तीसरे दिन।

रानी ताशा मुम्बई आ पहुंची। साथ में सोमारा थी, सोमाथ था, और तीन अन्य लोग थे।

तीन अन्य लोग होटल के साथवाले कमरे में ठहरे। डोबू जाति के साथ आए दोनों लोगों को रानी ताशा ने वापस भेज दिया था। सोमारा, सोमाथ और रानी ताशा एक ही कमरे में रुके होटल में, जो कि अन्य कमरों से बड़ा था और उसमें दो डबल बेड थे। उन्होंने जो कपड़े पहन रखे थे, उन्हें डोबू जाति के लोग ही लाए थे और रास्ते में लड़कियों को बढ़िया-बढ़िया कपड़े पहने देखकर रानी ताशा भी बढ़िया कपड़े पहनना चाहती थी।

रानी ताशा और सोमारा बारी-बारी नहाईं। वो ही कपड़े पहन लिए।

“बबूसा कहां मिलेगा रानी ताशा?” सोमारा ने व्याकुलता से पूछा।

“वो भी मिल जाएगा। ज्यादा आतुरता न दिखा। इन कपड़ों में तू बबूसा से मिलेगी।” रानी ताशा मुस्कराई।

सोमारा ने अपने कपड़े देखे फिर रानी ताशा को देखा।

“जहां कपड़े मिलते हैं, वहां जाएंगे। बढ़िया-से-बढ़िया ढेर सारे कपड़े लेंगे।” रानी ताशा ने कहा –“उन्हें पहनकर, मैं और भी सुंदर लगूंगी। तब राजा देव के पास जाऊंगी और कपड़ों को वापस सदूर ग्रह पर भी ले जाऊंगी।”

“आपको पता है राजा देव कहां हैं?”

“तेरा भाई महापंडित बताएगा। वो किसी तरह मुझे खबर कर देगा।”

“बबूसा, राजा देव के साथ ही है न?”

“हां। परंतु बबूसा मेरे लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।”

“आप बबूसा की चिंता न करें। उसे मैं संभाल लूंगी।”

“न संभाल सकी तो उसके साथ मुझे कठोरता से पेश आना पड़ेगा।” कहते हुए रानी ताशा कुर्सी पर जा बैठी।

“बबूसा को संभालना मेरा काम है।” सोमारा ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“आप राजा देव से सबसे पहली क्या बात करेंगी रानी ताशा?”

“मालूम नहीं, तब मुंह से क्या निकलता है। कितने लम्बे वक्त के बाद मैं राजा देव को देख पाऊंगी। कितना अच्छा लग रहा है ये सोचकर, परंतु उन्हें उस जन्म का कुछ भी याद नहीं। वो मुझे पहचानेंगे कैसे?”

“आपने ही तो कहा था कि राजा देव को आपको देखते ही उस जन्म की याद आने लगेगी।”

“हां, महापंडित ने ये ही बताया था।” रानी ताशा के चेहरे पर गम्भीरता आ गई।

“मैं बताऊं मैं क्या कहूंगी बबूसा को देखते ही।”

“क्या?” रानी ताशा मुस्करा पड़ी।

“पूछूंगी कि उस लड़की से तेरा क्या रिश्ता है, जिसे तू डोबू जाति के योद्धाओं से बचा रहा है।”

“और बबूसा ने कहा कि वो उससे प्यार करता...”

“तो मैं बबूसा का गला दबा दूंगी।” सोमारा पांव पटककर बोली –“वो हर जन्म में मेरा पति बना है तो इस जन्म में भी मेरा ही पति बनेगा। मैं उसे किसी और का नहीं बनने दूंगी। आप जल्दी चलिए न बाजार से कपड़े लेने।”

“पहले कुछ खा लें। सफर काफी लम्बा था। सोमाथ...।” रानी ताशा ने सोमाथ को देखा –“होटल वालों से कहो कि हमें कुछ खाने को दें। हमें नहीं पता इस बारे में यहां पर कैसे बात करनी है।”

“मैं अभी सब इंतजाम करता हूं रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा और बाहर निकल गया।

सोमारा भी कुर्सी पर बैठ गई और कहा।

“राजा देव के बारे में सोचकर आपके दिल में तो गुलगुले उठ रहे होंगे।”

“हां। परंतु चिंतित भी हूं।” रानी ताशा ने सोच भरे स्वर में कहा –“मुझे वो वक्त कभी नहीं भूलता जब मैंने राजा देव के साथ बुरा व्यवहार किया था। कहीं वो वक्त राजा देव को सदूर ग्रह पहुंचने से पहले याद आ गया तो जाने राजा देव क्या कर दें।”

“आप राजा देव को सदूर पर जल्दी से ले जाइएगा। वहां मेरा भाई राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा ही साफ कर देंगे, जहां उस जन्म की ये घटना दर्ज है। सबसे बड़ा सवाल तो राजा देव को यहां से ले जाने का है। एक बात कहूं रानी ताशा।”

“तुम मेरी सहेली हो कुछ भी कह सकती हो।”

“आपने उस जन्म में, तब बबूसा को धमकाया था, जब उसने आपसे धोमरा के बारे में एतराज जताया था। इस वजह से बबूसा आपसे बहुत नाराज है। बबूसा ने ये बात मुझसे की थी।”

“परंतु जब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ तो मैंने बबूसा से माफी मांग ली थी।”

सोमारा खामोश रही।

“क्या तेरे को शक है कि बबूसा, तेरे कहने पर मानेगा नहीं, मेरे रास्ते से नहीं हटेगा।” रानी ताशा ने कहा।

“वो बात नहीं, मैं तो ऐसे ही कह रही थी।”

तभी सोमाथ ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

“अभी खाने का सामान आ रहा है।”

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वो विजय बेदी था।

वो ही अपने बेदी साहब, जिनकी किस्मत ने उनसे दगा की। अपने ऑफिस से लंच के वक्त टहलने बाहर निकले थे सालों पहले कि बगल में मौजूद बैंक में डकैती चल रही थी और भागते वक्त एक लुटेरे ने लोगों को डराने के लिए यूं ही गोली चला दी जो कि विजय बेदी के माथे की तरफ से दोनों तरफ के दिमागों के हिस्से के बीच आ फंसी थी और उसके बाद तो विजय बेदी की दुनिया ही बदल गई थी। गोली अभी तक दिमागों के दोनों हिस्सों के बीच फंसी हुई थी। यूं तो सब कुछ सामान्य था। डॉक्टरों का कहना था कि हो सकता है, इसी प्रकार जिंदगी बीत जाए और कुछ न हो परंतु अगर गोली ने अपनी जगह छोड़ दी तो जहर फैलने से कुछ ही घंटों में मौत हो जाएगी और बेदी साहब को अपनी जिंदगी बहुत प्यारी थी। उसके बाद से तो बेदी साहब का जैसे जिंदगी का मकसद ही बन गया कि दिमागों के बीचोंबीच फंसी गोली को निकलवाना है। पता चला कि अगर लापरवाही से ऑपरेशन किया गया तो तब भी उसकी मौत हो सकती है, ऐसे में पता चला कि ऐसे ऑपरेशन करने में डॉक्टर वधावन एक्सपर्ट डॉक्टर हैं।

बेदी साहब ने डॉक्टर वधावन से मुलाकात की।

डॉक्टर वधावन ने 12 लाख रुपए मांगें ऑपरेशन करने के ।

अब विजय बेदी के पास बारह लाख रुपए कहां से आते? वो तो जैसे-तैसे जिंदगी की गाड़ी चला रहा था नौकरी करके। भगवान ने उसे खूबसूरत चेहरा दिया, ऐसा कि लड़की देखे तो आह भर ले। इसके अलावा उसकी जमापूंजी कुछ नहीं थी। परंतु विजय बेदी गोली की वजह से बेमौत नहीं मरना चाहता था। ऐसे में उसने नौकरी छोड़ी और बारह लाख का इंतजाम करने में लग गया कि डॉक्टर वधावन से ऑपरेशन कराकर, सिर के बीच फंसी गोली निकलवा सके। अब बारह लाख के इंतजाम की खातिर विजय बेदी ने बेहद हसीन, बेहद खतरनाक, बेहद ज्यादा मुसीबतों वाले गुल खिलाए (विस्तार से जानने के लिए पढ़िए अनिल मोहन के विजय बेदी सीरीज के पूर्व प्रकाशित छः उपन्यास-1.खलबली, 2. चाबुक, 3.36 दिन, 4. नब्बे करोड़, 5. सच का सिपाही, 6. डमरू।) बड़ी-बड़ी मुसीबतें मोल लेने पर भी बेदी साहब 12 लाख का इंतजाम नहीं कर सके। कभी दो-चार-पांच-सात लाख रुपया हाथ भी लगा तो वो खा-पीकर बराबर हो गया। बेदी ने इकट्ठा कर रखा पैसा डाक्टर वधावन के पास जमा कराना चाहा तो सनकी डाक्टर वधावन ने वो पैसा रखने से भी मना कर दिया कि उसके पास वो तभी आए जब बारह लाख उसके पास हो। तबसे विजय बेदी की जिंदगी में ऐसी भागदौड़ शुरू हुई कि उस भागदौड़ ने अब तक रुकने का नाम नहीं लिया था।

विजय बेदी साहब को अपने हैंडसम होने का पूरा एहसास था। उन्हें पता था कि लड़की उन्हें देखे तो वो आह जरूर भरती है, यहां तक कि शादीशुदा औरतें भी उनमें दिलचस्पी लेती हैं। ऐसे में बेदी साहब अपनी इस खूबी का फायदा जरूर उठाते रहे हैं और 12 लाख के इंतजाम की खातिर लड़कियों, औरतों को ही अपना शिकार बनाने की कोशिश करते रहे हैं, क्योंकि वो उसके लिए आसान शिकार महसूस होता है। औरतें जल्दी फंस जाती हैं उनके चंगुल में। ये जुदा बात है कि इन्हीं औरतों के चक्कर में पड़कर बेदी साहब बड़ी-बड़ी मुसीबतों में फंसे। कई बार जान बचानी भी भारी पड़ने लगी। 12 लाख का इंतजाम करने की खातिर क्या-क्या नहीं सहा बेदी साहब ने। लेकिन विजय बेदी कभी मायूस नहीं हुए थे। उन्हें पूरा यकीन था कि जल्दी ही वो बारह लाख का इंतजाम कर लेंगे और वो दिन दूर नहीं जब डॉक्टर वधावन से ऑपरेशन कराकर सिर में फंसी गोली निकलवा लेंगे और फिर चैन और शराफत से अपनी जिंदगी जिएंगे। सीधे-सादे विजय बेदी साहब अब सीधे नहीं रहे थे। 12 लाख के इंतजाम की कोशिशों ने उन्हें दुनिया के ऐसे रंग दिखाए थे कि चालाकी उनके भीतर आ गई थी। समझदारी भी आ गई थी। शिकार को ताड़ना भी आ गया था। अपने भोले और खूबसूरत चेहरे का फायदा उठाना भी आ गया था।

