देवराज चौहान वहाँ से सीधा राठी के घर पहुँचा ।

तब राठी कहीं जाने की तैयारी में था कि उसे देखकर ठिठक गया ।

“तुम्हारी मूँछें कहाँ गईं ?” राठी की निगाह उसके चेहरे पर थी ।

“उतार दीं ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, “मुझे कपड़े दो पहनने को । ये वर्दी उतारनी है ।”

उलझन में फंसे राठी ने बेडरूम में ले जाकर कपड़े दिए ।

देवराज चौहान ने वर्दी उतारी और राठी की दी पैंट-कमीज पहनने लगा ।

“मेरा आदमी... ।” राठी ने कहना चाहा ।

“भूपेंद्र कालिया जेल में है । अब तक वह फँस चुका होगा या फँस जायेगा ।” देवराज चौहान बोला ।

“इसका मतलब तुम्हें जिसे जेल से निकालना था, निकाल दिया ?”

“हाँ, मेरा काम हो चुका है ।” देवराज चौहान ने कहा, “ये वर्दी यहाँ से दस किलोमीटर दूर फेंक देना ।”

राठी ने वर्दी को देखा, फिर उसे देखकर कहा ।

“तुम पुलिस वाले हो ?”

“नहीं !”

“क्या कर रहे हो तुम, बताओगे ।”

देवराज चौहान वर्दी में फँसा रखी नोटों की गड्डियाँ निकालता कह उठा ।

“नहीं बता सकता ।”

“तुम्हारा नाम ?”

“वह जानने की जरूरत नहीं ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव की प्लेट छाती में लगाये, तुमने जेल से किसी को फरार करवा दिया है ।”

“हाँ !”

“इस तरह तो इंस्पेक्टर सूरजभान यादव फँसेगा ।”

“उसे कुछ नहीं होगा । सबने मेरा चेहरा देखा है । वह समझ जायेंगे कि मैं नकली था ।”

“सूरजभान ने आखिर तुम्हें ऐसा करने की इजाजत कैसे दे दी ?”

“उसने मुझे हर काम करने की छूट दे रखी है ।”

“तुमने बताया कि वह घायल है ।”

“हाँ !”

“कैसे घायल हुआ वह और तुम जो कर रहे हो, क्या उसका सम्बन्ध उसके घायल होने से है ?”

“हाँ !”

“मुझे नहीं बताओगे कि ये मामला क्या है ।”

“नहीं । ये नाजुक और खतरनाक मामला है ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“तुम मुझे सब कुछ बताओ तो तुम्हारे काम में मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूँ ।”

“अभी तो सब ठीक चल रहा है, जब मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत पड़ेगी तो जरूर बताऊँगा । मुझे एक लैपटॉप की जरूरत है ।”

“लैपटॉप ?”

“न हो तो कम्प्यूटर से भी काम चल जायेगा ।” देवराज चौहान ने कहा, “मैंने किसी को रिवॉल्वर दी है । उस रिवॉल्वर पर नन्ही सी माइक्रो चिप लगी है । माइक्रो चिप का कोड मैं जब लैपटॉप सिस्टम में डालूँगा तो लैपटॉप की स्क्रीन पर मुझे उस इंसान की लोकेशन पता चलनी शुरू हो जायेगी, जिसे मैंने रिवॉल्वर दी थी ।”

“तुम्हें लैपटॉप मिल जायेगा ।” राठी बहुत गम्भीर स्वर में बोला,/”तुम पुलिस वाले नहीं हो ?”

“नहीं !”

“तो फिर ये सब काम कैसे कर रहे हो, जो... ।”

“मुझे सब आता है ।”

“अपने बारे में मुझसे क्यों छिपा रहे हो ?”

“बताने की जरूरत नहीं समझता । मुझे लैपटॉप दो, मुझे अपना काम शुरू करना है ।”

“तुम अब यहीं रुकोगे ?”

“ज्यादा नहीं, एक-दो दिन ।”

“मैं सूरजभान की खातिर तुम्हारे काम आ रहा हूँ । तुम इसी कमरे में रहना । खामखाह बाहर मत निकलना । क्योंकि तुम कानून के साथ खेल रहे हो । पुलिस ने तुम्हें यहाँ से पकड़ा तो मैं भी फँस जाऊँगा ।”

“शुक्रिया !”

“मैं नौकर से कह जाऊँगा । वह तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखेगा ।” कहकर राठी बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कमरे की खिड़की खोल ली ।

दस मिनट बाद एक आदमी भीतर आया । वह लैपटॉप ले आया था ।

देवराज चौहान ने उससे लैपटॉप ले लिया ।

वह आदमी बेड पर पड़ी वर्दी उठाने लगा तो देवराज चौहान ने पूछा- “इसे कहाँ फेंकोगे ?”

“राठी साहब ने कहा है कि यहाँ से दस किलोमीटर दूर कहीं भी फेंक दूँ ।” वह बोला ।

देवराज चौहान के सिर हिलाने पर वह बाहर निकल गया । देवराज चौहान ने लैपटॉप को ऑन किया और उसमें व्यस्त हो गया ।

तभी एक नौकर भीतर आकर बोला ।

“आप कुछ लेना पसन्द करेंगे ?”

“खाने में क्या है ?” लैपटॉप में व्यस्त देवराज चौहान ने कहा ।

“लंच भी है, वह... ।”

“लंच नहीं, सैंडविच और कॉफी मिल जायेगी ?”

“यहाँ हर चीज मिलेगी साहब जी । आप अपनी जरूरत कह दीजिये ।” नौकर मुस्कुराकर बोला ।

“सैंडविच, कॉफी ला दो ।”

नौकर चला गया ।

देवराज चौहान लैपटॉप में ही व्यस्त रहा ।

पन्द्रह मिनट में सैंडविच और कॉफी नौकर दे गया ।

देवराज चौहान सैंडविच खाने और कॉफी पीने के दौरान भी लैपटॉप के बटनों से खेलता रहा ।

करीब आधा घण्टा देवराज चौहान व्यस्त रहा फिर स्क्रीन पर जम्मू-कश्मीर का नक्शा नजर आने लगा । देवराज चौहान की उँगलियाँ लैपटॉप के बटनों से खेलती रहीं ।

दस मिनट बाद ही लैपटॉप की स्क्रीन पर नजर आते नक्शे पर एक चमकीला चिन्ह नजर आने लगा । वह माइक्रो चिप के होने का संकेत था । वह माइक्रो चिपउस रिवॉल्वर के हत्थे पर चिपकी हुई थी जो जब्बार मलिक को दी गयी थी । माइक्रो चिप इतनी छोटी थी कि आसानी से उसे देख पाना आसान नहीं था । अब लैपटॉप का सम्बन्ध माइक्रो चिप से जुड़ चुका था । जब्बार मलिक जहाँ-जहाँ जायेगा, रिवॉल्वर उसके साथ होगी और जिस इलाके में वह पहुँचेगा, चमकीले बिंदु को उसी इलाके पर स्थिर हो जाना था ।

इस सारे काम में सबसे अहम बात थी कि जब्बार मलिक कहाँ-कहाँ जा रहा है । इस तरह जब्बार मलिक पर नजर रखी जा सकती थी कि उसके लिंक कहाँ-कहाँ पर हैं । इसके साथ ही देवराज चौहान के मष्तिष्क में अब आगे की योजना तैयार हो रही थी ।

उसने नौकर को बुलाकर एक और कॉफी लाने को कहा । उसी पल उसका मोबाइल बजने लगा । जबकि ये मोबाइल इंस्पेक्टर सूरजभान यादव का ही था । 

“हैलो !” देवराज चौहान ने फोन पर बात की ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” ये आवाज बड़ा खान की थी ।

“कहो बड़ा खान !” देवराज चौहान के चेहरे पर कुटिलता-भरी मुस्कान उभरी ।

“तुमने जब्बार मलिक को जेल से फरार करवा दिया ।” बड़ा खान की कानों में पड़ने वाली आवाज में गंभीरता थी ।

“कैसे जाना ?”

“जेल में जब्बार मलिक की फरारी को लेकर हंगामा मचा हुआ है । वहाँ मौजूद मेरे आदमियों ने बताया ।”

“तुम्हें तो खुशी हो रही होगी कि जब्बार मलिक जेल से बाहर आ गया ।”

कुछ खामोशी के बाद बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“खुशी तब होती, अगर तुमने मेरे से कीमत लेकर उसे फरार करवाया होता ।”

“मैंने जब्बार को समझौते के तहत फरार करवाया है । उसने मुझे तुम्हारे बारे में सब बता दिया है । पुलिस आर्टिस्ट से तुम्हारे चेहरे का स्कैच भी उसने बनवाया । अब तुम... ।”

“झूठ बोल रहे हो तुम ।”

“वह कैसे ?”

“ऐसा कुछ हुआ होता तो मुझे खबर मिल जाती । तुम सिर्फ जब्बार से बातें करते रहे कुर्सियों पर बैठकर । स्कैच नहीं बनवाया ।”

“चलो मान लिया कि नहीं बनवाया ।” देवराज चौहान फोन पर मुस्कुरा उठा ।

“मुझसे झूठ बोलकर तुम मुझे परेशान करना चाहते हो इंस्पेक्टर ।”

“ऐसा ही समझ लो ।”

“लेकिन तुम्हारी इस बात पर मुझे विश्वास हो गया कि जब्बार ने तुम्हें मेरे बारे में बताया है । न बताया होता तो तुम उसे जेल से फरार न करवाते । परन्तु एक बात मुझे समझ नहीं आई ।”

“क्या ?”

“आखिर तुम उसे जेल से फरार कैसे करवा सकते हो । तुम पुलिस वाले हो । तुम्हारा कानून अब तुम्हें नहीं छोड़ेगा ।”

देवराज चौहान हँस पड़ा ।

“इसमें हँसने की क्या बात है ?”

“ये मेरी सिरदर्दी है, मैं इसे संभाल लूँगा ।”

“मैं तुम्हें ठीक से समझ नहीं पा रहा हूँ इंस्पेक्टर ।”

“जब तक मैं तुम्हें समझाना न चाहूँ तुम कुछ भी नहीं कह सकते । तुम्हें अपने बारे में चिंता करनी चाहिए ।”

बड़ा खान की आवाज नहीं आई ।

“मेरे आदमी और मैं तुम्हें कभी भी शूट कर सकते... ।”

“मैं सुरक्षित हूँ । तुम लोग मुझ तक नहीं पहुँच सकते । इस बात का डर मुझे मत दिखाओ । परन्तु तुम चाहो तो अभी भी मेरे से पैसा काम सकते हो । मुझे ये बताओ कि जब्बार ने तुम्हें क्या बताया और पैसा लो ।”

“मैं रिश्वत नहीं लेता ।”

“कुछ तो बात है इंस्पेक्टर ।”

“क्या बात ?”

“तुमने करोड़ों रुपया नहीं लिया और जब्बार को यूँ ही जेल से निकाल दिया । कुछ तो बात है ।”

“सोचते रहो । इसका जवाब मैं तुम्हें मिलने पर दूँगा ।”

“मिलने पर ?”

“मैं बहुत जल्दी तुम तक पहुँचने वाला हूँ ।”

“ये बकवास करनी अब बन्द भी करो । ऐसी झूठी बातों से तुम मेरा दिमाग खराब नहीं कर सकते ।”

“इस बात का जवाब तुम्हें वक्त देगा ।”

“जब्बार कहाँ है ?”

देवराज चौहान की निगाह लैपटॉप की स्क्रीन पर दिखाई दे रहे नक्शे पर चमकते बिंदु पर गई ।

“वह अभी तुम तक पहुँचा नहीं ।”

बड़ा खान की आवाज नहीं आई ।

“वह जल्दी तुमसे मिल लेगा ।” देवराज चौहान ने हँसकर कहा ।

“तुम्हारे आदमी उस पर नजर रख रहे होंगे ।”

“बिल्कुल नहीं !”

“तुम जब्बार के दम पर मुझ तक पहुँचना चाहते हो ।”

“नहीं ! कोई भी उसका पीछा नहीं कर रहा ।”

“तो क्या जब्बार मेरे बारे में तुम्हें खबर देकर मुझे फँसा देगा । जेल से आजादी की कीमत वह इस तरह चुकाएगा ?”

“ऐसा भी नहीं है ।”

“इंस्पेक्टर !”

