धरा ने फोटोग्राफर की दुकान से, कैमरे में मौजूद तस्वीरों के प्रिंट निकलवाए। सब तस्वीर डोबू जाति की थीं। उन तस्वीरों को देखकर धरा को डोबू जाति का सफर याद आ गया। जोगाराम याद आया तो मां की मौत भी याद आई। वो महसूस कर चुकी थी कि उसकी जान पूरी तरह खतरे में है। बबूसा के बारे में पहले से ही सुन चुकी थी, इसलिए बबूसा पर उसने यकीन कर लिया था कि वो उसे बचा सकता है, परंतु वो भी इस बात की गारंटी नहीं ले रहा था। यही कहा कि ज्यादा लम्बे समय तक उसे बचा के रखेगा। मतलब कि आखिरकार वो मरेगी ही।

इस वक्त धरा कुछ भी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या नहीं? जब तक वो फोटोग्राफर की दुकान पर रही, बबूसा दुकान के बाहर मौजूद रहा।

ऐसे बुरे वक्त में बबूसा का साथ पाकर धरा कुछ राहत में थी।

धरा तस्वीरों का लिफाफा थामे, कैमरा थामे बाहर निकली। उसका चेहरा उतरा हुआ था।

“और क्या करना चाहती हो तुम?” उसके पास आने पर बबूसा ने पूछा।

“चक्रवती साहब को तस्वीरें दिखानी हैं, लेकिन आज वो मेरी मां के दाह संस्कार में व्यस्त हैं।” धरा ने भारी स्वर में कहा।

“तुम वहां नहीं गईं?”

“मैंने सोचा वहां डोबू जाति वाले मौजूद न हों। मेरा इंतजार न कर रहे हों।”

“वो ऐसा जरूर कर रहे होंगे।” बबूसा ने सिर हिलाया –“वहां न जाकर तुमने अच्छा किया।”

“मैं वहां जाती तो वो मुझे भी मार देते न?” धरा का चेहरा लटक गया।

“तुम्हें ही तो मारना चाहते हैं वो।”

“उसके बाद वो क्या करेंगे?”

“वापस चले जाएंगे।”

अपनी मौत के बारे में सोचकर धरा पीली पड़ गई।

“उन पत्तों पर क्या लिखा है?” धरा ने पूछा।

“तुम नहीं पढ़ सकीं।”

“मुझे वो भाषा समझ में नहीं आई।”

“वो भाषा किसी को भी समझ नहीं आ सकती। वो इस धरती की भाषा नहीं है।” बबूसा ने सिर हिलाया।

“इस धरती की भाषा नहीं है?” धरा के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।

“हां। वो हमारे ग्रह की भाषा है। वो पत्ते भी हमारे ग्रह के हैं। उन पर रानी ताशा की तरफ से इकरारनामा लिखा है कि डोबू जाति वाले उनके दोस्त हैं। उनके लिए वो किसी की जान ले भी सकते हैं और जान दे भी सकते हैं। ढाई सौ वर्ष पहले जब पोपा (अंतरिक्ष यान) पर सवार होकर पहली बार रानी ताशा के लोग इस ग्रह पर आकर डोबू जाति से मिले तो वो पत्ते, वो इकरारनामा उन्होंने डोबू जाति वालों को सौंपा था। वो तब...।”

“पोपा क्या होता है?”

“जैसे यहां के लोगों का अंतरिक्ष यान।”

“ओह।” धरा हक्की-बक्की थी –“तुम अपने किसी ग्रह की बात कर रहे हो। मैं समझी नहीं? क्या तुम किसी दूसरे ग्रह से हो? तुमने अभी कहा कि वो हमारे ग्रह की भाषा है। बताओ मुझे-तुम...।”

“मैं इस ग्रह का नहीं हूं।”

“ये क्या कह रहे हो तुम?”

“मेरा जन्म मेरे अपने ग्रह पर हुआ था। फिर पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया। डोबू जाति के बच्चों में पला मैं और योद्धा बना। परंतु जन्म के समय मेरे भीतर महापंडित ने शक्तियां डाल दी थीं जिनसे मैं अब वाकिफ होता जा रहा हूं। वो शक्तियां अब खुद ही अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाने लगी...।”

“महापंडित कौन?”

“हमारे ग्रह का सबसे बड़ा विद्वान। जीवन-मृत्यु को वो ही संभालता है और...।”

“तुम्हारा ग्रह कहां है?”

बबूसा ने धरा के हैरान चेहरे को देखा और कह उठा।

“ये इन बातों का समय नहीं है। तुम....।”

“तुमने मुझे हैरान कर दिया है ऐसी बातें कहकर, मुझे बताओ कि ये क्या हो रहा...।”

“सड़क पर खड़े होकर बात नहीं होती।”

“तो?”

“होटल के कमरे में चलेंगे, परंतु पहले पुलिस से देवराज चौहान नाम के चोर के बारे में पता करो कि वो कहां रहता है। मेरे लिए ये बहुत जरूरी बात है।” बबूसा ने कहा।

“वो देखो, वो सामने पुलिस वाला डंडा लेकर घूम रहा है, मैं उससे पूछती हूँ।” कहकर धरा उधर बढ़ गई।

धरा पुलिस वाले के पास पहुंची।

“नमस्कार भैया।”

वो हवलदार था। उसने धरा को देखकर सिर हिलाया।

“भैया, आप देवराज चौहान नाम के चोर को जानते हैं?” धरा ने पूछा।

“देवराज चौहान नाम का चोर–क्यों?” हवालदार ने पूछा।

“वो-वो मेरा पर्स ले भागा कल, तो मैं...।”

“पर्स ले भागा तो उसका नाम तुम्हें कैसे पता चला?”

“उ-उसी ने बताया था।” धरा हड़बड़ाकर बोली –“कहा उसने कि उसका नाम देवराज चौहान है, अगर मुझे ढूंढ़कर मेरे पास आ जाओगी तो मैं तुम्हारा पर्स वापस दे दूंगा।”

“ऐसा कहा कमीने ने?”

“हां।”

“कहां छीना उसने तुम्हारा पर्स?”

“यहीं, पास के चौराहे पर। उसके बारे में कुछ जानते हो तो बता दो न?” धरा ने मुंह लटकाकर कहा।

“देवराज चौहान?” हवालदार सोच-भरे स्वर में बोला –“इस नाम का तो कोई चोर नहीं है। इलाके में नया आया होगा। साले को ढूंढ़ना पड़ेगा कि बिना इजाजत इधर धंधा करता है।”

“क्या कहा?”

“मैंने इस चोर का नाम नहीं सुना।”

“पक्का भैया नहीं सुना?”

“नहीं सुना।”

धरा वापस बबूसा के पास आ गई।

“पता लगा?” बबूसा ने पूछा।

“उसने देवराज चौहान नाम के चोर का नाम नहीं सुना।”

“तो किसी और से पता करो।”

“तुम्हें उससे क्या काम है? क्या उसने तुम्हारा कुछ चुराया है?” धरा बोली।

“मेरा कुछ नहीं चुराया।”

“तो फिर क्यों...?”

“जो बात मैं न बताना चाहूं, वो सवाल मुझसे दोबारा न पूछा करो।”

धरा चुप कर गई।

“देवराज चौहान के बारे में किसी और पुलिस वाले से पूछो।” बबूसा ने कहा।

“मैं थकी हुई हूं। आराम करना चाहती...।”

“रात को नींद ले लेना। मुझे देवराज चौहान का पता जानने की बहुत जरूरत है।”

qqq

धरा, देवराज चौहान नाम के चोर के बारे में, पुलिस वालों से पूछती रही। अलग-अलग इलाकों के दो पुलिस स्टेशनों में भी गई। रात दस बजे के करीब कुछ सफलता हाथ लगी। एक सब-इंस्पेक्टर ने धरा को बताया कि देवराज चौहान तो मशहूर डकैती मास्टर है।

धरा ने फौरन ये बात बाहर खड़े बबूसा को जा बताई।

“हां वो मशहूर है। पुलिस उसे पकड़ लेना चाहती है, वो वो ही डकैती मास्टर होगा।” बबूसा फौरन कह उठा।

“चोर और डकैत में बहुत फर्क होता है।” धरा बोली।

“ये बात मुझे पता नहीं थी। कहां रहता है देवराज चौहान?” बबूसा ने पूछा।

“ज्यादा बात नहीं हो पाई थी। उस पुलिस वाले ने बताया वो डकैती मास्टर है तो ये बताने तुम्हारे पास आ गई। मैं अभी उससे और बातचीत करके पता करती हूं।” कहकर धरा पुलिस स्टेशन में चली गई।

बबूसा बाहर ही मौजूद रहा।

करीब एक घंटे बाद धरा बाहर आई।

“क्या पता लगाया?” उसके पास आते ही बबूसा ने पूछा।

“कोई पुलिस वाला नहीं जानता कि देवराज चौहान कहां रहता है। वो पुलिस से हमेशा छिपा रहता है। सब-इंस्पेक्टर ने बताया कि इंस्पेक्टर वानखेड़े के हाथ में उसका केस है। ज्यादा बातें तो वो ही बता सकता है।”

“इंस्पेक्टर वानखेड़े, ये कहां मिलेगा?”

“पता नहीं। उसका फोन नम्बर लाई हूं। बात हो सकती है उससे। परंतु वो हमसे देवराज चौहान के बारे में फोन पर बात क्यों करेगा? क्यों हमें बताएगा कि वो कहां मिल सकता है या कहां नहीं मिल सकता।” धरा ने कहा।

“तुम फोन पर उससे उसका पता ले सकती हो?”

“पता, हां वो मैं ले लूंगी।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“पता ले लो। हम उसके पास चलेगे और मैं उसके मुंह से सब कुछ निकलवा लूंगा।”

“उसे मारोगे?” धरा ने बबूसा को देखा।

“वो नहीं बताएगा तो उसे जरूर मारूंगा।”

“यहां पुलिस वालों को मारना गम्भीर जुर्म माना जाता है।”

“मैं नहीं डरता किसी से।”

“तुम पुलिस वाले को मारोगे नहीं। तभी मैं तुम्हारा साथ दूंगी। मैं उससे बात करूंगी। देवराज चौहान का पता जानने की कोशिश करूंगी, परंतु तुम उसे मारोगे नहीं।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“ठीक है। मैं तुम्हारी बात मानूंगा। अब तुम उसे फोन करो।”

“मेरे पास मोबाइल नहीं है। किसी फोन बूथ से फोन करना होगा।”

उसके बाद धरा ने फोन बूथ तलाशा जो कि पास की मार्केट में ही मिल गया। वहां से धरा ने इंस्पेक्टर वानखेड़े का वो नम्बर मिलाया, जो सब-इंस्पेक्टर ने दिया था। पहली बार में ही फोन लग गया।

“हैलो।” उधर से वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ा।

बबूसा खुले बूथ के दरवाजे पर खड़ा था और बातें सुन रहा था।

“इंस्पेक्टर वानखेड़े साहब?”

“जी हां-आप कौन?”

“मेरा नाम धरा है और मैंने अभी खार के पुलिस स्टेशन के सब-इंस्पेक्टर से आपका नम्बर लिया है। मैं आपसे देवराज चौहान के बारे में कुछ बात करना चाहती हूं। क्या आप अपना पता बता सकते हैं या मिल सकते हैं?”

“देवराज चौहान के बारे में बात?”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान-जानते हैं न आप उसे।”

“आपका देवराज चौहान से क्या वास्ता?”

“कुछ नहीं। बस मेरा आपसे मिलना जरूरी है।”

“अपने बारे में कुछ बताओ।” उधर से वानखेड़े ने कहा।

“मैं सरकारी विभाग पुरातत्व विभाग में काम करती हूं।”

“देवराज चौहान के बारे में आपने क्या बात करनी है?” दूसरी तरफ से वानखेड़े ने पूछा।

“ये मिलने पर ही बात होगी। क्या आप मिल सकते हैं मुझे?”

