अमर को काले जंगल जाके दो दिन गुजर चुके है। पर अभी तक उसका अता-पता नहीं। अभी सलोनी और उसके दोस्तों को उसकी चिंता होने लगी, की तभी उन्होंने अमर को आते हुए देखा। सभी के चेहरे पर ख़ुशी की लहर छाई। भोला और शरद दौड़कर उसके पास गए और उसके गले लग गए। किन्तु सलोनी उसके पास नही गई। जब अमर खुद उसके पास आया, तब उसने उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा लगाया और बोली, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मूर्छित करने की?

अमर ने सलोनी से माफ़ी मांगी और सभी मिलकर राजमहल लौट आए। राजमहल आने के बाद अमर ने सभी के चेहरों पर एक उम्मीद देखके सच्चाई अपने तक ही रखी और महाराज, महारानी और सम्यकमुनी से कहा की इलाज का पता चल चूका है, पर वो इलाज क्या है? वो मै आपको नही बता सकता। अगर मै आपको इलाज बताता हु, तो वो इलाज निशप्रभाव हो जाएगा और फिर हम समर के लिए कुछ नही कर सकेंगे। महाराज ने अमर के ऊपर विश्वास किया और भावुक होकर उसके गले लग गए।

अगर तुम समर का इलाज करने मे सफल हुवे तो मै तुम्हारा यह उपकार मरते दम तक नही भूल पाऊंगा बेटा।”, महाराज ने भावुकता में अमर से कहा।

सम्यकमुनी प्रसन्न होकर अमर की तरफ देख रहे थे और अमर के दोस्त खुशी के मारे एक दुसरे के गले लग रहे थे। महारानी अमर के पास आई और उसे सफल होने का आशीर्वाद दिया। अमर ने अपने दोस्त समर से मिलने की इच्छा व्यक्त की तोह महाराज तुरंत मान गए। अमर जादुई गोला हाथ में लिए समर के कमरे मे गया। जादुई गोला उसके पास रखे टेबल पे रखके रोते हुए कहने लगा, “मुझे माफ़ करदो भाई, मै तुम्हारे लिए कुछ भी नही कर पा रहा हु। तुम्हे पता है अभी मै पुरे परिवार से झूट बोलके आया की मुझे तुम्हारा इलाज मिल गया। पर असलियत में मुझे नही पता की इलाज क्या है? क्या करू, मुझे कुछ भी समज नही आ रहा?

तभी महाराज कमरे मे आए। वो कमरे के बाहर से अमर की बाते सुन रहे थे। उन्होंने अमर की तरफ देखा और गुस्सेमे बोले, “तोड़ दिया ना मेरा विश्वास। झूट बोला, हमारे उम्मीद के साथ खेल खेला। तुम्हे जरा भी शर्म नहीं आई ऐसा घिनोना मजाक करते हुए।

महाराज अमर को खीचते हुए सबके सामने ले आए और सबको बताया की इसने हमसे झूट बोला। इस बार सम्यकमुनी भी अमर से नाराज हो गए। उन्होंने कहा, “किसीकी भावनाओ के साथ खेलने का तुम्हे कोई हक़ नहीं है। अगर तुम्हे इलाज नही पता तो साफ-साफ बता देते। यु झूट बोलने की क्या जरूरत थी?

अमर मौन रहा। बादमे महारानी अमर के पास आई और उसने अमर को चाटा मारा। महाराज ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। फिर सम्यकमुनी चिंतित होकर कहने लगे, “महाराज, समर की हालत से लगता है की उसके पास अब सिर्फ २० से २२ दिन बचे है। अगर बाईस दिनों में हमें इलाज नही मिला तो हम समर को हमेशा के लिए खो देंगे।

यह बात सुनके अमर के दोस्त एक साथ एक कमरे मे गए। उन्हें समज नही आ रहा था की अमर ने झूट क्यों बोला? इसीका पता लगाने वो सब अमर के पीछे गए। उन्होंने अमर को पकड़ा और झूट बोलने की वजह पूछी। तब उसने बताया, “तो ओर फिर मै क्या करता? काल राक्षस सर्पमित्र दोष का कोई इलाज है ही नही।

सलोनी, “ये क्या कह रहे हो तुम?