किसी औरत को शिकार बनाने या फिर कहें कि नया शिकार ढूंढ़ने की खातिर विजय बेदी ने इस शानदार होटल में प्रवेश किया था। शानदार सूट था शरीर पर। क्लीन शेव्ड चेहरा चमक रहा था। वो किसी रईस की तरह लग रहा था। जबकि उसके मन में चल रहा था कि ऐसी कोई लड़की या औरत पट जाए जो उसे बारह लाख थाल में सजाकर दे दे तो सारी मुसीबतें दूर हो जाएं। इसी फेर में उसकी निगाह रानी ताशा पर जा पड़ी थी। तब वो रिसेप्शन के सामने लॉबी में बैठा शिकार ही ताड़ रहा था।

रानी ताशा को देखते ही विजय बेदी स्तब्ध रह गया था।

लड़कियां-औरतें बेदी की दीवानी होती थीं परंतु वो रानी ताशा पर फिदा हो गया था।

ऐसी खूबसूरती उसकी नजरों के सामने से पहले न निकली थी। आंखें फाड़े वो रानी ताशा को देखता रह गया था। तब रानी ताशा के साथ सोमारा और सोमाथ थे। वो अपने लिए कपड़े खरीदने जा रहे थे। सोमारा पर तो उसने एक नजर भी नहीं डाली। अगर सोमारा अकेली होती तो तब विजय बेदी की निगाह उस पर अवश्य टिकती परंतु अब तो सोमारा उसे रानी ताशा के सामने फीकी नजर आ रही थी।

‘बाई गॉड।’ बेदी बड़बड़ा उठा –‘क्या माल है। पैसे वाली लगती है। बारह लाख इससे हासिल हो सकता है।’

विजय बेदी तुरंत उठा और रिसेप्शन पर पहुंचा।

“हैलो।” बेदी मुस्कराकर रिसेप्शन पर मौजूद युवती से बोला –“उन मैडम को मैंने कहीं देखा है। क्या वो होटल में ठहरी हैं?”

“जी हां।”

“कौन से फ्लोर पर?” विजय बेदी ने पुनः पूछा।

“सेकेंड फ्लोर, रूम नम्बर 218।”

“थैंक्यू मैडम।” बेदी ने कहा और वहां से हटकर रानी ताशा के पीछे चल पड़ा, जो कि होटल के बाहर की तरफ जा रही थी।

उसके बाद विजय बेदी ने रानी ताशा को अपनी निगाहों में ही रखा।

वो जहां-जहां गई। कपड़े खरीदे। सब देखता रहा। रानी ताशा के चेहरे पर से विजय बेदी की नजर नहीं हट रही थी और ये ही सोच रहा था कि ये पैसे वाली है। कोई तरकीब लगाकर बारह लाख इससे लिया जा सकता है। जब कपड़े खरीदकर रानी ताशा, सोमारा और सोमाथ होटल वापस लौटे तो विजय बेदी तब भी पीछे था।

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रानी ताशा सुंदरता का अद्वितीय पहचान लग रही थी। उसने और सोमारा ने नए-नए कपड़े खरीदे थे, उसके बाद पार्लर गई। सोमाथ पार्लर के बाहर खड़ा रहा। पार्लर ने भी उन्हें सजा दिया था। रानी ताशा इस वक्त जींस की पैंट और ढीली-सी स्कीवी पहने थी। उसके खुले बाल हवा में रह-रहकर लहरा रहे थे। जब भी वो कदम उठाती तो बाल उसी अंदाज में झटका खाते। हल्के रंग की लिपिस्टिक होंठों पर लगा रखी थी। उसकी खूबसूरती को चार चांद लग गए थे जैसे। लोग रानी ताशा को मुड़-मुड़कर देख रहे थे, ये महसूस करके रानी ताशा के चेहरे पर मोहक मुस्कान नाच उठती थी। सोमारा भी कम नहीं लग रही थी। उसने भी कई कपड़े खरीदे थे और वो भी इस वक्त जींस की पैंट और ऊपर ढीले-से टॉप में थी। दोनों गजब ढा रही थीं। उनके साथ सोमाथ उनके कपड़ों के लिफाफे उठाए हुए था। वे होटल पहुंचे।

रानी ताशा ने जब कमरे में कदम रखा तो गम्भीर दिखने लगी।

जबकि सोमारा खुश थी।

“सोमाथ।” रानी ताशा बेड पर बैठती कह उठी –“ये ग्रह हमारे ग्रह से सुंदर है।”

“जी हां रानी ताशा। मैंने भी ये बात महसूस की।”

“हमारे ग्रह पर ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यहां है। बड़े-बड़े बाजार, बड़ी-बड़ी दुकानें, लम्बी-लम्बी सड़कें। उन पर दौड़ती गाड़ियां और सजे-संवरे लोग।” सोमारा कह उठी –“मेरा तो यहां से जाने का मन ही नहीं है।”

“ये ग्रह हमारे ग्रह से काफी आगे है। यहां का राजा जाने ये सब कैसे संभालता होगा।” रानी ताशा ने सोच-भरे स्वर में कहा –“हमारे ग्रह पर सब कुछ साधारण है। हम कहीं आने-जाने के लिए घोड़ों का इस्तेमाल करते हैं, बग्गी पर जाते हैं, परंतु यहां तो सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है। सदूर और पृथ्वी में कितना फर्क है।”

“तब राजा देव ने पोपा का निर्माण किया था।” सोमारा कह उठी –“अगर राजा देव को वक्त मिला होता तो ग्रह के लिए वो और भी बहुत कुछ करते। शायद अब सदूर पर भी कारों जैसा कुछ दौड़ रहा होता। वहां भी लम्बी-लम्बी सड़कें होती और बड़े-बड़े बाजार होते। राजा देव हमेशा सदूर को बेहतर बनाने के लिए सोचते थे।”

रानी ताशा सोमारा को देखने लगी।

सोमारा कुछ क्षण तो खामोश रही फिर कह उठी।

“क्या मैंने कुछ गलत कह दिया रानी ताशा?”

“तूने ठीक कहा है सोमारा। गलती मैंने की जो राजा देव की कीमत नहीं समझी और धोखा दे दिया। मैं सदूर को नहीं संभाल सकती। राज-पाट संभालना राजा देव का ही काम था। मैं कभी भी सदूर को ठीक से नहीं संभाल सकी। मेरे से बहुत बड़ी गलती हो गई थी और अब उस गलती को मैं ठीक करने की कोशिश कर रही हूं राजा देव को वापस ले जाकर।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा –“अभी तक महापंडित ने राजा देव तक पहुंचने का कोई संकेत नहीं दिया। अब और रुकने का मन नहीं हो रहा। मैं फौरन राजा देव के पास पहुंच जाना चाहती हूं।” रानी ताशा की आंखों में आंसू चमक उठे।

“मैंने आपका दिल दुखा दिया रानी ताशा।” सोमारा ने गहरी सांस ली

“तूने कुछ भी गलत नहीं कहा। राजा देव होते सदूर पर तो सदूर बहुत तरक्की कर लेता पृथ्वी की तरह। परंतु मैं पृथ्वी को अपना बनाने के बारे में सोचने लगी हूं। डोबू जाति की तरह हम पृथ्वी पर भी अपनी हुकूमत कायम कर दें तो दिल को सुकून मिलेगा।”

“ऐसा सम्भव है क्या?” सोमारा के होंठों से निकला।

“कुछ भी असम्भव नहीं। पृथ्वी के राजा को हम क्यों नहीं जीत सकते सोमारा। परंतु इसके लिए हमें सदूर पर जाकर तैयारी करनी होगी। फिर यहां आना होगा। इस बार हम यहां के राजा के बारे में पूरी जानकारी ले लेंगे और फिर हमले की तैयारी करेंगे।”

“परंतु रानी ताशा यहां इस ग्रह पर बहुत ज्यादा लोग हैं। हमारे ग्रह से भी ज्यादा। हम डोबू जाति से यहां तक आए हैं तो रास्ते में हमें लोग ही लोग दिखते रहे। ये ग्रह तो हमारे ग्रह से बहुत बड़ा है। इतने लोगों का हम कैसे मुकाबला कर सकते हैं? “

“इसका रास्ता तो राजा देव ही निकालेंगे।” रानी ताशा मुस्करा पड़ी।

“राजा देव?”

“हां। पहले राजा देव को सदूर पर ले जाऊंगी। सब ठीक हो जाएगा तो फिर राजा देव से पृथ्वी ग्रह के बारे में बात करूंगी। राजा देव पृथ्वी पर रहे हैं लम्बे समय से। ऐसे में वो बेहतर ढंग से बता सकेंगे कि पृथ्वी पर कैसे काबू पाया जाए...आह, ये क्या...।” रानी ताशा ने हाथ से अपना माथा पकड़ लिया।

“क्या हुआ रानी ताशा?” सोमारा जल्दी से उठी।

“मुझे बताओ क्या बात है।” सोमाथ एकाएक आगे आया।

उसी पल रानी ताशा सामान्य हो गई।

“आप ठीक तो हैं?” सोमारा पुनः बोली।

“मेरे मस्तिष्क में शब्दों की कुछ आकृतियां आ रही हैं। परंतु शब्द मुझे समझ में नहीं आ रहे। ये सब महापंडित ने किया है वो मुझे कोई इशारा दे रहा है।” रानी ताशा बोली –“अब एक ही आकृति मेरे सामने आ रही है। वो कोई शब्द है।”

“वो शब्द जिस आकृति में है, उसे किसी कागज पर उतारिए रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा।

“कैसे उतारूं, कागज-पेन भी तो नहीं।”

“मैं अभी लाता हूं।” कहकर सोमाथ बाहर निकल गया।

“राजा देव से मिलने का समय करीब आता जा रहा है सोमारा।” रानी ताशा बोली।

“मैं बबूसा से मिलूंगी।” सोमारा खुश हो उठी।

“मेरे मस्तिष्क में शब्दों की जो आकृतियां आ रही हैं, वो जरूर राजा देव से सम्बंध रखती हैं।”

“वो वक्त कैसा होगा, जब मैं बबूसा को अपने सामने पाऊंगी।” सोमारा अपने सपनों में थी।

“मैं भी अब ऐसा ही सोचती हूं कि राजा देव जब मुझे अपने सामने पाएंगे तो उनका क्या हाल होगा। अगर वो मुझे पहचान गए तो खुशी से पागल हो जाएंगे अपनी ताशा को सामने पाकर।” रानी ताशा ने गहरी सांस ली।

“और तब उन्हें आपका दिया वो धोखा याद आ गया तो?”

