देव किले के भीतर बने, विशाल स्नानघर में नहाया और कपड़े पहनकर किले में घूमने लगा। आंखों के सामने ताशा का खूबसूरत चेहरा नाच रहा था। उसकी नीली आंखें उसे बेचैन किए दे रही थीं। देव का मन किसी भी काम में नहीं लगा। खाने की इच्छा हुई तो कुछ फल ही खाए। ताशा के हाथ का बनाया खोनम उसे बहुत याद आ रहा था। जब ग्रह पर अंधेरा छाना शुरू हो गया तो किले में टहलता देव अपने कक्ष में आ गया। किले के कर्मचारियों ने रोशनी वाली मशालें जलाकर, महल के भीतर पर्याप्त रोशनी कर दी थी। किले के बाहर भी दीवारों पर जगह-जगह रोशनी की मशालें जला दी गई थीं। परंतु राजा देव पर तो ताशा की खूबसूरती सवार थी ऐसा लगता जैसे ताशा उसके आस-पास ही हो।
कुछ देर बाद बबूसा आया। बबूसा किले के ऊपरी हिस्से के एक कमरे में अपनी पत्नी सोमारा के साथ रहता था और दिन हो या रात हर वक्त राजा देव की सेवा के लिए हाजिर रहता था।
“राजा देव आपकी बग्गी अभी तैयार नहीं कर पाया। कल का वक्त और लगेगा।” बबूसा ने कहा।
“कोई बात नहीं बबूसा।” राजा देव ने कहा-“हम कल भी साधारण बग्गी पर ही जाएंगे।”
“कहां?” बबूसा के होंठों से निकला।
“वहीं। जहां आज गए थे। ताशा के पास।”
बबूसा हैरानी से राजा देव को देखने लगा।
“क्या देख रहे हो?” देव ने मुस्कराकर पूछा।
“माफ कीजिएगा राजा देव। मैंने तो सोचा था कि आप उस लड़की को भूल गए होंगे।”
“वो मुझे बराबर याद आ रही है। मैं उसे भूल नहीं सका।”
“ओह। ठीक है राजा देव। जब आपका हुक्म होगा, मैं हाजिर हो जाऊंगा। क्या रात को कहीं जाना है?” बबूसा ने पूछा।
“ये क्यों पूछा?” देव ने बबूसा को देखा।
“आज कारू (शराब) का मन है। अगर कहीं नहीं जाना हो तो कारू ले लूं।” बबूसा मुस्कराया।
“तुम मेरे दोस्त की तरह हो। इसमें पूछने की क्या जरूरत है, तुम...”
“ये ही बात मैंने सोमारा को कही थी कि राजा देव कारू के लिए मुझे मना नहीं करेंगे। पर सोमारा कहने लगी, जब तक तुम राजा देव से नहीं पूछोगे, तब तक कारू के बर्तन को हाथ नहीं लगाने दूंगी तो आपके पास आना पड़ा। शुक्रिया राजा देव, अगर रात को कहीं जाना न हो तो आज रात मैं कारू (शराब) ले लूं।”
“मुझे कहीं नहीं जाना। तुम कारू ले लो।” देव ने मुस्कराकर कहा।
बबूसा चला गया।
देव को रात भर ताशा के ही सपने आते रहें। नींद में भी वो ताशा का चेहरा देखता रहा। अगले दिन सुबह उठा तो मन खुशी से मचल रहा था कि आज फिर ताशा को देख सकेगा। ताशा के ख्यालों में ही डूबा नहा-धोकर तैयार हुआ। साधारण कपड़े पहन रखे थे कि ताशा को वो साधारण व्यक्ति दिखे। बबूसा तब तक दो बार उसके पास चक्कर लगा गया था। आज भी गर्मी थी, कमरे की खिड़की से सूर्य दिख रहा था जो कि ग्रह के कोने में मौजूद, तीखी धूप फेंक रहा था। खिड़कियों से मध्यम हवा भीतर आ रही थी। किले की दासी ने नाश्ता कराया। देव, ताशा की सोचों में डूबा रहा। नाश्ता करके देव फारिग ही हुआ था कि बबूसा आकर बोला।
“राजा देव, जम्बरा आया है।”
“जम्बरा?” देव ने बबूसा को देखा। जम्बरा वैज्ञानिक था और इन दिनों देव के साथ मिलकर पोपा (अंतरिक्ष यान) बनाने की तैयारी कर रहा था। ये देव का ही विचार था कि पोपा बनाया जाए, ताकि पोपा में बैठकर अन्य ग्रहों को ढूंढा जाए, जहां लोग बसते हैं। जम्बरा, देव के कहने-समझाने पर ही, काम पर लगा हुआ था।
देव, किले के मुख्य हॉल में जाकर जम्बरा से मिला।
जम्बरा की उम्र पचास के करीब थी। वो तेज दिमाग का व्यक्ति था और देव को पसंद था वो इंसान, क्योंकि उसकी कही बात को वो तुरंत समझ जाता था कि वो क्या चाहता है।
“कहो जम्बरा।” देव मुस्कराकर कह उठा-“तुम कैसे आ गए?”
बबूसा भी पास था।
“आप तो इन दिनों बहुत व्यस्त दिख रहे हैं। मेरे भेजे संदेशों का भी जवाब नहीं दिया।” जम्बरा ने कहा।
“हां। इसे तुम मेरी लापरवाही भी कह सकते हो। परंतु हर पल मुझे तुम्हारा ध्यान जरूर रहा।” देव बोला।
“आपके कहे मुताबिक मैंने पोपा की सारी मशीनरी तैयार कर ली है। आप एक बार उन्हें देख लीजिए।” जम्बरा ने कहा-“और पोपा की बॉडी के लिए, धातु में एक केमिकल मिलाकर, नई तरह की धातु तैयार की है और उसकी बड़ी-सी परत बनाई है। उस पर मैंने हथियारों का इस्तेमाल किया, परंतु उस पर कोई असर नहीं हुआ। मेरे खयाल में पोपा की बॉडी उस धातु से बनाएं तो बहुत बेहतर रहेगा।”
“ये तो तुमने अच्छी खबर सुनाई।”
“आप एक बार उसे देख लें राजा देव। अंतिम निर्णय तो आपका ही होगा।”
“इस काम के लिए तो आपको फौरन चल देना चाहिए राजा देव।” बबूसा कह उठा-“ये महत्त्वपूर्ण कार्य है।”
देव के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“अगर आप व्यस्त हैं तो बात आगे तक के लिए भी टाली जा सकती है।” जम्बरा ने कहा।
“राजा देव व्यस्त नहीं हैं।” बबूसा कह उठा।
देव ने बबूसा को देखा।
“जम्बरा ने इतनी मेहनत से काम किए हैं, आपको देखने चाहिए।” बबूसा बोला।
“तुम इतनी जल्दी क्यों कर रहे हो बबूसा?” देव मुस्करा पड़ा।
“मैं जल्दी से पोपा की सैर करके दूसरे किसी ग्रह पर जाना चाहता हूं कि देखूं तो सही कि क्या दूसरा ग्रह हम जैसा है या अलग है।” बबूसा ने मुस्कराकर कहा-“मैं चाहता हूं कि आप जल्द-से-जल्द पोपा तैयार कर दें।”
“जम्बरा को किले में ठहरा दो।” देव ने कहा-“कल हम जम्बरा के साथ ही वहां चलेंगे।”
“आपने बहुत अच्छा फैसला किया।” बबूसा सिर हिलाकर कह उठा।
“तुम्हें याद है कि हमने आज कहीं जाना है।” राजा देव ने बबूसा से कहा।
“मैं भूला नहीं हूं। जम्बरा को कमरे में ठहरा दूं, फिर चलते हैं राजा देव।” बबूसा ने मुस्कराकर कहा।
किले में रोज की भांति चहल-पहल थी। सब कर्मचारी अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। बबूसा, जम्बरा को लेकर किले के ऊपरी हिस्से में चला गया था। वक्त बिताने की खातिर देव किले में घूमने लगे। किले के पीछे के हिस्सों में बहुत बड़े हॉल में बीस-पच्चीस लोग बड़े-बड़े चूल्हे जलाए, किले के कर्मचारियों का खाना तैयार कर रहे थे। मसालों की महक वहां फैली थी। किले का मुख्य कर्मचारी ओका देव के पास पहुंचकर बोला।
“हुक्म राजा देव।”
“किले के बाहर, आम लोगों का खाना तैयार कर चुके हो?” देव ने पूछा।
“हां राजा देव। वो तो सुबह ही तैयार कर दिया था। बाहर लोग खा रहे हैं।” ओका ने कहा।
“धूप में उन्हें खाने में परेशानी होती होगी। बबूसा से बात करके उनके लिए छप्पर डलवाने का इंतजाम कर दो।”
“जो हुक्म।” ओका बोला-“परंतु राजा देव शीघ्र ही मौसम बदलने वाला है, तेज हवाएं और तूफान उठेंगे कुछ वक्त के बाद और छप्पर टिका नहीं रह सकेगा। आगे जो आप हुक्म करें।”
देव ने सोच भरी निगाहों से ओका को देखकर कहा।
“ठीक है। अगली बार जब गर्मियां आएं तो छप्पर का इंतजाम पहले ही कर देना।”
“जो हुक्म।”
देव किले में टहलता रहा। सब तरफ के काम देखता रहा। आधा घंटा बीत गया।
बबूसा, देव के पास आकर बोला।
“आप यहां और मैं आपको किले के हर कोने में ढूंढ़ता फिर रहा हूं राजा देव। चलिए, बग्गी तैयार है।”
देव के होंठों पर मुस्कान नाच उठी कि अब ताशा से मिलेगा।
देव चलने लगा तो बबूसा ने कहा।
“आपने बहुत ही साधारण कपड़े पहन रखे हैं। दूसरे कपड़े...”
“ताशा से मिलने के लिए ये ही कपड़े ठीक हैं। वो नहीं जानती कि मैं राजा देव हूं।” देव ने कहा।
उसके बाद वे साधारण बग्गी में सवार हुए और ताशा के घर की तरफ चल पड़े। बबूसा कोचवान बना बैठा था। आज तो उसने बग्गी में पानी का बर्तन भी रख लिया था। रास्ते में न तो बबूसा ने ताशा की कोई बात की और न ही देव ने। देव की आंखों के सामने ताशा का चेहरा नाच रहा था।
आखिरकार बबूसा ने बग्गी ताशा के घर के सामने, पेड़ की छाया में रोक दी।
देव बग्गी से उतरा और ताशा के घर (कमरे) की तरफ बढ़ गया। कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। ताशा बाहर नजर नहीं आ रही थी। वो खुले दरवाजे पर जा पहुंचा। भीतर झांका।
“ताशा।” देव ने धीमे स्वर में पुकारा।
ताशा की पीठ थी दरवाजे की तरफ। वो सूखे कपड़े की तह लगा रही थी। वो तुरंत घूमी और देव को आया पाकर वो हैरान हो उठी। दो पल तो कुछ कह न सकी।
“हैरान क्यों हो गई?” वहीं खड़े देव ने मुस्कराकर कहा।
“तुम-फिर आ गए?”
“हां। कल तुमने खोनम बहुत अच्छा बनाया था। आज फिर तुम्हारे हाथों का बना खोनम पीने का मन कर आया।” देव के होंठों पर मुस्कान छाई हुई थी-“आज भी खोनम पिलाओगी?”
