बलवान सिंह वाली बैंक वैन से पाँच सौ गज पीछे, सड़क किनारे पर पंचम लाल और लानती एक पुरानी सी कार के बीच बैठे, सारा मामला देख-समझ रहे थे ।

“मैंने तो पहले ही कहा था कि मुझे नेई लगता कि हम कामयाब होंगे । हो गई ना गड़बड़ ।”

“चुपकर ।” गुस्से से भरा बैठा पंचम लाल कह उठा – “सड़या-सड़या मत बोल ।”

“जैसा नाम रख दिया है मेरा – वैसा ही बोलूँगा ।” लानती ने कहा – “हम भी वैन के पास चलें ?”

“नहीं । बलवान सिंह हमें पहचान जाएगा ।” पंचम लाल भिंचे स्वर में बोला – “पता नेई नोट लूटने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं । बाद में बलवान सिंह पुलिस को हमारे बारे में बता देगा, हम यहीं ठीक हैं ।”

“वे दोनों क्यों रुक गए वहाँ – कार रोककर ।”

“राह चलते तमाशा तो देखेंगे ।”

“दो-चार और रुक गए तो देवराज चौहान वैन में रखा पैसा कैसे निकाल पाएगा । मेरे को पहले से ही ठीक लग रहा था कि हम पैसा लूटने में सफल नेई हो सकेंगे । वो ही हुआ ।” लानती बेचैनी से कह उठा – “लेकिन हुआ, क्या है ?”

“वैन बुलेट प्रूफ है । भीतर से लॉक है ।” पंचम लाल बोला – “बलवान सिंह भीतर सुरक्षित बैठा है । बाहर खड़ा देवराज चौहान कुछ कर नहीं पा रहा ।”

“लो... कर लो बात । तू तो कहता था देवराज चौहान बहुत बड़ा डकैती मास्टर है । ये भी कोई काम हुआ । जैसा देवराज चौहान ने किया है । वैसा तो हम भी कर सकते हैं । ये कौन सी बड़ी बात है ।”

पंचम लाल ने लानती को घूरकर देखा ।

“ऐसे क्या देखता है ? मैंने क्या गलत कह दिया । ठीक तो कहा है । डकैती लूट करना बोत आसान काम है । देवराज चौहान ने इस सारे काम में ऐसा कौन सा तीर मारा है । ये काम तो मैं भी बोत आसानी से कर सकता हूँ ।”

“तूं मूँ बंद नेई रखेगा क्या ?” पंचम लाल गुर्राया ।

“सारा काम गड़बड़ हो रहा है ।” लानती ने मुँह बनाया – “तू क्या चाहता है कि कुड़-कुड़ भी न करूँ । दिल की भड़ास तो निकालूँगा ।”

☐☐☐

बलवान सिंह की जेब में पड़ा मोबाइल फोन बजा तो उसने फोन निकालकर बात की ।

फोन पीछे बैठे मदनलाल सोढ़ी ने अपने मोबाइल फोन से किया था ।

“क्या हो रहा है ?”

“वैन फँस गई है ।” बलवान सिंह ने बताया – “आगे उन्होंने कार खड़ी कर रखी है । पीछे पत्थर लगा दिया है । वैन बैक भी नहीं हो सकती ।”

“चिंता क्यों करता है ।” मदनलाल सोढ़ी का कठोर स्वर कानों में पड़ा – “यहीं खड़ा रहने दे वैन को । न तो कोई भीतर आ सकता है और न कोई गोली ।”

“बैंक फोन करता हूँ । हालातों के बारे में जानकारी देना जरूरी हो गया है ।”

दो पल की चुप्पी के बाद मदनलाल सोढ़ी की आवाज आई ।

“ये लोग हैं कौन ?”

“मैं नहीं जानता... कल इन्हें देखा था ।”

“कहाँ देखा था ?” मदनलाल की आवाज आई ।

बलवान सिंह बताने लगा कि एकाएक ठिठका फिर बोला –

“ये बातें बाद में हो सकती हैं, पहले इन लोगों से निपटना है । तू तो भीतर बंद बैठा है । इन भूतों को मैं देख रहा हूँ अपने पास खड़े... ये... ?”

“वैन सड़क पर खड़ी है ?”

“हाँ ।”

“किस पोजिशन पर ?”

“पीछे पहिए के साथ पत्थर लगा है । आगे कार अटकी पड़ी है । वैन ढलान की तरफ थोड़ा सा मुँह किए खड़ी है ।”

“मतलब कि बाईं तरफ ढलान है ?”

“हाँ ।”

“तो वैन को ढलान पर उतार ले । आगे से फिर ऊपर ले लेना ।”

बलवान सिंह के होंठ भिंच गए ।

“क्या हुआ ?”

“उतारूँ ढलान पर वैन ?”

“उतार ले... आगे से वैन फिर सड़क पर ले लेना ।”

बलवान सिंह ने होंठ भींच कर फोन बंद किया । जेब में डाला । वैन स्टार्ट ही थी । उसने उड़ती निगाह बाहर खड़े सब पर मारी और गियर डालकर एक्सीलेटर पैडल दबाया ।

वैन हल्के से झटके के साथ सड़क किनारे की तरफ बढ़ी ।

“भाग गया, ओ भाग गया ।” वैन को आगे बढ़ते पाकर दोनों में से एक चीखा ।

“पकड़ो... मैंने इसकी पिटाई नहीं की ।”

आगे ढलान पर वो वैन उतरी । जरा सी उतरी । बलवान सिंह ने देखा कि सड़क के किनारे की ढलान काफी तीखी है । परंतु आगे के दोनों पहिए सड़क से उतर चुके थे । नीचे उतरने की कुछ स्पीड भी तेज थी ।

चाह कर भी बलवान सिंह ने वैन को रोका नहीं । वैन नीचे उतरती चली गई ।

ढलान तीखी थी और बड़ा सा पत्थर अगले पहिए के सामने आ गया । वैन उस पत्थर से टकराकर जोरों से लड़खड़ाई । पहले तो वो आगे के बल लुढ़कने लगी । परंतु फिर संभली । लगा कि संभल गई कि एकाएक लड़खड़ा कर वैन बाएँ को लुढ़क गई ।

इससे पहले कि पूरी तरह लुढ़क पाती । उस तरफ खड़े पेड़ के तने से उसकी बॉडी टकराई और वो रुक गई । तेज आवाज उभरी और वातावरण चुप सा हो गया ।

वैन बाईं तरफ लुढ़की । वो पेड़ के तने से अटक कर खड़ी थी । बाईं तरफ के दोनों पहिए जमीन से डेढ़-दो फीट ऊपर खड़े हुए थे । बलवान सिंह वाली साइड कुछ ऊपर की तरफ उठ गई थी ।

वे सब दौड़े-दौड़े वैन के पास पहुँचे ।

बलवान सिंह दूसरी तरफ जा लुढ़का था । उसका पाँव स्टेयरिंग में जा फँसा था ।

“ये तो बढ़िया हो गया ।” उन दोनों में से एक व्यक्ति बोला – “साला भाग रहा था । अब कहाँ भागेगा ?”

जगमोहन ने देवराज चौहान से धीमे स्वर में कहा ।

“ये तो और भी परेशानी खड़ी हो गई । इस तरह हम वैन पर कब्जा नहीं कर सकेंगे ।”

“वैन की खिड़की का शीशा तोड़ो ।” देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा ।

“शीशा ।”

“हाँ । वो बुलेटप्रूफ अवश्य है । लेकिन पत्थर के सामने नहीं टिकेगा । इस तरह तोड़ना कि भीतर मौजूद बलवान सिंह को काँच से चोट न पहुँचे । जल्दी करो हमारे पास वक्त कम है । वैन ने वक्त पर बैंक पहुँचना है । इसके न पहुँचने से एकदम शोर-शराबा खड़ा हो जाएगा । वैन की तलाश शुरू होगी तो ऊपर सड़क पर हमारी कार को हैडलाईट के टूटे शीशे देखकर, पुलिस इधर भी अवश्य देखेगी । हमें यहाँ से जल्दी निकलना होगा ।”

जगमोहन बिना कुछ कहे दाँत भिंचे आगे बढ़ा और नीचे पड़ा बड़ा-सा पत्थर उठाकर शीशे पर मारने लगा । ये देखकर पास खड़ा व्यक्ति कह उठा ।

“बढ़िया कर रहा है – अभी शीशा टूट जाएगा । हम उस हरामी ड्राइवर की बाँह पकड़ कर, उसे बाहर खींचेंगे और पीटेंगे तबीयत से ।”

वो शीशा ऐसा न था कि दो-चार बार पत्थर मारने से टूट जाता । परंतु ऐसा लग रहा था कि कुछ देर तक इसी तरह उस पर चोटें पड़ती रही तो अवश्य टूटना शुरू हो जाएगा ।

जगमोहन उस भारी पत्थर को थामे शीशे पर चोटें मारता रहा ।

☐☐☐

“लानती ये क्या हो गया ?” वैन को ढलान पर उतरते देखकर पंचम हड़बड़ाकर कह उठा ।

“मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरा दिल कहता है कि इस काम को सफलता से पूरा नहीं कर सकेंगे ।”

“बकवास मत कर । कार लेकर आ । मैं उधर देखता हूँ ।” कहकर पंचम तेजी से आगे की तरफ बढ़ा ।

लानती जल्दी से कार की स्टेयरिंग सीट पर जा बैठा । कार स्टार्ट की और आगे बढ़ाई ।

सड़क पर पहुँचकर पंचम लाल नीचे देखने लगा । वैन की हालत देखकर ठिठका सा रह गया ।

लानती वहाँ पहुँचकर कार से बाहर निकला और ठुकी कार के पास पहुँचा ।

“ये तो तगड़ी गज गई है कार की । अपने गैराज पर पहुँच जाए तो तगड़ा बिल बन जाएगा ।” बड़बड़ाने के साथ ही लानती की निगाह पिछली सीट पर पड़ी तो छोटे से टीफिन को देखा – “ये क्या है ?” उसने उठाकर टीफिन खोला तो परांठों की मजेदार खूश्बू साँसों से टकराई – “ये तो बिल्लो बहन के हाथ के परांठे बने लग रहे हैं ।” लानती ने खुश होकर टीफिन बंद किया – “सुबह से खाया कुछ नहीं । आराम से खाऊँगा ।” टीफिन उसने अपनी वाली कार में रख दिया ।

फिर पंचम लाल के पास पहुँचा ।

“क्या कहानी है पंचम ?” लानती ने कहते हुए नीचे देखा – “लो, वैन दे दोनों पहिए हवा विच लटक गए ।”

जगमोहन पत्थर थामे, शीशे पर मार रहा था ।

“शीशे का तो हो गया काम – टूटने जा रहा है ।”

“ये कर क्या रहे हैं ?” पंचम बोला ।

“शीशा तोड़कर दरवाजा खोलेंगे और बलवान सिंह को बाहर निकालेंगे ।”

“उससे क्या होगा ?”

