टैम्पो बंगले के भीतर ले जाकर, उसमें रखी तिजोरी को तीनों ने नीचे उतारा और भीतर ले गए। नसीमा ने भी इस काम में उनकी सहायता की। तिजोरी वास्तव में बहुत भारी थी।
"खास ही कुछ भरा हुआ है तिजोरी में...।" गहरी सांसें लेता जगमोहन कह उठा।
"पाटिल का कहना था कि तिजोरी में हीरे-जवाहरात भरे हो सकते हैं।" नसीमा बोली।
"क्या मालूम वो सच कहता है या यूं ही बात कह रहा हो।" जगमोहन ने तिजोरी पर निगाह मारी।
देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।
"बाहर खड़े टैम्पो को कहीं छोड़ आओ।"
जगमोहन सिर हिलाकर बाहर निकल गया।
"तिजोरी को कैसे खोला जाए?" नसीमा ने देवराज चौहान को देखा।
बिना कुछ कहे देवराज चौहान तिजोरी के पास जा पहुंचा। सोहनलाल पहले से ही तिजोरी के पास खड़ा उसे जांच-परख रहा था।
तिजोरी के सामने की तरफ, दरवाजे पर ही नम्बरों वाली एक के ऊपर एक तीन चक्रियां लगी हुई थी। नीचे वाली चक्री ढाई इंच के घेरे की थी। फिर छः इंच की और सबसे ऊपर चार इंच की। दरवाजे के बाईं तरफ तिजोरी खोलने, बंद करने वाला छोटा सा हैंडल लगा था। वो मजबूत तिजोरी थी।
"क्या ख्याल है...?" देवराज चौहान ने सोहनलाल से पूछा।
सोहनलाल नीचे झुका और उसकी उंगलियां नम्बर वाली चक्रियों पर फिरने लगीं। कान भी साथ लगा लिया। चक्री जब थोड़ी सी घूमती तो गरारी की मध्यम-सी आवाज कानों में पड़ती।
मिनट भर ऐसे ही बीत गया।
नसीमा पास आती हुई कह उठी।
"ये तिजोरी खोल लेगा?"
"हां...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
तभी सोहनलाल खड़ा हुआ और गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।
"ये बहुत मजबूत तिजोरी है। मोटे स्टील की आर्म्स प्रूफ ऐसी चादर से बनी हुई है कि अगर इसे वेल्डिंग कटर से काटने की कोशिश की गई तो स्टील की तिजोरी, गर्मी से पानी की तरह पिघलना शुरू कर देगी। भीतर जो भी सामान पड़ा है, वो खराब हो जाएगा। यानि कि स्टील में किसी खास मिश्रण को मिलाया गया है कि अगर इसे काटने की कोशिश की जाए तो, भीतर रखा सामान खराब हो जाए।"
नसीमा ने हैरानी से उसे देखा।
"ये बात तुमने तिजोरी को देखकर बता दी?"
"देखकर नहीं।" सोहनलाल ने नसीमा को देखा--- "तिजोरी को ठकठका कर। तब स्टील से जो आवाज आई, उससे इस बात का पता चला।" सोहनलाल ने कहा।
"हो सकता है तुम्हारी ये सोच गलत हो।"
सोहनलाल मुस्कुराया।
"अपने काम को मैं अच्छी तरह जानता हूं। चाहो तो गैस कटर से तिजोरी काटने की कोशिश करके देख सकती हो कि स्टील की इस तिजोरी की क्या हालत होती है।" सोहनलाल ने कहा।
नसीमा कुछ न कह सकी।
"तीन साल पहले ठीक ऐसी ही तिजोरी से मेरा वास्ता पड़ चुका है।" सोहनलाल ने कहकर देवराज चौहान को देखा--- "नंबर कॉन्बिनेशन वाला ये ट्रिपल लॉक है। तीनों चक्रियों के खास-खास नम्बर को एक ही लाईन में रखकर, तिजोरी के हैंडल को खींचने पर तिजोरी का दरवाजा खुलेगा। लेकिन कॉम्बिनेशन नम्बर हमें नहीं मालूम हो सकता।" कहते हुए सोहनलाल ने नसीमा को देखा--- "तुम्हें मालूम है?"
"मुझे कैसे मालूम होगा। मालूम होता तो अब तक तिजोरी खुल चुकी होती।" नसीमा ने कहा।
"कोई बात नहीं। तीनों चक्रियों के कॉन्बिनेशन को खराब करके, इसकी लॉक सिस्टम को बेकार करना पड़ेगा। उसके बाद तिजोरी किसी खुले दरवाजे की तरह खुल जाएगी।"
"कितनी देर लगेगी?" देवराज चौहान ने पूछा।
"कुछ वक्त लगेगा। दस-बारह घंटे के आसपास...।" सोहनलाल ने कश लिया--- "मेरे ख्याल से लंच के बाद काम शुरू किया जाए...।"
"जैसा तुम ठीक समझो। मुझे कोई जल्दी नहीं है।" देवराज चौहान ने कहा और वहां से हटकर, कुछ कदमों पर मौजूद कुर्सी पर जा बैठा। वो बिल्कुल सामान्य लग रहा था।
"मैं लंच करके आता हूं। तुम लोगों के लिए ले आऊं?" सोहनलाल ने उसे देखा।
"हां। जगमोहन के लिए भी ले आना। वो तब तक आ जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल बाहर निकल गया। पोर्च में खड़ी कार को वो लेता गया था।
"कितनी आसानी से ये सब हो गया।" नसीमा मुस्कुरा कर बोली--- "मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा।"
देवराज चौहान ने नसीमा पर निगाह मारी। कहा कुछ नहीं।
"क्या सोच रहे हो?"
"यही कि काम जितनी आसानी से हुआ है, उतनी आसानी से नहीं होना चाहिए।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "इतनी आसानी से काम क्यों हुआ, ये बात मुझे चुभ रही है।"
"कभी-कभी बड़े-बड़े काम आसानी से हो जाते हैं।" नसीमा मुस्कुराई।
"शायद तुम ठीक कह रही हो। लेकिन जिस मामले में युवराज पाटिल जैसा इंसान हो। वहां काम इतनी आसानी से नहीं होते।" कहते हुए देवराज चौहान की निगाह तिजोरी की तरफ गई--- "दो ही बातें हो सकती हैं?"
"क्या?"
"या तो तिजोरी में कुछ नहीं है। कबाड़ भरा हुआ है।" देवराज चौहान ने कहा।
"दूसरी बात?"
"दूसरी बात सिर्फ ये कि, कोई बात और भी है, अगर तिजोरी में हीरे-जवाहरात मौजूद हैं तो और वो बात अभी तक हमारी समझ में नहीं आ रही...।"
नसीमा मुस्कुराई।
"मेरे ख्याल में तुम वहम को पाल रहे हो। बात कुछ भी नहीं है, बीच में...।"
जवाब में देवराज चौहान मुस्कुराकर रह गया।
"दरअसल पाटिल ने ये नहीं सोचा था कि मुझे उसकी असल योजना का पता चल गया है। वो क्या कैसे कर रहा था। हम जान चुके थे, और इन्हीं बातों को मद्देनजर रखकर हमने आसानी से ये काम कर लिया।"
"जो भी हो। मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूं।"
नसीमा ने एकाएक गंभीर होते हुए सिर हिलाकर कहा।
"इस वक्त तक पाटिल ने अपने आदमी मेरी हत्या करने के लिए फैला दिए होंगे। वो मुझे छोड़ेगा नहीं...।"
"जब तक तुम, मेरे पास हो, कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तिजोरी खुलने पर, अगर उसमें दौलत है तो उस दौलत का दो प्रतिशत लेकर तुम जा सकती हो। उसके बाद पाटिल से तुम्हें खुद बचना होगा।"
"मैं बच जाऊंगी पाटिल से।" नसीमा के स्वर में विश्वास था--- "वो मेरी हवा भी नहीं पा सकेगा।"
■■■
सोहनलाल लंच कर आया था और अन्यों के लिए पैक करा लाया था। तब तक जगमोहन भी आ चुका था। नसीमा और सोहनलाल ने पैक खाना निकालकर बर्तनों में डाला था। वो लंच करने लगे थे और सोहनलाल अपने औजारों को लेकर तिजोरी के कॉन्बिनेशन लॉक के साथ व्यस्त हो गया था।
"कितने का माल होगा तिजोरी में?" जगमोहन ने खाने के दौरान नसीमा से पूछा
"शायद बीस-पच्चीस अरब के हीरे जवाहरात।" नसीमा ने कहा।
"अगर हुए तो?" जगमोहन ने नसीमा को देखा।
"हां।" नसीमा मुस्कुरा पड़ी--- "अगर हुए तो। वरना तिजोरी भारी करने के लिए, पाटिल ने इसमें कुछ भी भरा हो सकता है। देखते हैं तिजोरी में से क्या निकलता है।"
तब शाम हो गई थी, जब सोहनलाल ने बताया कि तिजोरी के तीन लॉक्स में से एक लॉक को उसने बेकार कर दिया है। बाकी के दो लॉक्स शायद वो आधी रात तक बेकार कर देगा। वो बिना रुके अपने काम में लगा रहा। काम के दौरान अक्सर गोली वाली सिग्रेट सुलगती उसके होंठों में दबी नजर आती रही।
रात के नौ बज रहे थे जब शांत वातावरण में मोबाइल की बेल बज उठी।
नसीमा फौरन उठ खड़ी हुई। उसकी जेब में पड़ा मोबाइल फोन बज रहा था। सबकी निगाह नसीमा पर गई। नसीमा ने जेब से फोन निकालकर स्क्रीन पर नंबर देखा तो उसके होंठ भिंच गए।
"पाटिल बात करना चाहता है।" नसीमा की निगाह अभी भी स्क्रीन पर थी।
किसी ने कुछ नहीं कहा।
बेल बजती रही। एकाएक नसीमा ने बटन दबाया और बात की।
"कहो पाटिल!" नसीमा के स्वर में सख्ती कूट-कूट कर भरी हुई थी।
"इस अंदाज में तुमने कभी पहले मुझसे बात नहीं की नसीमा।" युवराज पाटिल का शांत स्वर उसके कानों में पड़ा।
"पहले कभी तुमने मेरी जान लेने की कोशिश नहीं की थी।" नसीमा गुर्रा उठी।
"मुझे तो हैरानी है कि कर्मा कैसे चूक गया?"
"उसकी मौत आई हुई थी। इसलिए चूक गया।" नसीमा ने पहले वाले स्वर में ही कहा।
"बहुत गुस्से में हो।" कानों में पड़ने वाली पाटिल की आवाज में मुस्कुराहट आ गई।
"प्यार-मोहब्बत की बातें बहुत हो गईं। तुम्हारा-मेरा अब कोई वास्ता नहीं।"
"तुम्हें मेरी योजना पहले ही मालूम हो गई थी। तभी, देवराज चौहान के साथ मिलकर अपना काम कर गुजरी। वरना तुम कामयाब नहीं हो सकती थीं। ठाकुर या वजीर शाह, किसने तुम्हें बताया कि मैं तुम्हारी जान लेने जा रहा हूं। कम से कम ये तो बता सकती हो।"
नसीमा के चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी।
"इस सवाल का जवाब तुम्हें कभी नहीं मिलेगा। इतना जान लो पाटिल कि दीवारों के भी कान होते हैं। तुमने क्या सोचा था कि खामोशी से मेरी जान ले लोगे। लेकिन मेरे कानों ने तुम्हारे शब्द सुन लिए। तुम...।"
"बकवास।" पाटिल की आवाज कठोर हो गई--- "उस वक्त तुम वहां, कहीं भी नहीं थी।"
जवाब में नसीमा कड़वी हंसी, हंसी।
"बताओ वो ठाकुर है या वजीर शाह।"
"बेकार की बातें करके मेरा दिमाग खराब मत करो। तुमने बहुत ही गलत फैसला किया मुझे मारने के बारे में जबकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था कि तुम्हें मेरी जान लेनी पड़े...।" नसीमा गुर्रा उठी।
"पुरानी बातें मैं याद नहीं करना चाहता। राम दा को स्मैक के बारे में कल खबर करके तुमने गलत काम किया।"
"मैं जो भी करूं। वो ही कम है। क्योंकि तुमने मेरी जान लेने की सोची थी। कोशिश की थी।" नसीमा का लहजा और भी खतरनाक हो गया--- "मत भूलो पाटिल मैं अभी भी तुम्हें तगड़े-तगड़े नुकसान पहुंचा सकती हूं। इस बात से तुम अच्छी तरह वाकिफ हो। अगर तुमने अपने आदमी मेरे पीछे लगाए तो अपनी बर्बादी के बारे में सोच लेना।"
युवराज पाटिल के हंसने की आवाज कानों में पड़ी।
"तुम गलत नहीं हो। तुम्हारा गुस्सा अपनी जगह ठीक है। मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है। मुझे इस तरह गलत फैसला नहीं लेना चाहिए था। मेरी बात का विश्वास करो नसीमा।"
"मुझे अपनी बातों में फंसाने की कोशिश मत करो पाटिल। अब कुछ नहीं बचा।" नसीमा ने दांत भींचकर कहा--- "मैं फोन बंद कर रही हूं और फिर कभी मुझे...।"
"मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं। उसे सुनकर शायद तुम्हारे मन की मैल कुछ दूर हो।"
"बात करो...।" नसीमा के दांत भिंचे हुए थे।
"तिजोरी कहां है?"
"मेरे सामने है उसे खोला जा रहा है। देर नहीं है उसके खुलने में...।"
"तिजोरी खोलने वाले को रोको नसीमा! फौरन रोको उसे...।" युवराज पाटिल का तेज स्वर कानों में पड़ा।
"क्यों, खोली तो तुम क्या डंडा मारोगे?"
"बात को समझो। उसमें पॉवरफुल बम फिट है। तिजोरी खोलने से पहले रिमोट से बम का कनेक्शन स्विच से हटाना पड़ता है, जो कि तिजोरी का दरवाजा बंद होते समय दब जाता है। रिमोट का इस्तेमाल न करके सीधे-सीधे उसे खोला जाए तो वो पावरफुल बम तिजोरी तो क्या, उस जगह की धज्जियां उड़ा देगा, जहां तुम लोग हो। कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।"
नसीमा की आंखें सिकुड़ी।
"बहुत चिंता हो रही है तुम्हें मेरे जीने-मरने की।" नसीमा की आवाज में तीखापन आ गया।
"तुम्हारी भी और तिजोरी में रखे माल की भी जो बम-ब्लास्ट के साथ तबाह हो जाएगा।" पाटिल का गंभीर स्वर नसीमा के कानों में पड़ा--- "तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा के हीरे-जवाहरात हैं।"
नसीमा से एकाएक कुछ कहते ना बना।
"नसीमा...।" पाटिल की आवाज कानों में पड़ी।
"बम के बारे में झूठ बोल रहे हो तुम। तुम...।"
"अगर मैं झूठा हूं तो तिजोरी खोलना रुकवाकर मुझे क्या फायदा होगा। वो तो तुम लोगों के पास है। पचास अरब के हीरे-जवाहरात खराब हों, मैं नहीं चाहता। इसलिए मैं सौदा करना चाहता हूं तुम लोगों से कि दस अरब कैश या जैसे भी कहो, तुम लोगों को तिजोरी वापसी के बदले दे सकता हूं और मैं खुद दिखाऊंगा, तिजोरी में लगा पावरफुल बम। यकीन मानो मेरा।"
नसीमा के दांत भिंच गए।
"नसीमा तुम...।"
"आधे घंटे बाद फोन करना पाटिल...।" कहने के साथ ही नसीमा ने मोबाइल फोन बंद कर दिया।
सबकी निगाहें नसीमा के कठोर और उलझन भरे चेहरे पर थीं।
"क्या कहता है पाटिल?" जगमोहन ने पूछा।
जगमोहन को देखने के बाद नसीमा की नजरें देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकीं।
"पाटिल बोलता है, तिजोरी में पावरफुल बम लगा है। वो बम जिस रिमोट से कंट्रोल होता है वो उसके पास है। रिमोट से बम का कनेक्शन हटाकर तिजोरी खोलनी पड़ती है। अगर तिजोरी को सीधे-सीधे खोला जाए तो भीतर मौजूद पॉवरफुल बम ब्लास्ट हो जाएगा।"
"सोहनलाल...!" देवराज चौहान जल्दी से खड़े होते हुए बोला--- "तिजोरी को मत छेड़ो।"
सोहनलाल की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
"पाटिल ने कहा और तुमने मान लिया।" जगमोहन बोला--- "वो यूं ही कह सकता है कि...।"
"पाटिल सच कह रहा है।" देवराज चौहान के शब्दों में दृढ़ता थी--- "मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि किस विश्वास के तहत उसने हीरे-जवाहरातों से भरी तिजोरी खुली सड़क पर भेज दी। यही विश्वास था उसका कि जो भी तिजोरी ले जाएगा, वो तिजोरी के खुलते ही बम ब्लास्ट में मारा जाएगा। भीतर पड़ा माल तबाह हो जाएगा।"
"लेकिन पाटिल झूठा भी हो सकता है।" जगमोहन खड़ा हो गया।
"ये बात वो बिल्कुल सच कह रहा है। वरना उसे फोन करके ये बात बताने की जरूरत क्या थी।" कहने के पश्चात देवराज चौहान नसीमा से बोला--- "और क्या कहता है पाटिल...?"
