कमिश्नर बाजरे और इंस्पेक्टर पेरवले हॉस्पिटल से बाहर निकले कि सामने से सावटे आता दिखा।

सावटे के चेहरे पर हड़बड़ी के भाव थे।

"सर।"पास आता सावटे कह उठा--- "होटल के हॉल में मिली लाशों की पहचान हो...।"

बाजरे उसी पल पेरवले से कह उठा---

"तुम अस्पताल में उन दोनों पर सख्त नजर रखोगे।"

"यस सर।"

"सर, मैं लाशों की पहचान की बात...।" सावटे ने तेज स्वर में पुनः कहना चाहा।

"उधर आओ, बात करते हैं।"

कमिश्नर बाजरे इंस्पेक्टर सावटे को एक तरफ ले गया।

"सर, उन लाशों की पहचान हो गई है। एक दो की नहीं हो सकी। मुंबई का ड्रग्स किंग सुधीर दावरे, हथियार सप्लायर्स अकबर खान, हफ्ता वसूली करने वाला बादशाह वंशू करकरे और मुंबई भर में वेश्याओं का धंधा चलाने वाले दीपक चौला के आदमी थे मरने वाले।" सावटे ने एक ही सांस में कह दिया।

"ये बात मैं रात ही जान गया था।"

"जान गए थे आप?" सावटे के होंठों से निकला।

"तुम उन सबकी रिकॉर्ड फाइल तैयार करो। इस मामले में आगे हमें जरूरत पड़ेगी। ये काम तुम खुद ही करोगे और किसी को बताओगे नहीं कि मरने वाले आदमी, उन चारों के थे।"

"ठी...ठीक है सर। परंतु वो चारों एक जगह इकट्ठे क्यों हुए थे।"

"तुम्हें खबर है कि उन चारों का आपस में कोई संबंध है?"

"मैंने तो ऐसा नहीं सुना।"

"किसी ने भी ऐसा नहीं सुना। परंतु वे चारों मिले, पांचवा और भी था वहां...।"

"पांचवा कौन सर?"

"सर्दूल। दिल्ली और मुंबई बम ब्लास्टों का आरोपी जो कि...।"

"वो तो सर पाकिस्तान या दुबई में...।"

"इन दिनों वो मुंबई में है।"

इंस्पेक्टर विजय सावटे, कमिश्नर बाजरे को देखने लगा।

"क्या हुआ?" बाजरे ने पूछा।

"मैंने तो सोचा था कि मैं आपको बढ़िया जानकारी देने जा रहा हूं। परंतु आपने ही मुझे हैरान कर दिया।"

"तुम बढ़िया काम कर रहे हो और आगे भी ऐसे ही काम करो।"

"जी सर। मैं मरने वालों की रिकॉर्ड फाईल तैयार करता हूं।"

तभी बाजरे का मोबाइल बजने लगा।

"ये बात अपने तक ही रखना और जाने से पहले पेरवले से मिल लो।"

सावटे सैल्यूट देकर पेरवले की तरफ बढ़ गया।

बाजरे ने मोबाइल निकालकर कॉलिंग स्विच दबाया, फिर कान से लगाता बोला---

"हैलो...।"

"तुमने मेरी बात मानी नहीं। वो ही धमकी वाली आवाज कानों में पड़ी।

बाजरे के होंठ सिकुड़े।

"मैंने तुमसे कहा था कि इस मामले की छानबीन मत करो। बदले में पन्द्रह लाख तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा।"

"तुम कौन हो?"

"बेकार का सवाल मत करो।"

"ये बेकार का सवाल नहीं है। लगता है अब हमारे बात करने का वक्त आ गया है।"

"मैंने तुमसे सिर्फ इतना कहा है कि मामले की छानबीन मत करो और सब कुछ यहीं खत्म कर दो।"

"क्यों मानूं तुम्हारी बात?"

"क्योंकि मैं तुम्हें 15 लाख दे रहा हूं। ये काफी बड़ी रकम है।"

"तुम मुझे खरीदने की कोशिश कर रहे हो।"

"गलत शब्द इस्तेमाल मत करो। मैं तुझसे एक मामला बंद कर देने को कह रहा हूं।"

"तुम जिस चीज से डर रहे हो, वो मैं जान चुका हूं...।"

"किस चीज से डर रहा हूं मैं?"

"इस बात से कि कहीं पुलिस ये बात न जान ले कि कल आर्य निवास के हॉल में कौन-कौन मौजूद था।"

"तुमने ये बात जान ली?"

"हां...।"

"बताओ क्या जाना?"

"सुधीर दावरे, ड्रग्स किंग कल वहां था।" कमिश्नर बाजरे शांत स्वर में बोला।

"अच्छा...।"

"वेश्यालय किंग दीपक चौला और हफ्ता वसूली वाला वंशू करकरे भी वहां पर था।"

"हूं...।"

"हथियार सप्लायर्स अकबर खान भी वहीं था। ये चारों वहीं थे जब गोलियां चलीं।"

"हूं...।"

"और दिल्ली मुंबई के धमाकों का आरोपी, सर्दूल भी वहीं था।"

"तुमने तो अपनी रकम बढ़वा ली कमिश्नर। एक करोड़ की रकम कहां भिजवाऊं...?"

"किस बात को छुपाना चाहते हो तुम?"

"ये कि उन चारों का संबंध सर्दूल से है।"

"तुम्हें इससे क्या?"

"क्योंकि मैं सर्दूल हूं...।"

कमिश्नर बाजरे ने लंबी सांस ली, फिर सिर हिलाकर बोला---

"मुझे पहले से ही शक था कि तुम सर्दूल हो सकते हो।"

"सारा मामला ठप्प कर दो कमिश्नर और मुझे बताओ कि एक करोड़ मैं कहां पर भिजवाऊं?"

"तुम कानून से कब तक बचोगे सर्दूल?"

"मुझे पकड़ना आसान नहीं है। मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं।"

"सब ऐसा ही कहते हैं लेकिन एक दिन पुलिस के हाथों में फंस जाते हैं।"

"मेरे साथ ऐसा नहीं होगा।"

"तुम्हारे साथ भी ऐसा ही होगा।" कमिश्नर बाजरे ने दृढ़ स्वर में कहा।

"एक करोड़ कहां भिजवाऊं?"

"तुम्हें उन चारों के फंसने की चिंता क्यों है?" बाजरे ने पूछा।

"वो मेरे ही लोग हैं, जिन्हें मैंने बड़ा बनाया है। वरना वो खुद किसी लायक नहीं थे। अब वो अपनी कमाई का 20% मुझे देते हैं। हर हफ्ते मुझे उनसे करोड़ों की कमाई है, तो मुझे उनकी चिंता क्यों नहीं होगी? अगर ये बात जगजाहिर हो गई कि उनका संबंध मेरे साथ है तो कानून उन्हें छोड़ेगा नहीं। मेरा नुकसान हो जाएगा। मैं तो सोच रहा था कि वहां मिलने वाली लाशों से पुलिस समझ जाएगी कि वो चारों वहां थे। उन लाशों से उनका संबंध ना जुड़े, इसलिए तुम्हें पन्द्रह लाख दे रहा था पहले। परंतु तुम तो मेरी आशा से कहीं तेज निकले। तुमने तो मेरे बारे में भी जान लिया कि मैं भी वहां था। ये सब तुमने इतनी जल्दी कैसे जान लिया कमिश्नर?"

'वहां झगड़े की नौबत क्यों आई?" कमिश्नर बाजरे ने पूछा।

"झगड़ा! हम में कोई झगड़ा नहीं था।" सर्दूल का शांत स्वर कानों में पड़ा।

"गोलियां चलीं। कितने लोग मारे गए... और तुम कहते हो कि वहां झगड़ा नहीं हुआ था।"

"हुआ था, लेकिन हम में नहीं हुआ।"

"बाहरी लोग तो वहां थे नहीं। इसलिए झगड़ा तुम सब में ही...।"

"अगर हम में झगड़ा हुआ होता तो मैं तुम्हें मामला बंद करने के पैसे क्यों दे रहा हूं? मुझे क्यों परवाह होती चारों की? हम में कोई झगड़ा नहीं हुआ। हम सब एक साथ ही बाहर निकले थे...।"

"तो फिर गोलियां चलने की वजह क्या थी?"

"मैं नहीं बताने वाला।"

"अब तुम पाकिस्तान में रहते हो?"

"पाकिस्तान, दुबई... और देश भी हैं। मैं कहीं भी ज्यादा देर नहीं टिकता।"

"मैंने सुना है कि तुमने पाकिस्तान में पैसा लगा रखा है।"

"बेकार की बातें मत करो कमिश्नर। अपनी बात करो। मैं सब ठीक करके पाकिस्तान लौटना चाहता हूं। एक करोड़...।"

"मुझे तुम्हारी ऑफर मंजूर नहीं...।"

"बेवकूफी मत करो।"

"तुम कानून को अपनी मर्जी से नहीं चला सकते। ये मामला दबेगा नहीं।"

"जल्दबाजी मत करो। शाम तक सोच लो।" उधर से सर्दूल की आवाज कानों में पड़ी।

बाजरे ने मोबाइल कान से हटाकर बंद किया और जेब में रख लिया। चेहरे पर कठोरता और दृढ़ता नजर आ रही थी। रिश्वत लेने से उसे परहेज नहीं था, परंतु सर्दूल जैसे मुजरिम से वो कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं रखना चाहता था। उसका और सर्दूल का एक ही संबंध था। वर्दी और अपराधी का संबंध।

■■■

सुनीता हाथ में फाइल थामे हस्पताल पहुंची और कामटे से मिली।

"ये क्या है, तुमने मुझे भी अपने काम पे लगा लिया है?" सुनीता नाराजगी से कह उठी।

"वक्त कम है और ये काम भी करना था। इसलिए तेरे को फाइल लाने को बोला।" कामटे ने कहते हुए उससे फाइल ली।

"तूने बताया था कि इस फाइल में तूने उन नामी लोगों की तस्वीरों की फोटोकॉपी लगा रखी है, जिन्हें तू पकड़ लेता है तो तेरी तरक्की हो जाएगी। अब तेरे को क्या जरूरत पड़ गई इस फाइल की?"

कामटे फाइल खोले एक-एक पन्ना पलटते जा रहा था और भीतर तस्वीरों और स्केचों की फोटोस्टेट कॉपी लगी थीं, उन्हें ध्यान से देखता जा रहा था।

"तेरे को पता है शादी से पहले मैं किसी पुलिस वाले को पास से निकलता पाती थी तो डर के मारे मेरी जान निकल जाती थी। तब मुझे क्या पता था कि मेरी किस्मत में...।"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान...।" सब-इंस्पेक्टर कामटे के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला।

सामने ही फाइल पर फोटोस्टेट का ऐसा कागज लगा था, जिस पर देवराज चौहान के सालों पुराने चेहरे की फोटो की फोटोकॉपी लगी थी। लेकिन देवराज चौहान भी पास में था और पुरानी फोटो भी, इसी कारण वो फौरन पहचान गया था। कामटे की आंखें चमक उठी थीं।

कामटे आगे की तस्वीरें देखने लगा।

"ये तू डकैती मास्टर देवराज चौहान क्या कह रहा है?" सुनीता ने पूछा।

"घर आकर बताऊंगा।"

"घर कब आएगा? तू मेरे साथ ही चल। भिंडी बना रखी है, साथ में रायता डाल दूंगी। मजे से खाना।"

कामटे ने सारी फाइल देख ली।

जगमोहन के बारे में कुछ पता न लगा। परंतु उसे यकीन था कि उसे भी कहीं देखा है।

कामटे ने फाइल बंद करके सुनीता को वापस देते हुए कहा---

"तू जा...।"

"तू नहीं चलेगा?"

"नहीं, मुझे अभी काम है, निकल जा अब...।"

"रात को आएगा?"

"फोन करके बता दूंगा।"

"मैं अभी घर जाकर बाप को फोन करके, उसे गालियां देती हूं कि मेरी शादी पुलिस वाले से क्यों की?" सुनीता ने गुस्से से कहा--- "मैं क्या रोटी बनाने और कपड़े धोने के लिए रह गई हूं...।"

"सुनीता तू...।"

"आना अब तू घर पर...।" सुनीता फाइल थामें पलटी और पांव पटकते चली गई।

कामटे वहां से सीधा उस कमरे में पहुंचा जहां देवराज चौहान पड़ा था।

कामटे ने गहरी निगाहों से उसके चेहरे को देखा, फिर मुस्कुराकर कह उठा---

"तूने तो मेरी तरक्की के रास्ते खोल दिए देवराज चौहान...।" बड़बड़ाते हुए कामटे ने फोन निकाला और कमिश्नर बाजरे के नम्बर मिलाते पुनः बड़बड़ाया--- "दूसरे का समझ नहीं आ रहा कि उसे कहां देखा है...।"

फोन कान से लगा लिया कामटे ने। दूसरी तरफ बेल जा रही थी।

"हैलो...।" तभी कमिश्नर बाजरे की आवाज कानों में पड़ी।

"सर मैं, कामटे...।"

"याद आया कि वो कौन है?" उधर से बाजरे ने पूछा।

"हां सर। एक के बारे में याद आ गया है। वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है।"

"देवराज चौहान?"

"डकैती मास्टर सर। जिसकी कानून को कब से तलाश है।" कामटे ने तेज स्वर में कहा--- "मैंने उसे पहचान लिया।"

कमिश्नर बाजरे के गहरी सांस लेने की आवाज कामटे के कानों में पड़ी।

"तुम्हें धोखा तो नहीं हो रहा पहचानने में?"

