रवीना ।

डेली टाइम्स अख़बार के रेस्ट रूम में प्रवेश करके चिल्ला पड़ी ।

"मैं जानती हूँ कि तुम लोग पीठ पीछे मेरी बातें करते हो ।"

उसके साथी पत्रकारों ने उसकी तरफ देखा ।

रवीना की आवाज फटी-फटी-सी थी । नशे के ज्यादा हो जाने के कारण जुबान लड़खड़ा रही थी ।

रवीना कभी बहुत अच्छी रिपोर्टर थी । सुंदर भी थी । उसकी एक सोच ने उसे खराब हालात तक पहुँचा दिया था । वो जल्दी से ढेर सारा पैसा कमा लेना चाहती थी । रातोंरात अमीर बन जाना चाहती थी । छोटी-सी तनख्वाह से उसे जरा भी तसल्ली नहीं थी । पैसे को जल्दी पाने की चाहत की वजह से एक व्यक्ति के संपर्क में आई, उसने बताया कि कुछ ही महीनों में उसके पास पैसा ही पैसा हो जाएगा । अगर वो बार फ्लोर पर कैबरे करना शुरू कर दे । बेवकूफ रवीना ने मोटे नोटों की बात सुनकर तुरंत अखबार की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और बार के फ्लोर पर कैबरे डांस करना शुरू कर दिया । परंतु 6 महीने बाद उसे महसूस हो गया कि उसे बेवकूफ बनाया गया है । सारी-सारी रात डांस की वजह से उसे जगना पड़ता, नींद भी पूरी नहीं होती । पैसे भी खास नहीं मिलते थे । बार के मैनेजर ने उसे बुलाकर कहा कि पैसा कमाने के लिए उसे कुछ और भी करना चाहिए जैसे कि बार के कस्टमरों के साथ बाहर घूमने जाना । दोस्ती बढ़ाना । सीधी-सी बात थी कि उसे धंधे में उतरने की सलाह दी जा रही थी । 

रवीना घर की रही, न घाट की । 

रवीना का रंग फीका पड़ गया था । रूप छः महीनों में ही ढल गया था । आकर्षण खत्म हो गया था । आँखों के गिर्द काले घेरे पड़ गए थे । ज्यादा शराब पीने की वजह से उसके हाथ काँपने लगे थे । वो अब चिड़चिड़ी भी हो गई थी । कैबरे में तो खिली लड़कियों की जरूरत होती है जबकि छः महीनों में वो ढीली पड़ गई थी । बार के मैनेजर ने उससे स्पष्ट कह दिया था कि बार में आने वाले उसके डांस को पसंद नहीं करते इसीलिए उसकी छुट्टी । रवीना को होश आया कि उसने अपनी बेवकूफी की वजह से अपनी जिंदगी खराब कर ली है । धंधे में उतरने की ख्वाहिश नहीं थी । एक बेवकूफी के बाद दूसरी बेवकूफी नहीं करना चाहती थी । उसने एक बार फिर वापस प्रेस क्लब में शरण ली और मनोरंजन के बारे में फीचर लिखने लगी थी । पुराने साथी पत्रकार अपना प्रभाव और संबंधों का इस्तेमाल करके किसी न किसी जगह उसके फीचर छपवा दिया करते थे तो रवीना को कुछ पैसा मिल जाता था । परंतु अब वो यही सोचती रहती थी कि उसे पैसे की जरूरत है । कैसे मिलेगा उसे पैसा, इसी बात को लेकर वो परेशान रहती थी परंतु अपने मन के विचार किसी से कहती नहीं थी ।

"मैं जानती हूँ कि तुम लोग मेरा मजाक उड़ा रहे हो ।" रवीना लड़खड़ाती आवाज में दोबारा चिल्लाई, "लेकिन तुम लोग तब भी मेरी बात ही किया करोगे जब मेरे पास बहुत-सा पैसा आ जाएगा । मेरे पास बहुत-सा पैसा आ जाएगा ।"

"रवीना !" एक पत्रकार रवीना के पास पहुँचा, "तुम्हें नशे में यहाँ नहीं आना चाहिए था ।"

"बकवास मत करो ।" रवीना ने उसे क्रोध भरी निगाहों से देखा, "तुम मुझे बूढ़ी समझने लगे हो । मैं सच कह रही हूँ न ? लेकिन मेरी उम्र 25 साल है और पैसा आ जाने पर मैं तुमसे शादी करने वाली नहीं । पहले तुम मेरे में दिलचस्पी लेते थे परंतु अब, अब तुम... ।"

"तुम होश में नहीं हो ।" युवक ने उसका हाथ थामा, "तुम खुद ही अब तमाशा बना रही हो ।"

"अब तुम मुझे सिखाओगे ?" रवीना पैर पटककर बोली ।

"मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ कि तुम यहाँ तमाशा न बन जाओ ।" कहने के साथ ही उसने जेब से दो सौ रुपए निकालकर रवीना को दिए, "टैक्सी का किराया है ये । फौरन अपने गेस्ट हाउस में जाओ और सो जाओ । सुबह तुम ठीक हो जाओगी ।"

"तो सच में मैं नशे में हूँ ।"

"इतनी मत पिया करो । मेरी मानो तो पीना बन्द कर दो । ये तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है ।" युवक ने उसे सहारा देकर, बाहर लाकर टैक्सी में बिठाया और टैक्सी ड्राइवर को बता दिया कि रवीना को कहाँ ले जाना है ।"

अभी टैक्सी थोड़ी आगे ही गई थी कि पीछे से आती कार ने एकाएक स्पीड पकड़ी और टैक्सी ओवरटेक करके, टैक्सी ड्राइवर को सड़क किनारे टैक्सी रोकने पर मजबूर कर दिया ।

टैक्सी के रुकते ही जगमोहन कार से बाहर निकला और टैक्सी के पास जा पहुँचा ।

"क्या बात है सेठ ?" टैक्सी ड्राइवर ने सिर बाहर निकालकर पूछा ।

"चुपचाप बैठा रह ।" जगमोहन ने ड्राइवर को घुड़का और पीछे का दरवाजा खोला ।

सामने रवीना बैठी उसे देख रही थी ।

"कैसी हो रवीना मैडम ?" जगमोहन मुस्कुरा पड़ा ।

"मैं तुम्हें पहचान नहीं रही । लगता है मैंने ज्यादा पी रखी है ।" रवीना सिर को झटका देकर बोली ।

"मैं तुम्हें तब मिला था जब तुम बार में डांस करती थी ।"

"ओह, मुझे याद नहीं कि हम मिले थे ।"

"मेरी कार में आ जाओ । मैं तुम्हें छोड़ दूँगा ।" जगमोहन ने कहा ।

"इतनी भी नहीं पी रखी कि तुम्हारी बातों में आ जाऊँ ।" रवीना मुस्कुराकर कह उठी, "अपना वक़्त खराब मत करो । मुझे गेस्ट हाउस पहुँचकर एक लेख लिखना है । उसके बाद खाना खाऊँगी । चलो ड्राइवर ।"

परंतु जगमोहन टैक्सी का दरवाजा खोले झुका रहा ।

"मैं तुम्हारी टेंशन दूर करने आया हूँ । तुम कम वक्त में ज्यादा पैसा कमाना चाहती हो । तभी तुमने अख़बार की नौकरी छोड़कर बार में डांस करना शुरू कर दिया । लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । पर मेरे से तुम्हें फायदा होगा ।"

"फायदा ?"

"नोटों का । तगड़े, मोटे नोट । मेरी बात सुनो, पसंद हो तो ठीक, नहीं तो नमस्ते । आ जाओ मेरी कार में ।" कहकर जगमोहन पलटा और अपनी कार की तरफ बढ़ गया ।

उसी पल रवीना टैक्सी से सिर बाहर निकालकर चीखी ।

"तुम सच कह रहे हो ?"

"पूरी तरह ।" जगमोहन ने पलटकर कहा, "फायदे में रहोगी ।" कहकर वो कार के पास जा पहुँचा ।

"चलूँ मैडम ?"

