जनवरी का बेहद ही ठंडा मौसम था। हम अपनी कक्षा में बैठे हुए थे। खाली पीरियड था। स्कूल के वाइस प्रिंसिपल कक्षा में आए तो सभी विद्यार्थी खड़े हो गए। प्रिंसिपल ने कहना शुरू किया, “आप सभी विद्यार्थियों के लिए अगले हफ्ते से छुट्टियाँ हैं। ये छुट्टियाँ आप के लिए परीक्षा तक रहेंगी। किसी को कुछ मदद चाहिए तो आप स्कूल में अपने अध्यापक से मिल सकते हो, वो आपकी मदद करेंगे। और अगले हफ्ते आपको ग्यारहवीं कक्षा की तरफ से पार्टी दी जाएगी जिस में आप से पैसे नहीं लिए जाएँगे। ये पार्टी आपको स्कूल की समाप्ति के लिए ग्यारहवीं कक्षा देगी। आपका स्कूल का पूरा कोर्स खत्म हो गया है। इसलिए आप घर पर रहकर अध्यापकों के नोट्स पढ़ें। आप की जिंदगी के नए दौर के लिए शुभकामनाएँ! किसी को कुछ पूछना है तो वो बेधड़क पूछ सकता है।”

वाइस प्रिंसिल के इतना लंबा कहने के बाद किसी ने कुछ नहीं पूछा।

सभी लड़के खुसर-फुसर करने लगे। वाइस प्रिंसिपल कक्षा से चले गए। मैं देव और सोनू भी बातें करने लगे। सोनू ने कहा, “अब तो मैं देर से उठूँगा। देव, अब रात भर पढ़ना आसान होगा।” 

मैंने कहा, “हम देव अब ग्रुप बनाकर पढ़ेंगे।” तभी पीछे बैठा भोपला बोला, “तुम्हें बस पढ़ाई की पड़ी है कुछ और नहीं?” 

“तो तुझे क्या पड़ी है? हमें पढ़ाई की पड़ी हो या खेल की।” सुनकर भोपला चिढ़ गया। उसका असली नाम तो राजेश था पर वो एक मोटा लड़का था। जब हम कक्षा नौ में थे एक पीटी के पीरीयड में उसने एक फुटबॉल को ऐसी किक मारी कि‍ फुटबॉल फट गई थी। असलियत में फुटबॉल तो इसलिए फटी थी कि‍ वो पुरानी हो गई थी, पर बच्चों ने तभी से उसका नाम भोपला रख दिया था। अब तो टीचर भी उसे भोपला ही कहते थे।

कुछ देर में की घंटी बजी। सभी लड़के कक्षा से भागने लगे। वजह थी पहली बार में तले समोसे जो सुरेश हलवाई ठीक उसी समय निकालता था। अगर लेट हो जाते तो रिस्स के आधे टाइम तो हम समोसे मिलने का इंतजार ही करते रहते।

जैसे ही हमने चालीस रुपये दुकान पर दिए, सुरेश ने हमें आठ समोसे दिए लाल और हरी चटनी के साथ। इस समय सुरेश पहले से ही तैयार रहता था। उसे पता रहता था कि रिस्स होते ही बच्चे समोसे लेने आएँगे। 

मैंने कहा, “यार हमारे यहाँ की ग्यारहवीं और बारहवीं की पार्टी बेकार ही जाती है।”

“पर क्यों बेकार जाती है?” देव ने पूछा। 

“यार हमारे स्कूल मेलड़कियाँ जो नहीं पढ़ती हैं। दूसरे स्कूलों में जो लड़कियाँ पढ़ती हैं, वो इन स्कूल में पार्टी के दिन बहुत अच्छा डांस करती है, देखकर मजा आ जाता है। मैं एक बार वसंत कुंज के स्कूल में गया था। एक लड़की ने चोली के पीछे पर गजब का डांस किया था। यहाँ तो मैडम भी सारी बुढ़ि‍या हैं। मैंने कहा। 

