अगले रोज मदन मोहन को रविशंकर ने अदालत में पेश करके एक हफ्ते का रिमांड ले लिया।
अजय ने काफ़ी भागदौड़ की मगर कोई कारामद बात मालूम नहीं हो सकी।
धीरे–धीरे हफ्ता गुजर गया।
रविशंकर ने केस में फाइनल रिपोर्ट लगाकर उसे कोर्ट में पहुंचा दिया।
मदन मोहन के खिलाफ केस इतना मजबूत था कि अजय और दिलीप के उसकी जमानत कराने के सभी प्रयास विफल हो गए। इससे भी बड़ी बात यह हुई कि अजय समेत किसी भी रिपोर्टर को मदन मोहन से नहीं मिलने दिया गया। अजय ने बड़ी पूरी कोशिश की थी कि करोड़ीमल की उस रात मदन मोहन को फोन करने वाली बात को झूठा साबित किया जा सके। मगर कामयाब नहीं हो सका। पुलिस ने ज्वैल्स कलैक्शन को बरामद करने और उसके ग्राहक का पता लगाने का भरसक प्रयत्न किया मगर सफलता नहीं मिली। अजय को यकीन हो गया वो कलैक्शन ओपन मार्केट से गायब होकर किसी संग्रहकर्ता के प्राइवेट संग्रह की शोभा बन चुका है और अब उसने वर्षों तक ओपन मार्केट में नहीं आना है। इस विषय में मदन मोहन का कहना था उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि काशीनाथ ने करोड़ीमल से कनकपुर कलैक्शन खरीदा था और उसे आगे किसको बेचना है। उसकी इस बात से अजय भी एक बार के लिए सोचने पर मजबूर हो गया कि मदन मोहन खुद को बलि का बकरा बना कर किसी और को बचाना चाहता है। मदन मोहन की उस रात की कहानी पर से भी अजय का यकीन हिलने लगा था। उसका विचार था मदन मोहन की जिंदगी में कोई औरत और भी थी। उस रात वह उसी औरत के पास था। अपनी पत्नी मुक्ता की निगाहों में आखिर तक खुद को वफादार पति साबित करने और उस औरत को बदनामी से बचाने की खातिर वह उसे प्रगट नहीं करना चाहता है। इसीलिए उसने यह कहानी गढ़ ली थी। मगर ये महज़ अनुमान थे और इससे मदन मोहन को कोई फायदा नहीं पहुंचने वाला था। सबसे बड़ी बात यह थी कि उसने काशीनाथ की हत्या करने से इंकार करने समेत पुलिस को जो भी बयान दिया वह उसी पर डटा हुआ था। उससे एक इंच भी इधर–उधर हिलने को तैयार नहीं था। ऐसा लगता था कि जानबूझकर फाँसी के फन्दे पर लटकने का फैसला कर चुका है।
अजय और दिलीप उसके पैरोकार थे। उन्होंने बड़ी मुश्किल से मजूमदार को उसका केस लेने के लिए रजामन्द किया। मजूमदार ने उन दोनों की वजह से अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर उसका बेजान केस लिया। मदन मोहन पर भी उसने यह बात जाहिर कर दी थी। मगर उसके लाख समझाने के बावजूद जब मदन मोहन अपनी जिद पर ही अड़ा रहा तो वह भी निराश हो गया।
लोअर कोर्ट की औपचारिकता के बाद केस सेशन कोर्ट में पहुंच गया।
केस का अंजाम सबको साफ नजर आने लगा।
अभियोग पक्ष जितना मजबूत था बचाव पक्ष उतना ही कमजोर था।
मजूमदार ने मदन मोहन को शरीफ और ईमानदार आदमी साबित करते हुए उसके और काशीनाथ के सम्बन्धों की दुहाई दी, मदन मोहन की कहानी को सच साबित करने की पूरी कोशिश की, वारदात का कोई भी चश्मदीद गवाह न होने की कमी की ओर जज का ध्यान दिलाया, मदन मोहन के पास से कलैक्शन बरामद न होने और न ही ऐसा कोई सबूत मिलने की ओर, कि मदन मोहन ने उसे किसी को बेच दिया था, की ओर भी जज का ध्यान दिलाया। अन्त में, उसने अपनी तरफ से मदन मोहन को बेगुनाह और किसी सुनियोजित षड्यंत्र का शिकार हुआ साबित करने की बड़ी पूरी कोशिश की।
लेकिन सेशन जज का इन दलीलों से जरा भी प्रभावित होना तो दरकिनार रहा उल्टा वह हैरान था मजूमदार जैसा काबिल, तजुर्बेकार और आला दर्जे का वकील आईने की तरह साफ नजर आने वाले केस में क्यों नुक्स निकालने की नाकाम कोशिश कर रहा था। एक हत्यारे को बिना किसी सॉलिड ग्राउंड के महज बातों से बेगुनाह साबित करना चाहता है।
अन्त में वही हुआ जिसकी आरम्भ से ही सबको आशंका थी।
मदन मोहन की गिरफ्तारी के ठीक साढ़े सात महीने बाद सेशन जज ने फैसला सुना दिया। उसने मदन मोहन सेठी को पूरे होशो हवास में बाकायदा सोच समझकर योजना बनाने के बाद सशस्त्र लूट व काशीनाथ की हत्या करने के अपराध में सजा सुना दी–सजा–ए–मौत।
* * * * * *
अदालत द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद अगली सुबह अजय पुलिस हडक्वार्टर्स पहुंचा।
रविशंकर अपने आफिस में ही मौजूद था।
–"आओ, अजय।" उसने कहा–"बैठो।"
–अजय उसके सामने बैठ गया।
–"क्या तुम मदन मोहन से मेरी मुलाकात का प्रबन्ध करा सकते हो, रवि?" उसने पूछा।
रविशंकर ने हैरानी से उसे देखा।
–"तुम्हें अभी भी उम्मीद है चमत्कार कर सकोगे?"
