16-वह कैसा सपना  

सुनन्दा के घर से लौट कर अजिता को एक अनजानी चिंता महसूस हो रही थी। अभिनव, सुनन्दा के बच्चों के साथ काफी घुला-मिला था। स्कूल में भी वह साथ में ही पढ़ते थे। यही अजिता की चिंता का कारण था। वह बच्चों के पढ़ाई में बिलकुल ध्यान नहीं देते थे और उसकी सहेली सुनन्दा से कोई उम्मीद नहीं थी। अजिता को लगा कि अभिनव कहीं उन लोगों के जैसा न बन जाए।

यह सब सोचते-सोचते उसे नींद आ गई। सुबह उठी तो सर बहुत दर्द कर रहा था। उसका उलझन भरा चेहरा देखकर विजय बोले, "क्या हुआ? क्या तबियत ठीक नहीं है तुम्हारी?"

"तबियत तो ठीक है, लेकिन आज फिर वही सपना दिखा और जिस दिन वह वह दिखता है मुझे उलझन हो जाती है। ऐसा लगता है कि कोई बीमार पड़ने वाला है।" अजिता परेशान थी इसलिए धीरे-धीरे बोल रही थी।

"तुम्हें यह सपना इतने दिनों से दिख रहा है, क्या कहीं कोई बीमार पड़ा। तुम उस पर ध्यान मत दो और परेशान होने की जरूरत नहीं है। दुनिया में बहुत लोग बीमार पड़ते हैं, और इलाज़ कराने पर ठीक भी हो जाते हैं।" विजय बिस्तर से उठते हुए बोला। अजिता भी उठ गई। विजय की बात से थोड़ी राहत मिली लेकिन उसकी असली चिंता जो थी वह विजय को बताने से कोई फायदा नहीं होता क्योंकि विजय यही कहते,

"तुम बेकार में ही चिंता करती हो। अभिनव इतना छोटा है अभी से पढ़ाई के लिए इतना परेशान होने की क्या जरूरत है। जब वह बड़ा होगा तो, खुद ही समझदारी आ जाएगी।"

बात कुछ हद तक ठीक भी थी लेकिन अजिता अभिनव को लेकर हमेशा ज्यादा ही सजग रहती थी।

अभिनव के स्कूल के आठ वर्ष बीत गए थे। समय कैसे निकल गया, पता ही नहीं चला। अभिनव एक मासूम बच्चे से बड़ा होकर नौवीं कक्षा में पढ़ रहा टीनेजर हो चुका था। इस सफर में अभिनव में बहुत बदलाव आ गया था। वह एक बातूनी और जिज्ञासु बच्चे से, एक शांत और गंभीर स्वाभाव का किशोर बन गया था। वह अक्सर अपने आप में ही खोया रहता था और घर में किसी के साथ ज्यादा घुलता मिलता नहीं था और परिवार के बजाय अपने दोस्तों के साथ समय ज्यादा बिताने लगा। पढ़ाई में भी उसके अंको मे गिरावट आ रही थी। अजिता जब भी उससे इस बारे में बात करती थी तो वह उसकी बातों को नज़रअंदाज़ कर देता या फिर गैर जिम्मेदाराना तरीके से जवाब देता था।

एक शाम को:

"मैं अपने दोस्तों के साथ जा रहा हूँ।” अभिनव, अजिता से कहते हुए बाहर निकल गया।

“तुम कहाँ जा रहे हो और वापस कब तक आओगे?” अजिता ने धीरे से पूछा।

“मैं पार्क में खेलने के लिए जा रहा हूँ और एक घंटे में वापस आ जाऊँगा।” अभिनव ने कहा और जल्दी से सीढ़ियों से नीचे चला गया इससे पहले कि अजिता उसे कुछ कह पाती।

हर शाम की तरह ये एक सामान्य वार्तालाप थी माँ और बेटे के बीच। अजिता को ट्यूशन पढ़ाने जाना था इसलिए वो तैयार हो गई और कनिष्क और कार्तिक के घर चली गई। वे बच्चे अपनी अर्धवार्षिक परीक्षा परिणाम उसे दिखाने के लिए इंतज़ार कर रहे थे।

