अगले दिन ऋषभ सौरभ से मुलाकात करने जेल में पहुंचा।
वहां आने से पहले उसे पलक का फोन आ चुका था कि उसने सौरभ तक संदेश पहुंचा दिया है कि वो ऋषभ को सब कुछ सच-सच बताए।
''उस रात प्रताप और तुम्हारे बीच किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था?’’-ऋषभ ने उससे सीधे सवाल किया।
''किस रात?’’
''जिस रात तुमने उसका खून किया था।’’
''मैंने किसी का खून नहीं किया।’’
''फिर बिल्डिंग से चोरी-छिपे क्यों निकल रहे थे? वो भी पिछले दरवाजे से?’’
सौरभ ने जवाब नहीं दिया। उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और इधर-उधर देखा।
''तुमने पुलिस को भी नहीं बताया कि उस रात तुम वहां गए भी थे।’’
''पलक ने कहा है कि मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूं।’’
''उसने सही कहा है।’’
''तुम बताओ, क्या मुझे पुलिस को बताना चाहिए था कि मैं उस जगह चोरी-छिपे गया था, जहां एक कत्ल हुआ था? पुलिस पहले ही मुझ पर शक कर रही है। मुझे गिरफ्तार भी कर लिया। मेरा ये कबूल करना कि मैं वहां था तो सीधे-सीधे फांसी के फंदे में सिर डालने जैसा ही हो जाएगा।’’
''नहीं होगा।’’
''कैसे?’’
''तुम्हें अपना पक्ष सही-सही पुलिस के सामने रखना चाहिए। तुम बातों को छिपाकर अपने-आप को खतरे में डाल रहे हो। अपनी स्थिति को समझो। ये एक मर्डर केस है। जिसमें तुम प्राइम सस्पैक्ट हो। तुम्हें अपनी साइड क्लीन रखनी चाहिए। तुम क्या खुद को किसी किस्म का मास्टरमाइंड समझ रहे हो कि तुम खुद चुनोगे पुलिस को क्या बताना है या नहीं? पुलिस के साथ शतरंजी चालें चलोगे तो इतना समझ लेना कि तुम्हारी मात पक्की होगी।’’
''मेरा प्रताप के कत्ल से कोई वास्ता नहीं।’’
''फिर तुम बिल्डिंग में क्या कर रहे थे? ‘‘
''ये मैं तुम्हें नहीं बता सकता।’’
''पुलिस को बताया नहीं। मुझे बता नहीं सकते। तो क्या चाहते हो? जब तुम्हें प्रताप के खून के जुर्म में फांसी हो जाए, उसके बाद पलक से कोई भी पूछे कि अगर तुम कातिल नहीं थे तो उस बिल्डिंग में क्या करने गए थे तो पलक को ये कहना पड़े-ये राज भी उनके साथ ही चला गया।’’
वो और भी परेशान-सा दिखाई देने लगा।
''देखो, जहां तक मुझे पता है तुमने पलक को भी नहीं बताया है कि तुम उस बिल्डिंग में क्या करने गए थे? पुलिस को तुम बताना नहीं चाहते। अब रह जाता हूं मैं। पलक ने तुमसे कहा है न कि तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो। तो उस लड़की की बात मानो, जो तुम्हें बचाने के लिए अपने को हर तरह की मुसीबत में डालने पर उतारू है। और मुझे बताओ कि प्रताप के कत्ल की रात तुम सनशाइन अपार्टमेंट्स में क्या करने गए थे, जिससे ये पहेली सुलझ सके। तुम्हारे जेल से बाहर निकलने के लिए ये राज खुलना बहुत जरूरी है। और अगर ये राज इतना बड़ा है कि तुम उसे खोलने की बजाए फांसी पर लटकना ज्यादा पसंद करोगे, तो आगे तुम्हारी मर्जी।’’
''जब मैंने खून किया ही नहीं है’’-वो बोला-''तो मुझे फांसी क्यों होगी?’’
''खून नहीं किया है पर जेल में हो या नहीं?’’
उसने इधर-उधर देखा।
''ऐसे ही फांसी भी हो जाएगी अगर तुमने अपने दिमाग के तालों को समय रहते नहीं खोला।’’
''तुम्हें बताने से क्या फायदा होगा?’’
''इस वक्त तुम जहां मौजूद हो, वहां ज्यादा फायदे-नुकसान के चक्कर में पड़ोगे तो नुकसान में ही रहोगे। मैं यहां पलक की वजह से मौजूद हूं। वो तुम्हारे लिए बहुत परेशान है। और तुम्हें बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। इसका जीता-जागता प्रमाण भी मैं देख चुका हूं। तुम्हें बचाने के लिए उसने मुझे पुलिस के सामने झूठा बना दिया। लेकिन इसके बाद भी वो तुम्हारे खिलाफ केस को हल्का नहीं कर पाई है। वक्ती तौर पर उसने तुम्हें बचा लिया लेकिन देर-सवेर पुलिस को कोई सुराग मिल सकता है कि तुम कत्ल की रात प्रताप के फ्लैट पर गए थे। जैसे ही पुलिस को ये पता चला, उसके बाद तुम्हारे बचने की कोई उम्मीद...।’’
''मैं फ्लैट पर नहीं गया था।’’
''तुम फिर झूठ बोल रहे हो। मैंने अपनी आंखों से तुम्हें बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर आते हुए देखा था।’’
''मैं बिल्डिंग में गया था लेकिन मैं फ्लैट पर नहीं गया था।’’
''फिर किसलिए गए थे?’’
''मैं...मैं वहां किसी से मिलने गया था।’’
''किससे?’’
उसने बेचैनी से इधर-उधर देखा।
''हम पार्क में बैठकर नहीं बतिया रहे हैं। ये जेल है। मुलाकात के लिए सीमित समय है।’’
''मैं रूपाली से मिलने गया था।’’
''रूपाली से?’’
''हां।’’
''इसमें छुपाने वाली कौन-सी बात है?’’
''अब तुम्हें कैसे बताऊं?’’
ऋषभ की आंखें फैल गईं।
उसके लिए-बल्कि शायद किसी के लिए भी-रूपाली जैसी अधेड़ महिला के साथ सौरभ जैसे हैंडसम, जवान लड़के की कल्पना करना ही मुश्किल था।
वो भी तब, जब पलक जैसी लड़की उसकी गर्लफ्रेंड थी।
ये हो क्या रहा था?
एक ओर पलक सौरभ के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने पर उतारू थी।
और दूसरी ओर सौरभ कबूल कर रहा था कि वो पलक को धोखा दे रहा था।
''तुम्हारा रूपाली के साथ अफेयर है?’’-ऋषभ ने पूछा।
उसने इनकार में सिर हिलाया।
''फिर?’’
''वो मेरे अतीत के ऐसे काले अध्याय का हिस्सा है, जिसे मैं किसी के सामने नहीं खोलना चाहता।’’
''अगर भविष्य को बचाना चाहते हो तो अतीत के काले अध्याय की चिंता फिलहाल छोड़ दो। और सब कुछ सच-सच बता डालो।’’
''मुझे तो ये भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं ये सब तुम्हें क्यों बता रहा हूं? तुम कहीं के जासूस लगे हो, जो मुझे बचा लोगे?’’