"मोटे तौर पर पाटिल कहता है कि वो तिजोरी के बदले, दस अरब रुपए दे सकता है, क्योंकि तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा के हीरे-जवाहरात हैं।" नसीमा ने होंठ भींचकर कहा।
"पचास अरब?" जगमोहन का मुंह खुला का खुला रह गया।
सोहनलाल भी पास आ गया था।
देवराज चौहान का चेहरा शांत और सोच से भरा पड़ा था।
"अगर पाटिल सच कहता है तो तिजोरी को लेकर भारी दिक्कत खड़ी हो गई है।" सोहनलाल बोला।
"पाटिल सच कहता है। तिजोरी के भीतर फिट बम ही, तिजोरी को सुरक्षा दे रहा है।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा--- "कि अगर कोई तिजोरी ले उड़े तो खोलते ही बम ब्लास्ट के साथ मारा जाए। तिजोरी में रखा सामान भी खराब हो जाए। पाटिल ने बहुत सोच-समझकर तिजोरी को ये सुरक्षा दी है। अगर इस वक्त नसीमा के पास फोन न होता तो शायद तिजोरी के खुलते ही हममें से कोई न बच सकता।"
"अब क्या किया जाए?" नसीमा शब्दों को चबाकर कह उठी--- "ऐसी हालत में हम तिजोरी खोल नहीं सकते। फिर तो दस अरब में तिजोरी का सौदा पाटिल से करना पड़ेगा।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"दस अरब।" जगमोहन ने गहरी सांस ली--- "ठीक है। काम चला लेंगे। ये भी कम नहीं होता।"
"तुम क्या कहते हो?" सोहनलाल की निगाह देवराज चौहान के सोच भरे चेहरे पर थी।
देवराज चौहान, नसीमा को देखकर कह उठा।
"पाटिल का फोन आए तो मुझे देना। मैं बात करूंगा उससे...।"
आधे घंटे बाद ही नसीमा के मोबाइल फोन की बेल बजी।
युवराज पाटिल का ही फोन था।
देवराज चौहान ने बात की।
■■■
"तुम देवराज चौहान हो?" युवराज पाटिल का स्वर कानों में पड़ा।
"हां।"
"मैं जानता हूं इस मामले में तुम्हारी कोई गलती नहीं। ये रास्ता तुम्हें नसीमा ने ही दिखाया।
"काम की बात करो पाटिल...।" देवराज चौहान ने भावहीन स्वर में कहा।
क्षणिक चुप्पी के पश्चात पाटिल की आवाज कानों में पड़ी।
"नसीमा ने तुम्हें बताया होगा कि...।"
"नसीमा की बात छोड़ो। अब जो भी बात करनी है, सीधे-सीधे मुझसे करो।" देवराज चौहान ने कहा।
"तिजोरी तुम्हारे पास है?"
"हां।"
"उसे खोलना मत। उसमें पावरफुल बम लगा है। जिसका कनेक्शन, तिजोरी के दरवाजे के पास लगे स्विच से है। तिजोरी का दरवाजा खोलने से पहले रिमोट से बम और स्विच का कनेक्शन हटाना पड़ता है। ऐसा न किया गया तो बम ब्लास्ट...।"
"तुम झूठ कह रहे हो। तिजोरी में इस तरह बम फिट नहीं किया जा सकता।" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा।
"मानो मेरी बात। मैं गलत नहीं कह रहा...।"
"कैसे फिट किया है तिजोरी में बम?"
"तिजोरी के बीच दीवार के साथ बम को फिक्स कर रखा है, जिसकी तारें तिजोरी में लगे स्विच तक जा रहीं...।"
"कैसा स्विच है वो?" देवराज चौहान ने टोका।
दो पलों की चुप्पी के बाद युवराज पाटिल का स्वर कानों में पड़ा।
"जैसा स्विच फ्रीज में लगा होता है। फ्रिज का दरवाजा बंद करने पर, दरवाजा स्विच को दबा देता है और फ्रिज के भीतर जल रहा बल्ब बंद हो जाता है और दरवाजा खोला जाता है तो स्विच खुद ही बाहर की तरफ हो जाता है और फ्रिज का बल्ब जल उठता है। यूँ समझो कि तिजोरी में फिट बम, फ्रिज के बल्ब की भूमिका निभा रहा है। अगर तिजोरी का दरवाजा खोला गया तो उसके दरवाजे से दबा हुआ स्विच बाहर की तरफ खिंचेगा। बन का कनेक्शन उस स्विच से है। उसके बाहर की तरफ खिंचते ही बम ब्लास्ट हो जाएगा। वहां जो भी होगा वो भी मरेगा। वो जगह भी पूरी तरह तबाह हो जाएगी। बीच में रखा सामान खराब हो जाएगा और पुलिस को भी वहां पहुंचने में देर नहीं लगेगी। तिजोरी खोलने से पहले रिमोट से उसके स्विच को कंट्रोल करना पड़ता है कि दरवाजा खोलने पर वो बाहर की तरफ ना खिंचे। और रिमोट मेरे पास है। मैं नहीं चाहता कि मेरी पचास अरब की दौलत खामख्वाह बर्बाद हो। इसलिए ये सब तुम्हें बताया।"
सोच भरे अंदाज में देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए।
"तिजोरी को गैस कटर से काटना भी खतरनाक है।" पाटिल की आवाज पुनः कानों में पड़ी--- "स्टील के उस तिजोरी में ऐसी धातु का मिश्रण है कि आग की गर्मी से वो मोम की तरह पिघलने लगेगी और भीतर मौजूद सारा सामान खराब हो जाएगा। भीतर लगे बम में भी आग की वजह से विस्फोट हो जाएगा। तुम्हारे लिए वो तिजोरी बेकार है।"
"क्या चाहते हो?"
"तिजोरी मुझे वापस दे दो। बदले में तुम्हें दस अरब रुपया दे दूंगा। जिस रूप में चाहोगे। वैसे ही दूंगा।"
"पचास अरब का माल है तिजोरी में और तुम सिर्फ दस अरब दोगे।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
"मत भूलो देवराज चौहान कि वो पचास अरब भी मेरा है और वो दस भी जो तुम्हें दूंगा।"
"लेकिन तुम भूल रहे हो कि तिजोरी मेरे पास है।"
"तुम्हारे लिए तिजोरी बेकार है। उसके भीतर मौजूद पचास अरब के हीरे-जवाहरात बेकार हैं। क्योंकि वो रिमोट मेरे पास है जो तिजोरी में लगे बम को ब्लास्ट होने से रोकता है। तुम दस अरब लो और मजे लो। मुफ्त का माल आ रहा है।"
देवराज चौहान के होंठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी।
"मैं पचास अरब के साथ मजे लेना चाहता हूं। दस के साथ नहीं...।"
"बेकार है। तिजोरी में मौजूद दौलत को देख भी नहीं पाओगे और मारे जाओगे।" युवराज पाटिल की आवाज में सख्ती आ गई--- "मैं तो तुम्हें समझदार समझता था। और तुम समझदारी वाली बातें नहीं कर रहे।"
"तुम्हारी बात मान लूं तो समझदार बन जाऊंगा?" देवराज चौहान का स्वर तीखा हो गया।
"हां।"
"अगर तुम मेरी बात मानोगे तो मैं तुम्हें समझदार मानूंगा।"
"कैसी बात?" युवराज पाटिल की आवाज कानों में पड़ी।
"मैं तुम्हें तिजोरी वापस करने को तैयार हूं।"
"गुड। मुझे पूरा यकीन था कि तुम समझदारी से काम लोगे।"
"बदले में चालीस अरब लूंगा।"
"चालीस अरब?" युवराज पाटिल का हैरानी भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।
"हां। सोच लो। इसमें तुम्हें दस अरब का फायदा है। क्योंकि तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा का माल है।"
"पागल तो नहीं हो गए तुम। मैं...।"
"अब तुम ना समझी वाली बातें कर रहे हो।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"होश में आओ देवराज चौहान। जान से ज्यादा कीमती कुछ नहीं होता। बंद तिजोरी के सामने तुम धूप-बत्ती को करने से रहे। और तिजोरी खोलने पर जो बम ब्लास्ट होगा वो तिजोरी में मौजूद सारे हीरे-जवाहरातों को बर्बाद कर देगा। तुम भी नहीं बचोगे। ये वहम दिलो-दिमाग से निकाल दो कि तिजोरी में मौजूद पचास अरब के हीरे-जवाहरातों के तुम मालिक बन जाओगे।"
"मैं बनूं या न बनूं। लेकिन तुम्हें तिजोरी वापस नहीं मिलेगी।" देवराज चौहान का स्वर सपाट हो गया।
"मतलब कि तुमने अपनी मौत का रास्ता चुन लिया है।"
"चालीस अरब में सौदा तय करना हो तो फोन कर देना।"
"कभी नहीं।" युवराज पाटिल के आने वाले स्वर में गुर्राहट आ गई थी।
"मर्जी तुम्हारी।"
"जब तुम्हारा मन हो दस अरब लेने का तो मुझे फोन कर देना। नसीमा जानती है कि कौन-कौन से फोन नंबर पर मुझसे बात की जा सकती है। अगर इस दौरान तिजोरी खोली तो वो तुम्हारी जिंदगी की आखिरी भूल होगी।"
देवराज चौहान ने फोन बंद किया और नसीमा की तरफ बढ़ा दिया।
सबकी निगाह और ध्यान देवराज चौहान और उसकी बातों पर था।
"क्या हुआ?" फोन लेते हुए नसीमा ने गंभीर स्वर में पूछा।
"आधी से ज्यादा बातें तुम लोग सुन ही चुके हो...।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"मतलब कि तुमने पाटिल से दस अरब में सौदा करने को मना कर दिया।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"इंकार नहीं किया।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "मैंने उसे अपनी ऑफर दी है। चालीस अरब की...।"
"वो पागल है जो अपनी ही चीज वापस लेने के लिए चालीस अरब की दौलत हमें देगा।"
"मैं जानता हूं वो पागल नहीं है। चालीस अरब नहीं देगा।" देवराज चौहान के होंठों पर अभी मुस्कान थी।
"दस के पन्द्रह कर लेते। बीस की बात करते। तुमने तो सीधे ही चालीस कर दिया।" जगमोहन उखड़े स्वर में कह उठा।
सोहनलाल की सोच भरी निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी।
"इसलिए कि पाटिल सौदेबाजी से पीछे हट जाए।"
"क्या मतलब?"
"मैं उसे तिजोरी वापस नहीं देना चाहता। इस तरह सौदा करके तिजोरी उसे दे दी तो, इसे मैं अपनी हार मानूंगा। और मामूली बात पर हार नहीं माननी चाहिए।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।
"वो दस अरब रुपया देने को तैयार है तिजोरी के बदले...।" जगमोहन ने झल्लाकर कहा।
"और तुम भूल रहे हो कि तिजोरी में पचास अरब से ज्यादा के हीरे-जवाहरात हैं।"
"लेकिन हम तिजोरी नहीं खोल सकते। उसे खोलते ही बीच में फिट बम सारे हीरे-जवाहरातों को खत्म...।"
"ये भी तो हो सकता है कि तिजोरी में बम नहीं हो।" सोहनलाल कह उठा--- "पाटिल यूँ ही हमें बम का डरावा दिखा रहा हो कि शायद दस अरब में हम उसकी बंद तिजोरी ही वापस कर दें।"
"पाटिल से बात करके मेरा विश्वास और पक्का हो गया है कि तिजोरी में वास्तव में बम फिट है। उसकी आवाज में मौजूद सच्चाई को मैंने स्पष्ट तौर पर पहचाना है। वो झूठ नहीं कह रहा।" देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "तभी तो सौदेबाजी के लिए वो जोर लगा रहा है।"
"तो फिर तिजोरी का क्या होगा?" जगमोहन कह उठा--- "उसे हम नहीं खोल सकते। खोला तो बम फटेगा और सब तबाह हो जाएगा। हम भी नहीं बचेंगे। नहीं खोला तो तिजोरी हमें हमेशा चुभती रहेगी।"
"तुम्हारी बात सही है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "फिर भी कोशिश करेंगे कि बम भी न फटे और तिजोरी भी खुल जाए। पचास अरब के हीरे-जवाहरात हमें ही मिलें।"
"ये नहीं हो सकता।" सोहनलाल ने गंभीरता से इंकार में सिर हिलाया--- "अगर तिजोरी में ऐसा कोई बम फिट है तो फिर उसे नहीं खोला जा सकता। तिजोरी खोलना मौत को गले लगाना होगा।"
"तिजोरी के भीतर जो बम फिट है। रिमोट के दम पर हम बम फटने से रोक सकते हैं। वो रिमोट इस वक्त पाटिल के पास है। अगर वो रिमोट हमें मिल जाए तो हमारी सारी दिक्कतें खत्म हो जाएंगी।"
जगमोहन चौंका।
सोहनलाल, देवराज चौहान को देखता रह गया।
"असंभव।" नसीमा के होंठ खुले--- "ये नहीं हो सकता। उस रिमोट को पाटिल के पास से नहीं लिया जा सकता। अब तो उसने तिजोरी से वास्ता रखते रिमोट को और भी हिफाजत से रखा होगा। ऐसा सोचना भी बेवकूफी है।"
"ये असंभव बात है।" नसीमा दृढ़ता भरे स्वर में कह उठी।
"असंभव ही सही।" जगमोहन होंठ सिकोड़कर कह उठा--- "लेकिन कोशिश तो की जा सकती है। पाटिल सपने में भी नहीं सोच सकेगा कि हम ऐसी कोई कोशिश कर सकते हैं। शायद वो मात खा जाए।"
"युवराज पाटिल कोई मामूली इंसान नहीं है। वो बहुत खतरनाक...।" नसीमा ने कहना चाहा।
"मैं कब कह रहा हूं कि वो खतरनाक नहीं है। जरूर होगा। हमसे ज्यादा खतरनाक होगा।" जगमोहन के स्वर में कठोरता आ गई थी--- "लेकिन बात, तिजोरी में फिट बम से वास्ता रखते रिमोट की हो रही है। हर वक्त वो उस रिमोट को जेब में डाले तो घूमेगा नहीं। किसी सुरक्षित जगह रखेगा। दौलत के लिए डकैतियां तो हमने बहुत डाली हैं। और एक 'डाका' रिमोट के लिए ही सही। सफलता हाथ न लगी तो भी कोई नुकसान नहीं होगा।"
नसीमा, जगमोहन को व्याकुलता से देखती रही।
"अगर पाटिल से दस अरब में तिजोरी का सौदा नहीं करना तो फिर रिमोट पाने के लिए पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए।" सोहनलाल सोच भरे स्वर में कह उठा--- "इसके अलावा हमारे पास दूसरा रास्ता भी नहीं। मैं देवराज चौहान की बात से सहमत हूं।"
देवराज चौहान ने कश लिया।
"नसीमा!" देवराज चौहान गंभीर स्वर में बोला--- "तुम्हारे ख्याल से युवराज पाटिल ने रिमोट कहां रखा होगा?"