17-उलझन

“तुम्हें बहुत अच्छे अंक मिले हैं। मैं, तुम्हारे परीक्षा परिणाम से बहुत खुश हूँ।” अजिता ने अपने दोनों छात्रों की पीठ थपथपाई।

"बधाई हो!" श्रीमती गुप्ता आपके बच्चे बहुत होशियार हैं, मैं भाग्यशाली हूँ जो इतने होनहार बच्चों को पढ़ा रही हूँ।” अजिता ने श्रीमती गुप्ता से कहा

“आपको भी बधाई हो। ये आपका उनके प्रति समर्पण है तभी उनको अच्छे अंक हासिल हुए है। मैं आपकी बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।” श्रीमती गुप्ता ने आभार व्यक्त करते हुए कहा और वहाँ बैठ गई, फिर कुछ सोचते हुए बोली

"मुझे कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है जैसे आप किसी समस्या से चिंतित रहती हैं। क्या आपको कोई परेशानी है? क्या मैं आपकी समस्या पूछ सकती हूँ क्योंकि मुझे आपकी चिंता हो रही है।”

अजिता उनको अपनी समस्या बताने के लिए पहले तो हिचकिचा रही थी, लेकिन फिर उसे अपनी माँ की बात याद आई जो उससे कहा करती थी,

"यदि किसी समस्या का तुम्हें अपने आप समाधान नहीं मिल रहा है तब उसके बारे में अपने सबसे भरोसेमंद व्यक्ति के साथ चर्चा करना हमेशा बेहतर रहता है।”

श्रीमती गुप्ता हमेशा ही एक सहायक और समझदार दोस्त की तरह रहती थी। अजिता ने महसूस किया कि उसको अपनी समस्या के बारे में बताने के लिए श्रीमती गुप्ता ही सही व्यक्ति है।

"मैं अभिनव को लेकर थोड़ा परेशान हूँ आजकल उसका व्यवहार पहले से बदल सा गया है। जब वह छोटा था तब बहुत बातें करता था और उत्साह में रहता था लेकिन अब वो अलग-अलग सा रहने लगा है और पढ़ाई में भी कमज़ोर होता जा रहा है।” अजिता ने कहा।

"ओह ये तो वास्तव में एक बहुत बड़ी समस्या है। आपको पहले ही इस बारे में हमसे बात करनी चाहिए थी। अपनी समस्या अपने मित्रों के साथ अवश्य बाँटनी चाहिए क्योंकि वे उसे हल करने में मदद करते हैं।" श्रीमती गुप्ता बोली

कुछ देर शांत रहने के बाद उसने कहा, "मेरे पति बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर है, वो आपको जरूर सही सलाह दे पाएंगे कि इस समस्या को कैसे सुलझाया जाये। आप कल दोपहर आइए जब डॉक्टर गुप्ता लंच पर घर आते, तब उनसे बात करते हैं।”

अजिता ने श्रीमती गुप्ता से चर्चा के बाद बेहतर महसूस किया। निराशा में आशा की एक किरण व्यक्ति को नई उम्मीद दिलाती है। ट्यूशन ख़त्म करने के बाद वो अपने घर लौट आई।

अगली सुबह उसे फिर वही सपना दिखा, अस्पताल और कुछ संख्याए। उसने वैसा अस्पताल जीवन में कभी नहीं देखा था। उसे इस संबंध में किसी तरह का कोई अंदाज़ा भी नहीं था जिससे वो ये संकेत समझ सके कि उसका सपने से क्या नाता है। उसने थोड़ी देर उसके बारे में सोचा और फिर अपने रोज़ के कामकाज में व्यस्त हो गई क्योंकि उसे डॉ. गुप्ता से समय पर मिलने के लिए जाना था।

