देवराज चौहान होटल पहुंचा तो प्रताप कोली और दिनेश चुरू को अपना इंतजार करते पाया ।
"तुम गन लेकर कहां चले गये थे ?" दिनेश चुरू ने पूछा ।
"गन कार की डिग्गी में पड़ी है।" देवराज चौहान बैठते हुए बोला।
"कुछ करने जा रहे हो क्या ?"
"कल से काम होगा।"
"कैसे ?"
देवराज चौहान ने दोनों को देखा ।
दोनों उसे देख रहे थे ।
"अगर वो बंगले से निकलता तो ठीक है। नहीं तो बंगले में ही उसे निशाने पर लिए जाने की कोशिश की जायेगी ।"
"बंगले में ही उसे निशाने पर ?"
"इसके लिए तो किसी ऐसी जगह की जरूरत होगी, जहां से निशाना बांधा जा सके।" दिनेश चुरू ने कहा।
"ऐसी जगह देखी कोई ?"
"हां ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"कहां ?" दिनेश चुरु ने पूछा।
"मेरे ख्याल में, उसके बंदे के सामने डिरीट्रेक्ट सेन्टर में कहीं होगी, ऐसी जगह-क्यों ?"
"ऐसा ही समझो। कल देख लेना वो जगह ।"
दोनों ने एक-दूसरे को देखा ।
"अब तुममें से कोई ये खबर रतनचंद को दे देगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"रतनचंद को। हम क्यों देंगे?" प्रताप कोली के माथे पर बल पड़े।
"पहले भी तो रतनचंद को हमारी हरकतों की खबर मिलती रही हैं।"
"तो क्या ये काम हमने किया है ?" दिनेश चुरु बोला।
"किया तो तुममें से ही किसी ने हैं ।"
"प्रताप, देवराज चौहान कहता है तो ठीक ही है । साली कहीं से तो खबर निकल रही है ।"
"लेकिन मैं ये काम नहीं करता ।"
"मैं भी नहीं ।"
"तो ये खबर हरीश और अवतार की तरफ से निकल रही होगी।"
दोनों सोच भरी निगाहों से एक-दूसरे को देखते रहे।
देवराज चौहान की निगाह, दोनों पर थी ।
"नहीं ।" प्रताप कोली ने सिर हिलाया- "वो दोनों ऐसा नहीं कर सकते ।"
"फिर तो शोरी साहब ही बचते हैं ।"
"पागल हो गया क्या। भला शोरी साहब ऐसा क्यों करेंगे ?"
प्रताप कोली ने देवराज चौहान को देखा और कह उठा-
"देवराज चौहान, मेरे ख्याल में खबरें हमारी नहीं, तुम्हारी तरफ से लीक हो रही हैं।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"जगमोहन और सोहनलाल कहां हैं ?"
"जब तक ये मालूम नहीं होता की खबरें कहां से लीक हो रही है, तब तक ज्यादा सवाल ना पूछो।" देवराज चौहान ने कहा।
■■■
अंधेरा होने को था ।
धर्मा ने खिड़की खोली और बाहर देखने लगा।
सामने सड़क पर से ट्रैफिक जा रहा था । वाहनों की लाइटें ऑन होनी शुरू हो गई थी।
धर्मा की नजरें हर तरफ फिरने लगी। कुछ ही देर बाद उसकी निगाह सड़क पार, डिरिस्ट्रेक्ट सेण्टर की इमारतों पर जा टिकी। काफी देर तक उन्हीं इमारतों को देखता रहा, फिर अंधेरा हो गया। ऑफिसों में रोशनी ऑन थी। चंद ऑफिसों में अवश्य अंधेरा था। तभी कदमों की आहटें गूंजी और राघव पास में आ खड़ा हुआ ।
"क्या देख रहे हो ?"
"सोच रहा हूं कि अगर हमने रतनचंद का शिकार करना होता तो रतनचंद बाहर ना निकल रहा हो तो हम कौन सी इमारत चुनकर निशाने के लिए घात लगाते ।" धर्मा बोला ।
राघव कुछ पल बाहर देखता रहा, फिर बोला-
"ठीक सामने वाली ।"
"मैं भी यही सोच रहा हूं कि सामने वाली इमारत की पहली और दूसरी मंजिल ही चुनते।"
"पहली-दूसरी क्यों ?"
"ज्यादा ऊंचाई पर जाने में ये खिड़की नजर नहीं आती और ठीक से निशाना लगा पाना आसान नहीं होता । इसलिए पहली और दूसरी मंजिल ही ठीक रहती है। तेरा क्या ख्याल है, जो रतनचंद को निशाना बनाना चाहता है। वो वहां डेरा जमायेगा ?"
"इसके सिवाय उसके पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं होगा । क्योंकि हमने रतनचंद को बाहर नहीं निकलने देना है।"
"यानि कि हमारा शिकार हमारे करीब आ जायेगा।" धर्मा ने राघव को देखा ।
"क्या कहना चाहते हो तुम ?"
"अगर हम तेजी दिखायें तो उस आदमी को जिंदा पकड़ सकते हैं ।"
"परन्तु ये काम आसान नहीं। उस इमारत पर हमें कड़ी नजर रखनी होगी, जबकि हमें यहां भी सब संभालना है ।"
"अगर वो जिन्दा हमारे हाथ लग जाये तो, इससे उसके बारे में भी जान सकते हैं कि जिसने उसे सुपारी दी है।"
"देखते हैं। कल इस बारे में कुछ करेंगे। मेरे ख्याल में आज का दिन उसने रतनचंद का इंतजार किया होगा कि वो बाहर निकले। रतनचंद को बाहर न निकलते देख उसने तय कर लिया होगा कि कल इस इमारत में कहीं ठिकाना बनायेगा। इसके लिए वो इमारत में इस वक्त जगह तलाश कर रहा होगा या कल करेगा ।"
"ये भी हो सकता है कि जगह उसने तलाश कर ली हो ।"
"हां, ये भी हो सकता है। तुम्हारे लिये ये ही खिड़की ठीक रहेगी। कल सुबह जगजीत रतनचंद का मास्क बनाकर दे देगा। तुम रतनचंद की शक्ल में कल इस खिड़की पर आओगे ।"
"वो आसानी से मेरा निशाना ले लेगा ।"
"यही तो मैं चाहता हूं, परन्तु वो निशाना नहीं लेगा, अगर समझदार हुआ। मैं उसे परेशान कर दूंगा ।"
"कैसे ?"
"कल बताऊंगा।" राघव के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान नाच उठी।
"अभी क्यों नहीं ?"
कुछ कहने के अपेक्षा मुस्कुराता हुआ राघव उस इमारत को देखने लगा।
■■■
उस वक्त सोहनलाल जाग रहा था और बंगले पर नजर रख रहा था। जगमोहन कुछ दूर खड़ी कार को पीछे वाली सीट पर नींद में डूबा हुआ था। दो घंटे पहले ही वो सोया था ।
सुबह के नौ बज रहे थे ।
तभी सोहनलाल ने बंगले का गेट खुलता देखा ।
वो समझ गया कि कोई बाहर आ रहा है। सोहनलाल तेजी से कार के पास जा पहुंचा। नजरें बंगले पर थीं। जगमोहन को हिलाते कह उठा-
"उठ जा। कोई बंगले से बाहर जा रहा है।"
जगमोहन फौरन उठ बैठा ।
कल शाम वाली कार ही बंगले से बाहर निकली और आगे बढ़ गई।
"मैं उस कार के पीछे जा रहा हूं ।" सोहनलाल ड्राइविंग सीट पर बैठता कह उठा।
जगमोहन कार से बाहर आ गया ।
तब तक सोहनलाल कार स्टार्ट कर चुका था और फिर कार आगे बढ़ा दी।
जगमोहन ने उसकी कार को जाते देखा, फिर बंगले पर नजर मारी, जिसका फाटक बंद हो चुका था। उसके बाद आंखें मलता हुआ मुनासिब जगह पर जा खड़ा हुआ। कल शाम से ही वो और सोहनलाल दो-दो घंटे की ड्यूटी दे रहे थे। एक, दो घंटे बंगले पर नजर रखता तो दूसरा नींद ले लेता ।
अभी दस मिनट ही हुए थे कि एक कार पास आकर रुकी। देवराज चौहान, प्रताप कोली और दिनेश था भीतर ।
देवराज चौहान कार से निकलकर जगमोहन के पास पहुंचा ।
"सोहनलाल कहां है ?"
"कोई बंगले से निकला है। उसके पीछे गया है।" जगमोहन ने बताया ।
"कब की बात है ?"
"दस-पन्द्रह मिनट हुए हैं ।"
"कल शाम से और कोई अंदर-बाहर नहीं हुआ?"
"नहीं।"
"कोई नई खबर?"
"नहीं।"
"ठीक है, मैं पीछे की इमारत में अपने ठिकाने पर बैठने जा रहा हूं। इस बीच अगर रतनचंद बाहर निकला तो मैं आ जाऊंगा। तुम फोन पर भी मुझे बता सकते हो। सोहनलाल जब आये तो उससे मेरी बात करा देना।"
"करा दूंगा। यहां चाय-पानी कुछ खाने को भिजवा दो।"
"भिजवाता हूं।"
"इन दोनों को तुम अपने साथ रखे हुए हो, कहीं ये ही रतनचंद को सारी खबरें ना दे रहे हो?" अगर ऐसा है, तो तुम खतरे में पड़ सकते हो।"
"इस बात का ध्यान है मुझे ।" देवराज चौहान ने कहा और कार में जा बैठा ।
कार आगे बढ़ाई और पीछे की इमारत की पार्किंग में जा खड़ी की ।
"तुम में से एक डिग्गी में पड़ी गन लेकर मेरे साथ चले, दूसरा जगमोहन के पास जाये और खाने का सामान पहुंचा दे ।'
"तुमने बताया नहीं कि जगमोहन और सोहनलाल रतनचंद के कमरे पर निगाह रखे हैं ।"
"बताने की जरूरत नहीं समझी ।" देवराज चौहान कार से बाहर निकलता कह उठा ।
प्रताप कोली ने दिनेश चुरू से कहा-
"जगमोहन को खाना-पीना पहुंचा। मैं देवराज चौहान के साथ जा रहा हूं । बाद में वहीं आ जाना। पता तेरे को बता दिया है ।"
"हां ।"
■■■
देवराज चौहान और प्रताप कोली दूसरी मंजिल पर स्थित ऑफिस में पहुंचे। देवराज चौहान से चाबी लेकर प्रताप कोली ने ही ऑफिस खोला और दोनों भीतर प्रवेश कर गये ।
"दरवाजा बंद कर दो ।" देवराज चौहान बोला ।
प्रताप कोली ने दरवाजा बंद किया ।
देवराज चौहान ने आगे बढ़कर थोड़ी सी खिड़की खोली और बाहर देखा ।
सामने सड़क पर ट्रैफिक दौड़ता दिखा। नजरों ने जगमोहन को भी ढूंढा जो एक तरफ खड़ा था। फिर निगाह सामने सड़क पर बंगले पर जा टिकी, जो सड़क के दोनों ओर लगे पेड़ों के बीच में से आधा-अधूरा नजर आ रहा था। परन्तु फिर भी बंगले का काफी बड़ा हिस्सा स्पष्ट नजर आ रहा था ।
कुछ देर देवराज चौहान बंगले को देखता रहा, फिर पीछे हटकर, सिगरेट सुलगाई।
प्रताप कोली खिड़की के पास पहुंचा और बाहर देखने लगा ।
"खिड़की पूरी मत खोलना।" देवराज चौहान बोला ।
प्रताप कोली खिड़की छोड़ता कह उठा-
"जगह तुमने बढ़िया ढूंढी है, परन्तु पेड़ों की वजह से बंगला पूरा नहीं दिख रहा।"
"बंगले में काम की जगह दिखनी चाहिये।" देवराज चौहान ने कश लिया ।
"क्या है काम की जगह ?"
"बंगले की इस तरफ पड़ने वाली दो खिड़कियां हमें स्पष्ट नजर आ रही हैं। और एक तो खुली हुई है ।"
प्रताप कोली पुनः खिड़की से बाहर देखने लगा ।
कुछ देर बाद हटता हुआ बोला-
"हां, सच में एक खिड़की खुली हुई है।"
"हमारा शिकार उस खिड़की पर आ सकता है ।"
R.D.X. रतनचंद को खिड़की पर नहीं आने देंगे।" कोली ने इंकार में सिर हिलाया ।
"वक्त का कुछ पता नहीं चलता। समझदार लोग भी गलतियां कर देते हैं।"
प्रताप कोली ने कुछ नहीं कहा ।
"बंगले में आगे का खाली हिस्सा भी नजर आ रहा है। हमें इन्हीं जगहों पर से अपना शिकार ढूंढना है ।"
"हां।"
"क्या पता वो दिखे ही नहीं। ऐसे में तुम कब तक डटे रहोगे ?"