"इसने तो सारा नशा ही उतार दिया ।" रवीना बड़बड़ाई और जेब में से सौ का नोट निकालकर ड्राइवर को दिया, "रहने दो ।" कहने के साथ ही रवीना टैक्सी से उतरी और आगे खड़ी कार के पास पहुँची ।

जगमोहन ड्राइविंग सीट पर था । उसने बगल का दरवाजा खोला तो रवीना सीट पर आ बैठी और दरवाजा बंद करके जगमोहन को गहरी निगाहों से देखा । वहाँ से निकलते वाहनों की हेडलाइटों में दोनों के चेहरे चमक रहे थे ।

"अगर तुम कोई ग़लत इरादा रखते हो मेरे बारे में तो तुम्हें कामयाब नहीं होने दूँगी ।"

"पहले तुम्हारा नशा उतारना है, ताकि मेरी बात तुम ठीक तरह समझ सको ।" जगमोहन बोला ।

"नशा रहा ही है कहाँ है ।" रवीना का स्वर अब संयत था, "यहाँ से तो चलो ।"

जगमोहन ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी ।

"मैंने एक लेख लिखना था जिसके कल मुझे दो हजार रुपए मिल जाते । अब वो नहीं लिख पाऊँगी ।"

"दो हजार मैं दे दूँगा ।"

"दूँगा की बात में मजा नहीं आता । अभी दे दो ।"

जगमोहन ने रवीना को दो हजार दिए । जिसके हाथों में आते ही जेब में रखकर बोली ।

"तो तुम मुझे बार के वक़्त से जानते हो ? ठीक है, अपना नाम तो बता दो ?"

"जगमोहन ।"

"इस नाम के आदमी से मैं पहले कभी नहीं मिली । बार में भी नहीं । तुम मुझे नशे में मत समझो ।" रवीना ने अपनी आँखें मलते हुए कहा, "तुम रुपये-पैसे की बात कर रहे थे । मोटा माल, ज़्यादा नोट ।"

"तुम इस वक़्त होश में हो, नशा तुम पर हावी तो नहीं ?"

"नशा है, पर मैं होश में हूँ । तुम अपनी बात कहो ।" रवीना ने जगमोहन को देखा ।

"मेरी बात तब होगी जब तुम नशे में नहीं होगी ।"

"ये क्या बात हुई ?"

"जो नशे में हो, मैं उससे बात नहीं करता और उसके बात का विश्वास भी नहीं करता । तुम्हें कॉफ़ी की जरूरत है ।"

"कॉफ़ी पीकर तो बचा-खुचा नशा भी खत्म हो जाएगा । मैंने ढाई सौ रुपये खर्चे थे पव्वा खरीदने में ।"

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा । कार ड्राइव करता रहा ।

"तुम हो कौन जो... ?"

"मेरे बारे में जानने का तुम्हें कोई फायदा नहीं । तुम सिर्फ अपने मतलब की बात सुनो और उस पर सोचो ।"

"तो बताओ मतलब की बात ।"

"कॉफ़ी पीने के बाद बात करना ।"

"तुम तो मुझे पागल समझ रहे हो । जरा-सी तो पी है । ठीक है, अब कॉफ़ी कहाँ पिलाओगे ?"

"आगे ।"

"तुम कहीं मेरे साथ गड़बड़ तो नहीं करना चाहते, मुझे कहीं ले जाकर... ।"

"ये बात कॉफ़ी पीने के बाद कहना ।" जगमोहन मुस्कुराया ।

रवीना ने गहरी साँस ली फिर बोली ।

"तुमने सच कहा कि मुझे बहुत सारा पैसा मिल सकता है ?"

"हाँ !"

"कितना ?"

"करोड़ों में ।"

"ओह, फिर तो मेरी लाइफ बन जाएगी । मुझे घटिया लेख नहीं लिखने पड़ेंगे ।" रवीना ने सिर हिलाया, "परंतु करोड़ों की दौलत मुझे मिलेगी कहाँ से ? तुम क्यों चाहोगे कि मुझे करोड़ों की दौलत मिले ?"

"तुम्हारा नशा उतर जाए तब इस बारे में बात होगी ।"

■■■

जगमोहन में रवीना को दो कॉफी पिलाई । कॉफी पीते रवीना बड़बड़ाती रही कि नशे का सत्यानाश कर दिया । परंतु दो कॉफी पी लेने के बाद अब बहुत हद तक होश में बातें करने लगी थी । चेहरा भी सामान्य दिखने लगा था ।

"अब क्या हाल है तुम्हारा ?" जगमोहन ने पूछा ।

"ठीक है ।" रवीना ने जगमोहन को गहरी निगाहों से देखा, "नशा तो सिर से उतर गया है ।"

"यहाँ से चलो । बाहर कार में बैठकर बातें करते हैं ।" बिल चुका कर दोनों रेस्टोरेंट के बाहर खड़ी कार में जा बैठे । रात के 10:00 बज रहे थे । बाजार में रौनक थी । भरपूर रोशनी थी । रवीना अब शांत नजर आ रही थी ।

"लड़की होकर, इस तरह ड्रिंक करके, सड़कों पर भटकती फिरती हो, ये तुम्हें शोभा नहीं देता ।" रवीना ने गहरी साँस ली और बाहर देखने लगी ।

"तुम्हें दौलत की इतनी जरूरत है कि अखबार की नौकरी छोड़कर तुम बार में कैबरे करने लगी ।" जगमोहन बोला ।

"वो मेरी ग़लती थी ।" रवीना थके स्वर में बोली, "शायद मेरा बचपना था ।"

"पैसे की तुम्हें जरूरत क्यों है ?" 

"मैं आराम की, मस्त जिंदगी जीना चाहती हूँ । पैसा मेरी पहली जरूरत है । तुम्हें मेरे बारे में कैसे पता ?"

"तब तुम मेरी नजरों में आई जब तुम नौकरी छोड़कर कैबरे करने लगी थी । तब तुम्हारे बारे में सब कुछ जाना ।"

"क्यों जाना ? तुम लोगों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी करते रहते थे ? क्यों करते हो यह ?"

"ताकि जो अपने काम का लगे, उसे याद रखूँ और फिर वक्त आने पर उसे से काम ले सकूँ ।"

"काम ?" रवीना ने जगमोहन को देखा । जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।

"अब कहो, तुम क्या कहना चाहते हो ? तुम रहस्यमय इंसान की तरह हो मेरे लिए ।"

"ऐसा कुछ नहीं है । मैं तुम्हारी ही तरह सामान्य इंसान हूँ । मैं तुम्हें करोड़ों रुपया दिला सकता हूँ, अगर इच्छा हो तो ।"

"बहुत इच्छा है ।" रवीना ने सीट पर पहलू बदला, "तुम कहो तो । मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा नहीं हो रहा है ।"

"एक डकैती में तुम्हें दस करोड़ रुपये मिल सकता है ।"

"डकैती ?" रवीना चौंकी ।

जगमोहन की निगाह रवीना के चेहरे पर थी । रवीना अजीब-सी नजरों से जगमोहन को देखे जा रही थी, "डकैती की बात कर रहे हो न ?" रवीना के होंठों से निकला ।

"हाँ । मैं डकैती की बात कर रहा हूँ । उसमें साथी के तौर पर तुम शामिल हो सकती हो । 10 करोड़ मिलेगा ।"

"तुम तो ऐसे कह रहे हो कि 10 करोड़ मिलेगा जैसे डकैती कर चुके हो ।" जगमोहन ने कुछ नहीं कहा, "तुम्हारा दिमाग ढीला लगता है या फिर सनकी हो जो ऐसी बात कर रहे हो । जिंदगी में एक बार तो ग़लती कर दी जो नौकरी छोड़कर बार में डांस करने लगी । अब दूसरी ग़लती करने का मेरा इरादा नहीं है । इस बार तो सीधा जेल में ही पहुँचकर दम लूँगी । तुम ग़लत जगह पर आ गए हो"

"मैं सही जगह पर आया हूँ । तुम्हारे बारे में सब कुछ जानकर आया हूँ । तुम पैसे के पीछे पागल हो । दौलत तुम्हारी जिंदगी की अहम जरूरत है । दौलत पाने के लिए तुम कुछ भी कर सकती हो ।"