“क्यों नहीं...।”

“आप अपने घर का पता बता...।”

“आप कहां हैं इस वक्त?”

“खार की मार्केट में। तीसरे रास्ते पर जो मार्केट है, वहां।” धरा ने कहा।

“मैं आधे घंटे में वहां पहुंचता हूं।”

“पर मैं आपको पहचानूंगी कैसे?”

“आप मुझे बता दीजिए कहां पर हैं, मैं वहीं आ जाऊंगा।” उधर से वानखेड़े ने कहा।

“एक दुकान के बाहर पब्लिक बूथ है। मैं वहीं से बोल रही हूं।”

“उसी बूथ के पास रहिए। मैं आपको पहचान जाऊंगा।”

धरा ने रिसीवर रखा और बबूसा से बोली।

“इंस्पेक्टर वानखेड़े थोड़ी देर में यहां आएगा। उस पर हाथ उठाने की कोशिश मत करना।”

qqq

रात के 11.45 हो रहे थे। मार्केट बंद हो रही थी। सड़क पर अभी भी लोगों का आना-जाना जारी था। धरा उसी बूथ के पास खड़ी थी। बबूसा कुछ दूरी पर मौजूद था। इंस्पेक्टर वानखेड़े वहां पहुंचा और सीधा धरा के पास आ गया। उसने सादी कमीज-पैंट पहनी थी। उसकी हालत बता रही थी कि वो व्यस्तता के दौर से गुजर रहा है।

“आप धरा हैं?” वानखेड़े ने पूछा।

“आप कौन?”

“इंस्पेक्टर वानखेड़े।”

“मैं धरा ही हूं परंतु आपने वर्दी नहीं पहनी हुई है।” धरा ने पूछा।

“मैं बहुत कम वर्दी पहनता हूं। मेरी ड्यूटी हेडक्वार्टर में होती है।”

“मैं आपकी आवाज से पहचान चुकी हूं कि मैंने आप ही से बात की थी।” कहने के साथ ही धरा ने बबूसा को पास आने का इशारा किया तो बबूसा पास आ गया।

वानखेड़े ने उसे गहरी निगाहों से देखा।

यहां पर दुकानों की मध्यम-सी रोशनी पहुंच रही थी।

“इंस्पेक्टर वानखेड़े साहब, ये बबूसा है।”

“बबूसा? बहुत अजीब-सा नाम है।”

“मेरा नाम बबूसा ही है।” बबूसा बोला।

वानखेड़े ने सवालिया नजरों से धरा को देखा।

“मुझे ये कहीं मिल गए हैं और देवराज चौहान को तलाश कर रहे हैं। उसे अपना रिश्तेदार बताते हैं।” धरा ने कहा।

“रिश्तेदार?” वानखेड़े कह उठा –“मेरे ख्याल से तो उसके चाचा सांवरा चौहान के अलावा उसका कोई रिश्तेदार नहीं है।”

“मैं देवराज चौहान का रिश्तेदार हूँ।” बबूसा बोला।

“तो मुझसे क्या चाहते है?”

“मुझे पता चला है। आप देवराज चौहान के बारे में जानकारी रखते हैं।”

“हाँ-तो?”

“मुझे देवराज चौहान से मिलना है। उसका पता बता दीजिए।”

“मैं उसका पता जानता होता तो उसे गिरफ्तार कर चुका होता।” वानखेड़े ने कहा।

“मुझे देवराज चौहान से बहुत जरूरी काम है। आप मुझे उसका पता बता दीजिए।”

“मैं उसका ठिकाना नहीं जानता बबूसा साहब।”

“तो ऐसे किसी आदमी के बारे में बता दीजिए जो उसका पता जानता हो।”

“सोहनलाल उसका पता जानता है।” वानखेड़े गम्भीर स्वर में बोला।

“वो कहां रहता है?”

वानखेड़े ने सोहनलाल का पता बताया, फिर पूछा।

“आपकी देवराज चौहान से क्या रिश्तेदारी है?”

“वो मेरा सब कुछ है।” बबूसा बोला।

“सब कुछ?”

“वो मेरा मालिक है। मैं उसका सेवक हूं।”

“मैं अभी भी कुछ नहीं समझा बबूसा साहब।” वानखेड़े सच में उलझन में था।

“इसकी बातें मेरी समझ में भी नहीं आतीं।” धरा जल्दी-से कह उठी –“ये कुछ अजीब-सा है। मैं इसकी सहायता...।”

“ये आपको कहां मिला?” वानखेड़े ने धरा से पूछा।

“मुझे?” धरा का दिमाग तेजी से दौड़ा –“इसने मेरी सहायता की। एक बदमाश से मुझे बचाया तो मैं इसके लिए देवराज चौहान को ढूंढ़ने में लग गई।”

“सिर्फ इतनी ही बात थी तो ये बात फोन पर भी हो सकती थी।” वानखेड़े ने कहा।

“फोन पर आप बात ठीक से समझ नहीं पाते और मैं समझा भी नहीं पाती। फिर भी आपको यहां तक आने की जो तकलीफ हुई, उसके लिए मैं माफी चाहती हूँ।” धरा ने आभार भरे स्वर में कहा।

वानखेड़े वहां से चला गया।

“चलो।” बबूसा बोला –“सोहनलाल के पास चलो...।”

“ये वक्त नहीं है किसी के घर जाने का। कल सुबह चलेंगे।”

“परंतु मुझे देवराज चौहान से मिलने की जल्दी है।”

“जो भी हो, आधी रात को किसी के पास नहीं जाते। आगे जो भी होगा कल सुबह होगा। मैं जरा चक्रवती साहब से बात कर लूं।” कहकर धरा फोन बूथ में प्रवेश कर गई।

धरा ने चक्रवती साहब से बात की।

“मां का अंतिम संस्कार अच्छे से कर दिया चक्रवती साहब?” धरा का स्वर भर्रा उठा।

“सब ठीक से हो गया। तुम फिक्र मत करो।”

धरा के गालों पर आंसू आ गए।

“कल आऊंगी मैं ऑफिस में। आपको दिखाने को मेरे पास बहुत कुछ है।”

“तुम कहां हो। मुझे तुम्हारी फिक्र है। डोबू जाति वाले कहीं तुम्हारी जान भी न ले लें।”

“मैं सुरक्षित जगह पर हूं। कल मेरे लिए एक मोबाइल, नया नम्बर डाल के रखना आप। मेरा फोन वहीं पर छूट गया और इस वक्त मेरे पास कोई आई.डी. नहीं है कि नम्बर ले सकूं।” धरा बोली।

“ठीक है। कल तुम कब आओगी?”

“दोपहर में।” कहकर धरा ने रिसीवर रखा और मां को याद करते, आंसू पोंछते बाहर आ गई बूथ से।

qqq

बबूसा और धरा जब होटल के कमरे में पहुंचे तो रात का डेढ़ बज रहा था। धरा थकी हुई लग रही थी। उसे घर की बहुत याद आ रही थी। मां का चेहरा आंखों के सामने आ जाता था। वो नहीं जानती थी तब कि ये मां से उसकी आखिरी मुलाकात है। अब तो वापस घर जाना भी खतरे से खाली नहीं था। डोबू जाति का कोई योद्धा अवश्य उसके घर पर नजर रख रहा होगा कि शायद वो मां की मौत की खबर सुनकर, या वैसे ही घर आ पहुंचे।

धरा थकी-हारी कुर्सी पर जा बैठी।

“तुम्हें भूख लगी होगी?” बबूसा ने पूछा।

“तुम्हें नहीं लगी?”

“नहीं। मुझे भूख पर काबू करना आता है। मैं महीना भर बिना खाए रह सकता हूं।”

“अब कुछ खाओगे न?”

“नहीं।” बबूसा अपनी कमीज उतारता बोला –“मैं नहाने जा रहा हूं फिर समाधि लगानी है। तुम्हारे लिए खाने को बोल दूं?”

“हां।”

बबूसा ने इंटरकॉम पर खाना बोला और बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

“यहां तो एक ही बेड पर, तुम कहां सोओगे?”

“बेड पर।” बबूसा मुस्कराया।

“और मैं?”

“तुम भी बेड पर।”

“मैं नीचे सो जाऊंगी।” धरा कह उठी।

“चिंता मत करो। तुम जो सोच रही हो, ऐसा कुछ नहीं होगा।” कहकर बबूसा बाथरूम में चला गया।

धरा ने कुर्सी पर बैठे आँखें बंद कर लीं।

अंत में इसी नतीजे पर पहुंची कि डोबू जाति में दखल देकर उसने बहुत बड़ी गलती की और इस गलती को सुधारा नहीं जा सकता था। डोबू जाति के योद्धा उसकी जान के पीछे पड़े थे। वो इतने खतरनाक हैं कि उसके न मिलने पर उसकी मां की हत्या कर दी। अगर मां की हत्या गला कटने से न हुई होती तो वो समझ न पाती कि ये काम डोबू जाति ने किया है। जोगाराम का गला कटकर, अलग होकर गिरना उसे याद आता चला गया।

दस मिनट में बबूसा बाथरूम से नहाकर निकला। उससे अंडरवियर पहन रखा था।

“तुमने कपड़े क्यों नहीं पहने? कपड़े पहनकर मेरे सामने आओ।”

“अभी समाधि लगानी है। उसके बाद पहनूंगा।”

“समाधि किस बात की?”

“राजा देव से बात करनी है।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा।

“राजा देव-ये कौन है?”

“देवराज चौहान।”

“तुम देवराज चौहान को राजा देव कहते हो?”

“वो राजा देव ही तो है।”

“समाधि लगाकर देवराज चौहान से कैसे बात कर सकते हो?” धरा उलझन भरे स्वर में कह उठी।

“मेरे पास महापंडित की कुछ शक्तियां हैं। राजा देव की गंध मैं पहचान चुका हूँ। अब उनसे बात करना आसान है।”

“अजीब बात है कि तुम चोर-डकैत को राजा देव कह रहे...।”

“इस जन्म में दो चोर डकैत है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“परंतु हकीकत में वो राजा देव हैं। अंतरिक्ष के एक ग्रह का राजा। मैं उनका सेवक हुआ करता था।”

“तुम अजीब बात कर रहे हो। तुमने रानी ताशा का नाम लिया था।”

“वो राजा देव की पत्नी है।”

“परंतु...।”

“अभी बातें मत करो।” बबूसा गम्भीर था।

“परंतु तुम तो ऐसी बातें करके मेरा दिमाग खराब कर रहे हो। कैसे विश्वास करूं तुम्हारी बात का?”

“मैं सच बातें कह रहा हूं। भरोसा करो या न करो, ये तुम पर है।”

धरा बबूसा के चेहरे पर निगाहें टिकाए बोली।

“तो तुम समाधि लगाकर देवराज चौहान से बातें करोगे?”

“हां।”

“तो क्या वो बातें मैं सुन सकूँगी?”

“नहीं। तब मैं राजा देव के पास, उनसे बात कर रहा होऊंगा। महापंडित की शक्तियां, मेरे भीतर से मुझे बाहर निकालकर राजा देव के पास पहुंचा देंगी। तब समाधि लगाए मेरे शरीर में सिर्फ सांसें चलती रहेंगी।”

“तुम सच में देवराज चौहान से समाधि के माध्यम से बात करने वाले हो?”

“हां।”

“तो उससे क्यों नहीं पूछ लेते कि वो कहां पर मिलेगा?”

“इस बारे में राजा देव मुझसे बात नहीं करते। वो अपना वो जन्म भूले बैठे हैं। मेरी बातों को समझ नहीं पा रहे। उन्हें मेरे वजूद पर भरोसा नहीं।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“जब देवराज चौहान को कुछ याद नहीं तो तुम क्यों चिंता में मरे जा रहे...।”

“मुझे चिंता होनी चाहिए। क्योंकि रानी ताशा कभी भी पोपा (अंतरिक्ष यान) में बैठकर इस धरती पर डोबू जाति के पास पहुंच जाएगी। वो राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। राजा देव जब रानी ताशा का चेहरा देखेंगे तो दो बातें हो जानी सम्भव है। एक तो राजा देव को सदूर ग्रह का जन्म, वहां की बातें सब कुछ याद आने लगेगा। ये अच्छी बात होगी। परंतु मुझे असल चिंता तो दूसरी बात की है।”

“क्या, दूसरी बात?”

