लाल-पीले तारे उसकी आंखों के सामने नृत्य करने लगे। हुआ यूं कि विजय को ऐसा लगा, जैसा किसी ने भारी फौलाद का हथौड़ा उसके सिर पर मार दिया हो, जबकि यह टुम्बकटू ने उसके पीछे से सिर पर चपत मारा था। विजय के सिर पर चपत मारता हुआ टुम्बकटू बोला--- "बेकार क्यों गोली बरबाद कर रहे हो ----- मैं तुम्हारे पीछे हूं।" 


विजय ने स्वयं को संभाला और अपनी तरफ से बेहद फुर्ती के साथ दाएं पैर की एड़ी पर घूमा तो अपने पीछे रिक्त स्थान देखकर उसकी आखें हैरत से फैल गई।


अभी उसके मस्तिष्क में यह विचार आया ही था कि आखिर यह टुम्बकटू है क्या चीज ? कि एकाएक वह फिर चौंक पड़ा।


उसके कानों के पर्दों से एक चीख टकराई!


वह चीख आशा की थी।


वह बेहद फुर्ती के साथ आशा की ओर घूमा और वहां का दृश्य देखते ही, उसके नेत्रों में उपस्थित आश्चर्य का सागर और अधिक गहरा हो गया।


जब उसने देखा तो आशा लहराकर फर्श पर गिर रही थी। क्षण-मात्र में विजय समझ गया कि यह प्रभाव टुम्बकटू के चपत का है।


तभी टुम्बकटू विजय को अशरफ के पीछे नजर आया। विजय तेजी से चीखा-----"अशरफ ! बचो..."


और वास्तव में अशरफ भी बिजली कीं-सी फुर्ती के साथ

पीछे घूमा-----किंतु उस समय विजय का आश्चर्य चरम सीमा पर पहुंच गया, जब टुम्बकटू के लंबे गन्ने जैसे शरीर को अशरफ के ऊपर से होकर, अशरफ के घूमते-ही-घूमते उसके पीछे आते देखा।


जब अशरफ घूमा तो अपने पीछे रिक्त स्थान देखकर चौंका, बल्कि लाल-पीले तारे उसकी आंखों के सामने नाचबउठे-----उसे अपना जिस्म हवा में लहराता अनुभव हुआ।


यह टुम्बकटू के चपत का प्रभाव था !


अचेत होते-होते अशरफ को ऐसा महसूस हुआ, जैसे टुम्बकटू मुस्कराता हुआ कह रहा हो-----"तुम लोग बहुत सुस्त हो यार!"


इधर विजय ने जब अशरफ को अचेत होते देखा तो उसने आव देखा न ताव, बस जोश में आकर टुम्बकटू पर फायर झोंक दिया।


परंतु इसका क्या किया जाए कि तब तक भयानक छलावा अपराधी अपना स्थान छोड़ चुका था, बल्कि एक अन्य व्यक्ति को अपने चपत का करिश्मा दिखा चुका था।


विजय की समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस विचित्र और भयानक छलावे को किस प्रकार रोके? कोई भी गोली उसे नहीं लग रही थी और वह था कि सबको अपने चपत का कमाल दिखा रहा था ।


विजय ने उस पर अनेक फायर किए ----- लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात।


यानी कोई भी गोली टुम्बकटू के जिस्म को न लग सकीं, जबकि वह भयानक छलावा समूचे हॉल में अनेक व्यक्तियों को अपने चपत का शिकार बना चुका था।


लोग उसका चपत लगते ही चीखकर अचेत हो जाते।


कुछ देर तक तो ठाकुर साहब और रघुनाथ इस जोकर टाइप के टुम्बकटू के विचित्र हास्यपूर्ण और साथ ही भयानक खेल को देखते रहे ----- परंतु अगले ही पल उन्हें जैसे क्रोध आ गया। उन्होंने भी अपने साथियों को संकेत दिए ।


'धायं... धायं...धायं!'


न जाने टुम्बकटू कौन-सी मिट्टी का बना था कि वह इस बार भी अपने स्थान से गायब था।


अभी विजय इत्यादि उस स्थान को आश्चर्य के साथ देख ही रहे थे कि अचानक टुम्बकटू की आवाज ने उन सबको चौंकाया।


" आप लोग क्यों कष्ट कर रहे हैं, मैं यहां हूं।"


टुम्बकटू की आवाज के साथ सबकी निगाहें आवाज की दिशा में उठ गई और फिर दृश्य देखकर लोगों की आश्चर्यमिश्रित सिसकारियां निकल गई।


आवाज के साथ सबकी निगाहें हॉल में एक ओर बने रोशनदान पर पड़ी और उस समय सबकी आखें हैरत से फट गई जब लोगों ने टुम्बकटू को रोशनदान से लटकते पाया।


टुम्बकटू रोशनदान पर लटका हुआ था और मुस्करा रहा था।


"वह रहा ----- रोशनदान पर।" ठाकुर साहब क्रोध में एकदम चीखे-----"फायर...!''


