“ओके।" - दूसरी ओर से फोन कट गया ।
रिसीवर रखकर सुनील रमाकांत की ओर मुड़ा ।
" इस केस की" - सुनील ने कहा- "सबसे दिलचस्प बात यह है कि लड़की अपने बाप के लिये अपार चिंता प्रकट करती है, उसे जेल से छुड़वाने के लिये कोई भी काम करने के लिए तैयार है, दावा करती है कि उसका बाप निर्दोष है लेकिन उसके अपने ही एक्शन ऐसे हैं कि पुलिस सदा उसके बाप को ही दोषी समझेगी ।"
"कैसे ?"
"एक ऐसी लड़की जिसका बाप पांच वर्ष से जेल में है, जिसकी आय का कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं, जिसका बाप के अतिरिक्त कोई सम्बन्धी नहीं इतना धन कहां से पाती है । एक बार तो बच्चा भी यही सोचेगा कि बाप ने चोरी का माल बेटी को सौंप दिया है और बेटी बाप की चिन्ता किये बिना गुलछर्रे उड़ा रही है।"
"हूं।" - रमाकांत विचारपूर्ण स्वर में बोला ।
"मुझे लगता है कि इस केस में मैं चारे की तरह प्रयोग में लाया जा रहा हूं। यह लड़की मुझे बीच में डालकर अपना कोई स्वार्थ सिद्ध करना चाहती है। तुम रमाकान्त ऐसा करो, अपने दो आदमी रमा के ओरियन्ट कम्पनी पहुंचने के बाद से उसके पीछे लगा दो। उनसे कहो कि वह उसकी गतिविधि की रिपोर्ट समय-समय पर पहुंचाते रहें।"
"हो जाएगा।" - रमाकांत ने निश्चित स्वर में कहा ।
"तुम मेरे साथ ओरियंट कम्पनी में चलोगे ?"
"नहीं, इस समय मेरा क्लब में होना जरूरी है । " रमाकांत ने उठते हुए कहा ।
रमाकान्त के चले जाने के बाद सुनील क्षण भर के लिए दुविधा में पड़ गया। वह उस समय किसी का साथ चाहता था । रमाकान्त चला गया था और प्रमिला को वह पहले ही नाराज कर बैठा था ।
वह एक बार फिर कोशिश करने की नीयत से प्रमिला के फ्लैट में पहुंच गया ।
प्रमिला बालकनी मे बैठी लाइफ पढ़ रही थी ।
"पम्मी" - सुनील उसके फ्लैट में घुसते हुए बोला "आज जब मैं अपने कमरे में बैठा चीनी के एक दाने के लिये चीटियों में बगावत फैलाने की चेष्टा कर रहा था, तो मुझे अचानक एक ख्याल आया।"
"तुम यकीन जानो" - प्रमिला ने लाइफ पर से दृष्टि उठाकर कहा कि मुझे तुम्हारे किसी किसी ख्याल से कोई दिलचस्पी नहीं है।"
"लेकिन मैं तुम्हें सुनाकर रहूंगा, क्योंकि उस ख्याल का सीधा सम्बन्ध तुमसे है । "
"वाकई ?"
"बात यह है प्रमिला कि तुम कुछ मोटी होती जा रही हो।"
"नहीं तो !" - प्रमिला ने एकदम चिन्तित होते हुए कहा ।
"सच कहता हूं प्रमिला कि यदि तुम इस करह बालकनी में बैठकर बस समय व्यतीत करती रही तो देख लेना एक दिन तुम्हारा सैंतीस चौबीस सैंतीस का माडल भूसे का ढेर बनकर रह जाएगा।"
"ओह गॉड, तो फिर क्या करू मैं ?"
"करो क्या, जरा घूमा-फिरा करो। आज आफिस से छुट्टी है, तो उसका इस्तेमाल करो, मार्केट के दो चार चक्कर लगाओ चाहे चीज धेले की मत खरीदो ।"
"भई, मुझे अकेले जाना अच्छा नहीं लगता ।"
"जरूरत क्या है अकेले जाने की ! मुझे साथ ले चलो
"तुम चलोगे ?"