शरद, “इसका कोई इलाज नही है, तो तुमने हम सबको आस पे क्यों रखा? क्यों कहा की तुम्हे इलाज मिल गया है?

अमर, “हाँ, मै सबको आस पे रखना चाहता था क्योकि काले जंगल में मुझे एक बूढ़े पेड़ ने कहा की आस बहोत बड़ी शक्ति है, जो इलाज को असल जिंदगी में खीचके लाएगी। इसीलिए मैंने झूट बोला। फिर मुझे कुछ झलकियाँ दिखी जिसमे मै और समर त्रिरिका पहाड़ पर है। जहा कुछ तारे तीर का आकर बना रहे थे और उनके निचे हम दोनों थे।

कुश, “तुम जो बता रहे हो उससे ऐसा लगता है की वो पेड़ तुम्हे कुछ बताना चाहता है। मुझे तुम पूरी बात बताओ।

फिर अमर ने पूरी बात बताई। तब कुश कहता है, “समझ गया। इसका इलाज है, अमर।

अमर, “सचमे?

सलोनी, “तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो?

कुश, “इसलिए की उस पेड़ ने भविष्य की झलकियाँ दिखाई थी। आजसे २० से २२ दिन बाद एक ऐसा योग आता है, जिसकी वजह से आसमान में दक्षिण की ओर कुछ तारे तीर का आकार बनाते है और कमाल की बात ये है की यह योग सिर्फ हजारो सालो में एक बार ही आता है।

सलोनी, “अब मै समझी यह इलाज विश्वास का है। विश्वास की ज्वाला इलाज को असलियत में लाएगी और कमाल की बात ये है की त्रिरिका पहाडीयों में एक ऐसी गुफा है जिसमे दिमाग की कल्पना सत्य में बदल जाती है।

शरद, “वो सब तो ठीक है, पर हमारे हाथ वक्त बहोत कम है, क्योकि वहा तक जाने मे हम लोगो को कम से कम २५ दिन लगेंगे। फिर हम २० दिनो के भीतर वहा कैसे पहुचेंगे?

भोला, “यह चुन्नोती हम पार कर लेंगे पर चिंता की बात यह भी है की उसी वक्त शनिश्राप उल्कापिंड भी गुजरने वाला है। उसके पहले हमें त्रिरिका पहुचना होगा।

शरद, “हाँ, वो भी एक चुन्नोती है।” तभी अचानक चुप बैठा अमर खड़ा हुवा और बोला, “उससे भी बड़ी चुन्नोती ये है की समर को राजमहल के बाहर कैसे लाए?

अमर की बात सुन ते ही सब चुप हो गए। कुछ समय तक सभी एकदूसरे की तरफ देखते रहे। तभी भोला बोल उठा, “हमें तुरंत गुरुवर्य को यह बाते समझानी पड़ेगी। वो महाराज को समझाएँगे और महाराज समर को हमारे साथ भेज देंगे।

कुश, “वाह यार क्या बात कही है तुमने...! हम ऐसाही करेंगे।

फिर सारे दोस्त मिलके राजमहल गए। जहापे अमर कही छूप गया और बाकि के गुरुवर्य को खोजने लगे। तभी उन्हें पता चला की गुरुवर्य आश्रम की ओर प्रस्थान कर चुके है। यह बात अमर को पता चली। अगर गुरुवर्य सम्यकमुनी को लाने वापस जाता तो बहोत वक्त लगता। इसीलिए अमर महाराज को बुलाने लगा ओर उन्हें बताया की उसे सच में इलाज मिल चूका है। पर महाराज ने उसकी बात नही मानी। महाराज ने दो सैनिको को आदेश दिया की अमर को कही दूर छोड़ के आए और फिर वो सोने चले गए। दोनों सैनिक अमर को जबरदस्ती खीचके लेकर गए। जो सैनिक अमर को खीच के ले जा रहे थे, उन्हें भोला ने बेहोश कर दिया। बादमे सभी दोस्तोंने मिलके समर का अपहरण करने की योजना बनाई।

