ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी का गोदाम नगर की घनी आबादी से बाहर था । वहां कोहरा इतना घना था कि सुषमा की कार की हैडलाइट्स भी उसे भेद नहीं पा रही थीं ।


गोदाम में अन्धेरा था ।


सुषमा ने कार खड़ी की और प्रमोद के अपने स्थान से हिल पाने से भी पहले वह कार से निकल कर गोदाम के प्रवेश द्वार की ओर भागी ।


“अरे, ठहरो, ठहरो !" - प्रमोद कार से निकलता हुआ बोला - "जल्दबाजी मत मचाओ।"


लेकिन सुषमा ने जैसे सुना ही नहीं ।


प्रमोद का एक हाथ ओवरकोट की जेब में रखी रिवॉल्वर पर पड़ा । दूसरे हाथ से उसने टार्च निकाल ली । उसने टार्च का प्रकाश सामने डाला । इमारत का प्रवेश द्वार थोड़ा सा खुला था ।


उसे प्रवेश द्वार से थोड़ा परे फुटपाथ पर चढाकर खड़ी की गई एक कार दिखाई दी ।


"गुप्ता !" - प्रमोद ने उच्च स्वर में आवाज लगाई - "गुप्ता !"


कोई जवाब न मिला ।


तब तक सुषमा दरवाजा धकेल कर भीतर दाखिल हो चुकी थी और बिजली का स्विच टटोल रही थी । प्रमोद की टार्च के प्रकाश में उसे स्विच मिल गया। उसने उसे ऑन किया । तुरन्त गोदाम में प्रकाश हो गया ।


वह एक छोटा सा गोदाम था । उसके अग्रभाग में एक कमरा था जो शायद दफ्तर की तरह इस्तेमाल किया जाता था । उससे परे गोदाम में कतारों में छत तक लगी लकड़ी की पेटियां दिखाई दे रही थीं ।


सुषमा गोदाम के पृष्ठ भाग की ओर लपकी ।


प्रमोद कमरे के दरवाजे पर पहुंचा।


वह कमरा ऑफिस ही था और उसने गोदाम का सारा पूर्वी भाग घेरा हुआ था। गोदाम का दरवाजा उत्तर में था । उस दरवाजे से थोड़ा आगे बाई ओर वह दरवाजा था जो ऑफिस को गोदाम से अलग करता था और जिस पर उस वक्त प्रमोद खड़ा था । ऑफिस के एक कोने में दीवार के साथ बने एक प्रोजेक्शन पर एक टेलीफोन रखा था । कमरे में एक मेज थी जिसके इर्द-गिर्द कुछ कुर्सियां पड़ी थीं। कमरे में बीचों-बीच एक और छोटी सी मेज पड़ी थी जिस पर पुरानी पत्रिकाओं का ढेर लगा हुआ था। कमरे की एक दिशा में गोदाम के दरवाजे के एकदम पीछे एक क्लाक रूम दिखाई दे रहा था जिसका दरवाजा खुला था। उसके पीछे एक कोने में एक फोल्डिंग चारपाई पड़ी थी । चारपाई पर कई कम्बल पड़े थे । फर्श पर कुछ खुले, कुछ बन्द डिब्बे बिखरे हुए थे जिन पर दूध, चाय, कॉफी, मटर, फ्रूट जूस, सूप तथा ऐसे ही अन्य लेबल लगे हुए थे । पास ही एक स्टोव, एक फ्राईंग पैन और कुछ अन्य बरतन पड़े थे ।


प्रमोद दो कदम आगे बढा और फिर थमक कर खड़ा हो गया ।


मेज के समीप फर्श पर एक मानव शरीर इस प्रकार पड़ा था कि पांव गोदाम के दरवाजे की दिशा में फैले हुए थे और सिर कमरे के दक्षिण-पूर्वी कोने की ओर । शरीर औंधे मुंह पड़ा था और उसके इर्द-गिर्द ताजे खून का फैलता हुआ दायरा दिखाई दे रहा था ।