–"उम्मीद मुझे भले ही छोड़ जाए मगर मैं उम्मीद को कभी नहीं छोड़ता।" अजय ने कहा–"तुमने अपना फर्ज पूरा किया और अदालत सबूतों के दम पर फैसला सुना चुकी है। मगर मैं अभी भी मदन मोहन को बेगुनाह समझता हूं।"
–"लेकिन अब उससे किसलिए मिलना चाहते हो?"
–"यह जानने के लिए कि क्या उसे वाकई कलैक्शन के ग्राहक की जानकारी नहीं थी।"
–"यानी तुम अभी भी अपनी उसी थ्यौरी के पीछे पड़े हुए हो कि काशीनाथ की हत्या कलैक्शन के ग्राहक ने की थी?"
–"हां।"
–"मैं नहीं समझता अब इससे कोई फर्क पड़ेगा। अदालत मदन मोहन को मौत की सजा सुना चुकी है।"
–"मैं मदन मोहन की ओर से हाईकोर्ट में अपील कराऊंगा।"
–"अब तुम जो मर्जी कराओ। मदन मोहन की स्थिति में कोई फर्क नहीं पडेगा।" रविशंकर ने कहा–"हालांकि मैं नहीं समझता मदन मोहन से मिलकर तुम्हें कोई फायदा होगा। लेकिन तुम्हें निराश भी मैं नहीं करूंगा। उससे तुम्हारी मुलाकात करा दूंगा।"
–"थैंक्यू, रवि।"
रविशंकर ने अगले रोज मुलाकात का इंतजाम करा दिया।
अजय रविशंकर सहित जेल पहुंचा। फिर रविशंकर उसे अकेला छोड़कर चला गया।
मदन मोहन को कैदियों के लिबास में अपने सामने पाकर अजय का दिल भर आया। इसके विपरीत मदन मोहन पूरी तरह शांत या। उसके चेहरे पर घबराहट या चिंता का जरा भी चिन्ह नहीं था। अलबत्ता उसकी आंखों में विचारपूर्ण भाव अवश्य परिलक्षित हो रहे थे।
–"हलो, अजय।" वह गर्मजोशी से बोला–"मजूमदार ने बताया था तुमने और दिलीप ने मुझे बेगुनाह साबित कराने के लिए बड़ी पूरी मेहनत की थी।
–"मुझे अफसोस है, हमारी कोशिश कामयाब नहीं हुई, मदन।" अजय भावुक स्वर में बोला।
–"यह मेरी बदकिस्मती है।"
–"क्या तुम वाकई बेगुनाह हो, मदन?"
–"तुम्हें मेरी बेगुनाही पर शक है?"
–"नहीं।"
–"फिर क्यों पूछ रहे हो?"
–"इसलिए कि तुमने खुद को बेगुनाह साबित नहीं होने दिया।"
–"मैं इसमें क्या कर सकता था। जो सच्चाई थी मैंने पुलिस के सामने और अदालत में बयान कर दी।"
–"अब हाईकोर्ट में अपील करने के बारे में क्या विचार है?"