"ये सब्र का खेल है। मुझे एक जगह टिक कर बैठना होगा । रतनचंद भी कब तक सतर्क रहेगा। कुछ ना होते पाकर, बंगले में बैठा वो बोरियत महसूस करेगा। उठेगा, चहलकदमी करेगा और खुले में आने की गलती करेगा। वो खिड़की पर भी दिख सकता है और बंगले में नजर आने वाली खाली जगह पर भी ।"
"ये काम एक दिन में भी होगा और कई दिन भी लग सकते हैं । यानि कि कुछ पता नहीं ।" प्रताप कोली मुस्कुराया ।
"मैंने पहले ही कहा है कि ये सब्र का खेल है। अगर हमारी खबरें रतनचंद तक ना पहुंच रही होती तो काम हो चुका होता ।"
"पता नहीं कौन हरामजादा उसे हमारी बातें बता रहा है ।"
"वो तुम भी हो सकते हो।"
प्रताप कोली ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला, फिर चुप ही रहा।
"गन लेकर आओ। कार की डिग्गी में पड़ी है और आने-जाने के दौरान तुम्हारे पास पूरा मौका होगा कि तुम फोन करके रतनचंद को यहां की सारी खबर दे सको।" कहते हुए देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"हां, मौका तो होगा, लेकिन मैं ये काम नहीं कर रहा ।" कहकर प्रताप कोली बाहर निकल गया ।
देवराज चौहान ने वहां पड़े पुराने फर्नीचर पर नजर दौड़ाई फिर अपनी पसंद की चीजें धकेल कर खिड़की की तरफ ले जाने लगा। इस काम में तब तक लगा रहा, जब तक प्रताप कोली वापस ना आ गया ।
प्रताप कोली के हाथ में छोटा सा एयर बैग था ।
उसने खिड़की पर नजर मारी जो कि मात्र तीन इंच खुली हुई थी। खिड़की के पास एक छोटा सा टेबल और उस पर छोटी सी तिपाई रखी थी और पास ही में कुर्सी ।
देवराज चौहान ने उससे बैग लिया और फोल्डिंग गन के टुकड़ों को निकालने लगा ।
पांच मिनट में ही उसने गन तैयार कर ली। साइलेंसर लगा लिया गया। ऊपर टैलिस्कोप फिट कर दिया। फिर गन को टेबल पर रखी तिपाई पर रखा और टैलीस्कोप में देखता एंगल सैट करने लगा ।
अगले पन्द्रह मिनटों में देवराज चौहान अपनी जगह सैट हो चुका था।
तीन इंच झिरी में गन का मुंह सैट था। टैलिस्कोप पर आंख लगाये बंगले का नजारा कर रहा था ।
टैलिस्कोप के जरिये, बंगला इतना करीब लग रहा था, जैसे कि वो खुद ही कमरे में खड़ा नजरें घुमा रहा हो ।
दो खिड़कियां बंद थी।
एक खुली पड़ी थी। टैलिस्कोप के जरिये, खुली खिड़की के भीतर कमरे की चीजें भी साफ नजर आ रही थीं ।
"ठीक है ?" प्रताप कोली ने पूछा।
"हां। मैं यहीं बैठूंगा। तुम्हारा कोई काम नहीं, जाना चाहो तो जा सकते हो।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं यहीं पर रहूंगा। तुम्हारे पास-।" प्रताप कोली ने कहा ।
तभी देवराज चौहान के फोन की बेल बजी ।
देवराज चौहान ने जेब से फोन निकाला और कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया।
"कहो।" आंख टैलिस्कोप पर ही लगी थी ।
"मैं उसके पीछे गया था, जो कार पर बंगले से निकला था ।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी- "बाहर निकलने वाला वो ही आदमी था जो कल शाम को भी बाहर निकला था। जिसके पीछे गया था। वो आज भी वहीं गया, जहां कल गया था। उस फ्लैट का दरवाजा खुला तो, दरवाजा खोलने वाले ने उसे एक लिफाफा दिया, जिसके भीतर छोटे डिब्बे जैसी कोई चीज लग रही थी। उसे लेकर खड़े पांव ही वापस बंगले में आ पहुंचा ।
"और ?"
"इतना ही। मेरे ख्याल में बंगले में कोई खास ही खिचड़ी पक रही है।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।
"जरूर पक रही होगी। R.D.X. आराम से बैठने वाले नहीं होंगे, अगर वे समझदार हैं तो वे तीनों खुद भी बंगले में बैठे हैं और रतनचंद को भी बंगले से नहीं निकलने दे रहे, तो जाहिर है कि वहां कुछ चल रहा है।" देवराज चौहान ने कहा- "वो तीनों रतनचंद को बचाने के लिए किसी जुगाड़ में होंगे ।"
"मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।"
"तुम और जगमोहन बंगले पर नजर रखो। मैंने पोजीशन ले ली है। अगर रतनचंद मेरी गन के निशाने पर आया, तो नहीं बचेगा। इस मामले को निपटने में कुछ दिन भी लग सकते हैं।"
"क्योंकि वो सतर्क हो चुका है ।"
"हां ।"
"तुम्हारे पास कौन है ?"
"प्रताप कोली ।"
"दिनेश चुरु हमारी सेवा कर रहा है। खाने-पीने को लाकर दे रहा है।"
"उसे कहो कि मेरे पास आने की जरूरत नहीं है। फुर्सत पाकर वो पार्किंग में खड़ी कार अपनी कार में जा बैठे। जब जरूरत होगी, उससे फोन पर बात कर ली जायेगी।" देवराज चौहान ने कहा- "कोई बंगले से निकले तो मुझे जरूर बताना ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा ।
प्रताप कोली एक कुर्सी पर बैठ चुका था।
"जब तुम थक जाओ तो मुझे बता देना ।" प्रताप कोली ने कहा- "तब तुम्हारी जगह मैं ले लूंगा।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा, आंख टैलीस्कोप पर ही जमी रही।
■■■
सुन्दर, हाथ में थमे लिफाफे के साथ, उस कमरे में पहुंचा जहां R.D.X. मौजूद थे ।
सुन्दर ने धर्मा को लिफाफा थमाया।
"ये दिया है जगजीत ने।" सुन्दर बोला ।
"तुमने लिफाफा खोल के देखा?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।
"नहीं।"
"हमारे लिए कॉफी भिजवाओ।" राघव ने कहा ।
सुन्दर बाहर निकल गया। रास्ते में उसे नौकर मिला तो उन्हें कॉफी देने को कहा ।
सुन्दर रतनचंद के पास पहुंचा ।
"आप कैसे हैं सर ?" सुन्दर ने पूछा ।
"ठीक हूं ।" रतनचंद मुस्कुरा पड़ा- "R.D.X. क्या कर रहे हैं ?"
"कुछ समझ नहीं आ रहा। जगजीत के यहां से उन्होंने कुछ मंगवाया है।"
"वो जो कर रहे हैं, उन्हें करने दो। बंगले में बाकी सब ठीक है?"
"जी हां ।"
"पहरेदार चौकस रहे, हर तरफ तुम भी नजर रखो ।"
"यहां कोई खतरा नहीं है सर। मैं तो हर तरफ नजर रख रहा हूं, R.D.X. भी बारी-बारी नजर मार रहे हैं ।"
रतनचंद ने सिर हिलाया ।
"ये तीनों सच में कुछ कर रहे हैं ?"
"तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो सुन्दर ?"
"सुबह से आराम से बैठे हैं और कॉफी मंगाये जा रहे हैं।" कहते हुए सुन्दर मुस्कुरा पड़ा ।
"देखते रहो। वो आराम से बैठने वाले नही। R.D.X. डिब्बे में बंद ही क्यों ना रहें, वो R.D.X. ही होता है। फिलहाल वो मेरा हमशक्ल तैयार कर रहे हैं, इसके पीछे उनका क्या इरादा है, मैं नहीं जानता।"
"ओह ! मुझे नहीं मालूम था ।"
■■■
धर्मा ने लिफाफे में से डिब्बा निकाला और डिब्बे में से रबड़ का मास्क निकाला। वो रतनचंद के चेहरे का मास्क था और स्किन की तरह लग रहा था। मास्क पर भौहें तक बनी हुई थी।
राघव मुस्कुराया और बोला-
"तुम रतनचंद के कपड़े पहन कर आओ। कुछ देर में तुम रतनचंद बन जाओगे ।"
"बकरा बना रहे हो मुझे।" धर्मा ने मास्क डिब्बे में रखा और उठते हुए बाहर निकल गया।
"एक्स्ट्रा !" राघव बोला- "बैग से बुलेटप्रूफ शीट लाओ ।"
"एक्स्ट्रा उठा और सामने पड़े बैग की तरफ पहुंचा। बैग खोला और बैग में एक तरफ रखी स्टील की बुलेटप्रूफ शीट निकाली । वो इस तरह बनी हुई थी कि उसे छाती पर रखा जाये तो आगे का पूरा हिस्सा ढंक जाता था।
एक्स्ट्रा ने शीट राघव के पास रख दी ।
"क्या है तेरे दिमाग में ?" एक्स्ट्रा कह उठा ।
"अभी बताता हूं, पहले एक रतनचंद तो तैयार कर लूं।" राघव ने सोच भरे स्वर में कहा ।
कुछ ही देर बाद धर्मा आ पहुंचा। उसके शरीर पर रतनचंद की कमीज-पैंट थी ।
राघव ने लिफाफे में हाथ डाला और बालों की विग निकाली ।
"ये अपने सिर पर लगा ।"
धर्मा ने सिर पर विग फिट की। उसके बाल छिप गये थे। विग की वजह से बालों का स्टाइल बदल कर, रतनचंद के सिर के बालों की तरह हो गया। एक्स्ट्रा ने विग को एक बार फिर ठीक से सैट किया।
"ले मास्क लगा।" राघव ने डिब्बे में से मास्क निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया ।
"शीशा?" धर्मा मास्क थामता बोला ।
"बाथरूम में चला जा ।"
धर्मा मास्क थामें बाथरूम में चला गया ।
करीब पांच मिनट बाद लौटा ।
उसे देखते ही राघव और एक्स्ट्रा ने गहरी सांस ली।
वो पूरी तरह रतनचंद लग रहा था। कोई नहीं कह सकता था कि वो रतनचंद नहीं है।
"जगजीत कमाल का काम करता है ।" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।
"नोट ज्यादा लेने लगा है।" राघव धर्मा को देखते कह उठा ।
"काम बढ़िया होना चाहिए। जो कि जगजीत कर देता है ।"
तभी नौकर ट्रे में कॉफी के तीन प्याले रखे कमरे में आया।
धर्मा को रतनचंद समझकर फौरन संभला।
"नमस्कार सेठ जी ।"
धर्मा ने सिर हिलाया ।
नौकर ने टेबल पर कॉफी के प्याले रखते हुए कहा-
"आपके लिए भी कॉफी लाऊं सेठ जी ?"
"नहीं ।" धर्मा ने गुड़मुड़ सी आवाज में कहा ।
नौकर चला गया।
"नौकर को जरा भी शक नहीं हुआ कि तुम रतनचंद नहीं हो ।" एक्स्ट्रा बोला- "ये अच्छी बात रही ।"
राघव ने बुलेटप्रूफ शीट, धर्मा के सामने रखी ।
"कॉफी पी लो। उसके बाद ये शीट तुमने कमीज के भीतर, सीने से लगा लेनी है।"
"गोली मारने वाले ने मेरे माथे पर निशाना लिया तो बुलेटप्रूफ शीट क्या करेगी ?" धर्मा ने गहरी सांस ली ।
"मुझे नहीं लगता कि उसके गोली चलाने की नौबत आयेगी ।" राघव मुस्कुराया ।
"तुम करना क्या चाहते हो ?" धर्मा ने आंखें सिकोड़ कर पूछा।
"जो रतनचंद का निशाना लेना चाहता है, उसे परेशान कर देना चाहता हूं।"
"क्या प्लान है तुम्हारा ?"
"कॉफी उठाओ। घूंट भरो। साथ में बताता हूं कि तुमने क्या करना है ?"
तीनों कॉफी पीने लगे ।
राघव अपनी योजना बताने लगा।
पांच मिनट में धर्मा और एक्स्ट्रा उसकी बात समझ चुके थे।
"ऐसा होते ही गोली चलाने वाला अपने सिर के बाल नोंच लेगा कि क्या हो रहा है ।" राघव ने कहा ।
"तुम्हारी योजना की सबसे कमजोर कड़ी कौन-सी है, जानते हो ?" बोला एक्स्ट्रा ।
"कमजोर कड़ी। बता क्या है ?"
"क्या पता कि सामने वाली इमारत में, रतनचंद का निशाना लेने के लिए कोई मौजूद है भी या नहीं? कोई धर्मा को देखता भी है या नहीं। ये बात स्पष्ट नहीं और तू अपनी योजना...।"
"एक्स्ट्रा ।" राघव ने टोका ।
"बोल ।"
"जिस तरह से रतनचंद का पहले निशाना लिया गया उससे मुझे पूरा यकीन है कि रतनचंद को बंगले से बाहर न निकलते देख कर, वो अब तक सामने वाली इमारत में गन के साथ मौजूद होगा कि रतनचंद दिखे और उसे गोली मारे।"
"हो सकता है कि वो अभी जगह की तलाश कर रहा हो?" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"अगर अब तक उसने जगह की तलाश ना की तो मैं कहूंगा कि वो महा-बेवकूफ है जो वक्त बर्बाद कर रहा है। इस तरह वो रतनचंद को नहीं मार सकेगा। लेकिन जगह तलाश कर चुका है। मेरा दावा है। क्योंकि जिस तरह कार में काले शीशे होने के बावजूद भी उसने सिर्फ एक गोली चला कर बस कर दी और सही निशाना ले लिया बीच वाले का। उससे मैं कह सकता हूं कि वो परले दर्जे का शातिर, चालाक और खेला-खाया इंसान हैं।"
"फिर भी।" बोला धर्मा- "है तो ये तेरी खामखाई की सोच ही । दावे की पुष्टि के लिये तो कुछ नहीं है।"
"वक्त के साथ सामने आ जाएगा ।" राघव ने कहा और कॉफी का घूंट भरा ।
एक्स्ट्रा ने आंखें बंद की और कह उठा-
"मैं गोली चलाने वाले को जिंदा पकड़ना चाहता हूं ।"
"उन पर हाथ डालना क्या आसान होगा?" धर्मा ने एक्स्ट्रा पर नजर मारी।
"आसान नहीं होगा, तभी तो मैं ये काम करना चाहता हूं ।" एक्स्ट्रा ने आंखें खोली और मुस्कुरा पड़ा ।
■■■
फोन बजते ही रतनचंद ने पास रखा मोबाइल उठाया और स्क्रीन पर नजर मारी ।
स्क्रीन पर फोन बना नजर आ रहा था ।
वो समझ गया कि ये केकड़ा का ही फोन है। उसका फोन आने पर नम्बर नहीं आता था। फोन थामें वो उसी पल उठा और कमरे से बाहर निकल कर उस तरफ बढ़ गया जिधर R.D.X. मौजूद थे ।
हाथ में थमा फोन बजे जा रहा था ।
चलते-चलते रतनचंद कालिया ने बात की।
"हैलो ।"
"कैसे हो रतनचंद ?" उसके कानों में केकड़ा की आवाज पड़ी ।
"ओह तुम ।"
"हां मैं, गलत वक्त पर तो फोन नहीं कर दिया?" केकड़ा की हंसने की आवाज आई ।
रतनचंद खामोश रहा । वो उस कमरे तक आ पहुंचा था।
"R.D.X. कैसे हैं ?"
"एकदम ठीक ।"
"क्या कह रहे है वो तेरी सुरक्षा में ?"
रतनचंद कमरे में प्रवेश कर गया ।
परन्तु वहां धर्मा को हू-ब-हू अपने चेहरे में पाकर चौंका। उसकी आंखें फैल गईं।
"मत बता ।" रतनचंद के कानों में केकड़ा की आवाज पड़ी- "वैसे बंगले से बाहर निकलने का तो तेरा इरादा होगा नहीं ।"
अपने हमशक्ल को देखते हुए रतनचंद ने खुद को संभाला।
"बाहर निकलने का मेरा कोई इरादा नहीं है ।"
"समझदार है। लेकिन बंगले में रहकर भी कब तक बचेगा। वो तेरे को छोड़ने वाले नहीं।"
"वो कौन ?"
