शाम के साढ़े पाँच बजे मोना चौधरी और महाजन, गौरी के मकान से निकलकर उस सड़क पर आये जहाँ पुलिस वाले अपना अस्थायी ठिकाना बनाये मौजूद थे ।
गाँव में जगह-जगह पुलिस नजर आ रही थी । पुलिस ने गाँव भर में ऐसी घेराबंदी कर रखी थी कि गाँव में प्रवेश करने वाला और बाहर जाने वाला उनकी नजरों से छिप न सके । इस काम के लिए पुलिस कम थी । ऐसे में दोपहर बाद तक हरीश दुलानी ने और पुलिस मँगवा ली थी । इसके अलावा तीन पुलिस फोटोग्राफरों को भी बुला लिया था । उन्हें भी गाँव के प्रवेश हिस्सों पर दुलानी ने समझाकर बिठा दिया था कि कैसा भी रहस्यमय जीव नजर आये तो उसकी तस्वीर लेनी है ।
दुलानी ने अपनी तरफ से हर बात ढंग से पक्की कर ली थी ।
दिन भर मस्तिष्क सोचों और उलझनों में फँसा रहा था । दोपहर को दो घण्टे की नींद उसने अवश्य ली थी ।
मोना चौधरी और महाजन जब गौरी के यहाँ पहुँचे तो खाना तैयार था । गाँव में हुई दो हत्याओं की बातें करते गौरी ने उन्हें खाना खिलाया । पड़ोस की औरतों ने गर्म-गर्म चपातियाँ उतारी थीं ।
खाने के बाद दोनों गहरी नींद में जा डूबे थे । फिर जब आँख खुली और नहा-धोकर, सड़क पर पहुँचे तब शाम के साढ़े पाँच हो रहे थे । दुलानी वहाँ नहीं था । व्यस्तता में घिरा दुलानी करीब छः बजे वहाँ पहुँचा ।
“तुम दोनों कब आये ?” दुलानी उनके पास कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।
“आधा घण्टा हो गया ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“कोई नई खबर ?”
“हमारे पास तो कुछ नहीं !” मोना चौधरी ने उसे देखा, “तुम बताओ ।”
“खास कुछ नहीं है कहने को ।” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “गाँव में पुलिस का घेरा अपनी देख-रेख में डलवा दिया है । फ़ोर्स भी और मँगवा ली है । अपनी तरफ से मैंने कोई कमी नहीं छोड़ी ।”
महाजन ने घूँट भरा और अजीब-सी मुस्कान के साथ कह उठा ।
“जब वो रहस्यमय जीव आएगा तब पुलिस का घेरा उड़ता नजर आएगा ।”
“वो कैसे ?” दुलानी की आँखें सिकुड़ीं ।
“उस रहस्यमय जीव का हुलिया तो तुमने सुना ही है । जब ऐसी कोई शख्सियत सामने आएगी तो सामने वाले की क्या हालत होगी ?”
“ठीक कहते हो ।” हरीश दुलानी का स्वर कठोर हो गया, “ऐसे में और कुछ नहीं तो कम-से-कम उसे गोलियों से भूना तो जा सकता है । उसे खत्म तो किया जा सकता है ।”
महाजन गहरी साँस लेकर रह गया ।
“तुम्हें यकीन है कि गोलियों से उस पर काबू पा लोगे ?” मोना चौधरी कह उठी ।
“पूरा यकीन है ।” हरीश दुलानी की आवाज में दृढ़ता थी, “वो जो भी है, चलता-फिरता है । ऐसे में गोलियाँ-बम हर चीज़ उस पर असर करेंगी । क्यों नहीं असर करेंगी ?”
जवाब में मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।
तभी एक हवलदार उनके बीच पड़ी छोटी-टेबल पर तीन गिलासों में चाय रख गया ।
थके-टूटे दुलानी ने फौरन गिलास उठाकर चाय का घूँट भरा ।
“मेरे हिस्से की भी तुम पी लेना ।” महाजन बोला ।
“तुम चाय नहीं पीते ?” दुलानी ने उसके हाथ में थमी बोतल को देखा ।
“नहीं ! बोतल मँगा दो । मेहरबानी होगी । रात का काम चल जायेगा ।” महाजन मुस्कुरा पड़ा ।
“तुम तो पानी की तरह पीते हो ।”
“मेरे लिये ये पानी ही है ।” महाजन हौले से हँसा, “और डॉक्टर ने मुझे पानी पीते रहने को कहा है ।”
कुछ न कहकर दुलानी ने पुनः चाय का घूँट भरा ।
मोना चौधरी ने चाय का गिलास उठा लिया था ।
“अब क्या करना है ?” दुलानी कह उठा ।
“ये तुम्हारा मामला है ।” मोना चौधरी बोली, “जो करना है, तुम्हें ही करना है । हम तुम्हारे साथ हैं ।”
“वो तो ठीक है, लेकिन तुम लोग भी कुछ कहो कि... ।”
“जब वक्त आएगा, हम कह देंगे । अभी तो तुम्हारे साथ ही हैं ।”
सोचों में डूबे हरीश दुलानी ने चाय समाप्त की ।
“गाँव में सुरक्षा के अलावा, पुलिस वालों की गश्ती कारें और टुकड़ियों में पुलिस आसपास के इलाकों में गश्त करेगी । सबको अच्छी तरह बात समझा दी है और... ।”
“लेकिन वो रहस्यमय जीव ऐसी जगह पर नहीं आएगा । जहाँ लोगों की भीड़ होगी । जैसे कि अब गाँव में... ।” महाजन ने कहना चाहा ।
“ये बात ठीक भी हो सकती है ।” दुलानी ने गंभीरता से सिर हिलाया, “लेकिन मुझे गाँव वालों का भी ध्यान रखना होगा । गाँव के लोग दहशत में हैं । उन्हें लगता है कि आज रात भी ऐसा कुछ हो जायेगा । वो लोग ग्रुप्स में एक साथ रात बिता रहे हैं । मालूम नहीं, वो नींद ले पाते भी हैं या नहीं ! अगर मैं गाँव में हर तरफ पुलिस का पहरा नहीं लगाता तो खुद ही सोचो, ऐसे में गाँव वालों की क्या हालत होती । अब उन्हें इस बात का सहारा तो है कि गाँव के चप्पे-चप्पे में उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस मौजूद है । गाँव के रास्तों पर गैस-मशालें जलाकर कुछ हद तक रौशनी का भी इंतजाम किया गया है । गाँव वालों ने हमारे हर काम में सहायता की है । उस रहस्यमय जीव को पकड़ने-मारने के लिए मैं गाँव से पहरा हटाकर उन्हें खतरे में नहीं डाल सकता । वो अब नहीं तो दो दिन बाद ही सही कानून के हाथों से नहीं बचेगा । लेकिन मैं मासूम लोगों की ऐसी मौत नहीं देख सकता ।”
“मेरा कहने का मतलब ये नहीं था कि गाँव से सुरक्षा प्रबंध हटा दिये जाये ।” महाजन भी गंभीर था ।
मोना चौधरी चाय का घूँट भरने के पश्चात् बोली ।
“रात भर तुम क्या करोगे ? इस पहरेदारी पर नजर रखोगे ?”
“जैसा इंतजाम मैंने किया है, उसके बाद यहाँ मेरी जरूरत नहीं ! कुछ हुआ तो हालातों को सँभालने वाले काबिल पुलिस वाले मौजूद हैं ।”
महाजन और मोना चौधरी की निगाह दुलानी पर जा टिकी ।
“तुम इस बात से आगे भी कुछ कहने जा रहे हो ।” मोना चौधरी के होंठ हिले ।
“हाँ ! मैं रात को उधर ही जाऊँगा, जिधर गीली मिट्टी पर पाँवों के निशान हैं ।” हरीश दुलानी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर विश्वास भरे स्वर में कहा, “जाने क्यों मेरा मन कहता है कि वो शख्सियत उधर ही कहीं रहती है या फिर वो उधर ही है ।”
मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिलीं ।
“लगातार दो दिन से वो रहस्यमय जीव इधर ही अपनी हरकतें जारी रखे हुए है । अब यहाँ पर भीड़-भाड़ बढ़ गई है । ऐसे में हो सकता है, वो अपनी हरकत के लिए आज किसी दूसरी दिशा की तरफ चला जाये ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“ऐसा हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है ।” दुलानी ने व्याकुलता से भरी साँस ली, “अगर मुझे मालूम हो कि वो किस तरफ मिलेगा तो मैं उधर चला जाऊँ, उसे पकड़ने के लिए । लेकिन ये सब बातें हमें नहीं मालूम । ऐसे में हम अपनी सोचों के हिसाब से ही काम कर सकते हैं । मेरा प्रोग्राम तो रात उधर ही जाने का है । तुम दोनों साथ चलना चाहो तो... ?”
“हम तुम्हारे साथ ही हैं मिस्टर दुलानी !” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“हम तीनों ही रात को चलेंगे ?” महाजन ने पूछा ।
“सावधानी के नाते तीन-चार हथियारबंद पुलिस वाले साथ में होंगे । पुलिस वालों की संख्या चाहो तो बढ़ाई भी जा सकती है । जितने ज्यादा लोग होंगे, उतना ही हम खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे । ऐसे में अगर रहस्यमय जीव से हमारा सामना हो जाता है तो जैसे भी हो, हम उस पर काबू पा लेंगे ।”
“आसान नहीं है, उस पर काबू पाना ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
हरीश दुलानी ने मोना चौधरी की आँखों में झाँका ।
“तुम्हें यकीन है कि उस पर काबू पाना आसान नहीं ?” दुलानी ने पूछा ।
“मेरा यकीन गलत भी हो सकता है ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “लेकिन मुझे अपने पर यकीन है ।”
इससे पहले कि दुलानी कुछ कहता, पुराने मॉडल की मारुती कार सड़क के किनारे आ रुकी । उस पर निगाहें पड़ते ही हरीश दुलानी के चेहरे पर मुस्कुराहट भी उभरी और उसने गहरी साँस भी ली ।
“क्या हुआ ?” महाजन ने पूछा ।
मोना चौधरी की निगाहें भी उस कार की तरफ उठ चुकी थीं ।
“योगेश मित्तल आया है । ये कभी भी चैन से नहीं बैठता । अपने काम की बात जानने के लिए दौड़ता रहेगा । कान खड़े रहेंगे इसके कि कोई नई सनसनी वाली घटना की खबर मिले । दूसरों को बाद में खबर मिलती है, लेकिन ये पहले ही मामले की खुशबू ले लेगा । जैसे कि अब आ पहुँचा है ।”
“अखबार में काम करता है ?” मोना चौधरी कह उठी ।
“नहीं, कोई सत्य कथाओं जैसी मैगजीन है । उसका चीफ रिपोर्टर है । समझो इसी के दम पर मैगजीन चलती है । और मजे की बात है, मैगजीन का मालिक रो-रोकर इसे काम के पैसे देता है ।”
“ऐसा है तो इसे उसका काम छोड़ देना चाहिए ।” महाजन बोला, “किसी दूसरे का काम... ।”
“ये इसका मामला है । ये जाने ।” दुलानी ने सिर हिलाया ।
“लगता है तुम इसे खास जानते हो ?”
“हाँ !” दुलानी ने गहरी साँस ली, “बचपन में, स्कूल में हम इकट्ठे ही पढ़ा करते थे ।”
तब तक कार का दरवाजा खोलकर योगेश मित्तल बाहर निकल चुका था । इस तरफ भी देख चुका था और कन्धे पर लटके कैमरे के बैग को संभालता तेजी से इधर को बढ़ा ।
☐☐☐
योगेश मित्तल पाँच फ़ीट का, गोल-गोल-सा दिखने वाला व्यक्ति था । हाव-भाव से फुर्तीला था । उसके सिर के बाल हमेशा ही गर्दन तक झूलते रहते थे । होंठों के ऊपर मूँछें थीं । आदत के मुताबिक सादी-सी कमीज-पैंट पहन रखी थी । कमीज लापरवाही भरे ढंग से बाहर की तरफ झूल रही थी । सफर की वजह से थका-सा लग रहा था ।
“हाय दुलानी !” पास आता योगेश मित्तल हाथ हिलाकर कह उठा, “मैं पहले ही मालूम कर चुका हूँ कि तुम यहाँ मिलोगे और उस रहस्यमय शख्सियत वाले केस के इंचार्ज तुम ही हो ।” पास पहुँचकर उसने गर्मजोशी से दुलानी से हाथ मिलाया । मोना चौधरी और महाजन को देखकर हैलो कहा और गले से कैमरा निकालकर टेबल पर रखा और कुर्सी पर बैठता कह उठा, “शायद तुम्हें मालूम था कि मैं आने वाला हूँ । इसलिए तुमने चाय पहले ही मँगवा ली ।”
दुलानी ने टेबल पर पड़े चाय के गिलास को देखा और मुस्कराकर कह उठा ।
“ये तो ठण्डी हो गई है । मैं दूसरी चाय... ।”
“ठण्डी-गर्म से क्या फर्क पड़ता है । चाय तो है ।” कहने के साथ ही योगेश मित्तल ने चाय का गिलास उठा लिया, “दिल को तसल्ली देनी है कि चाय पी ली है । वैसे भी तुमसे ठण्डी चाय ही मिल जाये तो बहुत है । वरना तुम्हारे पास तो पानी पिलाने का भी वक्त नहीं होता ।”
“तुम्हें रहस्यमय शख्सियत वाले मामले का कैसे पता चला ?” हरीश दुलानी ने पूछा ।
“मेरा तो काम ही ऐसा है । सबसे बनाकर रखनी पड़ती है । वरना खबरें कहाँ से मिलेंगी ।” घूँट भरने के बाद योगेश मित्तल मुस्कराकर कह उठा, “तुमने हेडक्वार्टर रिपोर्ट भेजी । साथ में रहस्यमय शख्सियत का भी जिक्र था । जिसने तुम्हारी रिपोर्ट रिसीव की उससे इत्तफाक से मुलाकात हो गई । यूँ समझो कि उसका कोई काम मेरे पास फँसा हुआ था । वो मैगजीन में छपने वाली सत्य कहानी में अपनी तस्वीर छपवाना चाहता था । मैंने उसकी तस्वीर छापने का वायदा इस शर्त पर किया कि रहस्यमय शख्सियत की खबर कम-से-कम दो दिन बाद अख़बार के और दूसरे रिपोर्टरों को देगा । उसने मेरी बात मान ली और मैं कार लेकर सीधा यहाँ दौड़ा आया कि इस जबर्दस्त मामले की खबरें पहले ही हासिल कर लूँ ।”
“कोई ढंग का काम कर योगेश । कहानियाँ लिखकर, खर्चा-पानी भी नहीं पूरा होता होगा । कितनी बार तेरे को... ।”
“खर्चा-पानी खींच-खाँचकर निकल ही जाता है । तुम नहीं समझोगे, इस काम का अलग ही मजा है ।” योगेश मित्तल मुस्कराकर कह उठा, “इस बार मैगजीन के मालिक से रहस्यमय शख्सियत की कहानी के बारे में सीधे-सीधे सौदा करूँगा । अगर उसने ठीक नोट न दिए तो, पक्का दूसरे को कहानी बेंच दूँगा ।”
हरीश दुलानी मुस्कराकर रह गया ।
मोना चौधरी और महाजन की निगाहें योगेश मित्तल पर थीं ।
“ये दोनों भी पुलिस वाले ही हैं ?” योगेश मित्तल ने दोनों को देखा ।
“नहीं ! मेरे खास पहचान वाले हैं ।” दुलानी ने मोना चौधरी और महाजन का परिचय नहीं दिया ।
योगेश मित्तल ने चाय को एक ही घूँट में समाप्त किया फिर कह उठा ।
“बाकी बातें फिर कर लेंगे ।” योगेश मित्तल बोला, “पहले तुम रहस्यमय शख्सियत के बारे में बताओ कि मामला क्या है ? क्या हो रहा है ? मैंने सुना है, बहुत कुछ हो रहा है । पुलिस वालों के हाथ-पाँव फूले पड़े हैं ।”
“ऐसा ही समझो ।”
“वैरी गुड !” योगेश मित्तल ने उत्सुकता से कहा, “फिर तो मामला सुनने में मजा आएगा । सब कुछ बता यार ।”
“अभी जानना है ?” दुलानी ने मुस्कराकर उसे देखा ।
“बिल्कुल अभी । नहीं तो तुम जानते हो कि जब तक सुनूँगा नहीं, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा । मेरी इस बचपन की आदत को तो जानते ही हो । जल्दी सुनाओ, खाना-पीना उसके बाद हो जायेगा । कोई जल्दी नहीं !” योगेश मित्तल का चेहरा उत्सुकता से भर उठा था ।
तभी मोना चौधरी उठी और कमर पर हाथ बाँधे चहलकदमी करने लगी । चेहरे पर गंभीरता थी । हाव-भाव से सोच में नजर आ रही थी । आँखें रह-रहकर सिकुड़ जातीं ।
हरीश दुलानी ने उसके चेहरे के भावों को पहचाना ।
“ये मैडम क्यों खड़ी हो गयीं ?” योगेश मित्तल ने मोना चौधरी को देखा ।
जवाब दिया महाजन ने ।
“बेबी, यहाँ नहीं बैठेगी तो आपको, दुलानी की बात सुनने में मजा नहीं आएगा क्या ?”
