“अरे विकास, ये क्या हो रहा है ?"
- "कुछ नहीं डैडी, जरा मम्मी और झकझकिए अंकल को सजा दे रहा हूं।'' कमरे में विकास की आवाज गूंजी।
विजय और रैना एकदम घूमे। देखा तो हैरान रह गए! विजय की पसलियों से रिवाल्वर सटाए विकास खड़ा था।
विकास !
खूबसूरती का एक नमूना ! देखो तो ऐसा मन करे कि बस देखते ही जाओ-गोरा-चिट्टा रंग, नक्श मानो खुदा ने स्वयं बनाए हो । बड़ी और काली आंखे, मस्तक चौड़ा । घुंघराले-काले बाल । गठा हुआ सुदृढ़ शरीर । दस वर्ष के आम बालक की अपेक्षा कद लंबा । दस वर्ष का विकास ऐसा लगता था, मानो चौदह-पंद्रह साल का रहा हो !
उसके गुलाबी होंठो पर मुस्कान थी। हाथ में रिवाल्वर था। सहसा वह उछला और बोला ।
"हैलो अंकल, कैसा रहा मेरा खेल ?"
विजय हैरान रह गया विकास की हरकत देखकर ! वह जब भी आता था उसे विकास की शैतानी का शिकार होना पड़ता था । रघुनाथ के होंठों पर बड़ी ही चंचल मुस्कराहट थी ।
रैना हैरान भी थी और विजय की स्थिति देखकर प्रसन्न भी।
"क्यों बे भतीजे मियां-बड़े बदमाश होते जा रहे हो ?" विजय घूरकर बोला ।
"अंकल, आज तो फूंक खिसका दी-बड़े जासूस बने फिरा करते हो ।"
"लेकिन भतीजे मियां, तुमने ये किया कैसे?
"अरे जाओ अंकल, मैं बड़ा होकर तुमसे भी बड़ा जासूस बनूंगा, तुम तो पापा के टेपरिकॉर्डर से ही डर गए । "
"अरे तुमने टेपरिकॉर्डर फिर छेड़ा था?'' इस बार रघुनाथ बोला ।
"अबे तुलाराशि ! " विजय माथे पर हाथ रखकर बोला-''इस हरामी के पिल्ले ने न सिर्फ टेपरिकॉर्डर ही छेड़ा है, बल्कि हम देवर-भाभी की घिग्घी भी बंधवा दी ।'
''अंकल ! '' विकास बड़े अंदाज से रिवाल्वर हिलाकर बोला- "पापा को गाली मत देना, वरना मैं तुम्हें मुर्गा बना दूंगा।"
''अबे मेरे बाप, मैं तो पहले ही मुर्गा बना हुआ हूं ।" विजय अपना सिर पकड़कर पास ही चेयर पर बैठ गया ।
रघुनाथ और रैना ने एक-दूसरे की ओर देखा और होंठों-ही-होंठों में मुस्कराए ।
"अंकल ! मैं तुम्हारा बाप कैसे बन सकता हूं? वह तो इतने बड़े हैं ।" विकास के चेहरे पर ऐसी मासूमियत थी कि रघुनाथ और रैना बिना कहकहा लगाए न रह सके ।
और विजय माथा पकड़े कह रहा था ।
" "प्यारे तुलाराशि, तुमने ये मेरा बाप कहां से पैदा कर दिया?
"तुम्हारी अक्ल तो यही ठिकाने लगाएगा ।'' रघुनाथ मुस्कराता हुआ बोला ।
"प्यारे, लगता है अब उल्टे बांस बरेली को लद जाएंगे।"
" अंकल... अंकल !" विकास विजय की गोद में चढ़ता हुआ बोला- "क्या आप बरेली जा रहे हैं अंकल, हम भी चलेंगे।"
-"अबे मेरे बाप, मैं कहीं नहीं जा रहा ।" परेशान होकर विजय बोला ।
"नहीं अंकल, आप झूठ बोल रहे हैं, अभी-अभी तो आप कह रहे थे?
"अबे ओ तुलाराशि ! " विजय रघुनाथ से संबोधित होकर बोला- "रोक ले अपनी औलाद को ।"
"तुम्हीं ने इसे शैतान बनाया है, अब तुम्हीं भुगतो । हम तुम्हारे बीच में नहीं बोल सकते ।"
- 'गुड डैडी " विकास खुश होकर बोला- ''आप बहुत समझदार हैं डैडी-हमारी टीचर कह रही थी कि दो के बीच में बोलने वाला तीसरा व्यक्ति मूर्ख होता है ।"
- ' अरे भैया- ओ आदरणीय भतीजे जी, अब आप चुप होने का क्या लेंगे?"