–"अपील करूंगा।" मदन मोहन के स्वर में दृढता थी–"तुम देख लेना आखिर में जीत सच्चाई की ही होगी। यह ठीक है अदालत ने मौत की सजा सुना दी है लेकिन मुझे फाँसी पर नहीं लटकाया जा सकेगा।"
–"मुझे पूरा यकीन है तुम किसी बड़ी ही तगड़ी साजिश के शिकार हुए हो। बता सकते हो तुम्हारे खिलाफ ऐसी साजिश किसने की होगी?"
–"मुझे किसी पर भी शक नहीं है।"
अजय ने गहरी सांस ली।
–"मुझे तुम्हारी बेगुनाही का पूरा यकीन है।" वह बोला–"लेकिन इसे साबित करने के लिए उस व्यक्ति का पता लगाना जरूरी है जिसके लिए काशीनाथ ने वो कलैक्शन खरीदा था।"
–"मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता। मुझे तो यह भी पता नहीं था कि काशीनाथ ने वो कलैक्शन खरीदा भी था।" मदन मोहन ने कहा–"तुम तो जानते हो, मैं फर्म में जूनियर पार्टनर रहा हूँ। काशीनाथ जी खुद जो सौदे करते थे उनकी जानकारी मुझे तभी होती थी जब वह बताते थे और वह तभी बताते थे जब बताना जरूरी समझते थे। वरना अक्सर ऐसा होता था कि लैजर में देखने के बाद ही मुझे उन सौदों के बारे में पता चलता था। इसका मतलब यह नहीं हैं उन्हें मुझ पर विश्वास नहीं था या वह गलत किस्म से धंधा करते थे। दरअसल बिजनेस की बातों को सीक्रेट रखना उनकी आदत थी और यही उनकी कामयाबी का राज था।"
अजय कुछ देर सोचने के बाद बोला–"इस पूरे मुकदमे में काशीनाथ की तलाकशुदा बीवी रंजना का कहीं जिक्र नहीं आया। क्या उसका इस सारे सिलसिले से किसी भी किस्म का कोई ताल्लुक हो सकता है?"
–"नहीं, क्या तुम रंजना को नहीं जानते?"
–"मैं उसे जानता तो था मगर उतनी अच्छी तरह से नहीं जैसे कि काशीनाथ को जानता था। और जब से वह काशीनाथ को छोड़कर गई है उसकी सूरत भी मैंने नहीं देखी। मुझे इतना याद है वह इंतिहाई खूबसूरत थी और बड़ी ही शान शौकत से रहा करती थी।
–"तुम्हें यह याद है काशीनाथ जी को उससे बेपनाह मुहब्बत थी।" मदन मोहन गंभीरतापूर्वक बोला–"मुझे अच्छी तरह याद है, तलाक लेने से पहले ही जब रंजना उन्हें छोड़कर विशालगढ़ चली गई थी तब काशीनाथ जी उसे समझा बुझाकर वापस लाने की कोशिश करने उसके पास गए थे। उनकी कोशिश कामयाब नहीं हुई। रंजना ने वापस आने से साफ इंकार कर दिया। काशीनाथ जी वापस लौटे तो बेहद निराश और उदास थे। लेकिन रंजना से किसी प्रकार की शिकायत या उसके प्रति जरा भी नाराजगी उन्हें नहीं थी। उन्होंने कहा था–"मदन, मुझे खुशी है रंजना ने सही आदमी का चुनाव किया है। वह आदमी इतना बढ़िया है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। अगर मैं रंजना की जगह होता तो मैं भी उसे दिल दे बैठता। मैं रंजना को खुश देखना चाहता हूं। उसकी मर्जी के मुताबिक उससे तलाक ले लूंगा और भगवान से प्रार्थना करूंगा रंजना को उस आदमी के साथ सुखी रखे।" उसने पूछा–"तुमने पहले भी कभी सुना है जिस आदमी की खातिर पत्नी पति को छोड़ जाए पति इस ढंग से उस आदमी की तारीफ करे?"
–"नहीं।" अजय ने जवाब देकर पूछा–"रंजना ने दोबारा जिस आदमी से शादी की है वह कौन है?"
–"उसका नाम हरीशचन्द दीवान है। वह विशालगढ़ के प्रमुख जौहरियों में से एक है।"
–"अजीब बात है, रंजना ने एक जौहरी छोड़कर दूसरा भी जौहरी ही पकड़ा। खैर, उसका पता बता सकते हो?"
मदन मोहन ने पता बता दिया।
–"तुम रंजना से मिलोगे?" उसने पूछा।
–"हां, अगर मुझे पता होता उसका वर्तमान पति भी जौहरी है तो अब से बहुत पहले ही उससे मिल चुका होता।"
–"यानी जौहरी होने की वजह से तुम उसके पति पर शक कर रहे हो?"