"नहीं सर। जब से मैंने वर्दी पहनी है, अपराधियों को पहचानने में कभी धोखा नहीं खाया।"

"ओह... और वो दूसरा?"

"उसके बारे में अभी याद नहीं आया सर।"

"तुम वहीं रुको। ये बात किसी से कहना नहीं। मैं आता हूं वहां। प्रेसवालों ने तंग कर रखा है मुझे...।"

■■■

हॉस्पिटल में कमिश्नर बाजरे ने पहरेदारी को खुद जांचा।

सब ठीक पाया था उसने। इंस्पेक्टर शेखर पेरवले को ये बताकर सावधान कर दिया था कि जो दो लोग बेहोश हैं, उनमें से एक डकैती मास्टर देवराज चौहान है।

चार बजे तक बाजरे अस्पताल में ही व्यस्त रहा। फिर सावटे और कामटे के साथ कमिश्नर बाजरे हैडक्वार्टर पहुंचा। तीनों ही गंभीर नजर आ रहे थे।

"सर।" सावटे, बाजरे के ऑफिस के भीतर पहुंचते ही बोला--- "मैं कुछ कहूं?"

"कहो।" बाजरे बैठते हुए बोला--- "तुम दोनों भी बैठो।"

वे भी बैठ गए।

"सर, ये कोई बेहद गंभीर बात हुई है कल आर्य निवास होटल के उस हॉल में वंशू करकरे, अकबर खान, सुधीर दावरे, दीपक चौला और सर्दूल भी वहां था। अब पता चला कि डकैती मास्टर देवराज चौहान भी वहां था और मरने के हाल में हमें मिला। कल वहां कुछ खास हो रहा था, जो कि अंडरवर्ल्ड की हस्तियां आईं।"

"तुम ठीक कहते हो।"

"लेकिन देवराज चौहान का इन लोगों से क्या मतलब हो सकता है सर?" कामटे कह उठा।

"वो वहां जिस हाल में मिला है, उससे तो कोई गहरा मतलब ही लगता है देवराज चौहान का।" कमिश्नर बाजरे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "देवराज चौहान का उन लोगों के साथ खास याराना हो सकता है।"

"कभी सुना तो नहीं सर।" कामटे ने बेचैनी से पहलू बदला।

"सुना तो ये भी नहीं था कि उन पांचों का आपसी संबंध हो सकता है। लेकिन अब देवराज चौहान भी बीच में आ गया। पांच के छः लोग हो गए। कामटे...।"

"सर।"

"लगता है हमने वो सी•सी•टी•वी• की फिल्म पूरी नहीं देखी। भीतर जाता देवराज चौहान भी नजर आना चाहिए। हो सकता है वो देरी से आया हो या फिर बारह के पहले आ गया हो।"

"जी सर।"

"सावटे।" बाजरे ने कहा--- "देवराज चौहान का केस, किस पुलिस वाले के पास होगा।"

"मैं पता करता हूं सर।"

"मुझे मालूम है सर।" कामटे कह उठा--- "इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े साहब के पास देवराज चौहान का केस है। वानखेड़े साहब यहीं पर ही होते हैं। पांचवीं मंजिल में उनका ऑफिस है।"

सावटे ने कामटे को घूरा।

बाजरे ने मुस्कुराकर कहा---

"तुम अपनी आंखें खुली रखते हो। तरक्की करोगे। देवराज चौहान को भी तुमने ही पहचाना?"

"ज...जी सर।"

कमिश्नर बाजरे ने जेब से छोटी सी टेप निकालकर कामटे की तरफ बढ़ाई।

"ये लो। लाम्बा के पास जाओ और इसे पूरी देखो। देवराज चौहान भी दिखेगा, होटल में आता हुआ।"

"यस सर।" कामटे ने टेप ली और बाहर निकल गया।

"ये कैसी टेप है सर?" सावटे ने पूछा।

"सी•सी•टी•वी• की टेप। होटल में लगा था कैमरा।"

"ओह...।"

"हमें ये जानना है कि वो सब होटल में क्यों मिले और वहां गोलियां क्यों चलीं?" बाजरे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "तुम उन सब की फाइल तैयार करो जो होटल में हमें मरे मिले। अभी हमें बहुत कुछ करना है इस मामले में।"

"यस सर।" सावटे उठा और सैल्यूट देकर बाहर निकल गया।

कमिश्नर बाजरे ने टेबल पर पड़े फोन का रिसीवर उठाया और एक नम्बर दबाकर रिसेप्शन से बोला---

"इंस्पेक्टर वानखेड़े से मेरी बात कराओ।"

आधे मिनट में ही वानखेड़े लाइन पर था।

"मुझे सर मत कहा करो।" बाजरे बोला--- "तुमने तरक्की नहीं ली, वरना तुम मेरे सीनियर होते।"

उधर से वानखेड़े हंसकर रह गया।

"पता चला कि देवराज चौहान की फाइल तुम्हारे पास है।" बाजरे ने कहा।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान?" वानखेड़े की तेज आवाज कानों में पड़ी--- "अब क्या किया है उसने?"

"तुम मेरे पास आ सकते हो क्या? देवराज चौहान के बारे में तुमसे कुछ सलाह लेना चाहता हूं।"

"मतलब कि उसने फिर कोई गड़बड़ कर दी है।" वानखेड़े की आवाज में तीखापन था--- "आ रहा हूं मैं...।"

■■■

"वानखेड़े!" कमिश्नर बाजरे ने कहा--- "तुम मुझे देवराज चौहान के बारे में बताओ।"

वानखेड़े कुर्सी पर बैठा था। वो कह उठा---

"देवराज चौहान के बारे में बताने को मेरे पास इतना कुछ है कि पूरा दिन बीत जाएगा और बातें खत्म नहीं होंगी। बेहतर होगा कि जो भी पूछना चाहते हो, स्पष्ट पूछो। क्या किया है उसने?"

बाजरे दो पल खामोश रहकर कह उठा---

"ये सब सीक्रेट है। बात बाहर नहीं जानी चाहिए।"

"नहीं जाएगी।"

"देवराज चौहान का ड्रग्स किंग सुधीर दावरे के साथ क्या वास्ता हो सकता है?"

"ऐसे लोगों से देवराज चौहान कोई वास्ता नहीं रखता। वो सिर्फ अपने काम से मतलब रखता है।" वानखेड़े ने कहा।

"ये बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?"

"क्योंकि मैं देवराज चौहान को बहुत अच्छी तरह जानता हूं।"

बाजरे ने हौले से सिर हिलाया। फिर बोला---

"वेश्यालय किंग दीपक चौला, हफ्ता वसूली वाला वंशू करकरे और हथियार सप्लायर अकबर खान से देवराज चौहान का वास्ता है।"

"नहीं।" वानखेड़े के होंठों से निकला और इंकार में सिर हिलाया--- "देवराज चौहान ऐसे लोगों से वास्ता नहीं रखता।"

"मैं साबित कर दूं तो?"

"मुझे हैरानी होगी।" वानखेड़े के माथे पर बल नजर आने लगे।

"सर्दूल से किस हद तक देवराज चौहान का वास्ता हो सकता है?"

"दिल्ली और मुंबई बम ब्लास्ट वाला मुजरिम सर्दूल, जो अब पाकिस्तान में पनाह लिए हुए है?"

"वो ही।"

"तुमने जितने भी नाम गिनाए हैं, इनमें से किसी के साथ देवराज चौहान वास्ता नहीं रखेगा।"

"जबकि इन सबसे देवराज चौहान का वास्ता है। वो सिर्फ डकैती मास्टर ही नहीं, और भी धंधे करता है।"

"मैंने ये कभी नहीं सुना।"

"तो अब सुन लो...।"

"आखिर बात क्या है?"

"कल आर्य निवास होटल में गोलीबारी हुई।"

"सुना था मैंने...।"

"वहां से हमें अट्ठारह लाश मिलीं। चार घायल मिले जिन्हें अस्पताल पहुंचाया गया। उनमें से दो मर गए। दो जिंदा हैं, उनमें से एक डकैती मास्टर देवराज चौहान है। पहचान हो चुकी है।"

वानखेड़े कमिश्नर को देखे जा रहा था।

"मेरे पास इस बात के पूरे सबूत हैं कि गोलीबारी के दौरान वहां सुधीर दावरे, अकबर खान, वंशू करकरे, दीपक चौला और सर्दूल मौजूद थे और वहां पर देवराज चौहान भी था, जो कि हमें घायल और बेहोश हालत में मिला। उसकी हालत नाजुक है। जिस्म पर चाकुओं के घाव और सिर में गोली मारी गई है। अभी तक उसे होश नहीं आया है।"

"वो कहां है?" वानखेड़े के होंठों से निकला।

"नानावटी हॉस्पिटल में...।"

"मेरा विश्वास करो कि देवराज चौहान ऐसे लोगों से कभी भी वास्ता नहीं...।"

"वानखेड़े! जो चीज मेरे सामने हैं, मैं उन पर भरोसा करूंगा। तुम्हारी बात पर नहीं।"

"देवराज चौहान उनके पास किसी काम के लिए गया होगा और...।"

"मेरे ख्याल में कल आर्य निवास होटल में छः लोग, सर्दूल, वंशू करकरे, सुधीर दावरे, दीपक चौला, अकबर खान और देवराज चौहान किसी प्लानिंग के लिए इकट्ठे हुए थे। कोई गहरी साजिश रच रहे थे कि उनमें गोलियां चलने लगीं।"

"देवराज चौहान ऐसा नहीं है।" वानखेड़े होंठ भींचकर बोला।

"तो कैसा है?"

"वो सिर्फ डकैतियां करता है। यही उसका शौक है, आदत है और धंधा है। इसके अलावा वो दूसरा काम नहीं करेगा। मैं बरसों से उसके पीछे हूं। कई बार मुलाकात भी हुई। दो बार तो उसने मेरी जान बचाई। जितना उसे मैं जानता हूं, उतना उसे कोई और नहीं जानता। वो डकैती के अलावा दूसरा काम नहीं करता। देश के खिलाफ तो वो कोई काम करेगा ही नहीं।"

"तुमने कहा कि दो बार उसने तुम्हारी जान बचाई।" कमिश्नर बाजरे कह उठा।

"ये सालों पुरानी बात है।"

"ये ही वजह तो नहीं कि देवराज चौहान के लिए तुम्हारे मन में नर्मी है।"

"तुम मुझे गलत समझ रहे हो कमिश्नर।" वानखेड़े एकाएक मुस्कुराकर कह उठा--- "मैं अपनी वर्दी का हमेशा ख्याल रखता हूं। अपराधी तो हर हाल में अपराधी होता है। लेकिन देवराज चौहान के बारे में मैंने जो कहा, वो सही कहा है।"

"दो बार सर्दूल का मुझे फोन आ चुका है कि ये मामला बंद कर दूं, वो मुझे एक करोड़ देगा।"

"मुझे हैरानी है कि वो इंडिया में है। वो क्रूर और बेरहम है। तुम्हें सतर्क रहना...।"

तभी बाजरे का मोबाइल बजा।

बाजरे ने बात की। दूसरी तरफ सर्दूल ही था।

"तुमने मेरी बात नहीं मानी कमिश्नर। ये मामला बंद नहीं किया।" सर्दूल की आवाज कानों में पड़ी।

"ठीक समझे तुम। मैं ये मामला बंद नहीं करूंगा।" कमिश्नर बाजरे ने कठोर स्वर में कहा।

"जिद मत करो। मेरी बात मान जाओ।"

"तुम भी बचने वाले नहीं। बहुत जल्द कानून के पंजे में होगे। तुम तो...।"

"कमिश्नर तुमने मेरी बात न मानी तो तुम्हारी एक उंगली जलने वाली है।"

"मैं तुम्हारी धमकी में नहीं आने वाला और किसी भी कीमत पर ये मामला बंद नहीं करूंगा।"

"रकम बढ़ाकर दो करोड़ कर देता हूं।"

"बेशक बीस करोड़ कर दो। तुम मुझे खरीद नहीं सकते।"

"फिर तो तुम्हारी उंगली जल गई।"

"क्या बकवास...।"

"इंस्पेक्टर विजय सावटे की लाश देखनी है तो हैडक्वार्टर के बाहर देख लो। पड़ी है वहां। लोग इकट्ठे हो रहे हैं।"

"क्या... तुम...।"

परंतु उधर से फोन बंद हो गया।

कमिश्नर बाजरे हक्का-बक्का सा बैठा रह गया।

"क्या हुआ?" वानखेड़े ने पूछा।

"सर्दूल।" बाजरे के होंठों से निकला--- "उसने विजय सावटे को मार दिया है। कहता है लाश हैडक्वार्टर के बाहर पड़ी है।" बाजरे कहते हुए जल्दी से उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर परेशानी आ गई थी।

वानखेड़े भी फुर्ती से उठकर साथ चल पड़ा।

"मैं हॉस्पिटल में देवराज चौहान को देखूं तो तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?"