रवीना कार की खिड़की से बाहर देखने लगी । जगमोहन चुप रहा । कुछ देर बाद रवीना ने गर्दन घुमाकर उसे देखा और कहा ।

"कहाँ डकैती करने की सोच रहे हो ?" रवीना ने पूछा ।

"ये मैं बाद में बताऊँगा । अभी तो सिर्फ ये जानने आया हूँ कि तुम्हारी हाँ है या... ।"

"सच में सनकी हो । ये बताने को तैयार नहीं कि कहाँ डकैती करने जा रहे हो और चाहते हो, मैं हाँ कर दूँ । मेरे ख्याल में तुमने मुझे बेवकूफ समझा है जो... ।"

"इस काम में और भी लोग हैं । किसी को भी बताया नहीं जा रहा । जब सब इकट्ठे होंगे, तभी बताया जाएगा ।"

"तुमने पहले कभी डकैती की है ?" रवीना ने पूछा ।

"हाँ ।"

"अच्छा । लगता तो नहीं कि तुमने कोई डकैती कर रखी होगी । शरीफ से लगते हो ।" रवीना ने गंभीर स्वर में कहा, "सच बात तो ये है कि मैं तुम्हें जानती नहीं । पता नहीं तुम कितने काबिल हो । मैं ये भी नहीं चाहती कि बार में कैबरे करने की तरह फिर कोई ग़लत कदम उठा लूँ । डकैती करने वाला सिर्फ एक ही है, एक ही नाम है देवराज चौहान । उसके बारे में साल भर पहले एक लेख भी लिखा था अखबार में । वो है असली डकैती मास्टर । उसके बारे में लिखने से पहले मैंने देवराज चौहान के डकैती जीवन पर छपे बहुत से लेख पढ़ें । वो बंदा तो अपने आप में जबरदस्त है । वो मेरे पास आया होता कि डकैती करनी है तो तुरंत उसके साथ चल देती । तुम्हारी बात मानकर मैं फँसना नहीं चाहती । जैसे-तैसे जो सुख की साँस ले रही हूँ, कहीं वो भी जेल में न लेनी पड़े ।"

"तो तुम्हें देवराज चौहान पर भरोसा है ?"

"पूरी तरह । उसका नाम ही भरोसे की मोहर है । काम होकर रहेगा ।"

"परंतु ऐसी गारंटी देवराज चौहान ने कभी नहीं ली ।"

"न ले । उसके साथ काम करना ही गारंटी जैसा है ।" रवीना ने कहा, "तुम्हारे साथ ऐसा-वैसा काम करके मैं मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती । इतना तो मैं समझ चुकी हूँ कि मेरी सोच ही ग़लत है कि मुझे पैसा मिल जाए । पैसा आसानी से नहीं मिलता । पैसा पाने के लिए मैंने कैबरे तक कर लिया ।" कहकर रवीना ने कार का दरवाजा खोला, "मैं तुम्हारे साथ काम नहीं कर सकती अब तो कुछ करने की सोचकर ही डर लगने लगता है ।"

"तुमने देवराज चौहान के बारे में अखबारों में लेख पढ़ें ।"

"हाँ ।"

"लेखों में उसके साथी का नाम भी जरूर छपा होगा । उसके बिना तो लेख अधूरे हैं ।"

"याद है । देवराज चौहान के साथी का नाम जगमोहन है ।"

"और मैंने अपना नाम तुम्हें जगमोहन ही बताया है ।" जगमोहन मुस्कुराया ।

रवीना चौंकी । उसने जल्दी से कार का खुला दरवाजा बंद किया ।

"तुम ही जगमोहन हो ? देवराज चौहान का साथी ?" रवीना हड़बड़ाकर बोली ।

"वही हूँ ।" कहते हुए जगमोहन ने सिर हिला दिया ।

■■■

ललित कालिया ।

30 बरस का स्वस्थ युवक । 

चोरी-चकारी से जिंदगी शुरू की और आज कालबा देवी रोड पर, आर्या निवास होटल के सामने वड़ा-पाव की रेहड़ी लगाकर जिंदगी बिता रहा था । 12 सालों में उसने क्राइम की दुनिया के कई काम करके देख लिए थे । वजह-बेवजह पुलिस पचासों बार उसे पकड़कर ले गई । कुछ-कुछ महीने करके, तीन बार जेल गया और सवा दो साल जेल में बिता चुका था । छोटे-छोटे काम करके जुर्म करने से उसका मन भर गया था । पुलिस की नजरों से बचने के लिए उसने वड़ा-पाव की रेहड़ी लगा ली थी । साल भर से रेहड़ी लगाकर वड़ा-पाव बेच रहा था । एक लड़का भी रखा हुआ था जो काम में उसकी सहायता करता । साल के शुरू-शुरू में पुलिस उसके पास काफी चक्कर लगाती रही लेकिन धीरे-धीरे पुलिस को यकीन होने लगा कि वो सुधर गया है तो पुलिस के चक्कर कम होते चले गए । उस पर नजर रखनी छोड़ दी । डेढ़ महीने से कोई पुलिस वाला उसका हाल पूछने नहीं आया था । इस बार ललित कालिया ने मन ही मन राहत की साँस ली कि पुलिस की नजरों में ठीक हो गया है । जबकि हकीकत ये थी कि वो क्राइम की दुनिया से बराबर जुड़ा हुआ था और अब कोई बड़ा काम करना चाहता था कि मोटा माल एक ही बार में हाथ लग जाए । दो महीने से एक बैंक की रेकी कर रहा था कि वहाँ डकैती की जाए । उसकी जानकारी के मुताबिक बैंक से तीन-चार करोड़ मिल सकता था । बैंक के एक युवा क्लर्क को फाँस रखा था कि उसे एक करोड़ देगा । भीतर की खबरें उसे देता रहे । रेहड़ी पर एक-दो घंटे के लिए लड़के को खड़ा करके खुद बैंक के काम के मामले में जाता था । परंतु आज ललित कालिया का मूड ऑफ था । कुछ देर पहले ही वो बैंक से लौटा था और बैंक के युवा क्लर्क ने जो उसे बताया था, उससे उसके हौसले पस्त हो गए थे । 

पता चला कि सारा पैसा बैंक कि बेसमेंट के वाल्ट जैसे कमरे में रखा जाता है । उस कमरे तक पहुँचने में भारी अड़चनें थी । सुरक्षा के दो दरवाजे पड़ते थे फिर वो कमरा था जिसका दरवाजा स्टील का था । कॉन्बिनेशन नम्बरों वाला था और उसमें अलार्म सेट था कि कोई दरवाजे से छेड़छाड़ करें तो अलार्म चीखने लगे । 

ये सब जानते ही ललित कालिया फुस्स हो गया था । वो समझ नहीं पाया कि अगर दो-तीन लोगों के साथ बैंक में प्रवेश कर भी गया तो भीतर की सिक्योरिटी को कैसे संभाल पाएगा । इसके लिए तो किसी एक्सपर्ट की जरूरत थी । एक्सपर्ट ढूँढा तो एक-दो लोगों की और जरूरत पड़ेगी । 3-4 करोड़ की दौलत में इतनी हिस्सेदार हो जाएँगे कि हाथ कुछ भी नहीं आएगा । वो एकदम झाग की तरह बैठ गया था । रेहड़ी पर आकर उसने हिसाब लगाया कि रोज का दो हजार रुपया, प्रॉफिट का उसे मिल जाता है, वड़ा-पाव बेचकर । दिमाग में यही समझाया उसे कि इस तरह हाथ-पाँव मारेगा तो मुसीबत मोल लेगा । चुपचाप शराफत से जिंदगी बिताता रहे । दो दिन पहले मन में जोश था कि करोड़ों रुपया उसके हाथ आने वाला है । परंतु अब रेहड़ी पर खड़ा-खड़ा वड़ा-पाव के प्रॉफिट का हिसाब लगा रहा था । 

यही वो वक्त था जब जगमोहन उसकी रेहड़ी पर पहुँचा ।

"देना भाई !" जगमोहन बोला, "वड़ा-पाव खिला ।"

ललित कालिया ने वड़ा-पाव तैयार किया और कागज में लपेटकर जगमोहन को थमाया ।

जगमोहन ने जेब से सौ का नोट निकाल उसे दिया ।

"ये क्या है ?" ललिया कालिया जला-भुना-सा बोला ।

"वड़ा-पाव के पैसे काट ।"

"खाया ?"

