गुरूवार, 18 जनवरी
सुबह दस बजे अलीशा पाली गांव पहुंची, जहां वह मकान खोज निकालना कोई मुश्किल काम साबित नहीं हुआ, जहां गजानन के कहे मुताबिक जल्ली और निन्नी नेता के कुछ आदमियों को पहुंचाकर आये थे। जब से उसने गजानन के मुंह से वह बात सुनी थी, तभी से उसका ध्यान वहां अटका हुआ था। जबकि प्रत्यक्षतः वहां क्या चल रहा था उससे अलीशा का कोई लेना देना नहीं था।
घर से थोड़ा पहले गाड़ी रोककर उसने मुआयना करना शुरू किया। दरवाजा बंद था, जो कब खुलता इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था। ना ही ये पता करने का कोई साधन था कि भीतर उस वक्त कितने लोग मौजूद थे।
फिर भी छत पर दो लड़के धूप का आनंद लेते बराबर दिखाई दे गये। दोनों उस वक्त जींस के साथ लेदर जैकेट पहने थे, और शक्ल से छंटे हुए बदमाश दिखाई दे रहे थे।
अलीशा इंतजार करती रही, असल में वह बस एक बार दरवाजे के पार देख लेना चाहती थी, जिसका कोई रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था। फिर कुछ सोचकर वह गाड़ी से बाहर निकली, पैसेंजर साईड में पहुंचकर ईंट का एक छोटा सा टुकड़ा उठाया, और छत पर खड़े दोनों लड़कों की तरफ देखा, तो पाया कि उनका ध्यान उसकी तरफ नहीं था।
तब उसने हाथ में थमीं ईंट के टुकड़े को पूरी ताकत से लोहे के फाटक पर दे मारा और मोबाईल निकालकर कान से सटाकर झूठ मूठ की बातें करने लगी।
दरवाजा बुरी तरह खटका था, इसलिए उसे पूरी पूरी उम्मीद थी कि बाहर कोई न कोई ये देखने जरूर आयेगा कि पत्थर किसने फेंका था। तब तक छत पर खड़े दोनों लड़के भी उधर को झांकने लगे थे, मगर एक खूबसूरत और मॉर्डन लड़की से, जो चमचमाती हुई कार से वहां पहुंची दिखाई दे रही थी, ये उम्मीद तो नहीं ही कर सकते थे कि पत्थर उसने फेंका होगा।
हां अलीशा पर उनकी निगाह गयी बराबर, और जहां की तहां ठहरकर भी रह गयी, मगर उससे कुछ पूछने की कोशिश दोनों में से किसी ने भी नहीं की।
आखिरकार दरवाजा खुला, दो लड़के बाहर निकले, और इधर उधर नजर मारकर वापिस अंदर जाने ही लगे थे कि जाने क्या सोचकर उनमें से एक अलीशा के करीब चला आया।
“मैं बाद में बात करती हूं - मोबाईल पर कहने का दिखावा करने के बाद उसने कॉल डिस्कनैक्ट करने की एक्टिंग की फिर वहां पहुंचे लड़के से पूछा - कुछ कहना चाहते हो?”
“नहीं पूछना चाहता हूं।”
“क्या?” वह बदस्तूर खुले हुए दरवाजे से अंदर देखने की कोशिश करती हुई बोली।
“अभी अभी कोई हमारे दरवाजे पर पत्थर मार कर गया है, आपने देखा था उसे?”
“छोटे बच्चे थे, उन्हीं में से एक ने हाथ में थमी कोई चीज दरवाजे पर दे मारी थी।”
“गये किधर?”
“उधर - तर्जनी उंगली से इशारा करती वह बोली - बताया न बच्चे थे, जाने दो, क्योंकि नुकसान तो कुछ हुआ नहीं होगा।”
“आपका घर होता न मैडम, तो पता लगता कि नुकसान हुआ है या नहीं।”
“ठीक है भाई जाओ पकड़ लो जाकर, और दो चार चांटे जड़कर अपने मन की भड़ास निकाल लो। मैं कौन सा रोक रही हूं तुम्हें।”
“आप यहां क्या कर रही हैं?”
“तुमसे मतलब?”
“मैंने सोचा शायद कार स्टार्ट नहीं हो रही।”
“हां यही बात है।”
“धक्का लगा दूं?”
“अरे तुम तो बहुत अच्छे इंसान निकले यार, प्लीज लगा दो।” कहती हुई वह ड्राईविंग सीट पर सवार हो गयी। फिर चाबी घुमाने के बाद गाड़ी को फर्स्ट गियर में डाला और क्लच दबाकर बैठ गयी।
लड़के ने तुरंत कार को धकेलना शुरू कर दिया। फिर जैसे ही गाड़ी का लुढ़कना तेज हुआ अलीशा ने क्लच छोड़ दिया। इंजिन स्टार्ट हो गया। तब उसने ब्रेक लगाया और खिड़की से बाहर झांकती हुई जोर से बोली, “थैंक यू भाई।” फिर कार आगे बढ़ा दी।
करीब सौ मीटर जाने के बाद उसे दाईं तरफ को मुड़ती एक गली दिखाई दी, जिसमें गाड़ी ले जाना संभव नहीं था, इसलिए कार रोककर नीचे उतरी और पैदल उस गली में दाखिल हो गयी।
आगे वह गली टी प्वाईंट बना रही थी, जहां से अलीशा दायें मुड़ी और अंदाजे से उस तरफ को चल पड़ी जिधर उस मकान का पिछला हिस्सा हो सकता था।
खोजना मुश्किल काम साबित नहीं हुआ क्योंकि वह उधर का इकलौता ऐसा मकान था जो बस ग्राउंड फ्लोर तक उठा हुआ था। वहां पहुंचकर उसने बाउंड्री वॉल का मुआयना किया तो यही लगा कि उसकी हाईट कम से कम भी दस फीट तो यकीनन थी। मतलब उसपर चढ़कर दूसरी तरफ उतर जाना असंभव ना भी हो तो मुश्किल काम यकीनन था।
घर में उसकी सोच के मुताबिक अगवा किये गये लोगों को रखा गया हो, या न रखा गया हो, इतना तो तय था कि वहां कुछ न कुछ खास मौजूद था। गेट खोलकर बाहर निकले दोनों लड़के हथियारबंद थे, इसलिए छत पर खड़े लड़के भी रहे हो सकते थे। बल्कि भीतर मौजूद बाकी लोगों के पास भी हथियार निकल आना कोई बड़ी बात नहीं थी।
तरह-तरह की बातों पर विचार करती वह अपनी कार के पास वापिस लौटी, उसे यू टर्न दिया और उधर को चल पड़ी जिधर से होती हुई वहां तक पहुंची थी।
ग्यारह बजे अलीशा सैक्टर 91 के इलाके में स्थित सूर्या नगर पहुंची, फिर गाड़ी की रफ्तार बेहद धीमी कर के इधर उधर देखती हुई वह अमन सिंह के फ्लैट की दिशा में ड्राईव करने लगी।
उसकी मुराद पूरी हुई एक मेडिकल स्टोर के बाहर पहुंचकर, जहां लगा सीसीटीवी कैमरा उसे दूर से ही दिखाई दे गया। दुकानदार एक नौजवान लड़का था जो एक बार प्लीज बोलते ही उसे वहां की फुटेज दिखाने को तैयार हो गया।
मीनाक्षी का कत्ल दस बजे के आस-पास किया गया था, जबकि हत्यारे ने डॉक्टर को कॉल ठीक नौ बजे की थी। और वहां से डॉक्टर के नर्सिंग होम तक का सफर दस मिनट का तो यकीनन था। उसी हिसाब से उसने फुटेज देखनी शुरू की।
मगर कुछ हासिल नहीं हुआ।
कोई जाना पहचाना चेहरा उसे नहीं दिखा, अमन सिंह की कार तो खैर नहीं ही दिखाई दी। उसने हत्यारे के हुलिये पर भी खास ध्यान दिया था, मगर उस तरह के पहनावे वाला कोई शख्स भी उस फुटेज में नजर नहीं आया। तब उसने बीती रात दो बजे के बाद की फुटेज देखनी शुरू की, मगर इस बार भी निराशा ही हाथ लगी।
आखिरकार उसने दुकानदार को धन्यवाद दिया और उठ खड़ी हुई।
“तलाश पूरी नहीं हुई मैडम की?”
“नहीं ही हुई भई।”
“खोज क्या रही हैं, बता दें तो शायद कोई मदद कर पाऊं।”
“एक कातिल को तलाश रही हूं, मुझे पूरी उम्मीद थी कि वह यहां से जरूर गुजरा होगा, मगर नहीं दिखाई दिया।”
“मतलब इधर का ही रहने वाला है?”
“लगता तो यही है।”
“और कत्ल कहां जाकर किया था?”
“सैक्टर 37 में।”
“फिर तो उसने कोई दूसरा रास्ता भी पकड़ा हो सकता है।”
“कौन सा रास्ता?”
“इसी गली में आगे जाकर टी प्वाइंट से लैफ्ट लेंगी तो वह रास्ता आपको सीधा नहर पर पहुंचा देगा। मगर कार उधर से नहीं जा सकती।”
“बाईक?”
