चालीस मिनट बाद भुल्ले खान ने इस्लामाबाद के पुराने इलाके हकीम लुकमान रोड पर सड़क के किनारे कार रोकी और इंजन बंद करके बाहर निकला। देवराज चौहान भी बाहर आ गया। भीड़ भरा इलाका था। लोग आ-जा रहे थे। यहां पर ज्यादातर रिक्शे-ठेलों की भीड़ थी। पैदल आने-जाने भी काफी संख्या में नजर आ रहे थे। भुल्ले देवराज चौहान के साथ पास की गली में प्रवेश कर गया जो कि सिर्फ चार फीट चौड़ी थी।

"यहां पर इकबाल खान ने प्रॉपर्टी का काम खोल रखा है दिखावे के लिए कि मिलने वाले आने वाले लोगों से आसानी से मिल सके। वो हर रोज यहां नहीं मिलता। कभी-कभी ही यहां दिखता है। उसके ना होने पर मुनीम इधर का काम संभालता है।"

दोनों गली में आगे बढ़ते जा रहे थे।

लोगों का आना-जाना लगा हुआ था।

"करता क्या है ये?"

"लड़कों को ढूंढकर उन्हें आतंकवाद की ट्रेनिंग देता है और बड़े संगठन को लड़के सप्लाई करके उनसे पैसे लेता है। इकबाल खान की हर छोटे-बड़े संगठन से पहचान है। जो लड़के सीमा पार जाना चाहते हों तो उनसे पैसे लेकर, मेरे द्वारा उन्हें सीमा पार करा देता है। इकबाल के काम की जड़ें दूर तक फैली हुई हैं। इस धंधे में पुराना है।

वो गली इलाके के भीतर के काफी बड़े चौराहे पर जाकर खत्म हुई। चौराहे के बीचो-बीच बरगद का बड़ा-सा फैला पेड़ खड़ा था। जिसके आसपास सीमेंट का गोल चबूतरा बना रखा था। चौराहे के हर तरफ दुकानें दिखी। भीड़ जैसे लोग दिखे। भुल्ले देवराज चौहान के एक तरफ बढ़ता कह उठा।

"वो देखो, सामने इकबाल प्रॉपर्टी डीलर का बड़ा-सा बोर्ड लगा है। वहीं जाना है हमें।"

शीशे का दरवाजा धकेलकर दोनों भीतर प्रवेश कर गए। सजा-सजाया ऑफिस था ये। ए•सी• चल रहा था। सामने ही कुर्सी पर पचास बरस का इकबाल खान बैठा अखबार पढ़ रहा था। मेल-मिलाप के बाद भुल्ले ने देवराज चौहान का परिचय इकबाल खान से ये कहकर कराया कि ये लाहौर से आया राशिद अली है। इकबाल खान ने इंटरकॉम पर तीन कॉफी भेजने को कहा किसी को। भुल्ले खान तुरंत ही मतलब की बात पर आता बोला।

"इकबाल भाई। राशिद अली साहब ने मुझे पचास हजार देने को कहा है अगर मैं इनका काम करा दूं तो---।"

"काम क्या है?" इकबाल ने देवराज चौहान को गहरी निगाहों से देखा।

"मैं क्या कहूं, इनके मुंह से ही सुन लीजिए। कहिए राशिद मियां, इकबाल खान साहब अपने खास हैं, कुछ भी दिल में मत रखिए जो कहना है कह दीजिए। खुदा ने चाहा तो काम जरूर बन जाएगा।" भुल्ले ने देवराज चौहान से कहा।

देवराज चौहान, चेहरे पर लगी दाढ़ी पर हाथ फेरता बोला।

"मुझे दस हथियारबंद आदमी चाहिए। जो कि मेरे बतलाए वक्त के अनुसार, एक जगह पर हमला कर सकें और एक घंटे तक हमला करते रहें। उन लोगों को व्यस्त रखें।" देवराज चौहान ने कहा।

"कहां हमला करना है?" इकबाल खान ने पूछा।

"मिलिट्री हैडक्वार्टर पर।"

"मिलिट्री हैडक्वार्टर?" इकबाल खान चौंका।

देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।

"मामला क्या है?" इकबाल खान के माथे पर बल दिखने लगे थे।

"मेरे भाई को मिलिट्री वालों ने खामख्वाह पकड़ लिया है। उस पर वे हिन्दुस्तानी जासूस होने का आरोप लगा रहे हैं, जबकि वो लाहौर में कपड़े का बिजनेस करता है। काम के सिलसिले में वो इस्लामाबाद आया और तब वो सैयदपुर विलेज में था कि वहां पर विस्फोट हो गया। मिलिट्री का एक ट्रक उस विस्फोट की जद में आ गया। पास ही मेरा भाई खड़ा था और उसे हिन्दुस्तानी जासूस कह कर पकड़ लिया। अब उसे मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल पर कैद रखा हुआ है। मिलिट्री वाले उसे छोड़ने को तैयार नहीं और मैं अपने भाई से बहुत प्यार करता हूं। उसे छुड़ाना चाहता हूं।"

"कैसे छुड़ाओगे?" इकबाल खान की आवाज में दिलचस्पी के भाव उभरे।

"कुछ मिलिट्री वाले मेरी सहायता करने को तैयार हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि मेरा भाई बेगुनाह है। बस एक घंटे भर के लिए हैडक्वार्टर में मिलिट्री वालों का ध्यान बंटाना है, जैसा कि मैं तुमसे कह रहा हूं। जब तुम हमला कराओगे तो मैं मिलिट्री वाला बनकर हैडक्वार्टर में होऊंगा। मेरा भाई चौथी मंजिल पर कहां है, मैं पता कर चुका हूं। तुम्हारे द्वारा कराए जा रहे हमले के दौरान मैं वहां से अपने भाई को निकालकर ले जाऊंगा। इसमें मिलिट्री वाले मेरी सहायता करेंगे।"

इकबाल खान के चेहरे पर गंभीरता उभरी।

"ये तो खतरनाक काम है।" वो बोला।

"अपने भाई के लिए मैं जान भी दे सकता हूं।"

"तुम इस काम में मारे जाओगे। मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी को ले उड़ना, मजाक की बात नहीं है।"

"मैं ये काम कर लूंगा।"

"नहीं कर सकोगे मियां---।" इकबाल खान बोला।

"कर लूंगा।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।

इकबाल खान देवराज चौहान को घूरने लगा।

भुल्ले खान ने बेचैनी से पहलू बदला।

"तो तुम सोच चुके हो कि तुमने इस तरह मरना है।"

"मैं इस तरह अपने भाई को वहां से निकाल लूंगा। ये सोचा है मैंने। पर मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए। दस आदमी, जो मैं वक्त बताऊं तब मिलिट्री हैडक्वार्टर के मुख्य दरवाजे पर हमला करें और एक घंटे तक करते रहें। हमला इस तरह करना है कि मिलिट्री वालों में हड़बड़ाहट फैल जाए। इस दौरान मैं अपना काम पर जाऊंगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"बाहर तो हमला हो रहा होगा तुम अपने भाई को लेकर बाहर नहीं निकल सकोगे।" इकबाल खान बोला।

"वो सब मैंने सोच लिया है।"

"क्या?"

"मैं अपने भाई के साथ इमारत के भीतर खड़ी किसी मिलिट्री की गाड़ी में छुप जाऊंगा। वहां से तुम्हें फोन कर दूंगा कि हमला बंद कर दो। तुम ऐसा करोगे। उसके बाद मैं मिलिट्री की किसी जीप से निकल जाऊंगा। ये काम मैं मिलिट्री की वर्दी पहनकर करूंगा। कोशिश करूंगा कि अपने भाई को भी फरारी के समय मिलिट्री की वर्दी पहना दूं।"

"तुम पागलपन कर रहे हो।" इकबाल खान ने इंकार में सिर हिलाया--- "ये पागलपन के सिवाय कुछ नहीं है।"

"मैं ये काम कर जाऊंगा जनाब जी।" देवराज चौहान बोला।

"असंभव है।"

"आपका बेगुनाह भाई इस तरह फंसा होता तो आप भी ऐसा ही साहस दिखाते।" देवराज चौहान ने तेज स्वर में कहा।

इकबाल खान के चेहरे पर गंभीरता दिखने लगी।

"जैसा मैं कह रहा हूं आप वैसा कीजिए। बाकी काम करना मेरा काम है। जान जाएगी तो मेरी जाएगी।"

"जान उन दस लोगों की भी जाएगी जो वहां एक घंटे तक हमला करते रहेंगे।" इकबाल खान बोला।

"वो कैसे?" जबकि देवराज चौहान जानता था कि वो सही कह रहा है।

"जो लोग एक घंटे तक मिलिट्री हैडक्वार्टर पर हमला करते रहेंगे, वो जिंदा कैसे बचे रहेंगे। मिलिट्री वहां पर घेरा डाल चुकी होगी और उन सबको सूट कर दिया जाएगा। तुमने कैसे सोच लिया कि वो जिंदा निकल जाएंगे। मिलिट्री के पास एक घंटे का वक्त होगा। कई ट्रकों में भरकर वहां मिलिट्री वाले आ पहुंचेंगे।" इकबाल खान ने कहा।

भुल्ले ने बेचैनी से पहलू बदला।

"जो भी हो मैंने ये काम इसी तरह कराना है।"देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।

इकबाल खान उसे देखता रहा।

"मैं अपने भाई को इस तरह मरने नहीं दे सकता। जनाब आप मेरे मन मुताबिक काम कर सकते हैं या नहीं?" देवराज चौहान ने पूछा।

"काम सब हो जाते हैं।"

"तो मेरा ये काम कीजिए।"

"इस काम में मुझे सुसाइड बम्बरों का इस्तेमाल करना होगा। हमले के लिए दस आदमी की बात कर रहे हैं ना आप?"

"हां।"

"दस सुसाइड बम्बर। एक की कीमत दो लाख रुपए। बीस लाख रुपए तो उन दस आदमियों की कीमत हो गई। उनके बाद उन हथियारों की कीमत, जो उन्हें दिए जाएंगे। जाहिर है उनकी मौत के बाद वो मिलिट्री के हाथ लग जाएंगे। मुझे वापस नहीं मिलेंगे। एक-एक गन लाखों की है। गनें भी उन्हें बढ़िया देनी होंगी कि एक घंटा तक टिके रहें। दस गनों की कम से कम कीमत पन्द्रह लाख तो है ही। मतलब कि पैंतीस लाख हो गया और एक घंटे में दस आदमी जो गोला-बारूद खर्च करेंगे, उनकी कीमत। वहां बम भी फेंके जाएंगे। बराबर गोलियां चलती रहेगी। छोटे रॉकेट भी फेंके जाएंगे, इसके लिए रॉकेट लांचर का इस्तेमाल होगा।" इकबाल खान हिसाब लगाता हुआ कह उठा--- "अपना भी खर्चा-पानी होगा। जनाब जी कुल मिलाकर ये सौदा पचास लाख पड़ेगा आपको। बहुत कम हिसाब-किताब लगा रहा हूं।"

"पचास लाख।" भुल्ले के होंठों से निकला।

जबकि देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती छाई हुई थी।

"काम मेरी पसंद का होगा।"

"पूरी तरह।" इकबाल खान मुस्कुरा पड़ा--- "काम ऐसा कि आप भी वाह-वाह कहेंगे।"

"तो पचास लाख मुझे मंजूर हैं।"

"पैसा पहले चाहिए।" इकबाल खान ने कहा।

"पैसा कल नकद आपको मिल जाएगा।"

"पैसा देने के बाद हम बैठेंगे। एक बार फिर इस सारे काम पर लंबी बातचीत करेंगे।" इकबाल खान ने कहा।

"मेरा पचास हजार रुपया?" भुल्ले कह उठा।

"तुम्हें भी कल मिल जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"इकबाल भाई।" भुल्ले बोला--- "जनाब को मिलिट्री कैप्टन की वर्दी सिलाकर देनी है। ये काम कहां पर होगा।"

"कल जब मुझे पैसा मिल जाएगा, तब तुम्हें ऐसी जगह बताऊंगा, जहां ये काम हो जाएगा।" इकबाल खान ने कहा।

भुल्ले खान ने देवराज चौहान से कहा।

"अब तो आपका काम हो गया राशिद मियां। चलें यहां से?"

देवराज चौहान इकबाल से कुछ कहने लगा तो इकबाल खान ने कहा।

"आज के लिए इतनी ही बात बहुत है। बाकी बात पैसा मिलने के बाद की जाएगी।" फिर उसने भुल्ले से कहा--- "कल मैं यहां नहीं मिलूंगा। ये पैसे के साथ मुझसे मिलना चाहें तो मुझे फोन कर लेना।"

भुल्ले ने सिर हिलाया फिर देवराज चौहान से बोला।

"चलिए जनाब। कल जब आप नोट ले आएंगे तो तब बाकी बातें होंगी।"

देवराज चौहान और भुल्ले खान वहां से बाहर निकल आए।

"इकबाल जुबान वाला बंदा है, उसने हां कही है तो काम बढ़िया करेगा, पर पचास लाख का तुम इंतजाम कर लोगे?"

"हो जाएगा।" चलते हुए देवराज चौहान ने जेब से फोन निकाला और विनोद भाटिया को फोन किया। बात हुई--- "मुझे कल साठ लाख रुपया चाहिए। कल दिन के बारह बजे तक।"

"साठ लाख?" उधर से विनोद की आवाज आई--- "बड़ी रकम है।"

"हां या ना, कल मुझे साठ लाख मिलेगा कि नहीं?" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।

"मिल जाएगा।"

"बारह बजे तक।" कहने के साथ देवराज चौहान ने फोन जेब में रखा।

"बात पचास की हुई थी। साठ क्यों?" भुल्ले ने पूछा।

"दस तुम्हारे लिए। तुम मेरे बहुत काम आ रहे हो।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"पर मेरी वजह से ही तो तुम फंसे हो। इसलिए तुम्हारे काम...।"

"अहमद ने धोखेबाजी कर दी तो इसमें तुम्हारा क्या कसूर। तुम साथ ना होते तो, मुझे काफी परेशानी होती। इन दिनों तुम अपना काम-धंधा भी रोके बैठे हो। अगर नहीं लेना चाहते तो---।"

"मैं ले लूंगा।" भुल्ले खान जल्दी से कह उठा--- "मैंने इंकार नहीं किया।"

"अब कादिर शेख के पास जाना है।" देवराज चौहान ने कहा।

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कादिर शेख उसी कमरे में मिला, जिसमें वो पहले मिला था।

"सलामत हो।" कादिर शेख ने मुस्कुराकर पूछा।

"पूरी तरह। मुझे एक कागज-पेन दो।" देवराज चौहान बोला।

कादिर शेख ने कागज-पेन उसके सामने रख दिया।

देवराज चौहान ने कागज पर कुछ बनाया और कादिर शेख के सामने कागज सरका कर बोला।

"ये मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल के हिस्से का नक्शा है।"

कादिर शेख ने कागज पर निगाह मारी।

"यहां पर चार रास्ते हैं, परंतु मैं नहीं जानता कि 28 नंबर कमरे की तरफ जाने के लिए मुझे कौन-सा रास्ता इस्तेमाल करना चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा--- "ये बात तुम बताओ कि मैं किस रास्ते पर जाऊं।"

कादिर शेख ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान की निगाह कादिर शेख पर थी।

"तुम।" कादिर शेख होंठ सिकोड़कर बोला--- "चौथी मंजिल तक गए हो क्या?"

"हां।"

"कैसे?"

"सवाल मत पूछो। जो मैंने पूछा है, उसका जवाब दो।" देवराज चौहान ने कहा।

"मुझे हैरानी है कि तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल तक हो आए हो।" कहते हुए उसने फोन उठाया और नंबर मिलाने लगा। किसी से बात हुई तो यही बात पूछताछ करने लगा।

भुल्ले खामोश बैठा था।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

पांच मिनट कादिर शेख फोन पर बातें करता रहा फिर फोन बंद करके, कागज पर बनाए गए चार रास्ते में से एक रास्ते पर पेन से निशान लगाकर, कागज देवराज चौहान की तरफ सरकाते हुए कह उठा--- "इस रास्ते पर जाने पर 28 नंबर कमरा आएगा। हर कमरे के दरवाजे पर नंबर लिखे हुए हैं।"

देवराज चौहान कागज को कुछ पल देखता रहा। रास्ते की पहचान करता रहा।

तभी भुल्ले बोला।

"चाय-कॉफी मंगवाओ।"

"कुछ खाने को भी मंगवाऊं?" कादिर शेख ने पूछा।

"समोसे मंगवा लो।"

कादिर शेख उठा और बाहर निकल गया दो मिनट में ही वापस आ गया।

देवराज चौहान ने टेबल से कागज उठाकर फाड़ दिया।

"तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर की चौथी मंजिल पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हो?" कादिर शेख बोला।

"हां।"

"गोरिल्ला को वहां से निकाल लोगे?"