"जिन्होंने तेरी मौत की सुपारी ली है ।"
"कौन है वो ?"
"बता दिया तो फिर बात करने का मजा ही नहीं आयेगा ।"
"केकड़ा, मैं तेरे को मुंह मांगा पैसा दूंगा, उनके बारे में बताने पर, जो मेरी मौत लेना चाहते हैं ।"
"पैसा भी लूंगा, जल्दी क्या है! अभी तो मैं तेरे को मुफ्त में जानकारी दे रहा हूं। मुफ्त के मजे ले।"
तभी राघव आगे बढ़ा और रतनचंद के हाथ से फोन ले लिया।
"केकड़ा ।"
"कौन जनाब बोल रहे हैं ?" राघव के कानों में शब्द पड़े ।
"राघव ।"
"खूब ! तुमसे मिलकर खुशी हुई, लेकिन रतनचंद को बचा पाना आसान नहीं ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि उसे मारने वाला तुम तीनों का बाप है।"
"क्या मालूम हम उसके बाप निकलें।"
"हां, होने को तो कुछ भी हो सकता है। तुम तो-।"
"मुंह खोलने का क्या लेता है ?"
"अभी मुंह खोलने का मेरा कोई इरादा नहीं ।"
"क्यों बेकार के चक्कर में पड़ा है, नोट गिन। हमारा दोस्त बन जा ।" राघव ने शांत स्वर में कहा ।
"मुझे तुम लोगों से ना तो दोस्ती करनी है ना ही दुश्मनी ।"
"तो फिर फोन क्यों करता है ?"
"मुफ्त की खबरें दे रहा हूं। लेने में ऐतराज हो तो, नहीं देता ।"
"नाराज मत हो, खबर दे। मैं-।"
तभी उधर से फोन बंद हो गया ।
राघव ने मुंह बनाया और फोन कान से हटाते हुए बोला-
"फोन काट दिया गया, बात अधूरी रह गई ।"
रतनचंद बार-बार धर्मा को देख रहा था, जो कि उसके चेहरे में था ।
"इस तरह क्या देखता है रतनचंद?" धर्मा कह उठा- "मैं धर्मा हूं।"
"जानता हूं ।" रतनचंद ने गहरी सांस ली- "कोई नहीं कह सकता कि ये मैं नहीं हूं ।"
तभी राघव, धर्मा और एक्स्ट्रा से कह उठा-
"ये केकड़ा, मुझे ठीक आदमी नहीं लगता। मेरे ख्याल में कोई वजह है जो ये रतनचंद को फोन करता है।"
"कैसी वजह ?"
"मालूम नहीं, लेकिन वो बिना वजह फोन नहीं करता। क्यों करता है, ये पता नहीं ।" राघव ने गंभीर स्वर में कहा ।
"ये बात, किस दम पर कह रहे हो ?"
"अगर उसे पैसे का लालच होता तो वो जरूर लेता। उसके बारे में बता देता जो रतनचंद के पीछे है। लेकिन उसकी दिलचस्पी पैसे लेने में जरा भी नहीं है। तभी तो सोचना पड़ रहा है कि उसकी दिलचस्पी किसी और बात में है।"
एक्स्ट्रा की निगाह रतनचंद पर जा टिकी ।
"केकड़ा की आवाज क्या तेरे को सुनी लगती है?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।
"नहीं ।"
"किसी से तगड़ा पंगा लिया है क्या तूने ?"
"तगड़ा तो नहीं लिया, लेकिन काम-धंधे में नाराजगियां तो पैदा होती ही रहती हैं।"
"रतनचंद, ये मामला नाराजगी का नहीं, तगड़े पंगे का है। तेरे को कुछ समझ नहीं आ रहा तो हम समझाने की कोशिश करेंगे।"
कुछ पलों के लिये उनके बीच चुप्पी रही ।
"चल धर्मा, खड़ा हो ।"
धर्मा खड़ा हुआ । उसने कमीज के बटन खोले ।
राघव ने बुलेटप्रूफ शीट उसकी कमीज के भीतर छाती के साथ लगा कर रख दी और बटन बंद कर दिये। धर्मा अपने चेहरे पर लगे मास्क पर हाथ फेरता कह उठा-
"मुझे बचाने के लिए बुलेटप्रूफ नाकाफी है।"
"तेरे को समझा चुका हूं की गोली नहीं चलेगी।"
"उस साले ने अगर चला दी तो ?" धर्मा ने राघव को घूरा ।
"पता नहीं, कोई सामने है भी या नहीं ।" एक्स्ट्रा सांस लेकर बोला।
राघव एक्स्ट्रा और धर्मा को देखकर कह उठा-
"सामने की तरफ चार खिड़कियां पड़ती हैं, जिनमें तीन बंद कर रखी हैं। अगर कोई सामने होगा तो उसकी नजर खुली खिड़की पर होगी और-।"
"मान ले, तेरे मुताबिक उसे परेशान कर भी दिया तो क्या होगा ?"
"तब वो ।" राघव जहरीले स्वर में मुस्कुरा पड़ा- "कोई गलती करेगा और हमारे हाथों में फंस जायेगा।"
"अगर वो कोई बड़ा हारामी है तो गलती नहीं करेगा। समझ जायेगा कि ये हमारी ही कोई चाल है ।"
"देखते हैं ।"
■■■
12:30 हो रहे थे दिन के।
देवराज चौहान टैलीस्कोप पर आंख टिकाए शांत अंदाज में कुर्सी पर बैठा था। खिड़की मात्र ढाई इंच खुली हुई थी। वहीं पर गन की नाल टिकी थी। टैलिस्कोप के सहारे देवराज चौहान को खुली खिड़की और उसके भीतर का नजारा स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अभी तक खिड़की पर या भीतर कमरे में कोई ना दिखा था।
एक तरफ प्रताप कोली कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठा था ।
कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था ।
ऑफिस का दरवाजा भीतर से बंद था ।
प्रताप कोली ने एकाएक आंखें खोली और देवराज चौहान से कह उठा-
"सारा दिन इसी तरह बैठे-बैठे निकल जायेगा। कोई फायदा नहीं होगा ।"
देवराज चौहान की मुद्रा में कोई फर्क ना आया ।
"तुमने कैसे सोच लिया कि रतनचंद इन हालातों में खिड़की पर आयेगा।" कोली पुनः बोला।
"क्यों नहीं आ सकता?" बोला देवराज चौहान।
"R.D.X. रतनचंद को खिड़की पर नहीं आने देंगे। तुम्हें कोई दूसरा जुगाड़ देखना चाहिए। चार दिन इस तरह बर्बाद करने के बाद दूसरा जुगाड़ जो देखोगे, बेहतर है, पहले ही देख लो और वक्त बचाओ।"
"तुम अपनी जुबान बंद रखो और अगर तुम्हें कोई समस्या है तो बाहर चले जाओ।"
"मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा था ।" प्रताप कोली ने गहरी सांस ली।
उसके बाद उन दोनों में कोई बात नहीं हुई।
देवराज चौहान टैलिस्कोप पर आंख टिकाये सब्र के साथ बैठा था।
वक्त आगे सरकता जा रहा था ।
तब 12:30 बजे थे ।
टैलिस्कोप के जरिये नजर आती खिड़की पर किसी की झलक मिली।
देवराज चौहान सतर्क हो गया ।
अगले ही पल खिड़की पर देवराज चौहान को रतनचंद दिखा। वो खिड़की पर आ खड़ा हुआ था। कुछ पल उसने यूं ही बाहर देखा कि उसका हाथ अपने चेहरे पर पहुंच गया ।
देवराज चौहान की उंगली ट्रेगर पर कस चुकी थी।
किसी भी पल दब सकता था ट्रेगर।
आंख टैलीस्कोप पर।
तभी देखा देवराज चौहान ने, रतनचंद के हाथ की उंगलियां कान के पास से मास्क उतार रही थी । देखते-देखते रतनचंद के चेहरे पर से मास्क उतरता चला गया ।
अब देवराज चौहान को धर्मा का चेहरा दिखा ।
ट्रेगर पर उंगली ढीली हो गई। आंख टैलीस्कोप पर लगी रही ।
फिर देवराज चौहान ने धर्मा को सिर पर पड़ी विग उतारते देखा। उसके बाद धर्मा खिड़की से हट गया। अब खिड़की पहले की तरह खाली थी ।
देवराज चौहान ने टैलिस्कोप पर से आंख हटा ली। माथे पर बाल आ गए थे। चेहरा परेशानी में नजर आने लगा था। क्या हो रहा है, ये सब ?"
रतनचंद के चेहरे के पीछे कोई और था।
ये इसलिए कि मरे तो रतनचंद के चेहरे वाला कोई दूसरा मरे, रतनचंद नहीं।
"ऐसे में उसे कैसे पता चलेगा कि जिसे वो मारने जा रहा है, वो रतनचंद है या नही ?
ये सब R.D.X. का किया-धरा है ।
अगले ही पल देवराज चौहान ने अपने चेहरे पर हाथ फेरा ।
वो जो भी था, उस खिड़की पर आकर, चेहरे पर रखा रतनचंद वाला मास्क उतारने की क्या जरूरत थी? देवराज चौहान चौंका। ये सब उसे दिखाने के लिए किया गया ?
तो क्या वे लोग जानते हैं कि यहां कहीं से वो निशाना बांधे हुए हैं ?
सामने नजर आने वाली चार खिड़कियों में से तीन बंद और एक खुली थी । क्यों खुली रखी गई चौथी खिड़की ? क्या इसी काम के लिए ?
देवराज चौहान ने पुनः टैलिस्कोप पर आंख लगाई ।
खिड़की खाली थी और खुली हुई थी।
"ओह, इसका मतलब वे लोग जानते हैं कि सामने कोई है। खबर मिल चुकी है उन्हें और ये सब करके उन लोगों ने उसे समझाया कि उसका असली रतनचंद तक पहुंचना आसान काम नहीं। परंतु आनन-फानन उन लोगों ने रतनचंद के चेहरे का मास्क कहां से हासिल कर लिया-वो-तो-।
देवराज चौहान की सोंचे रुकी ।
कल शाम को एक आदमी कार पर गया । लिफाफे में किसी को कुछ देकर आया और आज सुबह वो फिर उसी के पास पहुंचा और लिफाफे में कुछ लेकर आया। क्या लिफाफे में रतनचंद के चेहरे का मास्क था? जिसके पास वो गया, क्या वो मास्क बनाने वाला था? देवराज चौहान के चेहरे पर विचार दौड़ लगा रहे थे।
जो भी हो, ये बात तो पक्की थी कि उन्हें मालूम है कि निशाना लेने के लिए सामने कोई है। और चेहरे पर से मास्क का उतारना, उसे दिखाने के लिए ही किया गया था कि वो सोच कर परेशान हो जाये कि जिसे गोली मारने जा रहा है, क्या वो ही असली रतनचंद है, किसी गलत आदमी को तो गोली नहीं मार रहा ?
देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
तभी प्रताप कोली ने आंखें खोलीं तो देवराज चौहान को गन से हटा पाकर बोला-
"क्या हुआ ?"
देवराज चौहान ने उसे देखा, फिर सिगरेट सुलगा ली।
■■■
रतन चंद का फोन बजा ।
"हैलो ।"
"केकड़ा।"
"तुम ?" रतनचंद चौंका- "अभी तो तुमने फोन किया ?"
"मैं तुम्हें बहुत अच्छी खबर देने जा रहा हूं।" केकड़ा का सरसराता स्वर कानों में पड़ा ।
रतनचंद के सामने मौजूद एक्स्ट्रा को देखा, फिर बोला-
"कैसी खबर ?"
"क्या तुम ये जानना पसंद करोगे कि इस वक्त तुम्हें निशाना लेने वाला कहां है ?"
"कहां है? बताओ।" रतनचंद का चेहरा सख्त हो गया ।
"जो खिड़की खुली हुई है। जहां से तुम लोगों ने चेहरे से मास्क उतारने का ड्रामा किया, उसके ठीक सामने सड़क पार, डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की इमारत पड़ती है, उसकी दूसरी मंजिल पर दायें ऑफिस में है वो, जिसकी खिड़की इस तरफ खुलती है।"
"पक्का ?"
"सौ प्रतिशत। वहां गन रखे खिड़की पर देख रहा है, परंतु तुम्हारे चेहरे वाले मास्क की मौजूदगी का एहसास पाकर वो कुछ उलझन में पड़ गया है ।" केकड़ा का धीमा स्वर आया- "ये R.D.X. की ही चाल होगी कोई ?"
"लगे हाथ उसका नाम भी बता दो ।" रतनचंद गुर्रा उठा।
"इतनी भी जल्दी मत करो । एक-एक करके खबरें दूंगा ।"
"आखिर तुम चाहते क्या हो ?"
"ये भी बताऊंगा, परन्तु जब-जब वक्त आयेगा ।" इसके साथ ही केकड़ा ने फोन काट दिया था ।
रतनचंद केकड़ा की सारी बात एक्स्ट्रा को बताने लगा ।
■■■
"थक गये हो तो तुम्हारी जगह में ले लेता हूं ।" प्रताप गोली की निगाह देवराज चौहान पर थी।
देवराज चौहान ने कश लिया और बोला-
"मेरे ख्याल में उन लोगों को पता है कि सामने से उनका निशाना बांधा जा रहा है ।"
"क्या ?" प्रताप कोली चौंका- "ये-ये कैसे हो सकता है ?"
"वैसे ही हो सकता है जैसे पहले हुआ है। जैसे पहले हमारी खबरें उन तक गई हैं।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला ।
"ओह, कहीं दिनेश तो भेदिया नहीं है ?"
"तुम भी हो सकते हो ?"
"लेकिन हुआ क्या ?"
देवराज चौहान ने खिड़की पर हुई सारी हरकत बताई।
सुनकर कुछ कहते ना बना प्रताप कोली से ।
"रतनचंद की तरफ से ये हरकत R.D.X. ने की है । ये बताने के लिए कि हम जिसका निशाना लेने जा रहे हैं, क्या पता वो रतनचंद न हो! रतनचंद के धोखे में हम किसी और को तो गोली नहीं मार रहे हैं ।"
प्रताप कोली का चेहरा सख्त हो उठा ।
"तुम्हें ये बात किसने बताई कि हम यहां से निशाना बांधने जा रहे हैं ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"शोरी साहब ने बताई। उनसे ये बात हरीश और अवतार को पता चली होगी।" प्रताप कोली ने व्याकुलता से कहा- "पता नहीं ये क्या हो रहा है? मुझे तो अब अपने पर भी शक होने लगा है। भला ये बात R.D.X. को कैसे पता चल गई कि हम यहां हैं ?"