''ओह। तो तुम्हें जासूस चाहिए। तो मैं चलूं? तुम यहां आराम से बैठकर जासूस का इंतजार करना, जब तक तुम्हें फांसी की सजा नहीं हो जाती।’’
''अच्छा ठीक है।’’-उसने जल्दी से कहा-''मुझे यकीन नहीं आ रहा है कि मैं ये सब तुम्हें बताने वाला हूं। लेकिन तुम सही हो। यहां मेरे पास ज्यादा विकल्प भी नहीं हैं। मैं तुम पर भरोसा करके ये बात तुम्हें बता रहा हूं, जो मैं उसे भी नहीं बताता, जिस पर मैं इस शहर में सबसे ज्यादा भरोसा करता हूं। यानि पलक को। और बताना तो दूर, मैं चाहता हूं कि अब जो कुछ मैं बताने वाला हूं, वो तुम भी पलक को नहीं बताओगे। क्योंकि...क्योंकि उसे पता चल गया तो...मैं उसकी नजरों में हमेशा-हमेशा के लिए गिर जाऊंगा।’’
''अब ये लंबी-चौड़ी भूमिकाएं बांधना बंद करो और साफ-साफ बताओ, बात क्या है?’’
''मैं मेल एस्कॉर्ट का काम करता था।’’
''क्या?’’-ऋषभ भौंचक्का रह गया।
''कुछ साल पहले। अब नहीं। वो सब मैं बहुत साल पहले ही छोड़ चुका हूं।’’
''ओह।’’
''लेकिन रूपाली से मेरी मुलाकात तब हुई थी, जब मैं वो काम करता था। वो किसी काम से दिल्ली गई थी। बल्कि काम क्या था, अपने पति से-जो उस समय जिंदा था-बहाना बनाकर तफरीह करने ही गई थी। एक हफ्ते की ट्रिप में उसने मुझे हायर किया था। हम दोनों पति-पत्नी की तरह साथ रहे, घूमे और वापस आ गए। उसके बाद वो अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते। ये दो-तीन साल पहले की बात थी। उस समय मजबूरी में मैं वो काम करने को राजी तो हो गया था लेकिन पहला मौका मिलते ही मैंने वो सब छोड़ दिया। मैं अच्छी जिंदगी जीना चाहता था। और उसी जिंदगी की तलाश मुझे मुम्बई ले आई। यहां आकर मेरी मुलाकात पलक से हुई तो मुझे ऐसा लगा...ऐसा लगा जैसे किस्मत मुझ पर मेहरबान हो गई हो। जैसे मेरी जिंदगी में जो भी तकलीफें थीं, सब खत्म हो गईं हों। मैं वो सारे गम भूल जाना चाहता था, जो किस्मत ने मुझे दिए। उन सारी ठोकरों के दर्द को भुला देना चाहता था, जो जमाने ने मुझे दीं क्योंकि मैं एक अनाथ था। न कोई मेरे आगे था, न पीछे। मुझे लगा मैं पलक के साथ एक नई जिंदगी की शुरूआत कर सकता था। मुझे डर था। डर था कि पलक मुझे नहीं अपनाएगी। मेरा अतीत। मेरा वर्तमान। अतीत तो उसे बताने की मैं हिम्मत ही नहीं कर सकता था। इसलिए उसके पूछने पर भी हमेशा उसे थोड़ा-बहुत बता कर टालता आया। वो भी शायद समझ गई थी। इसलिए उसने मेरे अतीत के बारे में पूछना भी कम कर दिया था। और मेरा वर्तमान तो उसके सामने था ही। न कोई घर-परिवार। न कोई निश्चित जॉब। लेकिन...लेकिन तुम यकीन करोगे? बल्कि कोई भी यकीन करेगा? कि पलक जैसी लड़की, जो जिस भी लड़के की ओर इशारा भर कर दे और वो उसके कदमों में आ गिरे, इस सबके बाद भी मेरे साथ थी। साथ थी और वो साथ जीवन भर का बनाने का वादा भी कर रही थी। इससे बढ़कर मेरे लिए क्या हो सकता था? मैं तो हवा में उडऩे लगा था। लेकिन मेरी उड़ान खत्म होने में ज्यादा देर नहीं लगी। मैं गिरा। और इतनी जोर से गिरा कि चकनाचूर हो गया। कहां पलक के साथ समुद्र किनारे की सैर कर रहा था, हसीन जिंदगी के ख्वाब देख रहा था, कहां खून के इल्जाम में जेल में हूं। शायद ये मेरी किस्मत ही है, जिसने मुझे कभी चैन से न जीने देने की कसम खा रखी है। लेकिन पुराने दर्द सहते-सहते आदत हो गई थी। इसीलिए इस बार किस्मत ने सोचा कि इसे बर्बाद करने का नया तरीका ढूंढा जाए। इसलिए पहले आसमानों के ख्वाब दिखाए। फिर एक झटके से जमीन पर ला पटका।’’
''उस रात तुम रूपाली के पास क्या करने गए थे?’’
''वही, जो करने के लिए उसने मुझे कुछ साल पहले हायर किया था।’’
''एक तरफ तुम पलक का गुणगान कर रहे हो, वहीं दूसरी तरफ ये भी बता रहे हो कि उसे धोखा दे रहे थे?’’
''पलक को धोखा देने की तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता। लेकिन मेरी किस्मत ने मुझे ऐसी जगह ला पटका था, जहां से आगे का रास्ता उसी नरक की ओर जाता था, जिससे मैं बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाकर आया था। मेरी प्रताप से मुलाकात हुई तो पता चला कि वो भी मेरी तरह पैसों की तंगी में चल रहा था। उसने मुझे रूम पार्टनर बनने का ऑफर दिया, जो मैंने खुशी-खुशी मान लिया। कमरे का आधा किराया ही भरना पड़ता, ये मेरे लिए काफी खुशी की बात थी। लेकिन जब मैं अपना सामान लेकर प्रताप के फ्लैट पर पहुंच गया और वहां रहना शुरू कर दिया, तब पता चला कि उस बिल्डिंग की मालकिन वो औरत थी, जिसके साथ मैं कई रातें गुजार चुका था।’’
''फिर?’’
''शुरू में रूपाली ने मुझे देखकर कुछ नहीं कहा। मैंने चैन की सांस ली। मुझे उम्मीद थी कि वो पुरानी बात को लेकर कुछ नहीं कहेगी। लेकिन मैं गलत था। एक रात उसने मुझे चौकीदार से संदेश भेजकर ऊपर अपने फ्लैट में बुलाया।’’
''और पुरानी यादें ताजा कींं?’’
उसका सिर झुक गया।
''उसने तुम्हें फ्लैट में बुलाया और तुम फिसल गए? यही पीछा छुड़ाया था तुमने अपने अतीत से?’’
''नहीं। शुरूआत में मैंने उसका सख्ती से विरोध किया। मैंने उसे कहा कि मैं वो सब काम छोड़ चुका हूं। अब मैं शराफत की जिंदगी जीना चाहता हूं। लेकिन उसने मेरा मजाक उड़ाया। उसने मुझे हर तरह से अपने जाल में फंसाने की कोशिश की। पहले मुझे पैसों का लालच दिया। फिर धमकाया। उसने मुझे पलक के साथ भी देख लिया था, जब वो सनशाइन अपार्टमेंट्स में मुझसे मिलने आती थी। रूपाली पलक को जानती भी थी। उसने कहा कि...कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो पलक के सामने मेरा राज खोल देगी।’’
''और राज खोलने से बचाने के लिए तुम उसकी इच्छापूर्ति करने के लिए तैयार हो गए?’’
''उसने धमकी भी दी थी कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझ पर उसके साथ बद्फेली करने का झूठा इल्जाम लगा देगी। मेरी कोई नहीं सुनेगा। क्योंकि मैं मर्द हूं। उसकी हर कोई सुनेगा। उसकी बात पर हर कोई विश्वास करेगा। उसने मुझे मजबूर कर दिया था।’’
''तो जिस रात प्रताप का खून हुआ था, उस रात भी तुम रूपाली के पास गए थे?’’