“हां बाईक तो जा सकती है।”
“ठीक है भाई थैंक यू।” कहकर वह अपनी गाड़ी में सवार हुई और यू टर्न लेकर वापिस लौट पड़ी। फिर मुख्य रास्ते पर पहुंचकर कार को सड़क किनारे लगाकर खड़ा किया और एक टोटो (इलैक्ट्रिक रिक्शा) में सवार होकर उसे उधर को चलने के लिए कह दिया, जिधर का जिक्र मेडिकल स्टोर वाले लड़के ने किया था।
रिक्शा अमन सिंह के फ्लैट वाली बिल्डंग से गुजरता हुआ टी प्वाईंट तक पहुंचा, फिर वहां से बायें मुड़कर अलीशा के बताये रास्ते पर चल पड़ा।
वह गली के दोनों तरफ मौजूद दुकानों को ध्यान से देखती हुई जा रही थी, मगर ऐसी कोई दुकान अभी तक नहीं दिखी, जहां कैमरा लगा हुआ हो।
फिर जैसे ही टोटो ने आगे जाकर नहर के लिए राईट टर्न मारा उसकी तलाश पूरी हो गयी। वह मोबाईल की एक बड़ी दुकान थी, जिसके बाहर लगा कैमरा उसे दिखाई दे गया।
रिक्शेवाले को वेट करने के लिए कहकर वह दुकान पर पहुंची और उससे फुटेज दिखाने की रिक्वेस्ट की, जो दुकानदार ने दिखा तो बराबर दी, मगर उसके मुंह से पूरी कहानी सुनने के बाद।
आगे ये देखकर अलीशा की आंखें चमक उठीं कि एक शख्स ठीक वैसी ही जैकेट पहनकर बाईक से गुजरा था, जैसी जैकेट उसने नर्सिंग होम वाली फुटेज में फोन करने वाले को पहने देखा था, या वैसी जैकेट जिसे पहनकर हत्यारा बीती रात डॉक्टर का कत्ल करने उसके घर पहुंचा था।
उसने दुकानदार से एक पैन ड्राईव खरीदी और फुटेज को उसमें कॉपी करा लिया, जबकि बाईक का नंबर वह पहले ही एक कागज पर नोट कर चुकी थी।
आगे टोटो में सवार होकर उसे वापिस चलने को कहा और बाईक का रजिस्ट्रेशन नंबर चेक करने में जुट गयी। अफसोस कि जो दिखाई दिया वह उसकी सोच के अनुरूप नहीं था।
मोटरसाईकिल किसी रौनक गुप्ता के नाम से रजिस्टर्ड थी, और एड्रेस डबुआ कॉलोनी का था। इसलिए पहला ख्याल उसके जेहन में यही आया कि बाईक चोरी की थी।
मगर अगले ही पल उसने अपनी सोच बदल दी, बाईक चुराना किसी आम आदमी के बस का काम नहीं था। फिर उसका इस्तेमाल एक की बजाये दो बार किया जा चुका था, इसलिए भी वह चोरी की नहीं हो सकती थी, क्योंकि चोरी की बाईक ज्यादा देर तक अपने पास रखना हत्यारा अफोर्ड नहीं कर सकता था।
आगे अमन सिंह के फ्लैट वाली बिल्डिंग के सामने उसने टोटो रुकवाया और उतरकर पहली मंजिल पर पहुंची, तो पाया कि उसके फ्लैट पर ताला लटक रहा था। जो कि कोई बड़ी बात नहीं थी, आखिर डॉक्टर भी तो कोमल की मौत के अगले ही दिन अपने नर्सिंग होम में जा बैठा था, फिर अमन सिंह अपने मेडिकल स्टोर पर चला गया हो तो क्या हैरानी थी।
नीचे पहुंचकर टोटो में बैठने के बाद उसने अमन सिंह को फोन लगाया, बेल लगातार जाती रही मगर दूसरी तरफ से कॉल अटैंड नहीं की गयी। उसने दोबारा कोशिश की, मगर इस बार भी निराशा ही हाथ लगी।
फिर उसने ट्राई करना छोड़ दिया।
थोड़ी देर बाद वह अपनी कार में सवार हुई और डबुआ कॉलोनी की तरफ चल पड़ी। वहां पहुंचकर बाईक के ऑनर का पता खोज निकालना बेहद मामूली काम साबित हुआ, मगर बात फिर भी नहीं बनी। उसने अलीशा को बताया कि उसकी मोटरसाईकिल उसके पास थी और महीने भर से उसने सैक्टर 91 के इलाके में कदम भी नहीं रखा था।
सवाल जवाब उसने फिर भी किये, केस से रिलेटेड तमाम लोगों के नाम उसके आगे दोहरा दिये, मगर उनमें से किसी एक को भी जानता होने की हामी उसने नहीं भरी।
अलीशा को यकीन था कि वह सच बोल रहा था, इसलिए उसके साथ ज्यादा माथापच्ची करने की कोशिश नहीं की। ये अलग बात थी कि कहानी निरंतर उलझती जा रही थी और उसका कोई ओर छोर उसकी पकड़ाई में नहीं आ रहा था।
एक बार को वह मान लेती कि कातिल जैसी जैकेट कोई दूसरा शख्स पहनकर उधर से गुजरा था, अगर बाईक के ऑनर ने कबूल कर लिया होता कि उस वक्त वह उस इलाके में मौजूद था। दूसरी बात ये थी कि दोनों बार बाईक घटना से बस पंद्रह मिनट पहले वहां से निकलती दिखाई दी थी, जो कि इत्तेफाक नहीं हो सकता था।
जिसका मतलब यही बनता था कि बाईक की नंबर प्लेट्स के साथ हेर फेर की गयी थी, या फिर पूरा का पूरा नंबर ही बदल दिया गया था।
आधे घंटे बाद वह अपने फ्लैट पर पहुंची और पेन ड्राईव को लैपटॉप में इंसर्ट कर के फुटेज को फिर से देखना शुरू कर दिया। इस बार उसने एक खास बात नोट की, वह ये थी कि बाईक के पहले तीन न्यूमरिकल नंबर्स 149 की अपेक्षा आखिर का 4 ज्यादा चटक दिखाई दे रहा था, यूं जैसे एकदम नया हो, फिर थोड़ा और ध्यान दिया तो उसे ये भी लगने लगा कि दूसरे स्थान वाला 4 चौथे स्थान वाले 4 की लिखावट से मैच नहीं करता था।
उस ख्याल ने अलीशा को उत्साह से भर दिया।
अब उसने किया ये कि 149 के आगे 0 लगाकर रजिस्ट्रेशन चेक किया, जो कि इस्माईल पुर का निकला, फिर 1 लगाया तो पल्ला का, इसी तरह वह बारी बारी से आखिर का नंबर बदलकर चेक करती चली गयी, फिर 149 के आगे 8 लगाते ही उसकी आंखें चमक उठीं।
उस नंबर की बाईक अमन सिंह के नाम से रजिस्टर्ड थी और पता सूर्या नगर, सैक्टर 91 फरीदाबाद का था, यानि अमन सिंह के फ्लैट का एड्रेस।
जानकारी बेशक विस्फोटक थी, मगर उसके सच होने की गारंटी नहीं की जा सकती थी क्योंकि वह इत्तेफाक भी हो सकता था। होने को 4 की जगह असल नंबर एक हो सकता था, दो हो सकता था या 8 के अलावा कुछ भी हो सकता था। मतलब उसके बूते पर अमन सिंह के खिलाफ केस नहीं बनाया जा सकता था। हां पुलिस अगर जबरन ही उसका जुर्म कबूल करवा लेती तो और बात थी। मगर एक सवाल फिर भी अधूरा था, और वह ये कि अगर पार्टी के दौरान अमन सिंह ने ऊपर जाकर कोमल का कत्ल कर दिया था, तो उस बात की भनक किसी को क्यों नहीं लगी? क्यों हर कोई ये कह रहा था कि वह हर वक्त सोफे पर पड़ा रहा था।
उस सवाल का जवाब तलाशे बिना केस सॉल्व नहीं होने वाला था।
आखिरकार उसने एक बार फिर डॉक्टर के घर का फेरा लगाने का विचार किया और तुरंत अपने फ्लैट से बाहर निकल गयी।
अशोका इन्क्लेव पहुंचने में उसे पांच मिनट लगे। वहां पहुंचकर उसने पाया कि डॉक्टर की कार घर के बाहर खड़ी नहीं थी। गार्ड मोहित से उस बारे में सवाल किया तो उसने बताया कि डॉक्टर साहब किसी काम से दिल्ली गये थे।
उसने डॉक्टर को कॉल लगाया, फिर उसकी ‘हैलो’ सुनने के बाद सीधा मुद्दे पर आती हुई बोली, “कहां हैं डॉक्टर साहब?”
“तुम्हारी एडवाईज फॉलो करते हुए कोई ठिकाना तलाशने की कोशिश में लगा हूं।”
“यानि अभी तक नहीं मिला?”
“बस मिल ही गया समझो।”
“ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी डॉक्टर साहब।”
“क्यों?”
“मुझे आपके घर का मुआयना करना है।”
“जाकर कर लो, उसके लिए मेरा वहां होना क्यों जरूरी है?”
