सुबह करीब सवा सात बजे पीटर ने जगाया तो जलीस उठकर बैठ गया।

पीटर ने सिगरेट सुलगाकर पहला ही कश लिया तो खाँसी आ गई। वह खाँसते–खाँसते दोहरा हो गया और आँखों में पानी आ गया । खाँसी का दौर रुका तो उसने पुनः कश लिया । फिर वही अंजाम हुआ तो उसने सिगरेट बाहर फेंक दी ।

"तुम बहुत दिन से बीमार हो ?" जलीस ने पूछा ।

"मैं बहुत पहले मर चुका हूँ ।"

"बेकार की बातें मत करो ।"

"मैं सच कह रहा हूँ । डॉक्टरों के मुताबिक मुझे दो महीने पहले मर जाना चाहिए था ।"

"लेकिन अब टी बी लाइलाज नहीं रही । नए–नए इलाज निकल आए हैं ।"

"साल भर पहले तक इलाज का चांस था मगर मैने परवाह नहीं की । करता भी किसके लिए और कैसे ? तुम तो जानते हो, मैं चौदह साल की उम्र से अनाथ और तन्हा हूँ । मेरा परिवार तुम दोस्त लोग ही थे और अकेलेपन के साथी थे बढ़िया सिगरेट और महँगी शराब । नतीजे के तौर पर मैं हमेशा मुफलिस ही रहा ।" वह मुस्कुराया–"जो मिला मुकद्दर समझकर ले लिया मगर किसी के सामने हाथ कभी नहीं फैलाया ।" पुनः खाँसने के बाद बोला–"सच बात तो यह है कि अब यह दुनिया जीने के काबिल रही भी नहीं । आजकल खुदगर्जी और नफरत के अलावा यहाँ कुछ नहीं रहा, दोस्त । सब पैसे के पीछे भाग रहे हैं और इसके लिए पागलों की तरह एक–दूसरे के गले काट रहे हैं । मेरी समझ में नहीं आता कि आजकल पैसे की हवस क्यों इतनी ज्यादा बढ़ गई है और पहले वाला भाईचारा और आपसी प्रेम कहाँ और क्यों गायब हो गया है ।" वह तनिक रुका फिर बोला–"जानते हो, आजकल 'अंडर वर्ल्ड में भी मज़हब के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिश की जा रही है । लंबे–लंबे पुलिस रिकार्ड वाले, जो पहले राजनीतिबाजों की मेहरबानियाँ हासिल करने के बदले में उनकी मदद किया करते थे अब खुद राजनीतिबाज बन बैठे हैं और कुर्सी और वोट बैंक की ख़ातिर मज़हब और जाती के नाम पर लोगों में नफरत का जहर फैलाकर लोगों को एक–दूसरे से लड़वा रहे हैं । मुल्क का सत्यानाश करके रख दिया है कमबख्तों ने ।"

जलीस ने बिस्तर से उतरकर बदन तोड़ अंगड़ाई ली ।

"तुम्हारा लैक्चर खत्म हो गया ?"

"यह लैक्चर नहीं असलियत है, जलीस ।" पीटर ने कहा–"तुम जात–पात में यकीन करते हो ?"

"नहीं ।"

"मज़हब में ?"

"यह हर एक का अपना जाती मामला है ।"

"तुम मुसलमान हो, रनधीर हिन्दु था और मैं ईसाई हूँ । इनमें कौन सा मज़हब सबसे बड़ा है ।"

"कोई नहीं, सब बराबर हैं ।"

"तुम सबसे बड़ा मज़हब किसे मानते हो ?"

"इंसानियत को ।"

"और सबसे बड़ा रिश्ता ?"

"सच्ची दोस्ती ।"

"इस सीधी सी बात को और लोग क्यों नहीं समझते ?"

"क्योंकि खुदगर्जी, बेईमानी और लालच ने उनकी अक्ल पर पर्दा डाल दिया है ।"

अचानक पीटर गंभीर हो गया ।

"जानते हो, पहले मैं जिंदगी से इस कदर बेजार था कि खुदाबाप से रोज मौत माँगा करता था । लेकिन अब मुझे जिंदगी से प्यार होने लगा है ।"

"क्यों ?"

"जिंदगी एक बार फिर मजेदार होनी शुरु हो गई है–पुराने वक़्तों की तरह ।"

"क्या वे दिन वाकई मजेदार थे ?"

"बेशक । घर में बूढ़े बाप की गालियाँ और मार तो मुझे खाने को मिलती थी मगर भरपेट रोटी नहीं मिलती थी । आए दिन मार–कुटाई का नया हंगामा होता रहता था । फिर भी सबकी तरह मैं मस्त और बेफिक्र रहता था ।"

शिवपुरी के बदमाशों से हुई मुठभेड़ याद है तुम्हें ?"

"हाँ । उन्होंने सोनिया ब्रिगेजा और विमला सक्सेना को अपने ठिकाने पर ले जाकर उन्हें 'खराब' करने की कोशिश की थी । हमने उनके ठिकाने पर हमला बोल दिया । खूब जमकर मार–कुटाई हुई थी। उस रात हममें से कोई भी घर नहीं जा सका । मेरे सर में छह टांके आए थे । तुम और रनधीर उस पुलिस वाले पर भी पिल पड़े थे जिसने उनकी तरफदारी करते हुए लड़ाई रुकवाने की कोशिश की थी ।"

"उस पुलिसवाले ने मेरी नाक तोड़ दी थी ।"

"बाद में तुमने उसकी सर्विस रिवॉल्वर चुराकर हिसाब बराबर कर लिया था । वो रिवॉल्वर अभी भी तुम्हारे पास है ?"

"हाँ ।" जलीस ने दरवाजे पर लटकी अपनी पैट की ओर इशारा कर दिया । जिसकी जेब में अड़तीस कैलाबर की रिवॉल्वर रखी थी ।

"यू आर ग्रेट, जलीस ।"

"आई नो, नाऊ यू काल अमोलक एन्ड टैल हिम टू कम हेयर ।"

"ओ. के. बॉस ।"

 

* * * * * *

 

अमोलक फाइल साथ लेकर आया था । जिसमें 'ऑप्रेशन' की कुछेक डिटेल्स थीं । उसके मुताबिक 'आर्गेनाइजेशन' वाकई काफी बड़ी थी और लगभग सभी तरह के धंधों से जुड़ी हुई थी ।

जलीस ने फाइल का अध्ययन करके रनधीर के 'साम्राज्य' की तस्वीर अपने दिमाग में बैठा ली । फिर अपनी सहुलियत के लिए नोट्स तैयार किए और तमाम पेपर्स वापस फाइल में लगा दिए । इस काम में करीब दो घंटे लग गए ।

"किसी ने तुम्हारे काम में अडंगा तो नहीं लगाया, अमोलक ?" उसने फाइल लौटाकर पूछा ।

"नहीं, वे चाहते तो थे मगर किसी ने अडंगा लगाया नहीं ।"

"गुड, इसकी कम्पलीट डिटेल्स कहाँ है ?"

"महाजन के पास सुरक्षित हैं । हम उससे ले सकते हैं, जब भी जरुरत पड़ेगी ।"

"या हम लेना चाहेंगे ?"