"ये लो" - सुनील उसे बनाता हुआ बोला- "भला मैं तुम्हारा इतना-सा काम भी नहीं करूंगा!"
सुनील जानता था कि प्रमिला को फ्लैट से निकालना ही मुश्किल होता है, उसके बाद तो वह कहीं भी जाने को तैयार हो जाती है।
“अच्छा मैं कपड़े बदल लूं।" - प्रमिला ने उठते हुए कहा "तब तक तुम एक काम कर दो।"
"क्या ?" - सुनील ने आशंकित होकर पूछा ।"
"पप्पू को थोड़ा-सा पढ़ा दो।"
सुनील ने मरता क्या न करता के भाव से हां कर दी । पप्पू को पढ़ाने के लिये जिस सब्र की जरूरत होती थी वह उसमें नहीं था । फिर भी उसने पप्पू को बुला लिया और उससे सिर खपाई शुरू कर दी ।
"पप्पू" - उसने पूछा- "तुम्हें मालूम है कि यह जो हमें नीला-नीला आसमान दिखाई देता है यह वास्तव में क्या है ?"
"क्यों नहीं, पोर्टर साहब" सुनील को दांत पीसते देख कर बात बदलकर बोला- "मेरा मतलब है भाई साहब, यह आसमान पर असल लोहे का बना हुआ एक नीले रंग का तक बहुत बड़ा खोल है जो जमीन पर तना हुआ है । यदि कोई हवाई जहाज बहुत ऊंचा उड़े तो हो सकता है उससे टकरा जाये।"
"तो फिर रात को यह तारे कहां से आ जाते हैं ?"
"उस लोहे के खोल में असंख्य छोटे-छोटे छिद्र हैं जिनके पीछे बड़ी बड़ी मरकरी लाइट लगी हुई हैं। रात को वो लाइटें जला दी जाती हैं। जब छिद्र में से लाइट निकलती है तो ऐसा मालूम होता है जैसे सितारे चमक रहे हों।"
"विज्ञान की नई-नई थ्योरियों से घबराकर सुनील ने हिसाब के सवाल पूछने शुरू किये। उसने पप्पू से काम और समय के सवाल पूछे जैसे इतने आदमी फलां काम को इतने दिनों में करते हैं तो दुगने आदमी उसी काम को कितने दिनों में करेंगे इत्यादि । पप्पू ने बड़े अनोखे उत्तर निकाले । जैसे पांच बटा आठ आदमी । छ: सालम औरतें और तीन बटा चार बच्चे ।
फिर सुनील ने इतिहास पूछना आरम्भ किया ।
"अकबर के विषय में क्या जानते हो ?"
"अकबर मशहूर फिल्म कामेडियन आगा का लड़का।"
"सोहराब के विषय में बताओ ?"
"इनका पूरा नाम सोहराब मोदी है। प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक, एक्टर हैं, पुकार, शीशमहल, जेलर इत्यादि इनकी प्रसिद्ध फिल्में हैं।"
"अयूब खां कौन है ?" - सुनील ने जरा ताजा प्रश्न पूछा ।
"अयूब खां प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक महबूब खां का लड़का है । महबूब खां..."