“ये तो मेरे को पता नहीं कि क्या होगा लेकिन मैं ये सोचता हूँ कि ये सब करना बोत आसान काम है । तुम देखना इस काम के बाद मैं भी डकैती मास्टर बन जाऊँगा । तेरे को जो भी डकैती करनी हो । मेरे से करा लेना ।”

तभी उन दोनों व्यक्तियों की निगाह, ऊपर खड़े इन दोनों पर पड़ी ।

“आओ जी – आप भी आ जाओ । ये वैन वाला, उस कार में मारकर भाग रहा था कि इधर लुढ़क गया । अभी इसे बाहर निकालकर पीटेंगे । आप दोनों भी आ जाओ । मिलकर पीटेंगे ।” उसने हाथ के इशारे से उन्हें पास आने को कहा ।

“वो बलवान सिंह को पीटने के लिए हमे बुला रहा है ।” लानती बोला – “पागल है ।”

“पीछे हो जा लानती ।” पंचम लाल ने कहा और सड़क से पीछे हट गया ।

लानती भी पीछे हटा ।

“तूने पीछे हटने को क्यों कहा ?”

“गाड़ी के भीतर से बलवान सिंह ने हमें देख लिया तो समझ जाएगा कि हम भी इस काम में शामिल हैं और वो फोन पर पुलिस को या अपने बैंक वालों को हमारे बारे में बता देगा । वरना वो तो अब तक समझ न पा रहा होगा कि किसका किया धरा... ।”

“ठीक है । हम सामने नहीं जाते । मेरे को जाने क्यों लग रहा है कि मुसीबत आने वाली... ।”

“चुप कर । जब भी बोलता है सड़या ही बोलता है ।” पंचम लाल ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा ।

तभी लानती की जेब में पड़े फोन की बेल बज उठी ।

“बज गई । मैं अभी बात करके आता हूँ ।” लानती ने कहते हुए जेब से फोन निकाला और कई कदम दूर पहुँच कर धीमे स्वर में बातें करने लगा । पंचम लाल रह-रहकर उसे खा जाने वाली नजरों से देख लेता था ।

☐☐☐

शीशा जगह-जगह से क्रैक हो चुका था परंतु जुदा न हुआ था । तभी पत्थर के वार से शीशे का काफी बड़ा हिस्सा एक तरफ लटक गया । जगमोहन ने पत्थर फेंका और उचककर टेढ़े हो चुके पायदान पर चढ़ा और टूटे शीशे में हाथ डालकर डोर लॉक की पिन उठाई और दरवाजा खोलते हुए जमीन पर उतर आया । शीशा तोड़ने की मेहनत से वो पसीने से भीग गया था और गहरी-गहरी साँसें ले रहा था ।

“चल भई – बाहर खींच इस ड्राइवर को और पीटो ।” उन दोनों में से एक जल्दी से दरवाजे की तरफ बढ़ा ।

“मैं तीन बार पीटूँगा इसे ।” दूसरा भी आगे बढ़ा ।

“ठहरो ।” देवराज चौहान तेजी से आगे बढ़ा ।

वे दोनों ठिठके ।

“मेरे ख्याल में पैले भाई साहब, उसे पीटना चाहते हैं ।”

“ठीक तो है । इनका हक पहले बनता है । इनकी ऊँचे मॉडल की कार ताजी-ताजी ठुकी है ।”

देवराज चौहान वैन के खुले दरवाजे के पास पहुँचा । ठिठका । भीतर देखा । टेढ़ी हुई पड़ी वैन के उस तरफ बलवान सिंह लुढ़का पड़ा था । वो कब का सीधा हो गया होता अगर उसका पाँव स्टेयरिंग में फँसा न होता । अभी भी वो स्टेयरिंग से पाँव निकालने का कष्ट से भरी कोशिश कर रहा था ।

“वैन सीधी करो ।” देवराज चौहान उन दोनों व्यक्तियों से बोला ।

“चल भई । वैन सीधी करके तसल्ली से पीटेंगे ड्राइवर को ।”

जगमोहन भी उन दोनों के साथ हो गया ।

दूसरी तरफ जाकर तीनों ने जोर लगाना शुरू किया कि वैन सीधी कर सकें । पेड़ के साथ टेढ़ी सी हुई वैन अटकी पड़ी थी । देवराज चौहान खुले दरवाजे के पास खड़ा था । उसने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली थी ।

एक-डेढ़ मिनट की कोशिशों के पश्चात वैन तेज झटके के साथ इधर को हुई और जोरों के साथ पहिए जमीन पर जा लगे । दो-तीन बार वो हिली और जमीन पर खड़ी हो गई ।

रिवॉल्वर थामे देवराज चौहान फौरन वैन में प्रवेश कर गया । वैन सीधी होते ही बलवान सिंह का स्टेयरिंग में फँसा पाँव निकल आया था । उसने थके से अंदाज में सीधा होने की चेष्टा की कि तभी देवराज चौहान ने रिवॉल्वर उसकी कमर से लगा दी ।

“हिलना मत ।” देवराज चौहान के दाँत भिंच गए थे – “कोई चालाकी नहीं ।”

“तुम जो भी हो । बहुत गलत कर रहे हो ।”

“चुप रहो ।”

बलवान सिंह ने होंठ भींच लिए । देवराज चौहान उसकी तलाशी लेने लगा ।

बाहर खड़ा जगमोहन सतर्क निगाहों से इधर-उधर देख रहा था । ऊपर सड़क के किनारे की तरफ भी देखा । जहाँ से कभी-कभार झाँकते पंचम लाल और लानती के चेहरे नजर आ जाते थे ।

वो दोनों व्यक्ति उचक-उचक कर भीतर देखने की चेष्टा कर रहे थे ।

“वो भीतर क्या कर रहा है ?”

“मेरे खयाल में उसके शरीर पर हाथ मार रहा है ।”

“वो क्यों ?”

“कुछ कर रहा होगा ।”

“उसके शरीर पर हाथ मारते हुए क्या कर सकता होगा । मेरे खयाल में उसके कपड़े उतार रहा होगा ।”

“समझा – उसे नंगा करके चौराहे पर खड़ा करेगा और लोगों को बताएगा कि घटिया ड्राइवर का चेहरा पहचान लो ।”

“ये तो बोत गड़बड़ हो जाएगी । हम उसे पीटेंगे कैसे ?”

“वो देख... मैंने उसके हाथ में रिवॉल्वर देखी है ।” वो एकाएक हड़बड़ा कर कह उठा ।

“किसके ड्राइवर के ?”

“नेई – दूसरे के हाथ में वो उसको गोली से उड़ा देगा । पुलिस आएगी । हम भी फँस जाएँगे ।”

“तो भाग चलें ?”

“हम भागे और इसने पीछे से हमें गोली मार दी तो ?”

“चुपचाप यहीं खड़े रहते हैं । भगवान का नाम लेता रह । ड्राइवर को पीटने के चक्कर में हम फँस गए । अच्छे-भले हम अपने काम पे जा रहे थे । एक्सीडेंट देखकर हम याँ पे यूँ ही रुक गए ।”

देवराज चौहान ने उसके कपड़ों से रिवॉल्वर और मोबाइल फोन बरामद किया ।

तब तक जगमोहन दूसरी तरफ का दरवाजा खोलकर पायदान पर चढ़ आया था ।

“चलें ?” उसने देवराज चौहान से पूछा ।

“हाँ । भीतर बैठो और इसे दबा दो । चालाकी दिखाए तो गोली मार देना ।”

जगमोहन उसे सरकाकर भीतर बैठा । दरवाजा बंद किया और रिवॉल्वर निकालकर उससे सटा दी ।

“तमाशा मत करना, वरना… ।” खतरनाक स्वर में कहते हुए जगमोहन ने अपने शब्द अधूरे छोड़ दिए ।

बलवान सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । चेहरे पर छाया भय स्पष्ट नजर आ रहा था ।

“तुम लोग कौन हो ?” बलवान सिंह ने धीमे स्वर में पूछा ।

जगमोहन खामोश रहा ।

“कल तो तुम लोग अनाड़ियों की तरह, डकैती करने की बातें कर रहे थे और आज मास्टर लोगों की तरह... ।”

“तू जुबान बंद नहीं रखेगा ।” जगमोहन गुर्राया ।

बलवान सिंह ने जगमोहन के चेहरे के भावों को देखा फिर मुँह फेर लिया ।

“बहुत मौका मिलेगा तेरे को बातें करने का – तब पूछना ।”

देवराज चौहान स्टेयरिंग सीट पर बैठ चुका था और वैन स्टार्ट की । ढलान पर टेढ़ी खड़ी थी वैन ।

ऐसे में भारी वैन को संभालना आसान नहीं था । तभी वो दोनों व्यक्ति खिड़की पर जगमोहन के पास पहुँचे ।

“जा रहे हो, वैन और ड्राइवर को लेकर ?” एक कह उठा – “लगता है आप लोग इसे अकेले में पीटेंगे, जहाँ इसे बचाने वाला कोई न होगा । हमने भी तो इसे पीटना है । आप लोग हमारा हक भी छीन रहे हैं ।”

“ऊपर कार खड़ी है । उसके पास खड़े हो जाओ ।” जगमोहन बोला – “हम अभी वापस आते हैं ।”

“मतलब कि तबीयत से इसे पीटकर, यहीं पर वापस ले आएँगे ।”