"मैं नहीं जानती।" नसीमा सोच भरे स्वर में व्याकुलता से कह उठी।
"वो अपनी कीमती चीजें कहां रखता है?"
"मुझे इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं है।" नसीमा ने सिर हिलाकर कहा--- "कीमती चीजें वो कई जगह रखता है। अपने फार्म हाउस में उसने बेहद सुरक्षित स्ट्रांग रूम भी बना रखा है। जिसके बारे में मैं, ठाकुर या वजीर शाह ही जानता है या फिर फार्म हाउस की सिक्योरिटी वाले जानते हैं। मेरे ख्याल से रिमोट को पाने की सोचना बेवकूफी है। और फिर हमें ये भी मालूम नहीं कि तिजोरी के बम से वास्ता रखता वो रिमोट देखने में कैसा लगता है।"
कुछ लम्बी ही खामोशी छा गई वहां।
"इस बारे में ठाकुर को कुछ जानकारी हो। वो बता...।"
"वो अब मेरे से बात करने का खतरा नहीं उठाएगा।" नसीमा ने सोच भरे स्वर में कहा--- "पाटिल पहले ही शक कर रहा है कि ठाकुर या वजीर शाह में से किसी एक ने मुझे इस बात के लिए आगाह किया है, कि मुझे शूट किया जाने वाला है। मेरी आवाज सुनते ही ठाकुर रिसीवर रख देगा।" नसीमा ने हाथ में थाम रखा मोबाइल फोन जेब में रख लिया।
"हमें इस काम की कोई जल्दी नहीं है। तिजोरी हमारे पास है। रिमोट पाटिल के पास है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "एक-दो दिन में सोच-विचार करके हम किसी फैसले पर पहुंच जाएंगे। पाटिल के किसी खास आदमी को तोड़ना होगा कि वो बता सके, रिमोट कहां हो सकता है। या ऐसी ही कोई बात और...।"
"युवराज पाटिल जैसे खतरनाक इंसान के गिरेबान में हाथ डालने से तुम्हें डर नहीं लगता?" नसीमा ने गंभीर स्वर में कहा।
"तुम पाटिल से दुश्मनी ले सकती हो तो फिर मुझे उसके गिरेबान से डर क्यों लगे?" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"मुझे तो पाटिल की हरकत ने ही ऐसा करने पर मजबूर...।"
"मुझे भी पाटिल की हरकत ने ही ऐसा करने पर मजबूर किया है।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर नसीमा की बात काटी--- "पाटिल ने अगर तिजोरी में बम नहीं लगाया होता तो मुझे रिमोट की जरूरत पड़ती ही नहीं।"
नसीमा गहरी सांस लेकर देवराज चौहान को देखती रही। बोली कुछ नहीं।
"राम दा शायद इस मामले में हमारी सहायता कर सके।" सोहनलाल बोला।
"राम दा जैसे गैंगस्टर को इस मामले में और इस्तेमाल करना ठीक नहीं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "वो अब तक जान गया होगा कि तिजोरी हमारे पास है उसमें कितनी दौलत है। उसकी नियत बदलने के लिए, ये दौलत बहुत ज्यादा है। हम खुद ही कोई रास्ता निकालेंगे और रास्ता अवश्य निकलेगा।"
एकाएक नसीमा मुस्कुराकर कह उठी।
"मानना पड़ेगा। जैसा सुना था तुम्हारे बारे में, वैसा ही पाया। हिम्मत और दिलेरी की कमी नहीं है तुम में।"
■■■
ठाकुर और वजीर शाह ने लगभग एक साथ ही भीतर प्रवेश किया।
युवराज पाटिल का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था। दांत भिंचे हुए थे। बात पलटने वाले अंदाज में वो वहां टहल रहा था। हाथों की मुट्ठियां बार-बार खुल-बंद हो रही थीं।
ठाकुर और वजीर शाह की नजरें आपस में मिलीं फिर पाटिल पर जा टिकीं।
"कोई खास बात हो गई पाटिल साहब, जो फौरन हमें आने को कहा।" वजीर शाह बोला।
युवराज पाटिल ठिठका और दोनों को खा जाने वाली नजरों से देखने लगा।
"हमसे कोई गलती हो गई पाटिल साहब...!" पाटिल की हालत देखकर, ठाकुर ने संभले स्वर में कहा।
"पागल है देवराज चौहान। दिमाग खराब हो गया है उसका...।" युवराज पाटिल गुर्रा उठा।
"क्या हुआ?"
"नसीमा के मोबाइल फोन पर मैंने कुछ देर पहले देवराज चौहान से बात की।" युवराज पाटिल की आवाज किसी फुंफकार से कम नहीं थी--- "मैंने उसे बहुत समझाया कि तिजोरी में बम फिट है। सौदा कर ले। लेकिन वो नहीं माना।"
"क्या कहता है?"
"तिजोरी लौटाने के बदले मैंने देवराज चौहान के सामने दस अरब रुपये की ऑफर रखी। मुफ्त में दस अरब रुपया दे रहा था मैं उसे। मेरा ही माल मुझे ही लौटाना था। जानते हो क्या बोला वो...।"
"क्या?"
"कहता है तिजोरी लौटाने के बदले चालीस अरब लेगा। पैसा क्या पेड़ पर लगता है। दिमाग खराब हो गया है उसका। मेरी बात याद रखना। मरेगा देवराज चौहान। तिजोरी में बम लगे होने की बात को झूठा मानते हुए वो तिजोरी को अवश्य खुलवाएगा और तभी बम ब्लास्ट होगा। मेरी पचास अरब की दौलत मिट्टी में मिल जाएगी। लेकिन कोई बात नहीं। वो भी मरेगा साला। मरने दो। बहुत दौलत है मेरे पास। अभी और भी कमानी है।" पाटिल का चेहरा गुस्से से गर्म लोहे की तरह तपता लग रहा था--- "नसीमा भी मर जाएगी। अच्छा होगा।"
कुछ पलों की खामोशी के बाद वजीर शाह ने गंभीर स्वर में कहा।
"मेरे ख्याल में देवराज चौहान से एक बार फिर बात...।"
"कोई फायदा नहीं। बहुत समझाया। पागल है वो, पागल...।" पाटिल की आवाज गुस्से में ऊंची हो गई।
"पाटिल साहब!" वजीर शाह बोला--- "देवराज चौहान पागल नहीं है।"
युवराज पाटिल ने आंखें सिकोड़कर वजीर शाह को देखा।
"क्या कहा?"
"देवराज चौहान पागल नहीं, बहुत समझदार है वो। आपकी बात का उसने पूरा यकीन नहीं किया होगा कि तिजोरी में बम फिट है।"
"तुम कहना क्या चाहते हो वजीर...?" पाटिल की नजरें वजीर शाह पर जा टिकीं।
"पाटिल साहब!" वजीर शाह गंभीर स्वर में बोला--- "आपकी शादी वाली बात, अगर देवराज चौहान मान ले तो इसमें उसकी बेईज्जती है। बात दस अरब या पचास अरब की नहीं, बात झुकने की है। अगर देवराज चौहान दस अरब लेकर तिजोरी आपको वापस करता है तो सुनने वाले उसके बारे में क्या कहेंगे? इससे उसकी छवि खराब होगी और...।"
"मेरे ख्याल में...।" ठाकुर सोच भरे ढंग में सिर हिलाकर कह उठा--- "वजीर शाह ठीक कह रहा है। देवराज चौहान चाहकर भी आपकी दस अरब वाली ऑफर नहीं मान सकता।"
युवराज पाटिल ने होंठों को भींचे बारी-बारी दोनों को देखा।
कई पलों तक वहां चुप्पी रही।
"लेकिन इस बात के साथ फिर ये सवाल खड़ा होता है कि अब देवराज चौहान क्या करेगा?" युवराज पाटिल ने शब्दों को चबाते हुए कठोर स्वर में कहा--- "तिजोरी खोलेगा तो बम ब्लास्ट में मरेगा। नहीं खोलेगा तो तिजोरी में मौजूद पचास अरब के हीरे-जवाहरातों के कैसे हासिल करेगा? ये तो हो ही नहीं सकता कि तिजोरी में मौजूद दौलत को पाने की इच्छा वो छोड़ दे।"
ठाकुर और वजीर शाह की निगाहें पाटिल के धधकते चेहरे पर टिकी रहीं।
"मेरे ख्याल में...।" वजीर शाह सोच भरे स्वर में बोला--- "देवराज चौहान आपसे कुछ ऐसी सौदेबाजी करेगा कि उसकी भी इज्जत बची रहे और आपको भी उसकी बात मानने पर कोई एतराज ना हो।"
ठाकुर ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि फौरन ही मुंह बंद कर लिया। होंठ भींच लिए।
"हो सकता है देवराज चौहान ऐसा ही करे।" युवराज पाटिल ने सख्त स्वर में कहा--- "ठंडे दिमाग से सोचेगा तो बीच का रास्ता उसे निकालना ही पड़ेगा। वो तिजोरी उसके गले में कांटा बनकर ऐसी फंस चुकी है कि मुझसे समझौता करना ही पड़ेगा और मैं दस अरब से एक पैसा भी ज्यादा नहीं दूंगा, तिजोरी वापसी के लिए---।" देवराज चौहान को ही अंत में झुकना पड़ेगा। क्योंकि इसके अलावा उसके पास और कोई रास्ता है ही नहीं...।"
वजीर शाह सिर हिलाकर रह गया।
युवराज पाटिल का गुस्सा कम नहीं हो रहा था।
"ठाकुर! नसीमा के यार पर आदमी लगवा दिए?" पाटिल ने पूछा।
"जी हां।"
"उन्हें समझा दिया सब?"
"सब समझा दिया कि नसीर पर पूरी नजर रखी जाए। अगर वो नसीमा से मिले या नसीमा, नसीर से मिले तो नसीमा को जिंदा पकड़ने की कोशिश की जाए, कामयाबी न मिले तो उसे शूट कर दिया जाए।" ठाकुर बोला।
"जिंदा क्यों पकड़ना है नसीमा को?" पाटिल गुर्राया--- "सीधे-सीधे शूट...।"
"पाटिल साहब, नसीमा से हम ये जान सकते हैं कि देवराज चौहान, तिजोरी के साथ कहां पर मौजूद है।"
"हां। ठीक किया तुमने। वैसे क्या ख्याल है, नसीर जानता होगा नसीमा के बारे में कि वो कहां है?"
"मेरे ख्याल में नहीं।" नसीमा जानती होगी कि हम नसीर को पकड़ सकते हैं, उसके बारे में जानने के लिए। ऐसे में नसीमा ने इस वक्त नसीर से सारे संपर्क तोड़ रखे होंगे। आप आगे जैसा आप कहें...।"
"नसीर पर नजर ही रखो और अपने आदमी फैला दो। शायद देवराज चौहान की कोई खबर मिले।"
"ये काम मैं अभी कर देता हूं।"
"मैं...।" युवराज पाटिल का स्वर सख्त ही था--- "कुछ दिन के लिए, आराम करना चाहता हूं। फार्म हाउस पर जा रहा हूं। पीछे से सब-कुछ तुम दोनों संभालना। जरूरत पड़े तो फोन पर मुझसे बात कर लेना।"
"जी...।"
"देवराज चौहान जब मुझसे बात करना चाहे तो उसे फार्म हाउस का मेरा वाला नम्बर दे देना।" युवराज पाटिल ने कड़वे स्वर में कहा--- "वैसे उनका फोन जल्दी ही आएगा।"
ठाकुर और वजीर शाह ने सिर हिला दिया।
"राम दा के बारे में जानने की पूरी कोशिश करो कि कहां छुपकर वो अपना काम करता है।" युवराज पाटिल ने खूंखार स्वर में कहा--- "राम दा को खत्म करना जरूरी हो गया है। अब वो खुलकर हमारे खिलाफ काम करने लगा है।"
■■■
रात के आठ बज रहे थे।
युवराज पाटिल अपनी सिक्योरिटी के साथ फार्म हाउस के लिए जा चुका था।
ठाकुर, वजीर शाह के कमरे में पहुंचा तो उसे कैश संभालते पाया।
"काम में लगे हो?" ठाकुर कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
"हां। कहीं से पेमेंट आई है। सोचा उसे खाते में चढ़ा दूं। तुम सुनाओ।"
"मैं थकान महसूस कर रहा हूं। आराम करने जा रहा हूं।" ठाकुर ने कहा।
"मैं भी नींद लेने के मूड में हूं। सिर पर जहां चोट मारी गई है, वहां दर्द हो रहा है।"
"पाटिल साहब तो अब कुछ दिन बाद आएंगे।" ठाकुर ने कहा।
"हां। इधर देखते हैं देवराज चौहान का फोन कब आता है।"
ठाकुर सोच भरी निगाहों से वजीर शाह को देखने लगा।
वजीर शाह की निगाह ठाकुर पर पड़ी तो अपना काम छोड़कर उसे देखने लगा।
"क्या हुआ?"
"मेरे ख्याल में देवराज चौहान का फोन नहीं आएगा।" ठाकुर ने शांत स्वर में कहा।
"अच्छा! वो कैसे?" वजीर शाह के होंठ सिकुड़े।
"ऐसा मेरा ख्याल है।"
"माना। लेकिन ये ख्याल क्यों आया?"
"पचास अरब के हीरे-जवाहरातों से भरी तिजोरी देवराज चौहान के पास है वजीर...।"
"हां। सो तो है। लेकिन उसे भूल नहीं सकता। तिजोरी खुलते ही बम विस्फोट में सब कुछ खत्म हो जाएगा।"
"बम विस्फोट न हो, इसके लिए उसे रिमोट कंट्रोल की जरूरत है। जो कि पाटिल साहब ने फार्म हाउस के बंगले के स्ट्रांग रूम में रखा हुआ है।" ठाकुर ने गंभीर स्वर में शब्दों पर जोर देकर कहा--- "मैंने देवराज चौहान के बारे में काफी कुछ सुन रखा है। वो हार मानने वालों में से नहीं है।"
वजीर शाह ने सोचों में डूबे हौले-हौले सिर हिलाया।
"वो तो ठीक है। तुम कुछ और भी कहना चाहते हो ठाकुर...?"
"देवराज चौहान जैसा डकैती मास्टर कोई दूसरा नहीं। और इस वक्त उसे रिमोट की जरूरत है।"
वजीर शाह चौंका।
"तुम्हारा मतलब कि वो रिमोट को हासिल करने के लिए डकैती करेगा?" वजीर शाह के होंठों से निकला।
"हां।"
कई पलों तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहे।
"शायद तुम ठीक कह रहे हो।" वजीर शाह ने सोच भरे स्वर में कहा--- "लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि देवराज चौहान डकैती कहां करेगा? उसे कैसे मालूम होगा कि रिमोट फार्म हाउस वाले बंगले के स्ट्रांग रूम में है?"
"बच्चों जैसी बातें कर रहे हो वजीर!" ठाकुर मुस्कुरा पड़ा--- "ये सब जान लेना देवराज चौहान के लिए मामूली बात है। नसीमा उसके पास है। वो पक्का रिमोट के लिए डकैती करेगा।"
"मरेगा। ऐसा किया तो देवराज चौहान पक्का मरेगा।" वजीर शाह ने गहरी सांस लेकर कहा
"क्यों?"
"क्या तुम नहीं जानते कि स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंचा जा सकता।" वजीर शाह ने ठाकुर को देखा।
"मैं तुम्हारी इस बात से सहमत हूं।" ठाकुर गंभीर हो उठा--- "देवराज चौहान स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सकेगा और पहले ही मारा जाएगा। इसमें कोई शक नहीं कि वो माना हुआ डकैती मास्टर है। लेकिन पाटिल साहब ने भी स्ट्रांग रूम की सुरक्षा के जो इंतजाम कर रखे हैं, उन्हें तोड़ना असंभव है।"
कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद वजीर शाह बोला।
"क्या ख्याल है, पाटिल साहब को खबर करें कि देवराज चौहान ऐसा भी कर सकता है?"
ठाकुर ने वजीर शाह की आंखों में झांका।
"क्या तुम बताने की जरूरत समझते हो?"
