जोशी तनिक बेसब्रेपन से उस लाइनमैन को देख रहा था जो कि पिछले पन्द्रह मिनटों में उसका टेलीफोन खोले उसकी मरम्मत करने की कोशिश कर रहा था ।
टेलीफोन एकाएक बिगड़ गया था और शिकायत करने पर उसे ठीक करने के लिए वहीं पुराना लाइनमैन वहां पहुंचा था जो कि कफ परेड की उस इमारत के टेलीफोनों को ठीक करने के लिए हमेशा आता था ।
लाइनमैन का नाम माधव था ।
वह पहला मौका या जब कोई टेलीफोन उससे ठीक नहीं हो रहा था ।
फिर जोशी ने देखा कि माधव फोन को बन्द कर रहा था ।
“ठीक हो गया ?” - जोशी ने पूछा ।
“नहीं, साहब ।” - माधव परेशान स्वर में बोला - “मैं बड़े मकैनिक को बुलाकर लाता हूं ।”
“आज ऐसा क्या नुक्स आ गया है टेलीफोन में ?”
“पता नहीं, साहब ! फाल्ट पकड़ में ही नहीं आ रहा ।”
“जल्दी टेलीफोन ठीक करो । यहां टेलीफोन के बिना काम नहीं चलता ।”
“इस फ्लोर के सारे टेलीफोन खराब हैं, साहब ।”
“मुझे मालूम है । इसीलिये तो कह रहा हूं कि इसे जल्दी ठीक करो ।”
“रूट की केबल बैठ गयी है । केबल वाला गैंग उसे ठीक कर रहा है ।”
“बड़ी खुशी की बात है । बड़ा मुस्तैद है तुम्हारा महकमा ।”
“लेकिन आपका फोन केबल की वजह से खराब नहीं है । मैं डीपी पर चैक करके आया हूं ।”
“तो ?”
“फिर भी फाल्ट मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा, साहब ।”
“ऐसी लाचारी दिखाता मैं तुम्हें पहली बार देख रहा हूं, माधव !”
“पता नहीं, क्या चक्कर है, साहब !”
“फोन फौरन ठीक होना चाहिये । समझे ?”
“साहब मेरी कोशिश में तो कोई कमी नहीं है । मैं तो आपके बुलावे पर फौरन पहुंचता हूं और तसल्लीबख्श काम करके जाता हूं । आज ही पता नहीं क्या गड़बड़...”
“ठीक है । ठीक है । मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं । अब वक्त खराब न करो । जाओ, जाकर अपने बड़े मकैनिक को बुलाकर लाओ ।”
“मैं अभी गया और आया ।”
माधव बाहर को लपका । वह इमारत के बाहर निकला । उसने एक बार व्याकुल भाव से दांयें-बायें देखा और फिर सड़क पार करके एक अपेक्षाकृत संकरी गली में दाखिल हो गया । वहां एक कार खड़ी थी । कार में विमल और देवाराम बैठे थे । उसे देखकर विमल ने कार का दरवाजा खोल दिया ।
सड़क से पार की इमारत की पहली मंजिल की एक खिड़की के पीछे हमेशा की तरह जिमी मौजूद था ।
इस बार उसके साथ मारियों और बाबू नाम का एक और आदमी भी था । वे दोनों साये की तरह सोहल के पीछे लगे-लगे वहां पहुंचे थे ।
जिस संकरी गली में उन्होंने माधव को उसी क्षण दाखिल होते देखा था, वह उस इमारत के पहलू में ही थी जिसमें कि वे मौजूद थे और उनके फ्लोर की कुछ खिड़कियां उस गली में भी खुलती थीं । उन्हें मालूम था कि सोहल और देवाराम उस संकरी गली में खड़ी एक कार में मौजूद थे । वे तीनों तुरन्त गली की ओर की एक खिड़की के समीप पहुंचे ।
जिमी ने सावधानी से खिड़की खोली ।
मारियो ने नीचे झांका । उसने माधव को कार में दाखिल होने देखा । उसने जिमी को इशारा किया ।
जिमी ने एक लम्बी तार के सिरे से जुड़ा एक माइकोफोन खिड़की से बाहर निकाला और उसे तार के सहारे धीरे-धीरे नीचे लटकाने लगा ।
माइकोफोन कार की छत के करीब पहुंच गया तो उसने तार को ढील देनी बन्द कर दी ।
मारियो ने अपनों पर हैडफोन चढा लिया ।
जिमी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
मारियो ने बड़े सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सहमति में सिर हिलाया ।
नीचे कार में होता वार्तालाप उसे साफ सुनाई दे रहा था ।
माधव कार में विमल की बगल में बैठ गया ।
“जैसा तुमने कहा था” - माधव बोला - “मैंने कर दिया है ।”
“शाबाश !” - विमल बोला - “अब चले ?”
“मुझे बाकी के रूपये कब मिलेंगे ?”
“वापसी में । वहां से निकलते ही ।”
“वापसी में साहब को यह बताना मत भूलना कि तुमने मेरे बच्चे को पकड़ा हुआ है, इसीलिये मजबूरी में मैंने तुम्हारी मदद की है, न कि दस हजार रुपये की खातिर ।”
“नहीं भूलेंगे । अब चलें ?”
माधव ने सहमति में सिर हिलाया ।
कार का दरवाजा खुलना शुरू होते ही जिमी ने बड़ी मुस्तैदी से माइक्रोफोन को वापिस खिड़की के भीतर खींच लिया ।
वे तुरन्त उस खिड़की से पीछे हट गये और फिर सामने वाली खिड़की पर पहुंचे । विमल, देवाराम और माधव को उन्होंने सामने इमारत में दाखिल होते देखा ।
“क्या सुना ?” - जिमी उत्सुक भाव से बोला
मारियो ने बताया ।
“यानि कि” - जिमी बोला - “इन लोगों ने डाक तार विभाग के इस लाइनमैन को अपने किसी काम के लिये रिश्वत देकर हटाया है ?”
“जाहिर है । जिमी, मुझे हालात बड़े उम्मीद अफजाह लग रहे हैं । मुझे यह लिटल ब्लैक बुक का ही चक्कर मालूम होता है ।”
“वाल्ट कोई नहीं खोल सकता ।” - बाबू बोला - “चाहे वह सोहल हो या सोहल का बाप ।”
जिमी और मारियो ने घूरकर अपने तीसरे साथी की तरफ देखा ।
“अगर” - बाबू उनके घूरने की परवाह किए बिना बोला - “ये लोग वाल्ट खोलने की फिराक में हैं तो देख लेना, अब इन लोगों की लाशें ही सामनी इमारत से बाहर निकलेंगी ।”
“तुम सोहल को नहीं जानते ।” - मारियो सख्ती से बोला ।
“और तुम वाल्ट को नहीं जानते ।”
“ठीक है । ठीक है । फिलहाल थोबड़ा बन्द रखो । अभी मालूम हुआ जाता है कि इमारत में से सोहल वर्टीकल निकलता है या होरीजेण्टल । इमारत से वह खुद बाहर आता है या उसकी लाश ।”
“अगर वह खुद ही चलकर वहां से बाहर निकला” - जिमी बोला - “तो भी हम बात की क्या गारण्टी होगी कि वह लिटल ब्लैक बुक की ही फिराक में वहां पहुंचा था ?”
“गारण्टी होगी ।” - मारियो बोला - “तब लिटल ब्लैक बुक उसके पास होगी ।”
“वाल्ट न खुला होने की सूरत में कैसे होगी ?”
“वाल्ट खोलने में फेल हो जाने की सूरत में वह जिन्दा बाहर नहीं आ सकता ।”
“फिर वही बात !” - जिमी तनिक झल्लाया - “बाप, मैं कहता हूं कि इस बात की क्या गारण्टी है कि सोहल लिटल ब्लैक बुक की फिराक में वहां पहुंचा है ? और दर्जनों वजह हो सकती हैं उसके यहां आने की ।”
“ठीक है । ठीक है ।” - मारियो को जवाब न सूझा तो वह झुंझलाकर बोला - “जो होना होगा, सामने आ जाएगा ।”
जिमी फिर न बोला ।
सुवेगा के ऑफिस वाली इमारत में दाखिल होते वक्त विमल और देवाराम के चेहरों पर निगाह के चश्मे और नकली मूछें थीं । वे दोनों माधव जैसी ही खाकी वर्दी पहने हुए थे । दोनों के हाथों में घिसे-पिटे - एकाध जगह से उधड़े हुए भी - चमड़े के बैग थे जिनमें एक्सचेंज की मशीन और टेलीफोन ठीक करने के औजार थे ।
विमल जानबूझकर लंगड़ाकर भी चल रहा था ।
माधव अपना उन दोनों जैसा ही बैग जोशी के ऑफिस में रख आया था । उसके बैग में देवाराम द्वारा उसे दी गयी एक रिवॉल्वर और एक साइलेन्सर मौजूद थे ।
देवाराम ने मालूम किया था कि माधव वहां बरसों से आ रहा लाइनमैन था, वहां का बच्चा-बच्चा उसे जानता था, इसलिये उसका इतना भरोसा किया जाता था कि कभी उसकी या उसके बैग की तलाशी नहीं होती थी जबकि ‘कम्पनी’ के किसी ओहदेदार के पास पहुचने वाले हर अपरिचित व्यक्ति की तलाशी जरूर ली जाती थी ।
जोशी के ऑफिस के बाहर के कमरे मे बैठे गार्ड ने उनकी तलाशी ली ।
“बाप !” - माधव ने विरोध किया - “ये टेलीफोन कम्पनी के आदमी हैं, मेरे साथी हैं ।”
“लेकिन नये हैं ।” - गार्ड बोला ।
“मेरे साथ भी तो हैं ।”
“होंगे । मैं इन्हें नहीं जानता ।”
“अब जान लो ।”
“जान लिया । अगली बार नहीं लूंगा मैं इनकी तलाशी ।”
“यह महकमे के आदमियों की तौहीन है ।” - विमल एतराज भरे स्वर में बोला ।
“महकमे के आदमियों को यहां से जो तगड़ा रोकड़ा मिलता है, वो अच्छा है या यह तौहीन अच्छी है ।”
“अच्छा-अच्छा ।”
गार्ड ने तलाशी लेकर उन्हें अन्दर चले जाने दिया ।
तीनों जोशी के ऑफिस में पहुंचे ।
“ये दोनेां बड़े मिस्तरी हैं, साहब !” - माधव बोला ।
विमल और देवाराम ने जोशी का अभिवादन किया ।
“अभी एक मिनट में आपका टेलीफोन ठीक हुआ जाता है ।” - माधव बोला ।
“हूं ।” - जोशी बोला ।
विमल फोन खोलने लगा । माधव ने उसे पहले ही समझा दिया था कि कौन-से पेंच खोलने थे और किन तारों के साथ कौन-सी हरकत करनी थी ।
जोशी कुछ क्षण उनके काम में दिलचस्पी लेने की कोशिश करता रहा और फिर बोर होकर अखबार पढने लगा ।
देवाराम ने चुपचाप माधव के बैग में से रिवॉल्वर निकाल ली और उसकी नाल पर साइलेन्सर चढा दिया ।
“जरा लाइन देख” - विमल तनिक उच्च स्वर में बोला - “किधर से आ रही है ।”
देवाराम ने रिवॉल्वर वर्दी में छुपा ली और आगे बढा ।
टेलीफोन की तार कारपेट के नीचे से होती हुई जाशी के पीछे की दीवार पर गई थी जहां से वह फट्टी पर लगी हुई एक सुराख में से बाहर को जाती दिखाई दे रही थी ।
देवाराम जोशी के पीछे पहुंचा और लाइन टटोलने लगा ।
“यहां आ जाओ, उस्तादजी !” - एकाएक वह बोला - “यहां गड़बड़ लग रही है ।”
विमल पेचकस और प्लायर हाथ में लिए उसके समीप पहुंचा ।
अब दोनों जोशी की कुर्सी के पीछे थे ।
देवाराम ने रिवॉल्वर विमल को थमा दी ।
उसने विमल के हाथ से पेचकस और प्लायर ले लिए और दोनों चीजें नीचे झुककर हौले से कारपेट बिछे फर्श पर रख दीं ।
विमल ने एक सावधान निगाह चारों तरफ दौड़ाई । फिर उसका हाथ जोशी की कुर्सी की पीठ पर पड़ा । उसने एक झटके से कुर्सी को अपनी तरफ खींचा ।
कारपेट बिछे फर्श पर अपने पहियों के सहारे निशब्द लुढकती हुई कुर्सी जोशी की विशाल मेज से दो-ढाई फुट परे सरक गयी ।
जोशी ने हड़बड़ाकर अखबार हाथ से छोड़ दिया । लेकिन इससे पहले कि वह संभल पाता था कुछ समझ पाता, विमल ने उसकी कनपटी से रिवॉल्वर सटा दी ।
माधव एकाएक बेहद भयभीत दिखाई देने लगा ।
“क्या है ?” - जोशी बोला ।
“तुम्हारी खोपड़ी के साथ” - विमल क्रूर स्वर में बोला - “साइलेन्सर लगी रिवॉल्वर की नाल है और तुम अपनी मेज से इतने परे हो कि गार्ड को बुलाने के लिए या कोई और अलार्म बजाने के लिए कोई बटन-वटन नहीं दवा सकते हो ।”
“तो क्या हुआ ?”
“तुम हमारे कब्जे में हुए ।”
“तुम मुझे लूटना चाहते हो ?”
“तुम्हें नहीं ।”
“तो ?”
“तुम्हारे कम्प्यूटराइज्ड वास्ट को ।”
जोशी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव प्रकट हुए ।
“तुम वाल्ट लूटना चाहते हो ?” - वह बोला ।
“हां ।” - विमल बोला ।
“मुझे अपने कब्जे में करके ?”
“हां ।”
एकाएक जोशी हो-हो करके हंसने लगा ।
कनपटी से लगी रिवॉल्वर की उसे कोई परवाह नहीं लग रही थी ।
“हंसो मत ।” - विमल डपटकर बोला ।
“मैं कहां हंसना चाहता हूं ।” - जोशी बोला - “तुम्हीं मुझे हंसा रहे हो । तो तुम वाल्ट लूटना चाहते हो ? हा-हा-हा !”
विमल ने असहाय भाव से देवाराम की तरफ देखा ।
एकाएक जोशी की हंसी को ब्रेक लगा ।
“माधव !” - वह आग्नेय नेत्रों से लाइनमैन को घूरता हुआ बोला - “तू भी इनका साथी है ? तू भी वाल्ट लूटना चाहता है ?”
“नहीं, साहब ।” - माधव गिड़गिड़ाता हुआ बोला - मैं इनका साथी नहीं हूं । मुझे तो मालूम भी नहीं कि ये यहां क्या करना चाहते है । ये तो कोई मवाली हैं ।”
“और तू इन्हें अपने साथ यहां लाया है ?”
“मेरी मजबूरी थी, साहब ! इन लोगों ने मेरे दस साल के लड़के को पकड़ा हुआ है । ये कहते थे कि यहां पहुंचने में अगर मैं इनकी मदद नहीं करूंगा तो ये लोग मेरे लड़के को जान से मार डालेंगे ।”
“अच्छा !”
“हां, साहब, मैंने जो कुछ किया, अपने लड़के की सलामती की खातिर किया । मैं मजबूर था, साहब ! मुझे माफ कर दो, साहब !”
“ठीक है । ठीक है ।”
“साहब, मुझसे गलती हो गयी । मुझे नहीं मालूम था कि ये लोग इतने खतरनाक हैं । साहब, मुझे इनकी मदद नहीं करनी चाहिए थी । अब मुझे लग रहा है कि अपना काम हो जाने के बाद ये लोग मुझे भी नहीं छोड़ेगे । साहब, मैं क्या करूं ? साहब मुझे बचाइये । साहब, आप ही बचाइये मुझे ! साहब मैं...”
विमल ने पहले तो उसकी दाद फरियाद को अभिनय ही समझा लेकिन फिर एकाएक उसे लगा कि वह तो असल में ही हत्थे से उखड़ा जा रहा था । अपने उस मूड में वह तो किसी भी क्षण चीखना चिल्लाना शुरु कर सकता था ।
उसने देवाराम को इशारा किया ।
देवाराम लपक कर उसके समीप पहुंचा । उसने अपने एक हाथ से उसका मुंह दबोचा और दूसरे हाथ की मुट्ठी बांध कर ताबड़तोड़ कई घूंसे उसकी पसलियों में जमा दिए । तत्काल माधव का अचेत शरीर उसकी बांहों में झूल गया ।
देवाराम ने उसे हौले से कालीन बिछे फर्श पर लुढका दिया ।
जोशी चेहरे पर बड़े विनोदपूर्ण भाव लिये देवाराम की उस हरकत का मुआयना करता रहा ।
देवाराम सीधा हुआ और फिर विमल के पहलू में आ खड़ा हुआ ।
जोशी ने कुर्सी घुमाई । उसका मुंह विमल और देवाराम की तरफ हो गया । रिवॉल्वर की नाल उसकी कनपटी से अपने आप ही हट गयी लेकिन अब वह उसकी छाती की तरफ तनी हुई थी । उसने बड़ी बारीकी से विमल और देवाराम का मुआयना किया ।
“यहां का वाल्ट किस्से कहानियों की तरह बम्बई के अण्डरवल्र्ड में मशहूर है ।” - जोशी बोला - “उसके बारे में जान लेना कोई बड़ी बात नहीं । लेकिन तुम यहां वाल्ट के वजूद की बाबत ही जानते हो या कुछ और भी जानते हो ?”
“कुछ नहीं ।” - विमल बोला - “सब कुछ जानते हैं ।”
“मुझे उम्मीद तो नहीं कि तुम सब कुछ जानते हो वो लेकिन फिर भी तुम्हारी खातिर मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेता हूं ।”
“शुक्रिया ।” - विमल शुष्क स्वर में बोला ।
“सब कुछ जानते बूझते तुम समझते हो कि तूम वाल्ट लूट सकते हो ?”
“हां ।”
“कैसे ?” - जोशी विनोदपूर्ण स्वर में बोला - “मुझे कहोगे कि मैं उठकर तुम्हारें लिए वाल्ट खोलूं ?”
“नहीं । वाल्ट हम खुद खोल लेंगे ।”
“वाल्ट तुम खुद खोल लोगे ?” - जोशी हैरानी से बोला ।
“हां । तुम सिर्फ वाल्ट के कमरे का दरवाजा और शटर खोल वो । ताकि हम इन दोनों चीजों को तोड़ने की जहमत से बच जायें ।”
जोशी ने यूं विमल की तरफ देखा जैसे उसके सिर पर सींग उग आए हों । एकाएक वह फिर हो-हो कर के हंसने लगा ।
“वाल्ट तुम खुद खोल लोगे ?” - वह अट्टहास करता हुआ बोला - “वाल्ट तुम खुद खोल लोगे ? जैसे वाल्ट न हुआ, लकड़ी के सन्दूक का ढक्कन हो गया !”
“सन्दूक का ढक्कन कई बार मुश्किल से खुलता है ।” - विमल सहज भाव से बोला ।
जोशी की हंसी को फिर ब्रेक लगा । वह कुछ क्षण अपलक विमल को देखता रहा ।
“मेज की पैनल में लगा वह बटन दबाओ ।” - वह बोला ।
“उससे क्या होगा ?” - विमल बोला - “इमारत में कहीं खतरे की घण्टी बजेगी या बाहर बैठा गार्ड यहां आएगा या अभी फर्श में एक झरोखा खुलेगा जिसके रास्ते हम नीचे तहखाने में जा गिरेंगे ?”
“ऐसा कुछ नहीं होगा ।”
“तो क्या होगा ?”
“वाल्ट के कमरे का दरवाजा दिखाई देगा तुम्हें ।”
“दरवाजा दिखाई देगा ! वाल्ट नहीं ?”
“वाल्ट भी दिखाई देगा । पहले दरवाजा तो देख लो ।”
विमल हिचकिचाया ।
जोशी ने दीवार पर घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
पौने पांच बजे थे ।
“हमारा” - उसको घड़ी देखता पाकर विमल बोला - “नम्बर निकलने के वक्त तक यहां रुके रहने का कोई इरादा नहीं है । हम जानते हैं, जब तक रिमोट कण्ट्रोल से कम्प्यूटर का नम्बर निकलने वाला सिस्टम चलाया नहीं जाएगा, तब तक नम्बर नहीं निकलेगा ।”
“उस नम्बर के बिना वाल्ट खोल लोगे ?”
