दोबारा होश में आने पर विक्रम को अपने सिर के पृष्ठ भाग में तेज दर्द महसूस हुआ । उसे लगा कि उस स्थान से शुरू होकर रीढ़ की हड्डी तक से दर्द की लहरें गुजर रही थीं ।


कुछ देर यही स्थिति रही फिर धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा । अंत में, सिर के पिछले हिस्से तक ही दर्द सीमित रह गया ।


विक्रम ने आंखें खोली तो स्वयं को उसी जगह पर पाया । लेकिन इस दफा वह कुर्सी पर बैठा न होकर औंधे मुंह फर्श पर पड़ा था । उसकी कलाइयों और टखनों को पहले आपस में फिर एक-दूसरे के साथ इतनी मजबूती के साथ बांध दिया गया था कि वह हिल भी नहीं सकता था ।

लेकिन अपने पास ही खड़े जीवन और लीना उसे दिखाई दे रहे थे ।


कैसे हो, विक्रम ?" जीवन ने पूछा ।


जवाब में विक्रम ने एक मोटी गाली उसे दी ।


जीवन हंसा ।


"देखा तुमने, लीना !" वह बोला, "यह इस हाल में ज्यादा खुश है ।"


लीना कुछ नहीं बोली ।


"तुम स्वामख्वाह इसकी फिक्र कर रही थीं ।" जीवन ने कहा, "पता नहीं क्यों तुम इसके लिए इतनी ज्यादा फिक्रमंद हो । फिलहाल यह किसी भी हाल में रहे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । आखिरकार, आफताब आलम ने इसकी छुट्टी तो कर ही देनी है । खैर, अब तुम यहीं रहकर इंतजार करो । मैं जा रहा हूं ।"


"लेकिन मैं अकेली यहां नहीं रहूंगी...।"


"तुम्हारा भेजा फिर गया लगता है ।"


"कैसे ?"


"तुम चाहती हो, मैं आफताब आलम से तुम्हारी शिकायत कर दूं कि तुमने यहां रहने से इंकार कर दिया था ?"


लीना चुप रही ।


"सुनो, अगर मैंने उससे शिकायत कर दी कि तुमने स्वामख्वाह परेशानी खडी करने की कोशिश की थी तो वह एक बार फिर तुम्हारी शक्ल बिगाड़ देगा ।" जीवन ने कहना जारी रखा, "घबराओ मत । पुलिस इतनी जल्दी यहां नहीं आएगी । और अगर, किसी वजह से आ ही जाती है तो उन्हें चलता कर देने के लिए किसी का यहां रहना जरूरी है । इसलिए तुम यहीं ठहरो ।"

"ठीक है ।" लीना बेमन से बोली-"जल्दी करो ।"


"जल्दी के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता ।"


"मतलब ?"


"पहले मैं फोन द्वारा आफताब आलम को कांटेक्ट करने की कोशिश करूंगा ?"


"लेकिन आफताब आलम को कांटेक्ट करने तो जनार्दन कार लेकर गया है जिसमें तुम दोनों विक्रम को यहां लाए थे।"


"अब तक न तो जनार्दन के लौटने और न ही आफताब आलम के खुद पहुंचने या उसका संदेश आने से जाहिर है कि जनार्दन उसे कांटेक्ट नहीं कर पाया ।"


"तो फिर तुम कैसे कर लोगे ?"

"कोशिश तो कर ही सकता हूं ।" जीवन ने कहा-"फिर अगर वह मिल जाता है तो मेरी रिपोर्ट सुनते ही आपे से बाहर हो जाएगा और मैं समझता हूं, अपने आखिरी भाई जहूर आलम की मौत की खबर पाकर उसे सिर के बल दौड़ा चला आना चाहिए । फिर भी हो सकता है उसे देर लग जाए ।"


"बेहतर होगा, लैक्चर देने में वक्त जाया करने की बजाय तुम यहां से चले जाओ ।" लीना ने कुढ़न भरे लहजे में बोली ।


"ओ० के० ।"


विक्रम ने लाइट स्विच ऑफ होने और दरवाजा बंद किए जाने की आवाजें सुनीं ।


वह अंधेरे में पड़ा ताकता रहा । दरवाजे के दूसरी और से बातचीत की अस्पष्ट आवाजें सुनाई दीं । जाहिर था कि लीना और जीवन बाहर दूसरे कमरे में चले गए थे ।


चंद क्षण उनके स्वर सुनाई दिए फिर एक अन्य दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाजें सुनाई दी और फिर खामोशी छा गई ।

विक्रम सोचने लगा । लीना अकेले में क्या करेगी ? क्या वह उससे बातचीत करके वक्त गुजारने की कोशिश करेगी ?