"शायद।"

"मुझे नहीं लगता।" कादिर शेख ने गंभीर स्वर में कहा।

"ये बात सिर्फ तुम्हें ही मालूम है कि मैं क्या करने वाला हूं। अनीस और इस्माइल इस बारे में कुछ भी नहीं जानते। अगर मेरे साथ कोई गड़बड़ हुई तो सारी जिम्मेदारी तुम पर ही होगी।" देवराज चौहान का स्वर सख्त था--- "अगर तुम डबल एजेंट हो तो संभलकर रहना। इस बार तुम पहचाने जाओगे।"

कादिर शेख मुस्कुरा पड़ा। फिर बोला।

"अगर ये बात सिर्फ मुझे ही मालूम है तो निश्चिंत रहो, तुम्हारे साथ गड़बड़ नहीं होगी।"

"मेजर से मेरी बात कराओ।"

कादिर शेख ने नीचे ड्रॉज से फोन निकाला और देवराज चौहान से बोला।

"सोच लेना कि ऐसा करके गोरिल्ला को वहां से निकाल लोगे या खुद ही मारे जाओगे। वो मिलिट्री हैडक्वार्टर है। बच्चों का खेल नहीं। मुझे तो लगता है कि तुम आत्महत्या करने जा रहे हो।"

"मेजर से बात कराओ।"

कादिर शेख ने मेजर का नंबर मिलाया। बात हुई तो फोन देवराज चौहान को दिया।

"मेजर।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैं तुम्हारा काम करने जा रहा हूं।"

"मैं जानता हूं तुम सफल रहोगे।" मेजर की आवाज कानों में पड़ी।

"अगर मेरे साथ बुरा हादसा पेश आए तो जगमोहन को आजाद कर देना।" देवराज चौहान बोला।

"तुम ठीक रहोगे।"

"जो मैंने कहा है, सिर्फ उसका जवाब दो।"

"उस स्थिति में जगमोहन को आजाद कर दूंगा। विनोद का फोन आया था अभी, तुम साठ लाख मांग रहे हो।"

"हां।"

"किसे दोगे इतना पैसा?"

"किसी से काम ले रहा हूं। उसे देना है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

"मुझे नहीं बताओगे कि तुम ये काम कैसे करने जा रहे हो?" उधर से मेजर ने कहा।

"इस बात से तुम्हारा कोई मतलब नहीं।"

"ठीक है। मैं दोबारा नहीं पूछूंगा।"

"अब मेरी बात सुनो मेजर।" देवराज चौहान की आवाज कठोर हो गई--- "किसी को सूबेदार जीतसिंह के पास भेजो। वो वहां पर नहीं मिलेगा। वो अपने गांव में नहीं है। या ये बात तुम भी जानते हो कि...।"

"सूबेदार जीत सिंह तो यहां है, आज सुबह ही छुट्टी से वापस आकर उसने ड्यूटी ज्वाइन की है।" उसकी बात काटते हुए मेजर कह उठा--- "और इस वक्त वो मुझे सामने नजर आ रहा है।"

"क्या?" देवराज चौहान अचकचाया।

"इतना हैरान क्यों हो रहे हो?"

देवराज चौहान हक्का-बक्का सा रह गया।

"सूबेदार जीत सिंह तुम्हारे सामने है?"

"हां। पर तुम क्यों बार-बार---।"

"तुम झूठ बोल रहे हो।" देवराज चौहान का स्वर तेज हो गया।

"क्या मतलब? तुम मुझे झूठा कह रहे हो। होश में तो हो?" उधर से मेजर की आवाज आई।

"आज वापस लौटा छुट्टी से?" देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

"हां। सुबह आठ बजे आया, नहा-धोकर वर्दी पहनी और ड्यूटी जॉइन कर ली। उसकी बात करके तुम क्या जानना चाहते हो...।"

"मेजर सूबेदार जीत सिंह पाकिस्तान के इस्लामाबाद में है।" देवराज चौहान गुर्राया--- "कुछ घंटों पहले मैंने और भुल्ले खान ने उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा किया था, परंतु वो हाथ से निकल...।"

"ये हो ही नहीं सकता।" दूसरी तरफ से मेजर का दृढ़ स्वर सुनाई दिया--- "वो तो यहां है, मेरे सामने।"

"तुम झूठ बोल रहे हो।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।

"तुम झूठ बोल रहे हो।"

"जीत सिंह से मेरी नजरें मिली थी। वो मुझे देखकर मुस्कुराया भी था--- वो---।"

"होश की बात करो देवराज चौहान। जीत सिंह सुबह से यहां है, बाकी बातें खत्म।"

देवराज चौहान फोन कान से लगाए बैठा रह गया। फिर भुल्ले से कहा।

"मेजर नहीं मानता कि जीतसिंह पाकिस्तान में है। वो कहता है कि जीतसिंह ने आज छुट्टी के बाद ड्यूटी ज्वाइन की है।"

"बकवास करता है वो।" भुल्ले खान ने तीखे स्वर में कहा।

देवराज चौहान पुनः फोन पर बोला।

"जीत सिंह से मेरी बात कराओ।"

"होल्ड करो।" मेजर की आवाज आई फिर खामोशी छा गई।

कादिर शेख, बात समझने वाले अंदाज में बैठा उन्हें देख रहा था।

आधे मिनट बाद सूबेदार जीत सिंह की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी।

"हैलो।"

"सूबेदार जीतसिंह?" देवराज चौहान ने उसकी आवाज पहचानने की कोशिश की।

"हां। तुमने अभी तक गोरिल्ला को आजाद नहीं कराया?" उधर से सूबेदार जीतसिंह ने कहा।

देवराज चौहान उसकी आवाज पहचाने की चेष्टा में था।

"जगमोहन को कोई तकलीफ तो नहीं हो रही तुम लोगों के पास?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मैं तो उस दिन से छुट्टी पर था। आज ही आया हूं। मिला उससे, वो ठीक है। मेजर साहब कह रहे हैं कि तुमने मुझे पाकिस्तान में देखा है। ये तो हैरानी की बात हो गई, मैं एक ही वक्त में दो-दो जगह पर कैसे हो गया?"

वो सूबेदार जीतसिंह की ही आवाज थी। देवराज चौहान को तसल्ली हो गई।

"भुल्ले खान की याद होगी तुम्हें।"

"वो जो सीमा पार कराता है। तुम्हारे साथ ही तो उसे वापस भेजा था।" उधर से जीतसिंह की आवाज आई।

"भुल्ले खान से बात करो।" कहने के साथ देवराज चौहान ने भुल्ले को फोन देते हुए कहा--- "तुमने जीतसिंह की आवाज सुन रखी है। बात करो और आवाज को पहचानो कि क्या ये वही आवाज है।"

भुल्ले ने फोन लेकर बात की।

मिनट, डेढ़ मिनट बात करने के बाद फोन देवराज चौहान को देता बोला।

"सूबेदार जीतसिंह की ही आवाज है ये।"

"हमने जिसे आज देखा, पीछा किया और वो हमसे भाग निकला, वो भी तो जीतसिंह था।"

"हां।" भुल्ले ने गंभीरता से सिर हिलाया।

"हम आवाज पर यकीन करें या अपनी आंखों पर?" देवराज चौहान ने उससे फोन लिया।

भुल्ले देवराज चौहान को देखता रहा। कहा कुछ नहीं।

"मेजर को फोन दो।" देवराज चौहान ने फोन पर कहा।

"मैं बोल रहा हूं, कहो।"

"जगमोहन से मेरी बात कराओ।"

"अभी?"

"बिल्कुल अभी, मैं जानना चाहता हूं कि इस वक्त तुम मिलिट्री बेस पर ही हो। कहीं और तो नहीं हो ताकि मैं यकीन कर सकूं कि जीतसिंह ने वास्तव में ड्यूटी ज्वाइन की है। वो ड्यूटी पर है।"

"रुको बात कराता हूं।"

देवराज चौहान फोन कान से लगाए रहा।

तभी कादिर शेख का आदमी आया और तीन कॉफी और छः समोसे से भरी प्लेट रख गया। भुल्ले ने गरम समोसा उठाया और खाने लगा। देवराज चौहान फोन कान से लगाए बैठा था।

करीब चार मिनट बाद मेजर की आवाज कानों में पड़ी। वो हैलो कह रहा था।

"सुन रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा।

"जगमोहन से बात करो।"

फिर जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।

"तुम ठीक हो?"

"मैं ठीक हूं। तुम्हें मिलिट्री बेस में ही रखा है मेजर ने?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां, क्यों?"

"यूं ही।" देवराज ने सोच भरे स्वर में कहा--- "फोन बंद कर रहा हूं।"

"काम नहीं हुआ अभी?"

"एक-दो दिन में करने वाला हूं।" कहकर देवराज चौहान ने फोन टेबल पर रख दिया। चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। आंखें सिकुड़ी हुई थी। जीतसिंह एक ही वक्त में दो जगह मौजूद नहीं रह सकता। परंतु वो एक ही दिन में दो जगह मौजूद था। हिन्दुस्तान में भी और पाकिस्तान में भी। मामला क्या है?

"समोसा खाओ। मजेदार है और गर्म भी।" समोसा खाते हुए भुल्ले बोला--- "मैंने जिससे बात की, वो जीत सिंह की आवाज ही थी। तुम्हें क्या लगता है कि वो आवाज...।"

"सूबेदार जीतसिंह की ही थी।" देवराज चौहान ने कहा।

"कमाल है, हमने तो सुबह जीतसिंह को इस्लामाबाद में देखा।" भुल्ले बोला।

देवराज चौहान ने कहा कि वो मेजर को फोन करे। उसने ऐसा है किया। मेजर के द्वारा देवराज चौहान ने जगमोहन से फिर बात की।

"तुमने सूबेदार जीतसिंह को देखा है?" देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा।

"हां। आज सुबह वो मेरा हाल पूछने आया था। कई दिन से तो वो मुझे दिखा नहीं था।" उधर से जगमोहन ने बताया।

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए। पूछा।

"वो जीतसिंह ही था?"

"हां। पर तुम ये बात क्यों पूछ रहे हो?"

"मैंने जीतसिंह को आज सुबह इस्लामाबाद में देखा। नजरें मिली। उसे पकड़ना चाहा। पीछा किया परंतु वो हाथ से निकल गया।"

"ये कैसे हो सकता है। वो तो यहां है।" उधर से जगमोहन ने हैरानी से कहा।

"ऐसा हुआ है। मेरे साथ भुल्ले भी था। भुल्ले ने भी उसे देखा।"

"ये बात मेरी तो समझ से बाहर है। जीतसिंह हिन्दुस्तान में कैसे हो सकता है वो तो यहां है।"

देवराज चौहान ने फोन बंद करके रखा और कॉपी का प्याला अपनी तरफ सरका लिया।

भुल्ले दूसरा समोसा उठाता बोला।

"क्या कहा जगमोहन ने?"

"वो कहता है जीतसिंह वहां है। सुबह उससे मिलने आया था।"

"तो हम सुबह काले कुत्ते के पीछे भागे थे।" भुल्ले ने तीखे स्वर में कहा--- "वो जीतसिंह था। हम दोनों ने उसे पहचाना।"

"जगमोहन की बात को हम यूं ही नहीं ले सकते।"

"पर हमने जीतसिंह को देखा, ये बात हम यूं ही तो नहीं कह रहे।"

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरकर भुल्ले को देखा।

समोसा हाथ में थामें भुल्ले उसे ही देख रहा था।

"कहीं ना कहीं तो गड़बड़ है ही। या तो हमें दिखने वाला भी नहीं था या जगमोहन के पास वाला जीतसिंह नहीं है। परंतु हमें जो जीतसिंह दिखा, वो हमें पहचानता था। हमें देखकर भागा। हमें देखकर मुस्कुराया।"

"फिर तो हमें दिखने वाला जीतसिंह असली है।"

"जिससे हमने फोन पर बातें की, क्या वो तुम्हें नकली लगा?" देवराज चौहान बोला।

भुल्ले देवराज चौहान को देखने लगा।

"अगर हम उसे पकड़ लेते तो ये सब बातें जान लेते कि वो कौन है और...।"

"वो तेज था। फुर्तीला था। तभी हमारे हाथों से बच गया।"

"बात क्या है?" कादिर शेख ने पूछा।

"तेरे को मामला समझ में नहीं आएगा।" भुल्ले खान ने कहा।

"कुछ मामला तो मैं सुनकर समझ गया हूं।"

"उतना ही बहुत है।" भुल्ले ने कहा--- "कैद में गोरिल्ला की क्या स्थिति है?"

"मेरे पास खबर के मुताबिक उसे यातना दी जा रही है। वो बुरे हाल में है।" कादिर शेख ने कहा।

भुल्ले ने देवराज चौहान से कहा।

"किसी घायल व्यक्ति को तो वहां से निकालना और भी कठिन है।"

"गोरिल्ला को वहां से निकालना ही होगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "मुझे वो गोपनीय कागज हासिल करने हैं, जिसके बारे में सिर्फ गोरिल्ला ही बता सकता है कि इस वक्त वो कहां पर है।"

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अगले दिन विनोद भाटिया ने देवराज चौहान को साठ लाख रुपया, एक सूटकेस में डालकर दे दिया। वे फ्लैट पर पहुंचे। दस लाख देवराज चौहान ने भुल्ले खान को दिया, जोकि उसने उसी फ्लैट में रख दिया। उसके बाद भुल्ले ने इकबाल खान को फोन किया और उसे बताया कि नोट उनके पास तैयार है। कहां पहुंचे वो। इकबाल खान ने जगह बता दी। दोनों पचास लाख वाला सूटकेस लेकर, इकबाल खान के उस ठिकाने पर पहुंचे, जहां का पता उसने बताया था। इस जगह पर काफी आदमी थे। कइयों के पास हथियार भी थे। उन्हें ऐसे कमरे में पहुंचा दिया गया, जहां इकबाल खान दो लोगों के साथ मौजूद था और उनसे हथियार खरीदने की बात कर रहा था। वो लोग इकबाल खान को समझा रहे थे कि उनके पास अमेरिकी हथियार है, जोकि उन्होंने अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना से लूटे थे। ऐसे में वो ज्यादा कीमत मांग रहे थे। जबकि इकबाल खान उन्हें अपनी पसंद की कीमत देने पर अड़ा था।

देवराज चौहान और भुल्ले खान इन बातों में खामोश से बैठे रहे।

आधे घंटे बाद वो दोनों वहां से उठकर चले गए।

उसके जाने के बाद इकबाल खान मुस्कुराकर बोला।

"ये वापस आएंगे। एक-दो दिन में मेरे बताई कीमत पर ही हथियार बेचेंगे।"

तभी एक आदमी ने भीतर प्रवेश करते हुए इकबाल से पूछा।

"सौदा नहीं बना।"

"बन जाएगा। ये फिर आएंगे। आज शाम बम ब्लास्ट की तैयारी पूरी हो गई?"

"घंटे भर में काम पूरा हो जाएगा। सुसाइड बम्बर को बम फिट किया जा रहा है।" उसने कहा।

इकबाल खान ने सिर हिला दिया।

उस आदमी ने देवराज चौहान और भुल्ले को देखते, इकबाल से कहा।

"मेरे लिए कुछ काम?"

"यहीं बैठ जाओ और सारी बातें सुनना। इन जनाब का नया काम आया है। मिलिट्री हैडक्वार्टर पर एक घंटे के लिए हमला करना है।" फिर उसने सूटकेस की तरफ इशारा करते देवराज चौहान से पूछा--- "पचास लाख इसमें है?"

"हां।"

इकबाल खान ने अपने आदमी से कहा।

"सूटकेस में रखा पैसा चैक करो। उसके बाद इनकी बातें सुननी हैं कि काम कैसे हो?"

उसने सूटकेस में रखा पैसा चैक किया और एक तरफ रखते हुए बोला।

"पूरा पचास है।"

"जनाब राशिद अली साहब, अब कहिए कि आप किस तरह काम कराना चाहते हैं और कब कराना चाहते हैं?"

"आपको तैयारी में कितना वक्त लगेगा?" देवराज चौहान ने पूछा।

"कोई वक़्त नहीं।" इकबाल खान मुस्कुराया--- "हमारे पास तो हर वक्त आदमी भी तैयार रहते हैं और हथियार भी। हमें तो बस ये मालूम होना चाहिए कि काम कहां पर कितने बजे करना है।"

"वर्दी कब तक बन सकती है मेरी?"

"कुछ ही घंटों में।"

"तो मैं परसों दिन में ग्यारह बजे ये काम करना चाहूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"बात पक्की हो गई?"