"अंकल, मैं एक शर्त पर चुप हो सकता हूं।"
"अबे बोल.. . जल्दी बोल और फिर अपनी बोलती पर ढक्कन लगा ले ।"
"अंकल, बात ये है कि आज आप यहां से बिना चाय पिए खिसक जाइए ।"
'अबे ओ.... ।'
विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि रैना बोली ।
-" विकास ! ये क्या कह रहे हो, अपने अंकल को ऐसा कहते हो ?"
- "ये सब इसे इस साले तुलाराशि ने सिखाया होगा । "
-"अच्छा लाओ विकास, मेरा रिवाल्वर मुझे दो और आगे से कभी मत छूना ।" रघुनाथ ने बात बदलने का प्रयास किया और विकास से रिवाल्वर ले लिया ।
तभी रैना बोल उठी-'आओ विकास, तुम मेरे साथ आओ अंकल को परेशान मत करो ।" और विकास का हाथ पकड़कर उसे रसोईघर में ले गई ।
-" और सुनाओ प्यारे तुलाराशि, क्या हाल हैं ?'' रैना के जाने के बाद विजय बोला ।
- " अब तो तुम्हारा हाल खस्ता है-विकास तुमसे एक कदम आगे है ।"
- " मानते हैं साले तुलाराशि कि तुमने 'मॉडल' नंबर एक का हरामी पैदा किया है । खैर, छोड़ो इस बात को और एक नई-नवेली झकझकी सुनो ।"
रघुनाथ मुस्कराया और बोला ।
-"अपने भतीजे को ही सुनाओ, वही चाव से सुनता है । " कहता हुआ रघुनाथ तेजी से बाथरूम में घुस गया ।
विजय भी मुस्कराया।
अब इस घर में उसका बहुत अच्छा मनोरंजन होता था । विकास की बातों से वह पूर्ण आनंद उठाता था । इस घर में वह आता और विकास को यहां नहीं पाता तो घर को सूना-सूना-सा पाता । उसने निश्चय कर लिया था कि विकास को वह एक योग्य जासूस बनाएगा । भारत मां का ऐसा लाल, जिस पर भारत मां फख करेगी, जो भारत के विरोधियों के दांतों-तले पसीना ला दे ।
किंतु तभी उसे ध्यान आया ! अलफांसे के पत्र का ध्यान ! अलफांसे का इरादा खतरनाक था... विजय को डर था - कहीं अलफांसे विकास को भयानक अपराधी न बना दे। धीरे-धीरे आंखें लाल हो गई ! नहीं... नहीं उसके जीते-जी कभी ऐसा नहीं हो सकता । अगर अलफांसे ने अधिक प्रयास किया तो वह उसे मौत के घाट उतार देगा । तभी विजय ने अपने सिर को झटका दिया, समस्त विचारों को निकाल फेंका और जोर से चीखा । -' ''विकास !"
- "यस अंकल ! " रसोईघर से विकास की आवाज आई।
"अरे भई, यहां आओ ।"
- "आया झकझकिए अंकल !" विकास ने कहा और फिर दौड़ता हुआ विजय के करीब आ गया ।
"अच्छा भतीजे मियां, अब सब बातों को तो मारो गोली और एक प्यारी-प्यारी-सी झकझकी सुनो । "
"बोलो ! "
तभी रघुनाथ भी बाथरूम से निकलकर वहां आ गया ।
- "अंकल, आज हम आपको एक चीज सुनाएंगे।" झकझकी?
"अरे नहीं अंकल, झकझकी तो बहुत पुरानी चीज हो गई है और फिर झकझकी में तो मजा नहीं आता.. .हम तुम्हें एक नई चीज सुनाएंगे।"
- "क्या?"
