शनिवार : 22 नवम्बर

सुबह जीतसिंह और गाइलो चाल के करीब के एक रेस्टोरेंट के बाहर बैंच पर बैठे चाय पी रहे थे, पाव खा रहे थे जब कि डिकोस्टा उधर पहुंचा।

“अरे, आ न डिकोस्टा!”—गाइलो बोला—“आ बैठ।”

सहमति में सिर हिलाता डिकोस्टा बैंच के सामने पड़े एक स्टूल पर बैठ गया।

“कैसा है, जीते?”—वो बोला।

“बढ़िया।”—जीतसिंह बोला।

“आजकल दिखाई नहीं देता! ज्यास्ती काम करता है?”

“ऐसीच है। कभी करता है ज्यास्ती काम, कभी गले पड़ता है।”

“क्या वान्दा है! मीटर चलता है न!”

“वो तो है!”

“मैं”—गाइलो बोला—“चाय बोलता है।”

“नहीं।”—डिकोस्टा ने तत्काल प्रतिवाद किया।

“नहीं! अरे, चाय पीने आया न इधर!”

नहीं।”—डिकोस्टा बाला—“मैं पी के गया। हाफ एन आवर पहले।”

“फिर पी ले। क्या वान्दा है?”

“नहीं, अभी नहीं।”

“अरे, तो रेस्टोरेंट पर काहे वास्ते आया?”

“तेरे को बैठा देख के आया न!”

“ऐसा?”

‘हां।”

“कोई खास बात।”

“शायद हो!”

गाइलो ने उलझनपूर्ण भाव से डिकोस्टा की तरफ देखा।

“अभी बोले तो?”—फिर बोला।

“गाइलो”—डिकोस्टा बोला—“वो क्या है कि कल रात सवा नौ बजे के करीब दो भीड़ू इधर आया जो तेरे को पूछता था।”

“वो टेम तो मैं इधर नहीं था।”

“मालूम। मैं उन को तेरी खोली का बोला तो वो गये न उधर! पण उलटे पांव लौटे और बोले खोली को ताला झूलता था।”

“कोई नाम बोला?”

“न!”

“बोला, मेरे से काहे वास्ते मिलना मांगता था?”

“नहीं। मैं पूछा पण नहीं बोला। बोला गाइलो को ही बोलने का।”

“कम्माल है!”

“मैं तेरे को ये बात इस वास्ते बोलता है क्योंकि जो भीड़ू मेरे से बात किया, उसकी बातों से मेरे को लगा कि वो तेरे का जानता नहीं था। बोले तो कुछ भी नहीं जानता था, ये भी नहीं कि तू इधर अकेला रहता था।”

“कौन होगा?”

“इसी वास्ते जब तू मेरे को इधर बैठा दिखाई दिया तो मेरे मगज में आया, मैं तेरे को बोलूं। ये बात भी बोलने लायक कि दोनों टपोरी जान पड़ते थे पण इधर नीली सान्त्रो पर आयेले थे।”

“नीली सान्त्रो!”—जीतसिंह के कान खड़े हुए।

“हां। कुछ मालूम तेरे को?”

“नहीं, नहीं। कैसे मालूम होयेंगा! ऐसीच पूछा।”

“ओह! ऐसीच पूछा।

“तू”—गाइलो उतावले स्वर में बोला—“आगे बोल।”

“आगे? हां। तू न मिला तो पहले तो वो चले गये, फिर एक भीड़ू—जो बात करता था, दूसरा तो खाली सुनता था—लौट के आ गया और बद्रीनाथ को पूछने लगा...”

जीतसिंह हड़बड़ाया, फिर अपने चेहरे के भाव छुपाने के लिये चाय की चुसकी मारने लगा।

“...मैं पूछा कौन बद्रीनाथ! वो बोला गाइलो का फिरेंड बद्रीनाथ जो उसका माकिफ टैक्सी चलाता था। फिर पूछने लगा कि क्या गाइलो का फिरेंड बद्रीनाथ टैक्सी डिरेवर इधरीच रहता था? मैं बोला नहीं रहता था। नहीं रहता था बोला तो तब जाकर टला। गाइलो, मेरे को जो बात स्ट्रेंज लगा, मैं वो बोलता है। वो तेरे बारे में इतना सवाल करता था पण तेरे को बिल्कुल नहीं जानता था। किसी बद्रीनाथ के बारे में इतने सवाल करता था पण बद्रीनाथ को नहीं जानता था। तेरा ये तो जानता था कि तू इधर रहता था, बद्रीनाथ का तो उसको ये भी नहीं मालूम था।”

“कौन था?”

“अभी एक और सरपराइज दे के गया।”

“वो क्या?”

“तेरा सरनेम जानता था।”

“क्या!”

“जो कोई नहीं जानता था, जो साला तेरे को भी याद नहीं रहता था, वो वो भीड़ू जानता था। आके फर्स्ट टाइम तेरा नाम लिया तो गाइलो न बोला, गाइलो सारडीना बोला।”

“कम्माल है! कौन था साला?

“तू सोच। मैं जाता है।”

“अभी।”—एकाएक जीतसिंह बोला—“अभी।”

डिकोस्टा जाता जाता ठिठका।

“उन दोनों का हुलिया वगैरह बता के जा।”

“बोले तो?

“अरे, कद काठ कैसा था, सूरतें कैसी थीं; कोई दाढ़ी मूंछ थीं या सफाचट थे?”

“अच्छा, वो!”

“हां।”

डिकोस्टा ने भरसक दोनों का हुलिया बयान किया।

“थैंक्यू बोलता है, डिकोस्टा।”

डिकोस्टा सहमति में सिर हिला कर थैंक्यू कबूल करता चला गया।

“क्या!”—पीछे गाइलो बोला।

“तेरे को मालूम क्या!”जीतसिंह चिन्तित भाव से बोला—“वो वही दोनों थे जो परसों रात मेरे, बोले तो मेरे पैसेंजर के, पीछे थे।”

“इधर कैसे पहुंच गये?”

“हैरानी है। तू बोल।”

“मैं ही बोलता हैं, जीते। बोले तो वो कई हिन्ट छोड़ के गये। एक तो ये कि वो गाइलो को पूछते थे जिसका परसों रात की तेरे साथ बीती हैपनिंग्स से कोई लिंक नहीं था। दूसरे, जीतसिंह को नहीं, बद्रीनाथ को पूछते थे। और सब से ब्राड हिन्ट ये था कि गाइलो सारडीना को पूछते थे। अभी बोल, तेरे को मालूम मेरा फुल नेम गाइलो सारडीना?”

“नहीं। कभी इस बाबत खयाल तक न आया। तू बस गाइलो।”

“सब का वास्ते यहीच मैं। गाइलो। पण वो भीड़ू को मालूम मैं गाइलो सारडीना। कैसे मालूम?”

“तू बोल।”

“एकीच तरीके से मालूम होना सकता। मेरा टैक्सी का पेपर्स पर मेरा फुल नेम। पेपर्स जयन्त ढ़ोलकिया का पास क्योंकि वो तेरा टैक्सी का केस में तेरा सिक्योरिटी।”

“वो ढ़ोलकिया के पास पहुंच गये?”

“डेफिनेट करके। बोले तो हमेरे वास्ते साला ये स्टोरी रिवर्स में चलता है। बिगनिंग से एण्ड में नहीं चलता, एण्ड से बिगनिंग को चलता है। गाइलो सारडीना पूछते वो इधर चाल में, क्योंकि पहले धारावी जयन्त ढ़ोलकिया के पास गये। ढ़ोलकिया के पास कैसे गये? क्योंकि मालूम टैक्सी उसका, वो मेरी गारन्टी पर बद्रीनाथ करके मेरे फिरेंड भीड़ू को मंथली रैंटल पर दिया। कैसे मालूम टैक्सी उसका? क्योंकि टैक्सी का नम्बर मालूम। ऐनी प्राब्लम!”

“टैक्सी का नम्बर मालूम?”

“बरोबर। इतना टेम, इतना डिस्टेंस—बोले तो गेटवे आफ इन्डिया से बैरीस्टर नाथ पाई मार्ग तक—वो तेरे पीछू लगे रहे, तेरा टैक्सी का नम्बर नोटिस में आना क्या साला बहुत डिफिकल्ट!”

जीतसिंह का सिर स्वयंमेव इंकार में हिला।

“नम्बर मालूम तो आरटीओ से मालिक का नाम निकलवाया, मालिक से जाना कि टैक्सी बद्रीनाथ के हवाले और दूसरा टैक्सी डिरेवर, गाइलो सारडीना, रेजीडेंट जम्बूवाडी चाल, धोबी तलाव, मुम्बई—400 002। अभी नाइट में मैं काबू आ जाता तो बोलता न बद्रीनाथ कौन, किधर मिलता है! आगे खुद सोच क्या होता!”

“तू... तू मेरे को डरा रहा है।”

“अरे, मैं खुद डर रहा है। मवालियों से, पुलिसवालों से मार खा खाकर साला बॉडी का कचरा हो रयेला है। अभी नया, लार्ज इकानमी साइज ट्रबल साला फिर रैडी है।”

“मेरे लिये।”

“मेरे लिये पहले। उस भीड़ू लोगों को बद्रीनाथ ढूंढ़ने से न मिला तो वो किस को थामेंगे?

“गाइलो को!

“क्योंकि वो बद्रीनाथ का फिरेंड। ढ़ोलकिया के पास उसका गारन्टर।”

“देवा!”

“अभी कनफर्म करने का वास्ते कि मेरा स्टोरी का लिंक्स इन आर्डर है, मैं जयन्त ढ़ोलकिया को फोन लगाता है।”

“ठीक।”

गाइलो ने मोबाइल निकाला और उसके साथ व्यस्त हो गया।

जीतसिंह प्रतीक्षा करने लगा। चाय में अब उसकी कोई रुचि नहीं रही थी।

“पनवेल में है।”—गाइलो फोन को जेब के हवाले करता बोला—“ईवनिंग में लौटेगा।

“ओह!”—जीतसिंह बोला, एक क्षण ठिठका, फिर आगे बढ़ा—“अब आगे क्या करने का?”

“क्या करने का?”

“अरे, सवाल मैंने किया है।”

“सोचता है न!”

खामोशी छा गयी।

“बोले तो”—आखिर गाइलो बोला—“चेन में से एक लिंक गायब हो जाये तो आगे नहीं बढ़ा जा सकता। एंड पर नहीं पहुंचा जा सकता। राइट?

“तू बोलता है तो... राइट।”

“मैं बोलता है। अगर मैं गायब हो जाये तो वो भीड़ू लोग कोई बद्रीनाथ तक नहीं पहुंच सकते। क्यों नहीं पहुंच सकते? क्योंकि बद्रीनाथ को कोई जानता हैइच नहीं। अपना फिरेंड्स डिकोस्टा, अबदी, शम्सी तक नहीं जानता।”

“थोड़ा टेम नहीं ढूंढ़ पायेंगे पण आगे... आगे ढूंढ़ ही लेंगे।”

“काहे कू?”

“अभी भी तो आनन-फानन इतनी जानकारी निकाली कि नहीं!”

“वो तो है! पण उन को नहीं मालूम कि बद्रीनाथ इधर चाल में रहता है।”

“टैक्सी के पीछ लगे तो...”

“अरे, मुम्बई में अस्सी हजार टैक्सियां हैं। एक एक टैक्सी को वाच करेंगे तो पीछे लगने का वास्ते ढूंढ़ लेंगे तेरा टैक्सी।”

“हूं।”

“फिर मेरे मगज में कुछ और भी तो है!”

“क्या?”

“मैं बोला न, मैं ढ़ोलकिया से मिलने धारावी जायेगा। तब मैं उसको बोलेगा कि वो तेरे को टैक्सी चेंज कर के दे।”

“वो करेगा?”

“काहे वास्ते नहीं करेगा? भाड़े का टैक्सी है, तेरा किसी दूसरे को थमायेगा, दूसरे का तेरे को देंगा। फिनिश।”

“हूं।”

“ढ़ोलकिया मेरा बात सुनता है, उसको अटेंशन देता है। मैं रिक्वेस्ट करेगा तो वो एक और भी काम करेगा जो तेरा वास्ते यूज़फुल होयेंगा।”

“वो क्या?”

“जब तेरे को टैक्सी चेंज कर के देगा तो मेरा रिक्वेस्ट पर तेरा वाला टैक्सी को किधर दूर भेजेगा—बोले तो ठाणे। भिवंडी। कल्याण। क्या?”

“बोले तो बढ़िया। ऐसा इन्तजाम हो गया तो मेरे वाली 7983 के उन के नोटिस में आने के चानस कम होंगे।”

“अरे, होंगे ही नहीं। देखना तू।”

“कब चलेंगे धारावी? अभी?”

अभी कैसे होयेंगा? मैं बोला न, वो पनवेल में! पता नहीं कब लौटेगा!”

“वो बोला न ईवनिंग में लौटेगा?

“हां, बोला। पण फोर ओक्लाक के बाद सैवरल आवर्स साला ईवनिंग ही ईवनिंग है।”

“ओह!”

“पहले मालूम कर के जाने का कि वो धारावी में अपने ठीये पर। बोले तो लेट इन दि ईवनिंग।”

“ठीक।”

“अभी इम्पॉर्टेंट करके यहीच काम कि थोड़ा टेम का वास्ते मेरे को किधर डिसअपियर होने का।”

“डिसअपियर होने का?”

“मिस्टर एक्स नहीं बनने का, जीते, इधर से छोड़ के किसी और जगह रहने का थोड़ा टेम के वास्ते।”

“चिंचपोकली।”

“बोले तो?”

“मेरा उधर का ठीया तेरे हवाले।”

“नहीं मांगता। वो इधर से बहुत पास है। मेरे को थोड़ा टेम किधर दूर जाके रहने का।”

“फिर तो होटल!”

“होटल! मालूम कितना एक्सपेंसिव! साला इतना रोकड़ा किधर से आयेंगा?”

“अरे, गाइलो, एक हीरा है न हमारे पास इमीजियेट कर के!”

“माथा फिरेला है! हम क्या बोलेंगा इतना एक्सपेंसिव स्टोन हमेरे पास किधर से आया! साला अरैस्ट होना मांगता है?”

जीतसिंह हड़बड़ाया।

“ये तो मैंने सोचा ही नहीं था!”

“क्या वान्दा है? अभी सोच।”

“साला इतना खुशी हुआ थोड़ा टेम का वास्ते कि करोड़ों का माल हमेरे कब्जे में। अभी साला मगज में पड़ा कि सीधे से हम एक हीरा ठिकाने नहीं लगा सकते, चार सौ कैसे लगायेंगे!”

“बोले तो बिग पिराब्लम।”

“मैं एक बात बोले?”

“बोल।”

“मैं दिल से बोलता है, अपने फिरेंड गाइलो को दिल से हर पर्दा हटा कर दिखाता है और बोलता है कि मेरे मन में कभी नहीं आया कि मैं एक अमीर आदमी बन जाऊं...”

वो ठिठका। उसने देखा गाइलो उसे अपलक देख रहा था।

“क्या देखता है?”—वो बोला।

“देखता नहीं है”—गाइलो बोला—“फील करता है।”

“क्या?”

“तेरा थॉट ट्रेन ओवरलैप करता है। अभी कल बोला तेरे को साला ताकत बनाना मांगता था। अभी बोलता है मगज में कभी आयाइच नहीं कि अमीर आदमी बन जाऊं। साला ताकत बनायेगा तो...”

“समझता नहीं है।”

“क्या नहीं समझता?”

“अरे, वो सपना था। जो कभी सच नहीं हो सकता था। साला आया और गया। खाली एक हसरत छोड़ गया मन में। अभी जो मैं बोलता है वो हकीकत है। मन की नहीं, मगज की बात है।”

“ऐसा?”

“हां।”

“फिर तो सॉरी बोलता है कि तेरे को टोका। फिर तो बोल, क्या बोलता था?”

“अरे, दिल से बोलता था कि मेरे दिल में कभी नहीं आया कि मैं एक अमीर आदमी बन जाऊं। बोले तो छोटा भीड़ू, छोटे सपने। मामूली आदमी, मामूली हसरतें। कभी बड़ा, और बड़ा, बड़े से बड़ा सोचा ही न गया। कभी आसमान से चांद तारे तोड़ लाने का अरमान ही न जागा, जागता तो मैं साला बड़ी से बड़ी ख्वाहिश करता। साला रंगीन से रंगीन सपना देखता कि बान्द्रा में ‘मन्नत’ के बाजू में मेरा भी हैरीटेज बंगला। एनटीला के सामने मेरा उससे भी ऊंचा टावर। मामूली आदमी की तो जात औकात ही ऐसी बन जाती है, परमानेंट कर के सैट हो जाती है, कि वो उसे बड़ा ख्वाब देखने ही नहीं देती। टैक्सी भाड़े का है तो साला अपना हो जाये, खोली की जगह फ्लैट की मालिकी मिल जाये, बुरे वक्त के लिये बैंक में चार पैसे जमा हो जायें, दोस्त उधारी मांगे तो इतनी औकात हो कि इंकार न निकले मुंह से। ताले तोड़े, तिजोरियां खोलीं, वाल्ट बस्ट किये तो क्या टाटा, बिरला, अम्बानी की बराबरी करने के लिये? नहीं। बस, इस एक अरमान की खातिर कि रोकड़े के मामले में जिन्दगी आसान हो जाये, मोहताजी की दहशत और लानत से निजात मिल जाये, दिहाड़ी कमाने की, दाल-रोटी-बोटी-बोतल की, घरबार की, राशन पानी की मारामारी खत्म हो जाये। साला इतना सा ख्वाब भी कभी पूरा हो के नहीं दिया।”

“क्योंकि तू अक्खा घोंचू! बोले तो सैन्टीमेंटल ईडियट! पहले कभी मोटा माल हाथ आता था तो बुलेट का माफिक कोलाबा पहुंचता था और तुलसी चैम्बर्स वाली बाई के हवाले कर आता था...”

“दिल का मामला था।”—जीतसिंह होंठों में बुदबुदाया।

“फक युअर दिल का मामला।”

“तू नहीं समझेगा।”

“अरे, कौन साला समझना मांगता है! साला हवाबाजी करता है, खयालों की दुनिया में घूमता है। प्रैक्टिकल नहीं होना सकता साला।”

“आखिर तो हुआ न! सुष्मिता खुद को मेरे हवाले करने खुद चल कर विट्ठलवाडी मेरे पास आई। मैं दिल पक्का किया न! प्रैक्टिकल हुआ न! उसको आउट बोला न!”

“अभी उस बहादुरी का रिवार्ड मांगता है तेरे को?”

“पागल हुआ है!”

“साला अपना शर्ट ऊपर कर और अपना जला हुआ बॉडी को लुक दे। शहीद होना मांगता था साला ईडियट! जिसने धोखा दिया, वादा न निभाया उसको कुछ न किया, खुद को फूंक डाला! बोले तो अक्खा ईडियट।”

“जिस से लगन लगी हो, उसका बुरा नहीं चाहा जाता, बुरा नहीं किया जाता।”

“आया बड़ा लगन वाला। वो चाहे तेरे पेन्दे में बांह दे!”

“बस कर अब?”

“टोटल कितना पहुंचा के आया?”

“अभी छोड़ न!”

“अरे, बोल।”

“पिचहत्तर लाख। तीन बार में। पहले दस, फिर तीस, फिर पैंतीस। चौथी बार पचास के साथ गया तो... तो...

जीतसिंह ने होंठ भींच लिये।

“बदले में क्या मिला? अपने मुंह से बोलेगा या मैं बोलूं?”

जीतसिंह चुप रहा। उसने कब की ठण्डी हो चुकी चाय के गिलास में मुंह छुपाने की कोशिश की।

इधर कोई सुष्मिता नहीं रहती। ये मिसेज चण्गुलानी का घर है। यहीच बोला था न बाई ने तेरे थोबड़े पर जूता मारने का वास्ते! तेरे को खुद को फूंक डालने को एनकरेज करने का वास्ते!”

“अब छोड़ न वो किस्सा! किधर की बात थी, किधर पहुंचा दी! जो बीत गयी सो बीत गयी।”

“जब जानता है तो क्या वान्दा है! आगे भी बीत जायेगी।”

“हां। बरोबर।”

“एक तो साला बैड लक खराब कि साला बड़ा रोकड़ा हाथ आता नहीं, आता है तो टिकता नहीं, या तू रवाना कर देता है।”

“मैं! मैं रवाना कर देता है?”

“और क्या करता है? पणजी में दस लाख का ईनाम मिला न बहरामजी कान्ट्रैक्टर से! साला मुम्बई आ के मिश्री को और मेरे को उसमें शेयरहोल्डर बना लिया।”

“अरे, मिश्री मेरे को इतना हैल्प किया, तू मेरे को इतना हैल्प किया, फ्रेंड्स के साथ ही शेयर किया न!”

“न करता तो फिरेंड अनफिरेंड हो जाता? मिश्री बोलती मैं नहीं जानती तेरे को? मैं बोलता कौन जीता?

“नहीं।”

“तो?”

जीतसिंह खामोश रहा।

“तेरा साला बैड लक खराब जो कभी तू खुद करता है, कभी गॉड करता है।”

“ग-गॉड करता है?”

“किया न लास्ट मंथ! साला मिला न फिर बहरामजी से ट्वेन्टी लैक्स जो साला हमारा फास्ट फिरेंड, सब का फास्ट फिरेंड पक्या—मे हिज सोल रॉट इन हैल—ले उड़ा। साला आज तक हिंट नहीं मिला किधर गया!”

“बात हीरों की हो रही थी।”

“हो रही है न! तू देख लेना आखिर तेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा।”

“बद््दुआ देता है!”

“अरे फैक्ट बोलता है जो तेरे को नहीं मालूम, मेरे को मालूम। तेरे को साला अपना पिछला रिकार्ड मेनटेन करके रखना, कैसे ये टेम भी तेरे साथ कुछ डिफ्रेंट कर के होना?”

“छिन जायेगा?”

“पता नहीं क्या होयेंगा!”

“इस बार हम पूरी कोशिश करेंगे—‘हम’ बोला मैं, गाइलो—कि कोई हादसा न हो। पण वो बाद की बात। अभी बात चार सौ हीरों की नहीं, एक हीरे की हो रही थी। तू बरोबर बोला हम हीरे का कोई स्ट्रेट डील करने का हौसला नहीं कर सकते। पण ऐसे डील्स अन्डर दि टेबल भी तो होते हैं! फैंस (FENCE) भी तो होते हैं जो चोरी चकारी का माल धड़ल्ले से खरीदते हैं! मैं खुद एक फैंस से ऐसा एक डील कर चुका हूं।”

“ऐसा?”

“हां। पूना की डकैती में जो माल हाथ लगा था, वो एन्टीक सिक्के थे जिनका मैंने शेख मुनीर कर के एक फैंस से डील किया था जो ‘डिब्बा’ के नाम से बेहतर जाना जाता था, अपने फैंस के बड़े धन्धे के कवर के लिये माटुंगा में पीजा पार्लर चलाता था और इधर ग्रांट रोड पर दो बार चलाता था।”

“बोले तो सूपर। हीरे की बात उसी से करते हैं।”

“नहीं कर सकते। अब वो इस दुनिया में नहीं है। कत्ल हो गया उसका।”

“अरे!”