“कुछ तो करेंगे ही ।”
जोशी फिर हंसा ।
“अगर यह बटन दरवाजे का है भी तो इसे शायद तुम इसलिये खुलवाना चाहते हो ताकि तुम कम्प्यूटर का साउण्ड कण्ट्रोल एक्चुएट करके उसे आवाज देकर खुलने से मना कर सको ।”
“तुम तो वाकई बहुत कुछ जानते हो ।”
“जब बम्बई के अण्डरवर्ल्ड का बच्चा-बच्चा जानता है तो हम क्यों नहीं जानेंगे ? तुम ही ने तो अभी कहा था कि वाल्ट के बारे में...”
“हां, कहा था । कहा था ।”
“हम पहले तुम्हारे साउण्ड कण्ट्रोल को काउण्टर करते हैं ।”
“वो कैसे ?”
विमल ने देवाराम को इशारा किया ।
देवाराम ने अपनी जेब से डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले प्लास्टर टेप की एक चौड़ी पट्टी निकाली और उसे खोलकर मजबूती से जोशी के मुंह के ऊपर जड़ दिया ।
फिर विमल ने मेज में लगा बटन दबाया । बटन दबाते ही पीछे की दीवार का एक भाग निशब्द अपने स्थान से सरक गया ।
उसके पीछे से एक लोहे का शटर और शटर के पीछे लकड़ी का बन्द दरवाजा प्रकट हुआ । शटर पर बहुत बड़ा ताला झूल रहा था और लकड़ी के दरवाजे पर बिल्ट इन लॉक था ।
“चाबियां !” - विमल बोला - “दोनों !”
जोशी ने खुद मेज की दराज से दो चाबियां निकालकर उसे दीं । उसकी आंखों में अभी भी उपहास का भाव था ।
विमल ने रिवॉल्वर देवाराम को थमा दी और आगे बढा ।
उसने शटर का ताला खोलकर उसे परे सरकाया । फिर उसने लकड़ी के दरवाजे में चाबी डाली । वह भी निशब्द खुल गया ।
विमल ने भीतर कदम रखा ।
एक मिनट से भी कम समय में जब वह वापस लौटा तो उसके हाथ में लिटल ब्लैक बुक थी ।
विमल के हाथ में डायरी देखते ही जोशी के नेत्र फट पड़े । वह रिंग लगे खिलौने की तरह से कुर्सी से उछला लेकिन देवाराम ने उसे पीछे से दबोच लिया और वापस कुर्सी पर धकेल दिया ।
विमल उसके समीप पहुंचा ।
“वाल्ट में बहुत माल था ।” - वह बोला - “नोटों के पुलन्दे, सोने के बिस्कुटों के ढेर । हेरोइन की बेशुमार थैलियां और पता नहीं क्या-क्या ! लेकिन मैंने वहां से सिर्फ यह लिटल ब्लैक बुक निकाली है ।”
जोशी ने अपने एक हाथ को देवाराम की पकड़ से आजाद करके अपने मुंह पर लिपटी प्लास्टर की पट्टी नोचकर उतार दी ।
“तुमने वाल्ट खोल दिया !” - वह कम्पित स्वर में बोला ।
“पांच सैकेण्ड में ।” - विमल बोला ।
“यह नहीं हो सकता ! वाल्ट नहीं खुल सकता !”
“वाल्ट अभी भी खुला पड़ा है । मैंने जान बूझकर उसका दरवाजा बन्द नहीं किया है । चाहो तो जाकर देख लो ।”
वह अपने स्थान से उठा ।
इस बार देवाराम ने उसे नहीं रोका ।
बगोले की तरह जोशी वाल्ट के कमरे में दाखिल हुआ ।
विमल कमरे की चौखट के करीब सरक आया ।
खुला वाल्ट देखकर जोशी को जैसे सांप सूंघ गया । फिर उसने कांपते हाथों से वाल्ट का दरवाजा बन्द किया, अपनी जेब से सिगरेट लाइटर के आकार की एक डिबिया सी निकाली और उस पर लगे तीन बटनों में से एक बटन दबाया । डिबिया उसने वापिस जेब में रख ली ।
वह घूमा ।
विमल परे हट गया ।
जब जोशी वापिस लौटा तो उसके चेहरे पर राख मली हुई मालूम हो रही थी और वह पत्ते की तरह कांप रहा था ।
एक क्षण में वह दस साल बूढा लगने लगा था । एक क्षत विक्षत खिलौने की तरह वह अपनी कुर्सी पर ढेर हो गया ।
“ऐसा नहीं हो सकता !” - वह बुदबुदा रहा था - “वाल्ट नहीं खुल सकता ! वाल्ट नहीं खुल सकता !”
विमल को उस पर तरस आने लगा ।
“जिस्म का पिंजरा आत्मा को कैद करके नहीं रख सकता !” - विमल बोला - “जिस्म रह जाता है । आत्मा उड़ जाती है । ऐसा ही समझ लो वाल्ट का जिस्म भीतर मौजूद है और आत्मा उड़ गयी है ।”
“तुम” - वह कांपती आवाज में बोला - “कौन हो ?”
“मैं मशहूर जादूगर हुडीनी का बड़ा लड़का हूं ।”
“तुम सोहल हो ।”
“कैसे जाना ?”
“बखिया पर इतता बड़ा वार करने का हौसला सोहल के अलावा और कोई नहीं कर सकता ।”
“तारीफ का शुक्रिया ।”
“नम्बर कैसे जाना ?”
“कैसा नम्बर ?”
“जिससे तुमने वाल्ट खोला है ?”
“वाल्ट तो मैंने जादू के जोर से खोला है । जैसे तुम उसे ‘बन्द हो जा सिमसिम’ कह सकते हो, वैसे ही मैं उसे ‘खुल जा सिमसिम’ कह सकता हूं ।”
“कैसे जाना ? नम्बर कैसे जाना ?”
“वैसे कभी खुद तुमसे वाल्ट न खुले तो मुझे बुला लेना । मेरा टेलीफोन नम्बर नोट कर लो । नम्बर है थ्री फाइव थ्री फोर नाइन फाइव । याद रहेगा न मेरा टेलीफोन नम्बर ?”
नम्बर सुनकर जोशी यूं चिहुंका जैसे उसे बिच्छू ने काटा हो ।
“अब मैं बखिया को क्या मुंह दिखाऊंगा !” - वह बड़े दयनीय स्वर में बोला - “मेरी बीवी ने मुझे धोखा दिया ।”
“तुम्हारी बीवी ने कुछ नहीं किया है ।”
“उसी ने तुम्हें नम्बर बताया है । मेरे और उसके अलावा किसी तीसरे शख्स को खुद बखिया को भी यह नम्बर नहीं मालूम होता । बखिया को इसी बात का मैं क्या जवाब दूंगा कि नम्बर मेरी बीवी को मालूम था । अब मैं जिन्दा नहीं रह सकता । अब मैं जिन्दा नहीं रह सकता । मैं बखिया को मुंह नहीं दिखा सकता ।”
वह खामोश हो गया ।
और एक क्षण बाद जोशी का सिर उसकी छाती पर झूल गया ।
“इसे क्या हुआ ?” - देवाराम सकपका कर बोला ।
“मर गया ।” - विमल बोला - “आत्महत्या कर ली इसने । इसकी एक दाढ नकली है जिसमें यह एक घातक जहर का छोटा-सा कैप्सूल हर क्षण रखता था । वह कैप्सूल चबा लिया मालूम होता है इसने ।”
“ओह !”
“वाकई यह एक निहायत गैरतमन्द, खुद्दार और अहसान का बदला चुकाने वाला आदमी था ।”
देवाराम मन्त्रमुग्ध-सा मृत जोशी के चेहरे को देखता रहा ।
“चलो ।” - विमल बोला ।
अब लिटल ब्लैक बुक उनकी गिरफ्त में थी ।
अब वह तोता उनकी गिरफ्त में था जिसमें राज बहादूर बखिया नाम के राक्षस की जान थी ।
“ये तो दो ही बाहर निकले हैं ।” - जिमी बोला - “तीसरा कहां है ?”
“तीसरा असली लाइनसमैन या ।” - मारियो बोला - “मारियो बोला - “भीतर काम कर रहा होगा ।”
“अब तुम्हारे ख्याल से इस वक्त लिटल ब्लैक बुक इन दोनों में से किसी के पास होगी ?”
“नहीं हो सकती ।” - बाबू बोला ।
“शटअप !” - मारियो बोला ।
“ये लोग मुश्किल से पांच मिनट तो भीतर रुके हैं ।” - बाबू ने जिद की - “पांच मिनट में तो यह नहीं मालूम किया जा सकता कि इतनी बड़ी इमारत में वाल्ट है कहां, उसे खोलना तो...”
“आई सैड, शटअप ।”
“वैसे बाप” - जिमी बोला - “बाबू कह तो ठीक रहा है ।”
मारियो ने उसे भी घूरकर देखा । उसके चेहरे पर उलझन और अनिश्चय के भाव थे जिन्हें वह अपने गुस्से में छुपाना चाह रहा था ।
“चलो ।” - मारियो ने हुक्म दनदनाया ।
तीनों बाहर को लपके ।
“अगर इनके पास लिटल ब्लैक बुक है” - रास्ते में जिमी बोला - “तो क्यों न हम इन्हें गली में दबोच लें ? हम तीन हैं और वो दो ।”
“यहां नहीं ।” - मारियो बोला ।
“क्यों ?”
“बेवकूफ, सामने सुवेगा का ऑफिस है । गली में हुई छीना-झपटी की तरफ ‘कम्पनी’ वालों की तवज्जो जा सकती है । इस तरह लिटल ब्लैक बुक हमारे हाथ आ भी गयी तो वह हमसे छिन सकती है ।”
“ओह !”
“फिलहाल साये की तरह सोहल के पीछे लगे रहने वाला प्रोग्राम ही ठीक है ।”
जिमी ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
***
हुक पर टंगे-टंगे ही जीवाराम के प्राण निकल गए । मरने से पहले यातनाओं से त्रस्त होकर उसने बखिया को बहुत कुछ बताया । उसने बहुत कुछ कबूल किया बखिया के सामने । जैसे: - शान्ताराम की मौत का बदला लेने की खातिर उन्होंने विमल के साथ गठजोड़ किया था ।
विमल की ‘कम्पनी’ के खिलाफ कई करतूतों में उन्होंने विमल का साथ दिया था ।
वह दिल्ली पटवर्धन के ही चक्कर में गया था और उसी ने - विमल ने नहीं - दिल्ली एयरपोर्ट पर पटवर्धन का खून किया था । चन्द्रगुप्त का खून उसके दूसरे साथी प्रधान ने - विमल ने नहीं - किया था और हेरोइन और गोल्ड बिस्कुट्स की लूट को ठिकाने लगाने की नीयत से प्रधान अभी भी दिल्ली में ही था ।
महालक्ष्मी रेसकोर्स के सामने के पेट्रोल पम्प पर पड़ी डकैती से उनका या विमल का कोई रिश्ता नहीं था । उन्हें तो ऐसी किसी डकैती की खबर तक नहीं थी ।
विमल चैम्बूर में उनके घर में था ।
लेकिन बखिया उसकी उन बातों से सन्तुष्ट न हुआ । जो अहम बात वह जानना चाहता था, वह यह थी कि सोहल कहां था, उसके भाई कहां थे ।
लेकिन जो बात जीवाराम खुद नहीं जानता था, वह उन्हें बताता कैसे ?
बखिया की यही जिद थी कि वह अपने भाइयों की - सोहल की न सही - जान बचाने के लिए वह बात छुपा रहा था ।
इसीलिए जीवाराम पर जोजो का जुल्म जारी रहा ।
तब तक जारी रहा जब तक कि जीवाराम ने दम न तोड़ दिया ।
जोजो को उसकी मौत का बहुत अफसोस हुआ ।
बखिया को उसकी मौत का बहुत अफसोस हुआ ।
इतना हट्टा-कट्टा, मतबूत और नौजवान आदमी इतनी जल्दी दम तोड़ देगा, इसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी ।
***
देवाराम और विमल के कफ परेड के ऑफिस से कूच कर जाने के पांच मिनट बाद भीतर वाल्ट में वह बम फूटा जो विमल ने वाल्ट के भीतर नोटों के ढेर के नीचे छुपाकर रख दिया था ।
इमारत की बुनियादें हिला देने वाला भीषण धमाका हुआ ।
धमाका सुनकर सबसे पहले जोशी के ऑफिस के बाहर बैठा गार्ड ही भीतर दाखिल हुआ ।
उसने जोशी को अपनी मेज के पीछे भरा पाया ।
उसने माधव को फर्श पर बेहोश पड़ा पाया जबकि कुछ क्षण पहले वहां से रवाना हुए दो मकैनिकों ने उसे बताया कि माधव अभी भी भीतर टेलीफोन ठीक कर रहा था और वे बाहर से लाइन देखने जा रहे थे ।
वाल्ट के कमरे के शटर और लड़की के दरवाजे को खुला पाकर वह आतंकित हुआ लेकिन फिर वाल्ट को सलामत पाकर उसकी जान में जान आ गयी ।
तो फिर धमाका कहां हुआ था ?
उसने वाल्ट के दरवाजे को चैक करने के लिए हैंडल को छुआ तो उसने चिहुंककर फौरन हाथ वापिस खींच लिया । हैंडल इस कदर गर्म था कि पलक झपकते उसका हाथ जल गया था ।
उसकी अक्ल ने यही सुझाया कि विस्फोट वाल्ट के भीतर हुआ था ।
लेकिन यह तो सम्भव नहीं था । जरूर कोई गड़बड़ थी । आतंकित, आशंकित गार्ड बाहर दौड़ा ।
तब तक गलियारे में बहुत लोग इक्कट्ठे हो चुके थे ।
उस घटना की ‘कम्पनी’ में खबर देने की कोशिश की गई तो पाया गया कि वहां के सब टेलीफोन खराब थे ।
बड़ी मुश्किल से कोई पड़ोस की इमारत के एक टेलीफोन से होटल में फोन कर पाया ।
होटल में फोन तब पहुंचा जब जीवाराम ने अभी दम तोड़ा ही था ।
बखिया समेत सब दौड़े-दौड़े कफ परेड पहुंचे ।
वहां क्या हुआ था, वह समझ पाना मुहाल था ।
जोशी की मौत अपने आप में एक रहस्य थी ।
पूछने पर इतना ही मालूम हो पाया कि टेलीफोन के तीन मकैनिक वहां फोन ठीक करने आए थे । उनमें से दो की वहां से रवानगी के थोड़ी देर बाद ही भीतर एक भीषण धमाका हुआ था । गार्ड जब भीतर गया था तो उसने जोशी को अपनी कुर्सी पर मरा पाया था, माधव नाम के एक मकैनिक को नीचे फर्श पर बेहोश पड़ा पाया था और वाल्ट के दरवाजे को अंगारे की तरह तपता पाया था ।
दरवाजा उस वक्त भी तप रहा था ।
“विस्फोट भीतर हुआ है ।” - रोडरीगुएज बोला ।
“लेकिन वाल्ट तो बन्द है ।” - बखिया बोला ।
“फिर भी...”
“यह नामुमकिन है ।”
“और किसी तरीके से दरवाजा यूं तपता नहीं हो सकता ।”
“वाल्ट खोलो ।”
“नम्बर ?”
“नम्बर !” - बखिया सकपकाया ।
नम्बर तो सिर्फ जोशी को मालूम होता था ।
और जोशी उनके सामने मरा पड़ा था ।
फिर बखिया ने खुद जोशी की तलाशी ली । उसने जोशी की एक जेब में से रिमोट कन्ट्रोल बरामद किया । उस पर स्क्रैम्बल का बटन दबा हुआ था । यानी कि उस रोज जो नम्बर वाल्ट से निकला था, उसे जोशी ने कैंसिल कर दिया था ।
“वाल्ट को कोई खतरा था ।” - बखिया बोला - “जिसकी वजह से जोशी ने रिमोट कन्ट्रोल पर ‘स्क्रैम्बल’ का बटन दबाकर आज का नम्बर कैन्सिल कर दिया था । अब चौबीस घन्टे से पहले दुनिया की कोई शक्ति इस वाल्ट को नहीं खोल सकती ।”
“लेकिन” - अमीरजादा आफताब खान बोला - “जब वाल्ट खुला नही नहीं तो भीतर धमाका कैसे हुआ ?”
“वही तो हैरानी की बात है ।” - बखिया चिन्तित भाव से बोला - “वाल्ट का तपता दरवाजा अपनी कहानी आप कह रहा है । हुआ तो कुछ भीतर ही है । लेकिन कैसे हुआ ? यह सोहल का बच्चा कोई जादूगर तो नहीं !”
“सोहल !” - रोडरीगुएज तनिक चौंककर बोला - “आप इस घटना का कोई रिश्ता भी सोहल से जोड़ रहे हैं ?”
“बखिया की निगाह में” - बखिया जलते-भुनते स्वर में बोला - “आज की तारीख में हर न समझ में आने वाली बात के लिए सोहल जिम्मेदार है । आज अगर बम्बई में भूचाल आ जाता है और उसमें हमारा कोई आदमी मारा जाता है तो बखिया उसे भी सोहल की ही करतूत मानेगा ।”
“लेकिन सोहल वाल्ट को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता ।”
“सोहल क्या, कोई भी वाल्ट को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता । वाल्ट एकदम सही-सलामत है । इस बात की तो बखिया गारण्टी करता है ।”
“तो फिर हुआ क्या है ?”
“यही तो समझ में नहीं आ रहा । रोडरी !”
“जी, साहब ।”
“इसे होश में लाओ ।”
माधव के मुंह पर पानी के छींटे मारे गये, उसके हलक में थोड़ी ब्रांडी उतारी गयी तो वह होश में आया । वह कांखता-कराहता उठकर बैठ गया ।
मैक्सवैल परेरा ने उसे बांह से पकड़कर ऊंचा किया और जबरन उसे उसके पैरों पर खड़ा कर दिया ।
पैण्डुलम की तरफ झुलते माधव ने सामने देखा । बखिया को सामने खड़ा पाकर माधव के प्राण उसके कंठ में आ अटके । उसे लगा कि वह यमराज के सामने खड़ा था । बखिया का विशाल काला भुजंग शरीर, उसकी अंगारों की तरह दहकती आंखें और उसका उस वक्त का प्रलयंकारी मूड उस पर इस कदर हावी हुआ कि वह अपनी वह झूठी कहानी बखिया के सामने न दोहरा सका कि बदमाशों ने उसके दस साल के लड़के को अपनी गिरफ्त में लेकर उस पर दबाव डाला था । उसने खुद ही कबूल कर लिया कि दर हजार रुपये के लालच में - जिसमें से कि वास्वत में उसे पांच हजार ही मिले थे - वह दो आदमियों को वहां लाया था ।
“कौन थे वो ?” - दखिया दहाड़ा ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - माधव लगभग रोता हुआ बोला ।
“चाहते क्या थे वो ?”
“वाल्ट खोलना चाहते थे ।”
“क्या ?”
“वे जोशी साहब को कह रहे थे कि वे वाल्ट लूटना चाहते थे । इसी बात से तो मैं दहशत खा गया था, मालिक ! तभी तो मैं...”
“हरामजादे !” - बखिया चिंघाड़ा - “उतना ही बक जितना जरूरी हो ।”
माधव सहमकर चुप हो गया ।
“तू बेहोश कैसे हुआ ?”
माधव ने बताया ।
“यानी कि यहां क्या हुआ, तुझे कुछ नहीं मालूम ?”
उसने इनकार में सिर हिलाया ।
“उन दोनों के हुलिये बता ?”
माधव ने बताये । लेकिन बेकार । मूंछें नकली हो सकती थीं, चश्मे खामखाह लगाये हो सकते थे और उनमें से एक की लंगड़ी चाल नाटक हो सकती थी ।
फिर उन्होंने जोशी की तरफ तवज्जो दी । तब तक उसका चेहरा नीला पड़ने लगा था ।
परेरा ने खुद तसदीक की कि उसके जिस्म पर एक खरोंच तक नहीं थी ।
“इसका नीला पड़ता चेहरा तो” - रोडरीगुएज चिन्तित भाव से बोला - “इसके जहर से मरे होने की चुगली करता है ।”
“जहर !” - बखिया हड़बड़ाकर बोला - “कोई जबरदस्ती जहर कैसे खिला सकता है इसे ?”
“जबरदस्ती नहीं खिला सकता ।”
“तो ?”
“जहर जरूर इसने खुद खाया है ।”
“क्या ?”
“इसने आत्महत्या की है ।”
“क्यों ?”
“एक ही वजह हो सकती है इसके आत्महत्या करने की ।”
“क्या ?”
