विकास वापिस प्रीतम सिंह के आफिस में पहुंचा ।


उसने प्रीतम सिंह को पचास हजार रूपये बैंक में जमा कराये होने की रसीद दिखाई और खाता खुलवाने में उसके सहयोग के लिए उसका फिर से धन्यवाद किया ।


फिर उसने प्रीतम सिंह के ही साथ लंच किया जिसका बिल उसने खुद अदा किया ।


यह विकास की वाकपटुता का ही कमाल था कि शाम तक प्रीतम सिंह विकास के साथ यूं पेश आ रहा था जैसे वह उसे बरसों से जानता हो । उसने रात के खाने पर विकास को अपने घर पर आमन्त्रित किया लेकिन विकास ने बड़ी नम्रता से बात को टाल दिया । उसने वादा किया कि नगर में घरबार बसा चुकने के बाद वह उसके डिनर के निमन्त्रण को जरूर स्वीकार करेगा ।


फिर शाम तक प्रीतम सिंह ने उसे चार काटेज दिखाये लेकिन विकास ने सब में कोई न कोई नुक्स निकाल कर उन्हें रिजेक्ट कर दिया। प्रीतम सिंह की फीस के तौर पर उसे सौ रुपये उसने और दिये जो कि विकास को बहुत जबरदस्ती उसकी जेब में ठूंसने पड़े ।


आखिर प्रीतम सिंह भी विकास के हक में अदालत में गवाह बनने वाला था ।


दो सौ रुपये का वह खर्चा पचास हजार रुपये की कमाई में काम आने वाला था ।


छ: बजे के करीब वह होटल वापस लौटा।


योगिता उस वक्त भी ड्यूटी पर थी जिससे साबित होता था कि वह शाम को खाली होती थी। शाम को वह खुद भी खाली था । उसने मन ही मन फैसला किया कि अगर योगिता का साथ बन जाता तो उस अजनबी शहर में डिनर का आनन्द आ जाता ।


उसने कोशिश करने का फैसला कर लिया ।


वह रिसेप्शन की तरफ बढा ।


लेकिन तभी दो टैक्सियां बाहर आकर रुकीं और उनमें से छ: सात स्त्री-पुरूष निकलकर रिसैप्शन पर पहुंच गये ।


काउन्टर पर जमघट लग गया ।


योगिता एकाएक बेहद व्यस्त हो गई ।


गया । उसने एक गहरी सांस ली और लिफ्ट की तरफ बढ़


और दस मिनट बाद वह फारिग हो जाने वाली थी । वह उसे अपने कमरे से फोन करके भी उससे बात कर सकता था |


छ: पांच पर उसने अपने कमरे का फोन उठाया और आपरेटर से रिसैप्शन पर बात कराने के लिये कहा ।


कुछ क्षण बाद उसके कानों में एक पुरुष स्वर पड़ा - "रिसैप्शन प्लीज ।”


- “मैं रूम नम्बर 312 से विकास गुप्ता बोल रहा हूं" विकास बोला ।


"यस, सर ।"


"जरा योगिता से बात कराइये ।"


"वह तो चली गई, सर ।"


"चली गई ! कहां चली गई ?"


“घर चली गई, सर ।"


"लेकिन अभी तो मैंने उसे रिसैप्शन पर देखा था । "


"वह अभी-अभी गई है, सर । उसकी ड्यूटी छ: बजे खत्म हो जाती है। मैं आपकी कोई खिदमत कर सकता हूं, सर ?"