“हाँ ।”

देवराज चौहान ने ढलान ही ढलान पर वैन आगे बढ़ाई ।

“इंतजार कर लेते हैं ।” वो व्यक्ति अपने साथी से बोला – “ये दोनों ड्राइवर को पीटकर, इधर ही वापस लाएँगे ।”

“क्या फायदा – तब बचा ही क्या होगा ड्राइवर में कि हम पीट सकें ।”

“देख लेंगे । शायद तब इसका कोई हाथ-पाँव हिल रहा हो ।”

“ठीक है । सड़क पर खड़ी कार के पास पहुँचकर इंतजार कर लेते हैं । आधा घंटा और सही, क्या फर्क पड़ता है । दुकान तो उधर अपनी खुली पड़ी है । ग्राहकों को नौकर सामान बेच ही रहे होंगे । अपना तो मीटर डाउन है । कुछ देर यहीं रुक जाते हैं ।”

ये दोनों व्यक्ति थे परमिंदर सिंह और दुलारा ।

देवराज चौहान ने ढलान पर वैन को संभाला कि लुढ़क न जाए फिर ढलान पर ही कुछ आगे बढ़ते हुए सड़क तक पहुँचने का ठीक सा रास्ता दिखाई दिया तो वैन को देवराज चौहान सड़क पर लाया और तेजी से आगे बढ़ा दी ।

“तुम लोग बच नहीं सकोगे ।” बलवान सिंह कह उठा ।

“क्यों ? तू कोई कमाल दिखाएगा ।” जगमोहन ने दाँत भींचकर उसे घूरा ।

“मैं बैंक अधिकारियों को और पुलिस को खबर दे चुका हूँ कि यहाँ वैन को लूटने की चेष्टा की जा रही है पुलिस आती ही होगी ।”

“ये बताने का बहुत-बहुत शुक्रिया ।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा – “तेरी आरामगाह पास ही है ।”

“आरामगाह ?”

“जहाँ तेरे को और वैन को ले जाना है । पाँच-सात मिनट से ज्यादा का रास्ता नहीं है वहाँ का ।”

बैंक वैन तेजी से सड़क पर दौड़ी जा रही थी ।

देवराज चौहान का ध्यान पूरी तरह ड्राइविंग पर ही था ।

“तेरे मामे का क्या नाम है ?” जगमोहन ने कड़े स्वर में पूछा ।

“मामा ?”

“जो पीछे नोटों की गरमी पा रहा है । बैठा है ना वो पीछे ?”

“हाँ ।”

“नाम बता उसका ।” जगमोहन ने उसकी कमर में रिवॉल्वर की नाल का दबाव बढ़ाया ।

“मदनलाल सोढ़ी ।” गंभीर-व्याकुल स्वर में बलवान सिंह बोला – “लेकिन तुम वैन में पड़ा पैसा लेने में कामयाब नहीं हो सकोगे ।”

“मदनलाल बहुत पक्का आदमी है । वो तुम लोगों को कामयाब नहीं होने देगा । पुलिस तुम लोगों को पकड़... ।”

“थोबड़ा बंद रख ।”

☐☐☐

बैंक वैन ढलान से सड़क पर आती पाकर पंचम लाल खुशी से कह उठा –  

“लानती । काम बन गया । देवराज चौहान ने वैन पर कब्जा कर लिया है ।”

“वो तो मैं भी देख रहा हूँ ।” लानती होंठ सिकोड़े वैन को ही देख रहा था – “लेकिन मेरा दिल क्यों कह रहा है कि हम सफल नहीं होंगे । बाईं वाली आँख जोरों से फड़क रही है ।”

“लानत भरी बातें ही करेगा । अच्छी बात बोलया कर ।”

“क्या करूँ, जो लगेगा वो ही तो बोलूँगा ।”

तभी परमिंदर सिंह और दुलारा सड़क पर पहुँचे ।

“ओए ।” परमिंदर सिंह उन्हें देखते ही बोला – “तुसी अभी तक यहीं खड़े हो । मैंने तो आप दोनों को उधर वैन के पास बुलाया था ? मिलकर पीटेंगे । आप लोग भी तो ड्राइवर को पीटने वास्ते खड़े हो ना ?”

पंचम लाल और लानती की नजरें मिलीं ।

“हमें इनकी निगाहों में नहीं आना चाहिए था ।” पंचम लाल धीमे स्वर में कह उठा ।

“इन्हें क्या पता कि हम यहाँ क्यों खड़े हैं । जैसे ये खड़े हैं, वैसे ही हम खड़े हैं ।”

“तू समझता नहीं । हमारे गैराज पर वो बैंक वैन ठीक होने आती है । हमारा वैन के साथ पहले से ही संबंध है ।”

“ओ दुलारे ।”

“हाँ ।”

“ये आपस में क्या खुसर-फुसर कर रहे हैं ।”

“कोई बात तय कर रहे हैं ।”

तभी पंचम लाल कह उठा –

“हम सोच रहे हैं कि वो वैन किधर जा रही है ?”

“कहीं नहीं – अभी आती है । वो ड्राइवर को पीटने के वास्ते ले जा रहे हैं । अकेले में – जहाँ कोई बीच में आकर उसे बचाए ना । उसके बाद ड्राइवर को इधर ही लाएँगे । बचा-खुचा उसे हम पीट देंगे । चिंता न करो, दो-तीन हाथ आप लोग भी लगा देना । इतना मौका तो आप लोगों को मिल ही जाएगा, क्यों दुलाारे ?”

“हाँ जी । हम इनके वास्ते ड्राइवर का हाथ-पैर हिलता छोड़ देंगे ।”

“लानती ।” पंचम लाल, लानती के कान में बोला – “वैन दूर होती जा रही है ।”

लानती ने पंचम लाल को देखा ।

“हमें उसके पीछे जाना चाहिए ।” स्वर धीमा था उसका – “वैन नजरों से ओझल हो गई तो हमें कैसे पता चलेगा कि वो वैन को कहाँ लेकर गए हैं । कहीं सारे नोट वो खुद ही हजम ना कर जाएँ ।”

लानती जल्दी से पास खड़ी उस कार की ड्राविंग सीट पर जा बैठा । जिस से वे यहाँ आए थे ।

पंचम लाल भी भीतर बैठा । लानती कार स्टार्ट करने लगा ।

“परमिंदर ये तो जा रहे हैं ।” दुलारा कह उठा ।

“लगता है ये भी अकेले में उस ड्राइवर को पीटना चाहते होंगे ।”

“तो हम भी चलें ?”

“क्या जरूरत है । उन्होंने ड्राइवर को यहीं पे तो वापस लाना है । बचा-खुचा हम पीट लेंगे । पीछे भागने की क्या जरूरत है । देख तो उस ड्राइवर ने इस ऊँचे मॉडल की कार की क्या हालत कर दी है । इसे देखकर मुझे अपनी कार याद आ जाती है । जब टैम्पो वाले ने मेरे नए मॉडल को कार को तगड़ा ठोक दिया था । कितने दुख की बात है कि हम टैम्पो के ड्राइवर को पीट भी नहीं सके । वो तो टैम्पो छोड़कर भाग गया । अभी तक वो हमें नेई दिखा ।”

“कोई बात नेई । हम दूसरे ड्राइवरों को तो पीट ही देते हैं, जो इस तरह दूसरे की कारों को ठोक देते हैं । दिल की तसल्ली तो हो जाती है ।”

तभी लानती ने कार आगे बढ़ा दी ।

“देखा ।” परमिंदर सिंह मुस्कराकर बोला – “हमारे जवान, उस ड्राइवर को पीटने जा रहे हैं ।”

☐☐☐

देवराज चौहान ने वैन को सड़क से नीचे उतारा और कच्चे बने रास्ते में डाल दी । दिन के पौने बारह हो रहे थे । सामने हर तरफ खेत ही खेत थे । तेज धूप में पूरी जगह दूर-दूर तक चमक रही थी । सामने ही खेतों में बना राजेंद्र सिंह का कमरा नजर आ रहा था । ऐसी धूप में कोई व्यक्ति दूर तक न दिखा । कुछ आगे जाकर, रास्ता खेतों की तरफ मुड़ रहा था । राजेंद्र सिंह ने काम चलाऊ छोटा सा रास्ता बना दिया था ।

वो कमरे पर पहुँचे ।

पुराना दरवाजा राजेंद्र सिंह ने उखाड़कर भीतर ही एक तरफ रख दिया था । वहाँ आठ फीट चौड़ा लोहे का नया दरवाजे जैसा फाटक लगा था । जो कि देखने पर स्पष्ट नजर आ रहा था कि हाल ही में वो लगाया गया है । दरवाजा अधखुला था । कोई भी नहीं था वहाँ ।

बलवान सिंह रिवॉल्वर के साए में खामोश बैठा था । देवराज चौहान ने वैन दरवाजे के करीब ले जाकर रोकी ।

जगमोहन दरवाजा खोलकर वैन से नीचे उतरा और फाटक खोलने के लिए आगे बढ़ा ।

“तुम लोग बच नहीं सकोगे ।” घबराए से बलवान सिंह ने सख्त स्वर में कहा ।

देवराज चौहान ने शांत निगाहों से उसे देखा पर कहा कुछ नहीं ।

“अभी भी वक्त है ।” बलवान सिंह बेचैन सा कह उठा – “वैन मेरे हवाले करो और खामोशी से यहाँ से चले जाओ । मुझे भी जाने दो । कसम से मैं किसी को तुम लोगों के बारे में नहीं बताऊँगा ।”

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा ।

उसकी मुस्कान पर मन ही मन तिलमिलाया बलवान सिंह । उसका मन कर रहा था कि दरवाजा खोलकर बाहर कूदे और भाग ले । परंतु वो जानता था कि दोनों के पास रिवॉल्वरें हैं । ये फौरन उसे गोली मार देंगे । यही वजह थी कि वो शराफत से, ईमानदारी से, चुपचाप वहीं बैठा रहा ।

जगमोहन ने नया लगा फाटक जैसा दरवाजा खोल दिया था । देवराज चौहान आसानी से वैन को भीतर ले जाता चला गया ।