“मैंने सोचा आप उस काम को अपनी आंखों के सामने कराना ही पसंद करेंगे।”
“गलत सोचा, क्योंकि आज की तारीख में तुम दुनिया की वह पहली और आखिरी इंसान हो जिसपर मैं आंख बंद कर के भरोसा कर सकता हूं। निश्चिंत होकर जाओ, घर खुला पड़ा है, जितना मर्जी मुआयना कर लो, मैं अभी गार्ड को कॉल किये देता हूं।”
“मैं आपके घर पर ही खड़ी हूं।”
“ठीक है फिर मोहित से बात करा दो।”
तत्पश्चात अलीशा ने मोबाईल गार्ड को थमाया, जिसने डॉक्टर की इजाजत मिलने के बाद उसके लिए दरवाजा खोल दिया।
वह भीतर दाखिल हुई और हॉल में पहुंचकर सोफे के पास जाकर खड़ी हो गयी। फिर कुछ देर तक उन्हें घूरने के बाद उसपर लेट गयी। लेटकर सीढ़ियों की तरफ देखा, जो वहां से दिखाई नहीं दे रही थीं, फिर उठी और सीढ़ियों की तरफ बढ़ चली, मगर ऊपर जाने की बजाये वह उसके दूसरी तरफ पहुंची और बॉथरूम की तरफ बढ़ गयी।
कुछ भी ऐसा उसकी समझ में नहीं आया, जिसमें इस सवाल का जवाब छिपा हो कि अमन सिंह क्योंकर सबकी निगाहें बचाकर ऊपर पहुंचने में कामयाब हो गया था।
बाथरूम से लौटकर वह सीढ़ियों के दहाने पर पहुंची और दो तीन स्टेप चढ़कर उकड़ू बैठ गयी। उस स्थिति में हॉल के दूसरे सिरे पर पार्टी करते लोगों की निगाह वहां नहीं पहुंचने वाली थी। ये बात भी उसने खास कर के नोट की कि दहाने से निकलकर सीढ़ियों पर छिपने में उसे बस दो सेकेंड का वक्त लगा था।
मतलब बॉथरूम जाने वाला कोई भी शख्स बड़े आराम से उस काम को अंजाम दे सकता था। बल्कि हत्यारे को बॉथरूम जाने की भी क्या जरूरत थी, उसने तो बस उसका दिखावा भर करना था। भला किसे पड़ी थी जो ये जानने की कोशिश करता कि पार्टी छोड़कर निकला कोई शख्स बॉथरूम गया था, या नहीं गया था।
आखिरकार वह किचन में पहुंची, जहां हर तरफ अव्यवस्थता का बोल बाला था, यानि पार्टी वाली रात के बाद अभी तक वहां की साफ सफाई करने की कोई कोशिश नहीं की गयी थी। वह गौर से वहां पड़ी चीजों को देख ही रही थी कि एकदम से उसका ध्यान खिड़की के दोनों पल्लों में लगी चिटखनी की तरफ चला गया। उनमें से एक के स्क्रू बाहर को निकलते दिखाई दे रहे थे। मगर वह नीचे नहीं गिर गये थे, इसलिए ये सोचने की कोई तुक नहीं बनती थी कि हत्यारे ने उधर से घर में एंट्री मारी हो सकती थी।
वह उचककर किचन की सेल्फ पर बैठ गयी। फिर आंखें बंद कर के गहरे चिंतन में लीन हो गयी। मगर वैसा ज्यादा देर नहीं चला क्योंकि तभी उसका मोबाईल रिंग होने लगा। कॉल शुक्ला की थी जिसे उसने तुरंत अटैंड कर लिया।
“हैलो इंस्पेक्टर।”
“हैलो अलीशा।”
“कहिये कैसे याद किया?”
“ये बताने के लिए कि अमन सिंह के कातिल निकल आने की संभावना जीरो दिखाई देने लगी है, बल्कि ये कहना ही ज्यादा ठीक होगा कि वह कातिल नहीं हो सकता।”
“बुरी खबर दे रहे हैं।”
“हां है तो बुरी ही, मगर सच है।”
“इतने श्योर कैसे हैं आप?”
“उसके फिंगर प्रिंट्स उस शख्स से नहीं मिलते जो बीती रात डॉक्टर का कत्ल करने पहुंचा था। जबकि उसे हिरासत में लेते वक्त मुझे यकीन आ चला था कि केस सॉल्व हो गया।”
“यकीन की वजह?”
“मीनाक्षी की जान लेने से पहले हत्यारे ने उसे क्लोरोफॉर्म सुंघाकर बेहोश कर था। और अमन सिंह क्योंकि कैमिस्ट है इसलिए मैंने सहज ही मान लिया कि सब किया धरा उसी का था।”
“और कुछ?”
“हां, डॉक्टर भाटिया के नर्सिंग होम के इलाके से हमने एक सीसीटीवी फुटेज हासिल की है, जिसमें वैसा ही एक शख्स बाईक पर बैठकर जाता दिखाई दे रहा है, जिसे हमने वहां की सीसीटीवी फुटेज में देखा था।”
“और बाईक का नंबर 1494 है, है न?”
“आपको पता है?”
“हां पता है, दो घंटे पहले ये जानकारी दे दी होती इंस्पेक्टर साहब तो मैं खामख्वाह की कसरत करने से बच जाती।”
“हासिल ही अभी हुई है।”
“उस बाईक का पीछा करने से कुछ हासिल नहीं होगा इंस्पेक्टर साहब, क्योंकि उस नंबर के ऑनर का नाम रौनक है और पता डबुआ कॉलोनी का है। बुरी खबर ये है कि उसका कोमल या मीनाक्षी से दूर दूर का कोई लेना देना दिखाई नहीं है, बल्कि पार्टी में शामिल रहे किसी मेहमान को जानता तक नहीं है।”
“मिल भी लीं उससे?” शुक्ला हैरान होता हुआ बोला।
“तभी तो बता रही हूं।”
“ओह, यानि नंबर प्लेट जाली है?”
“लगता तो यही है।
“अजीब ढोल गले में पड़ी है मैडम, उतारने का कोई रास्ता ही नहीं दिखाई देता।”
“इतना निराश होने की जरूरत नहीं है इंस्पेक्टर साहब - वह हंसती हुई बोली - कातिल होशियार हो सकता है, लेकिन दुनिया में एक वही तो होशियार नहीं होगा, इसलिए आज नहीं तो कल उसका पकड़ा जाना तय है।”
“होप फुल थिंकिंग है।”
“नहीं गारंटी वाली थिंकिग है, बड़ी हद कल तक वह आपकी गिरफ्त में होगा।”
“इतनी श्योर कैसे हैं आप?”
“क्योंकि मैंने इंवेस्टिगेशन की दिशा बदल दी है। पहले मेरा सारा जोर पार्टी में शामिल रहे मेहमानों में से किसी को कातिल साबित कर दिखाने पर था, मगर अब उन्हें निर्दोष साबित करने में जुट चुकी हूं। यूं धीरे धीरे लिस्ट छोटी होती जायेगी और अंत में बस एक शख्स बचेगा जो कि हत्यारा होगा।”
“मैं इंतजार करूंगा आपकी लिस्ट छोटी होने का।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी। फिर किचन से निकलकर अलीशा सोफे पर जाकर बैठ गयी, बैठकर एक बार फिर अपनी आंखें बंद कर के पूरे मामले पर गहराई से विचार करने लगी।
अमन सिंह कातिल नहीं हो सकता क्योंकि हत्यारे के फिंगर प्रिंट्स के साथ उसकी उंगलियों के निशान मैच नहीं करते। फिर पार्टी के दौरान हर वक्त वह हॉल के सोफे पर बना रहा था, और अभी तक उस बात में कोई भेद सामने नहीं आया था।
डॉक्टर कातिल नहीं हो सकता क्योंकि मीनाक्षी के कत्ल से उसको कोई फायदा पहुंचता नहीं दिख रहा था। राशिद शेख के कहे मुताबिक अगर मीनाक्षी उसपर शादी के लिए दबाव बना भी रही थी, तो यूं आनन फानन में उसका कत्ल करने की उसे कोई जरूरत नहीं थी।
कोमल की हत्या विधायक चरण सिंह के इशारे पर भी नहीं की गयी थी, क्योंकि मीनाक्षी का कत्ल उसने नहीं कराया हो सकता। फिर निन्नी ने भी साफ कहा था कि कोमल के कत्ल में नेता के किसी आदमी का कोई हाथ नहीं था।
मुक्ता और उसके हस्बैंड में से भी कोई कातिल नहीं दिखाई दे रहा था, बल्कि उनके पास तो कत्ल की कोई मामूली सी भी वजह नहीं थी। फिर अलीशा को इस बात का भी यकीन था कि हत्या के पीछे डॉक्टर के अफेयर का ही हाथ था, जबकि मुक्ता में ऐसी कोई खास बात नहीं थी जिससे डॉक्टर उसपर रीझ जाता, या दोनों के बीच किसी संबंध की उम्मीद वह कर पाती।
सूरज चौधरी की कद काठी हत्यारे से मिलती थी, मगर वह और उसकी बीवी सुकन्या दोनों ही पूछताछ के दौरान एकदम बिंदास दिखाई दिये थे। हां सुकन्या को ये बात थोड़ी बुरी जरूर लगती दिखाई दी थी कि डॉक्टर का मीनाक्षी के साथ अफेयर था। मगर वह कोई खास बात नहीं थी, क्योंकि औरतें अक्सर ऐसी बातों पर नाक भौंह सिकोड़कर दिखा ही देती हैं।
राशिद शेख और नूरजहां...
आगे वह कुछ नहीं सोच पाई क्योंकि तभी उसका मोबाईल रिंग होने लगा। कॉल इस बार भी शुक्ला की ही थी, जिसे उसने तुरंत अटैंड कर लिया।
“डॉक्टर साहब की कोई खबर है आपको, कॉल नहीं ले रहे?”
“घर पर नहीं हैं, लेकिन थोड़ी देर पहले मेरी उनसे बात हुई थी।”
“एक जरूरी खबर देनी थी उन्हें।”
“क्या?”
“उनकी जान को खतरा है।”
“किससे?”
“और किससे होगा?”
“नेता के आदमियों से?”
“हां।”
“कैसे पता?”