“ऐसा मत कह। मेरी खुशियों पर चादर मत बिछा। राजा देव को कुछ भी याद नहीं आएगा और मैं उन्हें सदूर ग्रह पर वापस ले जाऊंगी और महापंडित सब कुछ ठीक कर देगा।”

तभी सोमाथ भीतर आया। हाथ में कागज पेन था जो कि उसने रानी ताशा को दिया।

रानी ताशा ने कागज पेन संभाल कर पलों के लिए आंखें बंद करके मस्तिष्क में उभरी शब्द की आकृति की तरफ ध्यान लगाया फिर आंखें खोलकर उसे कागज पर उतारा।

वो शब्द अब 9 लिखा था कागज पर।

फौरन बाद ही रानी ताशा कह उठी।

“अब आकृति बदल गई। दूसरा कुछ नजर आ रहा है।”

“वो भी लिखो।” सोमारा ने कहा।

रानी ताशा ने लिखा।

वो 8 का शब्द था।

इस तरह रानी ताशा मस्तिष्क में आती शब्दों की आकृतियों को सिलसिलेवार लिखती रही और ये काम दस अंको पर आकर थम गया।

अब रानी ताशा के मस्तिष्क में कुछ नहीं आ रहा था।

रानी ताशा अपने द्वारा कागज पर लिखे गए शब्दों को देखने लगी।

“ये क्या है?” सोमारा ने पूछा।

“मैं नहीं जानती।” रानी ताशा ने कागज से नजरें हटाईं –“ये इस पृथ्वी की कोई भाषा है। सोमाथ।” रानी ताशा ने सोमाथ की तरफ वो कागज बढ़ाया –“यहां के लोगों से पता करो कि ये शब्द इस ग्रह पर क्या महत्व रखते हैं।”

सोमाथ वो कागज लेकर बाहर चला गया।

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एक घंटे बाद सोमाथ वापस लौटा।

“रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा –“आपने जो शब्द लिखे हैं, वो यहां का मोबाइल नम्बर है। इससे दूसरे व्यक्ति से बात की जा सकती है जिसके पास ये नम्बर होगा। मैं किसी से फोन भी लाया हूं।” सोमाथ ने हाथ में दबा फोन आगे बढ़ाया –“ये नम्बर दबाकर, आप इस बटन को दबाएंगी तो दूसरी तरफ से कोई व्यक्ति बोलेगा।”

रानी ताशा और सोमारा की नजरें मिलीं।

“ये नम्बर किस व्यक्ति का है सोमाथ?” रानी ताशा ने पूछा।

“ये तो फोन करने पर ही पता चलेगा।”

“बबूसा का नम्बर होगा ये।” सोमारा एकाएक कह उठी।

रानी ताशा की आंखें सिकुड़ी कि एकाएक मुस्कराकर बोली।

“समझी। अब समझी। महापंडित ने मुझे राजा देव का नम्बर दिया है, ताकि मैं उनसे बात कर सकूँ। मुझे फोन दो सोमाथ। ये राजा देव का ही नम्बर है। महापंडित ने मुझे राजा देव से बात करने का रास्ता दिखाया है।”

रानी ताशा ने सोमाथ से फोन लिया और वो कागज लिया जिस पर फोन नम्बर लिखा था। उन शब्दों को देख-देखकर रानी ताशा नम्बर मिलाने लगी।

चेहरे पर गम्भीरता आ गई थी। फिर अंत में सोमाथ के कहे मुताबिक कॉलिंग बटन दबाया और फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी।

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“बबूसा।” धरा कह उठी –“सप्ताह हो गया, परंतु रानी ताशा अभी तक नहीं आई।”

“वो जरूर आएगी।” बबूसा ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

रात के आठ बज रहे थे। बबूसा और धरा बैठे समोसे खा रहे थे। बबूसा के कहने पर जगमोहन उनके लिए समोसे लाया था और साथ में कॉफी बनाकर दी थी। देवराज चौहान और जगमोहन भी कॉफी का प्याला लिए पास में बैठे थे कि अचानक ही धरा ने ये बात शुरू कर दी थी।

“परंतु अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था।” धरा ने पुनः कहा।

“रानी ताशा जरूर आएगी। वो राजा देव को वापस पाने के लिए हर तरह का जुगाड़ लगा रही होगी।” बबूसा खाते-खाते बोला।

जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।

“इसकी सेवा करते-करते मैं थक गया हूं।”

“मुझे इसकी बातों पर भरोसा हो चुका है। ये गलत बंदा नहीं है।” देवराज चौहान ने कहा।

“शुक्रिया राजा देव जो आपने मेरे लिए ये शब्द कहे।” बबूसा मुस्कराकर कह उठा।

“तुम चुप रहो।” जगमोहन ने मुंह बनाया –“अब मुझसे तुम्हारे काम

नहीं होते।”

“रानी ताशा के आने पर सबसे ज्यादा मेरी जरूरत ही पड़ेगी।” बबूसा ने मुस्कराकर कहा –“तब तो...”

उसी पल धरा का फोन बजा।

दूसरी तरफ सोलाम था और बबूसा ने उससे बात की।

“कुछ किया तुमने?” बबूसा ने फोन पर सोलाम से पूछा।

“हां। मैंने बहुत मेहनत लगाकर मुम्बई में मौजूद डोबू जाति के सब योद्धाओं को इकट्ठा किया है। मैंने उन्हें बताया कि किस तरह रानी ताशा डोबू जाति में आई और सब महत्वपूर्ण लोगों की जान लेकर डोबू जाति पर अपनी हुकूमत कायम कर ली है। पहले तो वो मेरी बात माने ही नहीं। वो यही कहते रहे कि ओमारू ने उन्हें बबूसा और लड़की को मारने भेजा है, वो काम पूरा करके ही वापस जाएंगे। परंतु मैंने यंत्र पर उनकी बात अगोमा से कराई तो मामले की गम्भीरता का उन्हें पता चला, तब जाकर वो मेरी बात माने और मेरा साथ देने को तैयार हो गए।”

“ये तो खुशी की बात है।” बबूसा बोला –“वो कितने लोग हैं?”

“चौबीस।”

“काफी हैं। इससे हमारी ताकत काफी बढ़ जाएगी।” बबूसा सोच भरे स्वर में बोला।

“मैं इन सबको लेकर अपने ठिकाने की तरफ जा रहा हूं।”

“सीधे रानी ताशा के आदमियों के पास मत चले जाना।”

“हम दूर रहेंगे और इस बात की योजना बनाएंगे कि कैसे उनकी तरफ बढ़ा जाए। पहले हम वहां के हालात देखेंगे।”

“इन योद्धाओं के पास हथियार तो होंगे?” बबूसा ने पूछा।

“हथियार हैं। परंतु इतने भी ज्यादा नहीं हैं कि उन लोगों के साथ लड़ाई छेड़ी जाए।”

“मैं यंत्र द्वारा अगोमा से बात करूंगा कि क्या वो वहां से हथियार निकालकर तुम लोगों तक पहुंचा सकता है।” “

“तुमने तो कहा था कि वहां हथियार एक कमरे में बंद हैं।”

“ये बात अगोमा ने ही मुझे बताई थी। अगर अगोमा हथियार लाकर नहीं दे सका तो तुम लोगों को नए हथियार बनाने पड़ेंगे। डोबू जाति के ठिकाने से मुनासिब दूरी पर अपना ठिकाना बना लेना। वहीं पर रहकर हथियार तैयार करो।”

“अगोमा से बात करूंगा कि क्या वो वहां से हथियार निकालकर हम तक पहुंचा सकता है।” उधर से सोलाम ने कहा।

“तुम बात कर लेना।”

“तुम कब आओगे हमारे पास?”

“यहां से फुर्सत पाते ही, तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा। डोबू जाति पर हम रानी ताशा की हुकूमत नहीं चलने देंगे।”

“हम उन्हें वहां से भगा देंगे।”

“अगोमा से पता करना कि वहां पर रानी ताशा के कितने लोग मौजूद हैं।”

बबूसा और सोलाम की बातचीत खत्म हो गई। धरा ने फोन वापस ले लिया।

“रानी ताशा अब हमसे ज्यादा दूर नहीं है।” बबूसा ने गम्भीर निगाहों से सब पर नजर मारी –“वो कई दिन से डोबू जाति के ठिकाने से निकली हुई है। अब तक तो मुम्बई पहुंच...”

उसी पल देवराज चौहान के फोन की बेल बजने लगी।

“हैलो।” देवराज चौहान ने फोन पर बात की।

“ये-ये तो राजा देव की आवाज है।” दूसरी तरफ से रानी ताशा का कम्पन भरा स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा।

“कौन बोल रहा है?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर थी।

“र-राजा देव, म-मैं रानी ताशा, आपकी ताशा।” रानी ताशा का कम्पन भरा स्वर खुशी में डूबा था –“म-मैंने आवाज पहचान ली है आपकी। मैं आपकी दासी ताशा, जिसे आप दिल-जान से चाहते हैं। आपने-आपने पहचाना मुझे?”

देवराज चौहान ठगा-सा, फोन कान से लगाए बैठा रहा।

रानी ताशा के सुबकने का स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ता रहा।

“कितनी देर बाद मैंने आपकी आवाज सुनी है देव। मेरे कान तरस गए थे आपकी आवाज सुनने को। आपके बिना मैं पागल हो गई थी राजा देव। जब-जब भी महापंडित ने मेरा जन्म कराया, मैं आपकी तलाश में ही रही। आपको ही ढूंढ़ते रह गई। महापंडित ने मुझे बताया था कि आप जिंदा हैं तो मैंने आपको वापस लाने का फैसला कर लिया। अब आपको लेने के लिए ही सदूर ग्रह से पृथ्वी ग्रह पर आई हूं। मेरे देव, अपनी ताशा को भूल तो नहीं गए। मैं-मैं...।”

“ताशा?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

बबूसा चौंककर देवराज चौहान को देखने लगा।

जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

धरा ने समोसा खाना छोड़ दिया।

“देव, मेरे देव।” उधर से ताशा का थरथराता स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ा –“आप कहां हैं देव?”

“ताशा...म-मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।” देवराज चौहान के होंठों से निकल गया।

“ये क्या कह रहे हो देव, अपनी ताशा को नहीं पहचाना...आप मुझे कितना प्यार करते थे। मेरे बिना एक पल भी नहीं रहते थे। आपकी जान तो मेरे में बसी थी देव, फिर आप मुझे भूल कैसे सकते हैं।”

“म-मैंने पहचान लिया।” देवराज चौहान कह उठा –“तुम ताशा...ओह-नहीं पहचाना, मैं नहीं जानता तुम कौन हो।”

“मैं ताशा हूं। आपकी पत्नी, आपकी रानी। आप सदूर ग्रह के राजा थे, आप मेरे सब कुछ थे। आप मुझे सदूर ग्रह की सबसे खूबसूरत लड़की मानते थे। मेरे प्रेमी थे और मैं आपकी थी राजा देव। आपकी ताशा-अभी-अभी आपने कहा था कि आप मुझे पहचान गए हैं। कहा था न, आप सच में मुझे पहचान गए हैं, याद आया कि सदूर ग्रह पर हम...”

“हां-हां ताशा हो तुम-ताशा-पर कौन ताशा?” देवराज चौहान परेशानी भरे स्वर में कह उठा –“मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। तुम्हारी आवाज मेरे दिमाग में हलचल पैदा कर रही है, मैं ठीक से सोच नहीं पा रहा...”

“सोचो देव, मेरे बारे में सोचो-मैं याद आ जाऊंगी। ताशा हूं मैं आपकी सबसे प्यारी।” उधर से रानी ताशा सिसक उठी –“अब कितनी कठिनाइयों से मैंने आपको तलाशा है और आप मुझे भूल गए।”

“ताशा...।” देवराज चौहान बुदबुदाया।

“आपकी ताशा, देव। आप तो मेरे दीवाने हुआ करते थे। इतने दीवाने कि मैं आपसे तंग आ जाया करती थी और खुद को कमरे में बंद कर लिया करती थी। मुझे वो ही देव चाहिए। बोलो देव, मुझे वो ही प्यार दोगे न जब हम...”