18-डॉ गुप्ता से मीटिंग

"क्या आपने कभी अभिनव से उसके बदले हुए व्यवहार के बारे में बात की?” डॉ. गुप्ता ने अजिता से पूछा

उन्हें श्रीमती गुप्ता ने पहले से ही स्थिति के बारे में सूचित कर दिया था।

डॉक्टर गुप्ता की बोली से उनकी ग्रामीण पृष्ठभूमि का पता चल रहा था। उनके सरल व्यक्तित्व में कोई भी दिखावटीपन नहीं था, कपड़े पहनने का तरीका भी साधारण था, एक हलकी विनम्र मुस्कान उनके चेहरे पर झलक रही थी।

“मैंने उससे कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी नहीं बताता है।” अजिता ने जवाब दिया

"वो पहले पढ़ाई में कैसा था?”

“पढ़ाई में वह अच्छा था, उसके टीचर्स ने कभी भी उसकी शिकायत नहीं की थी बल्कि हमेशा तारीफ ही करते हैं।" अजिता ने गर्व से कहा लेकिन अगले ही पल गंभीर हो गई।

“आप चिंता न करें। उम्र के इस पड़ाव पर बच्चों में ऐसे लक्षण अक्सर दिखते हैं।” डॉ गुप्ता ने अजिता को सांत्वना दी।” इस उम्र में शरीर के हाँर्मोन्स में परिवर्तन होता है, मस्तिष्क का विकास भी व्यवहार को प्रभावित करता है। इन्हीं शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों के कारण एक किशोर कभी-कभी युक्तिसंगत चीज़ों को नहीं समझ पाते हैं जिस तरह एक वयस्क समझता है।” डॉ गुप्ता ने समझाया

"उन्होंने कहा यही कारण है कि अक्सर हमें ऐसा लगता है कि किशोरों का व्यवहार कुछ अलग तरह का है। वे जानकारी के लिए अपने साथियों पर ज्यादा भरोसा करते है। माता-पिता के ज्यादा पूछने पर वे बेरूखी से व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वह उनसे प्यार व समझदारी से पेश आए।

कुछ देर चुप रहने के बाद वे बोले, “वास्तव में माता पिता भी बच्चों में हो रहे विकास और परिवर्तनों को समझ नहीं पाते हैं इसलिए उन्हें ये भी समझ में नहीं आता है कि इन समस्याओं का सामना उन्हें कैसे करना है। इस स्थिति में माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए बहुत मुश्किल होती है, असल में माता-पिता को ऐसा कोई प्रशिक्षण नहीं मिलता है कि वे इस उम्र बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करे। ऐसी उम्र में बच्चों का मन बहुत कोमल होता है और उन्हें अपने अभिभावकों से प्रेम और देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है इसलिए इस अवस्था के बच्चों के साथ किसी भी परिस्थिति में उनसे सख्ती नहीं करनी चाहिए। उनके ऊपर सख्ती, उनके विकास पर विपरीत असर डालती है।

अजिता ने डॉक्टर साहब की बातें ध्यान से सुनी और कहा,

“मुझे इतनी जानकारी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। अभिनव ज़रूर दबाव और तनाव की स्थिति से गुज़र रहा होगा और हम अभिभावक होने के बावजूद उसको समझ नहीं ही पा रहे हैं।”

अजिता को ग्लानि और दुख हो रहा था कि वह अपने बच्चे को समझ नहीं पाई।

"अपने आप को दोषी मत समझिए, ये आपकी गलती नहीं है। दरअसल हमारी शिक्षा प्रणाली में इन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है। अधिकांश माता-पिता को इन परिवर्तनों की जानकारी नहीं होती है और इसी वजह से माता पिता और बच्चों के बीच रिश्ता तनावपूर्ण हो जाता है।” डॉ गुप्ता ने अजिता को समझाया।

“जी आप बिलकुल सही कह रहे हैं, मैं अब यह जानना चाहती हूँ कि अभिनव को पढ़ने के लिए प्रेरणा कैसे दी जाए?”