“मैंने ये तो नहीं कहा ।” योगेश मित्तल मुस्कुराया ।
“मैंने समझा शायद ये बात है ।” मुँह बनाकर कहते हुए महाजन ने घूँट भरा ।
योगेश मित्तल ने दुलानी को देखा ।
“बता यार ! तू तो जानता ही है कि मुझे बातों में वक्त खराब करने की आदत नहीं है ।”
हरीश दुलानी उसे रहस्यमय जीव से वास्ता रखती बातें बताने लगा ।
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सब कुछ सुनने के बाद योगेश मित्तल गंभीर नजर आने लगा । दुलानी भी गंभीर था । महाजन चुप-सा शांत-सा बैठा था । कभी-कभार उसकी निगाह चंद कदमों पर टहलती मोना चौधरी की तरफ उठ जाती ।
“ये तो बहुत ही सनसनी से भरा, गंभीर मामला है ।” योगेश मित्तल के होंठों से निकला ।
“मैगजीन की कहानी के लिए तो बहुत ही बढ़िया मसाला है ।” महाजन ने उसे घूरा ।
“ये तो बाद की बात है कि कैसा मसाला है । योगेश मित्तल ने सोच भरी निगाहों से महाजन को देखा, “मेरा ध्यान तो बार-बार इस तरफ जा रहा है कि अगर उस रहस्यमय जीव को न पकड़ा गया तो वो तबाही मचा देगा ।”
“तब तो तुम्हें कहानी के लिए और भी बढ़िया मसाला मिल जायेगा ।”
“तुम्हें एक ही बात समझ में आ रही है ।” योगेश मित्तल ने उसे घूरा, “मैं उन मासूम लोगों के बारे में सोच रहा हूँ जो आने वाले वक्त में रहस्यमय जीव की बर्बरता के शिकार होंगे । तुम इस तरफ ध्यान मत दो कि मैं सच्ची कहानियों का लेखक हूँ और मासूमों की लाशों पर चढ़कर कहानी के लिए मसाला तैयार करूँगा ।”
“सॉरी !” महाजन ने शांत स्वर में कहा, “मैंने समझा तुम दूसरों की तरह, शराफत बेचकर कहानियाँ लिखते हो ।”
योगेश मित्तल ने उसकी बात की परवाह न करके हरीश दुलानी को देखा ।
“अब तक तुमने जो किया, बता दिया । लेकिन अब आगे क्या करने का इरादा है, रहस्यमय जीव के बारे में ?”
दुलानी ने कम शब्दों में योगेश मित्तल को बताया कि रात को वे फिर उस तरफ जाने वाले हैं । योगेश मित्तल सोचों में डूबा दिखने लगा ।
शाम ढल चुकी थी । कुछ ही देर में अँधेरा हो जाना था । आसपास मौजूद पुलिस वाले वहाँ रात भर के लिए रौशनी करने का इंतजाम करते नजर आने लगे थे ।
तभी मोना चौधरी पास आई और कुर्सी पर बैठने के पश्चात् गंभीर स्वर में दुलानी से बोली ।
“मैं तुम्हारी एक बात से सहमत नहीं हूँ ।”
“क्या ?”
“तुम्हारा कहना है कि जब वो रहस्यमय जीव नजर आएगा, उसे गोलियों से भून दिया जायेगा ।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा, “बेशक वो तुम्हारे सामने आये या दूसरे पुलिस वालों के सामने ।”
“तो ?” हरीश दुलानी के माथे पर उलझन से भरे बल नजर आने लगे ।
“मैं चाहती हूँ, उसे निशाने पर न लिया जाये ।”
“क्यों ?” दुलानी ने अजीब-से स्वर में पूछा ।
“हम लोगों ने उसके बारे में सुना है अभी तक । उसे देखा नहीं । अगर वो बातचीत भी करता है तो उससे बातचीत नहीं की । इस तरह उसे शूट करने की सोचकर तुम जल्दबाजी से काम ले रहे हो ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था, “जिस तरह तुम पुलिस वाले खतरनाक मुजरिमों को शूट करके, सारी मुसीबत खत्म करने की चेष्टा करते हो, उसी तरह इस रहस्यमय जीव को... ।”
“तुम्हारा मतलब कि रहस्यमय जीव को सीधे-सीधे न मारा जाये ?”
“ठीक समझे !” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “उसे किसी तरह पकड़ने या फाँसने की कोशिश... ।”
“सॉरी !” हरीश दुलानी तीखे स्वर में कह उठा, “मैं अभी मरना नहीं चाहता । न ही चाहता हूँ कि दूसरे लोगों की जान जाये । उसे पकड़ने की कोशिश में जाने कितने लोग मारे जायेंगे ।”
“एक बार कोशिश करके तो देखो दुलानी ! अगर उसे जिन्दा पकड़ा गया तो शायद कोई नई बात मालूम हो ।”
“मुझे कोई नई बात नहीं जाननी ।” दुलानी कह उठा, “मैं ये मामला खत्म करना चाहता हूँ ।”
“जो करना है, तुम्हें ही करना है ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन मैंने जो कहा है, उस पर गौर करना । शायद मेरी बात तुम्हें ठीक लगने लगे ।”
“असम्भव ! मैं उस शख्सियत को जिन्दा पकड़ने की कोशिश में लोगों की जानें नहीं गँवा सकता ।”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
महाजन ने घूँट भरा ।
अँधेरा फैलना शुरू होने लग गया था ।
तभी योगेश मित्तल सोच भरे स्वर में कह उठा ।
“दुलानी ! मैडम की बात मुझे जँच रही है... ।”
“कि उस रहस्यमय जीव को जिन्दा पकड़ने की कोशिश की जाये ।” दुलानी ने उसे घूरा ।
“हाँ ! क्योंकि... ।”
“योगेश !” उखड़े स्वर में कहते हुए हरीश दुलानी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ, “तुम जिस काम के लिए आये हो, वो करो । अगर पुलिस के काम में दखल देने की कोशिश की तो मैं तुम्हें यहाँ नहीं टिकने दूँगा ।”
“ये तू मुझे कह रहा है ।” योगेश मित्तल ने उसे घूरा ।
“हाँ !”
“बेटे !” योगेश मित्तल ने बेहद शांत स्वर में कहा, “ये तू नहीं तेरी वर्दी बोल रही है । बचपन की दोस्ती है हमारी । लेकिन आज से पहले तूने इस ढंग से मेरे से बात नहीं की ।”
“तुम नहीं समझोगे योगेश !” दुलानी ने गम्भीर स्वर में कहा, “वर्दी पहनने वाला ही इस बात को समझ सकता है कि वर्दी पहनकर कितनी जिम्मेदारी बढ़ जाती है । कुछ भी गलत हो गया तो मुझे ऊपर जवाब देना भारी पड़ जायेगा । मेरी बातें, मेरे हालात मैं ही समझ सकता हूँ । कुछ कहना बहुत आसान होता है लेकिन नतीजे का सामना करने में दिल काँप उठता है ।”
“तुम्हारा ख्याल है कि उस रहस्यमय जीव को जिन्दा नहीं पकड़ सकेंगे ।” मोना चौधरी बोली ।
“सच बात तो ये है कि मैं उसको जिन्दा पकड़ने की सिरदर्दी में नहीं पड़ना चाहता ।” हरीश दुलानी ने तीनों को गंभीर निगाहों से देखते हुए कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस कोशिश में हमें कामयाबी मिले या न मिले, परन्तु कइयों को खामख्वाह अपनी जानें गँवानी पड़ेगी और मैं नहीं चाहता कि किसी की जान जाये ।” कहने के साथ ही दुलानी पलटा और कुछ दूर मौजूद पुलिस वालों की तरफ बढ़ गया । उसके चलने के ढंग में दृढ़ता थी ।
अँधेरा फैल चुका था ।
“ये नहीं मानेगा ।” योगेश मित्तल, मोना चौधरी और महाजन को देखकर कह उठा, “बचपन से जानता हूँ इसे । जो बात इसके दिमाग में बैठ जाये, वो आसानी से नहीं निकलती । जब ये पुलिस में भर्ती होने की तैयारी कर रहा था, तब मैंने इसे बहुत समझाया कि ये भी भला कोई नौकरी है । नहीं माना । आखिरकार पुलिस वाला बनकर ही रहा ।”
मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिलीं ।
“क्या करें बेबी !” महाजन ने गहरी साँस ली, “हम पुलिस के पास हैं और ये मामला पुलिस का है । दुलानी की बात माननी पड़ेगी ।”
“मैं जो सोच रही हूँ, उसके मुताबिक अगर रहस्यमय जीव को गोली मारी गई तो मामला और भी खतरनाक हो सकता है ।”
“मैं नहीं जानता कि तुम क्या सोचकर ऐसा कह रही हो । लेकिन इस मामले में इंस्पेक्टर दुलानी की ही चलेगी ।”
तभी योगेश मित्तल, मोना चौधरी को देखकर कह उठा ।
“वैसे आप क्या सोचकर ऐसा कह रही हैं कि रहस्यमय जीव को गोली न मारकर, उसे गिरफ्तार करना बेहतर होगा ?”
मोना चौधरी ने उसे देखा । जवाब में कहा कुछ नहीं ! वह गंभीर थी । सोच रही थी ।
☐☐☐
रात के ग्यारह बजे, मोना चौधरी, महाजन, इंस्पेक्टर हरीश दुलानी, योगेश मित्तल और छः हथियारबंद पुलिस वाले वहाँ पहुँचे, जहाँ गीली मिट्टी पर रहस्यमय जीव के पाँवों के निशान थे । सब के पास तेज रौशनी वाली टार्च थीं । चार-पाँच ने टार्चें ऑन कर रखी थीं । आसपास देखने के लिए रौशनी पर्याप्त थी ।
योगेश मित्तल को जब मिट्टी में नजर आ रहे पाँवों के निशानों को दिखाया गया तो उसने फौरन गले में लटकते कैमरों से उन निशानों की कई तस्वीरें ली । फ्लैश लाइटें चमकीं ।
“आपको तो मैगजीन के लिए मसाला मिल गया मित्तल साहब !” महाजन कह उठा ।
“भाई मेरे !” योगेश मित्तल मुस्कराकर कह उठा, “मसाला कहो या क्रीम । लेकिन जब ये तस्वीरें मैगजीन में छपेंगी तो लोगों को देखने में अवश्य रोमांच महसूस होगा । जो मैंने आप सबसे सुना और जो मैं अब अनुभव कर रहा हूँ, वो सब भी मैगजीन में प्रकाशित होगा । मैगजीन का ये इशु जबर्दस्त हिट जायेगा ।”
“किये जा अपना दाल-दलिया ।” कहकर महाजन ने नई बोतल से घूँट भरा ।
“एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही ।” योगेश मित्तल कह उठा ।
“क्या ?”
“ये निशान कब के हैं ?”
“परसों देखे थे हमने ।” दुलानी ने कहा ।
“परसों ।” वहाँ फैली मध्यम-सी रौशनी में योगेश मित्तल ने दुलानी को देखा, “तो अभी तक मिट्टी सूखी क्यों नहीं ! ये निशान तो ताजा हैं । जैसे अभी-अभी ।”
“तुम ठीक महसूस कर रहे हो योगेश ।” हरीश दुलानी गंभीर स्वर में कह उठा, “दरअसल कई महीनों पहले यहाँ बेहद खतरनाक अचानक भूकम्प आया था । भूकम्प ऐसा जबर्दस्त था कि जमीन कई जगह से फट गई । जहाँ कभी पानी नहीं देखा गया था, वहाँ तालाब बन गए । जमीन से कई जगह से इस तरह से पानी निकलने लगा जैसे फव्वारा फूटता है । कई जगह जमीन के नीचे से रिस-रिस कर पानी ऊपर आने लगा और ऊपर की जमीन इसी तरह गीली रहने लगी । इस सारी जगह का नक्शा ही जैसे... ।”
“वो तो मालूम है मुझे । जमीन में बड़ी-बड़ी गहरी दरारें आ गई । दरारें खाइयाँ जैसी बन गई ।” योगेश मित्तल कह उठा, “इस पर मैंने ही सारी घटनाएँ लिखकर, यहाँ आकर तस्वीरें खींचकर, मैगजीन में छपने के लिए दी थीं । उस मेहनत की पेमेंट प्रकाशक ने अभी तक पूरी नहीं दी । खैर छोड़ो ! तो तुम्हारे कहने का मतलब है कि ये गीली जमीन ऐसी ही है कि जमीन के भीतर से जरा-जरा पानी बाहर आ रहा है और जमीन गीली ही रहती है ।”
“ठीक समझे !”