"तुम में से ही ये बात बाहर निकली है।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा ।
प्रताप कोली से कुछ कहते ना बना ।
"मैं सोहनलाल, जगमोहन के पास जा रहा हूं, अभी आया।" कहकर देवराज चौहान बाहर निकल गया ।
प्रताप कोली परेशान सा खड़ा रहा। वो समझ नहीं पा रहा था कि गड़बड़ कहां हो रही है। वो आगे बढ़ा और देवराज चौहान वाली कुर्सी पर जा बैठा। सामने सैट पर रखी गन के टैलिस्कोप पर आंख टिका दी। उसे स्पष्ट तौर पर खिड़की नजर आने लगी, जो कि इस वक्त खाली थी ।
■■■
देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल के पास पहुंचा ।
"तुम यहां ?" उसे देखते ही जगमोहन अजीब स्वर में कह उठा।
"उन लोगों को हमारी सारी खबरें मिल रही हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"कितनी अजीब बात है ?" जगमोहन के होंठों से निकला।
"मेरे ख्याल में हमें नागेश शोरी के आदमियों को दूर रखना चाहिये।" सोहनलाल बोला।
"अब ऐसा ही होगा ।"
"क्या हुआ ?"
देवराज चौहान ने सारी बात बताई।
सुनकर जगमोहन, देवराज चौहान को देखने लगे ।
"जब तक हमारी हरकतों की जानकारी रहेगी, हम सफल नहीं हो सकते ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"उन लोगों को साथ में चिपकाये रखने की जरूरत क्या है ?"
"अब वो हमारे साथ नहीं है।"
सोहनलाल गोली वाली सिगरेट सुलगाते कह उठा-
"इतनी जल्दी R.D.X. ने रतनचंद का मास्क कहां से हासिल कर लिया ?"
"वहां से, जहां कल शाम को बंगले से निकलकर, गोरेगांव तक आदमी गया था और आज सुबह भी गया।
"वहां से ?" सोहनलाल ने अजीब से स्वर में कहा।
"मेरे ख्याल से गोरेगांव वाला आदमी फेस-मास्क बनाता होगा।"
"मुझे विश्वास नहीं आता।"
"R.D.X. के आने के बाद, बंगले से निकला आदमी वहीं आ गया। इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि पहले आदमी रतनचंद की तस्वीर उसे देने गया होगा और सुबह मास्क लेने गया होगा। ये भी हो सकता है कि मेरा ख्याल गलत हो। तुम मेरे साथ चलो, उस आदमी को टटोलना है।"
"ठीक है ।"
"तुम बंगले की निगरानी करोगे।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा ।
जगमोहन ने सिर हिलाकर कहा-
"प्रताप कोली कहां है ?"
"ऊपर ऑफिस में ही। अब वो जगह हमारे लिए बेकार हो चुकी है। उसे खाली करना होगा, क्योंकि R.D.X. जानते हैं कि हम वहां पर हैं। मैं अभी प्रताप कोली को वापस भेज कर आता हूं।"
"तो काम किसी दूसरे ढंग से करना होगा ?" जगमोहन ने पूछा ।
"हां, मुझे काम से ज्यादा इस बात को जानने की दिलचस्पी है कि कौन, रतनचंद तक हमारी खबरें पहुंचा रहा है ।"
"ये कैसे जाना जायेगा ?"
"सोचते हैं, कोई रास्ता तो निकलेगा। सिर्फ इसी वजह से हमें नाकामी मिल रही है, वरना ये काम कुछ भी नहीं था। आज खिड़की पर जो भी हुआ, उससे R.D.X. के बारे में ये साफ हो जाता है कि उनका मुकाबला करना आसान नहीं। उन्होंने खिड़की पर हमें मास्क दिखा कर ये समझाने की चेष्टा की है कि रतनचंद तक पहुंचने के लिए, पहले हमें उनका मुकाबला करना होगा। इस हरकत से हम परेशान तो हो ही गये हैं । अगर रतनचंद का निशाना ले लिया जाये तो क्या पता वो नकली हो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान इमारत की तरफ बढ़ा चला गया ।
■■■
प्रताप कोली गन के टैलिस्कोप पर आंख लगाये, खिड़की का स्पष्ट नजारा देख रहा था। जब से देवराज चौहान गया था, कोली इसी मुद्रा में था। उसके मन में आ रहा था कि रतनचंद नजर आ जाये तो वो उड़ा देगा उसे ।
परन्तु खिड़की खाली हो रही है ।
कोई ना दिखा ।
लेकिन प्रताप कोली टिके रहने का इरादा कर चुका था।
तभी उसके कानों में कदमों की आहट पड़ी। कोई भीतर आया था।
प्रताप कोली की आंख टैलीस्कोप पर ही रही।
कदमों की आहटें उसके पास आकर रुक गई ।
"अभी तक खिड़की पर कोई नजर नहीं आया।" टैलीस्कोप पर आंख टिकाये प्रताप कोली बोला- "तुम आराम करो। ये ड्यूटी मैं संभाल लेता हूं। रतनचंद तो क्या R.D.X. भी कोई खिड़की पर दिखा तो मैं आज उसे ही उड़ा दूंगा।"
"थक तो नहीं जाओगे ?"
"नहीं, मैं तो रात तक...।" एकाएक कोली कहते-कहते ठिठका।
मस्तिष्क में बिजली कौंधी।
ये आवाज देवराज चौहान की नहीं थी ।
उसके लिए नई आवाज थी ये ।
प्रताप कोली ने गन छोड़ी और फुर्ती से सिर घुमाया ।
एक्स्ट्रा खड़ा था उसके पीछे ।
"तुम-तुम-?" अगले ही पल प्रताप कोली की आंखें फैल गई-"एक्स्ट्रा ?"
"जानते हो मुझे ?" एक्स्ट्रा जहरीले स्वर में बोला ।
"हां ।" प्रताप कोली की हालत देखने लायक थी ।
"फिर भी मुझसे पंगा लिया ।"
प्रताप कोली को जैसे होश आया। उसने फुर्ती से अपनी जेब की तरफ हाथ बढ़ाया ।
परन्तु रिवॉल्वर न निकाल पाया वो।
एक्स्ट्रा के हाथ में पलक झपकते ही आठ इंच के पतले लंबे फल का चाकू और देखते-ही-देखते प्रताप कोली की छाती में धंसता चला गया ।
प्रताप कोली की आंखें फैलती चली गई।
"लोग जानते हैं ।" एक्स्ट्रा सर्द स्वर में बोला- "फिर भी R.D.X. से पंगा लेते हैं।" कहने के साथ ही एक्स्ट्रा ने उसकी छाती में धंसा चाकू बाहर खींचा और अगले ही पल कोली का गला रेत दिया ।
प्रातप कोली के शरीर को जोरदार झटका लगा और कुर्सी पर बैठे-बैठे गर्दन उसकी तरफ लुढ़क गई। छाती से भी खून निकल रहा था और गले से बहते खून ने, उसको सारा रंगना शुरू कर दिया था ।
एक्स्ट्रा को पतले, लम्बे फल वाले चाकू को आराम से प्रातप कोली की कमीज से साफ किया और उसे वापस अपने कपड़ों में छिपा लिया। उसके बाद उसने कमरे में नजर दौड़ाई ।
यहां एक्स्ट्रा के काम का कुछ नहीं था ।
एक्स्ट्रा आगे बढ़ा और गन को उठाकर उसके जोड़ खोलते हुए उसके हिस्सों को अलग करने लगा। दो मिनट में ही गन कई हिस्सों में सामने पड़ी थी। एक्स्ट्रा ने एक तरफ रखा एयर बैग उठाया और गन के सारे टुकड़े समेटकर बैग में डाले, फिर बैग कंधे पर लटकाए बाहर निकलता चला गया।
एक्स्ट्रा सामने रहादारी में शांत अंदाज में आगे बढ़ता चला गया। कुछ आगे जाकर वो नीचे जाने वाली सीढ़ियां उतरने लगा। आधी सीढ़िया ही उतरा होगा कि नीचे से आते देवराज चौहान से उसका कंधा टकराया।
"माफ करना भाई जी ।" एक्स्ट्रा ने फौरन मुस्कुराकर कहा।
देवराज चौहान ने उसे देखा और सिर हिला दिया ।
एक्स्ट्रा नीचे उतरता चला गया ।
परन्तु देवराज चौहान वहीं खड़ा उसे जाता देखता रहा क्योंकि उसके कंधे पर जो बैग लटका था, वैसे ही बैग में प्रताप कोली गन डालकर लाया था। अगले ही पल देवराज चौहान ने सिर को झटक दिया कि ऐसे तो कितने ही बैग होंगे। फिर देवराज चौहान सीढ़ियां द्वारा पुनः ऊपर चढ़ने लगा ।
■■■
ऑफिस के भीतर कदम रखते ही, देवराज चौहान के कदम ठिठक गये। दरवाजा खुला हुआ था। सामने ही खिड़की थी। जहां रखी गन गायब थी। कुर्सी पर प्रताप कोली बैठा हुआ था, परंतु उसकी गर्दन आगे झुकी हुई थी। कुर्सी के नीचे खून-ही-खून पड़ा था। रह-रह कर एक-एक बूंद टपक उठता था वहां ।
देवराज चौहान फौरन आगे बढ़ा और प्रताप कोली का हाल देखा ।
अगले ही पल देवराज चौहान के चेहरे पर भूचाल के भाव नाच उठे। आंखों के सामने सीढ़ियों से उतरते एक्स्ट्रा का चेहरा चमका और उसकी निगाह वहां गई जहां बैग पड़ा था।
बैग वहां नहीं था ।
स्पष्ट था कि उस वक्त जो सीढ़ियों से उतर कर जा रहा था, जिसके कंधे पर बैग लटका था, वो तब प्रताप कोली की हत्या करके जा रहा था। वो जो कोई भी था, बंगले से ही निकला था-तो जगमोहन सोहनलाल ने उसे खबर क्यों न दी ?
यहां अब देवराज चौहान के रुकने की कोई वजह नहीं रही थी।
देवराज चौहान बाहर निकला और सीधा जगमोहन सोहनलाल के पास पहुंचा।
"कोई बंगले से निकला ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"निकला तो नहीं ।" जगमोहन बोला- "अभी अभी बंगले में गया है ।"
"और उसके कंधे पर बैग था ।"
जगमोहन चौंका ।
"तुम्हें कैसे मालूम ?"
"तुम दोनों चूक गये। वो आदमी बंगले से ही निकला था, परन्तु उसे निकलते देख ना सके ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा- "मैं यहां आया और तब वो वहां पहुंचा, जहां से निशाना लिया जाना था। वहां प्रताप कोली था। उसने प्रताप कोली की बेरहमी से हत्या की और गन को बैग में लेकर निकल गया ।"
"ओह ।"
"सीढ़ियां उतरते समय उसका कंधा मेरे से टकराया। तब मैं नहीं जानता था कि वो कोली की हत्या करके आ रहा है।"
"बुरा हुआ ।" जगमोहन के उठा-"R.D.X. वास्तव में खतरनाक लोग हैं।"
"उनके पास हमारी हर हरकत की खबर है।" सोहनलाल बोला।
"लेकिन अब नहीं होगी ।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कह उठा- "क्योंकि अब उन लोगों को मेरे पास कोई काम नहीं होगा। मैं सोहनलाल के साथ जा रहा हूं, तुम यहीं रहकर बंगले पर नजर रखो। सावधान रहना, हो सकता है कि वो तुम लोगों के बारे में भी जान चुके हैं कि यहां रहकर बंगले पर नजर रख रहे हो।"
जगमोहन ने सिर हिलाया ।
"दिनेश चुरु जहां पर बैठा है, उसे प्रताप कोली की हत्या के बारे में बता दो। शायद वो कोली की लाश ले आये।" देवराज चौहान ने कहा और सोहनलाल के साथ सामने खड़ी कार की तरफ बढ़ गया ।
■■■
एक्स्ट्रा कमरे में प्रवेश किया और धर्मा-राघव को देखा ।
"तुम कहां थे?" धर्मा उसके कंधे पर लटके बैग को देखता कह उठा ।
"काम निपट गया ।" एक्स्ट्रा ने कहा और कंधे से बैग उतारकर टेबल पर रखा
"ये क्या है ?" राघव ने पूछा ।
"किस काम के बारे में कह रहे हो ?" धर्मा के माथे पर बल पड़े।
"जिस काम के लिए हम यहां हैं।" बैठता हुआ एक्स्ट्रा कह उठा- "जो रतनचंद को मारना चाहता था, वो सामने वाली इमारत के, एक ऑफिस में खिड़की पर था । इस तरह गन लगा रखी थी । पता चलते ही मैंने वहां जाकर उसे ढूंढा और उसे खत्म करके, उसकी गन निशानी के तौर पर ले आया।"
धर्मा एक्स्ट्रा को देखने लगा ।
राघव ने तुरन्त बैग खोला और गन के टुकड़े बाहर निकालने लगा ।
"तुम्हें कैसे पता चला कि वो सामने वाली इमारत में था ?"
"केकड़ा का फोन आया था, रतनचंद को उसने बताया था । तब मैं पास ही था।" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।
राघव गन के लाये टुकड़े निकाल कर बाहर रख चुका था ।
"मैं तुम्हारी बात पर अविश्वास नहीं कर रहा। लेकिन एकदम यकीन करना भी कठिन है रतनचंद को मारने वाला नहीं रहा ।"
"चिन्ता मत करो धीरे-धीरे यकीन आ जायेगा।" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।
राघव ने गन के टुकड़ों से नजर हटाकर एक्स्ट्रा से कहा-
"तुम्हें वहां अकेले नहीं जाना चाहिए था ।"
"जल्दबाजी करना पुरानी आदत है ।"
"कभी फंसोगो।"
"तेरे को क्या लगता है राघव की रतनचंद को मारने वाला नहीं रहा। मर गया होगा क्या ?"
"अपना एक्स्ट्रा गलत तो नहीं बोलेगा, कह रहा है तो मर ही गया होगा ।"
"लेकिन, खतरा अभी गया तो नहीं ।" धर्मा बोला ।
"वो कैसे ?"