"प्रेरणा के लिए हर एक व्यक्ति के जीवन में एक लक्ष्य होना चाहिए। जब तक अभिनव को उसके जीवन में अपने उद्देश्य की स्पष्टता नहीं हो पाती है तब तक वो प्रेरित नहीं होगा। एक अभिभावक के रूप में आप उसे उसका उद्देश्य खोजने में मदद करें। ऐसा करने के लिए सबसे पहले उसकी इच्छाओं और रुचि को समझिये। उसके बाद ये देखें कि उन रुचियों के आधार पर कौन-कौन से करियर क्षेत्र अभिनव के लिए ठीक रहेंगे। जब कैरियर का विकल्प मिल जाये तब आप उसे उस क्षेत्र में सफल लोगों के साथ उसका परिचय कराने की कोशिश करिये, इससे उसे अपने करियर को लेकर रुचि पैदा होगी और पढ़ाई के लिए तब वह खुद- ब-खुद प्रेरित हो जाएगा।" डॉ. गुप्ता ने समझाया।

अजिता सोचने लगी और फिर बोली “आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। मैंने देखा है कि अभिनव आपसे बहुत प्रभावित रहता है। वो कभी-कभी आप की बहुत सराहना भी करता है और उसे इस डॉक्टरी पेशे में रुचि भी है। मैनें अक्सर महसूस किया है कि उसके अंदर बीमार लोगों के प्रति चिंता और सहानुभूति है,” फिर थोड़ा रुककर उसने पूछा,

“क्या वह इस क्षेत्र को चुन सकता है?” अजिता ने पूछा।

"क्यों नहीं?” डॉ गुप्ता ने कहा।

"यह तो बहुत अच्छी बात है कि आपने पहले से ही ये ध्यान दिया है कि उसका झुकाव किस क्षेत्र की तरफ है। आपका आधा काम तो हो गया, अब तो बस आपको उसे यह बताने की जरूरत है कि डॉक्टर काम क्या करते हैं जिसके लिए आप उसे मेडिकल कॉलेज ले जाइए जहाँ वो मेडिकल के छात्रों से मिल सके। हो सकता है कि उन छात्रों से मिलकर उसकी रुचि जाग जाए।"

अजिता ने हामी भरी और डॉ.गुप्ता के महत्त्वपूर्ण सुझावों के लिए उनका आभार व्यक्त किया।

मुलाकात के बाद डॉ.गुप्ता अस्पताल के लिए रवाना हो गए और अजिता अपने घर लौट आई।

घर पहुँचते ही अजिता सीधे अपने कमरे में गई और अलमारी से अपनी डायरी निकाली। उसने सोचा कि अभिनव को समझने के लिए उसे डॉक्टर गुप्ता की बातों को ध्यान रखना होगा।

"अगर मैं उन्हें अपनी डायरी में लिख लूँ तो मैं कुछ भी भूलूँगी नहीं।” उसने लिखना शुरू किया।

"अपने बच्चे पर विश्वास करो। हर स्थिति में उसे प्यार करो। उसकी क्षमताओं और योग्यताओं पर विश्वास करो। उसकी उपलब्धियों की प्रशंसा करो। हर बच्चा अद्वितीय है और हर एक का अपना एक विशेष तरीका होता है। वह जैसा है उसे उसी तरह से स्वीकार करो। उसे एक दोस्त के रूप में समझो। कभी एक प्रशिक्षक बनने की कोशिश मत करो बल्कि उनकी परेशानियों दूर करने में मदद करो।”

ये कुछ सुझाव थे जो अजिता और विजय दोनों को पालन करने थे। कोई भी बच्चा अपने माता पिता पर तभी विश्वास करता है जब माँ-बाप उसकी आवश्यक्ताओं को समझे और साथ ही साथ उससे अच्छे दोस्त की तरह व्यवहार करे। अगर बच्चे के मन में अपने माता-पिता से कोई डर नहीं होगा तो उसे कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं होगी। कई बार अपने बच्चों का विश्वास जीतना माता-पिता के लिए आसान नहीं होता है, पर फिर भी, यह असंभव भी नहीं है। अजिता ने सभी ज़रूरी सुझावों को लिखकर अपनी डायरी अलमारी की दराज में रखी और रात का खाना तैयार करने के लिए रसोई घर में चली गई।