योगेश मित्तल हाथ में पकड़ी टार्च की रौशनी को दूर-दूर तक फेंककर जगह को देखने-समझने की चेष्टा करने लगा ।
“तो तुम अब ये जगह देखना चाहते हो । छानना चाहते हो कि... ।” महाजन ने कहना चाहा ।
“हाँ !” दुलानी सिर हिलाकर कह उठा, “हम सब दूर-दूर तक निकल जायेंगे । एक साथ रहकर । जब तक मैं इस सारी जगह के बारे में तसल्ली नहीं कर लेता हूँ, किसी दूसरी दिशा की तरफ ध्यान नहीं लगा पाऊँगा ।”
“तो चलो । यहाँ रुकने का कोई फायदा नहीं !” कहकर आगे बढ़ने के लिए महाजन ने टार्च की रौशनी इधर-उधर मारी ।
हरीश दुलानी पलटकर हथियारबंद पुलिस वालों पर टार्च की रौशनी फेंककर बोला ।
“तुम सबको बहुत ही सतर्क और होशियार रहने की जरूरत है । हम किसी अपराधी का पीछा नहीं कर रहे । खूँखार-से-खूँखार अपराधी की भी तलाश कर रहे होते तो ऐसा डर या चिंता नहीं होती, जितनी कि अब है । क्योंकि हम जिसे ढूँढ़ रहे हैं, उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते । ये भी नहीं जानते कि वो इंसान है या जानवर या फिर है क्या ? मालूम है तो सिर्फ इतना कि वो बेहद खूँखार है । वो जिस पर हमला करता है, बच नहीं पाता । वो इतना शक्तिशाली है कि हाथ-पाँवों की ताकत से ही सामने वालों को चीर-फाड़ देता है । हाथ-पाँव इस तरह उखाड़ देता है जैसे कि हम पेड़ की पतली सूखी टहनियों को तोड़ डालते हैं । इसलिए तुम लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है ।”
“हम सतर्क हैं सर !” एक पुलिस वाले ने कहा ।
“जब वो रहस्यमय शख्सियत सामने आये तो कुछ भी सोचने-समझने की जरूरत नहीं है । रहम तो उस पर करना ही नहीं ! गनों के मुँह उसकी तरफ करके खोल देना ।”
“यस सर !”
“सावधान रहना है और नजरें हर तरफ घूमती रहें । टार्च तुम सब के पास हैं ।”
“ओ•के• सर !”
हरीश दुलानी ने पलटकर, दूर गहरे अँधेरे में देखा ।
“किस रास्ते से आगे बढ़ना है ?” महाजन ने पूछा ।
“इधर से ।” दुलानी ने टार्च की रौशनी एक तरफ मारी, “आगे बढ़ने के लिए इधर का रास्ता साफ़ है । आओ ।” कहने के साथ ही दुलानी आगे बढ़ा ।
फिर वे सब आगे बढ़ने लगे ।
टार्चों की रोशनियाँ गहरे अँधेरे में इधर-उधर पड़ रही थीं । इस वक्त अँधेरे में उन्हें इसी रौशनी का बहुत सहारा या मिट्टी पर से चलने की मध्यम-सी आवाजें उठ रही थीं ।
“तुम क्यों खामोश हो ?” दुलानी ने मोना चौधरी के पास पहुँचकर कहा ।
“मुझे तुम्हारी बात पसन्द नहीं आ रही ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“रहस्यमय जीव को गोलियों से भूनने की ?”
“हाँ !”
“मेरे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है ।” दुलानी ने स्पष्ट कहा ।
“मेरा दिल कह रहा है ऐसा करके तुम गलत करोगे ।” मोना चौधरी ने अँधेरे में उस पर निगाह मारी ।
“तुम मेरी जगह होती तो उसे जिन्दा पकड़ने की कोशिश करतीं ?”
“वो सवाल ही मत करो, जो हो ही नहीं सकता । इस मामले में पुलिस का पूरा दखल हो चुका है । ऐसे में मैं अपने ढंग से काम नहीं कर सकती । अब तो तुम्हारे साथ रहकर यही देख रही हूँ कि इस मामले का अंजाम क्या होता है ।”
दो पलों की चुप्पी के बाद दुलानी बोला ।
“अपने ढंग से तुम क्या करतीं ?”
“तुमसे बात करने का कोई फायदा नहीं । क्योंकि तुम्हें मेरी ये बात समझ नहीं आ रही कि उस रहस्यमय जीव को गोलियों से नहीं भूनना चाहिए । तुमने तो ये भी सोचने की चेष्टा नहीं की कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ । तुम तो किसी तरह उसे खत्म करके, इस केस की फाइल को बन्द करके, हाथ झाड़ लेना चाहते हो ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“मेरा काम लोगों पर आई मुसीबत को दूर करना है । मासूमों की जान को जिससे खतरा हो, उसे गिरफ्तार करना मेरा फर्ज है । अगर उसे गिरफ्तार न किया जा सके तो फिर उसे खत्म कर देना जरूरी होता है और मुझे महसूस हो चुका है कि इस रहस्यमय जीव को गिरफ्तार करना सम्भव नहीं ! ऐसे में इसे खत्म कर देना ही बेहतर है ।”
“उसके बारे में कुछ जानते नहीं, ऐसे को तुम खत्म करने जा रहे हो ।” मोना चौधरी गम्भीर थी ।
“तुम उसके बारे में जानती हो मोना चौधरी ?” दुलानी ने पूछा ।
“नहीं ! लेकिन ये मामला मेरे हाथ में होता तो उसे अवश्य जानने-समझने की चेष्टा... ।”
“मुझे नहीं जरूरत उसके बारे में जानने की ।” हरीश दुलानी का स्वर कड़वा हो गया, “मैं तो सिर्फ ये सोचता हूँ कि वो किसी और मासूम की जान न ले सके । ऐसा होने से पहले ही उसे खत्म कर दिया जाये । मुझे उसके जिन्दा रहने-मरने में कोई दिलचस्पी नहीं है । मैं बिना वजह इस तरह लोगों को मरते नहीं देख सकता । जब वो मेरे सामने मरा पड़ा होगा, तब उसके बारे में जान लूँगा ।”
मोना चौधरी ने कोई जवाब नहीं दिया । वह समझ चुकी थी कि दुलानी अपनी सोच को पूरा करके ही रहेगा । लेकिन फिर भी वह निश्चित थी, ये सोचकर कि रहस्यमय जीव से सामना ही नहीं होगा ।
टार्चों की रौशनी में रास्ता देखते सावधानी से वे आगे बढ़ रहे थे । टार्चों की रोशनियाँ दूर-दूर तक भी जा रही थीं कि कुछ नजर आ जाये ।
“हमें ऐसी कोई जगह भी देखनी है, जहाँ वो छिपकर रह सकता हो ।” मोना चौधरी बोली ।
“दूर-दूर तक समतल और बंजर जमीन है ।” दुलानी बोला, “मैं नहीं समझता कि वो कहीं छिप सकता होगा इधर ।”
“तो फिर उसे ढूँढ़ने क्यों आये हो ?” मोना चौधरी ने चलते-चलते उसे देखा ।
“मेरा मन कहता है कि वो रहस्यमय जीव इधर ही कहीं से आता है । मैंने तसल्ली से बैठकर सारे हालातों पर गौर किया है । उसके बाद इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वो इधर से ही आता है और रात को ही आता है । या तो वह इस जमीन पर कहीं दूर रहता है, जहाँ अब हम चलते-चलते पहुँच जायेंगे । या फिर उसने अपने रहने का ठिकाना कहीं बना रखा है, जिसे हम ढूँढ़ ही लेंगे । अब हम रात को ही नहीं, दिन में भी इस जगह को अच्छी तरह देखेंगे कि वो कहाँ पर छिपा रह सकता है । उसके छिपने की जगह के बारे में हम जान गए तो फिर वो हमारे हाथों से नहीं बच सकता ।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।
वे सब सामान्य गति से टार्चों की रौशनी हर तरफ फेंकते आगे बढ़ते जा रहे थे ।
महाजन, योगेश मित्तल के पास पहुँचकर वक्त बिताने वाले ढंग से बोला ।
“तुम कब से मैगजीन में सत्य कहानियाँ लिखने लगे ? कैसे पैदा हो गया शौक ?”
“शौक क्या पैदा होता है ! मैं तो लिखने का ही काम करता था । पहले उपन्यास लिखता था । उपन्यासकार बनने का मन था । बहुत उपन्यास लिखे । लोगों को पसंद आने लगे । सिलसिला आगे बढ़ता तो आज पक्का किसी मंजिल को पा चुका होता ।” कहकर योगेश मित्तल ने गहरी साँस ली ।
“सिलसिले को हुआ क्या ?”
“यूँ ही ।” योगेश मित्तल के होंठों पर मुस्कान उभरी, “तबीयत खराब हो गई थी । लिखने का सिलसिला टूट गया । लम्बा वक्त बीत गया । सिलसिला दोबारा नहीं बन पाया उपन्यास लिखने का । फिर मैगजीन वालों का ऑफर आया तो वक्त बिताने के लिए यही काम शुरू कर दिया । इस काम में रोमांच भी है । जैसे कि अब रहस्यमय जीव को ही लो । उससे मुलाकात हो गई तो सोचो कैसा रहेगा ? तब तो... ।”
इसी तरह की बातें करते हुए वे सब इधर-उधर नजरें दौड़ाते बढ़ते रहे ।
☐☐☐
आधी रात के बाद साढ़े तीन बज रहे थे ।
करीब पाँच घण्टे हो चुके थे उन्हें बिना रुके चलते हुए । ऊपर से रात का वक्त । नींद ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था ।
हथियारबंद पुलिस वालों की आँखें भारी होने लगी थीं । योगेश मित्तल को भी अब आराम की जरूरत महसूस होने लगी थी । दुलानी, मोना चौधरी और महाजन भी थके से महसूस कर रहे थे, परन्तु किसी ने भी अपनी थकान के बारे में कुछ भी नहीं कहा ।
योगेश मित्तल को जब लगा कि अब उसे कुछ आराम अवश्य चाहिये तो कह उठा ।
“यार दुलानी !”
“हाँ !”
“पहले तो तू चार कदम चलकर थक जाया करता था । अब क्या जवानी आ गई है तेरे में ।”
“फिक्र मत कर ।” दुलानी ने कहा, “तेरी तरह मैं भी खुद को थका महसूस कर रहा हूँ ।”
“तो कहता क्यों नहीं ?”
“क्योंकि मुझे किसी ने कहा नहीं !”
“अब मैंने तो कह दिया ।”
“आराम करना चाहता है ।” हरीश दुलानी ने उस पर नजर मारी ।
वे अब भी आगे बढ़े जा रहे थे । टार्चों की रोशनियाँ हर तरफ घूम रही थीं ।
“मैं क्या, सब ही करना चाहते हैं । पूछ लो ।”
उसके बाद सबकी आम सहमति बनी कि दिन निकलने में डेढ़ घण्टा बाकी है । तब तक कुछ आराम कर लिया जाये । फिर उन्होंने पास ही में ऐसी जमीन तलाश की जहाँ लेटा जा सके । सब थके हुए थे । जमीन पर लेटते ही उन्हें आराम मिला । कोई कपड़ा तो था नहीं कि नीचे बिछा लेते ।
दुलानी, दो पुलिस वाले के साथ पहरे के तौर पर जागने लगा । दूसरे पुलिस वालों से कह दिया था कि वो नींद ले लें । एक घण्टे बाद उन्हें जगाकर वे आराम कर लेंगे ।
तभी योगेश मित्तल ने दुलानी से कहा ।
“मैं अभी आया ।”
“कहाँ ?”
“साइड में । सू-सू करके ।”
“चैन नहीं तेरे को ।”
“खाने के साथ जो पानी पिया था, उसे निकालना भी तो जरूरी है ।” योगेश मित्तल ने मुस्कराकर कहा और अँधेरे में एक तरफ बढ़ गया ।
हरीश दुलानी टार्च थामे इधर-उधर रौशनी फेंकने लगा ।
मोना चौधरी, महाजन और पुलिस वाले जमीन पर लेटे नींद के करीब जा रहे थे ।
“सावधान रहना !” दुलानी पुलिस वालों से बोला, “नजरें हर तरफ घूमती रहें ।”
“यस सर !”
दुलानी और पुलिस वाले चहलकदमी करते पहरा देने लगे ।
योगेश मित्तल ने गहरे अँधेरे में खड़े होकर सू-सू से छुटकारा पाया ।
“खाना-पीना तो ठीक रहता है ।” योगेश मित्तल बड़बड़ा उठा, “बाद में उसे निकालने का काम भारी पड़ता है ।” फिर सब कुछ सिमटकर पलटा । एक कदम उठाया और सामने नजर पड़ते ही ठिठक गया ।
दस कदमों की दूरी पर एक साया-सा खड़ा था । पाँच फीट की लंबाई होगी । शरीर से वह सेहतमंद लग रहा था । चन्द्रमा की रौशनी मध्यम थी । उसका रंग-रूप स्पष्ट नजर नहीं आया ।
“तू भी मेरे पीछे-पीछे करने आ गया ।” योगेश मित्तल ने कहा, “करके आ जाना जल्दी... ।” कहते-कहते योगेश मित्तल ठिठका । इसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे ।
सामने दस कदमों की दूरी पर जो खड़ा था, वह पाँच फीट की लम्बाई का था । इतनी कम लम्बाई उनके ग्रुप में किसी की भी नहीं थी । दुलानी की भी नहीं ! पुलिस वालों की भी नहीं और उस युवती और उसके साथी की भी नहीं !
तो फिर ये कौन था ?
“तुम कौन हो भाई ?” योगेश मित्तल ने कहा, “ऐसी सूनसान जगह पर क्या कर रहे हो ? वो रहस्यमय जीव आ.... ।” इसके साथ ही उसके शब्द मुँह में ही रह गए ।
योगेश मित्तल के मस्तिष्क में बिजली-सी कौंधी ।
रहस्यमय जीव ?