“कहो, सुन रहा हूँ ।”

“अब जब्बार मलिक मेरे काम का नहीं रहा । मेरे काम का तब होता, जब तुमने मेरे से पैसा लेकर उसे जेल से निकाला होता । उसके और तुम्हारे बीच कोई समझौता हुआ है, जो कि जाहिर है, मेरे खिलाफ ही होगा ।”

“समझौते में बारे में मैं तुम्हें नहीं बता सकता ।”

“जानता हूँ तुम नहीं बताओगे । तुम कोई जबरदस्त खेल खेल रहे हो मेरे खिलाफ । मैं उस खेल को समझ नहीं पा रहा हूँ । परन्तु जब्बार मलिक अब मेरे काम का नहीं रहा । क्योंकि वह मेरे खिलाफ तुम्हारे सामने मुँह खोल चुका है ।”

देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान नाच उठी ।

“तुम्हारी बातों में आकर जब्बार मलिक मेरे लिए खतरा बन सकता है । तुमने उसे यूँ ही जेल से नहीं निकाला होगा ।”

देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान छाई रही । तभी नौकर आया और कॉफी रखकर चला गया ।

“बड़ा खान !” देवराज चौहान ने कहा, “ये अब तुम्हारा और जब्बार का मामला है । मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि तुम दोनों अब आपस में कैसे रिश्ते रखते हो । इतना याद रखो कि मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं ।”

उधर से बड़ा खान ने फोन बन्द कर दिया था ।

देवराज चौहान ने मोबाइल बेड पर रखा और कॉफी का प्याला उठाकर घूँट भरा ।

उसी पल मोबाइल पुनः बज उठा ।

“हैलो । !” देवराज चौहान ने मोबाइल पर बात की ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान !” ए.सी.पी. संजय कौल की हड़बड़ाई आवाज कानों में पड़ी, “ये तुमने क्या किया । जब्बार को जेल से क्यों निकाला । तुम दोनों कहाँ हो । जानते हो कि तुमने कितना गलत काम किया है जब्बार को जेल से भगाकर ?”

देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता आ गई ।

“तुम सुन रहे हो मेरी बात ?”

“हाँ, कमिश्नर साहब, सुन रहा... ।”

“कमिश्नर साहब ? क्या तुम बात करना भी भूल गए । तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अपने को और जब्बार को मेरे हवाले कर दो । मैं दिल्ली फोन करके तुम्हारी रिपोर्ट देने जा रहा हूँ कि तुमने क्या कर दिया है ।”

“मैं इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हूँ कमिश्नर ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

“क्या ?” कमिश्नर कौल की तेज आवाज कानों में पड़ी, “तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं हो । तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी इस बात पर भरोसा कर लूँ ? अपने को और जब्बार को कानून के हवाले कर... ।”

“मैं सच में सूरजभान यादव नहीं हूँ । पुलिस वाला नहीं हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा, “दिल्ली से आप इंस्पेक्टर सूरजभान की तस्वीर मंगाकर, मेरी कही बात का सच-झूठ पता लगा सकते हो ।”

“हे भगवान, क्या तुम सच में सूरजभान नहीं हो ?”

“नहीं !”

“तो तुम पुलिस की वर्दी पहनकर, सूरजभान के नाम पर हमें धोखा देते रहे ?”

“ये बात ठीक कही । मेरे पास जो मोबाइल फोन है, वह अवश्य सूरजभान यादव का है ।”

“तुम… तुम जब्बार को जेल से फरार करवाने आये थे ?”

देवराज चौहान खामोश रहा ।

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव कहाँ है ?”

“मेरे पास ।”

“तो तुमने उसका अपहरण कर लिया और खुद सूरजभान यादव बनकर जम्मू आ गए ।”

देवराज चौहान चुप रहा ।

“तुम हो कौन ? बड़ा खान के आदमी हो ?”

“नहीं !”

“तो फिर कौन हो ?”

“ये मैं नहीं बता सकता परन्तु एक बात जरूर कहूँगा कि खाकी पहनकर मैंने खाकी से गद्दारी नहीं की और... ।”

“बकवास मत करो । तुम बच नहीं सकते ।” कमिश्नर कौल की गुस्से भरी आवाज कानों में पड़ी, “तुमने जब्बार मलिक जैसे खूंखार आतंकवादी को जेल से फरार करवा दिया और कहते हो कि खाकी से गद्दारी नहीं की । तुम तो... ।”

“मेरी बात आपकी समझ में नहीं आएगी । सच बात मैं आपको बताना भी नहीं चाहता ।”

“सच ये है कि तुमने जब्बार मलिक को जेल से फरार करवा दिया ।”

“ये सच है ।”

“क्या तुम पुलिस वाले हो ?”

“नहीं !”

“जब्बार के साथ खुद को पुलिस के हवाले कर... ।”

“जब्बार मेरे पास नहीं है । वह जा चुका... ।”

“कहाँ ?”

“मैं नहीं जानता वह कहाँ है, परन्तु मेरे लिए इस वक्त वह फालतू कबूतर की तरह है । वह जहाँ भी उड़ान भरे, परन्तु बाद में वह मेरे पास ही आएगा । मैंने उसे ऐसे चक्रव्यूह में फँसा दिया है कि... ।”

“मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा कि तुम कहना क्या चाहते हो ?”

“एक खास वक्त के बाद आप सब कुछ समझ... ।”

“तुम जो कोई भी हो अपने को कानून के हवाले कर दो ।” कमिश्नर कौल ने कठोर स्वर में कहा, “तुम किसी भी हाल में बच नहीं सकते । पूरे जम्मू में पुलिस का जाल बिछ चुका है । तुम जम्मू से बाहर नहीं जा सकते । जल्दी पकड़े जाओगे ।”

देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया । उसके चेहरे पर गंभीरता थी ।

फोन दोबारा बजने लगा । देवराज चौहान ने स्क्रीन पर आया नम्बर देखा । कमिश्नर का ही फोन था । देवराज चौहान ने कॉल रिसीव नहीं की ।

कमिश्नर कौल को बताने के लिये उसके पास कुछ नहीं था ।

देवराज चौहान की निगाह स्क्रीन पर मौजूद जम्मू के नक्शे के बीच चमकते बिंदु पर बार-बार जा रही थी । वह बिंदु नहीं, जब्बार मलिक की वहाँ पर मौजूदगी का एहसास था । नक्शा बता रहा था कि जब्बार इस वक्त खबर नामक इलाके में मौजूद है । देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी । उसने सिगरेट सुलगा ली थी । उसे कुछ दिन पहले की दिल्ली की बातें याद आई । वह जगमोहन के साथ होटल में ठहरा हुआ था । मुम्बई से दिल्ली आये उन्हें दस दिन हो चुके थे और जिस काम के लिए वे आये थे, वह काम पूरा हो चुका था । वापसी प्लेन की अपेक्षा, उन्होंने ट्रेन से करने का मन बनाया था । ट्रेन रात की थी । अभी सुबह के ग्यारह बजे थे ।

जगमोहन के कनॉट प्लेस में शॉपिंग का मन बनाया और दोपहर को देवराज चौहान के साथ कनॉट प्लेस जा पहुँचा था । मौसम अच्छा था । अभी वे रेडीमेड कपड़ों की दुकान के बाहर ही थे कि दस कदमों के फासले पर उन्होंने एक पुलिस कार रुकती देखी । ड्राइविंग सीट पर एक ही पुलिस वाला था ।

वह इंस्पेक्टर सूरजभान यादव था । जो कि कार से निकलकर उसी रेडीमेड कपड़ों के शो-रूम की तरफ बढ़ा ।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।

“चिंता मत करो । इस पुलिस वाले का हमसे कोई मतलब नहीं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“मैं कहाँ चिंता कर रहा हूँ ।” जगमोहन मुस्कुराया ।

तभी दो काम एक साथ हुए ।

पहला तो ये कि सूरजभान यादव उनके पास से निकला ।

दूसरा, उसी वक्त तेज धमाके के साथ सामने खड़ी पुलिस कार उड़ गई । आग के जलते टुकड़े आसपास से गुजरते लोगों पर गिरे । दो लोग उस धमाके की चपेट में आ गए और उनके शरीर के चीथड़े उड़ गए । सूरजभान यादव जगमोहन से टकराया और लड़खड़ा कर नीचे जा गिरा । फिर संभला ।

वहाँ चीख-पुकार मच गई थी । देवराज चौहान और जगमोहन स्तब्ध रह गए थे । इस तरह धमाके से कार उड़ती देखकर ।

इंस्पेक्टर सूरजभान यादव खड़ा हो चुका था और हड़बड़ाया सा लग रहा था । वह जलती कार को देख रहा था । उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी पुलिस कार बम धमाके से उड़ गई है । उसे मारने की चेष्टा की गई है ।

अभी कोई कुछ ठीक से समझा भी नहीं था कि तभी देवराज चौहान की निगाह दो आदमियों पर पड़ी जो कि जेबों में हाथ डाले, इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को देखते उसकी तरफ बढ़ रहे थे ।

देवराज चौहान समझ गया कि उनके हाथ रिवाल्वरों पर हैं ।

वे इस पुलिस वाले को मारने का इरादा रखते हैं । इन्होंने ही उसकी कार में बम लगाया होगा । देवराज चौहान इस वक्त रिवॉल्वर नहीं निकालना चाहता था । लोगों की भीड़ थी । गोलियाँ चलीं तो किसी को भी लग सकती थी । देवराज चौहान पास खड़े सूरजभान यादव की बाँह पकड़कर कह उठा- “वह तुम्हें मारने आ रहे हैं ।”

सूरजभान यादव ने चौंककर उधर देखा । पास आ चुके दोनों बदमाश भी समझ गए कि इंस्पेक्टर ने उन्हें देख लिया है ।

जगमोहन की निगाह भी तब तक दोनों पर टिक चुकी थी ।

तभी जगमोहन ने उनमें से एक पर छलांग लगा दी ।

“तुम भाग जाओ इंस्पेक्टर !” कहने के साथ ही देवराज चौहान दूसरे व्यक्ति पर झपट पड़ा ।

परन्तु इंस्पेक्टर यादव भागा नहीं और दाँत भींचकर रिवॉल्वर निकाल ली ।

उस आदमी ने बाँह आगे करके, अपने पर झपटते देवराज चौहान को अपनी बगल की तरफ धक्का दिया और सूरजभान पर गोली चला दी । जो कि सूरजभान के पेट में लगी ।

उसी पल सूरजभान की रिवॉल्वर से भी गोली निकली, परन्तु निशाना चूक गया । जगमोहन दूसरे आदमी से भिड़ा हुआ था ।

चीख-पुकार, शोर मचा हुआ था ।

सामने ही सड़क पर कार जल रही थी । देवराज चौहान संभलकर पुनः उस आदमी पर झपटा जो दोबारा सूरजभान पर फायर करने जा रहा था ।

सूरजभान ने पेट पकड़ रखा था । चेहरे पर पीड़ा थी । दूसरे हाथ में रिवॉल्वर थी ।

आसपास ज्यादा भीड़ होने के कारण सूरजभान गोली चलाने में हिचक रहा था । तभी उसने देवराज चौहान को रिवॉल्वर वाले से उलझते देखा ।

उसने देवराज चौहान को एक तरफ गिराकर तीन-चार गोलियाँ सूरजभान पर चला दी ।

एक गोली सूरजभान के कन्धे पर लगी और दूसरी उसकी छाती पर । तीसरी कमर में घुसकर, पीछे से निकल गई । चौथी खाली गई और भीड़ में एक औरत को जा लगी ।

हर तरफ दहशत का माहौल बन गया था । लोग दूर भागने लगे । जबकि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नीचे जा गिरा ।

तभी वह बदमाश जिसने सूरजभान पर गोलियाँ चलाई थीं, वह भाग खड़ा हुआ । देवराज चौहान उसके पीछे न गया और सूरजभान यादव के पास पहुँचा ।

“तुम्हें... तुम्हें तो कई गोलियाँ लगीं... ।” देवराज चौहान ने कहना चाहा ।

“मुझे यहाँ से ले चलो ।” सूरजभान ने डूबते स्वर में कहा ।

“मैं तुम्हें अस्पताल... ।”

“नहीं ! वहाँ मत ले जाना ।” सूरजभान का स्वर धीमा पड़ता जा रहा था, “बड़ा खान मुझे मार देगा ।”

“बड़ा खान, ये कौन है ?”

