इस बार लाउन्ज में एक नया आदमी मौजूद था । लगता था कि वो तभी वहां पहुंचा था क्योंकि तब सोलंकी उपस्थित लोगों को उसका परिचय दे रहा था ।
“ये इंस्पेक्टर आरलेंडो है । पणजी से आये हैं । नारकाटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो से हैं ।”
“नारकाटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो से !” - ब्रान्डी हड़बड़ाकर बोला - “इनका यहां क्या काम ?”
“मालूम पड़ जायेगा । अभी बाम्बे से एन.सी.बी. के एक डिप्टी डायरेक्टर भी यहां पहुंचने वाले हैं ।”
“यहां !”
“आइलैंड पर ।”
“क्या कोई बड़ा केस पकड़ में आ गया है ?”
“अभी पता चल जायेगा । फिलहाल आप जरा ये देखिये क्या है ?”
उसने मेज पर पड़ी कार्ड-बोर्ड की पेटी में से एक छुरी बरामद की । छ: इंच के करीब लम्बे फल वाली छुरी सूरत से ही निहायत तीखी लगी रही थी ।
“कोई इस छुरी को पहचानता है ?” - उसने पूछा ।
“मैं पहचानता हूं ।” - तत्काल ब्रान्डो बोला - “ये छुरी उस कटलरी का हिस्सा है जो कुछ साल पहले मैं इंगलैंड से लाया था । इसके फल और हैंडल दोनों पर ताज का मोनोग्राम बना हुआ है ।”
“यानी ये छुरी आपकी मिल्कियत है ?”
“हां ।”
“इसके जोड़ीदार बाकी के छुरी-कांटे-चम्मच वगैरह कहां पाये जाते हैं ?”
“किचन के एक दराज में ।”
“जिसको ताला लगाने में तो कोई मतलब ही नहीं ।”
“माई डियर सर, किचन दराजों को कौन ताला लगाता है ?”
“लगाने वाले लगाते हैं लेकिन आप नहीं लगाते । आपके यहां किसी चीज को ताले में बन्द करके रखने का रिवाज नहीं मालूम होता । मेहमानों की बेइज्जती होती है । आपकी मेहमाननवाजी पर हर्फ आता है । नो ?”
ब्रान्डो ने जोर से थूक निगली और फिर अटकता-सा बोला - “आप क्या कहना चाहते हैं ? क्या ये छूरी इस वक्त जिक्र के काबिल है ?”
“ये आलायेकत्ल है । मर्डर वैपन है ये । ये टेलीफोन बूथ से बरामद हुई आयशा की लाश की छाती में पैवस्त पायी गयी थी ।”
“ओह !”
“यानी कि जैसे पहले कत्ल का हथियार आपके शस्त्रागार से सप्लाई हुआ था, वैसे ही दूसरे कत्ल का हथियार आपकी किचन से सप्लाई हुआ है । दूसरा कत्ल किसी फायरआर्म से इसलिये नहीं हुआ क्योंकि पुलिस की राय पर अमल करते हुए आपने कल शास्त्रागार को ताला लगा दिया था ।”
“लेकिन” - मुकेश बोला - “पहले कत्ल का हथियार वो अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर अभी बरामद तो हुई नहीं ? क्या इसका मतलब ये नहीं कि वो रिवॉल्वर अभी भी कातिल के पास थी ।”
“हमें निश्चित रूप से मालूम है कि कल रात दूसरे कत्ल की नौबत आने से पहले कातिल उस रिवॉल्वर को कहीं ठिकाने लगा चुका था ।”
“कहीं कहां ?”
“कुएं में ।”
“जी !”
“वो रिवॉल्वर कुएं से बरामद हुई है ।”
“ओह !”
“इसका साफ मतलब ये भी है कि रिवॉल्वर को ठिकाने लगाने के बाद तक कातिल को ये इमकान नहीं था कि बहुत जल्द, आनन-फानन उसके एक और कत्ल भी करना पड़ सकता था । वर्ना वो रिवॉल्वर को अपने से जुदा न करता । उसके रिवॉल्वर कुएं में फेंक चुकने के बाद ही ऐसे हालात पैदा हुए थे कि उसे आयशा का भी कत्ल करना पड़ा था । तब आल्टरनेट वैपन के तौर पर उसने ये लम्बे फल वाली तीखी छुरी चुनी थी जो कि यहीं किचन में सहज ही उपलब्ध थी । दूसरा कत्ल किचन में उपलब्ध छुरी से हुआ होना मेरी इस धारणा को और भी मजबूत करता है कि कातिल कोई बाहरी आदमी नहीं हो सकता । कातिल या मेहमानों में से कोई था या” - उसकी निगाह पैन होती हुई विकास निगम, रोशन बालपाण्डे और धर्मेन्द्र अधिकारी पर फिरी - “मेहमानों के मेहमानों में से कोई था ।”
“इसके हत्थे पर से कोई फिंगर प्रिंटस वगैरह नहीं मिले ?”
“नहीं मिले । रिवॉल्वर पर से भी नहीं मिले । यानी की कातिल होशियार और खबरदार था ।”
कोई कुछ न बोला ।
सोलंकी कुछ क्षण बारी-बारी सबको घूरता रहा, फिर उसने दोबारा कार्ड-बोर्ड की पेटी में हाथ डाला । इस बार उसने पेटी से जो आइटम बरामद की वो एक एयरबैग था जोकि साफ पता चल रहा था कि खाली नहीं था ।
“कोई” - वो उसे पेटी से अलग मेज पर रखता हुआ बोला - “इसे एयरबैग को पहचानता हो !”
“मैं पहचानती हूं ।” - तत्काल सुनेत्रा बोली - “परसों सुबह इसे मैंने तब मोहिनी के हाथ में देखा था जबकि वो यहां से खिसक रही थी ।”
“पक्की बात ?”
“जी हां ।”
“इस किस्म के एयरबैग सब एक ही जैसे होते हैं, फिर भी आप दावे के साथ कह रही हैं, कि ये ही बैग आपने मोहिनी के हाथ में देखा था । ऐसा क्यों ?”
“मुझे तो ये वो ही बैग लगा था” - वो तनिक हड़बड़ाकर बोली - “अब आप कहते हैं कि ये कोई और बैग भी हो सकता है तो... वैल, यू नो बैटर ।”
“मैडम, ज्यादा सम्भावना इसके वो ही बैग होने की है ।”
“क्यों ?”
“इसके भीतर से सामान मौजूद है, वो मोहिनी का है । बतौर मोहिनी की मिल्कियत उसकी आप पहले ही शिनाख्त कर चुकी हैं ।”
“अच्छा ! क्या है इसमें ?”
सोलंकी के इशारे पर फिगुएरा ने बड़े नाटकीय अन्दाज से एयरबैग की जिप खोली और उसमें से निहायत शानदार, निहायत कीमती फर का सफेद कोट बरामद किया ।
“ये तो... ये तो” - सुनेत्रा के मुंह से निकला - “मोहिनी का कोट है ।”
“जी हां ।” - सोलंकी बोला - “तभी तो मैंने कहा कि इसकी आप पहले ही शिनाख्त कर चुकी हैं । आपके बयान के मुताबिक ये कोट यहां से रुख्सत होते वक्त मोहिनी अपने जिस्म पर पहने थी । राइट ?”
सुनेत्रा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“हाजिर साहबान की जानकारी के लिये वो रिवॉल्वर भी इस कोट के साथ इस एयरबैग में थी । और ये एयरबैग कल रात साढे बारह बजे के करीब लबादा ओढे एक साये ने कुएं में फेंका था और वो साया” - एकाएक सोलंकी का स्वर अतिनाटकीय हो उठा - “मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि आप लोगों में से ही कोई था । आप लोगों में से ही कोई कल आधी रात के बाद काला लबादा ओढे यहां से बाहर निकलकर कुएं के करीब पहुंचा था और उसने अपने लाबदे में से निकालकर सामान कुएं में फेंका था ।”
“आपको कैसे मालूम ?” - ब्रान्डो भौचका-सा बोला ।
“है मालूम किसी तरीके से ।” - सोलंकी लापरवाही से बोला ।
“सामान !” - आलोका मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली - “सामान ये एयरबैग ?”
“और ये ।”
इस बार सोलंकी ने पेटी से निकालकर जो चीज मेज पर रखी वो किसी सफेट पाउडर से भरी हई एक वाटरप्रूफ थैली थी ।
“ये क्या है ?” - मुकेश उत्सुक भाव से बोला - “क्या है इस थैली में ?”
“हेरोइन ।” - तब पहली बार एन.सी.बी. का इंस्पेक्टर आरलेंडो बोला - “प्योर । अनकट । जांच हो चुकी है । वजन दो किलो । अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत दो करोड़ रुपये ।”
“ये भी कुएं से मिली ?” - शशिबाला बोली ।
“जी हां ।”
“कोट और रिवॉल्वर के साथ एयरबैग में से ही ?”
“नहीं ।” - सोलंकी बोला - “हेरोइन की थैली एयरबैग में नहीं थी । लेकिन एयरबैग और ये थैली कुएं में अगल-बगल पड़े थे और साफ जाहिर है कि हमारी कुएं की पहली तलाशी के बाद ही वहां फेंके गये थे ।”
“लेकिन इतनी हेरोइन !” - मुकेश मंत्रमुग्ध स्वर में बोला - “यहां ?”
“ये बहुत सनसनीखेज बरामदी है जिसकी कि फौरन एन.सी.बी. को सूचना भिजवाई गयी थी और वजह से बम्बई से एन.सी.बी.के डिप्टी डायरेक्टर मिस्टर अचरेकर खुद यहां आ रहे हैं । साहबान, हेरोइन की ये बरामदी यहां हुए डबल मर्डर से कहीं ज्यादा सनसनीखेज वारदात है । अब हमें एक कातिल से ज्यादा एक ड्रग स्मगलर की, बल्कि एक ड्रग लार्ड की तलाश है ।”
“दोनों कोई एक ही शख्स होगा !” - ब्रान्डो बोला ।
“हो सकता है । नहीं भी हो सकता । गहरी तफ्तीश का मुद्दा है ये ।”
“कैसे हो सकता है ?” - मुकेश बोला - “मिस्टर ब्रान्डो की कोई बुलबुल कातिल हो, ये बात तो सम्भव हो सकती है लेकिन वो कोई बड़ी नारकाटिक्स समगल हो ! ये तो हज्म होने वाली बात नहीं ।”
“वो किसी और के लिये काम करती हो सकती है ।”
“और कौन ?”
“कोई भी । बहुत लोग हैं मेरी निगाह में ।”
वहां उपस्थित तमाम मर्द एक साथ विचलित दिखाई देने लगे ।
“जैसे” - मुकेश बोला - “ये रिवॉल्वर और ये कोट बरामद हुआ है इससे क्या ये स्थापित नहीं होता कि मोहिनी का भी कत्ल हो चुका है ?”
“इस बात की तसदीक तो” - फिगुएरा बोला - “मरने से पहले आयशा ही फोन पर कर गयी थी । साफ तो कहा था उसने कि मोहिनी जिन्दा नहीं थी, वो मर चुकी थी, उसका कत्ल कर दिया गया था ।”
“लेकिन आप अभी तक उसकी लाश नहीं तलाश कर पाये ।”
“कर लेंगे । महज वक्त की बात है ये । हमारे पास स्टाफ की कमी न होती तो अब तक कर भी चुके होते ।”
“जनाब, कातिल का रिवॉल्वर को कुएं में फेंकना तो समझ में आता है लेकिन कोट का ऐसा विसर्जन किसलिये ? कोट क्या तकलीफ देता था कातिल को ? मोहिनी और भी तो कपड़े पहने होगी । ये कोट भी उसकी बाकी पोशाक के साथ उसके जिस्म पर से बरामद हो जाता तो क्या आफत आ जाती ?”
फिेगुएरा से जवाब देते न बना । उसने सोलंकी की तरफ देखा ।
“रिवॉल्वर का कत्ल से ताल्लुक था” - मुकेश फिर बोला - “कोट का मकतूल से ताल्लुक था लेकिन हेरोइन का तो इन दोनों बातों से कोई ताल्लुक नहीं था । फिर क्यों किसी ने दो करोड़ की हेरोइन का रिश्ता खामखाह एक कत्ल से जोड़ा ? क्यों खामखाह किसी ने ऐसा पंगा लिया कि...”
“होगी कोई वजह” - सोलंकी झुंझलाकर बोला - “जो कि सामने आ जायेगी । बहरहाल...”
तभी पिन्टो नाम का सिपाही लम्बे डग भरता हुआ सोलंकी के करीब पहुंचा और जल्दी जल्दी उसके कान में कुछ फुसफुसाया जिसे सुनकर सोलंकी तत्काल उठ खड़ा हुआ ।
“साहबान” - वो बोला - “मिस्टर अचरेकर को हैलीकाप्टर हैलीपैड पर उतर चुका है । अब हमारी फौरन चौकी पर हाजिरी जरूरी है । जाने से पहले मैं एक चेतावनी देकर जाना चाहता हूं - खासतौर से उन लोगों को जिनकी आइलैंड पर मूवमेंट्स संदिग्ध हैं या जो संतोषजनक तरीके से अपनी पोजीशन साफ न कर सके या जो हमारे किन्हीं सवालों के काबिले एतबार जवाब न दे सके या जवाब ही न दे सके । मसलन मिस्टर विकास निगम ने अभी हमें ये बताना है कि क्यों वो आधी रात को अपनी टयोटा लेकर यहां निकले थे और इसके साथ जो लड़की थी वो कौन थी... नो मिस्टर निगम, अभी जवाब देने की जरूरत नहीं । आपका अभी का जो जवाब है, वो मुझे मालूम है । वो जवाब हमें कबूल नहीं । हमारे पास गवाह है ये कहने वाला - जो हवलदार स्कूटर पर आपकी कार के पीछे लगा था, उसके अलावा गवाह है ये कहने वाला - कि कार में आपके साथ कोई लड़की थी ।”
सुनेत्रा ने आहत भाव से अपनी पति की तरफ देखा ।
“नानसेंस !” - निगम सुनेत्रा से निगाह चुराता हुआ बोला - “अटर नानसेंस ।”
“मिस्टर बालपाण्डे” - उसको पूरी तरह नजरअन्दाज करता सोलंकी बोला - “मोहिनी की जो सप्लीमैंट्री स्टोरी आपने सुनाई है, उसमें दम है लेकिन अपनी बीवी को भी भुलावे में रखकर आपका चोरों की तरह आइलैंड पर आना, वापिस जाना, फिर आना अभी शक से परे नहीं । यही बात आपके बारे में भी कही जा सकती है, मिस्टर अधिकारी ।”
“बॉस” - अधिकारी बोला - “मोहिनी मेरी पांच लाख रुपये की हुण्डी थी, मैं उसका कत्ल तो दूर, उसकी उंगली के एक नाखून को नुकसान पहुंचाना गवारा नहीं कर सकता था ।”
“मिस फौजिया खान का यहां से चुपचाप खिसक जाने को आमदा हो जाना हम अच्छी निगाहों से नहीं देखते । ऐसा ही एतराज हमें मिसेज सुनेत्रा निगम के मोहिनी से अपनी मुलाकात की बाबत खामोश रहने से है । मिस शशिबाला को मोहिनी की वापसी में अपनी बर्बादी दिखाई देती थी, ये बात भी स्थापित हो चुकी है । इसके विपरीत ये बात अभी निर्विवाद रूप से स्थापित नहीं हुई है कि मिसेज आलोका बालपाण्डे अपने पति की ही तलाश में आधी रात को मिस्टर ब्रान्डो की कोन्टेसा लेकर यहां से निकली थीं । और मैडम” - केवल टीना से वो सीधे सम्बोधित हुआ - “मोहिनी का ब्रेसलेट आपके सामान से क्योंकर बरामद हुआ इसका कोई माकूल जवाब आप न दे पायीं तो सब से ज्यादा मुसीबत में आप अपने आपको समझियेगा ।”
“मैं” - टीना व्याकुल भाव से बोली - “अभी जवाब देने को तैयार हूं, बशर्ते कि आप मिस्टर बालपाण्डे की तरह मुझे भी अकेले में अपनी बात कहने का मौका दें ।”
“उसके लिये मेरे पास वक्त नहीं है । मैंने फौरन चौकी पहुंचना है । हमारी अगली मुलाकात तक आप अपना जवाब अच्छी तरह से पालिश कर लीजियेगा । मिस्टर ब्रान्डो !”
ब्रान्डो ने हड़बड़ाकर गरदन उठाई ।
“आपके मेहमान आपके हवाले हैं । हमारे लौटने तक आप इनकी ऐसी खातिर-तवज्जो कीजियेगा कि किसी को फरार हो जाने का ख्याल तक न आये ।”
ब्रान्डो ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यही बात” - आरलेंडो बोला - “आप पर भी लागू होती है ।”
“क... क्या ?”
आरलेंडो ने उत्तर न दिया ।
फिर तीनों पुलिस अधिकारी अपने पीछे कई हकबकाये श्रोताओं को छोड़कर बड़ी अफरातफरी में वहां से रुख्सत हो गये ।
***
पांच बजने को थे जब मुकेश के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कम इन !” - वो बोला ।
दरवाजा खुला । टीना ने भीतर कदम रखा ।
“क्या कर रहे हो ?” - वो बोली ।
“कुछ नहीं ।” - मुकेश बोला - “झक मार रहा हूं ।”
“वो... वो पुलिस वाले लौट के नहीं आये ?”
“आ जायेंगे । उन्हें हो तो हों, हमें क्या जल्दी है ?”
वो कुछ क्षण खामोश रही और फिर बड़बड़ाती सी बोली - “मेरी जान कैसे छूटे ?”
“अपनी जान तुमने खुद सांसत में डाली हुई है । तुम बता क्यों नहीं देती हो कि मोहिनी का ब्रेसलेट तुम्हारे कब्जे में कैसे आया ।”
“वो... वो मोहिनी का ब्रेसलेट नहीं है ।”
“क्या कहने ? यानी कि ‘प्रिय मोहिनी को । सप्रेम । श्याम’ बेमानी ही उस पर गुदा हुआ है ।”
“कल हम जब ईस्टएण्ड गये थे तो तुम मुझे बाहर जीप में बैठा छोड़कर चौकी में गये थे । क्या करने गये थे तुम वहां ?”
“बड़ी देर से पूछना सूझा ।”
“क्या करने गये थे ?”
“उन्हें तुम्हारे धर्मेन्द्र अधिकारी की बाबत बताने गया था ।”
“तुम उन्हें ऐसी बात बताने गये थे जिसे वो होटल के रिसैप्शनिस्ट जार्जियो के जरिये पहले ही जान चुके थे ?”
“नाम नहीं जान चुके थे । मोहिनी को पूछते फिर रहे दो आदमियों में से एक का नाम धर्मेन्द्र अधिकारी था और वो फिल्मों से जुड़ा हुआ कोई ऐसा शख्स था जो कि ब्रान्डो की तमाम बुलबुलों को जानता था, ये उन्हें मैंने जाकर बताया था ।”
“बस ?”
“और क्या ?”
“और कुछ नहीं बताया था तुमने उन्हें ?”
“अरे और क्या ?”
“मसलन मेरे बारे में कुछ !”
“तुम्हारे बारे में क्या ?”
“तुम बताओ ।”
“ये कि मोहिनी के सन्दर्भ में तुम्हारा व्यवहार बड़ा सन्दिग्ध था ? कि उसकी आमद की खबर सुनकर तुम बदहवास हो गयी थीं और तुमने फौरन ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था ? कि मोहिनी से मिलने की नीयत से तुम चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थीं और एकाएक मेरे से सामना हो जाने पर तुमने टुन्न होने का और अभी पीने की तलब रखने का बहाना किया था ?”
“हां ।”
“नहीं, नहीं बताया था मैंने । अभी तक नहीं बताया ।”
“अच्छा किया । वर्ना ब्रेसलेट वाली बात को इन बातों से जोड़कर पुलिस जरूर-जरूर ही कोई बड़ा खतरनाक नतीजा निकाल लेती ।”
“टीना, वो बातें कभी तो मुझे अपनी जुबान पर लानी पड़ ही सकती हैं ।”
“क्यों ? क्यों पड़ सकती हैं ?”
“क्योंकि मैं यहां तुम लोगों की तरह पिकनिक करने नहीं आया, अपनी फर्म के लिये एक निहायत जिम्मेदार काम को अन्जाम देने आया हूं । क्योंकि मैं किसी एक्स फैशन माडल का नहीं, आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का मुलाजिम हूं ।”
टीना ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
“और मेरे एम्पलायर का, मेरे वाहियात, खुन्दकी, सैडिस्ट, स्लेव ड्राइवर एम्पालायर का मेरे लिये नाजायज, नामुराद, नाकाबिले बर्दाश्त हुक्म है कि मैं मोहिनी की लाश का पता लगाऊं और उसके कातिल का पता लगाऊं ।”
“ये तुम्हारा काम तो नहीं ।”
“यू टैल एडवोकेट नकुल बिहारी आनन्द ।”
“मुझे डर लगता है ।”
“किस बात से ? अपनी गिरफ्तारी से ?”
“उससे ज्यादा इस बात से कि कातिल हम लोगों के बीच मौजूद है और पुलिस वालों के यहां वापिस कदम नहीं पड़ रहे ।”
“तो क्या हुआ ?”
“यहां और कत्ल हो सकता है ।”
“तुम्हारा ?”
“मेरा या किसी का भी ।”
“यानी कि तुम तो कातिल नहीं हो !”
“इस बाबत हमारे बीच पहले ही फैसला नहीं हो चुका ?”
“तब मुझे मोहिनी के ब्रेसलेट वाली बात नहीं मालूम थी ।”
“ओह, तो अब मैं भी तुम्हारे सस्पेक्ट्स की लिस्ट में आ गई हूं ।”
मुकेश ने जवाब न दिया ।
“वकील साहब” - वो तीखे स्वर में बोली - “ये न भूलो कि कल रात को जब कोई बुलबुल कुएं में सामान फेंक रही थी, तब मैं तुम्हारे साथी थी ।”
“किसी और बुलबुल ने तुम्हारे कहने पर तुम्हारे लिये ये काम किया हो सकता है ।”
“क्यों ?”
“ताकि मैं तुम्हें गुनहगार न समझूं ।”
“तुम्हारे कुछ समझने या न समझने की क्या कीमत है ?”
मुकेश ने जवाब न दिया ।
“और फिर कौन मेरे कहने पर ये काम करेगी और जानबूझकर शक की सुई का रुख अपनी तरफ मोड़ेगी ?”
“उसकी सूरत हम नहीं देख सके थे । फिर हो सकता है कि तुमने उसे ये न बताया हो कि कुएं की निगरानी हो रही होनी थी ।”
“तुम हेरोईन की उस थैली को भूल रहे हो जिसकी कीमत दो करोड़ रुपये बतायी गयी है । तुम मेरी कल्पना एक हेरोइन स्मगलर के तौर पर कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“किसी और बुलबुल की ?”
“किसी और बुलबुल की भी नहीं ।”
“तो फिर ?”
“तो फिर ये कि तुम्हारी इस दलील से मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?”
“हेरोइन एयरबैग में नहीं थी । यानी कि कुएं से बरामद सामान एक नग की सूरत में नहीं था । सुबूत है कि हेरोइन और एयरबैग एक ही वक्त में कुएं में फेंके गये थे ?”
“सुबूत तो कोई नहीं लेकिन तुम्हारा मतलब क्या है ?”
“तुम बात की यूं कल्पना करो कि रात के अन्धेरे में काला लाबादा ओढे एक बुलबुल आयी और कुएं में एयरबैग फेंक गयी । वो चली गयी तो हम भी चले गये । उसके बाद रास्ता साफ था और किसी के पास कुएं के जितने मर्जी फेरे लगा लेने के लिए सारी रात पड़ी थी ।”
“तुम्हारा मतलब है कि बाद मे कोई और आया और कुएं में हेरोइन की थैली फेंक गया ।”
“हां । और वो इस बात से कतई बेखबर था कि पहले भी कोई कुछ छुपाने के लिये उस कुएं को इस्तेमाल कर चुका था । अगर उसे इस बात की भनक भी होती तो वो कुएं में हेरोइन न फेंकता ।”
“तो कहां फेंकता ?”
“समुद्र में ।”
“पहले ही वहां क्यों न फेंकी ?”