“राजा देव हमेशा ही रानी ताशा पर मोहित रहे हैं। रानी ताशा सदूर ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत है। मैं नहीं चाहता कि राजा देव, रानी ताशा पर फिर से मोहित होकर सब भूल जाएं। मैं चाहता हूं कि उनकी यादें रानी ताशा की धोखेबाजी तक जरूर पहुंचे। ऐसा होने पर राजा देव सही फैसला ले सकेंगे कि उन्हें वापस सदूर ग्रह पर रानी ताशा के पास जाना है कि नहीं। रानी ताशा ने आज से अट्ठाइस वर्ष पहले मेरा जन्म ही इसलिए कराया कि मैं राजा देव को वापस ग्रह पर ले जाने के लिए उनकी सहायता करता परंतु मैं तो राजा देव का खास सेवक हूं। मैं राजा देव से धोखा कैसे कर सकता हूं। ऐसे में मैंने राजा देव का सतर्क करने के लिए डोबू जाति से विद्रोह किया और वहां से चला आया।

धरा हक्की-बक्की-सी बबूसा को देखे जा रही थी। बोली।

“मुझे तो तुम पागल लग रहे हो।”

बबूसा बरबस ही मुस्करा पड़ा।

“तुम्हें मैं पागल ही लगूंगा। मेरी बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएंगी। अगर तुम जीवित रहीं और मेरे साथ ही रहीं तो तुम्हें सब कुछ देखने सुनने को मिलेगा।” बबूसा के होंठों पर मुस्कान थी।

“तुम मुझे डोबू जाति के योद्धाओं से बचा लोगे न?”

“तुम्हें ज्यादा देर तक बचाए रखने की पूरी चेष्टा करूंगा।” बबूसा गम्भीर हो गया –“मैं उनकी जाति के नियमों से बंधा हुआ नहीं हूं। क्योंकि मेरा जन्म मेरे सदूर ग्रह पर हुआ था और पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया कि मैं इस दुनिया को समझ सकूं और वक्त आने पर राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाने के लिए, रानी ताशा की सहायता करूं।”

“लेकिन तुम ऐसा नहीं कर रहे।”

“नहीं, बिल्कुल भी नहीं। मैं राजा देव का खास सेवक हूं। राजा देव के हक में ही काम करूंगा।”

“तो क्या रानी ताशा नाराज नहीं होगी तुमसे?”

“इस मामले में मैं रानी ताशा की परवाह नहीं करता। रानी ताशा हर हाल में राजा देव को वापस ले जाना चाहती है और मैं चाहूंगा कि राजा देव इस हकीकत से वाकिफ जरूर रहे कि रानी ताशा ने उनके साथ क्या धोखेबाजी की थी।”

“क्या धोखेबाजी की थी?”

बबूसा ने धरा को देखा, कुछ चुप रहकर बोला।

“ये बात मैं तुम्हें नहीं बता सकता।”

“क्यों?”

“ये राजा देव और रानी ताशा के बीच की बात है।”

“बताने में क्या हर्ज है।”

“तुम्हें ये बात जानने की जरूरत भी नहीं है। मैं तो...।”

तभी दरवाजा थपथपाया गया।

बबूसा ने दरवाजा खोला तो नाइट ड्यूटी वाला वेटर खड़ा था।

“नमस्कार सर।”

बबूसा ने सिर हिलाया और पीछे हट गया।

वेटर ने भीतर आकर खाना टेबल पर लगाया और बाहर चला गया।

बबूसा ने दरवाजा बंद करते हुए कहा।

“तुम खाना खाओ। मैं समाधि लगाकर राजा देव से बात करने जा रहा हूं। शोर मत करना। मुझे परेशान मत होने देना।”

धरा ने सिर हिलाते हुए कहा।

“मुझे हैरानी है कि तुम एक डकैती करने वाले को, राजा देव कह रहे हो।”

बबूसा ने कुछ नहीं कहा और कमरे के कोने में समाधि की मुद्रा में जा बैठा। धरा कुछ पल सोच भरी निगाहों से बबूसा को देखती रही फिर उठकर खाने की टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर जा बैठी।

qqq

रात के दो के ऊपर का वक्त हो रहा था।

देवराज चौहान बंगले में, बेड पर गहरी नींद में था। ए.सी. की ठंडक कमरे में फैली हुई थी और जगमोहन बगल के अपने बेडरूम में टी.वी. पर फिल्म देखने में व्यस्त था। कल के लिए वो फुर्सत में था। ऐसे में सुबह जल्दी उठने की कोई वजह नहीं थी। इसलिए आधी रात तक भी आराम से बैठा मूवी देख रहा था।

एकाएक वो चौंका। तुरंत आस-पास देखा।

परंतु वहां कोई नहीं था।

जबकि जगमोहन को वहां किसी के चलने-फिरने का एहसास हुआ था।

‘बबूसा!’ उसके मस्तिष्क में कौंधा।

देवराज चौहान उसे बबूसा के बारे में सब कुछ बता चुका था।

अब वहां कहीं भी कोई एहसास नहीं हो रहा था चलने का। जगमोहन को लगा उसे धोखा हुआ होगा और वो अपना ध्यान टी.वी. पर लगाने लगा। परंतु जाने क्यों बेचैनी मन में आ गई थी। टी.वी. में उसका मन नहीं लगा। वो अपने को यकीन दिलाने लगा कि उसने पक्का किसी के चलने की आवाज सुनी थी। एकाएक वो उठा और अपने कमरे से निकलकर, देवराज चौहान के बेडरूम का दरवाजा खोलकर भीतर गया।

देवराज चौहान गहरी नींद में था।

चंद पल देवराज चौहान को देखते रहने के पश्चात बाहर निकला और दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में नाइट बल्ब का प्रकाश रोशन था। ए.सी. की ठंडी हवा में देवराज चौहान गहरी नींद में था।

तभी कमरे में किसी के चलने की आवाज उभरी।

परंतु देवराज चौहान सोया रहा।

फिर एक तरफ का बेड कुछ दबा, जैसे कि कोई उस पर बैठा हो।

“राजा देव...।” एकाएक बबूसा की मध्यम-सी आवाज उभरी।

देवराज चौहान गहरी नींद में रहा।

“राजा देव।”

देवराज चौहान की मुद्रा में कोई फर्क नहीं आया।

फिर बेड के दबाव से महसूस हुआ कि जैसे बैठने वाला उठ गया हो। चलने की आवाज उभरी।

“राजा देव।”

नींद में डूबे देवराज चौहान को लगा जैसे कुछ उसके कान में बोला हो।

उसका सोया दिमाग जाग उठा।

राजा देव?

बबूसा? ये तो बबूसा है।

देवराज चौहान ने फौरन आंखें खोली, कमरे में निगाह दौड़ाई।

कोई न दिखा।

“मैं हूं राजा देव। आपका सेवक बबूसा।”

देवराज चौहान फौरन उठ बैठा।

“आप तो बहुत गहरी नींद में सोए हुए थे राजा देव।” बबूसा की आवाज उभरी।

“तुम।” देवराज चौहान बोला –“तुम फिर आ गए?”

“मुझे तो आना ही है राजा देव। आपका सेवक जो ठहरा।” बबूसा की आवाज उभरी।

देवराज चौहान उठा और लाइट जलाकर, सिगरेट सुलगाई।

“तुम कोई धोखेबाज हो।”

“वो कैसे राजा देव?”

“मैं किसी बबूसा को नहीं जानता।”

“कैसे जान सकते हैं। अभी तो आपको कुछ भी याद नहीं। जब आप रानी ताशा का चेहरा देखेंगे तो उसके बाद से आपको याद आना शुरू होगा। रानी ताशा पोपा (अंतरिक्ष यान) में बैठकर कभी भी इस ग्रह पर पहुंच सकती है। रानी ताशा आपको वापस ले जाने के लिए यहां आ रही है। लेकिन आपने तब तक वापस नहीं जाना है, जब तक कि आपको, सदूर ग्रह का वो जीवन याद न आ जाए। रानी ताशा ने आपको धोखा दिया था। ये ठीक है कि रानी ताशा पश्चाताप की आग में जल रही है, परंतु आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए कि उसने आपके साथ क्या किया था। मैं नहीं चाहता कि आप धोखे में रहकर उसके साथ वापस सदूर ग्रह पर चले जाएं और बाद में जब आपको रानी ताशा की उस सच्चाई का पता लगे तो आप परेशान हो जाएं।”

“तुम तो मेरे शुभचिंतक हो।”

“अवश्य राजा देव...मैं आपका खास सेवक हूं।” बबूसा की आवाज आई।

“तुम ही क्यों नहीं बता देते कि रानी ताशा ने मेरे साथ क्या धोखेबाजी की थी?” देवराज चौहान बोला।

“कोई फायदा नहीं होगा राजा देव।”

“क्यों?”

“जिस तरह अब आप मेरी कही बातों पर विश्वास नहीं कर रहे, उसी तरह उस बात का कैसे विश्वास करेंगे। सुनकर आप सिर हिला देंगे और बाद में कहेंगे कि आप मुझ पर भरोसा नहीं करते।”

“तो तुम जानते हो कि मैं तुम्हारी बातों का भरोसा नहीं करता।”

“पिछली बार जब मैंने आपसे बात की थी तो सब बातें सुनने के बाद आपने ऐसा ही कहा था।”

“अब क्यों मेरे पास आए?”

“ये सोचकर कि शायद मेरे प्रति आपका विचार बदल गया हो।” बबूसा की धीमी आवाज कानों में पड़ रही थी।

“मैं तो तुम्हें भूल भी बैठा था।”

“ये तो गलत बात है राजा देव। मुझे आपकी चिंता है और आप मुझे भूल गए।”

“तुम्हारी बातों पर कोई भी भरोसा नहीं करेगा कि...।”

“महापंडित ने मुझमें इस बार आपका ही रूप डाला है। आपकी ताकत, आपका बल, एक-एक चीज आपकी डालने के बाद ही मेरा जन्म कराया गया। इस बार आप ही का रूप लेकर पैदा हुआ हूं। फर्क सिर्फ इतना कि आप राजा देव हैं और मैं आपका सेवक बबूसा। ये मेरा ही मेहरा। आपकी सेवा करना चाहता हूं हमेशा की तरह।”

“तुम्हारा नाम मैंने कभी नहीं सुना। रानी ताशा को नहीं जानता मैं महापंडित जाने कौन...।”

“आप सदूर ग्रह के राजा देव हैं। आप उस ग्रह के मालिक हैं।”

“ये बकवास है तुम्हारी।”

“ऐसा मत कहिए राजा देव। आप एक बार मुझे सेवा का मौका तो दें।”

“कैसे?”

“मुझे बताइए आप कहां हैं। मैं आपके पास आता हूं और हर बात का आपको यकीन दिलाऊंगा। इस वक्त तो मैं सिर्फ आपकी गंध पहचान कर ही आपसे बात कर पा रहा...।”

“मैं तुम्हें अपने पास नहीं देखना चाहता।”

“ऐसा क्यों राजा देव?”

“क्योंकि तुम जिस जन्म का जिक्र कर रहे हो, वो मेरा पूर्व जन्म नहीं है। अपने पूर्व जन्म को मैं जानता...।”

“पहले बताया तो था मैंने।” बबूसा की आवाज सुनाई दी –“जिन पूर्व जन्मों का आप जिक्र कर रहे हैं, ये जन्म उन पूर्वजन्मों से भी पहले का है। आप यहां के, इस ग्रह के नहीं हैं राजा देव। आप तो सदूर ग्रह के हैं। वहां के मालिक हैं आप और आपने अपने ग्रह के भले के लिए क्या नहीं किया। आपको ग्रह के लोग चाहते थे। आप सबका ध्यान रखते थे। आप नरम दिल भी थे और बेहद कठोर दिल भी, आप...”

“तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।”

“क्योंकि आपको अभी उस जन्म का कुछ भी याद नहीं। रानी ताशा को देखने पर ही, आपको सब कुछ याद आएगा।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“आप मुझे बता क्यों नहीं देते कि आप कहां रहते हैं?”

“मैं तुम्हें जानता नहीं। तुम जाने किस इरादे से मुझे तलाश कर रहे...।”

“मैं आपका सेवक हूं और आपके भले के लिए आपके पास आना चाहता हूं।”

“हो सकता है तुम ठीक कह रहे हो परंतु मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानता। तुम्हारे इरादों का मुझे पता नहीं।”

“सिर्फ ये ही बात है?”

“ये ही बात है।”

“ठीक है। मैं आपको सतर्क कर रहा हूं कि अगर कोई औरत आपके सामने आकर कहे कि वो रानी ताशा है तो उस पर मोहित मत हो जाइएगा राजा देव। वो बहुत खूबसूरत...।”

“ये बात तुम पहले भी बता चुके हो। जवाब में मैंने भी तुम्हें कहा है कि मेरा दिल मेरी पत्नी नगीना के पास है। उसके अलावा मैं किसी औरत को उन निगाहों से नहीं देखता, बेशक कोई भी मेरे सामने...।”

“ये तो अच्छी बात है राजा देव। परंतु मैं आपको सतर्क कर रहा हूं। जो भी खुद को रानी ताशा कहे, उस पर दीवाने मत हो जाइएगा। वो आपके सदूर ग्रह पर आपकी पत्नी रही है और आपको तकलीफदेह धोखा दे चुकी है। वो बेहद खतरनाक है। उसके प्रेमजाल में कभी मत फंसिएगा। वो आपको सदूर ग्रह पर वापस ले जाने के लिए आ रही है। मुझे खुशी होगी कि अगर आप ग्रह पर जाने को तैयार हो जाएं। परंतु मैं चाहता हूं कि आप अपने होशोहवास में ये फैसला लें। तब आपको पता होना चाहिए कि रानी ताशा ने क्यों आपको सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था।”

देवराज चौहान चुप रहा।

“मेरी बात समझ रहे हैं न राजा देव?”

“हां। परंतु मुझे तुम्हारी किसी बात का यकीन नहीं।”

“कोई बात नहीं। मेरी बातों को आप हमेशा याद रखें। आने वाला वक्त आपको यकीन दिला देगा कि आपके सेवक की कही हर बात सच है। मैं सिर्फ आपका भला चाहता हूं। हो सकता है हमारी मुलाकात, रानी ताशा से पहले हो जाए।”

“वो कैसे?”

“मैं आपको तलाश करने की भरपूर चेष्टा कर रहा हूं। इंस्पेक्टर वानखेड़े को जानते हैं आप?”

“वानखेड़े?” देवराज चौहान बुरी तरह चौंका –“तुम उसे कैसे जानते हो?”

“मैं आपको तलाश कर रहा हूं राजा देव। ऐसे में मुझे पता चला कि इंस्पेक्टर वानखेड़े आपके बारे में कुछ बता सकता है तो मैं उससे मिला। उसे ये ही कहा कि मैं आपका रिश्तेदार हूं और आपके बारे में पूछा।”

“फिर-क्या बताया उसने?”

बबूसा की आवाज नहीं आई।

“बबूसा।” देवराज चौहान ने पुकारा।

“हां राजा देव।”

“वानखेड़े ने तुम्हें क्या बताया?”

“राजा देव।” बबूसा का गम्भीर स्वर सुनाई दिया –“आपसे झूठ कहना नहीं चाहता। सच बोलूंगा नहीं।”

“तुम मुझे राजा देव कह रहे हो और मुझे पूछी गई बात का सही जवाब नहीं दे रहे।”

“क्योंकि मुझे आपका सहयोग नहीं मिल रहा।”

“कैसा सहयोग?”

“आप मेरी बातों पर यकीन नहीं कर रहे और उस जगह के बारे में नहीं बता रहे, जहां आप रहते हैं। ऐसे में मैं अपनी खोजबीन के बारे में आपको बताकर सतर्क नहीं करना चाहता।”

“तुम मुझ तक नहीं पहुंच सकते । वानखेड़े के माध्यम से तो बिल्कुल भी मुझे तलाश नहीं कर सकते।”

बबूसा की आवाज नहीं आई।

देवराज चौहान भी कुछ नहीं बोला।

“मैं अब जाऊं राजा देव?”

“हां। तुम जाओ।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“जो मैंने समझाया है, उस बारे में सतर्क रहिएगा राजा देव।”

“रानी ताशा के बारे में कह रहे हो?”

“जी हां। मैं आपको फिर याद दिला देता हूं कि मैं आपका सच्चा सेवक हूं। आपके एक इशारे पर अपनी जान दे सकता हूं और दूसरों की जान ले सकता हूं। मैं फिर आऊंगा राजा देव।”

उसके बाद बबूसा की आवाज नहीं आई।

“बबूसा।” देवराज चौहान ने पुकारा।

परंतु बबूसा की आवाज नहीं आई।

देवराज चौहान समझ गया कि बबूसा जा चुका है।

दूसरे कमरे से टी.वी. की मध्यम-सी आवाजें आ रही थीं। स्पष्ट था कि जगमोहन अभी तक जाग रहा है। देवराज चौहान उठा और दरवाजा खोलकर बाहर निकला । जगमोहन को फिर से बबूसा के इस तरह आने के बारे में और उसकी कही बातें बताना चाहता था। देवराज चौहान के लिए बबूसा पहेली की तरह बन गया था। जिसकी बातें वो सुन तो पा रहा था परंतु समझ में नहीं आ रही थी।

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बबूसा ने गहरी सांस ली और आंखें खोल लीं। चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। कुछ पल आंखें खोले वैसे ही बैठा रहा, फिर उठ खड़ा हुआ। अलमारी की तरफ बढ़ा और अलमारी से कमीज पायजामा निकालकर पहना। धरा खाना खा चुकी थी और इस वक्त बेड पर लेटी उसे देख रही थी।

“बात हुई देवराज चौहान से?” धरा ने पूछा।

“हां।” बबूसा ने सिर हिलाया।

“अपना पता बताया?”

“नहीं।” बबूसा आगे बढ़ा और बेड के खाली हिस्से पर आ लेटा।

“क्या कहता है?”

“उसे मेरी बातों पर विश्वास नहीं।”

“विश्वास तो मुझे भी नहीं है।”

“कल सुबह सोहनलाल नाम के उस आदमी के पास जाना है जो देवराज चौहान का पता जानता है।”

“क्या पता वो न जानता हो।” धरा बोली।

“वानखेड़े ने कहा कि सोहनलाल, देवराज चौहान का पता जानता है।” बबूसा ने पुनः कहा।

“कल मैंने चक्रवती साहब से भी मिलना है।”

“मिल लेना, परंतु बाद में। पहले सोहनलाल के पास चलेंगे। उसका पता याद है न?”

“याद है।” धरा ने कहा –“रात को सोते समय मुझे हाथ मत मारना। बाद में कहो कि मैं नींद में था। ऐसा कुछ करने का इरादा रखते हो तो नीचे जाकर सो लो या फिर मैं नीचे...।”

“सो जाओ। मेरा हाथ तुम्हें नहीं लगेगा।” बबूसा ने हाथ बढ़ाकर लाइट ऑफ कर दी।

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बबूसा और धरा सोहनलाल के फ्लैट पर पहंचे। दिन का एक बज रहा था। धरा ने कालॅबेल बजाई। कुछ पलों बाद नानिया ने दरवाजा खोला। दोनों को देखा।

“कहिए?” नानिया कह उठी।

“सोहनलाल जी से मिलना है।” धरा बोली।

“क्यों?”

“कुछ काम है उनसे।”

“वो ही तो पूछ रही हूं कि क्या काम है?” नानिया कह उठी।

“देवराज चौहान के बारे...।”

“ओह, आओ, आओ।” नानिया फौरन पीछे हट गई।

दोनों ने भीतर प्रवेश किया।

नानिया ने दरवाजा बंद किया और ऊंचे स्वर में बोली।

“कोई मिलने आया है आपसे।” फिर उन दोनों से बोली –“बैठिए, खड़े क्यों हैं। मैं पानी लाती हूं।” नानिया चली गई।

धरा और बबूसा सोफे पर जा बैठे।

“ये तो पक्का हो गया कि सोहनलाल, बहुत अच्छी तरह देवराज चौहान को जानता है।” बबूसा बोला।

“कैसे जाना?”

“तुमने देवराज चौहान का जिक्र ही किया कि इस औरत ने फौरन भीतर जाने को कहा।”

धरा सिर हिलाकर रह गई।

तभी नानिया पानी ले आई।

“देवराज चौहान भाई साहब कैसे हैं?” नानिया ने पूछा।

“वो-वो ठीक है।” धरा हड़बड़ाकर कह उठी।

नानिया पानी रखकर चली गई।

“ये सोच रही है कि हमें देवराज चौहान ने भेजा है।” धरा ने कहा।

बबूसा खामोश रहा।

तभी सोहनलाल ने भीतर प्रवेश किया। दो अजनबियों को देखकर कुछ ठिठक-सा गया।

“आप...?” पास आता सोहनलाल बोला।

“मैं धरा, ये बबूसा।”

“बबूसा?” सोहनलाल ने बबूसा से हाथ मिलाया –“कुछ हटकर कुछ अजीब-सा नाम है।” सोहनलाल सामने सोफे पर बैठा –“देवराज चौहान ने भेजा है आपको?”

“आपकी पत्नी ने गलत सुना।” बबूसा ने कहा –“हमें देवराज चौहान ने नहीं भेजा।”

“फिर?” सोहनलाल की आंखें कुछ सिकुड़ीं।

“हम देवराज चौहान का पता पूछने आए हैं।” बबूसा बोला।

“देवराज चौहान का पता?” सोहनलाल चौंका।

धरा को लगा बात बिगड़ने जा रही है वो तुरंत कह उठी।

“सोहनलाल जी। हम कुछ काम कराना चाहते हैं देवराज चौहान से।”

“क्या काम?”

“मेरी बहन का आदमी, मेरी बहन को बहुत तंग करता है। एक बार उसकी बढ़िया-सी धुनाई हो जाए तो...।”

“इसके लिए देवराज चौहान की क्या जरूरत है। ये काम तो कोई भी सड़क छाप गुंडा कर सकता है।” सोहनलाल ने कहा।

“ह- हम किसी गुंडे को जानते नहीं, जो ये काम कर...।”

“किसी का नम्बर दे देता है, उससे ये काम करवा लो।” सोहनलाल बोला।

धरा ने मुंह लटकाकर बबूसा को देखा।

तभी नानिया वहां आते कह उठी।

“चाय बनाऊं जी?”

“नहीं।” सोहनलाल ने शांत स्वर में कहा।

नानिया चली गई।

“नम्बर नोट कीजिए...।” सोहनलाल ने दोनों को देखा।

“मुझे देवराज चौहान की जरूरत है।” बबूसा का स्वर शांत था।

सोहनलाल व्यंग्य भरे अंदाज में मुस्कराता कह उठा।

“वो तो मैं पहले ही समझ गया था। कौन हो तुम?”

“बबूसा।”

“बबूसा कौन?”

“तुम मेरे बारे में कुछ नहीं समझ सकते। समझाऊंगा, तब भी नहीं। मैं देवराज चौहान से मिलना चाहता हूं।”

“नहीं मिल सकते।”

“क्यों?”

“कोई खास वजह होनी चाहिए मिलने की, जो मुझे समझ आ सके। किसने बताया कि देवराज चौहान को जानता...।”

“इंस्पेक्टर वानखेड़े ने।”

“वानखेड़े।” सोहनलाल चौंका और सतर्क दिखने लगा –“तुम दोनों को वानखेड़े ने मेरे पास भेजा?”

