड़े होंगे ।”
“ठीक है ।”
विमल ने घड़ी देखी ।
चार बजने में अभी दो घण्टे बाकी थे ।
***
ठीक चार बजे विमल त्रेवासद मैगरिको में स्थित गिरजे के सामने खड़ा सिगरेट के कश लगा रहा था ।
उसी क्षण एक काली एम्बैसडर कार उसके सामने रुका । पिछली सीट का दरवाजा खुला । किसी ने उसे आवाज दी ।
विमल ने सिगरेट फेंक दिया । वह आगे बढ़ा ।
कार की पिछली सीट पर मिरांडा और इंस्पेक्टर सोनवलकर बैठे थे । ड्राइविंग सीट पर एक नौजवान बैठा था जो सीधे सड़क पर देख रहा था । उसने विमल की तरफ आंख भी नहीं उठाई थी । विमल कार में सवार हो गया ।
कार मंथर गति से आगे बढ चली ।
मिरांडा ने बड़ी ही बारीकी से विमल की तलाशी ली ।
अन्त में जब वह कोई हथियार बरामद न कर सका तो सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला - “थैंक्यू ।”
फिर इंस्पेक्टर सोनवलकर ने अलग से उसकी तलाश ली ।
विमल चुप रहा ।
“मुझे खेद है कि अल्फांसो से सीधे बात न हो सकी ।” - मिरांडा बोला ।
“गलती तुम्हारी है” - विमल बोला - “तुम्हीं ने तो उसकी वह दुर्दशा बनाई है ।”
“उसका मुझे और भी ज्यादा अफसोस है । मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जो मैं दूसरों के कहने में आकर अल्फांसो पर हमला कर बैठा । लेकिन जो हो चुका उसमें तो मैं कुछ नहीं कर सकता । अलबत्ता भविष्य में मैं अल्फांसो को बहुत फायदा पहुंचा सकता हूं । मेरे पास एक योजना है जो अल्फांसो के सारे गिले दूर कर देगी । मेरी योजना को अपनाकर वह इतना बड़ा आदमी बन जाएगा कि उसे बार या कैसीनो चलाने की जरूरत नहीं रह जाएगी कि गोवा तो क्या भारत और मिडल ईस्ट तक हमारे पेशे के लोग उसके नाम से थर्राया करेंगे । फिर एल्बुर्क्क जैसे लोगों की हैसियत तो उसके चपरासियों जैसी हो जाएगी ।”
“वैरी गुड ।”
“सुनो, दोस्त, अगर तुम अल्फांसो के हितचिन्तक हो तो तुम्हें न केवल मेरी योजना उसे समझानी होगी बल्कि उसे इस बात के लिए तैयार भी करना होगा कि वह उस पर अमल करे ।”
“मैं जरूर करूंगा ।”
विमल ने देखा कि इस बात की परवाह किसी को नहीं मालूम होती थी कि कार का कोई पीछा तो नहीं कर रहा था ।
कार अब बड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी । वह पंजिम से निकलकर ओल्ड गोवा पहुंच गई ।
विमल को चिन्ता होने लगी । ऐस्मराल्डो बार जाना तो दूर कार ने तो उधर का रुख तक नहीं किया था । वह पंजिम से ही निकल आई थी । क्या इंस्पेक्टर सोनवलकर के थाने से हासिल सूचना गलत थी । कार पोंडा पहुंची, फिर उससे भी आगे बढ गई । और बेरिम ब्रिज पार कर गई ।
ब्रिज से पार आकर कार रुक गई ।