"मुझे नहीं लगता कि महाजन यह पसंद करेगा ।"

"उसके पास और चारा भी क्या है ?"

"कुछ नहीं ।" जलीस ने पूछा–"वह हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहा है ?"

"ऐसा वह नहीं कर सकता । क्योंकि मारा–मारी करने वाला आदमी वह नहीं है । फसाद से दूर ही रहता है । मेरे विचार से वह तुम्हारे चले जाने या मरने का इंतजार करना ही ज्यादा पसंद करेगा ।"

"एक और बात है, जिसे तुम तो भूल रहे हो लेकिन उसे अच्छी तरह याद है ।"

अमोलक ने असमंजसतापूर्वक उसे देखा ।

"क्या ?"

"रनधीर के तमाम जायज धंधों का मालिक तो कानूनन मैं या महाजन बन सकते हैं । लेकिन जुआ, सट्टा, रेस, वेश्यालयों वगैरा जैसे नाजायजधंधों को विरासत में हासिल नहीं किया जा सकता । इन्हें अपनी ताकत से हासिल करना पड़ता है और मालिक वह बनता है जो सबसे ताक़तवर होता है । अब उन सब धंधों का मालिक भी मैं हूँ ।"

"बिल्कुल ठीक है । तुम्हें सिर्फ इतना करना है कि उन पर अपना कब्ज़ा बनाए रखो ।"

जलीस हिंसक ढंग से मुस्कुराया ।

"यह मुश्किल काम नहीं है ।"

अमोलक इससे सहमत नजर नहीं आया लेकिन उसने बहस नहीं की ।

दोपहर में पास ही मौजूद फ्रांसिस के कैफे से लंच मंगाया गया । लंच की ट्रे के साथ उस रोज का अखबार भी था और वो इस ढंग से मुड़ा था कि जयपाल यादव के कालम 'नगर की बात वाला पेज सबसे ऊपर था ।

जलीस समझ गया कि अखबार वहाँ कैसे पहुँचा । पहले ही पैराग्राफ में ख़ौफ़ का हल्का सा टच लिए उसके प्रति नफरत साफ झलक रही थी ।

शीर्षक था–शहर में शैतान की वापसी ।

'''बिग बॉस' रनधीर मलिक मर चुका है । जुर्म भ्रष्टाचार और गंदगी की बुनियाद पर खड़ी की गई करोड़ों की उसकी 'सल्तनत को लावारिस समझकर स्थानीय अपराध जगत के सभी बड़े दादा उस पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी–अपनी ताकत को तौलते हुए मैदान में आने के लिए तैयार थे । भयानक मार–काट होने के पूरे आसार नजर आ रहे थे । लेकिन उनकी तमाम तैयारियाँ बेकार हो गईं । वे बहुत देर कर चुके थे । 'सल्तनत' के कानूनी वारिस का चुनाव 'शहंशाह' द्वारा पहले ही किया जा चुका था और वह हुक़ूमत की बागडोर अपने हाथों में ले चुका है । बरसों बाद शहर में वापस लौटे उस आदमी का नाम है–जलीस खान । वह आदमी नहीं पूरा शैतान है । अपने खिलाफ उठने वाले हर एक सर को कुचलने की पूरी कोशिश वह करेगा और इस तरह नए किस्म के खून–खराबे का दौर शुरू हो जाएगा ।"

जलीस ने पढ़कर अखबार पीटर को दे दिया ।

"अजीब आदमी है ।" पीटर मुँह बनाकर बोला–"उसे सबक सिखाना चाहते हो ?"

"नहीं, उसके लिए तो वैसे ही जिंदगी बोझ बनी हुई है ।"

"वह शुरु से ही सनकी रहा है । मुझे याद है एक बार उसने अपनी बची हुई रोटी कुत्ते के सामने तो डाल दी मगर उस भूखे बच्चे को नहीं दी जो बार–बार उसके सामने गिड़गिड़ा रहा था ।"

"कुत्तों को भी तो खाना चाहिए होता है ।" कहकर जलीस बोला–"मैं उससे खुद बात करूँगा । उसका इस तरह कीचड़ उछालने वाला रवैया मेरे साथ नहीं चलेगा ।"

"समझदारी से काम लेना, जलीस" अमोलक बोला–"प्रैस से झगड़ा करना ठीक नहीं है ।"

"क्यों ? प्रैस वाले मेरा क्या कर लेंगे ? ज्यादा से ज्यादा मुझ पर कीचड़ उछाल सकते है । यह वे कर ही रहे हैं ।"

"अब पुराने वक्त जैसी बात नहीं है ।"

"मैं जानता हूँ, दोस्त ।"

"यादव मारा–मारी वाला आदमी नहीं है ।" अमोलक अपनी कुर्सी में पहलू बदलता हुआ बोला–"वह हम लोगों की तरह नहीं है । उसने जिंदगी भर कड़ी मेहनत की है । पढ़ाई करने के साथ–साथ अखबार बेचता था । मजदूरी के नाम पर हर एक छोटे से छोटे काम वह करता था । उसका यह संघर्ष तब तक चलता रहा जब तक कि वह बाक़ायदा रिपोर्टर नहीं बन गया । उसे झुकाना या डराना आसान नहीं है । जिन लोगों ने भी पहले ऐसी कोशिश की है उनका अपनी कलम के जोर से पुलंदा बंधवा दिया था उसने । तुम्हारी कोई भी धमकी उसे और भी ज्यादा पगला देगी ।"

"उसका पागलपन मैं पहले भी देख चुका हूँ । तुम्हें याद है, पीटर ?"

"तब की बात कर रहे हो जब तुमने उसकी हफ्ते भर की कमाई छीन ली थी ?"

"हाँ ।"

"मुझे अच्छी तरह याद है, तुम्हें शूट करने की कोशिश की थी उसने ।" पीटर मुस्कुराता हुआ बोला–"जगदीश की देशी पिस्तौल उठाकर वह तुम्हारे पीछे पड़ गया था । तुम्हें उससे बचने के लिए रेलिंग के ऊपर से कूदकर भागना पड़ा था । उसकी इस हरकत के लिए तुमने उसके हाथ–पैर क्यों नहीं तोड़े, जलीस ?"

"क्योंकि गलती मेरी ही थी । उसे दोष नहीं दिया जा सकता । अगर कोई मेरे साथ वैसा करता तो मैंने भी उसका सर तोड़ डालना था। लेकिन इस किस्से का दिलचस्प पहलू था–जब मैं उसके मुंह पर दरवाज़ा बंद करके भागा तो वह वहीं पड़ा बच्चे की तरह रोता रहा । फिर कांस्टेबल बलराम उसे घर पहुँचाकर आया और उसे पुलिसवाले के साथ आया देखकर फिर उसकी माँ ने भी खासी पिटाई की थी उसकी ।"

"तुम्हारी किस्मत ही अच्छी थी कि बच गए ।" अमोलक बोला"–वरना गुस्से की उस हालत में तुम्हारी जान भी वह ले सकता था ।"

जलीस हँसा ।

"ऐसा कुछ नहीं होना था । पिस्तौल हाथ में होते हुए भी मेरे नज़दीक वह नहीं आ सका था । खैर, अब मैंने उसके वे पैसे लौटा दिए हैं । मिलते ही सबसे पहले उसने अपने पैसे वापस माँगे थे ।"

"जयपाल यादव से पंगा लेकर तुम बेकार नई मुसीबत खड़ी करना चाहते हो ।" अमोलक बोला–

"मैने एक और मुसीबत खड़ी करने का भी फैसला किया है ।"

"मतलब ?"