–"नहीं जौहरी होने की वजह से उसमें मेरी दिलचस्पी और ज्यादा हो गई है।"
मुलाकात का समय खत्म हो गया था। अजय उससे विदा लेकर रविशंकर सहित जेल से लौट आया।
* * * * * *
अजय उसी शाम प्लेन द्वारा विशालगढ़ पहुंचा।
रंजना ने उसे पहचाना, उसका स्वागत किया और अपने पति से भी उसे मिलवाया। वह शहर से दूर, तीन तरफ समुद्र से घिरी पहाड़ी पर एक विशाल चट्टान के सहारे बनी, दीवान पैलेस नामक एक महलनुमा शानदार इमारत में रहती थी। जो स्पष्टतया इस बात का पक्का प्रमाण थी कि रंजना का पति हरीशचन्द दीवान एक बेहद | सम्पन्न आदमी है।
अजय ने साफ नोट किया रंजना की सुंदरता और आकर्षण में तो कोई फर्क नहीं पड़ा था मगर वह खुश नहीं थी। उसके नाखुश होने की वजह जो भी रही हो लेकिन उसके चेहरे और हावभाव से जाहिर था कुछ ऐसा था जो अंदर ही अंदर उसे कचोट रहा था। उसका पति हरीशचन्द दीवान करीब तीस वर्षीय स्वस्थ, सुन्दर और हंसमुख युवक था। उसके व्यक्तित्व से स्पष्ट आभास मिलता था उसमें स्त्रियों को आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता है। और उस पर काशीनाथ द्वारा मदन को कही गई बात पूरी तरह फिट बैठती थी कि वह इतना बढ़िया आदमी है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। अजय ने उन दोनों से काशीनाथ की हत्या, कनकपुर कलैक्शन, मदन मोहन के बेगुनाह होने, वगैरा के बारे में खुलकर बातें की। मगर कोई जानकारी उसे हासिल नहीं हो सकी।
अजय अगली फ्लाइट से वापस लौट आया।
* * * * * *
धीरे–धीरे समय गुजरता रहा।
अजय मदन मोहन को बेगुनाह साबित करने की दिशा में कुछ नहीं कर सका।
मदन मोहन ने सैशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर दी थी। लेकिन लगभग छह महीने बाद हाई कोर्ट द्वारा उसकी अपील खारिज कर दी गई।
मदन मोहन की मौत की सजा उसी तरह कायम रही।
कुछ दिनों बाद उसे फाँसी लगने की तारीख भी निश्चित कर दी गई–तेइस मार्च।
* * * * * *
मदन मोहन की पत्नी मुक्ता दिन रात– चिंता में घुलने लगी। उसकी दशा अर्धविक्षिप्त सी हो चली थी।
अजय और दिलीप उसकी हालत देखते और मन मसोस कर रह जाते। वे हर मुमकिन कोशिश करके हार चुके थे। मगर मदन मोहन की बेगुनाही का ठोस सबूत नहीं जुटा सके। दिलीप बार–बार उससे कहता था–"यार, तुमने दर्जनों दफा चमत्कार दिखाए हैं, क्या एक चमत्कार और नहीं कर सकते?" विवश अजय जवाब में खामोश रह जाया करता। वह सम्पूर्ण पराजय स्वीकार कर चुका था।
मदन मोहन का फाँसी लगने का दिन तेजी से नजदीक आता जा रहा था।
* * * * * *
उस रोज मार्च की बारह तारीख थी।
अजय 'थंडर' की अपनी कुलीग प्रेस रिपोर्टर नीलम कपूर सहित ब्लैक रोज–रेस्तरां में डिनर ले रहा था। ब्लैक रोज शहर के सबसे शानदार तीन रेस्तराओं में से एक था। उसका मैनेजर सुधाकर अजय का हमप्याला और हम निवाला था। वहां का लगभग सारा स्टाफ उसे मैनेजर के गहरे दोस्त के रूप में जानता था और उसे वी० आई० पी० की भांति ट्रीट किया जाता था। इसके बावजूद अजय वहां आना अवायड ही करता था क्योंकि सुधाकर उससे बिल चार्ज नहीं करता था। उस शाम भी वह नीलम की जिद और काफी दबाव डालने पर ही आया था।
खाना बेहद लजीज था। नीलम मनोयोग से खाने में जुटी थी मगर अजय बेमन से ही खा रहा था। उसके दिमाग में हर वक्त बस एक ही बात गूंजती रहती थी–कालकोठरी में बन्द बेगुनाह मदन मोहन को फाँसी लगा दी जाएगी।