जगमोहन ने फाटक के दोनों पल्ले बंद किए और कुंडी लगा दी । देवराज चौहान वैन इंजन बंद करके नीचे उतरा और बलवान सिंह से कठोर स्वर में बोला –

“उतरो नीचे ।”

बलवान सिंह ने होंठ भींच लिए । वो देवराज चौहान को ही देखता रहा ।

तभी दूसरी तरफ से जगमोहन ने दरवाजा खोला और उसकी बाँह पकड़कर नीचे खींच लिया ।

“एक बार कही बात सुना कर ।” जगमोहन ने खा जाने वाली नजरों से उसे देखा ।

“बाँध दो इसे ।” देवराज चौहान ने कहा ।

जगमोहन उसकी बाँह पकड़े एक दीवार के पास ले गया । वहाँ रस्सियों का ढेर लगा हुआ था । जगमोहन ने वहीं से रस्सी उठाकर बलवान सिंह के हाथ-पाँव अच्छी तरह बाँधे और दाँत भींचे कह उठा –

“चालाकी मत दिखाना । बंधनों को खोलने की चेष्टा की तो गोली मार दूँगा । ध्यान रखना कि तू इस वक्त यहाँ हमारे लिए फालतू का बंदा है । समझदारी तो इसी में थी कि तुझे रास्तें में ही गोली मार कर फेंक देते । लेकिन हमने ऐसा नहीं किया । तेरे को एक मौका दिया जीने का । चुपचाप ऐसे ही पड़ा रहेगा तो तू लंबी जिंदगी जी सकता है ।”

बलवान सिंह दाँत भींचकर बेहद कठोर स्वर में कह उठा ।

“कोई गड़बड़ नहीं करूँगा । लेकिन एक बात तुम लोगों से कहना चाहता हूँ ।”

“क्या ?”

“मैंने आज तक किसी को अपराध करके, बचते नहीं देखा । तुम भी नहीं बच सकोगे ।”

“कह लिया ?”

“हाँ । तुम... ।”

“ज्यादा मत कह । इतना ही बहुत है ।” जगमोहन ने खा जाने वाले स्वर में कहा – “अब मुँह बंद करके बैठ जा ।”

बलवान सिंह ने होंठ भींच लिए ।

जगमोहन पलटा और देवराज चौहान की तरफ बढ़ा ।

देवराज चौहान उस हॉलनुमा कमरे को देख रहा था । जमींदार राजेंद्र सिंह ने वहाँ की अच्छी साफ-सफाई करवा दी थी । टूटा-फूटा सामान एक तरफ ढेर लगा दिया था । उस हॉल कमरे में दाएँ और बाईं तरफ डेढ़ बाई दो फीट का रोशनदान लगा था । इसके अलावा कोई खिड़की नहीं थी । ऐसी ही जगह चाहिए थी उन्हें ।

जगमोहन, देवराज चौहान के पास पहुँचा तो ठिठका । देवराज चौहान की आँखें भी सिकुड़ीं ।

बाहर से आती इंजन की मध्यम सी आवाज उनके कानों में पड़ी ।

“कौन हो सकता है ?” जगमोहन के होंठ सख्ती से भिंच गए ।

देवराज चौहान का चेहरा कठोरता से भर गया । जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाली और दरवाजे की तरफ बढ़ गया । पास पहुँचकर ठिठका और दरवाजे से कान लगाकर बाहर की आहट सुनने की कोशिश की तो कानों में लानती की आवाज पड़ी ।

जगमोहन समझ गया कि पंचम लाल और लानती उनके पीछे-पीछे यहाँ आ पहुँचे हैं ।

रिवॉल्वर थामे जगमोहन ने सावधानी से कुंडी हटाकर दरवाजा खोला तो पंचम लाल और लानती को सामने खड़े पाया ।

जगमोहन ने एक तरफ का पल्ला खोल दिया । पंचम लाल और लानती ने भीतर प्रवेश किया तो उसने दरवाजा बंद किया । कुंडी चढ़ाई और पलटा ।

पंचम लाल और लानती हैरानी से इस जगह में खड़े वैन को देख रहे थे ।

“वाह जी वाह ।” लानती कह उठा – “क्या बढ़िया जगह चुनी है, वैन के साथ छिपने की ।”

“मैंने तो सोचा भी न था कि वैन को ऐसी जगह लाकर रखना चाहिए, ताकि आराम से वैन से नोटों को निकाला जाए ।” पंचम लाल कह उठा – “देवराज चौहान ने कब इस जगह का इंतजाम किया ?”

“वो देवराज चौहान है । नंबर वन डकैती मास्टर । जो कर जाए, वो ही कम है ।”

पंचम लाल ने लानती को घूरा ।

“ये तू कहता है ।”

“मैं ही कहता हूँ ।”

“वहाँ सड़क पर तो तू उसे बेकार कह रहा था कि... ।”

“वो सड़क की बात थी ।” लानती मुस्कराया – “ये यहाँ की बात है ।”

पंचम लाल, लानती को खा जाने वाली नजरों से देखने लगा ।

लानती ने उसे देखकर दाँत फाड़े ।

“बहुत ज्यादा बोल रहे हो तुम दोनों ।”

दोनों ने जगमोहन को देखा ।

पंचम लाल फौरन उसके करीब आया ।

“नोट निकाल लिए ।” वो जल्दी से कह उठा ।

“नोट ?” जगमोहन अचकचाया ।

“वैन में से ।”

“अभी तेरा बाप अंदर बैठा है ।” जगमोहन ने कुढ़कर वैन की तरफ इशारा किया ।

“तुम्हारा मतलब कि गनमैन ?”

“हाँ ।”

पंचम लाल ने गहरी साँस ली और देवराज चौहान के पास जा पहुँचा ।

“सब ठीक है ?”

“जो है तुम्हारे सामने ही है ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

“वैन में नोटों के साथ गनमैन बैठा है ?” पंचम लाल ने होंठों पर जीभ फेरकर वैन को देखा ।

“हाँ ।”

“उससे बात की ? क्या वो बाहर निकलेगा ?”

“अभी बात नहीं की । करेंगे अभी ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“वो शराफत से बाहर न निकले तो कोई चिंता नहीं । वैन का फर्श मैंने बदल रखा है । वो स्टील वाली शीट न होकर साधारण शीट है । हम वैन के नीचे घुसकर आसानी से उसे काट सकते हैं ।” पंचम लाल कह उठा ।

देवराज चौहान मुस्कराया और सिगरेट सुलगा ली ।

“मुस्कराए क्यों ?”

“ये इतना आसान नहीं है ।” देवराज चौहान ने कहा – “हम वैन के फर्श की शीट वैन के नीचे घुसकर काटेंगे तो वो भीतर से गोलियाँ चला सकता है । वैन के फर्श को गोलियाँ पार करके नीचे बाहर मौजूद शीट काटते व्यक्ति को लगेगी ।”

“ओह... ये तो मैंने सोचा ही नहीं था ।” पंचम लाल के होंठों से निकला – “फिर शीट कैसे कटेगी ?”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।

कुछ दूर खड़ा लानती, जगमोहन से बोला –

“मैं भी तो सुनूँ कि पंचम, देवराज चौहान से क्या बातें कर रहा है ।”

“यहाँ तक कैसे आए ?” जगमोहन ने एकाएक पूछा ।

“कार में ।”

“कार बाहर खड़ी है ?” जगमोहन के माथे पर बल पड़े ।

“हाँ ।”

“उसे क्या तेरा बाप अंदर लाएगा ।”

“बाप तो मर-खप गया । मैं ही लाऊँगा ।” लानती बोला – “बाहर खड़ी रहने में क्या हर्ज है ?”

“कोई खेतों में बने कमरे के, बाहर कार खड़ी देखेगा तो उत्सुकतावश इस तरफ भी आ सकता है । किसी को पता चल सकता है कि इस कमरे में कोई है । कोई शक खा गया तो ?”

“समझ गया । तू दरवाजा खोल – मैं कार अंदर लाता हूँ ।”

अगले दो-तीन मिनटों में कार भीतर थी ।

जगमोहन पुन: दरवाजे को बाहर से कुंडी लगा चुका था ।

तभी पंचम लाल की निगाह बलवान सिंह पर पड़ी, जो कुछ दूरी बँधा पड़ा, खा जाने वाली नजरों से उसे देख रहा था । निगाह मिलते ही पंचम लाल तगड़ा सकपकाया । फिर खुद को संभाला । चेहरे पर जबरदस्ती की मुस्कान लाया और बलवान सिंह के पास जा पहुँचा ।

“ओ... तू बँधा पड़ा है ।”

“कमीने...कुत्ते ।” बलवान सिंह दबे स्वर में गुर्रा उठा ।

“ये तू मुझे ही कह रहा है या... ।”

“हरामी तेरे से ही कह रहा हूँ । तो तूने की ये सारी गड़बड़ – मैं तेरी... ।”

“ऐसे मत बोल । मैं भी तेरी तरह फँसा पड़ा हूँ । फर्क ये है कि तू बँधा पड़ा है और मैं खुला घूम रहा हूँ ।”

“मेरे सामने झूठ बोलता... ।”

“मैं सच कह रहा हूँ । ये भी मेरी ही मेहरबानी है कि तू अब तक जिंदा है ।”

“तेरी मेहरबानी ?”

“सच में ।” पंचम लाल ने भोलेपन से गरदन और पलकें हिलाई ।

बलवान सिंह दाँत भींचे पंचम लाल को देखने लगा ।

कुछ पलों तक उनके बीच खामोशी रही ।

“पूछ तो कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ ।” आखिरकार पंचम लाल ही बोला ।

“क्या कर रहा है ?”