ताशा उसके करीब आ पहुंची।
देव, ताशा के इंतेहाई खूबसूरत चेहरे को देखने लगा। आज वो और भी ज्यादा खूबसूरत लगी।
“अजीब लड़के हो तुम जो फिर खोनम पीने आ गए। कहीं से भी पी लेते।”
“तुम्हारे हाथ का खोनम पीना है।” देव मुस्कराए जा रहा था। “हर रोज तुम्हें खोनम पिलाऊंगी तो खोनम खत्म हो जाएगा। क्या पता पिता की लकड़ियां आज बिकती हैं या नहीं?” ताशा ने भोलेपन से कहा-“हम गरीब लोग हैं। रोज-रोज खोनम नहीं पिला सकते।”
“कल मैं तुम्हें ढेर सारा खोनम ला दूंगा।” देव ने कहा।
“सच में?”
“वादा।”
“फिर तो तुम्हें खोनम पिला दूंगी।” ताशा ने कहा-“परंतु मुझे तुम्हारा मन ठीक नहीं लगता।”
“वो कैसे?”
“तुम मुझे जैसे देखते हो, वो मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे देखते ही रहते हो।” ताशा कह उठी।
“क्योंकि तुम खूबसूरत हो और मुझे अच्छी लगती हो।” ताशा, देव को देखती रही।
देव के होंठों के बीच शांत और मधुर मुस्कान उभरी हुई थी।
“पानी पिलाऊं?” ताशा एकाएक बोली।
“तुम जो चाहो, पिला दो।”
ताशा ने कटोरी में उसे पानी दिया।
देव पानी पीते हुए भी ताशा को देखता रहा।
“तुम मुझे देखना बंद नहीं करोगे?” ताशा ने उससे कटोरी लेकर एक तरफ रख दी।
“तुम्हें बुरा लगता है?” देव ने पूछा।
“कल ज्यादा बुरा लगा था, आज ज्यादा बुरा नहीं लग रहा।” ताशा बोली।
“आज कम बुरा क्यों लग रहा है?” देव मुस्कराया।
ताशा मुस्करा पड़ी।
देव को उसकी मुस्कान बहुत अच्छी लगी।
“बैठ जाओ। खोनम बनाती हूं।”
देव भीतर आ गया। परंतु खड़ा रहा। ताशा को देखता रहा। ताशा बाहर जाकर चूल्हा जलाने लगी तो देव भी बाहर आ गया। नजरें ताशा पर रहीं। ताशा अपनी नीली आंखों से बार-बार देव को देख लेती थी जैसे कह रही हो कि देखो तुम फिर मुझे ही देखे जा रहे हो। खोनम बनाते समय एक बार तो ताशा मुस्करा पड़ी।
“क्या हुआ?” उसे मुस्कराते देखकर देव ने पूछा।
“तुम अजीब लड़के हो।”
“क्यों?”
“मुझे देखना बंद ही नहीं करते।”
“बताया तो कि तुम बहुत खूबसूरत हो।”
“पर किसी को ऐसे थोड़े न देखते हैं।”
“मुझे तुम पसंद आ गई हो।”
ताशा के होंठों के बीच दबी-दबी मुस्कान रेंगती रही।
खोनम बन गया। दोनों कमरे के भीतर अलग-अलग पलंग पर जा बैठे।
देव के हाथ में खोनम की कटोरी थी तो ताशा ने भी कटोरी थाम रखी थी।
“कल खोनम पीने मत आना। मैं नहीं पिलाऊंगी।” ताशा ने कहा।
“क्यों?”
“तुम दीवानों की तरह मुझे देख रहे हो, ये बात ठीक नहीं।” ताशा बोली-“मुझे अजीब-सा लगता है।”
“मुझसे शादी करोगी?” देव ने मुस्कराकर कहा।
“क्या?” ताशा हड़बड़ा उठी।
“अगर तुम मुझे पसंद करती हो तो, मैं तुमसे शादी कर सकता हूं।” देव बोला।
ताशा एकटक नीली आंखों से देव को देखने लगी।
देव खोनम की कटोरी थामे उसे ही देख रहा था।
फिर ताशा ने दरवाजे से नजर आती, सामने खड़ी बग्गी को देखा।
“तुम्हारे पास बग्गी है। धातु भी होगी।” ताशा बोली। वो गम्भीर दिखी।
“हां।” देव ने सिर हिलाया।
“मेरा पिता लकड़ियां जंगल से काटता है और उन्हें बेचकर पेट भरता है। कभी लकड़ियां बिक जाती हैं तो कभी किले के बाहर से खाना लाना पड़ता है। हम तुम्हारे बराबर के नहीं हैं।” ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हारी खूबसूरती सारी कमियां, छिपा देती हैं। मैं तुमसे शादी करूंगा। अगर तुम भी करना चाहो तो। आज से पहले मुझे कोई लड़की इतनी अच्छी नहीं लगी कि मैं अपने जरूरी काम छोड़कर उसके पास जाता। परंतु कल जब तुम्हें देखा तो मेरा जरूरी काम तुम ही बन गईं। रात भर तुम्हारे बारे में सोचता रहा। सपने में भी तुम नजर आती रहीं। उठने पर सबसे पहला ख्याल तुम्हारा ही आया। तुम मेरी जिंदगी की जरूरत बनती जा रही हो ताशा।”
ताशा चुप रही। रह-रहकर उसे देखती रही।
“मैं तुम्हें पसंद हूं?” देव ने पूछा।
“पता नहीं।” ताशा ने भोलेपन से कहा।
“कब पता चलेगा?”
“पता नहीं।” ताशा ने नजरें उठाकर देव को देखा।
देव, ताशा के इंतेहाई खूबसूरत चेहरे को देखता रहा।
“क्या मैं तुम्हारे पिता से शादी की बात करूं?”
“नहीं।” ताशा फौरन कह उठी-“अभी मैं शादी नहीं करना चाहती।”
“क्यों?”
“मेरी शादी हो गई तो पिता का ख्याल कौन रखेगा?” ताशा बोली
“मैं नौकर दे दूंगा। वो तुम्हारे पिता का ख्याल रखेगा।” देव ने कहा।
“नहीं।” ताशा ने इंकार में सिर हिलाया-“अभी मैं शादी नहीं करूंगी।”
“शायद तुम मुझे पसंद नहीं कर रहीं।” देव ने शांत स्वर में कहा।
ताशा ने देव को देखा और गम्भीर स्वर में बोली।
“मैं अभी शादी नहीं करना चाहती।”
देव ने खोनम की कटोरी खाली की और एक तरफ रखकर बोला।
“मैं तुम्हें हर समय देखते रहना चाहता हूं। तुम्हें जितना देखता हूं, देखने की चाहत और बढ़ जाती है। मैं तुम्हारा दीवाना होता जा रहा हूं। सच बात तो ये है कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है।”
“अब मेरे पास मत आना। ये अच्छा नहीं होगा। अब तुम्हें खोनम नहीं पिलाऊंगी।” ताशा ने उसे देखते गम्भीर स्वर में कहा।
देव मुस्कराया और उठ खड़ा हुआ।
ताशा वहीं बैठी उसे देखती रही।
“तुम्हारे पास आकर मुझे बहुत अच्छा लगता है।” देव बोला। “अब मेरे पास मत आना।”
देव, ताशा के खूबसूरत चेहरे को देखता रहा।
“मुझे, ऐसे मत देखो।” ताशा ने विरोध किया।
देव, खड़ा उसे देखता रहा।
“जाओ यहां से।” ताशा बोली।
देव मुस्कराकर पलटा और बाहर निकलता चला गया। चंद कदम ही आगे गया था कि दरवाजा बंद होने की आवाज आई। वो बग्गी के पास पहुंचा और भीतर जा बैठा।
“कहां चलना है राजा देव?” बबूसा कह उठा।
“महापंडित के पास चलो।” देव बोला।
बबूसा ने बग्गी वापस मोड़ी और मध्यम गति से आगे बढ़ा दी। घोड़ों की टापों की आवाज गूंज रही थी। देव ने बग्गी की खिड़की से ताशा के घर की तरफ देखा। दरवाजा थोड़ा-सा खुला हुआ था। देव को यकीन था कि ताशा बग्गी को जाते जरूर देख रही होगी। देव के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“बबूसा।” देव ने कहा-“मुझे ताशा से प्यार हो गया है।”
“तो उस लड़की का नाम ताशा है।” बबूसा कोचवान की सीट पर बैठे बोला।
“ताशा। कितना खूबसूरत नाम है।” देव ने गहरी सांस ली।
“उस लड़की को भी आपसे प्यार है।”
“पता नहीं। पूछने पर उसने जवाब नहीं दिया।”
“लड़की है। एकदम से तो ऐसी बात स्वीकार नहीं करेगी। उसके घर में कौन-कौन है?” बबूसा ने पूछा।
“वो और उसका पिता। पिता लकड़ियां बेचता है। मैंने उससे शादी करने को कहा।”
“सच राजा देव।” बबूसा ने खुशी से गर्दन घुमाकर देव को देखा-“आपकी बात सुनकर वो खुश हो गई होगी।”
“उसने मना कर दिया।”
“क्या?” बबूसा चौंका-“राजा देव को शादी के लिए मना कर दिया। हैरानी है कि...”
“वो नहीं जानती कि मैं राजा देव हूं।”
“आपने उसे बताया क्यों नहीं?”
“ये जानकर कि मैं राजा देव हूं। वो इंकार नहीं करती शादी से। मेरे रुतबे के अधीन हो जाती। जबकि मैं ऐसी लड़की से शादी करना चाहता हूं जो मेरे रुतबे से नहीं, मेरे से शादी करे। ताशा मुझे भली और अच्छी लड़की लगी। मैं उससे प्यार करने लगा हूं। शादी करना चाहता हूं, अगर वो इंकार करती है तो मैं पीछे हट जाऊंगा बबूसा।”
“आप उसके पिता से बात करें।”
“तुम भूल जाओ कि मैं राजा देव हूं। प्यार के मामले में मुझे साधारण इंसान समझो जो ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है, जो मुझे प्यार करे। मेरे राजा होने की बात, मेरे प्यार में नहीं आनी चाहिए।” देव गम्भीर स्वर में बोला।
करीब घंटे भर के सफर के बाद बग्गी वीराने में बने काफी बड़े मकान पर पहुंची, जिसके आस-पास दूर-दूर तक ऊंची चारदीवारी हुई पड़ी थी।
ये जगह आबादी से हटकर थी। विशाल गेट पर दो पहरेदार खड़े थे जो कि बबूसा को बग्गी पर आते देखकर गेट खोल दिया। बग्गी भीतर प्रवेश कर गई। भीतर कई रंगों के पेड़-पौधे खड़े थे। एक तरफ तीन बग्गियां खड़ी थीं। दो आदमी घोड़ों की मालिश कर रहे थे। बबूसा ने एक दरवाजे के सामने ले जाकर बग्गी रोकी और नीचे उतरा। देव भी बग्गी से बाहर आ गया था। घोड़ों की मालिश करने वाले ने देव को देखा तो पास आकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए। उन्होंने बताया कि महापंडित इस वक्त बंगले के पीछे मशीनों के पास है। देव और बबूसा उस विशाल मकान के गिर्द चक्कर काटकर बंगले के पीछे के हिस्से में पहुंचे। दूर तक जाती चारदीवारी के भीतर पचासों मशीनें मौजूद थीं। अजीब-अजीब तरह की मशीनें थीं। कोई एक पैर पर टिका रखी थी तो कोई दो पैरों पर खड़ी थी। कोई तीन तो कोई चार। उनके आकार-प्रकार भिन्न-भिन्न थे। कोई छोटी थी तो कोई विशाल, फैली हुई। कोई दस फुट ऊंची थी तो कोई मात्र एक फुट की। कई मशीनों से जुड़ी तारें निकलकर, ऊपर आसमान की तरफ उठी हुई थीं। कुछ मशीनों से इंसानों की तरह आवाजें निकल रही थीं, वो बातें करती दिख रही थीं, परंतु उनकी बातों का जवाब देने वाला वहां मौजूद नहीं था।
देव और बबूसा ने उन मशीनों में से महापंडित को ढूंढ़ निकाला जो पीले रंग के चमकीले कपड़े पहने एक मशीन पर हथौड़ा चला रहा था। गर्मी में महापंडित का पसीना बह रहा था चेहरे पर।
“महापंडित।” बबूसा ने पास पहुंचते कहा।
महापंडित ने फौरन नजरें उठाकर देखा। राजा देव पर निगाह पड़ते ही फौरन हथौड़े जैसा औजार छोड़कर उठा और खुशी भरे भाव में उनके पास पहुंचता कह उठा।
“ओह राजा देव। आइए-आइए, आज कैसे आना हो गया?”