मुश्किल से कुछ ही क्षणों में उसे अपना दूसरा अनुमान सच साबित होता नजर आने लगा ।


कमरे का दरवाजा खुला और लाइट स्विच ऑन कर दिया गया ।


अंधेरे के बाद, अचानक, तेज रोशनी फैल जाने की वजह से विक्रम ने मिचमिचाती आंखों से देखा ।


सामने पास ही लीना खड़ी थी ।


उसकी उम्र करीब तीस साल थी । तीन-चार साल पहले तक वह यकीनन खूबसूरत थी । वह उन नासमझ और बदकिस्मत लड़कियों में से थी जो फिल्मी ग्लैमर से प्रभावित होकर किसी के बहकाने में आकर घर से भाग जाती हैं । लेकिन फिल्म लाइन में एण्ट्री पाने की बजाय सिर्फ आश्वासनों की एवज में बस फिल्मी और गैर फिल्मी मर्दो के बिस्तरों की शोभा बनकर रह जाती हैं । फिर जब तक आंखें खुलती हैं उनके तमाम सपने बिखर चुके होते हैं । और उनमें इतना साहस बाकी नहीं रह पाता कि वापस घर लौट सकें । बेकारी, अभावों और निराशा के मिले-जुले दौर से गुजरते वक्त उन्हें रोटी, कपड़ा और सिर छुपाने के लिए जगह हासिल करने का आम तौर पर एक ही आसान रास्ता नजर आता है ।


जिस्मफरोशी !


वे इसी रास्ते पर न सिर्फ चल पड़ती हैं बल्कि बाकायदा दौड़ने लगती हैं । उनमें से ज्यादातर चकलों में पहुंच जाती हैं । कुछ लाइलाज बीमारियां की शिकार होकर धीरे-धीरे मरने लगती हैं । कुछ जो बीमारियों से बची रहती हैं और 'समझदार' भी होती हैं अपनी तिकडमों से इतना ज्यादा कमाने के फेर में लग जाती हैं कि जवानी ढलने के बाद की जिंदगी भी आराम से गुजर सके । बाकी जो बचखुच जाती हैं, उनमें कुछ तो किसी का हाथ थामकर बैठ जाती हैं । कुछ सिर्फ रखैले बन जाती हैं । और कुछ रखैल बनने के साथ-साथ जुर्म की दुनिया में भी आ जाती हैं ।


लीना इसी आखिरी श्रेणी में आती थी ।


हालांकि जिस्मानी तौर पर कद-बुत के लिहाज से वह अभी भी खूबसूरत थी । गोरा रंग, ऊंचा कद, और पुष्ट सुडौल जिस्म । उसके उभारों में जबरदस्त सैक्स अपील थी । लेकिन उसका चेहरा, जो पहले निश्चित रूप से खूबसूरत रहा था, अब खूबसूरत नहीं रह गया था । गनीमत थी कि वो अरुचिपूर्ण नहीं था । उसके गालों पर करीब पौना इंच व्यास के दो गोल निशान थे । उन जगहों पर चमड़ी यूं काली पड़ी हुई थी मानो जलने के कारण झुलस गई थी । वो निशान उसे आफताब आलम द्वारा बतौर निशानी दिए गए थे । ताकि शीशे के सामने जाते ही लीना को याद आ जाए कि आईंदा बदकारी करने का अंजाम होगा-सिर्फ गालों पर ही नहीं बल्कि समूचे चेहरे पर तेजाब डलवाना ।