“पीजा पार्लर की बैक में ही रहता था, किसी ने घर में घुस के मारा।”

“गॉड!”

“और किसी फैंस को मैं नहीं जानता।”

“दैट्स नाट ए बिग पिराब्लम, जीते। फैंस मैं ढूंढ़ लेगा पण...”

“फैंस ढ़ूंढ़ना मुश्‍किल काम नहीं है, डिब्बे जैसा फैंस ढ़ूंढ़ना मुश्‍किल काम है।”

“बोले तो कुछ इस्पेशल करके उस में?”

“हां। ईमानदारी से पेश आता था...”

“फैंस ईमानदारी से पेश आता था?

“छीलता नहीं था। तेरी जुबान में बोले तो चीट नहीं करता था, फेयर डील देता था।”

“हूं। कोई दूसरा फेंस हमें कैसे चीट करना सकता?”

“बात को समझने की कोशिश कर। जो हीरा ये टेम हमारे कब्जे में है, हमें उसकी कीमत नहीं मालूम। तेरा काला घोड़ा वाला सरकारी वैल्युअर हमारे काम आया होता तो मालूम होती। तू ने गेस किया कि हीरा एक लाख का, काला घोड़ा से हीरों की बाबत जो सीख कर आया उसके लिहाज से वो दस लाख का हो सकता है, बीस लाख का हो सकता है। पण साला चालू, बोले तो डिसआनेस्ट, चीट फैंस बोलेगा दो लाख का या तीन लाख का तो हम क्या बोलेगा?”

“बोलेगा... बोलना पड़ेगा... ओके, ब्रदर।”

“अभी समझा।”

“हां, जीते, समझा तो सही बरोबर! तो बोले तो ये भी जरूरी कि जो फैंस मैं ढ़ूंढ़े, वो साला चिज़लर न हो, माल को प्रापर्ली इवैल्यूएट करे...या कराये?”

“हमारे सामने।”

“ठीक। मैं ढूंढ़ेगा ऐसा, गुड रिप्यूट वाला, फैंस।”

“बढ़िया। अब बोल तू क्या कहने लगा था?”

“मैं क्या कहने लगा था?... हां। मैं ये कहना मांगता था कि फैंस प्रॉपर कर के भी होगा—बोले तो तेरे आजमाये हुए फैंस डिब्बे जैसा भी होगा—तो कैसा रेट देगा, ये है न मगज में?”

“है तो सही पण तू बोल।”

“बोले तो वुई विल बी लकी इफ वुई गैट हाफ।”

“ये जरूरत का टेम है, वन थर्ड भी चलेगा।”

“किधर चलेगा साला! एक पेटी का वन थर्ड साला लिटल मोर दैन थर्टी थ्री थाउजेंट। बोले तो चिकनफीड। वुई आर नाट दैट डैस्प्रेट।”

“अरे, दस पेटी का वन थर्ड सोच न! बीस का सोच न!”

“ऐसा?”

“बरोबर।”

“ओके दैन।”

“भाव कम मिलेगा, और कम मिलेगा, हमें क्या वान्दा है! हमारे लिये तो मुफ्त का है न! बोलेंगे जैसे आया वैसे चला गया।”

“बोले तो कम ईजी गो ईजी।”

“वही। तू फैंस का पता निकाल। एक हीरा तो जरूर नक्की करने का। अब तू बोल दिया, साला श्राप दे दिया, कि माल मेरे पास नहीं टिकने वाला तो एक हीरा ठिकाने लगा कर समझेंगे कि भागते भूत की लंगोटी मिली।”

“साला क्या बोला, हिमाचली में शायद! मेरे सिर के ऊपर से गुजर गया।”

“वान्दा नहीं। वही रिपीट कर के बोला जो पहले तेरे सिर के ऊपर से न गुजरा, मगज में पड़ा। अभी दुआ करने का कि इस छोटे से काम में कोई पंगा न पड़े। जीते का रिकार्ड इस जीते हुए भीड़ू के लिये कोई नया फसाद न खड़ा करे।”

“अरे, फिकर नहीं करने का, माई डियर, गॉड विल बी मर्सीफुल।”

“जिस गॉड के पास मेरी फाइल है, वो लांग लीव पर है।”

“नाओ, स्टॉप टाकिंग नानसेंस।”

“मैं एक टेम एक मैगजीन में एक शायर का शेर पढ़ा...”

“शायर बोले तो? शेर बोले तो? टाइगर तो नहीं होना सकता!”

“शायर बोले तो पोयेट। शेर बोले तो पोयेट का कपलेट।”

“ओह? अभी फालो किया मैं। क्या पढ़ा?”

“किसी को सब कुछ नहीं मिलता। किसी को ये मिलता है तो वो नहीं मिलता, वो मिलता है तो ये नहीं मिलता।”

“ये साला पोयेट्री?”

“नहीं। वो उर्दू में। तेरे वास्ते ईजी कर के बोला।”

“उर्दू में क्या?”

“किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता; कभी जमीं नहीं मिलती तो कभी आसमां नहीं मिलता।”

गाइलो के चेहरे से साफ झलका कि उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा था।

“कौन साला मांगता है कि मुकम्मल जहां मिले! पण साला सब को मिले तो सुई की नोक के बराबर तो जीतसिंह के हिस्से भी आये! जहां तो हर टेम कहीं परे ही, दूसरों में ही बंट के खत्म हो जाता है। हमारे तो करीब ही नहीं पहुंचता।”

“पहुंचता है, जीते, पहुंचता है। तेरे को थैंकलैस नहीं होने का। कोई लैसन मांगता है डिप्रेविटी में तो हाजी अली जा, महालक्ष्मी के सामने बैठे बैगर्स को देख, फुटपाथ पर सोने वाले हजारों भीड़ू लोगों को देख, जो सोते में किसी बड़ा बाप का बड़ा गाड़ी से कुचलकर मारे जाते हैं और उन को साला मालूम ही नहीं पड़ता कि मर गये, सोते ही रहे और गॉड के डोर पर पहुंच गये! क्या?”

जीतसिंह परे देखने लगा।

“तकदीर को कोसने से तकदीर साला पलटी नहीं खाता। या खाता है?”

जीतसिंह का सिर मशीन की तरह इंकार से हिला।

“जब कोई तकदीर को ब्लेम करता है और बोलता है उसका पांव में जूता नहीं है तो साला ये नहीं सोचता कि बाजू वाले भीड़ू का पांव ही नहीं है। नाओ यू टैल मी, हू इज बैटर ऑफ? जिस का पांव में जूता नहीं है या जिस का पांव ही नहीं है?”

“जिसका पांव में जूता नहीं है।”—जीतसिंह होंठों में बुदबुदाया।

“सो देयर यूं आर। सो पाजिटिव एटीच्यूड मेनटेन करने का। टम्बलर में मिडल तक पानी हो तो कोई साला कम्पलेन करता है कि उसका टम्बलर हाफ ऐम्पटी। पण कोई विद कन्टैन्ट बोलता है उसका टम्बलर हाफ फुल। डिफ्रेंस किधर है? डिफ्रेंस थिकिंग में है। पाजिटिव या नैगेटिव थिंकिंग में है। मैं बोले तो तेरे को पाजिटिव थिंकिंग बनाने का। हमेशा ब्राइटर साइड को लुक देने का। क्या?”

“वही, जो तू बोला।”

“अभी गॉड ने साला सैवरल खोखा का डायमन्ड तेरा लैप में टपकाया न! फिर बोलता है साला सूई का नोक के बराबर भी न मिला।”

“मिला रहे तब न! टिके तब न!”

“अरे, न टिके तो बोलना जिसने दिया उसने वापिस ले लिया। तू क्या लूज किया?”

“कुछ नहीं।”

“तो?”

“तो ये कि तेरा चर्च जैसा सरमन मेरे को पसन्द आया। मैं करता है वेट कि जैसे माल मेरे पास खुद चल कर आया, वैसे खुद चल कर चला जाये।”

“साला मसखरी मारता है।”

जीतसिंह फिर न बोला।

 

मोबाइल की घंटी बजी।

विराट पंड्या ने वाल क्लॉक की तरफ सिर उठाया।

पौने दस बजने को थे।

उसने मोबाइल की स्क्रीन पर निगाह डाली तो उस पर मगन कुमरा दर्ज पाया।

मगन कुमरा वो भीड़ू था जिसको उसने उसके किशोर पूनिया नाम के जोड़ीदार के साथ पिछली रात जम्बूवाडी उस खास टैक्सी की निगरानी के लिये बुलाया था जो किसी बद्रीनाथ के कब्जे में बताई जाती थी और जिस का नम्बर एमएच 01 जे 7983 था।

उसने काल रिसीव की।

“वो टैक्सी”—कुमरा की आवाज आयी—“ये टेम नागपाड़ा में अलैग्जेंड्रा सिनेमा के टैक्सी स्टैण्ड पर खड़ेली है।”

“चाल से निकल कर सीधी वहां पहुंची?”—पंड्या ने पूछा।

“हां।”

“बोले तो वो उस भीड़ू का रेगुलर टैक्सी स्टैण्ड?”

“ऐसीच जान पड़ता था।”

“डिरेवर चाल में से कहीं से निकला या किधर और से आया?”

“नहीं मालूम। हमारी निगाह टैक्सी पर थी, आये गये पर नहीं थी।”

“हूं।”

“पण...”

“क्या?”

“तुम बोला, उस टैक्सी के डिरेवर का नाम बद्रीनाथ!”

“हां। तो?”

“इधर हम साइलेंट कर के उस टैक्सी के डिरेवर के बारे में पूछताछ किया तो हर कोई डिरेवर का नाम जीतसिंह बोला।”

“कमाल है! और बद्रीनाथ?”

“उसको इधर कोई नहीं जानता। कोई न बोला इधर के किसी रेगुलर डिरेवर का नाम बद्रीनाथ।”

“तो कैजुअल होगा! कभी कभी आने वाला होगा!”

“हो सकता है।”

“मतलब क्या हुआ इसका? कल और आज में उस टैक्सी का डिरेवर बदल गया?”

“अगर भाड़े की टैक्सी है तो क्या बड़ी बात है!”

“ठीक! मैं आता है उधर अभी का अभी। पण मेरे पहुंचने से पहले उस को पैसेंजर मिल गया, वो उधर से निकल लिया तो...”

“ऐसा नहीं होता लगता। इधर बहुत टैक्सियां खड़ेली हैं ये टेम, जो कि नम्बर से चलती हैं। उसका अट्ठाइवां नम्बर है। बाप, इमीजियेट करके पहुंचेगा तो वो इधरीच होगा।”

“आता है।”

उसने काल डिसकनैक्ट की और वो सुहैल पठान को फोन लगाने लगा।

 

सुबह दस बजे से पहले सोलंके फिर अपने बॉस अमर नायक के आवास पर उसके सामने बैठा था।

“कुछ हुआ?”—नायक तनिक अप्रसन्न भाव से बोला—“कुछ किया?”

“काफी कुछ किया, बॉस।”—सोलंके विनीत भाव से बोला—“तभी कुछ हुआ।”

“बढ़िया। दूसरी पार्टी कौन, मालूम पड़ा?”

“अभी नहीं। पण कोशिश जारी है।”

“माल का कोई अता पता निकाला?”

“अभी नहीं, पण...”

“कोशिश जारी है। ठीक?”

“हं-हां, बॉस।”

“तो किया क्या? हुआ क्या?”

“ये पक्की हुआ कि सब किया धरा जोकम का था।”

“ऐसा?”

“हां। आज का अखबार देखा, बॉस?”

“नहीं। क्यों?”

“उसमें एक खास खबर है जिस का तार परसों वाले वाक्ये से जुड़ा है। वो खबर कल के पेपर में नहीं जा सकी थी क्योंकि लेट रिलीज हुई थी।”

“अरे, खबर क्या है?”

“वही बोलता था पण...”

“मैं टोक दिया!”

“अरे, नहीं, बॉस...”

“बोल अभी।”

“कल मैंने जोकम की जेबों से बरामद सामान का जिक्र किया था और बोला था कि उस में सावंत की जेबों का भी सामान था।”

“बोला था।”

“जोकम के सामान की पड़ताल से पुलिस को मालूम पड़ा था कि वो लोअर परेल में वहां के एक वन रूम फ्लैट में अकेला रहता था...”

“वो मैं सुनता है पण पहले बोल ऐसी पड़ताल सावंत के सामान की न हुई?”

“हुई न! तभी वो मालूम पड़ा कि वो कौन था! तभी तो मालूम पड़ा कि गायब था... बोले तो अभी तक गायब है।”

“और कुछ?”

“और भी। वो मेरे को बोलने का ही था पण... अभी मैं पहले वहीच बोलता है।”

“मैं सुनता है।”

“बॉस, जोकम की जेबों से बरामद सामान में से हीरों की कस्टम ड्यूटी की रसीद और क्लियरेंस सर्टिफिकेट भी बरामद हुआ था जो कि बहुत कुछ बताता था, जैसे कि हीरे परसों दुबई से इधर पहुंचे थे, गिनती में चार सौ थे और उनकी वैल्यू, जिस पर कि ड्यूटी अदा की गयी थी, दस करोड़ थी।”

“दस।”

“पेपर्स में तो दस ही दर्ज होनी थी न! इसी बात का तो कस्टम आफिसर वीरेश हजारे ने गुलदस्ता थामा था।”

“ओह! ठीक।”

“अब पुलिस जोकम फर्नान्डो की मौत को उन हीरों से जोड़कर देख रही है जो कि गायब हैं।”

“क्यों? रसीद पर जोकम का नाम था?

“नहीं। रसीद तो उस डायमंड डीलर के नाम थी जिस के आदमी ने आकर ड्यूटी जमा कराई थी?”

“तो? खाली इस वास्ते कि कस्टम के कागजात जोकम के पास से बरामद हुए?”

“खाली इस वास्ते तो नहीं! कोई और भी वजह जरूर होगी लेकिन वो अभी मालूम नहीं पड़ सकी है।”

“हूं। आगे बोल।”

“और सावंत के गायब होने की भी कैसे न कैसे हीरों को ही वजह माना जा रहा है। इस बाबत कोई प्रैस स्टेटमेंट अभी उन्होंने रिलीज नहीं की है पण खामोशी से कुछ पड़ताल की है, कर रहे हैं, पुलिस के महकमे में मौजूद अपने भेदियों के जरिये जिसकी खबर मेरे को मिली है।”

“क्या?”

“उन्होंने वीरेश हजारे को थाने तलब किया है।”

“उसको क्यों?”

“क्योंकि ड्यूटी की रसीद और क्लियरेंस सर्टिफिकेट पर उसके साइन हैं।”

“ओह!”

“और वीरेश हजारे के बयान के जरिये फोकस हुसैन डाकी पर भी बन सकता है...”

“उससे हमें क्या वान्दा है? हुसैन डाकी का मनोरी का पता फर्जी है और तेरा खुद का दावा है वो किसी को ढूंढ़े नहीं मिलेगा।”

“बॉस, तुम्हेरे को मालूम कि वो दावा आम हालात पर लागू था। जो इतना कुछ हो गया, वो न हुआ होता तो डाकी का मिलना क्या, उसको ढ़ूंढ़ना ही जरूरी न होता। यही बात डायमंड डीलर के आदमी हरीश निगम पर लागू थी जो कि रोकड़ा ले कर बन्दरगाह पर पहुंचा था।”

“उस पर भी फोकस बन सकता है?”

“अब बन सकता है। हुसैन डाकी पर बनेगा तो हरीश निगम पर बन के रहेगा।”

“इससे हमारे को पिराब्लम?”

“डाकी की वजह से हो सकती है, निगम की वजह से नहीं। डाकी हमारा औना पौना आदमी फिर भी है, निगम से हमारा कोई वास्ता नहीं।”

“डाकी को खबरदार करना होगा।”

“मैंने कर दिया है। वो कहता है, बल्कि गारन्टी करता है, कि मनोरी वाले उसके रिकार्ड वाले पते से उसे आगे ट्रेस नहीं किया जा सकता।”

“फिर क्या वान्दा है?”

“हीरों का फोकस में आना वान्दा है। आप जानते हैं वो एक खामोश आपरेशन था, उसे खामोश ही रहना चाहिये था।”

“खामोश ही रहेगा। पुलिस जितना मर्जी उछल ले, खामोश ही रहेगा। जो हीरे लाया, वो तू खुद मानता है कि पुलिस को ढ़ूंढ़े नहीं मिलने वाला, जिन्होंने हीरों को हैंडल किया, वो दोनों मर चुके हैं, हीरे बरामद हो भी गये तो कैसे हमारा रिश्‍ता उन से जुड़ सकेगा?”

“जिन लोगों ने जोकम को मारा, वो जिन्दा हैं?”

“तू दूसरी पार्टी का पता निकाल लेगा... निकाल लेगा न?”

“हां, बॉस।”—सोलंके ने बड़ी मुश्‍किल से अपने स्वर का खोखलापन छुपाया।

“...तो उनका भी पता लग जायेगा। फिर उन को हम जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बोले तो पुलिस कैसे भी हमारे तक नहीं पहुंच सकती। कस्टम से तफ्तीश के नतीजे के तौर पर उन का निशाना डायमंड डीलर होगा जिसने ड्यूटी भरी। वो डायमंड डीलर तक पहुंच भी जायेंगे तो उन्हें मालूम पड़ेगा कि उसने कोई ऐसी ड्यूटी नहीं भरी, हरीश निगम नाम का कोई भीड़ू उसका मुलाजिम नहीं।”

“सब ठीक, बॉस, पण वीरेश हजारे...”

“वो क्या?”

“वो असलियत से वाकिफ। उसको मालूम कि माल हमेरा और जो पर्देदारी हुई, वो हमने की।”

“उसकी हमेरे खिलाफ मुंह खोलने की मजाल नहीं हो सकती। मनमर्जी का गुलदस्ता थामा उसने हमेरे से। बीस पेटी पहले काबू में किया फिर हमेरे काम आया। मुंह फाड़ेगा तो...”

“क्या पता लगता है!”

“क्या बोला?”

“पिरेशर में क्या पता लगता है!”

“अरे, बीस पेटी...”

“गुलदस्ता कोई रसीद दे के थामता है?”

नायक खामोश हो गया।

“तो”—फिर बोला—“उससे हमेरे को लोचा?”

“हो सकता है।”

“तो टपका दे साले को।”

“वो टपक गया तो पुलिस का शक और मजबूत हो जायेगा कि हालिया जो हो रयेला है, दुबई से आये हीरों की वजह से हो रयेला है।”

“हो जाये। हमें क्या वान्दा है?”

“वान्दा हो सकता है। सब इस बात पर मुनहसर है कि हजारे क्या बयान देता है और पुलिस उस बयान की क्या तर्जुमानी करती है! बोले तो मैं हजारे को मानीटर कर के रखूंगा। पुलिस में हमेरा जो भेदिया है, उसको भी खड़काऊंगा और खुद भी हजारे से मिलूंगा। फिर जैसा मुनासिब देखूंगा, कदम उठाऊंगा।”

“ठीक।”

“वैसे मेरे को पक्की कि पुलिस का हजारे को बुलावा महज रूटीन क्यों कि ड्यूटी की रसीद और कस्टम क्लियरेंस सर्टिफिकेट पर उसके साइन।”

“और जो उसने हीरों की कीमत असल से आधा करके रिकार्ड की?”

“उसके लिये हीरे बरामद होने जरूरी। रीइवैल्युएशन से ही तो पता लगेगा कि हजारे ने उन को अन्डरइवैल्युएट किया! हीरे बरामद न हों तो कोई माई का लाल साबित नहीं कर सकता कि कस्टम आफिस पर कस्टम आफिसर वीरेश हजारे ने कुछ गलत किया।”

“बरामद हों तो?”

“तो खुशी की बात होगी। हों और हमेरे हाथ लगें तो और खुशी की बात होगी। पण पहले पुलिस के हाथ लग गये तो... तो पिराब्लम होगी। तो हजारे को टपकाने के बारे में सीरियस कर के सोचना पड़ेगा।”

“हीरे हमेरे ही हाथ लगना मांगता है मैं, सोलंके, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाये।”

“ऐसीच होगा, बॉस। ये टेम हमेरे अक्खे प्यादे एकीच काम पर हैं। सब से ज्यादा जोर अन्डरवर्ल्ड से अफवाहें सूंघने पर है। कहीं से जरा सा इशारा भी मिल गया कि वो भीड़ू लोग कौन थे जिन्होंने जोकम को खल्लास किया, तो बाकी सब मैं खुद हैंडल करेगा और सब स्टोरी निकलवा के रहेगा कि उनके सिर पर कौन, कैसे उन को हीरों की खबर, कैसे खबर कि हीरे जोकम के कब्जे में वगैरह।”

“कर लेगा तो बड़ा कमाल करेगा।”

“करेगा न, बॉस!”

“और बड़ी शाबाशी का हकदार बनेगा।”

“मैं बन के दिखायेगा।”

“बोले तो बढ़िया। अब वो बात कर जो बीच में रह गयी थी। तू बोला पुलिस को जोकम की जेबों से बरामद सामान से मालूम पड़ा कि वो किधर रहता था, उससे आगे बोल।”

“बोलता है, बॉस। उधर से, लोअर परेल के उसके फ्लैट से उन को मालूम पड़ा कि वो शादीशुदा था, दो साल पहले उसने अलीशा वाज़ करके एक गोवानी लड़की से शादी बनाया था।”

“कैसे मालूम पड़ा?”

“फ्लैट से कोर्ट का जारी किया मैरिज सर्टिफिकेट मिला। शादी का ड्रैस में—जोकम काले सूट में, ब्राइड सफेद गाउन में—एक फोटू मिला।

“हूं। बोले तो शादीशुदा था पण बीवी साथ नहीं रहती थी?”

“ऐसीच था।”

“क्यों?”

“वजह क्लियर करके कोई सामने नहीं आयी।”

“बीवी कहां रहती थी?”

“जोगेश्‍वरी ईस्ट में। उधर लिटल गोवा करके गोवानी बस्ती में अकेली। पुलिस को जोकम के फ्लैट से अलीशा वाज़ का पता मालूम पड़ा तो वो उधर पहुंची। रात के एक बजे उन्होंने अलीशा को सोते से जगाया और उसे जोकम की—उस के सीक्रेट करके हसबैंड की, जिसको बस्ती वाले उसका कजन समझते थे—मौत की खबर सुनाई। ऐसे एकाएक सुनाई, सुनाई क्या, ऐसे बेरहमी से उसके मुंह पर मारी कि लड़की का हार्ट फेल हो गया।”

“मर गयी?”

“पलक झपकते। जहां खड़ी थी, वहीं टपक गयी।”

“ओह! बोले तो बुरा हुआ बेचारी के साथ। पण इस खबर की हमेरे वास्ते क्या अहमियत है?”

“उससे मेरे को एक आइडिया आया न!”

“क्या?”