"हम जैकी उर्फ जयकिशन सबरवाल और उसके साथी दीना से भी मिलने जाएँगे ।"

"तुम पागल हो ।"

"हो सकता है । लेकिन पहले अपने रिपोर्टर दोस्त से मिलेंगे । जलीस खड़ा हो गया–"आओ ।"

 

* * * * * *

 

फ्रांसिस के कैफे में रश था । लेकिन जयपाल यादव वहाँ नहीं था । ग्राहकों में व्यस्त फ्रांसिस ने बताया कि वह शायद अपने घर ही मिलेगा।

जलीस ने पीटर को वहीं छोड़ दिया ताकि यादव अगर आए तो उसे वहीं रोक सके और खुद अमोलक के साथ उसके घर की ओर बढ़ गया ।

लगभग छह फलींग दूर, यादव अभी भी उसी पुरानी इमारत में रहता था ।

अमोलक को बाहर ही तैनात करके जलीस ने अंदर प्रवेश किया ।

उस इलाके की अन्य पुरानी इमारतों की अपेक्षा वो इमारत ज्यादा साफ थी । इसकी वजह संभवतया रिपोर्टर के तौर पर यादव का अपना प्रभाव था ।

सभी पुराने लोग बेवकूफी की हद तक जज्बाती थे । जलीस सोच रहा था । रनधीर ने अपने निजी आवास को पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब की शक्ल दी हुई थी । विनोद महाजन अपने शानदार आधुनिक रहन–सहन के बावजूद पुराने धंधों से चिपका हुआ था । अमोलक आर्गेनाइजेशन का बॉस बनने के इंतजार में जिंदगी गुजार रहा था । जयकिशन सबरवाल और दीना खुद को सिपहसालार समझने का वहम पाले जी रहे थे और निचले दर्जे के मेम्बर इसी बात में खुश थे कि वे बतौर प्यादे क्लब से जुड़े हुए थे और जयपाल यादव सिर्फ इसलिए इस इलाके में पड़ा था ताकि अपने अखबार के जरिए उन सबके कच्चे चिट्ठे खोलता रह सके । लेकिन वह जैसा भी था, सबसे होशियार था । न तो उसे गलत धंधों से होने वाली –कमाई की जरुरत थी और न ही किसी का डर उसे था । उसकी आमदनी अच्छी थी और इज़्ज़त और शोहरत भी वह हासिल कर चुका था ।

यादव की रिहाइश ग्राउंड फ्लोर पर थी । दस्तक के जवाब में खुद उसी ने दरवाज़ा खोला । जलीस को नाप तौल वाली निगाहों से देखकर तनिक सर हिलाया और पीछे हट गया ।

जलीस भीतर दाखिल हुआ । सुरुचिपूर्ण ढंग से सजे उसके फ्लैट से स्पष्ट था कि इस पर खासा पैसा उसने खर्च किया था ।

"घर अच्छा है ।" वह तनिक व्यंग्यपूर्वक बोला ।

"मुझे यही पसंद है ।" यादव ने कहा ।

"वो तो जाहिर ही है । अकेले रहते हो ?"

"अक्सर ।"

"हाँ, किसी लड़की पर पैसा खर्च करने वाले तो तुम कभी नहीं रहे।"

"मैं अभी भी खर्च नहीं करता ।" यादव के लहजे में हिकारत थी–"लड़कियाँ मुझे मुफ्त में मिल जाती हैं जैसे तुम्हें मिल जाया करती थीं ।"

"काफी तरक्की कर ली है तुमने ।"

यादव ने नफरत से उसे घूरा फिर उसकी आँखों में वही सर्द भाव आ गए जो कि सामान्यतः रहा करते थे । एक कुर्सी की ओर हाथ हिलाकर बैठने का संकेत करके वह डेस्क के पीछे बैठ गया ।

"तुम यहाँ लड़कियों की बातें करने ही आए हो ?"

जलीस ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।

"मैं मर्डर की बात करने आया हूँ ।"

"क्या मतलब ?"

"तुम पुलिस के साथ मिलकर काम करते हो ?"

"पुलिसवाले मेरा सहयोग पाकर खुश होते हैं और बदले में मेरे साथ सहयोग करते हैं । रनधीर की मौत के बारे में जितना वे जानते है उतना ही मैं भी जानता हूँ ।"

"खुद को तीसमारखा मत समझो । मैं भी कुछ खबर रखता हूँ । मैने सुना है, पुलिस समझती है कि रनधीर की हत्या वहीं हुई थी जहाँ वह पड़ा मिला...अपने ही ड्राइंगरूम में । यह ताजा खबर है या पुलिस इस मामले में यहीं अटककर रह गई है ?"

यादव ने फौरन पेंसिल उठाकर एक राइटिंग पैड अपनी ओर घसीट लिया । अचानक वह पूरा पत्रकार नजर आने लगा ।

"तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है, जलीस ?"

"तुम मेरे सवाल का जवाब दो मैं तुम्हारे सवाल का दूँगा ।"

यादव धूर्ततापूर्वक मुस्कुराया ।

"ठीक है, पुलिस यही समझती है क्यों ?"

"इसलिए कि असलियत यह नहीं थी ।"

"आगे बोलो ।"

"बाईस कैलिबर की उस गोली ने फौरन ही रनधीर की जान नहीं ले ली थी । उसने गोली चलाने वाले को देख लिया था और उठकर उसके पीछे भी गया था । लेकिन अपनी इस कोशिश में वह पिछली गली के उस सिरे तक ही पहुँच सका जो इमारत के सामने वाली सड़क से जा मिलता है । फिर उसने नीचे गिरकर दम तोड़ दिया । जगह समझ गए न ?"

"हाँ, वो स्थान फ्रांसिस के कैफे से दूर नहीं है ।" यादव ने कहा और पैड पर जल्दी–जल्दी कुछ लिखकर बोला–"दिलचस्प खयाल है ।"

"बेशक, इसका मतलब है । हत्यारे को पता चल गया कि रनधीर ने उसका पीछा किया था और उसने रनधीर की लाश को वापस ले जाकर उसके ड्राइंगरूम में डाल दिया ।"

"इसे तो महज बेवकूफी ही कहा जाएगा । जब हत्यारा पकड़ा ही नहीं गया तो उसे इससे क्या फर्क पड़ना था ?"

"यही तो लाख टके का सवाल है, दोस्त ।"

"यानि इसका जवाब तुम्हें नहीं मालूम ?"

"नहीं ।"

"तो फिर तुम्हें यह कैसे पता चला कि रनधीर ने गली के सिरे पर दम तोड़ा था ?"

"माला सक्सेना की वजह से उसे जानते हो न ?"