"जिसने उसे रतनचंद को मारने पर लगाया होगा, वो अब किसी और को रतनचंद पर लगायेगा ।"
"ये बात ठीक कही, रतनचंद की मुसीबत अपनी जगह पर है।"
"रतनचंद से बात करते हैं। देखते हैं कि वो क्या कहता है ?"
"R.D.X. रतनचंद के पास उसके कमरे में पहुंचे ।
"रतनचंद ।" राघव बोला- "एक्स्ट्रा ने उसे साफ कर दिया है, जो तेरे को गोली मारना चाहता था ।"
"क्या ?" रतनचंद के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
"एक्स्ट्रा से पूछ ले रतनचंद ।"
रतनचंद ने एक्स्ट्रा को देखा तो एक्स्ट्रा मुस्कुराया बोला-
"केकड़ा ने सही खबर दी थी । वो मिला और मार दिया उसे मैंने।"
"तुम्हें कैसे मालूम चला कि वो ही था ?"
"उसके पास जबरदस्त गन थी और वो उधर वाली खिड़की को निशाने पर रखे था। पीछे से साले की गर्दन पकड़ ली मैंने ।"
रतनचंद अविश्वास भरी निगाहों से एक्स्ट्रा को देखता रहा ।
"क्या देखता है ?"
"मैं यकीन नहीं कर सकता कि तुम गये और उसे मार कर आ गये ।"
"क्यों नहीं होता यकीन ?"
"नहीं होता ।"
"एक मिनट के लिए मान लो कि वो मर गया है, तब....?" धर्मा बोला ।
"वो-वो जो मुझे मरा देखना चाहता है, वो किसी और को मेरे पीछे लगा देगा ।"
"अब रतनचंद, तेरे को जिंदगी भर बचाने का ठेका तो नहीं लिया हमने ।"
"जिंदगी भर छोड़ो, कम-से-कम ये मामला तो निपटा दो ।" रतनचंद ने कहा- "उसे ढूंढो, जो मुझे मरा देखना चाहता है, तुम्हें उसको मारना नहीं चाहिए था। उससे पूछते कि किसने उसे मेरे पीछे लगाया है ?"
"रतनचंद ठीक कहता है। तुम ने जल्दी कर दी एक्स्ट्रा ।"
"शायद। तब जाने क्यों, मुझे गुस्सा आ गया था।" एक्स्ट्रा मुस्कुरा पड़ा ।
"तो अब क्या किया जाये?" राघव कह उठा ।
"रतनचंद की समस्या तो अपनी जगह है ।"
"वो ही तो-मैं....।"
तभी रतनचंद का फोन बजा ।
"हैलो ।" रतनचंद कालिया ने फोन कान से लगाया ।
"मार दिया उसे।" शब्दों के साथ ही केकड़ा हौले से हंसा ।
"केकड़ा !" रतनचंद के होठों से निकला- "तुम-तुम किसके मरने की बात कर रहे हो ?"
"जो सामने इमारत में ऑफिस की खिड़की पर गन लिए बैठा था ।"
"सुना तो है कि उसे मार दिया ।"
"यानि कि अब तुम खतरे से मुक्त हो-।"
"इस वक्त तो मुक्त ही हूं, परंतु आगे....।"
"तुम भारी खतरे में हो रतनचंद। मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि अंडरवर्ल्ड की तगड़ी हस्ती ने तुम्हारी सुपारी ली है। वो तुम्हें मार के ही रहेगा। तुमने कैसे सोच लिया कि वो मर गया ?"
रतनचंद को झटका लगा। उससे कुछ कहते न बना ।
R.D.X. की निगाह उस पर थी ।
"कौन गया था वहां ?"
"एक्स्ट्रा ।"
"बहुत किस्मत वाला निकला एक्स्ट्रा।" केकड़ा का व्यंग भरा स्वर सुनाई दिया ।
"क्यों ?"
"वो वहां से पांच मिनट के लिए ही बाहर गया था और तभी एक्स्ट्रा वहां आ पहुंचा और उसके बेकार के साथी को मार कर वापस आ गया। सोचा कि उसे मार दिया। अगर उससे वहां एक्स्ट्रा टकरा जाता तो एक्स्ट्रा तो गया था ।"
रतनचंद ने गहरी सांस ली और फोन एक्स्ट्रा की तरफ बढ़ाता कह उठा-
"लो, अपनी तारीफ सुन लो-।"
एक्स्ट्रा ने फोन कान से लगाकर कहा-
"क्या कह रहे हो केकड़ा ? मैं एक्स्ट्रा हूं ।"
"किस्मत वाले हो जो बच गये। उसके बेवकूफ से आदमी को मारकर तुमने सोच लिया कि जंग जीत ली ?"
"तो क्या वो-वो नहीं था ?" एक्स्ट्रा चौंका ।
"तुम्हारा बाप है वो। अगर वो तुम्हें मिल जाता तो इस वक्त तुम जिंदा ना होते।"
एक्स्ट्रा के दांत भिंच गये। आंखों में भयानक चमक उभरी।
"मैं अपने बाप से मिलना चाहता हूं, बताओ वो किधर मिलेगा ?" एक्स्ट्रा के होंठों से फुंफकार निकली ।
"इसी तरह बेवकूफी करते रहे तो तुम्हारा बाप खुद ही तुम्हारे गले आ मिलेगा ।" केकड़ा कहने के साथ ही हंसा ।
"तुम मुझे-।"
उधर से केकड़ा ने फोन बंद कर दिया था।
एक्स्ट्रा दांत भींचकर राघव-धर्मा से बोला-
"वो जिन्दा है। केकड़ा कहता है कि मैं उसके आदमी को मार आया हूं ।"
"तो तब वो कहां था ?" राघव के होंठों से निकला ।
"केकड़ा कहता है कि।" रतनचंद बोला- "वो उन्हीं पांच मिनट के लिए बाहर गया था, जब एक्स्ट्रा वहां पहुंचा।"
"मुझे समझ नही आता कि केकड़ा आखिर है कौन, उसे फौरन ये सब खबरें कैसे मिल जाती हैं....?" धर्मा ने कहना चाहा।
"मेरे साथ आ धर्मा-।"
"किधर ?"
"वापस वहीं, उस आदमी की लाश से पता चल सकता है कि वो किसके लिए काम करता था।"
"लाश से कैसे पता....?'
"मेरा मतलब है कि उसकी हत्या की खबर पुलिस को पहुंचेगी । पुलिस उसके बारे में तफ्तीश करेंगी कि वो कौन था। हमें उसके बारे में पता चल गया कि वो कौन था। तो हम पता कर लेंगे की वो किसके लिए काम करता था ।"
"गुड आईडिया !" धर्मा कह उठा- "उसके लिए वापस, वहां जाने की क्या जरूरत है ?"
"ये देखने की उसकी हत्या की खबर फैली कि नही ?"
"वहां, वो भी मिल सकता है ।"
"हम दो हैं, मिला तो मरेगा-।" एक्स्ट्रा ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा-
"मैं साथ चलूं ?" राघव बोला।
"नही, तेरा रतनचंद के साथ रहना जरूरी है ।"
■■■
एक्सट्रा और धर्मा वापस उसी इमारत के उसी ऑफिस में पहुंचे।
वहां कोई शोर-शराबा नही था। सब ठीक नजर आ रहा था । वो ऑफिस खाली पड़ा था। वो कुर्सी भी खाली थी, जिस पर प्रताप कोली की लाश पड़ी थी। कुर्सी के नीचे अवश्य खून का छोटा सा तालाब दिख रहा था ।
"वो लोग सतर्क मालूम होते हैं।" धर्मा बोला- "लाश गायब हो जाने से ये पहचान नहीं हो सकेगी कि यहां पर कौन लोग थे ?"
"निकल ले यहां से-।"
एक्स्ट्रा कह उठा।
एक्स्ट्रा और धर्मा पलट कर बाहर निकल गये।
इस बात से वे अंजान थे कि जगमोहन उनके पीछे है और उन पर नजर रख रहा है।
दोनों नीचे जाने वाली सीढ़ियों के पास पहुंचे। वहां जगमोहन मिला।
"भाई साहब, यहां वर्मा साहब का ऑफिस किधर है ?"
"क्या पता, हम तो सचदेवा साहब से मिलकर आ रहे हैं ।" धर्मा ने लापरवाही से कहा।
दोनों सीढ़ियां उतरते चले गये।
जगमोहन भी वापस सीढियां उतरने लगा। निगाह दोनों की पीठ पर थी।
■■■
"वो वाला फ्लैट है, पीला दरवाजा।" सोहनलाल ने देवराज चौहान से कहा।
दोनों फ्लैट के सामने की सड़क पर, कार में मौजूद थे।
"आओ...।" देवराज चौहान दरवाजा खोलकर बाहर निकलता हुआ बोला।
"कुछ करना है क्या ?" सोहनलाल भी बाहर निकला।
"हां।" देवराज चौहान ने स्थिर लहजे में कहा- "मेरा ख्याल है कि यहां रहने वाला आदमी, चेहरे के मास्क बनाता है। रतनचंद के बंगले से निकल कर जो आदमी कल शाम और आज सुबह यहां आया, वो इसी सिलसिले में आया हो सकता है।"
"तो करना क्या है उसका ?"
"दुश्मन को उसी चाल पर, उसे झटका देना है ।" कहते हुए देवराज चौहान आगे बढ़ गया ।
सोहनलाल नहीं समझा कि देवराज चौहान क्या कहना चाहता है । वो भी उसके पीछे हो गया ।
दरवाजे पर पहुंचकर देवराज चौहान ने कॉलबेल बजाई ।
भीतर से कदमों की आहटें उठी, फिर दरवाजा खोला गया ।
दरवाजा खोलने वाला पैंतालीस बरस का आदमी था ।
"कहिये ?"
देवराज चौहान ने सोहनलाल की तरफ देखा ।
यही है, वाले अंदाज में सोहनलाल ने गर्दन हिला दी।
देवराज चौहान की निगाह उस आदमी पर जा टिकी ।
भीतर चलो, तुमसे बात करनी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मैं आप दोनों को नहीं जानता।" वो बोला ।
"जान जाओगे, पहले भीतर-।"
"नहीं, पहले मुझे मालूम हो कि आप लोग कौन हैं। और क्या चाहते हैं ।" वो कह उठा ।
"R.D.X. ने भेजा है। कहते हुए देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"ओह, पहले क्यों नही बताया।" उसके होंठों से निकला और पीछे हटा- "आओ ।"
देवराज चौहान और सोहनलाल भीतर आ गये।
ये कमरा साधारण सा ड्रॉइंगरूम था।
"बैठो ।" वो बोला।
"तुम्हारा नाम क्या है ?" देवराज चौहान ने पुछा।
सोहनलाल आगे बढ़कर सोफा चेयर पर जा बैठा था ।
"R.D.X. ने नही बताया क्या। या यूं ही मुझ तक आ गये ?" वो बोला।
"R.D.X. ने बताया है, तभी तो पूछ रहा हूं ताकि मुझे तसल्ली हो कि मैं ठीक आदमी से बात कर रहा हूं ।"
"जगजीत ।"
"ठीक है ।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई - "वो काम फिर करना है, जो अभी R.D.X. के लिए किया है ।"
"मास्क ।" जगजीत के होंठों से निकला ।
"हां ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
"पहले वाले का क्या हुआ ?" जगजीत ने अजीब से स्वर में पूछा।
"खो गया वो ।"
"क्या बेवकूफी है।" जगजीत मुंह बनाकर बोला और दूसरे कमरे में चला गया। तुरन्त ही वापस आया। हाथ में दो छोटी तस्वीरें थीं।
"इसी के चेहरे का मास्क बनवाना है ?"
देवराज चौहान ने पहचाना कि वो रतनचंद की तस्वीर थी ।
"हां ।"
"कल सुबह आ जाना। तैयार मिलेगा। R.D.X. से कहना कि रुपये दो लाख ही लूंगा ।" जगजीत ने कहा ।
"जब मर्जी हो बनाओ। लेकिन मैं लेकर ही जाऊंगा। दो लाख रुपए तुम्हें मिल जायेंगे ।"
"मुझे इसके लिए कम से कम बारह घंटे चाहिये। मॉस्क के लिए सामान तैयार करना...।"
"कोई बात नहीं । मैं यहीं रहूंगा ।"
"तुम्हारे यहां रहने से मुझे परेशानी होगी ।"
"परेशानी तुम्हें उठानी होगी। मैं जाने वाला नहीं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"ये क्या बात हुई ?" जगजीत का स्वर उखड़ गया- "मुझे काम के लिए एकांत चाहिये। मैं- ।"
"मैं तुमसे बात नहीं करूंगा ।"
"लेकिन मेरे सिर पर दो सवार रहोगे ।" जगजीत सिंह तीखे स्वर मैं बोला ।
दोनों कुछ पल एक-दूसरे को देखते रहे ।
सोहनलाल आराम से सोफे पर बैठा था ।
"क्या बात है?" जगजीत सिंह ने होंठ सिकोड़ कर कहा- "तुम मेरे से चिपके क्यों रहना चाहते हो ?"
"अगर मुझे R.D.X. ने ऐसा करने को कहा हो?"
"वो ऐसा नहीं कह सकते ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि वो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे अकेले रहकर काम करने की आदत है ।" जगजीत ने कहा ।
देवराज चौहान ने जेब से रिवाल्वर निकाली और उसकी तरफ कर दी ।
"ये क्या ?" जगजीत के होंठों से निकला ।
"रिवाल्वर ।"
जगजीत की आंखें सिकुड़ी और वो अजीब से स्वर में कह उठा-
"तुम्हें R.D.X. ने नहीं भेजा ?"
"नहीं ।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया ।
जगजीत के होंठ भिंच गये।
"क्या चाहते हो ?"
"वो ही मॉस्क बनवाना, जो R.D.X. ने बनवाया है ।"
"क्यों ?"
"R.D.X. मेरे और मेरे शिकार के बीच आ खड़े हुए हैं। उन्हें समझाना है कुछ-।"
"वो तीनों बहुत खतरनाक हैं।" जगजीत ने कहा- "उनके चक्कर में ना ही पड़ो तो बहतर है ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"तुम्हारा काम हो जायेगा। कल सुबह मॉस्क-।"
"मैं यहीं रहूंगा ।"
"तुम मेरे साथ चिपके क्यों रहना चाहते हो ?"
"ताकि ये बात R.D.X. तक ना पहुंचे कि मैंने रतनचंद के चेहरे का मॉस्क बनवा लिया है। तुम उन्हें बता सकते हो ।"
"मैं उन्हें नहीं बताऊंगा ।"
"मैं तुम पर भरोसा नहीं कर सकता ।"
"तुम हो कौन ?" जगजीत की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर टिक गई थी ।
"देवराज चौहान ।"
"कौन देवराज चौहान ?"