“बॉस, जोकम हमेशा मेरे को बोलता था कि वो बिल्कुल अकेला था, उसका मुम्बई में कोई करीबी या दूर का रिश्‍तेदार नहीं था। ऐसे तमाम रिश्‍ते वो आठ साल पहले पीछे परनेम में छोड़ कर आया था। पण गोवानी बीवी निकल आई न, जिसकी दो साल से किसी को भनक भी नहीं थी! इससे मेरे को आइडिया आया कि ऐसा कोई और भी उस का गोवानी करीबी—पीछे परनेम से, कहीं से भी—इधर हो सकता था। मैंने लिटल गोवा से उस बाबत पूछताछ करवाई तो कोई नतीजा सामने न आया, हर कोई बोला कि अलीशा वाज़ का ‘कजन’ जोकम के अलावा कोई नियर एण्ड डियर थाइच नहीं। पण वैसी बारीक, चौतरफा पूछताछ लोअर परेल से, जिधर अपना जोकम रहता था, करवाई तो उसका एक जातभाई फोकस में आया जो कभी कभार उधर जोकम से मिलने आता था। वो रहता कहां था, इतना जल्दी ये तो मालूम न पड़ सका पण ये मालूम पड़ा कि उस का नाम रेमंड लियो था और वो कोलाबा के एक मोटर गैराज में अप्रेंटिस का जॉब करता था।”

“बोले तो अभी मोटर रिपेयर का काम सीखता था!”

“वहीच बोला मैं।”

“आगे बोल।”

“आगे कोलाबा के सारे मोटर गैराज चैक करवाये तो उस गैराज का पता पकड़ में आया जिसमें रेमंड लियो काम करता था। कल शाम सात बजे मेरे पास उस गैराज की खबर आयी तो मैं खुद वहां पहुंचा। वहां से मालूम पड़ा कि वो छुट्टी कर के जा चुका था पण एक दूसरा अप्रेंटिस बोला कि गोवानी भीड़ू उम्र में तो अभी छोटा था—बाइस साल का बोला वो—पण घूंट लगाने में अभी से बड़ों को कम्पीटीशन देता था और डेली गैराज से छुट्टी करके बन्दरगाह के इलाके के एक बेवड़े अड्डे पर पहुंच जाता था जहां वो छक के पीता था इसलिये जाहिर था कि देर रात तक उधर ठहरता था। मैं प्यादों के साथ उस बेवड़े अड्डे पर पहुंचा तो वो उधर मौजूद था। मैंने उसी से पक्की किया कि वो रेमंड लियो था, लोअर परेल वाले जोकम फर्नान्डो का वाकिफ था और फिर उसको थाम लिया। अकेले में ले जा कर उससे पूछताछ की तो पहले तो वो कुछ बक के न दिया...”

“ऐसीच होता है। ठोकना था।”

“...फिर ठोका न बरोबर! ठोका तो बका। बॉस, बका तो ऐसी सनसनीखेज, ऐसी अनोखी कहानी सुनाई कि मैं भौंचक्का रह गया, हैरान रह गया सुन कर कि जोकम ने सारा माल हज्म करने के वास्ते ऐसी कमाल की स्कीम सैट की...”

“क्या किया? क्या सैट किया?”

“रेमंड जो बका, वो सुनो, बॉस। फिर और कुछ कहना जरूरी नहीं रह जायेगा।”

“सुनता है।”

“रेमंड बोला कि परसों शाम उसने खास तौर पर बेवड़े अड्डे पर तब तक मौजूद रहना था जब तक कि उसके मोबाइल पर जोकम की काल न आती। काल आने पर उसने बन्दरगाह के करीब के उस पायर पर पहुंचना था जिस तक मेन रोड से एक तंग, पेड़ों से घिरी सड़क जाती थी जो रात के टेम नीमअन्धेरी होती थी, आगे पायर भी नीमअन्धेरा होता था और रात की उस घड़ी उजाड़ होता था। रेमंड बोला कि फोन आने पर उसने पायर पर पहुंचना था जहां कि उसे जोकम मिलता, जोकम उसके सामने खुद को गोली मारता...”

“क्या? क्या बोला? खुदकुशी कर लेता?”

“अरे, समझो, बॉस। जो इतना बड़ा साजिश किया, पर्सनल बैनीफिट के वास्ते साजिश किया और उस पर एक्ट किया, वो खुदकुशी कैसे कर लेता? खुदकुशी करनी थी तो वो सब करने की क्या जरूरत थी जो उस रात उसने किया और जो उसकी मौत की वजह बना? रेमंड लियो को पायर पर बुलाने की क्या जरूरत थी?”

“ओह! बोले तो... सॉरी। मेरा ध्यान किधर भटक गया था।”

“वान्दा नहीं, बॉस। होता है।”

“तू आगे बोल। जोकम पायर पर रेमंड लियो के सामने खुद को गोली मारता, इससे आगे बोल।”

“ऐसे गोली मारता कि घायल तो गम्भीर होता लेकिन मर ही न जाता। लेकिन अगर जल्दी उसे हस्पताल न पहुंचाया जाता तो खून ज्यादा बह जाने की वजह से, डाक्टर लोग जिसको एक्सेसिव ब्लीडिंग बोलते है, उसकी जान पर आ बन सकती थी। बॉस, यहां रेमंड लियो कहता है, उसका पहले से सैट रोल था। काल आने पर वो पायर पर पहुंचता, जोकम उसके सामने खुद को कहीं गोली मारकर जख्मी करता और रेमंड पुलिस को फोन लगाता कि पायर पर पड़ा एक भीड़ू मरता था जिसको कि गोली लगी थी।”

“जब तू रात के टेम पायर को उजाड़ बताता है तो छोकरे से पूछा न जाता कि रात के टेम उजाड़ पायर पर वो क्या कर रहा था?”

“जवाब जोकम ने एडवांस में समझा के रखा न उसको! वो बोलता कि वो बन्दरगाह के एक बेवड़ा अड्डे पर बाटली मारता था जो कि उसका रोज शाम का काम पण परसों नशा ज्यास्ती हो गया जिस की वजह से कदरन नार्मल होने के लिये वाक पर निकला तो भटक कर उस उजाड़ सड़क पर आ गया और बेध्यानी में पायर पर पहुंच गया जहां उसने एक भीड़ू को गोली से जख्मी हुआ पड़ा तड़पता देखा।”

“ओह!”

“बॉस, वो बोलता है कि ये सब उसने तभी बोलना था जब कि किसी इत्तफाक से वो पुलिस की जानकारी में आ जाता और पुलिस उसको थाम कर सवाल करती। असल में तो उसने पुलिस को गुमनाम काल लगानी थी और निकल लेना था।”

“पुलिस, मैं सुना कि, ऐसी काल ट्रेस कर लेती है!”

“हां। पण ये बात आज के टेम में सब को मालूम। रेमंड कहता है कि जोकम ने ही उसे एक सिम कार्ड दिया था जिसको एक काल के लिये इस्तेमाल करके उसने नक्की कर देना था। पुलिस क्या ट्रेस कर लेती, बॉस?”

“ठीक। लेकिन जाहिर है कि ये सब करने की नौबत तो न आयी!”

“बिल्कुल। अभी बोलता है न कि नौबत क्यों न आयी?”

“क्यों न आयी?”

“रेमंड बोलता है कि जब वो पायर के करीब पहुंचा तो उसने देखा कि उसके आगे उसकी ओर पीठ किये दो भीड़ू खड़े थे जिन में से एक के हाथ में गन थी और जिसे वो सामने खड़े जोकम पर ताने था। जोकम के दोनों हाथ सिर से ऊपर थे और एक हाथ में ब्रीफकेस था...”

“हमारे माल वाला?”

“और कौन सा होता!”

“ठीक। आगे?”

“आगे रेमंड बोलता है कि शायद उन दोनों भीड़ुओं को भनक लग गयी थी कि पीछ कोई आता था। उस वजह से सामने हाथ उठाये खड़े जोकम से जरा सी देर को उन का ध्यान भटका तो जोकम ने पायर पर से समन्दर में डाई लगा दी। उसके बाद पायर पर क्या हुआ, रेमंड को नहीं मालूम क्योंकि तभी वो घूमा और जान छोड़कर वहां से भाग निकला।”

“उन दो भीड़ुओं को खबर न लगी कि पीछे कौन था?”

“नहीं ही लगी होगी वर्ना हो सकता था रेमंड का भी काम हो जाता।”

“और वो दो भीड़ू कौन थे?”

“बॉस, पक्की तौर पर तो कुछ नहीं कहा जाता लेकिन हालात का इशारा तो उन्हीं की तरफ है जो किसी तरह से बाद में भी जोकम के पीछे लगे और और बाद में उसकी मौत की वजह बने।”

“हो सकता है।”

“रेमंड बोलता है कि कुछ न होता, वो फच्चर न पड़ता तो पुलिस को काल करने के अलावा भी अभी जोकम के लिये वो दो काम और करता।”

“क्या?”

“एक तो उस गन को गायब करता जिस से कि जोकम खुद अपने आप को गोली मारता, ताकि लगता कि हथियार हमलावर के साथ गया। दूसरे, ब्रीफकेस को साथ ले कर जाता और तब तक उसकी अमानत के तौर पर पास रखता जब तक कि तन्दुरुस्त होकर जोकम अपने पैरों पर खड़ा न हो जाता।”

“उसने उस छोकरे का इतना बड़ा ऐतबार कर लिया?”

“रेमंड को नहीं मालूम था ब्रीफकेस में क्या था!”

“पण मालूम पड़ तो सकता था! जोकम पता नहीं कितना, किस हद तक जख्मी होता, कितने टेम में उठ के खड़ा हो पाता! बोले तो एक लम्बा टेम ब्रीफकेस छोकरे के कब्जे में। काहे वास्ते वो देखने की कोशिश भी नहीं करता कि भीतर ऐसा क्या था जिस की खातिर जोकम ने जान का खतरा उठाया, खुद को गोली मार ली!”

“अभी क्या बोलेगा! जो हुआ नहीं, उसके बारे में क्या बोलेगा?”

“वो छोकरा क्या कहता है?”

“वो कहता है वो जोकम का मुरीद। एडमायरर। आइन्दा जिन्दगी में जोकम जैसा बनने का ख्वाहिशमन्द। बोलता है वो जान से ज्यादा ब्रीफकेस की हिफाजत करता और जब मौका आता, जैसा मिला, वैसा जोकम को वापिस सौंपता।”

“बंडल!”

“अभी बोलता है न!”

“खैर, जो चीज उसके हाथ ही न आयी, उसके बारे में बोले जो मर्जी। अभी खास और बड़ी बात ये कि उसके कहने के मुताबिक जोकम उसकी आंखों के सामने ब्रीफकेस के साथ समन्दर में कूद गया!”

“बरोबर!”

“तो जोकम ये स्टोरी सैट करना मांगता था कि अपना सावंत दगाबाजी पर उतर आया, माल को काबू करने का वास्ते उसने जोकम को शूट किया और माल के साथ फरार हो गया! जोकम का गुडलक कि वो मरा नहीं और वक्त रहते हस्पताल भी पहुंचा दिया गया! असल में जो मरा, वो सावंत और माल जोकम को हजम!”

“बरोबर बोला, बाप।”

“हूं।”

कुछ क्षण खामोशी रही।

“पण”—फिर नायक बोला—“जोकम की स्कीम में पंगा पड़ गया, बोले तो चोर को झपटमार पड़ गये जिन से बचने का उसका चांस लगा और वो समन्दर में कूद गया। यहीच बोला न?”

“हां।”

“कूद के कहां गया? तैर के निकल गया किधर?”

“ये तो... ये तो मुमकिन नहीं लगता!”

“पायर पर वापिस लौटा?”

“ये भी मुमकिन नहीं लगता, बॉस। वो दोनों भीड़ू, जिनके हाथ से वो निकल गया, बोले तो हमेरे कीमती माल वाला ब्रीफकेस निकल गया, वो इतनी आसानी से उधर से कैसे टल जाते! उन को भी तो उम्मीद होती कि वो पायर पर लौट सकता था!”

“ठीक। पण जोकम फुल ड्रैस में ब्रीफकेस के साथ पानी में कितना तैर सकता था? समन्दर में कितना दूर जा सकता था?”

“बॉस, मेरे मगज में भी ये प्वायन्ट आया बरोबर। ये तैर के निकल गया होने वाला बात मेरे को बिल्कुल मंजूर न हुआ। पायर पर न लौटा तो जाहिर है कि आगे कहीं किनारे जा कर लगा और खुश्‍की पर पहुंचा। ये सोच के मैंने कई प्यादे उधर के खुश्‍की के एरिया में दूर तक, बोले तो गेटवे इन्डिया तक, दौड़ाये तो आधी रात को एक खबर मेरे पास पहुंची।”

“क्या?”

“बॉस, तुम्हेरे को मालूम गेटवे आफ इन्डिया पर उन स्टीमरों का स्टेशन जो टूरिस्टों को समन्दर की सैर पर लेकर जाते हैं?

“मालूम।”

“हमेरे प्यादे खबर लाये कि उधर एक स्टीमर वाला बाकी स्टीमरवालों से स्टोरी करता था कि उसने रात के टेम बीच समन्दर से एक भीड़ू को एक डोंगी पर से अपने स्टीमर पर चढ़ाया था और उसे गेटवे आफ इन्डिया पहुंचाने के अलावा, उससे स्टीमर के भाड़े के अलावा, हजार रुपये ऐंठे थे।”

“वो भीड़ू अपना जोकम!”

“और कौन होता?”

“डोंगी क्या?”

“बोले तो छोटे साइज की किश्‍ती। चप्पुओं से चलाई जाने वाली। एक या दो भीड़ुओं की सवारी के काबिल।”

“जोकम ऐसी किश्‍ती पर, डोंगी पर, बीच समन्दर?”

“हां। जो ज्यादा दूर तक ब्रीफकेस के साथ तैर नहीं सकता था पण डोंगी पर चप्पू चलाता रात के अन्धेरे में पायर पर मौजूद अपने हमलावरों से काफी दूर निकल जा सकता था। इत्तफाक से उसे स्टीमर ने चढ़ा लिया तो वो काफी आगे गेटवे आफ इन्डिया तक पहुंच पाया वर्ना अपनी कोशिशों से पहले ही कहीं किनारे पर लगता।”

“पण बन्दरगाह के करीब के उस पायर पर डोंगी का क्या काम?”

“कोई काम नहीं। पण उसका भी एक जवाब बनता है न!”

“क्या?”

“बॉस, उस जवाब से पहले दो बातें इम्पॉर्टेंट जो मैं बोलता है।”

“मैं सुनता है।”

“एक तो ये कि अपना शिशिर सावंत अभी तक गायब है। दूसरी ये कि आज के पेपर में बीच के वरकों में एक छोटा सा न्यूज मैं देखा कि परसों बोट क्लब से एक मोटरबोट चोरी चला गया था जिस की अब तक कोई खबर नहीं। बॉस, इन दो बातों में मैंने डोंगी वाली बात को जोड़ा तो मेरे मगज में कुछ आया।”

“क्या?”

“वो मोटरबोट दगाबाजी की अपनी एडवांस तैयारियों के तौर पर जोकम चोरी किया। सावंत को माल हथियाने के लिये उसने खल्लास किया। उसको माल के साथ लेकर फरार हो गया साबित करने के लिये मोटरबोट पर उसे, बोले तो उसकी लाश को, बीच समन्दर ले जाकर ऐसे डुबो दिया कि वो कभी बरामद न हो और मोटरबोट को भी डुबो दिया ताकि लगता कि सावंत हमारे माल के साथ समन्दर के रास्ते कहीं फरार हुआ। ये सब कर चुकने के बाद जोकम को अभी किनारे लगने का था, इस वास्ते एक डोंगी का मोटरबोट में होना तो बनता है न!”

नायक का सिर सहमति में हिला।

“जोकम साला हरामी इतना पहुंचा हुआ भीडू!”—फिर मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला—“इतने कमाल कर सकने वाला भीड़ू हमारे गैंग में, पण हमारे वास्ते कोई कमाल न किया!”

“अपने वास्ते भी किधर किया? लगा कि किया, पण किधर किया? आखिर फेल हो गया और जान से गया।”

“पण माल पहले ही कहीं गर्क कर गया साला हरामी!”

“बोले तो यही कमाल किया।”

“पण अगर वो समन्दर में डोंगी पर, फिर स्टीमर पर, फिर गेटवे आफ इन्डिया पर, तो फिर वो बन्दरगाह से टैक्सी पर सवार हुआ तो नहीं हो सकता न, जैसा कि तू सोचता था और बोलता था कि बन्दरगाह की टैक्सियों को चैक कराने का?”

“तब बोला, बॉस, जबकि अभी रेमन्ड लियो की खबर नहीं लगी थी और उससे हासिल कड़क जानकारी पकड़ में नहीं आयी थी। अभी मेरा फोकस गेटवे आफ इन्डिया पर है और परसों रात के वहां के टैक्सी ड्राइवरों पर है।”

“उधर टैक्सी स्टैण्ड किधर है?”

“ऐन सामने नहीं है पण फासले पर है।”

“जान बचा के भागा वो स्टीमर से उतरा, खुश्‍की पर कदम रखा और टैक्सी पकड़ने के वास्ते फासले पर के टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचा?

“क्या कहना मांगता है, बॉस!”

“वो चलता रास्ता है, उसने कोई राह चलती टैक्सी पकड़ी होगी तो तेरे भीड़ुओं की टैक्सी स्टैण्ड से पूछताछ किस काम आयेगी?”

“ठीक। पण, बॉस ये एक खयाल ही है न कि उसने राह चलती टैक्सी पकड़ी होगी! ऐसी कोई टैक्सी उसे न दिखी होगी तो वो क्या करेगा? टैक्सी स्टैण्ड पर ही तो जायेगा!”

नायक खामोश रहा लेकिन उसकी सूरत से न लगा कि वो अपने डिप्टी से सहमत था।

“बॉस, जोकम की परसों रात की मूवमेंट्स ट्रेस करना जरूरी। उसके बिना आगे बढ़ पाना, किसी मुकाम पर पहुंच पाना मुश्‍किल। नामुमकिन तो नहीं पण मुश्‍किल।”

“जो भीड़ू उसके पीछे थे, मालूम पड़ा कौन थे, कौन से गैंग के थे?”

“उसके लिये भी जोकम की मूवमेंट्स ट्रेस करना जरूरी।”

“बोले तो नहीं मालूम पड़ा!”

“अभी नहीं पड़ा, पण पड़ेगा। अभी इतना कुछ हुआ न! सारा कुछ एकीच दिन में तो नहीं हो जाने वाला न!”

“हूं।”

“बॉस, एक बात तो अब रेमन्ड लियो के बयान से पक्की कि जो भीड़ू लोग जोकम को खल्लास किया, वो शुरू से उसकी ताक में। बोले तो माल की ताक में। जोकम ने जो करतब किये, वो वो न करता तो मेरे को अब पक्की कि वो और सावंत दोनों उन भीड़ुओं के शिकार बनते जो माल पर घात लगाये थे और माल की वजह से उनकी ताक में थे।”

“मेरे को अभी भी यकीन नहीं आता कि हीरों की आमद की बाबत हमारी इतनी खुफिया जानकारी लीक कर गयी।”

“होता है, बॉस होता है। जिस धन्धे में हम हैं, उसमें कुछ भी होता है। जानकारी रखने वाले भीड़ू लोग लापरवाह हो जाते हैं, लापरवाही में बोलते हैं। सुनने वाले सुनते हैं। हमारे हाथ भी तो हमारे काम की जानकारी ऐसीच लगती है! हर कोई तो मुंह बन्द रखना नहीं सीख पाता न! जिन वजहों से हमारा काम बनता है, वो दूसरों को भी हासिल हैं न!”

“तो हमारा भीड़ू हीरों की बाबत मुंह फाड़ा, कोई सुना!”

“कोई न सुना तो कोई दूसरा सुना जिसने जो सुना वो किसी को सुनाया। किसी ने किसी को सुनाया, आखिर खबर पहले तक पहुंच गयी।”

“पहले, यानी वो भीड़ू जो सावंत और जोकम के पीछे पड़े!”

“बरोबर!”

“जिनकी अभी हमें कोई खबर नहीं!”

“लगेगी न! अन्डरवर्ल्ड में इस बाबत चौतरफा बात फैलाई है। हमारे भेदिये सब तरफ हैं। जल्दी ही किसी न किसी के कान में हमेरे मतलब की कोई बात पड़ेगी और मेरे तक पहुंचेगी।

“हूं।”

“बॉस, तुम्हेरे को मालूम ऐसे काम सब्र से होते हैं, होते होते होते हैं।”

“हूं। और?”

“अभी तुम जोकम का तारीफ किया न कि इतने कमाल कर सकने वाला भीड़ू हमारे गैंग में और अफसोस किया कि हमारे वास्ते कोई कमाल न किया!”

“हां। तो?”

“बोले तो उसने अपने वास्ते भी कोई कमाल न किया।”

“टपका दिया गया, इस वास्ते ऐसा बोलता है तो बोल तो चुका ये बात तू!”

“बरोबर। पण यहीच बात अभी मेरे को एक और, पहले से ज्यास्ती इम्पॉर्टेंट करके, इन्टरेस्टिंग कर के ऐंगल से बोलना मांगता है न!”

“बोल।”

“बाप, जोकम जिन्दा रहता तो जो आगे उसके साथ होता, वो अपने मुंह से बोलता।”

“बोले तो?”

“वो कामयाब होता तो भी कामयाबी का सुख न पाता। आखिर नाकाम ही रहता।”

“क्या बोलना मांगता है?

“ये कि उसकी स्कीम पर्फेक्ट करके काम नहीं करती। अभी देखो, उसने खुद को गोली मार के जाहिर करना था कि उस पर गोली सावंत ने चलाई जो कि माल के साथ फरार हो गया। बॉस, ये बात हमें हज्म हो जाती, पुलिस को नहीं।”

“क्या बोला? पुलिस जान जाती कि जोकम ने खुद अपने को गोली मारी थी?”

“हां।”

“कैसे?”

“इन बातों को जांचने परखने के लिये पुलिस के पास स्पैशलिस्ट कर के भीड़ू होते हैं जो जान जाते हैं कि किसी पर गोली चली या खुद उसने अपने पर चलाई।”

“कमाल है! कैसे?”

“फुल डिटेल मेरे को नहीं मालूम पण इतना मालूम कि किसी तरीके से वो जान जाते हैं कि गोली फासले से चली, करीब से चली या बिल्कुल करीब से चली। मोटे तौर पर बोले तो गोली ऐन करीब से चली हो तो वो बॉडी में गहरा धंसती है, फासले से चली हो तो इतना गहरा नहीं धंस पाती। फिर करीब से चली गोली बॉडी में एन्ट्री की जगह बुलेट होल के गिर्द बारूद के निशान छोड़ती है, गोली दूर से चली हो तो ऐसा नहीं होता। अभी और बोले तो उन लोगों को ये भी मालूम कि कौन सी गन से चली गोली कितने फासले से बॉडी में कितना गहरा धंसती है!”