योजना के तहत सभी चुपके से अमर को राजमहल के अंदर लाए। फिर सीधा समर के कमरे मे गए। जहा महारानी समर को खाना खिला रही थी। महारानी जैसेही बाहर गई अमर और उसके दोस्त समर के सामने आ गए और उसे सारी बात बता दी। तब समर अपने सच्चे दोस्तों को देखके धन्य हो गया। सभी मिलके वहासे भागे। भागते हुए समर ने जादुई गोला अपने साथ रखा। महारानी समर के कमरे मे आई, तो वहा समर नही था। जादुई गोला भी गायब था। महारानी ने तुरंत महाराज को जानकारी दी और फिर राज्य के सारे सैनिक समर को खोजने मे लग गए। तभी कुछ घुडसवार सैनिको को समर दिखाई दिया। उसे भोला और अमर सहारा देकर भगा रहे थे। और सलोनी के हाथो में जादुई गोला था। सैनिको ने उन्हें रुकने को कहा, पर वो नही रुके बस भागते रहे। सैनिक उनका पीछा करने लगे। तब भोला कहता है, “अमर। मै, शरद और कुश मिलकर इनको रोकते है, तब तक तुम और सलोनी मिलकर समर को ले जाओ

समर की तबियत बिगड़ रही थी। उससे चलना मुश्किल हो रहा था। तब अमर ने समर को अपने पीठ पर सवार किया और सैनिको से दूर भागने लगा। भोला, शरद और कुश तीनो ने मिलके सैनिको का सामना किया। तभी दो घोड़े सलोनी के हाथ लग गए। एक घोड़े पे अमर और समर बैठ गए, तो दुसरे घोड़े पे सलोनी बैठ गई। बड़ी तेजी से दोनों सैनिको की आँखों से ओझल हो गए। संघर्ष कर रहे भोला, शरद और कुश को सैनिको ने पकड़ लिया और राजमहल ले गए। आधी रात हो चुकी थी। सलोनी ने कुछ देर के लिए विश्राम करने को कहा। पर अमर नहीं माना वो लगातार आगे बढ़ता रहा। उसके साथ सलोनी भी आगे बढती रही। उधर सैनिको ने तीनो को महाराज के सामने पेश किया। महारानी भी वहा मौजूद थी। महाराज ने तीनो से पूछा, “समर को कहा ले गया है?” तीनो ने जवाब दिया, “हमें नहीं पता।

महाराज उनके ऊपर जोर जबरदस्ती करने लगा, उन्हें मारने पीटने लगा। फिर भी तिनोने अपना मुह नही खोला। तब महारानी हाथ जोड़ते हुए तीनो के सामने अपने घुटनों पर बैठ गई और बोली, “कहा है मेरा समर? कृपया मुझे बतादो। मै तुम तीनो से भीख मांगती हु।

तब भोला बोल उठा, “महारानी जी समर की आप चिंता ना करे। वो अमर के साथ है, जो उसका सबसे प्रिय मित्र है।

तभी कुश बोल पड़ा, “हाँ, महारानी साहिबा। अमर को समर का इलाज मिल चूका है। इसीलिए हम महाराज के पास आए पर महाराज ने हमारी बात नही सुनी इसीलिए हमने... बाकि आप तो जानती हो।

महाराज, “यह सब हमें मत बताओ। सिर्फ इतना बोलो की वो मेरे पुत्र को कहा ले गया है?