"हां---।"

"अब ये पैसा हमारा हुआ।"

"हां।"

"तो अब आपसे कहना चाहूंगा कि आप ऐसा खतरनाक काम करने जा रहे हैं जैसे आपका बच पाना संभव नहीं लगता। मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर जाकर, मिलिट्री के कैदी को बाहर ले आना, असंभव काम है। मुझे नहीं लगता कि ये काम आप पूरा कर पाएंगे।"

"मैंने अपने भाई को हर हाल में आजाद कराना है।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।

"वो अब आपकी मर्जी।" इकबाल खान हाथ हिलाकर कह उठा--- "मैं तो अपने काम के पचास लाख ले चुका हूं।"

"आप उसी तरह काम करें, जैसा मैं चाहता हूं।"

"निश्चिंत रहिए। काम आपकी मर्जी से ही पूरा होगा।" इकबाल खान बोला।

"मैं आपको पचास लाख और दे सकता हूं अगर आप मेरे भाई को वहां से निकाल दो।" देवराज चौहान बोला।

"नहीं।" इकबाल खान ने इंकार में सिर हिलाया--- "मैं मिलिट्री के भीतर तक हाथ नहीं डाल सकता। बाहर से तो हमला करा सकता हूं। ऐसे में कोई नहीं जान सकता कि हमला किसने कराया है। मिलिट्री से सीधा पंगा लेने का मतलब है, वो मुझे मिट्टी में मिला देंगे। मैं मिलिट्री के कामों में दखल देने के पक्ष में नहीं हूं।"

"बेहतर है। तो मेरे मुताबिक ही सारा काम करिए।" देवराज चौहान गंभीर था।

"सब कुछ फिर से बताइए कि आप कैसा हमला चाहते हैं। मेरा आदमी सुन रहा है। सारे इंतजाम इसने ही करने हैं।"

देवराज चौहान उन्हें मिलिट्री हैडक्वार्टर पर किए जाने वाले हमले का अंदाज बताने लगा।

ये सारी बातचीत पैंतालीस मिनट चली।

"एक बात तो माननी पड़ेगी राशिद अली साहब। आप योजना बढ़िया बना लेते हैं। बीच-बीच में कभी-कभी तो मुझे लगा कि जैसे आप पुराने खिलाड़ी हैं।" इकबाल खान ने मुस्कुराकर कहा।

देवराज चौहान भी मुस्कुराकर रह गया।

काम के बारे में बातचीत चलती रही। प्लान बनता रहा। परसों सुबह ग्यारह बजे काम होना, तय हो गया।

■■■

अगले दिन देवराज चौहान और भुल्ले ने मिलिट्री की वर्कशॉप से जीप उड़ा ली थी और उसे एक वीरान जंगल जैसी जगह में छिपा दिया था। पाकिस्तानी मिलिट्री के कैप्टन की वर्दी भी तैयार हो गई। देवराज चौहान ने इकबाल खान से दो पिस्तौलें ली, जिनमें 18-18 गोलियों की मैग्जीनें थी। इकबाल खान और उसके आदमी को देवराज चौहान ने अच्छी तरह समझा दिया था कि काम कैसे होना है। वक्त ग्यारह बजे का फिक्स हुआ था। भुल्ले बहुत ज्यादा चिंतित नजर आ रहा था। परंतु कह कुछ नहीं रहा था। हर काम में देवराज चौहान के साथ था। ये दिन तैयारी करते हुए बीत गया। शाम पांच बजे वे फ्लैट पर लौटे, अब कल का इंतजार था।

"मुझे बहुत घबराहट हो रही है।" भुल्ले ने कहा--- "तुम बहुत खतरनाक काम करने जा रहे हो। कल जाने क्या हो।"

"मैं सिर्फ अपने काम के सफल हो जाने के बारे में सोच रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा।

"और मैं सोच रहा हूं कि अगर तुम सफल ना हो सके तो तब क्या होगा?"

देवराज चौहान भुल्ले को देखकर मुस्कुराया और कह उठा।

"चिंता मत करो। सब ठीक रहेगा।"

"तुम्हारा प्रोग्राम, गोरिल्ला के साथ मिलिट्री जीप पर बाहर निकलने का है?"

"हां।"

"फिर भी मैं कार के साथ मिलिट्री हैडक्वार्टर के आसपास मौजूद रहूंगा। तुम तभी बाहर निकलोगे जब इकबाल के आदमियों की गोलीबारी थम जाएगी।" भुल्ले बोला।

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाकर कहा।

"ग्यारह बजे वे गोलाबारी शुरू करेंगे। बारह बजे सबकुछ रुक जाएगा। एक घंटा मेरे लिए बहुत है। तब मैं गोरिल्ला के साथ इमारत के कंपाउंड के भीतर खड़ी जीप में बैठा, गोलाबारी रुकने का इंतजार कर रहा होऊंगा। ये मामला रुकते ही मैं जीप में गोरिल्ला के साथ बाहर निकल आऊंगा।"

"मिलिट्री वाले गोरिल्ला को पहचान भी सकते हैं कि तुम कैदी को वहां से ले जा रहे हो।"

"गोरिल्ला को हर किसी मिलिट्री वाले ने नहीं देखा होगा। किसी के पूछने पर कह सकता हूं कि वो गोलाबारी में घायल हो गया है। अगर मुझे मिलिट्री की वर्दी कहीं से मिल गई तो उसे पहना दूंगा। इससे कोई शक नहीं कर पाएगा।"

"वर्दी अपने साथ लेते जाओ।"

"मुझे उसका साइज नहीं पता कि...।"

"वो हिन्दुस्तानी मिलिट्री का कैप्टन है। लम्बा-चौड़ा होगा। अंदाजे से बड़े साइज की वर्दी साथ ले जाओ। ना से हां तो होगी। उस वक्त कहां से वर्दी ढूंढोगे। तब तो निकलने की पड़ी होगी।"

देवराज चौहान ने सोच भरी निगाहों से भुल्ले खान को देखा।

"तुमने ठीक कहा।" देवराज चौहान कह उठा--- "अब तुम जाओ वर्दी सिलने वाले के पास। उसने मेरे नाप की जो वर्दी सिली है, उसी नाप की एक और वर्दी उससे सिलवा लो। पास बैठकर काम कराना और वर्दी साथ लेते आना। वक्त कम है हमारे पास। कल सुबह काम शुरू होना है।"

■■■

अगले दिन 10:50 बजे, इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर के बाहरी गेट पर मिलिट्री की जीप रुकी। ड्राइविंग सीट पर देवराज चौहान, कैप्टन की वर्दी में मौजूद था। सिर पर कैप डाल रखी थी। क्लीन शेव्ड था। चेहरा चमक रहा था। वहां रोजमर्रा की तरह सामान्य चहल-पहल थी। सब कुछ यंत्रवत सा चल रहा था। गेट पर खड़े जवान ने जीप को देखते ही सैल्यूट दिया और बैरियर हटा दिया। कोई दिक्कत नहीं आई देवराज चौहान जीप को भीतर लेता चला गया।

भीतर और भी मिलिट्री वाहन खड़े थे। देवराज चौहान ने उन्हीं कतार में जीप को इस तरह खड़ा कर दिया कि उसे फौरन निकाला जा सके। उसके बाद जीप से उतरकर फौजियों की चाल चलता, मेन एंट्रेंस की तरफ बढ़ गया।

मुख्य दरवाजे से भीतर प्रवेश किया और सीधा लिफ्ट के पास जा पहुंचा। उसके शरीर पर पड़ी फौजी वर्दी जैसे ग्रीन लाइट बन गई थी उसके लिए। फौजी वर्दी में इस वक्त वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में मौजूद था और हैडक्वार्टर में नए-नए चेहरे वाले, मिलिट्री वाले आते ही रहते थे। कोई पोस्टिंग के सिलसिले में तो कोई अपनी रेजीमेंट द्वारा काम के लिए भेजा गया होता। ये सब चलता रहता था। यही वजह थी कि फौजी वर्दी में देवराज चौहान सुरक्षित सा हो गया था। यहां के सारे नियम, सिक्योरिटी की पूछताछ उस पर लागू नहीं होती थी।

तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला। चार फौजी बाहर निकले तो देवराज चौहान भीतर प्रवेश कर गया। हाथ में काला बैग थाम रखा था जिसमें कि मिलिट्री की वर्दी थी गोरिल्ला के लिए। एक अन्य फौजी भी लिफ्ट में आ गया। देवराज चौहान ने चौथी मंजिल का बटन दबाया तो उस फौजी ने तीसरी का।

तीसरी मंजिल पर लिफ्ट रुकी। दरवाजे खुले तो वो फौजी बाहर निकल गया। दरवाजे पुनः बंद होते चले गए। लिफ्ट ऊपर की तरफ सरकी। देवराज चौहान का चेहरा बेहद सामान्य नजर आ रहा था। सरलता के भाव दिख रहे थे और हाव-भाव भी सामान्य और मिलिट्री वालों की तरह कुछ अकड़े-अकड़े से थे।

चौथी मंजिल पर लिफ्ट रुकी। दरवाजे खुलते चले गए।

देवराज चौहान बाहर निकला और चार रास्तों में से एक रास्ते की तरफ बढ़ने लगा। कादिर शेख ने इस रास्ते के लिए ही कहा था कि 28 नंबर कमरा गैलरी में पड़ेगा। वहां एक जवान गन के साथ टहल रहा था। दो जवान उस छोटे से रिसेप्शन के पीछे मौजूद थे। परंतु किसी ने भी देवराज चौहान की तरफ ध्यान नहीं दिया। क्योंकि उसके जिस्म पर मिलिट्री के कैप्टन की वर्दी थी।

देवराज चौहान गैलरी में प्रवेश कर गया। उसने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा। ग्यारह बजने में दो मिनट बाकी थे। इकबाल खान के आदमी हमला करने वाले थे। देवराज चौहान गैलरी मैं आगे बढ़ता रहा और दाएं-बाएं पड़ने वाले बंद दरवाजों पर निगाह मारता जा रहा था, जहां कमरा नंबर लिखे थे। उसे 28 नंबर में जाना था। सामने से आते दो मिलिट्री वाले उसके पास से निकल गए थे। एक कमरे का दरवाजा खुला और एक जवान बाहर निकला और देखते ही देखते बगल वाले कमरे में चला गया।

यही वो वक्त था कि देवराज चौहान को जबरदस्त धमाका सुनाई दिया। वो समझ गया कि इकबाल खान के आदमियों ने अपना काम शुरू कर दिया है। सब कुछ योजना के अनुसार ठीक-ठाक चल रहा था। साथ ही गोलियों की आवाजें कानों में पड़ने लगी। फिर एक के बाद एक कई धमाके हुए। धमाके और गोलियों की आवाजों से महसूस हो रहा था कि हमला करने वाले इधर-उधर बिखर कर हमला कर रहे हैं। देवराज चौहान के शरीर में तनाव भर आया कि अब उसने आगे का काम पूरा करना है। बाहर होते धमाके और गोलियों की आवाजें लगातार सुनाई दे रही थी। गैलरी के आसपास के कमरों के दरवाजे खुलने लगे। मिलिट्री वाले अपने कमरों से बाहर निकलने लगे। हर किसी के होंठों पर एक ही सवाल था कि क्या हुआ, क्या हुआ? वो गैलरी के बाहर की तरफ जाने लगे।

देवराज चौहान आगे बढ़ रहा था कि तभी दाईं तरफ का दरवाजा खुला और वर्दी पहने कर्नल रैंक का आदमी बाहर निकला। उसके साथ सादे कपड़े पहने एक और व्यक्ति बाहर निकला।

उस व्यक्ति पर नजर पड़ते ही देवराज चौहान चौंका।

उसकी नजर देवराज चौहान पर पड़ चुकी थी। वो उसी पल हैरान हो उठा था।

वो वसीम राणा था।

एक पल के लिए देवराज चौहान के कदम धीमे पड़े, परंतु फिर वो आगे बढ़ता गया।

वसीम राणा हैरान-सा खड़ा उसे जाता देखता रहा।

गोलाबारी और फायरिंग की आवाजें अब तेज हो उठी थी।

आगे एक दरवाजे पर 28 नंबर लिखा देखकर देवराज चौहान ठिठका। दरवाजा थोड़ा-सा खुला हुआ था और छः कदम दूर दो मिलिट्री वाले खड़े बातें कर रहे थे। यकीनन उनकी बातों का मुद्दा गोलाबारी की आवाजें ही होगा। देवराज चौहान ने बिना रुके दरवाजा धकेला और भीतर प्रवेश करके दरवाजा बंद कर लिया, जैसे उसने इसी कमरे में आना था।

दरवाजा बंद करते ही ठिठक गया देवराज चौहान।

उसकी निगाह कमरे में घूमी।

पन्द्रह फीट चौड़ा और पन्द्रह फीट लंबा कमरा था। परंतु सामान्य कमरों जैसा नहीं था। ये यातना गृह नजर आ रहा था। दीवार पर जंजीर लगे कड़े लटक रहे थे। एक तरफ बैंच था जिस पर जंजीरे और कड़े लगे हुए थे, यानी कि किसी को फट्टे पर लिटाकर, जंजीरों में बांधकर, उसका बुरा हाल किया जा सकता था। यातना देने का और भी सामान था वहां एक कैप्टन रैंक का व्यक्ति और दो जवान खड़े थे। और लोहे की कुर्सी पर बुरी तरह घायल गोरिल्ला मौजूद था। उसकी टांगें कुर्सी पर लगी बेल्ट से बांध रखी और उसके हाथ कुर्सी के दोनों हत्थों पर कड़ो में फंसे हुए थे। उसका शरीर जख्मों से भरा हुआ था। कमीज चिथड़े होकर नीचे झूल रही थी। पैंट भी बीसियों जगहों से फटी हुई थी और वहां घाव थे। देवराज चौहान समझ चुका था कि लोहे की कुर्सी पर करंट देने का काम भी किया जाता है। गोरिल्ला का चेहरा कटा-फटा, खून से भरा था। गर्दन नीचे की तरफ लटकी हुई थी और वो सांसें लेता दिख रहा था।

उस कैप्टन और दोनों जवानों ने उसे देखा।

"बाहर क्या हो रहा है।" कैप्टन ने पूछा--- "ग्रेनेडों के धमाके और फायरिंग क्यों हो...।"

देवराज चौहान ने उसी पल फुर्ती से झुककर, पैंट को जरा-सा ऊपर उठाकर, जुराब में फंसी पिस्तौल निकाली। नाल पर साइलेंसर चढ़ा था। तेजी से वापस सीधा होते हुए होंठ भींच कर फायर कर दिए। पिट-पिट की मध्यम-सी दो आवाजें उभरीं। दोनों गोलियां कैप्टन की छाती में जा लगी। कैप्टन को समझने का मौका ही नहीं मिला और वो पीछे की टेबल से टकराकर नीचे जा गिरा। देवराज चौहान ने बैग नीचे रख दिया।

ये देखकर दोनों जवान चौंके।

देवराज चौहान ने उसी पल दो फायर और किए जो कि एक जवान के चेहरे और माथे पर गोलियां लगी। वो कुर्सी पर बंधे पड़े गोरिल्ला से टकराता नीचे जा गिरा।

कुछ होता पाकर गोरिल्ला ने कठिनता से सिर ऊपर उठाया।

तब तक आखिरी बचा जवान, देवराज चौहान पर छलांग लगा चुका था।

देवराज चौहान सतर्क था।

जवान देवराज चौहान से टकराया ही था कि देवराज चौहान ने ट्रेगर दबा दिया। पिट की आवाज के साथ, जवान के शरीर को झटका लगा, देवराज चौहान से टकराने के बाद उसने अपना पेट पकड़ा और नीचे झुकता चला गया। दांत भींचे देवराज चौहान ने नाल उसके सिर पर रखी और ट्रेगर दबा दिया।

वो, सिर में गोली लगते ही नीचे लुढ़क गया।

देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। पहले गिरा जवान उसे कुछ हिलता दिखा। वो जिंदा था अभी। देवराज चौहान आगे बढ़ा और उसके सिर पर नाल टिकाकर फायर कर दिया। पिट की आवाज के साथ कमरे में शांति छा गई। रिवाल्वर थामें देवराज चौहान ने गोरिल्ला को देखा।

गोरिल्ला किसी तरह गर्दन उठाए उसे ही देख रहा था। वो बहुत बुरे हाल में था।

देवराज चौहान उसके पास पहुंचा।

"कौन हो तुम?" देवराज चौहान ने पूछा।

वो खामोश रहा। देवराज चौहान को देखता रहा।

"मुझे मेजर कमलजीत सिंह ने भेजा है तुम्हें निकाल लाने के लिए।" देवराज चौहान बोला।

ये सुनकर उसकी आंखों में हल्की-सी चमक उभरी।

"तुम कौन हो?"