"बस-बस" - सुनील ने माथा ठोकते हुए कहा - "पप्पू तुम फौरन जाओ और कुत्ते पर कम से कम दो सफे का एक प्रस्ताव लिखकर लाओ। जाओ दूसरे कमरे में जाकर बैठो।"
सुनील ने सोचा कि कम से कम आधे घण्टे के लिये तो छुटकारा हो गया। लेकिन पप्पू पांच मिनट बाद ही वापिस आ गया ।
" मैंने तुम्हें प्रस्ताव लिखने को कहा था।" - सुनील ने नाराज होकर कहा ।
" लिख भी लिया।" - पप्पू ने कापी सुनील के हाथ में देते हुए कहा ।
प्रस्ताव सत्य ही दो सफे का था । लिखा था- मुझे कुत्ते पसंद हैं। अच्छे कुत्ते तो मुझे बहुत पसन्द हैं और बहुत अच्छे कुत्ते तो मुझे बहुत ही अधिक पसन्द हैं। एक दिन मैं सड़क पर खड़ा था कि मुझे एक कुत्ता दिखाई दिया। मैंने उसे पुकारा मोती, मोती, मोती... इसी प्रकार मोती, मोती से दो सफे भरे हुए थे, लेकिन मोती ने मेरी ओर घूमकर भी नहीं देखा । अब या तो वह कुत्ता नहीं था और या उसका नाम मोती नहीं था ।
सुनील ने सोचा कि अब उससे बिल्ली पर प्रस्ताव लिखाया जाये, लेकिन फिर यह सोचकर विचार त्याग दिया कि यह कम्बख्त बिल्ली, बिल्ली से दो सफे भर लायेगा ।
उसी समय प्रमिला आ गई और सुनील की जान छूटी।
***
सुनील प्रमिला का हाथ थामे ओरियन्ट मोटर कम्पनी के मैनेजर के केबिन का दरवाजा खोलकर भीतर घुस गया ।
"यस ?" मैनेजर ने उन्हें देखकर कहा ।
"मैं आपका कुछ समय लेना चाहता हूं।" - सुनील ने कहा और इससे पहले कि मैनेजर कुछ कहने के लिए मुंह खोले वह बोला " मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है ।”
"रिपोर्टर ! ब्लास्ट का बदनाम रिपोर्टर !"
"मशहूर रिपोर्टर।" - सुनील ने वजनदार आवाज में कहा।
“एक ही बात है।" - मैनेजर ने अपने भारी शरीर को कुर्सी से बाहर निकालते हुए सुनील से हाथ मिलाया ।
"ये प्रमिला कपूर हैं।"
मैनेजर ने प्रमिला की ओर हाथ बढ़ा दिया ।
अच्छा तो यही होगा कि तुम मैनेजर साहब को नमस्ते करके ही काम चला लो।" - सुनील ने अपना हाथ दबाते हुए प्रमिला से कहा जो मैनेजर से हाथ मिलाने का इरादा कर रही थी ।
" देखिये मिस्टर सुनील" - मैनेजर प्रसन्न स्वर में बोला "मेरे उस्ताद ने मुझे यही सिखाया है कि दूसरे से इक्कीस ही रहना चाहिए, उन्नीस नहीं। आपने मेरा हाथ जोर से दबाकर बलप्रदर्शन करना चाहा था। मैंने इस चैलेंज को स्वीकार किया और यूं समझिये कि आपके इक्के पर तुरप की दुक्की लगा दी। जिस दिक्कत का सामना आपने किया है वह मिस प्रमिला को पेश आने वाली नहीं थी। खैर आप बताइये कि मेरे में ब्लास्ट को क्या दिलचस्पी हो सकती है मैंने कोई कानून तो भंग नहीं किया है न ?”
"क्या आप रमा को जानते हैं ? रमा खोसला... खोसला ?"
मैनेजर ने सोचते हुए कहा- "नाम तो जाना पहचाना लगता है। रमा खोसला... हां, याद आ गया। हमने रमा खोसला नाम की लड़की को शेवरलेट गाड़ी बेची थी ।”
"भुगतान कैसे हुआ था ? चैक द्वारा या कैश ?”
"कैश जी, हार्ड कैश, चैक का क्या काम ? सब सौ-सौ के नोट थे।"
"क्या आप रमा खोसला के बारे में और कुछ जानते है?"