तभी शरद को गुस्सा आया और वो गुस्सेमे बोल पड़ा, “आप अमर को भक्षक समझ रहे है क्या? ये वही अमर है जिसने अपनी जान की पर्वा न करते हुए जानलेवा काले जंगल में समर को बचाने चला गया था। अभिभी वो समर की जान बचाने मे लगा हुवा है। क्योकि वो उससे प्यार करता है। वो सभीसे प्यार करता है। वो आपके समर को इतने आसानीसे कही नहीं जाने देगा। जरुरत पड़ी तो समर के लिए अपनी जान न्योछावर कर देगा।

महाराज थोडा सोचने लगा। वो महारानी के पास गया। उसे अपने साथ अपने कमरे में ले गया। पर जानेसे पहले उसने सैनिको को आदेश दिया की जबतक ये समर का पता नहीं बताते, तब तक इन्हें मारते रहो। सैनिको ने तिनोको बहोत मारा पर वो बोलने को राजी नही हुए और तीनो बेहोश हो गए। उधर अमर की यात्रा समर और सलोनी के साथ चालू थी। कुछ काली परछाईयां तीनो का पीछा कर रही थी। दोनों का काफिला दो दिन एक रात बिना रुके आगे बढ चूका था, तभी अचानक सलोनी ने अमर से रुकने को कहा पर वो नही माना। तभी अचानक उसका घोडा धड़मसे निचे गिर पड़ा। सलोनीने अपना घोडा रोका तो वोभी निचे गिर गया।

अमर ने समर को उठाकर अलग रखा और फिर घोड़े के पास आकर कहने लगा, “अरे ये क्या हो गया इसे? उठजाउठजा यार हमें बहोत दूर जाना है। यु बिचमे साथ मत छोड़।

सलोनी, “क्यों ना छोड़ना चाहिए तुम्हारा साथ ये बोलो? अमर ये जानवर है। इन्हें खाने पिने की जरूरत पड़ती है। विश्राम की जरूरत पड़ती है। पर दो दिन और एक रात से तो तुमने नाही इनको खाना दिया, नाही विश्राम करने दिया। ऐसी हालत तो होनी ही है। अमर मुझे पता है तुम समर से बहोत प्यार करते हो और उसे बचाना चाहते हो। पर उसे बचाने के चक्कर में तुमने घोड़ो के साथ समर को भी भूखा रखा।

अमर को समझ में आया की वो क्या करने जा रहा था। वो समर के पास गया और उससे माफ़ी मांगने लगा।

समर हस्ते हुए, “कोई बात नही मेरे भाई, इस क्षण तुम्हे मेरे अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। पर यार जैसे की सलोनी ने कहा अभी मुझे भूख लगी है। कही से खाने का बंदोबस्त कर दे।

अमर, “हाँ, अभी में खाने का इंतजाम करता हु। तब तक तुम विश्राम करो। (फिर सलोनी के तरफ जाकर।) सलोनी मै खाने का बंदोबस्त करता हु। तब तक तुम इसका ख्याल रखना।

अमर ने खाने का इंतजाम किया। घोड़ो को खाना पानी दिया। और समर के पास जाकर बैठा, जहा सलोनी पहले से ही थी। उसने समर का हालचाल पूछा। और उसको विश्राम करने लगाया। घोड़े भी विश्राम कर रहे थे। बादमे अलग एकांत में जाकर बैठ गया। उसके पास  सलोनी आकर बैठी। और फिर उनके बिच वार्तालाप होने लगी। सलोनी ने अमर के मुख पे एक संतोष देखा, पर एक अजीबसी घबराहट भी थी।

सलोनी, “तुम्हे पता है, आजकल तुम मुझे बहोत अच्छे लगने लगे हो।

अमर, “सीधा सीधा कहो ना की तुम मुझसे प्रेम करने लगी हो।

सलोनी झुलमुलाहट में, “क्या? बिलकुल नही। मै तुम जैसे बत्तमीज लड़के से कैसे प्रेम कर सकती हु?

अमर, “अब सत्य मुख पर ला भी दो। क्या पता कल हम दोनों के साथ क्या हो? हम दोनों जिन्दा रहेंगे भी या नही?

सलोनी, “हाँ, प्रेम करने लगी हु मै तुमसे। पता नही कैसे? पर बस हो गया। जब तुम हस्ते हो, तो मै भी हस्ती हु। जब तुम उदविग्न (बैचेन) होते हो तो मुझे भी कोई चीज अच्छी नही लगती।

अमर, “तो क्या तुम मेरे साथ सारी जिंदगी बिताना चाहती हो?