19-नई दोस्ती

अभिनव शाम को घर देर से वापस आया और अपनी माँ के किसी भी प्रश्न से बचने के लिए सीधे अपने कमरे में चला गया।

"क्या तुम कुछ खाओगे अभिनव? मैंने तुम्हारे लिए आटे का हलवा बनाया है।” अजिता ने अभिनव को रसोईघर में बुलाया। लम्बे समय तक खेलने के बाद अभिनव के पेट में चूहे कूद रहे थे। घर में फैली हलवे की मीठी सुगंध और अपनी माँ की एक प्यारी सी पुकार सुन कर वह रसोईघर की तरफ दौड़ा।

अजिता उसका चेहरा पढ़ सकती थी, वो काफी खुश दिख रहा था पर संदेह में था कि उसकी माँ उससे नाराज़ है या नहीं। अपनी माँ को मुस्कुराते हुए देखकर, उसकी आँखें खुशी से चमकने लगीं।

"जब आप ये स्वादिष्ट हलवा बनाती हैं तो पूरे घर में खुशबू फैल जाती है।” अभिनव बोला

“आज कौन सा गेम खेला तुमने?” हलवा देते समय अजिता ने पूछा

“गेम?” अभिनव हैरान हो गया अपनी माँ से ये सवाल सुनकर। उसके लिए ये प्रश्न असामान्य था पर वो बहुत खुश हुआ कि उसके खेल में उसकी माँ ने अपनी रूचि दिखाई।

"क्रिकेट,” उसने धीरे से जवाब दिया और हलवा ले कर अपने कमरे में चला गया।

अजिता ने अपने बेटे के साथ नए सिरे से अपनेपन की शुरुआत को महसूस किया।

अगले दिन अजिता ने अजय को घर आने का संदेश भेजा ताकि वो अभिनव के बारे में उससे कुछ महत्वपूर्ण चर्चा कर सके।

"सब ठीक तो है? क्या बात करनी है अभिनव के बारे में?” घर पहुँचते ही अजय ने चिंतित स्वर में अजिता से पूछा।

“चिंता की कोई बात नहीं है, अजय आराम से बैठो।” विजय ने कहा। अजिता टेबल पर नाश्ता लगा रही थी। वे सब नाश्ते के लिए बैठ गए। अजिता ने अजय को अभिनव के बारे में पूरी बात विस्तार से बताई। पूरी बात सुनने के बाद अजय ने कहा, “ये अच्छा किया जो आपने ये बात डॉ. गुप्ता को बताई। इस तरह की समस्या को समझने के लिए वे सबसे योग्य व्यक्ति हैं। मेरी उनसे कई बार मुलाकात हुई है और उन्हें हमेशा बहुत विनम्र और सज्जन व्यक्ति के रूप में पाया है।”

“अभिनव के लिए डॉक्टर पेशा को चुनने के बारे में तुम्हारी राय क्या है?” विजय ने पूछा।

"मैं बिलकुल सहमत हूँ, वास्तव में यह एक बहुत अच्छा क्षेत्र है। डॉक्टर को समाज में बहुत सम्मान मिलता है।" अजय ने कहा।

"मैं भी डॉक्टर का बहुत सम्मान करता हूँ लेकिन मुझे लगता नहीं कि अभिनव इतनी मेहनत कर पाएगा। वह आजकल पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहा है।” विजय ने कहा

"क्यों नहीं कर पाएगा?” अजिता बीच में बोली। जब भी कोई उसे अपनी या अभिनव की क्षमताओं को चुनौती देता है, तो उसे अच्छा नहीं लगता था। विजय उस पर मुस्कुराए और अभिनव के खिलाफ कुछ भी न कहने को ही बेहतर समझा।

"मेरे कहने का मतलब है कि क्या कोई और ऐसा पाठ्यक्रम नहीं है जिसमें कम मेहनत करनी पड़े, क्या हमें उस पर विचार नहीं करना चाहिए?”

