बाईस फरवरी 2022

शाम के चार बजने को थे, सत्यप्रकाश अंबानी भीकाजी कामा प्लेस स्थित अपने ऑफिस में बैठा न जाने किन ख्यालों में गुम था, बल्कि जब भी अकेला होता अक्सर किसी ना किसी ना किसी सोच में डूब जाता था, और बुरी तरह से दुखी हो उठता था, जबकि कारण खोजने से भी नहीं मिलने वाला था।

इस आदत से वह इतना आजिज आ गया कि कुछ महीनों पहले शहर के टॉप के साइकोलॉजिस्ट की शरण में पहुँच गया। तीन-तीन घंटे लंबे सेशन के बाद असल में उसे कोई फायदा पहुँचा था या नहीं इसका अंदाजा तो वह खुद भी नहीं लगा सकता था, मगर मन ही मन इस बात की संतुष्टि जरूर थी कि उसका इलाज टॉप का साइकोलॉजिस्ट कर रहा था, इसलिए कुछ ना कुछ फायदा तो हो ही रहा होगा।

आगे बरबस ही उसका ध्यान अपनी बीवी की तरफ चला गया। समझ नहीं पा रहा था कि कैसे समझाये उसे कि अर्धनग्न कपड़ों में तन की नुमाईश करना आधुनिकता की निशानी नहीं होती, बल्कि उसे बेहयाई कहते हैं। फिर घर में अकेली हो और वैसा करे तो कोई बात नहीं थी, मगर आकाश के सामने वैसे कपड़े पहनना; ये तो हद ही हो गयी।

शीतल से उसने अपनी मर्जी से शादी की थी, इस बात को दरकिनार कर के कि उसका परिवार हैसियत के मामले में उसके सामने किसी गिनती में नहीं आता था, क्योंकि उनका शुमार मिडिल क्लास फेमिलीज में हुआ करता था।

शादी का फैसला भी उसने यूँ लिया जैसे फौरन न लिया होता तो बहुत बड़ा प्रॉफिट हाथ से निकल जाता। उस वक्त तो उसे सच में यही लगता था कि जल्दी ही शीतल के घर पहुँचकर उसका हाथ नहीं मांगा तो वह किसी और की बन जायेगी, जबकि शादी से पहले कभी ढंग की मुलाकात तक नहीं हुई थी दोनों के बीच।

पहली बार शीतल उसे एक पार्टी में दिखाई दी, जहाँ उस पर नजर पड़ते ही

सत्यप्रकाश गश खा गया। नयी उम्र के लड़कों की तरह आँखें फाड़-फाड़कर उसे देखने लगा, अलबत्ता नौजवानों जैसी हिम्मत उसके भीतर जरा भी नहीं थी। होती तो करीब पहुँचकर दो चार बातें तो उससे कर ही सकता था।

मगर शादी की बात करने की हिम्मत बराबर थी उसमें। तभी तो अगले रोज मेजबान से शीतल के घर का पता ठिकाना हासिल किया और अपने रिश्ते की बात लेकर खुद वहाँ पहुँच गया।

हाँ, इस बात को लेकर थोड़ा डरा हुआ जरूर था कि लड़की उससे उम्र में बहुत छोटी थी, इसलिए मन ही मन उनकी तरफ से इंकार सुनने को पूरी तरह से तैयार होकर पहुँचा था सत्यप्रकाश, शीतल के घर।

मगर इंकार की नौबत नहीं आई।

शीतल के माँ-बाप को रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि हाथ मांगने वाला करोड़पति था, बल्कि अरबपति था, मगर बेटी की राय जानना फिर भी जरूरी समझा, इसलिए बात उन लोगों ने शीतल पर छोड़ दी, जिसने कि मिनट भी नहीं लगाया अपना नफा-नुकसान कैलकुलेट करने में।

उसके दस दिन बाद ही दोनों की शादी हो गयी।             

‘कहीं मैंने कोई गलत फैसला तो नहीं ले लिया था?’ उसने सोचा।

‘नहीं-नहीं, सिवाये इसके शीतल में कोई खराबी नहीं थी कि वह अल्ट्रा मॉर्डन थी। आधुनिक कपड़े पहनती थी, और सबके साथ खुला व्यवहार करती थी, मगर उसमें उस बेचारी की क्या गलती? उसकी उम्र की अधिकतर लड़कियां यही तो करती हैं।’

‘किसी दिन प्यार से, विश्वास में लेकर उसे समझाना होगा। अच्छी लड़की है समझ जायेगी।’

‘मैं भी तो उसे जाने क्या-क्या कह देता हूँ, वेश्या और आवारा तक कह दिया होगा। नहीं, मुझे अपने गुस्से पर कंट्रोल करना होगा।’

तभी मेज पर पड़ा उसका मोबाइल रिंग होने लगा।

फ्लैश हो रहा नंबर उसके साइकोलॉजिस्ट अनुराग दीक्षित का था। दीक्षित, जो कि राजधानी का बेहद नामी गिरामी मनोचिकित्सक था। दीक्षित, जिसके साथ अप्वाइंटमेंट हासिल करने के लिए लोग मरे जाते थे।

सत्यप्रकाश ने तुरंत कॉल अटेंड की।

“गुड इवनिंग मिस्टर अंबानी।”

“गुड इवनिंग डॉक्टर।”

“अप्वाइंटमेंट मिस करना था तो मुझे खबर करना चाहिए था।”

“अप्वाइंटमेंट?” वह चौंका, फिर संभलता हुआ बोला – “सॉरी डॉक्टर, आजकल याद्दाश्त कमजोर होती जा रही है। आप तो जानते ही हैं, इसलिए बात ध्यान से उतर गयी।”

“नोट कर के रखना था, अपने पीए को बोलना था।”

“बेशक गलती हुई है सॉरी।”

“गलती का सजा मिलेगा।”

“मतलब?”