“ठीक है यार, हमारे स्कूल मेलड़कि‍याँ होती तो कोई पढ़ाई नहीं करता, सब लड़के आशिक हो जाते।” सोनू ने कहा। 

तभी भोपला बोला, “यार मुझे तो लड़कियाँ देखती ही नहीं। किसी लड़की पर लाइन भी मारूँ तो मुँह बनाती हैं। साली नकचढ़ी बंदरिया लगती हैं।” 

हम तीनों हँसने लगे। इतने हँसे की हमारे पेट में दर्द होने लगा पर भोपला हमें देखता रहा। कुछ देर में उसे पता चला कि‍ हम तीनों क्यों हँस रहे थे। मैंने सुरेश से कहा, “मुझे थोड़ी और चटनी दे दो आज अच्छी बनी है।” 

सुरेश ने मुझे कहा, “तुम्हारे स्कूल के आखिरी दिन बचे हैं, पार्टी मेजरूर आना। शायद ये मौका स्कूल आने का दुबारा नहीं मिलेगा।” 

“मुझे लगता है पार्टी में खाने का इंतजाम आप ही कर रहे हैं, क्या-क्या बन रहा है पार्टी में?” मैंने पूछा। 

“गुलाब जामुन, रसगुल्ले मिठाई में और मिक्स वेज, पूरी, चावल, छोले, आदि। मुझे बच्चों की तरफ से हिदायत मिली है कि खाना अच्छा बने।” 

“क्या समोसे नहीं हैं पार्टी में?” 

“हाँ समोसे तो हैं ही।” 

“और चाय?” देव ने पूछा।

“चाय नहीं कॉफी है।” सुरेश ने कहा।

थोड़ी देर में हम वहाँ से समोसे खाकर स्कूल के मैदान में पहुँच गए थे। मैंने देव से कहा, “यार हमें भूगोल के टीचर की शिकायत वाइस प्रिंसिपल से करनी चाहिए थी। सारे साल बस प्रैक्टिकल ही कराया है, एक भी पाठ नहीं पढ़ाया है। भूगोल इतना मुश्किल विषय है।” 

तू तो फिर भी कवर कर लेगा यार, तूने तो भूगोल पढ़ा भी है। मैंने, सोनू ने और भोपले ने तो वो भी नहीं किया।” देव ने कहा।

“यार इसने कब पढ़ा भूगोल, मुझे तो बताया ही नहीं?” सोनू ने पूछा। 

“अरे बहुत तेज हो गया है, राघव दो महीने में पूरा कोर्स पढ़ लिया चुपके से हमें बताया ही नहीं। साथ में नोट्स भी बना लिया है।” देव ने कहा।

मैं आसमान की तरफ देखने लगा और मन में प्रार्थना की भगवान मदद करना कॉलेज में पहुँचा देना नहीं तो भविष्य अंधकार में हो जाएगा। 

मैंने देव से कहा, “यार मैं तो घर जा रहा हूँ। अब कक्षा में पढ़ाई नहीं होगी, टाइम ही खराब होगा।” 

“ठीक है, मैं भी घर चलता हूँ।” भोपले ने कहा। फिर कुछ देर में भोपला क्लास से मेरा और अपना बैग लेकर आ गया। मैं और भोपला घर को चल दिए। मैंने सोच लिया था कि जब तक स्कूल खुलेंगे मैं स्कूल नहीं जाऊँगा क्योंकि अब स्कूल में पढ़ाई नहीं होने वाली थी। रास्ते में भोपला बोला, “यार कॉलेज में बहुत-सी लड़कियाँ मिलेंगी। कोई तो मेरी गर्लफ्रेंड बनेगी ही।”

“क्यों नहीं बनेगी पर वो तेरे जैसी भोपली ही होगी।” मैं कहकर थोड़ा मुस्कुराया 

भोपले ने कहा, “जब परीक्षा खत्म होगी मैं अपना वजन कम कर लूँगा पर यार वजन कम करना पढ़ने से भी मुश्किल काम है।”

“ज्यादा मुश्किल तो नहीं, कुछ दौड़ लगाओगे तो वजन कम हो जाएगा, पर दौड़ दो किलोमीटर की होनी चाहिए। साथ में खानपान पर भी ध्यान रखना होगा।” 

