तांत्रिक का चेहरा फक्क हो चुका था।

“चुड़ैल,” वो भैरवी को ही नए नाम से संबोधित कर रहा था, “ज़रूर तूने कोई बड़ी गलती कर दी है तूने।” मुर्दे को ठीक से नहलाया था तूने?”

भैरवी क्या जवाब देती। आज तो उसने अपना सारा समय नए यार के साथ रमण करने में लगा दिया था! मुर्दे को नहलाने का तो वक़्त ही नहीं मिला।

“गलती हो...।” पर आधा स्वर उसके मुंह में हीं फंसा रह गया था।

किसी अज्ञात शक्ति के लात ने उसे बड़ी दूर फेंक दिया था!

अब लाश के सर के पास वो अजीब सी चीज़ खडी थी जिसे राक्षस ने मन्दा कहा था।

सच में वो दो फूट की चीज़ ही थी।

ऐसा लग रहा था मानों किसी नवयौवना को किसी ने जादू से छोटा कर दिया हो। कपडे और जेवर यूँ धारण कर रखा था उसने मानों सुहाग शैय्या पर अपने प्रीतम का इंतज़ार कर रही हो।

सेवाराम को ऐसा लगा की वो उसे देखकर मुस्कुराई हो। उसके नाक कि नथ सेवाराम के आँखों में चमक उठी। वो चीज़ जो दोनों के छक्के छुराए दे रही थी पता नहीं सेवाराम को उसे देखकर ज़रा भी डर नहीं लगा था। उसे लगा वो उसकी अपनी थी, बिलकुल अपनी।

“कमबख्त तुझे पता नहीं की अशुद्ध मुर्दा शरीर दुष्टात्माओं को आकर्षित करता है। क्या कर दिया तूने?”

“छी, मेरे जैसी सुंदरी को तू दुष्टात्मा कहता है। तांत्रिक होकर भी मुझे नहीं पहचानता?”

“जानता हूँ तुझे। सुना था तेरे बारे में पर देखा पहली बार है। मेरे गुरु ने बताया था तेरे बारे में। तू ज़रूर मन्दा ही है।”

तांत्रिक ने सोचा था कि मन्दा का ध्यान भैरवी की और से हट चुका है। ऐसे ही मौके के लिए उसने भैरवी को एक सिद्ध कटार सौंपा था जिसे उसने आसन के नीचे छुपा रखा था।

भैरवी पूरी फुर्ती से मन्दा पर लपकी जिसकी पीठ उसकी ओर थी।

सेवाराम की इच्छा हुई की पेड़ से कूदकर उसे बचा ले।

पर भैरवी का पाला इस तरह की चीज़ से पहली बार पड़ा था। एक झटके से वो बला मुड़ी और स्वयं को बचाते हुए अपने नन्हे पैर से भैरवी को एक लात लगाई। भैरवी धड़ाम से गिर पड़ी। अगले ही पल उसने भैरवी के सर पर लात मारी।

सर तरबूज की तरह फट चुका था और उसकी इहलीला पल भर में समाप्त हो चुकी थी।

पता नहीं क्यों सेवाराम को अनजानी सी ख़ुशी हुई।

मन्दा पुनः तांत्रिक की और पलटी।

.........................

“सिकंदर के अड्डे पर हमें सबसे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब हमने ताशी महाशय को वहां देखा।”

वहां मौजूद सभी की आँखें ताशी की तरफ घूम गयी। आचार्य जी के चेहरे पर भी विस्मय के भाव थे।

ताशी हडबडाकर खड़ा हो गया पर सरस्वती ने इशारे से उसे बैठने को कहा।

राधा जारी थी, “वैसे तो ताशी ने अपने तरफ से हमें सफाई दे दी थी पर हम लोग संतुष्ट नहीं थे। इसलिए हम लोगों ने इनका पिछला इतिहास खंघाल डाला। इससे इनके बारे में बहुत सारी बातें जानने को मिली।”

आगे कन्हैय्या ने कहा- “पता चला कि ताशी महोदय चीन के जाने माने लेखक हैं और इसके पहले कई बार भारत आ चुके हैं। जेएनयु में दो वर्ष की हिंदी भाषा में डिप्लोमा कर चुके हैं। तिब्बत के विषय में चीन में इनके बहुत सारे शोध ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।”

ताशी के चेहरे पर सुकून के भाव उभरे। जितनी बातें कन्हैय्या ने कही थी वो तमाम बातें सही थी। इन्हीं सब काबिलियत के दम पर उसकी असली पहचान छुपी रह जाती थी।

पहली बार आचार्य जी के होंठ हिले, “ताशी जी के ज्ञान से तो स्वयं दलाई लामा भी प्रभावित रहे हैं। उन्होंने खुद ताशी जी की हमसे तारीफ़ की थी।”

अल्फान्से हतप्रभ था। कौन सा लम्बा गेम खेल रहा था ये कमबख्त। पुरे इंटेलिजेंस को धोखा देने में सफल रहा था वह। मन तो हो रहा था कि इस ताशी का सारा भेद खोलकर रख दे पर ऐसा तो ताशी भी कर सकता था! अन्य तरीके से वह कन्फर्म कर भी चुका था कि ताशी ही चेंग लेई है जो चीन का सबसे खतरनाक जासूस होता था। इस विषय में वह बस सरस्वती से बात कर सकता था। तब तक उसका चुप रहना ही ठीक था।

“फिर भी हमने निश्चय किया है कि आश्रम अगले एक महीने तक आने वालों के लिए बंद रहेगा। और जो भी श्रद्धालु अभी हमारे मेहमान बनकर यहाँ ठहरे हैं ज़रुरत पड़ने पर वो किसी भी जांच में सहयोग करेंगे।” कहते हुए आचार्य जी ने सभी की तरफ देखा। सभी के चेहरे पर सहमति के भाव थे।

...........................

“अरे एक तो तुमने इतने पुण्य का काम किया मुझे होश में लाकर और मुझे ही मारने में लग गए। गन्दी बात गन्दी बात।”

सेवाराम अब उस बला में पूरी तरह खो चुका था जिसका नाम मन्दा था। कितनी खुबसूरत आवाज थी इसकी।

“अब ऐसा कर, अपनी ये खोपड़ी मुझे दे दे।”

राक्षस समझ गया था कि उसका अब सामने आना ज़रूरी है वरना कुछ देर में इस कापालिक की लाश यहीं पड़ी होगी। और अगर एक तांत्रिक की खोपड़ी इसके हाथ लग गयी तो इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी। आखिर वो भी एक तांत्रिक था और दुसरे तांत्रिक की सहायता करना उसका फ़र्ज़ था।

तब तक मन्दा तांत्रिक पर हमला कर चुकी थी। मन्दा के नन्हें से पैर सीधे उसकी छाती पर पड़े और वो उलट गया। मन्दा ने झुककर वो खोपड़ी उठानी चाही जिसका इस्तेमाल वह अपने खाने पीने के लिए करता था।

तब तक राक्षस के हाथ मन्दा के बाल तक पहुँच चुके थे।

सेवाराम ने उसे साफ़ साफ़ पहचाना। उस छह फुटे ने अभी भी शरीर पर बस एक लाल रंग का लंगोट धारण कर रखा था।

माथे पर सिन्दूरी तिलक। और हाथों में स्वर्ण कवच।

और हाथों में मन्दा के बालों के गुच्छे। अपने हाथों को घुमाते हुए उसने उस बला को जोर से ज़मीन पर पटक दिया।

इस बार तांत्रिक ने कोई गलती नहीं की और अपने सिद्ध कटार को जो भैरवी के हाथों से छिटककर गिर गया था सीधे मन्दा के सीने में जा धँसा।

वातावरण में बहुत देर तक मन्दा की चीख गूंजती रही।

अब मन्दा शांत हो चुकी थी। उसका नग्न शरीर धुल मिश्रित मिटटी में गिरा पड़ा था।

सेवाराम सुबक रहा था। क्या मन्दा का अंत हो गया।

कुछ देर बाद वो तांत्रिक संभला।

“अंत हो गया मन्दा का! धन्यवाद मित्र...।”

इसके पहले की तांत्रिक अपनी बात पूरी कर पता, राक्षस का एक ज़ोरदार हाथ उसके गाल पर पड़ा। तांत्रिक के पैर ज़मीन से उखड गए।

“बेवकूफ, ये तूने क्या कर दिया। तूने मन्दा को जीवित कर दिया।”

“पर वो तो अब ख़त्म चुकी है।”

“वो कोई साधारण किस्म की भूत या चुड़ैल नहीं थी जो ख़त्म हो  जाएगी। तेरे जैसे अधकचरे ज्ञान वालों के कारण ही तांत्रिकों के नाम से ही लोग दूर भागते हैं। और ये दो कौड़ी की छोकरी को तू भैरवी कहता है जो किसी भी पुरुष को देख लार टपकाती है। इसके चेहरे को दूर से ही देखकर समझ गया था कि ये किसी के साथ रासलीला मनाकर आयी है। भैरवी के लिए पवित्रता चाहिए, शरीर से ही नहीं मन से भी।”

राक्षस के बोलने के अंदाज़ से ही तांत्रिक समझ चुका था कि उसके सामने कोई साधारण तांत्रिक नहीं।

“तो ये मन्दा पुनः जिंदा हो सकती है?”