अजिता ने सिर हिलाया और बोली- हाँ, आपकी बात सही है।"

"क्या मैं अभिनव से पूछूँ कि उसे क्या पसंद है?" अजय ने पूछा

"नहीं, उसे अभी यह नहीं मालूम होगा कि उसे आगे क्या करना है। इसकी जगह हमें उसे अलग अलग क्षेत्र के सफल लोगो के बारे में बताना चाहिए ताकि वह खुद समझ सके कि उसे क्या अच्छा लग रहा है।" अजीता ने डॉक्टर गुप्ता की सलाह के अनुसार कहा

"हाँ यह ठीक रहेगा। मेरे दोस्त जो अलग अलग जगह काम कर रहे हैं, मैं उनसे अभिनव को मिलवा सकता हूँ।"

20-क्रिकेट मैच

"माँ जल्दी करो, हमें देर हो जाएगी। सर ने समय पर आने को कहा है, क्योंकि खेल शुरू होने से पहले सर कुछ जरूरी बातें बताएँगे।” अभिनव बोला

उसने अपनी क्रिकेट की ड्रेस पहन ली थी। एक हाथ में पानी की बोतल और दूसरे में कैप लिए इधर से उधर कर रहा था। बार-बार उसकी निगाह घड़ी की तरफ जाती और कभी किचन में काम कर रही अपनी मम्मी पर। वो एक इंटरसिटी मैच खेलने के लिए जा रहा था जिसमें उसका गेंदबाज के रूप में चयन हुआ था। टीम में चयनित होने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी।

"विजय और अजिता मैच देखने स्टेडियम साथ में जा रहे थे।

"चलो अभिनव अब हम तैयार है, तुम्हें देर नहीं होगी। अभी केवल 7:30 बजे हैं और तुम्हें वहाँ 9:00 बजे तक पहुँचना है और हमें रास्ते में 45 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा।” घर से निकलते हुए अजिता ने कहा।

विजय और अजिता दोनों अभिनव के मैच को देखने के लिए बहुत उत्साहित थे। अजिता पहली बार स्टेडियम जा रही थी। ये उसके लिए बहुत गर्व का दिन था।

8:30 पर सब स्टेडियम पहुँच गए जहाँ अभिनव के क्रिकेट कोच खिलाडियों का इंतज़ार कर रहे थे। कोच, मिस्टर जेकब काफी लंबे और हस्ट-पुष्ट इंसान थे। उनकों देखकर लग रहा था कि वह जरूर एक अच्छे खिलाड़ी रहें होंगे। उन्होंने विजय और अजिता को अभिनव के अच्छे प्रयास के लिए बधाई दी।

“आपका बेटा हमारी टीम का स्टार है, टीम को उसके जैसे अच्छे गेंदबाज की बहुत जरूरत थी। अगर वो इसी तरह से खेलता रहा तो जल्द ही वह राज्य स्तरीय टीम में चयनित हो जाएगा।” मिस्टर जेकब ने मुस्कुराते हुए कहा।

विजय और अजिता को उनके शब्दों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि उन्हें खेल में अभिनव की इन क्षमताओं का अंदाज़ा नहीं था। उन्होंने अभिनव की आँखों में उपलब्धि की चमक देखी। जो लड़का घर में इतना शांत दिखता है वह वहाँ एक होनहार खिलाड़ी की तरह दिख रहा था।

टीम के अन्य खिलाड़ी भी कुछ समय के बाद इकट्ठे हो गये। अभिनव ने अपने माता पिता के साथ उनका परिचय कराया, उसके बाद विजय और अजिता दर्शकों की गैलरी की ओर रवाना हुए।