“थोड़ी देर पहले जल्ली और निन्नी रणवीर से मिलने आये थे, तब एक सिपाही ने जल्ली को उससे कहते सुना था कि आज कल में डॉक्टर को ठिकाने लगा दिया जायेगा, जिसके बाद उसका आजाद हो जाना महज वक्त की बात होगी। थाने से ना भी हुआ तो कोर्ट से जमानत पक्का हासिल करा लेंगे नेता जी, इसलिए चाहे कुछ भी हो जाये वह अपनी जुबान बंद रखे।”
“ये तो बहुत हौलनाक खबर है शुक्ला जी।”
“तभी तो आपको बता रहा हूं, डॉक्टर से बात हो जाये तो कह दीजिएगा कि कुछ दिनों के लिए कहीं गायब हो जाये, शहर ना छोड़ने की मेरी वॉर्निंग को भूलकर गायब हो जाये।”
“आप कुछ नहीं कर सकते?”
“करने लायक कुछ हो तब तो करूं, मैं क्या चौबीसों घंटे डॉक्टर की पहरेदारी कर सकता हूं? फिर हमें क्या मालूम कि इस बार भी उनकी जान लेने कोई अकेला आदमी ही पहुंचेगा, ना कि पूरी पलटन। जो अगर पहुंच गयी तो इसके अलावा मैं क्या मदद कर पाऊंगा कि डॉक्टर को बचाने की कोशिश में शहीद हो जाऊं।”
“मैडल तो मिल ही जायेगा।”
“मजाक मत कीजिए।”
“ठीक है नहीं करती, लेकिन मेरे पास एक ऐसी जानकारी है इंस्पेक्टर साहब जिसके बूते पर मैं और आप मिलकर नेता के साम्राज्य का विध्वंस कर सकते हैं, फिर डॉक्टर के सिर पर मंडराता मौत का खतरा खुद ब खुद दूर हो जायेगा।”
“वह मेरा कोई सगेवाला नहीं है अलीशा, ना ही तुम्हारा। फिर विधायक जी के साम्राज्य का अंत करना क्या आपको बच्चों का खेल दिखाई देता है, उसके लिए तो सीधा फौज की ही जरूरत पड़ने वाली है, जो कि मैं और आप नहीं हो सकते।”
“अगर मेरी जानकारी में कोई खोट नहीं है शुक्ला जी, तो हमने बस पलीते को माचिस भर दिखानी है, बाकी का काम खुद ब खुद हो जायेगा। सवाल ये है कि उस फ्रंट पर आपको हाथ पांव हिलाना मंजूर होगा या नहीं।”
“नहीं होगा, मुझे हीरो बनने का कोई शौक नहीं है।”
“अरे काम उतना मुश्किल भी नहीं है।”
“आप विधायक चरण सिंह को नेस्तनाबूद करने की बात कर रही हैं मैडम, और साथ में ये भी कहती हैं कि काम मुश्किल नहीं है, दोनों बातें एक साथ भला कैसे मुमकिन हैं?”
“हो सकती हैं।”
“बयान कीजिए।”
“फोन पर नहीं, कहीं मिलते हैं, फिर बताऊंगी कि मेरा सोचा कैसे पूरा हो सकता है।”
“कब मिलना चाहती हैं?”
“अभी दो बजने को हैं, कहीं साथ में बैठकर लंच करते हैं।”
“यहां आस-पास तो मैं वह भी नहीं कर सकता, किसी ने मुझे खट्टर साहब के खास आदमी के साथ लंच करते देख लिया, तो मैं गया काम से।”
“कहीं और चल लेते हैं।”
“क्राउन इंटीरियर मॉल, आपके फ्लैट और मेरे थाने, दोनों से ही बेहद करीब है वह जगह।”
“वहां कहां?”
“हल्दीराम में।”
“कब तक पहुंच जायेंगे?”
“एक घंटे बाद, अभी मैंने सूरज सिंह को बुलाया है, उससे पूछताछ निबटाने के बाद ही आना हो पायेगा।”
“ठीक है तीन बजे मिलते हैं।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट की फिर हॉल में एक आखिरी नजर मारकर वहां से निकल गयी।
निर्धारित वक्त पर अलीशा हल्दीराम पहुंची, तो शुक्ला को वहां पहले से मौजूद पाया। वह सिविल ड्रेस में था इसलिए वहां बैठे लोगों की भीड़ में उसे पहचानने में थोड़ा वक्त जरूर लग गया उसे।
“हीरो लग रहे हैं।” करीब पहुंचकर वह बोली।
“आप भी न?” शुक्ला थोड़ा शरमा गया।
“शर्ट जंच रही है।”
“थैंक यू, लेकिन पैंट वर्दी वाली ही है, यहां पुलिस की यूनिफॉर्म में आना ठीक नहीं लगा इसलिए शर्ट बदल ली - फिर उठता हुआ बोला - मैं ऑर्डर कर के आता हूं, क्या लेंगी?”
“नूडल्स।”
“आप तो लंच करने की बात कर रही थीं।”
“नूडल भी लंच ही होता है इंस्पेक्टर साहब।”
“ठीक है, जैसी आपकी मर्जी।” कहकर वह बिलिंग काउंटर पर गया और ऑर्डर स्लिप हासिल कर के काउंटर पर खड़े आदमी को थमा आया।
“अब बताइये कैसी जानकारी है आपके पास?”
“अगर मेरा अंदाजा सही है तो जानकारी बहुत विस्फोटक है। और इस बात का यकीन पहले ही दिलाये देती हूं इंस्पेक्टर साहब कि उस काम को अंजाम देने के बाद जो सुकून आपको महसूस होगा, वह पुलिस की नौकरी में पहले तो क्या हुआ होगा।”
“ऐसा क्या करवाना चाहती हैं आप?”
“परसों रात से भारत न्यूज का एक पत्रकार अपने घर नहीं पहुंचा है। और उसके एडिटर का भी अपहरण कर लिया गया है, खबर तो होगी ही आपको?”
“बिल्कुल है, आजकल हर न्यूज चैनल पर वही तो दिखाया जा रहा है।”
“मुझे लगता है इंस्पेक्टर साहब कि उन दोनों के गायब होने के पीछे विधायक चरण सिंह का ही हाथ है।”
“जैसे आपने कोई राज की बात बता दी - शुक्ला हौले से हंसा - ये तो हर कोई जानता है कि उस पत्रकार के साथ नेता की ठनी हुई थी, और उस लिहाज से उसके एडिटर के साथ भी ठन गयी हो तो क्या बड़ी बात है। मुझे तो इस बात का भी यकीन है कि दोनों को खत्म कर के लाशें गायब कर दी गयी हैं।”
“जिंदा भी तो हो सकते हैं?”
“चांसेज बहुत कम हैं।”
“मेरे ख्याल से तो जिंदा हैं।”
“ऐसे ख्याल की वजह?”
“और ना सिर्फ जिंदा हैं इंस्पेक्टर साहब बल्कि मुझे यकीन है कि उन्हें पाली गांव के एक घर में कैद कर के रखा गया है।”
“क्या कह रही हैं?” शुक्ला बुरी तरह चौंक उठा।
“शत प्रतिशत गारंटी तो नहीं कर सकती, लेकिन शक बराबर है। आगे कल्पना कीजिए कि अगर वाकई में नेता ने उन दोनों को वहीं बंद कर के रखा है, और आप उन्हें आजाद कराने में कामयाब हो जाते हैं, तो क्या नेता की हुकूमत का खात्मा होते देर लगेगी?”
“नहीं लगेगी, लेकिन मामला ना तो मेरे थाने का है, ना ही पाली गांव मेरे थाने के अंडर आता है। क्या कहकर अपने अफसरों को तैयार कर पाऊंगा मैं उसके लिए?”
“अफसरों को तो आप वैसे भी तैयार नहीं कर सकते शुक्ला जी, कोशिश भी करेंगे तो रेड से पहले उसकी खबर विधायक तक पहुंच जायेगी, नतीजा ये होगा कि दोनों को वहां से कहीं और शिफ्ट कर दिया जायेगा, या खत्म ही कर दिया जायेगा।”
“फिर और क्या कर उम्मीद...” बोलता बोलता वह एकदम से चुप हो गया - आप कहीं ये तो नहीं चाहतीं कि मैं अनऑफिशियली वहां पहुंचकर दोनों को - अगर सच में वहां हुए - आजाद करा लूं?”
“हां यही चाहती हूं मैं।”
“आपको मजाक लग रहा है?”
“थोड़ा मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं।”
“अगर आप ऐसा सोचती हैं मैडम तो मैं यही कहूंगा कि अभी नेता की ताकत से वाकिफ नहीं हैं। अपनी सल्तनत को उजड़ने के कगार पर पहुंचा देखकर वह ऐसा कहर ढायेगा कि पता भी नहीं लगेगा एसआई जयंत शुक्ला गया तो कहां गया।”
“नहीं इतना कुछ नहीं होने वाला, बड़ी हद नेता के छह-सात आदमी मौजूद होंगे वहां, जिनपर काबू पाया जा सकता है। मुश्किल से ही सही लेकिन पाया जा सकता है।”
“अरे अकेले क्या कर पाऊंगा मैं?”
“आप अकेले नहीं होंगे, मैं आपके साथ चलूंगी, मेरा एक आदमी भी होगा, जो जरूरत पड़ने पर दो तीन लोगों को निहत्था भी संभाल सकता है।”
“जरूर इस्पात का बना होगा, जो गोली भी झेल जायेगा।”
“हम कोशिश करेंगे कि शूट आउट की नौबत न आये।”
“इसकी कौन गारंटी करेगा कि कोशिश कामयाब भी हो जायेगी?”