जिसे वे तलाश कर रहे हैं, वही सामने खड़ा है ।
इस विचार के साथ ही वह हक्का-बक्का रह गया । दूसरे ही पल जैसे होश आया । गले में लटकता कैमरा संभाला और तस्वीर लेने के लिए चेहरे तक लाया ।
इसी पल वह अँधेरे में खड़ा हिला ।
योगेश मित्तल ने कैमरे का बटन दबाया । शटर की आवाज के साथ ही तस्वीर खिंच गई । फ्लैश की रौशनी में पल भर के लिए योगेश मित्तल ने उसे देखा तो वह रोमांचित हो उठा । वह रहस्यमय जीव ही था । तभी उसके देखते-ही-देखते अँधेरे में वह नीचे झुका । अपने दोनों हाथ उसने नीचे रखे ।
योगेश मित्तल पुनः तस्वीर ले लेना चाहता था और जब उसने तस्वीर ली तो जमीन पर हाथ रखे, चीते की तरह उसने योगेश मित्तल पर छलाँग लगा दी ।
योगेश मित्तल ने सारे हालातों को समझा और दहशत में भर उठा । पलों में ही सब कुछ हो गया । उस रहस्यमय जीव ने उस पर हमला कर दिया था । उसमें इतनी हिम्मत भी न पड़ी कि चीखकर किसी को सहायता के लिए बुला पाता ।
“योगेश !” उसके कानों में हरीश दुलानी की आवाज पड़ी, “क्यों, बेकार में तस्वीरें खींचे जा रहा है । आकर आराम कर ले ।”
ठीक इसी पल रहस्यमय जीव उसके शरीर से वेग के साथ आ टकराया था ।
“योगेश !” जवाब न पाकर हरीश दुलानी ने पुनः उसे पुकारा । परन्तु योगेश मित्तल की तरफ से जवाब न आया पाकर, दुलानी उलझन में घिरा फिर तेजी से उस तरफ बढ़ा जिधर योगेश मित्तल गया था । रिवॉल्वर हाथ में आ चुकी थी ।
वहाँ पहुँचते ही दुलानी ने जो देखा, उसे देखकर वह सिर से पाँव तक काँप गया । उसके हाथ में दबी टार्च की रौशनी में सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था ।
उसकी पीठ थी दुलानी की तरफ ।
योगेश मित्तल नीचे पड़ा था । पीठ के बल पर टार्च की रौशनी में उसने एक ही निगाह में पहचाना कि योगेश मित्तल जिन्दा नहीं है । उसकी आँखें उलट चुकी थीं और उस शह ने नीचे पड़े योगेश मित्तल के शरीर की एक टाँग पर अपना पैर रखा था । उसने दूसरी टाँग को दोनों हाथों से पकड़ रखा था और दुलानी के देखते-ही-देखते दोनों हाथों में पकड़ी टाँग को जोरों से झटका दिया । दूसरे ही पल टाँग टहनी की तरह टूटकर अलग हो गई तो उसने टाँगों को फेंका और नीचे पड़े योगेश मित्तल के शरीर की तरफ दोनों हाथ बढ़ाये । हाथ की उँगलियों में टेड़े-मेढ़े नाखून, टार्च की रौशनी में स्पष्ट चमके ।
जाने कैसे हरीश दुलानी ने खुद को संभाला । चेहरे पर एकाएक दरिंदगी सिमट आई थी । दाँत भिंच गए थे । वह आगे बढ़ा और हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर की नाल उसकी पीठ पर लगाते हुए वहशी स्वर में कह उठा ।
“खबरदार ! हिलना मत । वरना गोली मार दूँगा । तुम अब बच नहीं सकते । तुमने क्या सोचा था कि मेकअप करके ये रूप बनाकर लाशें बिछाते रहोगे । लाशों पर अपने रूप का खौफ हावी करा दोगे । लेकिन मैं तुम जैसों के झाँसे में नहीं फँसने वाला । हाथ ऊपर करो और खुद को कानून की गिरफ्त में समझो, बहुत हो गया । बहुत कर लिया तुमने । देर-सवेर में तो तुमने कानून के हाथ नीचे आना ही था । अब तुम बताओगे कि हत्याओं की आड़ में क्या करना चाहते थे ? हाथ ऊपर... ।”
तभी ऐसी फुर्ती के बारे में तो दुलानी ने कभी सोचा भी नहीं था कि बिजली की-सी रफ्तार के साथ उसका हाथ पीछे की तरफ आया । दुलानी को लगा जैसे उसकी कलाई, लोहे की बेहद टाइट शिकंजे में फँस गई हो । तीव्रता के साथ दुलानी को उसने अपने सामने खींच लिया । दुलानी के हाथ से टार्च छूट गई । वह हक्का-बक्का था । कुछ भी समझ नहीं आया कि क्या करे ? ऐसी हरकत की तो उसे आशा नहीं थी ।
उसी पल रिवॉल्वर वाली कलाई को उसने तीव्रता से झटका दिया । हड्डी टूटने की मध्यम-सी आवाज के साथ दुलानी की थर्रा देने वाली चीख निकली । रिवॉल्वर जाने कहाँ जा गिरी थी । उसने दुलानी की बाहें पकड़े, उसे जोरों से धक्का दिया तो दुलानी दूर तक लड़खड़ाता गया और नीचे जा गिरा । वह बराबर चीख रहा था ।
उसके बाद वह पुनः योगेश मित्तल पर झुका कि ठिठक गया ।
कुछ दूरी से जोर-जोर से आवाजें आने लगीं ।
“सर !”
“क्या हुआ सर ?”
“आप कहाँ हैं ?”
“दुलानी !” महाजन का तेज स्वर वहाँ गूँजा ।
“उधर से चीखने की आवाज आ रही है ।” ये आवाज मोना चौधरी की थी ।
फिर दौड़ते कदमों की आवाजें करीब आने लगीं । टार्च की रोशनियाँ चमक रही थीं ।
☐☐☐
टार्च की रोशनियाँ योगेश मित्तल के मृत शरीर पर पड़ रही थी । एक टाँग जुदा होकर कुछ फासले पर पड़ी थी । टाँग जहाँ से जुदा हुई थी, वहाँ से अभी भी खून बह रहा था । तीन पुलिस वाले पास ही खड़े टार्च की रौशनी में उसके शरीर की हालत देख रहे थे । वे सहमे हुए थे ।
कुछ कदमों की दूरी पर जमीन पर हरीश दुलानी पड़ा था । उसकी कलाई की हड्डी टूट चुकी थी । दो पुलिस वाले उसके पास थे । एक ने अपनी कमीज उतारकर, सख्ती से उसकी कलाई पर बाँध दी थी । इससे दुलानी को राहत मिली थी । पीड़ा की जानलेवा टीस रह-रहकर कलाई से उठ जाती थी । दोनों पुलिस वाले उसे हौसला दे रहे थे । दुलानी अपने दर्द पर बहुत हद तक काबू पा चुका था । दर्द को भूलने की चेष्टा कर रहा था । साथ ही उस रहस्यमय जीव की पीठ आँखों के सामने बार-बार आ रही थी । जब वह जीव के सामने की तरफ आया तो टार्च हाथ से छूट चुकी थी । ऐसे में अँधेरे में उसका चेहरा नहीं देख पाया था । होंठ भींचें दुलानी पीठ के बल पड़ा था ।
“अब कैसी तबीयत है सर ?” एक पुलिस वाले ने पूछा ।
“सब ठीक है ।” दुलानी ने पीड़ा और दुःख से होंठ भींचकर कहा, “योगेश का मरना बहुत बुरा हुआ । वो... वो... ।” दुलानी की आँखों में आँसू चमक उठे । कुछ दूरी पर पड़ी योगेश मित्तल की लाश पर उसकी नजरें टिक गई ।
“सच में सर ! हमें भी बहुत दुख है । समझ में नहीं आता कि वो अचानक भूत की तरह कहाँ से प्रकट हो गया । हमें नजर भी नहीं आया । शायद उसने बहुत सतर्कता से सारा काम... ।”
तभी कदमों की आवाजें गूँजी और मोना चौधरी, महाजन वहाँ आ पहुँचे ।
“वो नहीं मिला ।” मोना चौधरी के एक हाथ में टार्च और दूसरे में रिवॉल्वर थी, “मालूम नहीं कहाँ गायब हो गया ।”
“ये उसकी जगह है बेबी !” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “ऐसे में उसे पकड़ पाना आसान नहीं !”
“हाँ ! अब मुझे विश्वास हो गया है कि वास्तव में ये उसकी ही जगह है ।” होंठ भींचें मोना चौधरी दुलानी की तरफ बढ़ी ।
महाजन, योगेश मित्तल की लाश की तरफ बढ़ गया ।
“वो हाथ आकर भी निकल गया ।” दुलानी, मोना चौधरी के पास आकर कराहते स्वर में कह उठा ।
मोना चौधरी उसके पास बैठ गई ।
“उस पर इस तरह काबू नहीं पाया जा सकता दुलानी !” मोना चौधरी गम्भीर थी, “मैंने पहले भी कहा था ।”
हरीश दुलानी गहरी साँस लेकर रह गया ।
“योगेश मित्तल की तरफ तुम्हारा ध्यान कैसे गया दुलानी ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
दुलानी ने टार्च की फैली रौशनी में मोना चौधरी की तरफ देखा ।
“मैंने दो-तीन बार फ्लैश लाइट चमकती देखी ।” दुलानी बोला ।
“फ्लैश लाइट ! मतलब कि योगेश मित्तल ने कैमरे का इस्तेमाल किया था ।”
“हाँ ! तभी तो फ्लैश लाइट चमकी । मैंने उसे आवाज दी परन्तु कोई जवाब नहीं आया । तब मैं उस तरफ गया, जहाँ योगेश मित्तल था और... ।” दुलानी ने सब बताया, जो उसके साथ हुआ या देखा था ।
मोना चौधरी ने उसका एक-एक शब्द ध्यान से सुना ।
दुलानी के खामोश होते ही, मोना चौधरी सोच में डूब गई ।
“मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं आ रहा, जो हुआ । योगेश का मरना तो मैं कभी भूल नहीं पाऊँगा ।”
मोना चौधरी ने महाजन को देखकर ऊँचे स्वर में कहा ।
“लाश के गले में फँसा कैमरा निकाल लो ।”
महाजन ने कैमरा निकाला और पास आकर हरीश दुलानी के करीब बैठ गया ।
“बेबी !” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “ये मामला मेरी समझ में नहीं आ रहा ।”
“कैसा मामला ?” मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।
महाजन ने घूँट भरा । कैमरा पास ही में रख दिया ।
“रहस्यमय जीव ने अभी तक जिस-जिस को मारा, उसके शरीर को निर्ममता से उधेड़ा । इस तरह कि देखने वाला काँप उठे, परन्तु योगेश मित्तल के शरीर की टाँग ही उखाड़ी उसने । बाकी शरीर सलामत है और उधर वो दुलानी को भी बिना कुछ कहे चला गया । ऐसी शराफत उसने पहले कभी नहीं दिखाई ।”
“ये शराफत नहीं है उसकी ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“तो ?”
“इससे पहले कि वो कुछ करता । कर पाता । सबका ध्यान दुलानी की चीख की वजह से इधर को हो गया था । उसे एहसास हो गया । सब इधर आ रहे हैं । ऐसे में... ।”
“लेकिन बेबी, हम लोगों की संख्या इतनी नहीं थी कि वो भाग जाता । पहले भी उसने इतने लोगों को एक साथ मारा है ।”
“ठीक बात कही तुमने ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “मेरे ख्याल में उसे इस बात का एहसास रहा होगा कि हम लोग उसकी तलाश कर रहे हैं । उसे मारना चाहते हैं । ऐसी किसी बात की वजह से ही अपना काम बीच में ही छोड़कर... ।”
“ये तुम्हारी अटकलबाजी है ।” हरीश दुलानी हल्की-सी कराह के साथ कह उठा ।
“क्यों ?”
“उसे क्या मालूम कि हम क्या करने की सोच रहे हैं और... ।”
“दुलानी इस बात का फैसला तो हम पहले भी कर चुके हैं कि वो जो भी है, सोचने-समझने की शक्ति रखता है । हर काम को ढंग से, कायदे से करता है । ऐसे में वो हमारी हरकतों के बारे में आसानी से जान सकता है । उसने यहाँ पर योगेश मित्तल पर हमला किया तो ये मतलब नहीं कि वो अचानक ही यहाँ प्रकट हुआ । मेरे ख्याल से वो देर से हम पर नजर रख रहा था और जब योगेश मित्तल अकेले में गया तो उसने उस पर हमला कर दिया । वो हम सब पर एक साथ भी हमला कर सकता था । ऐसा उसने नहीं किया तो इसकी एक ही वजह हो सकती है कि वो हथियारों के बारे में जानता है कि उससे हम उसकी जान ले सकते हैं । वो घात लगाकर हम पर हमला करने की तैयारी में था कि उसे मौका मिले और वो हमला करे और उसे मौका मिला ।”
“मेरी समझ में नहीं आ रही ये बातें ।” दुलानी बेहद परेशान था, पीड़ा की वजह से और योगेस मित्तल की मौत की वजह से ।
“तुम पुलिस वालों की तरह सोच रहे हो । इसलिए ये बातें तुम्हारी समझ में नहीं आ रहीं ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा, “जबकि मैं कई मानवीय पहलुओं को सामने रखकर सोच रही हूँ ।”
“क्या मतलब ?”
“अभी कोई बात मत करो । हमें वापस चलना है । तुम्हारी बाँह डॉक्टर को दिखानी है ।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “योगेश मित्तल ने जो तस्वीरें ली हैं, उन्हें तैयार करवाकर देखना है कि उसने क्या तस्वीरों में लिया है ।”
“योगेश... योगेश के शरीर को... ।” दुलानी ने काँपते स्वर और गीली आँखों से कहना चाहा ।
“लाश के पहरे पर किसी को छोड़ना खतरे से खाली नहीं !” मोना चौधरी ने कहा, “योगेश मित्तल के शरीर को उठाकर साथ ही ले चलना होगा । कोई भी उसके शरीर को कंधे पर डालकर... ।”
“मैं उसके शरीर को कन्धे पर डालकर ले चलूँगा ।” पास ही मौजूद पुलिस वाला गंभीर स्वर में कह उठा ।
“और मैं खुद ही चल लूँगा ।” दुलानी कह उठा, “कलाई में पीड़ा बहुत है । पूरा जिस्म दर्द से काँप उठता है ।”
फिर वे वापसी की तैयारियाँ करने लगे ।
मोना चौधरी का चेहरा बहुत गंभीर था । वह सोचों के समन्दर में डूबी हुई थी ।
☐☐☐
लंच का वक्त हो रहा था ।
सड़क के किनारे पेड़ की छाया के नीचे चारपाई पर हरीश दुलानी लेटा हुआ था । पुलिस वाले उसकी सेवा में हाजिर थे । दुलानी की दायीं कलाई से कोहनी तक प्लास्टर चढ़ा हुआ था । पीड़ा से उसे राहत मिल चुकी थी । बीच से डॉक्टर को बुलाया गया था । कुछ देर पहले ही वह वापस गया था ।
पुलिस फोटोग्राफर को योगेश वाला कैमरा दे दिया था कि इसमें मौजूद फिल्म के प्रिंट तैयार किये जाएँ । इस काम के लिए फोटोग्राफर बीच की तरफ रवाना हो गया था कि वहाँ किसी फोटोग्राफर का डार्करूम इस्तेमाल करके, फ़िल्म धोकर, प्रिंट तैयार करेगा ।
हरीश दुलानी का मन बहुत खराब था योगेस मित्तल की मौत पर । बचपन का दोस्त था उसका और उसे मारा भी तब गया, जब वह ज्यादा दूरी पर नहीं था । लेकिन इस वक्त तो उसकी मौत का दुःख मनाने का वक्त भी नहीं था उसके पास । उसे यही फ़िक्र सता रही थी कि वह जाने कितने निर्दोष मासूमों की जान अभी और लेगा ।
पहले तो उस रहस्यमय जीव के शक्तिशाली होने का एहसास था उन्हें, परन्तु अब उसकी ताकत का नमूना अपने पर महसूस किया था । किस तरह उसकी बाँह पकड़कर झटका दिया । कैसे उसे उछालकर दूर फेंका । वह वास्तव में हद से ज्यादा शक्तिशाली था । उसके बारे में सोचकर कई बार दुलानी अपनी आँखें बन्द कर लेता ।
अँधेरा होने की वजह से वह उस रहस्यमय जीव का चेहरा नहीं देख पाया था । पीठ पीछे का ही उसका शरीर देखा था । उसके शरीर पर सामान्य तौर की तरह माँस न होकर, खुरदुरी मोटी-सी खाल को महसूस किया था उसने । कमर के गिर्द उसी माँस की गोलाई में झूलती परत उसके कूल्हों को ढांप रही थी । इसके अलावा और कुछ नहीं था उसके शरीर पर, कोई कपड़ा नहीं था ।
फिर भी दुलानी नहीं समझ पाया कि वह इंसान था या जानवर ।
मोना चौधरी और महाजन उसके पास ही कुर्सियों पर बैठे थे । वे नहा-धो चुके थे और लंच भी उन्होंने ले लिया था । हर कोई चुपचाप-सा था । व्याकुल, बेचैन, गुस्से से भरा हुआ, गंभीर ।
योगेश मित्तल की लाश को पैक करके पुलिस वाले वहाँ से ले गए थे ।
इस हादसे के अलावा रात को कोई और घटना नहीं घटी थी ।
“दुलानी ?” मोना चौधरी गंभीर स्वर में बोली, “तुमने उस रहस्यमय जीव से मुकाबला किया था । अब उसके बारे में बताओ कि वो कैसा है ?”