"नहीं !"

"तो पैसा बाजू को रख । खाकर देना ।"

जगमोहन ने नोट जेब में डाला और मुस्कुराकर वड़ा-पाव खाने लगा । नजरें ललित कालिया पर थीं । ललित कालिया उखड़ा-सा अपने काम में व्यस्त वड़ा-पाव तैयार करके ग्राहकों को दे रहा था । पास ही में गर्म कढ़ाही में वड़ा भी फ्राई करने में लगा हुआ था । जगमोहन उसके पास जाकर बोला ।

"आजकल सायन के बैंक में बहुत चक्कर लग रहे हैं ।" साथ में वड़ा-पाव भी खा रहा था ।

ललित कालिया ने चौंककर जगमोहन को देखा । जगमोहन की नजर उस पर ही थी ।

"तुझे क्या !" ललित कालिया की आँखें सिकुड़ीं ।

जगमोहन चुप रहा ।

"पर तेरे को कैसे पता कि मैं उधर बैंक में जाता हूँ ?" ललित कालिया ने फौरन पूछा ।

"मुझे तो ये भी पता है कि तू वहाँ क्यों जाता है ।" जगमोहन ने कहा, "अभी मैं गांधी में मिलकर आ रहा हूँ ।"

"गांधी ?" ललित कालिया चौंका ।

गांधी बैंक का वही युवा क्लर्क था जो उसे भीतर की जानकारी दे रहा था ।

"मैंने गांधी के मुँह से निकलवा लिया कि असल मामला क्या है ।"

ललित कालिया का रंग फक्क पड़ गया ।

"तू बैंक में डकैती करने की सोच रहा है ।"

ललित कालिया ने घबराकर आस-पास देखा, फिर बोला, "पुलिस वाले हो तुम ?"

"नहीं, नहीं ! घबरा मत, मैं तेरा दोस्त हूँ ।"

"फिर मुझ पर तू नजर क्यों रख रहा है ?"

"तेरा बैंक में डकैती करने का इरादा पक्का है या तेरे को कोई और काम बताऊँ ?" जगमोहन ने पूछा ।

ललित कालिया कुछ पल जगमोहन को देखता रहा फिर कह उठा ।

"वो प्रोग्राम खत्म हो गया । वहाँ के इंतजाम तगड़े हैं । तू कौन है जो मेरे गले के भीतर की बातें भी जानता है ?" ललित कालिया के चेहरे पर गंभीरता आ गई थी, "तू तो मेरे लिए खतरनाक बन सकता है ।"

"साइड में आ । तेरे से बात करने आया हूँ ।" जगमोहन मुस्कुराकर बोला ।

फिर जगमोहन और ललित कालिया पास की गली में प्रवेश करके एक तरफ खड़े हो गए । लोग आ जा रहे थे । सामने सड़क पर से ट्रैफिक और बसें निकल रही थीं ।

"बता क्या बात है ?" ललित कालिया ने पूछा, "मैं अभी तक हैरान हूँ कि तू मेरे बारे में सब कुछ जानता है ।"

"बैंक पर हाथ डालने का तेरा अब भी प्रोग्राम है कि नहीं ?" जगमोहन ने पूछा ।

"अब नहीं है । सुबह वाल्ट रूम की सुरक्षा के बारे में पता चला तो मैं पीछे हट गया । पर तू कौन ?"

"मेरे साथ काम करेगा तो दस करोड़ मिल सकता है ।" जगमोहन बोला ।

"दस करोड़ ?" ललित कालिया का मुँह खुला का खुला रह गया ।

जगमोहन ने सिर हिलाया ।

"पता है दस करोड़ कितना होता है ?" ललित कालिया ने गहरी साँस ली ।

"मुझे पता है, ये तेरे लिए बहुत बड़ी रकम है ।"

"तू मेरे से मजाक कर रहा है ।"

"ऐसी बातें मजाक में नहीं कही जाती ।"

"तू, तू है कौन ?"

"जगमोहन ।"

"जगमोहन कौन ?"

"जगमोहन ।"

"समझा । अपने नाम के अलावा तू कुछ और नहीं बतायेगा ।"

"दस करोड़ की सोच ।"

"ऐसा क्या काम है जिसे करने पर दस करोड़ मिलेगा ?"

"डकैती ।"

"डकैती ?" ललित कालिया ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर पूछा, "कहाँ ?"

"अभी ये बताने का वक़्त नहीं आया । सबको एक साथ बताया जाएगा ।"

"सबको ? और लोग भी हैं ?"

"हाँ !"

"उनको कितना पैसा मिलेगा ?"

"फालतू सवाल नहीं ।"

"ये सवाल फालतू का नहीं है । दस करोड़ तुम मेरे को देने को कह रहे हो । क्या दूसरों को भी दस-दस दे रहे हो ? कितनी बड़ी डकैती है ये ? जितना तुम कह रहे हो, इस काम में उतना पैसा है भी कि नहीं ?" ललित कालिया व्याकुल स्वर में कह उठा ।

"है ।"

"तुम अपने बारे में तो कुछ बताओ कि तुम... ।"

"दस करोड़ कमाने के लिए तुम इस काम में शामिल होना चाहते हो ?"

"मुझे शामिल ही समझो । परन्तु ये तो पता चले कि तुम कहाँ पर डकैती कर रहे हो ? तुम्हारा प्लान क्या है ? क्या तुम ये काम कर भी पाओगे या हमें फँसा दोगे ? इन सब बातों को किए बिना, मामला आगे कैसे बढ़ सकता है ?"

"वक़्त आने पर ये सब बातें भी हो जाएँगी । अभी तो बात ये है कि दस करोड़ पाने के लिए तुम डकैती में शामिल होना चाहते हो ?"

"हाँ, मैं जरूर ये काम करना चाहूँगा ।" ललित कालिया गंभीर दिखा ।

"अपना मोबाइल नम्बर दो और मेरा ले लो । आगे की खबर तुम्हें जल्दी दूँगा ।"

"एक बात मुझे उलझन में डाल रही है ।"

"कहो ?"

"मुझे नहीं पता कि इस काम में मुझे क्या करना है । तुमने बताया भी नहीं । जो मुझे करना होगा, क्या पता मैं वो न कर पाऊँ ।"

"कर लोगे ।" जगमोहन मुस्कुराया ।

"तुम्हें कैसे पता कि मैं कर लूँगा ।"

"तुम्हारी बीती ज़िंदगी से मैं वाकिफ हूँ । मुझे पता है कि तुम किस काबिल हो ।"

"और तुम ? क्या तुम डकैती कर लेने में सक्षम हो ? मैं ये बात नहीं जानता ।"

"निश्चिंत रहो । मैं ये काम पहली बार नहीं कर रहा । वक़्त आने पर मेरे बारे में भी तुम्हें पता चल जाएगा ।"

"कब, कब होगी डकैती ?"

"तैयारी चल रही है । अगले दस-बारह दिन तक काम कर देने की संभावना है । तुम अपने को हर वक़्त फ्री रखना । मेरा फोन कभी भी तुम्हें आ सकता है ।" जगमोहन ने बेहद शांत स्वर में कहा, "अपना मोबाइल नम्बर बताओ ?"