“जिंदा होने का सवाल तो तब उठेगा जब यह मर चुकी होगी। वैसे भी जीना और मरना तो हम जैसे लोगों के लिए है। अगर इसकी दृष्टि किसी साधारण इंसान पर पर पड़ जाती तो काफी बुरा होता। बस इसे गहरी नींद में सुलाना होगा कम से कम ७ दिनों के लिए। अगर उसके पहले किसी ने उसे उठा दिया तो ये फिर से सक्रिय हो जाएगी। चल पहले उसे सुलाने का इंतज़ाम कर।”

तांत्रिक ने हाथ जोड़ लिए।

“आपने मुझे आज अकाल मृत्यु से बचाया है। आज से ये तांत्रिक आपका कर्ज़दार हो गया।”

“वो सब बाद में देखेंगे। पहले इसे दफ़न कर।”

कुछ ही पलों में दोनों ने एक बहुत गहरा गड्ढा खोद उसमें तरह तरह के मंत्रो और रंगीन धागों से सिद्ध कर मन्दा को दफना दिया था।

धीरे धीरे दोनों सेवाराम की आँखों से ओझल हो गए। सेवाराम धीरे धीरे वहां पर पहुंचा जहाँ मन्दा को दफनाया गया था।

वो एक नथनी थी जो मंदा के नाक से खुलकर गिर गयी थी। उस नथ को पहचानने में सेवाराम ने कोई गलती नहीं कि थी। सेवाराम ने उसे पहचानने में कोई गलती नहीं कि थी। और बुदबुदाया, ‘तुम लोगों ने मन्दा के साथ अच्छा नहीं किया। तुझे मैं जिंदा कर के रहूँगा मन्दा।’

उसकी आँखों के सामने मन्दा का मासूम चेहरा घूम रहा था।

उधर राक्षस इस तांत्रिक को घूर रहा था। शायद ये उसके काम आ सकता था।

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“इस मीटिंग में नरेन्द्र जी को बुलाने के पीछे एक खास मकसद था।” सरस्वती ने बातचीत का सूत्र अपने हाथ में लेते हुए कहा, “ये बहुत सारे जासूसी संस्थाओं के साथ फ्रीलांस काम कर चुके हैं। इस तरह ये हमारे बहुत काम आ सकते हैं। इसलिए हमने इनसे खास अनुरोध किया है कि आश्रम के सुरक्षा पर विशेष ध्यान रखें।”

“मैं खुद भी ऐसा हीं चाहता था।” अल्फान्से ने संक्षिप्त उत्तर दिया। ताशी अन्दर ही अन्दर हंस रहा था। एक ठग के हाथ में ये लोग आश्रम की सुरक्षा सौंप रहे थे।

“पर ऐसा क्यों लग रहा है आप लोगों को कि आश्रम पर खतरा मंडरा रहा है? दयाल यदि यहाँ आकर छुपा था तो इसलिए कि उसे यह जगह बाकी जगहों से ज्यादा महफूज़ लगी होगी। न कि इसलिए कि उसे हम लोगों या आश्रम से कोई दुश्मनी थी। मोहिनी की हत्या उस तांत्रिक ने इसलिए की क्योंकि उसे मोहिनी से व्यक्तिगत दुश्मनी थी। फिर इसमें आश्रम के ऊपर बात कहाँ से आ जाती है?” बर्मन ने प्रश्न दागा।

उत्तर आचार्य जी के तरफ से आया, “इसके लिए हम जिम्मेदार हैं।” उनके होंठो पर क्षीण मुस्कराहट थी।

“विनय चतुर्वेदी का क्रोध इस बात से नहीं भड़का कि उसकी भैरवी भुवन मोहिनी उससे दूर चली गयी थी बल्कि वह इसलिए क्रोधित था कि उसने तांत्रिक मार्ग छोड़कर हमारे मार्ग को स्वीकार कर लिया और हमसे दीक्षा ले ली। एक तांत्रिक के लिए इससे बढ़कर दुखदायी बात और क्या हो सकती है कि किसी ने उसके मार्ग को कमतर आँका। क्रोध में भले ही उसने मोहिनी की हत्या कर दी हो पर इसके लिए वह मुझे ही जिम्मेदार मान रहा होगा।”

“माफ़ करें गुरुदेव।” ताशी ने सर झुकाकर हाथ जोड़ते हुए पुरे विनम्र भाव से पूछा, “तो क्या तंत्र मार्ग क्या हमें केवल पथ विभ्रष्ट ही करता है?”

“ऐसा हीं समझो। तंत्र एक बहिर्मुखी साधना है जिसमें मनुष्य बाहरी चीज़ों का उपयोग करता है अपने विकास के लिए और फिर उन्ही चीज़ों में उलझकर रह जाता है। ऐसा समझो कि तंत्र मार्ग में भटकने की सम्भावना ९९ प्रतिशत है। जबकि भक्ति या ज्ञान के मार्ग में हम अपने मन को साधते हैं और मन को शुन्य कर अपनी आत्मा का परमात्मा से मिलन करते हैं। इसके लिए हम ध्यान का मार्ग अपनाते हैं। ध्यान के लिए हमें किसी स्थान विशेष की आवश्यकता नहीं। कहीं भी बैठकर कर सकते हो। उसके लिए किसी भैरवी या श्मशान की आवश्यकता नहीं।” कहते हुए आचार्य जी मुस्कुराये।

ताशी के शिक्षित मस्तिष्क को आज अच्छी खुराक मिल गई थी। जब वह विनय चतुर्वेदी के साथ था तो उसकी बातें उसे तर्कसंगत लगी थी और अभी उसे ये आचार्य ज्यादा सही लगा था।

‘अगर कभी इस ब्रह्मदेव आचार्य और विनय चतुर्वेदी के बीच शास्त्रास्त्र हो जाए तो मजा आ जाए।” वह सोंच रहा था।

“इसका मतलब है कि वो तांत्रिक हमारे आचार्य जी पर हमला करने का प्लान बना रहा होगा।” महंत ने चिंतित स्वर में कहा।

“हमारे आचार्य जी तक पहुँचने का रास्ता बहुत लम्बा है। वहां तक पहुँचने में उसे सदियाँ बीत जायेगी।” सरस्वती ने मुस्कुराते हुए कहा।

इसके साथ हीं मीटिंग समाप्त हो गयी थी।

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वो एक छोटी सी खोली थी जिसमें अन्दर वाले कमरे में सेवाराम सोता था और बाहर एक बिलकुल छोटी सी जगह थी जिसे ड्राइंग रूम कहलाये जाने का फख्र हासिल था। दो और छोटे से कमरे थे जिसमें से एक का दर्ज़ा किचन और दूसरा बाथरूम था। इसी ‘फ्लैट’ का मालिक सेवाराम था। शरवन ने माफी मांग ली थी और आजकल वह उसके साथ ही था।

शरवन रात में ही लौट आया था। ए एस आई से दोस्ती का उसे फायदा मिला था। वैसे भी उसके खिलाफ ऐसा कोई मामला नहीं बनता था सिवाय इसके कि उसने सेवाराम को रात देर से लौटने पर मजबूर किया था। रात करीब दो बजे तक उसे खोली के दरवाजे पर ही इंतज़ार करना पड़ा क्योंकि चाभी सेवाराम के पास थी और सेवाराम रात दो बजे के आसपास लौटा था। रात में शरवन ने सेवाराम से बात करने कि कोशिश की पर वो सीधे बिस्तर कि तरफ बढ़ गया। रात भर शरवन को सेवाराम के बडबडाने कि आवाज आती रही।

वो मंदा ही थी!

साजन साजन ............

सेवाराम की नींद खुल गयी। उसे ऐसा लगा कि किसी ने उसे पुकारा हो।

पर उसका नाम तो सेवाराम था। घडी कि तरफ देखा तो अभी दो ही बजे थे। वो  पुनः नींद में चला गया।

साजन ए  साजन......

उसने साफ़ साफ़ सुना था। किसी लड़की के पुकारने की आवाज।

वो उठ बैठा। बल्ब जलाकर सोने कि आदत थी उसे। कमरे में पीला  प्रकाश था जिसमें वो साफ़ साफ़ दिख रही थी जो पलंग के पैताने खुद को सिकोड़ कर बैठी थी। झटके से वो उठ बैठा।

अगर ३-४ दिन पहले की बात होती तो डर से हार्ट फ़ैल होने के आसपास कि नौबत आ जाती। कल रात की घटना बाद घर लौटने के समय से ही वो खुद को अलग इंसान महसूस कर रहा था।

वो मंदा ही थी और एक छोटी सी बच्ची प्रतीत हो रही थी। रात के उलट उसने बहुत साधारण से मटमैले कपडे पहन रखे थे। कल रात जब उसने उसे देखा था तो थोड़ी बड़ी मालूम हो रही थी। शायद कपडे का असर था। ऐसा लग रहा था कि कोई सुहागिन एक रात में विधवा हो गयी हो।

सेवाराम आश्चर्य में था कि उसे डर क्यों नहीं लग रहा था?

“तुम मंदा हो न?” उसे अपनी आवाज अजनबी सी लगी।

“शुक्र है आपने मुझे पहचान लिया।”

“मैंने तुम्हें कल रात देखा था श्मशान में। पर तुम्हें तो उन लोगों ने ज़मीन में दफना दिया था।” सेवाराम को जैसे याद आया।

“हाँ जी। मंदा ऐसे बोली मानों अपने पति या किसी करीबी से बात कर रही हो, उन दुष्टों ने मेरा सर्वनाश कर दिया।”

“तो ये क्या तुम्हारी आत्मा है?”

“अरे नहीं साजन, यूँ समझो कि ये मेरा शरीर है। मेरी आत्मा को उन लोगों ने दफ़न कर दिया।”

“तो क्या मैं तुम्हें छू सकता हूँ?” सेवाराम आश्चर्य से बोला।

“बिलकुल साजन।” कहते हुए मंदा ने अपना हाथ सेवाराम कि तरफ बढ़ा दिया।

मंदा का हाथ बिलकुल ठंड़ा था और बुरी तरह काँप रहा था।

“अरे तुम तो बर्फ कि तरह ठंड़ी हो।” सेवाराम बोला। उसे ध्यान नहीं था कि मुर्दों का शरीर भी ऐसा ही ठंड़ा होता है।

“क्या करूं। उन दुष्टों ने मुझे ऐसी हालत में पहुंचा दिया है। अगर कुछ देर ऐसा ही रहा तो लम्बे समय के लिए मैं सो जाउंगी। अगर तुम मुझे अपने शरीर के साथ चिपका लो तो थोड़ी गर्मी मिलेगी।”

कुछ देर में मंदा का नग्न शरीर सेवाराम के नग्न शरीर से चिपका हुआ था।

“अच्छा तो मैं तुम्हारे घर में रहूँ तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी नहीं न?”

सेवाराम हंसा।

“अरे नहीं। इतनी छोटी सी हो, कही भी रह लोगी। पर किसी ने देख लिया तो परेशानी हो जाएगी।”

“कोई परेशानी नहीं होगी मेरे साजन। तुम मेरी इतनी सहायता कर रहे हो और मैं तुम्हें परेशान होने दूँगी? हमेशा छोटी सी गुड़िया के रूप में रहूंगी। बस तुम्हारे सामने ही असली रूप में आउंगी।”

“अच्छा ये बताओ कि तुम मुझे साजन क्यों कहती हो?”

मंदा शरमाई, “क्या कहूं। तुम्हें देखकर यही नाम ख्याल में आता है।”

“अच्छा तो तुम फिर से असली मंदा कैसे बनोगी?”

“वो तो कोई तांत्रिक ही कर सकता है।”

“वही राक्षस?”