"हमें जरूरत ही नहीं और कुछ जानने की। उसने असली भारतीय करेन्सी देकर गाड़ी खरीदी थी। हमारी बला से कोई हो वह । लेकिन मिस्टर सुनील, बात क्या है, कोई गड़बड़ कर दी है उस लड़की ने ?"
"उसने तो शायद कोई गड़बड़ नहीं की है, लेकिन आपने उसे जो शेवरलेट बेची थी वह चोरी चली गई है । "
"इसमें मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ?"
'आप मुझे कार वापिस कर सकते हैं। "
मैनेजर के चेहरे से मुस्कान उड़ गई । वह क्रोध से लाल हो गया ।
"क्या !" - वह लगभग चिल्लाकर बोला ।
"शांति, शांति ।" - सुनील हाथ उठाकर बोला- "मेरा मतलब यह नहीं है कि आपने गाड़ी चुराई है। आपने अनजाने में चोरी को गाड़ी खरीदी है ।"
"ओह, यह बात है!" - मैनेजर के चेहरे पर से उत्तेजना के भाव मिट गये "आप उस शेवरलेट की बात कर रहे हैं। वास्तव में हमने उसे खरीदा नहीं है। हमने तो -
बांकेबिहारी नाम के एक सज्जन के लिए बेचने का ठेका लिया है, पांच प्रतिशत कमीशन पर। आप गाड़ी देखना चाहते हैं ?"
"नहीं, अभी नहीं। मैं गाड़ी को पहचानता नहीं हूं। गाड़ी की मालिक अभी यहां आती ही होगी। उसने मुझसे यहां मिलने का वायदा किया था ।"
“अच्छा, तब तक मैं अपना रिकार्ड चैक कर लूं।" - मैनेजर उठते हुए बोला ।
अभी वह फाइलों में ही उलझा हुआ था कि रमा ने केबिन में प्रवेश किया। मैनेजर शायद उसे देखते ही पहचान गया था। उसने फाइलें छोड़कर मिलाने के लिये हाथ बढ़ा दिया।
"हम अभी आपकी शेवरलेट की चर्चा कर रहे थे, मिस रमा।" - मैनेजर ने रमा को सम्बोधित किया ।
"हां, मेरी गाड़ी चोरी चली गई है।" - रमा ने कहा ।
" और अब वह मेरे पास है ?"
"मिस्टर सुनील ने तो मुझे यही बताया है। मैं अभी अपनी गाड़ी देखना चाहती हूं।"
"चलिये।" मैनेजर ने कहा और उन्हें कम्पाउन्ड के एक कोने में खड़ी शेवरलेट के सामने ले आया । -
सुनील ने कार का दरवाजा खोलने को चेष्टा की लेकिन दरवाजा टस से मस न हुआ।
"ताला लगा हुआ है।" - उसने कहा ।
"मैं खोलता हूं।" - मैनेजर आगे बढ़कर बोला ।
"नहीं" - रमा पर्स में से चाबी निकालती हुई बोली "मैं अपनी चाबी से खोलूंगी।" -
रमा ने चाबी छिद्र में लगाकर घुमाई। दरवाजा एक झटके के साथ खुल गया ।
"आप अपनी गाड़ी के नंबर के अतिरिक्त कोई पहचान बता सकती हैं, मिस रमा ?" - सुनील ने पूछा ।
"हां" - रमा ने उत्तर दिया- "गाड़ी की पिछली सीट पर एक बार स्याही बिखर गई थी, उसके धब्बे आज भी आयल क्लाथ पर मौजूद हैं।"
सुनील ने गाड़ी में झांककर देखा, बात सत्य थी । मैनेजर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन इत्यादि चैक करता रहा ।
मैनेजर ने कहा- “क्या आप लोगों ने पुलिस को इस चोरी की सूचना दी है ?"
"नहीं।" रमा ने जल्दी से कहा।
"अच्छा यही है कि आप सूचना दे दें।"
"क्यों ?"
"क्योंकि मैं अपनी जिम्मेदारी पर आप लोगों को गाड़ी नहीं दूंगा ।"
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