“वह मेरे परिवार तक भी पहुँचेगा । मेरे बीवी-बच्चों को बचा लो ।”

“वह कहाँ हैं ?” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर पूछा ।

सूरजभान ने अपने घर का पता बताया और बेसुध हो गया ।

जगमोहन दूसरे व्यक्ति को पकड़ रखने की चेष्टा कर रहा था जबकि वह भाग जाना चाहता था ।

“उसे जाने दो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

जगमोहन ने उसे भाग जाने दिया और पास आ पहुँचा ।

“तुमने इसे छोड़ देने को क्यों कहा ?”

“इसकी हालत ठीक नहीं है । कई गोलियाँ लगी हैं इसे । ये मामला उतना नहीं है जितना कि नजर आ रहा है । इस पुलिस वाले के परिवार वालों को भी बचाना है ।”’ देवराज चौहान ने घायल सूरजभान को उठाया, उसे कन्धे पर लादा और आगे बढ़ गया ।

“इसे अस्पताल में... ।”

“इसने बेहोश होने से पहले अस्पताल में ले जाने से मना कर दिया था । इसे किसी बड़ा खान से खतरा है । वे दोनों बड़ा खान के ही आदमी थे । उस कार की तरफ चलो ।” बेहोश सूरजभान को कन्धे पर लादे देवराज चौहान सड़क किनारे खड़ी कार के पास पहुँचा । कार में चाबियाँ लटक रही थीं । कार का मालिक शायद बाहर निकलकर देख रहा होगा कि यहाँ क्या हो रहा है ।

जगमोहन ने स्टेयरिंग सीट संभाली और कार स्टार्ट की ।

देवराज चौहान ने सूरजभान को पीछे वाली सीट पर लिटाया और दरवाजा बन्द करके खुद पास ही बैठ गया ।

तभी जगमोहन ने एक आदमी को दौड़कर कार के पास आते देखा । जगमोहन समझ गया कि वह ही इस कार का मालिक होगा । जगमोहन ने तुरन्त कार आगे बढ़ा दी ।

“जाना कहाँ है ? ये घायल है और.... ।”

“तुम्हारे पास पार सनाथ का नम्बर है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“हाँ । मेरे फोन में है ।” जगमोहन ने फौरन जेब में हाथ डालकर मोबाइल निकाला, “क्या कहूँ उससे ?”

“इसे रखने के लिये हमें किसी जगह की जरूरत है और पारस नाथ से डॉक्टर की बात करो ।”

जगमोहन नम्बर मिलाकर पारस नाथ से बात करने लगा ।

☐☐☐

रात हो गई थी । उनका मुम्बई जाना रह गया ।

जगमोहन के फोन करते ही पारस नाथ ने एक बंगले का पता बताकर वहाँ पहुँचने को कहा था । जब वे वहाँ पहुँचे तो डिसूजा तब तक वहाँ पहुँच चुका था । उन्होंने घायल बेहोश इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को भीतर ले जाकर बेड पर डाला । उसकी साँसों की रफ्तार में धीमापन आ चुका था । दस मिनट बाद ही पारस नाथ वहाँ पहुँचा । उसके साथ डॉक्टर और उसका सहायक था ।

डॉक्टर उसी वक्त काम पर लग गया । एक घण्टे में शरीर से सारी गोलियाँ निकालकर बैंडिज कर दी गई थी । डॉक्टर ने बताया कि कोई भी गोली घातक जगह नहीं लगी है । फिर भी होश आने तक तो खतरा है ही । दो इंजेक्शन लगाकर, रात को आने को कहकर डॉक्टर गया तो देवराज चौहान ने पारस नाथ से कहा-

“बेहोश होने से पहले इसने कहा कि इसकी पत्नी और बच्चे को भी खतरा है ।”

“कहाँ हैं वह ?”

देवराज चौहान ने पता बताया तो डिसूजा कह उठा- “मैं उन्हें वहाँ से हटा देता हूँ ।” डिसूजा चला गया ।

“ये बताया कि किससे खतरा है ?”

“बड़ा खान जैसा नाम ले रहा था ये ।”

“बड़ा खान ?” पारस नाथ बोला, “जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठन है इसका ।”

“मैंने कभी ये नाम नहीं सुना ।” देवराज चौहान ने कहा, “तुम्हारा शुक्रिया कि तुमने बंगला और डॉक्टर... ।”

“रहने दो, ये बातें मत करो ।” पारस नाथ कह उठा, “मैं तो ये सोच रहा हूँ कि इसने अस्पताल जाने से क्यों मना किया । ये क्यों नहीं कहा कि पुलिस डिपार्टमेंट को खबर कर दें ।”

“बड़ा खान का खतरा होगा ।” देवराज चौहान बोला ।

“वह तो जम्मू-कश्मीर में... ।”

“उसकी पहुँच दिल्ली तक भी हो सकती है । कोई बात तो होगी ।”

“अब इसके पास किसी के रहने का इंतजाम... ।” पारस नाथ ने कहना चाहा ।

“मैं और जगमोहन इसके पास रहेंगे । हम फुर्सत में हैं ।” देवराज चौहान बोला ।

“ठीक है । डिसूजा इसके परिवार वालों को भी ले आएगा ।”

“अगर वह अब तक सलामत हुए तो ।”

जगमोहन बेहोश सूरजभान के पास बैठा था । पारस नाथ फिर आने को कहकर चला गया ।

रात नौ बजे डॉक्टर आया और सूरजभान को इंजेक्शन लगा गया । डिसूजा सूरजभान की पत्नी और बच्चों को ले आया था ।

उसकी पत्नी चिंतित और बहुत घबराई हुई थी । उसे समझाकर लाने में, डिसूजा को वक्त लग गया था । दो बच्चे थे जो कि अपने पापा की हालत देखकर रो रहे थे । देवराज चौहान ने सूरजभान की पत्नी सुधा को बताया कि सूरजभान ने ही बेहोश होने से पहले उन्हें बुलाने को कहा था । सुधा अपने पति के पास उसकी देखरेख के लिए बैठ गई । जगमोहन बच्चों को लेकर दूसरे कमरे में चला गया ।

रात ग्यारह बजे इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को होश आ गया ।

सुधा दूसरे कमरे से देवराज चौहान को बुला लाई ।

सूरजभान की हालत ज्यादा बेहतर नहीं थी । लेकिन अपनी पत्नी को पास में देखकर वह खुश हुआ था । उसने आभार भरी नजरों से देवराज चौहान को देखा तो देवराज चौहान मुस्कुरा दिया ।

सूरजभान ने बच्चों को देखने की इच्छा जताई । देवराज चौहान ने बताया कि वह सो गए हैं । उन्हें उठाना ठीक नहीं ।

“तुम्हारी मेहरबानी ।” सूरजभान क्षीण स्वर में बोला, “तुमने मुझे बचा लिया ।”

“पुलिस डिपार्टमेंट तुम्हें ढूंढ रहा होगा । तुम्हारी पुलिस कार में विस्फोट हुआ था ।” देवराज चौहान ने कहा ।

कुछ लम्बे पलों तक आँखें बन्द रखने के बाद सूरजभान ने आँखें खोलकर कहा ।

“शायद कोई नहीं जानता कि मैं उस कार में था । वह कार मुझे एक चौराहे पर खड़ी मिली थी । परन्तु पास में कोई पुलिस वाला नहीं था और चाबियाँ उसमें लगी थीं । लापरवाही का सबक सिखाने के लिए मैं वह कार लेकर चल पड़ा कि कुछ देर वह परेशान होंगे और उन्हें एहसास होगा कि इस तरह कार में चाबी लगी नहीं छोड़नी चाहिए । रात मैं जम्मू जा रहा था । बाजार से कुछ चीजें खरीदनी थीं । दो-तीन जगह मैं रुका और उसी दौरान बड़ा खान के आदमियों ने कार में बम लगा दिया होगा । परन्तु मैं किस्मत से बच निकला । वह पीछे होंगे और मुझे बम विस्फोट में बचते पाकर वह मेरी जान लेने के लिए मुझ पर गोलियाँ चलाने लगे । परन्तु तुम और तुम्हारा साथी बीच में आ गए ।”

“बड़ा खान जम्मू-कश्मीर का आतंकवादी तो नहीं ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“हाँ, वही ! सूरजभान ने आँखें बन्द करके कमजोर स्वर में कहा, “अभी मुझे आराम करने दो । मैं थकान और कमजोरी महसूस कर रहा हूँ । नींद आ रही है ।”

☐☐☐

सुबह आठ बजे इंस्पेक्टर सूरजभान यादव की आँख खुली ।

सुधा रात भर उसके पास बैठी रही । कभी जागी तो कभी सोई । रात दो बार जगमोहन ने आकर कहा था कि आराम कर लें । परन्तु सुधा नहीं मानी थी । अब सुधा की आँखें भारी हो रहीं थीं । चेहरा ढीला लग रहा था । अपने पति को बेहतर पाकर वह खुश थी ।

सूरजभान पहले से ठीक था । यूँ वह हिलने की स्थिति में नहीं था । चार गोलियाँ लगीं थीं उसे । परन्तु अब वह कुछ देर बात करते रहने के काबिल था ।

“फिक्र मत करो सुधा ।” सूरजभान कमजोर स्वर में बोला, “अब मैं ठीक हूँ ।”

सुधा की आँखों से आँसू बह निकले ।

“वे कहाँ हैं, जिन्होंने मुझे बचाया है ।” सूरजभान ने पूछा ।

“साथ वाले कमरे में हैं ।”

“उन्हें बुलाओ । वे दोनों सच में अच्छे इंसान हैं । उन्होंने मुझे बचाया, वरना मैं जिन्दा नहीं रहता ।”

सुधा देवराज चौहान को बुला लाई ।

जगमोहन किचन में कॉफी तैयार कर रहा था ।

“अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो ?” देवराज चौहान पास पड़ी कुर्सी पर बैठता कह उठा ।

“पहले से ठीक हूँ । मुझे कितनी गोलियाँ लगीं ?”

“चार । खुशी है कि कोई गोली घातक जगह नहीं लगी । तुम्हें कम से कम 15 दिन आराम करना होगा ।”

“तुमने मुझे बचा लिया ।”

“इत्तफाक से ।” देवराज चौहान बोला, “ तब मैं और मेरा साथी वहाँ थे ।”

“मेरी पत्नी और बच्चों को यहाँ लाकर, इन्हें भी बचा लिया । वरना बड़ा खान इन्हें मार देता ।”

“बड़ा खान के बारे में मुझे बताओ ।”

“ये कश्मीर में आतंकवादी संगठन का मालिक है और खतरनाक है । इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है पुलिस के पास । दो साल पहले ये अचानक ही सामने आया और आतंकवाद की दुनिया में छा गया ।”

“यह तुम्हारे पीछे क्यों पड़ा है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

कुछ देर चुप रहकर सूरजभान यादव मध्यम स्वर में बोला ।

“बड़ा खान का एक करीबी साथी छः महीने पहले जम्मू पुलिस के हाथ लग गया था । जब्बार मलिक नाम है उसका । परन्तु छः महीने बीत जाने पर भी वह मुँह नहीं खोल रहा । बड़ा खान के बारे में नहीं बता रहा । पुलिस वालों ने हर तरह से कोशिश कर ली । इसी बीच बड़ा खान ने जम्मू पुलिस को धमकी दी कि वह जब्बार मलिक को जेल से निकाल ले जायेगा । ऐसे में जब्बार पर कड़ी सुरक्षा लगा दी गई । जब्बार दिल्ली में भी बम धमाके कर चुका है । इसलिए दिल्ली पुलिस उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहती । दिल्ली में मुझे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है । अपराधी मुझसे खौफ खाते हैं ।”

सूरजभान कुछ क्षण साँस लेने के लिए रुका ।

तभी जगमोहन कॉफी बना लाया । एक प्याला देवराज चौहान को दिया, दूसरा सुधा को और तीसरा खुद ले लिया ।

“दिल्ली पुलिस ने मुझे जम्मू जाने का आदेश देते हुए जब्बार मलिक का मामला मुझे सौंप दिया । साथ में इस बात के ऑर्डर भी थे कि बड़ा खान को ढूंढकर खत्म कर दूँ । ये सारा काम गोपनीय ढंग से हुआ । इस बात को डिपार्टमेंट की तरफ से छिपाया गया कि मुझे बड़ा खान को खत्म करने का काम सौंपा गया है । परन्तु एक घण्टा भी नहीं बीता होगा कि मेरे मोबाइल पर बड़ा खान का फोन आ गया ।”