“कि यह वाल्ट की हिफाजत की अपनी जिम्मेदारी को ठीक से अंजाम न दे पाया ।”
“क्या ?” - बखिया भौंचक्का-सा उसका मुंह देखने लगा - “रोडरी ! तू कहना चाहता है कि वाल्ट खुल चुका है ?”
“हालात का इशारा तो इसी तरफ है ।”
“नामुमकिन ! वाल्ट नहीं खुल सकता । वाल्ट नहीं खुला है । वाल्ट बन्द है । वाल्ट महफूज है । अगर वाल्ट खुल गया होता तो जोशी की जेब से बरामद हुए रिमोट कण्ट्रोल पर स्क्रैम्बल का बटन न दबा होता ।”
रोडरीगुएज चुप रहा । लेकिन उसके चेहरे पर आश्वासन के भाव नहीं थे ।
“चौबीस घण्टे !” - बखिया ने दांत पीसते हुए अपने एक हाथ का घूंसा दूसरे हाथ की हथेली पर जमाया - “चौबीस घण्टे से पहले हमें यह मालूम नहीं हो सकता कि वाल्ट खुला था या नहीं खुला था । इन्तजार ! चौबीस घण्टे का इन्तजार ! जिस काम से बखिया को सबसे ज्यादा नफरत है, वह अब उसे जबरन करना पड़ेगा । इन्तजार ! इन्तजार !”
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तिलकराज बेहद खुश था । वह इतना खुश था कि उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे । महालक्ष्मी रेसकोर्स के पेट्रोल पम्प वाले अपने कारनामे को कामयाबी से अंजाम दिये हुए पूरा एक दिन गुजर चुका था लेकिन अभी भी उसे विश्वास नहीं आता था कि बीस लाख रुपये की विपुल धनराशि उसके हाथ लग गयी थी । कल से कितनी ही बार तो वह उस बैग में झांककर अपनी बेमिसाल कामयाबी के प्रति अपने-आपको आश्वस्त कर चुका था जिसमें कि लूट के नोट बन्द थे ।
अपने उससे पहले अंजाम दिए दो दर्जन कारनामों में तो उसे कभी पूरा एक लाख रुपया हासिल नहीं हुआ था, और यहां पूरे बीस लाख रुपये ! जहां तक उसका अंदाज था अपने पिछले तमाम कारनामों से भी उसे कुल जमा उतनी रकम हासिल नहीं हुई थी जितनी कि कल उसे हासिल हुई थी ।
और ऊपर से वह सौ फीसदी सुरक्षित था । अपना अपराध उसने सोहल के सिर थोप दिया था और फियेट की नम्बर-प्लेटें उतारकर उसे वह कल ही समुद्र के हवाले कर चुका था ।
पिछली रात अपने होटल के कमरे में वह अपनी कामयाबी का एक जश्न मना भी चुका था ।
पिछली रात वह जानीवाकर ब्लैक लेबल की पूरी बोतल पी गया था और सारी रात एक कॉलगर्ल को - जो कि होटल के उसके जाने-पहचाने वेटर ने उसे मुहैया कराई थी - अपने पहलू में दबोचे रहा था ।
कॉलगर्ल एक अच्छी-खासी लड़की थी जो उसे पांच सौ रुपये में हासिल हुई थी ।
लेकिन पांच सौ रुपये वाली वह कॉलगर्ल उस तिलकराज के लिये तो ठीक थी जिसने कभी पूरे एक लाख का मुंह नहीं देखा था, उस तिलकराज के लिए ठीक नहीं थी जिसकी अण्टी में बीस लाख रुपया था । यानी कि पिछली रात उसे शराब का ही मजा आया था, शबाब का नहीं । आज वह शबाब का मजा लेने के लिए दृढप्रतिज्ञ था ।
उस शाम जब वेटर उसके कमरे में आया तो वह उस पर बरस पड़ा - “मानेकर ! साले, कल रोकड़ा देकर लड़की लाया था कि किसी की बकरी खोल लाया था ?”
“बाप !” - वेटर खींसे निपोरता हुआ बोला - “बकरी तो फारस रोड पर बीस रुपये में मिलती है । अपनी सुमिता बाई तो एकदम हाई क्लास माल है ।”
“क्या हाई क्लास माल है ! साले, जानता भी है हाई क्लास माल क्या होता है ?”
“जानता तो अपुन बहुत कुछ है, बाप ।” - वेटर ने एकाएक हंसना बन्द कर दिया - “जानता तो अपुन ऐसा हाई क्लास माल भी है, जिसका तुम्हेरे से रोकड़ा नहीं भरा जाएगा ।”
“अच्छा !”
“हां ।”
“कितने रोकड़े में आता है ऐसा माल ?”
“क्या करोगे पूछकर, बाप ! कभी अण्टी में धांसू दम हो तो यह सवाल करना मानेकर से ।”
“मैं अभी कर रहा हूं यह सवाल ।”
“ऐसे माल के लिए कम-से-कम पांच हजार रुपैया चाहिए ।”
“पांच हजार !” - तिलकराज बोला - “एक छोकरी की एक रात के लिए ?”
“आधी रात के लिए । ऐसी छोकरी ग्यारह से पहले आती नहीं और पांच के बाद रुकती नहीं ।”
“और पांच हजार मांगती है ?”
“कम-से-कम ।”
“उसके जिस्म पर क्या सोने का बाल उगता है ?”
“यह अपुन को नहीं मालूम । अपुन बेचारा एक कड़का वेटर है । अपुन कभी ऐसी हाई क्लास छोकरी का जिस्म नहीं देखा ।”
“यह तेरा दावा है कि वह ‘चीज’ होगी ?”
“बाप, सुबह हस्पताल में आंख न खुले तो बोलना ।”
“ऐसा ?”
“हां । वैसे आंख कब्रिस्तान में भी खुल सकती है ।”
“थोबड़ा बन्द ।”
“कर लिया, बाप !”
“ठीक है । आज देखते हैं तेरी हाई क्लास छोकरी ।”
“बाप !” - वेटर अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “लॉटरी लगी है ?”
“तेरे को क्या !” - तिलकराज आंखें निकाल कर बोला ।
“अपुन को क्या !” - वेटर ने कन्धे भटकाए ।
“अब फूट जा और नवीं बोतल और नवीं छोकरी लेकर आ । पांच हजार वाली ।”
“बाप, बंडल तो नहीं मारेला है ?”
“बक मत ।”
“रोकड़ा एडवांस चाहिए ।”
“सारा ?”
“नक्को । अभी सिर्फ दो हजार ।”
तिलकराज ने उसे दो हजार रुपये दे दिये ।
***
रात के ग्यारह बज चुके थे ।
पिछले चार घण्टों से विमल और देवाराम मालाबार हिल पर जॉन रोडरीगुएज के बंगले के इर्द-गिर्द मंडरा रहे थे । पिछले चार घम्टों की जांच पड़ताल से वे इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सामने की तरफ से बंगले में दाखिल हो पाना असम्भव था ।
विमल के आतंक ने जॉन रोडरीगुएज को अतिरिक्त सावधानी बरतने पर मजबूर कर दिया मालूम होता था । दस बजे के करीब जब वह वहां लौटा था तो उसके साथ चार बॉडीगार्ड थे जो कि उसके सुरक्षित बंगले में पहुंच जाने के बाद भी वहां से लौट नहीं गए थे । गेट पर खड़े एक दरबान के अलावा तीन और पहरेदारों की वहां मौजूदगी का आभास उन्हें पहले ही मिल चुका था ।
अब गेट पर सशस्त्र दरबान बदस्तूर मौजूद था; दो आदमी भीतर कम्पाउण्ड में टहल रहे थे; एक पिछले कम्पाउण्ड के बरामदे में मौजूद था और बाकी बंगले के सामने के एक कमरे में ताश खेल रहे थे । यानी कि विमल के वहां आगमन के प्रति वे पूरी तरह खबरदार थे ।
पहली मंजिल के एक कमरे की खिड़की में विमल को दो-तीन बार जॉन रोडरीगुएज की झलक दिखाई दी थी । वह कमरा उसका बैडरूम हो सकता था ।
“पिछवाड़े में चलो ।” - देवाराम दबे स्वर में बोला - “भीतर दाखिल होने की कोई उम्मीद उधर से ही की जा सकती है ।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
मोड़ तक वे कार पर पहुंचे । फिर कार में से निकल कर वे दबे पांव पिछवाड़े की संकरी गली में दाखिल हो गए । दोनों काले कपड़े पहने हुए थे । वे रोडरीगुएज के बंगले के पिछवाड़े में पहुंचे ।
गैरेज के ऊपर के कमरे में रोशनी थी ।
“गैरेज के ऊपर क्या है ?” - विमल फुसफुसाया ।
“ड्राइवर का क्वार्टर ।” - देवाराम बोला - “वहां तक जाने के लिए सामने से लोहे की गोल सीढियां हैं लेकिन इमारत के भीतर से भी क्वार्टर तक पहुंचने का रास्ता हो सकता है ।”
“होना तो चाहिए ।”
“ऐसा रास्ता अगर हो तो हमारा काम बन सकता है ।”
“अच्छा !” - विमल सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“हां ।” - देवाराम बोला - “पिछवाड़े में एक ही गार्ड है लेकिन ड्राइवर के क्वार्टर तक पहुंचने के लिए हमें उसकी निगाह में नहीं आना पड़ेगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि बगल वाले बंगले की दीवार पर चढकर उस क्वार्टर की बाल्कनी तक पहुंचा जा सकता है । पहरेदारी सारी रोडरीगुएज के बंगले में है न कि उसके पड़ोसी के बंगले में । यहां पिछवाड़े से बगल के बंगले के कम्पाउण्ड में हम बेखटके दाखिल हो सकते हैं और फिर पहलू की दीवार पर भी बखूबी चढ़ सकते हैं ।”
“लेकिन अगर ड्राइवर के क्वार्टर से भीतर को कोई रास्ता न हुआ तो ?”
“तो भी हम कम से कम रोडरीगुएज के बंगले के भीतर तो होंगे । वहां से आगे रोडरीगुएज तक पहुंचने की भी कोई तरकीब खोज निकालेंगे । बात नहीं बनेगी तो जैसे वहां तक पहुंचेंगे; वैसे ही वापिस लौट आयेंगे ।”
“ड्राइवर के पास फोन भी जरूर होगा ।”
“तो क्या हुआ ?”
“उसके क्वार्टर में अभी रोशनी है । अगर उसे हमारी भनक लग गयी तो वह बंगले के भीतर फोन कर सकता है ।”
“हम उसे अपनी भनक नहीं लगने देंगे ।”
“उसकी बत्ती बुझने तक इन्तजार क्यों न किया जाए ?”
“ठीक है । इन्तजार कर लेते हैं ।”
लेकिन इन्तजार बेमानी साबित हुआ ।
एक घण्टे बाद भी ड्राइवर के क्वार्टर की बत्ती न बुझी ।
“या तो” - देवाराम बोला - “साला बत्ती बुझाना भूल गया है और या फिर यह कभी बत्ती बुझाता ही नहीं है ।”
“चलते हैं ।” - विमल निर्णयात्मक स्वर में बोला - “और इन्तजार बेमानी है ।”
देवाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
दोनों निर्विघ्न ड्राइवर के क्वार्टर की बाल्कनी तक पहुंच गए ।
बाल्कनी में एक कमरे की एक विशाल खिड़की और एक दरवाजा था । दोनों पर पर्दे खिंचे हुए थे जिनकी वजह से भीतर झांक पाना सम्भव नहीं था ।
विमल ने सावधानी से खिड़की के पल्लों और दरवाजों को चैक किया ।
सब बन्द थे ।
दरवाजे पर दस्तक देने के अलावा कोई चारा नहीं था ।
उसने हौले से दरवाजे को खटखटाया और रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली ।
“ठहरो” - भीतर से आवाज आयी - “खोलता हूं ।”
विमल ने हैरानी से देवाराम की तरफ देखा ।
वह सोच रहा था कि भीतर से पूछा जायेगा - ‘कौन है’ तो वह कह देगा कि रोडरीगुएज साहब ने उसे तलब किया था लेकिन वह तो वैसे ही, बिना पूछे कि कौन आया था; दरवाजा खोल रहा था ।
देवाराम ने भी रिवॉल्वर निकाल कर हाथ में ले ली और दरवाजे से थोड़ा परे सरक कर खड़ा हो गया ।
दरवाजा खुला । जिस्म पर ड्रेसिंग गाउन लपेटे एक आदमी चौखट पर प्रकट हुआ । वह रोडरीगुएज का ड्राइवर ही था । जिस मर्सिडीज पर रोडरीगुएज वहां पहुंचा था, विमल ने उसे उसकी ड्राइविंग सीट पर देखा था ।
विमल ने रिवॉल्वर की नाल से ही उसकी छाती को धक्का दिया और फिर वह और देवाराम आनन-फानन भीतर दाखिल हो गये ।
देवाराम ने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
“खबरदार !” - विमल कहरभरे स्वर में फुफकारा - “आवाज न निकले ।”
“जीसस !” - ड्राइवर कांपता हुआ बोला - “जीसस !”
“यहां जीसस आने वाला था ?” - विमल बोला ।
उसने इनकार में सिर हिलाया ।
“लेकिन कोई आने वाला था यहां ?”
उसने हामी भरी ।
“किसी और के धोखे में तुमने हमें दरवाजा खोल दिया है ?”
उसने फिर हामी भरी ।
“यहां कौन आने वाला था ?”
“तु... तुम कौन हो ?”
“हम तुम्हारे साहब के नजदीकी रिश्तेदार हैं ।” - विमल मीठे स्वर में बोला - “उसकी मिजाजपुर्सी के लिए यहां आए हैं ।”
“तुम... तुम वो तो नहीं ?”
“वो कौन ?”
“वही ?”
“वही कौन ?”
“वही, जो आजकल ‘कम्पनी’ की आंख में डण्डा किए हुए हैं ? सो... सोहल ? सोहल ?”
विमल मुस्कराया ।
“तुम वही हो ?” - वह बोला ।
“तुम्हें किसका इन्तजार था ?”
“तुम सोहल हो ?”
“मेरे सवाल का जवाब दे, हरामजादे !”
ड्राइवर का शरीर जोर से कांपा । उसने बोलने के लिए मुंह खोला लेकिन मुंह से बोल न फूटा ।
तभी देवाराम ने विमल का कन्धा छुआ और वहां बिछे पलंग के सिरहाने की तरफ इशारा किया ।
सिरहाने के नीचे से एक काले रंग की अंगिया झांक रही थी ।
तुरन्त विमल को समझ में सब कुछ आ गया ।
“ओह !” - वह बोला - “तो यह बात है ?”
ड्राइवर एकाएक परे देखने लगा ।
“इसे कवर करके रखना” - विमल देवाराम से बोला - “मैं आता हूं ।”
देवाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
वह ड्राइवर के सिर पर जा खड़ा हुआ और बड़े अर्थपूर्ण ढंग से रिवॉल्वर की नाल से उसके जबड़े पर दस्तक देने लगा ।
विमल आगे बढा ।
उसने पिछले कमरे में कदम रखा ।
पिछले कमरे में तीन बन्द दरवाजे थे । एक सामने की तरफ और दो दाईं दीवार में ।
सामने का दरवाजा क्वार्टर से बाहर निकलने के लिए था इसलिए विमल ने उसकी तरफ तवज्जो न दी ।
दायीं ओर के दोनों दरवाजों को उसने मजबूती से बन्द पाया ।
लेकिन उसने देखा कि एक दरवाजे में चाबी का छेद था लेकिन दूसरे में नहीं था ।
दूसरा दरवाजा जरूर बाथरूम का था - बाथरूम के दरवाजे में ही ताले का वैसा इन्तजाम गैर जरूरी समझा जाता था ।
उसने नीचे झुककर चाबी के छेद में आंख लगायी ।
आगे उसे एक लम्बा प्रकाशित गलियारा दिखाई दिया ।
यानी कि वह दरवाजा ड्राइवर के क्वार्टर को बाकी इमारत से मिलाता तो था, लेकिन बन्द होना साबित करता था कि वह वक्त जरूरत बंगले की तरफ से ही खोला जाता था ।
वह सीधा हुआ ।
उसने दूसरे दरवाजे पर दस्तक दी और धीरे से बोला - “बाहर आ जाओ । अब कोई नहीं है ।”
तुरन्त दरवाजा खुला ।
वह बाथरूम ही था ।
अपने से कई नाप बड़े एक मर्दाने गाउन में लिपटी एक लड़की चौखट पर प्रकट हुई ।
विमल पर निगाह पड़ते ही उसके मुंह से एक सिसकारी निकली । उसने तुरन्त दरवाजा बन्द करने की कोशिश की लेकिन विमल ने उसे वैसा न करने दिया । उसने हाथ बढाकर लड़की की बांह थामी और उसे बाथरूम से बाहर खींच लिया ।
“यह मुझे जबरदस्ती यहां लाया था ।” - वह फरियाद सी करती हुई बोली ।
“क्यों नहीं !” - विमल उसे पिछले कमरे की तरफ धकेलता हुआ बोला - “क्यों नहीं !”
“मैं सच कह रही हूं ।”
“जरूर ।”
उसने लड़की की ड्राइवर के समीप धकेल दिया ।
फिर उसने ड्राइवर को गिरहबान से पकड़ लिया और उसे झिझोड़ता हुआ सांप की तरह फुफकारा - “एक सैकेण्ड में बोलो; क्या माजरा है ? कौन आने वाला था यहां ?”
“खान...” - वह थर-थर कांपता हुआ बोला, “खान... खान...”
“कौन खान ?”
“खानसामा ।”
“खानसामा ?”
“इसी लड़की की वजह से ?”
“हां ।”
“तुम दोनों ने एक लड़की की इन्तजाम किया था ?”
“हां ।”
“यह मुझे जबरदस्ती यहां लाया था ।” - लड़की बड़े दयनीय स्वर में बोली ।
“शट अप !”
लड़की सहमकर चुप हो गयी ।
“खानसामे ने यहां कब आना था ?” - विमल ने पूछा ।
“अब तक उसे आ जाना चाहिए था ।” - ड्राइवर बोला ।
“श श !” - एकाएक देवाराम बोला ।
विमल खामोश हो गया ।
बाहर लोहे की सीढी पर किसी के भारी कदम पड़ रहे थे ।
एक क्षण बाद दरवाजे पर दस्तक हुई ।
“पूछो, कौन है ?” - विमल ड्राइवर के कान में बोला ।
“कौन ?” - ड्राइवर बोला ।
“मैं !” - बाहर से आवाज आई - “अहमद ।”
“खानसामा है ?” - विमल बोला ।
“हां ।” - ड्राइवर बोला ।
“उसे भीतर बुलाओ । कोई शरारत की तो गोली मार देंगे ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
विमल और देवाराम दरवाजे के दायें बायें हो गए ।
ड्राइवर ने आगे बढकर दरवाजा खोला ।
ड्राइवर के ही हम उम्र एक आदमी ने भीतर कदम रखा ।
विमल ने पीछे से उसे सामने धक्का दे दिया और दरवाजा बन्द कर दिया ।
वह घूमा ! अपने सामने काले लिबास वाले दो सशस्त्र आदमियों को पाकर उसने चिल्लाने के लिए मुंह खोला तो देवाराम ने अपनी रिवॉल्वर की नाल उसके हलक में घुसेड़ दी ।
“मरना चाहते हो ?” - वह धीरे से बोला ।
उसने आतंकित भाव से इनकार में सिर हिलाया । आतंक से उसकी आंखें फटी पड़ रही थीं ।
“हमारे पास” - देवाराम बोला - “आसान तरीका यह है कि हम तुम सबको शूट कर दें ।”
“मैं बेकसूर हूं ।” - लड़की ने आर्तनाद किया - “यह मुझे जबरदस्ती...”
“चुप !” - विमल आंखें निकालकर बोला - “आवाज न निकले ।”
यह फिर खामोश हो गयी ।
“लेकिन” - देवाराम बोला - “क्योंकि हमारी नौकरों-चाकरों से कोई अदावत नहीं इसलिए हम तुम्हारी जानबख्शी कर सकते हैं ।”
“मेहरबानी होगी, साहब !” - खानसामा गिड़गिड़ाया ।
“ठीक है ।” - देवाराम बड़ी दयानतदारी से बोला - “समझ लो, तुम्हारी जान बच गयी ।” - उसने अपनी जेब से सिल्क की एक पतली डोरी निकालकर ड्राइवर की तरफ उछाल दी - “दोनों की मुश्के कस दो और मुंह में कपड़ा ठूंस दो ।”
ड्राइवर तुरन्त आगे बढा ।
खानसामा ने कतई एतराज नहीं किया, लड़की का एतराज विमल की एक घुड़की ने खत्म कर दिया ।
कुछ ही क्षणों में लड़की पलंग पर और खानसामा फर्श पर बंधा पड़ा था ।
फिर विमल ड्राइवर की तरफ बढा ।
“एक बात बता दो ।” - ड्राइवर गिड़गिड़ाता हुआ बोला ।
“क्या ?”