“अपनी किस्मत को रो रहा हूँ । तेरे को क्या पता ।” पंचम लाल ने अफसोस भरे स्वर में कहा – “सब कुछ बताता हूँ तेरे को । उसे तो जानता ही होगा । पहले देखा ही होगा । नाम भी पता होगा उसका ।” उसने देवराज चौहान की तरफ इशारा किया ।

बलवान सिंह ने देवराज चौहान को देखा फिर पंचम लाल से कह उठा –

“मैं नहीं जानता उसे ।”

“नहीं जानता – हैरानी है । वो... ।”

तभी लानती पास पहुँचा ।

“क्यों भई, ये कानो-कान क्या बातें... ।”

“दफा हो जा यहाँ से – बलवान सिंह के सामने मुझे अपनी पोजिशन क्लीयर करने दे । ये बहुत बड़ी गलतफहमी में है ।”

“समझा ।” लानती ने फौरन सिर हिलाया और वहाँ से हट गया ।

पंचम लाल ने बलवान सिंह को देखा ।

“तो मैं तेरे को बता रहा था कि वो खतरनाक इंसान देवराज चौहान है ।”

“देवराज चौहान ?”

“नहीं जानता ?” पंचम लाल ने सिर हिलाया ।

“नहीं ।”

“बेवकूफ वो हिंदुस्तान का नामी डकैत देवराज चौहान है । ऐसा खतरनाक... ।”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान । ओह... सुन रखा है मैंने इसका नाम ।” बलवान सिंह ने अविश्वास भरे स्वर में कहा और अजीब सी नजरों से दूर खड़े देवराज चौहान को देखने लगा ।

“अच्छी तरह देख ले ।”

“तू सच कहता है कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है ?” बलवान सिंह ने पंचम लाल को देखा ।

“मैं क्या तेरे से झूठ बोलूँगा ? तेरे को मेरे पे इतना भी विश्वास नहीं ?”

बलवान सिंह होंठ भींचे, आँखें सिकोड़े, पंचम लाल को देखता रहा ।

“पूछ ले – बुलाऊँ ?”

“रहने दे ।” बलवान सिंह ने उसकी आँखों में देखा – “तू यहाँ कैसे ?”

“वही तो बताने जा रहा हूँ । दो दिन पहले मेरे गैराज पर आया । रिवॉल्वर मेरी छाती पर रख दी । उँगली ट्रेगर पर । कहने लगा, बैंक वैन लूटनी है, बलवान सिंह वाली । तू हमारा साथ देगा । मैंने मना किया तो कहने लगा देवराज चौहान नाम है मेरा । सारी गोलियाँ छाती में उतार दूँगा । अब मुझे मना नहीं करना । कैसे करता मना ? इसने तो मुझे मार देना था । अपने को बचाने के लिए गरदन हाँ में हिलानी पड़ी । माननी पड़ी इसकी बात । तू ही बता, बे-मौके पर कौन मरना चाहेगा । कोई भी नहीं । तू भी नहीं मरना चाहेगा ।”

पंचम लाल खामोश हुआ ।

“फिर ?”

“फिर क्या – मेरे को कहा, कल बलवान सिंह बैंक वैन लेकर आएगा । तेरे को वैन के टायरों के बुलेट प्रूफ कवर बदलने हैं । जहाँ नोट रखे जाते हैं, उस हिस्से का वैन का फर्श स्टील वाला हटाकर, साधारण चादर लगा देनी है । सारा सामान लाकर गैराज पर, मेरे सामने पटक दिया ।” पंचम लाल चेहरे पर मजदूरी लाकर बोला ।

“फिर तूने क्या किया ?”

“मैं क्या करता... बदल दिया ।”

“बदल दिया... कब ?”

“जब वो तेरे को दोपहर में ले गए थे ।”

“समझा – तो वो मुझे इसीलिए ले गए थे कि तू पीछे से टायरों के कवर और वैन का फर्श बदल सके ।”

“हाँ ।”

“तूने मेरे को नहीं बताया ?”

“कैसे बताता तेरे को – देवराज चौहान ने रिवॉल्वर की सारी गोलियाँ मेरी छाती में उतार देनी थी । ये काम कर दिया तो कहने लगा कि तू हमारे साथ इस डकैती में रहेगा । मैंने बहुत हाथ जोड़े, पाँव पकड़े, गिड़गिड़ाया । लेकिन देवराज चौहान नहीं माना । बोत सख्त और खतरनाक आदमी है । जब मुझे लगा कि वो मेरे को गोली मारने जा रहा है तो मैंने उसके साथ डकैती में काम करना मान लिया । बे-मौके पर कौन मरना चाहेगा । लेकिन मैंने भी एक शर्त रख दी ।”

“क्या ?”

“साफ बोल दिया कि अब तक तो तुम्हारी दादागिरी रही । मैंने तुम्हारी हर बात मानी । अब तुम्हें भी मेरी एक बात माननी होगी । नहीं मानोगे तो मैं भी डकैती में तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा । बेशक गोली मार देना ।”

बलवान सिंह ने उसे घूरा ।

“तूने ऐसा कहा ।”

“हाँ ।”

“विश्वास तो नहीं आता ।”

“तेरी कसम । मैं दुनिया से झूठ बोल सकता हूँ लेकिन तेरे से नहीं – तूने पूछा नहीं कि मैंने क्या कहा – बताता हूँ । मैं कह दिया कि डकैती जैसे मरजी करो, लेकिन बलवान सिंह को एक चांटा भी नहीं मारना है । तू बता – तेरे को एक भी चांटा मारा ?”

“नहीं ।”

“क्योंकि मैंने मना कर दिया था । वरना ये साले तो तेरे को गोलियों से भूनकर वैन से बाहर फेंकने को कह रहे थे ।”

बलवान सिंह ने उसे घूरा ।

“ऐसे मत देख । सच में कह रहा हूँ – बहुत खतरनाक है दोनों ।”

बलवान सिंह की निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर गई ।

“देवराज चौहान कौन है दोनों में ?”

“वो नीली कमीज वाला । उधर चैक शर्ट वाला जगमोहन है । उसका खास चमचा ।” पंचम लाल जल्दी से कह उठा – “मेरी सुन ले – इन दोनों से पंगा मत लेना । तेरे को गुस्सा आए तो मेरे को पास बुलाकर, जी भर कर माँ-बहन की कर लेना । लेकिन इन दोनों को कुछ मत कहना । ये बात इन्होंने पहले ही मुझसे कह दी है कि अगर बलवान सिंह हमारे सामने जरा चौड़ा हुआ, या हमें सहायता न दी तो गोली मार देंगे उसे ।”

“मैं... मैंने क्या सहायता करनी है इनकी ।”

“वो... वो वैन के अंदर कौन है ?”

“मदनलाल सोढ़ी । बैंक का गनमैन ।”

“उसे भी तो बाहर निकालना है दोस्ताना माहौल में । इसमें तो तेरे को देवराज चौहान की सहायता... ।”

“नहीं । मैं नहीं... ।”

“इनकार मत करना । बोत खतरनाह है देवराज चौहान । फिर वो मेरी भी नहीं सुनेगा और तेरे को मार देगा । एक बात और बताता हूँ । अंदर की बात है, बहुत कम लोगों को पता है । मेरे को भी देवराज चौहान ने बताया । वरना मुझे कैसे पता चलता । देवराज चौहान एक साल पूरा पागलखाने में भी रह चुका है ।”

“पागलखाने में ?”

“हाँ । साल भर में अभी आधा पागलपन ही ठीक हुआ था । बाकी का आधा अगले साल होना था कि मौका मिलते ही पागलखाने से भाग निकला । मतलब कि ये अभी आधा पागल है । एक बात तो पागलपन के दौरान खास है इसमें कि सामने वाले को अपनी बात माने जाने के लिए दो या तीन बार कहता है, उसके बाद तो रिवॉल्वर की सारी गोलियाँ छाती में उतार देता है । तभी तो मैंने देवराज चौहान की बात मानी । तू सोच ले बलवान सिंह । अगर बचना है तो देवराज चौहान की बात मानता जा । ये बात बताकर मैंने तेरा भला किया है । आगे तेरी मरजी ।”

बलवान सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“घबरा मत । घबराता क्यों है ? जब तक तू देवराज चौहान की बात मानता रहेगा, उसका पागलपन सामने नहीं आएगा । जब तूने इनकार किया तो... हे रब, बलवान सिंह को बुद्धि देना । इसकी जिंदगी बचाना । इसका भरा-पूरा परिवार है । बीवी है । दो बेटे हैं । बेटी की शादी करनी है । दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखा कर, अच्छे काम पर लगाना है । इसे कुछ हो गया तो इसके बच्चों का क्या होगा ? इसकी बीवी कैसे संभाल पाएगी उन्हें । पूरा परिवार बरबाद हो जाएगा । इसकी रक्षा करना रब । तू घबरा मत, सब ठीक रहेगा । हिम्मत क्यों छोड़ता है ? पंजाबी पुत्तर है लुधियाने का । हौसला इकट्ठा करके रख । वो... ।”

“लेकिन... लेकिन मेरे कहने पर मदनलाल वैन के पीछे का दरवाजा नहीं खोलेगा ।”

“तेरे कहने पर भी नेई खोलेगा – ये तो हैरानी वाली बात हो गई ।”

“वो मेरा नौकर थोड़े ना है । उसे ऊपर से आर्डर हैं कि अगर उसे बाहरी हालातों का शक हो तो बेशक दरवाजा न खोले ।” बलवान सिंह जल्दी से कह उठा – “उसे तो भीतर बैठे अब तक यकीन हो गया होगा कि बाहर भारी गड़बड़ है । ऐसे में वो तो दरवाजा नहीं खोलेगा ।”

“ये तो बुरी बात है ।” पंचम लाल बेचैनी से बोला – “तेरे को उसे तैयार करना होगा कि... ।”

“मुझे पक्का पता है कि वो मेरी बात नेई मानेगा । बोत अड़ियल है । दहेज में स्कूटर लेने के लिए अपनी नई ब्हायता बीवी को घर से बाहर निकाल दिया ।” बलवान सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“दहेज में स्कूटर ?”

“हाँ, अब तो मिल गया उसे । बीवी उसकी ले आई ।”

“मैं उसको दस स्कूटर दिलवा दूँगा ।”

“दस ?” बलवान सिंह ने उसे घूरा ।

“हाँ । बोल दूँगा देवराज चौहान को । इतनी तो मेरी बात देवराज चौहान मान ही लेगा ।”

“जानता है कितना पैसा है वैन में ?”

“कितना ?”