वह आफताब आलम की रखैल थी । और आफताब आलम को यह कतई पसंद नहीं था कि उसके पहलु में रहने वाली औरत किसी और का भी पहलु आबाद करे । खासतौर से उसी के सगे भाई का । बेचारी लीना तब तक इतनी समझदार नहीं थी । इसलिए मरहूम महताब आलम के, जो चारों भाइयों में सबसे ज्यादा कमीना था, बहकावे में आने की गलती कर बैठी । यह बात छुपी न रह सकी । दोनों को सजा भुगतनी पड़ी । आफताब आलम ने लीना के तो गाल तेजाब से दाग दिए थे । और उसने तथा उसके दो अन्य भाइयों ने अपने चौथे भाई से हमेशा के लिए ताल्लुकात बिलकुल खत्म कर लिए थे ।


इनके अलावा, लीना के बारे में, और भी बातों की जानकारी विक्रम को थी । उसने सिर ऊपर उठाते हुए मुस्कराने की कोशिश की ।


"हैलो, लीना !" वह बोला ।

"पुलिस की नौकरी तो तुमने छोड़ दी लेकिन अपनी फसादी आदतें अभी तक नहीं छोड़ पाए विक्रम !" लीना ने कहा-"यू आर स्टिल ट्रबल मेकर ।"


"आई डोंट थिक सो ।"


"व्हाट डू यू मीन ?"


"आई मीन, आयम नॉट ट्रबल मेकर । बैटर, कॉल मी ट्रबल शूटर ।" विक्रम मजाकिया लहजे में बोला ।


"ईन माई ओपिनियन देअर इज नो डिफरेंस बिटवीन दी बोथ ।"


"खैर, छोड़ो, इस बहस को । एक लम्बे अर्से बाद मिली हो । सुनाओ, कैसी हो ?"


"मेरी छोड़कर अपनी फिक्र करो ।" लीना ने कहा, तनिक रुकी फिर गम्भीरतापूर्वक पूछा-"तुमने ख्वामख्वाह आफताब आलम से क्यों पंगा ले लिया ? आखिर, इस तरह तुम हासिल क्या करना चाहते हो ?"


"कुछ नहीं । उससे कोई पंगा मैंने नहीं लिया ।"


लीना ने या तो उसकी बात ठीक से सुनी नहीं थी या फिर उस पर ध्यान नहीं दिया ।


"तुम नहीं जानते कि आफताब आलम 'खून का बदला खन' में यकीन रखने वाला आदमी है ।" उसने अपनी ही रौ में कहना जारी रखा-"खासतौर से अपने भाई के खून के मामले में । हालांकि महताब आलम से उसने अपने ताल्लुकात खत्म कर लिए थे । लेकिन भाई होने के नाते उसके खून का बदला भी वह लेना चाहता था । मगर उसकी हत्या इतने रहस्यपूर्ण ढंग से की गई थी कि आज तक भी हत्यारे का पता नहीं चल सका ।" विक्रम ने उसे टोकना चाहा तो उसने हाथ उठाकर रोक दिया और बोली-"परवेज की हत्या का मामला सरासर अलग है । और उसकी हत्या के बाद हालात जितनी तेजी और खतरनाक ढंग से बदले हैं, उनसे मामला और भी खराब हो गया । आफताब के बाकी बचे भाई जहूर आलम की भी इसी चक्कर में जान जाती रही । आफताब पहले ही इंतकाम की आग में जल रहा था । अब तो वह तुम्हें ऐसी मौत मारेगा कि सुनने वाले की भी रूह तक कांप जाएगी ! तुम्हें परवेज की हत्या नहीं करनी चाहिए थी ।"

"मैंने उसकी हत्या नहीं की, लीना !"


"इस तरह इंकार करने से कोई फायदा तुम्हें नहीं होगा, विक्रम !"