“मैं नहीं जानता ।” दुलानी ने गहरी साँस ली ।
“क्या मतलब ?”
“मैं नहीं जानता देखने में वो कैसा है ? तब उसकी पीठ थी मेरी तरफ । टार्च की रोशनी पीठ पर ही पड़ी थी । जब सामने की तरफ उसने देखा तो टार्च मेरे हाथ से गिर गई थी ।” कहने के साथ ही दुलानी ने आँखें बन्द कर लीं, “मेरे ख्याल में उसके शरीर पर सख्त-सी खाल थी । जैसे हाथी या गैंडे की होती है । उस दबी कमर से उसी खाल का, गोलाई किये अलग-सा पीस निकलकर, उसके नीचे के हिस्से के ऊपर झूल रहा था । इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं देख पाया । लेकिन इतना कह सकता हूँ कि उसकी ताकत का मुकाबला नहीं किया जा सकता । पहले सुना था, लेकिन अब ये बात मैं महसूस करने के बाद कह रहा हूँ ।”
महाजन ने पुलिस वालों से हासिल की नई बोतल का घूँट भरा ।
“वो इंसान था या जानवर ?”
“मालूम नहीं !” हरीश दुलानी ने आँखें खोलीं, “जाने वो क्या था ? वो इंसान भी नहीं था, जानवर भी नहीं लगा मुझे । मैं उसे कुछ देर और देख पाता तो शायद इस बात का जवाब दे सकता ।”
“जो भी हो, खुशकिस्मत हो कि बच गए उसके हाथों ।” महाजन बोला ।
दुलानी ने महाजन को देखा ।
“वो बहुत शक्तिशाली है ।” दुलानी ने कहा, “मैं हैरान हूँ कि वो डरकर क्यों भाग गया ?”
“इस बात का जवाब मैं पहले दे चुकी हूँ ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“तुम्हारा ख्याल है कि वो हथियार के डर से भागा ।”
“शायद हाँ !”
“मालूम नहीं क्या सच है, क्या नहीं । हम यूँ ही अटकलें लगा रहे हैं ।” हरीश दुलानी दुखी स्वर में कह उठा, “मुझे तो बार-बार योगेश मित्तल की मौत... ।”
“उसका हमें भी दुःख है दुलानी ! बंदा बढ़िया था ।” महाजन गंभीर स्वर में बोला, “लेकिन उसके लिए दुःख करने के अलावा हम और कुछ नहीं कर सकते ।
“वो शायद रहस्यमय जीव के हाथों मरने ही यहाँ आया था ।”
लेटे-ही-लेटे हरीश दुलानी ने आँखें बन्द कर लीं ।
“बेबी !” महाजन बोला, “तुम्हारा क्या ख्याल है, योगेश मित्तल के कैमरे में कोई खास तस्वीर होगी । वो उस रहस्यमय जीव की तस्वीर ले पाया होगा ?”
“कह नहीं सकती । देखते हैं ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी ।
“दुलानी !” महाजन ने उसे देखा, “योगेश मित्तल फोटोग्राफर कैसा था ?”
“बहुत बढ़िया । वो अपने हर काम में मास्टर था ।”
ढाई घण्टे बाद पुलिस फोटोग्राफर लौटा, जो योगेश मित्तल का कैमरा लेकर गया था ।
☐☐☐
योगेश मित्तल ने तीन तस्वीरें ली थीं ।
तीनों ही बेहद स्पष्ट थीं ।
पहली में वह रहस्यमय जीव सीधा खड़ा था । आँख ठीक माथे के बीचोबीच जा टिकी थी ।
दूसरी में वह चौपाया जैसा लगा । आगे के दोनों हाथ नीचे जमीन पर रखे थे और गर्दन उठाये वह सामने ही देख रहा था । उसका ये पोज जैसे शरीर में सनसनी-सा फैला रहा था । माथे के बीचोबीच आँखें चमक रही थीं ।
तीसरी में वह हवा में था । छलाँग लगा चुका था । बाँहों को आगे की तरफ इस तरह फैलाये हुए था, जैसे सामने वाले की गर्दन दबोच लेना चाहता हो ।”
उन तस्वीरों ने वहाँ सनसनी फैला दी थी ।
हर पुलिस वाला तस्वीरें देखने के लिए टूट पड़ा तो दुलानी ने उन्हें सख्ती से कहा कि वे अपने-अपने कामों में व्यस्त रहें । पुलिस फोटोग्राफर एक-एक तस्वीर के तीन-तीन प्रिंट निकलवाकर लाया था ।
दस-पंद्रह मिनट तक वे तीनों उस रहस्यमय जीव की तस्वीरें देखते रहे ।
पूरा हुलिया, रहस्यमय जीव का एक-एक जर्रा सामने था । तस्वीरें खींचने में योगेश मित्तल ने जान अवश्य गँवा दी थी, लेकिन तस्वीरों के रूप में वह अनमोल सौगात सब के लिए छोड़ गया था ।
मोना चौधरी ने तस्वीरों से निगाह हटाई और दुलानी, महाजन को देखा ।
महाजन और दुलानी भी तस्वीरों से नजरें हटाकर गंभीर निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगे थे ।
“मुझे... ।” दुलानी की हालत अजीब-सी हो रही थी, “मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि किसी का रूप ऐसा भी हो सकता है ।”
“तस्वीरें हमारे सामने हैं ।” मोना चौधरी के गंभीर स्वर में ठहराव था ।
“हे भगवान !” महाजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, “विनोद और सोनिया ने इसका हुलिया बताया था । सच बात तो ये थी कि मैं अभी तक मन-ही-मन इस हुलिये को सच मान रहा था । शंका से भरा था, लेकिन अब... अब कैसे झुठला सकता हूँ । उसके सिर पर तब कैसी दहशत सवार होगी । उफ़्फ़ ! तस्वीरें देखकर भी विश्वास नहीं आ रहा, ऐसा कोई दुनिया में हो सकता है । तस्वीरें देखने के बाद भी इस बारे में मेरा विश्वास कई बार डगमगा उठता है ।”
मोना चौधरी होंठ भींचें बारी-बारी दोनों को या फिर हाथ में पकड़ी तस्वीरों को देखने लगती ।
महाजन ने घूँट भरा ।
“तब ।” दुलानी की निगाह पुनः तस्वीरों पर गई, “योगेश की क्या हालत हुई होगी, जब उसने इसे सामने देखा होगा ।”
“मेरे ख्याल में तो वो इस रहस्यमय जीव को हक्का-बक्का-सा देखता रह गया होगा और उसके हमले का शिकार हो गया ।” मोना चौधरी बोली, “शायद उसे इस बात का एहसास भी नहीं हुआ होगा कि वो मरने जा रहा है ।”
“हाँ !” हरीश दुलानी ने आँखें बन्द कर लीं, “ऐसा ही हुआ होगा ।”
“हम असल बात की तरफ नहीं आ रहे ।” महाजन बोला ।
मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।
दुलानी ने भी आँखें खोली लीं ।
“बेबी !” महाजन पुनः गंभीर स्वर में कह उठा, “जो भी हो रहा है सब के सामने हैं । हमारे सामने पूरे विश्वास के साथ अब ऐसी शह है, जिसका मुकाबला हमें करना है । रहस्यमय जीव का हुलिया या मात्र अफवाह ही हमारे सामने नहीं, स्पष्ट तौर पर उसकी तस्वीरें भी हैं । फैसला इस बात का करना है कि इससे कैसे निपटा जाये ?”
“पहले तो ये समझ में आये कि ये इंसान है या जानवर ?” दुलानी कह उठा ।
“तुम क्या कहते हो ?” दुलानी ने महाजन को देखा ।
“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।” परेशान, गंभीर दुलानी ने कहा, “तस्वीरें हमारे सामने हैं । जिसकी ये तस्वीरें हैं, उसे मैं इंसान नहीं कह सकता । जानवर भी नहीं लगता किसी तरफ से । ये देखो, तस्वीर में किसी चीते की तरह, दोनों हाथ नीचे रखकर कैसी लम्बी छलाँग लगा रहा है । लेकिन ऐसा कोई जानवर नहीं हो सकता । ओफ्फ, एक कान से दूसरे कान तक माथे को होकर जाती, इंच भर की पट्टी, जिसमें शायद इसकी आँख घूमती है । जिधर वो देखना चाहता है, उधर ही आँख घुमा लेता है । इंसानों की तरह भी चलता है, हरकतें करता है और जानवरों की तरह भी । लेकिन... लेकिन ये क्या है, मैं नहीं समझ पा रहा । शायद कोई भी न समझ पाये ।”
मोना चौधरी बेहद गंभीर थी ।
महाजन ने घूँट भरा और कह उठा ।
“इसके शरीर पर कपड़े नहीं हैं । गुप्तांगों पर उसके अपने माँस का ही कुदरती पर्दा लटक रहा है । ये इंसान नहीं हो सकता ।”
“मतलब कि तुम इसे जानवर कहते हो ।” दुलानी ने उसे देखा ।
महाजन की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी ।
“बेबी, तुम क्या कहती हो ?”
“कुछ भी नहीं !” मोना चौधरी के होंठ हिले ।
“क्या मतलब ?”
“ये मेरा मामला नहीं है । मैंने तो पहले ही कहा था कि मैं दो वजहों से यहाँ रुकी हूँ । एक तो उस रहस्यमय जीव को अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ और ये जानना चाहती हूँ कि पुलिस उस पर कैसे काबू पाती है, क्या करती है । वो इंसान है या जानवर, इस बात से मेरा कोई वास्ता नहीं !” गंभीर स्वर में कहते हुए मोना चौधरी की निगाह हाथ में पकड़ी उस तस्वीर पर जा टिकी, जिसमें वह सीधा खड़ा था ।
“तुम्हें अपनी राय जाहिर करनी चाहिए, मोना चौधरी !” हरीश दुलानी कह उठा ।
“मैं ऐसे लोगों के सामने अपनी राय जाहिर नहीं करती जो मेरी बात पर गौर भी न करे ।” मोना चौधरी का स्वर शांत था, “मैंने तुमसे कहा था कि उस पर गोली नहीं चलानी चाहिए । किसी तरह उसे पकड़ना चाहिए । लेकिन तुमने मेरी बात पर सोचने की भी कोशिश नहीं की कि मैं ये सब क्यों कह रही हूँ । क्योंकि तुम्हारे हाथ में इस वक्त पॉवर है । तुम पुलिस वाले हो और इस केस के इंचार्ज हो । मैं इस मामले में अपनी सोचों का इस्तेमाल नहीं कर सकती । ऐसे में कोई राय देकर मैं अपना या तुम्हारा वक्त बर्बाद नहीं करना चाहती । अब भी यही देखूँगी कि तुम क्या करते हो ।”
दुलानी परेशानी के साथ-साथ उलझन में भी दिखने लगा । वह तकियों की टेक लगाकर कुछ सीधा हो गया ।
“मोना चौधरी !” दुलानी ने कहा, “हम एक साथ ही काम कर रहे ।”
“नहीं, मिस्टर दुलानी !” मोना चौधरी इंकार में सिर हिलाकर बोली, “हम साथ-साथ काम नहीं कर रहे । तुम पुलिस वाले हो और मैं कानून की मुजरिम । इत्तफाक से हम साथ-साथ हो गए । जो भी कर रहे हो, सिर्फ तुम कर रहे हो । मैं सिर्फ तमाशबीन के तौर पर तुम्हारे साथ हूँ । अपनी उत्सुकता की वजह से तुम्हारे साथ हूँ ।”
“ये ठीक है कि मैंने तुम्हारी बात पर ध्यान नहीं दिया । शायद इसलिए कि तुम्हारा सुझाव मुझे अच्छा नहीं लगा था ।”
“तभी तो अब मैं किसी तरह का सुझाव नहीं देना चाहती ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “मैं जानती हूँ कि तुम अपनी जगह सही हो । मजबूर हो । क़ानूनी मामलों में किसी मुजरिम के सहयोग की जरूरत नहीं होती ।”
“ऐसी बात नहीं !” सोच में डूबा गंभीर था दुलानी ।
कई पलों तक उनके बीच चुप्पी रही । फिर मोना चौधरी ही बोली ।
“तुम्हें मेरे से किसी तरह की सहायता की जरूरत हो तो अवश्य कहो । अगर मुझे तुम्हारी बात ठीक लगी तो अवश्य तुम्हारे काम आऊँगी । लेकिन अपनी तरफ से कोई राय नहीं दूँगी । कोई कदम नहीं उठाऊँगी ।”
व्याकुल परेशान लेटा दुलानी दोनों को देखता रहा । बोला कुछ नहीं ।
“तुम्हारी कलाई में फ्रैक्चर हो चुका है । कलाई की हड्डी जुड़ने में अभी वक्त लगेगा और ये मामला तुम ही देख रहे हो कि कैसा है । ऐसे में अब तुम क्या करोगे ? ज्यादा भागदौड़ तुम्हारे बस की नहीं है अभी ।”
“ठीक कहती हो ।” दुलानी बोला, “मेरी कलाई की हालत ऐसी है, मोना चौधरी कि मैं भागदौड़ नहीं कर सकता; और इस काम में भागदौड़ की बहुत जरूरत है । कुछ समझ नहीं आ रहा ।”
“क्या समझ नहीं आ रहा ?” महाजन ने पूछा ।
“इन तस्वीरों के साथ अपनी रिपोर्ट ऊपर भेजूँगा तो कोई बड़ी बात नहीं कि ऊपर वाले किसी दूसरे को इस केस का इंचार्ज बनाकर भेज दें और मुझे आराम करने को कहें, जबकि मैं इस केस को छोड़ना नहीं चाहता । रहस्यमय जीव से वास्ता रखते इस मामले का अंत देखना चाहता हूँ, करीब रहकर ।” परेशान से दुलानी ने होंठ भींच लिए ।
“मतलब कि तुम्हें विश्वास है कि ऐसी हालत में ये केस किसी दूसरे पुलिस वाले को सौंप दिया जायेगा ।”
“हाँ !” दुलानी ने महाजन को देखा, “मेरी कलाई की हालत ऐसी नहीं कि मैं इस केस पर काम करने के लिए काबिल समझा जाऊँ । यहाँ के हालातों की रिपोर्ट और रहस्यमय जीव की तस्वीरें देखकर, मेरे ऑफिसर ये बात तुरन्त समझ जायेंगे ।”
“समझा और तुम इस केस पर लगे रहना चाहते हो ।”
“हाँ, लेकिन ऊपर वाले किसी दूसरे पुलिस वाले के हवाले ये केस कर देंगे ।” दुलानी का स्वर सख्त हो गया ।
तभी खामोश बैठी मोना चौधरी कह उठी ।
“तुम चाहो तो इस केस पर लगे रह सकते हो और किसी तरह ये मामला भी निपट जाये ।”
हरीश दुलानी की निगाह फौरन मोना चौधरी के गंभीर चेहरे पर जा टिकी ।
“वो कैसे ?” दुलानी के होंठों से निकला ।
“दूसरों की निगाहों में ये मामला तुम संभाल रहे हो । कलाई की हड्डी टूटने की रिपोर्ट ऊपर मत भेजना । लेकिन असल में मैं ये मामला संभालूँगी ।”
“तुम ?”