हालांकि अजय को भूख थी लेकिन अचानक ही उसे यूं लगा अगर उसने एक भी कौर मुँह में डाला तो फौरन उल्टी आ जाएगी। उसने प्लेटें खिसकाकर नेपकिन से हाथ पौंछ लिए। कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाकर प्लेयरज गोल्ड लीफ का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा ली।
सामने बैठी नीलम ने खाने से हाथ रोककर उसकी ओर देखा।
–"खा चुके?" उसने शिकायत भरे स्वर में पूछा।
लेकिन अजय ने जवाब नहीं दिया। वह अपलक प्रवेश द्वार की ओर देख रहा था। उसके चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित असमंजसतापूर्ण भाव थे।
नीलम ने गरदन घुमाकर उसकी निगाहों का अनुकरण किया। तो अठाइस–तीस वर्षीया एक इंतिहाई खूबसूरत युवती उसे फेमिली केबिन्स की ओर जाती दिखाई दी। घने लम्बे और काले चमकीले बालों वाली वह युवती फालसाई रंग की कीमती साड़ी, मैचिंग ब्लाउज और झक्क सफेद कार्डीगन पहने थी। उसके गले में जो मंगलसूत्र था उसमें जड़े मोतियों की चमक से जाहिर था वे असली मोती थे। बाएं हाथ में नर्म चमड़े का काला पर्स थामे थी। औसत से तनिक ऊंचे कद और पुष्ट सुडौल उभारों वाली उस युवती की चाल में, अजीब सी शान थी। सफेद सैंडलों में कसे उसके पैर एक खास अंदाज से उठ रहे थे। हैड वेटर उसके आगे–आगे इस ढंग से चल रहा था मानो उसके कदमों में बिछ जाना चाहता था। जबकि युवती का ध्यान उसकी ओर कतई नहीं था। उसकी निगाहें डाइनिंग हाल में मौजूद व्यक्तियों पर रेंग रही थीं। अजय की टेबल की सीध में गुजरती हुई वह एक संक्षिप्त पल के लिए ठिठकी फिर आगे बढ़ गई। अन्त में उस लाइन में बने आखिरी यानी ग्यारह नम्बर केबिन में जाकर आंखों से ओझल हो गई।
नीलम ने पलटकर अजय की ओर देखा। साथ ही उसने नोट किया। अजय समेत वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति की नजरें, ग्यारह नम्बर केबिन पर टिकी थीं।
–"कौन थी?" नीलम ने पूछा।
अजय ने नीलम की ओर गरदन घुमाई।
सिगरेट का गहरा कश लेकर ढेर सारा धुआं छोड़ने के बाद वह बोला–"मरहूम काशीनाथ की एक्स वाइफ और अब रंजना दीवान।"
–"बड़ी खूबसूरत है।" नीलम ने प्रशंसापूर्वक कहा फिर बोली–"लेकिन यह तो अकेली है। इसका पति कहां है?"
–"मैं भी यही सोच रहा हूं अकेली क्यों आई है?"
लेकिन अजय ज्यादा देर सोच–विचार में फंसा नहीं रह सका।
चन्द क्षणोपरांत हैडवेटर उनकी मेज के पास आ पहुंचा।
–"सर।" वह सम्मानपूर्वक बोला–"ग्यारह नम्बर केबिन में बैठी महिला आपको बुला रही है।"
अजय मुस्कराया।
–"सिर्फ मुझे?"
–"नहीं, आप दोनों को सर।"
हैडवेटर चला गया।
–"जाना ही पड़ेगा।" अजय ने कहा–"चलोगी?"
–"श्योर।" नीलम नेपकिन से हाथ पोंछती हुई बोली।
दोनों अपनी मेज से उठकर ग्यारह नम्बर केबिन में पहुंचे।
अजय ने नीलम और रंजना का परिचय कराया। फिर वे रंजना के सामने बैठ गए। रंजना की आंखों में गहन चिंतापूर्ण भाव थे। वह भारी कशमकश में फंसी प्रतीत होती थी।
–"आप डिनर का आर्डर दे चुकी हैं?" अजय ने कुछ कहने की गरज में पूछा।
–"नहीं।" रंजना ने कुछ इस ढंग से कहा मानो उसे बोलने में काफी ताकत लगानी पड़ रही थी–"वैसे मैं आई डिनर के लिए ही थी मगर तुम्हें देखने के बाद मेरा इरादा बदल गया। मैं तीन कॉफी का आर्डर दे चुकी हैं।" उसने तनिक रुककर पूछा–"क्या तुम अभी भी यही समझते हो काशीनाथ का पार्टनर मदन मोहन बेगुनाह है?"