बात करते-करते मेरा घर आ गया। घर पहुँचते ही मैंने कुछ नाश्ता किया और अपने भूगोल के नोट्स निकालकर पढ़ने लगा जिसे मैंने बिना टीचर के बनाए थे।

मैं अब बदल गया था। बाबाजी के मिलने के बाद से मैंने अब निधि से अपना ध्यान हटा लिया था। करीब दो घंटे बाद अमित भी स्कूल से आ गया था। तब तक घर का खाना बन चुका था हम सबने साथ खाना खाया। फिर मैं पढ़ने लगा तभी अमित आया और बोला, “तुम्हारे लिए निधि का फोन है।” मैंने अब निधि से बात करनी बन्द कर दी थी मैंने सोच लिया था की जब तक मेरी परिक्षा नहीं होती उससे बात नहीं करूँगा। वो मेरे को कुछ महीने से लगातार फोन करे जा रही थी पर इस बेहतर बन गए राघव ने अपनी भावनाओं पर लगाम लगाना सीख लिया था। अब मेरे मन में वंश के लिए ईर्ष्या भी नहीं थी।

“उससे कह दे कि पापा घर पे हैं, फोन नहीं अटेंड कर सकता।” 

उसने निधि से यही कहा और फिर मुझसे पूछा, “तुम निधि की कॉल क्यों नहीं लेते हो?”

“बस ऐसे ही। क्या कोई बात हो गई उसके साथ?”

“हुआ तो कुछ नहीं। अब तुम ऊपर छत पर नहीं जाते हो और ना ही उसके फोन लेते हो, इसलिए सोचा।” अमित ने कहा। 

“पढ़ाई का टाइम है, चोंचे नहीं लड़ानी मुझे उसके साथ।” 

“पर क्या बात हो गई? ऐसा क्या हो गया तुम्हारे बीच सच्ची बात बताओ?” 

“कुछ नहीं हुआ, बात सिर्फ पढ़ाई की है।” 

“नहीं मैं नहीं मान सकता। बात कुछ और है, नहीं बताओगे तो मैं तेरा पीछा नहीं छोड़ूँगा। आज निधि मुझसे मिन्‍नतें कर रही थी कि बात जरूर करवा देना।” 

अमित के इतना कहने पर मुझे उसे बताना ही पड़ा, “यार चार महीने से निधि वंश के साथ घूम रही थी। मैंने इसलिए बात बंद कर दी थी। पर उसने भी तो बात करने की कोशिश नहीं की थी। वो वंश के साथ गोवा भी गई थी।” 

“क्या दोनों अकेले ही गोवा गए थे?” 

“नहीं दो लड़के और दो लड़कि‍यों के साथ निधि भी गई थी।”

“पर क्या हो गया, कॉलेज में ऐसे घूमने जाते ही हैं। वो तुम्हें अपने साथ इसलिए नहीं ले गई होगी कि तुम्हारे स्कूल की छुट्टी नहीं हो सकती थी।”

“ऐसी बात नहीं है, वो मुझे धोखा दे रही है मैं जानता हूँ।” 

इस पर अमित ने मुँह पिचकाया। मैं समझ गया वो मेरी बात से सहमत नहीं था। और कहा

“पर राघव, वो ऐसा नहीं कर सकती है। मैंने उसकी आँखों में तेरे लिए प्यार देखा है। वो बस तुम्हें प्यार करती है, वंश को नहीं। समझे? नहीं तो अब भी तुम्हारे पास फोन क्यों करती?” अमित के ये कहने से मुझे बड़ा सकून मिला की निधि मुझे ही प्यार करती है। मैं तो सोचता था कि उसके अन्दर दिल ही पत्थर का है वो मेरी भावना को समझ ही नहीं सकती है।

“करती होगी। अब मेरी पढ़ाई का वक्त है, मुझे अब उससे बात भी नहीं करनी है। इससे मेरी पढ़ाई में दखल पड़ता है।” 