"वैसे कोई खास जरूरत भी नहीं है।" वजीर शाह मुस्कुराया--- "पाटिल साहब सतर्क रहने वाले इंसान हैं।"
ठाकुर के चेहरे पर सोचभरे, गंभीर भाव उभरे।
"क्या सोच रहे हो?"
"सब-कुछ कितना अच्छा चल रहा था।" ठाकुर गहरी सांस लेकर उठ खड़ा हुआ--- "अगर पाटिल साहब ने नसीमा को शूट करने को न कहा होता तो आज भी सब-कुछ अच्छा चल रहा होता।"
"ठीक कह रहे हो तुम।"
"संभल कर काम करना वजीर शाह...।" ठाकुर के स्वर में चुभन आ गई--- "अगर तुमने कहीं छोटी-सी भी गलती कर दी तो हो सकता है पाटिल साहब मेरे कान में कह दें कि चुपके से तुम्हें शूट कर दूं...।"
वजीर शाह की आंखें सिकुड़ी।
ठाकुर खुलकर मुस्कुरा पड़ा।
"जैसे कि पाटिल साहब, मुझसे भी कह सकते हैं तुम्हें शूट करने के लिए...।" वजीर शाह कह उठा।
"हां। तुम्हें या मुझे। दोनों में से किसी को भी कुछ भी कह सकते हैं।" ठाकुर के होंठों पर मुस्कान थी--- "यानी कि अब हमें एक-दूसरे से सतर्क रहने की जरूरत है। क्यों वजीर?"
"अगर कभी ऐसा हुआ तो मैं तुम्हें शूट करने की अपेक्षा सतर्क कर दूंगा।" वजीर शाह गंभीर था।
"लेकिन इस तरह मन में शक रखकर, हम एक साथ कितनी देर काम कर सकते हैं। और ये शक की परंपरा पाटिल साहब ने ही डाली है, नसीमा को शूट करने को कहकर...।" ठाकुर ने अपनी आवाज में लापरवाही भर ली थी--- "चलता हूं। नींद लेना चाहता हूं।"
"ध्यान से जाना। साथ में एक-दो को ले लो। वो तुम्हें छोड़ आएंगे।"
"कोई जरूरत नहीं। अब मुझे खतरा बाहर भीतर वालों से नहीं, भीतर वालों से लगने लगा है।" ठाकुर के होंठों पर फिर मुस्कान उभरी और पलट कर बाहर निकल गया।
वजीर शाह कई पलों तक दरवाजे को देखता रहा फिर अपने काम में व्यस्त होने की चेष्टा करने लगा। ठाकुर की बातें उसे सही लगी थी कि पाटिल साहब ने, नसीमा को शूट करने को कहकर, दूसरों के मन में फूट के बीज बो दिए थे। संदेह की जड़ को पानी दे दिया था कि पाटिल साहब इस तरह कभी भी, किसी को भी शूट करने को कह सकते हैं। क्या मालूम पाटिल साहब के मन में कब क्या आ जाए? मतलब कि अब ज्यादा देर तक पाटिल साहब के लिए काम करना संभव नहीं।
दूसरा रास्ता चुनना होगा।
वजीर शाह काम छोड़कर इन्हीं बातों पर गौर करता रहा।
■■■
ठाकुर ने शॉपिंग सेंटर के पार्किंग में कार रोकी और इंजन बंद करके सिग्रेट सुलगा ली। नजरें इधर-उधर घूम रही थीं। वो जानता था कि इस तरह उसका खुले में आना ठीक नहीं। पचासों दुश्मन हैं। जाने कौन उस पर नजर रख रहा हो और उसे गोलियों से भून दे।
कई कश उसने कार में बैठे ही बैठे लिए। जब उसे महसूस हो गया कि सब ठीक है तो जेब में पड़ी रिवाल्वर थपथपाकर बाहर निकला और मार्केट की दुकानों की तरफ बढ़ गया। लोग आ-जा रहे थे। सजी दुकानों की तेज रोशनियां बाजार और मन की रौनक बढ़ा रही थीं। कुछ आगे जाकर ठाकुर एक दुकान के बाहर लगे पब्लिक फोन के शीशे के बूथ में प्रवेश कर गया और दरवाजा बंद कर लिया। अब बाहर का में बेहद मध्यम सा शोर कानों में पड़ रहा था।
ठाकुर ने जेब से सिक्का निकाला और रिसीवर उठाकर नसीमा के मोबाइल का नंबर लगाने लगा। चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। नंबर मिला। कुछ देर बेल होती रही।
"हैलो!" नसीमा की आवाज कानों में पड़ी।
"ठाकुर...।"
"ओह! कहो...।" नसीमा का सतर्क स्वर कानों में पड़ा।
"तुम्हारा हाल पूछने के लिए फोन किया था।" ठाकुर ने धीमे स्वर में कहा।
"मैं ठीक हूं।"
"वो तिजोरी मत खोलना। उसमें बम लगा है, जो तिजोरी खुलते ही फट जाएगा।" ठाकुर बोला।
"पाटिल ने बताया था।"
"मालूम है। मैंने सोचा शायद तुमने पाटिल की बात पर विश्वास ना किया हो। इसलिए कहा।"
"फिलहाल तो तिजोरी खोलने का हमारा कोई इरादा नहीं है।" नसीमा का स्वर गंभीर था--- "पाटिल कैसा है?"
"गुस्से में है। नसीर पर आदमी लगवा दिए हैं। उससे मिलने की कोशिश मत करना।" ठाकुर बोला।
"ठीक है।"
"वो फार्म हाउस वाले बंगले पर चला गया है। कुछ दिन बाद लौटेगा। उसका ख्याल है कि देवराज चौहान जल्द ही उसे फोन करेगा सौदेबाजी के लिए। क्योंकि देवराज चौहान के पास इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं।"
नसीमा की तरफ से आवाज नहीं आई।
"अभी तुम्हारे बारे में पाटिल ने कोई आदेश नहीं दिया है। शायद वो तिजोरी का मामला निपट जाने का इंतजार कर रहा है। बहुत तड़प है उसे, पचास अरब के हीरे-जवाहरातों की, जो तिजोरी में बंद हैं।"
"तिजोरी उसे नहीं मिल सकती। देवराज चौहान ने तिजोरी के बदले दस अरब वाली ऑफर को मना कर दिया है।"
"जानता हूं। पाटिल ने बताया था देवराज चौहान देवराज चालीस मांगता है। वो देवराज चौहान को गालियां दे रहा था।"
"इसके अलावा वो और कर भी क्या सकता है।"
"तुम अपनी कहो...।"
"पाटिल से मेरा मन भर गया है। मैं कभी भी उसी से अलग हो जाऊंगा।" ठाकुर गंभीर था।
"पाटिल इस तरह तुम्हें जाने नहीं देगा।"
"सोच-समझकर कोई रास्ता निकालूंगा। तुम खुले में मत रहना। सतर्क रहना। बंद करता हूं।"
"ठाकुर...!"
"हां...।"
"जानते हो वो रिमोट कहां है?" नसीमा के आने वाले स्वर में दृढ़ता थी।
"रिमोट?" ठाकुर ने मन ही मन गहरी सांस ली कि उसका ख्याल ठीक निकला। देवराज चौहान रिमोट को हासिल करने की सोच रहा है--- "पाटिल के मुंह से निकला था कि तिजोरी में फिट बम को कंट्रोल करने वाला रिमोट, फार्म हाउस के बंगले के स्ट्रांग रूम में रखा है।"
नसीमा की आवाज नहीं आई।
"वहां की सुरक्षा व्यवस्था जानते हो?" ठाकुर ने पुनः गम्भीर स्वर में कहा।
"हां।"
"तो देवराज चौहान से कह देना स्ट्रांग रूम की तरफ बढ़ने की कोशिश मत करे। वहां सिर्फ मौत ही है। इसके अलावा और कुछ भी हासिल नहीं होगा। ठाकुर की गंभीर आवाज में समझाने वाले भाव थे--- "और पाटिल भी आज वहीं गया है। ऐसे में तो उधर कदम रखना भी ठीक नहीं।"
"आगे क्या करना है, वो मेरे हाथ में नहीं है। देवराज चौहान ने फैसला करना है।" नसीमा की गंभीर आवाज आई
"मैंने जो कहना था, कह दिया।"
"वो रिमोट देखा है तुमने? कैसा है?"
"मैंने नहीं देखा।"
"उसका आकार-प्रकार मालूम कर सकते हो?"
"ऐसी पूछताछ में खतरा है। फिर भी मैं वजीर शाह को बातों-बातों में तो टटोलूंगा।"
"वजीर शाह समझ जाएगा कि...।"
"कुछ मालूम हुआ तो फिर फोन करूंगा। कुछ और?"
"नहीं।"
ठाकुर ने रिसीवर रखा और बूथ से बाहर निकलकर कार की तरफ बढ़ गया।
■■■
"ठाकुर का कहना है कि पाटील फार्म हाउस वाले बंगले पर चला गया है। जब उसे आराम करना होता है तो वो वहां चला जाता है।" नसीमा ने फोन बंद करके जेब में डालते हुए गंभीर स्वर में कहा--- "ठाकुर ने ये भी बताया है कि तिजोरी में लगे बम को कंट्रोल करने वाला रिमोट स्ट्रांग रूम में रखा गया है।"
"स्ट्रांग रूम?" देवराज चौहान के होंठ खुले।
"हां। फार्म हाउस वाले बंगले में ही पाटिल का स्ट्रांग रूम है। जिस सामान की उसे सुरक्षा चाहिए हो, उसे वो स्ट्रांग रूम में रख देता है।" नसीमा की व्याकुल निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकी।
"ये तो अच्छी खबर है।" जगमोहन बोला--- "हम आसानी से उस स्ट्रांग रूम तक पहुंच सकते....।"
"भूल में मत रहना।" नसीमा के स्वर में चेतावनी के भाव आ गए--- "वहां नहीं पहुंचा जा सकता।"
जगमोहन ने आंखें सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा।
"ठाकुर ने बताया कि पाटिल को विश्वास है कि आखिरकार तुम दस अरब के बदले, तिजोरी वापस करने को तैयार हो जाओगे। ठाकुर ने भी रिमोट को नहीं देखा, लेकिन वो मालूम करने की कोशिश करेगा।"
"इस काम को हमने जितना आसान समझा था, उतना ही कठिन होता जा रहा है।" सोहनलाल मुस्कुरा उठा।
"पाटिल का फार्म हाउस कहां है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"खंडाला जाने वाले रास्ते पर।" नसीमा गंभीर थी।
"इस बात की क्या गारंटी है कि रिमोट वहां स्ट्रांग रूम में है?" देवराज चौहान ने नसीमा को देखा।
"इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। ठाकुर को जो मालूम हुआ, वो उसने बता दिया।" नसीमा के चेहरे पर सोच के भाव थे--- "वैसे ठाकुर कोई बात तब तक आगे नहीं करता जब तक कि उसे खुद पर विश्वास ना हो।"
"ठाकुर पर भरोसा किया जा सकता है?" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में पूछा।
"शत-प्रतिशत...।"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि वो पाटिल के इशारे पर ये बातें तुम्हें कह रहा हो?"
नसीमा के चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान उभर आई
"ऐसा कुछ भी नहीं है। ठाकुर को मैं अच्छी तरह जानती हूं। मन में उसके लिए शक मत पालो।"
सोचों में डूबे देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई।
"फार्म हाउस पर कैसा भी स्ट्रांग रूम हो। सुरक्षा की दृष्टि में वो मजबूत नहीं हो सकता।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम वहां जाकर रिमोट पाना चाहते हो?"
"हां।"
"तो मैं यही कहूंगी कि ऐसी गलत कोशिश मत करना।" नसीमा ने धीमे व्याकुल स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारा भला चाहती हूं। इसलिए ऐसा कह रही हूं। भला न चाहती तो फौरन कह देती कि कोशिश करके देख लो।"
देवराज चौहान ने नसीमा की आंखों में झांका।
नसीमा की आंखों में सच्चाई की झलक उसने स्पष्ट देखी।
"ये तो हमें डरा रही है।" जगमोहन मुंह बनाकर कह उठा।
"डरा नहीं रही। खामख्वाह मौत के मुंह में जाने से बचा रही हूं।" नसीमा ने जगमोहन को देखा--- "इसमें कोई शक नहीं कि देवराज चौहान ने ऐसी-ऐसी जगह डकैतियां डाली हैं, जहां हाथ डालने की कोई सोच भी नहीं सकता। लेकिन कुछ जगह ऐसी भी होती हैं जो...।"
"तुमने फार्म हाउस देखा है?" देवराज चौहान ने सपाट लहजे में टोका।
"हां।"
"स्ट्रांग रूम में गई हो?"
"हां। गई भी हूं। देखा है मैंने...।"
"वहां की सुरक्षा व्यवस्था जानती हो?"
"बहुत हद तक....।"
"वहां के बारे में सब कुछ बताओ।"
नसीमा आंखें सिकोड़ कर देवराज चौहान को देखने लगी।
कोई कुछ ना बोला। नजरें नसीमा पर थीं।
"बताओ...।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में देखा। चेहरा भाव हीन, सख्त-सा होने लगा था।
"कोई फायदा नहीं।" नसीमा ने गंभीर स्वर में इंकार में सिर हिलाया--- "जरा भी...।"
"तुम बताओ।"
"मैंने कहा जरा भी फायदा होता तो...।"
"नसीमा!" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा--- "तुमसे जो पूछा जा रहा है, वो बताओ। काम होगा या नहीं। कर सकता हूं या नहीं। ये देखना-सोचना मेरा काम है। जब तक मालूम ही ना हो कि वहां क्या इंतजाम है, तो मैं वहां के बारे में कुछ भी तय नहीं कर सकता। हो सकता है मैं खुद ही ये काम करने से इंकार कर दूं।"
"अपना यार तो अब मजाक भी करने लगा है।" जगमोहन बड़बड़ा उठा।
नसीमा हौले से सिर हिलाकर कह उठी।
"मैं जानती हूं देवराज चौहान डरकर पीछे हटने वालों में से नहीं है। तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन-पढ़ रखा है। मैं ये भी जानती हूं कि जो तुम पूछ रहे हो वो पूछकर ही रहोगे। मैं तुम्हें फार्म पर बने बंगले और वहां के स्ट्रांग रूम की सुरक्षा व्यवस्था बता देती हूं। आगे फैसला तुम्हारा।" नसीमा ने गहरी सांस ली--- "सोचने के लिए थोड़ा सा वक्त दे दो।"
देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया।
"सोहनलाल!" जगमोहन फौरन कह उठा--- "जा बाहर से खाना पैक करा ला। रात हो चुकी है।"
"खाना?" सोहनलाल ने उसे देखा।
"हां पेट भरा हो तो बात कहने-सुनने में ज्यादा अच्छा लगता है।"
"मेरे पास नहीं हैं।" सोहनलाल ने उसे घूरा।
"थोड़े से भी नहीं हैं?" जगमोहन ने मुंह बनाया।
"नहीं।"
"भूखा, नंगा-खाली है।"
"हां।"
"खूब। तो तू मेरे से भी नम्बर ले जाने की तैयारी में है। लेकिन मेरी बराबरी नहीं कर पाएगा।" जगमोहन में जेब से रुपए निकालते हुए कहा--- "जा, खाना ले आ।"
"तू ही चला जा।"
"क्या फर्क पड़ता है।" जगमोहन उसके हाथ में नोट दबाता हुआ बोला--- "एक ही बात है। आज तू मेरी नौकरी कर ले। कल मैं तेरी नौकरी कर लूंगा। सब चलता है। उठ--उठ भूख भी लग रही है।"
■■■
"मुंबई से खंडाला जाते वक्त, करीब एक घंटे के पश्चात युवराज पाटिल का फार्म हाउस आता है जो कि पन्द्रह हजार गज जगह में फैला हुआ है।" नसीमा के गंभीर स्वर को तीनों सुन रहे थे--- "दस फीट ऊंची चारदीवारी है हर तरफ और उसके छः-छः फीट ऊपर तक, कांटेदार तारों की बाड़ लगी हुई है। दिन में तो वो तारें सामान्य रहती हैं, परंतु अंधेरा होते ही, वे लोग स्विच दबाकर तारों में करंट दौड़ा देते हैं, क्योंकि रात के वक्त चुपके से भीतर प्रवेश करने का खतरा ज्यादा होता है, दिन में तो पाटिल के खास शूटर्स, उस जगह पर घूमते रहते हैं।"
"पन्द्रह हजार गज जगह काफी बड़ी होती है।" जगमोहन कह उठा--- "इस सारी जगह की वो पहरेदारी कर लेते हैं?"