“उसने तुम्हारा पता बताया था।”

“चले जाओ यहां से।” सोहनलाल खड़ा हो गया –“मैं तुम लोगों से अब कोई बात नहीं करना चाहता।”

धरा फौरन खड़ी हो गई।

परंतु बबूसा बैठा रहा। सोहनलाल को देखता रहा।

एकाएक सोहनलाल को बबूसा खतरनाक लगा।

“बैठ जाओ।” बबूसा बोला।

“तुम चले जाओ...।”

“मैंने कहा बैठ जाओ। मैं इस तरह जाने वाला नहीं। आराम से बैठकर मेरे से बातें करो।”

“मुझसे तुम्हें देवराज चौहान का पता मालूम नहीं...।”

“बैठ जाओ सोहनलाल।”

उलझन में फंसा सोहनलाल बैठ गया।

उसी पल धरा भी बैठ गई। वो कुछ बेचैन दिखी।

“तुम मेरे बारे में जानना चाहते हो?” बबूसा बोला।

“हाँ।”

“हिमाचल के लाहौल स्पीति इलाके में, बर्फीले पहाड़ों के बीच डोबू जाति रहती है, मैं वहीं से आया हूं और मेरा सम्बंध एक अन्य ग्रह से है, मैं वहां का रहने वाला हूं।”

“अन्य ग्रह से?” सोहनलाल अजीब-से स्वर में कह उठा।

“हां। मैं तुम्हें पहचान चुका हूं। तुम पूर्वजन्म में देवराज चौहान के साथ थे। गुलचंद नाम होता था तुम्हारा तब।”

“हां।” सोहनलाल हैरान हो उठा।

“तुम देवराज चौहान के खास हो।”

“तो।”

“देवराज चौहान के उस पूर्वजन्म से पहले के जन्म से वास्ता रखता हूँ।”

“उससे भी पहले के जन्म से?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“हाँ। सदूर नाम के ग्रह से वास्ता है मेरा। कभी देवराज चौहान सदूर ग्रह का राजा होता था। राजा देव कहते थे उसे। मैं बबूसा, राजा देव का बेहद खास सेवक हुआ करता था।” बबूसा गम्भीर स्वर में कह रहा था –“मेरी बात समझा रहे हो ना?”

“हां।”

“तब राजा देव की पत्नी रानी ताशा थी। वो सदूर ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत मानी जाती थी। राजा देव भी उसकी खूबसूरती के दीवाने थे। राजा देव से उनकी जनता बहुत प्रसन्न रहती थी। राजा देव अपनी जनता का बहुत खयाल रखते थे। फिर एक दिन किले के एक कर्मचारी के चक्कर में पड़कर रानी ताशा ने, राजा देव के साथ मक्कारी की और धोखे से राजा देव को ग्रह के बाहर फिंकवा दिया।”

“ग्रह से बाहर फिंकवा दिया?” सोहनलाल के चेहरे पर हैरानी छाई हुई थी।

“हां। बुरे लोगों को राजा देव ग्रह के बाहर फिंकवा देते थे। इसके लिए उन्होंने एक रास्ता बना रखा था और रानी ताशा ने राजा देव को धोखे से, उसी रास्ते से बाहर गिरा दिया।”

“तुम-तुम्हारा मतलब कि वो राजा देव आज का देवराज चौहान है?” सोहनलाल के होंठों से निकला।

“हां।”

“ग्रह से बाहर फिंकवा दिया तो फिर देवराज चौहान के साथ क्या हुआ?”

“इस बारे में कोई नहीं जानता।”

“वो दूसरे ग्रह पर, इस दुनिया में कैसे आ गया?”

“इस बारे में राजा देव ही बता सकते हैं।”

“देवराज चौहान को ये सब कुछ याद होगा?”

“नहीं। उन्हें कुछ भी याद नहीं, परंतु रानी ताशा को देखते ही उन्हें सब कुछ याद आने लगेगा। महापंडित ने रानी ताशा के चेहरे पर ऐसी शक्तियां छोड़ रखी हैं कि राजा देव को सब कुछ याद आ जाए।”

“पर रानी ताशा तो अपने ग्रह पर है?”

“हां। परंतु वो जल्दी ही इस ग्रह पर, पोपा में बैठकर आने वाली है।”

“पोपा क्या?”

“तुम लोगों का अंतरिक्ष यान।”

सोहनलाल हैरान-परेशान-सा बबूसा को देखने लगा।

धरा सोहनलाल के मन की दशा समझ रही थी।

“तुमने जो कहा, वो मैं समझा, परंतु ठीक से कुछ भी नहीं समझ पाया। तुम इस धरती पर कैसे आए?”

“राजा देव सदूर ग्रह के सबसे ताकतवर व्यक्ति थे। उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था। रानी ताशा बाद में बहुत ज्यादा पछताई कि राजा देव के साथ उसने अपने मतलब की खातिर इतना बुरा सलूक किया। वो राजा देव को फिर से पाने और माफी मांगने के लिए तड़प उठी। तब से रानी ताशा राजा देव को वापस पाने के लिए ताने-बाने बुन रही है। महापंडित ने उसे बता दिया था कि राजा देव दूसरे ग्रह पर जन्म ले रहे हैं और उनसे मुलाकात हो सकती है।”

“महापंडित कौन है?”

“सदूर ग्रह का सबसे विद्वान व्यक्ति। जन्म-मृत्यु उसके हाथ में है।”

“लेकिन ये बात तो बहुत पुरानी है। रानी ताशा जिंदा कैसे हो सकती है?” सोहनलाल बोला।

“महापंडित रानी ताशा को पुनः जीवन देता रहा है। वो तब से किले की रानी ही बनी आ रही है।”

“और तुम, तुम्हारा इस धरती पर आना कैसे हुआ?”

“जैसा कि मैंने तुम्हें बताया कि राजा देव ग्रह के सबसे ताकतवर व्यक्ति थे। वो ही प्रभाव राजा देव के बारे में आज भी ग्रह पर है। रानी ताशा राजा देव को वापस ले जाने के लिए इस ग्रह पर आना चाहती थी। वो राजा देव को समझाकर या जबर्दस्ती, जैसे भी हो, वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। परंतु राजा देव की ताकत को देखते हुए रानी ताशा ने, महापंडित से कहा कि वो राजा देव की ताकत के बराबर की ताकत के एक व्यक्ति का जन्म कराकर उसे इस धरती पर भेज दे कि वो इस धरती के लोगों में पलकर बड़ा हो और जब वो राजा देव को लेने इस धरती पर आए तो, वो उसकी सहायता करे। राजा देव पर काबू पाकर, उसे वापस ले जाने में साथ दे। ऐसे में महापंडित ने मेरे से कहा कि वो मेरा जन्म कराकर इस धरती पर भेज देता है। मैं तैयार हो गया। महापंडित ने मेरे शरीर से जान निकाल ली और मेरा जन्म करा दिया तब उसने मेरे में कुछ शक्तियां भी डाल दी जो इस धरती पर मेरे काम आए। जन्म लेने के महीने भर में ही, जब मैं छोटा-सा बच्चा था, पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया। तब मैं वहीं रहा वहीं पला और...।”

“ये डोबू जाति क्या है?” सोहनलाल ने पूछा।

“इस धरती की पुरानी जाति है। ढाई सौ सालों से हमारा सम्बंध डोबू जाति से है। डोबू जाति वाले हमसे प्रभावित हैं कि हम किसी चीज में बैठकर आसमान से नीचे उतरते हैं। वो पोपा को देवता की तरह मानते है और हमारा आदर करते हैं।”

“तो तुम देवराज चौहान को इसलिए ढूंढ़ रहे हो कि रानी ताशा के साथ मिलकर उसे दूसरे ग्रह पर ले जा सको।”

“नहीं। मेरा इरादा ये नहीं है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“इसी वजह से मैं डोबू जाति से विद्रोह करके, वहां से बाहर आ गया। रानी ताशा धोखेबाज है। उसने राजा देव को जबर्दस्त धोखा दिया था। अब मैं नहीं चाहता कि रानी ताशा जबर्दस्ती या धोखे से राजा देव को वापस ग्रह पर ले जाए। मैं चाहता हूं राजा देव को बीती बातों का और रानी ताशा के बारे में सब ज्ञान हो और वो खुद फैसला लें कि उन्हें क्या करना है। मैं राजा देव को सतर्क करना चाहता हूं परंतु समस्या ये आ रही है कि राजा देव को कुछ भी याद नहीं। उन्हें तब याद आएगा, जब वो रानी ताशा का चेहरा देखेंगे।”

“तो उस वक्त का इंतजार करो जब रानी ताशा आए और देवराज चौहान उसे देखे।”

“ऐसा होने पर एक और खतरा उठ खड़ा होगा।”

“क्या?”

“राजा देव, रानी ताशा की खूबसूरती के दीवाने रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि रानी ताशा को देखते ही राजा देव उस पर बुरी तरह मोहित हो जाएं और उनके सब कुछ जानने से पहले ही रानी ताशा उन्हें सदूर ग्रह पर ले जाए।”

“तुम ऐसा नहीं होने देना चाहते।”

“नहीं। मैं चाहता हूं राजा देव सदूर ग्रह की हर बीती बात से वाकिफ हो जाएं और तब जैसा उनका मन करे, बेशक वैसा करें। मैं उनका खास सेवक रहा सदूर ग्रह पर। मुझे राजा देव की चिंता है कि...।”

“पर इस बात का क्या भरोसा कि तुम सच कह रहे हो?” सोहनलाल बोला।

“मैं सच कह रहा हूं।”

“भरोसा क्या?”

तभी धरा कह उठी।

“बबूसा सच कह रहा है।”

“तुम कौन हो?” सोहनलाल ने धरा को देखा –“क्या तुम भी सदूर ग्रह...।”

धरा ने सोहनलाल को अपने बारे में सब कुछ बता दिया।

सोहनलाल के चेहरे पर गम्भीरता आ ठहरी थी। वो बार-बार बबूसा को देख रहा था।

“मैं राजा देव से मिलना चाहता हूं तुम मुझे उसके पास ले चलो।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“लेकिन मुझे तुम्हारी बात का भरोसा नहीं कि...।”

“मेरी कोई भी बात गलत नहीं है। मैं झूठ नहीं बोलता। मैं राजा देव का सेवक बबूसा हूं।”

“मैंने ये नहीं कहा कि तुम गलत कह रहे हो। लेकिन मुझे तुम्हारी बातों का विश्वास नहीं। तुम देवराज चौहान के पूर्वजन्म से भी पूर्वजन्म की बात कर रहे हो। ये अविश्वसनीय है। कौन तुम्हारी बात का यकीन करेगा?”

“यकीन करो सोहनलाल जी, बबूसा सच कह रहा है।”

सोहनलाल कुछ चुप रहने के बाद बोला।

“मुझे इस बारे में देवराज चौहान से बात करनी होगी।”

“नहीं।” बबूसा फौरन बोला –“ऐसा मत करना।”

“क्यों?”

“राजा देव से मेरी बात हो चुकी है, वो मेरी बात का भरोसा नहीं करते।”

“बात हो चुकी है?" सोहनलाल की आंखें सिकुड़ीं।

“हां। मेरे भीतर कुछ शक्तियां हैं, जो कि महापंडित ने डाली थीं। उन्हीं के दम पर मैं समाधि लगाकर, राजा देव से बात कर चुका हूं। राजा देव की गंध मेरी सांसों में बसी है। उसी गंध की वजह से समाधि लगाकर, मैंने महीनों बाद उन्हें ढूंढ़ निकाला। मेरी बातें सुनने के बाद वो मुझे अपना पता बताने को तैयार नहीं।”

“हैरानी है कि तुमने इस तरह देवराज चौहान से बात कर ली?”

“महापंडित की दी शक्तियों ने मेरी सहायता की...।”

“इस प्रकार तुम देवराज चौहान का पता भी तो जान सकते हो?”