“डेढ़ सौ करोड़ । यानी कि डेढ़ अरब रूपया । नकद ! बड़े नोटों में । दस स्कूटर की बात करता है । लुधियाने मे स्कूटरों के सारे शो-रूम भी खरीद ले तो इतने का पंद्रहवां हिस्सा भी खत्म न हो ।”

पंचम लाल को अपने गले में बड़ा सा कांटा चुभता महसूस हुआ ।

सच में, सामने खड़ी वैन में बहुत बड़ी रकम मौजूद थी ।

पंचम लाल ने गले में फँसे कांटे को अंदर किया और मुस्कराकर बोला ।

“दो-चार करोड़ तेरे को भी दिलवा दूँगा । देवराज चौहान से कहकर । इतना तो देवराज चौहान तेरे को खुश होकर ‘टिप’ के तौर पर ही दे देगा । जैसे भी हो तू देवराज चौहान की बात मानकर, मदनलाल को बाहर आने के लिए तैयार कर लेना । उसे बाहर तो आना ही पड़ेगा । नहीं तो मरेगा । जहाँ वैन में मदनलाल बैठा है, उसके नीचे का फर्श साधारण एल्युमीनियम की चादर है । नीचे से देवराज चौहान ने गोलियाँ चलाई तो सोच मदनलाल को कहाँ-कहाँ गोलियाँ लगेंगी । मेरी बात समझ ले कि वैन में पड़े पैसे का मालिक तो देवराज चौहान बन ही चुका है । उसे कोई नहीं रोक सकता । मतलब तो अब ये है कि देवराज चौहान से कैसे जान बचाई जाए ? कहीं ऐसा न हो कि पैसे लेकर जाते वक्त देवराज चौहान हमें गोली मारता जाए । खुद को बचाना है तो देवराज चौहान के सामने साबित कर दो कि हम जगमोहन से भी बढ़िया चमचे हैं उसके । लुधियाने वालों का जवाब नहीं है ।”

बलवान सिंह कुछ कहने लगा कि पंचम लाल हाथ उठाकर बोला ।

“बस, बातें बोत हो गईं । बाकी बातें फिर करूँगा । उधर देवराज चौहान को भी अटेंड करना है । वो देख, वो वैन के पास जा पहुँचा है । अब मदनलाल को बाहर निकालेगा । रब भला करे, सब ठीक-ठाक निपट जाए ।” कहने के साथ ही पंचम लाल वहाँ से हटा और देवराज चौहान की तरफ बढ़ा ।

चंद कदमों के फासले पर खड़े लानती के पास से निकला तो लानती धीमे से बोला –

“पंचम । फिट कर दिया बलवान सिंह को ?”

“हाँ । डण्डा तो दिया है ।”

“तभी उसका मुँह चूहे की तरह हुआ पड़ा है ।”

☐☐☐

सबकी निगाह देवराज चौहान पर थी ।

देवराज चौहान बंद वैन के पास पहुँचा । ठिठका । दो मिनट यूँ ही बीत गए । देवराज चौहान ने वैन को हर तरफ से जाँचने वाले ढंग से देखने के पश्चात वैन के पीछे की बंद जगह को थपथपाया ।

वहाँ छाई चुप्पी को थपथपाहट ने तोड़ा । परंतु जवाब में कुछ भी सुनाई नहीं दिया ।

देवराज चौहान ने पुन: बॉडी को थपथपाया और शांत स्वर में कहा –

“तुम मेरी आवाज अच्छी तरह सुन रहे हो । ये बात तो मैं जानता हूँ ।”

उधर से कोई जवाब नहीं आया ।

पंचम लाल और लानती की नजरें मिली । लानती पास आ पहुँचा ।

“वो तो जवाब ही नहीं दे रहा ।” लानती फुसफुसाया ।

“देगा ।”

“कब ?”

“चुपचाप देखता रह । वो हरामी थोड़े से नखरे दिखाकर जवाब देगा । वो अब फँसा पड़ा है ।”

लानती ने पंचम लाल को घूरा फिर खामोश सा खड़ा रहा ।

“मदनलाल सोढ़ी ।” देवराज चौहान ने वैन की बॉडी का दरवाजा थपथपाकर कहा – “तुम इस वक्त वैन के साथ हमारे कब्जे में हो । बेशक तुम्हारे पास मोबाइल फोन है और तुम पुलिस को बता सकते हो कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है लेकिन तुम पुलिस को ये नहीं बता सकते कि तुम कहाँ पर हो । उन्हें सिर्फ खबर देते रहने से कोई फायदा नहीं होगा और तुम्हारा मोबाइल फोन भी ज्यादा नहीं काम करेगा । उसकी चार्जिंग कभी भी खत्म हो सकती है ।”

देवराज चौहान के चुप होने पर जवाब में भीतर से मदनलाल सोढ़ी की आवाज नहीं आई ।

“चुप रहकर तुम अपना काम नहीं चला सकते । तुम्हें हमसे बात करनी ही पड़ेगी ।” देवराज चोहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया – “तुम्हारे पास न तो खाने को कुछ है और न ही पीने को । भूखे-प्यासे कब तक इस रह भीतर बैठे रह सकते हो । ये तुमने सोचना है । हमारे पास बहुत वक्त है । हमें वैन में रखे नोटों को पाने की कोई जल्दी नहीं है । इस वक्त जहाँ हम हैं, सुरक्षित जगह है । यहाँ पुलिस नहीं पहुँच सकती । तुम्हारे बात करने के लिए, हम दो-चार दिन का इंतजार कर सकते हैं । तुम नोटों के बीच बैठे हो । इतनी गरमी में तंग जगह पर ज्यादा देर तुम बढ़िया ढंग से साँस नहीं ले सकते । जल्दी ही तुम्हें भीतर बेचैनी होने लगेगी । बेहतर होगा कि हमारा साथ दो । हमसे हाथ मिलाओ । हम किसी की जान नहीं लेना चाहते । हमें सिर्फ दौलत चाहिए ।”

तभी भीतर से मध्यम सी आहट उभरी । जैसे मदनलाल सोढ़ी ने पहलू बदला हो ।

देवराज चौहान पुन: कश लेकर कह उठा ।

“हमें सहयोग दिए बिना तुम अपनी जान नहीं बचा सकते । अच्छा यही होगा कि मेरी बातों का जवाब दो । मुझसे बात करो । ऐसा करने से तुम भी जिंदा बच जाओगे और बलवान सिंह भी ।”

दूर बँधे पड़े बलवान सिंह ने ये सुनकर सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

देवराज चौहान को अपनी बात का जवाब नहीं मिला । वो पुन: कह उठा ।

“हमने तुम्हारी मौत का इंतजाम पहले ही कर लिया था कि इन हालातों में तुम हमें ज्यादा परेशान न कर सको । हम... ।”

“कैसा इंतजाम ?” वैन के भीतर से मदनलाल सोढ़ी की खरखराहट से भरी मध्यम सी आवाज उभरी ।

“जहाँ इस वक्त तुम मौजूद हो, वो बुलेट प्रूफ स्टील का मजबूत फर्श, साधारण फर्श में बदला जा चुका है ।”

वैन के भीतर से कुछ आहट सी उभरी । देवराज चौहान समझ गया कि मदनलाल सोढ़ी फर्श को देखने की चेष्टा में भीतर पड़ा सामान इधर-उधर कर रहा था । चूंकि फर्श बदलकर उस पर पहले वाला मैट ही बिछा दिया गया था । ऐसे में फर्श पर नजर पड़ जाना असंभव था और गाड़ी में बैठने वाला कभी भी मैट उठाकर फर्श को देखता नहीं था ।

कुछ पलों बाद भीतर से उठती आहटें थम गई ।

देवराज चौहान ने कश लेकर कहा –

“देख लिया ?”

“हाँ ।” बेहद मध्यम सी आवाज आई । सोढ़ी धीमे स्वर में बोल रहा था ।

“ये साधारण फर्श है ।” देवराज चौहान के स्वर में सख्ती भरे, तीखे भाव आ गए थे – “अगर नीचे से गोलियाँ चलाई जाए तो वो फर्श में छेद करती हुई तुम्हारे शरीर में धँस जाएगी । फर्श की चादर बहुत ही कमजोर है ।”

मदनलाल सोढ़ी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया ।

“लेकिन हमारा इरादा तुम्हें खत्म करने का नहीं है । वैन में मौजूद दौलत पा लेना चाहते हैं हम ।”

“ये इंतजाम तो हमने इसलिए किया है कि अगर तुम हमारी बात न मानो और हमारे पास ज्यादा वक्त न हो तो तुम्हें गोलियों से भून कर नोटों को बाहर निकाल लें ।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा – “वैसे मुझे पूरा भरोसा है कि तुम हमें तंग नहीं करोगे । हमारा साथ दोगे । बदले में तुम कुछ दौलत चाहोगे तो वो भी हम तुम्हें दे देंगे ।”

मदनलाल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया ।

“मेरे खयाल में तुम सोच रहे हो । फैसला कर रहे हो । अभी हमें भी कोई जल्दी नहीं है ।” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द चबाकर कहा – “बलवान सिंह से बात करना चाहते हो तो, बात कराई जा सकती है ।”

कुछ चुप्पी के बाद वैन के भीतर से आवाज आई ।

“बात कराओ ।”

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया और बलवान सिंह की तरफ बढ़ गया ।

“पंचम ।” लानती धीमे स्वर में कह उठा – “मदनलाल सोढ़ी बोला ।”

“बोला क्या, अभी तो खोलेगा भी ।”

“खोलेगा ?”

“वैन का दरवाजा । बाहर निकलेगा । कहेगा कि नोट ले लो... मुझे छोड़ दो ।”

“साला, हमें पहचानता है... बाद में हमें ।”

“देख लेंगे । समझा देंगे कि इन्हें बचाने के लिए ही हम देवराज चौहान का साथ दे रहे हैं ।”

“हमारी बात के लपेटे में आएगा क्या ?”