मोना चौधरी, दुलानी की आँखों में देखती रही ।
“तुम कैसे उस रहस्यमय जीव को... ।”
“मैं जैसे भी रहस्यमय जीव के सिलसिले में काम करूँ । इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होगा ।” मोना चौधरी के स्वर ने दृढ़ता थी, “अगर तुम्हें मेरी काबिलियत पर शक है तो जुदा बात है ।”
दुलानी उठकर चारपाई पर बैठ गया । वह और भी ज्यादा परेशान नजर आने लगा था । सोचों के साये उसके चेहरे पर गहरे हो गए थे । गंभीरता की वजह से उसके होंठ बन्द थे ।
“ये रिस्क लेने वाली बात होगी मेरे लिए । तुम्हारी किसी हरकत पर वो रहस्यमय जीव गुस्से में आकर कई मासूम, निर्दोष की जान ले सकता है । तब मैं ऊपर वाले को क्या जवाब दूँगा ।” दुलानी के होंठ खुले ।
“तुम इस बात कि कैसे गारन्टी लेते हो कि रहस्यमय जीव तुम्हारी किसी बात पर गुस्सा होकर ऐसा नहीं करेगा । जब से तुमने ये मामला संभाला है तब से एक रात उसने गाँव में दो जान लीं । बीती रात उसने तुम्हारे सामने योगेश मित्तल को खत्म कर दिया और तुम भी किस्मत से बचे । मेरे कहने का मतलब ये है कि इस बात की गारन्टी नहीं ली जा सकती कि मेरे इस मामले को संभालने पर वो ज्यादा लोगों की जान लेता है या कम लोगों की । जिस तरह तुम अपने ढंग से इस मामले को निपटाना चाहते हो । उसी तरह मैं अपने ढंग से इस मामले को निपटाना चाहूँगी । ऐसे में मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि वो किसी की जान न ले सके । ले तो ऐसे बुरे हादसे ज्यादा न होने पाये ।”
हरीश दुलानी उसी मुद्रा में बैठा, उसी अंदाज में मोना चौधरी को देखता रहा ।
“जो भी इस मामले को संभालेगा । उसके बाद रहस्यमय जीव हत्या करना बन्द नहीं करेगा । कोई नया आयेगा तो हालातों को समझने में ही कई दिन लगा देगा । जबकि हम हालातों से बहुत हद तक वाकिफ हो चुके हैं ।” मोना चौधरी पुनः गंभीर स्वर में कह उठी, “मेरे ख्याल से तो अगर हम सब मिलकर ही ये मामला संभाले तो ज्यादा बेहतर होगा ।”
दुलानी सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा ।
“मैंने सुन रखा है कि तुम बहुत खतरनाक हो । लेकिन ये मामला किसी अजीब रहस्यमय ताकत से वास्ता रखता है । इस मामले को पार लगाना आसान काम नहीं । कम-से-कम ये बात तो मैंने महसूस कर ली है ।” दुलानी के दाँत भींच गए ।
मोना चौधरी थोड़ा-सा आगे झुकी और दृढ़ता भरे सर्द स्वर में कह उठी ।
“मिस्टर हरीश दुलानी ! ये मामला मेरे पर छोड़ दो । काम मैं करूँगी । नाम तुम्हारा ।”
दोनों की आँखें मिलीं । कई पल यूँ ही बीत गए ।
“तुम इस मामले को कैसे... ?” दुलानी ने कहना चाहा ।
“ये बात तुम नहीं पूछोगे मिस्टर दुलानी !” मोना चौधरी उसी लहजे में बात काटकर कह उठी, “सब कुछ मेरे पर छोड़ो तो मुझ पर ही छोड़ो । मैं जो भी करूँगी, उसमें तुम अपनी जबरदस्ती की दखलअन्दाजी नहीं करोगे ।”
हरीश दुलानी होंठ भींचें और सोच से भरी सिकुड़ीं निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा ।
“पहले तुमने काम किया तो मैंने कोई भी जबरदस्ती का दखल नहीं दिया । राय अवश्य दी । इसी तरह तुम मेरे करने में दखल नहीं दोगे । बात पसंद आये तो ठीक, नहीं तो तुम जो चाहो, वो करो ।”
“मेरे इंकार करने पर तुम दोनों यहाँ से चले जाओगे ?” दुलानी के होंठों से निकला ।
“नहीं !” मोना चौधरी ने इंकार में सिर हिलाया, “यहीं रहेंगे । इस मामले का अंत देखे बिना नहीं जायेंगे । तुम्हारी जगह दूसरा कोई इस केस का इंचार्ज बनकर आ जायेगा तो मेरी पूरी कोशिश होगी कि इस केस में उसका साथ पा लूँ । अगर ऐसा नहीं हो पाया तो दूर रहकर देखूँगी कि रहस्यमय जीव के सिलसिले में क्या हो रहा है ? कैसे हो रहा है ?”
“रहस्यमय जीव में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है तुम्हारी ।”
“बेकार के सवाल मत करो । तुम जानते हो कि इस काम में हम दिलचस्पी ले रहे हैं ।” महाजन ने उसे घूरा ।
हरीश दुलानी खामोश बेचैन निगाहों से दोनों को देखना लगा ।
महाजन ने घूँट भरा ।
मोना चौधरी इधर-उधर अपने काम में व्यस्त पुलिस वालों को देखने लगी । एक तरफ पुलिस गाड़ियाँ खड़ी थीं । सड़क पर से कभी-कभार बीच की तरफ जाने और आने वाले वाहन वहाँ निकलते रहते थे । ढेर सारी पुलिस को देखकर किसी ने रुकने, मामला पूछने की चेष्टा नहीं की थी । कुछ लोग अवश्य इस बारे में जानते थे कि पुलिस उस हत्यारे को ढूँढ़ रही है, जिसने मासूमों को निर्ममता से मारा है । अभी तक रहस्यमय जीव के बारे में खुली खबर बाहर नहीं गई थी । दुलानी ने पुलिस वालों को आदेश दे रखा था कि रहस्यमय जीव के बारे में किसी से बात न की जाये । वरना लोगों में दहशत फैलेगी और उनके लिए काम में कठिनाइयाँ आने लगेंगी ।
“क्या सोच रहे हो दुलानी ?” महाजन कह उठा ।
सोचों से बाहर आकर हरीश दुलानी ने महाजन को देखा, फिर मोना चौधरी पर नजरें जा टिकीं ।
“कम-से-कम इतना तो बता सकती हो कि तुम्हारे दिमाग में क्या है ? क्या करना चाहती हो तुम ?”
“ये मैं तुम्हें इसलिए नहीं बता सकती कि मेरी सोच सुनकर तुम परेशान हो जाओगे कि मैं क्या करना चाहती हूँ । मेरी हरकत तुम्हारे गले से नीचे नहीं उतरेगी । तुम्हारी सोचों का हिस्सा नहीं बन सकेगी । लेकिन मुझे विश्वास है कि मैंने जो करने की सोची है, शायद वो बिल्कुल ठीक है ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा ।
“अभी कहा कि शायद वो ठीक है । यानी तुम्हें अपने पर पूरा यकीन नहीं !”
“कोई भी हरकत हमेशा यकीन के साथ की जाती है कि वो पूरी होगी । ये बाद की बात है कि यकीन खरा उतरता है या नहीं । तुमने रहस्यमय जीव के लिए जो भी हरकत की यही सोचकर की कि तुम्हें सफलता मिलेगी । अपनी तरफ से तुमने अच्छी कोशिश की । लेकिन सफलता नहीं मिली । कोशिश उल्टी पड़ गई ।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर गंभीर स्वर में कहा, “इसी तरह मैं भी कोशिश करूँगी । देखना ये होगा कि कोशिश उल्टी पड़ती है या सीधी ।”
दुलानी थोड़ा आगे सरका और चारपाई पर टाँगें लटकाकर बैठ गया ।
महाजन ने घूँट भरा और मुँह बनाकर कहा ।
“बेबी ! मुझे तो ये पुलिस वाला नहीं लगता । ये तो सरकारी क्लर्क की फाइल से भी धीमी रफ्तार से सोच-फिर रहा है ।”
हरीश दुलानी ने गहरी साँस ली और मोना चौधरी से धीमे स्वर में कह उठा ।
“मैं तुम्हारे नाम और कामों से काफी हद तक अच्छी तरह वाकिफ हूँ, मोना चौधरी ! तुम्हारे बारे में सुन रखा है कि तुम हिम्मत वाली हो । समझदार हो । यही वजह है कि अब मैं आँखें बन्द करके अंधों की तरह तुम पर विश्वास करने जा रहा हूँ ।”
“मतलब कि तुम्हें मेरी बात मंजूर है ।”
दुलानी ने हौले से सिर हिलाया ।
“याद रखना कि तुम मेरी किसी भी हरकत पर एतराज नहीं उठाओगे ।” मोना चौधरी ने उसकी आँखों में झाँका ।
हरीश दुलानी ने होंठ भींच लिए ।
“मैं इस काम में हर वक्त तुम्हारे साथ रहूँगा ।” दुलानी के होंठ खुले ।
“मुझे कोई एतराज नहीं !” मोना चौधरी ने फौरन कहा, “बल्कि इस काम में तुम्हें अपने साथ रखने की मेरी अपनी जरूरत भी है । क्योंकि मुझे कुछ विश्वासी, हिम्मती लोगों की जरूरत पड़ेगी जो कि इन पुलिस वालों में ही मिलेंगे ।”
“तुम करना क्या चाहती हो ?” दुलानी गंभीर स्वर में कह उठा ।
“मालूम हो जायेगा ।”
☐☐☐
शाम के पाँच बज रहे थे ।
मोना चौधरी कुर्सी पर अलग ही बैठी थी । उसके आसपास रहस्यमय जीव की तीन तस्वीरें थीं, जिन्हें वह सोचों में डूबी रह-रहकर देखने लगती थी । योगेश मित्तल ने जो पहली तस्वीर ली थी रहस्यमय जीव की, जिसमें वह सीधा खड़ा नजर आ रहा था, उस तस्वीर को उसने पुलिस फोटोग्राफर को दोबारा बनवाने को भेजा था । खास तौर से तस्वीर का छाती वाला हिस्सा ।
दो घण्टे हो चुके थे फोटोग्राफर को तस्वीर तैयार करवाने के लिए बीच की तरफ गए ।
हरीश दुलानी ने कुछ नींद ली थी, उसके बाद पुलिस वालों के पास पहुँच गया था । उनसे रात भर की पहरेदारी के बारे में बातें करने लगा था ।
महाजन यूँ ही इधर-उधर टहलता रहा । घूँट लेता रहा । वह गंभीर था । कभी-कभार मोना चौधरी को भी देख लेता था । पुलिस वालों ने मोना चौधरी को शाम की चाय दी थी । मोना चौधरी चाय के घूँट ले रही थी । महाजन कभी रहस्यमय जीव के बारे में सोचने लगता तो कभी ये सोचता कि मोना चौधरी के मन में क्या है ? वह कैसे रहस्यमय जीव से निपटेगी ? इस बीच उसने मोना चौधरी के पास जाने की चेष्टा नहीं की थी ।
बीच पर गया फोटोग्राफर प्रिंट तैयार करवाकर ले आया था । उसने तस्वीर मोना चौधरी को दी । उस तस्वीर में रहस्यमय जीव का गले से लेकर छाती तक हिस्सा बड़ा होकर स्पष्ट नजर आ रहा था ।
कुछ देर तक मोना चौधरी बहुत ध्यानपूर्वक उस छाती वाली तस्वीर को देखती रही । फिर इशारे से दुलानी को बुलाया ।
हरीश दुलानी को मोना चौधरी के पास पहुँचा देखकर महाजन भी वहाँ आ पहुँचा ।
“दुलानी !” मोना चौधरी ने उसे देखा, “रात का पहरा वैसे ही लगवाना हर तरफ, जैसे कल लगाया था ।”
“कल जैसा पहरा ही होगा आज रात भी ।”
“उस तरफ कोई नहीं जायेगा, जिधर कल रात हम लोग गए थे ।”
दुलानी ने गंभीरता से सिर हिलाया । आँखों के सामने योगेश मित्तल का चेहरा उभरा ।
“अभी हम यहीं रहेंगे और जो मैं करना चाहती हूँ, उस पर बात करूँगी ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं तुम्हें बताऊँगी कि गड़बड़ कहाँ हुई थी । पूरा विश्वास तो नहीं है लेकिन मेरे ख्याल में गड़बड़ वहीं हुई और ये सब खून-खराबे का दौर वहीं से शुरू हुआ लगता है ।”
“वो कैसे ?” महाजन के होंठों से निकला ।
“कुछ देर बाद बात करेंगे महाजन !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
हरीश दुलानी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला फिर होंठ बन्द कर लिए ।
पुलिस वाले रात भर के लिए पहरे पर गाँव की तरफ जा चुके थे । गाँव में पहले से भी पुलिस वाले मौजूद थे । रात भर की गश्त के लिए पुलिस वाले अपनी गाड़ियाँ तैयार करने लगे । एक पुलिस कार की ड्यूटी थी, रात का खाना सब पुलिस वालों को पहुँचाना । कुछ पुलिस वाले ईंटों का चूल्हा बनाये, जैसे-तैसे खाना तैयार करने में लगे थे । उनके साथ ही गाँव की दो बूढ़ी औरतें और तीन आदमी भी थे । हर काम ढंग से सिलसिलेवार हो रहा था ।
रहस्यमय जीव का खौफ मानो दिलों पर हावी था ।
इस जगह पर पर्याप्त हथियारबंद पुलिस वाले मौजूद थे ।
कुछ ही देर में अँधेरा फैलने वाला था । दुलानी बहुत हद तक फुर्सत पा चुका था, पुलिस की रात की ड्यूटी लगाकर दुलानी पुलिस वालों के कामों में हाथ बँटाने की कोशिश में लगा था ।
मोना चौधरी उनसे हटकर कभी कुर्सी पर बैठती तो कभी चहलकदमी करने लगती । वह स्पष्ट तौर पर किसी उधेड़बुन में लगी बहुत गंभीर दिखाई दे रही थी ।
फुर्सत पाकर दुलानी, मोना चौधरी के पास पहुँचा ।
“अब मेरे पास कोई काम नहीं है ।” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “डिनर तैयार होने तक मैं पूरी तरह फुर्सत में हूँ । तुम कोई बात करना चाहती हो तो... ।”
“एक टेबल और तीन कुर्सियों के साथ दो टार्चें तैयार करो । मैं कुछ बताऊँगी ।”
दुलानी ने फौरन ही कुछ अलग हटकर एक टेबल और कुर्सियों का इंतजाम किया । दो टार्चें टेबल पर थीं । मोना चौधरी तस्वीरें हाथ में लिए कुर्सी पर आ बैठी । बाकी दोनों कुर्सियों पर महाजन और दुलानी बैठ गए । अँधेरा फैलना शुरू हो चुका था, परन्तु दिन का उजाला अभी भी कुछ-कुछ वजूद में था ।
मोना चौधरी टेबल पर मौजूद टार्चों में से एक टार्च रोशन की तो वहाँ तेज रौशनी फ़ैल गई । तीनों के चेहरे स्पष्ट नजर आने लगे । मोना चौधरी ने दोनों को देखा फिर गंभीर, धीमे स्वर में कह उठी ।
“सबसे पहले मेरे और महाजन को उसके वजूद का एहसास बीच पर हुआ । जब विनोद और सोनिया ने उसके बारे में हमें बताया, तब हम मानकर भी उनकी बात नहीं माने और न ही मानकर भी उनकी बात मानी । यानी कि कुछ तय नहीं कर पाये कि वो सच कह रहे हैं या झूठ ।”
महाजन और दुलानी की गंभीर निगाहें मोना चौधरी के चेहरे पर थीं ।
“इस बात पर मैं अभी वापस आऊँगी । उससे पहले इस पर विचार करते हैं कि वो रहस्यमय जीव, जिसे हम न तो जानवर कह पा रहे हैं और न ही इंसान, आखिरकार आया कहाँ से ?” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा, “आसमान से आया या जमीन से निकला ?”