“क्योंकि वो दो करोड़ रुपये का माल था और पहले वो इतनी बड़ी रकम समुद्र में डुबो देने का तमन्नाई नहीं था । कुएं में से हेराइन की थैली वापिस निकाली जा सकती थी, समुद्र से ऐसी बरामदी मुमकिन नहीं थी ।”
“ब्रान्डो !” - टीना एकाएक बोली ।
“क्या ब्रान्डो ?”
“वही कुंआ-कुआं भज रहा था ।”
“लेकिन वो भजन सुनने के लिये उस घड़ी कई लोग मौजूद थे । कुआं सुझाया जरूर ब्रान्डो ने था लेकिन मुमकिन है हेरोइन छुपाने के लिये उसका इस्तेमाल किसी और ने किया हो ।”
“किसने ? तुम तो फिर बुलबुलों की तरफ ही उंगली उठा रहे हो । क्योंकि बुलबुलों के आलावा तो तब वहां कोई था नहीं और तुम पहले ही हेरोइन समगलिंग को बुलबुलों के बूते से बाहर का काम तसलीम कर चुके हो ।”
“नौकर-चाकर थे वहां । यहां का कोई नौकर असल में हेरोइन स्मगलर का एजेन्ट हो सकता है जिसने कि अपने बॉस के निर्देश पर हेरोइन की थैली कुएं में फेंकी हो सकती है ।”
“बॉस कौन ?”
“यही तो वो लाख रुपये का सवाल है जिसका जवाब हमारे नहीं है ।”
“सुनो । ब्रान्डो इस मैंशन में साल के सिर्फ दो महीने रहता है । बाकी दस महीने ये मैंशन, ये सारी एस्टेट नौकरों के हवाले रहती है । एस्टेट का अपना प्राइवेट बीच है जहां कि किसी बाहरी आदमी का कदम रखना मना है । ऊपर से इस आइलैंड पर पुलिस की हाजिरी नाम मात्र को है । हेरोइन की कैसी भी ओवरसीज स्मगलिंग के लिये ये एक रेडीमेड सैटअप है जिसका किसी शातिर स्मगलर ने ब्रान्डो के स्टाफ में से किसी को, या सबको, सांठकर पूरा-पूरा फायदा उठाया हो सकता है ।”
“दम तो है तुम्हारी बात में । यानी कि उस बरामद हुई हेरोइन का मालिक आइलैंड का कोई भी बाशिन्दा हो सकता है । आइलैंड का ही क्यों, वो तो कहीं का भी कोई भी बाशिन्दा हो सकता है ।”
“हां ।”
“यानी कि हम ब्रान्डो पर बेजा शक पर रहे हैं ।”
“हां, उसका सिर्फ इतना गुनाह है कि उसने पुलिस का ध्यान कुएं की ओर आकर्षित किया था । ऐसा करने के पीछे हम उसका कोई मकसद समझ रहे थे लेकिन असल में उसने इत्तफाकन ऐसा किया हो सकता है ।”
“हेरोइन स्मगलर ब्रान्डो हो या काला चोर, मुझे इससे कुछ लेना-देना नहीं । यहां मेरा मिशन मोहिनी को तलाश करना था । अब जबकि लग रहा है कि उसका कत्ल हो गया है तो मेरा मिशन लाश की बरामदी से भी कामयाब हो सकता है क्योंकि मोहिनी के कत्ल की बात तभी निर्विवाद रूप से स्थापित होगी ।”
“हालात का इशारा तो साफ इस तरफ है कि वो मर चुकी है ।”
“कायदा-कानून हालात के इशारे नहीं समझता ? कानून सुबूत मांगता है । और कत्ल के केस में अहमतरीन सुबूत लाश होती है । श्याम नाडकर्णी के केस में भी हालात का इशारा साफ इस तरफ था कि वो समुद्र में डूब मरा था, फिर भी लाश की गैर-बरामदी मोहिनी के लिये इतनी बड़ी समस्या बनी थी कि उसकी दौलत का कानूनी हकदार बनने के लिये मोहिनी को पूरे सात साल इन्तजार करना पड़ा था । अब मोहिनी की लाश की गैरबरामदी आगे उसके किसी वारिस के लिये ऐसी ही समस्या बन जायेगी ।”
“ओह !”
“तुम फौजिया की दाईं बांह दबोचने वाली थीं ?”
“मौका कहां लगा ? पहले मैं अपनी सफाई देती पुलिस वालो में उलझी रही । वो यहां से रुख्सत हुए तो तुमने देखा नहीं था कि कैसे फौजिया दौड़कर सीढियां चढ गयी थी ! अभी तक बन्द है अपने कमरे में । मैंने आवाज दी तो जवाब न दिया ।”
“नैवर माइन्ड । कभी तो निकलेगी बाहर ।”
टीना ने सहमति में सिर हिलाया ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“मेरे साथ चलते हो ?” - एकाएक वो बोला ।
“कहां ?” - मकेश हड़बड़ाया ।
“ईस्टएण्ड । पुलिस चौकी ।”
“वहां किसलिये ?”
“ब्रेसलेट की बाबत पुलिस की वार्निंग का मुकाबला करने के लिये ?”
“यानी कि हथियार है तुम्हारे पास मुकाबले के लिये ?”
“है तो सही ।”
“क्यों न उसे पहले यहीं आजमा लें ?”
“नहीं । चलते हो तो चलो, नहीं तो साफ मना करो ।”
“चलता हूं ।”
***
इस बार भी उन्हें ब्रान्डो की जिप्सी जीप ही हासिल हुई ।
चौकी पर न सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा था, न इंस्पेक्टर सोलंकी था और न एन.सी.बी. का इंस्पेक्टर आरलेंडो था । मालूम हुआ कि वो बाम्बे से आये एन.सी.बी. के डिप्टी डायरेक्टर अचरेकर के साथ म्यूनिसपैलिटी की बिल्डिंग में थे ।
“वो कहां है ?” - टीना बोली ।
“चर्च रोड पर ।”
“और चर्च रोड कहां है ?”
सिपाही ने उन्हें रास्ता समझाया ।
वो चर्च रोड पहुंचे ।
वहां कमेटी की बिल्डिंग में उन्हें चौकी का एक सिपाही दिखाई दे गया । उससे उन्हें मालूम हुआ कि सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी आइलैंड के दूसरे सिरे पर कहीं गये थे जहां से कि वे आधे घण्टे में लौटकर आने वाले थे ।
“ठीक है ।” - टीना बोली - “हम आधे घण्टे में फिर यहीं आयेंगे । तुम उन्हें हमारी बाबत बोल के रखना ।”
सिपाही ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब आधा घन्टा क्या करें ?” - टीना बोली ।
“कहीं चलकर एक-एक गिलास बीयर पीते हैं ।”
“नहीं । मूड नहीं है ।”
“तो आइलैंड की सैर करते हैं । यहां पायर, ईस्टएण्ड और ब्रान्डो की एस्टेट के अलावा हमने देखा ही क्या है !” 
“ये ठीक है । लेकिन गाड़ी तेज चलाना । ब्रेक नैक स्पीड पर ।”
“वो किसलिये ?”
“खुशकिस्मती से शायद एक्सीडेंट ही हो जाये और जान सांसत से छूट जाये ।”
“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे । मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे !”
“ये भी ठीक है ।”
“मुझे सजा किसलिये ? मेरा तो नौजवानी में मरने का कोई इरादा नहीं ।”
“इरादा तो मेरा भी नहीं लेकिन... खैर, चलो अब ।”
इमारत की सीढियां उतरकर वे सड़क पर पहुंचे और उधर बढे जिधर उन्होंने जिप्सी खड़ी की थी ।
वो भीड़भरी सड़क थी और कमेटी का दफ्तर उसी पर होने की वजह से वहां पार्किंग की प्रॉब्लम थी जिसका सुबूत ये था कि उन्होंने अपनी गाड़ी अभी वहां से हटाई भी नहीं थी कि एक ओमनी वैन उसकी जगह लेने को तैयार खड़ी थी ।
जीप मंथर गति से ट्रैफिक में रास्ता बनाती आगे बढी ।
एकाएक टीना के मुंह से एक सिसकारी निकली । वो तत्काल सीट पर नीचे को सरक गयी और उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया ।
“क्या हुआ ?” - मुकेश हकबकाया सा बोला ।
“मुकेश” - वो बौखलाये स्वर में बोली - “वो कार... वो क्रीम कलर की फियेट.. उसके करीब न जाना ।”
“क्यों ?”
“जो आदमी उसे ड्राइव कर रहा है, वो मुझे देख लेगा ।”
“तो क्या हुआ ?”
“लेकिन उसके पीछे लगे रहना ।”
“और चारा ही क्या है ? ये वन वे स्ट्रीट है और इतनी भीड़ है यहां ।”
“मेरा मतलब है वो खिसकने न पाये । वो कार निगाहों से ओझल न होने पाये ।”
“लेकिन बात क्या है ?”
“ड्राइविंग की तरफ ध्यान दो । प्लीज । उसके पीछे ही रहना । ज्यादा करीब पहुंचने की कोशिश न करना वर्ना वो मुझे देख लेगा ।”
उसने तब भी अपने हाथों से अपना चेहरा ढंका हुआ था और वो यूं दोहरी हुई बैठी थी कि फासले से तो वो सीट पर हुई कोई कपड़ों की गठड़ी ही लगती ।
अगली कार के रियर व्यू मिरर में एक बार उसे उस शख्स की सूरत दिखाई दी तो वो इतना ही जान पाया कि वो क्लीन शेव्ड था, चश्मा लगाता था और सिर पर लम्बे बाल रखता था ।
“है कौन वो ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“एक आदमी है ।” - टीना बोली ।
“वो तो मुझे भी दिखाइं दे रहा है लेकिन है कौन ?”
“नाम याद नहीं आ रहा । फैशन शोज के टाइम से जानती हूं मैं इसे । कोई पैसे वाला आदमी था । मोहिनी पर मरता था । हर वक्त उसके पीछे पड़ा रहता था । मुकेश, इस आदमी की आइलैंड पर मौजूदगी महज इत्तफाक नहीं हो सकती । हमें मालूम करना चाहिये कि ये यहां क्यों है और किस फिराक में है । लेकिन” - उसने फिर अपनी चेतावनी दोहराई - “वो मुझे देखने न पाये ।”
“इतने सालों बाद वो पहचान लेगा तुम्हें ?”
“मैंने भी तो पहचाना है उसे इतने ही सालों बाद ।”
“ओह !”
“पीछा न छोड़ना उसका । खिसकने न देना ।”
आगे एक चौराहा था जिस पर से फियेट दायें घूमी । उस नयी सड़क पर पीछे चर्च रोड जैसी भीड़ नहीं थी इसलिये अब उसकी रफ्तार कदरन बढ गयी थी ।
कुछ क्षण सिलसिला यूं ही चला ।
फिर एकाएक अगली कार रुकी । ड्राइवर ने खिड़की से हाथ निकालकर उसे पास करने का इशारा किया ।
“न न ।” - तत्काल टीना बोली - “ऐसा न करना । तुम उसकी बगल से गुजरे तो वो मुझे देख लेगा ।”
“तो क्या करूं ?”
“लैटर बॉक्स ! चिट्ठी !”
तत्काल मुकेश ने कार को बाजू में करके उस लैटर बॉक्स के करीब रोका जिसकी तरफ कि टीना इशारा कर रही थी । वो कार से निकला और उसके करीब पहुंचा । फिर वो फियेट की दिशा में पीठ करके लैटर बॉक्स में चिट्ठी छोड़ने का बहाना करने लगा । वहां और ठिठके रहने की नीयत से उसने नीचे झुककर वो प्लेट पढने की कोशिश की जिस पर डाक निकासी का वक्त अंकित होता था ।
तभी फियेट फिर सड़क पर चल दी ।
मुकेश भी लपककर कार में सवार हुआ और पूर्ववत उसके पीछे लग लिया ।
“वो रुका क्यों था ?” - वो बोला ।
“पता नहीं । मेरी तो सिर उठाने कि हिम्मत नहीं हो रही थी ।”
“और मेरी पीठ थी उसकी तरफ ।”
“होगी कोई वजह । तुम ड्राइविंग की तरफ ध्यान दो ।” 
“और क्या कर रहा हूं ?”
दोनों कारें आगे-पीछे आईलैंड की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रहीं ।
वे ईस्टएण्ड के बाजार में पहुंचे तो वहां कार एक विशाल डिपार्टमैंट स्टोर के सामने रुकी । स्टोर के दरवाजे पर एक स्कर्ट और जैकेटधारी दोहरे बदन वाली महिला खड़ी जिसने अपनी खरीददारी के सुबूत के तौर पर कई पैकेट, पार्सल वगैरह सम्भाले हुए थे । तत्काल वो फियेट का घेरा काटकर पैसेंजर सीट की तरफ बढी जिसका दरवाजा ड्राइवर ने हाथ बढाकर खोल दिया था । सामान से लदी-फंदी वो फियेट में सवार हुई । ड्राइवर भुनभुनाता-सा महिला से कुछ बोला जिसका भुनभुनाता-सा ही जवाब उसे मिला ।
“बीवी होगी ।” - मुकेश बोला ।
“हां ।” - टीना बोली - “ऐसे एक-दूसरे से बेजार तो लम्बे अरसे से विवाहित मियां-बीवी ही होते है ।
“तुम कहती हो कभी ये आदमी मोहिनी पर मरता था ?”
“हां ।”
“फिर भी इस आलुओ के बोरे से शादी की ?”
“पहले नहीं होगी वो आलुओं का बोरा । औरतें बाद में, गृहस्थन बनकर ऐसी हो जाती हैं ।”
“तुम भी हो जाओगी ऐसी ?”
“अरे, पहले बसे तो सही गृहस्थी । फंसे तो कोई गोला कबूतर । अभी तो हस्ती खतरे में दिखाई दे रही है । जेल में बन्द कर दी गयी तो शादी के बाद क्या, वैसे ही ऐसी हो जाऊंगी ।”
“शुभ-शुभ बोलो ।”
“ओके ।”
“आदमी को पहचानती हो, उसकी औरत को नहीं पहचानती हो ?”
“नहीं, औरत को नहीं पहचानती हूं । उसे मैंने, पहले कभी नहीं देखा... वो जा रहे हैं । पीछे चलो ।”
मुकेश ने कार आगे बढाई ।
“लेकिन फासला रख के ।” - टीना बोली - “पहले की तरह ।”
“टीना, उस शख्स की तुम्हारी तरफ कोई तवज्जो नहीं मालूम होती ।”
“तवज्जो जा सकती है । तुम दूर ही रहो उससे ।”
“यूं वो हाथ से निकल जायेगा । वो मेरे से ज्यादा दक्ष ड्राइवर मालूम होता है । मैं भीड़ में इतनी तेज कार नहीं चला सकता ।”
“यू डू युअर बैस्ट । युअर बैस्ट । प्लीज ।”
“ओके । ओके ।”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“उसे” - मुकेश बोला - “मालूम होगा कि चर्च रोड से ही हम उसके पीछे लगे हुए हैं ।” 
“हो सकता है ।”
“पीछे झांककर तो उसने एक बार भी नहीं देखा ?”
“रियर व्यू मिरर में से झांकता होगा ।”
अगली गाड़ी पायर पर पहुंची ।
“अगर ये” - मुकेश बोला - “कार समेत स्टीमर पर सवार होकर चल दिया तो हम क्या करेंगे ।”
“हम भी वहीं करेंगे ।” - टीना बोली ।
“हम नहीं कर पायेंगे ।”
“क्यों ?”
“वो आजाद पंछी है । हमारे ऊपर पुलिस की पाबन्दी है । हम यूं आइलैंड नहीं छोड़ सकते ।”
“शायद वो पणजी न जाये ।”
“क्या मतलब ?”
“हमारी पाबन्दी मेनलैंड से ताल्लुक रखती है जहां पहुंचकर कि आगे कहीं भी फरार हुआ जा सकता है । यहां दो आइलैंड और भी हैं जो फिगारो का ही हिस्सा माने जाते हैं । हमारे लिये वहां जाने की पाबन्दी नहीं हो सकती क्योंकि उन पर से पणजी जाने के लिये पहले यहीं फिगारो आइलैंड पर आना जरूरी होता है ।”
“आई सी ।”
“हम देखते हैं वो क्या करता है ? कहां जाता है ?”
“ठीक है ।”
वो पायर के समुद्र की ओर वाले सिरे पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि एक बजड़ा-सा किनारा छोड़कर आगे बढ रहा था । तत्काल फियेट वाले ने जोर-जोर से हार्न बजाना शुरु कर दिया । बजड़े के ड्राइवर ने हार्न की आवाज सुनी तो वो उसे आगे बढाने की जगह वापिस किनारे पर लौटा लाया ।
फियेट उसके प्लेटफार्म पर चढ गयी ।
प्लेटफार्म पर कई बैंच लगे हुए थे जिस पर लोग बैठे हुए थे और उस घड़ी इस बात से बहुत खफा दिखाई दे रहे थे कि एक कार वाले के लिये बजड़ा किनारा छोड़ने के बाद वापिस लौटा आया था ।
बजड़े पर से किसी ने उन लोगों को इशारा किया ।
“अब क्या करें ?” - मुकेश बोला - “हम भी चढें ।
“हां । जल्दी ।”
“वो देख लेगा ।”
“ओफ्फोह ! चलो तो ! वो हमारी वजह से रुका हुआ है । हिलोगे नहीं तो वो चल देगा ।”
मुकेश ने कार आगे बढाई । फिर उनकी कार भी बजड़े के प्लेटफार्म पर फियेट के पहलू में जा खड़ी हुई ।
फियेट वाले ने यूं आंखें तरेरकर उसकी तरफ देखा जैसे वार्निग दे रहा हो कि उनकी कार के फियेट से छूने का अंजाम बहुत बुरा हो सकता था ।
टीना अपनी सीट में और भी नीचे को दुबक गयी ।
फिर इस बात से आश्वस्त होकर कि उसकी कार को कोई क्षति नहीं पहुंची थी वो सामने देखने लगा ।
मुकेश ने घूमकर पीछे देखा । उस घड़ी पायर पर कई लोग मौजूद थे । उनमें से एक लड़की एकाएक जोर-जोर से उनकी तरफ हाथ हिलाने लगी । मुकेश ने अपने दायें-बायें घूमकर देखा तो पाया कि जवाब में बजड़े पर से कोई हाथ नहीं हिला रहा था । लिहाजा वो हाथ हिलाने लगा ।
“कोई दोस्त है तुम्हारा पायर पर ।” - टीना फुसफुसाती-सी बोली ।
“नहीं ।” - मुकेश ने भी वैसे ही स्वर में जवाब दिया ।
“तो हाथ क्यों हिला रहे हो ?”
“यूं ही । मुझे लगा कि कोई मेरी तरफ हाथ हिला रहा था, सो मैंने भी हिला दिया ।”
“खामखाह !”
“हां ।”
“अजीब आदमी हो ।”
“हां । तभी तो तुम्हारे साथ हूं ।”
“पछता रहे हो ?”
“जरा भी नहीं । मेरा तो कयामत के दिन तक तुम्हारा साथ छोड़ने का इरादा नहीं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“नहीं ।”
“मेरा भी यहां ख्याल था ।”
“हां ।”
“पहला ही जवाब ठीक था ।”
“पहला जवाब जुबान से निकला था । दूसरा दिल से ।”
“ऐसी लच्छेदार बातें हर किसी से करते हो ?”
“नहीं । हर किसी से नहीं । सिर्फ एक्स फैशन माडल्स और करेंट पॉप सिंगर्स से ।”
वो हंसी ।
“धीरे । तुम्हारी खनकती हंसी की आवाज उसने सुनी तो वो पशोपेश में पड़ जायेगा कि आखिर आवाज आयी तो कहां से आयी !”
उसने होंठ भींच लिये ।
“वैसे उसने झांका तक नहीं था तुम्हारी तरफ ।”
“झांक सकता तो था ।”
बजड़ा चलने लगा । 
“हम कहां जा रहे हैं ?” - मुकेश बोला ।
“उन दो में से एक आइलैंड पर जा रहे हैं जिनका मैंने अभी जिक्र किया था लेकिन कौन-से पर, ये पहुंचने पर ही पता चलेगा ।”
“क्यों ?”
“अरे, मैं सिर उठाकर बाहर झांकूंगी तो कुछ जांनूंगी न !”
“ओह !”
तभी एक व्यक्ति उनके करीब पहुंचा ।
“तीस रुपया ।” - वो बोला ।
“तीस रुपया !” - मुकेश ने मूर्खों की तरह दोहराया ।
“फेयर । किराया ।”
“ओह ! किराया ।”
“बीस रुपया कार का । दस रुपया दो पैसेंजर्स का ।”
मुकेश ने उसे तीस रुपये सौंपे ।
“थैंक्यू ।” - वो बोला और उसने उन्हें तीन टिकटें थमा दीं ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - मुकेश ने पूछा ।
“आपको नहीं मालूम ?”
“नहीं । हम टूरिस्ट हैं ।”
“टिकट पर लिखा है ।”
वो आगे बढ गया ।
मुकेश ने एक टिकट पर निगाह डालीं । उस पर लिखा था फिगारो - ओल्ड रॉक - फिगारो ।
“ओल्ड रॉक ।” - वो बोला - “दो में से एक आइलैंड का नाम ओल्ड रॉक है ?”
“हां ।” - टीना बोली ।
“हम वहीं जा रहे हैं ।”
“वो बहुत करीब है । पांच मिनट में पहुंच जायेंगे ।”
“तुम्हें याद आया उस आदमी का नाम ?”
“नहीं ।”
“या कुछ और ?”
“नहीं ।”
“बस इतना हो याद आया कि ये आदमी कभी मोहिनी पर मरता था ?”
“हां ।”
तभी उस आदमी की बीवी ने एक केला छीलकर उसकी तरफ बढाया । आदमी ने बहुत गुस्से से आंखें तरेरकर उसकी तरफ देखा । तत्काल बीवी केला खुद खाने लगी ।
“केलों से नफरत मालूम होती है उसे ।” - मुकेश बोला - “इससे कुछ याद आया हो ?”
“तुम मेरा मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हो ?”
“नो । नैवर । कई बार आदमी की शिनाख्त उसकी किसी छोटी-मोटी आदत से या खास पसन्द-नापसन्द से भी हो जाती है, इसीलिये जिक्र किया ।”
वो खामोश रही ।
बजड़ा ओल्ड रॉक आइलैंड के पायर पर यूं जाकर लगा कि मुकेश को पहले अपनी गाड़ी उतारनी पड़ी ।
“हम तो आगे हो गये ।” - मुकेश बोला - “उसका पीछा कैसे करेंगे ?”
“कोई टाइम पास वाला काम करो ।” - टीना बोली - “नीचे उतरकर टायरों की हवा वगैरह चैक करने लगो या बोनट उठाकर कुछ देखने लगी ।”
मुकेश ने वैसा ही किया ।
फियेट बजड़े से उतरकर पायर पर पहुंची और फिर एकाएक यूं वहां से भागी जैसे तोप से गोला छूटा हो ।
मुकेश भी लपककर जीप में सवार हुआ । उसने तत्काल जीप फियेट की पीछे दौड़ाई ।
“बीवी को घर पहुंचाने की जल्दी मालूम होती है इसे ।” - टीना बोली ।
“हां । सोच रहा होगा जितनी जल्दी घर पहुंचेगी, उतनी ही जल्दी पीछा छूटेगा । केले और बीवी बराबर नापसन्द मालूम होते हैं इसे ।”
टीना हंसी ।
फियेट मेन रोड छोड़कर एक साइड रोड पर मुड़ी ।
मुकेश ने जीप उस सड़क पर मोड़ी तो पाया कि उस पर जगह-जगह पर खड्डे थे और उसकी हालत आगे-आगे और भी खराब थी ।
“कहां ले जा रहा है ये हमें ?” - मुकेश झुंझलाया-सा बोला ।
“मालूम पड़ जायेगा ।” - टीना बड़े इत्मीनान से बोली ।
आगे सड़क ने एक मोड़ काटा । फियेट निगाहों से ओझल हो गयी ।
मुकेश उस मोड़ पर पहुंचा तो उसने पाया कि घने पेड़ों में से गुजरती सड़क आगे एकदम सीधी था लेकिन उस पर फियेट कहीं दिखाई नहीं दे रही थी ।
“कहां गया ?” - मुकेश वे मुंह से निकला ।
“आगे सड़क पर ही कहीं होगा । तेज चलाओ ।”
“नहीं हो सकता । इतनी जल्दी वो इतनी लम्बी सड़क को क्रास नहीं कर सकता ।”
“तो कहां गया ?”