“पेनॉल्टी लगेगा, अपना नेक्स्ट सेशन भी कैंसिल समझिए।” कहकर दूसरी तरफ से कॉल डिसकनेक्ट कर दी गयी।

‘साला कमीना कहीं का, जैसे मुफ्त में इलाज करता है। एक सेशन के पचास हजार भरता हूँ मैं, और मुझसे ही इस तरह पेश आ रहा है। खैर नहीं साले की।’

फिर ये सोचकर उसका दिमाग खराब हो गया कि उसके पीए अनंत गोयल ने उस बारे में याद क्यों नहीं दिलाया।

पलक झपकते ही वह गुस्से से भर उठा।

फिर एकदम से अपनी रिवाल्विंग चेयर से उठा और जमीन को रौंदने वाले अंदाज में कमरे से निकलकर बाहर हॉल में पहुँचा, जहाँ चालीस के करीब लोग अपने-अपने कामों में जुटे हुए थे।

“अनंत।” अंबानी लगभग चीखता हुआ बोला।

सुनकर वहाँ मौजूद तमाम कर्मचारी हकबका कर उसकी तरफ देखने लगे।

एक ऑफिस ब्वॉय भागा-भागा अनंत गोयल के केबिन में पहुँचा और उसे बताया कि साहब किसी बात को लेकर बहुत गुस्से में थे। सुनकर वह हड़बड़ाया सा, घबराया सा, बाहर निकला और लपककर सत्यप्रकाश के सामने जाकर खड़ा हो गया।

“यस सर।”

“आज डॉक्टर दीक्षित के साथ मेरी अप्वाइंटमेंट थी?”

“अप्वाइंटमेंट?” अनंत सकपका गया – “यस सर थी, सॉरी....।”

“वॉट सॉरी, किस बात की तंख्वाह मिलती है तुम्हें यहाँ?” कहते हुए उसने एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पर जमा दिया।

“सॉरी सर।” वह दायें हाथ से गाल सहलाता हुआ बोला – “मैं आपको बताना भूल गया।”

“भूलने के लिए सेलेरी देता हूँ मैं तुम्हें?”

“नो सर, लेकिन...।” तभी उसकी निगाह दूर हॉल के दरवाजे पर खड़ी काव्या पर पड़ी, मारे अपमान के अनंत गोयल तिलमिलाकर रह गया।

अगले ही पल लड़की वहाँ से बाहर निकल गयी।

“क्या लेकिन...।” अंबानी गरजता हुआ बोला – “जरा सी बात याद नहीं रख सकते। अगर तुम्हारे बस का नहीं है तो रिजाइन कर दो। तुम जैसे हजारों मिल जायेंगे, बल्कि तुमसे कहीं बेहतर मिल जायेंगे, और उन लोगों की याद्दाश्त में भी कोई नुक्स भी नहीं होगा।”

“सॉरी सर, फर्स्ट टाइम गलती हुई है।”

“नो, यह चौथी बार है। और गलती, गलती होती, उसमें फर्स्ट और सेकेंड टाइम जैसा कुछ भी नहीं होता। एंड किसी को दूसरी गलती करने का मौका देना भी अपने आप में एक बड़ी गलती होती है।”

“सॉरी सर।”

“निकाल बाहर किया तो कोई दूसरी कंपनी तुम्हें ऑफिस ब्वॉय तक की जॉब ऑफर नहीं करने वाली, समझते क्या हो तुम खुद को?”

अनंत गोयल खून का घूंट पीकर रह गया। ऑफिस का पूरा स्टॉफ तमाशा देख रहा था और सत्यप्रकाश था कि उसकी इज्जत का जनाजा निकाले दे रहा था।

‘साला हरामजादा।’ उसने मन ही मन उसे गाली दी।

“इसे अपने लिए आखिरी वार्निंग समझना।” सत्यप्रकाश ने जैसे चेतावनी दी – “फिर से गलती हुई तो सीधा बाहर का रास्ता दिखा दूँगा। बल्कि खुद रिजाइन कर जाना, बेइज्जत होने से बच जाओगे।”

“यस सर।”

तत्पश्चात बॉस अपने ऑफिस में जा घुसा और अनंत गोयल मन मन के कदम रखता, सिर झुकाये अपने केबिन की तरफ बढ़ चला। उसके शरीर में अचानक हो आई कंपन को कई लोगों ने महसूस किया। कइयों को उस पर तरस आया, तो कई ये सोचकर खुश हो रहे थे कि अच्छा है साले को आज बेभाव की पड़ी है, जबकि वह बुरी तरह पिचपिचाता हुआ अपने केबिन में जाकर बैठ गया। बैठकर अपना गुस्सा पीने की कोशिश करने लगा, मगर मन था कि शांत होने को तैयार ही नहीं था। फिर यह कोई पहली बार नहीं था जब अंबानी ने उसे सारे स्टॉफ के सामने बेइज्जत किया हो। वह पहले भी ऐसे हालात से दो चार हो चुका था।

‘ये तुमने अच्छा नहीं किया सत्यप्रकाश अंबानी।’ वह दांत पीसता हुआ बड़बड़ाया – ‘लताड़ ही लगानी थी तो कमरे में बुलाकर लगा सकते थे, मगर यूँ सारे स्टॉफ के सामने; नहीं, बहुत गलत किया तुमने। काश...काश कि मेरे बस में होता तो अभी के अभी गला घोंट देता तुम्हारा। साला मादर चो.... कमीना कहीं का।’

दो अप्रैल 2022

सुबह साढ़े ग्यारह बजे सत्यप्रकाश अपनी कार में बैठकर ऑफिस के लिए रवाना हो गया।

छोटा भाई आकाश अंबानी उस वक्त अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा चाय पी रहा था।