“हां-हां वो ही प्यार दूंगा।” देवराज चौहान व्याकुलता से कह उठा –“पर तुम कौन हो, मैं-मैं तुम्हें पहचान क्यों नहीं रहा? तुम्हारी आवाज मेरे दिमाग में खलबली क्यों पैदा कर रही है। मैं अचानक परेशान क्यों हो गया हूं।”

“मेरे देव। मुझसे मिलो। मुझे अपनी बांहों में ले लो। मैं तुम्हारी चौड़ी छाती पर सिर रखकर सोना चाहती हूं। याद है जब मैं तुम्हारी छाती पर सिर रखकर सो जाया करती थी तो तुम घंटों नहीं हिलते थे कि कहीं मेरी नींद खराब न हो जाए। तुम्हारे प्यार का दीवानापन मैं कभी नहीं भूल सकी। अब मुझे प्यार का महत्व समझ में आया तो तुम अपनी ताशा को भूल गए देव।”

“ताशा।” देवराज चौहान सोचों में गुम कह उठा –“तुम्हारी आवाज-आवाज मुझे पहचानी-सी लगती है।”

“ओह, आप मेरी आवाज को पहचान रहे हैं तो मुझे भी पहचान लेंगे। आपकी ताशा आपके पास ही है। आपके बेहद करीब, आपको मेरे जिस्म की महक बहुत अच्छी लगती थी याद है देव, आप मुझे तंग किया करते थे। छेड़ा करते थे फिर मुझे बांहों में भर लेते थे और कसकर दबा लेते थे ओह, कितना अच्छा था वो वक्त। वो वक्त फिर वापस आ जाएगा देव, सब ठीक हो जाएगा। हम अब कभी भी जुदा नहीं होंगे। तब मैं आपके प्यार को ठीक से समझ नहीं सकी और भूल कर बैठी। लेकिन अब मुझसे कोई भूल नहीं होगी। हम बहुत खुश रहेंगे देव। सदूर ग्रह को आपकी जरूरत है। वो राजा देव की वापसी चाहते हैं। आप मेरे साथ वापस अपने सदूर पर।”

“ताशा।” देवराज चौहान का स्वर कांप उठा।

“देव, मेरे देव, मुझे बताओ आप कहां पर हैं, मैं आपके पास आती हूं।”

“हां-हां।” देवराज चौहान व्याकुलता से बोला –“मैं तुम्हें अपना पता बताता हूं तुम...।”

तभी बबूसा ने बाज की तरह झपट्टा मारा और देवराज चौहान का फोन ले लिया।

“इसे बंद कर लो।” बबूसा ने फोन धरा को दिया।

धरा ने फोन बंद कर दिया।

देवराज चौहान, बबूसा को देखने लगा। उसके चेहरे पर परेशानी थी।

जगमोहन चुपचाप बैठा दोनों को देखने लगा।

“ये आप क्या कर रहे हैं राजा देव। रानी ताशा को अपना पता बता रहे हैं।” बबूसा कह उठा।

“तुमने मेरा फोन क्यों छीना?” देवराज चौहान ने नाराजगी से कहा।

जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

देवराज चौहान व्याकुल था।

धरा भी देवराज चौहान को देखने लगी थी।

“आप रानी ताशा से बात कर रहे थे न?” बबूसा बोला।

“ताशा?” देवराज चौहान कह उठा –“ये नाम सुना हुआ लगता है। मुझे लगता है मैंने उसकी आवाज पहले भी सुन रखी है।”

“किसकी?” जगमोहन कह उठा।

“ताशा की आवाज।” देवराज चौहान कह उठा –“मैंने सुन रखी है वो आवाज।”

“कहां?”

“पता नहीं। याद नहीं आ रहा, परंतु मैंने उसकी आवाज सुन रखी है। उससे बात करके मुझे अच्छा लग रहा था।” देवराज चौहान खोया-खोया-सा कह उठा –“तुमने मुझसे फोन क्यों ले लिया?”

“रानी ताशा की आवाज सुनते ही आप पर कुछ प्रभाव हो गया है राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“महापंडित ने ये नई चाल चली है कि रानी ताशा से आपको फोन करा दिया। ताकि उसकी आवाज का प्रभाव आप पर हो सके। आप खतरे में घिरते जा रहे हैं राजा देव। रानी ताशा मुम्बई पहुंच चुकी है और फोन करके अपनी पहली चाल भी चल दी है उसने।”

‘ताशा।’ देवराज चौहान सोच भरे अंदाज में बड़बड़ाया।

जगमोहन की निगाह एकटक देवराज चौहान पर थी।

“क्या हुआ?” जगमोहन ने पूछा।

“वो-वो ताशा थी। ताशा...।” देवराज ने खोए अंदाज में जगमोहन को देखा।

“कौन ताशा?”

“मालूम नहीं। लेकिन मैं उसे जानता हूं। मैं उसकी आवाज को पहचान पा रहा हूं। मैंने उसकी आवाज...।”

“तुम्हें नगीना भाभी की आवाज भूल गई क्या?” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“नगीना?” देवराज चौहान बोला –“नहीं, मैं ताशा की बात कर...।”

“मैं नगीना भाभी की बात कर रहा हूं।” जगमोहन का स्वर सख्त हो गया।

देवराज चौहान जगमोहन को देखने लगा। चेहरा उलझन से भरा था।

“देवराज चौहान को क्या हुआ?” धरा ने बबूसा से पूछा।

“रानी ताशा की आवाज का प्रभाव राजा देव पर असर दिखा रहा है। ये सब महापंडित की चाल है।” बबूसा गुस्से से बोला।

“होश में आओ।” जगमोहन बोला –“तुम...।”

तभी धरा के पास रखा देवराज चौहान का फोन बज उठा।

“ताशा।” देवराज चौहान बदहवास-सा कहते हुए उठा और फोन की तरफ झपटा।

“राजा देव, होश में आइए।” बबूसा फुर्ती से सामने आ गया।

जगमोहन खड़ा हो गया।

बबूसा के सामने आ जाने से देवराज चौहान का आगे बढ़ना रुक गया।

फोन की बेल बजती जा रही थी।

“मेरे सामने से हट जाओ।” देवराज चौहान गुर्राया।

“नहीं राजा देव। आप रानी ताशा की आवाज नहीं सुनेंगे। ये महापंडित की चाल है। रानी ताशा की आवाज आपके होश छीन रही है। आप फिर रानी ताशा के दीवाने हो जाएंगे और उसकी धोखेबाजी आपको याद नहीं आएगी। इसी वक्त के लिए तो मैं आपके साथ था कि रानी ताशा और महापंडित अपनी चाल में सफल न हो सकें। इन हालातों से आपको सिर्फ मैं ही बचा सकता हूं कि रानी ताशा आपको अपने ‘बस’ में न कर सके।”

“हट जाओ।” एकाएक देवराज चौहान गुर्राया और जोरों का घूंसा बबूसा के चेहरे पर मारा।

उस घूंसे का बबूसा पर कोई असर नहीं हुआ और बबूसा अपनी जगह खड़ा रहा। फोन बज रहा था। जगमोहन गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था। देवराज चौहान ने बबूसा को अपने सामने से हटाने की कोशिश करते आगे बढ़ना चाहा। तभी बबूसा का हाथ उठा और देवराज चौहान की कनपटी पर जा पड़ा। देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली।वो लहराकर नीचे गिरने को हुआ कि बबूसा ने उसे थामा और किसी खिलौने की तरह कंधे पर लादकर, देवराज चौहान के बेडरूम की तरफ बढ़ गया। फोन बजना बंद हो गया। धरा हैरत से बैठी ये सब देखे जा रही थी। बबूसा ने बेहोश देवराज चौहान को बेड पर लिटाया तो पीछे से जगमोहन भी आ पहुंचा। उसके चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी। बबूसा पलटा और जगमोहन को देखकर बोला।

“देखा तुमने राजा देव का हाल। अभी तो राजा देव ने रानी ताशा की आवाज ही सुनी है। ये सोचो कि अगर रानी ताशा को राजा देव सामने देख लें तो राजा देव किस हाल में पहुंच जाएंगे।”

जगमोहन की निगाह बेहोश देवराज चौहान पर थी।

“इसमें राजा देव की कोई गलती नहीं है।” बबूसा ने पुनः कहा –“ये सब महापंडित की शक्तियों का कमाल है। मुझे तो ये ही बताया गया था कि राजा देव, रानी ताशा को देखने पर, उसके दीवाने हो सकते हैं। परंतु अब ये बात खुल गई कि रानी ताशा के अंग-अंग में, यहां तक कि उसकी आवाज में भी, महापंडित ने ऐसा कुछ डाल दिया है कि राजा देव अपनी सुध-बुध खो बैठे। वो ही हो रहा है, जो मैं शुरू से कहता आ रहा हूं।”

“इसका हल क्या है?” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“राजा देव को रानी ताशा से दूर रखा जाए।” बबूसा ने कहा।

“ये सम्भव नहीं।”

“क्यों?”

“रानी ताशा तो कभी भी देवराज चौहान के सामने आ सकती है।” जगमोहन बोला।

“इसी बात से तो हमें बचाना है राजा देव को।”

“हम कब तक बचाते रहेंगे? ये कब तक चलेगा। इसका अंत कहां पर होगा?” जगमोहन ने पूछा।

“मैं नहीं जानता ये कब खत्म होगा।” बबूसा का स्वर गम्भीर हो गया –“रानी ताशा, राजा देव को लिए बिना पीछे हटने वाली नहीं। मैं रानी ताशा के जिद्दी स्वभाव को जानता हूं।”

“तुम्हारा मतलब कि रानी ताशा, देवराज चौहान को ले जाने में सफल रहेगी।”

“बबूसा के होते रानी ताशा सफल नहीं हो सकेगी।” बबूसा दांत भींचकर कह उठा।

“तुम क्या करोगे?”