"नो, नैवर माइन्ड"


विकास ने रिसीवर धीरे से क्रेडिल पर रख दिया ।


न जाने क्यों एकाएक उसका दिल भारी मायूसी से भर गया । लड़की से फोन पर बात हो भी जाती तो इस बात की कोई गारन्टी नहीं थी कि वह उसका डिनर का निमन्त्रण स्वीकार कर लेती लेकिन फिर भी उसे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे उसका कोई भारी नुकसान हो गया था ।


फिर उसे शबनम का ख्याल आया ।


उसने टेलीफोन की तरफ दोबारा हाथ बढाया लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया और हाथ वापिस खींच लिया ।


मेल ट्रेन निकल जाने के बाद अब पैसेन्जर ट्रेन से समझौता करने का कोई फायदा नहीं था ।


आज डिनर तनहा ही होने वाला था ।


******


शाम को मनोहर लाल अपने होटल के कमरे में अकेला बैठा था और अपना अगला कदम निर्धारित करने की कोशिश कर रहा था कि दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।


“दरवाजा खुला है।" वह तनिक उच्च स्वर में बोला । दरवाजे को किसी ने बाहर से धक्का दिया । -


गिरिजा ने भीतर कदम रखा ।


मनोहर उठकर खड़ा हो गया। उसने देखा गिरिजा हजार वाट के बल्ब की तरह दमक रही थी। मनोहर ने चैन की गहरी सांस ली । लड़की की सूरत ही बता रही थी कि बकरा जिबह हो गया था ।


“आओ ।” - मनोहर लाल स्वागतपूर्ण स्वर में बोला - "आओ।"


"कर्नल साहब ।" - वह उल्लासपूर्ण स्वर में बोली । उसकी खुशी उससे छुपाये नहीं छुप रही थी - "आपने तो कमाल कर दिया । "


“अच्छा !" - मनोहर बोला ।


"मैं आपके दस हजार रुपये साथ लाई हूं।" - और वह अपना हैण्ड बैग खोलने लगी ।


"अरे, पहले बैठो तो सही ।"


वह एक सोफा चेयर पर बैठ गई ।


मनोहर उसके सामने बैठ गया ।


गिरिजा ने अपने हैण्ड बैग से सौ-सौ के नोटों की एक गड्डी निकाली और उनहें मनोहर के सामने मेज पर रख दिया ।


"वादे के मुताबिक ये रहे दस हजार रुपये।" - वह बोली- "और साथ में दस हजार बार धन्यवाद ।"


"अरे पहले पूरी बात तो बताओ कि हुआ क्या था ?"


"वही हुआ था जो होना था । वकील साहब मेरे प्रोविजन स्टोर पर पधारे थे । आते ही मुझ पर स्नेह की बाल्टियां उड़ेलने लगे । बोले कि वे मेरे पिता के दोस्त थे और अखबार में मेरा जिक्र पढ कर इस ख्याल से वहां आये कि शायद वे मेरे किसी काम आ सकें । फिर उन्होंने बेशुमार तरीकों से मुझे स्टोर से कहीं भेजने की कोशिश की लेकिन मैं उनके पास से न टली । उस दौरान टेलीफोन की घण्टी भी बजी लेकिन मैं उसे सुनने न गई । मैंने कह दिया कि पिछले एक घण्टे से कोई रांग नम्बर बज रहा था इसलिये टेलीफोन उठाने से कोई फायदा नहीं था । मजेदार बात यह थी कि वकील साहब सोहना मटर के डिब्बों के पिरामिड वाले काउन्टर के पास से टल ही नहीं रहे थे। लेकिन जैसा कि आपने कहा था, मैंने भी उन्हें अपनी निगाहों से ओझल नहीं होने दिया । बेचारे बहुत झुंझलाये, बहुत तिलमिलाये और अभी वे मुझे अपने पास से टालने की नई तरकीबें सोच ही रहे थे कि स्टोर में एक ग्राहक आ गया ।”


वह ठिठकी और मन्द-मन्द मुस्कारने लगी ।


"फिर ?" - मनोहर ने पूछा ।


"वह ग्राहक एक बड़ी खूबसूरत औरत थी और डिब्बा बन्द सोहना मटर खरीदने वहां आई थी । उसने मुझे कहा कि स्टोर में सोहना मटर के जितने डिब्बे पड़े थे, वे मैं सब उसे दे दूं । उसके यह कहने की देर थी कि कमाल हो गया ।"


"क्या हुआ ?"