उसने जब भाई की कार को गेट से बाहर जाते देखा तो चाय का कप टेबल पर रखकर कमरे से बाहर निकल आया। फिर एक नजर किचन में काम करते नौकरों पर डालने के बाद सीधा भाभी के बेडरूम में दाखिल हो गया।

वह तीस साल का बड़ा ही हैंडसम नौजवान था, जो कि दो साल पहले एमबीए कंप्लीट करने के बाद से ही निठल्ला बैठा था। शराब-शबाब और यारबाजी, बस यहीं तक सीमित थी उसकी दुनिया, जबकि चाहता तो बिजनेस में भाई का हाथ बंटा सकता था। उसके साथ ऑफिस में जाकर काम धंधा समझने की कोशिश कर सकता था, मगर नहीं, वह तो ‘अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करे न काज’ वाली किस्म का जीव था।

उसे तो इस बात की भी परवाह नहीं थी कि बाप के खड़े किये गये बिजनेस पर उसका बड़ा भाई कुंडली मारे बैठा था, और उसे सिर्फ जरूरत के हिसाब से पैसे दिया करता था, जबकि वह चाहता तो आधी कमाई पर सहज ही अपना अधिकार कायम कर सकता था।

ये अलग बात थी कि बड़े भाई की नीयत में कोई खोट नहीं था। बल्कि वह तो बड़ी शिद्दत के साथ चाहता था कि छोटा भाई बिजनेस में इंट्रेस्ट लेना शुरू कर दे ताकि उसका बोझ कुछ हद तक हल्का हो जाये।

ये आकाश अंबानी की काहिलियत थी कि वह कुछ करना ही नहीं चाहता था।

शीतल को उसने ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर मेकअप दुरूस्त करता पाया। आदमकद शीशे के माध्यम से दोनों की आँखें मिलीं, तत्काल शीतल के होठों पर एक गहरी मुस्कान रेंग गयी, मगर पलट कर आकाश की तरफ देखने की उसने कोई कोशिश नहीं की।

वह आगे बढ़ा और भाभी को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया।

“क्या करते हो?” शीतल फुसफुसाई – “मेकअप खराब हो जायेगा।”

“वह तो वैसे भी होने ही वाला है मेरी जान, फिर क्यों वक्त जाया कर रही हो?”

“बड़े रोमांटिक मूड में लग रहे हो।”

“वह तो मैं हमेशा होता हूँ, मगर तुम्हें देखकर रोमांस बर्दाश्त से बाहर हो

जाता है।”

“शादी कर लो, सारा रोमांस हवा हो जायेगा।”

“मुझे कोई ऐतराज नहीं है, बस तुम हाँ कर दो।”

“इडियट मैं तुम्हें किसी दूसरी लड़की से शादी करने को कह रही हूँ।”

“नहीं हो सकता। साला कोई पागल ही होगा, जो तुम जैसी रसमलाई को छोड़कर लड्डू पर मुँह मारने पहुँच जाये।”

“ये क्यों भूल जाते हो कि ये रसमलाई तुम्हारे भाई की बीवी है?”

“बनी रहे, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।”

“लेकिन मुझे है। हर वक्त ऐसा महसूस होता है जैसे मैं कोई पाप कर रही हूँ।”

“कैसी बेमतलब की बात कर दी यार।” कहकर उसने शीतल को घुमाकर उसका रूख अपनी तरफ किया और उसके होठों पर होंठ रखता हुआ फुसफुसाया – “फालतू बातें मत सोचा करो, और सोचना भी हो तो तब सोचना जब उम्र ढल जाये। उससे पहले पाप पुण्य के चक्कर में पड़ोगी तो अपनी जवानी बर्बाद कर लोगी, जो कि लौट कर नहीं आती।”

“इडियट कम से कम गेट तो बंद कर दो।”

आकाश को फौरन अपनी गलती का एहसास हुआ। भाभी को छोड़कर वह तुरंत दरवाजा बंद कर आया। फिर दोबारा उसे अपनी बाहों में भरने ही लगा था कि शीतल छिटक कर उससे दूर हो गयी।

“क्या हुआ?”

“मुझे तुमसे बात करनी है।”

“तो करो न, रोका किसने है, मगर बात तो तुम मेरी गोद में बैठकर भी कर सकती हो।”

“नहीं कर सकती, जब तुम करीब होते हो तो मुझे और कुछ नहीं सूझता। यूँ लगता है जैसे मेरे सपनों का शहजादा मेरे आगोश में है। सारे दुःख, सारी तकलीफें भूल जाती हूँ। इसलिए पहले मेरी बात सुनो, और ध्यान से सुनो। उसके बाद जो मन आये करना।”

“ठीक है बताओ।”

“बैठ जाओ।” कहती हुई वह खुद भी बेड पर बैठ गयी।

“लगता है कोई खास बात कहना चाहती हो?”

“हाँ, समझ लो तुम्हारी परीक्षा लेना चाहती हूँ, जिसमें पास हो गये तो हमारा साथ बना रहेगा, फेल हो गये तो देवर बेटे के समान और भाभी माँ के समान, जैसा कि पुरानी फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता था।”

“अरे क्यों मूड का सत्यानाश लगाने पर तुली हो?”

“हाँ सही कहा। आज या तो हमेशा के लिए मूड बन जायेगा, या फिर हमेशा के लिए उसका सत्यानाश लग जायेगा। इसलिए अग्नि परीक्षा तो तुमने देनी ही होगी।”

“क्या करना होगा, आग में चलकर दिखाना पड़ेगा? अगर ऐसा है तो समझ लो मैं फेल हो गया, मगर इसका मतलब ये नहीं है कि तुम्हारे कहने भर से मैं तुम्हें भूल जाऊंगा।”

“नहीं आग में नहीं चलना है, बल्कि ये साबित कर के दिखाना है कि तुम मुझ पर कितना विश्वास करते हो, मुझे कितना प्यार करते हो?”

“कैसे?”