"सुषी ।" - प्रमोद ने आवाज लगाई- “इधर आ जाओ । और किसी चीज को हाथ मत लगाना ।”


प्रमोद ने देखा कि दफ्तर की खिड़कियों पर धूल-मिट्टी जमी हुई थी और जाले चढे हुए थे। केवल कोने की एक खिड़की खुली थी ।


तभी सुषमा उसके पास पहुंची ।


- “प्रमोद ।” - वह उसका कंधा दबाती हुई बोली "यह... यह... लाश... मैं देखती हूं।"


लेकिन प्रमोद ने उसे आगे नहीं बढ़ने दिया । उसने उसका हाथ पकड़ कर वापिस खींच लिया ।


"प्रमोद, क्या पता यह जोगेन्द्र हो ।"


“यहीं से देखो।" - प्रमोद ने टार्च की रोशनी लाश पर डाली ।


"यहां से ठीक से नहीं दिखाई दे रहा । और प्रमोद, बहुत खून बह रहा है । क्या पता यह अभी जिन्दा हो ।”


"तुम यहीं ठहरो, मैं देखता हूं । और किसी चीज को हाथ मत लगाना । तुम्हारी उंगलियों के निशान यहां रह गए तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी ।"


लेकिन प्रमोद ने खुद ऐसी कोई सावधानी नहीं बरती जिससे उसकी उंगलियों के निशान वहां न रहें । वह लाश के एकदम समीप पहुंचा।


"यह तो जीवन गुप्ता है ।" - वह बोला ।


"ओह !" - सुषमा के मुंह से निकला ।


प्रमोद ने चारों ओर निगाह दौड़ाई ।


उसे मेज पर पड़ी एक ऐश ट्रे दिखाई दी जो पिए हुए सिगरेटों के टुकड़ों से लबालब भरी हुई थी । ऐश ट्रे के पास एक पत्रिका बीच में से खुली उल्टी रखी हुई थी । लगता था जैसे किसी ने उसे पढ़ते-पढते छोड़ा था और निशानी लगाने के लिए इस प्रकार उल्टी करके रख दिया था ।


मेज के एक कोने में एक सिगरेट रखा था जो सुलग-सुलग कर लगभग सारा खत्म हो गया था और लकड़ी के जलने का निशान बन गया था ।


राइटिंग टेबल पर एक साफ-सुथरा ब्लाटर रखा था जिस पर धूल में अटी चार उंगलियों के ताजे बने निशान दिखाई दे रहे थे। उन निशानों में पहली उंगली का निशान सबसे ज्यादा चौड़ा और स्पष्ट था और कनकी उंगली का निशान एक छोटी बिन्दी से जरा ही बड़ा था ।


प्रमोद सुषमा के पास पहुंचा ।


“सुषी ।" - वह बोला - "अब तुम यहां से खिसक जाओ।"


“और तुम ?"


"मैं पुलिस को सूचित करूंगा।"


"लेकिन क्यों ? तुम भी यहां से निकल क्यों नहीं चलते ?"


"और अगर बाद में पुलिस को किसी प्रकार खबर लग गई कि जीवन गुप्ता ने मुझे यहां मिलने के लिए बुलाया था तो ?"


"कैसे खबर लग जाएगी ?"


“क्या पता उसने किसी और शख्स की मौजूदगी में मुझे फोन किया हो । या फोन करने के बाद उसने किसी से जिक्र किया हो कि वह यहां मुझसे मिलने जा रहा था ।"


“ओह !”