"झूठ बोलना मेरी आदत नहीं है ।" विक्रम अपने स्वर में दृढ़ता लाने की कोशिश करता हुआ बोला-"असलियत यह है, परवेज आलम जैसे घमंडी और डींगें हांकने वाले आदमी को एक दिन किसी-न-किसी ने ठिकाने लगाना ही था । उसने एक शरीफ और गरीब आदमी पर अपनी हेकड़ी का सिक्का जमाने की कोशिश की थी मगर मैंने ऐसा नहीं होने दिया । और इसके लिए मुझे परवेज की खासी धुनाई करनी पड़ी । उसी खुन्नस में वह मुझसे बदला लेना चाहता था । लेकिन इत्तिफाक से मुझ तक पहुंच नहीं पाया । अगर वह मेरे सामने पड़ जाता और कोई बेजा हरकत करता तो मैं यकीनन उसे शूट कर देना चाहता था । और उस सूरत में इंकार भी नहीं करना था । मैं सच कहता हूं उसकी हत्या मैंने नहीं किसी और ने की थी ।"


"लेकिन, विक्रम मैं...।"


"लेकिन को गोली मारो । मेरी बात पर यकीन करो ।"

लीना ने अपना होंठ चबाते हुए गौर से विक्रम को देखा ।


देर तक दोनों खामोशी से एक-दूसरे को ताकते रहे ।


"मुझे तुम्हारी बात पर यकीन है ।" अंत में, लीना बोली, "लेकिन हालात...।"


"थैंक्यू, लीना !" विक्रम उसकी बात काटता हुआ बोला-'जहां तक हालात का सवाल है, बदकिस्मती से, वे मेरे खिलाफ हैं । और इस कदर खिलाफ हैं कि मैं कोई सफाई तक पेश नहीं कर सकता ।"


"इसका नतीजा जानते हो ?"


"हां ।" विक्रम गहरी सांस लेकर बोला, "तुम बता ही चुकी हो कि मुझे तड़पा-तड़पा कर मार डाला जाएगा । यानी एक ऐसे गुनाह की सजा दी जाएगी जो मैंने किया ही नहीं ।"


"मैं भी यही सोच रही हूं ।"


"तुम क्यों परेशान होती हो ?"

"यह ठीक है कि मैं बुरी औरत हूं ।" लीना कुछ पल खामोश रहने के बाद विचारपूर्वक बोली, "लेकिन इन्सानी जज्बात मेरे अन्दर भी हैं । किसी बेगुनाह को सजा पाते मैं नहीं देख सकती । खासतौर पर तुम्हें ।"


विक्रम चौंका ।


"खुद पर इस खास मेहरबानी की वजह जान सकता हूं ।"


"जरूर । किसी की कर्जदार बनी रहना मेरी आदत नहीं है ?"


विक्रम ने असमंजसतापूर्वक उसे देखा ।


"क्या मतलब ?"


लीना मुस्कराई ।

"भूल गए ?"


"पहेलियां मत बुझाओ, प्लीज ।" विक्रम उलझन भरे स्वर में बोला-"साफ-साफ बताओ ।"


"तुमने एक बार, गुण्डों द्वारा जबरन उठाए जाने से, मुझे बचाया था । और यह जानते हुए भी, मैं जिस्मफरोशी का धंधा करती थी और उस रात ग्राहक फंसाने के चक्कर में ही वो फसाद हुआ था, मुझे अरैस्ट करने की बजाय चली जाने दिया था । अब याद आया ?"


विक्रम को अपनी पुलिस की नौकरी के दौरान ऐसे लफड़ों से दर्जनों मर्तबा निपटना पड़ा था । इसलिए लीना के साथ हुई घटना विस्तारपूर्वक तो याद नहीं आ सकी । अलबत्ता इतना जरूर याद आ गया कि लीना के साथ हुई किसी वारदात में उसने लीना की मदद की थी ।


"वो सब मेरी नौकरी का हिस्सा था ।" वह लापरवाही से बोला-"तुम ख्वामखाह उसे अहमियत दे रही हो और फिर अब उस बात को याद दिलाने की क्या तुक है ?"