“वो भी कर सकता है। पर वो बहुत खतरनाक है। उससे मुझे डर लगता है।”

“कोई बात नहीं। मुझे उससे डर नहीं लगता। मुझे किसी से डर नहीं लगता जब तक तुम मेरे साथ हो।”

पता नहीं क्यों सेवाराम के मन में उसके नग्न शरीर के साथ रहते हुए भी कोई गन्दी भावना नहीं आ रही थी। उसे बस ऐसा लग रहा था कि वो मंदा कि सहायता कर रहा था। दोनों एक दूसरे से बातें किये जा रहे थे। सेवाराम को कब नींद आ गयी उसे पता नहीं चला।

...................................

राक्षस जब श्मशान से लौटा तो उसका मन कुछ हद तक खुश था। मंगल तांत्रिक ने विनय चतुर्वेदी का नाम सुन रखा था और उसी ने पांच और तांत्रिकों से उसकी मुलाक़ात करवा दी थी। मतलब अब वह अकेला नहीं था। दस वर्ष पहले उसने जो साधना में नाम कमाया था वह अब काम आया था।

दस साल बाद उसे अपनी भैरवी से मुलाक़ात हुई तो वो अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाया। उसे पुनः अपनी साधना शुरू करनी थी। पर भैरवी के बिना वो कुछ भी करने में असमर्थ था। एक बात कि उसे ख़ुशी थी कि दस वर्ष तक अपनी असलियत भूले रहने के बाद जब उसे सब कुछ याद आया तो उसे पुरानी शक्ति मिल चुकी थी। दिन भर सब के बीच रहता तो मानों वो अपनी सामान्य ज़िन्दगी में ही रहता पर बस रात होते ही उसकी ताकत वापस लौट आती।

पर क्या उसने सारी साधना बस शारीरिक ताकत पाने के लिए कि थी? उसने सोचा था कि तंत्र विद्या को समाज में प्रतिष्ठा दिला कर रहेगा। पर मोहिनी की छोटी सी भूल ने सब कुछ बर्बाद कर रख दिया था!

फिर भी वो उसे माफ करने को तैयार था पर...।

उस ब्रह्मदेव ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया था। यह बात उसे देर से पता चली थी कि कल का ब्रह्मदेव ही आज का ब्रह्मदेव आचार्य है। वरना सबसे पहले वह इसी को आश्रम सहित मटियामेट कर चुका होता।

आज का अखबार पढ़ा था उसने। ब्रह्मदेव ने उसे साधारण सा कामुक तांत्रिक बता दिया था। अब इस आश्रम का सर्वनाश करके रहेगा वह।

आवेश में उसने पास के चट्टान पर एक ज़ोरदार मुक्का मारा। गुफा हिलती हुई सी प्रतीत हुई।

उसे अपने क्रोध पर नियंत्रण करना होगा! वो बुदबुदाया।

जून २८ प्रातः

आज भी आश्रम बाहर के लोगों के लिए बंद था पर पुलिस कि आवाजाही जारी थी। सुबह के सात बजे एस आई सुधीर गुप्ता महंत जी से मिलने आ धमका।

महंत जी कन्हैय्या और राधा के साथ बातचीत में मशगुल थे। दोनों सुबह सुबह ताशी से एक घंटे की ट्रेनिंग लेकर ही उसे छोड़ा था।

“कल आपको समय नहीं दे पाया इसके लिए माफ़ी चाहते है सुधीर बाबू।”

“कोई बात नहीं। वैसे भी कोई विशेष बात नहीं थी। बस खानापूर्ति के लिए चंद सवाल पूछना चाहता था अगर आपको ऐतराज न हो तो।”

“मुझे कोई एतराज नहीं। हम लोग भी चाहते हैं कि असली हमलावर पकड़ा जाये। इधर कि घटनाओं से आश्रम की व्यर्थ बदनामी हो रही है।”

“पर फिलहाल तो आप दिल्ली वालों के साथ बिजी हैं। मैं फिर कभी आ जाता हूँ।”

“ऐसी कोई बात नहीं। बस यूँ ही टाइम पास कर रहे थे हम लोग।”

“हाँ जी।” “बड़े मस्त आदमी हैं महंत जी। देखकर ही हंसी छूट जाती है।” कन्हैय्या जी ने कहा।

महंत जी ने अकचका कर देखा।

“कन्हैय्या सही कह रहा है। कल इसने पहली बार इन्हें देखा तो सारी रात हँसता रहा।”

“फिर राधा जी ने गुदगुदी लगाई तो मेरी हंसी बंद हुई।”

“टांग खींच रहे हो इस बूढ़े की।”

“अरे बूढ़े हो आपके दुश्मन।”

“अच्छा तो हम चलते हैं।” राधा ने कहा, वर्ना सुधीर बाबू को इनसे पूछताछ का वक़्त ही नहीं मिलेगा।”

“अरे ऐसी कोई बात नहीं। आप दोनों के रहने से सुधीर बाबू को क्या परेशानी होगी। उलटे बातचीत से सहयोग ही मिलेगा।”

“ठीक है फिर। हम लोग आप लोगों की बातचीत सुनेंगे और अपने एक्सपर्ट कमेंट्स देते रहेंगे।”

“इसी बहाने इस सिलसिले को रुकने में मदद मिल जाये।”

“सही कहा आपने। पहले भुवन मोहिनी जी कि हत्या, फिर केयरटेकर दयाल। और फिर कल रजनी बाबू पर हमला। पता नहीं क्या सिलसिला चल पड़ा है यहाँ।”

महंत जी ने सर उठाकर एस आई को देखा। आज सुर बदले नज़र आ रहे थे एस आई के।

“रजनी बाबू के हमले वाले में तो कल बेचारा आनंद अन्दर हो जाता। वो तो अच्छा था कि आपने उसकी एलिबाई देकर उसे बचा लिया।”

“सच का साथ देने में मुझे कोई परेशानी नहीं होती।”

“सही बात है। मैं भी सच का साथ देना पसंद करता हूँ। सच का पता लगाने के लिए खोजबीन कि ज़रुरत होती है।”

“लगता है कि खोजबीन कि शुरुआत हमसे कर रहे हो।”

“नहीं महंत बाबू। इस मामले में तो हम पुलिस वालों को खोजबीन की इजाज़त नहीं। मैं तो बस खानापूर्ति कर रहा हूँ। खोजबीन का काम तो दिल्ली वाले कर रहे हैं। पूरी छूट है उन्हें। दो दिन पहले हमारे ए एस आई को पीट दिया। कल हो सकता है कि मेरे पिटाई की नौबत आ जाये। मैं तो डर डर कर काम कर रहा हूँ।

“आप तो हमें शर्मिंदा किये दे रहे हैं,” राधा बोली, “वो तो बस ग़लतफ़हमी में हो गया।”

“महंत जी मुस्कुराये। जो हालत आपकी है वही हालत हमारी है। यहाँ तक कि गुरुदेव का भी कहना है कि दिल्ली वालों से पूरा सहयोग करें। दिल्ली वालों के कहने पर हीं हम लोगों ने बाहर वालों कि आवाजाही बंद कर रखी है। पर आप निश्चिंत रहे, आपके लिए हम लोगों कि तरफ से कोई प्रतिबन्ध नहीं है। गुरुदेव तक आपकी इज्ज़त करते है।”

सुधीर ने खुश होते हुए कहा, “तो इसका मतलब ये है कि मैं आपसे चंद सवालात कर सकता हूँ?”

“आपके सवाल का जावाब देने में मुझे ख़ुशी होगी।”

“बढ़िया। वैसे सवाल तो बहुत सारे हैं। पर मैं वही सवाल पूछूँगा जिसका जवाब आप आसानी से दे सकें।”

“चलिए मैं तैयार हूँ।” महंत जी हँसे।

सुधीर ने पहली बार महंत जी को इस तरह हँसते हुए देखा था।

“चलिए शुरू से शुरू करता हूँ। आपका पूरा नाम?”

महंत जी पुनः मुस्कुराये, “रामदास महंत वल्द लक्ष्मणदास महंत।”

“ओह। मतलब महंत आपकी पदवी नहीं आपका उपनाम है।”

“जी।”

“आश्रम में आपका आगमन कब हुआ?”

“चार वर्ष पहले।”

“और आपका दर्ज़ा नंबर दो का है यहाँ?”

“नहीं, सरस्वती जी के बाद ही हमारा नंबर आता है।”

“और आनंद जी।”

“वो तीन साल से यहाँ पर है।”

“अब भुवन मोहिनी जी पर आते हैं। उनके क़त्ल के बाद आपके और कन्हैय्या के बीच बातचीत से मैंने अंदाजा लगाया कि असली चाभी आनंद के पास नहीं थी। मतलब दयाल या जो भी उसका नाम था ने असली चाभी आनंद को नहीं सौंपी।”

महंतजी ने आश्चर्य से सुधीर को देखा। “मैंने तो सोचा भी नहीं था कि आप इतनी गंभीरता से इन बातों पर गौर कर रहे हैं।”

सुधीर केवल मुस्कुराया, “और इसका मतलब ये है कि असली चाभी दयाल ने अपने पास हीं रख छोड़ी थी और वो चाभी दिल्ली वाले के हाथ लग गयी, शायद दयाल के कमरे से। पर सच्चाई ये है कि मैंने खुद उसके कमरे कि पूरी तलाशी ली थी। उसका कमरा छोटा था और इतने कम सामान थे कि कोई जगह छूटने का कोई चांस नहीं था।”

“क्या हुआ इसका मतलब?”

“सीधा मतलब है। उसका या उसके किसी सहयोगी का दौरा मेरे पहले पड़ा होगा।” शायद राधा जी...।

राधा हकबकायी। “अरे इतने भी महान नहीं हैं हम।”

“अरे नहीं मैडम जी, हम तो बस सम्भावना व्यक्त कर रहे थे।”

“बड़े खतरनाक आदमी हैं आप तो इतनी खतरनाक सम्भावना व्यक्त कर रहे हैं कि हमें धड़का लग जायेगा।”

“तो इसका मतलब मेरी थ्योरी गलत है?”

“बिलकुल गलत। होने को तो ये भी हो सकता है कि फाटक बंद हीं नहीं किया गया हो।”

“पर महंत जी तो रोज रात में तस्कीद करते हैं?”

“हो सकता है कि उस दिन तस्कीद नहीं कि हो।”

“तो फिर सवाल ये रह जाता है कि आपने उस दिन आपने महंत जी को कान में क्यों कहा कि चाभी आपके पास है?”