इतना कहकर मैं अपने नोट्स उठाकर पढ़ने लगा ताकि‍ अमित यही समझे कि मैं पढ़ाई के लिए ऐसा कर रहा हूँ। अमित ने कहा, “पर पहले तो तुम कहते थे कि बिना निधि के पढ़ नहीं सकते हो और अब ऐसा व्यवहार उससे करके तंग कर रहे हो।” 

तभी मेरे फोन की घंटी बजी। मैंने फोन काट दिया था। पापा ने वो फोन मुझे और अमित को पढ़ाई की मदद के लिए दिया था, पर मैं उसे निधि से बात करने के लिए इस्तेमाल करता था। मैंने अमित से कहा, “अमित, मुझे पढ़ना है, इस फोन को ले जाओ यहाँ से।”

“पर मैं निधि से क्या कहूँ? वो तेरे से बात करना चाहती है, मैं क्या उसे झूठ बोल दूँ?”

“उसे साफ शब्दों में कह दे कि जब तक राघव के एग्जाम नहीं हो जाते, वो बात नहीं करेगा।” 

लेकिन मैं उससे वादा कर चुका हूँ कि‍ मैं तुमसे एक बार बात करवा दूँगा। अब उसे क्या जवाब दूँ, तुम समझते नहीं हो राघव।” 

“तू उसे कोई जवाब मत दे, फोन मेरे पास रख दे।” अमित पैर पटकते हुए कमरे से बाहर चला गया। फोन उसने मेरे पास ही रख दिया। मेरे मन में निधि नाम के लड्डू फूटने लगे। मैं अब भी उसे प्यार जो करता था। पर मैं डरता था कहीं निधि मेरे ऊपर फिर से हावी ना हो जाए। जानता था कि पढ़ाई पहले, बाकी के काम बाद में या प्यार बाद में। मेरी आँखों में निधि का चेहरा उतर आया। मैं सोच रहा था निधि फिर से मेरे साथ क्यों आना चाहती थी? शायद उसे वंश का प्यार झूठा ही लगता होगा। बाबा के अनुसार, वो वंश की माया से बाहर आ गई होगी। तभी अमित दो कप चाय लेकर कमरे में घुसा। वो चाय के बहाने जानना चाहता था कि‍ मामला क्या था। पर कई बार पूछने पर भी मैंने उसे कुछ भी नहीं बताया। मैं पढ़ाई मेलगा रहा। कुछ देर बाद चाय खत्म कर अमित खुद ही कमरे से बाहर चला गया। 

पार्टी का दिन था। मैं अपने नए लाए कपड़ों को देख रहा था। अमित भी वहीं था। उसने कहा, “भाई कपड़े पहनकर दिखाओ।” 

अमित अपनी स्कूल की छुट्टी के बाद आया था। पार्टी स्कूल में चार बजे की थी और अभी दो बज रहे थे। मैंने कहा, “अभी से कपड़े पहनूँ? अभी तो दो बज रहे हैं।” 

“अरे ये कैसा लग रहा है तुम पर, मैं ये देखना चाहता हूँ।”

“ठीक है, मैं पहनता हूँ।” मैंने कपड़े पहने और अच्छी तरह गौर किया तो कुछ कमी-सी लगी। तभी अमित ने कहा, “यार कपड़े तो जँच रहे हैं, पर इन काले कपड़ों पर पापा का काला ब्लैजर बहुत जँचेगा।”

“ऊपर सफेद जर्सी है।” मैंने अमित से कहा, “जब जर्सी है तो ब्लैजर की क्या जरूरत है?” 