“आएगा । फँसा पड़ा है । सब मानेगा ।”

बलवान सिंह ने करीब आ चुके देवराज चौहान को घबराई नजरों से देखा ।

“मदनलाल सोढ़ी तुमसे बात करना चाहता है ।” देवराज चौहान ने उसकी आँखों में देखा ।

बलवान सिंह ने फौरन सिर हिला दिया ।

“तुमने उसे इस बात के लिए तैयार करना है कि वो दोस्ताना माहौल में दरवाजा खोलकर बाहर आ जाए ।”

“ब... बात करूँगा... उससे ।”

“मैंने कहा है, उसे तैयार करना है ।” देवराज चौहान की आवाज में कठोरता आ गई ।

“को... कोशिश करूँगा ।”

देवराज चौहान ने झुकते हुए उसके बँधन खोले । बलवान सिंह फौरन उठ खड़ा हुआ ।

“बातों में चालाकी दिखाई तो उसी वक्त तुम्हारी खोपड़ी में गोली उतार दूँगा बलवान सिंह ।”

बलवान सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और यूँ ही सिर हिला दिया ।

“चल ।”

बलवान सिंह तेजी से आगे बढ़ा और वैन के पास जा पहुँचा । उसने सबको बारी-बारी से देखा । पंचम लाल से नजरें मिली तो पंचम लाल ने अपने माथे पर हाथ लगाकर उसे इशारा दिया कि देवराज चौहान पागलखाने से भागा हुआ है ।

बलवान सिंह ने जल्दी से वैन का दरवाजा थपथपाया और पुकारा ।

“मदन ।”

देवराज चौहान, बलवान सिंह से तीन-चार कदमों के फासले पर आ खड़ा हुआ था ।

“हूँ ।” भीतर से मध्यम सी भारी आवाज सुनाई दी ।

“फँस गए हैं बुरी तरह ।” बलवान सिंह ने कहते हुए देवराज चौहान पर नजर मारी ।

देवराज चौहान पास आ गया था उसके ।

“हम कहाँ हैं ?”

देवराज चौहान ने गरदन हिलाकर बलवान सिंह को इनकार में इशारा किया ।

“मैं नहीं जानता ।” बलवान सिंह ने थूक निगलकर कहा – “मेरी आँखों पर पट्टी बाँधकर यहाँ लाया गया है । तेरे से बात करने के लिए इन्होंने मेरे हाथ-पैर खोले । वरना मुझे बाँधकर रखा हुआ था ।”

“हम कैसे बच सकते हैं ?”

“नहीं बच सकते ।”

“क्यों ?”

“बहुत खतरनाक लोग हैं ये । तूने इनका नाम भी पक्का पहले से सुन रखा होगा ।” कहते हुए बलवान सिंह की निगाह देवराज चौहान पर थी । देवराज चौहान खामोशी से बलवान सिंह को देखता रहा ।

“कौन हैं ये लोग ?”

“देवराज चौहान का नाम सुना है ? डकैती मास्टर देवराज चौहान ।”

“हाँ, सुना है ।” भीतर से आती मदनलाल सोढ़ी की आवाज तेज हो गई – “इस डकैती मास्टर का नाम सुना है ।”

“वही तो तेरे से बात कर रहा था अभी । बहुत खतरनाक है । मुझे बचा ले मदन ।”

“मैं बचा लूँ ?”

“हाँ । इनका साथ देने में ही भलाई है । वरना ये हमें मार देंगे ।” बलवान सिंह ने व्याकुलता से कहा ।

मदनलाल सोढ़ी की तरफ से आवाज नहीं आई ।

“मदन ।”

“सुन रहा हूँ ।”

“तू मुझे भी बचा ले और अपने को भी बचा ले । कोई दूसरा रास्ता नहीं यहाँ से बचने का ।”

“अपने फर्ज से गद्दारी करूँ ?”

“ये गद्दारी नहीं है । हमारा फर्ज ये नहीं कहता कि हम अपनी जान गवाँ दें । सरकारी पैसे की जितनी सुरक्षा कर सकते थे वो तो हमने की । अब हमारे हाथ में भी कुछ नहीं है । जरा सोच – ये हम दोनों को मार देंगे । उसके बाद भी तो सारे पैसे पर अपना कब्जा जमा लेंगे । फिर मुफ्त में हमारी जान क्यों जाए ?”

“मैं अपनी ड्यूटी से गद्दारी नहीं करूँगा ।” मदनलाल सोढ़ी की सख्त आवाज आई ।

“ये तू क्या कहता है ? देवराज चौहान हम दोनों को मार देगा । तेरी तो शादी अभी हुई है, लेकिन मेरे बच्चों का क्या होगा । मेरे बिना वो यतीम हो जाएँगे । मेरा परिवार बरबाद हो जाएगा । तू... ।”

“मैं तेरी नहीं, सरकार की नौकरी करता हूँ ।”

“वो तेरे को भी तो मार देंगे ।”

“मैं देवराज चौहान के लिए वैन का दरवाजा खोलकर बाहर नहीं निकलूँगा बलवान सिंह ।”

“तू मेरे को मरवा के रहेगा ।”

“कितने लोग हैं यहाँ ?”

“चार-पाँच तो हैं ही ।” बलवान सिंह बेचैनी से बोला – “सब खतरनाक है । तू... ।”

“मैं भीतर ही रहूँगा । देखता हूँ ये क्या करते हैं ।”

बलवान सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर देवराज चौहान को देखा ।

“इसे ले जाकर बाँध दो ।”

लानती फौरन आगे बढ़ा और बलवान सिंह को पहले वाली जगह ले जाकर बिठाया और बंधन बाँधने लगा । बलवान सिंह के चेहरे पर जहान भर की बेचैनी भरी हुई थी ।

“मैंने कोशिश पूरी की ना लानती ।” वो सूखे स्वर में बोली ।

“हाँ ।” उसके बंधन बाँधता लानती कह उठा ।

“अब तो देवराज चौहान मुझे नहीं मारेगा ?”

“मुझे क्या पता... देवराज चौहान से पूछ ।”

देवराज चौहान आगे बढ़ा और वैन की बॉडी को थपथपाया ।

“मदनलाल सोढ़ी । मैं जानता हूँ कि तुम्हें वक्त चाहिए सोचने के लिए । अभी मेरे पास वक्त की गुंजाइश है, इसलिए वक्त दे रहा हूँ । ये बात अपने दिमाग में रखना कि मैं मिनटों में तुम्हें खत्म करके, वैन में रखी दौलत पर कब्जा कर सकता हूँ । लेकिन जो खून-खराबा रुक जाए, उसे करने में मैं परहेज करता हूँ । इस वक्त मेरी यही कोशिश है कि बात आराम से बन जाए ।”

“तुम कौन हो ?” भीतर से बेचैनी भरी आवाज आई ।

“देवराज चौहान ।”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान ?”

“हाँ ।”

“मैं दरवाजा नहीं खोलूँगा । बाहर नहीं आऊँगा देवराज चौहान ।” मदनलाल सोढ़ी का वैन के भीतर से आता सख्त स्वर सुनाई दिया ।

“जल्दी मत कर । सोच ले । वक्त दे रहा हूँ । वरना तेरे को दो मिनट में खत्म कर दूँगा ।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

मदनलाल सोढ़ी की आवाज नहीं आई ।

तभी पंचम लाल उखड़े अंदाज में पास आया और वैन की बॉडी थपथपाकर कह उठा –

“तू जितना दूध का धुला हुआ है, मैं जानता हूँ । पच्चीस हजार का स्कूटर पाने के लिए तूने अपनी बीवी को घर से बाहर निकाल दिया । तब तक न आने दिया जब तक वो स्कूटर न ले आई । ऐसे बंदे में कितनी ईमानदारी होगी, हिसाब लगाया जा सकता है । अपना घटियापन और मत दिखा । सीधा हो जा और देवराज चौहान की बात मान ले ।”

दो पल की खामोशी के बाद भीतर से मदनलाल सोढ़ी की आवाज आई ।

“मैंने तुझे पहचान लिया है । तू गैराज वाला पंचम लाल है ना ?”

“ठीक पहचाना । मैंने कौन सा अपने को छिपाया हुआ है । बलवान सिंह की तरह मैं भी इधर फँसा पड़ा हूँ ।”

“वैन का फर्श तूने ही बदला होगा ।”

“दिमाग देख साले का, प्लेन से भी तेज चलता है ।” पंचम लाल कुढ़ कर बोला – “हाँ, मैंने ही बदला । तू होता तो तू भी बदलता । दो-दो रिवॉल्वरें लगी थीं मेरे पे । एक सिर में, दूसरी पीठ पर । बदलना पड़ा । जान तो बचानी ही पड़ती है । इन बातों को छोड़ – ये बता कि प्रोग्राम क्या है तेरा । बाहर आ रहा है या नहीं ?”

“नहीं ।”

“मरवाएगा क्या – ये लोग हमें जिंदा नहीं छोड़ने वाले । हम... ।”

“तुम लोग मुझे बेवकूफ बना रहे हो ।” वैन के भीतर से मदनलाल सोढ़ी का तेज स्वर आया ।

“वो कैसे ?”