"हां ।"

"उसने मुझसे कहा था कि वह मेरी लाश पर भी उसी तरह थूकना चाहती है जैसे कि उसने रनधीर की लाश पर थूका था । यह बात अपने आप में अजीब थी क्योंकि पुलिस की थ्योरी के मुताबिक रनधीर की लाश पर थूकने का मौका उसे मिल ही नहीं सकता था । लेकिन उसने बिल्कुल सच कहा था । फिर मेरा एक प्रशंसक रनधीर की घड़ी लेकर मेरे पास आ पहुँचा । घड़ी वही थी जो मैंने बरसों पहले रनधीर को प्रेजेंट की थी । एक आदमी ने उसी जगह पर रनधीर की लाश से घड़ी उतारी और बेच दी थी । मेरे प्रशंसक को घड़ी का पता चल गया और यह समझते हुए कि मुझ पर अहसान कर रहा था, वह घड़ी खरीदकर मेरे पास ले आया ।"

यादव उत्तेजित सा नजर आने लगा । उसकी पेंसिल पैड पर फिसल रही थी लेकिन आँखें जलीस के चेहरे पर ही जमीं थीं ।

"इसका मतलब समझते हो ?" जलीस के कथन की समाप्ति पर उसने पूछा ।

"हाँ । रात में आवारागर्दी, उठाईगिरी या नशे की झोंक या पिनक में या फिर आदतन इस इलाके के ताक–झांक करते रहने वाले लोगों में से किसी ने देखा हो सकता था कि रनधीर की लाश को कौन वापस ले गया था । उनमें आदतन ताक–झांक करने वाले अजीब किस्म के जोकर होते हैं । अंधेरे में छुपे या अपने दरवाज़ों की दरारों से झांकते वे यही देखा करते है कि आस–पास क्या हो रहा है । ऐसे लोग हर जगह मिल जाते हैं । उनकी निगाहें हर तरफ लगी रहती है । तुम खुद भी अच्छी तरह जानते हो कि पुराने वक़्तों में इस तरह के लोग अचानक सामने पड़कर किस कदर मुझे डरा दिया करते थे ।" आवेश में आ गए जलीस की मुठ्ठियाँ भिच गई और स्वर तेज हो गया–"आखिरकार मुझे ढूंढ़कर उनका पता लगाना पड़ा फिर मैंने और रनधीर ने उनकी ऐसी धुनाई की कि उनकी अक्ल ठिकाने आ गई और उन्होंने कम से कम हम पर तो निगाह रखनी छोड़ ही दी । हमें देखते ही वे भाग जाते थे ।"

"बरसों गुजर जाने के बाद भी तुम्हें उन पर गुस्सा है ।" यादव ने मुस्कुराते हुए कहा । उसे आवेश में आ गया देखकर वह अंदर ही अंदर खुश हो रहा था ।

उसकी खुशी की वजह को समझकर जलीस भी मुठिठयाँ खोलकर मुस्कुरा दिया ।

"मैं इसे अपने ऑफिस को पास कर देता हूँ ।" यादव फोन की ओर हाथ बढ़ाकर बोला ।

"अभी नहीं ।"

यादव हिचकिचाया ।

"क्यों ?"

"मैं नहीं चाहता कि अभी किसी और को इस बारे में पता चले ।"

यादव चकराया ।

"तो फिर मुझे यह क्यों बताया ?"

"क्योंकि जानकारी हासिल करने के तुम्हारे अपने जो सोर्सेज हैं वे मेरे नहीं है । लेकिन वे हैं महत्वपूर्ण । जब भी मुझे कोई जानकारी मिलेगी मैं तुम्हें बता दूँगा । बदले में अपने सोर्सेज या पुलिस से तुम्हें जो मालूमात हासिल होंगी वो तुम मुझे बताओगे । मंजूर है ?"

"जरुर ।" यादव मुस्कुराया–"तुम जैसे चाहो अपनी गरदन फँसाए रख सकते हो । तुम्हें मारे जाने में तुम्हारी मदद करके मुझे वाकई खुशी होगी । इसकी ख़ातिर एक अच्छी कहानी को छपने से रोकने तक के लिए मैं तैयार हूँ ।"

"तुम्हें और सोनिया को साथ–साथ रहना चाहिए । तुम दोनों की चाहत एक ही है ।"

"ऐसा कुछ मत करना, जलीस जिससे सोनिया को जरा भी तकलीफ़ हो ।" पल भर की खामोशी के बाद वह बोला–"तुम हमेशा दूसरों को बखेडों में फंसाते रहे हो अगर उसे अपने किसी बखेडे में फँसाया तो तुम्हें खत्म करने के लिए कुछ भी करने से मैं नहीं हिचकिचाऊंगा ।"

"कुछ भी ?"

"हाँ ।"

जलीस खड़ा हो गया ।

"वह भी यही कहती है । अच्छे दोस्त हैं मेरे ।"

यादव कुछ नहीं बोला बस उसे देखता रहा ।

जलीस बाहर निकल गया । यादव से जानकारी के आदान–प्रदान का समझौता ही काफी था । इससे ज्यादा की अपेक्षा उससे नहीं की जा सकती थी ।

 

* * * * * *

 

'व्हाइट रोज' औसत दर्जे की बार होते हुए भी चिल्ड बीयर और स्वादिष्ट मगर अपेक्षाकृत सस्ते खाने के लिए मशहूर थी । इसलिए अक्सर रश रहने के बावजूद भी आमतौर पर कोई लफड़ा वहाँ नहीं होता था । इसकी बड़ी वजह थी–भारी–भरकम शरीर वाला बार का मालिक विक्टर । हमेशा मुस्कुराते रहने वाले और जवानी के दौर में बॉक्सर रह चुके विक्टर का डील–डौल लफड़ा करने वालों को इरादा बदलने पर मजबूर कर देता था ।

उसी बार में पिछली तरफ बने एक कमरे को जैकी उर्फ जयकिशन सबरवाल अपने ऑफिस के तौर पर इस्तेमाल करता था ।

पीटर को बाहर ही छोड़कर अमोलक सहित जलीस बार में दाखिल हुआ ।

जलीस ने एक बीयर लेकर दो गिलासों में डाल ली और सौ रुपए का नोट काउंटर पर रख दिया ।

विक्टर नोट उठाकर बकाया लौटाने लगा तो जलीस ने पूछा–"जैकी पिछले कमरे में ही है ?"

विक्टर ने उसे घूरा ।

"कौन ?"

"ज्यादा चालाकी मत दिखाओ विक्टर, वरना बीयर की इस खाली बोतल को तोड़कर पेट में घुसेड़ दूँगा ।"

विक्टर ने पलकें झपकाई फिर अचानक उसकी मुस्कुराहट और ज्यादा फैल गई और इस प्रयास में ठोढी के नीचे बना जख्म का पुराना निशान और ज्यादा बड़ा नजर आने लगा ।

उसने पहले अमोलक को पहचाना फिर जलीस को मगर बोला कुछ नहीं ।

"सही ढंग से पेश आओ, विक्टर ।" जलीस ने कहा–"वरना मुझे यहाँ किसी को शूट करना पड़ जाएगा–खास तौर पर तुम्हें । समझ गए ?"