महाजन और दुलानी की नजरें मिलीं ।
“इस बात से हमें क्या मतलब कि... ।”हरीश दुलानी ने कहना चाहा ।
“बहुत मतलब है ।” मोना चौधरी बात काटकर कह उठी, “जिसे हम अपना दुश्मन मान रहे हैं ? जिस पर वार करने या गिरफ्तार करने की सोच रहे हैं, उसके बारे में कुछ जान लिया जाये तो बेहतर ही होगा ।”
“बेबी !” महाजन गहरी साँस लेकर कह उठा, “तुम्हारे सवाल का जवाब देना आसान काम नहीं कि वो कहाँ से आया ? क्योंकि उसके बारे में हमारे पास कोई जानकारी नहीं है ।”
“इस बात की जानकारी मेरे पास भी नहीं है कि ऐसा रहस्यमय जीव आया कहाँ से ?” मोना चौधरी ने कहा, “ऐसे में क्या हम ये सोचकर बता सकते हैं कि वो कब से धरती पर घूम रहा है ।”
“कब से का मतलब ?” दुलानी के होंठ हिले ।
“मतलब कि पहली बार वो रहस्यमय जीव गनमैनों की हत्याओं के साथ नजरों में आया । इससे पहले वो कभी भी नजर में नहीं आया । क्यों नहीं नजर में आया ? कहाँ था वो ?” मोना चौधरी ने दोनों को देखा, “उस दिन से पहले उस रहस्यमय जीव ने किसी को क्यों नहीं मारा ?”
“हो सकता है वो शख्सियत अचानक ही कहीं से अभी प्रकट हुई हो और... ।”
“नहीं ! गलत बात कह रहे हो । मैं विश्वास के साथ कह सकती हूँ कि वो रहस्यमय जीव गनमैनों की हत्या से पहले ही, बहुत पहले से धरती पर मौजूद था । कोई उसे देख नहीं पाया । वो जाने कहाँ से आता और इधर-उधर टहल कर, वापस अपनी जगह पहुँच जाता था । ये इत्तफाक ही रहा कि कोई उसे देख नहीं पाया था फिर यूँ कर लो कि वो खुद ही किसी के सामने नहीं पड़ना चाहता था । इसी कारण वो वीरान जगहों पर घूमता । जैसे कि वो वीरान जगह, जहाँ सरकार ने अस्सी अरब रुपये की ड्रग्स लाकर, पाँच गनमैनों को वहाँ पर तैनात कर दिया ।”
“ये सब बातें तुम किस विश्वास के आधार पर कह रही हो ।” दुलानी ने अजीब स्वर में कहा ।
“जो भी हालात मेरे सामने आये । उन सब पर अच्छी तरह गौर करने, ध्यान देने के बाद मैं इन बातों को कहने के काबिल हुई । जरूरी नहीं कि मेरा निष्कर्ष सही हो । गलत भी सोच सकती हूँ मैं ।”
“जैसे कि तुम कहती हो कि वो रहस्यमय जीव देर से धरती पर है ।” दुलानी ने मोना चौधरी की आँखों में झाँका, “ऐसा है तो उसने पहले क्यों नहीं मारा मासूमों को ? क्यों वो अचानक ही... ?”
“हाँ ?” मोना चौधरी ने उसकी बात काटकर सिर हिलाया, “सबसे बड़ा सवाल यहीं पर आकर रुकता है कि उसने पहले किसी को क्यों नहीं मारा । अब ऐसा करना उसने शुरू क्यों कर दिया ? अपनी पहली घटना के साथ ही वो वजूद में आ गया था । इत्तफाक ही रहा कि वहाँ मौजूद विनोद और सोनिया ने उसे और उसकी हरकतों को देखा ।
महाजन ने घूँट भरा, नजरें मोना चौधरी पर थीं ।
“तुम शायद कुछ कहना चाहती हो ।” दुलानी की आँखें सिकुड़ी हुई थीं ।
“हाँ ! अब मैं असल बात शुरू करने जा रही हूँ । जो कहा वो इसलिए कि मेरी बात समझने में आसानी हो ।”
हरीश दुलानी और महाजन की निगाह मोना चौधरी पर टिक चुकी थीं ।
“बेबी !” महाजन के होंठ हिले, “तुम उलझन में डाल रही हो । तुम... ।”
“सुन लो । सब समझ में आ जायेगा ।”
महाजन ने घूँट भरा, कहा कुछ नहीं ।
“पहली बार रहस्यमय जीव गनमैनों के सामने आया । विनोद और सोनिया के सामने आया । तब की बात सुनो ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “मेरी समझ के मुताबिक रहस्यमय जीव वहाँ पर अक्सर आया करता था । जहाँ सरकार ने ड्रग्स रखी । वो उस दिन भी आया, परन्तु उसे वहाँ का माहौल बदला नजर आया । ड्रग्स का ढेर तिरपाल से ढँका, बँधा हुआ था । वहाँ उसने गनमैनों को भी देखा । ऐसा कुछ उसने पहले नहीं देखा था । उस वक्त तक सब कुछ शांत था । तभी उनमें से किसी गनमैन की निगाह उस पर पड़ी । उसका रूप आकार देखकर वो दहशत से चीखा । इसके साथ ही उसने बिना सोचे-समझे, घबराकर रिवॉल्वर निकाली और रहस्यमय जीव पर फायर कर दिया । गोली निशाने पर लगी । रहस्यमय जीव की छाती पर लगी । गोली लगते ही वो पीड़ा से चीखा और गनमैनों पर झपट पड़ा । उसके बाद वो रुका नहीं और वहाँ मौजूद पाँचों गनमैनों को गुस्से से भरे उस रहस्यमय जीव ने बर्बरता भरे ढंग में मार डाला ।”
“इतनी बड़ी बात तुम किस आधार पर कह रही हो ?” हरीश दुलानी के होंठों से निकला ।
“अपना सवाल स्पष्ट करो दुलानी ।” बोली मोना चौधरी ।
“तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे सब कुछ अपनी आँखों से देखा है ।” दुलानी, मोना चौधरी को तीखे अंदाज में घूरने लगा ।
मोना चौधरी बेहद गंभीर थी ।
महाजन की आँखें सिकुड़ चुकी थीं । चेहरे पर अजीब से भाव थे ।
“तुम ।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा, “कुछ सोच रहे हो महाजन ?”
“हाँ !” महाजन ने हौले से सिर हिलाया, “लेकिन मेरे सोचने पर मत जाओ । अपनी कहो ।”
रात का अँधेरा पूरी तरह घिर चुका था । पुलिस वाले अपने कामों में व्यस्त थे । उनकी आवाजें आ रही थीं । वे इधर-उधर जाते दिखाई दे रहे थे । एक तरफ खाना बनाया जा रहा था ।
“विनोद और सोनिया एक तरह से आँखों देखे गवाह थे । जो उन्होंने देखा, वो तो देखा, जो जरा-सा देखना रह गया उसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है ।” मोना चौधरी अपने शब्दों पर जोर देकर बोली, “सब कुछ शांत था सोनिया और विनोद के लिए । वो दोनों अपनी प्यार की बातचीत में व्यस्त थे । आड़ में थे । अचानक ही उन्हें गोली चलने की आवाज और चीख सुनाई दी और उसके बाद तो चीखो-पुकार का ही माहौल बन गया । इसके साथ ही उन्होंने झाँककर बाहर देखा । क्या देखा, ये तो मैं पहले ही बता चुकी हूँ ।”
“तुम क्या कहना चाहती हो मोना चौधरी ?” हरीश दुलानी खुद को भारी उलझन में महसूस कर रहा था ।
“मैं ये साबित करना चाहती हूँ कि वो रहस्यमय जीव खुला घूमता था पहले । किसी के नुकसान नहीं पहुँचाता था । अगर कोई व्यक्ति उसे दिखा तो शायद वो खुद ही छिप जाता था कि उसे कोई न देखे । उसने किसी की जान नहीं ली थी । वो बेरहम नहीं था कि मासूम लोगों को इस तरह मारता रहे । वो किसी का दुश्मन नहीं था । उसे दुश्मन बनाया गया । छाती में गोली मारकर । मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि अगर गनमैन ने उसे गोली न मारी होती । गोली उसे न लगी होती । गोली की पीड़ा उसने न सही होती तो उसने गनमैनों में से किसी की जान नहीं लेनी थी और खामोशी से वहाँ से वापस चला जाता । गोली लगते ही उसके जिस्म में जो पीड़ा हुई, उस पीड़ा ने उसे पागल बना दिया और उसके बाद वो लोगों को अपना दुश्मन समझने लगा । बदले की भावना उसके भीतर घर कर गई । ऐसे में वो लोगों को ढूँढ़ता और उन्हें मारने लगता और अब वह सबको दुश्मन मान रहा है । चोरी-छिपे घात लगाकर वो अपने शिकारों को ढूँढ़ता है । वो अपना काम समझदारी से, सोच-समझकर करता है । तभी तो न कोई उसे देख पाया, न वो पुलिस के जाल में फँसा ।”
मोना चौधरी के खामोश होते ही वहाँ पैना सन्नाटा छा गया ।
महाजन और दुलानी की निगाह मोना चौधरी पर थी । दुलानी परेशान-सा जाने क्या सोच रहा था । महाजन ने घूँट भरा और बोतल टेबिल पर रख दी । करीब आधे घण्टे बाद हरीश दुलानी उखड़े स्वर में कह उठा ।
“सब बकवास है ।”
“क्या ?”
“यही कि उसे गोली मारी गई । वो पागल हो गया । अब गुस्से में सबको मारता फिर रहा है ।” दुलानी ने मुँह बनाकर कहा, “ये मत भूलो कि तुम्हारे सामने पुलिस वाला मौजूद है । तुम्हारी बेकार की बातों को कोई बच्चा भी नहीं मानेगा ।”
मोना चौधरी के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान नाच उठी ।
“तुम्हें मेरी किसी बात पर यकीन नहीं आ रहा ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“किसी भी बात पर विश्वास नहीं आया मुझे ।”
“मैं कहती हूँ मैंने ठीक कहा है । लेकिन साबित करने को कोई खास सबूत नहीं है ।”
“मैं तुम्हारी बात को नहीं मान सकता ।” दुलानी उखड़े स्वर में बोला, “विनोद और सोनिया ने गोली की आवाज सुनी । गनमैन ने घबराकर गोली चला दी होगी । लेकिन इस बात की क्या गारण्टी कि वो गोली उसे लगी ?”