"तुम्हारा यहां रुकना बहुत खतरनाक हो सकता है । तुम्हें यहां देखकर पुलिस यह दावा कर सकती है कि तुमने जोगेन्द्र को यहां छुपाकर रखा हुआ था, एकाएक गुप्ता यहां पहुंच गया और तुमने उसे पुलिस को सूचना देने से रोकने की खातिर उसे शूट कर दिया ।"


“यह सरासर झूठ होगा।"


“अगर पुलिस को मालूम हो गया कि तुम यहां थीं तो वह इस झूठ को सच कर दिखाएगी । तुम्हें जोगेन्द्र को पुलिस के चंगुल से नहीं निकलवाना चाहिए था । अब एक कत्ल का इल्जाम भी तुम पर लग गया तो..."


"लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? और फिर तुमने मुझे पूरी बात कहने का मौका ही नहीं दिया । वास्तव में..." "


" पूरी बात फिर सुनूंगा। फिलहाल तुम यहां से फूट जाओ।" 


“लेकिन..."


प्रमोद ने उसकी बांह पकड़ी और उसे बाहर को ले चला


"तुमने किसी चीज को छुआ था ?" - रास्ते में उसने पूछा। 


"ध्यान नहीं।" - सुषमा बोली- "लेकिन शायद दरवाजे के हैंडल को ।"


सुषमा की बांह थामे प्रमोद गोदाम से बाहर निकला । उसने सुषमा को जबरदस्ती उसकी कार में धकेला और कहा "फूटो।"


"लेकिन प्रमोद, मेरी बात तो सुनो ।"


“फिर । फिर सुनूंगा ।”


वह वापिस लौटा ।


दरवाजे के पास वह ठिठका । उसने जेब से रुमाल निकाल कर उसके हैंडल को अच्छी तरह पोंछ दिया ।


सुषमा ने कार का इंजन चालू किया और फिर वहां से कूच कर गई ।


प्रमोद का ध्यान एक बार फिर फुटपाथ पर चढा कर खड़ी की गई कार की ओर गया । वह उसके समीप पहुंचा । यह एक फिएट कार थी और उसके सारे खिड़कियां-दरवाजे बन्द थे । वातावरण में फैले कोहरे की वजह से कार की विंडशील्ड और हुड पर नमी की बूंदें जमा हो गई थीं । नमी की कुछ बूंदें जमा होकर पानी में लम्बवत् पतली धाराओं के रूप में विंड स्क्रीन पर बह निकली थीं। पानी की वे धारायें विंड स्क्रीन से हुड पर आई थीं और वही पानी बून्द - बून्द करके जमीन पर टपकने लगा था ।


प्रमोद ने कार का नम्बर नोट कर लिया ।


वह फिर गोदाम में दाखिल हो गया ।


वह प्रतीक्षा करने लगा। जब सुषमा को वहां से गए पूरे पांच मिनट हो गए तो वह सावधानी से चलता हुआ टेलीफोन की ओर बढा ।


टेलीफोन के समीप पहुंचकर उसने देखा कि फोन की बगल में ही एक स्थान पर दीवार से पलस्तर उखड़ा हुआ था । लगता था पलस्तर ताजा ही उखड़ा था । उसने गौर से देखा तो उसे अनुभव हुआ कि जिस स्थान से पलस्तर उखड़ा हुआ था, वहां दीवार में पर गोली धंसी हुर्द थी ।


प्रमोद ने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और पुलिस हैड क्वार्टर का नम्बर डायल कर दिया ।


पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम के चेहरे पर मैत्री और सदभावनापूर्ण मुस्कराहट उस क्षण भी मौजूद थी। उसने प्रमोद से यूं तपाक से हाथ मिलाया जैसे किसी मुद्दत से बिछड़े रिश्तेदार से हाथ मिला रहा हो ।


“वाह-वाह, वाह-वाह !" - वह बोला - "यह तो प्रमोद सहाब हैं । हमारी दूसरी मुलाकात बड़ी जल्दी हुई, साहब।”


" जी हां।" - प्रमोद बोला ।


“आपका फोन आते ही जो पहला खयाल मेरे मन में आया था वह यह था कि... आत्माराम एक क्षण को ठिठका और फिर जोर का अट्टहास करता हुआ बोला - "हा हा हा । खैर जाने दीजिए। तो आपने राजनगर में तशरीफ लाते ही एक लाश खोज निकाली है ?"