“नहीं कर सकती, मगर रिस्क तो हर काम में होता है।”
“पंगे वाला काम है अलीशा जी, बल्कि जान जोखिम में डालने जैसा काम है। आप शेर की मांद से उसका शिकार घसीट लाना चाहती हैं, जो पॉसिबल नहीं है। किसी को पता लग गया कि वह काम मेरा था तो बस नौकरी ही नहीं जायेगी, साथ में मेरी लाश भी किसी गली कूचे में पड़ी सड़ रही होगी।”
“अगर वैसा हुआ शुक्ला जी तो मैं वादा करती हूं कि नेता के घर में घुसकर उसकी खोपड़ी में बुलेट उतार दूंगी, मतलब आपका बलिदान जाया नहीं जायेगा।”
“मैं बलिदान होना ही नहीं चाहता।”
“आप पुलिसवाले हैं।”
“हां, महज एक पुलिसवाला ही तो हूं।”
“आपका फर्ज बनता है कि अपराध की खबर हो तो उसे रोकने की कोशिश करें, जबकि मैं ऐसे किसी कायदे कानून से बंधी नहीं हूं। और जब मैं अपनी जान की परवाह नहीं कर रही तो आपको करना क्या शोभा देता है?”
“मुझे ये कुछ ठीक नहीं लग रहा।” वह धीरे से बोला।
“शादीशुदा हैं?”
“नहीं।”
“मैं भी नहीं हूं।”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
“यही कि हमपर डिपेंड कोई नहीं है, फिर जान का मोह क्या करना।”
“डॉयलॉग बढ़िया बोल लेती हैं आप, खूबसूरत भी हैं, कभी फिल्मों में ट्राई नहीं किया?”
“कई बार किया, दिल्ली से मुंबई तक हो आई।”
“दाल नहीं गली?”
“स्क्रिप्ट पसंद नहीं आई।”
सुनकर वह हंस पड़ा।
“हम सावधानी बरतेंगे इंस्पेक्टर साहब तो सब कुछ अंडर कंट्रोल होगा, फिर सुना है कि नेक कामों में ऊपर वाला भी दिल खोलकर मदद करता है।”
“मैंने नहीं सुना।”
“अरे कुछ नहीं होगा।”
“मेरे ख्याल से तो कुछ नहीं बचेगा।”
अलीशा हंसी।
“मैं ऑर्डर लेकर आता हूं - कहकर वह काउंटर पर गया और नूडल्स के साथ छोले भटूरे की प्लेट उठा लाया, जो उसने अपने लिए ऑर्डर किया था, फिर वापिस अलीशा के सामने बैठता हुआ बोला - आप सच में ये सब करना चाहती हैं?”
“हां भई, वरना जिक्र क्यों करती?”
“डॉक्टर के लिए करना चाहती हैं?”
“नहीं, इसलिए करना चाहती हूं ताकि थोड़ा सबाब कमाया जा सके। वरना अब तक की जिंदगी में तो बस पाप ही बटोरती आ रही हूं। फिर डॉक्टर के साथ मेरा प्रोफेशनल रिश्ता है। मेरा काम कोमल के कातिल का पता लगाना है ना कि उसे नेता के प्रकोप से बचाने का भी ठेका ले लिया है।”
“क्यों न क्राईम बं्राच को इत्तिला दे दी जाये, आखिर केस वही लोग तो हैंडल कर रहे हैं, फिर आप जो चाहती हैं उसे पुलिस सहज ही कर दिखायेगी।”
“अगर आप इस बात की गारंटी कर सकें कि क्राईम ब्रांच में नेता का कोई भेदिया मौजूद नहीं होगा, तो मुझे आपकी बात मंजूर है।”
“नहीं इसकी गारंटी कर पाना तो मुश्किल है - कहकर उसने पूछा - अच्छा मान लीजिए मैं जाने से इंकार कर दूं तो आप क्या करेंगी?”
“ये काम तो मैंने कर के रहना है इंस्पेक्टर, चाहे आप साथ चलें या न चलें।”
“और वहां कुछ न मिला तो?”
“तो हमारी बदकिस्मती।”
“मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि पुलिस को सुराग मिले हैं कि अपहरण के बाद निगम को मथुरा ले जाया गया था, ऐसे में क्योंकर संभव है कि वह पाली गांव पहुंचा दिया गया हो?”
“कहा तो मैंने, नहीं मिले तो हमारी बदकिस्मती, बल्कि हमसे ज्यादा उन दोनों की होगी, क्योंकि मिल जायेंगे तो बच जायेंगे, आगे नेता का सर्वनाश भी वही लोग करेंगे, हम तो बस निमित्त मात्र होंगे।”
“ठीक है मैडम, समझ लीजिए आप मेरा ब्रेन वॉश करने में कामयाब रहीं।”
“मतलब?”
“अक्ल का अंधा शुक्ला ओखली में सिर डालकर मूसल खाने के लिए तैयार है, बताईये कब करना है?”
“आधी रात के बाद चलेंगे, और मेरी कार से चलेंगे क्योंकि पुलिस जीप का उस इलाके में देखा जाना ठीक नहीं होगा, किसी को नंबर याद रह गया तो बाद में प्रॉब्लम हो सकती है आपके लिए।”
“ठीक है।”
तत्पश्चात दोनों अपनी अपनी प्लेट खाली करने में जुट गये। उस काम से फारिग होने में उन्हें पंद्रह मिनट लगे, फिर बाहर निकल कर अपनी अपनी राह हो लिये।
रात के दो बजे थे।
पाली गांव के बाहर पहुंचकर अलीशा ने कार को सड़क किनारे लगाकर खड़ा कर दिया, मगर गाड़ी से नीचे उतरने की कोई कोशिश नहीं की। उसे इंतजार था गजानन चौधरी का जिसे उसने रात दस बजे के करीब फोन कर के मुलाकात की जगह और वक्त बता दिया था।
उसे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा।
पांच मिनट बाद चौधरी ने कार के करीब पहुंचकर बाईक रोक दी, फिर ड्राईविंग साईड में पहुंचकर अलीशा से बोला, “रात के दो बज रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि इतनी रात को किसी भी तरह हम उस घर का दरवाजा खुलवाने में कामयाब हो पायेंगे, ऊपर से हम ये भी नहीं जानते कि अंदर कितने लोग मौजूद हैं।”
“जितने भी होंगे देख लेंगे, तुम अपनी बाईक यहीं छोड़कर गाड़ी में बैठ जाओ।”
“थोड़ा आगे किसी घर के सामने खड़ी कर देता हूं, चोरी हो जाने का खतरा नहीं होगा।”
“ठीक है।” कहते हुए उसने कार आगे बढ़ा दी।
रास्ते में एक जगह गजानन ने उन्हें रुकने का इशारा किया और बाईक से उतरकर उनके साथ अल्ट्रोज में सवार हो गया। तत्पश्चात अलीशा ने कार को उस मकान के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया, जहां का एक फेरा आज सुबह लगा चुकी थी।
वहां लगा लोहे का गेट एकदम सपाट था इसलिए उसपर चढ़कर दूसरी तरफ पहुंचना नामुमकिन बात थी। फिर भी कोशिश करते तो कोई न कोई आहट उत्पन्न होकर रहती, जो उनके मिशन के लिए घातक साबित होती।
“क्या करें?” अलीशा ने पूछा।
“किसी तरह दरवाजा खुलवाना होगा।” शुक्ला बोला।
“कैसे?”