“नहीं जान सकता। वो गंध समाधि के दौरान मुझे सीधा राजा देव के पास पहुंचाती है। वो कहां रहते हैं गंध से ये जान पाना सम्भव नहीं। राजा देव को बहुत समझाया परंतु मेरे सच को वो मान नहीं रहे।”

“फिर तो मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।” सोहनलाल ने स्पष्ट कहा।

“मेरे लिए राजा देव के पास पहुंचना बहुत जरूरी है। मुझे उनका पता बताओ।” बबूसा कह उठा।

“देवराज चौहान तुम्हें अपने पास नहीं देखना चाहता तो मैं कैसे उसका पता बता दूं।” सोहनलाल ने कहा –“तुम कहो तो एक बार देवराज चौहान से फोन पर बात करके देखता हूं कि...।”

“जब आपको बबूसा की बात पर भरोसा नहीं तो देवराज चौहान से आप क्या बात करेंगे। उसे क्या समझाएंगे?” धरा बोली।

सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।

“बबूसा देवराज चौहान से मिलना चाहता है तो इसे मिला दो। ये खा तो नहीं जाएगा देवराज चौहान को।” धरा ने तीखे स्वर में कहा।

“मेरी बात सुनो।” बबूसा ने कुछ सख्त स्वर में कहा –“मैं यहां आया हूं और तुम देवराज चौहान का पता जानते हो तो पता जाने बिना मैं जाने वाला नहीं। जरूरत पड़ी तो मैं तुम्हारे साथ सख्ती करूंगा। तुम और राजा देव आने वाले खतरे को पहचान नहीं रहे, परंतु मुझे पता है कि आने वाला वक्त राजा देव के लिए भारी मुश्किलों वाला हो सकता है अगर मेरी उनसे मुलाकात न हुई तो। बाद में कुछ भी संभाल पाना असम्भव होगा। रानी ताशा जाने कब से इस वक्त का इंतजार कर रही है, और अब वो वक्त आ चुका है। बेहतर है कि रानी ताशा के सामने आने से पहले मैं राजा देव को भी मुकाबले के लिए तैयार कर दूं। ऐसा न हो कि राजा देव, रानी ताशा को देखते ही उसके रूप के दीवाने हो जाएं और रानी ताशा की हर बात मानते चले जाएं और रानी ताशा उन्हें वापस सदूर ग्रह पर ले जाए। मैं राजा देव को, रानी ताशा की हकीकत से वाकिफ करा देना चाहता हूं कि रानी ताशा ने उन्हें कैसा धोखा दिया था और उन्हें सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था महज किले के एक साधारण कर्मचारी की खातिर। उसके बाद राजा देव जो फैसला लेंगे, वो मान्य होगा।”

“तुम्हारे इरादे बुरे नहीं हैं।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तो?”

“परंतु तुम्हारी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।” सोहनलाल उठते हुए बोला –“मैं जरा अपनी पत्नी नानिया से सलाह लेना चाहता हूं। मैं हर काम अपनी पत्नी की सलाह से करता हूँ।”

बबूसा ने धरा को देखा।

“ठीक है। तुम अपनी पत्नी से सलाह ले लो।”

सोहनलाल पलटकर फ्लैट के भीतर चला गया।

“ये आसानी से देवराज चौहान का पता बताने वाला नहीं।” धरा धीमे स्वर में बोली।

“मैं खाली हाथ वापस जाने वाला नहीं।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा –“मैं राजा देव का पता मालूम कर लूंगा।”

“कैसे?”

“तुमने पुलिस वालों पर हाथ उठाने को मना किया था। ये पुलिस वाला नहीं है, मैं इसे...।”

“तो तुम इस पर हाथ उठाने की सोच रहे हो। ऐसी गलती मत करना। ये देवराज चौहान का खास साथी है, या फिर दोस्त है। तुमने इसे कुछ किया तो देवराज चौहान को गुस्सा आ जाएगा।”

दस मिनट बीत गए।

पंद्रह मिनट बीत गए।

सोहनलाल नहीं लौटा तो धरा उठते हुए बोली।

“मैं बुलाती हूं उसे।” कहने के साथ ही वो फ्लैट के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ती बोली –“सोहनलाल जी।”

“आ-जा।” भीतर से नानिया की आवाज आई।

धरा आवाज वाले कमरे में पहुंची तो नानिया बेड पर बैठी टिंडे छील रही थी।

“आ बैठ।” नानिया उसे देखते ही बोली –“टिंडे खाकर जाना। मैं बहुत अच्छे बनाती हूं। रोज-रोज भारी सब्जी खाई भी नहीं जाती। सोहनलाल को बहुत पसंद हैं टिंडे।”

“सोहनलाल जी कहां हैं?” धरा नजरें दौड़ाती बोली।

“वो तो गए।”

“गए?” धरा ने नानिया को देखा –“कहां गए?”

“अब आदमी का क्या पता कि वो कहां जाता है। बोला जाना है तो मैंने कहा जाओ। पर जाते-जाते कह गए कि टिंडे रात को खाऊंगा। सोहनलाल का टिंडा प्रेम तो गजब का है।”

“हम वहां बैठे हैं। सोहनलाल जी घर से बाहर नहीं गए। बाहर जाने का दरवाजा उधर से ही है। वो यहीं कहीं छिपे...।”

“पीछे के दरवाजे से गए हैं। नीचे का फ्लैट सोहनलाल ने तभी तो लिया था कि कभी जाना पड़े तो चुपचाप चला जाए।” नानिया मुस्कराई –“उधर है पीछे का दरवाजा।”

धरा ने उस तरफ जाकर देखा।

पीछे का दरवाजा खुला हुआ था।

वो समझ गई कि सोहनलाल पीछे के दरवाजे से खिसक गया। चेहरे पर गम्भीरता समेटे वो जब भीतर आई नानिया ने मुस्कराकर कहा।

“कह रहा था कोई जरूरी काम याद आ गया है। खैर छोड़ो तुम टिंडे जरूर खाकर जाना और वो जो भाई साहब हैं उन्हें भी टिंडे खाने को कह देना। साथ में ठंडी लस्सी तो और भी अच्छी लगेगी।”

धरा ड्राइंग रूम में पहुंचकर बबूसा से बोली।

“सोहनलाल पीछे के दरवाजे से चला गया है।”

ये सुनते ही बबूसा के चेहरे पर कठोरता के भाव उभरे।

“तुम चिंता मत करो। वो ज्यादा देर घर से बाहर नहीं रह सकता। हम शाम को, रात को फिर आएंगे। उससे जानकर ही रहेंगे कि देवराज चौहान कहां पर रहता है। तब तक मैं चक्रवती साहब से मिल लेती हूं। तुम साथ ही रहोगे न मेरे?”

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धरा कुर्ला के पुरातत्व विभाग के अपने ऑफिस में पहुंची जो कि एक पुरानी इमारत में था और काफी बड़ी जगह में था। इमारत के बाद भी आस-पास काफी खाली जगह थी वहां स्टाफ की कारें, मोटरसाइकिलें और स्कूटर वगैरह खड़े थे। बाहर पीली सफेदी पोती हुई थी, जो कि बरसात की वजह से काली पड़ती नजर आ रही थी।

बबूसा धरा के साथ था।

दोनों ऑफिस के भीतरी हिस्से में पहुंचे और राहदारी पार करने के बाद धरा ने एक कमरे के दरवाजे पर लटके पर्दे को हटाया और भीतर प्रवेश कर गई। धरा इस ऑफिस में कई सालों से काम कर रही थी। और लम्बे दिनों के बाद ऑफिस में पांव रखकर इतनी खुश थी कि ये भूल गई कि डोबू जाति के योद्धा उसकी जान लेने की फिराक में हैं।

सामने ही पचपन वर्षीय चक्रवती साहब बैठे थे। धरा को सामने पाकर वो बहुत खुश हुए। आधी बांह की कमीज और काली पैंट में थे। आंखों पर चश्मा था। टेबल पर कुछ फाइलें रखी थीं।

“धरा तुम?” चक्रवती साहब तुरंत उठ गए –“तुम्हें देखकर खुशी हुई।”

“मैं भी आपसे मिलकर बहुत खुश हूं।” धरा की आंखों में आंसू चमक उठे।

चक्रवती साहब के चेहरे पर अफसोस के भाव उभरे।

बबूसा चुपचाप एक तरफ खड़ा हो गया था।

“तुम्हारी मां की मौत का मुझे बहुत दुख है।” चक्रवती साहब ने कहा।

“मेरी मां ही तो थी इस दुनिया में।”

“तुम ठीक कहती हो।” चक्रवती साहब ने दुखी स्वर में कहा –“दिल छोटा मत करो। आज से मुझे अपना पिता मान लो।”

धरा ने आंखों से आंसू साफ किए। बोली।

“मां बुरी मौत मरी न?”

“हां। किसी ने उसका गला काटकर अलग कर दिया था। तुम कहती हो कि डोबू जाति के हत्यारों ने ये काम किया।”

“डोबू जाति वाले उन्हें योद्धा कहते हैं।”

“वो ही...।” तभी चक्रवती साहब का ध्यान बबूसा की तरफ गया –“ये साहब कौन हैं?”

“ये?” धरा ने बबूसा को देखा –“ये मेरे दोस्त हैं।”

“दोस्त? पर तुम्हें तो दोस्त बनाने पसंद नहीं हैं। फिर तुम कल लौटी हो और आज दोस्त भी बना लिया।”

धरा चुप रही।

“खैर, बैठो। आप भी बैठिए।” चक्रवती साहब ने बबूसा से कहा।

धरा और बबूसा कुर्सियों पर बैठ गए।

“कल मां के दाह-संस्कार के वक्त वहां कोई अनजाने-अजनबी लोग भी थे क्या?” धरा ने पूछा।

“मेरे लिए तो सब ही वहां अजनबी थे। मैं किसी को जानता नहीं था।”

धरा ने हाथ में पकड़ा लिफाफा चक्रवती साहब के सामने रखते कहा।

“ये देखिए। डोबू जाति के भीतर की तस्वीरें।”

चक्रवती साहब ने फौरन लिफाफे से तस्वीरें निकाली और देखने लगे।

बीस मिनट उन्हें तस्वीरें देखने में लग गए। वो ज्यादा थीं।

“शानदार। तुमने अच्छा काम किया।” चक्रवती साहब ने गम्भीर स्वर में कहा –“डोबू जाति वाले तुम्हारे पीछे हैं?”

“हां। उन्होंने ही मां को मारा। वो एकदम गला काट देने की कला को बहुत अच्छी तरह जानते हैं। मैंने जोगाराम का गला कटकर सिर को हवा में उड़ते और गिरते स्पष्ट देखा। तब भी वो घोड़े की सवारी कर रहा था परंतु गर्दन से उसका सिर कट चुका था।” कहते हुए धरा ने झुरझुरी ली –“वो बहुत खतरनाक वक्त था मेरे लिए।”

“मुझे पूरी बात बताओ धरा। सब कुछ सिलसिलेवार। जो तुमने देखा, सुना, महसूस किया। एक मिनट मैं अभी चाय-कॉफी...।”

“किसी भी चीज की इच्छा नहीं है चक्रवती साहब...।”

“लेकिन तुम्हारे दोस्त को...।”

“इसे भी कुछ नहीं...।”

तभी पच्चीस-छब्बीस वर्ष के युवक ने भीतर प्रवेश किया परंतु धरा को देखकर ठिठका।

“आओ प्रकाश।” चक्रवती साहब बोले।

“तुम कब आई धरा?”

“अभी...।”

“मुझे खबर नहीं दी। चक्रवती साहब ने ये जरूर कहा था कि तुम आज आओगी।” प्रकाश ने धीमे स्वर में कहा –“तुम्हारी मां की मौत का मुझे दुख है, परंतु चक्रवती साहब बता रहे थे कि तुम्हारी जान खतरे में है। आखिर क्या बात है।”

“डोबू जाति वाले सामान्य लोग नहीं हैं। वो खतरनाक हैं। वो मेल-जोल पसंद नहीं करते।” धरा ने कहा।

“ऐसा क्या हुआ?”