“कितना बड़ा मैदान है ये।” अजिता ने कहा।

खिलाडी मैदान पर आ गये थे और प्रतिद्वंद्वी टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का विकल्प चुना। मैच शुरू हो गया। विपरीत टीम के दो बल्लेबाज क्रीज पर थे। गेंदबाजी करने वाली टीम के कप्तान ने सभी खिलाड़ियों की जगह तैनात की।

अभिनव मैदान पर फील्डिंग कर रहा था। पहले सात ओवरों में गेंदबाज कोई भी विकेट लेने में सफल नहीं हुए और रन रेट भी अधिक हो गया था। अजिता खेल का मज़ा ले रही थी क्योंकि अभिनव ने उसे खेल के सारे नियम विस्तार से समझा दिये।

सातवें ओवर के बाद, उसके कप्तान ने गेंदबाजी करने के लिए अभिनव को भेजने का फैसला किया। अभिनव एक शानदार स्पिनर था, बल्लेबाज़ को उसकी गेंद से खेलने में मुश्किल हो रही थी। एक भी रन न देते हुए अभिनव ने वह ओवर पूरा किया और बल्लेबाज़ को दबाव में डाल दिया। दर्शकों ने अभिनव के लिए ख़ुशी प्रकट करते हुए खूब तालियाँ बजाई। अभिनव के सहपाठी खुशी से चिल्ला रहे थे।

अगले पाँच ओवर में, अभिनव ने तीन विकेट लिए और रन रेट एकदम से गिरा दिया। टीम के सभी खिलाड़ियो का उत्साह बढ़ता जा रहा था और कप्तान हर दूसरे ओवर में गेंदबाजी करने के लिए अभिनव को भेजने लगा। बल्लेबाज़ दबाव में आ गये थे। बीस ओवर के बाद बल्लेबाज टीम को दो विकेट के साथ बड़ी मुश्किल से सिर्फ 96 रन ही बना सके। अभिनव को पाँच विकेट मिलें, इसलिए कमेटेटरों ने उसके नाम की कई बार घोषणा की थी। अजिता ने अपने जीवन में ऐसी खुशी का अनुभव पहली बार किया था। उस क्रिकेट मैच के अनुभव से अजिता के मन में अभिनव को एक शीर्ष स्थान पर देखने की महत्वाकांक्षा जग गई। उनको अपने बेटे की असाधारण क्षमता पर विश्वास था। उस दिन अभिनव ने इस बात की एक झलक प्रस्तुत की थी।

"तुम्हें क्या हुआ, सब ठीक तो है?” विजय ने अजिता की आँखों में आँसू देखकर उससे पूछा

"मैं ठीक हूँ। ये खुशी के आँसू है।” अजिता ने कहा

अंतराल के बाद मैच फिर से शुरू हुआ। अभिनव की टीम अब बल्लेबाजी की टीम थी। सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों को सबसे पहले बैटिंग के लिए भेजा गया था। दूसरी टीम के गेंदबाज अभिनव की अपेक्षा अच्छी से गेंदबाजी नहीं कर पाये। इसलिए सिर्फ उन्नीस ओवर में, अभिनव की टीम ने सात बल्लेबाजों के साथ मैच जीता। यह एक स्पष्ट जीत थी और इसका श्रेय न सिर्फ बल्लेबाज़ों को बल्कि अभिनव को भी दिया गया। अभिनव को उस मैच में एक पुरस्कार भी मिला, वह उसके जीवन का पहला पुरस्कार था। उसके कोच ने उसे कन्धों पे उठा लिया। स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट और शोर से गूँज रहा था। पुरस्कार समारोह समाप्त होने के बाद अभिनव अपनी ट्रॉफी लेकर स्टैंड की तरफ दौड़ा। उसके चेहरे पर उत्साह और आत्मविश्वास साफ दिखाई दे रहा था। उसके कोच मिस्टर जेकब ने विजय से अभिनव के लिए शहर के सबसे अच्छी क्रिकेट कोचिंग में दाखिला लेने की व्यवस्था कराने को कहा। विजय ने मिस्टर जेकब को आश्वासन दिया कि वह इसके लिए प्रयास करेंगे।