उसने बताया।
“वह कोशिश अगर फेल हो गयी इंस्पेक्टर साहब तो भीतर घुसने का दूसरा मौका हमें नहीं मिलेगा। फिर होने को ये भी हो सकता है कि दरवाजा खोलने से पहले वे लोग ओमकार को फोन कर के कंफर्मेशन हासिल करने की कोशिश करें, कि उसने किसी को यहां भेजा था या नहीं।”
“कर सकते हैं, लेकिन इसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिखता कि गजानन दरवाजा खटखटाकर बोले कि ओमकार भाई ने भेजा है कैदियों की शिफ्टिंग के लिए। जो कि अगर कैदी भीतर नहीं हुए तो अपने आप में बड़े बवेले वाली बात होगी, क्योंकि गड़बड़ी का एहसास उन्हें होकर रहेगा।”
“मकान के पीछे से एक गली गुजरती है, दिन में उधर गयी थी मैं। हालांकि वह दीवार गेट के बराबर ही ऊंची है, लेकिन उसपर चढ़ने के दौरान आहट उत्पन्न होने का कोई खतरा नहीं है, दूसरा फायदा ये होगा कि उधर से भीतर दाखिल होकर हम इस दरवाजे को खोल सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि इसे अंदर से ताला लगाकर रखा गया होगा।”
“ठीक है ट्राई कर के देख लेते हैं।”
अलीशा ने कार आगे बढ़ाई और उस गली के सामने ले जाकर रोक दिया, जो पीछे वाली गली से जा मिलती थी। तत्पश्चात तीनों गाड़ी से नीचे उतरे और पैदल आगे बढ़ गये।
मकान के पीछे पहुंचकर अलीशा ठिठकी। उसने गजानन को इशारा किया तो वह तुंरत दीवार के साथ पीठ लगाकर खड़ा हो गया। फिर अपने दोनों हाथों को आपस में बांधकर शुक्ला की तरफ देखा तो उसका मंतव्य समझकर उसने दायां पैर उसकी बंधी हुई हथेली पर टिकाया और दोनों हाथों से गजानन का कंधा पकड़कर जोर से उचका। अगले ही पल उसके हाथ दीवार पर टिक चुके थे। जिसके बाद गजानन के कंधे से होकर ऊपर पहुंच जाना बहुत मामूली काम साबित हुआ।
सिविल ड्रेस में तो शुक्ला पहले से था, अब दीवार पर बैठकर अपने मुंह पर रुमाल भी बांध लिया। इसी से पता लग जाता था कि विधायक चरण सिंह का खौफ किस हद तक उसपर सवार था।
भीतर सन्नाटा पसरा हुआ था। गेट से लेकर उस दीवार तक की जगह एकदम खुली हुई थी, लिंटल करीब चौदह फीट की ऊंचाई पर था, क्योंकि दीवार और उसके बीच चार फीट का गैप बराबर दिख रहा था, और दीवार के बारे में वह श्योर था कि दस फीट से कम ऊंची तो हरगिज भी नहीं थी।
दीवार के करीब ही एक जगह पर 5-6 कुर्सी टेबल एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे। जिनकी हालत उस वक्त कबाड़ से ज्यादा नहीं दिखाई दे रही थी। तीन-चार पुराने तकिये और एक दरी भी वहां फेंकी हुई थी, मतलब वह कबाड़ ही था।
वहां का मुआयना कर चुकने के बाद शुक्ला ने अलीशा को इशारा किया और उसका हाथ थामकर ऊपर खींचा तो वह भी गजानन की बंधी हुई हथेली और उसके कंधे पर पैर रखती दीवार पर चढ़कर बैठ गयी। फिर उसकी निगाह गेट की तरफ चली गयी। जैसी की उसे उम्मीद थी, वहां कोई ताला नहीं लगा हुआ था।
“कार लेकर फ्रंट में पहुंचो।” गर्दन नीचे झुकाकर अलीशा फुसफुसाती हुई बोली, फिर चाबी नीचे गिरा दी। तत्पश्चात दोनों बाउंड्री से लटककर बेआवाज दूसरी तरफ उतरे और कबाड़ के पीछे खड़े होकर कोई आहट सुनाई देने का इंतजार करने लगे, मगर हर तरफ सन्नाटा ही पसरा रहा। वैसे भी सवा दो का वक्त हो रहा था। इतनी रात को किसी के जगे होने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
जहां दोनों खड़े थे, उससे थोड़ा आगे ओपन यार्ड के बीचों बीच बाईं तरफ को एक दरवाजा दिखाई दे रहा था, जो बंद नहीं था, इसका पता उन्हें दूर से ही लग गया, क्योंकि दरवाजे के दोनों पल्ले थोड़ा अंदर की तरफ दबे दिखाई दे रहे थे।
शुक्ला ने अलीशा को इशारा किया, फिर दोनों दबे पांव चलते हुए उस दरवाजे के सामने जा खड़े हुए। रुककर एक बार फिर अंदर से आहट लेने की कोशिश की, मगर वहां किसी हलचल का आभास नहीं हुआ। तब शुक्ला ने हौले से दरवाजे को भीतर की तरफ धकेला।
दरवाजा नहीं खुला।
उसने फिर से कोशिश की।
दरवाजा फिर भी नहीं खुला।
जरूर उसका कुंडा लूज था जिसके कारण दोनों पल्ले एक दूसरे से चिपके हुए नहीं थे, जबकि भीतर से लगाया बराबर गया था। ऐसा दरवाजा जोर की एक लात जमाकर भी खोला जा सकता था। मगर उस स्थिति में नुकसान ये होता कि भीतर जाग हो जाती। फिर उन दोनों के लिए अंदर मौजूद कई आदमियों को - जिनकी संख्या तक नहीं मालूम थी - संभालना मुश्किल हो जाता।
“कोई अंदाजा - शुक्ला फुसफुसाता हुआ बोला - कि भीतर कितने लोग हो सकते हैं?”
“चार तो यकीनन हैं, जबकि होने को उसके डबल ट्रिपल भी हो सकते हैं।”
“बारह?” उसकी आंखें फैल सी गयीं।
“अंदाजा ही तो है, जो कि गलत भी हो सकता है।”
“यानि बारह से ज्यादा भी हो सकते हैं?”
“कम भी हो सकते हैं।”
“जवाब नहीं मैडम आपका।”
“थैंक यू, लेकिन तारीफ के लिए ये सही वक्त नहीं है। अभी ये सोचिये कि करना क्या है?”
“वो तो यहां आने से पहले प्लॉन करना चाहिए था।”
“शिकायत के लिए भी सही वक्त नहीं है ये।”
“ओके तो सबसे पहले मैं फाटक खोलता हूं, ताकि मामला बिगड़ने पर हमें फिर से दस फीट ऊंची बाउंड्री पर न चढ़ना पड़े, जो कि गजानन के साथ न होने के कारण नामुमकिन जैसी बात होगी।”
“ठीक है।”
तत्पश्चात वह दरवाजा खोलने चला गया, जबकि अलीशा ने गजानन का नंबर डॉयल कर के उसे हिदायत दे दी कि कार को वहां से थोड़ा आगे बढ़ाकर खड़ा करे, ना कि गेट के ठीक सामने।
दरवाजा खुल गया, थोड़ी आवाज तो हुई मगर वह इतनी ज्यादा नहीं थी कि उसके कारण घर में जाग हो जाती। फिर कार खड़ी कर के गजानन भी अंदर आ गया।
“सब ठीक?”
“अभी तक तो ठीक ही है भई, आगे का पता नहीं।”
“करना क्या है?”
शुक्ला ने पल भर उसके सवाल पर विचार किया फिर अपना अगला कदम निर्धारित करने के बाद गजानन को कुछ समझाकर वहां से बाहर भेजा, और खुद अलीशा के साथ कबाड़ के पीछे जाकर छिप गया।
“एक बात ध्यान रखियेगा मैडम कि गोली हमें सिर्फ और सिर्फ तब चलानी है जब उसके अलावा कोई रास्ता न दिखे, मगर एक बार चल जाये तो फिर कंजूसी नहीं करनी है। हां इस बात का खास ख्याल रखियेगा कि एक भी बुलेट जाया न होने पाये, क्योंकि हम दोनों के पास कुल मिलाकर बारह गोलियां हैं, बशर्ते कि आपकी गन फुली लोडेड हो।”
“मेरी तरफ से बेफिक्र रहिये।”
तभी दरवाजे पर जोर की ठोकर पड़ी, इतनी जोर से कि रात के सन्नाटे में वह आवाज पूरे गांव में सुनाई दे गयी हो तो कोई बड़ी बात नहीं थी। वह काम गजानन का था जो दरवाजे में कस के एक लात जमाने के बाद दौड़कर कार में जा बैठा था।
शुक्ला और अलीशा सांस रोके इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर बाद भीतर वाला दरवाजा खुलता दिखाई दिया, हड़बड़ाये से दो लोग बाहर निकले, फिर उनमें से एक चौंकता हुआ बोला, “अरे फाटक कैसे खुला पड़ा है?”
“क्या हुआ विपिन?” भीतर से किसी ने पूछा।
“मालूम नहीं, देखते हैं।” कहकर वह अपने साथी के साथ बाहर की तरफ बढ़ चला।
“लगता है सतबीर कुंडा लगाना भूल गया था।” दूसरा शख्स बोला।
“अगर भूल भी गया हो तो आंधी थोड़े ही चल रही है जो पल्ले पूरे के पूरे खुल गये, जरूर कोई गड़बड़ है। तैयार हो जा, गोली चलाने की नौबत आ सकती है।”
“खामख्वाह! जबकि आस-पास दिखाई कोई नहीं दे रहा।”
“बाहर पहुंचकर दिखेगा।”
दोनों ही लड़के नई उम्र के थे, हथियारबंद थे, और सिर पर विधायक का हाथ था, इसलिए भय नाम की चीज तो उनके मन में दूर दूर तक नहीं थी। ऐन उसी वजह से भीतर मौजूद लड़कों को बुलाने की कोशिश नहीं की।
बाहर निकलकर दोनों दरवाजे की ओट में पहुंचकर दिखाई देने बंद हो गये तो शुक्ला और अलीशा कबाड़ की ओट से निकलकर उनके पीछे लपके, दोनों की गन उनके हाथों में थी और कैसी भी परस्थिति से निबटने के लिए एकदम तैयार दिखाई दे रहे थे।
बाहर पहुंच चुके लड़कों ने इधर उधर निगाह दौड़ाना शुरू किया तो बाईं तरफ को थोड़ी दूरी पर खड़ी अल्ट्रोज दिखाई दी, जिसकी डोम लाईट जल रही थी।
“ये तो वही कार मालूम पड़ती है।”
“कौन सी कार?”
“जिसे सुबह खड़ा देखा था यहां, कोई लड़की चला रही थी।”
“भीतर अभी भी कोई बैठा मालूम पड़ता है।”
“कहीं उसी ने तो दरवाजा नहीं भड़भड़ाया था?”
“पागल हुआ है, कार में बैठकर कोई यहां दरवाजा पीटने पहुंचेगा?”
“एक बार पता करने में क्या हर्ज है, और कुछ नहीं तो इतना जरूर बता देगा कि किसी को यहां से भागकर जाते देखा था या नहीं।” कहते हुए वह कार की तरफ बढ़ा तो दूसरा लड़का उसके साथ हो लिया।
उसी वक्त शुक्ला और अलीशा तेजी से उनके पीछे दौड़े। दोनों को उस बात का एहसास भी फौरन हो गया, मगर जब तक घूम पाते, शिकारी उनके सिर पर पहुंच चुके थे। अगले ही पल रिवाल्वर के दस्ते से ताबड़तोड़ प्रहार कर के उन्हें निष्क्रिय कर दिया गया।
फिर गजानन चौधरी गाड़ी से नीचे उतरा और दोनां के एक एक हाथ पकड़कर उन्हें घसीटता हुआ सामने उगी झाड़ियों में डाल आया। अब दूर से देखने पर उनकी खबर किसी को नहीं लगने वाली थी।
“आगे क्या करना है?” शुक्ला ने पूछा।
“एक बार फिर से यही पैंतरा आजमाते हैं, कामयाबी मिल गयी तो ठीक वरना सामने से धावा बोलेंगे, जो होगा देखा जायेगा - अलीशा बोली - बाकी हम अव्वल दर्जे के गधे हैं, इसका एहसास हो चुका है मुझे।”
“कैसे?”
