"य...यस, सर—मैं सब कुछ समझ गया हूं, सर—सचमुच वह हमारी घरेलू समस्या है, मगर पुलिस का प्रयोग सिर्फ इसलिए किया गया, क्योंकि हमें उनके भारत से निकल जाने का खतरा था।"

"मैंने आपको सब कुछ बता दिया है।" दूसरी तरफ से गृहमंत्री ने कहा—"एप्लीकेशन के नीचे उसने इकबाल के नाम से ही हस्ताक्षर किए हैं, अतः इकबाल की कम्पलेण्ट हमारे पास है—उचित यह होगा कि आप सोच-समझकर कदम उठाएं।"
"यस, सर।"
दूसरी तरफ से सम्बन्ध-विच्छेद होते ही ठाकुर साहब ने रिसीवर रख दिया—उनके चेहरे पर पसीना उभर आया था—दिमाग सांय-सांय कर रहा था—गृहमंत्री महोदय की बात सुनने के बाद उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें?
अचानक ही फोन की घण्टी पुनः घनघना उठी।
ठाकुर साहब ने अनमने ढंग से रिसीवर उठाया और बोले—"हैलो।"
"मैं इंस्पेक्टर प्रभाकर बोल रहा हूं, सर।"
"कहो।"
"हमने एक टैक्सी में जाते सुपर साहब और तबस्सुम को अपनी गिरफ्त में ले लिया है।"
"ओह!" यह शब्द स्वयं ही उनके मुंह से निकल पड़ा—फिर कुछ देर के लिए वे सोच में पड़ गए, गृहमंत्री के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे—उन्होंने स्पष्ट कहा था कि रघुनाथ का इकबाल बन जाना आपका घरेलू मामला है, अतः इसमें अपने पद अथवा पुलिस का दुरुपयोग न करें।
दूसरी तरफ प्रतीक्षारत प्रभाकर ने पूछा—"स...सर?"
"यस।" ठाकुर साहब चौंके, फिर सम्भलकर बोले—"क्या इस वक्त वह तुम्हारे आस-पास हैं?"
"जी हां।"
"उससे हमारी बातें कराओ।"
कुछ ही देर बाद दूसरी तरफ से रघुनाथ की आवाज उभरी—"इकबाल हीयर।"
"रघुनाथ।"
"लगता है—अभी तक गृहमंत्री महोदय से आपकी बातें नहीं हुई हैं।" कटु स्वर।
"हमारी बातें हो चुकी हैं, रघुनाथ, लेकिन इंस्पेक्टर को पता नहीं था—उसने पुराने आदेशों के मुताबिक ही तुम्हें गिरफ्तार कर लिया—हमें अफसोस है।"
"तो मैं रिसीवर इन्हें देता हूं—नए आदेश दीजिए।"
"वह तो हम दे ही देंगे, बल्कि इकबाल के रूप में तुम पूरी तरह आजाद हो—तुम्हें कोई पुलिस नहीं पकड़ेगी—मगर—।"
"मगर क्या?"
"भले ही तुम खुद को रघुनाथ न मानो, परन्तु पुलिस सुपरिंटेंडेण्ट अभी तक हो—सबूत के लिए तुम्हारे जिस्म पर इस वक्त भी सरकारी वर्दी होगी—हम आई.जी. हैं—तुम्हारे अफसर और उसी नाते हम तुम्हें आदेश देते हैं कि तुरन्त ऑफिस आकर हमसे मिलो।"
"मैं यह आदेश मानने से इंकार करता हूं।"
"म...मिस्टर एस.पी.।" ठाकुर साहब गुर्रा उठे।
"मैं एस.पी. नहीं हूं।"
"तुम एस.पी. हो—और यदि तुमने इस हुक्म की फौरन तामील न की तो हम जानते हैं कि एक अनुशासन तोड़ने वाले पुलिस अफसर को किस तरह अपने सामने लाकर खड़ा करना है।"
"तो सुनो, ठाकुर—मैं आ रहा हूं—अपने इंस्पेक्टर से कहो कि हमें छोड़ दे।"
ठाकुर साहब के आदेश पर ऑफिस में प्रविष्ट होते ही रघुनाथ ने जोरदार सैल्यूट दिया और सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया—अपनी कुर्सी पर बैठे ठाकुर साहब अभी कुछ कहने ही वाले थे कि ऑफिस में तबस्सुम दाखिल हुई—उसे देखते ही जाने क्यों ठाकुर साहब का चेहरा तमतमा उठा—वे हलक फाड़कर चिल्ला उठे—"तुम्हें इस ऑफिस में किसने आने दिया?"
"तबस्सुम मेरे साथ है।" रघुनाथ ने कहा।
"हमने तुम्हें किसी के साथ नहीं बुलाया था।"
"मैं आपके हुक्म का गुलाम नहीं हूं।"
ठाकुर साहब हलक फाड़कर चीख पड़े—"रघुनाथ—।"
"आप भूल रहे हैं कि मैं इकबाल हूं।"
"इस ऑफिस में तुम एस.पी. हो—सिर्फ एस.पी—और हम तुम्हारे अफसर हैं—ये हमारा आदेश है कि इस कूड़े के ढेर को इस ऑफिस से उठाकर बाहर फेंक दो।"
"मैं आपका आदेश मानने से इंकार करता हूं—और ये रहा मेरा इस्तीफा।" कहने के साथ ही जेब से इस्तीफा निकल कर रघुनाथ ने ठाकुर साहब के सामने मेज पर डाल दिया—एक नजर उन्होंने इस्तीफे को देखा, फिर चौंके हुए अन्दाज से रघुनाथ की तरफ—रघुनाथ  का चेहरा उस वक्त किसी पत्थर के कोयले की तरह काला, खुरदरा, सख्त और ऊबड़-खाबड़ महसूस हो रहा था—ठाकुर साहब के जिस्म पर मौजूद हजारों मसामों ने एक साथ पसीना उगल दिया—नजर तबस्सुम पर पड़ी तो तबस्सुम ने धीमे से मुस्कराकर उनके तन-बदन में आग लगा दी—जाने क्यों ठाकुर साहब की आंखें भरती चली गईं, वे कह उठे—"य...ये आखिर तुम्हें हो क्या गया है, रघुनाथ?"
"मैं रघुनाथ नहीं हूं।"
"जानते हो—हमने तुम्हें यहां क्यों बुलाया है?"
"मैं नहीं जानना चाहता।"
कसमसाते हुए ठाकुर साहब एक झटके के साथ कुर्सी से खड़े हो गए—उसे घूरते हुए बोले—"तुमने गृहमंत्री से हमारी शिकायत की—यह कहा कि हमने कानून अपने हाथ में लिया है—पुलिस का दुरुपयोग किया है—तुम्हें यह भी शक है कि हमारे नेतृत्व में अहमद खान के मर्डर की छानबान ईमानदारी से नहीं होगी, क्योंकि उसका हत्यारा विजय हो सकता है—उफ—हमारे बेदाग कैरियर पर यह दाग भी तुम्हीं को लगाना था रघुनाथ—जाओ, अहमद खान मर्डर केस की जिम्मेदारी हम तुम्हें सौंपते हैं—तहकीकात करो—वह चाहे जो हो—विजय या हम-उसे पकड़कर कानून के हवाले करने का काम हम तुम्हें सौंपते हैं।"
"आप मेरे इस्तीफे को भूल रहे हैं।"
"क्या तुम उस मर्डर केस की छानबीन करने के लिए तैयार नहीं हो?"
"कम-से-कम आप जैसे अफसर के आदेश मैं नहीं सुन सकता।"
ठाकुर साहब कसमसाकर रह गए—उस वक्त उनकी ऐसी इच्छा हो रही थी कि अपने बाल नोच लें—सिर दीवार में दे मारें—उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उनके सामने खड़ा होकर रघुनाथ कभी ऐसे लफ्ज बोलेगा—अपना स्वर कठोर करके बोले—तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?"
"बेशक।"
"एक बार सोच लो।"
"इस पद पर तो क्या—मैं एक क्षण भी इस ऑफिस में खड़ा रहना नहीं चाहता।"
ठाकुर साहब ने कठोर स्वर में कहा—"तुम्हारा इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है—सरकारी रिवॉल्वर—परिचय—पत्र और बैल्ट उतार दो।"
रघुनाथ एक पल के लिए भी नहीं हिचका।
दूसरी तरफ से वह ऊंचे स्वर में कह रहा था—"मैं लखनऊ से विकास बोल रहा हूं गुरू—कुछ ही देर पहले अखबार पढ़ा—ये सब क्या चक्कर है?"
"चक्कर वही है, प्यारे दिलजले, जो अखबार में लिखा है।"
"क...क्या मतलब—क्या सचमुच डैडी इकबाल...?"
"हां प्यारे।"
"इस वक्त वे कहां हैं?"
"रात ही से गायब हैं—सारे राजनगर की पुलिस तथा विक्रम, नाहर, परवेज, आशा और अशरफ आदि भी तभी से सारे शहर की खाक छानते फिर रहे हैं, लेकिन अपने तुलाराशि का अब तक कहीं पता नहीं लगा है।"
"ओह—मुझे सख्त अफसोस है गुरू कि इस वक्त मैं वहां नहीं हूं।"
"तुम लखनऊ की कहो प्यारे—क्या रहा?"
"मैं चैक कर चुका हूं, गुरू—ज्ञान भारती के रजिस्टरों में कहीं भी डैडी का नाम नहीं है—मैं उस मुहल्ले की तरफ जाने की सोच रहा था, जहां वे रहते थे कि अखबार में यह सब पढ़कर कॉल बुक कर दी—मेरे ख्याल से अब किसी किस्म की तहकीकात की जरूरत नहीं रह गई है, गुरू—स्पष्ट हो चुका है कि डैडी ही इकबाल हैं—इजाजत हो तो मैं अगली फ्लाइट से वहां पहुंच जाऊं?"
विजय ने एक पल सोचने के बाद कहा—"आ जाओ।"
दूसरी तरफ से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया—विजय अभी रिसीवर क्रेडिल पर रखा ही था कि घण्टी पुनः बजने लगी—रिसीवर वापस उठाकर विजय ने कहा—"हैलो।"
"ये हम बोल रहे हैं, विजय।"
"ओह—बापूजान—कहिए।"
"हमने तुम्हें सचेत करने के लिए फोन किया है—यदि रघुनाथ तुम्हें या तुम्हारे गुण्डे दोस्तों को कहीं मिले तो उस पर हाथ डालने या उसके साथ कोई भी गैरकानूनी हरकत करने की कोशिश न करना।"
"क्यों?"