■■■

पच्चीस वर्षीय जयपाल सिंह उर्फ जैकी ।

अमृतसर, पंजाब का रहने वाला था । सोलह साल की उम्र में टीवी के रियलिटी शो में हिस्सा लिया और शानदार गायक बनकर उभरा जयपाल सिंह से जैकी बन गया । फिल्मों में गाने के ढेरों चांस मिले । वो इतना बढ़िया गाता था कि लड़कियाँ उसकी दीवानी होने लगी । जिधर भी निकल जाता, उसे देखते ही लड़कियाँ जैकी-जैकी पुकारते पीछे भागती । सत्तरह साल की उम्र में वो एक गायक के रूप में प्रसिद्धि के आसमानों को छू चुका था । उसके लाखों कैसेट और सीडी बिकतीं किशोर उम्र के लड़के-लड़कियों में उसका भरपूर क्रेज बन गया था । वो स्टेज पर भी गाने लगा । देश भर की बहुत-सी म्यूजिक कंपनियाँ उसकी सीडी निकालने, उसकी रिकॉर्डिंग करने को उत्सुक रहतीं । फिल्मी गीतों में तो उसने कमाल करके, फिल्मी दुनिया के लोगों को अपना दीवाना बना लिया था । 

जैकी का जब भी कोई स्टेज शो आयोजित किया जाता तो अखबार में सिर्फ एक ही विज्ञापन छापने की जरूरत होती और शो के टिकटों की एडवांस बुकिंग हो जाती । सीटें फुल हो जातीं । उन दिनों दौलत और शोहरत उसके हाथ की मैल थी । प्रसिद्धि के ऐसे नशे में वो डूब चुका था कि कुछ भी होश नहीं रहता । अगर जैकी कभी किसी लड़की से बात कर लेता तो वो हफ़्तों अपनी सहेलियों से इस बात का जिक्र किया करती थी । वो बहुत सुनहरे दिन थे । दौलत बहुत तेजी से साथ उसके पास आई थी । ये सात साल पहले की बात थी । वक्त बहुत तेजी से फिसला था और दो साल पहले जब उसने शादी की तो सब कुछ खत्म हो गया ।

मैरी नाम की खूबसूरत लड़की से उसने शादी की थी । साल भर से उसके साथ दोस्ती चल रही थी । बैंगलोर की लड़की थी और फिल्मों में काम पाने का प्रयत्न कर रही थी, काम तो नहीं मिला, जैकी मिल गया । उसने जैकी से इसलिए शादी की कि जैकी के द्वारा वो फिल्मों में काम पा लेगी, लेकिन सब कुछ गड़बड़ हो गया । शादी होते ही लड़कियों ने उसकी सीडी खरीदनी बंद कर दी । उसके स्टेज शो खाली जाने लगे । जहाँ पाँव रखने की जगह नहीं होती थी, वहाँ अब जगह ही जगह दिखती । अब उसका दिल गाने को नहीं करता । लड़कियों ने एक कुंवारे सिंगर को अपना आइडियल बनाया था । शादी करना ही उसके लिए कुएँ में कूदने जैसा हो गया । मैरी को तो बहुत धक्का लगा कि जैकी का कैरियर डावाडोल हो गया है । फिल्मों में काम कैसे पाएगी ? जैकी प्रसिद्धि से गुमनामी की दलदल में धँसता चला गया । हालत ये हो गई कि जैकी के नाम फिल्म इंडस्ट्री और स्टेज शो के लिए कोई कीमत नहीं रखता । शादी करना उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी ग़लती साबित हुई थी और ग़लती भी ऐसी जो सुधारी नहीं जा सकती थी । जैकी खत्म होता चला गया । यहाँ तक कि पैसा भी हवा की तरह जाने कहाँ उड़ गया । तो मैरी ने हाथों-हाथ जैकी से तलाक ले लिया और उसे छोड़कर चली गई । छः महीने पहले उसे वो फ्लैट भी बेचना पड़ा जहाँ वो रह रहा था । जैकी का सब कुछ खत्म हो गया । वो बांद्रा में किराये के एक कमरे में रहने लगा । कमाई का कोई रास्ता नहीं था । दो महीने पहले उसकी मुलाकात रिया से हुई थी जो हीरोइन बनने मुम्बई आई थी परंतु अब वो डबिंग का काम करती थी । कभी काम मिल जाता तो कभी नहीं । मुसीबत की इस घड़ी में रिया का जैकी को बहुत सहारा मिला । रिया उसके साथ ही रहने लगी थी । रिया खाना बनाती । उसका ध्यान रखती । दोनों में अच्छा तालमेल बैठ गया था । इन दिनों खर्चा-पानी रिया ही चला रही थी । जैकी पूरी तरह खाली हो चुका था । रिया के पास भी ज्यादा पैसे नहीं होते थे, परंतु जैसे-तैसे वो काम चला रहे थे ।

जैकी इस वक़्त प्लास्टिक की कुर्सी पर आँखें बंद किए बैठा था । कमरे में रोशनी ऑन थी । पंखा धीमे-धीमे चल रहा था । कभी वो भी वक़्त था कि ए.सी. के बिना वो नींद नहीं ले पाता था और अब पंखे में भी नींद आने लगी थी ।

तभी दरवाजा थपथपाया गया । जैकी ने दरवाजा खोला तो सामने रिया को खड़े पाया । उसने हाथ में लिफाफा थाम रखा था ।

"आओ रिया !" जैकी पीछे हटते हुए बोला, "अकेले रहकर जीना भी कठिन है ।"

रिया ने भीतर प्रवेश किया । दरवाजा बंद करके जैकी का गाल चूमा ।

"मुझे हमेशा इस बात का ध्यान रहता है कि तुम यहाँ अकेले हो । हमेशा मेरी कोशिश होती है कि जल्दी से तुम्हारे पास पहुँच जाऊँ ।"

"तुम्हारे शब्द सुनकर बहुत राहत मिलती है कि कोई तो मेरे बारे में सोचता है ।" जैकी ने गहरी साँस ली ।

"आज तुम्हारा बर्थडे है जैकी ।" रिया ने लिफाफे से बोतल निकालते हुए कहा, "मैं तुम्हारे लिए शैम्पेन लायी हूँ ।"

"ओह !" जैकी की निगाह बोतल पर गई । बोतल को थामते हुए वो कह उठा, "तुम्हें इस तरह पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए ।"

"इसमें पैसा बर्बाद नहीं हो रहा । ये हमारी खुशी है जैकी । हमारे लिए खुशियाँ ज्यादा न सही, पर छोटी-छोटी बातों से तो हम खुश हो सकते हैं ।"

जैकी ने रिया को सीने से लगा लिया ।

"मैं हाथ-मुँह धोकर आती हूँ । तुम शैम्पेन खोलो । खाना मैं सुबह बना गई थी । उसके बाद हम खाना खायेंगे । सुबह आराम से जागेंगे । कल मुझे दोपहर एक बजे डबिंग के लिए जाना है । आज रात हम प्यार करने में बिता देंगे ।" रिया हँसी ।

उसके बाद बोतल खोली गई । जैकी ने दो गिलास तैयार किए । रिया गिलास थामते कह उठी ।

"तुम्हारे जन्मदिन पर ।" रिया ने गिलास वाला हाथ ऊँचा किया, "वरना तुम तो जानते ही हो मैं ये सब नहीं लेती ।"

"तुम बहुत अच्छी हो रिया ।" जैकी ने घूँट भरते हुए कहा ।

"तुम भी बहुत अच्छे इंसान हो । मशहूर जैकी गायक को मैंने अब जाना है । तुम्हारी पत्नी ने तुम्हारे साथ ग़लत किया ।"

"वो फिल्मों में काम पाना चाहती थी । मुझे सीढ़ी बनाने के लिए उसने मेरे साथ शादी की थी ।" जैकी मुस्कुराया, "मैं शादी करते ही खत्म होते चला गया और मैरी समझ गई कि उसे अब किसी और को सीढ़ी बना लेना चाहिए ।"

"छोड़ो ।" रिया घूँट भरकर बोली, "तुम ट्राय करो, तुम्हें अभी भी जरूर काम मिल सकता है ।"

जैकी ने रिया को देखा और शैम्पेन का घूँट भरते हुए बोला ।

"अब मन नहीं करता गीत गाने का ।"

"ये क्या बात करते हो जैकी । अभी तो तुम बहुत कुछ कर सकते हो । सारी फ़िल्म इंडस्ट्री तुम्हें जानती... ।"

"इस फ़िल्म इंडस्ट्री की ये खास बात है कि जो एक बार गिर गया, वो उठ नहीं सकता, तुम ही बताओ रिया की क्या कभी कोई खत्म हो जाने के बाद अपने पैर पुनः जमा सका है यहाँ ? कभी नहीं हुआ ऐसा ।"