“वो कहीं मुड़ गया है !”
“मोड़ तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा ।”
“होगा जरूर । तुम बायें देखती चलना, मैं दायें निगाह रख रहा हूं ।”
“ठीक है ।”
जीप आगे बढती रही ।
“इधर एक कच्ची सड़क है ।” - एकाएक टीना बोली ।
मुकेश ने तत्काल जीप को ब्रेक लगाई ।
जिस कच्ची सड़क की तरफ टीना का इशारा था, वो बहुत तंग थी और पेड़ों की डालियां उस पर यूं झुकी हुई थीं कि लगता ही नहीं था कि वो कोई रास्ता था ।”
“अभी बने टायरों के निशान यहां साफ दिखाई दे रहे हैं ।” - मुकेश बोला - “जरूर वो इधर ही गया है ।”
“हमें इस सड़क पर उसके पीछे जाना चाहिये ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है !”
“क्या पता ये किसी की प्राइवेट रोड हो ।”
“इस पर ऐसा कोई नोटिस तो लगा नहीं हुआ ।”
“फिर भी...”
“क्या फिर भी ? अरे, जब यहां तक धक्के खा लिये तो क्या अब यूं ही वापिस चले जायेंगे ?”
“वो तो ठीक है लेकिन...”
“टीना, टीना ! अभी तक तुम्हारी उस आदमी में इतनी दिलचस्पी थी कि मुझे हर जगह उसके पीछे दौड़ाया । अब एकाएक वो इम्पोर्टेन्ट नहीं रहा ?”
“वो बात नहीं ।”
“तो क्या बात है ? कोई भी बात हो, हम आगे चलेंगे ।”
उसने जीप उस सड़क पर आगे बढाई ।
जीप अभी दो मिनट ही चली थी कि वो सड़क एकाएक एक बहुत बड़े मैदान पर जाकर खत्म हो गयी । उस मैदान में पांच छ: काटेज दिखाई दे रहे थे जिसके आगे कई कारें खड़ी थीं ।
क्रीम कलर की फियेट उनमें नहीं थी ।
“देखा !” - टीना बोली - “वो फियेट यहां नहीं है । हम गलत रास्ते पर आ गये । अब वापिस चलो ।”
“पार्किंग काटेजों के पिछवाड़े में भी होगी । आओ, देखते हैं ।”
मुकेश जीप से उतरा । टीना ने भी झिझकते हुए जीप से बाहर कदम रखा । पैदल चलते हुए उन्होंने मैदान पार किया और काटेजों के पृष्ठ भाग में पहुंचे ।
उधर समुद्र था जिसके किनारे अलाव जल रहा था और जहां कई लोग जमा थे । अलाव के करीब एक स्टाल-सा बना हुआ था जहां झींगा मछली तली जा रही थी । एक और स्टाल पर बार बना हुआ था ।
“पार्टी चल रही है ।” - मुकेश बोला ।
“हमें रंग में भंग नहीं डालना चाहिये ।” - टीना नर्वस भाव से बोली ।
“चलके उस आदमी को तलाश करते हैं ।”
“उसकी फियेट तो यहां कहीं है नहीं ।”
“कुछ काटेजों में गैरेज भी हैं । शायद वो किसी गैरेज में बन्द हो ।”
“लेकिन पार्टी में शामिल उन लोगों के बीच हम अजनबी...”
“पचास से ऊपर लोगों का जमघट है सामने । इतनी भीड़ में किसी का ध्यान तक नहीं जायेगा हमारी तरफ । आओ ।”
“तु... तुम जाओ, मैं यहीं रुकती हूं ।”
“मर्जी तुम्हारी ।”
उसे पीछे खड़ा छोड़कर वो आगे बढा । उधर रास्ता ढलुवां था इसलिये उसे बहुत सावधानी से कदम रखने पड़ रहे थे ।
वो उन लोगों के करीब पहुंचा तो उसने पाया कि किसी ने भी उसकी तरफ तवज्जो नहीं दी थी । सब खाने-पीने में और छोटे-छोटे ग्रुपों में बंटे गप्पें मारने में मशगूल थे ।
वो उनके बीच में फिरने लगा ।
फियेट वाला उसे कहीं दिखाई न दिया ।
वो वापिस घूमा ।
तभी एक विशालकाय स्त्री उसके सामने आ खड़ी हुई !
“सीनोर !” - वो पुर्तगाली लहजे में बोली - “यू आर गोइंग ?”
“वो... वो” - मुकेश हकलाया - “वो क्या है कि...”
“बिना खाये ? बिना पिये ?”
“वो... वो...”
“कम हैव ए ड्रिंक फर्स्ट ।”
वो उसे बांह पकड़कर बार पर ले गयी ।
“वाट इज युअर प्लेजर ?” - वो बोली ।
“आई... आई विल हैव ए बीयर ।”
तत्काल बीयर का एक उफनता मग उसके हाथ में था ।
“फार यूअर हैल्थ, मैडम ।” - वो बोला ।
वो बड़ी आत्मीयता से मुस्कराई और बोली - “हम पहले मिस्टर मार्को की पार्टी में मिले थे । राइट ?”
“राइट, मैडम ।”
“मैंने तुम्हें फौरन पहचान लिया था ।”
“मैंने भी आपको ।”
“वेयर इज युअर वाइफ ? युअर मोस्ट चार्मिंग वाइफ ।”
“वो... वो वहीं आ सकी ।”
“क्यों ?”
“उसका प्रोजेक्ट चल रहा है ।”
“प्रोजेक्ट ?”
“मुझे बाप बनाने का ।”
“ओह !” - वो जोर से हंसी - “उम्मीद से है ?”
“यकीन से है ।”
“यकीन से ?”
“कि वो प्रेगनेंट है ।”
“ओह !” - उसने फिर मुक्त कंठ से अट्टाहास किया - “वैल, एन्जाय युअरसैल्फ । आई विल गो लुक लोबस्टर मसाला ।”
उसने मुकेश का कन्धा थपथपाया और वहां से विदा हो गयी । तभी मुकेश की निगाह उस औरत पर पड़ी जो कि ईस्टएण्ड के डिपार्टमेंट स्टोर के सामने से फियेट में सवार हुई थी । उस औरत की पहचानना आसान था क्योंकि उसको उसने कार पर सवार होते समय अच्छी तरह से देखा था । उसके देखते-देखते वो एक पुरुष के करीब जाकर खड़ी हुई । पुरुष क्लीन शेव्ड था, आंखों पर चश्मा लगाये था और उसके बाल लम्बे थे । फिर भी औरत की वजह से ही मुकेश को आश्वासान था कि वो वही फियेट वाला था जिसके पीछे लगे वो वहां पहुंचे थे ।
बीयर का मग थामे वो टहलता-सा उनकी तरफ बढा ।
“हल्लो ।” - वो उनके करीब पहुंचकर बोला ।
“हल्लो ।” - पुरुष बोला ।
“नाइस वैदर ।”
“यस ।”
“नाइस पार्टी ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू लाइक इट ।”
“आई एम मुकेश माथुर ।”
“विक्रम पठारे । ये मेरी मिसेज हैं ।”
तीनों में फिर से ‘हल्लो-हल्लो’ हुआ ।
“आप इधर ही रहते हैं ?”
“नहीं । लिस्बन में रहते हैं । आजकल के सीजन में डेढ-दो महीने के लिये इधर आते हैं ।”
“यू लाइक इट हेयर ?”
“यस । इन प्रेजेंट सीजन । नाट आलवेज ।”
“आई सी ।”
“मिसेज को ज्यादा पसन्द है इधर का रहन-सहन । लेकिन प्राब्लम है इधर । शापिंग के लिये फिगारो या पणजी जाना पड़ता है ।”
“आज भी गये ।” - महिला बोली - “वन वीक का सामान लाये ।”
अब मुकेश को यकीन हो गया कि वही शख्स फियेट का ड्राइवर था ।
“वो लड़की !” - एकाएक पठारे बोला - “वो तो... नहीं, नहीं है । ...मेरे ख्याल से है । हां, वो ही है ।”
“कौन लड़की ?” - उसकी बीवी बोली ।
“वो उधर, ऊपर, जो काटेज के बाजू में अकेली खड़ी है ।”
“कौन है वो ?”
“टीना । टर्नर । पॉप सिंगर । मैं ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा, सर” - मुकेश बोला - “फिर भी ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा !” - वो बोला - “भई, मैं तो उसे कभी भी नहीं देखा ।”
“फैशन शोज में देखा होगा ।”
“मैंने आज तक कभी कोई फैशन शो नहीं देखा ।”
“वो स्पेशल फैशन शो होता था जो प्रोफेशनल माडल्स नहीं करती थीं, ब्रान्डो की बुलबुलों के नाम से जानी जाने वाली लड़कियां करती थीं ।”
“ब्रान्डो की बुलबुलें ! अजीब नाम है । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फेमस नाम है, सर ।”
“होगा । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फिर तो जरूर टीना का गाना सुना होगा आपने कभी बम्बई में ।”
“नहीं सुना । मैं अपनी लाइफ में कभी बम्बई ही नहीं गया ।”
“कमाल है ? फिर आप टीना टर्नर को कैसे जानते हैं ? कैसे पहचानते हैं ?”
“फिगारो आइलैंड पर हुए मर्डर की वजह से आजकल रोज तो उसकी फोटो में छपती है । इसकी, फिल्म स्टरा शशिबाला की, कैब्रे स्टार फौजिया खान की... सबकी ।”
“ओह ! तो आपने अखबार में छपी तस्वीर की वजह से टीना को पहचाना ?”
“हां । लेकिन ये यहां क्या कर रही है ?”
उसी क्षण टीना वापिस घूमी और काटेजों के बीच से होती हुई उनकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
“और मिस्टर... क्या नाम बताया था तुमने अपना ?”
“माथुर । मुकेश माथुर ।”
“अब मुझे तुम्हारी भी शक्ल पहचानी हुई लग रही है । मैं तुम्हारी भी फोटो...”
“एक्सक्यूज मी ।” - मुकेश जल्दी से बोला - “मैं अभी हाजिर हुआ ।”
उसने बीयर का मग एक नजदीकी मेज पर रखा और काटेजों की तरफ लपका । वो उनके सामने के मैदान में पहुंचा ।
ब्रान्डो की जिप्सी उसे पेड़ों के झुरमुट में दाखिल होती दिखाई दी ।
उसकी ड्राइविंग सीट पर टीना थी और जैसी रफ्तार से वो उसे चला रही थी, उससे लगता था कि उसे वहां से कूच की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी ।
किससे दूर भाग रही थी वो ?
जरूर उससे, न कि उस विक्रम पठारे से ।
वो शख्स टीना को नहीं जानता था, वो ब्रान्डो की किसी भी बुलबुल को नहीं जानता था । अभी कुछ क्षण पहले उसने जिन्दगी में पहली बार ब्रान्डो की कोई बुलबुल - टीना टर्नर - साक्षात देखी थी । वो शख्स नौ-दस साल पहले मोहिनी पर मरता नहीं हो सकता था । टीना ने उसे फर्जी कहानी सुनाई थी क्योंकि किसी का पीछा नहीं कर रहे थे, कोई उनका पीछा कर रहा था जिससे कि टीना बचना चाहती थी । जीप में दोहरे होकर और हाथों में चेहरा छुपाकर वो विक्रम पठारे की नहीं, किसी और की ही निगाहों में आने से बचना चाहती थी । और इस काम को अंजाम देने के लिये वो इतनी मरी जा रही थी कि उसने खामखाह उसे एक अनजाने, नामालूम आदमी के पीछे उस दूसरे आइलैंड तक दौड़ा दिया था ।
क्या लड़की थी !
क्या फसादी लड़की थी !
***
पैदल चलता मुकेश ओल्ड रॉक आइलैंज के पायर पर पहुंचा ।
उसने न वहां टीना दिखाई दी और न ब्रान्डो की जिप्सी ।
जिस बजड़े पर वो वहां पहुंच थे, वो इस घड़ी चलने को तत्पर पायर पर लगा दिखाई दे रहा था ।
मुकेश लपककर उसपर सवार हो गया ।
पहले वाला ही टिकट कन्डक्टर उसके पास पहुंचा ।
मुकेश ने उसे पांच रुपये देकर टिकट ली और बोला - “मैं यहां एक लड़की के साथ जिप्सी पर आया था । याद है ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“तब से फिगारो के कितने चक्कर लगा चुके हो ?”
“दो ।”
“किसी चक्कर में वो लड़की या वो जिप्सी देखी ?”
“पिछले चक्कर में देखी । बहुत जल्दी में थी ।”
“कैसे जाना ?”
“बहुत तेज रफ्तार से जीप चलाती पायर पर पहुंची थी । हमारा ट्रेलर इधर से मूव किया था तो वो स्लो स्पीड की शिकायत कर रही थी ।”
“ओह !”
“आप पीछू कैसे रह गया ?”
“बस, ऐसे ही ।” - वो खिसियाया-सा हंसा - “कुछ कन्फ्यूजन हो गया ।”
फिर वार्तालाप के पटाक्षेप के संकेत के तौर पर उसने कन्डक्टर की ओर से मुंह फेर लिया । कन्डक्टर भी तत्काल परे हट गया ।
बजड़ा परले किनारे पर-लगा तो सबसे पहले मुकेश ने उस पर से खुश्की पर कदम रखा ।
अब उसके सामने अहमतरीन सवाल था ।
क्या वो पुलिस के पास जाकर सारा वाकया बयान करे ? या पहले वो टीना की उस हरकत की कोई वजह जानने की कोशिश करे ?
पायर से उसने ब्रान्डो की एस्टेट पर फोन किया । फोन का जवाब खुद ब्रान्डो ने दिया । पूछने पर मालूम हुआ कि टीना वहां नहीं पहुंची थी । तभी फोन बूथ की खिड़की में से उसे सड़क के पार की पार्किंग में से एक जिप्सी निकलती दिखाई दी जो कि तत्काल एक ट्रक की ओट में आ गयी जिसकी वजह से वो उसके ड्राइवर पर निगाह न डाल सका । जब तक ट्रक सामने से हटा, जिप्सी उसकी ओट में से गायब हो चुकी थी ।
क्या वो ब्रान्डो की जिप्सी थी ? क्या उसे टीना चला रही थी ?
अगर जिप्सी ब्रान्डो की थी तो और कौन चला रहा होगा ?
वो बूथ से बाहर निकला ।
उसने अनुभव किया कि जिस पार्किंग में से जिप्सी निकली थी, उसके ऐन पीछे एक बार था ।
वो कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने सड़क पार की और बार में दाखिल हुआ । बार में उस घड़ी कोई खास भीड़ नहीं थी । वो सीधा बारमैन के पास पहुंचा ।
“मैं अपनी एक फ्रेंड को तलाश कर रहा हूं । वो सफेद स्कर्ट जैकेट पहने थी । भूरे बालों वाली बहुत खूबसूरत लड़की । यहां तो नहीं आयी थी ?”
“आयी थी” - बारमैन बोला - “अभी गयी है ।”
यानी कि जिस जिप्सी की उसे झलक मिली थी, उसमें टीना ही सवार थी ।
“थैक्यू ।” - वो बोला और लौटने को मुड़ा ।
“बॉस, जल्दी ढूंढ लो उसे ।”
वो फिर बार मैन की तरफ घूमा, उसके माथे पर बल पड़े ।
“क्यों ?” - उसने पूछा ।
“विस्की के तीन लार्ज पैग पांच मिनट में पी गयी । जिप्सी पर आयी थी । पहुंचने में दिक्कत होगी ।”
“ओह !”
“शाम को सड़कों पर भीड़ भी ज्यादा होती है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
वो बार से बाहर निकला ।
अब उसे टीना पता नहीं क्यों मदद और रहम के काबिल लगने लगी । अगर वो उसे मिल जाती तो सबसे पहले तो वो उसे ये ही समझाता कि उसके लिये अगला, सही कदम कौन-सा था ।
सही कदम ये ही था कि वो फरार हो जाने का इरादा छोड़ दे और पुलिस के सामने सब कुछ सच-सच उगल दे ।
यानी कि अभी उसे पुलिस का रुख नहीं करना चाहिये था । अभी उसे आइलैंड पर टीना को तलाश करने की कोशिश करनी चाहिये थी । आखिर वो फौरन फरार होने की कोशिश नहीं कर सकती थी, वो आइलैंड से पणजी जाने की कोशिश में पकड़ी जा सकती थी ।
लेकिन जैसे खुद से डाज देकर वो खिसकी थी, उससे लगता था कि जरूर उसकी निगाह में फिगारो आइलैंड से खिसककर मेनलैंड पर पहुंच जाने का कोई तरीका था । ऐसा न होता तो वो उसे पीछे ओल्ड रॉक आइलैंड पर फंसा छोड़कर न भागी होती ।
क्या तरीका था वो ?
कहां तलाश करे वो उसे ?
कहां से शुरु करे वो अपनी तलाश !
उसे मारकस रोमानो की कार याद आयी ।
राइट - उसका सिर स्वयमेव ही सहमति में हिलने लगा - पहले चुपचाप उसी को काबू में किया जाये ।
उसने ईस्टएण्ड की तरफ कदम बढाया ।
तभी एक पुलिस जीप वहां पहुंची और ब्रेकों की चरचराहट के साथ ऐन उसके सामने आकर रुकी ।
मुकेश ने हड़बड़ाकर सिर उठाया तो पाया कि उसमें सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी सवार थे । दोनों छलांग मारकर जीप से उतरे और यूं उसके सामने आ खड़े हुए कि मुकेश सहमकर एक कदम पीछे हट गया ।
“तुम” - फिगुएरा कड़ककर बोला - “आधे घन्टे में कमेटी के दफ्तर वापिस लौटने वाले थे ।”
“वो” - मुकेश हकलाया - “वो क्या है कि... कि...”
“टीना कहां है ?”
“पता नहीं ।”
“क्यों पता नहीं ?”
“जनाब वो... वो...”
“मुजरिम की मदद करने का, उसकी फरार होने में मदद करने का नतीजा जानते हो ?”
“जानता हूं लेकिन... लेकिन मेरी ऐसी मंशा नहीं थी ।”
“ओह ! यानी कि ये मानते हो कि वो फरार हो गयी है ?”
“वो... वो क्या है कि...”
“उसकी हिमायत में कुछ कहना बेकार होगा, मिस्टर माथुर ।” - सोलंकी अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला - “एक कत्ल के अपराधी की वकालत करनी भी है तो ये उसके लिये न कोई मुनासिब जगह है और न वक्त ।”
“क - कत्ल की अपराधी ?”
“फरार कोई ऐसे ही नहीं हो जाता ।”
“अब जो जानते हो” - फिगुएरा बोला - “सच-सच साफ-साफ फौरन बोलो । इसी में तुम्हारी भलाई है । वर्ना...”
मुकेश ने आदेश का पालन किया । उसने सच-सच सब कुछ कह सुनाया । उसने टीना से सम्बन्धित वो बातें भी न छुपाई जिन्हें सिर्फ वो जानता था और जिसकी कोई सफाई वो टीना से हासिल नहीं कर सका था । नतीजतन उसके टैक्सी पकड़कर ब्रान्डो के यहां लौटने से पहले टीना टर्नर की आइलैंड पर चौतरफा तलाश शुरु हो चुकी थी ।
एक फरार अपराधी की तलाश ।
***
लाउन्ज में सब लोग मौजूद थे और उनकी अतिउत्तेजित आवाजों से साफ पता चल रहा था कि टीना से सम्बन्धित वो नयी और सनसनीखेज खबर वहां पहले ही पहुंच चुकी थी । लगता था कि वहां उसे गुनहगार मान भी लिया गया था और सजा सुना भी दी गयी थी । यानी कि उसकी फैलो बुलबुलें, उनके सगे वाले और उनका मेजबान उसे डबल मर्डर का अपराधी घोषित कर भी चुका था । और अब उस घोषणा को मोहरबन्द ब्रान्डो की उम्दा स्काच विस्की के साथ किया जा रहा था ।
सबने बड़े मातमी अन्दाज से मुकेश का स्वागत किया ।
फिर ब्रान्डो ने खुद बनाकर उसे जाम पेश किया । सबने खामोशी से अपने गिलास वाले हाथ ऊंचे कर चियर्स बोला । 
मुकेश की निगाह पैन होती हुई सबकी सूरतों पर फिरने लगी । रोशन बालपाण्डे पर वो क्षण भर को टिकी तो वो तत्काल परे देखने लगा और बेचैनी से पहलू बदलने लगा ।
फिर बुलबुलें चहचहाने लगीं ।
“टू बैड ।” - सुनेत्रा बोली ।
“नेवर एस्पेक्टिड ऑफ टीना ।” - आलोका बोली ।
“छुपी रुस्तम निकली ।” - फौजिया बोली ।
“मैंने कभी” - शशिबाला बोली - “सपने में नहीं सोचा था कि वो...”
मुकेश को गुस्सा चढने लगा ।
“तभी तो कहते हैं” - अधिकारी बोला - “कि भोली-भाली सूरत वाले होते हैं जल्लाद भी ।”
“खूनी रवायात” - विकास निगम ने अपना ज्ञान बघारा - “कइयों के खून में होती हैं ।”
“ही मींस होमीसिडल टेन्डेसीज ।” - ब्रान्डो बोला ।
केवल बालपाण्डे खामोश रहा, लेकिन मुकेश को अपनी तरफ देखता पाकर उसने वो कमी ‘च च च’ कहकर और बड़े अवसादपूर्ण भाव से गर्दन हिला के पूरी की ।
“लगता है” - मुकेश शुष्क स्वर में बोला - “टीना की बाबत कोई शक, कोई अन्देशा आप लोगों को पहले से था ।”
कई भवें उठीं ।
“आप सब लोग मुझे तमाशा बनता देखते रहे । किसी ने मुझे टीना की बाबत खबरदार न किया । न उसे छुपी रुस्तम समझने वालों ने, न उसकी खूनी रवायात पहचानने वालों ने और न उसे जल्लाद कहने वालों ने । वो आप लोगों में से एक थी । सिर्फ मैं ही यहां आपकी महफिल में एक बाहरी आदमी था । और किसी का नहीं तो कम-से-कम मेजबान का तो फर्ज बनता था कि वो मुझे टीना का बाबत वार्न करता !”
“माई डियर यंग मैन” - ब्रान्डो बोला - “हमें अभी थोड़ी देर से पहले नहीं मालूम था कि टीना...”
“आपको जरूर मालूम था । आप सबको जरूर मालूम था । वर्ना आप लोगों ने टीना की यहां से वक्ती गैर-हाजिरी की बिना पर ही उसे मुजरिम करार न दे दिया होता । टीना गायब है और पुलिस को उसकी तलाश है, सिर्फ इतने से ही आपने उसे कातिल न समझ लिया होता । मेरा आपसे सवाल ये है कि टीना की बाबत कूदकर किसी स्कैण्डलस नतीजे पर पहुंच जाना क्या उसके साथ इंसाफ है ? क्या पुलिस की और पुराने दोस्तों और मोहसिनों की सोच एक होनी चाहिये ? क्या आप में से किसी ने भी एक क्षण के लिये भी ये सोचा कि टीना के गायब होने के पीछे वजह ये भी हो सकती है कि हाउसकीपर वसुन्धरा, मोहिनी और आयशा की तरह उसका भी कत्ल हो चुका हो ?”
कई सिसकारियां एक साथ सुनायी दीं ।
“मिस्टर माथुर” - सुनेत्रा बोली - “जब ये एक स्थापित तथ्य है कि कातिल हम में से हो कोई था तो हम ने किसी को तो गुनहगार मानना ही था ।”
“इसलिये आपने टीना को गुनहगार माना ?”
“हां ।”
“इसलिये नहीं क्योंकि अपने बचाव में कुछ कहने के लिये वो यहां मौजूद नहीं थी !”
“नहीं । तुम मोहिनी के उस ब्रेसलेट को भूल रहे हो जो कि पुलिस ने उसके सामान में से बरामद किया था ।”
“उसकी सफाई वो दे चुकी है । वो कह चुकी है कि ब्रेसलेट किसी ने उसके सामान में प्लांट किया था ।”
“किसी को यकीन आया था उसकी इस बात पर ? खुद आपको यकीन है ?”