ठाकुर साहब वह सब कुछ विजय को संक्षेप में बताते चले गए जो कि रघुनाथ ने गृहमंत्री से कहा था—यह सुनकर विजय चौंक पड़ा कि अहमद का कत्ल हो गया था—उसी फ्लो में, बिना किसी तरह का कौमा या विराम प्रयोग करे, ठाकुर साहब उसे अपनी और रघुनाथ की वार्ता भी बताते चले गए इसमें उसे इस्तीफे वाली बात बड़ी अजीब लगी—उसके कुछ कहने से पहले ही ठाकूर साहब कहते चले गए—"अहमद की हत्या का सन्देह तुम्हारी ऊटपटांग हरकतों की वजह से उसने सीधा तुम पर व्यक्त किया है—लाश पुराने शिकारगाह के खण्डहरो में पड़ी है—हमने उस मर्डर केस की छानबीन करने का फैसला खुद किया है—इस फोन का मकसद तुम्हें सिर्फ यह चेतावनी देना था कि यदि तुमने सचमुच अहमद की हत्या की है तो हम तुम्हें फांसी के फन्दे पर पहुंचाकर ही सांस लेंगे—और यदि अब तुम कहीं भी किसी किस्म की गैरकानूनी हरकत करते पकड़े गए तो तुम्हारा टकराव सीधा हमसे होगा।"
विजय ने पूरी बात सुने बिना ही दूसरे हाथ की उंगली से कनेक्शन ऑफ कर दिया—बुरा-सा मुंह बनाकर बोला—"पूरा भाषण ही झाड़ दिया—अपने बापूजान भी शायद नेता बन गए हैं।"
अभी उसने रिसीवर क्रेडिल पर रखा ही था कि उसकी तर्जनी में मौजूद एक चौड़े नग वाली अंगूठी स्पार्क करने लगी—विजय ने अंगूठी में छुपा छोटा-सा ट्रान्समीटर ऑन किया और भर्राए हुए स्वर में बोला—"पवन हीयर।"
दूसरी तरफ से भी ठीक वैसी ही आवाज उभरी—"पवन हीयर, सर।"
"ओह—।" विजय ने अपनी आवाज में कहा—"तुम हो प्यारे काले लड़के—हम समझे कि अशरफ, विक्रम, नाहर, आशा या परवेज में से कोई है, इसीलिए उन पर अपनी आवाज का रौब बैठा रहे थे—खैर, कहो—तुम कहां से और क्यों बोल रहे हो?"
"मैं इस वक्त एक कार में रघुनाथ और तबस्सुम का पीछा कर रहा हूं, सर।"
"वे किस वाहन में हैं?"
"कुछ ही देर पहले मैंने उन्हें किराए पर कार देने वाली एक कम्पनी से कार लेते देखा—इस वक्त वे उसी कार में मुझसे करीब सौ मीटर आगे हैं।"
"वे किधर जा रहे हैं?"
"पुरानी शिकारगाह की तरफ।"
"ओह!"
"क्या आदेश है, सर? क्या मैं उन्हें गिरफ्तार कर लूं?"
"न...नहीं प्यारे—ऐसी गलती मत करना—।" विजय ने जल्दी से कहा।
हल्के से चौंकते हुए ब्लैक ब्वॉय ने पूछा—"क्यों सर—आप ही ने तो कहा था कि आप उनकी खबर गुप्त भवन में ही लेंगे अतः जो उन्हें देखे, गिरफ्तार करके गुप्त भवन...।"
"अपना तुलाराशि बहुत ज्यादा स्मार्ट हो गया लगता है, प्यारे काले लड़के।" विजय ने कहा—"वह गृहमंत्री को लिखित रूप में यह दे चुका है कि यदि उसे या तबस्सुम को कुछ हो जाए तो उसकी पूर्ण जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन की है।"
"ओह!"
"अहमद का कत्ल हो गया है और उसने अपना सन्देह हम पर व्यक्त किया है।"
"ज...जी—मैं समझा नहीं।"
विजय ने उसे वे सब बातें बता दीं जो कि कुछ ही देर पहले ठाकुर साहब से हुई थीं, बोला—"इन स्थितियों में फिलहाल रघुनाथ पर हाथ डालना ठीक नहीं है—फिलहाल सिर्फ तेल और तेल की धार देखते रहो—हम स्वयं भी पुरानी शिकरगाह पर पहुंच रहे हैं—
अशरफ आदि को भी तुम इस नई स्थिति से अवगत करा दो।"
"ओ.के. सर।"
किसी जमाने की शिकारगाह और आज के खण्डहर के चारों तरफ भारी बूट—खाकी वर्दी—लाल निशान की टोपियों वाले ही नजर आ रहे थे—बहुत-सी पुलिस जीपें खड़ी थीं वहां और उस कमरे के इर्द-गिर्द, जिसमें अहमद की लाश पड़ी थी, ठाकुर साहब, रघुनाथ और तबस्सुम के अतिरिक्त फोटोग्राफर तथा फिगर प्रिंट्स विभाग के लोग थे।
रघुनाथ और तबस्सुम उनसे पहले ही वहां पहुंच चुके थे।
ठाकुर साहब को देखते ही रघुनाथ ने व्यंग्यपूर्वक पूछा था—"आप क्यों आए हैं यहां?"
"घटना की तहकीकात करने।"
"खूब! बेटा कत्ल करे और बाप इन्वेस्टिगेशन—हत्यारा जरूर पकड़ा जाएगा।"
"ये सरकारी काम है, मिस्टर इकबाल, यदि आप इसमें टांग अड़ाएंगे तो अच्छा नहीं होगा—य़े ठीक है कि कत्ल आपके अब्बा का हुआ है—गृहमंत्री महोदय के सामने आप अपना सन्देह भी व्यक्त कर चुके हैं—वह सब साधारण नागरिक की हैसियत से आपका अधिकार था, परन्तु बिना किसी प्रमाण के न तो आप किसी को कातिल ही कह सकते हैं और न ही किसी जांच करने वाले पर शक कर सकते हैं।"
"चलिए—आपने मुझे इकबाल तो माना, लेकिन...।"
"लेकिन—?"
"मैंने गृहमंत्री महोदय से कहा था कि इस मर्डर केस की छानबीन वे किसी...।"
"आप प्रशासन से सिर्फ रिक्वेस्ट कर सकते हैं—मजबूर नहीं कर सकते—हम सिर्फ इतना जानते हैं कि उन्होंने हमें इस केस की छानबीन के बारे में कुछ नहीं कहा है, अतः यह हमारे अधिकार क्षेत्र में है कि हम यह जिम्मेदारी किसे सौंपे।"
रघुनाथ ने फिर व्यंग्य किया—"और आपने यह जिम्मेदारी स्वयं ही ओढ़ ली।"
"क्योंकि यह कत्ल हमारी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर धब्बा बन गया है।" कहने के बाद उन्होंने लाश वाले कमरे की तरफ पहला कदम बढ़ाया ही था कि उनकी नजर खण्डहर में दाखिल होते विजय पर पड़ी।
विजय को देखते ही रघुनाथ की आंखें सिर्फ उसी पर चिपक गईं—चेहरा कठोर होता चला गया—जबड़े भिंच गए—आंखें सुर्ख—सारे जिस्म में एक अजीब-सा तनाव उत्पन्न हो गया था—जिस वक्त रघुनाथ बार-बार अपनी मुट्ठियां कस रहा था, उस वक्त ठाकुर साहब ने विजय से पूछा—"तुम यहां क्यों आए हो?"
"कबड्डी खेलने।" विजय के चेहरे पर मासूमियत थी।
ठाकुर साहब ने उससे उलझना ठीक नहीं समझा—विजय की हरकतों और बातों से वे बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाया करते थे और उस वक्त वे अपने मस्तिष्क को संतुलित रखकर घटनास्थल का निरीक्षण करना चाहते थे, अतः बोले—"तुम उस कमरे में नहीं घुसोगे।"
"क्यों नहीं घुसेंगे?" विजय ने अजीब-से स्वर में पूछा, किन्तु बिना कोई जवाब दिए ठाकुर साहब बारहदरी पार करते हुए तेज कदमों के साथ कमरे की तरफ बढ़ गए—ऊंट की तरह गर्दन लम्बी किए विजय ने अपने चेहरे पर मूर्खतापूर्ण भाव उत्पन्न किए और मुंह चला-चलाकर भैंस की तरह जुगाली करने लगा—इसी बीच उसकी नजर रघुनाथ और उसकी बगल में खड़ी तबस्सुम पर पड़ी।
वे दोनों ही उसे देख रहे थे—बल्कि रघुनाथ तो उसे देखकर भुनभना रहा था—जब विजय से न रहा गया तो वह किसी शायर के से अन्दाज में कह उठा—"यूं घूर-घूर के न देख हसीना—मेरा दिल फड़कता है और आता है पसीना।"
रघुनाथ एकदम किसी गोरिल्ले की तरह झपटा—इससे पहले कि स्वयं विजय की समझ में कुछ आए, रघुनाथ ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और पागलों की तरह झंझोड़ता हुआ चीख पड़ा—"हरामजादे, कुत्ते, मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा।"
कमरे की तरफ बढ़ते हुए ठाकुर साहब ठिठके—घूमे।
बौखलाए से अन्दाज में विजय कह रहा था—"अमां—मगर प्यारे—?"