इस सीधे सवाल से अजय मन ही मन चौंका। मगर प्रगट में बोला–"हां।"
–"क्यों? अब तो हाईकोर्ट से भी उसे मौत की सजा सुना दी गई है।"
–"आपकी इस क्यों का जवाब आज भी वही है जो मैंने सेशन कोर्ट के फैसले के बाद विशालगढ़ में आपके घर दिया था।"
अगर वह बेगुनाह है तो यह साबित करके उसे फाँसी के फंदे पर लटकाए जाने से बचाते क्यों नहीं?"
अजय ने अपार विवशतापूर्वक उसकी ओर देखा।
–"मैं हर मुमकिन कोशिश कर चुका हूं।"
–"असली हत्यारे का कोई सुराग तुम्हें नहीं मिला?" रंजना ने तनावपूर्ण स्वर में पूछा।
–"नहीं।" अजय ने कहा–"आप यह सब क्यों पूछ रही हैं?"
रंजना ने आहत भाव से उसे देखा।
–"मेरे लिए इसकी बहुत ज्यादा अहमियत है।" वह आह सी भरती हुई बोली–"काशीनाथ के अंजाम के लिए मैं कमोबेश खुद को भी जिम्मेदार समझती हूं। अगर मैं उसे छोड़कर नहीं जाती।"
–"अब इस किस्म की बातें करना बेकार है।" अजय उसकी बात काटता हुआ बोला–"जो हो गया उसे भुलाकर मौजूदा हालात. की तरफ तवज्जो दीजिए।"
तभी वेटर कॉफी लेकर आ पहुंचा।
जब वह कॉफी सर्व करके चला गया तो अचानक रंजना ने पूछा–"तुम अभी भी हत्यारे का पता लगाना चाहते हो?" फिर अजय को जवाब न देता पाकर बोली–"मेरी बात सुनने में अजीब भले ही लगे लेकिन मैं जानती हूं काशीनाथ की हत्या किसने की थी।"
अजय ने गौर से उसे देखा।
–"आप जानती हैं?"
रंजना ने सिर हिलाकर सहमति दी।
–"हां, कम से कम मेरा तो यही ख्याल है।"
–"आपके विराट नगर आने की वजह भी यही है?"
–"नहीं, मैं अपनी बेटी रूबी से मिलने आई हूं। वह अपने चाचा–चाची के पास रह रही है।"
–"आपके पति भी साथ आए हैं?"
–"नहीं, हरीश बम्बई गया हुआ है। वह कल शाम तक यहां पहुँचेगा। फिर दो–तीन रोज हमने यहीं रहना है।" रंजना ने कहा फिर कॉफी सिप करने के बाद पूछा–"तुमने उस आदमी को देखा था जो मुझे यहां रेस्टोरेंट में छोड़ गया था?"
–"नहीं। कौन था?"
–"सुमेरचन्द दीवान। मेरे पति हरीश का चाचा। वह अपने किसी काम से यहां आया हुआ है।" रंजना ने कहा। अचानक उसका चेहरा कठोर हो गया और वह सपाट स्वर में बोली–"मैं समझती हूं, ज्वैल्स का कनकपुर कलैक्शन उसके पास ही है।"
मन ही मन बुरी तरह चौंक गया अजय प्रगट में शांत एवं सामान्य बना रहा। उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
–"इस बात का मतलब समझते हो न?" रंजना ने पूछा।
–"हाँ।" अजय सामान्य ढंग से बोला–"लेकिन आपने कैसे समझ लिया कलैक्शन उसके पास है?"
–"मैंने उसे हरीश के भाई अविनाश से बातें करते सुना था।" रंजना बोली–"सैशन कोर्ट के फैसले के बाद जब तुम मुझसे और हरीश से मिल कर लौट आए थे तब उन दोनों की बातचीत से मुझे लगा उन्हें आशंका थी कि तुम 'कनकपुर कलैक्शन' उनके पास होने का शक कर सकते थे।" अचानक उसके चेहरे पर ऐसे भाव उत्पन्न हुए मानो उसे अहसास हुआ कि वह ठीक ढंग से नहीं बता पा रही थी। फिर संक्षिप्त मौन के बाद पीड़ित स्वर में बोली–"दरअसल हरीश का अंकल सुमेरचन्द दीवान जवाहरात के प्रसिद्ध संग्रहकर्ताओं में से एक है और हरीश की गिनती मशहूर जौहरियों में होती है। मेरी और हरीश की मुलाकात की वजह भी यही थी। कोई तीन साल पहले काशीनाथ अपने धन्धे के सिलसिले में विशालगढ़ गया था। काफी दिन से विराट नगर से कहीं बाहर न जाने की वजह से मैं भी उसके साथ चली गई थी। तभी हरीश से मेरी पहली मुलाकात हुई और हम एक–दूसरे को दिल दे बैठे थे। उस दौरान, मेरी जानकारी के मुताबिक, काशीनाथ को 'कनकपुर कलैक्शन' की तलाश थी। धन्धे के सिलसिले में उसकी हरीश और सुमेरचन्द से कई मुलाकातें हुई थी और सुमेरचन्द ने बड़े ही परोक्ष रूप से 'कनकपुर कलैक्शन' खरीदने की इच्छा प्रगट की थी। जवाब में काशीनाथ ने सिर्फ इतना कहा था उस कलैक्शन का सुराग नहीं लग पा रहा।" वह पुनः तनिक रुकने के बाद बोली–"मैं यकीनी तौर पर तो नहीं कह सकती लेकिन मेरा विचार है, काशीनाथ ने वो कलैक्शन सुमेरचन्द के लिए ही खरीदा था।"
–"आपके दिमाग में यह विचार कब आया?" अजय ने पूछा।
–"क्या मतलब?"