“यकीन तो.. वो कहती थी कि उसके पास ब्रेसलेट की अपने पास मौजदूगी का कोई माकूल जवाब था ।”
“यही न कि वो प्लांट किया गया था ?”
“नहीं । उसके अलावा ।”
“क्या ? क्या जवाब था वो ?”
“मुझे नहीं बताया उसने । उस बाबत वो सिर्फ पुलिस से बात करना चाहती थी ।”
“और ऐसी कोई” - विकी एकाएक यूं बोला जैसे उसे तभी सूझा हो कि उसे अपनी बीवी की हिमायत में बोलना चाहिये था - “नौबत आने से पहले ही वो भाग खड़ी हुई । खुद आपको भी डाज देकर फरार हो गयी । जबकि आप उसके इतने हमदर्द हैं, तरफदार हैं ।”
मुकेश ने अपलक उसकी तरफ देखा । विकी मुस्कराया लेकिन मुकेश को उसकी निगाहों से एक लोमड़ी जैसे चालाकी झांकती दिखाई दी ।
“आपको कैसे मालूम है ?” - वो बोला ।
“क्या ?” - विकी बोला - “क्या कैसे मालूम है ?”
“कि मैं टीना का हमदर्द हूं, तरफदार हूं ?”
“भई, साफ दिखाई देता है ।”
“अच्छा ! साफ दिखाई देता है आपको ?”
“और क्या मैं अन्धा हूं ?”
“आप बताइये ।”
“मिस्टर माथुर !”
“तो आप लोगों की राय ये है कि टीना ने वो ब्रेसलेट मोहिनी से तब हासिल किया जबकि वो यहां थी ।”
“हां ।” - विकी पूरी ढिठाई के साथ बोला - “मैंने अपनी बीवी से तमाम वाकयात सुने हैं । मेरी खुद की भी राय यही है ।”
“आपकी राय आपको बहुत-बहुत मुबारक हो लेकिन टीना ने ऐसा क्यों किया ?”
“होगी कोई वजह । मुझे क्या पता !”
“अन्दाजा ही बताइये अपना । समझदार आदमी मालूम होते हैं आप । हैं न आप समझदार ? या सिर्फ थोबड़ा ही हसीन पाया है ।”
“मिस्टर माथुर !” - इस बार सुनेत्रा ने गुस्सा जताया - “प्लीज माइन्ड युअर लैंग्वेज ।”
“सॉरी, मैडम । मैंने तो महज इनके आकर्षक व्यक्तित्व की तारीफ की थी ।”
“तारीफ सभ्य भाषा में भी हो सकती है ।”
“सॉरी अगेन । तो बताइये क्यों चुराया टीना ने वो ब्रेसलेट । क्या वो नहीं जानती थी कि उस पर किसी दूसरे का नाम गुदा हुआ था जिसकी वजह से वो उसे पहन नहीं सकती थी ? पहनती तो बेवकूफ लगती !”
“तुम भूल रहे हो कि वो एक कीमती ब्रेसलेट था ।”
“ओह ! तो लालच ने चोर बनाया टीना को ?”
“हो सकता है ।”
“यानी कि यही इकलौता जेवर था मोहिनी के पास ?”
“वो... वो... क्या है कि...”
“आप तो मिली थीं मोहिनी से । आप बताइये क्या वो जिस्म पर कोई जेवर नहीं पहने थी ? कोई चूड़ियां ! कोई कंगन ! कोई अंगूठियां । कोई गले का जेवर ! कोई कानों का जेवर ।”
“वो सब कुछ पहने होगी ।” - विकी फिर अपनी बीवी की हिमायत में वार्तालाप में कूदा - “लेकिन टीना का दांव सिर्फ एक ही जेवर चुराने में चला होगा । अभी उसने ब्रसेलेट ही कब्जाया होगा कि उसे मौकायवारदात से खिसक जाना पड़ा होगा ।”
“आप तो आई विटनेस की तरह जवाब दे रहे हैं ।”
“इट स्टैण्ड्स टु रीजन । बच्चा भी समझ सकता है कि...”
“यहां जो बच्चा मौजूद हो, वो बरायमेहरबानी खड़ा हो जाये ताकि मैं उससे पूछ सकूं कि वो क्या समझ सकता है !”
कोई कुछ न बोला ।
“आप आई विटनेस नहीं थे, मिस्टर निगम । हो भी नहीं सकते थे । आप उस बात का जवाब क्यों नहीं ट्राई करते जिसके कि आई विटनेस आप थे ?”
“कौन-सी बात ?” - निगम बोला ।
“आपकी कार में आपकी हमसफर कौन थी ?”
“माथुर, माइंड युअर ओन बिजनेस ।”
“यानी कि आप नहीं बतायेंगे !”
“मैंने बोला न कि अपने काम से काम रखो ।”
“ठीक है । आप न बताइये, मैं बताता हूं ।”
विकास सकपकाया । उसने घूरकर मुकेश की ओर देखा ।
“वो फौजिया थी ।” - मुकेश बोला ।
सब चौंके । सबसे ज्यादा फौजिया चौंकी ।
“फौजिया !” - सुनेत्रा के मुंह से निकला - “विकी के साथ !”
“पूरा रास्ता ।” - मकेश बोला - “धूप में घण्टों कार भी चलाई इसने जिसका सुबूत इसकी झुलसी हुई दायीं बांह है जिसे ये, जबसे आयी है, छुपा के रखे हुए है ।”
फौजिया के चेहरे का रंग उड़ा ।
मुकेश ने चैन की सांस ली । उसका तुक्का चल गया था । जो काम टीना नहीं कर सकी थी, वो अब सहज ही हो गया था ।
“मैडम !” - वो फौजिया से बोला - “जब मामला डबल मर्डर का हो, बल्कि ट्रिपल मर्डर का हो तो किसी पति की अपनी पत्नी से छोटी-मोटी, वक्ती बेवफाई कोई अहम मुद्दा नहीं होता ।”
“इसमें बेवफाई कहां से आ घुसी ?” - फौजिया भड़ककर बोली - “मैंने यहां पहुचना था, मुझे आल दि वे लिफ्ट मिल रही थी, मैंने लिफ्ट ले ली तो क्या आफत आ गयी ?”
“विकी कहां मिला तुझे ?” - सुनेत्रा उसे घूरती हुई बोली - “आगरे में ?”
“नहीं । दिल्ली में । जहां कि मैं चण्डीगढ से बस पर सवार होकर पहुंची थी । मैं तो गोवा के कन्सेंशनल प्लेन टिकट की फिराक में तुम्हारी ट्रैवल एजेन्सी में आयी थी कि सड़क पर ही मुझे विकी मिल गया था । इसने मुझे बताया था कि ये आगरा से एक टयोटा पिक करके आगे गोवा जाने वाला था तो मैं इसके साथ जाने को तैयार हो गयी । आखिर मेरा पांच हजार रुपये का प्लेन फेयर बचता था । इतनी-सी तो बात है ।”
“ये इतनी-सी बात हो सकती है ।” - मुकेश बोला - “लेकिन अगले रोज जबकि विकास भी यहां पहुंच गया तो आधी रात को, चोरों की तरह इसके साथ इसकी टयोटा में सवार होकर फिर से निकल पड़ने को मैडम सुनेत्रा निगम अगर ‘इतनी-सी बात’ मानें तो मैं कहूंगा कि ये बहुत दरियादिल हैं । ईर्ष्या की भावना तो इन्हें छू तक नहीं गयी ।”
“यू बिच !” - सुनेत्रा दांत पीसती बोली ।
फौजिया घबराकर परे देखने लगी ।
“बुरा हो उस हवलदार का” - मुकेश अब स्थिति का आनन्द लेता हुआ बोला - “जो अपने स्कूटर पर आधी रात को इनके पीछे लग लिया और इनकी मिडनाइट पिकनिक बर्बाद कर दी ।”
“यू लाउजी बिच !” - सुनेत्रा बोली ।
फौजिया ने उससे निगाह ने मिलाई ।
“और तुम !” - सुनेत्रा अपने पति की तरफ घूमी - “तुम...”
“इसकी बातों पर न जाओ, डार्लिंग ।” - निगम जल्दी से बोला - “ये खुराफाती आदमी खामखाह तुम्हें भड़का रहा है ।”
“खामखाह ! खामखाह बोला तुमने ?”
“हां । और माथुर” - वो मुकेश की तरफ घूमा - “दूसरों पर इलजाम लगाने से तुम्हारी गर्लफ्रेंड का कोई भला नहीं होने वाला ।”
“मेरी गर्लफ्रेंड !” - मुकेश की भवें उठीं ।
“या जो कुछ भी तुम उसे समझते हो ।”
“तुम भी जो कुछ मर्जी समझो । आई डोंट माइन्ड । बहरहाल टीना के कातिल होने का यकीन तुम्हें हैं, मुझे नहीं । इस लिहाज से इस केस की तुम्हारी जानकारी मेरी जानकारी से ज्यादा होनी चाहिये । अब तुम उस अपनी बेहतर जानकारी को कुरेदकर ये बताओ कि टीना के पास कत्ल का उद्देश्य क्या था ? क्यों किये उसने कत्ल ? क्यों किया उसने कोई भी कत्ल ?”
“होगी कोई वजह ?”
“इस बार ‘मुझे क्या पता’ नहीं कहा ?”
वो खामोश रहा ।
मुकेश ने बारी-बारी सब पर निगाह डाली ।
कत्ल के उद्देश्य की बाबत किसी की जुबान न खुली ।
“हकीकत ये है, लेडीज एण्ड जन्टलमैन” - मुकेश बोला - “कि टीना के पास कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं । जबकि जनाबेहाजरीन में से कइयों के पास कत्ल का मजबूत उद्देश्य है ।”
विरोध में कई स्वर गूंजे ।
“मसलन” - मुकेश आगे बढा - “मोहिनी की वापिसी से शशिकला के फिल्म कैरियर को, उसके भविष्य को खतरा था । मसलन मोहिनी की वापिसी से सुनेत्रा और आलोका के विवाहित जीवन को खतरा था । मसलन...”
“माथुर ।” - बालपाण्डे भड़ककर बोला - “मेरे या मेरी बीवी के बारे में कोई बकवास करने की जरूरत नहीं । मैं पुलिस को यकीन दिला युका हूं कि मेरे और मोहिनी के बीच कुछ नहीं था ।”
“क्या अपनी बीवी को भी यकीन दिला चुके हो ?”
वो सकपकाया ।
“जाहिर है कि नहीं ।” - मुकेश बोला ।
“मैंने ऐसी कोशिश नहीं की ।”
“अब कर लो ।”
“कोई जरूरत नहीं । शी अन्डरस्टैण्ड्स ।”
“ऐसी कोई अन्डरस्टैडिंग तुम्हारी बीवी की सूरत से झलक तो नहीं रही ।”
“वो तुम्हारी सिरदर्द नहीं । मैं जानूं या मेरी बीवी जाने, तुम्हें क्या !”
“अभी तो मैं ही मैं जानूं दिखाई दे रहा है । बीवी जाने तो जानें न ! अभी तो तुमने अपनी बीवी के सामने बस इतना कहा है कि तीन साल पहले मोहिनी एक बार तुम्हें सूरत में मिली थी । उस एक बार के बाद कितनी बार और कितनी जगह तुम मोहिनी से मिले इस बाबत भी तो कुछ अपनी जुबानी उचरो । जो कुछ इंस्पेक्टर सोलंकी के कान में तुम फूंक मार के दोहरा चुके हो, उसे अब सबके सामने - “खासतौर से अपनी बीवी के सामने - दोहराने में क्या हर्ज है ।”
“क्या हर्ज है ?” - ब्रान्डो बोला ।
आलोका ने आशापूर्ण भाव से अपने पति की ओर देखा ।
बाकी सबकी तकाजा करती निगाहें भी बालपाण्डे पर टिकीं ।
“ठीक है ।” - बालपाण्डे बोला - “बताता हूं । लेकिन इस वजह से नहीं क्योंकि मैं इस सिरफिरे छोकरे की बकवास से डर गया हूं बल्कि इस वजह से कि शायद टीना का कोई भला हो जाये । माथुर, तुम अन्दाजन कुछ भी बकते रहो लेकिन हकीकत ये ही है कि मैं मोहिनी से सिर्फ एक ही बार - और वो भी इत्तफाकन - सूरत में मिला था । और वो मुलाकात ऐसी थी कि उसने मोहिनी के लिये कोई ख्वाहिश भड़काना तो दूर, जो थोड़ी बहुत ख्वाहिश मेरे मन में उसके लिये थी, उसे भी ठण्डा कर दिया था ।”
“क्यों ?” - मुकेश बोला ।
“बताता हूं क्यों । लेकिन ये बात पहले ही जान लो, कान खोलकर सुन लो कि उसका मोहिनी के कत्ल से कोई रिश्ता नहीं । इंस्पेक्टर सोलंकी इस बात को कबूल कर भी चुका है ।”
“जरूर कर चुका होगा लेकिन जरूरी नहीं कि जो बात पुलिस ने बेमानी समझी वो यहां मौजूद लोगों को भी बेमानी लगे ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - विकी बोला ।
“अरे बोला तो बताता हूं” - बालपण्डे तनिक झल्लाकर बोला - “लेकिन इससे टीना का कोई भला नहीं होने वाला । अलबत्ता इससे तुम लोगों की निगाहों में मोहिनी का इमेज जरूर बिगड़ेगा । इसी वजह से इस बात को मैं खुलेआम नहीं कहना चाहता था । लेकिन मोहिनी की रूह मुझे माफ करे, अब तुम लोगों की जिद पर कहता हूं ।
“हम सुन रहे हैं ।” - ब्रान्डो बोला ।
“जैसा कि मैंने कहा था, मोहिनी मुझे सूरत में मिली थी लेकिन किसी सिनेमा लाबी में नहीं । और न ही मेरी उससे कोई बात हुई थी । हकीकत ये हैं कि वो मुझे एक कॉफी हाउस में मिली थी जिसमें कि ढंके-छुपे ढंग से बार भी चलता था । मैं वहां फोन करने की नीयत से गया था जब कि मुझे वहां मोहिनी बैठी दिखाई दी थी । साहबान, यकीन जानिये, मैंने बहुत ही मुश्किल से उसे पहचाना था ।”
“जरूर मुश्किल से पहचाना होगा ।” - मुकेश बोला - “तुम पहले कह तो चुके हो कि वो खंडहर-सी लग रही थी, उजड़ी-सी लग रही थी, वगैरह ।”
“जैसी मैंने उसे पहले बयान किया था वो उससे कहीं ज्यादा खराब लग रही थी । मैंने उसका लिहाज किया था जो मैंने उसका हुलिया गहराई में बयान नहीं किया था, हकीकत ये है कि वो तो... बस बेड़ागर्क लग रही थी । उसकी पोशाक, उसका हुलिया, उसके बाल, उसका मेकअप, हर चीज चीप थी उस घड़ी उसकी पर्सनैलिटी की । पर्सनैलिटी का तो जिक्र ही बेकार है । पर्सनैलिटी नाम की कोई चीज तो बाकी ही नहीं थी उसमें । ढलती हुई फिगर, उजड़े चमन जैसी सूरत, किसी को बोलो तो कोई यकीन न करे कि कभी वो लड़की हुस्न की मलिका थी, करोड़ों दिलों की धड़कन थी । मैं कहता हूं उस घड़ी मैं उससे उसकी बाबत सवाल करता तो शर्म के मारे वो ही ये झूठ बोल देती कि वो मोहिनी नहीं थी ।”
“वो होगी ही नहीं मोहिनी ।” - सुनेत्रा बोली - “इतने बुरे हाल में वो हरगिज नहीं पहुंच सकती थी । मैं ये बात अथारिटी से कह सकती हूं क्योंकि मैंने उसे यहीं, इस मैंशन में, गुलाब की तरह तरोताजा देखा था । पहले से कहीं... कहीं ज्यादा हसीन और दिलकश देखा था ।”
“वो मोहिनी नहीं होगी ।” - शशिबाला बोली ।
“थी वो मोहिनी । यही मानने से कहानी आगे बढेगी ।” - मुकेश बोला - “वर्ना सारी कथा ही बेमानी है ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - ब्रान्डो बोला - “प्लीज गो आन, मिस्टर बालपाण्डे ।”
“वो मोहिनी थी ।” - बालपाण्डे बोला - “उसकी बाबत जो रहा-सहा शक मेरे जेहन में था वो अगले रोज दूर हो गया था जबकि मैं फिर उस कॉफी हाउस में गया था और मैंने फिर उसको वहां जमी बैठी देखा था । मैं उसके परे, उससे छुपकर बैठ गया था और बहुत देर तक मैंने उसे वाच किया था । तब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि वो मोहिनी थी । उसका हुलिया जरूर उजड़ गया था, पर्सनैलिटी जरूर बर्बाद हो गयी थी लेकिन हावभाव वही थे, बातचीत का अन्दाज वहीं था और खासतौर से उसकी मुक्तकण्ठ से हंसने की अदा वही थी । उसकी खनकती हंसी की मेरे दिलोदिमाग पर ऐसी छाप है कि वो ताजिन्दगी नहीं मिट सकती । साहबान, वो यकीनन मोहिनी थी ।”
“ऐसा पतन !” - ब्रान्डो के मुंह से कराह-सी निकली - “ब्रान्डो की बुलबुल का ऐसा सर्वनाश ।”
“बात वाकई नहीं की थी तुमने उससे ?” - विकी बोला ।
“नहीं की थी ।”
“यकीन नहीं आता । तुमने उसको उस हालत में देखा और तुम्हारी ये जानने की उत्सुकता न हुई कि वो उस बुरे हाल में कैसे पहुंच गयी थी ! हज्म नहीं होती ये बात ।”
“मेरी जुर्रत नहीं हो रही थी उसके पास फटकने की । ये तो एक तरह से उसकी पोल खोलना होता, उसे उसकी उस वक्त की हालत से शर्मिन्दा करना होता ।”
“उसे तुम्हारी, अपने किसी पुराने परिचित की, मदद की जरूरत हो सकती थी ।”
“ये बात आयी थी मेरे जेहन में लेकिन इससे पहले कि उस बाबत कोई कदम उठाने कि हिम्मत मैं अपने आप में जुटा पाता, वो उठ के चल दी थी ।”
“उठके चल दी थी ?” - मुकेश बोला ।
“एक आदमी के साथ । एक ऐसे आदमी के साथ जिसे मोहिनी ने - आई रिपीट, मोहिनी ने - पटाया था ।”
“क्यों ? पट नहीं रहा था वो ?”
“यही बात थी । बहुत मुश्किल से पटा था वो ?”
“किस काम के लिये ?”
“अब ये भी मेरे से ही कहलवाओगे ?”
“हे भगवान !” - शशिबाला के नेत्र फट पड़े - “इतना गिर चुकी थी वो !”
“शी वाज सालिसिटिंग !” - ब्रान्डो भी वैसे ही हौलनाक स्वर में बोला ।
“यस । और वो कॉफी हाउस उसका ठीया मालूम होता था ।”
“तौबा !” - फौजिया कानों पर हाथ रखती हुई बोली - “तौबा ।”
“मैं चुपचाप उन दोनों के पीछे गया ।” - बालपाण्डे बोला - “करीब ही एक घटिया सा होटल था जिसमें उन दोनों के दाखिल होने से पहले मैंने सड़क पर उस आदमी को मोहिनी को रुपये देते देखा था ।”
“तौबा !”
“मुझे खुद अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । लेकिन जो कुछ मुझे दिखाई दे रहा था, उसे मैं कैसे झुठला सकता था ।”
“फिर ?” - ब्रान्डो बोला - फिर ?”
“फिर मैं वापिस उस कॉपी हाउस में लौटा । वहां मैंने एक वेटर से उसकी बाबत सवालात किये तो इस बात की तसदीक हो गयी कि जो मैंने उसे समझा था, वो ऐन वही थी । वेटर ने उसे ‘बेचारी, मजबूर लड़की’ बताया जिसके पास अपना जिस्म बेचकर पेट भरने के अलावा कोई चारा नहीं था ।”
“क्यों चारा नहीं था ?” - मुकेश ने प्रतिवाद किया - “उसने अच्छे दिन देखे थे, उसकी अच्छी वाकफियत थीं, वो किसी के पास मदद मांगने आ सकती थी । वो तुम लोगों में से किसी के पास आ सकती थी । वो आती तो क्या तुम लोग उसकी कोई मदद न करते ? क्या उसकी फैलो बुलबुलें भी उसकी दुश्वारी की दास्तान सुनकर न पसीजतीं ? ऐसा क्योंकर हुआ कि वो तुममें से किसी के पास न आयी ?”
“आई थी ।” - फौजिया एकाएक बोली - “मेरे पास आयी थी ।”
सबकी निगाहें उसकी तरफ उठीं ।
“क्यों आयी थी ?” - मुकेश ने पूछा - “माली इमदाद के लिये ?”
“हां । ऐन इसीलिये ।”
“तुमने की कोई मदद उसकी ?”
“हां । मैंने उसे दस हजार रुपये दिये थे । इत्तफाक से इतने ही रुपयों की गुंजायश थी तब मेरे पास । मेरे पास और पैसा होता तो मैं जरूर उसे और पैसा देती ।”
“ये कब की बात है ?”
“नौ जून की । मुझे आज तक तारीख याद है । इसलिये याद है क्योंकि वो ईद का दिन था । तब मुझे लगा था कि मदद मांगने मेरे पास आने के लिये उसने जानबूझ कर वो दिन चुना था । जरूर उसने सोचा होगा कि ऐसे मुबारक दिन मैं उसकी मदद करने से इनकार नहीं करूंगी ।”
“ओह ! तो पिछली जून को जब तुम्हारी मोहिनी से मुलाकात हुई थी तो वो...”
“पिछली जून को नहीं, भई, सन 1988 की जून को ।”
“तब तो ये” - ब्रान्डो बोला - “श्याम नाडकर्णी की मौत के कुछ ही महीने बाद की बात हुई ?”
“हां ।” - फौजिया बोली - “सिर्फ दो महीने बाद की ।”
“अपने धनवान पति की मौत के सिर्फ दो महीने बाद उसकी माली हालत ऐसी थी कि वो तुम से दस हजार रुपये उधार पहुंच गयी थी ।”
“दस हजार नहीं, दो लाख । वो मेरे से दो लाख रुपये मांग रही थी । दो लाख रुपये उधार मांगने आयी थी वो ।”
“उसे दो लाख रुपये की जरूरत थी ?”
“बहुत सख्त जरूरत थी । रो रही थी उस रकम के लिये । इसी बात से तो पिघलकर मैंने उसे दस हजार रुपये दिये । ज्यादा होते तो ज्यादा भी दे देती उस घड़ी । लेकिन मेरे पास थे ही इतने ।”
“दस हजार तो दो लाख की रकम का बहुत छोटा हिस्सा हुआ ।” - मुकेश बोला - “तब हो सकता है मदद के लिये जैसे वो तुम्हारे पास आयी थी, वैसे वो किसी और के पास भी गयी हो । किसी बुलबुल के पास या बुलबुलों के” - उसने ब्रान्डो की तरफ देखा - “कद्रदान, मेहरबान सरपरस्त के पास ?”
सबने ब्रान्डो की तरफ देखा ?
“गर्मियों में” - ब्रान्डो विचलित भाव से बोला - “या मानसून में मैं यहां नहीं होता ।”
“न होने की” - मुकेश बोला - “कोई कसम तो नहीं खायी हुई होगी आपने ।”
“नहीं । कसम नहीं खायी हूई । सच पूछो तो सन अट्ठासी में मैं एक हफ्ते के लिये यहां आया था ।”
“और उसी एक हफ्ते में मोहिनी आप के पास पहुंची थी ?”
“हां । मई एण्ड में ।”
“डैडियो” - सुनेत्रा बोली - “आज तक न बताया ? जिक्र तक न लाये जुबान पर ।”
“मैं मोहिनी की छवि खराब नहीं करना चाहता था । मैं इस बात का जिक्र जुबान पर नहीं लाना चाहता था कि मोहिनी मेरे पास पैसे मांगने आयी ।”
“पैसे मांगे थे उसने आप से ?” - मुकेश बोला ।
“हां । और आयी किसलिये थी ?”
“आपने दिये थे ?”