"मैंने लाश खोज नहीं निकाली, इत्तफाक से उसकी खबर मुझे लग गई है।"


"एक ही बात है ।"


" एक ही बात नहीं है। "


“अच्छा साहब, आप जीते, मैं हारा । एक ही बात नहीं है। आप मरने वाले को पहचानते हैं ?"


"हां ।”


"कौन है वो ?"


"जीवन गुप्ता ।"


"जीवन गुप्ता... नाम तो कुछ सुना हुआ लगता है।"


“वह ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी का पार्टनर था । यह उसी कम्पनी का गोदाम है।"


"हां, याद आ गया है । वह हरि प्रकाश सावंत, जिसका कुछ दिन पहले जोगेन्द्रपाल नामक नौजवान ने कत्ल किया था और जो अब फरार है, भी तो इस कम्पनी में पार्टनर था न ?"


"हां"


"आपने किसी चीज को हाथ तो नहीं लगाया ? आप तो पढे-लिखे समझदार आदमी हैं। जानते ही होंगे जहां कत्ल हुआ हो, वहां छेड़खानी नहीं करनी चाहिए।"


"मैंने सिर्फ फोन को छुआ था क्योंकि उसे छुए बिना मैं पुलिस हैडक्वार्टर फोन नहीं कर सकता था ।”


"नैवर माइन्ड, नैवर माइन्ड । तो टेलीफोन पर आपकी उंगलियों के निशान हैं । कहीं और हाथ लगाया हो आपने ?"


"यह मालूम होने के पहले कि यहां कत्ल हुआ पड़ा है, दो चार स्थानों पर मेरा हाथ अवश्य लगा होगा।"


" यह तो बड़ा बुरा हुआ । खैर, जब आप यहां आए थे तो क्या गोदाम की बत्तियां जल रही थीं ?"


“नहीं।”


"बत्तियां आपने आकर जलाई ?”


"हां ।”


“आप भी ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के पार्टनर हैं ?"


"नहीं।"


"नहीं ? कमाल है !"


"इसमें कमाल क्या है ? इन्स्पेक्टर साहब, अच्छा हो इस प्रकार जवाबतलबी करने से पहले आप मेरी बात सुन लें।"


"पहले सवाल-जवाब ही जारी रहने दीजिए। बिजली का स्विच कहां है ?"


"दरवाजे की बगल में ।"


"आपने बिजली का स्विच ऑन कर दिया । फिर क्या किया आपने ?"


" फिर मैं इस बाएं दरवाजे से भीतर दाखिल हो गया ।" "फिर आपको लाश दिखाई दी ?"


"हां ।”


"लाश उस वक्त ऐसे ही पड़ी थी जैसे अब पड़ी है ?"


"हां"


"आपने किसी चीज को इधर-उधर नहीं किया ?"


"नहीं।"


"वैरी गुड | वैरी गुड | आप बड़े समझदार आदमी हैं । यह खिड़की आपने खोली थी ?"


"नहीं।"


"आपने इसे ऐसे ही खुली पाया था ?"


"हां"


आत्माराम अपने आदमियों की ओर घूमा ।


“कर्मचन्द ।” - वह एक ए एस आई से बोला - "गोदाम से बाहर निकल जाओ और इमारत का घेरा काटकर सावधानी से बाहर खिड़की के पास पहुंचो और वहां किसी सूत्र की तलाश करो । शायद वहां किसी के कदमों के निशान या ऐसा ही कोई और सूत्र मिले ।”


कर्मचन्द तुरन्त वहां से बाहर निकल गया ।


आत्माराम लाश की ओर आकर्षित हुआ ।


"हूं।" - वह बोला - "पेट के बल पड़ी लाश के पांव हमारी ओर हैं और सिर टेलीफोन की ओर । सिर थोड़ा दाई ओर घूमा हुआ है और दांया हाथ सामने को फैला हुआ है ।”


प्रमोद चुप रहा ।


"कोई और बात, प्रमोद साहब, जो आपने घटनास्थल पर देखी हो और जो आपको असाधारण लगी हो ?"