"अच्छी तरह से...।" नसीमा ने सिर हिलाकर कहा।
जगमोहन होंठ सिकोड़कर खामोश रह गया।
"हालातों के मुताबिक दिन में भी दीवार के ऊपर लगी छः फीट ऊंची तारों में करंट चालू रहने दिया जाता है। पाटिल का सख्त आदेश है कि उसकी मौजूदगी या गैर मौजूदगी में, जो भी चोरी-छिपे उसके फार्म हाउस में प्रवेश करे, उसे किसी भी हाल में जिंदा ना छोड़ा जाए। ऐसे में कई छोटे-मोटे चोरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। जो चोरी करने के इरादे से भीतर आ जाते हैं, उनकी लाशों को कहीं दूर फेंक दिया जाता है। उन चोरों को नहीं मालूम होता कि ये किसका फार्म हाउस है और वे अंजाने में चोरी के इरादे से भीतर आ जाते हैं।"
कहते हुए नसीमा ठिठकी।
तीनों उसे ही देख रहे थे।
नसीमा ने पुनः कहना शुरू किया।
"फार्म हाउस में तीस से लेकर पैंतीस तक लोग मौजूद रहते हैं। जिनमें से करीब दस खाना बनाने और बंगले की सफाई का काम करते हैं। बाकी के पच्चीस के हवाले फार्म हाउस की सुरक्षा और देखरेख का काम है। हजार गज में फार्म हाउस के बीचो-बीच महल जैसा बंगला बना हुआ है। जिसकी एक मंजिल ऊपर भी है। छत पर भी पाटिल के शूटर्स टहलते देखे जा सकते हैं। पाटिल वहां मौजूद हो या ना हो। वो लोग किसी भी हाल में अपनी जिम्मेवारी के प्रति लापरवाही नहीं करते। बंगले के भीतर और बाहर पक्के तौर पर सख्त निगरानी रखते हैं। बंगले के आसपास दो रास्ते हैं। फूलों से सजा छोटा सा पार्क है। वहां कुर्सियां-टेबल बिछी रहती हैं। लम्बा, आराम देह झूला लगा है। उसके बाद सारी जगह पर पेड़ ही पेड़ हैं। आम के, जामुन के, अन्य फलों के और कहीं-कहीं सब्जियां भी उगाई गई हैं। आराम से वक्त बिताने का वहां पूरा साधन है। और उन पेड़ों में से किसी भी पेड़ पर पाटिल का शूटर, बतौर निगरानी मौजूद हो सकता है। हर रोज एक ही जैसी ड्यूटी से वो बोरियत महसूस नहीं करते। पाटिल ने उन्हें कह रखा है कि हर सुबह यही सोच कर चला करो कि किसी दुश्मन ने आज चोरी-छिपे फार्म हाउस में प्रवेश करना है। और वे पाटिल की बात को पूरी तरह मानते हैं। पाटिल की तरफ से उन्हें मोटी रकम मिलती है। पेड़ों के अलावा नीचे भी शूटर्स टहलते रहते हैं और रात होते ही, बंगले के आसपास चारदीवारी तक सारी खुली जगह के करीब दस शिकारी कुत्ते छोड़ दिए जाते हैं। खतरनाक शिकारी कुत्ते, जो कि भूखे होते हैं। उन्हें सिर्फ सुबह ही खाने को दिया जाता है और दिन भर भूखा रखा जाता है, ताकि भूख की वजह से रात को नींद ना ले सकें और कोई रात को भीतर प्रवेश करे तो उसे चीर-फाड़ कर खा जाएं। लेकिन वो शिकारी कुत्ते फार्म हाउस पर रहने वाले लोगों की तरफ आंख नहीं उठाते। ऐसा प्रशिक्षण उन्हें दिया गया है। भूल से कभी किसी शिकारी कुत्ते ने ऐसा करने की चेष्टा की तो उसे उसी वक्त शूट कर दिया जाता है। दिन का उजाला फैलेते ही वो सारे शिकारी कुत्ते एक तरफ बने कमरे में पहुंचना नहीं भूलते क्योंकि वहां तब तक उनके रहने का सामान रख दिया जाता है। उन शिकारी भूखे कुत्तों के अलावा रात को तीन-चार शूटर्स भी उनके साथ पहरा देते हैं। बेशक वो शूटर्स किसी पेड़ पर मौजूद हों या इधर-उधर टहल रहे हों। किसी अजनबी की महक पाने पर ही कुत्ते रात को भौंकते या गुर्राते हैं, वरना चुप्पी छाई रहती है।"
तीनों की नजरें नसीमा पर थीं।
नसीमा के चेहरे और आवाज में कूट-कूट कर गंभीरता भरी हुई थी।
सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली।
कुछ पल ठहरकर नसीमा ने पुनः कहना शुरू किया---।
"बंगले का प्रवेश द्वार पार करते ही एक कमरा आएगा। उसमें कम से कम दो शूटर्स हर वक्त मौजूद रहते हैं। उनकी निगाहों में आए बिना भीतर नहीं जाया जा सकता। उस कमरे को पार करने पर पांच सौ गज का बड़ा ड्राइंग हाल है। कीमती सामानों से सजा हुआ हॉल बहुत खूबसूरत है। पीछे की तरफ उसके साथ सटा बड़ा-सा किचन है और बाकी जगहों पर छः कमरे बने हुए हैं, जहां उसके शूटर्स आराम करते और नींद लेते हैं। और सातवां कमरा बारह फुट चौड़ा-लंबा है, जो कि बंद रहता है। दो शूटर्स उस दरवाजे के पास कुर्सियां बिछाए बैठे रहते हैं। बारी-बारी ड्यूटी बदलते रहते हैं। उनकी जगह नए आ जाते हैं।"
"वो कमरा ही स्ट्रांग रूम है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं। वो कमरा, स्ट्रांग रूम में जाने का महज एक रास्ता है। उस कमरे की दीवारों के बीच आर्म्स प्रूफ स्टील की चादरें हैं। छत पर भी वैसी ही स्टील की मोटी चादर है। यानि कि किसी भी तरह की तोड़फोड़ करके उस कमरे में प्रवेश नहीं किया जा सकता। उस कमरे में प्रवेश करने का रास्ता सिर्फ वो दरवाजा ही है, यहां हर वक्त दो शूटर्स मौजूद रहते हैं। और वो दरवाजा आम दरवाजा न होकर खास दरवाजा है। स्टील की आर्म्स प्रूफ चादर का बना वो दरवाजा चाबी से ना खुलकर नंबरों से खुलता है। दरवाजे के हैंडल के पास जीरो से लेकर नौ तक की छोटी-सी नंबर प्लेट लगी है। एक के बाद एक, खास चार नम्बरों को दबाना पड़ता है, उसके बाद हैंडल को दबाकर दरवाजा खोला जा सकता है। अगर उन चारों नंबरों में से एक नंबर भी गलत दब गया तो, दरवाजा नहीं खुलेगा।" नसीमा ने गंभीर स्वर में कहा।
"ये तो सिरदर्दी वाला सौदा हो गया...।" सोहनलाल कह उठा।
"लेकिन इससे भी पहले खास बात ये है कि वो चार नंबरों की कड़ी दबाने से पहले किसी खास बटन को दबाना पड़ता है। जिसने उस नम्बर प्लेट को लॉक कर रखा होता है। उस बटन को दबाने के पश्चात ही उस नंबर प्लेट का लॉक खुलता है। तब चार नंबरों को ठीक से दबाया जाए तो दरवाजा खुलेगा।" नसीमा ने सोहनलाल को देखा।
"तुम जानती हो नंबर प्लेट का लॉक खोलने के लिए पहले किस बटन को दबाना पड़ता है?" सोहनलाल बोला।
"नहीं...।"
"और वो चार नंबर कौन-से हैं, जिन्हें क्रम से दबाना पड़ता है, तभी दरवाजे का हैंडल घूमता है?"
"ये बातें शायद युवराज पाटिल के अलावा कोई भी नहीं जानता।" नसीमा ने सिर हिलाकर कहा--- "पाटिल इतना बेवकूफ नहीं कि स्ट्रांग रूम तक जाने का ढंग, उसने किसी को बताया होगा।"
सोहनलाल ने होंठ सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा।
"फिर तो उस दरवाजे को खोलना संभव नहीं लगता।"
"आगे सुनो, वो क्या कह रही है।"
नसीमा ने सिर हिलाकर गंभीर स्वर में पुनः कहा---।
"किसी तरह उस कमरे में प्रवेश कर भी लिया जाए तो, भीतर प्रवेश करने पर वो कमरा खाली मिलेगा। तिनका भी नहीं होगा, उस कमरे में और एक दीवार पर नंबरों वाली वैसी ही प्लेट लगी नजर आएगी। वहां भी जोरो से लेकर नौ तक नंबर हैं। उस नंबरों वाली प्लेट में भी वो ही, सिस्टम है, जो बाहरी प्लेट में था। यानि कि खास बटन दबाकर उसका लॉक सिस्टम हटाना होगा और फिर सही क्रम के अनुसार चार नंबरों को दबाना है। सही बटन दबाने पर वो दीवार दरवाजे के साईज जितनी सरक जाएगी और आगे बढ़ा जा सकता है।"
"तुम जब स्ट्रांग रूम में गई तो पाटिल तुम्हारे साथ था...?" देवराज चौहान ने कहा।
"हां।" नसीमा ने उसे देखा।
"तब तुमने ये अवश्य देखा होगा कि पाटिल किन-किन नंबरों को दबाता है।"
"कोशिश अवश्य की थी परंतु पाटिल की उंगलियों ने इस अंदाज में, उन प्लेटों पर लगे, नंबरों वाले बटनों पर हरकत की थी, कि कुछ भी समझ में नहीं आ सका था।" नसीमा ने कहा।
"आगे?" सोहनलाल कह उठा।
"दरवाजे जितना रास्ता बनते ही आगे बढ़ने पर छः सीढ़ियां हैं। जिन पर से नीचे उतरना पड़ता है। उसके पश्चात छः फीट चौड़ी गैलरी है। जिस पर आगे बढ़ना पड़ता है। वो गैलरी करीब तीस फीट लंबी है। गैलरी खत्म होने पर चार फीट चौड़ा और छः फीट लंबा स्टील का दरवाजा नजर आएगा। जिसे खोलने के लिए कोई हैंडिल या मुट्ठा नहीं लगा। उस अंग्रेजी के अक्षरों की A से लेकर Z तक की प्लेट लगी है। वो स्ट्रांग रूम का दरवाजा है। उस प्लेट पर नजर आने वाले छब्बीस बटनों पर A से लेकर Z तक के अक्षर लिखे हुए हैं। वहां पहले किन्हीं दो खास बटनों को दबाकर प्लेट का लॉक हटाना पड़ता है। उसके बाद खास क्रम में छः बटनों को दबाना पड़ता है। अगर बटनों को सही क्रम में दबाया गया है तो दरवाजा धकेलने पर वो खुल जायेगा और स्ट्रांग रूम में प्रवेश किया जा सकता है।"
"ये सब तुम्हें युवराज पाटिल ने बताया?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हां। डेढ़ साल पहले एक बार उसके साथ मैं स्ट्रांग रूम में गई थी। तब जाते वक्त वो ये सारा सिस्टम मुझे बता रहा था कि यहां तक पहुंचने में कोई भी कामयाब नहीं हो सकता।"
"वास्तव में...।" जगमोहन के होंठों से निकला--- "गलत नहीं कहा उसने...।"
"अभी आगे सुनो...।" नसीमा व्याकुल थी।
"और भी है?" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"हां। वहां पर सुरक्षा के इंतजाम भी कर रखे हैं पाटिल ने ये सोच कर कि अगर कोई वहां तक पहुंच भी जाता है तो स्ट्रांग रूम में प्रवेश होने में सफल ना हो सके।" नसीमा कह उठी--- "स्ट्रांग रूम के दरवाजे से पांच फीट पहले तक फर्श के नीचे उसने बारूद बिछा रखा है। हर जगह नहीं। फर्श के खास-खास हिस्से में इस तरह कि आगे बढ़ने पर बारूद वाले हिस्से पर हर हाल में पांव पड़ेगा ही। पांच किलो से ज्यादा का भार बारूद पर पड़ते ही बारूद फटेगा और आगे बढ़ने वाला व्यक्ति जिंदा नहीं बचेगा। ऐसी स्थिति में स्ट्रांग रूम के दरवाजे के पास पहुंचकर उस पर लगे अंग्रेजी के अक्षरों वाले छब्बीस बटनों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। स्ट्रांग रूम का दरवाजा नहीं खोला जा सकता। जब उसने स्ट्रांग रूम में जाना होता है तो बारूद बिछे सिस्टम को ऑफ कर देता है। एक कमरे को उसने कंट्रोल रूम बना रखा है। और वो कमरा पहली मंजिल पर है। पाटिल ने ये भी बताया था कि सावधानी के नाते वहां वीडियो कैमरे भी लगे हैं। कंट्रोल रूम में बैठकर हर तरफ नजर रखी जा सकती है। यानि कि कोई भी पाटिल के स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सकता।"
नसीमा के खामोश होते ही वहां कुछ पलों की चुप्पी छा गई।
इस चुप्पी को जगमोहन ने उखड़े स्वर में तोड़ा।
"और कुछ बचा है तो वो भी बता दो।"
नसीमा ने जगमोहन को देखा फिर गहरी सांस लेकर कह उठी।
"मैंने पहले ही कहा था कि स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की कोशिश करना भी मौत को दावत देना है।"
"बहुत जबरदस्त और गारंटी वाली किलेबंदी कर रखी है पाटिल ने स्ट्रांग रूम की।" सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट का कश लिया--- "मेरे ख्याल में इस सच को कबूल लेना चाहिए कि पाटिल के स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंचा जा सकता।"
देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा। होंठों पर मध्यम-सी मुस्कान उभर आई थी।
"मुस्कुरा रहे हो।" कहते हुए सोहनलाल भी मुस्कुरा पड़ा।
"हां। स्ट्रांग रूम की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में सुनकर मजबूरन मुझे मुस्कुराना पड़ रहा है।" देवराज चौहान कह उठा।
"क्यों?" जगमोहन के माथे पर बल उभरे।
"क्योंकि, वहां तक पहुंचना वास्तव में असंभव-सी बात है।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"सही कहा तुमने।" जगमोहन ने जल्दी से कहा--- "दस अरब में तिजोरी का सौदा कर लेते हैं पाटिल से। दस अरब भी कम होता है क्या? ऐसे मुसीबत से भरे पचास अरब के हीरे-जवाहरातों से हमें दूर ही रहना चाहिए।"
चेहरे पर मुस्कान समेटे देवराज चौहान ने नसीमा से कहा।
"तुम डेढ़ साल पहले स्ट्रांग रूम में गई थी।"
"हां।"
"हो सकता है इन डेढ़ सालों में पाटिल ने सुरक्षा व्यवस्था में कोई नया बदलाव किया हो?" देवराज चौहान बोला।
"अगर ऐसा कुछ हुआ है तो उसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है।" नसीमा ने इंकार में सिर हिलाया।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई। चेहरे पर अब गंभीरता आ गई थी। उसने कश लेते हुए जगमोहन और सोहनलाल को देखा फिर कह उठा।
"नसीमा ने, पाटिल के स्ट्रांग रूम की जो सुरक्षा व्यवस्था बताई है, उस पर हम इस बात का गौर करते हैं कि कहां-कहां पर हमें अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। कहां पर हमें ज्यादा परेशानी आ सकती है और कहां पर आगे बढ़ने के लिए हमें कितना वक्त लग सकता है।"
"क्या?" जगमोहन हड़बड़ा कर कह उठा--- "तुम अभी भी स्ट्रांग रूम में डाका डालने की सोच रहे हो।"
नसीमा की हैरानी से फैली आंखें देवराज चौहान पर जा टिकीं।
सोहनलाल ने बेचैनी से पहलू बदला।
"मैं सिर्फ वहां की सुरक्षा संबंधों पर गौर करने की बात कर रहा हूं।"
"मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं कि तुम इस काम को करने की सोच रहे हो।" जगमोहन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "ऐसा न होता तो तुम इस बारे में कोई बात ही नहीं करते।"
देवराज चौहान कुछ कहने लगा कि नसीमा व्याकुल-सी कह उठी।
"बेकार है देवराज चौहान! मालूम है जहां मौत है, उधर देखना भी नहीं चाहिए।"
"शायद नसीमा ठीक कह रही है।" सोहनलाल दांतों से नीचे वाला होंठ काटते हुए कह उठा।
"शेर का शिकार करने के लिए जाल बिछाया जाता है। मचान बनाई जाती है। उसे फंसाने के लिए गड्ढे खोदे जाते हैं और शिकारी अच्छी तरह जानता है कि चूक होने पर शेर उसे चीर-फाड़ देगा। इस पर भी शिकारी उसका शिकार करने के लिए जान हथेली पर रखकर जंगल में पहुंच जाता है। क्यों करता है शिकारी ऐसा?"
सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी।
देवराज चौहान शांत-गंभीर था।
"शिकार करना शिकारी का शौक होता है। उसे शेर का शिकार करके इतनी खुशी नहीं होती, जितनी कि खुद को खतरे में डालकर होती है।" देवराज चौहान की निगाह तीनों पर फिर रही थी--- "वहां की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में जानकार, मेरे लिए तिजोरी में बंद पचास अरब के जेवरातों का या रिमोट का इतना महत्व नहीं रहा, जितना महत्व इस बात का हो गया है कि पाटिल की सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर मैंने स्ट्रांग रूम में पहुंचना है।"
"कामयाब नहीं हो सकेंगे।" नसीमा के होंठों से निकला।
"जरूरी तो नहीं कि शिकारी शेर का शिकार कर ले। शेर भी कभी-कभी शिकारी का शिकार कर लेता है। जंगल में कोई भी कम नहीं होता। बराबर की टक्कर होती है। कभी हार और कभी जीत का सामना करना ही पड़ता है।"
कोई कुछ न बोला।
सबकी परेशान, व्याकुल और चिंता भरी नजरें देवराज चौहान पर थीं। जगमोहन बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहा था। वो जानता था कि देवराज चौहान को उसके इरादे से पीछे नहीं हटाया जा सकता। अगर इसने पाटिल के स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की सोच ली है तो मौत से भरी इस कोशिश को पूरा करने की चेष्टा अवश्य करेगा।
■■■
"युवराज पाटिल की सुरक्षा प्रबंधों में कहीं भी कोई ऐसी जगह नहीं है कि हम सोचें, कि उस जगह से आसानी से रास्ता पार किया जा सकता है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन वहां की सुरक्षा व्यवस्था का कोई तोड़ हमें निकालना है। जहां की सुरक्षा व्यवस्था हद से ज्यादा पक्की होती है, वहां उतना ही कमजोर पॉइंट कहीं पर होता है। हमें वो कमजोर पॉइंट ढूंढना है, स्ट्रांग रूम की सुरक्षा व्यवस्था की ईंटें निकाल कर उसे तोड़ सकें।"
"मुझे तो ऐसा कोई भी रास्ता नजर नहीं आता कि स्ट्रांग रूम के भीतर जाया जा सके।" नसीमा ने गहरी सांस ली।
सोचों में डूबे सोहनलाल ने सिग्रेट सुलगा ली।
"मेरे ख्याल में हमें दस अरब में ही पाटिल से तिजोरी का सौदा कर लेना चाहिए।" जगमोहन ने बेचैनी से कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि पाटिल के स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंचा जा सकता, जहां रिमोट पड़ा है।" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"तुम ये सोचो कि कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा तो तुम्हारी सोचें बदलेंगी।"
"मैं तुम्हें वहां की सुरक्षा के बारे में याद दिलाना चाहूंगी।"
"मुझे याद है।" देवराज चौहान के होंठों पर छोटी सी मुस्कान उभरी।
"फिर भी एक बार फिर सुन लो। इस काम में परेशानियों का सिलसिला फार्म हाउस की बाहरी दीवार से ही शुरू हो जाता है। अगर वहां दिन में प्रवेश किया जाए तो छुप नहीं सकते। पाटिल के शूटर्स फौरन हमें शूट कर देंगे। रात में वहां के पहरेदार भूखे-खूंखार कुत्ते होते हैं और साथ में चंद शूटर्स भी होते हैं। पाटिल के आदमी अपनी ड्यूटी में लापरवाही नहीं बरतते। यानि कि भीतर प्रवेश करते ही हमारा काम हो जाएगा।" जगमोहन अपने शब्दों पर जोर देते हुए कह रहा था--- "मान लिया जाए कि किसी तरह हम बंगले के भीतर प्रवेश कर गए। उस कमरे तक पहुंच गए, जहां हर वक्त दो शूटर्स कुर्सियों पर बैठे पहरा देते हैं तो उन्हें रास्ते से हटाने से शोर-शराबा होगा और हमारी मौजूदगी का एहसास, फौरन पाटिल के आदमियों को हो जाएगा। तब ढेर सारे आदमियों का मुकाबला हम नहीं कर सकते। जाहिर है वो लोग हमें गोलियों से भून देंगे।"
देवराज चौहान जगमोहन को देखे जा रहा था।
"ठीक है, अगर ये भी मान लेते हैं कि दोनों शूटर्स पर हम खामोशी से काबू पा लेते हैं तो उस कमरे का दरवाजा कैसे खुलेगा, जहां से रास्ता स्ट्रांग रूम तक जाता है। वहां कोई भी कैसा भी ताला नहीं है कि सोहनलाल खोल देगा। दरवाजे पर कंबीनेशन की प्लेट लगी है। उस प्लेट को चालू करने के लिए, पहले उसका कौन-सा बटन दबाना पड़ता है। हम नहीं जानते। माना कि वो बटन हमने दबा भी दिया तो हमें कैसे मालूम होगा कि नंबर प्लेट का लॉक सिस्टम ओपन हो गया है। अगर मालूम हो भी जाए तो ये असंभव बात है कि उसके बाद दरवाजा खोलने के लिए खास चार बटनों को क्रम बार दबाना पड़ता है। कौन-कौन से बटन को पहले-दूसरे-तीसरे-चौथे नंबर पर लगाना है, ये किसी भी हाल में नहीं जाना जा सकता।"
जगमोहन खामोश हुआ।
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
सोहनलाल अपने आप में उलझा कश लिए जा रहा था।
नसीमा कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठी थी।
जगमोहन पुनः कह उठा।
"माना कि वो दरवाजा हमें खुला हुआ मिलता है। ये बात मैं उदाहरण के तौर पर कह रहा हूं। अगर खुला हुआ दरवाजा मिलता है तो उसके बाद फिर वैसा ही दरवाजा है। उसे कैसे खोलेंगे। कंबीनेशन को हटाने के लिए उसकी चार नम्बरें नहीं मालूम हो सकेगी। चलो, इस बार भी मान लेते हैं कि चिराग के जिन्न ने हमारे लिए वो दरवाजा पहले ही खोल रखा है तो फिर सीढ़ियां उतरकर गैलरी के पास कोने में स्ट्रांग रूम है। जिसके दरवाजे पर अंग्रेजी के छब्बीस अक्षरों की प्लेट लगी है। A से Z तक। उन छब्बीस नंबरों की बात तो मैं बाद में करूंगा। पहले ये जानना चाहूंगा कि उस दरवाजे से पहले ही फर्श के नीचे छः फीट तक जो बारूद बिछा है, जिस पर पांच किलो से ज्यादा का भार पड़ते ही फट जाएगा। उससे कैसे निपटा जाएगा। फर्श के नीचे बिछे बारूद से न तो निपटा जा सकता है और ना ही दरवाजे तक पहुंचा जा सकता है। ऐसे में अंग्रेजी के छब्बीस अक्षरों की वर्णमाला में से स्ट्रांग रूम का दरवाजा खोलने के लिए, सही अक्षरों वाले बटनों को तलाश करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। वहां वीडियो कैमरे भी हैं। कंट्रोल रुम में बैठा व्यक्ति वीडियो कैमरों से आती तस्वीर के सहारे आसानी से हमारी मौजूदगी को जान सकता है। तब तो हम बिल्कुल ही चूहे की तरह फंस जाएंगे, वहां। कोई फायदा नहीं है। देवराज चौहान! शायद आज पहली बार मैं तुम्हें किसी जगह डाका डालने से मना कर रहा हूं क्योंकि इसमें सिर्फ जान ही जाएगी, मिलेगा कुछ नहीं।"
कहते हुए जगमोहन का चेहरा आवेश में लाल-सा हो गया था।
सोहनलाल की गंभीर निगाह भी, जगमोहन पर टिक चुकी।
"और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि नसीमा ने जो बताया है, इसके अलावा भी पाटिल ने सुरक्षा के कुछ और इंतजाम किए होंगे, जिनके बारे में उसने किसी को भी नहीं बताया होगा।" जगमोहन पुनः बोला।
"जगमोहन की इस बात से मैं सहमत हूं।" नसीमा का सिर हौले से हिला--- "मैंने जो बताया है, वो डेढ़ बरस पहले की बातें हैं। इस बीच पाटिल ने कुछ और इंतजाम किया हो तो, मैं नहीं कह सकती।"
"अगर तुम्हें पाटिल से सौदेबाजी करना पसंद नहीं है तो परवाह नहीं।" जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा--- "तिजोरी को उठाकर किसी बहते नाले में फेंक आते हैं। नहीं चाहिए ऐसी दौलत, जो हमारी जान के पीछे पड़ जाए।"
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभरी फिर गायब हो गई।
"सोहनलाल!" देवराज चौहान ने उसे देखा--- "तुम क्या कहते हो?"
"मैं जगमोहन की हर बात से सहमत हूं।" सोहनलाल ने गंभीर स्वर में कहा--- "इस बात से तो पूरी तरह ही सहमत हूं कि पाटिल से सौदेबाजी का इरादा न हो तो तिजोरी फौरन गंदे नाले में फेंक देनी चाहिए।"
चंद पलों की चुप्पी के बाद देवराज चौहान बोला।
"पाटिल ने दरवाजों पर, उन्हें खोलने के लिए जो कंबीनेशन नंबर की प्लेट लगा रखी है, उसके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? किस हद तक तुम उन्हें खोलने में कामयाबी पा सकते हो? या फिर नहीं पा सकते?"
सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा। कहा कुछ नहीं।
खामोशी लंबी होने लगी।
"चुप क्यों है।" जगमोहन कह उठा--- "कह दे कंबीनेशन नंबर प्लेट पर तेरा बस नहीं चल सकता।"
"आधे-आधे चांस हैं।" सोहनलाल ने धीमे स्वर में कहा।
"मैं पक्का जवाब चाहता हूं हां या ना?" देवराज चौहान का चेहरा सपाट नजर आने लगा था।
"हां। सोहनलाल का स्वर धीमा था--- "लेकिन वक्त कुछ ज्यादा लग सकता है।"
"कितना ज्यादा?"
"कह नहीं सकता। कितना ज्यादा या कितना कम...।" सोहनलाल का स्वर धीमा ही था।
सोचों में डूबी आंखें सोहनलाल के चेहरे पर टिकी थीं।
"लेकिन उस बारूद का क्या होगा। जो पांच फीट की लंबाई में स्ट्रांग रूम के दरवाजे तक नीचे बिछा हुआ है? उसका पार नहीं पाया जा सकता। ऐसे में मैं स्ट्रांग रूम का दरवाजा कैसे खोल सकूंगा।"
"वो देखना मेरा काम है।" देवराज चौहान के होंठों में कसाव आ गया।
तभी व्याकुल-सा जगमोहन कह उठा---।
"तो तुम तय कर चुके हो कि पाटिल के स्ट्रांग रूम तक पहुंचोगे?"
"हां।"
"मत करो ये सब, कोई फायदा नहीं। कुछ नहीं हो पाएगा।" जगमोहन खीझकर कह उठा।
"तुम इस काम को जितना कठिन सोच रहे हो। मेरी निगाहों में ये उतना ही आसान है।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "अगर बीच रास्ते में कोई गड़बड़ ना हो जाए तो।"
"इतनी जल्दी तुमने सोच भी लिया कि पाटिल के सुरक्षा प्रबंधों को कैसे तोड़ना है।" नसीमा के होंठों से निकला।
"पूरा नहीं सोचा लेकिन कुछ सोचा है।" देवराज चौहान के स्वर में गंभीरता और सोच के भाव थे।
"क्या? क्या सोचा है?" जगमोहन के होंठ भिंच गए।
"अभी पूरा नहीं सोचा। फिर बताऊंगा। अभी कई बातें, इस बारे में जाननी हैं मुझे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ--- "रात हो चुकी है। कुछ नींद ले ली जाए तो ठीक रहेगा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बंगले के भीतर की तरफ बढ़ गया।
सोहनलाल और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"मैं अभी तक देवराज चौहान को नहीं समझ पाई कि....।" नसीमा ने कहना चाहा।
"तुम्हें समझने की जरूरत भी नहीं है।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा--- "उसके लिए हम ही काफी हैं। तुम्हारा साथ कुछ ही देर का है। बहुत जल्दी तुम्हें देवराज चौहान के मुसीबत में फंसने की खबर मिलेगीऔर फिर तुम्हें अपने किसी नए रास्ते पर चले जाना होगा। किस्सा खत्म। ये मामला किनारे नहीं लगेगा।"
"तुम...तुम देवराज चौहान को समझा नहीं सकते?" नसीमा का स्वर भिंचता चला गया।
"तुमने अभी कहा है कि तुम देवराज चौहान को समझ नहीं पाई।"
"हां।"
"अगर देवराज चौहान को जानती होती तो मेरे से ये सवाल न करती।" जगमोहन का स्वर धीमा हो गया--- "देवराज चौहान जो सोच लेता है, वो पूरा करके ही रहता है। फिर मैं भी उसे रोक नहीं सकता।"
सोहनलाल ने जगमोहन को देखा फिर मुस्कराया।
"इतनी फिक्र करने की जरूरत नहीं है।"
"क्या मतलब?"
"देवराज चौहान को कुछ नहीं होगा। वो जानता है, कहां पर क्या करने जा रहा है।" सोहनलाल के स्वर में पक्कापन था--- "वो इस मामले में कदम आगे बढ़ाने की सोच रहा है तो यकीनन उसे कोई रास्ता नजर आया होगा। अंधेरे में वो कभी भी आगे नहीं बढ़ेगा।"
सोहनलाल की आंखें सिकुड़ गईं।
"तुम्हें कहीं रोशनी नजर आ रही है पाटिल की सुरक्षा व्यवस्था में?"
"नहीं।" सोहनलाल ने स्पष्ट कहा--- "लेकिन देवराज चौहान को अवश्य रोशनी नजर आ रही होगी। तभी तो उसने इस मामले में आगे बढ़ने का फैसला किया है।"
"मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि पाटिल किसी भी तरफ से कम नहीं है।" नसीमा कह कर उठी और फोन की तरफ बढ़ गई--- "वो कभी भी, कुछ भी सोचकर बाजी पलट सकता है।"
"तुम किसी फोन कर रही हो?" नसीमा को रिसीवर उठाते देखकर जगमोहन ने पूछा।
"अपने दोस्त को। ठाकुर ने फोन पर बताया कि पाटिल ने उस पर नजर रखने के लिए अपने आदमी लगा दिए हैं। वैसे तो मेरा दोस्त नहीं जानता कि मैं कहां हूं। लेकिन उसे सावधान रहने को कह दूं कि कोई ऐसी-वैसी हरकत ना करे कि पाटिल खामख्वाह ही मेरी वजह से उसकी गर्दन थाम ले---।"
"क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का?"