–"काशीनाथ की मौत की वजह वही कलैक्शन था। उसकी हत्या की खबर के साथ ही यह खबर भी फैल गई थी।" अजय ने कहा–"आपको अपना यह विचार उसी वक्त प्रकट कर देना चाहिए था। या फिर तब मुझे बता देना चाहिए था जब मैं आपसे और आपके पति से विशालगढ़ में मिला था।"
–"उस वक्त तक इस बारे में इस नजरिये से मैंने सोचा ही नहीं था।" रंजना ने जवाब दिया–"यह बात परसों मेरे दिमाग में आई थी।"
अजय ने प्रश्नात्मक दृष्टि से उसे देखा।
–"परसों? कोई खास वजह थी?"
–"हाँ। रंजना हिचकिचाती सी बोली–"परसों मुझे पहली बार पता चला कि काशीनाथ की हत्या के वक्त मेरा पति हरीश विराटनगर में मौजूद था।"
–"इससे क्या फर्क पड़ता है?" अजय ने जान बूझ कर अज्ञानता प्रदर्शित करते हुए पूछा।
–"बड़ा भारी फर्क पड़ता है।" रंजना ने व्यथित स्वर में कहा–"उससे दो रोज पहले मुझसे यह कहकर, कि वह बम्बई जा रहा है, विशालगढ़ से गया था। मगर परसों स्टडी में उसके डेस्क की सफाई करते वक्त मुझे विराटनगर के एम्बेसेडर होटल का उसके नाम का एक बिल मिला। उससे साफ जाहिर था उन तारीखों में, बम्बई जाने की बजाय, हरीश यहीं विराट नगर में ही रहा था।"
–"आप कहना क्या चाहती हैं?" अजय ने सीधा सवाल किया–"काशीनाथ की हत्या आपके पति हरीश ने की थी?"
–"नहीं। लेकिन ऐसी किसी सम्भावना से इंकार भी तो नहीं किया जा सकता। और अगर यह सच है तो।" अचानक रंजना का गला रुंध गया और वह वाक्य पूरा नहीं कर सकी।
अजय ने नीलम को संकेत किया और स्वयं चुपचाप कॉफी पीने लगा।
अब तक, तटस्थ दर्शक की भाँति मौन बैठी नीलम ने रंजना से हमदर्दी जताकर उसे शांत किया और अंत में पूछा–"अब आप क्या चाहती हैं?"
–"मदद।" रंजना ने कहा–"पहले मेरा इरादा पुलिस के पास जाने का था। लेकिन अजय को अचानक यहाँ देखकर मेरा इरादा बदल गया। उसने याचनापूर्वक अजय की ओर देखा–"क्या तुम सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करोगे?"
–"मैं जान सकता हूँ, आपने पुलिस के पास जाने का इरादा क्यों बदल दिया?" अजय ने जानना चाहा।
–"इसलिए कि अगर मेरा अनुमान गलत निकला तो भी पुलिस इस बात को गुप्त नहीं रख सकेगी। उस सूरत में मेरा विवाहित जीवन बिल्कुल चौपट हो जाएगा। जबकि इस मामले में तुम पर पूरा भरोसा मैं कर सकती हूँ। तुम मेरी मदद करोगे न?"
–"मदद करने के लिए मैं तैयार हूँ। लेकिन बात मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही है कि अगर आपके अंकल।"
–"मेरा अंकल वह नहीं है। मुझे उसकी सूरत से भी नफरत है।
–"ऑल राइट, अगर आपके पति के अंकल के पास वो कलैक्शन था।" अजय ने कहा–"तो उसके बारे में इतनी लापरवाही से बातें क्यों की उसने?"