“दोनों में से एक को सही सलामत काबू में किया होता, तो सहज भी पता लग जाता कि भीतर कितने आदमी थे। ये भी कि मुकल और निगम भीतर थे या नहीं।”
“फिर तो वाकई में गलती हो गयी।”
“जिसपर पछताने का अब कोई फायदा नहीं है इसलिए अंदर चलते हैं।”
“ठीक है।”
तत्पश्चात दोनों पूरी सावधानी बरतते हुए गेट तक पहुंचे तो ये देखकर बड़ी राहत महसूस हुई कि वहां अभी भी पहले की तरह सन्नाटा पसरा हुआ था।
दोनों एक बार फिर कबाड़ के पीछे जाकर खड़े हो गये। जिसके बाद गजानन ने दरवाजे को पर जोर से एक लात जमाई और दौड़ता हुआ जाकर कार में बैठ गया। केबिन लाईट अभी भी जल रही थी जिसे बंद करने की कोई कोशिश उसने नहीं की।
शुक्ला और अलीशा इंतजार करने लगे।
“क्या मुसीबत है यार? - बड़बड़ाता हुआ एक लड़का अंदर वाले दरवाजे से बाहर निकल - विपिन, बट्टी, कहां मर गये बे?” कहता हुआ वह बड़े वाले फाटक की तरफ बढ़ चला।
इतने से ही जाहिर हो जाता था कि वह सब नौसिखुए थे, मंझे हुए होते तो सबने एक साथ दरवाजा भड़भड़ाने वाले की तलाश में जुट जाना था, या कुछ लोग बाहर जाते और बाकी के फाटक अंदर से बंद कर के इंतजार करते।
मगर नहीं उन्हें तो नींद प्यारी थी।
इस बार बाहर आया लड़का पहले दोनों की अपेक्षा समझदार निकला। उसने फाटक पार करने की बजाये वहीं ठिठककर दायें बायें झांका, फिर मोबाईल निकालकर बाहर गये अपने साथियों में से किसी को कॉल करने जा ही रहा था कि तभी शुक्ला उसके सिर पर पहुंच गया। उसने रिवाल्वर को नाल की तरफ से थामकर एक करारा वार लड़के की खोपड़ी पर कर दिया, मगर उसे चिल्लाने से तो फिर भी नहीं रोक पाया।
वार बेअसर होते देख शुक्ला बौखलाया और ताबड़तोड़ दो तीन प्रहार और कर दिये, फिर नतीजा देखे बिना दौड़कर वापिस कबाड़ के ढेर तक पहुंच गया, जहां अलीशा अभी भी ज्यों की त्यों खड़ी थी।
इस बार एक दो की बजाये चार लोग दौड़ते हुए बाहर निकले, फिर जैसे ही उनकी निगाह फाटक के पास नीचे पड़े अपने साथी पर पड़ी, एकदम से चौकन्ने हो उठे।
उसी वक्त अलीशा ने गजानन को कॉल लगाकर जल्दी जल्दी कुछ समझाया, जिसके बाद बाहर से कार का हॉर्न बजने की आवाज वहां तक साफ पहुंचने लगी।
सुनकर वो चारों दौड़ते हुए गेट से बाहर निकल गये।
“मैं यहां हूं सालों - गजानन कार की खिड़की से गर्दन बाहर निकालकर चिल्लाता हुआ बोला - मर्द हो तो आओ दो दो हाथ कर लेते हैं, तुममें से एक भी जिंदा बच जाये तो कहना।”
शुक्ला और अलीशा तेजी से कबाड़ की ओट से निकले और गन सामने की तरफ ताने हुए बाईं तरफ वाले दरवाजे से अंदर दाखिल हो गये। वह खूब बड़ा हॉल था, जिसमें रोशनी भी पर्याप्त थी। मगर खाली था, कहीं कोई नहीं था। हां फर्श पर बिछे बिस्तर और वहां बेतरकीब पड़ीं रजाईयां बराबर दिखाई दे गयीं।
दोनों ने दायें बायें देखा तो दाहिनी तरफ नीचे और ऊपर, दोनों तरफ को जाती सीढ़ियां दिखाई दे गयीं। शुक्ला दौड़कर उस जगह पर पहुंचा फिर अलीशा की तरफ देखता हुआ बोला, “बेसमेंट जान पड़ती है।”
“फिर तो कैदियों के नीचे होने की उम्मीद की जा सकती है।”
तत्पश्चात दोनों गन सामने की तरफ ताने सीढ़ियां उतरते गये। वहां घुप्प अंधेरा था इसलिए अलीशा ने मोबाईल की टॉर्च जला ली। बेसमेंट करीब करीब इमारत के बराबर ही फैली हुई थी, लेकिन वहां दो कमरे भी दिखाई दे रहे थे, जिनके दरवाजों को बाहर से कुंडा लगा हुआ था।
शुक्ला ने एक दरवाजे को खोलकर देखा तो भीतर किसी को कंबल ओढ़े फर्श पर लेटा पाया। फिर उसे हिला डुलाकर उठाने की कोशिश की गयी तो बुरी तरह चौंकता, कराहता वह उठकर बैठ गया। तब पता लगा कि उसके हाथ पांव रस्सियों से जकड़े हुए थे।
“कौन हो तुम - शुक्ला ने पूछा - मुकुल?”
“हां, मैं ही हूं।”
“निगम साहब कहां हैं?”
“मैं नहीं जानता, तुम कौन हो?”
“तारणहार।” कहकर वह जल्दी जल्दी उसके बंधन खोलने में जुट गया।
“यहां विधायक के कितने आदमी हैं, जानते हो?”
“पहले सात थे, अब बढ़ गये हों तो नहीं कह सकता।”
सुनकर अलीशा ने मन ही मन गिनती की। तीन लड़कों को वे लोग बेहोश कर चुके थे, जबकि बाकी चारों गजानन के पीछे गये थे। या फिर घर के बाहर खड़े थे और किसी भी वक्त लौट सकते थे।
बंधन खुलने के बाद मुकुल ने उठने की कोशिश की तो भरभराकर गिर पड़ा, तब अलीशा ने उसे सहारा दिया और खड़ा कर के अपने साथ चलाती हुई कमरे से निकाल ले गयी, फिर दूसरे कमरे का दरवाजा खोला गया तो वहां अविनाश निगम रस्सियों में जकड़ा मिला। मुकुल की अपेक्षा वह अच्छी हालत में था, क्योंकि कोई मारपीट उसके साथ नहीं की गयी थी।
मिनट भर बाद वह भी कमरे से बाहर था।
फिर अलीशा ने मुकुल को निगम के हवाले किया और अपने पीछे आने का इशारा कर के शुक्ला के साथ आगे आगे सीढ़ियां चढ़ने लगी। और तब जबकि वे लोग ऊपर पहुंचने ही वाले थे, कई जोड़ी कदमों की आहट उनके कानों में पड़ी, जिसे सुनकर जहां के तहां ठिठक गये।
“मैं निन्नी भाई को फोन करता हूं।” कोई बोला।
“क्या बतायेगा?”
“वही जो हुआ है, और क्या बताऊंगा?”
“कैदी तो हमारी गिरफ्त में हैं न, फिर क्यों अपनी जान को आफत बुला रहा है। ऊपर से वो साला अल्ट्रोज वाला भाग भी तो गया, उसमें निन्नी भाई क्या कर लेंगे, उल्टा डांट पड़ेगी सो अलग।”
“अरे तू समझता क्यों नहीं? मुझे साफ साफ किसी गड़बड़ का एहसास हो रहा है। पता नहीं वह साला कौन था, कैसे उसने दरवाजा खोल लिया, फिर विपिन और बट्टी गायब भी तो हैं।”
“तो पहले उन्हीं दोनों को फोन क्यों नहीं करता?”
“ठीक है करता हूं।” कहकर उसने विपिन का मोबाईल नंबर डॉयल किया तो घंटी वहीं फर्श पर बिछे बिस्तर पर बजने लगी, फिर उसके बगल के बिस्तर के पास दूसरा मोबाईल भी दिखाई दे गया, जो बट्टी का ही हो सकता था, क्योंकि वह वहीं सोया हुआ था।
घायल पड़े तीसरे शख्स को वे लोग अपने साथ उठा लाये थे और एक जना उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारकर होश में लाने की कोशिश कर रहा था।
शुक्ला और अलीशा की निगाहें मिलीं।
“यहीं रुकना।” फुसफुसाकर निगम से कहने के बाद शुक्ला दबे पांव सीढ़ियां चढ़ने लगा, अलीशा उसके साथ थी, फिर जैसे ही दोनों के सिर फ्लोर के बराबर में पहुंचे, गन सामने तानता हुआ वह कड़ककर बोला - गब्बर सिंह आ गया, कोई अपनी जगह से हिलने की कोशिश न करे।”
“वरना सारे भड़वे एक साथ मारे जायेंगे।” अलीशा ने जोड़ा।
फिर दोनों ऊपर पहुंच गये।
चारों लड़के सकते में आ गये, गन उनके पास मौजूद थी, मगर वह सबने अपनी अपनी कमर में खोंस रखी थी, जिसे निकालने के लिए हरकत में आना जरूरी था, मगर सामने से रिवाल्वर तनी देखकर कोई उतनी हिम्मत नहीं दिखा पाया।
अलीशा के साथ उनपर निगाहें गड़ाये शुक्ला तीन चार फीट की दूरी पर पहुंचकर ठिठक गया, फिर बोला, “अब अपनी अपनी गन निकालकर नीचे फेंक दो। कोई होशियारी मत करना वरना जान चली जायेगी। जबकि कहना मानोगे तो सब जिंदा बच जाओगे, क्योंकि हमारी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है।”
दो लड़कों ने तत्काल हुक्म का पालन किया, तीसरा करने जा रहा था, मगर चौथा जो उनके पीछे खड़ा था उसने तेजी से गन का रुख सामने की तरफ कर के गोली चलाने की कोशिश की, बस कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि तभी अलीशा ने ट्रिगर दबा दिया, जोर की आवाज हुई। गोली उसके रिवाल्वर वाले हाथ में लगी और वह छटपटाता हुआ चींखने चिल्लाने लगा।
उसी वक्त नीचे पड़ा बेहोश लड़का उठ बैठा। उसका हाथ तेजी से कमर के पीछे गया, तभी शुक्ला ने फायर कर दिया, गोली उसके दायें बाजू में जा घुसी। हालांकि गोली नहीं भी चली होती तो वह कुछ नहीं कर पाता क्योंकि उसकी रिवाल्वर अभी भी बाहर वाले गेट के पास पड़ी हुई थी।
“किसी और को हीरो बनना है?”