"गोरिल्ला।" उसने बहुत हिम्मत लगाकर कहा।

"अपना नाम बताओ।" देवराज चौहान उसकी बांहों को कड़ों से निकालने की कोशिश करता बोला।

"न...हीं। नहीं बताऊंगा। तुम...तुम...।"

"मुझे मेजर कमलजीत सिंह ने भेजा है। तुम्हारा नाम मैं जानता हूं परंतु अपनी तसल्ली के लिए पूछ रहा हूं।"

"तुम---तुमने पाकिस्तानी मिलिट्री की वर्दी डाल रखी है। ये तुम लोगों की कोई चाल हो सकती है कि मेरे से उन कागजों के बारे में जान सको। मेरा नाम तुम लोग जानते हो। मेजर के लोग गद्दार हैं। मैं किसी पर विश्वास नहीं कर...।"

"तुम कैप्टन रंजन गुलाटी हो?" देवराज चौहान ने उसका एक हाथ आजाद कर दिया था।

"हां। मैं रंजन गुलाटी हूं...।" वो हांफता सा कह उठा।

देवराज चौहान दूसरा हाथ खोलने की चेष्टा करते बोला।

"तुम दिल्ली के रहने वाले हो।"

"हां। पर मैं तुम पर भरोसा नहीं कर सकता। मेजर के लोग गद्दार हैं। सूबेदार जीतसिंह...।"

"बताओ, क्या सूबेदार जीत सिंह को...?" देवराज चौहान दांत भींचकर बोला।

"तुम्हारे... पीछे...।"

ये सुनते ही देवराज चौहान ने फुर्ती से घूमना चाहा कि तभी रिवाल्वर की नाल पीठ से आ लगी।

"हिलना मत।" सूबेदार जीत सिंह का कठोर स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा--- "रिवाल्वर फेंक दो।"

देवराज चौहान वहीं थम गया था। होंठों से गुर्राहट निकली।

"रिवाल्वर फेंको।" सूबेदार जीतसिंह का स्वर और भी कठोर हो गया--- "वरना मैं गोली चला दूंगा।"

देवराज चौहान ने रिवाल्वर नीचे गिरा दी।

"बाहर होते हमले को देखकर ही मैं समझ गया था कि ये गड़बड़ तुम्हारी की हो सकती है।" सूबेदार जीतसिंह ने कड़वे स्वर में कहा--- "तो मैं सीधा यहां पहुंचा और मेरा ख्याल ठीक निकला देवराज चौहान।"

"मुझे हैरानी है सूबेदार जीतसिंह।" देवराज चौहान गुर्रा उठा--- "कि तुम्हारी पहुंच पाकिस्तान की मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर तक है। इसी से मैं समझ सकता हूं तुम कितने बड़े पैमाने पर अपने देश से गद्दारी कर रहे हो। परंतु मुझे ये समझ नहीं आया कि तुम हिन्दुस्तान में अपनी ड्यूटी पर भी मौजूद हो और यहां भी...।"

"तुम्हें कुछ भी समझने की जरूरत नहीं है।" सूबेदार जीतसिंह ने दांत भींचकर कहा और अगले ही पल नाल उसकी पीठ से हटाकर, पूरी ताकत से सिर पर मारी।

देवराज चौहान कराह उठा।

दूसरी बार मारी, तीसरी बार मारी। इतनी तेजी से ये वार हुए थे कि देवराज चौहान को संभलने का मौका नहीं मिला। उसकी आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे, घुटने मुड़ते चले गए और बेहोश होकर नीचे जा गिरा। उसका शरीर गुड़मुड़-सा नीचे पड़ा था। सिर के पीछे के हिस्से से थोड़ा सा खून निकल आया था।

गोरिल्ला के हाथ आजाद थे। टांगें कुर्सी से बंधी थी। वो बेहोश देवराज चौहान को देख रहा था।

"क्या हाल है गोरिल्ला साहब?" सूबेदार जीतसिंह जहरीले स्वर में कह उठा।

"तुम कुत्ते हो। तुम---।"

सूबेदार जीत सिंह ठठाकर हंस पड़ा।

■■■

मेजर कमलजीत सिंह ने फोन बंद किया और जीप से उतरकर एक इमारत में प्रवेश कर गया। जो कि सीमेंट से भी बनी हुई थी और लकड़ी से भी बनी हुई थी। ये हिन्दुस्तान के पुंछ इलाके का मिलिट्री एरिया था।हर तरफ मिलिट्री की ही इमारतें दिखाई दे रही थी। इन इमारतों के बाहरी तरफ कटीले तारों की ऊंची बाड़ लगी थी। ये पहाड़ी जगह थी। हर तरफ छोटे-बड़े पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे थे। मौसम में ठंडक व्याप्त थी। दोपहर के ढाई बज रहे थे। तभी मैस से खाना खाकर सूबेदार जीत सिंह सामने से आता दिखा तो मेजर की चाल कुछ धीमी हो गई।

जीत सिंह पास पहुंचा तो मेजर ने कहा।

"मेरे साथ आओ।"

"यस सर।"

दोनों इमारत के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गए।

"एक बुरी खबर है।" मेजर ने गंभीर स्वर में कहा।

"क्या सर?"

"देवराज चौहान, इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर में प्रवेश कर गया था गोरिल्ला को छुड़ाने के लिए। मिलिट्री वालों का ध्यान बंटाने के लिए उसने किराए के आदमियों से मिलिट्री हैक्वार्टर पर तगड़ा हमला करा दिया था जो कि एक घंटे तक होता रहा। हमला करने वाले दस लोग थे जो मिलिट्री वालों की गोलियों का शिकार हो गए।"

"और देवराज चौहान--- उसे क्या हुआ?" सूबेदार जीत सिंह ने पूछा।

"पकड़ा गया।"

"ओह! तो वो गोरिल्ला को नहीं निकाल सका वहां से। ये तो वास्तव में बहुत बुरी खबर है सर।" जीत सिंह ने चिंतित लहजे में कहा।

"मुझे देवराज चौहान से बहुत आशा थी।"

"लेकिन वो फंसा कैसे सर?"

"पता नहीं भीतर क्या हुआ। परंतु वो फंस गया। कादिर शेख ने ये खबर अभी दी है। मैं तो सोचता था कि देवराज चौहान किसी तरह गोरिल्ला को वहां से निकाल लाएगा। लेकिन सब कुछ खत्म हो गया।" मेजर ने कहा।

"अब---अब इस काम का क्या होगा सर?"

"कुछ नहीं हो सकता अब। गोरिल्ला पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथों में है और देवराज चौहान भी फंस गया। अब इस मामले को हमें यहीं पर भूल जाना होगा। वो फाइल हमें नहीं मिल सकेगी।" मेजर बोला।

"फिर तो हमारी सारी मेहनत बेकार हो गई सर।" जीत सिंह के होंठों से निकला।

तभी मेजर एक कमरे में प्रवेश कर गया। जीत सिंह साथ था।

वहां जगमोहन मौजूद था और हथियारबंद दो जवान भी बैठे थे। मेजर और सूबेदार जीत सिंह को देखते ही दोनों फौरन खड़े हुए और सैल्यूट दिया। मेजर ने उन्हें कमरे से निकल जाने का इशारा किया।

दोनों जवान बाहर निकल गए।

मेजर के चेहरे के भाव देखकर, जगमोहन सतर्क हो उठा था।

"क्या हुआ मेजर?" जगमोहन के होंठों से निकला--- "देवराज चौहान ठीक तो है?"

"वो गोरिल्ला को छुड़ाता हुआ, इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर में पकड़ा गया।" मेजर गंभीर स्वर में बोला।

जगमोहन चौंककर खड़ा हो गया।

"पकड़ा गया या मारा गया?" जगमोहन का स्वर कांप उठा।

"देवराज चौहान के पकड़े जाने की खबर ही मुझे मिली है। वो पाकिस्तानी मिलिट्री की कैद में है।"

"कब मिली खबर?" जगमोहन सकते में था।

"पन्द्रह मिनट पहले।"

"किसने खबर दी?"

"इस्लामाबाद स्थित मेरे एजेंट कादिर शेख ने।"

"तुम सच कह रहे हो कि वो मरा नहीं, जिंदा है।" जगमोहन के स्वर में कंपन था।

"मुझ पर भरोसा करो।"

"क्या हुआ था?"

मेजर को जो मालूम था, वो उसने जगमोहन को बता दिया।

"कब किया था देवराज चौहान ने वहां हमला?" जगमोहन बेहद व्याकुल हो उठा।

"आज सुबह ग्यारह बजे।"

"क्या पता पाकिस्तानी मिलिट्री ने देवराज चौहान को शूट कर दिया हो?"

"मेरे पास उसके पकड़े जाने की खबर है।"

"बाद में शूट कर दिया हो।"

कुछ सोच के पश्चात मेजर बोला।

"मेरे ख्याल में अभी उसे शूट नहीं किया गया होगा। हिरासत में होगा वो।"

"तुमने देवराज चौहान को मुसीबत में डाला है।" जगमोहन गुस्से से भर उठा।

"मैंने तो एक काम दिया था उसे।" मेजर गंभीर स्वर में बोला--- "लेकिन वो काम पूरा नहीं कर सका। काम कैसा भी हो, उसके दो ही अंजाम होते हैं, हार जाना या जीत जाना। इस काम में देवराज चौहान हार गया।"

होंठ भींचे जगमोहन मेजर को देखता रहा।

"और तुम्हारा गोरिल्ला?"

"जब देवराज चौहान पकड़ा गया तो गोरिल्ला कैसे आजाद हो सकता है।" मेजर ने कहा--- "देवराज चौहान के पकड़े जाने का मुझे अफसोस है, मैं उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकता। अब ये काम यहीं खत्म हो गया। तुम जा सकते हो।"

"जा सकता हूं।" जगमोहन गुर्राया।

"आजाद हो।" फिर मेजर ने जीतसिंह से कहा--- "इसे मिलिट्री एरिया से बाहर कहीं भी छोड़ दो।"

"यस सर।"

"मेजर।" जगमोहन के चेहरे पर सख्ती नाच रही थी--- "उसे छुड़ाने के लिए तुम्हें कुछ करना चाहिए... वो...।"

"अगर मैं कुछ कर सकता तो अपने गोरिल्ला के लिए करता... परंतु मैं कुछ नहीं कर सकता।"

जगमोहन बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रहा था।

"देवराज चौहान पाकिस्तानी मिलिट्री के हाथों में आ चुका है। मैं कहां जाऊं?" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।

"कहीं भी जाओ। यहां से चले जाओ। अब तुम्हें यहां पर कैद रखने का कोई फायदा---।"

"तुमने मुझे उसके साथ ना भेजकर गलती की। मैं...।"

"देवराज चौहान बच्चा नहीं है कि तुम्हारी उंगली पकड़कर चले। वो हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर है। वो खतरनाक माना जाता है। काम करते हुए वो फंस गया तो इसका एक ही मतलब है कि गोरिल्ला को वहां से निकालना कठिन है। इस्लामाबाद स्थित मेरे एजेंटों ने ये बात पहले ही बता दी थी कि गोरिल्ला को आजाद कराना आसान नहीं है।"

"फिर भी तुमने देवराज चौहान को ये काम करने को कहा।" जगमोहन गुस्से से बोला।

"काम जरूरी था। मैंने सोचा था कि देवराज चौहान किसी तरह कर लेगा। परंतु अब लगता है कि ये काम नहीं हो सकता। इस्लामाबाद के मिलिट्री हैडक्वार्टर से गोरिल्ला को नहीं निकाला...।"

"गोरिल्ला? तुम्हें गोरिल्ला याद आ रहा है, देवराज चौहान नहीं, जो कि---।"

"मुझे गोरिल्ला की जरूरत है, देवराज चौहान की नहीं।" मेजर ने जगमोहन को देखा।

"बहुत घटिया इंसान...।"

"खबरदार, जो मेजर साहब को उल्टे-सीधे शब्द कहे।" सूबेदार जीतसिंह तेज स्वर में कह उठा।

जगमोहन दांत पीसकर जीतसिंह को देखने लगा।

"इसे मिलिट्री एरिया से बाहर छोड़ दो जीतसिंह।" मेजर बोला।

"यस सर।"

"मुझे सीमा पार करा दो।" जगमोहन धधकते चेहरे से कह उठा--- "मैं पाकिस्तान जाऊंगा।"

"पाकिस्तान?" मेजर की आंखें सिकुड़ी।

"देवराज चौहान पाकिस्तान में है तो मैं हिन्दुस्तान में रहकर क्या करूंगा?"

"लेकिन वो तो मिलिट्री की कैद में...।"

"ये देखना मेरा काम है कि वहां जाकर मैं क्या करूंगा। तुम मुझे सीमा पार करा सकते हो?"

"क्यों नहीं।" मेजर के चेहरे पर गंभीरता उभरी--- "शायद तुम खुद को खतरे में डालने जा रहे हो।"

जगमोहन ने कठोर निगाहों से मेजर को देखा।

"जीतसिंह इसे सीमा पार करा दो।"

"यस सर।"

"और तुम।" मेजर ने गंभीर स्वर में जगमोहन से कहा--- "पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर पहुंचकर, मेरे मेरे एजेंटों से संपर्क करने की कोशिश मत करना। उनमें से कोई डबल एजेंट है, पाकिस्तान के लिए भी काम करता है।"

"मुझे नहीं पता कि तुम्हारे एजेंट वहां, कहां पर हैं और मुझे उनकी जरूरत भी नहीं। अगर तुम्हारे एजेंट किसी काबिल होते तो देवराज चौहान फंसता नहीं।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा फिर सूबेदार जीतसिंह से बोला--- "चलो।"

"अभी सीमा पार करोगे?" जीत सिंह बोला।

"हां।"

"तुम्हारे पास पाकिस्तानी करेंसी भी नहीं है। हिन्दुस्तानी नोटों को देखकर, वहां के लोग तुम्हें पकड़ लेंगे।"

दो पल के लिए वहां खामोशी छा गई। तभी मेजर ने कहा।

"मैं तुम्हारे लिए पाकिस्तानी करेंसी का इंतजाम कर देता हूं।"

"कहां से करोगे?" जगमोहन के माथे पर बल पड़े।

कल ही हमने सीमा पार करने की कोशिश में तीन आतंकवादियों को पकड़ा है। उनसे कुछ पाकिस्तानी करेंसी भी बरामद हुई है। वो अभी तक मेरे ही ऑफिस में पड़ी है। आओ, मैं तुम्हें पाकिस्तानी नोट देता हूं।"

"तो अब तुम इस्लामाबाद जाकर देवराज को, मिलिट्री के हाथों से छुड़ाओगे?" सूबेदार जीत सिंह मुस्कुराकर बोला।

जगमोहन ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं।

जीत सिंह के होंठों पर मुस्कान छाई थी।

एक जवान जीप चला रहा था। दोनों पीछे बैठे थे। जीप पहाड़ी इलाके के कच्चे रास्ते से होती आगे बढ़ी जा रही थी। पुंछ के मिलिट्री बेस से वे दूर आ चुके थे और सीमा की तरफ बढ़ रहे थे।

"जो काम देवराज चौहान ना कर सका, वो तुम कैसे कर लोगे?" जीत सिंह पुनः बोला।

जगमोहन ने होंठ भींच लिए।

"ये भी हो सकता है कि अब तक पाकिस्तानी मिलिट्री ने उसे शूट कर दिया हो।"

"मुझसे बात मत करो।" जगमोहन ने होंठ खोले।

"क्यों? मुझमें कोई बुराई है?" जीत सिंह खुलकर मुस्कुराया।

"मैं देवराज चौहान की ये बात भूला नहीं हूं कि उसने तुम्हें इस्लामाबाद में देखा था।"

"लेकिन मैं तो यहां हूं।"

"तो देवराज चौहान को तुम इस्लामाबाद में कैसे नजर आ गए?" जगमोहन ने उसे देखा।

"वो मेरा भूत होगा।" जीत सिंह मुस्कुराया।

जगमोहन, जीत सिंह को घूरकर रह गया।

"हो सकता है मेरा भूत तुम्हें भी दिख जाए। छोड़ो, वैसे तुम किसके भरोसे इस्लामाबाद इस काम पर जा रहे हो?"

"किसी के नहीं।"

"मतलब कि अकेले ही देवराज चौहान को आजाद कराने की कोशिश करोगे। फिर तो तुम भी फंस जाओगे। देवराज चौहान ने तो वहां काफी जबरदस्त खेल, खेला था, जब वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में काम करने पहुंचा तो आठ-दस लोगों से, मिलिट्री हैडक्वार्टर पर हमला करा दिया था कि उनका ध्यान बंट जाए और वो आराम से गोरिल्ला को निकाल जाए। उसकी योजना बुरी नहीं थी, परंतु फंस गया। उसने वहां तीन मिलिट्री वालों को भी शूट कर दिया।"

"ये बातें तुम्हें कैसे पता?" जगमोहन ने उसे देखा।

"हमारे एजेंट कादिर शेख ने इस बारे में पूरी रिपोर्ट दी हमें।"

जगमोहन के चेहरे पर सख्ती उभरी रही।

"क्या तुम क्या देवराज चौहान से तेज हो इन कामों में?"

"मैं वहां देवराज चौहान को छुड़ाने नहीं जा रहा।" जगमोहन कह उठा।

"तो?"