“तुम साहब का क्या करोगे ?”
“हो सकता है, कल तुम्हें नयी नौकरी तलाश करनी पड़े ।”
“तुम मेम साहब का भी कत्ल करोगे ?”
“रोडरीगुएज की बीवी का ?”
“हां ।”
“नहीं ।”
“फिर मुझे नयी नौकरी नहीं तलाश करनी पड़ेगी । भाई साहब, मुझे जरा मजबूती से बांधना । बाद में किसी को यह न लगे कि मैं अपने बन्धन खोल सकता था और लोगों की खबरदार कर सकता था ।”
“नहीं लगेगा ।”
“दो-चार करारे हाथ जमाकर मेरा थोबड़ा भी सुजा दो तो और भी मेहरबानी होगी ।”
विमल की हंसी निकल गयी ।
उसने मजबूती से ड्राइवर की मुश्कें कस दीं ।
“यहीं से” - फिर वह देवाराम से बोला - “इमारत को रास्ता है । मैं देखकर आया हूं ।”
“वैरी गुड ।” - देवाराम बोला ।
“लेकिन उसको ताला लगा हुआ है ।”
“चाबी इसके पास होगी ।”
“मेरे पास नहीं है ।” - ड्राइवर बोला - “उस दरवाजे मे मेरा कोई मतलब नहीं होता । वह तभी बंगले की तरफ से खोला जाता है जब कभी किसी गैरमामूली वक्त पर मेरी जरूरत महसूस की जाती है ।”
“यहां टेलीफोन नहीं है ?”
“नहीं ।”
विमल ने देवाराम की तरफ देखा ।
“ताला खोल लेंगे ।” - वह पूरे विश्वास के साथ बोला ।
“कैसे ? गोली मारकर ?”
“नहीं । आंख मारकर ।”
विमल ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“अब हिलो ।”
विमल ने ड्राइवर के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया ।
दोनों पिछले कमरे में पहुंचे ।
देवाराम ने अपनी जैकेट की जेब में से कुछ औजार निकाले और ताले की मिजाजपुर्सी में जुट गया । पांच मिनट में उसने ताला खोल लिया ।
“बल्ले !” - विमल प्रशंसात्मक स्वर में बोला ।
उन्होंने क्वार्टर की सारी बत्तियां बुझा दीं और फिर उस दरवाजे के रास्ते बंगले की पहली मंजिल पर कदम रखा ।
गलियारे में वे आगे बढे । गलियारे के पहले सिरे पर एक और दरवाजा था जो हल्के-से धक्के से ही खुल गया ।
आगे एक हॉल था । हॉल के दायें सिरे पर एक कोने में से नीचे को जाती सीढियां दिखाई दे रही थीं ।
सब तरफ सन्नाटा था ।
विमल मन-ही-मन हिसाब लगाने की कोशिश करने लगा कि जिस कमरे को वह रोडरीगुएज का बैडरूम समझ रहा था, वह उस मंजिल पर कहां हो सकता था ।
तभी बंगले में कहीं घड़ियाल में एक बजाया ।
***
तिलकराज जैसे किसी व्यक्ति को तलाश करने का ‘कम्पनी’ का स्टैण्डर्ड तरीका यह था कि उसकी बाबत बम्बई के सारे अण्डरवर्ल्ड में चुपचाप यह खबर फैला दी जाती थी कि उस आदमी की खुद काले पहाड़ को तलाश थी और उसकी खोजखबर देने वाले का इतना इनाम-इकराम दिया जाता था जितने की कि वो कल्पना नहीं कर सकता था ।
कई बार तो ऐसा भी होता था कि ‘कम्पनी’ के किसी तिलकराज जैसे दुश्मन ने ‘कम्पनी’ का उतना नुकसान नहीं किया होता था जितना कि उसका अता-पता बताने वाले को इनाम दे दिया जाता था ।
इसी वजह से ‘कम्पनी’ के ऐसे दुश्मन की तलाश का वह तरीका हमेशा कामयाब होता था ।
अण्डरवर्ल्ड की तरह ही ‘कम्पनी’ की अपनी या बम्बई में देह-व्यापार में लगी और हर किसी एजेन्सी को भी खबरदार कर दिया जाता था । यूं माल लूटने वाले शख्स से हमेशा ही यह अपेक्षित होता था कि वह अपनी कमाई का कोई आनन्द जरूर उठाएगा, वह अपनी कामयाबी को सैलीब्रेट जरूर करेगा ।
और शराब और शबाब के बिना कहीं कोई सैलीब्रेशन मुकम्मल होती थी !
तिलकराज की यह भी बदकिस्तमी थी कि पांच हजार रुपये वाली जो बाई उसके होटल का वेटर उसके लिए लाया, वह मिसेज पिन्टो के वेश्यालय से आयी थी ।
बाई का नाम जजाबेल था । वह रंगत में तनिक सांवली लेकिन इन्तहाई खूबसूरत, क्रिश्चियन लड़की थी ।
तिलकराज उसे देखते ही खुश हो गया ।
जजाबेल को भी इस बात की खबर थी कि ‘कम्पनी’ को बम्बई में उस आदमी की तलाश थी जिसने कि रेसकोर्स वाले पेट्रोल पम्प से बीस लाख रुपया लूटा था ।
तिलकराज पर उसे आते ही शक हो गया कि वह एक मामूली होटल के एक मामूली कमरे में रहने वाला एक मामूली आदमी था । जजाबेल की अनुभवी निगाहों ने फौरन भांप लिया कि वह कोई ऐसा आदमी नहीं था जो कि आम हालात से पांच हजार रुपये प्राइस की कॉलगर्ल से तफरीह करना अफोर्ड कर सकता ।
यानी कि तब हालात आम नहीं थे । तिलकराज के ‘ब्लैकडाग’ की बोतल को हैंडल करने के ढंग ने भी इस बात की चुगली की । निश्चय ही वह कोई हमेशा स्कॉच विस्की पीने वाला आदमी नहीं था । ठर्रे की तरह उस कीमती शराब के दो पैग पी चुकने के बाद तो कहीं जाकर उसे जजाबेल से यह पूछना सूझा था कि क्या वह भी विस्की पियेगी ।
जजाबेल ने हामी भर दी ।
दोनों ने एक-एक पैग साथ पिया ।
“अब शुरू करें प्रोग्राम ?” - जजाबेल ने बड़े चित्ताकर्षक ढंग से मुस्कराते हुए पूछा ।
“करते हैं ।” - तिलकराज बड़ी शाइल्तगी से बोला - “जल्दी क्या है ?”
“मुझे तो कोई जल्दी नहीं । लेकिन शायद तुम्हें जल्दी हो ।”
“मुझे भी तो कोई जल्दी नहीं ।”
“शायद हो । क्योंकि पांच बजे मैं चली जाऊंगी ।”
“मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा ।” - तिलकराज बोला । अब नशा उस पर हावी हो रहा था ।
“जाने नहीं दोगे ?” - जजाबेल हड़बड़ाई - “क्या मानेकर ने तुम्हें बताया नहीं कि मैं पांच बजे...”
“बताया है । बताया है ।”
“तो फिर ?”
“मैं तुम्हारी और फीस भर दूंगा ।”
“अच्छा ! बहुत रोकड़ा है तुम्हारे पास ?”
“रोकड़ा तो मेरी जान, मेरे पास इतना है कि मैं तुम्हें उम्र भर के लिए खरीद सकता हूं ।”
“यह बात ?”
“हां । यह बात ।”
“फिर मुझे क्या जल्दी है ?” - जजाबेल ने अपने दोनों हाथ अपने सिर से ऊपर उठाकर एक तौबाशिकन अंगड़ाई ली और फिर इठलाती हुई बोली - “विस्की की यह एक ही बोतल है या और भी मंगाई हुई हैं ?”
“नहाना चाहती हो विस्की से ?” - तिलकराज बड़ी शान से बोला ।
“नहीं ।” - वह हंफती हुई बोली - “सिर्फ हाथ-मुंह धोना ही काफी होगा ।”
“धुलवा देंगे । धुलवा देंगे । एक बात बताओ ।”
“पूछो ।”
“तुम्हारी कोई स्पैशलिटी है ?”
“स्पैशलिटी ?” - जजाबेल सकपकाई ।
“हां ।” - तिलकराज तनिक आगे को झुका और बड़े लालसापूर्ण स्वर में बोला - “मैंने सुना है कि हर हाई प्राइस्ड छोकरी की कोई स्पैशलिटी होती है और उसी की वजह से वह हाई प्राइस्ड होती है । अगर सिर्फ टांगें फैलाने के पांच हजार रुपये होते हैं तो...”
“ओह ! अब समझी मैं तुम्हरी बात ।”
अब जजाबेल को पूरी तरह विश्वास हो गया कि उसका वह ग्राहक कोई हल्का छिछोरा आदमी था जिसने कि हाई प्राइस्ड कॉलगर्ल्स के किस्से ही सुने थे, किसी से कभी उसका वास्ता नहीं पड़ा था । यानी कि मोटा माल खर्चने का हौसला उसमें ताजा-ताजा ही आया था ।
जजाबेल मन-ही-मन खुश होने लगी । उसे अपनी आंखों के सामने नोटों की वे गड्डियां लहराती दिखाई देने लगीं जो बखिया की जाती शाबाशी के साथ उसे हासिल हो सकती थीं ।
“हां ।” - वह बोली - “है मेरी भी एक स्पैशलिटी ।”
“क्या ?” - तिलकराज लार-सी टपकाता हुआ बोला ।
“जुबानी सुनोगे” - जजाबेल इठलाई - “या एक्शन में देखोगे ?”
“एक्शन में । एक्शन में देखूंगा ।”
“तो फिर तैयार हो जाओ कम्बैट की ड्रेस में आ जाओ ।”
“कम्बैट की ड्रेस ?” - तिलकराज ने उल्लुओं की तरह पलकें झपकाई ।
“मुकाबले की पोशाक ।”
“वो कौन-सी होती है ?”
“जो नहीं होती ।”
“कौन-सी नहीं होती ?”
“यह नहीं होती ।”
और जजाबेल ने अपने जिस्म के कपड़े उतारकर एक तरफ उछाल दिए ।
तिलकराज की भूखी निगाहें उसके सांचे में ढले जिस्म पर फिरने लगीं ।
फिर उसने भी आनन-फानन अपने जिस्म से नोचकर अपने कपड़े उतारे ।
तब तक जजाबेल डबल बेड पर पहुंच चुकी थी ।
तिलकराज वहां पहुंचा तो उसने उसे यूं अपनी बांहों में ले लिया जैसे वह सृष्टि का इकलौता मर्द था जो कि उसे पसन्द आया था ।
“अब देखो मेरी स्पैशलिटी ।” - जजाबेल उसके कान में फुसफुसाई ।
“दिखाओ ।” - तिलकराज अभी से हांफने लगा - “दिखाओ ।”
अगले दो घण्टों में जजाबेल ने उसे बिस्तर में ऐसी कलाबाजियां खिलवाईं कि तिलकराज के फरिश्ते पनाह मागं गए । वैसी स्त्री-सुख उसे पहले कभी हासिल होना तो दूर, उसकी कल्पना से भी परे था । वह जजाबेल का शैदाई बन गया । इस हद तक शैदाई बन गया कि वह आने वाले दिनों के लिए उसे तभी से बुक करने की कोशिश करने लगा ।
“डार्लिग !” - जजाबेल बोली - “इसे अपनी खुशकिस्मती समझो कि मैं तुम्हें आज भी हासिल हो गयी हूं ।”
“क्यों ?” - तिलकराज हड़बड़ाया - “जब मैंने तुम्हारा पूरा रोकड़ा भरा है तो...”
“रोकड़े की बात नहीं है । पांच हजार रुपये कोई बहुत बड़ी रकम नहीं होती । इसे कोई भी कर सकता है ।”
“तो क्या बात है ?”
“मैं मानेकर की रिक्वेस्ट पर किसी तरह से यहां आ गयी हूं । मेरी मैडम मुझे कॉल पर इतने मामूली होटल में भेजने को तैयार नहीं हो रही थी ।”
“ओह ! लेकिम मैं बढिया जगह का इन्तजाम कर सकता हूं ।”
“उसमें रोकड़ा लगता है ।”
“अरे, रोकड़े की क्या कमी है मेरे पास !”
“विश्वास नहीं होता ।”
“किस बात पर ?”
“कि तुम्हारे पास रोकड़े की कमी नहीं ।”
“क्यों ?”
“जिस आदमी के पास रोकड़े की कमी न हो, वो क्या इस घटिया होटल में रहेगा ?”
“मेरी जान !” - तिलकराज उसे छाती से लगाकर भींचता हुआ बोला - “यह बीते हुए कल की बात है ।”
“फिर भी विश्वास नहीं होता ।” - जजाबेल ऐसे स्वर में बोली जैसे वह उसकी अंटी पर नहीं, उसके पौरुष पर शक कर रही हो ।
“ठीक है । मैं पहले तुम्हें विश्वास ही दिलाता हूं ।”
“दिलाओ ।” - जजाबेल चैलेंज-भरे स्वर में बोली ।
और शराब और शबाब के दोहरे नशे की वजह से अक्ल के दुश्मन बने तिलकराज ने वह बैग लाकर जजाबेल के सामने रख दिया जो बीस लाख के नोटों से ठूंसा हुआ था ।
***
घड़ियाल की आवाज बंगले के स्तब्ध वातावरण में बहुत जोर से गूंजी । बाहर बंगले के बहुत करीब से एक कार की आवाज आयी । फिर घण्टी बजी ।
विमल और देवाराम दोनों ने ही पहले यही समझा था कि किसी और घड़ियाल ने एक बजाया था लेकिन फिर तत्काल ही उन्होंने अनुभव किया कि इस बार बंगले की कॉलबेल बजी थी ।
कोई आया था । इतनी रात गए कोई आया था ।
दोनों की निगाहें मिलीं ।
नीचे से कोई दरवाजा खुलने और बन्द होने की आवाज आयी ।
“यहीं ठहरो” - एक आवाज आई - “मैं साहब को खबर करता हूं ।”
फिर किसी के सीढियां चढने की आवाज आयी ।
दोनों फौरन वापस गलियारे में पहुंच गए । अपने सामने दरवाजा उन्होंने इस प्रकार भिड़का दिया कि उसमें एक बारीक-सी झिरी बनी रहे ।
एक गार्ड झिरी में से विमल को दिखाई दिया । उसने हॉल में आकर पहले सिरे के एक दरवाजे पर दस्तक दी ।
“क्या है ?” - विमल को रोडरीगुएज की आवाज साफ सुनायी दी ।
“सोमानी आया है ।”
“इस वक्त ?”
“हां ।”
“क्या चाहता है ?”
“आपसे मिलना चाहता है । फौरन ।”
“मैं नीचे आता हूं ।”
“बेहतर ।” - गार्ड वापिस चला गया ।
कुछ क्षण बाद एक ड्रेसिंग गाउन पहने हॉल में रोडरीगुएज प्रकट हुआ । वह सीधा सीढियों की तरफ बढा ।
सीढियों पर पड़ते कदमों की आवाज आनी बन्द हो गई तो वे दरवाजे की ओट से बाहर निकले । दबे पांव वे सीढियों के दहाने पर पहुंचे ।
“सोमानी” - नीचे से रोडरीगुएज की रुष्ट आवाज आयी - “यह वक्त है आने का ?”
“बॉस !” - एक नयी घबघराती-सी आवाज आई - “ऐसी टकसाली सिक्के की तरह खन-खन करती खबर है कि अगर मैं सवेरे आया होता तो आपने मुझ पर खफा हो जाना था कि मैं फौरन क्यों न आया ।”
“अच्छा !”
“बस, बॉस !”
“अगर ऐसी खबर न हुई तो आपकी खैर नहीं, जनाब ।”
“मंजूर । लेकिन बॉस...”
“अब क्या है ?”
“यह हजार दमड़े से कहीं ज्यादा कीमत की खबर है ।”
“अब कुछ बकेंगे भी आप ?”
“यह सोमानी” - विमल देवाराम के कान में बोला - “कम्पनी का कोई भेदिया मालूम होता है ।”
देवाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
“बॉस !” - एकाएक सोमानी के स्वर में रहस्य का पुट आ गया और वह इतना धीमा हो गया कि उसकी आवाज बड़ी कठिनाई से पहली मंजिल तक पहुंच पायी - “मेरे को मालूम है, शान्ताराम के भाई कहां छुपे हुए हैं ।”
देवाराम बुरी तरह से चौंका ।
विमल ने उसका कन्धा दबाकर उसे आश्वासन दिया और उसे खामोश रहने का इशारा किया ।
“सच कह रहे हैं आप ?” - रोडरीगुएज की आवाज आयी ।
“एकदम सच कह रहा हूं, बॉस ! आज तक मेरी लाई कोई खबर कभी गलत हुई है ?”
“फिर तो समझ लीजिये कि आपका डबल इनाम पक्का ।”
“डबल ! बस ?”
“अच्छा, अच्छा ! आज आप यहां से खुश होकर जायेंगे, बहुत खुश होकर जायेंगे, उम्मीद से ज्यादा खुश होकर जायेंगे ।”
“थैक्यू बॉस !”
“कहां हैं वे हरामजादे ?”
“बॉस, वे वरसोवा में मछुआरों की बस्ती के एक मकान में छुपे हुए हैं ।”
“इस वक्त वे वहीं हैं ?”
“हां । लेकिन बास...”
“हां ।”
“वो सरदार वहां नहीं है ।”
“सोहल वहां नहीं है ?”
“हां । वहां सिर्फ शान्ताराम के दो भाई हैं । मैंने बहुत इन्तजार किया लेकिन सोहल या बाकी के दो भाई वहां लौटकर नहीं आये ।”
“आपने वहां किसी को निगरानी पर छोड़ा है ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“मैंने जरूरत नहीं समझी । मकान में मौजूद दोनों भाइयों के गहरी नींद सो चुकने के बाद ही मैं वहां से टला था ।”
“आपकी गैरहाजिरी में सोहल वहां पहुंच सकता है ।”
“वह वहां पहुंचेगा । तो अब इतनी रात गये जायेगा कहां, बॉस ?”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“हम अभी बरसोवा चल रहे हैं ।” - एकाएक रोडरीगुएज का निर्णयात्मक स्वर सुनाई दिया - “मैं कपड़े बदलकर आता हूं ।”
विमल और देवीराम तुरन्त सीढियों के पास से हट गये । वे लपककर उस दरवाजे के सामने पहुंचे जिसमें से उन्होंने रोडरीगुएज को बाहर निकलते देखा था ।
देवाराम ने दरवाजे को धक्का दिया । वह बैडरूम ही था । दोनों भीतर दाखिल हुए । वहां बिछे विशाल पलंग पर सम्पूर्ण नग्नावस्था में रोडरीगुएज की नौजवान बीवी लेटी हुई थी । लगता था, रोडरीगुएज को बड़ी नाजुक हालत में अपनी नौजवान बीवी का पहलू छोड़कर बाहर जाना पड़ा था ।
अपने पति के स्थान पर दो अन्य व्यक्तियों के भीतर कदम रखता पाकर उसके मुंह से एक आश्चर्य और आतंक-भरी सिसकारी निकली, फिर बिजली की फुर्ती से पलंग के पायताने का कम्बल उसने अपने ऊपर खींच लिया ।
देवाराम पलक झपकते उसके सिर पर पहुंच गया था ।
“खबरदार !” - वह बड़े हिंसकस्वर में बोला - “आवाज न निकले ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया । उसकी आंखे बड़े आतंकित भाव से उसकी कटोरियों में फिरीं ।
“हमारी तुमसे कोई अदावत नहीं है ।” - विमल धीरे से बोला - “इसलिये अपनी जान की सलामती चाहती हो तो उठकर बाथरूम में चली जाओ ।”
“तुम” - उसके मुंह से निकला - “वही हो जो...”