“क्या कर रहे थे?” देव ने पूछा।
“मशीन ने संकेत देने कम कर दिए थे, ढीली पड़ गई तो ठीक कर रहा था।” महापंडित बोला-“हुक्म दीजिए।”
“मुझे ताशा नाम की लड़की से प्यार हो गया है।” देव बोला-“क्या वो मुझे मिल सकेगी? मैं उससे शादी करना चाहती हूं। परंतु वो तैयार नहीं है। वो नहीं जानती कि मैं राजा देव हूं।”
“मामूली-सा सवाल है। इसका जवाब भीतर रखी मशीन से मिल जाएगा। भीतर चलिए राजा देव।”
वो तीनों मकान की तरफ बढ़ गए।
“मेरी बहन कैसी है बबूसा?” महापंडित ने पूछा।
“मुझसे मत पूछो। इस सवाल का जवाब तुम्हें मशीनें बता देंगी।” बबूसा ने नाराजगी से कहा।
“तुम क्यों नहीं बताते?”
“तुमने ये बात कभी पसंद नहीं की कि मैं तुम्हारी बहन सोमारा से हर जन्म में शादी कर लेता हूं। इतना है तो तुम मेरा जन्म क्यों कराते हों जब मैं मर जाता हूं तो मुझे दोबारा क्यों पैदा करते हो। मेरे में बीते जन्म की सोमारा की यादें क्यों ताजा रखते हो?” बबूसा का स्वर गुस्से से भरा था।
“क्योंकि सोमारा तुम्हें बहुत पसंद करती है।”
“तो फिर तुम क्यों नाराज होते हो हमारे शादी करने से?”
“क्योंकि मैं तुम्हें पसंद नहीं करता।”
“क्यों?”
“नहीं पसंद करता तो नहीं पसंद करता। क्यों का कोई जवाब नहीं है।” महापंडित ने शांत स्वर में कहा।
“ये कभी भी मत भूलो कि सोमारा मेरे साथ बहुत खुश रहती है।”
“तभी तो तुम दोनों की शादी में मैं रुकावट नहीं डालता।”
वे तीनों मकान के भीतर पहुंचे।
मकान के भीतर की हालत भी अजीब-सी थी। बड़े-बड़े हॉल थे और हर जगह मशीनें रखी नजर आ रही थीं। वहां कोई और नहीं था। देव ने कहा।
“महापंडित, तुम कुछ लोगों को अपना सहायक क्यों नहीं रख लेते। अकेले सब कुछ संभालना कठिन है।”
“ये बात आप अक्सर कहते हैं राजा देव।” महापंडित आदर भाव से बोला-“परंतु मेरे काम को कोई भी समझ नहीं सकता। कोई मेरी सहायता नहीं कर सकता। ये सब सिर्फ मैं ही संभाल सकता हूँ।”
तीनों एक मशीन के पास जा रुके। लाल रंग की वो मशीन बेहद अजीब थी। उसके छः कोने उठे हुए थे और कई जगह से तारें निकलकर छत की तरफ उठी हुई थीं। महापंडित ने मशीन के एक लीवर को खींचा तो स्त्री की मध्यम-सी आवाज मशीन से उभरी।
“क्या है महापंडित?”
“राजा देव कुछ पूछना चाहता है। वो पूछे या मैं ही तुमसे बात करूं?”
चंद पलों की खामोशी के बाद मशीन से दूसरी आवाज उभरी “राजा देव से कहो कि जो पूछना है, पूछे।”
महापंडित ने राजा देव से मुस्कराकर कहा।
“आप पूछ सकते हैं राजा देव।”
“मुझे ताशा नाम की लड़की से प्यार हो गया है। मैं उससे शादी करना चाहता हूं। क्या वो तैयार होगी शादी के लिए?”
अगले ही पल मशीन के कई लीवर खुद-ब-खुद ही आगे पीछे होने लगे।
मशीन से निकलकर छत की तरफ खड़ी तारें, आपस में टकरा उठीं, फिर मशीन का पहिए जैसा हिस्सा जोरों से घूमा और रुक गया।
“काम हो जाएगा राजा देव।” मशीन से आवाज आई।
देव के चेहरे पर प्रसन्नता नाच उठी। बबूसा भी मुस्कराकर पड़ा।
महापंडित ने मशीन के लीवर को खींचकर वापस किया और देव से बोला।
“बधाई हो राजा देव। आप जिसे चाहते हैं, वो आपको मिल जाएगी।”
“ये कितनी अच्छी खबर है।” देव खुशी से कह उठा।
“ये सारे ग्रह के लिए अच्छी खबर है कि, सदूर को उनकी रानी देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा।” महापंडित मुस्कराकर कह उठा-“आइए राजा देव, मैं आपकी सेवा में खोनम पेश करता हूं।”
खोनम का जिक्र आते ही, देव की आंखों के सामने ताशा का चेहरा उभर आया। कुछ देर बाद महापंडित अपने हाथों से खोनम बना लाया। देव ने पिया।
बबूसा ने लिया और महापंडित ने भी खोनम की कटोरी थामकर घूंट भरा।
“मुझे बहुत खुशी हो रही है कि राजा देव को कोई लड़की पसंद आ गई है।” महापंडित बोला-“परंतु मेरे पास ये खबर पहले से थी, मशीन ने मुझे बता दिया था कि राजा देव को प्यार होने वाला है किसी से।”
“तो तुमने मुझे क्यों नहीं बताया?” देव ने महापंडित से कहा।
“मैं तो कब से आपके प्यार हो जाने का इंतजार कर रहा था। जिस दिन आप पहली बार उस लड़की से मिले तो मुझे उसी दिन मशीन ने बताया कि आपने उस लड़की से मुलाकात कर ली है। परंतु इस बारे में मेरा आपसे बात करना किसी भी हाल में ठीक नहीं था। मैं आपके मुंह से सुनना चाहता था।”
“तुम बहुत-सी बातें अपने तक ही रखते हो महापंडित।” देव मुस्कराया।
“ये जरूरी हो जाता है। जब तक बहुत जरूरी न हो, मैं होने वाली बात आगे नहीं करता। क्योंकि मशीनें मुझे भविष्य के बारे में बहुत कुछ बताती रहती हैं, उन बातों से मैं जरूरी बातें छांटता हूं और वो ही बताता हूं। अगर आपको हर बात बताऊं तो आपका बहुत समय बर्बाद हो जाएगा राजा देव।”
बबूसा और देव बग्गी में किले पर पहुंचे। सूर्य सदूर के ठीक किनारे पर टिका, तीखी रोशनी फेंक रहा था। उस रोशनी में परछाइयां हमेशा लम्बी ही रहती थीं। वो सुबह से शाम तक सदूर के किनारे पर ही टिका रहता और प्लेट जैसा आकार लिए सदूर सूर्य के सामने घूमता रहता और एक वक्त ऐसा भी आया कि सूर्य की रोशनी सदूर के ऊपर न पड़कर नीचे के हिस्से पर पड़ती और उस वक्त सदूर पर रात हो जाती।
“मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है राजा देव कि किले में रानी आने वाली है।” बबूसा बग्गी दौड़ाता कह उठा।
जवाब में देव मुस्कराकर रह गया।
“कल आपको जम्बरा के साथ देखने जाना है कि उसने पोपा की क्या तैयारी कर रखी है।” बबूसा ने जैसे याद दिलाया।
“तुम भी मेरे साथ चलोगे बबूसा।”
“जरूर राजा देव। मेरा तो काम ही हर पल आपके साथ रहना है।” बबूसा ने तुरंत कहा।
वे किले पर पहुंचे। किले की कर्मचारी दासियों ने देव को भोजन खिलाया।
खाने के दौरान देव जैसे ख्यालों में ताशा को ही देखता रहा। उसकी बातें सोचता रहा। रात हुई तो बबूसा ने आकर राजा देव को बताया कि उसने सोमारा को, ताशा वाली बात बताई है, वो बहुत खुश हुई सुनकर और जल्दी से जल्दी ताशा से मिलना चाहती है। फिर जम्बरा के साथ कल चलने की बातचीत हुई। बबूसा ने कहा कि लम्बा सफर है। दिन की रोशनी निकलने से पहले ही चल देना ठीक होगा। देव ने कारू (शराब) के दो गिलास पिए कि रात को ठीक से नींद ले सके, वरना वो जानता था कि ताशा का ख्याल उसे सोने नहीं देगा। जब तक देव खाना खाकर सो नहीं गया, तब तक बबूसा पास में ही रहा। कल के सफर के लिए, कोचवान को तैयार रहने और बग्गी तैयार रखने को कह दिया था। राजा देव की बग्गी को तो बबूसा, शानदार ढंग से सजाने पर लगा था। उसका काम चल रहा था। ऐसे में दूसरी बढ़िया बग्गी कल के लिए तैयार रखी गई थी। सारी तैयारी करके ही बबूसा रात सोया था। अगले दिन, दिन का उजाला फैलने से पहले ही सफर शुरू हो गया। चालीस बरस का कोचवान मुस्तैदी से बग्गी को दौड़ाने लगा। जवान घोड़े लगे थे, इस वक्त रास्ते सुनसान थे। इस बग्गी में छोटे-छोटे दो कमरों जैसे केबिन थे। एक कोचवान की तरफ था, जिसमें आरामदेह सीट पर देव मौजूद था। पीछे वाले केबिन में बबूसा और जम्बरा मौजूद थे। सफर लम्बा था। दिन भर बग्गी ने इसी तरह दौड़ाना था सिर्फ दोपहर का खाना, खाने के लिए रुकना था या फिर खोनम बनाने, पीने के लिए रुकना था। बबूसा रास्ते में जरूरत पड़ने वाले सारे सामान को साथ ले आया था। घोड़ों के टापों की आवाज बराबर कानों में पड़ रही थी। पोपा बनाने के लिए ऐसी जगह चुनी गई थी, जहां आम लोगों का आना जाना न होता हो। ताकि आराम से काम हो सके। वो जगह पहाड़ों को पार करके, सदूर के एक कोने में थी जहां खुले मैदान थे। वीरान-घने जंगल थे और पथरीली जमीन थी। उस तरफ आबादी नहीं थी। किले से वहां तक का सफर पूरे दिन का था। अगर पहाड़ों पर चढ़कर, उन्हें पार करके उस तरफ पहुंचा जाए तो सफर छोटा हो जाता था, परंतु बग्गी से जाने का रास्ता इसलिए लम्बा था कि उन्हें पहाड़ों के गिर्द लम्बा चक्कर काटकर, जाना पड़ता था, परंतु ये रास्ता सुरक्षित था, पहाड़ों पर से जाने से विद्रोहियों का सामना हो जाने का खतरा था। वहां विद्रोहियों ने अपना ठिकाना बना रखा था।