“बड़ा खान का फोन, तुम्हारे मोबाइल पर ?” जगमोहन बोला ।

“हाँ ! उसे पता चल गया था कि जब्बार के लिए और उसके लिए मैं जम्मू जा रहा हूँ । मेरा अपराधियों में खौफ है । यहाँ मुझे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है । आज तक मैंने 32 एनकाउंटर किये हैं । ऐसे अपराधी जो देश और जनता के लिये घातक होते हैं, उन्हें मैं मार देना पसन्द करता हूँ । बड़ा खान ने मुझे स्पष्ट धमकी दी कि अगर मैंने जम्मू जाने का प्रोग्राम रद्द नहीं किया तो वह मुझे और मेरे परिवार को मार देगा । परन्तु मैंने उसकी धमकी की परवाह नहीं की । ऐसी धमकियाँ मुझे अक्सर मिलती रहती हैं । हर दो घण्टे में बड़ा खान का धमकी भरा फोन आने लगा । बीती रात मुझे जम्मू के लिए रवाना होना था । दो दिन से मुझे बड़ा खान की धमकियों भरे फोन आ रहे थे, परन्तु ये जानकर कि उसका ही फोन है, मैं फोन काट देता । इतना तो मैं समझ चुका था कि बड़ा खान के लोग पुलिस डिपार्टमेंट में मौजूद हैं, तभी तो उसे तुरन्त ये बात पता चल गई कि उसे मारने का काम मेरे हवाले करके मुझे जम्मू भेजा जा रहा है ।”

“तो इसी कारण गोलियाँ लगने के बाद तुमने अस्पताल जाने से मना कर दिया और पुलिस को खबर न देने को कहा ।”

“हाँ । मैं अस्पताल ले जाया जाता तो मौका पाकर, बड़ा खान के हाथों बिका पुलिस वाला ही मुझे बेहोशी की हालत में मार देता । इसमें कोई शक नहीं कि बड़ा खान के हाथ बहुत लम्बे हैं ।”

सूरजभान गहरी-गहरी साँसे लेने लगा ।

“तुम आराम करो, अभी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

परन्तु सूरजभान पुनः कह उठा ।

“कल मैं जम्मू जाने की तैयारी कर रहा था । कुछ चीजें खरीदने बाजार निकला था और मुझे मारने की कोशिश की गई । ऐसी कोशिश कि मैं बच न सकूँ । परन्तु तुम दोनों की मेहरबानी से मैं बच गया ।”

सूरजभान को देखते हुए दोनों कॉफी के घूँट भर रहे थे ।

सुधा उदास सी, कॉफी का प्याला थामे बैठी थी ।

कुछ चुप रहकर सूरजभान कह उठा ।

“तुम कौन हो ?”

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा । देवराज चौहान मुस्कुराया ।

“तुम आराम करो ।” देवराज चौहान बोला ।

“मुझे बताओ तुम दोनों कौन हो ? तुम लोग साधारण इंसान नहीं हो सकते । कल जो हालात थे, उन हालातों को देखते ही लोग भाग जाते हैं परन्तु तुम लोग खाली हाथों से ही हथियारबंद बदमाशों से भिड़ गए । ये हौसला आम इंसान में नहीं हो सकता । तुम में से एक ऐसा करता तो मैं सोचता कि अचानक हिम्मत आ गई होगी । परन्तु तुम दोनों ने ही तब... ।”

“हमारे बारे में जानोगे तो हमारा एनकाउंटर करने के बारे में सोचने लगोगे ।” देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा ।

सूरजभान ने देवराज चौहान को देखा । देवराज चौहान ने कॉफी का घूँट भरा ।

“गलत मत कहो । तुम लोग जो भी हो, इतने बुरे नहीं हो सकते कि मैं एनकाउंटर के बारे में सोचूँ । ऐसा होता तो तुम दोनों एक पुलिस वाले को बचाने की खातिर अपनी जान दाँव पर नहीं लगाते ।”

देवराज चौहान खामोश रहा ।

“आप आराम कीजिये ।” सुधा कह उठी ।

“बताओ ?” सूरजभान बोला, “अपने बारे में बताओ ? मेरा अनुभव कहता है कि तुम लोग बुरे नहीं हो ।”

“अभी तुम आराम करो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“नहीं ! पहले तुम मेरी बात का जवाब दो ।” सूरजभान ने जिद जैसे स्वर में कहा ।

तभी सूरजभान की वर्दी में पड़ा मोबाइल बजने लगा । फोन पैंट की जेब में था ।

“निकालो मेरा फोन ।” सूरजभान कह उठा ।

देवराज चौहान ने फोन निकाला और उसके सामने किया ।

बेड पर लेटा सूरजभान स्क्रीन पर आया नम्बर देखता रहा फिर बोला- “ये... ये शायद बड़ा खान का ही फोन है ।”

ये सुनते ही देवराज चौहान ने जाने क्या सोचकर कॉल रिसीव कर ली ।

“हैलो !” देवराज चौहान बोला ।

“कौन बोल रहा है ?” बड़ा खान की ही आवाज थी । परन्तु देवराज चौहान आवाज को पहचानता नहीं था ।

देवराज चौहान चुप रहा और फोन सूरजभान के कानों से लगा दिया ।

“कौन हो तुम ?” इस बार बड़ा खान की आवाज, सूरजभान के कानों में पड़ी ।

सूरजभान ने आँखों की सहमति से देवराज चौहान को बताया कि ये बड़ा खान ही है ।

“तुम जिससे बात करना चाहते हो, वह ही बोल रहा हूँ ।” देवराज चौहान ने फोन कान से लगाकर कहा ।

“सूरजभान यादव ?”

“हाँ !”

“तुम्हारी आवाज कुछ बदली लग रही.... ।”

“सच बात तो ये है कि मुझे जिन्दा पाकर तुम्हारे कान खराब हो गए हैं बड़ा खान, जो मेरी आवाज को भी नहीं पहचान रहे । मैं इंस्पेक्टर सूरजभान यादव एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ।” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा ।

“ओह ! तुम अभी जिन्दा हो ।”

“पूरी तरह सलामत भी हूँ ।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

“ये नहीं हो सकता । मेरे आदमी कहते हैं कि उन्होंने तुम्हें मार दिया है ।”

“फिर तो तुम मेरे भूत से बात कर रहे हो ।” देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला, “मैं जरूर मारा जाता अगर कार में लगा बम दस सेकेण्ड पहले फट जाता । लेकिन तुम्हें मारने के लिए मैं जिन्दा रहा ।”

“साले, कुत्ते तू मुझे मारेगा ! बड़ा खान को मारेगा ।” बड़ा खान की गुर्राहट भरी आवाज कानों में पड़ी ।

“एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हूँ । तुम जैसों को खत्म करना ही मेरा फर्ज है ।”

“तुम शायद बड़ा खान की हस्ती नहीं जानते जो ऐसा कह रहे हो ।”

“तुम जैसे आतंकवादी की कोई हस्ती है ही नहीं ।”

“बहुत जल्द तुम्हें पता चल जायेगा । तुमने अपने परिवार को कहाँ छिपा दिया है ?”

“तो तुम मेरे परिवार को भी खत्म करना चाहते हो ।”

“मैंने तुमसे कहा था कि जम्मू मत आओ । ये केस छोड़ दो । परन्तु मेरी धमकी को, महज शब्द मानकर उसे हवा में उड़ा दिया । फिर तुमने मेरा फोन रिसीव करना ही बन्द कर दिया । बड़ा खान तुम्हें बर्बाद कर देगा । तुम्हारे परिवार को भी जिन्दा नहीं छोड़ेगा । अभी भी वक्त है, मेरी बात मान जाओ ।”

“जम्मू न आऊँ ?” देवराज चौहान दाँत भींचकर बोला ।

“हाँ ! मेरे मामले में दखल मत दो ।”

“तुम मुझसे इतना घबरा क्यों रहे हो ?”

“मैं नहीं चाहता कि जम्मू आकर तुम मेरे लिए कोई परेशानी खड़ी करो । मैं जल्दी ही जब्बार मलिक को जेल से निकाल ले जाऊँगा और ऐसे मौके पर तुम्हें जम्मू में नहीं देखना चाहता ।”

“एनकाउंटर स्पेशलिस्ट को धमकी दे रहे हो और सोचते हो कि मैं तुम्हारी बात मान लूँगा ।”

“कल तुम बच गए परन्तु जरूरी नहीं कि दोबारा हुए हमले में तुम बच जाओ । तुम्हारा परिवार भी मरेगा । इस वर्दी की कीमत इतनी नहीं है कि तुम अपने को, अपने परिवार को मरवा डालो ।”

“तुम्हें क्या पता कि वर्दी की कीमत क्या... ।”

“ऐसे सैकड़ों वर्दी वाले, मेरे लिए काम करते हैं इंस्पेक्टर । इस वर्दी की कीमत कुछ भी नहीं है ।”

“इस वर्दी से तो अब तुम डर रहे हो ।” देवराज चौहान का लहजा कठोर था ।

“तो तुम नहीं मानोगे ?”

“अपनी खैर मनाओ बड़ा खान ! मैं जम्मू आ रहा हूँ । सिर्फ तुम्हारे लिए ।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

“तो तुम फैसला कर चुके हो कि मेरे हाथों ही मरना है तुम्हें ।” बड़ा खान का खतरनाक स्वर कानों में पड़ा ।

देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया । परन्तु चेहरे पर कठोरता नाच रही थी ।

“क्या कहता है वह हरामी ?” सूरजभान ने पूछा ।

“जम्मू न आने की धमकी दे रहा है ।”

“हरामजादा !” सूरजभान गुस्से से कह उठा, “काश, मैं घायल न होता ।”

अभी तक देवराज चौहान के दाँत भींचे हुए थे । जगमोहन की गम्भीर निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर थी ।

तभी पारस नाथ, डॉक्टर के साथ वहाँ आ पहुँचा । डॉक्टर, सूरजभान की देखभाल में इंजेक्शन लगाने में व्यस्त हो गया । मौका मिलते ही जगमोहन, देवराज चौहान को एक तरफ ले जाकर बोला-

“बड़ा खान को लेकर तुम क्यों परेशान हो रहे हो ?”

“मैंने उससे बात की है । वह सच में खतरनाक है । सूरजभान पर हुआ हमला तो तुम देख ही चुके हो ।”

“इन बातों से हमें क्या मतलब ? ये पुलिस और बड़ा खान के बीच का मामला है ।”

“वह खतरनाक आतंकवादी है ।”

“तो ?”

“ऐसे लोगों को मैंने कभी पसन्द नहीं किया ।” देवराज चौहान ने दाँत भींचकर कहा ।

“तुम आखिर कहना क्या चाहते हो ?”

“मैं बड़ा खान से दो-दो हाथ करने जम्मू जाऊँगा ।”

“ये क्या कह रहे हो ?” जगमोहन चौंका ।

“मैं जाऊँगा ।”

“ये बहुत लम्बा मामला हो जायेगा । बड़ा खान से हमारा क्या वास्ता ?”

देवराज चौहान के चेहरे पर दृढ़ता झलक रही थी ।

तभी पारस नाथ पास पहुँचा और देवराज चौहान के चेहरे के भाव देखकर बोला- “क्या हुआ ?” 