"तूने ही मेरे अब्बा को कत्ल किया है, कमीने—मैं तुझसे खून की एक-एक बूंद का बदला लूंगा।"
वह चीख रहा था—तबस्सुम उसे अलग करने की चेष्टा कर रही थी, जबकि बड़ी तेजी से दौड़कर ठाकुर साहब उनके नजदीक आए और चीखकर बोले—"ये क्या बदतमीजी है रघुनाथ—छोड़ो उसे।"
परन्तु—उसका गिरेबान पकड़े रघुनाथ पागलों की तरह चीखे चला जा रहा था।
अंत में विवश होकर ठाकुर साहब ने सिपाहियों को आदेश दिया—आगे बढ़कर चार पुलिस वालों ने रघुनाथ को विजय से अलग किया—रघुनाथ उनकी गिरफ्त में अभी तक कसमसा रहा था, जबकि विजय किसी मूर्ख के समान अपनी कमीज में पड़ीं सलवटों को दुरुस्त करने में व्यस्त था।
रघुनाथ को घूरते हुए ठाकुर साहब चीखे "यदि तुमने कानून अपने हाथ में लेने या पुलिस कार्यवाही में किसी तरह का गतिरोध उत्पन्न करने की कोशिश की तो हम तुम्हें गिरफ्त में भी ले सकते हैं।"
"मुझे तो गिरफ्त में लिया ही जाएगा—उसे नहीं, जिसने हत्या की है, क्योंकि वह तुम्हारा बेटा...।"
"खामोश।" ठाकुर साहब हलक फाड़कर चिल्ला उठे—"यदि तुमने बार-बार हमारी ईमानदारी पर कीचड़ उछाली तो अच्छा नहीं होगा—यदि तुम्हारे पास इस नालायक को हत्यारा साबित करने का कोई सबूत है तो पेश करो—बिना सबूत के तुम्हें किसी पर हमला करने का हक नहीं है।"
"नाइस—वैरी—नाइस—।" विजय ने ताली बजाई—ठाकुर साहब ने घूरकर उसे देखा।
बड़ी मुश्किल से विजय की मूर्खतापूर्ण हरकतों और रघुनाथ के गुस्से पर काबू पाया गया—तब कहीं ठाकुर साहब लाश वाले कमरे में पहुंचे—सबसे पहले उन्होंने दूर ही खड़े होकर बड़ी की तीक्ष्ण दृष्टि से लाश और कमरे की स्थिति का निरीक्षण किया।
उस वक्त लाश पर मक्खियां काफी अधिक संख्या में भिनभिना रही थीं—ठाकुर साहब धूल-भरे फर्श पर पैरों के निशान तलाश करने लगे।
कमरे में तीन व्यक्तियों के पैरों के निशान थे।
ठाकुर साहब ने सावधानी से बैठकर अपनी उंगली से उन निशानों को नापा—तीसरे निशान को नापने पर उनकी आंखों में आश्चर्य के हल्के से भाव उत्पन्न हुए।
फिर वे खुद को फर्श पर बने निशानों से बचाते हुए लाश की तरफ बढ़े—समीप पहुंचे—मक्खियां भिनभिनाकर उड़ीं—ठाकुर साहब ने जेब से रुमाल निकालकर नाक और मुंह पर रख लिया—लाश के दाईं तरफ लम्बे पैरों के निशान थे—बाईं तरफ पहले किस्म के दोनों निशान।
धूल पर ऐसे निशान भी उसी तरफ थे, जैसे किसी ने वहां घुटने टेके हों।
ठाकुर साहब लाश के समीप अपने पंजों पर बैठे—झुककर बहुत ही ध्यान से जख्म को देखा—फिर बिखरे हुए खून पर उंगली का सिरा रगड़ा—थोड़ा-सा खून उंगली पर लग गया।
वे उठे—सारे कमरे की स्थिति का निरीक्षण करते हुए सावधानी के साथ दरवाजे की तरफ बढ़े—इस बीच उन्होंने रुमाल जेब में डाल लिया था, क्योंकि लाश से अभी इतनी बदबू नहीं उठी थी कि सारा कमरा ही बदबू से भर जाए—हां, लाश के समीप पहुंचने पर बदबू का अहसास जरूर होता था।
दरवाजे पर पहुंचते ही वे जाने क्यों चौंककर ठिठक गए।
एक लम्बी सांस खींची—आंखों में चमक उभरी और फिर वे चौखट को किसी शिकारी कुत्ते की तरह जगह-जगह से सूंघने लगे—चौखट का ऊपरी सिरा उनके सिर से कोई एक फुट ऊंचा था—जब अपनी एड़ियां ऊपर उठाकर ठाकुर साहब ने उसे सूंघा तो उनके नथुने फड़फड़ा उठे।
दूसरा हाथ ऊपर किया।
उंगली चौखट के ऊपरी चौखटे पर रगड़ी और उसी उंगली को सूंघते हुए वे बारहदरी में आ गए—फिंगर प्रिन्ट्स विभाग और फोटोग्राफर को उन्होंने अपना काम करने की इजाजत दी—स्वयं उस तरफ बढ़ गए, जिधर रघुनाथ—विजय और तबस्सुम खड़े थे।
वे तीनों ही प्रश्नवाचक दृष्टि से उनकी तरफ देख रहे थे, जबकि ठीक रघुनाथ के सामने पहुंचकर ठाकुर साहब ने कहा—"वह चाकू दीजिए, जो आपने लाश के सीने से निकाला है।"
"क...क्या मतलब?" रघुनाथ बौखला गया।
"हम तुमसे सिर्फ वह चाकू मांग रहे हैं, जिससे हत्या हुई है।"
"म...मगर वह चाकू—।"
"क्या आपने नहीं निकाला?"
"न...निकाला है—मगर आपको कैसे मालूम?"
"कमरे में सिर्फ तीन व्यक्तियों के पदचिन्ह हैं—तुम्हारे—तबस्सुम के और हत्यारे के—तुम लाश के बाईं तरफ घुटने टेककर बैठे भी थे—तुम्हारी पतलून पर घुटनों के स्थान पर अभी तक कमरे की धूल लगी है।"
रघुनाथ ने अपने घुटनों की तरफ देखा और फिर चेहरा ऊपर उठाकर बोला—"इससे यह कहां पता लगता है कि मैंने लाश में से चाकू निकाला था—चाकू तो मारने के बाद हत्यारा भी निकालकर अपने साथ ले जा सकता है।"
"ऐसा हुआ नहीं है।"
"अ...आप कैसे कह सकते हैं?"
"लाश के सीने और फर्श पर बिखरे खून की दो पर्तें हैं—नीचे वाला पर्त सूख चुकी है, यानि वह खून तब निकला जबकि कत्ल किया गया—लाश में जितनी बदबू है, उससे जाहिर है कि कत्ल रात एक बजे के आस-पास ही हो गया था—तब का निकला खून फर्श पर जम चुका है—उसके ऊपर खून की दूसरी गीली पर्त बताती हैं कि वह खून जख्म से सुबह निकला है और खून दुबारा निकलने का एकमात्र कारण लाश में धंसे चाकू को निकाला जाना है—तुम बाईं तरफ थे—बाईं तरफ ही खून ही चन्द बूंदें पड़ी हैं—बूंदें बताती हैं कि वे थोड़ी ऊपर से गिरीं—जाहिर है कि वे खून से लथपथ चाकू के फल से फिसलकर गिरी होंगी और फिर तुम्हारे मस्तक पर उसी खून का टीका।"
"ओह।" रघुनाथ खून के टीके को तो बिल्कुल भूल ही गया था।
"चाकू दीजिए।"
रघुनाथ ने चुपचाप जेब से चाकू निकालकर उन्हें पकड़ा दिया—वे बन्द चाकू को उलट-पलटकर ध्यान से देखते हुए बोले—"अपनी मूर्खता से तुमने इस पर से हत्यारे की उंगलियों के निशान मिटा दिए।"
रघुनाथ चुप रहा।
ठाकुर साहब ने उसके मस्तक पर लगे लहू के टीके को देखते हुए कहा—"टीका तुम्हारे जुनून और उत्तेजना का प्रतीक है—जरूर तुमने इसे लगाते वक्त अपने अब्बाजान के हत्यारे से बदला लेने की कसम खाई होगी—ये पागलपन होता है और कच्ची भावुकता का शिकार होकर व्यक्ति कानून अपने हाथ में लेता हुआ कोई भयानक भूल कर बैठता है—अतः मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं कि अपने दिमाग को नियंत्रण में रखना।"
"आपने सिर्फ मुझे चेतावनी देने के लिए ही घटनास्थल का निरीक्षण किया है या अपराधी का पता लगा सके हैं?" रघुनाथ ने पुनः व्यंग्य किया।
जले-भुने ठाकुर साहब बोले—"फिलहाल मैं तुम्हें हत्यारे का नाम नहीं बता सकता, क्योंकि वह इतना बदतमीज था कि कहीं भी नाम लिखकर नहीं गया।"
रघुनाथ झेंप-सा गया।
जबकि ठाकुर साहब कहते ही चले गए—"हां—हम यह दावा जरूर कर सकते हैं कि कम-से-कम यह कत्ल उसने बिल्कुल नहीं किया है, जिस पर तुमने अपना शक प्रकट किया था।"
विजय को घूरते हुए रघुनाथ ने पूछा—"ऐसा दावा आप किस आधार पर कर रहे हैं?"
"हत्यारा दस नम्बर के जूते पहनता है—जबकि विजय के जूते का नम्बर सिर्फ आठ है—जूते भी देसी नहीं, बल्कि विदेशी पहनता है—यकीनन हत्यारे का कद सात फुट है, और आज के युग में सात फुट का व्यक्ति पाया जाना बड़ा मुश्किल काम है—इस कद के दुनिया में ज्यादा व्यक्ति नहीं हैं, अतः हत्यारे को ढूंढने में उतनी दिक्कत नहीं होनी चाहिए—हत्यारा अपने सिर में जबरदस्त खुशबूदार तेल लगाता है—यह तेल भी देसी नहीं है।"
"क्या आप यह कहना चाहते हैं कि हत्यारा भारतीय नहीं है?"
"क्यों नहीं हो सकता—वह सिर्फ जूते और तेल ही विदेशी इस्तेमाल करता है और कमाल की बात ये है कि ये दोनों ही चीजें अमेरिकी हैं—जूते अमेरिका की प्रसिद्ध शूज कम्पनी 'इंगोलिया' के बने हैं और तेल 'प्राइडिट ऑयल' के नाम से सारे अमेरिका में मशहूर है।"
"इन सब बेकार की बातों से क्या होगा?"
"लम्बे पैरों वाला—ऐसा सात फुटा व्यक्ति बहुत दिन तक हमारी नजर से न छुप सकेगा जो कि 'प्राइडिट ऑयल' का प्रयोग करता हो।" कहने के बाद ठाकुर साहब तेज कदमों के साथ वहां से चले गए।
शाम के चार बज रहे थे।
खण्डहर के बाद से ही विजय—रघुनाथ और तबस्सुम का पीछा कर रहा था—तबस्सुम और रघुनाथ ने होटल सम्राट में एक कमरा लिया था—विजय ने पता लगा लिया था कि उन्हें पचास नम्बर का कमरा मिला है—कुछ देर तक वे अपने कमरे में आराम करते रहे थे।
फिर कमरे में ही लंच गया।
वे चार बजे अपने होटल से बाहर निकले—कार में बैठकर रवाना हो गए—अपनी कार में उस वक्त भी विजय उनका पीछा कर रहा था—उस वक्त विजय की खोपड़ी घूम गई, जब उसने रघुनाथ की कार को कचहरी के अन्दर दाखिल होते देखा।
काफी दिमाग घुमाने के बाद भी विजय यह नहीं सोच सका कि वे कचहरी क्यों गए थे?
सुबकती हुई रैना ने विकास को सारी बातें विस्तारपूर्वक बता दीं।
सुनकर जहां विकास का चेहरा कठोर हो गया, वहीं धनुषटंकार ने भी अन्धाधुन्ध शराब पीनी शुरू कर दी—हालांकि गुस्से के कारण लड़के का सारा जिस्म कांप रहा था, परन्तु स्वयं को संयत रखकर उसने कहा—"म...मगर मम्मी, आप इस तरह रो क्यों रही हैं?"
"तुमसे तुम्हारे डैडी छिन गए, विकास।"
"नहीं—।" विकास ने दृढ़ता के साथ कहा—"मैं इस तरह उन्हें नहीं छिनने दूंगा।"
रोती हुई रैना ने कहा—"कोई कर भी क्या सकता है?"
"चाहे जो करना पड़े मम्मी—विकास की मां होकर रो रही हो तुम-रोओ मत मां—ये तूने सोच कैसे लिया कि कोई भी ऐरे-गैरे आकर डैडी को इकबाल बनाकर हमसे छीनकर ले जाएंगे—यदि वे इकबाल हैं भी तो हमारे रघुनाथ भी हैं—मेरे डैडी और तुम्हारे पति भी हैं।"
"चाचाजी ने बताया कि कानूनन उन पर उन्हीं पर हक बनता है।"
"तुम भूल गईं, मां—क्या तुम भूल गईं कि तुम्हारा विकास ऐसे किसी कानून को नहीं मानता, जो किसी पर जुल्म करे—दुनिया का कोई भी कानून डैडी को हमसे नहीं छीन सकता और यदि ऐसा हुआ तो मैं दुनिया-भर की कानून की किताबों में आग लगा दूंगा—तेरा बेटा दुनिया की सारी अदालतों को जलाकर राख कर देगा, मां—त...तुम-तुम-।"
आगे कहता-कहता विकास रुक गया।
पोर्च में कोई कार रुकी थी—दो-तीन लम्बे कदमों के साथ वह दरवाजे पर पहुंचा—वहां से पोर्च साफ चमकता था—कार में से उसने रघुनाथ और तबस्सुम को निकलते देखा।
उसने घूमकर कहा—"डैडी आ रहे हैं।"
सोफे पर बैठी रैना जल्दी से खड़ी हो गई—साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछे—धनुषटंकार इस तरह सम्भलकर बैठ गया, जैसे कोई महत्वपूर्ण काम करना हो—तबस्सुम का हाथ पकड़े रघुनाथ तेज कदमों के साथ इसी तरफ आ रहा था।
विकास के समीप पहुंचते ही वह ठिठका।
पूरी श्रद्धा के साथ विकास चरण स्पर्श करने के लिए झुका—रघुनाथ शीघ्रता से दो कदम पीछे हट गया—जिस वक्त सुर्ख चेहरा लिए विकास सीधा हो रहा था, उस वक्त रघुनाथ ने पूछा—"कौन हो तुम?"