देव आंखें बंद किए ताशा के बारे में सोच रहा था कि आज ताशा को नहीं देख पाएगा। आज क्या, अगले कई दिन ताशा से दूर रहना होगा। क्योंकि पोपा वाले स्थान पर पहुंचकर व्यस्त हो जाना था। पोपा को बनाना देव के मन की उड़ान थी, वो पोपा में बैठकर अंतरिक्ष की सैर पर निकलना चाहता था। पहली बार जब देव ने जम्बरा को अपने मन की बात बताई तो जम्बरा, देव के ख्यालों से जरा भी सहमत नहीं हुआ था। परंतु देव ने जो सोचा था, उसे वो पूरा करना चाहता था। देव ने पोपा का मॉडल बनाया, पोपा के भीतर का नक्शा बनाया, पोपा को तैयार करने के लिए जिन-जिन पार्ट्स की जरूरत थी, उसकी लिस्ट बनाई और जम्बरा को समझाकर पार्ट्स बनाने के, तैयार करने के काम पर लगा दिया। चार सालों से जम्बरा देव के कहने पर काम कर रहा था। अब तो जम्बरा को भी इस काम में दिलचस्पी होने लगी थी। इस बीच देव उसे नए पार्ट्स की लिस्ट भी देता रहा और बीच-बीच में देव, जम्बरा के तैयार किए पार्ट्स को चेक भी करता था परंतु ये सब काम पूरा होने के बाद, बात यहां आ रुकी थी कि पोपा की बॉडी ऐसे ठोस पदार्थ की होनी चाहिए कि अंतरिक्ष में कोई चीज पोपा से टकराए तो उसे नुकसान न हो। ये काम जम्बरा ने अपने सिर पर ले लिया और अब जम्बरा का कहना था कि उसने धातु में कुछ केमिकल मिलाकर, पोपा की बॉडी के रूप में ऐसी चीज तैयार की है कि उसे कोई चीज आसानी से नुकसान नहीं पहुंचा सकती। जम्बरा इस सारे मामले को पूरा करने के लिए, गम्भीर था। दिन भर का सफर लम्बा और थकान से भरा था। रास्ते में तीन जगह थोड़ी-थोड़ी देर के लिए रुके थे।
देव सफर के दौरान ताशा को याद करता रहा और मुस्कराता रहा।
अंधेरा होते-होते सफर भी पूरा हो गया।
बग्गी जहां आ रुकी थी, वहां छोटे-छोटे मकान बने हुए थे। इस वक्त वहां रोशनी वाली मशालें जल रही थीं। कई लोग भी दिखे। ये सब जम्बरा के सहायक थे पोपा बनाने के काम में। बबूसा के साथ एक मकान में देव ने नहा-धोकर कपड़े बदले और उसके कहने पर बबूसा ने कारू (शराब) का इंतजाम कर दिया। रात भर आराम करने के बाद देव सुबह पोपा के कामों में देखना चाहता था। लम्बे सफर के बाद उसे आराम की जरूरत थी।
“तुम चाहो तो कारू ले सकते हो बबूसा।” देव ने कहा।
“जब आप खाना खा लेंगे तो तब मैं कारू लूंगा राजा देव।” बबूसा मुस्कराकर बोला। अगले दिन देव काम पर लग गया। जम्बरा के तैयार किए पार्ट्स उसके एक बार फिर चेक किए, कुछ नए पार्ट्स की लिस्ट भी जम्बरा को दी कि उन्हें भी तैयार करना है। फिर जम्बरा द्वारा तैयार किए गए, पोपा की बॉडी के उस टुकड़े को देखा। धातु की उस छोटी-सी चादर का कई बार कई तरह से परीक्षण किया। इस काम में उसे तीन दिन लग गए। परंतु वो खुश था कि जम्बरा ने पोपा की बॉडी के लिए बढ़िया धातु तैयार की है। ऐसे में अंतरिक्ष में पोपा सुरक्षित सफर कर सकेगा।
“जम्बरा।” देव ने मुस्कराकर कहा-“तुमने बढ़िया बॉडी बनाई है।”
“आपके दिशा निर्देश से ही मैं सब कुछ कर पा रहा हूं राजा देव।” जम्बरा बोला।
“मैं तुम्हें पोपा की बॉडी के लिए खास साइज के धातु के बड़े-बड़े टुकड़े तैयार करने को दूंगा। जाते वक्त सब समझा जाऊंगा। मेरे ख्याल में हम पोपा के निर्माण के करीब पहुंचते जा रहे हैं।” देव ने जम्बरा से कहा।
“मैं सोचता हूं कि हमें पोपा का निर्माण शुरू कर देना चाहिए। तब जैसे-जैसे पार्ट्स की जरूरत पड़ती जाएगी, हम तैयार करते रहेंगे।” जम्बरा बोला-“पोपा के लिए...”
“जम्बरा।” देव ने सोच भरे स्वर में कहा-“इस तरह तो पोपा तैयार करने में बहुत वक्त खर्च हो जाएगा। पोपा के निर्माण की शुरुआत तक कम-से-कम हमें वो पार्ट्स तो तैयार कर ही लेने चाहिए, जिनकी जरूरत पड़ेगी। मैंने तुम्हें जो नए पार्ट्स की लिस्ट दी है, वो पार्ट्स तैयार करो और पोपा की बॉडी के लिए धातु की शीट के बड़े-बड़े टुकड़े तैयार करो। मैं चाहता हूं कि जब पोपा का निर्माण करूं तो एक ही बार में तैयार कर डालूं पोपा को।”
देव यहां आठ दिन रहा और व्यस्त रहा। एक बार भी ताशा को याद नहीं किया। पोपा से वास्ता रखती बहुत चीजें देखनी थीं। देव उन्हीं में उलझा रहा था। जम्बरा को आगे का काम देकर, बबूसा के साथ वापस किले की तरफ बग्गी में रवाना हो गया। तब ताशा की तरफ ध्यान गया कि इतने दिन उसे न आया पाकर ताशा क्या सोच रही होगी। या उसे भूल गई होगी। याद भी न करती हो उसे, क्या पता?
देव किले में पहुंचा।
रात भर लम्बे सफर की थकान उतारी। अगले दिन ताशा से मिलने जाना था। ताशा का चेहरा उसकी आंखों के सामने नाच उठा कि कितनी खूबसूरत है वो, पहली बार में ही दिल में आ उतरी। इतने दिन बाद उसे सामने पाकर हैरान तो जरूर होगी। सोच रही होगी, अच्छा है जो नहीं आया।
अगले दिन सुबह बबूसा ने सेनापति धोमरा के आने की खबर दी।
देव, धोमरा से मिला जो विद्रोहियों की खबर लाया था। उसने कहा।
“राजा देव। हमारे लोग विद्रोहियों को पहचानते जा रहे हैं। परंतु उनकी संख्या ज्यादा है। विद्रोहियों के नेता तोलका ने दूर पहाड़ों में अपना ठिकाना बना रखा है। वहां और भी साथी हैं उसके। मेरे ख्याल में तोलका पर हमला बोल दें तो ज्यादा ठीक रहेगा। सदूर का राजा बनने की इच्छा में, वो ही भोले-भाले लोगों को फुसलाता रहा है विद्रोह के लिए। अगर तोलका नहीं रहेगा तो बाकी विद्रोही खुद ही ठीक हो जाएंगे।”
“तोलका पहाड़ों से बाहर नहीं आता?” देव ने पूछा।
“नहीं। वो पहाड़ों पर ही छिपा रहता है। उसके साथ ढेर सारे साथी होते हैं।” धोमरा ने बताया।
“कितने साथी उसके पास होते हैं?”
“ये जानकारी नहीं है।”
“जानकारी इकट्ठी करो और जिन पहाड़ों के पास तोलका रहता है, वो जगह कैसी है, नक्शा तैयार करो।”
“ये काम हो जाएगा। मैंने कुछ विद्रोहियों को अपने साथ मिला लिया है। उनसे पता चल जाएगा।”
धोमरा चला गया।
तब बबूसा ने देव से कहा।
“राजा देव। सदूर के एक व्यक्ति ने आपको चुनौती दी है। वो आपको हरा कर, सदूर का राजा बनाना चाहता है। चार दिन पहले वो किले पर आया था और अपना नाम-पता नोट करा गया है। मुकाबले के लिए उसे कौन-सा दिन दें?”
“कल का दिन दे दो।” देव ने कहा।
“ठीक है। किले का कर्मचारी आज उस व्यक्ति के घर पर सूचना दे आएगा।” बबूसा ने कहा।
“ताशा के यहां जाना है बबूसा।”
जवाब में बबूसा के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।
“मैं तो तैयार हूं राजा देव। कौन-सी बग्गी पर जाना चाहेंगे?”
“साधारण बग्गी पर।” देव बेचैन था जल्दी निकलने को-“तुम बग्गी लेकर किले के दरवाजे के सामने पहुंचो, मैं आ रहा हूं। देर मत लगाना। अभी तक खड़े हो जल्दी जाओ।”
बग्गी दौड़ती रही, देव व्याकुल भाव से पहलू बदलता रहा जब तक कि बग्गी ताशा के घर के सामने वाले रास्ते पर जाकर रुक नहीं गई। देव जल्दी से उतरा और तेज-तेज कदमों से ताशा के एक कमरे के घर की तरफ बढ़ गया, जिसका दरवाजा खुला हुआ था। दरवाजे पर पहुंचते ही पुकार उठा।
“ताशा।”
ताशा सामने ही खड़ी थी, एकटक उसे देख रही थी।
“ताशा-ताशा...” देव को कोई शब्द न मिले कहने को। चेहरे पर खुशी उमड़ रही थी।
एकाएक ताशा की नीली आंखों से आंसू बह निकले।
“ताशा...”
“झूठे-मक्कार।” ताशा भीगे स्वर में कह उठा-“इतने दिन से कहां थे तुम। मैं तुम्हारा इंतजार करती रही। तुम तो शादी के लिए कह रहे थे और फिर आए ही नहीं।” ताशा के गालों पर आंसू आ लुढ़के थे।
देव परेशान होकर आगे बढ़ा और ताशा को आंसू पोंछते प्यार से कांपते स्वर में बोला।
“आंसू मत बहाओ ताशा, मैं आ गया हूं।”
“इतने दिन क्यों नहीं आए?” ताशा ने आंसुओं भरी आंखों से उसे देखा।
“किसी काम में व्यस्त हो गया था।”
“देव।” ताशा ने कहा और देव से लिपट गई-“तुम आए नहीं और मुझे रोज तुम्हारे आने का इंतजार रहता। तब मैंने जाना कि प्यार क्या होता है। मुझे तुमसे प्यार हो गया है देव।”
“मैं भी-मैं भी तुमसे प्यार करता हूं ताशा।” देव ने बांहों का घेरा, उसके गिर्द कस लिया।
“मुझे छोड़ के तो नहीं जाओगे?” उसके सीने पर सिर रखे ताशा कह उठी।
“नहीं, कभी नहीं ताशा। मैं तो तुम्हें कब से अपना माने बैठा हूं।” देव प्यार में गुम हो गया था।
“मुझसे शादी करोगे देव?”