“हां, मैं वहीं हूं ।” - विमल उसकी बात काटता हुआ जल्दी से बोला - “ठीक पहचाना तुमने । पिछली बार जब मैं यहां आया था तो मैंने तुम्हारी एक उंगली भी नहीं छुई थी लेकिन इस बार हो सकता है कि तुम्हारी एक उंगली ही तम्हारे जिस्म का वो हिस्सा बाकी रह जाए जिसे मैंने छुआ न हो ।”
उसके शरीर ने जोर की झुरझुरी ली ।
“जल्दी बाथरूम में पहुंचो, वर्ना मजबूरन मुझे गोली चलानी पड़ जाएगी ।”
कम्बल लपेटे वह पलंग पर से उठी ।
“जल्दी करो ।” - विमल चेतावनीपूर्ण स्वर में बोला - “और आवाज न निकले ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“यहां” - वह कम्पित स्वर में बोली, “क्या होने वाला है ?”
“खास कुछ नहीं ।” - विमल सहज भाव से बोला - “सिर्फ विधवा होने वाली हो तुम ।”
उसके नेत्र और फट पड़े लेकिन चुपचाप बाथरूम में चले जाने में उसने हुज्जत न की ।
बाहर हॉल में से करीब आते कदमों की आहट आयी । दोनों लपककर बन्द दरवाजे के दायें-बायें हो गए । दोने के हाथों में रिवॉल्वर थी । दोनों पूरी तरह से सावधान थे ।
दरवाजा खुला । रोडरीगुएज ने भीतर कदम रखा ।
***
तिलकराज जजाबेल के लगभग ऊपर चढकर सोया हुआ था । जजाबैल ने उसके नीचे से निकलने की कोशिश की तो तिलकराज कुनमुनाया । उसने करवट बदली तो वह जजाबल के ऊपर से तो हट गया लेकिन उसकी एक बांह एक खतरनाक अजगर की तरह जजाबेल की नंगी छातियों के ऊपर से होती हई उसके जिस्म से लिपट गयी ।
जजाबेल खामोश पड़ी रही ।
दस मिनट बात उसने धीरे से तिलकराज की बांहें अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की तो तिलकराज फिर कुनमुनाया ।
“क्या है ?” - नशे और नींद में डूबी आवाज में तिलकराज बोला ।
“कुछ नहीं ।” - जजाबेल मादक स्वर में बोली - “कुछ नहीं डार्लिंग !”
“मुझे ऐसा लगा था जैसे तुम मुझे छोड़कर जा रही हो ।”
“वो तो ठीक लगा था ।”
“क्या ?” - तिलकराज हड़बड़ाया ।
“लेकिन सिर्फ दो मिनट के लिये ।”
“दो मिनट के लिए ?”
“टॉयलेट !”
“ओह ?” - तिलकराज ने खुद ही अपनी बांह उसके जिस्म से अलग कह ली ।
जजाबेल उठी ।
तिलकराज ने करवट बदल ली । उसकी सांसों के साथ उसकी नाक में से सीटी जैसी आवाज निकलने लगी ।
जजाबेल जल्दी-जल्दी कपड़े पहनने लगी ।
यह उसकी खुशकिस्मती थी कि उस मामूली होंटल के मामूली कमरे में अटेच्ड बाथरूम नहीं था । टॉयलेट गलियारे के सिरे पर सब कमरों के लिए कॉमन था । उसने एक सावधान निगाह तिलकराज पर डाली और धीरे से कमरे से बाहर निकल गयी । टॉयलेट की तरफ बढने के स्थान पर वह नीचे की तरफ बढी ।
नीचे रिसैप्सन काउण्टर पर उसने एक टेलीफोन पड़ा देखा था जो कि शायद वहां का इकलौता टेलीफोन था । रिसैप्शन पर उसने रिसैप्शनिस्ट के स्थान पर काउण्टर पर सिर डाले मानेकर को सोया पाया । वह दबे पांव काउण्टर के समीप पहुंची, झिझकते हुए उसने वहां पड़े टेलीफोन की तरफ हाथ बढाया । रिसीवर हाथ में लेकर उसने कम-से-कम आवाज करते हुए डायल पर ‘कम्पनी’ के सिपहसालार दण्डवते का नम्बर घुमाना शुरू किया ।
अभी जजाबेल ने दो ही नम्बर घुमाए थे कि मानेकर ने काउण्टर पर से सिर उठाया । वह घबराकर एक कदम पीछे हट गयी । डायल पर से उसका हाथ हट गया ।
मानेकर कुछ क्षण उलझनपूर्ण ढंग से यू उसकी तरफ देखता रहा जैसे उसे पहचान न पा रहा हो, फिर एकाएक वह हड़बड़ाकर बोला - “तुम ? यहां नीचे ? क्या बात है ?”
“टेलीफोन कर रही हूं ।” - जजाबेल तनिक दिलेरी से बोली ।
“किसे ? क्यों ?”
“अरे, मानेकर !” - वह दबे स्वर में झुंझलाई - “यह तुम्हारा साहब साला आदमी है या राक्षस ?”
“क्यों, क्या हुआ ?”
“लगता है, पहली बार औरत के साथ लेटा है । भूख ही नहीं मिट रही उसकी, अब कह रहा है एक लड़की और बुलाओ ।”
“क्या ?”
“सैंडविच । सैंडविच बनना चाहता है साला हलकट ।”
“सैंडविच ? वो कैसे ?”
“अरे आजू-बाजू दो लड़कियां और बीच में वो । बिल्कुल सैंडविच की तरह ।”
“ओह ! लेकिन इतनी रात गए, अब दूसरी लड़की कहां से आएगी ?”
“आ जायेगी । ज्यास्ती रोकड़े में आ जायेगी । मेरे बुलाये आ जायेगी ।”
“लेकिन बाई, मेरी कमीशन का क्या होगा ?”
“तुम्हारी कमीशन तुम्हें मिल जायेगी ।”
“फिर क्या वान्दा है । लगाओ फोन ।”
जजाबेल की हिम्मत बंध गयी । उसने लाइन काटकर फिर से नम्बर डायल किया ।
दूसरी तरफ घण्टी बजने लगी । कुछ क्षण बाद किसी ने फोन उठाया और झुंझलाये स्वर में पूछा - “क्या है ? कौन है ?”
“जजाबेल ।”
“कौन जजाबेल ?”
“होटल विशाल । रूम नम्बर एक सौ पांच । चिंचपोकली रेलवे स्टेशन के सामने । चौराहे के पास । ओके ?”
“क्या बकती है ? क्या है वहां ?”
“बकरा । तुम्हारे काम का ।”
“लेकिन...”
“फौरन आने का है । अण्डरस्टैण्ड ।”
और जजाबेल ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया । वहां से जाने को वह घूमी तो मानेकर धीरे से बोला - “बाई बाई !”
“क्या है ?” - जजाबेल बोली ।
“एक बात बोलने का है ।”
“बोलो ।”
“कमीशन के बदले में कभी अपुन को एक राइड मारने का मौका दो न ।”
“क्या ?” - जजाबेल आंखें निकालकर बोली - “क्या बोला ?”
“कुछ नहीं ।” - वह हड़बड़ाया - “अपुन कुछ नहीं बोला ।”
“कुछ कैसे नहीं बोला ? कुछ तो बोला ।”
“अरे कुछ नहीं बोला बाई, अपुन यूं ही नींद में बड़बड़ाया ।”
जजाबेल ने एक आखिरी वार आंखें तरेरकर उसे देखा और फिर सीढिया चढ गयी । वह कमरे में पहुंची तो उसने तिलकराज को पूरी तरह से जगा पाया । वह हड़बड़ाई । फिर उसने जबरन मुस्कराते हुए अपने पीछे दरवाजे को बन्द किया और जल्दी-जल्दी अपने कपड़े उतारने लगी ।
“क्या बात है ?” - तिलकराज सन्दिग्ध भाव से बोला - “टॉयलेट में इतनी देर लगा दी ?”
“सॉरी डार्लिंग !” - वह अपने स्वर में मद घोलती हुई बोली । फिर निर्वस्त्र होते ही वह पलंग पर चढ गयी और तिलकराज को दोबारा मौका दिए बिना उसने उसे अपने आगोश में भर लिया ।
“लेकिन...” - तिलकराज ने कहना चाहा ।
“चुप ।” - वह उसके होंठों पर अपनी चुबान फेरती हुई, बोली - “अच्छे बच्चे ज्यादा नहीं बोलते ।”
तिलकराज पर फिर नौजवान जिस्म की खुमारी तारी होने लगी ।
“डार्लिंग !” - वह उसके एक कान की लौ को अपने दांतों से काटती हुई बोली ।
“हां ।” - तिलकराज फंसे स्वर में बोला ।
“मेरी एक और स्पैशलिटी के लिए तैयार हो जाओ ।”
जजाबेल के उस एक ही फिकरे ने तिलकराज की तबियत खुश कर दी । उसके देर से लौटने की बाबत जितने सवाल उसके जहन में थे, वे सब उसे भूल गए ।
“वाह !” - खुद अपनी किस्मत पर रश्क करता हुआ वह मन-ही-मन बोला - “क्या छोकरी मिली है !”
***
अपने पीछे दरवाजा बन्द करने के लिए रोडरीगुएज वापिस घूमा तो उसने दरवाजे के दायें-बायें खड़े दो काले लिबास वाले व्यक्तियों को अपनी तरफ देखता पाया । दोनों के हाथ में रिवॉल्वर थीं और दोनों के होंठों पर एक बड़ी विद्रुपपूर्ण मुस्कराहट थी । रोडरीगुएज केवल एक क्षण के लिए हड़बड़ाया और फिर संभल गया ।
“आप सोहल हैं ?” - वह सुसंयत स्वर में बोला ।
“करैक्ट ।” - विमल बोला - “बड़ा साहब पूरे नम्बरों से पास ।”
“और आप” - रोडरीगुएज देवाराम की तरफ घूमा - “जरूर शान्ताराम का कोई भाई होंगे ?”
देवाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यानी कि” - रोडरीगुएज तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोला - “चींटी के भी पर निकल रहे हैं ।”
देवाराम के चेहरे पर क्रोध के भाव प्रकट हुए । रिवॉल्वर पर उसकी उंगलियां कस गयी ।
विमल को इस बात से बड़ी मायूसी हुई थी कि रोडरीगुएज यूं उन्हें अपने सामने पाकर भयभीत नहीं हुआ था ।
“क्या चाहते हैं आप लोग ?” - रोडरीगुएज ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा ।
“यह भी कोई” - विमल हंसा - “पूछने की बात है ?”
“क्या चाहते हैं आप लोग ?” - रोडरीगुएज ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“मैंने तुम्हें वार्निंग दी थी ।”
“कैसी वार्निंग ?”
“कि आने वाले दिनों में अपने अंगरक्षकों को अपने जरा ज्यादा करीब रखने की कोशिश करना ।”
“आप मेरा कत्ल करना चाहते हैं ?”
“तुम्हारा और तुम्हारे जैसे ‘कम्पनी’ के हर ओहदेदार का । नीलम की जान के बदले में मैंने एक हजार जानें न लीं तो मेरा भी नाम सोहल नहीं ।”
“आप नीलम की वजह से मेरा खून करना चाहते हैं ?”
“जाहिर है !”
“अगर मैं यह कहूं कि हमने नीलम की जान नहीं ली, अगर मैं यह कहूं कि नीलम जिन्दा है...”
“तो मैं कहूंगा कि तुमसे बड़ा झूठा दुनिया में कोई नहीं । तो मैं यह भी कहूंगा कि ऐसे झूठ बोलकर तुम अपनी जानबख्शी नहीं करवा सकते ।”
“नीलम न सिर्फ जिन्दा है बल्कि एकदम सही-सलामत है ।”
“क्या बक रहे हो ?”
“मैं बक नहीं रहा, हकीकत बयान कर रहा हूं, नीलम...”
देवाराम की रिवॉल्वर ने आग उगली ।
गोली रोडरीगुएज के माथे में जाकर लगी ।
वह कटे वृक्ष की तरह कारपेट बिछे फर्श पर गिरा ।
देवाराम ने एक और फायर उसकी छाती में किया ।
“यह क्या किया तुमने ?” - विमल तीखे स्वर में बोला ।
“ठीक किया ।” - देवाराम सन्तुष्टिपूर्ण स्वर में बोला ।
“वह नीलम के बारे में कुछ बताने जा रहा था ।”
“वह झूठ बोलकर तुम्हें भरमाने जा रहा था । वह नीलम की बाबत तुम्हें एक झूठी, बेमानी उम्मीद बंधाने जा रहा था । वह तुम्हें तुम्हारी पसन्दीदा बातों में लगाना चाहता था ।”
“लेकिन...”
तभी सीढियों पर धम्म-धम्म पड़ते कदमों की आवाज आयी ।
“गोली की आवाज नीचे सुन ली गयी है ।” - देवाराम जल्दी से बोला - “यह बहस का वक्त नहीं । अपनी जान बचाने की सोचो ।”
विमल दरवाजे के पास पहुंचा । उसकी ओट में से उसने बाहर झांका । सीढियों के दहाने पर पहला आदमी प्रकट होते ही उसने फायर कर दिया ।
एक चीख की आवाज वातावरण में गूंजी । गोली खाया गार्ड सीढियों पर पीछे आते अपने साथियों पर उलट गया ।
सीढियों की रेलिंग को ओट से उस दिशा में फायर होने लगे ।
विमल और देवाराम सीढियों की तरफ गोलियां बरसाने लगे ।
कुछ क्षण बाद विमल ने महसूस किया कि देवाराम उसके पहलू में नहीं था । उसने घूमकर देखा तो देवाराम को बैडरूम की बाल्कनी का दरवाजा खोलता पाया । पता नहीं वह क्या करना चाहता था ।
विमल का ध्यान फिर सीढियों की तरफ चला गया । वह जानता था कि उनकी सलामती इसी में थी कि गार्ड सीढियों से आगे न बढने लगें । लेकिन तब तक ? कब तक यह सिलसिला चल सकता था ? देवाराम ने एकाएक गोली चलाकर सब गड़बड़ कर दी थी । उसने जरा सब्र से काम लिया होता तो वे खामोशी से रोडरीगुएज का खून करके जिधर से आये थे, उधर से ही वापिस जा सकते थे ।
विमल ने एक बार घूमकर देखा तो देवाराम उसे बाल्कनी में न दिखाई दिया । कहां गायब हो गया था देवाराम ?
विमल बड़ी सावधानी से सीढियों की तरफ फायर करता रहा । किसी हाथ-पांव या सूरत की हल्की-सी झलक उसे सीढियों पर दिखाई देती थी तो वह उस पर फायर झोंक देता था । वह दरवाजे के पीछे उकडूं बैठा हुआ था और उसके सिर के ऊपर गोलियों की बरसात-सी हो रही थी ।
एकाएक नीचे की तरफ से कई फायर एक साथ हुए । सीढियों पर चीख-पुकार मच गयी । तरह-तरह की आवाजों से वातावरण गूंज गया । विमल की तरफ फायरिंग होनी एकाएक बन्द हो गयी । फिर सीढियों के दहाने पर देवाराम प्रकट हुआ ।
विमल ने सख्त हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“चलो ।” - देवाराम बोला ।
विमल उठकर हॉल में भागा । सीढियों के पास पहुंचकर उसने देखा कि सीढियां मृत गार्डो की लाशों से अटी पड़ी थीं ।
जिस गलियारे में से होकर वे वहां पहुंचे थे, उसमें उन्होंने वापिस कदम रखा ।
“सारे गार्ड सीढियों में जमा थे ।” - देवाराम ने बिना पूछे बताया - “मैं बैडरूम की बाल्कनी से नीचे खड़ी एक कार की छत पर कूद गया था और फिर बंगले के खुले मुख्य द्वार में से दाखिल होकर सीढियों पर उनके पीछे पहुंच गया । सबकी मेरी तरफ पीठ थी । मैंने दस सेकेण्ड में सबको भून डाला । सालों को पता नहीं लगा होगा कि वे कैसे मर गये ।”
“शाबाश !” - विमल बोला ।
ड्राइवर के क्वार्टर के रास्ते से ही वे बंगले से बाहर निकले और अपनी कार में सवार हो गये । ड्राइविंग सीट पर देवाराम बैठा । उसने फौरन कार को वहां से यूं भगाया जैसे तोप से गोला छूटा हो ।
“अब जल्दी क्या है ?” - विमल हड़बड़ाकर बोला - “कौन हमारे पीछे आने वाला है ?”
“पीछे कोई नहीं आने वाला ।” - देवाराम चिन्तित भाव से बोला - “कोई आगे है जिसे हमने पकड़ना है ।”
“किसे ?”
“सोमानी नाम के उस आदमी को जो यहां हमारे वरसोवा वाले ठिकाने की खबर लाया था । वह निकल भागा है ।”
“ओह !”
“मैंने उसकी कार देखी थी । वह हमसे जरा ही आगे होगा । मैं पकड़ लूंगा साले को । उसका बच निकलना मेरे भाइयों के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है । यहां के वाकयात की खबर वह रास्ते में कहीं से फोन करके ‘कम्पनी’ को कर सकता है । हम वरसोवा से बहुत दूर मुम्बई के लगभग दूसरे सिरे पर हैं जब कि जुहू वहां से बहुत करीब है । वह जुहू फोन करने में कामयाब हो गया तो मैं अपने भाइयों को वार्निंग तक नहीं दे पाऊंगा । वे बेमौत मारे जायेंगे ।”
उस बल खाती पहाड़ी सड़क पर देवाराम ने ऐसी तूफानी रफ्तार से गाड़ी दौड़ाई कि विमल के प्राण कांप गये । हर मोड़ पर उसे लगता था कि गाड़ी या तो किसी खड्ड में जाकर गिरेगी और या किसी पेड़ से जा टकराएगी लेकिन ऐसा कुछ न हुआ । देवाराम विमल की उम्मीद से कहीं ज्यादा दक्ष ड्राइवर था ।
“वह रही उस हरामी के पिल्ले की गाड़ी ।” - एकाएक देवाराम अपने सामने सुनसान सड़क पर मौजूद एक इकलौती फियेट की तरफ इशारा करता हुआ बोला ।
फियेट भी हवा से बाते करती हुई सड़क पर दौड़ रही थी ।
विमल ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली और खिड़की में से हाथ निकालकर उस पर अन्धाधुंध गोलियां बरसानी आरम्भ कर दीं । बेशुमार गोलियों में से कोई तो फियेट के किसी टायर से टकरानी ही थी, एक टकराई ।
वातावरण तुरन्त ब्रेकों की चरचराहट से गूंज गया ।
उनकी गाड़ी के सामने फियेट एक शराबी की तरह सारी सड़क पर डगमगाने लगी । बड़ी मुश्किल से वह कहीं टक्कर खाये बिना सड़क पर रुकने में कामयाब हुई ।
देवाराम ने उससे थोड़ा आगे अपनी गाड़ी को ले जाकर रोका और उसमें से बाहर सड़क पर कूद गया ।
सोमानी भी अपनी कार से निकल आया था और भागता हुआ एक अन्धेरी तंग गली की पनाह में पहुंचने की कोशिश कर रहा था ।
देवाराम ने उसके पीछे भागना बन्द कर दिया । वह बीच सड़क में बैठ गया । उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ अपने एक घुटने पर टिका लिया और बड़ी सावधानी से रिवॉल्वर का घोड़ा खींचा । अगले ही क्षण भागता हुआ सोमानी पछाड़ खाकर सड़क पर गिरा । उसका शरीर एक बार ऐंठा और फिर निश्चेष्ट हो गया ।
देवाराम उसके समीप पहुंचा । उसने अपने जूते से उसके सिर को टहोका । उसका सिर सीधा हुआ तो देवाराम को आसमान की तरफ उठी उसकी पथराई हुई आंखें दिखाई दीं ।
वह मर चुका था ।
देवाराम ने रिवॉल्वर जेब में रख ली और बड़े सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाता हुआ कार की तरफ वापस लौटा ।
विमल हैरान था । वह बीस साल का छोकरा इतना दुर्दान्त हत्यारा कैसे हो सकता था ?
***
मैक्सवैल परेरा ने तिलकराज को जजाबेल के पहलू से नोच कर अलग किया ।
जजाबेल ने शान्ति की एक लम्बी सांस ली । वह पलंग पर से उठी और बड़े निर्विकार भाव से अपने कपड़े पहनने लगी ।
तिलकराज ने जजाबेल का वह मूड देखा तो वह पलक झपकते ही समझ गया कि सारा किया-धरा उसी का था ।
“हरामजादी !” - वह नफरत-भरे स्वर में बोला - “धोखेबाज !”