"टेलीफोन के समीप दीवार में एक गोली धंसी हुई है । " प्रमोद बोला ।


“वाह-वाह ! वाह-वाह । आप तो पूरे जासूस बन गए हैं । आपने उसे ठीक से पहचाना ? वह गोली ही थी या कुछ और ?"


"मुझे तो वह गोली ही लगी थी । आप खुद क्यों नहीं देख लेते ?"


"देखूंगा, देखूंगा। आपने उसे छुआ तो नहीं ?"


"नहीं।"


"वैरी गुड । वैरी गुड ।”


फिर आत्माराम ने कमरे में चारों ओर निगाह दौड़ाई ।


“चारपाई ।” - वह बोला - "कम्बल | हवा बन्द चीजों के डिब्बे | स्टोव | बर्तन । लगता है यहां तो कोई रहता रहा है । क्या जीवन गुप्ता यहां रहता था ?"


"मुझे नहीं मालूम लेकिन मुझे उम्मीद नहीं वह यहां रहता रहा हो ।”


“आप ठीक कहते हैं । यह उस जैसे आदमी के रहने लायक जगह नहीं । शायद यहां चौकीदार सोता हो । लेकिन उसे यहां पर खाना पकाने की भी क्या जरूरत थी ?"


प्रमोद चुप रहा ।


“और फिर खाली डिब्बे भी यहां पड़े हैं। कम से कम वह उन्हें तो बाहर फेंक देता। यहां तो लगता है, कोई ऐसा आदमी रहता रहा है जो खाली डिब्बे तक फेंकने के लिए बाहर नहीं जाना चाहता था । अजीब बात है ।” ●


प्रमोद चुप रहा ।


"वह जीवन गुप्ता अगर हरि प्रकाश सावंत का पार्टनर था तो मुमकिन है वह जोगेन्द्र को भी जानता रहा हो । "


"मुमकिन है ।"


"आपको कुछ मालूम है इस बारे में ? क्या जीवन गुप्ता जोगेन्द्र को जानता था ?"


"मेरे खयाल से जानता था ।"


"आई सी, आई सी । प्रमोद साहब, फिलहाल आप ऐसा कीजिए, आप बाहर जाकर हमारी जीप में बैठ जाइए । जीप में मेरा एक असिस्टेन्ट मौजूद है। आप थोड़ी देर उससे गप्पें लड़ाइए, मैं अभी हाजिर होता हूं।"


"मैं यहां गप्पें लड़ाने नहीं आया ।"


"तो थोड़ी देर कन्सन्ट्रेशन का अभ्यास कर लीजिए, साहब । आपके काम आएगा । क्योंकि अभी जब मैं विस्तृत रूप से आपका बयान लूंगा तो आपको कन्सन्ट्रेशन की काफी जरूरत पड़ेगी ।"


"बेहतर ।"


" और आप मेरे असिस्टेन्ट को अपनी उंगलियों के निशान भी दे दीजिएगा ।"


"क्यों ?" - प्रमोद की भृकुटि तन गई ।


"क्योंकि घटनास्थल पर आपकी उंगलियों के निशान मौजूद हैं। हमारे पास आपकी उंगलियों के निशान होंगे तभी तो हम जान पायेंगे कि घटनास्थल से जो उंगलियों के निशान हमने उठाये हैं, उनमें से आपकी उंगलियों के निशान कौन से हैं ! अगर हम आपके निशान छांटकर अलग नहीं करेंगे तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। हम समझ रहे होंगे कि हमें हत्यारे की उंगलियों के निशान मिल गए हैं और बाद में पता लगेगा कि यह तो प्रमोद साहब की उंगलियों के निशान हैं । हा हा हा । कैसा मजाक उड़ेगा हमारा !"