“वो तो यूँ ही मजाक मजाक में कहा था।” कन्हैय्या ने खींस निपोड़ी।

“चलिए छोडिये। चाभी बाद में किसी को भी मिली इससे हमे मतलब नहीं। मतलब इस बात से है कि पिछला फाटक जिसने भी खोला या खुला छोड़ा उसने ऐसा क्यों किया?”

“दो सूरत हो सकती है,” राधा ने इस बार अपना मुंह खोला, “राक्षस के कहने पर किसी ने ऐसा किया या किसी ने राक्षस के लिए रास्ता साफ़ किया।”

“राधा जी के बात में दम है।” महंत जी ने गंभीरता से कहा। “अगर राक्षस के कहने पर किसी ने ऐसा किया तो ऐसा करने का सबसे अधिक मौका दयाल के पास था। अगर किसी ने अनचाहे में ऐसा किया तो बहुत सारी संभावनाएं हो सकती है। हो सकता है कि दयाल ने किसी और को बुलाने के लिए फाटक खोला हो और हत्यारा भुवन मोहिनी की भनक पाकर अन्दर आ गया हो।”

“हत्यारा या राक्षस?” सुधीर ने मानों बम फोड़ा।

महंत जी ने चौंक कर सुधीर कि तरफ देखा, “क्या मतलब है आपका?”

राधा और कन्हैया एक दुसरे की ओर देखकर मुस्कुराये।

“आपको तो मैंने चौंका दिया महंत जी, मैं तो बस इतना कहना चाह रहा था कि हम लोगों ने बस रिकॉर्डिंग में राक्षस को हत्प्रण को पिटते देखा है। हो सकता है कि राक्षस उसके बाद निकल गया हो और किसी और ने मोहिनी देवी कि हत्या कर दी हो...खैर छोड़िये अब दयाल पर आते हैं। अब तो हम लोग जानते ही है कि वो पकिस्तान का जासूस था। उसके शरीर को देखकर साफ़ पता चलता है कि उसे टॉर्चर किया गया है। भला एक पाकिस्तानी जासूस को उसके ही लोग टॉर्चर क्यों करेंगे। हाँ हिन्दुस्तानी जासूस को लोग कर सकते हैं।”

कन्हैय्या और राधा के मुंह बिलकुल बंद थे। मानों मुंह पर टेप चिपका दिया गया हो।

“अब रह गया वो नरेन्द्र। इस आश्रम का सबसे खतरनाक आदमी लगता है। हमारे बॉस को १० मिनट में ही डरा कर रख दिया। एक ताशी भी है, खुद को तिब्बत से आया कहता है पर शक्ल ओ सूरत से चीनी लगता है।”

“हमें तो चांदीपुर का सबसे खतरनाक और रहस्मय आदमी एस आई बाबू लग रहे हैं।” कन्हैय्या ने चुप्पी तोड़ी।

“नहीं भाई, महंत बाबू के सामने मेरी कोई औकात नहीं। कल अचानक दोपहर को आश्रम से यूँ बाहर निकले मानों पड़ोस में पान खाने जा रहे हो और सीधे नेपाल घूमकर सुबह होते होते लौटकर चले आये।”

“महंत जी को काटो तो खून नहीं। किसी तरह मुंह से आवाज निकली, नेपाल में मेरा परिवार रहता है।”

“आपका गाँव तो नारायणी के आस पास है। पर आप तो काठमांडू में चाइनीज एम्बेसी से घूमकर चले आये। रात में आश्रम की कल वाली मीटिंग भी अटेंड कर ली। मानना पड़ेगा कि इस उम्र में भी इतना घूमने का दम ख़म है। मैं तो कल बुरी तरह थक गया। खैर चलता हूँ। खोजबीन करना तो दिल्ली वालों का काम है। मैं तो बस यूँ ही खानापूर्ति के लिए चला आया था। चलता हूँ नमस्कार, “कहते हुए सुधीर ने खड़े होकर हाथ जोड़े और लम्बे डग भरता हुआ निकल गया।”

“कुछ डिटेल में बताओगे महंत बाबू कि सुधीर बाबू ने ऐसा कौन सा तीर छोड़ ड़ाला जिसने आपके मर्म स्थल को भेद डाला है?”

महंत जी ने कोई जवाब नहीं दिया, बस शुन्य में ताकते रहे। कन्हैय्या और राधा समझ चुके थे कि इस वक़्त उन्हें अकेला छोड़ने में ही भलाई है। दोनों ने एक दूसरे को इशारा किया और उठकर चल दिए।

कुछ देर बाद महंत जी बुदबुदाये मानों खुद से कह रहे हों, “मैंने इस सुधीर को साधारण सा इंस्पेक्टर समझा था। कुछ करना होगा इसके लिए।” उन्होंने अपनी कुर्सी छोड़  दी और आनंद के कमरे की तरफ बढ़ गए।

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नींद खुलते ही सेवाराम हडबडाकर उठ बैठा। रोज़ उसकी पांच बजे से पहले हीं नींद खुल जाती थी। आज ठीक सामने लगी घड़ी ८ बजे का वक़्त बता रही थी। आज इतनी देर कैसे हो गयी!

धीरे धीरे कल रात कि बात उसके जेहन में ताजा होने लगी। तो क्या वह सचमुच मंदा के साथ सोया था?

क्या मंदा सचमुच रातभर उसके साथ थी? आज पहली बार ऐसा हुआ था कि वह स्वप्न और हकीक़त में भेद नहीं कर पा रहा था!

तभी उसकी दृष्टि पलंग के साइड में रखे टेबल पर पड़ी। उस पर एक ही नयी चीज़ थी। एक फीट कि गुड़िया नुमा लड़की। गुड़िया के शरीर पर कोई वस्त्र नहीं था। उसके चेहरे को सेवाराम पहचानता था। एकाएक गुड़िया ने एक आंख मारी।

सेवाराम ने भी आंख मारकर प्रत्युत्तर दिया। सेवाराम मुस्कुरा दिया। मतलब रात कि घटना सपना नहीं था।

“आज मेरा एक काम करोगे साजन।”

साजन तो जान हाजिर करने को तैयार था।

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आचार्य जी को अपने केबिन में कदम रखते देख सरस्वती चौंकी।

ऐसे ही थे आचार्य जी। वैसे तो किसी के भी उसके ऑफिस में दाखिल होने से पहले तारा आगाह कर दिया करती थी पर आचार्य जी पर यह नियम लागू नहीं होता था। आचार्य जी के आते ही तारा को ऑफिस से चले जाना होता था।

आचार्य जी को सरप्राइज देना पसंद था। सरस्वती ने अपने कुर्सी से उठकर उन्हें प्रणाम करना चाहा पर आचार्य जी ने बैठने का इशारा किया। वो बैठ गयी।

“बैठो। कुछ ज़रूरी बात करनी है।”

वो तो ज़ाहिर था। आचार्य जी का इस तरह आना इसी का संकेत था। वो सतर्क होकर बैठ गयी।

“कार्यक्रम कि सारी तैयारी हो गयी?”

“जी।” वो तैयारी के प्रति सचमुच आश्वस्त थी। हर कुछ पहले से फिक्स था। पुरे तीन महीने से इसी में लगी थी वो।

“अगर तुम चाहो तो इसे कुछ दिन के लिए आगे बढ़ा सकती हो।”

“नहीं गुरुदेव। इसकी ज़रुरत नहीं पड़ेगी।”

वैसे गुरुदेव का सवाल पूछना लाजिम था, सरस्वती ने सोचा।

“मुख्य मेहमान दिल्ली पहुँच चुके हैं। वो भी इस मुलाक़ात के प्रति बहुत आशान्वित हैं।”

“और प्रतिपक्ष?” आचार्यजी मुस्कुराते हुए बोले।

“अपनी तरफ से वो भी आशान्वित हैं। पर असलियत से काफी दूर हैं।”

“मतलब ऑपरेशन कामयाब रहेगा?”

“बिलकुल सर। ऑपरेशन बकरा।”

आचार्यजी मुस्कुराये।

“ये नाम मुझे पसंद नहीं आया।”

“तो ऑपरेशन गोट कर देती हूँ।”

आचार्य जी इस बार खुलकर हँसे।

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ताशी उर्फ़ चेंग लेई बीरगंज में था।

बीरगंज नेपाल का एक छोटा सा शहर था और बिहार के बॉर्डर पर स्थित था। व्यापारिक दृष्टि से इसका बहुत महत्व था और चीनी लोगों का यहाँ देखा जाना आम बात थी। सारे एशिया के एलेक्ट्रोनिक उपकरण काफी कम दाम पर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे। यहीं के एक मध्यम दर्जे के होटल के एक कमरे में जियान के साथ मौजूद था। जियान चीन का इंटेलिजेंस विभाग में ऊँचे ओहदे पर कार्यरत एक ऑफिसर था। चेन महोदय चीनी सरकार में गृह सचिव थे और उनकी यहाँ मौजूदगी मामले की गंभीरता को दर्शाती थी।

“चाय लीजिये ताशी महोदय।”

खुद गृह सचिव ने चाय बनाकर ताशी उर्फ़ चेंग को दिया। आखिर ताशी कोई साधारण इंसान नहीं था। वेटर को ताशी ने बाहर जाने का इशारा किया।

“पहले तो हम सरकार की तरफ से आपका धन्यवाद अदा करना चाहते हैं। पिछले छह महीने में भारत में रहकर देशविरोधी घटनाओं से हमें आपने समय पर अवगत कराया  जिसकी जानकारी हमें पहले से नहीं थी। भारत कभी भी हमारा नजदीकी मित्र नहीं रहा पर खासकर तिब्बत के मामले में उसने हमसे सदा दुश्मनी निभायी है। पहले उसने दलाई लामा को शरण देकर हमारे मामले में हस्तक्षेप किया फिर तिब्बत के बहाने अवैध तरीके से चीन में तिब्बत को आजाद कराने के नाम पर पैसे पहुँचाने का काम कर रहा है और उलटे सीधे तरीके से तिब्बत के धार्मिक मामलों में पेंच फंसने कि कोशिश में लगा है।”

ताशी ने जम्भाई ली।

सचिव महोदय मुस्कुराये। वो जानते थे कि तिब्बत के मामले में उसे बेहतर जानकारी है। कई साल वो वहां गुजार चुका था।

“चीन के गृह सचिव को ये होटल शोभा नहीं देता।”