"डकैती मास्टर देवराज चौहान ?"
"ओह, वो तुम हो ।" जगजीत चौंका ।
"हां, मैं ही हूं ।"
"विश्वास नहीं आता। तुम डकैती मास्टर। शायद तुम ही देवराज चौहान हो । एक बार मैंने तुम्हारी तस्वीर देखी थी ।"
"अखबार में छपी तस्वीर ।"
"हां। परन्तु ज्यादा स्पष्ट नहीं थी ।"
देवराज चौहान रिवॉल्वर उसकी तरफ किए खड़ा रहा ।
"रिवाल्वर जेब में रख लो। मैं तुम्हारा काम कर दूंगा। लेकिन दो लाख लूंगा ।"
"दो लाख हाथों-हाथ मिलेंगे। परन्तु तुमने कोई चालाकी की तो।"
"मैं ईमानदारी से चलूंगा ।"
देवराज चौहान ने रिवाल्वर वापस जेब में रखी
"R.D.X. को पता है कि उन्होंने तुमसे पंगा लिया है ?" जगजीत ने पूछा ।
"शायद नहीं ।"
"वो तीनों खतरनाक हैं। सावधान रहना ।"
"ये कहकर तुम साबित करना चाहते हो कि तुम मेरी तरफ हो ?"
"नहीं, ऐसा मेरा इरादा कोई नहीं। उन्हें पुराना जानता हूं, ये जुदा बात है, और तुम से मेरी कोई दुश्मनी नहीं ।"
"मेरा काम शुरू करो ।"
"मामला क्या है ?"
"मैं किसी का निशाना लेना चाहता हूं और R.D.X. उसे बचाने आ गये ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वे तुम्हारा नाम जान जायेंगे तो, इससे तुम्हें क्या डर लगता है ?"
"मेरा नाम जानते ही वे जरूरत से ज्यादा ही सतर्क हो जायेंगे और मेरे लिए दिक्कत बढ़ सकती है और मैं नहीं चाहता कि ऐसा हो ।"
जगजीत चुप रहा ।
कुछ और पूछना है तुमने ?"
"नहीं ।"
"मेरा काम कब शुरु कर रहे हो ?"
"अभी ।"
■■■
लाश गयाब है वहां से ?" राघव दोनों को वापस आया देखकर कह उठा ।
"हां ।" धर्मा मुंह बनाकर बोला ।
"इसका मतलब केकड़ा ठीक कह रहा था कि असल को नहीं उसके प्यादे को मारा गया है।" राघव बोला- "उनकी इस हरकत से समझा जा सकता है कि हमारे सामने जो भी है, वो कम नहीं ।"
"केकड़ा तो इस बात को शुरू से ही कह रहा है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"मुझे नहीं लगता कि अब रतनचंद को मारने वाला वहां दोबारा आयेगा ।" राघव कह उठा ।
"कुछ नहीं कहा जा सकता ।"
"ये साला केकड़ा हमें उसके बारे में बता क्यों नहीं रहा। हरामी हमसे खेल खेल रहा है। जिसने रतनचंद की हत्या की सुपारी दी है, और जिस ने ली है, दोनों के बारे में ही हमें नहीं बता रहा । सिर्फ बीच की खबरें बताता रहता है ।"
"केकड़ा चाहता क्या है ?"
"ये ही तो अभी तक हमें समझ नहीं आ रहा ।"
कुछ पल उनके बीच चुप्पी रही।
"अब वो जो भी है, क्या करेगा ?" राघव ने दोनों को देखा ।
"रतनचंद को मारेगा और क्या करेगा ।"
"परन्तु कैसे? रतनचंद तो हमारी आड़ में मौजूद है।" राघव बोला ।
"मेरे ख्याल में अब कुछ नया करेगा ।" एक्स्ट्रा कह उठा ।
"नया। वो कैसे ?"
"एक्स्ट्रा सोच भरे स्वर में कह उठा-
मैंने उसके आदमी की हत्या की है। वो तो पहले से ही हमारे बारे में जानता होगा यह जान गया होगा कि हम रतनचंद को सुरक्षा दे रहे हैं ।"
"शायद उसे इस बारे में एहसास हो गया हो कि हमारी वजह से उसकी राह कठिन हो गई है ।"
"तुम्हारा मतलब है कि वो हम पर भी वार कर सकता है ।"
"क्यों नहीं कर सकता? मैंने उसके आगे को मारा है। सही बात तो ये है कि एक-दूसरे की हत्या का रास्ता तो मैंने ही खोला है, अब बात रतनचंद कि नहीं रही , मामला उसका और हमारा हो गया है ।"
"ये तुम कह रहे हो, क्या पता वो ऐसा सोचता है या नहीं ।"
"वो ऐसा क्यों नहीं सोचेगा ?"
"तीनों एक-दूसरे को देखने लगे । धर्मा बोला-
"हमें सतर्क रहना होगा। वो हम पर भी वार कर सकता है ।"
"लेकिन हम रतनचंद को लिए कब तक इस तरह बंगले में बैठे रहेंगे? सामने जो कोई भी है, उसे खत्म करना ही होगा ।"
"ये तभी हो सकता है, जब उसके बारे में पता चले कि वो कौन...।"
तभी रतनचंद कालिया ने भीतर कदम रखा ।
"क्या हो रहा है ?" रतनचंद बोला।
"रतनचंद ।" धर्मा कह उठा- "अब की बार केकड़ा का फोन आये तो उसे बड़ी रकम ऑफर करो। हमारे लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि कौन तुम्हारी जान के पीछे पड़ा है, जब तक उसके बारे में नहीं जानेगे, तब तक हम कुछ नहीं कर सकते ।"
"कोशिश करूंगा ।" रतनचंद ने गंभीर स्वर में कहा ।
"कोशिश नहीं, ये जरूरी है ।"
रतनचंद सिर हिला कर रह गया । फिर बोला-
"कल मेरे साले की शादी है।"
"साले की शादी ?" एक्स्ट्रा के होंठों से निकला ।
"मुझे शादी में जाना होगा ।"
"जरूरी है ?"
"जरूरी ही समझो ।"रतनचंद ने कहा- "अब ये बात तुमने देखनी है कि कोई मुझे गोली न मार दे ।"
"चिन्ता मत करो, ये ही तो देख रहे हैं । बता देना हमें, कि कल कब जाना है ?"
रतनचंद वहां से चला गया ।
"हमें सतर्क रहना होगा। कल रतनचंद पर हमला हो सकता है।" राघव ने गम्भीर स्वर में कहा ।
■■■
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।
"वहां क्या हो रहा है ?" पूछा देवराज चौहान ने ।
"सब ठीक है, तुम्हारे जाने के बाद, बंगले से दो आदमी निकले और, वहीं उस ऑफिस में गये, जहां तुम और कोली टिके थे।"
"फिर ?" देवराज चौहान के होंठ गोल हो गये।
"वहां किसी को ना पाकर वापस चले आये और बंगले में चले गये। मेरे ख्याल में वो R.D.X. में से दो होंगे ।"
"हो सकता है ।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा ।
कुछ पल ठहरकर जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी-
"तुम कहां हो ?"
"जगजीत नाम के उस आदमी के पास, जिससे R.D.X. ने रतनचंद का फेसमॉस्क बनवाया था ।"
"ओह ! तो उसने रतनचंद का मॉस्क बनाया, वो माना ?"
"हां ।"
"अब क्या कर रहे हो ?"
"उससे रतनचंद का अपने लिये फेसमॉस्क बनवा रहा हूं ।"
"वो बनाने के लिये तैयार हो गया ?"
"तैयार कर लिया ।"
"लेकिन तुम उस मॉस्क का क्या करोगे ?"
"मेरी कद-काठी रतनचंद जैसी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"क्या मतलब ?" जगमोहन का उलझन से भरा स्वर कानों में पड़ा ।
मिलने पर बताऊंगा ।"
"कुछ तो बताओ ।"
"R.D.X. इस हद तक सतर्क हैं कि मुझे रतनचंद तक नहीं पहुंचने देंगे। और रतनचंद का शिकार करने से पहले मैं जानना चाहता हूं कि कौन रतनचंद को हमारी खबरें दे रहा है कम-से-कम वो प्रताप कोली नहीं था, वरना उसकी हत्या नहीं होती ।"
"तुम कैसे जानोगे ?"
"मुझे रतनचंद बनकर, रतनचंद की जगह देनी होगी, तभी इस बात का खुलासा हो सकता है ।" देवराज चौहान बोला ।
"रतनचंद की जगह ?" जगमोहन के स्वर में चौंकने के भाव थे-"ये कैसे संभव है ? R.D.X. हमें उसका निशाना नहीं लेने दे रहे और तुम उसकी जगह लेने को कह रहे हो ? ये असंभव है ।"
"इस असंभव को संभव बनाना बहुत जरूरी है हमारे लिये।
"ये नहीं हो पायेगा ।" इधर से जगमोहन ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा- "एक पल के लिये मान लें कि ये हो भी गया और तुम रतनचंद बनकर बंगले पर पहुंच गये तो क्या R.D.X. पहचान नहीं जायेंगे कि उनके सामने रतनचंद नहीं, कोई और है ?"
"इन बातों का जवाब पहले नहीं दिया जा सकता ।"
"वो पहचान जायेंगे और तुम्हें किसी हालत में नहीं छोड़ेंगे। ये काम असंभव है। इस तरह सोचना छोड़ दो। सबसे बड़ी बात तो ये है कि वो हमें किसी भी हाल में रतनचंद तक नहीं पहुंचने देंगे। वो खतरनाक ही नहीं, हरामी भी लग रहे हैं ।"
देवराज चौहान ने फोन कान से लगाये सिगरेट सुलगाई ।
"फालतू के चक्कर में मत पड़ो ।" जगमोहन की आवाज पुनः कानों में पड़ी- "रतनचंद को शूट करो, काम खत्म ।"
"उससे पहले मैं जानूंगा की उसे हमारे बीच में कौन बता रहा है।"
"क्या जरूरी है ?"
"बहुत जरूरी है, क्योंकि मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि हमसे वास्ता रखता ही कोई उस तक सारी खबरें पहुंचा रहा है।"
"हमने नागेश शोरी के आदमियों को अपने से दूर कर दिया, अब हमें क्या-जो-।"
"मुझे है । मुझे लग रहा है कि कोई गड़बड़ है जो अभी हमारी समझ में नहीं आ रही है "
"गड़बड़ ?"
"हां ।"
जगमोहन की गहरी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा ।
"ठीक है, तुम जो समझो, करो ।"
"तुम बंगले पर नजर रखो और आने-जाने वाले के बारे में जानने की चेष्टा करो ।"
"सोहनलाल जी तुम्हारे साथ हैं ?"
"हां। तुम्हें ये काम अब अकेले ही करना होगा ।"
"ठीक है ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद किया और कश लिया ।
सामने काम में लगा जगजीत कह उठा-
"जब R.D.X. को पता लगेगा कि मैंने तुम्हें रतनचंद का मॉस्क बना कर दिया है तो वे सख्त नाराज होंगे ।"
"तुम्हें दो लाख मिलेगा। देवराज चौहान बोला ।
"तो ?"
"चुपचाप अपना काम करो। तुम नोट लेकर काम कर रहे हो, बात खत्म।
"लेकिन रतनचंद की तस्वीरें तो R.D.X. ने ही भेजी हैं, ऐसे में उन्हें नाराज होने का हक है ।"
उसी पल सोहनलाल कह उठा-
"देवराज चौहान को फालतू बातें सुनने की आदत नहीं, चुपचाप अपने काम में लगे रहो ।"
"तुम लोग मेरे घर में बैठकर ही मुझे धमका रहे हो ?" जगजीत ने नाराजगी से कहा ।
"क्या ऐसा तेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ ?" सोहनलाल ने उसे घूरा।
जगजीत ने जवाब में कुछ नहीं कहा ।
"तू जिस धंधे में है वहां लोग घर में घुसते हैं और गोली मार कर चले जाते हैं। दस दिन बाद बदबू आने पर गली-मोहल्ले के लोगों को पता चलता है कि इधर कोई लाश पड़ी सड़ रही है ।"
जगजीत ने सोहनलाल को देखा, और बिना कुछ कहे अपने काम में व्यस्त हो गया ।
जब तक देवराज चौहान, दिनेश चुरू के नम्बर मिलाने लगा था।
दूसरी बार मिलाने पर नम्बर लगा और दिनेश चुरू की आवाज कानों में पड़ी ।
"हैलो ।"
"नागेश शोरी का फोन नम्बर दो। उससे बात करनी है।" देवराज चौहान ने कहा।
'प्रताप कोली....।"
"उसकी लाश तुम वहां से ले जा चुके हो ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम्हारे होते हुए कोई उसे मार गया और तुम-।"
"मैं वहां नहीं था। शोरी का नम्बर दो ।"
"मैं अभी शोरी साहब से फोन करने को कहता हूं ।"
"ठीक है ।"
"तुम कहां हो, मुझे बताओ, मैं आ जाता हूं ।" दिनेश चुरू की आवाज कानों में पड़ी ।
"जरूरत पड़ने पर मैं तुम्हें फोन करके बुला लूंगा।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
पांच मिनट ही बीते होंगे की बेल बजी फोन की ।
"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।
"प्रताप कोली की मौत के बारे में सुनकर मुझे दुख हुआ। वो मेरा पुराना आदमी था।" नागेश शोरी की आवाज कानों में पड़ी।
"उसकी मौत का मुझे भी दुख है ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- "उसने मर कर ये साबित कर दिया कि कम-से-कम वो मेरी खबरें बाहर नहीं निकाल रहा था ।"
"तुम्हारी खबरें कहीं से भी बाहर नहीं जा रही। वहम है तुम्हारा।"
"मुझे समझाने की कोशिश मत करो। शोरी, मेरे विचारों को हिलाने की कोशिश मत करो ।"
"ठीक है। बताओ, मुझसे क्या चाहते हो?" नागेश शोरी की आवाज कानों में पड़ी ।
"तुम्हारा आदमी रतनचंद के आदमियों में है ?"
"हां ।"
"उससे जानने की कोशिश करो कि बंगले पर क्या हो रहा है और मुझे हर बात की खबर करो ।"
"ठीक है । मैं पता करता हूं ।" नागेश शोरी की आवाज कानों में पड़ी- "तुम कहां हो और क्या कर रहे हो ?"