“रानी ताशा के आसपास मौजूद लोगों को खत्म करना होगा। जिससे कि रानी ताशा की ताकत कम हो जाए, साथ ही मुझे राजा देव को भी संभाले रखना होगा कि रानी ताशा के जाल में न फंस सकें। अभी तुमने देखा ही है कि क्या हुआ है। इसी आने वाले वक्त का डर था मुझे, परंतु ये वक्त तो आना ही था। सिर्फ मैं ही महसूस कर सकता हूं कि आने वाले वक्त में क्या हो सकता है। रानी ताशा के साथ सोमाथ है जो कि मुझसे ताकतवर है। इस राह पर मेरे लिए परेशानियां कम नहीं हैं परंतु राजा देव के लिए मुझसे जो हो सकेगा, वो मुझे करना ही होगा। इस वक्त मुझे राजा देव का साथ देना है। अगर राजा देव को उस जन्म की याद आ जाती है तो फिर शायद सब कुछ ठीक हो जाए। राजा देव तब स्वयं ही सब कुछ संभाल लेंगे। लेकिन रानी ताशा के रूप का जादू राजा देव पर चल सकता है। महापंडित भी कम नहीं है। उसने कई इंतजाम कर रखे होंगे कि रानी ताशा के सामने आने पर राजा देव उसके दीवाने हो...।”

“ये कैसे सम्भव है?” जगमोहन कह उठा।

“महापंडित के लिए कुछ भी असम्भव नहीं। उसके पास ढेरों अजब-गजब मशीनें हैं, तुम शायद मेरी बात समझ न सको लेकिन बता देता हूं कि जैसे कोई किसी को देखकर उसका दीवाना हो जाता है, इसका मतलब उसके चेहरे पर ऐसी कोई ताकत है, जो दीवाना होने वाले के दिमाग पर असर कर सकती है। ऐसे ही महापंडित ने रानी ताशा के जन्म के वक्त उसके चेहरे पर ऐसी ताकत डाल दी थी कि राजा देव जब भी उसे देखें तो उसके दीवाने हो जाएं। रानी ताशा की आवाज में ऐसा जादू कर दिया महापंडित ने कि उसे सुनकर राजा देव सुध-बुध खो बैठें। जैसा कि अब हुआ।”

“देवराज चौहान तो अपनी पत्नी को भी भूल गया।” जगमोहन बोला।

“वो रानी ताशा की आवाज में छाए जादू का असर था।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“तूफान की आहट आ गई है तूफान भी आएगा। मैं नहीं जानता, आने वाले वक्त में क्या होने वाला है। महापंडित अपनी शक्तियों का रानी ताशा द्वारा इस्तेमाल कर रहा है। महापंडित बहुत विद्वान है, वो अपनी मशीनों द्वारा ही सब खेल खेलता है उसके खेल से बच पाना आसान नहीं होगा।”

जगमोहन, देवराज चौहान को देखता रहा। सोचता रहा।

बबूसा बाहर निकल धरा के पास पहुंचा तो धरा कह उठी।

“देवराज चौहान बेहोश है?”

“हां।”

“मैंने सोचा कहीं तुमने उसकी जान न ले ली हो। तुममें तो बहुत ताकत है बबूसा, जरा सा हाथ मारकर उसे बेहोश कर दिया।”

बबूसा ने कुछ कहा और सोफा चेयर पर जा बैठा।

qqq

रानी ताशा की आंखों में आंसू थे। फोन बंद होते ही उसके बेपनाह खूबसूरत चेहरे पर उदासी छा गई। वो उदास-सी दिखने लगी थी। सामने बैठी सोमारा फौरन कह उठी।

“क्या हुआ रानी ताशा?”

“राजा देव मुझे पहचान नहीं रहे सोमारा। इससे बड़ा मेरा क्या दुर्भाग्य हो सकता है।” रानी ताशा भीगे स्वर में बोली।

“वो राजा देव ही थे न?”

“हां, वो आवाज राजा देव की ही थी। राजा देव की आवाज को मैं कैसे भूल सकती हूं। उस आवाज को सुनकर मुझे कितनी शांति मिली, जैसे मेरे भाग्य के दरवाजे खुल गए।” रानी ताशा की आंखों से आंसू निकलकर गालों पर आ गए –“तीन जन्मों के बाद, चौथे जन्म में मैं राजा देव की आवाज सुन पाई हूं। मैंने कितना बुरा काम किया था जो राजा देव को धोखा दिया। पर मैंने इसकी सजा भी बहुत भुगती है। हर जन्म में राजा देव के बिना तड़पी हूं। रोई हूं...।”

“तो क्या राजा देव ने आपको जरा भी नहीं पहचाना?”

“कभी-कभी वो पहचान रहे थे फिर तुरंत ही अंजाने बन जाते। आह, मैं राजा देव के पास जाना चाहती हूं सोमारा।” रानी ताशा गालों पर आ चुके आंसुओं को साफ करती कह उठी –“अब उनके बिना मैं जी नहीं पाऊंगी।”

“क्या कहा राजा देव ने?”

“वो मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे थे। बार-बार मेरा नाम ले रहे थे। मैं उनके सामने जा खड़ी होऊं तो वो मुझे जरूर पहचान लेंगे। मैं उन्हें सब याद दिला दूंगी।” रानी ताशा तड़प उठी –“अब मुझसे रहा नहीं जाता, मैं राजा देव के पास जाऊंगी सोमारा।”

“राजा देव अब आपके बारे में ही सोच रहे होंगे।”

“पता नहीं वहां क्या हुआ है।”

“मैं समझी नहीं रानी ताशा?”

“वो मुझे अपना पता बताने वाले थे तभी फोन बंद हो गया। मैंने दोबारा फोन किया परंतु उन्होंने बात नहीं की।”

“ऐसा क्यों किया राजा देव ने?”

“शायद बबूसा कोई अड़चन डाली हो।” रानी ताशा भीगे स्वर में कह उठी –“बबूसा ने ऐसी किसी कोशिश के लिए ही राजा देव के पास है। वो जरूर रुकावटें डालेगा। मेरे और राजा देव के मिलन के दरम्यान। बबूसा को ऐसा नहीं करना चाहिए। राजा देव को खोने के बाद मैंने कितनी सजा भुगत ली। अब बबूसा मेरी सजा का वक्त और क्यों बढ़ाना चाहता है।”

“बबूसा की आप चिंता न करें रानी ताशा। उसे मैं रास्ते पर ले आऊंगी। सोमारा पर भरोसा रखिए।”

अब तक खामोश खड़ा सोमाथ कह उठा।

“मुझे कहें रानी ताशा। मैं बबूसा की गर्दन तोड़कर, राजा देव को आपके पास ले...।”

“खबरदार जो बबूसा के बारे में कुछ गलत कहा।” सोमारा गुस्से से भड़क उठी।

“आप हुक्म दीजिए रानी ताशा?” सोमाथ ने पुनः रानी ताशा से कहा।

“बबूसा, भटक चुका है सोमाथ। उसे समझाने की जरूरत है। यूं भी उसकी मौत को राजा देव कभी पसंद नहीं करेंगे। मैं बबूसा से बात करूंगी। उसे समझाकर रास्ते पर लाऊंगी। सोमारा उसे रास्ते पर ले आएगी। उसे कुछ नहीं कहना है।” रानी ताशा बोली।

“तो राजा देव को तलाश करके यहां ले आऊं?” सोमाथ ने कहा।

“उसका पता ही कहां है जो...।”

“मैं बाहर जाकर लोगों से राजा देव के बारे में पूछंगा। उनका पता मिल...।”

“राजा देव तो वो हमारे हैं। इस पृथ्वी पर तो वो किसी और नाम से पुकारे जाते होंगे। वैसे भी पृथ्वी ग्रह पर इस तरह किसी को नहीं ढूंढा जा सकता। यहां बहुत ज्यादा लोग रहते हैं। महापंडित अवश्य राजा देव का पता बता सकता है।”

“भैया ने आपको राजा देव का फोन नम्बर क्यों दिया?” सोमारा ने पूछा।

“कह नहीं सकती कि महापंडित के मन में क्या है।”

“तो भैया से पूछ लीजिए।”

“यहां पर मेरे पास वो ही यंत्र है, जिससे मैं पोपा में किलोरा से बात कर सकती हूं। महापंडित से मैं सीधे बात नहीं कर सकती। किलोरा से ही कहना होगा कि वो मेरे सवाल महापंडित से पूछे।” रानी ताशा ने कहा।

“भैया से आप राजा देव का पता लीजिए, हम वहां चलते हैं। मैं बबूसा से भी मुलाकात कर लूंगी। आप राजा देव के पास बैठकर उसका हाथ अपने हाथों में लेकर, आराम से अपनी बात उन्हें समझा सकती हैं

“सोमारा।” रानी ताशा के होंठों से सिसकारी निकली।

“क्या हुआ?”

“वो वक्त कितना अच्छा होगा, जब मैं राजा देव का हाथ अपने हाथ में लूंगी।” रानी ताशा खुशी से कह उठी।

“मैं तो कहती हूं वो वक्त जल्दी से आए।”

“राजा देव से प्यार किए, कितने जन्म बीत गए हैं। अब तो सब कुछ सपना-सा लगता है।”

“आपने अभी राजा देव की आवाज सुनी न?”

“हां।”

“महापंडित ने चाहा तो जल्दी ही आप राजा देव से मिलेंगी भी।” सोमारा ने मुस्कराकर कहा –“और मैं बबूसा से।”

“मैं उस वक्त को तरस रही हूं। तू बता अब राजा देव क्या सोच रहे होंगे?”

“आपके बारे में कि रानी ताशा कौन है, उसकी आवाज कितनी मधुर है और वो देखने में कितनी हसीन होगी।”

“ओह सोमारा...।” रानी ताशा ने आंखें बंद कर लीं।

तभी वहां महापंडित का स्वर गूंजा।

“मैं हाजिर हूं रानी ताशा।”

“भैया।” सोमारा के होंठों से निकला।

रानी ताशा ने तुरंत आंखें खोली और आस-पास देखा।

“तुम कहां हो महापंडित?”

“मेरी परछाई है सामने वाली दीवार पर।”

रानी ताशा, सोमारा और सोमाथ की निगाह सामने की दीवार की तरफ उठीं।

वहां मात्र छ: इंच की छोटी-सी काले रंग की परछाई को हिलते पाया।

“तुम इतने छोटे क्यों हो गए भैया?” सोमारा ने पूछा।

“आप मेरे से कुछ पूछना चाहती हैं रानी ताशा?” महापंडित की आवाज आई।

“तुमने मुझे राजा देव का फोन नम्बर क्यों दिया? तुम तो राजा देव का पता देने वाले थे।”

“बेशक रानी ताशा। परंतु मेरी मशीनों ने मुझे एहसास दिलाया कि आपका सीधे-सीधे राजा देव के पास चले जाना ठीक नहीं होगा। ऐसे मे मैंने आपकी आवाज में ऐसी शक्ति दे दी कि जिसे महसूस करके राजा देव को उस जन्म को महसूस कर सके।”

“सच में? राजा देव को याद आएगा कि ताशा उनकी पत्नी थी और वो मुझे कितना चाहते थे।”

“कह नहीं सकता कि क्या याद आएगा परंतु कुछ बातें तो याद आएंगी ही। ये बेहतर होगा कि राजा देव जब आपके सामने आएंगे तो आप उनके लिए पराई नहीं होगी, कुछ जानकारी तो होगी आपकी उन्हें।”

“उन्हें मेरी याद आएगी कि मैं...।”

“कुछ भी हो सकता है रानी ताशा। परंतु आपको कुछ वक्त धैर्य से निकालना होगा।”

“तुम मुझे राजा देव का पता क्यों नहीं दे देते। मैं सीधे उनके पास पहुंच जाऊं। मैं उन्हें देखना चाहती...।”

“जल्दी मत कीजिए रानी ताशा, अभी राह में बहुत परेशानियां हैं। आने वाला वक्त आसान नहीं होगा।”

“मुझे राजा देव मिल जाएंगे न?”