“तुम भी बैठो प्रकाश।” चक्रवती साहब बोले –“धरा वहां की सारी बातें बताने जा रही है।”

प्रकाश कुर्सी पर बैठा और बबूसा को देखते बोला।

“ये साहब कौन हैं?”

“धरा के दोस्त हैं।” चक्रवती साहब ने कहा।

“धरा के दोस्त?” प्रकाश ने नाराजगी भरी निगाहों से धरा को देखा।

“कहो धरा, बताओ सारी बात।”

तब धरा ने टाकलिंग ला से डोबू जाति तक के सफर की सारी बातें बताईं। जो कुछ जोगाराम ने बताया था, वो भी बताया, जो उसने डोबू जाति के लिए, पहाड़ों के भीतर महसूस किया, वो भी कहा। कोई भी बात नहीं छूटी और धरा ने सब बातें बता दीं। बताते हुए कई बार उसने भय से भरी झुरझुरी ली।

आधा घंटा लगा सब कुछ बताने में धरा को।

चक्रवती साहब और प्रकाश गम्भीरता से सब कुछ सुनते रहे।

“तुम्हें इतना बड़ा खतरा अकेले उठाने की क्या जरूरत थी।” प्रकाश बोला –“मुझे बुला लिया होता।”

बबूसा एकदम चुप और शांत बैठा था।

“तब वक्त नहीं था और मेरे मन में था कि पहले मैं जाकर सब देख लूं। उनसे बात कर लें। दोस्ती कर लूं। परंतु मैं नहीं जानती थी कि वो लोग कितने खतरनाक है। जोगाराम ने मुझे बहुत बार समझाने की चेष्टा की, परंतु मैंने समझा ऐसी बातें कहकर वो मुझे टालना चाहता है, जबकि ऐसा नहीं था। वो हर बात सही कह रहा था तब।”

चक्रवती साहब और प्रकाश के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।

“फिर तो तुम डोबू जाति के बारे में काफी ज्यादा जानकारी ले आई जो कि कोई नहीं ला सकता था। इनके बारे में विभाग को सोचना पड़ेगा कि इनसे कैसे बात की जाए। कैसे इन्हें सामान्य जीवन में लाया जा सके।”

“मेरी माने तो ऐसी कोशिश भी मत कीजिएगा चक्रवती साहब।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

चक्रवती साहब ने तस्वीरें प्रकाश की तरफ सरकाईं।

“ये डोबू जाति की तस्वीरें हैं जो धरा लाई है। तुम भी देख लो।”

प्रकाश ने तस्वीरों का ढेर अपनी तरफ सरकाया और देखने लगा।

“डोबू जाति सामान्य लोग नहीं हैं। वो अपने भीतर कई कुछ छिपाए हुए हैं।” धरा ने कहा।

“ये तुम कैसे कह सकती हो?”

“ये मेरा दोस्त जानते हैं कौन है?” धरा ने बबूसा को देखा।

“कौन है?”

“बबूसा।”

“क्या?” चक्रवती साहब की आंखें फैल गईं –“वो ही बबूसा जिसके बारे में तुमने बताया कि ये डोबू जाति से विद्रोह करके वहां से बाहर आ गया। ये वो ही बबूसा है।”

“वो ही है।”

चक्रवती साहब की आंखों में हैरानी उभरी।

प्रकाश तस्वीरें देखना छोड़ के बबूसा को अजीब-सी निगाहों से देखने लगा।

बबूसा शांत बैठा रहा।

“य-ये तुम्हें कहां मिला। ये तो...।”

“कल ही मिला जब मैं स्टेशन से निकली। मेरे पास डोबू जाति का कोई सामान था, जिसकी गंध इसने सूंघ ली और मुझ तक आ पहुंचा। ये भी ये ही कहता है कि डोबू जाति के योद्धा मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ये हमारी भाषा समझता है?” प्रकाश ने पूछा।

“पूरी तरह। ये कहता है कि मुझे डोबू जाति के योद्धाओं से बचाएगा।”

खामोश बैठा बबूसा शांत स्वर में बोला।

“बचा नहीं सकता। परंतु ज्यादा देर तक बचाए रख सकता हूं।”

“तुम डोबू जाति के बारे में हमें...।” चक्रवती साहब के शब्द अधूरे रह गए।

दरवाजे पर आहट हुई और एक व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया।

उसे देखते ही बबूसा फौरन खड़ा हो गया। होंठ भिंच गए।

वो व्यक्ति गोरे रंग का था और पैंट-कमीज पहने था। चेहरे पर दाढ़ी-मूंछे थीं। उसके पीछे-पीछे तीन अन्य आदमियों ने भीतर प्रवेश किया। उन्हें देखते ही बबूसा की आंखों में खूंखारता के भाव चमक उठे।

चक्रवती साहब, प्रकाश और धरा उन्हें इस तरह भीतर आते पाकर उलझन में पड़े।

“तुम लोग भीतर कैसे आ गए?” चक्रवती साहब के होंठों से निकला।

वो चारों बबूसा को देख रहे थे।

धरा ने फौरन बबूसा को देखा तो धरा सतर्क हो गई। गड़बड़ लगी उसे।

“तुम ठीक नहीं कर रहे बबूसा।” पहले वाले आदमी ने कठोर स्वर में कहा।

“तो अब तुम मुझे समझाओगे कि क्या ठीक है या क्या गलत।”

“अपने लोगों से विद्रोह करके, वहां से चले आना। उसके बाद जाति के दुश्मन का साथ देना।”

“दुश्मन कौन?”

“ये लड़की।” उसने धरा को देखा।

धरा तुरंत उठकर बबूसा के पास आ गई। वो समझ गई कि ये डोबू जाति के योद्धा हैं जो यहां आ पहुंचे हैं। उसके चेहरे पर घबराहट नाच उठी। चक्रवती साहब और प्रकाश उलझन में थे।

“क्या किया है इस लड़की ने?” बबूसा ने कठोर स्वर में पूछा।

“ये पूरे चांद की रात हमारी जगह पर आ गई और...।”

“तो तुम लोगों ने इसकी मां को मार दिया।”

“तुम तो अच्छी तरह हमारी कार्यप्रणाली जानते हो। तुम्हें वापस आ जाना चाहिए।”

“जानते हो मैं क्यों विद्रोह करके आया?”

“ये बात हमें नहीं मालूम।”

अब बबूसा पहनी कमीज के बटन खोलने लगा था।

“जब सही बात तुम्हें नहीं मालूम तो मुझे वापस आने को क्यों कहते हो?”

“ठीक है। तुम्हारा काम तुम जानो। बेहतर होगा कि इस लड़की से दूर हट जाओ।”

“मैंने इसे बचाने की जिम्मेवारी ली है।” बबूसा ने सख्त स्वर में कहा।

“ये गलत बात है। तुम अपनी ही जाति से टकराना चाहते हो। जानते भी हो कि हम काम पूरा करके रहते हैं।”

बबूसा ने कमीज उतारी और एक तरफ गिरा दी।

अब वो ब्राउन कलर की, पतले से लैदर की, शरीर से चिपकी आधी बांह की बिना कॉलर की ऐसी बनियान पहने था कि उसके ऊपर कमीज पहन ली जाए तो, नीचे बनियान का आभास ही नहीं होता था। परंतु उस बनियान का नजारा देखने वाला था। उसके सामने वाले हिस्से में नन्ही-नन्ही लुप्पियां लगी थीं, जिनमें मात्र डेढ़-डेढ़ इंच लम्बे असंख्य चाकू फंसे हुए थे जो कि पलक झपकते ही निकाले जा सकते थे।

“तो तुम हमारा मुकाबला करोगे।” वो व्यक्ति कठोर स्वर में कह उठा।

“अच्छी तरह जानते हो कि तुम लोग मेरा मुकाबला नहीं कर सकते।” बबूसा खतरनाक स्वर में बोला –“मुझसे मत टकराओ और चले जाओ यहां से। इस लड़की को बचाना मेरा काम है।”

“तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि काम पूरा किए बिना हम वापस नहीं लौटते। कितनों का मुकाबला करोगे तुम। जल्द ही थक जाओगे।” कहने के साथ ही उसने कमीज के भीतर हाथ डाला और छुरा निकाल लिया। ज्यादा लम्बा और ज्यादा चौड़ा छुरे जैसा वो खतरनाक हथियार था।

धरा के होंठों से दबी-सी चीख निकली। वो बबूसा की ओट में हो गई डर के।

इसके साथ ही बाकी तीनों ने अपने कपड़ों के भीतर से हथियार निकाले। एक के हाथ में टेढ़ा-सा खंजर था तो बाकी दोनों के हाथों में चौकोर-सी कुछ भारी लोहे की पत्ती जैसा हथियार था। उसे जब उंगलियों में फंसाकर तीव्र झटके के साथ फेंका जाता निशाना लेकर तो दो पलों में ही सामने वाले की गर्दन कटकर अलग हो जाती थी और ये दूर तक मारक हथियार था। फेंको तो दूर मौजूद इंसान की गर्दन काटकर भी अलग कर देता था।

बबूसा की नजरें एक साथ इन चारों पर थीं।

“हमें सिर्फ इस लड़की को मारना है बबूसा। तुम बीच में से हट जाओ।” वो बोला।

“नहीं।”

“अगर तुमने हमें नुकसान पहुंचाया तो सारी डोबू जाति तुम्हारी दुश्मन बन जाएगी।”

“मैं किसी से डरता नहीं हूं।”

तभी उन दोनों ने हाथों में थमी लोहे की चौकोर पत्ती को, उंगलियों को झटका देकर फेंका।

अगले ही पल चक्रवती साहब और प्रकाश की गर्दनें कटती चली गईं।

ये देखकर धरा के होंठों से चीख निकल गई।

परंतु उसी पल पलक झपकते ही बबूसा के हाथ तेजी से चले और दोनों हाथ एक साथ हरकत में आए थे पहली बार में दो छोटे चाकू हाथों में चमके और उन लोहे के पत्ती जैसे हथियार फेंकने वालों की छाती में जा धंसे। इससे पहले कि कोई कुछ समझता, दो नन्हे चाकू और चले और अन्य दोनों की छाती में जा लगे। उन्हें कोई वार करने का भी मौका नहीं मिला। चंद सेकंडों में वो नीचे गिरे और शांत पड़ गए।

धरा फटी-फटी आंखों से ये सब देख रही थी।

बबूसा ने कमीज दोबारा पहनी।

वहां का दृश्य भयानक हो रहा था। चक्रवती साहब और प्रकाश के गले कटे सिर, लुढ़ककर फर्श पर गिर पड़े थे। चक्रवती साहब का शरीर टेबल पर पड़ा था। वो कुर्सी पर बैठे थे। जबकि प्रकाश का शरीर कुर्सी से नीचे गिर चुका था। उन चारों की लाशें भी वहीं मौजूद थीं।

“चलो।” बबूसा सतर्क स्वर में बोला –“बाहर और लोग भी हो सकते हैं।”

धरा के होश गुम थे।

“सुन रही हो तुम...।” बबूसा ने धरा की बांह पकड़कर हिलाया।

धरा होश में आते ही डरे स्वर में कह उठी।

“उन्होंने चक्रवती साहब को और प्रकाश को...।”

“तुम जिंदा हो, ये क्या कम है।” बबूसा ने धरा की बांह पकड़ी और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

धरा फर्श पर बिखरे खून से खुद को बचाती आगे बढ़ी। उसका दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा था। चक्रवती साहब और प्रकाश की लाशों और कटे सिर वाली लाशों ने उसकी हालत खराब कर दी थी।

“तुम्हारे जरा-जरा से चाकू हैं और लगते ही वो मर गए।” धरा के होंठों से कांपता-सा स्वर निकला।

“उन पर खतरनाक तेज जहर लगा था। वो चाकू से नहीं, चाकू पर लगे जहर से मरे हैं।” बबूसा बोला।

“ओह।”

दोनों कमरे से बाहर निकलकर गैलरी में आगे बढ़े जा रहे थे। आस-पास से और भी लोग आ-जा रहे थे। एक तरफ ऑफिसों के कमरे थे। बबूसा ने धरा की बांह पकड़ी हुई थी। बबूसा की पैनी निगाह हर तरफ जा रही थी। खतरे का एहसास उसे आसपास पूरी तरह हो रहा था। वो जानता था कि इस तरह डोबू जाति के लोगों को मार देने का मतलब था, डोबू जाति को अपना दुश्मन बना लेना। परंतु वो किसी से नहीं डरता था। उसे पूरा विश्वास था कि डोबू जाति उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन धरा को बचाए रखने की उसे चिंता थी। धरा ही थी कि जिसके साथ रहकर वो राजा देव को ठीक से तलाश कर सकता था। धरा का चेहरा फक्क-सा था। वो डरी-सहमी सी थी। चक्रवती साहब और प्रकाश की सिर कटी लाशें उसकी आंखों के सामने घूम रही थीं। कैसे, देखते ही देखते गर्दन से उनके सिर कटकर नीचे जा गिरे थे। ऐसे ही तो जोगाराम का सिर कटा था, परंतु अब उसने ये सब होता अपनी आंखों से देखा था। अपनी मां की याद आई कि इन लोगों ने उसकी गर्दन भी इसी तरह काटी होगी। कैसा दहशत भरा नजारा है ये सब होते देखना।

“मेरी बांह छोड़ो।” साथ में तेज-तेज चलते धरा ने कहा।

“चुप रहो अभी खतरा आस-पास ही है।” बबूसा ने भिंचे स्वर में कहा।

“तुमने सबको मार दिया है फिर खतरा कैसा...?”