"मेरे बारे में कुछ भी मत पूछो। मैं बताऊंगा नहीं। तुम्हें रतनचंद के बारे में खबर मिल जायेगी।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
जगजीत फेश मॉस्क बनाने में व्यस्त था ।
सोहनलाल और देवराज चौहान उसके पास मौजूद थे ।
■■■
"कल के लिये हमें कुछ खास सोचना चाहिये ।" धर्मा ने कहा ।
"कैसा खास ?" सोफे पर अधलेटा राघव बोला ।
शाम के सात बज रहे थे । बाहर अंधेरा घिरने की तैयारी में था ।
एक्स्ट्रा टी.वी. के सामने बैठा, चैनल बदलने में व्यस्त था ।
"रतनचंद ने शादी पर जाना है। रास्ते में या वहां कुछ भी हो सकता है ।" धर्मा बोला ।
"गोली मारने वाले को शायद पता ही ना चले कि रतनचंद का शादी पर जाने का प्रोग्राम है ।"
"क्या बेवकूफी वाली बातें कर रहे हो ।"
"क्यों ?"
"वो हर हाल में हम पर नजर रख रहा होगा। जब हम यहां से चलेंगे शादी वाले घर में पहुंचेंगे तो वो समझ जायेगा कि शादी में आया है रतनचंद। रतनचंद ने घंटों वहां रहना है। ऐसे में वो वहां सोच-समझकर रतनचंद को नुकसान पहुंचा सकता है ।"
"नहीं पंहुचा सकेगा, हम भी तो वहां होंगे ।"
धर्मा ने राघव को घूरा।
"जरूरत पड़ी तो हम रतनचंद के सिक्योरिटी वाले साथ में ले चलेंगे ताकि-।"
"तो क्या गोली चलाने वाला हमारे इंतजाम देखकर, अपना इरादा छोड़ देगा ?" धर्मा ने तीखे स्वर में कहा ।
राघव ने धर्मा को देखा ।
"ये बात है तो वहां रतनचंद को गोली लगने का खतरा हर वक्त लगा रहेगा ।" राघव कह उठा।
"मैं भी यही कह रहा हूं कि हमारी मौजूदगी में भी रतनचंद को गोली मारी जा सकती है ।"
तभी एक्स्ट्रा ने टी.वी. ऑफ किया और उनकी तरफ गर्दन घुमा कर बोला-
"और अब की बार गोली चलाने वाला गुस्से में होगा, क्योंकि उसके साथी की हत्या की है हमने ।"
"यानि कि अब हमें और भी संभल कर रहना होगा ।" राघव ने होंठ सिकोड़कर कहा ।
"बहुत देर बाद मेरी बात तेरी समझ में आई।"
"हो सकता है, इस बार रतनचंद को शूट करने वाले ने भी सोच लिया हो कि मामला आर या पार करना है ।" बोला एक्स्ट्रा ।
"क्या रतनचंद को शादी में जाना जरूरी है?" राघव होंठ सिकोड़ कर कह उठा ।
"रतनचंद को बाहर निकलने दो। आखिर कब तक हम उसे बंगले में लेके बैठे रहेंगे ।" एक्स्ट्रा सोच भरे स्वर में बोला ।
धर्मा और राघव की नजरें एक्स्ट्रा पर थी। राघव बोला-
"रतनचंद का बाहर निकलना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि उस पर गोली चलाने वाले को हम जानते नहीं हैं। क्या पता वो हमारे पास ही मंडरायें और हम उसे पहचान ना पायें। वो गोली चला कर चलता बने..."
"उसे न पहचानना, बड़ी समस्या है हमारे लिए।" धर्मा बोला- "कोई तोड़ तो निकालना होगा ।"
"चंद लम्हों के लिए उनके बीच चुप्पी छा गई ।
"धर्मा कल रतनचंद नहीं, रतनचंद के चेहरे में तू शादी में जायेगा।"
"मैं ?"
"हां और-।"
"तू मेरी जान के पीछे क्यों पड़ा हुआ है ?"
"राघव ठीक कह रहा है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"क्या मुसीबत है ।" धर्मा बड़बड़ा उठा- "वो मुझे मार देगा तो तुम दोनों को शांति मिल जायेगी ।"
"एक्स्ट्रा ।" राघव सोच भरे सर मैं बोला- "ये बात किसी को भी मालूम नहीं होगी कि हमारे साथ रतनचंद नहीं, धर्मा है ।"
"किसी को न मालूम हो ?"
"हां ।"
"सुन्दर को भी नहीं ?"
"नहीं ।"
"ऐसा क्यों ?"
"मैं सावधानी बरतना चाहता हूं। सब यही सोचें कि हम रतनचंद को लेकर चल रहे हैं ।" राघव ने कहा ।
"ठीक है ।" एक्स्ट्रा ने सिर हिलाया- "तब रतनचंद कहां रहेगा ?"
"यहीं पर। जब तक हम वापस नहीं आते, वो चुपचाप बंगले के किसी कमरे में बंद रहेगा। सुन्दर या बाकी गनमैनों को ये पता चल गया कि हमारे साथ असली रतनचंद नहीं है तो वे इंतजामों के सिलसिले में लापरवाह हो सकते हैं ।"
"ये ठीक कहा तुमने ।"
"रतनचंद मानेगा की वो बंगले पर ही रहे ? शादी में न जाये ।" धर्मा बोला ।
"उसका बाप भी मानेगा ।"
"और तुम कल रतनचंद के चेहरे में पूरी तरह बुलेटप्रूफ में रहोगे।" एक्स्ट्रा बोला- "अगर शादी के बीच में रतनचंद रूपी धर्मा को गोली मारता है तो उसे, हमने हर हाल में पकड़ लेना है।"
धर्मा ने दोनों को देखकर कहा।
"कैसे ?"
"रतनचंद को मारने वाला, कल जब जानेगा कि रतनचंद बाहर गया है तो वो पीछे लग जायेगा और हर हाल में रतनचंद को मौका मिलने पर शूट करना चाहेगा। अगर वो गोली चलाता है, तो हम समझ सकते हैं कि-।"
"एक बात।" धर्मा ने फौरन टोका- "मेरे ख्याल में वो जानता होगा कि हम रतनचंद का हमशक्ल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ये बात हमने ही खिड़की के द्वारा उसे समझाई थी ।"
"तो ?"
"तब क्या वो ये नहीं सोचेगा की रतनचंद शादी में आया है, वो नकली हो सकता है ? असली रतनचंद बंगले पर ही हो ?"
एक्स्ट्रा और राघव की नजरें मिलीं।
"वो ऐसा सोच सकता है ।"
फिर तो बंगले में रतनचंद को खतरा हो सकता है। तो धावा हो सकता है बंगले पर ।"
"यानि कि रतनचंद को बंगले पर छोड़ना ठीक नहीं होगा ।"
"यही मेरा ख्याल है। वो जो भी है, हमें उसे कम नहीं समझना चाहिये ।"
उनके बीच पुनः चुप्पी आ ठहरी ।
"तो ये तय है कि कल हमें रतनचंद का कोई इंतजाम करके चलना होगा कि पीछे से वो रतनचंद को बंगले में शूट न कर दें।"
"क्या इंतजाम करेंगे रतनचंद का ?"
"इस बारे में रतनचंद से बात करते हैं, वो शायद इस बारे में कोई सुझाव दे दे ।"
■■■
रतनचंद R.D.X. की बात सुनकर बोला-
"जो तुम चाहोगे, मैं वैसा करने को तैयार हूं। लेकिन बंगले में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां में खुद को छुपा सकूं। यहां के कमरे तुम्हारे सामने हैं और जो भी जगह है, वो भी तुम लोग देख सकते हो ।"
"यानि कि कोई गुप्त जगह नहीं, जहां तुम किसी की नजरों में आये बिना छुपे रह सको ।" धर्मा ने पूछा ।
"नहीं, ऐसी कोई जगह नहीं ।"
धर्मा, राघव और एक्स्ट्रा (X-TRA) को देखकर बोला-
"फिर तो इसे बंगले में छोड़ना भी ठीक नहीं होगा ।"
"मेरे ख्याल में तो बंगले में मेरा रहना ठीक होगा ।" रतनचंद बोला- "यहां गनमैन भी तो रहेंगे ।"
"दो गनमैन छोड़कर, बाकी को हम ले जायेंगे ।" राघव ने कहा- "शादी-ब्याह का मौका होगा। वहां कोई अंजान व्यक्ति करीब आ सकता है, गनमैनों की वहां जरूरत पड़ सकती है ।"
"रतनचंद भी कल हमारे साथ चलेगा ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।
"साथ ?" दोनों ने एक्स्ट्रा को देखा ।
"प्लान वही रहेगा।" एक्स्ट्रा कह उठा- "लेकिन रतनचंद हमारे साथ गनमैन के रूप में होगा। इसे मूंछे लगा देंगे। इसकी दाढ़ी और सिर पर टोपी डाल देंगे। इस तरह ये हमारे साथ चल सकता है ।"
"खूब !" रतनचंद के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी- "तुम्हारा ये आईडिया मुझे जंचा ।"
"ठीक है ।" राघव ने धर्मा को देखा ।
"हां। मूंछ हमारे पास है ?" राघव ने एक्स्ट्रा को देखा।
"नहीं ।" एक्स्ट्रा ने इन्कार में सिर हिला दिया ।
"मैं कहीं से लेकर आता हूं ।" राघव बोला ।
"ये काम सुंदर कर देगा ।" रतनचंद ने कहा ।
"सुन्दर को बुलाओ ।" धर्मा ने कहा ।
■■■
सुन्दर कार से बंगले से निकला तो शाम के आठ बज रहे थे । अंधेरा हो चुका था ।
इस बात का जरा भी एहसास न हो सका कि जगमोहन कार में उसके पीछे लगा चुका है ।
भीड़ भरी सड़कों पर दोनों कारें आगे-पीछे रहीं।
बीस मिनट बाद सुन्दर ने एक मार्केट में पार्किंग में कार रोकी और उतरकर दुकानों की तरफ बढ़ गया ।
जगमोहन ने भी फौरन कार पार्क की और उसके पीछे हो गया।
सुन्दर दुकानों की कतार में दुकानों को देखता। आगे बढ़ रहा था, फिर वो एक दुकान में प्रवेश कर गया। उसके पीछे ही जगमोहन भी भीतर प्रवेश कर गया ।
जगमोहन दुकान में रुमाल पसन्द करने लगा। जबकि नजरें उसकी सुन्दर पर थीं। ये जानकर उसे कुछ हैरानी हुई कि सुन्दर ने दुकान से दाढ़ी-मूछ खरीदी और बाहर निकल गया।
जगमोहन ने रूमालों के पैसे दिए, और उसके पीछे-पीछे बाहर आ गया ।
वहां से सुन्दर सीधा वापस बंगले पर ही आ गया ।
जगमोहन वापस अपनी जगह पर आ डटा और देवराज चौहान को फोन किया ।
"कहो ।" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।
"रतनचंद का वो ही आदमी कार से बाहर निकला और दो-तीन तरह की दाढ़ी-मूछें खरीद कर वापस लौटा ।"
"दाढ़ी-मूछें ?"
"हां ।"
"तो अब R.D.X. किसी नये फेर में है ।" देवराज चौहान की आवाज जगमोहन के कानों में पड़ी ।
"ऐसा ही लगता है कि कुछ नया करने की सोच रहे हैं, वरना इस तरह दाढ़ी मूछों की खरीदारी नहीं की जाती ।" जगमोहन बोला।
"तुम अपने काम में लगे रहो ।"
"तुम वहां क्या कर रहे हो ?"
"काम चल रहा है। सुबह तक रतनचंद के चेहरे जैसा फेसमॉस्क तैयार हो जायेगा ।"
"तो उसके बाद उस आदमी का भी कोई इंतजाम करना होगा, वरना, वो बता देगा कि तुमने उससे रतनचंद के चेहरे का मॉस्क बनवाया है । R.D.X. सतर्क हो सकते हैं ।"
"काम निपटने तक वो सोहनलाल की देख-रेख में रहेगा ।"
"ठीक है ।" जगमोहन ने बात खत्म करके फोन बंद किया ।
■■■
सुबह छः बजे सोहनलाल ने देवराज चौहान को नींद से उठाया।
"जगजीत ने मॉस्क तैयार कर दिया है ।" सोहनलाल बोला ।
देवराज चौहान उठा ।
जगजीत से मॉस्क लेकर देखा ।
रात भर काम करने की वजह से जगजीत की आंखे नींद से भरी पड़ी थीं।
सोहनलाल का भी यही हाल था ।
देवराज चौहान ने मॉस्क शीशे के सामने पहुंचकर चेहरे पर लगाया। जगजीत ने विग दी सिर पर लगाने को। इसके बाद तो ऐसा लगा जैसे देवराज चौहान कहीं गायब हो गया और रतनचंद प्रकट हो गया हो ।
"काम बढ़िया करता है ये ।" सोहनलाल कह उठा ।
"नोट भी तो बढ़िया लेता हूं ।" जगजीत के उठा- "दो लाख दो मुझे ।"
देवराज चौहान ने मॉस्क और विग उतारी ।
"इसे किसी चीज में पैक करो ।"
जगजीत ने दोनों चीजें छोटे से डिब्बे में पैक कर दी।
देवराज चौहान ने जेब से हजार-हजार के नोटों की गड्डियां निकालकर दी ।
"शुक्रिया ।" जगजीत नोटों को लेकर कह उठा ।
"तुम दोनों रात भर के जागे हुए हो, नींद ले लो ।" देवराज चौहान बोला ।
"और तुम ?"
"अभी मेरे पास कोई काम नहीं। नौ बजे तक तो मैं यहीं रहूंगा । उसके बाद तुम जगजीत को अपने फ्लैट पर ले जाओगे और तब तक इसे अपने पास रखोगे, जब तक ये काम नहीं निपट जाता ।"
सोनालाल ने सिर हिलाया ।
"और तुम?" देवराज चौहान ने जगजीत से कहा- "कोई शरारत मत करना। जरा भी चालाकी की तो सोहनलाल तुम्हें गोली मार देगा। ये बात हमेशा अपने दिमाग में रखना ।"
"मेरी तरफ से कुछ नहीं होगा ।" जगजीत सिंह ने शांत स्वर में कहा ।
"नींद ले लो अभी ।"
दोनों पीछे वाले कमरे में सोने चले गये।
देवराज चौहान ने इस बात की तसल्ली कर ली कि उस कमरे में फोन जैसी कोई चीज नहीं है। दोनों जल्दी ही गहरी नींद में जा डूबे । देवराज चौहान किचन में चाय बनाने लगा ।
■■■
तब सुबह के नौ बजे थे ।
देवराज चौहान उन दोनों को नींद से उठाने की सोच रहा था कि फोन बजा-
"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।
"सब कुछ वैसा ही है या कुछ नया हुआ ?" नागेश शोरी की आवाज कानों में पड़ी ।
"वैसा ही है ।"
"इस काम में तुम धीमे नहीं चल रहे क्या ?"