परेरा ने उसे अपने साथ आये प्यादों की बांहों में धकेल दिया ।
“स्पैशलिटीज का बहुत शौक था न तुम्हें ।” - जजाबेल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “डार्लिंग, यह भर मेरी एक स्पैशलिटी है । जरा इसका भी आनन्द लो ।”
“कमीनी ! कुतिया !”
एक प्यादे ने उसकी पसलियों में एक वजनी घूंसा रसीद किया ।
“माल कहां है ?” - परेरा ने पूछा ।
जजाबेल के कमरे की इकलौती अलमारी की तरफ संकेत पर परेरा ने नोटों से भरा बैग वहां से बरामद कर लिया ।
“सॉरी, स्वीट हार्ट !” - जजाबेल की तरफ देखकर वह मुस्कराया और खेदपूर्ण स्वर में बोला - “मैं गहरी नींद से जागा था इसलिए तुम्हारी बात जरा देर से समझा था ।”
“शुक्र है खुदा का” - जजाबेल बोली - “कि समझे तो थे ।”
परेरा फिर मुस्कराया ।
जजाबेल परेरा को ‘कम्पनी’ के एक ओहदेदार के रूप में जानती थी ।
“लेकिन मैंने तो दण्डवते को फोन किया था ।” - वह बोली ।
“फोन मैंने सुना था ।”
“तुमने ?”
“हां ।” - वह तनिक गर्वपूर्ण स्वर में बोला - “आजकल ‘कम्पनी’ का सिपहसालार मैं हूं ।”
“अच्छा ! दण्डवते को क्या हुआ ?”
“वह गायब है । हो सकता है, उसका कत्ल हो गया हो ।”
“ओह !”
“मैं तुम्हारे नाम से वाकिफ नहीं था लेकिन इत्तफाक से मेरा एक प्यादा तुम्हारे नाम से वाकिफ था और वह तुम्हारी टेलीफोन कॉल के वक्त मेरे पास मौजूद था । उसने मुझे बताया कि तुम कौन हो तो मैं फौरन समझ गया था कि असल में क्या माजरा था । मैं आंधी-तूफान की तरह यहां पहुंचा हूं ।”
“वैरी गुड ।” - उसने एक निगाह तिलकराज पर डाली - “देख लो, मैंने गलत नहीं कहा था । बकरा तुम्हारे काम का है ।”
“बहुत ज्यादा काम का है ।” - यह कहते हुए परेरा प्यादों के बीच नंगधड़ंग तिलकराज के पास पहुंचा ।
तिलकराज परेरा को नहीं जानता था लेकिन उसे अपने आपको ‘कम्पनी’ का सिपहसालार बताते जानकर वह भय से थर-थर कांपने लगा था ।
“यह” - परेरा उसे नोटों से भरा बैग दिखाता हुआ बोला - “पेट्रोल पम्प की सेफ का माल है ?”
तिलकराज के मुंह से बोल न फूटा । वह जल्दी-जल्दी सहमति में सिर हिलाने लगा ।
“कितना निकाला ?”
“द... द... दस... दस ह...हजार ।”
“कपड़े पहन ।”
थर-थर कांपता तिलकराज दो प्यादों की मदद से बड़ी मुश्किल से कपड़े पहन पाया ।
***
रोडरीगुएज के बंगले पर मचे कत्लेआम की खबर बखिया तक लगभग फौरन ही पहुंच गयी ।
गोलियों की आवाज आनी बन्द होते ही रोडरीगुएज की नौजवान बीवी बाथरूम से निकल आयी थी । उसने अपने पति को बेडरूम के फर्श पर मरा पाया । उसने सीढियों को गार्डों की लाशों से अटा पाया । उसने फौरन ‘कम्पनी’ को फोन किया ।
रोडरीगुएज के कत्ल की चोट बखिया पर बहुत भारी गुजरी । यही गनीमत थी कि क्रोध में वह पागल न हो गया । आखिर रोडरीगुएज उसका दायां हाथ था और वह उसे औलाद की तरह अजीज था ।
सोहल ने उसका दायां हाथ काट डाला था ।
सोहल ने उसे बेऔलाद कर दिया था ।
सोहल ! सोहल !
बखिया ने मुट्ठियां भींचते हुए दांत किटकिटाये, क्रोध में उसने अपने बाल नोच डालने में कसर न छोड़ी ।
उस वक्त अगर सोहल उसके हाथ में आ जाता तो वह अपने खाली हाथों से ही उसका सुरमा बना देता ।
बखिया के गुस्से और बेबसी के उस मूड ने बड़ा ड्रामाई रुख अख्तियार किया ।
अगली सुबह जीवाराम की लाश चैम्बूर में उसके घर के सामने के एक बिजली के खम्बे के साथ लटकी पायी गयी । लाश के गले में एक गत्ता लटका हुआ था जिस पर जीवाराम के ही खून से मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था -
दो गये । बाकी बचे तीन
***
उस रोज सुबह-सवेरे पुलिस कमिश्नर की मौजूदगी में नीलम का आमना-सामना करवाया गया ।
“यह सोहल की सहेली है ।” - घोरपड़े आग्नेय नेत्रों से नीलम को घूरता हुआ निसंकोच बोला ।
“पक्की बात ?” - कमिश्नर बोला ।
“एकदम पक्की बात, कमिश्नर साहब ! डोगरा साहब के कत्ल में सोहल के साथ यह हरामजादी भी शरीक थी ।”
“खबरदार ! गाली नहीं । गाली नहीं ।”
“माफी देना साहब !”
“तुम सोहल को जानते-पहचानते हो ?”
“तब नहीं पहचानता था जब वह डोगरा का पता जानने की नीयत से इसे रोजी बनाकर और खुद कालीचरण बनकर मेरे पास आया था । लेकिन अब जानता हूं । अब जानता हूं कि वह कालीचरण और कोई नहीं, मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्रसिंह सोहल था और यह उसके साथ थी ।”
“तुमसे पहचान में कोई भूल तो नहीं हो रही ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता, साहब !”
“हूं ।”
कमिश्नर ने एक हवलदार की तरफ इशारा किया ।
हवलदार घोरपड़े को वहां से ले गया ।
घोरपड़े नीलम को यूं घूरता हुआ वहां से विदा हुआ कि अगर निगाहों से किसी का कत्ल करना मुमकिन होता तो नीलम कब की मर चुकी होती ।
“अब बोलो ।” - कमिश्नर नीलम की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मैं क्या बोलूं ?” - नीलम बोली ।
“कुछ तो बोलो ।”
“जब आप ही इतना अच्छा-अच्छा बोल रहे हैं तो मेरे बोलने की जरूरत ही कहां है ?”
“तुम अब भी इनकार करती हो कि तुम सोहल की सहयोगिनी हो ?”
“कौन सोहल ?”
“देखो, इतनी ढिठाई अच्छी नहीं ।”
“तो कितनी ढिठाई अच्छी है ?”
कमिश्नर ने कहर-भरी निगाहों में उसकी तरफ देखा । नीलम परे देखने लगी ।
“तुम कहीं यह तो नहीं समझ रही हो कि सोहल तुम्हें यहां से छुड़ाकर ले जायेगा ?”
नीलम ने उत्तर न दिया ।
“अगर ऐसी कोई उम्मीद तुम्हारे मन में पनप रही है तो उसे निकाल दो । गुण्डे-बदमाशों से उलझना और पुलिस से टक्कर लेना एक ही बात नहीं है । समझीं ?”
“समझी ।”
“वह तुम्हें यहां से छुड़ाकर नहीं ले जा सकता ।”
“कौन ?”
“सोहल । और कौन ? तुम्हारा साथी ।”
“मैं किसी सोहल को नहीं जानती ।”
कमिश्नर ने अपना माथा पीट लिया ।
***
वागले ने बिजली के खम्भे के साथ लटकी जीवाराम की लाश देखी । वह उसकी तरफ बढा तो उसने पाया कि वह दर्जनों निगाहों में था । उसने लाश के पास न फटकने में ही अपना कल्याण समझा । उसी ने पुलिस को फोन किया ।
पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और फिर खम्भे पर से जीवाराम की क्षत-विक्षत लाश उतारी गयी ।
लाश को पुलिस ले गयी तो मायूस होकर ‘कम्पनी’ के ये प्यादे भी वहां से टल गये जो लाश के माध्यम से शान्ताराम के भाइयों का मौजूदा ठिकाना मालूम होने की उम्मीद में वहां की निगरानी कर रहे थे ।
वागले वरसोवा पहुंचा । उसने जीवाराम की नृशंस हत्या की खबर उसके भाइयों को सुनायी । उस खबर ने तीनों भाईयों को हिलाकर रख दिया । वह बखिया की शक्ति और सामर्थ्य की अपने-आपमें बहुत बड़ी दस्तावेज थी ।
“सिर पर कफन बांध लो, भाइयो !” - तुकाराम ने घायल शेर की तरह चीत्कार किया - “अब हमें बखिया से खुलकर दो-दो हाथ करने से भी गुरेज नहीं । अब हम छुपकर नहीं बैठने वाले । अब हम या तो बखिया की जान ले लेंगे या अपनी जान दे देंगे ।”
बालेराम और देवाराम ने उसके सिंहनाद का अनुमोदन किया, लेकिन विमल खामोश रहा । जीवाराम की मौत का उसे भी कम अफसोस नहीं हुआ था ।
“हम बखिया के हैडक्वार्टर पर हमला करेंगे ।” - तुकाराम बोला ।
“हम” - विमल ने विशेष तौर से ‘हम’ का प्रयोग किया ताकि वे उसे अपने से बाहर न समझें - “बखिया के पास भी नहीं फटक पायेंगे ।”
“लेकिन” - बालेराम आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “बखिया की मौत ही हमारे भाई की मौत का बदला बन सकता है ।”
“यकीनन” - विमल बोला - “लेकिन बखिया यूं नहीं मरने वाला । यूं बखिया के हैडक्वार्टर पर आक्रमण करना आत्महत्या के समान होगा । हमने उसके दस-बीस आदमी हलाक कर भी दिये तो क्या हुआ ? बखिया के पास क्या आदमियों की कमी है ? लेकिन अगर हम बखिया के पास न फटक पाये तो ऐसा कोई कदम उठाने का क्या फायदा होगा ?”
“तो क्या करें हम ? हाथ पर हथ रखकर बैठे रहें ?”
“हरगिज भी नहीं । लेकिन हमें आवेश से नहीं, युक्ति से काम लेना चाहिये ।”
“युक्ति ?”
“हां । वैसे ही जैसे हमने रोडरीगुएज का काम तमाम करने के लिए युक्ति से काम लिया था ।”
लेकिन कोई युक्ति सोचने के लिये दिमाग पर जोर देने की नौबत न आयी । युक्ति की जगह उन्हें तैयार माल मिल गया ।
टेलीफोन की घण्टी बजी । फोन देवाराम ने उठाया ।
“तुकाराम !” - दूसरी ओर से कोई बोला ।
“आप कौन ?”
“तुकाराम को फोन दो ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“लाल सूरज ।”
“लाल-सूरज ! क्या मतलब ?”
“फोन मुझे दो ।” - एकाएक तुकाराम अपने भाई से फोन झपटता हुआ बोला - “हल्लो ! हल्लो !”
“तुकाराम ?”
“हां । बोल रहा हूं ।”
“तुकाराम, मैं तुम्हारा वही खैरख्वाह बोल रहा हूं जिसने कल बुम सब लोगों को बखिया की गिरफ्त में आने से बचाया था । पहचाना ?”
“पहचाना ।”
“देख लो । मेरी खबर गलत नहीं निकली थी ।”
“शुक्रिया ।”
“जिस होशियारी से तुमने रोडरीगुएज का सफाया करके बखिया का दायां हाथ काटा है, वह काबिलेतारीफ है ।”
“लेकिन हमारा एक भाई भी तो हलाक हो गया ।”
“जंग में नफा-नुकसान चलता ही है, बिरादर ।”
“हां । अब कैसे फोन किया ?”
“तुम्हें एक ऐसी खबर सुनाने के लिये जिससे तुम बखिया का ही पत्ता साफ कर सकते हो ।”
“अच्छा !” - तुकाराम धड़कते दिल से बोला ।
“हां, मैं तुम्हें एक बहुत ही गोपनीय खबर दे रहा हूं ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“आज शाम सात बजे बखिया अपने बीमार भाई से मिलने कल्याण जा रहा है ।”
“अकेला ?”
“बिल्कुल अकेला तो वह कभी कहीं नहीं जाता लेकिन कम-से-कम अपने लाव-लश्कर के बिना जा रहा है ।”
“यानी ?”
“उसके साथ उसके ड्राइवर के अलावा सिर्फ एक बॉडीगार्ड होगा ।”
“लेकिन मैंने सुना है, वह हमेशा बुलेटप्रूफ गाड़ी में सफर करता है ?”
“ठीक सुना है तुमने । इस बार भी वह बुलेटप्रूफ गाड़ी में ही होगा ।”
“तो ?”
“लेकिन इस बार उसकी बुलेटप्रूफ गाड़ी का पिछला शीशा बुलेटप्रूफ नहीं होगा ।”
“अच्छा !”
“हां । और इस बात की खबर खुद बखिया को नहीं होगी । उसके बॉडीगार्ड या ड्राइवर को नहीं होगी । किसी को नहीं होगी ।”
“पक्की बात ?”
“एकदम पक्की बात ।”
“कल्याण में बखिया के भाई का पता ?”
“मुझे नहीं मालूम । लेकिन यह हो नहीं सकता कि कल्याण में बाजबहादुर बखिया को बच्चा-बच्चा न जानता हो ।”
“हूं ।”
“आठ बजे बखिया कल्याण में अपने भाई के पास होगा ।”
“लौटेगा कब ?”
“अगली सुबह ।”
“जानकारी के लिए शुक्रिया ।”
“शुक्रिया तो हुआ लेकिन अगर बखिया का फातिहा पढकर दिखाओ तो मानें बिरादर !”
“कल्याण गया बखिया वापिस बम्बई नहीं लौटेगा ।”
“जानकर खुशी हुई ।”
“तुम अपना परिचय नहीं होगे ?”
“अभी नहीं । वक्त आने पर मैं खुद तुमसे आकर मिलूंगा ।”
“वक्त कब आयेगा ?”
“जल्द । बहुत जल्द । तब तक के लिए खुदा हाफिज ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
***
विमल, बालेराम और देवाराम एक कार में सवार होकर कल्याण पहुंचे । वहां बाजबहादुर बखिया के बंगले का पता उन्हें चुटकियो में मालूम हो गया ।
बंगला आबादी से अलग थलग एक तनहा जगह पर निकला । बंगले के आगे एक घना बाग था जिसमें से गुजरता अर्द्ध वृत्ताकार ड्राइव-वे बंगले की पोर्टिको तक पहुंचता था । वह ड्राइव-वे कोई दो फर्लांग लम्बा था । यानी कि बंगले के कम्पाउण्ड के फाटक में और बंगले में कोई दो फर्लांग का फासला था । बंगले के चारों तरफ बंगले और बंगले को घेरती हुई एक ऊंची चारदीदारी थी लेकिन उसे फांदना कोई बड़ी बात नहीं थी । बंगले में नौकर चाकरों की कमी नहीं थी लेकिन बंगले में या उसके इर्द-गिर्द कोई पहरेदारी जैसा इन्तजाम उन्हें न दिखाई दिया । बाहर कम्पाउण्ड के फाटक पर एक दरवान जरूर बैठा था लेकिन उसे भी उन्होंने कई बार कितनी कितनी देर तक फाटक पर से गायब हो जाते देखा ।
एक लम्बी मन्त्रणा के बाद वे इसी नतीजे पर पहुंचे कि बखिया को कहीं शूट किया जा सकता था तो बंगले और बाहर के फाटक के बीच की दो फर्लांग की राहदारी में । वहां गाड़ी की रफ्तार मामूली होना लाजामी था और राहदारी के इर्द-गिर्द उसी झाड़ियों में या उनसे परे उगे पेड़ों में बखूबी ओट ली जा सकती थी ।
बखिया को कल्याण तक की भरी सड़क पर शूट करना खतरे से खाली नहीं था और तेज रफ्तार गाड़ी में उस पर ठीक से निशाना लगा पाना भी मुश्किल था । आगे गाड़ी के पोर्टिको में जा लगने पर भी वह काम असम्भव हो जाने वाला था ।
“वह रात आठ बजे के करीब जब यहां पहुंचेगा” - वालेराम बोला - “तो तब तक यहां अन्धेरा छा चुका होगा । चारदीवारी फांद कर यहां झाड़ियों में आ छुपना मामूली काम होगा । जब उसकी गाड़ी झाड़ियों से गुजरेगी तो गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा बखिया मुझसे मुश्किल से दस फुट दूर होगा । मैं बड़ी आसानी से उसे अपनी गोली का निशाना बना लूंगा ।”
“ऐसा तुम करोगे ?” - विमल बोला ।
“हां ।” - बालेराम बोला ।
“मैं क्यों नहीं ?” - विमल बोला ।
“मैं क्यों नहीं ?” - देवाराम बोला ।
“क्योंकि मेरा निशाना तुम दोनों से बढिया है ।” - बालेराम बोला - “देवा जानता है ।”
“लेकिन...” - विमल ने कहना चाहा ।
“लेकिन वेकिन कुछ नहीं ।” - बालेराम दृढ स्वर में बोला - “यह काम मेरे ही काबिल है । तुम बाहर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठोगे और देवा चारदीवारी पर लेटे हुए मुझे वापिस दीवार पर चढाने के लिए तैयार रहेगा । बखिया को गोली मारते ही हमने एक सैकेण्ड भी नष्ट किए बिना यहां से फूट जाना है ।”
“अगर पिछला शीशा बुलेटप्रूफ निकला तो ?” - देवाराम सन्दिग्ध भाव में बोला ।
“तो बखिया नहीं मरेगा । बस । हम पर कोई आंच फिर भी नहीं आने वाली । जब तक उन लोगों को सूझेगा कि कार पर गोली चलाई गयी थी और फिर जब तक कार रुकेगी, और बखिया का बॉडीगार्ड उसमें से बाहर निकलेगा, तब तक तो हम कार में सवार होकर यहां से कूच भी कर चुके होंगे ।”
“यह भी हो सकता है” - विमल बोला - “कि गोली चलने पर बखिया का ड्राइवर गाड़ी रोकने की जगह पोर्टिको की सुरक्षा में पहुंचने के लिए उसकी रफ्तार बढा दे !”
“सरासर हो सकता है ।” - बालेराम बोला ।
“लेकिन” - देवाराम बोला - “अगर बखिया अकेला न हुआ तो ? उसके आगे पीछे बॉडीगार्ड से लदी और भी गाड़ियां हुईं तो ?”
“तो हमारा ऑपरेशन फेल हो जाएगा और क्या ! तो हमें ठण्डे ठण्डे वापिस लौट आना पड़ेगा ।”
“हूं ।”
फिर वे वापिस बम्बई लौट गये ।
***
ठीक पांच बजे बखिया अपने कम्प्यूटराइज्ड वाल्ट के दरवाजे के सामने मौजूद था । उस वक्त उसके साथ केवल मैक्सवैल परेरा था । कम्प्यूटर का इलेक्ट्रिक रिमोट कण्ट्रोल बटन वह दबा चुका था । एक मिनट बाद कम्प्यूटर में से एक पर्ची निकली । बखिया ने बड़े व्यग्र भाव से पर्ची पर झपट्टा मारा । उसने पर्ची पर लिखा नम्बर पढा और पर्ची के कई टुकड़े करके उन्हें हवा में उड़ा दिया । दरवाजे पर लगे डायल पर उसने वह नम्बर डायल किया । हैंडल पकड़कर उसने दरवाजा खोला । भीतर निगाह पड़ते उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गयी । भीतर सोना ही एक चीज थी जो पिघल चुकने के बाद भी सलामत, किसी काबिल लग रही थी । बाकी सब स्वाहा हो चुका था ।
करोड़ों की हेरोइन ! नोटों की गड्डियां ! लिटल ब्लैक बुक हर चीज स्वाहा !
तबाही के उस आलम में डायरी की सलामती नामुमकिन थी लेकिन फिर भी बखिया ने सेफ में मौजूद सामान के भग्नावशेषों को कुरेद कुरेदकर देखा, उसे डायरी की राख तक न मिली ।
“सोहल !” - वह दांत किट-किटाता हुआ बोला - “सोहल ! बखिया तेरा खून पी जाएगा ! बखिया तेरी बोटी-बोटी को चील कौओं का निवाला बनाकर छोड़ेगा । बखिया तेरी हस्ती मिटा देगा !”