“बड़ा खान का फोन आया था सूरजभान को । देवराज चौहान ने बात की । वह धमकी दे रहा था ।” जगमोहन ने कहा, “सूरजभान तो घायल है और ये कहता है की बड़ा खान के लिए जम्मू जाएगा ।” “

“तुम्हें क्या जरूरत है ?” पारस नाथ गम्भीर स्वर में देवराज चौहान से बोला ।

“बड़ा खान से बात करके मुझे अचानक ही जरूरत महसूस होने लगी जम्मू जाने की ।” देवराज चौहान ने कड़वी मुस्कान के साथ कहा, “वह आतंकवादी है और इस पुलिस वाले के परिवार के पीछे पड़ चुका है । ये इस तरह कब तक रहेंगे । कभी तो इन्हें बाहर निकलना होगा । तब बड़ा खान इन्हें मार देगा ।”

“तुम्हें इसके परिवार की चिंता है, ये अच्छी बात है । परन्तु बड़ा खान के सामने शायद तुम टिक न सको । इस बात की तरफ भी तुम्हें सोच लेना चाहिए । ये आसान मामला नहीं है ।” पारस नाथ ने कहा ।

“मैं जानता हूँ कि बड़ा खान का सामना करना आसान नहीं होगा । लेकिन मैं उसे देख लूँगा ।” देवराज चौहान ने कहा और कमरे से बाहर निकलता चला गया ।

पारस नाथ और जगमोहन की नजरें मिलीं । वह डॉक्टर सूरजभान के साथ व्यस्त था । सुधा बेड के पास ही खड़ी थी ।

“अब देवराज चौहान नहीं मानने वाला ।” जगमोहन ने गहरी साँस ली ।

“तुम उसे समझाने की चेष्टा करना ।” पारस नाथ बोला, “कुछ ही देर में डिसूजा आएगा । वह तुम सबके लिए खाने-पीने का सामान ला रहा है । इस घायल के लिए सूप और जूस भी है ।” पारस नाथ ने सिर हिला दिया ।

“ये पुलिसवाला है । इसे और इसके परिवार को बचाना पुलिस डिपार्टमेंट का काम है ।” पारस नाथ ने कहा ।

“उसका कहना है कि पुलिस डिपार्टमेंट में ऐसे कई लोग हैं जो बड़ा खान के लिए काम करते हैं ।” जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा, “और देवराज चौहान व्यक्तिगत तौर पर आतंकवादियों को पसन्द नहीं करता । मेरे ख्याल में तो अब देवराज चौहान लाख समझाने पर भी नहीं मानेगा और बड़ा खान से टकराने जम्मू जरूर जायेगा ।”

“बड़ा खान खतरनाक है । मैंने उसके बारे में काफी कुछ सुन रखा है ।”

जगमोहन गहरी साँस लेकर रह गया ।

“कोशिश करना कि देवराज चौहान को समझाकर, जम्मू जाने से रोक सको ।” पारस नाथ ने कहा और डॉक्टर की तरफ बढ़ गया ।

कुछ देर बाद डॉक्टर और पारस नाथ चले गए ।

सूरजभान के पास सुधा बैठी थी । उनके बच्चे भी जाग गए थे और कमरे में आ गए थे । कुछ ही देर में डिसूजा सबके लिए खाने-पीने का सामान ले आ गया ।

☐☐☐

दोपहर के एक बज रहे थे ।

इस दौरान कमरे में जगमोहन ने देवराज चौहान को समझाने की चेष्टा की कि हमें बड़ा खान और पुलिस के बीच नहीं आना चाहिए । यह हमारा मामला नहीं है । परन्तु देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा कि वह जम्मू जायेगा ।

लंच के वक्त देवराज चौहान और जगमोहन, सूरजभान के पास पहुँचे । सूरजभान बेड पर पीठ के बल लेटा हुआ था । तीन दिन तक डॉक्टर ने ऐसे ही लेटे रहने को कहा था ।

“तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे ।” देवराज चौहान कुर्सी पर बैठते कह उठा ।

“डॉक्टर ने पंद्रह दिन कहा है । पूरी तरह ठीक होने में महीना लगेगा ।” सूरजभान क्षीण स्वर में बोला ।

“ये ही शुक्र है कि चार गोलियों के बाद भी तुम बच गए ।”

“तुमने अपने बारे में नहीं बताया ?” सूरजभान ने पूछा ।

“मैं देवराज चौहान हूँ । डकैती मास्टर देवराज चौहान ।” देवराज चौहान बोला ।

“ओह !” सूरजभान चौंका, “सच में ?”

“हाँ !” देवराज चौहान मुस्कुराकर बोला, “अब तुम मेरा एनकाउंटर कर देने के बारे में सोचोगे ।”

“मुझे यकीन नहीं आ रहा तुम... तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान ही हो ।” वह कह उठा ।

“मैं ही हूँ ।”

“तुम जगमोहन हो ?” सूरजभान ने जगमोहन को देखकर कहा ।

“हाँ !”

सूरजभान ने गहरी साँस ली और आँखें बन्द कर लीं ।

आधे मिनट बाद आँखें खोलीं और गम्भीर स्वर में बोला ।

“तुम जब भी मेरे सामने आते, मैं तुम्हारा एनकाउंटर नहीं करता ।”

“क्यों ?”

“क्योंकि तुम जनता और देश के लिए खतरनाक नहीं हो । तुम सिर्फ डकैतियाँ डालते हो । पैसा लूटते हो । कई बार तुम अंडरवर्ल्ड की लड़ाईयों में भी शामिल पाये गए, परन्तु तुमने उन्हीं को मारा, जो अपराधी थे । ऐसे लोगों को जो गैरकानूनी काम में शामिल थे । मैंने कभी नहीं सुना कि तुमने किसी आम इंसान को मारा हो । मैं तुम्हारा एनकाउंटर नहीं करता । अगर मौका मिलता तो तुम्हें गिरफ्तार करने की चेष्टा कर सकता था । परन्तु मेरा ध्यान एनकाउंटर करने पर ही रहता है । मैं उसी अपराधी पर हाथ डालता हूँ जिसका जिन्दा रहना अब ठीक न हो ।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।

“तुमने कई बार पुलिस की सहायता की । मैंने सुना है ऐसा कुछ ।”

“जो काम मुझे ठीक लगता है मैं वह ही करता हूँ ।” देवराज चौहान शांत स्वर में बोला, “अब भी मैं कुछ करने की सोच रहा हूँ, शायद तुम्हें मेरी बात पसन्द न आये ।”

“क्या ?”

“मैं जम्मू जाऊँगा, बड़ा खान के लिये ।”

सूरजभान चौंककर उसे देखने लगा ।

कई पलों तक उसे देखता रहा फिर होंठ भींचकर कह उठा ।

“हाँ, तुम कर सकते हो ये काम । देवराज चौहान ये काम कर सकता है ।”

“बड़ा खान माना हुआ आतंकवादी है । हम दो भला क्या कर लेंगे ?” जगमोहन बोला ।

सूरजभान ने जगमोहन को देखने के बाद देवराज चौहान को देखा ।

“खतरा तो है ही ।” देवराज चौहान ने कहा, “ये इसलिए ऐसा कह रहा है । परन्तु मेरा जाना पक्का है इंस्पेक्टर !”

जगमोहन गहरी साँस लेकर रह गया ।

“इस काम में तुम्हें कहीं पैसा नहीं मिलेगा देवराज चौहान ।” सूरजभान बोला ।

“मैं पैसे के लिए ये काम नहीं कर रहा । अपने मन की शांति के लिए कर रहा हूँ । आतंकवाद को मैंने कभी पसन्द नहीं किया । क्योंकि इसमें मासूमों की जान जाती है । जहाँ तक हो सका, मैंने आतंकवादियों को खत्म किया है ।”

सूरजभान कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा फिर बोला- “कैसे जाओगे जम्मू ? कुछ सोचा है इस बारे में ?”

“अभी नहीं सोचा । मैं... ।”

“तुम सूरजभान यादव बनकर क्यों नहीं जाते वहाँ ?”

देवराज चौहान चौंका ।

जगमोहन के माथे पर बल पड़े । सुधा वहाँ बैठी अवश्य थी, परन्तु उसकी सारी चिंता अपने पति के लिए थी ।

“तुम क्या कहना चाहते हो ?” देवराज चौहान ने पूछा, “मैं तुम्हारे रूप में जम्मू जाऊँ ?”

“हाँ, इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर ! वहाँ मुझे कोई नहीं जानता । मैं पहली बार जम्मू जा रहा था । मेरे रूप में तुम बड़ा खान तक जल्दी पहुँच सकोगे । परन्तु खतरा भी ज्यादा होगा । बड़ा खान तुम्हें मारने की चेष्टा कर सकता है । मेरे रूप में तुम सफल रहे तो, जेल में बन्द जब्बार मलिक तक भी पहुँच जाओगे । तुम्हें काफी फायदा मिलेगा । पुलिस की पूरी सहायता मिलेगी । इस बारे में ऑर्डर की कॉपी मेरे पास है । मैं तुम्हें दे दूँगा ।”

“अगर मैं जम्मू में इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बन पाने में सफल रहा तो ?”

“हाँ ! तुम पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है । इसके लिए तुम्हें अपनी तस्वीर वाला आई कार्ड बनवाना होगा । बेशक मेरा कार्ड ले लो । उस पर अपनी तस्वीर लगाकर, उसे सही कर सकते हो तो कर लेना । वर्दी मैं तुम्हें बता दूँगा कहाँ से मिलेगी । वहाँ से तुम अपने नाप की ले लेना । बाकी जैसा तुम चाहो । जम्मू में मेरी एक पहचान वाला राठी है । एक बार एनकाउंटर के दौरान मैंने उसकी जान बख्श दी थी । वह मेरा एहसान मानता है । तुम्हें उसका पता दे दूँगा । वह तुम्हारी हर सम्भव सहायता करेगा । फिर वह.... ।”

“तुम इसे मुसीबत में भेज रहे हो ।” जगमोहन झल्लाकर कह उठा ।

“मैंने जबरदस्ती तो नहीं की ।” सूरजभान ने कमजोर स्वर में कहा, “ये डकैती मास्टर देवराज चौहान है, कोई बच्चा तो नहीं कि मैं इसे बातों में फँसा लूँगा । जम्मू जाने के बारे में इसी ने कहा है कि.... ।”

“तुम इसे समझाओ कि जम्मू में बड़ा खान का कितना खतरा है ।”

“मैं क्या समझाऊँ, क्या यह ये बात जानता नहीं ? अगर देवराज चौहान जम्मू में इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनने में कामयाब रहा तो पुलिस की सहायता भी इसके पास होगी । मैंने इसके बारे में बहुत सुन रखा है । ये हिम्मती है ।”

जगमोहन कुछ कहने लगा तो देवराज चौहान ने टोका- “तुम अब इस बारे में कुछ नहीं कहोगे ।”

जगमोहन उखड़े मूड के साथ कमरे से बाहर निकल गया ।

“इसे तुम्हारी चिंता है ।” सूरजभान ने मुस्कुराने की चेष्टा की ।

“तुम मुझे अपने बारे में बातें बताओ । अपने करीबियों के बारे में बताओ । ताकि सूरजभान बनने में मुझे कोई दिक्कत न आये ।” देवराज चौहान ने कहा ।

सूरजभान उसे अपने बारे में बताने लगा ।

उसके बाद देवराज चौहान दो दिन तक इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनने की तैयारी करने में लगा रहा । जब भी वक्त मिलता सूरजभान से बातचीत करने में लग जाता । उसके बारे में बातें करके जानकारी हासिल करता । वर्दी ले आया था और आई कार्ड पर अपनी फोटो लगाकर, उसे ठीक-ठाक ढंग से तैयार कर लिया था । फोटो खिंचवाने से पहले नकली मूंछें लगा ली थीं । इसके लिए उसे बाजार से एक नकली मुहर बनवानी पड़ी थी । जम्मू के लिए ट्रेन में टिकट बुक करा ली थी । सूरजभान ने नम्बर देकर देवराज चौहान से, जम्मू ए.सी.पी. संजय कौल को फोन कराया और कल सुबह अपने पहुँचने की खबर दी । कौल ने कहा कि वह पुलिस वालों को, उसे रिसीव करने स्टेशन भेज देगा ।

“क्या तुम सच में कामयाब रहोगे देवराज चौहान ?” सूरजभान ने गंभीर स्वर में पूछा ।

“तुम्हें शक क्यों है ?”

“बड़ा खान खतरनाक आदमी है ।”

“मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं सफल रहूँ । परन्तु वहाँ मैं अपने ढंग से काम करूँगा ।”

“इस मामले में तुम हर तरह से काम करने को आजाद हो । परन्तु जम्मू पुलिस को तुमने ही संभालना है ।”

“हाँ । ये देखना मेरा काम है । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर मैंने गलत काम किये तो तुम फँसोगे ।”

“बिल्कुल भी नहीं ।”

“कैसे ?”

“तुम्हें वहाँ सब देखेंगे । पहचानेंगे और बाद में मेरे सामने आने पर वे समझ जायेंगे कि वह मैं नहीं था । मेरे रूप में कोई और था । तब मैं ये भी कह सकता हूँ कि किसी ने मुझे कैद कर लिया था ।”

“मतलब कि तुम पर कोई आँच नहीं आएगी ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“नहीं !”