“नहीं ।”
सब चौंके और हैरानी से ब्रान्डो की तरफ देखने लगे ।
“नहीं ?” - सुनेत्रा बोली - “यकीन नहीं आता । तुमने मोहिनी की मदद न की ! महान ब्रान्डो से मोहिनी को इनकार सुनना पड़ा ! यानी कि तुम ने उस से फौजिया जितनी भी हमदर्दी न दिखाई ! मेरे जितनी भी हमदर्दी न दिखाई !”
“वो” - मुकेश तत्काल बोला - “आप के पास भी आयी थी ?”
“हां । मई एण्ड में ही । जरूर ब्रान्डो से नाउम्मीद होने का बाद ही आयी होगी ।”
“आपने मदद की थी उसकी ?”
“हां । पच्चीस हजार रुपये दिये थे । फौजिया की तरह मेरे पास भी ज्यादा की गुंजायश नहीं थी । होती तो ज्यादा भी जरूर देती ।”
“यानी कि मांग उसकी बड़ी थी ?”
“हां । दो लाख की ।”
“उसने आप को बताया था कि उसे एकमुश्त इतने पैसे की जरूरत क्यों थी ?”
“नहीं ।”
“मिस्टर ब्रान्डो, आपको भी नहीं बताया था ?”
“नहीं बताया था ।” - ब्रान्डो उखड़े स्वर में बोला - “यही बात तो मुझे नागवार गुजरी थी जिसकी वजह से मैंने उसकी मदद से इनकार किया था । जब उसे मेरे पर भरोसा नहीं था तो उसे नहीं आना चाहिये था मेरे पास । वो कुछ बताती तो मुझे यकीन आता न कि वो सच में जरूरतमन्द थी ।”
“ओह ! तो आप चाहते थे कि वो हाथ में कटोरा लेकर मंगती की तरह गिड़गिड़ाती, आपके जद्दोजलाल का सदका देती, आपकी सुखसमृद्धि के दुआयें मांगती, आपकी ड्योढी पर नाक रगड़ती आपके हुजूर में पेश करती आप उसकी जरूरत पर गम्भीर विचार करते ।”
“भई, वो कोई उसका स्टण्ट भी हो सकता था ।”
“स्टण्ट ?” - आलोका चिल्लाई - “ब्रान्डो । यू फोनी । यू हार्टलैस सन ऑफ आप बिच । तुम्हारी किसी पार्टी में शामिल मोहिनी यहां शैम्पेन से नहाने की ख्वाहिश जाहिर करती तो तुम निसंकोच उसकी ख्वाहिश पूरी कर सकते थे, वो आसमान से तारे तोड़कर लाने को कहती तो तुम उसका इन्तजाम कर सकते थे लेकिन हाथ पसारे मदद मांगने आयी मोहिनी को तुम काला पैसा नहीं दे सकते थे । कैसे... कैसे...”
बालपाण्डे ने उसका हाथ दबाया और आंखों से खामोश रहने का इशारा किया ।
“इतना पाखण्ड !” - आलोक फिर भी चुप न हुई - “इतनी तौहीन ! इतनी नाकद्री ! इतना गरूर !”
“अब मैं” - बालपाण्डे बोला - “मुंह में रुमाल ठूंस दूंगा ।”
आलोका खामोश हो गयी लेकिन उसने निगाहों से ब्रान्डो पर भाले-बर्छियां बरसाना न छोड़ा ।
अमूमन शान्त रहने वाली आलोका का वो रौद्र रुप प्रत्यक्षतः सब को अचम्भे में डाल रहा था ।
“अब” - एकाएक अधिकारी अपनी कनपटी ठकठकाता हुआ बोला - “मेरी खोपड़ी का भी जाला छंट रहा है । मेरे ज्ञानचक्षु भी खुल रहे हैं । हनी” - वो शशिबाला से सम्बोधित हुआ - “मुझे तुम से गिला है ।”
“किसी बात का ?” - शशिबाला हैरानी से बोली ।
“तुमने मुझे असलियत न बतायी ।”
“कौन-सी असलियत न बतायी ?”
“मैं समझता हूं । ये सन अट्ठासी की जून के तीसरे या चौथे हफ्ते की बात है जबकि मैं मोहिनी से देसाई फिल्म्स कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट करने की गुहार कर करके हार चुका था और अपने पांच लाख के बोनस को गुडबाई कह भी चुका था । तब एक रोज एकाएक मेरे पास मोहिनी का फोन आया । फोन पर उसने मुझे ये गुड न्यूज दी कि वो देसाई की आफर पर फिर से विचार करने को तैयार थी । मैं बाग बाग हो गया । पांच लाख रुपये का बोनस फिर मुझे अपनी पहुंच में दिखाई देने लगा । मैंने उससे अगले रोज की लंच अप्वायन्टमैंट फिक्स की ।”
“क्यों ?” - मुकेश बोला - “अगले रोज की क्यों ?”
“भई, कान्ट्रैक्ट भी तो तैयार कराना था जिसमें कि टाइम लगता है ।”
“वो कान्ट्रैक्ट करने को तैयार थी ?” - विकी बोला ।
“हां ।”
“लेकिन जाहिर है कि इसलिये नहीं क्योंकि एकाएक वो दिलीप देसाई की फिल्म की हीरोइन बनने को तड़पने लगी थी बल्कि इसलिये क्यों कि पैसा हासिल करने का वो भी एक जरिया था ?”
“जाहिर है लेकिन पहले मेरी पूरी बात सुनिये आप लोग । वो क्या है कि जिस रोज मेरे पास मोहिनी का फोन आया, उसी शाम को अपनी शशिबाला मेरे पास पहुंची । रिमेम्बर बेबी ?”
शशिबाला ने बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“और” - अधिकारी बड़े ड्रामेटिक अन्दाज से बोला - “इसने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे । तब पांच लाख के बोनस की कमाई क्यों कि मेरी आंखों के सामने तैर रही थी इसलिये मैंने बिना कोई हुज्जत किये बिना कोई सवाल किया इसे दो लाख रुपये दे दिये ।”
“कमाल है ।” - विकी बोला - “हीरोइन ने अपने सैकेट्री से उधार मांगा ।”
“चलता है, भाई, चलता है । इसी को कहते हैं कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर ।”
“तुम आगे बढो ।” - मुकेश उतावले स्वर में बोला - “फिर क्या हुआ ?”
“फिर जो हुआ, बहुत दिल बैठा देने वाला हुआ ।”
“क्या हुआ ।”
“अगले रोज मोहिनी लंच अप्वायंटमैंट पर पहुंची ही नहीं । लेकिन वो क्यों न आयी, ये इतने सालों बाद आज मेरी समझ में आया है । मोहिनी को तब दो लाख रुपये की जरूरत थी और उसकी वो जरूरत जरूर तब अपनी हीरोइन ने पूरी कर दी थी । शशि बेबी, अब कबूल करो कि तब तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार मोहिनी को देने के लिये मांगे थे । तुम्हारे जरिये - बल्कि यूं कहो कि एक तरह से मेरे जरिये - मोहिनी की जरूरत पहले ही पूरी हो गयी थी इसलिये वो अगले रोज मेरे से मिलने नहीं आयी थी । शशि बेबी, तुमने मुझे धोखा दिया । तुमने मेरा पांच लाख रुपये का बोनस मरवा दिया...”
“ओह, शटअप !” - शशिबाला भुनभुनाई - “तुम्हारी रकम तो लौटाई मैंने !”
“मेरी रकम लौटाई लेकिन तुम्हारे डबल क्रास की वजह से मेरे पांच लाख रुपये तो मारे गये !”
“मैडम इतनी कैसे पसीज गयीं मोहिनी से” - मुकेश बोला - “कि उसे उधार देने के लिये इन्होंने आगे तुमसे उधार मांगा ।”
“पसीजी नहीं होगी, खौफ खा गयी होगी । धमकी में आ गयी होगी ।”
“धमकी ?”
“मोहिनी की । देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन कर लेने की ।”
“क्या मतलब ?” 
“मोहिनी पैसे के लिये, फरियाद लेकर इसके पास नहीं गयी होगी । इसलिये नहीं गयी होगी क्योंकि शशिबाला के खिलाफ मोहिनी के हाथ में एक तुरुप का पता था जिसे खेलने से मोहिनी ने कतई कोई गुरेज नहीं किया होगा । मोहिनी ने इसके पास जाकर कहा होगा ‘शशि मेरी जान, या तो मुझे दो लाख रुपये दे या फिर मैं देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन करती हूं जिसकी वजह से तू देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होगी क्योंकि तू जानती है कि मेरे इनकार की वजह से तुझे चांस मिला है और मेरा इकरार तेरा चांस खत्म कर देगा’ । शशि बेबी, तुम्हें और खौफजदा रखने के लिये ही उसने मुझे फोन किया और कोई बड़ी बात नहीं कि उसने वो फोन तुम्हारे सामने ही किया हो ताकि तुम्हारे बिल्कुल ही हाथ-पांव फूज जाते । तब अपने आपको बर्बाद होने से बचाने के लिये तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे जो कि तुमने आगे मोहिनी को दिये और यूं उसने देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करने का ख्याल छोड़ा । मैंने तुम्हे वो रकम उधार देकर एक तरह से अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली । क्या हसीन धोखा दिया मुझे मेरी हसीन हीरोइन ने ? शशि बेबी...”
“डोंट शशि मी ।” - शशिबाला भड़की - “डोंट बेबी मी । शट युअर माउथ ।”
“आप लोग एक मिनट जरा मेरी बात सुनिये ।” - मुकेश बोला - “मोहिनी को आप लोग जानते थे, मैं नहीं जानता था इसलिये मेरा आप से सवाल है कि एक धनवान पति की पत्नी अपने पति की मौत के बाद के दो महीनों में ही इतनी मुफलिस, इतनी पैसे ही मोहताज क्योंकर हो गयी कि वो हर किसी के पास मदद की फरियाद लेकर जाने लगी ? हम श्याम नाडकर्णी के सालीसिटर थे इसलिये हम जानते हैं कि उसकी लाश बरामद न होने के वजह से उसकी तमाम चल और अचल सम्पति ट्रस्ट के हवाले हो जाने के बावजूद लाखों रुपया ऐसा था जिस तक तब मोहिनी की पहुंच थी । पन्दरह लाख रुपये की एक रकम ऐसी थी जो कि नाडकर्णी ने अपनी मौत से तीन दिन पहले बैंक से निकाली थी, जो कि पूरी घर में मौजूद थी और जिस पर अपने पति की मौत के बात ट्रस्ट के अस्तित्व में आने से पहले ही मोहिनी काबिज हो चुकी थी । फिर भी ये क्योंकर हुआ कि और दो महीने बाद मदद की फरियाद के साथ वो आप लोगों के पास चक्कर लगा रही थी ?”
“उसके पास पन्दरह लाख रुपये थे ?” - फौजिया मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली ।
“ज्यादा भी हो सकते थे । इतने की तो हमारी फर्म को खबर थी ।”
“और अभी देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करके वो और पैसा हासिल कर सकती थी ।”
“मुंह मांगा ।” - अधिकारी बोला - “कान्ट्रेक्ट साइन करने की अगर उसकी ये शर्त होती कि वो एक करोड़ रुपया एडवांस में लेगी तो भी दिलीप देसाई उसे देता ।” 
“इसे अतिशयोक्ति भी मान लिया जाये” - विकी बोला - “तो भी ये तो हकीकत है ही कि वो देसाई से कोई मोटी रकम झटक सकती थी ।”
“फिर भी उसने ऐसी कोई कोशिश न की ।” - मुकेश बोला - “पैसे की जरूरतमन्द लड़की ने सहज ही हासिल होता पैसा हासिल करने की कोशिश न की ।”
“पैसा उसे देसाई से ही तो हासिल था । हो सकता है, उसे फिल्मों में काम करने से चिड़ हो । हो सकता है उसे काम ही करने से चिड़ हो । बाज लोग होते हैं ऐसे काहिल और कामचोर कि वो काम के नाम से ही बिदकते हैं ।”
“होते हैं । लेकिन जब काम बिना गति न हो तो बड़े-बड़े को काम करना पड़ता है । यहां मोहिनी के मामले में विरोधाभास ये है कि उसे पैसे की जरूरत थी लेकिन सहज ही हासिल हो सकने वाले पैसे को वो नजरअन्दाज करती रही थी । जैसे वो पैसा कोई उससे छीन लेगा । फिर ऐसा ही उलझे हुए माहौल में वो गायब हो गयी । ऐसी गायब हो गयी कि सात साल किसी को ढूंढे न मिली । किसी से उसने सम्पर्क करने की कोशिश न की । और पैसा उधार मांगने के लिये भी नहीं । उधार लिया हुआ पैसा लौटाने के लिये भी नहीं । उसके बारे में तो ये तक कहना मुहाल था कि सृष्टि में उसका अस्तित्व भी बाकी था या नहीं । सिवाय उस एक मुलाकात के जो तीन साल पहले उसकी रोशन बालपाण्डे से सूरत में हुई थी, और जिसकी कि हमें अब खबर लगी है, वो हुई या न हुई एक जैसी थी । साहबान, इन तमाम बातों का सामूहिक मतलब एक ही हो सकता है । इन तमाम उलझनों का, इस तमाम विसंगतियें का जवाब एक ही हो सकता है ।”
“ब्लैकमेल !” - विकी के मुंह से निकला ।
“हां, ब्लैकमेल । गम्भीर ब्लैकमेल । चमड़ी उधेड़ लेने वाली ब्लैकमेल । मोहिनी के बेवा होने के बाद से ही कोई उसे ब्लैकमेल कर रहा था । उस ब्लैकमेलर की मुंहफट मागें पूरी करते-करते ही दो महीने से मोहिनी पल्ले का पैसा तो खो ही चुकी थी उसे आगे दायें-बायें से उधार भी उठाना पड़ गया था । वो देसाई का सोने की खान जैसा कान्ट्रैक्ट साइन नहीं कर सकती थी, वो कमाई का कोई भी प्रत्यक्ष जरिया कबूल नहीं कर सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि जो भी रकम वो यूं पैदा करती, उसका ब्लैकमेलर उससे वो झटक लेता । इन हालात में उसके सामने एक ही रास्ता खुला था जिस पर कि वो आखिरकार चली । वो रास्ता ये था कि वो गायब हो जाती । ऐसा गायब हो जाती कि उसके ब्लैकमेलर को वो ढूंढे न मिलती । यही रास्ता उसने अख्तियार किया और सात साल अख्तियार में रखा । सात साल बाद वो प्रकट हुई । इसलिये प्रकट हुई कि इस वक्फे में वो अपने दिवंगत पति की छोड़ी दौलत की कानूनी वारिस बन चुकी थी । और प्रकट हुए बिना, सामने आये बिना विरसे की ढाई करोड़ रुपये की रकम को क्लेम करना सम्भव नहीं था ।”
सब सन्नाटे में आ गये ।
“तुम्हारा मतलब है” - फिर अधिकारी बोला - “उस ब्लैकमेलर ने मोहिनी का कत्ल किया ? ये तो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हलाल करने जैसी बात हुई । ये तो उसी हाथ को काट खाने वाली बात हुई जो कि आप को सोने का निवाला देता हो । यानी कि जब मोहिनी के पास रुपया लाखों में था, या वो भी नहीं था, तो तब तो ब्लैकमेलर उसके पीछे पड़ा रहा, वो करोड़ों की मालकिन बनने लगी तो ब्लैकमेलर ने उसका कत्ल कर दिया ?”
“अगर” - ब्रान्डो बोला - “ब्लैकमेलर वाली कहानी में कोई दम है तो इतना अहमक तो ब्लैकमेलर नहीं हो सकता ।”
“मेरा ख्याल ये है” - मुकेश बोला - “कि मोहिनी को अपने ब्लैकमेलर की शिनाख्त नहीं थी । उसे खबर नहीं थी कि उसे कौन ब्लैकमेल कर रहा था । ऐसा ही चालाक था वो ब्लैकमेलर । लेकिन अब लगता है कि एकाएक वो अपने ब्लैकमेलर को पहचान गयी थी, वो उसका कत्ल करने के इरादे से यहां पहुंची थी लेकिन किन्हीं हालात में बाजी उलटी पड़ गयी थी और जान लेने की जगह वो जान दे बैठी थी । हालात ऐसे बन गये थे कि जान बचाने के लिये ब्लैकमेलर को जान लेनी पड़ी । वो मारता न तो मारा जाता ।”
“दम तो है, भई, तुम्हारी बात में ।” - अधिकारी प्रभावित स्वर में बोला - “ऐसे ही वकील नहीं बन गये हो । बहुत आला दिमाग पाया है तुमने ।”
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “ब्लैकमेल की कोई वजह होती है । कोई बुनियाद होती है । चमड़ी उधेड़ गम्भीर ब्लैकमेल की गम्भीर बुनियाद होती है ।”
“बिल्कुल ठीक ।” - मुकेश बोला - “अब सोचिये गम्भीर बुनियाद क्या हो सकती है ?”
“गम्भीर बुनियाद !” - शशिबाला सोचती हुई बोली, फिर एकाएक उसके नेत्र फैले - “ओह, नो ।”
“यस । एकदम सही जवाब सूझा है आप को ।”
“क्या !” - अधिकारी सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
“मोहिनी ने” - मुकेश एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “अपने पति श्याम नाडकर्णी का कत्ल किया था । और ये बात ब्लैकमेलर को मालूम थी । न‍ सिर्फ मालूम थी, उसके पास मोहिनी की उस करतूत का अकाट्य सुबूत था ।”
“ओह !”
“और वो ब्लैकमेलर आपमें से कोई था । आप में से कोई था जिसने मोहिनी के गायब होने से पहले उसकी पाई-पाई हथिया ली थी । आपमें से कोई था जिसके खौफ से मोहिनी पैसा नहीं कमाना चाहती थी क्योंकि उसकी कमाई भी उससे छिन जाती । आप में से कोई था जिसके जुल्म के साये से पनाह पाने के लिये मोहिनी गायब हुई थी और सात साल...”
“टीना !” - विकी जोश से बोला - “टीना ! मोहिनी के पास पैसा खत्म हो गया तो जो उसके जेवर हथियाने लगी ! ऐसे ही जेवरात में से एक जेवर तो ब्रेसलेट था जिसे टीना ने बेचकर पैसे खरे करने की हिम्मत नहीं की थी क्योंकि उस पर मोहिनी का और उसके हसबैंड का नाम गुदा हुआ था । लेकिन वो कीमती ब्रेसलेट वो फेंक देने को भी तैयार नहीं थी इसलिये उसने उसे अपने जेवरात के डिब्बे में मखमल की लाइनिंग के भीतर छुपाया हुआ था, जहां से कि पुलिस ने उसे बरामद किया था, जिसकी कि अपने पास मौजूदगी का टीना के पास कोई जवाब नहीं था और जिसकी वजह से अपना खेल खत्म होने पर पहुंचा जानकर उसे भाग खड़ा होना पड़ा था ।”
“ओह !” - बालपाण्डे बोला - “तो वो ब्रेसलेट ब्लैकमेल से हासिल माल था ।”
“टीना !” - ब्रान्डो के मुंह से निकला - “ब्लैकमेलर !”
“और हत्यारी !” - सुनेत्रा बोली ।
“उसने मोहिनी को मार डाला !” - फौजिया बोली ।
“और आयशा को भी ।” - आलोका बोली - “हाउसकीपर को भी ।”
“अब आगे पता नहीं किसी बारी आती !” - शशिबाला बोली - “अच्छा ही हुआ वो फरार हो गयी । हम बच गये । मेरी तो ये सोच के रूह कांपती है कि हम लोग एक खतरनाक कातिल की सोहबत में थे ।”
मुकेश ने नोट किया कि वहां मौजूद लोगों में सिर्फ अधिकारी ही था जिसने टीना की बाबत कोई राय प्रकट करने की कोशिश नहीं की थी ।
खुद वो तो था ही ।
***
मुकेश अपने कमरे की बाल्कनी में बहुत गम्भीर मुद्रा बनाये बैठा पिछले तीन दिनों में घटित घटनाओं पर विचार कर रहा था जब कि एकाएक उसके कमरे के अधखुले दरवाजें पर दस्तक पड़ी और हाथ में एक कार्डलैस फोन थामे ब्रान्डो ने भीतर कदम रखा ।
“तुम्हारी काल है ।” - वो बोला - “बम्बई से । मेरी लाइन पर आ गयी थी । तुम्हें बुलाने की जगह मैं कार्डलैस यहां ले आया ।”
“शुक्रिया ।” - मुकेश उठकर कमरे में कदम रखता कृतज्ञ भाव से बोला - “मेहमाननवाजी तो कोई आपसे सीखे ।”
ब्रान्डो मुस्कराया, उसने फोन मुकेश के हाथ में थमा दिया और वहां से विदा हो गया ।
“हल्लो” - मुकेश फोन में बोला - “मुकेश माथुर स्पीकिंग ।”
“मिस्टर माथुर” - उसे अपने बॉस की सैक्रेट्री की आवाज सुनायी दी - “बड़े आनन्द साहब बात करेंगे । होल्ड रखियेगा ।”
“यस । होल्डिंग !”
कुछ क्षण बाद उसके कान में सुराख-सी करती नकुल बिहारी आनन्द की आवाज पड़ी - “माथुर ।”
“यस, सर ।”
“मैं तुम्हारी फरदर रिपोर्ट का इतजार कर रहा था ! फोन क्यों नहीं किया ?”
“सर, वो क्या है कि सुबह से लेकर अब तक यहां बहुत हंगामा हो गया है । इतनी गड़बड़ें हो गयी हैं, इतनी घटनायें इकट्ठी घटित हो गयी हैं कि...”
“माथुर, क्योंकि रात को ट्रंककाल के रेट आधे लगते हैं इसलिये ये न समझो कि तुम फोन पर मुझे कहानियां सुना सकते हो, लम्बी-लम्बी हांक सकते हो ।”
“मैं ऐसा कुछ नहीं समझ रहा, सर ।”
“तो मतलब की बात पर आओ । और जो कहना है संक्षेप में, थोड़े में कहो ।”
“सर, यहां बुरा हाल है ।”
“क्या !”
“यहां हालत काबू से बाहर निकले जा रहे हैं ।”
“फिर भूमिका बांधनी शुरु कर दी ! अरे पहले ये बताओ कि तुम मोहिनी की लाश का पता लगा पाये या नहीं ?”
“नहीं लगा पाया, सर ।”
“क्यों ? क्यों नहीं लगा पाये ?”
“मरे उस्ताद ने मुझे लाशें तलाशने का हुनर नहीं सिखाया था ।”
“क्या ! क्या कहा तुमने ?”
“सर, मैं कह रहा था कि जो कम पुलिस जैसी संगठित फोर्स नहीं कर पा रही थी, उसे मैं अकेली जान भला कैसे कर पाता !”
“हूं । लगता है मुझे खुद वहां आना पड़ेगा ।”
“ये तो बहुत ही अच्छा होगा, सर । फिर तो तमाम की तमाम खोई हुई लाशें बरामद हो जायेंगी ।”
“तमाम की तमाम लाशें ?”
“सर, पता लगा है कि गोवा की आजादी से पहले पुर्तगालियों के राज में भी यहां ऐसे कई कत्ल हुए थे जिनसे सम्बन्धित लाशें आज तक बरामद नहीं हुईं । आप जब मोहिनी की लाश की तलाश के लिये यहां आ ही रहे हैं तो जाहिर है कि यहां एक पंथ सौ काज जैसा मेला लग जायेगा ।”
“मेला ! मैंने तुम्हें वहां मेला देखने के लिये भेजा है ?”
“सर, ये काम मैं आफ्टर आफिस आवर्स में कर रहा हूं ।”
“माथुर, आई डोंट अन्डरस्टैण्ड यू ।”
“आई एम सारी, सर ।”
“एण्ड आई एम नाट हैपी विद यू ।” 
“मैं आपको एक चुटकुला सुनाता हूं, सर । आप हैपी हो जायेंगे । वो क्या है कि एक भिखारी था...”
“माथुर ! माथुर ! ये लाइन पर तुम ही हो न ?”
“मैं हूं, सर । लेकिन लगता है कोई और भी है ।”
“यूं मीन क्रॉस टॉक ?”
“यस, सर ।”
“अगेन ?”