"मुझे कोई एतराज नहीं।" बाजरे बाहर निकलकर लिफ्ट की तरफ बढ़ गया था--- "परंतु मेरे मामले में छेड़छाड़ मत करना।"

लिफ्ट खाली मिली। दोनों भीतर प्रवेश कर गए। नीचे जाने का बटन दबा दिया।

तभी बाजरे का मोबाइल बजा।

"हैलो...।" बाजरे ने बात की।

"सर, मैं हवलदार किशोर चंद। हैडक्वार्टर के बाहर अभी-अभी किसी ने इंस्पेक्टर सावटे को शूट कर दिया है। गोली सिर में लगी है।"

"मैं आ रहा हूं।" बाजरे ने थके स्वर में कहा--- "फिर वानखेड़े से कहा--- "बाहर सावटे को शूट कर दिया गया है।"

"मैंने तुमसे कहा था कि सर्दूल खतरनाक है। दरिंदे जैसा खतरनाक।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "उसकी बात नहीं मानोगे तो वो तुम्हारी भी जान ले लेगा।"

"तो क्या केस बंद कर दूं?" बाजरे झल्ला उठा।

"मेरा ये मतलब नहीं था। अब तुम्हें सतर्क रहना होगा। सर्दूल ने हिन्दुस्तान में होने की बात फैला दो। पुलिस को उसकी तलाश में लगा दो। मुखबिरों को दौड़ाओ। सुधीर दावरे, अकबर खान, वंशू करकरे और दीपक चौला को पकड़ो। इससे सर्दूल परेशान होगा। उसे अपनी पड़ जाएगी, तब वो पाकिस्तान खिसक जाएगा।"

"मतलब कि पकड़ा नहीं जाएगा?" बाजरे के दांत भिंच गए।

"सर्दूल जैसे लोग पकड़े नहीं जाते। सिर्फ मारे जाते हैं। ऐसे लोगों के मरने की खबर ही सुनने को मिलती है कमिश्नर।"

■■■

इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े हॉस्पिटल में देवराज चौहान के कमरे में पहुंचा। किसी ने उसे रोका नहीं, क्योंकि ड्यूटी पर मौजूद पुलिस वाले उसे अच्छी तरह जानते थे।

देवराज चौहान बैड पर बेसुध पड़ा था। पास में नर्स बैठी थी।

वानखेड़े ने गंभीर निगाहों से उसे देखा। चेहरे पर तगड़ी ठुकाई के निशान अभी भी दिख रहे थे।

तभी डॉक्टर ने भीतर प्रवेश किया और वानखेड़े से बोला---

"आप भीतर क्यों आये?"

"मैं इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े हूं।" वानखेड़े ने कहा--- "इसका हाल जानने आया हूं। ये हमारे लिए महत्वपूर्ण है।"

"मेरे ख्याल में ये कोमा में चला गया है।" डॉक्टर ने कहा।

"कोमा में?" वानखेड़े चौंका।

"जी हां। इसकी गहरी बेहोशी, सिर में लगी गोली इसे कोमा में ले गई है।" डॉक्टर ने कहा--- "इसका दिल धड़कता रहेगा। ग्लूकोज लगा रहेगा। पता नहीं कभी ये होश में आ भी पाएगा या कोमा में रहते हुए ही मर जाएगा।"

वानखेड़े के दांत भिंच गए।

"कुछ तो अंदाजा होगा कि ये कब तक होश में...।"

"कोमा के पेशेंट के बारे में कोई भी गारंटी नहीं दे सकता। हो सकता है अगले कुछ घंटों में इसे होश आ जाए या फिर कई सालों तक ये ऐसी ही स्थिति में रहेगा। हम इसे यहां से शिफ्ट कर रहे हैं।"

"कहां?"

"हॉस्पिटल के चौथे फ्लोर पर। वहां कई कमरे खाली रहते हैं। एक और भी कोमा का पेशेंट एक साल से एक कमरे में है। इसे भी वहीं रखा जाएगा। सुबह-शाम नर्स चैक करने के लिए आती है, कोमा पेशेंट को।" डॉक्टर ने कहा, फिर वहां मौजूद नर्स से बोला--- "बॉय को बुलाओ। पेशेंट को फोर्थ फ्लोर पर शिफ्ट करना है।"

नर्स फौरन उठी और बाहर निकल गई।

"कोई रास्ता नहीं, इसे होश में लाने का?"

"कोमा में गए पेशेंट की देखभाल से ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते।" डॉक्टर ने कहा।

वानखेड़े बाहर निकला।

बाहर दोनों पुलिस वाले सतर्क खड़े थे।

"इसके साथ एक और घायल था, वो कहां है?" वानखेड़े ने पूछा।

"साथ वाले कमरे में सर...।"

वानखेड़े साथ वाले कमरे के दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।

वहां पर भी नर्स बैठी थी।

बैड पर पड़े जगमोहन को पहचानते ही वानखेडे चौंका।

"इसकी अब क्या हालत है सिस्टर?" वानखेड़े ने पूछा।

"खास सुधार नहीं है। सिर से ऑपरेशन करके गोली निकाली थी। जिस्म पर चाकुओं के बहुत वार किए गए हैं। होश नहीं आया इसे एक बार भी। आज का दिन निकल गया तो इसके ठीक होने की आशा रखी जा सकती है।"

वानखेड़े कमरे से बाहर निकला और कमिश्नर बाजरे को फोन किया।

"कहो।" उधर से बाजरे ने उसकी आवाज सुनते ही कहा।

"मैं हॉस्पिटल से बोल रहा हूं। देवराज चौहान कोमा में चला गया है। पता नहीं अब उसे होश आएगा भी या नहीं।"

"ये तो बुरी खबर है।" उधर से बाजरे ने चिंतित स्वर में कहा।

"दूसरे की पहचान हो गई क्या?"

"अभी तो नहीं। परंतु कामटे को लगता है कि उसे, उसने देखा हुआ है।"

"वो देवराज चौहान का साथी जगमोहन है। दोनों को मारने की पूरी चेष्टा की गई है।"

"हां...।"

"परंतु अकबर खान, वंशू करकरे, सुधीर दावरे और दीपक चौला के साथ सर्दूल भी वहां से बच निकला। इसका स्पष्ट मतलब है कि देवराज चौहान और जगमोहन को मारने की चेष्टा की गई है।"

"हां, यही हुआ होगा।"

"वो सब देवराज चौहान और जगमोहन के दुश्मन बन गए हैं।"

"हां। लेकिन बाकी लाशें...।"

"उन सबको देवराज चौहान और जगमोहन ने ही मारा होगा। वहां काफी कुछ हुआ है, जो कि हमें नहीं मालूम।"

"जगमोहन तो कोमा में नहीं गया। वो तो ठीक है?"

"अभी तो ठीक है। नर्स ने बताया कि आज का दिन निकल गया तो उसके बचने की आशा रखी जा सकती है।"

"वहां क्या हुआ, मेरे लिए ये जानना बहुत जरूरी...।"

"सावटे मर चुका है। और पुलिस वालों को सर्दूल न मारे इसके लिए जरूरी है कि पुलिस को सर्दूल के पीछे लगा दो। अखबार और टी•वी• वालों को सर्दूल के हिन्दुस्तान में होने, मुंबई में होने की खबर दे दो। टी•वी• और अखबार वालों के पास सर्दूल की तस्वीर होगी, परंतु तुम अपनी तरफ से, फ्लैश करने को तस्वीरें उन्हें दे दो। पूरे मुंबई की सिक्योरिटी टाइट करवा दो। इससे सर्दूल अपने आप में सिमट जाएगा। इस तरह काम करो कि मुंबई में हर तरफ सर्दूल के नाम का हल्ला पैदा हो जाए।"

"तुम ठीक कहते हो। मुझे यही करना चाहिए। मैं अभी सब इंतजाम करता हूं।"

■■■

शाम के सात बज रहे थे।

कामटे सी•सी• टी•वी• की कैसेट पूरी देखकर हटा था। परंतु उस कैसेट में कहीं भी देवराज चौहान आता-जाता नहीं दिखा था। स्पष्ट था कि देवराज चौहान या तो पहले से ही होटल में था या किसी दूसरे रास्ते से होटल में आया था। कामटे के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी। इंस्पेक्टर सावटे को पुलिस हैडक्वार्टर के बाहर गोलियों से भून देने की खबर उसे मिल चुकी थी।

कामटे ने मोबाइल निकाला और कमिश्नर बाजरे को फोन किया।

"हैलो।" बाजरे की आवाज कानों में पड़ी।

"सर! मैंने वो पूरी कैसेट देख ली है।" कामटे बोला--- "उसमें देवराज चौहान कहीं भी नहीं है।"

"तो फिर वो दूसरे रास्ते से आया होगा।" बाजरे का स्वर कानों में पड़ा।

"या वो पहले से ही होटल में मौजूद होगा।"

"कुछ भी हो सकता है। हॉस्पिटल में जो दूसरा आदमी बेहोश है, वो देवराज चौहान का साथी जगमोहन है।"

"ओह, पहचान हो गई उसकी?" कामटे के होंठों से निकला।

"इंस्पेक्टर वानखेड़े ने उसे पहचाना।"

"सावटे साहब को गोलियों से किसने भूना सर?"

"सर्दूल ने।"

"सर्दूल...?"

"वो चाहता है कि मैं इस मामले को बंद कर दूं। सुधीर दावरे। अकबर खान। दीपक चौला और वंशू करकरे का संबंध उसके साथ न जुड़े--इस बात को लेकर उसने सावटे को मार दिया। वो अब मुझे भी मारना चाहेगा।"

"ये तो गलत बात है सर। अपराधी हम पर हावी हो रहे हैं।"

"सर्दूल को कम नहीं समझो। परंतु मैंने उसका इंतजाम कर दिया है। पूरी मुंबई पुलिस सर्दूल की तलाश में लग चुकी है। मुखबिर उसकी खबर पाने के लिए दौड़े फिर रहे हैं। सुधीर, अकबर, दीपक और वंशू की तलाश शुरू हो चुकी है। मैं किसी को भी नहीं छोडूंगा।"

"एक बार ये कानून के हाथ में आ जाएं तो...।"

"तुम मेरे ऑफिस में पहुंचकर मेरा इंतजार करो। मैं आता हूं। बाकी ऑफिसर भी आ रहे हैं। हमें आगे की रणनीति तैयार करनी है।"

"यस सर।"

"वो कैसेट लेते आना।" इसके साथ ही उधर से बाजरे ने फोन बंद कर दिया था।

■■■

रात के आठ बज रहे थे।

हॉस्पिटल में हमेशा की तरह शोर-शराबा और व्यस्तता थी।

देवराज चौहान के कमरे में कुछ ज्यादा ही हलचल थी। वहां दो डॉक्टर, एक नर्स और एक वार्डब्वॉय था। बैड के पास एक स्ट्रेचर पर, देवराज चौहान को डाल दिया गया था। नर्स ने ग्लूकोज की बोतल स्टैंड से उतारकर हाथ में ले ली थी। एक डॉक्टर दोनों वार्डब्वॉय को देखकर बोला---

"इसे फोर्थ फ्लोर पर, रूम नम्बर तीन में ले जाओ। वहां एक पेशेंट कोमा का पहले से ही है, इसे भी उसी कमरे के बैड पर डाल दो और सिस्टर तुम, दो दिन अभी और इसके पास रहोगी। अगर इसे होश आ जाता है तो ठीक, नहीं तो इसे इसके हाल पर छोड़ देना होगा। जब ये ग्लूकोज की बोतल खत्म हो जाए तो ड्रिप हटा देना।"

"ओ•के• डॉक्टर।"

दोनों डॉक्टर बाहर निकले।

कमरे के बाहर बैंच पर दो पुलिस वाले मौजूद थे और बातों में लगे थे।

"इस कमरे वाले पेशेंट को फोर्थ फ्लोर के तीन नम्बर कमरे में भेजा जा रहा है। जो भी इसकी निगरानी करना चाहता है, वो फोर्थ फ्लोर पर आ जाए।" डॉक्टर ने कहा और दूसरे डॉक्टर के साथ आगे बढ़ गया।

तभी दोनों वार्डब्वॉय स्ट्रेचर को धकेलते हुए कमरे से निकले और लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। साथ चल रही नर्स ने हाथ में ग्लूकोज की बोतल थाम रखी थी।

दोनों पुलिसवालों ने एक-दूसरे को देखा।

"हम में से एक को फोर्थ फ्लोर पर इसके पास जाना पड़ेगा। यहां बातें करके हमारा वक्त कट जाता था। परंतु अकेले बैठे रहना मुसीबत का काम है।" एक पुलिस वाले ने कहा।

"दूसरा साथ वाले कमरे में है। एक को तो फोर्थ फ्लोर पर जाना ही होगा। तू जाएगा क्या?"

"मैं चला जाता हूं।" पुलिस वाले ने कहकर लंबी सांस ली।

"वो कोमा में है। बीच में कभी-कभी गप्पें लगाने, चाय पीने मेरे पास आ जाया करना।"

"ठीक है।"

तभी तीन डॉक्टर उनके पास आ पहुंचे और खुले दरवाजे से भीतर गए। फिर फौरन ही पलटकर बाहर आए और एक ने पुलिस वालों से पूछा---

"पेशेंट कहां गया?"

"उसे अभी फोर्थ फ्लोर पर तीन नम्बर कमरे में ले जाया गया है। वो 'कोमा' में जा चुका है।"

तीनों की नजरें मिलीं।

तभी दूसरे डॉक्टर ने पूछा।

"और दूसरा पेशेंट?"

"वो कमरे में ही है।"

तीनों डॉक्टर साथ वाले कमरे की तरफ बढ़ गए।

दरवाजा बंद था। उसे धकेला और भीतर आ गए।

बैड पर बेसुध सा जगमोहन पड़ा था। ग्लूकोज की बोतल लगी थी। पास ही में नर्स कुर्सी पर बैठी थी। जो कि तीन-तीन डॉक्टरों को आया पाकर तुरंत खड़े हो गई।

"पेशेंट कैसा है?" एक डॉक्टर ने पूछा।

"नॉर्मल है। कभी भी इसे होश आ सकता है।" नर्स गहरी निगाह से तीनों को देखते कह उठी--- "आपको पहले नहीं देखा इधर?"