घर लौटते समय, रास्ते में अभिनव क्रिकेट कोचिंग इन्सिटीट्यूट के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो रहा था। विजय ने उसे समझाया कि वो उसे अगले दिन ही क्रिकेट कोचिंग ले जायेंगे। अभिनव के कई मित्र वहाँ पहले से ही कोचिंग ले रहे थे इसलिए वह संस्थान को देखने के लिए बहुत उत्साहित था। घर पहुँचते ही अभिनव अपने बिस्तर पर लेट गया और कुछ ही देर में सो गया।

“कैसा लगा इन्सिटीट्यूट?” अजिता ने अभिनव और विजय से पूछा।

जब वह लोग अगले दिन वहाँ से लौटे। उसने महसूस किया था कि पिता और बेटा दोनों के चेहरे बुझे से लग रहे हैं।

"हाँ अच्छा था माँ!" उसने धीरे से स्वर में कहा।

अजिता उसके चेहरे भाव से समझ गई थी कि जरूर कुछ गड़बड़ है। अभिनव अपने कमरे में चला गया और विजय सोफे पर बैठ गए।

"आप दोनों सुस्त और निराश दिखाई पड़ रहे हैं, क्या परेशानी है?" अजिता ने पूछा

"दो बातें मुझे परेशान कर रही हैं, एक तो फीस बहुत ज्यादा है, दूसरा वहाँ प्रेक्टिस ज्यादा करनी पड़ेगी जिससे पढ़ाई पर प्रभाव पड़ेगा। तीन महीनें बाद अभिनव दसवीं में आ जाएगा और फिर खेल में इतना समय देना सही नहीं होगा। हमें पढ़ाई और खेल, दोनों में से एक ही चीज़ को चुनना होगा।" विजय बोला

अजिता यह बात सुनकर चुप हो गई। उसे समझ ही नहीं आया कि परेशानी है क्या। फीस ज्यादा है या  अभिनव के पास खेलने का समय नहीं होगा। कुछ देर सोचने के बाद जब वह समझ नहीं पाई तो उसने पूछा -"पढ़ाई के साथ वह खेल क्यों नहीं सकता। क्या हम लोग दोनों चीज़ों की फीस नहीं दे सकते?"

"बात केवल फीस की नहीं है। अभिनव खेलने में अच्छा है और उसके क्रिकेट कोच कह रहे थे कि अगर इसी तरह से वह खेलता रहा तो जल्द ही वह राज्य स्तरीय मैच में खेल सकेगा। फिर उसे पढ़ने का समय नहीं मिल पाएगा। पढ़ेगा नहीं तो करेगा क्या?" विजय की चिंता से परेशानी बढ़ती ही जा रही थी।

"हाँ, लेकिन सुनन्दा के बच्चे तो कोचिंग ले रहे हैं, फिर अभिनव के लिए आप परेशान क्यों हो रहे हैं?"

सुनन्दा के घर में बिजनेस होता है। उनके बच्चे अगर पढ़ाई में ज्यादा कुछ नहीं भी कर पाए तो अपने पिताजी के बिजनेस में आ सकते हैं। लेकिन अभिनव अगर खेल में अच्छा करियर नहीं बना पाया और पढ़ाई भी नहीं की, तो वह क्या करेगा। हमारा कोई बिजनेस तो है नहीं।"

"हाँ, मैंने तो यह सोचा नहीं।" परिणाम की कल्पना करके अजिता का मन डर गया।

"फिर क्या करना होगा?" अजिता ने पूछा।

“हमें पढ़ाई या खेल दोनों में से एक चुनना होगा और वह भी अभिनव की मर्जी से, नहीं तो वह सोच सकता है कि हमने फीस न देने की वजह से यह कहा।”

“उसको समझाएँगे तो वह समझ जाएगा।” अजिता बोली

“हाँ समझना तो पड़ेगा लेकिन इसके लिए अजय को बुलाकर उसकी राय ले लेते हैं।”

“हाँ, यह ठीक रहेगा।”