"विकास।"
"ओह।" रघुनाथ के चेहरे पर व्यंग्य और खिल्ली उड़ाने वाले भाव पैदा हो गए—"तो तुम हो विकास—हमारा बेटा होने का दावा करने वाले—खूबसूरत हो—अच्छा कद है—ठाकुर साहब को मेरे अब्बाजान के हत्यारे के रूप में तुम्हारे जैसे ही कद के किसी व्यक्ति की तलाश है।"
"क्या मतलब, डैडी?"
"कुछ नहीं—रास्ता छोड़ो—मुझे तुम्हारी मां से मिलना है।"
विकास एक तरफ हट गया—कमरे में कदम रखते ही रघुनाथ को बुरी तरह चौंककर पीछे हट जाना पड़ा—कारण—अचानक ही धनुषटंकार का उसके चरणों में गिर पड़ना था—रघुनाथ अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि धनुष्टंकार चरण स्पर्श करने के बाद एक ही जम्प में सोफे की पुश्त पर जा बैठा।
तबस्सुम और रघुनाथ उसे हैरतअंगेज दृष्टि से देखते रहे।
एकाएक रघुनाथ ने कहा—"ये बन्दर कौन है?"
बन्दर शब्द कहने का मजा चखाने के लिए अभी धनुषटंकार उछलने ही वाला था कि विकास ने जल्दी से कहा—"नहीं मोन्टे, डैडी ने अनजाने में कहा है।"
धनुषटंकार रुक गया।
रघुनाथ ने कहा—"काफी समझदार बन्दर है।"
"आप उसे बार-बार बन्दर न कहें—वह चिढ़ता है।
रैना चुप थी। वह एक शब्द भी नहीं बोली थी—जैसे गूंगी हो—हां, अन्दर से फूट पड़ने वाली रुलाई को रोकने की कोशिश में रह-रहकर उसका चेहरा जरूर बिगड़ने लगता था—एकाएक ही रघुनाथ उसकी तरह घूमकर बोला—"मैं तुमसे कुछ बात करने आया था।"
"ज...जी!"
"क्या तुम मेरी पत्नी बनी रहता चाहती हो?"
चौंके हुए अन्दाज में रैना ने उसकी तरफ देखा, बोली—"मैं इस सवाल का अर्थ नहीं समझी, नाथ? पत्नी तो मैं आपकी हूं ही।"
"मैं नहीं जानता—मगर तुम कह रही हो—तुम्हारा बेटा कह रहा है—सारा राजनगर यही कह रहा है, इसलिए मानता हूं कि तुम मेरी पत्नी हो—मैं हां ना में जवाब चाहता हूं—मैंने यह पूछा है कि क्या तुम भविष्य में भी मेरी पत्नी बनी रहना चाहती हो?"
रैना चुप।
"इसका मतलब बनी रहना चाहती हो?"
रैना चुप रही।
रघुनाथ ने आगे कहा—"भविष्य में मेरी पत्नी बनी रहने के लिए तुम्हें मेरी एक शर्त मंजूर करनी पड़ेगी।"
"किसी भी पत्नी को हजार शर्तें मंजूर हो सकती हैं।"
"मेरी पहली पत्नी यानि तबस्सुम को भी तुम्हारे बराबर के, बल्कि उससे भी ज्यादा अधिकार प्राप्त होंगे।"
"न...नाथ!" रैना का स्वर कांपा।
"ड...डैडी!" विकास की चीख से सारी कोठी झनझना उठी।
"अपने बेटे से कहो कि वह चुप रहे—मैं तुमसे बात कर रहा हूं और एक समझदार बेटे को मां-बाप के बीच में बोलने का कोई हक नहीं है।"
"मुझे पूरा हक है, डैडी।" दहाड़ता हुआ विकास उसके सामने आ गया—"अ...आप—आखिर क्या हो गया है आपको—आप समझते क्यों नहीं?"
"तुम बीच में से हटते हो या नहीं?"
अभी विकास ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि रैना बोल पड़ी—"तुम्हारे डैडी ठीक कह रहे हैं, विकास—तुम्हें मां-बाप के बीच में नहीं बोलना चाहिए—हट जाओ बेटे।"
"म...मगर मां?"
रैना का कठोर स्वर—"ये मेरा हुक्म है, विकास।"
"उफ्फ।" झुंझलाहट में लड़के ने दाएं हाथ का मुक्का बाईं हथेली पर मारा—"म...मां—तुम-उफ्फ—अब मुझे यह सब सुनना पड़ेगा—मां का इतना अपमान?"
वह बीच में से हट गया।
कई क्षण के लिए कमरे में गहरी खामोशी छा गई—तब रघुनाथ ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा—"जवाब दो—क्या तुम्हें मेरी शर्त मंजूर है?"
तबस्सुम की तरफ देखती हुई रैना ने घृणात्मक स्वर में कहा—"नहीं।"
रघुनाथ के होंठों पर मुस्कान उभरी, बोला—"मैं जानता था कि तुम्हारा यही जवाब होगा।"
"क्या मतलब?"
रघुनाथ ने अपनी जेब से एक कागज निकाला और रैना की तरफ उछालता हुआ बोला—"ये लो—ये मेरी उस दरख्वास्त की कॉपी है, जो मैं अभी-अभी अदालत में देकर आया हूं।"
"क्या है इसमें?"
"इस एप्लीकेशन के जरिए तुमसे डाइवोर्स मांगा गया है।"
"त...तलाक?" रैना के कंठ से एक चीख-सी निकल गई—आंखों के समाने अंधेरा-सा छा गया—रैना दांत भींचकर गुर्राई—"आप मुझसे तलाक लेना चाहते हैं?"
रघुनाथ ने आराम से कहा—"वह एप्लीकेशन मैं अदालत में दे चुका हूं, जो तुम्हारे हाथ में है—दो या तीन दिन में अदालत का नोटिस भी यहां पहुंच जाएगा।"
"जब आपने सब कुछ कर ही दिया है तो यहां क्यों आए थे?"
"अपनी शर्त रखने—हालांकि जानता था कि उस शर्त को तुम स्वीकार नहीं करोगी—फिर भी यह शर्त बता देना मैंने अपना फर्ज समझा—अपने मजहब के मुताबिक मैं कानूनन दो या उससे ज्यादा पत्नियां रख सकता हूं—तबस्सुम को जरूर रखूंगा—तबस्सुम को इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि तुम भी हमारे साथ रहो—तुम ही को इससे आपत्ति है, अतः तुम्हीं से तलाक लेना पड़ेगा।"
"आप इस बाजारू लड़की से मेरी तुलना कर रहे हैं?"
रघुनाथ गुर्रा उठा—"ये बाजारू लड़की नहीं है, रैना—तुमसे पहली मेरी बीवी है।"
"मैं कभी ख्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि आप इतने पतित हो सकते हैं—इतने नीचे भी गिर सकते हैं!"
"मुझे अपने सवाल का जवाब चाहिए।"
“मैं इस कुतिया के सात आपको नहीं बांट सकती।”
"रैना—।" रघुनाथ दहाड़ उठा—"यदि तुमने फिर तबस्सुम को गाली दी तो—"
"दूंगी—हजार बार दूंगी—ये कमीनी है—कुतिया है—मेरे सुहाग को....।"
"र...रैना।" चीखने के साथ ही रघुनाथ ने रैना को थप्पड़ मारने के लिए हाथ हवा में उठाया ही था कि विकास ने उसे हवा में ही पकड़ लिया—दांत पीसते हुए विकास ने कहा—"ब...बस—बहुत हो गया, डैडी—हाथ पीछे रखो—म...मां कसम-यदि मां पर उठा तो काटकर फेंक दूंगा—एक गाली भी मुंह से निकाली तो इसके गर्भ से जन्मा आपकी जुबान के टुकड़े-टुकड़े कर देगा।"
रघुनाथ कांप गया।
रैना के हाथ का भरपूर थप्पड़ विकास के गाल पर पड़ा।
"म...मां—!" लड़का चीख पड़ा।
बिफरी हुई रैना दहाड़ी—"क्या कहा रे तूने—त...तू—इनके हाथ तोड़ देगा—इनकी जुबान काटेगा—क्या इसी दिन के लिए तुझे पैदा किया था, कम्बख्त—तू कौन होता है हमारे बीच में बोलने वाला—तू इन्हें रोकेगा—अरे, इन्हें तो तेरी मां की चमड़ी तक उधेड़ देने का हक है।"
"म...मां—तुम।"
"छोड़—छोड़ दे, कमीने।" दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़कर रैना हिस्टीरियाई अन्ताज में चीख पड़ी—"इनका हाथ छोड़ दे—मेरी नजर से दूर हो जा—चला जा यहां से।"
फफक-फफककर रोते हुए लड़के ने वह हाथ छोड़ दिया, जो उसकी मां की तरफ उठा था—दौड़कर एक कोने में दीवार से जा लिपटा विकास—दीवार में मुंह छुपाकर उसने इतनी जोर-जोर से घूंसे मारे कि सारी दीवार कांपती हुई-सी महसूस हुई।
जबकि रघुनाथ ने कहा—"मैं इस नाटक से प्रभावित नहीं हो सकूंगा।"
"आप जाइए—।" रैना ने हाथ जोड़कर कहा—"जहां भी जिस हाल में आप खुश रह सकें, रहें—आपकी खुशी ही मेरी सबसे बड़ी दौलत है—जो कुछ मैंने तबस्सुम बहन को कहा, वह सब तो मैं खुद हूं—मेरी तरफ से आप आजाद हैं।"
"चलो तबस्सुम।" रघुनाथ ने तबस्सुम का हाथ पकड़ा और दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए ही थे कि मोन्टो सोफे से कूदकर सीधा दरवाजे के बीचो-बीच जा खड़ा हुआ।
जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया था उसने।
रघुनाथ और तबस्सुम ठिठके, जबकि रैना बोली—"हट जा मोन्टो—जाने दे इन्हें।"
मोन्टो ने इंकार में गर्दन हिलाई।
"क्या कहा—तू मेरा कहना नहीं मानेगा?"