“बहुत आसान काम है।‘”कहकर वह कमरे में मौजूद वॉल कैबिनेट तक गयी और वहाँ से कागज़ात का एक पुलंदा उठा लायी – “इन पेपर्स में क्या लिखा है, उसे पढ़े बिना ही तुम्हें साइन करना होगा।”

“बस इतनी सी बात? अरे ज्यादा से ज्यादा यही होगा न कि मेरी तमाम संपत्ति तुम अपने नाम करा लोगी।” वह हँसता हुआ बोला – “जिसे मैं पढ़ने के बाद भी तुम्हारे नाम करने से एक पल को भी नहीं हिचकने वाला।”

“यही तो देखना है स्वीट हॉर्ट कि तुम साइन करते हो या नहीं?”

“पेन दो।”

शीतल ने थमा दिया।

“कहाँ-कहाँ करना है बताओ।”

“हर पेज पर, और बस इतना ही उठाना कि उस पर लिखी इबारत पर तुम्हारी निगाह न पड़ सके।”

“नो प्रॉब्लम यार, कुछ पढ़ भी लिया तो साइन करने से मना नहीं करूंगा।” कहकर उसने अट्ठारह पन्नों वाले उस पुलंदे के हर पेज पर अपने सिग्नेचर घसीट दिये, तत्पश्चात शीतल को सौंपता हुआ बोला – “अब खुश, हो गया पास तुम्हारी परीक्षा में?”

शीतल की आँखें डबडबा आयीं।

“क्या हुआ?”

“मैंने तुम्हारे जैसा लड़का नहीं देखा आकाश।” कहकर उसने खींचकर उसे सीने से लगा लिया फिर सिसकती हुई बोली – “आई लव यू, अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती हूँ मैं तुम्हें।”

“अरे तो इसमें रोने की क्या बात है?”

“है, तभी तो रो रही हूँ।”

“देखो पहेलियां मत बुझाओ।” कहकर उसने शीतल को किस करने की

कोशिश की तो वह एक बार फिर छिटककर उससे दूर हो गयी।

“अब क्या हुआ?”

“परीक्षा बेशक तुमने पास कर ली है, मगर मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई है। बहुत कुछ कहना है आज तुमसे, इतना कुछ कि सुनने की हिम्मत भी शायद ही जुटा पाओ तुम।”

“मेरी हिम्मत की परवाह करने की जरूरत नहीं है, जो कहना चाहती हो बेहिचक कहो।”

“समझ में नहीं आता आकाश कि किस मुँह से कहूँ?”

“उसी से, जिससे मुझे किस करती हो, दूसरा मुँह कहाँ से लाओगी?”

सुनकर शीतल रोते-रोते हँस दी।

“लगता है जो कहने वाली हो बहुत खास है?”

“हाँ, तुम्हारी सोच से भी ज्यादा खास। असल में मेरे पास दो तरह की बातें हैं, जिनमें से पहली तुम्हारे मतलब की है और दूसरी मेरे मतलब की, लेकिन अंत पंत तो दोनों ही बातें हमारे मतलब की साबित होने वाली हैं।”

“पहेलियां बुझा रही हो?”

“नहीं।”

“तो फिर कहती क्यों नहीं?”

“कैसे? कैसे मैं अपने पति की बुराई करूं? कैसे उसके खिलाफ जाऊं? कैसे तुम्हें ये समझाऊं कि तुम कितने बड़े बेवकूफ हो? मगर तुमसे इतनी मोहब्बत करने लगी हूँ कि बताये बिना रहा भी नहीं जाता। इसलिए बताना तो पड़ेगा ही।”

“साफ साफ कहो तो कुछ पल्ले पड़े, डराओ मत मुझे प्लीज।”

“सत्य तुम्हारा पत्ता साफ करने की कोशिशों में जुटा हुआ है।”

“पागल हो गयी हो?” वह चिहुंककर बोला – “भैया भला मेरी जान क्यों लेना चाहेंगे?”

“जान लेंगे या नहीं, मैं नहीं जानती, मगर तुम्हारी हालत ऐसी जरूर कर देंगे कि तुम खुद अपनी मौत की कामना करने लगो क्योंकि एक दौलतमंद शख्स जब सड़क पर आ जाता है तो मौत ही उसे तमाम दुश्वारियों का इलाज दिखाई देने लगती है।”

“मैं अभी भी नहीं समझा।”

“बाप का खड़ा किया गया बिजनेस हड़पने की चाह में है तुम्हारा भाई।”

“बकवास।”

“ठीक है, फिर तो बात ही खत्म हो जाती है। आगे मेरा कुछ कहना या न कहना बराबर होगा। समझ लो मैंने इस बारे में तुम्हें बताया ही नहीं। चलो अब वो

करते हैं, जिसके लिए तुम यहाँ आने के साथ ही उतावले हुए जा रहे थे।”

“अरे कोई वजह भी तो हो।”

“नीयत खराब हो गयी है और क्या वजह हो सकती है। छोटे भाई का हक मारना चाहते हैं।” कहकर उसने पूछा – “जानते हो मुझे उस बात का पता कैसे लगा?”

“कैसे लगा?”

“इन कागज़ात को पढ़कर।” उसने अभी-अभी आकाश द्वारा साइन किये गये पेपर्स एक बार फिर उसके हाथों में थमा दिये – “देखो इनमें क्या लिखा है?”

“मैं जरूरी नहीं समझता।”

“लेकिन मैं समझती हूँ, और कुछ नहीं तो मेरी खातिर पढ़ो आकाश क्योंकि मैं चाहकर भी तुम्हें धोखा नहीं दे सकती, सत्य की खातिर भी नहीं।”

जवाब में उसने बेमन से उन कागज़ात को सरसरी निगाह से देखना शुरू किया, और कुछ लाइनें पढ़ते ही यूँ रम गया कि और किसी बात का होश ही नहीं रहा। मारे हैरानी के कुछ ही देर में उसका बुरा हाल हो उठा। फिर आखिरी पेपर पर निगाह मारकर शीतल को लौटाता हुआ बोला- “साइन तुमने भैया के कहने पर कराये हैं?”