"नसीर---?" नसीमा ने कहा और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगी।
जगमोहन और सोहनलाल की निगाहें मिलीं।
"हैलो---।" नसीमा के कानों में नसीर की आवाज पड़ी।
"नसीर! मैं---।"
"तुम कैसी हो नसीमा?" नसीर का व्याकुल स्वर उसके कानों में पड़ा--- "मैं तुम्हारे बारे में--- "
तभी जगमोहन उठा और कुछ दूर मौजूद दूसरे फोन का रिसीवर उठा लिया। लाईन एक ही थी। उनकी हो रही बातें, उसके कानों में पड़ने लगीं।
नसीमा ने जगमोहन की हरकत देखी। लेकिन अपनी बातों में व्यस्त रही।
"मैं बिल्कुल ठीक हूं।" नसीमा ने उसकी बात काटकर कहा--- "मैंने तुम्हें ये बताने के लिए फोन किया है कि पाटिल ने तुम पर आदमी लगा रखे हैं कि तुम कब मुझसे मिलते हो।"
"लेकिन मैं तो जानता नहीं कि तुम कहां हो।"
"जानने की जरूरत नहीं है मैं अभी व्यस्त हूं, फुर्सत मिलते ही---।"
"तुम क्या कर रही---।"
"अभी मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकती। मिलने पर---।"
"मैंने सुना है कि तुमने पाटिल से दुश्मनी ले ली है।" नसीर का व्याकुल स्वर कानों में पड़ा।
"हां।" नसीमा के होंठ भिंच गए--- "इसके लिए पाटिल ने ही मुझे मजबूर किया था। तुम संभल कर रहना। पाटिल के आदमी हर वक्त तुम पर नजर रख रहे हैं। मैं फिर बात करूंगी नसीर---।"
"अपना ध्यान रखना। मुझे तुम्हारी चिंता---।"
"मैं ठीक हूं।" कहने के साथ ही नसीमा ने रिसीवर रख दिया।
जगमोहन में भी रिसीवर रखा।
"सुन ली बात---?" नसीमा ने मुस्कुराकर जगमोहन से पूछा।
"हां। मैंने सोचा कहीं तुम पाटिल का हाल मालूम करने के लिए, बात तो नहीं कर रही।"
"मैंने तुम्हारे शक करने का बुरा नहीं माना। सतर्क रहने वाले लोग ज्यादा देर जिंदा रहते हैं।" नसीमा हौले से हंसी--- "अब ये बताओ, नींद लेने के लिए मेरी जगह कहां है?"
"आओ कमरा दिखा देता हूं?"
जगमोहन नसीमा को लेकर एक तरफ बढ़ गया।
पीछे से सोहनलाल ने कहा।
"वापस आ जाना---।"
"चिंता मत कर। उल्टे पांव आया---।"
■■■
अगले दिन सुबह देवराज चौहान ने राम दा का नंबर मिलाया। करीब आधा मिनट बेल होती रही फिर रिसीवर उठाया गया। राम दा की नींद से भरी आवाज कानों में पड़ी।
"हैलो---!"
"सात बज रहे हैं और तुम अभी तक नींद में हो।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
कुछ पल लाईन पर खामोशी रहने के पश्चात राम दा की आवाज कानों में पड़ी।
"आधी रात के बाद बैड पर जाना मिले तो फिर आंख देर से ही खुलती है। पहचाना तुम्हें। कल काम ठीक हुआ? कहीं कमी तो नहीं रह गई?"
"सब ठीक रहा।"
"कैसे फोन किया?"
"तुम मुझे मिलना चाहते थे?" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव आए पड़े थे
"हां।" राम दा की आने वाली आवाज में सतर्कता आ गई थी।
"मिल लो।"
"आ जाओ। गाड़ी भिजवा देता हूं कहां भेजूं?"
"न तो मैं तुम्हारे यहां आऊंगा और न ही तुम मेरे यहां। इसके अलावा और कोई और जगह बता दो।"
"बोलो कहां?"
"जो जगह तुम्हें पसंद हो।"
"एस्सल वर्ल्ड के बाहरी गेट पर आ जाओ। कितने बजे?"
"दस बजे---।" देवराज चौहान ने कहा--- "अकेले आना। हम दोस्तों की तरह मिल रहे हैं।"
"तुम भी अकेले आ रहे हो?" राम दा का गंभीर स्वर कानों में पड़ा।
"हां।"
"ठीक है। दस बजे मुलाकात होगी।" आवाज आई--- "नाम तो बता दो अपना?"
"देवराज चौहान?" देवराज चौहान रिसीवर रखकर पलटा तो पीछे जगमोहन को खड़े पाया।
"तुम तो कह रहे थे कि राम दा को अब इस काम में इस्तेमाल नहीं करना है।" जगमोहन बोला।
"हां। लेकिन पाटिल के यहां सुरक्षा प्रबंधों को देखते हुए राम दा को इस्तेमाल करना जरूरी हो गया है।"
"करना क्या चाहते हो?" जगमोहन ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी।
"मैं सिर्फ स्ट्रांग रूम तक पहुंचना चाहता हूं।" देवराज चौहान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी--- "अगर सीधे-सीधे रास्ता बनता नजर ना आए तो टेढ़ी तरह आगे बढ़ना पड़ता है।"
"वो कैसे?"
"हमारे लिए सबसे बड़ी परेशानी खड़ी करेंगे, पाटिल के शूटर्स। जोकि हर वक्त फार्म हाउस पर रहते हैं। उनकी मौजूदगी में कोई भी काम का मौका नहीं मिलेगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "सोहनलाल को कंबीनेशन लॉक खोलने के लिए वक्त चाहिए, जो कि वहां मौजूद आदमियों की वजह से नहीं मिल पाएगा।"
देवराज चौहान को देखते हुए जगमोहन ने सिर हिलाया।
"राम दा और पाटिल में लगी हुई है। मेरे ख्याल में राम दा पाटिल की जगह लेना चाहता है।"
"कोई जरूरी तो नहीं---।"
"जरूरी ही है। वरना वो कभी भी पाटिल के कामों में दखल नहीं देता।"
"शायद।" जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा--- "राम दा आज की तारीख में अंडरवर्ल्ड का ताकतवर बंदा है।"
"पाटिल के खिलाफ मैं एक बार फिर राम दा को इस्तेमाल करना चाहता हूं।"
"तुम्हारा मतलब कि फार्म हाउस पर मौजूद पाटिल के आदमियों को---।"
"हां। उन आदमियों से राम दा के आदमी निपटेंगे।"
"राम दा बेवकूफ नहीं है।" जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी--- "वो कल ही जान गया होगा कि उसके आदमियों के दम पर कल तुमने पाटिल की ऐसी तिजोरी हासिल की, जिसमें पचास अरब के हीरे-जवाहरात हैं। वो अवश्य चाहेगा कि मोटी रकम वाली तिजोरी तुमसे हासिल कर ले।"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया।
"तुम ठीक कहते हो। लेकिन मेरी बात सुनकर वो तिजोरी पाने का ख्याल छोड़ देगा क्या।"
"कैसी बात?"
"यही कि स्ट्रांग रूम का सारा सामान उसका मेरा सिर्फ रिमोट---।"
जगमोहन देवराज चौहान को देखता रहा।
"पाटिल ने अपने स्ट्रांग रूम में कीमती सामान रखा होगा कि---।
"वही तो मैं कह रहा हूं।" जगमोहन ने जल्दी से उसकी बात काटी--- "वहां बहुत बड़ी दौलत हो सकती है। राम दा से स्ट्रांग रूम में मिलने वाली दौलत की आधी-आधी बात करना। उसे पूरा देने को मत कहना।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"मुझे सिर्फ रिमोट चाहिए---।"
"लेकिन---।"
देवराज चौहान बिना कुछ कहे, कमरे से बाहर निकला।
"ध्यान रखना। पाटिल इन दिनों फार्म हाउस वाले बंगले पर ही है।" जगमोहन ने कहा।
"जानता हूं।" देवराज चौहान बोला--- "नसीमा जब उठे तो उससे फार्म हाउस का फोन नंबर पूछना।"
"पाटिल से बात करोगे?"
"हां। एक बार उससे बात कर लेने में कोई हर्ज नहीं है।"
■■■
देवराज चौहान ने युवराज पाटिल से बात की।
"पाटिल---!" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "मुझे उस रिमोट की जरूरत है।"
"बेकार की बातें छोड़ो।" पाटिल का व्यंग्य भरा स्वर उसके कानों में पड़ा--- "सौदे के बारे में सोचो। दस अरब रुपया कम नहीं होता।मेरी मानो तो आज ही इस मामले को निपटा दो।"
"मैं रिमोट की बात कर रहा हूं पाटिल---।"
युवराज पाटिल के हंसने का स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।
"मुझे हैरानी है कि तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हें रिमोट दे दूंगा। पागल हो क्या?"
"मैं बिल्कुल होश में हूं। इसलिए एक बार तुमसे बात करना जरूरी समझा।"
"देवराज चौहान!" पाटिल की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम्हारी-मेरी दुश्मनी तो है नहीं। क्यों खामख्वाह बात को लंबा कर रहे हो। तुम्हारे बदले मेरे सामने कोई और होता तो दस अरब की अपेक्षा, पचास करोड़ से ज्यादा की ऑफर न रखता उसके सामने। हम दोनों की भलाई इसी में है कि ये मामला यहां से निपट जाए---।"
"तो फिर तिजोरी वापस लेने का सौदा चालीस अरब में कर लो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"वास्तव में तुम्हारा दिमाग खराब है। चालीस अरब? मुझे विश्वास होता जा रहा है। तुम पागल ही हो।"
"तो रिमोट नहीं दे रहे?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मैं फोन बंद करने जा रहा हूं।"
"सोच लो पाटिल! मेरी बात मानकर तुम्हारा बहुत कुछ बच जाएगा।"
दूसरी तरफ से युवराज पाटिल ने रिसीवर रख दिया था।
देवराज चौहान ने रिसीवर रखा और सिग्रेट सुलगा ली।
"पाटिल किसी भी कीमत पर रिमोट नहीं देगा।" सामने खड़ी नसीमा कह उठी।
"इस बात से मैं वाकिफ हूं। फिर भी एक बार उससे बात करना जरूरी था।" कहने के पश्चात देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा--- "तैयार हो चलने के लिए?"
"हां।" सोहनलाल नहा कर तैयार हो चुका था।
देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।
"तुम नसीमा के साथ बंगले पर ही रहोगे।"
जगमोहन ने सिर हिलाकर, नसीमा पर निगाह मारी। वो जानता था कि नसीमा के प्रति सतर्क रहना है। कहीं ऐसे नाजुक वक्त पर धोखा देकर पाटिल से ना मिल जाए।
"तुम कब लौटोगे?" जगमोहन ने पूछा।
"आज ही के दिन में वापस आ जाएंगे।"
■■■
सोहनलाल जान चुका था कि देवराज चौहान राम दा से मिलने जा रहा है।
देवराज चौहान कार ड्राइव कर रहा था।
"तुम्हारी योजना क्या है?" सोहनलाल ने पूछा--- "कैसे पहुंचेंगे कंट्रोल रूम तक---?"
"योजना का खाका है मस्तिष्क में।" देवराज चौहान ने कहा--- "रूपरेखा तैयार हो चुकी है। योजना के तालों पर कीलें ठोक लूं, उसके बाद बताऊंगा कि कैसे सब कुछ होगा।"
"राम दा को इस काम में कैसे इस्तेमाल करोगे?"
"राम दा से बात हो जाने के बाद बताऊंगा।"
कार तेजी से सड़कों पर दौड़ती रही।
"कहां मिलना है राम दा से?"
"एस्सल वर्ल्ड के बाहरी गेट पर।" देवराज चौहान ने कहा--- "लेकिन मैंने उससे पहले कभी नहीं देखा। हो सकता है उसने मुझे देखा हो और वो पहचान ले---।"
"मैं उसे पहचानता हूं और---।"
"तुम मेरे साथ नहीं, मुझसे दूर रहोगे। रिवाल्वर तुम्हारे पास है। वैसे राम दा के पास ऐसी कोई वजह नहीं है कि वो मेरे साथ कोई गलत हरकत करने की चेष्टा करे। फिर भी तुम्हें सावधान रहना होगा।"
"समझ गया।" सोहनलाल ने कहा--- "वैसे राम दा को पहचानने की खास निशानी है। पुरानी आदत है उसकी। चाबियों का छल्ला वो दाएं हाथ की तर्जनी उंगली में घुमाता रहता है। उसकी इस आदत की वजह से उसे सैकड़ों की भीड़ में भी पहचाना जा सकता है।"
■■■
एस्सल वर्ल्ड का बाहरी गेट।
भीड़ ठीक-ठाक ही थी। सुबह का वक्त होने के कारण लोग भीतर जा रहे थे। युवा जोड़े या फिर स्कूल के बच्चे मैडमों अथवा टीचरों के साथ थे। हर कोई अपनी धुन में मस्त।
देवराज चौहान आधा घंटा देरी से वहां पहुंचा था। सोहनलाल एक तरफ ठहर गया था। देवराज चौहान जेब में हाथ डाले धीरे-धीरे टहलता हुआ इधर-उधर निगाहें दौड़ा रहा था कि कुछ ही मिनटों में उसकी निगाह में एक पचास बरस का व्यक्ति आया जो कि उंगलियों में चाबी का छल्ला घुमा रहा था।
तो ये है राम दा?
देवराज चौहान उसकी तरफ बढ़ा। गर्दन सोहनलाल की तरफ घूमी, तो सोहनलाल की गर्दन को उसने इंकार में सिर हिलाते पाया। देवराज चौहान फौरन सतर्क हुआ और चलते-चलते पलटकर सोहनलाल की तरफ बढ़ गया। जल्दी ही देवराज चौहान सोहनलाल के पास था।
"क्या बात है?"
"वो राम दा नहीं है।" सोहनलाल ने कहा।
"तुमने बोला था कि वो चाबी का छल्ला उंगली में---।"
"मैंने ठीक कहा था। लेकिन वो राम दा नहीं, कोई और ही है।" सोहनलाल ने दृढ़ स्वर में कहा।
"इसका मतलब राम दा सीधी तरह सामने न आते हुए पहले अपने आदमी को अपने अंदाज में आगे कर दिया। वो भी पास ही कहीं होगा।" कहते हुए देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए
"अब क्या करना है?"
"तुम जाओ, उसके पास---।"
"मैं---?" सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।
"हां।"
सोहनलाल अपनी जगह से हिला और उस व्यक्ति की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान वहीं खड़ा रहा। नजरें उधर ही रहीं। लोगों की चहल-पहल जारी थी।
"पहुंच गए?" सोहनलाल उसके पास पहुंचकर लापरवाही से कह उठा।
उंगली में छल्ला हिलाना रोक कर उसने गहरी निगाहों से सोहनलाल को देखा।
"कौन हो तुम?" उसने पूछा।
"जिसका इंतजार है तुम्हें।" सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा।
"देवराज चौहान?"
"हां।"
"तुम देवराज चौहान नहीं हो सकते।" उसकी आवाज में विश्वास था।
"क्यों?"
"मैंने एक बार अखबार में देवराज चौहान की तस्वीर देखी थी। वो तस्वीर तुम जैसी नहीं थी---।"
"तो तुम कौन से राम दा हो। मैंने राम दा को देखा हुआ है।"
वो सोहनलाल को घूरने लगा।
सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाई।
"देवराज चौहान कहां है?"
"यहीं है। राम दा नहीं आया क्या?"
"आया है।"
"तो मिलाओ दोनों को। वो बात करेंगे। हम साथ-साथ एस्सल वर्ल्ड घूमेंगे। और कितने आदमी साथ हैं?"
"सिर्फ मैं ही हूं सावधानी के तौर पर। राम दा यहां बात करने आया है। झगड़ा करने नहीं।"
"मुझे राम दा के पास ले चलो।" सोहनलाल ने उसे देखा--- "मैं उसे पहचान लूंगा।"
दो पल की सोच के बाद उसने सिर हिलाया।
"आओ।"
पास ही दीवार के सहारे खड़ा राम दा दोनों को देख रहा था।
वो सोहनलाल को लेकर उसके पास पहुंचा।
"राम दा! ये देवराज चौहान का आदमी है।" उसने कहा।
राम दा पचास बरस का, सादी-सी कमीज-पैंट पहने था। आंखें और होंठों में कठोरता भरी महसूस की जा सकती थी। जिसे हर कोई नहीं महसूस कर सकता था। वैसे वो मध्यम वर्ग का इंसान लगता था। सोहनलाल को देखते हुए उसने जेब से हाथ निकाला और हथेली में दबा रखा चाबी का छल्ला हौले से उंगलियों में हिलने लगा।
"नाम बता अपना?" उसका स्वर शांत था।
"सोहनलाल---।"
"पहचानता है मुझे?"