"हमें इस पेशेंट को देखने के लिए खास तौर से बुलाया गया है।" दूसरा डॉक्टर बोला।

तीसरा आगे बढ़कर जगमोहन को चैक करने लगा।

दोनों डॉक्टरों की नजरें मिलीं।

कमरे के कोने में रखे स्ट्रेचर को देखा।

तभी एक डॉक्टर फुर्ती से झपटा नर्स पर और उसके होंठों पर हथेली जमाकर उसे जकड़ लिया।

भय और हैरानी से नर्स की आंखें फैल गईं।

उसी पल दूसरा डॉक्टर आगे बढ़ा और नर्स की कनपटी पर अंगूठा रखकर जोरों से दबाया।

अगले ही पल नर्स बेहोश होकर उसकी बांहों में झूल गई।

वो डॉक्टर तुरंत स्ट्रेचर बैड के पास ले आया। जगमोहन के पास खड़ा डॉक्टर, जगमोहन की बांह में लगी ड्रिप की सुई निकाल चुका था। दोनों ने मिलकर जगमोहन को स्ट्रेचर पर डाला। बैड से चादर उठाकर जगमोहन के ऊपर गले तक ओढ़ा दी। तीसरा डॉक्टर बेहोश नर्स को कुर्सी पर बिठा चुका था।

सारा काम चुपचाप निपट गया था।

एक डॉक्टर मुस्कुरा कर कह उठा---

"डॉक्टर का सफेद कोट पहनकर अस्पताल में आने पर कोई शक नहीं करता। हमें देखो, कितने इत्मीनान से हमने काम...।"

"अभी इसे बाहर ले जाना है। दरवाजे पर पुलिस वाले हैं।"

"चिंता मत करो। उन्हें मैं देख लूंगा।"

फिर एक आगे बढ़ा और दरवाजा खोला।

वो दोनों डॉक्टर स्ट्रेचर पर जगमोहन को डाले, धकेलते दरवाजे से बाहर निकले।

पहले वाले डॉक्टर ने दरवाजा बंद कर दिया।

वो दोनों डॉक्टर स्ट्रेचर के साथ आगे निकल चुके थे। ये देख पुलिस वाले ने पूछा---

"क्या इसे भी फोर्थ फ्लोर पर ले जा रहे हो?"

"नहीं। एक्स-रे के लिए ले जा रहे हैं। पन्द्रह मिनट में पेशेंट इसी कमरे में आ जाएगा। तुम यहीं रहो।" कहकर डॉक्टर आगे बढ़ गया। पुलिस वाला वहीं बेंच पर बैठ गया।

■■■

हॉस्पिटल से जगमोहन का अपहरण कर लिया गया, ये बात रात 11 बजे कमिश्नर बाजरे तक पहुंची। बाजरे बौखलाकर रह गया। वो सोच भी नहीं सकता था कि ऐसा कुछ होगा। उसने फौरन पुलिस वालों को तफ्तीश के लिए अस्पताल भेजा कि शायद जगमोहन को ले जाने वालों के बारे में कोई जानकारी मिल सके। जो पुलिस वाला उस वक्त जगमोहन के पहरे पर था, उसे सस्पेंड कर दिया गया। बाजरे ने जगमोहन के बेहोशी में अपहरण हो जाने की बात वानखेड़े को बताई तो वानखेड़े भी सिर पकड़कर रह गया।

परंतु उसके बाद देवराज चौहान पर चार पुलिसवालों का पहरा लगा दिया गया।

डॉक्टरों के मुताबिक जगमोहन को कभी भी होश आ जाना था। ऐसे में उसका अस्पताल से अपहरण हो जाना, पुलिस के लिए तगड़े झटके से कम नहीं था। पुलिस का तगड़ा नुकसान हो गया था। वरना सारा मामला पुलिस के सामने खुल जाना था। फिर भी पुलिस ने जगमोहन की तलाश के लिए, भागदौड़ शुरू कर दी थी। लेकिन जगमोहन हाथ न लगा और उसकी खबर भी नहीं मिली।

■■■

रात ग्यारह बजे।

वो काले रंग की वैन थी। काले शीशे थे। मुंबई की भीड़ भरी सड़क पर ट्रैफिक के बीच फंसी वो वैन आगे बढ़ रही थी। उसकी हैडलाइट की तीव्र रोशनी आगे वाले वाहनों पर पड़ रही थी।

पांच मिनट ही बीते होंगे कि वैन ने सड़क से बाएं को मोड़ लिया। आगे दस फीट चौड़ी गली थी। परंतु वो साफ गली थी। गली में दीवार के साथ सटी दो-तीन कारें खड़ी थीं। वैन रेंगने के अंदाज में गली में बढ़ रही थी और वो फिर एक बंद दरवाजे के सामने जाकर रुक गई। इंजन बंद हो गया।

वैन का दरवाजा खुला और डॉक्टरों वाला सफेद कोट पहने वही व्यक्ति उतरा, जिसने अस्पताल से जगमोहन का अपहरण किया था। फिर बाकी के दोनों भी बाहर निकले। उन्होंने जिस्म पर पहने सफेद कोट उतारकर वैन में फेंके और एक ने आगे बढ़कर दरवाजे पर लगी बेल बजाई।

फौरन ही दरवाजा खुला।

वहां अंधेरा था। परंतु दरवाजा खोलने वाले ने वैन को और इन लोगों को पहचान लिया था। उनमें कोई बात नहीं हुई। तीनों ने वैन के भीतर मौजूद बेहोश जगमोहन को उठाया और भीतर ले गए।

दरवाजे के भीतर छोटी सी गैलरी थी, जो कि घूमकर सीढ़ियों पर खत्म हो रही थी। वे तीनों जगमोहन को उठाए सीढ़ियां चढ़ते चले गए। सीढ़ियों में घुप्प अंधेरा था, परंतु जिस तरह से वे तीनों चल रहे थे, उससे जाहिर था कि उन्हें यहां की हर चीज का पता है। वे पहली मंजिल के एक कमरे में पहुंचे और वहां पड़े बैड पर जगमोहन को लिटा दिया। कमरे में ट्यूबलाइट का पूरा प्रकाश था।

"हमने काम कर दिया...।" एक हाथ झाड़ने वाले ढंग में कह उठा।

दूसरा आगे बढ़कर जगमोहन को चैक करने लगा।

जगमोहन के शरीर पर हॉस्पिटल वाला गाउन था। सिर पर पट्टियां बंधी हुई थीं। जिस्म पर जगह-जगह पर टांके लगे हुए थे। उसकी हालत बेहतर नहीं लग रही थी। वो जगमोहन को छोड़कर पीछे हटा और दोनों से बोला---

"ये ठीक है। होश आ सकता है कभी भी...।"

"इसकी दवाओं का क्या करें? इसे जाने कौन सी दवाइयां दी जा रहीं...।"

"ये लो।" तीसरे ने जेब से कागज निकालते हुए कहा--- "वहां से चलते समय मैं स्टूल पर पड़े गत्ते में से इसके इलाज का पर्चा निकाल लाया था। मैं जानता था कि इसकी जरूरत पड़ेगी। इस पर दवाएं लिखी हैं। अपने डॉक्टर को दिखाकर पूछ लेना।"

उसने पर्चा ले लिया।

पहले वाले ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।

"किसे फोन कर रहे हो जैकब?"

"अकबर खान साहब को। उन्हें बता दें कि हम इसे ले आए हैं।" फोन कान से लगाते वो कह उठा।

"आसान काम था।" तीसरे ने कहा--- "आना-जाना ही किया और काम हो गया।"

तभी पहले वाले के कान में अकबर खान की आवाज पड़ी।

"कहो राठी...।"

"सामान ले आए हैं।" राठी ने कहा।

"गुड। कोई परेशानी हुई?"

"नहीं, साधारण काम था।" राठी बोला।

"अब कैसी हालत है उसकी?"

"बेहोश है, लेकिन ठीक है। होश आने के लायक है वो...।"

"तुम, जैकब और तारा। तीनों उसके पास ही रहो। कोई लापरवाही मत करना। मुझे उसके बारे में बताते रहना।"

"जी...।"

"कोई तुम लोगों के पीछे तो नहीं...।"

"सब ठीक रहा। कोई गड़बड़ नहीं हुई।"

उधर से अकबर खान ने फोन बंद कर दिया।

"हम तीनों को इसके पास रहने को कहा गया है।" राठी बोला।

"मैं डॉक्टर को दवाओं का पर्चा दिखाकर...।"

"ये देखो...।" तारा के होंठों से निकला--- "इसे होश आ रहा है।"

दोनों की निगाहें फौरन जगमोहन की तरफ गईं।

जगमोहन की बंद पलकों में कम्पन हो रहा था। बेजान से पड़े हाथ की एक उंगली में भी कम्पन उठ रहा था।

तीनों की नजरें जगमोहन पर टिकी थीं।

तभी पैर में हल्का सा कम्पन हुआ।

"होश आ रहा है इसे।" राठी शांत स्वर में बोला।

"बहुत हिम्मती है।" तारा ने कहा--- "साले का इतना बुरा हाल किया, फिर भी बच गया।"

"रकीब ने इसके सिर में गोली मारी थी।" जैकब बोला--- "कमीना फिर भी नहीं मरा।"

"मजबूत बंदा है।" तारा ने सिर हिलाया--- "साधारण इंसान तो ये सोचकर मर जाता कि उसके सिर में गोली लगी है।"

बंद पलकों के कम्पन में तेजी आ गई थी।

"जैकब! डॉक्टर ने फोन करके बुला ले...।" राठी जगमोहन को देखता बोला--- "जरूरत पड़ सकती है।"

जैकब डॉक्टर को फोन करने लगा।

"होश में आते ही ये हमें पहचान लेगा कि तब हम वहीं हॉल में थे...।" राठी बोला।

"इस बार इसके सिर में इतनी गोलियां मारेंगे कि...।"

"चुप रहो तारा।" राठी ने गंभीर स्वर में कहा--- "अकबर साहब अब इसकी मौत नहीं चाहते।"

"मुझे समझ नहीं आता कि अकबर साहब ने क्या सोचकर इसे उठा लाने को कहा?"

"कुछ तो बात होगी उनके दिमाग में। एक बात समझ नहीं आई...।"

"क्या?"

"अकबर साहब ने देवराज चौहान के बारे में हमसे कुछ नहीं पूछा। ये भी नहीं पूछा कि हम किसे ले आए हैं।"

तारा की आंखें सिकुड़ी।

"सच में, उन्होंने तो इस बारे में कुछ भी नहीं पूछा।"

जगमोहन के शरीर के कई हिस्से बार-बार हिल रहे थे।

राठी ने मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा ल।

जैकब फोन बंद करता कह उठा।

"कुछ ही देर में डॉक्टर आ जाएगा।" उसकी नजरें होश में आते जगमोहन पर थीं।

राठी नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा चुका था कि अकबर खान की आवाज कानों में पड़ी।

"कहो राठी?"

"आपने ये तो पूछा नहीं कि हम किसे लाए हैं, जगमोहन को या देवराज...।"

"जगमोहन को लाए हो। हॉस्पिटल पर मेरी नजर है। एक आदमी वहां की खबरें मुझे दे रहा है।"

"ओह...।"

"देवराज चौहान 'कोमा' में चला गया है और उसे फोर्थ फ्लोर पर रूम नम्बर तीन में रखा गया है।"

"आप तो सब जानते हैं।" राठी ने गहरी सांस ली--- "जगमोहन को होश आ रहा है।"

"अच्छी खबर है। डॉक्टर को बुलाओ कि वो जगमोहन को नींद का इंजेक्शन दे दे।"

"डॉक्टर आ रहा है। लेकिन आप जगमोहन को जिंदा क्यों रखना चाहते हैं?"

"अभी इस बारे में सवाल मत पूछो।"

"जी...।"

"अगला काम तुम लोगों को जो करना है, वो जान लो। हॉस्पिटल जाकर देवराज चौहान को खत्म करना है।"

"ये तो बहुत खतरे वाला काम होगा। जगमोहन के वहां से गायब हो जाने पर वो देवराज चौहान पर तगड़ा पहरा लगा देंगे।"

"चार पुलिसवाले देवराज चौहान के पहरे पर लग चुके हैं। चारों हथियारबंद हैं।"

राठी ने गहरी सांस ली।

"तारा को फोन दो।" अकबर खान की आवाज कानों में पड़ी।

राठी ने तारा को फोन दिया।

"तारा।"

"जनाब...हुक्म...?"

"हॉस्पिटल में देवराज चौहान को खत्म करना है।"

"हो जाएगा। मामूली काम है।"

"चार हथियारबंद पुलिस वाले, चौबीसों घंटे उसकी निगरानी करते मिलेंगे।"

"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं देवराज चौहान तक पहुंचने का कोई ना कोई रास्ता निकाल लूंगा।"

"मैं जानता हूं तुम काबिल हो।"

"एक बात मुझे समझ नहीं आ रही कि देवराज चौहान से आपको खतरा क्या है। वो 'कोमा' में चला गया...।"

"मुझे तब तक चैन नहीं मिलता, जब तक कि मैं खतरे को हमेशा के लिए खत्म ना कर दूं। तुम तो ये बात जानते ही हो तारा कि मैं सतर्क रहने वाला इंसान हूं और दूर की बात पहले ही सोच लेता हूं। आज देवराज चौहान 'कोमा' में है, कल उसे होश आ गया तो वो क्या करेगा?"