“यस, सर ।”
“गोवा की लाइन पर क्रॉस टॉक कुछ ज्यादा ही होती है ।”
“सर, कभी-कभी तो टॉक होती ही नहीं, सिर्फ क्रॉस ही होता है । कभी रैड क्रॉस, कभी ब्लू क्रॉस, कभी विक्टोरिया क्रॉस...”
“पुलिस ने केस में कोई तरक्की की या नहीं की ?”
“की है, सर । अपनी निगाह में उन्होंने कातिल की शिनाख्त कर ली है ।”
उसी क्षण बाल्कनी के बाहर दूर सड़क पर उसे तूफानी रफ्तार से दौड़ती एक कार करीब आती दिखाई दी - जिप्सी !
कार सड़क के मोड़ पर पहुंची तो रेत के एक टीले की ओट आ जाने की वजह से वो उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
तभी अन्धेरे वातावरण में दूर कहीं से पुलिस के सायरन की आवाज गूंजी । आवाज करीब होती जा रही थी ।
टीले के पीछे से कार फिर सड़क पर प्रकट हुई ।
ब्रान्डो की जिप्सी ।
वो लपककर बाल्कनी में पहुंचा ।
जिप्सी का रुख साफ पता लग रहा था कि ब्रान्डो के मैंशन की तरफ था लेकिन पोर्टिको के करीब पहुंचने से पहले ही वो एकाएक ड्राइवर के कन्ट्रोल से निकल गयी । उसका अगला पहिया एक खड्ड में उतरा गया, जीप डगमगाई, उसका ड्राइविंग सीट की ओर का दरवाजा खुला और किसी ने उसमें से बाहर छलांग लगायी ।
हे भगवान ! टीना !
टीना अभी पोर्टिको से दूर ही थी कि ओट में से एक हवलदार निकला और चिल्लाकर टीना को रुक जाने का आदेश देने लगा । रुकने की जगह टीना ने केवल अपना रास्ता बदला, पहले से तेज रफ्तार से वो गार्डन की तरफ भागी और वहां की भूल-भुलैया में गायब हो गयी ।
चेतावनी में चिल्लाता हुआ हवलदार पोर्टिको का पहलू छोड़कर उसके पीछे भागा ।
“माथुर !” - फोन पर उसका बॉस चिल्ला रहा था - “माथुर ! अरे, लाइन पर हो या...”
मुकेश ने उत्तर न दिया ।
नीचे सड़क पर एक पुलिस की जीप पहुंची जिसके ठीक से गतिशून्य हो पाने से भी पहले सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी उसमें से बाहर कूद पड़े ।
“माथुर !”
“सर” - मुकेश फोन मे बोला - “मैं आपको अभी थोड़ी देर में फोन करता हूं ।”
“लेकिन क्यों ? क्यों ?”
“सर, यहां पाकिस्तान का हमला हो गया है । आई विल रिपोर्ट लेटर, सर ।”
उसने फोन आफ किया, उसे वहीं पलंग पर फेंका और वहां से बाहर को लपका ।
तब तक वहां की तमाम फ्लड लाइट्स आन की जा चुकी थीं और अब सारी एस्टेट रौशनी में नहाई मालूम होती थी ।
गार्डन दौड़ते कदमों की आवाजों से गूंज रहा था ।
गार्डन के दहाने पर उसे फिगुएरा, सोलंकी और दो हवलदार दिखाई दिये । ब्रान्डो और उसके मेहमान उन्हें घेरे खड़े थे । उनके करीब ही कोठी के सारे नौकर-चाकर जमघट लगाये खड़े थे ।
फिर मुकेश को देखते-देखते सोलंकी और उसके दोनों हवलदार गार्डन में दाखिल हो गये ।
वो करीब पहुंचा ।
“गार्डन में आवाजाही का” - ब्रान्डो फिगुएरा को बता रहा था - “ये एक ही रास्ता है ।”
“पक्की बात ?” - फिगुएरा बोला ।
“आफकोर्स ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” - शशिबाला बोली - “इतना बड़ा गार्डन है । कोई तो दूसरा रास्ता होगा !”
“नहीं है ।” - ब्रान्डो तनिक नाराजगी से बोला - “जब मैं कहता हूं नहीं है तो नहीं है । आखिर ये मेरी प्रापर्टी है । आई नो बैटर ।”
“ही इज राइट ।” - अधिकारी बोला ।
“टीना अभी इस रास्ते से गार्डेन में दाखिल हुई है । वो जब कभी भी बाहर निकलेगी इसी रास्ते से निकलेगी । दस फुट ऊंची दीवार से घिरा ये गार्डन ऐसे ही बना हुआ है कि सामने रास्ते के अलावा और कहीं से कोई खरगोश बाहर कदम नहीं रख सकता । भीतर कई रास्ते हैं जो भूल-भुलैया की तरह एक-दूसरे में गड्ड-मड्ड हुए हुए हैं लेकिन उनसे निकासी का अन्त-पन्त एक ही रास्ता है जिसके सामने कि हम खड़े हैं ।”
“ब्रान्डो” - शशिबाला जिदभरे स्वर में बोली - “तुम भूल रहे हो कि उस रात को जब कोई हाउसकीपर वसुन्धरा को धक्का देकर भागा था, जिसे कि पुलिस वाले कोई ताक-झांक करने वाला बताकर गये थे, तो वो, बकौल वसुन्धरा, भागकर गार्डन में ही घुसा था । और जब मिस्टर माथुर उसकी तलाश में गार्डन में घुसे थे तो वो इन्हें कहीं नहीं मिला था । इसका साफ मतलब है कि गार्डन से निकासी का कोई दूसरा रास्ता तलाश करने में वो शख्स कामयाब हो गया था ।”
“नामुमकिन ।” - ब्रान्डो जिदभरे स्वर में बोला - “वो जब भी निकला होगा, इधर से ही वापिस निकला होगा । मिस्टर माथुर गार्डन में गहरे धंसे हुए होंगे जबकि वो यहां से निकल गया होगा । या वो मिस्टर माथुर की मौजूदगी में भीतर कहीं छुपा रहा होगा और फिर इनके तलाश से हारकर लौट आने के बाद यहां से खिसका होगा । इसी रास्ते । आई रिपीट, इसी रास्ते ।”
“इस रास्ते नहीं खिसका था ।”
तत्काल सब खामोश हो गये ।
“कौन बोला ?” - फिर फिगुएरा तीखे स्वर में बोला ।
कोई जवाब न मिला ।
“अभी कौन बोला था ?” - फिगुएरा क्रोध से बोला ।
नौकरों के झुण्ड में से एक युवक झिझकता हुआ एक कदम आगे बढा ।
मुकेश ने देखा वो केयरटेकर का नौजवान लड़का रोमियो था । उसकी सूरत से यूं लग रहा था जैसे वो जोश में मुंह फाड़ बैठा था और अब पछता रहा था ।
“मैं ।” - वो दबे स्वर में बोला - “मैं बोला था ।”
“तुम कौन हो ?”
“ये” - जवाब ब्रान्डो ने दिया - “रोमियो है । मेरे केयरटेकर का लड़का है ।”
“तुम” - फिगुएरा सख्ती से उससे सम्बोधित हुआ - “कैसे दावे के साथ कह सकते हो कि हाउसकीपर का हमलावर इस रास्ते से वापिस बाहर नहीं निकला था ।”
“मेरी इस रास्ते पर निगाह थी । मिस्टर माथुर के मिस टीना टर्नर के साथ वापिस लौट जाने के बाद तक मेरी इस रास्ते पर निगाह थी । इनके लौटने के दो घण्टे बाद तक की मैं गारन्टी करता हूं कि कोई शख्स गार्डन से बाहर नहीं निकला था ।”
“तुम्हारी इस रास्ते पर निगाह क्यों थी ?”
“ये मैं नहीं बता सकता ।”
“क्या !”
“वो मेरा एक राज है जिसे मैं फाश नहीं करना चाहता लेकिन जिसका आपकी तफ्तीश से कोई रिश्ता नहीं ।”
“मैं तुमसे अकेले में बात करूंगा ।”
“अकेले में बात करेंगे तो मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊंगा लेकिन ये मैं फिर दोहराता हूं कि उस रात हाउसकीपर पर हमला होने के बाद, मिस्टर माथुर के उसकी तलाश में निकलने और नाकाम होकर लौटने के दो घण्टे बाद तक कोई जाना या अनजाना शख्स इस रास्ते से बाहर नहीं निकला था ।”
उस नये रहस्योदघाटन ने मुकेश की सोच को जैसे पंख लगा दिये । बहुत तेजी से उस रात की घटनायें न्यूजरील की तरह उसके मानस पटल पर उभरने लगीं ।
मसलन हाउसकीपर ने यकीनी तौर से कहा था कि उसका हमलावर उसे धक्का देकर गार्डन में घुसा था ।
गार्डन में कोई नहीं था, होता तो या मुकेश को कहीं दिखाई देता या रोमियो को गार्डन से बाहर निकलता दिखाई देता ।
इमारत की दीवारें हिलाती बादलों की गर्ज, बिजली की कड़क !
हाउसकीपर की दिल दहला देने वाल चीख जो उन आवाजों से भी ऊंची सुनाई दी थी !
बिजली कड़कने से पहले उन लोगों के बीच क्या वार्तालाप चल रहा था ?
मोहिनी बादलों की गर्ज, बिजली की कड़क का खौफ खाती थी !
और ! और क्या विषय था तब चर्चा का ?
“इसका साफ मतलब है” - फिगुएरा कह रहा था - “कि मिस्टर ब्रान्डो का दावा सच नहीं । गार्डन से निकासी का यकीनन कोई और भी रास्ता है ।”
“लेकिन...” - ब्रान्डो ने कहना चाहा ।
“एक मतलब और भी है ।” - तब मुकेश तमककर बोला ।
“क्या !” - फिगुएरा उसे घूरता हुआ बोला - “और क्या मतलब है ?”
“मोहिनी पाटिल बिजली की कड़क से खौफ खाती थी...”
तभी गार्डन के रास्ते पर हलचल हुई जिसकी वजह से सबकी निगाहें उधर उठ गयीं ।
रास्ते में पहले सोलंकी और फिर बद्हवास टीना को दायें-बायें से थामे दो हवलदार प्रकट हुए । टीना का चेहरा कागज की तरह सफेद था और उसपर गहन पराजय की भाव अंकित थे ।
“मैडम !” - फिगुएरा कर्कश स्वर में बोला - “आप अपने आपको गिरफ्तार समझें ।”
“खामखाह !” - मुकेश तीखे स्वर में बोला ।
“खामखाह, क्या मतलब ?”
“अभी समझाता हूं । मुझे दो मिनट का, सिर्फ दो मिनट का वक्त दो ।”
“क्या करने के लिये ?”
“ये साबित करके दिखाने के लिये कि टीना को गिरफ्तार करके आप कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं ।”
“ओह, नानसेंस । हमें पता है हम क्या कर रहे हैं ।” 
“फिगुएरा !” - सोलंकी बोला - “दो मिनट ही तो कह रहा है । दो मिनट से हमें क्या फर्क पड़ जायेगा ?”
“ठीक है ।” - फिगुएरा बोला - “बोलो, क्या कहना चाहते हो ?”
“आपसे नहीं” - मुकेश सुनेत्रा की तरफ घूमता हुआ बोला - “मैडम से कुछ कहना चाहता हूं ।”
सुनेत्रा सकपकाई ।
“मैडम, आपका कहना है कि आपने मोहिनी को उस रोज सुबह-सवेरे तब देखा था जबकि वो चुपचाप यहां से खिसक जाने की कोशिश कर रही थी ?”
“हां ।” - सुनेत्रा बोली - “कितनी बार तो बता चुकी मैं ।”
“और आपने ये कहा था कि वो पहले से भी ज्यादा हसीन, पहले से भी ज्यादा दिलकश लगती थी, उसमें कोई तब्दीली नहीं आयी थी, उसके लिये जैसे वक्त ठहर गया था, वगैरह ?”
“हां ।”
“मिस्टर फिगुएरा, याद है आपको भी ?”
“हां” - फिगुएरा बोला - “याद है । ऐसा ही कहा था मैडम ने । लेकिन...”
“उनकी क्या गवाही दिलवा रहे हो ?” - सुनेत्रा अप्रसन्न भाव से बोली - “मैं क्या मुकर रही हूं अपनी बात से ? मैं फिर कहती हूं, मैंने मोहिनी को वैसा ही देखा था जैसा मैंने...”
“आपने वैसा नहीं देखा था ।” - मुकेश एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “आपने कैसा भी नहीं देखा था । देखा ही नहीं था आपने मोहिनी को । न ये घर छोड़कर जाने की कोशिश करते और न किसी और तरीके से । उस रोज मोहिनी से हुई अपनी मुलाकात का जो मंजर आपने बयान किया था, वो फर्जी था । मनघड़न्त था । आपकी कल्पना की उपज था । मोहिनी तब कैसी दिखती थी, वो क्या पहने थी, क्या बातें की थीं उसने आप से, ये सब आपका झूठ है, फरेब है, उस पर हाउसकीपर के कत्ल का इल्जाम थोपने की भूमिका है । आप वैसी मोहिनी से इस मैंशन में कभी नहीं मिलीं ।”
“तुम पागल हो । तुम ये कहना चाहते हो कि मोहिनी यहां आयी ही नहीं थी ? ब्रान्डो, तुम बताओ, क्या मोहिनी ने अपने आगमन की खबर करने के लिये पायर से तुम्हें फोन नहीं किया था ?”
“किया था ।” - ब्रान्डो पुरजोर लहजे में बोला - “और इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती कि मैंने फोन पर मोहिनी से ही बात की थी ।”
“जरूर की थी ।” - मुकेश बोला - “लेकिन फोन पर । रूबरू नहीं । मिस्टर ब्रान्डो ने मोहिनी से बात ही की थी, उसे देखा नहीं था ।”
“शशिबाला ने” - सुनेत्रा बोली - “उसके कमरे पर जाकर उससे बात की थी ।”
“कमरे के बन्द दरवाजे के आरपार से ।” - मुकेश बोला - “रूबरू नहीं । मिस्टर ब्रान्डो की तरह शशिबाला ने भी उसकी आवाज ही सुनी थी, उसकी सूरत नहीं देखी थी ।”
“आवाज उसकी थी ।” - शशिवाला बोली - “मैं उसकी आवाज लाखों में पहचान सकती हूं ।”
“आप करोड़ो में पहचान सकती होंगी लेकिन ये हकीकत अपनी जगह कायम है कि आपने मोहिनी की सूरत नहीं देखी थी । ऐन इसी तरह फौजिया ने मोहिनी को वसुन्धरा से झगड़ते, उसे डांटते, उस पर बरसते सुना था लेकिन उसकी सूरत नहीं देखी थी ।”
“वो हाउसकीपर से झगड़ रही थी” - फौजिया बोली - “तो हाउसकीपर ने तो देखी होगी उसकी सूरत ।”
“हाउसकीपर ने क्या देखा, इसकी तसदीक हाउसकीपर ही कर सकती थी जो कि परलोक सिधार चुकी है ।”
“लेकिन” - ब्रान्डो बोला - “जब तुम वे मानते हो कि जो आवाज इतने जनों ने सुनी थी, वो मोहिनी की थी तो वे क्यों नहीं मानते कि मोहिनी यहां थी !”
“मैंने ये नहीं कहां कि मोहिनी यहां नहीं थी । मैंने सिर्फ ये कहा है कि जिस मोहिनी का अलंकारिक जिक्र सुनेत्रा ने किया है, उसका कोई अस्तित्व नहीं था । हसीन, दिलकश, दिलफरेब, फर के कीमती सफेद कोट में लिपटी, जगमग-जगमग करती मोहिनी सिर्फ और सिर्फ सुनेत्रा निगम की कल्पना की उपज है ।”
“लेकिन” - फिगुएम बोला - “ये तुम मानते हो कि मोहिनी यहां थी ?”
“हां, मानता हूं । उसके यहां न हुए बिना इतने लोगों को उसकी घंटी-सी बजती आवाज से, उसकी खनकती हंसी से धोखा नहीं हो सकता था । जिस किसी का दावा है कि उसने मोहिनी की आवाज सुनी थी, सच है । सच है कि मिस्टर ब्रान्डो ने फोन पर मोहिनी से ही बात की थी । सच है कि शशिबाला ने उसके कमरे के बन्द दरवाजे के आर-पार से मोहिनी से ही बात की थी । ये भी कबूल कि फोजिया ने मोहिनी को ही हाउसकीपर पर गर्जते-बरसते सुना था । लेकिन ये सच नहीं कि सुनेत्रा का जगमग-जगमग मोहिनी से आमना-सामना हुआ था और वो इस मैंशन से चुपचाप खिसकी जा रही थी । इसलिये सब नहीं क्योंकि आज की मोहिनी सात साल पहले की मोहिनी की परछाई भी नहीं लगती थी । उसमें इतनी तब्दीलियां आ गयी थीं, वो इतना ज्यादा बदल गयी थी कि कोई उसका सगेवाला भी उसे नहीं पहचान सकता था ।”
“कमाल है !” - ब्रान्डो बोला ।
“लेकिन फिर भी किसी ने उसे पहचाना ।”
“किसने ?” - सोलंकी, जोकि अब तक भूल चुका था कि मुकेश को अपनी बात कहने के लिये सिर्फ दो मिनट का वक्त दिया गया था, सस्पेंसभरे स्वर में बोला - “किसने पहचाना ?”
“इसने ।” - मुकेश खंजर की तरह एक उंगली सुनेत्रा की तरफ भौंकता हुआ बोला - “इसने पहचाना ।”
“हां, मैंने पहचाना ।” - सुनेत्रा चिल्लाकर बोली - “इसमें झूठ क्या है ? वो ऐन वैसी ही थी जैसी...”
“वो ऐन क्या जरा भी वैसी नहीं थी जैसी कि वो सात साल पहले थी ।” - मुकेश भी चिल्लाया - “और उसने अपने आप में जो इंकलाबी तब्दीलियां पैदा की थीं, वो जानबूझकर पैदा की थीं । इसलिये पैदा की थीं ताकि कोई उसे पहचान न पाये । अपनी सूरत, अपने बाल, अपना हेयर स्टाइल, अपनी फिगर, अपनी पोशाक, खूबसूरत सुनहरे बाल रूखे और डाई किये हुए । खूब कसके जूड़े की सूरत में बड़ी अम्माओं की तरह सिर के पीछे बांधे हुए । गाल फूले हुए, आंखें सिकुड़ी हुई, ऊपर से चेहरे को आधा कवर कर लेने वाला काले रंग का, मोटे फ्रेम और मोटी कमानियों जैसा चश्मा, बोरे जैसी पोशाक । फटे बांस जैसी ऐसी आवाज जैसे नाक में से निकल रही हो । वजन में कम से कम नहीं तो पैंतीस-छत्तीस किलो का इजाफा । अपनी शख्सियत की हर बात तब्दील कर ली उसने । न तब्दील कर सको तो सिर्फ एक बात । बादलों की गर्ज और बिजली की कड़क से वो आज भी पहले की ही तरह खौफ खाती थी । इसलिये उस शाम को जब एकाएक बिजली कड़की, बादल गर्जे तो न चाहते हुए भी वो हौलनाक चीख उसके मुह से निकल गयी जो कि सारे मैंशन में बिजली की कड़क से भी ऊंची सुनी गयी ।”
“तुम” - ब्रान्डो चौंककर बोला - “किसकी बात कर रहे हो ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ! ऐसे हुलिये वाली एक ही तो शख्सियत थी आपकी एस्टेट में ।”
“ओह, नो । नो ।”
“यस ! आपकी हाउसकीपर कथित वसुन्धरा पटवर्धन ही माहिनी पाटिल उर्फ मिसेज श्याम नाडकर्णी थी जिसका कि इसने कत्ल किेया ।”
फ्लड लाइट्स में सबने सुनेत्रा के चेहरे का रंग उड़ता साफ देखा ।
“और इसको आयशा चावरिया का कत्ल इसलिये करना पड़ा क्योंकि वो भी मेरी ही तरह, लेकिन मेरे से पहले, इस हकीकत से वाकिफ हो चुकी थी कि हाउसकीपर ही उनकी एक्स, परीचेहरा बुलबुल मोहिनी थी ।”
“ये झूठ है ।” - सुनेत्रा चिल्लाई - “झूठ है ।”
किसी के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये ।
उसके पति के चेहरे पर भी नहीं, जिसकी खातिर कि उसने वो सब कुछ किया था ।
***
सोमवार दोपहर साढे बारह बजे मुकेश अपने बॉस नकुल बिहारी माथुर के आफिस में उसके सामने बैठा अपनी रिपोर्ट पेश रहा था ।
रविवार को तकरीबन सारा दिन सब लोगों का फिगारो आइलैड पर गुजरा था, जहां सब बयान रिकार्ड हुए थे और जहां लम्बी हील-हुज्जत के बाद सुनेत्रा निगम ने अपना अपराध कबूल किया था ।
रविवार रात को ही सोलंकी उसे गिरफ्तार करके अपने साथ पणजी ले गया था ! पुलिस वालों की उनकी मूवमैंट्स से पाबन्दी हटने के बाद विकास निगम पहला आदमी था जिसने ब्रान्डो की एस्टेट से रुख्सत पायी थी । अपनी सफेद टयोटा पर सवार होकर अकेला वो वहां से कूच कर गया था और साफ मालूम होता था कि अपनी बीवी की संकट की घड़ी में पणजी में उसके करीब रहने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
उसने फौजिया को अपने साथ ले जाने की पेशकश की थी जिसको फौजिया ने बाकायदा उसे झिड़ककर ठुकरा दिया था और घोषणा की थी कि भविष्य में मर्द जात पर वो मुश्किल से ही विश्वास कर पायेगी ।
सोमवार सुबह वो शशिबाला और धर्मेन्द्र अधिकारी के साथ एस्टेट से रुख्सत हुई थी । ब्रान्डो खुद उन्हें पायर पर सी आफ करने गया था ।
रवानगी के वक्त शशिबाला और अधिकारी फाख्ताओं के जोड़े की तरह चहचहा रहे थे । जाहिर था कि उनमें तमाम गिले शिकवे दूर हो गये थे और अब अधिकारी पहले की तरह ही फिर अपनी सेलीब्रेटिड स्टार का सैक्रेट्री था और उसकी अधूरी शूटि़ग पूरी कराने के लिये उसे बैंगलौर ले जा रहा था ।
ब्रान्डो की गैरहाजिरी में आलोका और रोशन बालपाण्डे ने एक टैक्सी गंगाई थी और बिना ब्रान्डो से विदा लेने की औपचारिकता की परवाह किये वो वहां से रूख्सत हो गये थे ।
ब्रान्डो के दो नौकरों को एन.सी.बी. के अधिकारी पकड़कर ले गये थे । उन्होंने कबूल किया था कि बॉस के आदेश पर उन्होंने ही रात के दो बजे दो किलो हेरोइन की थैली कुएं में इस उम्मीद के साथ फेंकी थी कि वहां का मामला ठण्डा पड़ जाने के बाद उसे निकाल लिया जायेगा ।
बॉस कौन था ?
जवाब में पणजी के एक होटल संचालक का नाम लिया गया जिसे कि तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया । उस सन्दर्भ में और भी कई गिरफ्तारियां हुई जिनका मीडिया में इंस्पेक्टर आरलेंडो और डिप्टी डायरेक्टर अचरेकर ने खूब यश लूटा ।
मुकेश को इस बात की खूशी थी कि ब्रान्डो नारकाटिक्स स्मगलर नहीं निकला था । उसकी दौलत, उसका ऐश्वर्य हेरोइन स्मगलिंग का नतीजा नहीं था । यानी कि पुलिस का ध्यान कुएं की तरफ आकर्षित करने के पीछे उसका कोई निहित स्वार्थ नहीं था, उसकी जुबानी कुएं का जिक्र मात्र एक संयोग था और पुलिस के लिये उसकी निष्ठा का परिचायक था ।
जाने से पहले अचरेकर ब्रान्डो को बहुत कड़ी चेतावनी देकर गया था जिससे उसका मन इतना खिन्न हुआ था कि उसने एस्टेट को स्थायी रूप से बन्द कर देने की घोषणा कर दी थी । नौकरों को इनाम-इकराम से नवाज कर उसने उनकी छुट्टी कर दी थी और फिर कभी गोवा आकर रीयूनियन पार्टी आर्गेनाइज करने से तौबा कर ली थी ।
सन 1995 में ब्रान्डो की एस्टेट पर हुई वो आखिरी रीयूनियन पार्टी थी जिसमें कि उसकी दो बुलबुलों का कत्ल हो गया था और एक कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार कर ली गयी थी ।
कुएं से बरामद एयरबैग में मौजूद फर का सफेद कोट, सुनेत्रा ने कबूल किेया था, कि खुद उसका था ।
इतना कीमती कोट उसने कुएं में क्यों फेंका था ?