मोन्टो का पुनः वही अन्दाज।
"तुम दोनों ही बहुत बिगड़ गए हो—जिद्दी हो गए हो—तुम्हें मेरी कसम है, मोन्टो—और तुम्हें भी विकास—तुम इनके रास्ते में कोई अड़चन नहीं डालोगे—इन्हें जाने दो।"
झुंझलाकर मोन्टो ने रिवॉल्वर का रुख छत की तरफ किया और जाने किस जुनून में लगातार ट्रेगर दबाता ही चला गया—छहों गोलियां, छत में धंस गईं—फिर उसने झुंझलाकर रिवॉल्वर सामने वाली दीवार में दे मारा—दरवाजे से हटा और अपना सिर दीवार में मारने लगा।
यह थी कुछ भी न कर पाने के कारण मोन्टो की झुंझलाहट।
रैना तड़प उठी—रोती हुई दौड़कर वह मोन्टो के पास पहुंची—उसे गोद में उठाकर बोली—"नहीं रे—नहीं, मोन्टो—ऐसा नहीं करते—यदि तुम भी न रहे तो मैं किसके सहारे रहूंगी?"
उधर कोने में खड़ा विकास कसमसा रहा था।
मोन्टो के हटते ही तबस्सुम को साथ लिए रघुनाथ दरवाजे की तरफ बढ़ गया—अभी करीब नहीं पहुंचा था कि उसे फिर ठिठक कर रुक जाना पड़ा—इस बार दरवाजे पर विजय प्रकट हुआ था, बड़े ही व्यंग्यात्मक अंदाज में ताली बजाता हुआ वह कह रहा था—"वैलडन तुलाराशि—वैलडन।"
"तुम यहां भी पहुंच गए?" रघुनाथ गुर्राया।
"हम तो जिन्न हैं, मेरी जान—जहां चिराग घिसा जाता है, वहीं हाजिर हो जाते हैं।"
"तुम मेरे रास्ते से हटते हो या नहीं?"
"बिल्कुल हटते हैं, सरकार!" विजय एक तरफ हटकर किसी सेवक की-सी मुद्रा में बोला—"जाइए, खुदा आपको महफूज रखे—बड़े ही पाक रास्ते पर जा रहे हैं आप।"
रघुनाथ आगे बढ़कर दरवाजा पार कर गया, जबकि विजय ने उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की—हां, ऊंची आवाज में उसने कहा—"इस कमरे में ऐसी-ऐसी हस्तियां मौजूद हैं प्यारे तुलाराशि कि यदि भगवान भी चाहे तुम्हें तो अपने स्थान से हिल नहीं सकता, मगर तुम जा रहे हो—सिर्फ उसी की वजह से, जिसे तुमने तलाक दिया है।"
ठीक किसी पागल की-सी अवस्था में विकास दीवार पर घूंसे बरसाए जा रहा था—साथ ही चीख भी रहा था—विजय ने भी उसे ऐसी अवस्था में कभी नहीं देखा था—विकास की जिन्दगी में शायद यह ऐसा पहला ही अवसर आया था, जबकि वह बहुत कुछ करना चाहकर भी कुछ नहीं कर सका था—जिनमें ताकत हो—जो तूफान का मुंह मोड़ सकें—नदियों के रास्ते बदल दे—वे जब मजबूर हो जाएं तो इसी तरह झुंझलाते हैं, जैसे विकास झुंझला रहा था।
अपना सिर दीवार से दे-देकर मारने लगा वह।
"व...विकास—विकास।" रैना उसके हाथ और मस्तक से बहते खून को देखकर तड़प उठी। दीवानी की तरह विकास के समीप जाकर बोली—"मुझ पर और जुल्म मत कर बेटे।"
"म...मां।" वह घूमा—"जुल्म तो मुझ पर हुए हैं—डैडी तुम्हें तलाक दे गए और मैं कुछ भी न कर सका—धिक्कार है मुझ पर—ये हाथ किस काम के, मां—इन्हें तोड़ दूंगा।" कहने के बाद घूमकर वह फिर दीवार में घूंसे मारने लगा।
दीवार पर खून की बहुत-सी लकीरें बन गईं।
रैना चकराई और धड़ाम्-से फर्श पर गिरी।
"रैना बहन।" अभी तक शान्त खड़ा विजय चीखता हुआ उसकी तरफ लपका—मोन्टो स्वयं उछलकर उसके पास पहुंच गया—धड़ाम की आवाज सुनकर विकास भी चौंककर घूमा।
वह पागलों की तरह कह उठा—"क्या हुआ मां को?"
"तुम बेवकूफ हो, दिलजले—ऐसे समय पर, जबकि तुम्हें रैना बहन को सम्भालना चाहिए—इन्हें धीरज और सहारे की जरूरत है, उल्टे तुम औरतों की तरह चीख-चीखकर इन्हें अपना खून दिखा रहे हो।"
"हां—मैं औरत हूं, गुरू—मैं कायर हूं—बुजदिल, डरपोक, अपना खून मैं इसलिए दिखा रहा था कि देखो—विकास का खून सफेद हो गया है।"
"ऐसा क्या हो गया, जो तुम इस तरह—।"
"एक खूबसूरत लड़की विकास की आंखों के सामने उसकी मां के सुहाग को छीनकर ले गई गुरू और विकास कुछ भी न कर सका—जिसे तुम तूफानों का मुंह मोड़ देने वाला कहते थे, वह आज अपनी मां की हिफाजत न कर सका।"
"इसमें हम कर ही क्या सकते हैं, दिलजले?"
"हां अंकल, सच—हम कुछ भी नहीं कर सकते—हा—हा—हा—आप भी कुछ नहीं कर सकते—आप, जिन पर मुझे नाज था—जिनके बारे में मैं यह सोचा करता था कि दुनिया का कोई भी काम उनकी पहुंच से दूर नहीं है—वे भी कुछ न सके—और मैं...मैं लखनऊ से यह सोचकर चला था गुरू कि राजनगर पहुंचते ही मैं सारी स्थिति पर नियंत्रण कर लूंगा—मगर कुछ भी तो नहीं कर सका—हा—हा—हा—जब गुरू ही मिट्टी के माधो बन खड़े रहे तो चेला क्या करता?"
"हर काम चीखने-चिल्लाने, भावुक हो जाने या ताकत से नहीं होता, प्यारे।"
"आप तो दिमाग से काम करते हैं न—आपने अभी तक समस्या हल क्यों नहीं कर ली?"
"हालात ही ऐसे हैं।"
"सब हालात ठीक हो जाएंगे, गुरू।" एकाएक किसी विचार के दिमाग में आते ही विकास गुर्रा उठा—"मुझे अपने ढंग से काम करना पड़ेगा।"
"क्या करना चाहते हो?"
"बस—दो मिनट तक उस नागिन का गला दबाए रखने से समस्या हल हो जाएगी।"
चौंकते हुए विजय ने कहा—"क्या तुम तबस्सुम की बात कर रहे हो?"
"सारे झगड़ों की जड़ वही तो है।"
"इस विचार पर हम भी गौर फरमा चुके हैं, प्यारे—यदि हमें लगता कि सिर्फ तबस्सुम को खत्म कर देने से समस्या हल हो जाएगी तो यह काम हम बहुत पहले कर चुके होते।"
"क्या मतलब?"
"क्या तबस्सुम के मरने से अपना तुलाराशि ठीक हो जाएगा—क्या वह यह कहने लगेगा कि वह इकबाल नहीं, रघुनाथ है—हमारे लिए समस्या तबस्सुम नहीं, खुद तुलाराशि है, प्यारे—उसकी वह याददाश्त है, जो लौट आई है।"
"भले ही डैडी इकबाल बने रहें, परन्तु उससे वे मम्मी को तलाक तो नहीं देंगे—तलाक तो सिर्फ उसी की वजह से दे रहे हैं न—जब वही न रहेगी तो...।"
"यह तुम्हारी गलतफहमी है, बेटे।"
"ये मेरी सहीफहमी है गुरू!"
"यदि तबस्सुम को कुछ हो गया तो अपना तुलाराशि नागिन की हत्या का बदला लेने वाला नाग बन जाएगा—वह पहले हमारे या रैना बहन के प्रति इतना कठोर नहीं था—अहमद की हत्या ने उसे चोट खाया हुआ जख्मी सांप बना दिया है—अहमद की मौत के कारण ही वह हमसे टक्कर लेने के लिए खुलकर मैदान में आ गया है।"
"ये आप क्या कह रहे हैं—अहमद की हत्या?"
"हां।"
"किसने की?"
"अभी तक पता नहीं लगा है, मगर उसका शक हम पर है—विशेष रूप से मुझ पर, क्योंकि उसके ख्याल से अहमद की मृत्यु से हमारे अलावा किसी को कोई लाभ नहीं था।"
"म...मगर—अहमद की हत्या किसने और क्यों कर दी?"
"उस हत्या ने ही तो इन साधारण घटनाओं को और ज्यादा उलझा दिया है—समस्या सिर्फ यह नहीं है प्यारे दिलजले कि अपना तुलाराशि रैना बहन को तलाक दे गया—समस्या ये है कि आखिर ये चक्कर क्या है—अहमद को किसने और क्यों मार डाला—मारने वाले को क्या फायदा हुआ—क्या यही कि रघुनाथ हमारे खिलाफ भड़क गया है—जरूर इन घटनाओं के पीछे कोई है—उस तक पहुंचने के लिए हमें सारी वारदातों पर बहुत ही बारीकी से मनन करना पड़ेगा—कहीं ऐसा तो नहीं है कि अपना तुलाराशि किसी बहुत बड़े अपराधी की साजिश का शिकार हो?"
विकास चुप रह गया—सचमुच विजय ने उसे सोचने पर विवश कर दिया था।
"हमारा सबसे पहला काम रैना बहन को होश में लाना है—उसके बाद विचार करेंगे प्यारे कि हमारा अगला कदम क्या हो?"
मगर—विकास के चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे वह अगले कदम के बारे में सोच चुका हो।
विकास ने अपने दाएं हाथ का अंगूठा सम्राट होटल के पचास नम्बर कमरे के बाहर लगे स्विच पर रख दिया—अन्दर कहीं तोता बोला—अंगूठा हटाकर विकास दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करने लगा—उस वक्त वह अकेला ही था, यानि धनुषटंकार भी उसके साथ नहीं था।
दो मिनट बाद ही दरवाजा खुला।
विकास की दृष्टि तबस्सुम पर पड़ी—उसे देखते ही तबस्सुम चौंकी और मुंह से जैसे बरबस ही वाक्य निकल गया—"त...तुम-तुम यहां क्यों आए हो?"
"डैडी से मिलने।"
"यहां तुम्हारे कोई डैडी नहीं रहते हैं।" कहने के तुरन्त बाद उसने दरवाजा बन्द करना चाहा, किन्तु लड़के ने अपनी टांग बीच में अड़ा दी—साथ ही तबस्सुम को पीछे की तरफ एक तेज धक्का देकर वह कमरे में दाखिल हो गया।
पीछे की तरफ लड़खड़ाती हुई तबस्सुम के कंठ से चीख निकल गई।
तभी वहां रघुनाथ की आवाज गूंजी—"क्या हुआ तबस्सुम-कौन है?"