"मुझे कुछ काम है। इसलिए जा रहा हूं। क्या तुम भी मेरे साथ चलना चाहोगे।"

"मुझे क्या पड़ी है, मेरा भूत है वहां, मेरे हिस्से के काम वही निपटा देता है।" जीत सिंह हंसा।

"ये सच में हैरानी की बात है कि देवराज चौहान ने तुम्हें इस्लामाबाद में देखा और तुम यहां थे।"

"वो मेरा भूत...।"

"बकवास मत करो। देवराज चौहान बिना वजह ऐसी बात नहीं कहेगा। कोई बात तो है ही।"

"सच बात तो ये है कि देवराज चौहान को धोखा हुआ है।" जीत सिंह गंभीर स्वर में कह उठा--- "जब देवराज चौहान, भुल्ले खान के साथ सीमा पार गया था, उसी दिन मैं छुट्टी लेकर गांव चला गया था। पीछे से मेजर का फोन भी आया था और मेजर से मेरी बात भी हुई थी, उसके बाद मैंने वापस आकर ड्यूटी ज्वाइन कर ली। मैं हिन्दुस्तानी मिलिट्री का सूबेदार हूं। बिना आर्डर के सरहद पार नहीं कर सकता। तो मैं कैसे इस्लामाबाद में नजर आ सकता हूं। बेवकूफी वाली बात है ये।"

रास्ता खराब होने की वजह से जीप दाएं-बाएं हिल रही थी।

"फिर भी मैं तुम्हें ऐसे लोगों का नंबर दे सकता हूं जो तुम्हारे काम आएंगे वहां।"

"जरूरत नहीं। बोला तो मैं किसी और काम के लिए वहां जा रहा हूं।" जगमोहन ने कहा।

"तुम मुझसे नाराज लगते हो?"

"मैं सबसे नाराज हूं। तुम मिलिट्री वालों ने ही मजबूर किया कि देवराज चौहान ये काम करे।"

"मेजर ने सोचा था कि देवराज चौहान ये काम कर लेगा।"

"ये क्यों नहीं सोचा कि वो पकड़ा जाएगा या मारा जाएगा।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।

"मेजर की गलती है। उसे ये भी सोचना चाहिए था। मुझे बहुत अफसोस है कि देवराज चौहान...।"

"अफसोस की जरूरत नहीं। देवराज चौहान जिंदा है, मर नहीं गया।" जगमोहन बोला।

"गुस्सा मत करो। इस सारे मामले में मेरा कोई कसूर नहीं। अब मैं तुम्हें उसी जगह से सीमा पार करा रहा हूं, जहां से तुम लोग आए थे। रास्ते का तुम्हें पता ही होगा। मेरी हमदर्दी तुम्हारे साथ है। इस्लामाबाद पहुंचकर देवराज चौहान को वहां से निकालने के लिए आवेश में कोई गलत कदम मत उठा देना कि तुम भी पकड़े जाओ या मारे जाओ। देवराज चौहान को छुड़ाने तुम जा रहे हे हो परंतु तुम्हारे पीछे कोई नहीं है जो तुम्हें छुड़ाने आएगा। वैसे मुझे नहीं लगता कि कभी तुम्हारी वापसी होगी हिन्दुस्तान में। तुम अब वहीं मर-खप जाओगे। मेरी मानो तो मत जाओ। देवराज चौहान गया तो गया। तुम क्यों अपनी जान मुसीबत में डालते हो। हिन्दुस्तान में मजे से रहो। पैसा तो होगा ही तुम्हारे पास।"

"सलाह का शुक्रिया। मुंह बंद रखो।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

तभी जीप ड्राइव करता जवान कह उठा।

"हम पहुंच गए सर। जहां के लिए आपने कहा था।"

"तुम्हारी वो जगह आ गई जहां से तुम सीमा पार करोगे।" सूबेदार जीत सिंह मुस्कुराकर बोला--- "और जेब से एक रिवाल्वर निकालकर उसे देता बोला--- इसे रख लो। ये आतंकवादियों से बरामद की थी। पाकिस्तान में तुम्हारे काम आएगी।"

जगमोहन ने रिवॉल्वर लेकर चैक की। वो लोडेड थी। तभी जीत रुक गई।

"पाकिस्तान में मेरा भूत तुमसे जरूर मिलेगा।" जीतसिंह हंसा--- "चलो, उतरो, तुम्हें सीमा पार करा दूं।"

कुछ ही देर में जगमोहन सीमा पार करके पाकिस्तान में प्रवेश कर चुका था।

■■■

जगमोहन इस्लामाबाद में वसीम राणा के घर पहुंचा। तब सुबह के दस बज रहे थे। रात भर इस्लामाबाद के लिए सफर करता रहा था। वसीम राणा तब बाहर जाने के लिए तैयार हो रहा था। उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला था। नौकर अपने कामों में व्यस्त थे। जगमोहन पर निगाह पड़ते ही वो कह उठी।

"ओह भाई जान आप, आइये-आइये---।"

जगमोहन ने भीतर प्रवेश किया और बोला।

"वसीम घर पे है?"

"वो हैं, मैं अभी बुलाती...।"

तभी वसीम वहां आ पहुंचा। जगमोहन को देखते ही चौंका।

"तुम?" फौरन आगे बढ़कर जगमोहन को गले से लगाया फिर अलग होता कह उठा--- "ये सब क्या हो रहा है। तुम और देवराज चौहान हिन्दुस्तान से क्यों लौटे। लौटे तो मेरे पास क्यों नहीं आये। आखिर बात क्या है। परसों मैंने देवराज चौहान को कैप्टन की वर्दी में मिलिट्री हैडक्वार्टर में देखा। बाहर गोलाबारी हो रही थी। बाद में पता चला कि मिलिट्री हैडक्वार्टर में हिन्दुस्तानी जासूस को पकड़ा गया है, जो कि देवराज चौहान था। क्या हो रहा है ये सब? मैं तो परसों से ही परेशान हूं कि देवराज चौहान मिलिट्री के हाथों में पड़ चुका है। तुम लोग क्या कर रहे हो?"

"भाई जान को आराम से बैठने तो दो।" उसकी पत्नी कह उठी--- "थके हुए लग रहे...।"

"मेरे साथ आओ।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहते हुए जगमोहन हाथ पकड़ा--- "ऊपर कमरे में बैठते हैं।" फिर अपनी पत्नी से कह उठा--- "चाय-पानी ऊपर ही भिजवा दो।"

दोनों ऊपरी मंजिल के बैडरूम में जा पहुंचे, जहां वह वसीम राणा की बहन की शादी के दौरान ठहरे थे।

"देवराज चौहान मुसीबत में है।" जगमोहन ने कहा।

"लेकिन तुम लोग हिन्दुस्तान से वापस क्यों...?"

"हम हिन्दुस्तान पहुंचे ही कब थे।"

"क्या?" वसीम राणा हैरान रह गया--- "भुल्ले ने तुम लोगों को सीमा पार नहीं कराई?"

"गड़बड़ हो गई थी। हमें हिन्दुस्तानी मिलिट्री ने पकड़ लिया था। भुल्ले के चचेरे भाई अहमद खान ने धोखेबाजी कर दी थी।" इसके साथ ही जगमोहन सब कुछ बताता चला गया।

वसीम राणा के चेहरे पर चिंता और कठोरता दिखने लगी।

"हैरानी है, इतना कुछ हो गया और मुझे कुछ भी नहीं पता चला। देवराज चौहान मेरे पास क्यों नहीं आया?"

"मैं नहीं जानता कि उसने तुमसे संपर्क क्यों नहीं किया।"

वसीम राणा परेशान सा कुर्सी पर बैठ गया।

"मेरे पास ना आकर देवराज चौहान ने बहुत गलत किया। मेरे पास आता तो मैं उसके लिए अपनी जान लगा देता।" वसीम राणा ने कठोर स्वर में कहा--- "हम मिलकर गोरिल्ला को निकाल लाने का प्लान बनाते।"

"गोरिल्ला का मामला खत्म हो चुका है। अब बात देवराज चौहान की है।" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला।

वसीम राणा के होंठ भिंच गए।

"तुमने कहा कि परसों तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर में थे। तुमने देवराज चौहान को देखा। तुम वहां क्या कर रहे थे?"

"बिजनेस। मेरा तो धंधा ही मिलिट्री वालों से है। मैं मिलिट्री की वर्दियां बनाने का ठेकेदार हूं। करोड़ों की मशीन लगा रखी हैं। इसी सिलसिले में मेरा मिलिट्री वालों से मिलना होता रहता है।" वसीम राणा ने कहा।

"ये बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई?"

"कोई जिक्र ही नहीं हुआ तो बताता कैसे। तब बहन की शादी का माहौल था। उधर व्यस्त रहा। तुम लोगों से इस बारे में बात करने का मौका ही नहीं मिला। शादी की व्यस्तता में वक्त गुजर गया।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहा--- "पर देवराज चौहान ने बहुत गलत किया जो मेरे पास नहीं आया और भुल्ले को चाहिए था कि वापस आकर मुझे सब कुछ बताता। पर ना तो वो आया और ना उसका फोन। भुल्ले ने भी बहुत गलत किया।" कहने के साथ ही वसीम राणा ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर मिलाकर फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी।

"हैलो।" फिर भुल्ले की आवाज कानों में पड़ी।

"भुल्ले।" वसीम राणा बेहद शांत स्वर में बोला--- "मेरे पास पहुंच, काम है।"

"अभी नहीं आ सकता राणा साहब।" भुल्ले की मध्यम आवाज कानों में पड़ी--- "काम का मन नहीं है।"

"तेरे से बात करनी है।"

"अभी नहीं आऊंगा।" उधर से भुल्ले ने पुनः कहा।

वसीम राणा फोन जगमोहन की तरफ बढ़ाता कह उठा।

"वो आने को मना कर रहा है। तुम बात करो।"

जगमोहन ने फोन थामा। बात की।

"भुल्ले, मैं जगमोहन हूं।"

"जगमोहन?" उधर से भुल्ले का चौंकने वाला स्वर आया--- "तु-तुम इस्लामाबाद में...?"

"हां। वसीम राणा के घर पर पहुंचा हूं अभी---।"

"ओह, मैं अभी आया।" इसके साथ ही भुल्ले ने उधर से फोन बंद कर दिया था।

"वो आ रहा है।" जगमोहन ने वसीम राणा को फोन वापस देते कहा--- "उसे क्यों बुलाया?"

"देवराज चौहान, भुल्ले के साथ वापस आया था तो शायद उसे पता हो कि देवराज चौहान के साथ क्या हुआ।"

"उसे पता होगा। क्योंकि मेरी आवाज सुनते ही वो हैरान हो गया था। वो फौरन आने को तैयार हो गया। इसका मतलब उसे देवराज चौहान के बारे में खबर है।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।

तभी नौकर चाय नाश्ता रख गया।

"राणा।" जगमोहन ने वसीम राणा की आंखों में देखा--- "देवराज चौहान को वहां से निकालना है।"

"जरूर। मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा।" वसीम राणा ने दृढ़ स्वर में कहा।

"इस वक्त देवराज चौहान को कहां रखा है। वो किस स्थिति में है?" जगमोहन ने पूछा।

"मेरे पास इस बारे में कोई खबर नहीं है। क्योंकि देवराज चौहान के फंसने की खबर पाकर मैं परेशान हो गया था और मामले का मुझे पता नहीं था। अब तुमसे पता चला तो इस बारे में सारी खबर ला दूंगा।"

"भुल्ले को आने दो। शायद वो कुछ बता सके।"

"तुम नाश्ता करो। मुझे भी सोचने दो कि मैं इस बारे में क्या और कहां तक कर सकता हूं। हालात खतरनाक हैं। देवराज चौहान मिलिट्री वालों के पास कैद है वहां से उसे निकाल पाना, आसान काम नहीं है।"

"तुम हाथ खड़े कर रहे हो।" जगमोहन बोला।

वसीम राणा ने जगमोहन को देखा। चेहरे पर तीखी मुस्कान बात आ ठहरी।

"इस मामले में तुम हाथ खड़े कर सकते हो, वसीम राणा हाथ खड़े नहीं करेगा। देवराज चौहान को वहां से निकालने के लिए मैं अपना सब कुछ दांव पर लगा दूंगा। क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूं, उसी की मेहरबानी से हूं। देवराज चौहान को तभी मेरे पास आ जाना चाहिए था, परंतु उसने गलती कर दी मेरे पास ना आकर।"

भुल्ले खान वहां पहुंचा। इस वक्त उसके चेहरे पर वो रौनक नहीं थी, जो कि अक्सर देखने को मिलती थी। उसके कमरे में आते ही, वसीम राणा उठा और पास पहुंचकर जोरदार चांटा उसके गाल पर दे मारा। भुल्ले का सिर झनझना उठा। गाल पर हाथ रखे वो वसीम राणा को देखने लगा।

जगमोहन गम्भीर सा शांत बैठा था।

"ये इसलिए कि तूने वापस आकर मेरे को बताया नहीं कि तू ठीक से सीमा पार नहीं कर सका और देवराज चौहान, जगमोहन किस मुसीबत में फंस गए हैं।" वसीम राणा दांत भींचकर कह उठा।

"जगमोहन ने आपको बता दिया होगा कि गड़बड़ कहां हुई?" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।

"अहमद खान तेरा भाई था। मेरा नहीं। ये गलती तेरी ही मानी जाएगी।" वसीम राणा बेहद गुस्से में था।

"मैंने कब कहा कि मेरी गलती नहीं थी।" भुल्ले बोला।

तभी वसीम राणा ने एक और चांटा मारा।

"बस करो।" जगमोहन बोला--- "मेरी नजरों में भुल्ले की कोई गलती नहीं है।"

"लेकिन मेरी नजरों में है।" वसीम राणा का चेहरा सुर्ख हो रहा था--- "इसकी दूसरी गलती ये थी कि जब देवराज चौहान के साथ वापस इस्लामाबाद पहुंचा तो उसे लेकर मेरे पास आता या मुझे खबर करता।"

"उसने एक बार भी तुम्हारे पास आने की नहीं सोची।" भुल्ले ने थके स्वर में कहा।

"तुम्हें कैसे पता?"

"मैं अंत तक उसके साथ था।" भुल्ले ने कहा।

"तो तुम्हें पता है वो मिलिट्री हैडक्वार्टर में पकड़ा गया?" जगमोहन कह उठा।

"बोला तो मैं अंत तक, हर वक्त उसके साथ था।"

"राणा, तुम आराम से बैठ जाओ।" जगमोहन ने फिर भुल्ले से कहा--- "तुम भी बैठो और मुझे सारी बात बताओ।"

"तुम्हें मालूम है कि मेरा काम क्या है। मिलिट्री वालों से संपर्क है। मैं बहुत कुछ कर सकता था।"

भुल्ले ने वसीम राणा को देखकर कहा।

"मैं अभी तक नहीं जानता कि तुम क्या काम करते हो। कभी जानने की कोशिश ही नहीं की।"

"मैं मिलिट्री वालों की वर्दियां बनाने का ठेका लेता हूं। इतना बड़ा काम फैला रखा है मैंने। जब देवराज चौहान, कैप्टन की वर्दी में मिलिट्री हैडक्वार्टर में गया तो मैंने उसे देखा था। तब पेमेंट के सिलसिले में मैं भी वहां था।"

"ओह।" भुल्ले खान के होंठों से गहरी सांस निकली--- "ये बात मुझे नहीं पता था कि तुम क्या काम करते हो। शायद देवराज चौहान को भी नहीं पता होगी। वरना हम सीधा तुम्हारे पास ही आते।"

वसीम राणा होंठ भींचे खड़ा रहा। भुल्ले को देखता रहा।

"इधर बैठो भुल्ले।" जगमोहन बैड की तरफ इशारा करते बोला--- "मुझे बताओ कि देवराज चौहान ने सबकुछ कैसे किया।"

भुल्ले ने बैड के पास कुर्सी खींची और बैठ गया।

वसीम राणा गुस्से से भरा कमरे में टहलने लगा।

भुल्ले खान ने सब कुछ बताया। देवराज चौहान की एक-एक बात बताई।

जगमोहन सुनाता रहा। वसीम राणा सुनता रहा।

जब भुल्ले सबकुछ बताकर खामोश हुआ तो जगमोहन गंभीर स्वर में बोला।

"तुम्हारी मेहरबानी कि तुमने देवराज चौहान का पूरा साथ दिया।"

"पर मुझे अफसोस है कि अंत में वो फंस गया। काम पूरा नहीं हो सका।" भुल्ले खान धीमे स्वर में बोला--- "मुझे बहुत दुख हो रहा है उसके फंस जाने का। उसके साथ रहकर, वो मुझे अच्छा लगने लगा था। वो शानदार बंदा है। मुझे बहुत कम लोग ही पसंद आते हैं। उसने भी मेरा ख्याल रखा। मुझे दस लाख दिया। परंतु जब से वो पकड़ा गया है, तब से ही मेरा मन बहुत खराब है। मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता। बे-मन से घर जाकर बैठ गया।"

"हिम्मत मत हारो। हम देवराज चौहान को छुड़ा लेंगे।" जगमोहन ने कहा।

"ये संभव नहीं।"

"हम कोशिश तो कर सकते हैं।"

"देवराज चौहान की तरह ही पकड़े जाएंगे। मिलिट्री हैडक्वार्टर से किसी को निकाला नहीं जा सकता।"

"हम उसे निकालने की पूरी कोशिश करेंगे।"

"मैं फंसना नहीं चाहता।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा।

"ठीक है। जैसे तुमने देवराज चौहान का साथ दिया है, वैसे ही मेरा साथ देना पीछे रहकर। दोगे ना?"