उधर जगमोहन गुस्से से भरा बैठा था । देवराज चौहान के कमरे में प्रवेश करते ही भड़ककर कह उठा ।

“एक तो तुम मेरी मर्जी के बिना बड़ा खान के मामले में टाँग अड़ाने जा रहे हो और मुझे भी साथ नहीं ले जा रहे ।”

देवराज चौहान मुस्कुराकर कुर्सी पर जा बैठा । जगमोहन ने आगे कहा-

“जानते हो वहाँ कितना खतरा है । पारस नाथ बता रहा था कि बड़ा खान खतरनाक है । उसका एक कारनामा मैं तब देख चुका हूँ जब उसने सूरजभान को मार डालना चाहा । मैं तुम्हारे साथ जाऊँगा तो ठीक होगा । कम से कम... ।”

“मैं वहाँ इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर जा रहा हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“तो ?”

“अगर मैं वहाँ इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर जा रहा तो मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी ।”

“न बने रहे तो ?”

“तो तुम्हें बुला लूँगा और हम खुले तौर पर बड़ा खान के खिलाफ जंग छेड़ देंगे ।”

“जानते हो तुम्हें दो तरफ का खतरा है । एक बड़ा खान का और दूसरी तरफ पुलिस । पुलिस की वर्दी पहनकर तुम पुलिस वालों के बीच रहोगे । कोई भी तुम्हें पहचान सकता है कि तुम देवराज चौहान हो ।”

“ये आसान नहीं होगा ।”

“क्यों ?”

“क्योंकि मैं दिल्ली से आया पुलिस वाला बनकर पुलिस वालों के बीच रहूँगा । वर्दी मेरे जिस्म पर होगी । आई कार्ड मेरे पास है । मूंछें मैंने लगा रखी हैं । ऐसे में किसी को शक हो पाना भी आसान नहीं ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“तुम खामखाह ही इस मामले में.... ।”

“मैं बड़ा खान को खत्म करने जम्मू जा रहा हूँ । पहले मैं बड़ा खान के बारे में नहीं जानता था, परन्तु सूरजभान से उसके बारे में अब जाना है । वह देश के लिए सच में खतरनाक है और सूरजभान और उसके परिवार के पीछे हाथ धोकर पड़ा है । उसके बच्चों को देख रहे हो, बड़ा खान उन्हें खत्म करने को ढूंढ रहा है । क्या तुम चाहते हो कि वह मर जाएँ ?”

“मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता ।” जगमोहन होंठ भींचकर कह उठा ।

“बड़ा खान एक के बाद एक आतंकवादी वारदातें कर रहा है । भरे बाजार में बम विस्फोट करा देता है या उसके आदमी मासूम जनता पर गोलियाँ चलाकर भाग जाते हैं । क्या तुम चाहते हो कि बड़ा खान ऐसी वारदातों को करता रहे ?”

“कभी नहीं । परन्तु उससे निबटने को पुलिस भी तो है ।”

“पुलिस कोशिश तो कर रही है । अगर हम भी कोशिश कर लें तो क्या हर्ज है । सूरजभान पर किस बुरी तरह हमला कराया गया है, ये तो तुमने देखा ही है अब.... ।”

“यही तो डर है मुझे कि जम्मू में तुम पर हमला न हो जाये ।”

“मैं सतर्क रहूँगा । तुम आशंका में मत घिरे रहो ।”

“मैं भी तुम्हारे साथ जम्मू चलता... ।”

“जब मेरा पुलिस वाला बनने का राज खुल गया तो तुम्हें बुला लूँगा ।”

“मतलब कि तुम सोच चुके हो कि अकेले ही जम्मू जाओगे ?”

“ऐसा ही समझ लो ।”

“तो ये वादा है तुम्हारा कि पुलिस वाला नहीं होने का राज खुलते ही तुम मुझे बुला लोगे ?”

“वादा ।”

उसके बाद देवराज चौहान उसी रात ट्रेन से जम्मू आ गया था । फिर जो हुआ, वह सामने ही है । 

देवराज चौहान ने गहरी साँस लेकर लैपटॉप की स्क्रीन पर नजर मारी । जम्मू के नक्शे पर नजर आ रहा बिंदु अब खैबर इलाके से दूर जा रहा था । खैबर इलाके में जब्बार मलिक जहाँ रुका था, वह जगह नक्शे के सहारे देखकर, देवराज चौहान ने एक कागज पर नोट कर ली थी । और अब देखना चाहता था कि जब्बार कहाँ जाता है । चमकीला बिंदु हौले-हौले सरक रहा था लैपटॉप के नक्शे पर ।

देवराज चौहान ने मोबाइल निकाला और जगमोहन का नम्बर मिलाने लगा । फौरन ही जगमोहन से बात हो गई ।

“सूरजभान कैसा है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“पहले से बेहतर है । इतना भी बेहतर नहीं कि चल-फिर सके । जख्मों पर टांके लगे हैं । अब वह बैठकर खाने लगा है और उसकी पत्नी-बच्चे उसका ध्यान रख रहे हैं । उसका परिवार अच्छा है । डॉक्टर सुबह-शाम आता है । इंजेक्शन लगा जाता है । कुछ दवायें भी दे दी हैं अब खाने को । पारस नाथ भी दिन में एक चक्कर लगा जाता है । डिसूजा हम सबकी जरूरतों का पूरा ख्याल रख रहा है और मुझे तुम्हारी चिंता लगी हुई है । और कुछ पूछना है ।”

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

“तुम उखड़े हुए क्यों हो ?”

“जब से तुम जम्मू गए हो मुझे कुछ नहीं बताया कि तुम क्या कर रहे हो और... ।”

“वह ही बताने के लिए अब तुम्हें फोन किया है । वादा जो किया था तुमसे ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“तो तुम्हारे नकली पुलिस होने का राज खुल गया ?” उधर से जगमोहन ने बेचैनी से कहा ।

“मैंने खोल दिया ।”

“खोल दिया का क्या मतलब ?”

“मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूँ । यहाँ मैंने जो किया वह सुन लो ।”

उसके बाद देवराज चौहान ने सब कुछ बता दिया ।

पूरी बात सुनने के बाद उधर से बौखलाया सा जगमोहन कह उठा- “ये तुमने क्या किया । जब्बार मलिक को जेल से फरार करवा दिया ।”

“ये ही तो मेरी चाल है । हालाँकि रिवॉल्वर में लगी माइक्रो चिप की वजह से मैं उस पर नजर रखे हुए हूँ । परन्तु वह शीघ्र ही मुझसे सम्बन्ध बनाएगा । मुझे फोन करेगा । मुझसे सहायता माँगेगा ।”

“क्यों ?”

“क्योंकि बड़ा खान, अब जब्बार मलिक को स्वीकार नहीं करेगा ।”

जब्बार मलिक ने मुझे बड़ा खान के बारे में बताया और समझौते के तहत मैंने उसे जेल से फरार करवा दिया है ।”

“लेकिन जब्बार ने तुम्हें तो कुछ बताया ही नहीं ?” उधर से जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

“सही कहा । परन्तु ये बात जब्बार जानता है, मैं जानता हूँ परन्तु बड़ा खान नहीं जानता । जब्बार बड़ा खान को कितना भी यकीन दिला ले कि उसने इंस्पेक्टर सूरजभान को कुछ नहीं बताया, परन्तु बड़ा खान उसकी बात पर कभी भी यकीन नहीं करेगा । वह ये ही सोचेगा कि जब्बार को मैंने खामखाह जेल से नहीं निकाला होगा । कुछ बात तो है ही । बड़ा खान सतर्क हो जायेगा । वह जब्बार को अपने पास भी नहीं फटकने देगा ।”

“इससे तुम्हें क्या फायदा हुआ ?”

“बड़ा खान, मेरी चाल में फँसकर अपने एक खतरनाक आदमी से हाथ धो बैठा । जब्बार पर वह शक करेगा और हो सकता है कि वह जब्बार को ये सोचकर मारने की कोशिश करे कि कहीं जब्बार पुलिस का जासूस तो नहीं बन गया और अब उसे फँसाने या मारने आ रहा हो ।”

“हूं ।” जगमोहन की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी, “बड़ा खान ने जब्बार को मार दिया तो ? खेल खत्म ?”

“जब्बार कम चालाक और फुर्तीला नहीं है । वह चौकस रहने वाला इंसान है । जल्दी ही उसे हालातों का आभास हो जायेगा । अंत में जब्बार को एक रास्ता दिखेगा जो मेरी तरफ आता है । वह मुझे फोन जरूर करेगा । मेरा नम्बर याद है उसे ।” देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।

“बहुत गहरी चाल खेली तुमने ।” जगमोहन के गहरी साँस के लेने की आवाज आई, “मान लो कि जब्बार अपनी जान बचाने की खातिर तुम्हें फोन करे । परन्तु इससे तुम्हें क्या फायदा होगा ?”

“मैं जब्बार की जान बड़ा खान से तभी बचाऊँगा, जब वह मुझे बड़ा खान के बारे में बताना शुरू करेगा । तब तक जब्बार टूट चुका होगा और आसानी से अपना मुँह खोल देगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“मैं जम्मू आ रहा हूँ । अब तुम मुझे आने से रोकना नहीं ।” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

“स्टेशन से मुझे फोन करना । तब तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हें कहाँ आना है और सूरजभान को ये सब बातें बता दो । ताकि जब्बार मलिक के जेल से फरार होने की खबर सुनकर वह उखड़े नहीं ।”

☐☐☐

जब्बार मलिक जानता था कि उसके जिस्म पर पड़ी पुलिस की वर्दी उसके लिए मुसीबत बन सकती है । वह सबसे पहले वर्दी से छुटकारा पा लेना चाहता था । देवराज चौहान ने अलग होकर वह गली से निकलकर सड़क पर आया और सड़क पार करके दूसरी तरफ जा पहुँचा । जेल से आजाद होकर वह खुश था । मन ही मन वह इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को धन्यवाद दे रहा था कि उसने उसे जेल से फरार करवा दिया । वरना छः महीने से आठ फुट लम्बी-चौड़ी कोठरी में बन्द रहकर वह पागल सा हो गया था ।

जब्बार ने गर्दन उठाकर खुले आसमान को देखा और ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया । वह जानता था कि जेल से काफी दूर आ चुका है परन्तु खतरा अभी सिर पर था । कभी भी पुलिस उसकी तलाश में जम्मू की सड़कों पर भागी दिखाई दे सकती थी ।

जब्बार सड़क के किनारे तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था । उसे ऑटो या टैक्सी की जरूरत थी ।

पाँच मिनट बाद उसे ऑटो मिल गया । जब्बार मलिक ऑटो वाले को खैबर चलने को कहकर उसमें बैठ गया ।

जब्बार सावधान था । जेब में मौजूद रिवॉल्वर का हौसला था उसे । उसने मन ही मन एक बार फिर देवराज चौहान का शुक्रिया अदा किया कि उसने उसे रिवॉल्वर दी । पैसे दिए । इस वक्त सच में उसे इन दोनों चीजों की जरूरत थी । परन्तु मन में भारी उलझन थी ।

इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ने उसे इतनी आसानी से कैसे फरार करवा दिया । वह इस बात के प्रति सावधान था कि कोई उसके पीछे न लगा हो । लेकिन अपने पीछे किसी के होने का उसे शक भी नहीं हुआ कि कोई पीछे हो सकता है । जरूर कोई बात तो है ही जो इंस्पेक्टर यादव ने उसे जेल से निकाला । बड़ा खान उसे 30–35 करोड़ की रकम दे रहा था । उसे जेल से निकालने को, परन्तु उसने वह रकम नहीं ली और उसे यूँ ही जेल से निकाल दिया ।

सूरजभान यादव ने कहा कि वह चाल चल चुका है ।

जब्बार को समझ नहीं आई कि इंस्पेक्टर किस चाल के बारे में कह रहा था । बहरहाल जब्बार मलिक बहुत खुश था कि वह जेल से बाहर आ गया है । बाकी सब बातें, खासतौर से जेल की बातें वह भूल जाना चाहता था । आगे की सोचना चाहता था कि बड़ा खान के साथ मिलकर आतंक के बड़े-बड़े खेल खेलकर, लोगों को और हिन्दुस्तान की पुलिस को हिलाकर रख देगा । आतंक की दुनिया में नाम कमायेगा । इन सोचो के दौरान वह ये भूल गया कि वह खुद हिन्दुस्तानी है । कठुआ में पला-बढ़ा हुआ ।

आधे घण्टे बाद ऑटो रुका । जेब में पड़े देवराज चौहान के नोटों में से पाँच सौ का नोट ऑटो वाले को देकर सामने मकानों की तरफ बढ़ गया । बाकी पैसे लेने की उसे परवाह ही कहाँ थी ।

पाँच मिनट बाद जब्बार ने एक घर की बेल बजाई । फौरन ही दरवाजा खुला । दरवाजा खोलने वाला व्यक्ति पुलिस वाले को आया पाकर घबरा उठा ।

“घबरा मत महबूब ।” उसे पीछे करके भीतर प्रवेश करता जब्बार बोला, “ये मैं हूँ ।”

जब्बार ने सिर पर पड़ी टोपी उतारी ।

महबूब नाम का वह व्यक्ति जब्बार मलिक को सामने पाकर चिहुँका । फौरन उसने दरवाजा बन्द किया ।

“जब्बार तुम... ।तुम जेल से भाग आये ?” उसके होंठों से हैरान स्वर निकला ।

“हाँ ! जेल से पीछा छूटा ।” जब्बार हँसकर बोला ।

“बड़ा खान ने तुम्हें जेल से निकलवाया होगा । उसने पुलिस को धमकी दी थी कि तुम्हें जेल से... ।”

“उसकी नौबत ही नहीं आई । मैं पहले ही निकल आया ।” जब्बार जिस्म पर पड़ी वर्दी उतारता कह उठा, “मेरे को कपड़े दे पहनने को । जेल के कपड़े पहन-पहनकर मेरा दिमाग खराब हो गया है ।”

“तेरे पीछे तो कोई नहीं था ?”