क्योंकि उसका जिक्र वो खुद अपनी जुबानी मोहिनी के कोट के तौर पर कर चुकी थी । सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा ने कत्ल के बाद उसका बयान लेते समय जब उससे एस्टेट से खिसकने की कोशिश करती मोहिनी की पोशाक की बाबत सवाल किया था तो वो गड़बड़ा गयी थी । तब उसने प्रोशाक की जगह उस फर के लम्बे कोट का ही जिक्र कर दिया था जोकि सब कुछ ढंके हुए था । यानी कि मोहिनी की पोशाक के नाम पर गले से लेकर घुटनों से नीचे तक पहुंचने वाले कोट के अलावा उसने कुछ नहीं देखा था । बाद में जब उसे अहसास हुआ था कि मर्डर वैपन रिवॉल्वर की तलाश में हर कमरे की तलाशी हो सकती थी तो उसे कोट की फिक्र पड़ गयी थी । उस कोट की उसके पास से बरामदी रिवॉल्रवर की बरामदी से भी ज्यादा डैमेजिंग हो सकती थी । लिहाजा उसने रिवॉल्वर और कोट को एक एयरबैग में बन्द किया था और वो उसे आधी रात के बाद कुएं में फेंक आयी थी जिसकी तलाशी वो जानती थी किे, पहले ही हो चुकी थी । लोकल टेलीफोन एक्सचेंज से इस बात की भी तसदीक हो चुकी थी कि हाउसकीपर की हत्या वाली सुबह ब्रान्डो के मैशन से टैक्सी के लिये कोई फोन नहीं किया गया था । इससे भी इस बात की तसदीक होती थी कि मोहिनी से पोर्टिको में हुई अपनी मुलाकात से सम्बन्धित सुनेत्रा का बयान फर्जी था ।
वस्तुत: अपने उस बयान में सुनेत्रा का सारा जोर इस बात पर था कि मोहिनी वहां से मुंह अन्धेरे चुपचाप खिसक गयी थी ताकि हाउसकीपर के कत्ल के लिये उसे सहज ही जिम्मेदार मान लिया जाता ।
ये भी स्थापित हो चुका था कि गुरूवार रात को हाउसकीपर - जो कि वस्तुत: मोहिनी थी - वो धक्का देकर भाग खड़ा होने वाला शख्स न कोई था और न कोई हो सकता था । हाउसकीपर के बहुरूप में मोहिनी को अपनी हर बात पर काबू था, किसी बात पर काबू नहीं था तो अपनी इस पूर्वस्थापित आदत पर कि वो बिजली की कड़क से, बादलों की गर्ज से डरती थी । उस रात को वो सच में ही पोर्टिको में खड़ी स्टेशन वैगन के खिड़कियां दरवाजे चैक करने आयी थी जबकि एकाएक बिजली कड़की थी और अनायास ही उसके कंठ से वो दिल हिला देने वाली चीख निकल गयी थी । पलक झपकते सब मेहमान दौड़े-दौड़े बाहर निकल आये थे और आनन फानन उसके करीब पहुंच गये थे । तब अपनी चीख की कोई वजह तो उसने बतानी थी इसलिये उसने कह दिया था कि किसी ने उस पर हमला किया था । हमलावर का गार्डन की तरफ भागा होना बताना भी उसके लिये जरूरी था क्योंकि गार्डन का दहाना उसके करीब था जहां घुसकर कि हमलावर आनन-फानन गायब हो सकता था, वो उसे किसी और तरफ भागा बताती तो आनन-फानन वहां पहुंचे मेहमानों को वो भागता दिखाई देना चाहिये था ।
वस्तुत: ऐसे किसी शख्स का अस्तित्व नहीं था, ये बात केयरटेकर के लड़के रोमियो के बयान से भी साबित होती थी । रोमियो का माली की नौजवान लड़की से अफेयर था जिससे कि वो रात को कई बार चुपके-चुपके ग्रीन हाउस में मिला करता था । उस रोज रात को भी वो अपनी प्रमिका के इन्तजार में पलक पावड़े बिछाये ग्रीन हाउस में मौजूद था जबकि वातावरण में हाउसकीपर की दिल हिला देने वाली चीख गूंजी थी । सब हल्ला-हुल्ला ठण्डा होने के बाद भी वो कम-से-कम दो घण्टे अपनी प्रेमिका का इन्तजार करता रहा था और टकटकी बांधे गार्डन में दाखिल होने के रास्ते को देखता रहा था जहां कि उसकी प्रेमिका के किसी भी क्षण कदम पड़ सकते थे लेकिन पड़े नहीं थे ।
उस रात हाउसकीपर स्टेशन वैगन लेकर एस्टेट से निकली ही नहीं थी, ये बात भी भिन्न-भिन्न तरीकों से स्थापित हुई । मसलन:
फौजिया को, जोकि उस रात तीन बजे तक जागती रही थी, स्टेशन वैगन के रवाना होने की और लौटने की कोई भनक नहीं मिली थी जो कि ऐसा कुछ हुआ होता तो जरूर मिली होती । पहले इस बात की तरफ उसकी कतई तवज्जो नहीं गयी थी लेकिन जब ये स्थापित हो चुका था कि हाउसकीपर वसुन्धरा ही मोहिनी थी जो कि मैंशन में पहले ही मौजूद थी जिसे कि किसी के कहीं लेने जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता था तो खुद ही उसने इस बात का जिक्र किया था कि उस रात को हाउसकीपर स्टेशन वैगन लेकर मैंशन से निकली होती तो उसे उसकी जरूर खबर लगी होती ।
निकलने की भी और लौटने की भी ।
जाहिर था कि हाउसकीपर उर्फ मोहिनी ने खुद अपने-आपको पायर से लेने जाने का नाटक करना जरूरी नहीं समझा था । रास्ते में पहिया पंचर हो जाने की वजह से आधा घन्टा लेट पायर पर पहुंचने की कहानी उसने जरूर इसलिये गढी थी क्योंकि ब्रान्डो की जुबानी मोहिनी के रात दो बजे पायर के बुकिंग आफिस के सामने मौजूद होने का बहुत प्रचार हो गया था । उसे अन्देशा था कि पायर पर कोई मोहिनी की ताक में हो सकता था जो कि मोहिनी को वहां न पाकर यही समझता कि वो नहीं आयी थी और टल जाता । वस्तुत: ऐसा हुआ भी था, ये अधिकारी खुद अपनी जुबानी बयान कर चुका था । बाद में जब उसे मुकेश की जुबानी हाउसकीपर के लेट हो जाने की और मोहिनी के और भी लेट पायर पर पहुंचने की कहानी सुनने को मिली थी तो वो उसे तुरन्त हज्म हो गयी थी ।
बड़े आनन्द साहब ने आदतन अपने बाई फोकल्स में से उसे घूरा और फिर शुष्क स्वर में बोले - “आई एम ग्लैड दैट यू आर बैक । अब जो कहना है संक्षेप में कहो ।”
“मैंने तो कुछ भी नहीं कहना है, सर ।” - माथुर अदब से बोला ।
“क्या ?”
“मेरे ख्याल से आपने सुनना है ।”
“क्या फर्क हुआ ? तुम्हारा मतलब है तुम्हारी रिपोर्ट की जरूरत मुझे है, तुम्हें नहीं ।”
“अब मैं अपनी जुबानी कैसे कहूं, सर ? बेअदबी होगी ।”
“माथुर, मुझे तुम्हारे में एक खटकने वाली तब्दीली दिखाई दे रही है । जरूर ये गोवा की आबोहवा का असर है ।”
“आबोहवा बहुत बढिया है सर, वहां की ।” - माथुर उत्साह से बोला - “खासतौर से आजकल के दिनों में । आपको वहां जरूर जाना चाहिये और लौट के ही नहीं आना चाहिये ।”
“क्या !”
“मेरा मतलब है कि आपका वहां ऐसा मन रमेगा कि आप ही नहीं चाहेंगे लौट के आना ।”
“एनफ । ऐनफ आफ दैट । नाओ गैट आन विद युअर रिपोर्ट ।”
“यस, सर । सर वो क्या है कि सात साल पहले मोहिनी पाटिल ने, जबकि उसकी शादी को अभी तीन ही महीने हुए थे, अपने पति श्याम नाडकर्णी का कत्ल कर दिया था ।”
आनन्द साहब के नेत्र फैले ।
“ये बात अब स्थापित हो चुकी है, सर ।”
“कत्ल का उद्देश्य ?”
“नाडकर्णी की दौलत हथियाना ।”
“कैसे किया कत्ल ?”
“पहाड़ी की ऊंची चोटी से समुद्र में धक्का दे दिया । सुनेत्रा ने न सिर्फ उस हरकत को वाकया होते देख लिया, उसने उसकी तस्वीर भी खींच ली ।”
“तस्वीर खींच ली ? वो हर वक्त कैमरा साथ रखती थी ?”
“नो, सर । वो क्या है कि फोटोग्राफी, आई मीन एमेच्योर फोटोग्राफी, ब्रान्डो की पार्टियों का एक पार्टी गेम था । ब्रान्डो द्वारा तमाम मेहमानों को कैमरे, फिल्में वगैरह मुहैया कराई जाती थीं और एक कान्टैस्ट के तौर पर उन्हें तस्वीरें खींचने के लिये प्रेरित किया जाता था जिसमें से बैस्ट एक्शन शॉट, वर्स्ट क्लोजअप वगैरह के लिये ब्रान्डो की तरफ से इनाम मुकर्रर होते थे ।”
“यानी कि संयोग से सुनेत्रा निगम के पास तस्वीर खींचने का साधन था इसलिये उसने तस्वीर खींच ली ?”
“यस, सर ।”
“एक्शन शॉट ! जबकि मोहिनी श्याम नाडकर्णी को पहाड़ी पर से धक्का दे रही थी ?”
“यस, सर ।”
“यानी कि मोहिनी ने अपने पति की दौलत हासिल करने के लिये उसका कत्ल किया ?”
“यही तो मैं कह रहा हूं सर । यहीं से तो अभी मैंने अपनी स्टोरी शुरु की थी जो कि सुनेत्रा के पुलिस को दिये इकबालिया बयान पर आधारित है ।”
“आई सी ।”
“यू शुड पे गुड अटेंशन टु वाट युअर जूनियर इज सेइंग ।”
“आगे बढो ।”
“उस कत्ल में मोहिनी के साथ ट्रेजेडी ये हुई कि उसके धक्के से नीचे समुद्र में जाकर गिरे नाडकर्णी की लाश बरामद न हुई जिसकी वजह से नाडकर्णी को कानूनी तौर पर मृत घोषित न किया जा सका । यानी कि अपने पति की दौलत का वारिस बनने के लिये अब मोहिनी का सात साल तक इन्तजार करना जरूरी हो गया ।”
“आई नो ।”
“लेकिन सुनेत्रा निगम, जिसके पास कि तस्वीर की सूरत में कत्ल का सुबूत था, अपनी जानकारी को कैश करने के लिये सात साल इन्तजार करने को तैयार नहीं थी ।”
“क्यों तैयार नहीं थी ?”
“अपने रंगीले राजा, प्लेब्वाय, कामदेव के अवतार पति विकास निगम की वजह से जो कि उसका निहायत कीमती खिलौना था, जिसकी मेनटेनेंस पर - टीना का कहना है कि - सुनेत्रा का इतना खर्चा होता था कि वो जितना कमा लेती, थोड़ा था ।”
“इस वजह से वो मोहिनी को ब्लैकमेल करने पर आमादा थी ?”
“जी हां ।”
“माथुर, गोवा की विजिट से तुम्हारी डिस्क्रिप्शन काफी इम्प्रूव हो गयी है ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“ये टीना कौन है ?”
“बुलबुल है, सर ।”
“बुलबुल ?”
“ब्रान्डो की रीयूनियन पार्टी की मेहमान लड़कियां इसी नाम से जानी जाती है, सर ।”
“ओह ! ओह ! यानी कि ये विकास निगम कोई जिगोलो (GIGOLO) था, मेल प्रस्टीच्यूट था ?”
“आपने एकदम सही बयान किया उसे सर । सुनेत्रा उसकी दीवानी थी, उसे पति बनाकर उस पर काबिज थी लेकिन कब्जा बनाये रखने के लिए उसके खर्चे बहुत गम्भीर थे जिसकी वजह से सुनेत्रा ने हाथ आये मौके का फायदा उठाने का, यानी कि मोहिनी को ब्लैकमेल करने का, फैसला किया । लेकिन वो खुल खेलने का हौसला नहीं कर सकती थी ।”
“खुल खेलने का क्या मतलब ?”
“वो सीधे मोहिनी के पास जाकर उसे नहीं कह सकती थी कि उसके पास सुबूत था कि उसने अपने पति की हत्या की थी ।”
“क्यों ? क्यों नहीं कह सकती थी ?”
“सर, डू आई हैव टू ड्रा यू ए डायग्राम ?”
“माथुर !”
“सारी, सर । सर, वो क्या है कि मोहिनी वो लड़की थी जो कि एक कत्ल पहले ही कर चुकी थी - दौलत की खातिर । वो एक कत्ल और कर सकती थी - दौलत को अपने पास बरकरार रखने की खातिर । बतौर ब्लैकमेलर मोहिनी खुलकर उसके सामने आती तो कोई बड़ी बात नहीं थी कि वो उसका भी कत्ल कर देती और वो डैमिजिंग तस्वीर उससे जबरन हथिया लेती ।”
“काम इतना आसान तो न होता ?”
“मुमकिन है लेकिन फिर भी सुनेत्रा को इस बात का अन्देशा बराबर था । आप ये न भूलिये कि सुनेत्रा कोई प्रोफेशनल ब्लैकमेलर या आदी मुजरिम नहीं थी । ब्लैकमेल की हिम्मत उसने मजबूरन अपने आप में पैदा की थी । इसलिये उसने ब्लैकमेल का ऐसा तरीका अख्तियार किया जिसमें उसका खुलकर सामने आना जरूरी नहीं था ।”
“क्या किया उसने ?”
“आपको मालूम होगा कि एयरपोर्ट पर जो क्लाक रूम है, उसमें सैल्फ सर्विस लाकर्स उपलब्ध हैं जोकि चौबीस घण्टे में एक बार पांच रूपये का सिक्का डालने से संचालित होते हैं । सिक्का डालने से लाकर खुल जाता है और आप उसके भीतर पड़ी उसकी चाबी अपने अधिकार में कर सकते हैं । फिर लाकर में सामान रखकर उसके ताले को यूं हासिल हुई चाबी से आप बन्द कर सकते हैं और चाबी अपने पास रख सकते हैं । समझ गये ?”
“हां ।” - बड़े आनन्द साहब हड़बड़ाकर बोले - “हां ।” - फिर उन्हें ख्याल आया कि ऐसा उन्हें मुकेश कह रहा था तो वो बड़ी सख्ती से बोले - “यंगमैन, माइंड युअर लैग्वेज ।”
“यस, सर । सुनेत्रा कहती है कि वो एयरपोर्ट का वैसा एक लाकर काबू में कर लेती थी और उसकी डुप्लीकेट चाबी बनवा लेती थी । डुप्लीकेट चाबी वो उचित निर्देशों के साथ डाक से मोहिनी को भिजवा देती थी । निर्देश ये होते थे कि मोहिनी ने रकम को लाकर में बन्द करके पूना, खण्डाला, नासिक, शोलापुर जैसे किसी दूसरे शहर को कूच कर जाना होता था और वहां सुनेत्रा के बताये किसी होटल में ठहरना होता था । सुनेत्रा पहले फोन करके उसकी वहां मौजूदगी की तसदीक करती थी और फिर एयरपोर्ट जाकर, लाकर खोलकर, उसमें मोहिनी द्वार छोड़ी रकम अपने काबू में कर लेती थी । यूं दो-ढाई महीने में उसने मोहिनी से पन्दरह-बीस लाख रूपये हथिया लिया था । यूं मोहिनी का पल्ले का पैसा तो उड़ ही गया था, उसने वाकिफकारों से दोस्तों से उधार मांग-मांगकर भी सुनेत्रा की ब्लैकमेल की डिमांड पूरी की थी । यहां ये बात भी दिलचस्पी से खाली नहीं कि मोहिनी, जोकि जानती तो थी नहीं कि उसे कौन ब्लैकमेल कर रहा था, आर्थिक सहायता के लिये सुनेत्रा के पास भी पहुंची थी जिसने - जरूर मोहिनी की निगाहों में ये स्थापित करने के लिये कि वो तो ब्लैकमेलर हो नहीं सकती थी - उसे पच्चीस हजार रूपये दिये थे ।”
“क्या फर्क पड़ता था ? वो पैसा उसी के पास तो लौट आना था ।”
“ऐग्जै़क्टली सर ।”
“आगे ?”
“आगे बहुत जल्द ऐसी स्थिति आ गयी कि मोहिनी के लिये ब्लैकमेलर की मांग पूरी करना नामुमकिन हो गया । तब मोहिनी के पास बम्बई छोड़कर कहीं जा छुपने के अलावा कोई चारा न रहा । उसने अपना कफ परेड वाला फ्लैट छोड़ दिया और चुपचाप कहीं खिसक गयी ।”
“यानी कि वो ब्लैकमेलर से डरके भाग गयी !”
“और क्या करती ? जो पैसा उसके पास था, वो चुक गया था, उधार भी जहां-तहां से मिल सकता था, वो ले चुकी थी, ऊपर से ये उसे तब भी नहीं पता था कि ब्लैकमेलर कौन था ।”
“लेकिन उस तस्वीर की वजह से उसे इतना तो अन्दाजा होगा कि ब्लैकमेलर जरूर ब्रान्डो की पार्टी में शामिल कोई शख्स था ?”
“अन्दाजा तो उसे यहां तक होगा, सर, कि वो कोई उसकी फैलो बुलबुल ही थी क्योंकि तस्वीरें खींचने के जिस खेल में बाकी बुलबुलें शामिल थीं, जाहिर है कि उसमें मोहिनी भी शामिल रही होगी । लेकिन बुलबुलें कई थीं । उनमें से अपनी बुलबुल छांटने का उसके पास कोई जरिया नहीं था ।”
“माथुर, ये भी तो हो सकता है कि तस्वीर जिस बुलबुल ने खींची हो, उसने उसे आगे किसी को सौंप दिया हो !”
“सर, अब जबकि हमें पता है कि ब्लैकमेलर सुनेत्रा थी, जबकि वो अपने इकबालिया बयान में ये बात कबूल कर चुकी है तो किसी और भी हो सकता है को खातिर में लाना मूर्खता है ।”
आनन्द साहब हड़बड़ाये, उन्होंने कोई सख्त बात कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर कुछ सोचकर खामोश हो गये ।
“बहरहाल स्थिति ये थी कि जब तक मोहिनी गायब थी उसका ब्लैकमेलर उस पर कोई दबाव नहीं डाल सकता था और मोहिनी पूरे सात साल गायब रहना अफोर्ड कर सकती थी क्योंकि उससे पहले अपने पति की दौलत उसके हाथ नहीं आने वाली थी । वो वक्त आने से पहले वो अपने ब्लैकमेलर की शिनाख्त की कोशिश कर सकती थी और उससे पीछा छुड़ाने की कोई तरकीब सोच सकती थी । पूरे सात साल का वक्त था उसके पास इस काम के लिये ।”
“आई सी ।”
“उस दौरान पैसे की कमी की वजह से वो बहुत बर्बाद हुई, बहुत दुख झेले उसने, पेट भरने की खातिर बहुत नीचे गिराया उसने अपने आपको । फिल्म कान्ट्रैक्ट कबूल करके सम्पन्नता का दामन थामने से भी उसने परहेज किया क्योंकि एक्ट्रेस बन जाने के बाद वो अपने ब्लैकमेतर से छुप तो सकती ही नहीं थी, यूं उसकी सफलता का भी ढिंढोरा पिटता और फिर उसका ब्लैकमेलर उसका और खून निचोड़ता । ये भी मोहिनी की ट्रेजेडी थी कि पैसा कमाने का जरिया उसके सामने था लेकिन वो उसे अडाप्ट नहीं कर सकती थी क्योंकि यू वो पैसा अपने लिये नहीं, ब्लैकमेलर के लिये कमाती जो कि वो नहीं चाहती थी ।”
“यू आर राइट देअर, माई ब्वाय ।”
“वो ये भी जानती थी कि वो सदा गुमनामी में गर्क नहीं रह सकती थी । अगर उसने अपने पति की दौलत हासिल करनी थी तो सात साल का वक्फा पूरा होने के बाद उस दौलत को क्लेम करने के लिये उसका सामने आना जरूरी था । और ढाई करोड़ की मालकिन बन जाने के बाद वो दोबारा जाकर गुमनामी में गर्क नहीं हो सकती थी ।”
“जाहिर है । वो फिर ऐसा करती तो उसे क्या फायदा होता एक मालदार औरत बनने का ?”
“लेकिन करती तो वो माल उससे उसका ब्लैकमेलर झटक लेता । सर, ऐसी स्थिति से दो चार होने के लिये उसने एक योजना बनाई और उस योजना के तहत वो मोहिनी पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी नामक एक्स फैशन माडल से वसुन्धरा पटवर्धन नामक एक सैक्सलैस, अनाकर्षक मोटी मैट्रन बन गयी जिसने कि तीन महीने पहले फिगारो आइलैंड पहुंचकर वहां हाउसकीपर की नौकरी कर ली । कोई बड़ी बात नहीं कि ब्रान्डो की गैर-हाजिरी में उसकी पहली हाउसकीपर की नौकरी छुड़वाना भी मोहिनी का ही कोई कमाल हो ।”
“वजन कैसे बढा लिया ?”
“औरतों के लिये वो कोई मुश्किल काम नहीं होता, सर । अलबत्ता वजन घटाना बहुत मुश्किल काम होता है । ऊपर से ये न भूलिये कि इस काम के लिये उसके पास वक्त की कोई कमी नहीं थी । वो बड़े इतमीनान से साल-दो साल लगाकर मोटापा पैदा करने वाला खाना खाकर, ज्यादा-से-ज्यादा खाना खाकर वजन बढा सकती थी । जापानी सूमो पहलवान भी ऐसे ही वजन बढाते हैं, सर । वो तो सौ-सौ किलो वजन बढा लेते हैं जबकि मोहिनी ने तीस-पैंतीस किलो ही बढाया था ।”
“आई सी ।”
“मोटी हो जाने की वजह से वो ठिगनी लगने लगी । बोरा किस्म की पोशाकें पहनने लगी । मोटे फ्रेम का चश्मा लगाने लगी । अपने सुनहरे बाल छुपाने के लिये उन्हें काली डाई से रंगने लगी । मेकअप से किनारा करने लगी और बाल कस कर बांधने लगी । फटे बांस जैसी, नाक से निकलती आवाज का उसे अलबत्ता काफी अभ्यास करना पड़ा होगा ।”
“मस्ट बी ए क्लैवर एक्ट्रेस ।”
“डेफिनिटली, सर । उसका बहुरूप कितना बढिया था, सैक्स गॉडेस मोहिनी से ड्रम जैसी वसुन्धरा तक उसकी ट्रांसफार्मेशन कितनी कम्पलीट थी, इसका यही सुबूत काफी है कि उसे ब्रान्डो ने नहीं पहचाना था । जब ब्रान्डो पर उसका बहुरूप चल गया था तो बाकी बुलबुलों पर तो चल ही जाता जिनकी निगाहों में वो एस्टेट की मुलाजिम थी, ब्रान्डो की मामूली हाउसकीपर थी, मैंशन का फर्नीचर थी जिस पर दूसरी निगाह डालना भी किसी के लिये जरूरी नहीं था । कहने का मतलब ये है, सर, कि वो अपने ब्लैकमेलर पर जवाबी हमला करने के लिये पूरी तरह से तैयार थी । उसने पहले से सोच के रखा हुआ था कि कैसे उसने मोहिनी की वहां आमद को स्थापित करना था । ब्रान्डो ने दोपहर के करीब उसे पायर पर से आयशा को लिवा लाने के लिये भेजा था जहां से कि उसने अपनी असली, खनकती हुई आवाज निकालकर ब्रान्डो को फोन किया था और उसे अपने आइलैंड पर पहुंच चुकी होने की सूचना दी थी । रात दो बजे तक फारिग न होने और अगले रोज दोपहर तक रूख्सत हो जाने की कहानी उसने इसलिये की थी ताकि ब्लैकमेलर को उससे सम्पर्क बनाने के लिये बहुत सीमित समय उपलब्ध होता, ताकि एक सीमित समय तक ही ब्लैकमेलर द्वारा उठाये जाने वाले किसी अगले कदम की उसे बाट जोहनी पड़ती ।”
“ओह !”