“सदूर ग्रह और पृथ्वी ग्रह में दूरी ज्यादा है, इस वजह से मैं ज्यादा बातें स्पष्ट नहीं जान पा रहा हूं। मेरी मशीनें बताते-बताते एक खास जगह पर आकर रुक जाती हैं। कई सवालों का जवाब तो अभी मेरे पास भी नहीं है। आपको सब्र से काम लेना होगा। सही वक्त का इंतजार करना होगा, परंतु वो इंतजार ज्यादा लम्बा भी नहीं रहेगा। आप जल्दी ही राजा देव से मुलाकात करेंगी। मैं आप ही के काम में लगा हूं इसके अलावा मुझे और कोई काम नहीं है।”

“अब राजा देव के बिना रह पाना कठिन हो रहा है।” रानी ताशा ने आंसू साफ किए।

“मैं जल्दी ही राजा देव से आपकी मुलाकात करवाऊंगा।” महापंडित की आवाज आई।

“बबूसा अड़चन डाल सकता है।” रानी ताशा ने कहा।

“मुझे मशीनों ने बताया कि आपकी और राजा देव की बातचीत में बबूसा ने ही समस्या खड़ी की, परंतु बबूसा की अक्ल सीधी करने के लिए सोमाथ आपके साथ है। मिलने पर बबूसा को समझाइए नहीं माने तो सोमाथ को बबूसा के सामने कर देना। सोमारा।”

“हां भैया।”

“बबूसा का ख्याल मन से निकाल दो। मैं उससे बेहतर युवक तुम्हारे लिए...”

“आप जानते ही हैं भैया कि मेरा क्या जवाब होगा।” सोमारा बोली –“बबूसा ही मुझे हर जन्म में अच्छा लगता है।”

“परंतु इस बार उसकी परवरिश पृथ्वी ग्रह पर हुई है। उसमें कई बदलाव हैं इस जन्म में।”

“मुझे वो स्वीकार है, बेशक वो कैसा भी हो।”

“वो तेरे को मुसीबतों में डाल देगा।”

“मुझे बस उसके साथ ही रहना है। उसके साथ रहकर मैं खुश रहूंगी।”

“नादान। तू बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ने जा रही है। मशीनों ने मुझे तेरे बारे में सतर्क किया है।”

“आपकी मशीनों ने बताया कि मैं बबूसा से मिलूंगी?”

“बताया।”

सोमारा का चेहरा खिल उठा।

“बस भैया, आपने मुझे खुशी दे दी। मैं बबूसा के पास रहकर खुश हूं।”

“जब तू मुसीबत में पड़ी तो मैं तेरी सहायता नहीं कर पाऊंगा।” महापंडित का नाराज स्वर सुनाई दिया।

“मुझे आपकी सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी। बबूसा इस बार बहुत ताकतवर है।”

“मुझसे जुबान लड़ाना बहुत महंगा पड़ेगा सोमारा। बबूसा इस वक्त मुसीबतों का टोकरा सिर पर रखे हुए है।”

“मैं उसे पसंद करती हूं।” सोमारा ने शांत स्वर में कहा।

कुछ पल ठहरकर महापंडित की आवाज आई।

“तू कैसा है सोमाथ?”

“बहुत अच्छा। आपने मुझे बहुत अच्छा बनाया है।” सोमाथ मुस्कराकर बोला।

“तुमने रानी ताशा का ध्यान रखना है।”

“अवश्य महापंडित।”

“बबूसा ने परेशानियां पैदा करनी शुरू कर दी हैं। उसे सबक सिखा देना।”

“भैया।” सोमारा ने पांव पटककर कहा –“ये आप क्या कह रहे हैं।”

“महापंडित।” सोमाथ बोला –“तुमने मेरा दिमाग ऐसा बनाया है कि मैं हमेशा रानी ताशा की ही बात मानूं। ऐसे में मुझे रानी ताशा की तरफ से जो आदेश मिलेगा, वो ही मानूंगा।”

“रानी ताशा जानती है कि उन्हें कब क्या आदेश देना है।” महापंडित की आवाज सुनाई दी –“मैं जा रहा हूं रानी ताशा। आप राजा देव से कुछ बार और फोन पर बात कीजिए। इससे आपको फायदा होगा।”

उसके बाद महापंडित की आवाज नहीं आई।

रानी ताशा उसी पल देवराज चौहान का नम्बर मिलाने लगी।

“राजा देव को फोन कर रही हैं रानी ताशा?” सोमारा कह उठी।

“हां।” नम्बर मिलाने के बाद रानी ताशा ने फोन कान से लगा लिया –“मैं राजा देव की आवाज सुनने को बेचैन हो रही हूं। वो भी मेरी आवाज सुनने को तरस रहे होंगे। मैं कितनी पास पहुंच चुकी हूं राजा देव के।”

दूसरी तरफ बेल जाने लगी। जाती रही।

“अभी तक बात नहीं की राजा देव ने?” सोमारा पुनः बोली।

“वो जरूर करेंगे।” रानी ताशा के चेहरे पर गम्भीरता थी।

परंतु बेल जाती रही फिर फोन खामोश हो गया।

रानी ताशा ने फोन कान से हटा लिया। आंखों में आंसू आ गए।

“क्या हुआ?”

“राजा देव बात नहीं कर रहे। जरूर बबूसा ने अड़चन खड़ी की है। तभी राजा देव बात नहीं कर रहे। परंतु मैं भी राजा देव को फोन करती रहूंगी। उन्हें अपनी ताशा से बात करनी होगी। वो मेरे हैं और मैं उन्हें वापस सदूर पर ले जाऊंगी।” रानी ताशा के स्वर में भर्राहट आ गई –“मैं उनके बिना नहीं रह सकती। ये जुदाई अब और सहन नहीं होती। मुझे राजा देव का प्यार चाहिए। वो ही, वैसा ही प्यार जो कभी वो मेरे से किया करते थे और मैंने उनके प्यार की गम्भीरता को कभी महसूस नहीं किया। पर अब ऐसा नहीं होगा। वो जितना प्यार मुझसे करेंगे, उससे ज्यादा मैं उनसे करूंगी। बस एक बार राजा देव मुझे बांहों में ले लें।” “

qqq

देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली।

रात के साढ़े दस बजे थे। जगमोहन पास ही में कुर्सी रखे बैठा था।

उसके चेहरे पर गम्भीरता थी और देवराज चौहान को होश आते पाकर संभलकर बैठ गया। पुनः देवराज चौहान के होंठों से मध्यम-सी कराह निकली फिर उसने आंखें खोल दीं। चंद क्षण वैसे ही रहा फिर उठ बैठा। जगमोहन पर नजर गई।

“मैं यहां क्यों लेटा हूं?” देवराज चौहान ने जगमोहन से पूछा।

“तुम्हें पता है।” जगमोहन ने शांत स्वर में कहा

“मुझे? मुझे क्या पता है?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

“तुम्हें कुछ याद नहीं?” जगमोहन ने होंठ सिकोड़े।

देवराज चौहान सोचता दिखा फिर बोला।

“मैं हॉल में सब लोगों के साथ बैठा था, तब-तब फोन आया था, हां फोन बजा था-फिर-फिर क्या हुआ?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा –“उसके बाद की कोई बात मुझे याद क्यों नहीं आ रही। मैं यहां कैसे पहुंचा?”

“हैरानी है कि तुम्हें कुछ याद नहीं।”

“आखिर हुआ क्या?”

“वो फोन रानी ताशा का आया था।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“रानी ताशा?” देवराज चौहान के होंठों से हैरानी से निकला –“वो रानी ताशा का फोन था?”

“हाँ।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“तुम रानी ताशा से बातें करने लगे। तुमने कई बार उसका नाम पुकारा और...”

“मुझे तो याद नहीं।”

“तुम उससे करीब-करीब दीवानों की तरह बातें करने लगे थे।”

“नहीं।” देवराज चौहान हक्का-बक्का रह गया।

“वो तुम्हें क्या कह रही थी ये तो पता नहीं, परंतु तुम उसकी बातों में डूबते जा रहे थे।”

“ऐसा हुआ तो मुझे कुछ याद क्यों नहीं?”

“मुझे भी हैरानी है कि तुम्हें सब पता होना चाहिए। रानी ताशा शायद प्यार-मोहब्बत की बातें कर रही थी। तुम्हारी बातों से तो ऐसा ही लगा। तुम बार-बार उसका नाम पुकार रहे थे। तुमने शायद ये भी कहा कि तुम्हारी आवाज सुनी है कहीं। कई बातें की उससे। तब मैंने तुम्हें नगीना भाभी की याद दिलाई।”

“तो?”

“तब तुम भूल चुके थे कि नगीना कौन है। तुम्हें सिर्फ ताशा ही याद थी। वो तुमसे तुम्हारा पता मांग रही थी। तुम पता देने वाले थे कि बबूसा ने तुमसे फोन छीन लिया। तुमने फोन वापस पाने के लिए झगड़ा किया। बबूसा को घूंसा मारा। तब बबूसा ने तुम्हें बेहोश करके यहां लिटा दिया। अब दो-ढाई घंटे बाद तुम होश में आए हो।”

“इतना कुछ हो गया और मुझे कुछ भी याद नहीं।”

“तुम रानी ताशा की आवाज सुनते ही जैसे ‘खो’ से गए थे। तुम्हें जाने क्या हो गया कि तुम अपने आप में नहीं रहे। जैसे वो तुम्हारे सिर पर सवार हो गई हो। तुम्हें सिर्फ वो ही वो नजर आ रही थी।”

“यकीन नहीं आता।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“तब से मैं तुम्हारे पास बैठा इन्हीं बातों पर विचार कर रहा हूं।” जगमोहन गम्भीर था –“तुम दीवाने जैसे बन गए थे ताशा के। ये बात बबूसा कब से कह रहा था कि तुम पहले भी कभी रानी ताशा के दीवाने थे और अब भी वो ही कुछ न हो जाए। अभी तक बबूसा की बात ठीक से मैं समझ नहीं पा रहा था, परंतु अब तुम्हारी हालत देखकर सब कुछ समझ गया। बबूसा की कही एक-एक बात सही है। तुम सच में खतरे में पड़ते जा रहे हो। रानी ताशा मुम्बई आ गई है तुम्हारे लिए। वो तुम्हें अपने सदूर ग्रह पर वापस ले जाना चाहती है। ये खतरनाक बात है। अब मैं मानता हूं कि सच में कोई सदूर ग्रह है, जहां दुनिया बसती है जहां कभी तुम रहा करते थे और रानी ताशा तुम्हारी पत्नी हुआ करती थी। महज एक फोन ने तुम्हारी जो हालत बना दी, वो खतरे की घंटी है हमारे लिए। तुम्हारी हालत अचानक बदल गई थी। मैं स्तब्ध रह गया था तब और...”

“पर मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा?” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा।

“ये मामला अब रुकेगा नहीं, और आगे बढ़ेगा।” जगमोहन ने चिंता से कहा।

“क्या मतलब?”