"हमसे...सबसे बदला लेगा।"

"मेरी बात जल्दी समझ गये। देवराज चौहान को खत्म करो। जगमोहन को कैद में रखो। अभी तक तो मेरी ये ही चाल बनती है। मैं खतरे को जिंदा नहीं छोड़ता। जागने से पहले ही खतरे को खत्म कर दो। हो सकता है देवराज चौहान को यूं भी कभी होश आए ही नहीं। वो बेहोशी में ही मर जाए या फिर सालों बाद होश आये।  परंतु मैं सतर्क रहने वाला इंसान हूं। जो काम बाद में करना होता है, वो मैं अभी कर देने में यकीन रखता हूं। मेरी इस आदत ने मुझे कई बार जिंदगी दी है।"

"मैं देवराज चौहान को खत्म कर दूंगा।"

"जल्दी खबर देना इस बात की...।" इसके साथ ही उधर से अकबर खान ने फोन बंद कर दिया था।

तारा ने मोबाइल राठी को दिया और जगमोहन की तरफ देखता कह उठा---

"खत्म करना है देवराज चौहान को। चार पुलिस वालों का वहां पहरा है।"

"कठिन काम हुआ ये...।" जैकब ने कहा।

"मैं कर लूंगा। रास्ता निकाल लूंगा।"

जगमोहन के होंठों में अब तीव्र कम्पन होने लगा था।

"साले को होश आने में बहुत वक्त लग रहा है।"

तीनों जगमोहन को देखे जा रहे थे।

"इसे कैद में रखना है और इसकी पूरी देखभाल करनी है। अकबर खान यही चाहता है।"

तभी जगमोहन की पलकें जोरों से कांपी। दोनों हाथों और एक टांग में कम्पन हुआ। होंठों से कराह निकली और उसकी दोनों आंखें खुल गईं। आंखों में तेज रोशनी पड़ी तो फौरन ही आंखे बंद हो गई। बंद पलकों के पीछे आंखें तेजी से घूमती प्रतीत हो रही थीं। अब हाथों में कम्पन बंद हो गया था। वो धीरे-धीरे सामान्य गति से हरकत करने लगे थे। स्पष्ट था कि मस्तिष्क ठीक से काम कर रहा है। सोच रहा है। वो कुछ समझने की चेष्टा कर रहा है।

फिर पुनः जगमोहन की आंखें खुलीं। वो बैड पर लेटा एकटक छत को देखने लगा।

जैकब, तारा और राठी की नजरें आपस में मिलीं।

जगमोहन का पूरा सिर पट्टियों से ढंका हुआ था। नाक, आंखें, गाल और ठोड़ी का हिस्सा ही दिखाई दे रहा था। हॉस्पिटल के गाउन के नीचे जिस्म पर जगह-जगह लगे टांके स्पष्ट नजर आ रहे थे।

तीनों सतर्क से जगमोहन को देख रहे थे।

क्योंकि उसे इस हाल में पहुंचाने में उन तीनों का भी हाथ था।

जगमोहन आंखें खोले एकटक छत को देखे जा रहा था।

वक्त बीतने लगा।

दो मिनट से ज्यादा हो गए।

"होश में आ गए तुम।" जैकब बोला।

जगमोहन की आंखें तेजी से हिलीं। हाथ-टांगें भी हिलीं।

"अब तुम ठीक हो।" तारा ने कहा--- "हमने डॉक्टरों से कहकर तुम्हें बचा लिया।"

"हां।" राठी मुस्कुराया--- "तुम्हें बचाने में हमने दिन-रात एक कर दिया। क्यों दोस्तों...।"

"वो ही तो कह रहे हैं इसे...।" तारा ने कहा।

जगमोहन की पलकें हिलीं। जरा सी गर्दन भी, और उसने सामने खड़े तारा को देखा।

तारा मुस्कुराया।

चंद पल जगमोहन तारा को देखता रहा।

फिर जगमोहन ने राठी और जैकब को देखा।

उसके बाद कमरे में नजरें दौड़ाने लगा। गर्दन इधर-उधर घूमने लगी। उसके बाद अपने जिस्म पर लगे टांकों को देखने लगा। जैसे वो सब कुछ जान लेना चाहता हो।

"ज्यादा हिलो मत।" जैकब बोला--- "तुम घायल हो और...।"

"म...मैं कहां हूं...?" जगमोहन के होंठों से क्षीण सी आवाज निकली--- "मैं कौन हूं, तुम लोग कौन हो?"

तीनों के माथे पर बल पड़े। होंठ सिकुड़े।

"मुझे क्या हुआ था?" जगमोहन के होंठों से कंपकंपाता स्वर निकला।

"तुम नहीं जानते?" जैकब ने पुनः कहा।

"मैं? मैं कुछ नहीं जानता। मुझे क्या हुआ था? मैं कौन हूं?" जगमोहन पुनः कमजोर थके स्वर में कह उठा।

"ये याददाश्त तो नहीं भूल गया क्या?" तारा के होंठों से निकला।

राठी ने तारा को देखा, परंतु खामोश रहा।

तीनों एकटक जगमोहन को देखे जा रहे थे।

उसी पल वहां कदमों की आवाज गूंजी।

तीनों चौंके।

तारा और जैकब के हाथों में रिवाल्वरें नजर आने लगीं।

"कौन है?" राठी ऊंची आवाज में बोला।

आहटें अब दरवाजे के बाहर तक आ गई थी।

"मैं हूं राठी।"

"डॉक्टर है ये तो...।" तारा ने कहा और रिवाल्वर जेब में डाल ली।

जैकब ने भी रिवाल्वर जेब में रखी।

तभी पचास बरस के डॉक्टर ने ब्रीफकेस थामें भीतर प्रवेश किया।

"क्या हो गया?" डॉक्टर बोला--- "अब कौन घायल हो गया?" उसकी निगाह जगमोहन पर जा टिकी--- "इसे क्या हुआ?" कहने के साथ ही डॉक्टर बैड के पास जा पहुंचा।

जगमोहन ने कमजोर नजरों से डॉक्टर को देखा।

"ये डॉक्टर है।" तारा ने मुस्कुराकर जगमोहन से कहा---फिर डॉक्टर से बोला--- "डॉक्टर, इसकी तबीयत ठीक नहीं है। इसे आराम की जरूरत है। नींद का तगड़ा इंजेक्शन दे दो इसे...।"

"लेकिन इसे...।"

"जो कहा है वो करो। बाकी बातें हम बाद में कर लेंगे। जैकब, डॉक्टर को वो पर्चा दिखाओ।"

जैकब ने डॉक्टर को वो पर्चा थमा दिया।

"इस पर्चे पर लिखी दवाएं इसे दी जा रही थीं। सारा मामला समझ लो। अब तुम्हें ही इसका इलाज करना है।"

"मैं...मैं कौन हूं...।" जगमोहन ने पपड़ी जमे सूखे होंठों पर जीभ फेर कर क्षीण स्वर में कहा।

"फिक्र मत करो। सब ठीक हो जाएगा।" राठी ने कहा और डॉक्टर को एक तरफ ले गया--- "डॉक्टर ये ऐसी बातें कर रहा है जैसे सब कुछ भूल गया हो।"

"तो?"

"क्या तुम इससे बात करके ये समझ सकते हो कि ये ड्रामा कर रहा है या सच में सब कुछ भूल गया है?"

"अभी मैं कुछ नहीं समझ सकता।" डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहा--- "ये बीमारी कोई भी नहीं समझ सकता, सिर्फ मरीज की बातों को सुनकर ही इस बीमारी को समझा जा सकता है। लेकिन यहां हुआ क्या पड़ा है?"

"पहले इसे नींद का इंजेक्शन दे दो।"

डॉक्टर बैड पर लेटे जगमोहन के पास जा पहुंचा।

"मुझे क्या हुआ था?" जगमोहन ने डॉक्टर से पूछा।

"अभी तुम आराम करो।" डॉक्टर ब्रीफकेस खोलकर इंजेक्शन तैयार करता कह उठा--- "दोबारा जब नींद से उठोगे तो तुम्हें सब कुछ बताऊंगा। इस वक्त तुम्हें गहरी नींद की जरूरत है।"

"मुझे क्या हुआ था?"

"तुम बस के नीचे आ गए थे।" जैकब ने शांत स्वर में कहा--- "हम तुम्हें उठा लाए और तुम्हारा इलाज करवाया।"

तभी डॉक्टर ने इंजेक्शन लगा दिया।

"अब तुम्हें नींद आ जाएगी।" डॉक्टर बोला--- "आंखें बंद कर लो।"

जगमोहन ने आंखें बंद कर लीं। इतने में ही वो थकान महसूस करने लगा था।

"तुम इसके पास ही रहो डॉक्टर...।" राठी बोला और जैकब, तारा के साथ कमरे से निकलकर दूसरे कमरे में पहुंचा।

"मेरे ख्याल में।" तारा ने कहा--- "इसकी याददाश्त चली गई हो सकती है।"

"बकवास!" राठी ने दांत भींचकर कहा--- "साले ने हमें पहचान लिया था। परंतु डर की वजह से याददाश्त चले जाने का नाटक करने लगा। वो हमें बेवकूफ बना रहा है।"

"ये संभव है।" जैकब ने कहा ल।

तारा ने कुछ नहीं कहा।

चंद पल उनके बीच खामोशी रही।

"अगर वो ड्रामा कर रहा है तो ज्यादा देर बेवकूफ नहीं बना सकेगा।" तारा ने कहा।

"वो ड्रामा ही कर रहा है।" राठी ने दृढ़ स्वर में कहा।

"देख लेंगे।" जैकब बोला--- "कुछ भी हो सकता है। हो सकता है कि सच में उसकी याददाश्त चली गई हो।"

तभी डॉक्टर वहां आ पहुंचा।

"तुम उसके पास ही रहते।" राठी बोला।

"वो नींद में है। मैंने तेज असर वाला इंजेक्शन दिया है। अब ये बताओ कि मामला क्या है?" डॉक्टर ने पूछा।

जैकब ने सारा मामला बताया।

जिसे सुनकर डॉक्टर बोला---

"ऐसे केस में कुछ भी हो सकता है। गोली उसके सिर में लगी थी। उसकी वजह से उसकी याददाश्त भी जा सकती है। हो सकता है कि अब वो आंखें खोले तो अपने होश में हो।" डॉक्टर ने कहा।

"इंजेक्शन का असर कब तक रहेगा?"

"बारह घंटे तक...।"

"तुम्हें इसके होश आने पर इसके पास होना है।"

"मैं सुबह आ जाऊंगा।"

"पर्चा तुम्हें दे दिया है। कोई दवा लानी हो तो सुबह लेते आना।"

डॉक्टर चला गया।

तीनों वापस जगमोहन वाले कमरे में पहुंचे।

जगमोहन गहरी नींद में जा चुका था।

"अकबर खान ने मुझे देवराज चौहान को खत्म करने का काम दिया है।" तारा बोला।

"तू अकेला करेगा?" जैकब ने उसे देखा।

"मुझे तुम दोनों में से एक साथी चाहिए।" तारा ने दोनों को देखा।

"वहां पुलिस का पहरा है। ये काम आसान नहीं।" राठी बोला।

"लेकिन काम तो करना ही है।"

"करो। मैं इस जगमोहन के पास रहूंगा।"

"तो जैकब तू मेरे साथ रहेगा।"

"ठीक है।" जैकब ने गहरी सांस ली--- "सारे मुसीबत के काम मेरे हिस्से में ही आते हैं।"

"तू मेरे साथ रहेगा। काम मैं करूंगा।" तारा ने कहा--- "अब मैं नींद लेने जा रहा हूं।" कहकर वो बाहर निकल गया।

जैकब, राठी को देखकर कह उठा----

"तूने तो देवराज चौहान के मामले में से पल्ला झाड़ लिया।"

"यहां भी तो किसी को रहना है।"

"मैं भी नींद लेने जा रहा हूं...।" जैकब ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

"हरि को मेरे पास भेज देना।" पीछे से राठी ने कहा और मोबाइल निकाल कर नंबर मिलाने लगा।

जल्दी ही अकबर खान से बात हो गई।

"सर, जगमोहन को अभी होश आया था। डॉक्टर ने उसे नींद का इंजेक्शन दे दिया। अब वो नींद में है।"

"क्या कहना चाहते हो?"

"जगमोहन याददाश्त गुम हो जाने का ड्रामा कर रहा था। जैसे उसे कुछ भी याद ना हो।"

"तुम्हें क्यों लगा वो ड्रामा कर रहा था?"

"मेरे ख्याल में होश में आने पर हमसे घिरा होने की वजह से वो डर गया हो और...।"

"ये भी तो हो सकता है कि सच में उसकी याददाश्त चली गई हो?"

"ये मानने को मेरा दिल नहीं मानता।"

"डॉक्टर क्या कहता है?"

"वो कहता है कि सिर में गोली लगने की वजह से कुछ भी हो सकता है।"

"तुम सतर्क रहो। अब तुम्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।"

"जी...।"

"वहां सी•सी•टी•वी• कैमरे लगे हैं। उनके द्वारा उस पर नजर रखो। मालूम हो जाएगा कि वो ड्रामा कर रहा है या नहीं।"

"मैं समझ गया सर।"

"एक बात और समझ लो राठी कि बेशक उसकी याददाश्त चली गई हो। या लकवा मार गया हो, या वो पागल हो गया हो या उसके हाथ-पांव कट चुके हों, वो मेरे काम का है। तब तक काम का है, जब तक वो जिंदा है।"

"समझ गया।"

"जगमोहन हमारे हाथ से ना निकले। हमारे पास ही कैद में रहे।"

"मैं हर वक्त जगमोहन के पास रहूंगा। तारा और जैकब ने अपना ध्यान देवराज चौहान पर लगा दिया है।"

"उन्हें अपने काम करने दो। तुम जगमोहन को संभाल लो। कल मैं आऊंगा जगमोहन को देखने।" इसके साथ ही फोन कट गया।

राठी ने सोच में डूबे फोन जेब में रखा कि पैंतीस वर्ष के हरि ने भीतर प्रवेश किया।

"आपने बुलाया?"