“नहीं राघव, मैं सच कह रहा हूँ। पापा का ब्लैजर इन कपड़ों पर ज्यादा जँचेगा।”

दरअसल,मेरे और पापा के कपड़े एक ही नाप के आते थे। मैंने कहा, “ठीक है, पापा के कमरे से पापा का ब्लैजर लेकर आ, मैं ट्राई करके देखता हूँ।” 

वो ब्लैजर लेने चला गया और मैं शीशे में कभी पैंट में हाथ डालकर तो कभी बाहर निकालकर देखता रहा। तभी अमित आया और ब्लैजर देते हुए कहा, “ये लो पहनो इसे।”

मैंने पहनते हुए कहा, “यार शेविंग जँच नहीं रही है। इस ड्रेस पर क्लीन शेव चाहिए।” 

“नहीं राघव, आजकल ऐसी ही दाढ़ी चलती है। इसकी जरूरत नहीं है।” 

अमित के कहने पर मैंने फिर से अपने को शीशे में देखा, “ठीक है, अगर तुम कह रहे हो, पर क्लीन शेव ज्यादा अच्छी लगती।”

“नहीं, ऐसे ही अच्छे लग रहे हो। पर हाँ, एक फूल मिल जाए तो बिल्कुल चाचा नेहरू लगोगे।” कहकर वह हँसने लगा। ये मजाक था इसलिए वो हँसा था। मैंने एक मुक्का उसे मारा तो वो फिर भी हँसता रहा। मैंने कपड़े उतार दिए और ठीक साढ़े तीन बजे मैं नहाने चला गया। चार बजे तक मैं तैयार हो गया। पार्टी मेजाने से पहले मैंने आखिरी बार शीशे को खुद को देखा। तब अमित ने कहा, “चाचा नेहरू फूल दे दूँ कोट में रखने के लिए?” मैं मुस्कुराया और घर से निकल गया। 

स्कूल के गेट पर स्वागतम लिखा था, जिसे ग्यारहवीं के विद्यार्थियों ने फूलों से सजाया था। मैं हॉल में पहुँचा जहाँ मुझे देव, भोपला और सोनू मिले। भोपले ने कुर्ता-पजामा पहन रखा था। देव ने सिंपल पैंट-शर्ट पहनी थी और सोनू ने जींस के साथ जैकेट डाल रखी थी। हॉल में स्कूल के ही डेस्क लगे हुए थे, जिन्हें नीले रंग के कपड़ों से ढका गया था।

सामने ही मुझे वाइस प्रिंसिपल और कई टीचर दिखे। कोने में पानी लगा था जिस में मिनरल वाटर के गिलास थे। उसी के पास कॉफी मशीन थी जहाँ कुछ विद्यार्थी कॉफी पी रहे थे। कुछ आगे ही बेंच थे, जिन्हें नीले रंग के कपड़े से ढका गया था। उन बेंचों पर खाना लगाया जाना था।

ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने इन सब पर बहुत खर्च किया था। गेट के सामने ही एक स्टेज भी बना था, जिसको लाइटों से सजाया गया था। वहीं पर दो स्पीकर भी थे, जहाँ पर डांस परफॉर्मेंस होना था। सब चीज ऐसे सजी थी कि हम चालीस विद्यार्थियों की आँखें उन्हें देखकर फटी की फटी रह गईं। पिछली बार हम भी ऐसी पार्टी बारहवीं कक्षा को नहीं दे पाए थे, जब हम ग्यारहवीं में पढ़ते थे। 

देव ने कहा, “अति सुंदर! क्या कमाल का काम किया है ग्यारहवीं के विद्यार्थियों ने!” 

मैंने भी हाँ में सर हिलाया और कहा, “एक-एक कॉफी पी जाए क्या?”

सोनू ने कहा, “हाँ-हाँ क्यों नहीं। अभी खाने में टाइम है, चलो।”

हम कॉफी टेबल पर गए और चार कॉफी बनवाई। मेरी नजर सुरेश हलवाई पर पड़ी, “अरे भाई साहब, आप भी यहाँ पर हैं!” 