उस वक्त सड़क पर कोई दूसरी कार नहीं थी जो थोड़ा बहुत ट्रेफिक गुजर रहा था उसमें ऐसा कोई वाहन नहीं था जो पंजिम से ही उनके पीछे लगा हो, मिरांडा ने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और ड्राइवर को संकेत किया ।
ड्राइवर ने कार वापिस पंजिम की ओर बढा दी ।
विमल की जान में जान आई ।
तो नगर के बाहर का चक्कर का केवल इस बात की तसल्ली के लिए लगाया था कि कोई उनका पीछा तो नहीं कर रहा था ।
कार वापिस पंजिम पहुंची ।
मुख्य सड़कों को छोड़कर पिछवाड़े की गलियों में होती हुई वह एवेन्यू गास्पर दियास में स्थित एस्मराल्डो बार के सामने आकर रुकी । विमल ने देखा साढे पांच बज चुके थे ।
वे तीनों कार से बाहर निकले और बार में दाखिल हुए । यह देखकर विमल की जान में जान आ गई कि ड्राइवर ने उनके साथ आने की कोशिश नहीं की थी । ड्राइवर की भीतर मौजूदगी समस्या खड़ी कर सकती थी । किसी ने ड्राइवर का जिक्र ही नहीं किया था । एक तरह से देखा जाता तो मिरांडा ने ड्राइवर को साथ लाकर वादाखिलाफी की थी । उसने कहा था कि वह केवल इंस्पेक्टर सोनवलकर के साथ आएगा । लेकिन विमल ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया ।
वे बार में जाकर एक गोल मेज के गिर्द बैठ गए । बार में उस वक्त चार आदमी और मौजूद थे । पता नहीं वे साधारण ग्राहक थे या उनमें से कोई मिरांडा का आदमी था ।
मिरांडा ने लोबस्टर मसाला और फेनी (काजू की शराब) की एक बोतल का ऑर्डर दिया ।
वेटर के ऑर्डर सर्व कर जाने तक कोई कुछ न बोला ।
मिरांडा ने तीन गिलासों में फेनी डाली ।
विमल ने फेनी की एक चुस्की ली । लोबस्टर की तरफ उसने झांका भी नहीं । फिर वह मिरांडा से सम्बोधित हुआ - “अब मतलब की बात हो जाए ।”
मिरांडा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अल्फांसो साहब के लिए क्या प्रस्ताव है तुम्हारे पास ?”
उत्तर में मिरांडा ने मादक पदार्थों की एक बहुत बड़े पैमाने पर स्मगलिंग की रूपरेखा विमल को समझानी आरम्भ कर दी । विमल फेनी की चुस्कियां लगाता रहा और बड़े सब्र से सब कुछ सुनता रहा । अन्त में जब मिरांडा चुप हुआ तो विमल ने प्रश्न किया - “बदले में तुम क्या चाहते हो ?”
“यही” - मिरांडा बोला - “कि अल्फांसो साहब पर आक्रमण करने की गलती जो मैंने की है, उसे माफ करें । वे बैरभाव त्याग दें और वे मेरी योजना स्वीकार कर लें और नॉरकॉटिक्स स्मगलिंग के इस अपरेशन में वे मुझे अपना दायां हाथ बना लें । और कहना नहीं होगा कि यह काम आरम्भ करने के लिए शुरुआत में जिस पूंजी की जरूरत पड़ेगी । वह सारी की सारी अल्फांसो साहब लगायेंगे ।”
“लेकिन इस बात की क्या गारन्टी है कि इस धन्धे में हाथ डालने पर अल्फांसो साहब को इतना मुनाफा होगा जितना कि तुम बता रहे हो ?”