''हां। उसके इशारों पर नाचना मेरी मजबूरी बन गई थी। मेरे पास कोई चारा ही नहीं था। वो वर्षों से यहां रहती है। सब लोग उसे जानते हैं। मुझे यहां कौन जानता है? उसके एक इशारे पर उसका साथ देने के लिए कई लोग खड़े हो जाते। उसकी बिल्डिंग में रहने वाले किराएदार ही इकट््ठे हो जाते। हर कोई उससे हमदर्दी जताता। और मुझे राक्षस करार देता। कि देखो, बेचारी अकेली रह रही, विधवा औरत की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश कर रहा है। उसे परेशान कर रहा है। फिर मेरा क्या हश्र होता, ये बताने की जरूरत नहीं है।’’
''हश्र तो तुम्हारा अभी भी कुछ अच्छा नहीं है।’’
''मेरे लिए आगे कुआं, पीछे खाई में गिरनी जैसी स्थिति थी। कुएं से बचने की कोशिश में मैं खाई में गिर चुका हूं।’’
''इतना गिर कर भी गिरे हुए नहीं हो तुम। इसलिए मैं तुम्हारी मदद करूंगा।’’
''मेरी मदद? लेकिन वो कैसे?’’
''मैं रूपाली से बात करूंगा।’’
''वो कभी नहीं मानेगी कि उसका मुझसे कोई संबंध था।’’
''उसकी चिंता छोड़ दो।’’
''वैसे भी उससे बात करके फायदा क्या होगा? तुम जानना चाहते थे कि मैं उस रात बिल्डिंग में क्या कर रहा था। मैंने बता दिया। लेकिन ये बात मैं पुलिस को कैसे बता सकता हूं? पुलिस मेरा यकीन नहीं करेगी। करेगी भी तो मेरे बयान की पुष्टि के लिए रूपाली से पूछेगी तो वो किसी हालत में मेरे और उसके बीच अफेयर की बात नहीं मानेगी। क्योंकि इससे समाज में उसकी बदनामी होगी। वो इनकार कर देगी तो पुलिस घूम-फिरकर वहीं आ जाएगी कि मैं प्रताप का खून करने ही वहां गया था। पुलिस को सच्चाई बताने का कोई फायदा ही नहीं है। इसीलिए मैंने बताया ही नहीं।’’
''तुम्हारा प्रताप से कोई झगड़ा चल रहा था?’’
''असल में मेरा सनराइज अपार्टमेंट में प्रताप के साथ रूम की पार्टनरशिप खत्म करने का मुख्य कारण प्रताप नहीं था। रूपाली ही थी। प्रताप से झगड़े का तो मैंने ड्रामा किया था। ऐसे दिखाया था जैसे...जैसे मैं सचमुच प्रताप के साथ रहना बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। इसलिए वो फ्लैट छोड़कर जा रहा था। इसीलिए मैं छोटी-छोटी बातों को लेकर प्रताप से झगड़ा करने लगा था। क्योंकि अगर मैं सीधे-सीधे फ्लैट छोड़ता तो रूपाली समझ जाती कि मैं उसकी वजह से फ्लैट छोड़ रहा हूं। और उसने मुझे ऐसा करने से सख्त मना किया था। मैं प्रताप से झगड़ा होने का नाटक करके वहां से गया था, जिससे रूपाली को ये अहसास न हो कि असल में मैं उसकी वजह से फ्लैट छोड़ रहा था।’’
''तुम्हारा झगड़ा करके फ्लैट छोडऩे का ड्रामा रूपाली को हजम हो गया था?’’
''पूरी तरह नहीं। पर थोड़ा-बहुत तो हो ही गया था। रूपाली ने मुझसे कहा भी था कि अगर मैं फ्लैट छोड़कर जाऊंगा तो ठीक नहीं होगा। मैंने उसे भरोसा दिलाया था कि मैं शहर में ही रहूंगा। उसके बुलाने पर उससे मिलने आ जाऊंगा। बस मैं प्रताप के साथ और नहीं रह सकता। उस बंदे से मेरी बिल्कुल बनती नहीं। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था। रूपाली की ही बिल्डिंग में रहना तो एक तरह से हिरण का शेर की गुफा में रहने के समान था। मुझे उम्मीद थी कि उस बिल्डिंग से निकलकर मैं थोड़ी चैन की सांस ले सकूंगा। कम-से-कम उस रूपाली की मौजूदगी का साया 24 घंटे तो मेरे सिर पर सवार नहीं रहेगा।’’
''उस रात बार में तुम्हारा प्रताप के साथ झगड़ा हुआ था, तुमने प्रताप को धमकी दी थी कि वो पलक से एक भी शब्द न कहे। वो एक भी शब्द किस बारे में था? तुम पलक से कौन-सी बात छिपाने के लिए कह रहे थे?’’
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
''वही।’’-उसने कहा-''मेरे और...और रूपाली के अफेयर की बात।’’
''प्रताप भी जानता था?’’-ऋषभ को आश्चर्य हुआ-''तुम्हारे और रूपाली के अफेयर के बारे में?’’
उसने हां में सिर हिलाया।
''प्रताप मुझसे कह रहा था कि मैं रूपाली से दूर रहूं। अरे, मैं तो खुद रूपाली से दूर रहना चाहता था। लेकिन प्रताप को ये बात कैसे समझाऊं, ये मुझे समझ नहीं आ रहा था। मैं उसके सामने लगातार झूठ ही बोलता आ रहा था कि रूपाली और मेरे बीच में कुछ नहीं है। लेकिन वो जानता था कि मैं झूठ बोल रहा था। उस रात बार में...नशे में उसने कहा था कि वो अगर मैंने रूपाली का पीछा नहीं छोड़ा तो मेरे और रूपाली के संबंधों के बारे में पलक को बता देगा। शायद उसने ऐसे ही मुझे चिढ़ाने के लिए कहा हो। लेकिन मैं भी नशे में था। इसलिए होश खो बैठा। उस पर हमला किया। तुम पर और तुम्हारे दोस्त पर भी। तुम्हारा कैमरा भी तोड़ दिया। आई एम सॉरी।’’
कैमरे को याद करके ऋषभ के दिल में हूक सी उठी।
''वो सब भूल जाओ।’’-फिर उसने कहा-''रूपाली को मानना पड़ेगा कि उस रात तुम उससे मिलने बिल्डिंग में गए थे।’’
''वो नहीं मानेगी। और अगर मान भी लेती है तो पलक को मेरी हकीकत पता चल जाएगी। मैं फिर से उसी दोराहे पर पहुंच गया हूं। जो भी रास्ता चुनता हूं, मेरा खात्मा तय है।’’
''इतनी निराशा वाली बातें करना अच्छा नहीं है। थोड़ी पॉजीटिविटी लाओ अपने अंदर।’’
''पॉजीटिविटी वाली कोई बात होती दिखे, तब तो पॉजीटिविटी लाऊं।’’
''दिखेगी।’’-ऋषभ खड़े होते हुए बोला-''बात भी दिखेगी। अब मैं चलता हूं। जरूरत पड़ी तो फिर आऊंगा।’’
वो सलाखों के पीछे से ऋषभ को जाते देखता रहा।
ऋषभ सनशाइन अपार्टमेंट्स की पांचवीं मंजिल पर पहुंचा।
लिफ्ट से निकलकर वो आगे बढ़ा तो उसे सामने से एक रौबदार लगने वाला क्लीनशेव्ड व्यक्ति आता नजर आया, जो उसके बगल से गुजर गया।
उसकी सूरत देखकर ऋषभ को लगा कि उसने उसे कहीं देखा था।
लेकिन कहां?