"तुम कितने लोग हो यहां?"

"बंटी भी है। हम दो ही हैं।" हरि ने कहा।

"ये हमारा महत्वपूर्ण कैदी है। अकबर साहब को इसकी बहुत जरूरत है, लेकिन यह घायल है। इस वक्त नींद की दवा के असर से सो रहा है।" राठी ने गंभीर स्वर में कहा--- "ये बहुत शातिर और चालाक है। डकैती मास्टर देवराज चौहान का सबसे खास साथी है। इसी से तुम सोच सकते हो कि ये कितना खतरनाक होगा। कुछ देर पहले इसे होश आया तो इसने ऐसी बातें कीं जैसे सब कुछ भूल गया हो। मेरा ख्याल है कि ये याददाश्त गुम हो जाने का ड्रामा कर रहा है।"

हरि ने सिर हिलाया।

"बंटी के साथ तुम रात भर यहीं रहोगे और दोनों इस पर नजर रखोगे। आज की रात तुम दोनों नींद नहीं लोगे और दिन में नींद ले लेना। तब मैं इसके पास रहूंगा।" राठी ने गंभीर स्वर में कहा।

"मैं और बंटी ऐसा ही करेंगे।"

"तारा और जैकब कहां हैं?" राठी ने पूछा।

"वो ऊपर वाले कमरे में सोने गए हैं।"

"ठीक है। मैं बगल वाले कमरे में नींद लूंगा। जरूरत पड़े तो मुझे उठा देना। तुम और बंटी अभी से इसके पास जम जाओ। रात भर जागकर इस पर नजर रखो। लापरवाह मत होना।"

"अपने जैसा कहां है, हम वैसा ही करेंगे। मैं अभी आया। बंटी को बुला लाऊं?"

"तुमने खाना खा लिया?"

"हां।"

"मैंने कुछ नहीं खाया। थोड़ा बहुत मुझे खाने को दे दो कि नींद आ जाए। उसके बाद कॉफी मैं खुद बना लूंगा। तब तक मैं यहीं हूं। तुम खाने को ले आओ।"

हरि बाहर निकल गया।

राठी दोनों हाथ जेब में डाले बैड के पास पहुंचा और जगमोहन के चेहरे को देखने लगा। वो गहरी नींद में था। सीना उठ-बैठ रहा था। फिर राठी बैड के पास ही टहलने लगा।

■■■

अगले दिन सुबह नौ बजे सब-इंस्पेक्टर कामटे नानावटी हॉस्पिटल पहुंचा। वो वर्दी में था और सीधा घर से आ रहा था। रात भर सुनीता के साथ ही रहा था। सुबह सुनीता खुश थी और उसे तगड़ा नाश्ता करा कर भेजा था। इंस्पेक्टर विजय सावटे को शूट किए जाने की खबर सुनीता को, कामटे ने दी थी, जिसकी वजह से सुनीता चिंतित थी कि उसके पति को कुछ ना हो जाए। पर कामटे उसको विश्वास दिलाकर आया था कि उसे कुछ नहीं होगा।

हॉस्पिटल के फोर्थ फ्लोर पर रूम नम्बर तीन के बाहर पहुंचा। वहां पर सब-इंस्पेक्टर गोरे, एक हवलदार और दो कॉन्स्टेबल थे। कांस्टेबलों ने गनें थाम रखी थीं। गौरे और हवलदार की कमर के बगल में होलेस्टर लटक रहे थे जिसके भीतर से रिवाल्वरें झांक रही थी।

"कैसे हो गोरे?" सब-इंस्पेक्टर कामटे बोला।

सब-इंस्पेक्टर गोरे ने उसे घूरा।

कामटे मुस्कुराया।

गोरे, कामटे की कोहनी पकड़े एक तरफ ले जाकर बोला---

"मैं सुन रहा हूं कि आजकल तुम कमिश्नर बाजरे के साथ घूमने लगे हो।"

"आर्य निवास होटल के हत्याकांड के सिलसिले में...।"

"कमिश्नर साहब, सब-इंस्पेक्टर को क्यों साथ रखेंगे?"

"ये उसकी मर्जी...।"

"कोई सिफारिश लगाई है?"

"नहीं...।"

"कमिश्नर साहब से कोई रिश्तेदारी है जो...।"

"ऐसा कुछ नहीं है। मैं कमिश्नर साहब की नजरों में चढ़ गया तो चढ़ गया।" कामटे ने शांत स्वर में कहा।

"तुम्हारी तरक्की भी हो सकती है।"

"अगर मैंने कोई अच्छा-बढ़िया काम करके, खुद को साबित करके दिखाया तो...।"

"किस्मत बढ़िया है तुम्हारी...।"

"इंस्पेक्टर विजय सावटे की तरह मैं भी मारा जा सकता हूं। इस मामले के पीछे सर्दूल जैसा मुजरिम है।"

"हां। पता लग चुका है मुझे...।"

"ये भी पता है कि तुम किसकी निगरानी पर हो?" कामटे ने पूछा।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान की निगरानी पर...।"

"लापरवाही मत करना। सर्दूल यहां भी कुछ करा सकता है। तुम सबको सतर्क रहना होगा।"

"लेकिन मामला क्या है- कुछ पता तो चले कि...।"

"देवराज चौहान के साथी जगमोहन को रात हॉस्पिटल से उठा लिया गया...। ना उठाया गया होता तो अब तक उसे होश आ गया होता और पुलिस को जरूरत की सब बातों का जवाब उससे मिल गया होता।" कामटे ने गंभीर स्वर में कहा--- "सर्दूल खतरनाक है और वो तेजी से काम कर रहा है। मैं तुम्हें फिर सतर्क कर रहा हूं गोरे...।"

"मैं समझता हूं कि ये मामला गंभीर है। मैं सतर्क हूं...।"

"देवराज चौहान की हालत में सुधार आया?"

"नहीं। वो भीतर 'कोमा' की हालत में है। पास में नर्स है।" सब-इंस्पेक्टर गोरे ने सिर हिलाकर कहा।

"मैं जरा भीतर होकर आता हूं...।" सब-इंस्पेक्टर कामटे ने कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

■■■

दो दिन बीत गए।

सब-इंस्पेक्टर गोरे, हवलदार और दोनों कांस्टेबल मुस्तैदी से ड्यूटी दे रहे थे कि देवराज चौहान वाले कमरे में कोई ना जाए। यूँ भी फोर्थ फ्लोर पर खामोशी रहती थी। यहां ज्यादातर वो पेशेंट थे जिनका इलाज लंबा चलना था। डॉक्टर और नर्सों का फोर्थ फ्लोर पर आना बहुत कम रहता था।

देवराज चौहान के पास एक नर्स हमेशा रहती थी। ड्यूटी बदलती तो दूसरी नर्स आ जाती।

पुलिस वालों की भी ड्यूटी बदलती थी। रात आठ बजे दूसरे पुलिस वाले आ जाते, जो कि सुबह सात बजे तक गोरे अपने साथी पुलिस वालों के साथ आता और ड्यूटी संभाल लेता।

कल से एक बूढ़ा व्यक्ति अवश्य सब-इंस्पेक्टर गोरे और अन्य पुलिस वालों के पास आकर बैठ जाता। वो कोई पैंसठ बरस के आसपास का था। चेहरे पर सफेद दाढ़ी-मूछें थीं। सिर के बाल भी सफेद थे। वो थोड़ा सा कमर झुका कर चलता था। यूं ही पतला और लंबा था। शरीर पर कुर्ता-पायजामा पहने रहता। उसने गोरे को बताया कि उसका बेटा पन्द्रह नम्बर कमरे में है और उसे कैंसर है। इसके साथ ही बूढ़ा अपने दुख-दर्द सुनाने लगता। दिन में पांच-सात चक्कर तो गोरे के पास लगा जाता था। हर बार दस-बीस-तीस मिनट बैठ कर जाता। पन्द्रह नंबर कमरा वहां से ज्यादा दूर नहीं था। सामने छोटी सी गैलरी को पार करते ही बाईं तरफ 15 नंबर कमरा था।

सब-इंस्पेक्टर कामटे दिन में दो बार सुबह-शाम चक्कर लगाने आ जाता था और भीतर जाकर देवराज चौहान पर नजर मारता। डॉक्टर से बात करता। देवराज चौहान की कोमा माली हालत स्थिर थी।

■■■

इस वक्त दिन के साढ़े बारह बज रहे थे।

हॉस्पिटल के फोर्थ फ्लोर पर रोज की तरह मामूली चहल-पहल थी।

वो तारा और जैकब थे। जो कि अभी-अभी लिफ्ट से बाहर निकले थे। दोनों सामान्य अंदाज में आगे बढ़ते चले गए। किसी का भी ध्यान उनकी तरफ नहीं था। होता भी क्यों, सब कुछ तो, हर किसी को ठीक लग रहा था।

"मेरा दिल धड़क रहा है तारा।" जैकब ने चलते हुए शांत स्वर में कहा।

"ये तो अच्छी खबर है। इससे पता चलता है कि तू जिंदा है।"

"मजाक मत कर।मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।" जैकब ने पुनः कहा।

"तू डर रहा है?"

"पता नहीं। पर आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।"

"मामूली काम है। पूरा करके मैं दस मिनट में लौट आऊंगा। तू क्यों फिक्र करता है, सारा खतरा तो मैंने ही उठाना है।" जैकब ने चलते-चलते तारा को घूरा।

"तू मेरा मजाक उड़ा रहा है। जबकि तेरे को पता है कि मैं कैसे भी हालातों में डरने वाला नहीं।"

"वो कमरा किधर है?"

"आगे है।" जैकब बोला--- "मैं तेरे से ज्यादा तेज हूं...।"

"जानता हूं। मैंने कब कहा कि तू...।"

"मैंने सिर्फ इतना कहा है कि आज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।"

"सब ठीक है। मैं मजे से अपना काम कर दूंगा।"

"दाईं तरफ जो दरवाजा बंद है, वो कमरा है।" जैकब बोला।

दोनों उस दरवाजे के पास जा पहुंचे।

"भीतर कोई भी हो सकता है।"

"परवाह नहीं...।" तारा ने कहा और दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।

जैकब ने भी भीतर प्रवेश किया। दरवाजा बंद कर लिया। उस कमरे में दीवारों के साथ सटे लोहे के रैक रखे हुए थे। रैकों की शेल्फों पर हॉस्पिटल की चादरें तह की रखी थी। तकियों के गिलाफ तह किए रखे थे। दो स्ट्रेचर रूपी ट्रॉली भी वहां मौजूद थी, जो कि चार-पांच फीट लंबी थी और उनमें ऊपर की शेल्फ के अलावा नीचे भी एक शेल्फ थी।

कमरे में कोई भी मौजूद नहीं था।

"चल जल्दी कर।" कहते हुए जैकब ने ट्रॉली को रैक के पास खींचा और उस पर रैक से निकालकर चादरें रखने लगा।

तारा एक अन्य रैक की तरफ बढ़ गया, जहां हॉस्पिटल की यूनिफॉर्म, नीले कमीज-पायजामे रखे हुए थे। उसने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और नीला कमीज-पायजामा पहन लिया। वहां नाक और होंठों पर लगाने वाला कवर भी रखा था। उसे भी मुंह पर लगा लिया और सिर पर नीली टोपी रख ली। अब वो पूरी तरह अस्पताल का कर्मचारी लग रहा था और पहचान में भी नहीं आ रहा था कि वो तारा है। नाक और होंठों पर कवर जो लगा था।

ये सब काम करके वो पलटा तो जैकब भी तैयार हो चुका था।

जैकब ने ट्रॉली पर तह लगी पन्द्रह-बीस चादरें रख दी थीं। अब तारा ने देवराज चौहान वाले कमरे में जाकर पेशेंट के बैड की चादर, तकिए का कवर बदलने का ड्रामा करना था और इस दौरान देवराज चौहान को खत्म कर देना था। तारा के लिए ये बाएं हाथ का खेल था।

जैकब, तारा को देखते ही मुस्कुराया। बोला---

"तुम्हें देखकर ऐसा लगता है कि जैसे जिंदगी भर से तुम इसी काम में हो।"

"भाड़ में जा!"

जैकब हंस पड़ा।

तभी दरवाजा खुला और उसी बूढ़े ने भीतर प्रवेश किया और ठिठककर दोनों को देखा।

जैकब और तारा की नजरें मिलीं। तारा ने उसी पल मुस्कुराकर बूढ़े से कहा---

"कहिए?"