"मेरी बातें उनको मालूम होती रही हैं, इसलिए तुम्हें सब कुछ धीमा ही लगेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"शायद इसी वजह से तुमने दिनेश चुरु को अपने से अलग कर दिया ।"
"गलत किया क्या ?"
"नहीं, ये काम तुम्हें पहले कर देना चाहिये था ।" नागेश शोरी ने उधर से कहा- "तुम्हारे लिये खबर है ।"
"क्या ?"
"रतनचंद आज अपने साले की शादी में जायेगा ।"
"आज ?"
"हां ।"
"ये खबर तुम्हें किसने दी ?"
"उसी आदमी ने, जो रतनचंद का गनमैन है । इस बार उसने इस खबर की मोटी कीमत ली है । जानते हो क्यों ?"
"क्यों ?"
"क्योंकि उसने ये भी बताया कि हकीकत में रतनचंद की जगह पर धर्मा नाम का आदमी होगा, जो R.D.X. का ही हिस्सा है । और असली रतनचंद गनमैन के रुप में साथ होगा ।"
"ऐसा ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
"शत-प्रतिशत ।" उधर से नागेश शोरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव आ गये।
"R.D.X. के बीच में आ जाने से, तुम्हारा काम कठिन हो गया है।" नागेश शोरी ने कहा ।
"मुझे फर्क नहीं पड़ता ।"
"R.D.X. ने तुम्हारे हाथों रतनचंद को बचाने की जबरदस्त चाल चली है । अगर तुम शादी पर रतनचंद पर हमला करते हो तो वो असली रतनचंद नहीं होगा। और असली रतनचंद गनमैन के रूप में सुरक्षित रहेगा ।"
"चाल अच्छी है ।"
"बेशक। लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि तुम गनमैनों में से असली रतनचंद को कैसे ढूंढोगे? मेरे ख्याल से वो असली शक्ल में तो होगा नहीं, यकीनन उसके चेहरे पर बदलाव कर रखा होगा ।"
देवराज चौहान को जगमोहन की बात याद आई, जिसमें उसने दाढ़ी-मूंछ खरीदे जाने की बारे में बताया था ।
"अभी इस बारे में मैंने सोचा नहीं । कोई और भी खबर है ?"
"अभी तो इतनी ही खबर है ।"
"हो तो बताना ।" देवराज ने फोन बंद कर दिया ।
नागेश शोरी से, बहुत काम की बात मालूम हुई थी ।
देवराज चौहान कुछ पलों तक सोच में रहा, फिर जगमोहन को फोन किया ।
"कैसे हो ?"
"बुरे हाल में हूं । न जाग पा रहा हूं, ना नींद ले पा रहा हूं ।"
"वहीं हो ?"
"हां ।"
"मैं घंटे तक तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया और दूसरे कमरे में पहुंचकर दोनों को उठाया। वे उठे । दोनों की आंखें लाल हो रही थी ।
"नौ बज गये ?" सोहनलाल ने पूछा ।
"हां । जगजीत को अपने फ्लैट पर ले जाओ और इस पर कड़ी नजर रखना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
आधे घंटे बाद तीनों फ्लैट से बाहर निकले । फेस मॉस्क का डिब्बा देवराज चौहान ने थाम रखा था ।
"तुम, जगजीत को ले जाओ । कार मैं ले जा रहा हूं ।"
"तुम्हारे लिए मॉस्क बना कर मैंने R.D.X.के खिलाफ काम किया है । वो मुझसे बहुत नाराज होंगे ।" जगजीत बोला ।
"तुम्हें अभी गोली मार दी जाये तो उन्हें नाराज होने का कोई मौका नहीं मिलेगा ।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा- "ये हमारी शराफत है कि तुम्हें जिन्दा रखा जा रहा है। कल उन लोगों ने मेरे एक साथी को मारा था।
"ओह ! ये बात तुमने पहले क्यों नहीं बताई ?"
"अब तो मालूम हो गई ।" कठोर था देवराज चौहान का स्वर ।
जगजीत कुछ न बोला ।
देवराज चौहान ने सोहनलाल से कहा-
"ये कोई गड़बड़ी करने की कोशिश करे तो इसे उसी वक्त शूट कर देना । सोचना भी मत की क्या करने जा रहे हो ।"
"सुना ।" सोहनलाल ने खतरनाक स्वर में जगजीत से कहा- "ग्रीन सिग्नल की आवाज सुनी कि तेरे को कभी भी मार दूं ।"
"मैं कोई गड़बड़ नहीं...।"
"टैक्सी स्टैंड किधर है ?"
"उधर ।"
"चल ।"
दोनों आगे बढ़ गये।
देवराज चौहान के कदम सामने खड़ी कार की तरह उठ गये ।
■■■
देवराज चौहान वहां पहुंचकर जगमोहन से मिला ।
नींद ना लेने की वजह से जगमोहन का चेहरा उतरा पड़ा था ।
"आज हमें काम करना पड़ सकता है।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या ?"
"नागेश शोरी ने...।" देवराज चौहान ने सारी बात बताई ।
बात पूरी होते ही जगमोहन कह उठा-
"इसका मतलब जब वे शादी के लिये यहां से रवाना होंगे तो जिस गनमैन ने दाढ़ी-मूछ लगा रखी हो, वो रतनचंद है ।"
"हां। नतीजा तो ये ही निकलता है ।"
दोनों की नजरें मिलीं-
"क्या करोगे तुम ?"
"हम।" देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला- "रतनचंद को कैद करेंगे और उसकी जगह मैं पहुंच पाऊंगा ।"
"इन सब की क्या जरूरत है ! रतनचंद को खत्म करो और...।"
"रतनचंद हमारे हाथों में आ जायेगा तो खत्म हो ही जायेगा, परन्तु मुझे उसके बारे में भी जानना है जो रतनचंद को हमारे बारे में खबरें दे रहा है। इसके लिये मुझे रतनचंद की जगह लेनी होगी।"
"ये बात तो रतनचंद के मुंह से भी निकलवाई जा सकती है ।" जगमोहन कह उठा ।
"तुम ये काम करते रहना । अगर रतनचंद से मालूम हो गई तो बढ़िया है ।"
"मालूम हो जायेगी। तुम्हें रतनचंद की जगह लेने की जरूरत नहीं, क्योंकि खामखां का खतरा...।"
"R.D.X. को क्यों भूल जाते हो ?"
"R.D.X. ?" जगमोहन के माथे पर बल पड़े ।
"उन्होंने प्रताप कोली को मारा है ।"
"वो हमें अभी जानते नहीं कि वे किसके खिलाफ लड़ रहे हैं, वो रतनचंद को-।"
"तुम ठीक कहते हो, फिर भी उन्हें समझाना जरूरी है। क्या पता वे हमारे बारे में जान चुके हों। उन्हें खबरें देने वाले ने क्या ये नहीं बताया होगा उन्हें कि वे हमारे खिलाफ लड़ रहे हैं ।" देवराज चौहान बोला ।
"क्या पता !"
"इस बात का पता तो, रतनचंद की जगह लेने के बाद ही चलेगा।"
"लेकिन तुम ये बहुत खतरे वाला काम कर रहे हो ।" जगमोहन व्याकुल हो उठा ।
"ये काम करना ही है ।"
जगमोहन देवराज चौहान का चेहरा देखने लगा, फिर बोला-
"क्या तुमने रतनचंद का मॉस्क इसलिए बनवाया ?"
"मेरे दिमाग में तब ये प्लानिंग चल रही ठीक है अगर मैं रतनचंद की जगह लूं तो पूरे मामले पर काबू पाया जा सकता है और R.D.X. से भी निपटा जा सकता है। शादी वाली बात तो अचानक ही सामने आ...।"
"जो तुम सोच रहे हो, वो इतना आसान नहीं है ।" जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा- "तुम रतनचंद बनकर R.D.X. के बीच में मौजूद रहोगे तो क्या वे तुम्हें पहचानेंगे नहीं ?"
"मुझे पूरा विश्वास है कि वे मुझे रतनचंद ही समझेंगे । मेरी कद-काठी रतनचंद से मेल खाती है। वो तो कभी सोच भी नहीं सकेंगे कि मैं रतनचंद नहीं हो सकता । तुम्हारा क्या ख्याल है, ये बात वे सोचेंगे ?"
"शायद नहीं ।"
देवराज चौहान ने सोच भरे अंदाज में सिगरेट सुलगाई।
"सबसे बड़ी बात है कि शादी में रतनचंद गनमैन के रूप में होगा तो वो R.D.X. की नजरों में रहेगा। उस वक्त उस पर कैसे हाथ डाला जा सकता है? रतनचंद के जरा भी इधर-उधर होते ही R.D.X. के बीच भगदड़ मच जायेगी ।"
"उनमें से एक तो तब रतनचंद के रूप में होगा । बाकी दो बचे।
"गनमैन भी तो होंगे ।"
"मेरे ख्याल में हमें यहां से चलना चाहिये ।" देवराज चौहान फोन निकालता कह उठा- "हमें कुछ ऐसा करना चाहिये कि जब वो वह पहुंचे तो हम शादी वाले घर में पहले से ही टिके हों।"
"ऐसा कैसे हो सकता है ?" जगमोहन कह उठा ।
"कुछ करना होगा, जिससे कि ऐसा हो जाये ।" देवराज चौहान फोन के नंबर दबाने लगा ।
"किसे फोन कर रहे हो ?"
"नागेश शोरी को ।"
"क्यों? उसे ये मत बताना कि हम क्या कर रहे हैं ।" जगमोहन ने जल्दी से कहा ।
नागेश शोरी से बात हुई ।
"कहो ।" शोरी की आवाज कानों में पड़ी ।
"रतनचंद कहां पर शादी में जा रहा है ? उसके साले की शादी कहां हो रही है ?"
नागेश शोरी ने पता बताया ।
"शादी के प्रोग्राम क्या-क्या हैं ?" देवराज चौहान ने पुछा- "मालूम हो तो बताओ-।"
नागेश शोरी बताने लगा ।
बात करने के बाद देवराज चौहान ने फोन बंद किया और सिगरेट सुलगा ली, चेहरे पर सोच के भाव थे। चुप्पी जब लंबी हुई तो बोला जगमोहन-
"क्या सोच रहे हो ?"
"रतनचंद का अपहरण कराने की चेष्टा की जाये, तो उन लोगों का ध्यान बंट सकता है ।"
"क्या मतलब ?"
"मतलब भी समझ जाओगे । यहां से चलो ।"
■■■
काशीनाथ नम्बरी बदमाश था।
कई छोटे-बड़े केस उस पर चल रहे थे। कभी जमानत पर छूट जाता तो कभी अन्दर। चालीस बरस की उम्र में पन्द्रह बरस तो उसने जेल में ही बिताये थे । अभी वो चार दिन पहले छूटा था जमानत पर और उसका हाथ तंग चल रहा था। तभी उसका चेला-चपाटा, उसके पास पहुंचा और बोला-
"उस्ताद, मुर्गा आया है ।"
"मुर्गा ?"
"पक्का उस्ताद । कोई काम कराना चाहता है ।"
"सोचता क्या है, ले आ ।"
"बाहर ही आ जाओ। वो कार से उतरने को तैयार नहीं। सेठ लगता है कोई ।"
काशीनाथ, चेले के साथ बाहर कार तक पहुंचा ।
कार की ड्राइविंग सीट पर जगमोहन बैठा था और पीछे वाली सीट पर रतनचंद ।
"कहो सेठ ।"
"छोटा सा काम कराना है ।" रतनचंद बोला- "किसी ने तुम्हारा नाम लिया कि तुम बढ़िया काम करोगे ।"
"पैसे की जरूरत है । चिन्ता मत करो। काम बढ़िया ही करूंगा। बोलो, क्या काम है ?" काशीनाथ ने पूछा ।
"शाम को मैंने एक शादी में जाना है । वहां तुम अपने आदमियों के साथ पहुंचोगे और मेरा अपहरण करने की कोशिश करोगे ।"
"तुम्हारा अपहरण ?" काशीनाथ के चेहरे के भाव बिगड़े ।
"हां। सिर्फ नाटक करना है। अपरहण करना नहीं। लेकिन देखने वालों को लगे कि सच्ची कोशिश है ।"
"लफड़ा क्या है सेठ ?"
"तुम अपने काम से मतलब रखो। उस वक्त मैं अपने गनमैनों से घिरा होऊंगा ।"
"वो हमें गोली भी मार सकते हैं ।" काशीनाथ बोला ।
"तुमने उन्हें गोली चलाने का मौका ही नहीं देना। अपहरण का नाटक करके और ये दिखाकर कि तुम सफल नहीं हो सके, वहां से खिसक जाना है । इस सारे ड्रामा में पांच से सात मिनट का वक्त लगना चाहिये ।"
"ठीक है, पता बोल और इस बात का एक लाख लगेगा, वो भी पहले देना होगा ।" काशीनाथ ने कहा ।
रतनचंद ने हजार के नोटों की गड्डी निकाली और उसकी तरफ बढ़ा दी ।
"वाह ।" काशीनाथ गड्डी थामता कह उठा- "दो लाख भी मांगता तो शायद तू वो भी दे देता ।"
"सत्तर हजार के काम के लाख तो दे सकता हूं, परंतु दो लाख नहीं ।"
"ठीक है, ठीक है। तेरा काम हो जायेगा, पता-टेम, सब कुछ बता।"
रतनचंद ने बताया ।
वक्त पर काम करने का वादा करके काशीनाथ चला गया ।
जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।
पीछे बैठा रतनचंद अपने चेहरे से मॉस्क उतारने लगा ।
मॉस्क उतारा तो, नीचे से देवराज चौहान का असली चेहरा निकला। वो बोला-
"काशीनाथ जब रतनचंद के अपहरण का नाटक करेगा तो वहां घबराहट फैलीगी। सब का ध्यान काशीनाथ और उसके आदमियों पर होगा- "तो ऐसे में हम दाढ़ी-मूंछ वाले असली रतनचंद पर हाथ डाल सकेंगे ।"
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