ये उसे याद नहीं आया।
कुछ सोचकर ऋषभ ने पलटकर उसकी ओर देखा।
पीछे से वो कद-काठी में काफी हद तक सौरभ जैसा ही दिख रहा था।
बाकी सौरभ को ऋषभ ने ज्यादातर साधारण कपड़ों में ही देखा था जबकि उस आदमी ने सूट पहन रखा था।
ऋषभ गैलरी के लास्ट में स्थित फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचा, जो अपार्टमेंट्स की मालकिन रूपाली का था।
दरवाजे के बगल में ही नेमप्लेट भी लगी थी, जिस पर रूपाली का नाम भी लिखा था।
उसने डोरबेल बजाई।
दरवाजा खुला।
रूपाली ने भावहीन ढंग से उस युवक को देखा, जो उसके दरवाजे खोलने पर उसके सामने नमूदार हुआ था और उससे ऋषभ के बारे में जरूरी बात करने की इच्छा व्यक्त कर रहा था।
''कौन सौरभ?’’-उसने अपनी मुद्रा जैसे ही भावहीन स्वर में कहा-''मैं किसी सौरभ को नहीं जानती।’’
ऋषभ ने गहरी सांस ली।
कहां तो वो उसे इस बात के लिए राजी करने आया था कि वो पुलिस के सामने ये कबूल कर ले कि उस रात सौरभ बिल्डिंग में उससे मिलने आया था। कत्ल की घटना के समय उसके साथ था। इसलिए निर्दोष था।
और कहां वो उसके सामने ही सौरभ को जानने तक से इनकार कर रही थी।
लेकिन उसे पहले ही अंदाजा था कि वहां घी सीधी उंगली से नहीं निकलने वाला था।
''आपका पूर्व किराएदार।’’-ऋषभ ने मीठे स्वर में कहा-''जिसे कत्ल के इल्जाम में गिरफ्तार किया गया है। कत्ल, जो आपकी बिल्डिंग में ही हुआ है। कुछ याद आया?’’
''हां।’’-वो बदस्तूर वैसे ही भावहीन स्वर में बोली-''आया याद। लेकिन मुझे उस बारे में कोई बात नहीं करनी।’’
उसने दरवाजे पर भी सेफ्टी चेन लगा रखी थी और ऋषभ बाहर खड़ा होकर ही उससे बात कर रहा था।
''सौरभ के साथ अपनी दिल्ली की ट्रिप के बारे में बात करनी है? जिस ट्रिप पर आप अपने पति से जरूरी काम पर जाने का बहाना बनाकर गईं थीं?’’
उसकी मुखमुद्रा में परिवर्तन हुआ।
''बाकी बातें दरवाजे पर ही करनी हैं?’’-ऋषभ ने सेफ्टी लॉक की ओर इशारा किया।
उसने लॉक खोल दिया।
ऋषभ अंदर आकर सोफे पर बैठ गया। वो भी उसके सामने दूसरे सोफे पर बैठ गई और उसे शंकित निगाहों से देखने लगी।
''क्या है?’’-फिर उसने कहा।
''मैं आपसे एक सौदा करने आया हूं।’’
''मुझे कोई सौदा नहीं करना।’’
''क्यों? राहुल के साथ गुलछर्रे उड़ाने के लिए तो आप सबसे आगे थीं। यहां तक कि बेचारे को मजबूर कर दिया। वापस उसी अतीत को अपनाने के लिए, जिससे वो पीछा छुड़ाना चाहता था।’’
''ये सब तुमसे किसने कहा? सौरभ ने? वो बकवास करता है। पहले से खून के इल्जाम में जेल में है। अब मेरे खिलाफ उल्टी-सीधी बकवास कर रहा है।’’
''बकवास भी कर रहा है तो बकवास करना कोई इतना बड़ा गुनाह नहीं होता कि कत्ल के झूठे इल्जाम में जेल भेज दिया जाए।’’
''झूठा इल्जाम? अगर ये साबित हो गया है कि उस पर लगा इल्जाम झूठा है तो पुलिस ने अब तक उसे छोड़ा क्यों नहीं?’’
''वो कातिल नहीं है, ये आपसे ज्यादा अच्छे से कौन जान सकता है? क्योंकि जिस वक्त खून हो रहा था, उस वक्त तो वो आप ही के साथ था।’’
''बकवास मत करो।’’
''सारी बकवास करने का ठेका आपने ही ले रखा है?’’
''गेट आउट।’’-उसने दरवाजे की ओर इशारा किया-''दफा हो जाओ यहां से।’’
''नहीं दफा होऊंगा।’’-ऋषभ ने हाथ बांध लिए और सोफे की पुश्त से पीठ टिकाकर बैठे-बैठे ही पसर-सा गया।
''मैं सिक्योरिटी गार्ड को बुलाती हूं।’’-उसने मोबाइल निकालकर एक नंबर डायल करते हुए कहा।
''क्यों नहीं? बल्कि शोर मचाकर आसपास रह रहे किराएदारों को भी बुला लीजिए। मुझ पर झूठा इल्जाम लगा दीजिए कि मैं आपके साथ बदतमीजी करने की कोशिश कर रहा था। जैसा करने की आपने सौरभ को धमकी दी थी।’’
मोबाइल पर कॉल लगाते उसके हाथ थम गए।
ऋषभ के होंठों पर विजयी मुस्कान उभरी।
''तुम कहना क्या चाहते हो।’’-रूपाली ने कहा।
''यही कहना चाहता हूं, मैडम, कि आपने सौरभ की जिंदगी को बर्बाद होने के कगार तक तो पहुंचा दिया है। लेकिन अब जब उसके बचने की थोड़ी-सी उम्मीद बाकी है तो कम-से-कम उसे और गढ्ढे में तो मत धकेलिए। जो लोग उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं, कम-से-कम उनका साथ तो दे सकतीं हैं आप? या उतना भी नहीं कर सकतीं?’’
वो खामोशी से उसे देखती रही।
''आखिर उसके साथ आपने बेहद अंतरंग समय बिताया है। जिंसी भूख के लिए ही सही, लेकिन एक बार उसे इंसान के रूप में-किसी ऑब्जेक्ट के रूप में नहीं-इमेजिन करके तो देखिए। उसे नहीं इमेजिन कर सकतीं तो खुद ही थोड़ी देर के लिए इंसान बन जाइए।’’
''तुम मुझसे क्या चाहते हो?’’
''यही कि आप पुलिस के सामने कबूल करें कि उस रात सौरभ प्रताप का खून करना तो दूर, मौकाएवारदात के आसपास भी नहीं फटका था। वो आपके यहां था। आपके बुलाने पर यहां था।’’
''पागल हुए हो। पहली बात तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था। दूसरी बात, अगर तुम चाहते हो, मैं उस लड़के...क्या नाम था उसका...हां सौरभ...उसे बचाने के लिए, उसकी कमउम्र को देखते हुए उसका भविष्य बर्बाद होने से बचाने के लिए झूठ भी बोल दूं तो इसका मतलब क्या होगा, जानते हो? शहर में मेरी थू-थू हो जाएगी। सोसायटी में बरसों से बनी मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी।’’
''उसकी कमउम्र को तो खैर आपने बहुत गौर से देखा था। और मेरे साथ ये नाटक करना बंद करिए। आपके और सौरभ के बीच जो कुछ था, वो सब मुझे पता है।’’
''मेरे और उसके बीच कुछ नहीं था। लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे।’’-उसने फिर मोबाइल पर नंबर डायल करने का अभिनय किया।
ऋषभ मुस्कुराया।
''लगता है आपने मुझे भी सौरभ समझ लिया है।’’-उसने कहा।
''क्या मतलब?’’-उसने ऋषभ को घूरकर देखा।
''एक अनाथ लड़का, जिसने जीवन में सिर्फ दुख देखा। अच्छी जिंदगी के सिर्फ सपने ही देखे। जो अपने स्याह अतीत से बचकर भागने की कोशिश में हमेशा, हर किसी से डरता ही रहा। इसीलिए आपकी गीदड़ भभकियों में इतनी आसानी से आ गया। लेकिन मेरे साथ आपकी ये धौंस नहीं चलने वाली मैडम।’’
''क्यों? तुममें सुर्खाब के पर लगे हैं?’’