“नहीं । कपड़े दे ।”

जब्बार ने सादी पैंट-कमीज पहन लीं ।

“अब ठीक है । अब मैं इंसान लग रहा हूँ ।” जब्बार हँसकर कह उठा ।

“निकला कैसे जेल से ?”

“एक पुलिस वाले ने निकाला । ये बातें छोड़, एक कहवा पिला । जेल में ये सब चीजें कहाँ मिलती हैं ।” जब्बार मलिक कुर्सी पर बैठ गया । चेहरे पर गम्भीरता थी ।

महबूब किचन में कहवा बनाने चला गया । दस मिनट बाद दोनों कहवा पी रहे थे ।

“तेरी बीवी लौटी नहीं वापस ?”

“नहीं । महबूब ने मुँह बनाया, “एक साल से अपने बाप के घर बैठी है । कहती है मैं वहाँ आकर रहने लगूँ ।

“मैं तेरे बारे में सोच रहा हूँ जब्बार । पुलिस तेरी तलाश में शहर भर में भाग-दौड़ रही होगी ।”

“पता नहीं ।” कहवे का घूँट भरते जब्बार ने कहा, “उन्हें मेरी फरारी का पता चल गया होगा तो ये ही हो रहा होगा ।”

“मेरे पास छिपकर रहेगा ?”

“नहीं ! कहवा पीकर यहाँ से निकल जाऊँगा ।” जब्बार ने कहा ।

“बाहर तुझे पुलिस का खतरा है ।” महबूब ने कहा ।

“परवाह मत कर । अपना मोबाइल मुझे दे दे ।”

महबूब ने फोन उसे दे दिया ।

कहवा समाप्त करके जब्बार उठता हुआ बोला- “अब मैं चलूँगा ।”

“अपना ध्यान रखना और मेरे लिए कोई काम हो तो बताना । पैसे की तंगी चल रही है ।”

जब्बार मलिक महबूब के घर से बाहर निकला और सड़क की तरफ बढ़ते फोन पर अपने घर कठुआ का नम्बर मिलाने लगा । पहली बार में ही नम्बर लग गया । फोन उसके पिता ने उठाया था ।

“अब्बू मैं जेल से बाहर आ गया ।” जब्बार ने खुशी भरे स्वर में कहा ।

“मैं जानता था कि तुझे कोई भी जेल ज्यादा देर कैद नहीं रख सकती जब्बार ।”

“घर में सब ठीक हैं ?”

“सब ठीक हैं । फिक्र नहीं कर । तेरे जेल से बाहर आने की खुशखबरी सब को सुना देता हूँ ।”

“अब दो-चार बार घर पर पुलिस आएगी मेरी तलाश में ।”

“कोई फर्क नहीं पड़ता ।”

“मैं ठीक समय देखकर घर पर आऊँगा ।” कहकर जब्बार ने फोन बन्द कर दिया और दूसरा नम्बर मिलाने लगा ।

जब्बार सड़क पर आ पहुँचा था । दूसरा नम्बर उसने बड़ा खान को मिलाया था ।

दो-तीन बार मिलाने पर भी नम्बर नहीं लगा ।

जब्बार ने फोन जेब में डाला और ऑटो की तलाश में नजरें घुमाने लगा । कुछ देर बाद उसे टैक्सी मिल गई तो एक जगह चलने को कहा । बीस मिनट बाद उसने टैक्सी छोड़ दी और पैदल ही आगे बढ़ने लगा । ये पुराने जम्मू का पुराना और तंग इलाका था । पुरानी बड़ी-बड़ी इमारतें बनी हुई थीं जिनकी गलियाँ तीन-चार फुट जितनी तंग थीं । जब्बार उन्हीं गलियों के जाल में जा घुसा । कोई नया इंसान हो तो इन गलियों की भूल-भुलैया में खो जाये ।

परन्तु जब्बार यहाँ के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था । फिर जब्बार एक गली से ही इमारत में ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ता चला गया । जल्दी ही वह तीसरी मंजिल पर जा पहुँचा । सामने का दरवाजा खुला था । जब्बार भीतर प्रवेश कर गया । ये आठ कमरों का घर था और वह जानता था कि यहाँ अक्सर बड़ा खान के लोग मौजूद रहते हैं । परन्तु इस वक्त उसे वहाँ सुनसान ही महसूस हुई ।

जब्बार ने ठिठककर उस बड़े हॉल में हर तरफ देखा । पुराने सोफे वहाँ पहले की तरह सजे थे । सब कुछ वैसा ही था जैसा उसने पहले देखा था ।

“अनीस !” जब्बार ने ऊँचे स्वर में पुकारा ।

चंद पलों के बाद ही दरवाजे से एक पचास बरस का आदमी आया । उसे देखते ही जब्बार के चेहरे पर मुस्कान खिल गई ।

“जब्बार, मेरे भाई ।” अनीस बाहें फैलाकर आगे बढ़ता कह उठा ।

“अनीस !” जब्बार भी बाहें खोलकर उसकी तरफ बढ़ा ।

दोनों गले लगे ।

“जेल से निकल आने की मुबारकबाद ।”

“जेल से बाहर आकर मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा है ।” जब्बार हँसा ।

दोनों कुर्सियों पर बैठे ।

“यहाँ खाली-खाली क्यों है । तुम्हारे अलावा कोई आदमी नहीं है । यहाँ तो बहुत.... ।”

“बड़ा खान ने मेरे अलावा सबको, तीन दिन पहले ही यहाँ से हटा दिया ।” अनीस ने शांत स्वर में कहा ।

“ऐसा क्यों ?”

“तुम्हारे लिए । बड़ा खान को शक था कि तुम जेल से बाहर निकल सकते हो और यहाँ आ सकते हो ।”

“तो आदमियों को यहाँ से हटाने की क्या जरूरत थी ?”

“मैं नहीं जानता ।” अनीस ने गहरी निगाहों से उसे देखते हुए कहा ।

“तुम जानते हो । तुम सब जानते हो कि बड़ा खान ने ऐसा आदेश क्यों दिया ?”

“ये बात तो तुम बड़ा खान से भी पूछ सकते हो ।”

“बड़ा खान का नम्बर नहीं लग रहा ।” जब्बार बोला, “मैंने कई बार उसका नम्बर... ।”

“मेरे पास दूसरा नम्बर है । उस पर मैं तुम्हारी बड़ा खान से बात करा देता हूँ ।”

जब्बार ने फोन निकाला और कहा- “बताओ नम्बर ।”

“तुम्हें नम्बर बताने की मनाही है । मैं अपने फोन से नम्बर मिला देता हूँ ।” कहकर अनीस ने मोबाइल निकाला ।

जब्बार की आँखें सिकुड़ी ।

“मुझे नम्बर बताने की मनाही है ?” जब्बार अजीब से स्वर में कह उठा ।

“हाँ ! बड़ा खान ने मना किया है ।”

“हैरानी है कि बड़ा खान ने जब्बार मलिक के लिए ऐसा कहा । तुम्हें सुनने में गलती तो नहीं हुई ?”

“नहीं !”

“मेरे जेल से बाहर आने का अंदेशा पाकर बड़ा खान ने यहाँ से आदमी हटा दिये । तुम्हें मना कर दिया कि दूसरा नम्बर तुम मुझे न बताओ । ये सब क्या हो रहा है अनीस ?” जब्बार मलिक के माथे पर बल नजर आने लगे थे ।

अनीस दो पल जब्बार को देखने के बाद बोला- “वह पुलिस वाला बाहर है ?”

“कौन ? किसकी बात कर रहे हो ?”

“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ।”

“वह बाहर क्यों होगा ?” जब्बार के होंठों से निकला ।

“उसी ने तुम्हें जेल से निकाला है न ?”

“हाँ ! उसी ने... ।”

“उसने बड़ा खान से तीस-पैंतीस करोड़ लेने को और तुम्हें जेल से निकालने को मना कर दिया था ।”

“तो ?”

“अब उसने तुम्हें यूँ ही जेल से बाहर निकाल दिया ?”

“इसमें मैं क्या कह सकता हूँ । ये उसकी मर्जी है कि उसने मुझे जेल से.... ।”

“पता चला कि तुम्हारा उस पुलिस इंस्पेक्टर के साथ समझौता हुआ है कि... ।”

“बकवास ।” जब्बार मलिक उखड़े स्वर में कह उठा, “ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ।”

“तो तुम कहना चाहते हो कि सूरजभान नाम के पुलिस वाले ने तुम्हें यूँ ही जेल से निकाल दिया ।”

“हाँ !”

अनीस मुस्कुरा पड़ा ।

“कौन विश्वास करेगा तुम्हारी बात पर ?”

जब्बार मलिक अनीस का चेहरा देखने लगा ।

“तुम यूँ ही जेल से नहीं निकाले गए जब्बार । आखिर कोई बात तो बीच में है ही । मुझे पता चल चुका है कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के साथ तुम्हारा समझौता हुआ था कि तुम उसे बड़ा खान के बारे में बताओगे और वह तुम्हें जेल से बाहर निकालेगा । हो सकता है वह समझौता यहाँ तक हो कि तुम बड़ा खान को कानून के हाथों में फँसा दोगे ।”

“मैं तुम्हारा मुँह तोड़ दूँगा अनीस ।” जब्बार गुर्रा उठा, “तुम मुझे गद्दार कह रहे हो ।”

गद्दारी जैसा कुछ काम तो तुमने किया ही है जो पुलिस द्वारा जेल से फरार करवाये गए ।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।” जब्बार चिल्लाने वाले ढंग में कह उठा ।

“मतलब कि तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी बात मान लूँ ।”

“मेरा विश्वास करो कि मैंने बड़ा खान के बारे में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा ।”

“तो फिर तुम मुफ्त में ही जेल से कैसे निकाल दिए गए ?”

जब्बार दाँत भींचकर अनीस को देखने लगा ।

कई पलों तक उनके बीच खामोशी रही ।

एकाएक जब्बार मलिक की आँखों के सामने देवराज चौहान का चेहरा नाच उठा । उसके शब्द याद आ गए कि वह चाल चल चुका है । ये सवाल उसने अपने आप से भी किया कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ने उसे जेल से फरार क्यों करवा दिया ? परन्तु इस सवाल का जवाब खुद उसके पास भी नहीं था ।

जब्बार मलिक को लगा जैसे वह किसी अनजाने जाल में फँस गया है ।

“बताओ जब्बार । इंस्पेक्टर सूरजभान के साथ तुम्हारा क्या समझौता हुआ । उसने तुम्हें किस शर्त पर जेल से निकाला है ?” अनीस ने सपाट स्वर में कहा । नजरें जब्बार मलिक के चेहरे पर टिकी हुईं थी ।

“मेरा यकीन करो अनीस ।” जब्बार मलिक होंठ भींचकर बोला ।

“तुम्हारा यकीन क्यों नहीं करूँगा । तुम मेरे भाई जैसे हो ।” अनीस मुस्कुरा पड़ा ।

“मैंने इंस्पेक्टर सूरजभान को कुछ नहीं बताया ।” जब्बार ने व्याकुल स्वर में कहा ।

“मुझे यकीन है कि तुम मुझसे झूठ नहीं बोलोगे ।”

“मैं सच कह रहा हूँ... ।”

“फिर एक सच और बता दो कि उस पुलिस वाले ने तुम्हें जेल से फरार क्यों करवा दिया ?”