“रानी ताशा तुम्हें अपने साथ लेकर जाना चाहती है। उसके एक फोन ने हमें हिलाकर रख दिया। इसी से समझा जा सकता है कि वो कितनी ताकत रखती होगी। अगर बबूसा पास में न होता तो जाने क्या हो जाता। बबूसा उस वक्त तुम्हारी बातों से भांप गया था कि क्या हो रहा है और तुम्हारा फोन छीन लिया। तुम रानी ताशा को अपना पता बताने जा रहे थे। अगर बता देते तो अब तक रानी ताशा यहां पहुंच गई होती।”

देवराज चौहान बेड से उठकर कुर्सी पर आ बैठा। वो गम्भीर दिखा।

उसने सिगरेट सुलगाई।

जगमोहन उसे देखता रहा।

“तो रानी ताशा आ गई, जिसका कि बबूसा इंतजार कर रहा था।” देवराज चौहान बोला।

“बबूसा ने हर बात सच कही है। इसमें कोई शक नहीं है।”

“रानी ताशा के पास मेरा फोन नम्बर कहां से आया?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

“ये तो स्पष्ट है कि रानी ताशा अकेली नहीं होगी।”

“उसके साथ सोमाथ है, बबूसा का कहना है कि वो बहुत ताकतवर है। इसके अलावा भी रानी ताशा के पास और लोग होंगे।”

“उसके पास मेरा नम्बर...”

“बात नम्बर की नहीं है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा –“बात ये है कि वो आ गई है। अभी उसके और फोन भी आएंगे और वो खुद भी, कभी भी यहां आ सकती है। तब-तब क्या होगा?”

देवराज चौहान जगमोहन को देखने लगा।

चंद पल उनके बीच चुप्पी रही।

“क्या तुम रानी ताशा के साथ सदूर ग्रह पर जाना चाहते...।”

“क्या बकवास कर रहे हो।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गए –“मैं क्यों कहीं जाऊंगा। मैं नहीं जानता कि रानी ताशा कौन है। मैंने उसे कभी देखा भी नहीं। अगर मुझे इन बातों का पता भी चल जाए तो भी मैं कहीं नहीं जाऊंगा। उस जन्म की बातें तभी खत्म हो गई थीं। अब मैं बाद का जन्म जी रहा हूं। यहां मेरे अपने लोग हैं। मेरी पत्नी है। तुम हो। मैं सोच भी नहीं सकता यहां से किसी और ग्रह पर जाने की...मेरी दुनिया यहां है।”

“तो फिर तुम फोन पर रानी ताशा से बातें करते, प्यार में गुम क्यों हो गए थे?”

“मैं-मुझे कुछ याद नहीं।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“एक बात भी याद नहीं?”

“नहीं। जरा भी नहीं।”

“रानी ताशा की आवाज तो याद होगी?”

देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिला दिया।

जगमोहन गम्भीरता से देवराज चौहान को देखने लगा।

“मुझे तो यकीन नहीं आ रहा कि मैं रानी ताशा से बात करते, उसका दीवाना हो गया था। ये कैसे सम्भव है।”

“ऐसा हुआ था।”

“मैं तुम्हें गलत नहीं कह रहा।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला –“लेकिन ये बातें मैं कैसे भूल गया?”

“मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं।”

“तुम इस तरह क्यों बात कर रहे हो जगमोहन। जो कहना चाहते हो कहो...।” देवराज चौहान ने उसे देखा।

“ये मामला, नगीना भाभी से वास्ता रखने लगा है क्योंकि दूसरी औरत तुम्हें अपना पति कहती है और वो तुम्हें अपने साथ ले जाने की चेष्टा में है। मेरा फर्ज बनता है कि मैं नगीना भाभी को इन सारे हालातों की जानकारी दूं।”

“ये ठीक नहीं होगा।”

“क्यों?”

“नगीना चिंता करेगी। वो रानी ताशा को लेकर परेशान होगी कि वो...”

“नगीना भाभी समझदार है। उन्हें मामला समझते देर नहीं लगेगी। ऐसे वक्त में मैं भाभी के पास होना ठीक समझता हूं। भाभी हमारे काम ही आएंगी। वो हम लोगों से किसी तरह कम नहीं हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“नगीना को इस मामले से दूर ही रखा जाए तो ठीक...”

“मैं भाभी को फोन नहीं करूंगा। फोन पर ऐसी बात कहना-समझना कठिन होता है।” जगमोहन दृढ़ स्वर में बोला -“कल सुबह मैं खुद भाभी के पास जाऊंगा। सब कुछ बताऊंगा। उसके बाद भाभी की इच्छा है कि वो...”

तभी कदमों की आहटें उभरी और बबूसा के साथ धरा ने भीतर प्रवेश किया।

“इसे तो होश आ गया।” धरा कह उठी।

“राजा देव।” बबूसा खुशी से कह उठा –“आपको होश आ गया। मैंने बहुत धीमे से मारा था। तब वैसा करना जरूरी हो गया था वरना मेरी क्या हिम्मत कि आपकी इजाजत के बिना मैं आपको छू भी सकूँ।”

देवराज चौहान ने गम्भीर निगाहों से बबूसा को देखा।

“कुछ गलत हो गया क्या राजा देव?”

“मुझे जगमोहन ने बताया जो हुआ था, वो सब मुझे याद क्यों नहीं है?” देवराज चौहान बोला।

“ये तो अच्छी बात है कि आपको कुछ याद नहीं।” बबूसा संजीदा हो गया –“आपको कुछ याद न रहना ही अच्छी बात है। हालात अब बिगड़ने शुरू हो गए हैं। रानी ताशा मुम्बई पहुंचकर हरकत में आ चुकी है। मुझे जैसा डर था वैसा ही हुआ। आप रानी ताशा के दीवाने होते जा रहे थे फोन पर। आपके होश गुम होने लगे थे।”

“मुझे पता चला कि मैंने तुम्हें मारा।”

“आप राजा देव हैं। कुछ भी करने का हक है आपके पास। फिर उस वक्त आप होश में ही नहीं थे। आप तो रानी ताशा की आवाज के प्रभाव में आ गए थे। ये सब महापंडित ने किया है, ऐसा कर देना उसके लिए मामूली बात है। जाल तो आपके आस-पास पहले ही बिछ चुका था अब जाल कसना शुरू हो गया है। रानी ताशा और महापंडित आपको जकड़ लेना चाहते हैं। परंतु जब तक मैं जिंदा हूं आपका कुछ नहीं बिगड़ने दूंगा। बबूसा पर भरोसा रखें राजा देव।”

“देवराज चौहान साहब।” धरा कह उठी –“आपने रानी ताशा को देखा नहीं, वो खूबसूरत है या बदसूरत, और फोन पर उसकी आवाज सुनते ही उसके दीवाने जैसे हो गए।”

“तब राजा देव अपने होश में नहीं थे।” बबूसा बोला।

“इतना तो पता ही होगा कि तब क्या कह...”

“राजा देव को कुछ भी याद नहीं है। ये सब महापंडित खेल, खेल रहा है। उसकी शक्तियां काम कर रही हैं। वो मशीनें बनाता है और उनसे बातें करता है, वो बहुत कुछ करता है। अब रानी ताशा का साथ दे रहा है महापंडित कि रानी ताशा राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जा सके। महापंडित राजा देव के साथ धोखेबाजी कर रहा है।” बबूसा के चेहरे पर गुस्सा आ गया –“महापंडित खूब जानता है कि रानी ताशा ने राजा देव को कैसा बुरा धोखा दिया था। आज तक रानी ताशा को सजा नहीं दी गई। सजा देता भी कौन, रानी ताशा तो सदूर ग्रह पर सबसे बड़ी है। रानी ताशा चाहती है कि आपको सदूर पर ले जाने के पश्चात, महापंडित आपके दिमाग का वो हिस्सा साफ कर दे, जहां उस जन्म की यादें मौजूद हैं और वो आपको याद आ गई तो आप रानी ताशा को सख्त से सख्त सजा देंगे। ये काम की सोचकर महापंडित भी सजा का हकदार बनता जा रहा है। ऐसे मौके पर उसे रानी ताशा का साथ नहीं देना चाहिए। सबसे पहले महापंडित को चाहिए कि वो आपको उस जन्म की याद कराए फिर रानी ताशा से आपका सामना कराए तो बढ़िया बात हो। लेकिन महापंडित रानी ताशा की बातें मानकर, रानी ताशा के मुताबिक सारे काम कर रहा है। महापंडित अब कमीना बन गया है। लेकिन राजा देव बबूसा आपका सेवक था और आपका ही रहेगा। सबसे पहले मैं आपके भले की सोचता हूं। मेरी पूरी कोशिश होगी कि आपको रानी ताशा से दूर रखू और तब तक ऐसा करूं जब तक आपको सदूर ग्रह वाला जन्म न याद आ जाए। जब ऐसा हो गया तो उसके बाद आप जो भी फैसला लेंगे, वो आपकी मर्जी। मैं तो आपका सेवक हूं, सेवक ही रहूंगा।”

चुप्पी-सी आ ठहरी कमरे में। जगमोहन ने खामोशी को तोड़ते हुए कहा।

“महापंडित कहां पर मिलेगा?”

“सदूर ग्रह पर।”

“वो रानी ताशा के साथ पृथ्वी पर नहीं आया?”

“महापंडित कहीं भी आता-जाता नहीं। वो तो सदूर पर भी अपनी जगह से बाहर नहीं निकलता। उसके पास बहुत काम है करने को। वो हर समय व्यस्त रहता है। कई-कई दिन वो नींद नहीं लेता, तब भी उसके होश बराबर कायम रहते हैं।”

“अजीब इंसान है वो।”

“महापंडित बहुत गुणी और विद्वान व्यक्ति है। मैं खुद उसकी तारीफ करता हूं।” बबूसा ने कहा –“परंतु उसकी जो बात गलत है वो गलत है। उसे रानी ताशा का साथ इस तरह नहीं देना चाहिए। परंतु वो भी ये इच्छा रखता है कि राजा देव फौरन वापस सदूर पर लौट आए जबकि मेरी इच्छा है कि राजा देव को सदूर ग्रह वाला जन्म याद आए। वो जानें कि रानी ताशा ने उनके साथ कैसी धोखेबाजी की थी। कैसा व्यवहार किया था, उसके बाद ही रानी ताशा के बारे में फैसला लें। मुझे ये पसंद नहीं कि रानी ताशा इतना बड़ा धोखा करने के बाद, राजा देव की गुनहगार होने के बावजूद भी, राजा देव को इसके प्रति अंजान रखे और पुनः राजा देव का हाथ थाम ले। रानी ताशा का हाथ थामे या नहीं, ये फैसला होशोहवाश में ही राजा देव करेंगे।”

“लेकिन अब मुझे सदूर ग्रह से कोई मतलब नहीं है।” देवराज चौहान ने कहा।

“बेशक आपको मतलब न हो।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“परंतु मुझे आपसे तो मतलब है। रानी ताशा को तो सदूर ग्रह से मतलब है। रानी ताशा की जान तो आप में बसी है परंतु अपना गुनाह याद करने को वो तैयार नहीं है। ये मामला आप ही का नहीं है राजा देव, हम सबका है इसका हल निकालना भी जरूरी है। मैं नहीं जानता कि आने वाले वक्त में क्या होगा, परंतु रानी ताशा आपको सदूर ग्रह पर ले जाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी।”

“अगर मुझे सब याद आ जाता है तो?” देवराज चौहान बोला।

“फिर तो सारा मामला ही सुलझ जाएगा।” बबूसा बरबस ही मुस्करा पड़ा –“रानी ताशा में इतनी हिम्मत कहां जो राजा देव के सामने सिर उठा सके। महापंडित आपकी एक आवाज में सीधा हो जाएगा। परंतु आपको सदूर ग्रह का वो जन्म, वो सब कुछ याद आना चाहिए। रानी ताशा का धोखा पता चलना चाहिए, तभी तो आप कुछ करेंगे।”

“अब रानी ताशा क्या करेगी?” धरा ने पूछा।

“पता नहीं क्या करेगी परंतु वो अपनी कोशिश फिर करेगी। जब तक वो कामयाब नहीं हो जाती, तब तक वो अपना ये सिलसिला चलाती रहेगी। रानी ताशा कदम उठाकर पीछे हटने वाली नहीं। वो राजा देव को सदूर ग्रह पर ले जाकर ही मानेगी। परंतु जब तक बबूसा जिंदा है, रानी ताशा के लिए ये काम आसान नहीं रहेगा।” बबूसा गुर्रा उठा था।

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अगले दिन सुबह दस बजे जगमोहन, नगीना के बंगले पर पहुंचा।

नगीना ने जगमोहन को देखा तो मुस्कराकर बोली।

“आज रास्ता भूल गए क्या जगमोहन भैया, जो इधर को आ गए?”