"मैं बहुत परेशान हो गया हूं। मेरा बेटा कैंसर से बुरी हालत में है और दो दिन से उसके बैड की चादर नहीं बदली गई। कैसा अस्पताल है ये अब मैं खुद चादर लेने आया था कि मैं ही बदल दूं...।" बूढ़े ने थके स्वर में कहा।

"चलिए।" तारा बोला--- "मैं अभी चादर बदल देता हूं।"

"पन्द्रह नम्बर कमरा है। मैं तुम्हारे साथ ही चलता हूं। वरना तुम आओगे ही नहीं।"

तारा ने ट्रॉली को एक तरफ से पकड़कर धकेला और बोला----

"चलिए। बस थोड़ा सा दरवाजा खोल दीजिए।"

बूढ़े ने दरवाजा खोला तो तारा ट्रॉली के साथ बाहर निकल गया।

बूढ़ा उसके साथ चल पड़ा।

जैकब कमरे में ही रह गया था।

"इस तरफ...।" बूढ़ा तारा से बोला।

तारा ने ट्रॉली को मोड़ से दूसरी गैलरी में मोड़ दिया।

"तुम बहुत अच्छे हो, जो एक ही बार कहने पर मेरे साथ चल पड़े।" बूढ़े ने कहा।

सामने ही तीन नम्बर कमरा था। जहां सब-इंस्पेक्टर गोरे, तीन अन्य पुलिस वालों के साथ मौजूद था। तारा ने छिपी, किंतु सतर्क निगाहों से पुलिस वालों को देखा।

"इस अस्पताल में सब ही अच्छे कर्मचारी हैं...।" तारा ने कहा।

"ये बात है तो मेरे बेटे के बैड की चादर क्यों नहीं...।"

"ये मैं पता करूंगा कि ऐसा क्यों हुआ?"

तभी वे पुलिस वालों के पास से निकले।

"नमस्कार।" बूढ़े ने गोरे से कहा--- "मैं बैड की चादर बदलवा कर अभी आता हूं।"

सब-इंस्पेक्टर गोरे ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।

वे आगे बढ़ते चले गए।

ट्रॉली में से हल्की चूं-चूं की आवाज निकल रही थी।

"पुलिस वालों को जानते हैं आप?" तारा ने सामान्य स्वर में पूछा।

"नमस्ते-वमस्ते हो जाती है। बोर होता हूं तो उनके पास बैठकर वक्त बिता लेता हूं।"

तारा खामोश रहा।

वे दोनों पन्द्रह नम्बर कमरे में पहुंचे। ट्रॉली तारा ने बाहर रोक दी थी और चादर के साथ कमरे में प्रवेश कर गया था। बूढ़ा पहले से ही कमरे में चला गया था।

तारा की निगाह बैड पर गई तो ठिठका।

बैड खाली था। चादर पर सिलवटें अवश्य पड़ी थीं।

"कहां है आपका बेटा?"

"उसके टेस्ट होने हैं। उसे नीचे ले गए हैं। वो आने ही वाला होगा। चादर बदलो तुम...।"

तारा ने बेहद शराफत से चादर बदली।

इस दौरान बूढ़ा खामोशी से खड़ा तारा को देखता रहा।

फिर तारा ने अपनी पुरानी चादर उठाई और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

"शुक्रिया।" बूढ़ा पीछे से कह उठा।

बाहर आकर पुरानी चादर ट्रॉली के नीचे की शैल्फ पर रखी और सतर्क निगाह हर तरफ मारी। सब ठीक था। ट्रॉली को तारा ने मोड़ा और वापस चल पड़ा। जहां कमरा नम्बर तीन था। जहां पुलिस वाले मौजूद थे। वो बूढ़ा दरवाजे पर आ खड़ा हुआ था और तारा को ट्रॉली धकेल कर जाते देखने लगा।

एकाएक बूढ़े के होंठों के बीच खतरनाक मुस्कान आ फंसी।

तारा ट्रॉली धकेलता तीन नम्बर कमरे के बाहर पहुंचा।

इंस्पेक्टर गोरे, हवलदार और दोनों कांस्टेबलों की निगाह उस पर टिक चुकी थी।

"पेशेंट के बैड की चादर बदलनी है।" तारा ने स्वभाविक स्वर में कहा।

"जरूरी है ये?" गोरे बोला।

"मेरी ड्यूटी है। आप कहते हैं तो नहीं बदलता...।" तारा मुस्कुराया।

क्षणिक सोच के पश्चात गोरे पलटा और कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर झांका।

देवराज चौहान बैड पर लेटा था। छाती तक चादर दे रखी थी। उसके अलावा एक अन्य पेशेंट भी बैड पर था। वो भी 'कोमा' में था। नर्स कुर्सी पर बैठी थी। आंखें बंद कर रखी थी उसने।

"सिस्टर।" गोरे ने कहा--- "पेशेंट की चादर बदलने की जरूरत है क्या?"

नर्स ने आंखें खोलीं। गोरे को देखकर कह उठी---

"बदलने आया है क्या?"

"हां।"

"ठीक है, बदल देते हैं।" नर्स कुर्सी से उठते हुए बोली।

गोरे पीछे हटा और पूरा दरवाजा खोलकर, पलटकर तारा से बोला---

"बदलो।"

तारा ने ट्रॉली पर से चादर उठाई, तकिए का गिलास उठाया और भीतर प्रवेश कर गया।

गोरे ने दरवाजा बंद कर दिया।

सब कुछ सामान्य ही तो था।

तभी बूढ़ा वहां आ पहुंचा।

"मैंने अपने बेटे के बैड की चादर बदलवा ली।" बूढ़ा कह उठा।

गोरे ने उसे देखकर सिर हिलाया।

"जरा इधर आना...।" बूढ़ा बोला।

"क्या?" गोरे ने उसे देखा।

"इधर। तुमसे कान में कुछ बात करनी है। कुछ बताना है।"

गोरे बूढ़े के पास पहुंचा। बूढ़ा तीन कदम और दूर चला गया था।

"क्या है?" गोरे ने पूछा।

"ये चादरें बदलने वाला बहुत बड़ा बदमाश है।"

"क्या?" गोरे के माथे पर बल पड़े।

"जब मेरे बेटे की बैड की चादर बदल रहा था तो उसे फोन आया था। किसी अकबर खान का फोन था। ये उसे कह रहा था कि तारा कभी किसी काम को अधूरा नहीं छोड़ता। अभी उसका काम हो जाएगा।"

"किसका?" गोरे चौंका सुनकर।

"मुझे क्या पता! जो सुना तुम्हें बता दिया बेटे...।"

"अकबर खान, तारा?" एकाएक गोरे चौंका--- "ओह...।" अगले ही पल वो बंद दरवाजे की तरफ दौड़ा।

उसके इस हाल पर पुलिस वाले भी सतर्क हुए।

इस दौरान गोरे ने रिवाल्वर निकाल ली थी। भड़ाक से दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।

भीतर तारा और नर्स देवराज चौहान को बैड से उठाने के फेर में थे कि चादर बदली जा सके।

तारा की निगाह फौरन घूमी। गोरे के हाथ में रिवाल्वर देखकर समझ गया कि गड़बड़ हो गई है।

"अपने हाथ ऊपर करो...।" गोरे गुर्राया।

"लेकिन इंस्पेक्टर...।" तारा अचकचाया--- "क्या हो गया? मैंने क्या कर दिया?"

"मैंने कहा है हाथ ऊपर।" गोरे ने रिवाल्वर उसकी तरफ तान दी।

नर्स घबराकर पीछे हो गई थी।

उसने गोरे को गहरी निगाहों से देखा और दोनों हाथ ऊपर कर लिए।

"कौन हो तुम?"

"मैं कृष्णा हूं। वार्ड ब्वॉय और...।"

"तुम तारा हो।" गोरे कह उठा।

तारा के जिस्म में ठंडी सिहरन दौड़ उठी।

तब तक बाकी पुलिस वाले भी हथियारों के साथ भीतर आ गए थे।

देवराज चौहान बैड पर बेसुध पड़ा था।

"हिलना मत।" गोरे रिवाल्वर थामें कठोर स्वर में कहता आगे बढ़ा। उसके होंठ भिंचे हुए थे।

"इंस्पेक्टर तुम्हें गलती हो रही...।"

"खामोशी से खड़े रहो।" गोरे गुर्राया।

तारा के जिस्म में क्रोध भरा आया। उसने बाकी पुलिस वालों को देखा। हवलदार के हाथ में भी रिवाल्वर थी। कांस्टेबलों ने गनों को सतर्क मुद्रा में हाथों में उठा रखा था। मस्तिष्क में एक ही बात थी कि वो फंस गया। उसे हैरानी थी कि उसके तारा होने की बात, पुलिस वालों को कैसे पता चल गई?

गोरे उससे डेढ़ कदम पहले पहुंचकर ठिठका और नाक-होंठों पर लगा रखा कवर हाथ में पकड़ कर नीचे किया तो उसका चेहरा चमक उठा।

गोरे उसे पहचानते ही बुरी तरह चौंका। साथ ही सतर्क हो गया था।

"तुम तो सच में तारा ही निकले...।" गोरे हड़बड़ाकर बोला--- "देवराज चौहान को मारने आए थे ना?"

तारा ने कड़वी निगाहों से गोरे को देखा, फिर बोला---

"मेरे रास्ते में मत आओ।"

"ये मामला ऐसा है कि तुम बच नहीं सकते। ये तो अच्छा हुआ कि बूढ़े ने मुझे तुम्हारे बारे में बता दिया।"

"बूढ़े ने?" चौंका तारा। आंखें सिकुड़ी।

"हां। जब तुम उसके बेटे के बैड की चादर बदल रहे थे तो तुमने फोन पर बात की। बूढ़े ने सुनी और मुझे बता दिया कि तुम अकबर खान से बात कर रहे थे और...।"

"लेकिन मुझे तो कोई फोन नहीं आया तब?" तारा कह उठा।

"क्या?"

"मुझे कोई फोन नहीं आया। वो बूढ़ा कोई फ्रॉड है, जो...।"

"बूढ़ा जो भी हो-- तुम तो तारा ही हो ना। जोकि देवराज चौहान को मारने आए थे और...।"

तभी तारा, गोरे पर झपट पड़ा।

तारा गोरे की रिवाल्वर छीन लेना चाहता था। परंतु इसी खींचा-तानी में गोली चल गई।

नर्स घबराकर चीख उठी। तेज धमाका हुआ था।

गोली तारा की छाती में जा लगी थी। ठीक दिल पर।

तारा नर्स की कुर्सी से टकराता नीचे गिरा और तब तक उसकी जान निकल गई थी।

देवराज चौहान बैड पर बेसुध पड़ा था। नर्स पुनः चीखी और डर से थर-थर कांपने लगी थी।

गोरे हक्का-बक्का रह गया था। कम-से-कम वो तारा की मौत नहीं चाहता था।

चंद पलों के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया था।

"सर।" हवलदार ने टोका।

गोरे के मस्तिष्क को झटका लगा। वो फौरन पलटता कह उठा।

"मैं बूढ़े के पास जा रहा हूं...।" दौड़ता हुआ वो कमरे से बाहर निकलता चला गया।

कमरा खाली था।

गोरे अजीब सी नजरों से कमरे को देखने लगा। रिवॉल्वर उसके हाथ में थी।

फिर वो पलटा और कमरे से बाहर निकला। सामने से एक नर्स आती दिखाई दी। उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकर घबरा गई। ये महसूस करके गोरे ने रिवॉल्वर होलस्टर में डालते हुए कहा---

"इस कमरे का पेशेंट कहां है?"

"कौन सा कमरा?" नर्स ने पन्द्रह नम्बर कमरे के दरवाजे पर नजर मारी।

"ये...पन्द्रह नम्बर वाला...।"

"पन्द्रह नम्बर में तो कोई पेशेंट नहीं है।" नर्स ने कहा।

"यहां पेशेंट था। कैंसर का पेशेंट और...।"

"कैंसर के पेशेंट को यहां क्यों रखा जाएगा? वैसे भी पन्द्रह नम्बर में कोई पेशेंट नहीं था।" नर्स ने कहा और आगे बढ़ गई।

गोरे ठगा सा रह गया। आंखों के सामने बूढ़े का चेहरा नाच उठा।

■■■

गोरे के कमरे में जाते ही बूढ़ा पलटा और गैलरी में आगे बढ़ गया। उसकी चाल अब सामान्य से तेज थी। गैलरी में दो-चार लोग उसके पास से निकले।

आखिरकार बूढ़ा उसी कमरे के दरवाजे पर जाकर ठिठका, जिसके भीतर रैंकों पर चादरें वगैरह पड़ी थीं। बूढ़े ने शांत भाव से गैलरी में दोनों तरफ नजर मारी और दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।

जैकब कमरे में ही टहल रहा था। बूढ़े को आया पाकर ठिठका।

"तुम...? तुम तो अभी चादर बदलवाने गए थे?" जैकब बोला।

"वो बदला दी...।" बूढ़ा मुस्कुराकर बोला।

"तो अब क्यों आए हो?"

"तकिए का गिलाफ बदलना था।"

"गिलाफ भी तो वो लेकर गया है ट्रॉली में? फिर तुम...।"

"उसको तो मैंने लाइन पर लगा दिया जैकब।" इस बार बूढ़े की आवाज बदली हुई थी।

जैकब उछल पड़ा। चेहरे पर हैरानी घिर आई।

"क...कौन हो तुम? म... मैंने तुम्हारी आवाज सुन रखी है।" साथ ही जैकब के हाथ में रिवाल्वर आ गई थी।

"पहचाना नहीं मुझे?"

"तु... तु...तुमने अपना चेहरा बदल रखा है शायद। मैंने तुम्हारी आवाज सुन...।"

"सोचो, याद आ जाएगा कि तुमने मुझे कहां देखा था। कहीं वो जगह आर्य निवास होटल तो नहीं?"