"वकील साहब मुझे उस औरत से परे एक तरफ ले गये थे और बोले कि उन्होनें सुना था कि मैं वह स्टोर बेचना चाहती थी । मैंने कहा उन्होंने ठीक सुना था । वे बोले उनका एक क्लायन्ट वह स्टोर खरीदना चाहता था । मैंने कहा बड़ी खुशी की बात थी । उन्होंने कीमत पूछी, मैंने नब्बे हजार बता दी । कीमत सुनकर वे तिलमिलाये लेकिन फिर से बोले कि वे अपने क्लायन्ट को फोन करते हैं। मैंने उन्हें कहा कि आप फोन करो, तब तक मैं उस औरत को मटर के डिब्बे बेच दूं । आखिर ऐसा थोक का ग्राहक कोई रोज-रोज तो आता नहीं था । लेकिन वे जिद करने लगे कि मैं उस ग्राहक को चलता करू । मैंने बड़ी हैरानी जाहिर की और पूछा कि उस औरत को मटर के डिब्बे बेच देने में क्या हर्ज था । जवाब में वे बोले कि जब वे उसके सारे स्टोर का ही सौदा करवा रहे थे तो उस छोटी मोटी सेल की क्या जरूरत थी । फिर उन्होंने खुद ही उस औरत को कह दिया कि वहां का मटर का स्टाक बिकाऊ नहीं था । पास ही बढिया बासमती चावल का एक बोरा पड़ा था जिसमें से कई दिनों से मैंने एक किलो चावल भी नहीं बेचे थे । वह औरत चावलों का सारा बोरा खरीदरने को तैयार थी लेकिन वकील साहब ने लगभग जबरदस्ती उसे स्टोर से बाहर निकालते हुए कह दिया कि स्टोर बन्द हो रहा था और फिलहाल वहां की कोई चीज बिकाऊ नहीं थी ।"


"फिर ?" - मनोहर ने मन-ही-मन स्थिति का आनन्द लेते हुए प्रत्यक्षत: बड़ी संजीदगी से पूछा ।


"फिर उन्होंने कहीं फोन किया । कुछ क्षण फोन पर बातें करते रहने के बाद वे बोले कि उनके क्लायन्ट को स्टोर की नब्बे हजार रुपये कीमत स्वीकार थी । उन्होंने कहा कि वे अपने क्लायन्ट की तरफ से उसी वक्त मुझे अपना चैक दे सकते थे। मैंने चैक लेने से इनकार कर दिया और उनसे कहा कि वे अपने क्लायन्ट से नकद नब्बे हजार रुपये लेकर आएं । लेकिन वे तो वहां से टलना चाहते ही नहीं थे फिर वे बोले कि मैं स्टोर को ताला लगा कर उनके साथ चलूं ताकि वे मुझे नकद रकम दिलवा सकें। काफी हील हुज्जत के बाद मैं साथ चलने के लिए मान गई । स्टोर को ताला लगा कर मैं उनके साथ हो ली । उन्होंने मुझे अपने आफिस में ले जाकर बिक्री के कुछ कागजात साइन कराये और मुझे नकद नब्बे हजार रुपए अदा कर दिए । मैंने उन्हें वहीं स्टोर की चाबी सौंप दी ।"


"तुम्हें उनके उस क्लायन्ट के दर्शन हुए खरीदा था ?" जिसने स्टोर


“नहीं । वे बोले उनका क्लायन्ट बहुत बिजी आदमी था, उस वक्त वहां नहीं आ सकता था । लेकिन उन्हें अपने क्लायन्ट की तरफ से वैसी कोई सौदे बाजी करने का पूरा अधिकार प्राप्त था । "


“आई सी ।"


“आपने तो कमाल ही कर दिखाया, कर्नल साहब । मेरा जो स्टोर सत्तर हजार की जायज कीमत पर नहीं बिक रहा था, नब्बे हजार की नाजायज कीमत पर आनन फानन बिक गया ।"


“वक्त-वक्त की बात है । पहले किसी को तुम्हारे स्टोर की जरूरत नहीं थी, अब किसी को उसकी एकाएक बड़ी सख्त जरूरत आ पड़ी थी । "


"लेकिन आपको कैसे मालूम था कि किसी की ऐसी कोई जरूरत सामने आने वाली थी ?"