"मैं नहीं जानती तुमने वो सब क्यों किया था । मगर मैं खुद को तुम्हारी अहसानमन्द मानती हूं ।" लीना गम्भीरतापूर्वक बोली-"तुम्हें शायद याद नहीं आ रहा है । असलियत यह है, अगर उस रात तुम सही वक्त पर नहीं आ पहुंचते तो शराब के नशे में धुत्त उन गुण्डों ने मुझे चाकू से चीर डालना था । क्योंकि वे मुझे अपनी कार में लादना चाहते थे और मैं पूरी ताकत से प्रतिरोध कर रही थी । संयोगवश उसी रास्ते से तुम अपनी ड्यूटी से लौट रहे थे । अपनी मोटर साइकिल खड़ी करके पहले तो तुमने चेतावनी दी । लेकिन नशे में धुत्त उन गुण्डों पर असर नहीं हुआ । तुमने हवाई फायर किया । मगर उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा । तब तुम अकेले ही उन पर पिल पड़े और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया । लेकिन मुझे बचाने के चक्कर में उनके चाकू के वारों से तुम भी बाल-बाल ही बचे थे । यानी आज मैं तुम्हारी वजह से ही जिंदा हूं ।" वह तनिक रुकी, फिर बोली-"इससे बड़ा अहसान और क्या हो सकता है ?"


"छोड़ो, वो कोई अहसान नहीं था । पुलिस वालों के साथ ऐसा होता ही रहता है ।"


"इतनी अनजान मैं नहीं हूं जितना कि तुम समझ रहे हो । जरायमपेशा लोगों में रहने की वजह से, जुर्म की दुनिया में, तुम्हारी शोहरत से मैं भी वाकिफ हूं । सब जानते हैं एस. आई. विक्रम खन्ना ईमानदार, कानून का मुहाफिज और अपने फर्ज का पाबन्द पुलिस अफसर हुआ करता था । जो कुछ तुमने किया वैसा कम ही पुलिस वाले करते हैं । वरना ज्यादा तादाद उस महकमें में लालची, खुदगर्ज और भ्रष्ट लोगों की है ।"

लीना बाकायदा लैक्चर देने लगी थी ।


लेकिन विक्रम का ध्यान उसकी ओर नहीं था । काफी देर से हिल-डुल भी न पाने और एक ही स्थिति में पड़ा रहने के कारण उसे पीठ के निचले भाग की मांसपेशियों में भारी ऐंठन महसूस होने लगी थी । उसने अपनी कलाइयों और टखनों को परस्पर बांधने वाली रस्सी पर जोर डालते हुए उस स्थिति से बचने की कोशिश करनी चाही तो रस्सी के बन्धन गोश्त फाड़कर अन्दर घुसते प्रतीत हुए । पीड़ा के आधिक्य के कारण उसका चेहरा विकृत हो गया, शरीर से पसीना फूट निकला और न चाहते हुए भी कण्ठ सेहल्की-सी कराह निकल गई ।


लीना के चेहरे पर अत्यन्त सहानुभूतिपूर्ण भाव दृष्टिगोचर होने लगे । उसका नारी मन विक्रम को असहनीय पीड़ा सहते देखकर पिघल गया । भावावेग के कारण उसकी आंखों के कोरों पर गीलापन उभर आया था ।


इससे पहले कि विक्रम समझ पाता, या कुछ कहता लीना सधे हुए कदमों से चलती हुई उसके पास पहुंची और नीचे बैठ गई ।


उसने कांपती उंगलियों से बन्धन खोलने आरम्भ कर दिए ।

जल्दी ही विक्रम बन्धन-मुक्त हो गया ।


लेकिन एकाएक उसे यकीन नहीं आ सका । उसने सोचा तक नहीं था कि इतनी आसानी से आजाद हो जाएगा । फिर अचानक आजादी का मुकम्मल अहसास होते ही उसने राहत की गहरी सांस ली ।


उसे उम्मीद बंधने लगी कि लीना का सहयोग प्राप्त हो जाने की वजह से वह इस नई मुसीबत से छुटकारा पा सकता था ।


वह कुछ देर उसी तरह पड़ा रहा फिर पलटकर पीठ के बल लेट गया ।


लीना ने पहले उसकी कलाइयां और फिर टखने सहलाए ।


अन्त में, जब रक्त सामान्य रूप से प्रवाहित होने लगा तो विक्रम उठ बैठा । "बहुत-बहुत शुक्रिया, लीना !"