''मेरे ऊपर आपका कोई होल्ड नहीं है। मेरे अतीत का कोई राज आपके पास नहीं है, जिसके बल पर आप मुझे धमका सकें। अगर आप शांति से मेरी बात नहीं सुनती हैं, तो नुकसान आपका ही होगा।’’
''मेरा नुकसान? वो कैसे?’’
''मुझे मजबूरन पुलिस का रूख करना पड़ेगा। सब कुछ सच-सच पुलिस को बताना पड़ेगा। अपनी जिस बदनामी को लेकर आप इतनी चिंतित होकर दिखा रही हैं, आपको उससे कहीं ज्यादा बदनाम न कर दूं तो मेरा नाम ऋषभ सक्सेना नहीं।’’
''धमकी दे रहे हो?’’
''ठीक वैसे ही, जैसे आपने सौरभ को दी थी। लेकिन अंतर इतना है कि आप उसकी जिंदगी नर्क बनाने की कोशिश कर रहीं थीं-जिसमें आप कामयाब भी रहीं-और मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा हूं।’’
वो खामोशी से उसे देखती रही।
''अब तक जो हुआ, उसे एक बार को भूल जाते हैं।’’-ऋषभ ने कहा-''पुलिस को सब सच-सच बता दीजिए। जिससे वे सौरभ को जेल से रिहा कर दें।’’
''पागल हुए हो?’’
''इसमें पागल होने वाली कौन-सी बात है?’’
''तुम...तुम ये कहना चाहते हो कि ये जो ँभी तुम कह रहे हो-कि उस रात सौरभ मेरे साथ था-मैं इस तरह की बात सबके सामने कबूल कर लूं? और सोसायटी में...बल्कि सोसायटी में ही क्यों? पूरे शहर में अपनी थू थू करवा लूं?’’
''यानि आप उसे हत्या के झूठे इल्जाम में फांसी पर लटकते देखना चाहती हैं?’’
''मैं क्यों देखना चाहूंगीं?’’
''फिर? क्यों कर रही हैं ऐसा? आप ही ऐसी इकलौती गवाह हैं, जो कोर्ट में ये साबित कर सकतीं हैं कि सौरभ का उस घटना सेे दूर-दूर तक का कोई रिश्ता नहीं था। और आप उसे बचाने की जगह एक नौजवान की जिंदगी बर्बाद होने का तमाशा देख रहीं हैं? किस तरह की औरत हैं आप?’’
''सुनो।’’-वो कड़े स्वर में ेबोली-''मुझे नहीं मालूम कि तुम कौन हो और सौरभ के इतने बड़े हिमायती क्यों बन रहे हो? लेकिन तुम्हें एक बात साफ बता दूं। मैंने सौरभ के साथ कभी कुछ गलत नहीं किया। वो एक मेल एस्कॉर्ट था। पैसे लेकर काम करने वाला। वो जो बेच रहा था, अगर मैंने खरीद लिया तो क्या गुनाह कर दिया?’’
''वो बेचना छोड़ चुका था। मेल एस्कॉर्ट की जिंदगी को उसने बहुत पहले अलविदा कह दिया था। लेकिन आपने उसे यहां देखकर फिर से वही सब करने पर मजबूर कर दिया।’’
''अच्छा? कैसे मजबूर कर दिया मैंने उसे? उसकी खोपड़ी पर बंदूक रख दी थी? नॉनसेंस। जिस दिन से मैंने उसे यहां देखा था, तब से मुझे देखकर लार टपका रहा था। खुद ही मेरे आसपास मंडराते हुए बैडरूम तक पहुंच गया। अपना पुराना धंधा छोड़ देने की बड़ी-बड़ी बातें तो उसने मुझसे भी की थीं। लेकिन अपनी कमजोर माली हालत का रोना ऐसे रोता था कि कोई भी तरस खा कर पैसे उसके हाथ पर रख दे। शुरू में तो एक-दो बार मैंने उसे कुछ पैसे ऐसे ही दे दिए। लेकिन बाद मेें जब नहीं दिए तो उसने पूरे बेशर्म होकर मांग भी लिए। अब तुम-जो उसके इतने बड़े खैरख्वाह बनकर मेरे सामने बैठे हो-जरा बताओ कि जब वो पैसे भी ले रहा है तो किस तरह से माना जाए कि उसने अपना पुराना धंधा छोड़ दिया है?’’
ऋषभ अवाक होकर उसका मुंह देखता रह गया।
''आसपास मंडराते हुए आपके बैडरूम तक पहुंच गया?’’-फिर ऋषभ ने कहा-''जबर्दस्ती तो नहीं घुुस आया होगा न? अंदर तो आपने ही आने दिया होगा।’’
''हां। मैंने ही आने दिया था। और उसका इस्तेमाल भी किया था। और उसके बदले उसे पैसे भी दिए थे। अब खुश? तुम मर्द लोगों को ही हक है सड़कों पर लार टपकाते हुए घूमने का और औरतों को उनके जिस्म की कीमत देकर उनका इस्तेमाल करने का? औरतों को नहीं है?’’
उसने वो बात कुछ ऐसी फटकार के साथ कही थी कि ऋषभ को सूझा नहीं कि वो कहे तो क्या कहे।
''लेकिन फिर भी’’-आखिरकार उसने कहा-''वो जेल में है। उसकी यहां मौजूदगी की, उसके बेगुनाह होने की गवाह सिर्फ आप हैं। अगर आप अपनी इज्जत की चिंता करके गवाही नहीं देंगीं तो उसे तो हत्यारा साबित कर दिया जाएगा।’’
''मैं उसकी बेगुनाही साबित नहीं कर सकती।’’-उसने सपाट स्वर में कहा-''कर सकती होती तो अब तक कर चुकी होती। लेकिन नहीं कर सकती।’’
''क्यों?’’