“हाँ, बल्कि इसलिए भी कराया ताकि तुम्हारें आँखों पर बंधी पट्टी खुल पाती, क्योंकि मेरे कहने भर से तो तुम्हें यकीन आने वाला नहीं था।” कहकर उसने पूछा – “इस पर लिखी इबारत का मतलब तो समझ में आ रहा है डॉर्लिंग? अभी अभी तुमने जज्बातों के हवाले होकर जो साइन किये हैं, उसके मुताबिक आज और अभी से तुम्हारा सब-कुछ सत्य का हो चुका है।”

“ये तो हद ही हो गयी।” वह थोड़ा गुस्से में बोला – “मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरा भाई इस तरह से मेरे साथ छल कर सकता है।”

“तुम्हारी ही तरह मैं भी सत्य की बातों पर हैरान रह गयी थी।” कहकर शीतल ने तमाम कागज़ात के टुकड़े-टुकड़े कर डाले – “सत्य ने मुझसे कहा था कि तुम अब पूरी तरह मेरे काबू में हो, इसलिए किसी भी तरह इन पेपर्स पर तुम्हारे दस्तखत ले लूं, और इस बात का ध्यान रखूँ कि तुम इन्हें पढ़ने न पाओ। अब जरा सोचकर देखो कि क्या तुमने उसका चाहा पूरा नहीं कर दिखाया?”

“लेकिन भैया को क्या पता कि तुम्हारे और मेरे बीच क्या चल रहा है?”

“सुनकर गुस्सा तो नहीं हो जाओगे? मुझसे बात करना बंद तो नहीं कर दोगे? बोलो आकाश, जवाब दो मेरी बात का, क्योंकि तुमने अगर मुझसे दूरी बना ली तो मैं अपनी जान दे दूँगी।”

“पागल हो, ऐसा ख्याल भी क्यों आया तुम्हारे दिमाग में?”

“क्योंकि आगे जो कुछ भी मैं तुम्हें बताने जा रही हूँ, उसे सुनकर तुम पर कैसा असर होगा, इसका अंदाजा नहीं लगा सकती मैं। बल्कि ज्यादातर उम्मीद इसी बात की है कि सच जानकर भड़क उठोगे, मुझसे हमेशा-हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लोगे।”

“मैं मरते दम तक तुम्हारे साथ हूँ, अब बताओ क्या बात है?”

“सत्य को हमारे संबंधों के बारे में सब-कुछ पता है।”

“वॉट?” आकाश यूँ चौंका जैसे किसी जहरीले बिच्छू ने डंक मार दिया हो।

“और ना सिर्फ पता है बल्कि वह मेरे साथ शादी करने से पहले ही तुम्हारे हिस्से की जायदाद हड़पने की प्लॉनिंग किये बैठा था। कम उम्र और मिडिल क्लास लड़की के साथ ब्याह भी इसीलिए रचाया ताकि बाद में तुम्हें फांसने में कोई समस्या आड़े न आये। वरना तीस-पैंतीस साल वाली, उसकी हैसियत की कुंवारी लड़कियों का क्या अकाल पड़ा था दुनिया में?”

“हे भगवान्, इतना बड़ा छल?”

“मैं भी इसी तरह चौंकी थी आकाश, जब उसने शादी के अगले ही दिन मुझे अपनी असल मंशा बतायी। साफ कह दिया कि मुझ जैसे कंगले बाप की बेटी से शादी उसने इसलिए की थी ताकि मैं उसका चाहा पूरा करने में उसकी मदद कर सकूं। और आगे जब उसने असली बात बतायी तो मैंने ये कहते हुए साफ मना कर दिया कि मैं कोई वेश्या नहीं हूँ, जो उसके कहने पर तुम्हारे साथ जाकर सो जाऊं, तुम्हें अपने हुस्न जाल में फंसा लूं। तब जानते हो उसने क्या किया था?”

“क्या किया?”

“मुझे धुन कर रख दिया। और वह काम उस कमीने ने तब किया जब मुझे हनीमून के लिए शिमला लेकर गया था। इंडिया में हनीमून मनाने के पीछे वजह भी शायद यही थी कि बात बिगड़े तो उसके लिए संभालना आसान हो, वरना क्या वह विदेश नहीं ले जा सकता था मुझे?”

“आगे क्या हुआ?”

“उसने मुझे जात औकात याद दिलायी और साफ कह दिया कि जिंदा रहना है तो उसकी बात माननी ही पड़ेगी। जरा कमीनगी की हद तो देखो, उसने ये नहीं कहा कि उसके साथ रहना है तो उसकी बात माननी पड़ेगी, क्योंकि अच्छी तरह से जानता था कि बीवी से पीछा छुड़ाने के लिए तलाक का आसरा लेगा तो बड़ी धनहानि का सामना करना पड़ेगा। इसलिए सीधा मौत का भय दिखाया था मुझे। उसके बाद वह बार-बार मुझ पर जोर डालता रहा कि मैं तुम्हें काबू में करूं और मैं टालती रही, मगर एक दिन तो अति ही कर दी। मुझे अपने साथ लेकर ट्रेन से मुंबई के लिए रवाना हुआ और बीच रास्ते में बहाने से मुझे गेट पर ले जाकर खड़ा कर दिया। उसके बाद मेरा हाथ पकड़कर जबरन बाहर लटका दिया और धमकी दी कि जल्दी ही मैंने उसका चाहा पूरा नहीं किया तो किसी दिन बुरी मौत मारी जाऊंगी। उस रोज मेरे हौसले पस्त हो गये आकाश, विरोध करने की हिम्मत नहीं बची मेरे अंदर।” शीतल जोर-जोर से रोने लगी – “आखिरकार मैंने उसकी बात मान लेने में ही अपनी भलाई समझी। उसके बाद तुम्हारे करीब पहुँचने में मुझे जरा भी वक्त नहीं लगा।”

“अगर सब-कुछ महज ड्रामा था तो आज सच्चाई क्यों बता रही हो मुझे?”