“इतनी रात गये अपनी आमद स्थापित करना उसके लिये इसलिये भी जरूरी था क्योंकि ब्रान्डो के मैंशन में ड्रिंक डिनर से लबरेज हर कोई तब तक कब का नींद के हवाले हो चुका होता ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू डू, सर ।”
“माथुर ! माथुर...”
“यहां कुछ बातें संयोगवश भी हुई जिन्होंने निर्विवाद रूप से थे स्थापित कर दिया कि मोहिनी वहां पहुंच चुकी थी । शशिबाला के साथ बन्द दरवाजे के आर-पार से हाउसकीपर उर्फ मोहिनी ने अपनी असली आवाज में चुहलबाजी की । फौजिया की खातिर खुद ही दो आवाजें निकालकर वे स्थापित किया कि मोहिनी हाउसकीपर पर बरस रही थी, उसे डांट रही थी । यूं मोहिनी के लिये रिजर्व कमरे में मोहिनी की मौजूदगी स्थापित करके वो चुपचाप वहां से बाहर निकल आयी और कहीं छुपकर मोहिनी के कमरे को वाच करने लगी । उस वाच का नतीजा ये निकला कि उसने सुनेत्रा निगम की चुपचाप मोहिनी के कमरे के सामने पहुंचते और दरवाजे के नीचे से ब्लैकमेल सम्बन्धी चिट्ठी भीतर सरकते देखा ।”
“यानी कि वो मोहिनी के जाल में फंस गयी ? ब्लैकमेलर अपने शिकार पर एक्सपोज हो गया ?”
“यस, सर । लेकिन आगे सिलसिला मोहिनी की योजना के मुताबिक न चल पाया । आगे गड़बड़ हो गयी ।”
“क्या ? क्या गड़बड़ हो गयी ?”
“सर, सुनेत्रा का खुद का बयान है कि जब वो मोहिनी के कमरे में दरवाजे के नीचे से ब्लैकमेल नोट भीतर सरकाकर वापिस लौट रही थी तो तब उसका आमना-सामना हाउसकीपर वसुन्धरा से हो गया था । सुनेत्रा तत्काल समझ गयी थी कि उसने उसे मोहिनी के कमरे में ब्लैकमेल वाली चिट्ठी सरकाते देख लिया था । वो कहती है कि उस घड़ी हाउसकीपर के चेहरे पर ऐसे विजेता के से भाव थे और आंखों में ऐसी चमक थी कि उसे तत्काल अहसास हुआ था कि वो किसी जाल में फंस गयी थी । वो अहसास होते ही बिजली की तरह उसके जेहन में ये कौंध गया था कि वो ब्रान्डो की हाउसकीपर के नहीं, अपनी ब्लैकमेल की शिकार मोहिनी पाटिल के रूबरू थी ।”
“वो तो उसे तब भी महसूस हो गया होगा जबकि मोहिनी ने उसे मार डालने की कोशिश की होगी ?”
“सर, मोहिनी ने उसे मार डालने की कोशिश नहीं की थी । अपने ब्लैकमेलर का कत्ल कर डालने का इरादा मोहिनी जरूर बनाये हुए होगी लेकिन वो कत्ल ब्रान्डो की एस्टेट में करने का उसका कोई इरादा नहीं था । एक बार ब्लैकमेलर की शिनाख्त कर लेने के बाद उसे इस काम की कोई जल्दी भी नहीं थी । वो पार्टी के खत्म होने तक इन्तजार कर सकती थी और बड़े इत्मीनान से सुनेत्रा के पीछे उसके शहर तक पहुंच सकती थी जहां कि वो उसका कत्ल करती और गायब हो जाती । फिर आइन्दा दो-तीन महीनों वो अपना वजन घटाती, फिर पहले जैसी ग्लैमरस मोहिनी बनती और अपनी विरसे की रकम क्लेम करने के लिये यहां आ जाती थी ।”
“वैरी क्लैवर आफ हर ।”
“आफकोर्स, सर ।”
“लेकिन जिसे कि तुम मोहिनी के प्लान में हो गयी गड़बड़ कहते हो, अगर वो न होती, यानी कि रात कि रात को खून-खराबा न होता, तो सुबह पब्लिक के लिये वो मोहिनी कहां से पैदा करती जो कि स्थापित था कि घर में मौजूद थी ?”
“गुड क्वेश्चन, सर । इससे साबित होता है कि अब आप मेरी बात को गौर से सुन रहे थे ।”
आनन्द साहब ने घूरकर उसे देखा लेकिन मुकेश को विचलित होता न पाकर वो खुद ही पहलू बदलने लगे ।
“मेरे ख्याल से तब सुबह ब्रान्डो को एक चिट्ठी मिलती जोकि मोहिनी के हैंडराइटिंग में होती और उसी के द्वारा साइन की गयी होती और जिसमें उसके चुपचाप वहां से कूच कर जाने की वही वजह दर्ज होती जोकि मोहिनी से मुलाकात हुई होने का दावा पेश करते समय सुनेत्रा ने बयान की थी । यह कि वहां पहुंचकर उसकी पुरानी यादें तरोताजा होने लगी थी, कि वो अपनी सखियों और मिस्टर ब्रान्डो के रूबरू होने की ताब अपने आप में नहीं ला पा रही थी, वगैरह । तब कथित हाउसकीपर भी बड़ी मासूमियत से ये फरमा देती कि वो मोहिनी की फरमायश पर सुबह-सवेरे, मुंह अन्धेरे उसे स्टेशन वैगन पर सवार कराकर पायर पर छोड़ आयीं थी ।”
“कत्ल कैसे हुआ ?”
“सुनेत्रा कहती है कि छीना-झपटी में हुआ । वो कहती है कि रिवॉल्वर असल में हाउसकीपर के पास थी लेकिन पुलिस को उसकी बात पर यकीन नहीं है ।”
“क्यों ?”
“सर, अगर रिवॉल्वर हाउसकीपर के पास होती और वो छीना झपटी में चली होती तो कत्ल के बाद मोहिनी उसे अपने साथ न ले गयी होती । तब रिवॉल्वर वहीं मौकायवारदात पर लाश के करीब पड़ी पायी गयी होती ।”
“यू आर राइट देयर ।”
“असल में जरूर सुनेत्रा ने पहले ही अपने आपको हथियारबन्द किया हुआ था क्योंकि वो मोहिनी की मैंशन में मौजूदगी के सन्दर्भ में किसी भी ऊंच-नीच के लिये तैयार रहना चाहती थी । रिवॉल्वर तब भी उसके पास थी जबकि उसने किसी बहाने से गलियारे में दिखाई दे रही हाउसकीपर को मोहिनी के कमरे में बुलाया था । हाउसकीपर इनकार नहीं कर सकती थी क्योंकि ऐसा करना एक तरह से कबूल करना होता कि वो हाउसकीपर नहीं, मोहिनी थी और वो अपने ब्लैकमेलर के रूप में सुनेत्रा को पहचान चुकी थी ।”
“ओह !”
“लेकिन तब उसने ये भी नहीं सोचा होगा कि मोहिनी के कमरे में बुलाकर सुनेत्रा उसे शूट कर देगी ।”
“उसने ऐसा क्यों किया ?”
“जरूर इसलिये क्योंकि उसे दिखाई दे रहा था कि उसके सामने मरो या मारो वाली स्थिति थी । ये भी हो सकता है कि उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकर मोहिनी उस पर झपट पड़ी हो और सुनेत्रा को मजबूरन गोली चलानी पड़ी हो । बहरहाल इतनी गारन्टी है कि सुनेत्रा को तब ये अहसास बड़ी शिद्दत से हो चुका था कि बतौर ब्लैकमेलर वो पहचान ली गयी थी और अब मोहिनी की मौत में ही उसकी जिन्दगी थी ।”
“उसने मर्डर वैपन रिवॉल्वर कोट के साथ कुएं में क्यों फेंकी ? उसे वापिस ब्रान्डो के शस्त्रागार में वहीं क्यों न रख दिया जहां से कि उसने उसे हासिल किया था ?”
“क्योंकि वो ये जाहिर करना चाहती थी कि वो कत्ल किसी बाहरी आदमी का काम था जोकि कत्ल के बाद रिवॉल्वर अपने साथ ले गया था ।”
“आई सी ।”
“पुलिस ने एक-एक कमरे की, हर किसी के साजो-सामान की, तलाशी लेने की घोषणा न की होती तो शायद वो रिवॉल्वर अपने पास रखे रहती और फिर जरूर आयशा का कत्ल भी उसी रिवॉल्वर से होता । संयोगवश आयशा के कत्ल वाले हालात तब पैदा हुए थे जबकि वो हथियार उसके हाथ से निकल चुका था, जबकि वो उसे कुएं में फेंक चुकी थी ।”
“उसके कत्ल के हालात कैसे पैदा हुए थे ?”
“हाउसकीपर की चीख ने जैसे मेरे दिमाग की मोम पिघलाई थी, वैसे ही उसने उसके ज्ञानचक्षु खोले थे । अलबत्ता उस चीख की वजह से उसे ये कदरन जल्दी सूझ गया था कि हाउसकीपर ही मोहिनी थी । उसने इस बात की तसदीक करने की कोशिश की तो वो सुनेत्रा की निगाहों में आ गयी ।”
“तसदीक करने की कोशिश की ? कैसे ?”
“वो क्या है कि आलोका ने सालों पहले पटना के फैशन शो के दौरान हुई एक घटना का जिक्र किया था जबकि मोहिनी ने बाथरूम में फिसलकर अपनी एक जांघ इतनी जख्मी कर ली थी कि डाक्टर को आकर जख्म को टांके लगाकर सीना पड़ा था । उस घटना से बाकी बुलबुलों की तरह आयशा भी वाकिफ थी । अपने कत्ल की रात को हाउसकीपर की चीख का ख्याल करके जब उसे ये सूझा था कि हाउसकीपर ही मोहिनी थी तब हाउसकीपर उर्फ मोहिनी की लाश अभी एस्टेट पर ही ग्रीनहाउस के नाम से जाने जाने वाले काटेज में मौजूद थी । लाश की जांघ का मुआयना ये स्थापित कर सकता था कि हाउसकीपर ही मोहिनी थी या नहीं । यानी कि आयशा को अगर हाउसकीपर की जांघ पर सिले हुए जख्म का निशान मिलता तो वो यकीनन मोहिनी थी ।”
“वैरी गुड ।”
“उस रात को जब आयशा चुपचाप मैंशन से निकली और ग्रीनहाउस की तरफ रवाना हुई तो बदकिस्मती से वो सुनेत्रा की निगाहों में आ गयी । सुनेत्रा तत्काल समझ गयी कि वो किस फिराक में हाउस जा रही थी । तब उसे आयशा का भी कत्ल जरूरी दिखाई देने लगा जिसके लिये कि उसे कोई हथियार चाहिये था । लायब्रेरी पर, जिसमें कि शस्त्रागार था, तब तक क्योंकि पुलिस के निर्देश पर मजबूत ताला जड़ा जा चुका था इसलिये वैकल्पिक हथियार के तौर पर सुनेत्रा ने किचन में जाकर वहां से एक लम्बे फल वाली छुरी उठा ली । उधर आयशा तब तक ग्रीन हाउस में लाश का मुआयना कर चुकी थी । तब तक शायद उसे अहसास हो गया था कि उसके सिर पर खतरा मंडरा रहा था इसलिये मैंशन में वापिस लौटने की जगह वो एस्टेट से बाहर निकल गयी और करीब ही स्थित पोस्ट आफिस के पी.सी.ओ. पर पहुंची जहां से कि उसने पुलिस को फोन किया लेकिन फोन पर अभी वो ठीक से अपनी बात कह भी नहीं पायी थी कि सुनेत्रा उसके सिर पर पहुंच गयी और उसका मुंह बन्द करने के लिये उसने उसकी छाती में छुरी भौंक दी ।”
“ओह ! यानी कि अब स्थिति ये है कि श्याम नाडकर्णी की विधवा और उसके विरसे की हकदार मिसेज नाडकर्णी उर्फ मोहिनी पाटिल भी अब मर चुकी है ।”
“जी हां ।”
“ट्रस्टी की जिम्मेदारी से तो फिर हम मुक्त न हो पाये !”
“जाहिर है ।”
“फिर क्या बात बनी ?”
“सर, जरा असल हालात को प्रचारित होने दीजिये, फिर देखियेगा कि मोहिनी का वारिस होने का दावा करने वाला कोई-न-कोई शख्स अपने आप निकल आयेगा ।”
“जिसे कि हमें ठोकना-बजाना पड़ेगा और यूं हमारा काम और बढ जायेगा । वारिस कई निकल आये तो कइयों को ठोकना-बजाना पड़ेगा और हमारा काम और और और बढ जायेगा ।”
“मुझे आप से हमदर्दी है ।”
“क्या !”
“मेरा मतलब है कि मुझे अफसोस है कि फर्म का काम यूं खामखाह बढ रहा है ।”
“ठीक है, ठीक है । अब जाओ जाके स्टेनो को अपनी रिपोर्ट डिक्टेट कराओ ।”
“वो अभी नहीं हो सकता, सर ।”
“क्यों ?” - आनन्द साहब के माथे पर बल पड़े - “क्यों नहीं हो सकता ?”
“सर, मेरी किसी से लंच अप्वायन्टमैंट है । मैं” - मुकेश ने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली - “पहले ही लेट हो रहा हूं ।”
“किससे लंच अप्वायन्ट है तुम्हारी ? किसी क्लायन्ट से ?”
“नो, सर ।”
“तो ?”
“अपनी होने वाली बीवी से ।”
***
नजदीकी रेस्टोरेंट में टीना बड़ी व्यग्रता से उसका इन्तजार कर रही थी । उन्होंने चुपचाप भोजन किया और बाद में काफी मंगाई ।
तब मुकेश बड़ी गम्भीरता से बोला - “तुम कुछ कहना चाहती हो ?”
“किस बाबत ?” - टीना बोली ।
“तुम्हें नहीं मालूम ?”
“बताओगे तो जान जाऊंगी ।”
मुकेश ने एक आह-सी भरी फिर बोला - “इस केस से ताल्लुक रखती हर बात की व्याख्या हो चुकी है, समीक्षा हो चुकी है । किसी बात पर अभी रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है तो वो तुम्हारा व्यवहार है । मुझे बहुत उम्मीद थी कि तुम खुद ही कुछ उचरोगी इसलिये मैंने वो जिक्र छेड़ने से परहेज रखा लेकिन लगता है कि उस मामले में तुम रहस्यमयी रमणी ही बनी रहना चाहती हो ।”
“मैं तुम्हें ओल्ड रॉक पर अकेला छोड़कर जीप समेत भाग खड़ी हुई थी, इसका मुझे अफसोस है ।”
“शुक्र है वो बात तुम भूली नहीं हो ।”
“मैं माफी मांगती हूं ।”
“माफी तो हुई लेकिन वो हरकत की क्यों थी तुमने ? यूं क्यों भाग खड़ी हुई एकाएक ? भागीं भी तो लौट के ब्रान्डो की एस्टेट में क्यों पहुंच गयी ?”
“वहां से अपना सामान वगैरह उठाने के लिये । मेरा तमाम रुपया-पैसा भी मेरे सूटकेस में था, इसलिये लौटना जरूरी था । मुझे क्या मालूम था कि वहां पुलिस मेरी ताक में थी !”
“तुम किसी विक्रम पठारे को जानती हो जोकि स्थायी रूपा से लिस्बन में बसा हुआ है लेकिन ब्रान्डो की तरह आजकल के मौसम गोवा आता है ?”
“नहीं ।”
“अब जान लो । विक्रम पठारे वो क्रीम कलर की फियेट वाला था जिसके पीछे कि तुमने मुझे खामखाह दौड़ा दिया था । इतना तो अब मैं भी समझ सकता हूं कि असल में चर्च रोड पर तुम्हें कोई और ही शख्स दिखाई दिया था जिसकी निगाहों में कि तुम नहीं आना चाहती थीं और उसी से बचने के लिये जो गाड़ी तुम्हें तब हमारे सामने दिखाई दी थी, तुमने मुझे उसके पीछे लगा दिया था । अब कहो कि मेरा ख्याल गलत है ?”
“ठीक है तुम्हारा ख्याल ।” - वो संजीदगी से बोली ।
“असल में वहां कौन था वो आदमी जिससे कि तुम बचना चाहती थी ?”
“आदमी नहीं था । एक लड़की थी जो कि मेरे साथ स्कूल में पढती थी । सालों साल गुजर गये थे कि मेरी उससे कभी मुलाकात नहीं हुई थी । पता नहीं कहां से परसों फिगारो आइलैंड पर टपक पड़ी थी ! मुझे देखकर वो चर्च रोड पर ही टिकी रहती, तो भी गनीमत थी । वो तो हमारे पीछे पायर पर भी पहुंच गयी थी । जब हम बजड़े पर सवार हुए थे तो पायर पर खड़ी एक लड़की जोर-जोर से हमारी तरफ हाथ हिला रही थी, जिसकी तरफ कि तुमने भी हाथ हिलाया था । याद आया ?”
“हां ।”
“वो असल में तेरी जवज्जो हासिल करने के लिये, मेरी तरफ हाथ हिला रही थी । उसी से पीछा छुड़ाने के लिये मैंने तुम्हें बजड़े पर चढने के लिये मजबूर किया था ।”
“लेकिन उससे मिलने में तुम्हें दहशत क्या थी ?”
“बताती हूं । वो क्या है कि टीना टर्नर मेरा असली नाम नहीं है । ये मेरा स्टेज नेम है जोकि मैंने असलियत छुपाने के लिये रखा हुआ है । वो लड़की इस बात को जानती नहीं हो सकती थी । जानती होती तो भी उसने मुझे मेरे असली नाम से ही बुलाया होता ।”
“असली नाम ! हे भगवान ! कहीं तुम्हारा असली नाम मोहिनी ही तो नहीं ?”
“मोहिनी ही है । वो ब्रेसलेट जो पुलिस ने मेरे सामान से बरामद किया था, मेरा ही था जो कभी श्याम नाडकर्णी ने उपहारस्वरूप मुझे दिया था ।”
“ओह ! तो वो मोहिनी नाडकर्णी की जिन्दगी में आयी दूसरी मोहिनी थी । पहली मोहिनी तुम थीं ?”
“हां ।”
“यानी कि तुम भी मिसेज नाडकर्णी रह चुकी हो ?”
“नहीं । मेरा अफेयर उस मंजिल तक नहीं पहुंचा था ।”
“ओह !”
“श्याम नाडकर्णी को मैं ‘ब्रान्डो की बुलबुल’ बनने से पहले से जानती थी । तब से जबकि उसके बाप का उसपर पूरा-पूरा अंकुश था । तब उसे ये कभी बर्दाश्त न होता कि उसका खानदानी बेटा एक मेरे जैसी मामूली हैसियत की लड़की पर फिदा था इसलिये हमने इस बात को हमेशा राज रखा था । बाद में जब मैं ब्रान्डो की बुलबुलों में शुमार हो गयी तो बाकी बुलबुलों से श्याम नाडकर्णी को मैंने ही मिलवाया था । तब वो कमीना मोहिनी पर ऐसा लट्टू हुआ कि तौबा भली । मोहिनी ने पहले तो उसको कोई खास भाव नहीं दिया था लेकिन जब एकाएक उसका बाप मर गया और वो ओवरनाइट उसकी सारी दौलत का मालिक बन बैठा तो मोहिनी पंजे झाड़कर उसके पीछे पड़ गयी थी । तब से मोहिनी से हुई नफरत मेरे दिल से आज तक न निकली । ये बात अगर पुलिस को पता लग जाती तो वो ये ही समझते कि इतने सालों बाद मोहिनी को अपने करीब पाकर मैं आपे से बाहर हो गयी थी और मैने ही उसका कत्ल किया था क्योंकि कभी उसने श्याम नाडकर्णी को मेरे से छीन लिया था ।”
“आई सी ।”
“उस शाम को जब ब्रान्डो ने मोहिनी के आगमन की घोषणा की थी तो मैं घबरा गयी थी । मैं उससे आमना-सामना नहीं चाहती थी । मुझे पहले से उसके आगमन की बाबत मालूम होता तो मैं ही न आयी होती । श्याम नाडकर्णी की जिन्दगी में पहले भी कोई मोहिनी आयी थी, ये बात सिर्फ वो मोहिनी जानती थी । उसने प्यार की खातिर शादी नहीं की थी लेकिन फिर भी वो मुझ पर ये जाहिर करने से नहीं चूकती थी कि उसमें कोई खास ही खूबी थी जो कि श्याम नाडकर्णी ने उसे तरजीह दी थी, मेरे मुकाबले में उसे चुना था । मैंने ड्रिंक्स से हाथ इसलिये खींचा था क्योंकि मुझे अन्देशा था कि उसकी आमद तक बहुत पी चुकी होने की वजह से मैं उससे लड़ाई न मोल ले बैठूं ।”
“यहां तक तो बात समझ में आती है । लेकिन तुम उससे रात को चुपचाप मिलना क्यों चाहती थी ?”
“उसे ये कहने के लिये कि वो वहां किसी के सामने मेरा जिक्र मोहिनी क नाम से न करे, वो मेरे अतीत के बखिये न उधेड़े और कोई ऐसी बात जुबान से न निकाले जिससे ये लगे कि एक तरफ से मैं उसके स्वर्गवासी पति की परित्यक्ता थी ।”
“यानी कि उस रात को तुम उससे मिलने जाने के लिये ही गलियारे में निकली थी लेकिन फिर मेरी आहट सुनकर नीचे लाउन्ज में पहुंच गयी थीं जहां कि विस्की की और तलब लगी होने का नाटक करने लगी थी ?”
“हां ।”
“मेरे को तो तब तुमने डांटकर भगा दिया था, उसके बाद क्या तुमने मोहिनी से मिलने की कोशिश की थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुझे अन्देशा था कि जैसे मैं तब तुम्हारी निगाहों में आ गयी थी, वैसे ही मैं अगली कोशिश में किसी और की निगाहों में या फिर तुम्हरी निगाहों में आ सकती थी ।”
“जब तुम ईस्टएण्ड के सिनेमा के सामने धर्मेन्द्र अधिकारी को घेरे खड़ी थी और मैं ऊपर से पहुंच गया था तो तुमने उसे खिसक क्यों जाने दिया था ?”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था ।”
“बिल्कुल झूठ ।”
“बिल्कुल सच । तब अगर मुझे मालूम होता कि वो ही वो शख्स था जिसकी तलाश में कि हम निकले थे तो उसे जमीन पर गिराकर उसके ऊपर बैठ गयी होती । फिर देखती वो कैसे भागकर कहीं जाता था ।”
“हूं । तो तुम्हारा असली नाम मोहिनी है जिसे तुमने टीना टर्नर में तब्दील कर लिया था ?”
“हां ।”
“अगर मैं कहूं कि एक बार नाम मेरी दरख्वास्त पर भी तब्दील कर लो तो करोगी ?”
“हां, हां । क्यों नहीं ? तुम जो कहोगे मैं करूंगी ।”
“फिलहाल तो नाम तब्दील करने की हामी भरो ।”
“भरी । क्या नाम रखूं ?”
“माथुर ।”
“ये नहीं हो सकता ।”
मुकेश का चेहरा उतर गया ।
“अरे लल्लू” - उसने मुकेश की पसलियों में कोहनी चुभोई और हंसती हुई बोली - “मेरी नाम है ही माथुर । मेरा असली नाम मोहिनी माथुर है ।”
“ओह !” - फिर मुकेश भी जोर से हंसा - “आई एम ग्लैड टू मीट यू, मिसेज माथुर ।”
“सो एम आई, माई लॉर्ड एण्ड मास्टर ।”
समाप्त