“बाकी के लोग आस-पास ही हैं। ये लोग कभी भी कम संख्या में हमला नहीं करते। इनका मकसद होता है अपने काम में सफलता पाना। इसलिए कई लोग आते हैं ये शिकार करने, कुछ शिकार करते हैं बाकी आस-पास फैल जाते हैं कि पहले गए लोगों को सफलता न मिले तो वो आगे आकर काम पूरा कर सकें। ऐसे में वो हर तरफ नजर रखते...।”

“तुम्हारा मतलब कि वो पास में ही हैं।” धरा आतंकित हो उठी।

“हां।”

“वो मुझे मार देंगे।”

“चुप रहो। शांत रहो। मैं तुम्हें बचा रहा हूं। मुझे अपना काम करने दो। मुझे बातों में मत लगाओ।” बबूसा का स्वर बेहद कठोर था।

धरा का चेहरा पीला पड़ चुका था।

“वो खतरनाक हैं। मुझे मार देंगे।” धरा ने कांपते स्वर में कहा।

“चुप रहो।”

बबूसा, धरा की बांह पकड़े उस इमारत से बाहर निकला और बाहरी

गेट की तरफ बढ़ने लगा। उसकी खतरनाक पैनी निगाह हर तरफ घूम रही थी। इस वक्त वो बाज से भी ज्यादा घातक दिख रहा था।

एकाएक बबूसा ठिठक गया।

सामने गेट के पास ही, एक आदमी मौजूद था और आंखें सिकोड़े उसे देख रहा था।

उसे देखते ही बबूसा की आंखों में वहशी भाव दिखने लगा। वो पुनः आगे बढ़ा।

उस व्यक्ति ने धरा के चेहरे पर भी निगाह मारी।

आसपास से और लोग भी आ-जा रहे थे।

बबूसा, धरा का हाथ पकड़े उस व्यक्ति के पास जा पहुंचा।

“तुम्हें देखकर खुशी हुई बबूसा।” उस व्यक्ति ने गम्भीर स्वर में कहा।

बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली।

उस व्यक्ति ने धरा को देखा और बबूसा से कहा।

“क्या तुम इस लड़की को मेरे हवाले करने जा रहे हो?”

तभी बबूसा का बायां हाथ उसकी तरफ तेजी से बढ़ा और पंजा फैलकर उसकी गर्दन पर जा पड़ा। वो छटपटाया। उसने बबूसा का पंजा अपनी गर्दन से आजाद करने के लिए अपने दोनों हाथों का सहारा लिया।

ये देखकर धरा की आंखें फैल गई थीं।

तभी उसकी गर्दन पकड़े, बबूसा के हाथ ने तीव्रता से दाईं तरफ झटका दिया।

‘कड़ाक।’

हड्डी टूटने की आवाज आई। बबूसा ने हाथ हटाया तो वो कटे पेड़ की तरह नीचे जा गिरा।

धरा के होंठों से चीख निकल गई।

आस-पास जाते लोगों ने ये सब देखा तो डर के मारे, दूर हटने लगे।

बबूसा चेहरे पर दरिंदगी समेटे चारदीवारी के गेट से बाहर निकलता चला गया, परंतु अगले ही पल उसने धरा का हाथ छोड़ा और उसकी टांगों पर टांग मारकर धरा को नीचे गिरा दिया। हक्की-बक्की-सी धरा चीख भी नहीं सकी और नीचे गिरते उसने इतना ही देखा कि सामने से कोई छोटी-सी चीज उड़ती हुई उसकी तरफ आ रही है। उसे समझते देर न लगी वो, वो ही पत्ती जैसा हथियार है जो पलक झपकते ही गर्दन काट देता है।

उस हथियार को धरा ने अपने ऊपर से जाते देखा।

ये सब दो सेकेंडों में ही हो गया।

तभी धरा ने बबूसा के हाथ में वो ही नन्हा चाकू देखा जो कि उसके हाथ की उंगलियों से निकल चुका था। तुरंत बाद ही कमीज के भीतर हाथ डाल उसे दो चाकू बाहर निकालते देखे और एक ही हाथ से दो अलग-अलग दिशाओं में उसे फेंकते देखा। तीन सेकेंडों में धरा ने ये सब देखा।

वो पस्त-सी नीचे गिरी पड़ी थी कि बबूसा ने आस-पास देखते हुए सतर्क अंदाज में हाथ बढ़ाकर धरा को बांह से पकड़ा और खड़ा किया। धरा की टांगें कांप रही थीं।

वहां नजर आते लोग भय से पीछे हटने लगे थे।

धरा ने तीन व्यक्तियों को नीचे गिरे, शांत पड़े देखा। वो मर चुके थे।

बबूसा धरा की बांह पकड़े एक तरफ बढ़ा कि उसी पल रुक गया। एक आदमी पर उसकी निगाह टिक गई। वो उसे ही गम्भीर निगाहों से देख रहा था।

बबूसा, धरा की बांह पकड़े उसके पास पहुंचा।

“बबूसा।” वो गम्भीर अंदाज में मुस्कराया।

“कह सोलाम।” बबूसा गुर्राया।

“मुझे नहीं पता था कि तुम इस लड़की के साथ हो।”

“इस लड़की का पीछा छोड़ दो।”

“ये हमारी शिकार है और हम अपने शिकार को कभी नहीं छोड़ते। ये बात तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है।” सोलाम बोला।

“तो तुम मेरा मुकाबला करोगे।”

“तुम्हारा मुकाबला करने की मैं कैसे सोच सकता हूं। मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं। मेरे पास सरदार ओमारू की तरफ से इस बात की इजाजत नहीं है कि तुम्हारा मुकाबला किया जाए।”

“तो इजाजत ले लो ओमारू से।”

“अवश्य इजाजत लूंगा और वो हां भी कह देगा, क्योंकि तुम हमारे शिकार की हिफाजत करके, हमारे खिलाफ खड़े हो चुके हो।”

“पीछे से वार मत करना सोलाम।” बबूसा गुर्राया।

“कभी नहीं। तुम इस लड़की को ले जा सकते हो।”

बबूसा, धरा का हाथ पकड़े आगे बढ़ गया। पास ही एक कार खड़ी थी और भीतर बैठा आदमी ये सारा मामला समझने की कोशिश कर रहा था।

“तुम कार चलाना जानती हो?” बबूसा ने कठोर स्वर में पूछा।

“ह-हां।”

बबूसा ने कार की स्टेयरिंग सीट पर बैठे आदमी को बाहर निकाला और धरा को वहां बैठने का इशारा करते हुए, दूसरी तरफ से बगल वाली सीट पर, भीतर आ बैठा। घबराई-सी धरा ने कार आगे बढ़ा दी।

बबूसा का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।

“त-तुम बहुत खतरनाक हो।”

“मैं खतरनाक न होता तो तुम्हारी जान नहीं बचती।”

“ये युद्ध कला तुमने डोबू जाति से सीखी?”

“मेरा जन्म कराते समय महापंडित ने युद्ध की हर वो कला मेरे भीतर डाल दी थी, जो राजा देव जानते थे। मैं बबूसा जरूर हूं परंतु मेरे भीतर सब कुछ राजा देव का है। मेरा जन्म ही इसलिए कराया गया कि जब रानी ताशा, राजा देव को इस ग्रह से अपने सदूर ग्रह पर ले जाना चाहे तो उस वक्त मैं राजा देव पर काबू पा सकूँ।”

“परंतु तब ऐसा करने से इंकार कर रहे हो।” धरा अभी तक घबराई हुई थी।

“हाँ, मैं राजा देव का सेवक हूं। उनके खिलाफ नहीं चल सकता। जो करूंगा राजा देव के भले के लिए करूंगा।”

“मैं कैसे अजीब-से हालातों में फंस गई हूं। मां मारी गई। चक्रवती साहब और प्रकाश मारे गए। ओफ्फ ये सब क्या हो रहा है, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा...।”

“अपनी जान की फिक्र करो।” बबूसा के होंठ भिंचे हुए थे।

“तुमने मुझे बचा लिया।”

बबूसा चुप रहा।

“आगे भी मुझे इसी तरह बचा लोगे न?”

“कोशिश करूंगा।”

“मैं मरना नहीं चाहती बबूसा।”

बबूसा ने धरा को देखा और कह उठा।

“तुम्हारे मुंह से अपना नाम सुनकर अच्छा लगा।”

“मुझे बचाने की बात करो। वो फिर आएंगे मुझे मारने।”

“जरूर आएंगे। इस बार ज्यादा तैयारी करके आएंगे और मुझे भी खत्म कर देना चाहेंगे।”

“त-तो क्या होगा?”

“पर वो मेरा मुकाबला नहीं कर सकते। लेकिन वो काफी सारे होंगे। कुछ पता नहीं तब क्या होगा।”

“तो क्या वो मुझे मार देंगे।”

“घबराओ मत। मैं नहीं चाहूंगा कि तुम्हारी जान जाए। क्योंकि तुम राजा देव की तलाश में मेरी सहायता कर रही हो।”

“फिर मुझे मरने मत देना।”

बबूसा ने धरा को देखा और मुस्कराकर बोला।

“फिक मत करो। पहले मेरी जान जाएगी। उसके बाद तुम्हारी जाएगी। मैं तुम्हें जरूर बचा के रखूंगा।”

“बस ये ही बात?”

“क्या मतलब?”

“मेरा मतलब तुम सिर्फ अपने मतलब की खातिर मुझे बचा रहे हो या कोई और बात भी है।”

“और क्या बात होगी?”

“कुछ नहीं, मैंने यूं ही पूछा। तुम मुझे बचा लो, इतना ही काफी है मेरे लिए। अब जाना कहां है?”

“सोहनलाल के घर चलो। वो...।”

“अभी उसके पास जाना ठीक नहीं होगा। उसके पास रात को चलें तो ठीक होगा। क्या पता वो घर पर भी न हो अभी।”

“तो होटल चलो। मैं अब आने वाले खतरे के बारे में सोचना चाहता हूं।”

“ये कार हमें छोड़ देनी चाहिए। ये हमारी नहीं है। टैक्सी ले लेते हैं।” धरा ने कहा।

“जैसा तुम ठीक समझो। इस ग्रह का सिस्टम मैं अभी ठीक से जानता नहीं।”

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