“हां। जरूर। हम दोनों एक साथ जीवन जिएंगे ताशा। एक साथ रहेंगे। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। जब से तुम्हें देखा है, मेरा चैन छिन चुका है। हर वक्त तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूं।”
एकाएक ताशा हौले से हंसी और उससे अलग हो गई। आंखें अभी भी गीली थीं।
“तुम दीवाने हो।”
“सच में-मैं तुम्हारा दीवाना हूं ताशा।”
“मैं भी तुम्हारी दीवानी हो गई हूं देव। जब तुम नहीं आए तो मैं ये ही सोचा करती थी कि क्या तुम अब कभी नहीं आओगे। मैं हमेशा दरवाजे पर बैठी सामने के रास्ते पर जाते लोगों को देखती रहती, कोई बग्गी नजर आती तो लगता तुम आ गए हो। जब बग्गी आगे निकल जाती तो मुझे रोना आ जाता कि तुम नहीं आए।” ताशा मुस्करा रही थी।
“अब मैं आ गया हूं ताशा।” देव ने तड़पकर ताशा का हाथ पकड़ लिया।
दोनों एक-दूसरे को देखते, अपने ख्वाबों की दुनिया की बुनियाद रखने लगे थे जैसे।
“खोनम पिओगे न, बनाती हूं।” ताशा ने हाथ छुड़ाकर कहा।
“तुम्हारा खोनम खत्म हो जाएगा।” देव ने शरारत भरे स्वर में कहा।
ताशा खिलखिलाकर हंस पड़ी।
उसका इस तरह खिलखिलाना देव को बहुत अच्छा लगा। ताशा ने दरवाजे के बाहर मौजूद चूल्हा जलाया और खोनम बनाने में लग गई। दरवाजे पर आ खड़ा देव उसे प्यार भरी निगाहों से देखने लगा।
“शरारती, तुम फिर मुझे देखे जा रहे हो।” ताशा मुस्कराते हुए मुंह बनाकर कह उठी।
“तुम मेरी हो। दिल चाहता है तुम्हारे सामने बैठा तुम्हें देखता रहूं और जिंदगी बीत जाए।”
“दीवाना।” ताशा हंस पड़ी फिर बोली-“ऐसा क्या काम पड़ गया था जो मेरे पास नहीं आए?”
“किसी काम के लिए कहीं दूर जाना पड़ा था। पहाड़ों के उस पार।”
“इतनी दूर।” ताशा ने नीली आंखें फैलाईं।
देव, ताशा के खूबसूरत चेहरे को देखता रहा।
“तुम करते क्या हो?”
“फिर बताऊंगा।” देव मुस्कराकर बोला।
“अभी क्यों नहीं?”
“अभी तो तुम्हें देख रहा हूं। तुम्हें जितना देखता हूं देखने की चाह और बढ़ जाती है।” देव ने प्यार भरे स्वर में कहा।
“पागल।”
“तुम्हारा पागल। ताशा का पागल। तुमने सच में मुझे पागल कर दिया है।”
“घर में कौन-कौन हैं तुम्हारे?”
“अकेला हूं। कुछ साल पहले पिता नहीं रहे।”
“अकेले रहते हो तो खाना कैसे खाते हो?” ताशा ने देव को देखा।
“नौकर बनाते हैं।” देव मुस्कराया।
“फिर तो तुम्हारे पास धातु बहुत ज्यादा होगी।” ताशा ने भोलेपन से कहा।
देव, ताशा को देखता रहा।
खोनम तैयार हो गया। ताशा ने खोनम दो कटोरियों में डाला और वे भीतर जा बैठे।
“बाहर घूमने चलते हैं ताशा।” देव ने कहा-“बग्गी में बैठकर।”
“मैं नहीं जाऊंगी, लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे। पिता सुनेगा तो मेरी जान ही ले लेगा।”
“किसी को पता नहीं चलेगा।” देव मुस्करा रहा था।
“कैसे?”
“तुम घर से निकलकर, इस रास्ते के चौराहे पर पहुंच जाओ, फिर वहां बग्गी में बैठ जाना।”
“कोई देख लेगा तो...”
“कोई नहीं देखेगा।”
“बाजार में तो कोई देख ही लेगा। पिता भी वहां पर होते...”
“हम बाजार में नहीं जंगल जाएंगे। पास के जंगल। वहां बातें करेंगे। तुम्हारे साथ वक्त बिताऊंगा। तुम्हें जी भरकर देखूंगा। तुम्हारा हाथ पकडूंगा। तुम्हारे साथ रहना मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
ताशा कुछ सोच में डूबी रही फिर धीमे से बोली।
“कल चलूंगी।”
“आज क्यों नहीं?”
“पता नहीं क्यों मुझे डर लग रहा है।” ताशा ने भोलेपन से कहा।
“कल डर नहीं लगेगा?” देव ने शरारत भरे स्वर में कहा।
“तुम बस, कल आना। आज नहीं। मेरा दिल धड़क रहा है।” ताशा ने अपने सीने पर हाथ रखा।
देव, ताशा को देखता रहा।
“तुम फिर दीवानों की तरह मुझे देखने लगे।” ताशा कह उठी। “कल मैं कुछ देर से आऊंगा।” एकाएक देव ने कहा, उसे याद आ गया था कि कल उस आदमी से मैदान से मैदान में मुकाबला करना है, जिसने उसे चुनौती दी थी।
“देर से?”
“थोड़ी देर से। कल मुझे बहुत जरूरी काम है। तुम दरवाजे पर ही रहना। मेरी बग्गी देखकर घर से पैदल ही चौराहे की तरफ चल देना और चौराहे पर खड़ी बग्गी में जा बैठना फिर हम जंगल में घूमेंगे। बातें करेंगे।”
वापसी पर देव खुशी से झूम रहा था। आज उसे उतनी ही खुशी हो रही थी, जितनी कि पोपा को बनाकर, सफल उड़ान उड़ने पर होती। देव की खुशी का ठिकाना नहीं था।
“बबूसा।” बग्गी के आगे बढ़ते ही देव बोला-“आज मैं बहुत खुश हूं तुम जो भी मांगो, मैं दूंगा।”
“मुझे और क्या चाहिए राजा देव। हर समय आपकी सेवा करते रहने का मन करता है।”
“कुछ भी मांगो बबूसा।”
“नहीं राजा देव। मैं कुछ भी नहीं मांग सकता। आपका दिया सब कुछ है। पर इस खुशी की वजह भी तो बताइए।”
“ताशा भी मुझे प्यार करती है बबूसा। वो भी मुझे चाहती है।”
“ये सच में खुशी की बात है। क्या वो जानती है कि आप राजा देव हैं?” बबूसा ने बग्गी दौड़ाते पूछा।
“नहीं जानती।”
“आप कब तक ये बात उससे छिपाएंगे। कभी तो बतानी पड़ेगी।” बबूसा बोला।
“मैं कुछ भी छिपा नहीं रहा। उचित वक्त आएगा तो उसे पता चल जाएगा।” देव की खुशी पंख लगाकर उड़ रही थी-“मुझे समझ में नहीं आता कि इस खुशी के मौके पर मैं क्या करूं? मैं उड़ना चाहता हूं बबूसा।”
“बबूसा के बस में होता तो वो अभी आपको पंख लगा देता राजा देव।” बबूसा ने हंसकर कहा-“आपको इतना खुश कम ही देखा है। आप इसी तरह हमेशा खुश रहें और मैं आपकी सेवा करता रहूं।”
किले पर पहुंचने के बाद भी देव चैन से नहीं बैठ पाया। ताशा की मोहनी सूरत आंखों के सामने नाचती रही और वो किले के चक्कर तब तक लगाता रहा, जबकि थक नहीं गया। रात के खाने के बाद आकर बबूसा ने कहा।
“मैंने सोमारा को बताया कि राजा देव को ताशा पसंद आ गई है। वो ताशा से मिलना चाहती है राजा देव।”
“किसी मुनासिब वक्त पर सोमारा को ताशा से मिला देना बबूसा।” देव ने मुस्कराकर कहा।
“सोमारा सदूर की रानी को देखने के लिए बेचैन है।” बबूसा ने खुशी से कहा।
देव चाहता था कि कोई उससे ताशा की बातें करता रहे। परंतु बबूसा बोला।
“राजा देव। अब आपको वक्त पर सो जाना चाहिए। कल सुबह मुकाबला है मैदान में।”
अगले दिन सूर्य निकलने के तीन घंटों पश्चात देव, एक बग्गी में मैदान की तरफ रवाना हुआ। कोचवान बग्गी को चला रहा था। और बबूसा व्याकुल-सा देव के पास बैठा था।
“क्या बात है बबूसा?” देव ने पूछा।
“मैं मुकाबले को लेकर चिंतित हूं।”
“ये कोई पहली बार तो नहीं है।” देव ने मुस्कराकर कहा-“सदूर का राजा बनने के लिए मैंने सैकड़ों चुनौतियों का सामना किया है। ये मेरे लिए मामूली बात है, ऐसा मुकाबला करना।”
“ये बात नहीं राजा देव।” बबूसा ने कहा-“ओका (किले का मुख्य कर्मचारी) ने मुझे बताया है कि आज जो आपके मुकाबले पर उतरने वाला है, वो खतरनाक योद्धा है। माना हुआ लड़ाका है।”
“जानते हो मैं क्या सोच रहा हूं।” देव मुस्करा रहा था।
“बताइए राजा देव?”