"हिम्मत मत हारो । मैं जानती हूँ कि तुम अभी भी... । ओह, हाँ ! आज कबीर खान से बात हुई । वो डबिंग रूम में आये थे । वो कितने बड़े डायरेक्टर है, ये तो तुम जानते ही हो । मैंने उनसे तुम्हारी बात की तो कबीर खान ने कहा कि वो तुम्हें जरूर चांस देंगे ।"

"सब ऐसे ही कहेंगे । चांस देने को सब कहेंगे, परंतु देगा यहाँ कोई नहीं । ये फ़िल्म इंडस्ट्री है । चढ़ते को सलाम और गिरते को और भी नीचे धकेल देते हैं । यहाँ हर कोई अपने बारे में सोचता है । मैं भी जब चढ़ा था तो अपने ही बारे में सोचा करता था । तब तुम मेरे सामने आती तो मैं तुम्हें देखता भी नहीं । ऊँचाई का नशा ही कुछ और होता है । तुम नहीं समझोगी । मैंने वो वक़्त भी देखा है और ये वक़्त भी देख रहा हूँ । आज कोई पसंद नहीं करता कि मैं उनके पास जाऊँ ।"

"तुम ग़लत सोच रहे हो ।" रिया बोली ।

"क्या ग़लत ?" जैकी ने रिया को देखा ।

"मेरा मतलब है, एक बार फिर पूरी हिम्मत जुटाकर काम की तलाश में लग जाओ । ये सोच लो कि तुम्हें फिर खड़ा होना है । तब तुम जरूर कुछ कर जाओगे । तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है । तुम लोगों को फिर से अपना दीवाना बना सकते हो ।" रिया ने उसकी बाँह पकड़ी, "एक बार फिर शुरू हो जाओ ।"

"ये बातें कहनी आसान होती है । मेरे लिये सब कुछ दोबारा से करना बहुत कठिन है । फ़िल्म इंडस्ट्री में फ्लॉप का ठप्पा लग जाये तो वो रातोंरात खत्म हो जाता है । मुझे कोई काम नहीं देगा । अपनी हालत को मैं बेहतर समझता हूँ । मैं तुम पर ज्यादा देर बोझ नहीं बनूँगा और कहीं और... ।"

"कैसी बातें करते हो जैकी ? तुम मेरे पर बोझ नहीं हो । तुम मेरे दोस्त हो । शायद कभी हम में प्यार भी हो जाये । तुम बहुत अच्छे हो । मैं हमेशा तुम्हें अच्छी नजरों से देखती हूँ ।"

"मेरे पास पैसा नहीं । पैसे के बिना हर रिश्ता बेमानी हो जाता है ।" जैकी ने गंभीर स्वर में कहा, "जब मेरे पास पैसा आया तो मैंने उसे संभाला नहीं । संभाला होता तो आज भी शान की जिंदगी बिता रहा होता... ।"

"लेकिन मैं तुम्हारे साथ पैसे के लिए नहीं हूँ ।"

"जानता हूँ ।"

"मुझे तो कभी-कभी लगता है कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ । पता नहीं, कह नहीं सकती कि ये सच है कि नहीं ।" रिया ने गहरी साँस ली, "पर मैं तुम्हें पसंद करती हूँ । तुम्हारा ध्यान रखती हूँ । शायद ये प्यार ही हो ।"

"तुम बहुत अच्छी हो रिया ।"

रिया, जैकी को देखने लगी ।

"मैरी से बहुत ही ज्यादा अच्छी । मैं अब बाहर की सुंदरता नहीं, भीतर की सुंदरता को समझने लगा हूँ । तुम्हारा साथ मेरे लिए इस वक्त बहुत बड़ा सहारा है । ये अहसान है तुम्हारा कि तुमने मुझे संभाल रखा है, तुम न मिलती तो मैं... ।"

"बस जैकी । हम दोस्त हैं । अच्छे दोस्त ।" रिया उसके पास सरक आयी । जैकी उसके कोमल गालों पर उंगलियाँ फिराने लगा ।

"अगर मेरे पास पैसा आ जाये तो हम शादी कर लेंगे ।" जैकी ने उससे प्यार भरे स्वर में कहा ।

"लेकिन मैं चाहती कि तुम अपने को फिर से फ़िल्म इंडस्ट्री में खड़े करो । मैं तुम्हें पहले जैसा देखना चाहती हूँ ।"

"सपने देखना बन्द कर दो और समझ लो कि जैकी अब फ़िल्म इंडस्ट्री में जम नहीं सकता । अरे अब मेरी दुनिया नहीं रही । कभी-कभी सोचता हूँ कि वापस अमृतसर चला जाऊँ । वहाँ पंजाबी फिल्मों में इतना काम तो मिल ही जायेगा कि खर्चा निकल जाए ।"

"मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी ।" रिया ने फौरन कहा ।

"तुम ?" जैकी ने उसे देखा ।

"अगर तुम चाहो तो... ।"

"पता नहीं मैं अमृतसर वापस जाऊँगा भी या नहीं ।" जैकी ने शैम्पेन का गिलास खाली किया और रिया को बाहों में लेकर अपने साथ सटा लिया, "तुम अच्छी लड़की हो । पहले मुझे लड़कियों की पहचान नहीं थी और मैंने मैरी को चुन लिया । मुझे शादी ही नहीं करनी चाहिए थी । शादी करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । मेरे फैंस मुझसे दूर हो गए और कैरियर खत्म हो गया ।"

"छोड़ो अब इन बातों को ।" रिया उसके साथ सटती मस्ती भरे स्वर में कह उठी, "रात का ख्याल करो जो शुरू हो चुकी है ।"

जैकी ने रिया को बाहों के घेरे में लेकर अपने हाथ खींच लिए ।

रिया खिलखिला उठी ।

■■■

अगले दिन रिया 12:00 बजे डबिंग के लिए चली गई थी । जैकी के पास करने को कुछ नहीं था । वो जानता था कि रिया रात दस, ग्यारह से पहले वापस नहीं लौटेगी । उसे ध्यान आया कि करीब 10 दिन बीत गए हैं उसे इस कमरे से बाहर गए । मन में इच्छा हुई कि बाहर कहीं चक्कर लगा के आए । वो नहाया-धोया फिर कपड़े पहनकर कमरे से बाहर निकला और सीढ़ियाँ उतरने लगा । जहाँ वो रह रहा था, वो ज्यादा अच्छी जगह नहीं थी । जेब में पैसा न हो तो अच्छी-बुरी सब जगह एक-सी हो जाती है । मजबूरी पाँव पड़ती रहती है कि यहीं रहना है तुम्हें । 

जैकी अभी पूरी सीढ़ियाँ नहीं उतर पाया था कि नीचे से जगमोहन सीढ़ियाँ चढ़ते ऊपर आ रहा था । जगमोहन ने एक ही निगाह में जैकी को पहचाना और जब वो पास से निकला तो जगमोहन ने उसी पल उसकी बाँह पकड़ ली । जैकी को झटका लगा । वो ठिठका । नजर फौरन जगमोहन की तरफ घूमी । जगमोहन ने बाँह छोड़ी और मुस्कुराया । 

जैकी की आँखें सिकुड़ीं ।

"जयपाल सिंह कहूँ या जैकी साहब ?" जगमोहन ने पूछा ।

जैकी ने गहरी साँस ली फिर बोला ।

"लोगों ने मुझे पहचानना छोड़ दिया है । लेकिन आपने मुझे पहचान लिया कि मैं जैकी हूँ ।"

"जल्दी में लग रहे हैं आप । कहीं नया काम मिला है गीत गाने का ?" जगमोहन ने पूछा ।

"नहीं, काम नहीं मिला । लेकिन आपकी तारीफ ? बातें तो आप ऐसे कर रहे हैं जैसे कि मेरे बारे में सब कुछ जानते हैं ।"

"सब कुछ जानता हूँ । जयपाल सिंह से जैकी बनने का सफर फिर मैरी से शादी और बर्बादी की कगार पर आ जाना । उसके बाद यहाँ रहना और दोस्तों के नाम पर रिया का मिल जाना ।" जगमोहन ने सामान्य स्वर पर कहा ।

"बहुत खूब ! आप तो मेरे बारे में सच में सब कुछ जानते हैं । आपकी तारीफ ?"