जैकब का मुंह खुलता चला गया। आंखें फट गईं।

"तु... म...आप...सर्दूल...?" जैकब के होंठों से फड़फड़ाता स्वर निकला।

बूढ़ा जोकि सर्दूल ही था। मुस्कुराता हुआ उसे देखता रहा।

जैकब का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे होता चला गया।

"आप, यहां कैसे?" जैकब के होंठों से निकला।

सर्दूल आगे बढ़ा और जैकब के पास जा पहुंचा।

"देवराज चौहान को मारने आए थे।" सर्दूल शांत स्वर में बोला।

"अकबर साहब ने हुकुम दिया था।"

तभी सर्दूल के दोनों हाथ बिजली की सी तेजी से चले।

एक हाथ से कंधा पकड़ा जैकब का। दूसरे हाथ को खास अंदाज में उसके सिर पर मारा।

'कड़ाक'

तेज आवाज के साथ उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई।

सर्दूल ने उस पर से अपने हाथ हटाए तो वो कटे पेड़ की तरह नीचे जा गिरा।

■■■

अगले डेढ़ घंटे में हॉस्पिटल के फोर्थ फ्लोर पर पुलिस ही पुलिस थी।

कमिश्नर बाजरे, इंस्पेक्टर शेखर पेरवले, सब-इंस्पेक्टर सावटे के अलावा बीस पुलिस वाले और भी थे।

सब-इंस्पेक्टर गोरे, हवलदार और दोनों कांस्टेबलों ने बताया कि क्या हुआ था। तारा की लाश उठाकर, वहां की साफ-सफाई करा दी गई। दूसरा हंगामा तब उठा जब जैकब की लाश उस कमरे में मिली।

चार बजे तक पुलिस बहुत व्यस्त रही।

आखिरकार बाजरे, पेरवले, कामटे और गोरे को बात करने का मौका मिला।

"हथियार सप्लायर्स अकबर खान ने देवराज चौहान को खत्म करने के लिए अपने दो खास आदमी भेजे। उससे पहले जगमोहन को हॉस्पिटल से उठा लिया गया। मेरे ख्याल में अब तक जगमोहन की हत्या कर दी गई होगी।" कमिश्नर बाजरे गंभीर था--- "हम नहीं जान पाए कि असल मामला क्या है! परंतु ये तो जाहिर है कि मामला गंभीर है। 'कोमा' की हालत में पड़े देवराज चौहान को भी वो लोग जिंदा नहीं छोड़ना चाहते। हमें देवराज चौहान को कड़ी सुरक्षा देनी होगी, ताकि अगर उसे होश आए तो हम उससे सारे मामले की जानकारी पा सकें। देवराज चौहान को कानून की पहले से जरूरत भी है।"

"सर।" गोरे बोला--- "अकबर खान को गिरफ्तार क्यों नहीं किया जा रहा है?"

"वो कहीं छुप गया है। सुधीर दावरे, दीपक चौला, वंशू करकरे और इनके खास आदमियों को पूरा पुलिस डिपार्टमेंट तलाश कर रहा है। जहां ये हो सकते हैं हर शक भरी जगह पर पुलिस छापे मार रही है। परंतु ये सब लोग कहीं छुप गए हैं। ये मामला सर्दूल जैसे खतरनाक मुजरिम से वास्ता रखता है। आर्य निवास होटल में हुई गोलीबारी की वजह जानना हमारे लिए बहुत जरूरी है। तभी हम मामला समझ कर हालातों के हिसाब से चल सकते हैं।"

"बात तो कुछ खास ही है सर।" पेरवले ने कहा--- "जगमोहन का हॉस्पिटल से अपहरण कर लिया। देवराज चौहान को 'कोमा' की हालत में खत्म करने की चेष्टा की गई। जबकि पुलिस वाले उसकी सुरक्षा के लिए मौजूद थे।"

"देवराज चौहान पर फिर हमला होगा।" बाजरे बोला।

"फिर?"

"वो देवराज चौहान को हर हाल में मार देना चाहते हैं। सर्दूल इस मामले में खामोश नहीं बैठेगा।"

सब कमिश्नर बाजरे को देखे जा रहे थे।

"मैं पुलिस का पहरा बढ़ा रहा हूं।" बाजरे ने कहा--- "दरवाजे के बाहर इसी तरह सब-इंस्पेक्टर गोरे तीन पुलिस वालों के साथ रहेगा और रात को ड्यूटी बदलती रहेगी, गोरे और तीनों पुलिस वालों की।"

"यस सर।" गोरे ने फौरन कहा।

"कामटे, तुम कमरे के भीतर देवराज चौहान के पास रहोगे। दिन भी, रात भी। तुम अपना बिस्तर उसी कमरे में लगा लो।"

"जी सर।" कामटे ने सतर्क मुद्रा में सिर हिलाया।

"और दरवाजे के बाहर, गैलरी में पुलिस के छः जवान तैनात रहेंगे। हॉस्पिटल वालों से कह दिया जाएगा कि इस तरह का रास्ता कम से कम इस्तेमाल करें। मैं नहीं चाहता कि बाहरी बंदे को इस कमरे के दरवाजे के पास आने का भी मौका मिले।"

तभी शेखर पेरवले कह उठा---

"सर, देवराज चौहान 'कोमा' का पेशेंट है। इसे होश में आने में महीनों, या सालों लग सकते हैं। या फिर ये इसी प्रकार बेहोशी में मर सकता है। ये मामला लंबा भी हो सकता है।"

"ये बाद की बात है। हमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए...।"

"यस सर।"

कमिश्नर बाजरे कमरे में देवराज चौहान के पास पहुंचा ल।

अब देवराज चौहान के पास नई नर्स थी।

"इसकी कैसी हालत है सिस्टर?" बाजरे ने पूछा।

"कोमा का पेशेंट है। सांसें चल रही हैं। इसके अलावा कोई होश नहीं है।" नर्स ने कहा।

कमिश्नर बाजरे, सब-इंस्पेक्टर कामटे से कह उठा---

"कामटे, तुम इसी कमरे में टिक जाओ।"

बाजरे, पेरवले और गोरे के साथ बाहर निकल गया।

कामटे ने देवराज चौहान पर नजर मारी, फिर जेब से फोन निकालकर घर का नम्बर मिलाया।

"हैलो...।" फौरन ही सुनीता की आवाज कानों में पड़ी।

"कैसी हो?" कामटे मुस्कुराकर कह उठा।

"क्या बात है, बहुत मीठा बोल रहे हो?" सुनीता ने उधर से कहा।

"कुछ नहीं, यूं ही।" कामटे ने हड़बड़ाकर कहा।

"बता भी दो क्या बात है? घर आ रहे हो क्या?" उधर से सुनीता ने चंचल स्वर में कहा।

"यही बताने के लिए मैंने फोन किया था कि कई दिन मैं अभी घर में नहीं आ सकूंगा।"

"कई दिन?" उधर से सुनीता का स्वर तीखा हो गया।

"हां, वो क्या है कि...।"

"मेरा बाप पागल था जो उसने मेरी शादी पुलिस वाले से कर दी। मैं तो उसे दिन-रात गालियां निकालती हूं। साल भी नहीं हुआ मेरी शादी को और अभी तक तुम कुल मिलाकर छः महीने भी मेरे साथ नहीं रहे। कमीना कुत्ता है मेरा बाप, जो उसने मेरी खुशी के बारे में ना सोच कर, तुम्हारी सरकारी नौकरी के बारे में सोचा। मैं तो उसे...।"

कामटे ने फोन बंद करके गहरी सांस ली।

नर्स उसे ही देख रही थी, नजरें मिलते ही कामटे के चेहरे पर झूठी मुस्कान उभरी।

"मैं जानती हूं कि तुम्हारी बात सुनकर तुम्हारी बीवी ने तुम्हें क्या कहा होगा।" नर्स कह उठी।

"औरत, औरत को अच्छी तरह पहचानती है।" कामटे कड़वे स्वर में कह उठा।

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शाम के आठ बज रहे थे।

कमरे में ट्यूबलाइट और ए•सी• चल रहा था। साधारण सा कमरा था। ये अकबर खान का गुप्त ठिकाना था। जब भी उसे कोई खतरा होता तो यहां आ जाता था। चिंटूराम साठ बरस का बूढ़ा होता जा रहा खानसामा यहां रहता था। जो कि तीस साल की उम्र से ही अकबर खान के साथ तब से था, जब वो छोटा-मोटा बदमाश हुआ करता था। चिंटू, अकबर खान का विश्वासी आदमी था। इन दिनों पुलिस से तगड़ा खतरा पैदा हो गया था, इसलिए अपने सब आदमियों से गुप्त जगहों पर छुपकर रहने को कह दिया था। अकबर खान खुद भी यहां से बाहर नहीं निकलता था। सिर्फ एक बार जगमोहन को देखने गया था।

अकबर खान आज ज्यादा परेशान था। उसे खबर मिल गई थी कि हॉस्पिटल में देवराज चौहान को मारने गए तारा और जैकब मारे गए थे। वो उसके विश्वासी आदमी थे और सालों से हर सुख-दुख में साथ रहे थे। उनका इस प्रकार मारा जाना उसके लिए तकलीफ-देह था। हाथ में पकड़े गिलास से अकबर खान ने घूंट भरा।

तभी चिंटू वहां पहुंचा और बोला।

"कुछ खाएंगे? पीने के साथ थोड़ा-बहुत ले लेना चाहिए।"

"ले आ...।"

चिंटू चला गया।

तभी अकबर खान का मोबाईल बजा।

"हैलो।" अकबर खान ने बात की।

"कैसा है अकबर?" सर्दूल की आवाज कानों में पड़ी।

"ओह, तुम...सर्दूल।" अकबर खान चौंका। उसके होंठों से निकला--- "पाकिस्तान पहुंच गए?"

"समझो पहुंच गया।"

"अच्छा किया। यहां तो बहुत खतरा है।" अकबर खान ने गहरी सांस ली।

"तुम तो बहुत कमजोर निकले अकबर।"

"क्या मतलब?"

"तारा और जैकब को भेज दिया, देवराज चौहान को मारने के लिए...।"

"उसका मर जाना ही ठीक है।"

"वो तो कोमा में है। जिंदा लाश है वो। ये तो कोई बहादुरी नहीं हुई कि तुम लाश की हत्या करो।"

"वो कोमा से होश में आ गया तो हमारे पीछे पड़ जाएगा। डकैती मास्टर देवराज चौहान है वो।"

"ऐसा हुआ तो उससे निपट लेना। पहले ही डर को मुकुट बना लेने में समझदारी तो नहीं...।"

"मैं खतरों को खत्म कर देना ही ठीक समझता...।"

"लेकिन मुझे तेरी ये कमजोरी वाली हरकत पसंद नहीं आई। तभी तो वो दोनों मारे गए।"

"क्या मतलब?" अकबर खान के होंठों से निकला।

"तुम्हारे दोनों आदमी मेरे इशारे पर ही मरे। अगर मुझे तुम्हारी ये हरकत पसंद होती तो वो सफल हो गए होते।"

अकबर खान के होंठों से कुछ नहीं निकला। उसकी आंखें सिकुड़ गई थी।

"समझ गए होगे अकबर?"

"वो दोनों मेरे खास आदमी थे।"

"लेकिन मैं देवराज चौहान को इस तरह मौत नहीं देना चाहता। हम इतने गिरे हुए तो नहीं हैं कि कोमा में पड़े इंसान की डरकर हत्या कर दें। हम बहादुर हैं। तुम्हारी पीठ पर मेरा हाथ है। हम नीचता वाले काम नहीं करते। हमें अपना दिल बड़ा रखना चाहिए। दुश्मन स्वस्थ हो तो लड़ने का भी मन करता है। देवराज चौहान इस वक्त ऐसे हाल में है कि मैं उसे इस वक्त दुनिया का सबसे कमजोर आदमी मानता हूं। ऐसे में उसकी जान लेने की सोचना भी बुरी बात है। कम से कम मुझे तो तुम्हारी ये बात पसंद नहीं आई। मेरे आदमियों ने उनका काम खराब कर दिया।"

"तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।" अकबर खान ने गहरी सांस ली।

"डरो मत, मैं तुम्हारे साथ हूं...।"

"तुम तो पाकिस्तान में हो और मैं यहां...।"

"मैं हर जगह हूं। सर्दूल के लिए पाकिस्तान-हिन्दुस्तान कुछ नहीं है। मेरे लिए हर जमीन एक जैसे है।"

"चिंटू प्लेट में नमकीन काजू और चिकन रख गया।

अकबर खान ने घूंट भरकर गिलास रखा और चिकन उठाकर खाया। फोन कान पर था।

"मैं तुम्हारे पास ही हूं। तुम किसी बात की फिक्र मत करो।" सर्दूल की आवाज कानों में पड़ी।

"और पुलिस का शिकंजा?"

"इसी तरह छिपे रहो। धीरे-धीरे पुलिस पीछे हटती चली जाएगी। मैं पुलिस को पीछे कर दूंगा।"

"ठीक है।" अकबर खान ने चिकन खाते हुए कहा।

"मैंने सुना है कि हॉस्पिटल से देवराज चौहान के साथी जगमोहन को किसी ने उठा लिया?"

"हां, सुना तो मैंने भी है।"

"तुमने उठाया?"

"न... नहीं। मैंने ये काम नहीं किया।"

"ठीक है। कोई जरूरत हो तो मुझे फोन कर लेना।" उधर से इतना कहते ही सर्दूल ने फोन बंद कर दिया था।

सोचों में डूबा अकबर खान चिकन खाता रहा। पीता रहा।

फिर राठी को फोन किया।

"कहिए।" राठी की आवाज कानों में पड़ी।

"जगमोहन को चैक करो कि उसकी याददाश्त खो गई है या वो नाटक कर रहा है।" अकबर खान ने गंभीर स्वर में कहा।

"ठीक है। अब चैक करूंगा।"

"सतर्क रहना। वो बहुत चालाक और खतरनाक इंसान है। वो हमारी कैद से ना निकल भागे।"

"वो कैद से नहीं भाग सकेगा। मुझ पर भरोसा रखो।"

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