"हाँ ।"

"अब मेरे सवाल का जवाब दो ।"

"जैकी यहीं है–पिछले कमरे में ।"

"और कौन है उसके साथ ।"

"दीना, करीम भाई दारुवाला और कुछेक बिजनेसमैन टाइप आदमी भी हैं ।"

"धन्यवाद ।"

दोनों पिछले कमरे की ओर बढ़ गए ।

अपना–रोल खूबसूरती से अदा करते हुए अमोलक ने भड़ाक से दरवाज़ा खोला । जलीस फौरन अंदर चला गया और उन सबको अपनी रिवॉल्वर से कवर कर लिया । वह पहली ही निगाह में भांप गया था कि उनमें सिर्फ दो ही आदमी कुछ करने की पोजीशन में थे ।

यह इतनी अचानक और तेजी से हुआ था कि वे हिल तक नहीं सके और बाजी पूरी तरह जलीस के हाथ में आ गई ।

अमोलक ने अंदर आकर दरवाज़ा पुनः बंद करके उसके साथ पीठ सटा ली ।

दीना काउच पर लेटा था । उसके मुँह और जबड़े की हालत अजीब थी । वह चुपचाप पड़ा जलीस को देखता रहा । जैकी का मुँह अभी तक सूजा हुआ था और वह नफरत भरी निगाहों से घूर रहा था । दारुवाला के पीछे हरबंस और शंकर पास–पास खड़े थे और शंकर का एक हाथ अपनी जेब में था । उनके अलावा दूसरे तीनों आदमियों के लिबास शानदार और सलीके के थे । वे शहर के पॉश एरियाज में पूरी शान और ठाठ से रहते थे और उन्हें निःसंकोच सफल 'बिजनेसमैन' कहा जा सकता था ।

"आज यहाँ से कोई सही सलामत बाहर नहीं जाएगा । जलीस ने ऐलान करने वाले अंदाज़ में कहा ।

"बेकार की बातें मत करो ।" जैकी बोला–"साफ–साफ बताओ क्या चाहते हो ?"

"कुछ नहीं दोस्त, मैंने सब कुछ ले लिया है । चाहते तो तुम हो ।"

शानदार लिबास वाले तीनों आदमियों के चेहरे सुर्ख हो गए ।

"तुम यहाँ क्यों आए हो, जलीस ?" जैकी ने कटुतापूर्वक पूछा ।

"यह जानने के लिए कि तुमने कैसे समझ लिया कि तुम 'बॉस' बन सकते थे ?"

"और कौन था जो...।"

"तुमने चार दिन भी इंतजार नहीं किया ।"

"तुम्हारे मौजूद न होने की वजह से आर्गेनाइजेशन को बगैर 'बॉस' के नहीं रखा जा सकता था, जलीस । तुम...।"

"क्या तुमने महाजन से बातें की थीं ?" जलीस ने पुनः टोककर पूछा ।

"उसके पास क्या है ? तुम तो यहाँ थे नहीं और वह...।"

"यह करोड़ों के माल का चक्कर है, जैकी । जायज धंधों की तो बात ही छोड़ो देर हो जाने से बाकी भी तुम्हारे हाथ कुछ नहीं आना था । तुमने इसीलिए जल्दबाजी की थी ?"

कई सैकेंड तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा ।

वे सब, खास तौर पर शानदार लिबास वाले, समझ चुके थे कि उनकी जो जरुरत उन्हें यहाँ खींच लाई थी उसके पूरा होने की कोई उम्मीद अब नहीं थी ।

दारुवाला ने अपनी कुर्सी की पुश्त से पीठ सटा ली । इन मामलात का लंबा तजुर्बा होने के भाव उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रहे थे । कई पल सोचते रहने के बाद उसने सीधा जलीस की ओर देखा ।

"तुम्हारे पास ऐसी कोई चीज है जिससे आर्गेनाइजेशन को कंट्रोल कर सको...या बेच सको ।"

जलीस बड़े ही खतरनाक अंदाज़ में मुस्कुराया ।

"हो सकती है ।"

"लेकिन तुम्हारे पास है नहीं ।" दारुवाला के चेहरे पर बड़ी ही कमीनगीभरी मुस्कुराहट थी–"तुम अभी तक उसे समझ भी नहीं पाए हो । नहीं, तुम्हारे पास वो नहीं है ।" जलीस को खामोश पाकर वह बोला–"तुमने बड़ी सफाई से सबको बेवकूफ़ बना दिया है ।" उसने धीरे से सर तनिक पीछे घुमाकर आदेश दिया–"शूट हिम ।"

जलीस ने फौरन लगातार दो फायर झोंक दिए । पहली गोली हरबंस के कूल्हे में जा घुसी और दूसरी, बाएँ हाथ से गन निकालने की कोशिश करते शंकर की कोहनी को फाड़ती हुई गुजर गई । शंकर ने अविश्वासपूर्वक, अपनी बेकार हो गई बाँह को देखा फिर घुटी सी चीख उसके कंठ से निकली और फिर वह बेहोश होकर नीचे जा गिरा ।

जलीस दारुवाला की ओर देखकर मुस्कुराया ।

दारुवाला का चेहरा सफेद पड़ गया । एकाएक वह बूढ़ा और आतंकित नजर आने लगा था । उसने कुछ कहने की कोशिश की मगर जबान ने साथ नहीं दिया और शब्द मुँह से बाहर नहीं आ सके ।

जैकी सम्मोहित सा बैठा आँखें फैलाए देखे जा रहा था । शानदार लिबास वालों ने पहले कभी मौत को इतना नज़दीक से नहीं देखा था । फलस्वरूप वे भी आतंक की प्रतिमूर्ति बनकर रह गए थे ।

"खड़े हो जाओ, करीम ।" जलीस ने कहा–

बुरी तरह कांपता दारुवाला खड़ा हो गया और भागने की कोशिश की मगर इस कोशिश में वह बेहोश पड़े अपने दोनों गनमैन के ऊपर गिर गया ।

जलीस ने घुटनों के बल पड़े दारुवाला की दुम पर ठोकर जमा दी ।

उसके मुँह से घुटी सी चीख निकल गई ।

"पुराने वक़्तों की तरह ठीक दुम पर पड़ी है ।" जलीस ने कहा और हँस पड़ा ।

शानदार लिबास वालों में से एक ने भी कहकहा लगा दिया ।

"तुम क्या कहते हो, जैकी ?" जलीस ने पूछा ।

"मुझे कुछ नहीं कहना । तुम पागल हो गए हो ।"

"हो सकता है । दीना का क्या इरादा है ?"