लीना के होंठों पर फीकी-सी मुस्कराहट तैर गई ।

"इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नहीं है । तुम्हारी मदद करके मैंने सिर्फ तुम्हारा कर्जा चुकाने की कोशिश की है ।"


फिर इससे पहले कि विक्रम कुछ समझ पाता, अचानक प्रवेश द्वार पर बाहर से रुक-रुक कर तीन बार दस्तक दी जाने की आवाज सुनकर दोनों बुरी तरह चौंक गए ।


लीना ने अपने होंठों पर उंगली रखकर मौन रहने का संकेत किया फिर सहमी-सी धीमी आवाज में जल्दी-जल्दी बोली-"जीवन लौट आया है । तुम यहीं ठहरो मैं जाकर दरवाजा खोलती हूं । हालात के मुताबिक जैसा मुनासिब समझो करना । लेकिन यहां से भाग जाना । लेकिन मेहरबानी करके कोई ज्यादा चोट मत पहुंचाना ।"


विक्रम ने सहमतिसूचक सिर हिला दिया ।


वह उठकर खड़ा हो गया ।


लीना लाइट ऑफ करके बाहर निकली और दरवाजा बन्द कर दिया ।

विक्रम, दरवाजे की साइड में खड़ा रहकर, दम साधे इंतजार करने लगा ।


प्रवेश-द्वार खुलने और बन्द होने की आहट हुई ।


फिर जीवन का उत्तेजित मगर हांफता-सा स्वर बाहरी कमरे से आता सुनाई दिया ।


"आफताब से फोन पर बातें हो गई ।"


"क्या कहा उसने ?" लीना ने आशंकित स्वर में पूछा ।


"वह यहीं आ रहा है । मुश्किल से पांच मिनट में आ पहुंचेगा । फिर देखना कितना मजा आएगा । विक्रम के बच्चे की वो गत बनाएगा कि साला मौत की भीख मांगने पर मजबूर हो जाएगा । और वो भीख उसे मिलेगी नहीं । आफताब आलम इसे तड़पा-तड़पा कर मारेगा । मैं अन्दर जाकर साले को खुशखबरी सुनाता हूं ।"

अगले ही क्षण दरवाजा खोलकर वह भीतर वाले कमरे में दाखिल हो गया ।


उसने लाइट ऑन की और उस दिशा में पलटा जिधर विक्रम को बंधा पड़ा छोड़ गया था ।


तभी दरवाजे के पल्ले की आड़ से निकलकर विक्रम उसके सामने आ पहुंचा ।


जीवन झटका-सा खाकर रह गया । आश्चर्य एवं अविश्वास के कारण उसकी आंखें फट पड़ी । समस्त शरीर को एकाएक मानों लकवा-सा मार गया था । उसके मुंह से बोल तक नहीं फूटा ।


विक्रम के चेहरे पर मुस्कराहट थी ।


"हैलो, जीवन !" कई क्षणोपरान्त वह बोला ।


जीवन ने कुछ कहना चाहा मगर इस प्रयास में सिर्फ हकलाकर रह गया । फिर लगभग फौरन ही मानों उसे असलियत का अहसास हो गया और उसका दायां हाथ अपनी पेंट की दायीं जेब की ओर लपका ।

विक्रम समझ गया, जीवन की उस जेब में निश्चित रूप से पिस्तौल या रिवॉल्वर जैसी कोई चीज थी । क्योंकि जीवन में खाली हाथ उससे उलझने की हिम्मत नहीं थी इसलिए वह हथियार का सहारा लेना चाहता था । मगर उसकी यह कोशिश कामयाब नहीं हो सकी ।


उसका हाथ जेब तक पहुंचने से पहले ही, विक्रम ने अपने शरीर की तमाम ताकत दाएं हाथ में समेटकर एक मुक्का उसके जबड़े पर दे मारा ।


जीवन उलटकर पीछे जा गिरा ।


उसका सिर भड़ाक से कमरे के पक्के फर्श से टकराया और उसकी चेतना लुप्त हो गई ।


उसका शरीर निश्चल था । मुंह से खून बह रहा था । और सांस दांतों के बीच से फंस-फंसकर निकल रही थी ।