"मरे पस क्रिस्टल बाल है ।"


"मत बताइए । मुझे क्या ! मेरा काम हो गया । मुझे आम खाने से मतलब होना चाहिये न कि पेड़ गिनने से ।"


"तुम्हारे केस के बारे में क्या बोले वकील साहब ?”


"कहने लगे कि केस की मैं कतई फिक्र न करू । और उनकी फीस को भी मैं स्टोर की बिक्री में ही शामिल समझू|"


"वैरी गुड | "


"मैं तो आज ही यह शहर छोड़कर अपने मामा के पास धनबाद जा रही हूं । अभी तक तो मेरे पर कोई केस हुआ नहीं है। बाद में जब होगा तो केस करने वाले पड़े तलाश करते रहें मुझे सारे हिन्दुस्तान में ।"


“यह सबसे अच्छा है।"


तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।


“कम इन ।" - मनोहर उच्च स्वर में बोला ।


दरवाजा खुला । शबनम ने भीतर कदम रखा ।


शबनम पर निगाह पड़ते ही गिरिजा के नेत्र फैल गये ।


“क्या हुआ ?" - मनोहर जान बूझकर अनजान बनता हुआ बोला ।


"यह ।" - गिरिजा बोली- "यह तो वही औरत है जो वकील साहब की मौजदूगी में मेरे स्टोर में आई थी और सोहना मटर का सारा स्टाक खरीदना चाहती थी । और बासमती चावल का बोरा भी । "


“आज इसकी शादी थी । सिर्फ मटर और चावल न मिलने से शादी रुक गई बेचारी की ।"


शबनम मुस्काराई ।


गिरिजा कुछ क्षण नर्वस भाव से कभी शबनम को और कभी मनोहर को देखती रही । फिर एकाएक वह उठ खड़ी हुई और उतावले स्वर में बोली- "मैं चलती हूं।"


मनोहर ने सहमित में सिर हिला दिया ।


उसने मनोहर का फिर से धन्यवाद किया और बड़ी विचित्र निगाहों से शबनम को देखती हुई वहां से चली गई ।


उसके पीछे दरवाजा बन्द होते ही शबनम और मनोहर दोनों ने जोर का अट्टहास किया ।


शबनम ने मेज पर से गिरिजा की छोड़ी नोटों की गड्डी उठा ली और बोली - "इस शहर में हमारी पहली कमाई । "


"लेकिन आखिरी नहीं।" - मनोहर बोला- “ अभी यहां हम बहुत माल पीटने वाले हैं। देख लेना, आने वाले दिनों में इस शहर के कुछ लोगों पर हम अपनी ऐसी छाप छोड़ेंगे कि वे हमें जिन्दगी भर नहीं भूल पाएंगे।"


"वैरी गुड !"


टेलीफोन की घण्टी बजी ।


मनोहर ने फोन उठाया ।


"कर्नल जे एन एस चौहान स्पीकिंग।" - वह बड़े दबंग स्वर में बोला ।


“कर्नल साहब" - दूसरी तरफ से आवाज आई - "मैं दीवान पुरुषोत्तमदास बोल रहा हूं । "


"बोलिए दीवान साहब । "


"कर्नल साहब, आपकी थ्योरी सुनने में बड़ी दमदार लगती थी कि जगतपाल ने हीरे और रिवाल्वर मटर के डिब्बे में और रसद की बोरी में छुपाई होगी लेकिन असल में यह बात गलत निकली है । "


"आप लड़की के प्रोविजन स्टोर पर गए थे?"