सलोनी, “हाँ, तुम्हारे हर सुख दुःख में तुम्हारा साथ देना चाहती हु। तुम्हारी बाहों में मरना चाहती हु।

अमर, “तो तुम्हे तुम्हारे इसी प्रेम की सौगंघ है। बस सत्य ही कहना और इसीसे पता चलेगा तूम्हारा प्रेम।

सलोनी, “अमर अब तुम मुझे डरा रहे हो। (अमर की आँखों में आँखे डालके।) अगर तुम्हे मेरी जान चाहिए तो मांग लो पर हर एक बात स्पष्ट कहो। यु मुझे डराओ मत।

अमर, “क्या तुम मेरे निर्णय में मेरा साथ दोगी?

सलोनी, “मरते क्षण तक तुम्हारा साथ देने का, तुम्हारे हर निर्णय में सहभागी होने का वचन देती हु।

फिर दोनों में ऐसीही बाते होने लगी। सलोनी अमर के सिने से लग गई और फिर दोनों सो गए। अचानक अमर के सपने में वह बुढा पेड़ आया, जिसने काले जंगल में उसे तिलस्मी पत्थर दिया था। उससे कहने लगा, “तो क्या सोचा है तुमने? समर को कैसे बचाओगे?

अमर, “मुझे नहीं पता! आपके कहे अनुसार विश्वास के भरोसे मै उसे त्रिरिका ले जा रहा हु।

बुढा पेड़, “अगर तुम्हारे पास समर को बचाने का एक मौका होता तो तुम क्या करते?

अमर, “मै कालसमितुल को असली दुनिया में लाता।

बुढा पेड़, “कालसमितुल को नहीं ला पाए तो तुम क्या करते?

अमर, “मै क्या करता? क्या कर सकता हु मै? मै एक साधारण इन्सान हु। इन दैवी शक्तियों से लढने की मुझमे ताकद नहीं है। इससे अच्छा मै अपने मित्र का दोष अपने ऊपर ले लू, ताकि वह सही सलामत अपनी जिंदगी गुजार सके।

बुढा पेड़, “वाह अच्छी सोच है। पर इन सब से काम नही बनेगा तुम्हे प्रयत्न करते रहना होगा।” कहकर उसके सपने से ओझल हो गए। उधर महाराज अमर का पता जानने के लिए कुश, भोला और शरद को यातनाए दे रहा था। उसने सैनिको को बताके रखा की अगर इन्होने अमर का पता नही बताया, तो इन्हें रात भर सोने मत देना। दो से तिन दिन गुजर चुके थे और महाराज तीनो को परताडित कर रहा था। फिर भी उन्होंने मुख नही खोला।

सुबह हुई। सूरज की तेज रोशनी से अमर की नींद खुली। आँख खुलते ही उसने सलोनी को अपने बाजु में सोकर देखा। सोते हुए बडीही मासूम लग रही थी। तभी हवाका एक हल्का झोका उसके बालों को हवा में लहराते हुए मुख पर बिखेर दिया। उन बिखरे हुए बालो को सवारने के लिए अमर धीरे से अपना हाथ उसके मुख के पास लाया, तभी सलोनी ने अपनी आँखे खोली। उसको आँखे खोलते देख उसने अपना हाथ खुदके सर की ओर मोड़ दिया और कहने लगा, “अरे सवेरा हो गया?

सलोनीने अमर की ओर घुर के देखा। तब उसने कहा, “क्या? क्या हुवा? मुझे ऐसे घुर्के क्या देख रही हो?

सलोनी, “कही तुम मेरे बाल सवारने के लिए अपने हाथ मेरे सर के पास लेकर तो नहीं आए थे ना?

अमरने हडबडी में कहा, “क्या कुछ भी सोचती हो?” कहके समर को देखने के लिए मुडा तो वो सामने नहीं था।

अमर उसे खोजने के लिए जोरसे चिल्लाया, “समर..?