भुल्ले खान ने सहमति से सिर हिला दिया।

"अब सूबेदार जीतसिंह के बारे में बताओ।"

"उसे हमने इस्लामाबाद में देखा। पहली बार सिर्फ देवराज चौहान ने देखा था तो मैंने देवराज चौहान की बात पर भरोसा नहीं किया कि जीतसिंह इस्लामाबाद में भला क्यों आएगा। परंतु दो दिन बाद मैंने उसे कार चलाते हुए देखा। हम दोनों ने तब सूबेदार जीतसिंह का पीछा किया। उसे पकड़ लेना चाहते थे। जीतसिंह देवराज चौहान को देखकर मुस्कुराया भी था। उसी से स्पष्ट हो गया कि वो भी हमें पहचान रहा है। परंतु हम उसे पकड़ ना सके। वो एक शॉपिंग मॉल में जाकर गायब हो गया।"

"पक्का वो जीतसिंह ही था?"

"एक आदमी धोखा खा सकता है एक साथ दो लोग एक ही बात पर धोखा नहीं खा सकते। सूबेदार जीतसिंह बहुत फुर्तीला इंसान है। वो बहुत तेजी के साथ हमारी निगाहों से ओझल हो गया।"

"परंतु जब वो तुम दोनों को यहां दिखा तो उसी दिन सुबह वह पुंछ सेक्टर में अपनी ड्यूटी पर लौटा था छुट्टी से। तब वो मुझसे भी मिलने आया था और उसके कुछ घंटों बाद मैंने देवराज चौहान से जीतसिंह के बारे में बात हुई थी। एक ही वक्त में वो हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में कैसे मौजूद हो सकता है।" जगमोहन के चेहरे पर उलझन उभरी।

"ये मैं नहीं जानता। परंतु ये पक्का है कि उस दिन हमने जीत सिंह को देखा। उसे पकड़ने की कोशिश भी की थी।"

वसीम राणा गंभीरता से भुल्ले की बातें सुन रहा था।

जगमोहन भी गंभीर नजर आ रहा था।

"तुम्हारा क्या ख्याल है कि देवराज चौहान का पकड़ा जाना, मेजर के किसी एजेंट की करतूत है।" जगमोहन ने पूछा।

"मैं नहीं जानता।" भुल्ले ने सिर हिलाया--- "काम तो सब ठीक से ही चल रहे थे।"

"देवराज चौहान।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहा--- "गोरिल्ला के पास पहुंच गया था। उसके हाथ भी खोल दिए थे। मुझे यही पता लगा था उस दिन। उसने वहां मौजूद तीन मिलिट्री वालों को साइलेंसर लगी रिवाल्वर से शूट कर दिया था। अपने साथ वो एक मिलिट्री की वर्दी ले गया था, अब सोच सकता हूं कि उसका इरादा गोरिल्ला को मिलिट्री की वर्दी पहनाकर बाहर निकाल ले जाने का होगा। अंत में यही पता लगा कि कोई मौके पर उसके पीछे पहुंच गया था और उसके सिर में चोटें मारकर उसे बेहोश कर दिया था। इस तरह वो पकड़ा गया।"

"वो गोरिल्ला चौथी मंजिल के 28 नंबर कमरे में हैं।"

"हां।"

"और देवराज चौहान को कहां रखा गया। उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है?" जगमोहन की आवाज सख्त हो गई।

"इस बारे में मुझे कोई खबर नहीं।" वसीम राणा ने कहा।

"तुमने खबर पाने की कोशिश क्यों नहीं की?"

"किसके लिए मालूम करता? मैं अकेला तो कुछ नहीं कर सकता। अब तुम आ गए हो तो आज ही सब कुछ मालूम कर लूंगा। शाम तक तुम मुझसे इस बारे में हर बात जान लोगे।" वसीम राणा गंभीर था--- "परंतु मुझे ये बात समझ नहीं आ रही कि सूबेदार जीत सिंह दो जगह कैसे हो सकता है?"

"ये बात तो मुझे भी समझ नहीं आई।" जगमोहन बोला।

"इस बात में जरूर कोई रहस्य है।" वसीम राणा ने सोच भरे स्वर में कहा--- "वो हिन्दुस्तान की सरहद पर भी अपनी ड्यूटी पर मौजूद है और इस्लामाबाद में भी वो दिखा। कहीं ये हिन्दुस्तानी मेजर का ही कोई खेल ना हो।"

"मेजर किसी को इस्लामाबाद भेजेगा तो जीतसिंह के रूप में क्यों भेजेगा।" जगमोहन ने कहा--- "ऐसा कुछ नहीं है। मुझे तो ये भी लगता है कि मेजर को दो-दो जीतसिंह होने की खबर नहीं है।"

"क्या तुम मेजर के एजेंटों का इस्तेमाल करोगे?" भुल्ले खान ने जगमोहन से पूछा।

"इस स्थिति में नहीं, जबकि उनमें से कोई डबल एजेंट हो सकता है।" कहते हुए जगमोहन ने वसीम राणा से कहा--- "लोगों का इंतजाम तो तुम कर सकते हो। अगर जरूरत पड़ी तो---?"

"कुछ इंतजाम तो मैं कर ही दूंगा।" वसीम राणा ने सोच भरे स्वर में कहा।

"बंदों का इंतजाम तो मैं भी कर दूंगा।" भुल्ले खान ने कहा--- "नोट खर्चने पड़ेंगे।"

"पैसों की फिक्र मत करो।" वसीम राणा बोला--- "मैं अपना सारा पैसा खर्च कर सकता हूं।"

"तुम उस मिलट्री हैडक्वार्टर जाकर देवराज चौहान के बारे में पता करो कि वो किस हाल में है उसके साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है और भविष्य में उसके साथ वो क्या करने का इरादा रखते हैं। हो सकता है देवराज चौहान के लिए वहां हालात बुरे हों और हमें जल्दी ही कोई कदम उठाना पड़े उसे वहां से निकालने के लिए।"

"ये आसान नहीं होगा।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा।

"आसान हो या असंभव। देवराज चौहान को वहां से निकालना ही है।" जगमोहन दृढ़ स्वर में बोला।

"अगर पकड़े या मारे गए तो?"

"ऐसा नहीं होगा।" वसीम राणा का स्वर भी दृढ़ था--- "हम बहुत बढ़िया और मजबूत योजना बनाएंगे।"

"देवराज चौहान ने भी बढ़िया और मजबूत योजना बनाई थी, पर वो सफल नहीं हो सका।" भुल्ले परेशान सा कह उठा।

वसीम राणा और जगमोहन की नजरें मिली।

"तुम जाओ राणा। देवराज चौहान के बारे में पता करो।" जगमोहन का स्वर गम्भीर था।

वसीम राणा बाहर निकल गया।

"मेजर ने तुम्हें कैसे छोड़ दिया?" भुल्ले ने पूछा।

"देवराज चौहान यहां पकड़ा गया तो तब मुझे कैद में रखने का कोई फायदा नहीं था।"

"उसने देवराज चौहान को छुड़ाने की कोई बात नहीं की?"

"वो सिर्फ गोरिल्ला के बारे में सोचता है। पर अब वो भी जानता है कि गोरिल्ला उसकी पहुंच से दूर हो चुका है।"

"बड़ा कमीना है मेजर। देवराज चौहान को फंसा कर आराम से बैठ गया।"

"सब अपने मतलब के हैं।"

"मैं तो अपने मतलब का नहीं। अहमद की गद्दारी को अपनी गलती मान कर देवराज चौहान का साथ देता रहा।"

"मैं पहले ही कह चुका हूं कि तुम्हारी मेहरबानी जो तुमने देवराज चौहान का साथ दिया।"

"वहां तुमने सूबेदार जीत सिंह को देखा?"

"बातें भी की। वही मुझे सीमा तक छोड़ने आया था। पर वो यह मानने को तैयार नहीं कि इस्लामाबाद में कोई जीत सिंह है।"

"वो माने या ना माने। पर मैं तो मानता हूं। मैंने उसे देखा, पहचाना, पीछा किया।" भुल्ले खान कह उठा--- "वो हर तरफ से जीत सिंह था। सूबेदार जीत सिंह। उसने भी हमें पहचाना था। हाथ लग जाता तो फिर बात ही क्या थी। सब पता चल जाना था कि इस्लामाबाद में क्या कर रहा है। अल्लाह करे, एक बार फिर वो दिख जाए, अबकी बार छोडूंगा नहीं उसे।"

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नींद में जगमोहन ने करवट ली। पल भर के लिए आंखें खुली और बंद हो गई। मात्र एक क्षण के लिए उसकी आंखें खुली आंखें ने बगल में सोए भुल्ले खान को देखा था। वो करवट लिए हुए था और उसकी पैंट की पीछे वाली जेब से छोटे से, लाल रंग के कार्ड को बाहर निकलते देखा था। बंद आंखों के पीछे दिमाग तेजी से हरकत में आया और उसकी आंखें खुल गई। वो नींद से बाहर निकल आया। नजरें वॉल क्लॉक पर गई।

शाम के चार बज रहे थे।

वो चार घंटे सोया रहा था। रात भर जागने और सफर करते रहने की वजह से नींद काफी गहरी आई थी। अब वो खुद को सहज महसूस कर रहा था। जब वो सोया तो भुल्ले कुर्सी पर बैठा था, उसके सो जाने के बाद, वो कब बैड पर आ लेटा था, उसे नहीं पता था। जगमोहन की निगाह पुनः भुल्ले की पैंट की पिछली जेब पर जा टिकी, जहां से छोटा-सा लाल कार्ड नजर आ रहा था। कुछ पल वो उस कार्ड जैसी चीज को देखता रहा फिर हाथ बढ़ाकर, जेब से थोड़े से बाहर निकले कार्ड को पकड़कर उसे बाहर निकाल लिया। भुल्ले गहरी नींद में था।

वो कार्ड, आई-कार्ड जैसा था।

जगमोहन ने उसे खोला।

कार्ड के ऊपर चांद-सितारा का निशान बना हुआ था। नीचे भुल्ले खान की स्टैम्प लगी फोटो थी। परंतु कार्ड पर मोटे-मोटे शब्दों में छपे शब्द पढ़कर, जगमोहन के जिस्म में, ठंडी सिहरन दौड़ गई। वो उचककर उठ बैठा। आंखें फैल गई। चेहरे पर घायल शेर भाव आ ठहरे। नजरें कार्ड पर ही लगी रही।

कार्ड पर छपा था, मिलिट्री इंटेलिजेंस ब्यूरो।

नीचे भुल्ले खान की उम्र तीस बरस लिखी थी और एजेंट नंबर 540 लिखा था।

सन्न बैठा जगमोहन कार्ड को देखे जा रहा था।

तो भुल्ले ही खबरें इधर की उधर कर रहा था। देवराज चौहान को इसी ने फंसाया। पाकिस्तान मिलिट्री की जासूसी संस्था का एजेंट है ये और यही उन्हें सब खबरें दे रहा था, इधर ये देवराज चौहान के साथ उसका सगा बनकर लगा रहा। कार्ड में भुल्ले का नाम नसीम चौधरी लिखा था।

भुल्ले, पाकिस्तानी मिलिट्री विभाग का जासूस था।

जगमोहन के मस्तिष्क में तूफान उठ खड़ा हुआ। उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि भुल्ले इस तरह उन्हें देर तक धोखा देता रहा। तो असली दगाबाज यही है। यही वो कमीना है जिसकी वजह से देवराज चौहान फंसा।

जगमोहन का चेहरा धधक उठा। मस्तिष्क सुलगकर पागल-सा हो गया। ये तो वक्त पर कार्ड हाथ में लग गया, वरना भुल्ले ने उसे भी मिलिट्री के हाथों में पहुंचा देना था। हालत तो ये थी जगमोहन की कि उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि कार्ड में वो जो देख रहा है, वो सच है। परंतु उसे समझ में आ गया था कि ये सब सच है। भुल्ले जानबूझकर देवराज चौहान की सहायता करने के बहाने उसके साथ रहा, कि सब कुछ उसकी जानकारी में रहे। और सही मौका आते ही देवराज चौहान को मिलिट्री के वालों के हाथों में फंसा दिया।

जगमोहन बैड से उठ खड़ा हुआ।

सुलगती निगाहों से नींद में डूबे भुल्ले खान को देखा। कार्ड अपनी जेब में रखा और आगे बढ़कर भुल्ले को बेहद आराम से उठाया। भुल्ले आंखें मलता उठा।

"तुम भी सो गए थे तो मैंने सोचा मैं भी पीठ सीधी कर लूं।" भुल्ले ने कहा।

जगमोहन ने गहरी निगाहों से भुल्ले को देखा वहीं खड़ा रहा।

"क्या हुआ?" भुल्ले ने पूछा।

"तुम्हारे पास रिवाल्वर है?"

"हां।" भुल्ले ने एकाएक बैड का गद्दा उठाकर नीचे से रिवाल्वर निकाली--- "लेटने से पहले यहां रख...।"

"मुझे देना।" जगमोहन के चेहरे पर खिंचाव के भाव थे।

"क्यों--- क्या हो...।"

"दो---तो---।" आगे बढ़कर जगमोहन ने रिवाल्वर ली और वहां से हटकर कुर्सी पर जा बैठा--- "रिवाल्वर को देखा फिर उसे खोलकर चैम्बर चैक किया वो लोडेड था--- "काफी महंगी है ये।"

"हां।" भुल्ले मुस्कुराकर बोला--- "एक बार एक आतंकी को सीमा पार कराई थी तो नोटों के बदले उसने रिवॉल्वर दे दी थी। तब से मैं उसे जेब में ही रखता हूं। तरह-तरह के लोगों से वास्ता पड़ता रहता है। जाने कब जरूरत पड़ जाए।"

जगमोहन ने रिवाल्वर का सेफ्टी वॉल्व हटा दिया।

"ये क्या कर रहे हो, गोली चल जाएगी।" भुल्ले बोला--- "सेफ्टी कैच बंद करो।"

जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी। नजरें भुल्ले पर थी। उसने सेफ्टी वॉल्व बंद कर दिया। परंतु रिवाल्वर हाथों में ही रही। भुल्ले की आंखें सिकुड़ी और बोला।

"क्या बात है। तुम इस तरह मुझे क्यों देख रहे हो?"

"कौन हो तुम?" जगमोहन की आवाज में सर्द भाव आ गए।

"मैं कौन हूं।" भुल्ले खान हैरान हो उठा--- "ये तुम क्या कह रहे हो?"

"कौन हो तुम?" जगमोहन ने उसी भाव में पूछा।

"मैं---मैं भुल्ले हूं---भुल्ले खान।" भुल्ले मुस्कुराया--- "तुम मुझे ज्यादा परेशान लग रहे हो।"

"सही कहा, मैं ज्यादा परेशान हूं।" जगमोहन ने रिवाल्वर थामें कहा--- "तुम्हारी वजह से परेशान हूं कि तुम हो कौन?"

"क्या पागलों जैसी बातें...।" कहते हुए भुल्ले ने बैड से उठना चाहा।

जगमोहन ने सेफ्टी वॉल्व हटाया और रिवाल्वर उसकी तरफ कर दी।

"बैठे रहो।"

भुल्ले वहीं थम गया। रिवाल्वर को देखा।

"बैठ जाओ।" जगमोहन गुर्रा उठा।

भुल्ले हैरानी से बैठ गया। उसके हाथ में दबी रिवाल्वर को देखा।

"ये तुम्हें क्या हो गया है जगमोहन।" भुल्ले के होंठों से निकला--- "देवराज चौहान को लेकर तुम परेशान मत हो। हम कोई रास्ता निकाल लेंगे, उसे वहां से निकाल लेने का। अपने होश कायम रखो, तभी तो---।"

"मेरे होश कायम हैं। एकदम फिट।" जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा--- "अभी मैं तुमसे बहुत प्यार से बात कर रहा हूं। जो मैं पूछ रहा हूं उसकी हकीकत बताओ कि तुम असल में कौन हो?"

"तुम्हारा दिमाग खराब हो...।" भुल्ले ने झल्लाकर कहना चाहा।

"तुमने कभी सोचा था कि इसी रिवाल्वर की गोली से तुम्हारी जान जाएगी?" जगमोहन गुर्राया।

भुल्ले ने रिवॉल्वर को देखा फिर गुस्से से कह उठा।

"आखिर मैंने किया क्या है?"

"धोखा।"

"धोखा? किसे दिया है धोखा?"