“पण गन तो मिलती नहीं!”

“बुलेट मिलती न, जो कि जोकम की बॉडी में से निकाली जाती। बुलेट से गन की किस्म का पता चलता न! गन का कुछ कैलीबर कर के होता है, उसका पता चलता न!”

“बोले तो वो बैलैस्टिक कर के एक्सपर्ट पुलिस को बता देता कि जोकम ने खुद अपने को गोली मारी थी?

“हां।”

“फिर जोकम का क्या होता?”

“बुरा होता। पुलिस उसके खतरे से बाहर होने का इन्तजार करती, फिर उससे कबुलवा के रहती कि उसने खुद अपने को गोली मारी थी। फिर और सख्ती होती तो वो गा गा के सुनाता कि असल में क्या हुआ था, कैसे हुआ था और माल किधर था! पुलिस रेमंड लियो के पास से ब्रीफकेस बरामद करती तो रही सही कसर उसका बयान पूरी कर देता।”

“कमाल है! तभी तू बोला वो कामयाब रह के भी नाकाम रहता!”

“हां।”

“पण वो तो खल्लास हो गया! अभी कौन बोलेगा कि माल किधर गर्क है!”

“बोलने वाले को ही तो तलाश करना है! इसी वास्ते तो मेरे को उसकी परसों रात की मूवमेंट्स ट्रेस किया जाना जरूरी लगता है। बॉस, ये बात काबू में करने लायक है कि पायर पर लक ने उसको फेवर किया और वो जान से जाने से बच गया और माल समेत समन्दर में छलांग लगा कर अपने हमलावरों के हाथों से निकल गया पण बाद में किसी टेम फिर उनके नोटिस में आ गया जो कि हैरान करने वाली बात है। नोटिस में आ गया तो पकड़ाई में आ गया पण बीच में कहीं ब्रीफकेस नक्की करने में कामयाब हो गया। बॉस, इस बात से मेरे मगज में आइडिया आता है कि सारे सिलसिले में उस टैक्सी ड्राइवर का कोई रोल, जिसकी टैक्सी में वो गेटवे आफ इन्डिया से सवार हुआ।”

“अरे, सोलंके, तू तो ऐसे बोलता है जैसे जोकम ब्रीफकेस टैक्सी ड्राइवर को दे गया!”

“अमानत के तौर पर। कोई फैंसी स्टोरी किया ब्रीफकेस का और उसे टैक्सी ड्राइवर के हवाले किया।”

“माथा फिरेला है तेरा। अभी इतना अच्छा अच्छा बोल रहा था सब, अब ऐसे बोलता है जैसे पियेला है।”

“अब क्या बोलूं?”

“न ही बोल। मैं नहीं मानता कि जोकम जैसा टॉप का हरामी, टॉप का तिगड़मबाज—जो कि अब हमें पता लगा कि वो था—बीस करोड़ के हीरों वाला ब्रीफकेस एक ऐसे टैक्सी ड्राइवर को थमा गया जिसे वो जानता तक नहीं था।”

“हो सकता है जानता हो!”

“क्या बोला?”

“वो कोई पुराना वाकिफ गोवानी हो—रेमन्ड लियो की माफिक—जो मुम्बई में टैक्सी चलाता हो और इत्तफाक से उसे मिल गया हो!”

“साला भांग खायेला है। पता नहीं किधर किधर की हांक रहा है।”

“मालूम करने में क्या हर्ज है?”

“टेम खोटी करेगा। पता नहीं कितने प्यादों को खामख्वाह दौड़ायेगा।”

“क्या हर्ज है?”

नायक ने अपलक उसकी तरफ देखा।

“क्या हर्ज है?”—सोलंके धीमे लेकिन जिदभरे स्वर में बोला।

“ठीक है।”—नायक ने गहरी सांस ली—“मेरा मुंह लगा है, लेफ्टीनेंट है, कर जो जी में आता है।”

“थैंक्यू बोलता है, बॉस।”

“अभी एक बात मेरे को बोल।”

“क्या बात?”

“वो हीरे ड्यूटी पेड हैं। अगर उन के लिये थाने में रपट लिखायें तो?”

“लिखा सकते हैं। पण आप तो नहीं लिखा सकते! ड्यूटी तो डायमंड डीलर ने अदा की क्योंकि वो बोला उसका...उसका माल आया दुबई से।”

“एकीच बात। वो ही सही।”

“बॉस, तुम भूल रहा है कि काम हो जाने पर डायमंड डीलर ने ढ़ूंढ़े नहीं मिलना था, उसके हरीश निगम करके भीड़ू ने ढ़ूंढ़े नहीं मिलना था जो कस्टम पर ड्यूटी जमा कराके गया, कस्टम आफिसर वीरेश हजारे के लिये गुलदस्ता डिलीवर करके गया। हमने खाली एक बड़े डायमंड डीलर का नाम इस्तेमाल किया जिसका असल में क्या हुआ, उसकी हमें भनक तक नहीं थी। ऐसे में रपट लिखाने के लिये थाने कौन पेश होगा?”

“हरीश निगम!”

“वो थाने जा के बोलेगा वो डायमंड डीलर का भीड़ू रपट लिखाने आया?”

“हां।”

“हीरे तो हुसैन डाकी के कब्जे में थे, वो ही कस्टम से निकाल कर लाया! निगम तो, डाकी बोलता है, रोकड़े का जो कस्टम पर करना था, उसे करते ही उधर से चला गया था। ये बात कस्टम पर भी मालूम। उसका रपट लिखाने थाने जाने का क्या मतलब?”

“तो डाकी।”

“डाकी क्या बोलेगा, कैसे हीरे उसके हाथ से निकल गये!”

“हूं।”

“अभी आप ये भूल रहे हैं कि उसके साथ कस्टम से मिला पुलिस का एक सिपाही था जो मौजूद ही उसके साथ हीरों की हिफाजत के लिये था। कैसे डाकी दावा करेगा कि हथियारबन्द सिपाही के साथ के बावजूद हीरे उसके हाथ से निकल गये!”

“बाद में। सिपाही के उसे उसके मुकाम पर छोड़ के चले जाने के बाद में।”

“किसी ने लूट लिया उसे?”

“या वो ब्रीफकेस कहीं रख के भूल गया।”

“ब्रीफकेस तो उसने बन्दरगाह पर ही सावंत को सौंप दिया था! उसने फोन लगाया था न मेरे को कनफर्म करने के वास्ते कि माल सावन्त को सौंपा जाना था! सिपाही इस बात का गवाह था।”

“हीरे ब्रीफकेस में नहीं, कहीं और थे। सिपाही को क्या मालूम कहां थे! ब्रीफकेस में थे या उसके लगेज में थे!”

“ठीक! कैसे भी हुआ, हुआ, हीरे डाकी के हाथ से निकल गये। पुलिस हीरे बरामद कर ले तो डाकी को वापिस मिलें, इस वास्ते वो रपट लिखाने थाने में?”

“हां।”

“दो दिन बाद क्यों? परसों क्यों न थाने पहुंचा जब कि हीरे उसने खोये?”

“तू”—नायक झुंझलाया—“तू मेरे को कनफ्यूज करता है।”

“तुम खुद अपने आप को कनफ्यूज करता है, बॉस। कितना भी लीपा पोती किया, असल में तो वो समगलिंग का माल! हमारे वास्ते माल, जो कुछ न होता तो खामोशी से हमारे पास पहुंचता। ऐसे काम के लिये थाने जाना खामोशी तोड़ने के वास्ते ढ़ोल बजाने जैसा काम होगा।”

नायक खामोश रहा।

“सिपाही डाकी को मनोरी छोड़ के आया क्योंकि डाकी बोला वही उसकी मंजिल जिधर उसने माल डायमंड डीलर को सौंपना था। सिपाही के जाते ही वो कल्याण के लिये निकल पड़ा जिधर आखिर उसने जाना था। मनोरी और कल्याण के बीच हीरे उसके पास होने का क्या काम! फिर...

“बस कर अब।”—नायक ने यूं हथेली सामने उसकी तरफ धकेली जैसे शब्द वापिस उसके मुंह में धकेल रहा हो—“बहुत श्‍याना है तू। बोले तो मेरे ही मगज में जाला।”

“अरे, नहीं बॉस। मैं तो बस...”

“यही बोला मैं। बस। बस कर। और जो तेरे मगज में आता है, जो तेरे को फिट लगता है, कर। समझ, थाने जाने की बाबत मैं कुछ न बोला। बरोबर!”

“बरोबर।”

“निकल ले।”

“अभी। अभी एक बात और।”

“बाकी रह गयी कोई बात?”

“एक आखिरी।”

“बोल।”

“रेमंड लियो का क्या करने का?”

“बोले तो?”

“थाम के रखा न उसे! अभी भी काबू में है।”

नायक कई क्षण खामोश रहा।

सोलंके धीरज से उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा।

“छोड़ दे।”—आखिर नायक बोला—“जाने दे उसे।”

“ऐसा?”

“उसको थाम के रखने का तभी कोई फायदा होता जब कि जोकम जिन्दा होता। तब छोड़ते तो वो पक्की कर के जोकम के पास जाता और उसे सब बोल देता कि उसका अगवा किया गया, उसको ठोका गया, वगैरह।”

“उसकी मजाल न होती।”

“यहीच मांगता है मैं। उस को ऐसा डरा धमका के, दहशत में डाल के छोड़ कि उसकी आगे कहीं मुंह फाड़ने की मजाल न हो। इसी को गनीमत जाने कि जिन्दा बच गया। आयी बात समझ में?”

“हां, बॉस, बरोबर।”

“उसको थाम के रखने से कोई फायदा तो होने वाला नहीं, काम और बढ़ जायेगा। इस वास्ते बोले तो या खल्लास कर या जाने दे।”

“ठीक।”

उस सुबह की मीटिंग वहीं समाप्त हो गयी।

 

नीली सान्त्रो ड्राइव करता विराट पंड्या नागपाड़ा और आगे बताये गये टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचा।

सुहैल पठान पहले से वहां पहुंचा हुआ था और स्टैण्ड के सामने के फुटपाथ पर चहलकदमी कर रहा था।

पंड्या ने उसके करीब कार रोकी और बाहर निकला। उसने स्टैण्ड के भीतर की ओर निगाह दौड़ाई तो पाया वहां पीली छत वाली कई टैक्सियां खड़ी थीं। पता नहीं धन्धा मन्दा था या जितनी निकलती थीं, उससे ज्यादा और आ जाती थीं।

“कब आया?”—उसने पूछा।

“अभी।”—पठान बोला—“दो मिनट पहले।”

“चकरी लाया?”

‘हां।”—पठान ने अपनी जैकेट ऊंची उठा के उसे रिवाल्वर की मूठ दिखाई—“जरूरत पड़ेगी?”

“पता नहीं। पण होना जरूरी।”

“ठीक।”

“हमेरे भीड़ू मिले?

“कुमरा मिला।”

“क्या बोला? हमेरा भीड़ू—टैक्सी डिरेवर—अभी है इधर?”

“है।”

“कहां?”

तभी मगन कुमरा उन के करीब पहुंचा। वो कोई तीस साल का, शक्ल से किसी सरकारी महकमे का क्लर्क लगने वाला नौजवान था। उसने खामोशी से दोनों का अभिवादन किया।

“ये”—पंड्या बोला—“जीतसिंह का क्या स्टोरी है?

“वही जो मैं फोन पर बोला।”—कुमरा बोला—“इधर बद्रीनाथ करके किसी टैक्सी डिरेवर को कोई नहीं जानता पण जीतसिंह को सब जानते हैं। जीतसिंह वो भीड़ू जो जम्बूवाडी चाल से टैक्सी इधर ले के आया, मैं पक्की किया बरोबर।”

“अभी किधर है वो?”

“वो उधर बाजू में एक लकड़ी का केबिन है, उसके सामने अपने जैसे डिरेवर भीड़ूओं के साथ बैठेला है”

“तू पहचानता है उसे?”

“नक्को। मैं खाली ये जानता है कि जो भीड़ू जम्बूवाडी से टैक्सी इधर लाया, वो उधर फोल्डिंग बैड पर बैठेला है। इधर आके मैं पूछा, टैक्सी 7983 का डिरेवर कौन! जवाब मिला, जीतसिंह।”

“हूं। उसकी टैक्सी कहां है?”

“वो उधर बैक में। झाड़ियों की दीवार के पास।”

“मैं उधर पहुंचता है, तू केबिन पर जा और उसको उधर बुला के ला।”

“वो नक्की बोला तो?”

“कैसे बोलेगा? साला टैक्सी डिरेवर। पैसेंजर की वेट में बैठेला है। हम हैं न पैसेंजर! कैसे नक्की बोलेगा?”

“वो मैं फोन पर बोला न कि टैक्सी इधर नम्बर से चलता है। अभी उस का नम्बर न हुआ तो?”

“तो उसका नम्बर आने तक वेट करना। जा।”

वो चला गया।

पंड्या पठान के साथ मैदान में दाखिल हुआ और आगे बढ़ा।

किसी ने उनकी ओर ध्यान न दिया।

वे पिछवाड़े में पहुंचे जहां कि उन का निशाना टैक्सी खड़ी थी। इत्तफाक से वो कतार में खड़ी टैक्सियों में आखिरी थी और उसके पिछले हिस्से में और ऊंची झाड़ियों की दीवार के बीच में काफी जगह थी। वो दोनों वहां सरक आये और डिकी के पीछे खड़े होकर प्रतीक्षा करने लगे।

दस मिनट गुजरे।

फिर कुमरा और पूनिया से एक कदम आगे चलता जीतसिंह वहां पहुंचा। उसने ड्राइविंग साइड का दरवाजा खोलने का उपक्रम किया तो कुमरा ने उसकी बांह थाम कर उसे रोका।

“क्या!”—जीतसिंह सकपकाया सा बोला।

“उधर पीछे चल।”—कुमरा बोला—“उधर दो पैसेंजर और हैं।”

“अरे, तो उन को आगे आने का, आके टैक्सी में बैठने का। पीछे क्या करता है?”

“तेरा वेट करता है। पहले तेरे से कुछ बात करना मांगता है।”

“क्या बात?

“बोलेगा न!”

“पण...”

“अरे, लांग जर्नी। तीन चार जगह रास्ते में रुक के वेट भी करने का, फिर वापिस भी इधरीच आने का। इस बारे में बाप कुछ बात करना मांगता है न!”

“बाप!”

“हमेरा इंचार्ज। बॉस।”

“किधर है?”

“पीछू। वो जो दूसरे भीड़ू के साथ खड़ेला है।”

“चलो।”

जीतसिंह उसके साथ टैक्सी के पृष्ठ भाग में पहुंचा। पीछे खड़े दोनों जनों पर उसकी निगाह पड़ी तो उसका दिल धड़का।

क्या वो परसों रात वाले नीली सान्त्रो वाले भीड़ू हो सकते थे! डिकोस्टा के बयान किये हुलियों के मुताबिक लगते तो थे! अब उसे याद आ रहा था कि जब उसने फोल्डिंग बैड से उठ कर उधर का रुख किया था तो स्टैण्ड के सामने फुटपाथ के साथ लगकर खड़ी एक नीली सान्त्रो उसने देखी थी।

फिर एक के खड़े कान! चाय की केतली जैसे! खास पहचान!

देवा! रहम!

“क्या!”—अपने स्वर को भरसक सुसंयत रखने की कोशिश करता वो बोला—“क्या बात करना मांगता है?”

पंड्या ने अपलक उसे देखा, फिर उसको विचलित होता न पाकर बोला—“नाम बोले तो?”

“काहे वास्ते? टैक्सी डिरेवर से फिरेंडशिप करने का?”

“ए!”—पठान सख्ती से बोला—“लिप नहीं देने का?”

“तुम्हेरे को भी लुक नहीं देने का, बाप। पैसेंजर हो तो टैक्सी में बैठो, नहीं हो तो...जाता है।”

“खबरदार!”

“क्या खबरदार! हूल काहे वास्ते देता है?”

“नहीं देता।”—पंड्या जल्दी से बोला—“तू जरा इधर देख।”

“किधर देखे?”

“इधर। मेरी तरफ।”

“देखता है। बोलो।”

“जरा मगज ठण्डा रख और हमेरी मदद कर।”

“क्या मदद करे?”

“हमें एक भीड़ू की तलाश है जो तेरी तरह टैक्सी डिरेवर है। नाम ब्रदीनाथ।”

“पहचानता नहीं उसे?”

“नहीं। अगर तेरा नाम ब्रदीनाथ है तो मैं आगे बोले!”

“नहीं है।”

“तो क्या नाम है?”

“अरे, बद्रीनाथ नहीं है न! वो भीड़ू नहीं है न मैं जिस की तुम्हेरे को तलाश! अभी काहे वास्ते मगज चाटता है तुम?”

“ये”—पंड्या ने गहरी सांस ली—“ऐसे नहीं मानेगा।”

“क्या बोला?”

पंड्या ने पठान को इशारा किया।

पठान ने अपनी जैकेट को आगे से खोल कर उसे पतलून की बैल्ट में खुंसी गन की मूठ दिखाई।

“तो ये बात है!”—जीतसिंह बोला—“इधर गन चमका के ताकत बताने का! मेरे को हूल देने का! जबरदस्ती मेरे से...”

“अरे, कोई जबरदस्ती नहीं, भाया”—पंड्या बोला—“रिक्वेस्ट करता है, फिरयाद करता है, थोड़ा हैल्प कर हमारा प्लीज करके।”

“तुम्हारी इधर गोली चलाने की मजाल नहीं हो सकती। साला पन्द्रह ड्राइवर बैठैला है, सब मिलकर...”

“ठीक। ठीक। अभी नक्की कर न! प्लीज बोलता है।”

“एक भीड़ू गन चमकाता है, दूसरा प्लीज बोलता है।”

“अभी छोड़ न! फिर प्लीज बोलता है न!

“प्लीज बोलता है तो... बोले तो बरोबर।”

“अभी नाम बोल।”

“जीतसिंह।”

“ये टैक्सी कब से है तेरे पास?”

“आज से ही।”

“क्या बोला?”

“आज से ही है। सुनाई में लोचा, बाप?”

“बोले तो टैक्सी चलाना आज से शुरू किया?”

“अरे, नहीं, बाप। ये टैक्सी आज से पकड़ा।”

“बोले तो टैक्सी डिरेवर पहले से?”

“हां।”

“कब से?”

“यही कोई...चार महीने से।”

“पुराना टैक्सी डिरेवर तो न हुआ फिर?”

“बरोबर बोला, बाप। पुराना नहीं है, पण नवां भी नहीं है—जैसा कि तुम पूछा कि टैक्सी चलाना आज से शुरू किया।”

“जब से टैक्सी चलाना शुरू किया, तब से तेरा यहीच अड्डा?”

“नहीं।”

“तो?”

“पहले मेरा परमानेंट करके टैक्सी स्टैण्ड मुम्बई सैन्ट्रल स्टेशन था। पण बद्रीनाथ बोला इधर, इस स्टैण्ड पर ज्यास्ती पैसेंजर मिलता था, जल्दी जल्दी मिलता था जबकि स्टेशन वाले टैक्सी स्टैण्ड पर बहुत टेम बाद नम्बर आता था।”

“इस वास्ते तू इधर?”

“हां।”

“आज से?”

“हां। पहले भी बोला।”

“क्यों कि नवां टैक्सी आज से पकड़ा और उसका ये परमानेंट करके टैक्सी स्टैण्ड?”

“हां।”

“पहले इसे कौन चलाता था?”

“बद्रीनाथ।”

“तेरा फिरेंड?”

“नहीं, मेरे फिरेंड का फिरेंड। बोले तो वो दूसरा फिरेंड मेरे को टैक्सी दिलाया टैम्परेरी करके।”

“दूसरा फिरेंड कौन?”

“गाइलो।”

“सारडीना? जो जम्बूवाडी चाल में रहता है?”

“हां।”

“बद्रीनाथ भी उधरीच रहता है?”

“हां।”

“बद्रीनाथ गाइलो का फिरेंड, गाइलो तेरा फिरेंड। इस वास्ते गाइलो ने सैटिंग की कि आज से बद्रीनाथ की टैक्सी तेरे हवाले?”

“हां।”

“वो खुद किधर गया? कोई और धन्धा पकड़ लिया?”

“अरे, नहीं, बाप। घर गया अपने।”

“कहां?”

“बलरामपुर। यूपी में है। नेपाल बार्डर के पास। जिधर उसका फैमिली। साला दो साल से मुंह नहीं देखा बीवी बच्चों का, इस वास्ते गया। एक महीना में लौटेगा।”

“टैक्सी उसकी अपनी?”

“नहीं, भाड़े की।”

“तो टैक्सी तेरे को क्यों दी? जिससे भाड़े पर ली, उस को लौटाता! लौट के फिर ले लेता!”

“लौट के पता नहीं यहीच टैक्सी मिलती या नहीं!”

“इस वास्ते तेरे को दी?”

“हां।”

“तू आज से इस टैक्सी का डिरेवर! वैसे टैक्सी डिरेविंग के धन्धे में चार महीने से?”

“हां। यहीच बोला मैं।”

“पहले क्या करता था?”

“पहले?”

“हां, पहले। खाली तो नहीं घूमता होगा?”

“नहीं खाली तो नहीं घूमता था! खाली घूमने से कही पेट भरता है!”

“ठीक! तो क्या करता था?”

“क्यों पूछता है, बाप?”

“अरे, बोल न, मामूली बात है! जब इतना कुछ बोला तो ये भी बोलने में क्या वान्दा है?

“ताला-चाबी का मिस्त्री था।”

“कहां?”

“क्रॉफोर्ड मार्केट में। उधर एक हार्डवेयर के शोरूम के बाहर छोटा सा—अलमारी जैसा—अड्डा था।”

“पुराना अड्डा?

“था तो ऐसीच।”

“वो काम क्यों छोड़ा?”

“ठीक से काम थाईच नहीं। बहुत कम कस्टमर लोग आता था। आजकल ताला बिगड़ जाये तो कौन मरम्मत कराने का वास्ते मिस्त्री को ढ़ूंढ़ता है! साला हर कोई बिगड़े ताले को नक्की करता है और नवां ताला खरीदता है।”

“इस वास्ते ताला-चाबी की मिस्त्रीगिरी में लोचा?”

“हां।”

“नवां धन्धा पकड़ा?

“हां।”

“रहता किधर है? जम्बूवाडी चाल में ही? फिरेंड गाइलो के आस पास!”

“नहीं।”

“अच्छा! तो किधर रहता है?”

“चिंचपोकली।”

“ठीक। अभी तू मेरे को दो बातों का जवाब दे, जीतसिंह!”

“क्या दो बातें?”

“बद्रीनाथ कर के भीड़ू का टैक्सी तेरे को आज से मिला क्योंकि खुद वो एक महीना का वास्ते होमटाउन गया। तू इधर इसलिये आज ही से क्योंकि बद्रीनाथ बोल के गया कि स्टेशन के मुकाबले में इधर पैसेंजर ज्यास्ती मिलता था। बद्रीनाथ इधर का, इस स्टैण्ड का पुराना टैक्सी डिरेवर। ये उसका रेगुलर अड्डा। बरोबर?”