तभी पास से आवाज आई, “क्या हुवा सुबह-सुबह क्यों आक्रोश मचा रहे हो?” समर घोड़ो को पानी पिला रहा था।

अमर, “कुछ नही यार, तुम दिखाई नही दीए इसलिए मै...। तुम चल फिर रहे हो। तुम्हे अभी कैसा महसूस हो रहा है?

समर, “बहोत अच्छा महसूस हो रहा है। पता नहीं तुमने रात को क्या खिला दिया। एक अजीबसी ताकद शरीर में महसूस हो रही है।

अमर, “तुम सच कह रहे हो या सिर्फ मुझे अच्छा लगे करके झूठ बोल रहे हो?

समर, “अरे बाबा मै ठीक हु।

फिर अमर मुस्कुराते हुए सलोनी की ओर देखता है, तो सलोनी उसे आँख मारती है।

अमर चौककर उसके पास गया और पूछा, “ये अभी तुमने क्या किया?

सलोनी, “क्या किया?

अमर, “मैंने तुम्हे देखा। अभी तुमने मुझे आँख मारी।

सलोनी, “भला मै क्यों तुम्हे आँख मारने लगी?

अमर, “अभी मैंने तुम्हे देखा था। तुमने मुझे आँख मारी थी।

सलोनी, “अच्छा, सच में तुम्हे ऐसा लग रहा है। तो फिर मुझे तुमसे बचके रहना चाहिए। तुम्हारे लक्षण कुछ अच्छे प्रतीत नहीं होते।

अमर, “क्या निष्कर्ष है तुम्हारा?

सलोनी, “वही, जो तुम्हे लग रहा है।

तभी बिच में समर बोल पडा, “सलोनी, क्या लग रहा है अमर को?

सलोनी, “मुझे लगता है की तुम्हारा दोस्त जागते हुए स्वप्न देखने लगा है। अभी इसने मुझे कहा की मैंने इसे

सलोनी का वाक्य पूरा भी नही हुवा था की अमर कह उठा, “कुछ नही मित्र अब आगे जाने की तयारी करनी है हमें। तुम अभी कैसा महसूस कर रहे हो?

समर, “दोस्त कुछ ही क्षणों में तुम दो-तिन बार मुझसे यह सवाल पूछ चुके हो।

फिर उसके बाद अमर वहासे उठकर अपने घोड़ो के तरफ गया। और उन्हें यात्रा के लिए तैयार करते हुए सलोनी की तरफ देखा, तो उसने फिर से आँख मारी। अमर हस्ते हुए घोड़ो को तैयार करने मे जुट गया। और फिर तीनो अपनी मंजिल को ओर निकल पड़े।

तीनों को यात्रा करते हुए १२ दिन हो चुके थे पर अभी तक अपनी मंजिल के पास नही पहुचे। हर गुजरते दिन के साथ समर की तबियत ख़राब होने लगी। पर आज तबियत बहोत ज्यादा ख़राब हो गई। दोनों ने अपना-अपना घोडा रोका और समर को निचे उतारकर उसे पानी पिलाया। पानी पितेही अचानक उसका चेहरा पिला पड़ने लगा। कड़ी धुप थी और कड़ी धुप में समर अब सफ़र नही कर पा रहा था। इसलिए अमरने कुछ वक्त वही आराम करने का फैसला किया। कुछ ही देर में आसमान पर काले घने शैतानी बादल छाने लगे। ठंडी हवाए चलने लगी। आसपास के पथ्थर हिलने लगे। सलोनी ने पीछे मुडके देखा, तो कुछ काली शक्तियां समर का इंतजार कर रही थी। तभी एक काली परछाई निचे जमीन पर उतरी। अमर ने सलोनी को समर के साथ रहने को कहा। और खुद जादुई गोला लेके काली शक्ति के रास्ते में खड़ा हो गया। तभी काली शक्ति हसते हुए कहने लगी, “नही रोक सकते मुझे, मै राक्षस सर्पमित्र का पहला कदम हु। अब ये गोला मेरा कुछ नही बिगाड़ सकता।

फिर भी समर और काली शक्ति के बिच जाके खड़ा होकर कहने लगा, “वो तो आने वाला वक़्त बताएगा। पर मेरे होते हुए मेरे दोस्त तक तुम कभीभी नहीं पहुच सकते।