"हां।" सोहनलाल ने सिर हिलाया।
"पहचान लिया?"
"हां।"
"जा, बुला देवराज चौहान को।" राम दा ने दूर खड़े देवराज चौहान की तरफ देखा--- "वो है देवराज चौहान?"
सोहनलाल ने उधर देखा फिर कह उठा।
"हां। वो ही है।"
"खड़ा क्यों है। बुला उसे।"
सोहनलाल ने वहीं खड़े-खड़े देवराज चौहान को आने का इशारा किया। देवराज चौहान इस तरफ ही देख रहा था। सोहनलाल का इशारा पाकर आगे बढ़ने लगा। दोनों हाथ जेबों में थे।
राम दा अपने साथ आए आदमी से बोला।
"पहचान लो। देवराज चौहान ही है ये या---?"
"देवराज चौहान ही है।" वो कह उठा।
"पक्का?"
"हां। मैंने अखबार में एक बार तस्वीर देखी थी। पहचान लिया। ये देवराज चौहान ही है।"
तब तक देवराज चौहान पास आ पहुंचा था।
राम दा एकाएक सामान्य होकर, खुलकर मुस्कुराया।
"तुमसे मिलकर बहुत खुशी हो रही है देवराज चौहान। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी मददगार देवराज चौहान जैसी शख्सियत होगी।" आवाज में मिठास कूट-कूट कर भरी हुई थी।
"मैंने तुम्हारी कोई मदद नहीं की।" देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से उसे देखा।
"क्यों मजाक करते---।"
"मैं मजाक नहीं कर रहा। स्मैक के बोरों के मामले में पाटिल के ही बंदे ने तुम्हें खबर दी थी। ये जुदा बात है कि वो बंदा मेरी पहचान का है। इस मामले में मेरा इतना ही वास्ता है। कल तुमने जो काम किया उसके लिए शुक्रिया।"
"मेरे लिए इतना ही बहुत है कि इस वक्त हम दोस्ताना माहौल में बातचीत कर रहे हैं।" राम दा ने हौले से हंसकर कहा--- "वैसे कल तो तगड़ा हाथ लग गया तुम्हारा। सुना है उस तिजोरी में पूरे पचास अरब के हीरे-जवाहरात हैं। पाटिल तो तड़प रहा है। इतनी बड़ी चोट खाकर।"
"हमारी ये मुलाकात किसी और बात के लिए है।" देवराज चौहान ने इधर-उधर देखते हुए कहा।
"हां-हां क्यों नहीं। बोलो।"
"कितने आदमी है तुम्हारे साथ?"
"यही है। सावधानी के नाते। इसे साथ लाना पड़ा। कहता था तुम्हें पहचान लेगा। पहचान ही लिया पट्ठे ने।"
"भीतर चलते हैं सामान्य लोगों की तरह घूमते हैं। बात भी हो जाएगी। मेरा और तुम्हारा आदमी, फासला रखकर पीछे रहेंगे।" देवराज चौहान की निगाहें, राम दा के चेहरे पर जा टिकीं।
"मुझे भला क्या एतराज हो सकता है।" कहने के पश्चात राम दा अपने आदमी से बोला--- "हर तरफ नजर रखना, कोई हरामजादा मुझे देखकर निशाना लगाने की प्रेक्टिस न शुरू कर दे।"
उसने सिर हिला दिया।
देवराज चौहान और राम दा एस्सल वर्ल्ड के भीतर प्रवेश कर गए।
सोहनलाल और वो आदमी कुछ फासले पर उनके पीछे थे।
■■■
"तुम युवराज पाटिल के मामले में आजकल ज्यादा ही दखल दे रहे हो।" चलते-चलते देवराज चौहान ने कहा।
"तो वो कुत्ता क्या कम है। मेरे को बड़ी-बड़ी चोटें पहुंचाता है। कई नुकसान किए हैं मेरे कि मेरी ताकत न बढ़ सके और कहीं मैं उसके मुकाबले पर ना उतरा आऊं।" राम दा का स्वर धीमा और कड़वा था--- "उसी ने मुझे रास्ता दिखाया कि अपनी ताकत बढ़ाकर उसके पांव उखाड़ना शुरू कर दूं।"
"तुम्हारे पास इतनी ताकत नहीं कि तुम उससे टक्कर ले सको।"
"जानता हूं। देवराज चौहान! तभी तो अपनी ताकत को बढ़ा रहा हूं। बहुत हद तक कामयाबी भी पाई है। अंडरवर्ल्ड के दो अन्य लोगों को जो पाटिल से दुश्मनी रखते हैं, मेरे साथ हो रहे हैं। बातचीत चल रही है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक साल के भीतर ही पाटिल का नाम मिटा दूंगा।"
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई।
"तुम्हारी पाटिल से दुश्मनी है?" राम दा ने उसे देखा।
"नहीं। मेरी पाटिल से कोई दुश्मनी नहीं है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "होती तो मैं निपट लेता।"
"तो?" राम दा के चेहरे पर गंभीरता उभरी--- "इन सब बातों का मतलब?"
"पाटिल की तिजोरी मेरे पास है, जिसमें पचास अरब के हीरे हैं।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये तो मालूम है मुझे।"
"लेकिन वो तिजोरी मेरे लिए बेकार है। उसमें बम लगा है। पाटिल का कहना है वो बम शक्तिशाली है। अगर तिजोरी को खोला गया तो बम तिजोरी के माल को, बाहर की सब चीजों को तबाह कर देगा। वहां मौजूद लोगों में से कोई भी नहीं बचेगा। पाटिल की इस बात को मैं मात्र कोरी धमकी के रूप में नहीं ले सकता।" देवराज चौहान ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
"ओह!" राम दा कड़वे स्वर में बोला--- "एक नंबर का हरामजादा है पाटिल।"
"तिजोरी खोलने से पहले रिमोट से उस बम को फटने से रोकना पड़ता है और वो रिमोट जाहिर है पाटिल के पास है।"
"समझा।"
"मैं जानता हूं वो रिमोट कहां है, परंतु वहां तक पहुंचने में कई खतरे उठाने पड़ेंगे। जहां वो रिमोट रखा है, वहां तुम्हारी भी दिलचस्पी का सामान हो सकता है। वहां तुम्हें शायद इतनी बड़ी दौलत मिल जाए कि तुम आसानी से खुद को पाटिल का मुकाबला करने के काबिल बना लो। या फिर कुछ भी नहीं मिल सकता। मेरी जरूरत सिर्फ वो रिमोट है।" देवराज चौहान की आवाज में किसी तरह का भाव नहीं था।
"मजेदार बात बता रहे हो। आओ तो, वहां बैठ कर आराम से बात करते हैं।" राम दा बोला।
सामने पार्क में रंग-बिरंगे खूबसूरत बेंच मौजूद थे। मखमली घास थी। बच्चे खेल रहे थे। युवा जोड़े बेंच पर बैठे अपनी बातों में व्यस्त थे।
देवराज चौहान और राम दा पेड़ की छाया में पड़े बेंच पर जा बैठे।
"कहां रखा है पाटिल ने वो रिमोट?" राम दा बोला
"पाटिल का पर्सनल स्ट्रांग रूम है। वहां पहुंचना बहुत कठिन है। सुरक्षा-सिस्टम तगड़े हैं। वहां तक पहुंचने की कोशिश की जा सकती है। ऐसी जगह पर जाहिर है कि सिर्फ रिमोट तो रखा ही नहीं होगा। मेरे ख्याल में मोटी दौलत वहां होनी चाहिए। अगर मेरे साथ इस काम में आगे बढ़ना चाहते हो तो मुझे कोई एतराज नहीं। लेकिन ये बात भी ध्यान में रखना कि स्ट्रांग रूम में शायद फूटी कौड़ी भी ना हो।"
"मैं समझ रहा हूं तुम्हारी बात।" राम दा गंभीर हो गया--- "लेकिन वहां पाटिल ने दौलत अवश्य रखी होगी।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"कहां पर है स्ट्रांग रूम?"
"ऐसे नहीं, पहले तुम्हें ये तय करना है कि तुम्हें इस काम में मेरे साथ होना है या नहीं?" देवराज चौहान बोला।
दो क्षणों की चुप्पी के बाद राम दा धीमे स्वर में बोला।
"तुम माने हुए डकैती मास्टर हो। ऐसे काम पचासों बार कर चुके हो। मेरी कहां जरूरत पड़ गई।"
"ये डकैती वाला काम नहीं है। हमें वहां 'डाका' डालना पड़ेगा। ढेर सारे आदमियों के साथ हमला बोलना होगा। वहां का माहौल ही ऐसा है। तभी हम कुछ हद तक सफलता तक पहुंच सकते हैं।" देवराज चौहान ने खेलते बच्चों को देखा।
"मैं समझा नहीं। जरा खुलकर बताओ।" राम दा की आंखें सिकुड़ी
"जहां पर युवराज पाटिल का प्राइवेट स्ट्रांग रूम है।" देवराज चौहान ने कहा--- "वहां हर वक्त तीस-पैंतीस शूटर्स मौजूद रहते हैं। वो कम भी हो सकते हैं। कुछ ज्यादा भी। इसके अलावा दस के करीब शिकारी कुत्ते मौजूद रहते हैं। उस जगह के आसपास न के बराबर लोग हैं। तुम्हारे लिए ज्यादा खुशी की बात ये भी हो सकती है कि इस वक्त पाटिल खुद वहां मौजूद है। उसका भी शिकार किया जा सकता है। उस पूरी जगह पर काबू पाना है। उसके बाद ही पाटिल के स्ट्रांग रूम तक पहुंचने की कोशिश की जा सकती है।"
"तब भी कोशिश---?" राम दा की आंखों में सवाल उभरा।
"हां। उसके बाद भी कोशिश ही होगी।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "क्योंकि पाटिल ने कुछ ऐसा इंतजाम कर रखा है कि कोई भी स्ट्रांग रूम तक ना पहुंच सके।"
"और अगर तब भी ना पहुंचा जा सका तो?"
"हर काम को पूरा करने से पहले कोशिश की जाती है और हम कोशिश करने की बात कर रहे हैं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "सफल होते हैं या नहीं, ये बाद की बात है।"
"पाटिल का स्ट्रांग रूम है कहां?" राम दा ने पूछा।
"ये जानने का तुम्हें तब फायदा है, जब काम करने की इच्छा हो। नहीं तो पूछने का कोई फायदा नहीं।"
राम दा ने देवराज चौहान को देखकर सिर हिलाया।
"तुम ये काम सिर्फ वो रिमोट पाने के लिए कर रहे हो, जो तिजोरी में फिट बम को फटने से रोक सकता है?"
"हां।"
"इसके अलावा तुम्हें किसी बात में दिलचस्पी नहीं?"
"नहीं।"
"युवराज पाटिल के स्ट्रांग रूम में बहुत बड़ी दौलत भी हो सकती है। तब तुम्हारा ईमान खराब हो सकता है।"
"फ़िक्र मत करो। देवराज चौहान का ईमान कभी भी खराब नहीं होगा। रिमोट के अलावा स्ट्रांग रूम की हर चीज तुम्हारी। ये बात मैंने सबसे पहले तुम्हें कही थी।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
राम दा के चेहरे पर सोच के भाव ठहरे थे।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।
सोहनलाल और राम दा का आदमी, कुछ दूरी पर, बेंच पर बैठे थे।
दो मिनट की लम्बी खामोशी के बाद राम दा गंभीर स्वर में कह उठा।
"तुम्हारी बातों पर ही सोच रहा था मैं। अगर हम स्ट्रांग रूम तक न पहुंच सके तो तब भी मुझे नुकसान नहीं होगा।"
"मैं समझा नहीं।"
"पाटिल वहां होगा ना?"
"खबर तो यही है।"
"पाटिल को ही तब खत्म कर दिया गया तो इसे मैं बड़ी बात मानूंगा। स्ट्रांग रूम वाला मामला तो बाद का है।"
देवराज चौहान ने राम दा के चेहरे पर निगाह मारी।
"तुम शायद कुछ जल्दबाजी में सोच रहे हो।"
"वो कैसे?"
"अपनी सोचों में तुम पाटिल को खत्म करने तक पहुंच गए। लेकिन वहां मौजूद होने वाले पाटिल के तीस-पैंतीस शूटर्स को भूल रहे हो कि उन्हें पास करना, मौत से भी खतरनाक खेल होगा।" देवराज चौहान बोला।
राम दा ने गंभीरता से सिर हिलाकर कहा।
"जब मालूम हो। अंदाजा हो कि दीवार के पार क्या है तो मुकाबले की तैयारी भी उसी हिसाब से होती है।" कहते हुए राम दा की आवाज में खतरनाक भाव भड़क उठे--- "पाटिल के तीस-पैंतीस शूटर्स को कैसे संभालता है, इस बात का हिसाब-किताब रखकर ही आगे बढूंगा। मैं अपना काम कैसे करता हूं। ये तुम मुझ पर छोड़ दोगे। इस बार की गारंटी मैं पहले ही दे देता हूं कि मेरा काम एकदम फिट रहेगा।"
"काम करना कैसे है? ये तुम्हें मैं ही बताऊंगा। उसे पूरा करना तुम्हारा काम होगा।"
"ठीक।" राम दा ने सिर हिलाया--- "वैसे तो फील्ड में जाने की मेरी आदत नहीं है। लेकिन इस काम में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा। अंत तक साथ। अगर स्ट्रांग रूम में पहुंच गए तो ,वहां का माल भी समेटना है।"
"जरूर।" देवराज चौहान के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी--- "मुझे कोई एतराज नहीं।"
"एक बात बताओ।"
"क्या?"
"तुम तो डकैतियों में मास्टर हो। फिर ये काम पूरा होने में तुम्हें शक क्यों है कि---।"
"इसलिए कि ये डकैती नहीं 'डाका' होगा। अचानक ही वहां हल्ला बोला जाएगा। वहां के हालातों को अपने कब्जे में करके आनन-फानन अपना काम करके निकल चलना है। फुर्सत से भरा वक्त नहीं होगा तब हमारे पास कि आराम से काम करके, चुपचाप वहां से खिसक जाएं।"
"समझा।" राम दा के होंठ सिकुड़ गए।
"अब हमें चलना चाहिए।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
राम दा ने उलझन भरी निगाहों से उसे देखा फिर खड़े होते हुए बोला।
"अभी तो असल बातें हमें करनी हैं और तुम चलने को कह रहे हो।"
"मैं तुम्हारी हां-ना सुनना चाहता था। हां सुन ली।" देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा--- "अब इस बारे में बाकी बातें कल करेंगे। कुछ मुझे भी तय करना है। सोचना है।"
राम दा, देवराज चौहान को देखता रहा।
"तुम अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दो और कल मुझे बताना कि तुमने क्या तैयारी की है। ये ठीक है कि पाटिल के शूटर्स को तुमने संभालना है। लेकिन तुम्हारी तैयारी से मुझे तसल्ली होनी चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा।
"चिंता की कोई बात नहीं।" राम दा के चेहरे पर मुस्कान उभरी--- "तुम्हारी तसल्ली करा दूंगा।"
"इस बारे में तुम किसी से बात नहीं करोगे कि क्या करने जा रहे हो। यहां तक कि अपने उन आदमियों से भी बात नहीं करोगे, जिन्हें इस काम में इस्तेमाल करना है। तुम्हारे आदमियों में पाटिल के आदमी अवश्य होंगे। ये बात पाटिल तक पहुंच सकती है कि हम क्या करने जा रहे हैं।"
"ठीक कहा तुमने। कल कहां मिलना है?" राम दा बोला।
"इस बारे में कल फोन पर बात कर लेंगे।"
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