“मैं नहीं जानता ।” जब्बार मलिक से कुछ कहते न बना ।

“वह पुलिस वाला पागल है ?”

“नहीं !”

“कुछ तो वजह होगी कि उसने जब्बार मलिक को जेल से फरार करवा दिया ।”

जब्बार मलिक ने गहरी साँस ली और फिर आँखें बन्द कर लीं । अनीस की पैनी निगाह उसके चेहरे पर थी । जब्बार ने आँखें खोली और बेचैनी भरे स्वर में कह उठा ।

“मैं फँस चुका हूँ ।”

“वह कैसे ?”

“क्योंकि मेरे पास इस बात का जवाब नहीं है कि सूरजभान ने मुझे जेल से फरार क्यों करवाया ?” कहकर जब्बार ने गहरी साँस ली, “मुझे अब लग रहा है कि उस पुलिस वाले ने मुझे बुरी तरह फँसा दिया है ।”

“किसी ने तुम्हें नहीं फँसाया जब्बार ।” अनीस बोला, “तुम सच्चाई मुझे बता क्यों नहीं देते । हम बचने का रास्ता निकाल लेंगे ।”

जब्बार मलिक ने अनीस की आँखों में झाँका ।

“मैं तुम्हारी बात बखूबी समझ रहा हूँ ।” जब्बार गंभीर स्वर में बोला, “लेकिन सच ये है कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव को मैंने कुछ नहीं बताया और उसने मुझे यूँ ही जेल से फरार करवा दिया है ।”

“क्या ये विश्वास करने लायक बात है ?”

जब्बार के होंठ भिंच गए ।

“कोई इस तरह जेल से निकलकर आता तो क्या तुम उस पर भरोसा कर लेते ।”

“ये ही तो मुसीबत है कि मैं अपनी बात का सच नहीं दिखा सकता कि ये ही सच है । अब मैं समझा कि सूरजभान ने क्या खेल खेला मेरे साथ । उसने मुझे अपनों के बीच ही पराया बना दिया ।”

“क्या इस वक्त बाहर पुलिस का घेरा है ?” अनीस ने पूछा ।

“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो अनीस ।” जब्बार दाँत भींचकर बोला, “क्या मुझ पर भरोसा उठ गया ?”

“इंस्पेक्टर सूरजभान तो कहता है कि तुमने उसे बड़ा खान के बारे में सब कुछ बता दिया है ।”

“वह बकवास करता है ।” जब्बार मलिक ने दाँत भींचकर कहा ।

“लेकिन बड़ा खान तो उसकी बात को बकवास नहीं मानेगा । जबकि तुम्हें जेल से बाहर निकाल दिया उसने और एक भी पैसा नहीं लिया । बड़ा खान उसे पैंतीस करोड़ दे रहा था लेकिन उसने नहीं लिया ।” अनीस बोला ।

“इंस्पेक्टर ने झूठ बोला है ।” जब्बार खीझ उठा, “तुम ही बताओ कि अब मैं क्या करूँ अनीस ?”

“सच कह दो ।”

“कह तो दिया है ।”

“ये सच नहीं है । सच ये है कि तुमने पुलिस वाले को बड़ा खान के बारे में बहुत कुछ बताया और उसने तुम्हें जेल से निकाल दिया ।”

“ये सच नहीं है ।”

“तुम्हारी बात कोई नहीं मानेगा जब्बार कि पुलिस वाले ने तुम्हें मुफ्त में जेल से बाहर निकाला है । या तो तुम इस बारे में तसल्ली बख्श जवाब दे दो कि पुलिस वाले ने तुम्हें क्यों जेल से बाहर निकाला ।”

“बता तो चुका हूँ, तुम मेरी बात का विश्वास... ।”

“तुम्हारी बात को सच कोई नहीं मानेगा । जेल में हंगामा मचा हुआ है कि जब्बार मलिक जेल से फरार हो गया । पुलिस तुम्हें और उस पुलिस वाले को ढूंढ रही है । वह पुलिस वाला कौन है जब्बार ?”

“कौन है ? मैं समझा नहीं ?”

“उस पुलिस वाले की हकीकत क्या है ?”

“हकीकत क्या ! वह दिल्ली से आया इंस्पेक्टर सूरजभान यादव है । एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाना... ।”

“वह पुलिस वाला नहीं है ।”

जब्बार मलिक चिहुँक उठा ।

“वह पुलिस वाला नहीं है ?” जब्बार के होंठों से निकला, “ये तुम्हें किसने कहा ?”

“पुलिस डिपार्टमेंट में इस बात को लेकर हड़कम्प मचा हुआ है कि वह नकली इंस्पेक्टर सूरजभान यादव था । ए.सी.पी. कौल की उससे मोबाइल पर बात हुई । उसी कौल ने बताया कि वह पुलिस वाला नहीं है ।”

“ये कहकर तुम मेरा दिमाग खराब कर रहे हो ।” ठगा सा जब्बार कह उठा ।

“तुम जानते हो कि मैं तुमसे कोई बात भी झूठ नहीं कहूँगा । मजाक नहीं करूँगा ।”

“मुझे... मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं आ रहा ।”

“तो बाहर से पता कर लो कि मैं सही कह रहा हूँ या झूठ ।”

“वह ।” जब्बार मलिक ने अपना माथा पकड़ लिया, “असली पुलिस वाला नहीं । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नहीं । नहीं, ये नहीं हो सकता । वह... वह रोज मुझसे जेल में मिलता था । सख्त पहरेदारी थी वहाँ । भला नकली पुलिसवाला वहाँ मुझ तक कैसे पहुँच सकता है । मैं इस बात पर किसी कीमत पर विश्वास नहीं कर... ।”

“तो पता कर लो । जम्मू के हर पुलिस वाले के लिए ये चर्चा की बात है इस वक्त कि तुम्हारा जेल से फरार हो जाना और इंस्पेक्टर सूरजभान यादव का नकली होना । ये बात तुम किसी भी पुलिस वाले से पूछ सकते हो ।”

जब्बार मलिक अपना माथा पकड़े बैठा रहा ।

“तुम जेल से बाहर कैसे आये ? किस शर्त पर तुम्हें उस पुलिस वाले ने जेल से फरार करवाया और उसकी असलियत क्या है ? हकीकत में वह है कौन ? इन बातों का जवाब तुम्हारे पास है और मैं जानना चाहता... ।”

“मेरे पास नहीं है इन बातों का जवाब ।” जब्बार चीखा, “मैं कुछ नहीं जानता ।”

“ये मुमकिन नहीं । क्या तुमने उससे पूछा नहीं कि वह क्यों तुम्हें जेल से फरार करवा रहा है ?” अनीस का स्वर शांत था ।

“पूछा । कई बार पूछा । हर बार उसने ये ही कहा कि उसका मन करता है कि मुझे बाहर निकाल दे । उसने ये भी कहा कि अगर मैं नहीं निकलना चाहता तो मत निकलूँ । जेल से निकलने का लोभ मैं नहीं छोड़ सकता था । लेकिन अब मुझे लगता है कि उसने मुझे फँसा दिया है । वह जानता था कि वह जो कर रहा है, उस तरह मैं फँस जाऊँगा । उसने बहुत सोच समझकर ये सब कुछ किया और मुझे अपने लोगों में ही फँसा दिया । अब तुम ही मेरी बात का विश्वास नहीं कर रहे तो मैं क्या कर सकता हूँ । वह बहुत शातिर इंसान है । खतरनाक भी । मैं उसे मामूली पुलिस वाला ही समझता रहा । लेकिन वह अपनी चाल खेल गया ।”

“तुम्हारी बातों में कोई दम नहीं ।” अनीस ने शांत स्वर में कहा ।

“बड़ा खान भी यही सब समझता है न ?”

“उसे भी इन दो सवालों का जवाब चाहिए । पैंतीस करोड़ लेने की अपेक्षा उसने तुम्हें मुफ्त में जेल से क्यों फरार करवा दिया । स्पष्ट है कि तुम्हारे और उसके बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ है । समझौते के तहत ही उसने तुम्हें जेल से फरार करवा दिया । दूसरी बात ये है कि हकीकत में वह कौन है ?”

माथा छोड़कर जब्बार ने गहरी साँस ली ।

“तो इसका मतलब बड़ा खान से मेरा रिश्ता खत्म ।”

“अभी तो ऐसा कुछ नहीं है ।”

“तो मैं कहाँ रहूँ । मुझे ठिकाना चाहिए ।” जब्बार मलिक बोला, “पुलिस मुझे तलाश कर रही है ।”

“जूबी के पास चले जाओ । वहाँ तुम सुरक्षित रहोगे ।”

जब्बार उठ खड़ा हुआ ।

“अब मुझे लगता है कि बड़ा खान के पास से मेरी जगह छीन गई है ।”

“तुम्हें सच बात कह देनी चाहिए ।”

“मैंने सच ही कहा है, जिसे कि तुम झूठ मान रहे हो । उस नकली पुलिस वाले ने मुझे बुरी तरह फँसा दिया है ।”

“बड़ा खान से बात करनी है ?” अनीस ने पूछा ।

“अभी नहीं ।”

“अब कहाँ जा रहे हो ?”

“जूबी के पास ही जाऊँगा ।” कहने के साथ ही जब्बार आगे बढ़ा और बाहर निकलता चला गया ।

अनीस ने हाथ में दबे मोबाइल से नम्बर मिलाकर बात की ।

“जब्बार बाहर निकला ?”

“अभी-अभी निकला है ।” उधर से आवाज आई ।

“आस-पास पुलिस तो नहीं ।”

“ऐसा कुछ नहीं है ।”

“उस पर नजर रखो । वह जहाँ जाये, जिससे बात करे, सब बातों की रिपोर्ट मिलती रहनी चाहिए ।” कहकर अनीस ने फोन बन्द किया और अब बड़ा खान के नम्बर मिलाने लगा । चेहरे पर गंभीरता थी ।

जल्द ही बड़ा खान से बात हो गई ।

“जनाब ! जब्बार गद्दार हो चुका है ।” अनीस ने कहा ।

“तुमने बात की उससे ?”

“हाँ । परन्तु ये बात बताने को तैयार नहीं कि उस नकली पुलिस वाले ने किन शर्तों पर उसे जेल से फरार करवाया है ।”

“क्या कहता है ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“कहता है उसने बिना किसी शर्त के, मुफ्त में जेल से निकाला है उसे ।”

“ये सम्भव नहीं ।” बड़ा खान की आवाज पुनः आई, “वह नकली पुलिस वाला कौन है ?”

“मेरे सामने उसने ये ही जाहिर किया कि ये खबर उसे अभी पता चली है ।”

“मतलब कि वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं ।”

“जब्बार कभी भी हमारे लिए बड़ा खतरा बन सकता है । इसमें कोई शक नहीं । वह नकली पुलिस वाले से मिला हुआ है । और आपके खिलाफ दोनों कुछ कर सकते हैं । मुझे लगता है कि जब्बार आपकी टोह लेता फिर रहा है ।”

“अब कहाँ है वह ?”

“छिपने के लिए जगह मांग रहा था । जूबी के पास जाने को कहा है मैंने । पता नहीं वह गया है या नहीं । मेरे आदमी उसके पीछे लग चुके हैं । उसकी खबर मुझे मिलती रहेगी । पहले वह आपसे बात करना चाहता था । परन्तु मेरे से बात करने के बाद उसने बात करने को मना कर दिया । मेरे ख्याल में वह सतर्क हो गया है । वह नकली पुलिस वाला जो भी है, वह जरूर जब्बार के सहारे आप तक पहुँचना चाहता होगा । ये ही सौदा हुआ होगा उन दोनों के बीच में ।”

“निश्चिन्त रहो । मुझ तक कोई नहीं पहुँच सकता ।” इतना कहकर उधर से बड़ा खान ने फोन बन्द कर दिया था ।

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