वह काली शक्ति अमर के पास आने लगी। अमर गोले को काली शक्ति के पास ले गया। लेकिन काली शक्ति पर ज्यादा प्रभाव नही पड़ा। काली शक्तिने अमर को मारके अपने रास्ते से हटा दिया। अब काली शक्ति के सामने सलोनी थी। उस्कोबी अलग करके, काली शक्ति समर के अंदर प्रवेश कर गई। सलोनी और अमर बस देखते ही रह गए। समर दर्द के मारे चीखने लगा, चिल्लाने लगा। अमर से उसका दर्द देखा नहीं गया। वो जादुई गोला लेके समर के सिने से लगा दिया। पर अब उसका ज्यादा असर नही हुवा। वो शक्ति समर के अंदर पूरी तरह से समां गई थी। समर ने जादुई गोले को दूर फेंक दिया और अमर का गला पकड़ कर उसेभी दूर फेंक दिया। सलोनी अमर के तरफ भागी और उसे उठाते हुए समर को देखने लगी। समर अब बदल रहा था। उसके हाथो के नाख़ून अचानक बाघ के नाख़ून जैसे बन गए। उसके दात वैम्पायर जैसे तीक्ष्ण हो गए और हाथो पर बाल उग आए। सलोनी ने जादुई गोला अमर की तरफ दिया। अमर ने उसे पकडके फिरसे समर के पिट पर चढ़कर गोले को उसके सिने से चिपकाकर रखा। समर तडपने लगा। अमर को अपनी पीठ से हटाने की कोशिश करने लगा। पर वह टस से मस नहीं हुवा। और फिर समर शांत हो गया। उसके ऊपर के शैतानी शक्ति का प्रभाव कुछ हद तक कम हो गया। पर उसका बदला हुवा शरीर जैसा था वैसा ही रह गया। अमर और सलोनी समझ नहीं पाए की समर अपने इंसानी रूप में वापस क्यों नहीं आ रहा? अमर सावधानी बरदते हुए उसके पास गया और जादुई गोले को अमर की तरफ करके गोले से पूछने लगा, “हमारे सामने कौन है?

गोले ने दिखाया की शैतानी शरीर में अभी सिर्फ समर है। और फिर दोनों को विश्वास हुवा की वह सिर्फ अमर है, जिसका अभी रूप बदल गया है। अमर ने उसे संभाला और जगाया। समर ने सबसे पहले अपने आप को देखा और बोला, “मुझसे दूर रहो। अभी मैंने तुमपे दूसरी बार हमला किया था। मै तुम्हे गलती से भी चोट नहीं पहुचाना चाहता। इसीलिए मुझे अकेला छोड़ दो। तुम दोनों वापस चले जाओ।

अमर, “बापरे, कबसे इतना शिष्टाचारी बन गया तू। मै तुझे अपना भाई समझता हु। और मुझे नही लगता की एक भाई अपने दुसरे भाई को मुसीबत में छोड़ के अपनी जान बचाके भागेगा।

सलोनी, “अमरने बराबर कहा। अगर ये तुम्हारी सलाह मानकर तुम्हे यहाँ अकेला छोडके वापस जाएगा, तो मै इसके मुह पे दो-चार ढूसे लगाती।

अमर, “बड़े अच्छे विचार है तुम्हारे। पर तुम मुझेही क्यों मारना चाहती हो?

सलोनी, “मै तुम्हे क्यों माँरना चाहूंगी?

समर, “अरे अब तुम दोनों फिरसे शुरू मत हो जाना। बीमार लड़का निचे गिरा है। कुछ तो मदत करो यार मेरी।

अमर और सलोनीने समर को सहारा देते हुए घोड़े पे बैठाया। अमरने समर को अपनी पिट से बांध दिया ताकि वो सवारी के वक्त ना गिरे। और सलोनी को इशारे से पीछे रहने को कहा। त्रिरिका की ओर चलने का इनका सफ़र फिरसे शुरू हो गया।

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