बखिया का वह रौद्ररूप देख कर परेरा को डर लगने लगा कि क्रोध के आधिक्य में बखिया कहीं पागल न हो जाए ।
सोहल की वह उसको सबसे बड़ी - रोडरीगुएज का मौत से भी बड़ी - चोट थी ।
जो वाल्ट रिर्जव बैंक से ज्यादा सुरक्षित और अभेद्य समझा जाता था, उसे न सिर्फ उसने खोला था बल्कि जैसे बखिया का मुंह चिढाने के लिए, उसमें मौजूद उसी चीज को नष्ट किया था जो उसको सबसे ज्यादा अजीज थी, जिसमें उसकी जान थी ।
बड़ी कठिनाई से परेरा ने बखिया को वाल्ट के सामने से हटाया । विमल की उस सबसे करारी चोट को सहलाता हुआ बखिया होटल लौट गया ।
***
अपने भाई के लिए जो व्हील चेयर बखिया गोवा से बनवा कर लाया था, वह नाम को ही व्हील चेयर थी, वास्तव में तो वह एक सीट वाली कार थी जिसमें कार से कहीं ज्यादा सुविधायें और कण्ट्रोल थे । केवल स्विच दबाने से ही वह आगे दौड़ सकती थी, बैक हो सकती थी, यू टर्न ले सकती थी और दायें से बायें या बायें से दाये सरक सकती थी । कुर्सी की पीठ को किसी भी पोजीशन में एडजस्ट किया जा सकता था और पायदान इस कदर ऊंचा उठ सकता था कि कुर्सी पर बैठने के स्थान पर लेटा जा सकता था ।
बखिया की बुलेटप्रूफ इम्पाला कार की छत पर लगेज कैरियर लगा हुआ था । उसके ड्राइवर और बॉडीगार्ड ने मिल कर व्हील चेयर को लगेज कैरियर पर रखकर नायलोन की रस्सियों की सहायता से उसे मजबूती से बांध दिया था ।
फिर बॉडीगार्ड ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली और बोला - “मैं साहब को लेकर आता हूं । तुम पांच मिनट में कार को मारकी में ला खड़ा करना ।”
ड्राइवर ने सहमति में सिर हिलाया ।
गार्ड कार के पास से हटा और लम्बे डग भरता हुआ होटल में दाखिल हो गया ।
पांच मिनट बाद छ: पैग व्हिस्की के नशे में पनाह की तलाश करता बखिया अपने बॉडीगार्ड के साथ जब नीचे पहुंचा तो बाहर उसने अपनी कार न लगी पायी ।
“गाड़ी कहां है ?” - वह दहाड़ा ।
बॉडीगार्ड ने घबराकर बाहर निगाह दौड़ाई तो उसने बखिया की इम्पाला को अभी भी पार्किंग में ही खड़ी पाया । उसकी ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर मौजूद था और वह बहुत बदहवास दिखाई दे रहा था । बॉडीगार्ड लपककर उसके पास पहुंचा ।
“क्या बात है ?” - वह बोला - “तुम...”
“गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही ।” - ड्राइवर परेशान स्वर में बोला ।
“स्टार्ट नहीं हो रही क्या मतलब ?”
“स्टार्ट नहीं हो रही का मतलब स्टार्ट नहीं हो रही । अच्छी भली थी यह । अब पता नहीं, क्या हो गया है इसे !”
“साले ! यह कोई वक्त था गाड़ी खराब करने का ?”
“मैंने थोड़े ही की है ।”
“तो और किसने की है ? गाड़ी को चौकस रखने की जिम्मेदारी तेरी है या किसी और की ?”
“लेकिन गाड़ी तो एकदम चौकस थी ।”
तभी बखिया भी वहां पहुंच गया । वह कभी यूं होटल की सुरक्षा से बाहर कदम नहीं रखता था लेकिन उस वक्त वह ऐसी बारीकियों पर निगाह रखने के मूड में नहीं था ।
“क्या हुआ गाड़ी को ?” - वह गर्जा ।
“पता नहीं, साहब ।” - ड्राइवर थर-थर कांपता हुआ बोला - “स्टार्ट नहीं हो रही ।”
“क्यों स्टार्ट नहीं हो रही ?”
“मालूम नहीं, साहब, अभी अच्छी भली थी लेकिन...”
“जब स्टार्ट नहीं हो रही तो क्या अच्छी भली हुई ?”
तभी कम्पाउण्ड में एक मर्सडीज कार दाखिल हुई और ऐन उनके करीब आकर रुकी । कार की पिछली सीट पर अमीरजादा आफताब खान बैठा था । बखिया को देखकर वह तुरन्त कार से बाहर निकला ।
“क्या हुआ, जनाब ?” - उसने पूछा ।
“साहब कल्याण के लिए रवाना होने वाले थे” - जवाब बॉडीगार्ड ने दिया - “कि गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही ।”
“मेरी गाड़ी ले जाइये, बखिया साहब !” - खान तुरन्त बोला ।
“ठीक है ।” - बखिया भुनभुनाया - “शुक्रिया ।”
वह मर्सिडीज की पिछली सीट पर सवार हो गया ।
वह जानता था कि आफताब खान की मर्सिडीज भी - अपने शीशों और टायरों सहित - बुलेटप्रूफ थी इसलिए उस पर कल्याण के लिए रवाना होने में कोई हर्ज नहीं था ।
उस नाजुक घड़ी में खुदाई मदद के तौर पर अमीरजादा आफताब खान के यूं वहां पहुंचने पर मन ही मन उसका शुक्रगुजार होता हुआ ड्राइवर फुर्ती से इम्पाला से बाहर निकला और उसकी छत पर बंधी व्हील चेयर की रस्सियां खोलने लगा ।
बखिया का बॉडीगार्ड और खान का ड्राइवर दोनों उसका हाथ बंटाने लगे ।
खान मर्सिडीज की बखिया की ओर वाली खिड़की में झुककर बखिया से बातें करने लगा ।
लेकिन बखिया बातों के मूड में नहीं था ।
मर्सिडीज की छत पर लगेज कैरियर नहीं था इसलिए उसकी डिक्की को खोला गया । बड़ी मुश्किल से वह विशाल व्हील चेयर मर्सिडीज की डिक्की में समाई । व्हील चेयर को डिक्की में खपाने की कोशिश में डिक्की का ढक्कन एकदम पूरा ऊपर को उठ गया था और अब वह नीचे नहीं झुकाया जा सकता था । ड्राइवर ने ढक्कन को गाड़ी के निचले भाग से यूं बांध दिया कि रस्सियों के बीच में से व्हील चेयर बाहर न सरकने पाये ।
फिर बखिया का ड्राइवर मर्सिडीज की ड्राइविंग सीट पर सवार हो गया । बॉडीगार्ड आगे उसके साथ बैठ गया ।
आफताब खान गाड़ी से परे हट गया ।
ड्राइवर ने बड़ी फुर्ती से गाड़ी को पहले बैक किया, फिर यू टर्न किया और फिर उसे होटल के कम्पाउण्ड से बाहर भगा दिया ।
***
कल्याण में बाजबहादुर बखिया के बंगले में सन्नाटा था ।
आसमान में आधा चांद निकल आया था लेकिन वातावरण में छाई हल्की-सी धुंध की वजह से उसका प्रकाश वातावरण का अन्धेरा दूर करने के लिये पर्याप्त नहीं था ।
विमल कम्पाउण्ड की दीवार के साथ सटी खड़ी कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा था । कार के ऐन ऊपर दीवार पर देवाराम लेटा हुआ था । भीतर ड्राइव-वे के समीप झाडि़यों के एक घने झुंड में उकड़ू हुआ बालेराम दुबका बैठा था । उसके हाथ में रिवॉल्वर थी । वह तैयार था ।
आठ कब के बज चुके थे लेकिन बखिया की कार अभी वहां नहीं पहुंची थी । क्या बखिया का कल्याण आने का प्रोग्राम बदल गया था ? क्या उनको दी गई सूचना ही गलत थी ?
तभी दूर कहीं एकाएक किसी विशाल कार की शक्तिशाली हैडलाइट्स चमकी और फिर लुप्त हो गयी । कुछ क्षण बाद पेड़ों में से छनकर आती रोशनी का आभास उसे फिर मिला । कोई कार उधर की सड़क पर दाखिल हुई थी ।
वह सावधान हो गया ।
और कुछ क्षण बाद कार मंथर गति से फाटक के भीतर दाखिल हुई ।
बालेराम सांस रोके उसके समीप आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
कार धीरे-धीरे समीप आ रही थी ।
जिन झाड़ियों में बालेराम छुपा हुआ था, वे ड्राइव-वे के अर्धवृत्त के एन सिर पर थीं । वहां तक आती कार का मुंह उसकी तरफ था । उसके वहां से घूमते ही उसकी पीठ उसकी तरफ हो गयी ।
बालेराम ने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ ऊंचा किया ।
लेकिन उस क्षण जैसा कि अपेक्षित था, बालेराम को कार की पिछली सीट पर बैठा बखिया न दिखाई दिया । उसे पिछली खिड़की तक दिखाई न दी । कोई गड़बड़ थी । ऐसा कैसे हो सकता था ।
फिर गड़बड़ उसके जेहन में बिजली की तरह कौंधी । कार की डिक्की में कोई मशीन सी रखी थी जिसकी वजह से डिक्की का ढक्कन उठा हुआ था और वही बीच में व्यवधान बना हुआ था । हालात को कोसता हुआ बालेराम एकाएक उठकर खड़ा हो गया । खड़े होकर शायद वह डिक्की के ढक्कन से परे बखिया को देख सके ।
यूं उसे बखिया तो न दिखाई दिया लेकिन एक सिर उसे पिछली खिड़की में से जरूर दिखाई दिया । बालेराम ने उसी पर फायर झोंक दिया ।
तत्काल पहले फायर की और फिर शीशा चटकने की आवाज वातावरण में गूंजी ।
बॉडीगार्ड ने वह आवाज सुनी, उसने बुलेटप्रूफ कार के बुलेटप्रूफ शीशे के परखच्चे उड़ते देखे, वह तुरन्त कार का अपनी तरफ का दरवाजा खोलकर चलती कार में से बाहर कूद गया । अब वह बंगले की तरफ दौड़ती कार और बालेराम के बीच में था । झाड़ियों में खड़े बालेराम को उसने साफ देखा । निहायत तजुर्बेकार बॉडीगार्ड ने अपनी भारी रिवॉल्वर से उसे निसंकोच शूट कर दिया । झाड़ियों की ओट में से उठकर खड़े हो जाने की नादानी ने बालेराम की जान ले ली ।
तभी बंगले के दरवाजे खुलने लगे और उसमें से लोग बाहर निकलने लगे । फाटक पर खड़ा दरबान भी उधर दौड़ा ।
दीवार पर लेटे देवाराम ने साफ देखा कि कार पर चलाई गयी गोली बखिया को नहीं लगी थी । फिर उसने बॉडीगार्ड की गोली खाकर अपने भाई को धराशायी होते देखा ।
बॉडीगार्ड अब झाड़ियों में कदम रख रहा था । और कुछ क्षण बाद उसे दीवार पर लेटा देवाराम दिखाई दे सकता था लेकिन बॉडीगार्ड को देवाराम उसकी उम्मीद से पहले दिखाई दे गया । उसने फायर किया ।
देवाराम बाल-बाल बचा । फिर वह लेटा लेटा ही दीवार की परली तरफ खड़ी कार की छत पर कूद गया ।
दूसरी तरफ से किसी के चिल्लाने की और दीवार की ओर दौड़ते कदमों की आवाजें आ रही थीं ।
देवाराम कार से फिसला और फर्श पर कूदा ।
वह जल्दी से विमल की बगल में कार में दाखिल हुआ और आतंकित स्वर में बोला - “भागो !”
“बाले...” - विमल ने कहना चाहा ।
“मर गया । हम बाजी हार गये ।”
विमल ने फौरन कार वहां से भगा दी ।
बखिया पूरे पांच मिनट भी बंगले में न रुका ।
उसने अपने भाई का सिर्फ हाल पूछा, उसे कुर्सी के बारे में बताया और उलटे पांव बम्बई लौट गया ।
लौटने से पहले उसने मरने वाले पर एक निगाह जरूर डाली तो बालेराम को उसने फौरन पहचान लिया ।
“बाकी बचे दो” - वह विष-भरे स्वर में बुदबुदाया ।
***
अगले रोज के अखबार में बालेराम की मौत की खबर छपी । पुलिस ने उसे कोई मामूली चोर बताया था जो चोरी की नीयत से बाजबहादुर बखिया के बंगले के कम्पाउण्ड में दाखिल हुआ था लेकिन बंगले के लोगों ने उसे देख लिया था और शूट कर दिया था ।
शान्ताराम के भाइयों के लिए वह तबाही का दिन साबित हुआ था । अभी जीवाराम की लाश वे पुलिस से क्लेम नहीं कर पाए थे कि बालेराम हलाक हो गया था ।
अमीरजादा आफताब खान सुबह देर से उठने का आदी था । कोई खास वजह न हो तो वह दस बजे तक तो सोता ही था बल्कि कई बार दोपहर के बाद तक भी सोता रहता था ।
लेकिन उस रोज उसे आठ बजे ही उठ जाना पड़ा था । बखिया ने उसे पैगाम भिजवाया था कि वह ब्रेकफास्ट उसके साथ करे । उसके सुइट में । ठीक नौ बजे ।
उसका वह पैगाम बखिया का बॉडीगार्ड उसके पास लाया था ।
“साहब तो अभी लौटे ही होंगे कल्याण से !” - उसने कहा था ।
“साहब कल्याण नहीं गये थे ।” - जवाब मिला था ।
“क्या ? कल रात वे कल्याण नहीं गये ?”
“नहीं ।”
“वजह ? क्या मेरे वाली गाड़ी भी खराब हो चुकी थी ?”
“नहीं । लेकिन पता नहीं क्यों एकाएक उनका मूड उखड़ गया था और वे रास्ते से ही वापिस लौट आये थे । आपकी गाड़ी नहीं, साहब का मूड खराब हुआ था ।”
“ओह !”
खान तैयार होने लगा ।
बखिया का यूं ब्रेकफास्ट का या लंच का या डिनर का पैगाम आना कोई ऐसा बात नहीं थी जो पहले कभी न हुई हो लेकिन न जाने क्यों खान फिर भी एकाएक बहुत फिक्रमन्द दिखाई देने लगा था ।
निर्धारित समय पर वह बखिया के सुइट में पहुंचा । बखिया उससे बगलगीर होकर मिला । वह खुद उसे ब्रेकफास्ट की टेबल तक लेकर गया ।
खान तनिक आश्वस्त हुआ ।
दो वेटरों ने ब्रेकफास्ट सर्व किया । खान का पसन्दीदा ब्रेकफास्ट-चिकनसूप ! लिवर ! किडनी ! ऐग परांठा ! कॉफी !
“वाह !” - कॉफी के दूसरे कप की चुस्कियों के दौरान बखिया बोला - “मजा आ गया ब्रेकफास्ट का ।”
“वाकई ।” - खान बोला ।
बखिया ने बड़े तृप्तिपूर्ण ढंग से काफी की एक और चुस्की भरी ।
“कल आप कल्याण नहीं गये ?” - खान बोला ।
“गया था ।” - बखिया बड़े सहज स्वर में बोला ।
“गये थे ?” - खान हैरानी से बोला - “लेकिन आपका बॉडीगार्ड तो कहता था कि आपका मूड बिगड़ गया था और आप रास्ते से ही लौट आये थे !”
“उसे ऐसा कहने के लिये बखिया ने कहा था ।”
“वजह ?”
“एक बात बताओ, खान ?”
“पूछिये ।”
“तुम्हें रोडरी की मौत का अफसोस है ?”
“बहुत ज्यादा ।”
“इतना ही अफसोस तुम्हें मेरी मौत का भी होता ?”
“तौबा कहिये, बखिया साहब ! मौत आये आपके दुश्मनों को ।”
“वह तो आ ही गयी है । बचे-खुचों को भी बहुत जल्द आ जायेगी ।”
खान सकपकाया ।
“खान !” - बखिया बड़े आहत भाव से बोला - “तूने ऐसा क्यों किया ?”
उस अकेले सवाल ने खान को जता दिया कि बखिया को सब मालूम था । उसे अपनी सांसें अटकती महसूस हुईं । उसे अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस हुई । उसे अपना सारा शरीर ठण्डा पड़ता महसूस हुआ । उसे अपनी मौत अपने सामने खड़ी दिखाई देने लगी ।
फिर भी वह दिलेरी से बोला - “कैसा क्यों किया ?”
“तुम्हें मालूम है, कैसा क्यों किया ! अब पहेलियां बुझाने से क्या फायदा ?”
“लेकिन मुझे कुछ मालूम तो हो, बखिया साहब !”
“तुम्हें कुछ क्या, सब कुछ मालूम है । खान, बखिया कुल जहान से ऐसी उम्मीद कर सकता था लेकिन तुमसे नहीं । बखिया की निगाह में रोडरी में और तुम्हारे में कोई फर्क नहीं था । रोडरी मर गया तो मन ही मन बखिया ने अपनी सारी उम्मीदें तुम्हारे साथ बांध ली थीं । बखिया ने समझा था कि उसकी एक बांह कटी थी तो दूसरी बांह अभी बाकी थी । लेकिन दूसरी तरफ एक दोस्त की नहीं, एक दुश्मन की बांह निकली, एक जल्लाद की बांह निकली । क्यों किया तुमने ऐसा, खान ?”
“क... क्या ?”
“क्यों दिया तुमने बखिया को धोखा ? तुम्हारे अलावा सिर्फ रोडरी को मालूम था कि बखिया अपने भाई से मिलने कल्याण जा रहा था । रोडरी मर न गया होता तो बखिया उस पर भी शक करता । लेकिन उसकी मौत ही उसकी बेगुनाही का सबूत है । बखिया की खिलाफत में वह अगर दुश्मनों से मिला होता तो उसका कत्ल न होता । खान, तुम्हें, सिर्फ तुम्हें, मालूम था कि कल रात आठ बजे बखिया ने कल्याण में अपने भाई के बंगले पर होना था जहां कि कल रात बखिया को जान लेने की कोशिश की गयी । शान्ताराम के भाइयों में से एक ने बखिया को अपनी गोली का निशाना बनाना चाहा । खान, कबूल करो कि तुम्हारा शान्ताराम के भाइयों से गठजोड़ है ।”
“यह झूठ है ।”
“यह सच है ।” - बखिया सांप की तरह फुंफकारा - “और बहुत कड़वा सच है जो परखा जा चुकने के बाद भी बखिया को हजम नहीं हो रहा । बखिया की कार कल तुमने बिगाड़ी थी ताकि ऐन मौके पर जब तुम अपनी कार उसके सिर थोपो तो वह इनकार न कर सके । तुम्हींने अपनी बुलेटप्रूफ कार का पिछला शीशा बदलवाया था ताकि उसके रास्ते बखिया को गोली का निशाना बनाया जा सके ।”
“यह झूठ है ।”
“यह झूठ है कि तुम्हारी कार की पिछली खिड़की में से बुलेटप्रूफ शीशा निकलवा कर उसकी जगह आम, मामूली शीशा फिट करवा दिया गया था ?”
“नहीं । यह बात सच हो सकती है । लेकिन मुझे इस बात की खबर नहीं थी । अगर यह बात सच है तो इसका मतलब यह है कि सामान मेरे कत्ल का किया जा रहा था लेकिन इत्तफाक से हमला आप पर हो गया था ।”
“तुम्हें इस बात की खबर नहीं थी कि तुम्हारी कार का पिछला शीशा बदल दिया गया था ?”
“हरगिज भी नहीं थी ।”
“अगर बखिया यह साबित कर दें कि तुम्हें इस बात की बखूबी खबर थी तो तुम अपना गुनाह कबूल कर लोगे ?”
“हां ।” - खान बड़ी कठिनाई से कह पाया । उसे आसार अच्छे नहीं लग रहे थे ।
बखिया ने किसी शहनशाह की तरह ताली बजाई ।
फौरन एक वेटर प्रकट हुआ ।
“बगल के कमरे में एक आदमी बैठा है” - बखिया बोला - “उसे यहां बुलाकर लाओ ।”
वेटर वहां से चला गया ।
एक मिनट बाद कमरे में थर थर कांपते जिस आदमी ने कदम रखा, उस पर निगाह पड़ते ही खान के चेहरे का सारा खून निचुड़ गया ।
बखिया की गिद्ध जैसी निगाह उसके चेहरे पर टिकी हुई थी ।
“खान !” - बखिया बोला - “इस आदमी पर निगाह पड़ते ही होश क्यों फाख्ता हो गये तुम्हारे ?”