“यह गारन्टी मेरी है । मैंने यह योजना बहुत ठोक-बजाकर तैयार की है । अगर अल्फांसो साहब इसे अपना लें तो दौलत तो बेशुमार बरसेगी ही साथ ही इस धन्धे में उनका दबदबा ऐसा बन जाएगा कि बेमिसाल ।”
विमल को मिरांडा की योजना दो कोड़ी की लगी । उसने यह महसूस किया कि उस योजना का चारा मिरांडा केवल वक्त हासिल करने के लिए अल्फांसो के आगे डाल रहा था । निश्चय ही भविष्य में पहला मौका हाथ आते ही वह अल्फांसो पर फिर वार करने का इरादा रखता था ।
दूसरी अच्छी बात यह थी कि वह विमल की तरफ से पूर्णतया निश्चन्त था । उसे उस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि विमल उसका कोई अहित करने की क्षमता रखता था ।
एकाएक विमल का बुरा-सा मुंह बन गया ।
“क्या हुआ ?” - मिरांडा ने सशंक स्वर में पूछा ।
“फेनी पीकर मुझे पेशाब बहुत आता है ।” - विमल परेशान स्वर में बोला - “मैं जरा क्लॉकरूम जाना चाहता हूं ।”
मिरांडा ने सन्दिग्ध भाव से उसकी तरफ देखा ।
“क्या चक्कर है ?” - वह कठोर स्वर में बोला ।
“कैसा चक्कर ?” - विमल बड़ी मासूमियत से बोला - “मैं क्लॉकरूम जाना चाहता हूं । मुझ पर भरोसा नहीं तो तुम भी मेरे साथ चले चलो ।”
मिरांडा ने एक बार इन्स्पेक्टर की तरफ देखा, फिर वह आगे को झुक कर दोबारा विमल के जिस्म पर हाथ फिराने लगा ।
“अब भी तसल्ली नहीं हुई तुम्हारी ?” - विमल बोला ।
मिरांडा ने उत्तर नहीं दिया ।
“खामखाह वक्त बर्बाद कर रहे हो” - इंस्पेक्टर सोनवलकर बोला - “इसके पास हथियार के नाम पर पैंसिल बनाने वाला चाकू तक नहीं है ।”
लेकिन शायद मिरांडा को वक्त बर्बाद करने से कोई एतराज नहीं था । उसने नए सिरे से विमल का एक-एक अंग टटोल कर तसल्ली की कि उसके पास कोई हथियार नहीं था । फिर उसकी निगाह बार में मौजूद अन्य चार ग्राहकों की तरफ उठ गई । एक से उसकी आंखें चार हुईं । दोनों में संकेतों का गुप्त आदान-प्रदान हुआ । फिर वह आदमी उठा और क्लॉकरूम की तरफ चला गया ।
विमल हैरान था कि मिरांडा एकाएक इतना सन्दिग्ध क्यों हो उठा था । शायद उसमें खतरे को सूंघ लेने की अद्भुत क्षमता थी ।
“मेरा ब्लैडर फटा जा रहा है ।” - विमल ने शिकायत की ।
“चुपचाप बैठे रहो ।” - मिरांडा डपटकर बोला ।
विमल असहाय भाव से कन्धे झटकाता हुआ चुप हो गया । वह चिन्तित था । क्या आखिरी क्षण पर खेल बिगड़ जाने वाला था । थोड़ी देर बाद वह आदमी क्लॉकरूम से बाहर निकला ।
“जाओ” - एकाएक मिरांडा बोला - “और जल्दी लौटना ।”
“बस गया और आया ।” - विमल कृतज्ञतापूर्ण स्वर में बोला । वह अपने स्थान से उठा और बड़े व्यग्र भाव से चलता हुआ क्लॉक रूम में दाखिल हो गया ।
क्लॉकरूम खाली था । उसने सबसे पहले सचमुच पेशाब किया । उस दौरान किसी ने क्लॉकरूम में कदम नहीं रखा । फिर उसने बड़ी फुर्ती से पानी की टंकी का ढक्कन उठाकर उसे उलटा किया । उसे दूसरी तरफ टेप से लगी रिवॉल्वर दिखाई दी ।
उसने जल्दी से टेप को नोचकर परे फेंका और रिवॉल्वर हाथ में ले ली । उसने एक क्षण रिवॉल्वर को अपने हाथ में तोला, फिर उसने उसे अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस लिया और ऊपर से कोट के बटन बन्द कर लिए । फिर वह सिंक के सामने पहुंचा । उसने साबुन से हाथ धोए, बालों को गीला करके उनमें कंघी फिराई और फिर वहां से बाहर निकल आया । मिरांडा क्लॉकरूम के दरवाजे की ओर मुंह किए बैठा था । उसकी आंखें बेहद चौकन्नी लग रही थीं ।