"मैं आपके असिस्टेन्ट को उंगलियों के निशान दे दूंगा।"


"थैंक्यू, थैंक्यू ।"


प्रमोद बाहर निकल गया ।


वह जीप में जा बैठा । जीप में मौजूद आत्माराम के असिस्टेन्ट को उसने अपने उंगलियों के निशान दिए और एक सिगरेट सुलगा लिया ।


कोई बीस मिनट बाद आत्माराम गोदाम से बाहर निकला।


"गुस्ताखी माफ फरमाइएगा, प्रमोद साहब ।" - वह खुशामद भरे स्वर में बोला- "आपको बहुत बोर किया मैंने । आपको जीप में बैठकर इन्तजार करने के लिए बाहर भेजते समय जो पहला खयाल मेरे मन में आया था, वह यही था कि एक पुलिस अधिकारी की ड्यूटी कितनी अप्रिय होती है । कितने अप्रिय काम करने पड़ते हैं उसे । लेकिन क्या करें साहब, नौकरी तो करनी ही है । और नौकरी में नखरा कैसा


प्रमोद ने जीप से बाहर निकलने का उपक्रम किया ।


"नहीं नहीं, बैठे रहिए । मैं भी भीतर ही आ रहा हूं । भीतर बैठकर ही इत्मीनान से बातें होंगी ।"


आत्माराम जीप में प्रमोद के सामने आ बैठा ।


"प्रमोद साहब ।" - वह बोला - "यह इलाका तो बड़ा ही सुनसान है । "


“जी हां ।" - प्रमोद बोला ।


“आस-पास कोई दूसरी इमारत भी दिखाई नहीं देती । काफी परे से इमारतों का सिलसिला शुरू होता दिखाई दे रहा है और उनमें भी टेलीफोन शायद ही हो । इसीलिए आपको गोदाम के टेलीफोन से ही पुलिस को फोन करना पड़ा था न ?"


“जी हां । "


“आप यहां तक पहुंचे कैसे थे ?"


"टैक्सी पर ।"


"यहां पहुंच कर आपने टैक्सी छोड़ दी और गोदाम में दाखिल हो गए ?"


"हां"


"आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था । इस सुनसान इलाके में आपको वापिस जाने के लिए टैक्सी कहां से मिलती ?"


"वापसी में मुझे उम्मीद थी जीवन गुप्ता मुझे अपनी कार में साथ ले जाता ।"


“यानी कि आपको मालूम था कि वह यहां आया हुआ था ?" 


“हां ।”


"अच्छा । जिस टैक्सी पर आप यहां तशरीफ लाए थे वह आपने कहां से पकड़ी थी ?"


“घूमती-फिरती मिल गई थी ।"


पड़ा ?" "यानी कि आपको किसी टैक्सी स्टैंड पर नहीं जाना


"नहीं जाना पड़ा ।"


"बड़े खुशकिस्मत हैं आप जो आपको ऐसे मौसम में, इतनी रात गए, इस सुनसान इलाके में आने को तैयार टैक्सी मिल गई । आप अपने फ्लैट से बाहर निकले, सामने से खाली टैक्सी जा रही थी ।"


"जी नहीं । मुझे टैक्सी अपने फ्लैट से निकलते ही नहीं मिली थी । मुझे दो-तीन ब्लाक तक पैदल चलना पड़ा था।”


"ओह, अच्छा- अच्छा । दो-तीन ब्लाक पैदल चलना पड़ा आपको । फिर भी आप खुशकिस्मत हैं, साहब । हा हा हा। "


प्रमोद चुप रहा ।


"आप टैक्सी पर यहां पहुंचे और गोदाम के सामने टैक्सी से उतरे ?”