“मैं इसे नहीं जानता ।” - खान कम्पित स्वर में बोला ।
“लेकिन यह तुम्हें जानता है ।” - बखिया गरजा । फिर वह उस आदमी की तरफ घूमा - “तू इन्हें जानता है ?”
“जी हां ।” - वह आदमी कांपता हुआ बोला - “ये खान साहब हैं । इनकी मर्सिडीज सर्विसिंग के लिए हमारे गैरेज में आती है ।”
“गाड़ी कल आयी थी ?”
“हां । ये खुद लाये थे ।”
“उसकी क्या सर्विस की थी तूने ?”
“मैंने उसकी पिछली खिड़की का भला चंगा शीशा उतारकर उसकी जगह नया शीशा फिट किया था ।”
“खान साहब के कहने पर ?”
“हां ।”
“दफा हो जा ।”
वह आदमी सिर पर पांव रखकर वहां से भागा ।
“अब क्या कहते हो ?” - बखिया बोला ।
खान के मुंह से बोल न फूटा ।
“तुमने बखिया के कत्ल का सामान किया ।” - बखिया गरजा - “तुमने बखिया की कार बिगाड़ी और जबरदस्ती अपनी कार उसके सिर थोपी । तुमने शान्ताराम के भाइयों को खबर की कि बखिया कल रात कल्याण जाने वाला था । क्यों ? क्यों किया तुमने ऐसा ?”
खान जवाब न दे सका ।
“बखिया बनने के लिए ? उसकी बादशाहत हथियाने के लिए ? बोलो ! जवाब दो !”
खान क्या जवाब देता !
“उस व्हील चेयर ने मुझे बचा लिया । उसकी डिक्की में मौजूदगी की वजह से डिक्की का ढक्कन इतना ऊंचा उठ गया था कि मैं उसकी ओट में आ गया था । इत्तफाक से । इत्तफाक से बखिया बच गया वर्ना तुमने अपनी तरफ से तो उसे जहन्नुम रसीद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । बखिया मर जाता तो तुम्हारी करतूत का पर्दाफाश कभी न होता । बाद में यही समझा जाता कि दुश्मन का निशाना तुम थे लेकिन मर बखिया गया क्योंकि बदकिस्मती से कल उसने तुम्हारी कार उधार ले ली थी । खान !” - बखिया ने खा जाने वाली निगाहों से उसे घूरा - “लगता है, रोडरी की मौत में भी तुम्हारा ही हाथ था ।”
“नहीं ! नहीं !”
“खान ! जी तो चाहता है कि तेरा सिर काटकर उसके साथ फुटबॉल खेलूं । जी तो चाहता है कि तुझे मुसल्लम भूनकर खा जाऊं । जी तो चाहता है कि तेरे हाथ-पांव काटकर तेरे हलक में घुसेड़ दूं । लेकिन नहीं, बखिया ऐसा नहीं करेगा । तू बखिया के बहुत करीब रहा है । तू बखिया को बहुत अजीज रहा है । तेरी करतूत की पब्लिसिटी में भी बखिया की तौहीन है । खान, बखिया तुझे उस कुत्ते की मौत नहीं मारेगा जिसका कि तू हकदार है । बखिया तुझे बहुत आसान मौत मारेगा ।”
“मुझे माफ कर दो ।” - खान का धीरज छूट गया, वह एकाएक आर्तनाद करता हुआ बोला ।
“बखिया तुझे एक शरीफ आदमी की मौत मारेगा, अमीरजादा आफताब खान !” - बखिया सांप की तरह फुंफकारा - “तू शरीफ आदमी नहीं लेकिन बखिया तुझे शरीफ आदमी की मौत मारेगा । बखिया तुझे शरीफ आदमी की मौत मार चुका है ।”
“क्या ?” - खान आतंकित स्वर में बोला ।
“तेरी कॉफी में जहर था । घातक जहर । जानलेवा जहर । अपने बनाने वाले से रूबरू होने की तैयारी कर ले, अमीर जादा आफताब खान !”
“नहीं !” - खान बच्चे की तरह बिलखकर बोला - “नहीं ! नहीं !”
“खुदा करे” - बखिया नफरत भरे स्वर में बोला - “तेरे जैसे दगाबाज यार की आत्मा जहन्नुम की आग में झुलसे ।”
“नहीं ! नहीं !”
“आमीन । आमीन ।”
खान ने मेज पर हाथ मारा और अपने सामने रखा कॉफी का कप परे फेंक दिया । वह अपने स्थान से उठा और लड़खड़ाता हुआ दरवाजे की तरफ बढा ।
बखिया ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की । अपने होंठों पर एक जहर-भरी मुस्कराहट लिए वह उसे वहां से जाता देखता रहा ।
खान दरवाजे से अभी कई कदम दूर था कि एकाएक वह थमककर खड़ा हो गया । उसके दोनों हाथ उसके गले पर पड़े, उसकी आंखें बाहर को उलटने लगीं और उसकी सूरत से यूं लगा जैसे उसका दम घुट रहा हो । फिर अगले ही क्षण वह जहां खड़ा था वहीं गिरकर मर गया ।
***
बखिया ने खान की लाश गायब करवा दी और उसके बारे में यह कहलवा दिया कि उस सुबह उसे एकाएक दुबई के लिए रवाना हो जाना पड़ा था । खान यूं एकाएक दुबई जाता ही रहता था इसलिए उसके उस रोज भी दुबई के लिए रवाना हो जाने में कम्पनी के किसी ओहदेदार को कोई असाधारण बात न लगी ।
बखिया की निगाह में अभी खान की मौत को राज रखना जरूरी था । आखिर अभी उसने अपने बाकी दुश्मनों को भी तो पहचानना था ।
फिर दोपहर तक शान्ताराम के भाइयों के खिलाफ तकदीर ने ही बखिया का दांव चला दिया ।
रोडरीगुएज के बंगले की सीढियों पर देवाराम ने जिन गार्डों को अपनी गोलियों का निशाना बनाया था, उनमें से एक मरा नहीं था, केवल गम्भीर रूप से घायल हुआ था । वह वही गार्ड था जो सोमानी के वहां आगमन पर रोडरीगुएज को ऊपर उसके बैडरूम में उसकी खबर देने गया था ।
रोडरीगुएज के बंगले पर क्या ड्रामा हुआ था, यह जानने की खातिर खुद मैक्सवैल परेरा अस्पताल में मौजूद था ।
गार्ड बेहोश था और उसके सिरहाने एक अधेड़ एएसआई बैठा था ।
परेरा को ए एस आई की कोई खास परवाह नहीं थी, अपने प्यादों के साथ गलियारे में बैठा वह गार्ड के होश में आने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
दोपहर बाद पहली बार गार्ड के शरीर में हरकत हुई ।
“इसकी हालत अभी भी नाजुक है ।” - डॉक्टर चेतावनी भरे स्वर में बोला ।
“इसीलिए” - ए एस आई बोला - “इसका बयान लेना और भी ज्यादा जरूरी है ।”
“मैं बड़ी हद दो मिनट के लिए आपको इससे बात करने की इजाजत दे सकता हूं ।”
“ठीक है । मैं इसे दो मिनट से ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करूंगा ।”
परेरा कमरे की चौखट के पास खड़ा सारा वार्तालाप सुन रहा था । डॉक्टर के गार्ड के पलंग के पास से हटते ही वह झपट का भीतर दाखिल हुआ ।
“आप जरा इधर आइये ।” - वह ए एस आई से बोला ।
“क्यों ?” - ए एस आई की भृकुटि तन गई ।
“अरे, आओ तो !” - परेरा ए एस आई को बांह से पकड़ कर जबरन एक ओर घसीटता हुआ बोला ।
ए एस आई उसके साथ घिसटता चला गया ।
परेरा उसे बरामदे में ले गया ।
“क्या है ?” - परेरा के व्यवहार से हड़बड़ाया ए एस आई अपने स्वर में अधिकार का पुट भरने का असफल प्रयत्न करता हुआ बोला ।
परेरा ने अपनी जेब से सौ-सौ के पांच नोट निकाले और उन्हें जबरन ए एस आई की मुट्ठी में ठूंसता हुआ बोला - “जाओ, जरा चाय पीकर आओ ।”
“क्या ?” - ए एस आई ने आंखें निकाली ।
“सुना नहीं ?” - परेरा घुड़क कर बोला - “जरा बाहर टहल कर आओ ।”
“तुम मुझे रिश्वत देना चाहते हो ?” - ए एस आई पूर्ववत् आंखें निकालता हुआ बोला ।
“हां ।”
ए एस आई हड़बड़ाया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“यह ‘कम्पनी’ का आदमी है ?” - वह बोला ।
“हां ।”
“और तुम ?”
“मैं भी ‘कम्पनी’ का आदमी हूं ।”
“मेरे लिए इसका बयान लेना जरूरी है । इसीलिए मैं यहां इसके सिरहाने बैठा हूं ।”
“जरूर होगा । बयान लेने से कौन रोक रहा है तुम्हें ! जी-भरके बयान लेना । मैं तो यह कह रहा था कि सुबह से भूखे-प्यासे यहां बैठे हो । इतनी देर में तो टॉयलेट जाने की ही कोई हाजत-वाजत हो जाती है । नहीं ?”
“लेकिन ये ?” - उसने मुट्ठी में ठुंसे नोटों की तरफ देखा ।
“कम हैं ?”
“हां ।”
परेरा ने पांच नोट उसे और दिये ।
“मैं जरा धार मारने जा रहा हूं । लेकिन” - वह चेतावनी भरे स्वर में बोला - “मैं पांच मिनट में ही वापिस लौट आऊंगा ।”
“चार मिनट में लौट आना, बाप ! अब टलो तो ।”
नोटों वाला हाथ वर्दी में ठूंसता हुआ ए एस आई गलियारे में आगे बढ गया ।
परेरा वापिस कमरे में घुसा ।
“आपका” - वह भीतर मौजूद नौजवान डॉक्टर से बोला - “ऑफिस में फोन है ।”
“क्या ?” - डॉक्टर हड़बड़ाया ।
“आपका ऑफिस में फोन है । सुनकर आइये ।”
“लेकिन...”
परेरा ने दो प्यादों को संकेत किया ।
दोनों प्यादे डॉक्टर के दायें-बायें पहुंच गये ।
“आइये ।” - एक बड़ी सभ्यता से बोला ।
“लेकिन...” - डॉक्टर ने फिर कहना चाहा ।
“आप आइये तो सही । आपकी ‘लेकिन’ का भी इलाज करते हैं ।”
प्यादों के बीच मन्त्रमुग्ध-सा डॉक्टर बाहर को घिसटता चला गया ।
परेरा लपककर पलंग पर पड़े गार्ड के करीब पहुंचा ।
“अली ! अली !” - वह उसके ऊपर झुकता हुआ व्यग्रभाव से बोला - “मैं परेरा हूं, मैक्सवैल परेरा । मेरी बात सुन रहे हो ?”
गार्ड ने होंठ फड़फड़ाये लेकिन उन में से कोई आवाज न निकली । उसने एक बार आंखें खोलीं और फिर बन्द कर लीं ।
“अली ! अली ! कल रोडरीगुएज साहब की कोठी पर क्या हुआ था ?”
उसने जवाब न दिया ।
“मेरी बात सुन रहे हो, अली ?”
“हं... हं... हां ।” - गार्ड के मुंह से ऐसी धीमी आवाज निकली कि उसे सुनने की कोशिश में परेरा को उसके ऊपर झुककर ऐन उसके ऊपर झुककर ऐन उसके मुंह के सामने अपना कान कर देना पड़ा ।
“मेरी बात समझ रहे हो ?”
“हां ।”
“कल क्या हुआ था ?”
“सो... सो... सोमानी आया... आया या ।”
परेरा सोमानी को जानता था ।
“क्यों ? क्यों आया सोमानी ?”
“शान्ता... शान्ताराम... के... ब... ब... भाई...”
“हां, हां ! बोलो, बोलो क्या हुआ शान्ताराम के भाइयों को ?”
“बरसोवा में । म... म... मछु...आरों की... ब... ब... बस्ती... में ।”
“शान्ताराम के भाई वरसोवा में मछुआरों की बस्ती में हैं ?”
“हां ।”
“बस्ती में कहां ?”
गार्ड ने उत्तर न दिया ।
“अली ! अली ! शान्ताराम के भाई बस्ती में कहां हैं ? अली, बोलो । जवाब दो ।”
गार्ड जवाब न दे सका । उसके बाद उसके मुंह से बोल न फूटा ।
परेरा सीधा हुआ ।
“डॉक्टर को बुलाओ ।” - वह एक प्यादे से बोला ।
“डॉक्टर बिना बुलाये ही वहां पहुंच गया । उसके पीछे-पीछे ही ए एस आई ने भीतर कदम रखा ।”
“यह तो” - परेरा बोला - “कुछ भी नहीं बोल पा रहा ।”
डॉक्टर गार्ड के करीब पहुंचा । उसने गार्ड का मुआयना किया ।
“यह तो मर गया ।” - फिर वह बोला ।
“ओह !” - परेरा बोला - “बहुत बुरा हुआ ।”
ए एस आई ने घूरकर उसे देखा ।
“बेचारा !” - परेरा बोला - “जिन्दा रहता तो शायद कुछ बता पाता कि उसे किसने गोली मारी थी ।”
“यह कुछ भी नहीं बोला था ?” - ए एस आई बोला ।
“न” - परेरा लापरवाही से बोला - “एक अक्षर भी नहीं फूटा था मुंह से ।”
“कमाल है ! डॉक्टर तो कहता था कि वह बोल सकता था और अपना बयान दे सकता था ।”
“डॉक्टर तुम्हारे सामने मौजूद है । इससे पूछो, यह ऐसा कैसे कहता था, तब तक मैं जरा चाय-वाय पीकर आता हूं ।”
परेरा लम्बे डग भरता हुआ वहां से बाहर निकल गया । वह सीधा बखिया के पास पहुंचा । उसने वह महत्त्वपूर्ण खबर बखिया को सुनाई ।
“बॉस !” - वह खेदपूर्ण स्वर में बोला - “अफसोस है कि दम तोड़ने से पहले अली उस मकान का नम्बर न बता सका जिसमें कि...”
“कोई बात नहीं ।” - बखिया गर्जा - “इतनी जानकारी भी कम नहीं । परेरा !”
“यस, बॉस !”
“सारी बस्ती घेर लो । एक-एक मकान की तलाशी लो । वे हरामजादे फिर भी बस्ती में ढूंढे न मिलें तो सारी बस्ती में आग लगा दो ।”
***
सिवरी में मिनर्वा स्टूडियो के पास विमल के उस सप्लायर की दुकान थी जिससे वह अब तक तरह-तरह की पोशाकें, मेकअप का सामान और अन्य प्रॉप्स (Props) हासिल करता आया था ।
विमल उस वक्त उस दुकान के भीतर था ।
मारियो, जिमी और बाबू सड़क के पार अपनी कार में मौजूद थे । विमल का वरसोवा से पीछा करते हुए वे वहां पहुंचे थे लेकिन विमल उनसे बेखबर था ।
वाल्ट में हुए बम बिस्फोट की खबर जंगल की आग की तरह बम्बई के अण्डरवर्ल्ड में फैली थी । आम धारणा यही थी कि बखिया की लिटल ब्लैक बुक वाल्ट के भीतर भस्म हो चुकी थी । जिन्होंने वाल्ट खुलने के बाद बखिया की सूरत पर निगाह डाली थी, उन्हें इस बात की गारण्टी थी कि वह तोता उड़ चुका था जिसमें कि बखिया की जान थी ।
मारियो की अभी भी यही रट थी कि विमल ने वाल्ट खोल लिया था और डायरी वह ले उड़ा था । ऐसा न हुआ होता तो उसका सुवेगा के ऑफिस में आने का मकसद ही क्या था ?
“वाल्ट नहीं खुल सकता ।” - बाबू भी अपनी जिद नहीं छोड़ रहा था ।
“अब साले ।” - मारियो झल्लाया - “वाल्ट को खोले बिना वाल्ट के भीतर बम कैसे रखा जा सकता था ?”
“यह सब मैं नहीं जानता...”
“नहीं जानता तो चुप रह ।”
“लेकिन इतना जानता हूं कि कोई बाहरी आदमी वाल्ट नहीं खोल सकता ।”
“अगर कोई बाहरी आदमी वाल्ट नहीं खोल सकता तो भीतर बम क्या जोशी ने रखा होगा ?”
“हां ।”
“क्या, हां !”
“भीतर बम जोशी ने रखा होगा ।”
“क्यों ?”
“यह मुझे नहीं मालूम ।”
“यह मुझे नहीं मालूम !” - मारियो ने मुंह बिचकाते हुए उसके स्वर की नकल उतारी ।
“इतना मुझे गारण्टी से मालूम है कि जोशी के अलावा उस वाल्ट को कोई नहीं खोल सकता ।”
“थोबड़ा बन्द ।” - मारियो दहाड़ा ।
बाबू चुप हो गया ।
“बाप” - जिमी बोला - “वैसे सुना तो अपुन ने भी ऐसा ही है ।”
“मैंने भी सुना है । अक्खी बम्बई ने सुना है” - मारियो बोला - “लेकिन तुम्हें क्या यह बात जंचती है कि वाल्ट में बम जोशी ने रखा होगा ?”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“लेकिन यह भी नहीं जंचती कि सोहल वाल्ट खोलने में कामयाब हो गया होगा ।”
“फर्ज करो, वह वाल्ट खोलने में कामयाब हो गया है ।”
“लेकिन...”
“बहस बाद में करना । पहले फर्ज करो ।”
“अच्छा, किया ।”
“उस सूरत में विमल ने वाल्ट में से ‘लिटल ब्लैक बुक’ निकाली होगी या नहीं ?”
“बखिया में और उसमें जो वार छिड़ी हुई है, उसको निगाह में रखते हुए सोचा जाए तो जरूर निकाली होगी ।”
“दुरुस्त ! अब यह नायाब चीज, यह बखिया के खिलाफ इस्तेमाल हो सकने वाला धांसू हथियार, क्या इस वक्त विमल के पास नहीं होगा ?”
“बाप, डायरी उनके वरसोवा वाले ठिकाने पर भी हो सकती है ।”
“मैं नहीं मानता कि सोहल यूं डायरी का गम खा जाएगा । मेरे हिसाब से तो सोहल उस डायरी को हर बड़ी अपने कलेजे से लगाकर रखेगा ।”
“बाप, तुम यह कहना चाहते हो कि डायरी इस वक्त सोहल के पास होगी ?”
“डायरी इस वक्त - हर वक्त - सोहल के पास होगी । और सोहल अकेला हमें पहली बार दिखाई दे रहा है । ऐसा मौका, हो सकता है, दोबारा हमारे साथ न आए ।”
“तुम्हारा मतलब है कि इसके सामनी दुकान से बाहर निकलते ही हम इस पर झपट पड़ें और...”
“यहां नहीं इडियट !”
“तो कहां ?”
“रास्ते में । इसके वरसोवा पहुंचने से पहले । यहां की भीड़ में नहीं, वहां की उजाड़ में ।”
“अगर डायरी इसके पास न हुई ?”
“तो कम से कम यह सस्पेंस तो खत्म होगा कि लिटल ब्लैक बुक को वह अपने कलेजे से लगाये फिर रहा है या नहीं ।”
“ठीक है ।”
वे विमल के दुकान से बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे ।
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वरसोवा की बस्ती मुकम्मल तौर से घेर ली गयी ।
वहां उतने आदमी रहते नहीं थे जितने कि ‘कम्पनी’ के प्यादे अपने सिपहसालार मैक्सवैल परेरा की अध्यक्षता में शान्ताराम के भाइयों और सोहल की फिराक में वहां पहुंच गए ।
आनन फानन शान्ताराम के दो बाकी बचे भाई तुकाराम और देवाराम ‘कम्पनी’ की गिरफ्त में आ गये । विमल संयोगवश ही वहां नहीं था इसलिये बच गया । और वागले इसलिये बच गया क्योंकि ‘कम्पनी’ के प्यादों की फौज में उसे जानने पहचानने वाला कोई नहीं था ।
पीछे उस मकान और बस्ती की कड़ी निगरानी का इन्तजाम करके ‘कम्पनी’ का सिपहसालार अपने बन्दियों तुकाराम और देवाराम, के साथ वहां से रवाना हो गया ।
विमल की गिरफ्तारी की भी अब उसे पूरी गारण्टी थी ।
आखिर विमल ने लौटना तो वहीं था ।
अगला भाग:‘खून के आंसू’