विकास एकदम समझ गया है कि वह आवाज बाथरूम के अन्दर से आई थी—घबराई हुई तबस्सुम ने जल्दी से कहा—"ये है इकबाल-विकास—।"
परन्तु उसका वाक्य समाप्त होने तक चीते की-सी फुर्ती के साथ झपटकर विकास ने बाथरूम का दरवाजा कमरे की तरफ से बोल्ट कर दिया—तबस्सुम कमरे से बाहर निकलने के लिए दरवाजे की तरफ भागी, मगर विकास उससे पहले ही झपटकर वहां पहुंच चुका था।
बड़ी फुर्ती से उसने दरवाजा बन्द करके अन्दर से चिटकनी चढ़ा दी।
बाथरूम के अन्दर से रघुनाथ दरवाजा पीटने के साथ ही चिल्ला रहा था—"तबस्सुम, दरवाजा खोलो—ये दरवाजा तुमने बाहर से क्यों बन्द कर दिया है? कौन है?"
रघुनाथ ने शायद तबस्सुम का पहला वाक्य नहीं सुना था।
बाथरूम के अन्दर फव्वारा चल रहा था—एकाएक ही भयभीत तबस्सुम अपनी पूरी ताकत से चीख पड़ी—"ये विकास है इकबाल-इसी ने दरवाजा बन्द किया है।"
"व...विकास—वह यहां क्यों आया है— दरवाजा खोलो।" कहने के साथ ही रघुनाथ दरवाजे को बुरी तरह झंझोड़ने लगा—तबस्सुम बाथरूम के दरवाजे की तरफ लपकी—मगर विकास उस बार भी वहां उससे पहले पहुंच गया था।
विकास को सामने देखकर तबस्सुम एकदम ठिठक गई—सांसें धौंकनी के समान चल रही थीं—आंखों में आतंक के भाव—विकास का चेहरा कठोर होने के बाद भयानक होता चला गया—वह भयभीत हिरनी के समान पीछे हटी।
लाल आंखों से घूरते हुए विकास ने उसकी तरफ कदम बढ़ाया।
तबस्सुम ने थूक निगला।
रघुनाथ बराबर दरवाजे को झंझोड़ रहा था—साथ ही चीख भी रहा था, किन्तु विकास तो जैसे उस आवाज को सुन ही नहीं रहा था और डर के मारे तबस्सुम की जीभ तालू से जा चिपकी थी।
वह पीछे हट रही थी—विकास उसकी तरफ बढ़ रहा था।
अचानक तबस्सुम सोफे के कोने से टकराई—मुंह से एक चीख निकली—लड़खड़ाई—मगर गिरने से पहले ही सात फुटे ने गोरिल्ले की तरह झपटकर उसकी गर्दन पकड़ ली—विकास के दोनों हाथ उसकी पतली, नाजुक, सुराहीदार और सुन्दर गर्दन पर कस गए।
"न...नहीं-नहीं—।" भयभीत तबस्सुम सिर्फ यही कह सकी थी कि उसकी आवाज दब गई—शब्दों के स्थान पर सिर्फ 'गौं-गौं' की आवाज निकल रही थी—क्योंकि उसकी गर्दन पर लड़के की पकड़ बढ़ गई थी—वह दांत भींचकर गुर्रा रहा था—"हरामजादी, कमीनी, मैं इसी क्षण तेरा खेल खत्म कर दूंगा—न तू रहेगी और न डैडी मम्मी को तलाक देंगे।"
रघुनाथ अब दरवाजा तोड़ने की कोशिश करने लगा था।
जबकि विकास गुर्रा रहा था—"यदि बचना चाहती है तो बोल-बता, ये सब क्या चक्कर है—वह रहस्यमय जीप—एक्सीडेण्ट कैसे हुआ—तू एक्सीडेण्ट से एक किलोमीटर पहले ही जीप से बाहर कैसे पहुंच गई—बोल-अहमद खान की हत्या किसने की है और क्यों की है?"
तबस्सुम का चेहरा सुर्ख पड़ने लगा—झील-सी गहरी नीली आंखें बाहर को उबल पड़ीं—गले और चेहरे की एक-एक नस उभरकर स्पष्ट चमकने लगी थी—जीभ लम्बी होकर किसी कुतिया की जीभ की तरह बाहर लटक गई—जबकि विकास गुर्राए चला जा रहा था।
जल-बिन मछली के समान छटपटा रही थी वह।
बाथरूम के अन्दर से रघुनाथ बन्द दरवाजे पर भयानक प्रहार कर रहा था।
एकाएक ही सोफे की तरफ ले जाकर विकास ने उसकी गर्दन से हाथ हटा दिए—लड़खड़ाकर वह धम्म से सोफे पर गिरी—अभी वह नियंत्रित भी नहीं हो पाई थी कि विकास ने जेब से लम्बा चाकू निकालकर खटाक-से खोल लिया।
चमकदार, लम्बा फल ठीक तबस्सुम के चेहरे के सामने लहरा रहा था।
तबस्सुम को काटो तो खून नहीं—सारा चेहरा पीला जर्द पड़ गया—आंखों में खौफ और चेहरे पर दुनिया-भर का आतंक नाच उठा—विकास अपने पहले मकसद यानि तबस्सुम को आतंकित करने में कामयाब हो गया था—उसके मन-मस्तिष्क पर अपना भय बढ़ाने के लिए उसने झपटकर दाएं हाथ से तबस्सुम के सोने के तार जैसे सुनहरी बाल पकड़ लिए—बाल पकड़कर उसे बेरहमी के साथ ऊपर उठाता हुआ बोला—"तुझे अपनी खूबसूरती पर नाज है न, नागिन—इसी खूबसूरती के बल पर तू मेरी मां से उसका सुहाग छीनने निकली थी न—ये चाकू एक ही झटके से तेरे चेहरे से नाक अलग कर देगा—फिर सोच कि तू कितनी खूबसूरत लगेगी।"
"न...नहीं।" वह आतंकित भाव से चीख पड़ी।
"तो बोल-ये सब क्या चक्कर चल रहा है—इस सबके पीछे कौन है?"
तबस्सुम के कुछ जवाब देने से पहले ही कमरे में भड़ाक् की एक जोरदार आवाज गूंजी—बाथरूम का दरवाज चौखट से अलग होकर कमरे के फर्श पर आ गिरा—तबस्सुम को छोड़कर विकास अपनी तरफ से काफी तेजी से घूमा—मगर तब तक गुर्राते हुए रघुनाथ की ठोकर उसके चाकू वाले हाथ पर पड़ी—चाकू हाथ से निकलकर दूर जा गिरा।
"म...मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा, कुत्ते।" रघुनाथ दहाड़ा।
विकास ने देखा—उसके डैडी के चेहरे पर सचमुच खून सवार था—उसका सारा बदन गीला था—जिस्म पर सिर्फ एक अण्डरवियर—चेहरे पर नफरत और आग लिए वह उसकी तरफ बढ़ रहा था।
पीछे हटते हुए विकास ने कहा—"ड...डैडी—आप मेरी बात तो सुनिए।"
"हरामजादे, मुझे अपना डैडी कहता है?" कहने के साथ ही रघुनाथ ने उछलकर उसके चेहरे पर एक घूंसा जड़ दिया है—घूंसा इतना जबरदस्त था कि विकास के दोनों पैर जमीन से उखड़ गए—हवा में लहराकर वह फर्श पर जा गिरा—तुरन्त ही खड़ा होकर बोला—"आप समझते क्यों नहीं, डैडी—आप किसी बहुत बड़े षड्यंत्र का शिकार हो गए हैं—ये लड़की...।"
'भड़ाक्'-से विकास के पेट में ठोकर पड़ी।
एक चीख के साथ वह लड़खड़ाया, सम्भला, फिर बोलना चाहा, परन्तु रघुनाथ के वार ने उसे फिर चीखने पर विवश कर दिया—रघुनाथ पर खून सवार था—जुनूनी हो उठा था वह, जबकि विकास उसे समझाने की कोशिश कर रहा था। रघुनाथ उसे मारता ही चला गया, मगर लड़के ने उस पर एक भी वार नहीं किया, करता भी कैसे?
वह पुत्र था।
पिता होश में न थे—स्वयं को उसका पिता समझ ही न रहे थे वे।
हालांकि बड़ों का आदर-सम्मान करने वाले को विकास कहते हैं, परन्तु ऐसी बात भी नहीं कि विकास ने उस पर कभी हाथ ही न उठाया हो, जिनके चरण छूता है—जब उस पर पागलपन का दौरा सवार होता है तो सब कुछ भूल जाता है—किन्तु वह दौरा लड़के पर सिर्फ तभी पड़ता है, जबकि सामने वाले ने हमला उसके मुल्क पर किया हो—या सामने वाला होशोहवास में गलत तरफ जा रहा हो।
उसके पिता स्वयं खुद को नहीं जानते थे।
अपने पिता से वह पिटता रहा—मगर वापस हमला नहीं किया—जब उसने ऐसा महसूस किया कि रघुनाथ उसे जीवित छोड़ने के मूड में नहीं था—तो उस बार रघुनाथ के जम्प लगाते ही वह अपने स्थान से हट गया। रघुनाथ झोंक में मुंह के बल फर्श पर जा गिरा।
विकास जल्दी से बाहर निकलने के लिए दरवाजे पर झपटा—सम्भलते ही रघुनाथ भी उसके पीछे लपका था, मगर उससे पहले ही न सिर्फ चिटकनी गिराकर विकास दरवाजे के पार निकल गया था, बल्कि दरवाजा पुनः बन्द करके उसने बाहर से बन्द कर दिया था।
इस तरफ से दरवाजे का हैंण्डिल पकड़कर रघुनाथ ने सारा दरवाजा बुरी तरह झंझोड़ डाला—बाथरूम में चलते हुए फव्वारे का पानी कमरे में बहने लगा था।
दूर—एक कोने में खड़ी तबस्सुम अभी तक उस लम्बे लड़के के डर से सूखा पत्ता बनी हुई थी।
कमरा नम्बर पचास के आस-पास गैलरी में भीड़ लगी हुई थी—होटल के लगभग सभी कर्मचारी और उस समय कमरों में रह रहे लोगों की भीड़ थी वह—उन्हीं के बीच पुलिस के जवान भी थे, जो भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे।
यह चर्चा आम थी कि कोई कमरा नम्बर पचास में आकर वहां ठहरे यात्रियों को बुरी तरह पीट गया। यह भी कि वह तो कमरे में रह रहे लोगों ने उससे संघर्ष किया वरना तो वह उन्हें कत्ल करने आया था।
इस चर्चा से अन्य कमरों में ठहरे यात्रियों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही थी।
यही वजह थी कि इस चर्चा से सर्वाधिक परेशान होटल का मैंनेजर था—वह स्वयं भी इस वक्त कमरा नम्बर पचास में था—उसके अतिरिक्त वहां दो इंस्पेक्टर और स्वयं ठाकुर साहब मौजूद थे।
उन्हें अपना सारा बयान देने के बाद इस वक्त रघुनाथ चीख रहा था—"वह विकास था, ठाकुर—हजार बार कह चुका हूं कि वह कुत्ता यहां हम दोनों का कत्ल करने आया था—उसने तबस्सुम की गर्दन दबाकर हत्या करने की कोशिश की—असफल होने पर उसने चाकू निकालकर हम पर हमला किया—चाकू और तबस्सुम की गर्दन से उंगलियों के निशान लिए जाएं।"
ठाकुर साहब शांत स्वर में बोले—"हमने फिंगर प्रिन्ट्स विभाग को फोन कर दिया है।"
"सिर्फ इसी से काम नहीं चलेगा, बल्कि उसे गिरफ्तार कीजिए—वह आपका नाती है ठाकुर—आपकी भतीजी का लड़का—यदि आपने उसे गिरफ्तार करने में हिचक दिखाई—केस बनाने में झिझके तो मैं एक बार फिर गृहमंत्री से मिलूंगा।"
"आपको उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।"
"वाह—ये भी खूब रही—नाती जख्म देता है और नाना उस पर नमक छिड़कने चला आता है—हम पर कातिलाना हमला हुआ है—यदि वह आज रात तक गिरफ्तार नहीं हुआ तो मैं सुबह गृहमंत्री से मिलूंगा।"
"ये आपकी इच्छा है—आप चाहे जिससे मिलें—मगर हम अपनी तरफ से आपको यकीन दिलाते हैं कि किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं किया जाएगा—न तो हमने पहले ही कभी अपने कर्तव्य के रास्ते में किसी रिश्ते को आने दिया है और न ही आगे ऐसा हो सकेगा।
"ये तुमने क्या किया प्यारे दिलजले—तुम साले जब करोगे, ऊट-पटांग हरकत ही करोगे।" गुप्त भवन में बैठा विजय विकास को झाड़ पिला रहा था—"तुमसे कहा था कि अगला कोई भी कदम उठाने से पहले हमें हालातों के बार में अच्छी तरह से सोचना है, लेकिन तुम थोड़ी देर का सब्र न कर सके—बस पहुंच गए वहां।"
"ग...गुरू।"
"अजी गुरू से पहले तो तुम हो गए हो शुरू—मगर तुम्हारे शुरू होने का फायदा क्या निकला?"