वो कुछ बोलने की जगह आग्नेय नेत्रों से उसे घूरती रही।
''क्यों?’’-ऋषभ ने सवाल दोहराया।
''जानना चाहते हो क्यों? पहले इस सवाल का जवाब दो कि तुम उसके इतने बड़े हितैषी क्यों बन रहे हो? उसके दोस्त हो? उसके वकील हो? उसके क्या लगते हो तुम? कम से कम मुझे पता तो चले मैं किससे सिर मार रही हूं।’’
''दोस्त ही समझ लीजिए।’’
''ठीक है। समझ लेती हूं। तो अब सुनो। मैं उसके यहां अपने साथ रूम में होने की गवाही दे सकती हूं। लेकिन उसके निर्दोष होने की गवाही नहीं दे सकती। इस बात की गवाही नहीं दे सकती कि उसने प्रताप का-मेरे भाई का-खून नहीं किया है। बल्कि उसे बचाने के लिए गवाही देना तो दूर, मुझे तो खुद भी उस पर शक है। हालांकि थोड़ा-बहुत तो मुझे भी लगता है कि वो गिरा हुआ इंसान है लेकिन इतना गिरा हुआ नहीं है कि किसी का खून कर दे। लेकिन फिर भी कई चीजें हैं, जो इस संभावना की ओर इशारा करती हैं कि कातिल वही है। सौरभ का प्रताप के साथ घटना की पिछली रात ही झगड़ा हुआ था। बार में उसने कई लोगों के सामने उसे मारने की धमकी भी दी थी। इसके अलावा उनके बीच ये झगड़ा काफी समय से चल रहा था, जिसके चलते ही सौरभ फ्लैट की पार्टनरशिप छोड़कर दूसरी जगह जाकर रहने लगा। रही प्रताप के खून के समय सौरभ के मेरे साथ होने की बात, तो वो करीब दस बजे मेरे रूम से निकल गया था। यहां से बाहर जो समय उसने क्या किया, ये कौन जानता है? मैं हर वक्त उसके साथ थोड़े ही मौजूद थी। जब मैं इस बात की गारंटी नहीं ले सकती कि मेरे फ्लैट से बाहर जाने के बाद उसने क्या किया, तो सौरभ के मेरे साथ होने की गवाही किस काम आएगी? सिर्फ मेरी इज्जत पर कीचड़ उछलेगा।’’
''आप कहना चाहती हैं कि आपको लगता है सौरभ ने यहां से जाते वक्त प्रताप का खून किया हो सकता है?’’
''मुझे लगता नहीं है। लेकिन इस बात की कोई गारंटी भी तो नहीं है कि उसने ऐसा न किया हो। उसका प्रताप के साथ कुछ झगड़ा चल तो रहा था। उस झगड़े के बाद प्रताप का खून हो गया। तो पहला शक तो उसी पर जाता है।’’
''आपकी गवाही से कम से कम पुलिस को ये आइडिया तो मिलेगा कि सौरभ यहां किस काम से आया था।’’
''हां। लेकिन उससे कुछ नहीं बदलने वाला। सिवाय इसके कि सोसायटी में बरसों से जो मेरी साख बनी हुई है, वो मिट्टी में मिल जाएगी। उस पर कातिल होने का शक तो फिर भी बना ही रहेगा क्योंकि उसके मेरे रूम से निकलकर जाने के बाद के समय के आसपास ही प्रताप का खून हुआ था।’’
ऋषभ सोच में पड़ गया।
वो सच कह रही थी।
सौरभ ने जो बताया था, उसे सुनने के बाद उसे यही लग रहा था कि रूपाली की गवाही उसे निर्दोष साबित कर सकती थी।
लेकिन ऐसा नहीं था।
दस बजकर पन्द्रह मिनट पर उसने नीचे पार्किंग में सौरभ को बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते देखा था।
रूपाली के अनुसार वो उसके फ्लैट से करीब दस बजे निकल गया था।
पन्द्रह मिनट।
पांचवी मंजिल से सीढ़ी से भी उतरकर आता तो भी मुश्किल से पांच मिनट ही लगने थे।
लिफ्ट से नीचे आने में और भी कम समय लगता।
फिर सौरभ को नीचे आने में पन्द्रह मिनट कैसे लग गए?
क्या रास्ते में वो किसी काम के लिए रूका था?
वैसे भी सौरभ ने जो किस्सा सुनाया था, उससे रूपाली विलेन साबित होती थी। लेकिन यहां रूपाली जो कुछ कह रही थी, उससे सौरभ भी कोई दूध का धुला हुआ नहीं लग रहा था।
हो सकता है, दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही थे।
आखिर रूपाली भी सौरभ के कातिल होने की गारंटी नहीं दे रही थी। सिर्फ शक जाहिर कर रही थी।
और उसके पास शक करने की वजह भी थी।
''ठीक है।’’-फिर उसने निर्णायक स्वर में कहा-''फिर भी मेरे ख्याल से आपको आने वाले समय में ये बात पुलिस के सामने कबूल करनी पड़ सकती है कि उस रात सौरभ को बिल्डिंग में आपने बुलाया था। प्रताप के कत्ल के समय के आसपास वो यहां इस फ्लैट में था।’’
''अगर येे निर्विवाद रूप से साबित हो जाता है कि मेरे भाई के खून में उसका कोई हाथ नहीं है तो मैं गवाही देने के लिए तैयार हूं। लेकिन पहले मुझे इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि वो सचमुच कातिल नहीं है। पता चले, यहां से जाने के बाद उसी ने प्रताप की जान ली हो और मैं तुम्हारी बातों में फंस कर अपने भाई के कत्ल के गुनहगार को ही बेगुनाह साबित कर बैठूं।’’
''बेफिक्र रहिए। सौरभ के निर्दोष होने के पूरे सबूत मिलने के बाद ही मैं आपसे गवाही देने के लिए कहूंगा।’’
उसने सहमति में सिर हिलाया लेकिन उसके चेहरे पर अब भी असंतोष के भाव थे।
फिर ऋषभ ने उससे विदा ली।
रूपाली से मुलाकात के बाद ऋषभ दूसरी मंजिल पर पहुंचा।
उसे याद आ गया था कि रूपाली से फ्लैट से निकलते जिस शख्स को उसने देखा था-जो पीछे से कुछ-कुछ सौरभ जैसा ही दिख रहा था-उसे उसने पहले कहां देखा था?
प्रताप का खून होने की रात निरंजन ने घटनास्थल और आसपास की जो तस्वीरें ली थीं, उनमें बाहर गैलरी में खड़े आस-पड़ोसियों की भीड़ में वो शख्स भी शामिल था।
निरंजन ने उसका नाम कमलकांत बताया था।
जाते-जाते ऋषभ ने कमलकांत को भी टटोलने का फैसला किया।
निरंजन ने उसके फ्लैट का नंबर भी बताया था। ऋषभ उसके फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचा और डोरबेल बजाई।
कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला।
वही शख्स नजर आया, जिसे उसने थोड़ी देर पहले पांचवी मंजिल पर देखा था।
मुझे कमलकांत जी से मिलना है।-ऋषभ ने कहा।
''मेरा नाम कमलकांत है।’’-उसने रौब से कहा-''कहिए, आपको मुझसे क्या काम है?’’
मेरा नाम ऋषभ सक्सेना है।-ऋषभ ने कहा-मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं। फ्लैट नंबर 12 में हुए कत्ल की बाबत।
उसकी भृकुटियां तनीं।
''मैं प्रैस से हूं।’’-ऋषभ ने कहा-''हमारा अखबार न्यूज वन इस घटना की पूरी कवरेज कर रहा है। अगर आप कुछ प्रश्रों के जवाब दे दें, तो मेहरबानी होगी।’’
''क्यों नहीं?’’-उसके तेवर नर्म पड़े, उसने दरवाजे के सामने से हटते हुए कहा-''आइए।’’
ऋषभ के अंदर आने के बाद कमलकांत ने उसे अंदर ले जाकर सोफे पर बिठाया। फिर खुद भी उसके सामने बैठते हुए बोला-''कुछ लेेंगें आप? चाय? कॉफी?’’
''नहीं। शुक्रिया।’’-ऋषभ ने कहा-''मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा। आप प्रताप को जानते थे?’’
"ज्यादा नहीं। बस आते-जाते कभी-कभार हाय-हैलो हो जाती थी। आखिर पड़ोसी था।"
"आप कब से रह रहे हैं यहां?"
''ज्यादा अरसा नहीं हुआ। यही कोई एक महीना। आने वाले हफ्ते में एक महीना पूरा हो जाएगा।’’
''आप यहां अकेले ही रहते हैं?’’-ऋषभ ने कमरे में नजरें दौड़ाईं।
''जब अकेला हूं तो अकेला ही तो रहूंगा न?’’-वो हंसा-''एक्चुअली मैं दुबई में रहता हूं। जॉब भी वहीं करता हूं। यहां मैं एक जरूरी काम से आया था।’’
''कैसा जरूरी काम?’’