“मेरा ही ठेका है भई, मैं ही रहूँगा न।” सुरेश ने कहा।

“डेकोरेशन तो अच्छी है, अब देखते हैं खाना कैसा बना है।”

“हाँ क्यों नहीं, सब चखकर देखना।” सुरेश ने कहा। 

वहाँ से चलकर हम एक कोने मेलगे एक डेस्क के पास जाकर बैठ गए। कुछ ही देर में स्टेज पर परफॉर्मेंस शुरू हो गई। हम सब परफॉर्मेंस देखने लगे। सबसे पहले नब्बे के दशक के गानों पर कुछ लड़कों ने डांस किया। जैसे कि- ‘तुझे देखा तो ये जाना सनम’ यानी ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे’ फिल्म के गाने पर लड़कों ने डांस किया। फिर ‘कुछ कुछ होता है’ फिल्म के गाने पर भी डांस हुआ।

प्रोग्राम के दौरान मैं तीन कॉफी पी चुका था। देव ने कहा, “राघव, स्टेज पर कोने में अँधेरे में एक लड़की बैठी है।” 

मैंने देखा तो सचमुच एक लड़की वहाँ बैठी थी जिसके खुले बाल थे। मैं उसकी पीठ को ही देख पा रहा था। मैं सोचने लगा कि कौन हो सकती थी, पर पीठ से अनुमान लगाना मुश्किल था। इसलिए मेरा ध्यान फिर से स्टेज पर चला गया, जहाँ पर एक लड़का चुटकुले सुना रहा था, जिसे सुनकर सारे लोग हँस-हँसकर लोट-पोट हो रहे थे। उसने कई चुटकुले सुनाए। फिर एक लड़का, जिसे हम पीछे से लड़की मान रहे थे, स्टेज पर आया घाघरा-चोली में। संगीत बजने लगा- ‘चोली के पीछे क्या है चुनरी के नीचे क्या है...’ ये फनी आइटम देखकर मैं, देव, सोनू और भोपला खूब हँसे। देव ने कहा, “तुम्हारी उस दिन की मुराद पूरी हो गई।” 

सुरेश हलवाई के लड़के सभी मेहमानों को समोसे बाँट रहे थे। मैं समोसे खाने लगा, तभी मेरी नजर गेट पर पड़ी जहाँ कुछ चेलों के साथ वंश आ रहा था। मैंने जैसे ही उसे देखा, मैं हैरान रह गया क्योंकि चार लड़के उसके लिए रास्ता बना रहे थे जैसे वो कोई खास आदमी हो। उसने सफेद कुर्ता-पजामा पहना हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई बड़ा नेता हो।

स्टेज पर अनाउंस हुआ- ‘रणजी के खिलाड़ी और देश के गौरव हमारे मुख्य अतिथि वंश आ चुके हैं।’ सभी विद्यार्थियों ने गेट पर देखा। सब उससे हाथ मिलाने मेलग गए।

पर हम चारों दोस्त उसके सामने भी नहीं गए। मैंने देखा कि वंश मुझे ही देख रहा था। सबने वंश से हाथ मिलाने के बाद दोबारा स्टेज पर ध्यान लगा लिया। कार्यक्रम आगे बढ़ गया। थोड़ी देर बाद खाना भी लग गया। मैं अब इस पार्टी से जाना चाहता था। मैंने जल्दी से प्लेट उठाई, उस में सलाद, दो सब्जी रखी, चार पूरी के साथ थोड़ा चावल रखा और खाने लगा। देव भी प्लेट लेकर मेरे पास आ गया और खाना निकालते हुए पूछा, “तुम ठीक हो?”

“हाँ मैं ठीक हूँ।” मैंने जल्दी से खाना खत्म किया। तभी वंश हमारे पास आ गया। मुझसे हाथ मिलाया और कहा, “कॉलेज मैं जल्दी ही मिलेंगे। और सुन, तेरी जो गर्लफ्रेंड है न, वो मेरे नीचे दो बार लेट चुकी है। एक बार गोवा में और एक बार गाड़ी में कहे तो औरों के साथ भी लेटा दूँ।” ये कहते हुए वंश के चेहरे पर शरारती मुस्कान तैर गई वो थोड़ा हँसा भी। मैंने अपनी हथेलियों की मुट्ठी बनाई और  उस पर टूटने ही वाला था। पर सोनू और देव ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और भोपले ने मेरी कमर को पकड़ा। मेरा दिमाग गुस्से से जलने लगा। पर मेरे दोस्तों की वजह से मैं वंश को छू भी नहीं पाया। देव ने मुझे समझाया, “यहाँ ये सब करना ठीक नहीं है। यहाँ पर वो हम पर भारी पड़ेगा।” 