“हां।”

“तो तू मेरे को ये बता कि इधर बद्रीनाथ को कोई क्यों नहीं जानता और जीतसिंह को क्यों हर कोई जानता है?”

जीतसिंह गड़बड़ाया।

“और जम्बूवाडी चाल, जिधर तू बोलता है बद्रीनाथ रहता है, क्यों उसको वहां कोई नहीं जानता?”

“कौन बोला ऐसा?”

“डिकोस्टा करके उधर का एक भीड़ू बोला जो खुद टैक्सी डिरेवर। अगर बद्रीनाथ उधर रहता था तो क्यों वो अपने चाल भाई को नहीं जानता था, अपने जैसे अपने टैक्सी डिरेवर भाई को नहीं जानता था?”

अब जीतसिंह को पूरा यकीन हो गया कि वो ही वो दो भीड़ू थे जो परसों रात उसकी टैक्सी के पैसेंजर के पीछे लगे थे और पिछली रात उसकी तलाश में जम्बूवाडी चाल पहुंचने में कामयाब हो गये थे। जिस टाइम की डिकोस्टा उनकी आमद बताता था, उस टाइम उसकी टैक्सी चाल के फ्रंट यार्ड में खड़ी थी और वो खुद गाइलो के साथ उसकी टैक्सी में था और मस्ती मारता था।

“जवाब दे!”—पंड्या गुर्राया।

“मैं कुछ नहीं जानता...”—जीतसिंह झुंझलाहट का प्रदर्शन करता बोला।

“गलत जवाब है ये। तू बहुत कुछ जानता है। बल्कि सब कुछ जानता है।”

“मैं बोला न...”

“वो न बोला जो बोलने को बोला। क्या!”

जीतसिंह ने बेचैनी से पहलू बदला।

“स्टोरी किया साला। गोली दी। पुड़िया सरकाई। जो चली नहीं। अभी मैं बोले तो तू ही बद्रीनाथ इधर का पक्का टैक्सी डिरेवर जिसे इधर हर कोई जीतसिंह के नाम से जानता है। अभी यहीच बोल कि तेरे दो नाम क्यों हैं?”

“हैं तो”—जीतसिंह ढ़िठाई से बोला—“तुम्हेरे को क्या?”

“है न मेरे को। मैं...”

“भाया!”—एकाएक किशोर पूनिया बोला।

उस विघ्न से पंड्या के माथे पर बल पड़े।

“क्या है?”—वो अप्रसन्न भाव से बोला।

“मैं कुछ बोलना मांगता है।”

“बाद में बोलना।”

“अभी बोलना मांगता है अर्जेंट करके।”

“क्या? जल्दी बोल।”

“भाया, मेरे को याद आ गया ये कौन जीतसिंह! जब ये अपना धन्धा ताला-चाबी का बताया, जब ये क्रॉफोर्ड मार्केट का नाम लिया तो मेरे मगज में घन्टी तो बजा पण याद न आया कि कौन जीतसिंह! अभी फ्लैश का माफिक मगज में आया कि कौन जीतसिंह!”

“आगे! आगे! क्या आया मगज में?

“बॉस, ये मशहूर लॉकबस्टर, मशहूर तिजोरीतोड़ जीतसिंह, जो कई वाल्ट खोल चुका है, कई डेयरडैविल डकैतियों में शामिल हो चुका है। अन्डरवर्ल्ड में किसी को बोलो टॉप का सेफक्रैकर मांगता है। हर कोई बोलेगा जीतसिंह। अन्डरवर्ल्ड में लॉकबस्टिंग के इसके बहुत कारनामे मशहूर हैं पण खुशकिस्मत कि कभी पकड़ा नहीं गया। आखिर कुछ टेम पहले हुई तारदेव के सुपर सैल्फसर्विस स्टोर की डकैती में पकड़ा गया पण तब भी लकी निकला कि कोरट में इसके खिलाफ केस न टिक सका क्योंकि एक मोस्ट इम्पॉर्टेंट करके गवाह ऐन टेम पर अपनी पहले दर्ज कराई गवाही से मुकर गया और मैजिस्ट्रेट को इसको लैक आफ इवीडेंस की बिना पर छोड़ना पड़ा। भाया, ये पुलिस रिकार्ड वाला भीड़ू है, नोन लॉकबस्टर जीतसिंह है जो कि इस कारोबार का टॉप का कारीगर माना जाता है।”

पंड्या भौंचक्का सा जीतसिंह का मुंह देखने लगा।

पठान और कुमरा का भी वही हाल था।

“ये”—पंड्या के मुंह से निकला—“वो भीड़ू है?”

“सौ टांक वो भीड़ू है।”—पूनिया दृढ़ता से बोला—“टॉप का तालातोड़ जीतसिंह। अपने धन्धे में उस्तादों का उस्ताद।”

पंड्या जीतसिंह की तरफ घूमा।

“अभी क्या बोलता है?”—वो बोला।

“है तो क्या?”—भीतर से हिला हुआ लेकिन ऊपर से लापरवाही दिखाता जीतसिंह बोला—“कोई भी भीड़ू नाहक बदनाम हो सकता है। बैड लक खराब हो तो बेगुनाह होते हुए पुलिस के फेर में आ सकता है। पुलिस लोगों पर झूठे केस बनाती ही रहती है जो कि इसी वजह से कोर्ट में नहीं टिकते क्योंकि झूठे होते हैं। मेरे खिलाफ भी एक झूठा केस बना कि मैं तारदेव के सुपर सैल्फसर्विस स्टोर की डकैती में शामिल था पण पुलिस का केस कोर्ट में न टिका और पुलिस को मेरे को बरी करना पड़ा। साला किस्मत पटकी देने पर उतर आये तो ऐसा पंगा किसी के साथ भी हो सकता है। मेरे को किस्मत पटकी दिया, मेरे साथ हुआ।”

किस्मत साला एकीच भीड़ू को बार बार पटकी किधर देता है?”—पूनिया जोश से बोला।

“और भी कुछ हुआ?”—पंड्या बोला।

“हुआ न बरोबर! अभी थोड़ा टेम पहले इसके खिलाफ वारन्ट गिरफ्तारी जारी हुआ और गिरफ्तारी पर बीस हजार रुपये के ईनाम का ऐलान हुआ।”

“ये कुतरा”—पंड्या के नेत्र फैले—“इतना पहुंचा हुआ मुजरिम है!”

“नहीं है!”—जीतसिंह गुस्से से बोला—“पहुंचा हुआ या न पहुंचा हुआ, मैं मुजरिम हैइच नहीं।”

“वारन्ट गिरफ्तारी को झुठलाता है?”—पूनिया बोला—“बीस हजार रुपये के ईनाम को झुठलाता है?”

“नहीं झुठलाता। जरूरत ही नहीं है। वो वारन्ट गिरफ्तारी खारिज किया गया था और बीस हजार के ईनाम का ऐलान वापिस लिया गया था। और इस बाबत खुद पुलिस के एक बड़े अफसर ने सॉरी बोला था और उस पुलिस इन्स्पेक्टर को सजा हुई थी जिसने कि गुलदस्ता थाम के वो तमाम बखेड़ा मेरे खिलाफ खड़ा किया था।”

“कुछ साबित न हो पाना”—पठान बोला—“किसी की बेगुनाही का सबूत नहीं होता।”

“यहीच मैं बोलता है। इसका गुड लक काम किया जो बच गया, छूट गया। पण ये है साला वहीच जो मैं बोला। मवाली। लाकबस्टर। टॉप का तालातोड़। अभी और भी बोले तो...”

“अभी और भी?”—पंड़या हैरान होता बोला।

“अभी पिछले महीने कोलाबा में सी-रॉक एस्टेट में, जो कि प्रेजेंट में नेताजी और पास्ट मे बड़ा गैंगस्टर बहरामजी कान्ट्रैक्टर का रेजीडेंस, रात में उधर हुई एक पार्टी के बाद बम फटा जिस की चपेट में आकर नेताजी सीरियस करके जख्मी हुआ, यही कमाल कि फिनिश न हो गया। भाया, अन्डरवर्ल्ड में तब ये अफवाह गर्म थी कि बम नेताजी के बैडरूम में फिट एक वाल्ट जैसी सेफ में था जिसको इस भीड़ू ने खोला था। जो सेफ बोलते हैं खुल नहीं सकती थी, तब अन्डरवर्ल्ड में हर कोई बोलता था कि उसे इस भीड़ू के अलावा कोई नहीं खोल सकता था।”

पंड्या ने जीतसिंह की तरफ यूं देखा जैसे वो कोई अजूबा हो।

“उससे पहले ये खण्डाला के नेताजी के बंगले में भी ऐसा ही करतब करके दिखा चुका था।”

“उधर भी सेफ खोल ली?”—नेत्र फैलाता पंड्या बोला।

“उधर भी ऐसी सेफ खोल ली जिसको हर कोई बोलता था कोई नहीं खोल सकता था।”

“इसने... इसने इतने बड़े, इतने बिग बॉस को दो बार हिट करने की जुर्रत की!

“अन्डरवर्ल्ड में हर कोई यहीच बोलता है।”

“बंडल!”—जीतसिंह बोला—“बोले तो बकवास!”

किसी ने उसके विरोध की ओर ध्यान न दिया।

“बहरामजी जैसे पावरफुल सुपरबॉस को”—पंड्या पूर्ववत् नेत्र फैलाता बोला—“दो बार हिट कर चुकने के बाद ये अभी तक जिन्दा है, अपने पैरों पर खड़ा है!”

“इसी से साबित होता है”—जीतसिंह बोला—“कि सब झूठ है, बकवास है।”

“तेरे को मालूम नहीं ये कौन है!”—पंड्या बोला—“ये किशोर पूनिया है। बल्लू कनौजिया का नाम सुना?”

“नहीं।”

“हो तो नहीं सकता कि न सुना हो, नहीं सुना है तो मैं बोलता है। अन्डरवर्ल्ड का बिग बॉस था। पिछले दिनों कोई उसको खल्लास किया, उसके इम्पॉर्टेंट करके भीड़ूओं को खल्लास किया तो उसका गैंग टूट गया, बिखर गया। ये किशोर पूनिया है जो कि बल्लू कनौजिया की लाइफ में उसके गैंग में था। ये अन्डरवर्ल्ड का खास जानकार है। अन्डरवर्ल्ड की इसकी जानकारी गलत नहीं हो सकती।”

“ये टेम गलत है बरोबर।”—जीतसिंह बोला—“वर्ना इसको मालूम होता कि पिछले दिनों मैं बहरामजी का बड़ा काम किया जिसके बदले में मेरे को बहरामजी के ब्रदर और सिपहसालार सोलोमन कान्ट्रैक्टर से बाकायदा शाबाशी मिला और बीस पेटी का ईनाम मिला।

“बंडल!”—पूनिया बोला।

“अरे, फटेले, मैं जिन्दा, सही सलामत खड़ेला है न तेरे सामने? अभी तेरा बाप...”

“शट अप!”—पूनिया गुर्राया।

“...तेरा बॉस बोला कि नहीं बोला कि बहरामजी को हिट करने वाला जिन्दा नहीं रह सकता! अभी मैं है न जिन्दा! ऐन जीता जागता वन पीस! क्यों है? क्योंकि मैं बहरामजी से ऐन्टी हैइच नहीं। मैं तो एक तरह से उसके, बोले तो बेजान मोरावाला के गैंग का भीड़ू है।”

पूनिया के चेहरे पर उलझन के भाव आये।

“तो”—पंड्या बोला—“तू अन्डरवर्ल्ड का भीड़ू? एक बड़े गैंग का प्यादा?”

“प्यादे जैसा। सी-रॉक एस्टेट में सब की नजरों में चढ़ा हुआ।”

“फिर तो तू हमेरे जैसा ही हुआ!”

“तुम्हेरे जैसा? तुम कौन से गैंग से है?”

“अभी गैंग खड़ा हो रहा है। अभी टेम है बोलने में कौन से गैंग से है। अभी तू मेरे पहले सवाल का जवाब दे। तेरे दो नाम क्यों हैं?”

“दिया मैं जवाब बरोबर। तुम्हेरे को क्या? मेरे दो नाम हैं तो तुम्हेरे को क्या प्राब्लम है?”

“देख, तू बोला तू जीतसिंह। ये—पूनिया—पक्की किया कि तू खास करके जीतसिंह। अगर तू ही बद्रीनाथ है तो मेरे पास पिराब्लम है, जिसका तेरे पास सोलूशन है। अगर जीतसिंह और बद्रीनाथ एकीच भीड़ू तो जो टैक्सी तू बोलता है तेरे पास आज से है, बोले तो एमएच 01 जे 7983, वो तेरे पास बहुत पहले से। बहुत पहले से तो परसों शाम को भी, जब कि नौ बजे के करीब तू ने गेटवे आफ इन्डिया से एक पैसेंजर उठाया और कई रास्तों से घूम फिर कर जिसे आखिर तू बैरिस्टर नाथ पाई मार्ग ले कर गया जब कि...”

“खामख्वाह टेम खोटी करता है।”—जीतसिंह जमहाई सी लेता बोला—“मेरे को तुम्हेरी स्टोरी नहीं सुनने का। मैं एक टाइम बोला, हण्ड्रड टाइम बोला, मैं बद्रीनाथ नहीं है।”

“तो फिर...”

“रिपीट स्टोरी भी नहीं करने का, भीड़ू।”

“तू समझता है तू अपने झूठ पर कायम रह सकता है पण तू ऐसा नहीं कर सकता।”

“क्या बोला?”

“तेरा टैक्सी भाड़े का है, असल मालिक जयन्त ढ़ोलकिया है जो धारावी में नवगुजरात टूअर्स एण्ड ट्रैवल्स नाम से कम्पनी चलाता है जिसका यहीच काम। बोले तो डेली, वीकली या मंथली भाड़े पर टैक्सियां उठाने का, जो तेरे फिरेंड गाइलो सारडीना की गारन्टी पर तेरे को 7983 नम्बर वाली टैक्सी दिया...”

“बद्रीनाथ को दिया।”

“बक मत, कुतरया। बहुत बकवास सुन ली मैंने तेरी। अभी जो मैं बोलता है, वो सुन।”

“साला हूल देता है?”

“हां, देता है। अभी बोल क्या?”

जीतसिंह खामोश रहा। उसने जोर से थूक निगली।

“अभी मैं तेरे को”—पंड्या आगे बढ़ा—“पकड़ के धारावी ले के जायेगा और उधर जयन्त ढ़ोलकिया के सामने खड़ा करेगा तो ढ़ोलकिया क्या बोलेगा, कौन आया?”

जीतसिंह ने बेचैनी से पहलू बदला।

“वो बोलेगा बद्रीनाथ आया जो उसका 7983 नम्बर का टैक्सी चलाता है। फिर उस को बोल सकेगा तू बद्रीनाथ नहीं, जीतसिंह? बोल! जवाब दे! बोल सकेगा?”

जीतसिंह से जवाब देते न बना।

“जो झूठ चल नहीं सकता, उसको काहे वास्ते पकड़ के बैठेला है?”

“तुम मेरे साथ जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता।”—जीतसिंह एकाएक भड़का।

“बोले तो पकड़ के धारावी नहीं ले जा सकता?”

“यहीच बोला मैं। साला ताकत बतायेगा तो...”

“ठहर जा, कुतरया!”

इस बार पंड्या के इशारे पर पठान ने गन निकाल कर हाथ में ले ली और उससे जीतसिंह की छाती को टहोका।

“अभी बोल”—पंड्या सख्त लहजे से बोला—“मैं तेरे को धारावी ले जा सकता है या नहीं?”

“ढ़ोलकिया उधर हैइच नहीं। वो पनवेल में है।”

पंड्या ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद दिया।

“साला, कुतरया!”—फिर हिंसक भाव से बोला—“ये मेरे सवाल का जवाब नहीं।”

अपमान से जलता जीतसिंह खून का घून्ट पी के रह गया।

“अभी जवाब देता है या...”

“देता है न!”—जीतसिंह धीरे से बोला।

“बढ़िया। मैं सुनता है।”

“ये है मेरा जवाब। सुन, साले!”

जीतसिंह ने गले से इतनी भयंकर चीख निकाली कि पंड्या धबरा कर एक कदम पीछे हट गया।

पलक झपकते स्टैण्ड पर मौजूद सारे टैक्सी ड्राइवर वहां पहुंच गये।

पठान ने जल्दी से गन वापिस छुपाई फिर भी जो सब से आगे दो तीन ड्राइवर थे, उनको उसकी झलक मिल ही गयी।

फिर उस पर सवालों की झड़ी लग गयी।

“क्या हुआ, जीते?”

“कोई पिराब्लम तेरे को?”

“साला बिच्छू ने काटा क्या? कभी कभी निकल आता है इधर?”

“ये भीड़ू तेरे पैसेंजर, तो बाहर क्यों खड़ेले हैं?”

“अरे, मैं एक के हाथ में गन देखा। मैं बोले तो जीते, तेरे साथ कोई मेजर पिराब्लम इधर। मैं...100 नम्बर पर फोन लगाता है।”

‘अरे, कोई पिराब्लम नहीं, भाई लोगो।”—पंड्या तनिक उच्च स्वर में बोला—“बोले तो तुम्हेरा डिरेवर भाई उधर जाने को नक्की बोला जिधर हमेरे को जाना मांगता था।”

“चीखा क्यों?”

“बोलेगा न! हम खुद हैरान हैं। अभी जाता है न हम सब! पीछू पूछना इससे। बोलेगा न!”

पंड्या जबरन रास्ता बनाता आगे बढ़ा।

उसके जोड़ीदार उसके पीछे हो लिये।

“क्या हुआ, जीते?”—पीछे एक ड्राइवर चिन्तित भाव से बोला।

“कुछ नहीं।”—जीतसिंह गहरी सांस लेता बोला—“कुछ मिसअन्डरस्टैंडिंग हुआ। मेरे को भी, उन भीड़ू लोगों को भी।”

“क्या बोलता है!”

“अरे, वो भीड़ू लोग मेरे को कोई और समझा। मैं समझा कि मेरे को लूटना मांगता था।”

“तेरे को! एक टैक्सी डिरेवर को! एक नहीं, दो नहीं, चार भीड़ू!”

“बोला न, मेरे को कोई और समझा।”

“जीते, तू कुछ छुपा रयेला है।”

“अरे, नहीं।”

“मैं एक भीड़ू का हाथ में चकरी देखा।”

“अरे, नहीं।”

“मैं देखा न, बरोबर!”

“बोले तो हो सकता है। वो मेरे को कोई और समझा न! जो कोई समझा उसको ताकत बताना मांगता होयेंगा, इस वास्ते चकरी चमकाया।”

“ऐसा?”

“हां।”

“तू चीखा क्यों?”

“डर गया न! डर गया तो चीख निकल गयी।”

“हूं। अभी बोले तो नो पिराब्लम? फिकर का कोई बात नहीं?”

“हां।”

“तू बोलता है तो...”

“मैं बोलता है न!”

“ठीक है फिर।”

सब, जीतसिंह भी, वापिस लौट चले।

 

बाहर सड़क पर टैक्सी स्टैण्ड से थोड़ा परे वो चारों जमा थे।

“गलत हुआ।”—पठान गर्दन हिलाता बोला—“बोले तो शुरू से ही गलत हुआ।”

“क्या बोला?”—पंड्या झुंझलाया सा बोला।

“तेरे को मालूम क्या बोला, गुज्जू भाई। जाते ही मेरे को गन चमकाने को बोलना गलत।”

“अरे, मैं सोचा कुतरा डरेगा।”

“किधर डरा? वो तो भड़कने लगा! दूसरा बार गन चमकाया तो देखा क्या हुआ? साला यहीच शुरू में भी हो सकता था। साले पन्द्रह से ज्यास्ती डिरेवर थे जिन्होंने पलक झपकते हमें आ के घेर लिया। वो भी भड़क जाते तो सारी भाईगिरी निकल जाती। चकरी भी किसी काम न आती। लेने के देने पड़ जाते।”

पंड्या ने कुछ कहने को मुंह खोला, फिर खामोश हो गया।

“एक भीड़ू पुलिस बुलाने को बोलता था। सच में बुला लेता तो और पंगा पड़ता।”

पंड्या की भवें उठी।

“समझता हैइच नहीं गुज्जू भाई। साला और बातों का चलो जवाब दे लेते, चकरी का क्या जवाब देता मैं? साला, गैरलाइसेंसी गन, पास होना ही पिराब्लम। बड़े वाला पुलिस पिराबलम।”

“बस कर अब।”

“वो तो मैं करता है पण अब हम इधर किस वास्ते खड़ेले हैं?”

“तेरे को मालूम किस वास्ते खड़ेले हैं। हमेरा काम साला खत्म नहीं हो गया।”

“ओह! तो अभी क्या करने का?”

“वो जो पहले ही करने का था पण हम हड़बड़ी में थे, इस वास्ते मगज में न आया।”

“बोले तो?”

“मेरे से मिस्टेक हुआ बरोबर। मेरा ये सोचना ही गलत था कि मैं स्ट्रेट करके पूछेगा, वो स्ट्रेट करके जवाब देगा। मैं बोलेगा वहीच बद्रीनाथ, थोड़ा हुज्जत के बाद वो बोलेगा यस।”

“ऐसे कोई मानता है?”

“नहीं मानता। बोला न, मेरा मिस्टेट। सैकंड मिस्टेक ये कि जिधर उसके इतने हिमायाती, उधरीच उस पर हाथ डाला। साला उसका टैक्सी पर सवार होते, किधर अकेले में ले कर चलते, फिर देखते साले कुतरे को। इतनी सी बात मेरे मगज में नहीं आयी तो तेरे में भी तो नहीं आयी! इन दोनों की बात अलग है पण तेरे को तो बोलने का था कि...”

“मैं बोलता तो साला हवा में हर टेम उड़ता गुज्जू भाई सुनता?”

“बोल के देखता!”

“अभी ये लाइन छोड़ने का, गुज्जू भाई। हम एक दूसरे पर तोहमत मढ़ेंगे तो साला क्या हाथ आयेगा! जो बिगड़ना था वो तो बिगड़ चुका!”

“उसको संवारने का। सैट करने का।”

“कैसे? नहीं, पहले ये बोल तेरे को पक्की कि जीतसिंह और बद्रीनाथ एकीच भीड़ू?”

“सौ टांक पक्की। अब मेरे को साला किसी से कुछ कनफर्म करना भी नहीं मांगता। मेरे को पक्की कि ढ़ोलकिया की 7983 टैक्सी शुरू से, हमेशा से, जिस भीड़ू के कब्जे में वो जीतसिंह जिससे कि अभी हम पंगा ले के चुके। ढ़ोलकिया उसको बद्रीनाथ के तौर पर काहे वास्ते जानता है, वो जुदा मसला है जिस को ये टेम समझना मैं नहीं मांगता। अभी मेरे को अपना फोकस जीतसिंह पर, खाली जीतसिंह पर बना के रखना मांगता है।”

“बढ़िया। पण वो बद्रीनाथ न निकला तो?