“जल्दी से मुकाबला खत्म करूं और ताशा से मिलने चल दूं।” बबूसा व्याकुल-सा देव के मुस्कराते चेहरे को देखने लगा।
“आपको मुकाबले की जरा भी चिंता नहीं है।” बबूसा ने गहरी सांस ली।
“मुझे ताशा से मिलने की चिंता है।”
“राजा देव, मुझे डर है कि आज कहीं आप धोखा न खा जाएं। ओका की बात को गम्भीरता से लें।”
बग्गी आबादी से हटकर, ऐसी खाली जगह पर पहुंची, जिसे मुकाबले के मैदान के रूप में जाना जाता था। कल सब जगह मुकाबले की मुनादी करा दी गई थी, जिसके कारण मैदान में लोगों की भीड़ नजर आ रही थी। धोमरा की फौज के कई सिपाही वहां मौजूद थे और लोगों को, बड़े-से घेरे के रूप में मैदान में खड़ा कर रखा था। मुकाबले के लिए हमेशा की तरह तैयारी पूरी हो चुकी थी। देव बग्गी से उतरने लगा तो बबूसा चिंता से बोला।
“राजा देव, लापरवाह मत होइएगा।”
देव मुस्कराया और बग्गी से उतरकर सामने बने कपड़े के कमरे की तरफ बढ़ गया। वैसा ही कपड़े का कमरा, कुछ दूरी पर एक और बना हुआ था। देव के आते ही वहां लोगों का शोर उमड़ पड़ा। दस मिनट बाद देव उस कपड़े के कमरे से बाहर निकला तो कमर के गिर्द लंगोट जैसा कपड़ा बांध रखा था और माथे पर एक मैले से कपड़े की पट्टी बांध रखी थी, जो कि उसके सिर के बालों को समेटे हुए थी। वो नंगे पांव था। वहां से निकलकर वो लोगों की भीड़ की तरफ बढ़ गया। भीड़ अब खामोश हो गई थी। उन्होंने रास्ता दे दिया और देव लोगों के घेरे के बीच जा पहुंचा था, तभी उसकी निगाह अपने प्रतिद्वंदी पर पड़ी। वो बीस बरस का, देव से डेढ़ गुणा लम्बा चौड़ा स्वस्थ युवक था। उसने भी लंगोट जैसा कपड़ा कमर में लपेट रखा था। हाथ में तलवार जैसा हथियार था और खतरनाक निगाहों से देव को देख रहा था। अचानक ही वहां खामोशी ठहरती चली गई।
देव की आंखों में खतरनाक भाव मचल उठे थे। शरीर में अजीब-सा तनाव आ गया था। उसकी निगाह मुकाबले पर उतरे योद्धा पर थी। दोनों कई पलों तक खड़े एक-दूसरे को देखते रहे। उनके बीच तीस कदमों का फासला था। बबूसा भी भीड़ में सबसे आगे खड़ा हुआ था।
एकाएक देव और प्रतिद्वंदी एक दूसरे की तरफ बढ़ने लगे।
अब देव को ताशा की याद नहीं आ रही थी। उसे सिर्फ अपना शिकार ही दिखाई दे रहा था जो उसे मारकर राजा बनना चाहता था, सदूर का। देव अपनी बांहों में अजीब-सी लहरें दौड़ाती महसूस कर रहा था।
दोनों दस कदमों के फासले पर आकर रुक गए।
“राजा देव।” वो युवक मुस्कराकर कह उठा-“तुम्हारे राज्य करने के दिन खत्म हो गए।”
देव खामोशी से उसे देखता रहा।
“अब सदूर का राजा मैं बनूंगा। मैं तुमसे ज्यादा ताकतवर हूं। मेरे से कोई जीत नहीं सकता। तुम्हारी मौत मेरे ही हाथों लिखी है। तुम चाहो तो अपनी जान बचा सकते हो। सदूर का राज्य मेरे हवाले कर दो। मुझे राजा बना दो। इस तरह तुम बाकी का जीवन जी सकोगे। मैं उम्र भर के लिए तुम्हारे खाने-पीने का इंतजाम कर दूंगा।”
देव एकटक, अपने शिकार को देखे जा रहा था।
“अगर तुमने मरने की सोच ही ली है तो मैं अब तुम्हारी जीवन समाप्त करने जा रहा हूं।” योद्धा हंसकर बोला।
देव चुप रहा।
“मेरे पास ताकत भी है और हथियार भी। तुम भी कोई हथियार ले लो।” योद्धा अगले ही पल तीखे स्वर में कह उठा।
देव की नजरें उसी पर रहीं।
“लो, मरो।” कहने के साथ ही योद्धा तलवार थामे, देव पर झपट पड़ा और वार किया।
देव आसानी से खुद को बचा गया।
योद्धा के होंठों से गुर्राहट निकली और वो पुनः देव पर झपटा।
देव ने उसके वार से फुर्ती से खुद को बचाया और कई कदम दूर जा खड़ा हुआ।
“तू मेरे हाथ से ही मरेगा।” वो गुर्रा उठा। अब तलवार थामे धीमे-धीमे वो देव की तरफ बढ़ने लगा। उसकी आंखों में क्रोध भरी सुर्थी चमक रही थी-“डर लग रहा है मुझसे।”
देव के होंठ सख्ती से बंद थे। वो बेहद सतर्क था। एकाएक योद्धा ने देव पर वार किया। परंतु उसी पल देव जगह छोड़ चुका था। तलवार जमीन पर लगी। वार खाली जाते देखकर वो और भी क्रोधित हो उठा। होंठों से तेज गुर्राहट निकली और तलवार थामे वो तेजी से देव की तरफ दौड़ा। उसके करीब आते ही देव ने ऊंची उछाल ली और वो नीचे से निकलकर आगे बढ़ गया, हवा में मौजूद देव नीचे आया और पैरों पर खड़ा, योद्धा को देखने लगा।
योद्धा ठिठककर तुरंत पलटा और वहशी निगाहों से देव को देखा।
देव के होंठ भिंचे थे। एकाएक योद्धा को देखते वो मुस्करा पड़ा। मुस्कान का असर उस पर, तेजाब की भांति हुआ। वो दहाड़कर तलवार वाला हाथ उठाए, देव पर झपट पड़ा। देव भी तेजी से आगे बढ़ा और उसका तलवार वाले हाथ की कलाई को पलक झपकते ही थामा और कलाई की पूरी ताकत से दबा दिया। वो पीड़ा सहन न कर सका और तलवार नीचे जा गिरी। इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, देव ने उसी पल ऊंची छलांग लगाई और दूसरे ही पल उसके दोनों कंधों पर पांव रखे खड़ा था। फिर खास अंदाज में दोनों पांवों के बीच उसका सिर फंसाया और फिरकनी की भांति घूम गया। ऐसा करते ही योद्धा का सिर भी घूम गया। और कड़ाक-कड़ाक की, हड्डी टूटने की आवाजें आई। देव उसी पल छलांग लगाकर जमीन पर आ खड़ा हुआ।
वो योद्धा बेजान-सा ‘घप्प’ से नीचे आ गिरा। फिर नहीं हिला।
सन्नाटा-सा छा गया था वहां। कोई आवाज नहीं। देव ने तुरंत अपने कदम कपड़े के कमरे की तरफ बढ़ा दिए।
अब तक व्याकुल-सा बबूसा, बरबस ही मुस्कराकर देव को देखने लगा था।
एकाएक भीड़ छंटने लगी। बातों की आवाजें उभरने लगी। सब वहां से अपने-अपने रास्तों की तरफ बढ़ने लगें। जान गंवा चुके योद्धा के पास पहरेदार आ पहुंचे थे। उसे उठा ले जाने के लिए।
बबूसा बग्गी के पास पहुंचा। कोचवान को किले पर जाने को कहकर खुद कोचवान की सीट पर बैठ गया। पांच मिनट में ही देव बग्गी में आ बैठा।
“राजा देव।” बबूसा बग्गी आगे बढ़ाता खुशी भरे स्वर में कह उठा-“आपने तो कमाल कर दिया, जैसे कि हर बार कर देते हैं। मैं तो यूं ही घबरा रहा था कि वो आप पर भारी न पड़े।”
“मैं इस वक्त ताशा के बारे में सोच रहा हूं।” देव ने मुस्कराकर
कहा-“वो मेरा इंतजार कर रही होगी।”
“आप तो योद्धा से मुकाबला करते समय भी ताशा को याद कर रहे होंगे।” बबूसा हंसकर बोला।
“तब मैं ताशा को कुछ देर के लिए भूल गया था।”
बग्गी तेजी से दौड़ रही थी।
“मैं जल्दी ही आपको ताशा के घर तक पहुंचा देता हूं।”
“पहले मैं नदी पर जाकर नहाना चाहता हूं।”
“अच्छी बात है राजा देव।”
थोड़ी देर बाद वो एक बहती नदी पर पहुंचे।
देव कपड़े उतारकर नदी में कूद गया। मुकाबले का तीखापन जो शरीर में भर आया था उसे बाहर निकाला। कुछ देर नहाने के बाद बग्गी से दूसरे साधारण कपड़े निकालकर पहने। फिर बग्गी में बैठा और ताशा के घर की तरफ दौड़ पड़ी बग्गी। ताशा उसी प्रकार मिली, जैसे कि देव ने उसे समझाया था। चौराहे पर वो बग्गी के भीतर आ बैठी। वो डरी-डरी-सी, सकुचाई-सी लग रही थी पर खुश भी थी।
“पास के जंगल की तरफ चलो बबूसा।” देव ने ताशा को मधुर मुस्कान से देखते मुस्कराकर कहा।
बबूसा ने बग्गी दौड़ा दी।
“म-मैं पहली बार बग्गी में बैठी हूं।” ताशा कह उठी-“पहले कभी भी बग्गी में नहीं बैठी।”
देव ने ताशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया।
ताशा ने देव को देखा और प्यार भरे अंदाज में मुस्कराने लगी।
“आज तुम्हें इस तरह अपने पास बैठे पाकर, मैं बहुत खुश हूं ताशा।” देव कह उठा।
“मैं भी बहुत खुश हूं देव। जब तुम्हारा ख्याल आता है तो मन में कुछ-कुछ होता है।” ताशा ने अपने दिल पर हाथ रखकर कहा-“पता नहीं क्या हो गया है, रात को नींद नहीं आती और तुम्हारा ही ख्याल आता है।”
“सच ताशा।”
“आज सुबह तो आंख ही नहीं खुली, पिता ने ही जगाया। तुमसे मिलकर मैं कैसी हो गई हूं देव।”
“ये प्यार है ताशा। मेरा हाल तो तुमसे भी बुरा है। जब तक तुम्हें नहीं देखा था, मेरी जिंदगी शांत चल रही थी परंतु अब चैन नहीं मिलता। हर वक्त तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूं। तुम्हीं ख्यालों में बसी रहती हो। जिधर देखता हूं तुम्हारे मौजूद होने का एहसास पाता हूं, परंतु तुम कहीं भी नहीं होती। सुबह जब उठता हूं तो लगता है जैसे रात भर तुमसे ही बातें करता रहा हूं...”
कुछ शोर, कुछ बातें करने की आवाजों से देवराज चौहान के दिमाग में दौड़ती यादों की बारात थम-सी गई। उसने आंखें खोली तो सामने बबूसा को टहलते पाया। दिन निकल आया था। अर्जुन भारद्वाज और नीना भी जाग गए थे। कमरे की बंद खिड़की से बाहर फैला सुबह का उजाला दिख रहा था।
“राजा देव, उठ गए आप।” बबूसा उसकी आंखें खुली पाकर कह उठा-“मैं क्षमा चाहता हूं कि बेड पर सो गया और आप सोफे पर ठीक से सो नहीं पाए। भूल हो गई मुझसे।”
देवराज चौहान तुरंत उठ बैठा। उसकी चमकती आंखें बबूसा पर थी।
“क्या हुआ राजा देव?” देवराज चौहान की आंखों में बदले भाव देखकर, बबूसा के होंठों से निकला।
“मुझे-मुझे सब याद आ गया बबूसा।” देवराज चौहान के स्वर में खुशी भरा कम्पन था।
अर्जुन भारद्वाज और नीना की नजरें मिलीं।
बबूसा चौंका फिर उसकी आंखें फैल गईं।
“क्या?” उसके होंठों से निकला-“आ-आ-प को सब याद आ गया राजा देव?”
देवराज चौहान उठकर आगे बढ़ा और दोनों हाथ बबूसा के कंधे पर रखे।
“बबूसा, मेरे दोस्त।” देवराज चौहान की आंखों में पानी चमक उठा-“मुझे सब याद गया। किले में रहना, बग्गी पर हम जाते थे ताशा से मिलने। जम्बरा के साथ पोपा बनाना। विद्रोहियों की समस्या से निबटना...सब कुछ याद आ गया। सदूर ग्रह का राजा था मैं। महापंडित भी याद आ गया। ताशा के बाद तुम ही तो थे, जिसे मैं सबसे ज्यादा पसंद करता था।”
“राजा देव।” बबूसा का चेहरा खुशी से भर उठा-“मैं जानता था कि महापंडित गलत नहीं हो सकता कि रानी ताशा का चेहरा देख लेने के बाद आपको सदूर का जन्म याद आना शुरू हो जाएगा। क्या-क्या याद आया राजा देव?”
नीना ने धीमे स्वर में अर्जुन भारद्वाज से कहा।
“कहीं नई मुसीबत खड़ी न हो जाए।”
देवराज चौहान बताने लगा कि उसे सदूर ग्रह की कौन-कौन सी बातें याद आई हैं। बबूसा, नीना, अर्जुन सुनते रहे।
सब कुछ सुनने के बाद बबूसा गम्भीर हो गया।
“राजा देव।” बबूसा ने कहा-“अभी तो बहुत कुछ याद आना बाकी है।”
“बहुत कुछ?”
“हां।” बबूसा ने सिर हिलाया-“जो बात मैं आपको रानी ताशा के बारे में याद दिलाना चाहता हूं अभी वो याद नहीं आई।”
“ताशा।” देवराज चौहान ने गहरी सांस ली-“मेरी ताशा। मेरे सपनों की रानी। मेरे दिल की शहजादी, मुझे यकीन नहीं आता कि ताशा मेरे लिए पृथ्वी ग्रह पर आ पहुंची है पोपा में बैठकर। आह-वो कितनी अच्छी है। उसके बिना मेरा मन ही नहीं लगता था। अब मैं ताशा को फिर से पा सकूँगा। उससे बातें कर पाऊंगा। उसे प्यार...”
“आप भटक रहे हैं राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“बबूसा तुम...”
“रानी ताशा ने आपको जबर्दस्त धोखा दिया था। तभी तो आप सदूर से पृथ्वी पर आ पहुंचे थे। इंतजार कीजिए, अभी तो आपको बहुत कुछ याद आना बाकी है। अभी तो थोड़ा-सा ही याद आया है आपको।” बबूसा ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा-“आपका प्यार झूठा नहीं था परंतु रानी ताशा आपके प्यार को संभाल नहीं पाई। वो चाल खेल गई आपके साथ और...”