“बड़े होटलों पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है। फिर भी हमारे आदमियों ने इसे चेक कर लिए था। कोई खतरा या इंस्ट्रूमेंट नहीं है यहाँ। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए इस होटल का मालिक भी हमारा ही आदमी है।”

ताशी संतुष्ट हो गया। अल्फान्से से मुलाक़ात के बाद वो ज्यादा सावधान रहना चाहता था। यहाँ आने के बाद वो कन्फर्म कर चुका था कि अल्फान्से चांदीपुर में ही है।

“अच्छा चलिए मुद्दे पर आते हैं। मामला करमापा का है।”

करमापा के मामले में ताशी को सभी जानकारी थी। तिब्बत में बौद्ध धर्म कई रूप में आज भी मौजूद था जिसमें चार प्रमुख थे। उनमें से एक काग्यु था जिसमें करमापा का ओहदा सबसे ऊँचा था। इन्हीं में से एक गेलुग सेक्ट था जिसका प्रधान दलाई लामा होते थे और दूसरा दर्जा पंचेन लामा का था। सोलहवें करमापा की मृत्यु के बाद ओग्यें त्रिनले दोरजी को सत्रहवां करमापा चुना गया जिसका समर्थन उसके देश की सरकार ने भी किया। पर एक और खेमा दो वर्ष पहले ही त्रिनले थाए दोरजी को अपना करमापा चुन चुका था। दोनों में वर्चस्व की लड़ाई आज भी जारी थी।

“जैसा कि आप भी जानते हैं कि हमारे द्वारा समर्थित करमापा को भारत कुछ साल पहले फेमा के तहत गलत तरीके से फंसाने की कोशिश कर चुका है।”

‘मैकलीओडगंज में ओग्येन दोरजी के आवास पर पुलिस का छापा’, ताशी के दिमाग में सात पुरानी खबर घूम गयी।

“दलाई लामा वैसे तो उग्येन का ही समर्थन करते आ रहे हैं पर कई दिनों से इस प्रयास में हैं कि दोनों करमापा का आमने सामने मुकाबला हो जाये।”

“पर थाए दोरजी द्वारा विवाह किये जाने के बाद उनका दावा वैसे ही कमजोर हो चुका है।”

“ऐसा कुछ नहीं है। और दोनों करमापा का आमना सामना होना हमारे हित में नहीं है।”

“पर इसमें ताज़ी खबर क्या है?” ताशी इतिहास नहीं सुनना चाहता था।

“ताज़ी खबर ये है कि जिन लोगों ने ओग्येन का समर्थन किया था अब वे लोग त्रिनले के समर्थन में आने वाले हैं। उनमें से कोई एक जिसका समर्थन ज्यादा मायने रखता है वो अगले महीने की यात्रा पर जाने वाला है।”

ताशी कि आंखें सिकुड़ गयी, “आपका मतलब शमरपा से है?”

“सही समझा आपने। परंपरा से शरमापा लोग ही करमापा का और करमापा लोग शरमापा का चुनाव करते आये हैं। और शरमापा का दर्ज़ा उनके सेक्ट में नंबर दो का है। वैसे तो अभी शमरपा के लिए भी दो लोग दावा कर रहे हैं ।”

“मतलब ओग्येन और त्रिनले महोदय अपने अपने शरमापा का चुनाव कर चुके हैं!”

बिलकुल सही। यानी दो करमापा के लिए दो शरमापा। और हमारी खबर के मुताबिक ये दोनों शरमापा बिहार कि यात्रा एक ही समय करने वाले हैं। और अगर दोनों शरमापा त्रिनले के पक्ष में एक मत हो जाते हैं तो सारी दुनिया में गलत सन्देश जायेगा।”

“पर ऐसा क्योंकर होगा? “

“उम्मीद तो हमें भी यही थी कि ऐसा नहीं होगा। पर जब हमें पता चला कि दोनों कि यह मीटिंग चांदीपुर में होने वाली है और दोनों ब्रह्मदेव के निमंत्रण पर चांदीपुर जा रहे हैं तो मुझे लगा कि इसमें गहरी चाल है।”

ताशी संभलकर बैठ गया। जिस आश्रम को वो छह महीने पहले तक कोई महत्व नहीं दे रहा था उसकी जड़े बहुत गहरी दिखाई देने लगी थी।

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तमाम सावधानियों के बाद भी लोग बाग अपनी चालाकियों में सफल हो ही जाते हैं।

“काम हुआ?”

“जी सर। चाय की केतली में स्पीकर फिट कर दिया था। जब तक चाय की केतली कमरे में रहेगी रिकॉर्डिंग होता रहेगा।”

“बढियाँ।”

“सारी रिकॉर्डिंग आपके मोबाइल में भिजवा दूंगा?”

“इस बार मेरे पास मोबाइल नहीं है। मेल कर देना।”

एस टी डी बूथ से अल्फान्से निकल आया।

ताशी उर्फ़ चेंग के बारे में जानना जरुरी था। वो आदमी भरोसे के काबिल नहीं था।

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सचिव महोदय का कहना जारी था। यकीनन वो अपने श्रोतों से बहुत सारी जानकारी इकठ्ठा कर लायें थे।

“पिछले साल गलत तरीके से हजारों करोड़ हमारे प्रान्त तिब्बत में पहुंचा दिए गए। हमारे कंप्यूटर एक्सपर्ट्स ने यह पता लगाने कि बहुत कोशिश की थी कि ये पैसे कहाँ से पहुँच रहे हैं पर हम नाकाम रहे। पर तीन महीने पहले कुछ मेल हमें प्राप्त हुआ जिससे हमें जानकारी मिली कि ये मेल चांदीपुर के किसी कंप्यूटर से भेजे गए हैं। इन मेल में ये साफ़ इशारा था कि बड़े पैमाने पर फंड्स इकठ्ठा करने की कोशिश की जा रही है और जिस सूत्र के बिना पर आपको यहाँ पहुँचाया गया।”

“और पिछले तीन महीने में मैं आश्रम के सारे कंप्यूटर सिस्टम को खंघाल चुका हूँ पर कोई भी ऐसा सूत्र नहीं मिला जिससे तिब्बत या चीन के किसी हिस्से से संपर्क किया जाता रहा हो। सबसे अधिक शक के दाएरे में सरस्वती और आनंद है पर उसके सिस्टम को भी मैं चेक कर चुका हूँ। सरस्वती तो छोटी मोटी मुर्गी फांसने में लगी रहती है।”

“और बुड्ढा?’

“उसके पास तो कोई सिस्टम है हीं नहीं।”

“बुड्ढे पर खास नज़र रखो। आखिर सारे आश्रम का मालिक वही है। हो सकता है कि किसी बड़े चाल में लगा हो।”

“वो तो लगातार हमारी नज़र में था। बस इधर दो दिन में थोड़ी गड़बड़ हो गयी।”

“वैसे तुम्हारे लिए बड़ी खबर ये है कि अगर मीटिंग होती भी है तो वो आश्रम के भीतर नहीं होगी।”

ताशी चौंका।

“तो फिर?”

“कोई बारा साहब कि हवेली है। नाम सुना होगा तुमनें।”

ताशी इसबार कुछ ज्यादा ही जोर से चौंका।

“क्यों क्या हुआ? जानते हो इस हवेली के बारे में?”

ताशी ने बताया।

“और महंत कि क्या खबर है?”

“वो भी आश्रम के प्रति वफादार है। पर उसके कुछ कदम हमें हैरत में डाल देता है। कुछ दिन पहले यहाँ हमारी एम्बेस्सी में गया था। पता चला कि किसी पहचान वाले से मिलने गया था। बस १० मिनट में निकल गया।”

“ये अहम् खबर है। हो सकता है कि कोई उन लोगों के लिए जासूसी कर रहा हो। मैं देखूँगा। किस आश्रम वालों कि इस तरह कि एक्टिविटी संदेह में डालती है। पता नहीं ये लोग आश्रम में करते क्या हैं।”

“अगर हमारे पास इस तरह के इनफार्मेशन नहीं होते तो अश्रम वालों पर शक करने का कोई रीज़न नहीं होता। ऊपर से सारी गतिविधि सामान्य लगती है। २०-२५ लोग जो आश्रम में महीनों से रह रहे हैं उनकी सारी गतिविधि किसी संन्यासी के अनुरूप ही है। सुबह तीन और शाम तीन घंटे ध्यान में डूबे रहते हैं। शुद्ध सात्विक खाना खाते हैं। आश्रम में मोबाइल पर प्रतिबन्ध है। आचार्य जी के निर्देशन में मैंने लोगों कि बिमारी ठीक होते देखा है। खुद आचार्य जी तो किसी पेड़ के निचे कभी कभी ८-१० घंटे ध्यान में बैठे रहते हैं। आदमी ज्ञानी है।”

“कहीं आप ने भी सच में ही उसे गुरु तो मान नहीं लिया?” सचिव महोदय ने मुस्कुराते हुए कहा।

ताशी हंसा, “अगर एक-दो महीने और रहा तो लगता है कि सच में ही हो जाऊंगा।”

सचिव ने भी हंसी में साथ दिया।

“दुनिया के सबसे धुरंधर जासूस को काबू में करना किसी के बस की बात नहीं। ये बात सारा चीन जानता है।”

ताशी उर्फ़ चेंग लेई चुप रहा। पैंतालिस साल कि उम्र में दुनिया भर में १०० से अधिक मामलों में उसका दखल रहा था। पर इसके लिए उसे भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। अपने परिवार के लिए साल में १५-२० दिन से ज़यादा का समय नहीं निकाल पाता था। बस ये मामला निपट जाये तो वो लम्बी छुट्टी पर गाँव निकल जायेगा।

एक बात और उसने सोचा था। चांदीपुर से निकलने से पहले अल्फांसे को हमेशा के लिए निपटा देगा। उसके बारे में उसने सचिव को जानबूझकर नहीं बताया था।

“और उस राक्षस की क्या खबर है?” सचिव ने पुनः टोका।

“उसकी चिंता करने कि ज़रुरत नहीं। उसका जैसा चाहूँ इस्तेमाल कर सकता हूँ।”

‘और कुछ ज़रूरत हो तो बताना।’

“मुझे लगता है कि अगर दोनों मेहमान यहाँ पहुँचते हैं तो यहाँ कुछ और लोगों कि ज़रूरत पड़ सकती है।”

“उसका पहले से इंतेजाम है इधर। बोधगया में हमारे कुछ आदमी रह रहे हैं। पांच को वहां भेज दूंगा। उनके डिटेल्स तुम्हारे पास होंगे ही।”