“साला काहे वास्ते लोचे वाला बात मुंह से निकालता है!”

“न निकला तो?”

“तो भी मेरा निशाना जीतसिंह। वो न बद्रीनाथ निकला तो... देखेंगे।”

“अभी क्या करने का?”

“उस पर वाच रखने का और उसको ये टेम खबरदार हो के, करैक्ट करके काबू में करने का।”

“कहां? कैसे?”

“वो साला स्टैण्ड पर ही बैठा नहीं रह सकता। उसका इधर से निकलना जरूरी...”

“पैसेंजर के साथ। एक या एक से ज्यास्ती पैसेंजर के साथ!”

“वान्दा नहीं। पैसेन्जर टैक्सी में बैठा नहीं रहता। जैसे टैक्सी पकड़ता है, वैसे अपने ठिकाने पर पहुंचते छोड़ता है। क्या?”

“बोले तो उसके पीछे लगने का? लगे रहने का?”

“बरोबर। और जब करैक्ट करके दांव लगे तो थामने का। फिर वो टेम मैं देखेगा वो कैसे चुप रहता है या कैसे सायरन का माफिक चीख निकालता है।”

“ठीक!”

“हम दोनों को वो अच्छी तरह से पहचान गयेला है—हमारी सान्त्रो भी हो सकता है उसके फोकस में आ चुकी हो—पण कुमरा और पूनिया की तरफ उस का कोई खास ध्यान नहीं था। इन की कार का बारे में तो वो कुछ जानता हैइच नहीं। या”—पंड्या उन दोनों की तरफ घूमा—जानता है?”

दोनों ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया।

“बढ़िया!”—पंड्या बोला—“तो फिर ये फाइनल, कुमरा और पूनिया को उस पर वाच रखने का। टेम आने पर, चानस मिलने पर उसको थामने का और हम दोनों को बैकगिराउन्ड में रह कर इनको बैकअप देने का। बरोबर?”

“बरोबर।”—पठान संजीदगी से बोला।

“वो एक हम चार। साला चार एक भीड़ू को हैंडल न कर सके तो लानत।”

“कर सकेंगे बरोबर। करेंगे।”

“बढ़िया।”

 

“जीते, चल तेरा नम्बर।”—केबिन में बैठा भीड़ू, जो फोन सुनता था, नम्बर लगाता था, बोला—“चल, पैसेंजर उठा।”

“अभी नहीं, मानक भाई।”—जीता बोला—“अभी मेरा तबीयत खराब!”

“अरे! अभी तो ठीक था!”

“अभी खराब हुआ। एकाएक सिर दुखने लगा।”

“अच्छा! चाय पी कड़क। सैरीडोन खा। बोले तो हाफ एन आवर में ठीक हो जायेगा।”

“करता है सब।”

“मैं तेरा नम्बर एण्ड में सरकाता है।

“थैंक्यू बोलता है, मानक भाई।”

“वान्दा नहीं। बनारसी, तू उठा सवारी।”

एक दूसरा ड्राइवर उठ कर अपनी टैक्सी की ओर चल दिया।

जीतसिंह ने विचारपूर्ण मुद्रा बनाये एक सिग्रेट सुलगा लिया और उसके छोटे छोटे कश लगाने लगा।

उसकी तबीयत को कुछ नहीं हुआ था, खराबी ये थी कि गाइलो को उसकी काल नहीं लग रही थी। वो काल लगाता था तो ‘नम्बर स्विच्ड आफ’ की घोषणा सुनाई देती थी। एक घन्टे से वो ही सिलसिला चल रहा था।

बाजू के टी-स्टाल का छोकरा चाय पूछने आया तो आखिर उसके पास भी पहुंचा। जीतसिंह ने इंकार कर दिया तो मानक भाई ने घूर कर उसको देखा। जीतसिंह तत्काल परे देखने लगा। चाय का उसका मूड नहीं था और सिर उसका दुख नहीं रहा था।

जो हालात बन गये थे, उसमें गाइलो से मशवरा किये बिना वो अड्डे से बाहर नहीं निकलना चाहता था। उसे यकीन था वो चारों भीड़ू बाहर कहीं न कहीं उस पर घात लगाये बैठे होंगे। उनमें से जो गुजराती भीड़ू—गुजराती ही था, उसकी जुबान बताती थी उसका लहजा बताता था—बढ़ बढ़ के बोल रहा था और सब का लीडर जान पड़ता था, उससे जीतसिंह को ज्यादा अन्देशा था। वो ज्यादा हेंकड़ और खून खराबे को हर टेम तैयार रहने वाला भीड़ू जान पड़ता था। तभी तो उसने उसे थप्पड़ मार दिया था जिसकी वजह से वो अभी तक तिलमिला रहा था। चकरी वाले भीड़ू ने दो बार चकरी चमकाई थी लेकिन वो काम उसने अपने फैसले से नहीं किया था, हेंकड़ भीड़ू ने इशारा किया था तो किया था।

अब वक्त की जरूरत थी कि वो उन के हत्थे न चढ़ने पाता—कम से कम वो टेम न चढ़ने पाता, बाद में वो खबरदार रहता—और इस काम में वो समझता था गाइलो उसकी कोई मदद कर सकता था।

दस मिनट बाद उसने गाइलो को फिर काल लगाई।

इस बार फौरन जवाब मिला।

“अरे, क्या करता है फोन को?”—जीतसिंह झुंझलाया—“स्विच्ड आफ काहे रखता है? मैं साला एक घन्टा से टिराई करता है।”

“बैटरी जीरो हो गया था”—गाइलो की फोन पर आवाज आयी—“मेरे को साला मालूम न पड़ा। मालूम पड़ा अभी थोड़ा टेम पहले तो चार्ज पर लगाया।”

“मैं साला हर दस मिनट बाद काल लगाया।”

“इतना! क्यों, क्या हुआ? कोई लोचा?”

“बड़े वाला। लार्ज इकनामिक साइज लोचा।”

“अरे! क्या हुआ?”

“सुन।”

जीतसिंह ने टैक्सी स्टैण्ड पर हुआ तमाम ड्रामा तफ्सील से बयान किया।

“जीसस मेरी एण्ड जोसेफ!”—गाइलो के मुंह से निकला—“बोले तो जो मैं गेस किया वो करैक्ट किया कि उन भीड़ू लोगों ने तेरी भाड़े की टैक्सी के नम्बर से वाया आरटीओ, ढ़ोलकिया, गाइलो, तेरे को टिरेस किया...”

“बद्रीनाथ को।”

“पण तेरा इस्टोरी बताता है कि तू ठोक तो न सका उन पर कि बद्रीनाथ, जीतसिंह दो डिफ्रेंट कर के भीड़ू!”

“वो तो है!”

“उनका तेरे पीछू होना या बद्रीनाथ के पीछू होना एकीच बात नहीं?”

“है एकीच बात।”

“तो अभी निशाने पर कौन है? बद्रीनाथ या जीतसिंह?”

“जीतसिंह।”

“क्योंकि उन को अभी मालूम कि बद्रीनाथ और जीतसिंह एकीच भीड़ू! नहीं?”

“हां। मेरे मुंह से कुछ गलत बातें निकल गयीं जो कि नहीं निकलनी चाहिये थीं, जिनको उन के चिल्लाक भीड़ू ने फौरन पकड़ा और साला ठोक के बोला कि मैं ही बद्रीनाथ। इसी वजह से इधर बड़ा गलाटा होने से बचा। ड्राइवर भाइयों ने बचाया वर्ना पता नहीं मेरा क्या होता!”

“बुरा होता। डिरेवर भाई बचाया तो बच गया न, वो मवाली लोग टल गया न! अभी क्या पिराब्लम तेरी?”

“वो टैक्सी स्टैण्ड से टले, नागपाड़ा से भी टल गये, इस बात का कोई गारन्टी नहीं। मेरे अन्दर से आवाज आता है कि वो लोग मेरी ताक में स्टैण्ड के आसपास ही कहीं छुपे हो सकते हैं।”

“बाहर का चक्कर लगाना था!”

“मैं लगाया न! मेरे को कहीं कुछ न दिखाई दिया, कोई न दिखाई दिया। वो नीली सान्त्रो भी नहीं जिसका जिक्र सवेरे डिकोस्टा ने भी किया था और जो अब मेरे को पक्की कि उन्हीं भाई लोगों की?”

“हूं। तो अभी क्या करने का?”

“अरे, तू बोल, गाइलो। इसी वास्ते तो तेरे को फोन लगाया!”

“ऐसा?”

“हां। मैं शाम तक इधर बैठा नहीं रह सकता इसलिये जो बोलना है, जल्दी बोल।”

“तो सोचने का मौका दे न! मगज को सुपर चार्ज करने का टेम दे न!”

जीतसिंह खामोश हो गया।

“अभी मेरे को तेरे को होल्ड में रख के किसी को फोन लगाने का। जीते, लाइन होल्ड करके रखना पेशेंस से। छोड़ने का नहीं। बरोबर?

“हां।”

जीतसिंह ने फोन को अस्थायी तौर पर लाइड स्पीकर पर लगा लिया और उसको अपने सामने किये प्रतीक्षा करने लगा।

पांच मिनट बाद फोन पर हलचल हुई।

तत्काल उसने फोन को स्पीकर पर से हटाया और कान से लगाया।

“थर्टी-फार्टी मिनट्स—मे बी एन आवर—वेट करने का, जीते।”—गाइलो की आवाज आयी।

“तब क्या होगा?”—जीतसिंह संशक भाव से बोला।

“जो होगा, अच्छा होगा। तेरे को माफिक आने वाला होगा करैक्ट करके। नाओ यू वेट एण्ड वाच।”

लाइन कट गयी।

 

“वो रहा!”

मगन कुमरा और किशोर पूनिया एक सफेद वैगन-आर में अगल बगल बैठे थे। ड्राइविंग सीट पर कुमरा था। उसने पूनिया की निगाह का अनुसरण किया।

उन का निशाना टैक्सी एमएच 01 जे 7983 टैक्सी स्टैण्ड की पार्किंग से निकल रही थी।

कुमरा ने देखा पीछे ड्राइविंग सीट पर दो नौजवान, आधुनिक युवतियां मौजूद थीं, फासले से जिनकी सूरतें ठीक से देख पाना मुमकिन नहीं था।

टैक्सी बाहर सड़क पर आयी और उन से विपरीत दिशा में आगे बढ़ी।

कुमरा ने तत्काल वैगन-आर को स्टार्ट किया और उसे सड़क पर टैक्सी के पीछे डाला।

आगे टैक्सी रिपन रोड पर मुड़ी और सतरास्ता चौक से बायें घूम कर हेनस रोड पर दौड़ने लगी।

पूनिया ने गर्दन घूमा कर पीछे देखा तो पंड्या की नीली सान्त्रो उसे तीन चार कारों के पीछे सड़क पर दिखाई दी।

वरली, दादर, माहिम होती टैक्सी माहिम काजवे क्रॉस कर के बान्द्रा में दाखिल हुई, आगे के सी मार्ग पर दौड़ी और आखिर उस का सफर होटल शारदा पर जा कर खत्म हुआ।

टैक्सी होटल की मारकी में जाकर ठहरी।

फिल्म स्टार्स जैसी दो चमचम युवतियां टैक्सी से बाहर निकलीं और होटल में दाखिल हो गयीं। जाहिर था कि भाड़ा उन्होंने टैक्सी में बैठे बैठे ही चुका दिया था।

ड्राइवर ने बिना टैक्सी से निकले परली खिड़की से हाथ बाहर निकाला और मीटर का फ्लैग अप कर दिया। फिर वो टैक्सी को होटल से वापिस बाहर निकालने की जगह उसे कम्पाउन्ड के परले सिरे पर ले गया जो प्रत्यक्षत: होटल के टैक्सी स्टैण्ड के तौर पर काम आता था। जरूर उसे वहां से अगले पैसेंजर के जल्दी मिलने की उमीद थी।

तभी पूनिया का फोन बजा।

उसने काल रिसीव की।

“इधरीच थामने का”—पंड्या की आवाज आयी।—“कार भीतर ले के चल और जिधर टैक्सी खड़ेली है, उधर पहुंच। हम भी आते हैं।”

“ठीक।”

उसने फोन बन्द किया और कुमरा को बोला—“भीतर ले।”

कुमरा ने सहमति में सिर हिलाया और कार को भीतर ले जा कर पार्क किया।

दोनों बाहर निकले और लापरवाही से चलते अपना निशाना टैक्सी की ओर बढ़े।

पीक-कैपधारी टैक्सी ड्राइवर मुंह के आगे अखबर फैलाये उसे पढ़ रहा था।

“बोले तो”—पूनिया धीरे से बोला—“मैंने कभी नहीं देखा पीक-कैप लगाने वाला टैक्सी डिरेवर!”

“तू ने नहीं देखा न!”—कुमरा लापरवाही से बोला।

“देखा बरोबर। पण पिराइवेट कारों के डिरेवरों को जो सफेद वर्दी पहनते हैं और साथ में मैचिंग सफेद पीक-कैप पहनते हैं।”

“ये भी मैचिंग ही पहने है।”

“पण मैंने तो कभी...”

“अरे, टैक्सी डिरेवर के पीक कैप पहनने पर पाबन्दी है?”

“पाबन्दी तो नहीं है पण...”

“फैशनेबल भीड़ू है, शौकीन भीड़ू है, फिलिम के हीरो लोगों को फालो करता है। अभी पहनता है तो पहनता है। तेरे को वान्दा कोई?”

“नहीं।”

“तो चुप कर। वो सुन लेगा।”

दोनों तब तक टैक्सी के करीब पहुंच चुके थे।

खामोशी से वो टैक्सी में पीछे सवार हुए।

ड्राइवर ने पूर्ववत्, जैसे परली खिड़की पर पहुंच बना कर मीटर का फलैग अप किया था, वैसे डाउन किया। फिर वो स्टियरिंग के पीछे सीधा हुआ, इंजन चालू करने के लिये उसने इग्नीशन की तरफ हाथ बढ़ाया।

“अभी रुक।”—कुमरा बोला—“दो पैसेंजर और आता है।”

ड्राइवर ने बिना गर्दन घुमाये सहमति में सिर हिलाया और इग्नीशन की पर से हाथ खींच लिया।

पंड्या और पठान टैक्सी के करीब पहुंचे। पंड़या टैक्सी का घेरा काट कर उसकी परली तरफ पहुंचा और टैक्सी की पैसेंजर सीट पर सवार हो गया।

पठान आगे बढ़ कर ड्राइविंग साइड के डोर के पास जा खड़ा हुआ।

“बैठो, बाप”—ड्राइवर उससे बोला—“ताकि मैं चले।”

पठान ने जवाब न दिया, न उसने टैक्सी में बैठने का उपक्रम किया।

“बोले तो...”

“नहीं बोले तो।”—पंड्या कर्कश स्वर में बोला—“इधर मेरी तरफ देख।”

“क्या है तुम्हेरी तरफ? पैसेन्जर का क्या देखे मैं?”

“देख, वर्ना...”

“क्या वर्ना?”

पहले से गुस्से से भरे बैठे पंड्या का हाथ चला और इतने वेग से ड्राइवर की कनपटी से टकराया कि उसके सिर से उसकी पीक-कैप उतर कर नीचे जा गिरी।

“ये!”—तत्काल हैरान पंड्या के मुंह से निकला—“ये तो वो भीड़ू नहीं है!”

पठान सकपकाया, उसने झुक कर ड्राइवर की पीक-कैपविहीन शक्ल पर निगाह डाली, हाथ बढ़ा कर उसकी शर्ट का कालर उलटा।

“अरे!”—वो भी हैरानी से बोला—“जीतसिंह किधर गया!”

“टैक्सी तो वहीच!”—कुमरा बोला।

“एमएच 01 जे 7983”—पूनिया बोला।

“इधर देख।”—पंड्या बोला।

“अरे, काहे वास्ते देखे?”—ड्राइवर झल्लाया—“क्या गलाटा है ये? साला पैसेंजर है कि गैंगस्टर! मेरे को लाफा लगा दिया! मैं अभी सिक्योरिटी को बोलता है होटल में मवाली लोग घुस आया। मैं पुलिस को...”

“सुहैल!”—पंड्या दान्त पीसता फुंफकारा—“घुटना फोड़ कुतरे का।”

पठान ने एक बार आजू बाजू निगाह दौड़ाई, फिर आश्‍वस्त होकर गन निकाल ली।

“मैं... मैं देखता है न!”—बौखलाया सा ड्राइवर बोला—“क्या...क्या मांगता है?”

“कौन है तू?”—पंड्या बोला—“नाम बोल। तेरी शक्ल पहचानी लगती मेरे को?”

“पहले कभी अपुन की टैक्सी में बैठा होयेंगा, बाप।”

“नाम बोल।”

“अबदी।”

“टैक्सी चलाना तेरा रेगुलर करके धन्धा?”

“हां, बाप।”

“कब से?”

“पांच साल से।”

“किधर रहता है?”

“धोबी तलाव। जम्बूवाड़ी चाल।”

तब पंड्या को अहसास हुआ कि क्यों उसे उसकी सूरत पहचानी सी लग रही थी। पिछली रात जम्बूवाड़ी चाल में जब वो डिकोस्टा करके टैक्सी ड्राइवर से बात करता था तो उसने अपने करीब बैठे जिन दो भीड़ूओं को साथी टैक्सी ड्राइवर बताया था वो—अबदी—उन में से एक था।

“ये टैक्सी तेरे पास कैसे है?”—पंड्या ने नया सवाल किया।

“कैसे है बोले तो?”—अबदी बोला—“बस है।”

पंड्या के इशारे पर पठान ने खिड़की में हाथ डाल कर गन की नाल से उस की कनपटी सेकी।

अबदी बिलबिलाया और अपनी कनपटी मसलने लगा।

“जो पूछा जाये”—पंड्या गुर्राया—“उसका स्ट्रेट करके जवाब देने का वर्ना इधरीच मरा पड़ा होयेंगा। क्या!”

“देता है न!”—अबदी रुआंसे स्वर में बोला।

“तो तू जम्बूवाडी चाल में रहता है और पुराना टैक्सी डिरेवर है। बरोबर?”

“हां।”

“टैक्सी अपना या भाड़े का?”

“अपना।”

“उस चाल में रहने वाले टैक्सी डिरवरों का रेगुलकर टैक्सी स्टैण्ड नागपाडा में है, अलैक्जेंड्रा सिनेमा के बाजू में। तेरा कौन सा है?”

“वहीच है।”

“जो टैक्सी ये टेम तेरे काबू में है, वो तेरी नहीं है?”

“नहीं है।”

“नागपाड़ा टैक्सी स्टैण्ड से पकड़ी?”

“हां।”

“जीतसिंह करके टैक्सी डिरेवर से?”

“हां।”

“जो जम्बूवाडी चाल में ही रहता है?”

“हां।”

“कहां?”

“दूसरे माले पर।”

“कब से?

“तीन महीने से।”

“जिसका नाम बद्रीनाथ भी?”

“मालूम नहीं।”

“वो बद्रीनाथ के नाम से नहीं जाना जाता?”

“जाना जाता होगा पण मेरे को नहीं मालूम।”

“तेरा वाकिफ?”

“हां।”

“कब से? जब से चाल ने रहने आया?”

“नहीं, उससे पहले से।”

“पहले भी टैक्सी डिरेवर?”

“नहीं।”

“पहले क्या?”

“ताला-चाबी मिस्त्री। क्रॉफोर्ड मार्केट में अड्डा।”

“वाकिफ कैसे बन गया?”

“क्योंकि एक दूसरे टैक्सी डिरेवर का फिरेंड जो कि मेरा भी फिरेंड। इस वास्ते बन गया।”

“दूसरा टैक्सी डिरेवर गाइलो?”

“हां।”

“बद्रीनाथ का फ्रेंड! इस्पेशल कर के?”

“बोले तो ऐसीच है।”

“ये टैक्सी जिस में हम बैठेले हैं, जीतसिंह की? जो उसके पास माहाना भाड़े पर?”

“हां।”

“तेरी कहां गयी?”

“बिगड़ गयी।”

“क्या हुआ?”

“पता नहीं। टैक्सी स्टैण्ड पर ठीक ठीक पहुंची, उसके बाद स्टार्ट हो के न दी।”

“ऐसा होता है कहीं!”

“हो जाता है, बाप। मशीन है। क्या पता लगता है?”

“हूं। तो तूने क्या किया?”

“जीतसिंह से टैक्सी बदली किया। उसका टैक्सी मैं लिया, अपना उसको दिया।”

“वो बिगड़ी टैक्सी का क्या करता?”

“ठीक कराता न!”

“तू खुद क्यों नहीं?”

“बाप, जो पैसेंजर मैं इधर ड्रॉप किया, वो मेरा रेगुलर। बोले तो डेली पिक करता है—नागपाडा से भी, इधर होटल से भी। वो उधर टैक्सी डिरेवर मांगता है तो मेरे को ही मांगता है। इसी वास्ते मैं जीतसिंह से टैक्सी बदली किया। वो दोनों लड़की लोग होटल में सर्विस करता है, टेम पर पहुंचाना जरूरी। मैं खुद टैक्सी ठीक कराता तो...कैसे होता?”

पंड्या के चेहरे पर उलझन के भाव आये।

“फेंकता है साला।”—पठान बोला—“स्टोरी करता है। गोली देता है।”

“अरे, नहीं, बाप।”—अबदी बोला—“मैं बोला न, वो लड़की लोग इधर होटल में नौकरी करता है! उनसे पक्की करो कि मैं जो बोला, करैक्ट करके बोला। होटल में जाने का। रिसेप्शन पर होयेंगा दोनों।”

पठान ने पंड्या की तरफ देखा।

“इधर देख।”—पंड्या सख्ती से बोला।

“बोलो, बाप।”—अबदी से पहलू बदल कर उसकी तरफ देखा।

“जीतसिंह अब तेरे को कब मिलेगा, कहां मिलेगा?”

“काहे वास्ते?”

“अबे, अपना टैक्सी वापिस लेगा कि नहीं लेगा उससे?”

“बोले तो उस वास्ते?”

“हां। उस वास्ते।”

“अभी तो वो टैक्सी चला रयेला होयेंगा। बोले तो आन रोड होयेंगा। रात को चाल में लौटेगा तो तभी मिलेगा।”

“साला रात तक इन्तजार कौन करेगा!”

“तुम्हेरे को इन्तजार करना काहे वास्ते मांगता है?”

“जीतसिंह से बात करने का अर्जेंट करके। इम्पॉर्टेंट कर के।”

“तो टैक्सी स्टैण्ड पर करना था न! इधर काहे वास्ते पहुंच गया?”

“साला सवाल करता है! जुबान लड़ाता है!”

“अरे, नहीं, बाप।”

“उसको फोन लगा।”

“क्या बोला?”

“अरे, मोबाइल है न!”

“वो तो...है।”

“निकाल। और जीतसिंह को फोन लगा। उस को इधर बुला।”

“कैसे होयेंगा? अभी टैक्सी ओके न हुआ हुआ तो...कैसे आयेंगा?”