इंस्पेक्टर सोनवलकर तब तक लोबस्टर मसाला की नई प्लेट मंगा चुका था और अब उस पर आक्रमण कर रहा था ।
दूर बार काउन्टर पर मौजूद मिरांडा का आदमी विमल को क्लॉकरूम से बाहर आता पाकर चैन की सांस लेता मालूम हो रहा था । विमल खेदपूर्ण ढंग से मुस्कराता हुआ आगे बढा और फिर अपनी कुर्सी पर आ बैठा ।
यहां वह अल्बर्टो के निर्देशानुसार काम नहीं कर सका था । अल्बर्टो ने उसे कहा था कि वह क्लॉकरूम से बाहर आते ही फौरन शूटिंग शुरु कर दे । लेकिन न जाने क्यों ऐन मौके पर विमल के भीतर से कोई चेतावनी भरी आवाज उठने लगी थी कि अगर उसने ऐसा किया तो खुद उसका काम तमाम हो जाएगा । कुर्सी पर बैठ जाने के बाद उसने बड़ी राहत महसूस की । उसे तब अनुभव हुआ कि जब वह अपने पैरों पर खड़ा था तो उसकी टांगें कांप रही थीं ।
मिरांडा मेज पर आगे को झुककर फिर बात करने लगा । विमल के पल्ले उसका कहा एक शब्द भी नहीं पड़ रहा था । वह आगे को सरक आया था और उसने अपनी कुर्सी सरकाकर एकदम मेज के साथ सटा दी थी । इस प्रकार उसकी कमर से नीचे का भाग मिरांडा को या इंस्पेक्टर को दिखाई नहीं दे रहा था । विमल बड़ी तल्लीनता से मिरांडा की बात सुनने का अभिनय करता रहा । उसने धीरे से कोट के बटन खोल लिए । फिर उसका दायां हाथ रिवॉल्वर के दस्ते पर सरक गया । उसने धीरे से रिवॉल्वर को पतलून की बैल्ट से खींच लिया और उसे अपनी जांघ के साथ सटा लिया । उसकी कनपटियों में खून बजने लगा । उसी क्षण वेटर वहां पहुंचा । मिरांडा ने एक क्षण के लिए बोलना बन्द कर दिया । वह वेटर की ओर आकर्षित हुआ ।
विमल ने बिजली की फुर्ती दिखाई । उसने बायें हाथ से मेज को एक तरफ धकेल दिया । उसका रिवॉल्वर वाला हाथ आगे को झपटा और रिवॉल्वर की नाल लगभग मिरांडा के माथे से जा लगी । इससे पहले कि हक्का-बक्का मिरांडा कुछ समझ पाता, उसका शरीर या मस्तिष्क कोई प्रतिक्रिया दिखा पाता, विमल ने घोड़ा दबा दिया । गोली मिरांडा के माथे में धंस गई । जब वह दूसरी तरफ से खोपड़ी को फाड़ती हुई पार निकली तो उसका भेजा, मांस के छोटे-छोटे लोथड़े और खून के छींटे समीप खड़े वेटर के सफेद कोट पर बिखर गए । विमल को मिरांडा की आंखों में जिन्दगी की रोशनी साफ बुझती दिखाई दी । वह समझ गया कि दूसरी गोली की जरूरत नहीं थी । सब कुछ केवल एक सैकेंड में हो गया था ।
फिर उसने तभी फुर्ती से रिवॉल्वर का रुख इंस्पेक्टर सोनवलकर की तरफ किया । इन्स्पेक्टर चेहरे पर हाहाकारी भाव लिए विमल को देख रहा था लेकिन वह भयभीत नहीं था । प्रत्यक्षत: उसे न इस बात का ज्ञान था और न विश्वास कि खुद उसके सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा था । उसके एक हाथ में कांटे लगा लोबस्टर का टुकड़ा था और दूसरे में फेनी का गिलास । उसकी आंखों में ऐसा भाव था जैसे वह विमल से अपेक्षा कर रहा हो कि वह अभी रिवॉल्वर उसके सामने फेंक देगा और आत्मसमर्पण कर देगा और या फिर एक पुलिस अधिकारी के जलाल से दहशत खाकर वह वहां से भाग खड़ा होगा । विमल के होंठों पर एक विद्रुपपूर्ण मुस्कराहट उभरी और उसने रिवॉल्वर का घोड़ा दबा दिया । गोली इंस्पेक्टर की आंखों के नीचे नाक पर लगी और वह कुर्सी समेत पीछे को उलट गया ।