“जी हां । आपने केस के मामले में मेरी ऐसी उत्सुकता जगा दी थी कि मैं वहां जाये बिना नहीं रह सका था । "


"लेकिन आप तो किसी और निहायत जरूरी काम से गये थे ।”


"उस काम से मैं जरा जल्दी निपट गया था, इसलिये बाद में मैं एजरा स्ट्रीट में पहुंच गया था ।"


" आई सी ।"


"कर्नल साहब, वहां मैंने वह डिब्बा खास तौर से देखा था जो आपको डिब्बों के पिरामिड में काला चोर मालूम होता था । उसमें हीरे नहीं थे। उसमें हीरे हो ही नहीं सकते थे । बन्द डिब्बे में हीरे आखिर कैसे घुसाये जा सकते थे ?"


"डिब्बा खुला हुआ नहीं था ?"


"न । न वह डिब्बा खुला हुआ था और न ही उसके आस-पास का कोई और डिब्बा खुला हुआ था ।”


"खुला डिब्बा कोई ग्राहक तो नहीं ले गया था ?"


"नहीं । पिरामिड की बनावट ही बता रही थी कि वहां से कोई डिब्बा नहीं हटाया गया था। मैंने इशारे से लड़की से भी इस बारे में पूछा था । उसने भी यही कहा था कि उस पिरामिड में से कोई डिब्बा नहीं बिका था।"


“अच्छा !"


"और बासमती चावल के बोरे में कोई रिवॉल्वर भी नहीं थी।"


"मैंने तो बासमती चावल का नाम नहीं लिया था, दीवान साहब ।" - मनोहर एक धूर्त निगाह शबनम पर डालता हुआ टेलीफोन में बोला ।


"म... मेरा मतलब है पिरामिड के समीप पड़े आटे चावल के किसी बोरे में भी रिवॉल्वर नहीं थी । "


" ओह !"


"कहने का मतलब यह है कि अब आप अपनी थ्योरी का जिक्र किसी और से मत कीजियेगा, वर्ना आपका मजाक उड़ जायेगा ।"


"मैं हरगिज नहीं कहूंगा ।"


'आपकी थ्योरी तो बैकफायर कर गई ।" "


“मुझे अफसोस है ।”


"बहरहाल मेरे वहां जाने से एक बहुत बड़ा फायदा लड़की को हो गया ।"


"अच्छा ! वह क्या ?"


"वह अपना स्टोर बेचना चाहती थी। मैंने हाथ के हाथ उसे ग्राहक भिड़वा दिया ।"


"यह तो बहुत अच्छा किया आपने। उसके केस के बारे में भी कोई बात हुई उससे, दीवान साहब ?”


"अरे केस में कुछ नहीं रखा । मैं ऐसा इन्तजाम कर दूंगा कि जगतपाल सात जन्म लड़की पर इज्जतहत्तक का दावा करने का हौसला नहीं कर पायेगा।"


"वैरी गुड । और सुनाइये क्या हालचाल हैं ?"


"बस सब ठीक ठाक है । सोचा आपको खबर कर दूं कि आपकी थ्योरी में कोई दम नहीं था ।”


"अच्छा किया आपने । वर्ना, मैं डींग हांकने के लिये कई लोगों से, शायद पुलिस से भी इस थ्यौरी का जिक्र करता। आपकी मेहरबानी से मेरा मजाक उड़ने से बच गया ।"


"बस अब भूल जाइये आप अपनी थ्योरी को ।”


"भूल गया, जनाब । फोन करने का शुक्रिया आपका


वकील हंसा ।


फिर सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।


मनोहर ने भी रिसीवर रख दिया और होंठ सिकोड़ कर बोला - “उल्लू का पट्ठा । "


"क्या कहता था ?" शबनम ने पूछा ।


"मुझे पट्टी पढा रहा था कि चावलों के बोरे में रिवॉल्वर तथा मटर के डिब्बे में हीरे होने का जिक्र मैं किसी से न करू । असल में साला जरूर दोनों चीजें वहां से बरामद कर चुका होगा ।"


मनोहर ने बाकी का वार्तालाप भी शबनम को कह सुनाया।


“जगतपाल को लड़की पर इज्जतहत्तक का दावा करने से कैसे रोकेगा वह ?"