“साला फिर गोली देता है। टैक्सी चला कर स्टैण्ड पर पहुंचा साला। मेजर फाल्ट कैसे होयेंगा!”

“पण...”

“नहीं पण। फोन लगा।”

अबदी हिचकिचाया, उसने बेचैनी से पहलू बदला।

“हुज्जत का कोई फायदा नहीं, कुतरया”—पंड्या गुर्राता सा बोला—“तू इधर हमेरे काबू में है, जब तक जीतसिंह पकड़ में नहीं आता, काबू में ही रहेगा।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकता।”

“नहीं कर सकता? अरे जो हो चुका, उस को बोलता है नहीं हो सकता!”

“बोले तो मैं गिरफ्तार!”

“है और रहेगा, जब तक कि...”

“मैं पुलिस को काल करता है।”

“कर।”

अबदी ने जेब की तरफ हाथ बढ़ाया।

पठान ने टैक्सी की खुली खिड़की से भीतर हाथ डाला और गन की नाल उसके कान में घुसेड़ दी।

अबदी पीड़ा से बिलबिलाया, उसने हाथ वापिस खींच लिया।

“कर न, कुतरया! क्यों नहीं करता?

अबदी ने जवाब न दिया।

पंड्या ने एक प्रचण्ड घूंसा उसके पेट में रसीद किया।

अबदी दोहरा हो गया, उसकी आंखों में आंसू छलछला आये।

“किधर और लेकर चलने का पिराइवेट में। फुल कर के ठोकने का साले कुतरे को। कुमरा, इस को पीछे ले और गाड़ी तू चला। पूनिया, तू गन पकड़, इसको कवर करके रखने का वास्ते...”

तभी तेज रफ्तार से चलती एक टैक्सी उन के करीब पहुंची और उन के ऐन सामने आकर रुकी।

पंड्या ने देखा उसमें आगे पीछे चार आदमी सवार थे।

पठान ने जल्दी से हाथ में थमी गन को अपनी एक जेब में गुम किया।

चार आदमी उस टैक्सी में से बाहर निकले और उन के करीब पहुंचे। एक नीचे को झुक कर अबदी वाली टैक्सी की नम्बर पलेट पढ़ने लगा।

“एमएच जीरो वन जे सेवन नाइट एट थ्री।”—वो उच्च स्वर में बोला—“यही है।”

बाकियों ने सहमति में सिर हिलाया।

“डिरेवर कौन है?”—पहला, जो बाकियों का लीडर जान पड़ता था, बोला।

“अन्धा है!”—पठान चिड़ कर बोला—“दिखाई नहीं देता डिरेवर कौन है?”

“सब भीड़ू बाहर निकलने का!”

“अरे, कौन है तू? मांगता क्या है तेरे को?”

“ये टैक्सी सीज़ करने का।”

“क्या बोला?”

“भाड़ा नहीं भरा। दो महीना से भाड़ा नहीं भरा। मालिक को अपना टैक्सी, बोले तो ये टैक्सी, वापिस मांगता है। भाड़ा बाद में वसूल करेगा।”

पठान के चेहरे पर उलझन के भाव आये, उसने झुककर खिड़की के रास्ते पंड्या की तरफ देखा तो पाया वो खुद उलझन में था।

लीडर ने पठान को तनिक परे धकेला, टैक्सी का उधर का दरवाजा पूरा खोला और बोला—“तू जीतसिंह?”

“नहीं।”—अबदी जल्दी से बोला—“मैं अबदी।”

“ये टैक्सी जीतसिंह के पास होना।”

“मेरे को दिया न टैम्परेरी कर के!”

“ये भी गलत किया। ढ़ोलकिया बाप और भाव खायेंगा। जीतसिंह किधर है?”

“अभी मालूम नहीं।”

“तू अपना टैक्सी उस से बदली किया?”

“हां। वो क्या है कि...”

“होयेंगा कोई रीजन। मेरे को नहीं मांगता। मैं टैक्सी अपने पोजेशन में लेता है, जीतसिंह मिले तो बोलना भाड़े के साथ इमिजियेट करके ढ़ोलकिया बाप से मिले वर्ना...ही विल बी इन ट्रबल। बिग ट्रबल। क्या!”

“मैं बोलेगा उसको।”

“अभी बाहर निकल। इन को भी बाहर कर।”

“माथा फिरेला है!”—पंड्या भड़क कर बोला—“हम ये टैक्सी पकड़ा न! ये पहले हमेरे को जिधर हम जाना मांगता है, उधर ड्रॉप करके आयेगा।”

“दूसरा टैक्सी पकड़ो।”

“काहे को दूसरा टैक्सी पकड़ें जब...”

“अरे, बाप, काहे वास्ते भाव खाता है? जब टैक्सी स्टैण्ड पर खड़ेला है तो क्या वान्दा है दूसरा टैक्सी पर जाने में?”

“मेरे को यहीच टैक्सी पर जाने का। चल बे डिरेवर!”

“बाप, क्यों खाली पीली...”

“नहीं खाली पीली। डिरेवर, सुना नहीं! चल।”

अबदी ने लीडर की तरफ देखा।

“खबरदार!”—लीडर बोला—“हिलने का नहीं इधर से। अभी देखने का क्या होता है! किलम!”

“बोलो, बाप।”—एक जना तत्पर स्वर में बोला।

“आते टेम बाहर रोड पर आयरन गेट के पास मैं एक हवलदार देखा। वो अभी उधरीच होगा। दौड़ के जा और उसे इधर बुला के ला।”

“अभी!”

किलम आयरन गेट की तरफ दौड़ चला।

उलटे पांव वो एक तीन फीती वाले हवलदार के साथ लौटा।

“क्या लफड़ा है?”—वो रौब से बोला—“क्यों बुला के लाया ये भीड़ू मेरे को इधर?”

“मैं बोलता है न!”—लीडर आगे बढ़ कर बोला—“ये टैक्सी भाड़े पर है, नवगुजरात टुअर्स एण्ड ट्रैवल्स करके कम्पनी से ली गयी है जो कि धारावी में है। अड्रैस बोले तो स्वदेशी मिल रोड, चूना भट्टी। डिरेवर दो महीना से भाड़ा चुकता नहीं किया, इस वास्ते कम्पनी गाड़ी वापिस मांगता है और इस वास्ते गाड़ी सीज़ कर के कम्पनी में ले आने का वास्ते हमेरे को भेजा।”

“तुम कौन है?”

“मेरा नाम...रोटोलो है। मैं कम्पनी का ऐसीच कामों के वास्ते एनफोर्सर है। यहीच काम मेरा कम्पनी का वास्ते। बोले तो जो डिरेवर भीड़ू टेम पर भाड़ा चुकता न करे, उससे टैक्सी सीज़ कर के कम्पनी में वापिस लाने का।”

“जैसे बैंक वाला करता है? फाइनांस कम्पनी वाला करता है?”

“अभी समझा न, बाप!”

“हूं। अभी पिराब्लम क्या है?”

“ये पैसेंजर लोग जो टैक्सी में बैठेले हैं, पंगा करते हैं। बाहर नहीं निकलते। हमेरे को टैक्सी पर कब्जा नहीं करने देते।”

हवलदार ने टैक्सी के भीतर झांका।

“मीटर डाउन है न!”—पंड्या सख्ती से बोला।

“वो तो”—हवलदार बोला—“बोले तो है।”

“डिरेवर इधर अपनी मर्जी से हमेरे को टैक्सी हायर करने दिया न! तो हमेरे को मांगता है कि पहले ये हमेरे को हमेरे ठिकाने पर पहुंचा के आये।”

“मैं दूसरा टैक्सी बुला के देता है न!”—अबदी बोला।

“नहीं मांगता। हमेरे को इसी में जाने का। चल के दे।”

अबदी ने वैसा कोई उपक्रम नहीं किया।

“अबे, चलता है या दूं एक लाफा!”

“हवलदार के सामने लाफा देंगा मेरे को?”

पंड्या सकपकाया।

“गलाटा नहीं मांगता मेरे को।”—हवलदार रौब से बोला—“फौजदारी करेगा तो बैक अप फोर्स बुलायेंगा, सब को अन्दर करेंगा।”

“अरे, सुनो तो!”

“क्या सुने?”

“तुम पुलिस वाला। तुम्हेरे को मालूम आज कल कितना कारजैकिंग का वारदात होता है।”

“तो?”

“मैं बोले तो ये चारों भीड़ू कारजैकर। साला स्टोरी करके ये कार जैक करना मांगता है इन को।”

हवलदार के नेत्र फैले।

“ये...ये जो अपना नाम रोटोलो बोला, अपने को किसी कम्पनी का एनफोर्सर बोला। नाम लेता है कम्पनी का। मैं बोले तो ये कारजैकर जो नाम का बेजा इस्तेमाल कर के ये टैक्सी चोरी करना मांगता है।”

“माथा फिरेला है!”—रोटोलो भड़का—“मैं...”

अभी इधर मेरे से बात करने का।”—हवलदार गम्भीरता से बोला।

“क्या बात करने का?”

“तुम बोलता है ये टैक्सी धारावी की...वो...क्या नाम बोला?...हां। नवगुजरात टूअर्स एण्ड टैवल्स करके कम्पनी की?”

“बोला न!”

“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा?”

“रियर विंडो के बाजू में पीला स्टिकर लगा है न, जिस पर कम्पनी का नाम, प्रोप्राइटर का नाम, पता लिख रयेला है।”

हवलदार ने उस बात की तसदीक की।

“बोले तो बरोबर।”—फिर बोला—“ये टैक्सी नवगुजरात टुअर्स एण्ड ट्रैवल्स का प्रॉपर्टी। अभी ये किधर दर्ज है कि तुम चार भीड़ू भी इस कम्पनी का प्रॉपर्टी! बोले तो मुलाजिम! अभी और बोले तो एनफोर्सर!”

“यहीच तो मैं बोलता है।”—पंड्या बोला—“कैसे...”

“तुम्हेरे को चुप रहने का। मैं बात करता है न!”

पंड्या खामोश हो गया।

“अभी बोले तो?”—हवलदार फिर रोटोलो से मुखातिब हुआ—“कोई आई-कार्ड तुम्हेरे पास कम्पनी का?”

“वो तो नहीं है”—रोटोलो बोला—“पण...”

“क्या पण?”

“कम्पनी में फोन लगाओ अभी का अभी और हमेरे बारे में इन्क्वायरी करो। पूछो, रोटोलो कौन? अयूब कौन, किलम कौन, राजन कौन!”

“किस से पूछे?”

“जयन्त ढ़ोलकिया से जो कि प्रोप्राइटर है। उसका फोन नम्बर मैं बोलता है।”

“बोलो।”

रोटोलो ने जो नम्बर बोला, वो हवलदार ने अपने फोन पर पंच किया। कुछ क्षण वो फोन कान से लगाये रहा फिर एकाएक बोला—“हल्लो! ढ़ोलकिया साहब बोलता है धारावी से? नवगुजरात टुअर्स एण्ड ट्रैवल्स से?...बोलता है? बोले तो बढ़िया। मैं हवलदार बापट बोलता है बान्द्रा पुलिस स्टेशन से।...तुम्हेरा कम्पनी टैक्सी भाड़े पर चढ़ाने का काम करता है?... करता है। टैक्सी एमएच 01 जे 7983 आजकल भाड़े पर है?...उसका भाड़ा रेगुलर करके चुकता है?...नहीं? दो महीना से चुकता नहीं हुआ?... तो क्या एक्शन लेता है तुम?... गाड़ी को सीज़ करने का! एनफोर्सर भेजा!... कितना भीड़ू?... चार बोला?... अभी नाम भी बोले तो?...ठीक। ठीक। थैंक्यू बोलता है, ढ़ोलकिया साहब।”

हवलदार ने फोन बन्द करके जेब के हवाले किया।

“उतरो!”—फिर उसने हुक्म दिया।

“पण...”—पंड्या ने विरोध में बोलना चाहा।

“सुनता नहीं है!”—हवलदार कड़क कर बोला—“आउट! खाली करो टैक्सी अभी का अभी।”

सब बाहर निकले।

अबदी भी।

पंड्या ने अबदी की एक बांह पकड़ी, उसके इशारे पर पठान ने दूसरी बांह पकड़ी, दोनों उसे परे को चलाने लगे।

कुमरा और पूनिया उन के पीछे लपके।

“अरे, छोड़ो मेरे को।”—अबदी उनकी पकड़ में छटपटाता सा बोला—“छोड़ो। हवलदार साहब, छुड़ाओ मेरे को।”

“अब क्या गलाटा है?”—हवलदार बोला।

“कोई गलाटा नहीं।”—पंड्या आश्‍वासनपूर्ण स्वर में बोला—“ये भीड़ू हमारे साथ जा रहा है...”

“डिरेवर का”—रोटोलो बोला—“पैसेंजर से साथ का क्या मतलब?”

“...अपनी मर्जी से जा रहा है।”

“नहीं! नहीं!”—अबदी ने तीव्र विरोध किया—“जबरदस्ती ले जाया जा रहा है। हवलदार साहब, छुड़ाओ। प्लीज, छुड़ाओ।”

“ये धांधली है!”—रोटोलो का राजन नाम का साथी बोला।

“किडनैपिंग है!”—दूसरा साथी किलम बोला।

“बोले तो अगवा है।”—तीसरा साथी अयूब बोला।

“हवलदार साहब”—रोटोलो पुरजोर लहजे से बोला—“ये क्या हो रयेला है राइट बिफोर युअर आइज़! ये डिरेवर भीड़ू को उस वाइट वैगन-आर का डायरेक्शन में बाई फोर्स पुश कर रयेले हैं। जब इनके पास अपना गाड़ी है तो इन को टैक्सी काहे वास्ते मांगता था!”

“थाम्बा!”—हवलदार कड़क कर बोला और लपक कर उनके रास्ते में जा खड़ा हुआ—“छोड़ो इसको। मैं बोलता है छोड़ो इसको! वर्ना मैं बैक अप बुलाता है।”

“अभी हम हैं न बैक अप, हवलदार साहब”—रोटोलो बोला—“यू जस्ट इशू एन आर्डर, सर, दैन सी वाट हैपंस।”

“सुना तुम चारों!”—हवलदार बोला।

“अरे, मैं बोला न”—पंड्या कलपता सा बोला—“ये हमारी मर्जी से हमारे साथ जाता है।”

“फिर भी छोड़ो, वर्ना मैं अरैस्ट करता है तुम सब को।”

पंड्या ने बांह छोड़ दी।

पठान ने भी।

अबदी तत्काल उन से अलग हुआ और लपकता सा रोटोलो वगैरह के करीब यूं जा खड़ा हुआ जैसे उन से पनाह चाहता हो।

पंड्या और उसके साथी सफेद वैगन-आर में सवार हुए, फिर पलक झपकते वैगन-आर ये जा वो जा।

“मौला!”—पीछे अबदी परेशानहाल लहजे से बोला—“साला कैसा पंगे में डाला मेरे को!”

“निकाला भी तो ऐन टेम पर आके।”—रोटोलो हँसता हुआ बोला।

“साला बाई फोर्स ले के जाता था मेरे को।”

“ले के जाने तो न दिया!”—हवलदार, जो कि शम्सी था, बोला।

“फिर भी साला थोड़ा टेम तो हालत बहुत खराब किया सालों ने। एक साला जो टैक्सी से बाहर खड़ेला था, दिन दहाड़े गन चमकाता था। एक दूसरा भीड़ू जो मेरे बाजू में पैसेंजर सीट पर बैठेला था, एक लाफा दिया मेरे को थोबड़े पर। एक पंच मारा पेट में।”

“फिरेंड का खातिर सैक्रीफाइस किया, अबदी।”—रोटोलो बोला—“क्या?”

“वो तो है बरोबर!”

“अभी सब सेफ है, ऐन सैटिस्फैक्ट्री है, इनक्लूडिंग अवर डियर फिरेंड जीता।”

“थैंक गॉड!”—किलम बोला।

“शम्सी, तू साला आकर इतना अथारिटी से मेरे को पूछा मैं कौन है कि मेरे मुंह से गाइलो निकलने लगा था। बड़ी मुश्‍किल से साला जुबान को काबू में किया और रोटोलो बोला।”

सब हँसे।

“पण गाइलो”—फिर अबदी बोला—“इतना अर्जेंट करके तू सब अरेंज कैसे कर लिया?”

“अर्जेंट करके किधर किया? काफी टेम लगा। टैक्सी स्टैण्ड से जीते का काल आने के बाद साला वन आवर लगा। टेम साला शम्सी का वास्ते हवलदार का जेनुइन लाइक यूनीफार्म अरेंज करने में लगा या किलम, राजन और अयूब को, बोले तो अपने टैक्सी डिरेवर ब्रदर्स को, अपने फैलो टैक्सी डिरेवर जीतसिंह का हैल्प के वास्ते रैडी करने में लगा। मैं थैंक्यू बोलता है तुम लोगों को। जीता भी जब मिलेगा, इधर क्या हुआ जानेगा सुनेगा तो बोलेगा।”

“वान्दा नहीं।”—अयूब बोला।

“मेरे को खुशी मैं फैलो टैक्सी डिरेवर के काम आया।”—राजन बोला।

“वन फार आल, आल फार वन।”—किलम बोला।

“आमीन!”—शम्सी बोला।

“पण, गाइलो”—अबदी बोला—“तेरे को सूझा कैसे कि पंगा पड़ेगा?”

“बोले तो, दैट वाज क्वाइट आबवियस। जीता फोन पर मेरे को बोला कि वो जो लोग डिरेवर भाइयों से डर कर टैक्सी स्टैण्ड से नक्की कर गये थे, वो पक्का ही नहीं टल जाने वाले थे। वो जरूरी किधर से सीक्रेटली वाच रखते और जिस टेम भी जीता टैक्सी स्टैण्ड से निकलता, उसको किधर घेरते और थाम लेते। मैं तेरे को टैक्सी स्टैण्ड पर जाने को बोला ताकि तू जीते से टैक्सी बदली कर लेता। डिस्टेंस से डिरेवर का थोबड़ा साला ठीक से किधर दिखाई देता है! फिर तू पीक-कैप का आइडिया सरकाया जो बाई चानस तेरा पास था। अब इस सिनेरियो में वो भीड़ू लोग आबवियस था कि टैक्सी पर वाच रखते। फिर एक्चुअल में यहीच हुआ। उन्होंने टैक्सी का नम्बर देखा और उसको फालो करने लगे। पीछू जीता सेफ टैक्सी स्टैण्ड से निकल गया और अब संस आफ बिचिज़ को ढूंढ़े नहीं मिलेगा।”

“यहीच तुम पिलान किया था?”

“बोले तो बरोबर। पण मेरे को पक्की कर के मालूम कि ऐट लास्ट जब वो टैक्सी को कहीं इन्टरसैप्ट कर लेंगे, और उन्हें मालूम होगा कि उस का डिरेवर जीता नहीं था तो वो बहुत भड़केंगे। भड़केंगे तो तेरी वाट लग के रहेगी। इस वास्ते मैं बैक अप का एडवांस में इन्तजाम कर के रखा तेरा वास्ते।”

“शुरू से उन पर निगाह थी?”

“उन पर नहीं, तेरे पर तेरी—जीतसिंह वाली—टैक्सी पर निगाह थी। उनके थोबड़े तो खाली जीतसिंह पहचानता था जो कि हमेरे साथ नहीं होना सकता था। दो को अपना डिकोस्टा पहचानता था। पण वो भी डिकोस्टा को पहचान गये थे इस वास्ते वो भी साथ नहीं होना सकता था।”

“ठीक। पण अभी बोले तो सब ठीक हुआ! डिरियामा ऐन फिट चला!”

“यस, बाई दि ग्रेस आफ गॉड!”

“पण शम्सी तो धारावी ढ़ोलकिया करके भीड़ू को फोन लगाया न बरोबर!”

“माथा फिरेला है!”

“जो नम्बर मैं पंच किया”—शम्सी बोला—“उस पर तो नम्बर मौजूद नहीं है का सिग्नल आता था। मैं तो साला अनकनैक्टिड फोन में फर्जी डायलॉग करता था और उन मवाली भीड़ुओं को सुनाने के वास्ते एक की आठ लगाता था।”

“ओह! मेरे को तो हण्डर्ड पर्सेंट लगा कि सच में ढ़ोलकिया से बात करता था।”

“मैं है न एक्टर!”—शम्सी अकड़ कर बोला—“बोले तो शाहरुख के लैवल का।”

सब हँसे।

“पण हौसला देखो सालों का!”—किलम बोला—“शरेआम घसीट के ले जा रहे थे अबदी को।”

“ये साला शहर ही ऐसा है।”—शम्सी बोला—“इधर जो न हो जाये, वो थोड़ा है। पण ले जाके करते क्या?”

“जीते तक अप्रोच बनाने के वास्ते”—गाइलो गम्भीरता से बोला—“उसे थामने के वास्ते इसे सीढ़ी बनाते। ताकत बताते...”

अबदी के शरीर ने स्पष्ट झुरझुरी ली।

“... ताकि ये बोलता जीता किधर मिलेगा, कैसे पकड़ में आयेगा।”

“पण वो हैं क्यों जीते के पीछे?”

“दैट्स ए लांग स्टोरी। कभी जीता खुद बोलेगा।”

“ठीक।”

“अभी क्या करने का?”—शम्सी बोला।

“अभी पहले तो कनफर्म करने का कि वो अभी भी हमेरी विजिल पर नहीं हैं। बीच में तीन फीती वाला हवलदार पड़ा, इस वास्ते उम्मीद तो नहीं, ऐसा हिम्मत करेंगे। फिर भी शम्सी—हमेरा हवलदार—अपना डन्डा हिलाता बाहर होटल के दोनों बाजू दूर तक चक्कर लगायेगा और कनफर्म करेगा कि वो टल गये थे। नहीं टले होंगे तो अरैस्ट की धमकी से डरा कर खदेड़ के आयेगा।”

“टल गये होने का क्या मतलब होगा?”—अबदी बोला—“हार मान ली उन्होंने!”

“नक्को। जीते के पीछे पड़ने के अभी दो सोर्स उन का पास हैं। एक हमेरी चाल और दूसरा हमेरा टैक्सी स्टैण्ड। इस वास्ते अब जीते के वास्ते जरूरी कि वो टैम्परेरी करके चाल से नक्की करे और नागपाडा स्टैण्ड के तो सेवरल डेज पास भी न फटके।”

“ये टैक्सी?”

“अभी धारावी पहुंचाने का।”

“मेरा?”

“तेरे को ऐज सून ऐज पासिबल वापिस मिलेगा।”

“जीता क्या करेगा?”

“मालूम पड़ेगा न!”

अबदी खामोश हो गया।

“तो मैं जाये बाहर का पुलिसिया राउन्ड मारने?”—शम्सी बोला।

“यस। प्लीज। अभी जाने का और गुड न्यूज ले के लौटने का कि कोस्ट क्लियर है। ऐसा हुआ तो मैं हैल्पफुल फिरेंड्स किलम, राजन और अयूब को भी डिसमिस करेगा, तेरे को भी थैंक्यू बोलेगा और बाकी जो करना है, मैं और अबदी करेगा। ओके?”