“क्योंकि अब और नहीं झेला जाता मुझसे। इसलिए नहीं झेल पा रही क्योंकि मैं तुमसे सच में प्यार करने लगी हूँ। बेशक मैं तुम्हें सत्य की योजना को फॉलो करते हुए अपने करीब लेकर आई थी, मगर आज का हाल ये है आकाश कि तुम्हारा बुरा करने से पहले मैं अपनी जान दे देना ज्यादा पसंद करूंगी।”

सुनकर आकाश ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

“रो मत चुप हो जा, प्लीज चुप हो जा।”

“मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया आकाश।”

“उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी, फिर मैं भी तो प्यार करता हूँ तुम्हें। इसलिए खामखाह खुद को दोष देना बंद कर दो, प्लीज आंसू पोंछ दो अपने।” कहकर वह खुद ही उसकी आँखें पोंछने लगा – “मुझे दुःख इस बात का नहीं है कि भइया ने मेरे हिस्से की जायदाद हड़पने की कोशिश की, दुःख तो इस बात का है कि उसके लिए उन्होंने इतना घिनौना रास्ता चुना। मुझसे वैसे ही कह देते तो मैं एक पल भी नहीं लगाता अपना सब-कुछ उनके नाम करने में। फिर मेरा खर्च ही कितना है, अभी दो लाख रूपये महीने के मिलते हैं, उसमें से भी बहुत सारा पैसा बचा रखा है मैंने।”

“मगर आगे भी तुम उसी दो लाख में गुजारा करते रह सकते हो, इस बात का यकीन तुम्हारे भाई को कौन दिलायेगा? वह तो यही सोचता है न कि एक न एक दिन तुम अपना हिस्सा मांगने के लिए उसके सामने तनकर खड़े हो जाओेगे?”

“उसके लिए इतना घटिया रास्ता चुना उन्होंने, अपनी बीवी तक को मोहरा बना दिया, थू है उन पर।”

“मैं उनकी बीवी तो कभी बन ही नहीं पाई आकाश, मैं तो बस उनके इशारों पर चलने वाली गुलाम भर हूँ। तभी तो आये दिन मुझे वेश्या, आवारा, बदचलन जैसे तमगों से नवाजते रहते हैं, जबकि असल में अगर मैं वेश्या हूँ भी तो मुझे वैसा बनाने वाला कौन था? तुम्हारी भाई ही था न, बावजूद इसके उनके जुल्मों का कोई ओर छोर नहीं है, मगर मैं सब झेल रही हूँ, इसलिए ताकि तुम्हारे करीब रह सकूं।”

“ये सब तुमने मुझे पहले ही क्यों नहीं बता दिया?”

“कैसे बताती आकाश। आज हमारे बीच इतनी नजदीकियां बन गयी हैं, हम एक दूसरे पर इतना विश्वास करने लगे हैं इसलिए मैं बोल पाने की हिम्मत जुटा पाई अपने भीतर, मगर शुरू-शुरू में कैसे जुबान खोल सकती थी तुम्हारे सामने, और कैसे तुम यकीन कर पाये होते मेरी बात पर?”

“पेपर्स तो तुमने फाड़ दिये, अब क्या करोगी?”

“कह दूँगी कि तुम बिना पढ़े दस्तखत करने को तैयार नहीं हुए, और क्या बोल सकती हूँ? मगर आइंदा कुछ भी साइन करो तो बहुत सोच समझ कर करना। पता नहीं कौन से कागजात में सत्य तुम्हारा गला काटने की प्लानिंग किये बैठा हो।”

आकाश का चेहरा गंभीर हो उठा।

“जानते हो बात अगर यहाँ तक भी सीमित होती तो चिंता करने की जरूरत नहीं थी, मगर वह तो हर हाल में तुमसे छुटकारा पाना चाहता है। इसलिए कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर तुम्हारी जान ही ले ले किसी दिन। हाँ, इतनी गारंटी जरूर कर सकती हूँ कि मेरे जीते जी ऐसा नहीं होने पायेगा, भले ही अपने हाथों से अपनी मांग का सिंदूर ही क्यों न मिटाना पड़ जाये।”

“इतना प्यार करती हो मुझसे?”

“तुम्हारी सोच से भी कहीं ज्यादा आकाश। काश कि सत्य से पहले तुम मिल गये होते मुझे, तो मैं समझती कि जिंदगी की सारी खुशियां एक ही झटके में मेरी झोली में आ गिरी हैं।”

“मैं अभी भी तुम्हारा ही हूँ।”

“मैं जानती हूँ, मगर अब इस आधे अधूरे से तंग आ चुकी हूँ मैं, पूरा चाहिए। मैं मिसेज आकाश अंबानी बनना चाहती हूँ, ना कि सत्यप्रकाश अंबानी की बीवी बनकर जिंदगी गुजारनी है। जानते हो जब मैं बिस्तर पर उसके साथ होती हूँ तो तुम्हारा तसोव्वुर कर के ही उसे झेल पाती हूँ, वरना तो पहले से ही नर्क बनी जिंदगी और भी नर्क हो जानी है।”

“मैं समझ सकता हूँ, मुझे दुःख है कि तुम्हें इस घर में इतना कुछ सहना पड़ा।”