"बड़ी आसानी से । जगतपाल की रिवॉल्वर वह बरामद कर चुका है । उस पर जगतपाल की उंगलियों के निशान अभी भी होंगे। वह जगतपाल को बड़ी सहूलियत से यह कहकर धमका सकता है कि अगर उसने लड़की पर केस दायर करने की कोशिश की तो वह उस रिवॉल्वर को पुलिस तक पहुंचा देगा । जगतपाल ने पुलिस को बयान दिया था कि उसने अपनी जिन्दगी में अपने हाथ में रिवॉल्वर पकड़ कर भी नहीं देखी थी। फिर एक रिवॉल्वर पर उसकी उंगलियों के निशान बरामद हो जाना उसे ऐसा फंसवा सकता है कि सजा पाये बिना उसकी खलासी नहीं हो सकती ।


“यानी लड़की सेफ है । "


“न सिर्फ सेफ है बल्कि आज की तारीख में बहुत फायदे में है । उसका जो स्टोर सत्तर हजार में नहीं बिक पा रहा था, उसके उसे अस्सी हजार हासिल हो चुके हैं और उसी के सदके दस हजार हम भी कमा चुके हैं।”


" यानी कि वकील के क्लायन्ट को नब्बे हजार की थूक लग गई ।”


" “अरे क्लायन्ट कैसा ? वह स्टोर उस हरामजादे ने खुद खरीदा है । "


" यानी कि हीरों की शनील की पोटली अब वकील के पास होगी।"


"हां । और वह क्या करेगा ? वह पोटली में से एक हीरा निकालेगा और उसे किसी जौहरी से जंचवायेगा । पोटली के ऊपर-ऊपर वे दस-पन्द्रह हीरे असली हैं इसलिये उसे यही रिपोर्ट मिलेगी कि माल खरा था । फिर वह कुछ अरसा कथित खरे माल को दबा कर बैठा रहेगा और फिर मामला ठण्डा हो जाने पर उसे किसी दूसरे शहर में ले जाकर बेचने की कोशिश करेगा तो उसे मालूम होगा कि पोटली में केवल दस-पन्द्रह हीरे हैं और बाकी कांच के टुकड़े हैं।"


" और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी । तब तक हम कब के इस शहर से कूच कर चुके होंगे। से


"ऐग्जैक्टली । बाद में वह सिर पीट-पीट कर मर जायेगा । लेकिन उसे यह नहीं सूझेगा कि घपला हुआ तो कैसे हुआ ?"


"हम हीरों का क्या करेंगे ?"


" उन्हें हम इसी शहर में ठिकाने लगायेंगे । वह चोरी का माल है । हमारे पास उसका ज्यादा देर रहना हमारे लिये खतरनाक हो सकता है । "


"यहां हीरों को कहां ठिकाने लगाओगे ?"


"वहीं जहां उनका ठिकाना है। यानी कि उल्टे बांस बरेली को ।"


"पोपी" - शबनम प्रशंसात्मक स्वर में बोली- "तुम भी बड़ी कुत्ती चीज हो ।"


"थैंक्यू ।"


"आगे का क्या प्रोग्राम है ?"


"वही जो बनाकर आये थे । वही जिस पर इतनी रिसर्च हम कर भी चुके हैं । यह काम तो खामखाह बन गया था। असली माल तो अभी हमने कमाना है।"


"मैं तुम्हें यही बताने आई थी कि मेरा बकरा आज रात डिनर पर मुझे मेरे होटल में मिल रहा है । तुम अपने हिसाब से पहुंच जाना वहां ।”


"मैं जरूर पहुंचूंगा।”


"मै जाती हूं।" - वह उठती हुई बोली । मनोहर ने सहमति में सिर हिला दिया ।