परेशान से विकास ने कहा—"आप मेरी बात तो सुन नहीं रहे हैं, अंकल।"
"बको—क्या सोचकर गए थे वहां?"
"मैं तबस्सुम को मारने नहीं गया था—सिर्फ उसके दिलो-दिमाग पर आतंक बैठाने गया था—उसमें मैं कामयाब भी हो गया था—सोचा था कि उसे आतंकित करके उससे अपने सवालों का जवाब ले लूंगा—ऐसा होने वाला ही था कि डैडी बाथरूम का दरवाजा तोड़कर कमरे में आ गए।"
"तुम ये आतंक की राजनीती नहीं छोड़ोगे?"
"ये तो काम करने का अपना-अपना तरीका है, अंकल-आप गुपचुप काम करते हैं—जबकी मेरा विश्वास खुला खेल फरक्काबादी खेलने में है—मैं सबसे पहले अपने दुश्मन के दिमाग पर अपने नाम और व्यक्तित्व के आतंक का राज्य स्थापित करता हूं।"
"उससे हुआ क्या चुकन्दर?"
"अब नहीं हुआ तो आगे होगा, अंकल-तबस्सुम के दिलो-दिमाग पर मैं छा चुका हूं—मुझे पूरा यकीन है कि इस बार मुझे अकेले में देखते ही किसी टेपरिकार्डर की तरह शुरू हो जाएगी।"
"खाक शुरू हो जाएगी।"
"क्या मतलब गुरू?"
"तुम इस गुप्त भवन से निकलते ही मोटी-मोटी सलाखों के पीछे पहुंचे जाओगे, प्यारे।"
"मैं समझा नहीं।"
"बुद्धि को खूंटी पर टांगकर जो निकला करते हो तुम।"
काफी देर से ब्लैक ब्वॉय चुप बैठा उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था, एकाएक बोला—"यह बात मेरी समझ में भी नहीं आई, सर कि आखिर विकास सलाखों के पीछे क्यों होगा?"
"तुम ही कौन-सा अपनी बुद्धि साथ लिए घूमते हो प्यारे काले लड़के।"
"पहेलियां छोड़ो, अंकल-साफ कहो।"
"तुम न सिर्फ उसके कमरे में अपना चाकू छोड़ आए हो, बल्कि तबस्सुम की गर्दन और चाकू की मूठ पर भी तुम्हारी उंगलियों के निशान होंगे—बस, फंस गए प्यारे—तुम पर सीधा तीन सौ सात का मुकदमा चलेगा—तुम जेल में होगे और कम-से-कम तबस्सुम तुम्हें जेल में मिलने नहीं जाएगी।"
विकास और ब्लैक ब्वॉय सचमुच सोच में पड़ गए।
तभी मेज पर रखे टेलीफोन की घण्टी घनघना उठी—रिसीवर ब्लैक ब्वॉय ने उठाया और उसने पवन के से भर्राए हुए स्वर में बातें कीं—कुछ ही देर बाद रिसीवर वापस रखता हुआ वह बोला—"आपका अनुमान अक्षरशः सत्य निकला, सर—कमाल हो गया।"
"धोती फाड़कर किसी ने रूमाल तो नहीं कर दिया?"
"अशरफ का फोन था, सर—उसने रिपोर्ट भेजी है कि तबस्सुम की गर्दन और चाकू की मूठ से मिलने वाले निशान विकास की उंगलियों के हैं—पुलिस शिकारी कुत्तों की तरह सारे शहर में इसे तलाश कर रही है। इस पर हत्या करने की कोशिश का इल्जाम है—यह मिशन स्वयं ठाकुर साहब ने अपने कंधों पर उठाया है। वह इसे पकड़ने के लिए पागल से हुए घूम रहे हैं—कई बार सुपर रघुनाथ की कोठी पर भी जा चुके हैं।"
विकास ने इस तरह गर्दन झुका ली, जैसे क्रॉकरी तोड़ने में माहिर और शरारती बच्चे ने हजार बार की चेतावनियों के बावजूद अभी-अभी किसी शानदार टी-सेट को शहीद किया हो।
विजय ने घूमकर एक बार विकास की तरफ देखा—फिर ब्लैक ब्वॉय से सवाल किया—"क्या इस सब बखेड़े की जानकारी रैना बहन को हो गई है?"
"इस बारे में अशरफ ने कुछ नहीं कहा, सर।"
"हूं।" एक लम्बे हुंकारे के बाद विजय सोच में डूब गया, फिर एकदम विकास पर डपट पड़ा— देख लिया अपने खुला खेल फरक्काबादी का नतीजा—यही होना था—तुम समझते हो कि इस किस्म की उखाड़-पछाड़ सिर्फ तुम ही कर सकते हो—हम नहीं कर सकते—हम चाहें तो तुमसे कुछ बेहतर ही कर सकते हैं, प्यारे—मगर हम पहले ही उसके परिणामों के बारे में भी सोच लेते हैं—तुम इतना कष्ट ही नहीं करते।"
जवाब में कुछ कहने के लिए विकास ने अभी मुंह खोला ही था कि ब्लैक ब्वॉय ने कहा—"अब जो हो गया, उस पर अफसोस करने से क्या लाभ, सर—हमें आगे की स्थिति पर विचार करना चाहिए।"
"वह तो करना ही पड़ेगा प्यारे।" विजय बोला—"सबसे पहला काम तो तुम यह करो कि अशरफ से किसी अदालत से अपने दिलजले की अग्रिम जमानत करा लो—गृहमंत्री को फोन कर देना कि वह सम्बन्धित न्यायाधीश को यह बता दे कि विकास एक जासूस है और तबस्सुम अपराधी—अपराधियों तक पहुंचने के लिए विकास को यह हरकत करनी पड़ी है, अतः राज को राज ही रखकर न्यायाधीश विकास की अग्रिम जमानत को मंजूर कर लें।"
"ठीक है, सर।"
"अब समस्या यह रही कि हम इस अजीब-गरीब केस में अपना अलग कदम क्या उठाएं?"
"जी।"
"दिलजले के इस अटपटे कदम ने सारी स्थिति ही उलट दी है।"
"इसका क्या मतलब, सर?"
"इससे पहले स्थिति यह थी कि रघुनाथ को जो करना था, वह सब कुछ करके बैठ गया था, अतः अगला कदम हमारी तरफ से उठना था—दिलजला चाल चलकर अपना चांस गंवा चुका है, अब चांस तुलाराशि का है—वह जरूर कोई-न-कोई चाल चलेगा—बस, उसकी अगली चाल का अध्ययन करके ही हमें आगे बढ़ना है।"
"मतलब?"
"फिलहाल यह देखना है कि अपना तुलाराशि क्या करता है?"
"अजीब बात है, सर।" ब्लैक ब्वॉय कह उठा—"दुश्मन के रूप में इस बार मैदान में हममें से ही एक है—हम सबका प्यारा—हम सबके लिए सम्मानित—हममें से कोई उस पर हमला भी तो नहीं कर सकता।"
"यही तो चक्कर है, प्यारे—इस बार दुश्मन बहुत चालाक है।"
 क्या मतलब सर?"
"इतना ज्यादा चालाक कि वह अभी तक एक बार भी सामने नहीं आया है—हमारे ही एक मोहरे को उठाकर वह अपने मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।"
"क्या आप यह कहना चाहते हैं, सर कि सुपर रघुनाथ किसी चालाक अपराधी की साजिश का शिकार है?"
"बेशक प्यारे।" विजय बोला—"असली मुजरिम वह है, जिसने रहस्यमय जीप-एक्सीडेण्ट किया—जिसने अहमद खान की हत्या की—सात फिटा—दस नम्बर के जूते पहनने और सिर में अमेरिकी तेल लगाने वाला।"
"वह कौन हो सकता है, सर?"
"अभी ख्वाब नहीं चमका है—जब चमकेगा तो बताएंगे।" कहने के बाद विजय बाकायदा मेज पर तबला बजाने के साथ ही झकझकी गाने लगा।
गुस्से में तमतमा रहे रघुनाथ ने पूरी ताकत से ब्रेक मारे—टायरों की तीव्र चीख-चिल्लाहट के साथ ही कोठी के पोर्चे पर कार रुकी—रघुनाथ ने एक झटके के साथ दरवाजा खोलकर तबस्सुम का हाथ पकड़ा।
लगभग जबरदस्ती उसे कार से बाहर खींचा।
तबस्सुम कह रही थी—"न...नहीं, इकबाल-रहने दो—मैं कहती हूं, लौट चलो—बात बढ़ाने से कोई लाभ नहीं—तुमने रिपोर्ट कर दी है—अब भला रैना से झगड़ने से क्या लाभ?"
परन्तु—क्रोध में भुनभुना रहे रघुनाथ ने उसकी एक न सुनी और उसकी कलाई पकड़े कमरे की तरफ खींचता ही चला गया, फिर किसी जुनूनी की भांति चीख पड़ा—"र...रैना—रैना।"
उसकी आवाज सारी कोठी में गूंज उठी।
लगभग दौड़ती हुई रैना एक कमरे से बाहर निकली—रघुनाथ को देखते ही उसने अपनी साड़ी का पल्लू सिर पर ढका और कांपते स्वर में बोली—"अ...आप?"
"हां, मैं।" तबस्सुम का हाथ छोड़कर दहाड़ता हुआ रघुनाथ उसके पास पहुंचा—"कहां है वह तेरा पिल्ला, अपने आपको बड़ा तीसमारखां समझता है वह हरामजादा—निकाल उसे।"
आंसूभरी आंखों से कह उठी रैना—"आप किसे हरामजादा कह रहे हैं?"