सब ने सहमति में सिर हिलाया।

 

रात के नौ बजे थे।

जीतसिंह और गाइलो जम्बूवाडी के एडवर्ड सिनेमा के करीब के गाइलो के फेवरेट बेवड़ा अड्डे पर मौजूद थे और एक कोने की मेज पर बैठे चियर्स बोल रहे थे।

जीतसिंह गाइलो की जुबानी सुन चुका था कि दिन में बान्द्रा में शारदा होटल के कम्पाउन्ड में क्या हाई टेंशन ड्रामा हुआ था और जो उसने सुना था, उसने उसे और फिक्रमन्द कर दिया था।

बकौल गाइलो उसकी ‘7983’ टैक्सी धारावी पहुंच चुकी थी और मालिक जयन्त ढ़ोलकिया को सौंपी जा चुकी थी जिसने वादा किया था कि वो उस टैक्सी को आगे किसी साउथ और सैन्ट्रल मुम्बई से दूर दराज की जगह पर भाड़े पर उठायेगा। बदले में टैक्सी फौरन नहीं मिल सकी थी अलबत्ता ढ़ोलकिया का वादा था कि कल दोपहर तक जीतसिंह को कोई दूसरी टैक्सी जरूर मिल जायेगी।

गाइलो बाजरिया डिकोस्टा तसदीक कर चुका था कि चाल और बस स्टैण्ड दोनों जगह किन्हीं नामालूम लोगों की नजर थी। चाल में तो खुद पिछली बार वाला भीड़ू ही गाइलो को पूछता पहुंचा था—उस बार जीतसिंह को भी पूछता था—और खुद ये देखकर बहुत नाउम्मीद हुआ था कि गाइलो की खोली के हरे दरवाजे पर तब भी ताला झूल रहा था।

उस भीड़ू का नाम उन्हें अभी भी नहीं मालूम था लेकिन अब उसकी ये पहचान स्थापित थी कि उसके कान चाय की केतली जैसे थे।

अब वो दोनों ही ये फैसला कर चुके थे कि कुछ अरसा उन का अपनी चाल से और नागपाड़ा के रेगुलर टैक्सी स्टैण्ड से दूर रहना जरूरी था।

“जीते!”—गाइलो आह सी भरता बोला—“ये टेम मेरे को तेरा विट्ठलवाडी का फिलेट बहुत याद आता है। साला पर्फेक्ट करके ठीया था सीक्रेट करके रहने का। लास्ट मंथ कितना काम आया हम दोनों के! पण तू छोड़ दिया।”

“तेरे को मालूम क्यों छोड़ दिया!”—जीतसिंह बोला।

“हां, मालूम तो बरोबर! साला ट्वेन्टी टू थाड भाड़ा नहीं भरना सकता खाली पीली में।”

“हां। ये टेम कोई बड़ा माल हाथ में आ गया तो बड़ा फिलेट लेंगे परमानेंट कर के।”

“साला सपना देखता है।”

“हां, देखता तो सपना ही है! तू साला काली जुबान बोल के जो रखा कि माल मेरे पास नहीं टिकने का।”

“क्या...क्या बोला काली कर के?”

“कुछ नहीं।”

“अरे, कुछ तो बोला।”

“कुछ नहीं बोला। अभी बोलता है।”

“क्या?”

“एक बात याद आया मेरे को। लेट आया पण आखिर आया।”

“अरे, क्या?”

“जितना टेम भी मैं इधर तेरे से मिला—तेरे बाद आया या तेरे से पहले आ कर तेरा वेट करता था—तेरा जॉन करके फ्रेंड हमेशा मेरे को इधर मिला। ये पहला मौका है जब कि नहीं मिला।”

“वो मांगता है तेरे को? याद सताता है उसका?”

“अरे, नहीं, भई। एक बात मेरे को खटकी, अजीब लगी, इस वास्ते बोल दी।”

“अच्छा करता न बोलता।”

“बोले तो?”

“रिमेम्बर दि डेविल एण्ड डेविल इज़ देयर। उधर लुक दे एन्ट्री का डायरेक्शन में।”

जीतसिंह ने बार के प्रवेशद्वार की ओर निगाह दौड़ाई तो वो हड़बड़ाया।

द्वार के जरा भीतर गाइलो का बेवड़ा अड्डा फ्रेंड जॉन खड़ा था, उसकी निगाह पैन होती एक तरफ से दूसरी तरफ फिर रही थी। फिर निगाह गाइलो पर ठिठकी तो उसके चेहरे पर रौनक आयी। तत्काल वो लम्बे डग भरता उनकी टेबल की ओर बढ़ा।

“आता है।”—गाइलो व्यस्तता जताता बोला और उठ कर जॉन की दिशा में बढ़ चला।

जीतसिंह खामोशी से उसे जाता देखता रहा।

बीच रास्ते गाइलो जॉन से मिला, एक मिनट वो उससे बतियाया, फिर जॉन को सहमति में सिर हिलाता छोड़कर वापिस लौटा।

जॉन उसके पीछे आने की जगह बाजू में बने बार काउन्टर की ओर बढ़ चला।

गाइलो वापिस लौटा।

“इधर ही आता था।”—वो वापिस अपनी कुर्सी पर बैठता बोला—“साला अच्छा हुआ मेरे को पहले दिखाई दे गया। अभी टाल के आया। बोल के आया इम्पॉर्टेंट करके भीड़ू से इम्पॉर्टेंट कर के मीटिंग करता था, आकर डिस्टर्ब नहीं करने का था।”

“ड्रिंक उधर ही आफर करके आया?”—जीतसिंह बोला।

“अरे, नहीं।”

“झूठ बोलता है साला। वो सीधा बार पर गया। तू उसके ड्रिंक को ओके बोला, इस वास्ते।”

“अरे, नहीं, ब्रदर।”

“बिल आयेगा तो देखेगा न कि नहीं कि हां!”

गाइलो हड़बड़ाया, फिर बोला—“अरे, वो फिरेंड है। रेगुलर बार-बडी है। वाट्स विद ए ड्रिंक आर टू फार ए फिरेंड।”

“फ्रीलोडर फिरेंड।”

“दैन वाट! ही इज ए फिरेंड फर्स्ट।”

“एक बात माननी पड़ेगी, गाइलो।”

“बोले तो?”

“दिल बड़ा है तेरा। बहुत बड़ा। सब के काम आता है तू।”

“क्योंकि सब मेरे काम आते हैं। तू, डिकोस्टा, शम्सी, अबदी, जॉन...”

“पक्या!”

“अरे, काहे याद दिला दिया साला हरामी! द लाउजी, टू बिट, बैकबाइटिंग, डबलक्रासिंग सन आफ ए बिच। बीस पेटी हाइजैक करके भाग गया। सी-रॉक एस्टेट के डोरमैन को शूट कर दिया। हमेरे को भी कर सकता था पण बकश दिया दैट रॉटन बास्टर्ड! कभी तो काबू में आयेगा! आयेगा तो...तो...आई विल टियर हिम अपार्ट विद माई बेयर हैंड्स।”

“पहले तो आयेगा नहीं, आयेगा तो तब आयेगा जब मेरे से छीना सारे का सारा रोकड़ा, बीस लाख रुपया, उड़ा चुका होगा।”

“देखेगा साला। अभी मैं फिरेंड्स का बात करता था।”

“कर।”

“जीते, डे टाइम में तेरा बिग पिराब्लम को साल्व करने का वास्ते जस्ट वन आवर में, बोले तो वार फुटिंग पर, मैं कितना भीड़ू इकट्ठा किया! साला किलम, राजन, अयूब, एक टेम भी क्वेश्‍चन नहीं किया कि वो किस वास्ते होना। मैं बोला फिरेंड को हैल्प मांगता है। एकीच जवाब मिला, ‘करता है न’। कोई रिटर्न में न पूछा क्या हैल्प मांगता था? कोई डेन्जर काम तो नहीं था? कोई पुलिस पिराब्लम तो नहीं था? कोई मवाली पिराब्लम तो नहीं था? जीते, कैसे बोलेंगा मैं कि मेरा दिल कितना खुश हुआ! अभी दूसरा मेरे काम आता है तो मेरे को दूसरे के काम नहीं आने का? दूसरा तेरे काम आता है तो तेरे को दूसरे के काम नहीं आने का?”

“आने का बरोबर।”

“सो? सो वाट्स ए कर्टसी ड्रिंक आर टू बिटविन फिरेंड्स!”

“सॉरी, गाइलो। मेरे को नहीं मालूम था जॉन तेरा इतना जिगरी दोस्त है।”

“वान्दा नहीं। अभी मालूम हुआ न!”

“कोई काम क्यों नहीं करता?”

“करता है न! पण फुल टेम काम नहीं करता। इस वास्ते रैस्ट ऑफ दि टेम इधर बेवड़ा अड्डा पर।”

“पार्ट टाइम क्या करता है?”

“गाइड है। इस्पेशल टाइप का। मोस्टली फॉरेन टूरिस्ट्स का वास्ते।”

“बोले तो?”

“कोलाबा में सैक्स शापिंग किधर होता है, किंकी सैक्स किधर होता है, जॉन बोलेगा। चौपाटी पर ड्रग्स किधर मिलता है, जॉन बोलेगा। ग्रांट रोड पर ‘क्लीन’ इस्टेण्डर्ड बाई किधर मिलता है, जॉन बोलेगा। अन्धेरी में माइनर छोकरी किधर मिलता है, जॉन बोलेगा। कमाठीपुरे का कौन सा स्ट्रीट में नेपाल से नवां माल आया, जॉन बोलेगा। ब्रूटल सैक्स एक्ट मांगता है तो घाटकोपर में किधर जाने का। ड्राई डे को विस्की मांगता है तो किधर मिलेगा। रेव पार्टी जायन करने का तो वरली में किधर जाने का, मिडनाइट के बाद फुल नेकड डांस शुक्लाजी स्ट्रीट के कौन से बार में होता है, जॉन बोलेगा। यू गैट दि पिक्चर?”

“इतना... इतना पहुंचा हुआ भीड़ू है ये जॉन?”

“अभी है न! साला साउथ मुम्बई में आ कर कोई टूरिस्ट पूछे ‘जॉन किधर मिलेगा’, कोई भी बोलेगा अपना जॉन इधर मिलेगा।”

“जब कि जॉन इतना कामन नाम है!”

“है। पण टूरिस्ट को तो एकीच जॉन मांगता है न जो इस्पेशल है! जो इस बेबड़ा अड्डा पर पाया जाता है!”

“फिर ये तो बेबड़ा अड्डा इस का वर्क स्टेशन हुआ न!”

“अभी कुछ भी बोल, जीते, है ये काम का भीड़ू। अभी एक सरपराइज देता है तेरे को।”

“मैं लेता है। पहले ड्रिंक मंगा।”

गाइलो ने वेटर को इशारा किया।

उन्हें नये ड्रिंक सर्व हुए।

“अब बोल।”—जीतसिंह बोला—“अब दे सरपराइज।”

“वो भीड़ू। जिसका मर्डर हुआ डे बिफोर यस्टरडे। जो तेरा टैक्सी का पैसेंजर था, तेरे को हीरों वाला ब्रीफकेस सौंप के गया। जोकम फर्नान्डो नाम बोला जो तेरे को...”

“अरे, आगे बोल न।”

“वो अमर नायक के गैंग का भीड़ू।”

जीतसिंह सम्भल कर बैठा।

“अमर नायक मालूम?”

“मालूम।”—जीतसिंह बोला।

“बिग गैंगस्टर। बड़ा अन्डरवर्ल्ड डॉन। आजकल अन्डरवर्ल्ड में बोलते हैं नैक्स टू बहरामजी। जब से बल्लू कनौजिया, उसका पार्टनर सरताज बख्शी और उनके बड़े लेफ्टीनेंट फिनिश हुए, महबूब फिरंगी अपनी कटलरी के साथ गॉड के पास गया, अन्डरवर्ल्ड में बोलते हैं, तब से अमर नायक और पावरफुल हो गयेला है।”

“अमर नायक का जिक्र क्यों?”

“अरे, समझ न!”

“क्या समझूं?”

“बोले तो अक्खा डमडम! साला गिलास पकड़ लिया तो बात नहीं पकड़ता। अरे, जब जोकम फर्नान्डो अमर नायक के गैंग का भीड़ू तो माल किसका?”

“तेरा मतलब वो हीरे अमर नायक का माल?”

“और क्या उस भीड़ू की सैवरल खोखा प्राइस के डायमंड्स का अपना औकात?

“जोकम फर्नान्डो अमर नायक का माल हैंडल करता था?”

“अगर वो अमर नायक के गैंग का भीड़ू तो बरोबर। अभी अपना जॉन बोलता है कि वो ऐसीच तो डेफिनिट कि ऐसीच।”

“गाइलो, फिर तो मामला विकट है!”

“क्या है?”

“सीरियस करके है। माल इतने बड़े भाई का और वो खामोश बैठेला है!”

“तेरे को क्या मालूम खामोश बैठेला है?”

“अरे, तू अन्डरवर्ल्ड का जानकार है...”

“मैं नहीं। मैं नहीं। अन्डरवर्ल्ड के मेरे कुछ फिरेंड्स।”

“... तो तेरे को खबर लगी होती इस सिलसिले में होती किसी हलचल की!”

“वो तो तू बरोबर बोला पण अभी मेरे को टेम किधर लगा अन्डरवर्ल्ड के अपने कान्टैक्ट्स से प्रॉपर कर के इन्टरएक्ट करने का?”

“नहीं लगा तो लगा न टेम!”

“कल करेंगा कुछ।”

“अमर नायक का नाम सामने आने पर अब मेरे को एक और अन्देशा सताने लगा है।”

“बोले तो?”

“ये करोड़ों के हीरे किन्हीं दो बड़े गैंग्स के आपसी टकराव की बुनियाद न बन जायें।”

“बन जायें तो तेरे को क्या?”

“क्यों नहीं मेरे को? माल मेरे पास। मेरे पर दो गैंग्स का फोकस बन गया तो दोतरफा मार पड़ेगी। मैं चक्की के दो पाटों के बीच पिस जाऊंगा।”

“नहीं बनेगा।”

“एक का तो बना ही हुआ हूँ!”

“वो पता नहीं गैंग के भीड़ू हैं कि साले इन्डीपेंडेंट करके छिटपुट टपोरी हैं। कच्चा लिम्बू हैं।”

“अभी कैसे पता लगे कि क्या हैं?”

“अगर किसी बड़े गैंग के प्यादे हैं तो आने वाले दिनों में उन के किये बड़ा कुछ होयेंगा। कोई बड़ा एक्शन हमेरी चाल पर या टैक्सी स्टैण्ड पर हुआ तो वो बड़ा गैंग। जैसा चलता है वैसीच चलता रहा तो कैजुअल टपोरी जिन के हाथ बाई चांस हीरों की जानकारी लग गयी और वो जोकम फर्नान्डो के पीछे पड़ गये।”

“गाइलो, इतना बड़ा माल एक भीड़ू के कब्जे में? कोई बैक अप नहीं?

“होना तो मांगता है! मैं ये प्वायन्ट को भी फालो करने का कोशिश करेंगा।”

“जो मवाली जोकम के पीछे पड़े, वो न पड़ते तो वो हीरों के साथ किधर जाता?

“बोले तो?”

“वो तो मेरी टैक्सी पर सवार मेरे को सड़कों पर भटकाता था! ये तो वो सवार होते टेम भी न बोला कि किधर जाना मांगता था! हर पैसेंजर बोलता है, वो तो न बोला!”

“मैं बोले तो उसको बिगिनिंग से ही मालूम कि मवाली उसके पीछे, उसके माल के पीछे। उन से पीछा छूट जाता तो वो तेरे को बोलता उसको किधर जाना मांगता था।”

“जोगेश्‍वरी! जिस जगह वो बाई रहती थी जिस का नाम पता वो मेरे को बोला!”

“मे बी। अभी किधर पहुंचा ही नहीं तो क्या पता फाइनली किधर जाता! अभी तो गॉड के पास पहुंचा। पण जीते तेरे को क्या कि जिन्दा रहता तो किधर जाता!”

“कुछ नहीं। ऐसीच एक बात मगज में आयी कि पहली बार कोई पैसेंजर मिला जिसने रास्ते घुमाये, सिरा न बोला।”

“अब छोड़ वो स्टोरी।”

“एक बात और, फिर छोड़ता है।”

“और क्या बात?”

“अब हमेरे को मालूम कि मेरा पैसेंजर जोकम फर्नान्डो और वो अमर नायक के गैंग का भीड़ू। गाइलो, तू अमर नायक गैंग के किसी दूसरे भीड़ू की खबर निकाल सकता है?”

“उससे क्या होगा?”

“उससे जोकम की बाबत बात करेंगे। बात करेंगे तो शायद हमें दूसरे गैंग का कोई हिंट लग सके।”

“उससे क्या होगा?”

“अरे, दुश्‍मन पहचाना हो तो डिफेंस ईजी। क्या!”

“साला जलेबी बात है।”

“क्या बोला?”

“बोले तो गोल मोल। तेरे मगज में कुछ और।”

“जो मेरे को तेरे से छुपा के रखने का?”

“नहीं, ऐसा तो तू नहीं करना सकता! क्योंकि मैं गाइलो।”

“करैक्ट। अभी आयी बात समझ में।”

“पण...”

“अभी भी पण?”

“तू...तू जलेबी बात करता है तो मेरा ऊपर का माला में बैठा कोई लिटल एंजल मेरे को वार्निंग बैल देता है कि फिरेंड...ब्रदर लाइक फिरेंड इज़ बीईंग सीक्रेटिव। क्या!”

“गाइलो, मेरे भाई, ऐसा है भी तो अभी तू इस बात का पीछा छोड़ और अभी जो मैं बोला, वो कर। अमर नायक डॉन के गैंग के किसी जिम्मेदार भीड़ू का पता निकाल और उससे मेरी बात कराने का इन्तजाम कर।”

“तब बोलेगा जो सीक्रेट करके तेरा मगज में?”

“सीक्रेट कुछ नहीं पण तब से पहले बोलेगा।”

“मेरे को मंजूर पण ये टेम कोई हिंट तो दे?”

“फिर वही बात...”

“अरे, मेरे को नशा नहीं होयेंगा। साला एकीच बात मगज में...जलेबी बात... जो सोचता है, सोचता है, सोचता है कि साला क्या होयेंगा!”

“ओके! देता है हिन्ट। पण उसके बाद ये सब्जेक्ट पर बात नहीं करना।”

“आई प्रामिस।”

“तो सुन। हिन्ट इसी बात में है जो मार्निंग में तू बोला कि मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा। मैं बोलता है कि फ्यूचर-टैलर सेंट गाइलो सारडीना करैक्ट करके बोला। फिर भी मेरे को मांगता है कि पल्ले कुछ पड़े। अब छोड़ पीछा।”

“छोड़ता है। पण इन माई हम्बल ओपीनियन, डियर ब्रो, जो तू सोच के रखा, वो गुड मूव नक्को। साला पता तो कुछ लगेगा नहीं, अपने आप को अमर नायक के गैंग के भीड़ू पर खाली पीली एक्सपोज करेगा। बोले तो गैंग पर, गैंग के बिग बॉस पर एक्सपोज करेगा।”

“अरे, कुछ हो तो सही पहले! अभी तो पता नहीं कुछ होगा भी या नहीं!”

“होगा! इस डिरियामा में तेरा जो रोल अब तक सीक्रेट है, वो साला ओपन में आ जायेगा। ये होगा साला।”

“नहीं आ जायेगा। हम एहतियात रखेंगे तो नहीं आ जायेगा। तू कर तो सही कुछ! कोशिश तो कर कुछ!”

‘बोले तो स्टूपिड जॉब। पण फिरेंड बोलता है तो...”

“बोलता है।”

“देखेगा। अभी बोल, नाइट का क्या सोचा? चिंचपोकली या होटल?”

“कमाठीपुरा।”

“क्या बोला?”

“मैं आज शाम उधर गया था और मिश्री से मिला था।”

“काहे वास्ते? फ्री राइड मांगता था।”

“शट अप।”

“तुहीच हिंट दिया सैवरल टाइम्स उधर तेरे को ऐवरीथिंग आन दि हाउस। ड्रिंक्स, डिनर, राइड, दि वर्क्स।”

“गाइलो, थोबड़ा बन्द।”

गाइलो आंख दबा कर हँसा।

“सॉरी ब्रो।”—फिर बोला—“बोले तो आई हैव ए नेस्टी माइन्ड।”

“अभी मैं कुछ बोले कि चुप करे?”

“बोले। तू कमाठीपुरा गया, अपना फिरेंड मिश्री से मिला। आगे बोल।”

“मेरे को उम्मीद थी कि वो मेरे को कमाठीपुरे में कुछ दिन टिकने का सस्ता और सेफ ठीया सुझा सकती थी, इस वास्ते गया था, न कि साला...”

“अभी सॉरी बोल तो दिया! बोला कोई ठीया?”

“बोला न! इमीजियेट कर के बोला। ऐसे बोला जैसे वेट करती थी कि मैं आये, पूछे और वो बोले।”

“क्या बोला?”

“उधर जिस इमारत के टॉप फ्लोर पर वो रहती है, उसमें उसके फ्लैट के ऐन नीचे का फ्लैट काफी टेम से खाली पड़ा है। उस फ्लैट में जो बाई रहती थी, वो मिश्री की फ्रेंड। मिश्री की तरह अकेली उधर। अपने होम टाउन गयी है जो बिहार में कहीं है। पिछले हफ्ते लौट के आने वाली थी पण फोन आया कि अभी एक हफ्ता और रुकेगी। उस फ्लैट की चाबी मिश्री के पास। वो बोली हम उधर रह सकते हैं सेफ कर के।”

“एक बाई के फिलेट में?”

“हां।”

“साला अक्खा नाइट कस्टमर लोग काल बैल बजायेगा।”

“मिश्री कहती है नहीं बजायेगा। डेढ़ महीने से ऊपर हो गया उसे उधर से गये हुए। अभी सब को मालूम वो फ्लैट खाली। वैसे भी मिश्री बोलती है कि खुद उसका माकिफ लिमिटेड, फिक्स्ड क्लायन्टेल वाली बाई। जाने से पहले सब को बोल के गयी लम्बे टेम के लिये जाती थी, लौटेगी तो फोन करेगी, बोलेगी खबर करेगी कि लौट आयी थी।”

“इस वास्ते वो फिलेट का कालबैल बजाने कोई नहीं आयेगा?”

“यहीच बोला मैं।”

“ओके। मेरे को ये अरेंजमेंट मंजूर।”

“हम चाल में तो लौट नहीं सकते! बोले तो ऐसीच जाना होगा।”

“वान्दा नहीं। जरूरत का सामान नवां खरीदेंगे न! अभी इतने भी तो शार्ट आफ मनी नहीं हैं हम!”

“नहीं हैं। फिर मिश्री है न! अभी फाइनल राउन्ड मंगा। फिर इधरीच जो मिलता है, खा के चलते हैं।”

“बरोबर।”