"तुम्हारी पिछली मार ने अभी तक उसके छक्के छुड़ा रखे है ।"

"ओ. के.। यहाँ से इस गंदगी को साफ करा दो और सबको बता दो कि बॉस मैं हूँ ।"

"ठीक है ।"

"सबसे कह देना कि वे सही रास्ते पर आ जाएं ।"

"ठीक है ।"

"और आइंदा अगर कहीं भी कोई मीटिंग की तो मैं इसी तरह वहाँ पहुँच जाऊँगा ।"

"नहीं...तुम गलत समझ रहे हो, जलीस...ये मेरे दोस्त है...।"

"दोस्त । ऊंचा रुतबा रखने वाले तीन आदमी तुम जैसे घटिया बदमाश के दोस्त हैं ? तुम बेवकूफ़ हो, जैकी । इन तीनों 'सज्जनों' और इनके धंधों को मैं अच्छी तरह जानता हूँ । अगर तुमने अपनी ये हरकतें बंद नहीं की तो जल्दी ही तुम्हारी लाश मुर्दाघर में पड़ी मिलेगी ।"

"नहीं, जलीस...।"

"बको मत । सीधे रास्ते पर आ जाओ पुराने वक़्तों की तरह । तुम एक मामूली बदमाश हुआ करते थे अब भी अपनी उसी औकात में रहो । बड़े खेल में टाँग अड़ाने की बेवकूफी मत करो वरना मारे जाओगे ।"

उनमें से कोई कुछ नहीं बोला ।

जलीस और अमोलक कमरे से बाहर आ गए ।

काउंटर पर रखे सौ रुपए के नोट के अपने बकाया पैसे उठाकर जलीस ने विक्टर से कहा–"मैं माफी चाहता हूँ, मोटे भाई । फसाद उन्होंने ही शुरु किया था ।"

विक्टर चुपचाप खड़ा रहा ।

"यह हमारा आपसी मामला है ।" जलीस ने पूछा–"याद रखोगे न?"

विक्टर कई पल गौर से उसे देखता रहा ।

"फिक्र मत करो । मैं जानता हूँ, क्या करना है ।"

अमोलक सहित जलीस बाहर आ गया ।

प्रवेश द्वार की बगल में खड़ा पीटर काँप रहा था । उसने नर्वस भाव से अपने चेहरे पर हाथ फिराकर सड़क पर दोनों ओर निगाह डाली ।

"घबराओ मत ।" जलीस ने कहा–"बस थोड़ा सा सबक सिखाया है ।"

"किसे ?"

"करीम और उसके दोनों आदमियों को ।"

"तुम तेजी से मुसीबत को बुलावा दे रहे हो, जलीस ।"

"नहीं पीटर, मैं सिर्फ एक्शन को थोड़ा धीमा कर रहा हूँ ।"

"ठीक है, ठीक है । अब यहाँ से निकल चलो । अगर पुलिस आ पहुँची तो हम धर लिए जाएंगे ।"

जलीस हँस पड़ा । उसने एक खाली जाती टैक्सी रोकी और तीनों उसमें सवार हो गए ।

जलीस ने अमोलक से रनधौर के सभी कारोबारों की तमाम डिटेल्स लाने को कहा और उसे महाजन के ऑफिस के पास ड्राप कर दिया ।

फिर पीटर के कमरे से उसकी रोज़मर्रा की जरुरत का कुछ सामान लेकर वे रनधीर की रिहाइश वाली इमारत फ्रेंडस विला के सम्मुख पहुंचे जहाँ जलीस ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था ।

जलीस ने टैक्सी का दरवाज़ा खोलकर चाबियाँ उसे दे दी ।

"मेरे आने तक यहीं रहना और दरवाज़ा लॉक करके रखना । मैं नहीं चाहता कि कोई यहाँ आ घुसे ।"

"तुम कहाँ जा रहे हो ?"

"एक लड़की से मिलने ।"

"मुझे भी अपने साथ ही रखो तो बेहतर होगा । लगता है, दिल्ली से आए उन दोनों किलर्स को तुम भूल गए हो ।"

"नहीं, मुझे याद है अरमान अली और फरमान अली होटल शालीमार में रोशन और जगन के फर्जी नामों से ठहरे हुए है ।"

"उनके यहाँ भी कान्टेक्ट्स हैं ।"

"मेरे भी हैं ।" जलीस ने हँसकर कहा और हाथ बढ़ाकर टैक्सी का पीटर की ओर वाला दरवाज़ा खोल दिया ।

पीटर नीचे उतर गया ।

 

* * * * * *

 

जलीस, गुरनाम सिंह के ढाबे से निकला तो शाम का धुंधलका रात के अंधेरे में बदलना शुरु हो चुका था ।

वह पैदल ही चर्च रोड की ओर चल दिया ।

मोड़ पर घूमते ही उसे सामने से आता बलराम सिंह दिखाई दे गया। बलराम भी उसे देख चुका था । निकट आने पर उसने जलीस को कड़ी निगाहों से घूरा और बायाँ हाथ उसकी छाती पर रख दिया ।

"फसाद बढ़ता जा रहा है, जलीस ।" वह बोला ।

"अच्छा ।"

"इसका एक ही अंजाम होगा ।"

"जानता हूँ ।"

"तुम बहुत होशियार हो ।"

"इसीलिए तो अब तक जिंदा हूँ ।"

"सुना है, तुम्हारे इरादे बहुत ऊँचे और खतरनाक है ।"

जलीस सिर्फ मुस्करा दिया ।

"देखो जलीस, यह मेरा इलाका है ।" बलराम का स्वर अधिकारपूर्ण था–"बरसों से मैं यहाँ गश्त लगा रहा हूँ । सभी बड़े और खतरनाक बदमाशों को आते–जाते मैंने देखा है । कुछ अर्से के लिए वे खुद को आसमान की ऊँचाइयों पर महसूस करते हैं फिर एक रोज उनकी लाश गटर में पड़ी पायी जाती है । उनमें से कुछेक को मैने भी गटर में पहुँचाया है ।"

"जानता हूँ । मुझसे क्या चाहते हो ?"

"मेरे इलाके में गड़बड़ नहीं होनी चाहिए ।"

"मेरी तरफ से कोई गड़बड़ नहीं होगी लेकिन अगर कोई और गड़बड़ करता है...।"

"उसकी फिक्र तुम मत करो । उससे हम लोग निपट लेंगे ।"

"ठीक है ।"

जलीस आगे बढ़ गया ।

वह जानता था, बलराम की निगाहें तब तक उस पर जमी रहेंगी जब तक कि वह नजर आता रहेगा । लेकिन उसने मुड़कर देखने की कोशिश नहीं की ।

वह भोलाराम मार्केट पहुँचा ।

माला सक्सेना के फ्लैट पर जाने के लिए उसने बगल वाला दरवाज़ा खोला ।

अंदर घुप्प अंधेरा था । जलीस ने जेब से नाचिस निकालकर एक तीली जलाई और भीतर दाखिल होकर सीढ़ियों की ओर देखने की कोशिश की ।

तभी उसके सर के पृष्ठ भाग पर किसी कठोर वस्तु का प्रहार हुआ और वह त्यौराकर औंधे मुँह नीचे जा गिरा ।

 

* * * * * *

 

जलीस पूरी तरह बेहोश नहीं हुआ था । लेकिन कुछ भी कर पाने की स्थिति में भी वह बिल्कुल नहीं था । अलबत्ता वह समझ चुका था कि पहले से ही अंधेरे में दरवाजे के पीछे कोई मौजूद रहा था ।

तभी दरवाज़ा भड़ाक से बंद किए जाने की आवाज़ सुनकर उसने आँखें खोली । मगर अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आया ।

सहसा सर में उठे अचानक दर्द के साथ शनैः शनैः शेष शरीर में भी उसने चैतन्यता अनुभव की । साथ ही बालों में चिपचिपाहट भरा गीलापन भी उसे महसूस हुआ ।