विक्रम नीचे झुककर उसकी तलाशी लेने लगा ।

अपनी रिवॉल्वर तो उसे जीवन में पैंट की दायीं जेब में मिल गई । मगर कैपसूल कहीं नहीं मिला ।


विक्रम ने जुराबों और जूतों समेत जीवन के कोट का अस्तर तथा अन्य सभी सम्भावित स्थान, जहां कैपसूल छुपाया जा सकता, छान मारे मगर वो उसके हाथ नहीं आ सका ।


हैरान और परेशान विक्रम की समझ में नहीं आ सका, क्या करे, सारे बखेड़े की जड़ उस कैपसूल को कहां ढूंढे ।


"विक्रम !" अचानक लीना ने टोका-"आफताब आलम आने वाला ही होगा ।"


विक्रम ने सहमतिसूचक सिर हिलाया ।


"जानता हूं ।" वह थके स्वर से बोला-"जीवन ने कहा था कि वह पांच मिनट पहुंच जाएगा ।"


"उसमें से करीब तीन मिनट गुजर चुके हैं ।"

"यह भी जानता हूं ।"


"तो फिर यहां क्या कर रहे हो ? जाते क्यों नहीं ? फॉर गॉड्स सेक, फौरन चले जाओ ।"


विक्रम सीधा खड़ा हो गया ।


"जीवन ने मेरी जेब से एक कैपसूल भी निकाला था ।" वह लीना की ओर देखता हुआ चिन्तित स्वर में बोला-"लेकिन अब इसके पास वो मिल नहीं रहा है ।"


"हेरोइन के कैपसूल के बारे में जीवन ने बताया तो था ।"


"उसकी बकवास को गोली मारो ।" विक्रम अधीरतापूर्वक बोला-"मैं हेरोइन एडिक्ट नहीं हूं । असलियत यह कि है उस कैपसूल में और भी कुछ है ।"


"म...मैं उसका पता लगाने की कोशिश करूंगी ।" वह याचनापूर्ण स्वर में बोली-"अब तुम फौरन यहां से चले जाओ, प्लीज ।"

"ओ. के. लीना । थैंक्यू अगेन !" विक्रम गहरी सांस लेकर बोला-"आफताब आलम को यकीन दिला देना कि जीवन मुझे ठीक से नहीं बांध सका था । इसलिए स्वयं को बन्धनमुक्त करके भाग गया ।" उसने विचारपूर्वक लीना को देखा-"अब तुम जरा चुपचाप खड़ी रहना ।"


लीना के चेहरे पर उत्पन्न भावों से साफ जाहिर था, वह जानती थी, क्या होने वाला था । वह चुपचाप खड़ी रही ।


विक्रम ने उसकी कनपटी पर, हाथ में थमी अपनी रिवॉल्वर के दस्ते से नपा-तुला वार कर दिया ।


लीना त्यौराकर नीचे गिरने लगी तो विक्रम ने उसे अपनी बांहों में सम्भालकर धीरे से नीचे लिटा दिया ।


वह बेहोश हो चुकी थी ।


लीना की सलामती की खातिर आफताब को शक करने का मौका न देने के लिए, वो सब करना बेहद जरूरी था ।

विक्रम के लिए एक-एक पल कीमती था । आफताब आलम के पहुंचने से पहले वह उस स्थान से दूर चला जाना चाहता था ।


उसने लाइट ऑफ करके प्रवेश-द्वार थोड़ा-सा खोला । एहतियातन बाहर झांका तो एक सुनसान गली दिखायी दी ।


वह बाहर निकला, दरवाजा बन्द किया और सिर झुकाए तेजी से गली के दहाने की तरफ बढ़ गया ।


वह जल्दी से जल्दी उस स्थान से यथासम्भव दूर पहुंच जाना चाहता था ।


अपनी इस कोशिश में वह कामयाब भी हो गया ।


उसने वो रात निहयात घटिया किस्म के एक ऐसे होटल में गुजारी जहां चौबीस घण्टे के पेशगी किराये की एवज में बिना किसी पूछताछ के आसानी से कमरा मिल जाता था ।


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