“कुछ मत कहो बबूसा।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा-“मैं ताशा के पास जाना चाहता हूं।”
“ये आप क्या कह रहे हैं राजा देव।” बबूसा के होंठों से निकला।
“वो मेरा इंतजार कर रही है। मेरे बिना वो तड़प रही...”
“राजा देव, आप तो कहते थे कि आपकी पत्नी सिर्फ नगीना है।” बबूसा बोला।
“नगीना, हां...नगीना मेरी पत्नी है, परंतु वो ताशा की जगह नहीं ले सकती।” देवराज चौहान के चेहरे पर दृढ़ता फैलने लगी-“ताशा तो मेरी सब कुछ है, ओह-वो वक्त कितना अच्छा होगा, जब मैं ताशा से मिलूंगा।”
“आप ताशा से नहीं मिलेंगे राजा देव।” बबूसा की आवाज में सख्ती आ गई।
“क्यों?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।
“क्योंकि अभी आपको सदूर का सब कुछ याद नहीं आया है। जो बात मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं वो याद नहीं आई। अभी तो सिर्फ ऊपरी बातें ही आपके दिमाग में उतरी हैं। बहुत कुछ बाकी हैं अभी...”
“मुझे ताशा के पास जाना है बबूसा।” देवराज चौहान के होंठ भिंचने लगे।
“अभी नहीं राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“बबूसा, तुम मेरा आदेश मानने से इंकार कर रहे हो।” देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
“आपके भले के लिए राजा देव।” बबूसा ने सख्त स्वर में कहा-“मैंने हमेशा आपका भला ही चाहा है। मैं आपका सेवक हूं आप खुश तो मैं भी खुश, आप दुखी तो मैं दुखी। मैं ये कभी भी नहीं चाहूंगा कि कोई आपका बुरा करे या फिर आप गलती से अपना ही बुरा कर बैठें। अगर ऐसा होता तो मैं आपको रोकूंगा जरूर। ये ही बात इस समय हो रही है। रानी ताशा के पास आपका जाना ठीक नहीं है। वो आपको वापस ले जाने के लिए आई है और आपको अभी तक नहीं मालूम कि सदूर पर तब ऐसा क्या हुआ कि आप पृथ्वी पर आ पहुंचे। आप तो सदूर के राजा थे।”
“मैं ताशा के पास जा रहा हूं बबूसा और तुम मुझे रोकने की कोशिश नहीं...”
“मैं आपको नहीं जाने दूंगा राजा देव। आपको भी मेरी बात मान लेनी चाहिए। इसी वक्त के लिए तो मैं आपके साथ हूं। आपको सदूर का याद आना शुरू हो चुका है तो बाकी बातें भी याद आ जाएंगी जो कि जरूरी है। उसके बाद आप पूरी तरह आजाद होंगे अपनी मनचाही बात करने के लिए।” बबूसा का स्वर दृढ़ता से भरा था-“तब मैं भी चैन की सांस लूंगा कि आपको सब याद आ गया है। उसके बाद आपको पता ही है कि आपने क्या करना है।”
देवराज चौहान कठोर निगाहों से बबूसा को देखने लगा।
अर्जुन भारद्वाज और नीना की निगाह दोनों पर थी।
“तुम मेरी आज्ञा को टाल रहे हो बबूसा।” देवराज चौहान गुस्से से बोला।
“नहीं राजा देव। मैं चाहता हूं सब कुछ आपको याद आ जाए। उसके बाद आप रानी ताशा से मिलें।”
“तुम मुझे बता चुके हो कि ताशा ने मुझे कैसा धोखा दिया था।”
“बताने और जान लेने में फर्क होता है राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“जब आप खुद उस धोखे का एहसास पाएंगे तो तब आपको रानी ताशा की असलियत का एहसास होगा।”
“अगर मैं जबर्दस्ती जाना चाहूं तो तुम...”
“मैं आपको नहीं जाने दूंगा। सख्ती से रोकूँगा। पृथ्वी पर जन्म लेते रहने के कारण, आपकी ताकत वो नहीं रही, जो कभी सदूर पर हुआ करती थी। बल्कि महापंडित ने इस बार मेरा जन्म, आपकी ताकत डालकर कराया है। बुरा न मानें राजा देव, इस बार आप मेरा मुकाबला नहीं कर सकते। तब मैं सदूर पर सीधा-सीधा इंसान हुआ करता हूं परंतु इस बार डोबू जाति का सबसे श्रेष्ठ लड़ाका माना जाता है मुझे। मैं अपनी ताकत सोमाथ पर इस्तेमाल करना चाहता हूं। आप मेरी ताकत को इन छोटी-छोटी बातों में खर्च न करें। रानी ताशा से सामना तो होना ही है राजा देव। सोमाथ को मुझे ही संभालना पड़ेगा। बेहतर ये है कि तब तक आराम से रहें आप और हो सकता है तब तक सदूर की सारी बातें आपको याद भी आ जाएं।”
“बबूसा सही कहता है।” अर्जुन भारद्वाज गम्भीर स्वर में कह उठा-“तुम्हें किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।”
“लेकिन ताशा।” देवराज चौहान ने झल्लाकर अर्जुन से कहा-“मैं ताशा से मिलना चाहता हूं।”
“वक्त का इंतजार करो।” अर्जुन बोला।
“मैं तो ताशा से बहुत प्यार करता हूं। उसके बिना नहीं रह सकता। वो मेरा प्यार है...वो...”
“देवराज चौहान।” अर्जुन भारद्वाज का स्वर गम्भीर था-“तुम्हें बबूसा की बातों का भरोसा करके, बबूसा के मुताबिक ही चलना चाहिए। ये तुम्हारा भला चाहता है। ये बेहतर जानता है कि कब तुम्हारा ताशा से मिलना ठीक होगा।”
देवराज चौहान ने तीखी नजरों से बबूसा को देखा।
“जब आपको सब कुछ याद आ जाएगा। तो तब मैं आपसे एक कदम पीछे रहूंगा राजा देव।” बबूसा ने कहा-“जैसे सदूर में रहा करता था। इस वक्त आप हालातों से अंजान हैं। आपको बचा के रखना मेरा फर्ज है।”
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और सोफे पर आ बैठा।
“बबूसा।” देवराज चौहान ने बेचैनी भरे स्वर में कहा।
“हां, राजा देव?”
“सदूर का वक्त कितना अच्छा था। वहां कितना मजा आता था। सब कुछ भला-भला सा था।” देवराज चौहान बोला।
“आप ठीक कहते हैं राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ताशा के साथ जंगल में घूमता। दिन कैसे बीतता था, पता ही नहीं चलता था। ताशा की नीली आंखों में मैं ऐसा खो जाता था कि मुझे होश ही नहीं रहता था। उसका प्यार-खूबसूरत चेहरा। सदूर की सबसे खूबसूरत युवती थी वो।”
“जी राजा देव।”
“पहली बार जब उसे देखा तो तभी मैं उसका दीवाना हो गया, वो कितनी अच्छी है। मुझे कितना प्यार करती है। मैं भी उसे बहुत प्यार करता हूं। ताशा...” देवराज चौहान जैसे कहीं गुम होता कह उठा-“मेरी ताशा...” देवराज चौहान ने एकाएक बबूसा को देखकर गुस्से से कहा-“तुम मुझे ताशा के पास क्यों नहीं जाने देते। तुम तो मेरी हर बात माना करते थे। तुमने कभी मुझे किसी बात से इंकार नहीं किया। अब तुम्हें क्या हो गया है।
मैं राजा देव हूं, तुम मेरे सेवक हो। तुम मुझे कैसे रोक सकते हो, ताशा के पास जाने से...” देवराज चौहान खड़ा हो गया।
बबूसा उसी पल सतर्क हो गया।
“मैं आपकी बेहतर सेवा करने की कोशिश कर रहा हूं। आपको रोक रहा हूं तो इसी में आपका भला है। सब कुछ याद आने से पहले आप रानी ताशा के सामने पड़ गए तो वो आपको सदूर ग्रह पर वापस ले जाएगी।”
“तो क्या हो गया, मैं भी तो ताशा के साथ सदूर पर जाना चाहता हूं।” देवराज चौहान ने तेज स्वर में कहा।
बबूसा मुस्करा पड़ा।
“अभी ये बात आप इसलिए कह रहे हैं कि हकीकत से दूर हैं आप राजा देव। जब आपको सब कुछ पता चल जाएगा कि रानी ताशा ने आपके साथ क्या किया तो तब आपकी सोच बदल भी सकती है।” बबूसा ने कहा।
“मैं ताशा से प्यार करता हूं बबूसा। ये बात तुम भी अच्छी तरह जानते हो।”
“आप तो रानी ताशा के दीवाने रहे हैं राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“आपकी दीवानगी मैंने आंखों से देखी है। ये बात मैं कैसे भूल सकता हूं। सब कुछ तो मेरे सामने है। परंतु अभी इंतजार कीजिए। बाकी बातें भी याद आने दीजिए।”
तभी नीना कह उठी।
“नगीना, तुम्हारी पत्नी है देवराज चौहान।”
“हां।” देवराज चौहान ने नीना को देखा।
“तुम ताशा के साथ जाना चाहते हो तो, नगीना का क्या होगा?” नीना ने कहा।
“मैं-मैं नगीना और जगमोहन को भी साथ ले जाऊंगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“जरूरी तो नहीं कि वो तुम्हारी बात मानें।”
“मानेंगे। वो मेरे साथ चलेंगे। वो...”
“देवराज चौहान, नगीना तुम्हारे आज के जन्म की पत्नी है और ताशा की बात जन्मों पुरानी है। मेरे ख्याल में अब ताशा का और तुम्हारा सम्बंध नहीं बनता। वो तो कब का खत्म हो चुका है।”
“ताशा मेरी है। मैं उससे प्यार करता हूं। ताशा के बिना मैं कैसे रह पाऊंगा।” देवराज चौहान तड़प उठा।
“मैं नगीना की बात कर रहा हूं। तुम नगीना के साथ अन्याय कर रहे हो, ऐसा सोच कर।”
“मैं ताशा के बिना नहीं रह सकता।”
“जैसा कि बबूसा कहता है, अगर तुम्हें पता चल गया कि वो पक्की धोखेबाज है तो?”
“वो जैसी भी है मेरी ताशा है। मेरी जिंदगी है। मेरा प्यार है। मेरा सब कुछ है।”
“अवश्य राजा देव।” बबूसा गम्भीर स्वर में कह उठा-“परंतु कुछ इंतजार करना होगा आपको। महापंडित की मेहरबानी से आपको सदूर का जन्म याद आना शुरू हो चुका है। सब कुछ याद आ जाने दीजिए। उसके बाद आपको जो करना हो, बेशक करें।”
नीना ने अर्जुन को देखकर कहा।
“अब तो सर आप बबूसा की बातों को सच मानते हैं?”