वह घुटनों के बल उठा फिर धीरे–धीरे खड़ा हो गया और टटोलकर दीवार से पीठ सटा ली ।

करीब दो मिनट तक उसी तरह खड़ा रहने के बाद ही वह स्वयं को चलने फिरने के काबिल महसूस कर सका । फिर ज्यों ही उसने दरवाजे की दिशा में कदम बढ़ाया उसके पैर से टकराकर कोई चीज लुढ़क गई। तभी उसे पहली दफा पता चला कि माचिस अभी तक भी उसके बाएँ हाथ में दबी थी । एक तीली जलाकर वह नीचे झुक गया । फर्श पर सोडे की एक बड़े साइज की खाली बोतल पड़ी थी । बोतल के निचले हिस्से पर लगे ताजा खून के साथ चिपके कई बालों से स्पष्ट था कि उसके सर पर उसी से प्रहार किया गया था ।

वह दरवाज़ा खोलकर बाहर निकला ।

सड़क पर सब कुछ सामान्य था । जलीस को ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आया जिस पर दरवाजे की निगरानी करते रहने का शक किया जा सके ।

भोलाराम मार्केट के प्रवेश द्वार की बगल में खड़ा एक बूढ़ा अंदर रखी सब्जियों को देख रहा था ।

जलीस ने उसकी बाँह थपथपाकर सीढ़ियों वाले दरवाजे की ओर इशारा करके पूछा–"आपने वहाँ से किसी को निकलते देखा था ?"

बूढ़े ने पहले उसे फिर दरवाजे को देखा और फिर सर हिला दिया ।

"नहीं, मैंने किसी को नहीं देखा ।"

"आप कितनी देर से यहाँ है ?"

"करीब दस मिनट हो गए । क्यों ?"

जलीस ने अपने सर पर हाथ फिराकर उंगलियों पर लगा खून उसे दिखाया ।

"किसी ने मेरे सर पर वार करके मुझे बेहोश कर दिया था ।"

"जरूर यह उन्हीं छोकरों का काम है ।" बूढ़े ने तल्खी से कहा–"सब हरामी है । रोजाना यही करते हैं । सीढ़ियों का बल्ब उतारकर अंधेरे में छुपकर खड़े हो जाएंगे और जैसे ही कोई वहाँ आएगा उसकी खोपड़ी चटका देंगे और जेबें साफ करके भाग जाएंगे । पिछले हफ्ते बेचारे बूढे बसंत सिंह को उन्होंने सिर्फ साढ़े आठ रुपए की वजह से मार डाला था । जमाना बहुत खराब है ।"

जलीस ने अपनी जेबे थपथपाईं । बैल्ट होल्सटर में रखे रिवॉल्वर पर हाथ मारा । उसकी सब चीजें सही सलामत थीं ।

"तुम्हारा कुछ गया तो नहीं ?" बूढ़े ने पूछा ।

"नहीं ।"

जलीस वापस उसी दरवाजे की ओर लौट गया और तेजी से सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।

अंधेरे में लैंडिंग्स पर पड़े कबाड़ से ठोकरें खाता हुआ वह माला सक्सेना के फ्लैट के सम्मुख पहुँचा ।

प्रवेश द्वार खुला और अंदर अंधेरा पाकर उसका माथा ठनका । उसने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली । कुछेक पल इंतजार किया फिर दबे पाँव भीतर दाखिल हुआ । बाहरी कमरे से गुजरकर बैडरुम में पहुँचा और दीवार पर टटोलकर लाइट स्विच ऑन कर दिया । जल्दबाजी में वह बेहद खतरनाक हरकत कर बैठा था । अगर वहाँ कोई गन लिए इंतजार कर रहा होता तो उसने फौरन उसे शूट कर डालना था । ।

लेकिन वहाँ कोई गन लिए इंतजार नहीं कर रहा था । सिर्फ माला सक्सेना बिस्तर पर पड़ी थी । उसका सर कई जगह से फटा हुआ था और बिस्तर पर आस–पास खून फैला था । चेहरे पर भी खून था और वो अभी तक जमा नहीं था । उसकी हालत से जाहिर था कि वह मर चुकी थी । प्रत्यक्षतः वह नींद में थी जब हत्यारे ने उसकी खोपड़ी कूटनी शुरु की थी और उसी हालत में दम तोड़ दिया था । उसे पता तक नहीं चल सका कि उस पर किस चीज से वार किया गया था ।

लेकिन जलीस जानता था, वो क्या चीज थी । उसकी अपनी खोपड़ी पर भी उसकी ताजा निशानी मौजूद थी ।

उसने खोजपूर्ण निगाहों से कमरे का मुआयना किया । सबसे पहली खटकने वाली बात थी–फर्श पर बिछे पुराने घिसे कारपेट का एक सिरा एक जगह सिमटा हुआ था जबकि पूरे कमरे में कहीं भी हाथापाई का कोई चिंह नहीं था ।

फिर एक और खटकने वाली बात उसे नजर आई । सोनिया का कोट कोने में रखी रैक पर टँगा था । मगर सोनिया वहाँ नजर नहीं आई।

कोट रैक पर...सोनिया गायब...कारपेट का सिरा मुड़ा हुआ...।

अचानक जलीस एक भयानक आशंका से मन ही मन कॉप गया ।

"सोनिया ।" उसने धीरे से पुकारा ।

कोई जवाब नहीं मिला ।

वह पलटकर बाहरी कमरे में आ गया । जिसे ड्राइंग रुम की तरह इस्तेमाल किया जाता था ।

लाइट ऑन करते ही वह तेज झटका सा खाकर रह गया ।

सोनिया पीठ के बल काउच पर पड़ी थी । उसकी टाँगे नीचे लटकी थी और बाएँ गाल पर खून की पतली सी धार बहने का निशान था ।

जलीस को लगा, सोनिया भी मर चुकी थी । थके से कदमों से उसके पास पहुँचकर नीचे झुक गया । उसकी साँसे सामान्य थीं । नब्ज टटोली तो वो भी ठीक थी । राहत सी महसूस करते जलीस ने नीचे लटकी उसकी टाँगें काउच पर रखकर उसे आरामदेह पोजीशन में लेटा दिया ।

सोनिया की बायीं कनपटी पर बालों के नीचे गूमड़ बना हुआ था और उस स्थान पर ताजा जख्म भी था । लेकिन जख्म गहरा नहीं था ।

जलीस ने बाथरुम से एक तौलिया गीला करके उसका चेहरा साफ किया और काउच पर उसके पास ही बैठ गया ।

चंद क्षणोपरांत सोनिया के मुँह से धीमी कराह निकली ।

"सोनिया...सोनिया ।"

उसने धीरे से सर हिलाया और आँखें तनिक खोली ।

जलीस ने उसके चेहरे को गीला तौलिया से तब तक सहलाया जब तक कि उसने पूरी तरह आँखें नहीं खोल दीं । उसकी आँखों में कुछेक पल सूनापन रहा फिर उलझन भरे भाव पैदा हो गए ।

"क्या हो गया था, हनी ?" जलीस ने स्नेहपूर्वक पूछा ।

सोनिया उसे देखे जा रही थी ।

"जलीस ?" अंत में वह बोली ।

जलीस ने उसका माथा सहलाया ।

"तुम ठीक हो न ?"

"जलीस ?"