---'धायं...धायं...धायं!' एक बार फिर फायरों की बाढ़ ।


परंतु रोशनदान खाली था।


"बड़ी शर्म की बात है!" एक बार फिर टुम्बकटू की आवाज-----''आप लोगों का निशाना बहुत कच्चा है।"


-----"वो देखो मेज के नीचे!" ठाकुर साहब पागल से होकर चीखे-----"फायर करो।"


इस अजीबोगरीब धंधे में औरों की बात क्या, स्वयं विजय ही बुरी तरह बौखला गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि टुम्बकटू वास्तव में इंसान है अथवा कोई भूत?


एक पल में वह कहीं होता है और दूसरे पल में कहीं। बौखला तो विजय गया ही था ----परंतु इस बौखलाहट में भी उसने मेज के नीचे टुम्बकटू पर फायर कर दिया। परंतु तभी एक अन्य रोशनदान से आवाज आई।


" मिस्टर विजय... कम-से-कम मैं तुम्हें उतना मूर्ख नहीं समझा था।"


पलक झपकते ही उस रोशनदान की ओर अनेकों आग के शोले लपके-----लेकिन तभी मेहमानों के जत्थे के बीच में से टुम्बकटू की आवाज गूंजी।


" क्यों देश का धन बरबाद कर रहे हो ?"


वे इंसान चौक पड़े, जिनके समीप टुम्बकटू खड़ा किसी गन्ने की भांति हिल रहा था।


अगले ही पल टुम्बकटू के आसपास भगदड़ मच गई।


लोग उससे उसकी हरकतों के कारण अत्यधिक भयभीत हो गए थे। अत: क्षणमात्र में उसके आसपास से भीड़ काई की भांति फट गई।


अब वह अकेला वहां खड़ा विचित्र ढंग से मुस्कराता हुआ कह रहा था-----''अरे... क्या आप लोग घबरा गए?"


परंतु उसके प्रश्न का उत्तर सिर्फ गरजती हुई रिवॉल्वरों ने दिया।


अनेकों गोलियां फिर टुम्बकटू की ओर लपकी।


लेकिन टुम्बकटू भला इतना शरीफ कहां था कि वह किसी भी गोली को अपने जिस्म से स्पर्श होने देता! अत: तब तक कि गोलियां वहां तक पहुंचे-----टुम्बकटू किसी अन्य स्थान पर खड़ा फिर कुछ इसी प्रकार के शब्द बोलता, जिससे उन लोगों के क्रोध में और अधिक वृद्धि हो जाती।


लगभग पांच मिनट तक इसी प्रकार का क्रम चलता रहा।


वह कभी मेज के ऊपर खड़ा हुआ पुलिस वालों को धिक्कारता तो पुलिस वाले उस पर फायर करते और वह किसी अन्य स्थान पर मुस्कराता पाया जाता। वहां फायर करते तो वह किसी तीसरे स्थान पर किसी व्यक्ति के सिर पर चपत मारकर उसे बेहोश करता पाया जाता।


हॉल में उपस्थित प्रत्येक इंसान टुम्बकटू की इन विचित्र हरकतों पर बौखला गया।


स्वयं विजय को न सूझा कि आखिर करना क्या चाहिए? कैसे वह इस टुम्बकटू पर काबू पाए? उस लंबे, पतले मरियल से टुम्बकटू ने पांच मिनट में ही सबको हिलाकर रख दिया।


अचानक अंत में उसने भीड़ में खड़े एक युवक के सिर पर चपत मारा, लिखने की आवश्यकता नहीं कि युवक महोदय अगले ही पल अचेत स्थिति में लंबे बांस-से टुम्बकटू के कंधे पर पड़े थे।


युवक को कंधे पर डाले टुम्बकटू दरवाजे की ओर लपका कि तभी ठाकुर साहब गरजे ----- "खबरदार... रुक जाओ!"


टुम्बकटू ठिठक गया। ठिठककर वह बड़े आराम से ठाकुर साहब की ओर घूमा----उसके होंठों पर मुस्कान थी, लंबूतरे चेहरे पर शरारत के चिन्ह |


ठाकुर साहब के साथ-साथ अनेक दृष्टियां उस पर जमी हुई थी।


वह ठाकुर साहब की ओर देख रहा था। अचानक वह बोला-----"मुझे हिंसा पसंद है, अहिंसा नहीं।"


कहते हुए टुम्बकटू ने शरारत से अपनी दाई आंख दबा दी।


ठाकुर साहब एकदम क्रोध से कांपने लगे, किंतु तब तक टुम्बकटू न सिर्फ हॉल से नदारद था, बल्कि फिर वह दुबारा कहीं भी नजर नहीं आया।


अचानक विजय को ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोठी के बाहर कुछ व्यक्ति आपस में बातें कर रहे हों।


आवाजें कुछ तीव्र थीं।


उसने अपने हाथ में बंधी घड़ी के रेडियम डायल पर दृष्टि मारी तो मुस्कराकर रह गया। क्योंकि घड़ी प्रात: के छह बजने का संदेश दे रही थी, जबकि उसका अनुमान था कि अभी रात ही है।


परंतु फिर भी विजय की समझ में नहीं आया था कि यह शोर किस प्रकार का है? वह उठा और नाइट सूट पर गाउन डालकर कमरे की उस खिड़की तक आया-----जहां से वह कोठी के बाहर वाली सड़क देख सकता था।