''वैसा ही, जैसा मेरे जैसे हर सिंगल इंसान को समय रहते कर लेना चाहिए।’’
''ओह। जीवनसाथी की तलाश में?’’
''तलाश तो पूरी हो चुकी। अब उस आगाज को अंजाम तक पहुंचाना है।’’
''बधाई हो आपको।’’
''थैंक्स।’’
''जिस रात प्रताप का खून हुआ था’’-ऋषभ मतलब की बात पर आते हुए बोला-''उस रात आपने कोई अजीब बात नोट की थी? कोई आवाज? कोई संदिग्ध व्यक्ति?’’
''उस रात तो मैं फ्लैट से बाहर ही नहीं निकला था। दरअसल, दिन में दोस्तों के साथ घूमना-फिरना ज्यादा हो गया था इसलिए वापस लौटने के बाद फ्लैट से बाहर कदम ही नहीं निकाला।’’
''मुझे पता है कि पुलिस ने भी आपसे ये सवाल पूछे होंगें। लेकिन फिर भी मुझे दोबारा पूछने पड़ रहे हैं। आखिर न्यूज कवर तो करनी ही है। आप सौरभ को जानते थे?’’
''प्रताप से भी कम। और प्रताप को कितना जानता था, ये मैं आपको बता ही चुका हूं।’’
प्रताप को भी नहीं जानता था। सौरभ को भी नहीं जानता था। घटना की रात घर से बाहर कदम नहीं निकाला था।
कुल मिलाकर जानकारी देने के मामले में वो आदमी किसी काम का नहीं था।
''ठीक है।’’-ऋषभ उठते हुए बोला-''आपने वक्त दिया, इसके लिए शुक्रिया।’’
उसने मुस्कुराते हुए शाइस्तगी से सिर हिला दिया।
ऋषभ फ्लैट से बाहर निकल गया।
सनशाइन अपार्टमेंट्स के मुख्यद्वार से बाहर निकलते हुए ऋषभ गेट के पास कुर्सी डालकर बैठे हुए गार्ड के पास ठिठका।
''क्या नाम है तुम्हारा भाई?’’-उसने गार्ड से पूछा।
''रामधन, साहब।’’
''रामधन साहब। वाह, बहुत अच्छा नाम है।’’
''नहीं साहब।’’-वो संकोच के साथ हंसा-''रामधन ही नाम है। साहब तो मैंने आपको कहा।’’
''मुझे साहब कहने की कोई जरूरत नहीं है भाई। मैं बहुत मामूली आदमी हूं। साफ बात ये है कि मैं एक अखबार में काम करता हूं। प्रताप वालेे केस की न्यूज कवर कर रहा हूं। अगर तुम मेरे कुछ सवालों के जवाब दे दोगे तो मुझे सुविधा हो जाएगी।’’
''पूछिए।’’
''आओ, चाय पीते हैं।’’-ऋषभ ने सामने सड़क पार चाय की गुमटी को देखते हुए कहा।
''नहीं, साहब।’’-उसने प्रतिरोध किया-''ड्यूटी टाइम है। गेट पर आने-जाने वालों को देखना पड़ता है।’’
''अरे, सामने ही तो चाय की गुमटी है। और मैंने पहले भी तुम्हें वहां चाय पीते हुए देखा है। एक चाय मेरे साथ पी लोगे तो क्या हो जाएगा?’’
''लेकिन...।’’
''लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। वहां से चाय पीते हुए भी गेट दिखाई देता है। कोई तुम्हारी नजरों से बचकर यहां नहीं घुसने वाला।’’
वो संकोचित-सा उसके साथ हो लिया।
टिपरी पर पहुंचकर ऋषभ ने दो चाय का ऑर्डर दिया, फिर रामधन से बतियाने लगा।
''कब से काम कर रहे हो यहां?’’
''करीब दो साल से।’’
''दो साल से। यानी अनुभवी हो।’’
''कह सकते हैं साहब। लेकिन ये दूसरी मंजिल वाले फ्लैट की घटना के कारण बहुत बदनामी हो गई।’’
''उस रात भी तुम ही ड्यूटी पर थे?’’
''बदकिस्मती से, हां। वैसे तो बिल्डिंग में अलग-अलग शिफ्ट के लिए गार्ड हैं लेकिन वे शिफ्ट बदल-बदलकर काम करते हैं। इससे सुविधा भी होती है। किसी एक ही गार्ड को हमेशा नाइट ड्यूटी पर तैनात नहीं होना पड़ता। मैं भी उस दिन नाइट ड्यूटी पर था। वैसे मेरे शेड्यूल में वो मेरी नाइटड्यूटी का हफ्ते का आखिरी दिन था। अब इस पूरे हफ्ते मेरी दिन की ही ड्यूटी है।’’
''ओह। उस रात तुमने कुछ खास बात नोट की थी? कुछ संदिग्ध, जो तुम पुलिस को बताना भूल गए हो?’’
''नहीं साहब। ऐसा तो कुछ नहीं देखा था। वो सौरभ साहब भी पिछले गेट से आए थे इसलिए उन्हें भी नहीं देखा।’’
''सौरभ साहब? पुलिस ने कत्ल के इल्जाम में पकड़ा है उन्हें।’’
''नहीं साहब। मुझे वो खूनी नहीं लगते।’’
''अच्छा?’’
''हां। थोड़े गुस्सैल जरूर हैं। पर उनकी उम्र के नौजवानों में ये आम बात ही है।’’
''तुम्हें क्यों लगता है कि वो खूनी नहीं हैं?’’
''अब साहब, क्या कहूं? मेरे कहने से तो कोई मानने वाला है नहीं। लेकिन जो भी सौरभ साहब से दो-चार बार मिल ले, बातचीत कर ले, वो जान जाएगा कि वे किसी का खून नहीं कर सकते।’’
''हूं। चलो मान लेते हैं तुम्हारी बात। अच्छा ये बताओ, पिछले दरवाजे पर कोई गार्ड क्यों नहीं तैनात रहता?’’
''जरूरत ही नहीं पड़ती।’’
''पडऩी तो चाहिए। अब देखो, उसी दिन अगर कोई गार्ड होता तो शायद कातिल को रंगे हाथों पकड़ लिया जाता।’’
''वो दरवाजा बंद ही रहता है साहब। इसलिए वहां गार्ड की जरूरत नहीं पड़ती। उस दिन पता नहीं कैसे खुला रह गया था।’’
''बंद ही रहता है?’’
''हां। ज्यादातर बंद ही रहता है। कभी-कभार जरूरत पडऩे पर खोला जाता है।’’
ऋषभ ने समझने वाले भाव से सिर हिलाया।
''प्रताप से मिलने आने-जाने वालों के बारे में कुछ बताओ।’’-उसने कहा।
''ज्यादा लोग तो उनसे मिलने नहीं आते थे। हां, श्वेता मैडम दो-चार बार उनसे मिलने जरूर आईं थीं।’’
''ये श्वेता मैडम कौन हैं?’’
''श्वेता माधवन। विपुल साहब की बहन। सनशाइन अपार्टमेंट्स के मालिक। जिनकी दो साल पहले मृत्यु हो गई थी। रूपाली मेमसाहब की ननद।’’
''रूपाली मेमसाहब की ननद प्रताप से क्यों मिलने आती थीं?’’