दोनों सोफों पर आमने-सामने बैठे।

नौकरानी ने जगमोहन को पानी दिया फिर कॉफी बनाने किचन में चली गई।

जगमोहन की चुप्पी देखकर नगीना मन-ही-मन सतर्क हुई।

“क्या बात है जगमोहन भैया?” नगीना ने पूछा –“तुम चुप-चुप से लग रहे हो।”

“मैं कुछ बताने आया हूं भाभी।”

“देवराज चौहान तो ठीक है?” नगीना के होंठों से निकला।

“वो ठीक है।”

“फिर क्या बात है?”

जगमोहन ने नगीना को सब कुछ बता दिया।

जो भी जगमोहन जानता था, वो अब नगीना भी जान गई।

परंतु नगीना के चेहरे पर उलझन की लकीरें दिखने लगी थीं।

“मुझे विश्वास नहीं आता।” नगीना के होंठों से निकला।

“किस बात का?”

“जो बात तुमने बताई। रानी ताशा के बारे में कि वो दूसरे ग्रह से आई है और देवराज चौहान के तीन जन्म पहले के पहले जन्म में उसकी पत्नी थी और अब अंतरिक्ष यान में बैठकर देवराज चौहान को लेने आई है।”

“ये सच है भाभी। पहले हमें भी बबूसा की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था। परंतु धीरे-धीरे पता लगा कि बबूसा जो कह रहा है वो सच है। डोबू जाति सच है। महापंडित सच है। हर बात सच है जो बबूसा कह रहा है। कल रात जब रानी ताशा का फोन आया देवराज चौहान को तो देवराज चौहान की हालत देखने वाली थी। उसकी आवाज सुनते ही सुध-बुध खो बैठा। ताशा-ताशा करने लगा। ताशा की आवाज उसे पहचानी-सी लगने लगी। वो दीवानों की तरह उससे बात करने लगा था।”

“मुझे यकीन नहीं होता।”

“बबूसा कहता है कि ऐसे कारनामे महापंडित करवाता है।”

“महापंडित? जो कि इस वक्त किसी दूसरे ग्रह पर मौजूद है?” नगीना की आंखें सिकुड़ीं।

“हां।”

“मैं नहीं मानती। ये कोई चाल है कुछ लोगों की। ऐसा कुछ नहीं हो सकता।” नगीना कह उठी।

“यकीन मानो भाभी मैं सच कह रहा हूं। तुम आकर सब कुछ अपनी आंखों से देख सकती हो। मैं खुद तुम्हारे पास आया हूं ये सब बताने के लिए तो तुम्हें मेरा भरोसा कर लेना चाहिए। देवराज चौहान भी जानता है कि मैं तुमसे मिलने आया हूं। मामले को हल्के में मत लो भाभी। ये गम्भीर बातें हैं। वरना मैं यहां नहीं आता।” जगमोहन ने कहा। चेहरे पर गम्भीरता थी।

नगीना, जगमोहन को सोच भरी निगाहों से देख रही थी।

“रानी ताशा मुम्बई में कहां है?” नगीना ने पूछा।

“मैं नहीं जानता। ये बात कोई नहीं जानता अभी तक।”

“रानी ताशा से मिलना हो तो कैसे मिला जा सकता है?”

“अभी ये नहीं पता कि वो मुम्बई में कहां ठहरी है और मेरे ख्याल में उसे ढूंढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वो बहुत जल्द देवराज चौहान के पास आ पहुंचेगी। बबूसा कहता है कि रानी ताशा में इतना दम है कि वो देवराज चौहान को सदूर ग्रह पर ले जा सके। बबूसा ताकतवर इंसान लगता है, परंतु उसका कहना है कि रानी ताशा के साथ सोमाथ नाम का व्यक्ति (रोबोट) है जो उससे भी कहीं ज्यादा ताकतवर है। वो सोमाथ को लेकर चिंता में है। वो तो...”

“तुम्हें इन सब बातों पर भरोसा है?”

“पूरी तरह।” जगमोहन ने दृढ़ता से कहा।

“ये किसी की चाल है। ये एक घेराबंदी हो सकती है देवराज चौहान के लिए...”

“तुम यकीन क्यों नहीं कर रही भाभी?”

तभी नौकरानी कॉफी के प्याले रख गई।

नगीना के चेहरे पर गम्भीरता ठहरी हुई थी।

“ये बे-सिर-पैर की बातें हैं जगमोहन। कोई भी बात तुमने ऐसी नहीं कही कि मैं मान सकूं।”

जगमोहन ने आहत भाव से, नगीना को देखा।

“अजीब बातें कह रहे हो तुम और कहते हो मैं मान लूं।” नगीना बोली।

“तुम मेरे साथ चलो भाभी। खुद देख लो।” जगमोहन ने कहा।

“जरूर आऊंगी। इन हालातों में मेरा देवराज चौहान के पास रहना जरूरी है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा –“मुझे देखना है कि कौन ये चाल चल रहा है और क्या चाहता है।”

“ये चाल नहीं, ये सच बात है।” जगमोहन ने झल्लाकर कहा।

नगीना ने सिर हिलाया और गम्भीर स्वर में बोली।

“तुम मुझ पर दबाव मत डालो कि मैं तुम्हारी बात का भरोसा करूं। इस मामले को मैं अपने ढंग से देखूंगी।”

“जैसा तुम ठीक समझो।” जगमोहन उठ खड़ा हुआ –“मैं बंगले पर ही जा रहा हूं तुम मेरे साथ चलना चाहो तो...”

नगीना कुछ पल जगमोहन को सोच भरी निगाहों से देखती रही, फिर कह उठी।

“मुझे कुछ काम है। तुम चलो, मैं वो काम निबटकर, वहां पहुंचती हूं।”

जगमोहन जाने लगा तो नगीना बोली।

“कॉफी तो पी लो भैया।”

“तुम बंगले पर पहुंचो भाभी। मैं कॉफी तैयार रखूंगा। मेरा वहां पहुंचना जरूरी है।” कहकर जगमोहन बाहर निकल गया। नगीना वहीं बैठी रही, चेहरे पर सोचें लहर बनकर दौड़ती रहीं

“मैं नहीं मान सकती।” नगीना बड़बड़ा उठी ये किसी ने जबर्दस्त चाल चली है कोई और इन लोगों को समझ नहीं आ रहा कि क्या हो रहा है। ये सच मान बैठे हैं हालातों को। देवराज चौहान के चार जन्म पहले की पत्नी रानी ताशा? किसी और ग्रह पर रहती है और वो पृथ्वी पर आई है राजा देव को वापस ले जाने के लिए? ये कभी नहीं हो सकता। देवराज चौहान को बातों में उलझाकर कोई खेल, खेल रहा है और ये सब उसी खेल में उलझ गए हैं। मैं इस खेल का पर्दाफाश करके रहूंगी। कैसे? मुझे किसी ऐसे इंसान की जरूरत है जो सारे मामले की तह तक पहुंच सके। जो एक-एक बात को खोल कर रख दे। कौन करेगा ऐसा?”

नगीना सोचती रही।

उलझी-सी वहीं बैठे रही। कुछ मिनट बाद उसके होंठों से निकला।

“ओह, मुझे प्राइवेट जासूस की जरूरत है इस मामले में। ऐसा प्राइवेट जासूस जिस पर मैं पूरी तरह भरोसा कर सकूं क्योंकि ये मामला देवराज चौहान से वास्ता रखता है। इस सारे काम में गोपनीयता की जरूरत पड़ेगी। लेकिन मैं किसी प्राइवेट जासूस को जानती नहीं।” फौरन ही नगीना उठती हुई बोली –“रात्रिका जरूर जानती होगी या वो पता करके मुझे बता सकती है।”

बेडरूम में पहुंचकर नगीना ने अपना मोबाइल उठाया और उसमें से रात्रिका का नम्बर निकालकर मिलाया।

दूसरी तरफ बेल जाने लगी। फिर युवती की आवाज कानों में पड़ी।

“कैसी हो नगीना। बहुत दिन से तुमने बात नहीं की। मैं भी कुछ व्यस्त थी फोन नहीं कर सकी।”

“मुझे किसी प्राइवेट जासूस की जरूरत है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम इस बारे में कुछ बता सकती हो?”

“प्राइवेट जासूस? सब ठीक तो है?”

“सब ठीक है तू किसी प्राइवेट जासूस को जानती है?”

“इधर मुम्बई में तो नहीं जानती। परंतु आठ साल पहले जब दिल्ली में मेरा अपहरण बदमाशों ने फिरौती के लिए किया था तो पापा ने उस प्राइवेट जासूस की सेवाएं ली थीं, वो मुझे बदमाशों से छुड़ा लाया था। वो हिम्मती और अच्छा इंसान लगा था मुझे। शरीफ भी है। वो चाहता तो मेरा फायदा उठा सकता था, परंतु उसने ऐसा कुछ नहीं किया। उसे कई मौके मिले भी। मिले क्या मैंने ही दिए मौके। वो मुझे अच्छा लगने लगा था।”

“मुझे विश्वास वाला बंदा चाहिए।”

“वो पूरी तरह भरोसे का है।”

“उसका नाम पता बता...”

“अर्जुन भारद्वाज नाम है उसका। दिल्ली के करोल बाग इलाके में, चैम्बर ऑफ जमुना प्रसाद बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर सुपर प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी के नाम से उसका ऑफिस है। होल्ड कर, उसका फोन नम्बर भी बताती हूं।”

सोचों में डूबी नगीना ने मोबाइल कानों से लगाए रखा।

मिनट भर बाद रात्रिका की आवाज पुनः आई।

“नोट कर-98187...” रात्रिका ने प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज का मोबाईल नम्बर बताया –“लेकिन बात क्या है जो तुझे प्राइवेट जासूस की जरूरत पड़ गई। ऐसी-वैसी बात है तो मैं तेरे पास आती हूं...”

“सब ठीक है। तू परेशान न हो। मेरी एक दूसरी सहेली को प्राइवेट जासूस की जरूरत है। फिर फोन करूंगी।”

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