“और मैं सोच रहा था कि अगर उन दोनों की आचार्य जी से मीटिंग फिक्स होती है तो क्यों न हम लोग भी किसी महत्वपूर्ण सरकारी आदमी को मीटिंग में शामिल करने का भारत सरकार को रिक्वेस्ट करें। ऐसे कंडीशन में दोनों कुछ अनाप शनाप निर्णय नहीं ले पाएंगे।”

सचिव महोदय ने मुस्कुराते हुए देखा। यूँ ही नहीं  उसे महान  जासूस कहा जाता था। विदेश मामलों के लिए मंत्रिगण भी चेंग से परामर्श लिया करते थे।

“ऐसा ही निर्णय किया गया है। ओग्येन महोदय आजकल में हीं घोषणा करने वाले हैं कि दोनों शरमापा एक साथ बोधगया कि यात्रा करने वाले हैं और उसके बाद वे हिन्दूधर्म के महान पुरोधा ब्रह्मदेव आचार्य के साथ चांदीपुर में मुलाक़ात करेंगे।” सचिव महोदय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अच्छा है। मुझे लगा था कि ये खबर त्रिनले महोदय अनाउंस करेंगे।”

सचिव महोदय हँसे।

“और उसके बाद हमारी सरकार की ओर से गुडविल गेस्चर के तहत अनुरोध किया जायेगा कि हमारे विदेश मंत्री जो उस वक़्त आगरा में परिवार के साथ ताजमहल दर्शन के लिए मौजूद रहेंगे चांदीपुर में उस ऐतिहासिक मुलाक़ात का भागिदार बनाना चाहेंगे!”

“कमाल है। सारी तैयारी कर ली गयी है?”

“कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे विदेश मंत्री का मुख्य कार्यक्रम चांदीपुर का ही है और आगरा आना बस बहाना है?”

सचिव महोदय ने गहरी नज़र से चेंग को देखा और कहा,

“चेंग महोदय, इतनी गहराई में जाकर सोचने कि ज़रुरत नहीं। सरकार का काम निर्णय लेना है और हम लोगों को देखना है कि किस तरह उसे क्रियान्वित करना है। उन लोगों ने क्या सोचकर एसा निर्णय लिया ये उपरवाला जानें। हमें बस ये सुनिश्चित करना है कि हमारे विदेश मंत्री को चांदीपुर यात्रा में कोई परेशानी न आये। पैसे कि जितनी ज़रुरत हो आप निःसंकोच कहें।”

बातचीत समाप्त हो गयी।

...................................

जून २९ सुबह सात बजे

“नमस्कार चतुर्वेदी महाशय।”

राक्षस ने पलटकर देखा। इस वक़्त वह उसी श्मशान में एक पेड़ के नीचे बैठा था जहाँ कल उसकी मुठभेड़ मंदा से हुई थी। राक्षस ने नज़र उठाकर देखा, सामने ताशी खड़ा था। उसने कुरता और पजामा पहन रखा था, बिना बाल का उसका सर कम रौशनी में भी चमक रहा था। आँखों पर उसने चश्मा चढ़ा रखा था जो पावर का मालूम होता था। चेहरे पर गंभीरता झलक रही थी।

उसके सामने राक्षस अति विकराल प्रतीत हो रहा था। इकहरे शरीर का स्वामी कद कोई छह फीट या उससे भी ज्यादा। पूरे शरीर पर रोयेंदार बड़े बाल, चेहरे पर कड़कदार मूंछ। पैरों में कुछ भी नहीं पहन रखा था उसने। शरीर पर कई जगह जले के पुराने निशान। दोनों उपरी बाहों में सोने के चुडे। कानों में कुंडल। शरीर पर वस्त्र के नाम पे लाल धोती जो उसके घुटनों तक पहुँच रही थे। बिखरे हुए लम्बे बाल। गले में रुद्राक्ष कि माला।

राक्षस मुस्कुराया।

“वैसे तुम हो किस देश के? तिब्बत या चीन?”

“तिब्बत।”

“महान देश है तुम्हारा। हम लोगों ने जिस विधा जिस धर्म को भुला दिया, उसे तुम लोगों ने आजतक संभाल कर रखा।”

“आभारी तो हम लोग आज तक हैं। साढ़े बारह सौ साल पहले आपके देश ने हमें धर्म और बुद्धत्व की जो सौगात दी थी वही आज तक फल फूल रही है।”

“सही कहा तुमने। आचार्य पद्मसंभव और आचार्य शांतरक्षित यहाँ से बुद्धत्व और तंत्र को तुम्हारे देश में ले गए और हम ही लोगों ने भुला दिया।”

ताशी चौंका। उसका पाला किसी अनपढ़ तांत्रिक से नहीं पड़ा था।

“तुम्हारी नाक बहुत तेज है। जहाँ जाता हूँ वहां पहुँच जाते हो।”

“प्यासा कुएं को खोज ही लेता है।”

“मेरे बारे में तुम्हें किसी ने तो बताया ही होगा।”

“सही समझा आपने। आचार्य जी ने आपके बारे में बहुत कुछ बताया। अब अगर उसमें थोड़ी भी सच्चाई है तो मेरे हिसाब से आपसे बेहतर कोई नहीं मिलेगा जो तंत्र सिखा सके।”

राक्षस कि आँखें सिकुड़ी, “और क्या जानना चाहते हो तंत्र के बारे में? और अगर तू सच में तिब्बत से आया है और सच में तंत्र कि जिज्ञासा रखता है तो इसके बारे में तू मुझसे बेहतर जानना चाहिए। और इस इन्टरनेट के ज़माने में सारी जानकारी इन्टरनेट में उपलब्ध है।”

“जानता तो बहुत कुछ हूँ पर वहां कोई तांत्रिक नहीं मिला। और मुझे थ्योरी में इंटरेस्ट नहीं। मेरा इंटरेस्ट प्रैक्टिकल में है।” ताशी उर्फ़ चेंग के चेहरे की गंभीरता में कोई कमी नहीं आये थी।

“तो तू प्रैक्टिकल कर सकेगा?”

“कर लूँगा।“

“क्या-क्या कर सकता है?”

“जिसकी ज़रुरत हो करने की वो सब कर लूँगा।”

“हो सकता है कि मेरा पखाना तक खाना पड़े।”

ताशी ज़रा भी हिचकिचाया नहीं।

“पिशाब पखाना जिंदा मुर्दा सब खा लूँगा।”

राक्षस आश्चर्य में डूब गया। जिस बात को सुनकर ही साधारण लोग भाग खड़े होते थे उस बात को यह आदमी बहुत हलके  में ले रहा था।

थोड़ी देर तक राक्षस सोच में डूबा रहा। थोड़ी देर में उसने चुप्पी तोड़ी,

“ठीक है। मैं तैयार हूँ। तांत्रिक धर्म के एक एक रहस्य से तुझे अवगत करा दूंगा। तुझे वो सब कुछ भी सिखा दूंगा जो तुझे किसी भी किताब में नहीं मिलेगा। बस एक शर्त है। तुझसे थोड़ी और सहायता चाहिए।”

ताशी उर्फ़ चेंग कि नज़रें उठी, “क्या?”

“तुझे मेरे लिए एक भैरवी का इंतेजाम करना होगा।”  

”मिल जाएगी। या यूँ समझिये कि मिल चुकी है।” ताशी ने छूटते ही कहा।

“जानता भी है कि भैरवी क्या होती है?”

“इतना ज्ञान है मुझे।” ताशी आराम से बोला।

यही वो समय था जब राक्षस झटके से खड़ा हो गया। ताशी ने सावधान होने में देरी नहीं दिखाई थी। कहीं दूर किसी गाड़ी के रुकने की आवाज दोनों ने साफ़ साफ़ सुनी थी।

“मुझे लगता है कि आ गयी तुम्हारी भैरवी।”

....................................

सुधीर के लिए सारा मामला समझ से परे था। हर कोई उसके लिए शक के दायरे में आ रहा था। दिल्ली वालों का कोई कदम ऐसा नहीं था जिससे मालूम होता कि वो हत्या की उलझन सुलझाने के लिए कोई कोशिश में हैं। सिकंदर या सच में फरार हो गया था या उसे छुपा दिया गया था। राक्षस दोबारा किसी को नज़र नहीं आया था। ताशी भी सुबह के बाद नज़र नहीं आया था। कल नकाबपोश बनकर उसने बहुत खोजबीन की थी और ताशी को लड़ते देख वो हैरान रह गया था। उसका पीछा करने की भी कोशिश कि थी पर जाने वो कहाँ गायब हो गया था। रजनी पर हमला करने वाला भी जाने कहाँ गायब हो गया था। महंत जी तो यूँ भी उसके शक के घेरे में आ चुके थे। ऐसे ही समय में जब उसके पास थाने से फ़ोन आया कि किसी ने खबर की है कि पहाड़ियों के पास राक्षस को देखा गया है तो उसने घर से निकलने में देर न की।

थाने के अपने सूत्रों से यही सन्देश कन्हैय्या और राधा के पास भी पहुँच चुका था।

.........................................

पलक झपकते हीं ताशी मेढक कि तरह उछलता हुआ जंगले में कहीं गायब हो चुका था। राक्षस यूँ ही बैठा रहा। वैसे ये बात केवल एक शख्स को पता चली थी कि ताशी कहीं दूर जाने के बजाय पास में ही एक पेड़ पर चढ़ गया था जहाँ से वो सारा नज़ारा देख सकता था और वो शख्श अल्फांसे के सिवा कोई और नहीं था जो ताशी का पीछा करते हुए पहले ही यहाँ पहुँच चुका था।

राधा और कन्हैय्या सुधीर के साथ ही उसके जीप में पहुंचे थे। जीप को उसनें एक किलोमीटर पहले ही रोक दिया था। सुधीर के साथ तीन बंदूकधारी पुलिसिये भी मौजूद थे।

हथियारों से लैस पुलिसवालों के साथ होने के बावजूद सुधीर को एक पल के लिए डर सा महसूस हुआ। वो एक विशाल सा मैदान था जिसकी अपूर्व शांति केवल उनके पदचापों से ही भंग हो रही थी। जिस रास्ते से वे प्रविष्ट हो रहे थे उसके ठीक विपरीत छोर पर वो कापालिक बैठा था, शांत, स्थिर। नव आगंतुकों को भावहीन दृष्टि से देखते जा रहा था। दायें हथेली से एक पत्थर उछाल रहा था और बायां हाथ अपनी गोद में रखा हुआ था।

दूसरी और तीनों पुलिसवाले राक्षस को निशाना किये खड़े थे, अंगुलियाँ ट्रिगर पर सख्ती से जमी थी। वहीँ राधा और कन्हैय्या बेख़ौफ़ से बातें करते हुए कापालिक की तरफ बढ़ते जा रहे थे। सुधीर ने बाकी को वहीँ रुकने का इशारा किया और आगे बढ़ गया।

अब सुधीर राक्षस के ठीक सामने मौजूद था, मुश्किल से छः कदम दूर।

“तुम्हारे नाम का वारंट है।” सुधीर के होंठ हिले।

राक्षस गुर्राया, “किस नाम का?”