"मेरा नाम जगमोहन है ।"

"जगमोहन ?" जैकी ने सोच भरे स्वर में पूछा, "क्या हम पहले भी मिले हैं ?"

"पहली बार मिले हैं और मैं आपके पास ही आ रहा था ।"

"मेरे पास ?" जैकी ने गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा, "वजह ?"

"काम है । आपके कमरे में बैठकर बातें करें तो ज्यादा ठीक होगा ।" जगमोहन बोला ।

जैकी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।

"फिल्मों से वास्ता रखते हैं आप ?"

"नहीं !"

"फिर तो मैं आपसे बात करके अपना वक़्त खराब नहीं करना चाहूँगा ।" जैकी ने स्पष्ट कहा ।

"मेरे ख्याल में तो आपके पास वक़्त ही वक़्त है । फुर्सत ही फुर्सत है । है न मिस्टर जैकी ?"

जैकी अनिश्चित-सा खड़ा जगमोहन को देखता रहा । आस-पास से लोग आते-जाते, सीढ़ियाँ उतर, चढ़ रहे थे ।

"फायदे का सौदा है, मेरे से बात करके ।" जगमोहन बोला, "मेरी बात सुनकर शायद तुम खुश हो जाओ ।"

"चलो ।" जैकी कह उठा, "ऊपर कमरे में बात करते हैं ।"

"मैं जानता हूँ कि तुम समझदारी से काम लोगे । जो अर्श से फर्श पर आ जाते हैं, वो समझदार हो जाते हैं ।"

"मैं सिर्फ ये जानना चाहता हूँ कि आखिर तुम्हें मुझसे क्या काम पड़ गया । जो तुम मेरे कमरे में बैठकर मुझसे बात... ।"

"मुझसे बात करके तुम्हारी काफी समस्या हल हो सकती है ।" जगमोहन बोला, "ये तो तय है कि अब तुम फ़िल्म इंडस्ट्री में फिर से खड़े नहीं हो सकते । ऐसा सोचना भी बेवकूफी है । परंतु पैसा तुम्हें मिल सकता है ।"

"तुमसे बात करके ?"

"हाँ !"

"मेरे साथ कमरे में चलो ।" जैकी वापस सीढ़ियाँ चढ़ने लगा । जगमोहन साथ हो गया, "मैंने ऐसा इंसान पहली बार देखा है जो किसी कंगाल इंसान के लिए पैसे का इंतजाम करने की सोचे ।"

"बात मेरे सोचने की नहीं, अब तुम्हारे समझने की है कि तुम मेरी बात को कितना समझ पाते हो । सब कुछ उसी पर निर्भर है ।"

■■■

रात के दस बज रहे थे ।

जैकी आज बहुत खुश था । उतना ही खुश था जितना कि तब था जब उसे पहली बार फिल्म में गीत गाने का मौका मिला था । जगमोहन उससे एक घण्टे की मुलाकात के बाद चला गया था । अच्छी बात हुई थी उससे । जेब खाली होने की बात कहकर जगमोहन से बीस हजार रुपये ले लिए थे । लम्बे वक़्त के बाद आज वो खुश हुआ था । तनाव से मुक्त अपने को हल्का महसूस कर रहा था । आँखों के सामने शानदार भविष्य का मंजर नाच रहा था । बढ़िया होटल से वो डिनर पैक करा लाया था और व्हिस्की की बोतल भी ले आया था । पैग तैयार करके घूँट ले रहा था और रिया का इंतजार कर रहा था ।

मन में रिया भी दौड़ रही थी और सोच रहा था कि क्या रिया के साथ जिंदगी बिताना ठीक होगा जब उसके पास दौलत आ जाएगी । रिया में अब तक कोई बुराई नहीं देखी थी । वो एक अच्छी लड़की थी । उसे समझती थी और उसके साथ जीवन भर रहकर ही अपनी जिंदगी को आराम से बिता सकता था । 10 करोड़ ? इतना ज्यादा पैसा उसे मिलेगा । इतने पैसे से तो वो अपनी जिंदगी सवार लेगा । मुम्बई छोड़ देगा । मुम्बई में उसके लिए कुछ नहीं रखा । अमृतसर चला जाएगा । अगर रिया ने उसके साथ अमृतसर जाने से इनकार किया तो अकेला ही अमृतसर चला जाएगा । वहाँ उसके माँ-बाप, भाई-बहन रहते हैं । उनके साथ फिर रहना उसे अच्छा लगेगा । कुछ साल पहले अमृतसर गया था तो उनसे मिला था, बुला रहे हैं । वे जान चुके हैं कि उसका करियर ढलान पर आ गया है । लेकिन जैकी खाली हाथ अमृतसर नहीं जाना चाहता । इन्हीं सोच-विचारों में जैकी ने दूसरा पैग खत्म किया कि रिया आ गई ।

दरवाजे पर ही खुशबू सूँघती कह उठी ।

"तुम खाना भी बनाते हो । आज तुमने खाना बनाया है क्या ? खुशबू आ रही है ।" रिया भीतर आ गई ।

जैकी ने हँसकर दरवाजा बंद किया । सामने बोतल खुली पाकर रिया ठिठकी । हैरानी-सी उभरी चेहरे पर ।

"ये क्या ?" रिया ने पलटकर जैकी को देखा । जैकी मुस्कुरा रहा था ।

"काम मिल गया लगता है ?" रिया के होंठों से निकला ।

"इंडस्ट्री में नहीं ।"

"तो कहाँ मिला काम ?"

"ये मत पूछो ।" जैकी ने करीब आकर रिया के कंधों पर दोनों हाथ रखते हुए कहा, "बस इतना जान लो कुछ ही दिनों में मेरे पास दस करोड़ रुपया आने वाला है । सारी गरीबी दूर हो जाएगी ।"

"दस करोड़ ? कहाँ से ?" रिया ने आँखें सिकोड़कर पूछा ।

"ये नहीं बताउँगा कि कहाँ से । इतना समझ लो कि मेरे दिन पलटने लगे... ।"

"तुम कोई ग़लत काम कर रहे हो जैकी ?"

"कुछ ग़लत काम तो है ही । पर ये कर लेना जरूरी है कि आगे की जिंदगी संभाल सकूँ । मेरे पास दस करोड़ आ जायेगा । मैंने फैसला कर लिया है कि मैं वापस अमृतसर चला जाऊँगा । तुम, तुम मेरे साथ अमृतसर चलोगी रिया ?"

"तुम क्या करने वाले हो ? दस करोड़ कहाँ से आ रहा है ? दिन में जब मैं गई तो तुम ठीक थे, परंतु अब... । किससे मिले तुम ?" रिया के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी, "मुझे तुम्हारी चिंता होने लगी है जैकी कि... ।"

"मेरी फिक्र मत करो ।" जैकी मुस्कुराया, "जो भी कर रहा हूँ, सोच-समझकर कर रहा हूँ । मेरे पास इसके अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है । मुझे पैसा चाहिये कि अपना जीवन सुधार सकूँ ।" जैकी गंभीर हो गया, "इस तरह मुँह छिपाकर जीने का कोई फायदा नहीं है । मैं कब तक तुम्हारा पैसा खाता रहूँगा ? इस तरह कब तक चलेगा ?"

"ये सब सारी जिंदगी भी चल सकता है ।"

"नहीं रिया, सारी जिंदगी नहीं चल सकता । कुछ तो मुझे करना ही होगा ।" जैकी ने उसके कंधे से हाथ हटाया और नया गिलास तैयार करता कह उठा, "किचन में डिनर रखा है, वो तुम्हें अच्छा लगेगा । हम इकट्ठे खायेंगे ।"

रिया कुछ पल उसे देखती रही, फिर बोली ।

"तुम बताओगे नहीं कि इतना पैसा कहाँ से आयेगा तुम्हारे पास ?"

"बताने का कोई फायदा नहीं है ।" जैकी घूँट लेते हौले-से हँसा, "लेकिन कुछ ही दिन में आ जायेगा । एक छोटा-सा काम करना होगा ।"

"कौन मिला आज तुम्हें ? किससे बात हुई है तुम्हारी ?"