''पता नहीं साहब। दो-तीन बार ही मिलने आई थीं। वैसे वे रूपाली मेम से भी मिलने आती रहतीं हैं। पर कभी-कभार ही। रिश्तेदार हैं तो मिलने तो आएंगीं ही।’’
''कहां रहती हैं ये श्वेता मेम?’’
''शिवापुर में।’’
शिवापुर पुणे से ज्यादा दूर नहीं था। ऋषभ पहले भी वहां कई बार जा चुका था।
''अच्छा ये बताओ, जिस मंजिल पर खून हुआ, उसी मंजिल पर एक साहब रहते हैं, कमलकांत। उनके बारे में कुछ बताओ?’’
''उनके बारे में क्या बताऊं साहब? मुझे कुछ पता ही नहीं है उनके बारे में।’’
''किस टाइम आते हैं? किस टाइम जाते हैं? कहां काम करते हैं? किसके साथ घूमते हैं? तुम तो गेट पर ही रहते हो। कुछ तो नोट किया होगा तुमने?’’
''नोट करता हूं साहब। बिल्डिंग में रहने वाले ज्यादातर लोगों के बारे में जानता हूं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो सामान्य लोगों की लिस्ट से अलग हैं।’’
''मतलब?’’
''जैसे नए आए हुए लोग। अपने काम से काम रखने वाले लोग। ऐसे लोग, जिन्हें बिल्डिंग के गार्ड से बात करना अपनी हेठी लगता हो। कमलकांत साहब तीनों ही कैटेगिरी पर खरे उतरते हैं।’’
''वे नए आए हैं?’’
''हां। उन्हें आए हुए मुश्किल से तीन हफ्ते ही हुए होंगें।’’
''उनके आने-जाने का कोई निश्चित समय?’’
''निश्चित समय ही तो नहीं है, साहब। इसी से लगता है कि वे कहीं काम-वाम नहीं करते। या करते होंगें तो कुछ वर्क फ्रॉम होम टाइप का करते होंगें।’’
''वे बाहर बहुत कम आते-जाते हैं क्या?’’
''बहुत कम भी नहीं कह सकते। आते-जाते तो रहते हैं। लेकिन बाकी जॉबशुदा लोगों की तरह सुबह निश्चित समय पर जाना और निश्चित समय पर लौट आना वाला शेड्यूल नहीं है उनका। वैसेे आप उनके बारे में इतना क्यों पूछ रहे हैं?’’-रामधन को शंका हुई।
''कुछ खास नहीं। बस उस मंजिल पर रहने वाले लोगों के बारे में जानकारी निकाल रहा हूं। मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन है न। क्या पता कोई काम की बात ही निकल आए?’’
रामधन ने सहमति में सिर हिलाया।
''उनसे मिलने के लिए आने-जाने वालों के बारे में कुछ बता सकते हो?’’
''नहीं। मेरी जानकारी में तो उनसे मिलने बाहर का कोई व्यक्ति नहीं आता।’’
''कोई और जरूरी बात?’’-ऋषभ ने पूछा-''जो तुम बताना भूल रहे हो?’’
''एक बात है।’’-रामधन ने हिचकिचाते हुए कहा-''टॉप फ्लोर पर रहने वाले निरूपम शास्त्री जी ऊपर गए थे उसी समय। ये बात मैंने पुलिस को भी नहीं बताई है।’’
''क्यों? पुलिस को क्यों नहीं बताई?’’
''क्या बताऊं साहब। शास्त्री जी सामान्य आदमी नहीं है।’’
''मतलब?’’
''उनमें एक अलग तेज टाइप का है। मैं अक्सर सत्संग, प्रवचन वगैरह में जाता रहता हूं। लेकिन वहां बाबाओं में भी वैसा तेज नहीं देखा, जैसा उनमें है।’’
''फिर भी पुलिस को तो बताना चाहिए था।’’
''मैंने सोचा उन्होंने कुछ देखा होगा तो वो खुद ही पुलिस को बता देंगें। आखिर वे रिटायर्ड अधिकारी हैं। और बहुत बड़े ज्योतिषाचार्य भी हैं।’’
''ज्योतिषाचार्य?’’
''हां। मैंने सुना भी है और देखा भी है। कई बार तो वो मुझे भी भविष्य से जुड़ी बातें बता चुके हैं, जो सही भी साबित हुईं। एक बार उन्होंने मुझे बताया था कि मेरा कोई रूका हुआ काम जल्द ही पूरा होने वाला है। दूसरे ही दिन, साहब, गांव से खबर आई कि हमारी जमीन को लेकर जो कोर्ट केस चल रहा था, उसमें हमारी जीत हुई है।’’
''ये भविष्यवाणी बात रहने दो। तुमने कहा कि तुमने पुलिस को इसलिए उनके बारे में नहीं बताया क्योंकि तुम्हें लगा कि वे खुद बता देंगें। लेकिन जहां तक मुझे जानकारी है, उन्होंने बताया तो नहीं।’’
''हो सकता है उन्होंने कुछ देखा ही न हो। इसलिए न बताया हो।’’
''फिर भी तुमने उन्हें प्रताप के खून के समय बिल्डिंग के अंदर जाते देखा था तो पुलिस को बताना चाहिए था।’’
''साहब, मेरी जुबान नहीं खुली। वे यहां बरसों से रह रहे हैं। सब लोग उन्हें बहुत मानते हैं। मुझे लगा...इतनी सी बात के लिए उन्हें परेशान करना ठीक नहीं होगा।’’
''किसी का खून हो गया इस बिल्डिंग में और तुम उसे इतनी सी बात कह रहे हो?’’
''नहीं साहब। खून नहीं। मेरे कहने का मतलब है कि पुलिस बिल्डिंग के सभी लोगों से पूछताछ कर ही रही थी। तो मैं खासतौर पर शास्त्री साहब का नाम पुलिस के सामने लेने में हिचकिचा गया। वो कोई कातिल थोड़े ही हो सकते हैं। मुझे लगा कहीं मैंने कह दिया कि उन्हें उसी वक्त बिल्डिंग के अंदर जाते देखा था तो पुलिस उन्हें ज्यादा परेशान न करे। उन पर शक न करने लगे। यही सोचकर मैंने नहीं बताया।’’
ऋषभ सोच में पड़ गया।
चौकीदार शास्त्री जी से कुछ ज्यादा ही प्रभावित दिख रहा था। इतना कि उसने बिना किसी के कुछ बोले, अपने मन से ही उनके लिए पुलिस के सामने झूठ बोल दिया था।
ऋषभ के हिसाब से गार्ड किस्मतवाला था अगर पुलिस बिल्डिंग के सब लोगों से पूछताछ करते हुए शास्त्री से भी पूछताछ कर चुकी थी और उसके ऐन हत्या के समय के आसपास बिल्डिंग के आने का पता चलने पर प्रधान ने गार्ड की खबर नहीं ली थी कि उसने शास्त्री के उसी समय बिल्डिंग में आने की बात कैसे छिपाई?
जो भी था, अब इन शास्त्री जी से भी पूछताछ करना तो बनता ही था।
हालांकि आज की डेट में उस बिल्डिंग के लोगों से पूछताछ करने का उसका कोटा फुल हो चुका था।
शास्त्री जी से उसनेे कल ही पूछताछ करने का फैसला किया।
ऋषभ जाने से पहले गार्ड से और भी खोद-खोदकर सवाल करता रहा, जब तक कि वो प्रत्यक्ष रूप से भिन्नाया हुआ नहीं दिखने लगा।
फिर उसने 'रबड़ भी जरूरत से ज्यादा खींचे जाने पर टूट जाती है’ वाली बात याद करते हुए रामधन का धन्यवाद किया और उससे विदा ली।
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