“फिलहाल तो राक्षस नाम से है। अगर नाम में कुछ सुधार करना होगा तो थाने पहुंचकर कर देना।”

तब तक कन्हैय्या और राधा दोनों राक्षस से थोड़ी दूरी पर यूँ बैठ चुके थे मानों प्रवचन सुनने आये हों।

“ठीक है पहुँच जाऊंगा।”

“अभी चलो तो बेहतर होगा।”

“किसके लिए बेहतर होगा?” राक्षस कि धीर गंभीर आवाज जंगले में यूँ गूँज रही थी मानों गले में ही स्पीकर फिट कर रखा हो।

“ज़ाहिर है तुम्हारे लिए। मैं खून खराबा नहीं चाहता।”

राक्षस ने सर उठाकर तीनों बंदूकधारियों कि ओर देखा। वे लगभग २० फीट की दूरी तक पास आ चुके थे।

दूर पेड़ पर चुपचाप अल्फांसे सबकुछ देखते हुए मज़ा ले रहा था। अभी भी उसका खेल भंग करने का कोई इरादा नहीं था।

“कन्हैय्या!”

“बोल राधा!”

“ये तो विनय चतुर्वेदी जी हैं।”

“सही पहचाना। पर इनके पिताजी तो फिजिक्स के प्रोफेसर थे। ये साहब तांत्रिक कैसे बन गए?” कहते हुए कन्हैय्या ने राक्षस की ओर देखा। पर राक्षस थोडा भी इम्प्रेस नहीं हुआ था। उसने कन्हैय्या को टोका, “मेरे बारे में सारा इनफार्मेशन कामरूप में थाने में लिखी है।”

“देखा कन्हैय्या! मैंने कहा था न कि राक्षस बाबू के सामने ज्यादा स्मार्ट बनने कि ज़रुरत नहीं। पहुंचे हुए तांत्रिक हैं।”

“हूंह।” कन्हैय्या अपनी हार मानने वाला नहीं था, पहुँचने को तो हम भी यहाँ पहुँच गए वो भी बिना बुलाये, उससे क्या!”

कापालिक मुस्कुराया। मानों उसने बचकानी बात कह दी हो।

“पहले तो अपनी गलतफमी दूर कर लो कि तुम बिना बुलाये पहुंचे हो। तुम तीनों को मैंने ही बुलाया है। तुम लोगों से बातें करनी थी इसलिए तुम लोगों तक खबर पहुंचाई थी।”

“देख राधा, ये तो हमें इम्प्रेस करने कि कोशिश करने लगे।”

“अगर मेरी बात पर विश्वास नहीं तो तुम्हारे खबरी ने जो कुछ कहा था उस बात को मैं अक्षरशः दोहरा देता हूँ।”

कापालिक ने वही बात दोहरा दी जो उन लोगों ने अपने श्रोतों से सुनी थी।

सुधीर का उतावलापन बढ़ता जा रहा था। “मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं की हम लोग तुम तक कैसे पहुंचे। बाकी बातें थाने में होगी। और अगर तुम्हे एतराज है तो शायद हमे ज़बरदस्ती करनी होगी।”

और पलक झपकते ही ये हो गया! मानों बंदूक से गोली छूटी हो।

उस कापालिक के हाथ में मौजूद पत्थर घूमा और सीधे तीनों सिपाही में से बीच वाले के सर से जा टकराया। निशाना अचूक ठहरा। सिपाही एक भयानक चीख के साथ पलट कर गिर गया। उसका सर खुल गया था।

“मरा नहीं है वो।” कापालिक गुर्राया, “पर मर भी सकता था।” अब उसके हाथ में दूसरा पत्थर घूम रहा था, “ये पत्थर तुम्हारी इस ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए था कि इन टूटपूंजिये सिपाहियों और हथियारों के साथ तुम मुझे गिरफ्तार कर सकते हो सुधीर बाबू। और अपने पाकेट से बन्दूक निकलने की भी कोशिश मत करना वरना जब दस फीट कि दूरी से किसी का सर खोल सकता हूँ तो सोच लो तुम्हारा क्या होगा।”

सुधीर को मानों लकवा मार गया था। राक्षस कि शक्ति को उसने बहुत कम आंक लिया था।

“या अगर अब भी तुम्हें कोई शौक़ पूरा करना है तो कर सकते हो।”

“शौक़ तो बहुत सारे हैं विनय बाबू पर अभी तुम्हारा कारनामा देखकर सबकुछ भूल गया। चलो अब बता भी दो कि किसलिए बुलाया है।”

“और बुलाया है तो कुछ नास्ता वगैरह भी मंगा लो।”

राक्षस मुस्कुराया, “तांत्रिकों का नाश्ता तुम लोगों से बर्दाश्त नहीं होगा कन्हैय्या बाबू। इसलिए जिस लिए मैंने तुम्हें बुलाया है वो बात सुन लो।” ठहरकर वो पुनः बोला,

“पहले तो अपनी ग़लतफ़हमी दूर कर लो कि भुवन मोहिनी को मैंने मारा है। मैंने उस पर हाथ उठाया ज़रूर था पर न तो मेरा इरादा उसे मारने का था और न ही मेरे हाथ लगने से वो मरी थी। ये सही है कि उसने मुझ पर जो वार किया उससे मैं गुस्से में आ गया था। मेरे हाथ लगने पर वो वहीँ पर गिरी ज़रूर थी। उसी समय मेरी नज़र उस लड़के पर पड़ी जो मेरी रिकॉर्डिंग कर रहा था और मेरे देखते ही देखते भाग खडा हुआ था। उसके करीब दस मिनट बाद तक मैं वहां रहा और मोहिनी के साथ बातचीत करता रहा। उसे मनाता रहा। पर वो मेरे साथ जाने को तैयार नहीं हुई।”

“पर पूरे सौ रूपये कि बात ये है कि तुम वहां पहुंचे कैसे?”

“बस यूँ समझो कि मुझे किसी तरह पता चल गया था कि वो आश्रम के भीतर ही है। संजोग से आश्रम का पिछला दरवाजा खुला मिला और मैं भीतर चला गया।”

“अगर दरवाजा खुला न मिलता तो?”

“तो मैं दरवाजा फांदकर फांद चला जाता। और फिर मोहिनी को मारकर सबसे ज्यादा नुकसान मुझे ही हुआ है।”

“जानकार न सही अनजाने में ही तुमसे हत्या हो गयी होगी।” कन्हैय्या बोला।
“लगता है तुमनें सुना नहीं मैंने क्या कहा। मेरे से थप्पड़ खाने के बाद भी वो मुझसे १० मिनट तक बात करती रही थी।”

“क्या गारंटी है इसकी कि तुम सच बोल रहे हो?” इस बार सुधीर ने कहा।

“अगर मैंने ऐसा किया होता तो तुम लोगों को यहाँ बुलाने कि ज़रुरत क्या होती। कौन है जो मुझे यहाँ पहचान सके? चुपचाप इस शहर से निकल जाता तो किसी को कुछ पता भी नहीं चलता।”

“पुलिस से अपराध और दाई से पेट कहीं छुपाये छुपते हैं भला?”

राक्षस हंसा।

“अगर मैं पकड़ा भी जाऊं तो ऐसा कौन सा सबूत है जिसके बिना पर मुझे पकड़कर रख पाओगे भला।”

“इसलिए तो कह रहा हूँ कि थाने चलो। अगर तुमने खून नहीं किया तो तुम्हारा छूटना तय है। तो जेल जाने से घबराना कैसा।”

“मैंने घबराना नहीं सिखा। जब भूत पिशाचों के बीच रहकर नहीं डरा तो इंसानों से क्या डरूंगा। पर मैं अब लम्बे समय के लिए इंसानों के बीच नहीं रह सकता। १० साल तक अपनी याददाश्त खोकर इंसानों के बीच रहा हूँ। अब मैं फिर अपनी साधना में लग जाना चाहता हूँ। इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरा पीछा छोड़ दो और असली अपराधी के पीछे लग जाओ।”

“और तुम्हारे अनुसार कौन है असली अपराधी?”

“यह खोजना तुम्हारा काम है।”

“पर अब तो तुम्हारी भैरवी मर चुकी है। साधना कैसे पूरी करोगे?” राधा ने प्रश्न किया।

“मिल जाएगी। अगर भोलेबाबा चाहेंगे तो अवश्य मिल जाएगी मुझे मेरी भैरवी। मोहिनी के रूप में नहीं तो किसी और रूप में।”

“ताकि उसे भी भैरवी वाले धंधे में फिर से लगा सको और अपने नीच कर्म में...।”

इससे पहले कि राधा अपनी बात पूरी कर पाती राक्षस का एक भरपूर तमाचा उसके गाल पर पड़ा। जाने वो कब उसके जड़ में पहुँच गया था! वो पलटकर दूर जा गिरी।

एक थप्पड़ ने उसे मानों दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया था। कन्हैय्या एक झटके में खड़ा हो गया। सुधीर अपनी बन्दुक निकल चुका था। बाकी दोनों सिपाही तो पहले हीं पीछे हट चुके थे। राक्षस भी थप्पड़ लगाकर रुका नहीं था। उसने राधा को बालों से पकड़कर उठाया और गरज उठा,

“मैं एक बार खुद अपनी बेईज्ज़ती बर्दास्त कर सकता हूँ पर अपने धर्म कि नहीं। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है पर उस दिन कि घटना के बाद लोग हर तांत्रिक को गन्दी दृष्टि से देखने लगे हैं। भैरवी होना कोई धंधा नहीं बल्कि अध्यात्म कि पराकाष्ठा है जब भैरव सिद्ध होता है तो उसमें शिव का वास होता है और भैरवी में माँ पार्वती स्वयं प्रकट होती है।”

इस वक़्त राधा का चेहरा राक्षस के चेहरे के बिलकुल पास था। राक्षस की दहकती आँखों में मानों शोले भड़क रहे थे।