"मुझे। देवराज चौहान को। तुमने ही देवराज चौहान को फंसाया मिलिट्री के हाथों।"

"क्या बकवास कर रहे हो। मैंने तो देवराज चौहान के साथ काम किया। उसे क्यों फंसाऊंगा?" भुल्ले गुस्से से बोला।

"ये तुम बताओगे कि तुमने ऐसा क्यों किया।" जगमोहन के चेहरे पर जहान भर की सख्ती थी।

"मैं... मैं क्या बताऊं, तुम कहो कि तुम्हारे मन में क्या है?" भुल्ले गुस्से में आ चुका था।

जगमोहन के चेहरे पर कहर भरी मुस्कान उभरी।

"तुम सच में इसी रिवाल्वर की गोली से मर सकते हो। मैं फायर कर दूंगा।"

"तुम क्या पागल हो गए हो।" भुल्ले क्रोध में चीखा--- "मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। मैं तो तुम लोगों की सहायता कर रहा हूं। अब देवराज चौहान फंस गया तो मैं क्या करूं। मैंने तो उसे पहले ही कह दिया था कि वो खतरनाक काम कर रहा है और फंस भी सकता है परंतु वो काम करने पर आमादा था। मेरी बात की परवाह नहीं की उसने। किसी की नहीं सुनी।" भुल्ले खान तेज स्वर में कह रहा था--- "मेरे से अच्छे ढंग से बातें करके तुम सोए थे अब उठने पर ऐसा क्या हो गया कि मुझ पर सवार हो गये। फिर तुम्हारा ये ही व्यवहार रहा तो मैं चला जाऊंगा।"

"कैसे जाओगे। मैं तुम्हें जाने दूंगा तो जाओगे।" जगमोहन का स्वर सर्द था।

"तुम मुझे रोक नहीं सकते।"

"बैड से उतरकर दिखाओ। पैर नीचे लगते ही तुम्हें शूट नहीं किया तो मेरा नाम जगमोहन नहीं।"

"यहां पर तुम गोली नहीं चला सकते। ये राणा साहब का घर---।"

"परवाह नहीं। तुम पर फायर करने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।"

भुल्ले आहत भाव से जगमोहन को देखने लगा।

जगमोहन के हाथ में दबी रिवाल्वर भुल्ले की तरफ थी।

कई पल खामोशी में निकल गए।

"तो तुम समझते हो कि मैंने देवराज चौहान को फंसाया है।" भुल्ले ने गंभीर स्वर में कहा।

"समझता नहीं, जानता हूं कि तुमने ऐसा ही किया है और अब मुझे फंसाने की तैयारी में थे।"

"तुम्हें फंसाने की तैयारी?"

"हां...।"

"तुम्हें या देवराज चौहान को फंसाकर मुझे क्या मिलेगा?" भुल्ले की निगाह जगमोहन पर थी।

"मैं जानता हूं पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं।" जगमोहन ने कड़े स्वर में कहा।

"तुम पता नहीं ये सब क्यों कह रहे हो, दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा।" भुल्ले ने व्याकुल स्वर में कहा।

"तुमने देवराज चौहान का साथ क्यों दिया?"

"ये मेरी शराफत थी कि मैंने देवराज चौहान का साथ दिया।" भुल्ले खान ने गंभीर स्वर में कहा--- "क्योंकि देवराज चौहान अहमद खान की वजह से मेजर के हाथों में जा फंसा था। अहमद मेरा चचेरा भाई था और इस काम में जबर्दस्ती मेरे साथ आ गया था। तब मैं नहीं जानता था कि उसके मन में क्या है। अहमद को साथ रखना मेरी गलती थी और देवराज चौहान का साथ देकर मैंने इस गलती को सुधारने की कोशिश की थी। जब मैं और देवराज चौहान इस्लामाबाद पहुंचे तो सबसे पहले मैंने अहमद को उसकी धोखेबाजी की सजा दी। उसे जंगल में ले जाकर शूट किया।"

"तो तुमने देवराज चौहान का साथ देकर भले का काम किया?"

"मैंने कोई भला नहीं किया। मेरी वजह से देवराज चौहान फंसा, ऐसे में मैंने उसका साथ दिया।" भुल्ले गंभीर था।

"मैं फिर अपने उसी सवाल पर आता हूं कि तुम कौन हो?"

"मैं नहीं समझ पा रहा कि तुम कहना क्या चाहते हो?"

"तुम सब समझ रहे हो। और मैं तुम्हारी हकीकत जान चुका हूं।" जगमोहन दांत भींचकर बोला।

"ऐसी बात है तो, मुझे बताओ मेरी हकीकत।"

"तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। खुद कबूल करोगे तो आसान मौत दूंगा। मरने का पता भी नहीं चलेगा। अगर...।"

तभी दरवाजा खुला और वसीम राणा ने भीतर प्रवेश किया।

परंतु भीतर का नजारा देखते ही चौंका।

"ये क्या हो रहा है?" उसके होंठों से निकला।

"आओ राणा।" जगमोहन कठोर स्वर में बोला--- "इसे पहचान लो, ये एक नंबर का हरामजादा है।"

"क्या?" वसीम राणा की आंखें सिकुड़ी, भुल्ले से बोला--- "क्या किया है तूने?"

"कुछ नहीं, सोया उठा तो ये पागल हो गया दिखा।"

जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी।

वसीम राणा ने उलझन भरी निगाहों से जगमोहन को देखा।

"तुम इसे कब से जानते हो राणा?" जगमोहन ने पूछा।

"करीब तीन साल से।"

"इससे क्या काम लेते रहे?"

"जैसा भी काम हो। मुझे जब-जब जरूरत पड़ी, मैंने इसे ही याद किया, लेकिन बात क्या है?"

जगमोहन ने जेब से कार्ड निकाला और वसीम राणा की तरफ बढ़ा दिया।

उस कार्ड को देखते ही भुल्ले खान चौंका। हाथ पीछे की जेब पर गया।

उसकी हरकत पर जगमोहन मुस्कुराया।

वसीम राणा ने कार्ड लेकर देखा तो हक्का-बक्का रह गया।

"मिलिट्री इंटेलिजेंस का एजेंट नसीम चौधरी।" उसके होंठों से निकला।

"ये सब बकवास है।" भुल्ले खान तेज स्वर में बोला--- "ये नकली है। मैंने अपने लिए ये कार्ड बना रखा है। ये तो...।"

"चुप---।" वसीम राणा गुर्रा उठा--- "ये असली कार्ड है। नकली नहीं है।"

"नकली, असली जैसा होगा। तभी तो मेरा काम बनेगा नहीं तो कार्ड बनाने का क्या फायदा।" भुल्ले ने झल्लाकर कहा।

वसीम राणा कार्ड की जांच-परख कर रहा था।

जगमोहन के होंठ भिंचे हुए और नजरें भुल्ले पर थी।

"यार---।" भुल्ले जगमोहन से बोला--- "ये नकली कार्ड है। मैं आतंकवादियों को सीमा पार कराता रहता हूं तो कभी-कभी पाकिस्तानी मिलिट्री की नजर में आ जाता हूं जो बॉर्डर पर तैनात होती है। ऐसे में मैं उन्हें कार्ड दिखाकर, कह देता हूं कि किसी मिशन के तहत सीमा पार कराई जा रही है। बदले में वो सैल्यूट भी मारते हैं और चाय भी पिलाते हैं। इस कार्ड पर मत जाओ इसमें दर्ज मेरा नाम भी नकली है। मेरा नाम भुल्ले है भुल्ले। चाहो तो मेरे घर जाकर पूछ लो। ये आई कार्ड तो मैंने अपने बचाव के लिए बनाया हुआ है। मुझे क्या मालूम कि इस कार्ड को देखकर तुम लोग मुझ पर ही शक करने लगोगे।"

जगमोहन कहर भरी निगाहों से भुल्ले को देखता रहा।

तभी वसीम राणा कह उठा।

"ये कार्ड मुझे असली लगता है।" उसके चेहरे पर क्रोध और गंभीरता थी।

"तो अब मानते हो कि भुल्ले ने हो देवराज चौहान को फंसाया।" जगमोहन गुर्राया--- "ये मिलिट्री का जासूस...।"

"मैं नहीं हूं।" भुल्ले खान ने कहते हुए उठना चाहा बैड से।

"हिलना मत।" जगमोहन गुर्रा कर बोला।

भुल्ले नहीं उठा बैड से और बोला।

"मुझ जैसे शरीफ बंदे पर क्यों शक कर रहे हो। ये तो खामख्वाह की मुसीबत हो गई।" वो परेशान था।

"ये मिलिट्री का जासूस हो सकता है।" वसीम राणा ने होंठ भींचकर कहा।

"इसी ने देवराज चौहान को फंसाया है।"

"आई कार्ड पर भरोसा मत करो। ये नकली है। मेरे घर से पूछताछ कर लो। मैं मिलिट्री का जासूस होता तो क्या ये काम करता फिरता जो कर रहा हूं। राणा साहब कितनी बार तो आपके लिए काम किए हैं। क्या मिलिट्री का जासूस ऐसे काम करता है। मैंने आज सैकड़ों आतंकवादियों को सीमा पार भेजा है, क्या मिलिट्री का जासूस ये काम करता है।" भुल्ले खान गुस्से से कह उठा।

"तुमने देवराज चौहान को...।" जगमोहन ने कहना चाहा।

"मैंने देवराज चौहान को फंसाना होता तो मैं उसके साथ क्यों दौड़ता-फिरता। मैं जासूस होता तो मेरे एक इशारे पर ही वो पकड़ा जाता। मेजर के कितने एजेंट मेरी नजरों में हैं, वो क्या अब तक आजाद होते। देवराज चौहान फंस जाने का मुझे कितना अफसोस है, ये मैं ही जानता हूं। मैंने उसके लिए क्या नहीं किया, मैं तो---।"

"राणा।" जगमोहन ने शब्दों को चबाकर कहा--- "इसके मुंह से सच्चाई निकलवाने होगी।"

"ये सच बोलेगा।" वसीम राणा का स्वर सख्त था।

"कोई ऐसी जगह बताओ, जहां इसे रखकर इसका मुंह खुलवाया जाए।"

"यहीं पर रखो।"

"बंगले पर नौकर वगैहरा---।"

"उनकी फिक्र मत करो। वो सब मेरे भरोसे के हैं।" वसीम राणा खा जाने वाली निगाहों से भुल्ले खान को देखता कह उठा--- "उनसे कह दूंगा कि इसने मेरा पचास लाख रुपया चुराया है तो फिर वो इसकी चीखों की परवाह नहीं करेंगे।"

"तुम लोग क्या उल्टा-पुल्टा बोले जा रहे हो।" भुल्ले खान का चेहरा लटक गया था--- "किस बात की मेरे से दुश्मनी निकाल रहे हो। मैंने तो देवराज चौहान का भला ही किया था, उसका साथ देकर। मैं मिलिट्री का जासूस नहीं हूं। वो कार्ड तो मैंने खुद को बचाने के लिए बना रखा है। मैं तुम लोगों का दोस्त...।"

वसीम राणा आई-कार्ड को देखता कह उठा।

"इस कार्ड को जितनी बार देखता हूं उतना ही मुझे असली लगता है।"

"राणा साहब, क्या आप भी मेरा भरोसा नहीं कर रहे।"

"ये पता कर सकते हो कि ये कार्ड असली है या नकली?" जगमोहन ने कहा।

"नहीं पता कर सकता। ऐसी बातें मालूम करने में फंस जाने का खतरा है। ये आई कार्ड किसी को दिखा भी नहीं सकता।"

"तो ये पता करो कि नसीम चौधरी नाम का कोई जासूस मिलिट्री में है।"

"इस नाम के कई लोग मिल सकते हैं।"

"आई कार्ड पर एजेंट संख्या 540 लिखी है। 540 नंबर के एजेंट के बारे में मालूम...।"

"वैसे तो मिलिट्री में मेरे कई दोस्त हैं परंतु उनको इस काम में इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा।" वसीम राणा आई कार्ड को जेब में रखता कठोर निगाहों से भुल्ले खान को देखता कह उठा--- "ऐसी कोई कोशिश करने से पहले हम इसका मुंह खुलवाएंगे। ये खुद ही स्वीकार करेगा कि ये मिलिट्री का एजेंट नसीम चौधरी, संख्या नंबर 540 है।" उसके चेहरे पर खतरनाक भाव थे।

"पागल-पागल, खराब दिमाग वाले पागल हो तुम दोनों---।" भुल्ले खान गुस्से से चीख पड़ा।

वसीम राणा दांत भींचे तेजी से आगे बढ़ा और पास पहुंचकर उसने भुल्ले के सिर के बाल पकड़े और जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर लगा दिया गया था। भुल्ले चीखकर बैड पर लुढ़क गया। फौरन ही संभला। वसीम राणा से कह उठा।

"किस जन्म का बदला ले रहे हो मुझसे। मैंने आपका क्या बिगाड़ा है राणा साहब। मैंने तो देवराज चौहान का भला ही...।"

"तुम मिलिट्री के जासूस हो। तुम्हारा आई कार्ड हाथ लग गया तो ये बात पता चल गई, नहीं तो तुम हमें भी डुबो देते।" वसीम राणा ने सख्त स्वर में कहा--- "ये आई कार्ड मुझे कहीं से भी नकली नहीं लग रहा। मिलिट्री की वर्दियों का ठेका लेता हूं मेरा मिलिट्री वालों के पास आना-जाना है और ऐसे कार्ड मैं कई बार देख चुका...।"

"नकली को, असली की तरह ही बनवाऊंगा, वो नकली क्यों लगेगा?" भुल्ले ने खीझकर कहा।

"ये कार्ड तुमने कहां से बनवाया था?" वसीम राणा ने पूछा।

"कहां से?" भुल्ले खान दो पल ठिठककर कह उठा--- "ये मुझे किसी ने बनवाकर दिया था और उसने ये कार्ड किसी तरह हेराफेरी करके, मिलिट्री के वहां से ही बनवाया था, जहां ऐसे आई कार्ड बनाए जाते हैं।"

वसीम राणा के चेहरे पर कहर भरी मुस्कान नाच उठी। वो जगमोहन से बोला।

"सुना तुमने।"

"सब सुन रहा हूं।" जगमोहन विषैले स्वर में बोला--- "ये अभी, सब सच बोलेगा।"

"मिलिट्री इंटेलिजेंस के जिस विभाग में ऐसे आई-कार्ड बनाए जाते हैं, वहां काफी सख्ती होती है। किसी गड़बड़ की आशा वहां पर नहीं की जा सकती। एक कार्ड बनाते समय कई ऑफिसर्स के हाथों से निकलता है। विभाग के अध्यक्ष के साइन होते हैं कार्ड पर और ये कहता है कि किसी ने हेराफेरी से इसे आई-कार्ड बनवा दिया कि ये मिलिट्री का एजेंट नंबर 540 है।"

"ये सच है।" भुल्ले ने प्रतिरोध किया।

"जबकि हेराफेरी से बने इस कार्ड में मुझे कोई कमी नजर नहीं आ रही। किसी कार्ड को बनाने के ऑर्डर ऊपर से आते हैं। पूरी कार्यवाही होती है। कागज तैयार होते हैं, तब जाकर कहीं कार्ड बनता है।"

"जैसे भी आई-कार्ड बनता हो, पर मेरा कार्ड बन गया था। तुम्हारे सामने है सब कुछ।" भुल्ले ने झल्लाकर कहा।

"सामने तो अभी बहुत कुछ आना है।" वसीम राणा का स्वर सख्त था--- "किसने तुम्हें आई कार्ड बनवाकर दिया?"

"मेरे चचेरे भाई अहमद खान ने।"

"जिसे तुम पहले ही शूट कर चुके हो।" जगमोहन ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा।

"हां।"

"इन हालातों उससे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता, जिसका नाम लिया जाए।" जगमोहन कह उठा।

"तुम लोग मेरी बात को सच क्यों नहीं मान रहे। मामूली से नकली कार्ड की वजह से मुझ पर शक...।"

"जगमोहन।" वसीम राणा तीखे स्वर में बोला--- "ये आसानी से सच नहीं बोलेगा।"

"इसके हाथ-पांव बांधने के लिए कुछ लाओ, फिर इसका मुंह खुलवाते हैं।" जगमोहन गुर्राया।

"ये क्या तमाशा लगा रखा है तुम लोगों ने।" भुल्ले खान ने भड़ककर कहा और बैड से खड़ा हो गया--- मैं...।"

"बैठ जाओ।" जगमोहन गुर्राया और उसने रिवाल्वर वाला हाथ सीधा कर दिया--- "वरना तुम्हें शूट---।"

"इतनी सी बात पर तुम मुझे शूट नहीं कर सकते। मैं अब तुम्हारी बात नहीं मानूंगा और जा रहा हूं यहां से...।"

तब तक जगमोहन उठकर खतरनाक अंदाज में भुल्ले की तरफ बढ़ चुका था।

"बैठ जाओ।" जगमोहन पास पहुंचकर गुर्राया।

"नहीं। मैं कोई जासूस-वासूस नहीं हूं मैं साधारण-सा आदमी भुल्ले...।"

उसके शब्द होंठों में ही रह गए। जगमोहन का घूंसा उसके पेट में जा लगा।

भुल्ले खान पेट थामें दोहरा होता चला गया। चीख निकली होंठों से।

जगमोहन ने रिवॉल्वर की नाल उसके सिर पर रखकर कहा।

"तुम्हें शूट करना अब मेरे लिए बहुत आसान हो चुका है। क्योंकि तुम शक के दायरे में आ चुके हो। आराम से बैड पर बैठ जाओ और मेरी इजाजत के बिना उठना भी मत।" स्वर में खतरनाक भाव थे।

भुल्ले पेट थामें बैड पर बैठता चला गया।

"राणा। तुम्हारे पास रिवॉल्वर और साइलेंसर है?"