“लेकिन अब बर्दाश्त नहीं होता आकाश, वह तो जैसे तमाम हदें पार कर जाता है। जो चाहता है कहता है, जो चाहता है करता है, और मैं हुक्म के गुलाम की तरह उसकी तमाम ज्यादती झेलने को मजबूर होती हूँ। उसे मेरी हर बात से प्रॉब्लम है। उसकी मानूं तो मॉर्डन ड्रेस न पहनूं, मेकअप न करूं, बल्कि सही मायने में वह ये चाहता है कि मैं हॉट एंड ब्यूटिफुल न दिखूं। क्या करे उसका ईगो जो आड़े आ जाता है। वह खुद को मुझसे कमतर पाता है इसलिए मुझे ऊपर उठता नहीं देख सकता। बल्कि मुझे बीवी समझता ही नहीं है, समझता होता तो तुम पर डोरे डालने का काम हरगिज भी नहीं सौंपा होता।”

“कोई इंसान इतना भी गिर सकता है, हैरानी हो रही है मुझे।”

“तुम्हारा भाई उससे भी कहीं ज्यादा गिरा हुआ आदमी है। अब तक मैं जब्त करती रही हूँ मगर आगे मुझसे नहीं हो पायेगा। मैं किसी के इशारों पर नहीं नाच सकती, अपने पति के भी नहीं, क्या समझे?”

“समझा तो सही, मगर सवाल ये है कि ऐसे हालात में हमें क्या करना चाहिए?”

“अभी कुछ करने की जरूरत नहीं है, मगर कल को अगर वह तुम्हारे खिलाफ कुछ करने की कोशिश करता है, मेरा मतलब है कि तुम्हारी जान ही लेने पर अमादा हो उठता है तो फिर हमें सब-कुछ करना होगा, क्योंकि तुम्हें खोना मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती, मगर उसकी तैयारी पहले से कर के रखनी होगी, वरना ऐन मौके पर हम पलटवार नहीं कर पायेंगे।”

“मैं समझा नहीं।”

“पहले इस बात का फैसला करो कि मैं तुम्हें किस हद तक पसंद हूँ, क्या जिंदगी भर मेरा साथ निभाने को तैयार हो? क्या मुझे मिसेज शीतल अंबानी कहलाने का गौरव दे सकोगे तुम? अगर हाँ तो मैं आगे बोलूं वरना तो बात करना ही बेकार है।”

“ऑफ़कोर्स चाहता हूँ, मगर भाई के रहते....।”

“अभी मैं जो कुछ भी बोल रही हूँ, ये मानकर बोल रही हूँ कि आज नहीं तो कल तुम्हारा भाई तुम्हारी जान लेने की कोशिश जरूर करेगा। उन हालात में इसके अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं होगा कि वार होने से पहले वार कर दिया जाये। इससे पहले कि वह हम दोनों को या तुम्हें खत्म करे, हम उसे खत्म कर देंगे। अब बताओ कल को अगर तुम्हारा भाई दुनिया में नहीं रहा तो क्या तुम मुझसे शादी करोगे?”

“शादी वाली बात पर तो मेरी तरफ से हाँ ही हाँ है, लेकिन भैया? कैसे मैं उनके खून से अपने हाथ रंग पाऊंगा?”

“रंग पाओगे, जब तुम्हें अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई देगी तो मुझे यकीन है कि फैसला लेने में जरा भी वक्त नहीं लगाओगे तुम, लेकिन कोशिश हमारी यही रहेगी कि तुम्हें या मुझे अपने हाथों से सत्य को खत्म न करना पड़े। अब कहो कि तुम्हें मेरी बात समझ में आ रही है?”

“आ रही है।” उसके मुँह से खुद ब खुद निकल गया।

“तुम्हारे भाई का मारा जाना इसलिए भी जरूरी है आकाश क्योंकि दो नावों

की सवारी ज्यादा देर तक नहीं की जा सकती, और मैं किसी भी हाल में तुमसे दूर नहीं होना चाहती। जबकि तुम्हें खत्म करने के बाद उसका अगला शिकार मैं ही बनूंगी क्योंकि अपने इतने बड़े राज़दार को जिंदा छोड़ने वाले मूर्खों में से नहीं है सत्यप्रकाश अंबानी।”

“तुम्हारी आखिरी बात से मुझे पूरा-पूरा इत्तेफाक है। भैया अगर खून खराबे का फैसला कर बैठे तो सिर्फ मुझे मारकर ही संतोष नहीं कर लेंगे।”

“क्या तुम वैसा वक्त आने का इंतजार करोगे, या आगे बढ़कर खुद पहल करोगे? ताकि हमारी बाकी की जिंदगी एक साथ और चैन से गुजर सके।”

“तब तक तो यकीनन इंतजार करूंगा जब तक कि मुझे विश्वास नहीं हो जाता कि भैया सच में मेरी जान लेना चाहते हैं, मगर उसके बाद मैं सारा लिहाज भूल जाऊंगा, एंड बिलीव मी, मैं इतना कमजोर भी नहीं हूँ कि कोई जब चाहे मेरे प्राण खींच ले।”

“पिस्तौल की गोली ताकत देखकर अपना रास्ता नहीं बदल देगी आकाश। कोई तुम्हारी जान लेने की कोशिश करेगा तो कुश्ती नहीं लड़ने लगेगा आकर। तुम्हें तो पता भी नहीं लगेगा कि कब मौत ने तुम्हारी जिंदगी के दरवाजे पर दस्तक दे दी है। इसलिए प्लानिंग पहले से कर के रखनी होगी, ताकि वक्त आने पर दुश्मन को मुँहतोड़ जवाब दिया जा सके।”

“ये कोई आसान काम तो नहीं होगा।”

“नहीं, बहुत मुश्किल होगा। मैं ये भी जानती हूँ कि तुम्हारे भाई की मौत के बाद पुलिस पंजे झाड़कर हमारे पीछे पड़ जायेगी। पति की हत्या का पहला शक उसकी बीवी पर करने का रिवाज है हमारे यहाँ की पुलिस में। और जब वे लोग देखेंगे कि 48 साल का तुम्हारा भाई 26 साल की हॉट प्रॉपर्टी का मालिक था, तो उनका शक और भी बढ़ जायेगा, मगर मुझे यकीन है कि मैं संभाल लूंगी, क्या तुम खुद को तटस्थ रख पाओगे?”