उधर अल्फांसे को महसूस हुआ कि उसके सामने आने का वक़्त आ गया है।

राक्षस का गरजना जारी था,

“भैरवी के बारे में ऐसे शब्द बोल तू खुद अपने अतीत की अपने देश के आध्यात्मिक सम्पदा की बेईज्ज़ती कर रही है।”

सुधीर की इच्छा हुई कि वो चिल्लाकर कहे कि हमारी अध्यात्मिक सम्पदा वो नहीं जो तू कर रहा है बल्कि वो है जो आचार्य जी सारी मानवता को शिक्षा देकर कर रहे हैं। पर ये वक़्त बहस का नहीं था। कन्हैय्या ने उसे इशारा किया। अगले ही पल उसकी बन्दुक राक्षस का निशाना लेने को तैयार थी।

पर राक्षस इतने जोश में होने के बावजूद भी असावधान नहीं था। राधा को दोनों हाथों से उठाकर सुधीर पर दे मारा। दोनों गिर पड़े। रिवोल्वर सुधीर के हाथों से छिटककर गिर पड़ा। कन्हैय्या ने फुर्ती के साथ उसे उठाने कि कोशिश की पर उसके पहले ही राक्षस का पैर उस पर पड़ चुका था। बेचारे रिवाल्वर कि हालत मुर्दाघट जाने लायक हो चुकी थी।

कन्हैय्या तेजी से राक्षस कि ओर बढ़ा पर तभी उसके कानों में राधा कि आवाज गूंजी,

“ठहरो।” राधा पूरी तरह संभल चुकी थी और मजबूत क़दमों के साथ राक्षस की और बढ़ रही थी। उसके बाल बिखर चुके थे और उसका सुर्ख लाल सूट अस्त व्यस्त हो चुका था।

राक्षस के करीब आकर वो ठहरी। वो दोनों हाथ बाँध आराम से खड़ा था। कम से कम निहत्थे इन्सानों से उसे कोई खतरा महसूस नहीं होता था।

राधा का हाथ घूमा और राक्षस के गाल पर पड़ा। वो लडखडाते हुए ३-४ कदम पीछे हटा। अविश्वासपूर्ण दृष्टि से उसने लड़की को देखा। उसे उम्मीद नहीं थी कि एक लड़की के हाथ का तमाचा उसे हिला भी सकता है। सुधीर ने भी मौका गवाए बिना लात कि भरपूर ठोकर उसके पेट में मारा। वो पेड़ से जा टकराया। रही सही कसर कन्हैय्या के फ्लाइंग किक ने पूरी कर दी। राक्षस ज़मीन पर गिरा पड़ा था।

सुधीर को विश्वास नहीं हो रहा था कि उन तीनों ने राक्षस को ज़मीन पर गिरा दिया है। राक्षस को पुनः उठता देख उसने अपने पैर कि ठोकर उसके सर पर मारन चाहा। पर तांत्रिक ने अभी हार नहीं मानी थी। सुधीर के पैर को पकड़कर उसने उसे घुमा फेंका। वो दूर एक पेड़ से टकराकर जा गिरा। दिल्ली वालों को भी समझ में आ गया था कि इस कम्बख्त को एक पल का भी वक़्त देना आफत को निमंत्रण देना है। अल्फांसे समझ गया था कि थोड़ी देर के लिए कापालिक का एक शिकार कम हो गया है। उसे इस राक्षस से कुछ लेना देना नहीं था पर जोर आजमाईश का इतना अच्छा मौका हाथ से जाना नहीं देना चाहता था।

राक्षस को अपने नए प्रतिद्वंदी का पता जब चला तब तक देर हो चुकी थी। इससे पहले कि उसे पता चलता कि उस पर आक्रमण करने वाला कौन है राक्षस पांच जबरस्त ठोकरों में धराशायी हो चुका था।

पहली फ्लाइंग किक ठीक नाक पर, दूसरी गले के ठीक बीचों बीच तीसरी और चौथी दोनों कन्धों पर और पांचवी उसके गिरते गिरते गले के पिछले भाग पर। सहायक नाक पर लगी चोट घटक सिद्ध हुई थी क्योंकि नाक से निकलती हुई खून कि पतली लकीर गले तक पहुँच चुकी थी।

अब वो पूरी तरह बेहोश हो चुका था।

“अरे ये तो तुम्हारे अंकल हैं कन्हैय्या!” राधा चौंकी।

“बस तुम्हारा प्यार खींच लाया भतीजे।”

“फाइटिंग में तो तुम हमारे बाप निकले। हम तो तुम्हें सीधा सदा सन्यासी समझ रहे थे।”

सुधीर भी लंगड़ाता हुआ उनके पास पहुँच चुका था। अल्फांसे को पहचानने में उसनें कोई गलती नहीं की जिसे वो नरेन्द्र के नाम से जनता था।

“शुक्रिया नरेन्द्र। तुमनें तो दस सेकेंड में ही इसे पस्त कर दिया।”

“इसमें मेरा कोई कमाल नहीं इंस्पेक्टर साहब। मैं काफी देर से इसे वाच कर रहा था। उस पर से आप लोगों ने उसे इतना थका दिया था कि इसकी हिम्मत पहले भी जवाब दे गयी होगी। फिर भी अगर इसे सँभलने का मौका मिलता तो मुझे भी आराम से परस्त कर देता। पता नहीं कितनी ताकत भरी है इसके शरीर में। मुझे नहीं लगता कि पांच मिनट से ज्यादा समय लगेगा इसे फिर खड़े होने में।

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ताशी हतप्रभ था। जिस राक्षस को तीन महारथी मिलकर भी हिला नहीं सके थे उसे अल्फांसे ने अकेले ही परास्त कर डाला था, वो भी दस सेकंड में!

बस दस सेकंड और वो महारथी ज़मीन पर गिरा पड़ा था!

क्या अल्फांसे ने उसे भी देखा था राक्षस से बातें करते हुए?

वो निश्चित तो नहीं था पर...

उसे तो ये भी नहीं पता था कि राक्षस ने सच में इन तीनों को यहाँ बुलाया था।

वो धीरे से अपने छुपे स्थान से उतरा और निकल गया। वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था।

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राक्षस को उन लोगों ने रस्सी से अच्छी तरह बांध दिया था। जीप में पड़ी नायलॉन कि मोटी रस्सी काम आई थी।

“अब क्या किया जाये इसका?” सुधीर बोला।

“पुलिस ऑफिसर तुम हो। तुम समझो कि क्या करना है इसका। जेल में डालो केस करों मुक़दमा करो तुम्हारी मर्ज़ी।”

“सही है। अपना मैडल चमकाने का इससे अच्छा मौका कहाँ मिलेगा।”

सुधीर मुस्कुराया।

“पर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं।”

“कमाल है।” राधा बोली। “तो यहाँ आये किसलिए थे?”

“बस विनय चतुर्वेदी से मिलना चाहता था सो मिल लिया। बाकी सिपाही तो भाग ही चुके हैं। अब ये जो बेहोश सिपाही है उसे जाकर अस्पताल पहुंचा दूंगा। हाँ अगर आप लोग इसे जेल में देखना चाहते हैं तो इसे जेल में पहुंचा देना।” सुधीर आराम से बोला।

“अब हमें क्या पड़ी है। हमे तो दयाल के केस की छानबीन करनी है। पर मोहिनी का हत्यारा तो आपके सामने है।”

“पता नहीं कौन किसका हत्यारा है। अब इस पचड़े में क्यों पडूं।”

“तो यहाँ आये किसलिए थे इंस्पेक्टर बाबू?”

“बस यूँ ही जंगले में तफरीह करने चला आया था। और ये दोनों दिल्ली वाले किस लिए आये थे?”

“हमें लगा था कि यहाँ दयाल के क़त्ल का कोई सुराग मिलेगा।”

“तो मिला की नहीं?”

“नहीं जी। यहाँ तो बस राक्षस मिला।”

“और आपका क्या कहना है नरेन्द्र बाबू।”

“आप लोगों की जो मर्ज़ी है वो करो। मुझे क्या कहना।”

“चलो चलते हैं।” सुधीर जीप की तरफ बढ़ गया जिसे उसनें कुछ दूर पर पार्क किया था। घायल सिपाही की उसने साधारण मरहम पट्टी कर दी थी और वो होश में आ चुका था। बाकी दोनों सिपाहियों का कुछ पता नहीं था। ड्राईवर जीप में ही मौजूद था। जीप तक पहुंचकर कन्हैय्या ठिठका।

तुम नरेन्द्र बाबू के साथ बढ़ो। मैं राधा के साथ जंगल में विचरना चाहता हूँ।”

“अगर राक्षस को होश आ गया तो?”

“तो उसके साथ भी विचर लूँगा।”

“और लौटोगे कैसे?”

जवाब अल्फांसे ने दिया, “चिंता मत करो इंस्पेक्टर साहब, ये लोग विचरते विचरते पहुँच जायेंगे।”

ड्राईवर ने जीप आगे बढ़ा दिया।

“मानना पड़ेगा नरेन्द्र बाबू। इतनी आसानी से आपने राक्षस को हरा दिया जिसे हम तीनों मिलकर भी काबू नहीं कर पा रहे थे।”

“मैं भी यही सोचकर खुश हो रहा था। पर ये मेरी ग़लतफ़हमी थी।”

“क्यों?” सुधीर ने आश्चर्य से पूछा?

“वो कापालिक मेरे प्रहारों से नहीं बल्कि उस इंजेक्शन से बेहोश हुआ था जो राधा ने उसे हम सबकी नज़रों से छुपाकर दिया था।”

अल्फांसे की नज़रों में राधा के उभारों के पास के हिस्से उभरे जहाँ उसने यकीनन एक छोटा सा इंजेक्शन छुपा रखा था।

“और ड्राईवर साहब रिकॉर्डिंग कैसी रही?” अल्फांसे ने यकायक पूछा।

“ठीक रही...” कहते कहते उसने अपने होंठ काटे।

अल्फांसे  ने कहकहा लगाया। अल्फांसे हर कदम पर सुधीर को हतप्रभ करने में कामयाब रहा था। एक और बात उसके समझ से परे थी, राक्षस सभी को नाम से कैसे पहचानता था?

वहीँ अल्फांसे सोच रहा था कि ताशी उर्फ़ चेंग लेई आखिर इस राक्षस से चाहता क्या है? इस चीनी से मुठभेड़ की उसे ज़रुरत महसूस हो रही थी।

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