"रहने दो । मैं कुछ भी तुम्हें बताने वाला नहीं ।" जैकी कुर्सी पर बैठ गया ।

रिया, जैकी को गंभीर निगाहों से देखने लगी । कई लम्बे पल बीत गए ।

"क्या देख रही हो ?" जैकी ने गंभीर स्वर में पूछा ।

"मैं तुम्हारे साथ अमृतसर जाऊँगी । अगर तुम मुझसे शादी करोगे तो ।" रिया ने धीमे स्वर में कहा ।

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मोहन भौंसले का तीन साल बड़ा भाई प्रताप भौंसले, जिसके बारे में मोहन भौंसले ने जगमोहन से कहा था कि वो काम की तलाश में पानीपत से मुम्बई आया है और उसके पास रह रहा है, वही प्रताप भौंसले हकीकत में फरार मुजरिम था और 20 दिन पहले ही सजा काटते हुए मुम्बई की जेल से फरार हुआ था । 33 साल का प्रताप भौंसले, अपने छोटे भाई मोहन भौंसले से बिल्कुल उल्टा था । मतलब कि लम्बा-चौड़ा और मोहन से कहीं बेहतर दिखता था । वो मुम्बई में रह रहा था, पानीपत से उसका कोई नाता नहीं था । 4 साल पहले प्रताप का दो युवकों से झगड़ा हो गया और क्रोध में आकर उसने उन दोनों की जान ले ली । अब इसी की उम्र कैद की सजा भुगत रहा था जेल में कि 20 दिन पहले पेट में दर्द हुआ । जेल के डॉक्टरों से काबू नहीं हुआ तो सरकारी अस्पताल में दो पुलिस वालों के साथ भेजा गया और वहीं से वो फरार हो गया था । प्रताप भौंसले पर बात सिर्फ दो हत्याओं की ही नहीं थी, पुलिस जानती थी कि वो बहुत खतरनाक है । पुलिस को पता था कि वो अंडरवर्ल्ड से वास्ता रखता है । ड्रग्स का काम भी करता था और सुपारी किलर भी था, पैसा बढ़िया मिले तो हत्याएँ करता था । पुलिस को पता था कि प्रताप भौंसले चैन से रहने वाला नहीं है । वो जल्दी ही कोई गंभीर अपराध करेगा । यही वजह थी कि उसकी फरारी के साथ ही उसे पकड़ने के लिए पुलिस अलर्ट हो गई थी और उसे तुरंत तलाश करने का काम इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े के हवाले कर दिया गया था ।

उधर प्रताप भौंसले फरारी के बाद सीधा अपने भाई मोहन भौंसले के घर में आ छिपा था । यहाँ आने की वजह ये थी कि उसने ही मोहन भौंसले को ये दो कमरों का फ्लैट खरीद कर दिया था कभी । ऐसे में मोहन भौंसले उसे जाने को नहीं कह सकता था । जब से प्रताप भौंसले आया था वहाँ, एक बार भी बाहर नहीं निकला था । टीवी की खबरों से पता चल रहा था कि पुलिस मुस्तैदी से उसकी तलाश कर रही है । सोनिया की प्रताप भौंसले से ये पहली मुलाकात थी । इतना तो उसे पहले ही पता था कि मोहन भौंसले का भाई जेल में है । सोनिया को जँचा था प्रताप भौंसले । लम्बा-चौड़ा । बातों में विश्वास भरा था । एक ही निगाह में उसे प्रताप भौंसले पसंद आ गया था । उधर प्रताप भौंसले जेल में अपने भाई की पत्नी के बारे में कल्पना करता था कि छोटे कद की, मोटी-सी औरत होगी परंतु जब उसने सोनिया को देखा तो देखता ही रह गया था । उसे भरोसा नहीं हुआ कि उसके ठिगने भाई की पत्नी इतनी खूबसूरत और लम्बी होगी । प्रताप भौंसले जैसे शातिर ने फौरन पहचान लिया कि मोहन भौंसले की पत्नी सोनिया उसे पसंद की निगाहों से देख रही । यही दोनों की आँखें चार हुई और दोस्ती होती चली गई । मोहन भौंसले तो सुबह दस बजे तक घर से निकल जाता था और उसकी वापसी शाम के बाद होती थी तो इतना वक्त बहुत था प्रताप भौंसले और सोनिया को । पाँचवे दिन तक दोनों दोस्ती की हद पार करके आगे बढ़ गए थे । उस दिन सोनिया की मन को शांति मिली कि प्रताप बढ़िया मर्द है । प्रताप के सामने मोहन तो बेकार है । सोनिया, प्रताप भौंसले का बहुत ख्याल रखने लगी । दोनों अकेले में बहुत खुश रहते ।

मोहन भौंसले को नहीं पता था कि उसकी पीठ पीछे घर में क्या चल रहा है । उसने जगमोहन से प्रताप को काम देने को कहा तो सिर्फ इसलिए कहा कि प्रताप को पैसा मिलेगा तो वो यहाँ से कहीं और चला जाएगा । दो कमरों के घर में उसके और सोनिया के बीच प्रताप का रहना, जँच नहीं रहा था उसे । ये तो वो सोच भी नहीं सकता था कि प्रताप उसकी पत्नी पर हाथ साफ कर देगा और सोनिया भी इसमें प्रताप का भरपूर साथ देगी ।

इस वक्त दोपहर के 3:00 बज रहे थे । सोनिया ने सूट-सलवार बना हुआ था । अभी-अभी तो नहा कर निकली थी । चेहरे पर ताजगी के भाव थे जो कि कुछ देर पहले बीते वक्त की तरफ इशारा कर रहे थे । सोनिया ने गीले बालों को झटका दिया और कमरे में पहुँची । बेड पर प्रताप भौंसले अंडरवियर पहने लेटा हुआ था ।

दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराए ।

"अब नहा भी ले ।" सोनिया ने चंचल स्वर में कहा ।

"तुम औरतों का साथ मिल जाए तो नहाने की जरूरत नहीं पड़ती ।" प्रताप भौंसले मुस्कुराकर उसे देखता हुआ बोला, "कई बार सोचता हूँ कि तुमने मोहन को कैसे पसंद कर लिया ? बहुत खूबसूरत हो, तुम्हे तो कई बढ़िया मिल जाते ।"

"तब मोहन ही मिला और मैं बार को छोड़ना चाहती थी ।" सोनिया ने हँसकर कहा ।

"तुम्हें मेरे साथ शादी करनी चाहिए ।"

"तुमसे कर लेती हूँ । तुम हर तरफ से मोहन से अच्छे हो । कह कर देखो, मोहन को अभी छोड़ देती हूँ ।"

"नहीं मेरी जान । अभी मेरी राह आसान नहीं है । पास में पैसा नहीं और पीछे पुलिस भी है ।"

"तब तो तुम्हारे पीछे हमेशा ही पुलिस रहेगी ।"

"ज्यादा देर नहीं ।" प्रताप भौंसले में सोच भरे स्वर में कहा, "कुछ देर बाद पुलिस शांत बैठ जाएगी । यही सोचेगी कि प्रताप भौंसले मुम्बई से बाहर निकल गया है । तब तक मैं पैसे का जुगाड़ कर सकता हूँ ।"

"मैं कॉफी बनाने जा रही हूँ ।"

"मेरे पास आ, कॉफी रहने दे ।"

सोनिया ने आँखें तरेरकर प्रताप भौंसले को देखा ।

"आ जा ।" प्रताप ने हाथ आगे बढ़ाया ।

"नहीं । बहुत हो गया ।" सोनिया ने इनकार में सिर हिलाया, "4 घंटों से यही सब कुछ हो रहा है ।"

प्रताप भौंसले हँसा ।

"बड़ी कमीनी है ।"

"इंसान हूँ, मशीन नहीं । नहा ले, कॉफी बनाती हूँ तब तक ।" कहकर सोनिया कमरे से बाहर निकल गई ।

"साली, मेरे बराबर की चीज है । मोहन इसे कैसे संभालता होगा ।" प्रताप भौंसले बड़बड़ा उठा ।

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