वंश वहाँ से मुस्कुराते हुए जा चुका था। दोस्तों ने मुझे छोड़ दिया। मैंने पार्टी में देखा तो वो मुझे कहीं नहीं दिखा। मैं बाहर की तरफ भागा। मेरे सामने से एक मर्सिडीज कार निकली। वह वंश की थी। वह जा चुका था। मैं बेबस-सा वहीं पर बैठ गया हॉल के बाहर। अपनी आँखों पर हाथ रखकर मैं रोने लगा। 

तभी मुझे खोजते हुए देव मेरे पास आया, “मैं पहले ही कह रहा था कि निधि एक बेवफा लड़की है। पर तू ही नहीं मान रहा था। अब उसे भूलकर पढ़ाई पर ध्यान दे भाई।”

भोपले ने कहा, “क्या पता वंश झूठ बोल रहा हो!” 

सबने समझाया लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी और अपना ब्लैजर उतारकर घर की ओर चल दिया। मेरे साथी भी बिना बोले चलते रहें। मेरे दोस्त समझ सकते थे कि मेरे ऊपर क्या बीत रही थी, पर वे क्या करते।

मैं घर आया और अपनी बुलेट को स्टार्ट किया खारी बावड़ी की ओर चल दिया। जब मैं वहाँ पहुँचा तो रात के नौ बज रहे थे। वहाँ खण्डहर की छत पर मैं घुटने के बल बैठ गया। अपने चेहरे को आसमान की तरफ करके रोने लगा। और भगवान से शिकायत करने लगा। भगवान मेरी निधि मैली हो गई भगवान मेरे साथ ही क्यों मैंने उसे छुआ भी नहीं कभी कि वो मैली ना हो जाए मैंने क्या बिगाड़ा था। किसी का जो मेरे प्यार का उसने ये सिला दिया है उसने मेरे प्यार का मजाक बना दिया। भगवान ये सब सुनने से अच्छा था की मुझे मौत आ जाती। मैंने आसमान की तरफ एक पत्थर फेंका और वहीं छत पर लेट गया। कोई डेढ़-दो घंटे मैं फूट-फूटकर रोता रहा। जब मैं हल्का हुआ तो घर के लिए निकला। तभी अमित का फोन आया, “भाई कहाँ हो? मम्मी परेशान है।” 

“अभी घर ही आ रहा हूँ।” यह कहकर मैंने फोन काट दिया। मैं घर पहुँचा तो रात के 11 बजने वाले थे। मम्मी ने देखते ही मुझे दो थप्पड़ रसीद कर दिए। मम्मी चिल्ला उठी, “कहाँ गया था इतनी रात को? तुम्हें किसी बात की कोई परवाह है कि नहीं?” 

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मम्मी ने फिर कहा, “इस तरह से बिना बताए घर से कभी नहीं जाना, समझे। वो तो तेरे पापा सो चुके हैं, नहीं तो पता नहीं तेरा क्या हाल करते।” 

मैं अपने कमरे में ये सोचते हुए चला गया कि अब पढ़ना है, बस सिर्फ पढ़ना है और अपनी इस फुक्रों वाली हालत से निकलना है। लेकिन पढ़ नहीं पाया, वंश की बातें कानों में गूँज रही थी। गुस्से में न जाने क्या-क्या सोचता रहा। फिर न जाने कब मुझे नींद आ गई।

मैं बाबाजी से मिलने के बाद बहुत बदल गया था। अगर ये बात मुझे वंश ने बाबाजी से मिलने से पहले बताई होती तो मैं कब का फाँसी लगा चुका होता पर ऐसे हाल में भी मैं स्थिर था और अपने पर विश्वास कर रहा था। 

उस दिन अमित ने कई बार पार्टी के बारे में मुझसे पूछा कि क्या हुआ था वहाँ, पर मैंने उसे कुछ नहीं बताया। आखिर बताता भी क्या!