सन्नाटा!
“बनना है बहन... तो ट्राई कर के देख लो, सबके सब एक ही झटके में मरे पड़े होगे।”
“को ऑपरेट करो यारों - अलीशा मुस्कराती हुई बोली - क्यों अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो, फिर हमारा तुमसे कोई लेना देना भी नहीं है। क्योंकि तुम्हारी औकात बहुत छोटी है।”
“क..कौन है तू?”
“अम्मा, तुम सबकी प्यारी अम्मा।”
“यहां क्यों आई है?”
“अपने बच्चों की खोज खबर लेने, सबक सिखाने कि बुरे कामों का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है। चलो अब तुम लोग दीवार की तरफ मुंह कर के खड़े हो जाओ - फिर उसने नीचे बैठे घायल शख्स की तरफ देखा - तुम भी हरी अप।”
तत्काल हुक्म का पालन हुआ।
“आ जाईये निगम साहब।” शुक्ला जोर से बोला, तो वह मुकुल को सहारा दिये सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंच गया।
“घर के बाहर पहुंचकर वेट कीजिए। और वहां कोई डुएल टोन वाली अल्ट्रोज खड़ी दिखाई दे जाये तो उसमें जाकर बैठ सकते हैं, हम अभी आते हैं।”
सुनकर वह मुकुल को साथ लिये वहां से निकल गया।
“ये नेता जी का गोदाम है।” एक लड़का धीरे से बोला।
“कौन नेता जी?”
“विधायक चरण सिंह।”
“अरे बाप रे, मैं तो डर गयी, जरा देखकर बता तो मेरी पैंट गीली हुई या नहीं।”
“तुम लोग बच नहीं पाओगे।”
“टेंशन मत ले, क्योंकि चरण सिंह अब इस दुनिया में नहीं है। उसे और ओमकार को ठिकाने लगाकर ही हम यहां पहुंचे हैं। इसलिए अभी तो तुम पांचों बस अपनी खैर मनाओ।”
“नेता जी को कोई नहीं मार सकता।”
“जरूर अमृत पिये बैठा होगा, है न?”
इस बार किसी ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“सालों नेता के चमचों, दिल तो करता है अभी के अभी ठोंक दूं तुम सबको, मगर कोई बात नहीं अब मैंने तुम्हें बच्चा कहा है तो बच्चा समझकर ही छोड़े देती हूं। वैसे भी आज मेरा मन किसी का कत्ल करने को नहीं हो रहा, इसलिए बच गये तुम लोग।”
तत्पश्चात दोनों उल्टे कदमों से चलते हुए दरवाजे से बाहर निकले और कुंडा लगा दिया। निगम और मुकुल दरवाजे पर खड़े होकर उनका वेट कर रहे थे, फिर सब अलीशा की कार में सवार हो गये।
रास्ते में गजानन ने अपनी बाईक उठाई और वहां से निकल गया।
“आप लोग पुलिस हैं?” मुकुल ने पूछा।
“पुलिस होते तो क्या अपने पीछे अपराधियों को सही सलामत छोड़कर भागे जा रहे होते - अलीशा बोली - और क्या बस तीन लोग ही होते?”
“फिर कौन हो?”
“ईश्वर के दूत हैं - शुक्ला हंसता हुआ बोला - तुम्हें बचाने आये हैं।”
“कोई तो वजह होगी?” निगम ने पूछा।
“हां है।”
“क्या?”
“हम अहमक हैं, गधे हैं। ऐसे लोगों के लिए भी अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं, जिन्हें जानते तक नहीं। अब ईश्वर को धन्यवाद दीजिए। अपनी आजादी का फायदा उठाईये और घर जाकर लंबी तान के सो जाईये। हां आगे सावधान रहने की जरूरत बराबर है आप लोगों को क्योंकि चरण सिंह मर नहीं गया। मतलब उसे पता लगने की देर है और उसके आदमी आपकी तलाश में जुट जायेंगे।”
“अब तक तो पता लग भी गया होगा।”
“मैं उसे बर्बाद कर दूंगा।” मुकुल गुर्राता हुआ बोला।
“हमारी तरफ से बेशक उसका मुरब्बा बनाकर चट कर जाना, लेकिन सावधानी बरतने की जरूरत बराबर है - अलीशा बोली - इस बात में कोई शक नहीं कि हम अहमक हैं, मगर इतने बड्डे वाले भी नहीं हैं कि एक ही आदमी को दो बार बचाने की कोशिश करें।”
“नेता के कुछ कर पाने से पहले मैं उसे बर्बाद कर दूंगा।”
“आपकी मर्जी, ये बताईये कि कहां छोड़ा जाये आप दोनों को?”
“हमारे पास मोबाईल नहीं है, इसलिए फिल्म सिटी के लिए एक कैब बुक कर दो प्लीज।”
“इस हाल में ऑफिस जायेंगे?”
“जाना पड़ेगा, नेता का फातिहा जो पढ़ना है।”
“जुबानी तो क्या बिगाड़ पाओगे?”
“हमारे पास बहुतेरे एविडेंस हैं - मुकुल देसाई बोला - इसलिए चरण सिंह का खेल तो अब खत्म हुआ ही समझो।”
“एविडेंस कहीं घर में तो नहीं रखे हुए थे?”
“क्यों पूछ रहे हो?”
“तुम्हारा घर जलकर खाक हो चुका है, इसलिए पूछ रहा हूं।”
“हे भगवान! मेरे बीवी बच्चे?”
“वो ठीक हैं।”
“थैंक्स गॉड।”
“अब बताओ, नेता के खिलाफ एविडेंस कहां रखे थे?”
“घर में भी थे, लेकिन उसकी सॉफ्ट कॉपी मेरी गूगल ड्राईव पर मौजूद है।”
“नेता के हत्थे कैसे चढ़ गये?”
“सब हमारे न्यूज चैनल के मैनेजमेंट की लालच का परिणाम था भाई - निगम बोला - जिसकी चपेट में हम दोनों आ गये।”
“जरा खुलकर बताईये।”
“नेता के खिलाफ जब मुकुल ने एविडेंस खोज निकाले और मुझे उस बारे में बताया तो मैंने चीफ एडिटर से बात की, जिसने फैसला किया कि स्टोरी को किल करने के बदले नेता से अपने किसी शो को स्पांसर करने की बात की जाये। तभी एक रोज मुकुल को ओमकार सिंह का बुलावा आ गया। उसने इसे रिश्वत ऑफर की तो इसने स्पांसरशिप वाली बात कह दी, जिसके बाद गुस्से में आकर ओमकार ने इसकी पिटाई की और घर के बेसमेंट में कैद कर दिया।”
“कमाल है, जब उसे रिश्वत देना मंजूर था तो स्पॉन्सशिप में क्या प्रॉब्लम थी?”
“मेरे ख्याल से प्रॉब्लम रकम के साईज में दिखाई दी होगी। रिश्वत के नाम पर वह दस बीस लाख सोचे बैठा होगा, जबकि स्पॉन्सरशिप बीस करोड़ की पड़ने वाली थी, जो उसे कबूल नहीं हुई।”
“जबरन हासिल की गयी स्पॉन्सरशिप तो सरासर ब्लैकमेलिंग हुई निगम साहब, हैरानी है कि आप मीडिया के लोग वैसा करने जा रहे थे।”
“ये भी तो सोचो कि किसके साथ करने जा रहे थे?”
“उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“चलो वही सही, लेकिन ऐसी बात पर तर्क वितर्क करने का क्या फायदा, जिसपर मेरा या तुम्हारा कोई जोर नहीं चल सकता?”
“हां ये भी सही कहा आपने।”
“अब एक कैब बुक कर दो प्लीज।”
“जिस हाल में मुकुल साहब इस वक्त दिखाई दे रहे हैं, उसमें तो शायद ही कोई इन्हें अपनी कैब में बैठाने को तैयार हो। और पुलिस की मदद आप ले नहीं सकते, क्योंकि नहीं जानते कौन नेता से मिला हुआ निकल आये। फिर होगा ये कि वही लोग आपको वापिस चरण सिंह के हवाले कर देंगे।”
“अगर ऐसा समझते हो तो एक मेहरबानी और कर दो हम दोनों पर।”
“क्या चाहते हैं?”
“फिल्म सिटी पहुंचा दो, प्लीज।”
शुक्ला ने कार चला रही अलीशा की तरफ देखा।
“मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।”
“ठीक है फिर चलिए।”
सुनकर अलीशा ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।
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