–"इसे लापरवाही नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उसे या अविनाश को मेरी मौजूदगी की जानकारी ही नहीं थी। फिर मैं दबे पाँव वहाँ से खिसक आई।"
–"आई सी। लेकिन क्या काशीनाथ जानता था, सुमेरचन्द जिसे 'कनकपुर कलैक्शन' चाहिए था; आपके मौजूदा पति हरीश का अंकल है?
–"पता नहीं। अलबत्ता मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। हरीश से शादी करने के बाद जब मैं उसकी महलनुमा कोठी में पहुंची और सुमेरचन्द दीवान को वहीं ग्राउंडफ्लोर पर रहते पाया तब मुझे पता चला वह हरीश का चाचा है।"
–"बाई दी वे।" अजय ने शांत स्वर में पूछा–"आपने काशीनाथ को क्यों छोड़ा था?"
रंजना के चेहरे पर आंतरिक पीड़ा के गहरे भाव उत्पन्न हो गए।
–"यह मत पूछो!" वह व्यथित स्वर में बोली–"मेरी बदकिस्मती थी कि मैं वो बेवकूफी कर बैठी।"
–"फिर भी कोई वजह तो होगी।"
–"काशीनाथ संसार की किसी भी चीज से ज्यादा तरजीह अपने धंधे को देता था। और किसी मामले में न तो उसकी कोई पसंद थी और न ही उसकी अपनी कोई राय होती थी। सही मायनों में एक अच्छा इंसान होने के बावजूद पति के रूप में वह बोर किस्म का आदमी था। इसके विपरीत हरीश निहायत दिलचस्प और जिंदादिल आदमी है और तीन तरफ समुद्र से घिरी पहाड़ी पर बनी विशाल एवं भव्य कोठी से प्राकृतिक सुन्दरता का बड़ा ही मनोरम दृश्य नजर आता है। बस इन्हीं सब बातों ने मेरा मन मोह लिया।" कहकर रंजना रुकी फिर गहरी साँस लेकर बोली–"लेकिन अब सब गड़बड़ हो गया। हालांकि हरीश आज भी मुझे दिलोजान से चाहता है लेकिन मुझे किसी बात में कोई रुचि नहीं है। हो सकता है, सुमेरचन्द दीवान के पास 'कनकपुर कलैक्शन' होने का अनुमान गलत निकले मगर यह बात भयानक दुःस्वप्न की भाँति हर समय मुझे घेरे रहती है। मेरा दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है। असलियत का पता नहीं लगा तो यकीनन मैं पागल हो जाऊँगी। और अगर मेरा यही हाल रहा तो जल्दी ही हरीश को पता लग जाएगा जरूर कोई गडबड है और फिर।"
–"आपने अपने पति को जरा भी शुब्हा तक नहीं होने देना है।" अजय उसकी बात काटकर तीव्र स्वर में बोला–"अगर आप असलियत का पता लगाना चाहती हैं तो आपको सब कुछ उससे छिपाना पड़ेगा। आपने हरीश या उसके अंकल को किसी भी कीमत पर जरा भी आभास नहीं होने देना है कि आप उनके बारे में क्या सोचती हैं।
–"म...मैं कोशिश करूंगी।"
–"आपको ऐसा करना ही होगा। मान लो आपका अनुमान सही है काशीनाथ की हत्या उन्होंने ही की थी तो अगर उन्हें शुब्हा भी हो गया कि आप उन पर शक करती हैं तो वे आपकी भी हत्या कर सकते हैं।
रंजना कई क्षण अपलकउसकी ओर देखती रही फिर हाथो से चेहरा ढंककर सिसकने लगी।"
नीलम पुनः हमदर्दी जताते हुए रंजना को शांत करने लगी।
अजय ने अपनी कॉफी खत्म करके प्लेयरज गोल्ड लीफ' का पैकेट निकाला और सिगरेट सुलगाकर इंतजार करने लगा।
रंजना के शांत होने के बाद उसने पूछा–"आप कहां ठहरी है?"
–"होटल कोहेनूर में।" रंजना ने जवाब दिया।
आपके पति के अंकल भी वहीं हैं?"
–"हां।"
–"आपको लिवा ले जाने के लिए वह यहां आयेंगे?"
–"नहीं।" रंजना अपनी कॉफी खत्म करती हुई बोली–"मैं खुद ही चली जाऊंगी।"
–"एतराज न हो तो हम आपको छोड़ आते हैं।" अजय ने औपचारिकतावश कहा।
रंजना ने सहमतिसूचक सर हिलाया और खड़ी हो गई।
अजय और नीलम भी खड़े हो गए।
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