"हाँ । मैं तुम्हारे पास ही हूँ ।"

अचानक उसे सब याद आ गया । उसकी आँखें दहशत से फैल गई लेकिन इससे पहले कि चीख उसके मुंह से बाहर आती जलीस ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसका सर स्वयं से सटा लिया ।

जब वो दौर गुजर गया तो पूछा–"क्या हुआ था, हनी ?"

"द...दस्तक की आवाज़ सुनकर...मैं दरवाजे पर पहुँची" सोनिया होंठों पर जीभ फिराकर बोली–"म...मैंने सोचा तुम आए हो...।" वह आँखें फैलाए उसे घूर रही थी ।

"वो मैं नहीं था, बेबी ।"

"जैसे ही मैंने लॉक खोला...दरवाज़ा भड़ाक से खुला...मैं नीचे गिर गई...और फिर कोई चीज...।" सोनिया ने गहरी साँस ली–"...क्या हुआ था, जलीस ?

"तुम्हारे सर पर प्रहार ।"

"किसने किया था ?"

"पता नहीं । उसने मेरे साथ भी यही किया था ।"

"जलीस...।" अचानक वह उठ बैठी–"माला को क्या हुआ ?"

"वह मर चुकी है ।"

"नहीं ।" चीख रोकने के प्रयास में सोनिया ने अपना निचला होंठ काट लिया । उसकी आँखों में आँसू छलक आए और वह सिसकने लगी।

जलीस उसे स्वयं से सटाकर उसकी पीठ सहलाता हुआ सांत्वना देता रहा ।

कुछ देर बाद उसकी सिसकियाँ रुक गईं और वह सामान्य होने लगी ।

"तुम हमलावर के बारे में कुछ बता सकती हो ?" जलीस ने पूछा ।

"नहीं ।"

"याद करने की कोशिश करो ।"

"मैं जो जानती थी, तुम्हें बता दिया ।"

"उसका चेहरा नहीं देखा ?"

"नहीं ।"

"लिबास ?"

"नहीं । वो सब इतनी तेजी से हुआ कि मैं कुछ नहीं देख पायी ।"

"उसने कुछ कहा था ?"

"नहीं, उसने कुछ नहीं कहा ।" सोनिया ने जवाब देकर कमरे में निगाह घुमाई–"यहाँ तुम लाए थे मुझे ?

"नहीं । मैंने तुम्हें यहीं पड़ी पाया था ।" जलीस ने कहा–"वह माला की जान लेना चाहता था । तुम्हें यहाँ डालकर उसने माला की हत्या कर दी ।"

सोनिया सिमट गई ।

"लेकिन क्यों ?"

"पता नहीं । लेकिन पता लगा लूँगा ।"

"अब हमें क्या करना चाहिए ?"

"पुलिस को फोन कर दो और कुछ नहीं किया जा सकता ।"

"लेकिन माला...।"

"उसका जिंदा रहना किसी के लिए भारी खतरा बन गया था इसलिए उसे खत्म कर दिया गया । मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ सोनिया । क्या तुम ठीक महसूस कर रही हो ?"

"म...मैं ठीक हूँ ।"

"गुड । हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है । तुम्हारे यहाँ पहुँचने के बाद जो हुआ सब मुझे बताओ ।"

सोनिया ने अपने चेहरे से बाल परे हटाए । हाथों को परस्पर बाँधकर गोद में रख लिया और फर्श को ताकती हुई सोचने लगी ।

"जब मैं यहाँ पहुँची डॉक्टर यहीं था ।" वह बोली–"उसने बताया कि माला ठीक थी और उसे एक गोली दे दी...वो शायद कोई सेडेटिब था । तब तक जो पड़ोसन यहाँ रही थी वह चली गई यह कहकर कि यहाँ से जाते वक्त मैं उसे बता दूं वह फिर आ जाएगी । फिर जब माला जागी तो मैंने उसे खाना खिला दिया और...।"

"जागने पर माला ने कुछ कहा था ?"

"कोई खास बात नहीं कही । वह काफी कमज़ोरी महसूस कर रही थी । मैंने डॉक्टर द्वारा दी गई दूसरी गोली उसे खिला दी और कुछ देर उसके पास बैठी रही...।" अचानक सोनिया खामोश हो गई, फिर बोली–"जलीस...।"

"क्या हुआ ?"

"माला बहुत ज्यादा भयभीत थी । यहाँ तक कि नींद में भी वह डरी हुई थी । उसने नींद में चीखने की कोशिश की थी मगर चीख नहीं सकी।"

"नींद में कुछ कहा था उसने ?"

"तुम्हारा नाम बोला था और रनधीर का भी । लेकिन पहले तुम्हारा नाम लिया था ।"

"जो उसने कहा था, दोहराओ ।"

"उसकी बातों का कोई सिर–पैर नहीं था ।"

"फिर भी तुम बताओ ।"

"उसने कहा था...वह सबको सीधा कर सकती थी फिर बार–बार कहती रही...किसी को सब बता देगी और वह किस्से को निपटा देगा या समझ जाएगा कि क्या करना चाहिए । फिर उसने चीखने की कोशिश की । फिर पहले तुम्हारा नाम लिया और फिर रनधीर का ।"

जलीस ने इस बारे में सोचा फिर सर हिला दिया ।

"समझ में नहीं आता वह क्या चाहती थी ।"

"जलीस...क्या उसकी मौत तुम्हारी वजह से हुई थी ?"

जलीस ने उसके हाथ अपने हाथ में थाम लिए । इस सवाल से वह अपने चेहरे पर तनाव महसूस करने लगा था ।

"मैं ऐसा नहीं समझता ।"

"झूठ तो नहीं बोल रहे हो ?"

"तुमसे कभी झूठ मैं नहीं बोलूंगा ।" उसकी मौत का कोई सीधा रिश्ता मुझसे नहीं था । जहाँ तक मैं समझता हूँ, मैं यहाँ होता या नहीं होता उसका यहीं अंजाम होना था ।"

"अब हमें क्या करना है ?"

"मैंने बताया तो था पुलिस को फोन करना होगा ।"

"उस हालत में तुम्हारा क्या होगा ।"

"मुझे पुलिस का कोई डर नहीं है ।"

"तो फिर फोन कर दो ।"

"ठीक है ।"

सोनिया की आँखें पुनः कठोर हो गई थीं । लेकिन कठोरता के बावजूद उनमें उत्सुकता भी थी यह जानने कि अब क्या होगा ।

जलीस नहीं चाहता था कि वह माला की लाश को देखे इसलिए उसे किचिन में ले गया ।

फिर बैडरूम में जाकर पहले महाजन को फिर पुलिस को फोन कर दिया और माला के तकिए के नीचे रखा चैक और नोट उठाकर फाड़कर टायलेट में फ्लश कर दिए । फिर उसने बैल्ट से होल्सटर सहित अपना रिवॉल्वर अलग किया और प्लास्टिक के कूड़ेदान में भरे कूड़े के नीचे छूपा दिया । कूड़ेदान के हैंडल और पैंदे में दो रस्सियां बँधी थी । उनकी मदद से कूड़ेदान को नीचे लटकाकर उसने सड़क की साइड में बने कूड़ाघर में कूड़ा उलटकर खाली कूड़ेदान वापस खीचकर यथा स्थान रख दिया । और फिर सोनिया सहित ड्राइंग रूम में आकर पुलिस आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।