"तेरे पिल्ले को।"
"वह...वह आपका ही तो...।"
"खामोश—मैं कुछ सुनना नहीं चाहता—उसे बाहर निकाल-कहां छुपा रखा है उसे?"
"मुझे तो खुद नहीं पता नाथ कि विकास कहां है—वह तो सुबह से ही...।"
"हूं—इतनी भोली है तू—मैं तेरी सब चाल समझता हूं। खुद ही उसे तबस्सुम का कत्ल कर देने के लिए वहां भेजा और अब सती सावित्री बनने का नाटक कर रही है।"
"त...तबस्सुम का कत्ल करने?"
"तुम शायद इस खुशफहमी में हो कि यदि तबस्सुम न रही तो मैं तलाक की अर्जी वापस ले लूंगा—मगर यह तुम्हारे मन का वहम है—यदि तबस्सुम को कुछ हो गया तो उस पाक परवरदिगार की कसम, तुम सबके जिन्दे जिस्मों पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दूंगा।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं?" रैना कांप गई।
इस बीच शानदार सूट पहने मोन्टो कमरे से निकलकर एक दीवार पर आ बैठा था—वह लगातार रघुनाथ को देख रहा था—अचानक ही फट पड़ने वाले ज्वालामुखी रूपी उस रघुनाथ को, जिसके मुंह से आग निकल रही थी—भभकता हुआ लावा निकल रहा था।
इस वक्त रघुनाथ पर पागलपन का जाने कैसा दौरा सवार था कि उसने झपटकर रैना के बाल पकड़ लिए और गुर्राया—"बोल-कहां है विकास—मैं उसे जिन्दा नहीं छोडूंगा—बता कि...।"
परन्तु रघुनाथ का वाक्य पूरा नहीं हो सका।
यह दृश्य देखते ही मोन्टो स्वयं को सम्भाल नहीं सका और उसने सीधी जम्प रघुनाथ के सिर पर लगाई—रघुनाथ एकदम बौखला गया जबकि उसके सिर पर बैठे मोन्टो ने उसके बाल पकड़कर झंझोड़ना शुरू कर दिए थे—रघुनाथ ने दोनों हाथ ऊपर करके उसे दबोचा और फिर—
भड़ाक्-से उसे जमीन में दे मारा।
मोन्टो के कंठ से एक चीख निकल गई।
रैना चीख पड़ी—"न...नहीं—मोन्टो को मत मारिए।"
जबकि मोन्टो फुर्ती के साथ न सिर्फ खड़ा हो गया, बल्कि एक किलकारी के साथ हवा में उछलकर उसने अपने सिर की टक्कर रघुनाथ के सीने में मारी।
रघुनाथ एक चीख के साथ लड़खड़ा गया।
"न...नहीं, मोन्टो—रुक जाओ—तुम्हें मेरी कसम।" रैना चीख पड़ी।
लेकिन मोन्टो को भी जाने क्या हो गया था कि उसने रैना की एक न सुनी—इस बार तो रैना की कसम भी उसे न रोक सकी और उधर रघुनाथ पर तो खून सवार था ही।
रैना चीखती रही, चिल्लाती रही—मगर उसकी चीख-चिल्लाहटों पर कोई ध्यान न देकर दोनों भिड़ गए—किसी बौने व्यक्ति की तरह मोन्टो बार-बार उछलकर अपने सिर की टक्कर का वार रघुनाथ के जिस्म पर कर रहा था।
रघुनाथ बौखला गया।
एक बार उसने धनुषटंकार को हवा में उछलते ही लपक लिया, किन्तु भड़कते हुए मोन्टो ने अपने दांत उसके हाथ पर गड़ा दिए—एक चीख के साथ झुंझलाकर उसने मोन्टो को जमीन में दे मारा।
हालांकि मोन्टो बड़ी फुर्ती के साथ सम्भलकर अपने नन्हें पैरों पर खड़ा हुआ, लेकिन उससे कहीं ज्यादा फुर्ती का परिचय देते हुए रघुनाथ ने जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया।
मोन्टो पुनः उस पर झपटा।
धांय। रघुनाथ का रिवॉल्वर गरजा।
"न...नहीं।" रैना चीखी।
सिर में गोली लगते ही मोन्टो के मुंह से एक अजीब-सी गुर्राहट निकली और वह रघुनाथ के चरणों में आ गिरा—तड़पा—मचला और फिर एक झटके के बाद शिथिल पड़ गया।
उसके सिर पर बने जख्म से गाढ़ा खून बह रहा था।
रैना मूर्तिवत्-सी आंखें फाड़े जमीन पर पड़े मोन्टो को देखती रह गई—रघुनाथ ने बड़े ही व्यंग्यात्मक अऩ्दाज में रिवॉल्वर की नाल से निकलने वाले धुंए में फूंक मारी।
"म...मोन्टो—मोन्टो।" रैना दौड़कर उसके समीप पहुंची—बैठी और जब उसने मोन्टो को स्पर्श किया तो उसका निर्जीव जिस्म एक तरफ लुढ़क गया।
"म...मोन्टो।" रैना की इस चीख ने सारी कोठी को हिलाकर रख दिया।
बन्दर का जिस्म लाश में बदल चुका था।
मोन्टो की लाश को अपने दोनों हाथों में उठाकर रैना उसे छाती में भींचकर बुरी तरह रो पड़ी—अभी वह ठीक से रो भी नहीं पाई थी कि रघुनाथ ने उसके बाल पकड़े—बेरहमी के साथ उसे ऊपर उठाता हुआ बोला—"जो अंजाम इस बन्दर का हुआ है—वही तेरे पिल्ले का भी होगा।"
रैना के हाथों से फिसलकर मोन्टो की लाश एक बार फिर जमीन पर गिर गई।
रैना तड़प-तड़पकर कह उठी—"आपको क्या हो गया है—आपने मोन्टो को मार डाला—मेरे मोन्टो ने आपका क्या बिगाड़ा था बोलिए, क्यों मार डाला आपने इसे?"
"हूं।" इस घृणात्मक हुंकारे के साथ रघुनाथ ने रैना को धक्का दिया—रैना लड़खड़ाकर जमीन पर जा गिरी, जबकि रघुनाथ ने तबस्सुम का हाथ पकड़कर कहा—"चलो तबस्सुम।"
जिस वक्त रघुनाथ की कार कोठी का दरवाजा पार करके सड़क पर पहुंची, उस समय तक रैना मोन्टो की लाश को अपने कलेजे से लगाए इस तरह रो रही थी, जैसे किसी मां का दुधमुंहा बच्चा उसके अपने ही स्तनों से निकलने वाले जहरीले दूध को पीकर मर गया हो।
ड्राइविंग सीट पर बैठा रघुनाथ कार को आंधी-तूफान की तरह सड़क पर भगा रहा था—उसका चेहरा उस वक्त भी किसी पत्थर की तरह सख्त और कठोर था—जबकि बगल में बैठी तबस्सुम आतंकित और घबराई-सी कह रही थी—"य...ये तुमने ठीक नहीं किया, इकबाल।"
"क्या ठीक नहीं किया?"
"मोन्टो को मारकर।"
"उसे मारता नहीं तो क्या करता—वह मेरे काबू से बाहर हो गया था।"
"म...मगर—अब तुम भी गिरफ्तार हो जाओगे—तुम पर उसकी हत्या का मुकदमा चलेगा।"
उसकी बात सुनकर रघुनाथ ठहाका लगाकर हंस पड़ा—बहुत देर तक हंसता रहा वह और जी भरकर हंसने के बाद बोला—"तुम भी रहीं भोली की भोली ही तबस्सुम-भला कहीं जानवर की हत्या करने के मुकदमें भी अदालत में चला करते हैं—और यदि चलें भी तो उनमें धारा तीन सौ दो नहीं लगती—मारने वाले को उम्रकैद या फांसी नहीं हो जाती—थोड़ा-बहुत आर्थिक दण्ड मिलता है।"
"म...मगर—वह जानवर नहीं था इकबाल।"
"खूब—बन्दर को शायद तुम इंसान कहती हो?"
"उफ्फ—तुम समझते क्यों नहीं इकबाल-वह जानवर नहीं था—इंसान ही था।"
रघुनाथ ने व्यंग्यपूर्वक पूछा—"वह कैसे?"
"उसका जिस्म जरूर बन्दर का था—मगर उसमें दिमाग आदमी का था—ड़ॉ. लाजारूस नाम के वैज्ञानिक ने मोन्टो नामक एक जेबकतरे का दिमाग बन्दर के जिस्म में प्रतिरोपित कर दिया था—मुकदमा तीन सौ दो का ही चलेगा इकबाल-बन्दर के जिस्म वाला वह मोन्टो एक इंसान था।"
"य...ये तुम क्या बच्चों जैसी बातें कर रही हो?" रघुनाथ ह़ड़बड़ा गया।
"उसके कत्ल के इल्जाम में तुम्हें फांसी तक हो सकती है, इकबाल।"
"ऐसा भला कैसे हो सकता है—बन्दर के जिस्म में आदमी का दिमाग—ऊंह—बकवास है।"
"उफ्फ—तुम समझ क्यों नहीं रहे इकबाल-मैं सच कह रही हूं—तभी तो वह शराब और सिगार पीता था—डायरी पर लिख सकता था—वह इंसानों की तरह ही सोचता था।"
"क्या तुम सच कह रही हो?"
"बिल्कुल सच—तुम्हारी कसम, इकबाल।"
"तब तो सचमुच गड़बड़ हो गई।" रघुनाथ के चेहरे पर पसीना उभर आया—"अब क्या होगा तबस्सुम-अन्जाने में मैं ये क्या कर बैठा—वे मुझे पकड़ लेंगे—अदालत—फांसी—।"
हाथ कांपे—गाड़ी सड़क पर लहरा उठी।
तबस्सुम ने जल्दी से कहा—"गाड़ी सम्भालो।"
"अब गाड़ी सम्भालने से भी क्या होगा, तबस्सुम-हम फंस गए हैं—कुछ ही देर बाद पकड़े जाएंगे—यहां तो हमारा कोई मददगार भी नहीं है—कहां जाएं—किसकी मदद लें?"
"मैं यहां एक आदमी को जानती हूं, इकबाल।"
"किसे?"
"म...मास्टर—उसे मास्टर कहते हैं।"
"क्या नाम है उसका—कहां रहता है?"
"मैं जानती तो हूं, लेकिन...।"
"लेकिन क्या?"
तबस्सुम ने मीठे स्वर में कहा—"द...दरअसल वह यह नहीं चाहता इकबाल कि कोई नया आदमी उसका ठिकाना देखे।"
"फिर?" रघुनाथ ने पूछा।
"उसके पास चलने से पहले तुम्हें बेहोश होना होगा।"
  एक पल सोचने के बाद रघुनाथ ने कहा—"फिलहाल मजबूरी है, तबस्सुम-मैं बेहोश होने के लिए तैयार हूं।"
इसके बाद तबस्सुम ने क्लोरोफार्मयुक्त रुमाल सुंघाकर उसे बेहोश कर दिया, परन्तु बेहोश होते वक्त रघुनाथ के होंठों पर बड़ी रहस्यमय मुस्कान थी।