-" दिलजली ! "
- "क्या? दिलजली ये क्या होती है ? " इस बार तो विजय वास्तव में ही उलझकर रह गया ।
"जैसी आपकी झकझकी, वैसी मेरी दिलजली ।"
"अबे ओ भाई !" विजय ने अपने दोनों हाथों से माथा पीट लिया और फिर अपने सिर को हाथों में लिए हुए ही बोला । -
"तू मुझे कहीं जीने भी देगा या नहीं? "
"अंकल, क्या आपको खुशी नहीं हुई? " मासूम सा चेहरा बनाकर बोला विकास ।
- "हुई मेरे बाप, बहुत खुशी हुई-तुमने दिलजली का नाम लिया... और यहां दिल में वास्तव में आग धधकने लगी ।
सुनाओ मियां, तुम अपनी दिलजली सुनाओ और हमारा दिल जलाओ ।"
" हां तो अंकल, बिना कर्ज के पहली दिलजली पेश है ।"
विकास ने ठीक उसी प्रकार कहा, जैसे अक्सर झकझकी सुनाते हुए विजय कहता था ।
विजय और रघुनाथ विकास की हरकतों पर खुश भी थे और आश्चर्यचक्ति भी, जबकि विकास इन दोनों के मनोभावों से अनभिज्ञ निम्न दिलजली सुना रहा था ।
-"अक्कड़-बक्कड़ बंबे बौ, गिने-गिनाए पूरे सौ, आओ अंकल हम तुम दोनों, मिलकर खेलें खो ।
नहीं खेलते अगर तुम अंकल, तो अभी हो जाओ गो, गेहूं नहीं है हमारे घर में, तो खाना पड़ेगा जौ ।
मोटर आई पीछे से एक, करती पौं... पौं... पौं,
कुत्ता एक सड़क पर, बोला भौं... भौं... भौं।''
- "पढ़ गए पूत कुम्हार के, सोलह दूनी आठ ! " विजय उसी प्रकार माथा पकड़े बैठा हुआ बोला ।
"क्यों अंकल, पसंद नहीं आई क्या? " विकास शरारत से मुस्कराकर बोला ।
"भैया तुलाराशि ?" विजय उसी पोज में बोला ।
रघुनाथ अपनी हंसी रोकने का प्रयास करता हुआ बोला ।
"प्यारेलाल, ये तुमने कैसा मॉडल तैयार किया है? ऐसा लगता है, जैसे ये हमें जीने नहीं देगा ।"
"क्यों, क्या हुआ भैया? क्या इस शरारती ने फिर कोई शरारत की ?'' रसोई में से रैना आती हुई बोली-उसके हाथ में चाय की ट्रे थी ।
- "भाभी, तुम लोग तो झकझकियों से ही परेशान थीं, अब तुम्हारे घर में जिस लाड़ले ने जन्म लिया है - वह दिलजली सुनाकर दिल जलाता है। "
''ये दिलजली क्या होती है भैया?"
"अपने लाड़ले से ही पूछो इसके निर्माणकर्ता ये ही हैं । "
"क्यों रे विकास, क्या होती है ? "
- "मम्मी, जैसे अंकल को झकझकी का मतलब नहीं पता-वैसे ही मुझे दिलजली का मतलब नहीं पता ।" विकास मासूम-सा चेहरा बनाकर बोला ।
- "अबे झकझकी एक बहुत बड़ी साहित्यिक चीज होती है।" विजय ने मुंह ऊपर उठाकर कहा ।
- " दिलजली झकझकी की जुड़वां बड़ी बहन है।" - जुड़वां और वह भी बड़ी !"
''अच्छा.. .अच्छा -अब बहस छोड़ो ।" -रैना बोली. "चाय ठंडी हो रही है... चाय पियो । "
न जाने क्यों विकास के अधरों पर एक शरारती मुस्कान उभरी ।
तब, जबकि चारों बैठ गए ।
विजय ने अपना कप उठाया और विकास की ओर बढ़ाकर बोला ।
- "लो बेटे, पियो ।"
"नहीं अंकल, पहले बड़े पीते हैं ।'
बड़े छोटों को पिलाने के बाद पीते हैं, लो पियो ।" विजय ने कप विकास की ओर बढ़ाया, विकास ने एक हल्का- सा घूंट भरा और ताली बजा बजाकर उछलता हुआ बोला।
- " होए... होए - अब अंकल हमारी जूठी चाय पिएंगे।"
विजय मुस्कराया और प्यार के साथ बोला ।
"कोई बात नहीं बेटे । " कहने के साथ उसने एक जोरदार घूंट लिया और फिर अचानक चौंक पड़ा- "कप उसके हाथ से छूट गया-गरम चाय उसकी पैंट पर गिरी और साथ ही उसे धसका भी लग गया था । वह खांसे जा रहा था, मुंह लाल हो गया ।
"क्या हुआ भैया?" रैना चौंककर बोली ।
" आज भाभी का मजाक बड़ा महंगा पड़ा ।"
"मजाक! कैसा मजाक ? " रैना उलझी ।
इससे पूर्व कि विजय कुछ बोले, विकास बोला ।
- "चाय में मिर्च तो मैंने मिलाई थी अंकल "
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