“हां ।”


"फिर क्या किया आपने ?"


"मैं गोदाम के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ चला ।”


“च च च । आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, प्रमोद साहब ।"


"ऐसा नहीं करना चाहिए था ? मुझे गोदाम की ओर नहीं बढना चाहिए था ?"


“नहीं, नहीं । आपको उस गरीब टैक्सी वाले का किराया नहीं मार लेना चाहिए था । प्रवेश द्वार की ओर बढ़ने से पहले आपने टैक्सी का किराया भी तो चुकाया होगा ?"


"मैं भूल गया था ।"


" टैक्सी का किराया देना भूल गए थे आप ?"


" जी नहीं, इन्स्पेक्टर साहब, मैं आपको यह बताना भूल गया था कि गोदाम की ओर बढ़ने से पहले मैंने टैक्सी का किराया भी चुकाया था ।"


“आपको तो नहीं भूलना चाहिए था, साहब । आप कोई मामूली आदमी तो हैं नहीं । आप तो कन्सन्ट्रेशन की कला के माहिर हैं । आप जैसे सजग मस्तिष्क के आदमी को ऐसी बात भूलनी तो नहीं चाहिए थी ।'


"यह बात आपको बतानी भूल जाने के इल्जाम में अब आप क्या मुझे कोई दस-पांच साल की सजा दिलवाने की सोच रहे हैं ?"


"राम राम राम ।" - आत्मारात आहत स्वर से बोला - "कैसी बातें कर रहे हैं आप ? आप तो मुझे गलत समझ बैठे, प्रमोद साहब । मैं तो केवल यह अर्ज करना चाहता था कि आप बिना कुछ भूले मुझे सविस्तार हर बात बतायें । समझे ?"


"समझा ।"


"कत्ल के केस से सम्बन्धित पुलिस इन्क्वायरी में कोई बात मामूली नहीं होती, कोई बात महत्वहीन नहीं होती ।"


"मैं ध्यान रखूंगा ।"


"थैंक्यू । अब आगे बढ़ें । तो आप टैकसी से बाहर निकले और आपने टैक्सी का बिल चुका दिया ।"


"जी हां । "


"मीटर में कितने पैसे बने थे ?"


प्रमोद को अब वह फन्दा दिखाई दिया जिसमें मीठी-मीठी बातें बोलकर वह काईयां पुलिस इन्स्पेक्टर उसे फंसाने की कोशिश कर रहा था। मीटर की रकम से इन्स्पेक्टर यह अन्दाजा लगा सकता था कि प्रमोद कमर्शियल स्ट्रीट से यहां तक टैक्सी में आया था या नहीं । प्रमोद तीन साल बाद उसी रोज राजनगर पहुंचा था। राजनगर में आए दिन टैक्सी-स्कूटरों के किराए में परिवर्तन होते थे इसलिए प्रमोद अन्दाजे से भी कोई रकम आत्माराम को नहीं बता सकता था। सही रकम न बता पाने पर उसे शक हो सकता था कि वह वहां तक टैक्सी से आया ही नहीं था ।


लेकिन प्रमोद के मस्तिष्क ने तुरन्त उस समस्या का हल खोज निकाला ।


“इन्स्पेक्टर साहब ।" - वह बोला- "मुझे नहीं मालूम मीटर में कितने पैसे बने थे। मैंने मीटर देखा ही नहीं था । मैंने तो खिड़की में से एक बीस का नोट टैक्सी में डाल दिया था और घूमकर गोदाम की ओर चल दिया था।"


"आपने ऐसा क्यों किया ?"