"पिस्तौल है पर साइलेंसर नहीं है।" वसीम राणा बोला।

"साइलेंसर का भी इंतजाम कर लेना। शायद इसे शूट करना पड़े।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।

तभी दरवाजा खुला और वसीम राणा की पत्नी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"यहां से ऊंची आवाजें आ...।" कहते-कहते वो थम-सी गई।

जगमोहन रिवॉल्वर थामे, भुल्ले खान के सिर पर खड़ा था।

भुल्ले खान ने सिर उठाया तो उसकी आंखों में पीड़ा की वजह से पानी चमक रहा था।

तभी वसीम राणा अपनी पत्नी की तरफ बढ़ता कह उठा।

"तुम चलो बेगम। मैं तुम्हें सब बताता हूं। इसने मेरा पचास लाख रुपया चुरा लिया है, उसे ही पूछ रहे हैं कि कहां रखा है। मामूली बात है सब ठीक हो जाएगा।" राणा ने अपनी पत्नी की बांह पकड़ी और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

"इसके हाथ-पांव बांधने के लिए कुछ लेते आना।" पीछे से जगमोहन ने कहा।

वो दोनों बाहर निकल गए। दरवाजा बंद हो गया।

"या अल्लाह। तुम लोगों ने अब मुझे पचास लाख का चोर भी बना दिया। कहां फंस गया मैं---।"

"अगर तुम सब कुछ सच-सच बता दोगे तो वादा करता हूं कि तुम्हें छोड़ दूंगा।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा--- "बताओ कि तुम मिलिट्री के एजेंट हो और इन सब कामों में क्यों लगे हो?"

"सच तो बता रहा हूं कि मैं कोई एजेंट-वजेंट नहीं। ये कार्ड नकली है। चाहो तो मिलिट्री इंटेलिजेंस से पता करवा लो। ये तो मैंने दूसरों पर रौब मारने के लिए बना रखा था और तुम...।"

तभी जगमोहन का घूंसा भुल्ले खान के चेहरे पर पड़ा तो वो चीखकर बैड पर लुढ़क गया।

भुल्ले खान के हाथ-पांव बांधकर उससे सच उगलवाने की चेष्टा की जाने लगी। जगमोहन और वसीम राणा, दोनों ही गुस्से में थे और तबीयत से भुल्ले को टॉर्चर कर रहे थे। भुल्ले रोता-चीखता इस बात की रट लगाए हुए था कि वो भुल्ले खान ही है, मिलिट्री इंटेलिजेंस वाला कार्ड तो उसने रौब गांठने और आड़े वक्त पर खुद को बचाने के लिए बना रखा है, क्योंकि वो लोगों को सीमा पार कराने का धंधा करता है।

परंतु राणा और जगमोहन इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे।

भुल्ले खान का बुरा हाल होता जा रहा था।

रात बारह बजे तक भुल्ले को यातना देने का सिलसिला चला। भुल्ले का चेहरा सूज गया था मार खा-खा के। होंठ फट गए थे। भीतर से गाल भी फट चुका था। खून भरा थूक उसने कई बाहर निकाला था, लेकिन उसका यही कहना रहा कि वो मिलिट्री का जासूस नहीं है। अंत में वो बेहोश हो गया।

जगमोहन और वसीम राणा भी थक चुके थे।

भुल्ले खान के हाथ-पांव बंधे हुए थे।

"बहुत पक्का है।" वसीम राणा कुर्सी पर बैठता कह उठा--- "मानने को तैयार नहीं कि...।"

"मैं इसका मुंह खुलवा कर ही रहूंगा।" जगमोहन के दांत भिंचे हुए थे।

"हमें दूसरी तरफ भी सोचना चाहिए।" वसीम राणा गम्भीर स्वर में बोला।

"क्या?"

"ये सच कह रहा हो। आई कार्ड इसलिए बनवाया हो कि आड़े वक्त में बच सके। ये नकली हो।"

जगमोहन ने कुर्सी खींची और बैठता कह उठा।

"लेकिन ये बात साबित कैसे होगी?"

"मेरा तो ख्याल है कि जिस पर शक हो जाए, उसे दूर कर देना चाहिए।" राणा ने गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देखा--- "अब हम इससे कोई काम नहीं ले सकते। क्योंकि शक हमारे भीतर आ गया है। काम खराब हुआ तो मन में यही आएगा कि कहीं ये वास्तव में मिलिट्री का एजेंट तो नहीं।"

जगमोहन के चेहरे पर सख्ती ठहरी हुई थी।

"तुम्हारा मतलब कि इसे छोड़ दें।" जगमोहन बोला।

वसीम राणा खामोश रहा।

"अगर सुरक्षित रहना है तो भुल्ले को खत्म कर देना ठीक रहेगा। अगर ये वास्तव में मिलिट्री का एजेंट है देवराज चौहान को कभी आजाद नहीं होने देगा और मुझे भी फंसा देगा। संभव है तुम्हें भी ना छोड़े। इसे आजाद करने का रिस्क हम नहीं ले सकते। ये हमें मौत के मुंह में धकेल सकता है।"

वसीम राणा गंभीर भाव से जगमोहन को देखता रहा।

"क्या कहते हो?" जगमोहन ने पुनः कहा।

"इस बारे में मैं ठीक से सोच नहीं पा रहा।" वसीम राणा ने धीमे स्वर में कहा--- "अगर हम इसे मार देते हैं और बाद में पता चलता है कि ये मिलिट्री का एजेंट नहीं था तो बहुत तकलीफ होगी तब।"

"क्या चाहते हो?"

वसीम राणा ने कुछ दूर बेहोश पड़े भुल्ले खान पर नजर मारी।

"इसे शूट करने के अलावा हमारे पास और भी रास्ते हैं। जैसे कि हम इसे कैद में रख सकते हैं जब तक हमारा काम ना हो जाए। इसे हम जाने दे सकते हैं या अपने साथ काम पर रखें। कुछ भी सोच लो।"

"तुम क्या कहते हो?" वसीम राणा ने पूछा।

"खत्म कर देना ही बेहतर होगा।" जगमोहन होंठ भींचकर बोला।

वसीम राणा ने जेब से वही वाला आई कार्ड निकाला और उसे देखने लगा।

चंद पल खामोशी में बीत गए।

"लगता तो असली ही है।" वसीम राणा बड़बड़ाया।

जगमोहन, राणा को देखता रहा।

"अभी हम और कोशिश करेंगे कि ये मान जाए कि ये मिलिट्री का जासूस है।" राणा बोला।

"ठीक है।" जगमोहन ने सहमति दे दी फिर बोला--- "तुमने देवराज चौहान के बारे में क्या पता किया?"

"देवराज चौहान को हिन्दुस्तान का जासूस माना जा रहा है जो हिन्दुस्तानी ऑफिसर को छुड़ाने आया था। उसे, उस कैदी के बगल वाले कमरे में रखा गया है और सख्ती से पूछताछ चल रही है।"

"किस तरह की सख्ती?" जगमोहन के दांत भिंच गए।

"मिलिट्री वालों की सख्ती का मतलब तो तुम समझ सकते हो।" वसीम राणा ने गंभीर स्वर में कहा।

"मतलब कि यातना भी दी जा रही है।"

वसीम राणा ने सहमति से सिर हिला दिया।

"कैप्टन अशफाक की ड्यूटी है देवराज चौहान का मुंह खुलवाने की।"

"देवराज चौहान उसे क्या कहता है?"

"मालूम नहीं।" वसीम राणा ने पहलू बदलते हुए कहा--- "मिलिट्री इसे गंभीर मामला मान रही है कि हिन्दुस्तानी जासूस मिलिट्री हैडक्वार्टर में इस तरह घुस आए। उन लोगों का ख्याल है कि देवराज चौहान ये काम अकेला नहीं कर सकता। उसके स्थानीय साथी भी जरूर होंगे। सब पूछताछ चल रही है।"

जगमोहन के दांत भिंच गए।

"उस दिन देवराज चौहान के इशारे पर, दस लोगों ने मिलिट्री हैडक्वार्टर पर जो हमला किया था, उसकी वजह से चार मिलिट्री वाले मारे गए हैं। तीन को भीतर देवराज चौहान ने मारा। मिलिट्री वाले इसे जबर्दस्त हमला मान रहे हैं और सात जवानों को खोकर वो गुस्से में हैं। बाहरी दस लोगों को तो मिलिट्री ने मार गिराया था, सिर्फ देवराज चौहान ही हाथ लगा। वो हर हाल में देवराज चौहान का मुंह खुलवा लेना चाहते हैं।"

"और देवराज चौहान मुंह खोलेगा नहीं।"

वसीम राणा चिंतित दिखा।

"राणा, मैंने जल्दी से जल्दी देवराज चौहान को वहां से निकालना है।" जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा।

"मैं तुम्हारे साथ हूं।"

"तुम मिलिट्री हैडक्वार्टर की इमारत के बारे में जानते हो। तुम ही कहो कि काम कैसे होगा?"

"काम तो तुम ही तय करोगे कि कैसे होगा। मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा।"

"मैं मिलिट्री हैडक्वार्टर को भीतर से नहीं जानता तो अपनी योजना कैसे तैयार करूंगा?"

वसीम राणा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

तभी दरवाजा खुला और राणा की पत्नी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"खाना खा लीजिए आधी रात हो रही है।"

"तुम खाना लगाओ। हम आते हैं।" वसीम राणा ने कहा।

वो बेहोश पड़े भुल्ले खान को देखकर कह उठी।

"इसने बताया कि पचास लाख रुपया कहां रखा है?"

"अभी नहीं बताया। पर बता देगा।" राणा ने मुस्कुराकर अपनी पत्नी को देखा।

वो बाहर निकल गई।

वसीम राणा ने जगमोहन से कहा।

"मिलिट्री हैडक्वार्टर में तो तुम्हें मैं पहुंचा सकता हूं। सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक तुम वहां रह सकते हो।"

"10 से 5? वो कैसे?" उनके माथे पर बल पड़े।

"मैं मिलिट्री की वर्दियां बनाने का ठेका लेता हूं। फैक्ट्रियों 24 घण्टे काम होता है। तीन सौ लोग काम करते हैं। ऐसे में कभी अर्जेंट काम निकल आता है तो किसी के नाप की वर्दियां शाम तक चाहिए। लगभग रोज ही ऐसा अर्जेंट काम मिलिट्री हैडक्वार्टर में निकलता है। तो इस स्थिति के लिए नाप लेने वाला मेरा एक मास्टर मिलिट्री हैडक्वार्टर रहता है। सुबह 10 से लेकर पांच बजे तक। ग्राउंड फ्लोर पर उसे स्टोर जैसा छोटा-सा कमरा दे रखा है जहां सिर्फ एक टेबल और एक कुर्सी ही रखी जा सकती है। अर्जेंट ऑर्डर के लिए जिस ऑफिसर्स का फोन आता है, वो उसके जाकर, उसका नाप लेता है और फोन पर फैक्ट्री के मास्टर को नाप बता देता है। इस तरह चार घंटों में वर्दी सिलकर पहुंच जाती है। नहीं तो अगले दिन वर्दी पहुंच जाती है। तुम उस मास्टर के रूप में मिलिट्री हैडक्वार्टर में आसानी से घूम सकते हो। वहां के नियम के अनुसार नाप लेने वाले मास्टर को मिलिट्री के कपड़े की ही सादी कमीज-पैंट पहननी पड़ती है।"

"ये तो अच्छा रास्ता है मिलिट्री हैडक्वार्टर के भीतर पहुंचने का।" जगमोहन की आंखों में चमक आ गयी--- "परंतु मैं नाप लेना नहीं जानता। मुझे ये काम जरा भी नहीं आता।"

"उसकी तुम फिक्र मत करो। कल मैं तुम्हें अपनी फैक्ट्री के किसी मास्टर के पास छोड़ दूंगा, ये काम उससे सीख लेना दो दिन में तुम नाप लेने लगोगे। अपनी दाढ़ी बढ़ा लो। शेव मत करना और दाढ़ी को इस तरह की शेप दे देना, जैसे कि पाकिस्तानी लोग शेप देते हैं। तुम्हें यहां के लोगों की तरह दिखना है और बातचीत का लहजा भी थोड़ा बदलना होगा। जिस अंदाज में यहां के लोग बोलते हैं, वैसे ही बोलना शुरू कर दो।" वसीम राणा गंभीर था।

जगमोहन ने सिर हिलाया।

"ये सब करके तुम खुद को खतरे में डालने जा रहे हो। वहां फंस भी सकते हो। तुम फंसे तो मैं भी नहीं बचूंगा। क्योंकि तुम मेरे आदमी बनकर वहां जाओगे।" वसीम राणा ने कहा।

"मैं नहीं चाहता कि तुम पर कोई आंच आए।"

"उसकी फिक्र मत करो। देवराज चौहान और तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।"

"शुक्रिया कि तुम मुझे इतना ज्यादा सहारा दे रहे हो।" जगमोहन बोला।

"शुक्रिया मत कहो। मैं आज जो कुछ भी हूं तुम लोगों की वजह से हूं। मैं हिन्दुस्तान गया। तुम लोगों ने मुझे डकैती में साथ लिया। मुझे मेरे हिस्से का पैसा दिया और वापस इस्लामाबाद आकर, उन पैसे से बड़ा बिजनेसमैन बन गया। मेरी सारी शानो-शौकत तुम लोगों की दी हुई है। अगर मुझे डकैती में शामिल ना करते तो---।"

तभी दरवाजा खोलकर नौकर ने भीतर प्रवेश किया।

"मालिक, खाना लग गया।"

"आओ। खाना खा लें।" वसीम राणा ने जगमोहन से कहा।

वे खाना खाकर वापस कमरे में लौटे। राणा के कहने पर नौकर एक थाल में भुल्ले के लिए खाना छोड़ गया था। भुल्ले खान को होश आ गया था, लेकिन वो टूटे-फूटे पस्त हाल में फर्श पर वैसे ही पड़ा था। उसका सूजा चेहरा अजीब-सा लग रहा था। वो नीचे लेटा टकटकी बांधे दोनों को ही देख रहा था।

"होश आ गया तुम्हें।" वसीम राणा ने कड़वे स्वर में कहा--- "तुम्हारे हाथ खोल देते हैं, खाना खा लो। उसके बाद फिर से, तेरे से सच पूछा जाएगा कि देवराज चौहान को तूने कैसे फंसाया?"

"मेरी बात का यकीन क्यों नहीं करते।" भुल्ले खान ठीक से बोल नहीं पा रहा था, क्योंकि उसका गाल भीतर से बुरी तरह फटा पड़ा था--- "मैं मिलिट्री का जासूस नहीं हूं।"

"मैं पता कर चुका हूं।" राणा ने तीखे स्वर में कहा--- "वो आई कार्ड असली है।"

"कार्ड असली ही लगेगा।" भुल्ले पीड़ा भरे स्वर में बोला--- "क्योंकि आई कार्ड वहीं पर बनाया गया है, जहां असली कार्ड बनते हैं। मैंने तो देवराज चौहान की सहायता की। क्या नहीं किया उसके लिए, तुम्हारे भी काम करता रहा और तुम मुझे मिलिट्री का जासूस बता रहे हो। वो आई कार्ड तो सीमा पर मिलिट्री वालों को धोखा देने के लिए बनाया था। तुम ही सोचो कि अगर मैं मिलिट्री का जासूस होता और तुम लोगों में घुसा होता तो आई कार्ड जेब में क्यों रखता?"

"मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता, क्योंकि आई-कार्ड असली है।" वसीम राणा ने कठोर स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारे हाथ खोल रहा हूं। खाना खा लो। उसके बाद फिर तुमसे उसी तरह बात होगी, जैसे कि पहले हो रही थी।"

"इससे तो अच्छा है मुझे गोली मार दो।" भुल्ले खान कराह उठा।

"वो वक्त भी आ जाएगा अगर तुमने सच नहीं बोला तो...।"

जगमोहन ने आगे बढ़कर भुल्ले खान के पीछे बंधे हाथ खोले। उसकी कमीज चिथड़े होकर झूल रही थी। छाती पर भी पिटाई के सुर्ख से निशान नजर आ रहे थे।

फिर जगमोहन ने खाने का थाल उसके पास रख दिया।

भुल्ले खान कराहता हुआ उठ बैठा और बोला।

"मैं खाना नहीं खा सकता। भीतर से मेरा मुंह कटा-फटा पड़ा है। मुझे जाने दो। मेरी ही गलती थी जो मैंने देवराज चौहान की और अब तुम लोगों की सहायता करने की सोची। ऐसी बुरी हालत तो मेरी किसी ने भी नहीं की।" थके से भुल्ले ने कहा।

"इसके हाथ बांधो राणा।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा--- "इसके मुंह से सच निकलवाना है।"

वसीम राणा ने उसके हाथ बांधने की भी जरूरत नहीं समझी और उस पर टूट पड़ा।

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