“सोनिया ने बताया कि गोली रहस्यमय जीव की छाती में लगी थी ।” मोना चौधरी बोली ।
“उसने बताया और तुमने मान लिया ।” दुलानी ने व्यंग्य में कहा, “वो सोनिया, जो उस रहस्यमय जीव को देखकर अपने होश खो बैठी थी । उसने ऐसे बुरे वक्त में ये देख लिया कि उसकी छाती में गोली लगी है ।”
“उसने रहस्यमय जीव की छाती से खून निकलते देखा था ।”
“मैं नहीं मानता कि उस हालत में वो कुछ ठीक से सोच-समझ सकती है ।” दुलानी ने पक्के तौर पर इंकार में सिर को दायें-बायें हिलाया, “उसके अपने ही होश कहाँ कायम थे कि... ।”
“तब थे ।”
“मैं नहीं मानता । तुम... ।”
“दुलानी !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “ये एक अजीब-सा मामला है हमारे सामने । तुम आज तक एक चोर-सिपाही के मामले ही निपटाते आये हो । इसलिए हटकर ये मसला पचाने में तुम्हें परेशानी-सी महसूस हो रही है । वो रहस्यमय जीव पहले किसी का दुश्मन नहीं था । अचानक ही उसमें बदलाव आया । वो दुश्मन बन गया । हमें जानना है कि ये बदलाव क्यों आया और बदलाव तब आया, जब उसे गनमैन की गोली लगी ।”
हरीश दुलानी के गंभीर चेहरे पर व्यंग्य के भाव थे ।
“मान लिया कि ये बदलाव गोली लगने से आया है तो तुम क्या करोगी ?” दुलानी ने तीखे स्वर में कहा ।
“मैं उसके इस बदलाव को खत्म करने की कोशिश करूँगी । वो सबको दुश्मन मान बैठा है कि उसे पीड़ा पहुँचाई गई । जबकि उसने किसी को कुछ नहीं कहा था । ऐसे में सब उसे दुश्मन ही लगने लगे ।” मोना चौधरी ने पूर्ववत स्वर में कहा, “मैं उसका मन बदलने की चेष्टा करूँगी ।”
“खूब !” दुलानी व्यंग्य से कह उठा, “तुम उसे सामने बिठाकर ये समझाओगी कि जो हुआ गलती से हुआ । गनमैन ने घबराकर गोली चला दी, जो तुम्हें लग गई । हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं । सब कुछ भूलकर नये ढंग से जीवन की शुरुआत करो । सरकार तुम्हें बसाने और तुम्हारे गुजारे भत्ते के लिए तुम्हें सहायता... ।”
“पुलिस वाला ढंग छोड़ दो सोचने का । थोड़ा-सा सामान्य बनकर सोचो । भूल जाओ कि तुम्हारे जिस्म पर वर्दी है । मेरी तरह अपनी सोचों को आजाद छोड़कर सोचो तो शायद मेरी बात समझ पाओ ।” मोना चौधरी बोली ।
हरीश दुलानी असहज-सा नजर आने लगा ।
“प्लीज, मोना चौधरी ! तुम्हारी ये सोचें पागलपन से भरी हैं । कोई सुनेगा तो... ।”
“मैं ये बातें किसी को सुनाना भी नहीं चाहती ।”
“क्या तुम्हें विश्वास है कि तुम जो कह रही हो वही हुआ होगा ।” दुलानी तीखे स्वर में कह उठा ।
“पूरा विश्वास नहीं है । लेकिन हमें किसी बात पर विश्वास करके तो आगे चलना ही है ।”
“तुम एक ऐसी शह के बारे में विश्वास कायम कर रही हो जिसे तुमने अभी तक देखा भी नहीं ! अपनी उल्टी सोचों की तार थामे उस पर झूलने का प्रयत्न कर रही हो और ये नहीं सोचतीं कि... ।”
“मैंने ठीक ही सोचा है, दुलानी !”
हरीश दुलानी ने होंठ भींचकर महाजन को देखा ।
“तुम मोना चौधरी की कही बातों का यकीन करते हो ?”
“नहीं !” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन मैं बेबी की एक बात पर यकीन रखता हूँ ।”
“क्या ?”
“यही कि आगे बढ़ने के लिए किसी तरह का आधार चाहिए । इस बात को आधार बना लेने में क्या बुराई है ?”
दुलानी ने उसी तरह गुस्से से मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी ने हाथ में पकड़ी तस्वीरों में से एक तस्वीर को टेबल पर रखा ।
“इस तस्वीर को देखो । ये तस्वीर रहस्यमय जीव की छाती के हिस्से की तस्वीर है । मैंने तस्वीर के इस हिस्से को इंलार्ज कराया है । दुलानी, ध्यान से देखो छाती के बायीं तरफ वाले हिस्से को ! महाजन, तुम भी देखो ! छाती के बायीं तरफ वाले हिस्से पर हल्का-सा जख्म नजर आ रहा है जो कि बहुत हद तक सूख चुका है ।” मोना चौधरी गंभीर थी ।
हरीश दुलानी और महाजन ने टार्च की रौशनी में उस तस्वीर को बहुत ध्यान से देखा ।
कुछ देर बाद महाजन तस्वीर से नजरें उठाकर कह उठा ।
“यस बेबी, ये जख्म का ही निशान !”
“तो तुम कहना चाहती हो, ये गोली का निशान है ।” तस्वीर से नजरें हटाकर दुलानी, मोना चौधरी को देखकर बोला ।
“ये किसी जख्म का निशान है । चाकू का भी हो सकता है । गोली का भी हो सकता है । किसी और चीज़ का भी हो सकता है । लेकिन विनोद-सोनिया की बातें सुनकर, हम आसानी से ये सोच सकते हैं कि ये गोली का ही निशान है ।”
दुलानी उसी अंदाज में मोना चौधरी को देखता रहा ।
“तुम वायदा कर चुके हो कि मेरे काम में दखल नहीं दोगे । सहायता ही करोगे, काम में मेरी ।”
“तुम क्या-कैसे करना चाहती हो ?”
“पूछो मत, देखते रहो ।”
“ये क्या बात हुई जो... ।”
“मैं जो भी करूँगी, तुम्हारे सामने करूँगी । इतने बेचैन मत बनो । अभी देखो तो ।”
दुलानी होंठ भींचकर रह गया ।
उलझन में फँसे महाजन ने घूँट भरा ।
“बेबी !” महाजन बोला, “तुम्हारी गोली वाली बात पर, दूसरी बात पर भी, हर बात पर भी बहुत हद तक यकीन कर रहा हूँ । लेकिन ये नहीं समझ पा रहा कि तुम रहस्यमय जीव के बारे में क्या, कैसे करना... ।”
“जल्दी समझ आ जायेगा ।” कहने के बाद मोना चौधरी ने दुलानी को देखा “दुलानी, कुछ सामान चाहिए !”
दुलानी ने गहरी साँस ली और असहमति भरे ढंग में कह उठा ।
“कैसा सामान ?”
“रेशमी या नायलॉन की पतली मजबूत डोरियों की दो जाल चाहिए, जो कि कम-से-कम पंद्रह फ़ीट चौड़े और पंद्रह फ़ीट लम्बे होने चाहिए । ध्यान रहे कि डोरियाँ और उन्हें बनाने में ऐसी मजबूती होनी चाहिए कि जो भी बीच में फँस जाये, बेशक वो कितना भी शक्तिशाली हो । जाल की डोरियों को तोड़ न सके ।”
महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
दुलानी होंठ भींचें, मोना चौधरी को घूरने लगा ।
“तुम !” दुलानी ने होंठ खोले, “रहस्यमय जीव को जाल में कैद करने की सोच रही हो ?”
“जाल तैयार करवाओ ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा, “तुम्हारे सवाल का जवाब भी दे दूँगी ।”
महाजन गंभीर हो चुका था ।
“सोच लो ।” दुलानी ने उसकी आँखों में झाँका, “तुम जो कर रही हो, उसका अंजाम... ।”
“देख लोगे । मैं जो करना चाहती हूँ, मुझे करने दो ।”
हरीश दुलानी ने विवशता भरे ढंग में गहरी साँस ली ।
“कलाई टूट जाने की वजह से मैं मजबूर हूँ । या फिर ये सोचकर चुप हूँ कि कलाई टूटने की रिपोर्ट ऊपर भेजी तो कहीं यह केस किसी दूसरे पुलिस वाले को न सौंप दिया जाये । जबकि मैं इस मामले से दूर नहीं होना चाहता । इसलिए तुम्हारी बात मानने को मजबूर हो रहा हूँ । जबकि तुम्हारी किसी बात से सहमत नहीं हूँ मैं ।”
“मेरी बात को गंभीरता से लो दुलानी ! मैं जो कर रही हूँ बहुत सोच-समझकर कर रही हूँ । हो सकता है मुझे तुमसे ज्यादा चिंता हो कि रहस्यमय जीव लोगों की जानें ले-लेकर कहर न बरपा दे । वो बहुत चालाक है । शातिर है । हर कदम सोच-समझकर उठाता है । लापरवाह होता तो कब का हमारी निगाहों में आ चुका होता । ऐसे में हमें भी उसी तरह सोच-समझकर उसके मुकाबले पर उतरना होगा । हर चीज़ का हल गन नहीं होती ।”
दुलानी उसी ढंग से उसे देखता रहा ।
“जाल का इंतजाम कैसे करोगे ?” मोना चौधरी ने पूछा, “ऐसे जाल आमतौर पर बाजार में नहीं मिलते । तैयार करवाने पड़ेंगे ।”
“यहाँ ऐसे कुछ पुलिस वाले हैं, जो ऐसा जाल तैयार कर सकते हैं ।” दुलानी गंभीर स्वर में बोला, “कई जवानों को जाल बनाने की ट्रेनिंग दी गई है । जिस तरह का जाल तुम बनवाना चाहती हो । वो कोई समस्या नहीं है ।” इसके साथ ही दुलानी ने गर्दन घुमाकर, कुछ दूरी पर मौजूद अपने कामों में व्यस्त पुलिस वालों को देखा फिर उठते हुए बोला, “अभी आया ।”
दुलानी के जाने के बाद महाजन गंभीर स्वर में बोला ।
“बेबी ! मैं कुछ-कुछ समझ रहा हूँ कि तुम क्या करना चाहती हो । ये खतरनाक है जरा-सी चूक भी... ।”
“महाजन !” मोना चौधरी ने उसे देखा, “जब तक वो रहस्यमय जीव मौजूद है । सब कुछ ही खतरनाक है । उस पर काबू पाना बहुत कठिन है । वो हत्याएँ पर हत्याएँ करता रहेगा । उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा ।”
“तुम... तुमने क्या करने का सोचा ?”
“दुलानी आ रहा है ।” मोना चौधरी उधर देखती कह उठी, “मुझे तो दुलानी की चिंता है कि मेरी बातों को सुनकर ये न उखड़ जाये । इसलिए बहुत ढंग से इसे पकड़कर अपने साथ चलाना पड़ रहा है मुझे ।”
दुलानी एक सब-इंस्पेक्टर के साथ वहाँ पहुँचा और कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।
“सब-इंस्पेक्टर तिवारी हैं ये । अच्छा पुलिस वाला है । मुझे पसन्द है । इसने जाल बनाने की ट्रेनिंग ली हुई है । ऐसी ट्रेनिंग वाले और भी पुलिस वाले हैं । तुम इसे समझाओ कि कैसा जाल चाहिए ।”
मोना चौधरी ने सब-इंस्पेक्टर तिवारी को जाल के बारे में बताया ।
करीब पाँच मिनट तक दोनों के बीच इस बारे में बात होती रही । फिर मोना चौधरी बोली ।
“ऐसे दो जाल हमें कल शाम तक तैयार चाहिए ।”
“कल शाम तक ।” तिवारी ने कहा, “ऐसे जाल बनाने में बहुत मेहनत और वक्त लगता है ।”
“तो फिर कल शाम तक दो जाल कैसे तैयार होंगे ?” मोना चौधरी की नजरें उसके चेहरे पर जा टिकीं ।
“हो जायेंगे मैडम !” तिवारी ने सोचते हुए एकाएक पक्के स्वर में कहा, “यहाँ पर करीब छः-सात ऐसे पुलिस वाले और भी हैं जिन्होंने जाल बनाने की ट्रेनिंग ले रखी है । इसके अलावा जरूरत के मुताबिक बाकी पुलिस वालों को भी साथ लगा लिया जायेगा । लेकिन ये काम अभी शुरू करना होगा ।”
“अभी ?” हरीश दुलानी के होंठों से निकला, “अँधेरा होने के बाद जाल बनाने के लिए डोरी कहाँ से मिलेगी ?”
“बीच पर बहुत बड़ा बाजार है । वहाँ से डोरी मिल जायेगी सर !”
“डोरी बहुत मजबूत चाहिए जो... ।”
“मिल जायेगी सर ! दरअसल खासियत जाल बनाने के ढंग में होती है । डोरी कुछ हद तक मजबूत हो तो जाल ऐसा बनाया जा सकता है कि ताकतवर से ताकतवर भी उसे तोड़ नहीं सकता ।”
“गुड ! तो अभी बीच पर जाओगे ?”
“यस सर !”
“सतर्क होकर जाना । दूसरों को साथ ले लेना । अकेले मत जाना । रहस्यमय शख्सियत के प्रति सब लोग सतर्क रहो ।” दुलानी भारी मन से कह उठा, “रात ही मैंने अपने दोस्त को खो दिया, हमेशा-हमेशा के लिए । अब किसी और की मौत बहुत दुखदायी होगी मेरे लिए ।”
“हम सतर्क रहेंगे सर !”
“जाओ, अपना काम शुरू कर दो ।”
सब-इंस्पेक्टर तिवारी फौरन वहाँ से चला गया ।
हरीश दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।
“सोच लेना । तुम जो करना चाहती हो । वो करना वास्तव में ठीक है । अभी तुम्हारे पास सोचने के लिए वक्त है ।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा ।
“तुम ।” दुलानी ने महाजन को देखा, “इसे समझाना । तुम्हारी बात शायद ये जल्दी समझ सके ।”
“अगर ।” महाजन मुस्कुराया, “मैं बेबी की बातों से सहमत होऊँ तो ?”
दुलानी ने कुछ नहीं कहा । दूसरी तरफ देखने लगा ।
“रात का क्या प्रोग्राम है बेबी ! रात किस तरफ... ?” महाजन ने पूछना चाहा ।
“आज रात को हमें कुछ नहीं करना ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “जब तक जाल तैयार नहीं हो जाते, हमारे पास कोई काम नहीं ।”
दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।
“आज रात कुछ नहीं करना ?”
“नहीं, मिस्टर दुलानी ! आज की रात हम पूरा आराम करेंगे क्योंकि फिर मालूम नहीं कब आराम मिलता है या मिले ही नहीं !”
हरीश दुलानी ने गंभीर और बेचैनी से पहलू बदला ।
“बताओगी नहीं कि तुमने क्या सोचा ?”
“अभी नहीं ! शायद कल बताऊँ ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “कल बताऊँगी ।”
“सामान के तौर पर और कुछ तो नहीं चाहिए ?”
“चाहिए, लेकिन उसका इंतजाम कल दिन में हो सकता है । वो कल बता दूँगी ।” मोना चौधरी ने कहा, “मैं कुछ सोचना चाहती हूँ । तुम आराम करो । महाजन के साथ गौरी के यहाँ जा रही हूँ । सुबह आऊँगी ।”
“डिनर तैयार है ।” दुलानी ने कहा ।
“रहने दो, गौरी ने तैयार कर रखा होगा । वहाँ खाना अच्छा लगता है ।”
दुलानी ने कुछ नहीं कहा ।
मोना चौधरी और महाजन उठ खड़े हुए, गाँव में गौरी के यहाँ जाने के लिए ।
“जाल की तैयारी पर नजर रख लेना । कहीं तिवारी लापरवाह न हो जाये ।” मोना चौधरी बोली ।
हरीश दुलानी ने अपना गंभीर चेहरा हौले से हिला दिया ।
मोना चौधरी और महाजन वहाँ से गाँव की तरफ बढ़ गए । गाँव की मध्यम-सी रोशनियाँ नजर आ रही थीं ।
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