"क्योंकि मुझे जल्दी थी ।”


"लेकिन फिर भी आपने मीटर को देखना था | क्या पता किराया दस रुपये भी न बना होता और दस के नोट से ही काम चल जाता।"


"मैंने अर्ज किया न, मैंने मीटर की ओर ध्यान नहीं दिया था।"


" जरूर नहीं दिया होगा। यही तो फितरत होती है रईस आदमी की । वैसे आपने हमारे लिए तो अच्छा ही किया कि मीटर नहीं देखा ।"


"मतलब ?"


"अब हम उस टैक्सी ड्राइवर को आसानी से तलाश कर पायेंगे जो आपको यहां तक लेकर आया होगा। कोई टैक्सी ड्राइवर ऐसी सवारी को आसानी से नहीं भूल सकता जो मीटर देखे बिना बड़ी दयानतदारी से बीस का नोट उसकी टैक्सी में उछाल दे।"


प्रमोद चुप रहा ।


“अब आप वह बताइए कि आप यहां आए क्यों थे ?"


"मुझे जीवन गुप्ता ने फोन किया था और कहा था कि मैं उससे यहां मिलूं ।”


"कमाल है ! मुलाकात के लिए बड़ी अनोखी जगह चुनी जीवन गुप्ता ने ।”


"यहां पहुंचने के बाद मुझे भी यह बात अजीब लगी थी ।"


“आपको पूरा विश्वास है गुप्ता ने आपको यहीं आने के लिए कहा था ?"


"जी हां । पूरा विश्वास है । "


"उसने किस वक्त फोन किया था आपको ?"


"ग्यारह बजे के बाद किसी समय । मैंने घड़ी नहीं देखी थी।"


"आप फौरन यहां के लिए रवाना हो गए थे ?"


"हां"


“कितना समय लगा आपको यहां पहुंचने में ?"


"टेलीफोन काल आने के बीस मीनट बाद मैं यहां था


"जीवन गुप्ता ने कहां से फोन किया था आपको ?"


" उसने बताया नहीं था । "


"शायद वह यहीं से फोन कर रहा हो ।"


“शायद ।"


“आपकी जीवन गुप्ता से अच्छी यारी थी ?"


“जी नहीं । मामूली परिचय था। मेरी उस शख्स से कोई निजी दिलचस्पी नहीं थी ।”


"बस सिर्फ जानते थे उसे ?"


"हां ।”


“आप यहां पहुंचे । जाहिर है आपको जीवन गुप्ता दिखाई दिया ?"


" टैक्सी से उतरते ही नहीं। और दिखाई देता भी कैसे ? वह तो भीतर मरा पड़ा था । "


"बिल्कुल ठीक | बिल्कुल ठीक । आपने टैक्सी ड्राइवर को एक बीस का नोट दिया और उसे चलता किया ?"


"हां"


"टैक्सी ड्राइवर ने कहा नहीं कि वह इन्तजार कर लेगा?"


" उसने कहा था । लेकिन मैंने उसे कहा दिया था कि मुझे टैक्सी की जरूरत नहीं थी । "


"बड़े बहादुर आदमी हैं आप, मिस्टर प्रमोद । ऐसे मौसम में आप ऐसी सुनसान जगह पर पहुंचे और ऐसे शख्स से मिलने के लिए पहुंचे जो वहां कहीं दिखाई नहीं दे रहा था, गोदाम में अन्धेरा था, इलाका उजाड़ पड़ा था और फिर भी आपने टैक्सी वाले को चला जाने दिया । "


"मुझे भरोसा था कि जीवन गुप्ता वहां जरूर आयेगा । आखिर उसी ने मुझे फोन किया था ।"


"वह वादे का पक्का आदमी था ?"


"मुझे उम्मीद थी वह वादे का पक्का आदमी होगा ।"


"जीवन गुप्ता को तो आप अच्छी तरह जानते तक नहीं थे । आपकी कोई निजी दिलचस्पी नहीं थी उसमें । फिर भी आपने बड़ा भरोसा दिखाया उसमें । "


प्रमोद चुप रहा ।