“हवालात में डालकर डंडे ही न बरसाने लग जायें, तो हाँ मैं निबट लूंगा।”

“डंडा बरसाने की मजाल नहीं हो सकती पुलिस की। तुम कोई उठाईगिरे नहीं हो, जो तुम पर थर्ड डिग्री आजमाना शुरू कर देंगे। तुम, तुम हो, तुम आकाश अंबानी हो। बस उनकी बातों के जाल में फंसने से बचना होगा हमें। चोर बहकाने में माहिर होते हैं वे लोग। मुझसे कहेंगे कि आकाश ने सच्चाई बयान कर दी है और कहता है कि सारा किया धरा शीतल का है। इसी तरह तुमसे कहेंगे कि शीतल ने सारी कहानी बता दी है और कहती है कि सब किया धरा आकाश का है। ऐसे ही जाने कैसे-कैसे पैंतरे आजमायेंगे वे लोग, जिनसे हम बच निकले तो आगे की जिंदगी हमारी होगी।”

“इन छोटे-मोटे जालों में तो मैं नहीं फंसने वाला, इसलिए उस बात की चिंता छोड़ दो। मगर तुम्हें पुलिस की कार्यप्रणाली का इतना तजुर्बा कैसे है, क्योंकर जानती हो ये सब?”

“सावधान इंडिया जैसे सीरियल्स में ऐसी ही तो कहानियां दिखाई जाती हैं आकाश। अपराधियों के साथ पुलिस कैसे पेश आती है, किस तरह से उन्हें इंटेरोगेट किया जाता है, कैसे पुलिस उन्हें अपने सवालों के जाल में फंसाकर सच्चाई उगलवा लेती है, यह सब तो रोज ही दिखाते हैं वे लोग।”

“मैंने कभी ऐसे सीरियल नहीं देखे, इसलिए तुम्हारे कहे पर यकीन कर लेता हूँ। अब सवाल ये है कि भैया को रास्ते से हटाने की नौबत आई तो हटायेंगे कैसे। घर में तो ऐसा करना खतरनाक साबित हो सकता है और बाहर कुछ कर पाने का मौका शायद ही हाथ लगे हमारे।”

“वह बाद की बात है, जब वक्त आयेगा देखा जायेगा। हो सकता है कि कोई साथ देने वाला भी मिल जाये। बल्कि हमें खुद ढूंढना होगा ऐसा कोई शख्स। अपने गुस्सैल स्वभाव के कारण तुम्हारा भाई रोज एक नया दुश्मन खड़ा कर लेता है। हमें किसी वैसे ही आदमी को ढूंढ निकालना है, बल्कि एक से ज्यादा मिल जायें तो और भी बढ़िया बात होगी। उनमें से जो अपने काम का लगेगा उसे अपनी तरफ कर लेंगे, जो नहीं लगेगा, पुलिस को उसके नाम का हिंट ड्रॉप कर देंगे। सस्पेक्ट जितने ज्यादा होंगे पुलिस की उलझन उतनी ही बढ़ती जायेगी। नतीजा ये होगा कि या तो वे लोग किसी गलत आदमी को उठाकर जेल पहुँचा देंगे या फिर हमेशा के लिए तुम्हारे भाई के कत्ल की गुत्थी बस गुत्थी ही बनकर रह जायेगी। इसलिए हमें हर उस आदमी की जानकारी होनी चाहिए, जिसके साथ तुम्हारे भाई की अदावत हो। बाद में वो लोग ही हमारी तरफ से पुलिस का ध्यान डाइवर्ट करने का काम करेंगे।”

“ऐसे आदमियों के बारे में जान लेना तो खैर कोई मुश्किल काम नहीं होगा, क्योंकि कइयों से तो मैं पहले से ही वाकिफ हूँ। उनमें से एक तो निशांत मौर्या ही है, जो हमारे साथ पार्टनरशिप करने के लिए मरा जा रहा है। डैड ने उसके लिए हाँ भी कर दिया था, मगर उनकी मौत के बाद भाई ने साफ मना कर दिया। उसे अगर इस बात का भरोसा दिला दिया जाये कि भाई के खत्म होने के बाद उसका चाहा पूरा हो जायेगा, तो मेरे ख्याल से वह हमारा साथ देने से इंकार नहीं करने वाला।”

“ये अच्छा सुझाया तुमने।”

“और रंजिश की बात करूं तो उस फ्रंट पर भी कम से कम दो नाम तो मेरे जेहन में हैं ही। पहला विक्रम राणे, और दूसरा डॉक्टर मजूमदार। इनमें से राणे के साथ तो खैर मामूली सी कहासुनी हुई थी, मगर मजूमदार का तो भाई ने वह हाल

किया कि किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रह गया था वह।”

“अरे ऐसा क्या हो गया था?”

आकाश ने बताया।

“ये तो बहुत ही अच्छी खबर सुनाई तुमने। ऐसे ही कुछ और लोगों को भी तलाश करो, जो तुम्हारे भाई से कुढ़ते हों, उससे बदला लेना चाहते हों, फिर देखेंगे कि किसको अपनी तरफ करना है और किसको बाद में बतौर सस्पेक्ट सामने लाना है।”

“नो प्रॉब्लम। मैं आज से ही कोशिशें शुरू कर देता हूँ, मगर अभी उस काम पर ध्यान दो, जिसकी तुम एक्सपर्ट हो। वैसे भी तुम्हारी बातें सुनकर टेंशन बढ़ गयी है, उसे कम करोगी या नहीं?”

“ऑफ़कोर्स करूंगी स्वीट हॉर्ट।” कहकर वह लता की भांति आकाश से लिपट गयी।

*****