फिर विमल की निगाह बार की तरफ उठी । वहां मिरांडा का आदमी यूं जड़ हुआ खड़ा था जैसे उसे लकवा मार गया हो । विमल ने रिवॉल्वर उसकी तरफ लहराई तो उसने आतंकित भाव से अपने दोनों हाथ अपने सिर से ऊपर उठा दिए और उसकी तरफ पीठ फेर ली । खून के छींटों से लथपथ वर्दी वाला वेटर भय से बेहोश होकर फर्श पर ढेर हो गया ।
बार में मौत का सा सन्नाटा छाया हुआ था । कोई अपने स्थान से हिल नहीं रहा था ।
विमल ने अपनी रिवॉल्वर वाली बांह अपने जिस्म से समानान्तर करके नीचे झुकाई । उसने रिवॉल्वर अपनी उंगलियों से फिसल जाने दी । उसने देखा कि किसी को यह मालूम नहीं हुआ था कि उसने रिवॉल्वर गिरा दी थी ।
वह आगे बढा । किसी ने उसे रोका नहीं । किसी ने पीछे से आवाज नहीं लगाई । उसने बार का दरवाजा खोला और बाहर सड़क पर आ गया ।
एक कार ऐन उसके सामने खड़ी थी और उसकी ड्राइविंग सीट पर अल्बर्टो बैठा था । शायद गोली चलने की आवाज सुनते ही वह कार को वहां ले आया था । कार का इंजन चालू था और वह गियर में था ।
मिरांडा की कार फुटपाथ के साथ लगी खड़ी थी लेकिन उसका ड्राइवर कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ।
विमल झपट कर अल्बर्टो की बगल में कार में सवार हो गया । कार तुरन्त तोप से छूटे गोले की तरह आगे भागी ।
“काम हो गया ?” - अल्बर्टो ने व्यग्र स्वर में पूछा ।
“हां !” - विमल हांफता हुआ बोंला ।
“दोनों का !”
“हां !”
“पक्की बात ?”
“मैंने दोनों का भेजा हवा में उड़ता देखा था ।”
अल्बर्टो कुछ न बोला ।
विमल ने सीट की पीठ के साथ अपना सिर टिका लिया और आंखें बन्द कर लीं ।
‘वाहे गुरू सच्चे पातशाह’ - वह होंठों में बुदबुदाया - ‘मैं पापी तू बख्शनहार !’
***
मिरांडा की मौत की तो ऐसा नहीं लगा कि किसी ने खास परवाह की हो लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर की उस हाहाकारी ढंग से हुई हत्या ने बहुत तहलका मचाया । पुलिस उच्चाधिकारियों ने उस घटना को विभाग के निजी मान-सम्मान का सवाल बना लिया और उन्होंने चश्मदीद गवाहों से हत्यारे के हुलिए की जानकारी हासिल कर ली । फिर पुलिस ने गोवा से निकासी का हर मुमकिन रास्ता बन्द करवा दिया और बड़ी सरगर्मी से विमल की तलाश आरम्भ कर दी ।
लेकिन गोवा अल्फांसो का गढ था । वहां उसके साधन भी असीमित थे । उसने उसी रात को बड़े सुरक्षित ढंग से विमल को गोवा से बाहर निकलवा दिया ।
विमल पुलिस की गिरफ्त में न आ सका ।
न चाहते हुए भी उसके अपराधों की लम्बी सूचि में आधी दर्जन से अधिक हत्याओं का अपराध और जुड़ गया । उनमें से कम-से-कम दो के बारे में बाद में पुलिस को पक्का पता लग गया कि सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल कुमार खन्ना उर्फ गिरीश माथुर उर्फ बनवारीलाल तांगेवाला उर्फ रमेश कुमार शर्मा उर्फ कैलाश मल्होत्रा का हाथ था ।
गोवा की वह भीषण गैंगवार सदा के लिए समाप्त हो गई । उसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि एन्थोनी एल्बुर्क्क के लिए अब अपने किस्म के पेशे का कोई प्रतिद्वन्द्वी गोवा में नहीं रहा था । मैगुअल अल्फांसो ने जुआघर हमेशा के लिए बन्द कर दिया । एकाएक उसकी अपने उस पुराने धन्धे में उसकी कतई कोई दिलचस्पी नहीं रही थी ।
समाप्त