“इधर कोई भी देवराज चौहान नहीं है । मैं सब जानता हूँ । ये तेरी और बलवान सिंह की प्लानिंग है कि... ।”

“तौबा-तौबा । तेरा दिमाग तो घटिया तरफ चलता है ।” पंचम लाल गुस्से से कह उठा – “तू हम पर इल्जाम लगाता है और ये जो तेरा बाप देवराज चौहान खड़ा है, उसके बारे में क्या कहेगा । तूने तो सारी बात हम पर डाल दी । सुना बलवान सिंह ।”

“क्या ?” दूर बँधे पड़े बलवान सिंह के होंठ हिले ।

“पास आकर बताऊँगा ।” फिर वो वैन थपथपाकर कह उठा – “इस मुसीबत के वक्त हम पर विश्वास कर । हमारी जान तेरे हाथ में है । तू खुशी-खुशी बाहर आ-जा और हमें बचा ले । देवराज चौहान कह रहा था कि तेरे को नोट भी दे देगा ।”

भीतर से मदनलाल सोढ़ी की आवाज नहीं आई ।

“उसे अकेला छोड़ दो ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

“ठीक है ।” पंचम लाल ने व्याकुल भाव में सिर हिलाया और बलवान सिंह की तरफ बढ़ गया ।

जगमोहन, देवराज चौहान के पास आ पहुँचा ।

“नहीं मानता ? बाहर आने को तैयार नहीं ?” जगमोहन ने पूछा ।

“एकदम तो कोई भी इस तरह हमारी बात नहीं मानेगा ।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।

“मतलब की हमारी बात मानेगा । बाहर आएगा ?” जगमोहन गंभीर था ।

“आशा तो है । देखते हैं दोबारा जब इससे बात करेंगे तो क्या जवाब देता है ।” देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला – “ज्यों-ज्यों वक्त बीतेगा, वैन में बंद रहने से हौसला टूटेगा । वो ज्यादा देर इस तरह वैन में बैठा नहीं रह सकता ।”

☐☐☐

परमिंदर और दुलारा बेचैनी से सड़क के किनारे खड़े थे । रह-रह कर उनकी बेचैन नजरें उस तरफ उठ रही थीं, जिधर देवराज चौहान बैंक वैन को लेकर गए थे ।

“ओ – बीस मिनट हो गए । वापस नेई लौटे वो अभी तक ।” परमिंदर कह उठा ।

“पीट रहे होंगे ।”

“इतनी देर पीटते रहेंगे तो उसमें जान भी नहीं बचेगी । वो तो मर जाएगा । फिर उसे हम क्या पीटेंगे ?”

“वो भी तो दो लोग पीछे गए हैं उस ड्राइवर को पीटने को – लगता है अब वो पीट रहे होंगे ।” दुलारा कह उठा ।

“फिर तो बड़ी दिक्कत हो गई । ड्राइवर का तो काम ही हो जाना है । हमें तो पीटने का मौका नहीं मिलेगा । वो बेचारा मर जाएगा ।”

“ये बात तो ठीक कही ।”

“क्या करें अब ?” परमिंदर बेचैनी से दोनों हाथ मलते कह उठा ।

“मेरे ख्याल में ।” दुलारा बोला – “हमें यहाँ से चल देना चाहिए । यहाँ पे हमारा टैम खराब हो रहा है । वहाँ दुकान पे जाकर बैठते हैं । दोबारा कभी एक्सीडेंट वाला ड्राइवर हाथ लगा तो उसे डबल पीट देंगे ।”

“ये ठीक है ।” तभी परमिंदर की नजर सामने टेढ़ी-उलटी खड़ी देवराज चौहान की कार पर गई – “देख तो इतने ऊँचे मॉडल की कार के क्या हाल कर दिए हैं टक्कर मार कर । भगवान बुरा करे ड्राइवर का ।”

“चल परमिंदर, बोत टैम खराब हो गया । अब चले हैं ।”

दोनों अपनी कार की तरफ बढ़े ।

उसी पल सामने से तेज रफ्तार आती पुलिस की जीप उनके पास रूकी । जोरों से ब्रेक लगे ।

परमिंदर और दुलारा ठिठके ।

“लो, पुलिस भी आ गई उस ड्राइवर को पीटने के लिए ।” परमिंदर कह उठा ।

पुलिस वाले आनन-फानन जीप से उतरे । वो छ: थे । एक इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर, एक हवलदार और तीन कांस्टेबल । सब ही हथियारबंद थे । उनकी निगाह सामने उल्टी पड़ी कार पर गई ।

“अच्छे टैम पे आ गए आप ।” परमिंदर कह उठा ।

पुलिस वालों की निगाह उन दोनों पर जा टिकी ।

“क्या हुआ यहाँ ?” इंस्पेक्टर उसके पास आ पहुँचा ।

“होना क्या है थानेदार जी ।” दुलारा कह उठा – “बेचारे की गाड़ी ठोक दी ।”

“किसने ?”

“हमें क्या पता जी । वैन थी वो... ।”

“कहाँ है वैन ?”

“इंतजार करो – अभी आती ही होगी ।”

“आती होगी ?” इंस्पेक्टर ने कहा । उसकी वर्दी की जेब पर दलीप सिंह नाम की पट्टी लगी थी ।

“वो क्या है जी । वैन ने, कार को ठोक दिया । कार वाले गुस्से में आ गए । ड्राइवर को पीटने के वास्ते उसी की वैन में बिठा कर ले गए । गुस्सा तो आता ही है । हम भी यहीं रुक गए थे कि ड्राइवर को दो-चार हाथ जरूर लगाएँगे । एक बार मेरी नई गाड़ी को टैम्पो वाले ने ठोक दिया था । वो भाग गया । तब से जहाँ भी एक्सीडेंट देखते हैं तो रुककर ड्राइवर को जरूर पीटते हैं ।”

इंस्पेक्टर दलीप सिंह और सब-इंस्पेक्टर की नजरें मिलीं ।

“जाते वक्त वो हमें यहीं रुकने को कह गए थे कि ड्राइवर को अकेले में पीटकर अभी लाते हैं । बहुत देर लगा दी । अब तो हम जाने ही वाले थे कि आप आ गए । कोई बात नहीं । कुछ देर और रुक जाते हैं ।”

“कितने लोग थे ड्राइवर को ले जाने वाले ?”

“दो ।”

“उनके नाम ?”

“हमें क्य पता जी । वो हमारे रिश्तेदार तो हैं नहीं, जो हम नाम पूछते । क्यों परमिंदर ?”

“ठीक तो कह रहा है तू – अब मैं क्या कहूँ ।”

“हमारा एक्सीडेंट से क्या वास्ता ? हम तो राह चलते हैं । ड्राइवर को पीटने वास्ते रुक गए । बहुत बुरा हुआ, बेचारे कार वाले के साथ । नई कार ठोक दी बेचारे की । दुख में रात को मुझे दो पैग तो पीने ही पड़ेंगे ।”

“मैं भी पी लूँगा ।”

“तू भी लगा लियो ।”

“मिलापे ।” इंस्पेक्टर दलीप सिंह ने सख्त स्वर में सब-इंस्पेक्टर से कहा – “गिरफ्तार कर इन्हें ।”

“गिरफ्तार ?” दुलारा हड़बड़ाया – “लेकिन मारा कसूर क्या है । इस बार तो हमने ड्राइवर को भी नहीं पीटा ।”

दोनों कांस्टेबलों ने उन दोनों की बाँह पकड़ ली थी ।

“हमें छोड़ दो थानेदार साहब । हम तो शरीफ लोग... ।” परमिंदर ने कहना चाहा ।

“जानते हो वो बैंक वैन थी ।” इंस्पेक्टर दलीप सिंह तेज स्वर में कह उठा ।

“तो हमें क्या – हम तो... ।”

“उसमें डेढ़ सौ करोड़ रुपया पड़ा था । वो दोनों लुटेरे थे जो वैन को ले गए ।” इंस्पेक्टर दलीप सिंह कठोर स्वर में बोला ।

“क्या ?” परमिंदर और दुलारे का मुँह खुला रह गया – “डेढ़ सौ करोड़ रूपये – वैन में ।”

“ओ लुट गई ।” दुलारा के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला ।

“वो तो ठीक है ।” परमिंदर जल्दी से बोला – “लेकिन थानेदार साहब हमें क्यों पकड़ा जा रहा... ।”

“अभी तो पूछताछ के लिए पकड़ रहे हैं । कहीं फँसते नजर आए तो केस बनाकर जेल में भी भेज देंगे । मिलापे... ।”

“जी इंस्पेक्टर साहब ।” सब-इंस्पेक्टर मिलाप सिंह फौरन बोला ।

“वायरलैस से जल्दी से वैन के बारे में हैडक्वार्टर खबर कर । हैडक्वार्टर वाले पूरे लुधियाने में फैली पुलिस गाड़ियों को वैन के बारे में खबर कर देंगे । बाहर जाने के रास्तों पर बैरियर लग जाएँगे । वो लुटेरे वैन लेकर लुधियाने से बाहर नहीं जा सकेंगे ।”

सब-इंस्पेक्टर मिलाप सिंह जल्दी से जीप की तरफ दौड़ा ।

“इंस्पेक्टर साहब ।” दुलारा हाथ जोड़कर बोला – “हमारा कोई कसूर नहीं । हमें छोड़ दीजिए ।”

“तुमने उन दोनों को अच्छी तरह देखा जो वैन को ड्राइवर के साथ ले गए ।”

“बोत अच्छी तरह देखा ।”

“उनका हुलिया । चेहरा-मोहरा बहुत अच्छी तरह बता सकते हो ?”

“बोत अच्छी तरह ।”

“तो तुम दोनों का कसूर यही है कि उन दोनों लुटेरों को बहुत अच्छी तरह देखा । उनका हुलिया भी बता सकते हो । दोबारा देखोगे तो उन्हें पहचान भी लोगे । अब तुम पुलिस के गवाह हो ।” इंस्पेक्टर दलीप सिंह ने खा जाने वाली निगाहों से दोनों को देखा – “थाने चलो वहीं पर तुमसे बात की जाएगी । मुझे तो शक है कि तुम दोनों उन लुटेरों के साथी ही हो ।”

“ये क्या कह रहे हो थानेदार साहब ।” परमिंदर एकाएक काँप कर सूखे स्वर में कह उठा ।

“हम तो लुधियाने के बहुत शरीफ बंदे हैं । वो हमारी दुकान के बाहर बैठने वाला सिपाही हमें बहुत अच्छी तरह जानता है ।”

इंस्पेक्टर दलीप सिंह ने सब-इंस्पेक्टर मिलाप सिंह को देखा जो कि वायरलैस पर हैडक्वार्टर को यहाँ की खबर दे रहा था । दो मिनट में ही वो पलटकर वापस आया और दलीप सिंह से बोला –

“अब क्या करें सर ?”

“इन दोनों को थाने ले चलते हैं । पूछताछ करेंगे । उन लुटेरों का फौरन पता लगाना है । मुझे तो ये दोनों हरामी लगते हैं ।”

“हरामी ?” दुलारे को अपनी साँसें रुकती सी महसूस हुई ।

“थाने पहुँचकर आठ-दस पुलिस वालों की टुकड़ी तैयार करके इस रास्ते पर आगे भेज देना । वो सब वैन को ढूँढ़ेंगे ।”

“जी सर ।”

☐☐☐