“देवराज चौहान को उस जन्म का याद आ गया है तो बबूसा को झूठा कैसे कह सकता हूं।” अर्जुन भारद्वाज बोला।
“मैं तो ये कह रही थी कि ऐसे केस से हमारा क्या वास्ता? वैसे भी जब देवराज चौहान को उस जन्म की याद आने लगी है तो इस केस में हमारा काम करना बनता ही नहीं। हमारा काम खत्म हुआ सर।”
अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर सो नाच रही थीं।
“इस बारे में नगीना से बात करनी पड़ेगी। अभी हमारी क्लाइंट ने काम बंद कर देने को नहीं कहा।”
“क्लाइंट ने नहीं कहा तो हम कह देते हैं क्लाइंट को। वक्त बर्बाद करने का क्या फायदा। दिल्ली में भी हमारे काम पड़े हैं। वहां का ऑफिस आपके बिना पड़ा है। कोई नया केस भी आ सकता है।”
“मैं देखना चाहता हूं कि इस मामले में आगे क्या होता है।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा।
“महज देखने के लिए तो हम क्लाइंट से फीस नहीं ले सकते। ये बात तो बाद में फोन करके भी पता कर सकते हैं।” नीना ने कहा।
अर्जुन के चेहरे पर सोचें उभरी फिर उसने कहा।
“नगीना को फोन लगाओ।”
नीना ने नगीना का नम्बर मिलाया। परंतु स्विच ऑफ का स्वर कानों में पड़ा।
“फोन बंद है सर।”
“वो वहीं बंगले पर होगी, रानी ताशा और सोमाथ भी वहां हैं। पता नहीं वहां क्या हो रहा होगा। मालूम करने के लिए वहां जाना भी खतरनाक है। सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता। हमें यहीं रहकर, नगीना से बात हो जाने का इंतजार करना होगा। मुझे विश्वास है कि जल्दी ही नगीना से बात हो जाएगी।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।
“और अगर नगीना ने कहा कि हम अभी रुकें तो...?” नीना बोली।
“इस मामले में जब हमारा काम ही नहीं बचा तो रुकने का क्या मतलब, हमें दिल्ली जाकर, वहां के काम देखने हैं।”
“फीस का हिसाब भी कर लेना सर, मैं आज हिसाब लगा लूंगी कि हमारी कितनी फीस बाकी है।
उस वक्त सुबह के दस बजे थे। सब नहा-धोकर नाश्ता करके हटे थे। देवराज चौहान गम्भीर नजर आ रहा था और ताशा के ख्यालों में डूबा था, जब से ताशा की याद आई तब से जेहन में ताशा ही घूम रही थी। किसी और के बारे में जरा भी नहीं सोचा था या फिर सदूर दिमाग में घूम रहा था। सदूर का वक्त याद आने पर वो बेचैन हो उठा था। एक ही विचार मन में उठ रहा था कि वो ताशा के पास जल्द-से-जल्द पहुंच जाए।
बबूसा, देवराज चौहान की मन की स्थिति से अंजान नहीं था। वो सतर्क था कि राजा देव कमरे से निकलने की कोशिश न करें। परंतु देवराज चौहान ने ऐसा कुछ करने की कोशिश नहीं की थी। तभी दरवाजे पर थपथपाहट पड़ी।
नीना ने ये सोचकर दरवाजा खोला के वेटर बर्तन लेने आया होगा।
परंतु सामने मोना चौधरी को खड़ा पाया।
“कहिए?” नीना ने प्रश्नभरी निगाहों से उसे देखा।
मोना चौधरी उसके कंधे पर हाथ रखा और नीना को पीछे धकेलती प्रवेश कर आई।
“ये क्या कर रही हो, कौन हो तुम?” नीना एकाएक तीखे स्वर में कह उठी।
कमरे में प्रवेश करते ही मोना चौधरी की निगाह, देवराज चौहान और बबूसा पर गई। दोनों ने भी मोना चौधरी को देखा।
अर्जुन भारद्वाज की निगाह भी मोना चौधरी पर टिक चुकी थी।
“बाहर निकलो, वरना मैं होटल वालों को बुलाती हूं।” नीना तेज स्वर में बोली।
“दरवाजा बंद कर दो।” मोना चौधरी ने नीना से कहा-“फिर देवराज चौहान से बोली-“मुझे बेला (नगीना) ने भेजा है।”
“नगीना ने?” देवराज चौहान के होंठों से निकला-“वो तो बंगले पर है। ताशा भी वहीं पर...”
“कल रात मुझे बेला का फोन आया था। सुबह ही मुम्बई पहुंची हूं। बेला ने कहा है कि तुम्हें इस होटल से कहीं और ले जाऊं, क्योंकि सामने वाला कमरा ताशा का है। तुम्हारा यहां रहना ठीक नहीं है।” मोना चौधरी ने कहा।
“अब चिंता की कोई बात नहीं है।” देवराज चौहान ने कहा-“मुझे उस जन्म की याद आनी शुरू हो गई है। मुझे ताशा से छिपने की जरूरत नहीं है। वो बहुत अच्छी है, हम दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं।”
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं। वो देवराज चौहान को देखती रही।
“तुम और ताशा, एक-दूसरे को प्यार करते हो?” मोना चौधरी ने कहा।
“हां। वो मेरी पत्नी है।” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।
“और तुम्हें सदूर ग्रह के उस जन्म की याद आने लगी है?” मोना चौधरी ने सिर हिलाया।
“हां।”
“तुम सदूर ग्रह पर रहते थे पहले। मतलब कि सदूर ग्रह वाली बात सच है?” मोना चौधरी गम्भीर थी।
“पूरी तरह सच है।”
मोना चौधरी ने बबूसा से कहा।
“देवराज चौहान इस वक्त कैसी बातें कर रहा है?”
“राजा देव सही कह रहे हैं।” बबूसा बोला-“इन्हें सदूर के जन्म की याद आनी शुरू हो गई है।”
“याद आई कैसे?
“महापंडित ने कहा था कि राजा देव जब रानी ताशा का चेहरा देखेंगे तो इन्हें उस जन्म की याद आनी शुरू हो जाएगी। राजा देव ने कल रानी ताशा का चेहरा देख लिया था, जब वो कमरे से निकल रही थी। तब तो राजा देव, रानी ताशा को देखते ही बेहोश हो गए थे और अंधेरा हो जाने के बाद होश आया था।” बबूसा ने कहा।
मोना चौधरी गम्भीर निगाहों से कभी देवराज चौहान को देखती तो कभी बबूसा को।
“तुम कौन हो?” नीना ने पूछा।
“मोना चौधरी, नगीना की बहन।” मोना चौधरी ने अर्जुन भारद्वाज पर नजर डाली-“तुम प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज हो?”
“हां।” अर्जुन बोला-“परंतु तुम कौन-सी मोना चौधरी हो। एक मोना चौधरी तो इश्तिहारी मुजरिम...”
“वो ही हूं मैं।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा और देवराज चौहान से बोली-“चलो मेरे साथ...”
“यहां सब ठीक है।” देवराज चौहान ने कहा।
“मैं बेला की कही बात पूरी करने आई हूं। उसने मुझे ऐसा करने को कहा है।”
तभी अर्जुन ने कहा।
“तुम्हें यहां से किसी सुरक्षित जगह चले जाना चाहिए। रात भी मैंने ये कहा था। होटल में तुम्हारा रहना ठीक नहीं, सामने ही रानी ताशा का कमरा है। वो कभी भी लौट सकती है।”
“ताशा मुझे सामने पाकर खुश होगी।” देवराज चौहान मुस्कराया-“वो...”
“नहीं राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“अभी आपका ताशा के सामने पड़ना ठीक नहीं। जब आपको सदूर का सब कुछ याद आ जाएगा, तब आप कुछ भी करने को आजाद होंगे।”
“तुम खामख्वाह ही मेरे पीछे पड़े हो।” देवराज चौहान झल्लाकर कह उठा।
“बेहतर होगा कि हम यहां से कहीं और चले जाएं।” बबूसा ने मोना चौधरी को देखा।
“चलो।” मोना चौधरी ने बबूसा से कहा-“मैं नहीं जानती कि इस वक्त क्या हो रहा है। मेरे फ्लैट पर चलकर सब बातें मुझे बताना। नगीना कहां है?”
“वो बंगले पर है।” नीना बोली।
“बंगले पर? परंतु रात तो उसने मुझसे इस तरह बात की जैसे वो मुसीबत में हो।” मोना चौधरी ने कहा।
“बंगले पर रानी ताशा, सोमाथ और तीन अन्य साथी भी वहां हैं।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा-“मेरा ख्याल है कि उन्होंने नगीना और जगमोहन को बंदी बना रखा है कि उसके लिए देवराज चौहान वहां आएगा।”
“धरा भी वहां है।” बबूसा कह उठा।
मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती नाच उठी।
“यहां से चलो देवराज चौहान।” मोना चौधरी ने कहा-“मैं बेला का कहा पूरा कर रही हूं, मुझे ये काम कर लेने दो। यहां से जाकर तुम बेहतर ही रहोगे। मेरे फ्लैट के बारे में कोई नहीं जानता।”
“पर मैं ताशा के पास जाना चाहता...”
“बाद में राजा देव।” बबूसा कह उठा-“अभी तो यहां से चलिए।”
न चाहते हुए भी देवराज चौहान, बबूसा और मोना चौधरी के साथ वहां से चला गया।
नीना गहरी सांस लेकर बोली।
“सर, हम कैसे खतरनाक लोगों में आ फंसे हैं। मुझे तो विश्वास नहीं होता कि ये इश्तिहारी मुजरिम मोना चौधरी थी।”
अर्जुन भारद्वाज मुस्कराकर रह गया।
“अच्छा हुआ ये लोग चले गए, वरना कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाती।”
“ये केस बहुत ही हैरान कर देने वाला है।” अर्जुन बोला-“अब देवराज चौहान कहता है कि उसे सदूर ग्रह की बातें याद आ गई हैं। इन बातों का कोई आधार नहीं है कि हम भरोसा कर सकें।”
“तो क्या देवराज चौहान गलत कहता है?”
“कह नहीं सकता? पर वो गलत क्यों कहेगा? लेकिन ये बातें मेरी समझ से बाहर हैं।”
“सर, मुझे तो अभी तक ठीक से मामला समझ नहीं आया। आप सही कहते हैं कि इनकी बातों पर विश्वास करें भी तो कैसे, कोई गवाह नहीं है। कोई सबूत नहीं है।” नीना ने मुंह लटकाकर कहा।
“तैयार हो जाओ।”
“कहीं जाना है सर?”
“मुम्बई घूमने चलते हैं। इस मामले में अब हमारी जरूरत नहीं रही। ये इनकी व्यक्तिगत बातें हैं। देवराज चौहान कहता है कि उसे सदूर का वक्त याद आ गया है। उधर रानी ताशा, नगीना और जगमोहन के पास पहुंच चुकी है। हमारा काम खत्म।”
“पर सर, रानी ताशा नगीना को बंदी बनाए हुए है। उसे छुड़ाना हमारा फर्ज नहीं बनता?”
“देवराज चौहान और बबूसा सारे हालात जानते हैं। अब जो करना है उन्होंने ही करना है। मोना चौधरी ने भी इस मामले में दखल दे दिया है जो कि खुद को नगीना की बहन कहती है। जो करना होगा अब ये लोग ही करेंगे।”
“परंतु सर अभी हमने फीस लेनी...”
“शाम को एक बार फिर नगीना का फोन ट्राई करेंगे। लग गया तो ठीक, नहीं तो कल दिल्ली चल देंगे। फीस के रूप में काफी पैसे हमें मिल चुके हैं, और इस मामले में हमने खास कुछ किया भी नहीं। हमारे करने को कुछ था भी नहीं। दूसरे ग्रह से आए लोग, पहले जन्मों की बातें, प्राइवेट जासूसों की समझ से बाहर की चीज हैं।”
“मैं तैयार होती हूं सर, फिर मां वाली बात भी आपसे करूंगी कि वो मुझे कहती रहती है कि अब शादी कर ले, कब तक घूमती रहेगी। सब कुछ आप पर है कि आप मुझे क्या कहते हैं, शादी कर लूं?”
अर्जुन भारद्वाज ने कठोर निगाहों से नीना को देखा।
“त-तैयार हो रही हूं सर।” नीना सकपकाकर सूटकेस की तरफ बढ़ी-“बस, पांच मिनट में तैयार हुई।”
अर्जुन ने मुस्कराकर मुंह फेर लिया।
qqq
0 Comments